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उद्यमी हैं, वह वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम के संस्थापक व सीईओ के पद पर कार्यरत है। वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम विश्व स्त्तर पर फैशन डिजाइनरों का एक संगठन हैं जिसका कार्य डिजाइनरों को एक पटल पर ला कर उनकी मदद करना हैं। वर्ल्ड डिज़ाइनिंग फ़ोरम के संस्थापक और सीईओ के रूप में वह डिज़ाइन उद्योग को बदलने और दुनिया भर में महत्वाकांक्षी डिजाइनरों को प्रेरित करने में लगे हुए हैं। जीवन परिचय अंकुश अनामी का जन्म उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ था। उनके पिता का नाम अनुराग प्रसाद अनामी व माँ का नाम स्वर्गीय अनीता अनामी हैं। अनामी का विवाह शिल्पी रानी से हुआ व दोनों के 2 बच्चे हैं जिनके नाम सुख अनामी और खुश अनामी हैं। अनामी ने अपनी स्कूली शिक्षा लखनऊ और उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर और इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री लेकर पूरी की थी। कैरियर वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम की स्थापना वर्ष 2017 में अंकुश अनामी द्वारा की गयी थी। अनामी ने फोरम की स्थापना देश विदेश के डिजाइनरों के हुनर को देखते हुए उन्हें सही मंच देने के उद्देश्य से की थी। अनामी ने फोरम के बैनर से कई ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जिसमे डिजाइनरों को अपनी प्रदर्शनी दिखने</s>
का अवसर मिला, यह कार्यक्रम क्षेत्रीय प्रशासन और राज्य स्तरीय सरकार के समर्थन से किये गए थे। अंकुश अनामी ने गोवा में आयोजित हुए विश्व के फैशन डिजाइनर कॉन्क्लेव का आयोजन फोरम के बैनर द्वारा किया जिसमे फैशन डिजाइनिंग के भविष्य को आकार देने के लिए देश के 200 फैशन डिजाइनरों के साथसाथ 30 से अधिक प्रकार के हस्तनिर्मित कपड़े और 100 से अधिक बुनकरों को आमंत्रित किया था। फरवरी 2023 में अंकुश अनामी ने वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम के बैनर से आगरा के विश्व प्रसिद्द ताज महोत्सव में भी अपनी भागीदारी दर्ज़ कराई और फोरम द्वारा डिजाइन किये गए परिधानों को पहनकर मॉडल्स ने रैंप पर प्रदर्शन किया था। आगरा में ही फोरम द्वारा आगरा युथ फेस्टिवल का आयोजन भी अनामी के सरंक्षण में हुआ जिसमे मिस यूनिवर्स नेहल चुडासमा ने शिरकत की थी। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर अंकुश अनामी इंस्टाग्राम पर अंकुश अनामी भारतीय उद्यमी जीवित लोग उद्यमी भारत के लोग परिचय खार, असमिया व्यंजनों का एक सदियों पुराना घटक है, जो संस्कृति के भीतर एक उल्लेखनीय इतिहास और विविध भूमिका रखता है। गहरे भूरे रंग और विशिष्ट कसैले गंध वाला यह तरल, पूर्वोत्तर भारत के व्यंजनों में एक सर्वोत्कृष्ट तत्व है। यह न केवल क्षेत्र</s>
के अनूठे स्वादों में योगदान देता है, बल्कि रीतिरिवाजों, रीतिरिवाजों और पारंपरिक प्रथाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐतिहासिक महत्व नमक का विकल्प : ऐसे युग में जब असम के भौगोलिक अलगाव के कारण नमक दुर्लभ था, खार एक रचनात्मक विकल्प के रूप में उभरा। केवल सीमित मात्रा में नमक तक पहुंच के कारण, अमीर लोग अक्सर एकमात्र लाभार्थी होते थे। विकल्प के रूप में खार की भूमिका असमिया समाज की संसाधनशीलता और अनुकूलन क्षमता को दर्शाती है। नमक खदानों के आसपास सत्ता संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसके आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हुए, घटक की कहानी में जटिलता की एक परत जोड़ती है। पाककला विरासत : खार का संदर्भ योगिनी तंत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में पाया जा सकता है, जो इस क्षेत्र की पाककला विरासत में इसकी दीर्घकालिक उपस्थिति को उजागर करता है। आज भी, ग्रामीण बोडो परिवारों में, सब्जियों और मांस को पकाने के लिए सामान्य नमक की तुलना में तरल खार को प्राथमिकता दी जाती है। खार की शक्ति सीधे पकवान के स्वाद से जुड़ी होती है, जो असमिया व्यंजनों के अनूठे स्वाद को आकार देने में इसकी अभिन्न भूमिका को दर्शाती है। तैयारी और उपयोग प्राचीन तकनीक : खार मुख्य रूप से पके</s>
भीम कोल केले के छिलके की राख से तैयार किया जाता है। इन छिलकों को धूप में सुखाकर भंडारित किया जाता है, जिससे खार उत्पादन का आधार बनता है। फिर राख को रात भर शुद्ध पानी में भिगोया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कसैले सुगंध वाला गहरा भूरा तरल निकलता है। जंगली केले की प्रजाति, मूसा बाल्बिसियाना का उपयोग, क्षेत्र की स्वदेशी सामग्री और पारंपरिक पाक विधियों को प्रदर्शित करता है। पाककला और औषधीय अनुप्रयोग : खार की बहुमुखी प्रतिभा रसोई से परे तक फैली हुई है। केले के पेड़ की राख से प्राप्त खार का उपयोग अपने जीवाणुरोधी और एंटीसेप्टिक गुणों के कारण खाना पकाने और सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता था। सर्दी और खांसी के दौरान, शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने के लिए इसका सेवन किया जाता था और शरीर पर लगाया जाता था। इसके अलावा, पपीते की राख से बने खार का उपयोग कपड़े, बाल और कुछ बर्तनों के लिए डिटर्जेंट के रूप में किया जाता था। सांस्कृतिक महत्व रीतिरिवाज : खार पाक संबंधी सीमाओं को पार कर जाता है और सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ जुड़ जाता है। इसका निर्माण एक सावधानीपूर्वक प्रक्रिया है, जिसकी देखरेख अक्सर अनुभवी कुलपतियों द्वारा की जाती है जो</s>
इसे परिश्रम के साथ अपनाते हैं। कार्तिक और अहिन के महीने को खर उत्पादन के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है, जो मौसमी लय और परंपराओं से इसके संबंध को रेखांकित करता है। असमिया क्षारीयता : असमिया व्यंजनों की विशिष्ट क्षारीयता इसे अन्य भारतीय व्यंजनों से अलग करती है। खार की क्षारीय प्रकृति इस भेद के पीछे प्रेरक शक्ति है। यह विशेष गुण न केवल स्वाद में बल्कि असमिया व्यंजनों के पोषण मूल्य में भी योगदान देता है, जो क्षेत्र की पाक पहचान में खार की अभिन्न भूमिका का उदाहरण है। उमर यामाओका जिन्हें मित्सुतारो यामाओका के नाम से भी जाना जाता है, एक जापानी इस्लामी और यहूदी विद्वान थे जिन्हें मक्का के पहले जापानी हज के तीर्थयात्री होने के लिए जाना जाता था। जीवनी यामाओका का जन्म फुकुयामा, हिरोशिमा प्रान्त, जापान में हुआ था। यामाओका ने टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में रूसी का अध्ययन किया। वह रूसजापान युद्धरुसोजापानी युद्ध में एक सैन्य स्वयंसेवक बन गए और 1905 में विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की 1909 में, यामाओका की मुलाकात अब्दुर्रेशिद इब्राहिम से हुई। मुंबई प्रवास के दौरान इब्राहिम ने उन्हें इस्लाम अपनाने की सलाह दी। उन्होंने इस्लाम अपना लिया और उनके साथ मक्का की तीर्थयात्रा पर गए,</s>
जिससे वे मक्का जाने वाले पहले जापानी हज तीर्थयात्री बन गए। मक्का के बाद, यामाओका ने माउंट अरारत, मदीना, दमिश्क, जेरूसलम, काहिरा और इस्तांबुल का भी दौरा किया। वह 1910 में रूस के रास्ते जापान लौट आये यामाओका ने 1912 में अरेबियन लॉन्गिट्यूडिनल रिकॉर्ड्स शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसे मीजी सम्राट और महारानी शोकेन से आग्रह किया गया था। उन्होंने इस्लाम के बारे में लेख भी लिखे और कुरआन के कुछ हिस्सों का अनुवाद भी किया। 1923 में, यामाओका एक साल के लिए काहिरा चले गए, फिर तीन साल के लिए इस्तांबुल चले गए, और 1927 में जापान लौट आए। 23 सितंबर 1959 को यामोका की वृद्धावस्था में मृत्यु हो गई। इन्हें भी देखें विश्व में इस्लाम धर्म संदर्भ १९५९ में निधन 1880 में जन्मे लोग इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची लेखक अनुवादक टोक्यो हिमांशु सिंघल एक भारतीय उद्यमी, टीवी प्रेसेंटर, प्रधान संपादक, लाइव ब्रॉडकास्टर व मार्केटिंग प्रचार प्रसार विशेषज्ञ हैं। उन्हें डिजिटल मार्केटिंग, लीडरशिप, स्ट्रैटेजिक प्लानिंग, कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस, पब्लिक रिलेशंस, क्रिएटिव डायरेक्शन, कंटेंट मार्केटिंग और स्टोरीटेलिंग में दो दशकों से अधिक का अनुभव है। वह इलेक्ट्रिक वाहन, ऑटोमोबाइल, लक्ज़री, लाइव ईकॉमर्स, डिजिटल तथा वीडियो न्यूज़ मीडिया, टेलीविज़न और शिक्षा के क्षेत्रों में टॉप मैनेजमेंट लीडर के</s>
रूप में सफलतापूर्वक काम कर चुके हैं। जीवन परिचय हिमांशु सिंघल का जन्म नई दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उन्होंने रॉयल एनफील्ड, ओकिनावा, आईशर मोटर्स, सैमसंग, चेल, कोंडे नस्ट अमेरिका में लाभदायक बिज़नेस यूनिट्स का नेतृत्व करके खुद को एक उद्यमी और मार्केटिंग, स्ट्रेटेजी और ब्रांड एक्सपर्ट के रूप में साबित किया है। इसके अलावा हिमांशु सिंघल नेटवर्क 18, सीएनएन, न्यूज़ 18, इंडिया टुडे ग्रुप, ज़ी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट और हिंदुस्तान टाइम्स जैसी प्रतिष्ठित मीडिया कम्पनीज़ में टॉप मैनेजमेंट एग्जीक्यूटिव, पत्रकार, प्रधान संपादक, और लाइव टीवी ब्रॉडकास्टर रह चुके हैं। वह बतौर लेखक, संपादक और पत्रकार इंडिया टुडे, बिज़नेस टुडे, मेल टुडे, गोल्फ डाइजेस्ट, और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे प्लेटफार्म पर लिखकर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। हिमांशु की गिनती भारत के सबसे प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ टीवी प्रस्तुतकर्ताओं में से होती है। टीवी और यूट्यूब जैसे डिजिटल मंचों पर उन्हें खेल, मनोरंजन व व्यापार जगत की खबरों को प्रस्तुत करते हुए देखा जा सकता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ यूट्यूब इंस्टाग्राम पर हिमांशु सिंघल ट्विटर पर हिमांशु सिंघल भारतीय पत्रकार नई दिल्ली के लोग जीवित लोग भारत के लोग भारतीय स्तंभकार महिमावान मडफा क्षेत्र हिन्दू एवं जैन संस्कृति की संगम स्थली है तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण स्थान</s>
है जो पर्वत पर स्थित है। इतिहास चित्रकूट के सन्निकट स्थित मड़फा पुरातनकाल से ही ऋषिमुनियों का प्रिय तपोवन रहा है। विविध पुराणों के अनुसार यहाँ श्रृष्टि कालीन महर्षि भृगु की पुलोमा नामक पत्नी से उत्पन्न उनके पुत्र च्यवन रहा करते थे। यहीं पर विश्वामित्र का स्वर्ग की अप्सरा मेनका से सम्पर्क स्थापित हुआ था। यहाँ यह ध्यातव्य है कि विश्वामित्रों की एक पूरी वंश परम्परा है, जहाँ सभी को विश्वामित्र कहा जाता है। जिन विश्वामित्र ने रामलक्ष्मण को शिक्षा दी थी, वे उन विश्वामित्र के पूर्ववर्ती हैं, जिन्होंने मेनका से सम्पर्क स्थापित कर शकुन्तला को जन्म दिया था। महर्षि मांडव्य के पूर्व यहाँ कई ऋषियों द्वारा तपस्या किए जाने के उल्लेख मिलते हैं किन्तु इस तपोवन को उल्लेखनीय ख्याति मांडव्य द्वारा यहाँ कठोर ताप किए जाने के बाद मिली है। भौगोलिक संरचना एवं स्थिति शैल मालाओं से आवृत इस स्थान की आकृति मण्डप के सदृश है। कुछ लोग इसके नामकरण का आधार इसी आकृति को मानते हैं जबकि स्थानीय परम्परा तथा अनेक बुद्धिजीवी मंडव्य का अपभ्रंश मानते हैं। यह स्थान झाँसी मानिकपुर रेलमार्ग पर स्थित भरतकूप रेलवे स्टेशन से लगभग 15 तथा इसी रेलमार्ग के बदौसा रेलवे स्टेशन से बघेलाबारी होते हुए लगभग 16 दुरी पर स्थित मानपुर के</s>
समीपी धरातल पर विन्ध्य पर्वत माला की एक पहाड़ी पर स्थित है। अक्षांश एवं देशान्तर 25.126321 80.703566 स्थान की जानकारी मुख्य प्रवेश द्वार मानपुर के नजदीक मडफा दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार है जहाँ से दुर्ग में जाने का मार्ग सुगम है। अन्य मार्गों में कुरहू तथा खमरिया से भी दुर्ग में जाने के मार्ग हैं जो थोडे दुर्गम हैं। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है। सीढियां दुर्ग पर चढ़नेके लिए लगभग 520 सीढियां हैं जो कंक्रीट द्वारा निर्मित हैं। हांथी दरवाजा लाल बलुआ पत्थर से निर्मित दुर्ग में प्रवेश हेतु मुख्य द्वार हांथी दरवाजा है जिसमें नक्काशीदार स्तंभों के ऊपर पत्थर की कड़ी रखकर छत बनाई गई है। सुरक्षा के लिए दरवाजे के दोनों ओर तोप रखकर चलने के लिए दो बुर्ज बने हुए हैं जो वर्तमान में वहीँ नीचे गिरे हुए हैं। पंचमुखी शिव मंदिर हांथी दरवाजा के नजदीक मंदिर में नृत्य मुद्रा में गजासुर संहारक शिव की विलक्षण प्रतिमा प्रतिष्ठित है। काली शिला पर रूपायित इस प्रतिमा में भगवन शिव कुठार, घंटा, डमरू, नरमुण्ड, परशु, धनुष, खप्पर, खेटक, बीज, पूरक आदि आयुध धारण किए हुए हैं। चन्देलकालीन मंदिर किले के अन्दर कुटी नमक स्थान के समीप हिन्दू धर्म से सम्बंधित दो चंदेल कालीन मंदिर</s>
प्राप्त हैं। बड़ा मंदिर एक भव्य चबूतरे पर निर्मित है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस मंदिर में अर्द्धमंड़प, मंडप, गर्भगृह निर्मित हैं जो वर्तमान में ध्वस्तावस्था में देखे जा सकते हैं। इसके लगभग 12 मीटर की दूरी पर लघु मंदिर ध्वस्तावस्था में है। मांडव्य ऋषि आश्रम मांडव्य ऋषि का आश्रम चन्देलकालीन मंदिरों से लगा हुआ है जिसे कुटी के नाम से जाना जाता है जिसमें भैरवभैरवी की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इनके चार हाँथ हैं । दाहिने एक हाँथ में डमरू और दुसरे में बच्चा तथा बाएँ एक हाँथ में लड्डू तथा दूसरे में कुत्ता पकड़े हैं। बड़ीबड़ी निकले हुई आंखे, चौड़ी नासिका तथा गले में नरमुण्ड माला धारण किए हुए हैं। स्वर्गारोहण दीघी आश्रम में जलापूर्ति के लिए स्वर्गारोहण दीघी निर्मित है जो वर्ष भर जल से भरी रहती है, यह कुटी में जलापूर्ति का प्रमुख साधन है। पापमोचन सरोवर कुटी के समीप ही ढाल पर पापमोचन सरोवर है जो इस दुर्ग की जलापूर्ति में धार्मिक मान्यता के साथसाथ बड़ा महत्व रखता है। शिव एवं नंदी तथा चरण पादुका पापमोचन सरोवर के समीप ही एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है जिसके नजदीक रखी शिलाओं में चरणों के निशान हैं तथा एक प्राचीन तुलसी चौरा बना</s>
हुआ है। उत्तर पूर्व दिशा में आंगे बढ़ने पर शिव एवं नंदी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। जैन मंदिर कुटी से पूर्व दिशा की ओर खमरिया द्वार की ओर लगभग 200 मीटर की दूरी पर 5 जैन मंदिरों का समूह है जिसमे 3 जैन मदिर ही देखे जा सकते हैं। भग्नावस्था में एक मंदिर पूरी तरह से देखा जा सकता है जिसमें गर्भगृह के सामने 16 नक्काशीदार स्तंभों पर आधारित मंडप दर्शनीय है। इन मंदिरों की शैली मध्य प्रदेश के खजुराहो में निर्मित शैली जैसी है। इस मंदिर के गर्भगृह में महावीर स्वामी की प्रतिमा खण्डित अवस्था में प्रतिष्ठित है। देखे जा सकने वाले 2 अन्य जैन मंदिरों में गर्भ गृह उपलब्ध हैं तथा ये ध्वंश होने के कारण भग्नावस्था में पूरी तरह नहीं देखे जा सकते हैं। 5 जैन मंदिरों के गर्भगृह में मुमिनाथ, चंद्रप्रभा, महावीर, अम्बिका तथा लोकपाल की कलात्मक मूर्तियाँ हैं। राम नाम गुफा जैन मंदिरों के आंगे पर्वत की सीमा समाप्त होती है। संकरे रास्ते से नीचे उतरकर गुफा में राम नाम अंकित है जिसे किसी तपस्वी ने बड़ी ही कलात्मक तरीके से लिखा है। पर्वत की वन्य सम्पदा लाल बलुआ पत्थर की प्रचुर उपलब्धता के साथसाथ पर्वत में वन्य सम्पदा भी आबाद है। वन्य सम्पदा में</s>
यहाँ धवा, सेज, तेंदू, खैर, रियां, ढाक तथा अन्य वनस्पतियाँ उपलब्ध है जो कांटेदार है तथा औषधीय गुणों से भरपूर हो सकती हैं। पर्वत का प्राकृतिक सौन्दर्य पर्वत अपनी वन्य सम्पदा के साथसाथ प्राकृतिक सौन्दर्य से आबाद है पर्वत के पश्चिम में बाणगंगा नदी प्रवाहित होती है तथा नजदीक ही रसिन बांध है एवं धार्मिक एवं दर्शीय पवन तीर्थ चित्रकूट के नजदीक होने के कारण इसकी प्राकृतिक सुन्दरता और बढ़ जाती है। चारों तरफ से पर्वत चोटियों से घिरे होने के कारण यह पर्वत बड़ा ही मनोरम हो जाता है। वर्षा ऋतु में यहाँ पर्वत में मेघों को उतरते हुए स्पष्ट देखा जा सकता है यह दृश्य पर्यटकों के मन को स्वतः ही आकर्षित कर लेता है। अतएव इस दर्शनीय स्थल पर जो हिन्दू एवं जैन धर्म की संगम स्थली है तथा वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय संस्कृति को दिखाने वाली है में पर्यटकों को आना चाहिए जिससे यहाँ पर्यटन का विकास होगा तथा क्षेत्रीय लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। . गण्डदेववर्मन चन्देल , भारत के चन्देल राजवंश के एक शासक थे जिन्होंने अपनी राजधानी महोबा, जेजाकभुक्ति से शासन किया था। इन्होंने सुबुक्तगीन को पराजित किया था तथा त्रिपुरी के कलचुरी तथा ग्वालियर के कच्छपघात शासक इनके अधीन थे। यह चक्रवर्तीन</s>
विद्याधरदेववर्मन के पिता थे। जानकारी के स्रोत गण्डदेव द्वारा जारी किए गए कोई शिलालेख उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उनका नाम उनके उत्तराधिकारियों द्वारा जारी किए गए निम्नलिखित शिलालेखों में दिखाई देता है: महोबा शिलालेख परमर्दिदेववर्मन से बना है मऊ मदनवर्मन का शिलालेख अजयगढ़ कीर्तिवर्मन का शिलालेख भोजवर्मन के शासनकाल के दौरान जारी अजयगढ़ शिलालेख इन शिलालेखों में गण्डदेव के बारे में जो जानकारी है। उनमें अधिकतर स्तुति वर्णन होते हैं, जैसे उसे अजेय कहना, या यह कहना कि उसके पास पृथ्वी पर एकमात्र आधिपत्य था। राजकाल गण्डदेव धंगदेववर्मन के बाद चन्देल राजा बना। गण्डदेव के उत्तराधिकारी विद्याधर के बारे में उपलब्ध जानकारी के विश्लेषण से पता चलता है कि गण्डदेव अपने विरासत में मिले क्षेत्र को बनाए रखने में कामयाब रहा। मऊ शिलालेख के अनुसार, धनगा के मुख्यमंत्री प्रभास ने अपने उत्तराधिकारी गण्डदेव के शासनकाल के दौरान पद बरकरार रखा। अजयगढ़ शिलालेखों से पता चलता है कि जाजुका नाम का एक कायस्थ गण्डदेव का एक और महत्वपूर्ण अधिकारी था। हालाँकि, बाद में, विद्याधरदेव वर्मन की रानी सत्यभामा द्वारा जारी एक ताम्रपत्र कुंडेश्वर में खोजा गया था। यह शिलालेख 1004 ई.पू. का है, जिससे सिद्ध होता है कि विद्याधरदेव 1004 ई.पू. में पहले से ही शासन कर रहा था। इसके आधार</s>
पर, एस. के. सुलेरे ने गण्डदेव के शासन के अंत की तिथि 1002 ई. बताई। पहले के कुछ इतिहासकारों का मानना था कि गण्डदेव ने कम से कम 1018 ई.पू. तक शासन किया था। दीक्षित ने धंगदेव की पहचान कलंजरा के राजा से की, जिसने 1008 ईस्वी में पेशावर में महमूद गजनी द्वारा पराजित हिंदू संघ में सैन्य दल का योगदान दिया था। 1018 ई. में, गजनी के महमूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया, जिसका राजा शहर से भाग गया, जिससे गजनवी सेना को अधिक प्रतिरोध का सामना किए बिना इसे लूटने की अनुमति मिल गई। फ़रिश्ता जैसे बाद के मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार, खजुराहो के राजा नंददेव वर्मन ने कन्नौज के राजा को उसकी कायरता की सजा के रूप में मार डाला। कुछ ब्रिटिशयुग विद्वानों ने नंद को गण्ड की गलत वर्तनी के रूप में पहचाना। अली इब्न अलअथिर , फ़रिश्ता से पहले के एक मुस्लिम इतिहासकार, ने खजुराहो के राजा का नाम बिदा रखा, जो विद्या का एक प्रकार है । बाद के मुस्लिम इतिहासकारों ने इसे नंदा के रूप में गलत पढ़ा होगा। इसके अलावा, महोबा में मिले एक शिलालेख में कहा गया है कि विद्याधर ने कन्नौज के शासक को हराया था। इसके आधार पर, यह</s>
अनुमान लगाया जा सकता है कि गण्डदेव का शासन 1018 ई.पू. से कुछ समय पहले समाप्त हो गया, जब उसके उत्तराधिकारी ने कन्नौज के शासक को हराया। सन्दर्भ ग्रंथ सूची 11 ब्रांडिंग पायनियर्स एक भारतीय डिजिटल मार्केटिंग कंपनी है जिसका मुख्यालय हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले में है। यह कंपनी ज्यादातर हेल्थकेयर पर काम करती है, कंपनी के संस्थापक निशु शर्मा और आरुष थापर हैं। इतिहास ब्रांडिंग पायनियर्स भारतीय हेल्थकेयर डिजिटल मार्केटिंग कंपनी हैं इसकी स्थापना साल 2016 में कंपनी के संस्थापक निशु शर्मा और आरुष थापर ने की थी। कंपनी हैल्थकेयर डिजिटल मार्केटिंग से जुडी हुयी है ब्रांडिंग पायनियर्स ने विश्व डॉक्टर दिवस पर जब कोई नहीं था तब मेरे लिए कौन था शीर्षक से एक गीत भी लॉन्च किया जो की विश्व भर के चिकित्सकों को समर्पित था। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंस्टाग्राम पर ब्रांडिंग पायनियर्स यूट्यूब पर ब्रांडिंग पायनियर्स भारतीय ब्रांड भारतीय कंपनियाँ स्कूल फ्रेंड्स, रस्क स्टूडियो द्वारा निर्मित एक हिंदी भाषा की रोमांस कॉमेडी टेलीविजन श्रृंखला है। श्रृंखला में नविका कोटिया , आदित्य गुप्ता, मानव सोनेजी , अलीशा परवीन और अंश पांडे शामिल हैं। इसका प्रीमियर 23 अगस्त 2023 को अमेज़ॅन मिनीटीवी पर हुआ । भूमिकाएं नविका कोटिया स्तुति के रूप में आदित्य गुप्ता अनिर्बान के रूप में</s>
मानव सोनेजी रमन के रूप में अलीशा परवीन डिंपल के रूप में अंश पांडे मुकुंद के रूप में निर्माण इस श्रृंखला को रस्क स्टूडियो के द्वारा अमेजॉन मिनी टीवी पर रिलीज किया गया था। नविका कोटिया, आदित्य गुप्ता, मानव सोनेजी, अलीशा परवीन और अंश पांडे ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है। संदर्भ बाहरी कड़ियां स्कूल फ्रेंड्स अमेजॉन मिनी टीवी पर पर महागढ़ नीमच जिले के मनासा तहसील का एक गाँव है। महागढ रामपुरा के भील शासको द्वारा शासित था। संदर्भ निम्नलिखित राष्ट्र नागरिकों को छद्मवेशी कपड़े पहनने या रखने पर प्रतिबंध लगाते हैं: अज़रबैजान अण्टीगुआ और बारबूडा बहामा बारबाडोस डोमिनिका घाना ग्रेनेडा जमैका नाइजीरिया ओमान फिलीपींस सेंट लूसिया सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस सऊदी अरब त्रिनिदाद और टोबैगो युगांडा जाम्बिया ज़िम्बाब्वे संदर्भ देशों की सूचियाँ एटम टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड एक भुगतान सेवा प्रदाता कंपनी है जिसका मुख्यालय मुंबई, भारत में है। एटम की शुरुआत २००६ में जिग्नेश शाह द्वारा स्थापित फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज़ ग्रुप की सहायक कंपनी के रूप में की गई थी। कंपनी ने ऐतिहासिक रूप से मोबाइल प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से भुगतान और बैंकिंग सेवाओं के वितरण पर ध्यान केंद्रित किया है। एटम टेक्नोलॉजीज़ ने मोबाइल भुगतान, इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पांस आधारित भुगतान और मोबाइलआधारित सेवा वितरण ढांचे के लिए</s>
उत्पाद और सेवाएं प्रदान की हैं। २७ नवंबर २०१८ को टोक्यो में मुख्यालय वाले अग्रणी आईटी सेवा प्रदाता एनटीटी डेटा ने घोषणा की कि उसने एटम टेक्नोलॉजीज़ में बहुमत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए एक समझौता किया है। उत्पादों एटम टेक्नोलॉजीज़ के उत्पादों में शामिल हैं: ऑनलाइन बैंकिंग और इंटरनेट भुगतान गेटवे : एक इंटरनेट भुगतान मंच इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस: संगठनों को फोन कॉल पर क्रेडिट और डेबिट कार्ड के माध्यम से भुगतान स्वीकार करने में मदद करता है मोबाइल कंप्यूटिंग ऐप जो भुगतान सेवाओं को सक्षम बनाता है। एटम मोबाइल ऐप डेबिट और क्रेडिट कार्ड, आईएमपीएस, कैश कार्ड और नेट बैंकिंग के माध्यम से भुगतान की अनुमति देता है भुगतान सेवाएं प्रदान करने के लिए बिक्री केंद्र, एटम इंटरनेट, इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस और मोबाइल पर अपनी सेवाओं के अलावा, ईंट और मोर्टार व्यापारी, अधिग्रहण और लेनदेन प्रसंस्करण सेवाएं प्रदान करता है।[ उद्धरण वांछित ] सुरक्षा कंपनी के भुगतान प्लेटफ़ॉर्म को भुगतान कार्ड उद्योग डेटा सुरक्षा मानक और भुगतान एप्लिकेशन डेटा सुरक्षा मानक प्रमाणपत्रों के लिए मान्यता दी गई है जो बैंकिंग उद्योग द्वारा स्वीकार किए जाते हैं और इसलिए इसके मोबाइल भुगतान लेनदेन और कार्ड धारक डेटा के प्रसारण की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। एटम का भुगतान प्लेटफ़ॉर्म सुरक्षित</s>
वीपीएन कनेक्टिविटी का उपयोग करके लेनदेन को रूट करने के लिए उन्नत एन्क्रिप्शन मानक १२८ बिट सिफर ब्लॉक चेनिंग का उपयोग करता है। एटम किसी भी क्रेडिट कार्ड के विवरण को संग्रहीत नहीं करता है, लेकिन रूटिंग लेनदेन के लिए बैंक के भुगतान गेटवे के पासथ्रू के रूप में कार्य करता है। भागीदारी एटम ने वीज़ा इंक, मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी क्रेडिट कार्ड कंपनियों के अलावा प्रमुख बैंकों के साथ गठजोड़ किया है। इन बैंकों और कंपनियों के क्रेडिट कार्ड का उपयोग एटम प्लेटफॉर्म पर लेनदेन के लिए किया जा सकता है। इन भुगतान सेवाओं को प्रदान करने के लिए १,५०० से अधिक व्यापारियों ने एटम के साथ समझौता किया है। संदर्भ बाहरी संबंध आधिकारिक वेबसाइट भारत में मोबाईल बैंकिंग कुंदा नदी मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के दक्षिण मे स्थित अम्बा नाम के गाँव से निकलती हैं। और खरगौन के उत्तर मे सिपटान नामके स्थान मे वेदा नदी से मिल जाती हैं। कुंदा नदी खरगौन के लिए एक महत्वपूर्ण नदी हैं क्योंकि इस नदी के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए किया जाता हैं। रतलाम शहर मे कुंदा नदी का पानी ही सप्लाई किया जाता हैं। कुंदा नदी में दो डैम का निर्माण किया गया हैं, इन डैम</s>
का नाम देजला देवड़ा डैम और वनिहार डैम है। कुंदा नदी दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं। संदर्भ माथाडीह गिरिडीह जिला का एक फ़ेमम मुस्लिम मोहल्ला है। यह गिरिडीह स्टेडियम से 1 की. मी. पास है। माथाडीह का पोस्ट ऑफिस चैताडीह और थाना पचंबा है। अब माथाडीह गिरिडीह नगर परिषद का 20 न. वार्ड है। माथाडीह फ़ेमस होने का वजह यह है कि यह एक मुस्लिम गांव है और इस गांव का अंजुमन बहुत मजबूत है जिसका नाम अंजुमन बर्कातुल इस्लाम माथाडीह है ।इस अंजुमन का मजबूती का कारन यह है कि लोन्ग टाइम इमाम क रहना, जो बारिक हाफ़िज़ कई सालो तक रहे थे। इस अंजुमन मे लोन्ग टाईम रहने वाला सदर जमायत अंसारी है। जिसका चयन अंजुमन के मस्जिद के दुर दुर रहने वाले सदस्य जैसे इस्लाम अंसारी, नईम अख्तर , जहूर अंसारी, समीम अंसारी आऐ थे। दूसरा कारन यह है कि मूहर्म मे हुए अखाड़े कमपटीस्न सबसे ज्यादा जीते जाने वाला पुरुस्कार । तीसरा कारन यह है कि अंजुमन के सदस्यों हर साल जल्सा करते हैं । झारखंड बनने से पहले गिरिडीह का सबसे बड़ा होने वाला जल्सा अंजुमन बर्कातुल इस्लाम माथाडीह ने सी सी एल फ़ूटबोल गराउ़ड नईम अख्तर के घर के पास कराया</s>
था । जल्से मे दूर दूर से लोग आया था ओर इस अंजुमन को जाना था । चौथा कारन यह है कि खेल कूद मे माथाडीह बहुत प्रसिद्ध रहे हैं। जो क्रिकेट से ज्यादा फुटबॉल में प्रसिद्ध रहे थे, वर्तमान मे क्रिकेट में प्रसिद्ध है। टीम का नाम है , जिसका मतलब है एक चाँद दस सितारे । रेनू कादियान भारतीय समाज सेविका हैं वह भगत फाउंडेशन की अध्यक्ष और सात्विक काउंसिल ऑफ इंडिया की ट्रस्टी हैं। भगत फाउंडेशन की स्थापना वर्ष 2007 में की गयी थी तभी से भगत सिंह फाउंडेशन साइबर अपराध, मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने, युवाओं को खेल और शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने और पर्यावरण को स्वच्छ और हराभरा रखने पर केंद्रित है। रेनू कादियान को भगत फाउंडेशन की अध्यक्षा अगस्त 2021 में बनाया गया था। जीवन परिचय रेनू कादियान एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनका जन्म 8 अगस्त 1992 को हरियाणा के पानीपत जिले में हुआ और इन्होने अपनी पढाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की थी। वर्तमान में वह भगत फाउंडेशन की अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं और वह सात्विक काउंसिल ऑफ इंडिया के ट्रस्टी के रूप में भी काम कर</s>
रही हैं। वर्तमान समय में हरियाणा राज्य में नशे के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रेनू कादियान द्वारा नशा मुक्त हरियाणा नाम से एक अभियान भी शुरू किया गया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंस्टाग्राम पर रेनू कादियान 1992 में जन्मे लोग भारतीय हिन्दू हरियाणा के लोग भारतीय महिलाएँ भारत में स्त्रीशिक्षा समाज सुधारक तेलुगु देशम पार्टी के राजनीतिज्ञ २०१९ में निधन 1947 में जन्मे लोग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलगीत यानी मधुर मनोहर अतिव सुन्दर भारतीय रसायनज्ञ और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शांति स्वरूप भटनागर द्वारा लिखी गई एक कविता है। इसे पंडित ओंकार नाथ ठाकुर ने संगीतबद्ध किया है। यह कविता मूल रूप से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आधिकारिक विश्वविद्यालय गान के रूप में अपनाए जाने पर लोकप्रिय हुई। इसे आधिकारिक तौर पर कुलगीत के नाम से जाना जाता है। विश्वविद्यालय में यह प्रथा है कि विश्वविद्यालय के किसी भी आधिकारिक कार्यक्रम या उत्सव के शुरू होने से पहले इस गान को सहगान में गाया जाता है। कविता का अंतिम छंद विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी को समर्पित है। हिंदी में विश्वविद्यालय की टैगलाइन सर्वविद्या की राजधानी , सीधे कविता की अंतिम पंक्ति से उठाया गया है, जबकि अंग्रेजी टैगलाइन कैपिटल ऑफ नॉलेज उसी का अनुवाद है। कुलगीत ने</s>
पूरे इतिहास में अक्सर प्रशंसा अर्जित की है। कुलगीत को कला और मीडिया में भी प्रस्तुत किया गया है। बोल आचार संहिता कुलगीत विश्वविद्यालय में सहगान में गाया जाता है। सम्मान स्वरूप कुलगीत के बाद ताली बजाना वर्जित है। ओंकारनाथ ठाकुर की रचना आधिकारिक धुन है। कोई आधिकारिक लंबाई निर्धारित नहीं है, लेकिन आधिकारिक रचना में आमतौर पर लगभग चार मिनट और तीस सेकंड लगते हैं। यह देखें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय शांति स्वरूप भटनागर संदर्भ बाहरी कड़ियाँ बी एच यू कुलगीत हिन्दी काव्य जाग्रति सिंह परिहार भारतीय अभिनेत्री व फिजियोथेरेपिस्ट हैं भाभीजी घर पर है में अभिनेत्री जागृति सिंह परिहार ने 12 किरदार निभाए हैं। करियर कॉलेज भोपाल में पेरा मेडिकल की छात्रा रहीं जाग्रति ने अपनी स्कूल की पढाई एम एल बी गर्ल्स स्कूल दमोह से पूरी की और बाद में वो फिजियोथेरपिस्ट की पढाई करने के लिए भोपाल जाकर बस गयीं। जीवन परिचय जाग्रति सिंह परिहार भारतीय अभिनेत्री हैं इनका जन्म दमोह में हुआ है। जाग्रति मिस भोपाल रहीं और मुंबई में रहते हुए उन्होंने नानावती अस्पताल में एक फिजियोथेरेपिस्ट के रूप में काम किया था। जाग्रति ने भाभी जी घर पर हैं में छेदी सिंह की पत्नी गुलबिया का किरदार निभाया और बाद में उन्होंने चिड़ियाघर, हप्पू</s>
की उलटन पलटन, जीजा जी छत पर हैं समेत कई सीरियल्स में काम किया। उनके दो गाने हार ले और देसी रिलीज के साथ ही लोकप्रिय रहे हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंस्टाग्राम पर जाग्रति सिंह परिहार हिन्दी अभिनेत्री धारावाहिक अभिनेत्री 1991 में जन्मे लोग जीवित लोग बोधन दौआ उफ ठाकुर पर्जन सिंह यादव शाहगढ रियासत के राजा बखतवली शाह के सेनापति थे। जिन्होनें 1857 की क्रांति मे अपनी अलग छाप छोड़ गए। उन्हें सागर का तत्या तोपे के नाम से भी जाना जाता है वह इतने शक्तिशाली थे की वह जहा भी युद्ध करने के लिये जाते थे वह विजय प्राप्त करते थे । इतिहास बोधन दौआ मध्यप्रदेश के सागर जिले की शाहगढ़ रियासत के क्रांतिकारी नायक राजा बखतबली के मुख्य सलाहकार व सेनापति थे। उन्होंने 1857 को क्रांति में गढ़ाकोटा विजय हेतु विशाल सेना का नेतृत्व किया। जब 50वीं सेना के सिपाहियों ने शस्त्र उठाये तो उन्होंने क्रांतिकारियों का साथ दिया। वे अंग्रेजों के दमन के आगे कभी नहीं झुके और देश के लिए अनवरत लड़ते रहे। शाहगढ़ के राजा बखतवली अंग्रेजों से अपना खोया क्षेत्र गढ़ाकोटा वापस लेना चाहते थे। इस कार्य में सहयोग के लिये बखतबली ने बोधन दौआ के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी। अपने आठ</s>
हजार साथियों के साथ 14 जुलाई 1857 को बोधन दौआ ने गढ़ाकोटा पर हमला किया। पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली। लेकिन पुनः राजा बखतबली की सेना ने धावा बोला और अपनी धरती पर अधिकार कर लिया। गढ़ाकोटा के किले एवं थाने में अंग्रेजों द्वारा पदस्थ सरकारी कर्मचारी भाग खड़े हुए। अब बोधन दौआ का अगला अभियान रेहली विजित करना था। दो हजार सैनिक पाँच सौ अन्य योद्धा तथा तीन तोपें लेकर उन्होंने रेहली पर कूच किया। बोधन दौआ के सामने रेहली की रक्षा के लिए तैनात लेफ्टिनेंट लासन टिक न सका, वह सागर भाग खड़ा हुआ। रेहली की जीत पर राजा बखतबली अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बोधन दौआ को रेहली किले का किलेदार नियुक्त किया। बोधन दौआ आगे बढ़ा और उसने देवरी पर भी अपना अधिकार कर लिया। लेकिन अंग्रेज चैन से नहीं बैठे उन्होंने 11 अक्टूबर को रेहली पर अधिकार कर लिया। संकट के समय में लटकन तथा गनेश नामक राष्ट्रभक्तों ने बोधन दौआ को सहयोग दिया। बोधन के साथ रहने के अपराध में उन दोनों को 6 अप्रैल 1858 को गिरफ्तार कर लिया और तीन साल के कारावास की सजा सुनाई गयी। यातनाओं के बाद भी उन्होंने जुबान नहीं खोली। इन्हीं की तरह एक अन्य साथी</s>
बदन राय ने अचलपुर में क्रांति की कमान संभाली थी। उसे भी 5 अप्रैल 1858 को फांसी दे दी गयी। अंग्रेजों ने क्रांति को कुचलने के लिये दमन चक्र चलाया, शाहगढ़ के राजा बखतबली के गिरफ्तार हो जाने के बावजूद बोधन दौआ ने आत्मसमर्पण को नकार दिया। अंग्रेज तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें पकड़ नहीं सके। अंततः बोधन दौआ को पकड़ने के लिए एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की गई लेकिन किसी ने सुराग नहीं लगने दिया। बोधन दौआ अज्ञातवास में चले गए और क्रांति में अपनी भूमिका निभाते रहे। लोकगीत बोधन भाई फिरत हैं दौआ । मारत खात फिरत अंगरेजन, काटत ककरी जौआ।। भागे फिरत अंगरेजा बेकल, दौआ हो गए हौआ। गढ़ा से रहली तक मारे फौज़ फिरंगी कौआ ।। ऐसे ढेरों लोकगीत आज भी बुंदेलखंड में जोगी भाट गुनगुनाए हैं यहां के जांबाज़ शूरमा बोदन सिंह दौआ के सम्मान में। सन्दर्भ सागर का तात्या टोपे बोधन सिंह दौआ :....?& :....?& 1857, :...1857%5%9%1%9%87%4%81%%90.?& नरेंद्र कुमार, जिन्हें मुख्य रूप से नरेंद्र श्रीवास्तव के नाम से जाना जाता है, ये एक भारतीय फिल्म निर्देशक हैं। इन्हें स्कूल फ्रेंड्स और कैंपस डायरीज के लिए जाना जाता है। सन्दर्भ नविका कोटिया एक भारतीय अभिनेत्री हैं जो हिंदी फिल्मों और टेलीविजन</s>
में दिखाई देती हैं। नविका स्टार प्लस के ये रिश्ता क्या कहलाता है में चिक्की सिंघानिया और माया खेरा की दोहरी भूमिकाएँ निभाने के लिए लोकप्रिय हैं। इन्होंने बॉलीवुड की फिल्म इंग्लिश विंग्लिश में भी अपने भाई शिवांश कोटिया के साथ श्रीदेवी की बेटी की भूमिका निभाई थी। फिल्मोग्राफी टेलीविजन संगीत वीडियो बाहरी कड़ियाँ नविका कोटिया, बॉलीवुड हंगामा पर नविका कोटिया, पर सन्दर्भ आदित्य गुप्ता एक भारतीय अभिनेता हैं, जो मुख्य रूप से टेलीविजन सीरीज क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच व स्कूल फ्रेंड्स में किए गए काम के लिए जाने जाते हैं। बाहरी कड़ियाँ क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच, पर स्कूल फ्रेंड्स, पर सन्दर्भ फाइव नाइट्स एट फ्रेडीज़ एक 2023 अमेरिकी अलौकिक डरावनी फिल्म है। कलाकार जोश हचरसन माइक श्मिट पाइपर रुबियो एबी, माइक की छोटी बहन एलिज़ाबेथ लैल वैनेसा मैथ्यू लिलार्ड स्टीव रैगलन विलियम एफ़टन मैरी स्टुअर्ट मास्टर्सन आंटी जेन कैट कॉनर स्टर्लिंग मैक्स डेविड लिंड जेफ क्रिश्चियन स्टोक्स हांक जोसेफ पोलिकिन कार्ल लुकास ग्रांट गैरेट, माइक का छोटा भाई थियोडस क्रेन जेरेमिया, माइक के सहकामगार आवाज़ें केविन फोस्टर फ्रेडी फ़ैज़बियर जेड किंडरमार्टिन बोनी जेसिका वीस चिका रोजर जोसेफ मैनिंग जूनियर फॉक्सी इन्हें भी देखें एल चावो एनिमाडो सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2023 की फ़िल्में अमेरिकी फ़िल्में अंग्रेज़ी फ़िल्में सेल्यूकसमौर्य युद्ध 305</s>
और 303 ईसा पूर्व के बीच लड़ा गया था। इसकी शुरुआत तब हुई जब सेल्यूसिड साम्राज्य के सेल्यूकस निकेटर प्रथम ने मैसेडोनियन साम्राज्य के भारतीय क्षत्रप राज्यों को वापस लेने की कोशिश की, जिस युद्ध में मौर्य साम्राज्य के सम्राट सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य विजयी हुए। युद्ध एक समझौते के साथ समाप्त हुआ जिसके परिणामस्वरूप सिंधु घाटी क्षेत्र और गेडरोशिया, आर्कोसिया , आरिया और हिंदूकुश मौर्य साम्राज्य में मिला लिया गया, साथ ही चंद्रगुप्त ने उन क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर लिया जो उसने चाहा था, और दोनों शक्तियों के बीच एक विवाह गठबंधन हुआ। युद्ध के बाद, मौर्य साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा, और सेल्यूसिड साम्राज्य ने अपना ध्यान पश्चिम में अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने की ओर लगाया। पृष्ठभूमि लगभग 321 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने खुद को मगध के शासक के रूप में स्थापित किया। उन्होंने गंगा के मैदान के समय के शासक नंद वंश पर विजय प्राप्त करने का निर्णय लिया। उन्होंने सफल गुरिल्ला युद्ध अभियानों के साथ ग्यारह वर्षों तक साम्राज्य से लड़ाई लड़ी और पाटलिपुत्र की नंदा राजधानी पर कब्जा कर लिया। इससे साम्राज्य का पतन हुआ और अंततः चंद्रगुप्त मौर्य के अधीन मौर्य साम्राज्य का निर्माण हुआ। जो अब आधुनिक</s>
अफगानिस्तान है, उसमें फारसी प्रांत, गांधार के समृद्ध साम्राज्य और सिंधु घाटी के राज्यों के साथ, सभी ने सिकंदर महान के सामने समर्पण कर दिया था और उसके साम्राज्य का हिस्सा बन गए थे। जब सिकंदर की मृत्यु हो गई, तो डियाडोची के युद्ध ने उसके साम्राज्य को विभाजित कर दिया चूँकि उसके सेनापति सिकंदर के साम्राज्य पर नियंत्रण के लिए लड़े थे। पूर्वी क्षेत्रों में इन जनरलों में से एक, सेल्यूकस निकेटर, नियंत्रण ले रहा था और वह सिकंदर का साम्राज्य फिर से स्थापित करना चाहता था जिसे सेल्यूसिड साम्राज्य के रूप में जाना जाने लगा। रोमन इतिहासकार अप्पियन के अनुसार : सिकंदर ने सिंधु घाटी सहित अपने क्षेत्रों के नियंत्रण के लिए क्षत्रपों को नियुक्त किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने निकानोर, फिलिप, यूडेमस और पेइथन द्वारा शासित क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इसने सिंधु के किनारों तक मौर्य नियंत्रण स्थापित कर दिया। चंद्रगुप्त की जीतों ने सेल्यूकस को आश्वस्त किया कि उसे अपने पूर्वी हिस्से को सुरक्षित करने की आवश्यकता है ना की पश्चिम दिशा में जहां का सम्राट चंद्रगुप्त विशाल सेना के साथ अत्यधिक शक्तिशाली है । मैसेडोनियन क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने की कोशिश में, सेल्यूकस सिंधु घाटी पर उभरते और विस्तारित मौर्य साम्राज्य के साथ संघर्ष</s>
में आ गया और बुरी तरह पराजित होने पर संधि कर ली । युद्ध संघर्ष का विवरण के विषय में ग्रीक इतिहासकार अप्पियन के अनुसार : ग्रिंगर के अनुसार, संघर्ष का विवरण संछिप्त है, लेकिन परिणाम स्पष्ट रूप से एक निर्णायक भारतीय जीत थी, जिसमें चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की सेना को हिंदू कुश के पार वापस खदेड़ दिया और परिणामस्वरूप आधुनिक अफगानिस्तान और पश्चिमी ईरान में बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। व्हीटली और हेकेल का सुझाव है कि युद्ध के बाद स्थापित मैत्रीपूर्ण मौर्यसेल्यूसिड संबंधों का तात्पर्य है कि शत्रुता संभवतः न तो लंबी और न ही गंभीर थी। नतीजे सेल्यूकस निकेटर ने हिंदू कुश, पंजाब पश्चिमी ईरान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों को चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिया। उनकी व्यवस्था के परिणामस्वरूप, सेल्यूकस को चंद्रगुप्त मौर्य से 500 युद्ध हाथी प्राप्त हुए, जिसने बाद में पश्चिम में डायडोची के युद्धों को प्रभावित किया। सेल्यूकस और चंद्रगुप्त भी एक विवाह गठबंधन के लिए सहमत हुए और सेल्यूकस की बेटी कार्नेलीया हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त से हुआ। स्ट्रैबो के अनुसार, सौंपे गए क्षेत्र सिंधु की सीमा से लगे थे:जनजातियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है: सिंधु के किनारे परोपामिसाडे हैं, जिनके ऊपर परोपामिसस पर्वत है: फिर, दक्षिण की ओर, अरचोटी:</s>
फिर उसके बाद, दक्षिण की ओर, गेड्रोसेनी, अन्य जनजातियों के साथ जो इस पर कब्जा करती हैं समुद्री तट और सिंधु इन सभी स्थानों के साथसाथ अक्षांशीय रूप से स्थित है और इनमें से कुछ स्थान, जो सिंधु नदी के किनारे स्थित हैं, उन पर भारतीयों का कब्ज़ा है, हालाँकि वे पहले फारसियों के थे। सिकंदर [मैसेडोन के तृतीय महान] ने इन्हें एरियन से छीन लिया और अपनी खुद की बस्तियां स्थापित कीं, लेकिन सेल्यूकस निकेटर ने उन्हें अंतर्विवाह और बदले में पांच सौ हाथी प्राप्त करने की शर्तों पर सैंड्रोकोटस [चंद्रगुप्त] को दे दिया। स्ट्रैबो 15.2.9 यूनानी और भारतीय साहित्य दोनो में विवाह का वर्णन मिलता है । भारतीय ग्रंथों में पौराणिक साहित्य में इसका एक विवरण इस प्रकार है : शक्यासिहादुद्धसिंहः पितुरर्द्ध कृतं पदम् ॥ चन्द्रगुप्तस्तस्य सुतः पौरसाधिपतेः सुताम्। सुलूवस्य तथोद्वह्य यावनीबौद्धतत्परः।। षष्ठिवर्ष कृतं राज्यं बिन्दुसारस्ततोऽभवत्। पितृस्तुल्यं कृतं राज्यमशोकस्तनयोऽभवत् ।। हिन्दी अनुवाद शाक्य सिंह के वंशज भगवान बुद्ध हुए, जिसने अपने पिता के आधे समय तक राज्य किया। भगवान बुद्ध के वंशज चन्द्रगुप्त हुए, जिसने पोरसाधिपति सेलुकस की पुत्री उस यवनी के साथ पाणिग्रहण करके उसने बौद्ध पत्नी समेत साठ वर्ष तक राज्य किया चन्द्रगुप्त के वंशज बिन्दुसार हुआ अपने पिता के काल तक राज्य किया। बिन्दुसार के</s>
वंशज अशोक हुए। सेल्यूकस ने आरिया , आर्कोशिया , परोपनिषदी , एरिया , जेड्रोशिया के सबसे पूर्वी प्रांतों को भी आत्मसमर्पण कर दिया। दूसरी ओर, उसे पूर्वी प्रांतों के अन्य क्षत्रपों ने स्वीकार कर लिया। उनकी ईरानी पत्नी अपामा ने उन्हें बैक्ट्रिया और सोग्डियाना में अपना शासन लागू करने में मदद की होगी। इसे पुरातात्विक रूप से मौर्य प्रभाव के ठोस संकेतों के रूप में पुष्ट किया जा सकता है, जैसे कि अशोक के शिलालेखों के शिलालेख, जिन्हें उदाहरण के लिए, आज के दक्षिणी अफगानिस्तान में कंधार में स्थित । हालांकि चंद्रगुप्त ने आरिया के साथ अन्य प्रांत भी जीते थे । प्राचीन ग्रीक इतिहासकार प्लिनी ने चंद्रगुप्त की सीमा को निर्धारित करते हुऐ लिखा:वास्तव में, अधिकांश भूगोलवेत्ता भारत को सिंधु नदी से घिरा हुआ नहीं मानते हैं, बल्कि इसमें चार क्षत्रपों गेडरोशिया, अराकोशिया, आरिया और पारोपामिसाडे, कोपेस नदी को जोड़ते हैं और इस प्रकार भारत की चरम सीमा बनाते हैं। हालाँकि, अन्य लेखकों के अनुसार, ये सभी क्षेत्र आरिया देश के अंतर्गत माने जाते हैं। प्लिनी, प्राकृतिक इतिहास , 23 यह व्यवस्था पारस्परिक रूप से लाभप्रद साबित हुई। सेल्यूसिड और मौर्य साम्राज्यों के बीच की सीमा बाद की पीढ़ियों में स्थिर रही, और मैत्रीपूर्ण राजनयिक संबंध राजदूत मेगस्थनीज और</s>
चंद्रगुप्त के मध्य स्थापित हो गया। चंद्रगुप्त के युद्ध हाथियों के उपहार ने वापसी मार्च के बोझ को कम कर दिया होगा और उसे अपनी बड़ी सेना के आकार और लागत को उचित रूप से कम करने की अनुमति दी, क्योंकि उसकी शक्ति के लिए सभी प्रमुख खतरे अब दूर हो गए थे। मौर्यों से प्राप्त युद्ध हाथियों के साथ, सेल्यूकस इप्सस की लड़ाई में अपने प्रतिद्वंद्वी, एंटीगोनस और उसके सहयोगियों को हराने में सक्षम था। एंटीगोनस के क्षेत्रों को अपने में जोड़कर, सेल्यूकस ने सेल्यूसिड साम्राज्य की स्थापना की, जो 64 ईसा पूर्व तक भूमध्य और मध्य पूर्व में एक महान शक्ति के रूप में कायम रहेगा। अब अफगानिस्तान और पश्चिमी ईरान के क्षेत्र पर मौर्य नियंत्रण ने उत्तरपश्चिम से बाहिरी विदेशी आक्रमण को रोकने में मदद की। चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत में अपने शासन का विस्तार दक्षिण की ओर दक्कन तक किया। यह भी देखें झेलम का प्रथम युद्ध लेखक नोट सन्दर्भ प्राचीन भारत के वैदेशिक सम्बन्ध मौर्य साम्राज्य भारत के युद्ध ताजिकिस्तान के नेता ताजिक स्वायत्त सोवियत समाजवादी गणराज्य [ संपादित करें ] ताजिक प्रांतीय समिति के कार्यकारी सचिव कम्युनिस्ट पार्टी [ संपादित करें ] चिनोर इमोमोव बोरिस टोल्पीगो मुमिन खोडज़ायेव अली हेदर इबाश शेरवानी शिरींशो श्टेमूर</s>
केंद्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष [ संपादित करें ] नुसरतुल्ला मकसुम लुत्फुलेयेव ताजिक सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक [ संपादित करें ] ताजिक कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सचिव [ संपादित करें ] मिर्ज़ा दावूद हुसैनोव ग्रिगोरी ब्रायो सुरेन शादंट्स उरुन्बोइ आशुरोव दिमित्री प्रोतोपोपोव बोबोजोन ग़फ़रोव तुर्सुन उलजाबयेव जोबोर रसूलोव रहमोन नबीयेव काहोर महकामोव केंद्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष [ संपादित करें ] नुसरतुल्ला मकसुम लुत्फुलेयेव शिरींशो श्टेमुर अब्दुलो रक्खीम्बेव मुनव्वर शगदाय सर्वोच्च सोवियत के अध्यक्ष [ संपादित करें ] एन। आशुरोव सुप्रीम सोवियत के प्रेसिडियम के अध्यक्ष [ संपादित करें ] मुनव्वर शगदाय नाज़र्षो डोडखुदोयेव मिर्ज़ा रख़्तोव मखमदुल्लो खोलोव निज़ोरामो ज़रीपोवा व्लादिमीर ओप्लांचुक गैबनसर पल्लयेव सर्वोच्च सोवियत के अध्यक्ष क़ाहोर महकामोव यह सभी देखें तजाकिस्तान की राजनीति तजाकिस्तान के राष्ट्रपति तजाकिस्तान के उपराष्ट्रपति तजाकिस्तान के प्रधान मंत्री ताजिकिस्तान 3 जुलाई 1994 को गिनीबिसाऊ में आम चुनाव हुए, राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरा दौर 7 अगस्त को हुआ। आज़ादी के बाद यह पहला बहुदलीय चुनाव था, और यह भी पहली बार था कि राष्ट्रपति सीधे तौर पर चुना गया था, क्योंकि पहले यह पद किसके द्वारा चुना जाता था संदर्भ गिनीबिसाऊ सामान्य गिनीबिसाऊ में संसदीय चुनाव गिनीबिसाऊ में संसदीय चुनाव गिनीबिसाऊ में राष्ट्रपति चुनाव गिनीबिसाऊ गिनीबिसाऊ 2003 गिनीबिसाऊ तख्तापलट रक्तहीन सैन्य तख्तापलट था</s>
जो 14 सितंबर 2003 को गिनीबिसाऊ में हुआ था, जिसका नेतृत्व जनरल वेरिसिमो कोर्रेया सीबरा ने मौजूदा राष्ट्रपति कुंबा इला के खिलाफ किया था।सीबरा ने अधिग्रहण के औचित्य के रूप में इला की सरकार की अक्षमता का उल्लेख किया, साथ ही एक स्थिर अर्थव्यवस्था, राजनीतिक अस्थिरता और अवैतनिक वेतन पर सैन्य असंतोष भी बताया। इला ने 17 सितंबर को सार्वजनिक रूप से अपने इस्तीफे की घोषणा की और उस महीने हस्ताक्षरित एक राजनीतिक समझौते ने उन्हें पांच साल के लिए राजनीति में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया। सितंबर के अंत में व्यवसायी हेनरिक रोजा और पीआरएस महासचिव अर्तुर संहा के नेतृत्व में एक नागरिक नेतृत्व वाली संक्रमणकालीन सरकार की स्थापना की गई थी। यह भी देखें गिनीबिसाऊ का इतिहास सलौम , तख्तापलट के दौरान 2021 की फ़िल्म सेट सन्दर्भ 1980 गिनीबिसाऊ तख्तापलट रक्तहीन सैन्य तख्तापलट था जो गिनीबिसाऊ में हुआ था। 14 नवंबर 1980 को, प्राइम की सूची के नेतृत्व मे प्रधान मंत्री जनरल जोआओ बर्नार्डो विएरा के नेतृत्व में। इसके कारण राष्ट्रपति लुइस कैब्राल को पद से हटा दिया गया। जिन्होंने 1973 से इस पद पर कार्य किया, जबकि देश का स्वतंत्रता युद्ध अभी भी जारी था। यह भी देखें गिनीबिसाऊ का इतिहास केप वर्डेगिनीबिसाऊ संबंध सैन्य अशांति</s>
1 अप्रैल 2010 को गिनीबिसाऊ में हुई। प्रधान मंत्री कार्लोस गोम्स जूनियर को सैनिकों द्वारा घर में नजरबंद कर दिया गया, जिन्होंने सेना प्रमुख को भी हिरासत में लिया कार्लोस गोम्स जूनियर को सैनिकों ने घर में नजरबंद कर दिया, जिन्होंने सेना प्रमुख ज़मोरा इंदुता को भी हिरासत में ले लिया। गोम्स और उनकी पार्टी के समर्थकों, ने राजधानी में प्रदर्शन करके मिलिट्री के कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त की, बिसाऊ एंटोनियो इंदजई, डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ ने तब चेतावनी दी कि अगर विरोध जारी रहा तो वह गोम्स को मार डालेंगे। संदर्भ 23 जनवरी 1963 को, गिनी और केप वर्डे , एक मार्क्सवादी क्रांतिकारी समूह की स्वतंत्रता के लिए अफ्रीकी पार्टी के सेनानियों ने आधिकारिक तौर पर गिनीबिसाऊ की शुरुआत की। टिटे में तैनात पुर्तगाली सेना पर हमला करके स्वतंत्रता संग्राम। युद्ध तब समाप्त हुआ जब 1974 की कार्नेशन क्रांति के बाद पुर्तगाल ने गिनीबिसाऊ को स्वतंत्रता दी, उसके एक साल बाद केप वर्डे को। सन्दर्भ स्वतंत्रता संग्राम पुर्तगाल से जुड़े युद्ध अफ्रीका से जुड़े युद्ध 1960 के दशक के संघर्ष 1970 के दशक के संघर्ष अमिलकर लोप्स कैब्रल एक अफ़्रीकी कृषिविज्ञानी इंजीनियर, लेखक और थे राष्ट्रवादी। बाफाटा, पुर्तगाली गिनी में जन्मे, केपवर्डेन्स के पुत्र, उनकी शिक्षा लिस्बन में हुई,</s>
जो कि पुर्तगाल की राजधानी थी, जो औपनिवेशिक थी वह शक्ति जिसने उस समय पुर्तगाली गिनी पर शासन किया था। लिस्बन में एक छात्र के रूप में, उन्होंने अफ्रीकी राष्ट्रवाद को समर्पित छात्र आंदोलनों की स्थापना की। उनके सौतेले भाई बाद में गिनीबिसाऊ, लुइस कैब्राल राज्य के प्रमुख थे। वह 1950 के दशक में अफ्रीका लौट आए और महाद्वीप पर स्वतंत्रता आंदोलन बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने या पार्टिडो अफ़्रीकानो दा इंडिपेंडेंसिया दा गिनी ई काबो वर्डे । उन्होंने अगोस्टिन्हो नेटो के साथ अंगोला में एक मुक्ति पार्टी बनाने के लिए भी काम किया। 1962 की शुरुआत में, कैब्रल ने पुर्तगाली शाही ताकतों के खिलाफ एक सैन्य संघर्ष में पीएआईजीसी का नेतृत्व किया। संघर्ष का लक्ष्य पुर्तगाली गिनी और केप वर्डे दोनों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करना था। संघर्ष के दौरान, पार्टी को भूमि लाभ प्राप्त हुआ और कैब्रल को गिनीबिसाऊ में भूमि के कई पार्सल का वास्तविक नेता बना दिया गया। 1972 में, कैब्रल ने एक स्वतंत्र अफ्रीकी राष्ट्र की तैयारी के लिए एक पीपुल्स असेंबली का गठन करना शुरू किया, लेकिन एक असंतुष्ट पूर्व सहयोगी ने जनवरी में 1973 में उनकी हत्या कर दी। इससे पहले कि वह अपने काम का फल देख पाता। कोनाक्री में उनकी हत्या</s>
कर दी गई। अमिलकर कैब्रल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, केप वर्डे का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा साल, का नाम उनके नाम पर रखा गया है। कैब्रल और पीएआईजीसी का सबसे जानकारीपूर्ण और संतुलित विवरण मुस्तफा ढाडा द्वारा लिखित वॉरियर्स एट वर्क है। गिनीबिसाऊ की मुक्ति में अमिलकर कैब्रल के राजनीतिक विचार और भूमिका पर क्रिस मार्कर फिल्म, सैंस सोलेल में कुछ विस्तार से चर्चा की गई है। बाहरी लिंक संदर्भ कैब्रल, एमिलकर कैब्रल, एमिलकर कैब्रल, एमिलकर कैब्रल, एमिलकर कैब्रल, एमिलकर कैब्रल, एमिलकर अमिलकर कैब्रल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, केप वर्डे का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा साल, का नाम उनके नाम पर रखा गया है। यह भी देखें केप वर्डे में इमारतों और संरचनाओं की सूची पुर्तगाली गिनी जो आज है उसका नाम था गिनीबिसाऊ 1446 से सितंबर 10, 1974 तक। हालाँकि देश ने चार साल पहले इस क्षेत्र पर दावा किया था, पुर्तगाली खोजकर्ता नूनो ट्रिस्टाओ पश्चिम अफ्रीका के तट के आसपास रवाना हुए, लगभग 1450 में गिनी क्षेत्र तक पहुँचे, खोज करते हुए सोने, अन्य मूल्यवान वस्तुओं और दासों के स्रोत के लिए, जो पिछली आधी सदी से भूमि मार्गों के माध्यम से धीरेधीरे यूरोप में पहुंच रहे थे। पुर्तगाली गिनी साहेल साम्राज्य का हिस्सा था, और स्थानीय लैंडुर्ना और नौला</s>
जनजातियाँ नमक का व्यापार करती थीं और चावल उगाती थीं। लगभग 1600 में स्थानीय जनजातियों की मदद से, पुर्तगालियों और फ्रांस, ब्रिटेन और स्वीडन सहित कई अन्य यूरोपीय शक्तियों ने एक संपन्न गुलाम की स्थापना की। पश्चिम अफ़्रीकी तट के साथ व्यापार। यह कभी भी ज्ञात नहीं होगा कि गिनी तट के साथ दास बाजारों में कितने मानव जीवन खरीदे और बेचे गए , लेकिन आज यह लगभग 10 मिलियन है। कचेउ, गिनीबिसाऊ में, एक समय के लिए अफ्रीका के सबसे बड़े दास बाजारों में से एक था। [[1800 के दशक] के अंत में गुलामी के उन्मूलन के बाद, दास व्यापार में गंभीर गिरावट आई, हालांकि एक छोटा सा अवैध गुलामी अभियान जारी रहा। बिसाऊ, 1765 में स्थापित, पुर्तगाली गिनी कॉलोनी की राजधानी बन गई। हालाँकि यह तट पिछली चार शताब्दियों से पुर्तगाली नियंत्रण में था, लेकिन अफ्रीका के लिए संघर्ष तक कॉलोनी के अंतर्देशीय हिस्से में कोई दिलचस्पी नहीं ली गई थी। भूमि का एक बड़ा हिस्सा जो पहले पुर्तगाली था, फ्रांसीसी पश्चिम अफ्रीका में खो गया था, जिसमें समृद्ध कैसमेंस नदी क्षेत्र भी शामिल था, जो कॉलोनी के लिए एक बड़ा वाणिज्यिक केंद्र था। ब्रिटेन ने बोलामा पर नियंत्रण करने की कोशिश की, जिससे एक अंतरराष्ट्रीय विवाद पैदा</s>
हो गया जो ब्रिटेन और पुर्तगाल के बीच युद्ध के करीब पहुंच गया जब तक कि यू.एस. के राष्ट्रपति यूलिसिस एस. ग्रांट ने हस्तक्षेप नहीं किया और संघर्ष को रोका नहीं। फैसला सुनाया कि बोलामा पुर्तगाल का था। पुर्तगाली गिनी को 1879 तक केप वर्डे द्वीप कॉलोनी के हिस्से के रूप में प्रशासित किया गया था, जब इसे द्वीपों से अलग करके अपनी कॉलोनी बना लिया गया था। 20वीं सदी के मोड़ पर, पुर्तगाल ने तटीय इस्लाम की आबादी की मदद से, आंतरिक इलाकों की एनिमिस्ट जनजातियों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। इससे आंतरिक और दूरस्थ दोनों द्वीपसमूहों पर नियंत्रण के लिए एक लंबा संघर्ष शुरू हुआ: ऐसा तब तक नहीं होगा जब तक 1936 बीजागोस द्वीप समूह जैसे क्षेत्र पूर्ण सरकारी नियंत्रण में नहीं होंगे। 1951 में, जब पुर्तगाली सरकार ने संपूर्ण औपनिवेशिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन किया, तो पुर्तगाली गिनी सहित पुर्तगाल के सभी उपनिवेशों का नाम बदलकर विदेशी प्रांत कर दिया गया। स्वतंत्रता की लड़ाई 1956 में शुरू हुई, जब अमिलकर कैब्राल ने पार्टिडो अफ़्रीकानो दा इंडिपेंडेंसिया दा गिनी ई काबो वर्डे , पीएआईजीसी। पीएआईजीसी 1961 तक एक अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण आंदोलन था, जब इसने पूर्ण पैमाने पर पुर्तगाली के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया, जिसमें विदेशी</s>
प्रांत को स्वतंत्र घोषित किया गया और इसका नाम बदलकर गिनीबिसाऊ कर दिया गया। युद्ध पुर्तगालियों के ख़िलाफ़ होने लगा, और 1974 में पुर्तगाल में तख्तापलट के बाद, नई सरकार ने पीएआईजीसी के साथ बातचीत शुरू कर दी। चूंकि उनके भाई अमिलकर की 1973 में हत्या कर दी गई थी, लुइस कैब्रल 10 सितंबर, 1974 को स्वतंत्रता मिलने के बाद स्वतंत्र गिनीबिसाऊ के पहले राष्ट्रपति बने। यह भी देखें ज़िगुइनचोर, सेनेगल, 1973 में मेंडेस की शादी में चिको मेंडेस और लुइस कैब्राल की पत्नी, विवरण निजी जीवन उन्होंने 1973 में ज़िगुइनचोर, सेनेगल में शादी की और अपने पीछे दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गए। लुइस कैब्राल , एक बिसाऊगिनी राजनीतिज्ञ थे। वह देश के पहले प्रधान मंत्री थे और इस पद पर आसीन थे ओस्वाल्डो मैक्सिमो विएरा बिसाऊगिनी स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी और गिनीबिसाऊ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक प्रमुख सैन्य कमांडर थे। संदर्भ 1938 जन्म 1974 मौतें डोमिंगोस रामोस गिनीबिसाऊ और केप वर्डे के एक राष्ट्रीय नायक हैं, जो गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए अफ्रीकी पार्टी द्वारा किए गए गुरिल्ला युद्ध के प्रारंभिक चरण के एक पौराणिक व्यक्ति हैं। । ) गिनी और केप वर्डे के पूर्व विदेशी प्रांतों में पुर्तगाली शासन के खिलाफ। हाज़िर</s>
जवाब बीरबल एक भारतीय सिटकॉम टेलीविजन श्रृंखला है जिसका प्रीमियर 17 अगस्त 2015 को सिटकॉम अकबर बीरबल की जगह बिग मैजिक पर हुआ था। श्रृंखला का निर्माण ट्राएंगल फिल्म्स प्रोडक्शंस द्वारा किया गया है। इसमें सम्राट अकबर की भूमिका में सौरभ राज जैन और बीरबल की भूमिका में गौरव खन्ना मुख्य भूमिका में हैं। विषय सारांश एक मजबूत केंद्रीय चरित्र, बीरबल आज की दुनिया के साथ पहचाने जाने वाले परिवर्तन के एजेंट के रूप में कार्य करता है, जो शासन के मुद्दों में परिणामों और पारदर्शिता को लक्षित करता है। वह एक मजबूत केंद्रीय चरित्र है जो लोकतांत्रिक विचारों और अधिकारों में विश्वास करता है। बीरबल अकबर के सबसे बड़े सहयोगी, आलोचक, मित्र और दार्शनिक भी हैं, जो उन्हें निर्णय लेने में प्रोत्साहित और मार्गदर्शन करते हैं। कलाकार मुख्य कलाकार सम्राट अकबर के रूप में सौरभ राज जैन बीरबल के रूप में गौरव खन्ना नूर जी के रूप में रिम्पी दास महम अंगा के रूप में विश्वप्रीत कौर महम अंगा के रूप में शोमा आनंद अधम खान के रूप में विकास खोकर नकली जलपरी के रूप में ऐश्वर्या सखुजा इब्ने के रूप में पवन सिंह बतूता के रूप में सुमित अरोड़ा राजा दरबान के रूप में यशकांत शर्मा विशिष्ट व्यक्ति</s>
के रुप मे उपस्थित होना अनूप सोनी मोहनलाल के रूप में अमन वर्मा संदर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट भारतीय हास्य टेलीविजन कार्यक्रम बिग मैजिक चैनल के कार्यक्रम विशाल कोटियन मुंबई, महाराष्ट्र, भारत अभिनेता, मनोरंजनकर्ता 1998वर्तमान हर मुश्किल का हल अकबर बीरबलअकबर का बल बीरबल विशाल कोटियन एक भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं। उन्हें हर मुश्किल का हल अकबर बीरबल और अकबर का बल बीरबल में बीरबल की भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। 2021 में उन्होंने बिग बॉस 15 में हिस्सा लिया. टेलीविजन पतली परत संदर्भ बाहरी कड़ियाँ 1979 में जन्मे लोग जीवित लोग तितली स्टोरी स्क्वायर प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित एक भारतीय हिंदी भाषा की रोमांटिक ड्रामा टेलीविजन श्रृंखला है। यह 6 जून 2023 से 27 अक्टूबर 2023 तक स्टारप्लस पर प्रसारित हुआ और डिज़्नीहॉटस्टार पर डिजिटल रूप से स्ट्रीम हुआ। इसमें नेहा सोलंकी और अविनाश मिश्रा मुख्य भूमिका में थे। अवलोकन तितली एक ऐसी कहानी है जिसका लक्ष्य एक युवा फूल विक्रेता तितली और एक वकील गर्व मेहता की प्रेम कहानी के माध्यम से घरेलू हिंसा, अपमानजनक व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और क्रोध प्रबंधन के मुद्दों को उजागर करना है। कलाकार मुख्य तितली मेहता के रूप में नेहा सोलंकी: गर्व की पत्नी मणिकांत और मैना की</s>
बहू परेश और जयश्री की भतीजी हिरल और चिंटू का चचेरा भाई। राव्या सदवानी बाल तितली के रूप में गर्व मेहता के रूप में अविनाश मिश्रा : तितली के पति मणिकांत और मैना का बेटा कोयल का पालक पुत्र और भतीजा चीकू और मोनिका का छोटा भाई दृष्टि का बड़ा भाई हिरेन और अल्पा का भतीजा धारा की चचेरी बहन पुनरावर्ती कोयल मणिकांत मेहता के रूप में रिंकू धवन: मणिकांत की पहली पत्नी मैना की बड़ी बहन चीकू, मोनिका, गर्व, दृष्टि और धारा की दत्तक मां और चाची मणिकांत मेहता के रूप में यश टोंक : कोयल और मैना के पति मोनिका, चीकू, गर्व और दृष्टि के पिता तितली के ससुर हिरेन के बड़े भाई अल्पा के बहनोई धारा के चाचा मैना मणिकांत मेहता के रूप में विवाना सिंह : मणिकांत की दूसरी पत्नी मोनिका, चीकू, गर्व और दृष्टि की माँ धारा की चाची तितली की सास परेश दवे के रूप में सचिन पारिख: जयश्री के पति हीरल और चिंटू के पिता तितली के मामा हीरल दवे के रूप में निशी सिंह: परेश और जयश्री की बेटी चिंटू की बड़ी बहन तितली की चचेरी बहन मणिकांत और हिरेन के पिता के रूप में सुशील पाराशर गर्व, मोनिका, चीकू, धारा और</s>
दृष्टि के दादा चिंटू दवे के रूप में देविश आहूजा: परेश और जयश्री के बेटे हीरल का भाई तितली की चचेरी बहन मोनिका मेहता के रूप में राधिका छाबड़ा: मणिकांत और मैना की बड़ी बेटी चीकू की छोटी बहन गर्व और दृष्टि की बड़ी बहन आदित्य की पत्नी दृष्टि मेहता के रूप में प्रतीक्षा राय: मणिकांत और मैना की बेटी चीकू, गर्व और मोनिका की छोटी बहन धारा की चचेरी बहन हिरेन मेहता के रूप में मनु मलिक: मणिकांत का छोटा भाई अल्पा का पति धारा के पिता चीकू, मोनिका, गर्व और दृष्टि के चाचा अल्पा हिरेन मेहता के रूप में परिगाला असगांवकर: हिरेन की पत्नी धारा की माँ चीकू, मोनिका, गर्व और दृष्टि की मौसी धारा मेहता के रूप में अदिति चोपड़ा: मोनिका, गर्व, चीकू और दृष्टि की चचेरी बहन हिरेन और अल्पा की बेटी अथर्व चीकू मेहता के रूप में ईशान सिंह मन्हास : मणिकांत और मैना का बड़ा बेटा गर्व, मोनिका और दृष्टि का भाई धारा की चचेरी बहन मेघा प्रसाद मेघा के रूप में: गर्व का चिकित्सक और जुनूनी प्रेमी तितली की कॉलेज मित्र वत्सल शेठ राहुल के रूप में: तितली की पूर्व मंगेतर तितली की माँ के रूप में प्रीति गंधवानी उत्पादन विकास मई 2023</s>
में, स्टोरी स्क्वायर प्रोडक्शंस द्वारा घरेलू हिंसा के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए श्रृंखला की घोषणा की गई थी। ढलाई तितली के रूप में नेहा सोलंकी और गर्व के रूप में अविनाश मिश्रा को मुख्य भूमिका के रूप में साइन किया गया। वत्सल शेठ को शो में एक कैमियो भूमिका निभाने के लिए पुष्टि की गई थी। सेठजी के बाद यह मिश्रा और सोलंकी के बीच दूसरा सहयोग है। फिल्माने मुख्य फोटोग्राफी फिल्म सिटी, मुंबई में शुरू हुई, कुछ शुरुआती दृश्यों की शूटिंग अहमदाबाद में हुई। सोलंकी ने शो को प्रमोट करने के लिए इमली और अनुपमा में भी विशेष भूमिका निभाई। यह भी देखें स्टार प्लस द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों की सूची संदर्भ बाहरी कड़ियाँ डिज़्नीहॉटस्टार पर टिटली स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक ग्रामीण कौशल्या योजना या भारत सरकार की युवा रोजगार योजना है। अवलोकन डीडीयूजीकेवाई को 25 सितंबर 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98वीं जयंती के अवसर पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और वेंकैया नायडू द्वारा लॉन्च किया गया था। डीडीयूजीकेवाई का दृष्टिकोण ग्रामीण गरीब युवाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और विश्व स्तर पर प्रासंगिक कार्यबल में बदलना है। इसका लक्ष्य 1535 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं को लक्षित करना है। डीडीयूजीकेवाई राष्ट्रीय ग्रामीण</s>
आजीविका मिशन का एक हिस्सा है, जिसे ग्रामीण गरीब परिवारों की आय में विविधता जोड़ने और ग्रामीण युवाओं की कैरियर आकांक्षाओं को पूरा करने के दोहरे उद्देश्यों के साथ काम सौंपा गया है। करोड़ के कोष का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं की रोजगार क्षमता को बढ़ाना है। इस कार्यक्रम के तहत, सरकार की कौशल विकास पहल के हिस्से के रूप में छात्र के बैंक खाते में सीधे डिजिटल वाउचर के माध्यम से भुगतान किया जाएगा। संदर्भ भारत में सरकारी योजनाएँ मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भारत सरकार द्वारा 19 फरवरी 2015 को शुरू की गई एक योजना है योजना के तहत, सरकार किसानों को मृदा कार्ड जारी करने की योजना बना रही है, जिसमें किसानों को इनपुट के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से उत्पादकता में सुधार करने में मदद करने के लिए व्यक्तिगत खेतों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों और उर्वरकों की फसलवार सिफारिशें दी जाएंगी। सभी मिट्टी के नमूनों का परीक्षण देश भर की विभिन्न मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं में किया जाना है। इसके बाद विशेषज्ञ मिट्टी की ताकत और कमजोरियों का विश्लेषण करेंगे और इससे निपटने के उपाय सुझाएंगे। परिणाम और सुझाव कार्ड में प्रदर्शित किए जाएंगे। सरकार की योजना 14 को कार्ड जारी करने की है करोड़ किसान. योजना इस</s>
योजना का उद्देश्य किसानों को कम लागत पर अधिक उपज प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए मिट्टी परीक्षण आधारित और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर संबंधित फसल के लिए पोषक तत्वों की उचित मात्रा के बारे में जागरूक करना है। इसमें 12 पैरामीटर शामिल हैं। बजट की राशि योजना के लिए सरकार द्वारा आवंटित किया गया था। 2016 में भारत का केंद्रीय बजट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने और प्रयोगशालाएँ स्थापित करने के लिए राज्यों को आवंटित किए गए हैं। प्रदर्शन जुलाई 2015 तक, वर्ष 201516 के लिए 84 लाख के लक्ष्य के मुकाबले किसानों को केवल 34 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किए गए थे। अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, केरल, मिजोरम, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल उन राज्यों में से थे, जिन्होंने तब तक इस योजना के तहत एक भी एसएचसी जारी नहीं किया था। फरवरी 2016 तक यह संख्या बढ़कर 1.12 करोड़ हो गई फरवरी 2016 तक, 104 लाख मिट्टी के नमूनों के लक्ष्य के मुकाबले, राज्यों ने 81 लाख मिट्टी के नमूनों के संग्रह की सूचना दी और 52 लाख नमूनों का परीक्षण किया। 16.05.2017 तक किसानों को 725 लाख मृदा</s>
स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये जा चुके हैं। योजनाओं 201516 के लिए लक्ष्य 100 लाख मिट्टी के नमूने एकत्र करना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने के लिए उनका परीक्षण करना है। 2 करोड़ कार्ड छपाई के अधीन हैं और मार्च 2016 से पहले वितरित किए जाएंगे सरकार की योजना 2017 तक 12 करोड़ मृदा कार्ड वितरित करने की है संदर्भ भारत में सरकारी योजनाएँ भारत में कृषि 2015 में भारत कृषिविज्ञान महात्मा गांधी प्रवासी सुरक्षा योजना एक विशेष सामाजिक सुरक्षा योजना है जिसमें पेंशन और जीवन बीमा शामिल है, जो प्रवासी जांच आवश्यक पासपोर्ट रखने वाले विदेशी भारतीय श्रमिकों के लिए प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है। यह एक स्वैच्छिक योजना है जो श्रमिकों को उनकी तीन वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए बनाई गई है: सेवानिवृत्ति के लिए बचत, उनकी वापसी और पुनर्वास के लिए बचत, और प्राकृतिक कारणों से मृत्यु के लिए मुफ्त जीवन बीमा कवरेज प्रदान करना। संदर्भ भारत में सरकारी योजनाएँ प्रवासी भारतीय शाक्य राजवंश की राजकुमारी सुंदरी नंदा, जिन्हें सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है, राजा शुद्धोदन और रानी महापजापति गोतमी की पुत्री थीं। सिद्धार्थ गौतम के ज्ञानप्राप्ति के उपरांत उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय</s>
किया और कुछ समय उपरान्त एक अर्हंत बन गईं। वह बुद्ध द्वारा निर्दिष्ट ध्यान की परंपरा में भिक्षुणियों के बीच अग्रणी मानी गयी है। सुन्दरी 6वीं सदी ईसा पूर्व में उत्तर भारत में रहती थीं। आरम्भिक जीवन उनके पिता राजा शुद्धोदन, जो सिद्धार्थ के पिता भी थे, और उनकी मां महाप्रजापति थीं। महाप्रजापति शुद्धोदन की दूसरी पत्नी थीं, जो उनकी पहली पत्नी रानी माया की छोटी बहन थीं। नंदा का नाम आनंद, संतोष और सुख का है. उनके मातापिता सुंदरी के जन्मने पर विशेष रूप से आनंदित थे। उसकी सुंदरता दिनप्रतिदिन प्रखर हो रही थी, इसलिए उन्हे बाद में जनपद कल्याणी के रूप में जाना जा गया। समय के साथ, उसके परिवार के कई सदस्यो ने अपने सांसारिक जीवन को त्यागकर संन्यासी जीवन में प्रवृत्त होने का प्रेरणा लिया जिसमे उनके भाई नंदा और दो चचेरे भाई अनुरुद्ध और आनंद भी थे। उसकी मां, महाप्रजापति, संघ की प्रथम बौद्ध भिक्षुणी बनी. उन्होंने बुद्ध से संघ में महिलाओं को शामिल करने की अनुमति देने के लिए प्रार्थना की थी। इसके परिणामस्वरूप, कई अन्य शाक्य स्त्रियाँ, जिसमें सिद्धार्थ की पत्नी राजकुमारी यशोधरा भी थी, बौद्ध विक्षुणी बनी। इस पर, नंदा ने भी संसार का त्याग किया, परन्तु यह कहा गया है कि</s>
वह इसे बुद्ध और धर्म में आत्मविश्वास के लिए नहीं किया, बल्कि सिद्धार्थ के प्रति भ्रातृप्रेम और संबंध के भावना के कारण किया था। संन्यास सुंदरीनंदा का ध्यान आरम्भ में अपने सौन्दर्य पर केंद्रित था। वह दृढ़ता पूर्वक ध्यान की उच्च परम्पराओं का पालन नहीं कर रही थी, जो अन्य शाक्य राजवंश के कई सदस्यों ने अपने लौकिक जीवन को त्यागने के लिए रचे थे. बुद्ध उनकी निन्दा करेंगे, इसलिए वह बहुत समय तक उससे बचती रही।परन्तु अन्तत: उन्होने बुद्ध से सन्यास की दीक्षा ली। बोधि एक दिन, बुद्ध ने सभी भिक्षुणियों से व्यक्तिगत रूप में अपने शिष्य के रूप में उनकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहा, लेकिन नंदा ने उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया। बुद्ध ने स्पष्ट रूप से उसे बुलवाया, और फिर वह सलज्ज और चिंत्य भाव से पहुँची। बुद्ध ने उससे बात की और उसकी सभी सकारात्मक गुणों की प्रशंसा की, ताकि नंदा उसकी बातों को इच्छुक रूप से सुने और उसमें आनंदित हो। बुद्ध की शिक्षा को उन्होंने सप्रसन्न स्वीकार कर लिया. बुद्ध की यौगिक शक्ति से सुंदरी ने देखा कि कैसे उनकी युवावस्था और सुंदरता का नाश हो रहा है. इस दृश्य का उनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा. नंदा को इस प्रभावी छवि</s>
को देखने के बाद, बुद्ध ने उससे इस तरह से अनित्य की धारणा को समझाया कि उसने इसकी सत्यता को पूरी तरह से समझा, और इस प्रकार निब्बान की सर्वोत्तम आनंद को प्राप्त किया। बाद में बुद्ध ने सुंदरी नंदा को उन भिक्षुणियों में मान्यता दी जिन्होंने ध्यान की प्रथा में प्रमुख स्थान प्राप्त किया था। अर्हन्त बनाने के उपरांत इस पवित्र सुख का आनंद लेते हुए, उनको और किसी इंद्रिय सुख की आवश्यकता नहीं थी और शीघ्र ही उसने अपनी आत्मिक शांति पाई. सन्दर्भ: बुद्धचरित अश्वघोष , . : . असम लोक सेवा आयोग एपीएससी असम सरकार के अधीन राज्य के सभी सरकारी सरकारी विभागों में ग्रुपए एवं ग्रुपबी सिविल सेवा के खाली पदों पर पात्र उम्मीदवारों का चयन करने के लिए एक राज्य भर्ती एजेंसी है, इसकी स्थापना असम सरकार के प्रावधान के अनुसार 1 अप्रैल 1937 को असम लोक सेवा आयोग अस्तित्व में आया। संघ लोक सेवा आयोग के संविधान द्वारा बनाई गई ये एक सरकारी संस्था है लोक सेवा आयोग से संबंधित प्रावधान संविधान के भाग के अध्याय में दिए गए हैं। संविधान में प्रावधान राज्य सेवाओं से संबंधित मामलों से निपटने के लिए आयोग की क्षमता सुनिश्चित करता है और उन्हें किसी भी क्षेत्र के</s>
प्रभाव से स्वतंत्र तरीके से अपने कर्तव्य करने की क्षमता देता है, आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति असम राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है वर्तमान समय में आयोग में 1 अध्यक्ष और 6 सदस्य हैं। असम लोक सेवा आयोग का प्रथम कार्य राज्य के सरकारी विभागों में सिविल सेवा पदों पर पात्र उम्मीदवारों के लिए संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन करना है। इतिहास असम सरकार के प्रावधान के अनुसार असम लोक सेवा आयोग १ अप्रैल १९३७ को अस्तित्व में आया था। भारतीय अधिनियम 1935 इससे पहले आयोग अध्यक्ष लंदन के एक रिटायर्ड आईसीएस अधिकारी श्री जेम्स हेज़लेट थे, 1951 में एक नया विनियमन आने तक श्री जेम्स हेज़लेट के बाद पांच और रिटायर्ड आईसीएस अधिकारियों को अलगअलग समय के अध्यक्ष बनाया गया, भारत गणतंत्र बनने के बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 318 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए असम सरकार के राज्यपाल द्वारा आयोग के नए नियम बनाए गए और ये 1 सितंबर 1951 से लागू हुए। असम लोक सेवा आयोग ने उसी वर्ष कार्यों की सीमा विनियमन को संविधान के अनुच्छेद 320 के खंड के प्रावधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने हेतु सुनिश्चित किया गया। असम राज्य के प्रतिष्ठित शिक्षाविद् श्री कामेश्वर दास,</s>
विनियम 1951 की घोषणा होने के बाद आयोग के पहले गैर आधिकारिक अध्यक्ष थे उन्होंने जुलाई 1952 तक अध्यक्ष पद का कार्यकाल संभाल। कार्य असम लोक सेवा आयोग अपने कर्तव्य और कार्यों का निर्वहन करने के लिए भारत के संविधान अनुच्छेद 320 के अनुसार आयोग का अध्यक्ष राज्य के राज्यपाल द्वारा संबोधित कुछ नियमों और विनियमों के तहत आदेश लेने के लिए स्वतंत्र है। राज्य सरकार की विभिन्न सेवाओं में सीधी भर्ती के लिए उम्मीदवारों का चयन करना सरकार को सलाह देने के लिए आयोग के दायरे में सरकार के अधीन सेवारत अधिकारियों को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक केस सरकारी विभागों के भर्ती नियमोंसेवन नियमों को लागू करने के लिए संबंधित सभी मामलों पर सरकार को सलाह देना सिविल सेवाओं में भर्ती की पद्धति के संबंध में सरकार को सलाह देना सरकारी कर्मचारियों के संबंध में सुरक्षा और सैलरी निर्धारण से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देना सरकारी सेवाओं के लिए इंटरव्यूस्क्रीनिंग टेस्ट लिखित परीक्षा का आयोजित करना एपीएससी भर्ती परीक्षा एपीएससी संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा असम सिविल सेवा असम पुलिस सेवा असम वित्त सेवा आयोग के वर्तमान पदाधिकारी सूची यह भी देखें असम विश्वविद्यालय असम का इतिहास असम के लोक नृत्य असम की चाय बागान समुदाय असम में</s>
उच्च शिक्षा के संस्थानों की सूची संदर्भ बाहरी कड़ियाँ एपीएससी आधिकारिक वेबसाइट असम भर्ती आधिकारिक वेबसाइट एपीएससी भर्ती पोर्टल भारतीय राज्यों के लोकसेवा आयोग असम अरुण जेटली क्रिकेट स्टेडियम दिल्ली का एक प्रमुख खेल का मैदान है। यहाँ क्रिकेट खेला जाता हैं। स्टेडियम का पहले नाम फ़िरोज़ शाह कोटला ग्राउण्ड था किन्तु मोदी सरकार ने इसका नाम पूर्व वित्त मन्त्री श्री अरुण जेटली जी केे नाम पर अरुण जेटली स्टेडियम कर दिया। बाहरी कड़ियाँ विश्व के प्रमुख खेल मैदान क्रिकेट मैदान भारत के प्रमुख खेल मैदान पशुपालन विभाग महाराष्ट्र में पशुपालन की देखभाल के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा संचालित एक विभाग है। महाराष्ट्र में पशुपालन महाराष्ट्र में कई किसान अपनी आजीविका के लिए पशुपालन पर निर्भर हैं। दूध,मांस,अंडे,ऊन, उनकी खाद और खाल की आपूर्ति के अलावा, जानवर, मुख्य रूप से बैल, किसानों और ड्रायर्स दोनों के लिए शक्ति का प्रमुख स्रोत हैं। इस प्रकार पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वित्त वर्ष 201516 में इस क्षेत्र से उत्पादन का राष्ट्रीय सकल मूल्य 8,123 अरब रुपये था। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय भारत में पशुपालन पशुपालन और डेयरी विभाग एक भारत सरकार का विभाग है। यह मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का एक सहायक विभाग है जिसे</s>
2019 में एक नए भारतीय मंत्रालय के रूप में गठित किया गया था।डीएएचडी या पूर्ववर्ती पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी विभाग का गठन 1991 में कृषि और सहयोग विभाग के दो प्रभागों, अर्थात् पशुपालन और डेयरी विकास, को एक अलग विभाग में विलय करके किया गया था। 1997 में विभाग का मत्स्य पालन प्रभाग खाद्य प्रसंस्कृत उद्योग मंत्रालय का एक हिस्सा इसमें स्थानांतरित कर दिया गया।फरवरी 2019 में मत्स्य पालन विभाग को पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग से अलग किया गया था और यह तब से पशुपालन और डेयरी विभाग के रूप में कार्य कर रहा है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ पशुपालन और डेयरी विभाग भारत में पशुपालन मत्स्यपालन मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक राज्य मंत्रालय है। सन्दर्भ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय कृषि मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। महाराष्ट्र राज्य में कृषि से संबंधित नियमों और विनियमों और कानूनों के निर्माण और प्रशासन के लिए सर्वोच्च निकाय है। इस मंत्रालय का नेतृत्व वर्तमान मंत्री धनंजय मुंडे कर रहे हैं। इतिहास अकाल आयोग की सिफ़ारिश के बाद 1883 में कृषि विभाग की स्थापना की गई। 196566 में फसलों की विभिन्न संकर किस्मों को तैनात किया गया जिसने हरित क्रांति की नींव रखी। सन्दर्भ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय कृषि संगठन</s>
खेल एवं युवा कल्याण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक राज्य मंत्रालय है। मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। संजय बंसोडे महाराष्ट्र सरकार के वर्तमान खेल और युवा कल्याण मंत्री हैं। सन्दर्भ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार सांस्कृतिक मामलों का मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार में एक मंत्रालय है। मंत्रालय क्षेत्रीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है। मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। सुधीर मुंगंतीवार वर्तमान सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हैं। कैबिनेट मंत्री की सहायता राज्य मंत्री द्वारा की जाती है। 29 जून 2022 से रिक्त, टीबीडी है। सांस्कृतिक केंद्र मंत्रालय के पूरे महाराष्ट्र में विभिन्न सांस्कृतिक केंद्र हैं। नांदेड़ में उर्दू संस्कृति केंद्र का नाम बॉलीवुड अभिनेता दिलीप कुमार के नाम पर रखा गया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ महाराष्ट्र सरकार महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय शालेय शिक्षण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। यह महाराष्ट्र राज्य में शिक्षा संबंधी नीतियों को डिजाइन करने और लागू करने के लिए जिम्मेदार है। मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री दीपक केसरकर करते हैं सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार पर्यावरण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। मंत्रालय महाराष्ट्र में पर्यावरण संबंधी मुद्दों को बढ़ावा देने के लिए</s>
जिम्मेदार है। मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री हैं। इतिहास 2020 में पर्यावरण मंत्रालय का नाम बदलकर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय कर दिया गया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार चार्ल्स हर्बर्ट बेस्ट सीसी, सीएच, सीबीई, एफआरएस, एफआरएससी, एफआरसीपी , एक अमेरिकीकनाडाई चिकित्सा वैज्ञानिक और इंसुलिन के सहखोजकर्ताओं में से एक थे। सन्दर्भ १९७८ में निधन 1899 में जन्मे लोग सामाजिक न्याय मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। यह समाज के वंचित और हाशिए पर मौजूद वर्गों के कल्याण, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के लिए जिम्मेदार है। मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री और सामाजिक न्याय मंत्री हैं। इतिहास मंत्रालय का गठन 1928 में हुआ था। कल्याण विभाग की स्थापना 1932 में हुई थी। समाज कल्याण निदेशालय 23 सितंबर 1957 को बनाया गया था। संस्थान मंत्रालय द्वारा समाज के वंचित वर्गों के लिए कई संस्थान शुरू किए गए हैं। आश्रम विद्यालय आवासीय विद्यालय हॉस्टल विकलांग व्यक्तियों के लिए संस्थान सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय दिव्यांग कल्याण मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का मंत्रालय है जिसे सामाजिक न्याय</s>
मंत्रालय से अलग करके 9 जनवरी 2023 को बनाया गया था। मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किया जाता है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री और दिव्यांग कल्याण मंत्री हैं। सन्दर्भ महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय स्तनों की खुद जांच कर सकती हैं महिलाये। डॉक्टर कहते है कि महिलाएं अपने स्तनों की खुद जांच कर सकती हैं। डॉक्टरों बताया कि महिलाओं में जागरूकता की कमी के कारण ही स्तन कैंसर के बढ़ने का एक प्रमुख कारण है। कैंसर के कुछ सामान्य से लक्षण हैं, जिनमें सीने में दर्द होना, सीने की चमड़ी में लाली आ जाना, स्तन के आसपास सूजन आना, निप्पल डिस्चार्ज, निप्पल से खून बहना, स्तन के आकार में परिवर्तन होना अथवा निप्पल का भीतर की तरफ मुड़ना स्तन के कैंसर से लक्षण हैं। यदि उक्त लक्षणों में से महिलाओं को कोई लक्षण दिखता है तो वे तुरंत डाक्टर से सलाह लें। 20 से 30 साल की उम्र तक हर तीन साल के बाद और 30 साल तक की उम्र की महिला को साल में एक बार अपने स्तन कैंसर की जांच करवानी चाहिए। उन्होंने महिलाओं को खुद ही स्तन के कैंसर का चेकअप करने की ट्रेनिग भी दी। सीनियर एसएमओ डा. रमिदर कौर ने कहा</s>
कि अगर हम लोग स्तन कैंसर के प्रति जानकार रहेंगे तो कैंसर से होने वाली मौत दर को कम कर सकते हैं। कपाट लाने की की उद्घोषणा 1842 में काबुल की लड़ाई के दौरान भारत में ब्रिटेन के क्षेत्रों के तत्कालीन गवर्नरजनरल लॉर्ड एलेनबोरो द्वारा जारी एक आदेश था। इस आदेश में जाट सैनिकों से गजनी से उन कपाटों को वापस लाने का आदेश दिया गया था जिनके बारे में कहा जाता था कि महमूद गजनवीने लगभग 800 साल पहले गुजरात के प्रभास पाटन में सोमनाथ मंदिर के विनाश के बाद मन्दिर के कपाटों को गजनी ले गया था और उसकी मृत्यु के बाद इन्हें उसके मकबरे के दरवाजे के रूप में लगाया गया था। ये दरवाजे भारत लाये गये किन्तु बाद में पता चला कि ये सोमनाथ मन्दिर के दरवाजे नहीं थे। इस आदेश का आधार क्या था, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि न तो तुर्कफ़ारसी स्रोत और न ही भारतीय स्रोत ऐसे किसी कपाट का उल्लेख करते हैं। विवरण 1842 में, एलेनबरो के प्रथम अर्ल एडवर्ड लॉ ने कपाटों को लाने की अपनी उद्घोषणा जारी की। इस आदेश में उन्होंने अफगानिस्तान में स्थित सेना को गजनी होकर भारत आने तथा गजनी में महमूद की कब्र से चंदन के</s>
कपाटों को भारत वापस लाने का आदेश दिया। ऐसा माना जाता थाहै कि महमूद इन्हें सोमनाथ के मन्दिर को तोड़ने के बाद गजनी ले गया था। एलेनबरो के निर्देश के तहत, जनरल विलियम नॉट ने सितंबर 1842 में गेट वहँ से निकला दिये। इन कपाटों को भारत वापस लाने के लिए 6वीं जाट लाइट इन्फैंट्री की एक पूरी सिपाही रेजिमेंट को तैनात किया गया था। जब यह कपाट भारत आ गया तो जाँच में पता चला कि ये कपाट न तो गुजराती या भारतीय डिज़ाइन के थे, और न ही चंदन की लकड़ी के थे। बल्कि ये देवदार की लकड़ी के थे जो गज़नी की देशज लकड़ी थी। अतः ये कपाट सोमनाथ के मन्दिर के कपाट थे, यह प्रामाणित नहीं हुआ। उन्हें आगरा किले के शस्त्रागार भंडार कक्ष में रख दिया गया जहां वे आज भी पड़े हुए हैं। सन 1843 में लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में मंदिर के कपाट लाने के आदेश के मामले में एलेनबरो की भूमिका के सवाल पर बहस भी हुई थी। संदर्भ भारतीय नाम: दहियर, दहियल, ग्वालिन, दयाल, दहगल, काली सुई चिड़िया, श्रीवद , दहियक , कालकंठ । वैज्ञानिक नाम : : : : : : : : वर्ग श्रेणी: गाने वाली चिड़िया जनसङ्ख्या:</s>
स्थिर संरक्षण स्थिति : सङ्कटमुक्त वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४ नीड़काल : मार्च से जुलाई तक। आकार : लगभग 7.5 इंच दहियर पक्षी सामान्य रूप से भारत मे पाया जाने वाला पक्षी है। यह सुबह के समय मधुर संगीत गाता हुआ मिल जाता है। इनका रंग काला तथा सफेद होता है। पूछ को झटके के साथ ऊपर तथा नीचे करते हैं। पहचान एवं रंग रूप: दहियर मानव आवास के निकट झाड़ी, उपवन वाटिकाओं आदि में कीड़ेमकोड़े (खोजते या किसी ऊंची शाखा पर बैठकर मधुर संगीत सुनाते देखा जा सकता है। इसके नर और मादा दोनों ही अपनी पूंछ को ऊपर उठाते हैं और एक झटके में ही नीचे गिरा देते हैं। नर का वर्ण आभायुक्त कृष्ण, अधोभाग श्वेत एवं डैने कृष्ण वर्णीय होते हैं जिन पर बड़ी श्वेत चित्तियाँ होती हैं, पूँछ लम्बी और उठी हुई होती है। मादा का वर्ण गहन वातामी, जिस पर नीली आभा होती है। उदर का भाग किञ्चित वातामी, डैने गहन श्याव कल्छौह जिन पर दोनों ओर तनु श्वेत वर्णीय पंख बीच में होते हैं परन्तु उनमें आभा नर जितनी नहीं होती हैं। चोंच और पैर कृष्णवर्णी होते हैं। निवास: दहियर वाटिकाओं और मैदानों की झाड़ियों में देखा जा सकता है। इसे घने जंगल</s>
और खुले स्थान प्रिय नहीं हैं और धूपछाँव युक्त कँटीली झाड़ियाँ अधिक रुचिकर हैं। भूमि पर भी भोजन खोजना इसे प्रिय है। भारत में इसके प्रजनन का समय मार्च से आरम्भ होकर जुलाई तक होता है। यह अपना नीड़ 27 मीटर की ऊँचाई पर वृक्षों और भवनों के बाहरी सुरक्षित कोटरों, अट्टालिकाओं के नीचे आदि स्थानों पर बनाती है। इनका नीड़ सुन्दर होता है जिसे बनाने के लिए ये घास, तृणमूल, पक्षियों के पंख और रेशों का उपयोग करते हैं। समय आने पर मादा इसमें 45 अण्डे देती है। अण्डे सुन्दर और आभायुक्त होते हैं जिनका वर्ण तनु हरित होता है एवं उन पर भूरे वर्ण की चित्तियाँ होती है। निर्मोहगढ़ का युद्ध 1702 में सिखों और मुगल साम्राज्य के बीच लड़ा गया था जिसमें सिख विजयी हुए थे। पृष्ठभूमि आनंदपुर की खूनी लड़ाई में शाही मुगल सेना हार गई। इस युद्ध में मुगल सेना की हार की खबर सुनने के बाद औरंगजेब ने स्वयं गुरु गोबिंद सिंह के खिलाफ वजीर खान के नेतृत्व में एक नई सेना भेजी। वजीर खान शिवालिक पहाड़ियों के पहाड़ी राजाओं के बड़ी संख्या में सैनिकों के साथ आगे बढ़ा। आनंदपुर के ठीक बाहर निर्मोहगढ़ में सतलुज नदी के तट पर सिखों से वज़ीर खान</s>
का युद्ध हुआ। मुगलों ने एक तरफ से गुरु पर हमला किया और पहाड़ी राजाओं ने दूसरी तरफ से उन पर हमला किया। लड़ाई पूरे दिन और रात तक भयंकर रूप से जारी रही। अंततः मुगलों और पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना समाप्त हो गई और पीछे हटने के लिए मजबूर हो गयी। अगली सुबह, मुगलों और पहाड़ी राजा की सेना ने फिर से हमला करना शुरू कर दिया और गुरु गोबिंद सिंह ने, खुद को बहुत अधिक संख्या में पाते हुए, उस स्थान से निकलने का फैसला किया। दुश्मन सैनिकों ने उनका पीछा किया और तब गुरु जी की सेना ने फिर लड़ने का फैसला किया। इस बार मुगलों और पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना निर्णायक रूप से हार गई और दो दिनों की लड़ाई के बाद शाही मुगल सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। संदर्भ बलजीत गढ़ी भारत के राज्य के की तहसील के ग्राम पंचायत का एक गाँव है। जनता दल भारत का एक राजनैतिक दल है जिसके नेता भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री एच. डी. देवेगौड़ा हैं। यह दल कर्नाटक और केरल में प्रान्तीय दल के रूप में पंजीकृत है। इसकी स्थापना १९९९ में जनता दल से टूटकर हुई. हृदय शंकर सिंह उत्तर प्रदेश</s>
में मां शाकुंभरी विश्वविद्यालय के पहले कुलपति हैं। इससे पहले प्रोफेसर एच. एस. सिंह चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए थे. वह चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में प्रतिकुलपति, परीक्षा नियंत्रक और सर छोटू राम इंजीनियरिंग कॉलेज में निदेशक रहे हैं। पालीवाल ब्राम्हण वंश की उपशाखा है जिसका भारतीय इतिहास में वर्णन मिलता है ऋषि हारित मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल के गुरु थे जिन्होंने बप्पा रावल को अजेय देह तथा धरती में गडा धन प्रदान किया ऋषि हारित के वंशज ऋषि सरसल जी हुए राजऋषि सरसल जी जो की मेवाड़ राज्य के राजा राणा राहप के गुरु और राजपुरोहित थे इन्हीं के वन्शज पुरोहित हुए नारायणपुर बाद भारत के उत्तर प्रदेश का एक गाँव है। यह हसनपुर बारू ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है। यह गांव हाथरस जिले के सादाबाद ब्लॉक में स्थित है, 2 हसनपुर बारू के उत्तर में किमी. हाथरस ज़िले के गाँव विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक द कॉन्ज्यूरिंग 2 2016 की अमेरिकी अलौकिक हॉरर फिल्म है, जिसका निर्देशन जेम्स वान ने किया है। चाड हेस, केरी डब्ल्यू. हेस, जेम्स वान और डेविड लेस्ली जॉनसन ने फिल्म का पटकथा लिखा है। यह फिल्म 2013 की द कॉन्ज्यूरिंग</s>
फिल्म की अगली कड़ी, द कॉन्ज्यूरिंग श्रृंखला की दूसरी किस्त और द कॉन्ज्यूरिंग यूनिवर्स फ्रेंचाइजी की तीसरी किस्त है। पैट्रिक विल्सन और वेरा फ़ार्मिगा ने पहली फिल्म से असाधारण जांचकर्ता और लेखक एड और लोरेन वॉरेन के रूप में अपनी भूमिकाएं दोहराईं। फिल्म वॉरेन परिवार पर आधारित है, जो हॉजसन परिवार की सहायता के लिए इंग्लैंड की यात्रा करते हैं, जो 1977 में अपने एनफील्ड काउंसिल हाउस में पोल्टरजिस्ट गतिविधि का अनुभव कर रहे हैं, जिसे बाद में एनफील्ड पोल्टरजिस्ट के रूप में जाना जाने लगा। पात्र वेरा फ़ार्मिगा लोरेन वॉरेन पैट्रिक विल्सन एड वॉरेन मैडिसन वोल्फ जेनेट हॉजसन फ्रांसिस ओकॉनर पैगी हॉजसन लॉरेन एस्पोसिटो मार्गरेट हॉजसन बेंजामिन हाई बिली हॉजसन पैट्रिक मैकाले जॉनी हॉजसन साइमन मैकबर्नी मौरिस ग्रोस मारिया डॉयल कैनेडी पैगी नॉटिंघम साइमन डेलाने विक नॉटिंघम फ्रेंका पोटेंटे अनीता ग्रेगरी बॉब एड्रियन बिल विल्किंस रॉबिन एटकिन डाउन्स शैतान की आवाज बोनी आरोन्स नन जेवियर बोटेट क्रुक्ड मैन स्टीव कूल्टर फादर गॉर्डन अभी सिन्हा हैरी व्हिटमार्क क्रिस रॉयड्स ग्राहम मॉरिस स्टर्लिंग जेरिन्स जूडी वॉरेन डैनियल वोल्फ केंट एलन एनी यंग कांस्टेबल हीप्स इलियट जोसेफ कांस्टेबल पीटरसन कोरी इंग्लिश स्केप्टिक कपलान जोसेफ बिशारा शैतान शैनन कूक ड्रयू पुरस्कार संदर्भ बाहरी लिंक 2016 की फ़िल्में माकेन्यू अराता एक जापानीअमेरिकी अभिनेता हैं।</s>
वह जापानी मातापिता, सोया चिबा और जापानी एक्शन फिल्म स्टार सन्नी चिबा के बेटे हैं, और उनके दो भाईबहन हैं, एक सौतेली बहन का नाम जूरी मनसे और एक भाई जिसका नाम गॉर्डन मैडा है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जीवित लोग 1996 में जन्मे लोग अमेरिकी अभिनेता डॉ. केतन रेवनवार एक भारतीय दंत चिकित्सक हैं। वह मुंबई के खारघर में स्थित परफेक्ट32 डेंटल क्लिनिक नामक डेंटल क्लिनिक के संस्थापक और मालिक हैं। वह सामान्य दंत चिकित्सा, कॉस्मेटिक दंत चिकित्सा, ऑर्थोडॉन्टिक्स और मौखिक सर्जरी में एक मास्टर विशेषज्ञ हैं। जीवन परिचय डॉ. केतन रेवनवार का जन्म महाराष्ट्र के बीड़ ज़िले में पिता कोंडीराम रेवनवार और माता श्रीमती विजय कोंडीराम के घर हुआ था। डॉ. केतन रेवनवार महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से बीडीएस की डिग्री की डिग्री हासिल की थी। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंस्टाग्राम पर डॉ. केतन रेवनवार चिकित्सा पद्धति चिकित्सा चिकित्सा दंत चिकित्सा वास्तु महागुरु बसंत आर रासिवासिया एक प्रसिद्द वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ हैं बसंत रासिवासिया रिवाइवल वास्तु नामक संस्थान व आधुनिक संगणक मोबाइल एप्लीकेशन, रीवास्तु के संचालक हैं उन्हें वास्तु शास्त्र में महारत हासिल है यही वजह है की वह जाति, पंथ और सामाजिक स्थिति की बाधाओं को पार करने वाली तकनीक का उपयोग करके प्राचीन विज्ञान वास्तु शास्त्र की</s>
ऊर्जा को दुनिया में फैला रहे हैं। जीवन परिचय बसंत आर रासिवासिया भारतीय वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ व ज्योतिषाचार्य हैं, इन्हे वास्तु महागुरु की उपाधि दी गयी है। व इनका जन्म असम के तिनसुकिया शहर में दिनांक 26 अक्टूबर 1970 को हुआ है। उन्होंने अपनी दसवीं तक की पढाई निरुपमा हाई स्कूल से पूरी की व आगे की पढाई तिनसुकिया कॉलेज से की है रासिवासिया के पिता का नाम राधे श्याम अग्रवाल रासिवासिया व माता का नाम लक्ष्मी देवी है। बसंत रासिवासिया के पिता का नाम राधे श्याम अग्रवाल रासिवासिया व माता का नाम लक्ष्मी देवी है। बसंत रासिवासिया को भारतीय संस्कृति में योगदान के लिए मेक अर्थ ग्रीन अगेन मेगा फाउंडेशन द्वारा वास्तु महागुरु का टाइटल से सम्मानित किया जा चुका है। इन्हे महाराष्ट्र राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के द्वारा डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंस्टाग्राम पर बसंत आर रासिवासिया ज्योतिष 1970 में जन्मे लोग जीवित लोग 3 इल्कल साड़ीइल्कल साड़ी इल्कल साड़ी एक पारंपरिक रूप है जो भारत में महिलाओं का एक आम पहनावा है। इल्कल साड़ी का नाम भारत के कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले के इलकल शहर से लिया गया है। इलकल साड़ियों को शरीर पर सूती</s>
ताने और बॉर्डर के लिए आर्ट सिल्क ताना और साड़ी के पल्लू हिस्से के लिए आर्ट सिल्क ताना का उपयोग करके बुना जाता है। कुछ मामलों में कला रेशम के स्थान पर शुद्ध रेशम का भी उपयोग किया जाता है। ऐतिहास इल्कल एक प्राचीन बुनाई केंद्र था जहां बुनाई आठवीं शताब्दी ईस्वी में शुरू हुई प्रतीत होती है। इन साड़ियों की वृद्धि का श्रेय बेल्लारी शहर और उसके आसपास के स्थानीय सरदारों द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण को दिया जाता है। स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता ने इस साड़ी के विकास में मदद की।इल्कल शहर में लगभग 20000 लोग साड़ीबुनाई में लगे हुए हैं। विशिष्टता साड़ी की विशिष्टता शरीर के तानेबाने को पल्लू के तानेबाने के साथ लूपों की एक श्रृंखला के साथ जोड़ना है जिसे स्थानीय रूप से टोपे टेनी तकनीक कहा जाता है। उपरोक्त टोपे टेनी तकनीक के कारण बुनकर केवल ६गज, ८ गज, ९ गज की चाल से चल सकेगा। कोंडी तकनीक का उपयोग ३ शटल डालकर बाने के लिए किया जाता है। पल्लाउ भागडिज़ाइन: टोपे टेनी सेरागु आम तौर पर टोपे टेनी सेरागु में 3 ठोस भाग लाल रंग में होंगे, और बीच में 2 भाग सफेद रंग में होंगे। टोपे टेनी सेरागु को एक राज्य</s>
प्रतीक माना जाता है और त्योहार के अवसरों के दौरान इसका बहुत सम्मान किया जाता है। पारंपरिक बॉर्डर: चिक्की, गोमी, जरी और गदीदादी, और आधुनिक गायत्री इल्कल साड़ियों में अद्वितीय हैं चौड़ाई 2.5 से 4 तक है। सीमा रंग विशिष्टता: लाल आमतौर पर या मैरून हावी होता है। विवरण अगर किसी को इल्कल साड़ी की जरूरत है तो उसे हर साड़ी के लिए एक तानाबाना तैयार करना होगा। शरीर के लिए ताना धागे अलग से तैयार किए जाते हैं। इसी प्रकार पल्लू का तानाबाना आवश्यक गुणवत्ता के आधार पर कला रेशम या शुद्ध रेशम से अलग से तैयार किया जाता है। तीसरा, ताने का बॉर्डर भाग तैयार किया जाता है, जैसे पल्लू ताना, या तो कला रेशम या शुद्ध रेशम और पल्लू और बॉर्डर पर इस्तेमाल किया जाने वाला रंग एक ही होगा। इल्कल साड़ियों की विशिष्ट विशेषता कसुती नामक कढ़ाई के एक रूप का उपयोग है। कसुती में उपयोग किए गए डिज़ाइन पालकी, हाथी और कमल जैसे पारंपरिक पैटर्न को दर्शाते हैं जो इल्कल साड़ियों पर कढ़ाई किए गए हैं। ये साड़ियाँ आम तौर पर ९ गज लंबी होती हैं और इल्कल साड़ी के पल्लू पर मंदिर के टावरों के डिज़ाइन बने होते हैं। यह पल्लू आमतौर पर सफेद</s>
पैटर्न के साथ लाल रेशम से बना होता है। पल्लू का अंतिम क्षेत्र हनीगे , कोटि कम्मली , टॉपुटेन और रम्पा जैसे विभिन्न आकृतियों के पैटर्न से बना है।साड़ी का बॉर्डर बहुत चौड़ा और लाल या मैरून रंग का होता है और गेरू रंग के पैटर्न के साथ अलगअलग डिजाइन से बना होता है। साड़ी या तो कपास से बनी होती है, या कपास और रेशम के मिश्रण से या शुद्ध रेशम से बनी होती है। परंपरागत रूप से उपयोग किए जाने वाले रंग अनार लाल, शानदार मोर हरा और तोता हरा हैं। दुल्हन के पहनावे के लिए जो साड़ियाँ बनाई जाती हैं, वे गिरी कुमुकुम नामक एक विशेष रंग से बनी होती हैं, जो इस क्षेत्र में पुजारियों की पत्नियों द्वारा पहने जाने वाले सिन्दूर से जुड़ा होता है। लंबाई के अनुसार बॉर्डर में बुनी गई डिज़ाइन मुख्यतः तीन प्रकार की होती है: गोमी , पैरास्पेट गाड़ी जारी है। मुख्य बॉडी डिज़ाइन धारियों, आयत और वर्गों है। उत्पादना इल्कल साड़ियों की बुनाई ज्यादातर एक इनडोर गतिविधि है। यह मूलतः एक घरेलू उद्यम है जिसमें महिला सदस्यों की सक्रिय भागीदारी शामिल है। हथकरघे की मदद से एक साड़ी बुनने में करीब सात दिनो का समय लगता है. इसे हम पावरलूम</s>
की मदद से भी बुन सकते हैं। इल्कल पारंपरिक साड़ियाँ मुख्य रूप से तीन प्रकार के विभिन्न धागों के संयोजन से पिटलूम पर तैयार की जाती हैं।एक बुनकर को तैयारी के काम के लिए अपने अलावा दो अन्य लोगों की आवश्यकता होती है। सन्दर्ब इल्कल साड़ियों का संक्षिप्त इतिहास कमला रामकृष्णन द्वारा प्रदान किया गया है। दक्षिणी विरासत। द हिंदू का ऑनलाइन संस्करण, दिनांक 19990620। 1999, द हिंदू। 1 जुलाई 2007 को मूल से संग्रहीत। इल्कल साड़ी की कहानी। इकोनॉमिक टाइम्स का ऑनलाइन संस्करण, दिनांक 20021212। 2007 टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड। 12 दिसंबर 2002। 28 अगस्त 2004 को मूल से संग्रहीत। खान सर, बिहार के पटना जनपद के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट के अध्यापक है जिन्होंने जिनके पढ़ने के तरीके से वह विश्व विख्यात हो चुके हैं। इसी के साथ ही उनकी कोचिंग के काम फीस होने के कारण उनसे करोड़ विद्यार्थी संपूर्ण विश्व में जुड़े हैं और सस्ती और अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । राभा सग़राई नृत्य , आसाम मैं कृषि एकता का प्रस्तुतीकरण है। यह मोहक नृत्य राभा जनजाति के खूबसूरत लोगों द्वारा किया जाता है जिसमें वह अपनी अपनी संस्कृति की झलक प्रदर्शित करते हैं। नृत्य में संस्कृति और कृषि परंपराओं का समागम होता है और उनके</s>
जीवन शैली की झांकी प्रस्तुत की जाती है। यह प्राकृतिक नृत्य विभिन्न मौसम चक्राें के अनुसार किया जाता है जो आगामी फसली मौसम का सूचक होता है। तदनुसार राभा लोग साथ मिलकर एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर पारंपरिक परिधानों में अपनी एकता का प्रदर्शन करते हैं। नृत्य के दौरान ताल के अनुसार ढोल बजाए जाते हैं और वाद्य यंत्रों के साथ सुर मिलाए जाते हैं। मनमोहक स्वर संगति की सामूहिक ध्वनि की गूंज पूरे क्षेत्र में सुनाई पड़ती है। इन गीतों में ग्रामीण कथाओं का समावेश होता है और कृषि कार्य के साथ प्रसन्न रहने का संदेश दिया जाता है। राभा सग़राई नृत्य केवल नृत्य ही नहीं है वरन इसमें सांस्कृतिक विरासत का चित्रण भी किया जाता है जो पीढ़ियाेऺ में हस्तांतरित होता रहता है। इसमें परंपरागत मूल्य और पीढ़ियाेऺ का इतिहास प्रदर्शित होता है। इससे पता चलता है कि यह लोग धरती माता से कितनी आत्मीयता से जुड़े हुए हैं। राभा सग़राई नृत्य खुले आसमान के नीचे किया जाता है यह वे लोग हैं जो प्रत्येक मौसम में आने वाली कठिनाइयों का हर्षो उल्लास से स्वागत करते हैं और अपनी विशिष्ट संस्कृति कि आमिट छाप छोड़ते हैं। अनुक्रम फसल उत्सव और प्रतीकवाद। लयबद्ध पैटर्न और उपकरण कथात्मक</s>
अभिव्यक्तियां एकता और सामाजिक जूड़ाव पारेषण परंपराएं साऺस्कृतिक लचीलापन और चुनौतियां फसल उत्सव और प्रतीक वाद राभा सग़राई नृत्य प्रकृति के मौसमीय चक्र से प्रभावित है जिसमें फसल चक्र पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस नृत्य में ईश्वर और देवताओं की महानता का आभार व्यक्त किया जाता है जो उनके कृषि संबंधित प्रयासों को सार्थकता प्रदान करते हैं। नृत्य प्रदर्शन राभा नृत्य के प्रकार 1. संग़राई नृत्य राभा उत्सव का मुख्य आकर्षण संग़राई नृत्य है जो इस समारोह का दिलऔर आत्मा है। नृत्य करने वाले संगीत की स्वर लहरियों के अनुसार भाव भंगिमायै प्रस्तुत करते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करते हैं। इसमें उनकी एकता प्रदर्शित होती है। 2. बाईखू नृत्य बाईखू नृत्य अत्यंत मनमोहक शक्ति प्रदर्शन नृत्य है। इसमें कई दैनिक क्रियाकलापों को लयबद् तरीके से निहित किया जाता है जैसे खेती,मत्स्य पालन और कला कौशल। इससे पता चलता है कि राभा लोग किस प्रकार एक दूसरे के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं। 3. बिहू नृत्य बिहू नृत्य बिहू त्योहार के दौरान किया जाता है। नृत्य करने वाले रंगबिरंगे कपड़े पहनते हैं जो असम की जीवंत संस्कृति का प्रतीक है और सर्दियों के मौसम के बाद बसंत ऋतु के आगमन को चिन्हित करता है। 4. रंगधाली</s>
नृत्य रंगधाली नृत्य मैं पौराणिक कथाओं का चित्रण किया जाता है और राभा के लोकगीतों का उत्साहवर्धक गायन किया जाता है। इसमें जनजाति की कलात्मक संवेदनाओं का पथ प्रदर्शन किया जाता है और पीडियोऺ से चली आ रही कथाओं का मनमोहक प्रदर्शन किया जाता है। 5. सुआल नृत्य सुआल नृत्य मैं हाथ पैरों की भाव भंगिमाॵ से राभा जनजाति की कलात्मक शक्तियों का चित्रण किया जाता है। इस नृत्य में प्रकृति को कल से जोड़ते हुए पक्षियों और जीव जंतुओं के क्रियाकलापों को प्रदर्शित किया जाता है। 6. बागरूमबा नृत्य बागरूमबा नृत्य मैं परंपरागत वस्त्राे से सजे धजे नर्तक,जीवन के प्रति भाव भंगिमाऺये प्रस्तुत करते हैं और लोगों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। 7. वाऺग्ला नृत्य वाऺग्ला नृत्य मैं नर्तक एक घेरा बनाते हैं और ढोल की थाप पर नृत्य करते हुए अपने पूर्वजों और देवताओं का स्तुति गान करते हैं। भूमि और दैवी शक्तियों को संयोजित करते हुए नर्तक प्रार्थना करते हैं। राभा सग़राई नृत्य:ताल पद्धतियां तथा संगीत उपकरण राभा सग़राई नृत्य,परंपरागत संगीत उपकरणाेऺ की ताल पर आधारित होता है।ढोल की गूंज और टाका की धुन तथा पेपा की धुन का समन्वय इस नृत्य में देखा जा सकता है। कथात्मक विवरण नृत्य के</s>
आगे बढ़ने के साथसाथ भाव भंगीमाओं तथा स्वर लहरियों में जनजातीय जीवन, प्रकृति की सुंदरता, बीज बोने और फसल काटने की कथाओं का वर्णन किया जाता है। नृत्य जीवंत होता जाता है जिसमें राभा समुदाय की कृषिजीवन पद्धति,जय विजय तथा स्थानीय प्रतिबद्धता का चित्रण किया जाता है। एकता तथा सामुदायिक प्रतिबद्धता सांस्कृतिक महत्व के साथसाथ राभा नृत्य में समुदाय के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करी जाती है। इसमें व्यावसायिक मूल्य, साऺस्कृतिक प्रतिबद्धता तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिए ज्ञान का प्रचार किया जाता है। नृत्य में प्राय: कथा वाचन और अनौपचारिक विचार विमर्श शामिल हो जाता है जो इतिहास के साथ मिलकर समुदाय को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता है। मौखिक परंपराएं राभा सग़राई नृत्य मौखिक परंपराओं से आगे बढ़ता है जिसमें बुजुर्ग पीढ़ी द्वारा युवा पीढ़ी को गीतोऺ, नृत्याेऺ, कहानियाेऺ तथा हाव भाव की शिक्षा दी जाती है जो उनकी परंपराओं को परिलक्षित करती है। अनुकूल क्षमता तथा चुनौतियां आधुनिक प्रभावों के कारण राभा समुदाय को अपनी संस्कृति तथा अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। राभा सग़राई नृत्य तथा राभा जीवन शैली को जीवित रखनेऺ और आगे बढ़ाने के लिए मानव विज्ञानियाैऺ तथा सांस्कृतिक उत्थानकर्ताओं द्वारा प्रयास किया</s>
जा रहे हैं। संदर्भ 12वीं फेल 2023 की भारतीय हिंदी भाषा की ड्रामा फिल्म है , जो विधु विनोद चोपड़ा द्वारा लिखित और निर्देशित है। फिल्म यह अनुराग पाठक के उपन्यास ट्वेल्थ फेल पर आधारित है। इस फिल्म में विक्रांत मैसी, मेधा शंकर, संजय बिश्नोई और हरीश खन्ना मुख्य भुमिकाओं मे हैं। यह फ़िल्म 27 अक्टूबर 2023 को रिलीज़ हुई थी फिल्म को समीक्षकों से सकारात्मक समीक्षा मिली। कथानक यह फिल्म मनोज कुमार शर्मा के आईपीएस अधिकारी बनने की यात्रा को दर्शाती है। पात्र विक्रांत मैसी मनोज कुमार शर्मा के रूप में मेधा शंकर प्रियांशु चटर्जी संजय बिश्नोई हरीश खन्ना विकास दिव्यकीर्ति स्वयं के रूप में सुंदर के रूप में विजय कुमार डोगरा उत्पादन फिल्म निर्माण प्रक्रिया नवंबर 2022 में, फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा ने अनुराग पाठक के उपन्यास ट्वेल्थ फेल की कहानी पर फिल्म बनाने की घोषणा की। यह फिल्म आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा और आईआरएस अधिकारी श्रद्धा जोशी की वास्तविक जीवन की कहानी से प्रेरित है। पात्रों का चयन विधु विनोद चोपड़ा ने नवंबर 2022 में घोषणा की कि 12वीं फेल फिल्म में विक्रांत मैसी मुख्य भूमिका निभाएंगे, यह विधु विनोद चोपड़ा का विक्रांत मैसी के साथ पहला काम होगा। प्रसिद्ध यूपीएससी कोचिंग प्रोफेसर विकास दिव्यकीर्ति</s>
फिल्म में स्वयं का ही किरदार निभाएंगे। इस फिल्म में वास्तविक जीवन के यूपीएससी की तैयारी करने वाले कई अभ्यर्थीयों को विभिन्न भूमिकाओं में चुना गया है। मैसी के अनुसार इससे फिल्म में प्रामाणिकता रहेगी। संदर्भ उपन्यासों पर आधारित फिल्में भारतीय ड्रामा फ़िल्में 2023 की फ़िल्में नईम अख्तर माथाडीह का एक मुस्लिम युवा नेता है जो 5 माई 2019 से राजनीति कर रहे हैं। नईम अख्तर का संकल्प युवाओं को एक जुट करना और एक जुट हुए युवाओं को अधिकार दिलाना है ताना भगत भारत के झारखंड का एक आदिवासी समुदाय है। इनका संबंध ऐतिहासिक ताना भगत आंदोलन से है। गठन टाना भगतों का गठन ओराँन संत जतरा भगत और तुरिया भगत ने किया था। जतरा भगत ने घोषणा की कि उन्हें एक नए संप्रदाय, ताना संप्रदाय की स्थापना के लिए दैवीय रूप से नियुक्त किया गया था, जो ओरांव समुदाय से स्पष्ट रूप से अलग था। तानों ने पाहन और महतो के पारंपरिक नेतृत्व का विरोध करके और आत्मा पूजा और बलिदान की प्रथाओं को अस्वीकार करके ओराँव समाज को फिर से संगठित करने की कोशिश की। अपने प्रारंभिक चरण में इसे कुरुख धर्म कहा जाता था। कुड़ुख उराँवों का मूल धर्म है। आंदोलन ताना भगतों ने अंग्रेजों द्वारा</s>
लगाए गए करों का विरोध किया और उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से पहले भी पोगा सत्याग्रह किया। उन्होंने जमींदारों, बनियों , मिशनरियों, मुसलमानों और ब्रिटिश राज्य का विरोध किया। ताना भगत गांधी के अनुयायी हैं और अहिंसा में विश्वास करते हैं। शताब्दी ताना भगत आंदोलन के 100 वर्ष पूरे होने पर गुमला जिले के अलावा रांची, लोहरदगा, लातेहार और चतरा के ताना भगतों के साथ एक समारोह आयोजित किया गया था। संदर्भ भारतीय जातियाँ झारखंड के सामाजिक समूह मानव सोनेजा एक भारतीय अभिनेता हैं, इनका जन्म मुंबई में हुआ था। उन्हें आनंदीबा और एमिली में जमन, काटेलाल एंड संस में फिटकारी, मेरे साईं में अली और गुजरात 11 में विक्की के रूप में किरदार निभाने के लिए जाना जाता है। करियर सोनेजा ने 2015 में टीवी सीरियल पलक पे झलक से डेब्यू किया था। 2017 में उन्होंने वेबसीरीज़ लाखों में एक में हंसल साहू के रूप में अभिनय किया। 2019 में सोनेजी ने टीवी सीरीज मेरे साईं में अली और फिल्म गुजरात 11 में विक्की की भूमिका निभाई है। 2020 में उन्होंने काटेलाल एंड संस में फिटकारी के रूप में काम किया। उन्होंने 2021 में टीवी मिनी सीरीज़ दिलएकाउच में पटकन के रूप में अभिनय किया। 2022 में,</s>
सोनेजी ने आनंदीबा और एमिली में जमन के रूप में अभिनय किया। फिल्मोग्राफी सन्दर्भ 21वीं सदी के अभिनेता भारतीय पुरुष अभिनेता राम सिंह धौनी भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी एवं समाजसेवक थे। सन् 1921 ई० सर्वप्रथम उन्होंने ही जयहिन्द नारे का उद्घोष किया था। वे सच्चे देशभक्त, समाज सुधारक, शिक्षाशात्री, स्वाभिमानी, निर्भीक, हिंदीप्रेमी, त्याग एवं सादगी की प्रतिमूर्ति तथा सात्विक जीवन यापन करने वाले महान कर्मयोगी थे। रामसिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 ई० में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल्ला बिनौला गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम कुन्ती देवी तथा पिता का नाम हिम्मत सिंह धौनी था। वे बचपन से ही अति प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी थे। सन् 1908 ई० के जैती से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा टाउन स्कूल में कक्षा 5 में प्रवेश लिया तथा हाईस्कूल तक इसी विद्यालय में विद्याध्ययन किया। मिडिल परीक्षा में सारे सूबे में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उन्हें पाँच रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलने लगी। सन् 191213 ई० के आसपास अल्मोड़ा में देश के कई महान पुरुषों का आगमन हुआ, जिनमें काका कालेलकर, आनंद स्वामी, पं० मदनमोहन मालवीय, विनय कुमार सरकार आदि प्रमुख थे। इन महापुरुषों के दर्शन एवं उपदेशों से</s>
रामसिंह के मन में देश भक्ति एवं राष्ट्रप्रेम की भावना गहरी होती गई। सन् 1912 ई. में स्वामी सत्यदेव अल्मोड़ा आए और उन्होंने यहाँ पर शुद्ध साहित्य समिति की स्थापना की। रामसिंह इस साहित्य समिति के स्थाई सदस्य बन गए। स्वामी जी के भाषणों तथा शुद्ध साहित्य समिति के क्रियाकलापों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। अब उनका समय हाईस्कूल की पढ़ाई के साथसाथ श्रेष्ठ ग्रंथों के गहन अध्ययन तथा अखबारों एवं पत्रपत्रिकाओं के पठनपाठन में व्यतीत होने लगा। स्वामी सत्यदेव जी द्वारा अपने निवास स्थान नारायण तेवाड़ी देवाल में खोले गए ग्रीष्म स्कूल में भी धौनी जी का आनाजाना बना रहता था. धौनी जी ने हाईस्कूल के अपने सहपाठियों के सहयोग से एक छात्र सभा सम्मेलन का भी गठन किया जिसमें समाज सुधार, राष्ट्रप्रेम एवं हिन्दी भाषा की उन्नति विषयक चर्चाएं होती थीं। इन्हीं दिनों धौनी जी ने डॉ. हेमचन्द्र जोशी जी से बंगला भाषा भी सीखी। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए धौनी इलाहाबाद चले गए और वहां उन्होंने इविन क्रिश्चियन कालेज में प्रवेश लिया। सन 1917 में उन्होंने एफ. ए. तथा सन् 1919 ई० में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद</s>
वे सालम लौट आए। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में बी. ए. उतीर्ण करने वाले पहले व्यक्ति वही थे। विद्यार्थी जीवन से ही राजनीतिक घटनाचक्र के प्रति रामसिंह धौनी जी की गहरी रुचि थी। इलाहाबाद में विद्याध्ययन के दौरान फिलाडेलफिया छात्रावास में रहते हुए वे अपने साथियों के साथ राष्ट्रीय समस्याओं पर, विभिन्न विचारगोष्ठियों में विचारविमर्श किया करते थे। कालेज की हिन्दी साहित्य सभा में वे नियमित रूप से जाया करते थे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से भी वे सम्बद्ध थे। उनका अधिकांश समय हिंदीअंग्रेजी के समाचारपत्रों को पढ़ने, सभाओं एवं विचार गोष्ठियों में भाग लेने तथा छात्रों में राष्ट्रीय भावना का प्रचार करने में बीतता था। होम रूल लीग का सदस्य बनकर वे देश के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे जुड़ गये थे। उनमें देशभक्ति एवं स्वाभिमान की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सरकारी नौकरी न करने का पक्का निश्चय कर लिया था तथा अन्त तक उसका निर्वाह भी किया। सन् 1919 ई० में उनके बी.ए. पास करने के उपरान्त तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर बिढम ने उन्हें नायब तहसीलदार के पद पर कार्य करने को कहा परन्तु धौनी जी ने अपनी निर्धनता के बावजूद उसे ठुकरा दिया, जिससे उनके निर्धन पिता को गहरा आघात भी</s>
लगा। सन् 1920 इ० में रामसिंह राजस्थान चले गए और वहां बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में 80 रुपये मासिक वेतन पर एक वर्ष तक कार्य किया। वहां से धौनी जी फतेहपुर चले गये तथा रामचन्द्र नेवटिया हाईस्कूल में सहायक अध्यापक तथा प्रधानाध्यापक के पदों पर कार्य किया। जब सन् 1921 ई० में सारे भारतवर्ष में कांग्रेस कमेटियां बनाई जाने लगी, तो वे ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना कर वहां आजादी का बिगुल बजा दिया। फतेहपुर में ही धौनी जी ने युवक सभा की भी स्थापना की जिसके वे स्वयं संरक्षक थे। युवक सभा के सदस्यों का मुख्य कार्य अछूत बस्तियों के लोगों में शिक्षा, सफाई तथा नशाबंदी का प्रचार प्रसार करना था। श्री गोपाल नेवटिया तथा श्री मदनलाल जालान युवक सभा के संचालक थे। धौनी जी ने फतेहपुर हाईस्कूल के छात्रों के शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास के लिए छात्र सभा की स्थापना भी की, जिसके संचालक वे स्वयं थे तथा पाँच रुपय. वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। इस बीच फतेहपुर में उन्होंने कई जनसभाओं में भाषण दिए तथा देश को आजाद करने का आह्वान किया। अपने स्कूल में फुटबॉल को विदेशी खेल समझ कर बंद करवा दिया तथा उसके स्थान</s>
पर कबड्डी एवं अन्य देशी खेलों को प्रारंभ करवाया। भारतीय रियासतों में राजनीतिक आन्दोलनों के जन्मदाताओं में धौनी जी का नाम प्रमुख है। सन् 1921 ई० से 1922 ई. तक उनके द्वारा फतेहपुर में किए गए राजनीतिक कार्यों का विशेष महत्त्व है। उन्होंने पहली बार फतेहपुर में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचारप्रसार के लिए सभाओं का गठन किया तथा नगर के प्रतिष्ठित लोगों एवं नवयुवकों को अपने साथ लिया, जिसमें डॉ. रामजीवन त्रिपाठी, कुमार नारायण सिंह, युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया, गोपाल नेवटिया, श्री रामेश्वर तथा मूंगी लाल आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। फतेहपुर में ही उन्होंने एक साहित्य समिति की स्थापना की, जिसका कार्य लोगों में शिक्षा और एकता का प्रचार करना था। इस समिति के साप्ताहिक एवं पाक्षिक अधिवेशन हुआ करते थे. कभीकभी कवि सम्मेलन भी हुआ करते थे। एक कवि सम्मेलन में धौनी जी ने अपनी कविता सफाई की सफाई सुनाई थी। वह कविता लोगों को इतनी पसंद आई कि जनता के आग्रह पर धौनी जी को उसे नौ बार सुनाना पड़ा। रामसिंह ने साहित्य समिति की ओर से बधु नामक पाक्षिक पत्र निकलवाया तथा डॉ. रामजीवन त्रिपाठी उसके संपादक बनाए गए। इस पत्र में धौनी जी के देश भक्ति एवं राष्ट्र प्रेम संबंधी कई लेख एवं कविताएँ प्रकाशित</s>
हुईं। राष्ट्रवादी विचारधारा का पोषक होने ने कारण ब्रिटिश सरकार ने बंधु पत्र की सभी प्रतियां जब्त करवा कर, उसके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया। धौनी जी की प्रेरणा से उनके शिष्य गोपाल नेवटिया तथा युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया ने श्री स्वदेश नामक उच्चकोटि का पत्र निकाला जिसके 26 अगस्त 1922 ई० के प्रथम अंक में धौनी जी की कविता तेरी बारी है होली छापी गई, हालांकि उस समय धौनी जी बजांग चले गए थे। इस कविता में अंग्रेजों को बंदर बताकर, उन्हें भारत से भागने को कहा गया है। उपवन से भग बन्दर भोली, तेरी बारी है होली॥ दुबकदुबक तू घुसि आया, चुपकेचुपके सब फल खाया ॥ ऐक्य पुष्प सब तोड़ि गिराए, पिक पक्षी अति ही झुंझलाए॥ सभी कहत अब ऐसी बोली, तेरी बारी है होली॥ रामसिंह धौनी के जीवन का मुख्य लक्ष्य अध्यापन के माध्यम से जनता में देशप्रेम एवं राष्ट्रीय भावनाओं का प्रचार करना था। फतेहपुर में जब यह कार्य युवक सभा, छात्र सभा तथा साहित्य समिति के माध्यम से होने लगा तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तथा नेपाल की रियासत बजांग गए। वहां उन्होंने राजकुमारों को शिक्षा प्रदान कर हिन्दो प्रेमी बनाया। धौनी जी के अध्यापन कार्य से प्रसन्न होकर बजांग के राजा ने</s>
उन्हें एक तलवार भेंट की। बीकानेर, जयपुर तथा बजांग रियासतों में देश भक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावनाओं तथा हिन्दी भाषा का प्रचारप्रसार कर, धौनी जी अल्मोड़ा चले आए। सन् 1925 ई० से सन 1926 ई. तक रामसिंह शक्ति के संपादक रहे। अपने थोड़े से कार्यकाल में उन्होंने देश की सभी महत्वपूर्ण समस्याओं पर गंभीरतापूर्ण लेख एवं टिप्पणियां लिखीं। इन लेखों में हिंदुमुस्लिम एकता, अछूतोद्धार, राष्ट्र संगठन, कुटीर उद्योग, राष्ट्रभाषा हिन्दी, खादीआन्दोलन, अध्यापक आन्दोलन, निःशुल्क शिक्षा, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, महात्मा गांधी तथा कांग्रेस आदि महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। ब्रिटिश सरकार की ओर से लगान बढ़ाने के लिए होने वाले बन्दोवस्त के विरोध में उन्होंने आन्दोलन चलाया। जैती में जूनियर हाईस्कूल तथा बाँजधार में औषधालय उन्हीं के प्रयासों से खुले। अल्मोड़ा में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक कार्यों को सक्रिय करने के उपरान्त धौनी बम्बई चले गए। वहाँ उन्होंने पहाड़ के लोगों को एकजुट कर हिमालय पर्वतीय संघ की स्थापना की। वे अखिल भारतीय मारवाड़ी अग्रवाल जाती कोष के मंत्री भी रहे। 1930 ई० में बम्बई में चेचक फैला। लोगों की सेवा करते हुए वे चेचक की चपेट में आ गए तथा 12 नवम्बर 1930 ई० को 37 बर्ष की अल्पायु में ही उनका निधन हो गया । जनवरी 1931 ई०</s>
को बागेश्वर में उत्तरायणी के मेले में महान स्वतन्त्रता सेनानी विक्टर मोहन जोशी ने रामसिंह धोनी की मृत्यु पर अपने शोकोद्गार व्यक्त करते हुए कहा था हो, हन्त बैरी, बैरीकाल ने बरबाद हमको कर दिया। हा देव! यह क्या हो गया, भारत का रत्न खो गया॥ निर्धनता में भी देश को निःस्वार्थ सेवा करने वाले इस महान सपूत की याद में सन् 1935 ई० में सालम में रामसिंह धौनी आश्रम की स्थापना हुई। यही आश्रम सालम की सन् 1942 ई० को जनक्रांति का भी केन्द्र बना। संदर्भ 1. शक्ति साप्ताहिक अल्मोड़ा 2. अल्मोड़ा स्मारिका 1976 3. स्वतन्त्रता संग्राम में कुमाऊँगढ़वाल का योगदानडाँ० धर्मपाल सिंह मनराल 4. श्री हरदत्त उपाध्याय द्वारा लिखित एवं संग्रहीत रामसिंह धौनी जी से सम्बद्ध विभिन्न पत्रव्यवहारादि (श्री शेर सिंह धौनी जी के संग्रह में. 5. अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की सन् 1923 से 1927 ई० तक की कार्य सूची को फाइलें। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी चिरहुला नाथ मंदिर रीवा का एक प्रसिद्ध मंदिर है जो की चिराहुला कॉलोनी के पास मौजूद चिराहुला तालाब के किनारे पर है। इस मंदिर में हनुमान जी विराजित हैं तथा मंदिर के पीछे भगवान शिव का एक विशाल मंदिर है जहां पर 12 ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है। इस मंदिर में साल</s>
भर में लाखों भक्त आते हैं। हर सप्ताह मंगलवार और शनिवार को यहां भक्तों की भीड़ बहुत ज्यादा होती है। चिरहुला नाथ स्वामी के दर्शन करने के लिए भक्त यहां दूरदूर से आते हैं। हाल ही में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धर्मेंद्र शास्त्री जी भी बनारस की ओर जा रहे थे तभी उन्हें जब पता चला कि वह रीवा में है तो उन्होंने चिराहुल नाथ स्वामी के दर्शन की इच्छा प्रकट की। और रात को 1:30 बजे चुपचाप धर्मेंद्र शास्त्री जी चिराहुला नाथ स्वामी के दर्शन किया। संदर्भ सत्यदेव विद्यालंकार भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार एवं हिन्दी लेखक थे। वे हिंदुस्तान नामक हिन्दी समाचार पत्र के प्रथम सम्पादक थे। इस पत्र का प्रकाशन 1936से हो रहा है। उन्होंने लगभग सारा जीवन आर्य समाज के क्षेत्र में काम किया। सत्यदेव विद्यालंकार का जन्म सन १९०४ में क्वेटा में हुआ था। उनके पिताजी का नाम पण्डित ठाकुर दास था। ठाकुर दास जी, स्वामी श्रद्धानन्द के परिचित और भक्त थे। वे आर्य समाज के अधिकारी थे । क्वेटा समृद्ध और फलफूल से भरा नगर था । वहाँ प्रायः गुरुकुल के लिए चन्दा एकत्र करने स्वामी श्रद्धानन्द जी तथा और विद्वान भी आते थे, जिन का वहाँ बहुत आदर सत्कार होता था । सत्यदेव</s>
जी ने सन १९१२ में गुरुकुल कांगड़ी में प्रवेश किया और १९२६ तक उसमें अध्ययन करते रहे। १९३० में डी. ए. वी. स्कूल मिण्टगुंमरी में अध्यापक बने । १९३९ में डी. ए. वी. कॉलिज जालन्धर में कार्य प्रारम्भ किया। वहाँ से अवकाश प्राप्त कर १९६५ में कन्या महाविद्यालय जालन्धर में कार्य किया । फिर १९६६ से १९८३ तक ऋषि दयानन्द स्मारक ट्रस्ट टंकारा में कार्य करते रहे। सत्यदेव विद्यालंकार के तीन पुत्र और एक कन्या हैं। उनके पुत्र विजय कुमार रेलवे में काम करते थे। दूसरे पुत्र विनय एम. एस. सी. फार्मेस्यूटिक्स करके अमेरिका गये और वहाँ डाक्टरेट भी किया अब एक बहुत बड़ी कम्पनी में औषध निर्माण कार्य का सहायक हैं। तीसरे पुत्र विनोद शर्मा हैं। कन्या आशा संगीत में एम. ए. है। कृतियाँ धुन के धनी लाला देवराज राष्ट्रवादी दयानन्द स्वामी श्रद्धानन्द राष्ट्रधर्म दीदी सुशीला मोहन करो या मरो आर्य सत्याग्रह बीकानेर का राजनीतिक विकास और पण्डित मेघाराम वैद्य राजा महेन्द्र प्रताप लाल किले में यूरोप में आजाद हिन्द बाहरी कड़ियाँ आचार्य सत्यदेव विद्यालंकार राष्ट्रधर्म] करो या मरो आर्य समाज पत्रकार संस्कृत के विद्वान अगर आप इसके नाम को ठीक से पढ़ेंगे तो आप इसके नाम से ही समझ पाएंगे कि यह पैटर्न कैसा पैटर्न है इसके नाम</s>
में ही सबसे पहले बुलिश आ गया है, जिससे यह साफ पता चलता है कि ये एक बुलिश पैटर्न है देखा जाए तो बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न अगर आपको दिख जाए तो आपको किसी दूसरे पैटर्न की जरूरत नहीं परंतु यह पैटर्न जल्दी दिखता ही नहीं है इसलिए जब जब यह पैटर्न बनता है तब तब बहुत ही कारगर साबित होता है अगर आपको यह पैटर्न दिखे तो आपको तुरंत ही सक्रिय हो जाना है, क्यूँकी वहाँ से मार्केट कभी भी पलट सकता है बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न कैसा पैटर्न है? बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न एक तरह का बुलिश रिवर्सल कैंडलस्टिक पैटर्न जो डाउन ट्रेंड के बाद बनता है यह पैटर्न आपको डाउनट्रेंड के बाद ही देखने को मिलेगा और जब यह पैटर्न डाउन ट्रेंड के बाद अगर सपोर्ट के पास बनता हुआ दिखाई देता है तब यह पैटर्न बहुत अच्छे से काम करता है जब भी आपको सपोर्ट के पास यह पैटर्न देखने को मिले तब आप यह समझ सकते हैं की मार्केट अब यहाँ से रिवर्स हो सकता है जो कुछ समय से डाउनट्रेंड चल रहा था अब वह अपट्रेन्ड में बदल सकता है यह पैटर्न मार्केट में चल रही मंदी के खत्म होने का</s>
संकेत देता है और मार्केट में आने वाली बुलिशनेस के बारे में भी बताता है बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न तीन कैंडल से मिलकर बनने वाला पैटर्न है इसलिए इसे ट्रिपल कैंडलस्टिक पैटर्न के अंतर्गत रखा जाता है इसमें सबसे पहले कैंडल एक बड़ी लाल हमारे बसु कैंडल होती है फिर अगली कैंडल एक छोटी दो चीज तरह की कैंडल बनती है और आखरी में एक बड़ी हरि रंग की मारो पूछो कैंडल बनती है यह तीन तरह की कैंडल जहां भी आपको देखने मिलती है तो आप समझ सकते हैं कि वहां पर बुलिश एबंडेंट बेबी पैटर्न बना हुआ है बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न को पहचाना बहुत ही आसान है पर फिर भी कुछ लोग थोड़ा कंफ्यूज हो जाते हैं क्योंकि यह पैटर्न दिखने मे मॉर्निंग स्टार पैटर्न की तरह होता है जैसा कि मैं आपको इसके पहले बताया कि यह पैटर्न तीन कैंडलस्टिक से मिलकर बनता है जिसमें की सबसे पहले कैंडल लाल रंग का एक बड़ा मारूबुजु कैंडल होता है अगला कैंडल जोकी दोजी होता है, जब दोजी कैंडल एक बड़े गैप डॉन के साथ बने और फिर अगले दिन गैप अप के साथ हरे रंग का मारूबुजु कैंडल बनता है तब हम इसे बुलिश एबंडेंट</s>
बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात इस पैटर्न में यह है कि दोजी कैंडल के पहले और बाद वाले कैंडल के बीच में गैप डॉन और गैप अप होता है जिसे आंखों से आसानी से देखा जा सकता है अगर आपको किसी भी प्रकार का गैप दिखाई देता है दोजी कैंडल के अगलबगल में तो आप यह समझ जाएगा कि यह पैटर्न बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न है भगवान श्री राम के तीन भाई थे जिनमे सबसे छोटे महाराजा शत्रुघ्न थे। महाराजा शत्रुघ्न के दो पुत्र थे शूरसेन और सूबाहु। महाराजा शत्रुघ्न ने अपने पुत्र शूरसेन के नाम पर ही शूरसेन देश की स्थापना की थी। इनमे से शूरसेन के पुत्र हुए शूरसैनी। मूलत: इनका नाम सैनी था परंतु अत्यंत वीर और प्राक्रमी होने के कारण इन्हें शूर उपाधि दी गई थी तभी से इन्हे शूरसैनी कहा जाने लगा। इन्ही से सैनी जाती का वंश चला जो कालांतर में भारत के विभिन्न भागों में फैल गया। इसीलिए सैनी जाति के प्रवर्तक के रूप में महाराजा शूरसैनी का नाम आता है। बेयरिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न एक तरह का बेरिश रिवर्सल कैंडलस्टिक पैटर्न है जो अपट्रेंड के बाद बनता है यह पैटर्न आपको अपट्रेंड के बाद ही देखने</s>
को मिलेगा और जब यह पैटर्न अपट्रेंड के बाद अगर रेसिस्टेंस के पास बनता हुआ दिखाई देता है तब यह पैटर्न बहुत अच्छे से काम करता है जब भी आपको रेसिस्टेंस के पास यह पैटर्न देखने को मिले तब आप यह समझ सकते हैं की मार्केट अब यहाँ से रिवर्स हो सकता है जो कुछ समय से अपट्रेंड चल रहा था अब वह डाउन ट्रेंड में बदल सकता है यह पैटर्न मार्केट में चल रही तेजी के खत्म होने का संकेत देता है और मार्केट में आने वाली बेरिशनेस के बारे में भी बताता है देखा जाए तो अगर आपको बेयरिश अबांडेन्ड बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न दिख जाए तो आपको किसी दूसरे पैटर्न को देखने की जरूरत नहीं क्यूँकी यह पैटर्न जब भी बनता है तब बहुत कारगर साबित होता है आपको जब यह पैटर्न बनता दिखाई दे तो आपको तुरंत ही सतर्क हो जाना है क्यूँकी वहाँ से मार्केट के रिवर्स होने के बहुत ही प्रबल संभावना होती है बेयरिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न कैसा दिखता है? बेयरिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न तीन कैंडल से मिलकर बनने वाला पैटर्न है इसलिए इसे ट्रिपल कैंडलस्टिक पैटर्न के अंतर्गत रखा गया है इसमें सबसे पहली कैंडल एक हरी मारूबुजु बुलिश कैंडल पैटर्न</s>
होती है फिर अगली कैंडल एक छोटी दोजी तरह की कैंडल बनती है और आखरी में एक बड़ी लाल रंग की मारूबुजु कैंडल बनती है यह तीन तरह की कैंडल जहां भी आपको देखने मिलती है तो आप समझ सकते हैं कि वहां पर बेयरिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न बना हुआ है बेयरिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न को कैसे पहचाने? को पहचानना बहुत ही आसान है पर फिर भी कुछ लोग थोड़ा कंफ्यूज हो जाते हैं क्योंकि यह पैटर्न दिखने मे ईव्निंग स्टार पैटर्न की तरह होता है जैसा कि मैं आपको इसके पहले बताया कि यह पैटर्न तीन कैंडलस्टिक से मिलकर बनता है जिसमें की सबसे पहले कैंडल हरा रंग का एक बड़ा मारूबुजु कैंडल होता है अगला कैंडल जोकी दोजी की तरह होता है, जब दोजी कैंडल एक बड़े गैप डॉन के साथ बने और फिर अगले दिन गैप अप के साथ लाल रंग का मारूबुजु कैंडल बनता है तब हम इसे बेयरिश एबंडेंट बेबी पैटर्न कह सकते हैं सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात इस पैटर्न में यह है कि दोजी कैंडल के पहले और बाद वाले कैंडल के बीच में गैप अप और गैप डाउन होता है जिसे आंखों से आसानी से देखा जा सकता है</s>
अगर आपको किसी भी प्रकार का गैप दिखाई देता है दोजी कैंडल के अगलबगल में तो आप यह समझ जाइएगा कि यह पैटर्न बेयरिश एबंडेंट बेबी पैटर्न है मितानमितानिन परम्परा छत्तीसगढ़ की एक पुरानी परम्परा है जिसमें कोई लड़का दूसरे लड़के का मित्र बनता है। यह एक औपचारिक तरीके से सम्पन्न किया जाता है। इस परंपरा को लेकर कहते हैं कि पुराने समय में लोग एकदूसरे को भेदभाव व छुआछूत की नज़र से देखते थे। एक जाति के लोग दूसरे जाति के लोगों के साथ मिलकर या बैठकर खाना नहीं खाते थे। इसी बीच मितानमितानिन परंपरा की शुरुआत की गयी ताकि इन दूरियों को खत्म किया जा सके। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मितानमितानिन संस्कृति द कॉन्ज्यूरिंग: द डेविल मेड मी डू इट 2021 की अमेरिकी अलौकिक हॉरर फिल्म है, जो माइकल चाव्स द्वारा निर्देशित है, जिसमें जॉनसनमैकगोल्ड्रिक और जेम्स वान की कहानी से डेविड लेस्ली जॉनसनमैकगोल्ड्रिक की पटकथा है। यह फिल्म द कॉन्ज्यूरिंग और द कॉन्ज्यूरिंग 2 की अगली कड़ी और द कॉन्ज्यूरिंग यूनिवर्स की सातवीं किस्त के रूप में काम करती है। पैट्रिक विल्सन और वेरा फ़ार्मिगा ने असाधारण जांचकर्ता और लेखक एड और लोरेन वॉरेन के रूप में अपनी भूमिकाओं को दोहराया, रुएरी ओकॉनर, सारा कैथरीन हुक और जूलियन</s>
हिलियार्ड ने भी अभिनय किया। वान और पीटर सफ्रान फिल्म का निर्माण करने के लिए लौट आए हैं, जो आर्ने चेयेन जॉनसन के परीक्षण पर आधारित है, जो 1981 में कनेक्टिकट में हुई एक हत्या का मुकदमा है, इसके अलावा द डेविल इन कनेक्टिकट, गेराल्ड ब्रिटल द्वारा लिखित परीक्षण के बारे में एक किताब है। पात्र वेरा फ़ार्मिगा लोरेन वॉरेन पैट्रिक विल्सन एड वॉरेन रुएरी ओकॉनर अर्ने चेयेने जॉनसन सारा कैथरीन हुक डेबी ग्लैटज़ेल जूलियन हिलियार्ड डेविड ग्लैटज़ेल जॉन नोबल कास्टनर यूजिनी बंड्युरेंट तांत्रिक शैनन कूक ड्रयू रोनी जीन ब्लेविंस ब्रूनो कीथ आर्थर बोल्डन सार्जेंट क्ले स्टीव कूल्टर फादर गॉर्डन विंस पिसानी फादर न्यूमैन इंग्रिड बिसु जेसिका एंड्रिया एंड्रेड केटी एशले लेकोन्टे कैंपबेल मेरील स्टर्लिंग जेरिन्स जूडी वॉरेन पॉल विल्सन कार्ल ग्लैटज़ेल चार्लेन अमोइया जूडी ग्लैटज़ेल संदर्भ बाहरी कड़ियां 2021 की फ़िल्में डॉ. केतन रेवनवार एक भारतीय दंत चिकित्सक हैं। वह मुंबई के खारघर में स्थित परफेक्ट32 डेंटल क्लिनिक नामक डेंटल क्लिनिक के संस्थापक और मालिक हैं। वह सामान्य दंत चिकित्सा, कॉस्मेटिक दंत चिकित्सा, ऑर्थोडॉन्टिक्स और मौखिक सर्जरी में एक मास्टर विशेषज्ञ हैं। जीवन परिचय डॉ. केतन रेवनवार का जन्म महाराष्ट्र के बीड़ ज़िले में पिता कोंडीराम रेवनवार और माता श्रीमती विजय कोंडीराम के घर हुआ था। डॉ. केतन रेवनवार</s>
महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से बीडीएस की डिग्री की डिग्री हासिल की थी। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंस्टाग्राम पर डॉ. केतन रेवनवार चिकित्सा पद्धति चिकित्सा चिकित्सा दंत चिकित्सा फरीद अहमद नाइक जम्मूकश्मीर के डोडा जिले में एक सामाजिक कार्यकर्ता से पत्रकार बने हैं। वह वर्तमान में द चिनाब टाइम्स के कार्यकारी संपादक हैं। नाइक को पहले सराज़ी भाषा के समाचार रिपोर्टर के रूप में जाना जाता है। आजीविका फरीद अहमद नाइक ने 2011 में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपना करियर शुरू किया। बाद में उन्होंने जिला ग्रामीण युवा कल्याण संघ की स्थापना की, जो एक गैर सरकारी संगठन है जिसका उद्देश्य विभिन्न सामुदायिक मुद्दों को संबोधित करना और चिनाब क्षेत्र में लोगों के अधिकारों की वकालत करना है। अपने पूरे करियर के दौरान, नाइक कई मुद्दों के वकील रहे हैं और उन्होंने स्थानीय आबादी की जरूरतों और चिंताओं को दूर करने के लिए कई विरोध प्रदर्शन और पहल आयोजित की हैं। सक्रियतावाद 2016 में, नाइक और उनकी टीम ने क्षेत्र में जंगल की आग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न सार्वजनिक बैठकें कीं। 2018 में, फरीद अहमद नाइक ने डोडा ज्वाइंट सिविल सोसाइटी के साथ, क्षेत्र की लंबे समय से लंबित मांगों को</s>
उजागर करते हुए, ओल्ड बस स्टैंड डोडा में एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। इन मांगों में गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज डोडा में उर्दू, अंग्रेजी, राजनीति विज्ञान, प्राणीशास्त्र और अर्थशास्त्र जैसे विषयों में स्नातकोत्तर कक्षाओं की स्थापना शामिल थी। उसी वर्ष, नाइक ने समुदाय के लिए सुरक्षित बुनियादी ढांचे के महत्व पर जोर देते हुए, डोडा जिले के प्रेमनगर क्षेत्र में एक लकड़ी के पुल के प्रतिस्थापन की भी वकालत की। उन्होंने उसी वर्ष ग्रामीण विकास से संबंधित मुद्दों को उजागर करते हुए ग्रामीण विकास विभाग के खिलाफ भी आवाज उठाई। नाइक ने 2018 में जिले में स्वास्थ्य सेवाओं पर एनएचएम कर्मचारियों की हड़ताल के प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने उप केंद्रों और जिला अस्पताल डोडा में चिकित्सा कर्मचारियों की अनुपस्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने 2018 में शैक्षिक क्षेत्र गुंदना डोडा में सरकारी मध्य विद्यालय, हल्ला धारा ए में कर्मचारियों और बुनियादी ढांचे की कमी के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन किया 2019 में, नाइक ने छात्रों की सुरक्षा पर जोर देते हुए, हल्ला में सरकारी मिडिल स्कूल भवन की जीर्णशीर्ण स्थिति के बारे में चिंता जताई। 2020 में, उन्होंने जोधपुर से मोहला तक 22 किलोमीटर लंबी सड़क की जर्जर स्थिति के खिलाफ एक युवा विरोध का नेतृत्व किया,</s>
जिसमें बेहतर सड़क बुनियादी ढांचे की आवश्यकता पर जोर दिया गया। , जम्मू और कश्मीर सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 2016 की धारा 17 के अनुसार, जिला ग्रामीण युवा कल्याण संघ को जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा अपंजीकृत कर दिया गया था। उनकी स्थिति और कार्यक्षमता का आकलन करने के लिए संबंधित जिला उद्योग केंद्रों के महाप्रबंधकों द्वारा सभी पंजीकृत समितियों का व्यापक भौतिक निरीक्षण और सर्वेक्षण किया गया। पंजीकरण रद्द करने के आधारों में संगठन की गतिविधियों की विध्वंसक प्रकृति से संबंधित चिंताएं, साथ ही एक प्रमाणित चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा इसके खातों की वार्षिक लेखापरीक्षा की कानूनी आवश्यकता को पूरा करने में विफलता शामिल थी। पत्रकारिता करियर 2018 के अंत में, फरीद अहमद नाइक ने पत्रकारिता में कदम रखा, सामुदायिक मुद्दों पर प्रकाश डालने और सकारात्मक बदलाव की वकालत करने के अपने प्रयासों को और बढ़ाया। नाइक पहले सराज़ी न्यूज़ रिपोर्टर बने वह द चिनाब टाइम्स में कार्यकारी संपादक हैं। संदर्भ जीवित लोग 1996 में जन्मे लोग तमिल फ़िल्म निर्देशक २०१९ में निधन 1949 में जन्मे लोग वामिका कोहली भारत वामिका कोहली भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली की बेटी है। पांढुरना जिला, भारत के मध्य प्रदेश राज्य का 54वाँ जिला है। तहसील पांढुरना सौसर नांदनवाड़ी इन्हें भी देखें छिंदवाड़ा जिला संदर्भ मध्य</s>
प्रदेश के शहर पांढुरना जिला नईम अख्तर एक मुस्लिम युवा नेता है, इसका जन्म 12 सितम्बर 1989 को माथाडीह गिरिडीह मे हुआ था। मुस्लिम युवा नेता नईम अख्तर का संकल्प युवाओं को एक जुट करना और एक जुट हुए युवाओं को अधिकार दिलाना है। यह 5 माई 2019 से राजनीति कर रहे हैं। ट्रांसफॉर्मर्स: एनर्जोन, जिसे जापान में ट्रांसफॉर्मर: सुपरलिंक के नाम से जाना जाता है, एक जापानी एनीमे श्रृंखला है जो 9 जनवरी, 2004 को शुरू हुई। यह ट्रांसफॉर्मर्स: आर्मडा का सीधा सीक्वल है। यह पहला जापानी ट्रांसफॉर्मर शो भी है जहां ट्रांसफॉर्मर कंप्यूटरजनरेटेड हैं, ज़ॉइड्स एनीमे के समान सेलशेडेड तकनीक में, जो एक प्रवृत्ति थी जो अगली श्रृंखला, ट्रांसफॉर्मर्स: साइबरट्रॉन में जारी रहेगी। संयुक्त राज्य अमेरिका में, किड्सक्लिक ने 27 अगस्त, 2018 से 3 नवंबर, 2018 तक शो का पुन: प्रसारण शुरू किया। ट्रांसफॉर्मर्स के साथ: आर्मडा और ट्रांसफॉर्मर्स: साइबर्ट्रॉन, ट्रांसफॉर्मर्स: एनर्जोन ट्रांसफॉर्मर्स श्रृंखला में एक गाथा का एक हिस्सा है जिसे यूनिक्रॉन ट्रिलॉजी के रूप में जाना जाता है। इस श्रृंखला में, ट्रांसफॉर्मर्स की प्राथमिक नौटंकी ऑटोबोट्स की समान आकार के भागीदारों के साथ संयोजन करने की क्षमता, डिसेप्टिकॉन की पावर्ड अप फॉर्म का उपयोग करने की क्षमता, और एनर्जोन हथियारों और सितारों को जोड़ना है जिन्हें</s>
किसी भी ट्रांसफार्मर पर रखा जा सकता है। पिछली पंक्ति के मिनीकॉन्स अभी भी मौजूद हैं, लेकिन सभी मिनीकॉन पेग्स डमी पेग्स हैं क्योंकि वे खिलौने पर किसी फ़ंक्शन को सक्रिय नहीं करते हैं। कहानी मिनीकंस के लिए युद्ध और यूनिक्रॉन के स्पष्ट विनाश के दस साल बाद, रहस्यमय अल्फा क्यू , जो ग्रहभक्षक के शरीर की भूसी से संचालित होता है, उस पर हमला करने के लिए ऊर्जा खाने वाले टेररकॉन्स को छोड़ता है। सौर मंडल में ऑटोबॉट्स के साइबरट्रॉन शहर, अल्फा क्यू की योजना के लिए एनर्जोन एकत्र कर रहे हैं। जैसे ही ऑटोबोट्स अपने मानव सहयोगियों के साथ नए खतरे के खिलाफ जुटते हैं, अल्फा क्यू टेररकॉन्स का नेतृत्व करने के लिए स्कॉर्पोनोक बनाता है और डिसेप्टिकॉन नेता मेगेट्रॉन की स्पार्क से एक तलवार बनाता है, जिसे बाद में जाना जाता है। गैल्वाट्रॉन, पृथ्वी पर अन्य धोखेबाज़ों को अपनी ओर मोड़ने के लिए। हालाँकि, मेगेट्रॉन ने अपने स्वयं के पुनरुत्थान की योजना बनाई, यूनिक्रॉन के शरीर पर नियंत्रण कर लिया और अल्फा क्यू को यूनिक्रॉन के सिर के अंदर भागने के लिए मजबूर कर दिया, फिर पृथ्वी पर महासागर शहर पर हमला किया। अल्फा क्यू ने ऑप्टिमस प्राइम की हत्या करने के लिए स्टार्सक्रीम को फिर से</s>