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कला के विषय पर बेहतरीन अनुवाद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/anuwad | [
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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] |
कला के विषय पर बेहतरीन रेखाचित्र | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/rekhachitra | [
"साहबों, उस दिन अपन मटियामहल की तरफ़ से न गुज़र जाते तो राजनीति, साहित्य और कला के हज़ारों-हज़ार मसीहों के धूम-धड़क्के में नानबाइयों के मसीहा मियाँ नसीरुद्दीन को कैसे तो पहचानते और कैसे उठाते लुत्फ़ उनके मसीही अंदाज़ का! \r\nीाकपो\r\nहुआ यह कि हम एक दुपहरी जामा",
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कला के विषय पर बेहतरीन यात्रा वृत्तांत | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/yatra-vritaant | [
"फ़्लौरेंस \r\n15/06/1952\r\n\r\nजब हम वेनिस से फ्लौरेंस के लिए रवाना हुए, फिर वही हरी-भरी खेतियाँ नज़र आने लगीं। गेहूँ की कटाई ज़ोरों पर चल रही हैं—कहीं पूलियाँ, कहीं बोझे। कहीं-कहीं दवाई भी हो रही है। कटाई ज़्यादातर हाथों से ही, किंतु अपने यहाँ की तरह हँसिया",
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कला के विषय पर बेहतरीन कहानी | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/story | [
"जाड़े का दिन। अमावस्या की रात—ठंडी और काली। मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य! अँधेरा और निस्तब्धता!\r\n\r\nअँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही",
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कला के विषय पर बेहतरीन आत्मकथ्य | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/autobiography | [
"बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल\r\n\r\nमक़बूल अब लड़का नहीं रहा क्योंकि उसके दादा चल बसे। लड़के के अब्बा ने सोचा क्यों न उसे बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में दाख़िल करा दिया जाए, वरना दिनभर अपने दादा के कमरे में बंद रहता है। सोता भी है तो दादा के बिस्तर-पर और वही भूरी",
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कला के विषय पर बेहतरीन कड़वक | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/kadvak | [
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कला के विषय पर बेहतरीन लेख | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/article | [
"बरसों पहले की बात है। मैं बीमार था। उस बीमारी में एक दिन मैंने सहज ही रेडियो लगाया और अचानक एक अद्वितीय स्वर मेरे कानों में पड़ा। स्वर सुनते ही मैंने अनुभव किया कि यह स्वर कुछ विशेष है, रोज़ का नहीं। यह स्वर सीधे मेरे कलेजे से जा भिड़ा। मैं तो हैरान",
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कला के विषय पर बेहतरीन बेला | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/bela | [
"21 मई 2024",
"21 मई 2024",
"सोमवार, 20 मई को वसंत कुंज स्थित नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के मुख्यालय में बच्चों के लिए समर कैंप की शुरुआत हुई। 20 मई से 3 जून तक आयोजित इस समर कैंप में भाग लेने के लिए एक हज़ार से अधिक ऑनलाइन आवेदन",
"02 मई 2024",
"02 मई 2024",
"बच्चों के साथ विहान ड्रामा वर्क्स, भोपाल की विशेष नाट्य कार्यशाला शुरू हो चुकी है। यह नाटक कार्यशाला 01 मई 2024 से 26 मई 2024 तक चलेगी तथा इस दौरान बच्चों के साथ मिलकर नाटक ‘पीली पूँछ’ तैयार किया जाए",
"27 अप्रैल 2024",
"27 अप्रैल 2024",
"‘समारा का क़ैदी’ एक प्राचीन अरबी कहानी है। इस कहानी का आधुनिक रूपांतरण सोमरसेट मौ'म ‘अपॉइंटमेंट इन स्मारा’ (1933) नाम से कर चुके हैं। यहाँ इस कहानी का चित्रकथात्मक रूपांतरण कर रहे—अविरल कुमार और मैना",
"23 अप्रैल 2024",
"23 अप्रैल 2024",
"एक शहर में कितने शहर होते हैं, और उन कितने शहरों की कितनी कहानियाँ? वाराणसी, बनारस या काशी की लोकप्रिय छवि विश्वनाथ मंदिर, प्राचीन गुरुकुल शिक्षा के पुनरुत्थान स्वरूप बनाया गया बनारस हिंदू विश्वविद्य",
"17 अप्रैल 2024",
"17 अप्रैल 2024",
"एक भाषा में कालजयी महत्त्व प्राप्त कर चुकीं साहित्यिक कृतियों के पुनर्पाठ के लिए केवल समालोचना पर निर्भर रहना एक तरह की अकर्मठता और पिछड़ेपन का प्रतीक है। यह निर्भरता तब और भी अनावश्यक है जब आलोचना-पद",
"10 अप्रैल 2024",
"10 अप्रैल 2024",
"स्माइल फ़ाउंडेशन—यूरोपीय संघ (भारत में यूरोपीय संघ का प्रतिनिधिमंडल) के साथ साझेदारी में बच्चों और नौजवानों के लिए वार्षिक स्माइल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (सिफ्सी) के 10वें संस्करण की मेज़बानी करेगा। स",
"09 अप्रैल 2024",
"09 अप्रैल 2024",
"‘हिन्दवी’ इस तरह की कोशिशों में यक़ीन करती आई है कि वह हो चुके को ख़ूबसूरत ढंग से सहेज ले। लेकिन इसके साथ-साथ हमारी मंशा यह भी रही है कि हम हो रहे को भी दर्ज करें। इस सिलसिले में हमने अपनी शुरुआत में ह",
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कला के विषय पर बेहतरीन ब्लॉग | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/art/blog | [
"उस्ताद राशिद ख़ान को एक संगीत-प्रेमी कैसे याद कर सकता है? इस पर ठहरता हूँ तो कुछ तस्वीरें ज़ेहन में आती हैं। ‘राग यमन’, ‘मारवा’, ‘सोहनी’, ‘मेघ’ और ‘ललित’ जैसे गंभीर ख़याल गाने वाले सिद्ध गायक—राशिद ख़ान",
"‘‘जिस शैलजा से तुम यहाँ पहली बार मिल रहे हो मैं उसी शैलजा को ढूँढ़ने आई हूँ, सामने होकर भी मिलती नहीं है, अगर तुम्हें मुझसे पहले मिल जाए न, तो सँभालकर रख लेना।’’\r\n\r\n‘थ्री ऑफ़ अस’ फ़िल्म के लगभग आधा बीत ज",
"जाने कितने बरस पहले का दिन रहा होगा, जब सत्यजित राय ने बीकानेर के जूनागढ़ क़िले के सामने सूरसागर तालाब किनारे पीपल पेड़ के नीचे तंदूरा लिए उसे सुना था, जिसे आगे चल उन्होंने सोनी देवी के रूप में जाना। उसक",
"मैं गद्य का आदमी हूँ, कविता में मेरी गति और मति नहीं है; यह मैं मानता हूँ और कहता भी हूँ फिर भी यह इच्छा हो रही है कि आज की कविता के सरोकार तथा मूल्यबोध के बारे में कुछ स्याही ख़र्च करूँ। इस अनाधिकार च",
"रज़िया सुल्तान में जाँ निसार अख़्तर का लिखा और लता मंगेशकर का गाया एक यादगार गीत है : ‘‘ऐ दिल-ए-नादाँ...’’, उसके एक अंतरे में ये पंक्तियाँ आती हैं :\r\n\r\n‘‘हम भटकते हैं, क्यूँ भटकते हैं, दश्त-ओ-सेहरा मे",
"नाटक केवल शब्दों नहीं, अभिनेता की भंगिमाओं, कार्यव्यापार और दृश्यबंध की सरंचना के सहारे हमारे मानस में बिंबों को उत्तेजित कर हमारी कल्पना की सीमा को विस्तृत कर देते हैं और रस का आस्वाद कराते हैं। जिस",
"यदि कालिपद कुम्भकार को किसी जादू के ज़ोर से आई.आई.टी. कानपुर में पढ़ाने का मौक़ा मिला होता तो बहुत सम्भव है कि आज हमारे देश में कुम्हारों के काम को, एक नई दिशा मिल गई होती। हो सकता है कि घर-घर में फिर",
"थळी से बहावलपुर, बहावलपुर से सिंध और फिर वापिस वहाँ से अपने देस तक घोड़े, ऊँट आदि का व्यापार करना जिन जिप्सी परिवारों का कामकाज था; उन्हीं में से एक परिवार में रेशमा का जन्म हुआ। ये जिप्सी परिवार क़बील",
"अनुवाद भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संगम का काम करता है। हिंदी में बहुत सारे अनुवाद हुए और हो रहे हैं। लेकिन एक समय हिंदी में एक ऐसी पूरी पीढ़ी पनप रही थी जो अँग्रेज़ी अनुवादों के माध्यम से संसार भर के",
"पूर्वकथन\r\n\r\nकिसी फ़िल्म को देख अगर लिखने की तलब लगे तो मैं अमूमन उसे देखने के लगभग एक-दो दिन के भीतर ही उस पर लिख देती हूँ। जी हाँ! तलब!! पसंद वाले अधिकतर काम तलब से ही तो होते हैं। लेकिन ‘लेबर डे’ को",
"तवायफ़ मुश्तरीबाई के प्यार में पड़े असग़र हुसैन से उनके दो बेटियाँ हुई—अनवरी और अख़्तरी, जिन्हें प्यार से ज़ोहरा और बिब्बी कहकर बुलाया जाता। बेटियाँ होने के तुरंत बाद ही, असग़र हुसैन ने अपनी दूसरी बीवी, म",
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अंतिम ऊँचाई - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/antim-unchai-kunwar-narayan-kavita?sort= | [
"इस कविता को The Viral Fever (TVF) की वेब-सीरीज़ Aspirants (2021) में बहुत सुंदर ढंग से प्रयोग किया गया है।",
"कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब",
"अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,",
"हमारे चारों ओर नहीं।",
"कितना आसान होता चलते चले जाना",
"यदि केवल हम चलते होते",
"बाक़ी सब रुका होता।",
"मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को",
"दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में",
"अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।",
"शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं",
"कि सब कुछ शुरू से शुरू हो,",
"लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।",
"हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती",
"कि वह सब कैसे समाप्त होता है",
"जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था",
"हमारे चाहने पर।",
"दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए",
"जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—",
"जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब",
"तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में",
"जिन्हें तुमने जीता है—",
"जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे",
"और काँपोगे नहीं—",
"तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं",
"सब कुछ जीत लेने में",
"और अंत तक हिम्मत न हारने में।",
"kitna aspasht hota aage baDhte jane ka matlab",
"agar dason dishayen hamare samne hotin,",
"hamare charon or nahin.",
"kitna asan hota chalte chale jana",
"yadi keval hum chalte hote",
"baqi sab ruka hota.",
"mainne aksar is uulajlul duniya ko",
"das siron se sochne aur bees hathon se pane ki koshish men",
"apne liye behad mushkil bana liya hai.",
"shuru shuru mein sab yahi chahte hain",
"ki sab kuch shuru se shuru ho,",
"lekin ant tak pahunchte pahunchte himmat haar jate hain.",
"hamein koi dilchaspi nahin rahti",
"ki wo sab kaise samapt hota hai",
"jo itni dhumdham se shuru hua tha",
"hamare chahne par.",
"durgam vanon aur unche parvton ko jitte hue",
"jab tum antim unchai ko bhi jeet loge—",
"jab tumhein lagega ki koi antar nahin bacha ab",
"tummen aur un patthron ki kathorta men",
"jinhen tumne jita hai—",
"jab tum apne mastak par barf ka pahla tufan jheloge",
"aur kanpoge nahin—",
"tab tum paoge ki koi farq nahin",
"sab kuch jeet lene men",
"aur ant tak himmat na harne mein.",
"kitna aspasht hota aage baDhte jane ka matlab",
"agar dason dishayen hamare samne hotin,",
"hamare charon or nahin.",
"kitna asan hota chalte chale jana",
"yadi keval hum chalte hote",
"baqi sab ruka hota.",
"mainne aksar is uulajlul duniya ko",
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"hamein koi dilchaspi nahin rahti",
"ki wo sab kaise samapt hota hai",
"jo itni dhumdham se shuru hua tha",
"hamare chahne par.",
"durgam vanon aur unche parvton ko jitte hue",
"jab tum antim unchai ko bhi jeet loge—",
"jab tumhein lagega ki koi antar nahin bacha ab",
"tummen aur un patthron ki kathorta men",
"jinhen tumne jita hai—",
"jab tum apne mastak par barf ka pahla tufan jheloge",
"aur kanpoge nahin—",
"tab tum paoge ki koi farq nahin",
"sab kuch jeet lene men",
"aur ant tak himmat na harne mein.",
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"This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.",
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असाध्य वीणा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/asadhy-wina-agyeya-kavita?sort= | [
"आ गए प्रियंवद! केशकंबली! गुफा-गेह!",
"राजा ने आसन दिया। कहा :",
"‘कृतकृत्य हुआ मैं तात! पधारे आप।",
"भरोसा है अब मुझको",
"साध आज मेरे जीवन की पूरी होगी!’",
"लघु संकेत समझ राजा का",
"गण दौड़। लाए असाध्य वीणा,",
"साधक के आगे रख उसको, हट गए।",
"सभी की उत्सुक आँखें",
"एक बार वीणा को लख, टिक गईं",
"प्रियंवद के चेहरे पर।",
"‘यह वीणा उत्तराखंड के गिरि-प्रांतर से",
"—घने वनों में जहाँ तपस्या करते हैं व्रतचारी—",
"बहुत समय पहले आई थी।",
"पूरा तो इतिहास न जान सके हम :",
"किंतु सुना है",
"वज्रकीर्ति ने मंत्रपूत जिस",
"अति प्राचीन किरीटी-तरु से इसे गढ़ा था—",
"उसके कानों में हिम-शिखर रहस्य कहा करते थे अपने,",
"कंधों पर बादल सोते थे,",
"उस की करि-शुंडों-सी डालें",
"हिम-वर्षा से पूरे वन-यूथों का कर लेती थीं परित्राण,",
"कोटर में भालू बसते थे,",
"केहरि उसके वल्कल से कंधे खुजलाने आते थे।",
"और—सुना है—जड़ उसकी जा पहुँची थी पाताल-लोक,",
"उस की ग्रंध-प्रवण शीतलता से फण टिका नाग वासुकि",
"सोता था।",
"उसी किरीटी-तरु से वज्रकीर्ति ने",
"सारा जीवन इसे गढ़ा :",
"हठ-साधना यही थी उस साधक की—",
"वीणा पूरी हुई, साथ साधना, साथ ही जीवन-लीला।’",
"राजा रुके साँस लंबी लेकर फिर बोले :",
"‘मेरे हार गए सब जाने-माने कलावंत,",
"सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर,",
"कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।",
"अब यह असाध्य वीणा ही ख्यात हो गई।",
"पर मेरा अब भी है विश्वास",
"कृच्छ्र-तप वज्रकीर्ति का व्यर्थ नहीं था।",
"वीणा बोलेगी अवश्य, पर तभी",
"इसे जब सच्चा-स्वरसिद्ध गोद में लेगा।",
"तात! प्रियंवद! लो, यह सम्मुख रही तुम्हारी",
"वज्रकीर्ति की वीणा,",
"यह मैं, यह रानी, भरी सभा यह :",
"सब उदग्र, पर्युत्सुक,",
"जन-मात्र प्रतीक्षमाण!’",
"केशकंबली गुफा-गेह ने खोला कंबल।",
"धरती पर चुप-चाप बिछाया।",
"वीणा उस पर रख, पलक मूँद कर, प्राण खींच,",
"करके प्रणाम,",
"अस्पर्श छुअन से छुए तार।",
"धीरे बोला : ‘राजन्! पर मैं तो",
"कलावंत हूँ नहीं, शिष्य, साधक हूँ—",
"जीवन के अनकहे सत्य का साक्षी।",
"वज्रकीर्ति!",
"प्राचीन किरीटी-तरु!",
"अभिमंत्रित वीणा!",
"ध्यान-मात्र इनका तो गद्-गद् विह्वल कर देने वाला है!’",
"चुप हो गया प्रियंवद।",
"सभा भी मौन हो रही।",
"वाद्य उठा साधक ने गोद रख लिया।",
"धीरे-धीरे झुक उस पर, तारों पर मस्तक टेक दिया।",
"सभा चकित थी—अरे, प्रियंवद क्या सोता है?",
"केशकंबली अथवा होकर पराभूत",
"झुक गया वाद्य पर?",
"वीणा सचमुच क्या है असाध्य?",
"पर उस स्पंदित सन्नाटे में",
"मौन प्रियंवद साध रहा था वीणा—",
"नहीं, स्वयं अपने को शोध रहा था।",
"सघन निविड में वह अपने को",
"सौंप रहा था उसी किरीटी-तरु को।",
"कौन प्रियंवद है कि दंभ कर",
"इस अभिमंत्रित कारुवाद्य के सम्मुख आवे?",
"कौन बजावे",
"यह वीणा जो स्वयं एक जीवन भर की साधना रही?",
"भूल गया था केशकंबली राजा-सभा को :",
"कंबल पर अभिमंत्रित एक अकेलेपन में डूब गया था",
"जिसमें साक्षी के आगे था",
"जीवित वही किरीटी-तरु",
"जिसकी जड़ वासुकि के फण पर थी आधारित,",
"जिसके कंधे पर बादल सोते थे",
"और कान में जिसके हिमगिरि कहते थे अपने रहस्य।",
"संबोधित कर उस तरु को, करता था",
"नीरव एकालाप प्रियंवद।",
"‘ओ विशाल तरु!",
"शत्-सहस्र पल्लवन-पतझरों ने जिसका नित रूप सँवारा,",
"कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,",
"दिन भौंरे कर गए गुँजरित,",
"रातों में झिल्ली ने",
"अनकथ मंगल-गान सुनाए,",
"साँझ-सवेरे अनगिन",
"अनचीन्हे खग-कुल की मोद-भरी क्रीड़ा-काकलि",
"डाली-डाली को कँपा गई—",
"ओ दीर्घकाय!",
"ओ पूरे झारखंड के अग्रज,",
"तात, सखा, गुरु, आश्रय,",
"त्राता महच्छाय,",
"ओ व्याकुल मुखरित वन-ध्वनियों के",
"वृंदगान के मूर्त रूप,",
"मैं तुझे सुनूँ,",
"देखूँ, ध्याऊँ",
"अनिमेष, स्तब्ध, संयत, संयुत, निर्वाक् :",
"कहाँ साहस पाऊँ",
"छू सकूँ तुझे!",
"तेरी काया को छेद, बाँध कर रची गई वीणा को",
"किस स्पर्धा से",
"हाथ करें आघात",
"छीनने को तारों से",
"एक चोट में वह संचित संगीत जिसे रचने में",
"स्वयं न जाने कितनों के स्पंदित प्राण रच गए!",
"‘नहीं, नहीं! वीणा यह मेरी गोद रखी है, रहे,",
"किंतु मैं ही तो",
"तेरी गोद बैठा मोद-भरा बालक हूँ,",
"ओ तरु-तात! सँभाल मुझे,",
"मेरी हर किलक",
"पुलक में डूब जाए :",
"मैं सुनूँ,",
"गुनूँ, विस्मय से भर आँकूँ",
"तेरे अनुभव का एक-एक अंत:स्वर",
"तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय—",
"गा तू :",
"तेरी लय पर मेरी साँसें",
"भरें, पुरें, रीतें, विश्रांति पाएँ।",
"‘गा तू!",
"यह वीणा रक्खी है : तेरा अंग-अपंग!",
"किंतु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,",
"रस-विद्",
"तू गा :",
"मेरे अँधियारे अंतस् में आलोक जगा",
"स्मृति का",
"श्रुति का—",
"तू गा, तू गा, तू गा, तू गा!",
"‘हाँ, मुझे स्मरण है :",
"बदली—कौंध—पत्तियों पर वर्षा-बूँदों की पट-पट।",
"घनी रात में महुए का चुप-चाप टपकना।",
"चौंके खग-शावक की चिहुँक।",
"शिलाओं को दुलराते वन-झरने के",
"द्रुत लहरीले जल का कल-निदान।",
"कुहरे में छन कर आती",
"पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।",
"गड़रियों की अनमनी बाँसुरी।",
"कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :",
"ओस-बूँद की ढरकन—इतनी कोमल, तरल",
"कि झरते-झरते मानो",
"हरसिंगार का फूल बन गई।",
"भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।",
"कूँजों का क्रेंकार। काँद लंबी टिट्टिभ की।",
"पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।",
"चीड़-वनों में गंध-अंध उन्मद पतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट",
"जल-प्रताप का प्लुत एकस्वर।",
"झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में",
"संसृति की साँय-साँय।",
"‘हाँ, मुझे स्मरण है :",
"दूर पहाड़ों से काले मेघों की बाढ़",
"हाथियों का मानो चिंघाड़ रहा हो यूथ।",
"घरघराहट चढ़ती बहिया की।",
"रेतीले कगार का गिरना छप्-छड़ाप।",
"झंझा की फुफकार, तप्त,",
"पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।",
"ओले की कर्री चपत।",
"जमे पाले से तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।",
"ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घाम में धीरे-धीरे रिसना।",
"हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुप-चाप।",
"घाटियों में भरती",
"गिरती चट्टानों की गूँज—",
"काँपती मंद्र गूँज—अनुगूँज—साँस खोई-सी, धीरे-धीरे नीरव।",
"‘मुझे स्मरण है :",
"हरी तलहटी में, छोटे पेड़ों की ओट ताल पर",
"बँधे समय वन-पशुओं की नानाविध आतुर-तृप्त पुकारें :",
"गर्जन, घुर्घुर, चीख़, भूक, हुक्का, चिचियाहट।",
"कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित",
"जल-पंछी की चाप",
"थाप दादुर की चकित छलाँगों की।",
"पंथी के घोड़े की टाप अधीर।",
"अचंचल धीर थाप भैंसों के भारी खुर की।",
"‘मुझे स्मरण है :",
"उझक क्षितिज से",
"किरण भोर की पहली",
"जब तकती है ओस-बूँद को",
"उस क्षण की सहसा चौंकी-सी सिहरन।",
"और दुपहरी में जब",
"घास-फूल अनदेखे खिल जाते हैं",
"मौमाखियाँ असंख्य झूमती करती हैं गुँजार—",
"उस लंबे विलमे क्षण का तंद्रालस ठहराव।",
"और साँझ को",
"जब तारों की तरल कँपकँपी",
"स्पर्शहीन झरती है—",
"मानो नभ में तरल नयन ठिठकी",
"नि:संख्य सवत्सा युवती माताओं के आशीर्वाद—",
"उस संधि-निमिष की पुलकन लीयमान।",
"‘मुझे स्मरण है :",
"और चित्र प्रत्येक",
"स्तब्ध, विजड़ित करता है मुझको।",
"सुनता हूँ मैं",
"पर हर स्वर-कंपन लेता है मुझको मुझसे सोख—",
"वायु-सा नाद-भरा मैं उड़ जाता हूँ।...",
"मुझे स्मरण है—",
"पर मझको मैं भूल गया हूँ :",
"सुनता हूँ मैं—",
"पर मैं मुझसे परे, शब्द में लीयमान।",
"‘मैं नहीं, नहीं! मैं कहीं नहीं!",
"ओ रे तरु! ओ वन!",
"ओ स्वर-संभार!",
"नाद-मय संसृति!",
"ओ रस-प्लावन!",
"मुझे क्षमा कर—भूल अकिंचनता को मेरी—",
"मुझे ओट दे—ढँक ले—छा ले—",
"ओ शरण्य!",
"मेरे गूँगेपन को तेरे साए स्वर-सागर का ज्वार डुबा ले!",
"आ, मुझे भुला,",
"तू उतर वीन के तारों में",
"अपने से गा—",
"अपने को गा—",
"अपने खग-कुल को मुखरित कर",
"अपनी छाया में पले मृगों की चौकड़ियों को ताल बाँध,",
"अपने छायातप, वृष्टि-पवन, पल्लव-कुसमन की लय पर",
"अपने जीवन-संचय को कर छंदयुक्त,",
"अपनी प्रज्ञा को वाणी दे!",
"तू गा, तू गा—",
"तू सन्निधि पा—तू खो",
"तू आ—तू हो—तू गा! तू गा!’",
"राजा जागे।",
"समाधिस्थ संगीतकार का हाथ उठा था—",
"काँपी थीं उँगलियाँ।",
"अलस अँगड़ाई लेकर मानो जाग उठी थी वीणा :",
"किलक उठे थे स्वर-शिशु।",
"नीरव पदा रखता जालिक मायावी",
"सधे करों से धीरे-धीरे-धीरे",
"डाल रहा था जाल हेम-तारों का।",
"सहसा वीणा झनझना उठी—",
"संगीतकार की आँखों में ठंडी पिघली ज्वाला-सी झलक गई—",
"रोमांच एक बिजली-सा सबके तन में दौड़ गया।",
"अवतरित हुआ संगीत",
"स्वयंभू",
"जिसमें सोता है अखंड",
"ब्रह्मा का मौन",
"अशेष प्रभामय।",
"डूब गए सब एक साथ।",
"सब अलग-अलग एकाकी पार तिरे।",
"राजा ने अलग सुना :",
"जय देवी यश:काय",
"वरमाल लिए",
"गाती थी मंगल-गीत,",
"दुंदभी दूर कहीं बजती थी,",
"राज-मुकुट सहसा हल्का हो आया था, मानो हो फूल सिरिस का",
"ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता",
"सभी पुराने लुगड़े-से झर गए, निखर आया था जीवन-कांचन",
"धर्म-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा।",
"रानी ने अलग सुना :",
"छँटती बदली में एक कौंध कह गई—",
"तुम्हारे ये मणि-माणक, कंठहार, पट-वस्त्र,",
"मेखला-किंकिणि—",
"सब अंधकार के कण हैं ये! आलोक एक है",
"प्यार अनन्य! उसी की",
"विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को,",
"थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है",
"आश्वस्त, सहज विश्वास भरी।",
"रानी",
"उस एक प्यार को साधेगी।",
"सबने भी अलग-अलग संगीत सुना।",
"इसको",
"वह कृपा-वाक्य था प्रभुओ का।",
"उसको",
"आतंक-मुक्ति का आश्वासन!",
"इसको",
"वह भरी तिजोरी में सोने की खनक।",
"उसे",
"बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुदबुद।",
"किसी एक को नई वधू की सहमी-सी पायल ध्वनि।",
"किसी दूसरे को शिशु की किलकारी।",
"एक किसी को जाल-फँसी मझली की तड़पन—",
"एक अपर को चहक मुक्त नभ में उड़ती चिड़िया की।",
"एक तीसरे को मंडी की ठेलमठेल, गाहकों की आस्पर्धा भरी बोलियाँ,",
"चौथे को मंदिर की ताल-युक्त घंटा-ध्वनि!",
"और पाँचवे को लोहे पर सधे हथौड़े की सम चोटें",
"और छटे को लंगर पर कसमसा रही नौका पर लहरों की",
"अविराम थपक।",
"बटिया पर चमरौधे की रूँधी चाप सातवें के लिए—",
"और आठवें को कुलिया की कटी मेंड़ से बहते जल की छुल-छुल।",
"इसे गमक नट्टिन की एड़ी के घुँघरू की।",
"उसे युद्ध का ढोल।",
"इसे संझा-गोधूलि की लघु टुन-टुन—",
"उसे प्रलय का डमरू-नाद।",
"इसको जीवन की पहली अँगड़ाई",
"पर उसको महाजृंभ विकराल काल!",
"सब डूबे, तिरे, झिपे, जागे—",
"हो रहे वंशवद, स्तब्ध :",
"इयत्ता सबकी अलग-अलग जागी,",
"संघीत हुई,",
"पा गई विलय।",
"वीणा फिर मूक हो गई।",
"साधु! साधु!",
"राजा सिंहासन से उतरे—",
"रानी ने अर्पित की सतलड़ी माल,",
"जनता विह्वल कह उठी ‘धन्य!",
"हे स्वरजित्! धन्य! धन्य!’",
"संगीतकार",
"वीणा को धीरे से नीचे रख, ढँक—मानो",
"गोदी में सोए शिशु को पालने डाल कर मुग्धा माँ",
"हट जाए, दीठ से दुलराती—",
"उठ खड़ा हुआ।",
"बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन,",
"बोला :",
"‘श्रेय नहीं कुछ मेरा :",
"मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में—",
"वीणा के माध्यम से अपने को मैंने",
"सब कुछ को सौंप दिया था—",
"सुना आपने जो वह मेरा नहीं,",
"न वीणा का था :",
"वह तो सब कुछ की तथता थी",
"महाशून्य",
"वह महामौन",
"अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय",
"जो शब्दहीन",
"सब में गाता है।’",
"नमस्कार कर मुड़ा प्रियंवद केशकंबली।",
"लेकर कंबल गेह-गुफा को चला गया।",
"उठ गई सभा। सब अपने-अपने काम लगे।",
"युग पलट गया।",
"प्रिय पाठक! यों मेरी वाणी भी",
"मौन हुई।",
"aa gaye priyanwad! keshkambli! gupha geh!",
"raja ne aasan diya kaha ha",
"‘kritakrty hua main tat! padhare aap",
"bharosa hai ab mujhko",
"sadh aaj mere jiwan ki puri hogi!’",
"laghu sanket samajh raja ka",
"gan dauD laye asadhy wina,",
"sadhak ke aage rakh usko, hat gaye",
"sabhi ki utsuk ankhen",
"ek bar wina ko lakh, tik gain",
"priyanwad ke chehre par",
"‘yah wina uttrakhanD ke giri prantar se",
"—ghane wanon mein jahan tapasya karte hain wratchari—",
"bahut samay pahle i thi",
"pura to itihas na jaan sake hum ha",
"kintu suna hai",
"wajrkirti ne mantrput jis",
"ati prachin kiriti taru se ise gaDha tha—",
"uske kanon mein him sikhar rahasy kaha karte the apne,",
"kandhon par badal sote the,",
"us ki kari shunDon si Dalen",
"him warsha se pure wan yuthon ka kar leti theen paritran,",
"kotar mein bhalu baste the,",
"kehari uske walkal se kandhe khujlane aate the",
"aur—suna hai—jaD uski ja pahunchi thi patal lok,",
"us ki grandh prawn shitalta se phan tika nag wasuki",
"sota tha",
"usi kiriti taru se wajrkirti ne",
"sara jiwan ise gaDha ha",
"hath sadhana yahi thi us sadhak kee—",
"wina puri hui, sath sadhana, sath hi jiwan lila ’",
"raja ruke sans lambi lekar phir bole ha",
"‘mere haar gaye sab jane mane kalawant,",
"sabki widdya ho gai akarath, darp choor,",
"koi gyani gunai aaj tak ise na sadh saka",
"ab ye asadhy wina hi khyat ho gai",
"par mera ab bhi hai wishwas",
"krichchhr tap wajrkirti ka byarth nahin tha",
"wina bolegi awashy, par tabhi",
"ise jab sachcha swarsiddh god mein lega",
"tat! priyanwad! lo, ye sammukh rahi tumhari",
"wajrkirti ki wina,",
"ye main, ye rani, bhari sabha ye ha",
"sab udagr, paryutsuk,",
"jan matr prtikshman!’",
"keshkambli gupha geh ne khola kambal",
"dharti par chup chap bichhaya",
"wina us par rakh, palak moond kar, paran kheench,",
"karke parnam,",
"asparsh chhuan se chhue tar",
"dhire bola ha ‘rajan! par main to",
"kalawant hoon nahin, shishya, sadhak hoon—",
"jiwan ke anakhe saty ka sakshi",
"wajrkirti!",
"prachin kiriti taru!",
"abhimantrit wina!",
"dhyan matr inka to gad gad wihwal kar dene wala hai!’",
"chup ho gaya priyanwad",
"sabha bhi maun ho rahi",
"wady utha sadhak ne god rakh liya",
"dhire dhire jhuk us par, taron par mastak tek diya",
"sabha chakit thi—are, priyanwad kya sota hai?",
"keshkambli athwa hokar parabhut",
"jhuk gaya wady par?",
"wina sachmuch kya hai asadhy?",
"par us spandit sannate mein",
"maun priyanwad sadh raha tha wina—",
"nahin, swayan apne ko shodh raha tha",
"saghan niwiD mein wo apne ko",
"saump raha tha usi kiriti taru ko",
"kaun priyanwad hai ki dambh kar",
"is abhimantrit karuwadya ke sammukh aawe?",
"kaun bajawe",
"ye wina jo swayan ek jiwan bhar ki sadhana rahi?",
"bhool gaya tha keshkambli raja sabha ko ha",
"kambal par abhimantrit ek akelepan mein Doob gaya tha",
"jismen sakshi ke aage tha",
"jiwit wahi kiriti taru",
"jiski jaD wasuki ke phan par thi adharit,",
"jiske kandhe par badal sote the",
"aur kan mein jiske himagiri kahte the apne rahasy",
"sambodhit kar us taru ko, karta tha",
"niraw ekalap priyanwad",
"‘o wishal taru!",
"shat sahasr pallawan patajhron ne jiska nit roop sanwara,",
"kitni barsaton kitne khadyoton ne aarti utari,",
"din bhaunre kar gaye gunjarit,",
"raton mein jhilli ne",
"ankath mangal gan sunaye,",
"sanjh sawere angin",
"anchinhe khag kul ki mod bhari kriDa kakali",
"Dali Dali ko kanpa gai—",
"o dirghakay!",
"o pure jharkhanD ke agraj,",
"tat, sakha, guru, ashray,",
"trata mahachchhay,",
"o wyakul mukhrit wan dhwaniyon ke",
"wrindgan ke moort roop,",
"main tujhe sunun,",
"dekhun, dhyaun",
"animesh, stabdh, sanyat, sanyut, nirwak ha",
"kahan sahas paun",
"chhu sakun tujhe!",
"teri kaya ko chhed, bandh kar rachi gai wina ko",
"kis spardha se",
"hath karen aghat",
"chhinne ko taron se",
"ek chot mein wo sanchit sangit jise rachne mein",
"swayan na jane kitnon ke spandit paran rach gaye!",
"‘nahin, nahin! wina ye meri god rakhi hai, rahe,",
"kintu main hi to",
"teri god baitha mod bhara balak hoon,",
"o taru tat! sanbhal mujhe,",
"meri har kilak",
"pulak mein Doob jaye ha",
"main sunun,",
"gunun, wismay se bhar ankun",
"tere anubhaw ka ek ek anthaswar",
"tere dolan ki lori par jhumun main tanmay—",
"ga tu ha",
"teri lai par meri sansen",
"bharen, puren, riten, wishranti payen",
"‘ga too!",
"ye wina rakkhi hai ha tera ang apang!",
"kintu angi, tu akshat, aatm bharit,",
"ras wid",
"tu ga ha",
"mere andhiyare antas mein aalok jaga",
"smriti ka",
"shruti ka—",
"tu ga, tu ga, tu ga, tu ga!",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"badli—kaundh—pattiyon par warsha bundon ki pat pat",
"ghani raat mein mahuwe ka chup chap tapakna",
"chaunke khag shawak ki chihunk",
"shilaon ko dulrate wan jharne ke",
"drut lahrile jal ka kal nidan",
"kuhre mein chhan kar aati",
"parwati ganw ke utsaw Dholak ki thap",
"gaDariyon ki anamni bansuri",
"kathphoDe ka theka phulasunghani ki aatur phurkan ha",
"os boond ki Dharkan—itni komal, taral",
"ki jharte jharte mano",
"harsingar ka phool ban gai",
"bhare sharad ke tal, lahariyon ki sarsar dhwani",
"kunjon ka krenkar kand lambi tittibh ki",
"pankh yukt sayak si hans balaka",
"cheeD wanon mein gandh andh unmad patang ki jahan tahan takrahat",
"jal pratap ka plut ekaswar",
"jhilli dadur, kokil chatak ki jhankar pukaron ki yati mein",
"sansriti ki sanya sanya",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"door pahaDon se kale meghon ki baDh",
"hathiyon ka mano chinghaD raha ho yooth",
"ghargharaht chaDhti bahiya ki",
"retile kagar ka girna chhap chhaDap",
"jhanjha ki phuphkar, tapt,",
"peDon ka arra kar toot toot kar girna",
"ole ki karri chapat",
"jame pale se tani katari si sukhi ghason ki tutan",
"ainthi mitti ka snigdh gham mein dhire dhire risna",
"him tushar ke phahe dharti ke ghawon ko sahlate chup chap",
"ghatiyon mein bharti",
"girti chattanon ki goonj—",
"kanpti mandr gunj—anugunj—sans khoi si, dhire dhire niraw",
"‘mujhe smarn hai ha",
"hari talahti mein, chhote peDon ki ot tal par",
"bandhe samay wan pashuon ki nanawidh aatur tript pukaren ha",
"garjan, ghurghur, cheekh, bhook, hukka, chichiyahat",
"kamal kumud patron par chor pair drut dhawit",
"jal panchhi ki chap",
"thap dadur ki chakit chhalangon ki",
"panthi ke ghoDe ki tap adhir",
"achanchal dheer thap bhainson ke bhari khur ki",
"‘mujhe smarn hai ha",
"ujhak kshaitij se",
"kiran bhor ki pahli",
"jab takti hai os boond ko",
"us kshan ki sahsa chaunki si siharan",
"aur dupahri mein jab",
"ghas phool andekhe khil jate hain",
"maumakhiyan asankhya jhumti karti hain gunjar—",
"us lambe wilme kshan ka tandralas thahraw",
"aur sanjh ko",
"jab taron ki taral kanpkanpi",
"sparshhin jharti hai—",
"mano nabh mein taral nayan thithki",
"nihsankhya sawatsa yuwati mataon ke ashirwad—",
"us sandhi nimish ki pulkan liyman",
"‘mujhe smarn hai ha",
"aur chitr pratyek",
"stabdh, wijDit karta hai mujhko",
"sunta hoon main",
"par har swar kampan leta hai mujhko mujhse sokh—",
"wayu sa nad bhara main uD jata hoon",
"mujhe smarn hai—",
"par majhko main bhool gaya hoon ha",
"sunta hoon main—",
"par main mujhse pare, shabd mein liyman",
"‘main nahin, nahin! main kahin nahin!",
"o re taru! o wan!",
"o swar sambhar!",
"nad mai sansriti!",
"o ras plawan!",
"mujhe kshama kar—bhul akinchanta ko meri—",
"mujhe ot de—Dhank le—chha le—",
"o sharanya!",
"mere gungepan ko tere saye swar sagar ka jwar Duba le!",
"a, mujhe bhula,",
"tu utar ween ke taron mein",
"apne se ga—",
"apne ko ga—",
"apne khag kul ko mukhrit kar",
"apni chhaya mein play mrigon ki chaukaDiyon ko tal bandh,",
"apne chhayatap, wrishti pawan, pallaw kusman ki lai par",
"apne jiwan sanchay ko kar chhandyukt,",
"apni pragya ko wani de!",
"tu ga, tu ga—",
"tu sannidhi pa—tu kho",
"tu aa—tu ho—tu ga! tu ga!’",
"raja jage",
"samadhisth sangitkar ka hath utha tha—",
"kanpi theen ungliyan",
"alas angDai lekar mano jag uthi thi wina ha",
"kilak uthe the swar shishu",
"niraw pada rakhta jalik mayawi",
"sadhe karon se dhire dhire dhire",
"Dal raha tha jal hem taron ka",
"sahsa wina jhanjhana uthi—",
"sangitkar ki ankhon mein thanDi pighli jwala si jhalak gai—",
"romanch ek bijli sa sabke tan mein dauD gaya",
"awatrit hua sangit",
"swyambhu",
"jismen sota hai akhanD",
"brahma ka maun",
"ashesh prbhamay",
"Doob gaye sab ek sath",
"sab alag alag ekaki par tere",
"raja ne alag suna ha",
"jay dewi yashahkay",
"warmal liye",
"gati thi mangal geet,",
"dundbhi door kahin bajti thi,",
"raj mukut sahsa halka ho aaya tha, mano ho phool siris ka",
"irshya, mahdakanksha, dwesh, chatuta",
"sabhi purane lugDe se jhar gaye, nikhar aaya tha jiwan kanchan",
"dharm bhaw se jise nichhawar wo kar dega",
"rani ne alag suna ha",
"chhantati badli mein ek kaundh kah gai—",
"tumhare ye manai manak, kanthhar, pat wastra,",
"mekhala kinkini—",
"sab andhkar ke kan hain ye! aalok ek hai",
"pyar anany! usi ki",
"widyullata gherti rahti hai ras bhaar megh ko,",
"thirak usi ki chhati par usmen chhipkar so jati hai",
"ashwast, sahj wishwas bhari",
"rani",
"us ek pyar ko sadhegi",
"sabne bhi alag alag sangit suna",
"isko",
"wo kripa waky tha prbhuo ka",
"usko",
"atank mukti ka ashwasan!",
"isko",
"wo bhari tijori mein sone ki khanak",
"use",
"batuli mein bahut dinon ke baad ann ki sondhi khudbud",
"kisi ek ko nai wadhu ki sahmi si payel dhwani",
"kisi dusre ko shishu ki kilkari",
"ek kisi ko jal phansi majhli ki taDpan—",
"ek upper ko chahak mukt nabh mein uDti chiDiya ki",
"ek tisre ko manDi ki thelamthel, gahkon ki aspardha bhari boliyan,",
"chauthe ko mandir ki tal yukt ghanta dhwani!",
"aur panchawe ko lohe par sadhe hathauDe ki sam choten",
"aur chhate ko langar par kasmasa rahi nauka par lahron ki",
"awiram thapak",
"batiya par chamraudhe ki rundhi chap satwen ke liye—",
"aur athwen ko kuliya ki kati meinD se bahte jal ki chhul chhul",
"ise gamak nattin ki eDi ke ghunghru ki",
"use yudh ka Dhol",
"ise sanjha godhuli ki laghu tun tun—",
"use prlay ka Damru nad",
"isko jiwan ki pahli angDai",
"par usko mahajrimbh wikral kal!",
"sab Dube, tere, jhipe, jage—",
"ho rahe wanshwad, stabdh ha",
"iyatta sabki alag alag jagi,",
"sanghit hui,",
"pa gai wilay",
"wina phir mook ho gai",
"sadhu! sadhu!",
"raja sinhasan se utre—",
"rani ne arpit ki satalDi mal,",
"janta wihwal kah uthi ‘dhany!",
"he swarjit! dhany! dhany!’",
"sangitkar",
"wina ko dhire se niche rakh, Dhank—mano",
"godi mein soe shishu ko palne Dal kar mugdha man",
"hat jaye, deeth se dulrati—",
"uth khaDa hua",
"baDhte raja ka hath utha karta awarjan,",
"bola ha",
"‘shrey nahin kuch mera ha",
"main to Doob gaya tha swayan shunya mein—",
"wina ke madhyam se apne ko mainne",
"sab kuch ko saump diya tha—",
"suna aapne jo wo mera nahin,",
"na wina ka tha ha",
"wo to sab kuch ki tathta thi",
"mahashuny",
"wo mahamaun",
"awibhajy, anapt, adrwit, apramey",
"jo shabdhin",
"sab mein gata hai ’",
"namaskar kar muDa priyanwad keshkambli",
"lekar kambal geh gupha ko chala gaya",
"uth gai sabha sab apne apne kaam lage",
"yug palat gaya",
"priy pathak! yon meri wani bhi",
"maun hui",
"aa gaye priyanwad! keshkambli! gupha geh!",
"raja ne aasan diya kaha ha",
"‘kritakrty hua main tat! padhare aap",
"bharosa hai ab mujhko",
"sadh aaj mere jiwan ki puri hogi!’",
"laghu sanket samajh raja ka",
"gan dauD laye asadhy wina,",
"sadhak ke aage rakh usko, hat gaye",
"sabhi ki utsuk ankhen",
"ek bar wina ko lakh, tik gain",
"priyanwad ke chehre par",
"‘yah wina uttrakhanD ke giri prantar se",
"—ghane wanon mein jahan tapasya karte hain wratchari—",
"bahut samay pahle i thi",
"pura to itihas na jaan sake hum ha",
"kintu suna hai",
"wajrkirti ne mantrput jis",
"ati prachin kiriti taru se ise gaDha tha—",
"uske kanon mein him sikhar rahasy kaha karte the apne,",
"kandhon par badal sote the,",
"us ki kari shunDon si Dalen",
"him warsha se pure wan yuthon ka kar leti theen paritran,",
"kotar mein bhalu baste the,",
"kehari uske walkal se kandhe khujlane aate the",
"aur—suna hai—jaD uski ja pahunchi thi patal lok,",
"us ki grandh prawn shitalta se phan tika nag wasuki",
"sota tha",
"usi kiriti taru se wajrkirti ne",
"sara jiwan ise gaDha ha",
"hath sadhana yahi thi us sadhak kee—",
"wina puri hui, sath sadhana, sath hi jiwan lila ’",
"raja ruke sans lambi lekar phir bole ha",
"‘mere haar gaye sab jane mane kalawant,",
"sabki widdya ho gai akarath, darp choor,",
"koi gyani gunai aaj tak ise na sadh saka",
"ab ye asadhy wina hi khyat ho gai",
"par mera ab bhi hai wishwas",
"krichchhr tap wajrkirti ka byarth nahin tha",
"wina bolegi awashy, par tabhi",
"ise jab sachcha swarsiddh god mein lega",
"tat! priyanwad! lo, ye sammukh rahi tumhari",
"wajrkirti ki wina,",
"ye main, ye rani, bhari sabha ye ha",
"sab udagr, paryutsuk,",
"jan matr prtikshman!’",
"keshkambli gupha geh ne khola kambal",
"dharti par chup chap bichhaya",
"wina us par rakh, palak moond kar, paran kheench,",
"karke parnam,",
"asparsh chhuan se chhue tar",
"dhire bola ha ‘rajan! par main to",
"kalawant hoon nahin, shishya, sadhak hoon—",
"jiwan ke anakhe saty ka sakshi",
"wajrkirti!",
"prachin kiriti taru!",
"abhimantrit wina!",
"dhyan matr inka to gad gad wihwal kar dene wala hai!’",
"chup ho gaya priyanwad",
"sabha bhi maun ho rahi",
"wady utha sadhak ne god rakh liya",
"dhire dhire jhuk us par, taron par mastak tek diya",
"sabha chakit thi—are, priyanwad kya sota hai?",
"keshkambli athwa hokar parabhut",
"jhuk gaya wady par?",
"wina sachmuch kya hai asadhy?",
"par us spandit sannate mein",
"maun priyanwad sadh raha tha wina—",
"nahin, swayan apne ko shodh raha tha",
"saghan niwiD mein wo apne ko",
"saump raha tha usi kiriti taru ko",
"kaun priyanwad hai ki dambh kar",
"is abhimantrit karuwadya ke sammukh aawe?",
"kaun bajawe",
"ye wina jo swayan ek jiwan bhar ki sadhana rahi?",
"bhool gaya tha keshkambli raja sabha ko ha",
"kambal par abhimantrit ek akelepan mein Doob gaya tha",
"jismen sakshi ke aage tha",
"jiwit wahi kiriti taru",
"jiski jaD wasuki ke phan par thi adharit,",
"jiske kandhe par badal sote the",
"aur kan mein jiske himagiri kahte the apne rahasy",
"sambodhit kar us taru ko, karta tha",
"niraw ekalap priyanwad",
"‘o wishal taru!",
"shat sahasr pallawan patajhron ne jiska nit roop sanwara,",
"kitni barsaton kitne khadyoton ne aarti utari,",
"din bhaunre kar gaye gunjarit,",
"raton mein jhilli ne",
"ankath mangal gan sunaye,",
"sanjh sawere angin",
"anchinhe khag kul ki mod bhari kriDa kakali",
"Dali Dali ko kanpa gai—",
"o dirghakay!",
"o pure jharkhanD ke agraj,",
"tat, sakha, guru, ashray,",
"trata mahachchhay,",
"o wyakul mukhrit wan dhwaniyon ke",
"wrindgan ke moort roop,",
"main tujhe sunun,",
"dekhun, dhyaun",
"animesh, stabdh, sanyat, sanyut, nirwak ha",
"kahan sahas paun",
"chhu sakun tujhe!",
"teri kaya ko chhed, bandh kar rachi gai wina ko",
"kis spardha se",
"hath karen aghat",
"chhinne ko taron se",
"ek chot mein wo sanchit sangit jise rachne mein",
"swayan na jane kitnon ke spandit paran rach gaye!",
"‘nahin, nahin! wina ye meri god rakhi hai, rahe,",
"kintu main hi to",
"teri god baitha mod bhara balak hoon,",
"o taru tat! sanbhal mujhe,",
"meri har kilak",
"pulak mein Doob jaye ha",
"main sunun,",
"gunun, wismay se bhar ankun",
"tere anubhaw ka ek ek anthaswar",
"tere dolan ki lori par jhumun main tanmay—",
"ga tu ha",
"teri lai par meri sansen",
"bharen, puren, riten, wishranti payen",
"‘ga too!",
"ye wina rakkhi hai ha tera ang apang!",
"kintu angi, tu akshat, aatm bharit,",
"ras wid",
"tu ga ha",
"mere andhiyare antas mein aalok jaga",
"smriti ka",
"shruti ka—",
"tu ga, tu ga, tu ga, tu ga!",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"badli—kaundh—pattiyon par warsha bundon ki pat pat",
"ghani raat mein mahuwe ka chup chap tapakna",
"chaunke khag shawak ki chihunk",
"shilaon ko dulrate wan jharne ke",
"drut lahrile jal ka kal nidan",
"kuhre mein chhan kar aati",
"parwati ganw ke utsaw Dholak ki thap",
"gaDariyon ki anamni bansuri",
"kathphoDe ka theka phulasunghani ki aatur phurkan ha",
"os boond ki Dharkan—itni komal, taral",
"ki jharte jharte mano",
"harsingar ka phool ban gai",
"bhare sharad ke tal, lahariyon ki sarsar dhwani",
"kunjon ka krenkar kand lambi tittibh ki",
"pankh yukt sayak si hans balaka",
"cheeD wanon mein gandh andh unmad patang ki jahan tahan takrahat",
"jal pratap ka plut ekaswar",
"jhilli dadur, kokil chatak ki jhankar pukaron ki yati mein",
"sansriti ki sanya sanya",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"door pahaDon se kale meghon ki baDh",
"hathiyon ka mano chinghaD raha ho yooth",
"ghargharaht chaDhti bahiya ki",
"retile kagar ka girna chhap chhaDap",
"jhanjha ki phuphkar, tapt,",
"peDon ka arra kar toot toot kar girna",
"ole ki karri chapat",
"jame pale se tani katari si sukhi ghason ki tutan",
"ainthi mitti ka snigdh gham mein dhire dhire risna",
"him tushar ke phahe dharti ke ghawon ko sahlate chup chap",
"ghatiyon mein bharti",
"girti chattanon ki goonj—",
"kanpti mandr gunj—anugunj—sans khoi si, dhire dhire niraw",
"‘mujhe smarn hai ha",
"hari talahti mein, chhote peDon ki ot tal par",
"bandhe samay wan pashuon ki nanawidh aatur tript pukaren ha",
"garjan, ghurghur, cheekh, bhook, hukka, chichiyahat",
"kamal kumud patron par chor pair drut dhawit",
"jal panchhi ki chap",
"thap dadur ki chakit chhalangon ki",
"panthi ke ghoDe ki tap adhir",
"achanchal dheer thap bhainson ke bhari khur ki",
"‘mujhe smarn hai ha",
"ujhak kshaitij se",
"kiran bhor ki pahli",
"jab takti hai os boond ko",
"us kshan ki sahsa chaunki si siharan",
"aur dupahri mein jab",
"ghas phool andekhe khil jate hain",
"maumakhiyan asankhya jhumti karti hain gunjar—",
"us lambe wilme kshan ka tandralas thahraw",
"aur sanjh ko",
"jab taron ki taral kanpkanpi",
"sparshhin jharti hai—",
"mano nabh mein taral nayan thithki",
"nihsankhya sawatsa yuwati mataon ke ashirwad—",
"us sandhi nimish ki pulkan liyman",
"‘mujhe smarn hai ha",
"aur chitr pratyek",
"stabdh, wijDit karta hai mujhko",
"sunta hoon main",
"par har swar kampan leta hai mujhko mujhse sokh—",
"wayu sa nad bhara main uD jata hoon",
"mujhe smarn hai—",
"par majhko main bhool gaya hoon ha",
"sunta hoon main—",
"par main mujhse pare, shabd mein liyman",
"‘main nahin, nahin! main kahin nahin!",
"o re taru! o wan!",
"o swar sambhar!",
"nad mai sansriti!",
"o ras plawan!",
"mujhe kshama kar—bhul akinchanta ko meri—",
"mujhe ot de—Dhank le—chha le—",
"o sharanya!",
"mere gungepan ko tere saye swar sagar ka jwar Duba le!",
"a, mujhe bhula,",
"tu utar ween ke taron mein",
"apne se ga—",
"apne ko ga—",
"apne khag kul ko mukhrit kar",
"apni chhaya mein play mrigon ki chaukaDiyon ko tal bandh,",
"apne chhayatap, wrishti pawan, pallaw kusman ki lai par",
"apne jiwan sanchay ko kar chhandyukt,",
"apni pragya ko wani de!",
"tu ga, tu ga—",
"tu sannidhi pa—tu kho",
"tu aa—tu ho—tu ga! tu ga!’",
"raja jage",
"samadhisth sangitkar ka hath utha tha—",
"kanpi theen ungliyan",
"alas angDai lekar mano jag uthi thi wina ha",
"kilak uthe the swar shishu",
"niraw pada rakhta jalik mayawi",
"sadhe karon se dhire dhire dhire",
"Dal raha tha jal hem taron ka",
"sahsa wina jhanjhana uthi—",
"sangitkar ki ankhon mein thanDi pighli jwala si jhalak gai—",
"romanch ek bijli sa sabke tan mein dauD gaya",
"awatrit hua sangit",
"swyambhu",
"jismen sota hai akhanD",
"brahma ka maun",
"ashesh prbhamay",
"Doob gaye sab ek sath",
"sab alag alag ekaki par tere",
"raja ne alag suna ha",
"jay dewi yashahkay",
"warmal liye",
"gati thi mangal geet,",
"dundbhi door kahin bajti thi,",
"raj mukut sahsa halka ho aaya tha, mano ho phool siris ka",
"irshya, mahdakanksha, dwesh, chatuta",
"sabhi purane lugDe se jhar gaye, nikhar aaya tha jiwan kanchan",
"dharm bhaw se jise nichhawar wo kar dega",
"rani ne alag suna ha",
"chhantati badli mein ek kaundh kah gai—",
"tumhare ye manai manak, kanthhar, pat wastra,",
"mekhala kinkini—",
"sab andhkar ke kan hain ye! aalok ek hai",
"pyar anany! usi ki",
"widyullata gherti rahti hai ras bhaar megh ko,",
"thirak usi ki chhati par usmen chhipkar so jati hai",
"ashwast, sahj wishwas bhari",
"rani",
"us ek pyar ko sadhegi",
"sabne bhi alag alag sangit suna",
"isko",
"wo kripa waky tha prbhuo ka",
"usko",
"atank mukti ka ashwasan!",
"isko",
"wo bhari tijori mein sone ki khanak",
"use",
"batuli mein bahut dinon ke baad ann ki sondhi khudbud",
"kisi ek ko nai wadhu ki sahmi si payel dhwani",
"kisi dusre ko shishu ki kilkari",
"ek kisi ko jal phansi majhli ki taDpan—",
"ek upper ko chahak mukt nabh mein uDti chiDiya ki",
"ek tisre ko manDi ki thelamthel, gahkon ki aspardha bhari boliyan,",
"chauthe ko mandir ki tal yukt ghanta dhwani!",
"aur panchawe ko lohe par sadhe hathauDe ki sam choten",
"aur chhate ko langar par kasmasa rahi nauka par lahron ki",
"awiram thapak",
"batiya par chamraudhe ki rundhi chap satwen ke liye—",
"aur athwen ko kuliya ki kati meinD se bahte jal ki chhul chhul",
"ise gamak nattin ki eDi ke ghunghru ki",
"use yudh ka Dhol",
"ise sanjha godhuli ki laghu tun tun—",
"use prlay ka Damru nad",
"isko jiwan ki pahli angDai",
"par usko mahajrimbh wikral kal!",
"sab Dube, tere, jhipe, jage—",
"ho rahe wanshwad, stabdh ha",
"iyatta sabki alag alag jagi,",
"sanghit hui,",
"pa gai wilay",
"wina phir mook ho gai",
"sadhu! sadhu!",
"raja sinhasan se utre—",
"rani ne arpit ki satalDi mal,",
"janta wihwal kah uthi ‘dhany!",
"he swarjit! dhany! dhany!’",
"sangitkar",
"wina ko dhire se niche rakh, Dhank—mano",
"godi mein soe shishu ko palne Dal kar mugdha man",
"hat jaye, deeth se dulrati—",
"uth khaDa hua",
"baDhte raja ka hath utha karta awarjan,",
"bola ha",
"‘shrey nahin kuch mera ha",
"main to Doob gaya tha swayan shunya mein—",
"wina ke madhyam se apne ko mainne",
"sab kuch ko saump diya tha—",
"suna aapne jo wo mera nahin,",
"na wina ka tha ha",
"wo to sab kuch ki tathta thi",
"mahashuny",
"wo mahamaun",
"awibhajy, anapt, adrwit, apramey",
"jo shabdhin",
"sab mein gata hai ’",
"namaskar kar muDa priyanwad keshkambli",
"lekar kambal geh gupha ko chala gaya",
"uth gai sabha sab apne apne kaam lage",
"yug palat gaya",
"priy pathak! yon meri wani bhi",
"maun hui",
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एक शराबी की सूक्तियाँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/ek-sharabi-ki-suktiyan-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"मस्जिद ऐसी भरी भरी कब हैमैकदा इक जहान है गोया— मीर तक़ी मीरमैं तो अपनी आत्मा को भी शराब में घोलकर पी गया हूँ, बाबा! मैं कहीं का नहीं रहा; मैं तबाह हो गया—मेरा क़िस्सा ख़त्म हो गया, बाबा! लोग किसलिए इस दुनिया में जीते हैं?लोग दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जीते हैं, प्यारे। उदाहरण के लिए एक से एक बढ़ई हैं दुनिया में, सभी दो कौड़ी के... फिर एक दिन उनमें ऐसा बढ़ई पैदा होता है, जिसकी बराबरी का कोई बढ़ई दुनिया में पहले हुआ ही नहीं था—सबसे बढ़-चढ़ कर, जिसका कोई जवाब नहीं... और वह बढ़इयों के सारे काम को एक निखार दे देता है और बढ़इयों का धंधा एक ही छलाँग में बीस साल आगे पहुँच जाता है... दूसरों के मामले में भी ऐसा ही होता है... लुहारों में, मोचियों में, किसानों में... यहाँ तक कि शराबियों में भी!— मक्सिम गोर्की,नाटक 'तलछट' से",
"पूर्व कथन",
"यह जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि एक सस्ते शराबघर में पडी हुई थी—जिसे गोल करके धागे में बाँधा गया था। शायद इसे वह अधेड़ आदमी छोड़ गया था, जो थोड़ा लँगड़ाकर चलता था। उत्सुकतावश ही मैंने इस पांडुलिपि को खोलकर देखा। पांडुलिपि क्या थी—पंद्रह बीस पन्नों का एक बंडल था। शराबघर के नीम अँधेरे में अक्षर दिखाई नहीं पड़ रहे थे—हालाँकि काली स्याही से उन्हें लिखा गया था। हस्तलिपि भी उलझन भरी थी। शराबघर के बाहर आकर मैंने लैंप पोस्ट की रोशनी में उन पन्नों को पढ़ा तो दंग रह गया। यह कोई साल भर पहले की बात है, मैंने उसके बाद कई बार इन फटे-पुराने पन्नों के अज्ञात रचयिता को ढूँढ़ने की कोशिश की; लेकिन नाकाम रहा। हारकर मैं उस जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि में से चुनिंदा पंक्तियों/सूक्तियों/कविताओं को अपने नाम से प्रकाशित करा रहा हूँ—इस शपथ के साथ कि ये मेरी लिखी हुई नहीं है और इस आशा के साथ कि ये आवारा पंक्तियाँ आगामी मानवता के किसी काम आ सकेंगी।",
"— कृष्ण कल्पित",
"एकशराबी के लिएहर रातआख़िरी रात होती है।शराबी की सुबहहर रोज़एक नई सुबह।दोहर शराबी कहता हैदूसरे शराबी सेकम पिया करो।शराबी शराबी केगले मिलकर रोता है।शराबी शराबी केगले मिलकर हँसता है।तीनशराबी कहता हैबात सुनोऐसी बातफिर कहीं नहीं सुनोगे।चारशराब होगी जहाँवहाँ आस-पास ही होगाचना-चबैना।पाँचशराबी कवि ने कहाइस बार पुरस्कृत होगावह कविजो शराब नहीं पीता।छहसमकालीन कवियों मेंसबसे अच्छा शराबी कौन है?समकालीन शराबियों मेंसबसे अच्छा कवि कौन है?सातभिखारी को भीख मिल ही जाती हैशराबी को शराब।आठमैं तुमसे प्यार करता हूँशराबी कहता हैरास्ते में हर मिलने वाले से।नौशराबी कहता हैमैं शराबी नहीं हूँशराबी कहता हैमुझसे बेहतर कौन गा सकता है?दसशराबी की बात का विश्वास मत करना।शराबी की बात का विश्वास करना।शराबी से बुरा कौन है?शराबी से अच्छा कौन है?ग्यारहशराबीअपनी प्रिय किताब के पीछेछिपाता है शराब।बारहएक शराबी पहचान लेता हैदूसरे शराबी कोजैसे एक भिखारी दूसरे को।तेरहथोड़ा-सा पानीथोड़ा-सा पानीसारे संसार के शराबियों के बीचयह गाना प्रचलित है।चौदहस्त्रियाँ शराबी नहीं हो सकतींशराबी को हीहोना पड़ता है स्त्री।पंद्रहसिर्फ़ शराब पीने सेकोई शराबी नहीं हो जाता।सोलहकौन-सी शराबशराबी कभी नहीं पूछता।सत्रहआजकल मिलते हैंसजे-धजे शराबीकम दिखाई पड़ते हैं सच्चे शराबी।अठारहशराबी से कुछ कहना बेकार।शराबी को कुछ समझाना बेकार।उन्नीससभी सरहदों से परेधर्म, मज़हब, रंग, भेद और भाषाओं के पारशराबी एक विश्व नागरिक है।बीसकभी सुना हैकिसी शराबी को अगवा किया गया?कभी सुना हैकिसी शराबी को छुड़वाया गया फ़िरौती देकर?इक्कीससबने लिखा—वली दक्कनीसबने लिखे—मृतकों के बयानकिसी ने नहीं लिखावहाँ पर थी शराब पीने पर पाबंदीशराबियों से वहाँअपराधियों का-सा सलूक किया जाता था।बाईसशराबी के पासनहीं पाई जाती शराबहत्यारे के पास जैसेनहीं पाया जाता हथियार।तेईसशराबी पैदाइशी होता हैउसे बनाया नहीं जा सकता।चौबीसएक महफ़िल मेंकभी नहीं होतेदो शराबी।पच्चीसशराबी नहीं पूछता किसी सेरास्ता शराबघर का।छब्बीसमहाकवि की तरहमहाशराबी कुछ नहीं होता।सत्ताईसपुरस्कृत शराबियों के पासबचे हैं सिर्फ़ पीतल के तमग़ेउपेक्षित शराबियों के पासअभी भी बची हैथोडी-सी शराब।अट्ठाईसदिल्ली के शराबी कोकौतुक से देखता हैपूरब का शराबीपूरब के शराबी कोकुछ नहीं समझताधुर पूरब का शराबी।उनतीसशराबी से नहीं लिया जा सकताबच्चों को डराने का काम।तीसकविता का भी बन चला है अबछोटा-मोटा बाज़ारसिर्फ़ शराब पीना ही बचा है अबस्वांतः सुखाय कर्म।इकतीसबाज़ार कुछ नहीं बिगाड़ पायाशराबियों काहालाँकि कई बार पेश किए गएप्लास्टिक के शराबी।बत्तीसआजकल कवि भी होने लगे हैं सफलआज तक नहीं सुना गयाकभी हुआ है कोई सफल शराबी।तैंतीसकवियों की छोड़िएकुत्ते भी जहाँ पा जाते हैं पदककभी नहीं सुना गयाकिसी शराबी को पुरस्कृत किया गया।चौंतीसपटना का शराबी कहना ठीक नहींकंकड़बाग़1 के शराबी सेकितना अलग और अलबेला हैइनकम टैक्स गोलंबर2 का शराबी।पैंतीसकभी प्रकाश में नहीं आता शराबीअँधेरे में धीरे-धीरेविलीन हो जाता है।छत्तीसशराबी के बच्चेअक्सर शराब नहीं पीते।सैंतीसस्त्रियाँ सुलगाती हैंडगमगाते शराबियों कोस्त्रियों ने बचा रखी हैशराबियों की क़ौम।अड़तीसस्त्रियों के आँसुओं से जो बनती हैउस शराब काकोई जवाब नहीं।उनतालीसकभी नहीं देखा गयाकिसी शराबी कोभूख से मरते हुए।चालीसयात्राएँ टालता रहता है शराबीपता नही वहाँ परकैसी शराब मिलेकैसे शराबी!इकतालीसधर्म अगर अफ़ीम हैतो विधर्म है शराब।बयालीससमरसता कहाँ होगीशराबघर के अलावा?शराबी के अलावाकौन होगा सच्चा धर्मनिरपेक्ष!तैंतालीसशराब ने मिटा दिएराजशाही, रजवाड़े और सामंतशराब चाहती है दुनिया मेंसच्चा लोकतंत्र।चवालीसकुछ जी रहे हैं पीकरकुछ बग़ैर पिए।कुछ मर गए पीकरकुछ बग़ैर पिए।पैंतालीसनहीं पीने में जो मज़ा हैवह पीने में नहींयह जाना हमने पीकर।छियालीसइंतज़ार में हीपी गए चार प्यालेतुम आ जातेतो क्या होता?सैंतालीसतुम नहीं आएमैं डूब रहा हूँ शराब मेंतुम आ गए तोशराब में रोशनी आ गई।अड़तालीसतुम कहाँ होमैं शराब पीता हूँतुम आ जाओमैं शराब पीता हूँ।उनचासतुम्हारे आने परमुझे बताया गया प्रेमीतुम्हारे जाने के बादमुझे शराबी कहा गया।पचासदेवताओ, जाओमुझे शराब पीने दोअप्सराओ, जाओमुझे करने दो प्रेम।इक्यावनप्रेम की तरह शराब पीने कानहीं होता कोई समययह समयातीत है।बावनशराब सेतु हैमनुष्य और कविता के बीच।सेतु है शराबश्रमिक और कुदाल के बीच।तिरपनसोचता है जुलाहाकाश!करघे पर बुनी जा सकती शराब।चौवनकुम्हार सोचता हैकाश!चाक पर रची जा सकती शराब।पचपनसोचता है बढ़ईकाश!आरी से चीरी जा सकती शराब।छप्पनस्वप्न है शराब!जहालत के विरुद्धग़रीबी के विरुद्धशोषण के विरुद्धअन्याय के विरुद्धमुक्ति का स्वप्न है शराब!",
"क्षेपक",
"पांडुलिपि की हस्तलिपि भले उलझन भरी हो, लेकिन उसे कलात्मक कहा जा सकता है। इसे स्याही झरने वाली क़लम से जतन से लिखा गया था। अक्षरों की लचक, मात्राओं की फुनगियों और बिंदु, अर्धविराम से जान पड़ता है कि यह हस्तलिपि स्वअर्जित है। पूर्णविराम का स्थापत्य तो बेजोड़ है—कहीं कोई भूल नहीं। सीधा सपाट, रीढ़ की तरह तना हुआ पूर्णविराम। अर्धविराम ऐसा, जैसा थोड़ा फुदक कर आगे बढ़ा जा सके।रचयिता का नाम कहीं नहीं पाया गया। डेगाना नामक क़स्बे का ज़िक्र दो-तीन स्थलों पर आता है जिसके आगे ज़िला नागौर, राजस्थान लिखा गया है। संभवतः वह यहाँ का रहने वाला हो। डेगाना स्थित 'विश्वकर्मा आरा मशीन' का ज़िक्र एक स्थल पर आता है—जिसके बाद खेजड़े और शीशम की लकड़ियों के भाव लिखे हुए हैं। बढ़ईगीरी के काम आने वाले राछों (औज़ारों) यथा आरी, बसूला, हथौड़ी आदि का उल्लेख भी एक जगह पर है। हो सकता है वह ख़ुद बढ़ई हो या इस धंधे से जुड़ा कोई कारीगर। पांडुलिपि के बीच में 'महालक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस, डीडवाना' की एक परची भी फँसी हुई थी, जिस पर कंपोज़िंग, छपाई और बाइंडिंग का 4375 (कुल चार हज़ार तीन सौ पचहत्तर) रुपए का हिसाब लिखा हुआ है। यह संभवतः इस पांडुलिपि के छपने का अनुमानित व्यय था—जिससे जान पड़ता है कि इस 'कितबिया' को प्रकाशित कराने की इच्छा इसके रचयिता की रही होगी।रचयिता की औपचारिक शिक्षा-दीक्षा का अनुमान पांडुलिपि से लगाना मुश्किल है—यह तो लगभग पक्का है कि वह बी.ए., एम.ए. डिग्रीधारी नहीं था। यह ज़रूर हैरान करने वाली बात है कि पांडुलिपि में अमीर ख़ुसरो, कबीर, मीर, सूर, तुलसी, ग़ालिब, मीरा, निराला, प्रेमचंद, शरतचंद्र, मंटो, फ़िराक़, फ़ैज़, मुक्तिबोध, भुवनेश्वर, मजाज़, उग्र, नागार्जुन, बच्चन, नासिर, राजकमल, शैलेंद्र, ऋत्विक घटक, रामकिंकर, सिद्धेश्वरी देवी की पंक्तियाँ बीच-बीच में गुँथी हुई हैं। यह वाक़ई विलक्षण और हैरान करने वाली बात है। काल के थपेड़ों से जूझती हुई, होड़ लेती हुई कुछ पंक्तियाँ किस तरह रेगिस्तान के एक 'कामगार' की अंतरात्मा पर बरसती हैं और वहीं बस जाती हैं, जैसे नदियाँ हमारे पड़ोस में बसती हैं।",
"— कृष्ण कल्पितपटना, 13 फ़रवरी 2005वसंत पंचमी",
"सत्तावनकहीं भी पी जा सकती है शराबखेतों में खलिहानों मेकछार में या उपांत मेंछत पर या सीढ़ियों के झुटपुटे मेंरेल के डिब्बे मेंया फिर किसी लैंप पोस्ट कीझरती हुई रोशनी मेंकहीं भी पी जा सकती है शराब।अट्ठावनकलवारी में पीने के बादमृत्यु और जीवन से परेवह अविस्मरणीय नृत्य'ठगिनी क्यों नैना झमकावै'।कफ़न बेचकर अगरघीसू और माधो नहीं पीते शराबतो यह मनुष्यता वंचित रह जातीएक कालजयी कृति से।उनसठदेवदास कैसे बनता देवदासअगर शराब न होती।तब पारो का क्या होताक्या होता चंद्रमुखी काक्या होतारेलगाड़ी की तरहथरथराती आत्मा का?साठउन नीमबाज़ आँखों मेंसारी मस्तीकिस की-सी होतीअगर शराब न होती!आँखों में दमकिसके लिए होताअगर न होता साग़र-ओ-मीना?इकसठअगर न होती शराबवाइज़ का क्या होताक्या होता शेख़ साहब काकिस काम लगते धर्मोपदेशक?बासठपीने दे पीने देमस्जिद में बैठ करकलवारियाँऔर नालियाँ तोख़ुदाओं से अटी पडी हैं।तिरसठ'न उनसे मिले न मय पी है''ऐसे भी दिन आएँगे'काल पड़ेगा मुल्क मेंकिसान करेंगे आत्महत्याएँऔर खेत सूख जाएँगे।चौंसठ'घन घमंड़ नभ गरजत घोराप्रियाहीन मन डरपत मोरा'ऐसी भयानक रातपीता हूँ शराबपीता हूँ शराब!पैंसठ'हमन को होशियारी क्याहमन हैं इश्क़ मस्ताना'डगमगाता है शराबीडगमगाती है कायनात!छियासठ'अपनी-सी कर दीनी रेतो से नैना मिलाय के'तोसे तोसे तोसेनैना मिलाय के'चल ख़ुसरो घर आपनेरैन भई चहुँ देस'सड़सठ'गोरी सोई सेज परमुख पर डारे केस''उदासी बाल खोले सो रही है'अब बारह का बजर पड़ा हैमेरा दिल तो काँप उठा है।जैसे-तैसे मैं ज़िंदा हूँसच बतलाना तू कैसा है।सबने लिखे माफ़ीनामे।हमने तेरा नाम लिखा है।अड़सठ'वो हाथ सो गए हैंसिरहाने धरे-धरे'अरे उठ अरे चलशराबी थामता है दूसरे शराबी को।उनहत्तर'आए थे हँसते-खेलते''यह अंतिम बेहोशीअंतिम साक़ीअंतिम प्याला है'मार्च के फुटपाथों परपत्ते फड़फड़ा रहे हैंपेडों से झड़ रही हैएक स्त्री के सुबकने की आवाज़।सत्तर'दो अंखियाँ मत खाइयोपिया मिलन की आस'आस उजड़ती नहीं हैउजड़ती नहीं है आसबड़बड़ाता है शराबी।इकहत्तरकितना पानी बह गयानदियों मेंख़ून की नदियों में'तो फिर लहू क्या है?'लहू में घुलती है शराबजैसे शराब घुलती है शराब में।बहत्तर'धिक् जीवनसहता ही आया विरोध''कन्ये मैं पिता निरर्थक था'तरल गरल बाबा ने कहा'कई दिनों तक चूल्हा रोयाचक्की रही उदास'शराबी को याद आई कविताकई दिनों के बाद!तिहत्तरराजकमल बढ़ाते हैं चिलमउग्र थाम लेते हैं।मणिकर्णिका घाट पररात के तीसरे पहरभुवनेश्वर गुफ़्तगू करते हैं मजाज़ से।मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीड़ीएक शराबीमाँगता है उनसे माचिस।'डासत ही गई बीत निशा सब।'चौहत्तर'मोसे छलकिए जाए हाय रे हायहाय रे हाय''चलो सुहाना भरम तो टूटा'अबे चललकड़ी के बुरादेघर चल!सड़क का हुस्न है शराबी!पचहत्तर'सब आदमी बराबर हैं'यह बात कही होगीकिसी सस्ते शराबघर मेंएक बदसूरत शराबी नेकिसी सुंदर शराबी को देखकर।यह कार्ल मार्क्स के जन्म केबहुत पहले की बात होगी!छिहत्तरमगध में होगीविचारों की कमीशराबघर तो विचारों से अटे पड़े हैं।सतहत्तरशराबघर ही होगी शायदआलोचना कीजन्मभूमि!पहला आलोचक कोई शराबी रहा होगा!अठहत्तररूप और अंतर्वस्तुशिल्प और कथ्यप्याला और शराबविलग होते हीबिखर जाएगी कलाकृति!उनासीतुझे हम वली समझतेअगर न पीते शराब।मनुष्य बने रहने के लिए हीपी जाती है शराब!अस्सी'होगा किसी दीवार केसाये के तले मीर'अभी नहीं गिरेगी यह दीवारतुम उसकी ओट में जाकरएक स्त्री को चूम सकते होशराबी दीवार को चूम रहा हैचाँदनी रात में भीगता हुआ।इक्यासी'घुटुरुन चलतरेणु तनु मंडित'रेत पर लोट रहा है रेगिस्तान का शराबी'रेत है रेत बिखर जाएगी'किधर जाएगीरात की यह आख़िरी बस?बयासीभाँग की बूटीगाँजे की कलीखप्पर की शराबकासी तीन लोक से न्यारीऔर शराबीतीन लोक का वासी!तिरासीलैंप पोस्ट से झरती है रोशनीहारमोनियम से धूलऔर शराबी से झरता हैअवसाद।चौरासीटेलीविजन के परदे परबाहुबलियों की ख़बरें सुनाती हैंबाहुबलाएँ!टकटकी लगाए देखता है शराबीविडंबना का यह विलक्षण रूपकभंते! एक प्याला और।पिचासीगंगा के किनारेउल्टी पड़ी नाव पर लेटा शराबीकौतुक से देखता हैमहात्मा गांधी सेतु कोऐसे भी लोग हैं दुनिया में'जो नदी को स्पर्श किए बग़ैरकरते हैं नदियों को पार'और उछाल कर सिक्कानदियों को ख़रीदने की कोशिश करते हैं!छियासीतानाशाह डरता हैशराबियों सेतानाशाह डरता हैकवियों सेवह डरता है बच्चों से नदियों सेएक तिनका भी डराता है उसेप्यालों की खनखनाहट भर सेकाँप जाता है तानाशाह।सत्तासीक्या मैं ईश्वर सेबात कर सकता हूँशराबी मिलाता है नंबरअँधेरे में टिमटिमाती है रोशनीअभी आप क़तार में हैंकृपया थोड़ी देर बाद डायल करें।अट्ठासी'एहि ठैयां मोतियाहिरायल हो रामा...'इसी जगह टपका था लहूइसी जगह बरसेगी शराबइसी जगहसृष्टि का सर्वाधिक उत्तेजक ठुमकासर्वाधिक मार्मिक कजरीइसी जगह इसी जगह!नवासी'अंतरराष्ट्रीय सिर्फ़हवाई जहाज़ होते हैंकलाकार की जड़ें होती हैं'और उन जड़ों कोसींचना पड़ता है शराब से!नब्बेजिस पेड़ के नीचे बैठकरऋत्विक घटककुरते की जेब से निकालते हैं अद्धावहीं बन जाता है अड्डावहीं हो जाता हैबोधिवृक्ष!इक्यानवेसबसे बड़ा अफ़सानानिग़ारसबसे बड़ा शाइरसबसे बड़ा चित्रकारऔरा सबसे बड़ा सिनेमाकारअभी भी जुटते हैंकभी-कभीकिसी उजड़े हुए शराबघर में!बानवेहमें भी लटका दिया जाएगाकिसी रोज़ फाँसी के तख़्ते परधकेल दिया जाएगासलाख़ों के पीछेहमारी भी फ़ाक़ामस्तीरंग लाएगी एक दिन!तिरानवे*3 क़ब्रगाह में सोया है शराबीसोचता हुआवह बड़ा शराबी हैया ख़ुदा!चौरानवेऐसी ही होती है मृत्युजैसे उतरता है नशाऐसा ही होता है जीवनजैसे चढ़ती है शराब।पिचानवे'हाँ, मैंने दिया है दिलइस सारे क़िस्से मेंये चाँद भी है शामिल।'आँखों में रहे सपनामैं रात को आऊँगादरवाज़ा खुला रखना।चाँदनी में चिनाबहोंठों पर माहिएहाथों में शराबऔर क्या चाहिए जनाब!छियानवेरिक्शों पर प्यार थागाड़ियों में व्यभिचारजितनी बड़ी गाड़ी थीउतना बड़ा था व्यभिचाररात में घर लौटता शराबीखंडित करता है एक विखंडित वाक्यवलय में खोजता हुआ लय।सत्तानवेघर टूट गयारीत गया प्यालाधूसर गंगा के किनारेप्रस्फुटित हुआ अग्नि का पुष्पसाँझ के अवसान में हुआदेह का अवसानधरती से कम हो गया एक शराबी!अट्ठानवेनिपट भोर में'किसी सूतक का वस्त्र पहने'वह युवा शराबीकल के दाह संस्कार कीराख कुरेद रहा हैक्या मिलेगा उसेटूटा हुआ प्याला फेंका हुआ सिक्काया पहले तोड़ की अजस्र धार!आख़िर जुस्तजू क्या है?",
"आख़िर में",
"आख़िर में दो और सूक्तियाँ काग़ज़ पर लिखी हुई थीं, जिन्हें बाद में क़लम से क्रॉस कर दिया गया था, पर वे पढ़ने में आ रही थीं। अंतिम दो काटी हुई सूक्तियों के नीचे लिखा हुआ था—बाबा भर्तृहरि को प्रणाम!इसका एक अर्थ शायद यह भी हो सकता है कि इन सूक्तियों का अज्ञात कवि अंतिम दो सूक्तियों को काटकर नीति, शृंगार और वैराग्य शतक के लिए संसार प्रसिद्ध और संस्कृत भाषा के कालजयी कवि भर्तृहरि को सम्मान देना चाहता हो! हो सकता है कि वह भर्तृहरि से दो सीढ़ी नीचे, उनके चरणों में बैठकर, अपने पूर्वज कवि की कृपा का आकांक्षी हो!",
"— कृष्ण कल्पित",
"निन्यानवे रविवार की शराब तो मशहूर हैशराब का कोई रविवार नहीं होता।सौ शराब पीना पर प्रशंसा की शराब कभी मत पीना।",
"शराबी की शाइरी",
"जैसा कि पूर्व कथन है—गोल करके धागे से बाँधी हुए एक पांडुलिपि काली स्याही से सुथरे अंदाज़ में लिखी गई थी। काग़ज़ के हाशिए और बची हुई ख़ाली जगहों पर कुछ आधी-अधूरी ग़ज़लें और कुछ शाइरीनुमा पंक्तियाँ भी लिखी हुई थीं, जिन्हें पढ़ते हुए कभी यह एहसास होता है कि ये किसी नौसीखिए की लिखी हुई हैं तो कभी यह भी लगता है जैसे यह किसी उस्ताद शाइर का काम हो। जो हो, अगर यह शाइरी इस पुस्तक में प्रकाशित न की जाती तो यह उस अज्ञात/खोए हुए अनाम कवि के साथ अन्याय होता!",
"— कृष्ण कल्पित",
"एकजब मिलाओ शराब में पानीयाद रखियो कबीर की बानीगिरह ग़ालिब की मीर के मानी नाम मीरा थी प्रेम-दीवानी ध्यान से भी बड़ी है बेध्यानी सबसे बिदवान जो है अज्ञानी भूलता जा रहा हूँ बातों में चाहता था जो बात समझानी साक़िया टुक इधर भी देख ज़रा हर तरफ़ शोर है ज़रा पानी दोरात जाते हुए ही जाती है एक मद्यप की याद आती हैज़िंदगी गीत गुनगुनाती है और चुपके से मौत आती है!तीनकभी दीवारो-दर को देखता हूँ कभी बूढ़े शजर को देखता हूँ नज़र से ही नज़र को देखता हूँ फ़लक से फ़ितनागर को देखता हूँ मेरा पेशा है मयनोशी मेरा आलम है बेहोशी शराबों के असर को देखता हूँ तुम्हें भी रात भर को देखता हूँ।चारमोह छूटा तो ठग गई माया लुट गया पास था जो सरमाया अब तो जाता हूँ तेरी दुनिया से ‘फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया!’पाँचतेरा रस्ता बहुत तका हमने तेरी गलियों में ख़ूब घूम लिया जिस तरह चूमता तुम्हें जानम आज दीवारो-दर को चूम लिया रात को क्या हुआ शराबी ने जिसको देखा उसी को चूम लिया!छहजिधर देखिए बस हवा ही हवा हैसुबह की हवा में कशिश है नशा है जो गुज़रा उधर से तो देखा ये मंज़र कि दारू के ठेके पे ताला जड़ा है।सातसुनके रस्ता भुला गए थे हम तेरी बातों में आ गए थे हम क्या-क्या बातें सुना गए थे हम सारी महफ़िल पे छा गए थे हम साक़िया ये पुराना क़िस्सा है तेरी मटकी ढुला गए थे हम!आठहश्र बरपा ही नहीं अब्र बरसा ही नहीं ज़िंदगी बीत गई कोई क़िस्सा ही नहीं जैसे इस दुनिया में मेरा हिस्सा ही नहीं साक़िया बात है क्या हमको पूछा ही नहीं रात को जाऊँ कहाँ कोई डेरा ही नहीं!नौदिल-ए-नाकाम आ जाऊँ कहो तो शाम आ जाऊँ यही हसरत बची है अब किसी के काम आ जाऊँ!दसकभी बुतख़ाने में गुज़री कभी मयख़ाने में गुज़री बची थी ज़िंदगी थोड़ी वो आने-जाने में गुज़री समझना था नहीं हमकोसमझ ही थी नहीं हमको अगरचे शेख़ साहब की हमें समझाने में गुज़री!ग्यारहविष बुझा तीर चला दे साक़ी आज तो ज़हर पिला दे साक़ी रोज़ का आना-जाना कौन करे आख़िरी बार सुला दे साक़ी!",
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बचे रहने का अभिनय - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/bache-rahne-ka-abhinay-sulochna-kavita?sort= | [
"हम ज़िंदा रहते हैं फिर भी",
"उस पहाड़ की तरह जो दरकता है हर रोज़",
"या काट दिया जाता है रास्ता बनाने के लिए",
"और फिर भी खड़ा रहता है सिर उठाए",
"बचे रहने का अभिनय करते हुए",
"हम ज़िंदा रहते हैं फिर भी",
"रसोईघर के कोने में पड़े उस रंगीन पोंछे की तरह",
"जो घिस-घिसकर फट चुका है कई जगहों से",
"और फिर भी हो रहा है इस्तेमाल हर रोज़ कई बार",
"बचे रहने का अभिनय करते हुए",
"हम ज़िंदा रहते हैं फिर भी",
"मिट्टी के चूल्हे में जलते कोयले की तरह",
"जो जल-जलकर बन जाता है अंगार",
"और फिर भी धधकता रहता है",
"बचे रहने का अभिनय करते हुए",
"हमारी अभिनय क्षमता तय करती है हमारा ज़िंदा दिखना",
"और हमारा ज़िंदा दिखना ही है विश्व की सबसे रोमांचक कहानी",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"us pahaD ki tarah jo darakta hai har roz",
"ya kat diya jata hai rasta banane ke liye",
"aur phir bhi khaDa rahta hai sir uthaye",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"rasoighar ke kone mein paDe us rangin ponchhe ki tarah",
"jo ghis ghiskar phat chuka hai kai jaghon se",
"aur phir bhi ho raha hai istemal har roz kai bar",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"mitti ke chulhe mein jalte koyle ki tarah",
"jo jal jalkar ban jata hai angar",
"aur phir bhi dhadhakta rahta hai",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hamari abhinay kshamata tay karti hai hamara zinda dikhna",
"aur hamara zinda dikhna hi hai wishw ki sabse romanchak kahani",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"us pahaD ki tarah jo darakta hai har roz",
"ya kat diya jata hai rasta banane ke liye",
"aur phir bhi khaDa rahta hai sir uthaye",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"rasoighar ke kone mein paDe us rangin ponchhe ki tarah",
"jo ghis ghiskar phat chuka hai kai jaghon se",
"aur phir bhi ho raha hai istemal har roz kai bar",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"mitti ke chulhe mein jalte koyle ki tarah",
"jo jal jalkar ban jata hai angar",
"aur phir bhi dhadhakta rahta hai",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
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ओ मेरी मृत्यु! - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/o-meri-mirtyu-sapna-bhatt-kavita?sort= | [
"ओ मेरी मृत्यु!",
"अभी स्थगित रख अपनी आमद।",
"कि अभी मैंने देखा नहीं समंदर कोई",
"अभी किसी वर्षावन में भटकी नहीं—",
"आर्द्रता से भरा—ख़ाली मन लेकर।",
"अभी किसी ऐसी यात्रा की सुखद स्मृति मेरे पास नहीं",
"कि जिसमे रेलगाड़ी में ही होती हों",
"तीन सुबहें और दो रातें।",
"अभी हुगली के रेतीले तट पर",
"नहीं छोड़ी मैंने अपने थके हुए पैरों की भटकन।",
"अभी नौका में बैठाकर पार ले जाते",
"किसी मल्लाह की करुण टेर ने मुझे बाँधा नहीं।",
"अभी मेरे पास नहीं है दोस्तोयेवस्की का समूचा साहित्य",
"अभी मैंने किरोस्तामी को पूरा जाना नहीं।",
"अभी माजिद मजीदी की एक फ़िल्म",
"राह तकती है मेरी—फ़ोन की गैलरी में चुपचाप।",
"अभी मेरा एक दोस्त जूझ रहा है हर साँस के लिए",
"अभी उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ नही रखीं",
"उसे दिलासा नहीं दिया।",
"अभी मेरी बेटी बच्ची ही है—नन्ही-सी",
"अभी मैंने उसे दोस्त नहीं किया",
"अभी पूछा भर है कि प्रेम में है क्या तू मेरी बच्ची?",
"अभी अपने प्यार के विषय में बताने का साहस नहीं जुटाया...",
"और तो और",
"अभी उस पगले से भी है एक ही मुलाक़ात",
"अधूरी और सकुचाई हुई",
"अभी उसने मेरा हाथ नहीं थामा",
"अभी उसने मुझे चूमा नहीं।",
"o meri mirtyu!",
"abhi sthagit rakh apni aamad",
"ki abhi mainne dekha nahin samandar koi",
"abhi kisi warshawan mein bhatki nahin—",
"ardrata se bhara—khali man lekar",
"abhi kisi aisi yatra ki sukhad smriti mere pas nahin",
"ki jisme relgaDi mein hi hoti hon",
"teen subhen aur do raten",
"abhi hugli ke retile tat par",
"nahin chhoDi mainne apne thake hue pairon ki bhatkan",
"abhi nauka mein baithakar par le jate",
"kisi mallah ki karun ter ne mujhe bandha nahin",
"abhi mere pas nahin hai dostoyewaski ka samucha sahity",
"abhi mainne kirostami ko pura jana nahin",
"abhi majid majidi ki ek film",
"rah takti hai meri—phone ki gallery mein chupchap",
"abhi mera ek dost joojh raha hai har sans ke liye",
"abhi uske mathe par thanDe pani ki pattiyan nahi rakhin",
"use dilasa nahin diya",
"abhi meri beti bachchi hi hai—nannhi si",
"abhi mainne use dost nahin kiya",
"abhi puchha bhar hai ki prem mein hai kya tu meri bachchi?",
"abhi apne pyar ke wishay mein batane ka sahas nahin jutaya",
"aur to aur",
"abhi us pagle se bhi hai ek hi mulaqat",
"adhuri aur sakuchai hui",
"abhi usne mera hath nahin thama",
"abhi usne mujhe chuma nahin",
"o meri mirtyu!",
"abhi sthagit rakh apni aamad",
"ki abhi mainne dekha nahin samandar koi",
"abhi kisi warshawan mein bhatki nahin—",
"ardrata se bhara—khali man lekar",
"abhi kisi aisi yatra ki sukhad smriti mere pas nahin",
"ki jisme relgaDi mein hi hoti hon",
"teen subhen aur do raten",
"abhi hugli ke retile tat par",
"nahin chhoDi mainne apne thake hue pairon ki bhatkan",
"abhi nauka mein baithakar par le jate",
"kisi mallah ki karun ter ne mujhe bandha nahin",
"abhi mere pas nahin hai dostoyewaski ka samucha sahity",
"abhi mainne kirostami ko pura jana nahin",
"abhi majid majidi ki ek film",
"rah takti hai meri—phone ki gallery mein chupchap",
"abhi mera ek dost joojh raha hai har sans ke liye",
"abhi uske mathe par thanDe pani ki pattiyan nahi rakhin",
"use dilasa nahin diya",
"abhi meri beti bachchi hi hai—nannhi si",
"abhi mainne use dost nahin kiya",
"abhi puchha bhar hai ki prem mein hai kya tu meri bachchi?",
"abhi apne pyar ke wishay mein batane ka sahas nahin jutaya",
"aur to aur",
"abhi us pagle se bhi hai ek hi mulaqat",
"adhuri aur sakuchai hui",
"abhi usne mera hath nahin thama",
"abhi usne mujhe chuma nahin",
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पिकासो की पुत्रियाँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/pikaso-ki-putriyan-kedarnath-agarwal-kavita?sort= | [
"कठोर हैं तुम्हारे कुचों के",
"मौन मंजीर,",
"ओ पिकासों की पुत्रियो!",
"सुडौल हैं तुम्हारे नितंब के",
"दोनों कूल,",
"ओ पिकासी की पुत्रियो!",
"निर्भीक हैं",
"चरणों तक गईं",
"कदली—खंभों-सी प्रवाहित",
"कुमारीत्व की दोनों",
"नदियाँ,",
"ओ पिकासो की पुत्रियो!",
"kathor hain tumhare kuchon ke",
"maun manjir,",
"o pikason ki putriyo!",
"suDaul hain tumhare nitamb ke",
"donon kool,",
"o pikasi ki putriyo!",
"nirbhik hain",
"charnon tak gain",
"kadli—khambhon si prwahit",
"kumaritw ki donon",
"nadiyan,",
"o pikaso ki putriyo!",
"kathor hain tumhare kuchon ke",
"maun manjir,",
"o pikason ki putriyo!",
"suDaul hain tumhare nitamb ke",
"donon kool,",
"o pikasi ki putriyo!",
"nirbhik hain",
"charnon tak gain",
"kadli—khambhon si prwahit",
"kumaritw ki donon",
"nadiyan,",
"o pikaso ki putriyo!",
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आत्मालाप : कलाओं का शोक और शोक की कला - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/atmalap-ha-kalaon-ka-shok-aur-shok-ki-kala-babusha-kohli-kavita?sort= | [
"पूर्वी के संग के प्रति सस्नेह,जॉर्ज माइकल के गीतों के प्रति सादर।उन दिनों दुःख और पश्चात्ताप का मासूम देवता था जॉर्ज माइकलअपने वॉकमैन से गिटार के नोट्स बीनते मैं सोचतीक्या सचमुच इतना पवित्र हो सकता है किसी का दुःख?सी शार्प की शार्पनेस जॉर्ज के दुःख के तीखेपन के बिना कितनी फीकी हैउन दिनों एयर गिटार बना कर पूरे कॉरिडोर में परफ़ॉर्म करती थीदेयर इज़ नो कम्फ़र्ट इन द ट्रुथपेन इज़ ऑल यू'ल फ़ाइंड पूर्वी तंज़ से कहती, दुःख नहीं तो दुःख का ड्रामा सही?पूरी ज़िंदगी ही किसी अंजाने शेक्सपियर का लिखा ड्रामा है, झुम्मा! दुःख और छल का ऐसा खेल जिसमें यह तसल्ली शामिल है कि आख़िर में पर्दा गिर जाएगा।”अपने फ़लसफ़े से झाड़ देती तंज़ उसके उसकी आँखों पर पड़ा पर्दा उठा देतीएक दिनचंद्रमा को धनुष बना तान दूँगी तीर अपने हर्फ़ों से बेध दूँगी वक़्त का कलेजा, झुम्मा! नदी को जॉर्ज का गिटार कर दूँगीतट के कोलाहल से चुन लूँगी धुनबिखरी लहरों पर रिबन की तरह बाँधूँगी गीतसमंदर के काँधों पर लहरें खोल दूँगीये जो मेरे दुपट्टे में बबलगम की तरह उस इकतरफ़ा आशिक़ का दिल चिपका हुआ है न उसकी आह का भी असर होगा किसी दिनइस संसार में सब कुछ लौट-लौट आता हैदरिया से उठती हैं धुआँ-धुआँ बूँदें, बारिश बन लौट आती हैंखेतों में उगती है फ़सलें, बीज हो कर लौट आती हैंचिड़िया छोड़ देती हैं घोंसला, आकाश छू लौट आती हैएक ट्रेन छोड़ती है मेरा शहर रात आठ चालीस परठहरती है एक दिन उसके शहर अगले दिन लौट आती हैमेरा इकतरफ़ा राग उसके बाएँ कान को छू कर लौट आता हैदेखना!जॉर्ज और मैं एक साथ एक लय और एक-सी पवित्रता के उजाले में गुनगुनाएँगे किसी दिन—आय'म नेवा गोन्ना डांस अगेन!पिघल रही है मेरी आवाज़ की बर्फ़आँखों में पानी बन लौट आती हैबीते किसी दिसंबर पूर्वी ने इटली से लिखा :यहाँ बर्फ़ पड़ रही हैऔर जाने क्यों ऐसा लगता है कि तुम इन दिनों 'केयरलेस व्हिस्पर' गा रही होजॉर्ज की मृत्यु के दिन तुम्हें याद करती रहीपूर्वी को उत्तर कम लिखे मैंनेआप किसी ऐसे को कम उत्तर लिख पाते हैं जिसके सामने पहले ही आपका प्रश्नपत्र लीक हो चुका होकुछ दिनों बाद उसने लिखा :जॉर्ज को भी किताबें लिखनी थीं।परदेस से लौट कर उसने फिर लिखा :जॉर्ज को भी फ़िल्में बनानी थींहै न? मैंने उसे जो लिखा वह उत्तर नहीं थाचंद्रमा और नदी की जुगलबंदी में अपने बेसुरे गीतों के पिट जाने की ख़बर थीझुम्मा!एक बार गिटार सीखने गई थी 'सिक्स स्ट्रिंग्स क्लासेज़' उँगलियाँ छिल गईं लौट आई दो दिनों मेंलिखते हुए जानाकि कविता लिखना भी काग़ज़ पर गिटार बजाना ही हैइटली में जब बर्फ़बारी हो रही थीबर्फ़ की सिल्ली हो चुके अपने मन पर रखा था मैंने अपना ही शव पहली बारमेरे पहले ही अंतिम संस्कार में टूट गए थे जॉर्ज के गिटार के तार, झुम्मा!फिर किसी ने फूँक मार मिट्टी में जान भर दीदिल मेरा उसने दिल की जगह पर नहीं लगायादिल को बबलगम कर बालों में उलझा दिया हैवह जानता है बाल मेरे सीधे हैं रेशम की माफ़िक़खिंचते हैं बाल मेरे टूटते हैंदुःख का बड़ा अश्लील कारोबार है जॉर्ज से ले कर बाबुषा तकइन दिनों बाल नहीं काढ़ती हूँफ़िल्में बनाती हूँ इन दिनोंमेरी फ़िल्मों में स्टार नहीं मिलते जो किसी फ़लसफ़े से बुहारे न जा सकेंमेरी फ़िल्मों में गिटार के टूटे हुए तार और टूटे हुए बाल मिलते हैं",
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अभिनय क्या आत्महत्या है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/abhinay-kya-atmahatya-hai-nand-kishore-acharya-kavita?sort= | [
"विस्मित देखते हैं लोग",
"मुझको अन्य होते हुए—",
"और रेशा-रेशा मर रहा हूँ मैं",
"अनुपल जन्म लेता हुआ :",
"यही तो होता है हर बार।",
"अभिनय क्या आत्महत्या है",
"नए जन्म के लिए",
"जिसमें अपने को ख़ुद",
"जनता हूँ मैं—",
"जनकर मार देता हूँ!",
"vismit dekhte hain log",
"mujh ko any hote hue—",
"aur resha resha mar raha hoon main",
"anupal janm leta hua ha",
"yahi to hota hai har baar.",
"abhinay kya atmahatya hai",
"nae janm ke liye",
"jismen apne ko khu",
"janta hoon main—",
"jankar maar deta hoon!",
"vismit dekhte hain log",
"mujh ko any hote hue—",
"aur resha resha mar raha hoon main",
"anupal janm leta hua ha",
"yahi to hota hai har baar.",
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"nae janm ke liye",
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हुसैन के एक चित्र की अचानक याद - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/husain-ke-ek-chitr-kii-achaanak-yaad-ashok-vajpeyi-kavita?sort= | [
"उजाले की दो गहरी लाल आँखें",
"मुड़ गईं उस सड़क पर",
"जो मेरे घर के अँधेरे के पास से",
"गुज़रती है।",
"तालाब पर सोए धुँध में",
"खिलखिलाकर एक भूरी हँसी",
"हँसता है कोई।",
"पेड़ों की अँधेरी क़तारों के शिखरों पर",
"हँसता है कोई।",
"घिरता जाता है आकाश—काला",
"—घर मेरा उभरता है, डूबता है",
"अँधेरे में, सड़क पर,",
"गहन लाल आँखों में छूटकर",
"एक मद्धिम पीली रोशनी में लगातार...",
"ujaale kii do gahrii laal aa.nkhe.n",
"muD ga.ii.n us saDak par",
"jo mere ghar ke a.ndhere ke paas se",
"guzartii hai।",
"taalaab par so.e dhu.ndh me.n",
"khilkhilaakar ek bhuurii ha.nsii",
"ha.nsta hai ko.ii।",
"peDo.n kii a.ndherii qat.aar.o ke shikhro.n par",
"ha.nsta hai ko.ii।",
"ghirta jaata hai aakaasha—kaala",
"—ghar mera ubharta hai, Duubata hai",
"a.ndhere me.n, saDak par,",
"gahan laal aa.nkho.n me.n chhuuTakar",
"ek maddhim piilii roshanii me.n lagaataara.",
"ujaale kii do gahrii laal aa.nkhe.n",
"muD ga.ii.n us saDak par",
"jo mere ghar ke a.ndhere ke paas se",
"guzartii hai।",
"taalaab par so.e dhu.ndh me.n",
"khilkhilaakar ek bhuurii ha.nsii",
"ha.nsta hai ko.ii।",
"peDo.n kii a.ndherii qat.aar.o ke shikhro.n par",
"ha.nsta hai ko.ii।",
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"—ghar mera ubharta hai, Duubata hai",
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नवसंदेश-रासक - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/nawsandesh-rasak-avinash-mishra-kavita?sort= | [
"संदेश-रासककार अद्दहमाण (अब्दुल रहमान) के प्रति कृतज्ञतापूर्वकनवसंदेश-रासक[ प्रथम प्रक्रम ]वर्षावास : परम्परा हे परस्परविरुद्धो,सुच्छंद-छद्ममय-रहित समूल और निर्मूल सूक्ष्म और स्थूलसुंदर और कुरूप अनुलोम और प्रतिलोम मूक और वाचाल सब होकर देख चुकी हूँ—महत्त्वकांक्षा से मुक्ति नहीं।चाहती हूँ बरस जाना—दुःख पर दुःख लेकर बरसती हूँखुलता नहीं आकाश,न संदेह।पंक में पंकज परस्थिर जल-बूँद-सी—अस्थिर दमन की प्रतीक बन झूलती हूँफिर-फिर झू-ल-ती हूँ...विस्तीर्ण हूँ बहुत मैं कुकवित्त के लिए भी स्थल हैं—मुझ में तू इस स्थल में ही रह पर रहमुझ में रह—विद्वता और मूढ़ता—दोनों ही से बच कर र-ह। मैंने अन्यमनस्कता के साथ कविताएँ लिखीं,अन्यमनस्कता मेरी समकालीन थी [ द्वितीय प्रक्रम ]विरहायण : स्थिति असह्य है आषाढ़—विरहिणी ही जानती है यह कभी-कभी विरही भी—प्रत्येक व्यक्ति-विवेक नहीं, प्रत्येक काल में—विरह और विरति।सँदेसे अब संदेश-से रहे नहीं!नहीं रहे!मेरे कष्ट को नष्ट किया उसने,उसे कष्ट देते ही नष्ट हुआ मैं [ तृतीय प्रक्रम ]ऋतुवर्णन : प्रसंग विगत गर्मियों से विकट गर्मियाँ गईंवर्षा में न स्नेह बरसा शरद दरद-साहेमंत पंथविहीन विगत सर्दियों से विकट सर्दियाँ गईं वसंत कंतविहीन!मैं राह में रहाउत्पात-सा रात-सा—सवेरा (है)प्रसंगभ्रष्ट सब वैभव मेरा",
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मोना लिसा 2020 - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/mona-lisa-2020-vinod-bhardwaj-kavita-3?sort= | [
"स्त्री का रहस्य उसके बालों में है",
"उसकी आँखों में",
"या उसकी मुस्कान में",
"यह मेरी समस्या नहीं है",
"सारे मर्दवादी कवियों को",
"मैंने कब से विदा दे रखी है लियोनार्दो!",
"इस मास्क ने ज़रूर मेरी मुस्कान मुझसे छीन ली है",
"मेरी भीड़ कहीं बेरहमी से छिपा दी गई है",
"बरसों पहले लोगों पर पाबंदी नहीं थी",
"वे मेरे पास आ सकते थे",
"मुझसे बातें कर लेते थे",
"कुछ उनके गुप्त रहस्य मैं जान जाती थी",
"कुछ औरतें मेरी सहेलियाँ बन जाती थीं",
"एक दिन उन्हें भी मुझसे दूर कर दिया गया",
"एक मज़बूत रस्सी का घेरा बना दिया गया",
"यह लक्ष्मण-रेखा मेरे लिए नहीं थी",
"मेरे चाहने वालों के लिए थी",
"तुम्हें क्या सचमुच लगता है लियोनार्दो",
"कि मुझे एक आराम की ज़रूरत थी",
"या एक गहरे अकेलेपन की",
"कमबख़्तों ने मुझे भी एक ख़ूबसूरत मास्क पहना दिया है",
"क्या उन्हें डर है कि यह महामारी",
"मेरी रहस्यमय मुस्कान",
"मुझसे छीन लेगी",
"नहीं, डरो नहीं",
"मेरे पास आओ",
"मुझे छुओगे तो ख़तरे की घंटियाँ बज जाएँगी",
"पर मेरे बहुत क़रीब आ जाओ",
"आज मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है",
"लूव्र के इस भयावह एकांत में",
"istri ka rahasy uske balon mein hai",
"uski ankhon mein",
"ya uski muskan mein",
"ye meri samasya nahin hai",
"sare mardawadi kawiyon ko",
"mainne kab se wida de rakhi hai liyonardo!",
"is mask ne zarur meri muskan mujhse chheen li hai",
"meri bheeD kahin berahmi se chhipa di gai hai",
"barson pahle logon par pabandi nahin thi",
"we mere pas aa sakte the",
"mujhse baten kar lete the",
"kuch unke gupt rahasy main jaan jati thi",
"kuch aurten meri saheliyan ban jati theen",
"ek din unhen bhi mujhse door kar diya gaya",
"ek mazbut rassi ka ghera bana diya gaya",
"ye laxman rekha mere liye nahin thi",
"mere chahne walon ke liye thi",
"tumhein kya sachmuch lagta hai liyonardo",
"ki mujhe ek aram ki zarurat thi",
"ya ek gahre akelepan ki",
"kambakhton ne mujhe bhi ek khubsurat mask pahna diya hai",
"kya unhen Dar hai ki ye mahamari",
"meri rahasyamay muskan",
"mujhse chheen legi",
"nahin, Daro nahin",
"mere pas aao",
"mujhe chhuoge to khatre ki ghantiyan baj jayengi",
"par mere bahut qarib aa jao",
"aj mujhe tumhari sabse zyada zarurat hai",
"loowr ke is bhayawah ekant mein",
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"uski ankhon mein",
"ya uski muskan mein",
"ye meri samasya nahin hai",
"sare mardawadi kawiyon ko",
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"is mask ne zarur meri muskan mujhse chheen li hai",
"meri bheeD kahin berahmi se chhipa di gai hai",
"barson pahle logon par pabandi nahin thi",
"we mere pas aa sakte the",
"mujhse baten kar lete the",
"kuch unke gupt rahasy main jaan jati thi",
"kuch aurten meri saheliyan ban jati theen",
"ek din unhen bhi mujhse door kar diya gaya",
"ek mazbut rassi ka ghera bana diya gaya",
"ye laxman rekha mere liye nahin thi",
"mere chahne walon ke liye thi",
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"ya ek gahre akelepan ki",
"kambakhton ne mujhe bhi ek khubsurat mask pahna diya hai",
"kya unhen Dar hai ki ye mahamari",
"meri rahasyamay muskan",
"mujhse chheen legi",
"nahin, Daro nahin",
"mere pas aao",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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कला का समय - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kala-ka-samay-pankaj-chaturvedi-kavita?sort= | [
"रामलीला में धनुष-यज्ञ के दिन",
"राम का अभिनय",
"राजकुमार का अभिनय है",
"मुकुट और राजसी वस्त्र पहने",
"गाँव का नवयुवक नरेश",
"विराजमान था रंगमंच पर",
"सीता से विवाह होते-होते",
"सुबह की धूप निकल आई थी",
"पर लीला अभी ज़ारी रहनी थी",
"अभी तो परशुराम को आना था",
"लक्ष्मण से उनका लंबा संवाद होना था",
"नरेश के पिता किसान थे",
"सहसा मंच की बग़ल से",
"दबी आवाज़ में उन्होंने पुकारा :",
"नरेश! घर चलो",
"सानी-पानी का समय हो गया है",
"मगर नरेश नरेश नहीं था",
"राम था",
"इसलिए उसने एक के बाद एक",
"कई पुकारों को अनसुना किया",
"आख़िर पिता मंच पर पहुँच गए",
"और उनका यह कहा",
"बहुतों ने सुना—",
"लीला बाद में भी हो जाएगी",
"पर सानी-पानी का समय हो गया है",
"ramlila mein dhanush yagya ke din",
"ram ka abhinay",
"rajakumar ka abhinay hai",
"mukut aur rajasi wastra pahne",
"ganw ka nawyuwak naresh",
"wirajman tha rangmanch par",
"sita se wiwah hote hote",
"subah ki dhoop nikal i thi",
"par lila abhi zari rahni thi",
"abhi to parshuram ko aana tha",
"laxman se unka lamba sanwad hona tha",
"naresh ke pita kisan the",
"sahsa manch ki baghal se",
"dabi awaz mein unhonne pukara ha",
"naresh! ghar chalo",
"sani pani ka samay ho gaya hai",
"magar naresh naresh nahin tha",
"ram tha",
"isliye usne ek ke baad ek",
"kai pukaron ko ansuna kiya",
"akhir pita manch par pahunch gaye",
"aur unka ye kaha",
"bahuton ne suna—",
"lila baad mein bhi ho jayegi",
"par sani pani ka samay ho gaya hai",
"ramlila mein dhanush yagya ke din",
"ram ka abhinay",
"rajakumar ka abhinay hai",
"mukut aur rajasi wastra pahne",
"ganw ka nawyuwak naresh",
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"sita se wiwah hote hote",
"subah ki dhoop nikal i thi",
"par lila abhi zari rahni thi",
"abhi to parshuram ko aana tha",
"laxman se unka lamba sanwad hona tha",
"naresh ke pita kisan the",
"sahsa manch ki baghal se",
"dabi awaz mein unhonne pukara ha",
"naresh! ghar chalo",
"sani pani ka samay ho gaya hai",
"magar naresh naresh nahin tha",
"ram tha",
"isliye usne ek ke baad ek",
"kai pukaron ko ansuna kiya",
"akhir pita manch par pahunch gaye",
"aur unka ye kaha",
"bahuton ne suna—",
"lila baad mein bhi ho jayegi",
"par sani pani ka samay ho gaya hai",
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नगड़ची की हत्या - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/nagadchi-ki-hatya-ramashankar-singh-kavita?sort= | [
"उसके पैदा होने पर",
"न सप्तर्षियों ने की कोई बैठक",
"न ही दिखा कोई तारा",
"उत्तर दिशा में",
"न ही उस दिन नदी में",
"एकाएक आया ज़्यादा पानी।",
"उस दिन तो सूरज भी",
"थोड़ा कम लाल उगा",
"बिल्कुल भोर में चिड़ियाँ न बोलीं",
"सुग्गे तो सुग्गे उस दिन कौए भी अलसाए थे",
"एक नामालूम-सी घड़ी में जन्मा वह",
"नगाड़ा बनाने वाले कारसाज़ के यहाँ।",
"पता था उसे सबसे अच्छा चमड़ा",
"किस पशु का है",
"उम्र, क़द-काठी सब पता थी उसे पशुओं की",
"किस जगह के चमड़े से बनता है जूता",
"कहाँ से निकलती है मशक",
"कहाँ के चमड़े से बनता है नगाड़ा।",
"कहाँ से निकलती है गगनभेदी आवाज़",
"किस चमड़े की बनती है ढोल",
"ढोल कसने का ताँत निकलता है कहाँ से",
"कहाँ के चमड़े से बनता है डमरू",
"जिससे निकलते हैं",
"पाणिनि के माहेश्वर सूत्र",
"व्याकरण के सिरजे जाने से पहले",
"ध्वनियों के प्रथम साक्षी थे उसके पुरखे।",
"देश के सारे गीतों के बोल",
"निर्धारित हैं उन वाद्य-यंत्रों से",
"बनाए थे उसके बाप-दादों ने",
"इस महाद्वीप की नर्तकियों का लास्य",
"ढोल के उन चमड़ों का ऋणी है",
"जो कमाया गया था सैकड़ों साल पहले।",
"तो हुआ एक दिन क्या",
"उसने बनाया नगाड़ा",
"आवाज़ गूँजती पाँच कोस जिसकी",
"और अगहन की एक सर्द-सी शाम",
"नगड़ची राजधानी चला आया।",
"राजधानी में देस के राजा का घर था",
"उसे लगा कि यही मुफ़ीद जगह है",
"विरुदावली गाई जाए उसकी",
"प्रजा के सुख बताए जाएँ",
"दिल्ली के बड़के अर्थशास्त्री को भी",
"देस का हाल बताया जाए",
"आख़िर वह था",
"देस की गाथाओं का आदिम संरक्षक",
"वंशक्रम, कीर्ति",
"सब था उसकी जिह्वा पर",
"हज़ारों-हज़ार वर्ष से उसके पुरखों ने",
"ऐसे ही सुरक्षित रखा था इतिहास",
"इतिहासकारों का वह पुरखा",
"राजधानी में गाने आया था",
"देस का इतिहास।",
"लेकिन यह क्या?",
"वह गाने लगा अपने पूर्वजों के सोग",
"सदियों के संताप नगाड़े पर बजाने लगा वह",
"बताने लगा कि गाँव में तालाब में",
"किसकी लाश उतराई थी",
"पिछले महीने",
"किसने लगाई छप्पर वाले टोले में आग",
"किसने क़ब्ज़ा कर लिया चारागाह",
"सब कुछ उसने सुनाया",
"बूढ़े पत्रकार को",
"पत्रकार केवल इतना बोला",
"तुम बोलते हो ऋषियों की तरह",
"राजधानी में भला उनका क्या काम",
"कल आना मेरे घर",
"पिलाऊँगा फ़्रांस की दारू।",
"न तो नगड़ची को फ़ुर्सत थी",
"न बूढ़े पत्रकार को",
"नगड़ची राजधानी नगाड़ा बजाने आया था",
"पत्रकार हर मिलने वाले से कहता था",
"घर आना",
"नगड़ची उसकी आँखों की ऊष्माहीनता से जान गया था",
"वह केवल उसे मन-बहलाव के लिए बुला रहा",
"उन्हीं दिनों माघ के महीने में",
"राजधानी के दिल और दिमाग़ पर कुहरा छाया था",
"उसने सेंका अपना नगाड़ा एक बार फिर",
"राजधानी में काठ नहीं बचा था",
"वह केवल लोगों के कलेजे में था",
"उसने टाइम मैगज़ीन को जला कर ही",
"नगाड़े के मर्म पर लगाई चोट",
"अब वह शहर के साहित्यकारों की करने लगा मुनादी",
"उनका गुण-रूप-रस",
"भाषा-रूपक-भाव",
"सब कुछ बताने लगा",
"नगाड़े की चोट पर",
"उनका संगीत और कला प्रेम",
"उसके लाभार्थियों की सूची",
"उसने बताई",
"पिछले सात पुश्तों की",
"फागुन की सनसनाती हवा",
"नगाड़े की आवाज़ ले जाने लगी",
"मुगल गार्डेन में घूमते लोगों तक",
"उसने पिछली सदी के कलेक्टर कवि के",
"औसतपने की खोल दी पोल",
"कि उसने चुराई हैं कविताएँ",
"अपने टाइपिस्ट की",
"यह बात उसने नगाड़े की दो टंकी लगाकर कही",
"मंडी हाउस मेट्रो पर",
"इंडिया इंटनेशनल सेंटर में जब व्याकरण के पंडित",
"एक नई भाषा खोजे जाने की कर रहे थे प्रेस कॉन्फ़्रेंस",
"तो उसने जोर से बजाया नगाड़ा",
"'यह तो मेरे पुरखों की भाषा है",
"चुरा रहा है यूनिवर्सिटी का प्रोफ़ेसर'",
"दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट फ़ैकल्टी पर",
"एक बड़े से मजमे में उसने बताया कि बैंक का अफ़सर",
"विज्ञापन का कौर डालता है संपादक को",
"और उसे साल का बेहतरीन कवि घोषित कर देता है",
"एक चित्रकार",
"उसकी पत्रिका में",
"फिर होली के दिन",
"शहर के सारे कवि-संपादक-पत्रकार",
"प्रोफ़ेसर और नेता",
"आंदोलनकारी और मुक्तिदाता जमा हुए",
"राजा भी आया अपनी लाव-लश्कर के साथ",
"एक जज एक वकील भी आया",
"स्टेनो टाइपिस्ट आए",
"मुकर्रर की गई उसकी सज़ा",
"नगड़ची को झोंक दिया ज़िंदा",
"होली के दिन होली की आग में",
"वह जल ही रहा था अभी",
"उस पर कविता लिखी",
"एक घंटावादी कवि ने",
"ठीक तीन महीने बाद",
"उसे दिया गया बेहतरीन कवि का पुरस्कार",
"और राजधानी में काव्य-संस्कृति ऐसे ही पनपती रही।",
"uske paida hone par",
"na saptarshiyon ne ki koi baithak",
"na hi dikha koi tara",
"uttar disha men",
"na hi us din nadi mein ekayek aaya zyada pani.",
"us din to suraj bhi",
"thoDa kam laal uga",
"bilkul bhor mein chiDiyan na bolin",
"sugge to sugge us din kauve bhi alsaye the",
"ek namalum si ghaDi mein janma wo",
"nagaDa banane vale karsaj ke yahan.",
"pata tha use sabse achchha chamDa",
"kis pashu ka hai",
"umr, qad kathi sab pata thi use pashuon ki",
"kis jagah ke chamDe se banta hai juta",
"kahan se nikalti hai mashak",
"kahan ke chamDe se banta hai nagaDa.",
"kahan se nikalti hai gaganbhedi avaz",
"kis chamDe ki banti hai Dhol",
"Dhol kasne ka taant nikalta hai kahan se",
"kahan ke chamDe se banta hai Damru",
"jisse nikalte hain",
"panini ke maheshvar sootr",
"vyakran ke sirje jane se pahle",
"dhvaniyon ke pratham sakshi the uske purkhe.",
"desh ke sare giton ke bol",
"nirdharit hain un vadya yantron se",
"banaye the uske baap dadon ne",
"is mahadvip ki nartakiyon ka lasya",
"Dhol ke un chamDon ka rini hai",
"jo kamaya gaya tha saikDon saal pahle.",
"to hua ek din kya",
"usne banaya nagaDa",
"avaz gunjti paanch kos jiski",
"aur aghan ki ek sard si shaam",
"nagaDchi rajdhani chala aaya.",
"rajdhani mein des ke raja ka ghar tha",
"use laga ki yahi mufid jagah hai",
"virudavali gai jaye uski",
"praja ke sukh bataye jayen",
"dilli ke baDke arthashastri ko bhi",
"des ke haal bataya jaye",
"akhir wo tha des ki gathaon ka aadim sanrakshak",
"vanshakram, kirti",
"sab tha uski jihva par",
"hazaron hazar varsh se uske purkhon ne",
"aise hi surakshit rakha tha itihas",
"itihaskaron ka wo purkha",
"rajdhani mein gane aaya tha des ka itihas.",
"lekin ye kyaa?",
"wo gane laga apne purvjon ke sog",
"sadiyon ke santap nagaDe par bajane laga wo",
"batane laga ki gaanv mein talab mein kiski laash utrai thi",
"pichhle mahine",
"kisne lagai chhappar vale tole mein aag",
"kisne qabza kar liya charagah",
"sab kuch usne sunaya",
"buDhe patrakar ko",
"patrakar keval itna bola",
"tum bolte ho rishiyon ki tarah",
"rajdhani mein bhala unka kya kaam",
"kal aana mere ghar",
"pilaunga fraans ki daru.",
"na to nagaDchi ko fursat thi",
"na buDhe patrakar ko",
"nagaDchi rajdhani nagaDa bajane aaya tha",
"patrakar har milne vale se kahta tha",
"ghar aana",
"nagaDchi uski ankhon ki uushmahinta se jaan gaya tha",
"wo keval use man bahlav ke liye bula raha",
"unhin dinon maagh ke mahine men",
"rajdhani ke dil aur dimagh par kuhra chhaya tha",
"usne senka apna nagaDa ek baar phir",
"rajdhani mein kaath nahin bacha tha",
"wo keval logon ke kaleje mein tha",
"usne taim maigzin ko jala kar hi",
"nagaDe ke marm par lagai chot",
"ab wo shahr ke sahitykaron ki karne laga munadi",
"unka gun roop ras",
"bhasha rupak bhaav",
"sab kuch batane laga",
"nagaDe ki chot par",
"unka sangit aur kala prem",
"uske labharthiyon ki suchi",
"usne batai",
"pichhle saat pushton ki",
"phagun ki sansanati hava",
"nagaDe ki avaz le jane lagi",
"mugal garDen mein ghumte logon tak",
"usne pichhli sadi ke kalektar kavi ke ausatapne ki khol di pol",
"ki usne churai hain kavitayen",
"apne taipist ki",
"ye baat usne nagaDe ki do tanki laga kar kahi",
"manDi haus metro par",
"inDiya intneshnal sentar mein jab vyakran ke panDit",
"ek nai bhasha khoje jane ki kar rahe the pres kanfrens",
"to usne jor se bajaya nagaDa",
"ye to mere purkhon ki bhasha hai",
"chura raha hai yunivarsiti ka prophesar",
"dilli vishvavidyalay ki aart faikalti par",
"ek baDe se majme mein mein usne bataya ki baink ka afsar",
"vigyapan ka kaur Dalta hai sampadak ko",
"aur use saal ka behtarin kavi ghoshit kar deta hai",
"ek chitrkar",
"uski patrika men",
"phir holi ke din",
"shahr ke sare kavi sampadak patrakar",
"profesar aur neta",
"andolankari aur muktidata ikaththa hue",
"raja bhi aaya apni laav lashkar ke saath",
"ek jaj ek vakil bhi aaya",
"steno taipist aaye",
"mukarrar ki gai uski saja",
"nagaDchi ko jhonk diya zinda",
"holi ke din holi ki aag men",
"wo jal hi raha tha abhi",
"us par kavita likhi",
"ek ghantavadi kavi ne",
"theek teen mahine baad",
"use diya gaya behtarin kavi ka puraskar",
"aur rajdhani mein kavya sanskriti aise hi panapti rahi.",
"uske paida hone par",
"na saptarshiyon ne ki koi baithak",
"na hi dikha koi tara",
"uttar disha men",
"na hi us din nadi mein ekayek aaya zyada pani.",
"us din to suraj bhi",
"thoDa kam laal uga",
"bilkul bhor mein chiDiyan na bolin",
"sugge to sugge us din kauve bhi alsaye the",
"ek namalum si ghaDi mein janma wo",
"nagaDa banane vale karsaj ke yahan.",
"pata tha use sabse achchha chamDa",
"kis pashu ka hai",
"umr, qad kathi sab pata thi use pashuon ki",
"kis jagah ke chamDe se banta hai juta",
"kahan se nikalti hai mashak",
"kahan ke chamDe se banta hai nagaDa.",
"kahan se nikalti hai gaganbhedi avaz",
"kis chamDe ki banti hai Dhol",
"Dhol kasne ka taant nikalta hai kahan se",
"kahan ke chamDe se banta hai Damru",
"jisse nikalte hain",
"panini ke maheshvar sootr",
"vyakran ke sirje jane se pahle",
"dhvaniyon ke pratham sakshi the uske purkhe.",
"desh ke sare giton ke bol",
"nirdharit hain un vadya yantron se",
"banaye the uske baap dadon ne",
"is mahadvip ki nartakiyon ka lasya",
"Dhol ke un chamDon ka rini hai",
"jo kamaya gaya tha saikDon saal pahle.",
"to hua ek din kya",
"usne banaya nagaDa",
"avaz gunjti paanch kos jiski",
"aur aghan ki ek sard si shaam",
"nagaDchi rajdhani chala aaya.",
"rajdhani mein des ke raja ka ghar tha",
"use laga ki yahi mufid jagah hai",
"virudavali gai jaye uski",
"praja ke sukh bataye jayen",
"dilli ke baDke arthashastri ko bhi",
"des ke haal bataya jaye",
"akhir wo tha des ki gathaon ka aadim sanrakshak",
"vanshakram, kirti",
"sab tha uski jihva par",
"hazaron hazar varsh se uske purkhon ne",
"aise hi surakshit rakha tha itihas",
"itihaskaron ka wo purkha",
"rajdhani mein gane aaya tha des ka itihas.",
"lekin ye kyaa?",
"wo gane laga apne purvjon ke sog",
"sadiyon ke santap nagaDe par bajane laga wo",
"batane laga ki gaanv mein talab mein kiski laash utrai thi",
"pichhle mahine",
"kisne lagai chhappar vale tole mein aag",
"kisne qabza kar liya charagah",
"sab kuch usne sunaya",
"buDhe patrakar ko",
"patrakar keval itna bola",
"tum bolte ho rishiyon ki tarah",
"rajdhani mein bhala unka kya kaam",
"kal aana mere ghar",
"pilaunga fraans ki daru.",
"na to nagaDchi ko fursat thi",
"na buDhe patrakar ko",
"nagaDchi rajdhani nagaDa bajane aaya tha",
"patrakar har milne vale se kahta tha",
"ghar aana",
"nagaDchi uski ankhon ki uushmahinta se jaan gaya tha",
"wo keval use man bahlav ke liye bula raha",
"unhin dinon maagh ke mahine men",
"rajdhani ke dil aur dimagh par kuhra chhaya tha",
"usne senka apna nagaDa ek baar phir",
"rajdhani mein kaath nahin bacha tha",
"wo keval logon ke kaleje mein tha",
"usne taim maigzin ko jala kar hi",
"nagaDe ke marm par lagai chot",
"ab wo shahr ke sahitykaron ki karne laga munadi",
"unka gun roop ras",
"bhasha rupak bhaav",
"sab kuch batane laga",
"nagaDe ki chot par",
"unka sangit aur kala prem",
"uske labharthiyon ki suchi",
"usne batai",
"pichhle saat pushton ki",
"phagun ki sansanati hava",
"nagaDe ki avaz le jane lagi",
"mugal garDen mein ghumte logon tak",
"usne pichhli sadi ke kalektar kavi ke ausatapne ki khol di pol",
"ki usne churai hain kavitayen",
"apne taipist ki",
"ye baat usne nagaDe ki do tanki laga kar kahi",
"manDi haus metro par",
"inDiya intneshnal sentar mein jab vyakran ke panDit",
"ek nai bhasha khoje jane ki kar rahe the pres kanfrens",
"to usne jor se bajaya nagaDa",
"ye to mere purkhon ki bhasha hai",
"chura raha hai yunivarsiti ka prophesar",
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"ek baDe se majme mein mein usne bataya ki baink ka afsar",
"vigyapan ka kaur Dalta hai sampadak ko",
"aur use saal ka behtarin kavi ghoshit kar deta hai",
"ek chitrkar",
"uski patrika men",
"phir holi ke din",
"shahr ke sare kavi sampadak patrakar",
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"raja bhi aaya apni laav lashkar ke saath",
"ek jaj ek vakil bhi aaya",
"steno taipist aaye",
"mukarrar ki gai uski saja",
"nagaDchi ko jhonk diya zinda",
"holi ke din holi ki aag men",
"wo jal hi raha tha abhi",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
स्मिता पाटिल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/smita-patil-dinesh-kushwah-kavita-2?sort= | [
"उसके भीतर एक झरना था",
"कितनी विचित्र बात है",
"एक दिन वह उसमें नहा रही थी",
"लोगों ने देखा",
"देखकर भी नहीं देखा",
"उसकी आँखों का पानी",
"मैना ने कोशिश की",
"कि कैसे गाया जाए पिंजरे का गीत",
"कि लोग",
"आँखों में देखने के आदी हो जाएँ।",
"तब घर के पीछे बँसवारी में",
"हवा साँय-साँय करती थी",
"जब उसने कोयल की नक़ल की थी",
"और चल पड़ी थी बग़ीचे की ओर",
"कि देखा",
"बड़े बरगद के पेड़ पर",
"किस तरह ध्यान लगाकर बैठते हैं गिद्ध",
"पूरे सीवान की थाह लेते हुए।",
"पिटती-लुटती-कुढ़ती स्त्री के रूप में",
"गालियाँ नहीं",
"मंत्र बुदबुदाती थी नैना जोगिन।",
"एक दिन मैंने उससे पूछा",
"बचपन में तुम ज़रूर सुड़कती रही होंगी नाक",
"वह मुस्कुराकर रह गई",
"मैंने कहा",
"जिसने गौतम बुद्ध को खिलाई थी खीर",
"तुम जैसी ही रही होगी वह सुजाता।",
"उसने पूछा",
"पुरुष के मुँह में लगी सिगरेट",
"बढ़कर सुलगा देने वाली लड़की भी",
"क्या इसी तरह आ सकती है इतिहास में?",
"कविता द्रोही भी मानते थे",
"अभिनय करती थी कविता",
"जीवन के रंगमंच पर",
"भीड़ भरी सिटी बसों में।",
"सुनते थे हम प्रसव की पीड़ा के बाद",
"औरत जन्मती है दूसरी बार",
"अभिनेत्री!",
"जीवन के इस अभिशप्त अभिनय के लिए",
"हम तैयार नहीं थे।",
"uske bhitar ek jharna tha",
"kitni wichitr baat hai",
"ek din wo usmen nha rahi thi",
"logon ne dekha",
"dekhkar bhi nahin dekha",
"uski ankhon ka pani",
"maina ne koshish ki",
"ki kaise gaya jaye pinjre ka geet",
"ki log",
"ankhon mein dekhne ke aadi ho jayen",
"tab ghar ke pichhe banswari mein",
"hawa sanya sanya karti thi",
"jab usne koel ki naqal ki thi",
"aur chal paDi thi baghiche ki or",
"ki dekha",
"baDe bargad ke peD par",
"kis tarah dhyan lagakar baithte hain giddh",
"pure siwan ki thah lete hue",
"pitti lutti kuDhti istri ke roop mein",
"galiyan nahin",
"mantr budabudati thi naina jogin",
"ek din mainne usse puchha",
"bachpan mein tum zarur suDakti rahi hongi nak",
"wo muskurakar rah gai",
"mainne kaha",
"jisne gautam buddh ko khilai thi kheer",
"tum jaisi hi rahi hogi wo sujata",
"usne puchha",
"purush ke munh mein lagi cigarette",
"baDhkar sulga dene wali laDki bhi",
"kya isi tarah aa sakti hai itihas mein?",
"kawita drohi bhi mante the",
"abhinay karti thi kawita",
"jiwan ke rangmanch par",
"bheeD bhari city bason mein",
"sunte the hum prasaw ki piDa ke baad",
"aurat janmti hai dusri bar",
"abhinetri!",
"jiwan ke is abhishapt abhinay ke liye",
"hum taiyar nahin the",
"uske bhitar ek jharna tha",
"kitni wichitr baat hai",
"ek din wo usmen nha rahi thi",
"logon ne dekha",
"dekhkar bhi nahin dekha",
"uski ankhon ka pani",
"maina ne koshish ki",
"ki kaise gaya jaye pinjre ka geet",
"ki log",
"ankhon mein dekhne ke aadi ho jayen",
"tab ghar ke pichhe banswari mein",
"hawa sanya sanya karti thi",
"jab usne koel ki naqal ki thi",
"aur chal paDi thi baghiche ki or",
"ki dekha",
"baDe bargad ke peD par",
"kis tarah dhyan lagakar baithte hain giddh",
"pure siwan ki thah lete hue",
"pitti lutti kuDhti istri ke roop mein",
"galiyan nahin",
"mantr budabudati thi naina jogin",
"ek din mainne usse puchha",
"bachpan mein tum zarur suDakti rahi hongi nak",
"wo muskurakar rah gai",
"mainne kaha",
"jisne gautam buddh ko khilai thi kheer",
"tum jaisi hi rahi hogi wo sujata",
"usne puchha",
"purush ke munh mein lagi cigarette",
"baDhkar sulga dene wali laDki bhi",
"kya isi tarah aa sakti hai itihas mein?",
"kawita drohi bhi mante the",
"abhinay karti thi kawita",
"jiwan ke rangmanch par",
"bheeD bhari city bason mein",
"sunte the hum prasaw ki piDa ke baad",
"aurat janmti hai dusri bar",
"abhinetri!",
"jiwan ke is abhishapt abhinay ke liye",
"hum taiyar nahin the",
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रसिकों का मनोरंजन है यह जीवन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/rasikon-ka-manoranjan-hai-ye-jiwan-jyoti-shobha-kavita-25?sort= | [
"इतनी ही व्यर्थ गई मेरी देह",
"बाँसपुकुर की जर्जर साँझ देखते",
"जैसे नष्ट होती थी जामदानी साड़ी लोहे के संदूक़ में",
"जैसे शैशव से सिखाया गया था आदिवासी बालाओं को",
"सुंदर कढ़ाई करने के क़ायदे",
"और ज़्यादा मनुहार न करवाते समर्पण करने के",
"चौमुखी दीप जैसी एक देह के कितने असाध्य प्रेम होंगे",
"कितने दुर्गम होंगे गर्भ में आलोक के नियम",
"अंधकार और कोलाहल में ही बीत गई रात्रि",
"साफ़ मालूम होता बग़ल वाली बाड़ी में रुके हैं बर्मा से आए विद्यार्थी",
"बड़बड़ाती तो भी कौन सुनता,",
"तालु में जम रही है मृत्यु और तुम हो कि हावड़ा ब्रिज पर जड़ी बूटियाँ बेचते हो",
"निमिष भर के स्वाद में जीवन के दाम बताते हो",
"एक आध स्थान ही तो हैं देह में जहाँ मंच लगाया जा सकता है",
"जहाँ खेले जा सकते हैं भारतेंदु के नाटक",
"शेष तो जंगल है जहाँ नदी हो सकती है कूप शायद ही हो",
"इतना सुनते ही लवें तक आरक्त हो जाती तुम्हारी",
"चित्र देखने लगते हो सुचित्रा सेन के",
"कोई अज्ञात कुम्हार की प्रेमिका हो जैसे",
"मेरा कहा बरसता है जैसे जल पर बरसता हो जल",
"कि रसिकों का मनोरंजन है यह जीवन",
"आख़िरकार",
"क्या कविता ही व्यर्थ जाती है इस भरे पूरे शहर में",
"क्या नहीं खोई है मेरी देह",
"जिसे रोज़ ही स्नान करने के बहाने ले जाती हूँ हुगली में",
"फिर भी नहीं मिलती प्रेमी से",
"न धारा लीलती है इसे।",
"itni hi byarth gai meri deh",
"banspukur ki jarjar sanjh dekhte",
"jaise nasht hoti thi jamadani saDi lohe ke sanduq mein",
"jaise shaishaw se sikhaya gaya tha adiwasi balaon ko",
"sundar kaDhai karne ke qayde",
"aur zyada manuhar na karwate samarpan karne ke",
"chaumukhi deep jaisi ek deh ke kitne asadhy prem honge",
"kitne durgam honge garbh mein aalok ke niyam",
"andhkar aur kolahal mein hi beet gai ratri",
"saf malum hota baghal wali baDi mein ruke hain barma se aaye widyarthi",
"baDbaDati to bhi kaun sunta,",
"talu mein jam rahi hai mirtyu aur tum ho ki hawDa bridge par jaDi butiyan bechte ho",
"nimish bhar ke swad mein jiwan ke dam batate ho",
"ek aadh sthan hi to hain deh mein jahan manch lagaya ja sakta hai",
"jahan khele ja sakte hain bhartendu ke natk",
"shesh to jangal hai jahan nadi ho sakti hai koop shayad hi ho",
"itna sunte hi lawen tak arakt ho jati tumhari",
"chitr dekhne lagte ho suchitra sen ke",
"koi agyat kumhar ki premika ho jaise",
"mera kaha barasta hai jaise jal par barasta ho jal",
"ki rasikon ka manoranjan hai ye jiwan",
"akhiraka",
"kya kawita hi byarth jati hai is bhare pure shahr mein",
"kya nahin khoi hai meri deh",
"jise roz hi snan karne ke bahane le jati hoon hugli mein",
"phir bhi nahin milti premi se",
"na dhara lilti hai ise",
"itni hi byarth gai meri deh",
"banspukur ki jarjar sanjh dekhte",
"jaise nasht hoti thi jamadani saDi lohe ke sanduq mein",
"jaise shaishaw se sikhaya gaya tha adiwasi balaon ko",
"sundar kaDhai karne ke qayde",
"aur zyada manuhar na karwate samarpan karne ke",
"chaumukhi deep jaisi ek deh ke kitne asadhy prem honge",
"kitne durgam honge garbh mein aalok ke niyam",
"andhkar aur kolahal mein hi beet gai ratri",
"saf malum hota baghal wali baDi mein ruke hain barma se aaye widyarthi",
"baDbaDati to bhi kaun sunta,",
"talu mein jam rahi hai mirtyu aur tum ho ki hawDa bridge par jaDi butiyan bechte ho",
"nimish bhar ke swad mein jiwan ke dam batate ho",
"ek aadh sthan hi to hain deh mein jahan manch lagaya ja sakta hai",
"jahan khele ja sakte hain bhartendu ke natk",
"shesh to jangal hai jahan nadi ho sakti hai koop shayad hi ho",
"itna sunte hi lawen tak arakt ho jati tumhari",
"chitr dekhne lagte ho suchitra sen ke",
"koi agyat kumhar ki premika ho jaise",
"mera kaha barasta hai jaise jal par barasta ho jal",
"ki rasikon ka manoranjan hai ye jiwan",
"akhiraka",
"kya kawita hi byarth jati hai is bhare pure shahr mein",
"kya nahin khoi hai meri deh",
"jise roz hi snan karne ke bahane le jati hoon hugli mein",
"phir bhi nahin milti premi se",
"na dhara lilti hai ise",
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] |
कला का पहला क्षण - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kala-ka-pahla-kshan-manmohan-kavita?sort= | [
"कई बार आप",
"अपनी कनपटी के दर्द में",
"अकेले छूट जाते हैं",
"और क़लम के बजाय",
"तकिये के नीचे या मेज़ की दराज़ में",
"दर्द की कोई गोली ढूँढ़ते हैं",
"बेशक जो दर्द सिर्फ़ आपका नहीं है",
"लेकिन आप उसे गुज़र न जाने दें",
"यह भी हमेशा मुमकिन नहीं",
"कई बार एक उत्कट शब्द",
"जो कविता के लिए नहीं",
"किसी से कहने के लिए होता है",
"आपके तालू से चिपका होता है",
"और कोई नहीं होता आस-पास",
"कई बार शब्द नहीं",
"कोई चेहरा याद आता है",
"या कोई पुरानी शाम",
"और आप कुछ देर",
"कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए",
"भाई, हर बार रूपक ढूँढ़ना या गढ़ना",
"मुमकिन नहीं होता",
"कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है",
"कि दिल ज़हर में डूबा रहे",
"और आँखें बस कड़वी हो जाएँ",
"kai bar aap",
"apni kanpati ke dard mein",
"akele chhoot jate hain",
"aur qalam ke bajay",
"takiye ke niche ya mez ki daraz mein",
"dard ki koi goli DhunDhate hain",
"beshak jo dard sirf aapka nahin hai",
"lekin aap use guzar na jane den",
"ye bhi hamesha mumkin nahin",
"kai bar ek utkat shabd",
"jo kawita ke liye nahin",
"kisi se kahne ke liye hota hai",
"apke talu se chipka hota hai",
"aur koi nahin hota aas pas",
"kai bar shabd nahin",
"koi chehra yaad aata hai",
"ya koi purani sham",
"aur aap kuch der",
"kahin aur chale jate hain rahne ke liye",
"bhai, har bar rupak DhunDh़na ya gaDhna",
"mumkin nahin hota",
"kai bar sirf itna ho pata hai",
"ki dil zahr mein Duba rahe",
"aur ankhen bus kaDwi ho jayen",
"kai bar aap",
"apni kanpati ke dard mein",
"akele chhoot jate hain",
"aur qalam ke bajay",
"takiye ke niche ya mez ki daraz mein",
"dard ki koi goli DhunDhate hain",
"beshak jo dard sirf aapka nahin hai",
"lekin aap use guzar na jane den",
"ye bhi hamesha mumkin nahin",
"kai bar ek utkat shabd",
"jo kawita ke liye nahin",
"kisi se kahne ke liye hota hai",
"apke talu se chipka hota hai",
"aur koi nahin hota aas pas",
"kai bar shabd nahin",
"koi chehra yaad aata hai",
"ya koi purani sham",
"aur aap kuch der",
"kahin aur chale jate hain rahne ke liye",
"bhai, har bar rupak DhunDh़na ya gaDhna",
"mumkin nahin hota",
"kai bar sirf itna ho pata hai",
"ki dil zahr mein Duba rahe",
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वान गॉग के अंतिम आत्मचित्र से बातचीत - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/wan-gaug-ke-antim-atmchitr-se-batachit-anita-verma-kavita?sort= | [
"एक पुराने परिचित चेहरे परन टूटने की पुरानी चाह थीआँखें बेधक तनी हुई नाकछिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कानदूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी कोव्यापार की दुनिया में वह आदमी प्यार का इंतज़ार करता थामैंने जंगल की आग जैसी उसकी दाढ़ी को छुआउसे थोड़ा-सा क्या किया नहीं जा सकता था कालाआँखें कुछ कोमल कुछ तरलतनी हुई एक हरी नस ज़रा-सा हिली जैसे कहती होजीवन के जलते अनुभवों के बार में क्या जानती हो तुमहम वहाँ चलकर नहीं जा सकतेवहाँ आँखों को चौधियाता हुआ यथार्थ है और अँधेरी हवा हैजन्म लेते हैं सच आत्मा अपने कपड़े उतारती हैऔर हम गिरते हैं वहीं बेदमये आँखें कितनी अलग हैंइनकी चमक भीतर तक उतरती हुई कहती हैप्यार माँगना मूर्खता हैवह सिर्फ़ किया जा सकता हैभूख और दुख सिर्फ़ सहने के लिए हैंमुझे याद आईं विंसेंट वान गॉग की तस्वीरेंविंसेंट नीले या लाल रंग में विंसेंट बुख़ार मेंविंसेंट बिना सिगार या सिगार के साथविंसेंट दुखों के बीच या हरी लपटों वाली आँखों के साथया उसका समुद्र का चेहरामैंने देखा उसके सोने का कमरावहाँ दरवाज़े थेएक से आता था जीवनदूसरे से गुज़रता निकल जाता थावे दोनों कुर्सियाँ अंततः ख़ाली रहींएक काली मुस्कान उसकी तितलियों पर मँडराती थीऔर एक भ्रम जैसी बेचैनीजो पूरी हो जाती थी और बनी रहती थीजिसमें कुछ जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता थाएक शांत पागलपन तारों की तरह चमकता रहा कुछ देरविंसेंट बोला मेरा रास्ता आसान नहीं थामैं चाहता था उसे जो गहराई है और कठिनाई हैजो सचमुच प्यार है अपनी पवित्रता मेंइसलिए मैंने ख़ुद को अकेला कियामुझे यातना देते रहे मेरे अपने रंगइन लकीरों में अन्याय छिपे हैंयह सब एक कठिन शांति तक पहुँचता थापनचक्कियाँ मेरी कमज़ोरी रहींज़रूरी है कि हवा उन्हें चलाती रहेमैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहताआलू खाने वालों* और शराब पीने वालों* के लिए भी नहींमैंने उन्हें जीवन की तरह चाहा हैअलविदा मैंने हाथ मिलाया उससेकहो कुछ हमारे लिए करोकटे होंठों में मुस्कुराते विंसेंट बोलासमय तब भी तारों की तरह बिखरा हुआ थाइस नरक में भी नृत्य करती रही मेरी आत्माफ़सल काटने की मशीन की तरहमैं काटता रहा दुख की फ़सलआत्मा भी एक रंग हैएक प्रकाश भूरा नीलाऔर दुख उसे फैलाता जाता है।__________________________*'पोटैटो ईटर्स', **'ड्रिंकर्स'—वान गॉग के प्रसिद्ध चित्र।",
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नज़्र-ए-अशोक वाजपेयी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/nazr-e-ashok-wajapeyi-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"कविता के भीतर बसे लोक-अलोक-विलोक।कभी तो घुँघरू तोड़ देमना कभी तो शोक॥1॥अंगारों पर नृत्य करआगे बढ़ो अशोक। कविता गोला आग का लोक सके तो लोक॥2॥तेरा रस्ता अलग है मेरा रस्ता और।तू बिरजू महाराज है मैं जंगल का मोर॥3॥मैं मरुधर की रेत हूँ तू सागर की सीप।ऐसी कविता फिर कहाँ टीप सके तो टीप॥4॥नावक के तीर-2",
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कविता कहते हुए - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kawita-kahte-hue-shailendra-sahu-kavita?sort= | [
"मै कुछ नहीं सोचते हुए",
"किसी हरे जंगल को घोंट कर",
"पी जाना चाहता हूँ",
"जैसे वॉन गॉग कभी-कभी",
"ताज़ा घोल कर रखे हुए रंग गटक जाता था",
"समूचे आसमान को निचोड़ कर",
"इकठ्ठा हुए नीले रंग से",
"कुल्ला, शौच और नहाने जैसे",
"ज़रूरी",
"(या ग़ैरज़रूरी)",
"काम निपटाना चाहता हूँ",
"कि सुथरा लगूँ",
"और चूँकि कहने को मेरे पास कुछ भी नहीं है",
"इस मारे ही अपनी सभी चुप्पियों को चुन कर",
"एक चीख़ की तरह कुछ बुनता हूँ",
"और उसे कविता कहते हुए",
"सूरजमुखी लिखता हूँ।",
"mai kuch nahin sochte hue",
"kisi hare jangal ko ghont kar",
"pi jana chahta hoon",
"jaise waun gaug kabhi kabhi",
"taza ghol kar rakhe hue rang gatak jata tha",
"samuche asman ko nichoD kar",
"ikaththa hue nile rang se",
"kulla, shauch aur nahane jaise",
"zaruri",
"(ya ghairazruri)",
"kaam niptana chahta hoon",
"ki suthra lagun",
"aur chunki kahne ko mere pas kuch bhi nahin hai",
"is mare hi apni sabhi chuppion ko chun kar",
"ek cheekh ki tarah kuch bunta hoon",
"aur use kawita kahte hue",
"surajmukhi likhta hoon",
"mai kuch nahin sochte hue",
"kisi hare jangal ko ghont kar",
"pi jana chahta hoon",
"jaise waun gaug kabhi kabhi",
"taza ghol kar rakhe hue rang gatak jata tha",
"samuche asman ko nichoD kar",
"ikaththa hue nile rang se",
"kulla, shauch aur nahane jaise",
"zaruri",
"(ya ghairazruri)",
"kaam niptana chahta hoon",
"ki suthra lagun",
"aur chunki kahne ko mere pas kuch bhi nahin hai",
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"ek cheekh ki tarah kuch bunta hoon",
"aur use kawita kahte hue",
"surajmukhi likhta hoon",
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मक़बूल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/maqbul-armaan-anand-kavita?sort= | [
"फ़िल्म के पोस्टर बनाता था",
"एक लड़का",
"मुंबई की सड़कों पर",
"सीढ़ियाँ लगाकर लेई से पोस्टर के चौकोर हिस्से",
"आपस में चिपकाया करता था",
"जैसे आकाश पर चाँद सितारे चिपका रहा हो",
"और फिर सबसे आँखें बचाकर",
"नीले कोरे समंदर पर बादल से उड़ते",
"घोड़ों की हिनहिनाहट लेप देता",
"गर्द उड़ाते हवा से बातें करते",
"शानदार अरबी घोड़े",
"और उनकी पीठ पर हिंदुस्तानी कहानियाँ चिपकी होतीं",
"कैनवास पर उभरते बदन के पेचोख़म को",
"उसके हाथ यूँ तराशते जैसे",
"ग़ुलाम अली की कोई ग़ज़ल चल रही हो",
"रूई की तरह सफ़ेद झक्क",
"अमिताभ कट वाले बाल",
"गोल चश्मा",
"कुरतेबाज़ बदन",
"कूचियों में उलझी लंबी उँगलियाँ",
"और ख़ाली खुले पैर",
"जाने क्या ज़िद थी",
"उसकी अम्मी बचपन में गुज़र गई थीं",
"वह जब भी आकाश से उतरता",
"भागती गोल धरती को कैनवास-सा बिछा देता",
"और देर तक",
"गोल-गोल रेखाएँ खींचता",
"और इन सबसे ऊब जाता",
"तो भीमसेन की आवाज़ पर रंगों का डब्बा उड़ेल देता",
"कहते हैं एक दिन किसी ने उसकी कूचियाँ चुरा लीं",
"और रंगों का वह रूठा बादशाह",
"अपने ही अरबी घोड़े पर बैठकर कहीं दूर चला गया",
"भला कोई किसी से उसकी माँ दो बार कैसे छीन सकता है",
"लेकिन उसके साथ ऐसा ही हुआ",
"अब वह भी दूर तक बिछे रेत में",
"गोल-गोल आकृतियाँ बनाता है",
"उन गोलाइयों के बीच मादरे-हिंद की याद में",
"बिलखता प्यासे रेगिस्तान के होंठ",
"अपने आँसुओं से तर करता है",
"मक़बूल फ़िदा हुसैन",
"वह शख़्स जिसने हिंदुस्तान का नाम",
"पूरी दुनिया में मक़बूल किया",
"हिंदुस्तानी उसे सिवा नफ़रतों के कुछ नहीं दे पाए",
"film ke postar banata tha",
"ek laDka",
"mumbii ki saDkon par",
"siDhiyan laga kar loiyon se postar ke chaukor hisse aapas mein chipkaya karta tha",
"jaise akash par chaand sitare chipka raha ho",
"aur phir sabse ankhen bachakar",
"nile kore samandar par badal se uDte ghoDon ki hinhinahat lep deta",
"gard uDate hava se baten karte",
"shanadar arbi ghoDe",
"aur unki peeth par hindustani kahaniyan chipki hotin",
"kainvas par ubharte badan ke pechon kham ko uske haath yoon tarashte jaise",
"ghulam ali ki koi ghazal chal rahi ho",
"ruiyon ki tarah safed jhakk",
"amitabh kat vale baal",
"gol chashma",
"kurtebaz badan",
"kuchiyon mein uljhi lambi ungliyan",
"aur",
"khali khule pair",
"jane kya zid thi",
"uski ammi bachpan mein guzar gain theen",
"wo jab bhi akash se utarta",
"bhagti gol dharti ko kainvas sa bichha deta",
"aur der tak",
"gol gol rekhayen khinchta",
"aur in sabse uub jata",
"to bhimasen ki avaj par rangon ka Dabba uDel deta",
"kahte hain ek din kisi ne uski kuchiyan chura leen",
"aur rangon ka wo rutha badashah apne hi arbi ghoDe par baith kar kahin door chala gaya",
"bhala koi kisi se uski maan do baar kaise chheen sakta hai",
"lekin uske saath aisa hi hua",
"ab wo bhi door tak bichhe ret mein",
"gol gol akritiyan banata hai",
"un golaiyon ke beech madre hind ki yaad mein bilakhta pyase registan ke hoth apne ansuon se tar karta hai",
"maqbul fida husain",
"ek wo shakhs jisne hindustan ka naam puri duniya mein maqbul kiya",
"hindustani use siva napharton ke kuch nahin de pae",
"film ke postar banata tha",
"ek laDka",
"mumbii ki saDkon par",
"siDhiyan laga kar loiyon se postar ke chaukor hisse aapas mein chipkaya karta tha",
"jaise akash par chaand sitare chipka raha ho",
"aur phir sabse ankhen bachakar",
"nile kore samandar par badal se uDte ghoDon ki hinhinahat lep deta",
"gard uDate hava se baten karte",
"shanadar arbi ghoDe",
"aur unki peeth par hindustani kahaniyan chipki hotin",
"kainvas par ubharte badan ke pechon kham ko uske haath yoon tarashte jaise",
"ghulam ali ki koi ghazal chal rahi ho",
"ruiyon ki tarah safed jhakk",
"amitabh kat vale baal",
"gol chashma",
"kurtebaz badan",
"kuchiyon mein uljhi lambi ungliyan",
"aur",
"khali khule pair",
"jane kya zid thi",
"uski ammi bachpan mein guzar gain theen",
"wo jab bhi akash se utarta",
"bhagti gol dharti ko kainvas sa bichha deta",
"aur der tak",
"gol gol rekhayen khinchta",
"aur in sabse uub jata",
"to bhimasen ki avaj par rangon ka Dabba uDel deta",
"kahte hain ek din kisi ne uski kuchiyan chura leen",
"aur rangon ka wo rutha badashah apne hi arbi ghoDe par baith kar kahin door chala gaya",
"bhala koi kisi se uski maan do baar kaise chheen sakta hai",
"lekin uske saath aisa hi hua",
"ab wo bhi door tak bichhe ret mein",
"gol gol akritiyan banata hai",
"un golaiyon ke beech madre hind ki yaad mein bilakhta pyase registan ke hoth apne ansuon se tar karta hai",
"maqbul fida husain",
"ek wo shakhs jisne hindustan ka naam puri duniya mein maqbul kiya",
"hindustani use siva napharton ke kuch nahin de pae",
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बैजू बावरा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/baiju-bawra-yatindra-mishra-kavita?sort= | [
"तुम्हारे पास नहीं थी दरबार में घुसने की कला",
"और बादशाह को असीसने वाली बंदिशें",
"तुम्हारा गला फँसता था",
"चापलूसी से गूँजने वाली तहरीरें सुनकर",
"और बेवजह ही ज़रदोज़ी वाली क़ालीनों पर",
"राग की बढ़त देखकर",
"तुम नहीं गाते थे",
"किसी अभियान का मंगलगान",
"और राजकुमारों के लिए सलोनी मुबारकबादियाँ",
"फिर भी तुम थे और इतिहास को",
"इस बात की ख़बर थी",
"कोई है जिसके शब्द और स्वर",
"उसकी बेपरवाह तंग गलियों से गुज़रकर भी",
"बादशाह के महलों तक पहुँच जाया करते थे",
"और जिसकी करुणा भरी आवाज़ में",
"रागिनियाँ पूरे भरोसे के साथ वज़ू करती थीं",
"इतिहास को यह भी मालूम था",
"तुम्हारी सुर ख़ानक़ाह में",
"यह संगीत ही था",
"जिसकी ताजपोशी होती थी बार-बार",
"और तुम्हारे अपने ही स्वर",
"सजाते थे सुर का तोरण",
"बजाते थे लय की दुंदुभी",
"यह तुम थे बैजू",
"जिससे इतिहास को कई दफ़ा",
"और कई बार संगीत को भी",
"ख़ुद को सुधारने का बहाना मिलता था",
"और दमकते हुए सूर्य को इस बात की आश्वस्ति",
"कि वह सुर के चेहरों पर भी",
"उजाले का प्रशस्त राग गा सकता था।",
"tumhare pas nahin thi darbar mein ghusne ki kala",
"aur badashah ko asisne wali bandishen",
"tumhara gala phansta tha",
"chaplusi se gunjne wali tahriren sunkar",
"aur bewajah hi zardozi wali qalinon par",
"rag ki baDhat dekhkar",
"tum nahin gate the",
"kisi abhiyan ka mangalgan",
"aur rajakumaron ke liye saloni mubarakbadiyan",
"phir bhi tum the aur itihas ko",
"is baat ki khabar thi",
"koi hai jiske shabd aur swar",
"uski beparwah tang galiyon se guzarkar bhi",
"badashah ke mahlon tak pahunch jaya karte the",
"aur jiski karuna bhari awaz mein",
"raginiyan pure bharose ke sath wazu karti theen",
"itihas ko ye bhi malum tha",
"tumhari sur khanqah mein",
"ye sangit hi tha",
"jiski tajaposhi hoti thi bar bar",
"aur tumhare apne hi swar",
"sajate the sur ka toran",
"bajate the lai ki dundubhi",
"ye tum the baiju",
"jisse itihas ko kai dafa",
"aur kai bar sangit ko bhi",
"khu ko sudharne ka bahana milta tha",
"aur damakte hue surya ko is baat ki ashwasti",
"ki wo sur ke chehron par bhi",
"ujale ka prashast rag ga sakta tha",
"tumhare pas nahin thi darbar mein ghusne ki kala",
"aur badashah ko asisne wali bandishen",
"tumhara gala phansta tha",
"chaplusi se gunjne wali tahriren sunkar",
"aur bewajah hi zardozi wali qalinon par",
"rag ki baDhat dekhkar",
"tum nahin gate the",
"kisi abhiyan ka mangalgan",
"aur rajakumaron ke liye saloni mubarakbadiyan",
"phir bhi tum the aur itihas ko",
"is baat ki khabar thi",
"koi hai jiske shabd aur swar",
"uski beparwah tang galiyon se guzarkar bhi",
"badashah ke mahlon tak pahunch jaya karte the",
"aur jiski karuna bhari awaz mein",
"raginiyan pure bharose ke sath wazu karti theen",
"itihas ko ye bhi malum tha",
"tumhari sur khanqah mein",
"ye sangit hi tha",
"jiski tajaposhi hoti thi bar bar",
"aur tumhare apne hi swar",
"sajate the sur ka toran",
"bajate the lai ki dundubhi",
"ye tum the baiju",
"jisse itihas ko kai dafa",
"aur kai bar sangit ko bhi",
"khu ko sudharne ka bahana milta tha",
"aur damakte hue surya ko is baat ki ashwasti",
"ki wo sur ke chehron par bhi",
"ujale ka prashast rag ga sakta tha",
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मेरी कविता - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/meri-kawita-devarakonda-bala-gangadhar-tilak-kavita?sort= | [
"अनुवाद : शशी मुदीराज",
"मेरा कवित्व, नहीं है एकतत्व",
"और तुम जिसे कहते हो मनस्तत्व—",
"वह भी नहीं",
"धनियों का वाद नहीं",
"साम्यवाद भी नहीं",
"नहीं है यह अस्पष्टता की कला",
"बिल्लौरी लहरों के ज्योत्सना समुद्र",
"चमेली के गंध-दीप",
"मंत्रलोक मणिस्तंभ",
"मेरी कविता चंदनघर के सुंदर चित्र।",
"अगाध पीड़ा-जल के पाखी",
"शहीदों की कटी हुई रक्त-शिराएँ",
"त्यागशक्ति, प्रेमानुरक्ति, शांति-सूक्ति",
"मेरी कला तलवारों की झनझनाहट।",
"मेरे अक्षर आँसुओं की झड़ी में भीगे करुणाकपोत",
"मेरे अक्षर प्रजाशक्तियों को वहन करते विजय-ऐरावत",
"मेरे अक्षर चाँदनी में क्रीड़ा करती सुंदर सुकुमारियाँ।",
"mera kawitw, nahin hai ektatw",
"aur tum jise kahte ho manastatw—",
"wo bhi nahin",
"dhaniyon ka wad nahin",
"samyawad bhi nahin",
"nahin hai ye aspashtta ki kala",
"billauri lahron ke jyotsna samudr",
"chameli ke gandh deep",
"mantrlok manistambh",
"meri kawita chandanghar ke sundar chitr",
"agadh piDa jal ke pakhi",
"shahidon ki kati hui rakt shirayen",
"tyagshakti, premanurakti, shanti sukti",
"meri kala talwaron ki jhanajhnahat",
"mere akshar ansuon ki jhaDi mein bhige karunakpot",
"mere akshar prjashaktiyon ko wahn karte wijay airawat",
"mere akshar chandni mein kriDa karti sundar sukumariyan",
"mera kawitw, nahin hai ektatw",
"aur tum jise kahte ho manastatw—",
"wo bhi nahin",
"dhaniyon ka wad nahin",
"samyawad bhi nahin",
"nahin hai ye aspashtta ki kala",
"billauri lahron ke jyotsna samudr",
"chameli ke gandh deep",
"mantrlok manistambh",
"meri kawita chandanghar ke sundar chitr",
"agadh piDa jal ke pakhi",
"shahidon ki kati hui rakt shirayen",
"tyagshakti, premanurakti, shanti sukti",
"meri kala talwaron ki jhanajhnahat",
"mere akshar ansuon ki jhaDi mein bhige karunakpot",
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कला अनुभव - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kala-anubhaw-rituraj-kavita-1?sort= | [
"एकआस-पास कोई भी चित्र नहीं है अमृता शेरगिल का सिर ढके कातर आँखों वालीं अँधेरे की स्याही में लिपटीं औरतें नहीं हैंसुपर बाज़ार की शेल्फ़ों से विदेशी परफ़्यूम लपकती कोई हैं नई रानियाँ रवि वर्मा की जो प्लेटिनम और हीरों से सजीं हिंसा और प्रेम की कथा गाती फ़िल्म देखने बैठी हैं हुसैन के भारी-भरकम काष्ठ चेहरे यहाँ बदली हुई शक्लों में बहुरुपिए बनकर बाज़ार भ्रमण को निकले हैं भूपेन की तंग गली के मकान की खिड़कियों से झाँकते हँसते-बिसूरते शिशु चेहरे भी नहीं हैं सॉफ़्टी, पित्ज़ा, फ़्रेच-फ़्राइज़ खाते बेडौल मोटे बच्चे वीडियो खेल के लिए कंप्यूटर की ख़ाली सीट के इंतज़ार में खड़े हैं बहुत पीछे छूट गई है धूल और दया बहुत पीछे छूट गए हैं अँधेरे में धूमिल प्रकाश के बीच महाभारत देखते लोग यहाँ स्वामीनाथन की वह चिड़िया कभी-कभी तितलियों की तलाश में आया करती थीलेकिन दो उल्लुओं ने जब से यहाँ बैठना शुरू किया है वह ग़ायब हो गई हैलकड़ी के काले तख़्तों से चिने हुए शिकारे नहीं खड़े हैं नदी में इसलिए यहाँ रामकुमार भी नहीं हैं आठ-दस मंज़िला इमारतों के स्वर्ग की ओट में चाँद छिपा खड़ा है सूरज दूसरी तरफ़ से बाँहों में कस रहा है पानी की टंकियों को मानो छत पर लड़ाई चल रही हो पानी और प्रकाश के लिए एक बहुत बड़े जूते में रखे मोबाइल के लिए चिंचलांकर यहाँ क्यों आएँगे जूट से बने झूले की जगह यहाँ रोप-वे जो है जीवन की सपाट सतह को लुभावनी रखने के लिए अनेक सौंदर्य प्रसाधन हैं लेकिन कटी-पिटी खरोंचें भरी आत्मा की मूरत पर अनंत अतृप्ति की व्याकुलता है शायद अभी तक यहाँ रवींद्र की बूढ़ी छाया सँवलाई धूप में ठहरी है दोभिन्न-भिन्न कला वस्तुएँ इतनी भिन्न तो नहीं हैं उनमें व्यर्थता का भाव लगभग एक जैसा है उनके प्रशंसक ख़रीदार समान हैसियत के लोग हैं वे जो बैंकों से मोटी रक़म उधार लेकर अपनी पूँजी बढ़ा रहे हैं बीच के रास्ते से निकलते हुए हाशिए के लोगों पर दयादृष्टि डाल रहे हैं ऐसे करोड़ों लोगों के वास्ते जीवनयापन के न्यूनतम साधन उपलब्ध करवा रहे हैं फिर भी इन वस्तुओं पर अलग-अलग नाम क्यों लिखे हैं हाशिए के व्यक्तियों को हाशिए पर नाम लिखने में शायद लज्जा आई होगी शायद नाम को संक्षिप्त करते वक़्त ख़ुद को बहुत लघु समझा होगा हो सकता है वस्तुओं के खेल में यह मात्र प्रपंच हो शायद यह नाम और वस्तु और उपभोक्ता के बीच में एक आध्यात्मिक संवाद का संचार हो क्योंकि उसकी क्रय-शक्ति नाम को कैसा भी अर्थ दे सकती है तीन‘प्रिय दर्शक, ये कला वस्तुएँ नहीं हैं मेरे अंग हैं मेरे नाम के अभिप्रेत जिन्हें किसी समुद्री तूफ़ान में फँसी नौका पर सवार नहीं होना है बल्कि भव्य राजसी प्रासादों के सुसज्जित सर्वतोभद्रों पाँच सितारा होटलों की शोभा बढ़ानी हैकाश, ये सब मेरे बच्चे होते जिन्हें वहाँ मेरी प्रशंसा सुनने का अवसर मिलता काश, मेरे पास फ़िरौती के लिए इतनी पूँजी होती कि इन बंधकों को उन हृदयहीनों से मुक्त करा पाता’",
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संगतकार - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/sangatkaar-manglesh-dabral-kavita?sort= | [
"मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती",
"वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी",
"वह मुख्य गायक का छोटा भाई है",
"या उसका शिष्य",
"या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार",
"मुख्य गायक की गरज में",
"वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से",
"गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में",
"खो चुका होता है",
"या अपने ही सरगम को लाँघकर",
"चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में",
"तब संगतकार ही स्थाई को सँभाले रहता है",
"जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान",
"जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन",
"जब वह नौसिखिया था",
"तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला",
"प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ",
"आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ",
"तभी मुख्य गायक हो ढाढ़स बंधाता",
"कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर",
"कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ",
"यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है",
"और यह कि फिर से गाया जा सकता है",
"गाया जा चुका राग",
"और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है",
"यों अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है",
"उसे विफलता नहीं",
"उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।",
"mukhy gayak ke chattan jaise bhari svar ka saath deti",
"wo avaz sundar kamzor kanpti hui thi",
"wo mukhy gayak ka chhota bhai hai",
"ya uska shishya",
"ya paidal chalkar sikhne aane vala door ka koi rishtedar",
"mukhy gayak ki garaj men",
"wo apni goonj milata aaya hai prachin kaal se",
"gayak jab antre ki jatil tanon ke jangal men",
"kho chuka hota hai",
"ya apne hi sargam ko langhakar",
"chala jata hai bhatakta hua ek anhad men",
"tab sangatkar hi sthai ko sambhale rahta hai",
"jaise sametta ho mukhy gayak ka pichhe chhuta hua saman",
"jaise use yaad dilata ho uska bachpan",
"jab wo nausikhiya tha",
"tarasaptak mein jab baithne lagta hai uska gala",
"prerna saath chhoDti hui utsaah ast hota hua",
"avaz se raakh jaisa kuch girta hua",
"tabhi mukhy gayak ho DhaDhas bandhata",
"kahin se chala aata hai sangatkar ka svar",
"kabhi kabhi wo yon hi de deta hai uska saath",
"ye batane ke liye ki wo akela nahin hai",
"aur ye ki phir se gaya ja sakta hai",
"gaya ja chuka raag",
"aur uski avaz mein jo ek hichak saaf sunai deti hai",
"yon apne svar ko uncha na uthane ki jo koshish hai",
"use viphalta nahin",
"uski manushyata samjha jana chahiye.",
"mukhy gayak ke chattan jaise bhari svar ka saath deti",
"wo avaz sundar kamzor kanpti hui thi",
"wo mukhy gayak ka chhota bhai hai",
"ya uska shishya",
"ya paidal chalkar sikhne aane vala door ka koi rishtedar",
"mukhy gayak ki garaj men",
"wo apni goonj milata aaya hai prachin kaal se",
"gayak jab antre ki jatil tanon ke jangal men",
"kho chuka hota hai",
"ya apne hi sargam ko langhakar",
"chala jata hai bhatakta hua ek anhad men",
"tab sangatkar hi sthai ko sambhale rahta hai",
"jaise sametta ho mukhy gayak ka pichhe chhuta hua saman",
"jaise use yaad dilata ho uska bachpan",
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"ye batane ke liye ki wo akela nahin hai",
"aur ye ki phir se gaya ja sakta hai",
"gaya ja chuka raag",
"aur uski avaz mein jo ek hichak saaf sunai deti hai",
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संपादक को पत्र - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/sampadak-ko-patr-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"बेकार गई मेरी कला",
"उसका नहीं बना आईना",
"वह दूसरों के काम नहीं आ सकी",
"मेरे जूते फट गए",
"मेरी नौकरी छूट गई",
"मैं तहख़ाने में पड़ा रहा",
"लड़ाई के इंतज़ार में",
"मैं इतना घबराया हुआ था कि",
"ठीक-ठीक कुछ कह भी नहीं सका",
"यह भी नहीं कि अब नहीं होता बर्दाश्त",
"जिन्हें छीलनी चाहिए थी घास",
"मैंने ऐसे मुख्यमंत्रियों को बर्दाश्त किया",
"मेरी आत्मा पर जमेगी फँफूद",
"मेरा शरीर बर्फ़ की सिल्लियों पर गलेगा",
"क्योंकि मैंने किया बर्दाश्त",
"संपादक जी!",
"मुझे खेद है कि आपके आग्रह पर",
"कलाओं के अंतर्संबंधों का",
"विशद विवेचन मैं नहीं कर सकूँगा",
"अभी मैं एक गुत्थी सुलझा रहा हूँ",
"जो लोग तोपख़ाने की चाबियाँ तलाश कर रहे हैं",
"वे कैसे चला पाएँगे तोप!",
"bekar gai meri kala",
"uska nahin bana aina",
"wo dusron ke kaam nahin aa saki",
"mere jute phat gaye",
"meri naukari chhoot gai",
"main tahkhane mein paDa raha",
"laDai ke intzar mein",
"main itna ghabraya hua tha ki",
"theek theek kuch kah bhi nahin saka",
"ye bhi nahin ki ab nahin hota bardasht",
"jinhen chhilni chahiye thi ghas",
"mainne aise mukhymantriyon ko bardasht kiya",
"meri aatma par jamegi phanphud",
"mera sharir barf ki silliyon par galega",
"kyonki mainne kiya bardasht",
"sampadak jee!",
"mujhe khed hai ki aapke agrah par",
"kalaon ke antarsambandhon ka",
"wishad wiwechan main nahin kar sakunga",
"abhi main ek gutthi suljha raha hoon",
"jo log topkhane ki chabiyan talash kar rahe hain",
"we kaise chala payenge top!",
"bekar gai meri kala",
"uska nahin bana aina",
"wo dusron ke kaam nahin aa saki",
"mere jute phat gaye",
"meri naukari chhoot gai",
"main tahkhane mein paDa raha",
"laDai ke intzar mein",
"main itna ghabraya hua tha ki",
"theek theek kuch kah bhi nahin saka",
"ye bhi nahin ki ab nahin hota bardasht",
"jinhen chhilni chahiye thi ghas",
"mainne aise mukhymantriyon ko bardasht kiya",
"meri aatma par jamegi phanphud",
"mera sharir barf ki silliyon par galega",
"kyonki mainne kiya bardasht",
"sampadak jee!",
"mujhe khed hai ki aapke agrah par",
"kalaon ke antarsambandhon ka",
"wishad wiwechan main nahin kar sakunga",
"abhi main ek gutthi suljha raha hoon",
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मेरा मिथ्यालय - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/mera-mithyalay-ajanta-dev-kavita?sort= | [
"आमंत्रण निमंत्रण नहीं",
"अनायास खींच लेना है अपनी ओर",
"मेरा मिथ्यालय",
"श्रेष्ठ जनों के बीच",
"यहीं रच जाता है",
"कलाओं का महारास",
"मेरे द्वार कभी बंद नहीं होते",
"ये खुले रहेंगे",
"तुम्हारे जाने के बाद भी।",
"amantran nimantran nahin",
"anayas kheench lena hai apni or",
"mera mithyalay",
"shreshth janon ke beech",
"yahin rach jata hai",
"kalaon ka maharas",
"mere dwar kabhi band nahin hote",
"ye khule rahenge",
"tumhare jane ke baad bhi",
"amantran nimantran nahin",
"anayas kheench lena hai apni or",
"mera mithyalay",
"shreshth janon ke beech",
"yahin rach jata hai",
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कला के हथियार - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kala-ke-hathiyar-ravindra-swapnil-prajapati-kavita?sort= | [
"मैं विज्ञापनों के पहाड़ों में गुम हो रहा हूँ",
"किसी इंसान को घेरना कला हो सकती है",
"कितना बड़ा मज़ाक़ है हथियार भी कला हो गए",
"मेरे चारों तरफ़ घेर कर रख दिया गया है",
"कला ख़ुद की स्वतंत्रता का रेखांकन है",
"जहाँ किसी भी चीज़ को एक के साथ एक फ़्री",
"नहीं टिपाया जा सकता",
"हर रंगीन अक्षर भी कला का हिस्सा नहीं हो सकता",
"लिख कर जो पूरी धरती पर टाँगते जा रहे हो",
"वे सारे साइनबोर्ड और पंच लाइनें कला नहीं हो सकतीं",
"इस रोशनी के पीछे कितना कुछ है जो मुझे कहना है और",
"कितना कुछ है जो तुमको अभी भी करना बाक़ी है।",
"main wigyapnon ke pahaDon mein gum ho raha hoon",
"kisi insan ko gherna kala ho sakti hai",
"kitna baDa mazaq hai hathiyar bhi kala ho gaye",
"mere charon taraf gher kar rakh diya gaya hai",
"kala khu ki swtantrta ka rekhankan hai",
"jahan kisi bhi cheez ko ek ke sath ek fre",
"nahin tipaya ja sakta",
"har rangin akshar bhi kala ka hissa nahin ho sakta",
"likh kar jo puri dharti par tangate ja rahe ho",
"we sare sainborD aur panch lainen kala nahin ho saktin",
"is roshni ke pichhe kitna kuch hai jo mujhe kahna hai aur",
"kitna kuch hai jo tumko abhi bhi karna baqi hai",
"main wigyapnon ke pahaDon mein gum ho raha hoon",
"kisi insan ko gherna kala ho sakti hai",
"kitna baDa mazaq hai hathiyar bhi kala ho gaye",
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"kala khu ki swtantrta ka rekhankan hai",
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"nahin tipaya ja sakta",
"har rangin akshar bhi kala ka hissa nahin ho sakta",
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कला ऐसे ही मरती है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kala-aise-hi-marti-hai-achyutanand-mishra-kavita-1?sort= | [
"चेहरे पर भय करुणा",
"दुःख और विषाद के साथ",
"थोड़ी तड़प और ज़्यादा बेचैनी",
"मिलाती हुई वह",
"लालबत्ती पर खड़ी",
"हर गाड़ी पर देती है दस्तक",
"ज़िंदगी के बंद किवाड़ों से",
"नहीं आती कोई आवाज़",
"आँखें मिलती नहीं",
"होंठ हिलते नहीं",
"गोया कटे गर्दन से छूटते",
"लहू के फ़व्वारे की तरह तेज़",
"भागती हैं गाड़ियाँ",
"कुछ भी रुक नहीं रहा",
"समुद्र पी रहा है अपना जल",
"आसमान सोख रहा है",
"अपना निचाटपन",
"धर्मग्रंथों का कोई शब्द",
"नहीं फूटता बम की तरह",
"हालाँकि इस क्षण भी",
"मिट्टी ने सोखा होगा",
"कुछ बूँद जल",
"सुदूर किसी चिड़िया की",
"आँख खुली होगी",
"एक सूखे पत्ते ने वृक्ष को अंतिम",
"बार छुआ होगा",
"एक बच्चे ने कसकर",
"भींचा होगा माँ की उँगलियों को",
"मरते हुए शख़्स ने चखा होगा",
"ऑक्सीजन का स्वाद आख़िरी बार",
"यह सब कुछ दुहराया",
"जाएगा बार-बार",
"जीवन और अभिनय के बीच",
"एक चिड़िया छोड़ जाएगी एक तिनका",
"वहाँ लालबत्ती पर",
"कोई ढूँढ़ेगा जीवन",
"कोई ढूँढ़ेगा करुणा",
"कोई प्यार कोई घृणा",
"कला ऐसे ही मरती है",
"जीवन ऐसे ही बचता है",
"chehre par bhay karuna",
"duःkh aur wishad ke sath",
"thoDi taDap aur zyada bechaini",
"milati hui wo",
"lalbatti par khaDi",
"har gaDi par deti hai dastak",
"zindagi ke band kiwaDon se",
"nahin aati koi awaz",
"ankhen milti nahin",
"honth hilte nahin",
"goya kate gardan se chhutte",
"lahu ke fawware ki tarah tez",
"bhagti hain gaDiyan",
"kuch bhi ruk nahin raha",
"samudr pi raha hai apna jal",
"asman sokh raha hai",
"apna nichatpan",
"dharmagranthon ka koi shabd",
"nahin phutta bam ki tarah",
"halanki is kshan bhi",
"mitti ne sokha hoga",
"kuch boond jal",
"sudur kisi chiDiya ki",
"ankh khuli hogi",
"ek sukhe patte ne wriksh ko antim",
"bar chhua hoga",
"ek bachche ne kaskar",
"bhincha hoga man ki ungliyon ko",
"marte hue shakhs ne chakha hoga",
"oxygen ka swad akhiri bar",
"ye sab kuch duhraya",
"jayega bar bar",
"jiwan aur abhinay ke beech",
"ek chiDiya chhoD jayegi ek tinka",
"wahan lalbatti par",
"koi DhunDhega jiwan",
"koi DhunDhega karuna",
"koi pyar koi ghrina",
"kala aise hi marti hai",
"jiwan aise hi bachta hai",
"chehre par bhay karuna",
"duःkh aur wishad ke sath",
"thoDi taDap aur zyada bechaini",
"milati hui wo",
"lalbatti par khaDi",
"har gaDi par deti hai dastak",
"zindagi ke band kiwaDon se",
"nahin aati koi awaz",
"ankhen milti nahin",
"honth hilte nahin",
"goya kate gardan se chhutte",
"lahu ke fawware ki tarah tez",
"bhagti hain gaDiyan",
"kuch bhi ruk nahin raha",
"samudr pi raha hai apna jal",
"asman sokh raha hai",
"apna nichatpan",
"dharmagranthon ka koi shabd",
"nahin phutta bam ki tarah",
"halanki is kshan bhi",
"mitti ne sokha hoga",
"kuch boond jal",
"sudur kisi chiDiya ki",
"ankh khuli hogi",
"ek sukhe patte ne wriksh ko antim",
"bar chhua hoga",
"ek bachche ne kaskar",
"bhincha hoga man ki ungliyon ko",
"marte hue shakhs ne chakha hoga",
"oxygen ka swad akhiri bar",
"ye sab kuch duhraya",
"jayega bar bar",
"jiwan aur abhinay ke beech",
"ek chiDiya chhoD jayegi ek tinka",
"wahan lalbatti par",
"koi DhunDhega jiwan",
"koi DhunDhega karuna",
"koi pyar koi ghrina",
"kala aise hi marti hai",
"jiwan aise hi bachta hai",
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कहानी का एक पात्र - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kahani-ka-ek-patr-harishchandra-pande-kavita?sort= | [
"मैंने लिखी एक कहानी",
"उसका एक पात्र मनोहर",
"पात्र तो बहुत थे, मगर",
"सबके पास कुछ न कुछ काम थे करने को",
"मनोहर को कहानी भर नहीं दे पाया मैं कोई काम",
"भूल ही गया उसे",
"आप किसी को अपने रचना-संसार में लाएँ",
"और कोई काम न दे पाएँ",
"कितनी लज्जा की बात है",
"मुझे दुबारा लिखनी है यह कहानी",
"mainne likhi ek kahani",
"uska ek patr manohar",
"patr to bahut the, magar",
"sabke pas kuch na kuch kaam the karne ko",
"manohar ko kahani bhar nahin de paya main koi kaam",
"bhool hi gaya use",
"ap kisi ko apne rachna sansar mein layen",
"aur koi kaam na de payen",
"kitni lajja ki baat hai",
"mujhe dubara likhni hai ye kahani",
"mainne likhi ek kahani",
"uska ek patr manohar",
"patr to bahut the, magar",
"sabke pas kuch na kuch kaam the karne ko",
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कलाकार की दुनिया - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kalakar-ki-duniya-nirmala-garg-kavita-11?sort= | [
"देह की अपनी एक भाषा होती है",
"पीड़ा की भी अपनी एक भाषा होती है",
"हम सब भाषाएँ भूलते जा रहे हैं",
"कलाकार याद रखता है, जितना रख पाता है",
"कलाकार की दुनिया में हम वह नहीं होते",
"जो अपनी दुनिया में होते हैं",
"हमारी दुनिया का सबसे अमीर आदमी",
"वहाँ फटेहाल नज़र आ सकता है",
"भीड़ से हरदम घिरे रहने वाले मदनमोहन जी",
"वहाँ ऐसे होंगे जैसे निर्जन में रहते हों",
"ख़ूब चमकने वाली चीज़ से गिरता है लगातार अंधकार",
"मामूली-सा मिट्टी का खिलौना वहाँ",
"बचपन का स्पर्श बनता है",
"कलाकार के यहाँ ईश्वर",
"दु:खों से और विडंबनाओं से",
"वैसे ही घिरे होते हैं",
"जैसे कि हम",
"जैसे कि ख़ुद कलाकार!",
"deh kii apnii ek bhaasha hotii hai",
"piiDa kii bhii apnii ek bhaasha hotii hai",
"ham sab bhaashaa.e.n bhuulate ja rahe hai.n",
"kalaakaar yaad rakhta hai, jitna rakh paata hai",
"kalaakaar kii duniya me.n ham vah nahii.n hote",
"jo apnii duniya me.n hote hai.n",
"hamaarii duniya ka sabse amiir aadamii",
"vahaa.n phaTehaal nazar a sakta hai",
"bhiiD se hardam ghire rahne vaale madanmohan jii",
"vahaa.n aise ho.nge jaise nirjan me.n rahte ho.n",
"KHuub chamakne vaalii chiiz se girta hai lagaataar a.ndhkaar",
"maamuulii-sa miTTii ka khilauna vahaa.n",
"bachpan ka sparsh banta hai",
"kalaakaar ke yahaa.n iishvar",
"du:kho.n se aur viDa.mbnaa.o.n se",
"vaise hii ghire hote hai.n",
"jaise ki ham",
"jaise ki KHu kalaakaara!",
"deh kii apnii ek bhaasha hotii hai",
"piiDa kii bhii apnii ek bhaasha hotii hai",
"ham sab bhaashaa.e.n bhuulate ja rahe hai.n",
"kalaakaar yaad rakhta hai, jitna rakh paata hai",
"kalaakaar kii duniya me.n ham vah nahii.n hote",
"jo apnii duniya me.n hote hai.n",
"hamaarii duniya ka sabse amiir aadamii",
"vahaa.n phaTehaal nazar a sakta hai",
"bhiiD se hardam ghire rahne vaale madanmohan jii",
"vahaa.n aise ho.nge jaise nirjan me.n rahte ho.n",
"KHuub chamakne vaalii chiiz se girta hai lagaataar a.ndhkaar",
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जीवन की कला - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/jiwan-ki-kala-rituraj-kavita?sort= | [
"कला में जीवन की वासना नहीं होती तो वह",
"जीवन की पुनर्रचना कैसे करती? नशे में अधिक नशे की",
"इच्छा की तरह कला का प्रेम और प्रेम करने की कला",
"यदि अभिन्न नहीं होते तो न तो प्रेमी को ही नींद",
"आती और न ही कलाकार को। अनिद्रा रोग से पगलाए",
"वे किसी की भी हत्या कर देते या ख़ुद को...",
"नहीं, नहीं, इस सबसे इतनी जल्दी मुक्ति संभव होती तो",
"किसी अपरिचित-सी स्त्री के प्रति समर्पित होने की",
"क्या ज़रूरत होती? यदि अतृप्ति ही इसका दूसरा रूप है",
"तो भूख-प्यास में भी यह ससुरी रचना कैसे होती?",
"जीवन की वासना को सीढ़ी-दर-सीढ़ी स्थूल बोझ की तरह",
"कला की अट्टालिका पर चढ़ाते हुए हम नई-नई आसक्तियों",
"से छलनी हो जाते हैं। दूसरे के जले और ख़ुद के जलने के",
"चिह्न अपनी देह पर देखते हुए फफोलों को अपनी कृतियों",
"का रूप देते हुए हम सशरीर अपनी पापी आत्मा को",
"कला के स्वर्ग में ले जाते हैं",
"यदि कला के जीवन में नरक का ही विधान होता तो",
"हम वासना के शीर्ष पर पहुँचकर यह अनंत उड़ान कैसे भरते?",
"kala mein jiwan ki wasana nahin hoti to wo",
"jiwan ki punarrachna kaise karti? nashe mein adhik nashe ki",
"ichha ki tarah kala ka prem aur prem karne ki kala",
"yadi abhinn nahin hote to na to premi ko hi neend",
"ati aur na hi kalakar ko anidra rog se paglaye",
"we kisi ki bhi hattya kar dete ya khu ko",
"nahin, nahin, is sabse itni jaldi mukti sambhaw hoti to",
"kisi aprichit si istri ke prati samarpit hone ki",
"kya zarurat hoti? yadi atrpti hi iska dusra roop hai",
"to bhookh pyas mein bhi ye sasuri rachna kaise hoti?",
"jiwan ki wasana ko siDhi dar siDhi sthool bojh ki tarah",
"kala ki attalika par chaDhate hue hum nai nai asaktiyon",
"se chhalni ho jate hain dusre ke jale aur khu ke jalne ke",
"chihn apni deh par dekhte hue phapholon ko apni kritiyon",
"ka roop dete hue hum sashrir apni papi aatma ko",
"kala ke swarg mein le jate hain",
"yadi kala ke jiwan mein narak ka hi widhan hota to",
"hum wasana ke sheersh par pahunchakar ye anant uDan kaise bharte?",
"kala mein jiwan ki wasana nahin hoti to wo",
"jiwan ki punarrachna kaise karti? nashe mein adhik nashe ki",
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प्रक्रिया - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/prakriya-narendra-jain-kavita?sort= | [
"कितनी मुश्किल से",
"गढ़ी होगी यह दुनिया",
"माइकेल एंजिलो, पिकासो",
"नंदलाल बोस और डाली ने",
"कितनी तेज़ी से",
"उड़ते जा रहे हैं रंग?",
"कितनी तेज़ी से",
"छाता जा रहा है",
"एक भयावह काला रंग",
"समूचे दृश्य पार?",
"kitni mushkil se",
"gaDhi hogi ye duniya",
"maikel enjilo, pikaso",
"nandlal bos aur Dali ne",
"kitni tezi se",
"uDte ja rahe hain rang?",
"kitni tezi se",
"chhata ja raha hai",
"ek bhayawah kala rang",
"samuche drishya par?",
"kitni mushkil se",
"gaDhi hogi ye duniya",
"maikel enjilo, pikaso",
"nandlal bos aur Dali ne",
"kitni tezi se",
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कला के पेचीदा सवालों से टकराता एक आदमी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kala-ke-pechida-sawalon-se-takrata-ek-adami-vimal-kumar-kavita-2?sort= | [
"इस कड़ी धूप में एक आदमी",
"धूल उड़ाता पेड़ों के नीचे से होता कहीं चला जा रहा",
"है, इस समय उसे चिंता है",
"कला की रक्षा कैसे हो",
"कैसे उसे बनैले पशुओं से बचाया जाए",
"वह जीवन के बारे में दार्शनिक और ग़ैर दार्शनिक ढंग से",
"सोचता-विचारता",
"आसमान पर उमंग की कोई लकीर खोजता",
"कला के भीतर झाँक रहा है",
"उसका जनाधार क्या है",
"उसे भूख लगी है और वह अपनी जेब से निकालकर कुछ खा रहा",
"है, उसे चारों तरफ़ औरतें और बच्चे भागते दिखाई दे रहे हैं",
"कहीं कोई भयंकर आग लगी है",
"धुआँ फैलता जा रहा है",
"वह देख रहा कितना ख़ून बह रहा",
"पसीना चू रहा",
"आदमी की अभिव्यक्ति में",
"कला लोगों से छीनी जा रही",
"वह अपना खोया हुआ बचपन याद कर रहा है",
"वह मैली-कुचली क़मीज़ पहने धूल उड़ाता पाँवों में घाव कर गया है",
"बालों में घी की तरह तेल डाले",
"पहाड़ों की ओर निकल गया है",
"स्वतंत्रता की गौरवशाली संरचना तलाशने",
"वह देख रहा नीचे घाटियों में",
"एक बूढ़ा खाँस रहा अपने जर्जर घर में",
"वह मरने ही वाला है अब कला के निकट",
"उसके शरीर से मांस काटा जा रहा जिसे",
"बाज़ार में बेचा जाएगा, उस पैसे से शराब ख़रीदी जाएगी",
"वह शराब और कला के अंत:संबंधों पर ग़ौर करता",
"वहाँ से निकल गया है",
"दु:खी मन से",
"अब वह रास्ते में एक पत्थर पर बैठ गया है थका-हारा",
"तब से कला के अवयवों के बारे में सोचते हुए",
"घूम रहा है यहाँ से वहाँ धूल उड़ाता",
"मनुष्य के इतिहास में",
"is kaDi dhoop mein ek adami",
"dhool uData peDon ke niche se hota kahin chala ja raha",
"hai, is samay use chinta hai",
"kala ki rakhsha kaise ho",
"kaise use banaile pashuon se bachaya jaye",
"wo jiwan ke bare mein darshanik aur ghair darshanik Dhang se",
"sochta wicharta",
"asman par umang ki koi lakir khojta",
"kala ke bhitar jhank raha hai",
"uska janadhar kya hai",
"use bhookh lagi hai aur wo apni jeb se nikalkar kuch kha raha",
"hai, use charon taraf aurten aur bachche bhagte dikhai de rahe hain",
"kahin koi bhayankar aag lagi hai",
"dhuan phailta ja raha hai",
"wo dekh raha kitna khoon bah raha",
"pasina chu raha",
"adami ki abhiwyakti mein",
"kala logon se chhini ja rahi",
"wo apna khoya hua bachpan yaad kar raha hai",
"wo maili kuchli qamiz pahne dhool uData panwon mein ghaw kar gaya hai",
"balon mein ghi ki tarah tel Dale",
"pahaDon ki or nikal gaya hai",
"swtantrta ki gaurawshali sanrachna talashne",
"wo dekh raha niche ghatiyon mein",
"ek buDha khans raha apne jarjar ghar mein",
"wo marne hi wala hai ab kala ke nikat",
"uske sharir se mans kata ja raha jise",
"bazar mein becha jayega, us paise se sharab kharidi jayegi",
"wo sharab aur kala ke antahsambandhon par ghaur karta",
"wahan se nikal gaya hai",
"duhkhi man se",
"ab wo raste mein ek patthar par baith gaya hai thaka hara",
"tab se kala ke awaywon ke bare mein sochte hue",
"ghoom raha hai yahan se wahan dhool uData",
"manushya ke itihas mein",
"is kaDi dhoop mein ek adami",
"dhool uData peDon ke niche se hota kahin chala ja raha",
"hai, is samay use chinta hai",
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"kaise use banaile pashuon se bachaya jaye",
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"sochta wicharta",
"asman par umang ki koi lakir khojta",
"kala ke bhitar jhank raha hai",
"uska janadhar kya hai",
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"hai, use charon taraf aurten aur bachche bhagte dikhai de rahe hain",
"kahin koi bhayankar aag lagi hai",
"dhuan phailta ja raha hai",
"wo dekh raha kitna khoon bah raha",
"pasina chu raha",
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"kala logon se chhini ja rahi",
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"wo dekh raha niche ghatiyon mein",
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"wo marne hi wala hai ab kala ke nikat",
"uske sharir se mans kata ja raha jise",
"bazar mein becha jayega, us paise se sharab kharidi jayegi",
"wo sharab aur kala ke antahsambandhon par ghaur karta",
"wahan se nikal gaya hai",
"duhkhi man se",
"ab wo raste mein ek patthar par baith gaya hai thaka hara",
"tab se kala ke awaywon ke bare mein sochte hue",
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कवि और कच्चा रास्ता - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kawi-aur-kachcha-rasta-devesh-path-sariya-kavita?sort= | [
"कवि-छायाकार मणि मोहन के लिएकितना उपजाऊ है वह कच्चा रास्ताजो कवि के घर के सामने से गुज़रता हैवहाँ दृश्य और कविताएँ उगती हैंकिसी भी लिहाज़ सेडामर से लिपी, पुती, चमकती सड़क से अधिक भाग्यशालीदिन भर जीवन के कई दृश्यताकता है वहीं सेक़स्बे का कविकच्चे रास्ते का कविकच्चे रास्ते से चुनता है कविता के कंकड़देखता हैहर रोज़ कमर पर बच्चा टिकाएएक दिन का राशन ख़रीदने जाने वालीऔरत कोजिसकी साड़ी के छींटेंस्वाभिमान के रंग से पगे हैंकभी उड़ आता हैधुएँ के साथगिनती भर मसालों से बघारीसब्ज़ी का स्वाददिन ख़त्म होने के बादरोड लाइट की पीली उदास रौशनी मेथके मज़दूरों को लौटते देखता हैरात गहराने परआवारा कुत्तों की धींगामुश्ती का गवाह बनता हैकवि जो तस्वीरें खींचने लगा हैकुछ दृश्य कैमरे में उतार लेता हैजिन्हें देख लोग लिखते हैं कविताएँकुछ दृश्य, कोई गंध सिर्फ़ वही सहेज पाता हैहर दृश्य का मर्म कैमरा नहीं पकड़ पाताकिसी कैमरे का रेज़ोल्शयूनकवि के मन जितना कहाँ?",
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वर्मियर की नई नायिका - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/warmiyar-ki-nai-nayika-devesh-path-sariya-kavita?sort= | [
"विजयश्री तनवीर के लिएनीले और पीले रंगों कोपसंद करने वाली वह लड़कीउस दिन आकाश ओढ़ कर आई थीजो एक बित्ते भर की देह परगाढ़ा नीला हो उठा थाएक प्रिय रंग से देह ढाँपपीला उसने सौंप दिया था प्रेमी कोएक ट्रांस की अवस्था में था युवकजब पड़ गया था प्रेम मेंअन्यथा बटोही था वहकिसी दूसरे महाद्वीप कालपेट कर सूरजमुखी का पीत रंगचला गया वहाँजहाँ मनुष्यों जितनी लंबी होती है घासगर्मी पड़ती है हर समयलड़की ने जोही बाटदोनों के हिस्से की सर्दियों कीऔर प्रेयस की कि वह लौट आए घास सेडरती रहीकि कोई जादू न चल गया हो उस पर क्या पता कि मान चुका हो प्रेयसीघास या घसियारिन कोथकी आँखों नेधीरे-धीरे छोड़ दिया ताकना रास्ताहर कल्पना का उसनेदुखांत पर उपसंहार कियानीले आकाश वाली दोपहर से अधिकशाम की लालिमा से प्यार कियाकई साल बादउपमाएँ दे रहा था कोई कलाकारउस तस्वीर परजिसमें लड़की ने ओढ़ा थाआसमान का रंग—“किसी अलक्ष्य निस्सीम में झाँकतींबेदाग़ निश्छल आँखेंमानो जोहानस वर्मियर की पेंटिंग—‘गर्ल विद अ पर्ल इयरिंग’का सजीव प्रतिरूप एक दूसरे रंग के लिबास में”वर्मियर की कला उपेक्षित रही थीदो शताब्दियों तकऔर आज दीवानी है दुनियाउसकी चालीस से भी कम ज्ञात पेंटिंग्स कीदो दशक सेअपने मोती को टाँगेकरती रही यह तस्वीर भीनीले वैभव के बखान का इंतिज़ारइतने में बज गई कुकर की सीटीऔर चली गई नायिकातस्वीर से निकलकररसोई मेंजहाँ गैस की लौ मेंनीली-पीली उदासी थीख़बर नहीं क्या हुआ होगाकान में बाली पहनीशताब्दियों पुराने मूल चित्र कीउस गुमनाम नायिका कादो दशक बादवर्मियर कीइस नई नायिका की आँखों मेंनिस्सीम नहींशून्य था!",
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शहनाई का दुःख - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/shahnai-ka-dukh-kumar-krishn-sharma-kavita?sort= | [
"बनारस के गंगा घाट पर वुज़ू कर",
"मंदिर के बाहर शहनाई बजाने वाला",
"किंवदंती बन चुका बुज़ुर्ग कहता है—",
"बेटा, अभी तलाश रहा हूँ ऐसा सुर",
"जिसको सुन",
"दुश्मन की तरफ़ मुँह किए तोप का गोला",
"पिघल जाए बीच नाल में ही",
"और बाहर निकले बु्द्ध की शक्ल लेकर",
"सागर की छाती को चीरता पोत",
"मोती बन समा जाए सीप के गर्भ में",
"और वह सीप मिले किसी प्रेमी को",
"हवा में गर्जना करता ज़ंगी जहाज़",
"बदल जाए झाग के बुलबुले में",
"और फूटे",
"बच्चे की पेंसिल की नोक और कॉपी के बीच आकर",
"हल्की दाढ़ी लिए अस्त होता सूरज",
"मेरे को पास बैठा बोलता है—",
"बेटा इस उम्र में भी",
"एक ही दुख सालता है मुझे",
"अभी तक नहीं ढूँढ़ पाया हूँ वह सुर",
"जिसको शहनाई पर बजाऊँ",
"तो सीमाएँ बेचैन हो उठें",
"और कर लें आलिंगन एक दूसरे का",
"दुश्मन की आँखों को घूरती लाल आँखें",
"बंदूक़ छोड़ लौट जाएँ वापस",
"और घर पहुँच देखें",
"बेटी की आँखों में कैसे नाचता है वसंत",
"नफ़रत का पहाड़ा याद करने वाला",
"यह जान जाए कि सबसे आसान होता है",
"प्रेम का गणित",
"और इसमें दो दूनी पाँच रटने वाला भी",
"आता है परीक्षा में प्रथम",
"बात को थोड़ा आगे बढ़ाते",
"उस्ताद जी कहते हैं—",
"वह चाहे जीवन हो या संगीत",
"सुर में रहना बहुत ज़रूरी है",
"बेसुरा होना",
"शहनाई का सबसे बड़ा दुख है।",
"banaras ke ganga ghaat par",
"vaju kar",
"mandir ke bahar shahnai bajane vala",
"kinvdanti ban chuka buzurg kahta hai—",
"beta, abhi talash raha hoon aisa sur",
"jisko sun",
"dushman ki taraf munh kiye top ka gola",
"pighal jaye beech naal mein hi",
"aur bahar nikle buxddh ki shakl lekar",
"sagar ki chhati ko chirta pot",
"moti ban sama jaye seep ke garbh men",
"aur wo seep mile kisi premi ko",
"hava mein garjana karta jangi jahaz",
"badal jaye jhaag ke bulbule men",
"aur phute",
"bachche ki pencil ki nok aur copy ke beech aakar",
"halki daDhi liye ast hota suraj",
"mere ko paas baitha bolta hai—",
"beta is umr mein bhi",
"ek hi dukh salta hai mujhe",
"abhi tak nahin DhoonDh paya hoon wo sur",
"jisko shahnai par bajaun",
"to simayen bechain ho uthen",
"aur kar len alingan ek dusre ka",
"dushman ki ankhon ko ghurti laal ankhen",
"banduq chhoD laut jayen vapas",
"aur ghar pahunch dekhen",
"beti ki ankhon mein kaise nachta hai vasant",
"nafar ka pahaDa yaad karne vala",
"ye jaan jaye ki sabse asan hota hai",
"prem ka ganait",
"aur ismen do duni paanch ratne vala bhi",
"aata hai pariksha mein pratham",
"baat ko thoDa aage baDhate",
"ustaad ji kahte hain—",
"wo chahe jivan ho ya sangit",
"sur mein rahna bahut zaruri hai",
"besura hona",
"shahnai ka sabse baDa dukh hai",
"shahnai ka sabse baDa dukh hai.",
"banaras ke ganga ghaat par",
"vaju kar",
"mandir ke bahar shahnai bajane vala",
"kinvdanti ban chuka buzurg kahta hai—",
"beta, abhi talash raha hoon aisa sur",
"jisko sun",
"dushman ki taraf munh kiye top ka gola",
"pighal jaye beech naal mein hi",
"aur bahar nikle buxddh ki shakl lekar",
"sagar ki chhati ko chirta pot",
"moti ban sama jaye seep ke garbh men",
"aur wo seep mile kisi premi ko",
"hava mein garjana karta jangi jahaz",
"badal jaye jhaag ke bulbule men",
"aur phute",
"bachche ki pencil ki nok aur copy ke beech aakar",
"halki daDhi liye ast hota suraj",
"mere ko paas baitha bolta hai—",
"beta is umr mein bhi",
"ek hi dukh salta hai mujhe",
"abhi tak nahin DhoonDh paya hoon wo sur",
"jisko shahnai par bajaun",
"to simayen bechain ho uthen",
"aur kar len alingan ek dusre ka",
"dushman ki ankhon ko ghurti laal ankhen",
"banduq chhoD laut jayen vapas",
"aur ghar pahunch dekhen",
"beti ki ankhon mein kaise nachta hai vasant",
"nafar ka pahaDa yaad karne vala",
"ye jaan jaye ki sabse asan hota hai",
"prem ka ganait",
"aur ismen do duni paanch ratne vala bhi",
"aata hai pariksha mein pratham",
"baat ko thoDa aage baDhate",
"ustaad ji kahte hain—",
"wo chahe jivan ho ya sangit",
"sur mein rahna bahut zaruri hai",
"besura hona",
"shahnai ka sabse baDa dukh hai",
"shahnai ka sabse baDa dukh hai.",
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हेलेन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/helen-dinesh-kushwah-kavita-3?sort= | [
"हँसना कोई हँसी-ठट्ठा नहीं है",
"क्या आप बता सकते हैं",
"अपनी ज़िंदगी में कितनी बार",
"हँसे होंगे ईसा मसीह?",
"ठट्ठा नहीं है थिरकना भी",
"या तो बलइया लेती है",
"या विद्रोह करती है देह की",
"एक-एक बोटी।",
"मैंने उसे कभी खड़े",
"या लेटे हुए नहीं देखा",
"समुद्र का एक उत्ताल नर्तन",
"आता था लहराते हुए",
"और लौट जाता था",
"सामने किनारों तक छूकर",
"अपनी अथाह दुनिया में।",
"चमकते श्रमबिंदु याद दिलाते थे",
"कि अभी-अभी",
"पर्वत-जंगल-मैदान लाँघती",
"इधर से दौड़ती हुई गई है लकड़हारे की बेटी",
"या किसी वनवासी ने चंदन घिसकर",
"बिंदियों से सज़ा दिए हैं",
"अपनी प्रिया के कपोल",
"और उसे पहनाने के लिए",
"लेने गया है वन देवता से एक चितकबरी खाल।",
"मैंने उसके हाथ में कभी पानी नहीं देखा",
"न कोई खाने की चीज़",
"जब भी देखी तो शराब",
"मन हुआ कई बार",
"जैसे कोठे पर",
"मिली लड़की से पूछने को होता है",
"क्या है तुम्हारा असली नाम?",
"उसने दु:खी होकर कहा",
"झूमते हाथी, दौड़ते ख़रगोश",
"नाचते मोर से तुम नहीं पूछते",
"उसका असली नाम?",
"तुम्हारी पंचकन्याओं मे",
"कैसे आएँगी इजाडोरा डंकन",
"प्यारी मग्दालीना?",
"दुनिया के सारे कलावंत बेटों को",
"मैंने ही नहीं बनाया शराबख़ोर!",
"न झूठों से कहा",
"कि खोल लो शराब के कारख़ाने!",
"मैंने नहीं बिछाई",
"सूली ऊपर पिया की सेज!",
"बारूद से जली",
"गुलाब की पत्तियों का हाहाकार",
"मैंने नहीं चुराया।",
"hansna koi hansi thattha nahin hai",
"kya aap bata sakte hain",
"apni zindagi mein kitni bar",
"hanse honge isa masih?",
"thattha nahin hai thirakna bhi",
"ya to balaiya leti hai",
"ya widroh karti hai deh ki",
"ek ek boti",
"mainne use kabhi khaDe",
"ya lete hue nahin dekha",
"samudr ka ek uttal nartan",
"ata tha lahrate hue",
"aur laut jata tha",
"samne kinaron tak chhukar",
"apni athah duniya mein",
"chamakte shrmbindu yaad dilate the",
"ki abhi abhi",
"parwat jangal maidan langhati",
"idhar se dauDti hui gai hai lakaDhare ki beti",
"ya kisi wanwasi ne chandan ghiskar",
"bindiyon se saza diye hain",
"apni priya ke kapol",
"aur use pahnane ke liye",
"lene gaya hai wan dewta se ek chitkabri khaal",
"mainne uske hath mein kabhi pani nahin dekha",
"na koi khane ki cheez",
"jab bhi dekhi to sharab",
"man hua kai bar",
"jaise kothe par",
"mili laDki se puchhne ko hota hai",
"kya hai tumhara asli nam?",
"usne duhkhi hokar kaha",
"jhumte hathi, dauDte khargosh",
"nachte mor se tum nahin puchhte",
"uska asli nam?",
"tumhari panchkanyaon mae",
"kaise ayengi ijaDora Dankan",
"pyari magdalina?",
"duniya ke sare kalawant beton ko",
"mainne hi nahin banaya sharabkhor!",
"na jhuthon se kaha",
"ki khol lo sharab ke karkhane!",
"mainne nahin bichhai",
"suli upar piya ki sej!",
"barud se jali",
"gulab ki pattiyon ka hahakar",
"mainne nahin churaya",
"hansna koi hansi thattha nahin hai",
"kya aap bata sakte hain",
"apni zindagi mein kitni bar",
"hanse honge isa masih?",
"thattha nahin hai thirakna bhi",
"ya to balaiya leti hai",
"ya widroh karti hai deh ki",
"ek ek boti",
"mainne use kabhi khaDe",
"ya lete hue nahin dekha",
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"ata tha lahrate hue",
"aur laut jata tha",
"samne kinaron tak chhukar",
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"idhar se dauDti hui gai hai lakaDhare ki beti",
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"man hua kai bar",
"jaise kothe par",
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"kya hai tumhara asli nam?",
"usne duhkhi hokar kaha",
"jhumte hathi, dauDte khargosh",
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"uska asli nam?",
"tumhari panchkanyaon mae",
"kaise ayengi ijaDora Dankan",
"pyari magdalina?",
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विदा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/vida-aharnish-sagar-kavita?sort= | [
"चित्रकार स्याह करता जा रहा हैं—",
"अपने रंगों को",
"लगता हैं दुनिया तेज़ रौशनी से भर चुकी है",
"विदा की यात्रा अब शुरू होती है...",
"विदा!",
"जैसे बच्चे सेंध लगाते हैं—",
"संतरों के बग़ीचे में",
"मैंने सेंध लगाई वर्जित शब्दों के लिए",
"सभ्यता के पवित्र मंदिर में",
"संतरे के पेड़ों की जड़ें",
"पृथ्वी के गर्भ तक जाती थीं",
"और पृथ्वी की जड़ें जाती हैं",
"सूरज के गर्भ तक",
"और अगर सूरज दीखता रहा संतरे-सा",
"तो मैं निश्चिंत हूँ",
"बच्चे उसे सेंध लगाकर बचा लेंगे",
"चींटियों के हवाले करता हूँ:",
"पृथ्वी को, मेरे बच्चों को, समूचे जीवन को",
"चींटियाँ काफ़ी वज़न उठा लेती हैं",
"अपने वज़न से भी ज़्यादा",
"तो मैं निश्चिंत हूँ",
"प्रलय से ठीक पहले",
"चींटियाँ सुरक्षित खींच ले जाएँगी पृथ्वी को",
"बेहद कमज़ोर पर भरोसा करके",
"कहता हूँ—",
"विदा!",
"chitrkar syaah karta ja raha hain—",
"apne rangon ko",
"lagta hain duniya tez raushani se bhar chuki hai",
"vida ki yatra ab shuru hoti hai. . .",
"vida!",
"jaise bachche sendh lagate hain—",
"santron ke baghiche men",
"mainne sendh lagai varjit shabdon ke liye",
"sabhyata ke pavitra mandir men",
"santare ke peDon ki jaDen",
"prithvi ke garbh tak jati theen",
"aur prithvi ki jaDen jati hain",
"suraj ke garbh tak",
"aur agar suraj dikhta raha santre sa",
"to main nishchint hoon",
"bachche use sendh lagakar bacha lenge",
"chintiyon ke havale karta hoonh",
"prithvi ko, mere bachchon ko, samuche jivan ko",
"chintiyan kafi vazan utha leti hain",
"apne vazan se bhi zyada",
"to main nishchint hoon",
"prlay se theek pahle",
"chintiyan surakshait kheench le jayengi prithvi ko",
"behad kamzor par bharosa karke",
"kahta hoon—",
"vida!",
"chitrkar syaah karta ja raha hain—",
"apne rangon ko",
"lagta hain duniya tez raushani se bhar chuki hai",
"vida ki yatra ab shuru hoti hai. . .",
"vida!",
"jaise bachche sendh lagate hain—",
"santron ke baghiche men",
"mainne sendh lagai varjit shabdon ke liye",
"sabhyata ke pavitra mandir men",
"santare ke peDon ki jaDen",
"prithvi ke garbh tak jati theen",
"aur prithvi ki jaDen jati hain",
"suraj ke garbh tak",
"aur agar suraj dikhta raha santre sa",
"to main nishchint hoon",
"bachche use sendh lagakar bacha lenge",
"chintiyon ke havale karta hoonh",
"prithvi ko, mere bachchon ko, samuche jivan ko",
"chintiyan kafi vazan utha leti hain",
"apne vazan se bhi zyada",
"to main nishchint hoon",
"prlay se theek pahle",
"chintiyan surakshait kheench le jayengi prithvi ko",
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रूपांतर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/rupantar-kanhaiyalal-sethia-kavita?sort= | [
"प्रतिमा",
"बनने से",
"पहले भी था",
"पत्थर का",
"अपना आकार,",
"तभी हो पाया",
"उसमें",
"शिल्पी का स्वप्न",
"छेनी का सत्य",
"साकार!",
"pratima",
"banne se",
"pahle bhi tha",
"patthar ka",
"apna akar,",
"tabhi ho paya",
"usmen",
"shilpi ka swapn",
"chheni ka saty",
"sakar!",
"pratima",
"banne se",
"pahle bhi tha",
"patthar ka",
"apna akar,",
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ज्याँ क्रिस्तोफ़ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/jyan-kristof-malyaj-kavita?sort= | [
"अँधेरे जीने और धुंध भरे कमरे",
"एक तरफ़ उठा कर रख दिए मैंने",
"तब खुला मैदान था,",
"मुफ़्त बेहिसाब धूप की टॉफ़ियाँ चूसते",
"ज्याँ क्रिस्तोफ़ से मिला—",
"तगड़े, इलाहाबादी अमरूद जैसे चेहरे को",
"नज़दीक से देखा—",
"झट उठी हुई एक निर्भय उँगली के पीछे",
"तमतमाता आकाश आ गया",
"और आकाश को थामे उतर आए",
"ख़ुसरो बाग़ के वे ऊँचे मक़बरे—",
"विद्रोह का इतिहास!",
"मध्यकालीन वह गहरी रूमानी निष्ठा",
"छनी ख़ुशबू-सी मन में तैर गई।",
"—शुक्रिया ज्याँ क्रिस्तोफ़! तुम्हारा तगड़ा ख़ुशबूदार चेहरा",
"सुलभ है मुझे इस पल।",
"(दूर है... दूर है",
"पर कटे ज़ीनों और कठैलों कमरों में",
"सिजदा करना वो घुटनों के बल!)",
"...नरम पत्तियाँ तड़कीं किरनों के भार से,",
"ज्याँ क्रिस्तोफ़ की मुट्ठी में",
"मेरा छोटा-सा हाथ दबा-विनम्र, कृतज्ञ!",
"और उसने कहा : 'जियो'। बस।",
"मैंने कहा यहाँ की गंगा उथली है",
"उबली हुई निःसत्व दालें, अनाज...",
"सीने में भुरभुरी रेत, कोफ़्त...",
"और आस-पास दड़बे",
"दड़बों में वही कुबड़े जीने और ठिगने कमरे...",
"मैं कमज़ोर हूँ",
"देह से,",
"मन विद्रोह करके नहीं",
"ऊब से ऊब कर ही बाहर आता है कभी",
"मुफ़्त की टॉफ़ियाँ चूसने",
"यार, तुम क़िस्मतवर हो",
"तगड़े हो",
"लड़ सकते हो, जीने का मतलब",
"लड़ना ही है न?",
"उस तगड़े ख़ुशबूदार चेहरे पर",
"प्यारी मुस्कान की हल्की-फुल्की चित्तियाँ पड़ीं...",
"साँस रोके-से पत्ते हिले...",
"हाथ में हाथ",
"ज्यों आकाश में आकाश लिए",
"समय खड़ा हो गया...",
"अपने प्रश्न के वृत्त में आहत घिरा",
"जो फिर फिर लौट जाऊँगा बूढ़े ज़ीनों और बूचे कमरों में",
"अपने बड़े भाई से बड़ा हो गया :",
"मैंने कहा जाओ, कभी-कभी आना",
"यह परिवेश है सिर्फ़ मेरा,",
"मेरे हथियार कुछ दूसरे हैं,...",
"'में तुम्हारी वसीयत का भागी नहीं",
"क्योंकि तुम ज़िंदा हो :",
"धूप",
"पत्ती की कोमल लचक",
"इतिहास की रूमानी निष्ठा",
"ख़ुशबू...",
"हाँ, कभी-कभी आना",
"क्योंकि अभी उठाकर फिर उसी जगह रख देने हैं मुझे",
"वे भूखे ज़ीने और प्यासे कमरे",
"मैदान समेट",
"मैं लौट जाऊँगा",
"पर कृतज्ञ हूँ तुम्हारा मैं—",
"बड़े भाई आना ज़रूर!",
"andhere jine aur dhundh bhare kamre",
"ek taraf utha kar rakh diye mainne",
"tab khula maidan tha,",
"muft behisab dhoop ki toffiyan chuste",
"jyan kristof se mila—",
"tagDe, allahabadi amrud jaise chehre ko",
"nazdik se dekha—",
"jhat uthi hui ek nirbhay ungli ke pichhe",
"tamtamata akash aa gaya",
"aur akash ko thame utar aaye",
"khusro bagh ke we unche maqbare—",
"widroh ka itihas!",
"madhyakalin wo gahri rumani nishtha",
"chhani khushbu si man mein tair gai",
"—shukriya jyan kristof! tumhara tagDa khushabuda chehra",
"sulabh hai mujhe is pal",
"(door hai door hai",
"par kate zinon aur kathailon kamron mein",
"sijda karna wo ghutnon ke bal!)",
"naram pattiyan taDkin kirnon ke bhaar se,",
"jyan kristof ki mutthi mein",
"mera chhota sa hath daba winamr, kritagy!",
"aur usne kaha ha jiyo bus",
"mainne kaha yahan ki ganga uthli hai",
"ubli hui niःsatw dalen, anaj",
"sine mein bhurabhuri ret, koft",
"aur aas pas daDbe",
"daDbon mein wahi kubDe jine aur thigne kamre",
"main kamzor hoon",
"deh se,",
"man widroh karke nahin",
"ub se ub kar hi bahar aata hai kabhi",
"muft ki toffiyan chusne",
"yar, tum qismatwar ho",
"tagDe ho",
"laD sakte ho, jine ka matlab",
"laDna hi hai n?",
"us tagDe khushabuda chehre par",
"pyari muskan ki halki phulki chittiyan paDin",
"sans roke se patte hile",
"hath mein hath",
"jyon akash mein akash liye",
"samay khaDa ho gaya",
"apne parashn ke writt mein aahat ghira",
"jo phir phir laut jaunga buDhe zinon aur buche kamron mein",
"apne baDe bhai se baDa ho gaya ha",
"mainne kaha jao, kabhi kabhi aana",
"ye pariwesh hai sirf mera,",
"mere hathiyar kuch dusre hain,",
"men tumhari wasiyat ka bhagi nahin",
"kyonki tum zinda ho ha",
"dhoop",
"patti ki komal lachak",
"itihas ki rumani nishtha",
"khushbu",
"han, kabhi kabhi aana",
"kyonki abhi uthakar phir usi jagah rakh dene hain mujhe",
"we bhukhe zine aur pyase kamre",
"maidan samet",
"main laut jaunga",
"par kritagy hoon tumhara main—",
"baDe bhai aana zarur!",
"andhere jine aur dhundh bhare kamre",
"ek taraf utha kar rakh diye mainne",
"tab khula maidan tha,",
"muft behisab dhoop ki toffiyan chuste",
"jyan kristof se mila—",
"tagDe, allahabadi amrud jaise chehre ko",
"nazdik se dekha—",
"jhat uthi hui ek nirbhay ungli ke pichhe",
"tamtamata akash aa gaya",
"aur akash ko thame utar aaye",
"khusro bagh ke we unche maqbare—",
"widroh ka itihas!",
"madhyakalin wo gahri rumani nishtha",
"chhani khushbu si man mein tair gai",
"—shukriya jyan kristof! tumhara tagDa khushabuda chehra",
"sulabh hai mujhe is pal",
"(door hai door hai",
"par kate zinon aur kathailon kamron mein",
"sijda karna wo ghutnon ke bal!)",
"naram pattiyan taDkin kirnon ke bhaar se,",
"jyan kristof ki mutthi mein",
"mera chhota sa hath daba winamr, kritagy!",
"aur usne kaha ha jiyo bus",
"mainne kaha yahan ki ganga uthli hai",
"ubli hui niःsatw dalen, anaj",
"sine mein bhurabhuri ret, koft",
"aur aas pas daDbe",
"daDbon mein wahi kubDe jine aur thigne kamre",
"main kamzor hoon",
"deh se,",
"man widroh karke nahin",
"ub se ub kar hi bahar aata hai kabhi",
"muft ki toffiyan chusne",
"yar, tum qismatwar ho",
"tagDe ho",
"laD sakte ho, jine ka matlab",
"laDna hi hai n?",
"us tagDe khushabuda chehre par",
"pyari muskan ki halki phulki chittiyan paDin",
"sans roke se patte hile",
"hath mein hath",
"jyon akash mein akash liye",
"samay khaDa ho gaya",
"apne parashn ke writt mein aahat ghira",
"jo phir phir laut jaunga buDhe zinon aur buche kamron mein",
"apne baDe bhai se baDa ho gaya ha",
"mainne kaha jao, kabhi kabhi aana",
"ye pariwesh hai sirf mera,",
"mere hathiyar kuch dusre hain,",
"men tumhari wasiyat ka bhagi nahin",
"kyonki tum zinda ho ha",
"dhoop",
"patti ki komal lachak",
"itihas ki rumani nishtha",
"khushbu",
"han, kabhi kabhi aana",
"kyonki abhi uthakar phir usi jagah rakh dene hain mujhe",
"we bhukhe zine aur pyase kamre",
"maidan samet",
"main laut jaunga",
"par kritagy hoon tumhara main—",
"baDe bhai aana zarur!",
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रेखा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/rekha-dinesh-kushwah-kavita-4?sort= | [
"जो लोग तुम्हें नशा कहते थे",
"मुकम्मल ताजमहल",
"उनके लिए भी",
"नहीं है तुम्हारा कोई पुरातात्विक महत्त्व",
"कि बचाकर रखे जाएँगे तुम्हारे खँडहर।",
"न तो इंद्र ही रखेंगे बचाकर तुम्हें",
"धरती पर सहस्त्र वर्ष",
"पुरानी वारुणी की तरह।",
"अजंता-एलोरा के शिल्पियों के स्वप्न भी",
"नहीं थीं तुम",
"पर तुम्हारे माथे पर लिखा जा सकता था",
"कोणार्क का सूर्य मंदिर।",
"पहली बार देखा था तुम्हें",
"तो याद आया एक टुकड़ा कहरवा",
"लगा जैसे रजत खंभे पर हाथ टिकाए",
"तिर्यक मुद्रा में खड़ी हो कोई यक्षिणी",
"जिसकी गहरी नाभि और उन्नत वक्षों पर",
"बार-बार आकर टिक जाता हो ढीठ सूरज",
"एक याचक का पीला चेहरा लिए हुए।",
"मेरा कहानीकार दोस्त देवेन",
"करता था जिन दिनों प्यार",
"उन दिनों भी",
"उसके रात के सपनों में",
"चली आती थीं तुम",
"ऐसा क्या था दुर्निवार?",
"जो बान्हने-छानने पर भी",
"झाँक ही जाता था",
"जीभ चिढ़ाती चंचल किशोरी की तरह।",
"तुम्हारे चौड़े पंजे नाचे होंगे न जाने कितने नाच",
"तुम्हारी लंबी अँगुलियाँ बुनी होंगी ज़रूर",
"कुछ मोज़े",
"कुछ स्वेटर",
"एक अनदेखे बच्चे के लिए।",
"मैंने देखा कि कला में डूब जाना",
"भूल जाना है काल को",
"पर हमें रात-दिन डसती रहती हैं उसकी क्रूरताएँ",
"कि जिसे मन से उरेहते हैं ब्रह्मा",
"उसे कैसे लग जाती है",
"पहले उनकी ही नज़र!",
"सोचता रहा मैं",
"कि धरती की सुंदर कलावती बेटियों को",
"कौन बाँटता है",
"नटी से लेकर नगरवधू तक के ख़ानों में",
"कि जिसे हज़ारों-हज़ार लोग",
"लिफ़ाफ़े में भरकर भेजते हैं सिंदूर",
"उसे कोई नहीं भेजता डिठौना?",
"jo log tumhein nasha kahte the",
"mukammal tajamhal",
"unke liye bhi",
"nahin hai tumhara koi puratatwik mahattw",
"ki bachakar rakhe jayenge tumhare khanDahar",
"na to indr hi rakhenge bachakar tumhein",
"dharti par sahastr warsh",
"purani warunai ki tarah",
"ajanta elora ke shilpiyon ke swapn bhi",
"nahin theen tum",
"par tumhare mathe par likha ja sakta tha",
"konark ka surya mandir",
"pahli bar dekha tha tumhein",
"to yaad aaya ek tukDa kaharwa",
"laga jaise rajat khambhe par hath tikaye",
"tiryak mudra mein khaDi ho koi yakshainai",
"jiski gahri nabhi aur unnat wakshon par",
"bar bar aakar tik jata ho Dheeth suraj",
"ek yachak ka pila chehra liye hue",
"mera kahanikar dost dewen",
"karta tha jin dinon pyar",
"un dinon bhi",
"uske raat ke sapnon mein",
"chali aati theen tum",
"aisa kya tha durniwar?",
"jo banhne chhanne par bhi",
"jhank hi jata tha",
"jeebh chiDhati chanchal kishori ki tarah",
"tumhare chauDe panje nache honge na jane kitne nach",
"tumhari lambi anguliyan buni hongi zarur",
"kuch moze",
"kuch sweater",
"ek andekhe bachche ke liye",
"mainne dekha ki kala mein Doob jana",
"bhool jana hai kal ko",
"par hamein raat din Dasti rahti hain uski krurtayen",
"ki jise man se urehte hain brahma",
"use kaise lag jati hai",
"pahle unki hi nazar!",
"sochta raha main",
"ki dharti ki sundar kalawati betiyon ko",
"kaun bantta hai",
"nati se lekar nagrawdhu tak ke khanon mein",
"ki jise hazaron hazar log",
"lifafe mein bharkar bhejte hain sindur",
"use koi nahin bhejta Dithauna?",
"jo log tumhein nasha kahte the",
"mukammal tajamhal",
"unke liye bhi",
"nahin hai tumhara koi puratatwik mahattw",
"ki bachakar rakhe jayenge tumhare khanDahar",
"na to indr hi rakhenge bachakar tumhein",
"dharti par sahastr warsh",
"purani warunai ki tarah",
"ajanta elora ke shilpiyon ke swapn bhi",
"nahin theen tum",
"par tumhare mathe par likha ja sakta tha",
"konark ka surya mandir",
"pahli bar dekha tha tumhein",
"to yaad aaya ek tukDa kaharwa",
"laga jaise rajat khambhe par hath tikaye",
"tiryak mudra mein khaDi ho koi yakshainai",
"jiski gahri nabhi aur unnat wakshon par",
"bar bar aakar tik jata ho Dheeth suraj",
"ek yachak ka pila chehra liye hue",
"mera kahanikar dost dewen",
"karta tha jin dinon pyar",
"un dinon bhi",
"uske raat ke sapnon mein",
"chali aati theen tum",
"aisa kya tha durniwar?",
"jo banhne chhanne par bhi",
"jhank hi jata tha",
"jeebh chiDhati chanchal kishori ki tarah",
"tumhare chauDe panje nache honge na jane kitne nach",
"tumhari lambi anguliyan buni hongi zarur",
"kuch moze",
"kuch sweater",
"ek andekhe bachche ke liye",
"mainne dekha ki kala mein Doob jana",
"bhool jana hai kal ko",
"par hamein raat din Dasti rahti hain uski krurtayen",
"ki jise man se urehte hain brahma",
"use kaise lag jati hai",
"pahle unki hi nazar!",
"sochta raha main",
"ki dharti ki sundar kalawati betiyon ko",
"kaun bantta hai",
"nati se lekar nagrawdhu tak ke khanon mein",
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"lifafe mein bharkar bhejte hain sindur",
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अंधायुग - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/andhayug-sangeeta-gundecha-kavita?sort= | [
"अद्वितीय रंग-निर्देशक रतन थियाम के लिएविदुर अंधे हो गए हैं न्याय सेअश्वत्थामा देव की मार सेअपनी प्रतिज्ञा से भीष्मदुर्योधन अभिमान सेभरी सभा में हुए तिरस्कार से द्रौपदीअपने द्वंद्वों से कर्ण औरधर्म से युधिष्ठिरगांधारी ओ गांधारी!केवल तुम्हारी आँखों पर पट्टी नहीं बँधी हैकेवल मैं अंधा नहीं हूँये सब अंधे हो गए हैंअपने-अपने औज़ार सेलेकिन कृष्ण?किस चीज़ ने अंधा किया कृष्ण को?तुम्हारे श्राप के भाजन बने वे?गांधारी ओ गांधारी!केवल तुम्हारी आँखों पर पट्टी नहीं बँधी हैकेवल मैं अँधा नहीं हूँ!",
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तिलक कामोद - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/tilak-kamod-kuldeep-kumar-kavita-19?sort= | [
"रात में कभी-कभी",
"बाँसुरी बजती है",
"चंद्रमा की नाभि से झरता है",
"अजस्र जीवन-रस",
"और",
"ठीक उसी समय",
"छतों पर टहलती हैं",
"कुछ परछाइयाँ",
"एक-दूसरे से बिल्कुल विलग",
"विकल",
"सकल जड़-जंगम से लोहा लेती हुई",
"बादलों के इक्का-दुक्का पोरों से",
"एकाएक उठती है",
"केसरबाई की तान",
"भिगो देती है अंधकार की चादर",
"यह तिलक कामोद है",
"मालूम नहीं कहाँ हो रहा है यह रास",
"भीतर या बाहर",
"बाहर या भीतर",
"या समस्त ब्रह्मांड में",
"सुर-संगत रागविद्या संगीत प्रमाण",
"चीते की चीत्कार जैसी तान की छलाँग",
"राग-रहस्य की ढीली लाँग",
"गहन-गह्वर में सबसे इतर",
"इतराई हुई",
"धुरी यही है जीवन की",
"यही बाँसुरी है",
"जो",
"जब बजती है तो",
"चंद्रमा की नाभि से",
"तिलक कामोद झरता है",
"raat mein kabhi kabhi",
"bansuri bajti hai",
"chandrma ki nabhi se jharta hai",
"ajasr jiwan ras",
"aur",
"theek usi samay",
"chhaton par tahalti hain",
"kuch parchhaiyan",
"ek dusre se bilkul wilag",
"wikal",
"sakal jaD jangam se loha leti hui",
"badlon ke ikka dukka poron se",
"ekayek uthti hai",
"kesarbai ki tan",
"bhigo deti hai andhkar ki chadar",
"ye tilak kamod hai",
"malum nahin kahan ho raha hai ye ras",
"bhitar ya bahar",
"bahar ya bhitar",
"ya samast brahmanD mein",
"sur sangat ragwidya sangit praman",
"chite ki chitkar jaisi tan ki chhalang",
"rag rahasy ki Dhili lang",
"gahan gahwar mein sabse itar",
"itrai hui",
"dhuri yahi hai jiwan ki",
"yahi bansuri hai",
"jo",
"jab bajti hai to",
"chandrma ki nabhi se",
"tilak kamod jharta hai",
"raat mein kabhi kabhi",
"bansuri bajti hai",
"chandrma ki nabhi se jharta hai",
"ajasr jiwan ras",
"aur",
"theek usi samay",
"chhaton par tahalti hain",
"kuch parchhaiyan",
"ek dusre se bilkul wilag",
"wikal",
"sakal jaD jangam se loha leti hui",
"badlon ke ikka dukka poron se",
"ekayek uthti hai",
"kesarbai ki tan",
"bhigo deti hai andhkar ki chadar",
"ye tilak kamod hai",
"malum nahin kahan ho raha hai ye ras",
"bhitar ya bahar",
"bahar ya bhitar",
"ya samast brahmanD mein",
"sur sangat ragwidya sangit praman",
"chite ki chitkar jaisi tan ki chhalang",
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वृत्त - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/writt-govind-dwivedi-kavita?sort= | [
"छोररहित रेखा",
"उसे जन्म देती है।",
"निर्मित संकोच",
"अलग करता है",
"एक हिस्से को।",
"परिधि",
"काँपती है दोनों ओर।",
"विस्मृति",
"ढकती है उसे एक ओर से",
"दूसरे ओर",
"खोलती है द्वार।",
"chhorarhit rekha",
"use janm deti hai",
"nirmit sankoch",
"alag karta hai",
"ek hisse ko",
"paridhi",
"kanpti hai donon or",
"wismriti",
"Dhakti hai use ek or se",
"dusre or",
"kholti hai dwar",
"chhorarhit rekha",
"use janm deti hai",
"nirmit sankoch",
"alag karta hai",
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कैनवास - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kainvas-satyam-samraat-acharya-kavita?sort= | [
"गहरा रंग छुपा लेता है",
"अपने अंदर",
"सारी तकलीफ़ें, सारे दुख",
"जैसे रात छुपा लेती है",
"आसमान का काला धब्बा,",
"थके हुए दिन की बेहोशी",
"गहरी नींद छुपा लेती है,",
"सूखी मिट्टी की अनबूझी",
"प्यास छुपा लेते हैं",
"जैसे काले बादल,",
"जैसे एक अँधेरा कमरा",
"धो देता है रुदन हमारा,",
"अमावस की गहराई में",
"खो जाते हैं",
"चातक और चकवी के आँसू",
"मैं भी कोरे चित्रफलक पर",
"गहरे और काले रंगों में",
"अपना सारा दर्द घोलकर",
"घिस देता हूँ",
"कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएँ,",
"गहरेपन के आकर्षण में",
"गुम हो जाती है मेरी सारी तकलीफ़ें,",
"आप समझते हैं कि मैंने चित्र बनाया!",
"gahra rang chhupa leta hai",
"apne andar",
"sari taklifen, sare dukh",
"jaise raat chhupa leti hai",
"asman ka kala dhabba,",
"thake hue din ki behoshi",
"gahri neend chhupa leti hai,",
"sukhi mitti ki anbujhi",
"pyaas chhupa lete hain",
"jaise kale badal,",
"jaise ek andhera kamra",
"dho deta hai rudan hamara,",
"amavas ki gahrai mein",
"kho jate hain",
"chatak aur chakvi ke ansu",
"main bhi kore chitraphlak par",
"gahre aur kale rangon men",
"apna sara dard gholkar",
"ghis deta hoon",
"kuch aaDi tirchhi rekhayen,",
"gahrepan ke akarshan men",
"gum ho jati hai meri sari taklifen,",
"aap samajhte hain ki mainne chitr banaya!",
"gahra rang chhupa leta hai",
"apne andar",
"sari taklifen, sare dukh",
"jaise raat chhupa leti hai",
"asman ka kala dhabba,",
"thake hue din ki behoshi",
"gahri neend chhupa leti hai,",
"sukhi mitti ki anbujhi",
"pyaas chhupa lete hain",
"jaise kale badal,",
"jaise ek andhera kamra",
"dho deta hai rudan hamara,",
"amavas ki gahrai mein",
"kho jate hain",
"chatak aur chakvi ke ansu",
"main bhi kore chitraphlak par",
"gahre aur kale rangon men",
"apna sara dard gholkar",
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कूड़ा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/kuda-narendra-jain-kavita?sort= | [
"कूड़ा सभी फैला रहे हैं",
"कूड़ा फैल ही रहा",
"ख़ाली जगहों पर, ख़यालों में",
"और ज़ेहन में फैलता ही जा रहा यह",
"गर यही रफ़्तार रही",
"तो ज़्यादा देर नहीं लगेगी दुनिया को कूड़े में बदलने में",
"ऐसा नहीं कि कोई मजबूरी हो",
"लोग-बाग शौक़िया फैला रहे हैं कूड़ा",
"कोई अख़बार में",
"कोई प्रगतिशीलता में",
"कोई किताब में",
"कोई शिलालेख में",
"फैला ही रहा है कूड़ा",
"कूड़े की क़िस्में भी बेशुमार हैं",
"धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक",
"तकनीकी, मनोवैज्ञानिक और शैक्षणिक",
"और राजनैतिक कूड़े का ज़िक्र ही क्या किया जाए",
"ग़र्ज़ ये कि",
"गुज़र बसर करते हम यार कूड़े के इर्द-गिर्द",
"अब किससे कहें कि हटाओ बहुत हो चुका",
"कूड़े ने जहन्नुम बनाकर रख दी है",
"ये ज़िंदगी",
"kuDa sabhi phaila rahe hain",
"kuDa phail hi raha",
"khali jaghon par, khayalon mein",
"aur zehn mein phailta hi ja raha ye",
"gar yahi raftar rahi",
"to zyada der nahin lagegi duniya ko kuDe mein badalne mein",
"aisa nahin ki koi majburi ho",
"log bag shauqiya phaila rahe hain kuDa",
"koi akhbar mein",
"koi pragatishilta mein",
"koi kitab mein",
"koi shilalekh mein",
"phaila hi raha hai kuDa",
"kuDe ki qismen bhi beshumar hain",
"dharmik, samajik, sanskritik",
"takniki, manowaigyanik aur shaikshanaik",
"aur rajanaitik kuDe ka zikr hi kya kiya jaye",
"gharz ye ki",
"guzar basar karte hum yar kuDe ke ird gird",
"ab kisse kahen ki hatao bahut ho chuka",
"kuDe ne jahannum banakar rakh di hai",
"ye zindagi",
"kuDa sabhi phaila rahe hain",
"kuDa phail hi raha",
"khali jaghon par, khayalon mein",
"aur zehn mein phailta hi ja raha ye",
"gar yahi raftar rahi",
"to zyada der nahin lagegi duniya ko kuDe mein badalne mein",
"aisa nahin ki koi majburi ho",
"log bag shauqiya phaila rahe hain kuDa",
"koi akhbar mein",
"koi pragatishilta mein",
"koi kitab mein",
"koi shilalekh mein",
"phaila hi raha hai kuDa",
"kuDe ki qismen bhi beshumar hain",
"dharmik, samajik, sanskritik",
"takniki, manowaigyanik aur shaikshanaik",
"aur rajanaitik kuDe ka zikr hi kya kiya jaye",
"gharz ye ki",
"guzar basar karte hum yar kuDe ke ird gird",
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"ye zindagi",
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मीना कुमारी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/mina-kumari-dinesh-kushwah-kavita-1?sort= | [
"बिस्तर पर जाते ही",
"किसी का माथा सहलाने के लिए",
"हुलसी हथेलियाँ",
"फफक पड़तीं इतनी",
"कि उसके चेहरे पर उभर आती थी कोख।",
"जलते बलुवे पर नंगे पैर",
"चली जा रही थी एक माँ",
"तलवों में कपड़ा लपेटे",
"जब हम उसे देख रहे थे अमराइयों में।",
"महुवा के पेड़ तले",
"अपने आँचल में बीनते हुए कुछ",
"शायद दुनिया का सबसे रस भरा फूल",
"उसके गाल खिल उठते थे",
"और साथ ही भर आती थीं आँखें।",
"यह क्या अल्लाह मियाँ?",
"मात्र आँसुओं की भीख के लिए ही",
"नहीं होते बड़री आँखों के कटोरे।",
"चाँदनी में सिर्फ़ चाँद-तारों से",
"बातें कर जी नहीं भरता",
"चाहिए ही चाहिए एक आदमी",
"अकेले आदमी का आसमान",
"कभी ख़त्म नहीं होता।",
"वर्जित फल खाया भी, नहीं भी",
"स्वर्ग में रही भी, नहीं भी",
"पर ज़िंदगी-भर चबाती रही धतूरे के बीज",
"और लोग कैंथ की तरह उसका कच्चापन",
"अपनी लाड़ली के लिए ही",
"रसूल ने भेजा था एक जानमाज़",
"मुट्ठी-भर खजूर और एक चटाई।",
"झुकी पलकें पलटकर लिखतीं",
"एक ऐसे महान अभिनय का शिलालेख",
"कि मन करता था चूम लें इसे",
"जैसे करोड़ों-करोड़ लोग चूमते हैं क़ाबे का पत्थर",
"या जैसे बच्चों को बेवजह चूम लेते हैं।",
"bistar par jate hi",
"kisi ka matha sahlane ke liye",
"hulsi hatheliyan",
"phaphak paDtin itni",
"ki uske chehre par ubhar aati thi kokh",
"jalte baluwe par nange pair",
"chali ja rahi thi ek man",
"talwon mein kapDa lapete",
"jab hum use dekh rahe the amraiyon mein",
"mahuwa ke peD tale",
"apne anchal mein binte hue kuch",
"shayad duniya ka sabse ras bhara phool",
"uske gal khil uthte the",
"aur sath hi bhar aati theen ankhen",
"ye kya allah miyan?",
"matr ansuon ki bheekh ke liye hi",
"nahin hote baDri ankhon ke katore",
"chandni mein sirf chand taron se",
"baten kar ji nahin bharta",
"chahiye hi chahiye ek adami",
"akele adami ka asman",
"kabhi khatm nahin hota",
"warjit phal khaya bhi, nahin bhi",
"swarg mein rahi bhi, nahin bhi",
"par zindagi bhar chabati rahi dhature ke beej",
"aur log kainth ki tarah uska kachchapan",
"apni laDli ke liye hi",
"rasul ne bheja tha ek janamaz",
"mutthi bhar khajur aur ek chatai",
"jhuki palken palatkar likhtin",
"ek aise mahan abhinay ka shilalekh",
"ki man karta tha choom len ise",
"jaise karoDon karoD log chumte hain qabe ka patthar",
"ya jaise bachchon ko bewajah choom lete hain",
"bistar par jate hi",
"kisi ka matha sahlane ke liye",
"hulsi hatheliyan",
"phaphak paDtin itni",
"ki uske chehre par ubhar aati thi kokh",
"jalte baluwe par nange pair",
"chali ja rahi thi ek man",
"talwon mein kapDa lapete",
"jab hum use dekh rahe the amraiyon mein",
"mahuwa ke peD tale",
"apne anchal mein binte hue kuch",
"shayad duniya ka sabse ras bhara phool",
"uske gal khil uthte the",
"aur sath hi bhar aati theen ankhen",
"ye kya allah miyan?",
"matr ansuon ki bheekh ke liye hi",
"nahin hote baDri ankhon ke katore",
"chandni mein sirf chand taron se",
"baten kar ji nahin bharta",
"chahiye hi chahiye ek adami",
"akele adami ka asman",
"kabhi khatm nahin hota",
"warjit phal khaya bhi, nahin bhi",
"swarg mein rahi bhi, nahin bhi",
"par zindagi bhar chabati rahi dhature ke beej",
"aur log kainth ki tarah uska kachchapan",
"apni laDli ke liye hi",
"rasul ne bheja tha ek janamaz",
"mutthi bhar khajur aur ek chatai",
"jhuki palken palatkar likhtin",
"ek aise mahan abhinay ka shilalekh",
"ki man karta tha choom len ise",
"jaise karoDon karoD log chumte hain qabe ka patthar",
"ya jaise bachchon ko bewajah choom lete hain",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
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रागदर्शन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/ragdarshan-kuldeep-kumar-kavita-18?sort= | [
"मालकौंस में कलौंस न हो",
"दरबारी अख़बारी न लगे",
"यमन में वमन न हो",
"और",
"मारवा में खारवा न हो",
"तो मैं कहूँगा",
"मैं सुखी हूँ",
"मैं सुखी हूँ",
"क्योंकि मैंने गौड़ सारंग का रंग उड़ते नहीं देखा",
"जब-जब भी मल्लिकार्जुन मंसूर को गाते सुना",
"अल्हैया बिलावल की बिलबिलाहट नहीं सुनी",
"जब अलाउद्दीन ख़ाँ ने सरोद पर उसे उकेरा।",
"तोड़ी का तोड़ना नहीं देखा",
"कृष्णराव शंकर पंडित को सुनते हुए",
"मैं सुखी हूँ",
"क्योंकि आज भी रोशनआरा बेगम का शुद्ध कल्यान शुद्ध है",
"अब्दुल करीम ख़ाँ के सुर सारंगी को मात दे रहे हैं",
"फ़ैयाज़ ख़ाँ की जयजयवंती की जयजयकार है",
"केसरबाई की तान की तरह",
"आज",
"मैं सुखी हूँ",
"राग की आग",
"वही जानता है जो इसमें जला है",
"ढला है जिसकी शिराओं में अनेक श्मशानों का भस्म-कुंड",
"जिसने विद्ध किया है जीवित और मृत सबको",
"राग के देवसिद्ध शर से",
"बिहाग के नाग",
"जब लिपटते हैं",
"और निखिल बैनर्जी जब अल्हड़ प्रेमी की तरह",
"उनकी आँखों में आँखें डालकर",
"सितार को बीन की तरह बजाते हैं",
"तब",
"मुझे लगता है",
"मुझसे अधिक सुखी कोई नहीं",
"मैंने आज",
"राग देख लिया",
"malkauns mein kalauns na ho",
"darbari akhbari na lage",
"yaman mein waman na ho",
"aur",
"marwa mein kharwa na ho",
"to main kahunga",
"main sukhi hoon",
"main sukhi hoon",
"kyonki mainne gauD sarang ka rang uDte nahin dekha",
"jab jab bhi mallikarjun mansur ko gate suna",
"alhaiya bilawal ki bilbilahat nahin suni",
"jab alauddin khan ne sarod par use ukera",
"toDi ka toDna nahin dekha",
"krishnraw shankar panDit ko sunte hue",
"main sukhi hoon",
"kyonki aaj bhi roshanara begam ka shuddh kalyan shuddh hai",
"abdul karim khan ke sur sarangi ko mat de rahe hain",
"faiyaz khan ki jayjaywanti ki jayajaykar hai",
"kesarbai ki tan ki tarah",
"aj",
"main sukhi hoon",
"rag ki aag",
"wahi janta hai jo ismen jala hai",
"Dhala hai jiski shiraon mein anek shmshanon ka bhasm kunD",
"jisne widdh kiya hai jiwit aur mrit sabko",
"rag ke dewsiddh shar se",
"bihag ke nag",
"jab lipatte hain",
"aur nikhil bainarji jab alhaD premi ki tarah",
"unki ankhon mein ankhen Dalkar",
"sitar ko been ki tarah bajate hain",
"tab",
"mujhe lagta hai",
"mujhse adhik sukhi koi nahin",
"mainne aaj",
"rag dekh liya",
"malkauns mein kalauns na ho",
"darbari akhbari na lage",
"yaman mein waman na ho",
"aur",
"marwa mein kharwa na ho",
"to main kahunga",
"main sukhi hoon",
"main sukhi hoon",
"kyonki mainne gauD sarang ka rang uDte nahin dekha",
"jab jab bhi mallikarjun mansur ko gate suna",
"alhaiya bilawal ki bilbilahat nahin suni",
"jab alauddin khan ne sarod par use ukera",
"toDi ka toDna nahin dekha",
"krishnraw shankar panDit ko sunte hue",
"main sukhi hoon",
"kyonki aaj bhi roshanara begam ka shuddh kalyan shuddh hai",
"abdul karim khan ke sur sarangi ko mat de rahe hain",
"faiyaz khan ki jayjaywanti ki jayajaykar hai",
"kesarbai ki tan ki tarah",
"aj",
"main sukhi hoon",
"rag ki aag",
"wahi janta hai jo ismen jala hai",
"Dhala hai jiski shiraon mein anek shmshanon ka bhasm kunD",
"jisne widdh kiya hai jiwit aur mrit sabko",
"rag ke dewsiddh shar se",
"bihag ke nag",
"jab lipatte hain",
"aur nikhil bainarji jab alhaD premi ki tarah",
"unki ankhon mein ankhen Dalkar",
"sitar ko been ki tarah bajate hain",
"tab",
"mujhe lagta hai",
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"mainne aaj",
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रियलिटी शो में पिता - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/riyaliti-sho-mein-pita-pradeep-saini-kavita?sort= | [
"नौ साल की बेटी",
"आशा भोसले सरीखी मादक आवाज़ को",
"अपनी भाव-भंगिमाओं से और सजा-सँवार रही है",
"दर्शक आह्लादित हैं और श्रोता कोई नहीं",
"यह संगीत को देखने का युग है",
"तभी उसकी आवाज़ की",
"किसी गहरी खाई में धँस जाती है",
"पिता की ख़ुशी",
"इतना तो जानता है पिता",
"सिर्फ़ शब्द नहीं",
"अर्थ गाता है गायक",
"और जैसे ही गहराती हैं",
"पिता के माथे पर लकीरें",
"बदल जाता है दृश्य",
"जब भी सतह के नीचे",
"नजर आने लगती हैं चीज़ें",
"अपने सही रंग-रूप में",
"ठीक उसी वक़्त",
"कैमरा खो बैठता है रुचि",
"अब पिता की चिंता नहीं",
"नाचते-झूमते दर्शकों की तालियाँ हैं",
"कैमरे की आँख में",
"प्रस्तुति को देख निर्णायक गण",
"कम उम्र में बेटी के",
"इस प्रदर्शन पर हतप्रभ हैं",
"पढ़ रहे हैं तारीफ़ में क़सीदे",
"इस सबके बाद",
"दृश्य में लौट आता है",
"तालियाँ बजाने में देर से शामिल हुआ पिता।",
"nau sal ki beti",
"asha bhosle sarikhi madak awaz ko",
"apni bhaw bhangimaon se aur saja sanwar rahi hai",
"darshak ahladit hain aur shrota koi nahin",
"ye sangit ko dekhne ka yug hai",
"tabhi uski awaz ki",
"kisi gahri khai mein dhans jati hai",
"pita ki khushi",
"itna to janta hai pita",
"sirf shabd nahin",
"arth gata hai gayak",
"aur jaise hi gahrati hain",
"pita ke mathe par lakiren",
"badal jata hai drishya",
"jab bhi satah ke niche",
"najar aane lagti hain chizen",
"apne sahi rang roop mein",
"theek usi waqt",
"camera kho baithta hai ruchi",
"ab pita ki chinta nahin",
"nachte jhumte darshkon ki taliyan hain",
"camere ki ankh mein",
"prastuti ko dekh nirnayak gan",
"kam umr mein beti ke",
"is pradarshan par hataprabh hain",
"paDh rahe hain tarif mein qaside",
"is sabke baad",
"drishya mein laut aata hai",
"taliyan bajane mein der se shamil hua pita",
"nau sal ki beti",
"asha bhosle sarikhi madak awaz ko",
"apni bhaw bhangimaon se aur saja sanwar rahi hai",
"darshak ahladit hain aur shrota koi nahin",
"ye sangit ko dekhne ka yug hai",
"tabhi uski awaz ki",
"kisi gahri khai mein dhans jati hai",
"pita ki khushi",
"itna to janta hai pita",
"sirf shabd nahin",
"arth gata hai gayak",
"aur jaise hi gahrati hain",
"pita ke mathe par lakiren",
"badal jata hai drishya",
"jab bhi satah ke niche",
"najar aane lagti hain chizen",
"apne sahi rang roop mein",
"theek usi waqt",
"camera kho baithta hai ruchi",
"ab pita ki chinta nahin",
"nachte jhumte darshkon ki taliyan hain",
"camere ki ankh mein",
"prastuti ko dekh nirnayak gan",
"kam umr mein beti ke",
"is pradarshan par hataprabh hain",
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रफ़ी साहब - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/art/rafi-sahab-saumya-malviya-kavita?sort= | [
"बहुत शोर है रफ़ी साहब",
"शहर में इमारतों का",
"बड़े सन्नाटे हैं दिलों में रफ़ी साहब",
"क़स्बे की रूह ऊब के कीचड़ में धँसी है",
"गाँव का जिस्म तार-तार है वीरानी से",
"शकज़दा हैं लोग परेशानकुन हैं",
"हाथ तहख़ानों में बंद",
"पैर सहरा की ख़ाक छान रहे हैं",
"साँसें बबूल के झाड़ में फँसी हैं",
"निगाहों में ख़ौफ़ के जाले हैं",
"बड़ी चुप्पी है रफ़ी साहब",
"बड़ी दूरियाँ हैं",
"कोई आवाज़ नहीं जो पुकार ले",
"कोई साज़ जो उबार ले",
"कोई नदी नहीं जिसके किनारे रोयें",
"किसी टीले पे बैठ उदासियाँ बोयें",
"लोग लौटने पर आमादा हैं",
"ग़म को कमज़ोरी का नाम देते हैं",
"साथ को मजबूरी का नाम देते हैं",
"मंदिरों में अजब बेरुख़ी है",
"मस्जिदों में ग़ज़ब बेबसी है",
"दफ़्तरों में कारकुन हैं कामगार नहीं",
"फ़क़त ज़िंदा हैं हस्ती के तलबगार नहीं",
"बहुत बोझ है मन पर मश्विरों का",
"बहुत बोझ है ख़्वाबों पे तज़्किरों का",
"बस इक अय्याम है जो चल रहा है",
"लोग कहते हैं कि ज़माना बदल रहा है",
"हाकिम के चेहरे पे वही क्रूर हँसी है",
"वो चुनी हुई दुनिया भी बहुत दूर बसी है",
"बड़ी नारसाई है रफ़ी साहब",
"ऐसे में कितनी ग़नीमत है कि आप हैं",
"दुःखों पर अब भी बरस रहा है",
"आवाज़ का महीन रेशम",
"सुबहें फूट रही हैं सुरों में सँजोई हुई",
"कभी किसी बिछड़े हुए भजन का साथ है",
"दिल पर कभी किसी भूली ग़ज़ल का हाथ है",
"एक सदा है जो दश्त में मरहम लिए घूम रही है",
"एक बारिश है जो तारीकियों में झूम रही है",
"आप हैं रफ़ी साहब तो हम हारे हुए लोग",
"अब भी बराए-फ़रोग़ हैं",
"आप हैं रफ़ी साहब तो ये बिखरा हुआ मुल्क",
"अभी भी हिंदोस्तान है।",
"bahut shor hai rafi sahab",
"shahr mein imarton ka",
"baDe sannate hain dilon mein rafi sahab",
"qasbe ki rooh ub ke kichaD mein dhansi hai",
"ganw ka jism tar tar hai wirani se",
"shakazda hain log pareshankun hain",
"hath tahkhanon mein band",
"pair sahra ki khak chhan rahe hain",
"sansen babul ke jhaD mein phansi hain",
"nigahon mein khauf ke jale hain",
"baDi chuppi hai rafi sahab",
"baDi duriyan hain",
"koi awaz nahin jo pukar le",
"koi saz jo ubar le",
"koi nadi nahin jiske kinare royen",
"kisi tile pe baith udasiyan boyen",
"log lautne par amada hain",
"gham ko kamzori ka nam dete hain",
"sath ko majburi ka nam dete hain",
"mandiron mein ajab berukhi hai",
"masjidon mein ghazab bebasi hai",
"daftron mein karkun hain kamgar nahin",
"fak zinda hain hasti ke talabgar nahin",
"bahut bojh hai man par mashwiron ka",
"bahut bojh hai khwabon pe tazkiron ka",
"bus ek ayyam hai jo chal raha hai",
"log kahte hain ki zamana badal raha hai",
"hakim ke chehre pe wahi kroor hansi hai",
"wo chuni hui duniya bhi bahut door basi hai",
"baDi narasai hai rafi sahab",
"aise mein kitni ghanimat hai ki aap hain",
"duःkhon par ab bhi baras raha hai",
"awaz ka muhin resham",
"subhen phoot rahi hain suron mein sanjoi hui",
"kabhi kisi bichhDe hue bhajan ka sath hai",
"dil par kabhi kisi bhuli ghazal ka hath hai",
"ek sada hai jo dasht mein marham liye ghoom rahi hai",
"ek barish hai jo tarikiyon mein jhoom rahi hai",
"ap hain rafi sahab to hum hare hue log",
"ab bhi baraye farogh hain",
"ap hain rafi sahab to ye bikhra hua mulk",
"abhi bhi hindostan hai",
"bahut shor hai rafi sahab",
"shahr mein imarton ka",
"baDe sannate hain dilon mein rafi sahab",
"qasbe ki rooh ub ke kichaD mein dhansi hai",
"ganw ka jism tar tar hai wirani se",
"shakazda hain log pareshankun hain",
"hath tahkhanon mein band",
"pair sahra ki khak chhan rahe hain",
"sansen babul ke jhaD mein phansi hain",
"nigahon mein khauf ke jale hain",
"baDi chuppi hai rafi sahab",
"baDi duriyan hain",
"koi awaz nahin jo pukar le",
"koi saz jo ubar le",
"koi nadi nahin jiske kinare royen",
"kisi tile pe baith udasiyan boyen",
"log lautne par amada hain",
"gham ko kamzori ka nam dete hain",
"sath ko majburi ka nam dete hain",
"mandiron mein ajab berukhi hai",
"masjidon mein ghazab bebasi hai",
"daftron mein karkun hain kamgar nahin",
"fak zinda hain hasti ke talabgar nahin",
"bahut bojh hai man par mashwiron ka",
"bahut bojh hai khwabon pe tazkiron ka",
"bus ek ayyam hai jo chal raha hai",
"log kahte hain ki zamana badal raha hai",
"hakim ke chehre pe wahi kroor hansi hai",
"wo chuni hui duniya bhi bahut door basi hai",
"baDi narasai hai rafi sahab",
"aise mein kitni ghanimat hai ki aap hain",
"duःkhon par ab bhi baras raha hai",
"awaz ka muhin resham",
"subhen phoot rahi hain suron mein sanjoi hui",
"kabhi kisi bichhDe hue bhajan ka sath hai",
"dil par kabhi kisi bhuli ghazal ka hath hai",
"ek sada hai jo dasht mein marham liye ghoom rahi hai",
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साहित्य के विषय पर बेहतरीन उद्धरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/literatures | [
"किसी की प्रशंसा या विरोध में लिखा हुआ न ही किसी को आहत करता है और न ही इनसे कोई क्षति पहुँचती है। मनुष्य अपने ख़ुद के लिखे से पूर्ण या अपूर्ण हो सकता है, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसके बारे में कही गई बातों से नहीं।",
"यदि प्रथम साक्षात् की बेला में कथानायक अस्थायी टट्टी में बैठा है तो मैं किसी भी साहित्यिक चमत्कार से उसे ताल पर तैरती किसी नाव में बैठा नहीं सकता।",
"मैंने जो भी लिखा है उसे दोबारा कभी नहीं पढ़ा। मैंने जो भी किया है उसके लिए मुझे डर है कि मैं शर्मिंदगी न महसूस करूँ।",
"कभी कभी घर पर रखी बहुत सारी किताबों को देख कर मुझे महसूस होता है कि इससे पहले कि मैं हर क़िताब तक पहुँचू मैं इस दुनिया से चला जाऊंगा, लेकिन फिर भी नई क़िताबों को खरीदने का उत्साह मेरा कम नहीं होता। जब भी मैं किसी बुक स्टोर पर जाता हूँ और मुझे वहाँ मेरी पसंद की कोई क़िताब दिख जाती है तो मैं ख़ुद से यह बात कहता हूँ कि यह कितने दुःख की बात है कि मैं यह क़िताब ले नहीं सकता क्योंकी मेरे पास उसकी एक प्रति पहले से है।",
"स्वार्थ और स्वाधीनता में क्या अन्तर है? प्रतिबद्धता और पराधीनता में कैसे भेद करें? विवेक को कायरता के अतिरिक्त कोई नाम कैसे दें?",
"कई बार पढने के अलावा, न पढना भी महत्वपूर्ण है।",
"सच तो ये है कि हम सब बहुत कुछ पीछे छोड़ कर जीते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हम समझते हैं कि यह जीवन अनंत है। कभी न कभी हर मनुष्य सभी अनुभवों से गुजरेंगे।",
"मुझे तो समस्त ऐसे साहित्य से आपत्ति है जो मात्र यही या वही करने की क़सम खाए हुए हो।",
"हमें उन चीज़ों के बारे में लिखने से अपने को रोकना चाहिए, जो हमें बहुत उद्वेलित करती हैं...",
"स्वर्ग के सारे फरिश्ते और धरती के ताम-झाम, एक शब्द में कहूँ तो संसार के विशाल फ्रेम में रचे गए सारे अंग मन के बिना कोई पदार्थ ही नहीं है… यानी उनका होना, उन्हें अवबोध में उतरना या जानना ही है।",
"सँकरे रास्ते और तंगदिल लोगों के आक्रामक समूहों से जूझते हुए चलने का प्रयत्न करना, साहित्य में जीना है।",
"यहाँ (हिंदी में) केवल आरोप लगते हैं और निर्णय दिए जाते हैं। बल्कि आरोप ही अंतिम निर्णय होते हैं।",
"अक्सर हिंदी का ईमानदार लेखक भ्रम और उत्तेजना के बीच की ज़िंदगी जीता है।",
"भदेस से परहेज़ हमें भीरु बनाता है।",
"हिंदी में लिखने का अर्थ निरंतर प्रहारों से सिर बचाना है, बेशर्मी से।",
"अदृश्य किंतु श्रुतिगोचर छंद के प्रवाह के मध्य ही शब्द बहते चले आते हैं, फलस्वरूप छंद का नक़्शा अत्यंत सुनियमित हो उठने के साथ-साथ शब्द मानों नेत्रहीनों की तरह आकर एक-दूसरे की देह से सट जाते हैं, वे अनिवार्य रूप आ जाते हैं, इसके द्वारा निपुण और सुगठित एक पद्य-पंक्ति पाई जा सकती है, किंतु उसमें उस समय अकसर सजीव व्यक्तित्व का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता।",
"शब्दों की क्या कोई अपनी पवित्रता होती है? जड़ निष्चल अकेला एक शब्द, उसकी कोई शक्ति नहीं, जनन नहीं, किसी दूसरे शब्द के समवाय संघर्षण से वह जल उठता है। जिस तरह अग्निदेवता समस्त पापहर्ता हैं, कविता भी वैसी ही होती है। उसकी अग्नि में जो कुछ भी समिधा के रूप में आ पाता है, वही अंत में पवित्रता अर्जित करता है।",
"साहित्य हमें पानी नहीं देता, वह सिर्फ़ हमें अपनी प्यास का बोध कराता है। जब तुम स्वप्न में पानी पीते हो, तो जागने पर सहसा एहसास होता है कि तुम सचमुच कितने प्यासे थे।",
"उस कारण को ढूँढ़ो जो तुम्हारे भीतर लिखने की इच्छा पैदा करता है, झाँक कर देखो क्या उस कारण की जड़ें तुम्हारे हृदय की गहराइयों तक फैली हैं? और फिर अपने आप से स्वीकार करो कि यदि तुम्हें लिखने से रोका गया तो तुम जी नहीं पाओगे।",
"…और लिखना सारे विश्लेषण के बाद एक रहस्यमय क्रिया है, एक रहस्य का चमत्कार, ऐसा जो बिना आहूत सहसा प्रकट होता है और चकित कर देता है।",
"एक लेखक आत्म से शुरू करके शून्य की ओर जा सकता है, किंतु जो अपने को शून्य से शुरू करता है, उसे ‘आत्म’ तक पहुँचने के लिए अपनी समूची संस्कृति को बदलना होगा—वरना वह सिर्फ़ प्रयोगशील लेखक बनकर रह जाएगा।",
"लिखना पूर्वजन्म का कोई दंड झेलना है। इसे निरंतर झेले बिना इससे मुक्ति नहीं। मैं झेल रहा हूँ। पर मुझसे कहा जाए कि इस जन्म में भी आप पाप कर रहे हैं, तो यह मुझे स्वीकार नहीं।",
"वह हर किताब का पन्ना मोड़ देता है ताकि अगली बार जब वह पढ़ना शुरू करे तो याद रहे, पिछली बार कहाँ छोड़ा था। एक दिन जब वह नहीं रहेगा, तो इन किताबों में मुड़े हुए पन्ने अपने-आप सीधे हो जाएँगे—पाठक की मुकम्मिल ज़िंदगी को अपने अधूरेपन से ढँकते हुए…",
"यदि साहित्य को आप अनुभव की वस्तु मानेंगे तो उसका अनिवार्य नतीजा होगा कि आलोचना उपभोक्ता के लिए सहायक वस्तु होगी, उस आलोचना का अपना कोई अस्तित्व नहीं होगा।",
"एक पुस्तक का अस्तित्व एकाकी नहीं हो सकता। वह एक सम्बन्ध है, कई सारे सम्बंधों की धुरी।",
"साहित्यकार की स्वतंत्रता अन्य आदमियों की स्वतंत्रता से थोड़ी भिन्न होती है।",
"मुझे लगता है शरद के सिवा ऐसा कोई समय नहीं जब हमारी साँस में मिट्टी की बस एक गन्ध महसूस होती है-पकी हुई मिट्टी की। यह गन्ध समुद्र की गन्ध से कमतर नहीं है। समुद्र की लहरें जब दूर रहती हैं, तब उसकी गन्ध में एक कड़वापन रहता है, लेकिन जब वह एक स्वर के साथ पृथ्वी तट को छूती है तो उसमें मीठापन आ जाता है। यह अपने भीतर एक गहराई को समेटे होती है|",
"मैं हिंदी साहित्य की दुनिया का नागरिक क़तई नहीं हूँ। उसे उन्हीं चरणों में पड़ी रहने दो, जहाँ वह पड़ी है। वही शायद उसका लक्ष्य था। दरबारों से निकली और दरबारों में घुस गई।",
"किसी राष्ट्र के लिए पूर्वग्रहहीन होना शायद सबसे ख़तरनाक स्थिति होती है, क्योंकी अक्सर इसकी परिणति अनास्था, अविश्वास और कुंठा के लांछनों में होती है। पहले के युगों में संभवतः इन भ्रांत लांछनों के पीछे ईमानदारी होती थी। दुर्भाग्य से आज के युग में इनके पीछे बेईमानी की ही मात्र अधिक है।",
"युग चेतना की अभिव्यक्ति के लिए अपना एक छंद चाहिए।",
"बड़ा साहित्य हमें अक्सर किसी-न-किसी भय के सम्मुख ले जाता है, यह भय ही सत्य का अन्यतम एक मूल्य है।",
"साहित्य में या महज़ जीवन जीने के लिए आप कुछ कीजिए, वे निगाहें आपको लगातार एहसास देंगी कि आप ग़लत हैं, घोर स्वार्थी हैं, हल्के हैं आदि।",
"मेरा क़सूर यह है कि लोग मुझे पढ़ते हैं।",
"हिंदी में लेखक होने का अर्थ है, निरंतर उन जगहों द्वारा घूरे जाना, जो आपको अपराधी समझती हैं।",
"यह भयानक है, जब लेखक लिखना बंद कर देता है। उसके पास दुनिया को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं रहता, सिवा अपने चेहरे के!",
"हिंदी में लेखक का आस-पास बहुत भयावना और निर्मम होता है। वह हमला न भी करे, उसे बचाव की लड़ाई लड़नी ही पड़ती है।",
"वास्तव में श्रेष्ठ साहित्य की रचना परंपरा के भीतर युग के यथार्थ को समेट लेती है।",
"एक लेखक मरने के बाद अपनी क़िताबों में तब्दील हो जाता है।",
"लेखक के रूप में आप यात्री बनें, तो यह तैयारी मन में कर लेते हैं कि यात्रा कठिन होगी, मंज़िल अनिश्चित और अनजानी है, सुख केवल चलने और चलते रहने भर का है।",
"जब एक सही पंक्ति बन जाती है तो उसमें परिवर्तन संभव नहीं।",
"आख़िरकार, कितना आसान होता है एक कहानी को चूर-चूर कर देना। ख़यालों के एक सिलसिले को तोड़ देना। एक सपने के टुकड़े को नष्ट कर देना, जिसे चीनी मिट्टी के किसी पात्र की तरह सावधानी से सँजोकर यहाँ-वहाँ ले जाया जा रहा हो। उसे जीवित रहने देना, उसका साथ देना, कहीं अधिक कठिन काम है।",
"सच्चे लेखक तो भाषा में सत्य को ही उचारना चाहेंगे, वे भाषा के भीतर ही नीरवता के अबाध विस्तार को पकड़ना चाहेंगे! नीरव से नीरव को नहीं, लेखक शब्द के द्वारा ही नि:शब्द को पकड़ना चाहते हैं।",
"जो लेखक समय के समग्र शिल्प में जीवित नहीं रहता उसकी विकलांगता निश्चित है।",
"हिंदी में पठनीय साहित्य, साहित्य नहीं होता। वह कुछ भ्रष्ट और सतही-सी चीज़ होता है।",
"यह जान लेना चाहिए कि उपादान बाधक होते हैं, परिमंडल बाधक होते हैं। लेकिन इन बाधाओं की दुहाई देकर हम स्वयं को दायित्व से मुक्त नहीं मानेंगे, इन्हीं में से होते हुए ही हम सिर्फ़ अपना-अपना काम करते रहेंगे।",
"साहित्य को और (यदाकदा) अधिभौतिक जटिल मनन को समर्पित अपने जीवन के दौरान, मुझे समय के अस्तित्व के नकार का एहसास या पूर्वाभास हुआ, जिसमें मैं स्वयं यक्तीन नहीं करता, यद्यपि वह मेरे मन के भीतर, रात में और थके-माँदे धुँधलके में स्वयंसिद्धि की किसी मायावी ताक़त से ओतप्रोत हो नियमित विचरण करता रहता है। यह नकार मेरी सारी पुस्तकों में किसी-न-किसी रूप में मौजूद है।",
"विरोधाभास साहित्यकार के मानस में नहीं है, विरोधाभास हमारे उस भावनात्मक परिवेश में है जिससे साहित्यकार को जूझना पड़ रहा है। इसकी मूल हमारी राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्थिति में है।",
"हिंदी में लोकप्रिय होना अपराध है। मैं पुराना अपराधी हूँ।",
"शब्द की किसी अस्पृश्यता को प्रतिपन्न करना मेरा अभिप्राय नहीं है, मेरा भी विश्वास है कि सभी शब्द कविता के शब्द हो सकते हैं, लेकिन शब्द लक्ष्यभ्रष्ट और उद्देश्यहीन नहीं होने चाहिए।",
"अब तक का मेरा सब कुछ अगर प्रकाशित हो गया तो फिर मेरे पास सादे काग़ज़ के लिए बचेगा क्या? सादे काग़ज़ की चुनौती जितनी मेरे प्रकाशित से है, उतनी ही अप्रकाशित से।",
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सिनेमा के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/cinema | [
"जहाँ साहित्य, संगीत, अभिनय, नृत्य जैसे कलासिक कला-रूपों के साथ ही फ़ोटोग्राफी, एनीमेशन, डिजिटल एडिटिंग, ग्राफ़िक्स जैसे अन्य आधुनिक कला-रूप प्रतिबिंबित होते हैं। आधुनिक समाज और सिनेमा का अनन्य संबंध देखा जाता है, जहाँ दोनों एक-दूसरे की प्रवृत्तियों का अनुकरण करते नज़र आते हैं। इस चयन में सिनेमा विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/kavita | [
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन उद्धरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/quotes | [
"एक निगाह से देखना कलाकार की निगाह से देखना नहीं है।",
"सच्चा लेखक जितनी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले लेता है, स्वयं को उतना अधिक तुच्छ अनुभव करता है।",
"कला हमेशा मनुष्य का चुनाव करती है, जो मूर्त है, कला सैधान्त्तिक नहीं होती।",
"प्रकाशन-प्रदर्शन औसत-अक्षम कलाकार को खा जाता है।",
"आगे का कलाकार मेहनतकश की ओर देखता है।",
"प्रभाव सभी कवियों और कलाकारों पर पड़ते हैं।",
"जो आयु को चैलेंज करेगा, आस्कर वाइल्ड की 'पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे' बन जाएगा।",
"आधुनिकता का अर्थ वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा है।",
"कलाकार के पास हृदय का यौवन होना चाहिए, जिसे धरती पर उड़ेलकर उसे जीवन की कुरूपता को सुंदर बनाना है।",
"लेखक का मार्ग अपनी सुदीर्घ परंपरा और विचार से निर्धारित होगा, वह राजनैतिक दलों की करवटों से नहीं बनेगा।",
"मुझे नहीं पता कि मैं भगवान में विश्वास करता हूँ या नहीं। मुझे लगता है, वास्तव में, मैं किसी प्रकार का बौद्ध हूँ।",
"एक कलाकार का स्टूडियो एक छोटी सी जगह होनी चाहिए क्योंकि छोटे कमरे मन को अनुशासित करते हैं और बड़े कमरे इसे विचलित करते हैं।",
"मैं एक काला कलाकार नहीं हूँ। मैं कलाकार हूँ।",
"एक कलाकार को क़ैदी होने से बचना चाहिए। उसे कभी भी ख़ुद का क़ैदी, अपनी शैली का क़ैदी, अपनी प्रतिष्ठा का क़ैदी, अपनी सफलता का क़ैदी नहीं होना चाहिए।",
"कलाकार दुनिया को छोड़ता है, ताकि उसे अपने कृतित्व में पा सके।",
"चित्रकारी की मूल बातें चित्रकारी की ताक़त और रंग का आकर्षण हैं।",
"सबसे महान आनंद समझ का आनंद है।",
"जीवन के रहते मनुष्य को एक जिंदादिल आदमी होना चाहिए और मरने के बाद एक कलाकार।",
"मैं चीज़ों को पेंट नहीं करता। मैं केवल चीज़ों के बीच के अंतर को चित्रित करता हूँ।",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन कला लेखन | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/kala-lekhan | [
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन निबंध | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/essay | [
"जो लोग जन्म-परंपरा को नहीं मानते—जो लोग इस बात पर विश्वास नहीं करते कि पूर्व-जन्म के संस्कार बीज रूप से बने रहते हैं और समुचित उत्तेजना पाते ही फूलने और फलने लगते हैं—उन्हें मास्टर मदन को देखना चाहिए, उसका गाना सुनना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि इस शिशु",
"भोजन के बाद सोफा पर बैठकर सिगरेट के कश खींचते हुए जैसे कोई ज़िंदादिल मज़ेदार अनुभवी व्यक्ति अपने मनोरंजक अनुभव सुना रहा हो—कुछ-कुछ इसी तरह का है सच्चे निबंध का वातावरण। इसीलिए निबंध को ‘किसी मज़ेदार और बहुश्रुत व्यक्ति के भोजनोत्तर एकांत संभाषण’ की संज्ञा",
"भावनापरक एवं संकल्पात्मक होने के कारण कला मानव की सांस्कृतिक चेतना को, धर्म और दर्शन की अपेक्षा अधिक समग्रता के साथ व्यक्त करती है। यही कारण है कि एशिया की आंतरिक एकता का जितना प्रत्यक्ष प्रमाण कला में उपलब्ध होता है उतना किसी अन्य साधन से नहीं। यह अवश्य",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन अनुवाद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/anuwad | [
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन कहानी | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/story | [
"खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मज़दूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुलाकर? दूसरे मज़दूर खेत पहुँचकर एक-तिहाई काम कर चुकेंगे, तब कहीं",
"सारे गाँव में बदलू मुझे सबसे अच्छा आदमी लगता था क्योंकि वह मुझे सुंदर-सुंदर लाख की गोलियाँ बनाकर देता था। मुझे अपने मामा के गाँव जाने का सबसे बड़ा चाव यही था कि जब मैं वहाँ से लौटता था तो मेरे पास ढेर सारी गोलियाँ होतीं, रंग-बिरंगी गोलियाँ जो किसी भी",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन लेख | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/article | [
"बरसों पहले की बात है। मैं बीमार था। उस बीमारी में एक दिन मैंने सहज ही रेडियो लगाया और अचानक एक अद्वितीय स्वर मेरे कानों में पड़ा। स्वर सुनते ही मैंने अनुभव किया कि यह स्वर कुछ विशेष है, रोज़ का नहीं। यह स्वर सीधे मेरे कलेजे से जा भिड़ा। मैं तो हैरान",
"'संगम' की अद्भुत सफलता ने राजकपूर में गहन आत्मविश्वास भर दिया और उसने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की—'मेरा नाम जोकर', 'अजंता', 'मैं और मेरा दोस्त' और 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्'। पर जब 1965 में राजकपूर ने 'मेरा नाम जोकर' का निर्माण आरंभ किया तब",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन रेखाचित्र | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/rekhachitra | [
"सन् 1916 से 1922 के आसपास की काशी पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी। ड्योढ़ी का नौबतख़ाना और नौबतख़ाने से निकलने वाली मंगलध्वनि। \r\n\r\nअमीरुद्दीन अभी सिर्फ़ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन यात्रा वृत्तांत | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/yatra-vritaant | [
"फ़्लौरेंस \r\n15/06/1952\r\n\r\nजब हम वेनिस से फ्लौरेंस के लिए रवाना हुए, फिर वही हरी-भरी खेतियाँ नज़र आने लगीं। गेहूँ की कटाई ज़ोरों पर चल रही हैं—कहीं पूलियाँ, कहीं बोझे। कहीं-कहीं दवाई भी हो रही है। कटाई ज़्यादातर हाथों से ही, किंतु अपने यहाँ की तरह हँसिया",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन संस्मरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/sansmaran | [
"पथेर पाँचाली फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला था! इस ढाई साल के कालखंड में हर रोज़ तो शूटिंग होती नहीं थी। मैं तब एक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करता था। नौकरी के काम से जब फ़ुर्सत मिलती थी, तब शूटिंग करता था। मेरे पास उस समय पर्याप्त पैसे भी नहीं थे।",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन आत्मकथ्य | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/autobiography | [
"बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल\r\n\r\nमक़बूल अब लड़का नहीं रहा क्योंकि उसके दादा चल बसे। लड़के के अब्बा ने सोचा क्यों न उसे बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में दाख़िल करा दिया जाए, वरना दिनभर अपने दादा के कमरे में बंद रहता है। सोता भी है तो दादा के बिस्तर-पर और वही भूरी",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन नाटक | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/Play | [
"राकेश का मन तो कह रहा था कि बिना पूरी तैयारी के नाटक नहीं खेलना चाहिए और जब नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार भी नए हों, मंच पर आकर डर जाते हों, घबरा जाते हों और कुछ-कुछ बुद्धू भी हों, तब तो अधूरी तैयारी से खेलना ही नहीं चाहिए। उसके साथी मोहन, सोहन और",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन बेला | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/bela | [
"18 मई 2024",
"18 मई 2024",
"उन सुनसान निद्राविहीन रातों में मैंने एक विचार के रूप में चाक़ू के बारे में बहुत सोचा। चाक़ू एक औज़ार था, और उसके प्रयोग से निकलता हुआ एक अर्जित अर्थ भी। \r\n\r\nभाषा भी तो एक चाक़ू थी। यह दुनिया को चाक कर स",
"02 मई 2024",
"02 मई 2024",
"बच्चों के साथ विहान ड्रामा वर्क्स, भोपाल की विशेष नाट्य कार्यशाला शुरू हो चुकी है। यह नाटक कार्यशाला 01 मई 2024 से 26 मई 2024 तक चलेगी तथा इस दौरान बच्चों के साथ मिलकर नाटक ‘पीली पूँछ’ तैयार किया जाए",
"17 अप्रैल 2024",
"17 अप्रैल 2024",
"एक भाषा में कालजयी महत्त्व प्राप्त कर चुकीं साहित्यिक कृतियों के पुनर्पाठ के लिए केवल समालोचना पर निर्भर रहना एक तरह की अकर्मठता और पिछड़ेपन का प्रतीक है। यह निर्भरता तब और भी अनावश्यक है जब आलोचना-पद",
"10 अप्रैल 2024",
"10 अप्रैल 2024",
"स्माइल फ़ाउंडेशन—यूरोपीय संघ (भारत में यूरोपीय संघ का प्रतिनिधिमंडल) के साथ साझेदारी में बच्चों और नौजवानों के लिए वार्षिक स्माइल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (सिफ्सी) के 10वें संस्करण की मेज़बानी करेगा। स",
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कलाकार के विषय पर बेहतरीन ब्लॉग | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/artist/blog | [
"उस्ताद राशिद ख़ान को एक संगीत-प्रेमी कैसे याद कर सकता है? इस पर ठहरता हूँ तो कुछ तस्वीरें ज़ेहन में आती हैं। ‘राग यमन’, ‘मारवा’, ‘सोहनी’, ‘मेघ’ और ‘ललित’ जैसे गंभीर ख़याल गाने वाले सिद्ध गायक—राशिद ख़ान",
"‘‘जिस शैलजा से तुम यहाँ पहली बार मिल रहे हो मैं उसी शैलजा को ढूँढ़ने आई हूँ, सामने होकर भी मिलती नहीं है, अगर तुम्हें मुझसे पहले मिल जाए न, तो सँभालकर रख लेना।’’\r\n\r\n‘थ्री ऑफ़ अस’ फ़िल्म के लगभग आधा बीत ज",
"जाने कितने बरस पहले का दिन रहा होगा, जब सत्यजित राय ने बीकानेर के जूनागढ़ क़िले के सामने सूरसागर तालाब किनारे पीपल पेड़ के नीचे तंदूरा लिए उसे सुना था, जिसे आगे चल उन्होंने सोनी देवी के रूप में जाना। उसक",
"मैं गद्य का आदमी हूँ, कविता में मेरी गति और मति नहीं है; यह मैं मानता हूँ और कहता भी हूँ फिर भी यह इच्छा हो रही है कि आज की कविता के सरोकार तथा मूल्यबोध के बारे में कुछ स्याही ख़र्च करूँ। इस अनाधिकार च",
"नाटक केवल शब्दों नहीं, अभिनेता की भंगिमाओं, कार्यव्यापार और दृश्यबंध की सरंचना के सहारे हमारे मानस में बिंबों को उत्तेजित कर हमारी कल्पना की सीमा को विस्तृत कर देते हैं और रस का आस्वाद कराते हैं। जिस",
"यदि कालिपद कुम्भकार को किसी जादू के ज़ोर से आई.आई.टी. कानपुर में पढ़ाने का मौक़ा मिला होता तो बहुत सम्भव है कि आज हमारे देश में कुम्हारों के काम को, एक नई दिशा मिल गई होती। हो सकता है कि घर-घर में फिर",
"थळी से बहावलपुर, बहावलपुर से सिंध और फिर वापिस वहाँ से अपने देस तक घोड़े, ऊँट आदि का व्यापार करना जिन जिप्सी परिवारों का कामकाज था; उन्हीं में से एक परिवार में रेशमा का जन्म हुआ। ये जिप्सी परिवार क़बील",
"पूर्वकथन\r\n\r\nकिसी फ़िल्म को देख अगर लिखने की तलब लगे तो मैं अमूमन उसे देखने के लगभग एक-दो दिन के भीतर ही उस पर लिख देती हूँ। जी हाँ! तलब!! पसंद वाले अधिकतर काम तलब से ही तो होते हैं। लेकिन ‘लेबर डे’ को",
"तवायफ़ मुश्तरीबाई के प्यार में पड़े असग़र हुसैन से उनके दो बेटियाँ हुई—अनवरी और अख़्तरी, जिन्हें प्यार से ज़ोहरा और बिब्बी कहकर बुलाया जाता। बेटियाँ होने के तुरंत बाद ही, असग़र हुसैन ने अपनी दूसरी बीवी, म",
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असाध्य वीणा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/asadhy-wina-agyeya-kavita?sort= | [
"आ गए प्रियंवद! केशकंबली! गुफा-गेह!",
"राजा ने आसन दिया। कहा :",
"‘कृतकृत्य हुआ मैं तात! पधारे आप।",
"भरोसा है अब मुझको",
"साध आज मेरे जीवन की पूरी होगी!’",
"लघु संकेत समझ राजा का",
"गण दौड़। लाए असाध्य वीणा,",
"साधक के आगे रख उसको, हट गए।",
"सभी की उत्सुक आँखें",
"एक बार वीणा को लख, टिक गईं",
"प्रियंवद के चेहरे पर।",
"‘यह वीणा उत्तराखंड के गिरि-प्रांतर से",
"—घने वनों में जहाँ तपस्या करते हैं व्रतचारी—",
"बहुत समय पहले आई थी।",
"पूरा तो इतिहास न जान सके हम :",
"किंतु सुना है",
"वज्रकीर्ति ने मंत्रपूत जिस",
"अति प्राचीन किरीटी-तरु से इसे गढ़ा था—",
"उसके कानों में हिम-शिखर रहस्य कहा करते थे अपने,",
"कंधों पर बादल सोते थे,",
"उस की करि-शुंडों-सी डालें",
"हिम-वर्षा से पूरे वन-यूथों का कर लेती थीं परित्राण,",
"कोटर में भालू बसते थे,",
"केहरि उसके वल्कल से कंधे खुजलाने आते थे।",
"और—सुना है—जड़ उसकी जा पहुँची थी पाताल-लोक,",
"उस की ग्रंध-प्रवण शीतलता से फण टिका नाग वासुकि",
"सोता था।",
"उसी किरीटी-तरु से वज्रकीर्ति ने",
"सारा जीवन इसे गढ़ा :",
"हठ-साधना यही थी उस साधक की—",
"वीणा पूरी हुई, साथ साधना, साथ ही जीवन-लीला।’",
"राजा रुके साँस लंबी लेकर फिर बोले :",
"‘मेरे हार गए सब जाने-माने कलावंत,",
"सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर,",
"कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।",
"अब यह असाध्य वीणा ही ख्यात हो गई।",
"पर मेरा अब भी है विश्वास",
"कृच्छ्र-तप वज्रकीर्ति का व्यर्थ नहीं था।",
"वीणा बोलेगी अवश्य, पर तभी",
"इसे जब सच्चा-स्वरसिद्ध गोद में लेगा।",
"तात! प्रियंवद! लो, यह सम्मुख रही तुम्हारी",
"वज्रकीर्ति की वीणा,",
"यह मैं, यह रानी, भरी सभा यह :",
"सब उदग्र, पर्युत्सुक,",
"जन-मात्र प्रतीक्षमाण!’",
"केशकंबली गुफा-गेह ने खोला कंबल।",
"धरती पर चुप-चाप बिछाया।",
"वीणा उस पर रख, पलक मूँद कर, प्राण खींच,",
"करके प्रणाम,",
"अस्पर्श छुअन से छुए तार।",
"धीरे बोला : ‘राजन्! पर मैं तो",
"कलावंत हूँ नहीं, शिष्य, साधक हूँ—",
"जीवन के अनकहे सत्य का साक्षी।",
"वज्रकीर्ति!",
"प्राचीन किरीटी-तरु!",
"अभिमंत्रित वीणा!",
"ध्यान-मात्र इनका तो गद्-गद् विह्वल कर देने वाला है!’",
"चुप हो गया प्रियंवद।",
"सभा भी मौन हो रही।",
"वाद्य उठा साधक ने गोद रख लिया।",
"धीरे-धीरे झुक उस पर, तारों पर मस्तक टेक दिया।",
"सभा चकित थी—अरे, प्रियंवद क्या सोता है?",
"केशकंबली अथवा होकर पराभूत",
"झुक गया वाद्य पर?",
"वीणा सचमुच क्या है असाध्य?",
"पर उस स्पंदित सन्नाटे में",
"मौन प्रियंवद साध रहा था वीणा—",
"नहीं, स्वयं अपने को शोध रहा था।",
"सघन निविड में वह अपने को",
"सौंप रहा था उसी किरीटी-तरु को।",
"कौन प्रियंवद है कि दंभ कर",
"इस अभिमंत्रित कारुवाद्य के सम्मुख आवे?",
"कौन बजावे",
"यह वीणा जो स्वयं एक जीवन भर की साधना रही?",
"भूल गया था केशकंबली राजा-सभा को :",
"कंबल पर अभिमंत्रित एक अकेलेपन में डूब गया था",
"जिसमें साक्षी के आगे था",
"जीवित वही किरीटी-तरु",
"जिसकी जड़ वासुकि के फण पर थी आधारित,",
"जिसके कंधे पर बादल सोते थे",
"और कान में जिसके हिमगिरि कहते थे अपने रहस्य।",
"संबोधित कर उस तरु को, करता था",
"नीरव एकालाप प्रियंवद।",
"‘ओ विशाल तरु!",
"शत्-सहस्र पल्लवन-पतझरों ने जिसका नित रूप सँवारा,",
"कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,",
"दिन भौंरे कर गए गुँजरित,",
"रातों में झिल्ली ने",
"अनकथ मंगल-गान सुनाए,",
"साँझ-सवेरे अनगिन",
"अनचीन्हे खग-कुल की मोद-भरी क्रीड़ा-काकलि",
"डाली-डाली को कँपा गई—",
"ओ दीर्घकाय!",
"ओ पूरे झारखंड के अग्रज,",
"तात, सखा, गुरु, आश्रय,",
"त्राता महच्छाय,",
"ओ व्याकुल मुखरित वन-ध्वनियों के",
"वृंदगान के मूर्त रूप,",
"मैं तुझे सुनूँ,",
"देखूँ, ध्याऊँ",
"अनिमेष, स्तब्ध, संयत, संयुत, निर्वाक् :",
"कहाँ साहस पाऊँ",
"छू सकूँ तुझे!",
"तेरी काया को छेद, बाँध कर रची गई वीणा को",
"किस स्पर्धा से",
"हाथ करें आघात",
"छीनने को तारों से",
"एक चोट में वह संचित संगीत जिसे रचने में",
"स्वयं न जाने कितनों के स्पंदित प्राण रच गए!",
"‘नहीं, नहीं! वीणा यह मेरी गोद रखी है, रहे,",
"किंतु मैं ही तो",
"तेरी गोद बैठा मोद-भरा बालक हूँ,",
"ओ तरु-तात! सँभाल मुझे,",
"मेरी हर किलक",
"पुलक में डूब जाए :",
"मैं सुनूँ,",
"गुनूँ, विस्मय से भर आँकूँ",
"तेरे अनुभव का एक-एक अंत:स्वर",
"तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय—",
"गा तू :",
"तेरी लय पर मेरी साँसें",
"भरें, पुरें, रीतें, विश्रांति पाएँ।",
"‘गा तू!",
"यह वीणा रक्खी है : तेरा अंग-अपंग!",
"किंतु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,",
"रस-विद्",
"तू गा :",
"मेरे अँधियारे अंतस् में आलोक जगा",
"स्मृति का",
"श्रुति का—",
"तू गा, तू गा, तू गा, तू गा!",
"‘हाँ, मुझे स्मरण है :",
"बदली—कौंध—पत्तियों पर वर्षा-बूँदों की पट-पट।",
"घनी रात में महुए का चुप-चाप टपकना।",
"चौंके खग-शावक की चिहुँक।",
"शिलाओं को दुलराते वन-झरने के",
"द्रुत लहरीले जल का कल-निदान।",
"कुहरे में छन कर आती",
"पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।",
"गड़रियों की अनमनी बाँसुरी।",
"कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :",
"ओस-बूँद की ढरकन—इतनी कोमल, तरल",
"कि झरते-झरते मानो",
"हरसिंगार का फूल बन गई।",
"भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।",
"कूँजों का क्रेंकार। काँद लंबी टिट्टिभ की।",
"पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।",
"चीड़-वनों में गंध-अंध उन्मद पतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट",
"जल-प्रताप का प्लुत एकस्वर।",
"झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में",
"संसृति की साँय-साँय।",
"‘हाँ, मुझे स्मरण है :",
"दूर पहाड़ों से काले मेघों की बाढ़",
"हाथियों का मानो चिंघाड़ रहा हो यूथ।",
"घरघराहट चढ़ती बहिया की।",
"रेतीले कगार का गिरना छप्-छड़ाप।",
"झंझा की फुफकार, तप्त,",
"पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।",
"ओले की कर्री चपत।",
"जमे पाले से तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।",
"ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घाम में धीरे-धीरे रिसना।",
"हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुप-चाप।",
"घाटियों में भरती",
"गिरती चट्टानों की गूँज—",
"काँपती मंद्र गूँज—अनुगूँज—साँस खोई-सी, धीरे-धीरे नीरव।",
"‘मुझे स्मरण है :",
"हरी तलहटी में, छोटे पेड़ों की ओट ताल पर",
"बँधे समय वन-पशुओं की नानाविध आतुर-तृप्त पुकारें :",
"गर्जन, घुर्घुर, चीख़, भूक, हुक्का, चिचियाहट।",
"कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित",
"जल-पंछी की चाप",
"थाप दादुर की चकित छलाँगों की।",
"पंथी के घोड़े की टाप अधीर।",
"अचंचल धीर थाप भैंसों के भारी खुर की।",
"‘मुझे स्मरण है :",
"उझक क्षितिज से",
"किरण भोर की पहली",
"जब तकती है ओस-बूँद को",
"उस क्षण की सहसा चौंकी-सी सिहरन।",
"और दुपहरी में जब",
"घास-फूल अनदेखे खिल जाते हैं",
"मौमाखियाँ असंख्य झूमती करती हैं गुँजार—",
"उस लंबे विलमे क्षण का तंद्रालस ठहराव।",
"और साँझ को",
"जब तारों की तरल कँपकँपी",
"स्पर्शहीन झरती है—",
"मानो नभ में तरल नयन ठिठकी",
"नि:संख्य सवत्सा युवती माताओं के आशीर्वाद—",
"उस संधि-निमिष की पुलकन लीयमान।",
"‘मुझे स्मरण है :",
"और चित्र प्रत्येक",
"स्तब्ध, विजड़ित करता है मुझको।",
"सुनता हूँ मैं",
"पर हर स्वर-कंपन लेता है मुझको मुझसे सोख—",
"वायु-सा नाद-भरा मैं उड़ जाता हूँ।...",
"मुझे स्मरण है—",
"पर मझको मैं भूल गया हूँ :",
"सुनता हूँ मैं—",
"पर मैं मुझसे परे, शब्द में लीयमान।",
"‘मैं नहीं, नहीं! मैं कहीं नहीं!",
"ओ रे तरु! ओ वन!",
"ओ स्वर-संभार!",
"नाद-मय संसृति!",
"ओ रस-प्लावन!",
"मुझे क्षमा कर—भूल अकिंचनता को मेरी—",
"मुझे ओट दे—ढँक ले—छा ले—",
"ओ शरण्य!",
"मेरे गूँगेपन को तेरे साए स्वर-सागर का ज्वार डुबा ले!",
"आ, मुझे भुला,",
"तू उतर वीन के तारों में",
"अपने से गा—",
"अपने को गा—",
"अपने खग-कुल को मुखरित कर",
"अपनी छाया में पले मृगों की चौकड़ियों को ताल बाँध,",
"अपने छायातप, वृष्टि-पवन, पल्लव-कुसमन की लय पर",
"अपने जीवन-संचय को कर छंदयुक्त,",
"अपनी प्रज्ञा को वाणी दे!",
"तू गा, तू गा—",
"तू सन्निधि पा—तू खो",
"तू आ—तू हो—तू गा! तू गा!’",
"राजा जागे।",
"समाधिस्थ संगीतकार का हाथ उठा था—",
"काँपी थीं उँगलियाँ।",
"अलस अँगड़ाई लेकर मानो जाग उठी थी वीणा :",
"किलक उठे थे स्वर-शिशु।",
"नीरव पदा रखता जालिक मायावी",
"सधे करों से धीरे-धीरे-धीरे",
"डाल रहा था जाल हेम-तारों का।",
"सहसा वीणा झनझना उठी—",
"संगीतकार की आँखों में ठंडी पिघली ज्वाला-सी झलक गई—",
"रोमांच एक बिजली-सा सबके तन में दौड़ गया।",
"अवतरित हुआ संगीत",
"स्वयंभू",
"जिसमें सोता है अखंड",
"ब्रह्मा का मौन",
"अशेष प्रभामय।",
"डूब गए सब एक साथ।",
"सब अलग-अलग एकाकी पार तिरे।",
"राजा ने अलग सुना :",
"जय देवी यश:काय",
"वरमाल लिए",
"गाती थी मंगल-गीत,",
"दुंदभी दूर कहीं बजती थी,",
"राज-मुकुट सहसा हल्का हो आया था, मानो हो फूल सिरिस का",
"ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता",
"सभी पुराने लुगड़े-से झर गए, निखर आया था जीवन-कांचन",
"धर्म-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा।",
"रानी ने अलग सुना :",
"छँटती बदली में एक कौंध कह गई—",
"तुम्हारे ये मणि-माणक, कंठहार, पट-वस्त्र,",
"मेखला-किंकिणि—",
"सब अंधकार के कण हैं ये! आलोक एक है",
"प्यार अनन्य! उसी की",
"विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को,",
"थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है",
"आश्वस्त, सहज विश्वास भरी।",
"रानी",
"उस एक प्यार को साधेगी।",
"सबने भी अलग-अलग संगीत सुना।",
"इसको",
"वह कृपा-वाक्य था प्रभुओ का।",
"उसको",
"आतंक-मुक्ति का आश्वासन!",
"इसको",
"वह भरी तिजोरी में सोने की खनक।",
"उसे",
"बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुदबुद।",
"किसी एक को नई वधू की सहमी-सी पायल ध्वनि।",
"किसी दूसरे को शिशु की किलकारी।",
"एक किसी को जाल-फँसी मझली की तड़पन—",
"एक अपर को चहक मुक्त नभ में उड़ती चिड़िया की।",
"एक तीसरे को मंडी की ठेलमठेल, गाहकों की आस्पर्धा भरी बोलियाँ,",
"चौथे को मंदिर की ताल-युक्त घंटा-ध्वनि!",
"और पाँचवे को लोहे पर सधे हथौड़े की सम चोटें",
"और छटे को लंगर पर कसमसा रही नौका पर लहरों की",
"अविराम थपक।",
"बटिया पर चमरौधे की रूँधी चाप सातवें के लिए—",
"और आठवें को कुलिया की कटी मेंड़ से बहते जल की छुल-छुल।",
"इसे गमक नट्टिन की एड़ी के घुँघरू की।",
"उसे युद्ध का ढोल।",
"इसे संझा-गोधूलि की लघु टुन-टुन—",
"उसे प्रलय का डमरू-नाद।",
"इसको जीवन की पहली अँगड़ाई",
"पर उसको महाजृंभ विकराल काल!",
"सब डूबे, तिरे, झिपे, जागे—",
"हो रहे वंशवद, स्तब्ध :",
"इयत्ता सबकी अलग-अलग जागी,",
"संघीत हुई,",
"पा गई विलय।",
"वीणा फिर मूक हो गई।",
"साधु! साधु!",
"राजा सिंहासन से उतरे—",
"रानी ने अर्पित की सतलड़ी माल,",
"जनता विह्वल कह उठी ‘धन्य!",
"हे स्वरजित्! धन्य! धन्य!’",
"संगीतकार",
"वीणा को धीरे से नीचे रख, ढँक—मानो",
"गोदी में सोए शिशु को पालने डाल कर मुग्धा माँ",
"हट जाए, दीठ से दुलराती—",
"उठ खड़ा हुआ।",
"बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन,",
"बोला :",
"‘श्रेय नहीं कुछ मेरा :",
"मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में—",
"वीणा के माध्यम से अपने को मैंने",
"सब कुछ को सौंप दिया था—",
"सुना आपने जो वह मेरा नहीं,",
"न वीणा का था :",
"वह तो सब कुछ की तथता थी",
"महाशून्य",
"वह महामौन",
"अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय",
"जो शब्दहीन",
"सब में गाता है।’",
"नमस्कार कर मुड़ा प्रियंवद केशकंबली।",
"लेकर कंबल गेह-गुफा को चला गया।",
"उठ गई सभा। सब अपने-अपने काम लगे।",
"युग पलट गया।",
"प्रिय पाठक! यों मेरी वाणी भी",
"मौन हुई।",
"aa gaye priyanwad! keshkambli! gupha geh!",
"raja ne aasan diya kaha ha",
"‘kritakrty hua main tat! padhare aap",
"bharosa hai ab mujhko",
"sadh aaj mere jiwan ki puri hogi!’",
"laghu sanket samajh raja ka",
"gan dauD laye asadhy wina,",
"sadhak ke aage rakh usko, hat gaye",
"sabhi ki utsuk ankhen",
"ek bar wina ko lakh, tik gain",
"priyanwad ke chehre par",
"‘yah wina uttrakhanD ke giri prantar se",
"—ghane wanon mein jahan tapasya karte hain wratchari—",
"bahut samay pahle i thi",
"pura to itihas na jaan sake hum ha",
"kintu suna hai",
"wajrkirti ne mantrput jis",
"ati prachin kiriti taru se ise gaDha tha—",
"uske kanon mein him sikhar rahasy kaha karte the apne,",
"kandhon par badal sote the,",
"us ki kari shunDon si Dalen",
"him warsha se pure wan yuthon ka kar leti theen paritran,",
"kotar mein bhalu baste the,",
"kehari uske walkal se kandhe khujlane aate the",
"aur—suna hai—jaD uski ja pahunchi thi patal lok,",
"us ki grandh prawn shitalta se phan tika nag wasuki",
"sota tha",
"usi kiriti taru se wajrkirti ne",
"sara jiwan ise gaDha ha",
"hath sadhana yahi thi us sadhak kee—",
"wina puri hui, sath sadhana, sath hi jiwan lila ’",
"raja ruke sans lambi lekar phir bole ha",
"‘mere haar gaye sab jane mane kalawant,",
"sabki widdya ho gai akarath, darp choor,",
"koi gyani gunai aaj tak ise na sadh saka",
"ab ye asadhy wina hi khyat ho gai",
"par mera ab bhi hai wishwas",
"krichchhr tap wajrkirti ka byarth nahin tha",
"wina bolegi awashy, par tabhi",
"ise jab sachcha swarsiddh god mein lega",
"tat! priyanwad! lo, ye sammukh rahi tumhari",
"wajrkirti ki wina,",
"ye main, ye rani, bhari sabha ye ha",
"sab udagr, paryutsuk,",
"jan matr prtikshman!’",
"keshkambli gupha geh ne khola kambal",
"dharti par chup chap bichhaya",
"wina us par rakh, palak moond kar, paran kheench,",
"karke parnam,",
"asparsh chhuan se chhue tar",
"dhire bola ha ‘rajan! par main to",
"kalawant hoon nahin, shishya, sadhak hoon—",
"jiwan ke anakhe saty ka sakshi",
"wajrkirti!",
"prachin kiriti taru!",
"abhimantrit wina!",
"dhyan matr inka to gad gad wihwal kar dene wala hai!’",
"chup ho gaya priyanwad",
"sabha bhi maun ho rahi",
"wady utha sadhak ne god rakh liya",
"dhire dhire jhuk us par, taron par mastak tek diya",
"sabha chakit thi—are, priyanwad kya sota hai?",
"keshkambli athwa hokar parabhut",
"jhuk gaya wady par?",
"wina sachmuch kya hai asadhy?",
"par us spandit sannate mein",
"maun priyanwad sadh raha tha wina—",
"nahin, swayan apne ko shodh raha tha",
"saghan niwiD mein wo apne ko",
"saump raha tha usi kiriti taru ko",
"kaun priyanwad hai ki dambh kar",
"is abhimantrit karuwadya ke sammukh aawe?",
"kaun bajawe",
"ye wina jo swayan ek jiwan bhar ki sadhana rahi?",
"bhool gaya tha keshkambli raja sabha ko ha",
"kambal par abhimantrit ek akelepan mein Doob gaya tha",
"jismen sakshi ke aage tha",
"jiwit wahi kiriti taru",
"jiski jaD wasuki ke phan par thi adharit,",
"jiske kandhe par badal sote the",
"aur kan mein jiske himagiri kahte the apne rahasy",
"sambodhit kar us taru ko, karta tha",
"niraw ekalap priyanwad",
"‘o wishal taru!",
"shat sahasr pallawan patajhron ne jiska nit roop sanwara,",
"kitni barsaton kitne khadyoton ne aarti utari,",
"din bhaunre kar gaye gunjarit,",
"raton mein jhilli ne",
"ankath mangal gan sunaye,",
"sanjh sawere angin",
"anchinhe khag kul ki mod bhari kriDa kakali",
"Dali Dali ko kanpa gai—",
"o dirghakay!",
"o pure jharkhanD ke agraj,",
"tat, sakha, guru, ashray,",
"trata mahachchhay,",
"o wyakul mukhrit wan dhwaniyon ke",
"wrindgan ke moort roop,",
"main tujhe sunun,",
"dekhun, dhyaun",
"animesh, stabdh, sanyat, sanyut, nirwak ha",
"kahan sahas paun",
"chhu sakun tujhe!",
"teri kaya ko chhed, bandh kar rachi gai wina ko",
"kis spardha se",
"hath karen aghat",
"chhinne ko taron se",
"ek chot mein wo sanchit sangit jise rachne mein",
"swayan na jane kitnon ke spandit paran rach gaye!",
"‘nahin, nahin! wina ye meri god rakhi hai, rahe,",
"kintu main hi to",
"teri god baitha mod bhara balak hoon,",
"o taru tat! sanbhal mujhe,",
"meri har kilak",
"pulak mein Doob jaye ha",
"main sunun,",
"gunun, wismay se bhar ankun",
"tere anubhaw ka ek ek anthaswar",
"tere dolan ki lori par jhumun main tanmay—",
"ga tu ha",
"teri lai par meri sansen",
"bharen, puren, riten, wishranti payen",
"‘ga too!",
"ye wina rakkhi hai ha tera ang apang!",
"kintu angi, tu akshat, aatm bharit,",
"ras wid",
"tu ga ha",
"mere andhiyare antas mein aalok jaga",
"smriti ka",
"shruti ka—",
"tu ga, tu ga, tu ga, tu ga!",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"badli—kaundh—pattiyon par warsha bundon ki pat pat",
"ghani raat mein mahuwe ka chup chap tapakna",
"chaunke khag shawak ki chihunk",
"shilaon ko dulrate wan jharne ke",
"drut lahrile jal ka kal nidan",
"kuhre mein chhan kar aati",
"parwati ganw ke utsaw Dholak ki thap",
"gaDariyon ki anamni bansuri",
"kathphoDe ka theka phulasunghani ki aatur phurkan ha",
"os boond ki Dharkan—itni komal, taral",
"ki jharte jharte mano",
"harsingar ka phool ban gai",
"bhare sharad ke tal, lahariyon ki sarsar dhwani",
"kunjon ka krenkar kand lambi tittibh ki",
"pankh yukt sayak si hans balaka",
"cheeD wanon mein gandh andh unmad patang ki jahan tahan takrahat",
"jal pratap ka plut ekaswar",
"jhilli dadur, kokil chatak ki jhankar pukaron ki yati mein",
"sansriti ki sanya sanya",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"door pahaDon se kale meghon ki baDh",
"hathiyon ka mano chinghaD raha ho yooth",
"ghargharaht chaDhti bahiya ki",
"retile kagar ka girna chhap chhaDap",
"jhanjha ki phuphkar, tapt,",
"peDon ka arra kar toot toot kar girna",
"ole ki karri chapat",
"jame pale se tani katari si sukhi ghason ki tutan",
"ainthi mitti ka snigdh gham mein dhire dhire risna",
"him tushar ke phahe dharti ke ghawon ko sahlate chup chap",
"ghatiyon mein bharti",
"girti chattanon ki goonj—",
"kanpti mandr gunj—anugunj—sans khoi si, dhire dhire niraw",
"‘mujhe smarn hai ha",
"hari talahti mein, chhote peDon ki ot tal par",
"bandhe samay wan pashuon ki nanawidh aatur tript pukaren ha",
"garjan, ghurghur, cheekh, bhook, hukka, chichiyahat",
"kamal kumud patron par chor pair drut dhawit",
"jal panchhi ki chap",
"thap dadur ki chakit chhalangon ki",
"panthi ke ghoDe ki tap adhir",
"achanchal dheer thap bhainson ke bhari khur ki",
"‘mujhe smarn hai ha",
"ujhak kshaitij se",
"kiran bhor ki pahli",
"jab takti hai os boond ko",
"us kshan ki sahsa chaunki si siharan",
"aur dupahri mein jab",
"ghas phool andekhe khil jate hain",
"maumakhiyan asankhya jhumti karti hain gunjar—",
"us lambe wilme kshan ka tandralas thahraw",
"aur sanjh ko",
"jab taron ki taral kanpkanpi",
"sparshhin jharti hai—",
"mano nabh mein taral nayan thithki",
"nihsankhya sawatsa yuwati mataon ke ashirwad—",
"us sandhi nimish ki pulkan liyman",
"‘mujhe smarn hai ha",
"aur chitr pratyek",
"stabdh, wijDit karta hai mujhko",
"sunta hoon main",
"par har swar kampan leta hai mujhko mujhse sokh—",
"wayu sa nad bhara main uD jata hoon",
"mujhe smarn hai—",
"par majhko main bhool gaya hoon ha",
"sunta hoon main—",
"par main mujhse pare, shabd mein liyman",
"‘main nahin, nahin! main kahin nahin!",
"o re taru! o wan!",
"o swar sambhar!",
"nad mai sansriti!",
"o ras plawan!",
"mujhe kshama kar—bhul akinchanta ko meri—",
"mujhe ot de—Dhank le—chha le—",
"o sharanya!",
"mere gungepan ko tere saye swar sagar ka jwar Duba le!",
"a, mujhe bhula,",
"tu utar ween ke taron mein",
"apne se ga—",
"apne ko ga—",
"apne khag kul ko mukhrit kar",
"apni chhaya mein play mrigon ki chaukaDiyon ko tal bandh,",
"apne chhayatap, wrishti pawan, pallaw kusman ki lai par",
"apne jiwan sanchay ko kar chhandyukt,",
"apni pragya ko wani de!",
"tu ga, tu ga—",
"tu sannidhi pa—tu kho",
"tu aa—tu ho—tu ga! tu ga!’",
"raja jage",
"samadhisth sangitkar ka hath utha tha—",
"kanpi theen ungliyan",
"alas angDai lekar mano jag uthi thi wina ha",
"kilak uthe the swar shishu",
"niraw pada rakhta jalik mayawi",
"sadhe karon se dhire dhire dhire",
"Dal raha tha jal hem taron ka",
"sahsa wina jhanjhana uthi—",
"sangitkar ki ankhon mein thanDi pighli jwala si jhalak gai—",
"romanch ek bijli sa sabke tan mein dauD gaya",
"awatrit hua sangit",
"swyambhu",
"jismen sota hai akhanD",
"brahma ka maun",
"ashesh prbhamay",
"Doob gaye sab ek sath",
"sab alag alag ekaki par tere",
"raja ne alag suna ha",
"jay dewi yashahkay",
"warmal liye",
"gati thi mangal geet,",
"dundbhi door kahin bajti thi,",
"raj mukut sahsa halka ho aaya tha, mano ho phool siris ka",
"irshya, mahdakanksha, dwesh, chatuta",
"sabhi purane lugDe se jhar gaye, nikhar aaya tha jiwan kanchan",
"dharm bhaw se jise nichhawar wo kar dega",
"rani ne alag suna ha",
"chhantati badli mein ek kaundh kah gai—",
"tumhare ye manai manak, kanthhar, pat wastra,",
"mekhala kinkini—",
"sab andhkar ke kan hain ye! aalok ek hai",
"pyar anany! usi ki",
"widyullata gherti rahti hai ras bhaar megh ko,",
"thirak usi ki chhati par usmen chhipkar so jati hai",
"ashwast, sahj wishwas bhari",
"rani",
"us ek pyar ko sadhegi",
"sabne bhi alag alag sangit suna",
"isko",
"wo kripa waky tha prbhuo ka",
"usko",
"atank mukti ka ashwasan!",
"isko",
"wo bhari tijori mein sone ki khanak",
"use",
"batuli mein bahut dinon ke baad ann ki sondhi khudbud",
"kisi ek ko nai wadhu ki sahmi si payel dhwani",
"kisi dusre ko shishu ki kilkari",
"ek kisi ko jal phansi majhli ki taDpan—",
"ek upper ko chahak mukt nabh mein uDti chiDiya ki",
"ek tisre ko manDi ki thelamthel, gahkon ki aspardha bhari boliyan,",
"chauthe ko mandir ki tal yukt ghanta dhwani!",
"aur panchawe ko lohe par sadhe hathauDe ki sam choten",
"aur chhate ko langar par kasmasa rahi nauka par lahron ki",
"awiram thapak",
"batiya par chamraudhe ki rundhi chap satwen ke liye—",
"aur athwen ko kuliya ki kati meinD se bahte jal ki chhul chhul",
"ise gamak nattin ki eDi ke ghunghru ki",
"use yudh ka Dhol",
"ise sanjha godhuli ki laghu tun tun—",
"use prlay ka Damru nad",
"isko jiwan ki pahli angDai",
"par usko mahajrimbh wikral kal!",
"sab Dube, tere, jhipe, jage—",
"ho rahe wanshwad, stabdh ha",
"iyatta sabki alag alag jagi,",
"sanghit hui,",
"pa gai wilay",
"wina phir mook ho gai",
"sadhu! sadhu!",
"raja sinhasan se utre—",
"rani ne arpit ki satalDi mal,",
"janta wihwal kah uthi ‘dhany!",
"he swarjit! dhany! dhany!’",
"sangitkar",
"wina ko dhire se niche rakh, Dhank—mano",
"godi mein soe shishu ko palne Dal kar mugdha man",
"hat jaye, deeth se dulrati—",
"uth khaDa hua",
"baDhte raja ka hath utha karta awarjan,",
"bola ha",
"‘shrey nahin kuch mera ha",
"main to Doob gaya tha swayan shunya mein—",
"wina ke madhyam se apne ko mainne",
"sab kuch ko saump diya tha—",
"suna aapne jo wo mera nahin,",
"na wina ka tha ha",
"wo to sab kuch ki tathta thi",
"mahashuny",
"wo mahamaun",
"awibhajy, anapt, adrwit, apramey",
"jo shabdhin",
"sab mein gata hai ’",
"namaskar kar muDa priyanwad keshkambli",
"lekar kambal geh gupha ko chala gaya",
"uth gai sabha sab apne apne kaam lage",
"yug palat gaya",
"priy pathak! yon meri wani bhi",
"maun hui",
"aa gaye priyanwad! keshkambli! gupha geh!",
"raja ne aasan diya kaha ha",
"‘kritakrty hua main tat! padhare aap",
"bharosa hai ab mujhko",
"sadh aaj mere jiwan ki puri hogi!’",
"laghu sanket samajh raja ka",
"gan dauD laye asadhy wina,",
"sadhak ke aage rakh usko, hat gaye",
"sabhi ki utsuk ankhen",
"ek bar wina ko lakh, tik gain",
"priyanwad ke chehre par",
"‘yah wina uttrakhanD ke giri prantar se",
"—ghane wanon mein jahan tapasya karte hain wratchari—",
"bahut samay pahle i thi",
"pura to itihas na jaan sake hum ha",
"kintu suna hai",
"wajrkirti ne mantrput jis",
"ati prachin kiriti taru se ise gaDha tha—",
"uske kanon mein him sikhar rahasy kaha karte the apne,",
"kandhon par badal sote the,",
"us ki kari shunDon si Dalen",
"him warsha se pure wan yuthon ka kar leti theen paritran,",
"kotar mein bhalu baste the,",
"kehari uske walkal se kandhe khujlane aate the",
"aur—suna hai—jaD uski ja pahunchi thi patal lok,",
"us ki grandh prawn shitalta se phan tika nag wasuki",
"sota tha",
"usi kiriti taru se wajrkirti ne",
"sara jiwan ise gaDha ha",
"hath sadhana yahi thi us sadhak kee—",
"wina puri hui, sath sadhana, sath hi jiwan lila ’",
"raja ruke sans lambi lekar phir bole ha",
"‘mere haar gaye sab jane mane kalawant,",
"sabki widdya ho gai akarath, darp choor,",
"koi gyani gunai aaj tak ise na sadh saka",
"ab ye asadhy wina hi khyat ho gai",
"par mera ab bhi hai wishwas",
"krichchhr tap wajrkirti ka byarth nahin tha",
"wina bolegi awashy, par tabhi",
"ise jab sachcha swarsiddh god mein lega",
"tat! priyanwad! lo, ye sammukh rahi tumhari",
"wajrkirti ki wina,",
"ye main, ye rani, bhari sabha ye ha",
"sab udagr, paryutsuk,",
"jan matr prtikshman!’",
"keshkambli gupha geh ne khola kambal",
"dharti par chup chap bichhaya",
"wina us par rakh, palak moond kar, paran kheench,",
"karke parnam,",
"asparsh chhuan se chhue tar",
"dhire bola ha ‘rajan! par main to",
"kalawant hoon nahin, shishya, sadhak hoon—",
"jiwan ke anakhe saty ka sakshi",
"wajrkirti!",
"prachin kiriti taru!",
"abhimantrit wina!",
"dhyan matr inka to gad gad wihwal kar dene wala hai!’",
"chup ho gaya priyanwad",
"sabha bhi maun ho rahi",
"wady utha sadhak ne god rakh liya",
"dhire dhire jhuk us par, taron par mastak tek diya",
"sabha chakit thi—are, priyanwad kya sota hai?",
"keshkambli athwa hokar parabhut",
"jhuk gaya wady par?",
"wina sachmuch kya hai asadhy?",
"par us spandit sannate mein",
"maun priyanwad sadh raha tha wina—",
"nahin, swayan apne ko shodh raha tha",
"saghan niwiD mein wo apne ko",
"saump raha tha usi kiriti taru ko",
"kaun priyanwad hai ki dambh kar",
"is abhimantrit karuwadya ke sammukh aawe?",
"kaun bajawe",
"ye wina jo swayan ek jiwan bhar ki sadhana rahi?",
"bhool gaya tha keshkambli raja sabha ko ha",
"kambal par abhimantrit ek akelepan mein Doob gaya tha",
"jismen sakshi ke aage tha",
"jiwit wahi kiriti taru",
"jiski jaD wasuki ke phan par thi adharit,",
"jiske kandhe par badal sote the",
"aur kan mein jiske himagiri kahte the apne rahasy",
"sambodhit kar us taru ko, karta tha",
"niraw ekalap priyanwad",
"‘o wishal taru!",
"shat sahasr pallawan patajhron ne jiska nit roop sanwara,",
"kitni barsaton kitne khadyoton ne aarti utari,",
"din bhaunre kar gaye gunjarit,",
"raton mein jhilli ne",
"ankath mangal gan sunaye,",
"sanjh sawere angin",
"anchinhe khag kul ki mod bhari kriDa kakali",
"Dali Dali ko kanpa gai—",
"o dirghakay!",
"o pure jharkhanD ke agraj,",
"tat, sakha, guru, ashray,",
"trata mahachchhay,",
"o wyakul mukhrit wan dhwaniyon ke",
"wrindgan ke moort roop,",
"main tujhe sunun,",
"dekhun, dhyaun",
"animesh, stabdh, sanyat, sanyut, nirwak ha",
"kahan sahas paun",
"chhu sakun tujhe!",
"teri kaya ko chhed, bandh kar rachi gai wina ko",
"kis spardha se",
"hath karen aghat",
"chhinne ko taron se",
"ek chot mein wo sanchit sangit jise rachne mein",
"swayan na jane kitnon ke spandit paran rach gaye!",
"‘nahin, nahin! wina ye meri god rakhi hai, rahe,",
"kintu main hi to",
"teri god baitha mod bhara balak hoon,",
"o taru tat! sanbhal mujhe,",
"meri har kilak",
"pulak mein Doob jaye ha",
"main sunun,",
"gunun, wismay se bhar ankun",
"tere anubhaw ka ek ek anthaswar",
"tere dolan ki lori par jhumun main tanmay—",
"ga tu ha",
"teri lai par meri sansen",
"bharen, puren, riten, wishranti payen",
"‘ga too!",
"ye wina rakkhi hai ha tera ang apang!",
"kintu angi, tu akshat, aatm bharit,",
"ras wid",
"tu ga ha",
"mere andhiyare antas mein aalok jaga",
"smriti ka",
"shruti ka—",
"tu ga, tu ga, tu ga, tu ga!",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"badli—kaundh—pattiyon par warsha bundon ki pat pat",
"ghani raat mein mahuwe ka chup chap tapakna",
"chaunke khag shawak ki chihunk",
"shilaon ko dulrate wan jharne ke",
"drut lahrile jal ka kal nidan",
"kuhre mein chhan kar aati",
"parwati ganw ke utsaw Dholak ki thap",
"gaDariyon ki anamni bansuri",
"kathphoDe ka theka phulasunghani ki aatur phurkan ha",
"os boond ki Dharkan—itni komal, taral",
"ki jharte jharte mano",
"harsingar ka phool ban gai",
"bhare sharad ke tal, lahariyon ki sarsar dhwani",
"kunjon ka krenkar kand lambi tittibh ki",
"pankh yukt sayak si hans balaka",
"cheeD wanon mein gandh andh unmad patang ki jahan tahan takrahat",
"jal pratap ka plut ekaswar",
"jhilli dadur, kokil chatak ki jhankar pukaron ki yati mein",
"sansriti ki sanya sanya",
"‘han, mujhe smarn hai ha",
"door pahaDon se kale meghon ki baDh",
"hathiyon ka mano chinghaD raha ho yooth",
"ghargharaht chaDhti bahiya ki",
"retile kagar ka girna chhap chhaDap",
"jhanjha ki phuphkar, tapt,",
"peDon ka arra kar toot toot kar girna",
"ole ki karri chapat",
"jame pale se tani katari si sukhi ghason ki tutan",
"ainthi mitti ka snigdh gham mein dhire dhire risna",
"him tushar ke phahe dharti ke ghawon ko sahlate chup chap",
"ghatiyon mein bharti",
"girti chattanon ki goonj—",
"kanpti mandr gunj—anugunj—sans khoi si, dhire dhire niraw",
"‘mujhe smarn hai ha",
"hari talahti mein, chhote peDon ki ot tal par",
"bandhe samay wan pashuon ki nanawidh aatur tript pukaren ha",
"garjan, ghurghur, cheekh, bhook, hukka, chichiyahat",
"kamal kumud patron par chor pair drut dhawit",
"jal panchhi ki chap",
"thap dadur ki chakit chhalangon ki",
"panthi ke ghoDe ki tap adhir",
"achanchal dheer thap bhainson ke bhari khur ki",
"‘mujhe smarn hai ha",
"ujhak kshaitij se",
"kiran bhor ki pahli",
"jab takti hai os boond ko",
"us kshan ki sahsa chaunki si siharan",
"aur dupahri mein jab",
"ghas phool andekhe khil jate hain",
"maumakhiyan asankhya jhumti karti hain gunjar—",
"us lambe wilme kshan ka tandralas thahraw",
"aur sanjh ko",
"jab taron ki taral kanpkanpi",
"sparshhin jharti hai—",
"mano nabh mein taral nayan thithki",
"nihsankhya sawatsa yuwati mataon ke ashirwad—",
"us sandhi nimish ki pulkan liyman",
"‘mujhe smarn hai ha",
"aur chitr pratyek",
"stabdh, wijDit karta hai mujhko",
"sunta hoon main",
"par har swar kampan leta hai mujhko mujhse sokh—",
"wayu sa nad bhara main uD jata hoon",
"mujhe smarn hai—",
"par majhko main bhool gaya hoon ha",
"sunta hoon main—",
"par main mujhse pare, shabd mein liyman",
"‘main nahin, nahin! main kahin nahin!",
"o re taru! o wan!",
"o swar sambhar!",
"nad mai sansriti!",
"o ras plawan!",
"mujhe kshama kar—bhul akinchanta ko meri—",
"mujhe ot de—Dhank le—chha le—",
"o sharanya!",
"mere gungepan ko tere saye swar sagar ka jwar Duba le!",
"a, mujhe bhula,",
"tu utar ween ke taron mein",
"apne se ga—",
"apne ko ga—",
"apne khag kul ko mukhrit kar",
"apni chhaya mein play mrigon ki chaukaDiyon ko tal bandh,",
"apne chhayatap, wrishti pawan, pallaw kusman ki lai par",
"apne jiwan sanchay ko kar chhandyukt,",
"apni pragya ko wani de!",
"tu ga, tu ga—",
"tu sannidhi pa—tu kho",
"tu aa—tu ho—tu ga! tu ga!’",
"raja jage",
"samadhisth sangitkar ka hath utha tha—",
"kanpi theen ungliyan",
"alas angDai lekar mano jag uthi thi wina ha",
"kilak uthe the swar shishu",
"niraw pada rakhta jalik mayawi",
"sadhe karon se dhire dhire dhire",
"Dal raha tha jal hem taron ka",
"sahsa wina jhanjhana uthi—",
"sangitkar ki ankhon mein thanDi pighli jwala si jhalak gai—",
"romanch ek bijli sa sabke tan mein dauD gaya",
"awatrit hua sangit",
"swyambhu",
"jismen sota hai akhanD",
"brahma ka maun",
"ashesh prbhamay",
"Doob gaye sab ek sath",
"sab alag alag ekaki par tere",
"raja ne alag suna ha",
"jay dewi yashahkay",
"warmal liye",
"gati thi mangal geet,",
"dundbhi door kahin bajti thi,",
"raj mukut sahsa halka ho aaya tha, mano ho phool siris ka",
"irshya, mahdakanksha, dwesh, chatuta",
"sabhi purane lugDe se jhar gaye, nikhar aaya tha jiwan kanchan",
"dharm bhaw se jise nichhawar wo kar dega",
"rani ne alag suna ha",
"chhantati badli mein ek kaundh kah gai—",
"tumhare ye manai manak, kanthhar, pat wastra,",
"mekhala kinkini—",
"sab andhkar ke kan hain ye! aalok ek hai",
"pyar anany! usi ki",
"widyullata gherti rahti hai ras bhaar megh ko,",
"thirak usi ki chhati par usmen chhipkar so jati hai",
"ashwast, sahj wishwas bhari",
"rani",
"us ek pyar ko sadhegi",
"sabne bhi alag alag sangit suna",
"isko",
"wo kripa waky tha prbhuo ka",
"usko",
"atank mukti ka ashwasan!",
"isko",
"wo bhari tijori mein sone ki khanak",
"use",
"batuli mein bahut dinon ke baad ann ki sondhi khudbud",
"kisi ek ko nai wadhu ki sahmi si payel dhwani",
"kisi dusre ko shishu ki kilkari",
"ek kisi ko jal phansi majhli ki taDpan—",
"ek upper ko chahak mukt nabh mein uDti chiDiya ki",
"ek tisre ko manDi ki thelamthel, gahkon ki aspardha bhari boliyan,",
"chauthe ko mandir ki tal yukt ghanta dhwani!",
"aur panchawe ko lohe par sadhe hathauDe ki sam choten",
"aur chhate ko langar par kasmasa rahi nauka par lahron ki",
"awiram thapak",
"batiya par chamraudhe ki rundhi chap satwen ke liye—",
"aur athwen ko kuliya ki kati meinD se bahte jal ki chhul chhul",
"ise gamak nattin ki eDi ke ghunghru ki",
"use yudh ka Dhol",
"ise sanjha godhuli ki laghu tun tun—",
"use prlay ka Damru nad",
"isko jiwan ki pahli angDai",
"par usko mahajrimbh wikral kal!",
"sab Dube, tere, jhipe, jage—",
"ho rahe wanshwad, stabdh ha",
"iyatta sabki alag alag jagi,",
"sanghit hui,",
"pa gai wilay",
"wina phir mook ho gai",
"sadhu! sadhu!",
"raja sinhasan se utre—",
"rani ne arpit ki satalDi mal,",
"janta wihwal kah uthi ‘dhany!",
"he swarjit! dhany! dhany!’",
"sangitkar",
"wina ko dhire se niche rakh, Dhank—mano",
"godi mein soe shishu ko palne Dal kar mugdha man",
"hat jaye, deeth se dulrati—",
"uth khaDa hua",
"baDhte raja ka hath utha karta awarjan,",
"bola ha",
"‘shrey nahin kuch mera ha",
"main to Doob gaya tha swayan shunya mein—",
"wina ke madhyam se apne ko mainne",
"sab kuch ko saump diya tha—",
"suna aapne jo wo mera nahin,",
"na wina ka tha ha",
"wo to sab kuch ki tathta thi",
"mahashuny",
"wo mahamaun",
"awibhajy, anapt, adrwit, apramey",
"jo shabdhin",
"sab mein gata hai ’",
"namaskar kar muDa priyanwad keshkambli",
"lekar kambal geh gupha ko chala gaya",
"uth gai sabha sab apne apne kaam lage",
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एक शराबी की सूक्तियाँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/ek-sharabi-ki-suktiyan-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"मस्जिद ऐसी भरी भरी कब हैमैकदा इक जहान है गोया— मीर तक़ी मीरमैं तो अपनी आत्मा को भी शराब में घोलकर पी गया हूँ, बाबा! मैं कहीं का नहीं रहा; मैं तबाह हो गया—मेरा क़िस्सा ख़त्म हो गया, बाबा! लोग किसलिए इस दुनिया में जीते हैं?लोग दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जीते हैं, प्यारे। उदाहरण के लिए एक से एक बढ़ई हैं दुनिया में, सभी दो कौड़ी के... फिर एक दिन उनमें ऐसा बढ़ई पैदा होता है, जिसकी बराबरी का कोई बढ़ई दुनिया में पहले हुआ ही नहीं था—सबसे बढ़-चढ़ कर, जिसका कोई जवाब नहीं... और वह बढ़इयों के सारे काम को एक निखार दे देता है और बढ़इयों का धंधा एक ही छलाँग में बीस साल आगे पहुँच जाता है... दूसरों के मामले में भी ऐसा ही होता है... लुहारों में, मोचियों में, किसानों में... यहाँ तक कि शराबियों में भी!— मक्सिम गोर्की,नाटक 'तलछट' से",
"पूर्व कथन",
"यह जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि एक सस्ते शराबघर में पडी हुई थी—जिसे गोल करके धागे में बाँधा गया था। शायद इसे वह अधेड़ आदमी छोड़ गया था, जो थोड़ा लँगड़ाकर चलता था। उत्सुकतावश ही मैंने इस पांडुलिपि को खोलकर देखा। पांडुलिपि क्या थी—पंद्रह बीस पन्नों का एक बंडल था। शराबघर के नीम अँधेरे में अक्षर दिखाई नहीं पड़ रहे थे—हालाँकि काली स्याही से उन्हें लिखा गया था। हस्तलिपि भी उलझन भरी थी। शराबघर के बाहर आकर मैंने लैंप पोस्ट की रोशनी में उन पन्नों को पढ़ा तो दंग रह गया। यह कोई साल भर पहले की बात है, मैंने उसके बाद कई बार इन फटे-पुराने पन्नों के अज्ञात रचयिता को ढूँढ़ने की कोशिश की; लेकिन नाकाम रहा। हारकर मैं उस जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि में से चुनिंदा पंक्तियों/सूक्तियों/कविताओं को अपने नाम से प्रकाशित करा रहा हूँ—इस शपथ के साथ कि ये मेरी लिखी हुई नहीं है और इस आशा के साथ कि ये आवारा पंक्तियाँ आगामी मानवता के किसी काम आ सकेंगी।",
"— कृष्ण कल्पित",
"एकशराबी के लिएहर रातआख़िरी रात होती है।शराबी की सुबहहर रोज़एक नई सुबह।दोहर शराबी कहता हैदूसरे शराबी सेकम पिया करो।शराबी शराबी केगले मिलकर रोता है।शराबी शराबी केगले मिलकर हँसता है।तीनशराबी कहता हैबात सुनोऐसी बातफिर कहीं नहीं सुनोगे।चारशराब होगी जहाँवहाँ आस-पास ही होगाचना-चबैना।पाँचशराबी कवि ने कहाइस बार पुरस्कृत होगावह कविजो शराब नहीं पीता।छहसमकालीन कवियों मेंसबसे अच्छा शराबी कौन है?समकालीन शराबियों मेंसबसे अच्छा कवि कौन है?सातभिखारी को भीख मिल ही जाती हैशराबी को शराब।आठमैं तुमसे प्यार करता हूँशराबी कहता हैरास्ते में हर मिलने वाले से।नौशराबी कहता हैमैं शराबी नहीं हूँशराबी कहता हैमुझसे बेहतर कौन गा सकता है?दसशराबी की बात का विश्वास मत करना।शराबी की बात का विश्वास करना।शराबी से बुरा कौन है?शराबी से अच्छा कौन है?ग्यारहशराबीअपनी प्रिय किताब के पीछेछिपाता है शराब।बारहएक शराबी पहचान लेता हैदूसरे शराबी कोजैसे एक भिखारी दूसरे को।तेरहथोड़ा-सा पानीथोड़ा-सा पानीसारे संसार के शराबियों के बीचयह गाना प्रचलित है।चौदहस्त्रियाँ शराबी नहीं हो सकतींशराबी को हीहोना पड़ता है स्त्री।पंद्रहसिर्फ़ शराब पीने सेकोई शराबी नहीं हो जाता।सोलहकौन-सी शराबशराबी कभी नहीं पूछता।सत्रहआजकल मिलते हैंसजे-धजे शराबीकम दिखाई पड़ते हैं सच्चे शराबी।अठारहशराबी से कुछ कहना बेकार।शराबी को कुछ समझाना बेकार।उन्नीससभी सरहदों से परेधर्म, मज़हब, रंग, भेद और भाषाओं के पारशराबी एक विश्व नागरिक है।बीसकभी सुना हैकिसी शराबी को अगवा किया गया?कभी सुना हैकिसी शराबी को छुड़वाया गया फ़िरौती देकर?इक्कीससबने लिखा—वली दक्कनीसबने लिखे—मृतकों के बयानकिसी ने नहीं लिखावहाँ पर थी शराब पीने पर पाबंदीशराबियों से वहाँअपराधियों का-सा सलूक किया जाता था।बाईसशराबी के पासनहीं पाई जाती शराबहत्यारे के पास जैसेनहीं पाया जाता हथियार।तेईसशराबी पैदाइशी होता हैउसे बनाया नहीं जा सकता।चौबीसएक महफ़िल मेंकभी नहीं होतेदो शराबी।पच्चीसशराबी नहीं पूछता किसी सेरास्ता शराबघर का।छब्बीसमहाकवि की तरहमहाशराबी कुछ नहीं होता।सत्ताईसपुरस्कृत शराबियों के पासबचे हैं सिर्फ़ पीतल के तमग़ेउपेक्षित शराबियों के पासअभी भी बची हैथोडी-सी शराब।अट्ठाईसदिल्ली के शराबी कोकौतुक से देखता हैपूरब का शराबीपूरब के शराबी कोकुछ नहीं समझताधुर पूरब का शराबी।उनतीसशराबी से नहीं लिया जा सकताबच्चों को डराने का काम।तीसकविता का भी बन चला है अबछोटा-मोटा बाज़ारसिर्फ़ शराब पीना ही बचा है अबस्वांतः सुखाय कर्म।इकतीसबाज़ार कुछ नहीं बिगाड़ पायाशराबियों काहालाँकि कई बार पेश किए गएप्लास्टिक के शराबी।बत्तीसआजकल कवि भी होने लगे हैं सफलआज तक नहीं सुना गयाकभी हुआ है कोई सफल शराबी।तैंतीसकवियों की छोड़िएकुत्ते भी जहाँ पा जाते हैं पदककभी नहीं सुना गयाकिसी शराबी को पुरस्कृत किया गया।चौंतीसपटना का शराबी कहना ठीक नहींकंकड़बाग़1 के शराबी सेकितना अलग और अलबेला हैइनकम टैक्स गोलंबर2 का शराबी।पैंतीसकभी प्रकाश में नहीं आता शराबीअँधेरे में धीरे-धीरेविलीन हो जाता है।छत्तीसशराबी के बच्चेअक्सर शराब नहीं पीते।सैंतीसस्त्रियाँ सुलगाती हैंडगमगाते शराबियों कोस्त्रियों ने बचा रखी हैशराबियों की क़ौम।अड़तीसस्त्रियों के आँसुओं से जो बनती हैउस शराब काकोई जवाब नहीं।उनतालीसकभी नहीं देखा गयाकिसी शराबी कोभूख से मरते हुए।चालीसयात्राएँ टालता रहता है शराबीपता नही वहाँ परकैसी शराब मिलेकैसे शराबी!इकतालीसधर्म अगर अफ़ीम हैतो विधर्म है शराब।बयालीससमरसता कहाँ होगीशराबघर के अलावा?शराबी के अलावाकौन होगा सच्चा धर्मनिरपेक्ष!तैंतालीसशराब ने मिटा दिएराजशाही, रजवाड़े और सामंतशराब चाहती है दुनिया मेंसच्चा लोकतंत्र।चवालीसकुछ जी रहे हैं पीकरकुछ बग़ैर पिए।कुछ मर गए पीकरकुछ बग़ैर पिए।पैंतालीसनहीं पीने में जो मज़ा हैवह पीने में नहींयह जाना हमने पीकर।छियालीसइंतज़ार में हीपी गए चार प्यालेतुम आ जातेतो क्या होता?सैंतालीसतुम नहीं आएमैं डूब रहा हूँ शराब मेंतुम आ गए तोशराब में रोशनी आ गई।अड़तालीसतुम कहाँ होमैं शराब पीता हूँतुम आ जाओमैं शराब पीता हूँ।उनचासतुम्हारे आने परमुझे बताया गया प्रेमीतुम्हारे जाने के बादमुझे शराबी कहा गया।पचासदेवताओ, जाओमुझे शराब पीने दोअप्सराओ, जाओमुझे करने दो प्रेम।इक्यावनप्रेम की तरह शराब पीने कानहीं होता कोई समययह समयातीत है।बावनशराब सेतु हैमनुष्य और कविता के बीच।सेतु है शराबश्रमिक और कुदाल के बीच।तिरपनसोचता है जुलाहाकाश!करघे पर बुनी जा सकती शराब।चौवनकुम्हार सोचता हैकाश!चाक पर रची जा सकती शराब।पचपनसोचता है बढ़ईकाश!आरी से चीरी जा सकती शराब।छप्पनस्वप्न है शराब!जहालत के विरुद्धग़रीबी के विरुद्धशोषण के विरुद्धअन्याय के विरुद्धमुक्ति का स्वप्न है शराब!",
"क्षेपक",
"पांडुलिपि की हस्तलिपि भले उलझन भरी हो, लेकिन उसे कलात्मक कहा जा सकता है। इसे स्याही झरने वाली क़लम से जतन से लिखा गया था। अक्षरों की लचक, मात्राओं की फुनगियों और बिंदु, अर्धविराम से जान पड़ता है कि यह हस्तलिपि स्वअर्जित है। पूर्णविराम का स्थापत्य तो बेजोड़ है—कहीं कोई भूल नहीं। सीधा सपाट, रीढ़ की तरह तना हुआ पूर्णविराम। अर्धविराम ऐसा, जैसा थोड़ा फुदक कर आगे बढ़ा जा सके।रचयिता का नाम कहीं नहीं पाया गया। डेगाना नामक क़स्बे का ज़िक्र दो-तीन स्थलों पर आता है जिसके आगे ज़िला नागौर, राजस्थान लिखा गया है। संभवतः वह यहाँ का रहने वाला हो। डेगाना स्थित 'विश्वकर्मा आरा मशीन' का ज़िक्र एक स्थल पर आता है—जिसके बाद खेजड़े और शीशम की लकड़ियों के भाव लिखे हुए हैं। बढ़ईगीरी के काम आने वाले राछों (औज़ारों) यथा आरी, बसूला, हथौड़ी आदि का उल्लेख भी एक जगह पर है। हो सकता है वह ख़ुद बढ़ई हो या इस धंधे से जुड़ा कोई कारीगर। पांडुलिपि के बीच में 'महालक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस, डीडवाना' की एक परची भी फँसी हुई थी, जिस पर कंपोज़िंग, छपाई और बाइंडिंग का 4375 (कुल चार हज़ार तीन सौ पचहत्तर) रुपए का हिसाब लिखा हुआ है। यह संभवतः इस पांडुलिपि के छपने का अनुमानित व्यय था—जिससे जान पड़ता है कि इस 'कितबिया' को प्रकाशित कराने की इच्छा इसके रचयिता की रही होगी।रचयिता की औपचारिक शिक्षा-दीक्षा का अनुमान पांडुलिपि से लगाना मुश्किल है—यह तो लगभग पक्का है कि वह बी.ए., एम.ए. डिग्रीधारी नहीं था। यह ज़रूर हैरान करने वाली बात है कि पांडुलिपि में अमीर ख़ुसरो, कबीर, मीर, सूर, तुलसी, ग़ालिब, मीरा, निराला, प्रेमचंद, शरतचंद्र, मंटो, फ़िराक़, फ़ैज़, मुक्तिबोध, भुवनेश्वर, मजाज़, उग्र, नागार्जुन, बच्चन, नासिर, राजकमल, शैलेंद्र, ऋत्विक घटक, रामकिंकर, सिद्धेश्वरी देवी की पंक्तियाँ बीच-बीच में गुँथी हुई हैं। यह वाक़ई विलक्षण और हैरान करने वाली बात है। काल के थपेड़ों से जूझती हुई, होड़ लेती हुई कुछ पंक्तियाँ किस तरह रेगिस्तान के एक 'कामगार' की अंतरात्मा पर बरसती हैं और वहीं बस जाती हैं, जैसे नदियाँ हमारे पड़ोस में बसती हैं।",
"— कृष्ण कल्पितपटना, 13 फ़रवरी 2005वसंत पंचमी",
"सत्तावनकहीं भी पी जा सकती है शराबखेतों में खलिहानों मेकछार में या उपांत मेंछत पर या सीढ़ियों के झुटपुटे मेंरेल के डिब्बे मेंया फिर किसी लैंप पोस्ट कीझरती हुई रोशनी मेंकहीं भी पी जा सकती है शराब।अट्ठावनकलवारी में पीने के बादमृत्यु और जीवन से परेवह अविस्मरणीय नृत्य'ठगिनी क्यों नैना झमकावै'।कफ़न बेचकर अगरघीसू और माधो नहीं पीते शराबतो यह मनुष्यता वंचित रह जातीएक कालजयी कृति से।उनसठदेवदास कैसे बनता देवदासअगर शराब न होती।तब पारो का क्या होताक्या होता चंद्रमुखी काक्या होतारेलगाड़ी की तरहथरथराती आत्मा का?साठउन नीमबाज़ आँखों मेंसारी मस्तीकिस की-सी होतीअगर शराब न होती!आँखों में दमकिसके लिए होताअगर न होता साग़र-ओ-मीना?इकसठअगर न होती शराबवाइज़ का क्या होताक्या होता शेख़ साहब काकिस काम लगते धर्मोपदेशक?बासठपीने दे पीने देमस्जिद में बैठ करकलवारियाँऔर नालियाँ तोख़ुदाओं से अटी पडी हैं।तिरसठ'न उनसे मिले न मय पी है''ऐसे भी दिन आएँगे'काल पड़ेगा मुल्क मेंकिसान करेंगे आत्महत्याएँऔर खेत सूख जाएँगे।चौंसठ'घन घमंड़ नभ गरजत घोराप्रियाहीन मन डरपत मोरा'ऐसी भयानक रातपीता हूँ शराबपीता हूँ शराब!पैंसठ'हमन को होशियारी क्याहमन हैं इश्क़ मस्ताना'डगमगाता है शराबीडगमगाती है कायनात!छियासठ'अपनी-सी कर दीनी रेतो से नैना मिलाय के'तोसे तोसे तोसेनैना मिलाय के'चल ख़ुसरो घर आपनेरैन भई चहुँ देस'सड़सठ'गोरी सोई सेज परमुख पर डारे केस''उदासी बाल खोले सो रही है'अब बारह का बजर पड़ा हैमेरा दिल तो काँप उठा है।जैसे-तैसे मैं ज़िंदा हूँसच बतलाना तू कैसा है।सबने लिखे माफ़ीनामे।हमने तेरा नाम लिखा है।अड़सठ'वो हाथ सो गए हैंसिरहाने धरे-धरे'अरे उठ अरे चलशराबी थामता है दूसरे शराबी को।उनहत्तर'आए थे हँसते-खेलते''यह अंतिम बेहोशीअंतिम साक़ीअंतिम प्याला है'मार्च के फुटपाथों परपत्ते फड़फड़ा रहे हैंपेडों से झड़ रही हैएक स्त्री के सुबकने की आवाज़।सत्तर'दो अंखियाँ मत खाइयोपिया मिलन की आस'आस उजड़ती नहीं हैउजड़ती नहीं है आसबड़बड़ाता है शराबी।इकहत्तरकितना पानी बह गयानदियों मेंख़ून की नदियों में'तो फिर लहू क्या है?'लहू में घुलती है शराबजैसे शराब घुलती है शराब में।बहत्तर'धिक् जीवनसहता ही आया विरोध''कन्ये मैं पिता निरर्थक था'तरल गरल बाबा ने कहा'कई दिनों तक चूल्हा रोयाचक्की रही उदास'शराबी को याद आई कविताकई दिनों के बाद!तिहत्तरराजकमल बढ़ाते हैं चिलमउग्र थाम लेते हैं।मणिकर्णिका घाट पररात के तीसरे पहरभुवनेश्वर गुफ़्तगू करते हैं मजाज़ से।मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीड़ीएक शराबीमाँगता है उनसे माचिस।'डासत ही गई बीत निशा सब।'चौहत्तर'मोसे छलकिए जाए हाय रे हायहाय रे हाय''चलो सुहाना भरम तो टूटा'अबे चललकड़ी के बुरादेघर चल!सड़क का हुस्न है शराबी!पचहत्तर'सब आदमी बराबर हैं'यह बात कही होगीकिसी सस्ते शराबघर मेंएक बदसूरत शराबी नेकिसी सुंदर शराबी को देखकर।यह कार्ल मार्क्स के जन्म केबहुत पहले की बात होगी!छिहत्तरमगध में होगीविचारों की कमीशराबघर तो विचारों से अटे पड़े हैं।सतहत्तरशराबघर ही होगी शायदआलोचना कीजन्मभूमि!पहला आलोचक कोई शराबी रहा होगा!अठहत्तररूप और अंतर्वस्तुशिल्प और कथ्यप्याला और शराबविलग होते हीबिखर जाएगी कलाकृति!उनासीतुझे हम वली समझतेअगर न पीते शराब।मनुष्य बने रहने के लिए हीपी जाती है शराब!अस्सी'होगा किसी दीवार केसाये के तले मीर'अभी नहीं गिरेगी यह दीवारतुम उसकी ओट में जाकरएक स्त्री को चूम सकते होशराबी दीवार को चूम रहा हैचाँदनी रात में भीगता हुआ।इक्यासी'घुटुरुन चलतरेणु तनु मंडित'रेत पर लोट रहा है रेगिस्तान का शराबी'रेत है रेत बिखर जाएगी'किधर जाएगीरात की यह आख़िरी बस?बयासीभाँग की बूटीगाँजे की कलीखप्पर की शराबकासी तीन लोक से न्यारीऔर शराबीतीन लोक का वासी!तिरासीलैंप पोस्ट से झरती है रोशनीहारमोनियम से धूलऔर शराबी से झरता हैअवसाद।चौरासीटेलीविजन के परदे परबाहुबलियों की ख़बरें सुनाती हैंबाहुबलाएँ!टकटकी लगाए देखता है शराबीविडंबना का यह विलक्षण रूपकभंते! एक प्याला और।पिचासीगंगा के किनारेउल्टी पड़ी नाव पर लेटा शराबीकौतुक से देखता हैमहात्मा गांधी सेतु कोऐसे भी लोग हैं दुनिया में'जो नदी को स्पर्श किए बग़ैरकरते हैं नदियों को पार'और उछाल कर सिक्कानदियों को ख़रीदने की कोशिश करते हैं!छियासीतानाशाह डरता हैशराबियों सेतानाशाह डरता हैकवियों सेवह डरता है बच्चों से नदियों सेएक तिनका भी डराता है उसेप्यालों की खनखनाहट भर सेकाँप जाता है तानाशाह।सत्तासीक्या मैं ईश्वर सेबात कर सकता हूँशराबी मिलाता है नंबरअँधेरे में टिमटिमाती है रोशनीअभी आप क़तार में हैंकृपया थोड़ी देर बाद डायल करें।अट्ठासी'एहि ठैयां मोतियाहिरायल हो रामा...'इसी जगह टपका था लहूइसी जगह बरसेगी शराबइसी जगहसृष्टि का सर्वाधिक उत्तेजक ठुमकासर्वाधिक मार्मिक कजरीइसी जगह इसी जगह!नवासी'अंतरराष्ट्रीय सिर्फ़हवाई जहाज़ होते हैंकलाकार की जड़ें होती हैं'और उन जड़ों कोसींचना पड़ता है शराब से!नब्बेजिस पेड़ के नीचे बैठकरऋत्विक घटककुरते की जेब से निकालते हैं अद्धावहीं बन जाता है अड्डावहीं हो जाता हैबोधिवृक्ष!इक्यानवेसबसे बड़ा अफ़सानानिग़ारसबसे बड़ा शाइरसबसे बड़ा चित्रकारऔरा सबसे बड़ा सिनेमाकारअभी भी जुटते हैंकभी-कभीकिसी उजड़े हुए शराबघर में!बानवेहमें भी लटका दिया जाएगाकिसी रोज़ फाँसी के तख़्ते परधकेल दिया जाएगासलाख़ों के पीछेहमारी भी फ़ाक़ामस्तीरंग लाएगी एक दिन!तिरानवे*3 क़ब्रगाह में सोया है शराबीसोचता हुआवह बड़ा शराबी हैया ख़ुदा!चौरानवेऐसी ही होती है मृत्युजैसे उतरता है नशाऐसा ही होता है जीवनजैसे चढ़ती है शराब।पिचानवे'हाँ, मैंने दिया है दिलइस सारे क़िस्से मेंये चाँद भी है शामिल।'आँखों में रहे सपनामैं रात को आऊँगादरवाज़ा खुला रखना।चाँदनी में चिनाबहोंठों पर माहिएहाथों में शराबऔर क्या चाहिए जनाब!छियानवेरिक्शों पर प्यार थागाड़ियों में व्यभिचारजितनी बड़ी गाड़ी थीउतना बड़ा था व्यभिचाररात में घर लौटता शराबीखंडित करता है एक विखंडित वाक्यवलय में खोजता हुआ लय।सत्तानवेघर टूट गयारीत गया प्यालाधूसर गंगा के किनारेप्रस्फुटित हुआ अग्नि का पुष्पसाँझ के अवसान में हुआदेह का अवसानधरती से कम हो गया एक शराबी!अट्ठानवेनिपट भोर में'किसी सूतक का वस्त्र पहने'वह युवा शराबीकल के दाह संस्कार कीराख कुरेद रहा हैक्या मिलेगा उसेटूटा हुआ प्याला फेंका हुआ सिक्काया पहले तोड़ की अजस्र धार!आख़िर जुस्तजू क्या है?",
"आख़िर में",
"आख़िर में दो और सूक्तियाँ काग़ज़ पर लिखी हुई थीं, जिन्हें बाद में क़लम से क्रॉस कर दिया गया था, पर वे पढ़ने में आ रही थीं। अंतिम दो काटी हुई सूक्तियों के नीचे लिखा हुआ था—बाबा भर्तृहरि को प्रणाम!इसका एक अर्थ शायद यह भी हो सकता है कि इन सूक्तियों का अज्ञात कवि अंतिम दो सूक्तियों को काटकर नीति, शृंगार और वैराग्य शतक के लिए संसार प्रसिद्ध और संस्कृत भाषा के कालजयी कवि भर्तृहरि को सम्मान देना चाहता हो! हो सकता है कि वह भर्तृहरि से दो सीढ़ी नीचे, उनके चरणों में बैठकर, अपने पूर्वज कवि की कृपा का आकांक्षी हो!",
"— कृष्ण कल्पित",
"निन्यानवे रविवार की शराब तो मशहूर हैशराब का कोई रविवार नहीं होता।सौ शराब पीना पर प्रशंसा की शराब कभी मत पीना।",
"शराबी की शाइरी",
"जैसा कि पूर्व कथन है—गोल करके धागे से बाँधी हुए एक पांडुलिपि काली स्याही से सुथरे अंदाज़ में लिखी गई थी। काग़ज़ के हाशिए और बची हुई ख़ाली जगहों पर कुछ आधी-अधूरी ग़ज़लें और कुछ शाइरीनुमा पंक्तियाँ भी लिखी हुई थीं, जिन्हें पढ़ते हुए कभी यह एहसास होता है कि ये किसी नौसीखिए की लिखी हुई हैं तो कभी यह भी लगता है जैसे यह किसी उस्ताद शाइर का काम हो। जो हो, अगर यह शाइरी इस पुस्तक में प्रकाशित न की जाती तो यह उस अज्ञात/खोए हुए अनाम कवि के साथ अन्याय होता!",
"— कृष्ण कल्पित",
"एकजब मिलाओ शराब में पानीयाद रखियो कबीर की बानीगिरह ग़ालिब की मीर के मानी नाम मीरा थी प्रेम-दीवानी ध्यान से भी बड़ी है बेध्यानी सबसे बिदवान जो है अज्ञानी भूलता जा रहा हूँ बातों में चाहता था जो बात समझानी साक़िया टुक इधर भी देख ज़रा हर तरफ़ शोर है ज़रा पानी दोरात जाते हुए ही जाती है एक मद्यप की याद आती हैज़िंदगी गीत गुनगुनाती है और चुपके से मौत आती है!तीनकभी दीवारो-दर को देखता हूँ कभी बूढ़े शजर को देखता हूँ नज़र से ही नज़र को देखता हूँ फ़लक से फ़ितनागर को देखता हूँ मेरा पेशा है मयनोशी मेरा आलम है बेहोशी शराबों के असर को देखता हूँ तुम्हें भी रात भर को देखता हूँ।चारमोह छूटा तो ठग गई माया लुट गया पास था जो सरमाया अब तो जाता हूँ तेरी दुनिया से ‘फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया!’पाँचतेरा रस्ता बहुत तका हमने तेरी गलियों में ख़ूब घूम लिया जिस तरह चूमता तुम्हें जानम आज दीवारो-दर को चूम लिया रात को क्या हुआ शराबी ने जिसको देखा उसी को चूम लिया!छहजिधर देखिए बस हवा ही हवा हैसुबह की हवा में कशिश है नशा है जो गुज़रा उधर से तो देखा ये मंज़र कि दारू के ठेके पे ताला जड़ा है।सातसुनके रस्ता भुला गए थे हम तेरी बातों में आ गए थे हम क्या-क्या बातें सुना गए थे हम सारी महफ़िल पे छा गए थे हम साक़िया ये पुराना क़िस्सा है तेरी मटकी ढुला गए थे हम!आठहश्र बरपा ही नहीं अब्र बरसा ही नहीं ज़िंदगी बीत गई कोई क़िस्सा ही नहीं जैसे इस दुनिया में मेरा हिस्सा ही नहीं साक़िया बात है क्या हमको पूछा ही नहीं रात को जाऊँ कहाँ कोई डेरा ही नहीं!नौदिल-ए-नाकाम आ जाऊँ कहो तो शाम आ जाऊँ यही हसरत बची है अब किसी के काम आ जाऊँ!दसकभी बुतख़ाने में गुज़री कभी मयख़ाने में गुज़री बची थी ज़िंदगी थोड़ी वो आने-जाने में गुज़री समझना था नहीं हमकोसमझ ही थी नहीं हमको अगरचे शेख़ साहब की हमें समझाने में गुज़री!ग्यारहविष बुझा तीर चला दे साक़ी आज तो ज़हर पिला दे साक़ी रोज़ का आना-जाना कौन करे आख़िरी बार सुला दे साक़ी!",
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बचे रहने का अभिनय - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/bache-rahne-ka-abhinay-sulochna-kavita?sort= | [
"हम ज़िंदा रहते हैं फिर भी",
"उस पहाड़ की तरह जो दरकता है हर रोज़",
"या काट दिया जाता है रास्ता बनाने के लिए",
"और फिर भी खड़ा रहता है सिर उठाए",
"बचे रहने का अभिनय करते हुए",
"हम ज़िंदा रहते हैं फिर भी",
"रसोईघर के कोने में पड़े उस रंगीन पोंछे की तरह",
"जो घिस-घिसकर फट चुका है कई जगहों से",
"और फिर भी हो रहा है इस्तेमाल हर रोज़ कई बार",
"बचे रहने का अभिनय करते हुए",
"हम ज़िंदा रहते हैं फिर भी",
"मिट्टी के चूल्हे में जलते कोयले की तरह",
"जो जल-जलकर बन जाता है अंगार",
"और फिर भी धधकता रहता है",
"बचे रहने का अभिनय करते हुए",
"हमारी अभिनय क्षमता तय करती है हमारा ज़िंदा दिखना",
"और हमारा ज़िंदा दिखना ही है विश्व की सबसे रोमांचक कहानी",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"us pahaD ki tarah jo darakta hai har roz",
"ya kat diya jata hai rasta banane ke liye",
"aur phir bhi khaDa rahta hai sir uthaye",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"rasoighar ke kone mein paDe us rangin ponchhe ki tarah",
"jo ghis ghiskar phat chuka hai kai jaghon se",
"aur phir bhi ho raha hai istemal har roz kai bar",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"mitti ke chulhe mein jalte koyle ki tarah",
"jo jal jalkar ban jata hai angar",
"aur phir bhi dhadhakta rahta hai",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hamari abhinay kshamata tay karti hai hamara zinda dikhna",
"aur hamara zinda dikhna hi hai wishw ki sabse romanchak kahani",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"us pahaD ki tarah jo darakta hai har roz",
"ya kat diya jata hai rasta banane ke liye",
"aur phir bhi khaDa rahta hai sir uthaye",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
"rasoighar ke kone mein paDe us rangin ponchhe ki tarah",
"jo ghis ghiskar phat chuka hai kai jaghon se",
"aur phir bhi ho raha hai istemal har roz kai bar",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hum zinda rahte hain phir bhi",
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"jo jal jalkar ban jata hai angar",
"aur phir bhi dhadhakta rahta hai",
"bache rahne ka abhinay karte hue",
"hamari abhinay kshamata tay karti hai hamara zinda dikhna",
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पिकासो की पुत्रियाँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/pikaso-ki-putriyan-kedarnath-agarwal-kavita?sort= | [
"कठोर हैं तुम्हारे कुचों के",
"मौन मंजीर,",
"ओ पिकासों की पुत्रियो!",
"सुडौल हैं तुम्हारे नितंब के",
"दोनों कूल,",
"ओ पिकासी की पुत्रियो!",
"निर्भीक हैं",
"चरणों तक गईं",
"कदली—खंभों-सी प्रवाहित",
"कुमारीत्व की दोनों",
"नदियाँ,",
"ओ पिकासो की पुत्रियो!",
"kathor hain tumhare kuchon ke",
"maun manjir,",
"o pikason ki putriyo!",
"suDaul hain tumhare nitamb ke",
"donon kool,",
"o pikasi ki putriyo!",
"nirbhik hain",
"charnon tak gain",
"kadli—khambhon si prwahit",
"kumaritw ki donon",
"nadiyan,",
"o pikaso ki putriyo!",
"kathor hain tumhare kuchon ke",
"maun manjir,",
"o pikason ki putriyo!",
"suDaul hain tumhare nitamb ke",
"donon kool,",
"o pikasi ki putriyo!",
"nirbhik hain",
"charnon tak gain",
"kadli—khambhon si prwahit",
"kumaritw ki donon",
"nadiyan,",
"o pikaso ki putriyo!",
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आत्मालाप : कलाओं का शोक और शोक की कला - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/atmalap-ha-kalaon-ka-shok-aur-shok-ki-kala-babusha-kohli-kavita?sort= | [
"पूर्वी के संग के प्रति सस्नेह,जॉर्ज माइकल के गीतों के प्रति सादर।उन दिनों दुःख और पश्चात्ताप का मासूम देवता था जॉर्ज माइकलअपने वॉकमैन से गिटार के नोट्स बीनते मैं सोचतीक्या सचमुच इतना पवित्र हो सकता है किसी का दुःख?सी शार्प की शार्पनेस जॉर्ज के दुःख के तीखेपन के बिना कितनी फीकी हैउन दिनों एयर गिटार बना कर पूरे कॉरिडोर में परफ़ॉर्म करती थीदेयर इज़ नो कम्फ़र्ट इन द ट्रुथपेन इज़ ऑल यू'ल फ़ाइंड पूर्वी तंज़ से कहती, दुःख नहीं तो दुःख का ड्रामा सही?पूरी ज़िंदगी ही किसी अंजाने शेक्सपियर का लिखा ड्रामा है, झुम्मा! दुःख और छल का ऐसा खेल जिसमें यह तसल्ली शामिल है कि आख़िर में पर्दा गिर जाएगा।”अपने फ़लसफ़े से झाड़ देती तंज़ उसके उसकी आँखों पर पड़ा पर्दा उठा देतीएक दिनचंद्रमा को धनुष बना तान दूँगी तीर अपने हर्फ़ों से बेध दूँगी वक़्त का कलेजा, झुम्मा! नदी को जॉर्ज का गिटार कर दूँगीतट के कोलाहल से चुन लूँगी धुनबिखरी लहरों पर रिबन की तरह बाँधूँगी गीतसमंदर के काँधों पर लहरें खोल दूँगीये जो मेरे दुपट्टे में बबलगम की तरह उस इकतरफ़ा आशिक़ का दिल चिपका हुआ है न उसकी आह का भी असर होगा किसी दिनइस संसार में सब कुछ लौट-लौट आता हैदरिया से उठती हैं धुआँ-धुआँ बूँदें, बारिश बन लौट आती हैंखेतों में उगती है फ़सलें, बीज हो कर लौट आती हैंचिड़िया छोड़ देती हैं घोंसला, आकाश छू लौट आती हैएक ट्रेन छोड़ती है मेरा शहर रात आठ चालीस परठहरती है एक दिन उसके शहर अगले दिन लौट आती हैमेरा इकतरफ़ा राग उसके बाएँ कान को छू कर लौट आता हैदेखना!जॉर्ज और मैं एक साथ एक लय और एक-सी पवित्रता के उजाले में गुनगुनाएँगे किसी दिन—आय'म नेवा गोन्ना डांस अगेन!पिघल रही है मेरी आवाज़ की बर्फ़आँखों में पानी बन लौट आती हैबीते किसी दिसंबर पूर्वी ने इटली से लिखा :यहाँ बर्फ़ पड़ रही हैऔर जाने क्यों ऐसा लगता है कि तुम इन दिनों 'केयरलेस व्हिस्पर' गा रही होजॉर्ज की मृत्यु के दिन तुम्हें याद करती रहीपूर्वी को उत्तर कम लिखे मैंनेआप किसी ऐसे को कम उत्तर लिख पाते हैं जिसके सामने पहले ही आपका प्रश्नपत्र लीक हो चुका होकुछ दिनों बाद उसने लिखा :जॉर्ज को भी किताबें लिखनी थीं।परदेस से लौट कर उसने फिर लिखा :जॉर्ज को भी फ़िल्में बनानी थींहै न? मैंने उसे जो लिखा वह उत्तर नहीं थाचंद्रमा और नदी की जुगलबंदी में अपने बेसुरे गीतों के पिट जाने की ख़बर थीझुम्मा!एक बार गिटार सीखने गई थी 'सिक्स स्ट्रिंग्स क्लासेज़' उँगलियाँ छिल गईं लौट आई दो दिनों मेंलिखते हुए जानाकि कविता लिखना भी काग़ज़ पर गिटार बजाना ही हैइटली में जब बर्फ़बारी हो रही थीबर्फ़ की सिल्ली हो चुके अपने मन पर रखा था मैंने अपना ही शव पहली बारमेरे पहले ही अंतिम संस्कार में टूट गए थे जॉर्ज के गिटार के तार, झुम्मा!फिर किसी ने फूँक मार मिट्टी में जान भर दीदिल मेरा उसने दिल की जगह पर नहीं लगायादिल को बबलगम कर बालों में उलझा दिया हैवह जानता है बाल मेरे सीधे हैं रेशम की माफ़िक़खिंचते हैं बाल मेरे टूटते हैंदुःख का बड़ा अश्लील कारोबार है जॉर्ज से ले कर बाबुषा तकइन दिनों बाल नहीं काढ़ती हूँफ़िल्में बनाती हूँ इन दिनोंमेरी फ़िल्मों में स्टार नहीं मिलते जो किसी फ़लसफ़े से बुहारे न जा सकेंमेरी फ़िल्मों में गिटार के टूटे हुए तार और टूटे हुए बाल मिलते हैं",
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पंडित जसराज के लिए - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/pandit-jasraj-ke-liye-ranjana-mishra-kavita?sort= | [
"इस कविता में संगीत की व्याकरणीय शब्दावली के कुछ शब्द हैं, वैसे ये हिंदी के शब्द ही हैं और उनका मतलब भी कमोबेश वही रहता है, जैसे सप्तक : सात स्वरों का एक सप्तक होता है। अनुवादी : राग की सुंदरता बढ़ाने के लिए अल्प मात्रा में प्रयुक्त स्वर, विवादी : राग में जिस स्वर के प्रयोग से विवाद उत्पन्न हो जाए, और न्यास : ठहराव, हर राग में ठहरने के कुछ निश्चित स्वर होते हैं, उन्हें न्यास के स्वर कहते हैं। तार सा : मध्य सप्तक की सा, जहाँ से क्रमशः स्वर ऊँचे होते जाते हैं। अति तार : तीसरे सप्तक की सा। प अपनी जगह नहीं छोड़ता, सा की तरह : इसलिए इन्हें स्थिर स्वर कहते हैं।",
"षड्जउजाले के होते हैं नन्हे द्वीपनन्ही क़ंदीलें अपने भीतर बसाएक्या बसता है तुम्हारे भीतर?ऋषभयाद है मुझेकई बरस पहले भज गोविंदम सुनते हुएभीतर कहीं कुछ दरक गया थारोशनी की एक किरणउस अँधेरी गुफा तक जा पहुँचीजहाँ बैठा थाढेर सारा डरकाले रंग का संशयऔर गहरा भूरा अविश्वासक्या वह दुख था पंडित जी?अलग-अलग मुखौटे लगाएआत्मा के मुख़्तलिफ़ कोनों में छिपा?जीता जागता, साँसे लेता—तार-सा पर ठहरा दुखजो नि ध म और कोमल ग की सीढ़ियाँ उतरताबह आया था आँखों के रास्तेपिघलते हैं विशाल हिमखंड जैसेगंधार मैं बार-बार लौटीभटकती रहीउन सुरों के इर्द-गिर्दअपने दुखों का मुआयना करतीजैसे भटकते हैं हमसूने पवित्र खंडहरों मेंजो अब रहने लायक़ नहींप ध नि, प ध सा ने समझायादुख ही तो है—ठहरेगा नही देर तककिसी स्वर परचंचल प्रकृति सिर्फ़ लक्ष्मी की नहीं होती'मेरो अल्लाह मेहरबान' के साथमन देर तक तिरता रहाआश्वासन की उँगली थामे‘औलिया पीर पैग़ंबर ध्यावे’ के साथ सारे भ्रम रह गए पीछेगोविंदम गोपालम सुनते हुए जाना किमन न तो आस्तिक है न नास्तिकवह तरल होता हैऔर ढूँढ़ता है एक लयजो उसे भर देअथाह सुख सेमैदानों में धीमी गति से बहती नदियाँ देखी हैं न?मध्यम गोविंद दामोदर माधवेति सुनते हुएकृष्ण आ खड़े हुए सामनेमैने तो नहीं देखा किसी मिथकीय कृष्ण कोन ही कोशिश की उस कृष्ण को जानने कीजो प्रेमी से योद्धा में बदल गयापर जब तुम गाते होतो प्रेमी का दुख और योद्धा की विवशतामेरी कल्पना में एकाकार हो उठते हैंउस दिन जब आपने गायापवित्रम परमानंदम, त्वम वंदे परवेश्वरमतो मैं जान गईअगर होगा कहीं परमेश्वरतो वह अपनी दुनिया आपके सुरों के सहारे छोड़आपके सुरमंडल में डूबता उतराता होगाउठा ली होगी उसकी दुनिया आपके सुरों नेअपने काँधे परवैराग का रंग तो जोगिया होता है पंडित जीवह कैसे सुर में गाता है?पंचम आपके स्वर कहते हैंसुखावसानम ईदम एव सारमदुखावसानम इदं एक ध्येयमसारे सुख, दुख की यात्रा करते हैंऔर सारे दुख लौट पड़ते हैंसुख के घरयह कैसा सूत्र है जोमुझे मुक्त करता हैविशाल और उदार को इंगित करता हैठीक तुम्हारे स्वरों की तरह?कौन हैं आप पंडित जीस्वर्ग से निष्कासित कोई गंधर्वकोई संत वैरागीअपने स्वर में उजाले बसाए जो घर घाट गाता फिरता हैऔर मन को बार-बारपंचम की स्थिरता तक ले आता हैठीक उस कृष्ण की तरह जिसने युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता समझाई थीधैवतकौन से दुख की पोटली छिपाए फिरते हो?कालिघाट की प्रोतिमा क्या अब भी छुपी बैठी है कहीं? आप जानते हैं नवह आपसे मिलने आई थींविदा नहीं ले पाईंबस चली गईंफिर लौट नहीं पाईंआप ज़रूर जानते हैंपीड़ा के कितने सप्तक काफ़ी होते हैंसुख के एक क्षण का न्यास जीने के लिएऔर सुख अगर देर तक ठहर जाएतो अनुवादी से पहले विवादी में क्यों बदल जाता हैउस दिन जब दुख के अति तार से प्रोतिमा का हाथ थामकरआप उन्हें प की साम्यावस्था तक ले आए थेतो क्या वह उनकी नई यात्रा की शुरुआत थी?निषादनहीं जानती आपका दुख मुझे खींचता हैया उसके पार जाकर स्वरों में ढूँढ़ना उसका संधानजानती हूँ तो बस इतना हीजब तक रोशनी अपना सुरमंडल लिएबैठेगी मंच के मध्यउज्ज्वल हो जाएगी यह धरतीसातों आसमानऔर मेरा मनमैं आश्वस्त हूँकि बार-बार लौटूँगीघनीभूत पीड़ा के अंतहीन क्षणों सेतुम्हारे स्वरों तकअपनी ही राख सेनया रूप धर कर।",
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मामूली कलाकार की मौत - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/mamuli-kalakar-ki-maut-manoj-kumar-jha-kavita?sort= | [
"वह बार-बार कहता रहा",
"कोई नहीं रोएगा मेरे मरने से",
"न मैं काजल ला पाया न चश्मा",
"न खेत का हुआ न जंगल का",
"बर्फ़-सा सफ़ेद ठंडेपन से वह कहता रहा",
"और मैं काँपता रहा अपने निश्चय में कि",
"मैं तो रोऊँगा",
"मरा वह जिस दिन उस दिन",
"मेरा बैल भी मरा",
"और रोता रहा मैं",
"यह भी न सोच पाया कि किसके लिए रोया",
"और रुदन में डूबा देख भी न पाया",
"कि कोई रोया कि नहीं?",
"wo bar bar kahta raha",
"koi nahin roega mere marne se",
"na main kajal la paya na chashma",
"na khet ka hua na jangal ka",
"barf sa safed thanDepan se wo kahta raha",
"aur main kanpta raha apne nishchay mein ki",
"main to rounga",
"mara wo jis din us din",
"mera bail bhi mara",
"aur rota raha main",
"ye bhi na soch paya ki kiske liye roya",
"aur rudan mein Duba dekh bhi na paya",
"ki koi roya ki nahin?",
"wo bar bar kahta raha",
"koi nahin roega mere marne se",
"na main kajal la paya na chashma",
"na khet ka hua na jangal ka",
"barf sa safed thanDepan se wo kahta raha",
"aur main kanpta raha apne nishchay mein ki",
"main to rounga",
"mara wo jis din us din",
"mera bail bhi mara",
"aur rota raha main",
"ye bhi na soch paya ki kiske liye roya",
"aur rudan mein Duba dekh bhi na paya",
"ki koi roya ki nahin?",
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अभिनय क्या आत्महत्या है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/abhinay-kya-atmahatya-hai-nand-kishore-acharya-kavita?sort= | [
"विस्मित देखते हैं लोग",
"मुझको अन्य होते हुए—",
"और रेशा-रेशा मर रहा हूँ मैं",
"अनुपल जन्म लेता हुआ :",
"यही तो होता है हर बार।",
"अभिनय क्या आत्महत्या है",
"नए जन्म के लिए",
"जिसमें अपने को ख़ुद",
"जनता हूँ मैं—",
"जनकर मार देता हूँ!",
"vismit dekhte hain log",
"mujh ko any hote hue—",
"aur resha resha mar raha hoon main",
"anupal janm leta hua ha",
"yahi to hota hai har baar.",
"abhinay kya atmahatya hai",
"nae janm ke liye",
"jismen apne ko khu",
"janta hoon main—",
"jankar maar deta hoon!",
"vismit dekhte hain log",
"mujh ko any hote hue—",
"aur resha resha mar raha hoon main",
"anupal janm leta hua ha",
"yahi to hota hai har baar.",
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"nae janm ke liye",
"jismen apne ko khu",
"janta hoon main—",
"jankar maar deta hoon!",
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हुसैन के एक चित्र की अचानक याद - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/husain-ke-ek-chitr-kii-achaanak-yaad-ashok-vajpeyi-kavita?sort= | [
"उजाले की दो गहरी लाल आँखें",
"मुड़ गईं उस सड़क पर",
"जो मेरे घर के अँधेरे के पास से",
"गुज़रती है।",
"तालाब पर सोए धुँध में",
"खिलखिलाकर एक भूरी हँसी",
"हँसता है कोई।",
"पेड़ों की अँधेरी क़तारों के शिखरों पर",
"हँसता है कोई।",
"घिरता जाता है आकाश—काला",
"—घर मेरा उभरता है, डूबता है",
"अँधेरे में, सड़क पर,",
"गहन लाल आँखों में छूटकर",
"एक मद्धिम पीली रोशनी में लगातार...",
"ujaale kii do gahrii laal aa.nkhe.n",
"muD ga.ii.n us saDak par",
"jo mere ghar ke a.ndhere ke paas se",
"guzartii hai।",
"taalaab par so.e dhu.ndh me.n",
"khilkhilaakar ek bhuurii ha.nsii",
"ha.nsta hai ko.ii।",
"peDo.n kii a.ndherii qat.aar.o ke shikhro.n par",
"ha.nsta hai ko.ii।",
"ghirta jaata hai aakaasha—kaala",
"—ghar mera ubharta hai, Duubata hai",
"a.ndhere me.n, saDak par,",
"gahan laal aa.nkho.n me.n chhuuTakar",
"ek maddhim piilii roshanii me.n lagaataara.",
"ujaale kii do gahrii laal aa.nkhe.n",
"muD ga.ii.n us saDak par",
"jo mere ghar ke a.ndhere ke paas se",
"guzartii hai।",
"taalaab par so.e dhu.ndh me.n",
"khilkhilaakar ek bhuurii ha.nsii",
"ha.nsta hai ko.ii।",
"peDo.n kii a.ndherii qat.aar.o ke shikhro.n par",
"ha.nsta hai ko.ii।",
"ghirta jaata hai aakaasha—kaala",
"—ghar mera ubharta hai, Duubata hai",
"a.ndhere me.n, saDak par,",
"gahan laal aa.nkho.n me.n chhuuTakar",
"ek maddhim piilii roshanii me.n lagaataara.",
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मोना लिसा 2020 - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/mona-lisa-2020-vinod-bhardwaj-kavita-3?sort= | [
"स्त्री का रहस्य उसके बालों में है",
"उसकी आँखों में",
"या उसकी मुस्कान में",
"यह मेरी समस्या नहीं है",
"सारे मर्दवादी कवियों को",
"मैंने कब से विदा दे रखी है लियोनार्दो!",
"इस मास्क ने ज़रूर मेरी मुस्कान मुझसे छीन ली है",
"मेरी भीड़ कहीं बेरहमी से छिपा दी गई है",
"बरसों पहले लोगों पर पाबंदी नहीं थी",
"वे मेरे पास आ सकते थे",
"मुझसे बातें कर लेते थे",
"कुछ उनके गुप्त रहस्य मैं जान जाती थी",
"कुछ औरतें मेरी सहेलियाँ बन जाती थीं",
"एक दिन उन्हें भी मुझसे दूर कर दिया गया",
"एक मज़बूत रस्सी का घेरा बना दिया गया",
"यह लक्ष्मण-रेखा मेरे लिए नहीं थी",
"मेरे चाहने वालों के लिए थी",
"तुम्हें क्या सचमुच लगता है लियोनार्दो",
"कि मुझे एक आराम की ज़रूरत थी",
"या एक गहरे अकेलेपन की",
"कमबख़्तों ने मुझे भी एक ख़ूबसूरत मास्क पहना दिया है",
"क्या उन्हें डर है कि यह महामारी",
"मेरी रहस्यमय मुस्कान",
"मुझसे छीन लेगी",
"नहीं, डरो नहीं",
"मेरे पास आओ",
"मुझे छुओगे तो ख़तरे की घंटियाँ बज जाएँगी",
"पर मेरे बहुत क़रीब आ जाओ",
"आज मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है",
"लूव्र के इस भयावह एकांत में",
"istri ka rahasy uske balon mein hai",
"uski ankhon mein",
"ya uski muskan mein",
"ye meri samasya nahin hai",
"sare mardawadi kawiyon ko",
"mainne kab se wida de rakhi hai liyonardo!",
"is mask ne zarur meri muskan mujhse chheen li hai",
"meri bheeD kahin berahmi se chhipa di gai hai",
"barson pahle logon par pabandi nahin thi",
"we mere pas aa sakte the",
"mujhse baten kar lete the",
"kuch unke gupt rahasy main jaan jati thi",
"kuch aurten meri saheliyan ban jati theen",
"ek din unhen bhi mujhse door kar diya gaya",
"ek mazbut rassi ka ghera bana diya gaya",
"ye laxman rekha mere liye nahin thi",
"mere chahne walon ke liye thi",
"tumhein kya sachmuch lagta hai liyonardo",
"ki mujhe ek aram ki zarurat thi",
"ya ek gahre akelepan ki",
"kambakhton ne mujhe bhi ek khubsurat mask pahna diya hai",
"kya unhen Dar hai ki ye mahamari",
"meri rahasyamay muskan",
"mujhse chheen legi",
"nahin, Daro nahin",
"mere pas aao",
"mujhe chhuoge to khatre ki ghantiyan baj jayengi",
"par mere bahut qarib aa jao",
"aj mujhe tumhari sabse zyada zarurat hai",
"loowr ke is bhayawah ekant mein",
"istri ka rahasy uske balon mein hai",
"uski ankhon mein",
"ya uski muskan mein",
"ye meri samasya nahin hai",
"sare mardawadi kawiyon ko",
"mainne kab se wida de rakhi hai liyonardo!",
"is mask ne zarur meri muskan mujhse chheen li hai",
"meri bheeD kahin berahmi se chhipa di gai hai",
"barson pahle logon par pabandi nahin thi",
"we mere pas aa sakte the",
"mujhse baten kar lete the",
"kuch unke gupt rahasy main jaan jati thi",
"kuch aurten meri saheliyan ban jati theen",
"ek din unhen bhi mujhse door kar diya gaya",
"ek mazbut rassi ka ghera bana diya gaya",
"ye laxman rekha mere liye nahin thi",
"mere chahne walon ke liye thi",
"tumhein kya sachmuch lagta hai liyonardo",
"ki mujhe ek aram ki zarurat thi",
"ya ek gahre akelepan ki",
"kambakhton ne mujhe bhi ek khubsurat mask pahna diya hai",
"kya unhen Dar hai ki ye mahamari",
"meri rahasyamay muskan",
"mujhse chheen legi",
"nahin, Daro nahin",
"mere pas aao",
"mujhe chhuoge to khatre ki ghantiyan baj jayengi",
"par mere bahut qarib aa jao",
"aj mujhe tumhari sabse zyada zarurat hai",
"loowr ke is bhayawah ekant mein",
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कला का समय - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/kala-ka-samay-pankaj-chaturvedi-kavita?sort= | [
"रामलीला में धनुष-यज्ञ के दिन",
"राम का अभिनय",
"राजकुमार का अभिनय है",
"मुकुट और राजसी वस्त्र पहने",
"गाँव का नवयुवक नरेश",
"विराजमान था रंगमंच पर",
"सीता से विवाह होते-होते",
"सुबह की धूप निकल आई थी",
"पर लीला अभी ज़ारी रहनी थी",
"अभी तो परशुराम को आना था",
"लक्ष्मण से उनका लंबा संवाद होना था",
"नरेश के पिता किसान थे",
"सहसा मंच की बग़ल से",
"दबी आवाज़ में उन्होंने पुकारा :",
"नरेश! घर चलो",
"सानी-पानी का समय हो गया है",
"मगर नरेश नरेश नहीं था",
"राम था",
"इसलिए उसने एक के बाद एक",
"कई पुकारों को अनसुना किया",
"आख़िर पिता मंच पर पहुँच गए",
"और उनका यह कहा",
"बहुतों ने सुना—",
"लीला बाद में भी हो जाएगी",
"पर सानी-पानी का समय हो गया है",
"ramlila mein dhanush yagya ke din",
"ram ka abhinay",
"rajakumar ka abhinay hai",
"mukut aur rajasi wastra pahne",
"ganw ka nawyuwak naresh",
"wirajman tha rangmanch par",
"sita se wiwah hote hote",
"subah ki dhoop nikal i thi",
"par lila abhi zari rahni thi",
"abhi to parshuram ko aana tha",
"laxman se unka lamba sanwad hona tha",
"naresh ke pita kisan the",
"sahsa manch ki baghal se",
"dabi awaz mein unhonne pukara ha",
"naresh! ghar chalo",
"sani pani ka samay ho gaya hai",
"magar naresh naresh nahin tha",
"ram tha",
"isliye usne ek ke baad ek",
"kai pukaron ko ansuna kiya",
"akhir pita manch par pahunch gaye",
"aur unka ye kaha",
"bahuton ne suna—",
"lila baad mein bhi ho jayegi",
"par sani pani ka samay ho gaya hai",
"ramlila mein dhanush yagya ke din",
"ram ka abhinay",
"rajakumar ka abhinay hai",
"mukut aur rajasi wastra pahne",
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"par lila abhi zari rahni thi",
"abhi to parshuram ko aana tha",
"laxman se unka lamba sanwad hona tha",
"naresh ke pita kisan the",
"sahsa manch ki baghal se",
"dabi awaz mein unhonne pukara ha",
"naresh! ghar chalo",
"sani pani ka samay ho gaya hai",
"magar naresh naresh nahin tha",
"ram tha",
"isliye usne ek ke baad ek",
"kai pukaron ko ansuna kiya",
"akhir pita manch par pahunch gaye",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
नगड़ची की हत्या - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/nagadchi-ki-hatya-ramashankar-singh-kavita?sort= | [
"उसके पैदा होने पर",
"न सप्तर्षियों ने की कोई बैठक",
"न ही दिखा कोई तारा",
"उत्तर दिशा में",
"न ही उस दिन नदी में",
"एकाएक आया ज़्यादा पानी।",
"उस दिन तो सूरज भी",
"थोड़ा कम लाल उगा",
"बिल्कुल भोर में चिड़ियाँ न बोलीं",
"सुग्गे तो सुग्गे उस दिन कौए भी अलसाए थे",
"एक नामालूम-सी घड़ी में जन्मा वह",
"नगाड़ा बनाने वाले कारसाज़ के यहाँ।",
"पता था उसे सबसे अच्छा चमड़ा",
"किस पशु का है",
"उम्र, क़द-काठी सब पता थी उसे पशुओं की",
"किस जगह के चमड़े से बनता है जूता",
"कहाँ से निकलती है मशक",
"कहाँ के चमड़े से बनता है नगाड़ा।",
"कहाँ से निकलती है गगनभेदी आवाज़",
"किस चमड़े की बनती है ढोल",
"ढोल कसने का ताँत निकलता है कहाँ से",
"कहाँ के चमड़े से बनता है डमरू",
"जिससे निकलते हैं",
"पाणिनि के माहेश्वर सूत्र",
"व्याकरण के सिरजे जाने से पहले",
"ध्वनियों के प्रथम साक्षी थे उसके पुरखे।",
"देश के सारे गीतों के बोल",
"निर्धारित हैं उन वाद्य-यंत्रों से",
"बनाए थे उसके बाप-दादों ने",
"इस महाद्वीप की नर्तकियों का लास्य",
"ढोल के उन चमड़ों का ऋणी है",
"जो कमाया गया था सैकड़ों साल पहले।",
"तो हुआ एक दिन क्या",
"उसने बनाया नगाड़ा",
"आवाज़ गूँजती पाँच कोस जिसकी",
"और अगहन की एक सर्द-सी शाम",
"नगड़ची राजधानी चला आया।",
"राजधानी में देस के राजा का घर था",
"उसे लगा कि यही मुफ़ीद जगह है",
"विरुदावली गाई जाए उसकी",
"प्रजा के सुख बताए जाएँ",
"दिल्ली के बड़के अर्थशास्त्री को भी",
"देस का हाल बताया जाए",
"आख़िर वह था",
"देस की गाथाओं का आदिम संरक्षक",
"वंशक्रम, कीर्ति",
"सब था उसकी जिह्वा पर",
"हज़ारों-हज़ार वर्ष से उसके पुरखों ने",
"ऐसे ही सुरक्षित रखा था इतिहास",
"इतिहासकारों का वह पुरखा",
"राजधानी में गाने आया था",
"देस का इतिहास।",
"लेकिन यह क्या?",
"वह गाने लगा अपने पूर्वजों के सोग",
"सदियों के संताप नगाड़े पर बजाने लगा वह",
"बताने लगा कि गाँव में तालाब में",
"किसकी लाश उतराई थी",
"पिछले महीने",
"किसने लगाई छप्पर वाले टोले में आग",
"किसने क़ब्ज़ा कर लिया चारागाह",
"सब कुछ उसने सुनाया",
"बूढ़े पत्रकार को",
"पत्रकार केवल इतना बोला",
"तुम बोलते हो ऋषियों की तरह",
"राजधानी में भला उनका क्या काम",
"कल आना मेरे घर",
"पिलाऊँगा फ़्रांस की दारू।",
"न तो नगड़ची को फ़ुर्सत थी",
"न बूढ़े पत्रकार को",
"नगड़ची राजधानी नगाड़ा बजाने आया था",
"पत्रकार हर मिलने वाले से कहता था",
"घर आना",
"नगड़ची उसकी आँखों की ऊष्माहीनता से जान गया था",
"वह केवल उसे मन-बहलाव के लिए बुला रहा",
"उन्हीं दिनों माघ के महीने में",
"राजधानी के दिल और दिमाग़ पर कुहरा छाया था",
"उसने सेंका अपना नगाड़ा एक बार फिर",
"राजधानी में काठ नहीं बचा था",
"वह केवल लोगों के कलेजे में था",
"उसने टाइम मैगज़ीन को जला कर ही",
"नगाड़े के मर्म पर लगाई चोट",
"अब वह शहर के साहित्यकारों की करने लगा मुनादी",
"उनका गुण-रूप-रस",
"भाषा-रूपक-भाव",
"सब कुछ बताने लगा",
"नगाड़े की चोट पर",
"उनका संगीत और कला प्रेम",
"उसके लाभार्थियों की सूची",
"उसने बताई",
"पिछले सात पुश्तों की",
"फागुन की सनसनाती हवा",
"नगाड़े की आवाज़ ले जाने लगी",
"मुगल गार्डेन में घूमते लोगों तक",
"उसने पिछली सदी के कलेक्टर कवि के",
"औसतपने की खोल दी पोल",
"कि उसने चुराई हैं कविताएँ",
"अपने टाइपिस्ट की",
"यह बात उसने नगाड़े की दो टंकी लगाकर कही",
"मंडी हाउस मेट्रो पर",
"इंडिया इंटनेशनल सेंटर में जब व्याकरण के पंडित",
"एक नई भाषा खोजे जाने की कर रहे थे प्रेस कॉन्फ़्रेंस",
"तो उसने जोर से बजाया नगाड़ा",
"'यह तो मेरे पुरखों की भाषा है",
"चुरा रहा है यूनिवर्सिटी का प्रोफ़ेसर'",
"दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट फ़ैकल्टी पर",
"एक बड़े से मजमे में उसने बताया कि बैंक का अफ़सर",
"विज्ञापन का कौर डालता है संपादक को",
"और उसे साल का बेहतरीन कवि घोषित कर देता है",
"एक चित्रकार",
"उसकी पत्रिका में",
"फिर होली के दिन",
"शहर के सारे कवि-संपादक-पत्रकार",
"प्रोफ़ेसर और नेता",
"आंदोलनकारी और मुक्तिदाता जमा हुए",
"राजा भी आया अपनी लाव-लश्कर के साथ",
"एक जज एक वकील भी आया",
"स्टेनो टाइपिस्ट आए",
"मुकर्रर की गई उसकी सज़ा",
"नगड़ची को झोंक दिया ज़िंदा",
"होली के दिन होली की आग में",
"वह जल ही रहा था अभी",
"उस पर कविता लिखी",
"एक घंटावादी कवि ने",
"ठीक तीन महीने बाद",
"उसे दिया गया बेहतरीन कवि का पुरस्कार",
"और राजधानी में काव्य-संस्कृति ऐसे ही पनपती रही।",
"uske paida hone par",
"na saptarshiyon ne ki koi baithak",
"na hi dikha koi tara",
"uttar disha men",
"na hi us din nadi mein ekayek aaya zyada pani.",
"us din to suraj bhi",
"thoDa kam laal uga",
"bilkul bhor mein chiDiyan na bolin",
"sugge to sugge us din kauve bhi alsaye the",
"ek namalum si ghaDi mein janma wo",
"nagaDa banane vale karsaj ke yahan.",
"pata tha use sabse achchha chamDa",
"kis pashu ka hai",
"umr, qad kathi sab pata thi use pashuon ki",
"kis jagah ke chamDe se banta hai juta",
"kahan se nikalti hai mashak",
"kahan ke chamDe se banta hai nagaDa.",
"kahan se nikalti hai gaganbhedi avaz",
"kis chamDe ki banti hai Dhol",
"Dhol kasne ka taant nikalta hai kahan se",
"kahan ke chamDe se banta hai Damru",
"jisse nikalte hain",
"panini ke maheshvar sootr",
"vyakran ke sirje jane se pahle",
"dhvaniyon ke pratham sakshi the uske purkhe.",
"desh ke sare giton ke bol",
"nirdharit hain un vadya yantron se",
"banaye the uske baap dadon ne",
"is mahadvip ki nartakiyon ka lasya",
"Dhol ke un chamDon ka rini hai",
"jo kamaya gaya tha saikDon saal pahle.",
"to hua ek din kya",
"usne banaya nagaDa",
"avaz gunjti paanch kos jiski",
"aur aghan ki ek sard si shaam",
"nagaDchi rajdhani chala aaya.",
"rajdhani mein des ke raja ka ghar tha",
"use laga ki yahi mufid jagah hai",
"virudavali gai jaye uski",
"praja ke sukh bataye jayen",
"dilli ke baDke arthashastri ko bhi",
"des ke haal bataya jaye",
"akhir wo tha des ki gathaon ka aadim sanrakshak",
"vanshakram, kirti",
"sab tha uski jihva par",
"hazaron hazar varsh se uske purkhon ne",
"aise hi surakshit rakha tha itihas",
"itihaskaron ka wo purkha",
"rajdhani mein gane aaya tha des ka itihas.",
"lekin ye kyaa?",
"wo gane laga apne purvjon ke sog",
"sadiyon ke santap nagaDe par bajane laga wo",
"batane laga ki gaanv mein talab mein kiski laash utrai thi",
"pichhle mahine",
"kisne lagai chhappar vale tole mein aag",
"kisne qabza kar liya charagah",
"sab kuch usne sunaya",
"buDhe patrakar ko",
"patrakar keval itna bola",
"tum bolte ho rishiyon ki tarah",
"rajdhani mein bhala unka kya kaam",
"kal aana mere ghar",
"pilaunga fraans ki daru.",
"na to nagaDchi ko fursat thi",
"na buDhe patrakar ko",
"nagaDchi rajdhani nagaDa bajane aaya tha",
"patrakar har milne vale se kahta tha",
"ghar aana",
"nagaDchi uski ankhon ki uushmahinta se jaan gaya tha",
"wo keval use man bahlav ke liye bula raha",
"unhin dinon maagh ke mahine men",
"rajdhani ke dil aur dimagh par kuhra chhaya tha",
"usne senka apna nagaDa ek baar phir",
"rajdhani mein kaath nahin bacha tha",
"wo keval logon ke kaleje mein tha",
"usne taim maigzin ko jala kar hi",
"nagaDe ke marm par lagai chot",
"ab wo shahr ke sahitykaron ki karne laga munadi",
"unka gun roop ras",
"bhasha rupak bhaav",
"sab kuch batane laga",
"nagaDe ki chot par",
"unka sangit aur kala prem",
"uske labharthiyon ki suchi",
"usne batai",
"pichhle saat pushton ki",
"phagun ki sansanati hava",
"nagaDe ki avaz le jane lagi",
"mugal garDen mein ghumte logon tak",
"usne pichhli sadi ke kalektar kavi ke ausatapne ki khol di pol",
"ki usne churai hain kavitayen",
"apne taipist ki",
"ye baat usne nagaDe ki do tanki laga kar kahi",
"manDi haus metro par",
"inDiya intneshnal sentar mein jab vyakran ke panDit",
"ek nai bhasha khoje jane ki kar rahe the pres kanfrens",
"to usne jor se bajaya nagaDa",
"ye to mere purkhon ki bhasha hai",
"chura raha hai yunivarsiti ka prophesar",
"dilli vishvavidyalay ki aart faikalti par",
"ek baDe se majme mein mein usne bataya ki baink ka afsar",
"vigyapan ka kaur Dalta hai sampadak ko",
"aur use saal ka behtarin kavi ghoshit kar deta hai",
"ek chitrkar",
"uski patrika men",
"phir holi ke din",
"shahr ke sare kavi sampadak patrakar",
"profesar aur neta",
"andolankari aur muktidata ikaththa hue",
"raja bhi aaya apni laav lashkar ke saath",
"ek jaj ek vakil bhi aaya",
"steno taipist aaye",
"mukarrar ki gai uski saja",
"nagaDchi ko jhonk diya zinda",
"holi ke din holi ki aag men",
"wo jal hi raha tha abhi",
"us par kavita likhi",
"ek ghantavadi kavi ne",
"theek teen mahine baad",
"use diya gaya behtarin kavi ka puraskar",
"aur rajdhani mein kavya sanskriti aise hi panapti rahi.",
"uske paida hone par",
"na saptarshiyon ne ki koi baithak",
"na hi dikha koi tara",
"uttar disha men",
"na hi us din nadi mein ekayek aaya zyada pani.",
"us din to suraj bhi",
"thoDa kam laal uga",
"bilkul bhor mein chiDiyan na bolin",
"sugge to sugge us din kauve bhi alsaye the",
"ek namalum si ghaDi mein janma wo",
"nagaDa banane vale karsaj ke yahan.",
"pata tha use sabse achchha chamDa",
"kis pashu ka hai",
"umr, qad kathi sab pata thi use pashuon ki",
"kis jagah ke chamDe se banta hai juta",
"kahan se nikalti hai mashak",
"kahan ke chamDe se banta hai nagaDa.",
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"kis chamDe ki banti hai Dhol",
"Dhol kasne ka taant nikalta hai kahan se",
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"jisse nikalte hain",
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"desh ke sare giton ke bol",
"nirdharit hain un vadya yantron se",
"banaye the uske baap dadon ne",
"is mahadvip ki nartakiyon ka lasya",
"Dhol ke un chamDon ka rini hai",
"jo kamaya gaya tha saikDon saal pahle.",
"to hua ek din kya",
"usne banaya nagaDa",
"avaz gunjti paanch kos jiski",
"aur aghan ki ek sard si shaam",
"nagaDchi rajdhani chala aaya.",
"rajdhani mein des ke raja ka ghar tha",
"use laga ki yahi mufid jagah hai",
"virudavali gai jaye uski",
"praja ke sukh bataye jayen",
"dilli ke baDke arthashastri ko bhi",
"des ke haal bataya jaye",
"akhir wo tha des ki gathaon ka aadim sanrakshak",
"vanshakram, kirti",
"sab tha uski jihva par",
"hazaron hazar varsh se uske purkhon ne",
"aise hi surakshit rakha tha itihas",
"itihaskaron ka wo purkha",
"rajdhani mein gane aaya tha des ka itihas.",
"lekin ye kyaa?",
"wo gane laga apne purvjon ke sog",
"sadiyon ke santap nagaDe par bajane laga wo",
"batane laga ki gaanv mein talab mein kiski laash utrai thi",
"pichhle mahine",
"kisne lagai chhappar vale tole mein aag",
"kisne qabza kar liya charagah",
"sab kuch usne sunaya",
"buDhe patrakar ko",
"patrakar keval itna bola",
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"pilaunga fraans ki daru.",
"na to nagaDchi ko fursat thi",
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"nagaDchi rajdhani nagaDa bajane aaya tha",
"patrakar har milne vale se kahta tha",
"ghar aana",
"nagaDchi uski ankhon ki uushmahinta se jaan gaya tha",
"wo keval use man bahlav ke liye bula raha",
"unhin dinon maagh ke mahine men",
"rajdhani ke dil aur dimagh par kuhra chhaya tha",
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"unka gun roop ras",
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"uske labharthiyon ki suchi",
"usne batai",
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"nagaDe ki avaz le jane lagi",
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"usne pichhli sadi ke kalektar kavi ke ausatapne ki khol di pol",
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"apne taipist ki",
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"manDi haus metro par",
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स्मिता पाटिल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/smita-patil-dinesh-kushwah-kavita-2?sort= | [
"उसके भीतर एक झरना था",
"कितनी विचित्र बात है",
"एक दिन वह उसमें नहा रही थी",
"लोगों ने देखा",
"देखकर भी नहीं देखा",
"उसकी आँखों का पानी",
"मैना ने कोशिश की",
"कि कैसे गाया जाए पिंजरे का गीत",
"कि लोग",
"आँखों में देखने के आदी हो जाएँ।",
"तब घर के पीछे बँसवारी में",
"हवा साँय-साँय करती थी",
"जब उसने कोयल की नक़ल की थी",
"और चल पड़ी थी बग़ीचे की ओर",
"कि देखा",
"बड़े बरगद के पेड़ पर",
"किस तरह ध्यान लगाकर बैठते हैं गिद्ध",
"पूरे सीवान की थाह लेते हुए।",
"पिटती-लुटती-कुढ़ती स्त्री के रूप में",
"गालियाँ नहीं",
"मंत्र बुदबुदाती थी नैना जोगिन।",
"एक दिन मैंने उससे पूछा",
"बचपन में तुम ज़रूर सुड़कती रही होंगी नाक",
"वह मुस्कुराकर रह गई",
"मैंने कहा",
"जिसने गौतम बुद्ध को खिलाई थी खीर",
"तुम जैसी ही रही होगी वह सुजाता।",
"उसने पूछा",
"पुरुष के मुँह में लगी सिगरेट",
"बढ़कर सुलगा देने वाली लड़की भी",
"क्या इसी तरह आ सकती है इतिहास में?",
"कविता द्रोही भी मानते थे",
"अभिनय करती थी कविता",
"जीवन के रंगमंच पर",
"भीड़ भरी सिटी बसों में।",
"सुनते थे हम प्रसव की पीड़ा के बाद",
"औरत जन्मती है दूसरी बार",
"अभिनेत्री!",
"जीवन के इस अभिशप्त अभिनय के लिए",
"हम तैयार नहीं थे।",
"uske bhitar ek jharna tha",
"kitni wichitr baat hai",
"ek din wo usmen nha rahi thi",
"logon ne dekha",
"dekhkar bhi nahin dekha",
"uski ankhon ka pani",
"maina ne koshish ki",
"ki kaise gaya jaye pinjre ka geet",
"ki log",
"ankhon mein dekhne ke aadi ho jayen",
"tab ghar ke pichhe banswari mein",
"hawa sanya sanya karti thi",
"jab usne koel ki naqal ki thi",
"aur chal paDi thi baghiche ki or",
"ki dekha",
"baDe bargad ke peD par",
"kis tarah dhyan lagakar baithte hain giddh",
"pure siwan ki thah lete hue",
"pitti lutti kuDhti istri ke roop mein",
"galiyan nahin",
"mantr budabudati thi naina jogin",
"ek din mainne usse puchha",
"bachpan mein tum zarur suDakti rahi hongi nak",
"wo muskurakar rah gai",
"mainne kaha",
"jisne gautam buddh ko khilai thi kheer",
"tum jaisi hi rahi hogi wo sujata",
"usne puchha",
"purush ke munh mein lagi cigarette",
"baDhkar sulga dene wali laDki bhi",
"kya isi tarah aa sakti hai itihas mein?",
"kawita drohi bhi mante the",
"abhinay karti thi kawita",
"jiwan ke rangmanch par",
"bheeD bhari city bason mein",
"sunte the hum prasaw ki piDa ke baad",
"aurat janmti hai dusri bar",
"abhinetri!",
"jiwan ke is abhishapt abhinay ke liye",
"hum taiyar nahin the",
"uske bhitar ek jharna tha",
"kitni wichitr baat hai",
"ek din wo usmen nha rahi thi",
"logon ne dekha",
"dekhkar bhi nahin dekha",
"uski ankhon ka pani",
"maina ne koshish ki",
"ki kaise gaya jaye pinjre ka geet",
"ki log",
"ankhon mein dekhne ke aadi ho jayen",
"tab ghar ke pichhe banswari mein",
"hawa sanya sanya karti thi",
"jab usne koel ki naqal ki thi",
"aur chal paDi thi baghiche ki or",
"ki dekha",
"baDe bargad ke peD par",
"kis tarah dhyan lagakar baithte hain giddh",
"pure siwan ki thah lete hue",
"pitti lutti kuDhti istri ke roop mein",
"galiyan nahin",
"mantr budabudati thi naina jogin",
"ek din mainne usse puchha",
"bachpan mein tum zarur suDakti rahi hongi nak",
"wo muskurakar rah gai",
"mainne kaha",
"jisne gautam buddh ko khilai thi kheer",
"tum jaisi hi rahi hogi wo sujata",
"usne puchha",
"purush ke munh mein lagi cigarette",
"baDhkar sulga dene wali laDki bhi",
"kya isi tarah aa sakti hai itihas mein?",
"kawita drohi bhi mante the",
"abhinay karti thi kawita",
"jiwan ke rangmanch par",
"bheeD bhari city bason mein",
"sunte the hum prasaw ki piDa ke baad",
"aurat janmti hai dusri bar",
"abhinetri!",
"jiwan ke is abhishapt abhinay ke liye",
"hum taiyar nahin the",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
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रसिकों का मनोरंजन है यह जीवन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/rasikon-ka-manoranjan-hai-ye-jiwan-jyoti-shobha-kavita-25?sort= | [
"इतनी ही व्यर्थ गई मेरी देह",
"बाँसपुकुर की जर्जर साँझ देखते",
"जैसे नष्ट होती थी जामदानी साड़ी लोहे के संदूक़ में",
"जैसे शैशव से सिखाया गया था आदिवासी बालाओं को",
"सुंदर कढ़ाई करने के क़ायदे",
"और ज़्यादा मनुहार न करवाते समर्पण करने के",
"चौमुखी दीप जैसी एक देह के कितने असाध्य प्रेम होंगे",
"कितने दुर्गम होंगे गर्भ में आलोक के नियम",
"अंधकार और कोलाहल में ही बीत गई रात्रि",
"साफ़ मालूम होता बग़ल वाली बाड़ी में रुके हैं बर्मा से आए विद्यार्थी",
"बड़बड़ाती तो भी कौन सुनता,",
"तालु में जम रही है मृत्यु और तुम हो कि हावड़ा ब्रिज पर जड़ी बूटियाँ बेचते हो",
"निमिष भर के स्वाद में जीवन के दाम बताते हो",
"एक आध स्थान ही तो हैं देह में जहाँ मंच लगाया जा सकता है",
"जहाँ खेले जा सकते हैं भारतेंदु के नाटक",
"शेष तो जंगल है जहाँ नदी हो सकती है कूप शायद ही हो",
"इतना सुनते ही लवें तक आरक्त हो जाती तुम्हारी",
"चित्र देखने लगते हो सुचित्रा सेन के",
"कोई अज्ञात कुम्हार की प्रेमिका हो जैसे",
"मेरा कहा बरसता है जैसे जल पर बरसता हो जल",
"कि रसिकों का मनोरंजन है यह जीवन",
"आख़िरकार",
"क्या कविता ही व्यर्थ जाती है इस भरे पूरे शहर में",
"क्या नहीं खोई है मेरी देह",
"जिसे रोज़ ही स्नान करने के बहाने ले जाती हूँ हुगली में",
"फिर भी नहीं मिलती प्रेमी से",
"न धारा लीलती है इसे।",
"itni hi byarth gai meri deh",
"banspukur ki jarjar sanjh dekhte",
"jaise nasht hoti thi jamadani saDi lohe ke sanduq mein",
"jaise shaishaw se sikhaya gaya tha adiwasi balaon ko",
"sundar kaDhai karne ke qayde",
"aur zyada manuhar na karwate samarpan karne ke",
"chaumukhi deep jaisi ek deh ke kitne asadhy prem honge",
"kitne durgam honge garbh mein aalok ke niyam",
"andhkar aur kolahal mein hi beet gai ratri",
"saf malum hota baghal wali baDi mein ruke hain barma se aaye widyarthi",
"baDbaDati to bhi kaun sunta,",
"talu mein jam rahi hai mirtyu aur tum ho ki hawDa bridge par jaDi butiyan bechte ho",
"nimish bhar ke swad mein jiwan ke dam batate ho",
"ek aadh sthan hi to hain deh mein jahan manch lagaya ja sakta hai",
"jahan khele ja sakte hain bhartendu ke natk",
"shesh to jangal hai jahan nadi ho sakti hai koop shayad hi ho",
"itna sunte hi lawen tak arakt ho jati tumhari",
"chitr dekhne lagte ho suchitra sen ke",
"koi agyat kumhar ki premika ho jaise",
"mera kaha barasta hai jaise jal par barasta ho jal",
"ki rasikon ka manoranjan hai ye jiwan",
"akhiraka",
"kya kawita hi byarth jati hai is bhare pure shahr mein",
"kya nahin khoi hai meri deh",
"jise roz hi snan karne ke bahane le jati hoon hugli mein",
"phir bhi nahin milti premi se",
"na dhara lilti hai ise",
"itni hi byarth gai meri deh",
"banspukur ki jarjar sanjh dekhte",
"jaise nasht hoti thi jamadani saDi lohe ke sanduq mein",
"jaise shaishaw se sikhaya gaya tha adiwasi balaon ko",
"sundar kaDhai karne ke qayde",
"aur zyada manuhar na karwate samarpan karne ke",
"chaumukhi deep jaisi ek deh ke kitne asadhy prem honge",
"kitne durgam honge garbh mein aalok ke niyam",
"andhkar aur kolahal mein hi beet gai ratri",
"saf malum hota baghal wali baDi mein ruke hain barma se aaye widyarthi",
"baDbaDati to bhi kaun sunta,",
"talu mein jam rahi hai mirtyu aur tum ho ki hawDa bridge par jaDi butiyan bechte ho",
"nimish bhar ke swad mein jiwan ke dam batate ho",
"ek aadh sthan hi to hain deh mein jahan manch lagaya ja sakta hai",
"jahan khele ja sakte hain bhartendu ke natk",
"shesh to jangal hai jahan nadi ho sakti hai koop shayad hi ho",
"itna sunte hi lawen tak arakt ho jati tumhari",
"chitr dekhne lagte ho suchitra sen ke",
"koi agyat kumhar ki premika ho jaise",
"mera kaha barasta hai jaise jal par barasta ho jal",
"ki rasikon ka manoranjan hai ye jiwan",
"akhiraka",
"kya kawita hi byarth jati hai is bhare pure shahr mein",
"kya nahin khoi hai meri deh",
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"phir bhi nahin milti premi se",
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कला का पहला क्षण - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/kala-ka-pahla-kshan-manmohan-kavita?sort= | [
"कई बार आप",
"अपनी कनपटी के दर्द में",
"अकेले छूट जाते हैं",
"और क़लम के बजाय",
"तकिये के नीचे या मेज़ की दराज़ में",
"दर्द की कोई गोली ढूँढ़ते हैं",
"बेशक जो दर्द सिर्फ़ आपका नहीं है",
"लेकिन आप उसे गुज़र न जाने दें",
"यह भी हमेशा मुमकिन नहीं",
"कई बार एक उत्कट शब्द",
"जो कविता के लिए नहीं",
"किसी से कहने के लिए होता है",
"आपके तालू से चिपका होता है",
"और कोई नहीं होता आस-पास",
"कई बार शब्द नहीं",
"कोई चेहरा याद आता है",
"या कोई पुरानी शाम",
"और आप कुछ देर",
"कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए",
"भाई, हर बार रूपक ढूँढ़ना या गढ़ना",
"मुमकिन नहीं होता",
"कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है",
"कि दिल ज़हर में डूबा रहे",
"और आँखें बस कड़वी हो जाएँ",
"kai bar aap",
"apni kanpati ke dard mein",
"akele chhoot jate hain",
"aur qalam ke bajay",
"takiye ke niche ya mez ki daraz mein",
"dard ki koi goli DhunDhate hain",
"beshak jo dard sirf aapka nahin hai",
"lekin aap use guzar na jane den",
"ye bhi hamesha mumkin nahin",
"kai bar ek utkat shabd",
"jo kawita ke liye nahin",
"kisi se kahne ke liye hota hai",
"apke talu se chipka hota hai",
"aur koi nahin hota aas pas",
"kai bar shabd nahin",
"koi chehra yaad aata hai",
"ya koi purani sham",
"aur aap kuch der",
"kahin aur chale jate hain rahne ke liye",
"bhai, har bar rupak DhunDh़na ya gaDhna",
"mumkin nahin hota",
"kai bar sirf itna ho pata hai",
"ki dil zahr mein Duba rahe",
"aur ankhen bus kaDwi ho jayen",
"kai bar aap",
"apni kanpati ke dard mein",
"akele chhoot jate hain",
"aur qalam ke bajay",
"takiye ke niche ya mez ki daraz mein",
"dard ki koi goli DhunDhate hain",
"beshak jo dard sirf aapka nahin hai",
"lekin aap use guzar na jane den",
"ye bhi hamesha mumkin nahin",
"kai bar ek utkat shabd",
"jo kawita ke liye nahin",
"kisi se kahne ke liye hota hai",
"apke talu se chipka hota hai",
"aur koi nahin hota aas pas",
"kai bar shabd nahin",
"koi chehra yaad aata hai",
"ya koi purani sham",
"aur aap kuch der",
"kahin aur chale jate hain rahne ke liye",
"bhai, har bar rupak DhunDh़na ya gaDhna",
"mumkin nahin hota",
"kai bar sirf itna ho pata hai",
"ki dil zahr mein Duba rahe",
"aur ankhen bus kaDwi ho jayen",
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शिल्पी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/shilpi-dasharathi-kavita?sort= | [
"अनुवाद : हनुमच्छास्त्री अयाचित",
"हे शिल्पि, तुम इन कठोर पहाड़ी पत्थरों को",
"अपनी इच्छानुसार विलासिनी छैनी से सुनहले तार के समान",
"बढ़ाते हो",
"और पत्थरों में भी गुदगुदी पैदा करते हो।",
"एलोरा की गुफ़ाओं के नित्य नूतन कविताओं के अवतारों ने",
"आँख-मिचौनी खेली।",
"हे शिल्पि कला के अग्रदूत! हे महामति! तुमने अपनी छैनी",
"में वह शक्ति भर दी है,",
"जो पत्थरों के हीरे बना सके।",
"तुमने मंदिरों के गोपुर-शिखरों पर",
"सुंदर कलाकृतियों का निर्माण किया और पर्वत शिखरों पर",
"अप्सराओं के नृत्य के लिए मधुर रस-शालाओं की",
"कल्पना करके",
"सुंदर काव्यों को रूप प्रदान किया है।",
"हे शिल्पिकुलावतंस! तुम्हें देखने भर से सभी पर्वत अपने-",
"आप रमणियों के कुचों,",
"मोहन कपोलों, भृकुटियों और अलकावलि का रूप धारण करके",
"अप्सराएँ बन जाते हैं और अपना रूप सँवार लेते हैं तो तुम",
"ब्रह्मा बनकर अपनी छैनी से",
"उन पर अमृत छिड़काकर जीवन दान देते हो।",
"पत्थरों को चूर-चूर करने वाले तुम्हारे हथौड़ों की कड़ी चोटों से",
"कृशीभूत पहाड़ियाँ चिल्ला-चिल्लाकर कहती हैं कि",
"हे शिल्पिकुलभूषण! तुम जैसा मनोहर रूप लेने का आदेश",
"दोगे वैसा रूप धारण करने को हम प्रस्तुत हैं।",
"तब हमें इस प्रकार क्यों चूर-चूर कर रहे हो?",
"हे कलानिधि! तुमने पत्थर खोदकर जो खंभे बनाए हैं,",
"उनसे ऐसी मधुर ध्वनि पैदा करते हैं,",
"जैसे इस्पात के तारों से निकलती है।",
"कठोर शिलाओं पर न जाने किस अनुपात से तुमने छैनी",
"चलाई है",
"कि वह ऐसा विदित होता है कि रस-राग की सृष्टि करने के लिए",
"तुमने अपना हृदय निकालकर पत्थर मे चिपका दिया हो।",
"हे शिल्पि! तुम्हारी उस सुदर भुजा दण्ड को देखकर",
"जिसमें तुम अपनी चमकीली और कला-वैभव से भरी हुई छैनी",
"लिए हुए हो,",
"ये सभी पहाड़ियाँ नवनीत के समान द्रवित होती हैं और आँसू",
"बनकर बहती हैं।",
"वाह! तुम्हारा भी कैसा पौरुष है कि जो प्रस्तरों को भी गला",
"देता है।",
"तुम्हारे कलापूर्ण कर-कमलों में पड़कर",
"प्रत्येक प्रस्तर-खंड एक सुंदर प्रतिमा के सदृश बन जाता है",
"और नवयुवती के समान दर्शकों के हृदय को",
"गुदगुदाकर राग-रंजित करता है।",
"he shilpi, tum in kathor pahaDi pattharon ko",
"apni ichchhanusar vilasini chhaini se sunahle taar ke saman",
"baDhate ho",
"aur pattharon mein bhi gudgudi paida karte ho.",
"elora ki gufaon ke nity nutan kavitaon ke avtaron ne",
"ankh michauni kheli.",
"he shilpi kala ke agradut! he mahamati! tumne apni chhaini",
"mein wo shakti bhar di hai,",
"jo pattharon ke hire bana sake.",
"tumne mandiron ke gopur shikhron par",
"sundar kalakritiyon ka nirman kiya aur parvat shikhron par",
"apsaraon ke nrity ke liye madhur ras shalaon ki",
"kalpana karke",
"sundar kavyon ko roop pradan kiya hai.",
"he shilpikulavtas! tumhein dekhne bhar se sabhi parvat apne",
"aap ramaniyon ke kucho,",
"mohan kapolon, bhrikutiyon aur alkavali ka roop dharan karke",
"apsarayen ban jate hain aur apna roop sanvar lete hain to tum",
"brahma bankar apni chhaini se",
"un par amrit chhiDkakar jivan daan dete ho.",
"pattharon ko choor choor karne vale tumhare hathauDon ki kaDi choton se",
"krishibhut pahaDiyan chilla chillakar kahti hai ki",
"he shilpikulbhushan! tum jaisa manohar roop lene ka adesh",
"doge vaisa roop dharan karne ko hum prastut hai.",
"tab hame is prakar kyon choor choor kar rahe ho?",
"he kalanidhi! tumne patthar khodkar jo khambhe banaye hain,",
"unse aisi madhur dhvani paida karte hain,",
"jaise ispaat ke taron se nikalti hai.",
"kathor shilaon par na jane kis anupat se tumne chhaini",
"chalai hai",
"ki wo aisa vidit hota hai ki ras raag ki sirishti karne ke liye",
"tumne apna hirdai nikalkar patthar mae chipka diya ho.",
"he shilpi! tumhari us sudar bhunja danD ko dekhkar",
"jismen tum apni chamkili aur kala vaibhav se bhari hui chhaini",
"liye hue ho,",
"ye sabhi pahaDiyan navanit ke saman drvit hoti hain aur ansu",
"bankar bahti hain. vaah! tumhara bhi kaisa paurush hai ki jo prastron ko bhi gala",
"deta hai.",
"tumhare kalapurn mein paDkar",
"pratyek prastar khanD ek sundar pratibha ke sadrish ban jata hai",
"aur navyuvti ke saman darshkon ke hday ko",
"gudagudakar raag ranjit karta hai.",
"he shilpi, tum in kathor pahaDi pattharon ko",
"apni ichchhanusar vilasini chhaini se sunahle taar ke saman",
"baDhate ho",
"aur pattharon mein bhi gudgudi paida karte ho.",
"elora ki gufaon ke nity nutan kavitaon ke avtaron ne",
"ankh michauni kheli.",
"he shilpi kala ke agradut! he mahamati! tumne apni chhaini",
"mein wo shakti bhar di hai,",
"jo pattharon ke hire bana sake.",
"tumne mandiron ke gopur shikhron par",
"sundar kalakritiyon ka nirman kiya aur parvat shikhron par",
"apsaraon ke nrity ke liye madhur ras shalaon ki",
"kalpana karke",
"sundar kavyon ko roop pradan kiya hai.",
"he shilpikulavtas! tumhein dekhne bhar se sabhi parvat apne",
"aap ramaniyon ke kucho,",
"mohan kapolon, bhrikutiyon aur alkavali ka roop dharan karke",
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"un par amrit chhiDkakar jivan daan dete ho.",
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"he shilpikulbhushan! tum jaisa manohar roop lene ka adesh",
"doge vaisa roop dharan karne ko hum prastut hai.",
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"he kalanidhi! tumne patthar khodkar jo khambhe banaye hain,",
"unse aisi madhur dhvani paida karte hain,",
"jaise ispaat ke taron se nikalti hai.",
"kathor shilaon par na jane kis anupat se tumne chhaini",
"chalai hai",
"ki wo aisa vidit hota hai ki ras raag ki sirishti karne ke liye",
"tumne apna hirdai nikalkar patthar mae chipka diya ho.",
"he shilpi! tumhari us sudar bhunja danD ko dekhkar",
"jismen tum apni chamkili aur kala vaibhav se bhari hui chhaini",
"liye hue ho,",
"ye sabhi pahaDiyan navanit ke saman drvit hoti hain aur ansu",
"bankar bahti hain. vaah! tumhara bhi kaisa paurush hai ki jo prastron ko bhi gala",
"deta hai.",
"tumhare kalapurn mein paDkar",
"pratyek prastar khanD ek sundar pratibha ke sadrish ban jata hai",
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"gudagudakar raag ranjit karta hai.",
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वान गॉग के अंतिम आत्मचित्र से बातचीत - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/wan-gaug-ke-antim-atmchitr-se-batachit-anita-verma-kavita?sort= | [
"एक पुराने परिचित चेहरे परन टूटने की पुरानी चाह थीआँखें बेधक तनी हुई नाकछिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कानदूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी कोव्यापार की दुनिया में वह आदमी प्यार का इंतज़ार करता थामैंने जंगल की आग जैसी उसकी दाढ़ी को छुआउसे थोड़ा-सा क्या किया नहीं जा सकता था कालाआँखें कुछ कोमल कुछ तरलतनी हुई एक हरी नस ज़रा-सा हिली जैसे कहती होजीवन के जलते अनुभवों के बार में क्या जानती हो तुमहम वहाँ चलकर नहीं जा सकतेवहाँ आँखों को चौधियाता हुआ यथार्थ है और अँधेरी हवा हैजन्म लेते हैं सच आत्मा अपने कपड़े उतारती हैऔर हम गिरते हैं वहीं बेदमये आँखें कितनी अलग हैंइनकी चमक भीतर तक उतरती हुई कहती हैप्यार माँगना मूर्खता हैवह सिर्फ़ किया जा सकता हैभूख और दुख सिर्फ़ सहने के लिए हैंमुझे याद आईं विंसेंट वान गॉग की तस्वीरेंविंसेंट नीले या लाल रंग में विंसेंट बुख़ार मेंविंसेंट बिना सिगार या सिगार के साथविंसेंट दुखों के बीच या हरी लपटों वाली आँखों के साथया उसका समुद्र का चेहरामैंने देखा उसके सोने का कमरावहाँ दरवाज़े थेएक से आता था जीवनदूसरे से गुज़रता निकल जाता थावे दोनों कुर्सियाँ अंततः ख़ाली रहींएक काली मुस्कान उसकी तितलियों पर मँडराती थीऔर एक भ्रम जैसी बेचैनीजो पूरी हो जाती थी और बनी रहती थीजिसमें कुछ जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता थाएक शांत पागलपन तारों की तरह चमकता रहा कुछ देरविंसेंट बोला मेरा रास्ता आसान नहीं थामैं चाहता था उसे जो गहराई है और कठिनाई हैजो सचमुच प्यार है अपनी पवित्रता मेंइसलिए मैंने ख़ुद को अकेला कियामुझे यातना देते रहे मेरे अपने रंगइन लकीरों में अन्याय छिपे हैंयह सब एक कठिन शांति तक पहुँचता थापनचक्कियाँ मेरी कमज़ोरी रहींज़रूरी है कि हवा उन्हें चलाती रहेमैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहताआलू खाने वालों* और शराब पीने वालों* के लिए भी नहींमैंने उन्हें जीवन की तरह चाहा हैअलविदा मैंने हाथ मिलाया उससेकहो कुछ हमारे लिए करोकटे होंठों में मुस्कुराते विंसेंट बोलासमय तब भी तारों की तरह बिखरा हुआ थाइस नरक में भी नृत्य करती रही मेरी आत्माफ़सल काटने की मशीन की तरहमैं काटता रहा दुख की फ़सलआत्मा भी एक रंग हैएक प्रकाश भूरा नीलाऔर दुख उसे फैलाता जाता है।__________________________*'पोटैटो ईटर्स', **'ड्रिंकर्स'—वान गॉग के प्रसिद्ध चित्र।",
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मक़बूल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/maqbul-armaan-anand-kavita?sort= | [
"फ़िल्म के पोस्टर बनाता था",
"एक लड़का",
"मुंबई की सड़कों पर",
"सीढ़ियाँ लगाकर लेई से पोस्टर के चौकोर हिस्से",
"आपस में चिपकाया करता था",
"जैसे आकाश पर चाँद सितारे चिपका रहा हो",
"और फिर सबसे आँखें बचाकर",
"नीले कोरे समंदर पर बादल से उड़ते",
"घोड़ों की हिनहिनाहट लेप देता",
"गर्द उड़ाते हवा से बातें करते",
"शानदार अरबी घोड़े",
"और उनकी पीठ पर हिंदुस्तानी कहानियाँ चिपकी होतीं",
"कैनवास पर उभरते बदन के पेचोख़म को",
"उसके हाथ यूँ तराशते जैसे",
"ग़ुलाम अली की कोई ग़ज़ल चल रही हो",
"रूई की तरह सफ़ेद झक्क",
"अमिताभ कट वाले बाल",
"गोल चश्मा",
"कुरतेबाज़ बदन",
"कूचियों में उलझी लंबी उँगलियाँ",
"और ख़ाली खुले पैर",
"जाने क्या ज़िद थी",
"उसकी अम्मी बचपन में गुज़र गई थीं",
"वह जब भी आकाश से उतरता",
"भागती गोल धरती को कैनवास-सा बिछा देता",
"और देर तक",
"गोल-गोल रेखाएँ खींचता",
"और इन सबसे ऊब जाता",
"तो भीमसेन की आवाज़ पर रंगों का डब्बा उड़ेल देता",
"कहते हैं एक दिन किसी ने उसकी कूचियाँ चुरा लीं",
"और रंगों का वह रूठा बादशाह",
"अपने ही अरबी घोड़े पर बैठकर कहीं दूर चला गया",
"भला कोई किसी से उसकी माँ दो बार कैसे छीन सकता है",
"लेकिन उसके साथ ऐसा ही हुआ",
"अब वह भी दूर तक बिछे रेत में",
"गोल-गोल आकृतियाँ बनाता है",
"उन गोलाइयों के बीच मादरे-हिंद की याद में",
"बिलखता प्यासे रेगिस्तान के होंठ",
"अपने आँसुओं से तर करता है",
"मक़बूल फ़िदा हुसैन",
"वह शख़्स जिसने हिंदुस्तान का नाम",
"पूरी दुनिया में मक़बूल किया",
"हिंदुस्तानी उसे सिवा नफ़रतों के कुछ नहीं दे पाए",
"film ke postar banata tha",
"ek laDka",
"mumbii ki saDkon par",
"siDhiyan laga kar loiyon se postar ke chaukor hisse aapas mein chipkaya karta tha",
"jaise akash par chaand sitare chipka raha ho",
"aur phir sabse ankhen bachakar",
"nile kore samandar par badal se uDte ghoDon ki hinhinahat lep deta",
"gard uDate hava se baten karte",
"shanadar arbi ghoDe",
"aur unki peeth par hindustani kahaniyan chipki hotin",
"kainvas par ubharte badan ke pechon kham ko uske haath yoon tarashte jaise",
"ghulam ali ki koi ghazal chal rahi ho",
"ruiyon ki tarah safed jhakk",
"amitabh kat vale baal",
"gol chashma",
"kurtebaz badan",
"kuchiyon mein uljhi lambi ungliyan",
"aur",
"khali khule pair",
"jane kya zid thi",
"uski ammi bachpan mein guzar gain theen",
"wo jab bhi akash se utarta",
"bhagti gol dharti ko kainvas sa bichha deta",
"aur der tak",
"gol gol rekhayen khinchta",
"aur in sabse uub jata",
"to bhimasen ki avaj par rangon ka Dabba uDel deta",
"kahte hain ek din kisi ne uski kuchiyan chura leen",
"aur rangon ka wo rutha badashah apne hi arbi ghoDe par baith kar kahin door chala gaya",
"bhala koi kisi se uski maan do baar kaise chheen sakta hai",
"lekin uske saath aisa hi hua",
"ab wo bhi door tak bichhe ret mein",
"gol gol akritiyan banata hai",
"un golaiyon ke beech madre hind ki yaad mein bilakhta pyase registan ke hoth apne ansuon se tar karta hai",
"maqbul fida husain",
"ek wo shakhs jisne hindustan ka naam puri duniya mein maqbul kiya",
"hindustani use siva napharton ke kuch nahin de pae",
"film ke postar banata tha",
"ek laDka",
"mumbii ki saDkon par",
"siDhiyan laga kar loiyon se postar ke chaukor hisse aapas mein chipkaya karta tha",
"jaise akash par chaand sitare chipka raha ho",
"aur phir sabse ankhen bachakar",
"nile kore samandar par badal se uDte ghoDon ki hinhinahat lep deta",
"gard uDate hava se baten karte",
"shanadar arbi ghoDe",
"aur unki peeth par hindustani kahaniyan chipki hotin",
"kainvas par ubharte badan ke pechon kham ko uske haath yoon tarashte jaise",
"ghulam ali ki koi ghazal chal rahi ho",
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"gol chashma",
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"khali khule pair",
"jane kya zid thi",
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"bhagti gol dharti ko kainvas sa bichha deta",
"aur der tak",
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"aur in sabse uub jata",
"to bhimasen ki avaj par rangon ka Dabba uDel deta",
"kahte hain ek din kisi ne uski kuchiyan chura leen",
"aur rangon ka wo rutha badashah apne hi arbi ghoDe par baith kar kahin door chala gaya",
"bhala koi kisi se uski maan do baar kaise chheen sakta hai",
"lekin uske saath aisa hi hua",
"ab wo bhi door tak bichhe ret mein",
"gol gol akritiyan banata hai",
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"ek wo shakhs jisne hindustan ka naam puri duniya mein maqbul kiya",
"hindustani use siva napharton ke kuch nahin de pae",
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बैजू बावरा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/baiju-bawra-yatindra-mishra-kavita?sort= | [
"तुम्हारे पास नहीं थी दरबार में घुसने की कला",
"और बादशाह को असीसने वाली बंदिशें",
"तुम्हारा गला फँसता था",
"चापलूसी से गूँजने वाली तहरीरें सुनकर",
"और बेवजह ही ज़रदोज़ी वाली क़ालीनों पर",
"राग की बढ़त देखकर",
"तुम नहीं गाते थे",
"किसी अभियान का मंगलगान",
"और राजकुमारों के लिए सलोनी मुबारकबादियाँ",
"फिर भी तुम थे और इतिहास को",
"इस बात की ख़बर थी",
"कोई है जिसके शब्द और स्वर",
"उसकी बेपरवाह तंग गलियों से गुज़रकर भी",
"बादशाह के महलों तक पहुँच जाया करते थे",
"और जिसकी करुणा भरी आवाज़ में",
"रागिनियाँ पूरे भरोसे के साथ वज़ू करती थीं",
"इतिहास को यह भी मालूम था",
"तुम्हारी सुर ख़ानक़ाह में",
"यह संगीत ही था",
"जिसकी ताजपोशी होती थी बार-बार",
"और तुम्हारे अपने ही स्वर",
"सजाते थे सुर का तोरण",
"बजाते थे लय की दुंदुभी",
"यह तुम थे बैजू",
"जिससे इतिहास को कई दफ़ा",
"और कई बार संगीत को भी",
"ख़ुद को सुधारने का बहाना मिलता था",
"और दमकते हुए सूर्य को इस बात की आश्वस्ति",
"कि वह सुर के चेहरों पर भी",
"उजाले का प्रशस्त राग गा सकता था।",
"tumhare pas nahin thi darbar mein ghusne ki kala",
"aur badashah ko asisne wali bandishen",
"tumhara gala phansta tha",
"chaplusi se gunjne wali tahriren sunkar",
"aur bewajah hi zardozi wali qalinon par",
"rag ki baDhat dekhkar",
"tum nahin gate the",
"kisi abhiyan ka mangalgan",
"aur rajakumaron ke liye saloni mubarakbadiyan",
"phir bhi tum the aur itihas ko",
"is baat ki khabar thi",
"koi hai jiske shabd aur swar",
"uski beparwah tang galiyon se guzarkar bhi",
"badashah ke mahlon tak pahunch jaya karte the",
"aur jiski karuna bhari awaz mein",
"raginiyan pure bharose ke sath wazu karti theen",
"itihas ko ye bhi malum tha",
"tumhari sur khanqah mein",
"ye sangit hi tha",
"jiski tajaposhi hoti thi bar bar",
"aur tumhare apne hi swar",
"sajate the sur ka toran",
"bajate the lai ki dundubhi",
"ye tum the baiju",
"jisse itihas ko kai dafa",
"aur kai bar sangit ko bhi",
"khu ko sudharne ka bahana milta tha",
"aur damakte hue surya ko is baat ki ashwasti",
"ki wo sur ke chehron par bhi",
"ujale ka prashast rag ga sakta tha",
"tumhare pas nahin thi darbar mein ghusne ki kala",
"aur badashah ko asisne wali bandishen",
"tumhara gala phansta tha",
"chaplusi se gunjne wali tahriren sunkar",
"aur bewajah hi zardozi wali qalinon par",
"rag ki baDhat dekhkar",
"tum nahin gate the",
"kisi abhiyan ka mangalgan",
"aur rajakumaron ke liye saloni mubarakbadiyan",
"phir bhi tum the aur itihas ko",
"is baat ki khabar thi",
"koi hai jiske shabd aur swar",
"uski beparwah tang galiyon se guzarkar bhi",
"badashah ke mahlon tak pahunch jaya karte the",
"aur jiski karuna bhari awaz mein",
"raginiyan pure bharose ke sath wazu karti theen",
"itihas ko ye bhi malum tha",
"tumhari sur khanqah mein",
"ye sangit hi tha",
"jiski tajaposhi hoti thi bar bar",
"aur tumhare apne hi swar",
"sajate the sur ka toran",
"bajate the lai ki dundubhi",
"ye tum the baiju",
"jisse itihas ko kai dafa",
"aur kai bar sangit ko bhi",
"khu ko sudharne ka bahana milta tha",
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"ki wo sur ke chehron par bhi",
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संगतकार - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/sangatkaar-manglesh-dabral-kavita?sort= | [
"मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती",
"वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी",
"वह मुख्य गायक का छोटा भाई है",
"या उसका शिष्य",
"या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार",
"मुख्य गायक की गरज में",
"वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से",
"गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में",
"खो चुका होता है",
"या अपने ही सरगम को लाँघकर",
"चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में",
"तब संगतकार ही स्थाई को सँभाले रहता है",
"जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान",
"जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन",
"जब वह नौसिखिया था",
"तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला",
"प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ",
"आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ",
"तभी मुख्य गायक हो ढाढ़स बंधाता",
"कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर",
"कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ",
"यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है",
"और यह कि फिर से गाया जा सकता है",
"गाया जा चुका राग",
"और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है",
"यों अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है",
"उसे विफलता नहीं",
"उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।",
"mukhy gayak ke chattan jaise bhari svar ka saath deti",
"wo avaz sundar kamzor kanpti hui thi",
"wo mukhy gayak ka chhota bhai hai",
"ya uska shishya",
"ya paidal chalkar sikhne aane vala door ka koi rishtedar",
"mukhy gayak ki garaj men",
"wo apni goonj milata aaya hai prachin kaal se",
"gayak jab antre ki jatil tanon ke jangal men",
"kho chuka hota hai",
"ya apne hi sargam ko langhakar",
"chala jata hai bhatakta hua ek anhad men",
"tab sangatkar hi sthai ko sambhale rahta hai",
"jaise sametta ho mukhy gayak ka pichhe chhuta hua saman",
"jaise use yaad dilata ho uska bachpan",
"jab wo nausikhiya tha",
"tarasaptak mein jab baithne lagta hai uska gala",
"prerna saath chhoDti hui utsaah ast hota hua",
"avaz se raakh jaisa kuch girta hua",
"tabhi mukhy gayak ho DhaDhas bandhata",
"kahin se chala aata hai sangatkar ka svar",
"kabhi kabhi wo yon hi de deta hai uska saath",
"ye batane ke liye ki wo akela nahin hai",
"aur ye ki phir se gaya ja sakta hai",
"gaya ja chuka raag",
"aur uski avaz mein jo ek hichak saaf sunai deti hai",
"yon apne svar ko uncha na uthane ki jo koshish hai",
"use viphalta nahin",
"uski manushyata samjha jana chahiye.",
"mukhy gayak ke chattan jaise bhari svar ka saath deti",
"wo avaz sundar kamzor kanpti hui thi",
"wo mukhy gayak ka chhota bhai hai",
"ya uska shishya",
"ya paidal chalkar sikhne aane vala door ka koi rishtedar",
"mukhy gayak ki garaj men",
"wo apni goonj milata aaya hai prachin kaal se",
"gayak jab antre ki jatil tanon ke jangal men",
"kho chuka hota hai",
"ya apne hi sargam ko langhakar",
"chala jata hai bhatakta hua ek anhad men",
"tab sangatkar hi sthai ko sambhale rahta hai",
"jaise sametta ho mukhy gayak ka pichhe chhuta hua saman",
"jaise use yaad dilata ho uska bachpan",
"jab wo nausikhiya tha",
"tarasaptak mein jab baithne lagta hai uska gala",
"prerna saath chhoDti hui utsaah ast hota hua",
"avaz se raakh jaisa kuch girta hua",
"tabhi mukhy gayak ho DhaDhas bandhata",
"kahin se chala aata hai sangatkar ka svar",
"kabhi kabhi wo yon hi de deta hai uska saath",
"ye batane ke liye ki wo akela nahin hai",
"aur ye ki phir se gaya ja sakta hai",
"gaya ja chuka raag",
"aur uski avaz mein jo ek hichak saaf sunai deti hai",
"yon apne svar ko uncha na uthane ki jo koshish hai",
"use viphalta nahin",
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कला अनुभव - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/kala-anubhaw-rituraj-kavita-1?sort= | [
"एकआस-पास कोई भी चित्र नहीं है अमृता शेरगिल का सिर ढके कातर आँखों वालीं अँधेरे की स्याही में लिपटीं औरतें नहीं हैंसुपर बाज़ार की शेल्फ़ों से विदेशी परफ़्यूम लपकती कोई हैं नई रानियाँ रवि वर्मा की जो प्लेटिनम और हीरों से सजीं हिंसा और प्रेम की कथा गाती फ़िल्म देखने बैठी हैं हुसैन के भारी-भरकम काष्ठ चेहरे यहाँ बदली हुई शक्लों में बहुरुपिए बनकर बाज़ार भ्रमण को निकले हैं भूपेन की तंग गली के मकान की खिड़कियों से झाँकते हँसते-बिसूरते शिशु चेहरे भी नहीं हैं सॉफ़्टी, पित्ज़ा, फ़्रेच-फ़्राइज़ खाते बेडौल मोटे बच्चे वीडियो खेल के लिए कंप्यूटर की ख़ाली सीट के इंतज़ार में खड़े हैं बहुत पीछे छूट गई है धूल और दया बहुत पीछे छूट गए हैं अँधेरे में धूमिल प्रकाश के बीच महाभारत देखते लोग यहाँ स्वामीनाथन की वह चिड़िया कभी-कभी तितलियों की तलाश में आया करती थीलेकिन दो उल्लुओं ने जब से यहाँ बैठना शुरू किया है वह ग़ायब हो गई हैलकड़ी के काले तख़्तों से चिने हुए शिकारे नहीं खड़े हैं नदी में इसलिए यहाँ रामकुमार भी नहीं हैं आठ-दस मंज़िला इमारतों के स्वर्ग की ओट में चाँद छिपा खड़ा है सूरज दूसरी तरफ़ से बाँहों में कस रहा है पानी की टंकियों को मानो छत पर लड़ाई चल रही हो पानी और प्रकाश के लिए एक बहुत बड़े जूते में रखे मोबाइल के लिए चिंचलांकर यहाँ क्यों आएँगे जूट से बने झूले की जगह यहाँ रोप-वे जो है जीवन की सपाट सतह को लुभावनी रखने के लिए अनेक सौंदर्य प्रसाधन हैं लेकिन कटी-पिटी खरोंचें भरी आत्मा की मूरत पर अनंत अतृप्ति की व्याकुलता है शायद अभी तक यहाँ रवींद्र की बूढ़ी छाया सँवलाई धूप में ठहरी है दोभिन्न-भिन्न कला वस्तुएँ इतनी भिन्न तो नहीं हैं उनमें व्यर्थता का भाव लगभग एक जैसा है उनके प्रशंसक ख़रीदार समान हैसियत के लोग हैं वे जो बैंकों से मोटी रक़म उधार लेकर अपनी पूँजी बढ़ा रहे हैं बीच के रास्ते से निकलते हुए हाशिए के लोगों पर दयादृष्टि डाल रहे हैं ऐसे करोड़ों लोगों के वास्ते जीवनयापन के न्यूनतम साधन उपलब्ध करवा रहे हैं फिर भी इन वस्तुओं पर अलग-अलग नाम क्यों लिखे हैं हाशिए के व्यक्तियों को हाशिए पर नाम लिखने में शायद लज्जा आई होगी शायद नाम को संक्षिप्त करते वक़्त ख़ुद को बहुत लघु समझा होगा हो सकता है वस्तुओं के खेल में यह मात्र प्रपंच हो शायद यह नाम और वस्तु और उपभोक्ता के बीच में एक आध्यात्मिक संवाद का संचार हो क्योंकि उसकी क्रय-शक्ति नाम को कैसा भी अर्थ दे सकती है तीन‘प्रिय दर्शक, ये कला वस्तुएँ नहीं हैं मेरे अंग हैं मेरे नाम के अभिप्रेत जिन्हें किसी समुद्री तूफ़ान में फँसी नौका पर सवार नहीं होना है बल्कि भव्य राजसी प्रासादों के सुसज्जित सर्वतोभद्रों पाँच सितारा होटलों की शोभा बढ़ानी हैकाश, ये सब मेरे बच्चे होते जिन्हें वहाँ मेरी प्रशंसा सुनने का अवसर मिलता काश, मेरे पास फ़िरौती के लिए इतनी पूँजी होती कि इन बंधकों को उन हृदयहीनों से मुक्त करा पाता’",
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नज़्र-ए-ज्ञानरंजन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/nazr-e-gyanranjan-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"अन्याय अभी तक जीवित है मानवता अभी बिलखती है चुप क्यों हो मुझसे बात करो बातों से बात निकलती हैजो तुमने कभी शुरू की थी वह पहल अभी तक जारी है तुम बैठो टुक विश्राम करो इस बार हमारी बारी है उस कला-भवन के कंगूरे अपनी ठोकर से तोड़ेंगे उन क्लीव-कलावंतों के सिर दिन में दस बार मरोड़ेंगे वो देखो सूरज डूब गया ये देखो रात उतरती है जो जोत जगाई थी तुमने वह जोत अभी तक जलती है!नई पहल-1",
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कलाकार की दुनिया - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/kalakar-ki-duniya-nirmala-garg-kavita-11?sort= | [
"देह की अपनी एक भाषा होती है",
"पीड़ा की भी अपनी एक भाषा होती है",
"हम सब भाषाएँ भूलते जा रहे हैं",
"कलाकार याद रखता है, जितना रख पाता है",
"कलाकार की दुनिया में हम वह नहीं होते",
"जो अपनी दुनिया में होते हैं",
"हमारी दुनिया का सबसे अमीर आदमी",
"वहाँ फटेहाल नज़र आ सकता है",
"भीड़ से हरदम घिरे रहने वाले मदनमोहन जी",
"वहाँ ऐसे होंगे जैसे निर्जन में रहते हों",
"ख़ूब चमकने वाली चीज़ से गिरता है लगातार अंधकार",
"मामूली-सा मिट्टी का खिलौना वहाँ",
"बचपन का स्पर्श बनता है",
"कलाकार के यहाँ ईश्वर",
"दु:खों से और विडंबनाओं से",
"वैसे ही घिरे होते हैं",
"जैसे कि हम",
"जैसे कि ख़ुद कलाकार!",
"deh kii apnii ek bhaasha hotii hai",
"piiDa kii bhii apnii ek bhaasha hotii hai",
"ham sab bhaashaa.e.n bhuulate ja rahe hai.n",
"kalaakaar yaad rakhta hai, jitna rakh paata hai",
"kalaakaar kii duniya me.n ham vah nahii.n hote",
"jo apnii duniya me.n hote hai.n",
"hamaarii duniya ka sabse amiir aadamii",
"vahaa.n phaTehaal nazar a sakta hai",
"bhiiD se hardam ghire rahne vaale madanmohan jii",
"vahaa.n aise ho.nge jaise nirjan me.n rahte ho.n",
"KHuub chamakne vaalii chiiz se girta hai lagaataar a.ndhkaar",
"maamuulii-sa miTTii ka khilauna vahaa.n",
"bachpan ka sparsh banta hai",
"kalaakaar ke yahaa.n iishvar",
"du:kho.n se aur viDa.mbnaa.o.n se",
"vaise hii ghire hote hai.n",
"jaise ki ham",
"jaise ki KHu kalaakaara!",
"deh kii apnii ek bhaasha hotii hai",
"piiDa kii bhii apnii ek bhaasha hotii hai",
"ham sab bhaashaa.e.n bhuulate ja rahe hai.n",
"kalaakaar yaad rakhta hai, jitna rakh paata hai",
"kalaakaar kii duniya me.n ham vah nahii.n hote",
"jo apnii duniya me.n hote hai.n",
"hamaarii duniya ka sabse amiir aadamii",
"vahaa.n phaTehaal nazar a sakta hai",
"bhiiD se hardam ghire rahne vaale madanmohan jii",
"vahaa.n aise ho.nge jaise nirjan me.n rahte ho.n",
"KHuub chamakne vaalii chiiz se girta hai lagaataar a.ndhkaar",
"maamuulii-sa miTTii ka khilauna vahaa.n",
"bachpan ka sparsh banta hai",
"kalaakaar ke yahaa.n iishvar",
"du:kho.n se aur viDa.mbnaa.o.n se",
"vaise hii ghire hote hai.n",
"jaise ki ham",
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निरावरण वह - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/nirawarn-wo-pankaj-chaturvedi-kavita?sort= | [
"फ़्रांसीसी कलाकार गुस्ताव कूर्बे की कृति ‘चित्रकार का स्टूडियो' को देखकरदेह को निरावृत करने में वह झिझकती है क्या इसलिए कि उस पर प्यार के निशान हैं?नहींबिजलियों की तड़प से पुष्ट थे उभार आकाश की लालिमा छुपाए हुएक्षितिज था रेशम की सलवटों-सा पाँवों से लिपटा हुआजब उसे निरावरण देखा प्रतीक्षा के ताप से उष्ण लज्जा के रोमांच से भरी अपनी निष्कलुष आभा में दमकता स्वर्ण थी वहइंद्र के शाप से शापित नहीं न मनुष्य-सान्निध्य से म्लानवह नदी का जल हमेशा ताज़ा समस्त संसर्गों को आत्मसात् किए हुए छलछल पावनता",
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नया - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/artist/naya-vyomesh-shukla-kavita?sort= | [
"प्रसिद्ध तबलावादक किशन महाराज की एक जुगलबंदी की यादएक गर्वीले औद्धत्य में हाशिया बजेगा मुख्यधारा की तरह लोग समझेंगे यही है केंद्र शक्ति का सौंदर्य का केंद्र मुँह देखेगा विनम्र होकर कुछ का कुछ हो रहा है समझा जाएगा कई पुरानी लीकें टूटेंगी इन क्षणों में अनेक चीज़ों का विन्यास फिर से तय होगा अब एक नई तमीज़ की ज़रूरत होगी",
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