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आमने-सामने कवि - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/aamne-samne-kawi-priyadarshan-kavita?sort= | [
"आदरणीय विष्णु खरे और विष्णु नागर से क्षमायाचना सहित बहुत मुमकिन हैं आप एक की उम्मीद कर रहे हों और दूसरा निकल आए आख़िर दोनों बिल्कुल आमने-सामने रहते हैं और ऐसी चूक तो हो सकती है कि सोसाइटी के दरबान के समझाने के बावजूद आप ठीक से समझ न पाएँ कि बाएँ वाला या दाएँ वाला फ़्लैट विष्णु नागर का है और आप विष्णु खरे के घर की घंटी बजा दें। ये जानकर कि नागर से मिलने की कोशिश में आप खरे के घर चले आए हैं, विष्णु जी की प्रतिक्रिया क्या होगी, ये मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकता क्योंकि उनकी प्रतिभा, विदग्धता और उनके वाक्-चातुर्य का लोहा सब मानते हैं और मैं भी क़ायल रहा हूँ उनकी प्रखर टिप्पणियों, उनकी उनसे भी प्रखर कविताओं का—आप ध्यान देंगे कि मैं इस कविता में भी उनकी शैली की नक़ल करने की कितनी नाकाम-सी कोशिश कर रहा हूँ। बहरहाल, मैं आपकी जगह होऊँ तो शायद विष्णु जी की डाँट सुनकर भी पुलकित हो जाऊँ कि देखो हिंदी के दो कवि बिल्कुल आमने-सामने रहते हैं। यह पुलक इस बात से कम नहीं होगी, शायद कुछ बढ़ ही जाए कि विष्णु जी डाँटें नहीं, सीधे बता दें कि सामने वाला घर नागर का है या फिर हँसते हुए बोलें कि मैं तो कवि हूँ, संपादक-कवि सामने रहते हैं। वैसे, दो कवि आमने-सामने रहते हैं, इसमें कोई काव्यात्मक संभावना दिल्ली की बहुत सारी कॉलोनियों में एक साथ रहते बुद्धिजीवियों, कवियों और कथाकारों को एक बेतुकी-सी चीज़ लग सकती है, मेरी तरह के सामान्य पाठक को फिर भी यह तथ्य लुभाता है—इस बात से बेख़बर कि दोनों कवियों में कौन बड़ा या वरिष्ठ है, इस बात से बेपरवाह कि कई आलोचक और पाठक—जिनमें शायद मैं भी शामिल हूँ—विष्णु नागर और विष्णु खरे में नाम और पड़ोस के साम्य के अलावा और कोई साम्य न देखते हों। धीरे-धीरे मेरे भीतर यह सवाल भी उभरता है कि क्या यह कवि-पड़ोस आपस में बतियाता होगा, या अपनी पकाई सब्ज़ियाँ एक-दूसरे तक पहुँचाता होगा या चायपत्ती या चीनी घट जाने पर एक-दूसरे से माँगता होगा? हालाँकि अब के ज़माने में यह रिवाज भी बीते ज़माने की चीज़ हो चुका है, लेकिन संभावना की तरह तो यह अब भी शेष है।और मैं दोनों कवि पत्नियों से अपने नाकुछ परिचय से कहीं ज़्यादा अपनी सहज बुद्धि से कल्पना या कामना करता हूँ कि दोनों के बीच कवियों की तुलना में कहीं ज़्यादा आत्मीयता होगी या साझा होगा। मैं ये भी सोचता हूँ कि जब यह सोसाइटी बन रही होगी तब आस-पास रहने की संभावना क्या इन कवियों को क़रीब लाई होगी? क्या तब अपना-अपना छिंदवाड़ा या शाजापुर पीछे छोड़ते हुए विस्थापन की कोई हल्की कचोट इनके भीतर रही होगी या ये इरादा कि एक दिन यमुना पार के इस मयूर विहार को छोड़कर वे अपने पुराने मुहल्लों और घरों में लौटेंगे? या ये राहत कि दिल्ली में अब इनके सरों पर एक छत है जो ढलती हुई उम्र में इनका आसरा बनेगी? या ये अफ़सोस कि अब उनके बच्चे इस बेगाने और बेवफ़ा शहर को अपना घर मानेंगे, उन छूटे हुए शहरों के बदरंग होते घरों को नहीं, जिनमें उनका अपना बचपन कटा और जहाँ से वे इस लायक़ बने कि दिल्ली तक आ सकें? या ये कि ये दोनों विस्थापित कवि जब अपने घरों का बनना देख रहे होंगे तो ऐसे या इससे मिलते-जुलते कई एहसासों में आपस में साझा करते होंगे? या फिर यह कि व्यक्तियों और पड़ोसियों के तौर पर कभी ये बेहद सहज और आत्मीय रहे लोग क्या कवि होने की महत्त्वाकांक्षा या एक ही संस्थान में नौकरी करने की मजबूरी में कभी एक-दूसरे से टकराए होंगे और फिर धीरे-धीरे इतने दूर निकल आए होंगे कि आमने-सामने घर होने के बावजूद कभी साथ चाय न पीते हों? या फिर यह कि आपसी समझ ने दोनों के बीच रिश्ता तो क़ायम रखा होगा जिसमें कभी-कभार मिलने की औपचारिकता वे निबाह लेते होंगे, लेकिन पुरानी आत्मीयता शेष न हो?बहरहाल, दो लोगों के बेहद निजी जीवन में घुसपैठ की यह कोशिश कई और सवालों को अलक्षित नहीं कर सकती। मसलन, दिल्ली में किसी को क्या फ़र्क़ पड़ता है इस बात से कि कौन कहाँ रहता है, भले ही वह कविताएँ लिखता हो और उसके संग्रह में कुछ ऐसी कविताएँ हों जो अपनी मार्मिकता में जीवन को हमारे लिए कुछ ज़्यादा सुंदर और संभावनापूर्ण बनाती हो।या फिर यह कि दो कवि सिर्फ़ दो कवि नहीं, व्यक्ति भी होते हैं और उनके जीवन में कविता के अलावा भी सरोकार होते हैं। और किसी बाहर वाले का इसके बारे में विचार करना जितना अशालीन है, लिखना उससे कहीं ज्यादा उद्धत प्रयत्न है। या फिर यह कि समाज में कवि भले रहते हों, कविता की जगह कम हो गई है। शाइरों की दिल्ली में टायर ज़्यादा दिखने लगे हैं। (हालाँकि इस पंक्ति का वास्ता शरद जोशी के शायर-टायर वाले लेख से नहीं, ज़माने की बदलती सच्चाई से है जिसमें कॉलोनियों में जितने लोग नहीं दिखते उससे ज़्यादा गाड़ियाँ दिखती हैं।) या फिर यह कि कवि पड़ोस में रहें या सैकड़ों मील दूर, वे एक-दूसरे के क़रीब होते हैं। तब भी जब एक दूसरे की प्रतिभा या प्रसिद्धि या रचना से जलते हैं। लेकिन यह जलना भी शायद कहीं बेहतर कविता लिखने की इच्छा का नतीजा होता है। या फिर यह कि वक़्त इतना बदल गया है कि बस्तियों में रहकर भी हम अपने-अपने उजाड़ों में रहने को अभिशप्त हैं। कॉलोनियों में हम चौकीदारों की ज़्यादा परवाह करते हैं, कवियों की नहीं।वैसे उदास करने वाले ख़याल और भी हैं, उदास करने वाली सच्चाइयाँ भी। जैसे अब संवाद नहीं है, सब्र नहीं है समय और भी नहीं है—अपनी-अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के बीहड़ में लहूलुहान पाँव और दिमाग़ों में धँसे काँटे निकालने के लिए भी नहीं। पीछे मुड़कर देखने के लिए भी नहीं, किसी का हाथ थामने, किसी की बात सुनने के लिए भी नहीं। ऐसे सुनसान में क्यों मैं पड़ोस में रह रहे दो कवियों के बहाने अपनी तरह की एक दुनिया की कल्पना करने में लीन हूँ? इस अरक्षित समय में जो जहाँ हो, अच्छे से रहे, हम बस इतनी ही कामना कर सकते हैं। दो कवि अच्छी कविताएँ लिखते रहें, अच्छे पड़ोसी बने रहें और कोई ग़लती से सामने वाले की घंटी बजा दें तो उससे बैठकर दो मिनट बात भी कर लें।",
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धोखा क्या है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/dhokha-kya-hai-pankaj-chaturvedi-kavita-3?sort= | [
"वीरेन डंगवाल के लिएधोखा क्या हैविचलन के सिवाविचलन क्या हैबेहतरी की तलाश के सिवाबेहतरी की तलाश क्या हैतुम्हारी उम्मीद के सिवाउम्मीद क्या हैस्वप्न के सिवास्वप्न क्या हैसाकार के सिवासाकार क्या हैनिराकार के सिवाजो नहीं हैवह क्या हैजो हैउसके सिवा",
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बाबा, ये मैं कैसा कवि हूँ? - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/baba-ye-main-kaisa-kawi-hoon-pradeep-saini-kavita?sort= | [
"कवि नागार्जुन को याद करते हुएयूँ तो जब भी लिखता हूँ कविता की पंक्ति कोईदाएँ हाशिए को वह छूती नहीं कभीपर बाएँ तरफ़ करता हूँ कहाँ से शुरू लिखनायह भी तो तय नहींन फक्कड़ हूँ, न घुमक्कड़एक जगह जमकर फैला रहा हूँ जड़ें गहरीदूर-दूर तक बना रहा हूँ पहुँचसोख लेना चाहता हूँअपने हिस्से से ज़्यादा खनिज और पानीबाबा,साफ़-साफ़ सुनता हूँ तुम्हारी आवाज़कभी हकलाते नहीं हो तुमतुम्हारी आवाज़ में शामिल जो हैंबहुत-सी आवाज़ें गुमनामख़ुद वक़्त की खोई हुई आवाज़ भीपाती है शरण उसमेंमेरी आवाज़ में तो बाबा बस मेरा अपना ही शोर हैजिस प्रेम को कच्चे माल की तरह इस्तिमाल करकविता में बदल देता हूँउसे सबसे छुपाकर एक गुनाह की तरह जीता हूँकठिन समय में करता हूँ प्रेमकमाल यह है कि कविताएँ लिखने के लिएबचा रहता हूँसौ झूठ जीता हूँशुक्र है इतना कि कविता में सिर्फ़ सच लिखता हूँधूल भरे मौसमों मेंमैली हुई आत्मा को धोनेकविता में लौटता हूँ बार-बारहर बार गंदला करता हूँ उसका जलबाबा, ये मैं कैसा कवि हूँ?",
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नज़्र-ए-विष्णु खरे - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/nazr-e-wishnu-khare-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"तुम आ गए कहाँ हो इंतिज़ार ही तो है दिल्ली किसी का घर हो क्यूँ दयार ही तो है ग़ालिब गए गुज़र फ़क़त मज़ार ही तो है उर्दू के नाम का यहाँ बज़ार ही तो है बरसों से अपने बीच जो ख़ामोश खड़ी है दीवार ढह ही जाएगी दीवार ही तो है जो कूच:-क़ातिल में कई बार मरे हैं मरने से क्या डरेंगे इक बार ही तो है!बाग़-ए-बेदिल-24क्यूँ टीस खोटी करता है तू उसकी बात पर वो शाइर-ए-सिनेमा-ए-गुलज़ार ही तो है!",
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यदि वृक्ष के सहारे कहें तो - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/yadi-wriksh-ke-sahare-kahen-to-govind-dwivedi-kavita?sort= | [
"त्रिलोचन के लिएधरती में गहरे तक फैलाए अपनी जड़ें शताब्दियों की स्मृति के बीच मज़बूत तने से आकाश की ओर उन्मुख डालों पर बहुविध पक्षी दिखते हैं पत्तों की संधि से झरता आलोक बनाता है वृत्त धरती से लेकर उस पत्ती के सिरे तक जो कहने को सबसे ऊपर हैकहने को ही नीचे हैं जड़ें धरती के।",
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कवि लोग - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/kawi-log-rituraj-kavita?sort= | [
"कवि लोग बहुत लंबी उमर जीते हैं",
"मारे जा रहे होते हैं",
"फिर भी जीते हैं",
"कृतघ्न समय में मूर्खों और लंपटों के साथ",
"निभाते अपनी दोस्ती",
"उनके हाथों में ठूँसते अपनी किताब",
"कवि लोग बहुत दिनों तक हँसते हैं",
"चीख़ते हैं और चुप रहते हैं",
"लेकिन मरते नहीं हैं कमबख़्त!",
"कवि लोग बच्चों में चिड़ियाँ",
"और चिड़ियों में लड़कियाँ",
"और लड़कियों में फूल देखते हैं",
"सब देखे हुए के बीज समेटते हैं",
"फिर ख़ुद को उन बीजों के साथ बोते हैं",
"कवि लोग बीजों की तरह छिपकर",
"नए रूप में लौट आते हैं",
"फ़िलहाल उनकी नस्ल को कोई ख़तरा नहीं है",
"kavi log bahut la.mbii umar jiite hai.n",
"maare ja rahe hote hai.n",
"phir bhii jiite hai.n",
"kritaghn samay me.n muurkho.n aur la.npTo.n ke saath",
"nibhaate apnii dostii",
"unke haatho.n me.n Thuu.nste apnii kitaab",
"kavi log bahut dino.n tak ha.nste hai.n",
"chiiKHat hai.n aur chup rahte hai.n",
"lekin marte nahii.n hai.n kambaKHta!",
"kavi log bachcho.n me.n chiDiyaa.n",
"aur chiDiyo.n me.n laD़kiyaa.n",
"aur laD़kiyo.n me.n phuul dekhate hai.n",
"sab dekhe hu.e ke biij sameTate hai.n",
"phir KHu ko un biijo.n ke saath bote hai.n",
"kavi log biijo.n kii tarah chhipkar",
"na.e ruup me.n lauT aate hai.n",
"फ़.ilhaal unkii nasl ko ko.ii KHatra nahii.n hai",
"kavi log bahut la.mbii umar jiite hai.n",
"maare ja rahe hote hai.n",
"phir bhii jiite hai.n",
"kritaghn samay me.n muurkho.n aur la.npTo.n ke saath",
"nibhaate apnii dostii",
"unke haatho.n me.n Thuu.nste apnii kitaab",
"kavi log bahut dino.n tak ha.nste hai.n",
"chiiKHat hai.n aur chup rahte hai.n",
"lekin marte nahii.n hai.n kambaKHta!",
"kavi log bachcho.n me.n chiDiyaa.n",
"aur chiDiyo.n me.n laD़kiyaa.n",
"aur laD़kiyo.n me.n phuul dekhate hai.n",
"sab dekhe hu.e ke biij sameTate hai.n",
"phir KHu ko un biijo.n ke saath bote hai.n",
"kavi log biijo.n kii tarah chhipkar",
"na.e ruup me.n lauT aate hai.n",
"फ़.ilhaal unkii nasl ko ko.ii KHatra nahii.n hai",
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शमशेर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/shamsher-viren-dangwal-kavita?sort= | [
"रात आईना है मेरा",
"जिसके सख़्त ठंडेपन में भी",
"छुपी है सुबह",
"चमकीली साफ़",
"झील में दाढ़ी भिगोते सप्तर्षि",
"मुस्कुराते हैं आपस में",
"मेरी तरफ़ इशारा करके",
"मैंने प्रेम किया",
"इसीलिए भोगने पड़े",
"मुझे इतने प्रतिशोध",
"अकेलापन शाम का तारा था",
"इकलौता",
"जिसे मैंने गटका",
"नींद की गोली की तरह",
"मगर मैं सोया नहीं",
"हवाओ, मैं धुल जाऊँ",
"धराओ",
"सूखने को फैला दो मुझे",
"चौड़े जल-प्रपातों के कंधों पर",
"पत्तो मैं जमा रहूँ",
"तुम्हारी तरह",
"एक काँपती हुई कोमल ज़िद",
"कामगारो",
"तुम कहो, ‘ये भी है हमीं’",
"अनश्वरता",
"मैं तुझ में धँसा रहूँ",
"तेरे दिल में मुसलसल गड़ती",
"एक मीठी फाँस!",
"raat aina hai mera",
"jiske sakht thanDepan mein bhi",
"chhupi hai subah",
"chamkili saf",
"jheel mein daDhi bhigote saptarshai",
"muskurate hain aapas mein",
"meri taraf ishara karke",
"mainne prem kiya",
"isiliye bhogne paDe",
"mujhe itne pratishodh",
"akelapan sham ka tara tha",
"iklauta",
"jise mainne gatka",
"neend ki goli ki tarah",
"magar main soya nahin",
"hawao, main dhul jaun",
"dharao",
"sukhne ko phaila do mujhe",
"chauDe jal prpaton ke kandhon par",
"patto main jama rahun",
"tumhari tarah",
"ek kanpti hui komal zid",
"kamgaro",
"tum kaho, ‘ye bhi hai hamin’",
"anashwarta",
"main tujh mein dhansa rahun",
"tere dil mein musalsal gaDti",
"ek mithi phans!",
"raat aina hai mera",
"jiske sakht thanDepan mein bhi",
"chhupi hai subah",
"chamkili saf",
"jheel mein daDhi bhigote saptarshai",
"muskurate hain aapas mein",
"meri taraf ishara karke",
"mainne prem kiya",
"isiliye bhogne paDe",
"mujhe itne pratishodh",
"akelapan sham ka tara tha",
"iklauta",
"jise mainne gatka",
"neend ki goli ki tarah",
"magar main soya nahin",
"hawao, main dhul jaun",
"dharao",
"sukhne ko phaila do mujhe",
"chauDe jal prpaton ke kandhon par",
"patto main jama rahun",
"tumhari tarah",
"ek kanpti hui komal zid",
"kamgaro",
"tum kaho, ‘ye bhi hai hamin’",
"anashwarta",
"main tujh mein dhansa rahun",
"tere dil mein musalsal gaDti",
"ek mithi phans!",
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नज़्र-ए-विनोद कुमार शुक्ल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/poet-on-poet/nazr-e-winod-kumar-shukl-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"पुरानी चीज़ों पर भरोसा करोवे कार-आमद होती हैं! पुरानी पतलून पर पुराने जूतों पर!पुरानी मुहब्बत अब तक पुकारती हैपुरानी आवाज़ में!नई सर्दियों में काम आता है पुराना कोट जिसे तुमने कश्मीर-एंपोरियम से ख़रीदा था असद ज़ैदी के साथ!‘चहिल साल रंज व ग़ुस्सा कशीदेम-व-आक़बत, तदबीरे-मा बदस्ते-शराबे-दो साला बूद!’[चालीस साल तक तक़लीफ़ सहता रहा जबकि मेरा इलाज दो साल पुरानी शराब से होना था!]बाग़-ए-बेदिल-18",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist | [
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कवि के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poet | [
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गजानन माधव मुक्तिबोध के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/gajanan-madhav-muktibodh | [
"अग्रणी कवियों में से एक मुक्तिबोध को विषय-प्रेरणा या अवलंब रखते हुए लिखी गई कविताओं का संचयन।",
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देशभक्ति के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/patriotism | [
"अनुराग और कर्तव्यपरायणता ही नहीं, देश से अपेक्षाओं और समकालीन मोहभंग के इर्द-गिर्द देशभक्ति के विस्तृत अर्थों की पड़ताल करती कविताओं से एक चयन।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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दिल्ली के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/delhi | [
"में दिल्ली कविता-प्रसंगों में अपनी उपस्थिति जताती रही है। ‘हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त’ के मेटाफ़र के साथ ही देश, सत्ता, राजनीति, महानगरीय संस्कृति, प्रवास संकट जैसे विभिन्न संदर्भों में दिल्ली को एक रूपक और प्रतीक के रूप में बरता गया है। प्रस्तुत चयन दिल्ली के बहाने कही गई कविताओं से किया गया है।",
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धर्मनिरपेक्षता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/secularism | [
"संशोधन के साथ धर्मनिपेक्षता शब्द को शामिल किए जाने और हाल में सेकुलर होने जैसे प्रगतिशील मूल्य को ‘सिकुलर’ कह प्रताड़ित किए जाने के संदर्भ में कविता में इस शब्द की उपयोगिता सुदृढ़ होती जा रही है। यहाँ इस शब्द के आशय और आवश्यकता पर संवाद जगाती कविताओं का संकलन किया गया है।",
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न्याय के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/justice | [
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पिता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/father | [
"एक विशिष्ट भूमिका का निर्वाह करता है और यही कारण है कि जीवन-प्रसंगों की अभिव्यक्ति में वह एक मज़बूत टेक की तरह अपनी उपस्थिति जताता रहता है। यहाँ प्रस्तुत है—पिता विषयक कविताओं का एक विशेष संकलन।",
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भूख के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/hunger | [
"करता शारीरिक वेग है। सामाजिक संदर्भों में यह एक विद्रूपता है जो व्याप्त गहरी आर्थिक असमानता की सूचना देती है। प्रस्तुत चयन में भूख के विभिन्न संदर्भों का उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।",
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मातृभाषा के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/mother-language | [
"की वह मूल भाषा होती है जो वह जन्म लेने के बाद प्रथमतः बोलता है। यह उसकी भाषाई और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का अंग होती है। गांधी ने मातृभाषा की तुलना माँ के दूध से करते हुए कहा था कि गाय का दूध भी माँ का दूध नहीं हो सकता। कुछ अध्ययनों में साबित हुआ है कि किसी मनुष्य के नैसर्गिक विकास में उसकी मातृभाषा में प्रदत्त शिक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस चयन में मातृभाषा विषयक कविताओं को शामिल किया गया है।",
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यातना के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/torture | [
"मानसिक कष्ट की स्थिति है। इस चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है, जिनमें यातना एक केंद्रीय विषय है।",
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शहर के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/city | [
"के केंद्र बन गए हैं, जिनसे आबादी की उम्मीदें बढ़ती ही जा रही हैं। इस चयन में शामिल कविताओं में शहर की आवाजाही कभी स्वप्न और स्मृति तो कभी मोहभंग के रूप में दर्ज हुई है।",
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सप्तक के कवि के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/saptak-ke-kavi | [
"प्रकाशित सप्तक शृंखला के काव्य-संग्रह, न स्वयं इतिहास का अंग हैं; बल्कि भविष्य की कविता-धारा के लिए भी एक दिशादृष्टि प्रदान करते हैं। ‘तार-सप्तक’ से शुरू हुई यह शृंखला ‘चौथा सप्तक’ के प्रकाशन के साथ पूरी हुई और इस क्रम में आधुनिक कविता की समकालीन धारा के प्रतिनिधित्व के साथ आगे की कविता-पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त किया। इस चयन में सप्तक में शामिल कवियों की कविताओं को जगह दी गई है।",
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संसार के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/world | [
"जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।",
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सांप्रदायिकता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/communalism | [
"विशेष से संबद्धता का प्रबल भाव है जो हितों के संघर्ष, कट्टरता और दूसरे संप्रदाय का अहित करने के रूप में प्रकट होता है। आधुनिक भारत में इस प्रवृत्ति का उभार एक प्रमुख चुनौती और ख़तरे के रूप में हुआ है और इससे संवाद में कविताओं ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई है। इस चयन में सांप्रदायिकता को विषय बनाती और उसके संकट को रेखांकित करती कविताएँ संकलित की गई हैं।",
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गुजराती कविता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/gujarati-kavita | [
"कवियों की श्रेष्ठ और लोकप्रिय कविताओं से एक चयन।",
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गुजराती कविता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/gujarati-kavita/kavita | [
"कवियों की श्रेष्ठ और लोकप्रिय कविताओं से एक चयन।",
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अहमदाबाद-1981 - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/ahamadabad-1981-mangal-rather-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"उन लोगों ने",
"गांधीजी की आँखों पर",
"पट्टी बाँध दी",
"और हम में से",
"किसी-किसी को",
"थोड़ा-थोड़ा दिखता था",
"वे सारे अंध हो गए।",
"उन लोगों ने",
"गांधीजी के कान में",
"रूई का गाला घुसेड़ दिया",
"और हममें से",
"किसी-किसी को",
"जो थोड़ा-थोड़ा सुनाई देता था",
"वे सारे बधिर हो गए।",
"उन लोगों ने",
"गांधीजी के मुँह में गोला ठूस दिया",
"और हम में से",
"किसी को कुछ सच बोलना था",
"वे मूक हो गए।",
"वे लोग",
"कंगाल थे या समृद्ध थे?",
"वे लोग",
"(तबीबी) विद्यार्थी थे या हिंसार्थी थे?",
"वे लोग",
"क्रांतिकारी थे या रूढ़िवादी थे?",
"वे लोग तेजस्वी थे या मेदस्वी थे?",
"एक मृत महात्मा से डर रहे—",
"वे लोग",
"कितने प्रतिशत सोने के थे? या पीतल के थे?",
"एक अंध, बधिर और मूक नगर",
"अब सदियों तक करता रहेगा",
"अगर मगर...!",
"un logon ne",
"gandhi ki ankhon par",
"patti bandh di",
"aur hum mein se",
"kisi kisi ko",
"thoDa thoDa dikhta tha",
"we sare andh ho gaye",
"un logon ne",
"gandhiji ke kan mein",
"rui ka gala ghuseD diya",
"aur hammen se",
"kisi—kisi ko",
"jo thoDa—thoDa sunai deta tha",
"we sare badhir ho gaye",
"un logon ne",
"gandhiji ke munh mein gola thoos diya",
"aur hum mein se",
"kisi ko kuch sach bolna tha",
"we mook ho gaye",
"we log",
"kangal the ya samrddh the?",
"we log",
"(tabibi) widyarthi the ya hinsarthi the?",
"we log",
"krantikari the ya ruDhiwadi the?",
"we log tejaswi the ya medaswi the?",
"ek mrit mahatma se Dar rahe—",
"we log",
"kitne pratishat sone ke the? ya pital ke the?",
"ek andh, badhir aur mook nagar",
"ab sadiyon tak karta rahega",
"agar magar !",
"un logon ne",
"gandhi ki ankhon par",
"patti bandh di",
"aur hum mein se",
"kisi kisi ko",
"thoDa thoDa dikhta tha",
"we sare andh ho gaye",
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पिता के फूल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/pita-ke-phool-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"जिसके कंधे पर चिंताओं का बोझ बनकर",
"घूमते रहे हम सारे आयु-मार्ग में,",
"जग के विविध गली-कूचे में;",
"चढ़ाव-उतराव में भटकते रहे हम",
"बनकर जिसके सर की परेशानियाँ;",
"ले आए आज हम उस शरीर को उठाकर",
"अपने कंधे पर,",
"ले आए रे हम कंधे पर शरीर अपने जनक का।",
"पूर्वजदत्त प्राणधारा पुरातन",
"पली जिसकी अस्थियों में,",
"विस्मय जगाती वह बही हममें,",
"आए हम ऐसे जनक के अस्थिपुंज की भस्म से",
"चुन लेने को अग्निशेष फूल।",
"बुहारकर भरा गर्म राख को टोकरी में",
"और जाकर, पास में बहते सोते के जल में रखा, डुबोया,",
"शीतल किया, ज़रा हिलाया",
"और दूध-से दीखते प्रवाह से",
"चुने मानों तारक स्वर्गंगा के जल से!",
"चुन लिए तारक, फूल; जग का जो कुछ सुंदर, चुन लिया;",
"जो नहीं प्राप्य सरलता से, मिल गया आज वह सकल शिव;",
"शमित हुए मृत्युशोक, निरख कर अमर फहराती",
"पिता के फूलों में धवल कलगी विश्वक्रम की।",
"jiske kandhe par chintaon ka bojh bankar",
"ghumte rahe hum sare aayu marg mein,",
"jag ke wiwidh gali kuche mein;",
"chaDhaw utraw mein bhatakte rahe hum",
"bankar jiske sar ki pareshaniyan;",
"le aaye aaj hum us sharir ko uthakar",
"apne kandhe par,",
"le aaye re hum kandhe par sharir apne janak ka",
"purwajdatt prandhara puratan",
"pali jiski asthiyon mein,",
"wismay jagati wo bahi hammen,",
"aye hum aise janak ke asthipunj ki bhasm se",
"chun lene ko agnishesh phool",
"buharkar bhara garm rakh ko tokari mein",
"aur jakar, pas mein bahte sote ke jal mein rakha, Duboya,",
"shital kiya, zara hilaya",
"aur doodh se dikhte prawah se",
"chune manon tarak swarganga ke jal se!",
"chun liye tarak, phool; jag ka jo kuch sundar, chun liya;",
"jo nahin prapy saralta se, mil gaya aaj wo sakal shiw;",
"shamit hue mrityushok, nirakh kar amar phahrati",
"pita ke phulon mein dhawal kalgi wishwakram ki",
"jiske kandhe par chintaon ka bojh bankar",
"ghumte rahe hum sare aayu marg mein,",
"jag ke wiwidh gali kuche mein;",
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"le aaye aaj hum us sharir ko uthakar",
"apne kandhe par,",
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"purwajdatt prandhara puratan",
"pali jiski asthiyon mein,",
"wismay jagati wo bahi hammen,",
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"chun lene ko agnishesh phool",
"buharkar bhara garm rakh ko tokari mein",
"aur jakar, pas mein bahte sote ke jal mein rakha, Duboya,",
"shital kiya, zara hilaya",
"aur doodh se dikhte prawah se",
"chune manon tarak swarganga ke jal se!",
"chun liye tarak, phool; jag ka jo kuch sundar, chun liya;",
"jo nahin prapy saralta se, mil gaya aaj wo sakal shiw;",
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फैन्सी ड्रेस - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/phainsi-dress-udayan-thakkar-kavita?sort= | [
"हम स्कूल के दोस्त मिले आपस में,",
"चालीस बरस बाद",
"फैन्सी ड्रेस की पार्टी में।",
"कोई बना मियाँ फुसकी, कोई तभा भटट्,",
"नट्टू बना हेडमास्टर, सुजाता सिण्ड्रेला",
"मैं बना कुबड़ा राक्षस।",
"मेकअप ज़्यादा किया नहीं था, हालाँकि!",
"याद है वो बाथरूम? पहले माले पर?",
"दीवार पर खींची थी सीधी लक़ीर और लिखा था :",
"‘जिसका भी फ़व्वारा यहाँ तक पहुँचे,",
"सीधा जाकर फायर-ब्रिगेड में नौकरी करे।’",
"और वो नट्टू! मास्टरजी ने कैसी ज़ोरदार डाँट पिलाई थी उसे,",
"“क्यों,रे! कॉपी कैसे छोड़ दी?”",
"नट्टू ने भी बेबाक कह दिया था, ‘‘सर! ब्लैक-बोर्ड पर आपने जो",
"भी लिखा था, सब मैंने ज्यों-का-त्यों उतारा था।’’",
"“फिर? कॉपी कोरी कैसे?”",
"“सर! लास्ट में आपने ब्लैक-बोर्ड को साफ़ जो कर दिया था!”",
"नट्टू कोकाकोला की बोतल दाँत से खोला करता था",
"आज हँसता है, डेण्चर बाहर निकल आते हैं।",
"दुष्यंत गिनती और पहाड़े कैसे बोलता था फर्र-फर्र!",
"आज ख़ुद का नाम भी याद नहीं रहता!",
"सुजाता मुस्कुराती, तो शहनाइयाँ गूँजतीं।",
"आज जस-की-तस कुँआरी बैठी है।",
"हर्ष था हाई-जम्प चैम्पियन!",
"कूदा धड़ाम से नवीं मंज़िल से।",
"मेनका अपने ब्लाउज़ पर पहनती थी तितली का ब्रॉच,",
"उसका अब एक ही स्तन है।",
"आधी रात तक चली थी हमारी फैन्सी ड्रेस पार्टी।",
"सबने पहन रखा था अपना बचपन और",
"दिखा दिया था ठेंगा मृत्यु को!",
"hum school ke dost mile aapas mein,",
"chalis baras baad",
"phainsi dress ki party mein",
"koi bana miyan phuski, koi tabha bhatat,",
"nattu bana headmaster, sujata sinDrela",
"main bana kubDa rakshas",
"mekap zyada kiya nahin tha, halanki!",
"yaad hai wo bathrum? pahle male par?",
"diwar par khinchi thi sidhi laqir aur likha tha ha",
"‘jiska bhi fawwara yahan tak pahunche,",
"sidha jakar phayar brigade mein naukari kare ’",
"aur wo nattu! mastarji ne kaisi zordar Dant pilai thi use,",
"“kyon,re! copy kaise chhoD dee?”",
"nattu ne bhi bebak kah diya tha, ‘‘sar! black board par aapne jo",
"bhi likha tha, sab mainne jyon ka tyon utara tha ’’",
"“phir? copy kori kaise?”",
"“sar! last mein aapne black board ko saf jo kar diya tha!”",
"nattu kokakola ki botal dant se khola karta tha",
"aj hansta hai, Denchar bahar nikal aate hain",
"dushyant ginti aur pahaDe kaise bolta tha pharr pharr!",
"aj khu ka nam bhi yaad nahin rahta!",
"sujata muskurati, to shahnaiyan gunjatin",
"aj jas ki tas kunari baithi hai",
"harsh tha high jamp chaimpiyan!",
"kuda dhaDam se nawin manzil se",
"menka apne blouse par pahanti thi titli ka brauch,",
"uska ab ek hi stan hai",
"adhi raat tak chali thi hamari phainsi dress party",
"sabne pahan rakha tha apna bachpan aur",
"dikha diya tha thenga mirtyu ko!",
"hum school ke dost mile aapas mein,",
"chalis baras baad",
"phainsi dress ki party mein",
"koi bana miyan phuski, koi tabha bhatat,",
"nattu bana headmaster, sujata sinDrela",
"main bana kubDa rakshas",
"mekap zyada kiya nahin tha, halanki!",
"yaad hai wo bathrum? pahle male par?",
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"‘jiska bhi fawwara yahan tak pahunche,",
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"“kyon,re! copy kaise chhoD dee?”",
"nattu ne bhi bebak kah diya tha, ‘‘sar! black board par aapne jo",
"bhi likha tha, sab mainne jyon ka tyon utara tha ’’",
"“phir? copy kori kaise?”",
"“sar! last mein aapne black board ko saf jo kar diya tha!”",
"nattu kokakola ki botal dant se khola karta tha",
"aj hansta hai, Denchar bahar nikal aate hain",
"dushyant ginti aur pahaDe kaise bolta tha pharr pharr!",
"aj khu ka nam bhi yaad nahin rahta!",
"sujata muskurati, to shahnaiyan gunjatin",
"aj jas ki tas kunari baithi hai",
"harsh tha high jamp chaimpiyan!",
"kuda dhaDam se nawin manzil se",
"menka apne blouse par pahanti thi titli ka brauch,",
"uska ab ek hi stan hai",
"adhi raat tak chali thi hamari phainsi dress party",
"sabne pahan rakha tha apna bachpan aur",
"dikha diya tha thenga mirtyu ko!",
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मुझे लगता है। - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/mujhe-lagta-hai-jayant-pathak-kavita?sort= | [
"न रूप है, न रंग, और ढंग भी कैसा अनाकर्षक है,",
"नयनों में बिजली की चमक नहीं, चाल में छटा नहीं,",
"गाल में गुलाब नहीं, रोज़-रोज़ देखकर ऐसा लगता है",
"विरूप के सर्जन में विधाता अपनी कला क्यों व्यर्थ ख़र्च करता",
"रोज़ वैसी सुरेख और मोहक नारी-आकृतियाँ देखता हूँ",
"जिनके नयनों की बिजली का आघात से उर-अद्रि चूर-चूर हो जाता है",
"और एक मैं हूँ इस रूप-हीन जड़ नारी का पति",
"अतुष्ट, भाग्य-बल को दोष देता हुआ जीवन की धुरा ढो रहा हूँ।",
"इसी तरह बहुत दिन बीते और वह एक शिशु की जननी बनी।",
"प्राण के इस लघु पिंड को बड़ी उमंग से उसने पाला-पोसा",
"और वह लघु पिंड, जीवन से छलकता हुआ वह शिशु, घुटनों के",
"बल चलने लगा।",
"आकर माँ की छाती में छिप जाता है और हँसता है माँ की",
"आँखों में देखकर स्नेह की छलक!",
"मुझे लगता है:",
"यदि तुझे चाहने के लिए मैं बन सकूँ बालक!",
"na roop hai, na rang, aur Dhang bhi kaisa anakarshak hai,",
"naynon mein bijli ki chamak nahin, chaal mein chhata nahin,",
"gal mein gulab nahin, roz roz dekhkar aisa lagta hai",
"wirup ke surgeon mein widhata apni kala kyon byarth kharch karta",
"roz waisi surekh aur mohak nari akritiyan dekhta hoon",
"jinke naynon ki bijli ka aghat se ur adi choor choor ho jata hai",
"aur ek main hoon is roop heen jaD nari ka pati",
"atusht, bhagya bal ko dosh deta hua jiwan ki dhura Dho raha hoon",
"isi tarah bahut din bite aur wo ek shishu ki janani bani",
"paran ke is laghu pinD ko baDi umang se usne pala posa",
"aur wo laghu pinD, jiwan se chhalakta hua wo shishu, ghutnon ke",
"bal chalne laga",
"akar man ki chhati mein chhip jata hai aur hansta hai man ki",
"ankhon mein dekhkar sneh ki chhalak!",
"mujhe lagta haih",
"yadi tujhe chahne ke liye main ban sakun balak!",
"na roop hai, na rang, aur Dhang bhi kaisa anakarshak hai,",
"naynon mein bijli ki chamak nahin, chaal mein chhata nahin,",
"gal mein gulab nahin, roz roz dekhkar aisa lagta hai",
"wirup ke surgeon mein widhata apni kala kyon byarth kharch karta",
"roz waisi surekh aur mohak nari akritiyan dekhta hoon",
"jinke naynon ki bijli ka aghat se ur adi choor choor ho jata hai",
"aur ek main hoon is roop heen jaD nari ka pati",
"atusht, bhagya bal ko dosh deta hua jiwan ki dhura Dho raha hoon",
"isi tarah bahut din bite aur wo ek shishu ki janani bani",
"paran ke is laghu pinD ko baDi umang se usne pala posa",
"aur wo laghu pinD, jiwan se chhalakta hua wo shishu, ghutnon ke",
"bal chalne laga",
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तीन कविताएँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/teen-kawitayen-anil-joshi-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"एक",
"मैं फूल के दाम बिका हूँ, और",
"फूल के नाम ज़ख़्मी हुआ हूँ",
"मैं फूल की पंखुड़ियों की गिनती करने वाला",
"एकाउंटेंट नहीं",
"मैं कवि हूँ",
"तुम देख नहीं रहे?",
"फूल के बारे में लिखने जाता हूँ",
"कि तुरंत बॉलपेन गेंद बन जाती है",
"मैं लिख नहीं पाता",
"क्योंकि",
"मैं भी फूल जितना ही निरक्षर हूँ।",
"दो",
"कई बार ऐसा होता है कि",
"आप फूल के बारे में लिख रहे हैं",
"लेकिन बात ख़ुशबू की करते हैं",
"आप गुलाब के बारे में लिख रहे हैं",
"लेकिन बात पंडित नेहरू की करते हैं।",
"क्या आपको नहीं लगता कि",
"यह विषयांतर है?",
"तीन",
"पारिजात के बारे में लिखते समय",
"मेरी नाक आड़े आती है",
"चश्मे आड़े आते हैं",
"आँखें आड़े आती हैं",
"देवता आड़े आते हैं",
"रुक्मिणी आड़े आती है",
"मैं क्या करूँ?",
"मुझसे पारिजात",
"कहीं आड़े हाथ रख दिया गया है।",
"ek",
"main phool ke dam bika hoon, aur",
"phool ke nam jakhmi hua hoon",
"main phool ki pankhuDiyon ki ginti karne wala",
"ekauntent nahin",
"main kawi hoon",
"tum dekh nahin rahe?",
"phool ke bare mein likhne jata hoon",
"ki turant banlapen gend ban jati hai",
"main likh nahin pata",
"kyonki",
"main bhi phool jitna hi nirakshar hoon",
"do",
"kai bar aisa hota hai ki",
"ap phool ke bare mein likh rahe hain",
"lekin baat khushbu ki karte hain",
"ap gulab ke bar mein likh rahe hain",
"lekin baat panDit nehru ki karte hain",
"kya aapko nahin lagta ki",
"ye wishyantar hai?",
"teen",
"parijat ke bare mein likhte samay",
"meri nak aaDe aati hai",
"chashmen aaDe aate hain",
"ankhen aaDe aati hain",
"dewta aaDe aate hain",
"rukminai aaDe aati hai",
"main kya karun?",
"mujhse parijat",
"kahin aaDe hath rakh diya gaya hai",
"ek",
"main phool ke dam bika hoon, aur",
"phool ke nam jakhmi hua hoon",
"main phool ki pankhuDiyon ki ginti karne wala",
"ekauntent nahin",
"main kawi hoon",
"tum dekh nahin rahe?",
"phool ke bare mein likhne jata hoon",
"ki turant banlapen gend ban jati hai",
"main likh nahin pata",
"kyonki",
"main bhi phool jitna hi nirakshar hoon",
"do",
"kai bar aisa hota hai ki",
"ap phool ke bare mein likh rahe hain",
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"lekin baat panDit nehru ki karte hain",
"kya aapko nahin lagta ki",
"ye wishyantar hai?",
"teen",
"parijat ke bare mein likhte samay",
"meri nak aaDe aati hai",
"chashmen aaDe aate hain",
"ankhen aaDe aati hain",
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मलिक काफ़ूर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/malik-kafur-udayan-thakkar-kavita?sort= | [
"वह न तो पुरुष था,",
"न स्त्री था!",
"सुलतान अलाउददीन खिलजी के दरबार में",
"क्या दबदबा था उसका!",
"सुलतान और मलिक के बीच",
"सभी-कुछ था एक-दूसरे का।",
"सुलतान को चाहिए था मलिक और",
"मलिक को चाहिए था सुलतान-पद।",
"अलाउददीन खिलजी ज्यों ही हुआ",
"अल्ला को प्यारा,",
"मलिक बन बैठा",
"मलिक से मालिक।",
"किन्नर ने सत्ता हासिल की हो,",
"ऐसा वो पहला क़िस्सा था,",
"न कि आख़िरी!",
"wo na to purush tha,",
"na istri tha!",
"sultan alauddin khilji ke darbar mein",
"kya dabdaba tha uska!",
"sultan aur malik ke beech",
"sabhi kuch tha ek dusre ka",
"sultan ko chahiye tha malik aur",
"malik ko chahiye tha sultan pad",
"alauddin khilji jyon hi hua",
"alla ko pyara,",
"malik ban baitha",
"malik se malik",
"kinnar ne satta hasil ki ho,",
"aisa wo pahla qissa tha,",
"na ki akhiri!",
"wo na to purush tha,",
"na istri tha!",
"sultan alauddin khilji ke darbar mein",
"kya dabdaba tha uska!",
"sultan aur malik ke beech",
"sabhi kuch tha ek dusre ka",
"sultan ko chahiye tha malik aur",
"malik ko chahiye tha sultan pad",
"alauddin khilji jyon hi hua",
"alla ko pyara,",
"malik ban baitha",
"malik se malik",
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"aisa wo pahla qissa tha,",
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डिवोर्सी पुरुष का गीत - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/diworsi-purush-ka-geet-jayendra-shekhadiwala-kavita?sort= | [
"अनुवाद : रघुवीर चौधरी",
"मुझे ऐसा तो याद आए ब्याहना।",
"ज्यों नींद में बरसते मूसलाधार",
"मेघ को देखना न देखना याद आए।",
"मुझे ऐसा तो याद आए ब्याहना—",
"मण्डप के तोरण के उड़ गए रंग",
"झड़ते परों के किसी देश में,",
"कौन-कौन मिले मुझे इस काले एकांत में",
"तैरते तरंगों के आवेग से?",
"ज्यों सागर में डूबे सात जहाज़ों के क़ाफ़िले को",
"खोना न खोना याद आए।",
"मुझे ऐसा तो याद आए ब्याहना—",
"बहूजी हमारी हरे धान का खेत,",
"एक मैं ही था धूहा—बिजूका?",
"गोईड़ा सारा उसकी बातों में खेलता",
"एक मैं ही था स्मारक को काट देने के बाद",
"रोना न रोना याद आए",
"मुझे ऐसा तो याद आए ब्याहना।",
"mujhe aisa to yaad aaye byahna",
"jyon neend mein baraste musladhar",
"megh ko dekhana na dekhana yaad aaye",
"mujhe aisa to yaad aaye byahna—",
"manDap ke toran ke uD gaye rang",
"jhaDte paron ke kisi desh mein,",
"kaun kaun mile mujhe is kale ekant mein",
"tairte tarangon ke aaweg se?",
"jyon sagar mein Dube sat jahazon ke qaphilen ko",
"khona na khona yaad aaye",
"mujhe aisa to yaad aaye byahna—",
"bahuji hamari hare dhan ka khet,",
"ek main hi tha dhuha—bijuka?",
"goiDa sara uski baton mein khelta",
"ek main hi tha smarak ko kat dene ke baad",
"rona na rona yaad aaye",
"mujhe aisa to yaad aaye byahna",
"mujhe aisa to yaad aaye byahna",
"jyon neend mein baraste musladhar",
"megh ko dekhana na dekhana yaad aaye",
"mujhe aisa to yaad aaye byahna—",
"manDap ke toran ke uD gaye rang",
"jhaDte paron ke kisi desh mein,",
"kaun kaun mile mujhe is kale ekant mein",
"tairte tarangon ke aaweg se?",
"jyon sagar mein Dube sat jahazon ke qaphilen ko",
"khona na khona yaad aaye",
"mujhe aisa to yaad aaye byahna—",
"bahuji hamari hare dhan ka khet,",
"ek main hi tha dhuha—bijuka?",
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बगुलों के पंख - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/bagulon-ke-pankh-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"प्रस्तुत पाठ एनसीआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।",
"नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,",
"चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।",
"कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,",
"तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।",
"हौले-हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।",
"उसे कोई तनिक रोक रक्खो।",
"वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें",
"नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।",
"nabh mein panti bandhe bagulon ke pankh,",
"churaye liye jatin ve meri ankhen.",
"kajrare badlon ki chhai nabh chhaya,",
"tairti saanjh ki satej shvet kaya.",
"haule haule jati mujhe baandh nij maya se.",
"use koi tanik rok rakkho.",
"wo to churaye liye jati meri ankhen",
"nabh mein panti bandhi bagulon ki pankhen.",
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"churaye liye jatin ve meri ankhen.",
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जलोपनिषद् - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/jalopanishad-manilal-haridas-patel-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"मैंने जल को देखा",
"जाना,",
"जल को जल का गर्भ ठहरा है।",
"जल पर खुला जल का दोहद श्वेत",
"खिल जल में आकाश",
"जल का विकसित गाभ...",
"जल में पनपे वृक्ष और",
"जल हरा-भरा लहरा पल में,",
"जल के तट पर जल सूखता देखा",
"जल को ग्रसने",
"जल के बीच में",
"श्वेत ध्यान में जल को खड़ा देखा...",
"जल जल में काया",
"घिस घिस के नहाया",
"रोमांचित जल हुआ",
"जल रोम-रोम शर्माया,",
"जल में पथरीले जल-पहाड़—",
"जल में उतरे,",
"जल देखे जल को दिन सारा...",
"जल में उगी जल की रात",
"जल करता है जल को जल के अँधेरे की बात",
"जल के घर में जल के दीये...",
"जल जल से काँप उठा",
"जल सलबलाता",
"जल भीड़ जुटाता",
"जल जाकर जल से मिलता...",
"जल के किनारे जल उगता है,",
"जल सोता-जागता",
"जल शब्द ढूँढ़ता जल का—",
"जल के पल का।",
"जल-जल को छोड़ जाता",
"और जल रोता",
"मैंने देखा कि जल जल को चाहता",
"डसता जल को जल",
"जल सुलगता जल में,",
"जल जल से लिपटता जल में...",
"मैंने देखा जल में—",
"जल मुझे पकड़ने",
"डाले जल का जाल",
"पर जल को रोकता",
"जल का बाँध...",
"जल को जल का डर है क्यों?",
"जल में जल का जाल है क्यों?",
"जल सूखे जल में झुरता",
"जल की इच्छा",
"जल बेचारा कैसे पूरी करता!",
"मैंने देखा जल में जल मेरा",
"जल काँप उठा शिकन भरा!",
"mainne jal ko dekha",
"jana,",
"jal ko jal ka garbh thahra hai",
"jal par khula jal ka dohad shwet",
"khil jal mein akash",
"jal ka wiksit gabh",
"jal mein panpe wriksh aur",
"jal hara bhara lahra pal mein,",
"jal ke tat par jal sukhta dekha",
"jal ko grasne",
"jal ke beech mein",
"shwet dhyan mein jal ko khaDa dekha",
"jal jal mein kaya",
"ghis ghis ke nahaya",
"romanchit jal hua",
"jal rom rom sharmaya,",
"jal mein pathrile jalaphaD—",
"jal mein utre,",
"jal dekhe jal ko din sara",
"jal mein ugi jal ki raat",
"jal karta hai jal ko jal ke andhere ki baat",
"jal ke ghar mein jal ke diye",
"jal jal se kanp utha",
"jal salablata",
"jal bheeD jutata",
"jal jakar jal se milta",
"jal ke kinare jal ugta hai,",
"jal sota jagata",
"jal shabd DhunDhata jal ka—",
"jal ke pal ka",
"jal jal ko chhoD jata",
"aur jal rota",
"mainne dekha ki jal jal ko chahta",
"Dasta jal ko jal",
"jal sulagta jal mein,",
"jal jal se lipatta jal mein",
"mainne dekha jal mein—",
"jal mujhe pakaDne",
"Dale jal ka jal",
"par jal ko rokta",
"jal ka bandh",
"jal ko jal ka Dar hai kyon?",
"jal mein jal ka jal hai kyon?",
"jal sukhe jal mein jhurta",
"jal ki ichha",
"jal bechara kaise puri karta!",
"mainne dekha jal mein jal mera",
"jal kanp utha shikan bhara!",
"mainne jal ko dekha",
"jana,",
"jal ko jal ka garbh thahra hai",
"jal par khula jal ka dohad shwet",
"khil jal mein akash",
"jal ka wiksit gabh",
"jal mein panpe wriksh aur",
"jal hara bhara lahra pal mein,",
"jal ke tat par jal sukhta dekha",
"jal ko grasne",
"jal ke beech mein",
"shwet dhyan mein jal ko khaDa dekha",
"jal jal mein kaya",
"ghis ghis ke nahaya",
"romanchit jal hua",
"jal rom rom sharmaya,",
"jal mein pathrile jalaphaD—",
"jal mein utre,",
"jal dekhe jal ko din sara",
"jal mein ugi jal ki raat",
"jal karta hai jal ko jal ke andhere ki baat",
"jal ke ghar mein jal ke diye",
"jal jal se kanp utha",
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"jal ke kinare jal ugta hai,",
"jal sota jagata",
"jal shabd DhunDhata jal ka—",
"jal ke pal ka",
"jal jal ko chhoD jata",
"aur jal rota",
"mainne dekha ki jal jal ko chahta",
"Dasta jal ko jal",
"jal sulagta jal mein,",
"jal jal se lipatta jal mein",
"mainne dekha jal mein—",
"jal mujhe pakaDne",
"Dale jal ka jal",
"par jal ko rokta",
"jal ka bandh",
"jal ko jal ka Dar hai kyon?",
"jal mein jal ka jal hai kyon?",
"jal sukhe jal mein jhurta",
"jal ki ichha",
"jal bechara kaise puri karta!",
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पत्थरों के नीचे - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/patthron-ke-niche-sitanshu-yashaschandra-kavita?sort= | [
"अनुवाद : केदारनाथ सिंह",
"क्या हो सकता है पत्थरों के नीचे",
"हीरे? और क्या। पानी? हाँ, शायद पानी।",
"कहाँ? शायद पत्थरों के नीचे।",
"सचमुच?",
"क्या हो सकता है पत्थरों के नीचे? लावा? हीरे? हाँ, निश्चय ही हीरे। पानी,",
"पत्थरों के नीचे।",
"वहाँ पोता गया तेल और उड़ेला गया सिंदूर।",
"नहीं?",
"झिलमिल कपड़े और घी के कमल।",
"लेकिन तब?",
"प्राणप्रतिष्ठा हुई शिवलिंग की",
"और उस पर लगातार गिरती रही जल की धारा।",
"अब क्या होगा?",
"यह पड़ा रहेगा पत्थरों के नीचे",
"क्या पड़ा रहेगा? शायद हाँ।",
"उछाले हैं पत्थर",
"अबूझ आकाश की ओर।",
"उससे क्या?",
"कहीं तो चार पाँव और एक तीर।",
"कहीं सात पुरुष और एक स्त्री।",
"कहीं एक शिकारी",
"कहीं एक हिरन तारों का और चंद्रमा का एक हिरन,",
"मूक निहारते हुए एक-दूसरे को",
"अपने पारधी, अपने राहु की चिंता में निमग्न।",
"कहीं है निरंतर अस्थिर गह्वर में ध्रुवतारा।",
"अब बातें मत बनाओ!",
"अबूझ पत्थर अबूझ आकाश में",
"अबूझ के द्वारा फेंके हुए।",
"नाम दे दिए पत्थरों को ।",
"पत्थरों पर प्रकाश, पत्थरों पर जीवन, पत्थरों पर पानी",
"बहाव रुकता नहीं।",
"क्या हो सकता है पत्थरों के नीचे?",
"पत्थरों में क्या हो सकता है?",
"क्या हो सकते हैं पत्थर?",
"kya ho sakta hai patthron ke niche",
"hire? aur kya pani? han, shayad pani",
"kahan? shayad patthron ke niche",
"sachmuch ?",
"kya ho sakta hai patthron ke niche? lawa? hire? han, nishchay hi hire pani,",
"patthron ke niche",
"wahan pota gaya tel aur uDela gaya sindur",
"nahin?",
"jhilmil kapDe aur ghi ke kamal lekin tab?",
"pranapratishtha hui shiwling ki",
"aur us par lagatar girti rahi jal ki dhara",
"ab kya hoga?",
"ye paDa rahega patthron ke niche",
"kya paDa rahega? shayad han",
"uchhale hain patthar",
"abujh akash ki or",
"usse kya?",
"kahin to chaar panw aur ek teer",
"kahin sat purush aur ek istri",
"kahin ek shikari",
"kahin ek hiran taron ka aur chandrma ka ek hiran,",
"mook niharte hue ek dusre ko",
"apne paradhi, apne rahu ki chinta mein nimagn",
"kahin hai nirantar asthir gahwar mein dhruwtara",
"ab baten mat banao!",
"abujh patthar abujh akash mein",
"abujh ke dwara phenke hue",
"nam de diye patthron ko",
"patthron par parkash, patthron par jiwan, patthron par pani",
"bahaw rukta nahin",
"kya ho sakta hai patthron ke niche?",
"patthron mein kya ho sakta hai?",
"kya ho sakte hain patthar?",
"kya ho sakta hai patthron ke niche",
"hire? aur kya pani? han, shayad pani",
"kahan? shayad patthron ke niche",
"sachmuch ?",
"kya ho sakta hai patthron ke niche? lawa? hire? han, nishchay hi hire pani,",
"patthron ke niche",
"wahan pota gaya tel aur uDela gaya sindur",
"nahin?",
"jhilmil kapDe aur ghi ke kamal lekin tab?",
"pranapratishtha hui shiwling ki",
"aur us par lagatar girti rahi jal ki dhara",
"ab kya hoga?",
"ye paDa rahega patthron ke niche",
"kya paDa rahega? shayad han",
"uchhale hain patthar",
"abujh akash ki or",
"usse kya?",
"kahin to chaar panw aur ek teer",
"kahin sat purush aur ek istri",
"kahin ek shikari",
"kahin ek hiran taron ka aur chandrma ka ek hiran,",
"mook niharte hue ek dusre ko",
"apne paradhi, apne rahu ki chinta mein nimagn",
"kahin hai nirantar asthir gahwar mein dhruwtara",
"ab baten mat banao!",
"abujh patthar abujh akash mein",
"abujh ke dwara phenke hue",
"nam de diye patthron ko",
"patthron par parkash, patthron par jiwan, patthron par pani",
"bahaw rukta nahin",
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मुख-चमक - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/mukh-chamak-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"हज़ारों चेहरों में मधुर तेरी मुख-चमक",
"ढूँढ़ता रहा मैं—",
"जब तक तू मुझे नहीं मिली थी;",
"और आज जब, प्रिय,",
"तू पास में यहाँ बैठी है,",
"उन हज़ारों मुखों की चमक ढूँढ़ रहा हूँ!",
"hazaron chehron mein madhur teri mukh chamak",
"DhunDhata raha main—",
"jab tak tu mujhe nahin mili thee;",
"aur aaj jab, priy,",
"tu pas mein yahan baithi hai,",
"un hazaron mukhon ki chamak DhoonDh raha hoon!",
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"DhunDhata raha main—",
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जैसलमेर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/jaisalmer-ghulam-mohammad-sheikh-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"मरुस्थल में मोती से मढ़ा यह नगर",
"उसके टोड़ पर मोर और दीवार पर घूमते हाथी,",
"झरोखे-झरोखे पर पत्थर की रेशमी कढ़ाई।",
"खिड़की-खिड़की पर कुंद तलवारों के तोरण।",
"शाम के उजास में दीवारें नारंगी चुनरी की तरह फरहरतीं,",
"दरवाज़े पर लोहे के कड़े",
"आठ पीढ़ियों के हाथ की घिसाई की छाप।",
"आँगन में घूमते दो-चार बकरे श्याम",
"फाटक के बाहर डहकता कर्मठ ऊँट।",
"बीच की चहारदीवारी पर सूख रहे सुर्ख़ चीर",
"अंदर के कमरे में फफूँदी लगे अँधेरे में",
"फरफराती ढीली बाती।",
"लाल चटक चूल्हे की आँच और चुनरी की उजास में",
"रोट टीपती सुनहरी कन्या।",
"marusthal mein moti se maDha ye nagar",
"uske toD par mor aur diwar par ghumte hathi,",
"jharokhe jharokhe par patthar ki reshmi kaDhai",
"khiDki khiDki par kund talwaron ke toran",
"sham ke ujas mein diwaren narangi chunari ki tarah pharahartin,",
"darwaze par lohe ke kaDe",
"ath piDhiyon ke hath ki ghisai ki chhap",
"angan mein ghumte do chaar bakre shyam",
"phatak ke bahar Dahakta karmath unt",
"beech ki chaharadiwari par sookh rahe surkh cheer",
"andar ke kamre mein phaphundi lage andhere mein",
"pharaphrati Dhili bati",
"lal chatak chulhe ki anch aur chunari ki ujas mein",
"rot tipti sunahri kanya",
"marusthal mein moti se maDha ye nagar",
"uske toD par mor aur diwar par ghumte hathi,",
"jharokhe jharokhe par patthar ki reshmi kaDhai",
"khiDki khiDki par kund talwaron ke toran",
"sham ke ujas mein diwaren narangi chunari ki tarah pharahartin,",
"darwaze par lohe ke kaDe",
"ath piDhiyon ke hath ki ghisai ki chhap",
"angan mein ghumte do chaar bakre shyam",
"phatak ke bahar Dahakta karmath unt",
"beech ki chaharadiwari par sookh rahe surkh cheer",
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जो वर्ष बीते, जो रहे - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/jo-warsh-bite-jo-rahe-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"एक",
"बीते वर्ष,",
"पता ही न रहा कैसे वे बीते?",
"स्वप्नोल्लास में बीते मृदु करुण हास में विलीन हुए!",
"ग्रहण किया आयुष्यथ कभी स्मितयुक्त, कभी भयभरा!",
"मानो सदा निद्रा में ही डग भरता होऊँ इसी प्रकार चलता रहा।",
"हृदय में जो प्रणय-भार जमा हुआ है,",
"वह क्षण-भर भी चैन नहीं लेने देता,",
"कार्य और काव्य में वह प्रकट हुआ,",
"जग-मधुरिमा पद-पद पर पीकर,",
"सौहार्दो का मधुपुट रचकर,",
"अविश्रांत रूप से विलसित होता रहा!",
"अरे यह हृदय!",
"आयुष्पथ को इसी ने तो रसमसा दिया!",
"ऐसा नहीं कि—",
"मार्ग में विष, विषम स्वन-भय असत् संयोगों की",
"अदया नहीं आई!",
"किंतु सभी ही संजीवन बन गए;",
"किसी संकेत से अनेक काँटे कुसुम से हो गए!",
"तिरस्कारों के मध्य में भी कहीं से गूढ़ करुणा प्रकट हुई!",
"कभी दीखते हैं,",
"कभी डूबते हैं,",
"वे अरुण शिवत्व के शृंग",
"मैं तो रटता ही रहा...",
"और न जाने कैसे वर्ष बीते...!",
"दो",
"जो वर्ष रहे उनमें…",
"हृदय भर जगत् का सौंदर्य पी ले भाई!",
"मुँह लटकाए न फिर!",
"सप्तपद का सख्य—",
"अगर यहाँ कभी मिल जाए",
"तो तू उसे मधुरतम बना ले!",
"भाई तेरे ही लिए यह दुनिया ‘दुष्ट’ नहीं बनाई गई!",
"आः! नाना रंगी निराली दुनिया! तुझे कैसे समझा जाए?",
"भोलेपन से मैं तुझे पलटने का प्रयत्न करता हूँ",
"और मैं पलट जाता हूँ!!",
"तिस पर अहंगर्ता मैं, हा, पैर फिसल जाता है!",
"पर अगर मैं ‘मैं’ को भूलकर व्यवहार करूँ",
"तो तू कितनी मधुरता से बाज आती है!",
"मुझे निमंत्रित कर रहे हैं—",
"वह मीठी धूप",
"दक्षिण हवा",
"दिशाओं का हास",
"गिरिवरों के गौरवमय शृंग",
"रात्रि के किसी कोने में हृदय में",
"शशि-किरणों का आसव चू रहा है!",
"जन उत्कर्ष में हास में परम ऋत लीला ही विलसित हो रही है!",
"सारी स्नेह-सुषमा को आकंठ पीकर",
"भुवनों से यह कहूँगा—",
"जीवन के जितने वर्ष प्राप्त हुए उनमें",
"‘अमृत ले आया अवनि-तल का!’",
"(1)",
"bite warsh,",
"pata hi na raha kaise we bite?",
"swapnollas mein bite mridu karun has mein wilin hue!",
"grahn kiya ayushyath kabhi smityukt, kabhi bhayabhra!",
"mano sada nidra mein hi Dag bharta houn isi prakar chalta raha",
"hirdai mein jo pranay bhaar jama hua hai,",
"wo kshan bhar bhi chain nahin lene deta,",
"kary aur kawy mein wo prakat hua,",
"jag madhurima pad pad par pikar,",
"sauhardo ka madhuput rachkar,",
"awishrant roop se wilsit hota raha!",
"are ye hirdai!",
"ayushpath ko isi ne to rasmasa diya!",
"aisa nahin ki—",
"marg mein wish, wisham swan bhay asat sanyogon ki",
"adya nahin i!",
"kintu sabhi hi sanjiwan ban gaye;",
"kisi sanket se anek kante kusum se ho gaye!",
"tiraskaron ke madhya mein bhi kahin se gooDh karuna prakat hui!",
"kabhi dikhte hain,",
"kabhi Dubte hain,",
"we arun shiwatw ke shring",
"main to ratta hi raha",
"aur na jane kaise warsh bite !",
"(2)",
"jo warsh rahe unmen…",
"hirdai bhar jagat ka saundarya pi le bhai!",
"munh latkaye na phir!",
"saptpad ka sakhy—",
"agar yahan kami mil jaye",
"to tu use madhurtam bana le!",
"bhai tere hi liye ye duniya ‘dusht’ nahin banai gai!",
"aः! nana rangi nirali duniya! tujhe kaise samjha jaye?",
"bholepan se main tujhe palatne ka prayatn karta hoon",
"aur main palat jata hoon!!",
"tis par ahangarta main, ha, pair phisal jata hai!",
"par agar main ‘main’ ko bhulkar wywahar karun",
"to tu kitni madhurta se baz aati hai!",
"mujhe nimantrit kar rahe hain—",
"wo mithi dhoop",
"dakshain hawa",
"dishaon ka has",
"giriwron ke gaurawmay shring",
"ratri ke kisi kone mein hirdai mein",
"shashi kirnon ka aasaw chu raha hai!",
"jan utkarsh mein has mein param rt lila hi wilsit ho rahi hai!",
"sari sneh sushama ko akanth pikar",
"bhuwnon se ye kahunga—",
"jiwan ke jitne warsh prapt hue unmen",
"‘amrit le aaya awni tal ka!’",
"(1)",
"bite warsh,",
"pata hi na raha kaise we bite?",
"swapnollas mein bite mridu karun has mein wilin hue!",
"grahn kiya ayushyath kabhi smityukt, kabhi bhayabhra!",
"mano sada nidra mein hi Dag bharta houn isi prakar chalta raha",
"hirdai mein jo pranay bhaar jama hua hai,",
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"awishrant roop se wilsit hota raha!",
"are ye hirdai!",
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"marg mein wish, wisham swan bhay asat sanyogon ki",
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"kisi sanket se anek kante kusum se ho gaye!",
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"kabhi dikhte hain,",
"kabhi Dubte hain,",
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"main to ratta hi raha",
"aur na jane kaise warsh bite !",
"(2)",
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"hirdai bhar jagat ka saundarya pi le bhai!",
"munh latkaye na phir!",
"saptpad ka sakhy—",
"agar yahan kami mil jaye",
"to tu use madhurtam bana le!",
"bhai tere hi liye ye duniya ‘dusht’ nahin banai gai!",
"aः! nana rangi nirali duniya! tujhe kaise samjha jaye?",
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"aur main palat jata hoon!!",
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जिस कुएँ में पानी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/jis-kuen-mein-pani-chandrakant-sheth-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"जिस कुएँ में पानी",
"उसे कैसे कहें ख़ाली?",
"मानो कि मैं सच्चाई की ऐसी-तैसी कर दूँ,",
"लेकिन आँखों की भी तो आबरू होती है न?",
"मैंने हाथी को ठीक से देखा सूँड़ से पूँछ तक।",
"मैं यदि उसे स्तंभ जैसा कह सकूँ,",
"तो रस्सी जैसा भी कह सकूँ।",
"लेकिन हाथी थोड़े ही जमा है",
"स्तंभ और रस्सी का?",
"हाथी को पाने के लिए",
"उसे भीतर की सूई के छेद से",
"ठीक तरह से पार करना पड़ेगा।",
"और तब तक हमें मौन रहना पड़ेगा।",
"वैसे तो इस अँधेर नगरी में",
"तो मौन की कीमत चुकानी पड़ेगी!",
"किसी दिन सतह के दर्शन से ही",
"सूली का सुख भी मिल जाता है...",
"और इतने में",
"शायद अगर चौपट राजा को अक्ल आ जाए",
"तो...",
"कुआँ शायद लाशों से भरने से बच जाए!",
"और",
"आँखों की आबरू रह जाए अटल",
"इस अँधेर नगरी में",
"सब आधारित है चौपट पर।",
"एकमात्र चौपट की चौपटता पर!",
"jis kuen mein pani",
"use kaise kahen khali?",
"mano ki main sachchai ki aisi—taisi kar doon,",
"lekin ankhon ki bhi to aabru hoti hai n?",
"mainne hathi ko theek se dekha soonD se poonchh tak",
"main yadi use stambh jaisa kah sakun,",
"to rassi jaisa bhi kah sakun",
"lekin hathi thoDe hi jama hai",
"stambh aur rassi ka?",
"hathi ko pane ke liye",
"use bhitar ki sui ke chhed se",
"theek tarah se par karna paDega",
"aur tab tak hamein maun rahna paDega",
"waise to is andher nagri mein",
"to maun ki kimat chukani paDegi!",
"kisi din satah ke darshan se hi",
"suli ka sukh bhi mil jata hai",
"aur itne mein",
"shayad agar chaupat raja ko akl aa jaye",
"to",
"kuan shayad lashon se bharne se bach jaye!",
"aur",
"ankhon ki aabru rah jaye atal",
"is andher nagri mein",
"sab adharit hai chaupat par",
"ekmatr chaipat ki chaupatta par!",
"jis kuen mein pani",
"use kaise kahen khali?",
"mano ki main sachchai ki aisi—taisi kar doon,",
"lekin ankhon ki bhi to aabru hoti hai n?",
"mainne hathi ko theek se dekha soonD se poonchh tak",
"main yadi use stambh jaisa kah sakun,",
"to rassi jaisa bhi kah sakun",
"lekin hathi thoDe hi jama hai",
"stambh aur rassi ka?",
"hathi ko pane ke liye",
"use bhitar ki sui ke chhed se",
"theek tarah se par karna paDega",
"aur tab tak hamein maun rahna paDega",
"waise to is andher nagri mein",
"to maun ki kimat chukani paDegi!",
"kisi din satah ke darshan se hi",
"suli ka sukh bhi mil jata hai",
"aur itne mein",
"shayad agar chaupat raja ko akl aa jaye",
"to",
"kuan shayad lashon se bharne se bach jaye!",
"aur",
"ankhon ki aabru rah jaye atal",
"is andher nagri mein",
"sab adharit hai chaupat par",
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घर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/ghar-dileep-jhaveri-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"एक",
"घर तुम इतने दूर क्यों हो?",
"क्यों मुश्किल है तुम तक आना?",
"भूखा थका प्यासा दमियल मैला घामड़ गंधैला",
"घुटने पे सूजन एड़ी में कंकड़ की चुभन",
"हाथ में झोली न उठा पाता",
"मैं ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर टूटे हुए पीढ़े पर",
"बबूल के नीचे की घास पर",
"फसक जाता हूँ तब तुम्हें थोड़ी भी दया नहीं आती।",
"तुम्हारे पनसाल में मटकी है",
"तुम्हारे छीके में रोटी है",
"तुम्हारी कोठरी में खटिया है",
"तुम्हारे चबूतरे पर चौकी है",
"तुम्हारे टोड़े पर बारीक नज़र की चिड़िया है",
"क्या तुम्हें मैं कहीं नहीं दिखता?",
"दो",
"लेकिन घर, तुम तो ठीक हो ना?",
"दीवार के रंग की पपड़ियाँ उखड़ नहीं रही ना?",
"दरवाज़े किचुड़ते नहीं हैं ना?",
"खिड़की की चटकनियाँ सटकी नहीं ना?",
"छप्पर रिसता नहीं ना?",
"फ़र्श पर धूल चिपकी नहीं ना?",
"पानी का नल टपकता नहीं ना?",
"बिजली का बिल समय से चुकाया जाता है ना?",
"डाकिया चिट्ठी लाता है ना?",
"अख़बार आता है ना?",
"जान-पहचान के अनजान देर-सवेर घंटी बजाते हैं ना?",
"ek",
"ghar tum itne door kyon ho?",
"kyon mushkil hai tum tak ana?",
"bhukha thaka pyasa damiyal maila ghamaD gandhaila",
"ghutne pe sujan eDi mein kankaD ki chubhan",
"hath mein jholi na utha pata",
"main ubaD khabaD raste par tute hue piDhe par",
"babul ke niche ki ghas par",
"phasak jata hoon tab tumhein thoDi bhi daya nahin aati",
"tumhare pansal mein matki hai",
"tumhare chhike mein roti hai",
"tumhari kothari mein khatiya hai",
"tumhare chabutre par chauki hai",
"tumhare toDe par barik nazar ki chiDiya hai",
"kya tumhein main kahin nahin dikhta?",
"do",
"lekin ghar, tum to theek ho na?",
"diwar ke rang ki papDiyan ukhaD nahin rahi na?",
"darwaze kichuDte nahin hain na?",
"khiDki ki chatakaniyan satki nahin na?",
"chhappar rista nahin na?",
"farsh par dhool chipki nahin na?",
"pani ka nal tapakta nahin na?",
"bijli ka bil samay se chukaya jata hai na?",
"Dakiya chitthi lata hai na?",
"akhbar aata hai na?",
"jaan pahchan ke anjan der sawer ghanti bajate hain na?",
"ek",
"ghar tum itne door kyon ho?",
"kyon mushkil hai tum tak ana?",
"bhukha thaka pyasa damiyal maila ghamaD gandhaila",
"ghutne pe sujan eDi mein kankaD ki chubhan",
"hath mein jholi na utha pata",
"main ubaD khabaD raste par tute hue piDhe par",
"babul ke niche ki ghas par",
"phasak jata hoon tab tumhein thoDi bhi daya nahin aati",
"tumhare pansal mein matki hai",
"tumhare chhike mein roti hai",
"tumhari kothari mein khatiya hai",
"tumhare chabutre par chauki hai",
"tumhare toDe par barik nazar ki chiDiya hai",
"kya tumhein main kahin nahin dikhta?",
"do",
"lekin ghar, tum to theek ho na?",
"diwar ke rang ki papDiyan ukhaD nahin rahi na?",
"darwaze kichuDte nahin hain na?",
"khiDki ki chatakaniyan satki nahin na?",
"chhappar rista nahin na?",
"farsh par dhool chipki nahin na?",
"pani ka nal tapakta nahin na?",
"bijli ka bil samay se chukaya jata hai na?",
"Dakiya chitthi lata hai na?",
"akhbar aata hai na?",
"jaan pahchan ke anjan der sawer ghanti bajate hain na?",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
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खोज - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/khoj-raghuveer-choudhary-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"मैं आया हूँ",
"और यहाँ किसी को चाहता नहीं।",
"पीछे छोड़ता आया हूँ",
"उनको, जो मुझे भूल जाएँगे।",
"वहाँ सूर्य था",
"यहाँ आकाश नहीं।",
"वहाँ जल था,",
"यहाँ रेगिस्तान — अनंत",
"और साद्यंत सप्रमाण रेगिस्तान।",
"यहाँ स्निग्ध भावनाएँ रुकी हैं।",
"यह मैं हूँ, वहाँ था अन्य।",
"वह रेगिस्तान है, वहाँ था जल।",
"जल का रंग नहीं।",
"रेगिस्तान की गति नहीं।",
"गति विराग है,",
"स्थिति विरंग।",
"विहंग है ही नहीं।",
"हाँ, है—",
"एक काला शाहमृग",
"दिगंत से ग्रीवा लंबी कर",
"मेरे संभ्रांत रणद्वीप की",
"कच्ची लहरियाँ चुगता है।",
"और वहाँ दक्षिण क्षितिज पर बैठ",
"सफ़ेद मोर",
"दीर्घ पिच्छकलाप को",
"खुजलाते समय",
"झड़ जाते उलटे पंख को",
"देखते समय",
"बीच-बीच में मेरी व्यस्त दृष्टि को",
"अपनी रिक्त आँखों में",
"सोख लेता है।",
"वहीं से आपन्नसत्व अश्रु",
"टपकेगा क्या?",
"और टपक जाए तो भी",
"उस मरीचिका में ही तो?",
"मेरे क्षण घोंसला ढूँढ़ते हैं",
"उस क्षितिज पर",
"कुछ नहीं।",
"आकाश नहीं सूर्य के बिना—",
"अवकाश है—निरानंद :",
"अर्थमुक्त अवकाश।",
"कुछ भी नहीं तभी तो सब कुछ।",
"मैं आया तो था",
"पर यहाँ तो",
"ये अन्य भाव से उभरते पदचिह्न के",
"अलावा कुछ नहीं।",
"रेगिस्तान और हवा।",
"सूर्य आए तो बताना कि",
"मैं मेरे अन्य को खोजता हूँ।",
"main aaya hoon",
"aur yahan kisi ko chahta nahin",
"pichhe chhoDta aaya hoon",
"unko, jo mujhe bhool jayenge",
"wahan surya tha",
"yahan akash nahin",
"wahan jal tha,",
"yahan registan — anant",
"aur sadyant saprman registan",
"yahan snigdh bhawnayen ruki hain",
"ye main hoon, wahan tha any",
"wo registan hai, wahan tha jal",
"jal ka rang nahin",
"registan ki gati nahin",
"gati wirag hai,",
"sthiti wirang",
"wihang hai hi nahin",
"han, hai—",
"ek kala shahmrig",
"digant se griwa lambi kar",
"mere sambhrant ranadwip ki",
"kachchi lahariyan chugta hai",
"aur wahan dakshain kshaitij par baith",
"safed mor",
"deergh pichchhaklap ko",
"khujlate samay",
"jhaD jate ulte pankh ko",
"dekhte samay",
"beech beech mein meri wyast drishti ko",
"apni rikt ankhon mein",
"sokh leta hai",
"wahin se apannsatw ashru",
"tapkega kya?",
"aur tapak jaye to bhi",
"us marichika mein hi to?",
"mere kshan ghonsla DhunDhate hain",
"us kshaitij par",
"kuch nahin",
"akash nahin surya ke bina—",
"awkash hai—niranandः",
"arthmukt awkash",
"kuch bhi nahin tabhi to sab kuch",
"main aaya to tha",
"par yahan to",
"ye any bhaw se ubharte padchihn ke alawa kuch nahin",
"alawa kuch nahin",
"registan aur hawa",
"surya aaye to batana ki",
"main mere any ko khojta hoon",
"main aaya hoon",
"aur yahan kisi ko chahta nahin",
"pichhe chhoDta aaya hoon",
"unko, jo mujhe bhool jayenge",
"wahan surya tha",
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"yahan registan — anant",
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"aur wahan dakshain kshaitij par baith",
"safed mor",
"deergh pichchhaklap ko",
"khujlate samay",
"jhaD jate ulte pankh ko",
"dekhte samay",
"beech beech mein meri wyast drishti ko",
"apni rikt ankhon mein",
"sokh leta hai",
"wahin se apannsatw ashru",
"tapkega kya?",
"aur tapak jaye to bhi",
"us marichika mein hi to?",
"mere kshan ghonsla DhunDhate hain",
"us kshaitij par",
"kuch nahin",
"akash nahin surya ke bina—",
"awkash hai—niranandः",
"arthmukt awkash",
"kuch bhi nahin tabhi to sab kuch",
"main aaya to tha",
"par yahan to",
"ye any bhaw se ubharte padchihn ke alawa kuch nahin",
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ग्रीष्म मध्याह्न में गलतेश्वर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/greeshm-madhyahan-mein-galteshwar-bhagwatikumar-sharma-kavita?sort= | [
"अनुवाद : रघुवीर चौधरी",
"झंझा के थप्पर-सा कालप्रहार सहकर",
"खड़ा यह शिवालय,",
"ज्यों घायल योद्धा।",
"नृत्यांगना, मिथुन शिल्प, मृदंगपाणि,",
"अश्व, रथ, अनुचर, द्वारपाल;",
"पाषाण में हू-ब-हू अंकित विश्व पूरा...",
"खण्डहर सारा—",
"ज्यों सपना टूटकर ढेर हो गया।",
"धुँधली झीनी जलती ज्योति आरती की,",
"पुजारी भी कराहता, ज्यों बीती हुई गूँज।",
"टूटी सीढ़ियाँ ये",
"नदी की कगारें भी",
"प्रागितिहास-पशु के अस्थिपंजर!",
"लुटे पथिक-से पेड़,",
"रेत बिछौना लू का,",
"क़दम समय के।",
"महाकाल कथित इस व्यथाकथा के",
"मूक श्रोता केवल संहारदेव शिव!",
"jhanjha ke thappar sa kalaprhar sahkar",
"khaDa ye shiwalay,",
"jyon ghayal yodhda",
"nrityangna, mithun shilp, mridangapani,",
"ashw, rath, anuchar, dwarpal;",
"pashan mein hu ba hu ankit wishw pura",
"khanDhar sara—",
"jyon sapna tutkar Dher ho gaya",
"dhundhli jhini jalti jyoti aarti ki,",
"pujari bhi karahta, jyon biti hui goonj",
"tuti siDhiyan ye",
"nadi ki kagaren bhi",
"pragitihas pashu ke asthipanjar!",
"lute pathik se peD,",
"ret bichhauna lu ka,",
"qadam samay ke",
"mahakal kathit is wythaktha ke",
"mook shrota kewal sanhardew shiw!",
"jhanjha ke thappar sa kalaprhar sahkar",
"khaDa ye shiwalay,",
"jyon ghayal yodhda",
"nrityangna, mithun shilp, mridangapani,",
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"khanDhar sara—",
"jyon sapna tutkar Dher ho gaya",
"dhundhli jhini jalti jyoti aarti ki,",
"pujari bhi karahta, jyon biti hui goonj",
"tuti siDhiyan ye",
"nadi ki kagaren bhi",
"pragitihas pashu ke asthipanjar!",
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प्रणयी की रटन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/pranayi-ki-ratan-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"रात दिन रट रहा हूँ!",
"जानता नहीं नाम!",
"स्वप्न में देता हूँ आश्लेष",
"नहीं है पूरी पहचान!",
"बहुत देर तक बातें करता रहूँ",
"और फिर भी",
"अभी तक पूरी तरह नहीं पहचानता तेरी आवाज़!",
"तेरी मीठी साँसों की धड़कनों से",
"जी रहा है यह हृदय,",
"फिर भी नहीं स्पर्श कर पा रहा",
"तेरी ऊष्मा!",
"खींचा जाता हूँ",
"तेरी नसों की नवरक्त ज्योति से;",
"नहीं झाँका है अभी तक तेरी पलकों के पीछे!",
"और, कहीं किसी दिन फिर मिलेंगे ही जब",
"एकांत में डूबेंगे बातों के रस में",
"जब हृदय हृदय पर ढलकर पूछेगा मूक :",
"“है ख़्याल कैसी तू मुझे रही थी सता?”",
"जानता हूँ मैं, तू हँसकर कहेगी—",
"“सब कुछ जानती हूँ”",
"किंतु आज यहाँ क्या हो रहा है",
"वह तो मैं ही जानता हूँ।",
"raat din rat raha hoon!",
"janta nahin nam!",
"swapn mein deta hoon ashlesh",
"nahin hai puri pahchan!",
"bahut der tak baten karta rahun",
"aur phir bhi",
"abhi tak puri tarah nahin pahchanta teri awaz!",
"teri mithi sanson ki dhaDaknon se",
"ji raha hai ye hirdai,",
"phir bhi nahin sparsh kar pa raha",
"teri ushma!",
"khincha jata hoon",
"teri nason ki nawrakt jyoti se;",
"nahin jhanka hai abhi tak teri palkon ke pichhe!",
"aur, kahin kisi din phir milenge hi jab",
"ekant mein Dubenge baton ke ras mein",
"jab hirdai hirdai par Dhalkar puchhega mook ha",
"“hai khyal kaisi tu mujhe rahi thi sata?”",
"janta hoon main, tu hansakar kahegi—",
"“sab kuch janti hoon”",
"kintu aaj yahan kya ho raha hai",
"wo to main hi janta hoon",
"raat din rat raha hoon!",
"janta nahin nam!",
"swapn mein deta hoon ashlesh",
"nahin hai puri pahchan!",
"bahut der tak baten karta rahun",
"aur phir bhi",
"abhi tak puri tarah nahin pahchanta teri awaz!",
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"teri ushma!",
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"nahin jhanka hai abhi tak teri palkon ke pichhe!",
"aur, kahin kisi din phir milenge hi jab",
"ekant mein Dubenge baton ke ras mein",
"jab hirdai hirdai par Dhalkar puchhega mook ha",
"“hai khyal kaisi tu mujhe rahi thi sata?”",
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रखमाबाई की उक्त्ति - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/rakhmabai-ki-uktti-udayan-thakkar-kavita?sort= | [
"नोटिस मिला था मुझे बड़े वकील का,",
"मेरे मुवक्किल के साथ आपकी हुई है शादी",
"बार-बार बुलाने पर भी आप आती नहीं हैं।",
"अब यदि आप एक हफ़्ते में उनके यहाँ नहीं पहुँची,",
"तो हम दायर करेंगे मुक़दमा।",
"जवाब मैंने लिखा कि- महाशय!",
"ग्यारह बरस की थी मैं, तब जो हुआ,",
"उसे आप शादी कहते हैं?",
"मैं हाँ या ना कह सकूँ, क्या ऐसी थी वो उम्र मेरी",
"मुझे तो अभी पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना था,",
"जबकि वो... जिसे मेरा पति बताया जा रहा था,",
"नाम था उसका भीखाजी,",
"वो तो पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उठ गया था शाला से!",
"मशहूर था चारों तरफ़... अपने बत्तीस लक्षणों के लिए!",
"जहाँ मैं हमेशा आती-जाती थी, वो ‘प्रार्थना समाज’-",
"नारी भी मनुष्य है, इसे स्वीकार करता था...",
"लेख लिखा मैंने अपने छद्म नाम से,",
"हिंदू पुरुष को छूट है, दूसरी करे, तीसरी करे,",
"जबकि नारी को अपनी शादी रद्द करने का हक़ नहीं?",
"पति की मृत्यु हो जाए तो भी दूसरी शादी न कर सके...",
"इसी को आप शादी कहते है? लेकिन यह तो उम्र-क़ैद है।",
"मेरे पति ने कर दिया केस, हाईकोर्ट में",
"सुना दिया फ़ैसला न्यायाधीश ने चुटकियों में",
"‘वादी समझता क्या है? स्त्री बैल है या अश्व है",
"कि उसे घसीटकर घर ले जाएँ?",
"मैं वादी की माँगे रद्द करता हूँ।’",
"हो-हल्ला मच गया हिंदू समाज में",
"भाटिया महाजन में मिले, बनिया मंदिर में",
"संपादक ने अग्रलेख लिखा ‘केसरी’ में कि",
"‘लड़की ने अँग्रेज़ी सीख ली इसी का यह प्रताप!",
"ख़तरे में हिंदू धर्म! ‘मराठा’ ने भी लिखा",
"‘पति ने शादी के लिए कितना खर्च उठाया होगा,",
"कौन करेगा वापस यह रकम ब्याज समेत?’",
"ये दोनों अख़बार लोकमान्य तिलक के थे",
"यह बात सच होने पर भी, मानेगा कौन?",
"मेरा तथाकथित पति जीत गया अपील में।",
"अदालत ने मुझे उसके घर जाने का हुकुम दिया",
"मैं जाऊँ ते भी क़ैद ना जाऊँ तो भी क़ैद!",
"notis mila tha mujhe baDe wakil ka,",
"mere muwakkil ke sath apaki hui hai shadi",
"bar bar bulane par bhi aap aati nahin hain",
"ab yadi aap ek hafte mein unke yahan nahin pahunchi,",
"to hum dayar karenge muqadma",
"jawab mainne likha ki mahashay!",
"gyarah baras ki thi main, tab jo hua,",
"use aap shadi kahte hain?",
"main han ya na kah sakun, kya aisi thi wo umr meri",
"mujhe to abhi paDh likhkar doctor banna tha,",
"jabki wo jise mera pati bataya ja raha tha,",
"nam tha uska bhikhaji,",
"wo to paDhai beech mein hi chhoDkar uth gaya tha shala se!",
"mashhur tha charon taraf apne battis lakshnon ke liye!",
"jahan main hamesha aati jati thi, wo ‘pararthna samaj’",
"nari bhi manushya hai, ise swikar karta tha",
"lekh likha mainne apne chhadm nam se,",
"hindu purush ko chhoot hai, dusri kare, tisri kare,",
"jabki nari ko apni shadi radd karne ka haq nahin?",
"pati ki mirtyu ho jaye to bhi dusri shadi na kar sake",
"isi ko aap shadi kahte hai? lekin ye to umr qaid hai",
"mere pati ne kar diya kes, haikort mein",
"suna diya faisla nyayadhish ne chutakiyon mein",
"‘wadi samajhta kya hai? istri bail hai ya ashw hai",
"ki use ghasitkar ghar le jayen?",
"main wadi ki mange radd karta hoon ’",
"ho halla mach gaya hindu samaj mein",
"bhatiya mahajan mein mile, baniya mandir mein",
"sampadak ne agralekh likha ‘kesari’ mein ki",
"‘laDki ne angrezi seekh li isi ka ye pratap!",
"khatre mein hindu dharm! ‘maratha’ ne bhi likha",
"‘pati ne shadi ke liye kitna kharch uthaya hoga,",
"kaun karega wapas ye rakam byaj samet?’",
"ye donon akhbar lokamany tilak ke the",
"ye baat sach hone par bhi, manega kaun?",
"mera tathakathit pati jeet gaya appeal mein",
"adalat ne mujhe uske ghar jane ka hukum diya",
"main jaun te bhi qaid na jaun to bhi qaid!",
"notis mila tha mujhe baDe wakil ka,",
"mere muwakkil ke sath apaki hui hai shadi",
"bar bar bulane par bhi aap aati nahin hain",
"ab yadi aap ek hafte mein unke yahan nahin pahunchi,",
"to hum dayar karenge muqadma",
"jawab mainne likha ki mahashay!",
"gyarah baras ki thi main, tab jo hua,",
"use aap shadi kahte hain?",
"main han ya na kah sakun, kya aisi thi wo umr meri",
"mujhe to abhi paDh likhkar doctor banna tha,",
"jabki wo jise mera pati bataya ja raha tha,",
"nam tha uska bhikhaji,",
"wo to paDhai beech mein hi chhoDkar uth gaya tha shala se!",
"mashhur tha charon taraf apne battis lakshnon ke liye!",
"jahan main hamesha aati jati thi, wo ‘pararthna samaj’",
"nari bhi manushya hai, ise swikar karta tha",
"lekh likha mainne apne chhadm nam se,",
"hindu purush ko chhoot hai, dusri kare, tisri kare,",
"jabki nari ko apni shadi radd karne ka haq nahin?",
"pati ki mirtyu ho jaye to bhi dusri shadi na kar sake",
"isi ko aap shadi kahte hai? lekin ye to umr qaid hai",
"mere pati ne kar diya kes, haikort mein",
"suna diya faisla nyayadhish ne chutakiyon mein",
"‘wadi samajhta kya hai? istri bail hai ya ashw hai",
"ki use ghasitkar ghar le jayen?",
"main wadi ki mange radd karta hoon ’",
"ho halla mach gaya hindu samaj mein",
"bhatiya mahajan mein mile, baniya mandir mein",
"sampadak ne agralekh likha ‘kesari’ mein ki",
"‘laDki ne angrezi seekh li isi ka ye pratap!",
"khatre mein hindu dharm! ‘maratha’ ne bhi likha",
"‘pati ne shadi ke liye kitna kharch uthaya hoga,",
"kaun karega wapas ye rakam byaj samet?’",
"ye donon akhbar lokamany tilak ke the",
"ye baat sach hone par bhi, manega kaun?",
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"adalat ne mujhe uske ghar jane ka hukum diya",
"main jaun te bhi qaid na jaun to bhi qaid!",
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फ़तिमा गुल की चिट्ठी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/fatima-gul-ki-chitthi-udayan-thakkar-kavita?sort= | [
"मेरे प्रिय मणिलाल!",
"याद है, मैं",
"आलू ख़रीद रही थी",
"बड़े दिन के मौक़े पर",
"और आप दुकान में एकाएक",
"आ पहुँचे थे।",
"मेरी और आपकी",
"वही थी",
"पहली मुलाक़ात।",
"फ़िर तो आप",
"नित नए बहाने बनाकर",
"अकसर मेरे घर",
"आ जाया करते।",
"उम्र थी, प्यार छलक रहा था",
"मन में धुकधुकी मची रहती",
"धर्म दूसरा था न...",
"आप को यक़ीन था",
"बापू का दिल बड़ा है",
"मान जाएँगे राज़ी-ख़शी",
"आपने उन्हें चिट्ठी लिख दी थी...",
"बापू का जवाब आया,",
"‘ब्रह्मचर्य का क्या होगा ?",
"शादी वो भी मुसलमान के साथ?",
"तुम्हारी संतानें",
"किस धर्म की कहलाएँगी?",
"हिंदू हो जाने को तैयार है फ़ातिमा?",
"धर्म क्या कोई चिंदी है",
"जो उतारा और फेंक दिया?",
"तुम्हारी ख़ातिर वो",
"अपना घर-बार छोड़ेगी",
"रीति-रिवाज छोड़ेगी",
"प्राण भी छोड़ेने पड़ सकते हैं।",
"तुम चाहते हो, मैं बा से सलाह लूँ।",
"नहीं लूँगा",
"उस बेचारी का",
"दिल टूट जाएगा।",
"—तुम्हारा, बापू।’",
"महात्मा के मन की थाह",
"कौन पा सकता है भला?",
"शायद उन्हें अंदेशा हो कि कहीं",
"नाम न हो जाए ख़राब",
"मुल्ला-मौलवी घूमेंगे गली-गली",
"कि देखो,देखो!",
"महात्मा भी डर गए।",
"मणिलाल! सुना है,",
"उन लोगों ने कोई हिंदू कन्या",
"देख रखी है",
"तुम्हारे लिए।",
"उसी के साथ सुखपूर्वक रहो,",
"आश्रम में बैठो और धूम मचा दो!",
"‘ईश्वर-अल्ला’ तेरो नाम।",
"और मैं क्या कह सकता हूँ मणिलाल?",
"‘सबको सन्मति दे भगवान!’",
"आपको कभी भूल सकूँगी या नहीं, नहीं जानती",
"—फ़तिमा गुल,",
"जो कभी आप की थी।",
"mere priy manilal!",
"yaad hai, main",
"alu kharid rahi thi",
"baDe din ke mauqe par",
"aur aap dukan mein ekayek",
"a pahunche the",
"meri aur apaki",
"wahi thi",
"pahli mulaqat",
"fir to aap",
"nit nae bahane banakar",
"aksar mere ghar",
"a jaya karte",
"umr thi, pyar chhalak raha tha",
"man mein dhukdhuki machi rahti",
"dharm dusra tha na",
"ap ko yaqin tha",
"bapu ka dil baDa hai",
"man jayenge razi khashi",
"apne unhen chitthi likh di thi",
"bapu ka jawab aaya,",
"‘brahmachary ka kya hoga ?",
"shadi wo bhi musalman ke sath?",
"tumhari santanen",
"kis dharm ki kahlayengi?",
"hindu ho jane ko taiyar hai fatima?",
"dharm kya koi chindi hai",
"jo utara aur phenk diya?",
"tumhari khatir wo",
"apna ghar bar chhoDegi",
"riti riwaj chhoDegi",
"paran bhi chhoDene paD sakte hain",
"tum chahte ho, main ba se salah loon",
"nahin lunga",
"us bechari ka",
"dil toot jayega",
"—tumhara, bapu ’",
"mahatma ke man ki thah",
"kaun pa sakta hai bhala?",
"shayad unhen andesha ho ki kahin",
"nam na ho jaye kharab",
"mulla maulawi ghumenge gali gali",
"ki dekho,dekho!",
"mahatma bhi Dar gaye",
"manilal! suna hai,",
"un logon ne koi hindu kanya",
"dekh rakhi hai",
"tumhare liye",
"usi ke sath sukhpurwak raho,",
"ashram mein baitho aur dhoom macha do!",
"‘ishwar alla’ tero nam",
"aur main kya kah sakta hoon manilal?",
"‘sabko sanmati de bhagwan!’",
"apko kabhi bhool sakungi ya nahin, nahin janti",
"—fatima gul,",
"jo kabhi aap ki thi",
"mere priy manilal!",
"yaad hai, main",
"alu kharid rahi thi",
"baDe din ke mauqe par",
"aur aap dukan mein ekayek",
"a pahunche the",
"meri aur apaki",
"wahi thi",
"pahli mulaqat",
"fir to aap",
"nit nae bahane banakar",
"aksar mere ghar",
"a jaya karte",
"umr thi, pyar chhalak raha tha",
"man mein dhukdhuki machi rahti",
"dharm dusra tha na",
"ap ko yaqin tha",
"bapu ka dil baDa hai",
"man jayenge razi khashi",
"apne unhen chitthi likh di thi",
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"shadi wo bhi musalman ke sath?",
"tumhari santanen",
"kis dharm ki kahlayengi?",
"hindu ho jane ko taiyar hai fatima?",
"dharm kya koi chindi hai",
"jo utara aur phenk diya?",
"tumhari khatir wo",
"apna ghar bar chhoDegi",
"riti riwaj chhoDegi",
"paran bhi chhoDene paD sakte hain",
"tum chahte ho, main ba se salah loon",
"nahin lunga",
"us bechari ka",
"dil toot jayega",
"—tumhara, bapu ’",
"mahatma ke man ki thah",
"kaun pa sakta hai bhala?",
"shayad unhen andesha ho ki kahin",
"nam na ho jaye kharab",
"mulla maulawi ghumenge gali gali",
"ki dekho,dekho!",
"mahatma bhi Dar gaye",
"manilal! suna hai,",
"un logon ne koi hindu kanya",
"dekh rakhi hai",
"tumhare liye",
"usi ke sath sukhpurwak raho,",
"ashram mein baitho aur dhoom macha do!",
"‘ishwar alla’ tero nam",
"aur main kya kah sakta hoon manilal?",
"‘sabko sanmati de bhagwan!’",
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"—fatima gul,",
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मणिबेन पटेल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/maniben-patel-udayan-thakkar-kavita?sort= | [
"“पंडित जी,",
"लिजिए यह पेटी",
"पक्ष के लिए स्वीकारे गए रुपयों की...",
"ये शेष है...”",
"सरदार के निधन के",
"दसेक दिन बाद",
"उनकी पुत्री मणिबेन ने",
"जाकर नेहरू से कहा।",
"“कहाँ रहती हो? घर तो अपना है न?",
"ख़र्चा चलाने के लिए",
"थोड़े-बहुत रुपए तो हैं न?",
"ऐसा कुछ भी",
"लेश मात्र भी",
"नेहरू ने नहीं पूछा।",
"लगे हाथ एक बात बताऊँ?",
"बारदोली में",
"जयजयकार होने के बाद",
"सरदार ने कहा था,",
"“सारा श्रेय बापू को जाता है।",
"बापू ही गुरु। मैं तो, बस एकलव्य।”",
"बापू यदि द्रोण थे",
"और सरदार एकलव्य,",
"तो अर्जुन कौन होगा?",
"*",
"मणिबेन की साड़ी में लगा पैबंद",
"आ गया नज़र",
"नेहरू की बेटी को, जो",
"खड़ी थी वहीं, तिजौरी के पास।",
"‘ऐसा ही पैबंद कहीं मेरी साड़ी में न लग जाए...’",
"सोचकर उसने जो किया, सो किया...",
"उस बेचारी का दरअसल",
"कोई क़सूर नहीं था।",
"क़सूर तो सारा मणिबेन का ही था!",
"“panDit ji,",
"lijiye ye peti",
"paksh ke liye swikare gaye rupyon ki",
"ye shesh hai ”",
"sardar ke nidhan ke",
"dasek din baad",
"unki putri maniben ne",
"jakar nehru se kaha",
"“kahan rahti ho? ghar to apna hai n?",
"kharcha chalane ke liye",
"thoDe bahut rupae to hain n?",
"aisa kuch bhi",
"lesh matr bhi",
"nehru ne nahin puchha",
"lage hath ek baat bataun?",
"bardoli mein",
"jayajaykar hone ke baad",
"sardar ne kaha tha,",
"“sara shrey bapu ko jata hai",
"bapu hi guru main to, bus eklawy ”",
"bapu yadi dron the",
"aur sardar eklawy,",
"to arjun kaun hoga?",
"*",
"maniben ki saDi mein laga paiband",
"a gaya nazar",
"nehru ki beti ko, jo",
"khaDi thi wahin, tijauri ke pas",
"‘aisa hi paiband kahin meri saDi mein na lag jaye ’",
"sochkar usne jo kiya, so kiya",
"us bechari ka darasal",
"koi qasu nahin tha",
"qasu to sara maniben ka hi tha!",
"“panDit ji,",
"lijiye ye peti",
"paksh ke liye swikare gaye rupyon ki",
"ye shesh hai ”",
"sardar ke nidhan ke",
"dasek din baad",
"unki putri maniben ne",
"jakar nehru se kaha",
"“kahan rahti ho? ghar to apna hai n?",
"kharcha chalane ke liye",
"thoDe bahut rupae to hain n?",
"aisa kuch bhi",
"lesh matr bhi",
"nehru ne nahin puchha",
"lage hath ek baat bataun?",
"bardoli mein",
"jayajaykar hone ke baad",
"sardar ne kaha tha,",
"“sara shrey bapu ko jata hai",
"bapu hi guru main to, bus eklawy ”",
"bapu yadi dron the",
"aur sardar eklawy,",
"to arjun kaun hoga?",
"*",
"maniben ki saDi mein laga paiband",
"a gaya nazar",
"nehru ki beti ko, jo",
"khaDi thi wahin, tijauri ke pas",
"‘aisa hi paiband kahin meri saDi mein na lag jaye ’",
"sochkar usne jo kiya, so kiya",
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"koi qasu nahin tha",
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दावा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/dawa-panna-naik-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"ना, ना, ना",
"मैं कविता लिखने का दावा",
"नहीं कर रही;",
"मैं तो",
"मेरे स्तनों के पिंजरे में क़ैद शब्दों को",
"पंख देकर",
"उड़ा देती हूँ",
"गगन में...",
"na, na, na",
"main kawita likhne ka dawa",
"nahin kar rahi;",
"main to",
"mere stnon ke pinjre mein kaid shabdon ko",
"pankh dekar",
"uDa deti hoon",
"gagan mein",
"na, na, na",
"main kawita likhne ka dawa",
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स्वप्न में पिता - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/swapn-mein-pita-ghulam-mohammad-sheikh-kavita?sort= | [
"बापू, कल तुम फिर से दिखे",
"घर से हज़ारों योजन दूर यहाँ बाल्टिक के किनारे",
"मैं लेटा हूँ यहीं,",
"खाट के पास आकर खड़े आप इस अनजान भूमि पर",
"भाइयों में जब सुलह करवाई",
"तब पहना था वही थिगलीदार, मुसा हुआ कोट,",
"दादा गए तब भी शायद आप इसी तरह खड़े होंगे",
"अकेले दादा का झुर्रीदार हाथ पकड़।",
"आप काठियावाड़ छोड़कर कब से यहाँ क्रीमिया के",
"शरणार्थियों के बीच आ बसे?",
"भोगावो छोड़, भादर लाँघ",
"रोमन क़िले की कगार चढ़",
"डाकिए का थैला कंधे पर लटकाए आप यहाँ तक चले आए—",
"पीछे तो देखो दौड़ आया है क़ब्रिस्तान!",
"(हर क़ब्रिस्तान में मुझे आपकी ही क़ब्र क्यो दिखाई पड़ती है?)",
"और ये पीछे-पीछे दौड़े आ रहे हैं भाई",
"(क्या झगड़ी अभी निपटा नहीं?)",
"पीछे लकड़ी के सहारे",
"खड़े क्षितिज के चरागाह में",
"मोतियाबिंद के बीच मेरी खाट ढूँढ़ती माँ।",
"माँ, मुझे भी नहीं दिखता",
"अब तक हाथ में था",
"वह बचपन यहीं कहीं",
"खाट के नीच टूट बिखर गया है।",
"bapu, kal tum phir se dikhe",
"ghar se hazaron yojan door yahan baltik ke kinare",
"main leta hoon yahin,",
"khat ke pas aakar khaDe aap is anjan bhumi par",
"bhaiyon mein jab sulah karwai",
"tab pahna tha wahi thiglidar, musa hua coat,",
"dada gaye tab bhi shayad aap isi tarah khaDe honge",
"akele dada ka jhurridar hath pakaD",
"ap kathiyawaD chhoD kar kab se yahan kraimiya ke",
"sharnarthiyon ke beech aa base?",
"bhogawo chhoD, bhadar langh",
"roman qile ki kagar chaDh",
"Dakiye ka thaila kandhe par latkaye aap yahan tak chale aaye—",
"pichhe to dekho dauD aaya hai qabristan!",
"(har qabristan mein mujhe aap ki hi qabr kyo dikhai paDti hai?)",
"aur ye pichhe pichhe dauDe aa rahe hain bhai",
"(kya jhagDi abhi nipta nahin?)",
"pichhe lakDi ke sahare",
"khaDe kshaitij ke charagah mein",
"motiyabind ke beech meri khat DhunDhati man",
"man, mujhe bhi nahin dikhta",
"ab tak hath mein tha",
"wo bachpan yahin kahin",
"khat ke neech toot bikhar gaya hai",
"bapu, kal tum phir se dikhe",
"ghar se hazaron yojan door yahan baltik ke kinare",
"main leta hoon yahin,",
"khat ke pas aakar khaDe aap is anjan bhumi par",
"bhaiyon mein jab sulah karwai",
"tab pahna tha wahi thiglidar, musa hua coat,",
"dada gaye tab bhi shayad aap isi tarah khaDe honge",
"akele dada ka jhurridar hath pakaD",
"ap kathiyawaD chhoD kar kab se yahan kraimiya ke",
"sharnarthiyon ke beech aa base?",
"bhogawo chhoD, bhadar langh",
"roman qile ki kagar chaDh",
"Dakiye ka thaila kandhe par latkaye aap yahan tak chale aaye—",
"pichhe to dekho dauD aaya hai qabristan!",
"(har qabristan mein mujhe aap ki hi qabr kyo dikhai paDti hai?)",
"aur ye pichhe pichhe dauDe aa rahe hain bhai",
"(kya jhagDi abhi nipta nahin?)",
"pichhe lakDi ke sahare",
"khaDe kshaitij ke charagah mein",
"motiyabind ke beech meri khat DhunDhati man",
"man, mujhe bhi nahin dikhta",
"ab tak hath mein tha",
"wo bachpan yahin kahin",
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छुआछूत यानी क्या? - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/chhuachhut-yani-kya-nilesh-kathad-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"मैंने मोर से पूछा : छुआछूत यानी क्या?",
"तो मोर तो थनगन थनगन नाचने लगा और",
"मेरे गाल को प्यार से चूमकर कुहुकने लगा!",
"मैंने वृक्ष से पूछा : छुआछूत यानी क्या?",
"तो उसने तो डालें झुकाकर मुझे काँख में ही बिठा दिया!",
"मैंने फूल से पूछा : छुआछूत यानी क्या?",
"तो वह तो सारी सुगंध बिखरेता हुआ मेरी नाक को दुलारने लगा!",
"मैंने नदी से पूछा : छुआछूत यानी क्या?",
"तो वह तो मेरे पैरों को छूती हुई मेरे दिल तक मुझे भीगो गई!",
"मैंने पत्थर-दिल पहाड़ से पूछा : छुआछूत यानी क्या?",
"वह तो पिघलकर रेला बनकर मेरे पीछे-पीछे बहने लगा,",
"मुझे छूने—स्पर्श करने ही तो!",
"मैंने इंसान से पूछा : छुआछूत यानी क्या?",
"मेरी ओर देखा",
"दूर हटा",
"और चलता बना।",
"mainne mor se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to mor to thangan thangan nachne laga aur",
"mere gal ka pyar se chumkar kuhukne laga!",
"mainne wriksh se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to usne to Dalen jhukakar mujhe kankh mein hi bitha diya!",
"mainne phool se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to wo to sari sugandh bikhreta hua meri nak ko dularne laga!",
"mainne nadi se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to wo to mere pairon ki chhuti hui mere dil tak mujhe bhigo gai!",
"mainne patthar dil pahaD se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"wo to pighalkar rela bankar mere pichhe pichhe bahne laga,",
"mujhe chhune—sparsh karne hi to!",
"mainne insan se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"meri or dekha",
"door hata",
"aur chalta bana",
"mainne mor se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to mor to thangan thangan nachne laga aur",
"mere gal ka pyar se chumkar kuhukne laga!",
"mainne wriksh se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to usne to Dalen jhukakar mujhe kankh mein hi bitha diya!",
"mainne phool se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to wo to sari sugandh bikhreta hua meri nak ko dularne laga!",
"mainne nadi se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"to wo to mere pairon ki chhuti hui mere dil tak mujhe bhigo gai!",
"mainne patthar dil pahaD se puchha ha chhuachhut yani kya?",
"wo to pighalkar rela bankar mere pichhe pichhe bahne laga,",
"mujhe chhune—sparsh karne hi to!",
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बामियान बुद्ध - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/bamiyaan-buddha-sitanshu-yashaschandra-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"मूर्ति न भी होती",
"और होते यदि ये स्वयं",
"तब भी वैसे ही खड़े होते :",
"पद्मलोचन",
"शांत मुख",
"लहराता आँचल",
"स्मितमंडित होंठ",
"वरद हस्त",
"निर्भय मनुष्य।",
"murti na bhi hoti",
"aur hote yadi ye svyan",
"tab bhi vaise hi khaDe hote?",
"padmlochan",
"shaant mukh",
"lahrata anchal",
"smitmanDit honth",
"varad hast",
"nirbhay manushya.",
"murti na bhi hoti",
"aur hote yadi ye svyan",
"tab bhi vaise hi khaDe hote?",
"padmlochan",
"shaant mukh",
"lahrata anchal",
"smitmanDit honth",
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अहमदाबाद - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/ahamadabad-manilal-desai-kavita?sort= | [
"अनुवाद : सावजराज",
"करुणा केवल यहाँ ऊँटों की आँखों में है",
"मनुष्यों के पास तो आँखें ही नहीं हैं",
"उबलते डामर की सड़कों पर चल-चलकर",
"उनकी बुद्धि को मोतियाबिंद हो गया है",
"और मैं भी इसी अहमदाबाद नगर में बसता हूँ",
"मेरे आस-पास भी एक हल्की-सी मोतियाबिंदी परत छाने लगी है",
"निरोझ-क्वालिटी का एयरकंडीशनर भट्ठीयार गली की साँसें छीनने को प्रयासरत है",
"और यह भट्ठीयार गली मणीनगर की रंडियों की परछाइयाँ सँवारती है",
"साबरमती नदी की रेत यहाँ के प्रत्येक मार्ग पर पथराई हुई है",
"जबकि सारे रास्ते बाढ़ के इंतज़ार में हैं",
"साबरमती आश्रम गाँधी ने मछलियाँ पकड़ने हेतु नहीं बनाया था",
"और न उसे घाट पर नहाने आती अहमदाबादी सुंदरियों के साथ रास-लीला करनी थी",
"उसे तो साइकिल-रिक्शा चलाते अहमद शाह को ऑटो रिक्शा दिलानी थी",
"किंतु यह अहमदाबाद बलवंतराय मेहता की कार के मार्ग पर थूकने से",
"और इंदुलाल याज्ञिक की टोपी में सिर जमाने से ही बाज़ नहीं आ रहा",
"कल सरखेज की क़ब्र में से अहमद शाह का घोड़ा हिनहिनाया था।",
"कल आदम जब मेरे दरवाज़े पर दस्तक देकर पूछेगा कि मेरी दी उन संवेदनाओं का क्या हुआ?",
"तब मैं लाल दरवाज़े पर एक रुपए में बूट-पॉलिश कर देने को सहमत हुए लड़के की उँगली पकड़कर",
"अहमदाबाद से फ़रार हो जाऊँगा।",
"karuna keval yahan unton ki ankhon mein hai",
"manushyon ke paas to ankhen hi nahin hain",
"ubalte Damar ki saDkon par chal chalkar",
"unki buddhi ko motiyabind ho gaya hai",
"aur main bhi isi ahamadabad nagar mein basta hoon",
"mere aas paas bhi ek halki si motiyabindi parat chhane lagi hai",
"nirojh quality ka eyarkanDishanar bhatthiyar gali ki sansen chhinne ko prayasarat hai",
"aur ye bhatthiyar gali maningar ki ranDiyon ki parchhaiyan sanvarti hai",
"sabaramti nadi ki ret yahan ke pratyek maarg par pathrai hui hai",
"jabki sare raste baaDh ke intज़aar mein hain",
"sabaramti ashram gandhi ne machhliyan pakaDne hetu nahin banaya tha",
"aur na use ghaat par nahane aati ahamdabadi sundariyon ke saath raas lila karni thi",
"use to cycle rickshaw chalate ahmad shaah ko ऑto rickshaw dilani thi",
"kintu ye ahamadabad balvantray mehta ki kaar ke maarg par thukne se",
"aur indulal yaj~naik ki topi mein sir jamane se hi baaz nahin aa raha",
"kal sarkhej ki qabr mein se ahmad shaah ka ghoDa hinhinaya tha.",
"kal aadam jab mere darvaze par dastak dekar puchhega ki meri di un sanvednaon ka kya hua?",
"tab main laal darvaze par ek rupae mein boot polish kar dene ko sahmat hue laDke ki ungli pakaDkar",
"ahamadabad se farar ho jaunga.",
"karuna keval yahan unton ki ankhon mein hai",
"manushyon ke paas to ankhen hi nahin hain",
"ubalte Damar ki saDkon par chal chalkar",
"unki buddhi ko motiyabind ho gaya hai",
"aur main bhi isi ahamadabad nagar mein basta hoon",
"mere aas paas bhi ek halki si motiyabindi parat chhane lagi hai",
"nirojh quality ka eyarkanDishanar bhatthiyar gali ki sansen chhinne ko prayasarat hai",
"aur ye bhatthiyar gali maningar ki ranDiyon ki parchhaiyan sanvarti hai",
"sabaramti nadi ki ret yahan ke pratyek maarg par pathrai hui hai",
"jabki sare raste baaDh ke intज़aar mein hain",
"sabaramti ashram gandhi ne machhliyan pakaDne hetu nahin banaya tha",
"aur na use ghaat par nahane aati ahamdabadi sundariyon ke saath raas lila karni thi",
"use to cycle rickshaw chalate ahmad shaah ko ऑto rickshaw dilani thi",
"kintu ye ahamadabad balvantray mehta ki kaar ke maarg par thukne se",
"aur indulal yaj~naik ki topi mein sir jamane se hi baaz nahin aa raha",
"kal sarkhej ki qabr mein se ahmad shaah ka ghoDa hinhinaya tha.",
"kal aadam jab mere darvaze par dastak dekar puchhega ki meri di un sanvednaon ka kya hua?",
"tab main laal darvaze par ek rupae mein boot polish kar dene ko sahmat hue laDke ki ungli pakaDkar",
"ahamadabad se farar ho jaunga.",
"Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.",
"Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.",
"This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
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"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
गृहिणी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/grhini-harish-meenashru-kavita?sort= | [
"अनुवाद : योगेंद्रनाथ मिश्र",
"एक",
"कभी-कभी",
"खिड़की के पास बैठकर",
"नम हवा की लहर पर वह",
"रबारी शैली की कढ़ाई का काम करती है।",
"मानो मैं पक्के रंग के डोरे की रील होऊँ",
"इस तरह वह मेरे मर्मस्थल में से उधेड़ती जाती है",
"मनपसंद रंग का धागा—",
"एकदम अंदर से खींचकर।",
"इधर मैं उकलता जाता हूँ",
"और उधर बनता जाता है",
"कलाधर मोर।",
"चोर की तरह दबे पाँव",
"आषाढ़ मेरी पीठ के पीछे से सरक जाता है",
"परपुरुष की भाँति।",
"दो",
"छिटक जाता है",
"हाथ का पात्र",
"और सारे कमरे में",
"बिखर जाता है रामदाना।",
"चौक में",
"मानो ग्रह-नक्षत्र बिखर गए हों,",
"इतनी सावधानी से",
"आहिस्ते-आहिस्ते",
"एक-एक दाना बीनकर, साफ़ करके, भर लेती है",
"साफ़-सुथरे पारदर्शक अमृतबान में।",
"ऐसे तो कितनी ही बार होता है।",
"बार-बार बिखर जाना",
"फिर सिमटकर सम पर आ जाना",
"एकदम पारदर्शकता में : अमृतबान में बैठे-बैठे",
"तुम्हारा प्रतिपल का ऋणी",
"मैं देखा करता हूँ अपना संसार, ओ गृहिणी…!",
"तीन",
"संसार में केवल दो ही रंग बचे हैं :",
"एक धूप का और दूसरा छाया का।",
"फैली हुई मौलश्री की बौनी परछाईं पर",
"मूँगफली का दाना फोड़ रही है ध्यानस्थ गिलहरी।",
"ऊपर उठे",
"नन्हे हाथ पर उग आए हैं खिलवाड़ी पत्ते",
"और सोनचंपे की झुकी डाल पर",
"रिबन की बहुरूपी कलगियाँ : घड़ी में फूल, घड़ी में पंखी।",
"भारविहीन",
"भारी-भरकम तना आड़ा पड़ा है बग़ीचे में—",
"तो भी ज्यों की त्यों खड़ी है",
"दूब की हरी कोमलता, विनम्र भाव से।",
"वस्तुएँ",
"भले ही लगती हों,",
"परस्पर जुड़ी हुईं",
"परंतु होती हैं कितनी अलग और अलमस्त",
"और फिर, झुँझलाहट से भर दे—इतनी बेबूझ",
"इस धूप में।",
"समभाव से यह परछाईं सबको तदाकार कर देती है।",
"दूर एक पत्थर पर",
"मुश्किल रंग धारण करके एक गिरगिट",
"गर्दन ऊँची किए बैठा है, तनिक भी हिले-डुले बिना।",
"इस सृष्टि में मैं अकेला ही क्यों इतना अधिक चंचल हूँ?",
"ek",
"kabhi kabhi",
"khiDki ke paas baithkar",
"nam hava ki lahr par wo",
"rabari shaili ki kaDhai ka kaam karti hai.",
"mano main pakke rang ke Dore ki reel houn",
"is tarah wo mere marmasthal mein se udheDti jati hai",
"manapsand rang ka dhaga—",
"ekdam andar se khinchkar.",
"idhar main ukalta jata hoon",
"aur udhar banta jata hai",
"kaladhar mor.",
"chor ki tarah dabe paanv",
"ashaDh meri peeth ke pichhe se sarak jata hai",
"parpurush ki bhanti.",
"do",
"chhitak jata hai",
"haath ka paatr",
"aur sare kamre men",
"bikhar jata hai ramdana.",
"chauk men",
"mano grah nakshatr bikhar gaye hon,",
"itni savadhani se",
"ahiste ahiste",
"ek ek dana binkar, saaf karke, bhar leti hai",
"saaf suthre paradarshak amrtaban mein.",
"aise to kitni hi baar hota hai.",
"baar baar bikhar jana",
"phir simatkar sam par aa jana",
"ekdam paradarshakta mein ha amrtaban mein baithe baithe",
"tumhara pratipal ka rnai",
"main dekha karta hoon apna sansar, o grihinai…!",
"teen",
"sansar mein keval do hi rang bache hain ha",
"ek dhoop ka aur dusra chhaya ka.",
"phaili hui maulashri ki bauni parchhain par",
"mungaphali ka dana phoD rahi hai dhyanasth gilahri.",
"upar uthe",
"nannhe haath par ug aaye hain khilvaDi patte",
"aur sonchampe ki jhuki Daal par",
"ribbon ki bahurupi kalagiyan ha ghaDi mein phool, ghaDi mein pankhi.",
"bharavihin",
"bhari bharkam tana aaDa paDa hai baghiche men—",
"to bhi jyon ki tyon khaDi hai",
"doob ki hari komalta, vinamr bhaav se.",
"vastuen",
"bhale hi lagti hon,",
"paraspar juड़i huin",
"parantu hoti hain kitni alag aur almast",
"aur phir, jhunjhlahat se bhar de—itni bebujh",
"is dhoop mein.",
"sambhav se ye parchhain sabko tadakar kar deti hai.",
"door ek patthar par",
"mushkil rang dharan karke ek girgit",
"gardan unchi kiye baitha hai, tanik bhi hile Dule bina.",
"is sirishti mein main akela hi kyon itna adhik chanchal hoon?",
"ek",
"kabhi kabhi",
"khiDki ke paas baithkar",
"nam hava ki lahr par wo",
"rabari shaili ki kaDhai ka kaam karti hai.",
"mano main pakke rang ke Dore ki reel houn",
"is tarah wo mere marmasthal mein se udheDti jati hai",
"manapsand rang ka dhaga—",
"ekdam andar se khinchkar.",
"idhar main ukalta jata hoon",
"aur udhar banta jata hai",
"kaladhar mor.",
"chor ki tarah dabe paanv",
"ashaDh meri peeth ke pichhe se sarak jata hai",
"parpurush ki bhanti.",
"do",
"chhitak jata hai",
"haath ka paatr",
"aur sare kamre men",
"bikhar jata hai ramdana.",
"chauk men",
"mano grah nakshatr bikhar gaye hon,",
"itni savadhani se",
"ahiste ahiste",
"ek ek dana binkar, saaf karke, bhar leti hai",
"saaf suthre paradarshak amrtaban mein.",
"aise to kitni hi baar hota hai.",
"baar baar bikhar jana",
"phir simatkar sam par aa jana",
"ekdam paradarshakta mein ha amrtaban mein baithe baithe",
"tumhara pratipal ka rnai",
"main dekha karta hoon apna sansar, o grihinai…!",
"teen",
"sansar mein keval do hi rang bache hain ha",
"ek dhoop ka aur dusra chhaya ka.",
"phaili hui maulashri ki bauni parchhain par",
"mungaphali ka dana phoD rahi hai dhyanasth gilahri.",
"upar uthe",
"nannhe haath par ug aaye hain khilvaDi patte",
"aur sonchampe ki jhuki Daal par",
"ribbon ki bahurupi kalagiyan ha ghaDi mein phool, ghaDi mein pankhi.",
"bharavihin",
"bhari bharkam tana aaDa paDa hai baghiche men—",
"to bhi jyon ki tyon khaDi hai",
"doob ki hari komalta, vinamr bhaav se.",
"vastuen",
"bhale hi lagti hon,",
"paraspar juड़i huin",
"parantu hoti hain kitni alag aur almast",
"aur phir, jhunjhlahat se bhar de—itni bebujh",
"is dhoop mein.",
"sambhav se ye parchhain sabko tadakar kar deti hai.",
"door ek patthar par",
"mushkil rang dharan karke ek girgit",
"gardan unchi kiye baitha hai, tanik bhi hile Dule bina.",
"is sirishti mein main akela hi kyon itna adhik chanchal hoon?",
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"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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गमला - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/gamla-indu-joshi-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"इस गमले में",
"अब मुझे पौधा नहीं लगाना यह सोचकर",
"मैंने उसे जहाँ कड़ी धूप लगे",
"वहाँ",
"अपने आँगन में रखा है।",
"जिससे उसकी मिट्टी",
"सारशून्य हो जाए और",
"तप कर इतनी सख़्त हो जाए",
"कि कोई कितना भी पानी ढालें",
"उसमें एक भी अंकुर न फूटे।",
"बरसों पहले माँ ने",
"उसमें तुलसी की मंजरी डाली थी—",
"तो बारिश के बाद",
"उसमें छोटे पौधे निकल आए थे।",
"मैं और मेरी बहन, माँ ने जैसा कहा वैसे",
"उसकी प्रदक्षिणा करते, लोटा भर पानी डालते—",
"कभी अबीर-गुलाल भी छिड़कते।",
"तुलसी के पौधे बड़े होकर कितने होते?",
"शायद पौधे का आयुष्य ख़त्म हुआ था",
"या फिर घर के सभी सदस्य",
"बारी-बारी से पानी डालते होंगे तभी",
"सड़न लगने से",
"या फिर और भी कारणों से—",
"वे पौधे धीरे-धीरे सूखने लगे थे।",
"पहले पत्ते पीले पड़ गए",
"फिर मंजरियाँ मुरझाने लगीं।",
"फिर हरी डंडियाँ सूखी डंठल हो गईं।",
"माँ ने तो मंजरियाँ खुली ज़मीन पर बिखेरी",
"पर वहाँ भी अंकुरित नहीं हुईं।",
"फिर एक दिन माँ ने सारे पौधे निकालकर",
"गमले की मिट्टी को ऊपर-नीचे किया",
"तो लंबे अर्से से दबे हुए",
"छोटे-छोटे कीड़े और दीमक",
"ऊपर आने लगे।",
"तुलसी को भी ये नहीं छोड़ते! — कहकर माँ ने",
"दूसरे पौधे लगाने का बहुत प्रयास किया।",
"लेकिन उन कीड़े और दीमक से भरी मिट्टी में",
"पौधे अधिक समय टिक नहीं पाते थे।",
"माँ वह गमला मुझे दे गई है।",
"मुझमें माँ जैसा",
"बार-बार पौधा बादलते रहने का",
"धीरज नहीं है।",
"इसीलिए उस गमले में",
"अब मुझे पौधा नहीं लगाना",
"ऐसा सोचकर—",
"मैंने उसे कड़ी धूप लगे",
"उस तरह, मेरे आँगन में रखा है।",
"is gamle mein",
"ab mujhe paudha nahin lagana ye sochkar",
"mainne use jahan kaDi dhoop lage",
"wahan",
"apne angan mein rakha hai",
"jisse uski mitti",
"sarshunya ho jaye aur",
"tap kar itni sakht ho jaye",
"ki koi kitna bhi pani Dhalen",
"usmen ek bhi ankur na phute",
"barson pahle man ne",
"usmen tulsi ki manjri Dali thee—",
"to barish ke baad",
"usmen chhote paudhe nikal aaye the",
"main aur meri bahan, man ne jaisa kaha waise",
"uski pradakshaina karte, lota bhar pani Dalte—",
"kabhi abir gulal bhi chhiDakte",
"tulsi ke paudhe baDe hokar kitne hote?",
"shayad paudhe ka ayushy khatm hua tha",
"ya phir ghar ke sabhi sadasy",
"bari bari se pani Dalte honge tabhi",
"saDan lagne se",
"ya phir aur bhi karnon se—",
"we paudhe dhire dhire sukhne lage the",
"pahle patte pile paD gaye",
"phir manjariyan murjhane lagin",
"phir hari DanDiyan sukhi Danthal ho gain",
"man ne to manjariyan khuli zamin par bikheri",
"par wahan bhi ankurit nahin huin",
"phir ek din man ne sare paudhe nikalkar",
"gamle ki mitti ko upar niche kiya",
"to lambe arse se dabe hue",
"chhote chhote kiDe aur dimak",
"upar aane lage",
"tulsi ko bhi ye nahin chhoDte! — kahkar man ne",
"dusre paudhe lagane ka bahut prayas kiya",
"lekin un kiDe aur dimak se bhari mitti mein",
"paudhe adhik samay tik nahin pate the",
"man wo gamla mujhe de gai hai",
"mujhmen man jaisa",
"bar bar paudha badalte rahne ka",
"dhiraj nahin hai",
"isiliye us gamle mein",
"ab mujhe paudha nahin lagana",
"aisa sochkar—",
"mainne use kaDi dhoop lage",
"us tarah, mere angan mein rakha hai",
"is gamle mein",
"ab mujhe paudha nahin lagana ye sochkar",
"mainne use jahan kaDi dhoop lage",
"wahan",
"apne angan mein rakha hai",
"jisse uski mitti",
"sarshunya ho jaye aur",
"tap kar itni sakht ho jaye",
"ki koi kitna bhi pani Dhalen",
"usmen ek bhi ankur na phute",
"barson pahle man ne",
"usmen tulsi ki manjri Dali thee—",
"to barish ke baad",
"usmen chhote paudhe nikal aaye the",
"main aur meri bahan, man ne jaisa kaha waise",
"uski pradakshaina karte, lota bhar pani Dalte—",
"kabhi abir gulal bhi chhiDakte",
"tulsi ke paudhe baDe hokar kitne hote?",
"shayad paudhe ka ayushy khatm hua tha",
"ya phir ghar ke sabhi sadasy",
"bari bari se pani Dalte honge tabhi",
"saDan lagne se",
"ya phir aur bhi karnon se—",
"we paudhe dhire dhire sukhne lage the",
"pahle patte pile paD gaye",
"phir manjariyan murjhane lagin",
"phir hari DanDiyan sukhi Danthal ho gain",
"man ne to manjariyan khuli zamin par bikheri",
"par wahan bhi ankurit nahin huin",
"phir ek din man ne sare paudhe nikalkar",
"gamle ki mitti ko upar niche kiya",
"to lambe arse se dabe hue",
"chhote chhote kiDe aur dimak",
"upar aane lage",
"tulsi ko bhi ye nahin chhoDte! — kahkar man ne",
"dusre paudhe lagane ka bahut prayas kiya",
"lekin un kiDe aur dimak se bhari mitti mein",
"paudhe adhik samay tik nahin pate the",
"man wo gamla mujhe de gai hai",
"mujhmen man jaisa",
"bar bar paudha badalte rahne ka",
"dhiraj nahin hai",
"isiliye us gamle mein",
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"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
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उमाशंकर भाई से - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/umashankar-bhai-se-ramesh-parekh-kavita?sort= | [
"अनुवाद : रघुवीर चौधरी",
"सारी व्यंजनाएँ खड़ी होंगी नतमस्तक",
"आपकी शैया के पास,",
"शून्य नज़र से आपको देखती;",
"हे वैखरी वाणी की आँख के मोती!",
"आपने विश्व को लघुतम किया",
"हस्तगत करने को,",
"झीनी-झीनी आँखों से, ह्दय से...",
"कहाँ जा रहा आपका रथ सड़ासड़?",
"ये पहुँचे आपके हाथ क्षितिज के उस पार",
"सूखी साबरमती में आकाश गंगा को मोड़ने?",
"मेरी रंक भाषा के टोडे पर",
"टँगें पाँच-सात सूर्य,",
"आपने जड़े पाँच-सात चंद्र।",
"शब्द को आकाश का",
"और आकाश को आँख का दरजा",
"देने का यत्न किया,",
"जूझे अँजूरी भर देह से,",
"उसकी थकान बिछाले में ही रही और आप...",
"कहाँ जा रहा आपका रथ सड़ासड़?",
"सॉरी, हम अपने मस्टरों में ज़्यादा से ज़्यादा",
"‘कैज़ुअल लीव’ लिख देंगे,",
"लौट आना पड़ेगा तुरंत।",
"हमारी बात कहिएगा",
"राह में मिलते देवों से—",
"सारा मानव-कुल भोला है,",
"क्षमापात्र है,",
"अपने कुर्ते की कोर चबा खाए ऐसा,",
"और अपने आँसू से पवित्र,",
"थोड़ा-सा अनपढ़ परंतु प्यारा सा...",
"लौट आएँगे तब क्या-क्या लाएँगे",
"इस मानव-कुल के ख़ातिर?",
"यहाँ से जो ले गए आप स्वप्न-मंजूषा!",
"रहावन में खड़े हम हर शाम",
"आपकी बाट देखेंगे, और हाँ,",
"आप पहुंचें तब तक",
"हम विश्व को अधिक सुंदर कर लेंगे, कवि...",
"(20 दिसंबर 1988, कवि उमाशंकर के देहावसान का समाचार पढ़कर)",
"sari wyanjnayen khaDi hongi natmastak",
"apaki shaiya ke pas,",
"shunya nazar se aapko dekhti;",
"he baikhari wani ki ankh ke moti!",
"apne wishw ko laghutam kiya",
"hastagat karne ko,",
"jhini jhini ankhon se, hday se",
"kahan ja raha aapka rath saDasaD?",
"ye panhuche aapke hath kshaitij ke us par",
"sukhi sabaramti mein akash ganga ko moDne?",
"meri rank bhasha ke toDe par",
"tangen panch sat surya,",
"apne jaDe panch sat chandr",
"shabd ko akash ka",
"aur akash ko ankh ka darja",
"dene ka yatn kiya,",
"jujhe anjuri bhar deh se,",
"uski thakan bichhale mein hi rahi aur aap",
"kahan ja raha aapka rath saDasaD?",
"sorry, hum apne mastron mein jyada se jyada",
"‘kejyual leew’ likh denge,",
"laut aana paDega turant",
"hamari baat kahiyega",
"rah mein milte dewon se—",
"sara manaw kul bhola hai,",
"kshmapatr hai,",
"apne kurte ki kor chaba khaye aisa,",
"aur apne ansu se pawitra,",
"thoDa sa anpaDh parantu pyara sa",
"laut ayenge tab kya kya layenge",
"is manaw kul ke khatir?",
"yahan se jo le gaye aap snpan manjusha!",
"rahawan mein khaDe hum sham",
"apaki baat dekhenge, aur han,",
"ap panhuche tab tak",
"hum wishw ko adhik sundar kar lenge, kawi",
"sari wyanjnayen khaDi hongi natmastak",
"apaki shaiya ke pas,",
"shunya nazar se aapko dekhti;",
"he baikhari wani ki ankh ke moti!",
"apne wishw ko laghutam kiya",
"hastagat karne ko,",
"jhini jhini ankhon se, hday se",
"kahan ja raha aapka rath saDasaD?",
"ye panhuche aapke hath kshaitij ke us par",
"sukhi sabaramti mein akash ganga ko moDne?",
"meri rank bhasha ke toDe par",
"tangen panch sat surya,",
"apne jaDe panch sat chandr",
"shabd ko akash ka",
"aur akash ko ankh ka darja",
"dene ka yatn kiya,",
"jujhe anjuri bhar deh se,",
"uski thakan bichhale mein hi rahi aur aap",
"kahan ja raha aapka rath saDasaD?",
"sorry, hum apne mastron mein jyada se jyada",
"‘kejyual leew’ likh denge,",
"laut aana paDega turant",
"hamari baat kahiyega",
"rah mein milte dewon se—",
"sara manaw kul bhola hai,",
"kshmapatr hai,",
"apne kurte ki kor chaba khaye aisa,",
"aur apne ansu se pawitra,",
"thoDa sa anpaDh parantu pyara sa",
"laut ayenge tab kya kya layenge",
"is manaw kul ke khatir?",
"yahan se jo le gaye aap snpan manjusha!",
"rahawan mein khaDe hum sham",
"apaki baat dekhenge, aur han,",
"ap panhuche tab tak",
"hum wishw ko adhik sundar kar lenge, kawi",
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छोटा मेरा खेत - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/chhota-mera-khet-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"प्रस्तुत पाठ एनसीआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।",
"छोटा मेरा खेत चौकोना",
"काग़ज़ का एक पन्ना,",
"कोई अंधड़ कहीं से आया",
"क्षण का बीज वहाँ बोया गया।",
"कल्पना के रसायनों को पी",
"बीज गल गया निःशेष;",
"शब्द के अंकुर फूटे,",
"पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।",
"झूमने लगे फल,",
"रस अलौकिक,",
"अमृत धाराएँ फूटतीं।",
"रोपाई क्षण की,",
"कटाई अनंतता की",
"लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।",
"रस का अक्षय पात्र सदा का",
"छोटा मेरा खेत चौकोना।",
"chhota mera khet chaukona",
"kaghaz ka ek panna,",
"koi andhaD kahin se aaya",
"kshan ka beej wahan boya gaya",
"kalpana ke rasaynon ko pi",
"beej gal gaya niःshesh;",
"shabd ke ankur phute,",
"pallaw pushpon se namit hua wishesh",
"jhumne lage phal,",
"ras alaukik,",
"amrit dharayen phuttin",
"ropai kshan ki,",
"katai anantta ki",
"lutte rahne se zara bhi nahin kam hoti",
"ras ka akshay patr sada ka",
"chhota mera khet chaukona",
"chhota mera khet chaukona",
"kaghaz ka ek panna,",
"koi andhaD kahin se aaya",
"kshan ka beej wahan boya gaya",
"kalpana ke rasaynon ko pi",
"beej gal gaya niःshesh;",
"shabd ke ankur phute,",
"pallaw pushpon se namit hua wishesh",
"jhumne lage phal,",
"ras alaukik,",
"amrit dharayen phuttin",
"ropai kshan ki,",
"katai anantta ki",
"lutte rahne se zara bhi nahin kam hoti",
"ras ka akshay patr sada ka",
"chhota mera khet chaukona",
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होंठ हँसे तो - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/honth-hanse-to-harindra-dave-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"होंठ हँसें तो फागुन",
"गोरी! आँख झरे तो सावन,",
"मौसम मेरी तुम ही,",
"काल का मिथ्या आवन-जावन।",
"तव दर्शन के पार सजन, दो लोचन मेरे अंध,",
"अवर वाणी के काल श्रवण के द्वार कर दिए बंद,",
"तुमरे एक ही संकेत से",
"मेरे विश्व का संचालन।",
"अणु सरीखा अंतर औ तव अपार यह अनुराग,",
"एक था वीरान अब वहाँ लिख वसंती बाग;",
"तव श्वासों का स्पर्श",
"हृदय पर मलयलहर मनभावन।",
"किसी के मन यह भरम, किसी मर्मी के मन का मीत,",
"दो अक्षर भी भरे-भरे, प्रिय, भोगी ऐसी प्रीत,",
"पल-पल पाती रही",
"परम को मुदा ही में अवगाहन।",
"honth hansen to phagun",
"gori! ankh jhare to sawan,",
"mausam meri tum hi,",
"kal ka mithya aawan jawan",
"taw darshan ke par sajan, do lochan mere andh,",
"awar wani ke kal shrawn ke dwar kar diye band,",
"tumre ek hi sanket se",
"mere wishw ka sanchalan",
"anau sarikha antar au taw apar ye anurag,",
"ek tha wiran ab wahan likh wasanti bag;",
"taw shwason ka sparsh",
"hirdai par malayalhar manbhawan",
"kisi ke man ye bharam, kisi marmi ke man ka meet,",
"do akshar bhi bhare bhare, priy, bhogi aisi preet,",
"palpal pati rahi",
"param ko muda hi mein awgahan",
"honth hansen to phagun",
"gori! ankh jhare to sawan,",
"mausam meri tum hi,",
"kal ka mithya aawan jawan",
"taw darshan ke par sajan, do lochan mere andh,",
"awar wani ke kal shrawn ke dwar kar diye band,",
"tumre ek hi sanket se",
"mere wishw ka sanchalan",
"anau sarikha antar au taw apar ye anurag,",
"ek tha wiran ab wahan likh wasanti bag;",
"taw shwason ka sparsh",
"hirdai par malayalhar manbhawan",
"kisi ke man ye bharam, kisi marmi ke man ka meet,",
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"palpal pati rahi",
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जब आप - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/jab-aap-manilal-desai-kavita?sort= | [
"अनुवाद : सावजराज",
"जब आप",
"गंगा के गंदे पानी में आँख बंद करके खड़े रहकर",
"अपने पिता का श्राद्ध कर रहे होंगे",
"जब आप",
"हरिद्वार में पसीने से गंधाते पंडे से",
"गृह-शांति करवा रहे होंगे",
"जब आप",
"दफ़्तर से सत्य-नारायण की कथा की छुट्टी लेकर",
"फॉरश रोड की मशहूर रंडी के साथ सो रहे होंगे",
"जब आप",
"कृष्ण को राधा के चीर के तौर पर",
"चार उँगल भर कपड़े से चूतिया बना रहे होंगे",
"तब",
"स्वर्ग में जिसके नाम से सारे देवता डर रहे होंगे",
"वह चवन्नी छाप ख़ुदा",
"दाढ़ी करने के बाद फिटकरी लगाते-लगाते",
"अपने पाप का प्रायश्चित कर रहा होगा।",
"jab aap",
"ganga ke gande pani mein ankh band karke khaDe rahkar",
"apne pita ka shraaddh kar rahe honge",
"jab aap",
"haridvar mein pasine se gandhate panDe se",
"grih shanti karva rahe honge",
"jab aap",
"daftar se saty narayan ki katha ki chhutti lekar",
"phaurash roD ki mashhur ranDi ke saath so rahe honge",
"jab aap",
"krishn ko radha ke cheer ke taur par",
"chaar ungal bhar kapDe se chutiya bana rahe honge",
"tab",
"svarg mein jiske naam se sare devta Dar rahe honge",
"wo chavanni chhaap khuda",
"daDhi karne ke baad phitakri lagate lagate",
"apne paap ka prayashchit kar raha hoga.",
"jab aap",
"ganga ke gande pani mein ankh band karke khaDe rahkar",
"apne pita ka shraaddh kar rahe honge",
"jab aap",
"haridvar mein pasine se gandhate panDe se",
"grih shanti karva rahe honge",
"jab aap",
"daftar se saty narayan ki katha ki chhutti lekar",
"phaurash roD ki mashhur ranDi ke saath so rahe honge",
"jab aap",
"krishn ko radha ke cheer ke taur par",
"chaar ungal bhar kapDe se chutiya bana rahe honge",
"tab",
"svarg mein jiske naam se sare devta Dar rahe honge",
"wo chavanni chhaap khuda",
"daDhi karne ke baad phitakri lagate lagate",
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शायद - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/shayad-sejal-shah-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"कल ही मैंने",
"मेरे घर की दीवार खिसका कर",
"गुलमोहर को भीतर ले लिया,",
"बाहर खिले हुए मोगरे को",
"अपने अंदर बो दिया",
"थोड़ा जी लेती हूँ",
"इन वृक्षों की नमी में",
"और दीवार के खुरदरेपन में...",
"वर्णमाला के अक्षर तो",
"बिखरे",
"पड़े हैं",
"चद्दरों की सिलवट में",
"और",
"खिड़की पर लगे जालों में",
"कुछ तो",
"फ्रीज़ में भी,",
"मेरी प्रतीक्षा कर रहे,",
"बहुत ही ठंडे।",
"थोड़े",
"बाथरूम की दीवारों पर",
"घर में समाये वृक्ष की नसों में",
"उभर आए हैं कुछ हरित कण।",
"कविता लिखी जाएगी",
"शायद।",
"kal hi mainne",
"mere ghar ki diwar khiska kar",
"gulmohar ko bhitar le liya,",
"bahar khile hue mogre ko",
"apne andar bo diya",
"thoDa ji leti hoon",
"in wrikshon ki nami mein",
"aur diwar ke khuradrepan mein",
"warnamala ke akshar to",
"bikhre",
"paDe hain",
"chaddron ki silwat mein",
"aur",
"khiDki par lage jalon mein",
"kuch to",
"phreez mein bhi,",
"meri pratiksha kar rahe,",
"bahut hi thanDe",
"thoDe",
"bathrum ki diwaron par",
"ghar mein samaye wriksh ki nason mein",
"ubhar aaye hain kuch harit kan",
"kawita likhi jayegi",
"shayad",
"kal hi mainne",
"mere ghar ki diwar khiska kar",
"gulmohar ko bhitar le liya,",
"bahar khile hue mogre ko",
"apne andar bo diya",
"thoDa ji leti hoon",
"in wrikshon ki nami mein",
"aur diwar ke khuradrepan mein",
"warnamala ke akshar to",
"bikhre",
"paDe hain",
"chaddron ki silwat mein",
"aur",
"khiDki par lage jalon mein",
"kuch to",
"phreez mein bhi,",
"meri pratiksha kar rahe,",
"bahut hi thanDe",
"thoDe",
"bathrum ki diwaron par",
"ghar mein samaye wriksh ki nason mein",
"ubhar aaye hain kuch harit kan",
"kawita likhi jayegi",
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प्रश्न पत्र - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/parashn-patr-udayan-thakkar-kavita?sort= | [
"अनुवाद : सूर्यभानु गुप्त",
"(1)\tहाथ पिरोओ हाथों में और बीच उँगलियों के छूटे ‘ख़ाली स्थान भरो!’",
"(2)\tयूँ तो तुम भी मेरा इंतज़ार करते हो, क्यों सच है ना? ‘हाँ या ना में उत्तर दो!’",
"(3)\t(आओ और आकर भादो की बरखा बनकर मुझे भिगाओ।) ‘कोष्ठक में लिखे मुताबिक करो।’",
"(4)\tछोटी प्याली चढ़ा गटागट, छके पेट पर हाथ फेरता मैं तो बस बैठा ही था कि",
"तुमको देखा, और देख फिर मरा प्यास से, मरा प्यास से, मरा प्यास से।",
"‘रस आस्वाद कराओ।’",
"(5)\tश्वासोच्छवास हैं किसकी ख़ातिर? ‘पूरे कारण लिखो।’",
"(6)\t‘काट पीट कम से कम करो।’ साफ़-सूफ़ बिल्कुल कोरा बस, तुम्हें मिला हूँ।",
"(7)\t‘तुम्हे चाहता हूँ चाहूँगा।’ किसने, किससे, कब ये जुमला (नहीं) कहा है?’",
"(8)\tकरो खुलासा। ये लो अपना नाम लिखा क़ाग़ज पर, इसको चूमो।",
"वर्ना ‘कैंसल वाट इल नाट एप्लिकेबल।’",
"(1)\thath piroo hathon mein aur beech ungliyon ke chhute ‘khali sthan bharo!’",
"(2)\tyoon to tum bhi mera intzar karte ho, kyon sach hai na? ‘han ya na mein uttar do!’",
"(3)\t(ao aur aakar bhado ki barkha bankar mujhe bhigao ) ‘koshthak mein likhe mutabik karo ’",
"(4)\tchhoti pyali chaDha gatagat, chhake pet par hath pherta main to bus baitha hi tha ki",
"tumko dekha, aur dekh phir mara pyas se, mara pyas se, mara pyas se",
"‘ras aswad karao ’",
"(5)\tshwasochchhawas hain kiski khatir? ‘pure karan likho ’",
"(6)\t‘kat peet kam se kam karo ’ saf soof bilkul kora bus, tumhein mila hoon",
"(7)\t‘tumhe chahta hoon chahunga ’ kisne, kisse, kab ye jumla (nahin) kaha hai?’",
"(8)\tkaro khulasa ye lo apna nam likha qaghaj par, isko chumo",
"warna ‘kainsal watt il nat eplikebal ’",
"(1)\thath piroo hathon mein aur beech ungliyon ke chhute ‘khali sthan bharo!’",
"(2)\tyoon to tum bhi mera intzar karte ho, kyon sach hai na? ‘han ya na mein uttar do!’",
"(3)\t(ao aur aakar bhado ki barkha bankar mujhe bhigao ) ‘koshthak mein likhe mutabik karo ’",
"(4)\tchhoti pyali chaDha gatagat, chhake pet par hath pherta main to bus baitha hi tha ki",
"tumko dekha, aur dekh phir mara pyas se, mara pyas se, mara pyas se",
"‘ras aswad karao ’",
"(5)\tshwasochchhawas hain kiski khatir? ‘pure karan likho ’",
"(6)\t‘kat peet kam se kam karo ’ saf soof bilkul kora bus, tumhein mila hoon",
"(7)\t‘tumhe chahta hoon chahunga ’ kisne, kisse, kab ye jumla (nahin) kaha hai?’",
"(8)\tkaro khulasa ye lo apna nam likha qaghaj par, isko chumo",
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अकेला - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/akela-rajendra-shah-kavita?sort= | [
"अनुवाद : ज्योत्स्ना मिलन",
"घर को छोड़कर जाने वाले को मिलती",
"विशालता विश्व की;",
"पीछे अकेले छूटने वाले को",
"निगलती शून्यता घर की।",
"मिलन में उरयोग आनंद में",
"लगा ही नहीं कभी, कि जुदाई थी",
"या होगी कभी,",
"हुआ पल भर का मिलन स्वप्नवत्।",
"सरकते युग के-से पल",
"लगते सब सिर्फ़ ख़ाली,",
"हृदय में जड़ा पल नन्हा-सा",
"स्मृति से भरा-भरा",
"पल में स्मृति के मैं जीता समूचा युग,",
"युग जैसे युग को पलट देता पल में।",
"ghar ko chhoDkar jane wale ko milti",
"wishalata wishw kee;",
"pichhe akele chhutne wale ko",
"nigalti shunyata ghar ki",
"milan mein uryog anand mein",
"laga hi nahin kabhi, ki judai thi",
"ya hogi kabhi,",
"hua pal bhar ka milan swapnwat",
"sarakte yug ke se pal",
"lagte sab sirf khali,",
"hirdai mein jaDa pal nanha sa",
"smriti se bhara bhara",
"pal mein smriti ke main jita samucha yug,",
"yug jaise yug ko palat deta pal mein",
"ghar ko chhoDkar jane wale ko milti",
"wishalata wishw kee;",
"pichhe akele chhutne wale ko",
"nigalti shunyata ghar ki",
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"laga hi nahin kabhi, ki judai thi",
"ya hogi kabhi,",
"hua pal bhar ka milan swapnwat",
"sarakte yug ke se pal",
"lagte sab sirf khali,",
"hirdai mein jaDa pal nanha sa",
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"pal mein smriti ke main jita samucha yug,",
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आत्मसंतोष - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/atmsantosh-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"नहीं, नहीं, अब नहीं हैं रोनी हृदय की व्यथाएँ।",
"जो जगत व्यथा देता है उसी जगत को अब",
"रचकर गाथाएँ व्यथा को वापस नहीं देनी हैं।",
"दुःख से जो हमें पीड़ित करता है",
"बदले में उसे दुःखगीत देना क्यों?",
"हृदय बेचारा हो गया है ऐसा आर्द्र",
"सभी स्पर्शों से काँप उठता",
"करके चीत्कार गीत में।",
"गीतमय चीख सुनकर",
"अधिक के लोभ से, उत्साह से",
"स्पर्श कर जाते हैं सब कोई पुनः पुनः उसे।",
"वर्तमान वज्रका मिजराब लेकर डट गया है",
"इस तंत्री में से सभी स्वर छेड़ने को;",
"वह नहीं समझता ज़रा भी हृदय की पीड़ा।",
"फिर भी मन मसोसकर ख़ूब गाना?",
"गाना;",
"भले ही कभी विषम हो उठे वर्तमान,",
"किंतु कोई कसूर नहीं",
"अनागत पीढ़ियों का।",
"nahin, nahin, ab nahin hain roni hirdai ki wythayen",
"jo jagat wyatha deta hai usi jagat ko ab",
"rachkar gathayen wyatha ko wapas nahin deni hain",
"duःkh se jo hamein piDit karta hai",
"badle mein use duःkhagit dena kyon?",
"hirdai bechara ho gaya hai aisa aardr",
"sabhi sparshon se kanp uthta",
"karke chitkar geet mein",
"gitmay cheekh sunkar",
"adhik ke lobh se, utsah se",
"sparsh kar jate hain sab koi punः punः use",
"wartaman wajrka mijrab lekar Dat gaya hai",
"is tantri mein se sabhi swar chheDne ko;",
"wo nahin samajhta zara bhi hirdai ki piDa",
"phir bhi man masoskar khoob gana?",
"gana;",
"bhale hi kabhi wisham ho uthe wartaman,",
"kintu koi kasur nahin",
"anagat piDhiyon ka",
"nahin, nahin, ab nahin hain roni hirdai ki wythayen",
"jo jagat wyatha deta hai usi jagat ko ab",
"rachkar gathayen wyatha ko wapas nahin deni hain",
"duःkh se jo hamein piDit karta hai",
"badle mein use duःkhagit dena kyon?",
"hirdai bechara ho gaya hai aisa aardr",
"sabhi sparshon se kanp uthta",
"karke chitkar geet mein",
"gitmay cheekh sunkar",
"adhik ke lobh se, utsah se",
"sparsh kar jate hain sab koi punः punः use",
"wartaman wajrka mijrab lekar Dat gaya hai",
"is tantri mein se sabhi swar chheDne ko;",
"wo nahin samajhta zara bhi hirdai ki piDa",
"phir bhi man masoskar khoob gana?",
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दो पूर्णिमाएँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/do-purnimayen-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"पूर्णिमा लीन थी अगाध आत्म-सौंदर्य में,",
"शरद का प्रसन्न नभ शुभ्र और निर्मल था।",
"अरावली के सुभग शृंग निद्रा में निमग्न थे।",
"कहीं निर्झर नर्तनों के कुहर घोष स्फुरित होते।",
"वहाँ,",
"अजीब लहर कोई अगम लोक की आ गई।",
"खुला हृदय,",
"आकर रोम-रोम में बसी कविता।",
"झूम रही थी आत्मकुंज,",
"रसोन्मत्त थी कोकिला;",
"तपे दिन के बाद रात्रि थी रम्य वैशाख की।",
"घन कौमुदी के रस से निर्मित महकता था मोगरा,",
"नगर में तनिक शांत था, जटिल लोक कोलाहल।",
"गोधूलि वेला की सुगौर करवल्ली को भुलाती हुई",
"मुख-मयंक की प्रगट हुई पूर्णिमा।",
"निरंतर स्मरण करता हूँ",
"उभय पूर्णिमाओं को हे सखि,",
"देखकर कविता तुझमें",
"और तुझे कविता में।",
"purnaima leen thi agadh aatm saundarya mein,",
"sharad ka prasann nabh shubhr aur nirmal tha",
"arawali ke subhag shring nidra mein nimagn the",
"kahin nirjhar nartnon ke kuhar ghosh sphurit hote",
"wahan,",
"ajib lahr koi agam lok ki aa gai",
"khula hirdai,",
"akar rom rom mein basi kawita",
"jhoom rahi thi atmkunj,",
"rasonmatt thi kokila;",
"tape din ke baad ratri thi ramy waishakh ki",
"ghan kaumudi ke ras se nirmit mahakta tha mogra,",
"nagar mein tanik shant tha, jatil lok kolahal",
"godhuli wela ki sugaur karwalli ko bhulati hui",
"mukh mayank ki pragat hui purnaima",
"nirantar smarn karta hoon",
"ubhay purnimaon ko he sakhi,",
"dekhkar kawita tujhmen",
"aur tujhe kawita mein",
"purnaima leen thi agadh aatm saundarya mein,",
"sharad ka prasann nabh shubhr aur nirmal tha",
"arawali ke subhag shring nidra mein nimagn the",
"kahin nirjhar nartnon ke kuhar ghosh sphurit hote",
"wahan,",
"ajib lahr koi agam lok ki aa gai",
"khula hirdai,",
"akar rom rom mein basi kawita",
"jhoom rahi thi atmkunj,",
"rasonmatt thi kokila;",
"tape din ke baad ratri thi ramy waishakh ki",
"ghan kaumudi ke ras se nirmit mahakta tha mogra,",
"nagar mein tanik shant tha, jatil lok kolahal",
"godhuli wela ki sugaur karwalli ko bhulati hui",
"mukh mayank ki pragat hui purnaima",
"nirantar smarn karta hoon",
"ubhay purnimaon ko he sakhi,",
"dekhkar kawita tujhmen",
"aur tujhe kawita mein",
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हार्नबी रोड, बंबई (1951) - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/harnbi-rod-bambai-1951-niranjan-bhagat-kavita?sort= | [
"आसफाल्ट रोड,",
"स्निग्ध सौम्य औ’ सपाट कुछ भी न खोंड।",
"क्लॉक टावर में बजे (सुने) बारह रात के,",
"एक कतार में अनेक किंतु एक भाँत के",
"नियोन फानूस",
"लंबी ट्राम की पटरियों को घिस रहा है",
"प्रकाश-रेती की तरह!",
"ये पटरियाँ सूर्य-तेज़ में नहीं हँसी, अब हँस रही हैं।",
"सारा मार्ग ‘लोह हास्य’ से रसमसा उठा है।",
"यहाँ सबेरे और शाम,",
"काम हो या न हो,",
"कई लोग-एक-दूसरे से अनजान,",
"पर फिर भी कोई प्रेत नहीं, सबमें अब भी प्राण",
"कई वृद्ध",
"जो अपने विलीन भूत काल पर सदा ही क्रुद्ध हैं,",
"अरे, लोरेन्स में क्या कोई ऐसी दूरबीन नहीं मिलती",
"कि जिससे ये अपने विगत काल को देख सकें?",
"अनेक नवयुवक",
"जिनका भविष्य अभी ठोकरें खा रहा है, जिन्हें ज़रा भी भान नहीं,",
"और जिनके भविष्य का चित्र न शांग्रिला में न सेण्ट्रल में प्राप्य है,",
"सुप्राप्य है ए. जी. आई. गेल पर और चार्टर में!",
"कई फक्कड़",
"सभी रास्ते जिनके लिए सँकरे हैं ही नहीं,",
"फिर भी व्हाईट वेज़ के शीशे की उस अपूर्व आभरणयुक्त काष्ठसुंदरी पर",
"जिनकी आँखें और पैर ठोकरें खाते हैं!",
"कई मुफ़लिस",
"जो सदा ही कुटुम्ब-ख़र्च के जमा-उधार के आँकड़े रटते रहते हैं",
"और हमेशा वेस्ट एंड वाच के समीप आते-जाते",
"अपनी घड़ी का समय ठीक करते रहते हैं, कहीं ऐसा",
"न हो कि काल लापता हो जाए।",
"अनेक टाईपिस्ट गर्ल्स, कारकुन",
"जो गुप-चुप एक ढर्रे से जीवन को सहते जाते हैं,",
"लंच के समय इवांस फ्रेज़र में चक्कर लगा आते हैं,",
"और पल-भर सीधे खड़े होकर नई स्लेक्सटाइयों को देख लेते हैं!",
"कई मज़दूर",
"जो अब भी जी रहे हैं ‘हुजूर, जी हुजूर’ कहते-कहते!",
"उन्हें अब तक किसी ने यह नहीं कहा, ‘तुम हो स्वतंत्र’,",
"भले ही चलता रहे अखंड गति से 'टाइम्स ऑफ इंडिया' का यंत्र।",
"कोई नारी (ज़रा औरों से अनोखी)",
"जो ब्यूक फोर्ड में ही ढूँढ़ती है रात-भर का ग्राहक;",
"पार्किंग के लिए दिन नियत किए हुए हैं,",
"उसी के अनुसार सिर्फ़ फुटपाथ ही बदला जाता है।",
"कोई (मुझ-जैसा, मैं नहीं!) कवि",
"जो पुरानी पंक्तियों को स्मरण कर रहा है, एक भी नई नहीं पाता,",
"जोईस और प्रुस्त न्यू बुक कंपनी में पड़े हुए हैं,",
"किंतु ज़िंदगी पुस्तकों के बीच सदा नहीं गुज़ारी जा सकती!",
"अरे, कितने लोग पद-पद पर चाल में स्खलन दृष्टिगोचर होता है?",
"कहीं उनका हिलना-डुलना स्वप्न में तो नहीं हो रहा है?",
"सबेरे और शाम,",
"आते हैं और जाते हैं!",
"“अरे, ये सब इस समय कहाँ जाते होंगे?",
"मन में अनायास यह प्रश्न उठता है,",
"वही मार्ग, जो अपने ऊपर एक भी पद-चिह्न धारण नहीं करता,",
"कहता है : “ये पृथ्वी पर थे ही कहाँ?”",
"दोनों ओर जो अनेक आलीशान इमारतें खड़ी हैं,",
"वे समाधिभंग साधु की भाँति तुरंत उखड़ पड़ती हैं :",
"“नहीं थे, नहीं थे।”",
"और...टनन्-टनन् करती आख़िरी ट्राम गुजरती है,",
"क्या गति है?",
"उसके लिए तो यह ज़रूर कहा जा सकता है कि",
"वह कहाँ जाती है, किस डिपो की ओर",
"मानव-रहस्य को मैं कुछ तो जानता हूँ।",
"आँखों से न भी देखा हो पर हृदय तो प्रमाणित करता ही है",
"कि अस्तमान सूर्य (जिसके ये सभी वारिस हैं) सभी को हर लेता है।",
"और सारा समूह स्वप्न-लोक में फिसल पड़ता है :",
"सहस्र सूर्य से सदा प्रकाशित,",
"आकाश जिसकी भूमि है,",
"जहाँ सदा ही जागृति है,",
"जहाँ एक भी पूर्व स्मृति मौजूद नहीं है,",
"जो पराया प्रदेश नहीं है,",
"जहाँ किसी का भार नहीं है,",
"जहाँ स्वर-विहार संभव है...",
"ये आकाश के तारे उनके पद-पद तो प्रकाशित नहीं हो रहे हैं?",
"आसफाल्ट रोड",
"स्निग्ध, सौम्य औ’ सपाट, कुछ भी न खोंड।",
"asphalt roD,",
"snigdh saumy au’ sapat kuch bhi na khonD",
"clock tower mein baje (sune) barah raat ke,",
"ek katar mein anek kintu ek bhant ke",
"niyon phanus",
"lambi tram ki patariyon ko ghis raha hai",
"parkash reti ki tarah!",
"ye patriyan surya tez mein nahin hansi, ab hans rahi hain",
"sara marg ‘loh hasya’ se rasmasa utha hai",
"yahan sabere aur sham,",
"kaam ho ya na ho,",
"kai log ek dusre se anjan,",
"par phir bhi koi pret nahin, sabmen ab bhi paran",
"kai wriddh",
"jo apne wilin bhoot kal par sada hi kruddh hain,",
"are, lorens mein kya koi aisi durabin nahin milti",
"ki jisse ye apne wigat kal ko dekh saken?",
"anek nawyuwak",
"jin ka bhawishya abhi thokren kha raha hai, jinhen zara bhi bhan nahin,",
"aur jinke bhawishya ka chitr na shangrila mein na central mein prapy hai,",
"suprapya hai e ji i gel par aur charter mein!",
"kai phakkaD",
"sabhi raste jinke liye sankre hain hi nahin,",
"phir mi whait wez ke shishe ki us apurw abharanyukt kashtsundri par",
"jinki ankhen aur pair thokren khate hain!",
"kai muphlis",
"jo sada hi kutumb kharch ke jama udhaar ke ankaDe ratte rahte hain",
"aur hamesha waste enD wach ke samip aate jate",
"apni ghaDi ka samay theek karte rahte hain, kahin aisa",
"na ho ki kal lapata ho jaye",
"anek taipist girls, karkun",
"jo gup chup ek Dharre se jiwan ko sahte jate hain,",
"lanch ke samay iwans phrezar mein chakkar laga aate hain,",
"aur pal bhar sidhe khaDe hokar nai slekstaiyonko dekh lete hain!",
"kai mazdur",
"jo ab bhi ji rahe hain ‘hujur, ji hujur’ kahte kahte!",
"unhen ab tak kisi ne ye nahin kaha, ‘tum ho swtantr’,",
"bhale hi chalta rahe akhanD gati se taims auph inDiya ka yantr",
"koi nari (zara auron se anokhi)",
"jo byook phorD mein hi DhunDhati hai raat bhar ka prahak;",
"parking ke liye din niyat kiye hue",
"usike anusar sirf phutpath hi badla jata hai",
"koi (mujh jaisa, main nahin!) kawi",
"jo purani panktiyon ko smarn kar raha hai, ek mi nai nahin pata,",
"jois aur prust new book kampni mein paDe hue hain,",
"kintu zindagi pustkon ke beech sada nahin guzari ja sakti!",
"are, kitne log pad pad par chaal mein skhalan drishtigochar hota hai?",
"kahin unka hilna Dulna swapn mein to nahin ho raha hai?",
"sabere aur sham,",
"ate hain aur jate hain!",
"“are, ye sab is samay kahan jate honge?",
"man mein anayas ye parashn uthta hai,",
"wahi marg, jo apne upar ek bhi pad chihn dharan nahin karta,",
"kahta hai ha “ye prithwi par the hi kahan?”",
"donon or jo anek alishan imarten khaDi hain,",
"we samadhibhang sadhu ki bhanti turant ukhaD paDti hainh",
"“nahin the, nahin the ”",
"aur tanan tanan karti akhiri tram gujarti hai,",
"kya gati hai?",
"uske liye to ye zarur kaha ja sakta hai ki",
"wo kahan jati hai, kis Dipo ki or",
"nanaw rahasy ko main kuch to janta hoon",
"ankhon se na bhi dekha ho par hirdai to pramanait karta hi",
"ki astman surya (jiske ye sabhi waris hain) sabhi ko har leta hai",
"aur sara samuh swapn lok mein phisal paDta haih",
"sahasr surya se sada prakashit,",
"akash jiski bhumi hai,",
"jahan sada hi jagriti hai,",
"jahan ek bhi poorw smriti maujud nahin hai,",
"jo paraya pardesh nahin hai,",
"jahan kisi ka bhaar nahin hai,",
"jahan swar wihar sambhaw hai",
"ye akash ke tare unke pad pad to prakashit nahin ho rahe hain?",
"asphalt roD",
"snigdh, saumy au’ sapat, kuch bhi na khonD",
"asphalt roD,",
"snigdh saumy au’ sapat kuch bhi na khonD",
"clock tower mein baje (sune) barah raat ke,",
"ek katar mein anek kintu ek bhant ke",
"niyon phanus",
"lambi tram ki patariyon ko ghis raha hai",
"parkash reti ki tarah!",
"ye patriyan surya tez mein nahin hansi, ab hans rahi hain",
"sara marg ‘loh hasya’ se rasmasa utha hai",
"yahan sabere aur sham,",
"kaam ho ya na ho,",
"kai log ek dusre se anjan,",
"par phir bhi koi pret nahin, sabmen ab bhi paran",
"kai wriddh",
"jo apne wilin bhoot kal par sada hi kruddh hain,",
"are, lorens mein kya koi aisi durabin nahin milti",
"ki jisse ye apne wigat kal ko dekh saken?",
"anek nawyuwak",
"jin ka bhawishya abhi thokren kha raha hai, jinhen zara bhi bhan nahin,",
"aur jinke bhawishya ka chitr na shangrila mein na central mein prapy hai,",
"suprapya hai e ji i gel par aur charter mein!",
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"jinki ankhen aur pair thokren khate hain!",
"kai muphlis",
"jo sada hi kutumb kharch ke jama udhaar ke ankaDe ratte rahte hain",
"aur hamesha waste enD wach ke samip aate jate",
"apni ghaDi ka samay theek karte rahte hain, kahin aisa",
"na ho ki kal lapata ho jaye",
"anek taipist girls, karkun",
"jo gup chup ek Dharre se jiwan ko sahte jate hain,",
"lanch ke samay iwans phrezar mein chakkar laga aate hain,",
"aur pal bhar sidhe khaDe hokar nai slekstaiyonko dekh lete hain!",
"kai mazdur",
"jo ab bhi ji rahe hain ‘hujur, ji hujur’ kahte kahte!",
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"bhale hi chalta rahe akhanD gati se taims auph inDiya ka yantr",
"koi nari (zara auron se anokhi)",
"jo byook phorD mein hi DhunDhati hai raat bhar ka prahak;",
"parking ke liye din niyat kiye hue",
"usike anusar sirf phutpath hi badla jata hai",
"koi (mujh jaisa, main nahin!) kawi",
"jo purani panktiyon ko smarn kar raha hai, ek mi nai nahin pata,",
"jois aur prust new book kampni mein paDe hue hain,",
"kintu zindagi pustkon ke beech sada nahin guzari ja sakti!",
"are, kitne log pad pad par chaal mein skhalan drishtigochar hota hai?",
"kahin unka hilna Dulna swapn mein to nahin ho raha hai?",
"sabere aur sham,",
"ate hain aur jate hain!",
"“are, ye sab is samay kahan jate honge?",
"man mein anayas ye parashn uthta hai,",
"wahi marg, jo apne upar ek bhi pad chihn dharan nahin karta,",
"kahta hai ha “ye prithwi par the hi kahan?”",
"donon or jo anek alishan imarten khaDi hain,",
"we samadhibhang sadhu ki bhanti turant ukhaD paDti hainh",
"“nahin the, nahin the ”",
"aur tanan tanan karti akhiri tram gujarti hai,",
"kya gati hai?",
"uske liye to ye zarur kaha ja sakta hai ki",
"wo kahan jati hai, kis Dipo ki or",
"nanaw rahasy ko main kuch to janta hoon",
"ankhon se na bhi dekha ho par hirdai to pramanait karta hi",
"ki astman surya (jiske ye sabhi waris hain) sabhi ko har leta hai",
"aur sara samuh swapn lok mein phisal paDta haih",
"sahasr surya se sada prakashit,",
"akash jiski bhumi hai,",
"jahan sada hi jagriti hai,",
"jahan ek bhi poorw smriti maujud nahin hai,",
"jo paraya pardesh nahin hai,",
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रात्रि - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/ratri-rajendra-shah-kavita?sort= | [
"अनुवाद : सत्यपाल यादव",
"यह रात्रि",
"श्यामल खुमार की मदिरा घट-घट में पिलाकर",
"जो",
"बाँझ स्वप्न की सुंदर काम्य काया",
"जो",
"अँधेरे के रेशमी वसन में जादुई छाया ढालती है",
"जिसकी",
"मधुर मूर्च्छा में सभी असहाय",
"वह",
"इस लाल कलगी के विहंगम कंठ के उच्चार में ठंडी थरथर",
"वह",
"निबिड़ पीवर प्रेतदेहा पिघलती क्षीण होकर",
"वह",
"बीहड़ वन की इमली की ओट में आहिस्ते से मुड़े",
"और वह",
"उस डाल पर उलटा लटका गादुर जब",
"पलक मूँदे",
"तब उसमें त्वरा से चली जाती है।",
"ye ratri",
"shyamal khumar ki madira ghat ghat mein pilakar",
"jo",
"banjh swapn ki sundar kaamy kaya",
"jo",
"andhere ke reshmi wasan mein jadui chhaya Dhalti hai",
"jiski",
"madhur murchchha mein sabhi asahaye",
"wo",
"is lal kalgi ke wihangam kanth ke uchchaar mein thanDi tharthar",
"wo",
"nibiD piwar pretdeha pighalti kshain hokar",
"wo",
"bihaD wan ki imli ki ot mein ahiste se muDe",
"aur wo",
"us Dal par ulta latka gadur jab",
"palak munde",
"tab usmen twara se chali jati hai",
"ye ratri",
"shyamal khumar ki madira ghat ghat mein pilakar",
"jo",
"banjh swapn ki sundar kaamy kaya",
"jo",
"andhere ke reshmi wasan mein jadui chhaya Dhalti hai",
"jiski",
"madhur murchchha mein sabhi asahaye",
"wo",
"is lal kalgi ke wihangam kanth ke uchchaar mein thanDi tharthar",
"wo",
"nibiD piwar pretdeha pighalti kshain hokar",
"wo",
"bihaD wan ki imli ki ot mein ahiste se muDe",
"aur wo",
"us Dal par ulta latka gadur jab",
"palak munde",
"tab usmen twara se chali jati hai",
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मेरा घर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/mera-ghar-rajendra-shah-kavita?sort= | [
"अनुवाद : रघुवीर चौधरी",
"इन खुले खेतों की पूर्व दिशा में दूर दिखाई देता जो कुंज,",
"उसी में अश्वत्थ की ऊँची डाली पर फहरा रहा ध्वज,",
"उसके पार्श्व में लाल खपरैल से छाया,",
"स्वर्ण तेज़ से जिसने अनुपम सुषमा धारण की है",
"सांध्य रंगों की;",
"जिसकी ऊपर की मंजिल की खिड़की यहाँ तक नज़र ढाती है स्नेह से,",
"वही है मेरा भवन पुरातन।",
"उसी के केंद्र से विस्तीर्ण सारा निखिल।",
"जहाँ-जहाँ मैं पाता हूँ गति, सर्वत्र उसकी अनचीती छाया",
"साथ देती है मुझे बहती हुई।",
"संकल्पों के अनगिनत बीज बिखेरे थे जो खेतों में",
"उनका खिला स्वप्न अनिमिष दृग से निहारता व्यतीत को!",
"और यहाँ सूर्य, चक्रवात, जल, जीव, वन की फसलों का",
"मेला लगा है अनंत।",
"ऋत के समान खेलते उसके नित्य कोलाहल में भी",
"सुन रहा मैं भीतर उसकी श्रुति के अरव गुंजन का शांतिमंत्र।",
"उसके आनंद छंद का संधान पाता रहता मेरा मन सदैव।",
"आज है गोधूलि वेला,",
"दूध की धाराएँ जगा रहीं बर्तन में द्रुत रव।",
"चलिए उस घर में",
"पागल पवन की शीतल लहर छू रही अंगों को।",
"in khule kheton ki poorw disha mein door dikhai deta jo kunj,",
"usi mein ashwatth ki unchi Dali par phahra raha dhwaj,",
"uske parshw mein lal khaprail se chhaya,",
"swarn tez se jisne anupam sushama dharan ki hai",
"sandhya rangon kee;",
"jiski upar ki manjil ki khiDki yahan tak nazar Dhati hai sneh se,",
"wahi hai mera bhawan puratan",
"usi ke kendr se wistirn sara nikhil",
"jahan jahan main pata hoon gati, sarwatr uski anchiti chhaya",
"sath deti hai mujhe bahti hui",
"sankalpon ke anaginat beej bikhere the jo kheton mein",
"unka khila swapn animish drig se niharta wyatit ko!",
"aur yahan surya, chakrawat, jal, jeew, wan ki phaslon ka",
"mela laga hai anant",
"rt ke saman khelte uske nity kolahal mein bhi",
"sun raha main bhitar uski shruti ke araw gunjan ka shantimantr",
"uske anand chhand ka sandhan pata rahta mera man sadaiw",
"aj hai godhuli wela,",
"doodh ki dharayen jaga rahin bartan mein drut raw",
"chaliye us ghar mein",
"pagal pawan ki shital lahr chhu rahi angon ko",
"in khule kheton ki poorw disha mein door dikhai deta jo kunj,",
"usi mein ashwatth ki unchi Dali par phahra raha dhwaj,",
"uske parshw mein lal khaprail se chhaya,",
"swarn tez se jisne anupam sushama dharan ki hai",
"sandhya rangon kee;",
"jiski upar ki manjil ki khiDki yahan tak nazar Dhati hai sneh se,",
"wahi hai mera bhawan puratan",
"usi ke kendr se wistirn sara nikhil",
"jahan jahan main pata hoon gati, sarwatr uski anchiti chhaya",
"sath deti hai mujhe bahti hui",
"sankalpon ke anaginat beej bikhere the jo kheton mein",
"unka khila swapn animish drig se niharta wyatit ko!",
"aur yahan surya, chakrawat, jal, jeew, wan ki phaslon ka",
"mela laga hai anant",
"rt ke saman khelte uske nity kolahal mein bhi",
"sun raha main bhitar uski shruti ke araw gunjan ka shantimantr",
"uske anand chhand ka sandhan pata rahta mera man sadaiw",
"aj hai godhuli wela,",
"doodh ki dharayen jaga rahin bartan mein drut raw",
"chaliye us ghar mein",
"pagal pawan ki shital lahr chhu rahi angon ko",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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दो काव्य - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/do-kawy-vipasha-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"टिप्पणी : दवाइयाँ बंद हुई, डॉक्टर के कहने पर।",
"पर दिमाग़ को शायद नग्नता महसूस",
"हुई बिना दवाई-कवच के। अपनी",
"नग्नता छुपाने के लिए भागने लगा एक",
"पागल की तरह एक मूड के कमरे से दूसरे",
"मूड के कमरे में।",
"कमरे में छुप कर बैठी और लिखा।",
"1",
"दिमाग़ दौड़ाए",
"मैं दौडूँ",
"बिना पैर के",
"दिमाग़ ठहराए",
"मैं ठहरूँ",
"बिना पैर के",
"चौगिर्दा घुमाए",
"मैं चौगिर्दा घूमूँ",
"बिना पैर के",
"दिमाग़ को मस्त",
"बिना क्षोभ के चलने देना",
"बिना पैर के",
"2",
"नसें पहचानतीं मुझे मेरी",
"लोग पहचानते",
"केवल नसें",
"मैं पहचानूँ लोग",
"लोग पहचानें नसें",
"लोगों को आदत",
"नसें पहचानने की",
"केवल दवाई में लिपटी हुईं,",
"मैं क्यों नहीं पहचानती",
"उस दवाई में लपेटी हुई नसें?",
"क्यों मैं सिर्फ़",
"सीधी-सादी नसों को ही पहचानती हूँ",
"नग्न हो जाने के बावजूद?",
"tippanai ha dawaiyan band hui, doctor ke kahne par",
"par dimagh ko shayad nagnta mahsus",
"hui bina dawai kawach ke apni",
"nagnta chhupane ke liye bhagne laga ek",
"pagal ki tarah ek mood ke kamre se dusre",
"mood ke kamre mein",
"kamre mein chhup kar baithi aur likha",
"ek",
"dimagh dauDaye",
"main dauDun",
"bina pair ke",
"dimagh thahraye",
"main thahrun",
"bina pair ke",
"chaugirda ghumaye",
"main chaugirda ghumun",
"bina pair ke",
"dimagh ko mast",
"bina kshaobh ke chalne dena",
"bina pair ke",
"do",
"nasen pahchantin mujhe meri",
"log pahchante",
"kewal nasen",
"main pahchanun log",
"log pahchanen nasen",
"logon ko aadat",
"nasen pahchanne ki",
"kewal dawai mein lipti huin,",
"main kyon nahin pahchanti",
"us dawai mein lapeti hui nasen?",
"kyon main sirf",
"sidhi sadi nason ko hi pahchanti hoon",
"nagn ho jane ke bawjud?",
"tippanai ha dawaiyan band hui, doctor ke kahne par",
"par dimagh ko shayad nagnta mahsus",
"hui bina dawai kawach ke apni",
"nagnta chhupane ke liye bhagne laga ek",
"pagal ki tarah ek mood ke kamre se dusre",
"mood ke kamre mein",
"kamre mein chhup kar baithi aur likha",
"ek",
"dimagh dauDaye",
"main dauDun",
"bina pair ke",
"dimagh thahraye",
"main thahrun",
"bina pair ke",
"chaugirda ghumaye",
"main chaugirda ghumun",
"bina pair ke",
"dimagh ko mast",
"bina kshaobh ke chalne dena",
"bina pair ke",
"do",
"nasen pahchantin mujhe meri",
"log pahchante",
"kewal nasen",
"main pahchanun log",
"log pahchanen nasen",
"logon ko aadat",
"nasen pahchanne ki",
"kewal dawai mein lipti huin,",
"main kyon nahin pahchanti",
"us dawai mein lapeti hui nasen?",
"kyon main sirf",
"sidhi sadi nason ko hi pahchanti hoon",
"nagn ho jane ke bawjud?",
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शब्द - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/shabd-umashankar-joshi-kavita?sort= | [
"मौन,",
"तेरी थाह लेने को",
"शब्द बन कर लगाऊँ डुबकी",
"कालजल में।",
"maun,",
"teri thah lene ko",
"shabd ban kar lagaun Dupki",
"kaljal mein",
"maun,",
"teri thah lene ko",
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स्मरण - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/smarn-jaydev-shukla-kavita?sort= | [
"धूल से सने हुए",
"और",
"जंग से बंद किए छप्पर तले के मचान में",
"अचानक रनक उठा",
"रत्नजड़ित और रत्नखचित देग!",
"दादी माँ के नेहभीगे नयन रहित",
"धुँधियारे चश्मे",
"ताक रहे।",
"पिताजी के चंदनरंगी तिथिपत्र में सुरक्षित",
"घड़ी, पल, प्रहर, मुहूर्त, नक्षत्र",
"झड़ गए",
"और झड़ गया",
"ज्योत का भस्मांकित बिल्वपत्र।",
"माँ द्वारा बनाकर दी गई",
"चिथड़ों की गेंद",
"लुढ़क पड़ी हाथ से।",
"पोथी के फटे हुए सुनहरे पन्नों पर से",
"मंत्र आम्रमंजरी की तरह रनक उठे।",
"टूटे हुए आईने में सँभाला हुआ",
"बालक का अश्रु से भीगा चेहरा",
"ताक रहा अपलक।",
"सुँघनी की डिब्बी में दबी हुई छींकें",
"एक साथ जागीं।",
"पाठावली में सँभाल कर रखी",
"सुवर्णमुद्रा जैसी धूप",
"लिपट गई।",
"ताँबे की आचमनी, प्याली और तरबहने में",
"रनकता और बहता",
"संध्यावंदन का संकल्प",
"होंठों पर फरफराया वर्षों के बाद।",
"सिगरेट की डिब्बी के चाँदी के चंद्र में से",
"हिरन कूदा...",
"छलाँग मारता दौड़ा...",
"छलाँग मारते हिरन के खुर में से",
"रत्न झड़ते रहे...",
"बोदा बोदा हँसती कौड़ी",
"तकती रही निःसहाय...",
"dhool se sane hue",
"aur",
"jang se band kiye chhappar tale ke machan ke",
"achanak ranak utha",
"ratnajDit aur ratnakhchit deg!",
"dadi man ke nehbhige nayan rahit",
"dhundhiyare chashme",
"tak rahe",
"pitaji ke chandanrangi tithipatr mein surakshait",
"ghaDi, pal, prahar, muhurt, nakshatr",
"jhaD gaye",
"aur jhaD gaya",
"jyot ka bhasmankit bilwapatr",
"man dwara banakar di gai",
"chithDon ki gend",
"luDhak paDi hath se",
"pothi ke phate hue sunahre pannon par se",
"mantr amrmanjri ki tarah ranak uthe",
"tute hue aine mein sambhala hua",
"balak ka ashru se bhiga chehra",
"tak raha aplak",
"sunghni ki Dibbi mein dabi hui chhinken",
"ek sath jagin",
"pathawali mein sanbhal kar rakhi",
"suwarnmudra jaisi dhoop",
"lipat gai",
"tanbe ki achamni, pyali aur tarabahne mein",
"ranakta aur bahta",
"sandhyawandan ka sankalp",
"honthon par pharaphraya warshon ke baad",
"cigarette ki Dibbi ke chandi ke chandr se",
"hiran kuda",
"chhalang marta dauDa",
"chhalang marte hiran ke khur mein se",
"ratn jhaDte rahe",
"boda boda hansti kauDi",
"takti rahi niःsahay",
"dhool se sane hue",
"aur",
"jang se band kiye chhappar tale ke machan ke",
"achanak ranak utha",
"ratnajDit aur ratnakhchit deg!",
"dadi man ke nehbhige nayan rahit",
"dhundhiyare chashme",
"tak rahe",
"pitaji ke chandanrangi tithipatr mein surakshait",
"ghaDi, pal, prahar, muhurt, nakshatr",
"jhaD gaye",
"aur jhaD gaya",
"jyot ka bhasmankit bilwapatr",
"man dwara banakar di gai",
"chithDon ki gend",
"luDhak paDi hath se",
"pothi ke phate hue sunahre pannon par se",
"mantr amrmanjri ki tarah ranak uthe",
"tute hue aine mein sambhala hua",
"balak ka ashru se bhiga chehra",
"tak raha aplak",
"sunghni ki Dibbi mein dabi hui chhinken",
"ek sath jagin",
"pathawali mein sanbhal kar rakhi",
"suwarnmudra jaisi dhoop",
"lipat gai",
"tanbe ki achamni, pyali aur tarabahne mein",
"ranakta aur bahta",
"sandhyawandan ka sankalp",
"honthon par pharaphraya warshon ke baad",
"cigarette ki Dibbi ke chandi ke chandr se",
"hiran kuda",
"chhalang marta dauDa",
"chhalang marte hiran ke khur mein se",
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सुख-दुख - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/sukh-dukh-daksha-vyas-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"उँगली से छू सकूँ",
"उतना सुख",
"और आकाशव्यापी दुख",
"फिर भी जी लेती हूँ",
"तब सोचती हूँ कि—",
"पलड़ा तो बिंदु का ही भारी होगा",
"सिंधु से।",
"ungli se chhu sakun",
"utna sukh",
"aur akashawyapi dukh",
"phir bhi ji leti hoon",
"tab sochti hoon ki—",
"palDa to bindu ka hi bhari hoga",
"sindhu se",
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पेड़ों की परछाईं - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/pedon-ki-parchhain-yogesh-joshi-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"पेड़ों की परछाईं",
"लंबी होने की आवाज़ सुनता हूँ",
"ख़ून की गति बढ़ती है",
"सारसी के श्वेत पंखों की फड़फड़ाहट",
"गूँजती रही है बारंबार",
"किसी गीत की सुलगती लय जैसा यह",
"किसका हाथ घूम रहा मेरी देह पर?",
"तितर-बितर ढारी हुई चाँदनी",
"अनगिनत सुलगती तितलियाँ बनकर",
"क्यों कूद पड़ती है मेरे भीतर?",
"अनंत लंबी यह घोर काली रात",
"क्या ढूँढ़ने के लिए",
"पलटती है मेरी निजी डायरी के पन्ने?",
"यह कौन",
"आकाश को काली चद्दर मानकर",
"ओढ़ा रहा है मुझको?",
"भयंकर कड़ाके के साथ",
"बिजली चमकती है मेरी हड्डियों के पोल में",
"आकाश सुलगता है",
"पंछी",
"घोंसलों में लौट आए क्या?",
"peDon ki parchhain",
"lambi hone ki awaz sunta hoon",
"khoon ki gati baDhti hai",
"sarasi ke shwet pankhon ki phaDphaDahat",
"gunjti rahi hai barambar",
"kisi geet ki sulagti lai jaisa ye",
"kiska hath ghoom raha meri deh par?",
"titar bitar Dhari hui chandni",
"anaginat sulagti titliyan bankar",
"kyon kood paDti hai mere bhitar?",
"anant lambi ye ghor kali raat",
"kya DhunDhane ke liye",
"palatti hai meri niji Diary ke panne?",
"ye kaun",
"akash ko kali chaddar mankar",
"oDha raha hai mujhko?",
"bhayankar kaDake ke sath",
"bijli chamakti hai meri haDDiyon ke pol mein",
"akash sulagta hai",
"panchhi",
"ghonslon mein lauta aaye kya?",
"peDon ki parchhain",
"lambi hone ki awaz sunta hoon",
"khoon ki gati baDhti hai",
"sarasi ke shwet pankhon ki phaDphaDahat",
"gunjti rahi hai barambar",
"kisi geet ki sulagti lai jaisa ye",
"kiska hath ghoom raha meri deh par?",
"titar bitar Dhari hui chandni",
"anaginat sulagti titliyan bankar",
"kyon kood paDti hai mere bhitar?",
"anant lambi ye ghor kali raat",
"kya DhunDhane ke liye",
"palatti hai meri niji Diary ke panne?",
"ye kaun",
"akash ko kali chaddar mankar",
"oDha raha hai mujhko?",
"bhayankar kaDake ke sath",
"bijli chamakti hai meri haDDiyon ke pol mein",
"akash sulagta hai",
"panchhi",
"ghonslon mein lauta aaye kya?",
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एकांत के गतिशील क्षणों में - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/ekant-ke-gatishil-kshnon-mein-ravji-patel-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"मैं द्वार के वन को देखूँ",
"मेरे अंतर में भी असीम उगे हैं द्वार",
"सोचा :",
"अब तो ज़रा शांति से रुकूँ",
"और करवट लेकर कुछ याद कर लूँ!",
"क्षण",
"क्षण में",
"यह",
"प्रवेश मेरा मुझमें",
"तुझमें",
"मुझमय तुझमय की कहाँ जाकर मौज मनाऊँ",
"मैं दौड़ता जाऊँ अविरत",
"विचार-सा इस द्वार-वन में।",
"main dwar ke wan ko dekhun",
"mere antar mein bhi asim uge hain dwar",
"socha ha",
"ab to zara shanti se rukun",
"aur karwat lekar kuch yaad kar loon!",
"kshan",
"kshan mein",
"ye",
"prawesh mera mujhmen",
"tujhmen",
"mujhmay tujhmay ki kahan jakar mauj manaun",
"main dauDta jaun awirat",
"wichar—sa is dwar—wan mein",
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"mere antar mein bhi asim uge hain dwar",
"socha ha",
"ab to zara shanti se rukun",
"aur karwat lekar kuch yaad kar loon!",
"kshan",
"kshan mein",
"ye",
"prawesh mera mujhmen",
"tujhmen",
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मैं - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/main-manilal-desai-kavita?sort= | [
"अनुवाद : सावजराज",
"तारों में",
"किसी की टकटकी लगाई आँखें ढूँढूँ",
"वैसा कवि नहीं हूँ मैं",
"जाड़े की ठंड से",
"सिगड़ी सुलगाकर बच जाता हूँ मैं",
"लेकिन",
"उस रात के अकेलेपन पर कविता करना",
"नहीं आया है मुझे अब तक",
"आपकी ही तरह मैं भी",
"घड़ी में छह बजता देखकर ही सुबह पाता हूँ",
"क्षीण होती रातरानी की गंध में",
"मुझसे सुबह का आगमन भाँपा न गया",
"किसी के ईंरमीश समान प्रेम को",
"संगमरमर से गढ़ा सकूँ वैसा धनाढ़्य नहीं हूँ",
"और इसलिए…",
"इसलिए मैं मणिलाल भगवानजी देसाई हूँ।",
"taron men",
"kisi ki takatki lagai ankhen DhunDhun",
"vaisa kavi nahin hoon main",
"jaDe ki thanD se",
"sigDi sulgakar bach jata hoon main",
"lekin",
"us raat ke akelepan par kavita karna",
"nahin aaya hai mujhe ab tak",
"apaki hi tarah main bhi",
"ghaDi mein chhah bajta dekhkar hi subah pata hoon",
"kshain hoti ratrani ki gandh men",
"mujhse subah ka agaman bhanpa na gaya",
"kisi ke iinrmish1 saman prem ko",
"sangmarmar se gaDha sakun vaisa dhanaDhya nahin hoon",
"aur isliye…",
"isliye main manilal bhagvanji desai hoon.",
"taron men",
"kisi ki takatki lagai ankhen DhunDhun",
"vaisa kavi nahin hoon main",
"jaDe ki thanD se",
"sigDi sulgakar bach jata hoon main",
"lekin",
"us raat ke akelepan par kavita karna",
"nahin aaya hai mujhe ab tak",
"apaki hi tarah main bhi",
"ghaDi mein chhah bajta dekhkar hi subah pata hoon",
"kshain hoti ratrani ki gandh men",
"mujhse subah ka agaman bhanpa na gaya",
"kisi ke iinrmish1 saman prem ko",
"sangmarmar se gaDha sakun vaisa dhanaDhya nahin hoon",
"aur isliye…",
"isliye main manilal bhagvanji desai hoon.",
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कहाँ है? - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/kahan-hai-kumud-patwa-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"आँसुओं का प्रतिबिंब दिखे",
"वैसे आईने कहाँ हैं?",
"बिना कहे सब कुछ समझे",
"वैसे रिश्ते कहाँ हैं?",
"ansuon ka pratibimb dikhe",
"waise aine kahan hain?",
"bina kahe sab kuch samjhe",
"waise rishte kahan hain?",
"ansuon ka pratibimb dikhe",
"waise aine kahan hain?",
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पीछे कोई नहीं - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/pichhe-koi-nahin-nitin-mehta-kavita?sort= | [
"अनुवाद : रघुवीर चौधरी",
"यों ही ज़रा दरवाज़ा खोल के मैं",
"सामने गया तो फिर खो गया।",
"हू-ब-हू होकर पूछा : मैं यहाँ हूँ?",
"तो सभी कहने लगे, ना...नहीं हो।",
"दक्षिण में जाकर देखा तो",
"सिर्फ़ उड़ती थी रेत।",
"रेगिस्तान ने कहा :",
"अरे पदचिह्न तो ये रहे,",
"तब फिर वह कहाँ गया?",
"उत्तर में चाँदी के पहाड़ बन जम गई",
"नदी में मेरे श्वास तैरते होंगे",
"—ऐसा मानकर उस ओर गया।",
"मैंने जल में जल बनकर",
"अपने आपको सरकता देखा",
"और किनारे पर ही जल की आँख बनकर",
"खड़ा रह गया।",
"गिनकर के जंगलों में ख़ाली कटोरी लिए",
"घी माँगते अश्वत्थामा के",
"दिशाशून्य पदचिह्नों में उग आए पेड़ों से",
"सतत झड़ता रहा मैं",
"बनकर उन्नीसवाँ प्रभात।",
"फिर से आता हूँ दरवाज़े के पास",
"किवाड़ अभी खुला है",
"पीछे कोई नहीं।",
"yon hi zara darwaza khol ke main",
"samne gaya to phir ko gaya",
"hu ba hu hokar puchhah main yahan hoon?",
"to sabhi kahne lage, na nahin ho",
"dakshain mein jakar dekha to",
"sirf uDti thi ret",
"registan ne kahah",
"are padchihn to ye rahe,",
"tab phir wo kahan gaya?",
"uttar mein chandi ke pahaD ban jam gayi",
"nahi mein mere shwas tairte honge",
"—aisa mankar us or gaya",
"mainne jal mein jal bankar",
"apne aapko sarakta dekha",
"aur kinare par hi jal ki ankh bankar",
"khaDa rah gaya",
"ginkar ke janglon mein khali katori liye",
"ghi mangte ashwatthama ke",
"dishashunya padchihnon mein ug aaye peDon se",
"satat jhaDta raha main",
"bankar unnisawan parbhat",
"phir se aata hoon darwaze ke pas",
"kiwaD abhi khula hai",
"pichhe koi nahin",
"yon hi zara darwaza khol ke main",
"samne gaya to phir ko gaya",
"hu ba hu hokar puchhah main yahan hoon?",
"to sabhi kahne lage, na nahin ho",
"dakshain mein jakar dekha to",
"sirf uDti thi ret",
"registan ne kahah",
"are padchihn to ye rahe,",
"tab phir wo kahan gaya?",
"uttar mein chandi ke pahaD ban jam gayi",
"nahi mein mere shwas tairte honge",
"—aisa mankar us or gaya",
"mainne jal mein jal bankar",
"apne aapko sarakta dekha",
"aur kinare par hi jal ki ankh bankar",
"khaDa rah gaya",
"ginkar ke janglon mein khali katori liye",
"ghi mangte ashwatthama ke",
"dishashunya padchihnon mein ug aaye peDon se",
"satat jhaDta raha main",
"bankar unnisawan parbhat",
"phir se aata hoon darwaze ke pas",
"kiwaD abhi khula hai",
"pichhe koi nahin",
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अक्षर घोटते हुए - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/gujarati-kavita/akshar-ghotte-hue-pranjivan-maheta-kavita?sort= | [
"अनुवाद : वर्षादास",
"पहला अक्षर घोटने में",
"बहुत समय बीत गया",
"उसके बाद के अक्षर",
"उँगलियों के बीच अचानक रुक गए",
"अक्षर-उँगली के बीच",
"अंतर बढ़ता गया।",
"अक्षर पहचानने की अटकल भी",
"अटकल बनी रही",
"मुझे क्या हुआ?",
"वह जान गया",
"तब न रही उँगली",
"न ही रही अटकल",
"न रहे बाक़ी के बचे अक्षर",
"मैंने फिर से प्रथम अक्षर को",
"याद किया—फिर से घोटने का प्रयास किया",
"संभव हुआ थोड़ा-थोड़ा अक्षर-ज्ञान",
"स्वस्थ होकर अक्षर घोटने का प्रयत्न करता हूँ",
"शायद-शायद",
"काग़ज़ से जन्मेगी",
"मेरी वर्णमाला।",
"pahla akshar ghotne mein",
"bahut samay beet gaya",
"uske baad ke akshar",
"ungliyon ke beech achanak ruk gaye",
"akshar ungli ke beech",
"antar baDhta gaya",
"akshar pahchanne ki atkal bhi",
"atkal bani rahi",
"mujhe kya hua?",
"wo jaan gaya",
"tab na rahi ungli",
"na hi rahi atkal",
"na rahe baqi ke bache akshar",
"mainne phir se pratham akshar ko",
"yaad kiya—phir se ghotne ka prayas kiya",
"sambhaw hua thoDa—thoDa akshar—gyan",
"swasth honkar akshar—ghotne ka prayatn karta hoon",
"shayad—shayad",
"kaghaj se janmegi",
"meri warnamala",
"pahla akshar ghotne mein",
"bahut samay beet gaya",
"uske baad ke akshar",
"ungliyon ke beech achanak ruk gaye",
"akshar ungli ke beech",
"antar baDhta gaya",
"akshar pahchanne ki atkal bhi",
"atkal bani rahi",
"mujhe kya hua?",
"wo jaan gaya",
"tab na rahi ungli",
"na hi rahi atkal",
"na rahe baqi ke bache akshar",
"mainne phir se pratham akshar ko",
"yaad kiya—phir se ghotne ka prayas kiya",
"sambhaw hua thoDa—thoDa akshar—gyan",
"swasth honkar akshar—ghotne ka prayatn karta hoon",
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अंतरिक्ष के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/space | [
"पृथ्वी और द्युलोक के मध्य का स्थान है। इस अर्थ के साथ ही बाह्य और अंतर-संसार में बीच की जगह, दूरी, मन के रिक्त स्थान, विशालता जैसे तमाम अर्थों में यह शब्द कविता में अपना अंतरिक्ष रचता रहा है।",
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आकाश के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/sky | [
"नभ, शून्य, व्योम। यह ऊँचाई, विशालता, अनंत विस्तार का प्रतीक है। भारतीय धार्मिक मान्यता में यह सृष्टि के पाँच मूल तत्वों में से एक है। पृथ्वी की इहलौकिक सत्ता में आकाश पारलौकिक सत्ता के प्रतीक रूप में उपस्थित है। आकाश आदिम काल से ही मानवीय जिज्ञासा का विषय रहा है और काव्य-चेतना में अपने विविध रूपों और बिंबों में अवतरित होता रहा है।",
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एनसीईआरटी के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/ncert | [
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कक्षा-12 एनसीईआरटी के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/class-12-ncert-12 | [
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गीत के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/song | [
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चेहरा के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/face | [
"पहचान से संलग्न है और इस आशय में उसके पूरे अस्तित्व से जुड़ा प्रसंग है। भाषा ने चेहरे पर उठते-गिरते भावों के लिए मुहावरे गढ़े हैं। उसे आईना भी कहा गया है। इस चयन में चेहरे को प्रसंग बनातीं कविताएँ संकलित हैं।",
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चिड़िया के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/bird | [
"सी चीज़ों का होना और बचा रहना है। इस चयन में चिड़ियों और पक्षियों पर लिखी गई कविताएँ संकलित हैं।",
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ज्ञान के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/knowledge | [
"युगों और संस्कृतियों में एकसमान रहा है। यहाँ प्रस्तुत है—ज्ञान, बोध, समझ और जानने के विभिन्न पर्यायों को प्रसंग में लातीं कविताओं का एक चयन।",
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जन्मदिन के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/birthday | [
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पूर्णिमा के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/full-moon | [
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पल के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/moment | [
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पानी के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/water | [
"से जुड़ा द्रव है। यह पाँच मूल तत्त्वों में से एक है। प्रस्तुत चयन में संकलित कविताओं में जल के विभिन्न भावों की प्रमुखता से अभिव्यक्ति हुई है।",
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बुद्ध के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/buddha | [
"आविर्भाव एक क्रांति की तरह हुआ था। ओशो ने बुद्ध को धर्म का पहला वैज्ञानिक कहा है। भारतीय धर्म और जीवन-दर्शन पर उनका समग्र प्रभाव आज भी बना हुआ है। इस चयन में बुद्ध और बुद्धत्व को केंद्र बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।",
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मनुष्यता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/humanity | [
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महात्मा गांधी के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/mahatma-gandhi | [
"भारतीय इतिहास के उन प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक हैं जिन्होंने न केवल समकालीन राष्ट्रीय युगबोध को आकार प्रदान किया बल्कि भविष्य की प्रेरणा की ज़मीन को भी उर्वर बनाया। इस चयन में गांधी और गांधी-दर्शन को आधार बना व्यक्त हुई अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।",
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शिव के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/shiv | [
"यह भगवान शंकर का एक नाम है जिन्हें शंभू, भोलेनाथ, त्रिलोचन, महादेव, नीलकंठ, पशुपति, आदियोगी, रुद्र आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस चयन में शिव की स्तुति और शिव के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं का संकलन किया गया है।",
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सिस्टम के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/system | [
"के आशय और अभिव्यक्ति में शासन-व्यवस्था या विधि-व्यवस्था पर आम-अवाम का असंतोष और आक्रोश दैनिक अनुभवों में प्रकट होता रहता है। कई बार यह कटाक्ष या व्यंग्यात्मक लहज़े में भी प्रकट होता है। ऐसे 'सिस्टम' पर टिप्पणी में कविता की भी मुखर भूमिका रही है।",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन कहानी | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty/story | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
"एक\r\n\r\nझोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए थे और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों",
"सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर शायद पैर की उँगलियाँ या ज़मीन पर चलते चीटें-चींटियों को देखने लगी। अचानक उसे मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास लगी हैं। वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी",
"रात के दो बजे होंगे कि अकस्मात् सूरदास की झोंपड़ी से ज्वाला उठी। लोग अपने-अपने द्वारों पर सो रहे थे। निद्रावस्था में भी उपचेतना जागती रहती है। दम-के-दम में सैकड़ों आदमी जमा हो गए। आसमान पर लाली छाई हुई थी, ज्वालाएँ लपक-लपककर आकाश की ओर दौड़ने लगीं।",
"—तेरा नाम क्या है?\r\n\r\n—राही।\r\n\r\n—तुझे किस अपराध में सज़ा हुई?\r\n\r\n—चोरी की थी सरकार।\r\n\r\n—चोरी? क्या चुराया था?\r\n\r\n—नाज की गठरी।\r\n\r\n—कितना अनाज था?\r\n\r\n—होगा पाँच छह सेर।\r\n\r\n—और सज़ा कितने दिन की है?\r\n\r\n—साल भर की।\r\n\r\n—तो तूने चोरी क्यों की? मज़दूरी करती",
"सुकिया के हाथ की पथी कच्ची ईंटें पकने के लिए भट्टे में लगाई जा रही थीं। भट्टे के गलियारे में झरोखेदार कच्ची ईंटों की दीवार देखकर सुकिया आत्मिक सुख से भर गया था। देखते-ही-देखते हज़ारों ईंटें भट्ठे के गलियारे में समा गई थीं। ईंटों के बीच ख़ाली जगह में पत्थर",
"(मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम ज़रा नीचे झुककर समाज की निचली",
"गुसाईं का मन चिलम में भी नहीं लगा। मिहल की छाँह से उठकर वह फिर एक बार घट (पनचक्की) के अंदर आया। अभी खप्पर में एक-चौथाई से भी अधिक गेहूँ शेष था। खप्पर में हाथ डालकर उसने व्यर्थ ही उलटा-पलटा और चक्की के पाटों के वृत्त में फैले हुए आटे को झाड़कर एक ढेर",
"“आज सात दिन हो गए, पीने को कौन कहे? छुआ तक नहीं! आज सातवाँ दिन है, सरकार! ”\n“तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हारे कपड़े से महक आ रही है।”\n“वह... वह तो कई दिन हुए। सात दिन से ऊपर—कई दिन हुए, अँधेरे में बोतल उँड़ेलने लगा था। कपड़े पर गिर जाने से नशा भी न आया।",
"‘‘ऐ मर कलमुँहे!’ अकस्मात् घेघा बुआ ने कूड़ा फेंकने के लिए दरवाज़ा खोला और चौतरे पर बैठे मिरवा को गाते हुए देखकर कहा, ‘‘तोरे पेट में फोनोगिराफ़ उलियान बा का, जौन भिनसार भवा कि तान तोड़ै लाग? राम जानै, रात के कैसन एकरा दीदा लागत है!’’ मारे डर के कि कहीं",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन गीत | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty/geet | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन उद्धरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty/quotes | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
"दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है।",
"प्रतिभा तो ग़रीबी ही में चमकती है, दीपक की भाँति जो अँधेरे में अपना प्रकाश दिखाता है।",
"ग़ुरबत और ग़लाज़त दो बहनें : दुनिया भर में।",
"दरिद्रता अभिशाप है और वरदान भी। वह व्यक्ति रूप में एक विशिष्ट समय तक तुम्हारा परिसंस्कार करती है—पर यह अवधि दीर्घ नहीं होनी चाहिए।",
"ममता, अक्सर, दरिद्रता की पूरक होती है।",
"दुर्दिन में मन के कोमल भावों का सर्वनाश हो जाता है और उनकी जगह कठोर एवं पाशविक भाव जागृत हो जाते हैं।",
"ग़रीबों में अगर ईर्ष्या या बैर है तो स्वार्थ के लिए या पेट के लिए। ऐसी ईर्ष्या या बैर को मैं क्षम्य समझता हूँ।",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन सवैया | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty/savaiya | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन अनुवाद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty/anuwad | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन कवित्त | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty/kavitt | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
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ग़रीबी के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/poverty/dohe | [
"के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।",
"सचमुच सदा ग़रीब ही",
"ढोता ज़िंदा लाश।",
"उसके ही शव देखकर",
"गंगा हुई उदास॥",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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