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अहंकार के विषय पर बेहतरीन काव्य खंड | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/ego/khand-kavya | [
"अहंकार विषयक कविताओं को संकलित किया गया है। रूढ़ अर्थ में यह स्वयं को अन्य से अधिक योग्य और समर्थ समझने का भाव है जो व्यक्ति का नकारात्मक गुण माना जाता है। वेदांत में इसे अंतःकरण की पाँच वृत्तियों में से एक माना गया है और सांख्य दर्शन में यह महत्त्व से उत्पन्न एक द्रव्य है। योगशास्त्र इसे अस्मिता के रूप में देखता है।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
अहंकार के विषय पर बेहतरीन चौकड़ियाँ | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/ego/chaukadiya | [
"अहंकार विषयक कविताओं को संकलित किया गया है। रूढ़ अर्थ में यह स्वयं को अन्य से अधिक योग्य और समर्थ समझने का भाव है जो व्यक्ति का नकारात्मक गुण माना जाता है। वेदांत में इसे अंतःकरण की पाँच वृत्तियों में से एक माना गया है और सांख्य दर्शन में यह महत्त्व से उत्पन्न एक द्रव्य है। योगशास्त्र इसे अस्मिता के रूप में देखता है।",
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Read famous Poetry of Dhanna Bhagat | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/dhanna-bhagat | [
"1415 - 1475\n|\nटोंक, राजस्थान",
"भक्तिकालीन निर्गुण संत। स्वामी रामानंद के शिष्य। आजीवन खेती-बाड़ी करते हुए भक्ति-पथ पर गतिशील कृषक-कवि।",
"भक्तिकालीन निर्गुण संत। स्वामी रामानंद के शिष्य। आजीवन खेती-बाड़ी करते हुए भक्ति-पथ पर गतिशील कृषक-कवि।",
"धन्नो कहै ते धिग नरां, धन देख्यां गरबाहिं।",
"धन तरवर का पानड़ा, लागै अर उड़ि जाहिं॥",
"धरणीधर व्यापक सबै, धरणि ब्यौम पाताल।",
"धन्नो कहै धनि साध ते, बिसरै नहिं कहूँ काल॥",
"धन्ना धन ते संत जन, जे पैठे पर भीड़।",
"संधि कटावै आपणी, रती न आवै पीड़॥",
"धन्ना धिन्न ते मानवी, धरणीधर सूं प्रीति।",
"राति दिवस बिसरै नहीं, रसना उर मन चीति॥",
"धन्ना कहै हरि धरम बिन, पंडित रहे अजाण।",
"अणबाह्यौ ही नीपजै, बूझौ जाइ किसाण॥",
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] |
जीवन के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/life/dohe | [
"कहा गया हो, कविता में जीवन का उतरना अस्वाभाविक प्रतीति नहीं है। प्रस्तुत चयन में जीवन, जीवनानुभव, जीवन-संबंधी धारणाओं, जीवन की जय-पराजय आदि की अभिव्यक्ति देती कविताओं का संकलन किया गया है।",
"कहि रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।",
"बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत॥",
"जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।",
"रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥",
"तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।",
"कहि रहीम परकाज हित, संपत्ति-सचहिं सुजान॥",
"थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।",
"धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात॥",
"धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह।",
"जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह॥",
"ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।",
"अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ॥",
"कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।",
"ऐसैं घटि घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि॥",
"जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।",
"सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥",
"सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै।",
"दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रोवै॥",
"बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।",
"राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ॥",
"निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।",
"बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥",
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।",
"ऐकै अषिर पीव का, पढ़ैं सु पंडित होइ॥",
"हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।",
"अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥",
"धन्नो कहै ते धिग नरां, धन देख्यां गरबाहिं।",
"धन तरवर का पानड़ा, लागै अर उड़ि जाहिं॥",
"थोड़ा जीवण कारनै, मत कोई करो अनीत।",
"वोला जौ गल जावोगे, जो बालु की भीत॥",
"जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार।",
"अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार॥",
"हे भ्रमर! जिन दिनों तूने वे सुंदर तथा सुगंधित पुष्प देखे थे, वह बहार बीत गई। अब (तो) गुलाब में बिन पत्ते की कंटकित डाल रह गई है (अब इससे दुःख छोड़ सुख की सम्भावना नहीं है)।",
"काग आपनी चतुरई, तब तक लेहु चलाइ।",
"जब लग सिर पर दैइ नहिं, लगर सतूना आइ॥",
"हे कौए! तू अपनी चतुरता तब तक दिखा ले जब तक कि तेरे सिर पर बाज पक्षी आकर अपनी झपट नहीं मारता। भाव यह है कि जब तक मृत्यु मनुष्य को आकर नहीं पकड़ लेती, तभी तक मनुष्य का चंचल मन अपनी चतुरता दिखाता है।",
"सबहि समरथहि सुखद प्रिय, अच्छम प्रिय हितकारि।",
"कबहुँ न काहुहि राम प्रिय, तुलसी कहा बिचारि॥",
"(संसार की यह दशा है कि) जो समर्थ पुरुष है उन सबको तो सुख देने वाला प्रिय लगता है और असमर्थ को अपना भला करने वाला प्रिय होता है। तुलसी विचारकर ऐसा कहते हैं कि भगवान श्री राम (विषयी पुरुषों में) कभी किसी को भी प्रिय नहीं लगते।",
"शुतर गिरयो भहराय के, जब भा पहुँच्यो काल।",
"अल्प मृत्यु कूँ देखि के, जोगी भयो जमाल॥",
"ऊँट के समान विशाल शरीर वाला पशु भी काल (मृत्यु) आने पर हड़बड़ाकर गिर पड़ता है। इस प्रकार शरीर की नश्वरता देखकर कवि जमाल उदासीन हो गया।",
"पानी जैसी ज़िंदगी",
"बनकर उड़ती भाप।",
"गंगा मैया हो कहीं",
"तो कर देना माफ़॥",
"धन दारा संपत्ति सकल, जिनि अपनी करि मानि।",
"इन में कुछ संगी नहीं, नानक साची जानि॥",
"सुन्दर अविनाशी सदा, निराकार निहसंग।",
"देह बिनश्वर देखिये, होइ पटक मैं भंग॥",
"रजत सीप मैं रजु भुजंग, जथा सुपन धन धाम।",
"तथा वृथा भ्रम रूप जग, साँच चिदातम राम॥",
"असु गज अरु कंचन 'दया', जोरे लाख करोर।",
"हाथ झाड़ रीते गये, भयो काल को ज़ोर॥",
"बलि किउ माणुस जम्मडा, देक्खंतहँ पर सारु।",
"जइ उट्टब्भइ तो कुहइ, अह डज्झइ तो छारु॥",
"मनुष्य इस जीवन की बलि जाता हैं (अर्थात् वह अपनी देह से बहुत मोह रखता है) जो देखने में परम तत्व है। परंतु उसी देह को यदि भूमि में गाड़ दें तो सड़ जाती है और जला दें तो राख हो जाती है।",
"माटी सूं ही ऊपज्यो, फिर माटी में मिल जाय।",
"फूली कहै राजा सुणो, करल्यो कोय उपाय॥",
"सुन्दर तूं तौ एकरस, तोहि कहौं समुझाइ।",
"घटै बढै आवै रहै, देह बिनसि करि जाइ॥",
"तात मात तुम्हरे गये, तुम भी भये तैयार।",
"आज काल्ह में तुम चलो, 'दया' होहु हुसियार॥",
"जैसो मोती ओस को, तैसो यह संसार।",
"बिनसि जाय छिन एक में, 'दया' प्रभू उर धार॥",
"भाई बंधु कुटुंब सब, भये इकट्ठे आय।",
"दिना पाँच को खेल है, 'दया' काल ग्रासि जाय॥",
"रावन कुंभकरण गये, दुरजोधन बलवंत।",
"मार लिये सब काल ने, ऐसे 'दया' कहंत॥",
"‘लालू’ क्यूँ सूत्याँ सरै, बायर ऊबो काल।",
"जोखो है इण जीव नै, जँवरो घालै जाल॥",
"जग रचना सब झूठ है, जानि लेहु रे मीत।",
"कहु नानक थिर ना रहे, जिउ बालू की भीत॥",
"'दया कुँवर' या जक्त में, नहीं रह्यो थिर कोय।",
"जैसो बास सराँय को, तैसो यह जग होय॥",
"जिउ स्वप्ना और पेखना, ऐसे जग को जान।",
"इन मैं कछु साचो नहीं, नानक बिन भगवान॥",
"जैसो मोती ओंस को, तैसो यह संसार।",
"बिनसि जाय छिन एक में, ‘दया’ प्रभू उर धार॥",
"सुन्दर चेतनि आतमा, जड़ सौं कियौ सनेह।",
"देह खेह सौं मिलि रह्यौ, रत्न अमोलक येह॥",
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नीति के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/neeti/dohe | [
"अन्य काव्यरूपों का एक विशिष्ट चयन।",
"‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।",
"पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥",
"गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा।",
"राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।",
"बरषत वारिद-बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥",
"राम-नाम का आश्रय लिए बिना जो लोग मोक्ष की आशा करते हैं अथवा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चारों परमार्थों को प्राप्त करना चाहते हैं वे मानो बरसते हुए बादलों की बूँदों को पकड़ कर आकाश में चढ़ जाना चाहते हैं। भाव यह है कि जिस प्रकार पानी की बूँदों को पकड़ कर कोई भी आकाश में नहीं चढ़ सकता वैसे ही राम नाम के बिना कोई भी परमार्थ को प्राप्त नहीं कर सकता।",
"आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।",
"‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥",
"जिस घर में जाने पर घर वाले लोग देखते ही प्रसन्न न हों और जिनकी आँखों में प्रेम न हो, उस घर में कभी न जाना चाहिए। उस घर से चाहे कितना ही लाभ क्यों न हो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए।",
"उहां न कबहूँ जाइए, जहाँ न हरि का नाम।",
"दिगंबर के गाँव में, धोबी का क्या काम॥",
"तोय मोल मैं देत हौ, छीरहि सरिस बढ़ाइ।",
"आँच न लागन देत वह, आप पहिल जर जाइ॥",
"दूध पानी को अपने में मिलाकर उसका मूल्य अपने ही समान बना देता है। पर जब दूध को आग पर गर्म किया जाता है तो दूध से पहले पानी अपने को जला लेता है और दूध को बचा लेता है। मित्रता हो तो दूध और पानी जैसी हो।",
"अगलिअ-नेह-निवट्टाहं जोअण-लक्खु वि जाउ।",
"वरिस-सएण वि जो मिलइ सहि सोक्खहं सो ठाउ॥",
"अगलित स्नेह में में पके हुए लोग लाखों योजन भी चले जाएँ और सौ वर्ष बाद भी यदि मिलें तो हे सखि, मैत्री का भाव वही रहता है।",
"जो आवै सत्संग में, जात वर्ण कुलखोय।",
"सहजो मैल कुचील जल, मिलै सुगंगा होय॥",
"सहजो कहती हैं कि जैसे एकदम मैला-गंदा पानी गंगा में मिले जाने पर उसी के समान पवित्र हो जाता है, उसी प्रकार संत जनों की संगति से कौआ अर्थात् मूर्ख व्यक्ति भी हंस अर्थात् ज्ञानी-विवेकी बन जाता है।",
"पंचहँ णायकु वसिकरहु, जेण होंति वसि अण्ण।",
"मूल विणट्ठइ तरुवरहँ, अवसइँ सुक्कहिं पण्णु॥",
"पाँच इंद्रियों के नायक मन को वश में करो जिससे अन्य भी वश में होते हैं। तरुवर का मूल नष्ट कर देने पर पर्ण अवश्य सूखते हैं।",
"ब्राह्मण खतरी बैस सूद रैदास जनम ते नांहि।",
"जो चाहइ सुबरन कउ पावइ करमन मांहि॥",
"कोई भी मनुष्य जनम से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं होता। यदि कोई मनुष्य उच्च वर्ण को प्राप्त करना चाहता है तो वह केवल सुकर्म से ही उसे प्राप्त कर सकता है। सुकर्म ही मानव को ऊँचा और दुष्कर्म ही नीचा बनाता है।",
"समदरसी ते निकट है, भुगति-भुगति भरपूर।",
"विषम दरस वा नरन तें, सदा सरबदा दूर॥",
"जो लोग समदर्शी हैं, प्राणीमात्र के लिए समान भाव रखते हैं, उनको भोग और मोक्ष दोनों अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। इसके विपरीत जो विषमदर्शी हैं, जो भेद-भावना से काम लेते हैं, उन्हें वह मुक्ति कदापि नहीं प्राप्त हो सकती। ऐसे लोगों से भोग और मोक्ष दोनों दूर भागते हैं।",
"दुर्जन दर्पण सम सदा, करि देखौ हिय गौर।",
"संमुख की गति और है, विमुख भए पर और॥",
"दुर्जन शीशे के समान होते हैं, इस बात को ध्यान से देख लो, क्योंकि दोनों ही जब सामने होते हैं तब तो और होते हैं और जब पीछ पीछे होते हैं तब कुछ और हो जाते हैं। भाव यह है कि दुष्ट पुरुष सामने तो मनुष्य की प्रशंसा करता है और पीठ पीछे निंदा करता है, इसी प्रकार शीशा भी जब सामने होता है तो वह मनुष्य के मुख को प्रतिबिंबित करता है; पर जब वह पीठ पीछे होता है तो प्रतिबिंबित नहीं करता।",
"नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।",
"अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥",
"नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है। अरे भौरे! अभी तो यह एक कली मात्र है। तुम अभी से इसके मोह में अंधे बन रहे हो। जब यह कली फूल बनकर पराग तथा मकरंद से युक्त होगी, उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? अर्थात् जब नायिका यौवन संपन्न सरसता से प्रफुल्लित हो जाएगी, तब नायक की क्या दशा होगी?",
"दिवेहि विढत्तउँ खाहि वढ़ संचि म एक्कु वि द्रम्मु।",
"को वि द्रवक्कउ सो पडइ जेण समप्पइ जम्मु॥",
"हे मूर्ख, दिन-दिन कमाये धन को खा, एक भी दाम संचित मत कर। कोई भी ऐसा संकट आ पड़ेगा जिससे जीवन ही समाप्त हो जाएगा।",
"कपट वचन अपराध तैं, निपट अधिक दुखदानि।",
"जरे अंग में संकु ज्यौं, होत विथा की खानि॥",
"अपराध करने से भी अपराध करके झूठ बोलना और कपट-भरे वचनों से उस अपराध को छिपाने का प्रयत्न करना बहुत अधिक दु:ख देता है। वे कपट वचन तो जले हुए अंग में मानो कील चुभाने के समान अधिक दु:खदायक और असत्य प्रतीत होते हैं।",
"सज्जन हित कंचन-कलश, तोरि निहारिय हाल।",
"दुर्जन हित कुमार-घट, बिनसिन जुरै जमाल॥",
"सज्जन पुरुष का प्रेम सुवर्ण के कलश के समान है जो कि टूट जाने पर जुड़ जाता है, पर दुर्जन का प्रेम मिट्टी के घड़े-सा है जो कि टूटने पर जुड़ ही नहीं सकता।",
"दया धर्म हिरदे बसै, बोलै अमृत बैन।",
"तेई ऊँचे जानिए, जिन के नीचे नैन॥",
"रोस न करि जौ तजि चल्यौ, जानि अँगार गँवार।",
"छिति-पालनि की माल में, तैंहीं लाल सिंगार॥",
"हे लाल! यदि तुझे कोई गँवार मनुष्य, जो तेरे गुणों को नहीं पहचानता, छोड़कर चला भी गया तो भी कुछ बुरा मत मान; क्योंकि गँवार लोग भले ही तुम्हारा आदर न करें पर राजाओं के मुकुटों का तो तू ही शृंगार है। भाव यह है कि किसी विद्वान् गुणी व्यक्ति का कोई मूर्ख यदि आदर न भी करे तो भी उसे दु:खी नहीं होना चाहिए, क्योंकि समझदार लोग तो उसका सदा सम्मान ही करेंगे।",
"जो गुण गोवइ अप्पणा पयडा करइ परस्सु।",
"तसु हउँ कलि-जुगि दुल्लहहो बलि किज्जउँ सुअणस्सु॥",
"जो अपना गुण छिपाए और दूसरे का गुण प्रकट करे, कलिकाल में दुर्लभ उस सज्जन पर मैं बलि-बलि जाऊँ।",
"घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय।",
"‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥",
"यदि मनुष्य एक स्थान पर घर करके बैठ जाय तो वह वहाँ की माया-ममता में फँसकर उस प्रभु के घर से विमुख हो जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य घर छोड़ देता है तो उसका घर बिगड़ जाता है, इसलिए कवि का कथन है कि भगवान् राम के प्रेम का नगर बना कर घर और बन दोनों के बीच समान रूप से रहो, पर आसक्ति किसी में न रखो।",
"मन मैला मन निरमला, मन दाता मन सूम।",
"मन ज्ञानी अज्ञान मन, मनहिं मचाई धूम॥",
"रसनिधि कवि कहते हैं कि मन ही मैला या अपवित्र है और मन ही पवित्र है, मन ही दानी है और मन ही कंजूस है। मन ही ज्ञानी है, और मन ही अज्ञानी है। इस प्रकार मन ने सारे संसार में अपनी धूम मचा रखी है।",
"बलि-अब्भत्थणि महु-महणु लहुईहूआ सोइ।",
"जइ इच्छहु वड्डत्तणउं देहु म मग्गहु कोई॥",
"बलि की अभ्यर्थना करने से (दान मांगने से) विष्णु भी छोटे हो गए। यदि बड़प्पन चाहते हो तो (दान) दो, किसी से माँगो मत।",
"जीविउ कासु न वल्लहउं घणु पणु कासु न इट्ठु।",
"दोणिण वि अवसर-निवडिअइं तिण-सम गणइ विसिट्ठु॥",
"जीवन किसे प्यारा नहीं? धन किसे इष्ट नहीं? किंतु मौक़ पड़ने पर महान पुरुष दोनों को तिनके के समान गिनता है।",
"सरिहिँ न सरेहि न सरवरेहिँ न वि उज्जाण-वणेहिं।",
"देस रवण्णा होंति वढ़ निवसन्तेहिँ सुअणेहिं॥",
"हे मूढ़, न सरिताओं से, न सरों से, न सरोवरों से, और न उद्यानों और वनों से भी! किंतु बसते हुए सज्जनों से देश रमणीय होते हैं।",
"बिनु विश्वास भगति नहीं, तेही बिनु द्रवहिं न राम।",
"राम-कृपा बिनु सपनेहुँ, जीव न लहि विश्राम॥",
"भगवान् में सच्चे विश्वास के बिना मनुष्य को भगवद्भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती और बिना भक्ति के भगवान् कृपा नहीं कर सकते। जब तक मनुष्य पर भगवान् की कृपा नहीं होती तब तक मनुष्य स्वप्न में भी सुख-शांति नहीं पा सकता। अत: मनुष्य को भगवान् का भजन करते रहना चाहिए ताकि भगवान् के प्रसन्न हो जाने पर भक्त को सब सुख-संपत्ति अपने आप प्राप्त हो जाय।",
"धन्नो कहै ते धिग नरां, धन देख्यां गरबाहिं।",
"धन तरवर का पानड़ा, लागै अर उड़ि जाहिं॥",
"वम्भ ते विरला के वि नर जे सव्वंग छइल्ल।",
"जे बंका ते वंचयर जे उज्जुअ ते बइल्ल॥",
"हे ब्रह्मन्, वे नर कोई विरले ही होते हैं जो सर्वाङ्ग छैल हों। जो बाँके हैं, वे वंचक होते हैं और जो सरल होते हैं, वे बैल होते हैं।",
"ऐसो मीठो नहिं पियुस, नहिं मिसरी नहिं दाख।",
"तनक प्रेम माधुर्य पें, नोंछावर अस लाख॥",
"प्रेम जितना मिठास न दाख में है, न मिसरी में और न अमृत में। प्रेम के तनिक माधुर्य पर ऐसी लाखों वस्तुएँ न्योछावर है।",
"क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।",
"सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥",
"सज्जन एहा चाहिये, जेहा तरवर ताल।",
"फल भच्छत पानी पियत, नाहि न करत जमाल॥",
"सज्जन को तालाब और वृक्ष-सा परोपकारी होना चाहिए। ये दोनों पानी पीने और फल खाने के लिए किसी को मना नहीं करते हैं।",
"परसा तब मन निर्मला, लीजै हरिजल धोय।",
"हरि सुमिरन बिन आत्मा, निर्मल कभी न होय॥",
"हिंदू तो हरिहर कहे, मुस्सलमान खुदाय।",
"साँचा सद्गुरु जे मिले, दुविधा रहे ना काय॥",
"राम-राम के नाम को, जहाँ नहीं लवलेस।",
"पानी तहाँ न पीजिए, परिहरिए सो देस॥",
"किरतिम देव न पूजिए, ठेस लगे फुटि जाय।",
"कहैं मलूक सुभ आत्मा, चारों जुग ठहराय॥",
"जब लग स्वांस सरीर में, तब लग नांव अनेक।",
"घट फूटै सायर मिलै, जब फूली पूरण एक॥",
"गैंणा गांठा तन की सोभा, काया काचो भांडो।",
"फूली कै थे कुती होसो, रांम भजो हे रांडों॥",
"‘तुलसी’ संत सुअंब तरु, फूलि फलहिं पर हेत।",
"इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत॥",
"तुलसीदास कहते हैं कि सज्जन और रसदार फलों वाले वृक्ष दूसरों के लिए फलते-फूलते हैं क्योंकि लोग तो उन वृक्षों पर या सज्जनों पर इधर से पत्थर मारते हैं पर उधर से वे उन्हें पत्थरों के बदले में फल देते हैं। भाव यह है कि सज्जनों के साथ कोई कितना ही बुरा व्यवहार क्यों न करे, पर सज्जन उनके साथ सदा भला ही व्यवहार करते हैं।",
"अरी मधुर अधरान तैं, कटुक बचन मत बोल।",
"तनक खुटाई तैं घटै, लखि सुबरन को मोल॥",
"असन बसन सुत नारि सुख, पापिहुँ के घर होइ।",
"संत-समागम रामधन, ‘तुलसी’ दुर्लभ दोइ॥",
"भोजन, वस्त्र, पुत्र और स्त्री-सुख तो पापी के घर में भी हो सकते हैं; पर सज्जनों का समागम भगवान् और राम रूपी धन की प्राप्ति ये दोनों बड़े दुर्लभ हैं। भाव यह है कि जिसके बड़े भाग्य होते हैं उसे ही भगवद्भक्ति तथा सज्जन पुरुषों की संगति प्राप्त होती है।",
"परनारी पर सुंदरी, बिरला बंचै कोइ।",
"खातां मीठी खाँड़ सी, अंति कालि विष होइ॥",
"पराई स्त्री तथा पराई सुंदरियों से कोई बिरला ही बच पाता है। यह खाते (उपभोग करते) समय खाँड़ के समान मीठी (आनंददायी) अवश्य लगती है किंतु अंततः वह विष जैसी हो जाती है।",
"परज्या कौ रक्षा करै सोई स्वामि अनूप।",
"तर सब कौं छहियाँ करै, सहै आप सिर धूप॥",
"डाकी ठाकर सहण कर, डाकण दीठ चलाय।",
"मायड़ खाय दिखाय थण, धण पण वलय बताय॥",
"प्रतापी स्वामी जब अपने सेवकों के अपराध पर भी मौन धारण कर लेता है तब उन अपराधी सेवकों का मरण हो जाता है मानो उनके अपराध को सहन करके समर्थ स्वामी अपने मौन द्वारा उनको खा जाता है। जिस प्रकार डाकिन अपने भक्ष्य को नज़र से खा जाती है (लोगों में विश्वास है कि डाकिन की नज़र लगने पर आदमी मर जाता है) उसी प्रकार युद्ध से लौटे हुए कायर पुत्र को माता जब अपने स्तनों की ओर इशारा करके कहती है कि तूने इनका दूध लजा दिया तो उस कायर पति को देखकर अपने चूड़े की तरफ़ इशारा करके कहती है कि तूने इस चूड़े को लजा दिया तो उस कायर पुत्र का मरण हो जाता है। इसी प्रकार जब स्त्री भी युद्ध से लौटे हुए अपने कायर पति को देखकर अपने चूड़े की तरफ़ इशारा करके कहती है कि तूने इस चूड़े को लजा दिया तब उस कायर पति का मरण हो जाता है। इस प्रकार के वीरोचित व्यवहार से माता अपने पुत्र को और पत्नी अपने पति को खा जाती है, उनमें कुछ भी बाक़ी नहीं छोड़ती।",
"कामी कंथ के कारणै, कै करीये सिणगार।",
"पत को पत रीझायलो, फूली को भरतार॥",
"मान रखिवौ माँगिबौ, पिय सों सहज सनेहु।",
"‘तुलसी’ तीनों तब फबैं, जब चातक मत लेहु॥",
"माँगकर भी अपने मान को बचाए रखना, साथ ही प्रिय से स्वाभाविक प्रेम भी बनाए रखना—ये तीनों बातें तभी अच्छी लग सकती हैं, जब कि व्यक्ति पपीहे के समान आचरण अपने व्यवहार में लाए। पपीहा बादल से पानी की बूँदों की प्रार्थना भी करता है और अपने स्वाभिमान को भी बनाए रखता है। क्योंकि उसके हृदय में बादल के प्रति सच्चा प्रेम है, वह बादल के सिवा और किसी से कुछ नहीं माँगता। भाव यह कि सच्चा प्रेमी अपने प्रियतम से माँग कर भी अपने प्रेम और मान की रक्षा कर लेता है, पर दूसरे लोगों का माँगने से मान और प्रेम घट जाता है।",
"संतत सहज सुभाव सों, सुजन सबै सनमानि।",
"सुधा-सरस सींचत स्रवन, सनी-सनेह सुबानि॥",
"‘व्यास’ न कथनी और की, मेरे मन धिक्कार।",
"रसिकन की गारी भली, यह मेरौ सिंगार॥",
"गये असज्जन की सभा, बुध महिमा नहिं होय।",
"जिमि कागन की मंडली, हंस न सोहत कोय॥",
"जीव मारि जीमण कर, खाताँ करै बखाण।",
"पीपा परतखि देखि ले, थांली माँहि मसाण॥",
"जो जाको करतब सहज, रतन करि सकै सोय।",
"वावा उचरत ओंठ सों, हा हा गल सों होय॥",
"पीपा पाप न कीजिये, अलगौ रहिये आप।",
"करणी जासी आपणी, कुण बैटौ कुण बाप॥",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
Read famous Poetry of Rasnidhi | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/rasnidhi | [
"1538 - 1640\n|\nग्वालियर, मध्य प्रदेश",
"वास्तविक नाम पृथ्वीसिंह। प्रेम की विविध दशाओं और चेष्टाओं के वर्णन पर फ़ारसी शैली का प्रभाव। सरस दोहों के लिए स्मरणीय।",
"वास्तविक नाम पृथ्वीसिंह। प्रेम की विविध दशाओं और चेष्टाओं के वर्णन पर फ़ारसी शैली का प्रभाव। सरस दोहों के लिए स्मरणीय।",
"मोहन लखि जो बढ़त सुख, सो कछु कहत बनै न।",
"नैनन कै रसना नहीं, रसना कै नहिं नैन॥",
"श्रीकृष्ण को देखकर जैसा दिव्य आनंद प्राप्त होता है, उस आनंद का कोई वर्णन नहीं कर सकता, क्योंकि जो आँखें देखती हैं, उनके तो कोई जीभ नहीं है जो वर्णन कर सकें, और जो जीभ वर्णन कर सकती है उसके आँखें नहीं है। बिना देखे वह बेचारी जीभ उसका क्या वर्णन कर सकती है!",
"तोय मोल मैं देत हौ, छीरहि सरिस बढ़ाइ।",
"आँच न लागन देत वह, आप पहिल जर जाइ॥",
"दूध पानी को अपने में मिलाकर उसका मूल्य अपने ही समान बना देता है। पर जब दूध को आग पर गर्म किया जाता है तो दूध से पहले पानी अपने को जला लेता है और दूध को बचा लेता है। मित्रता हो तो दूध और पानी जैसी हो।",
"मन मैला मन निरमला, मन दाता मन सूम।",
"मन ज्ञानी अज्ञान मन, मनहिं मचाई धूम॥",
"रसनिधि कवि कहते हैं कि मन ही मैला या अपवित्र है और मन ही पवित्र है, मन ही दानी है और मन ही कंजूस है। मन ही ज्ञानी है, और मन ही अज्ञानी है। इस प्रकार मन ने सारे संसार में अपनी धूम मचा रखी है।",
"अरी मधुर अधरान तैं, कटुक बचन मत बोल।",
"तनक खुटाई तैं घटै, लखि सुबरन को मोल॥",
"अद्भुत गत यह प्रेम की, बैनन कही न जाइ।",
"दरस भूख वाहे दृगन, भूखहिं देत भगाइ॥",
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पाखंड के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/humbug/dohe | [
"कविताओं का ज़ोर पाखंडों के पर्दाफ़ाश पर है। ये कविताएँ पाखंड को खंड-खंड करने का ज़रूरी उत्तरदायित्व वहन कर रही हैं।",
"माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।",
"मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥",
"ईश्वर को पाने के लिए माथे पर तिलक लगाना और माला जपना केवल संसार को ठगने का स्वांग है। प्रेम का मार्ग छोड़कर स्वांग करने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी। सच्चे प्रेम के बिना परमात्मा को पाना असंभव है।",
"तुलसी जौं पै राम सों, नाहिन सहज सनेह।",
"मूंड़ मुड़ायो बादिहीं, भाँड़ भयो तजि गेह॥",
"तुलसी कहते हैं कि यदि श्री रामचंद्र जी से स्वाभाविक प्रेम नहीं है तो फिर वृथा ही मूंड मुंडाया, साधु हुए और घर छोडकर भाँड़ बने (वैराग्य का स्वांग भरा)।",
"तुलसी परिहरि हरि हरहि, पाँवर पूजहिं भूत।",
"अंत फजीहत होहिंगे, गनिका के से पूत॥",
"तुलसी कहते हैं कि श्री हरि (भगवान् विष्णु) और श्री शंकर जी को छोड़कर जो पामर भूतों की पूजा करते हैं, वेश्या के पुत्रों की तरह उनकी अंत में बड़ी दुर्दशा होगी।",
"जपमाला छापैं तिलक, सरै न एकौ कामु।",
"मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥",
"माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ ही में नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते। राम तो सच्चे मन से भक्ति करने वाले व्यक्ति पर ही प्रसन्न होते हैं।",
"क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।",
"सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥",
"किरतिम देव न पूजिए, ठेस लगे फुटि जाय।",
"कहैं मलूक सुभ आत्मा, चारों जुग ठहराय॥",
"उठ भाग्यो वाराणसी, न्हायो गंग हजार।",
"पीपा वे जन उत्तम घणा, जिण राम कयो इकबार॥",
"देवल पुजे कि देवता, की पूजे पहाड़।",
"पूजन को जाता भला, जो पीस खाय संसार॥",
"बाना पहिरे बड़न का, करै नीच का काम।",
"ऐसे ठग को न मिलै, निरकहु में कहुँ ठाम॥",
"साधो दुनिया बावरी, पत्थर पूजन जाय।",
"मलूक पूजै आत्मा, कछु माँगै कछु खाय॥",
"जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।",
"मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥",
"माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ में ही नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते। राम तो सच्चे मन से भक्ति करने वाले व्यक्ति पर ही प्रसन्न होते हैं।",
"अंतर गति राँचै नहीं, बाहरि कथै उजास।",
"ते नर नरक हि जाहिगं, सति भाषै रैदास॥",
"मनुष्य कितना अज्ञानी है! वह शरीर की बाहरी स्वच्छता और वेश−भूषा पर ध्यान देता है और मन की पवित्रता पर दृष्टि नहीं डालता। रैदास सत्य ही कहते हैं−ऐसे मनुष्य निश्चय ही नरक लोक जाएँगे।",
"देता रहै हज्जार बरस, मुल्ला चाहे अजान।",
"रैदास खोजा नहं मिल सकइ, जौ लौ मन शैतान॥",
"रैदास कहते हैं कि मुल्ला चाहे लगातार हज़ार वर्षों तक अजान देता रहे किंतु जब तक उसके भीतर शैतान रहेगा, तब तक खोजने पर भी उसे ख़ुदा न मिल सकेगा।",
"ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।",
"बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥",
"माला टोपी भेष नहीं, नहीं सोना शृंगार।",
"सदा भाव सतसंग है, जो कोई गहे करार॥",
"जेती देखे आत्मा, तेते सालिगराम।",
"बोलनहारा पूजिये, पत्थर से क्या काम॥",
"सुन्दर मैली देह यह, निर्मल करी न जाइ।",
"बहुत भांति करि धोइ तूं, अठसठि तीरथ न्हाइ॥",
"आतम राम न चीन्हहों, पूजत फिरै पाषान।",
"कैसहु मुक्ति न होयगी, कोटिक सुनो पुरान॥",
"बन में गये हरि ना मिले, नरत करी नेहाल।",
"बन में तो भूंकते फिरे, मृग, रोझ, सीयाल॥",
"मुख ब्राह्मण कर क्षत्रिय, पेट वैश्य पग शुद्र।",
"इ अंग सबही जनन में, को ब्राह्मण को शुद्र॥",
"अड़सठ तीरथ में फिरे, कोई बधारे बाल।",
"हिरदा शुद्ध किया बिना, मिले न श्री गोपाल॥",
"तुका कुटुंब छोरे रे लड़के, जीरो सिर मुंडाय।",
"जब ते इच्छा नहिं मुई, तब तूँ किया काय॥",
"छापा तिलक बनाय के, परधन की करें आसा।",
"आत्मतत्व जान्या नहीं, इंद्री-रस में माता॥",
"सुन्दर ऊँचे पग किये, मन की अहं न जाइ।",
"कठिन तपस्या करत है, अधो सीस लटकाइ॥",
"योग करै जप तप करै, यज्ञ करै दे दान।",
"तीरथ व्रत यम नेम तैं, सुन्दर ह्वै अभिमान॥",
"भूत दैंत जौरा भैरूं, देवी तुम्हहि बतावै।",
"पीपा मेरे रिधी है, हरि बिन सिधी न पावै॥",
"सुंदर मैली देह यह, निर्मल करी न जाइ।",
"बहुत भांति करि धोइ तूं, अठसठि तीरथ न्हाइ॥",
"कोउक दूध रु पूत दे, कर पर मेल्हि बिभूति।",
"सुन्दर ये पाखंड किय, क्यौं ही परै न सूति॥",
"रक्त पीत स्वेतांवरी, काथ रंगै पुनि जैन।",
"सुंदर देखे भेष सब, कहूँ न देख्या चैन॥",
"तीरथ व्रत और दान करि, मन में धरे गुमान।",
"नानक निषफल जात हैं, जिउ कूँचर असनान॥",
"बैठौ आसन मारि करि, पकरि रह्यौ मुख मौन।",
"सुन्दर सैन बतावतें, सिद्ध भयौ कहि कौन॥",
"मुकुत भये घर खोय के, बैठे कानन आय।",
"अब घर खोवत और के, कीजे कौन उपाय॥",
"केस लुचाइ न ह्वै जती, कान फराइ न जोग।",
"सुंदर सिद्धि कहा भई, बादि हंसाये लोग॥",
"मेल्है पाव उठाइ कै, बक ज्यौं मांडै ध्यान।",
"बैठौ गटकै माछली, सुन्दर कैसौ ज्ञान॥",
"यंत्र मंत्र बहु विधि करै, झाडा बूंटी देत।",
"सुन्दर सब पाखंड है, अंति पडै सिर रेत॥",
"सुन्दर देखै आरसी, टेढी नाखै पाग।",
"बैठौ आइ करंक पर, अति गति फूल्यौ काग॥",
"भेष बनावै बहुत बिधि, जटा बधावै सीस।",
"माला पहिरै तिलक दे, सुंदर तजै न रीस॥",
"संता विसय जु परिहरइ, बलि किज्जउँ हउँ तासु।",
"सो दइवेण वि मुंडियउ सीसु खडिल्लउ जासु॥",
"जो उपस्थित विषयों को त्याग देता है, मैं उसकी बलि जाता हूँ। जिसका सिर मुंडा है, वह तो परमात्मा से ही मूड़ा हुआ है। अर्थात् वह परमात्मा से ही वंचित है।",
"गल मैं पहरी गूदरी, कियौ सिंह कौ भेष।",
"सुन्दर देखत भय भयौ, बोलत जान्यौ मेष॥",
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Read famous Poetry of Nipat Niranjan | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/nipat-niranjan | [
"1623 - 1698\n|\nचंदेरी, मध्य प्रदेश",
"नाथ परंपरा के कवि। चर्पटनाथ के शिष्य। असार संसार में लिप्त जीवों की त्रासदी के सजीव वर्णन के लिए स्मरणीय।",
"नाथ परंपरा के कवि। चर्पटनाथ के शिष्य। असार संसार में लिप्त जीवों की त्रासदी के सजीव वर्णन के लिए स्मरणीय।",
"मुह देखे का प्यार है, देखा सब संसार।",
"पैसे दमरी पर मरे, स्वार्थी सब व्यवहार॥",
"ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।",
"बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥",
"मन की ममता ना गई, नीच न छोड़े चाल।",
"रुका सुखा जो मिले, ले झोली में डाल॥",
"जब हम होते तू नहीं, अब तू है हम नाहीं।",
"जल की लहर जल में रहे जल केवल नाहीं॥",
"जहाँ पवन की गती नहीं, रवि शशी उदय न होय।",
"जो फल ब्रह्मा नहीं रच्यो, निपट मांगत सोय॥",
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Read famous Poetry of Daulat Kavi | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/daulat-kavi | [
"रीतिकाल के अलक्षित कवि।",
"रीतिकाल के अलक्षित कवि।",
"ससि सौं अति सुंदर न मुष, अंग न सुंदर जान।",
"त प्रीतम रहे बस भयौ, ऐसो प्रेम प्रधान॥",
"अंग मोतिन के आभरन, सारी पहिरैं स्वेत।",
"चली चाँदनी रैन में, प्रिया प्रानपति हेत॥",
"प्रीतम आगम सुनत तिय, हिय मैं अति हुलसात।",
"आनंद के अँसुवा नयन, मुकता सुरत दिवात॥",
"लाज तजी जिहि काज जग, बैरि कियौ मुख हेरि।",
"तो पिय सौं हित मूढ़ मैं, तोरत करी न बेरि॥",
"रचत रहैं भूषन बसन, मो मुख लखै सुहाय।",
"ज्यौं-ज्यौं सब कै बस भये, त्यौं-त्यौं रहौं लजाय॥",
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अहंकार के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/ego | [
"अहंकार विषयक कविताओं को संकलित किया गया है। रूढ़ अर्थ में यह स्वयं को अन्य से अधिक योग्य और समर्थ समझने का भाव है जो व्यक्ति का नकारात्मक गुण माना जाता है। वेदांत में इसे अंतःकरण की पाँच वृत्तियों में से एक माना गया है और सांख्य दर्शन में यह महत्त्व से उत्पन्न एक द्रव्य है। योगशास्त्र इसे अस्मिता के रूप में देखता है।",
"जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं।",
"सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥",
"जब तक अहंकार था तब तक ईश्वर से परिचय नहीं हो सका। अहंकार या आत्मा के भेदत्व का अनुभव जब समाप्त हो गया तो ईश्वर का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हो गया।",
"धन्नो कहै ते धिग नरां, धन देख्यां गरबाहिं।",
"धन तरवर का पानड़ा, लागै अर उड़ि जाहिं॥",
"औघट घाट पखेरुवा, पीवत निरमल नीर।",
"गज गरुवाई तैं फिरै, प्यासे सागर तीर॥",
"उथले या कम गहरे घाटों पर भी पक्षी तो निर्मल पानी पी लेते हैं, पर हाथी बड़प्पन के कारण समुद्र के तट पर भी (जहाँ पानी गहरा न हो) प्यासा ही मरता है।",
"प्यास सहत पी सकत नहिं, औघट घाटनि पान।",
"गज की गरुवाई परी, गज ही के गर आन॥",
"हाथी प्यास सह लेता है पर औघट अर्थात कम गहरे घाट में पानी नहीं पी सकता। इस प्रकार हाथी के बड़प्पन का दोष हाथी के गले ही पड़ा कि कम गहरे पानी से पानी नहीं पी सकता और प्यासा ही रहता है।",
"सुन्दर गर्व कहा करै, देह महा दुर्गंध।",
"ता महिं तूं फूल्यौ फिरै, संमुझि देखि सठ अंध॥",
"सुन्दर ऊँचे पग किये, मन की अहं न जाइ।",
"कठिन तपस्या करत है, अधो सीस लटकाइ॥",
"जब हम होते तू नहीं, अब तू है हम नाहीं।",
"जल की लहर जल में रहे जल केवल नाहीं॥",
"सुंदर पंजर हाड कौ, चाम लपेट्यौ ताहि।",
"तामैं बैठ्यौ फूलि कै, मो समान को आहि॥",
"कतहू भूलौ नीच ह्वै, कतहू ऊंची जाति।",
"सुन्दर या अभिमांन करि, दोनौं ही कै राति॥",
"कहै चित्त कौं चित्त पुनि, सुन्दर तोहि बखानि।",
"अहंकार कौं है अहं, जानि सकै तो जानि॥",
"हाथी मंहि देखिये हाथी कौ अभिमान।",
"सुन्दर चीटी मांहिं रिस, चीटी कै अनुमान॥",
"देह रूप मन ह्वै रह्यौ, कियौ देह अभिमान।",
"सुन्दर समुझै आपकौं, आपु होइ भगवान॥",
"कतहू भूलो मौंनि धरि, कतहू करि बकबाद।",
"सुन्दर या अभिमान तें, उपज्यौ बहुत बिषाद॥",
"मैं नहिं मान्यौ रोस तैं, पिय बच हित सरसाहिं।",
"रूठि चल्यौ तब, कहा कहुँ, तुमहु मनायौ नाहिं॥",
"सुन्दर बहुत बलाइ है, पेट पिटारी मांहिं।",
"फूल्यौ माइ न खाल मैं, निरखत चालै छांहिं॥",
"सुन्दर यौं अभिमान करि, भूलि गयौ निज रूप।",
"कबहूं बैठै छांहरी, कबहूं बैठै धूप॥",
"कामी हूवो काम रत, जती हुवो जत साधि।",
"सुन्दर या अभिमान तें, दोऊ लागी ब्याधि॥",
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नश्वर के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/mortal | [
"धार्मिक-आध्यात्मिक चिंतन के मूल में रही है और काव्य ने भी इस चिंतन में हिस्सेदारी की है। भक्ति-काव्य में प्रमुखता से इसे टेक बना अराध्य के आश्रय का जतन किया गया है।",
"चाकी चलती देखि कै, दिया कबीरा रोइ।",
"दोइ पट भीतर आइकै, सालिम बचा न कोई॥",
"काल की चक्की चलते देख कर कबीर को रुलाई आ जाती है। आकाश और धरती के दो पाटों के बीच कोई भी सुरक्षित नहीं बचा है।",
"हाड़ जलै ज्यूँ लाकड़ी, केस जले ज्यूँ घास।",
"सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास॥",
"हे जीव, यह शरीर नश्वर है। मरणोपरांत हड्डियाँ लकड़ियों की तरह और केश घास (तृणादि) के समान जलते हैं। इस तरह समस्त शरीर को जलता देखकर कबीर उदास हो गया। उसे संसार के प्रति विरक्ति हो गई।",
"देउल देउ वि सत्थु गुरु, तित्थु वि वेउ वि कब्बु।",
"बच्छु जु दोसै कुसुमियउ, इंधणु होसइ सब्बु॥",
"देवल (मंदिर), देव, शास्त्र, गुरु, तीर्थ, वेद, काव्य, वृक्ष जो कुछ भी कुसुमित दिखाई पड़ता है, वह सब ईंधन होगा।",
"धन्नो कहै ते धिग नरां, धन देख्यां गरबाहिं।",
"धन तरवर का पानड़ा, लागै अर उड़ि जाहिं॥",
"जब लग स्वांस सरीर में, तब लग नांव अनेक।",
"घट फूटै सायर मिलै, जब फूली पूरण एक॥",
"कबीर ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल।",
"दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूलि॥",
"यह जगत सेमल के पुष्प की तरह क्षण-भंगुर तथा अज्ञानता में डालने वाला है। दस दिन के इस व्यवहार में, हे प्राणी! झूठ-मूठ के आकर्षण में अपने को डालकर स्वयं को मत भूलो।",
"गैंणा गांठा तन की सोभा, काया काचो भांडो।",
"फूली कै थे कुती होसो, रांम भजो हे रांडों॥",
"थोड़ा जीवण कारनै, मत कोई करो अनीत।",
"वोला जौ गल जावोगे, जो बालु की भीत॥",
"सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम।",
"रहिमन या जग आइ कै, को करि रहा मुकाम॥",
"आठों पहर कूच करने का नगाड़ा बजता रहता है। यानी हर वक़्त मृत्यु सक्रिय है, कोई न कोई मर ही रहा है। यही सत्य है। रहीम कहते हैं कि इस नश्वर संसार में आकर कौन अमर हुआ है!",
"पाणी केरा बुदबुदा, इसी हमारी जाति।",
"एक दिनाँ छिप जाँहिगे, तारे ज्यूं परभाति॥",
"यह मानव जाति तो पानी के बुलबुले के समान है। यह एक दिन उसी प्रकार छिप (नष्ट) जाएगी, जैसे ऊषा-काल में आकाश में तारे छिप जाते हैं।",
"काग आपनी चतुरई, तब तक लेहु चलाइ।",
"जब लग सिर पर दैइ नहिं, लगर सतूना आइ॥",
"हे कौए! तू अपनी चतुरता तब तक दिखा ले जब तक कि तेरे सिर पर बाज पक्षी आकर अपनी झपट नहीं मारता। भाव यह है कि जब तक मृत्यु मनुष्य को आकर नहीं पकड़ लेती, तभी तक मनुष्य का चंचल मन अपनी चतुरता दिखाता है।",
"तरवर पत्त निपत्त भयो, फिर पतयो ततकाल।",
"जोबन पत्त निपत्त भयो, फिर पतयौ न जमाल॥",
"पतझड़ में पेड़ पत्तों से रहित हुआ पर तुरंत ही फिर पल्लवित हो गया। पर यौवन-रूपी तरुवर पत्तों से रहित होकर फिर लावण्य युक्त नहीं हुआ।",
"जमला जोबन फूल है, फूलत ही कुमलाय।",
"जाण बटाऊ पंथसरि, वैसे ही उठ जाय॥",
"यौवन एक फूल है जो कि फूलने के बाद शीघ्र ही कुम्हला जाता है। वह तो पथिक-सा है जो मार्ग में तनिक-सा विश्राम लेकर,अपनी राह लेता है।",
"सैना रोऊँ किण सुमर, देख हूँसू किण अब्ब।",
"जो आए ते सब गये, हैं सो जैहें सब्ब॥",
"सैन कहते हैं—मैं किसे याद करके रोऊँ और किसे याद करके हँसूँ? जो आए थे, वे सब चले गए। जो हैं, वे सब चले जाएँगे।",
"सुंदर देही पाय के, मत कोइ करैं गुमान।",
"काल दरेरा खाएगा, क्या बूढ़ा क्या ज्वान॥",
"शुतर गिरयो भहराय के, जब भा पहुँच्यो काल।",
"अल्प मृत्यु कूँ देखि के, जोगी भयो जमाल॥",
"ऊँट के समान विशाल शरीर वाला पशु भी काल (मृत्यु) आने पर हड़बड़ाकर गिर पड़ता है। इस प्रकार शरीर की नश्वरता देखकर कवि जमाल उदासीन हो गया।",
"गर्व भुलाने देह के, रचि-रचि बाँधे पाग।",
"सो देही नित देखि के, चोंच सँवारे काग॥",
"सुंदर देही देखि के, उपजत है अनुराग।",
"मढी न होती चाम की, तो जीबत खाते काग॥",
"इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।",
"बात कहते ढह जात है, बारू की सी भीत॥",
"धन दारा संपत्ति सकल, जिनि अपनी करि मानि।",
"इन में कुछ संगी नहीं, नानक साची जानि॥",
"यौं मति जानै बावरे, काल लगावै बेर।",
"सुंदर सब ही देखतें, होइ राख की ढेर॥",
"बलि किउ माणुस जम्मडा, देक्खंतहँ पर सारु।",
"जइ उट्टब्भइ तो कुहइ, अह डज्झइ तो छारु॥",
"मनुष्य इस जीवन की बलि जाता हैं (अर्थात् वह अपनी देह से बहुत मोह रखता है) जो देखने में परम तत्व है। परंतु उसी देह को यदि भूमि में गाड़ दें तो सड़ जाती है और जला दें तो राख हो जाती है।",
"सुंदर ग़ाफ़िल क्यौं फिरै, साबधान किन होय।",
"जम जौरा तकि मारि है, घरी पहरि मैं तोय॥",
"माटी सूं ही ऊपज्यो, फिर माटी में मिल जाय।",
"फूली कहै राजा सुणो, करल्यो कोय उपाय॥",
"मेरै मंदिर माल धन, मेरौ सकल कुटुंब।",
"सुंदर ज्यौं को त्यौं रहै, काल दियौ जब बंब॥",
"सुन्दर मैली देह यह, निर्मल करी न जाइ।",
"बहुत भांति करि धोइ तूं, अठसठि तीरथ न्हाइ॥",
"सुन्दर तूं तौ एकरस, तोहि कहौं समुझाइ।",
"घटै बढै आवै रहै, देह बिनसि करि जाइ॥",
"सुन्दर अविनाशी सदा, निराकार निहसंग।",
"देह बिनश्वर देखिये, होइ पटक मैं भंग॥",
"रजत सीप मैं रजु भुजंग, जथा सुपन धन धाम।",
"तथा वृथा भ्रम रूप जग, साँच चिदातम राम॥",
"असु गज अरु कंचन 'दया', जोरे लाख करोर।",
"हाथ झाड़ रीते गये, भयो काल को ज़ोर॥",
"जागो रे अब जागो भैया, सिर पर जम की धार।",
"ना जानूँ कौने घरी, केहि ले जैहै मार॥",
"तात मात तुम्हरे गये, तुम भी भये तैयार।",
"आज काल्ह में तुम चलो, 'दया' होहु हुसियार॥",
"जैसो मोती ओस को, तैसो यह संसार।",
"बिनसि जाय छिन एक में, 'दया' प्रभू उर धार॥",
"भाई बंधु कुटुंब सब, भये इकट्ठे आय।",
"दिना पाँच को खेल है, 'दया' काल ग्रासि जाय॥",
"सुन्दर कबहूं फुनसली, कबहूं फोरा होइ।",
"ऐसी याही देह मैं, क्यौं सुख पावै कोइ॥",
"सुन्दर देह मलीन अति, नख शिख भरे बिकार।",
"रक्त पीप मल मूत्र पुनि, सदा बहै नव द्वार॥",
"सुन्दर तत्व जुदे-जुदे, राख्या नाम शरीर।",
"ज्यौं कदली के खंभ मैं, कौन बस्तु कहि बीर॥",
"सुन्दर काला घटै बढै, शशि मंडल कै संग।",
"देह उपजि बिनशत रहै, आतम सदा अभंग॥",
"सुन्दर अपरस धोवती, चौकै बैठौ आइ।",
"देह मलीन सदा रहै, ताही कै संगि खाइ॥",
"सुन्दर देह मलीन अति, बुरी वस्तु को भौन।",
"हाड मांस को कौथरा, भली वस्तु कहि कौन॥",
"सुन्दर ऐसी देह मैं, सुच्चि कहो क्यौं होइ।",
"झूठेई पाखंड करि, गर्व करै जिनि कोइ॥",
"जो उपजिओ सो विनसिहै, परो आजु के काल।",
"नानक हरि गुन गाइ ले, छाड़ि सकल जंजाल॥",
"दौरि-दौरि जड़ देह कौं, आपुहि पकरत आइ।",
"सुन्दर पेच पर्यौ कठिन, सकं नहीं सुरझाइ॥",
"रावन कुंभकरण गये, दुरजोधन बलवंत।",
"मार लिये सब काल ने, ऐसे 'दया' कहंत॥",
"सुपन रूप संसार है, मोह नींद के माहिं।",
"बोध रूप जागे बिना, ताके दुख नहहिं जाहिं॥",
"देह स्वर्ग अरु नरक है, बंद मुक्ति पुनि देह।",
"सुन्दर न्यारौ आतमा, साक्षी कहियत येह॥",
"सुन्दर देह मलीन है, राख्यौ रूप संवारि।",
"ऊपर तें कलई करी, भीतरि भरी भंगारि॥",
"सुन्दर देह मलीन है, प्रकट नरक की खानि।",
"ऐसी याही भाक सी, तामैं दीनौ आंनि॥",
"क्षीण सपष्ट शरीर है, शीत उष्ण तिहिं लार।",
"सुन्दर जन्म जरा लगै, यह पट देह विकार॥",
"‘लालू’ क्यूँ सूत्याँ सरै, बायर ऊबो काल।",
"जोखो है इण जीव नै, जँवरो घालै जाल॥",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
नीति के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/neeti | [
"अन्य काव्यरूपों का एक विशिष्ट चयन।",
"‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।",
"पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥",
"गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा।",
"राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।",
"बरषत वारिद-बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥",
"राम-नाम का आश्रय लिए बिना जो लोग मोक्ष की आशा करते हैं अथवा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चारों परमार्थों को प्राप्त करना चाहते हैं वे मानो बरसते हुए बादलों की बूँदों को पकड़ कर आकाश में चढ़ जाना चाहते हैं। भाव यह है कि जिस प्रकार पानी की बूँदों को पकड़ कर कोई भी आकाश में नहीं चढ़ सकता वैसे ही राम नाम के बिना कोई भी परमार्थ को प्राप्त नहीं कर सकता।",
"उहां न कबहूँ जाइए, जहाँ न हरि का नाम।",
"दिगंबर के गाँव में, धोबी का क्या काम॥",
"आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।",
"‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥",
"जिस घर में जाने पर घर वाले लोग देखते ही प्रसन्न न हों और जिनकी आँखों में प्रेम न हो, उस घर में कभी न जाना चाहिए। उस घर से चाहे कितना ही लाभ क्यों न हो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए।",
"तोय मोल मैं देत हौ, छीरहि सरिस बढ़ाइ।",
"आँच न लागन देत वह, आप पहिल जर जाइ॥",
"दूध पानी को अपने में मिलाकर उसका मूल्य अपने ही समान बना देता है। पर जब दूध को आग पर गर्म किया जाता है तो दूध से पहले पानी अपने को जला लेता है और दूध को बचा लेता है। मित्रता हो तो दूध और पानी जैसी हो।",
"अगलिअ-नेह-निवट्टाहं जोअण-लक्खु वि जाउ।",
"वरिस-सएण वि जो मिलइ सहि सोक्खहं सो ठाउ॥",
"अगलित स्नेह में में पके हुए लोग लाखों योजन भी चले जाएँ और सौ वर्ष बाद भी यदि मिलें तो हे सखि, मैत्री का भाव वही रहता है।",
"जो आवै सत्संग में, जात वर्ण कुलखोय।",
"सहजो मैल कुचील जल, मिलै सुगंगा होय॥",
"सहजो कहती हैं कि जैसे एकदम मैला-गंदा पानी गंगा में मिले जाने पर उसी के समान पवित्र हो जाता है, उसी प्रकार संत जनों की संगति से कौआ अर्थात् मूर्ख व्यक्ति भी हंस अर्थात् ज्ञानी-विवेकी बन जाता है।",
"पंचहँ णायकु वसिकरहु, जेण होंति वसि अण्ण।",
"मूल विणट्ठइ तरुवरहँ, अवसइँ सुक्कहिं पण्णु॥",
"पाँच इंद्रियों के नायक मन को वश में करो जिससे अन्य भी वश में होते हैं। तरुवर का मूल नष्ट कर देने पर पर्ण अवश्य सूखते हैं।",
"ब्राह्मण खतरी बैस सूद रैदास जनम ते नांहि।",
"जो चाहइ सुबरन कउ पावइ करमन मांहि॥",
"कोई भी मनुष्य जनम से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं होता। यदि कोई मनुष्य उच्च वर्ण को प्राप्त करना चाहता है तो वह केवल सुकर्म से ही उसे प्राप्त कर सकता है। सुकर्म ही मानव को ऊँचा और दुष्कर्म ही नीचा बनाता है।",
"समदरसी ते निकट है, भुगति-भुगति भरपूर।",
"विषम दरस वा नरन तें, सदा सरबदा दूर॥",
"जो लोग समदर्शी हैं, प्राणीमात्र के लिए समान भाव रखते हैं, उनको भोग और मोक्ष दोनों अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। इसके विपरीत जो विषमदर्शी हैं, जो भेद-भावना से काम लेते हैं, उन्हें वह मुक्ति कदापि नहीं प्राप्त हो सकती। ऐसे लोगों से भोग और मोक्ष दोनों दूर भागते हैं।",
"दुर्जन दर्पण सम सदा, करि देखौ हिय गौर।",
"संमुख की गति और है, विमुख भए पर और॥",
"दुर्जन शीशे के समान होते हैं, इस बात को ध्यान से देख लो, क्योंकि दोनों ही जब सामने होते हैं तब तो और होते हैं और जब पीछ पीछे होते हैं तब कुछ और हो जाते हैं। भाव यह है कि दुष्ट पुरुष सामने तो मनुष्य की प्रशंसा करता है और पीठ पीछे निंदा करता है, इसी प्रकार शीशा भी जब सामने होता है तो वह मनुष्य के मुख को प्रतिबिंबित करता है; पर जब वह पीठ पीछे होता है तो प्रतिबिंबित नहीं करता।",
"नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।",
"अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥",
"नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है। अरे भौरे! अभी तो यह एक कली मात्र है। तुम अभी से इसके मोह में अंधे बन रहे हो। जब यह कली फूल बनकर पराग तथा मकरंद से युक्त होगी, उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? अर्थात् जब नायिका यौवन संपन्न सरसता से प्रफुल्लित हो जाएगी, तब नायक की क्या दशा होगी?",
"दिवेहि विढत्तउँ खाहि वढ़ संचि म एक्कु वि द्रम्मु।",
"को वि द्रवक्कउ सो पडइ जेण समप्पइ जम्मु॥",
"हे मूर्ख, दिन-दिन कमाये धन को खा, एक भी दाम संचित मत कर। कोई भी ऐसा संकट आ पड़ेगा जिससे जीवन ही समाप्त हो जाएगा।",
"कपट वचन अपराध तैं, निपट अधिक दुखदानि।",
"जरे अंग में संकु ज्यौं, होत विथा की खानि॥",
"अपराध करने से भी अपराध करके झूठ बोलना और कपट-भरे वचनों से उस अपराध को छिपाने का प्रयत्न करना बहुत अधिक दु:ख देता है। वे कपट वचन तो जले हुए अंग में मानो कील चुभाने के समान अधिक दु:खदायक और असत्य प्रतीत होते हैं।",
"दया धर्म हिरदे बसै, बोलै अमृत बैन।",
"तेई ऊँचे जानिए, जिन के नीचे नैन॥",
"सज्जन हित कंचन-कलश, तोरि निहारिय हाल।",
"दुर्जन हित कुमार-घट, बिनसिन जुरै जमाल॥",
"सज्जन पुरुष का प्रेम सुवर्ण के कलश के समान है जो कि टूट जाने पर जुड़ जाता है, पर दुर्जन का प्रेम मिट्टी के घड़े-सा है जो कि टूटने पर जुड़ ही नहीं सकता।",
"रोस न करि जौ तजि चल्यौ, जानि अँगार गँवार।",
"छिति-पालनि की माल में, तैंहीं लाल सिंगार॥",
"हे लाल! यदि तुझे कोई गँवार मनुष्य, जो तेरे गुणों को नहीं पहचानता, छोड़कर चला भी गया तो भी कुछ बुरा मत मान; क्योंकि गँवार लोग भले ही तुम्हारा आदर न करें पर राजाओं के मुकुटों का तो तू ही शृंगार है। भाव यह है कि किसी विद्वान् गुणी व्यक्ति का कोई मूर्ख यदि आदर न भी करे तो भी उसे दु:खी नहीं होना चाहिए, क्योंकि समझदार लोग तो उसका सदा सम्मान ही करेंगे।",
"जो गुण गोवइ अप्पणा पयडा करइ परस्सु।",
"तसु हउँ कलि-जुगि दुल्लहहो बलि किज्जउँ सुअणस्सु॥",
"जो अपना गुण छिपाए और दूसरे का गुण प्रकट करे, कलिकाल में दुर्लभ उस सज्जन पर मैं बलि-बलि जाऊँ।",
"घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय।",
"‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥",
"यदि मनुष्य एक स्थान पर घर करके बैठ जाय तो वह वहाँ की माया-ममता में फँसकर उस प्रभु के घर से विमुख हो जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य घर छोड़ देता है तो उसका घर बिगड़ जाता है, इसलिए कवि का कथन है कि भगवान् राम के प्रेम का नगर बना कर घर और बन दोनों के बीच समान रूप से रहो, पर आसक्ति किसी में न रखो।",
"बलि-अब्भत्थणि महु-महणु लहुईहूआ सोइ।",
"जइ इच्छहु वड्डत्तणउं देहु म मग्गहु कोई॥",
"बलि की अभ्यर्थना करने से (दान मांगने से) विष्णु भी छोटे हो गए। यदि बड़प्पन चाहते हो तो (दान) दो, किसी से माँगो मत।",
"बिनु विश्वास भगति नहीं, तेही बिनु द्रवहिं न राम।",
"राम-कृपा बिनु सपनेहुँ, जीव न लहि विश्राम॥",
"भगवान् में सच्चे विश्वास के बिना मनुष्य को भगवद्भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती और बिना भक्ति के भगवान् कृपा नहीं कर सकते। जब तक मनुष्य पर भगवान् की कृपा नहीं होती तब तक मनुष्य स्वप्न में भी सुख-शांति नहीं पा सकता। अत: मनुष्य को भगवान् का भजन करते रहना चाहिए ताकि भगवान् के प्रसन्न हो जाने पर भक्त को सब सुख-संपत्ति अपने आप प्राप्त हो जाय।",
"मन मैला मन निरमला, मन दाता मन सूम।",
"मन ज्ञानी अज्ञान मन, मनहिं मचाई धूम॥",
"रसनिधि कवि कहते हैं कि मन ही मैला या अपवित्र है और मन ही पवित्र है, मन ही दानी है और मन ही कंजूस है। मन ही ज्ञानी है, और मन ही अज्ञानी है। इस प्रकार मन ने सारे संसार में अपनी धूम मचा रखी है।",
"जीविउ कासु न वल्लहउं घणु पणु कासु न इट्ठु।",
"दोणिण वि अवसर-निवडिअइं तिण-सम गणइ विसिट्ठु॥",
"जीवन किसे प्यारा नहीं? धन किसे इष्ट नहीं? किंतु मौक़ पड़ने पर महान पुरुष दोनों को तिनके के समान गिनता है।",
"सरिहिँ न सरेहि न सरवरेहिँ न वि उज्जाण-वणेहिं।",
"देस रवण्णा होंति वढ़ निवसन्तेहिँ सुअणेहिं॥",
"हे मूढ़, न सरिताओं से, न सरों से, न सरोवरों से, और न उद्यानों और वनों से भी! किंतु बसते हुए सज्जनों से देश रमणीय होते हैं।",
"धन्नो कहै ते धिग नरां, धन देख्यां गरबाहिं।",
"धन तरवर का पानड़ा, लागै अर उड़ि जाहिं॥",
"ऐसो मीठो नहिं पियुस, नहिं मिसरी नहिं दाख।",
"तनक प्रेम माधुर्य पें, नोंछावर अस लाख॥",
"प्रेम जितना मिठास न दाख में है, न मिसरी में और न अमृत में। प्रेम के तनिक माधुर्य पर ऐसी लाखों वस्तुएँ न्योछावर है।",
"वम्भ ते विरला के वि नर जे सव्वंग छइल्ल।",
"जे बंका ते वंचयर जे उज्जुअ ते बइल्ल॥",
"हे ब्रह्मन्, वे नर कोई विरले ही होते हैं जो सर्वाङ्ग छैल हों। जो बाँके हैं, वे वंचक होते हैं और जो सरल होते हैं, वे बैल होते हैं।",
"क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।",
"सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥",
"सज्जन एहा चाहिये, जेहा तरवर ताल।",
"फल भच्छत पानी पियत, नाहि न करत जमाल॥",
"सज्जन को तालाब और वृक्ष-सा परोपकारी होना चाहिए। ये दोनों पानी पीने और फल खाने के लिए किसी को मना नहीं करते हैं।",
"हिंदू तो हरिहर कहे, मुस्सलमान खुदाय।",
"साँचा सद्गुरु जे मिले, दुविधा रहे ना काय॥",
"परसा तब मन निर्मला, लीजै हरिजल धोय।",
"हरि सुमिरन बिन आत्मा, निर्मल कभी न होय॥",
"राम-राम के नाम को, जहाँ नहीं लवलेस।",
"पानी तहाँ न पीजिए, परिहरिए सो देस॥",
"किरतिम देव न पूजिए, ठेस लगे फुटि जाय।",
"कहैं मलूक सुभ आत्मा, चारों जुग ठहराय॥",
"जब लग स्वांस सरीर में, तब लग नांव अनेक।",
"घट फूटै सायर मिलै, जब फूली पूरण एक॥",
"गैंणा गांठा तन की सोभा, काया काचो भांडो।",
"फूली कै थे कुती होसो, रांम भजो हे रांडों॥",
"‘तुलसी’ संत सुअंब तरु, फूलि फलहिं पर हेत।",
"इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत॥",
"तुलसीदास कहते हैं कि सज्जन और रसदार फलों वाले वृक्ष दूसरों के लिए फलते-फूलते हैं क्योंकि लोग तो उन वृक्षों पर या सज्जनों पर इधर से पत्थर मारते हैं पर उधर से वे उन्हें पत्थरों के बदले में फल देते हैं। भाव यह है कि सज्जनों के साथ कोई कितना ही बुरा व्यवहार क्यों न करे, पर सज्जन उनके साथ सदा भला ही व्यवहार करते हैं।",
"अरी मधुर अधरान तैं, कटुक बचन मत बोल।",
"तनक खुटाई तैं घटै, लखि सुबरन को मोल॥",
"असन बसन सुत नारि सुख, पापिहुँ के घर होइ।",
"संत-समागम रामधन, ‘तुलसी’ दुर्लभ दोइ॥",
"भोजन, वस्त्र, पुत्र और स्त्री-सुख तो पापी के घर में भी हो सकते हैं; पर सज्जनों का समागम भगवान् और राम रूपी धन की प्राप्ति ये दोनों बड़े दुर्लभ हैं। भाव यह है कि जिसके बड़े भाग्य होते हैं उसे ही भगवद्भक्ति तथा सज्जन पुरुषों की संगति प्राप्त होती है।",
"संतत सहज सुभाव सों, सुजन सबै सनमानि।",
"सुधा-सरस सींचत स्रवन, सनी-सनेह सुबानि॥",
"परनारी पर सुंदरी, बिरला बंचै कोइ।",
"खातां मीठी खाँड़ सी, अंति कालि विष होइ॥",
"पराई स्त्री तथा पराई सुंदरियों से कोई बिरला ही बच पाता है। यह खाते (उपभोग करते) समय खाँड़ के समान मीठी (आनंददायी) अवश्य लगती है किंतु अंततः वह विष जैसी हो जाती है।",
"परज्या कौ रक्षा करै सोई स्वामि अनूप।",
"तर सब कौं छहियाँ करै, सहै आप सिर धूप॥",
"डाकी ठाकर सहण कर, डाकण दीठ चलाय।",
"मायड़ खाय दिखाय थण, धण पण वलय बताय॥",
"प्रतापी स्वामी जब अपने सेवकों के अपराध पर भी मौन धारण कर लेता है तब उन अपराधी सेवकों का मरण हो जाता है मानो उनके अपराध को सहन करके समर्थ स्वामी अपने मौन द्वारा उनको खा जाता है। जिस प्रकार डाकिन अपने भक्ष्य को नज़र से खा जाती है (लोगों में विश्वास है कि डाकिन की नज़र लगने पर आदमी मर जाता है) उसी प्रकार युद्ध से लौटे हुए कायर पुत्र को माता जब अपने स्तनों की ओर इशारा करके कहती है कि तूने इनका दूध लजा दिया तो उस कायर पति को देखकर अपने चूड़े की तरफ़ इशारा करके कहती है कि तूने इस चूड़े को लजा दिया तो उस कायर पुत्र का मरण हो जाता है। इसी प्रकार जब स्त्री भी युद्ध से लौटे हुए अपने कायर पति को देखकर अपने चूड़े की तरफ़ इशारा करके कहती है कि तूने इस चूड़े को लजा दिया तब उस कायर पति का मरण हो जाता है। इस प्रकार के वीरोचित व्यवहार से माता अपने पुत्र को और पत्नी अपने पति को खा जाती है, उनमें कुछ भी बाक़ी नहीं छोड़ती।",
"कामी कंथ के कारणै, कै करीये सिणगार।",
"पत को पत रीझायलो, फूली को भरतार॥",
"मान रखिवौ माँगिबौ, पिय सों सहज सनेहु।",
"‘तुलसी’ तीनों तब फबैं, जब चातक मत लेहु॥",
"माँगकर भी अपने मान को बचाए रखना, साथ ही प्रिय से स्वाभाविक प्रेम भी बनाए रखना—ये तीनों बातें तभी अच्छी लग सकती हैं, जब कि व्यक्ति पपीहे के समान आचरण अपने व्यवहार में लाए। पपीहा बादल से पानी की बूँदों की प्रार्थना भी करता है और अपने स्वाभिमान को भी बनाए रखता है। क्योंकि उसके हृदय में बादल के प्रति सच्चा प्रेम है, वह बादल के सिवा और किसी से कुछ नहीं माँगता। भाव यह कि सच्चा प्रेमी अपने प्रियतम से माँग कर भी अपने प्रेम और मान की रक्षा कर लेता है, पर दूसरे लोगों का माँगने से मान और प्रेम घट जाता है।",
"गये असज्जन की सभा, बुध महिमा नहिं होय।",
"जिमि कागन की मंडली, हंस न सोहत कोय॥",
"जीव मारि जीमण कर, खाताँ करै बखाण।",
"पीपा परतखि देखि ले, थांली माँहि मसाण॥",
"जो जाको करतब सहज, रतन करि सकै सोय।",
"वावा उचरत ओंठ सों, हा हा गल सों होय॥",
"बड़े बड़न के भार कों, सहैं न अधम गँवार।",
"साल तरुन मैं गज बँधै, नहि आँकन की डार॥",
"‘व्यास’ न कथनी और की, मेरे मन धिक्कार।",
"रसिकन की गारी भली, यह मेरौ सिंगार॥",
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आत्मनिर्भरता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/self-reliance/kavita | [
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आत्मनिर्भरता के विषय पर बेहतरीन रिपोर्ताज़ | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/self-reliance/reportage | [
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उदासियाँ तब कितनी अलग होतीं - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/self-reliance/udasiyan-tab-kitni-alag-hotin-gagan-gill-kavita-13?sort= | [
"अच्छा हुआ, उसने पुत्र नहीं जन्मा",
"अच्छा हुआ, उसने किसी कमज़ोर क्षण में",
"सिर्फ़ इस इच्छा को पनपने दिया",
"और आदमी को इसका पता नहीं चला",
"अच्छा हुआ, पुत्र जो उसने सोचा था",
"आदमी की अक्लमंदी और मूल्यों का बना हुआ",
"अक्स उसका भुरभुराया नहीं",
"वह जीता-जागता उसके सपने में आया",
"और छाया-सा चला गया",
"अच्छा हुआ, वह",
"पुत्र धारण करने से पहले",
"किसी बिस्तर तक नहीं गई",
"और शाम की यह लालसा",
"कुर्सियों में अलग बैठे-बैठे शाम में ढल गई",
"अब वह कम-से-कम",
"इस शाम को एकांत में",
"दोहरा तो सकेगी,",
"इसकी छाया में निंदिया तो सकेगी,",
"ऑफ़िस से लौटते हुए",
"बसों में हिचकोले खाने का संबल",
"जुटा तो सकेगी,",
"सोई हुई आँखों में सपना",
"तैरा तो सकेगी...",
"अगर कहीं सचमुच",
"वह माँ हुई होती,",
"अगर कहीं सचमुच",
"उसका बच्चा चौबीसों घंटे",
"उसके सपने में से निकलकर",
"उसकी शामत बना होता—",
"सपने लेने वाली यह लड़की",
"कितनी बेचारी होती!",
"अकेली, उदास, हारी हुई",
"अकेली सारी थकावटें,",
"उदासियाँ और हारें",
"तब इस थकान से कितनी अलग होतीं",
"जो कुर्सी पर अलग-अलग बैठने की",
"इस हार में",
"उसके साथ-साथ चलती हैं!",
"achchha hua, usne putr nahin janma",
"achchha hua, usne kisi kamzor kshan mein",
"sirf is ichha ko panapne diya",
"aur adami ko iska pata nahin chala",
"achchha hua, putr jo usne socha tha",
"adami ki aklmandi aur mulyon ka bana hua",
"aks uska bhurabhuraya nahin",
"wo jita jagata uske sapne mein aaya",
"aur chhaya sa chala gaya",
"achchha hua, wo",
"putr dharan karne se pahle",
"kisi bistar tak nahin gai",
"aur sham ki ye lalsa",
"kursiyon mein alag baithe baithe sham mein Dhal gai",
"ab wo kam se kam",
"is sham ko ekant mein",
"dohra to sakegi,",
"iski chhaya mein nindiya to sakegi,",
"office se lautte hue",
"bason mein hichkole khane ka sambal",
"juta to sakegi,",
"soi hui ankhon mein sapna",
"taira to sakegi",
"agar kahin sachmuch",
"wo man hui hoti,",
"agar kahin sachmuch",
"uska bachcha chaubison ghante",
"uske sapne mein se nikalkar",
"uski shamat bana hota—",
"sapne lene wali ye laDki",
"kitni bechari hoti!",
"akeli, udas, hari hui",
"akeli sari thakawten,",
"udasiyan aur haren",
"tab is thakan se kitni alag hotin",
"jo kursi par alag alag baithne ki",
"is haar mein",
"uske sath sath chalti hain!",
"achchha hua, usne putr nahin janma",
"achchha hua, usne kisi kamzor kshan mein",
"sirf is ichha ko panapne diya",
"aur adami ko iska pata nahin chala",
"achchha hua, putr jo usne socha tha",
"adami ki aklmandi aur mulyon ka bana hua",
"aks uska bhurabhuraya nahin",
"wo jita jagata uske sapne mein aaya",
"aur chhaya sa chala gaya",
"achchha hua, wo",
"putr dharan karne se pahle",
"kisi bistar tak nahin gai",
"aur sham ki ye lalsa",
"kursiyon mein alag baithe baithe sham mein Dhal gai",
"ab wo kam se kam",
"is sham ko ekant mein",
"dohra to sakegi,",
"iski chhaya mein nindiya to sakegi,",
"office se lautte hue",
"bason mein hichkole khane ka sambal",
"juta to sakegi,",
"soi hui ankhon mein sapna",
"taira to sakegi",
"agar kahin sachmuch",
"wo man hui hoti,",
"agar kahin sachmuch",
"uska bachcha chaubison ghante",
"uske sapne mein se nikalkar",
"uski shamat bana hota—",
"sapne lene wali ye laDki",
"kitni bechari hoti!",
"akeli, udas, hari hui",
"akeli sari thakawten,",
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"jo kursi par alag alag baithne ki",
"is haar mein",
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वह जहाँ है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/self-reliance/wo-jahan-hai-akhilesh-singh-kavita?sort= | [
"वह जहाँ पर समर्पित है",
"वहीं तिरस्कृत",
"जहाँ अदृश्य है",
"वहीं पर चिह्नित",
"जहाँ नत है",
"वहीं पर पतित",
"तकलीफ़ें उससे गुज़रती हैं",
"अपनी पहचान के लिए",
"विचारों से वह वैसा नहीं गुज़र पाया",
"कि दैनिक प्रवंचनाओं को उनसे सिद्ध कर सके",
"शब्दों को वह वैसा नहीं बोल पाया",
"कि ज़रूरतों के लिए टोकन बना सके",
"उसके विस्मय के चिह्न ही",
"उसके विराम के चिह्न थे",
"उससे अधिक",
"वह कहीं रुका ही नहीं",
"कहाँ तो सोचा था",
"कि हर दृश्य उसे बसा लेगा",
"कहाँ तो पाता है",
"कि हर दृश्य गणना भर है।",
"wo jahan par samarpit hai",
"vahin tiraskrit",
"jahan adrishya hai",
"vahin par chihnit",
"jahan nat hai",
"vahin par patit",
"taklifen usse guzarti hain",
"apni pahchan ke liye",
"vicharon se wo vaisa nahin guzar paya",
"ki dainik prvanchnaon ko unse siddh kar sake",
"shabdon ko wo vaisa nahin bol paya",
"ki zarurton ke liye tokan bana sake",
"uske vismay ke chihn hi",
"uske viram ke chihn the",
"usse adhik",
"wo kahin ruka hi nahin",
"kahan to socha tha",
"ki har drishya use basa lega",
"kahan to pata hai",
"ki har drishya ganna bhar hai.",
"wo jahan par samarpit hai",
"vahin tiraskrit",
"jahan adrishya hai",
"vahin par chihnit",
"jahan nat hai",
"vahin par patit",
"taklifen usse guzarti hain",
"apni pahchan ke liye",
"vicharon se wo vaisa nahin guzar paya",
"ki dainik prvanchnaon ko unse siddh kar sake",
"shabdon ko wo vaisa nahin bol paya",
"ki zarurton ke liye tokan bana sake",
"uske vismay ke chihn hi",
"uske viram ke chihn the",
"usse adhik",
"wo kahin ruka hi nahin",
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आत्मनिर्भरता - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/self-reliance/atmanirbharta-bodhisatva-kavita-16?sort= | [
"पृथ्वी आत्मनिर्भर है और सूर्य भी",
"यह कहा जा सकता है",
"लेकिन कोई नहीं है आत्मनिर्भर",
"न चंद्रमा न बादल न समुद्र न तारे",
"सब टिके हैं एक दूसरे के सहारे!",
"पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी है उनका संबल",
"सूर्य देता है चंद्रमा को अपनी चमक अपनी रौशनी",
"समुद्र से जल लेते हैं बादल",
"और उसे पृथ्वी को लौटा देते हैं",
"थोड़े सुख-दुःख जोड़-कटौती के साथ!",
"पृथ्वी को लौटाना भी समुद्र को ही लौटाना होता है",
"नदियों को लौटाना भी समुद्र को लौटाना होता है।",
"कपड़े निर्भर हैं धागों पर",
"धागे रूई-कपास पर",
"कपास खेत पर",
"खेत सूर्य के ताप, मेघ और जल पर",
"जल समुद्र पर",
"समुद्र टिका है पृथ्वी की गोद में",
"पृथ्वी टिकी है सूर्य-चंद्र के खिंचाव और दुत्कार पर!",
"उदाहरण अनेक हो सकते हैं",
"पराए पर निर्भर होने के",
"तुम एक आत्मनिर्भर का उदाहरण दे सकते हो क्या?",
"फेफड़े निर्भर है हवा पर",
"ख़ून निर्भर है अन्न पर",
"शरीर निर्भर है पता नहीं कितनी चीज़ों पर",
"शब्द निर्भर हैं अक्षरों पर",
"अक्षर ध्वनियों पर",
"और ध्वनियाँ वायु और शून्य के विस्तार पर!",
"बहुत कुछ निर्भर है तुम्हारे देखने और न देखने पर",
"बहुत कुछ निर्भर है तुम्हारे सुनने और न सुनने पर",
"बहुत कुछ निर्भर है तुम्हारे बोलने और चुप रहने पर",
"तवा निर्भर है आँच पर",
"वह ख़ुद गर्म नहीं हो सकती इतनी स्वयं से कि",
"सेंक दे एक रोटी ख़ुद के ताप से",
"बटलोई अन्न नहीं जुटा सकती और",
"हल ख़ुद नहीं जोत सकते खेत",
"लोहा निर्भर है",
"हाथ भट्ठी और हथौड़े पर और उस निहाई पर कि वह हँसिया बने या कुछ और",
"और इस निर्भरता में भाथी और उसके उस चमड़े को न भूल जाएँ",
"जिस पर निर्भर है यह सब कुछ गला देने का व्यापार!",
"और उस पशु को भी नहीं भूलें जिसकी खाल से बनती है भाथी",
"और उस हाथ और छुरे को भी नहीं जो उतरता है खाल",
"और बनाता है भाथी!",
"वह अकेला पेड़ भी आत्मनिर्भर नहीं है",
"वह जितना पृथ्वी पर निर्भर है",
"उतना ही पृथ्वी की नमी पर",
"और उस हवा पर भी जो नहीं दिखती",
"न तुम्हें न उस पेड़ को!",
"तुम जो कुछ और जहाँ तक देख रहे हो",
"या नहीं भी देख रहे हो सब निर्भरता का खेल है यह",
"निर्भरता सृष्टि का जल है!",
"जहाँ निर्भरता का जल नहीं",
"वहाँ कोई लोरी नहीं कोई झिलमिल नहीं",
"कोई गीत नहीं!",
"पैदल जाते लोगों के घाव पर निर्भर है यह जनतंत्र",
"तुम इनसे आत्मनिर्भर होकर दिखाओगे क्या?",
"तुम हज़ार जन्म लेकर भी आत्मनिर्भरता का",
"कोई एक उदाहरण बताओगे क्या?",
"prithwi atmanirbhar hai aur surya bhi",
"ye kaha ja sakta hai",
"lekin koi nahin hai atmanirbhar",
"na chandrma na badal na samudr na tare",
"sab tike hain ek dusre ke sahare!",
"prithwi aur chandrma ke beech ki duri hai unka sambal",
"surya deta hai chandrma ko apni chamak apni raushani",
"samudr se jal lete hain badal",
"aur use prithwi ko lauta dete hain",
"thoDe sukh duःkh joD katauti ke sath!",
"prithwi ko lautana bhi samudr ko hi lautana hota hai",
"nadiyon ko lautana bhi samudr ko lautana hota hai",
"kapDe nirbhar hain dhagon par",
"dhage rui kapas par",
"kapas khet par",
"khet surya ke tap, megh aur jal par",
"jal samudr par",
"samudr tika hai prithwi ki god mein",
"prithwi tiki hai surya chandr ke khinchaw aur dutkar par!",
"udaharn anek ho sakte hain",
"paraye par nirbhar hone ke",
"tum ek atmanirbhar ka udaharn de sakte ho kya?",
"phephDe nirbhar hai hawa par",
"khoon nirbhar hai ann par",
"sharir nirbhar hai pata nahin kitni chizon par",
"shabd nirbhar hain akshron par",
"akshar dhwaniyon par",
"aur dhwaniyan wayu aur shunya ke wistar par!",
"bahut kuch nirbhar hai tumhare dekhne aur na dekhne par",
"bahut kuch nirbhar hai tumhare sunne aur na sunne par",
"bahut kuch nirbhar hai tumhare bolne aur chup rahne par",
"tawa nirbhar hai anch par",
"wo khu garm nahin ho sakti itni swayan se ki",
"senk de ek roti khu ke tap se",
"batloi ann nahin juta sakti aur",
"hal khu nahin jot sakte khet",
"loha nirbhar hai",
"hath bhatthi aur hathauDe par aur us nihai par ki wo hansiya bane ya kuch aur",
"aur is nirbharta mein bhathi aur uske us chamDe ko na bhool jayen",
"jis par nirbhar hai ye sab kuch gala dene ka wyapar!",
"aur us pashu ko bhi nahin bhulen jiski khaal se banti hai bhathi",
"aur us hath aur chhure ko bhi nahin jo utarta hai khaal",
"aur banata hai bhathi!",
"wo akela peD bhi atmanirbhar nahin hai",
"wo jitna prithwi par nirbhar hai",
"utna hi prithwi ki nami par",
"aur us hawa par bhi jo nahin dikhti",
"na tumhein na us peD ko!",
"tum jo kuch aur jahan tak dekh rahe ho",
"ya nahin bhi dekh rahe ho sab nirbharta ka khel hai ye",
"nirbharta sirishti ka jal hai!",
"jahan nirbharta ka jal nahin",
"wahan koi lori nahin koi jhilmil nahin",
"koi geet nahin!",
"paidal jate logon ke ghaw par nirbhar hai ye jantantr",
"tum inse atmanirbhar hokar dikhaoge kya?",
"tum hazar janm lekar bhi atmanirbharta ka",
"koi ek udaharn bataoge kya?",
"prithwi atmanirbhar hai aur surya bhi",
"ye kaha ja sakta hai",
"lekin koi nahin hai atmanirbhar",
"na chandrma na badal na samudr na tare",
"sab tike hain ek dusre ke sahare!",
"prithwi aur chandrma ke beech ki duri hai unka sambal",
"surya deta hai chandrma ko apni chamak apni raushani",
"samudr se jal lete hain badal",
"aur use prithwi ko lauta dete hain",
"thoDe sukh duःkh joD katauti ke sath!",
"prithwi ko lautana bhi samudr ko hi lautana hota hai",
"nadiyon ko lautana bhi samudr ko lautana hota hai",
"kapDe nirbhar hain dhagon par",
"dhage rui kapas par",
"kapas khet par",
"khet surya ke tap, megh aur jal par",
"jal samudr par",
"samudr tika hai prithwi ki god mein",
"prithwi tiki hai surya chandr ke khinchaw aur dutkar par!",
"udaharn anek ho sakte hain",
"paraye par nirbhar hone ke",
"tum ek atmanirbhar ka udaharn de sakte ho kya?",
"phephDe nirbhar hai hawa par",
"khoon nirbhar hai ann par",
"sharir nirbhar hai pata nahin kitni chizon par",
"shabd nirbhar hain akshron par",
"akshar dhwaniyon par",
"aur dhwaniyan wayu aur shunya ke wistar par!",
"bahut kuch nirbhar hai tumhare dekhne aur na dekhne par",
"bahut kuch nirbhar hai tumhare sunne aur na sunne par",
"bahut kuch nirbhar hai tumhare bolne aur chup rahne par",
"tawa nirbhar hai anch par",
"wo khu garm nahin ho sakti itni swayan se ki",
"senk de ek roti khu ke tap se",
"batloi ann nahin juta sakti aur",
"hal khu nahin jot sakte khet",
"loha nirbhar hai",
"hath bhatthi aur hathauDe par aur us nihai par ki wo hansiya bane ya kuch aur",
"aur is nirbharta mein bhathi aur uske us chamDe ko na bhool jayen",
"jis par nirbhar hai ye sab kuch gala dene ka wyapar!",
"aur us pashu ko bhi nahin bhulen jiski khaal se banti hai bhathi",
"aur us hath aur chhure ko bhi nahin jo utarta hai khaal",
"aur banata hai bhathi!",
"wo akela peD bhi atmanirbhar nahin hai",
"wo jitna prithwi par nirbhar hai",
"utna hi prithwi ki nami par",
"aur us hawa par bhi jo nahin dikhti",
"na tumhein na us peD ko!",
"tum jo kuch aur jahan tak dekh rahe ho",
"ya nahin bhi dekh rahe ho sab nirbharta ka khel hai ye",
"nirbharta sirishti ka jal hai!",
"jahan nirbharta ka jal nahin",
"wahan koi lori nahin koi jhilmil nahin",
"koi geet nahin!",
"paidal jate logon ke ghaw par nirbhar hai ye jantantr",
"tum inse atmanirbhar hokar dikhaoge kya?",
"tum hazar janm lekar bhi atmanirbharta ka",
"koi ek udaharn bataoge kya?",
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तुम स्वतंत्र हो - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/self-reliance/tum-swtantr-ho-sunita-kavita-8?sort= | [
"उनकी नरमी उनकी दुनिया",
"जैसे-जैसे रात ढलती जाती है",
"उनकी बातों में नरमी बढ़ती जाती है",
"नरमी तो वे दिन में भी बरत लेते",
"लेकिन वक़्त नहीं होता है उनके पास",
"मंच और विमर्श की दुनिया उनकी है",
"हक़ और अधिकार उनके हैं",
"हमारे हिस्से का हक़ माँगने पर",
"वे बाहर के रास्ता दिखाते हुए कहते हैं :",
"तुम स्वतंत्र हो!",
"तुम स्वतंत्र हो!!",
"unki narmi unki duniya",
"jaise jaise raat Dhalti jati hai",
"unki baton mein narmi baDhti jati hai",
"narmi to we din mein bhi barat lete",
"lekin waqt nahin hota hai unke pas",
"manch aur wimarsh ki duniya unki hai",
"haq aur adhikar unke hain",
"hamare hisse ka haq mangne par",
"we bahar ke rasta dikhate hue kahte hain ha",
"tum swtantr ho!",
"tum swtantr ho!!",
"unki narmi unki duniya",
"jaise jaise raat Dhalti jati hai",
"unki baton mein narmi baDhti jati hai",
"narmi to we din mein bhi barat lete",
"lekin waqt nahin hota hai unke pas",
"manch aur wimarsh ki duniya unki hai",
"haq aur adhikar unke hain",
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"tum swtantr ho!",
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रहस्य-12 - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/self-reliance/rahasy-12-somesh-shukla-kavita?sort= | [
"जो मेरा नहीं है के अलावा मेरे पास कुछ नहीं है।",
"jo mera nahin hai ke alawa mere pas kuch nahin hai",
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विश्वास की पहचान - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/self-reliance/vishvas-ki-pahchan-pragya-sharma-kavita?sort= | [
"स्वयं पर विश्वास ज़रूरी है",
"लेकिन विश्वास,",
"कंस भी हो सकता है",
"और कृष्ण भी",
"पहचान कैसे हो",
"बहुत सरल है",
"अहंकारी है स्वकेंद्रित है",
"तो कंस है",
"यदि ऐसा नहीं है",
"तो निःसंदेह कृष्ण है...",
"svayan par vishvas zaruri hai",
"lekin vishvas,",
"kans bhi ho sakta hai",
"aur krishn bhi",
"pahchan kaise ho",
"bahut saral hai",
"ahankari hai svkendrit hai",
"to kans hai",
"yadi aisa nahin hai",
"to niasandeh krishn hai. . .",
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"lekin vishvas,",
"kans bhi ho sakta hai",
"aur krishn bhi",
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प्रक्रिया - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/self-reliance/prakriya-vijay-bahadur-singh-kavita?sort= | [
"अपने ही हाथों काट रहा हूँ बाँस",
"अपने ही हाथों बुन रहा हूँ कफ़न",
"अपने ही हाथों चुन रहा हूँ चिता",
"अपने ही हाथों दे रहा हूँ आग",
"अपने ही हाथों करूँगा कपाल-क्रिया",
"श्राद्ध भी अपने ही हाथों",
"करूँगा मैं अपना",
"apne hi hathon kat raha hoon bans",
"apne hi hathon bun raha hoon kafan",
"apne hi hathon chun raha hoon chita",
"apne hi hathon de raha hoon aag",
"apne hi hathon karunga kapal kriya",
"shraddh bhi apne hi hathon",
"karunga main apna",
"apne hi hathon kat raha hoon bans",
"apne hi hathon bun raha hoon kafan",
"apne hi hathon chun raha hoon chita",
"apne hi hathon de raha hoon aag",
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आत्मनिर्भरता के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/self-reliance | [
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आत्महत्या के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/suicide/kavita | [
"स्वयं का जीवन समाप्त कर देने का कृत्य है। प्राचीन युग में गर्व और अस्मिता की रक्षा और आधुनिक युग में मानवीय त्रासदी के रूप में यह कविता का विषय बनती रही है। हाल के वर्षों में किसानों की आत्महत्या ने काव्य-चेतना को पर्याप्त प्रभावित किया है। रोहिता वेमुला की आत्महत्या ने दलित-वंचित संवाद के संदर्भ में इसे व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाया। आत्मपरक कविताओं में यह विभिन्न सांकेतिक अर्थों में अभिव्यक्ति पाती रहती है।",
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आत्महत्या के विषय पर बेहतरीन उद्धरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/suicide/quotes | [
"स्वयं का जीवन समाप्त कर देने का कृत्य है। प्राचीन युग में गर्व और अस्मिता की रक्षा और आधुनिक युग में मानवीय त्रासदी के रूप में यह कविता का विषय बनती रही है। हाल के वर्षों में किसानों की आत्महत्या ने काव्य-चेतना को पर्याप्त प्रभावित किया है। रोहिता वेमुला की आत्महत्या ने दलित-वंचित संवाद के संदर्भ में इसे व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाया। आत्मपरक कविताओं में यह विभिन्न सांकेतिक अर्थों में अभिव्यक्ति पाती रहती है।",
"जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।",
"मैं संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण प्राणी हूँ। यदि नहीं हूँ तो आत्महत्या के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।",
"आत्महत्या को मैं मुक्ति की प्रार्थना कहता हूँ, अपराध या पलायन नहीं मानता।",
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आत्महत्या के विषय पर बेहतरीन अनुवाद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/suicide/anuwad | [
"स्वयं का जीवन समाप्त कर देने का कृत्य है। प्राचीन युग में गर्व और अस्मिता की रक्षा और आधुनिक युग में मानवीय त्रासदी के रूप में यह कविता का विषय बनती रही है। हाल के वर्षों में किसानों की आत्महत्या ने काव्य-चेतना को पर्याप्त प्रभावित किया है। रोहिता वेमुला की आत्महत्या ने दलित-वंचित संवाद के संदर्भ में इसे व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाया। आत्मपरक कविताओं में यह विभिन्न सांकेतिक अर्थों में अभिव्यक्ति पाती रहती है।",
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आत्महत्या के विषय पर बेहतरीन कहानी | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/suicide/story | [
"स्वयं का जीवन समाप्त कर देने का कृत्य है। प्राचीन युग में गर्व और अस्मिता की रक्षा और आधुनिक युग में मानवीय त्रासदी के रूप में यह कविता का विषय बनती रही है। हाल के वर्षों में किसानों की आत्महत्या ने काव्य-चेतना को पर्याप्त प्रभावित किया है। रोहिता वेमुला की आत्महत्या ने दलित-वंचित संवाद के संदर्भ में इसे व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाया। आत्मपरक कविताओं में यह विभिन्न सांकेतिक अर्थों में अभिव्यक्ति पाती रहती है।",
"एक\r\n\r\nदफ़्तर में ज़रा देर से आना अफ़सरों की शान है। जितना ही बड़ा अधिकारी होता है, उत्तनी ही देर में आता है; और उतने ही सबेरे जाता भी है। चपरासी की हाज़िरी चौबीसों घंटे की। वह छुट्टी पर भी नहीं जा सकता। अपना एवज़ देना पड़ता है। ख़ैर, जब बरेली जिला-बोर्ड",
"गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनंद की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में चले आए थे।\r\n\r\nरात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ",
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आत्महत्या के विषय पर बेहतरीन कवित्त | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/suicide/kavitt | [
"स्वयं का जीवन समाप्त कर देने का कृत्य है। प्राचीन युग में गर्व और अस्मिता की रक्षा और आधुनिक युग में मानवीय त्रासदी के रूप में यह कविता का विषय बनती रही है। हाल के वर्षों में किसानों की आत्महत्या ने काव्य-चेतना को पर्याप्त प्रभावित किया है। रोहिता वेमुला की आत्महत्या ने दलित-वंचित संवाद के संदर्भ में इसे व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाया। आत्मपरक कविताओं में यह विभिन्न सांकेतिक अर्थों में अभिव्यक्ति पाती रहती है।",
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प्रेम कविता - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/prem-kawita-geet-chaturvedi-kavita?sort= | [
"आत्महत्या का बेहतरीन तरीक़ा होता है",
"इच्छा की फ़िक्र किए बिना जीते चले जाना",
"पाँच हज़ार वर्ष से ज़्यादा हो चुकी है मेरी आयु",
"अदालत में अब तक लंबित है मेरा मुक़दमा",
"सुनवाई के इंतज़ार से बड़ी सज़ा और क्या",
"बेतहाशा दुखती है कलाई के ऊपर एक नस",
"हृदय में उस कृत्य के लिए क्षमा उमड़ती है",
"जिसे मेरे अलावा बाक़ी सबने अपराध माना",
"क़ानून की किताब में इस पर कोई अनुच्छेद नहीं।",
"atmahatya ka behtarin tariqa hota hai",
"ichha ki fir kiye bina jite chale jana",
"panch hazar warsh se zyada ho chuki hai meri aayu",
"adalat mein ab tak lambit hai mera muqadma",
"sunwai ke intzar se baDi saza aur kya",
"betahasha dukhti hai kalai ke upar ek nas",
"hirdai mein us krity ke liye kshama umaDti hai",
"jise mere alawa baqi sabne apradh mana",
"qanun ki kitab mein is par koi anuchchhed nahin",
"atmahatya ka behtarin tariqa hota hai",
"ichha ki fir kiye bina jite chale jana",
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अ-प्रेम कविता - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/a-prem-kawita-mrigtrishna-kavita?sort= | [
"मेरी अ-प्रेम कविता में नायिका की उम्र दर्ज है—",
"उतरता हुआ सोलहवाँ",
"जो सीख रहा था अभी सलीक़े से बाँधना इज़ारबंद",
"पीठ पर बस्ता टाँगते हुए",
"कुरता अक्सर पीछे से दबा रह जाता था",
"उर्वरता का लाल भी झाँक लेता था दबे पाँव",
"पुलिया पर सुस्ताते हुए दुपट्टा पूछ बैठता—",
"मैं रुकूँ कि जाऊँ?",
"पगडंडियाँ मौक़ा पाकर",
"गर्दन के रास्ते उतर-उतर जातीं",
"नाभि तक",
"खेतों से गुज़रते हुए",
"सोलहवाँ सजा लेता था",
"सरसों के फूल",
"किसी टापू देश की सुंदरी की तरह",
"और एक दिन अचानक",
"चढ़ता हुआ सोलहवाँ",
"लटकता मिला अपने पसंदीदा",
"आम के पेड़ से",
"बदायूँ की एक",
"प्रथमदृष्टया रिपोर्ट में दर्ज है कि सोलहवाँ",
"‘प्रेम में था’",
"meri a prem kawita mein nayika ki umr darj hai—",
"utarta hua solahwan",
"jo seekh raha tha abhi saliqe se bandhna izarband",
"peeth par basta tangate hue",
"kurta aksar pichhe se daba rah jata tha",
"urwarta ka lal bhi jhank leta tha dabe panw",
"puliya par sustate hue dupatta poochh baithta—",
"main rukun ki jaun?",
"pagDanDiyan mauqa pakar",
"gardan ke raste utar utar jatin",
"nabhi tak",
"kheton se guzarte hue",
"solahwan saja leta tha",
"sarson ke phool",
"kisi tapu desh ki sundri ki tarah",
"aur ek din achanak",
"chaDhta hua solahwan",
"latakta mila apne pasandida",
"am ke peD se",
"badaun ki ek",
"prathamdrishtya report mein darj hai ki solahwan",
"‘prem mein tha’",
"meri a prem kawita mein nayika ki umr darj hai—",
"utarta hua solahwan",
"jo seekh raha tha abhi saliqe se bandhna izarband",
"peeth par basta tangate hue",
"kurta aksar pichhe se daba rah jata tha",
"urwarta ka lal bhi jhank leta tha dabe panw",
"puliya par sustate hue dupatta poochh baithta—",
"main rukun ki jaun?",
"pagDanDiyan mauqa pakar",
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"nabhi tak",
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"solahwan saja leta tha",
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"aur ek din achanak",
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आत्म-मृत्यु - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/aatm-mirtyu-priyanka-dubey-kavita?sort= | [
"(आत्म) हत्या की नोक परमेरी हत्या की नोकहिंदुस्तान और पाकिस्तान कीउस सीमा पर ठुकी हुई हैजहाँ कभी बेसुध पड़ाटोबा टेक सिंहबिलख-बिलखकर अधमरा हो गया था।तुम्हारे प्यार में मेरे यूँ बेघर होने कोकौन समझता है,इक टोबा टेक सिंह के सिवा?बॉर्डर पर लोटता-फड़फड़ाता उसका शरीर,और, मेरे कानों में बजता उसका सतत विलापमुझे जीने नहीं देता।मेरे आँसू?आँसुओं से गीली मेरी चीख़ेंउसे मरने नहीं देतीं।यह और बात है कि उसे लिखने वाले कोमरे हुए भी सदियाँ बीत चुकी हैं।लेकिन मंटो के मरने सेटोबा टेक सिंह तो मरा नहीं करते न!टोबा टेक सिंहप्यार के बहाने घरऔरघर के बहाने प्यार ढूँढ़तीहर टूटी लड़की के दिल में ज़िंदा रहता है—तब तकजब तक वह लड़कीअपनी हत्या की नोक ख़ुद ढूँढ़ती हुईअधमरी नहीं हो जाती।रिहाईजब दुनिया देती है दुःखतब सोचती क्यों नहींकि इतने दुखों से मर जाता है इंसान?थमता ही नहीं हैस्त्री पर उठाए गए हिंसक हाथोंनिर्वासन से पहले ही जला दिए गए घरोंपुरानी बीमारियों से मर रहे बच्चोंऔर टूटे हुए प्रेमों का सिलसिला।सिल्विया प्लाथ के पासकम से कम एक तरह काप्रतिशोध तो था।लेकिन माफ़ी और सिर्फ़ माफ़ी में डूबीइस भारतीय लड़की के पासतो प्रतिशोध भी नहीं।सारा दिन रोती रही है वहन ही दुःख कम हुआऔर न हीमन में बदले की कोई भावना ही जागी।हर रोज़ उसकी नसों मेंअँधेरा भरती है दुनियायूँ भीअँधेरे में मरी पड़ी लड़की के लिएमृत्य की चाह कोई विकल्प नहींसिर्फ़ एक रिहाई भर है।जन्मने के ख़िलाफ़पुनर्जन्म के उस सपने पर विश्वास करना चाहती हूँजिसमें देखा कि मैं,हिमालय की सदियों पुरानी पर्वत-शृंखला परएक नया पहाड़ बन कर जन्मी हूँ।पुराने जन्म के सारे दुःखजो घिसटते-घिसटते मेरे साथइस नए जन्म तक आ पहुँचे हैं,उन्हें मैंने,एक बर्फ़ीली नदी के रूप मेंअपने सीने से उतार करबहा दिया है।लेकिन,एक बार जो मुझसे फूटी तोदुखों की यह नदी कभी सूखी ही नहीं!पहाड़ जितना मज़बूत बनकर भीजब दुखों से मुक्ति नहीं मिलतीतो आख़िर हम संसार मेंमज़बूती को मूल्य मानते ही क्यों हैं?शायद श्रेष्ठ सिर्फ़ मृत्यु है।क्योंकि,उसके पहाड़ मेंजन्म की पीड़ा ही नहीं।इच्छा-मृत्युमित्रता में मिला एक पत्थर भी जबपूरे पहाड़ का भार लिए गिरता है मेरे कंधों पर,तो उठाती हूँ पूरा पहाड़,रियायत नहीं माँगती।टँगी रहती हूँ,उस तलवार की लपलपाती नोक परजिस पर बरसों टाँगे रखता है प्रेम।रियायत नहीं माँगती।आख़िर यही तो चाहा था मैंने!जिसको मित्र मानूँ,वही मुझे नष्ट करे।जिसको प्यार करूँ,वही मेरी मृत्यु का कारण बने।ख़ुद मरना तो सरल था,लेकिन प्रेम में ‘मारे जाने’से ज़्यादा वांछितप्रेम की परिणितिऔर क्या हो सकती थी?प्रेम मेरी हत्या कैसे करेगा?प्रेम मेरी हत्या कैसे करेगा?कैसे हो पाएगा वहमेरी उस गर्दन पर चाक़ू रख पाने जितना निष्ठुरजिस गर्दन को उसने सालोंअपनी साँस की धुरी माना था?मुझे हमेशा से सिर्फ़ इतना ही जानना था किप्रेम मेरी हत्या कैसे करेगा?कैसे घसीट पाएगा वह मुझे हर रोज़एक नए अँधेरे में?कैसे ज़ख़्मी करेगा बार-बारदोस्ती में आगे बढ़े मेरे हाथ?क्या प्रेम की मृत्यु में डूबते हीमृत्यु का स्पर्श बदल जाता है?जिज्ञासा हमेशा जीवन पर भारी पड़ी।आख़िर कितना क्रूर हो सकता है प्रेम?यही जानने के लिएमैंने हमेशा सिर्फ़ प्रेम के हाथों मरना चाहा।",
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दर्द - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/dard-sarul-bagla-kavita?sort= | [
"एकये सब कौन है जो हिसाब माँग रहे हैं कह दो कि जाएँमेरी आँखों में अभी इतनी आग नहीं हैकि जला डालूँ सब कुछ।दोएक हाथ ठंडा लोहा छूता हैजब गर्म सलाख़ धीरे-धीरे उतर रही हैदिल में एक इंच हर घंटे की रफ़्तार से या किसी और रफ़्तार सेइतनी हैरत मैं मरता हुआ मैं पहला इंसान हूँ।तीनतो यह था कि मुझे नींद आ सकती थीफिर भी मैं एक उम्र सो नहीं पायामर जाना बहुत आसान था मेरे लिएबशर्ते मेरी दिमाग़ी हालत जैसी है वैसी ही रहेफिर भी मैंने ख़ुद को बचाए रखा ख़ुद को ख़ुद के हाथों क़त्ल हुए जाने सेफिर भी ख़ाइफ़ रहता हूँ ऐसी अनमनी सुबहों सेजिनमें ख़ुद को कोसने से ख़ुद को नहीं रोक पाता हूँ।चारमैंने भी एक शख़्स को लिबास की तरह पहनाफिर उसे उतारते हुए उतरने लगी मेरी खालमैंने एक शख़्स को पानी की तरह पियाफिर उसे निकालने का ख़याल करते हुएमेरे शरीर का लहू निकलता हैमैंने एक शख़्स को सुबह के लाल सूरज की तरह देखाफिर बीनाई जाती है उसे न देखते हुए एक शख़्स मेरे बदन के रास्तों पर चलाबदमस्त मुसाफ़िर की तरहरास्तों की लकीर मिटाता हुआ मैं जंगल होता जा रहा हूँ— पुराने रास्ते ढूँढ़ते हुए। पाँचएक हद से गुज़र कर भी दुख ने कोई हद नहीं मानी एक आँसू से आगे बढ़ा तो आँसुओं ने कभी हस्र का ख़याल आने ही नहीं दियाख़ुशी ने व्यर्थता देख कर भीकुछ नहीं समझाभूलना अच्छी बात नहीं थी मेरे लिएकमोबेश एक अभिशाप से बिल्कुल भी कम नहीं रही यह आदत।",
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दुनिया से अकेली लड़ती लड़की - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/duniya-se-akeli-ladti-ladki-nikhil-anand-giri-kavita?sort= | [
"एक लड़की अकेली है जैसे",
"पत्थरों के हज़ारों देवता और एक अकेला याचक",
"सैकड़ों सड़कें सुनसान, गाड़ियाँ, धुएँ और एक विशाल पेड़",
"हज़ारों मील सोया समुद्र और एक गुस्ताख़ कंकड़",
"इन सबसे बहत-बहुत अकेली है एक लड़की",
"मुकेश के हज़ार दर्द भरे गानों से भी ज़्यादा",
"उस लड़की से उनको बात करनी चाहिए",
"फ़िलहाल जो सेमिनारों में व्यस्त हैं",
"स्त्रीवादी संदर्भों की सारगर्भित व्याख्याओं में",
"आँचल, दूध, पानी की बोरिंग कहानियों में",
"उनको बात करनी चाहिए",
"जो ज़माने को दो गालियाँ देकर ठीक कर देते हैं",
"क्रांति की तमाम पौराणिक कथाओं में",
"ख़ुद को नायक फिट करते हुए",
"जो 'ब्रेक के बाद दुनिया बदल जाएगी'",
"इस सूत्र में भरोसा रखते हैं",
"उन्हें ब्रेक भर का समय देना चाहिए लड़की के लिए।",
"लड़की के पास इतना भर ही है समय",
"जिसमें ठहरकर ली जा सकती है",
"एक ग़ुस्से भरी साँस",
"और मौन को पहुँचाया जा सकता है",
"उस अकेली लड़की के पास",
"वह आपके-हमारे बीच की ही लड़की है",
"थोड़ा-थोड़ा घूरा था जिसे सबने",
"पीठ पीछे गिनाए थे उसके नाजायज़ रिश्ते",
"मजबूरन जिसे करनी पड़ी थी आत्महत्या",
"आपकी दुआओं से बची हुई है आज भी",
"एक लड़की एफ़आईआर से लड़ रही है",
"एफ़आईआर से लड़ते-लड़ते",
"अचानक वह दुनिया से लड़ने लगी है",
"दुनिया उसे हरा देगी देखना",
"जो उसके ख़िलाफ़ गवाही देंगे",
"उसमें भी कई लड़कियाँ हैं",
"जो आज मजबूर हैं",
"कल अकेली पड़ जाएँगी...",
"ek laDki akeli hai jaise",
"patthron ke hazaron dewta aur ek akela yachak",
"saikDon saDken sunsan, gaDiyan, dhuen aur ek wishal peD",
"hazaron meel soya samudr aur ek gustakh kankaD",
"in sabse baht bahut akeli hai ek laDki",
"mukesh ke hazar dard bhare ganon se bhi zyada",
"us laDki se unko baat karni chahiye",
"filaha jo seminaron mein wyast hain",
"striwadi sandarbhon ki saragarbhit wyakhyaon mein",
"anchal, doodh, pani ki boring kahaniyon mein",
"unko baat karni chahiye",
"jo zamane ko do galiyan dekar theek kar dete hain",
"kranti ki tamam pauranaik kathaon mein",
"khu ko nayak phit karte hue",
"jo break ke baad duniya badal jayegi",
"is sootr mein bharosa rakhte hain",
"unhen break bhar ka samay dena chahiye laDki ke liye",
"laDki ke pas itna bhar hi hai samay",
"jismen thaharkar li ja sakti hai",
"ek ghusse bhari sans",
"aur maun ko pahunchaya ja sakta hai",
"us akeli laDki ke pas",
"wo aapke hamare beech ki hi laDki hai",
"thoDa thoDa ghura tha jise sabne",
"peeth pichhe ginaye the uske najayaz rishte",
"majburan jise karni paDi thi atmahatya",
"apaki duaon se bachi hui hai aaj bhi",
"ek laDki efaiar se laD rahi hai",
"efaiar se laDte laDte",
"achanak wo duniya se laDne lagi hai",
"duniya use hara degi dekhana",
"jo uske khilaf gawahi denge",
"usmen bhi kai laDkiyan hain",
"jo aaj majbur hain",
"kal akeli paD jayengi",
"ek laDki akeli hai jaise",
"patthron ke hazaron dewta aur ek akela yachak",
"saikDon saDken sunsan, gaDiyan, dhuen aur ek wishal peD",
"hazaron meel soya samudr aur ek gustakh kankaD",
"in sabse baht bahut akeli hai ek laDki",
"mukesh ke hazar dard bhare ganon se bhi zyada",
"us laDki se unko baat karni chahiye",
"filaha jo seminaron mein wyast hain",
"striwadi sandarbhon ki saragarbhit wyakhyaon mein",
"anchal, doodh, pani ki boring kahaniyon mein",
"unko baat karni chahiye",
"jo zamane ko do galiyan dekar theek kar dete hain",
"kranti ki tamam pauranaik kathaon mein",
"khu ko nayak phit karte hue",
"jo break ke baad duniya badal jayegi",
"is sootr mein bharosa rakhte hain",
"unhen break bhar ka samay dena chahiye laDki ke liye",
"laDki ke pas itna bhar hi hai samay",
"jismen thaharkar li ja sakti hai",
"ek ghusse bhari sans",
"aur maun ko pahunchaya ja sakta hai",
"us akeli laDki ke pas",
"wo aapke hamare beech ki hi laDki hai",
"thoDa thoDa ghura tha jise sabne",
"peeth pichhe ginaye the uske najayaz rishte",
"majburan jise karni paDi thi atmahatya",
"apaki duaon se bachi hui hai aaj bhi",
"ek laDki efaiar se laD rahi hai",
"efaiar se laDte laDte",
"achanak wo duniya se laDne lagi hai",
"duniya use hara degi dekhana",
"jo uske khilaf gawahi denge",
"usmen bhi kai laDkiyan hain",
"jo aaj majbur hain",
"kal akeli paD jayengi",
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प्रतिज्ञा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/prtigya-kushagra-adwaita-kavita-16?sort= | [
"इस भाषा के घर में",
"जब-जैसे जी चाहे",
"आ धमकने की इजाज़त है",
"लेकिन मैं हर बार",
"साँकल खटखटाकर प्रवेश करूँगा",
"इस भाषा के सुंदर-सुवासित एकांत में",
"अयाचित विघ्न नहीं बनूँगा",
"जितना माँ-बाप से न रहा",
"न किसी प्रेयसी से,",
"इस भरे-पूरे संसार में किसी से भी नहीं",
"इस भाषा से उतना ईमानदार रहूँगा",
"इस भाषा में रोऊँगा आँसू,",
"इस भाषा में बोऊँगा आँसू",
"इस भाषा में गूँजेगी मेरी सुबक देर तलक",
"पाप धोने होंगे तो गंगा में लगाऊँगा डुबकी",
"इस भाषा में डूबते बखत",
"नहीं रखूँगा पाप-मुक्ति की ओछी कामना",
"जिन दिनों इस भाषा से",
"बरतनी पड़ेगी",
"एक संयत दूरी",
"उन रातों को घर आकर",
"टेबल लैंप की मद्धम रोशनी में",
"कोरे काग़ज़ों के सामने",
"इस भाषा से माफ़ी माँगूँगा",
"जब आएँगे आत्महत्या के उत्पाती विचार",
"किसी दूसरी भाषा में लिखूँगा अंतिम पत्र",
"कि सब देख भी लें मुझे मरते हुए",
"यह भाषा कैसे देखेगी!",
"is bhasha ke ghar mein",
"jab jaise ji chahe",
"a dhamakne ki ijazat hai",
"lekin main har bar",
"sankal khatakhtakar prawesh karunga",
"is bhasha ke sundar suwasit ekant mein",
"ayachit wighn nahin banunga",
"jitna man bap se na raha",
"na kisi preyasi se,",
"is bhare pure sansar mein kisi se bhi nahin",
"is bhasha se utna imanadar rahunga",
"is bhasha mein rounga ansu,",
"is bhasha mein bounga ansu",
"is bhasha mein gunjegi meri subak der talak",
"pap dhone honge to ganga mein lagaunga Dupki",
"is bhasha mein Dubte bakhat",
"nahin rakhunga pap mukti ki ochhi kamna",
"jin dinon is bhasha se",
"baratni paDegi",
"ek sanyat duri",
"un raton ko ghar aakar",
"table lamp ki maddham roshni mein",
"kore kaghzon ke samne",
"is bhasha se mafi mangunga",
"jab ayenge atmahatya ke utpati wichar",
"kisi dusri bhasha mein likhunga antim patr",
"ki sab dekh bhi len mujhe marte hue",
"ye bhasha kaise dekhegi!",
"is bhasha ke ghar mein",
"jab jaise ji chahe",
"a dhamakne ki ijazat hai",
"lekin main har bar",
"sankal khatakhtakar prawesh karunga",
"is bhasha ke sundar suwasit ekant mein",
"ayachit wighn nahin banunga",
"jitna man bap se na raha",
"na kisi preyasi se,",
"is bhare pure sansar mein kisi se bhi nahin",
"is bhasha se utna imanadar rahunga",
"is bhasha mein rounga ansu,",
"is bhasha mein bounga ansu",
"is bhasha mein gunjegi meri subak der talak",
"pap dhone honge to ganga mein lagaunga Dupki",
"is bhasha mein Dubte bakhat",
"nahin rakhunga pap mukti ki ochhi kamna",
"jin dinon is bhasha se",
"baratni paDegi",
"ek sanyat duri",
"un raton ko ghar aakar",
"table lamp ki maddham roshni mein",
"kore kaghzon ke samne",
"is bhasha se mafi mangunga",
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उम्र - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/umr-sarul-bagla-kavita?sort= | [
"जिसके पास वक़्त कम हो",
"और जीने के लिए कुछ ज़्यादा नहीं हो",
"उसे उम्र एक वाजिब सज़ा है",
"जो किसी भी निर्दोष को दी जा सकती है",
"पेड़ों से पूछो तो वे बताएँगे",
"काठ हो जाना किसे कहते हैं?",
"और सूखी हुई संवेदनाएँ",
"किस तरह ज्वर पर आती हैं?",
"jiske pas waqt kam ho",
"aur jine ke liye kuch zyada nahin ho",
"use umr ek wajib saza hai",
"jo kisi bhi nirdosh ko di ja sakti hai",
"peDon se puchho to we batayenge",
"kath ho jana kise kahte hain?",
"aur sukhi hui sanwednayen",
"kis tarah jwar par aati hain?",
"jiske pas waqt kam ho",
"aur jine ke liye kuch zyada nahin ho",
"use umr ek wajib saza hai",
"jo kisi bhi nirdosh ko di ja sakti hai",
"peDon se puchho to we batayenge",
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अभिनय क्या आत्महत्या है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/abhinay-kya-atmahatya-hai-nand-kishore-acharya-kavita?sort= | [
"विस्मित देखते हैं लोग",
"मुझको अन्य होते हुए—",
"और रेशा-रेशा मर रहा हूँ मैं",
"अनुपल जन्म लेता हुआ :",
"यही तो होता है हर बार।",
"अभिनय क्या आत्महत्या है",
"नए जन्म के लिए",
"जिसमें अपने को ख़ुद",
"जनता हूँ मैं—",
"जनकर मार देता हूँ!",
"vismit dekhte hain log",
"mujh ko any hote hue—",
"aur resha resha mar raha hoon main",
"anupal janm leta hua ha",
"yahi to hota hai har baar.",
"abhinay kya atmahatya hai",
"nae janm ke liye",
"jismen apne ko khu",
"janta hoon main—",
"jankar maar deta hoon!",
"vismit dekhte hain log",
"mujh ko any hote hue—",
"aur resha resha mar raha hoon main",
"anupal janm leta hua ha",
"yahi to hota hai har baar.",
"abhinay kya atmahatya hai",
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"jismen apne ko khu",
"janta hoon main—",
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राजेश शर्मा की आत्महत्या - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/rajesh-sharma-ki-atmahatya-leeladhar-jagudi-kavita-3?sort= | [
"लखनऊ में राजेश की आत्महत्या से पहले",
"हम बहुत सारे कवि-लेखक",
"पीने-खाने के बाद दरी पर चादर बिछाकर लेटे",
"और गपियाते रहे पूरी रात",
"हुसैनगंज वाले ग्यारहवीं मंज़िल के फ़्लैट में",
"जिसे छोड़कर",
"गोमती नगर में उसने शानदार घर बनवा लिया था बाद में",
"एक दिन गोमती नगर वाले शानदार घर को भी छोड़कर",
"अपना साफ़-सुथरा आकर्षक शरीर लेकर",
"चिड़ियाघर और सिविल अस्पताल के बीच",
"सूचना-विभाग को छोड़कर",
"वही राजेश शर्मा",
"हुसैनगंज वाली ग्यारहवीं मंज़िल पर जा पहुँचा",
"जहाँ दरी पर चादर बिछाकर",
"अच्छे साहित्य से पैदा हुए अच्छे समाज की बाते की थीं",
"हमने",
"लिफ़्ट पर चढ़कर गया वह",
"कूदकर नीचे आने के लिए",
"जब दूसरे वह ऊँचाई नहीं देते",
"जहाँ आप ख़ुद का घंटाघर बनाए हुए होते हैं",
"तो ऊँचाई आपको ढकेल देती है",
"अपने को सबसे अलग समझने की",
"यह अलग ही कोई चोट है",
"जो ख़ुद पर ख़ुद ही मारनी पड़ती है राजेश की तरह",
"आत्महंता पद्धति को बहुत बार बहुत से कवियों ने",
"आज़माया है डिक्टेटर की तरह",
"लेकिन उनकी कविता की भाषा ही आख़िर काम आई",
"जो उन्होंने जीवन को चोट पहुँचाने से पहले",
"लोक से अपने संवाद के लिए रची थी",
"ज़िंदगी बहुत-सी चीज़ों के काम आती है",
"इसलिए आत्महत्या के भी काम आई एक दिन",
"जैसे अपनी मृत्यु ही सारी चीज़ों पर अंतिम पर्दा हो।",
"lucknow mein rajesh ki atmahatya se pahle",
"hum bahut sare kawi lekhak",
"pine khane ke baad dari par chadar bichhakar lete",
"aur gapiyate rahe puri raat",
"husainganj wale gyarahwin manzil ke flat mein",
"jise chhoDkar",
"gomti nagar mein usne shanadar ghar banwa liya tha baad mein",
"ek din gomti nagar wale shanadar ghar ko bhi chhoDkar",
"apna saf suthra akarshak sharir lekar",
"chiDiyaghar aur siwil aspatal ke beech",
"suchana wibhag ko chhoDkar",
"wahi rajesh sharma",
"husainganj wali gyarahwin manzil par ja pahuncha",
"jahan dari par chadar bichhakar",
"achchhe sahity se paida hue achchhe samaj ki bate ki theen",
"hamne",
"lift par chaDhkar gaya wo",
"kudkar niche aane ke liye",
"jab dusre wo unchai nahin dete",
"jahan aap khu ka ghantaghar banaye hue hote hain",
"to unchai aapko Dhakel deti hai",
"apne ko sabse alag samajhne ki",
"ye alag hi koi chot hai",
"jo khu par khu hi marni paDti hai rajesh ki tarah",
"atmhanta paddhati ko bahut bar bahut se kawiyon ne",
"azmaya hai dictator ki tarah",
"lekin unki kawita ki bhasha hi akhir kaam i",
"jo unhonne jiwan ko chot pahunchane se pahle",
"lok se apne sanwad ke liye rachi thi",
"zindagi bahut si chizon ke kaam aati hai",
"isliye atmahatya ke bhi kaam i ek din",
"jaise apni mirtyu hi sari chizon par antim parda ho",
"lucknow mein rajesh ki atmahatya se pahle",
"hum bahut sare kawi lekhak",
"pine khane ke baad dari par chadar bichhakar lete",
"aur gapiyate rahe puri raat",
"husainganj wale gyarahwin manzil ke flat mein",
"jise chhoDkar",
"gomti nagar mein usne shanadar ghar banwa liya tha baad mein",
"ek din gomti nagar wale shanadar ghar ko bhi chhoDkar",
"apna saf suthra akarshak sharir lekar",
"chiDiyaghar aur siwil aspatal ke beech",
"suchana wibhag ko chhoDkar",
"wahi rajesh sharma",
"husainganj wali gyarahwin manzil par ja pahuncha",
"jahan dari par chadar bichhakar",
"achchhe sahity se paida hue achchhe samaj ki bate ki theen",
"hamne",
"lift par chaDhkar gaya wo",
"kudkar niche aane ke liye",
"jab dusre wo unchai nahin dete",
"jahan aap khu ka ghantaghar banaye hue hote hain",
"to unchai aapko Dhakel deti hai",
"apne ko sabse alag samajhne ki",
"ye alag hi koi chot hai",
"jo khu par khu hi marni paDti hai rajesh ki tarah",
"atmhanta paddhati ko bahut bar bahut se kawiyon ne",
"azmaya hai dictator ki tarah",
"lekin unki kawita ki bhasha hi akhir kaam i",
"jo unhonne jiwan ko chot pahunchane se pahle",
"lok se apne sanwad ke liye rachi thi",
"zindagi bahut si chizon ke kaam aati hai",
"isliye atmahatya ke bhi kaam i ek din",
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आत्महत्या से पहले एक क़र्ज़िया का बयान - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/atmahatya-se-pahle-ek-qarziya-ka-byan-mukesh-nirvikar-kavita?sort= | [
"क़र्ज़ में आकंठ डूबे हुए",
"उसने तड़पकर चाहा",
"काश! सारी समस्याओं के समाधान",
"मुद्रा के रास्ते न जाते!",
"काश! वे जाते उसकी हाड़-तोड़ मेहनत की राह,",
"काम के प्रति उसके समर्पण की राह,",
"उसकी उगाई फ़सल की राह",
"उसकी अपनाई नैतिकता और सदाचार की राह",
"उसके द्वारा की गईं पूजाओं और प्रार्थनाओं की राह",
"किंतु वे जा रहे हैं",
"(उसने आह भरी)",
"मुद्रा के रास्ते",
"साहूकार की बही में",
"उसके जीवन को क़ैद करने के लिए",
"काश! धरती के गर्भ में ही छुपा रह जाता कोई बीज",
"उसकी समस्याओं के समाधान का",
"कोई रूखड़ी जिसे चबाकर पा लेता वह निजात",
"क़र्ज़ की समस्या से",
"जैसे पा लेता है व्याधियों से मुक्ति",
"घरेलू नुस्ख़ों को अपनाकर",
"वह आहत था यह सोचकर कि",
"आख़िर क्यों मुद्रा में उलझकर",
"रह गई हैं उसकी साँसें?",
"आख़िर क्यों जकड़ लिया है।",
"मुद्रा ने उसका जीवन?",
"इस क़दर कि जिसके पास नहीं है मुद्रा",
"उसके पास नहीं बचता है जीवन",
"उसे करनी पड़ती है आत्महत्या",
"जबकि धरती पर क़तई निःशुल्क हैं",
"देह के संजीवनी तत्त्व",
"हवा-पानी-धूप-आकाश-मिट्टी",
"मुद्रा के अभाव में",
"हल की मूँठ पकड़े किसान के पैरों से",
"निकल जाती है उसकी ज़मीन",
"खेत में उसकी उगाई फ़सल भी नहीं रह जाती है",
"उसकी अपनी",
"क्या हम आँकड़ों (मौद्रिक आँकड़ों) की गिरफ़्त में",
"फँस गए हैं बुरी तरह",
"ईश्वर के साम्राज्य से परे!",
"उसने महसूस किया और बुदबुदाया—",
"कविता के लिए मैं भले ही प्रिय हूँ",
"किंतु मुद्रा के लिए मैं निरा-अपराधी हूँ",
"स्वाभाविक है कि संसार और समाज के लिए भी",
"मुझे खेद है कि कविता का क़त्ल करके",
"जो कि संवेदना की वाहक है,",
"कमानी थी मुझे मुद्रा, निष्ठुरतापूर्वक",
"जो मुझसे हो न सका",
"किंतु कविता में मात्र संवेदना थी",
"कविता के पास नहीं थी रोटी!",
"मुद्रा के अभाव में क़र्ज़ से दबे हुए",
"अब तो उसे मृत्यु ही भली लगती है।",
"जब ज़मीर धिक्कारता है",
"समाज नकारता है",
"चैन पाते हैं उसके आकुल-व्याकुल प्राण",
"केवल मृत्यु की कल्पना में",
"उसने याद किया कि",
"वह भी हँसना चाहता था",
"सच्ची हँसी",
"लेकिन उसकी हँसी में",
"क़र्ज़ की लाचारी थी",
"मुद्रा के अभाव में",
"सर्वथा विकल्पहीन पाया उसने",
"ख़ुद को",
"उसने महसूस किया कि",
"क़र्ज़दार इंसान को",
"नहीं रह जाता है हक़",
"इस दुनिया में",
"पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के",
"उपभोग का",
"धरती पर मुद्रा में बिकने लगे हैं",
"जीवन के तमाम अवयव!",
"देह के कलेवर में",
"छुपे रहो तुम",
"कायरतापूर्वक",
"डरपोक मेमने की तरह!—",
"उसने धिक्कारा",
"मुद्रा के भंडारों में छुपे लोगों को",
"और जीवन को निहारा",
"भरपूर हसरत से",
"वह सचमुच जीना चाहता था!",
"यह दुनिया कितनी तंग और विकल्पहीन है,",
"बेगानी भी",
"यह किसी क़र्ज़दार इंसान से पूछो!—",
"हम ज़िंदा लोगों के लिए",
"मरने से पहले",
"यह उसका अंतिम बयान था!",
"qarz mein akanth Dube hue",
"usne taDap kar chaha",
"kash! sari samasyaon ke samadhan",
"mudra ke raste na jate!",
"kash! we jate uski haD toD mehnat ki rah,",
"kaam ke prati uske samarpan ki rah,",
"uski ugai fasal ki rah",
"uski apnai naitikta aur sadachar ki rah",
"uske dwara ki gain pujaon aur prarthnaon ki rah",
"kintu we ja rahe hain",
"(usne aah bhari)",
"mudra ke raste",
"sahukar ki bahi mein",
"uske jiwan ko qaid karne ke liye",
"kash! dharti ke garbh mein hi chhupa rah jata koi beej",
"uski samasyaon ke samadhan ka",
"koi rukhDi jise chabakar pa leta wo nijat",
"qarz ki samasya se",
"jaise pa leta hai wyadhiyon se mukti",
"gharelu nuskhon ko apnakar",
"wo aahat tha ye sochkar ki",
"akhir kyon mudra mein ulajhkar",
"rah gai hain uski sansen?",
"akhir kyon jakaD liya hai",
"mudra ne uska jiwan?",
"is qadar ki jiske pas nahin hai mudra",
"uske pas nahin bachta hai jiwan",
"use karni paDti hai atmahatya",
"jabki dharti par qati niःshulk hain deh ke sanjiwni tatw",
"hawa pani dhoop akash mitti",
"mudra ke abhaw mein",
"hal ki moonth pakDe kisan ke pairon se",
"nikal jati hai uski zamin",
"khet mein uski ugai fasal bhi nahin rah jati hai",
"uski apni",
"kya hum ankaDon (maudrik ankaDon) ki giraft mein",
"phans gaye hain buri tarah",
"ishwar ke samrajy se pare!",
"usne mahsus kiya aur budabudaya—",
"kawita ke liye main bhale hi priy hoon",
"kintu mudra ke liye main nira apradhi hoon",
"swabhawik hai ki sansar aur samaj ke liye bhi",
"mujhe khed hai ki kawita ka qatl karke",
"jo ki sanwedna ki wahak hai,",
"kamani thi mujhe mudra, nishthurtapurwak",
"jo mujhse ho na saka",
"kintu kawita mein matr sanwedna thi",
"kawita ke pas nahin thi roti!",
"mudra ke abhaw mein qarz se dabe hue",
"ab to use mirtyu hi bhali lagti hai",
"jab zamir dhikkarta hai",
"samaj nakarta hai",
"chain pate hain uske aakul wyakul paran",
"kewal mirtyu ki kalpana mein",
"usne yaad kiya ki",
"wo bhi hansna chahta tha",
"sachchi hansi",
"lekin uski hansi mein",
"qarz ki lachari thi",
"mudra ke abhaw mein",
"sarwatha wikalphin paya usne",
"khu ko",
"usne mahsus kiya ki",
"qarzdar insan ko",
"nahin rah jata hai haq",
"is duniya mein",
"prithwi, jal, wayu, agni aur akash ke",
"upbhog ka",
"dharti par mudra mein bikne lage hain",
"jiwan ke tamam awyaw!",
"deh ke kalewar mein",
"chhupe raho tum",
"kayartapurwak",
"Darpok memne ki tarah!—",
"usne dhikkara",
"mudra ke bhanDaron mein chhupe logon ko",
"aur jiwan ko nihara",
"bharpur hasrat se",
"wo sachmuch jina chahta tha!",
"yah duniya kitni tang aur wikalphin hai, begani bhi",
"ye kisi qarzdar insan se puchho!—",
"hum zinda logon ke liye",
"marne se pahle",
"ye uska antim byan tha!",
"qarz mein akanth Dube hue",
"usne taDap kar chaha",
"kash! sari samasyaon ke samadhan",
"mudra ke raste na jate!",
"kash! we jate uski haD toD mehnat ki rah,",
"kaam ke prati uske samarpan ki rah,",
"uski ugai fasal ki rah",
"uski apnai naitikta aur sadachar ki rah",
"uske dwara ki gain pujaon aur prarthnaon ki rah",
"kintu we ja rahe hain",
"(usne aah bhari)",
"mudra ke raste",
"sahukar ki bahi mein",
"uske jiwan ko qaid karne ke liye",
"kash! dharti ke garbh mein hi chhupa rah jata koi beej",
"uski samasyaon ke samadhan ka",
"koi rukhDi jise chabakar pa leta wo nijat",
"qarz ki samasya se",
"jaise pa leta hai wyadhiyon se mukti",
"gharelu nuskhon ko apnakar",
"wo aahat tha ye sochkar ki",
"akhir kyon mudra mein ulajhkar",
"rah gai hain uski sansen?",
"akhir kyon jakaD liya hai",
"mudra ne uska jiwan?",
"is qadar ki jiske pas nahin hai mudra",
"uske pas nahin bachta hai jiwan",
"use karni paDti hai atmahatya",
"jabki dharti par qati niःshulk hain deh ke sanjiwni tatw",
"hawa pani dhoop akash mitti",
"mudra ke abhaw mein",
"hal ki moonth pakDe kisan ke pairon se",
"nikal jati hai uski zamin",
"khet mein uski ugai fasal bhi nahin rah jati hai",
"uski apni",
"kya hum ankaDon (maudrik ankaDon) ki giraft mein",
"phans gaye hain buri tarah",
"ishwar ke samrajy se pare!",
"usne mahsus kiya aur budabudaya—",
"kawita ke liye main bhale hi priy hoon",
"kintu mudra ke liye main nira apradhi hoon",
"swabhawik hai ki sansar aur samaj ke liye bhi",
"mujhe khed hai ki kawita ka qatl karke",
"jo ki sanwedna ki wahak hai,",
"kamani thi mujhe mudra, nishthurtapurwak",
"jo mujhse ho na saka",
"kintu kawita mein matr sanwedna thi",
"kawita ke pas nahin thi roti!",
"mudra ke abhaw mein qarz se dabe hue",
"ab to use mirtyu hi bhali lagti hai",
"jab zamir dhikkarta hai",
"samaj nakarta hai",
"chain pate hain uske aakul wyakul paran",
"kewal mirtyu ki kalpana mein",
"usne yaad kiya ki",
"wo bhi hansna chahta tha",
"sachchi hansi",
"lekin uski hansi mein",
"qarz ki lachari thi",
"mudra ke abhaw mein",
"sarwatha wikalphin paya usne",
"khu ko",
"usne mahsus kiya ki",
"qarzdar insan ko",
"nahin rah jata hai haq",
"is duniya mein",
"prithwi, jal, wayu, agni aur akash ke",
"upbhog ka",
"dharti par mudra mein bikne lage hain",
"jiwan ke tamam awyaw!",
"deh ke kalewar mein",
"chhupe raho tum",
"kayartapurwak",
"Darpok memne ki tarah!—",
"usne dhikkara",
"mudra ke bhanDaron mein chhupe logon ko",
"aur jiwan ko nihara",
"bharpur hasrat se",
"wo sachmuch jina chahta tha!",
"yah duniya kitni tang aur wikalphin hai, begani bhi",
"ye kisi qarzdar insan se puchho!—",
"hum zinda logon ke liye",
"marne se pahle",
"ye uska antim byan tha!",
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आत्महत्या के विरुद्ध - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/atmahatya-ke-wiruddh-raghuvir-sahay-kavita?sort= | [
"समय आ गया है जब तब कहता है संपादकीय",
"हर बार दस बरस पहले मैं कह चुका होता हूँ कि समय आ गया है।",
"एक ग़रीबी, ऊबी, पीली, रोशनी, बीवी",
"रोशनी, धुंध, जाला, यमन, हरमुनियम अदृश्य",
"डब्बाबंद शोर",
"गाती गला भींच आकाशवाणी",
"अंत में टडंग।",
"अकादमी की महापरिषद की अनंत बैठक",
"अदबदाकर निश्चित कर देती है जब कुछ और नहीं पाती",
"तो ऊब का स्तर",
"एक सीली उँगली का निशान डाल दस्तख़त कर",
"तले हुए नाश्ते की तेलौस मेज़ पर।",
"नगरनिगम ने त्योहार जो मनाया तो जनसभा की",
"मंथर मटकता मंत्री मुसद्दीलाल महंत मंच पर चढ़ा",
"छाती पर जनता की",
"वसंती रंग जानते थे न पंसारी न मुसद्दीलाल",
"दोनों ने राय दी",
"कंधे से कंधा भिड़ा ले चलो",
"पालकी।",
"कल से ज़्यादा लोग पास मँडराते हैं",
"ज़रूरत से ज़्यादा आस-पास ज़रूरत से ज़्यादा नीरोग",
"शक से कि व्यर्थ है जो मैं कर रहा हूँ",
"क्योंकि जो कह रहा हूँ उसमें अर्थ है।",
"कल मैंने उसे देखा लाख चेहरों में एक वह चेहरा",
"कुढ़ता हुआ और उलझा हुआ वह उदास कितना बोदा",
"वही था नाटक का मुख्य पात्र",
"पर उसकी ठस पीठ पर मैं हाथ रख न सका",
"वह बहुत चिकनी थी।",
"लौट आओ फिर उसी खाते-पीते स्वर्ग में",
"पिटे हुए नेता, पिटे अनुचर बुलाते हैं",
"मार फड़फड़ाते हैं पंख साल दो साल गले बँधी घंटियाँ",
"पढ़ी-लिखी गर्दनें बजाती हैं फिर उड़ जाता है विचार",
"हम रह जाते हैं अधेड़",
"कुछ होगा कुछ होगा अगर मैं बोलूँगा",
"न टूटे न टूटे तिलिस्म सत्ता का मेरे अंदर एक कायर टूटेगा टूट",
"मेरे मन टूट एक बार सही तरह",
"अच्छी तरह टूट मत झूठमूठ ऊब मत रूठ",
"मत डूब सिर्फ टूट जैसे कि परसों के बाद",
"वह आया बैठ गया आदतन एक बहस छेड़कर",
"गया एकाएक बाहर ज़ोरों से एक नक़ली दरवाज़ा",
"भेड़कर",
"दर्द दर्द मैंने कहा क्या अब नहीं होगा",
"हर दिन मनुष्य से एक दर्जा नीचे रहने का दर्द",
"गरजा मुस्टंडा विचारक—समय आ गया है",
"कि रामलाल कुचला हुआ पाँव जो घसीटकर",
"चलता है अर्थहीन हो जाए।",
"छुओ",
"मेरे बच्चे का मुँह",
"गाल नहीं जैसा विज्ञापन में छपा",
"ओंठ नहीं",
"मुँह",
"पता चला जान का शोर डर कोई लगा",
"नहीं—बोला मेरा भाई मुझे पाँव-तले",
"रौंदकर, अंग्रेज़ी।",
"कितना आसान है पागल हो जाना",
"और भी जब उस पर इनाम मिलता है।",
"नक़ली दरवाज़े पीटते हैं जवान हाथों को",
"काम सर को आराम मिलता है : दूर",
"राजधानी से कोई कस्बा दुपहर बाद छटपटाता है",
"एक फटा कोट एक हिलती चौकी एक लालटेन",
"दोनों, बाप मिस्तरी, और बीस बरस का नरेन",
"दोनों पहले से जानते हैं पेंच की मरी हुई चूड़ियाँ",
"नेहरू-युग के औज़ारों को मुसद्दीलाल की सबसे बड़ी देन",
"अस्पताल में मरीज़ छोड़कर आ नहीं सकता तीमारदार",
"दूसरे दिन कौन बताएगा कि वह कहाँ गया",
"निष्कासित होते हुए मैंने उसे देखा था",
"जयपुर-अधिवेशन जब समेटा जा रहा था",
"जो मजूर लगे हुए थे कुर्सी ढोने में",
"उन्होंने देखा एक कोने में बैठा है",
"अजय अपमानित",
"वह उसे छोड़ गए",
"कुर्सी को",
"सन्नाटा छा गया",
"कितना आसान है नाम लिखा लेना",
"मरते मनुष्य के बारे में क्या करूँ क्या करूँ मरते मनुष्य का",
"अंतरंग परिषद से पूछकर तय करना कितना",
"आसान है कितनी दिलचस्प है नेहरू की",
"आशंसा पाटिल की भर्त्सना की कथा",
"कितनी घुटन के अंदर घुटन के",
"अंदर घुटन से कितनी सहज मुक्ति",
"कितना आसान है रख लेना अपने पास अपना वोट",
"क्योंकि प्रतिद्वंद्वी अयोग्य है",
"अत्याचारी हत्या किए जाए जब तक कि स्वर्णधूलि",
"स्वर्णशिखर से आकर आत्मा के स्वर्णखंड",
"किए जाए",
"गोल शब्दकोश में अमोल बोल तुतलाते",
"भीमकाय भाषाविद हाँफते डकारते हँकाते",
"अँगरेज़ी की अवध्य गाय",
"घंटा घनघनाते पुजारी जयजयकार",
"सरकार से क़रार ज़ारी हज़ार शब्द रोज़",
"क़ैद",
"रोज़ रोज़ एक और दर्द एक क्रोध एक बोध",
"और नापैद",
"कल पैदा करना होगा भूखी पीढ़ी को",
"आज जो अनाज पेट भरता है",
"लो हम चले यह रक्खे हैं उर्वरक संबंधी",
"कुछ विचार",
"मुन्न से बोले विनोबा से जैनेंद्र दिल्ली में बहुत बड़ी लपसी",
"पकाई गई युद्ध से बदहवास",
"जनता के लिए लड़ो या न लड़ो",
"भारत पाकिस्तान अलग-अलग करो",
"फिर मरो कढ़िल कर",
"भूल जाओ",
"राजनीति",
"अध्यापक याद करो किसके आदमी हो तुम",
"याद करो विद्यार्थी तुम्हें आदमी से",
"एक दर्जा नीचे",
"किसका आदमी बनना है—दर्द?",
"दर्द, ख़ैराती अस्पताल में डॉक्टर ने कहा वह मेरा काम नहीं",
"वह मुसद्दी का है",
"वहीं भेजता है मुझे लिखकर इसे अच्छा करो",
"जो तुम बीमार हो तुमने उसे ख़ुश नहीं किया होगा",
"अब तुम बीमार हो तो उसे ख़ुश करो",
"कुछ करो",
"उसने कहा लोहिया से लोहिया ने कहा",
"कुछ करो",
"ख़ुश हुआ वह चला गया अस्पताल में भीड़",
"भौचक भीड़ धाँय धाँय",
"सौ हज़ार लाख दर्द आठ-दस क्रोध",
"तीन चार बंद बाज़ार भय भगदड़ गर्द",
"लाल",
"छाँह धूप छाँह, नहीं घोड़े बंदूक़",
"धुआँ ख़ून ख़त्म चीख़",
"कर हम जानते नहीं",
"हम क्या बनाते हैं",
"जब हम दफ़नाते हैं",
"एक हताश लड़के की लाश बार-बार",
"एक बेबसी",
"थोड़ी-सी मिटती है",
"फिर करने लगती है भाँय-भाँय",
"समय जो गया है उसके सन्नाटे में राष्ट्रपति",
"प्रकटे देते हुए सीख समाचारपत्र में छपी",
"दुधमुँही बच्ची खाती हुई भीख",
"खिसियाते कुलपति",
"मुसद्दीलाल",
"घिघियाते उपकुलपति",
"एक शब्द कहीं नहीं कि वह लड़का कौन था",
"क्या उसके बहनें थीं",
"क्या उसने रक्खे थे टीन के बक्से में अपने अजूबे",
"वह कौन-कौन से पकवान",
"खाता था",
"एक शब्द कहीं नहीं एक वह शब्द जो वह खोज",
"रहा था जब वह मारा गया।",
"सन्नाटा छा गया",
"चिट्ठी लिखते-लिखते छुटकी ने पूछा",
"'क्या दो बार लिख सकते हैं कि याद",
"आती है?'",
"‘एक बार मामी की एक बार मामा की?'",
"'नहीं, दोनों बार मामी की'",
"‘लिख सकती हो ज़रूर बेटी', मैंने कहा",
"समय आ गया है।",
"दस बरस बाद फिर पदारूढ़ होते ही",
"नेतराम, पदमुक्त होते ही न्यायाधीश",
"कहता है—समय आ गया है—",
"मौका अच्छा देखकर प्रधानमंत्री",
"पिटा हुआ दलपति अख़बारों से",
"सुंदर नौजवानों से कहता है गाता बजाता",
"हारा हुआ देश।",
"समय जो गया है",
"मेरे तलुवे से छनकर पाताल में",
"वह जानता हूँ मैं।",
"samay aa gaya hai jab tab kahta hai sampadkiy",
"har bar das baras pahle main kah chuka hota hoon ki samay aa gaya hai",
"ek gharib, ubi, pili, roshni, biwi",
"roshni, dhundh, jala, yaman, haramuniyam adrshy",
"Dabbaband shor",
"gati gala bheench akashwani",
"ant mein taDang",
"akadami ki mahaparishad ki anant baithak",
"adabdakar nishchit kar deti hai jab kuch aur nahin pati",
"to ub ka star",
"ek sili ungli ka nishan Dal dastakhat kar",
"tale hue nashte ki telaus mez par",
"nagarnigam ne tyohar jo manaya to janasbha ki",
"manthar matakta mantri musaddilal mahant manch par chaDha",
"chhati par janta ki",
"wasanti rang jante the na pansari na musaddilal",
"donon ne ray di",
"kandhe se kandha bhiDa le chalo",
"palaki",
"kal se zyada log pas manDrate hain",
"zarurat se zyada aas pas zarurat se zyada nirog",
"shak se ki byarth hai jo main kar raha hoon",
"kyonki jo kah raha hoon usmen arth hai",
"kal mainne use dekha lakh chehron mein ek wo chehra",
"kuDhta hua aur uljha hua wo udas kitna boda",
"wahi tha natk ka mukhy patr",
"par uski thas peeth par main hath rakh na saka",
"wo bahut chikni thi",
"laut aao phir usi khate pite swarg mein",
"pite hue neta, pite anuchar bulate hain",
"mar phaDphaDate hain pankh sal do sal gale bandhi ghantiyan",
"paDhi likhi gardnen bajati hain phir uD jata hai wichar",
"hum rah jate hain adheD",
"kuch hoga kuch hoga agar main bolunga",
"na tute na tute tilism satta ka mere andar ek kayer tutega toot",
"mere man toot ek bar sahi tarah",
"achchhi tarah toot mat jhuthmuth ub mat rooth",
"mat Doob sirph toot jaise ki parson ke baad",
"wo aaya baith gaya adatan ek bahs chheDkar",
"gaya ekayek bahar zoron se ek naqli darwaza",
"bheDkar",
"dard dard mainne kaha kya ab nahin hoga",
"har din manushya se ek darja niche rahne ka dard",
"garja mustanDa wicharak—samay aa gaya hai",
"ki ramlal kuchla hua panw jo ghasitkar",
"chalta hai arthahin ho jaye",
"chhuo",
"mere bachche ka munh",
"gal nahin jaisa wigyapan mein chhapa",
"onth nahin",
"munh",
"pata chala jaan ka shor Dar koi laga",
"nahin—bola mera bhai mujhe panw tale",
"raundkar, angrezi",
"kitna asan hai pagal ho jana",
"aur bhi jab us par inam milta hai",
"naqli darwaze pitte hain jawan hathon ko",
"kaam sar ko aram milta hai ha door",
"rajdhani se koi kasba duphar baad chhatpatata hai",
"ek phata coat ek hilti chauki ek lalten",
"donon, bap mistari, aur bees baras ka naren",
"donon pahle se jante hain pench ki mari hui chuDiyan",
"nehru yug ke auzaron ko musaddilal ki sabse baDi den",
"aspatal mein mariz chhoDkar aa nahin sakta timardar",
"dusre din kaun batayega ki wo kahan gaya",
"nishkasit hote hue mainne use dekha tha",
"jaypur adhiweshan jab sameta ja raha tha",
"jo majur lage hue the kursi Dhone mein",
"unhonne dekha ek kone mein baitha hai",
"ajay apmanit",
"wo use chhoD gaye",
"kursi ko",
"sannata chha gaya",
"kitna asan hai nam likha lena",
"marte manushya ke bare mein kya karun kya karun marte manushya ka",
"antrang parishad se puchhkar tay karna kitna",
"asan hai kitni dilchasp hai nehru ki",
"ashansa patil ki bhartasna ki katha",
"kitni ghutan ke andar ghutan ke",
"andar ghutan se kitni sahj mukti",
"kitna asan hai rakh lena apne pas apna wote",
"kyonki prtidwandwi ayogya hai",
"atyachari hattya kiye jaye jab tak ki swarndhuli",
"swarnashikhar se aakar aatma ke swarnkhanD",
"kiye jaye",
"gol shabdkosh mein amol bol tutlate",
"bhimakay bhashawid hanphate Dakarte hankate",
"angrezi ki awadhy gay",
"ghanta ghanaghnate pujari jayajaykar",
"sarkar se qarar zari hazar shabd roz",
"qaid",
"roz roz ek aur dard ek krodh ek bodh",
"aur napaid",
"kal paida karna hoga bhukhi piDhi ko",
"aj jo anaj pet bharta hai",
"lo hum chale ye rakkhe hain urwarak sambandhi",
"kuch wichar",
"munn se bole winoba se jainendr dilli mein bahut baDi lapsi",
"pakai gai yudh se badahwas",
"janta ke liye laDo ya na laDo",
"bharat pakistan alag alag karo",
"phir maro kaDhil kar",
"bhool jao",
"rajaniti",
"adhyapak yaad karo kiske adami ho tum",
"yaad karo widyarthi tumhein adami se",
"ek darja niche",
"kiska adami banna hai—dard?",
"dard, khairati aspatal mein doctor ne kaha wo mera kaam nahin",
"wo musaddi ka hai",
"wahin bhejta hai mujhe likhkar ise achchha karo",
"jo tum bimar ho tumne use khush nahin kiya hoga",
"ab tum bimar ho to use khush karo",
"kuch karo",
"usne kaha lohiya se lohiya ne kaha",
"kuch karo",
"khush hua wo chala gaya aspatal mein bheeD",
"bhauchak bheeD dhany dhany",
"sau hazar lakh dard aath das krodh",
"teen chaar band bazar bhay bhagdaD gard",
"lal",
"chhanh dhoop chhanh, nahin ghoDe banduq",
"dhuan khoon khatm cheekh",
"kar hum jante nahin",
"hum kya banate hain",
"jab hum dafnate hain",
"ek hatash laDke ki lash bar bar",
"ek bebasi",
"thoDi si mitti hai",
"phir karne lagti hai bhanya bhanya",
"samay jo gaya hai uske sannate mein rashtrapti",
"prakte dete hue seekh samacharpatr mein chhapi",
"dudhamunhi bachchi khati hui bheekh",
"khisiyate kulapti",
"musaddilal",
"ghighiyate upkulapti",
"ek shabd kahin nahin ki wo laDka kaun tha",
"kya uske bahnen theen",
"kya usne rakkhe the teen ke bakse mein apne ajube",
"wo kaun kaun se pakwan",
"khata tha",
"ek shabd kahin nahin ek wo shabd jo wo khoj",
"raha tha jab wo mara gaya",
"sannata chha gaya",
"chitthi likhte likhte chhutki ne puchha",
"kya do bar likh sakte hain ki yaad",
"ati hai?",
"‘ek bar mami ki ek bar mama kee?",
"nahin, donon bar mami ki",
"‘likh sakti ho zarur beti, mainne kaha",
"samay aa gaya hai",
"das baras baad phir padaruDh hote hi",
"netram, padmukt hote hi nyayadhish",
"kahta hai—samay aa gaya hai—",
"mauka achchha dekhkar prdhanmantri",
"pita hua dalapti akhbaron se",
"sundar naujwanon se kahta hai gata bajata",
"hara hua desh",
"samay jo gaya hai",
"mere taluwe se chhankar patal mein",
"wo janta hoon main",
"samay aa gaya hai jab tab kahta hai sampadkiy",
"har bar das baras pahle main kah chuka hota hoon ki samay aa gaya hai",
"ek gharib, ubi, pili, roshni, biwi",
"roshni, dhundh, jala, yaman, haramuniyam adrshy",
"Dabbaband shor",
"gati gala bheench akashwani",
"ant mein taDang",
"akadami ki mahaparishad ki anant baithak",
"adabdakar nishchit kar deti hai jab kuch aur nahin pati",
"to ub ka star",
"ek sili ungli ka nishan Dal dastakhat kar",
"tale hue nashte ki telaus mez par",
"nagarnigam ne tyohar jo manaya to janasbha ki",
"manthar matakta mantri musaddilal mahant manch par chaDha",
"chhati par janta ki",
"wasanti rang jante the na pansari na musaddilal",
"donon ne ray di",
"kandhe se kandha bhiDa le chalo",
"palaki",
"kal se zyada log pas manDrate hain",
"zarurat se zyada aas pas zarurat se zyada nirog",
"shak se ki byarth hai jo main kar raha hoon",
"kyonki jo kah raha hoon usmen arth hai",
"kal mainne use dekha lakh chehron mein ek wo chehra",
"kuDhta hua aur uljha hua wo udas kitna boda",
"wahi tha natk ka mukhy patr",
"par uski thas peeth par main hath rakh na saka",
"wo bahut chikni thi",
"laut aao phir usi khate pite swarg mein",
"pite hue neta, pite anuchar bulate hain",
"mar phaDphaDate hain pankh sal do sal gale bandhi ghantiyan",
"paDhi likhi gardnen bajati hain phir uD jata hai wichar",
"hum rah jate hain adheD",
"kuch hoga kuch hoga agar main bolunga",
"na tute na tute tilism satta ka mere andar ek kayer tutega toot",
"mere man toot ek bar sahi tarah",
"achchhi tarah toot mat jhuthmuth ub mat rooth",
"mat Doob sirph toot jaise ki parson ke baad",
"wo aaya baith gaya adatan ek bahs chheDkar",
"gaya ekayek bahar zoron se ek naqli darwaza",
"bheDkar",
"dard dard mainne kaha kya ab nahin hoga",
"har din manushya se ek darja niche rahne ka dard",
"garja mustanDa wicharak—samay aa gaya hai",
"ki ramlal kuchla hua panw jo ghasitkar",
"chalta hai arthahin ho jaye",
"chhuo",
"mere bachche ka munh",
"gal nahin jaisa wigyapan mein chhapa",
"onth nahin",
"munh",
"pata chala jaan ka shor Dar koi laga",
"nahin—bola mera bhai mujhe panw tale",
"raundkar, angrezi",
"kitna asan hai pagal ho jana",
"aur bhi jab us par inam milta hai",
"naqli darwaze pitte hain jawan hathon ko",
"kaam sar ko aram milta hai ha door",
"rajdhani se koi kasba duphar baad chhatpatata hai",
"ek phata coat ek hilti chauki ek lalten",
"donon, bap mistari, aur bees baras ka naren",
"donon pahle se jante hain pench ki mari hui chuDiyan",
"nehru yug ke auzaron ko musaddilal ki sabse baDi den",
"aspatal mein mariz chhoDkar aa nahin sakta timardar",
"dusre din kaun batayega ki wo kahan gaya",
"nishkasit hote hue mainne use dekha tha",
"jaypur adhiweshan jab sameta ja raha tha",
"jo majur lage hue the kursi Dhone mein",
"unhonne dekha ek kone mein baitha hai",
"ajay apmanit",
"wo use chhoD gaye",
"kursi ko",
"sannata chha gaya",
"kitna asan hai nam likha lena",
"marte manushya ke bare mein kya karun kya karun marte manushya ka",
"antrang parishad se puchhkar tay karna kitna",
"asan hai kitni dilchasp hai nehru ki",
"ashansa patil ki bhartasna ki katha",
"kitni ghutan ke andar ghutan ke",
"andar ghutan se kitni sahj mukti",
"kitna asan hai rakh lena apne pas apna wote",
"kyonki prtidwandwi ayogya hai",
"atyachari hattya kiye jaye jab tak ki swarndhuli",
"swarnashikhar se aakar aatma ke swarnkhanD",
"kiye jaye",
"gol shabdkosh mein amol bol tutlate",
"bhimakay bhashawid hanphate Dakarte hankate",
"angrezi ki awadhy gay",
"ghanta ghanaghnate pujari jayajaykar",
"sarkar se qarar zari hazar shabd roz",
"qaid",
"roz roz ek aur dard ek krodh ek bodh",
"aur napaid",
"kal paida karna hoga bhukhi piDhi ko",
"aj jo anaj pet bharta hai",
"lo hum chale ye rakkhe hain urwarak sambandhi",
"kuch wichar",
"munn se bole winoba se jainendr dilli mein bahut baDi lapsi",
"pakai gai yudh se badahwas",
"janta ke liye laDo ya na laDo",
"bharat pakistan alag alag karo",
"phir maro kaDhil kar",
"bhool jao",
"rajaniti",
"adhyapak yaad karo kiske adami ho tum",
"yaad karo widyarthi tumhein adami se",
"ek darja niche",
"kiska adami banna hai—dard?",
"dard, khairati aspatal mein doctor ne kaha wo mera kaam nahin",
"wo musaddi ka hai",
"wahin bhejta hai mujhe likhkar ise achchha karo",
"jo tum bimar ho tumne use khush nahin kiya hoga",
"ab tum bimar ho to use khush karo",
"kuch karo",
"usne kaha lohiya se lohiya ne kaha",
"kuch karo",
"khush hua wo chala gaya aspatal mein bheeD",
"bhauchak bheeD dhany dhany",
"sau hazar lakh dard aath das krodh",
"teen chaar band bazar bhay bhagdaD gard",
"lal",
"chhanh dhoop chhanh, nahin ghoDe banduq",
"dhuan khoon khatm cheekh",
"kar hum jante nahin",
"hum kya banate hain",
"jab hum dafnate hain",
"ek hatash laDke ki lash bar bar",
"ek bebasi",
"thoDi si mitti hai",
"phir karne lagti hai bhanya bhanya",
"samay jo gaya hai uske sannate mein rashtrapti",
"prakte dete hue seekh samacharpatr mein chhapi",
"dudhamunhi bachchi khati hui bheekh",
"khisiyate kulapti",
"musaddilal",
"ghighiyate upkulapti",
"ek shabd kahin nahin ki wo laDka kaun tha",
"kya uske bahnen theen",
"kya usne rakkhe the teen ke bakse mein apne ajube",
"wo kaun kaun se pakwan",
"khata tha",
"ek shabd kahin nahin ek wo shabd jo wo khoj",
"raha tha jab wo mara gaya",
"sannata chha gaya",
"chitthi likhte likhte chhutki ne puchha",
"kya do bar likh sakte hain ki yaad",
"ati hai?",
"‘ek bar mami ki ek bar mama kee?",
"nahin, donon bar mami ki",
"‘likh sakti ho zarur beti, mainne kaha",
"samay aa gaya hai",
"das baras baad phir padaruDh hote hi",
"netram, padmukt hote hi nyayadhish",
"kahta hai—samay aa gaya hai—",
"mauka achchha dekhkar prdhanmantri",
"pita hua dalapti akhbaron se",
"sundar naujwanon se kahta hai gata bajata",
"hara hua desh",
"samay jo gaya hai",
"mere taluwe se chhankar patal mein",
"wo janta hoon main",
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असली-नक़ली - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/asli-naqli-krishna-kalpit-kavita?sort= | [
"एक नक़ली किसान",
"एक नक़ली मुख्यमंत्री के सामने",
"एक नक़ली पेड़ से लटक कर मर गया",
"और नक़ली पुलिस और नक़ली जनता देखती रही",
"सब नक़ली थे",
"लेकिन मृत्यु असली थी!",
"ek naqli kisan",
"ek naqli mukhymantri ke samne",
"ek naqli peD se latak kar mar gaya",
"aur naqli police aur naqli janta dekhti rahi",
"sab naqli the",
"lekin mirtyu asli thee!",
"ek naqli kisan",
"ek naqli mukhymantri ke samne",
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आत्महत्याओं का स्थगन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/atmhatyaon-ka-sthagan-parag-pawan-kavita?sort= | [
"अपने वक़्त की असहनीय कारगुज़ारियों पर",
"शिकायतों का पत्थर फेंककर",
"मृत्यु के निमंत्रण को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता",
"हम दुनिया को",
"इतने ख़तरनाक हाथों में नहीं छोड़ सकते",
"हमें अपनी-अपनी आत्महत्याएँ स्थगित कर देनी चाहिए।",
"apne waqt ki asahniy karaguzariyon par",
"shikayton ka patthar phenkkar",
"mirtyu ke nimantran ko jayaz nahin thahraya ja sakta",
"hum duniya ko",
"itne khatarnak hathon mein nahin chhoD sakte",
"hamein apni apni atmhatyayen sthagit kar deni chahiye",
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विश्व सुंदरी पुल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/vishv-sundri-pul-armaan-anand-kavita?sort= | [
"बनारस की गलियों में गुज़रते हुए",
"घाटों की सीढियों पर घूमते हुए,",
"मैंने देखा कि दुनिया भर से लोग यहाँ मरने आते हैं",
"बनारस एक पुल है",
"जो मर्त्य को अमर्त्य तक पहुँचाता है",
"मृत्युंजय का यह शहर",
"मृत्यु के इंतज़ार का शहर भी है",
"एक ज़माने में जब डॉक्टरी",
"समाज को भुलावा दे पाने में इतनी सक्षम नहीं थी",
"तब विधवाएँ यहाँ कबीर गढ़ती थीं",
"यहाँ आने वाला हर आदमी एक झुका हुआ सिर है",
"और मदद में उठने वाला हर हाथ उस्तरा",
"यह वह शहर है",
"जहाँ तिरस्कृत तुलसीदास होता है",
"और बहिष्कृत रैदास",
"मौत कुछ दे न दे निश्चिंतता तो ज़रूर देती है",
"धतूरे-सी सुबहें",
"भाँग के नशे-सी शाम",
"जैसे किसी अंतहीन यात्रा पर निकली हों",
"इसी बनारस में एक पुल रहता है",
"विश्व सुंदरी पुल",
"पुल को देखने के बाद मुझे कभी ऐसा नहीं लगा",
"कि यह विश्व का यह सबसे सुंदर पुल है",
"विश्व के तमाम धर्मों की तरह यह पुल भी एक धोखा है",
"सुना है कल फिर एक औरत ने यहाँ से",
"गंगा में छलाँग लगा दी",
"अख़बार ने लिखा",
"वह कूदने से पहले पुल पर थोड़ी देर टहली भी थी",
"मन पूछता है कि टहलने के वक़्त क्या सोचा होगा उसने",
"क्या उसने लड़ने के बारे में सोचा",
"या जीवन-संग्राम से भाग जाना अधिक आसान लगा उसे",
"किसी ने उसे लड़ना क्यों नहीं सिखाया",
"लड़ना क्या सचमुच असभ्य हो जाना है",
"क्या होता अगर",
"मरने से पहले वह उसे मारकर मरती",
"क्या सचमुच पति ही दोषी होगा",
"हो सकता है",
"सरकार की किसी योजना का शिकार हुई हो",
"यह भी हो सकता हो कि किसी प्रेमी ने",
"उसे अच्छे दिनों का झाँसा देकर",
"पाँच साल तक किया हो यौन-शोषण",
"ज़रूर किसी ने सच बता दिया होगा उसे",
"ज़रूर उस कमबख़्त का नाम भूख होगा",
"भूख खाने में बहुत माहिर है",
"सब कह रहे हैं बच्ची बच गई उसकी",
"कोई बात नहीं",
"पुल का रास्ता दोनों तरफ़ से खुलता है",
"फिर माँ सिखाकर तो गई ही है",
"सहने और सहते हुए टूट जाने की कला",
"जानते हो लोग मरने बनारस आते हैं",
"और एक यह पुल है",
"यहाँ मरने",
"बनारस आता है",
"banaras ki galiyon mein guzarte hue",
"ghaton ki siDhiyon par ghumte hue,",
"mainne dekha",
"ki duniya bhar se log yahan marne aate hain.",
"banaras ek pul hai",
"jo martya ko amartya tak pahunchata hai",
"mrityunjay ka ye shahr",
"mrityu ke intzaar ka shahr bhi hai",
"ek jamane men",
"jab Daktari",
"samaj ko bhulava de pane mein itni saksham nahin thi",
"tab vidhvayen",
"yahan kabir gaDhti theen",
"yahan aane vala har adami ek jhuka hua sar hai",
"aur madad mein uthne vala har haath ustara",
"ye wo shahr hai",
"jahan tiraskrit tulsidas hota hai",
"aur bahishkrit raidas",
"maut kuch de na de nishchintta to zarur deti ho",
"dhature si subhen",
"bhaang ke nashe si shaam",
"jaise kisi anthin yatra par nikli hon",
"isi banaras mein ek pul rahta hai",
"vishv sundri pul",
"pul ko dekhne ke baad mujhe kabhi aisa nahin laga",
"ki ye vishv ka ye sabse sundar pul hai",
"vishv ke tamam dharmon ki tarah ye pul bhi ek dhokha hai",
"suna hai",
"kal phir ek aurat ne yahan se ganga mein chhalang laga di",
"akhbar ne likha",
"wo kudne se pahle pul par thoDi der tahli bhi thi",
"man puchhta hai tahalne ke vakt kya socha hoga usne",
"kya usne laDne ke bare mein socha",
"ya jivan sangram se bhaag jana adhik asan laga use",
"kisi ne use laDna kyon nahi sikhaya",
"laDna kya sachmuch asabhya ho jana hai",
"kya hota agar",
"marne se pahle wo use markar marti",
"kya sachmuch pati hi doshi hoga",
"ho sakta hai",
"sarkar ki kisi yojna ka shikar huyi ho",
"ye bhi ho sakta ho ki kisi premi ne",
"use achchhe dinon ka jhansa dekar paanch saal tak kiya ho yaun shoshan",
"zarur kisi ne sach bata diya hoga use",
"zarur us kambakht ka naam bhookh hoga",
"bhookh khane mein bahut mahir hai",
"sab kah rahe hain bachchi bach gai uski",
"koi baat nahin",
"pul ka rasta donon taraf se khulta hai",
"phir maan sikha ke to gai hi hai",
"sahne aur sahte hue toot jane ki kala",
"jante ho log marne banaras aate hain",
"aur ek ye pul hai",
"yahan marne",
"banaras aata hai",
"banaras ki galiyon mein guzarte hue",
"ghaton ki siDhiyon par ghumte hue,",
"mainne dekha",
"ki duniya bhar se log yahan marne aate hain.",
"banaras ek pul hai",
"jo martya ko amartya tak pahunchata hai",
"mrityunjay ka ye shahr",
"mrityu ke intzaar ka shahr bhi hai",
"ek jamane men",
"jab Daktari",
"samaj ko bhulava de pane mein itni saksham nahin thi",
"tab vidhvayen",
"yahan kabir gaDhti theen",
"yahan aane vala har adami ek jhuka hua sar hai",
"aur madad mein uthne vala har haath ustara",
"ye wo shahr hai",
"jahan tiraskrit tulsidas hota hai",
"aur bahishkrit raidas",
"maut kuch de na de nishchintta to zarur deti ho",
"dhature si subhen",
"bhaang ke nashe si shaam",
"jaise kisi anthin yatra par nikli hon",
"isi banaras mein ek pul rahta hai",
"vishv sundri pul",
"pul ko dekhne ke baad mujhe kabhi aisa nahin laga",
"ki ye vishv ka ye sabse sundar pul hai",
"vishv ke tamam dharmon ki tarah ye pul bhi ek dhokha hai",
"suna hai",
"kal phir ek aurat ne yahan se ganga mein chhalang laga di",
"akhbar ne likha",
"wo kudne se pahle pul par thoDi der tahli bhi thi",
"man puchhta hai tahalne ke vakt kya socha hoga usne",
"kya usne laDne ke bare mein socha",
"ya jivan sangram se bhaag jana adhik asan laga use",
"kisi ne use laDna kyon nahi sikhaya",
"laDna kya sachmuch asabhya ho jana hai",
"kya hota agar",
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"ye bhi ho sakta ho ki kisi premi ne",
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"zarur us kambakht ka naam bhookh hoga",
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"sab kah rahe hain bachchi bach gai uski",
"koi baat nahin",
"pul ka rasta donon taraf se khulta hai",
"phir maan sikha ke to gai hi hai",
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यातना का शिल्प - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/yatana-ka-shilp-sarul-bagla-kavita?sort= | [
"मुझे पता है :",
"मैं घुटकर मर जाऊँगा",
"अपनी इसी कोठरी के भीतर",
"अगर मैंने दिए नहीं जलाए",
"अपनी कविता की आग से",
"आग और पानी के तुक पर",
"हाल में गूँजा शोर",
"मेरे गर्भ को खा जाएगा",
"और मैं कभी माँ नहीं बन पाऊँगा",
"बकवास बहसें चाटती हैं मेरा सिर",
"बँधी सरहदों में भी",
"ख़्वाब देखता है मन",
"लेकिन कुछ नहीं बदलता",
"कुछ नहीं बदलता।",
"अगर इतना अवकाश है",
"कि हम यातना के शिल्प पर बातें करें",
"तो आज से मैं",
"कवियों की जमात से बाहर हूँ",
"मुझे पता है :",
"मैं पागल हो चुका हूँ और",
"जल्दी ही घुटकर मर जाने वाला हूँ।",
"mujhe pata hai ha",
"main ghutkar mar jaunga",
"apni isi kothari ke bhitar",
"agar mainne diye nahin jalaye",
"apni kawita ki aag se",
"ag aur pani ke tuk par",
"haal mein gunja shor",
"mere garbh ko kha jayega",
"aur main kabhi man nahin ban paunga",
"bakwas bahsen chatti hain mera sir",
"bandhi sarahdon mein bhi",
"khwab dekhta hai man",
"lekin kuch nahin badalta",
"kuch nahin badalta",
"agar itna awkash hai",
"ki hum yatana ke shilp par baten karen",
"to aaj se main",
"kawiyon ki jamat se bahar hoon",
"mujhe pata hai ha",
"main pagal ho chuka hoon aur",
"jaldi hi ghutkar mar jane wala hoon",
"mujhe pata hai ha",
"main ghutkar mar jaunga",
"apni isi kothari ke bhitar",
"agar mainne diye nahin jalaye",
"apni kawita ki aag se",
"ag aur pani ke tuk par",
"haal mein gunja shor",
"mere garbh ko kha jayega",
"aur main kabhi man nahin ban paunga",
"bakwas bahsen chatti hain mera sir",
"bandhi sarahdon mein bhi",
"khwab dekhta hai man",
"lekin kuch nahin badalta",
"kuch nahin badalta",
"agar itna awkash hai",
"ki hum yatana ke shilp par baten karen",
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"main pagal ho chuka hoon aur",
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ईश्वर तुम आत्महत्या कर लो - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/ishwar-tum-atmahatya-kar-lo-ruchi-bahuguna-uniyal-kavita?sort= | [
"ईश्वर तुम आत्महत्या कर लो अब",
"सही वक़्त पर तुम्हारे अस्तित्व का",
"समाप्त हो जाना ही अच्छा है",
"अपने झूठे मुखौटे को हटाओ",
"और कर लो स्वीकार",
"कि सिसकते हो तुम भी!",
"यदि यह दुनिया तुम्हारे लिए खेल है",
"तो तुम्हें नहीं लगता?",
"कि खेल एकतरफ़ा होता जा रहा है",
"कि कमज़ोर के आँसुओं से अब",
"तुम्हारी सत्ता डिगने की कगार पर है?",
"इससे पहले कि कमज़ोर...",
"जिसकी प्रार्थनाएँ तुम्हारे वजूद को बचाए हुए हैं",
"उतार दे तुम्हें सिंहासन से तंग आकर",
"नकार दे तुम्हारा ईश्वर होना",
"उजाड़ दे तुम्हारे बड़े-बड़े मंदिरों का अस्तित्व",
"और तुम्हारी ईश्वर होने की नौकरी से तुम्हें बेदख़ल कर दे",
"तुम आत्महत्या कर लो!",
"सुना है कि तुम्हें धरती पर",
"सबसे अधिक प्रिय बच्चों की मुस्कानें हैं",
"कि चिड़ियों की चहचहाहट तुम्हारा संगीत है",
"कि तुम तितली के पंखों के रंग से करते हो शृंगार",
"कि तुम प्रेम की भाषा समझते हो",
"तो क्यों नहीं देते सज़ा?",
"उन्हें जो बच्चों का बचपन उजाड़ देते हैं",
"जो चिड़ियों के पंख कतर देते हैं",
"जो तितलियों के रंगीन परों को मसल देते हैं",
"जो भय, नफ़रत, हथियारों की भाषा सीखा रहे हैं!",
"बुढ़ा गए हो तुम ईश्वर",
"अब तुम घर के बाहर देहरी पर बैठे",
"बुज़ुर्ग माँ-बाप की तरह लाचार हो",
"जिसे कभी भी उनकी संतानें",
"भेज सकती हैं वृद्धाश्रम!",
"तुम झूठी हँसी के पीछे ठीक वैसे ही",
"छुपा रहे हो अपने आँसू",
"जैसे कोई कलाकार अपने चेहरे पर",
"पोत लेता है कई परतें शृंगार की!",
"असल में ये दुनिया अब वैसी रह नहीं गई",
"जैसी तुमने बनाई थी",
"इसलिए...",
"कमज़ोर बेबस तुम्हारे वज़ूद को",
"नकार दे उसके पहले",
"तुम आत्महत्या कर लो ईश्वर!",
"ishwar tum atmahatya kar lo ab",
"sahi waqt par tumhare astitw ka",
"samapt ho jana hi achchha hai",
"apne jhuthe mukhaute ko hatao",
"aur kar lo swikar",
"ki sisakte ho tum bhee!",
"yadi ye duniya tumhare liye khel hai",
"to tumhein nahin lagta?",
"ki khel ekatrafa hota ja raha hai",
"ki kamzor ke ansuon se ab",
"tumhari satta Digne ki kagar par hai?",
"isse pahle ki kamzor",
"jiski prarthnayen tumhare wajud ko bachaye hue hain",
"utar de tumhein sinhasan se tang aakar",
"nakar de tumhara ishwar hona",
"ujaD de tumhare baDe baDe mandiron ka astitw",
"aur tumhari ishwar hone ki naukari se tumhein bedkhal kar de",
"tum atmahatya kar lo!",
"suna hai ki tumhein dharti par",
"sabse adhik priy bachchon ki muskanen hain",
"ki chiDiyon ki chahchahahat tumhara sangit hai",
"ki tum titli ke pankhon ke rang se karte ho shringar",
"ki tum prem ki bhasha samajhte ho",
"to kyon nahin dete saza?",
"unhen jo bachchon ka bachpan ujaD dete hain",
"jo chiDiyon ke pankh katar dete hain",
"jo titaliyon ke rangin paron ko masal dete hain",
"jo bhay, nafar, hathiyaron ki bhasha sikha rahe hain!",
"buDha gaye ho tum ishwar",
"ab tum ghar ke bahar dehri par baithe",
"buzurg man bap ki tarah lachar ho",
"jise kabhi bhi unki santanen",
"bhej sakti hain wriddhashram!",
"tum jhuthi hansi ke pichhe theek waise hi",
"chhupa rahe ho apne ansu",
"jaise koi kalakar apne chehre par",
"pot leta hai kai parten shringar kee!",
"asal mein ye duniya ab waisi rah nahin gai",
"jaisi tumne banai thi",
"isliye",
"kamzor bebas tumhare wazud ko",
"nakar de uske pahle",
"tum atmahatya kar lo ishwar!",
"ishwar tum atmahatya kar lo ab",
"sahi waqt par tumhare astitw ka",
"samapt ho jana hi achchha hai",
"apne jhuthe mukhaute ko hatao",
"aur kar lo swikar",
"ki sisakte ho tum bhee!",
"yadi ye duniya tumhare liye khel hai",
"to tumhein nahin lagta?",
"ki khel ekatrafa hota ja raha hai",
"ki kamzor ke ansuon se ab",
"tumhari satta Digne ki kagar par hai?",
"isse pahle ki kamzor",
"jiski prarthnayen tumhare wajud ko bachaye hue hain",
"utar de tumhein sinhasan se tang aakar",
"nakar de tumhara ishwar hona",
"ujaD de tumhare baDe baDe mandiron ka astitw",
"aur tumhari ishwar hone ki naukari se tumhein bedkhal kar de",
"tum atmahatya kar lo!",
"suna hai ki tumhein dharti par",
"sabse adhik priy bachchon ki muskanen hain",
"ki chiDiyon ki chahchahahat tumhara sangit hai",
"ki tum titli ke pankhon ke rang se karte ho shringar",
"ki tum prem ki bhasha samajhte ho",
"to kyon nahin dete saza?",
"unhen jo bachchon ka bachpan ujaD dete hain",
"jo chiDiyon ke pankh katar dete hain",
"jo titaliyon ke rangin paron ko masal dete hain",
"jo bhay, nafar, hathiyaron ki bhasha sikha rahe hain!",
"buDha gaye ho tum ishwar",
"ab tum ghar ke bahar dehri par baithe",
"buzurg man bap ki tarah lachar ho",
"jise kabhi bhi unki santanen",
"bhej sakti hain wriddhashram!",
"tum jhuthi hansi ke pichhe theek waise hi",
"chhupa rahe ho apne ansu",
"jaise koi kalakar apne chehre par",
"pot leta hai kai parten shringar kee!",
"asal mein ye duniya ab waisi rah nahin gai",
"jaisi tumne banai thi",
"isliye",
"kamzor bebas tumhare wazud ko",
"nakar de uske pahle",
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किसान और आत्महत्या - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/kisan-aur-atmahatya-harishchandra-pande-kavita?sort= | [
"उन्हें धर्मगुरुओं ने बताया था प्रवचनों में",
"आत्महत्या करने वाला सीधे नर्क जाता है",
"तब भी उन्होंने आत्महत्या की",
"क्या नर्क से भी बदतर हो गई थी उनकी खेती",
"वे क्यों करते आत्महत्या",
"जीवन उनके लिए उसी तरह काम्य था",
"जिस तरह मुमुक्षओं के लिए मोक्ष",
"लोकाचार उनमें सदानीरा नदियों की तरह प्रवहमान थे",
"उन्हीं की हलों के फाल से",
"संस्कृति की लकीरें खिंची चली आई थीं",
"उनका आत्म तो कपास की तरह उज्जर था",
"वे क्यों करते आत्महत्या",
"वे तो आत्मा को ही शरीर पर वसन की तरह बरतते थे",
"वे जड़ें थे फुनगियाँ नहीं",
"अन्नदाता थे बिचौलिए नहीं",
"उनके नंगे पैरों के तलुवों को",
"धरती अपनी संरक्षित ऊर्जा से थपथपाती थी",
"उनके खेतों के नाक-नक़्श उनके बच्चों की तरह थे",
"वे क्यों करते आत्महत्या",
"जो पितरों के ऋण तारने के लिए",
"भाषा-भूगोल के प्रायद्वीप नाप डालते हैं",
"अपने ही ऋणों के दलदल में धँस गए",
"जो आरुणि की तरह शरीर को ही मेड़ बना लेते थे",
"मिट्टी में जीवन-द्रव्य बचाने",
"स्वयं खेत हो गए",
"कितना आसान है हत्या को आत्महत्या कहना",
"और दुर्नीति को नीति",
"unhen dharmaguruon ne bataya tha prawachnon mein",
"atmahatya karne wala sidhe nark jata hai",
"tab bhi unhonne atmahatya ki",
"kya nark se bhi badtar ho gai thi unki kheti",
"we kyon karte atmahatya",
"jiwan unke liye usi tarah kaamy tha",
"jis tarah mumukshaon ke liye moksh",
"lokachar unmen sadanira nadiyon ki tarah prawahman the",
"unhin ki halon ke phaal se",
"sanskriti ki lakiren khinchi chali i theen",
"unka aatm to kapas ki tarah ujjar tha",
"we kyon karte atmahatya",
"we to aatma ko hi sharir par wasan ki tarah baratte the",
"we jaDen the phunagiyan nahin",
"anndata the bichauliye nahin",
"unke nange pairon ke taluwon ko",
"dharti apni sanrakshit urja se thapthapati thi",
"unke kheton ke nak naqsh unke bachchon ki tarah the",
"we kyon karte atmahatya",
"jo pitron ke rn tarne ke liye",
"bhasha bhugol ke prayadwip nap Dalte hain",
"apne hi rinon ke daldal mein dhans gaye",
"jo arunai ki tarah sharir ko hi meD bana lete the",
"mitti mein jiwan drawy bachane",
"swayan khet ho gaye",
"kitna asan hai hattya ko atmahatya kahna",
"aur durniti ko niti",
"unhen dharmaguruon ne bataya tha prawachnon mein",
"atmahatya karne wala sidhe nark jata hai",
"tab bhi unhonne atmahatya ki",
"kya nark se bhi badtar ho gai thi unki kheti",
"we kyon karte atmahatya",
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"apne hi rinon ke daldal mein dhans gaye",
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फ़र्क़ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/farq-alokdhanva-kavita?sort= | [
"देखना",
"एक दिन मैं भी उसी तरह शाम में",
"कुछ देर के लिए घूमने निकलूँगा",
"और वापस नहीं आ पाऊँगा!",
"समझा जाएगा कि",
"मैंने ख़ुद को ख़त्म किया!",
"नहीं, यह असंभव होगा",
"बिल्कुल झूठ होगा!",
"तुम भी मत यक़ीन कर लेना",
"तुम तो मुझे थोड़ा जानते हो!",
"तुम",
"जो अनगिनत बार",
"मेरी क़मीज़ के ऊपर ऐन दिल के पास",
"लाल झंडे का बैज लगा चुके हो",
"तुम भी मत यक़ीन कर लेना।",
"अपने कमज़ोर से कमज़ोर क्षण में भी",
"तुम यह मत सोचना",
"कि मेरे दिमाग़ की मौत हुई होगी!",
"नहीं, कभी नहीं!",
"हत्याएँ और आत्महत्याएँ एक जैसी रख दी गई हैं",
"इस आधे अँधेरे समय में।",
"फ़र्क़ कर लेना साथी!",
"dekhana",
"ek din main bhi usi tarah sham mein",
"kuch der ke liye ghumne niklunga",
"aur wapas nahin aa paunga!",
"samjha jayega ki",
"mainne khu ko khatm kiya!",
"nahin, ye asambhaw hoga",
"bilkul jhooth hoga!",
"tum bhi mat yaqin kar lena",
"tum to mujhe thoDa jante ho!",
"tum",
"jo anaginat bar",
"meri qamiz ke upar ain dil ke pas",
"lal jhanDe ka baij laga chuke ho",
"tum bhi mat yaqin kar lena",
"apne kamzor se kamzor kshan mein bhi",
"tum ye mat sochna",
"ki mere dimagh ki maut hui hogi!",
"nahin, kabhi nahin!",
"hatyayen aur atmhatyayen ek jaisi rakh di gai hain",
"is aadhe andhere samay mein",
"farq kar lena sathi!",
"dekhana",
"ek din main bhi usi tarah sham mein",
"kuch der ke liye ghumne niklunga",
"aur wapas nahin aa paunga!",
"samjha jayega ki",
"mainne khu ko khatm kiya!",
"nahin, ye asambhaw hoga",
"bilkul jhooth hoga!",
"tum bhi mat yaqin kar lena",
"tum to mujhe thoDa jante ho!",
"tum",
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"tum bhi mat yaqin kar lena",
"apne kamzor se kamzor kshan mein bhi",
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"ki mere dimagh ki maut hui hogi!",
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किसी ने नहीं - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/kisi-ne-nahin-nikhil-anand-giri-kavita?sort= | [
"मुझे किसी ने नहीं मारा",
"एक सपने में मुझे प्यास लगी",
"मैं कुएँ के पास पहुँचा",
"और वहीं डूब गया",
"मेरी शिनाख़्त भी हो सकती थी",
"मगर नींद बिखर चुकी है अब तक।",
"mujhe kisi ne nahin mara",
"ek sapne mein mujhe pyas lagi",
"main kuen ke pas pahuncha",
"aur wahin Doob gaya",
"meri shinakht bhi ho sakti thi",
"magar neend bikhar chuki hai ab tak",
"mujhe kisi ne nahin mara",
"ek sapne mein mujhe pyas lagi",
"main kuen ke pas pahuncha",
"aur wahin Doob gaya",
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महामारी का साल : बारह महीने—बारह कविताएँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/mahamari-ka-sal-ha-barah-mahine-barah-kawitayen-anurag-anant-kavita?sort= | [
"जनवरीकोहरे में डूबी सुबहप्रार्थना करती रहती है किसी निष्ठुर देवता कीशाम तलाशती रहती है आगजैसे मेरी हथेलियाँ ढूँढ़ती हों तुम्हारा हाथइस तरह होते हैं दिनजैसे अनमना-सा बैठा रहता था नदी किनारेपिछले जनम मेंगुनगुनी धूप में सुखा रहा हूँ मनजैसे अचार बनाती थी माँऔर बेवक़ूफ़ बनाती थी तुमफ़रवरीचाँद पर पहुँचा पहला आदमी अमर हुआदूसरे को भूल गई दुनियासाल के पहले महीने को मिले स्वप्न और उत्सवदूसरे महीने को दिनचर्यातुम्हारे पहले प्रेमी को मिला प्रेमऔर मुझे स्मृतिमार्चफाँसी के फंदों पर उग आए हैं सरसों के फूलऔर सूफ़ियों ने कस लिए हैं घुँघरूरंग उड़ रहा हैभीगता है भीतर का एकांतपत्थर जीवित हो रहे हैंमुट्ठियाँ तन रही हैंतानाशाहों के माथे पर पसीना हैऔर विश्वविद्यालय में विद्रोह और प्रेमदोनों परवान चढ़ रहा हैइस बीच मैं सड़क के बीचोंबीच खड़ा हूँजैसे पाश खड़ा था अपने खेत मेंअप्रैलझड़ रहे हैं पत्तेपेड़ों के हृदय खंडित हैंनदि के किनारे तीर लगा हैप्यास से बिलखते जल के देवता कोकिताबों में गड़ाए हुए हूँ सिरकि कोई तो सुराग़ मिले राजा के निर्दयी होने काघर से दूर घर की स्मृति मेंचला जा रहा हूँ घर की तरफ़मईसंदेह सदेह हो गया हैहर कोई अपने लिए उपयुक्त संदिग्ध तलाश रहा हैजैसे निर्वस्त्र तलाशते हैं वस्त्रमौसम में महामारी हैव्याकुलता, अवसाद और विकल्पहीनताआपस में मिल रहे हैंजैसे मेरे शहर में मिलती हैंतीन नदियाँटी.वी. चैनलों के नाख़ूनों से रक्त टपक रहा हैऔर आसमान से आगमज़दूर अब भी लौट रहे हैंजैसे लौट रहें हो कोटि भग्न स्वप्नएक जोड़ी आँख की ओरजूनसमय बिल्लियों के पंजों में बदल चुका हैट्रेनें ठहरी हुई हैंबसों के बस में कुछ नहीं हैएक फ़िक्र हैजो दो जून की रोटी के बीच दोलन कर रही हैकवि अत्याचार की तरह कर रहे हैं कवितानेता नृत्य की तरह कर रहे हैं राजनीतिक्षुद्रता इतनी विशाल हैजितना राजा का वक्षस्थलरसोइए में बदल गए हैं वेजिन्हें रोटियों में बदल जाना थाइस समयजुलाईबाहर बरस रहे हैं बादलभीतर पसरता जा रहा है रेगिस्तानस्पर्श पर प्रतिबंध हैऔर चेहरे पर नक़ाबों को मिल चुकी हैवैधानिकता और अनिर्वायतादोनों हीकल्पना संक्रमित हैइसलिए कला रोगीमैंने कभी नहीं पाया मनुष्य को इतना अकेलाजितना इस मौसम मेंआत्महत्या का ख़यालऐसे आ रहा हैजैसे बचपन में हर शाम आता थामुंडेर पर नीली गर्दन वाला कबूतरअगस्तदूर से आ रही हैंअप्रिय ध्वनियाँसूचनाएँशोक-संदेशपास बैठती जा रही हैंआशंकाएँअनिश्चिताएँचिंताएँजड़ हो चुका है समयआईने में क़ैद हो गए हैं दृश्यउदास शक्लेंदेख रही हैं अनंत की ओरजैसे सच में कोई ईश्वर हो कहींजैसे सच में उसके पास भी होकोई हृदयसितंबरबहुत मर चुके लोगअब गणित नहीं होती परेशानगणना निरर्थक कर्म हैजिसे न सरकार कर रही हैऔर न नागरिकऊब कर लोग कर रहे हैं विवाहजबकि उन्हें करना चाहिए था प्रेमप्रेम के अकाल मेंविवाह से त्रासद कुछ भी नहींफिर सोचता हूँत्रासदी के मौसम में एक त्रासदी और सहीअक्टूबरफिर से चढ़ रही है सर्दीजगह बदल रहे हैं लोगलैम्पपोस्ट की रोशनी अभी भी उदास हैसुबह अभी भी ठिठकी हुईशाम के पाँव अभी भी घायल हैंगांधी तीन महीने बाद मारे जाएँगेगांधी अभी अभी पैदा हुए हैंहाय राम! गांधी का जीवन इतना कमहाय राम! हम इतने बेरहमनवंबरचोरों को कोई चिंता नहीं हैन दाढ़ी की और न तिनकों कीसब ज़िम्मेदारी राजा ने अपने सिर ले ली हैदाढ़ी की भी और तिनकों की भीराजा ने दाढ़ी बढ़ा ली हैतिनके अब राजा की दाढ़ी में हैंसम्मान से, अभिमान सेचोर अदृश्य होकर चोरी कर रहे हैंअदृश्य के चेहरे नहीं होतेइसलिए उनकी दाढ़ी भी नहीं होतीतिनके फिर भी होते हैं उनके पासजिन्हें वे राजा की दाढ़ी में छिपा देते हैंदिसंबरखुले आसमान के नीचे बीत रही हैं रातेंईश्वर नहीं है किसानइसलिए लड़ रहा है मनुष्यों की तरहभूख और अनाज के लिएउसके खेतों को देख रहे हैं गिद्धअपने खेतों को देख रहा है वहअपनी माँ की तरहरस्सी पर गाँठ पड़ी हैइस कड़ाके की सर्दी मेंउम्मीद की एक लौ राजधानी की सरहद पर खड़ी है",
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रोहित वेमुला के लिए - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/rohit-wemula-ke-liye-priyadarshan-kavita?sort= | [
"एकसत्ताईस साल से मौत की तिल-तिल अदा की जा रही क़िस्तेंउसने एक बार चुकाने का फ़ैसला कियाऔर एक लंबी छलाँग लगाकर चला गया उस बेहद लंबी अंधी सुरंग के पारजो उसकी ज़िंदगी थी।उसकी लहूलुहान पीठ पर सदियों से पड़ते कोड़ों के निशान थेउसकी ज़ुबान सिल दी गई थीअपने ज़ख़्मी होठों से जिन शब्दों को वह अपनी मुक्ति के मंत्र की तरह बुदबुदाना चाहता था,उन्हें व्यर्थ बना दिया गया था।उसे दंडित किया गया क्योंकि उसने ऊपर उठने की कोशिश की थी,वह रामायण का शंबूक थारोम का ग़ुलाम स्पार्टाकसवह उन लाखों-लाख गुमनाम ग़ुलामों, दासों और शूद्रों की साझा चीख़ थाजो पीटे गए, मारे गए, सूली पर चढ़ा दिए गएजिनके कान में सीसा डाला गया, जिनकी आँख निकाल ली गई,जिनके शव सड़ने के लिए छोड़ दिए गए सड़कों पर। वह हमारी आत्मा में चुभता हुआ भारत थाजिसे ख़त्म किया जाना ज़रूरी था।इतिहास की ताक़तें चुपके से तैयार कर रही थीं उसका फंदाजब वह मारा गया तो बताया गया कि वह कायर था, उसने जान दे दी। दोउसकी माँ थी,उसके भाई थे,उसके दोस्त थे,उसके सपने थे,उसका कार्ल सागान था,उसके भीतर छटपटाती कविताएँ थीं,उसके भीतर आकार लेती कुछ विज्ञान कथाएँ थीं,उसके भीतर उम्मीद थी,उसके भीतर ग़ुस्सा था,उसके भीतर प्रतिरोध की कामना थी,लेकिन अपने अंतिम समय में वह बिल्कुल ख़ाली थावह कौन-सा ड्रैक्युला था जिसने उसके भीतर उतर कर सोख लिया था उसका पूरा संसार?तीनउसने अपनी ख़ुदकुशी के लिए सिर्फ़ ख़ुद कोज़िम्मेदार ठहराया, किसी और को नहीं।अब उसके हत्यारे उसका दिया प्रमाण-पत्र दिखाकरसाबित कर रहे हैं कि उन्होंने उसे नहीं मारा।वह बस अपना जीवन जीना चाहता था,लेकिन इतने भर के लिए उसे इतिहास की उन ताक़तों से टकराना पड़ाजो थकाकर मार डालने का हुनर जानती थीं।वे किसी कृपा की तरह वज़ीफ़े बाँटती थींउनके पास बहुत सारा सब्र था, बहुत सारी करुणाजिससे वे अपने भीतर की घृणा को छुपाए रखती थींउस दिन के इंतज़ार मेंजब कोई रोहित वेमुला हारकर छोड़ देगा अपनी और उनकी दुनियावे नहीं चाहती थीं, कोई उन्हें आईना दिखाएकोई याद दिलाए उन्हें उनका ओछापन।चारहमें तो उसका शोक मनाने का हक़ भी नहीं हम तो उसे ठीक से जानते तक नहींहमने कभी देखा तक नहीं था कि किस हाल में वह जीता था,किस तरह मरता था, क्यों लड़ता था। जब उसे इंतज़ार था हमारा, तब हम दूर खड़े रहेउसकी यातना से बेख़बर या बेपरवाह। कोई नहीं जानताजिस बैनर से वह ताक़त हासिल करता थाउसे मौत की रस्सी में बदलने से पहलेउसने कितनी रस्सियाँ थामने की कोशिश की होगीउस सर्द एहसास तक पहुँचने से पहले, जिसमें कोई उदासी नहीं होतीसिर्फ़ निचाट ख़ालीपन होता है, उसने कितनी बार शब्दों की आँच सेऊष्मा चाही होगी।जब यह छोटी-सी डोर भी छिनती लगी उसेतो उसने यह रस्सी बनाई और चला गया सब कुछ छोड़कर।जान देकर ही असल में उसने हासिल की वह ज़िंदगीजिसका वह जीते-जी हक़दार था और जो हक़ हमसे अदा न हुआ।पाँचलेकिन एक दिन यह क़र्ज़ इतिहास को चुकाना होगाएक दिन एकलव्य लौटेगा अपना रिसता हुआ अँगूठा माँगनेएक दिन रोम स्पार्टाकस का होगाएक दिन शंबूक वाल्मीकि के सामने खड़ा होगापूछेगा आदिकवि से, किस अपराध में एक महाकाव्य पर उसके ख़ून के छींटे डाले गएअपने ख़ून से जो स्याही तुमने बनाई है रोहित वेमुलाएक दिन वह भी काम आएगी।",
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रेशम के कीड़े - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/resham-ke-kide-ramagya-shashidhar-kavita?sort= | [
"जो स्वाब खाते हैं",
"वे देते हैं मूँगा",
"अर्जुन की पत्तियाँ खाने वाले",
"बनाते हैं तसर",
"शहतूत खाकर",
"मलबरी रचते हैं",
"वह जो मूँगा तसर मलबरी से",
"एक साथ बुनता है",
"बनारसी साड़ियाँ",
"बुनने के बाद",
"भूख से मरता है",
"jo svaab khate hain",
"ve dete hain munga",
"arjun ki pattiyan khane vale",
"banate hain tasar",
"shahtut khakar",
"malabri rachte hain",
"wo jo munga tasar malabri se",
"ek saath bunta hai",
"banarsi saDiyan",
"bunne ke baad",
"bhookh se marta hai",
"jo svaab khate hain",
"ve dete hain munga",
"arjun ki pattiyan khane vale",
"banate hain tasar",
"shahtut khakar",
"malabri rachte hain",
"wo jo munga tasar malabri se",
"ek saath bunta hai",
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"bhookh se marta hai",
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अहम् ब्रह्मास्मि! - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/aham-brahmasmi-mona-gulati-kavita?sort= | [
"शताब्दियों की नसों में चिरांयध भर देने वाले हाथों को काट देना होगा।",
"यह केवल वक़्त का सच था कि",
"घरौंदों के साथ-साथ सफ़ेद",
"कबूतरों का रंग",
"भी बदल जाता था :",
"अब",
"जब देश में भूचाल आता है—",
"इमारतें नहीं गिरतीं; केवल कुछ काग़ज़ों के पुलिंदे आवारा कुत्ते की भाँति",
"भौंकने लगते हैं।",
"कल होने वाली क्रांति में भाग लेने के लिए मेरे पास समय नहीं है",
"मुझे क्रांतिकारी फूहड़ और बनैले नज़र आते हैं; उनसे",
"सभ्यता का इतिहास सीखने वालों में मेरी कोई रुचि नहीं!",
"शताब्दी का कफ़न केवल एक ही पंजा उधेड़ सकता है; वह पंजा किसी",
"कौटिल्य या अहिरावण का नहीं, दधीचि की हड्डियों को मोड़ देता है",
"वह नीत्शे की नसों को धनुषाकार बनाता हुआ उठता है और",
"किसी के कंधों पर भी गिर सकता है। उस ‘किसी’ को",
"जानने के लिए आपको",
"अपने मस्तिष्क के खड्डों में झाँकना पड़ेगा;",
"भुतहे खंडहरों में घूमना पड़ेगा;",
"किसी दूसरे नक्षत्र पर भी जाना पड़ सकता है",
"और इस सबके बावजूद",
"ज़रूरी नहीं कि आप उस ‘किसी’ को ढूँढ़ सकें या उस ख़ूँख़ार और",
"मुस्कराते दंभी पंजे को पहचान सकें। यह भी संभव है",
"वह पंजा आपका या मेरा ही पीछा कर रहा हो!",
"संभावनाओं और प्रत्याशाओं का इस देश में अंत नहीं,",
"आपका मन हो : प्रजातंत्र की शिराएँ नोचिए; मैंने",
"कीर्केगार्द का मुस्करारना स्वीकार कर लिया है; मुझे",
"प्रजातंत्र जैसे जंतु में कोई रुचि नहीं!",
"आप और मैं कभी ‘समकक्ष’ नहीं हो सकते,",
"आप चाहें तो",
"समकालीन होने का दावा करते रहें। आप",
"पहाड़ की चोटी पर खड़े होकर चीख़ें या चिल्लाएँ,",
"आप अब मेरे समकक्ष नहीं हो सकते;",
"अलाव में पकता हुआ ज्योति-पिंड हूँ।",
"मैंने",
"उसकी हत्या नहीं की, भीड़ के साथ पत्थर उछालने के लिए",
"उसने आत्महत्या कर ली है। उसे भय था",
"संपूर्ण शताब्दी में उसकी हत्या का षड्यंत्र रचा जा रहा है।",
"आत्महत्या उसने मुक्ति पाने के लिए की है या षड्यंत्र का",
"चितकबरा हिस्सा होने के लिए या दुमकटा भेड़िया बनने के",
"लिए, इसे समझने के लिए आप कृपया",
"कबाड़ी की दुकान में सड़ रहे नीत्शे को बदनाम मत कीजिए",
"औन न ही मुझे सिरफिरा मान लें",
"यूँ इसे समझकर आप",
"किसी शाही ख़ज़ाने का नक़्शा पा लेंगे या तिलिस्म को तोड़ने का",
"मंत्र जान लेंगे;",
"इन सब बातों से मेरा विश्वास उठ गया है; फिर भी",
"इच्छा हो तो अपने भीतर झाँक लें...",
"नपुंसक आत्महत्याओं को देखकर चौंकिए मत!",
"इस शताब्दी में अराजकता से अधिक नपुंसक आत्महत्याओं को शोर है मुझे वर्षों",
"चमड़ी के भीतर और बाहर होते हुए गुज़र गए हैं...",
"बरसों गुज़र गए हैं नंगे माहौल को चीथते-चीथते;",
"कठपुतलियों का नाच अभी",
"तक ख़त्म नहीं हुआ और मेरी पुतलियाँ पथराने लगी हैं।",
"शताब्दी के टेढ़े कंधों को सहलाते हुए मुझे उसकी",
"पीली आँखें दिखाई दी थीं जिनमें गली में घूमते शोहदे की",
"आवाज़ के बीच",
"किसी कमज़ोर बच्चे की तलाश रेंग रही थी। मैंने",
"उस मासूम तलाश के भीतर से गुज़रते हुए सोचा था",
"कि औघड़ों और प्रेतों की बस्ती में मुझे",
"एक जीवित हाड़-मांस का हाथ मिल गया है। उस",
"हाथ को तलाशे एक युग हो गया है",
"हाथ... न हिलता हैं, न इशारा करता है, न बोलता है",
"शातिर आँखों में उगे इस हाथ में सृजन की तपिश नहीं है।",
"नपुंसक चेहरों की भीड़ को देखते-देखते",
"हमेशा लगा है, मुझे ही",
"होना है",
"अकेला ईश्वर; अहम् ब्रह्मास्मि!",
"shatabdiyon ki nason mein chiranyadh bhar dene wale hathon ko kat dena hoga",
"ye kewal waqt ka sach tha ki",
"gharaundon ke sath sath safed",
"kabutron ka rang",
"bhi badal jata tha ha",
"ab",
"jab desh mein bhuchal aata hai—",
"imarten nahin girtin; kewal kuch kaghzon ke pulinde awara kutte ki bhanti",
"bhaunkne lagte hain",
"kal hone wali kranti mein bhag lene ke liye mere pas samay nahin hai",
"mujhe krantikari phoohD aur banaile nazar aate hain; unse",
"sabhyata ka itihas sikhne walon mein meri koi ruchi nahin!",
"shatabdi ka kafan kewal ek hi panja udheD sakta hai; wo panja kisi",
"kautily ya ahirawan ka nahin, dadhichi ki haDDiyon ko moD deta hai",
"wo nitshe ki nason ko dhanushakar banata hua uthta hai aur",
"kisi ke kandhon par bhi gir sakta hai us ‘kisi’ ko",
"janne ke liye aapko",
"apne mastishk ke khaDDon mein jhankna paDega;",
"bhuthe khanDahron mein ghumna paDega;",
"kisi dusre nakshatr par bhi jana paD sakta hai",
"aur is sabke bawjud",
"zaruri nahin ki aap us ‘kisi’ ko DhoonDh saken ya us khunkhar aur",
"muskrate dambhi panje ko pahchan saken ye bhi sambhaw hai",
"wo panja aapka ya mera hi pichha kar raha ho!",
"sambhawnaon aur pratyashaon ka is desh mein ant nahin,",
"apka man ho ha prjatantr ki shirayen nochiye; mainne",
"kirkegard ka muskrarna swikar kar liya hai; mujhe",
"prjatantr jaise jantu mein koi ruchi nahin!",
"ap aur main kabhi ‘samkaksh’ nahin ho sakte,",
"ap chahen to",
"samkalin hone ka dawa karte rahen aap",
"pahaD ki choti par khaDe hokar chikhen ya chillayen,",
"ap ab mere samkaksh nahin ho sakte;",
"alaw mein pakta hua jyoti pinD hoon",
"mainne",
"uski hattya nahin ki, bheeD ke sath patthar uchhalne ke liye",
"usne atmahatya kar li hai use bhay tha",
"sampurn shatabdi mein uski hattya ka shaDyantr racha ja raha hai",
"atmahatya usne mukti pane ke liye ki hai ya shaDyantr ka",
"chitkabra hissa hone ke liye ya dumakta bheDiya banne ke",
"liye, ise samajhne ke liye aap kripaya",
"kabaDi ki dukan mein saD rahe nitshe ko badnam mat kijiye",
"aun na hi mujhe sirphira man len",
"yoon ise samajhkar aap",
"kisi shahi khazane ka naqsha pa lenge ya tilism ko toDne ka",
"mantr jaan lenge;",
"in sab baton se mera wishwas uth gaya hai; phir bhi",
"ichha ho to apne bhitar jhank len",
"napunsak atmhatyaon ko dekhkar chaunkiye mat!",
"is shatabdi mein arajakta se adhik napunsak atmhatyaon ko shor hai mujhe warshon",
"chamDi ke bhitar aur bahar hote hue guzar gaye hain",
"barson guzar gaye hain nange mahaul ko chithte chithte;",
"kathaputaliyon ka nach abhi",
"tak khatm nahin hua aur meri putliyan pathrane lagi hain",
"shatabdi ke teDhe kandhon ko sahlate hue mujhe uski",
"pili ankhen dikhai di theen jinmen gali mein ghumte shohde ki",
"awaz ke beech",
"kisi kamzor bachche ki talash reng rahi thi mainne",
"us masum talash ke bhitar se guzarte hue socha tha",
"ki aughDon aur preton ki basti mein mujhe",
"ek jiwit haD mans ka hath mil gaya hai us",
"hath ko talashe ek yug ho gaya hai",
"hath na hilta hain, na ishara karta hai, na bolta hai",
"shatir ankhon mein uge is hath mein srijan ki tapish nahin hai",
"napunsak chehron ki bheeD ko dekhte dekhte",
"hamesha laga hai, mujhe hi",
"hona hai",
"akela ishwar; aham brahmasmi!",
"shatabdiyon ki nason mein chiranyadh bhar dene wale hathon ko kat dena hoga",
"ye kewal waqt ka sach tha ki",
"gharaundon ke sath sath safed",
"kabutron ka rang",
"bhi badal jata tha ha",
"ab",
"jab desh mein bhuchal aata hai—",
"imarten nahin girtin; kewal kuch kaghzon ke pulinde awara kutte ki bhanti",
"bhaunkne lagte hain",
"kal hone wali kranti mein bhag lene ke liye mere pas samay nahin hai",
"mujhe krantikari phoohD aur banaile nazar aate hain; unse",
"sabhyata ka itihas sikhne walon mein meri koi ruchi nahin!",
"shatabdi ka kafan kewal ek hi panja udheD sakta hai; wo panja kisi",
"kautily ya ahirawan ka nahin, dadhichi ki haDDiyon ko moD deta hai",
"wo nitshe ki nason ko dhanushakar banata hua uthta hai aur",
"kisi ke kandhon par bhi gir sakta hai us ‘kisi’ ko",
"janne ke liye aapko",
"apne mastishk ke khaDDon mein jhankna paDega;",
"bhuthe khanDahron mein ghumna paDega;",
"kisi dusre nakshatr par bhi jana paD sakta hai",
"aur is sabke bawjud",
"zaruri nahin ki aap us ‘kisi’ ko DhoonDh saken ya us khunkhar aur",
"muskrate dambhi panje ko pahchan saken ye bhi sambhaw hai",
"wo panja aapka ya mera hi pichha kar raha ho!",
"sambhawnaon aur pratyashaon ka is desh mein ant nahin,",
"apka man ho ha prjatantr ki shirayen nochiye; mainne",
"kirkegard ka muskrarna swikar kar liya hai; mujhe",
"prjatantr jaise jantu mein koi ruchi nahin!",
"ap aur main kabhi ‘samkaksh’ nahin ho sakte,",
"ap chahen to",
"samkalin hone ka dawa karte rahen aap",
"pahaD ki choti par khaDe hokar chikhen ya chillayen,",
"ap ab mere samkaksh nahin ho sakte;",
"alaw mein pakta hua jyoti pinD hoon",
"mainne",
"uski hattya nahin ki, bheeD ke sath patthar uchhalne ke liye",
"usne atmahatya kar li hai use bhay tha",
"sampurn shatabdi mein uski hattya ka shaDyantr racha ja raha hai",
"atmahatya usne mukti pane ke liye ki hai ya shaDyantr ka",
"chitkabra hissa hone ke liye ya dumakta bheDiya banne ke",
"liye, ise samajhne ke liye aap kripaya",
"kabaDi ki dukan mein saD rahe nitshe ko badnam mat kijiye",
"aun na hi mujhe sirphira man len",
"yoon ise samajhkar aap",
"kisi shahi khazane ka naqsha pa lenge ya tilism ko toDne ka",
"mantr jaan lenge;",
"in sab baton se mera wishwas uth gaya hai; phir bhi",
"ichha ho to apne bhitar jhank len",
"napunsak atmhatyaon ko dekhkar chaunkiye mat!",
"is shatabdi mein arajakta se adhik napunsak atmhatyaon ko shor hai mujhe warshon",
"chamDi ke bhitar aur bahar hote hue guzar gaye hain",
"barson guzar gaye hain nange mahaul ko chithte chithte;",
"kathaputaliyon ka nach abhi",
"tak khatm nahin hua aur meri putliyan pathrane lagi hain",
"shatabdi ke teDhe kandhon ko sahlate hue mujhe uski",
"pili ankhen dikhai di theen jinmen gali mein ghumte shohde ki",
"awaz ke beech",
"kisi kamzor bachche ki talash reng rahi thi mainne",
"us masum talash ke bhitar se guzarte hue socha tha",
"ki aughDon aur preton ki basti mein mujhe",
"ek jiwit haD mans ka hath mil gaya hai us",
"hath ko talashe ek yug ho gaya hai",
"hath na hilta hain, na ishara karta hai, na bolta hai",
"shatir ankhon mein uge is hath mein srijan ki tapish nahin hai",
"napunsak chehron ki bheeD ko dekhte dekhte",
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आह - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/aah-manoj-kumar-pandey-kavita-17?sort= | [
"मैं हूँ पर नहीं हूँ तेरे लिए",
"इतना कम है क्या कि",
"उठूँ और चुपचाप",
"इस दुनिया से चला जाऊँ",
"main hoon par nahin hoon tere liye",
"itna kam hai kya ki",
"uthun aur chupchap",
"is duniya se chala jaun",
"main hoon par nahin hoon tere liye",
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लूली विदा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/luli-wida-harbhajan-singh-kavita?sort= | [
"अनुवाद : गगन गिल",
"चलो दस्तपंजे के बिना ही",
"विदा हो जाएँ",
"मेरा हाथ ख़ुदकुशी के कारण",
"रस्म से मुक्त है",
"ख़ुदकुशी के किनारे",
"हाथ से पूछा था मैंने :",
"मेरी ख़ातिर तू मेरे दोस्तों की तरफ़",
"दस्तपंजा बनकर बढ़ता था",
"तेरे बिना दोस्ती का क्या बनेगा",
"तेरी हथेली पर अब तक लिखी",
"किस्मत की रेखा",
"मेरे बिना कौन इसको जिएगा",
"ख़ुदकुशी की धुन में पक्के",
"मेरे हाथ ने कहा :",
"मैं तुझको दोस्ती के दंभ से",
"मुक्ति दूँगा",
"ख़ुदकुशी के बग़ैर कोई भी मुक्ति नहीं मुमकिन",
"अपने से पहले",
"अपनी किस्मत को मरने दे",
"कि तुझे ढंग आए बिना किस्मत जीने का",
"तुझसे पहले जो भी था तेरे लिए",
"मैं अपने साथ उस को दफ़न करता हूँ",
"अजनबी धूप में बेकिस्मत गीत",
"अपनी छाया ख़ुद बनाएँगे",
"चलो बिन दस्तपंजे ही",
"विदा हो जाएँ",
"मेरा हाथ ख़ुदकुशी के कारण",
"रस्म से मुक्त है।",
"chalo dastpanje ke bina hi",
"wida ho jayen",
"mera hath khudakushi ke karan",
"rasm se mukt hai",
"khudakushi ke kinare",
"hath se puchha tha mainne ha",
"meri khatir tu mere doston ki taraf",
"dastpanja bankar baDhta tha",
"tere bina dosti ka kya banega",
"teri hatheli par ab tak likhi",
"kismat ki rekha",
"mere bina kaun isko jiyega",
"khudakushi ki dhun mein pakke",
"mere hath ne kaha ha",
"main tujhko dosti ke dambh se",
"mukti dunga",
"khudakushi ke baghair koi bhi mukti nahin mumkin",
"apne se pahle",
"apni kismat ko marne de",
"ki tujhe Dhang aaye bina kismat jine ka",
"tujhse pahle jo bhi tha tere liye",
"main apne sath us ko dafan karta hoon",
"ajnabi dhoop mein bekismat geet",
"apni chhaya khu banayenge",
"chalo bin dastpanje hi",
"wida ho jayen",
"mera hath khudakushi ke karan",
"rasm se mukt hai",
"chalo dastpanje ke bina hi",
"wida ho jayen",
"mera hath khudakushi ke karan",
"rasm se mukt hai",
"khudakushi ke kinare",
"hath se puchha tha mainne ha",
"meri khatir tu mere doston ki taraf",
"dastpanja bankar baDhta tha",
"tere bina dosti ka kya banega",
"teri hatheli par ab tak likhi",
"kismat ki rekha",
"mere bina kaun isko jiyega",
"khudakushi ki dhun mein pakke",
"mere hath ne kaha ha",
"main tujhko dosti ke dambh se",
"mukti dunga",
"khudakushi ke baghair koi bhi mukti nahin mumkin",
"apne se pahle",
"apni kismat ko marne de",
"ki tujhe Dhang aaye bina kismat jine ka",
"tujhse pahle jo bhi tha tere liye",
"main apne sath us ko dafan karta hoon",
"ajnabi dhoop mein bekismat geet",
"apni chhaya khu banayenge",
"chalo bin dastpanje hi",
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भरी दुपहरी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/bhari-dupahri-mamta-barhath-kavita?sort= | [
"भरी दुपहरी",
"उड़ती धूल में",
"कोई ताबूत खुल पड़ा",
"और मौत बाहर झाँकने लगी",
"सन्नाटा खोदने लगा आहटों को",
"हर आवाज़ एक अंधा कुआँ बनकर रह गई",
"ऐसी दुपहरियों में",
"मैं लेट जाती हूँ",
"किसी अदृश्य ताबूत में",
"बंद करती हूँ ख़ुद को",
"मृत्यु के साथ",
"ताकि जीवन खुला रह सके",
"मेरी स्मृति में कहीं किसी मोड़ पर मृत्यु",
"जीवन का रास्ता रोके खड़ी है।",
"bhari dupahri",
"uDti dhool mein",
"koi tabut khul paDa",
"aur maut bahar jhankne lagi",
"sannata khodne laga ahton ko",
"har awaz ek andha kuan bankar rah gai",
"aisi dupahariyon mein",
"main let jati hoon",
"kisi adrshy tabut mein",
"band karti hoon khu ko",
"mirtyu ke sath",
"taki jiwan khula rah sake",
"meri smriti mein kahin kisi moD par mirtyu",
"jiwan ka rasta roke khaDi hai",
"bhari dupahri",
"uDti dhool mein",
"koi tabut khul paDa",
"aur maut bahar jhankne lagi",
"sannata khodne laga ahton ko",
"har awaz ek andha kuan bankar rah gai",
"aisi dupahariyon mein",
"main let jati hoon",
"kisi adrshy tabut mein",
"band karti hoon khu ko",
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लगभग जान देना, जान देने से बड़ा होता है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/lagbhag-jaan-dena-jaan-dene-se-bada-hota-hai-anurag-anant-kavita?sort= | [
"ज़रूरी नहीं कि तुम बोलो और कोई सुन ही ले",
"ज़रूरी तो यह भी नहीं कि सुन कर कुछ कर ही दे",
"इसलिए आवाज़ निकालने की व्यर्थता",
"को सहलाते हुए मौन रहने का विकल्प",
"चुन लेते हैं जीवन और दुनिया देख चुके लोग",
"सब लोगों की दुनिया एक बराबर नहीं",
"किसी की दुनिया में सिर्फ़ चार लोग हैं",
"तो किसी की दुनिया में वह अकेला",
"और किसी किसी की दुनिया में",
"वह स्वयं भी नहीं है, जिसकी वह दुनिया है",
"वहाँ मात्र स्मृति और अबूझे विचार हैं",
"उस पानवाले के उदास चेहरे की तरह",
"जो मेरा नाम नहीं जानता पर मुझे जानता है",
"उसे मालूम होता है कि जब मैं उसकी दुकान के सामने खड़ा होता हूँ",
"तो तुम्हारे बारे में सोच रहा होता हूँ",
"उसे मालूम है मंगल ग्रह सिर्फ़ अंतरिक्ष में ही नहीं है",
"बल्कि तुम्हारी गली के चौथे मकान में भी है",
"उसे मालूम है 'यथार्थ' और 'लगभग यथार्थ' के बीच कितना फ़ासला है",
"और यह भी कि मैं एक दिन",
"इसी फ़ासले के बीच",
"गिर कर लगभग ख़त्म हो जाऊँगा",
"वह व्यक्ति कवि नहीं है",
"पर यह ज़रूर जानता है कि लगभग ग़ायब हो चुके",
"लोगों को बचा लिया जाना चाहिए",
"यदि बचाना चाहते हैं हम",
"यह दुनिया और इसके रंग",
"वह मुझसे कहता है",
"कि यदि ज़रूरत पड़ेगी तो",
"वह मुझे बचाने के लिए",
"लगभग अपनी जान दे सकता है",
"उसके बीवी-बच्चे हैं",
"इसलिए जान देने का विकल्प उसके पास नहीं है",
"'जान देना' छोटी बात है",
"और 'लगभग जान देना' उससे बड़ी",
"एक छोटी बात के सामने उससे बड़ी बात खड़ी हो तो",
"जीवन 'लगभग जीवन' होने से बच जाता है।",
"zaruri nahin ki tum bolo aur koi sun hi le",
"zaruri to ye bhi nahin ki sun kar kuch kar hi de",
"isliye awaz nikalne ki wyarthata",
"ko sahlate hue maun rahne ka wikalp",
"chun lete hain jiwan aur duniya dekh chuke log",
"sab logon ki duniya ek barabar nahin",
"kisi ki duniya mein sirf chaar log hain",
"to kisi ki duniya mein wo akela",
"aur kisi kisi ki duniya mein",
"wo swayan bhi nahin hai, jiski wo duniya hai",
"wahan matr smriti aur abujhe wichar hain",
"us panwale ke udas chehre ki tarah",
"jo mera nam nahin janta par mujhe janta hai",
"use malum hota hai ki jab main uski dukan ke samne khaDa hota hoon",
"to tumhare bare mein soch raha hota hoon",
"use malum hai mangal grah sirf antriksh mein hi nahin hai",
"balki tumhari gali ke chauthe makan mein bhi hai",
"use malum hai yatharth aur lagbhag yatharth ke beech kitna fasla hai",
"aur ye bhi ki main ek din",
"isi fasle ke beech",
"gir kar lagbhag khatm ho jaunga",
"wo wekti kawi nahin hai",
"par ye zarur janta hai ki lagbhag ghayab ho chuke",
"logon ko bacha liya jana chahiye",
"yadi bachana chahte hain hum",
"ye duniya aur iske rang",
"wo mujhse kahta hai",
"ki yadi zarurat paDegi to",
"wo mujhe bachane ke liye",
"lagbhag apni jaan de sakta hai",
"uske biwi bachche hain",
"isliye jaan dene ka wikalp uske pas nahin hai",
"jaan dena chhoti baat hai",
"aur lagbhag jaan dena usse baDi",
"ek chhoti baat ke samne usse baDi baat khaDi ho to",
"jiwan lagbhag jiwan hone se bach jata hai",
"zaruri nahin ki tum bolo aur koi sun hi le",
"zaruri to ye bhi nahin ki sun kar kuch kar hi de",
"isliye awaz nikalne ki wyarthata",
"ko sahlate hue maun rahne ka wikalp",
"chun lete hain jiwan aur duniya dekh chuke log",
"sab logon ki duniya ek barabar nahin",
"kisi ki duniya mein sirf chaar log hain",
"to kisi ki duniya mein wo akela",
"aur kisi kisi ki duniya mein",
"wo swayan bhi nahin hai, jiski wo duniya hai",
"wahan matr smriti aur abujhe wichar hain",
"us panwale ke udas chehre ki tarah",
"jo mera nam nahin janta par mujhe janta hai",
"use malum hota hai ki jab main uski dukan ke samne khaDa hota hoon",
"to tumhare bare mein soch raha hota hoon",
"use malum hai mangal grah sirf antriksh mein hi nahin hai",
"balki tumhari gali ke chauthe makan mein bhi hai",
"use malum hai yatharth aur lagbhag yatharth ke beech kitna fasla hai",
"aur ye bhi ki main ek din",
"isi fasle ke beech",
"gir kar lagbhag khatm ho jaunga",
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"par ye zarur janta hai ki lagbhag ghayab ho chuke",
"logon ko bacha liya jana chahiye",
"yadi bachana chahte hain hum",
"ye duniya aur iske rang",
"wo mujhse kahta hai",
"ki yadi zarurat paDegi to",
"wo mujhe bachane ke liye",
"lagbhag apni jaan de sakta hai",
"uske biwi bachche hain",
"isliye jaan dene ka wikalp uske pas nahin hai",
"jaan dena chhoti baat hai",
"aur lagbhag jaan dena usse baDi",
"ek chhoti baat ke samne usse baDi baat khaDi ho to",
"jiwan lagbhag jiwan hone se bach jata hai",
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अब ख़याल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/ab-khayal-viyogini-thakur-kavita?sort= | [
"अब उसे आत्महत्या के ख़याल नहीं आते",
"यह किसी गुज़रे ज़माने की बात रही होगी",
"ठीक वैसे ही",
"जैसे ज़िंदगी के एक दौर में",
"ख़्वाब नहीं आते",
"नींद नहीं आती",
"मुस्कान भी नहीं…",
"वह एक ज़िंदगी से भरपूर लड़की थी",
"वह हो जाती थी छोटी-छोटी बातों में ख़ुश",
"वे कहते रहे—",
"वह किसी दिन भाग जाएगी घर से",
"वे कभी जान ही नहीं पाए",
"कि उसे सिर्फ़ भागना ही नहीं आया",
"वह सिर्फ़ इतनी ख़ुशक़िस्मत रही",
"कि प्रेम में रही",
"लेकिन इतनी भी नहीं",
"कि कोई कसकर किसी दिन",
"उसका हाथ थाम लेता",
"और कहता—",
"मैं हूँ हमेशा साथ तुम्हारे",
"वे कहते हैं :",
"उसके हाथों हत्याएँ होंगी",
"वे कभी जान ही नहीं पाए",
"कि जो लड़की आँगन बुहारते वक़्त",
"चींटियों के बनाए घर तक",
"वैसे ही छोड़ दिया करती",
"वह कैसे किसी की हत्या कर सकती है!",
"क्या उसके माथे यह अपराध धर देना",
"उसकी ही हत्या कर देना नहीं था।",
"ab use atmahatya ke khayal nahin aate",
"ye kisi guzre zamane ki baat rahi hogi",
"theek waise hi",
"jaise zindagi ke ek daur mein",
"khwab nahin aate",
"neend nahin aati",
"muskan bhi nahin…",
"wo ek zindagi se bharpur laDki thi",
"wo ho jati thi chhoti chhoti baton mein khush",
"we kahte rahe—",
"wo kisi din bhag jayegi ghar se",
"we kabhi jaan hi nahin pae",
"ki use sirf bhagna hi nahin aaya",
"wo sirf itni khushqismat rahi",
"ki prem mein rahi",
"lekin itni bhi nahin",
"ki koi kaskar kisi din",
"uska hath tham leta",
"aur kahta—",
"main hoon hamesha sath tumhare",
"we kahte hain ha",
"uske hathon hatyayen hongi",
"we kabhi jaan hi nahin pae",
"ki jo laDki angan buharte waqt",
"chintiyon ke banaye ghar tak",
"waise hi chhoD diya karti",
"wo kaise kisi ki hattya kar sakti hai!",
"kya uske mathe ye apradh dhar dena",
"uski hi hattya kar dena nahin tha",
"ab use atmahatya ke khayal nahin aate",
"ye kisi guzre zamane ki baat rahi hogi",
"theek waise hi",
"jaise zindagi ke ek daur mein",
"khwab nahin aate",
"neend nahin aati",
"muskan bhi nahin…",
"wo ek zindagi se bharpur laDki thi",
"wo ho jati thi chhoti chhoti baton mein khush",
"we kahte rahe—",
"wo kisi din bhag jayegi ghar se",
"we kabhi jaan hi nahin pae",
"ki use sirf bhagna hi nahin aaya",
"wo sirf itni khushqismat rahi",
"ki prem mein rahi",
"lekin itni bhi nahin",
"ki koi kaskar kisi din",
"uska hath tham leta",
"aur kahta—",
"main hoon hamesha sath tumhare",
"we kahte hain ha",
"uske hathon hatyayen hongi",
"we kabhi jaan hi nahin pae",
"ki jo laDki angan buharte waqt",
"chintiyon ke banaye ghar tak",
"waise hi chhoD diya karti",
"wo kaise kisi ki hattya kar sakti hai!",
"kya uske mathe ye apradh dhar dena",
"uski hi hattya kar dena nahin tha",
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जीवित रहना बनाम लगभग जीवित रहना - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/jiwit-rahna-banam-lagbhag-jiwit-rahna-anurag-anant-kavita?sort= | [
"आत्मा सिर्फ़ एक शब्द भर बची है",
"अब उसके आँगन में नहीं लगती कोई अदालत",
"जीवित हैं जो वे जीवित रहने का अभिनय कर रहे हैं",
"विद्रोहियों को भी समर्पण का संक्रमण लग चुका है",
"आईने से सामने जाने से अब कोई नहीं डरता",
"आइने ख़रीदे जा चुके हैं",
"अब वे न्यायाधीशों की तरह सुंदरता के वकील बन गए हैं",
"कुरूपता को अब कुरूपता नहीं कहता कोई",
"कुरूपता के लिए 'लगभग सुंदर' शब्द गढ़ लिया गया है",
"देश में लोकतंत्र लगभग लोकतंत्र में बदल चुका है",
"हम स्वतंत्र नहीं बल्कि लगभग स्वतंत्र हैं",
"मर जाने से बेहतर नहीं होता लगभग मर जाना",
"जीवित रहने का विकल्प लगभग जीवित रहना कभी नहीं हो सकता।",
"aatma sirf ek shabd bhar bachi hai",
"ab uske angan mein nahin lagti koi adalat",
"jiwit hain jo we jiwit rahne ka abhinay kar rahe hain",
"widrohiyon ko bhi samarpan ka sankrman lag chuka hai",
"aine se samne jane se ab koi nahin Darta",
"aine kharide ja chuke hain",
"ab we nyayadhishon ki tarah sundarta ke wakil ban gaye hain",
"kurupata ko ab kurupata nahin kahta koi",
"kurupata ke liye lagbhag sundar shabd gaDh liya gaya hai",
"desh mein loktantr lagbhag loktantr mein badal chuka hai",
"hum swtantr nahin balki lagbhag swtantr hain",
"mar jane se behtar nahin hota lagbhag mar jana",
"jiwit rahne ka wikalp lagbhag jiwit rahna kabhi nahin ho sakta",
"aatma sirf ek shabd bhar bachi hai",
"ab uske angan mein nahin lagti koi adalat",
"jiwit hain jo we jiwit rahne ka abhinay kar rahe hain",
"widrohiyon ko bhi samarpan ka sankrman lag chuka hai",
"aine se samne jane se ab koi nahin Darta",
"aine kharide ja chuke hain",
"ab we nyayadhishon ki tarah sundarta ke wakil ban gaye hain",
"kurupata ko ab kurupata nahin kahta koi",
"kurupata ke liye lagbhag sundar shabd gaDh liya gaya hai",
"desh mein loktantr lagbhag loktantr mein badal chuka hai",
"hum swtantr nahin balki lagbhag swtantr hain",
"mar jane se behtar nahin hota lagbhag mar jana",
"jiwit rahne ka wikalp lagbhag jiwit rahna kabhi nahin ho sakta",
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ठीक उसी तरह मारा गया रोहित वेमुला - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/theek-usi-tarah-mara-gaya-rohit-wemula-nityanand-gayen-kavita?sort= | [
"हत्या की सारी तैयारी पहले से थी",
"भूख से कभी नहीं मरा किसान इस देश का",
"विश्वविद्यालय का छात्र भी नहीं मरा फाँसी लगाकर",
"जिस तरह पहले से तय षड्यंत्र के तहत",
"काट लिया गया था",
"एकलव्य का अँगूठा",
"ठीक उसी तरह मारा गया रोहित वेमुला",
"इस सीरीज में सबसे पहले निशाने पर था एकलव्य",
"द्रोणाचार्य ने किसके लिए माँग लिया था उसका अँगूठा!",
"कटा हुआ अँगूठा किसी काम का नहीं",
"माँगने वाले ने क्या किया उस अँगूठे से?",
"हाँ, अँगूठा देने वाले को बना दिया था अपंग",
"ताकि सुरक्षित रहें",
"हस्तिनापुर का भविष्य।",
"किसान ने जब भर दिया था अनाज के तमाम गोदामों को",
"फिर कैसे मर गया वह भूख से सपरिवार!",
"रथ के धँसने पर ही काट दी जाएगी",
"असहाय कर्ण की गर्दन",
"जानती थी सत्ता",
"हत्या अचानक नहीं होती किसी की",
"बहुत पहले से रची जाती है साजिश!",
"छान लीजिए इतिहास से",
"तमाम हत्याओं की कहानी",
"आपको पता चलेगा",
"कि यूँ ही नहीं हुआ था अचानक सब कुछ",
"आँखें बंद कर लेने से",
"अंधकार का भ्रम भर होता है",
"और चीख़ने से झूठ कभी सच नहीं हो जाता",
"आत्महत्या, केवल आत्महत्या नहीं",
"हत्या होती हैं।",
"hattya ki sari taiyari pahle se thi",
"bhookh se kabhi nahin mara kisan is desh ka",
"wishwawidyalay ka chhatr bhi nahin mara phansi lagakar",
"jis tarah pahle se tay shaDyantr ke tahat",
"kat liya gaya tha",
"eklawy ka angutha",
"theek usi tarah mara gaya rohit wemula",
"is sirij mein sabse pahle nishane par tha eklawy",
"dronachary ne kiske liye mang liya tha uska angutha!",
"kata hua angutha kisi kaam ka nahin",
"mangne wale ne kya kiya us anguthe se?",
"han, angutha dene wale ko bana diya tha apang",
"taki surakshait rahen",
"hastinapur ka bhawishya",
"kisan ne jab bhar diya tha anaj ke tamam godamon ko",
"phir kaise mar gaya wo bhookh se sapriwar!",
"rath ke dhansane par hi kat di jayegi",
"asahaye karn ki gardan",
"janti thi satta",
"hattya achanak nahin hoti kisi ki",
"bahut pahle se rachi jati hai sajish!",
"chhan lijiye itihas se",
"tamam hatyaon ki kahani",
"apko pata chalega",
"ki yoon hi nahin hua tha achanak sab kuch",
"ankhen band kar lene se",
"andhkar ka bhram bhar hota hai",
"aur chikhne se jhooth kabhi sach nahin ho jata",
"atmahatya, kewal atmahatya nahin",
"hattya hoti hain",
"hattya ki sari taiyari pahle se thi",
"bhookh se kabhi nahin mara kisan is desh ka",
"wishwawidyalay ka chhatr bhi nahin mara phansi lagakar",
"jis tarah pahle se tay shaDyantr ke tahat",
"kat liya gaya tha",
"eklawy ka angutha",
"theek usi tarah mara gaya rohit wemula",
"is sirij mein sabse pahle nishane par tha eklawy",
"dronachary ne kiske liye mang liya tha uska angutha!",
"kata hua angutha kisi kaam ka nahin",
"mangne wale ne kya kiya us anguthe se?",
"han, angutha dene wale ko bana diya tha apang",
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"phir kaise mar gaya wo bhookh se sapriwar!",
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"hattya achanak nahin hoti kisi ki",
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"ki yoon hi nahin hua tha achanak sab kuch",
"ankhen band kar lene se",
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आत्महत्या का पक्ष - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/atmahatya-ka-paksh-aagney-kavita?sort= | [
"अब ऐसा कुछ नहीं बचा जीवन में",
"सब कुछ बीत चुका है जीवन में",
"हो चुका नहीं जो पहले ही जीवन में",
"ऊब चुका हूँ प्रार्थनाओं, आह्वानों",
"चीख़ों और पुकारों से",
"जर्जर मन, कमीनी काया और वीरान आत्मा की कारगुज़ारियों",
"आतंकित हूँ",
"इश्क़ के कारोबार में दिवालिया",
"घोषित हो चुका हूँ",
"उठाईगीर कामनाओं से",
"लुटेरी महत्वाकांक्षाओं से",
"टुच्ची दुश्मनियों से",
"टुकड़ख़ोर मित्रताओं से",
"पिट-पिटकर समतल",
"हो चुका हूँ",
"मैं कनपटी पर तनी",
"एक भरी रिवॉल्वर हूँ",
"थामे रहोगे मेरा हाथ",
"कब तक?",
"ab aisa kuch nahin bacha jiwan mein",
"sab kuch beet chuka hai jiwan mein",
"ho chuka nahin jo pahle hi jiwan mein",
"ub chuka hoon prarthnaon, ahwanon",
"chikhon aur pukaron se",
"jarjar man, kamini kaya aur wiran aatma ki karaguzariyon",
"atankit hoon",
"ishq ke karobar mein diwaliya",
"ghoshait ho chuka hoon",
"uthaigir kamnaon se",
"luteri mahatwakankshaon se",
"tuchchi dushmaniyon se",
"tukaDkhor mitrtaon se",
"pit pitkar samtal",
"ho chuka hoon",
"main kanpati par tani",
"ek bhari riwaulwar hoon",
"thame rahoge mera hath",
"kab tak?",
"ab aisa kuch nahin bacha jiwan mein",
"sab kuch beet chuka hai jiwan mein",
"ho chuka nahin jo pahle hi jiwan mein",
"ub chuka hoon prarthnaon, ahwanon",
"chikhon aur pukaron se",
"jarjar man, kamini kaya aur wiran aatma ki karaguzariyon",
"atankit hoon",
"ishq ke karobar mein diwaliya",
"ghoshait ho chuka hoon",
"uthaigir kamnaon se",
"luteri mahatwakankshaon se",
"tuchchi dushmaniyon se",
"tukaDkhor mitrtaon se",
"pit pitkar samtal",
"ho chuka hoon",
"main kanpati par tani",
"ek bhari riwaulwar hoon",
"thame rahoge mera hath",
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विदर्भ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/vidarbh-ramagya-shashidhar-kavita?sort= | [
"संसार का सबसे बड़ा श्मशान",
"धूसर सलेटी काला",
"संसार का सबसे बड़ा कफ़न",
"मुलायम सफ़ेद आरामदेह",
"मणिकर्णिके",
"तुमने विदर्भ नहीं देखा है",
"sansar ka sabse baDa shmshaan",
"dhusar saleti kala",
"sansar ka sabse baDa kafan",
"mulayam safed aramdeh",
"manikarnike",
"tumne vidarbh nahin dekha hai",
"sansar ka sabse baDa shmshaan",
"dhusar saleti kala",
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ब्रा में हाथ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/bra-mein-haath-arun-sheetansh-kavita?sort= | [
"दुनिया एक खेत है",
"और उस खेत में पड़े किसान पेड़ हैं",
"वे जो ब्रा में हाथ डाले चलाते हैं शासन",
"वहाँ जलते हैं किसान के सुंदर कलेजे",
"हत्या हो रही है",
"हर दिन हत्या एक उत्सव-सा",
"लेकिन कंधे पर रखे कुदाल से हत्या नहीं हो रही",
"बल्कि दो जाँघों के बीच बैठे",
"क़ैंची से काटी जा रही हैं नसें",
"जैसे धान के गाम कुतरे जा रहे हैं",
"किसान कठघरे में है",
"इसलिए वे छींट नहीं पा रहे हैं बीज",
"दरअसल, प्रतिदिन पाँच सितारा में छिड़के जा रहे हैं बीज",
"और वहाँ छहल रही हैं मछलियाँ",
"मैं उस एकांत संसद को भंग कर रहा हूँ",
"जहाँ ऐसे में होती है आत्महत्या",
"तो पृथ्वी का एक सेकंड निकल जाता है",
"दीवाल पर बैठी चिड़िया रो रही है",
"तार पर बैठी चिड़िया हँस रही है",
"यह इतिहास में दर्ज नहीं है",
"या भारत के आंदोलन की पृष्ठभूमि में",
"लेकिन हर दिन लिखा रहा है—'आत्महत्या'",
"duniya ek khet hai",
"aur us khet mein paDe kisan peD hain",
"ve jo bra mein haath Dale chalate hain shasan",
"vahan jalte hain kisan ke sundar kaleje",
"hatya ho rahi hai",
"har din hatya ek utsav sa",
"lekin kandhe par rakhe kudal se hatya nahin ho rahi",
"balki do janghon ke beech baithe",
"kainchi se kati ja rahi hain nasen",
"jaise dhaan ke gaam kutre ja rahe hain",
"kisan kathaghre mein hai",
"isliye ve chhit nahin pa rahe hain beej",
"darasal pratidin paanch sitara mein chhiDke ja rahe hain beej",
"aur vahan chhahal rahi hain machhliyan",
"main us ekaant sansad ko bhang kar raha hoon",
"jahan aise mein hoti hai atmahatya",
"to prithvi ka ek sekanD nikal jata hai",
"dival par baithi chiDiya ro rahi hai",
"taar par baithi chiDiya hans rahi hai",
"ye itihas mein darz nahin hai",
"ya bharat ke andolan ki prishthabhumi mein",
"lekin har din likha raha hai—atmahatya",
"duniya ek khet hai",
"aur us khet mein paDe kisan peD hain",
"ve jo bra mein haath Dale chalate hain shasan",
"vahan jalte hain kisan ke sundar kaleje",
"hatya ho rahi hai",
"har din hatya ek utsav sa",
"lekin kandhe par rakhe kudal se hatya nahin ho rahi",
"balki do janghon ke beech baithe",
"kainchi se kati ja rahi hain nasen",
"jaise dhaan ke gaam kutre ja rahe hain",
"kisan kathaghre mein hai",
"isliye ve chhit nahin pa rahe hain beej",
"darasal pratidin paanch sitara mein chhiDke ja rahe hain beej",
"aur vahan chhahal rahi hain machhliyan",
"main us ekaant sansad ko bhang kar raha hoon",
"jahan aise mein hoti hai atmahatya",
"to prithvi ka ek sekanD nikal jata hai",
"dival par baithi chiDiya ro rahi hai",
"taar par baithi chiDiya hans rahi hai",
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"lekin har din likha raha hai—atmahatya",
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मैं इन दिनों बहुत डरा हुआ हूँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/main-in-dinon-bahut-dara-hua-hoon-bahadur-patel-kavita?sort= | [
"डरा हुआ हूँ मैं इन दिनों",
"यह डर कविता लिखने से पहले का है",
"इसे लिखते-लिखते हो सकता है मेरा क़त्ल",
"और कविता रह जाए अधूरी",
"या ऐसा भी हो कि इसे लिखूँ",
"और मारा जाऊँ",
"यह भी हो सकता है कि",
"कविता को सुसाइड नोट में तब्दील कर दिया जाए",
"आज तक जितने भी राष्ट्रों के सुसाइड नोट हैं",
"मेरा यह डर इसलिए भी है कि",
"वे इस वाक़ये को देशभक्ति या बलिदान की",
"शक्ल में करेंगे पेश",
"उनकी उँगलियाँ कटी होंगी सिर्फ़",
"और वे लाशों का ढेर लगा देंगे",
"गाई जाएँगी विरुदावलियाँ",
"इस ख़ौफ़नाक समय से आते हैं निकलकर",
"डरावनी लिपियों से गुदे हाथ",
"जो दबाते हैं गला",
"मेरे डर का रंग है गाढ़ा",
"जिसको खुरचते हैं उनके आदिम नाख़ून",
"मैं रोने को होता हूँ",
"यह रोना ही मेरी कविता है।",
"Dara hua hoon main in dinon",
"ye Dar kawita likhne se pahle ka hai",
"ise likhte likhte ho sakta hai mera qatl",
"aur kawita rah jaye adhuri",
"ya aisa bhi ho ki ise likhun",
"aur mara jaun",
"ye bhi ho sakta hai ki",
"kawita ko susaiD not mein tabdil kar diya jaye",
"aj tak jitne bhi rashtron ke susaiD not hain",
"mera ye Dar isliye bhi hai ki",
"we is waqye ko deshabhakti ya balidan ki",
"shakl mein karenge pesh",
"unki ungliyan kati hongi sirf",
"aur we lashon ka Dher laga denge",
"gai jayengi wirudawaliyan",
"is khaufnak samay se aate hain nikalkar",
"Darawni lipiyon se gude hath",
"jo dabate hain gala",
"mere Dar ka rang hai gaDha",
"jisko khurachte hain unke aadim nakhun",
"main rone ko hota hoon",
"ye rona hi meri kawita hai",
"Dara hua hoon main in dinon",
"ye Dar kawita likhne se pahle ka hai",
"ise likhte likhte ho sakta hai mera qatl",
"aur kawita rah jaye adhuri",
"ya aisa bhi ho ki ise likhun",
"aur mara jaun",
"ye bhi ho sakta hai ki",
"kawita ko susaiD not mein tabdil kar diya jaye",
"aj tak jitne bhi rashtron ke susaiD not hain",
"mera ye Dar isliye bhi hai ki",
"we is waqye ko deshabhakti ya balidan ki",
"shakl mein karenge pesh",
"unki ungliyan kati hongi sirf",
"aur we lashon ka Dher laga denge",
"gai jayengi wirudawaliyan",
"is khaufnak samay se aate hain nikalkar",
"Darawni lipiyon se gude hath",
"jo dabate hain gala",
"mere Dar ka rang hai gaDha",
"jisko khurachte hain unke aadim nakhun",
"main rone ko hota hoon",
"ye rona hi meri kawita hai",
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सबसे महँगा फ़ेशियल - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/sabse-mahga-feshiyal-preeti-choudhary-kavita?sort= | [
"सबसे महँगा फ़ेशियल कराकर पार्लर से घर लौटी",
"शहर के आला अधिकारी की पत्नी ने",
"पति की लाइसेंसी बंदूक़ से",
"ख़ुद को मार लिया",
"शहर के सबसे शानदार इलाक़े के आलीशान कोठी में",
"विशालकाय गेट के भीतर",
"ऊपर के कमरे में चली थी गोली",
"स्थानीय रिपोर्टर ये बात पचासों बार बता चुके थे",
"पार्लर वालों ने बंद कर दी थी टीवी",
"ग़मगीन और उदास",
"वे पड़ताल में भिड़े थे",
"आख़िर क्यों मरी होंगी मैडम",
"बिचारी कितनी अच्छी थीं",
"टिप में थमा देतीं पाँच सौ की नोट",
"अमूमन फ़ेशियल एक महीने पर होते हैं",
"और पैडिक्योर पंद्रह दिनों पर",
"पर मैडम पंद्रह दिनों पर फ़ेशियल",
"और हफ़्ते भर में मैनिक्योर-पैडिक्योर के लिए आ जाती",
"पार्लर की सबसे पुरानी और अनुभवी कर्मचारी ने बताया कि",
"कुछ गहरे दुखता रहता मैडम के भीतर",
"फ़ेशियल का मसाज भी",
"नहीं मिटा पाता था चेहरे पर उभरी",
"अवसाद की रेखाएँ",
"बिना गोली के सो नहीं पाती थीं वह",
"कभी भी पार्लर में फ़ोन नहीं आया",
"मैडम के पति का",
"न ही बच्चों का",
"मैडम के कंगन अक्सर बदल जाते",
"पर उदास हँसी नहीं बदली",
"कभी एक महिला कर्मचारी ने दावा किया",
"मैडम उसे दोस्त मानती थीं",
"बिटिया की शादी में",
"सत्तर हज़ार उधार भी दिए थे",
"अख़बारों ने लिखा",
"पति के मुताबिक़",
"अवसाद में थी पत्नी",
"बच्चों ने भी पुलिस को बताया",
"पापा सही कह रहे हैं",
"डिप्रेशन में थीं मॉम",
"पार्लर की मालकिन जानती है",
"डेढ़ लाख का पैकेज छोड़कर मरी है अमीर क्लायंट",
"अपने बाल, त्वचा और नाख़ूनों तक पर लंबी चर्चा करने वाली",
"मैडम ने हर मुमकिन कोशिश की",
"ख़ुद को पति की निगाह में आकर्षक बनाए रखने की",
"पार्लर वालों का मानना है",
"लाखों जतन के बावजूद",
"अपने पति के जीवन से ख़ारिज थीं वह",
"पति के जीवन में कोई और थी",
"मर गईं शायद इसीलिए।",
"sabse mahga feshiyal karakar parlour se ghar lauti",
"shahr ke aala adhikari ki patni ne",
"pati ki laisensi banduq se",
"khu ko maar liya",
"shahr ke sabse shanadar ilaqe ke alishan kothi mein",
"vishalakay gate ke bhitar",
"upar ke kamren mein chali thi goli",
"asthaniya riportar ye baat pachason baar bata chuke the",
"parlour valon ne band kar di thi tivi",
"ghamgin aur udaas",
"ve paDtal mein bhiDe the",
"akhir kyon mari hongi maiDam",
"bichari kitni achchhi theen",
"tip mein thama detin paanch sau ki not",
"amuman feshiyal ek mahine par hote hain",
"aur paiDikyor pandrah dinon par,",
"par maiDam pandrah dinon par feshiyal",
"aur hafte bhar mein mainikyor paiDikyor ke liye aa jati",
"parlour ki sabse purani aur anubhvi karmachari ne bataya ki",
"kuch gahre dukhta rahta maiDam ke bhitar",
"feshiyal ka masaj bhi",
"nahin mita pata tha chehre par ubhri",
"avsad ki rekhayen",
"bina goli ke so nahin pati theen wo",
"kabhi bhi parlour mein phone nahin aaya maiDam ke pati ka",
"na hi bachchon ka",
"maiDam ke kangan aksar badal jate",
"par udaas hansi nahin badli kabhi ek mahila karmachari ne dava kiya",
"maiDam use dost manti theen",
"bitiya ki shadi mein",
"sattar hazar udhaar bhi diye the",
"akhbaron ne likha",
"pati ke mutabiq",
"avsad mein thi patni",
"bachchon ne bhi police ko bataya",
"papa sahi kah rahe hain",
"depression mein theen maum",
"parlour ki malkin janti hai",
"DeDh laakh ka package chhoD kar mari hai amir klayant",
"apne baal, tvacha aur nakhunon tak par lambi charcha karne vali",
"maiDam ne har mumkin koshish ki",
"khu ko pati ki nigah mein akarshak banaye rakhne ki",
"parlour valon ka manna hai",
"lakhon jatan ke bavjud",
"apne pati ke jivan se kharij theen ve",
"pati ke jivan mein koi aur thi",
"mar gain shayad isiliye.",
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"pati ki laisensi banduq se",
"khu ko maar liya",
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"vishalakay gate ke bhitar",
"upar ke kamren mein chali thi goli",
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"pati ke mutabiq",
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"papa sahi kah rahe hain",
"depression mein theen maum",
"parlour ki malkin janti hai",
"DeDh laakh ka package chhoD kar mari hai amir klayant",
"apne baal, tvacha aur nakhunon tak par lambi charcha karne vali",
"maiDam ne har mumkin koshish ki",
"khu ko pati ki nigah mein akarshak banaye rakhne ki",
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"lakhon jatan ke bavjud",
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आत्महत्या की घोषणा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/aatmhatya-kii-ghoshna-dilip-shakya-kavita?sort= | [
"वह गिटार बजा रहा है",
"मैं तमंचा उठा रहा हूँ",
"यह आत्महत्या नहीं आत्महत्या की घोषणा है",
"क़ातिल उजालों के स्वप्निल आवेश में",
"झूमते-झूमते",
"उखड़ रही है उसकी साँस",
"फावड़े को कुएँ में फेंककर",
"खुरपी की धार रेतकर",
"शहर की सड़क पर खड़ा हूँ मैं",
"यह आत्महत्या नहीं आत्महत्या की घोषणा है",
"wo gitar baja raha hai",
"main tamancha utha raha hoon",
"ye atmahatya nahin atmahatya ki ghoshna hai",
"qatil ujalon ke svapnil avesh mein",
"jhumte jhumte",
"ukhaD rahi hai uski saans",
"phavDe ko kuen mein phenkkar",
"khurpi ki dhaar retkar",
"shahr ki saDak par khaDa hoon main",
"ye atmahatya nahin atmahatya ki ghoshna hai",
"wo gitar baja raha hai",
"main tamancha utha raha hoon",
"ye atmahatya nahin atmahatya ki ghoshna hai",
"qatil ujalon ke svapnil avesh mein",
"jhumte jhumte",
"ukhaD rahi hai uski saans",
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माँएँ आत्महत्या क्यों नहीं करतीं? - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/maayen-aatmhatya-q-nhi-karti-juvi-sharma-kavita?sort= | [
"मेरे जन्म का शोक",
"माँ ने इक्कीस दिन प्रसूताग्रह में भोगा था",
"अपनी जन्मजात कन्या को रोते हुए गोद में लेना",
"उनकी पहली असफल आत्महत्या थी।",
"कंजक जिनका स्वागत नहीं किया जाता",
"वहाँ कवचं, अर्गलास्त्रोत्र, क्षमा प्रार्थना, देवी सूक्तम किस तरह मान्य होंगे?",
"स्त्रियाँ हत्यारिन अपना गर्भपात करवाकर बनीं",
"मेरे देह की अंदरूनी हलचल मुझे इंगित करवा रही थी",
"संसार के लिंगानुपात का ढाँचा एक बार फिर डगमगाने वाला है।",
"स्त्रीलिंग शावक के प्रादुर्भाव पर पशु शोक नहीं मनाते",
"वहाँ कन्या भ्रूण को पपीते और लौंग खिलाकर गिराया नहीं जाता",
"चिरैया, गौरैया पर मूल मंगल नहीं लगते",
"उनके भ्रूण का लिंग जाँच नहीं होता",
"दाइयाँ उन्हें बदलती नहीं",
"अस्तु! आत्महताएँ भी नहीं होतीं",
"भगवान मरीचिमाली की ताम्रवर्णी शाश्वत्व रश्मि को जन्म देकर मैं समझ पाई",
"माँएँ आत्महत्या क्यों नहीं करतीं...",
"mere janm ka shok",
"maan ne ikkis din prsutagrah mein bhoga tha",
"apni janmajat kanya ko rote hue god mein lena",
"unki pahli asaphal atmahatya thi.",
"kanjak jinka svagat nahin kiya jata",
"vahan kavachan, arglastrotr, kshama pararthna,devi suktam kis tarah maany honge?",
"striyan hatyarin apna garbhpat karva kar bani",
"mere deh ki andruni halchal mujhe ingit karva rahi thi",
"sansar ke linganupat ka Dhancha ek baar phir Dagmagane vala hai.",
"striling shavak ke pradurbhav par pashu shok nahin manate",
"vahan kanya bhroon ko papite aur laung khilakar giraya nahin jata",
"chiraiya, gauraiya par mool mangal nahin lagte",
"unke bhroon ka ling jaanch nahin hota",
"daiyan unhen badalti nahin",
"astu! atmahtayen bhi nahin hoti",
"bhagvan marichimali ki tamrvarni shashvatv rashmi ko janm dekar main samajh pai",
"mayen atmahatya kyon nahin karti. . .",
"mere janm ka shok",
"maan ne ikkis din prsutagrah mein bhoga tha",
"apni janmajat kanya ko rote hue god mein lena",
"unki pahli asaphal atmahatya thi.",
"kanjak jinka svagat nahin kiya jata",
"vahan kavachan, arglastrotr, kshama pararthna,devi suktam kis tarah maany honge?",
"striyan hatyarin apna garbhpat karva kar bani",
"mere deh ki andruni halchal mujhe ingit karva rahi thi",
"sansar ke linganupat ka Dhancha ek baar phir Dagmagane vala hai.",
"striling shavak ke pradurbhav par pashu shok nahin manate",
"vahan kanya bhroon ko papite aur laung khilakar giraya nahin jata",
"chiraiya, gauraiya par mool mangal nahin lagte",
"unke bhroon ka ling jaanch nahin hota",
"daiyan unhen badalti nahin",
"astu! atmahtayen bhi nahin hoti",
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किसान की आत्महत्या भी मृत्यु है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/kisan-ki-atmahatya-bhi-mirtyu-hai-uma-shankar-choudhary-kavita?sort= | [
"यह कितना अच्छा है कि",
"इस देश के किसान अख़बार नहीं पढ़ा करते",
"नहीं तो वे जान जाते",
"अपनी आत्महत्या की ख़बरें",
"और कम हो जाती उनकी फ़सल पैदा करने की ललक",
"वे जान जाते",
"अनाज के दानों की सौंधी गंध का",
"उन तक नहीं पहुँच पाने के पीछे का राज़",
"और कम हो जाती उनकी जिजीविषा",
"इतिहास में यह समय",
"जितना विकास के लिए दर्ज होगा",
"उससे अधिक होगा अपनी विडंबनाओं के लिए",
"और जब बारी उन विडंबनाओं की पड़ताल की जाएगी",
"तब जो सबसे ऊपर आएगा, उसमें होंगी",
"अख़बार में छपी किसानों की आत्महत्या की ख़बरें",
"और यह कृषिप्रधान देश",
"उनकी आत्महत्या की ख़बरें",
"गूँजती हैं सत्ता के गलियारों में",
"और निर्धारित करती हैं सरकार का बनना और बिगड़ना",
"और फिर ख़बर बनकर चिपक जाती हैं",
"सुबह-सुबह अख़बार के पन्नों पर",
"जिन अख़बार के पन्नों पर ले जाते हैं अपने खेत पर वे कीटनाशक",
"ताकि लहलहा सके उनकी पैदावार",
"किसान नहीं जानता है",
"पौधे जितने ही लहलहाएँगे",
"मंडी में कम होंगी उतनी ही दरें",
"और बढ़ेंगी उतनी ही आत्महत्याएँ",
"किसान सोचता है क्या कोई कीटनाशक ऐसा नहीं जो",
"मार सके समाज के मुनाफ़ाख़ोरों को",
"और जो दिला सके मंडी में उन्हें उचित क़ीमत",
"किसान ज्यों ही ख़त्म करता है कीटनाशक",
"अख़बार के उन पन्नों से झाँकने लगती हैं",
"दो बच्चियों के साथ उनकी विवश माँ की ताज़ा तस्वीर",
"जिसे खींचा गया है",
"उस किसान की आत्महत्या के उपरांत",
"आज जब इस देश में",
"पूँजी को आवारा बनाने की पुरज़ोर कोशिश है",
"तब यह सच एक ऐसा सच है",
"जिसे जान लेना बहुत ही सरल है",
"लेकिन ख़बर जिनसे बनती हैं",
"अक्सर उन तक पहुँचने से उन्हें रोका जाता है",
"हम यह जानते हैं कि",
"उनकी आत्महत्या की ख़बरें उन तक नहीं पहुँचकर",
"अनाज उत्पादन के मद्देनज़र",
"इस देश के हित में है",
"हम यह सोचते हैं कि",
"या तो यह अच्छा है कि",
"किसान अख़बार पढ़ना नहीं जानते",
"या फिर यह अच्छा है कि",
"नहीं हो अख़बार में उनकी आत्महत्या की ख़बरें",
"परंतु क्या फ़र्क़ ही पड़ जाता जो",
"इस देश के किसान अख़बार पढ़ना जानते",
"और क्या फ़र्क़ पड़ जाता",
"जो उसमें होती उनकी आत्महत्याओं की ख़बर के बदले",
"बजट की घोषणाएँ",
"और दिए गए होते उनमें किसानों के लिए विशेष पैकेज।",
"ye kitna achchha hai ki",
"is desh ke kisan akhbar nahin paDha karte",
"nahin to we jaan jate",
"apni atmahatya ki khabren",
"aur kam ho jati unki fasal paida karne ki lalak",
"we jaan jate",
"anaj ke danon ki saundhi gandh ka",
"un tak nahin pahunch pane ke pichhe ka raaz",
"aur kam ho jati unki jijiwisha",
"itihas mein ye samay",
"jitna wikas ke liye darj hoga",
"usse adhik hoga apni wiDambnaon ke liye",
"aur jab bari un wiDambnaon ki paDtal ki jayegi",
"tab jo sabse upar ayega, usmen hongi",
"akhbar mein chhapi kisanon ki atmahatya ki khabren",
"aur ye krishiprdhan desh",
"unki atmahatya ki khabren",
"gunjti hain satta ke galiyaron mein",
"aur nirdharit karti hain sarkar ka banna aur bigaDna",
"aur phir khabar bankar chipak jati hain",
"subah subah akhbar ke pannon par",
"jin akhbar ke pannon par le jate hain apne khet par we kitanashak",
"taki lahlaha sake unki paidawar",
"kisan nahin janta hai",
"paudhe jitne hi lahalhayenge",
"manDi mein kam hongi utni hi daren",
"aur baDhengi utni hi atmhatyayen",
"kisan sochta hai kya koi kitanashak aisa nahin jo",
"mar sake samaj ke munafakhoron ko",
"aur jo dila sake manDi mein unhen uchit qimat",
"kisan jyon hi khatm karta hai kitanashak",
"akhbar ke un pannon se jhankne lagti hain",
"do bachchiyon ke sath unki wiwash man ki taza taswir",
"jise khincha gaya hai",
"us kisan ki atmahatya ke uprant",
"aj jab is desh mein",
"punji ko awara banane ki purazor koshish hai",
"tab ye sach ek aisa sach hai",
"jise jaan lena bahut hi saral hai",
"lekin khabar jinse banti hain",
"aksar un tak pahunchne se unhen roka jata hai",
"hum ye jante hain ki",
"unki atmahatya ki khabren un tak nahin pahunchakar",
"anaj utpadan ke maddenzar",
"is desh ke hit mein hai",
"hum ye sochte hain ki",
"ya to ye achchha hai ki",
"kisan akhbar paDhna nahin jante",
"ya phir ye achchha hai ki",
"nahin ho akhbar mein unki atmahatya ki khabren",
"parantu kya farq hi paD jata jo",
"is desh ke kisan akhbar paDhna jante",
"aur kya farq paD jata",
"jo usmen hoti unki atmhatyaon ki khabar ke badle",
"budget ki ghoshnayen",
"aur diye gaye hote unmen kisanon ke liye wishesh package",
"ye kitna achchha hai ki",
"is desh ke kisan akhbar nahin paDha karte",
"nahin to we jaan jate",
"apni atmahatya ki khabren",
"aur kam ho jati unki fasal paida karne ki lalak",
"we jaan jate",
"anaj ke danon ki saundhi gandh ka",
"un tak nahin pahunch pane ke pichhe ka raaz",
"aur kam ho jati unki jijiwisha",
"itihas mein ye samay",
"jitna wikas ke liye darj hoga",
"usse adhik hoga apni wiDambnaon ke liye",
"aur jab bari un wiDambnaon ki paDtal ki jayegi",
"tab jo sabse upar ayega, usmen hongi",
"akhbar mein chhapi kisanon ki atmahatya ki khabren",
"aur ye krishiprdhan desh",
"unki atmahatya ki khabren",
"gunjti hain satta ke galiyaron mein",
"aur nirdharit karti hain sarkar ka banna aur bigaDna",
"aur phir khabar bankar chipak jati hain",
"subah subah akhbar ke pannon par",
"jin akhbar ke pannon par le jate hain apne khet par we kitanashak",
"taki lahlaha sake unki paidawar",
"kisan nahin janta hai",
"paudhe jitne hi lahalhayenge",
"manDi mein kam hongi utni hi daren",
"aur baDhengi utni hi atmhatyayen",
"kisan sochta hai kya koi kitanashak aisa nahin jo",
"mar sake samaj ke munafakhoron ko",
"aur jo dila sake manDi mein unhen uchit qimat",
"kisan jyon hi khatm karta hai kitanashak",
"akhbar ke un pannon se jhankne lagti hain",
"do bachchiyon ke sath unki wiwash man ki taza taswir",
"jise khincha gaya hai",
"us kisan ki atmahatya ke uprant",
"aj jab is desh mein",
"punji ko awara banane ki purazor koshish hai",
"tab ye sach ek aisa sach hai",
"jise jaan lena bahut hi saral hai",
"lekin khabar jinse banti hain",
"aksar un tak pahunchne se unhen roka jata hai",
"hum ye jante hain ki",
"unki atmahatya ki khabren un tak nahin pahunchakar",
"anaj utpadan ke maddenzar",
"is desh ke hit mein hai",
"hum ye sochte hain ki",
"ya to ye achchha hai ki",
"kisan akhbar paDhna nahin jante",
"ya phir ye achchha hai ki",
"nahin ho akhbar mein unki atmahatya ki khabren",
"parantu kya farq hi paD jata jo",
"is desh ke kisan akhbar paDhna jante",
"aur kya farq paD jata",
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मैं सबसे क्रूर था - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/main-sabse-kroor-tha-navin-rangiyal-kavita?sort= | [
"वे सौ रुपए में",
"अपने सारे दु:ख",
"उस नंगी औरत को",
"बेच देना चाहती हैं",
"वे पानी पर प्रार्थनाएँ लिखती हैं—",
"प्रेम में पड़ने के लिए",
"कुत्ते उसके प्रेम के राज़दार हैं",
"वे प्रेम में संगीत सुनती हैं",
"एक आदमी उसके संगीत पर सिगरेट पीता है",
"उसकी सिगरेट से धुआँ नहीं निकलता",
"लड़की के बाल उड़ते हैं",
"पानी के विस्तार पर तैरता है—",
"उनका प्रेम",
"फिर डूबता है",
"तस्वीरों में जायज़ था—",
"सारा भ्रम",
"पानी के आस-पास",
"सब जगहें ख़ाली थीं—",
"खड़े रहने के लिए",
"लेकिन मैं उन्हीं जगहों पर खड़ा रहता हूँ",
"जहाँ से आत्महत्याएँ की जाती हैं",
"मैं सबसे क्रूर आदमी हूँ",
"मुझे दीवार में चुनवा दिया जाना चाहिए",
"we sau rupae mein",
"apne sare duhakh",
"us nangi aurat ko",
"bech dena chahti hain",
"we pani par prarthnayen likhti hain—",
"prem mein paDne ke liye",
"kutte uske prem ke razdar hain",
"we prem mein sangit sunti hain",
"ek adami uske sangit par cigarette pita hai",
"uski cigarette se dhuan nahin nikalta",
"laDki ke baal uDte hain",
"pani ke wistar par tairta hai—",
"unka prem",
"phir Dubta hai",
"taswiron mein jayaz tha—",
"sara bhram",
"pani ke aas pas",
"sab jaghen khali theen—",
"khaDe rahne ke liye",
"lekin main unhin jaghon par khaDa rahta hoon",
"jahan se atmhatyayen ki jati hain",
"main sabse kroor adami hoon",
"mujhe diwar mein chunwa diya jana chahiye",
"we sau rupae mein",
"apne sare duhakh",
"us nangi aurat ko",
"bech dena chahti hain",
"we pani par prarthnayen likhti hain—",
"prem mein paDne ke liye",
"kutte uske prem ke razdar hain",
"we prem mein sangit sunti hain",
"ek adami uske sangit par cigarette pita hai",
"uski cigarette se dhuan nahin nikalta",
"laDki ke baal uDte hain",
"pani ke wistar par tairta hai—",
"unka prem",
"phir Dubta hai",
"taswiron mein jayaz tha—",
"sara bhram",
"pani ke aas pas",
"sab jaghen khali theen—",
"khaDe rahne ke liye",
"lekin main unhin jaghon par khaDa rahta hoon",
"jahan se atmhatyayen ki jati hain",
"main sabse kroor adami hoon",
"mujhe diwar mein chunwa diya jana chahiye",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
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बाधा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/badha-kumar-virendra-kavita?sort= | [
"छत पर बिल्लियाँ झगड़ रही हैं",
"गली में रो रहे हैं कुत्ते",
"चूहे यहाँ से वहाँ अपनी दौड़ में हैं",
"कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है अपना छूटा होगा अभी काम से",
"टिटकारी दे खेला रही है कोई माँ अपने बच्चे को",
"किसी की रसोई से बर्तन गिरने का स्वर गूँज रहा है",
"वैसे तो बादल भी गरज रहे हैं",
"हहरा रहा है अरब सागर",
"गाड़ियाँ भाग रही हैं सड़क का पीछा करतीं",
"रात इस तरह अपनी पूरी जवानी पर हावी है",
"कमरे का अँधेरा हर एक आँख तक पसरा हुआ",
"और बज रही है हर एक की साँस",
"एक आदमी जो जागने के निमित्त जगा हुआ है अभी तक",
"बाधा पहुँचा रहे हैं ये सब उसके सोचने में",
"एक आदमी शायद आज की रात भी",
"आत्महत्या का निर्णय नहीं ले पाएगा।",
"chhat par billiyan jhagaD rahi hain",
"gali mein ro rahe hain kutte",
"chuhe yahan se vahan apni dauD mein hain",
"koi darvaza khatkhata raha hai apna chhuta hoga abhi kaam se",
"titkari de khela rahi hai koi maan apne bachche ko",
"kisi ki rasoi se bartan girne ka svar goonj raha hai",
"vaise to badal bhi garaj rahe hain",
"hahra raha hai arab sagar",
"gaDiyan bhaag rahi hain saDak ka pichha kartin",
"raat is tarah apni puri javani par havi hai",
"kamre ka andhera har ek ankh tak pasra hua",
"aur baj rahi hai har ek ki saans",
"ek adami jo jagne ke nimitt jaga hua hai abhi tak",
"badha pahuncha rahe hain ye sab uske sochne men",
"ek adami shayad aaj ki raat bhi",
"atmahatya ka nirnay nahin le payega.",
"chhat par billiyan jhagaD rahi hain",
"gali mein ro rahe hain kutte",
"chuhe yahan se vahan apni dauD mein hain",
"koi darvaza khatkhata raha hai apna chhuta hoga abhi kaam se",
"titkari de khela rahi hai koi maan apne bachche ko",
"kisi ki rasoi se bartan girne ka svar goonj raha hai",
"vaise to badal bhi garaj rahe hain",
"hahra raha hai arab sagar",
"gaDiyan bhaag rahi hain saDak ka pichha kartin",
"raat is tarah apni puri javani par havi hai",
"kamre ka andhera har ek ankh tak pasra hua",
"aur baj rahi hai har ek ki saans",
"ek adami jo jagne ke nimitt jaga hua hai abhi tak",
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हिप्पी पीढ़ी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/hippi-pidhi-gurumel-kavita?sort= | [
"अंधी गली में से",
"कल जो लाश",
"बरामद हुई थी",
"वह ऊपर वाली छत पर",
"रहने वाले अवयस्क के",
"घर से निकली थी",
"कल रात यही नागरिक",
"कंधे पर अपनी लाश उठाए",
"आनंदित, हँसता-मुस्कुराता",
"मटक-मटककर पाँव बढ़ाता",
"हवा में से कुछ और पकड़ता",
"अपने घर में, ग़ैरों की तरह",
"दाख़िल हुआ था",
"इस बस्ती में रहने वालों ने सुना",
"अपने वस्त्र तन से उतारकर",
"निज शरीर का दृश्य बनाकर",
"कौर-निवाले दूर फेंकता",
"फिसली आँखें—पुतली सुंदर",
"अद्भुत चितकबरे रंगों की",
"तरल-सी इक लीला को लेकर",
"मनचाहा कोलाज़ बनाया",
"लेकिन कोई भी कोलाज़",
"न मन को भाया,",
"उसके नाप न आया",
"कभी-कभी उपराम-सा होकर",
"धड़ को अंधी गली में",
"खुलती खिड़की के चौखटे में कसकर",
"प्रकृति में बिखरे रंगों को",
"जकड़ना चाहे, पाना चाहे",
"अंबर में उड़ते-उड़ते ही",
"शायद उसको मनचाहा कोलाज़ मिल गया",
"जिस तक असफल पहुँचा करते",
"पृथ्वी के आकर्षण से",
"सहज ही वह अज्ञात हो गया",
"वैसे उसका, आत्महत्या का समय नहीं था",
"शिक्षा अर्जित करने की बेला में",
"मुट्ठी भर कैप्सूल लिए कंठ से नीचे",
"नस-नस व्यापी",
"धीमे विष की",
"मिश्रित पुड़ियों के पश्चात्",
"इस पर जीवन",
"साथ चल दिया।",
"andhi gali mein se",
"kal jo lash",
"baramad hui thi",
"wo uparwali chhat par",
"rahne wale awyask ke",
"ghar se nikli thi",
"kal raat wahi nagarik",
"kandhe par apni lash uthaye",
"anandit, hansta muskurata",
"matak matakkar panw baDhata",
"hawa mein se kuch aur pakaDta",
"apne ghar mein, ghairon ki tarah",
"dakhil hua tha",
"is basti mein rahne walon ne suna",
"apne wastra tan se utarkar",
"nij sharir ka drishya banakar",
"kaur niwale door phenkta",
"phisli ankhen—putli sundar",
"adbhut chitkabre rangon ki",
"taral si ek lila ko lekar",
"manchaha kolaz banaya",
"lekin koi bhi kolaz",
"na man ko bhaya,",
"uske nap na aaya",
"kabhi kabhi upram sa hokar",
"dhaD ko andhi gali mein",
"khulti khiDki ke chaukhate mein kaskar",
"prakrti mein bikhre rangon ko",
"jakaDna chahe, pana chahe",
"ambar mein uDte uDte hi",
"shayad usko manchaha kolaz mil gaya",
"jis tak asaphal pahuncha karte",
"prithwi ke akarshan se",
"sahj hi wo agyat ho gaya",
"waise uska, atmahatya ka samay nahin tha",
"shiksha arjit karne ki bela mein",
"mutthi bhar capsule liye kanth se niche",
"nas nas wyapi",
"dhime wish ki",
"mishrit puDiyon ke pashchat",
"is par jiwan",
"sath chal diya",
"andhi gali mein se",
"kal jo lash",
"baramad hui thi",
"wo uparwali chhat par",
"rahne wale awyask ke",
"ghar se nikli thi",
"kal raat wahi nagarik",
"kandhe par apni lash uthaye",
"anandit, hansta muskurata",
"matak matakkar panw baDhata",
"hawa mein se kuch aur pakaDta",
"apne ghar mein, ghairon ki tarah",
"dakhil hua tha",
"is basti mein rahne walon ne suna",
"apne wastra tan se utarkar",
"nij sharir ka drishya banakar",
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"phisli ankhen—putli sundar",
"adbhut chitkabre rangon ki",
"taral si ek lila ko lekar",
"manchaha kolaz banaya",
"lekin koi bhi kolaz",
"na man ko bhaya,",
"uske nap na aaya",
"kabhi kabhi upram sa hokar",
"dhaD ko andhi gali mein",
"khulti khiDki ke chaukhate mein kaskar",
"prakrti mein bikhre rangon ko",
"jakaDna chahe, pana chahe",
"ambar mein uDte uDte hi",
"shayad usko manchaha kolaz mil gaya",
"jis tak asaphal pahuncha karte",
"prithwi ke akarshan se",
"sahj hi wo agyat ho gaya",
"waise uska, atmahatya ka samay nahin tha",
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इन्हीं हालात में - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/inhin-halat-mein-pankaj-singh-kavita?sort= | [
"अक्सर। जब निरीह भलों की जान ली जाती है।",
"तो बड़े क़रीने से पैदा की जाती है वैसी कोई बात।",
"कि लगे आमफ़हम दुर्घटना। और यह भी कि",
"पिछली जुलाई में। या उससे पहले। या उसके बाद भी",
"कई बार। कैसे हम बचे थे बाल-बाल इन्हीं हालात में।",
"प्रागैतिहासिक पशुओं का सामना करते हुए",
"फ़िलहाल जीवन है जिस तरह का। उसमें। यह बाल-बाल बचना",
"मुहावरा भर नहीं है।",
"जान ली जाए और लगे कि गई जैसे जाती है। या",
"जानी ही थी। कुछ भी न खटके सुबह की चाय पीते। या",
"रस्मी तौर पर घर से निकलते बच्चों की तरफ़ हाथ हिलाते।",
"ग़रीब के विरोध की। संकल्प की पवित्रता।",
"दिखाई दे हास्यास्पद या कि दक़ियानूसी अबोधों की।",
"लगे। होता हुआ सारा जायज़ है इस वध्य प्रदेश में।",
"तो वहीं से। शुरुआत होती है। आत्महत्या की। क़िस्त-दर-क़िस्त",
"धुँधले होते आईनों में। जो नहीं दिखती किसी सूरत। और",
"जिसे कहने-जतलाने की कोशिश में। देर रात गए। या",
"मनहूस ख़बरों में लुकती-छिपती। मन के निचाट में।",
"दरवाज़ा पीटती है कविता। अपना सर्वस्व जलाती हुई।",
"aksar jab nirih bhalon ki jaan li jati hai",
"to baDe qarine se paida ki jati hai waisi koi baat",
"ki lage amafah durghatna aur ye bhi ki",
"pichhli julai mein ya usse pahle ya uske baad bhi",
"kai bar kaise hum bache the baal baal inhin halat mein",
"pragaitihasik pashuon ka samna karte hue",
"filaha jiwan hai jis tarah ka usmen ye baal baal bachna",
"muhawara bhar nahin hai",
"jaan li jaye aur lage ki gai jaise jati hai ya",
"jani hi thi kuch bhi na khatke subah ki chay pite ya",
"rasmi taur par ghar se nikalte bachchon ki taraf hath hilate",
"gharib ke wirodh ki sankalp ki pawitarta",
"dikhai de hasyaspad ya ki daqiyanusi abodhon ki",
"lage hota hua sara jayaz hai is wadhy pardesh mein",
"to wahin se shuruat hoti hai atmahatya ki qit dar qit",
"dhundhale hote ainon mein jo nahin dikhti kisi surat aur",
"jise kahne jatlane ki koshish mein der raat gaye ya",
"manhus khabron mein lukti chhipti man ke nichat mein",
"darwaza pitti hai kawita apna sarwasw jalati hui",
"aksar jab nirih bhalon ki jaan li jati hai",
"to baDe qarine se paida ki jati hai waisi koi baat",
"ki lage amafah durghatna aur ye bhi ki",
"pichhli julai mein ya usse pahle ya uske baad bhi",
"kai bar kaise hum bache the baal baal inhin halat mein",
"pragaitihasik pashuon ka samna karte hue",
"filaha jiwan hai jis tarah ka usmen ye baal baal bachna",
"muhawara bhar nahin hai",
"jaan li jaye aur lage ki gai jaise jati hai ya",
"jani hi thi kuch bhi na khatke subah ki chay pite ya",
"rasmi taur par ghar se nikalte bachchon ki taraf hath hilate",
"gharib ke wirodh ki sankalp ki pawitarta",
"dikhai de hasyaspad ya ki daqiyanusi abodhon ki",
"lage hota hua sara jayaz hai is wadhy pardesh mein",
"to wahin se shuruat hoti hai atmahatya ki qit dar qit",
"dhundhale hote ainon mein jo nahin dikhti kisi surat aur",
"jise kahne jatlane ki koshish mein der raat gaye ya",
"manhus khabron mein lukti chhipti man ke nichat mein",
"darwaza pitti hai kawita apna sarwasw jalati hui",
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रस्सी से फाँसी के फंदे ही नहीं बनते - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/rassi-se-phansi-ke-phande-hi-nahin-bante-gulzar-hussain-kavita-2?sort= | [
"रस्सी से केवल फाँसी के फंदे ही नहीं बनते",
"इससे झूला भी बनता है",
"पेड़ों की शाख पर लटकते झूलों में",
"खिलखिलाते बच्चे",
"देखते हैं आकाश छूने का सपना",
"रस्सियों के सहारे सैलानी तानते हैं तंबू",
"ओर निर्जन स्थानों पर पा जाते हैं घर-सी शांति",
"इससे लाँघते हैं पर्वतारोही दुर्गम नाले",
"और आत्मविश्वास से जा पहुँचते हैं चोटी तक झंडा फहराने",
"भारी सामान खींचने का समय",
"मज़दूरों के लिए रस्सी सबसे बड़ी मित्र होती है",
"इस मज़बूत रस्सी में मिलता है उनका पसीना",
"और असर हो जाती है रस्सी",
"छत और आँगन पर",
"रस्सी की अलगनी नई दुल्हन की सहेली बन जाती है",
"जिस पर पसार आती है वह कपड़ों संग अपने दुख",
"और निश्चिंत होकर देख लेती है आकाश में उड़ती पतंग को कई बार",
"सड़क पर तमाशा दिखाने वालों की बेटियों के आँसू",
"सबसे पहले रस्सी ही पोंछती है",
"और बनाती है उन्हें सबसे बड़ी कलाकर",
"वे जब रस्सी पर चलती हुई घबराती हैं",
"तो रस्सी उनके तलवों से चिपक जाती है",
"उन्हें गिरने नहीं देती",
"उसी समय लोग दाँतों तले उंगलियाँ दबा लेते हैं",
"और तालियाँ बजाते हुए फेंकते हैं पैसे",
"बड़ी-बड़ी बाधाओं को लाँघने का सपना",
"छोटी लड़की तब से देखना शुरू करती है",
"जब वह रस्सी कूदती है",
"रस्सी लोगों को जीने का मार्ग बताती है",
"नदी में डूबते लोगों को बचाती है",
"लेकिन वह गले का फंदा बनना नहीं चाहती।",
"rassi se kewal phansi ke phande hi nahin bante",
"isse jhula bhi banta hai",
"peDon ki shakh par latakte jhulon mein",
"khilkhilate bachche",
"dekhte hain akash chhune ka sapna",
"rassiyon ke sahare sailani tante hain tambu",
"or nirjan sthanon par pa jate hain ghar si shanti",
"isse langhate hain parwatarohi durgam nale",
"aur atmawishwas se ja pahunchte hain choti tak jhanDa phahrane",
"bhari saman khinchne ka samay",
"mazduron ke liye rassi sabse baDi mitr hoti hai",
"is mazbut rassi mein milta hai unka pasina",
"aur asar ho jati hai rassi",
"chhat aur angan par",
"rassi ki algani nai dulhan ki saheli ban jati hai",
"jis par pasar aati hai wo kapDon sang apne dukh",
"aur nishchint hokar dekh leti hai akash mein uDti patang ko kai bar",
"saDak par tamasha dikhane walon ki betiyon ke ansu",
"sabse pahle rassi hi ponchhti hai",
"aur banati hai unhen sabse baDi kalakar",
"we jab rassi par chalti hui ghabrati hain",
"to rassi unke talwon se chipak jati hai",
"unhen girne nahin deti",
"usi samay log danton tale ungaliyan daba lete hain",
"aur taliyan bajate hue phenkte hain paise",
"baDi baDi badhaon ko langhane ka sapna",
"chhoti laDki tab se dekhana shuru karti hai",
"jab wo rassi kudti hai",
"rassi logon ko jine ka marg batati hai",
"nadi mein Dubte logon ko bachati hai",
"lekin wo gale ka phanda banna nahin chahti",
"rassi se kewal phansi ke phande hi nahin bante",
"isse jhula bhi banta hai",
"peDon ki shakh par latakte jhulon mein",
"khilkhilate bachche",
"dekhte hain akash chhune ka sapna",
"rassiyon ke sahare sailani tante hain tambu",
"or nirjan sthanon par pa jate hain ghar si shanti",
"isse langhate hain parwatarohi durgam nale",
"aur atmawishwas se ja pahunchte hain choti tak jhanDa phahrane",
"bhari saman khinchne ka samay",
"mazduron ke liye rassi sabse baDi mitr hoti hai",
"is mazbut rassi mein milta hai unka pasina",
"aur asar ho jati hai rassi",
"chhat aur angan par",
"rassi ki algani nai dulhan ki saheli ban jati hai",
"jis par pasar aati hai wo kapDon sang apne dukh",
"aur nishchint hokar dekh leti hai akash mein uDti patang ko kai bar",
"saDak par tamasha dikhane walon ki betiyon ke ansu",
"sabse pahle rassi hi ponchhti hai",
"aur banati hai unhen sabse baDi kalakar",
"we jab rassi par chalti hui ghabrati hain",
"to rassi unke talwon se chipak jati hai",
"unhen girne nahin deti",
"usi samay log danton tale ungaliyan daba lete hain",
"aur taliyan bajate hue phenkte hain paise",
"baDi baDi badhaon ko langhane ka sapna",
"chhoti laDki tab se dekhana shuru karti hai",
"jab wo rassi kudti hai",
"rassi logon ko jine ka marg batati hai",
"nadi mein Dubte logon ko bachati hai",
"lekin wo gale ka phanda banna nahin chahti",
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रोते हुए कहा उसने क्षोभ से - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/rote-hue-kaha-usne-kshaobh-se-preeti-choudhary-kavita?sort= | [
"हे मेरे जीवन!",
"समाप्त हो गया धैर्य",
"अब मरना ही होगा",
"जीने की ज़लालत और नहीं",
"आलमारी में ही थी पिस्तौल लाइसेंसी",
"उसने कहा :",
"मैं किस दिन-रात के लिए हूँ सखी",
"इसी जान पर बन आने वाले दिन-रात के लिए ही न!",
"जाकर मार दो उन्हें पर मरो मत",
"उसने बंद कर दिया रोना और",
"पिस्तौल को देखती रही देर तक",
"तय किया कि",
"पिस्तौल को भी सोचने का",
"भरपूर मौक़ा देना चाहिए",
"पिस्तौल ने कमरे में रखी किताबों को निहारा",
"कविताओं की किताबों के पास थोड़ा ठिठकी",
"बुद्ध की प्रतिमा के पास आँखें चुराई उसने",
"और स्टडी से बाहर निकल गई",
"शयनकक्ष में मुस्कुराती किताबों में से एक",
"गिर गई शरारत से ठीक पिस्तौल के ऊपर",
"किताब वही गिरी",
"जो प्रिय थी बहुत",
"एक कवि की किताब",
"रसूल हमज़ातोव वाली",
"रसूल ने कहा",
"एक बार मुझे और छुओ और",
"मेरी ख़ुशबू में नहा लो",
"चलो घूम आओ मेरा गाँव त्सादा मेरे साथ",
"इसके बाद निकल जाना लेकर अपनी पिस्तौल",
"छलनी कर देना उन्हें",
"मुझे पता था अपने गाँव त्सादा ले जाना कवि की चाल है",
"वहाँ की वनस्पतियाँ सोख लेंगी मेरा रोष",
"वहाँ की हवा कर देगी मेरा कलेजा नरम",
"न रसूल न!",
"माफ़ करो नहीं जाना मुझे दाग़िस्तान।",
"मार देना था मुझे",
"मेरी पिस्तौल गोलियों के साथ तैयार ही थी कि",
"फिर एक कवि ने रास्ता रोक लिया",
"और बेगमपुरा चलने की बात करने लगा",
"बड़ी मुश्किल से कबीर और तुलसी को",
"अनसुना किया था कि मुक्तिबोध मिल गए",
"कहाँ हृदय का आयतन बढ़ाने की बात थी",
"उनके ओछेपन से आपको और गहरा होना था",
"और कहाँ आपके हाथ में ये पिस्तौल",
"अब मैं कैसे बताऊँ गजानन माधव मुक्तिबोध जी कि",
"कितनी मुश्किल से मिला था ये पिस्तौल का लाइसेंस",
"अब जब फ़ैसले की घड़ी है",
"मुझे कुछ कर गुज़रना है तो",
"दुनिया के बड़े सेनापतियों, राज्याध्यक्षों",
"और उस 'गॉडफ़ादर' बने मार्लन ब्रैंडो की",
"बजाय ये कवि क्यों कर रहे हैं बहस मुझसे",
"बहस क्या कर रहे हैं",
"कालिदास तो कातर होकर रो पड़े हैं",
"सदियों पहले उज्जयिनी में भी",
"सत्ताएँ निरंकुश थी",
"ज़ालिम बाबू वहाँ भी थे",
"स्त्रियों का दिल दुखता था",
"पर पिस्तौल किसी के पास नहीं थी",
"जम्बूद्वीप, आर्यावर्त के भारत खंड में",
"आज किताबें उदास और कविताएँ निरीह हैं",
"ये गद्य लिखने का समय है",
"विशेषकर इतिहास लिखने का",
"कवियों जाओ तुम!",
"आज का दिन सबसे उदास",
"इसलिए नहीं है कि कुछ कवियों की हार हुई",
"और करुणा की जगह सामूहिक हिंसा विजेता घोषित हुई है",
"आज का दिन सबसे अवसाद भरा है कि",
"एक स्त्री",
"जो कल तक पूरी मनुष्य थी,",
"उसके पर्स में",
"कविता की जगह पिस्तौल रखी गई।",
"he mere jivan!",
"samapt ho gaya dhairya",
"ab marna hi hoga",
"jine ki zalalat aur nahin",
"almari mein hi thi pistol laisensi",
"usne kaha",
"main kis din raat ke liye hoon sakhi",
"isi jaan par ban aane vale din raat ke liye hi na",
"jakar maar do unhen par maro mat",
"usne band kar diya rona aur",
"pistol ko dekhti rahi der tak",
"tay kiya ki",
"pistol ko bhi sochne ka",
"bharpur mauqa dena chahiye",
"pistol ne kamre mein rakhi kitabon ko nihara",
"kavitaon ki kitabon ke paas thoDa thithki",
"buddh ki pratima ke paas ankhen churai usne",
"aur study se bahar nikal gai",
"shayankaksh mein muskrati kitabon mein se ek",
"gir gai shararat se theek pistol ke upar",
"kitab vahi giri",
"jo priy thi bahut",
"ek kavi ki kitab",
"rasul hamzatov vali",
"rasul ne kaha",
"ek baar mujhe aur chhuo aur",
"meri khushbu mein nha lo",
"chalo ghoom aao mera gaanv tsada mere saath",
"iske baad nikal jana lekar apni pistol",
"chhalni kar dena unhen",
"mujhe pata tha apne gaanv tsada le jana kavi ki chaal hai",
"vahan ki vanaspatiyan sokh lengi mera rosh",
"vahan ki hava kar degi mera kaleja naram",
"na rasul na!",
"maaf karo nahin jana mujhe daghistan.",
"maar dena tha mujhe",
"meri pistol goliyon ke saath taiyar hi thi ki",
"phir ek kavi ne rasta rok liya",
"aur begamapura chalne ki baat karne laga",
"baDi mushkil se kabir aur tulsi ko",
"ansuna kiya tha ki muktibodh mil gaye",
"kahan hrday ka ayatan baDhane ki baat thi",
"unke ochhepan se aapko aur gahra hona tha",
"aur kahan aapke haath mein ye pistol",
"ab main kaise bataun gajanan madhav muktibodh ji ki",
"kitni mushkil se mila tha ye pistol ka laisens",
"ab jab faisle ki ghaDi hai",
"mujhe kuch kar guzarna hai to",
"duniya ke baDe senapatiyon, rajyadhyakshon",
"aur us gauDfadar bane marlin branDon ki",
"bajay ye kavi kyon kar rahe hain bahs mujhse",
"bahs kya kar rahe hain",
"kalidas to katar hokar ro paDe hain",
"sadiyon pahle ujjayini mein bhi",
"sattayen nirankush thi",
"zalim babu vahan bhi the",
"istriyon ka dil dukhta tha",
"par pistol kisi ke paas nahin thi",
"jambudvip, aryavart ke bharat khanD mein",
"aaj kitaben udaas aur kavitayen nirih hain",
"ye gady likhne ka samay hai",
"visheshkar itihas likhne ka",
"kaviyon jao tum!",
"aaj ka din sabse udaas",
"isliye nahin hai ki kuch kaviyon ki haar hui aur karuna ki jagah samuhik hinsa vijeta ghoshait hui hai",
"aaj ka din sabse avsad bhara hai ki",
"ek istri",
"jo kal tak puri manushya thi,",
"uske purse mein",
"kavita ki jagah pistol rakhi gai.",
"he mere jivan!",
"samapt ho gaya dhairya",
"ab marna hi hoga",
"jine ki zalalat aur nahin",
"almari mein hi thi pistol laisensi",
"usne kaha",
"main kis din raat ke liye hoon sakhi",
"isi jaan par ban aane vale din raat ke liye hi na",
"jakar maar do unhen par maro mat",
"usne band kar diya rona aur",
"pistol ko dekhti rahi der tak",
"tay kiya ki",
"pistol ko bhi sochne ka",
"bharpur mauqa dena chahiye",
"pistol ne kamre mein rakhi kitabon ko nihara",
"kavitaon ki kitabon ke paas thoDa thithki",
"buddh ki pratima ke paas ankhen churai usne",
"aur study se bahar nikal gai",
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"gir gai shararat se theek pistol ke upar",
"kitab vahi giri",
"jo priy thi bahut",
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"rasul hamzatov vali",
"rasul ne kaha",
"ek baar mujhe aur chhuo aur",
"meri khushbu mein nha lo",
"chalo ghoom aao mera gaanv tsada mere saath",
"iske baad nikal jana lekar apni pistol",
"chhalni kar dena unhen",
"mujhe pata tha apne gaanv tsada le jana kavi ki chaal hai",
"vahan ki vanaspatiyan sokh lengi mera rosh",
"vahan ki hava kar degi mera kaleja naram",
"na rasul na!",
"maaf karo nahin jana mujhe daghistan.",
"maar dena tha mujhe",
"meri pistol goliyon ke saath taiyar hi thi ki",
"phir ek kavi ne rasta rok liya",
"aur begamapura chalne ki baat karne laga",
"baDi mushkil se kabir aur tulsi ko",
"ansuna kiya tha ki muktibodh mil gaye",
"kahan hrday ka ayatan baDhane ki baat thi",
"unke ochhepan se aapko aur gahra hona tha",
"aur kahan aapke haath mein ye pistol",
"ab main kaise bataun gajanan madhav muktibodh ji ki",
"kitni mushkil se mila tha ye pistol ka laisens",
"ab jab faisle ki ghaDi hai",
"mujhe kuch kar guzarna hai to",
"duniya ke baDe senapatiyon, rajyadhyakshon",
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"bajay ye kavi kyon kar rahe hain bahs mujhse",
"bahs kya kar rahe hain",
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"ye gady likhne ka samay hai",
"visheshkar itihas likhne ka",
"kaviyon jao tum!",
"aaj ka din sabse udaas",
"isliye nahin hai ki kuch kaviyon ki haar hui aur karuna ki jagah samuhik hinsa vijeta ghoshait hui hai",
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"jo kal tak puri manushya thi,",
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आत्महत्या - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/atmahatya-sulochna-kavita?sort= | [
"जल रहे थे जंगल",
"सूख रहीं थीं नदियाँ",
"काटे जा रहे थे पहाड़",
"और इस तरह बीत रही थी सदियाँ",
"सहने की सीमा थी",
"पृथ्वी अवसादग्रस्त हुई",
"वह पृथ्वी के अनंत प्रेम में था पागल",
"ईश्वर ने आत्महत्या कर ली!",
"jal rahe the jangal",
"sookh rahin theen nadiyan",
"kate ja rahe the pahaD",
"aur is tarah beet rahi thi sadiyan",
"sahne ki sima thi",
"prithwi awsadagrast hui",
"wo prithwi ke anant prem mein tha pagal",
"ishwar ne atmahatya kar lee!",
"jal rahe the jangal",
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आख़िरी सत्य - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/akhiri-saty-purushottam-pratik-kavita?sort= | [
"और अंततः",
"मैंने जान लिया कि",
"शोषण ही सत्य है",
"भेदभाव अनित्य",
"वर्ग, जाति, धर्म, प्रजाति",
"शाश्वत हैं",
"और इन सबकी ख़िलाफ़त",
"आत्महत्या",
"ईश्वर इन सबका सरदार है",
"वही है इसके पीछे",
"स्मिथ का हाथ कुछ और नहीं",
"ईश्वर का हाथ है",
"वही है",
"हत्यारा",
"शोषक",
"भेदभाव का सर्जक",
"बलात्कारी",
"यही जानना सत्य है",
"यही कैवल्य",
"यही निर्वाण और मोक्ष",
"शेष सब मिथ्या",
"aur antatः",
"mainne jaan liya ki",
"shoshan hi saty hai",
"bhedabhav anity",
"varg, jati, dharm, prajati",
"shashvat hain",
"aur in sabki khilafat",
"atmahatya",
"ishvar in sabka sardar hai",
"vahi hai iske pichhe",
"smith ka haath kuch aur nahin",
"ishvar ka haath hai",
"vahi hai",
"hatyara",
"shoshak",
"bhedabhav ka sarjak",
"balatkari",
"yahi janna saty hai",
"yahi kaivalya",
"yahi nirvan aur moksh",
"shesh sab mithya",
"aur antatः",
"mainne jaan liya ki",
"shoshan hi saty hai",
"bhedabhav anity",
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"shashvat hain",
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खेत - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/khet-ramagya-shashidhar-kavita?sort= | [
"खेत से आते हैं फाँसी के धागे",
"खेत से आती है सल्फास की टिकिया",
"खेत से आते हैं श्रद्धांजलि के फूल",
"खेत से आता है सफ़ेद कफ़न",
"खेत से सिर्फ़ रोटी नहीं आती",
"khet se aate hain phansi ke dhage",
"khet se aati hai salphas ki tikiya",
"khet se ote hain shraddhanjli ke phul",
"khet se aata hai safed kafan",
"khet se sirf roti nahin aati",
"khet se aate hain phansi ke dhage",
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आत्महत्या के विरुद्ध - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/atmahatya-ke-wiruddh-anuj-lugun-kavita?sort= | [
"वे तुम्हारी आत्महत्या पर अफ़सोस नहीं करेंगे",
"आत्महत्या उनके लिए दार्शनिक चिंता का विषय है",
"वे इसकी व्याख्या में सवाल को वहीं टाँग देंगे",
"जिस पेड़ पर तुमने अपना फंदा डाला था",
"यह उनके लिए चिंता का विषय नहीं होगा",
"वे जानते हैं गेहूँ की क़ीमत लोहे से कम है",
"और इस वक़्त वे लोहे की खेती में व्यस्त हैं",
"लोहे की खेती के लिए ही उन्होंने",
"आदिवासी गाँवों में",
"सैन्य छावनी के साथ डेरा डाला है",
"लोहे की खेती के विरुद्ध ही",
"आदिवासी प्रतिघाती हुए हैं",
"उसी खेती के बिचड़े के लिए",
"उन्हें तुम्हारी ज़मीन भी चाहिए",
"तुम आत्महत्या करोगे",
"और उन्हें लगेगा",
"इस तरह तो वे गोली चलाने से बच जाएँगे",
"और यह उनकी रणनीतिक समझदारी होगी",
"वे तुम्हारी आत्महत्या पर अफ़सोस नहीं करेंगे",
"उन्हें सिर्फ़ प्रतिघाती हत्याओं से डर लगता है",
"और जब तुम प्रतिघात करोगे",
"तुम्हारी आत्महत्या को वे हत्याओं में बदल देंगे।",
"ve tumhaarii aatmahatya par aफ़sos nahii.n kare.nge",
"aatmahatya unke li.e daarshanik chi.nta ka vishay hai",
"ve iskii vyaakhya me.n savaal ko vahii.n Taa.ng de.nge",
"jis peड़ par tumne apna pha.nda Daala tha",
"yah unke li.e chi.nta ka vishay nahii.n hoga",
"ve jaanate hai.n gehuu.n kii क़.iimat lohe se kam hai",
"aur is vaqt ve lohe kii khetii me.n vyast hai.n",
"lohe kii khetii ke li.e hii unho.nne",
"aadivaasii gaa.nvo.n me.n",
"sainy chhaavanii ke saath Dera Daala hai",
"lohe kii khetii ke viruddh hii",
"aadivaasii pratighaatii hu.e hai.n",
"usii khetii ke bichड़.e ke li.e",
"unhe.n tumhaarii zam.ii bhii chaahi.e",
"tum aatmahatya karoge",
"aur unhe.n lagega",
"is tarah to ve golii chalaane se bach jaa.e.nge",
"aur yah unkii ra.naniitik samajhdaarii hogii",
"ve tumhaarii aatmahatya par aफ़sos nahii.n kare.nge",
"unhe.n sirफ़ pratighaatii hatyaa.o.n se Dar lagta hai",
"aur jab tum pratighaat karoge",
"tumhaarii aatmahatya ko ve hatyaa.o.n me.n badal de.nge।",
"ve tumhaarii aatmahatya par aफ़sos nahii.n kare.nge",
"aatmahatya unke li.e daarshanik chi.nta ka vishay hai",
"ve iskii vyaakhya me.n savaal ko vahii.n Taa.ng de.nge",
"jis peड़ par tumne apna pha.nda Daala tha",
"yah unke li.e chi.nta ka vishay nahii.n hoga",
"ve jaanate hai.n gehuu.n kii क़.iimat lohe se kam hai",
"aur is vaqt ve lohe kii khetii me.n vyast hai.n",
"lohe kii khetii ke li.e hii unho.nne",
"aadivaasii gaa.nvo.n me.n",
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"lohe kii khetii ke viruddh hii",
"aadivaasii pratighaatii hu.e hai.n",
"usii khetii ke bichड़.e ke li.e",
"unhe.n tumhaarii zam.ii bhii chaahi.e",
"tum aatmahatya karoge",
"aur unhe.n lagega",
"is tarah to ve golii chalaane se bach jaa.e.nge",
"aur yah unkii ra.naniitik samajhdaarii hogii",
"ve tumhaarii aatmahatya par aफ़sos nahii.n kare.nge",
"unhe.n sirफ़ pratighaatii hatyaa.o.n se Dar lagta hai",
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आत्महत्या - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/atmahatya-neerav-kavita?sort= | [
"साँझ",
"काँपी नदी कल",
"दुःख से",
"गिरा फूल कोई",
"असमय",
"रोया भी होगा।",
"sanjh",
"kanpi nadi kal",
"duःkh se",
"gira phool koi",
"asamay",
"roya bhi hoga",
"sanjh",
"kanpi nadi kal",
"duःkh se",
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सुसाइड नोट - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/suicide/susaid-not-navin-rangiyal-kavita?sort= | [
"एक सुसाइड नोट",
"हवा में उड़ रहा है",
"थ्रिल में बदलकर",
"एक कविता बनकर",
"क्या टेंपटेशन है",
"आत्महत्या का एक नोट",
"पढ़ना चाहते हैं",
"जिसे सब छूना चाहते हैं",
"जिस पर लिख गया है",
"समबडी शुड बी देअर",
"टू हैंडल ड्यूटीज़ ऑफ़ माय फ़ैमिली",
"आई एम लीविंग",
"टू मच स्ट्रैस्ड आउट",
"फ़ेडअप!",
"ek susaiD not",
"hawa mein uD raha hai",
"thril mein badalkar",
"ek kawita bankar",
"kya tempteshan hai",
"atmahatya ka ek not",
"paDhna chahte hain",
"jise sab chhuna chahte hain",
"jis par likh gaya hai",
"samabDi shuD b dear",
"two hainDal Dyutiz off may faimili",
"i em liwing",
"two mach straisD out",
"feDap!",
"ek susaiD not",
"hawa mein uD raha hai",
"thril mein badalkar",
"ek kawita bankar",
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थिएटर के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/theatre | [
"कहा गया हो और माना जाता हो कि पहली नाट्य प्रस्तुति जंगल से शिकार लिए लौटे आदिम मानवों ने वन्यजीवों के हाव-भाव-ध्वनि के साथ दी होगी, वहाँ इसके आशयों का भाषा में उतरना बेहद स्वाभाविक ही है। प्रस्तुत चयन नाटक, रंगमंच, थिएटर, अभिनय, अभिनेता के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं में से किया गया है।",
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पागलपन के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/madness | [
"भाव को ग्रहण कर अभिव्यक्त कविताओं से एक चयन।",
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रोहित वेमुला के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/rohith-vemula | [
"करके सुर्ख़ियों में आए रोहित वेमुला को वंचना के शिकार प्रतिनिधि युवा और प्रतिरोध के नायक के रूप में देखा गया। समकालीन कविता ने भी इस संवाद में योगदान किया है।",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/kavita | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
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] |
आत्मा के विषय पर बेहतरीन काव्य खंड | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/khand-kavya | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
आत्मा के विषय पर बेहतरीन सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/sabad | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
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] |
आत्मा के विषय पर बेहतरीन उद्धरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/quotes | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
"आत्मा की हत्या करके अगर स्वर्ग भी मिले, तो वह नरक है।",
"मैं शरीर में रहकर भी शरीर-मुक्त, और समाज में रहकर भी समाज-मुक्त हूँ।",
"आत्मा तर्क से परास्त हो सकती है। परिणाम का भय तर्क से नहीं होता, वह पर्दा चाहता है।",
"संगीत दो आत्माओं के बीच फैली अनंतता को भरता है।",
"अमिश्रित आदर्शवाद में मुझे आत्मा का गौरव दिखाई देता है।",
"हम मात्र एक, ‘भटकन’ हैं, अपनी आत्मा के विशाल दृश्यों में कोई अर्थ ढूँढ़ते हुए।",
"पुरुष और स्त्री की आत्माएँ दो विभिन्न पदार्थों की बनी हैं।",
"(हिंदी में) ‘आत्मकथ्य’ केवल एक शब्द भर है। यहाँ आत्मा को शक से देखा जाता है और कथ्य पर कोई भरोसा नहीं करता।",
"प्रभाववाद आत्मा का समाचार पत्र है।",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/dohe | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
"सुरति निरति नेता हुआ, मटुकी हुआ शरीर।",
"दया दधि विचारिये, निकलत घृत तब थीर॥",
"अग्नि कर्म संयोग तें, देह कड़ाही संग।",
"तेल लिंग दोऊ तपै, शशि आतमा अभंग॥",
"देह कृत्य सब करत है, उत्तम मध्य कनिष्ट।",
"सुंदर साक्षी आतमा, दीसै मांहि प्रविष्ट॥",
"सूक्षम देह स्थूल कौ, मिल्यौ करत संयोग।",
"सुंदर न्यारौ आतमा, सुख-दुख इनकौ भोग॥",
"हलन चलन सब देह कौ, आतम सत्ता होइ।",
"सुंदर साक्षी आतमा, कर्म न लागै कोइ॥",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन अनुवाद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/anuwad | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन पद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/pad | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/kundliyaan | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन रासो काव्य | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/raso-kavya | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन निबंध | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/essay | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
"अमेरिका के लंबे-लंबे हरे देवदारों के घने वन में वह कौन फिर रहा है? कभी यहाँ टहलता है कभी वहाँ गाता है।\r\n\r\nएक लंबा, ऊँचा, वृद्ध-युवक, मिट्टी-गारे से लिप्त, मोटे वस्त्र का पतलून और कोट पहने, नंगे सिर, नंगे पाँव और नंगे ही दिल अपनी तिनकों की टोपी मस्ती",
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आत्मा के विषय पर बेहतरीन ब्लॉग | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/soul/blog | [
"दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।",
"जाने कितने बरस पहले का दिन रहा होगा, जब सत्यजित राय ने बीकानेर के जूनागढ़ क़िले के सामने सूरसागर तालाब किनारे पीपल पेड़ के नीचे तंदूरा लिए उसे सुना था, जिसे आगे चल उन्होंने सोनी देवी के रूप में जाना। उसक",
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गिरना - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/girna-naresh-saxena-kavita?sort= | [
"चीज़ों के गिरने के नियम होते हैं! मनुष्यों के गिरने के",
"कोई नियम नहीं होते।",
"लेकिन चीज़ें कुछ भी तय नहीं कर सकतीं",
"अपने गिरने के बारे में",
"मनुष्य कर सकते हैं",
"बचपन से ऐसी नसीहतें मिलती रहीं",
"कि गिरना हो तो घर में गिरो",
"बाहर मत गिरो",
"यानी चिट्ठी में गिरो",
"लिफ़ाफ़े में बचे रहो, यानी",
"आँखों में गिरो",
"चश्मे में बचे रहो, यानी",
"शब्दों में बचे रहो",
"अर्थों में गिरो",
"यही सोच कर गिरा भीतर",
"कि औसत क़द का मैं",
"साढ़े पाँच फ़ीट से ज़्यादा क्या गिरूँगा",
"लेकिन कितनी ऊँचाई थी वह",
"कि गिरना मेरा ख़त्म ही नहीं हो रहा",
"चीज़ों के गिरने की असलियत का पर्दाफ़ाश हुआ",
"सत्रहवीं शताब्दी के मध्य,",
"जहाँ, पीसा की टेढ़ी मीनार की आख़िरी सीढ़ी",
"चढ़ता है गैलीलियो, और चिल्ला कर कहता है—",
"“इटली के लोगो,",
"अरस्तू का कथन है कि भारी चीज़ें तेज़ी से गिरती हैं",
"और हल्की चीज़ें धीरे-धीरे",
"लेकिन अभी आप अरस्तू के इस सिद्धांत को ही",
"गिरता हुआ देखेंगे",
"गिरते हुआ देखेंगे, लोहे के भारी गोलों",
"और चिड़ियों के हल्के पंखों, और काग़ज़ों को",
"एक साथ, एक गति से",
"गिरते हुए देखेंगे",
"लेकिन सावधान",
"हमें इन्हें हवा के हस्तक्षेप से मुक्त करना होगा...”",
"और फिर ऐसा उसने कर दिखाया",
"चार सौ बरस बाद",
"किसी को कुतुबमीनार से चिल्लाकर कहने की ज़रूरत नहीं है",
"कि कैसी है आज की हवा और कैसा इसका हस्तक्षेप",
"कि चीज़ों के गिरने के नियम",
"मनुष्यों के गिरने पर लागू हो गए हैं",
"और लोग",
"हर क़द और हर वज़न के लोग",
"यानी",
"हम लोग और तुम लोग",
"एक साथ",
"एक गति से",
"एक ही दिशा में गिरते नज़र आ रहे हैं",
"इसीलिए कहता हूँ कि ग़ौर से देखो, अपने चारों तरफ़",
"चीज़ों का गिरना",
"और गिरो",
"गिरो जैसे गिरती है बर्फ़",
"ऊँची चोटियों पर",
"जहाँ से फूटती हैं मीठे पानी की नदियाँ",
"गिरो प्यासे हलक़ में एक घूँट जल की तरह",
"रीते पात्र में पानी की तरह गिरो",
"उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए",
"गिरो आँसू की एक बूँद की तरह",
"किसी के दुख में",
"गेंद की तरह गिरो",
"खेलते बच्चों के बीच",
"गिरो पतझर की पहली पत्ती की तरह",
"एक कोंपल के लिए जगह ख़ाली करते हुए",
"गाते हुए ऋतुओं का गीत",
"“कि जहाँ पत्तियाँ नहीं झरतीं",
"वहाँ वसंत नहीं आता”",
"गिरो पहली ईंट की तरह नींव में",
"किसी का घर बनाते हुए",
"गिरो जलप्रपात की तरह",
"टरबाइन के पंखे घुमाते हुए",
"अँधेरे पर रोशनी की तरह गिरो",
"गिरो गीली हवाओं पर धूप की तरह",
"इंदधनुष रचते हुए",
"लेकिन रुको",
"आज तक सिर्फ़ इंदधनुष ही रचे गए हैं",
"उसका कोई तीर नहीं रचा गया",
"तो गिरो, उससे छूटे तीर की तरह",
"बंजर ज़मीन को",
"वनस्पतियों और फूलों से रंगीन बनाते हुए",
"बारिश की तरह गिरो, सूखी धरती पर",
"पके हुए फल की तरह",
"धरती को अपने बीज सौंपते हुए",
"गिरो",
"गिर गए बाल",
"दाँत गिर गए",
"गिर गई नज़र और",
"स्मृतियों के खोखल से गिरते चले जा रहे हैं",
"नाम, तारीख़ें, और शहर और चेहरे...",
"और रक्तचाप गिर रहा है देह का",
"तापमान गिर रहा है",
"गिर रही है ख़ून में मिक़दार होमोग्लोबीन की",
"खड़े क्या हो बिजूके से नरेश,",
"इससे पहले कि गिर जाए समूचा वजूद",
"एकबारगी",
"तय करो अपना गिरना",
"अपने गिरने की सही वजह और वक़्त",
"और गिरो किसी दुश्मन पर",
"गाज की तरह गिरो",
"उल्कापात की तरह गिरो",
"वज्रपात की तरह गिरो",
"मैं कहता हूँ",
"गिरो।",
"chizon ke girne ke niyam hote hain! manushyon ke girne ke",
"koi niyam nahin hote",
"lekin chizen kuch bhi tay nahin kar saktin",
"apne girne ke bare mein",
"manushya kar sakte hain",
"bachpan se aisi nasihten milti rahin",
"ki girna ho to ghar mein giro",
"bahar mat giro",
"yani chitthi mein giro",
"lifafe mein bache raho, yani",
"ankhon mein giro",
"chashme mein bache raho, yani",
"shabdon mein bache raho",
"arthon mein giro",
"yahi soch kar gira bhitar",
"ki ausat qad ka main",
"saDhe panch feet se zyada kya girunga",
"lekin kitni unchai thi wo",
"ki girna mera khatm hi nahin ho raha",
"chizon ke girne ki asliyat ka pardafash hua",
"satrahwin shatabdi ke madhya,",
"jahan, pisa ki teDhi minar ki akhiri siDhi",
"chaDhta hai gaililiyo, aur chilla kar kahta hai—",
"“italy ke logo,",
"arastu ka kathan hai ki bhari chizen tezi se girti hain",
"aur halki chizen dhire dhire",
"lekin abhi aap arastu ke is siddhant ko hi",
"girta hua dekhenge",
"girte hua dekhenge, lohe ke bhari golon",
"aur chiDiyon ke halke pankhon, aur kaghzon ko",
"ek sath, ek gati se",
"girte hue dekhenge",
"lekin sawdhan",
"hamein inhen hawa ke hastakshaep se mukt karna hoga ”",
"aur phir aisa usne kar dikhaya",
"chaar sau baras baad",
"kisi ko kutubminar se chillakar kahne ki zarurat nahin hai",
"ki kaisi hai aaj ki hawa aur kaisa iska hastakshaep",
"ki chizon ke girne ke niyam",
"manushyon ke girne par lagu ho gaye hain",
"aur log",
"har qad aur har wazan ke log",
"yani",
"hum log aur tum log",
"ek sath",
"ek gati se",
"ek hi disha mein girte nazar aa rahe hain",
"isiliye kahta hoon ki ghaur se dekho, apne charon taraf",
"chizon ka girna",
"aur giro",
"giro jaise girti hai barf",
"unchi chotiyon par",
"jahan se phutti hain mithe pani ki nadiyan",
"giro pyase halaq mein ek ghoont jal ki tarah",
"rite patr mein pani ki tarah giro",
"use bhare jane ke sangit se bharte hue",
"giro ansu ki ek boond ki tarah",
"kisi ke dukh mein",
"gend ki tarah giro",
"khelte bachchon ke beech",
"giro patjhar ki pahli patti ki tarah",
"ek kompal ke liye jagah khali karte hue",
"gate hue rituon ka geet",
"“ki jahan pattiyan nahin jhartin",
"wahan wasant nahin ata”",
"giro pahli int ki tarah neenw mein",
"kisi ka ghar banate hue",
"giro jalaprapat ki tarah",
"tarbain ke pankhe ghumate hue",
"andhere par roshni ki tarah giro",
"giro gili hawaon par dhoop ki tarah",
"indadhnush rachte hue",
"lekin ruko",
"aj tak sirf indadhnush hi rache gaye hain",
"uska koi teer nahin racha gaya",
"to giro, usse chhute teer ki tarah",
"banjar zamin ko",
"wanaspatiyon aur phulon se rangin banate hue",
"barish ki tarah giro, sukhi dharti par",
"pake hue phal ki tarah",
"dharti ko apne beej saumpte hue",
"giro",
"gir gaye baal",
"dant gir gaye",
"gir gai nazar aur",
"smritiyon ke khokhal se girte chale ja rahe hain",
"nam, tarikhen, aur shahr aur chehre",
"aur raktachap gir raha hai deh ka",
"tapaman gir raha hai",
"gir rahi hai khoon mein miqdar homoglobin ki",
"khaDe kya ho bijuke se naresh,",
"isse pahle ki gir jaye samucha wajud",
"ekbargi",
"tay karo apna girna",
"apne girne ki sahi wajah aur waqt",
"aur giro kisi dushman par",
"gaj ki tarah giro",
"ulkapat ki tarah giro",
"wajrapat ki tarah giro",
"main kahta hoon",
"giro",
"chizon ke girne ke niyam hote hain! manushyon ke girne ke",
"koi niyam nahin hote",
"lekin chizen kuch bhi tay nahin kar saktin",
"apne girne ke bare mein",
"manushya kar sakte hain",
"bachpan se aisi nasihten milti rahin",
"ki girna ho to ghar mein giro",
"bahar mat giro",
"yani chitthi mein giro",
"lifafe mein bache raho, yani",
"ankhon mein giro",
"chashme mein bache raho, yani",
"shabdon mein bache raho",
"arthon mein giro",
"yahi soch kar gira bhitar",
"ki ausat qad ka main",
"saDhe panch feet se zyada kya girunga",
"lekin kitni unchai thi wo",
"ki girna mera khatm hi nahin ho raha",
"chizon ke girne ki asliyat ka pardafash hua",
"satrahwin shatabdi ke madhya,",
"jahan, pisa ki teDhi minar ki akhiri siDhi",
"chaDhta hai gaililiyo, aur chilla kar kahta hai—",
"“italy ke logo,",
"arastu ka kathan hai ki bhari chizen tezi se girti hain",
"aur halki chizen dhire dhire",
"lekin abhi aap arastu ke is siddhant ko hi",
"girta hua dekhenge",
"girte hua dekhenge, lohe ke bhari golon",
"aur chiDiyon ke halke pankhon, aur kaghzon ko",
"ek sath, ek gati se",
"girte hue dekhenge",
"lekin sawdhan",
"hamein inhen hawa ke hastakshaep se mukt karna hoga ”",
"aur phir aisa usne kar dikhaya",
"chaar sau baras baad",
"kisi ko kutubminar se chillakar kahne ki zarurat nahin hai",
"ki kaisi hai aaj ki hawa aur kaisa iska hastakshaep",
"ki chizon ke girne ke niyam",
"manushyon ke girne par lagu ho gaye hain",
"aur log",
"har qad aur har wazan ke log",
"yani",
"hum log aur tum log",
"ek sath",
"ek gati se",
"ek hi disha mein girte nazar aa rahe hain",
"isiliye kahta hoon ki ghaur se dekho, apne charon taraf",
"chizon ka girna",
"aur giro",
"giro jaise girti hai barf",
"unchi chotiyon par",
"jahan se phutti hain mithe pani ki nadiyan",
"giro pyase halaq mein ek ghoont jal ki tarah",
"rite patr mein pani ki tarah giro",
"use bhare jane ke sangit se bharte hue",
"giro ansu ki ek boond ki tarah",
"kisi ke dukh mein",
"gend ki tarah giro",
"khelte bachchon ke beech",
"giro patjhar ki pahli patti ki tarah",
"ek kompal ke liye jagah khali karte hue",
"gate hue rituon ka geet",
"“ki jahan pattiyan nahin jhartin",
"wahan wasant nahin ata”",
"giro pahli int ki tarah neenw mein",
"kisi ka ghar banate hue",
"giro jalaprapat ki tarah",
"tarbain ke pankhe ghumate hue",
"andhere par roshni ki tarah giro",
"giro gili hawaon par dhoop ki tarah",
"indadhnush rachte hue",
"lekin ruko",
"aj tak sirf indadhnush hi rache gaye hain",
"uska koi teer nahin racha gaya",
"to giro, usse chhute teer ki tarah",
"banjar zamin ko",
"wanaspatiyon aur phulon se rangin banate hue",
"barish ki tarah giro, sukhi dharti par",
"pake hue phal ki tarah",
"dharti ko apne beej saumpte hue",
"giro",
"gir gaye baal",
"dant gir gaye",
"gir gai nazar aur",
"smritiyon ke khokhal se girte chale ja rahe hain",
"nam, tarikhen, aur shahr aur chehre",
"aur raktachap gir raha hai deh ka",
"tapaman gir raha hai",
"gir rahi hai khoon mein miqdar homoglobin ki",
"khaDe kya ho bijuke se naresh,",
"isse pahle ki gir jaye samucha wajud",
"ekbargi",
"tay karo apna girna",
"apne girne ki sahi wajah aur waqt",
"aur giro kisi dushman par",
"gaj ki tarah giro",
"ulkapat ki tarah giro",
"wajrapat ki tarah giro",
"main kahta hoon",
"giro",
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आत्मा शरीर का अनंत स्वप्न - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/aatma-sharir-ka-anant-swapn-ashok-vajpeyi-kavita?sort= | [
"वृक्ष एक शरीर है",
"पृथ्वी के शरीर से उगता हुआ और अटूट",
"फूल तभी तक फूल है जब तक वह एक अंग है वृक्ष का",
"और पत्तियाँ तभी तक पत्तियाँ जब तक वे वृक्ष से ही लगी हैं",
"जब तक तुम साधे हो उसके शरीर को",
"तभी तक",
"उसकी आत्मा भी तुमसे अटूट है",
"आत्मा शरीर का अनंत स्वप्न देखती है।",
"wriksh ek sharir hai",
"prithwi ke sharir se ugta hua aur atut",
"phool tabhi tak phool hai jab tak wo ek ang hai wriksh ka",
"aur pattiyan tabhi tak pattiyan jab tak we wriksh se hi lagi hain",
"jab tak tum sadhe ho uske sharir ko",
"tabhi tak",
"uski aatma bhi tumse atut hai",
"atma sharir ka anant swapn dekhti hai",
"wriksh ek sharir hai",
"prithwi ke sharir se ugta hua aur atut",
"phool tabhi tak phool hai jab tak wo ek ang hai wriksh ka",
"aur pattiyan tabhi tak pattiyan jab tak we wriksh se hi lagi hain",
"jab tak tum sadhe ho uske sharir ko",
"tabhi tak",
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किसने बचाया मेरी आत्मा को - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/kisne-bachaya-meri-aatma-ko-alokdhanva-kavita?sort= | [
"किसने बचाया मेरी आत्मा को",
"दो कौड़ी की मोमबत्तियों की रोशनी ने",
"दो-चार उबले हुए आलुओं ने बचाया",
"सूखे पत्तों की आग",
"और मिट्टी के बर्तनों ने बचाया",
"पुआल के बिस्तर ने और",
"पुआल के रंग के चाँद ने",
"नुक्कड़ नाटक के आवारा जैसे छोकरे",
"चिथड़े पहने",
"सच के गौरव जैसा कंठ-स्वर",
"कड़ा मुक़ाबला करते",
"मोड़-मोड़ पर",
"दंगाइयों को खदेड़ते",
"वीर बाँकें हिंदुस्तानियों से सीखा रंगमंच",
"भीगे वस्त्र-सा विकल अभिनय",
"दादी के लिए रोटी पकाने का चिमटा लेकर",
"ईदगाह के मेले से लौट रहे नन्हे हामिद ने",
"और छह दिसंबर के बाद",
"फ़रवरी आते-आते",
"जंगली बेर ने",
"इन सबने बचाया मेरी आत्मा को।",
"kisne bachaya meri aatma ko",
"do kauDi ki mombattiyon ki roshni ne",
"do chaar uble hue aluon ne bachaya",
"sukhe patton ki aag",
"aur mitti ke bartnon ne bachaya",
"pual ke bistar ne aur",
"pual ke rang ke chand ne",
"nukkaD natk ke awara jaise chhokre",
"chithDe pahne",
"sach ke gauraw jaisa kanth swar",
"kaDa muqabala karte",
"moD moD par",
"dangaiyon ko khadeDte",
"weer banken hindustaniyon se sikha rangmanch",
"bhige wastra sa wikal abhinay",
"dadi ke liye roti pakane ka chimta lekar",
"idagah ke mele se laut rahe nannhe hamid ne",
"aur chhah december ke baad",
"february aate aate",
"jangli ber ne",
"in sabne bachaya meri aatma ko",
"kisne bachaya meri aatma ko",
"do kauDi ki mombattiyon ki roshni ne",
"do chaar uble hue aluon ne bachaya",
"sukhe patton ki aag",
"aur mitti ke bartnon ne bachaya",
"pual ke bistar ne aur",
"pual ke rang ke chand ne",
"nukkaD natk ke awara jaise chhokre",
"chithDe pahne",
"sach ke gauraw jaisa kanth swar",
"kaDa muqabala karte",
"moD moD par",
"dangaiyon ko khadeDte",
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"bhige wastra sa wikal abhinay",
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ज़िंदगी के लिए - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/zindagi-ke-liye-manas-kavita?sort= | [
"आत्माएँ कुछ सत्य नहीं जानतीं,",
"यह शरीर के लिए अच्छा ही है",
"हर जगह से और बुरी तरह से",
"खदेड़ दिए जाने के बावजूद",
"वे आत्म-सम्मान का कवच सीती रहती हैं—",
"गाँव, क़स्बे, शहर और देश बदलकर…",
"हालाँकि पृथ्वी तो एक ही है।",
"atmayen kuch saty nahin jantin,",
"ye sharir ke liye achchha hi hai",
"har jagah se aur buri tarah se",
"khadeD diye jane ke bawjud",
"we aatm samman ka kawach siti rahti hain—",
"ganw, qasbe, shahr aur desh badalkar…",
"halanki prithwi to ek hi hai",
"atmayen kuch saty nahin jantin,",
"ye sharir ke liye achchha hi hai",
"har jagah se aur buri tarah se",
"khadeD diye jane ke bawjud",
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आपके भीतर से सच्ची आवाज़ें आती रहती हैं - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/aapke-bhitar-se-sachchi-awazen-aati-rahti-hain-ajey-kavita?sort= | [
"कुछ आवाज़ें",
"आपकी छाती में जमी रहती हैं",
"संभव है वे इतनी मरियल हों",
"कि संदेह होता हो उनके होने पर",
"और इतनी पस्त हालत",
"कि आप ख़ुद ही कह दें",
"कि वे हो ही नहीं सकतीं",
"फिर भी इन आवाज़ों को आप सुन रहे हैं",
"जब कभी, जहाँ कहीं",
"क्योंकि आप इन्हीं आवाज़ों को सुनना चाहते हैं लगातार",
"आप हैरान हो जाते हैं",
"एक दिन अचानक जब वे आपकी त्वचा पर",
"फोड़े-फुंसियों-सी फूट आती हैं",
"शर्म से आप उन्हें ढँकते हैं अपने इन हाथों से",
"पर ये आवाज़ें",
"यहाँ ढाँपो तो वहाँ निकल आती हैं",
"वहाँ ढाँपो तो कहीं और निकल आती हैं",
"जब कभी निकल आती हैं",
"हर कहीं निकल आती हैं",
"वहाँ भी निकल आती हैं",
"जहाँ आपके ये ताक़तवर शातिर हाथ नहीं पहुँच सकते",
"आप पाएँगे कि ये दबाई-छिपाई जा सकने वाली चीज़ नहीं",
"अलबत्ता आप चाहें तो इन आवाज़ों को",
"अपनी जेबों में भर सकते हैं",
"या एक पेंसिल पकड़ें",
"और उन्हे छोटी छोटी पर्चियों में लिख लें",
"बाँटें लोगों में",
"ये गुप्त ताबीज़",
"तहे दिल से मान लेते हुए",
"कि आप कमज़ोर थे",
"अपनी इन कमज़ोर आवाज़ों के साथ",
"अभी आप तैयार न थे",
"बाँटें ये बीजमंत्र इस सदिच्छा के साथ",
"कि कहीं न कहीं",
"कभी न कभी",
"बेहद ऊँची",
"बड़ी असरदार",
"और निहायत ही ज़िंदा होकर",
"पूरी आज़ादी से गूँज उठें",
"ये सच्ची आवाज़ें",
"बिना किसी डर और हिचक और हकलाहट के",
"किसी भी छाती में।",
"kuchh aavaaज़.e.n",
"aapakii chhaatii me.n jamii rahtii hai.n",
"sa.mbhav hai ve itnii mariyal ho.n",
"ki sa.ndeh hota ho unke hone par",
"aur itnii past haalat",
"ki aap KHu hii kah de.n",
"ki ve ho hii nahii.n saktii.n",
"phir bhii in aavaaज़.o.n ko aap sun rahe hai.n",
"jab kabhii, jahaa.n kahii.n",
"kyo.nki aap inhii.n aavaaज़.o.n ko sunna chaahate hai.n lagaataar",
"aap hairaan ho jaate hai.n",
"ek din achaanak jab ve aapakii tvacha par",
"phoड़.e-phu.nsiyo.n-sii phuuT aatii hai.n",
"sharm se aap unhe.n Dha.nkte hai.n apne in haatho.n se",
"par ye aavaaज़.e.n",
"yahaa.n Dhaa.npo to vahaa.n nikal aatii hai.n",
"vahaa.n Dhaa.npo to kahii.n aur nikal aatii hai.n",
"jab kabhii nikal aatii hai.n",
"har kahii.n nikal aatii hai.n",
"vahaa.n bhii nikal aatii hai.n",
"jahaa.n aapake ye taaक़tavar shaatir haath nahii.n pahu.nch sakte",
"aap paa.e.nge ki ye dabaa.ii-chhipaa.ii ja sakne vaalii chiiज़ nahii.n",
"albatta aap chaahe.n to in aavaaज़.o.n ko",
"apnii jebo.n me.n bhar sakte hai.n",
"ya ek pe.nsil pakड़.e.n",
"aur unhe chhoTii chhoTii parchiyo.n me.n likh le.n",
"baa.nTe.n logo.n me.n",
"ye gupt taabiiज़",
"tahe dil se maan lete hu.e",
"ki aap kamज़.or the",
"apnii in kamज़.or aavaaज़.o.n ke saath",
"abhii aap taiyaar n the",
"baa.nTe.n ye biijama.ntr is sadichchha ke saath",
"ki kahii.n n kahii.n",
"kabhii n kabhii",
"behad uu.nchii",
"baड़.ii asardaar",
"aur nihaayat hii zi.nd hokar",
"puurii aaज़.aadii se guu.nj uThe.n",
"ye sachchii aavaaज़.e.n",
"bina kisii Dar aur hichak aur haklaahaT ke",
"kisii bhii chhaatii me.n।",
"kuchh aavaaज़.e.n",
"aapakii chhaatii me.n jamii rahtii hai.n",
"sa.mbhav hai ve itnii mariyal ho.n",
"ki sa.ndeh hota ho unke hone par",
"aur itnii past haalat",
"ki aap KHu hii kah de.n",
"ki ve ho hii nahii.n saktii.n",
"phir bhii in aavaaज़.o.n ko aap sun rahe hai.n",
"jab kabhii, jahaa.n kahii.n",
"kyo.nki aap inhii.n aavaaज़.o.n ko sunna chaahate hai.n lagaataar",
"aap hairaan ho jaate hai.n",
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"phoड़.e-phu.nsiyo.n-sii phuuT aatii hai.n",
"sharm se aap unhe.n Dha.nkte hai.n apne in haatho.n se",
"par ye aavaaज़.e.n",
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"apnii jebo.n me.n bhar sakte hai.n",
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"abhii aap taiyaar n the",
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"ki kahii.n n kahii.n",
"kabhii n kabhii",
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इतनी आत्मा - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/itni-aatma-nidheesh-tyagi-kavita?sort= | [
"मैं तुम्हारे लिए ढूँढ़ूँगा",
"खिड़की वाली सीट",
"कोने वाली मेज़",
"पार्क की सबसे साफ़ बेंच",
"तीस साल से खोई किताब",
"पहलू बदलने लायक़ जगह",
"स्मृतिलोप से बची रह गई संगीत-लहरी",
"मुस्कुराने की एक फ़ालतू वजह",
"डिक्शनरी का सबसे प्यारा शब्द",
"एटलस पर बिंदु की तरह दिख रहे",
"सबसे सुंदर टापू में",
"सबसे सुंदर सूर्यास्त",
"मैं तुम्हारे लिए ढूँढ़ूँगा",
"बात कर सकें इतनी शांति",
"चुप रह सकें इतना कलरव",
"आँखों में झाँक सकें",
"इतनी आत्मा",
"main tumhare liye DhunDhunga",
"khiDki wali seat",
"kone wali mez",
"park ki sabse saf bench",
"tees sal se khoi kitab",
"pahlu badalne layaq jagah",
"smritilop se bachi rah gai sangit lahri",
"muskurane ki ek faltu wajah",
"dictionary ka sabse pyara shabd",
"atlas par bindu ki tarah dikh rahe",
"sabse sundar tapu mein",
"sabse sundar suryast",
"main tumhare liye DhunDhunga",
"baat kar saken itni shanti",
"chup rah saken itna kalraw",
"ankhon mein jhank saken",
"itni aatma",
"main tumhare liye DhunDhunga",
"khiDki wali seat",
"kone wali mez",
"park ki sabse saf bench",
"tees sal se khoi kitab",
"pahlu badalne layaq jagah",
"smritilop se bachi rah gai sangit lahri",
"muskurane ki ek faltu wajah",
"dictionary ka sabse pyara shabd",
"atlas par bindu ki tarah dikh rahe",
"sabse sundar tapu mein",
"sabse sundar suryast",
"main tumhare liye DhunDhunga",
"baat kar saken itni shanti",
"chup rah saken itna kalraw",
"ankhon mein jhank saken",
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ईश्वर, हमारी आत्माओं को शांति दे! - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/ishwar-hamari-atmaon-ko-shanti-de-pradeep-saini-kavita?sort= | [
"हम कितने अशांत समय में",
"कितनी अशांत आत्मा लिए जीते हैं",
"कि मरने वालों के लिए हम पहली दुआ",
"उनकी आत्मा की शांति के लिए करते हैं",
"ज़रूरत मृतकों से ज़्यादा उसकी",
"जबकि होती हमें है।",
"hum kitne ashant samay mein",
"kitni ashant aatma liye jite hain",
"ki marne walon ke liye hum pahli dua",
"unki aatma ki shanti ke liye karte hain",
"zarurat mritkon se zyada uski",
"jabki hoti hamein hai",
"hum kitne ashant samay mein",
"kitni ashant aatma liye jite hain",
"ki marne walon ke liye hum pahli dua",
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आत्मत्राण - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/atmatran-rabindranath-tagore-kavita?sort= | [
"अनुवाद : हजारीप्रसाद द्विवेदी",
"विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं",
"केवल इतना हो (करुणामय)",
"कभी न विपदा में पाऊँ भय।",
"दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही",
"पर इतना होवे (करुणामय)",
"दु:ख को मैं कर सकूँ सदा जय।",
"कोई कहीं सहायक न मिले",
"तो अपना बल पौरुष न हिले;",
"हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही",
"तो भी मन में ना मानूँ क्षय॥",
"मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं",
"बस इतना होवे (करुणायम)",
"तरने की हो शक्ति अनामय।",
"मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही",
"केवल इतना रखना अनुनय—",
"वहन कर सकूँ इसको निर्भय।",
"नत शिर होकर सुख के दिन में",
"तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।",
"दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही",
"उस दिन ऐसा हो करुणामय,",
"तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय॥",
"vipdaon se mujhe bachao, ye meri pararthna nahin",
"keval itna ho (karunamay)",
"kabhi na vipda mein paun bhay.",
"duःkha taap se vyathit chitt ko na do santvna nahin sahi",
"par itna hove (karunamay)",
"duhakh ko main kar sakun sada jay.",
"koi kahin sahayak na mile",
"to apna bal paurush na hile;",
"hani uthani paDe jagat mein laabh agar vanchna rahi",
"to bhi man mein na manun kshay॥",
"mera traan karo anudin tum ye meri pararthna nahin",
"bas itna hove (karunayam)",
"tarne ki ho shakti anamay.",
"mera bhaar agar laghu karke na do santvna nahin sahi",
"keval itna rakhna anunay—",
"vahn kar sakun isko nirbhay.",
"nat shir hokar sukh ke din mein",
"tav mukh pahchanun chhin chhin mein.",
"duःkha ratri mein kare vanchna meri jis din nikhil mahi",
"us din aisa ho karunamay,",
"tum par karun nahin kuch sanshay॥",
"vipdaon se mujhe bachao, ye meri pararthna nahin",
"keval itna ho (karunamay)",
"kabhi na vipda mein paun bhay.",
"duःkha taap se vyathit chitt ko na do santvna nahin sahi",
"par itna hove (karunamay)",
"duhakh ko main kar sakun sada jay.",
"koi kahin sahayak na mile",
"to apna bal paurush na hile;",
"hani uthani paDe jagat mein laabh agar vanchna rahi",
"to bhi man mein na manun kshay॥",
"mera traan karo anudin tum ye meri pararthna nahin",
"bas itna hove (karunayam)",
"tarne ki ho shakti anamay.",
"mera bhaar agar laghu karke na do santvna nahin sahi",
"keval itna rakhna anunay—",
"vahn kar sakun isko nirbhay.",
"nat shir hokar sukh ke din mein",
"tav mukh pahchanun chhin chhin mein.",
"duःkha ratri mein kare vanchna meri jis din nikhil mahi",
"us din aisa ho karunamay,",
"tum par karun nahin kuch sanshay॥",
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मैं प्रमाणित करता हूँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/soul/main-pramanait-karta-hoon-amitabh-choudhary-kavita?sort= | [
"कल्पना के संसार में",
"रजत-पत्रों पर स्वर्ण-रेखाएँ खिंची हैं।",
"यद्यपि,",
"मेरे हाथ में मुट्ठी भींचना है।—",
"ऐसे, मैं प्रमाणित करता हूँ :",
"पदार्थ की सत्ता के भीतर",
"एक आत्मा है—सदैव—",
"जिसे ग्रहों की ओर नहीं धकेला जा सकता :",
"[जैसे किसी ने पहाड़ पर से पत्थर धकेला है, कि",
"घाव पर भी",
"पृथ्वी अपने गुरुत्व से घूमेगी।]",
"दु:खी होकर, मनुष्य कविता लिखता-पढ़ता रहा है,",
"वह लिखता-पढ़ता रहेगा।",
"kalpana ke sansar mein",
"rajat patron par swarn rekhayen khinchi hain",
"yadyapi,",
"mere hath mein mutthi bhinchna hai —",
"aise, main pramanait karta hoon ha",
"padarth ki satta ke bhitar",
"ek aatma hai—sadaiw—",
"jise grhon ki or nahin dhakela ja sakta ha",
"[jaise kisi ne pahaD par se patthar dhakela hai, ki",
"ghaw par bhi",
"prithwi apne gurutw se ghumegi ]",
"duhkhi hokar, manushya kawita likhta paDhta raha hai,",
"wo likhta paDhta rahega",
"kalpana ke sansar mein",
"rajat patron par swarn rekhayen khinchi hain",
"yadyapi,",
"mere hath mein mutthi bhinchna hai —",
"aise, main pramanait karta hoon ha",
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"ek aatma hai—sadaiw—",
"jise grhon ki or nahin dhakela ja sakta ha",
"[jaise kisi ne pahaD par se patthar dhakela hai, ki",
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"wo likhta paDhta rahega",
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