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Doha of Bihari | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/bihari/dohe | [
"1595 - 1664\n|\nग्वालियर, मध्य प्रदेश",
"रीतिसिद्ध कवि। ‘सतसई’ से चर्चित। कल्पना की मधुरता, अलंकार योजना और सुंदर भाव-व्यंजना के लिए स्मरणीय।",
"रीतिसिद्ध कवि। ‘सतसई’ से चर्चित। कल्पना की मधुरता, अलंकार योजना और सुंदर भाव-व्यंजना के लिए स्मरणीय।",
"355Favorite",
"श्रेणीबद्ध करें",
"कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।",
"भरे भौन मैं करत हैं, नैननु ही सब बात॥",
"सखी कह रही है कि नायक अपनी आँखों के इशारे से कुछ कहता है अर्थात् रति की प्रार्थना करता है, किंतु नायिका उसके रति विषयक निवेदन को अस्वीकार कर देती है। वस्तुतः उसका अस्वीकार स्वीकार का ही वाचक है तभी तो नायक नायिका के निषेध पर भी रीझ जाता है। जब नायिका देखती है कि नायक इतना कामासक्त या प्रेमासक्त है कि उसके निषेध पर भी रीझ रहा है तो उसे खीझ उत्पन्न होती है। ध्यान रहे, नायिका की यह खीझ भी बनावटी है। यदि ऐसी न होती तो पुनः दोनों के नेत्र परस्पर कैसे मिलते? दोनों के नेत्रों का मिलना परस्पर रति भाव को बढ़ाता है। फलतः दोनों ही प्रसन्नता से खिल उठते हैं, किंतु लज्जित भी होते हैं। उनके लज्जित होने का कारण यही है कि वे यह सब अर्थात् प्रेम-विषयक विविध चेष्टाएँ भरे भवन में अनेक सामाजिकों की भीड़ में करते हैं।",
"दुरत न कुच बिच कंचुकी, चुपरी सारी सेत।",
"कवि-आँकनु के अरथ लौं, प्रगटि दिखाई देत॥",
"नायिका ने श्वेत रंग की साड़ी पहन रखी है। श्वेत साड़ी से उसके सभी अंग आवृत्त हैं। उस श्वेत साड़ी के नीचे वक्षस्थल पर उसने इत्र आदि से सुगंधित मटमैले रंग की कंचुकी धारण कर रखी है। इन दोनों वस्त्रों के बीच आवृत्त होने पर भी नायिका के स्तन सूक्ष्म दृष्टि वाले दर्शकों के लिए छिपे हुए नहीं रहते हैं। भाव यह है कि अंकुरित यौवना नायिका के स्तन श्वेत साड़ी में",
"छिपाए नहीं छिप रहे हैं। वे उसी प्रकार स्पष्ट हो रहे हैं जिस प्रकार किसी कवि के अक्षरों का अर्थ प्रकट होता रहता है। वास्तव में कवि के अक्षरों में अर्थ भी स्थूलत: आवृत्त किंतु सूक्ष्म दृष्टि के लिए प्रकट रहता है।",
"तो पर वारौं उरबसी, सुनि, राधिके सुजान।",
"तू मोहन कैं उर बसी, है उरबसी-समान॥",
"हे सुजान राधिके, तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे रूप-सौंदर्य पर उर्वशी जैसी नारी को भी न्यौछावर कर सकता हूँ। कारण यह है कि तुम तो मेरे हृदय में उसी प्रकार निवास करती हो, जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय में निवास करता है।",
"भई जु छवि तन बसन मिलि, बरनि सकैं सुन बैन।",
"आँग-ओप आँगी दुरी, आँगी आँग दुरै न॥",
"नायिका न केवल रंग-रूप में सुंदर है अपितु उसके स्तन भी उभार पर हैं। वह चंपकवर्णी पद्मिनी नारी है। उसने अपने रंग के अनुरूप ही हल्के पीले रंग के वस्त्र पहन रखे हैं। परिणामस्वरूप उसके शरीर के रंग में वस्त्रों का रंग ऐसा मिल गया है कि दोनों के बीच कोई अंतर नहीं दिखाई देता है। अर्थात् नायिका के शरीर की शोभा से उसकी अंगिया छिप गई है, किंतु अंगिया के भीतर उरोज नहीं छिप पा रहे हैं। व्यंजना यह है कि नायिका ऐसे वस्त्र पहने हुए है कि उसके स्तनों का सौंदर्य न केवल उजागर हो रहा है, अपितु अत्यंत आकर्षक भी प्रतीत हो रहा है।",
"मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।",
"जा तन की झाँई परैं, स्यामु हरित-दुति होइ॥",
"इस दोहे के तीन अलग-अलग अर्थ बताए गए हैं।",
"कोऊ कोटिक संग्रहौ, कोऊ लाख हजार।",
"मो संपति जदुपति सदा, बिपति-बिदारनहार॥",
"कोई चाहे करोड़ों की संपत्ति एकत्र कर ले, चाहे कोई लाख हजार अर्थात् दस करोड़ की संपदा प्राप्त कर ले। मुझे उससे और उसकी संपदा से कुछ भी लेना-देना नहीं है। कारण यह है कि मेरी असली संपत्ति तो यदुवंशी कृष्ण हैं, जो सदा ही विपत्तियों को विदीर्ण करने वाले हैं।",
"अर तैं टरत न वर-परे, दई मरक मु मैन।",
"होड़ा-होड़ी बढ़ि चले चित, चतुराई नैन॥",
"एक सखी दूसरी सखी से कह रही है कि ऐसा प्रतीत होता है कि कामदेव रूपी नायक की प्रेरणा से ‘चित-चातुरी’ और ‘नयन-विस्तार’ रूपी दूती और दूत में इस बात की स्पर्धा जगी हुई है कि नायिका के शरीर को कौन कितनी शीघ्रता से काम के प्रभाव से प्रभावित कर पाता है। वास्तविकता यह है कि नायिका के शरीर में यौवनोन्मेष के साथ-साथ उसके चित्त की चपलता और नेत्रों का विस्तार बढ़ता जा रहा है। इन दोनों अंगों में कौन अधिक बढ़ा है या गतिमय हुआ है, यह निर्णय करना कठिन हो गया है। यही कारण है कि बिहारी ने मनोगत चंचलता की वृद्धि और नेत्रों के विस्तार की गति में होड़ की कल्पना की है।",
"जटित नीलमनि जगमगति, सींक सुहाई नाँक।",
"मनौ अली चंपक-कली, बसि रसु लेतु निसाँक॥",
"नायिका की नाक पर नीलम जड़ी हुई लोंग को देखकर नायक कहता है कि नायिका की सुहावनी नाक पर नीलम जटित सुंदर लोंग जगमगाती हुई इस प्रकार शोभायमान हो रही है मानों चंपा की कली पर बैठा हुआ भौंरा निःशंक होकर रसपान कर रहा हो।",
"चमक, तमक, हाँसी, ससक, मसक, झपट, लपटानि।",
"एजिहिं रति, सो रति मुकति, और मुकति अति हानि॥",
"जिस काम-क्रीड़ा में अंगों की चंचलता, उत्तेजना की अधिकता, हँसी, सीत्कार, मर्दन और छीन-झपटी जैसे भाव न हों, वह व्यर्थ है। हाँ, जिसमें ये भाव हों, वह काम-क्रीड़ा मुक्ति के समान है। इसके अतिरिक्त यदि कोई और मुक्ति है तो वह व्यर्थ है अर्थात् हानिकारक है।",
"सायक-सम मायक नयन, रँगे त्रिबिध रंग गात।",
"झखौ बिलखि दुरि जात जल, लखि जलजात लजात॥",
"कवि कह रहा है कि नायिका की आँखें ऐसी हैं कि मछलियाँ भी उन्हें देखकर पानी में छिप जाती हैं, कमल लजा जाते हैं। नायिका के मादक और जादुई नेत्रों के प्रभाव से कमल और मछलियाँ लज्जित हो जाती हैं। कारण, नायिका के नेत्र संध्या के समान हैं और तीन रंगों—श्वेत, श्याम और रतनार से रँगे हुए हैं। यही कारण है कि उन्हें देखकर मछली दु:खी होकर पानी में छिप जाती है और कमल लज्जित होकर अपनी पंखुड़ियों को समेट लेता है। सांध्यवेला में श्वेत, श्याम और लाल तीनों रंग होते हैं और नायिका के नेत्रों में भी ये तीनों ही रंग हैं। निराशा के कारण वे श्याम हैं, प्रतीक्षा के कारण पीले या श्वेत हैं और मिलनातुरता के कारण लाल या अनुरागयुक्त हो रहे हैं।",
"पति रति की बतियाँ कहीं, सखी लखी मुसकाइ।",
"कै कै सबै टलाटलीं, अलीं चलीं सुखु पाइ।।",
"बिहारी कह रहे हैं कि प्रियतम ने नायिका से रति की बातें कहना प्रारंभ कर दिया । नायिका भी चतुर थी अत: वह अपनी सखियों की ओर देखकर मुस्करा दी। सखियाँ भी नायिका की ही भाँति चतुर थीं अत: वे भी रति-रहस्य के संकेत को समझ गईं और बड़ी प्रसन्नता से धीरे-धीरे कोई-न-कोई बहाना लगाती हुई वहाँ से उठकर चल दी।",
"जपमाला छापैं तिलक, सरै न एकौ कामु।",
"मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥",
"माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ ही में नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते। राम तो सच्चे मन से भक्ति करने वाले व्यक्ति पर ही प्रसन्न होते हैं।",
"कब कौ टेरतु दीन रट, होत न स्याम सहाइ।",
"तुमहूँ लागी जगत-गुरु, जग-नाइक, जग-बाइ॥",
"हे भगवान, मैं आपको कब से कातर स्वर में पुकार रहा हूँ, किंतु आप मेरे सहायक नहीं हो रहे हैं। हे संसार के गुरु, हे संसार के नायक, क्या मैं यह समझ लूँ कि आपको भी इस संसार की हवा लग गई है?",
"पाइ महावरु दैंन कौं नाइनि बैठी आइ।",
"फिरि फिरि, जानि महावरी, एड़ी मीड़ति जाइ॥",
"नाइन नायिका के महावर लगाने के लिए आई हुई है। वह पैरों में महावर लगाने के लिए आती है और नायिका के समक्ष बैठ जाती है। नाइन महावरी अर्थात् लाल रंग से सराबोर कपड़ा कहीं रखकर भूल जाती है और भ्रम से नायिका की एड़ी को ही महावरी समझ बैठती है, क्योंकि नायिका की एड़ी इतनी कोमल और लाल है कि नाइन को भ्रम हो जाता है और परिणाम स्वरूप वह बार-बार नायिका की एड़ियों को मींड़ती जाती है।",
"मरनु भलौ बरु बिरह तैं, यह निहचय करि जोइ।",
"मरन मिटै दुखु एक कौ, बिरह दुहूँ दुखु होइ॥",
"एक सखी नायिका से कह रही है कि किसी पड़ौसिन ने मृत्यु को विरह से श्रेष्ठ समझकर मरने का निश्चय कर लिया है। वास्तव में उसने ठीक ही किया है, क्योंकि विरह के ताप में धीरे-धीरे जलते हुए मरने से एक साथ मरना कहीं अधिक श्रेयस्कर है। कारण यह भी है कि मरने से केवल प्रिय को दुख होगा, किंतु प्रिया विरह के दुख से सदैव के लिए मुक्त हो जाएगी। विरह में तो प्रेमी और प्रिय दोनों को दुख होता है, किंतु मृत्यु में केवल प्रेमी को दुख होगा।",
"हा हा! बदनु उघारि, दृग सफल करैं सबु कोइ।",
"रोज सरोजनु कैं परै, हँसी ससी की होइ॥",
"सखी कहती है कि हे प्रिय सखी! हमारे नेत्र कितनी देर से व्याकुल हैं। मैं हा-हा खा रही हूँ कि तू अपने मुख से घूँघट हटा ले ताकि हमारी व्याकुलता शांत हो और तेरे सुंदर मुख के दर्शन हों। जब तू अपने मुख को अनावृत्त कर लेगी, तो अपनी पराजय में कमल साश्रु हो जाएँगे और मुख के ढके रहने पर इठलाने वाला यह चंद्रमा पूर्णतः उपहास का पात्र बन जाएगा।",
"चलन नापावतु निगम-मगु, जगु उपज्यौ अति त्रासु।",
"कुच-उतंग गिरिवर गह्यौ, मैना मैनु मवासु॥",
"नायिका के उन्नत उरोजों को देखकर नायक अपने आप ही यह कहता है कि कामदेव रूपी मैना ने स्तन रूपी उच्च पर्वत को अपना अभेद्य स्थान बना लिया है। परिणामस्वरूप संसार में बड़ा भय उत्पन्न हो गया है। अब वेदविहित मार्ग रूपी वणिक पथ का अनुसरण करना कठिन हो गया है। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार से पहाड़ में बसने वाले मैना अर्थात् डाकू के भय से व्यापारियों का चलना कठिन हो जाता है, उसी प्रकार नायिका के उन्नत उरोजों में कामदेव के निवास के कारण धर्म के पथ पर चलना कठिन हो गया है। स्पष्ट संकेत है कि बड़े-बड़े धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्यिों का मन भी नायिका के उन्नत उरोजों को देखकर चंचल हो गया है।",
"नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।",
"अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥",
"नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है। अरे भौरे! अभी तो यह एक कली मात्र है। तुम अभी से इसके मोह में अंधे बन रहे हो। जब यह कली फूल बनकर पराग तथा मकरंद से युक्त होगी, उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? अर्थात् जब नायिका यौवन संपन्न सरसता से प्रफुल्लित हो जाएगी, तब नायक की क्या दशा होगी?",
"तरिवन-कनकु कपोल-दुति, बिच बीच हीं बिकान।",
"लाल लाल चमकति चुनीं, चौका-चिह्न-समान॥",
"एक सखी नायिका से कह रही है कि तेरे तरौने अर्थात् कर्णाभूषण का सोना तो तेरे कपोलों की कांति में विलीन हो गया है, किंतु उसमें लगी हुई लाल-लाल चुन्नियाँ अर्थात् माणिक्य दाँतों के चिह्न के समान चमक रही है। वास्तव में नायिका के कपोलों का वर्ण सुनहरा है। अतः सोने का बना हुआ ताटंक गालों की सुनहली कांति में खो जाता है। हाँ, ताटंक में लगी हुई लाल-लाल चुन्नियाँ अवश्य दिखाई पड़ती हैं। वे ऐसी लगती हैं, मानो नायिका के कपोलों में नायक द्वारा लगाए गए दाँतों के चिह्न हों।",
"या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोइ।",
"ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होई॥",
"मनुष्य के अनुरागी हृदय की वास्तविक गति और स्थिति को कोई भी नहीं समझ सकता है। जैसे-जैसे मन कृष्ण-भक्ति के रंग में डूबता जाता है, वैसे-वैसे वह अधिक उज्ज्वल से उज्ज्वलतर होता जाता है।",
"सहज सचिक्कन, स्याम रुचि, सुचि, सुगंध, सुकुमार।",
"गनतु न मनु पथु अपथु, लखि बिथुरे सुथरे बार॥",
"नायक जिस नायिका पर अनुरक्त है, वह उसके लिए धर्म-दृष्टि से ग्राह्य नहीं है, किंतु, नायक नायिका के श्याम और सहज रूप से दिखने वाले बालों पर ही रीझ गया है। नायक कह रहा है कि उस नायिका के सहज स्निग्ध श्याम वर्ण के पावन और स्वच्छ सुगंधित बाल मुझे आकर्षित करते रहते हैं। उसके बालों की शोभा देखकर मेरा मन परवश और चंचल हो जाता है। अत: वह यह नहीं निर्णय कर पाता है कि उस सुंदर सहज ढंग से सँवारे हुए बालों वाली नायिका से प्रेम करना उचित है अथवा अनुचित है।",
"पिय−बिछुरन कौ दुसहु दुखु, हुरषु जात प्यौसार।",
"दुरजोधन लौं देखयति तजत प्रान इहि बार॥",
"एक नायिका अपनी ससुराल से अपने पीहर जा रही है। अतः एक ओर तो उसे अपने पिता के घर जाने के सुख है तो दूसरी ओर अपने प्रियतम के बिछोह का दुःख भी है। कवि बिहारी ने नायिका की इस सुख-दुःखमय मनोस्थिति की समानता दुर्योधन के अंतकाल से प्रकट की है। बिहारी कह रहे हैं कि पीहर जाती हुई नायिका को पीहर जाने का तो हर्ष है और अपने प्रियतम से बिछुड़ने का दुःख हो रहा है। इस प्रकार इस बार जाते समय उस नायिका की वही स्थिति है जो दुर्योधन की प्राणांत होते समय की थी।",
"खरी पातरी कान की, कौन बहाऊ बानि।",
"आक-कलीन रली करै अली, अली, जिय जानि॥",
"हे सखी, तू कान की बड़ी पतली अर्थात् कच्ची है। पता नहीं, तुझमें कौन-सी बुरी आदत है कि तू बिना सम्यक् विचार किए सबकी बातों पर यों ही विश्वास कर लेती है। मैं तुझे समझाते हुए यह कहना चाहती हूँ कि तू मेरी बात को निश्चित रूप से सत्य मान ले कि भ्रमर किसी स्थिति में आक की कली से विहार नहीं कर सकता है। अर्थात् तुम्हारा प्रेयस किसी अन्य स्त्री का संसर्ग कभी नहीं करेगा।",
"संपति केस, सुदेस नर नवत, दुहुति इक बानि।",
"विभव सतर कुच, नीच नर, नरम विभव की हानि॥",
"केश और श्रेष्ठ पद वाले व्यक्ति संपत्ति के कारण नम्र हो जाते हैं या झुकने लगते हैं, किंतु उरोज और नीच नर वैभवहीन होने पर ही झुकते हैं। कवि कह रहा है कि केश-वृद्धि प्राप्त करके झुकने लगते हैं। यही स्थिति अच्छे पद पर स्थित सत्पुरुषों की होती है। सत्पुरुष भी अच्छा पद प्राप्त करके या समृद्धि प्राप्त करके झुकने लगते हैं। नीच लोगों की स्थिति इसके विपरीत होती है। कुच और नीच मनुष्य वैभवहीन होकर ही झुकते हैं। उरोज यौवन का वैभव पाकर कठोर हो जाते हैं, किंतु वैभवहीन होते ही अर्थात् यौवन समाप्त होते होती ही वे शिथिल हो जाते हैं। यही स्थिति नीच मनुष्यों की होती है। वे ऐश्वर्य पाकर तो कठोर होते हैं, किंतु ऐश्वर्यहीन होकर विनम्रता धारण कर लेते हैं।",
"या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोई।",
"ज्यौं ज्यौं बूड़ै स्याम रँग, त्यौं त्यौं उज्जलु होई॥",
"मनुष्य के अनुरागी हृदय की वास्तविक गति और स्थिति को कोई भी नहीं समझ सकता है। जैसे-जैसे मन कृष्ण-भक्ति के रंग में डूबता जाता है, वैसे-वैसे वह अधिक उज्ज्वल से उज्ज्वलतर होता जाता है। यानी जैसे-जैसे व्यक्ति भक्ति के रंग में डूबता है वैसे-वैसे वह अपने समस्त दुर्गुणों से दूर होता जाता है।",
"जुवति जोन्ह मैं मिलि गई, नैंक न होति लखाइ।",
"सौंधे कैं डोरैं लगी अली, चली सँग जाइ॥",
"अभिसार के लिए एक नायिका अपनी सखी के साथ चाँदनी रात में जा रही है। आसमान से चाँदनी की वर्षा हो रही है और धरती पर नायिका के शरीर का रंग भी चाँदनी की तरह उज्ज्वल और गोरा है। ऐसी स्थिति में नायिका का शरीर चाँदनी में लीन हो गया है। सखी विस्मय में पड़ गई है कि नायिका कहाँ है? ऐसी स्थिति में वह केवल नायिका के शरीर की गंध के सहारे आगे बढ़ती जा रही है। इसी स्थिति का वर्णन करते हुए बिहारी कह रहे हैं कि नायिका अपने गौर और स्वच्छ वर्ण के कारण चाँदनी में विलीन हो गई है। उसका स्वतंत्र और पृथक् अस्तित्व दिखलाई नहीं दे रहा है। यही कारण है कि उसके साथ चलने वाली सखी नायिका के शरीर से आने वाली पद्म गंध का सहारा लेकर साथ-साथ चली जा रही है।",
"पत्रा ही तिथि पाइयै, वा घर के चहुँ पास।",
"नित प्रति पून्यौईं रहै, आनन-ओप-उजास॥",
"उस नायिका के घर के चारों ओर इतना प्रकाश रहता है कि केवल पंचांग की सहायता से ही तिथि का पता लग सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि नायिका का मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान सुंदर है। इसलिए नायिका के घर के चारों ओर हमेशा पूर्णिमा ही बनी रहती है, परिणामस्वरूप तिथि की जानकारी ही नहीं हो पाती है। यदि कोई तिथि जानना चाहता है तो उसके लिए उसे पंचांग से ही सहायता लेनी पड़ती है।",
"तंत्री नाद, कबित्त रस, सरस राग, रति-रंग।",
"अनबूड़े बूड़े, तरे जे बूड़े सब अंग॥",
"वीणा आदि वाद्यों के स्वर, काव्य आदि ललित कलाओं की रसानुभूति तथा प्रेम के रस में जो व्यक्ति सर्वांग डूब गए हैं, वे ही इस संसार-सागर को पार कर सकते हैं। जो इनमें डूब नहीं सके हैं, वे इस भव-सिंधु में ही फँसकर रह जाते हैं अर्थात् संसार-का संतरण नहीं कर पाते हैं। कवि का तात्पर्य यह है कि तंत्री-नाद इत्यादि ऐसे पदार्थ हैं जिनमें बिना पूरण रीति से प्रविष्ट हुए कोई भी आनंद नहीं मिल पाता है। यदि इनमें पड़ना हो तो पूर्णतया पड़ो। यदि पूरी तरह नहीं पड़ सकते हो तो इनसे सर्वथा दूर रहना ही उचित व श्रेयस्कर है।",
"कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।",
"कहि है सबु तेरौ हियौ मेरे हिय की बात॥",
"नायिका अपने प्रेयस को पत्र लिखने बैठती है तभी या तो उसके हाथ काँपने लगते हैं या वह भावावेश में आकर इतनी भाव-विभोर हो जाती है कि कंपन स्नेह अश्रु जैसे सात्विक भाव काग़ज़ पर अक्षरों का आकार नहीं बनने देते। इसके विपरीत यदि वह किसी व्यक्ति के माध्यम से नायक के पास संदेश भेजे तो यह समस्या उठ खड़ी होती है कि किसी दूसरे व्यक्ति से अपने मन की गुप्त बातें कैसे कहे? स्पष्ट शब्दों में संदेश कहने में उसे लज्जा का अनुभव होता है। विकट परिस्थिति है कि नायिका न तो पत्र भेज सकती है और न संदेश ही प्रेषित कर सकती है। इस विषमता से ग्रस्त अंततः वह हताश होकर ख़ाली काग़ज़ का टुकड़ा बिना कुछ लिखे ही नायक के पास भेज देती है। इस काग़ज़ के टुकड़े को भेजने के साथ वह यह अनुमान लगा लेती है कि यदि नायक के मन में भी मेरे प्रति मेरे जैसा ही गहन प्रेम होगा तो वह इस ख़ाली काग़ज़ को देखकर भी मेरे मनोगत एवं प्रेमपूरित भावों को स्वयं ही पढ़ लेगा।",
"तो पर वारौं उरबसी, सुनि, राधिके सुजान।",
"तू मोहन कैं उर बसी ह्वै उरबसी-समान॥",
"कृष्ण कहते हैं कि हे सुजान राधिके, तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे रूप-सौंदर्य पर उर्वशी जैसी नारी को भी न्यौछावर कर सकता हूँ। कारण यह है कि तुम तो मेरे हृदय में उसी प्रकार निवास करती हो, जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय में निवास करता है।",
"कुच-गिरि चढ़ि अति थकित है, चली डीठि मुँह-चाड़।",
"फिरि न टरी, परियै रही, गिरी चिबुक की गाड़॥",
"नायिका की चिबुक अर्थात् ठोढ़ी के सौंदर्य पर आसक्त नायक स्वगत कह रहा है कि मेरी दृष्टि नायिका के स्तन-पर्वतों पर चढ़कर उसकी शोभा पर मुग्ध होकर उसकी मुख-छवि को देखने के लिए जैसे ही मुख की ओर बढ़ी, वैसे ही वह वहाँ अर्थात् मुख-सौंदर्य का पान करने के लिए, पहुँचने से पूर्व ही चिबुक के गर्त में गिर गई। भाव यह है कि नायिका की मुख छवि देखने से पूर्व ही नायक नायिका के चिबुक-सौंदर्य पर रीझ गया।",
"जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार।",
"अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार॥",
"हे भ्रमर! जिन दिनों तूने वे सुंदर तथा सुगंधित पुष्प देखे थे, वह बहार बीत गई। अब (तो) गुलाब में बिन पत्ते की कंटकित डाल रह गई है (अब इससे दुःख छोड़ सुख की सम्भावना नहीं है)।",
"कौन भाँति रहिहै बिरदु, अब देखिवी, मुरारि।",
"बीधे मोसौं आइ कै, गीधे गीधहिं तारि॥",
"हे मुरारि, तुम जटायु का उद्धार करके बहुत गीध गए हो अर्थात् अहंकार से युक्त हो गए हो। व्यंजना यह है कि तुमने यह मान लिया है कि जटायु का उद्धार कोई नहीं कर सकता था और वह केवल तुमने किया है। अब देखना यह है कि तुम मुझ जैसे महापापी का उद्धार कैसे करते हो? अब तुम्हारा मुझसे पाला पड़ा है। मुझ जैसे महापापी का उद्धार तुम कर नहीं पाओगे और जब मेरा उद्धार नहीं कर पाओगे तो तुम्हारे उद्धारक रूप की ख्याति किस प्रकार सुरक्षित रहेगी?",
"पलकु पीक, अंजनु अधर, धरे महावरु भाल।",
"आजु मिले, सु भली करी; भले बने हौ लाल॥",
"नायक के परस्त्रीरमण करने पर नायिका व्यंग्य का सहारा लेकर अपने क्रोध को व्यक्त करती है। वह कहती है कि हे प्रिंयतम, आपके पलकों में पीक, अधरों पर अंजन और मस्तक पर महावर शोभायमान है। आज बड़ा शुभ दिन है कि आपने दर्शन दे दिए। व्यंग्यार्थ यह है आज आप रंगे हाथों पकड़े गए हो। परस्त्रीरमण के सभी चिह्न स्पष्ट रूप से दिखलाई दे रहे हैं। पलकों में पर स्त्री के मुँह की पीक लगी हुई है, अधरों पर अंजन लगा है और मस्तक पर महावर है। ये सभी चिह्न यह प्रामाणित कर रहे हैं कि तुम किसी परकीया से रमण करके आए हो। स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि उस परकीया ने पहले तो कामावेश में आकर तुम्हारे मुख का दंत लिया होगा, परिणामस्वरूप उसके मुख की पान की पीक तुम्हारे पलकों पर लग गई। जब प्रतिदान देना चाहा तो वह नायिका मानिनी हो गई। जब तुमने उसके अधरों का दंत लेना चाहा तो वह अपने को बचाने लगी। परिणामस्वरूप उसके नेत्रों से तुम्हारे अधर टकरा गए और उसकी आँखों का काजल तुम्हारे अधरों पर लग गया। अंत में उसे मनाने के लिए तुमने अपना मस्तक उसके चरणों पर रख दिया, इससे उसके पैरों का महावर आपके मस्तक पर लग गया है। इतने पर भी जब वह नहीं मानी तब आप वहाँ से चले आए और आपको मेरा याद आई। चलो,अच्छा हुआ इस बहाने ही सही, आपके दर्शन तो हो गए।",
"जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।",
"मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥",
"माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ में ही नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते। राम तो सच्चे मन से भक्ति करने वाले व्यक्ति पर ही प्रसन्न होते हैं।",
"अंग-अंग-नग जगमगत दीप-सिखा सी देह।",
"दिया बढाऐं हूँ रहै बड़ौ उज्यारौ गेह॥",
"दूती नायक से कह रही है कि देखो, नायिका की देह आभूषणों में जड़े हुए नगों से दीप-शिखा के समान दीपित हो रही है। घर में यदि दीपक बुझा दिया जाता है तब भी उस नायिका के रूप के प्रभाव से चारों ओर प्रकाश बना रहता है। दूती ने यहाँ नायिका के वर्ण-सौंदर्य के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व में उदित होने वाली शोभा, दीप्ति और कांति आदि की अतिशयता को भी व्यक्त कर दिया है।",
"अपने अँग के जानि कै जोबन-नृपति प्रवीन।",
"स्तन, मन, नैन, नितंब कौ बड़ौ इजाफा कीन॥",
"यौवन रूपी प्रवीण राजा ने नायिका के चार अंगों पर अपना अधिकार कर लिया है। उन अंगों को अपना मानते हुए अपनी सेना के चार अंग स्वीकार कर उनकी वृद्धि कर दी है। ऐसा उसने इसलिए किया है कि वे सभी अंग उसके वश में रहे। ये चार अंग यौवन रूपी राजा की चतुरंगिणी सेना के प्रतीक हैं। ये अंग हैं−स्तन, मन, नेत्र और नितंब। स्वाभाविक बात यह है कि जब यौवनागम होता है तब स्वाभाविक रूप से शरीर के इन अंगों में वृद्धि होती है। जिस प्रकार कोई राजा अपने सहायकों को अपना मानकर उनकी पदोन्नति कर देता है, उसी प्रकार यौवनरूपी राजा ने स्तन, मन, नेत्र और नितंब को अपना मान लिया है या अपना पक्षधर या अपने ही अंग मानते हुए इनमें स्वाभाविक वृद्धि कर दी है।",
"हौं रीझी, लखि रीझिहौ, छबिहिं छबीले लाल।",
"सोनजूही सी ह्वोति दुति, मिलत मालती माल॥",
"सखी नायक से कहती है कि हे नायक, मैं नायिका के अनिर्वचनीय सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गई हूँ। हे छैल छबीले रसिया ! उस नायिका का वर्ण इतना लावण्यमय और चंपक पुष्प के समान स्वर्णिम है कि उसके गले में पड़ी हुई मालती पुष्पों की सफेद माला सोनजुही के पुष्पों वाली पीतवर्णा लगने लगी है। अभिप्राय यह है कि नायिका चंपक वर्णी पद्मिनी है, उसके गले में मालती की माला है, उसका पीताभ वर्ण ऐसी स्वर्णिम आभा लिए हुए है कि श्वेत मालती पुष्पों की माला भी सोनजुही जैसे सुनहरे फूलों की माला के रूप में आभासित हो रही है।",
"औरै भाँति भएऽब, ए चौसरु, चंदनु, चंदु।",
"पति-बिनु अति पारतु बिपति, मारतु मारुतु मंदु॥",
"प्रस्तुत दोहे में एक विरह-निपीड़ता नायिका के संताप की शांति के लिए उसकी सखी पुष्पों की माला आदि शीतल पदार्थ जुटाती है। विरह का ताप इतना अधिक है कि नायिका को इस प्रकार के पदार्थ भी अच्छे नहीं लगते हैं। वह इन पदार्थों को देखकर और अपनी मन:स्थिति के अनुसार अपनी सखी से कहती है कि हे सखी, ध्यान से सुन कि अब तो पुष्पों की यह माला, चंदन और चंद्रमा आदि सभी शीतल पदार्थ मेरे लिए कुछ और प्रकार के हो गए हैं। भाव यह है कि ये सभी वस्तुएँ शीतल हैं, किंतु मेरी वर्तमान स्थिति में ये सभी मुझे दुःखद प्रतीत हो रही हैं। इतना ही नहीं, प्रिय के बिना शीतल मन्द पवन भी मुझे दाहक प्रतीत हो रहा है। संकेत यह है कि संयोग के सुखद क्षणों में जो वस्तुएँ शीतल और आनंददायक प्रतीत होती हैं, वे सभी अब प्रिय के अभाव में कष्टदायक प्रतीत हो रही हैं।",
"विरह-दग्ध नायिका अपनी सहेली से कहती है कि कि अब तो पुष्पों की यह माला, चंदन और चंद्रमा आदि सभी शीतल पदार्थ मेरे लिए कुछ और प्रकार के हो गए हैं। भाव यह है कि ये सभी वस्तुएँ शीतल हैं, किंतु मेरी वर्तमान स्थिति में ये सभी मुझे दुःखद प्रतीत हो रही हैं। इतना ही नहीं, प्रिय के बिना शीतल मंद पवन भी मुझे दाहक प्रतीत हो रहा है। संकेत यह है कि संयोग के सुखद क्षणों में जो वस्तुएँ शीतल और आनंददायक प्रतीत होती हैं, वे सभी अब प्रिय के अभाव में कष्टदायक प्रतीत हो रही हैं।",
"सोनजुही सी जगमगति, अँग-अँग जोबन-जोति।",
"सु-रंग, कसूँभी कंचुकी, दुरँग देह-दुति होति॥",
"नायिका के अंग-अंग में यौवन की झलक पीली जुही के समान जगमगा रही है। वास्तव में यौवन की ज्योति सोनजुही ही है। अत: कुसुंभ के रंग से रँगी हुई उसकी लाल चुनरी उसके शरीर की पीत आभा से दुरंगी हो जाती है। भाव यह है कि लाल और पीत मिश्रित आभा ही दिखाई दे रही है।",
"पर्यौ जौरु बिपरीत रति, रुपी सुरत-रन-धीर।",
"करति कुलाहलु किंकिनी, गहौ मौनु मंजीर॥",
"विपरीत रति में जुटे हुए नायक-नायिका का वर्णन करती हुई एक सखी दूसरी से कह रही है कि हे सखी, विपरीत रति में जोड़ पड़ गया है अर्थात् नायक नीचे आ गया है। दोनों परस्पर गुंथे हुए हैं और सुरति रूपी रण में धैर्यवान नायिका भली प्रकार डट गई है अर्थात् रम गई है, जिसके फलस्वरूप करधनी ने तो शोर करना आरंभ कर दिया है और मंजीर ने मौन धारण कर लिया है।",
"कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।",
"कहि है सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥",
"प्रेमी के मन में अनेक प्रकार के भाव उठते और गिरते रहते हैं। कागज पर पत्र लिखना उसके लिए इसलिए असंभव हो गया है कि जब भी वह पत्र लिखने बैठती है तभी या तो उसके हाथ काँपने लगते हैं या वह भावावेश में आकर इतनी भावविभोर हो जाती है कि कंपन-स्नेह-अश्रु जैसे भाव क़ाग़ज़ पर अक्षरों का आकार नहीं बनने देते। यदि वह किसी व्यक्ति के माध्यम से नायक के पास संदेश भेजे तो यह समस्या है कि किसी दूसरे व्यक्ति से अपने मन की गुप्त बातें कैसे कहे? इसलिए वह हताश होकर खाली क़ाग़ज़ का टुकड़ा बिना कुछ लिखे भेज देती है। इस क़ाग़ज़ के टुकड़े को भेजने के साथ वह यह अनुमान लगा लेती है कि यदि नायक के मन में भी मेरे प्रति मेरे जैसा ही गहन प्रेम होगा तो वह इस खाली क़ाग़ज़ को देखकर भी मेरे मनोगत एवं प्रेमपूरित भावों को स्वयं ही पढ़ लेगा।",
"सरस सुमिल चित-तुरंग की, करि-करि अमित उठान।",
"गोइ निबाहैं जीतियै, खेलि प्रेम-चौगान॥",
"एक सखी नायिका को प्रेम-निर्वाह का मर्म सिखा रही है। वह कह रही है कि चित्त रूपी सरस और सुमिल घोड़े के अनेक धावे कर-करके गुप्त प्रेम-निर्वाह करते हुए प्रेम रूपी चौगान खेल जीता जाता है। भाव यह है कि यदि तूने प्रेम-खेल ठीक तरह से नहीं खेला तो सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी। स्पष्ट शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि जिस प्रकार चौगान के खेल में सधे हुए पुष्ट और मिलकर चलने वाले अनेक प्रकार की छलांगें भरने वाले घोड़े गेंद को निश्चित सीमा तक खेलकर विजयी होते हैं, उसी प्रकार प्रेम के खेल में प्रेमिका को अपने सरस और मिले हुए हृदय से अनेक प्रकार की उमंगों से युक्त होकर छिप-छिपकर प्रेम-क्रीड़ा का निर्वाह करना चाहिए।",
"जम-करि-मुँह तरहरि परयौ, इहिं धरहरि चित लाउ।",
"विषय तृषा परिहरि अजौं, नरहरि के गुन गाउ॥",
"तू यमराज रूपी हाथी के मुख के नीचे पड़ा हुआ है जहाँ से बच पाना दुष्कर है। अत: तू इस निश्चय को अपने ध्यान में ला और अब भी विषय-वासना की तृष्णा को त्यागकर भगवान का गुण-गान प्रारंभ कर दे।",
"ज्यौं-ज्यौं जोबन-जेठ दिन, कुच मिति अति अधिकाति।",
"त्यौं-त्यौं छिन-छिन कटि-छपा, छीन परति नित जाति॥",
"जैसे-जैसे यौवन रूपी ज्येष्ठ मास में स्तनरूपी दिन की पुष्टता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे कटिरूपी रात्रि क्षण-प्रतिक्षण क्षीण होती जाती है। बिहारी यह कहना चाह रहे हैं कि नायिका की कटि पतली होती जा रही है और उसके उरोज पुष्ट होते जा रहे हैं।",
"वाही की चित चटपटी, धरत अटपटे पाइ।",
"लपट बुझावत बिरह की, कपट-भरेऊ आइ॥",
"हे प्रियतम, तुम अपनी प्रेयसी के प्रेम-रंग में ऐसे रंग गए हो कि तुम्हारा इस प्रकार का आचरण तुम्हारे कपट भाव को ही व्यक्त कर रहा है। इतने पर भी मैं तुम्हारे कपट भावजनित मिलन को भी अपना सौभाग्य मानती हूँ। मेरे सौभाग्य का कारण यह है कि तुम कम-से-कम मेरे पास आकर दर्शन देते हुए मेरी विरह-ज्वाला को शांत तो कर रहे हो।",
"नीकी दई अनाकनी, फीकी परि गुहारि।",
"तज्यौ मनौ तारन-बिरदु, बारक बारनु तारि॥",
"हे नाथ, आपने तो मेरे प्रति पूर्ण उपेक्षा भाव अपना रखा है। इसका प्रमाण यह है कि मैं अपने उद्धार के लिए आपसे अनेक बार प्रार्थना कर चुका हूँ, किंतु मेरी प्रार्थना आपके कानों तक पहुँचती ही नहीं है। बिहारी यह उत्प्रेक्षा करते हैं कि भगवान ने एक बार हाथी का उद्धार किया, उसकी आर्त पुकार पर दौड़े चले गए। उसका उद्धार करने में वे इतना थक गए हैं कि अब उद्धारकर्ता कहलाने की प्रकृति को ही उन्होंने त्याग दिया है।",
"तजि तीरथ, हरि-राधिका, तन-दुति करि अनुरागु।",
"जिहिं ब्रज-केलि-निकुंज-मग, पग-पग होत प्रयागु॥",
"कवि कह रहा है कि तू तीर्थ छोड़कर श्रीकृष्ण एवं राधिका की शारीरिक कांति के प्रति अपना अनुराग बढ़ा ले जिससे कि ब्रज के विहार निकुंजों के पथ में प्रत्येक पथ पर तीर्थराज प्रयाग बन जाता है। भाव यह है कि श्रीकृष्ण एवं राधा के प्रति भक्ति बढ़ाने से करोड़ों तीर्थराज जाने का फल प्राप्त होता है।",
"लाल, अलौकिक लरिकई, लखि-लखि सखी सिहाँति।",
"आज-काल्हि में देखियतु, उर उकसौंही भाँति॥",
"कोई सखी कह रही है कि हे लाल, उसके अल्हड़ बालपन को मैं यौवन में परिणत होते देख रही हूँ। उसे देख-देखकर न केवल मैं, बल्कि सखियाँ भी प्रसन्नता और आनंद का अनुभव कर रही हैं। तुम देख लेना आजकल में ही उसका वक्षस्थल थोड़े और उभार पर आकर दिखलाई पड़ने लगेगा, अर्थात् सबको आकर्षित करने लगेगा।",
"तुरत सुरत कैसैं दुरत, मुरन नैन जुरि नीठि।",
"डौंडी दै गुन रावरे, कहति कनौड़ी डीठि॥",
"नायक अन्यत्र संभोग करके आया है, नायिका भांप लेती है। वह कहती है कि भला तुम्हीं बताओ कि तुरंत किया हुआ संभोग छिप कैसे सकता है? अब तुम्हीं देखो, तुम्हारे नेत्र बड़ी कठिनता से मेरे नेत्रों से मिल रहे हैं (तुम मुझसे आँखें नहीं मिला पा रहे हो)। इतना ही नहीं तुम्हारी दृष्टि भी लज्जित है। तुम्हारी यह लज्जित दृष्टि ही तुम्हारे किए हुए का ढिंढोरा पीट रही है और मैं सब समझ रही हूँ।",
"aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair",
"jis ke hote hue hote the zamāne mere",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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Read famous Poetry of Gajanan Madhav Muktibodh | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/gajanan-madhav-muktibodh/all | [
"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"दुनिया में नाम कमाने के लिए कभी कोई फूल नहीं खिलता है।",
"हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।",
"अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे। तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।",
"सच्चा लेखक जितनी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले लेता है, स्वयं को उतना अधिक तुच्छ अनुभव करता है।",
"पाप के समय भी मनुष्य का ध्यान इज़्ज़त की तरफ़ रहता है।",
"तार सप्तक",
"1943",
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"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
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"हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।",
"अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे। तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।",
"सच्चा लेखक जितनी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले लेता है, स्वयं को उतना अधिक तुच्छ अनुभव करता है।",
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"तार सप्तक",
"1943",
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श्योपुर के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/birthplace/india/madhya-pradesh/sheopur/na/poets | [
"कुल: 1",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
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गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन परिचय | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/poets/gajanan-madhav-muktibodh/profile | [
"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"मूल नाम : गजानन माधव मुक्तिबोध",
"जन्म : 13/11/1917 | श्योपुर, मध्य प्रदेश",
"निधन : 11/09/1964 | दिल्ली, दिल्ली",
"संबंधी :\n शरच्चंद्र मुक्तिबोध ()",
"प्रगतिशील काव्यधारा और समकालीन विचारधारा में भी अत्यंत प्रासंगिक कवियों में से एक गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को श्योपुर, ग्वालियर में हुआ। उनके दादा जलगाँव, महाराष्ट्र के मूल निवासी थे जो ग्वालियर आकर बस गए थे। शमशेर बहादुर सिंह ने बताया है कि उनके किसी पूर्वज ने संभवतः ख़िलजी काल में मुग्धबोध नामक कोई आध्यात्मिक ग्रंथ लिखा था और उसके ही आधार पर उनके परिवार का नाम मुक्तिबोध चल पड़ा। उनके पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे, ओहदा अच्छा था पर आय अच्छी नहीं थी। उनकी आरंभिक शिक्षा उज्जैन, विदिशा, अमझरा आदि कई स्थानों पर हुई। पिता की नौकरी और तबादले के कारण उनकी पढ़ाई का सिलसिला टूटता-जुड़ता रहा, फलतः मिडिल स्कूल की परीक्षा में असफलता मिली जिसे मुक्तिबोध अपने जीवन की पहली महत्त्वपूर्ण घटना मानते थे। बचपन से उनका स्वभाव अंतर्मुखी और आत्मकेंद्री रहा था। वे अत्यंत जिज्ञासु भी थे। चित्त-विचलन भी उनकी एक प्रमुख प्रवृत्ति थी जिसे मुक्तिबोध स्वयं ‘स्थानांतरगामी प्रवृत्ति’ कहते थे। युवा जीवन में कविता और बौद्धिक गतिविधियों के प्रवेश के तुरंत बाद ही उनके जीवन में प्रेम का प्रवेश हुआ। बक़ौल शमशेर ‘एक जनून गहरा और सुंदर और स्थाई।’ शांताबाई से स्वेच्छापूर्ण इस विवाह के बाद उनके जीवन में उस संघर्ष और आर्थिक अभाव का प्रवेश हुआ जो अंतिम क्षण तक उनके साथ चलता रहा। नौकरी के लिए संघर्ष और सिद्धांतों से समझौता नहीं करने की उनकी धुन हमेशा आड़े आती रही। मास्टरी, रिपोर्टरी और एडिटरी के मुश्किल दिनों के बाद 1958 में राजनांदगाँव में प्रोफ़ेसरी के दिनों में जीवन कुछ आसान रहा तो ‘ब्रह्मराक्षस’ और ‘अँधेरे में’ जैसी महत्त्वपूर्ण कविताओं की रचना की। 1962 में उनके द्वारा तैयार की गई पाठ्य पुस्तक ‘भारत: इतिहास और संस्कृति’ को सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने से उनके मन को आघात लगा था। जीवन भर साहित्य और साहित्येतर प्रश्नों को लेकर चिंतित रहे मुक्तिबोध 1964 के आरंभ में पक्षाघात के शिकार हुए तो फिर संभल नहीं सके। 11 सितंबर 1964 को अचेतावस्था में ही उनकी मृत्यु हो गई। 47 साल की उनकी अल्पायु में ज़िंदगी का जो रूप रहा, जो रवैया, एटीट्यूड-वह उनकी रचनात्मकता में प्रकट रहा। उन्होंने जिस कठोर यथार्थ को भोगा उसकी अभिव्यक्ति ‘फंतासी’ या ‘फ़ैंटेसी’ के शिल्प में की है। ‘अँधेरे में’ और ब्रह्मराक्षस’ सरीखी उनकी लंबी प्रसिद्ध कविताओं सहित अन्य कई कविताओं में कम-बेशी मात्रा में यही शिल्प उतरता हुआ नज़र आता है। हिंदी कविता में फ़ैंटेसी की पहचान मुक्तिबोध से ही होती है। यह फ़ैंटेसी कविता वातावरण के सृजन, वस्तुस्थिति के प्रत्यक्षीकरण, आत्मकथन, बिंब रचना, कर्ता के प्रवेश, काव्यवस्तु और काव्य-कर्ता के बीच संबंध निर्माण और अंतःक्रियाओं के सूत्रों का सृजन, कथ्य का उभार, प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से तय दिशा की ओर प्रस्थान, फ़ैंटेसी से बाहर सचेत वाचक की टिप्पणी आदि प्रक्रियाओं से गुज़रती है जहाँ मुक्तिबोध कोई विशिष्ट क्रम नहीं बनने देते और अलग-अलग कविताओं में बार-बार हेर-फेर से उसे चुनौती देते हैं। बक़ौल नामवर सिंह “नई कविता में मुक्तिबोध की जगह वही है, जो छायावाद में निराला की थी। निराला के समान ही मुक्तिबोध ने भी अपने युग के सामान्य काव्य-मूल्यों को प्रतिफलित करने के साथ ही उनकी सीमा को चुनौती देकर उस सर्जनात्मक विशिष्टता को चरितार्थ किया, जिससे समकालीन काव्य का सही मूल्यांकन हो सका।”",
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Kavita of Gajanan Madhav Muktibodh | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/gajanan-madhav-muktibodh/kavita | [
"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
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ebooks of Gajanan Madhav Muktibodh | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/gajanan-madhav-muktibodh/ebooks?ref=web | [
"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"तार सप्तक",
"1943",
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Gajanan Madhav Muktibodh - Video Collection of poetry | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/gajanan-madhav-muktibodh/video | [
"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
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kahani of Gajanan Madhav Muktibodh | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/gajanan-madhav-muktibodh/story | [
"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"बाहर चिलचिलाती हुई दोपहर है; लेकिन इस कमरे में ठंडा मद्धिम उजाला है। यह उजाला इस बंद खिड़की की दरारों से आता है। यह एक चौड़ी मुँडेरवाली बड़ी खिड़की है, जिसके बाहर की तरफ़, दीवार से लगकर, काँटेदार बेंत की हरी घनी झाड़ियाँ हैं। इनके ऊपर एक जंगली बेल चढ़कर",
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Quotes of Gajanan Madhav Muktibodh | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/gajanan-madhav-muktibodh/quotes | [
"1917 - 1964\n|\nश्योपुर, मध्य प्रदेश",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"322Favorite",
"श्रेणीबद्ध करें",
"दुनिया में नाम कमाने के लिए कभी कोई फूल नहीं खिलता है।",
"हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।",
"अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे। तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।",
"सच्चा लेखक जितनी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले लेता है, स्वयं को उतना अधिक तुच्छ अनुभव करता है।",
"पाप के समय भी मनुष्य का ध्यान इज़्ज़त की तरफ़ रहता है।",
"आज का प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति प्रेम का भूखा है।",
"मुक्ति अकेले में अकेले की नहीं हो सकती। मुक्ति अकेले में अकेले को नहीं मिलती।",
"अच्छाई का पेड़ छाया प्रदान नहीं कर सकता, आश्रय प्रदान नहीं कर सकता।",
"जब तक मेरा दिया तुम किसी और को न दोगे, तब तक तुम्हारी मुक्ति नहीं।",
"झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है—अधिक महत्त्वपूर्ण और प्राणवान।",
"जल विप्लव है।",
"अस्ल में साहित्य एक बहुत धोखे की चीज़ हो सकती है।",
"आहतों का भी अपना एक अहंकार होता है।",
"वेदना बुरी होती है। वह व्यक्ति को व्यक्ति-बद्ध कर देती है।",
"अमिश्रित आदर्शवाद में मुझे आत्मा का गौरव दिखाई देता है।",
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अँधेरे में - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/andhere-mein-gajanan-madhav-muktibodh-kavita | [
"एक ज़िंदगी के...कमरों में अँधेरेलगाता है चक्करकोई एक लगातार;आवाज़ पैरों की देती है सुनाईबार-बार... बार-बार,वह नहीं दीखता... नहीं ही दीखता,किंतु, वह रहा घूमतिलस्मी खोह में गिरफ़्तार कोई एक,भीत-पार आती हुई पास से,गहन रहस्यमय अंधकार ध्वनि-साअस्तित्व जनाताअनिवार कोई एक,और मेरे हृदय की धक्-धक्पूछती है—वह कौनसुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई!इतने में अकस्मात् गिरते हैं भीतर सेफूले हुए पलिस्तर,खिरती है चूने-भरी रेतखिसकती हैं पपड़ियाँ इस तरह—ख़ुद-ब-ख़ुदकोई बड़ा चेहरा बन जाता है,स्वयमपिमुख बन जाता है दिवाल पर,नुकीली नाक औरभव्य ललाट,दृढ़ हनु,कोई अनजानी अन-पहचानी आकृति।कौन वह दिखाई जो देता, परनहीं जाना जाता है!कौन मनु?बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब...अँधेरा सब ओर,निस्तब्ध जल,पर, भीतर से उभरती है सहसासलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृतिकुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता हैऔर मुस्काता है,पहचान बताता है,किंतु, मैं हतप्रभ,नहीं वह समझ में आता।अरे! अरे!!तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्षचमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानकवृक्षों के शीश पर नाच-नाच उठती हैं बिजलियाँ,शाखाएँ, डालियाँ झूमकर झपटकरचीख़, एक दूसरे पर पटकती हैं सिर के अकस्मात्—वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एकतिलस्मी खोह का शिला-द्वारखुलता है धड् से...घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी,अंतराल-विवर के तम मेंलाल-लाल कुहरा,कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक,रहस्य साक्षात्!तेजो प्रभावमय उसका ललाट देखमेरे अंग-अंग में अजीब एक थरथरगौरवर्ण, दीप्त-दृग, सौम्य-मुखसंभावित स्नेह-सा प्रिय-रूप देखकरविलक्षण शंका,भव्य आजानुभुज देखते ही साक्षात्गहन एक संदेह।वह रहस्यमय व्यक्तिअब तक न पाई गई मेरी अभिव्यक्ति है,पूर्ण अवस्था वहनिज-संभावनाओं, निहित प्रभावों, प्रतिभाओं की,मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव,हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह,आत्मा की प्रतिभा।प्रश्न थे गंभीर, शायद ख़तरनाक भी,इसीलिए बाहर के गुंजानजंगलों से आती हुई हवा नेफूँक मार एकाएक मशाल ही बुझा दी—कि मुझको यों अँधेरे में पकड़करमौत की सज़ा दी!किसी काले डैश की घनी काली पट्टी हीआँखों पै बँध गई,किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया,किसी शून्य बिंदु के अँधियारे खड्डे मेंगिरा दिया गया मैंअचेतन स्थिति में!दो सूनापन सिहरा,अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले उभरे,शून्य के मुख पर सलवटें स्वर की,मेरे ही उर पर, धँसती हुई सिर,छटपटा रही हैं शब्दों की लहरेंमीठी है दुःसह!!अरे, हाँ, साँकल ही रह-रहबजती है द्वार पर।कोई मेरी बात मुझे बताने के लिए हीबुलाता है—बुलाता हैहृदय को सहला मानो किसी जटिलप्रसंग में सहसा होंठों परहोंठ रख, कोई सच-सच बातसीधे-सीधे कहने को तड़प जाए, और फिरवही बात सुनकर धँस जाए मेरा जी—इस तरह, साँकल ही रह-रह बजती है द्वार परआधी रात, इतने अँधेरे में, कौन आया मिलने?विमन प्रतीक्षापुर, कुहरे में घिरा हुआद्युतिमय मुख—वह प्रेम-भरा चेहरा—भोला-भाला भाव—पहचानता हूँ बाहर जो खड़ा हैयह वही व्यक्ति है, जी हाँ!जो मुझे तिलिस्मी खोह में दिखा था।अवसर-अनवसरप्रकट जो होता ही रहतामेरी सुविधाओं का न तनिक ख़्याल कर।चाहे जहाँ, चाहे जिस समय उपस्थित,चाहे जिस रूप मेंचाहे जिन प्रतीकों में प्रस्तुत,इशारे से बनाता है, समझाता रहता,हृदय को देता है बिजली के झटकेअरे, उसके चेहरे पर खिलती हैं सुबहें,गालों पर चट्टानी चमक पठार कीआँखों में किरणीली शांति की लहरें,उसे देख, प्यार उमड़ता है अनायास! लगता है—दरवाज़ा खोलकरबाँहों में कस लूँहृदय में रख लूँघुल जाऊँ, मिल जाऊँ लिपटकर उससेपरंतु, भयानक खड्डे के अँधेरे में आहतऔर क्षत-विक्षत, मैं पड़ा हुआ हूँ,शक्ति ही नहीं है कि उठ सकूँ ज़रा भी(यह भी तो सही है किकमज़ोरियों से ही लगाव है मुझको)इसीलिए टालता हूँ उस मेरे प्रिय कोकतराता रहता,डरता हूँ उससे।वह बिठा देता है तुंग शिखर केख़तरनाक, खुरदरे कगार-तट परशोचनीय स्थिति में ही छोड़ देता मुझको।कहता है—“पार करो, पर्वत-संधि के गह्वर,रस्सी के पुल पर चलकरदूर उस शिखर-कगार पर स्वयं ही पहुँचो!” अरे भाई, मुझे नहीं चाहिए शिखरों की यात्रामुझे डर लगता है ऊँचाइयों सेबजने दो साँकलउठने दो अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले,वह जन—वैसे हीआप चला जाएगा आया था जैसा।खड्डे के अँधेरे में मैं पड़ा रहूँगापीड़ाएँ समेटे!क्या करूँ, क्या नहीं करूँ मुझे बताओ,इस तम-शून्य में तैरती है जगत्-समीक्षाकी हुई उसकी(सह नहीं सकता)विवेक-विक्षोभ महान् उसकातम-अंतराल में (सह नहीं सकता)अँधियारे मुझमें द्युति-आकृति-साभविष्य का नक्षा दिया हुआ उसकासह नहीं सकता!!नहीं, नहीं, उसको मैं छोड़ नहीं सकूँगा,सहना पड़े—मुझे चाहे जो भले ही।कमज़ोर घुटनों को बार-बार मसल,लड़खड़ाता हुआ मैंउठता हूँ दरवाज़ा खोलने,चेहरे के रक्त-हीन विचित्र शून्य को गहरेपोंछता हूँ हाथ से,अँधेरे के ओर-छोर टटोल-टटोलकरबढ़ता हूँ आगे,पैरों से महसूस करता हूँ धरती का फैलाव,हाथों से महसूस करता हूँ दुनिया,मस्तक अनुभव करता है, आकाश,दिल में तड़पता है अँधेरे का अंदाज़,आँखें ये तथ्य को सूँघती-सी लगतीं,केवल शक्ति है स्पर्श की गहरी।आत्मा में, भीषणसत्-चित्-वेदना जल उठी, दहकी।विचार हो गए विचरण-सहचर।बढ़ता हूँ आगे,चलता हूँ सँभल-सँभलकर,द्वार टटोलता,ज़ंग-खाई, जमी हुई, जबरनसिटकनी हिलाकरज़ोर लगा, दरवाज़ा खोलताझाँकता हूँ बाहर...सूनी है राह, अजीब है फैलाव,सर्द अँधेरा।ढीली आँखों से देखते हैं विश्वउदास तारे।हर बार सोच और हर बार अफ़सोसहर बार फ़िक्रके कारण बढ़े हुए दर्द का मानो कि दूर वहाँ, दूर वहाँअँधियारा पीपल देता है पहरा।हवाओं की निःसंग लहरों में काँपतीकुत्तों की दूर-दूर अलग-अलग आवाज़,टकराती रहती सियारों की ध्वनि से।काँपती हैं दूरियाँ, गूँजते हैं फ़ासले(बाहर कोई नहीं, कोई नहीं बाहर)इतने में अँधियारे सूने में कोई चीख़ गया हैरात का पक्षीकहता है—“वह चला गया है,वह नहीं आएगा, आएगा ही नहींअब तेरे द्वार पर।वह निकल गया है गाँव में शहर में!उसको तू खोज अबउसका तू शोध कर!वह तेरी पूर्णतम परम अभिव्यक्ति,उसका तू शिष्य है (यद्यपि पलातक...)वह तेरी गुरु है,गुरु है...तीनसमझ न पाया कि चल रहा स्वप्न याजागृति शुरू है।दिया जल रहा है,पीतालोक-प्रसार में काल चल रहा हैआस-पास फैली हुई जग-आकृतियाँलगती हैं छपी हुई जड़ चित्राकृतियों-सीअलग व दूर-दूरनिर्जीव!!यह सिविल लाइंस है। मैं अपने कमरे मेंयहाँ पड़ा हुआ हूँ।आँखें खुली हुई हैं,पीटे गए बालक-सा मार खाया चेहराउदास इकहरा,स्लेट-पट्टी पर खींची गई तस्वीरभूत जैसी आकृति—क्या वह मैं हूँ?मैं हूँ?रात के दो बजे हैं,दूर-दूर जंगल में सियारों का हो-हो,पास-पास आती हुई घहराती गूँजतीकिसी रेल-गाड़ी के पहियों की आवाज़!!किसी अनपेक्षितअसंभव घटना का भयानक संदेह,अचेतन प्रतीक्षा,कहीं कोई रेल-एक्सीडेंट न हो जाए।चिंता के गणित अंकआसमानी-स्लेट-पट्टी पर चमकतेखिड़की से दीखते। ...हाय! हाय! तॉल्स्तॉयकैसे मुझे दीख गएसितारों के बीच-बीचघूमते व रुकतेपृथ्वी को देखते।शायद तॉल्स्तॉय-नुमाकोई वह आदमीऔर है,मेरे किसी भीतरी धागे की आख़िरी छोर वह,अनलिखे मेरे उपन्यास काकेंद्रीय संवेदनदबी हाय-हाय-नुमा।शायद तॉल्स्तॉय-नुमा।प्रोसेशन?निस्तब्ध नगर के मध्य-रात्रि-अँधेरे में सुनसानकिसी दूर बैंड की दबी हुई क्रमागत तान-धुन,मंद-तार उच्च-निम्न स्वर-स्वप्न,उदास-उदास ध्वनि-तरंगें हैं गंभीर,दीर्घ लहरियाँ!!गैलरी में जाता हूँ, देखता हूँ रास्तावह कोलतार-पथ अथवामरी हुई खिंची हुई कोई काली जिह्वाबिजली के द्युतिमान् दिए यामरे हुए दाँतों का चमकदार नमूना!किंतु, दूर सड़क के उस छोरशीत-भरे थर्राते तारों के अँधियारे तल मेंनील तेज-उद्भासपास-पास पास-पासआ रहा इस ओर!दबी हुई गंभीर स्वर-स्वप्न-तरंगें,शत-ध्वनि-संगम-संगीतउदास तान-धुनसमीप आ रहा!!और, अबगैस-लाइट-पाँतों की बिंदुएँ छिटकीं,बीचो-बीच उनकेसाँवले जुलूस-सा क्या-कुछ दीखता!!और अब गैस-लाइट-निलाई में रँगे हुए अपार्थिव चेहरे,बैंड-दल,उनके पीछे काले-काले बलवान् घोड़ों का जत्थादीखता,घना व डरावना अवचेतन हीजुलूस में चलता।क्या शोभा-यात्राकिसी मृत्यु-दल की?अजीब!!दोनों ओर, नीली गैस-लाइट-पाँतरही जल, रही जल।नींद में खोए हुए शहर की गहन अवचेतना मेंहलचल, पाताली तल मेंचमकदार साँपों की उड़ती हुई लगातारलकीरों की वारदात!!सब सोए हुए हैं।लेकिन, मैं जाग रहा, देख रहारोमांचकारी वह जादुई करामात!!विचित्र प्रोसेशन,गंभीर क्विक मार्च...कलाबत्तूवाला काला ज़रीदार ड्रेस पहनेचमकदार बैंड-दल—अस्थि-रूप, यकृत-स्वरूप, उदर-आकृतिआँतों के जालों से, बाजे वे दमकते हैं भयंकरगंभीर गीत-स्वप्न-तरंगेंउभारते रहते,ध्वनियों के आवर्त मँडराते पथ पर।बैंड के लोगों के चेहरेमिलते हैं मेरे देखे हुओं-से,लगता है उनमें कई प्रतिष्ठित पत्रकारइसी नगर के!!बड़े-बड़े नाम अरे कैसे शामिल हो गए इस बैंड-दल में!उनके पीछे चल रहासंगीन नोकों का चमकता जंगल,चल रही पदचाप, ताल-बद्ध दीर्घ पाँतटैंक-दल, मोर्टार, ऑर्टिलरी, सन्नद्ध,धीरे-धीरे बढ़ रहा जुलूस भयावना,सैनिकों के पथराए चेहरेचिढ़े हुए, झुलसे हुए, बिगड़े हुए, गहरे!शायद, मैंने उन्हें पहले भी तो कहीं देखा था।शायद, उनमें मेरे कई परिचित!!उनके पीछे यह क्या!!कैवेलरी!काले-काले घोड़ों पर ख़ाकी मिलिट्री ड्रेस,चेहरे का आधा भाग सिंदूरी-गेरुआआधा भाग कोलतारी भैरव,आबदार!!कंधे से कमर तक कारतूसी बेल्ट है तिरछा।कमर में, चमड़े के कवर में पिस्तौल,रोष-भरी एकाग्रदृष्टि में धार है,कर्नल, ब्रिगेडियर, जनरल, मॉर्शलकई और सेनापति सेनाध्यक्षचेहरे वे मेरे जाने-बूझे-से लगते,उनके चित्र समाचारपत्रों में छपे थे,उनके लेख देखे थे,यहाँ तक कि कविताएँ पढ़ी थींभई वाह!उनमें कई प्रकांड आलोचक, विचारक, जगमगाते कवि-गणमंत्री भी, उद्योगपति और विद्वान्यहाँ तक कि शहर का हत्यारा कुख्यातडोमी जी उस्तादबनता है बलबनहाय, हाय!!यहाँ ये दीखते हैं भूत-पिशाच-काय।भीतर का राक्षसी स्वार्थ अबसाफ़ उभर आया है,छिपे हुए उद्देश्ययहाँ निखर आए हैं,यह शोभा-यात्रा है किसी मृत-दल की।विचारों की फिरकी सिर में घूमती है।इतने में प्रोसेशन में से कुछ मेरी ओरआँखें उठीं मेरी ओर-भर,हृदय में मानो की संगीन नोकें ही घुस पड़ीं बर्बर,सड़क पर उठ खड़ा हो गया कोई शोर—“मारो गोली, दाग़ो स्साले को एकदमदुनिया की नज़रों से हटकरछिपे तरीक़े सेहम जा रहे थे किआधी रात—अँधेरे में उसनेदेख लिया हमकोव जान गया वह सबमार डालो, उसको ख़त्म करो एकदम”रास्ते पर भाग-दौड़ धका-पेल!!गैलरी से भागा मैं पसीने से शराबोर!!एकाएक टूट गया स्वप्न व छिन्न-भिन्न हो गएसब चित्रजागते में फिर से याद आने लगा वह स्वप्न,फिर से याद आने लगे अँधेरे में चेहरे,और, तब मुझे प्रतीत हुआ भयानकगहन मृतात्माएँ इसी नगर कीहर रात जुलूस में चलतीं,परंतु, दिन मेंबैठती हैं मिलकर करती हुई षड्यंत्रविभिन्न दफ़्तरों-कार्यालयों, केंद्रों में, घरों में।हाय, हाय! मैंने उन्हें देख लिया नंगा,इसकी मुझे और सज़ा मिलेगी।चारअकस्मात्चार का ग़जर कहीं खड़का,मेरा दिल धड़का,उदास मटमैला मनरूपी वल्मीकचल-बिचल हुआ सहसा।अगिनत काली-काली हायफ़न-डैशों की लीकेंबाहर निकल पड़ीं, अंदर घुस पड़ीं भयभीत,सब ओर बिखराव।मैं अपने कमरे में यहाँ लेटा हुआ हूँ।काले-काले शहतीर छत केहृदय दबोचते।यद्यपि आँगन में नल जोर मारता,जल खखारता।किंतु, न शरीर में बल हैअँधेरे में गल रहा दिल यह।एकाएक मुझे भान होता है जग का,अख़बारी दुनिया का फैलाव,फँसाव, घिराव, तनाव है सब ओर,पत्ते न खड़के,सेना ने घेर ली हैं सड़कें।बुद्धि की मेरी रगगिनती है समय की धक्-धक्।यह सब क्या है?किसी जन-क्रांति के दमन-निमित्त यहमॉर्शल-लॉ है!दम छोड़ रहे हैं भाग गलियों में मरे पैर,साँस लगी हुई है,ज़माने की जीभ निकल पड़ी है,कोई मेरा पीछा कर रहा है लगातार।भागता मैं दम छोड़,घूम गया कोई मोड़,चौराहा दूर से ही दीखता,वहाँ शायद कोई सैनिक पहरेदारनहीं होगा फ़िलहाल।दीखता है सामने ही अंधकार-स्तूप-साभयंकर बरगद—सभी उपेक्षितों, समस्त वंचितों,ग़रीबों का वही घर, वही छत,उसके ही तल-खोह-अँधेरे में सो रहेगृह-हीन कई प्राण।अँधेरे में डूब गएडालों में लटके जो मटमैले चिथड़ेकिसी एक अति दीनपागल के धन वे।हाँ, वहाँ रहता है, सिर-फिरा एक जन।किंतु, आज इस रात बात अजीब है।वही जो सिर-फिरा पागल क़तई थाआज एकाएक वहजागरित बुद्धि है, प्रज्वलत् धी है।छोड़ सिर-फिरा पवन,बहुत ऊँचे गले से,गा रहा कोई पद, कोई गानआत्मोद्बोधमय!!ख़ूब भई, ख़ूब भई,जानता क्या वह भी किसैनिक प्रशासन है नगर में वाक़ई!क्या उसकी बुद्धि भी जग गई!(करुण रसाल वे हृदय के स्वर हैंगद्यानुवाद यहाँ उनका दिया जा रहा)ओ मेरे आदर्शवादी मन,ओ मेरे सिद्धांतवादी मन,अब तक क्या किया?जीवन क्या जिया!!उदरंभरि बन अनात्म बन गए,भूतों की शादी में क़नात-से तन गए,किसी व्यभिचारी के बन गए बिस्तर,दुःखों के दाग़ों को तमग़ों-सा पहना,अपने ही ख़्यालों में दिन-रात रहना,असंग बुद्धि व अकेले में सहना,ज़िंदगी निष्क्रिय बन गई तलघर,अब तक क्या किया,जीवन क्या जिया!!बताओ तो किस-किसके लिए तुम दौड़ गए,करुणा के दृश्यों से हाय! मुँह मोड़ गए,बन गए पत्थर,बहुत-बहुत ज़्यादा लिया,दिया बहुत-बहुत कम,मर गया देश, अरे, जीवित रह गए तुम!!लो-हित-पिता को घर से निकाल दिया,जन-मन-करुणा-सी माँ को हंकाल दिया,स्वार्थों के टेरियार कुत्तों को पाल लिया,भावना के कर्तव्य-त्याग दिए,हृदय के मंतव्य—मार डाले!बुद्धि का भाल ही फोड़ दिया,तर्कों के हाथ उखाड़ दिए,जम गए, जाम हुए, फँस गए,अपने ही कीचड़ में धँस गए!!विवेक बघार डाला स्वार्थों के तेल मेंआदर्श खा गए!अब तक क्या किया,जीवन क्या जिया,ज़्यादा लिया और दिया बहुत-बहुत कममर गया देश, अरे, जीवित रहे गए तुम...मेरा सिर गरम है,इसीलिए भरम है।सपनों में चलता है आलोचन,विचारों के चित्रों की अवलि में चिंतन।निजत्व-माफ़ है बेचैन,क्या करूँ, किससे कहूँ,कहाँ जाऊँ, दिल्ली या उज्जैन?वैदिक ऋषि शुनःशेप केशापभ्रष्ट पिता अजीगर्त के समान ही व्यक्तित्व अपना ही, अपने से खोया हुआवही उसे अकस्मात् मिलता था रात मेंपागल था दिन मेंसिर-फिरा विक्षिप्त मस्तिष्क।हाय, हाय!उसने भी यह क्या गा दिया,यह उसने क्या नया ला दिया,प्रत्यक्ष,मैं खड़ा हो गयाकिसी छाया मूर्ति-सा समक्ष स्वयं केहोने लगी बहस औरलगने लगे परस्पर तमाचे।छिः पागलपन है,वृथा आलोचन है।गलियों में अंधकार भयावह—मानो मेरे कारण ही लग गयामॉर्शल-लॉ वह,मानो मेरी निष्क्रिय संज्ञा ने संकट बुलाया,मानो मेरे कारण ही दुर्घटहुई यह घटना।चक्र से चक्र लगा हुआ है...जितना ही तीव्र है द्वंद्व क्रियाओं घटनाओं काबाहरी दुनिया में,उतनी ही तेज़ी से भीतरी दुनिया में,चलता है द्वंद्व किफ़िक्र से फ़िक्र लगी हुई है।आज उस पागल ने मेरी चैन भुला दी,मेरी नींद गँवा दी।मैं इस बरगद के पास खड़ा हूँ।मेरा यह चेहराघुलता है जाने किस अथाह गंभीर, साँवले जल से,झुके हुए गुमसुम टूटे हुए घरों केतिमिर अतल सेघुलता है मन यह।रात्रि के श्यामल ओस से क्षालित कोई गुरु-गंभीर महान् अस्तित्वमहकता है लगातारमानो खंडहर-प्रसारों में उद्यानगुलाब-चमेली के, रात्रि-तिमिर में,महकते हों, महकते ही रहते हों हर पल।किंतु वे उद्यान कहाँ हैं,अँधेरे में पता नहीं चलता।मात्र सुगंध है सब ओर,पर, उस महक—लहर मेंकोई छिपी वेदना, कोई गुप्त चिंताछटपटा रही है।पाँचएकाएक मुझे भान!!पीछे से किसी अजनबी नेकंधे पर हाथ रखाचौंकता मैं भयानकएकाएक थरथर रेंग गई सिर तक,नहीं, नहीं। ऊपर से गिरकरकंधे पर बैठ गया बरगद-पात एक,क्या वह संकेत, क्या वह इशारा?क्या वह चिट्ठी है किसी की?कौन-सा इंगित?भागता मैं दम छोड़,घूम गया कई मोड़!!बंदूक़ धाँय-धाँयमकानों के ऊपर प्रकाश-सा छा गया गेरुआ।भागता मैं दम छोड़घूम गया कई मोड़।घूम गई पृथ्वी, घूम गया आकाश,और फिर, किसी एक मुँदे हुए घर कीपत्थर, सीढ़ी दिख गई, उस पारचुपचाप बैठ गया सिर पकड़कर!!दिमाग़ में चक्कर,चक्कर... भँवरेंभँवरों के गोल-गोल केंद्र में दीखास्वप्न सरीखा—भूमि की सतहों के बहुत-बहुत नीचेअँधियारी एकांतप्राकृत गुहा एक।विस्तृत खोह के साँवले तल मेंतिमिर को भेदकर चमकते हैं पत्थरमणि तेजस्क्रिय रेडियो-ऐक्टिव रत्न भी बिखरे,झरता है जिन पर प्रबल प्रपात एक।प्राकृत जल वह आवेग-भरा है,द्युतिमान् मणियों की अग्नियों पर सेफिसल-फिसलकर बहती लहरें,लहरों के तल में से फूटती हैं किरनेंरत्नों की रंगीन रूपों की आभाफूट निकलतीखोह की बेडौल भीतें हैं झिलमिल!पाता हूँ निज को खोह के भीतर,विलुब्ध नेत्रों से देखता हूँ द्युतियाँ,मणि तेजस्क्रिय हाथों में लेकरविभोर आँखों से देखता हूँ उनको—पाता हूँ अकस्मात्दीप्ति में वलयित रत्न वे नहीं हैंअनुभव, वेदना, विवेक-निष्कर्ष,मेरे ही अपने यहाँ पड़े हुए हैंविचारों की रक्तिम अग्नि के मणि वेप्राण-जल-प्रपात में घुलते हैं प्रतिपलअकेले में किरणों की गीली है हलचलगीली है हलचल!!छहहाय, हाय! मैंने उन्हें गुहा-वास दे दियालोक-हित क्षेत्र से कर दिया वंचितजनोपयोग से वर्जित किया औरनिषिद्ध कर दियाखोह में डाल दिया!!वे ख़तरनाक थे,(बच्चे भीख माँगते) ख़ैर...यह न समय है,जूझना ही तै है।सीन बदलता है,सुनसान चौराहा साँवला फैला,बीच में वीरान गेरुआ घंटाघर,ऊपर कत्थई बुज़ुर्ग गुंबद,साँवली हवाओं में काल टहलता है।रात में पीले हैं चार घड़ी-चेहरे,मिनिट के काँटों की चार अलग गतियाँ,चार अलग कोण,कि चार अलग संकेत,(मनस् में गतिमान् चार अलग मतियाँ)खंभों पर बिजली की गरदनें लटकीं,शर्म से जलते हुए बल्बों के आस-पासबेचैन ख़्यालों के पंखों के कीड़ेउड़ते हैं गोल-गोलमचल-मचलकर।घंटाघर तले हीपंखों के टुकड़े बीट व तिनके।गुंबद-विवर में बैठे हुए बूढ़ेअसंभव पक्षीबहुत तेज़ नज़रों से देखते हैं सब ओर,मानो कि इरादेभयानक चमकते।सुनसान चौराहा,बिखरी हैं गतियाँ, बिखरी है रफ़्तार,गश्त में घूमती है कोई दुष्ट इच्छा।भयानक सिपाही जाने किस थकी हुई झोंक मेंअँधेरे में सुलगाता सिगरेट अचानकताँबे से चेहरे की ऐंठ झलकती।पथरीली सलवटदियासलाई की पल-भर लौ मेंसाँप-सी लगती।पर, उसके चेहरे का रंग बदलता है हर बार,मानो अनपेक्षित कहीं न कुछ हो...वह ताक रहा है—संगीन नोकों पर टिका हुआसाँवला बंदूक़-जत्थागोल त्रिकोण एक बनाए खड़ा जोचौक के बीच में!!एक ओरटैंकों का दस्ता भी खड़े-खड़े ऊँघता,परंतु अड़ा है!!भागता मैं दम छोड़,घूम गया कई मोड़।भागती है चप्पल, चटपट आवाज़चाँटों-सी पड़ती।पैरों के नीचे का कीच उछलकरचेहरे पर, छाती पर पड़ता है सहसा,ग्लानि की मितली।गलियों का गोल-गोल खोह-अँधेराचेहरे पर, आँखों पर करता है हमला।अजीब उमस-बासगलियों का रुँधा हुआ उच्छ्वासभागता हूँ दम छोड़,घूम गया कई मोड़।धुँधले से आकार कहीं-कहीं दीखते,भय के? या घर के? कह नहीं सकताआता है अकस्मात् कोलतार-रास्तालंबा व चौड़ा व स्याह व ठंडा,बेचैन आँखें ये देखती हैं सब ओर।कहीं कोई नहीं है,नहीं कहीं कोई भी।श्याम आकाश में, संकेत-भाषा-सी तारों की आँखेंचमचमा रही हैं।मेरा दिल ढिबरी-सा टिमटिमा रहा है।कोई मुझे खींचता है रास्ते के बीच ही।जादू से बँधा हुआ चल पड़ा उस ओर।सपाट सूने में ऊँची-सी खड़ी जोतिलक की पाषाण-मूर्ति है निःसंगस्तब्ध जड़ीभूत...देखता हूँ उसको परंतु, ज्यों ही मैं पास पहुँचतापाषाण-पीठिका हिलती-सी लगतीअरे, अरे, यह क्या!!कण-कण काँप रहे जिनमें से झरतेनीले इलेक्ट्रॉनसब ओर गिर रही हैं चिनगियाँ नीलीमूर्ति के तन से झरते हैं अंगार।मुस्कान पत्थरी होंठों पर काँपी,आँखों में बिजली के फूल सुलगते।इतने में यह क्या!!भव्य ललाट की नासिका में सेबह रहा ख़ून न जाने कब सेलाल-लाल गरमीला रक्त टपकता(ख़ून के धब्बों से भरा अँगरखा)मानो कि अतिशय चिंता के कारणमस्तक-कोष ही फूट पड़े सहसामस्तक-रक्त ही बह उठा नासिका में से।हाय, हाय, पितः पितः ओ,चिंता में इतने न उलझोहम अभी ज़िंदा हैं ज़िंदा,चिंता क्या है!!मैं उस पाषाण-मूर्ति के ठंडेपैरों की छाती से बरबस चिपकारुआँसा-सा होतादेह में तन गए करुणा के काँटेछाती पर, सिर पर, बाँहों पर मेरेगिरती हैं नीलीबिजली की चिनगियाँरक्त टपकता है हृदय में मेरेआत्मा में बहता-सा लगताख़ून का तालाब।इतने में छाती में भीतर ठक्-ठक्सिर में है धड़-धड़!! कट रही हड्डी!!फ़िक्र ज़बरदस्त!!विवेक चलाता तीखा-सा रंदाचल रहा बसूलाछीले जा रहा मेरा यह निजत्व ही कोईभयानक ज़िद कोई जाग उठी मेरे भी अंदरहठ कोई बड़ा भारी उठ खड़ा हुआ है।इतने में आसमान काँपा व धाँय-धाँयबंदूक़-धड़ाकाबिजली की रफ़्तार पैरों में घूम गई।खोहों-सी गलियों के अँधेरे में एक ओरमैं थक बैठ गया,सोचने-विचारने।अँधेरे में डूबे मकानों के छप्परों पार सेरोने की पतली-सी आवाज़सूने में काँप रही काँप रही दूर तककराहों की लहरों में पाशव प्राकृतवेदना भयानक थरथरा रही है।मैं उसे सुनने का करता हूँ यत्नकि देखता क्या हूँ—सामने मेरेसर्दी में बोरे को ओढ़करकोई एक अपनेहाथ-पैर समेटेकाँप रहा, हिल रहा—वह मर जाएगा।इतने में वह सिर खोलता है सहसाबाल बिखरते,दीखते हैं कान किफिर मुँह खोलता है, वह कुछबुदबुदा रहा है,किंतु, मैं सुनता ही नहीं हूँ।ध्यान से देखता हूँ—वह कोई परिचितजिसे ख़ूब देखा था, निरखा था कई बारपर, पाया नहीं था।अरे हाँ, वह तो...विचार उठते ही दब गए,सोचने का साहस सब चला गया है।वह मुख—अरे, वह मुख, वे गाँधी जी!!इस तरह पंगु!!आश्चर्य!!नहीं, नहीं वे जाँच-पड़तालरूप बदलकर करते हैं चुपचाप।सुराग़ रसी-सी कुछ।अँधेरे की स्याही में डूबे हुए देव को सम्मुख पाकरमैं अति दीन हो जाता हूँ पास किबिजली का झटकाकहता है—“भाग जा, हट जाहम हैं गुज़र गए ज़माने के चेहरेआगे तू बढ़ जा।”किंतु, मैं देखा किया उस मुख को।गंभीर दृढ़ता की सलवटें वैसी ही,शब्दों में गुरुता।वे कह रहे हैं—“दुनिया न कचरे का ढेर कि जिस परदानों को चुगने चढ़ा हुआ कोई भी कुक्कुटकोई भी मुरग़ायदि बाँग दे उठे ज़ोरदारबन जाए मसीहा” वे कह रहे हैं—“मिट्टी के लोंदे में किरगीले कण-कणगुण हैं,जनता के गुणों से ही संभवभावी का उद्भव...”गंभीर शब्द वे और आगे बढ़ गए,जाने क्या कह गए!!मैं अति उद्विग्न!एकाएक उठ पड़ा आत्मा का पिंजरमूर्ति की ठठरी।नाक पर चश्मा, हाथ में डंडा,कंधे पर बोरा, बाँह में बच्चा।आश्चर्य! अद्भुत! यह शिशु कैसे!!मुस्कुरा उस द्युति-पुरुष ने कहा तब—“मेरे पास चुपचाप सोया हुआ यह था।सँभालना इसको, सुरक्षित रखना”मैं कुछ कहने को होता हूँ इतने में वहाँ परकहीं कोई नहीं है, कहीं कोई नहीं है :और ज़्यादा गहरा व और ज़्यादा अकेलाअँधेरे का फैलाव!बालक लिपटा है मेरे इस गले से चुपचाप,छाती से कंधे से चिपका है नन्हा-सा आकाशस्पर्श है सुकुमार प्यार-भरा कोमल,किंतु है भार का गंभीर अनुभव।भावी की गंध और दूरियाँ अँधेरीआकाशी तारों के साथ लिए हुए मैंचला जा रहा हूँघुसता ही जाता हूँ फ़ासलों की खोहों की तहों में।सहसा रो उठा कंधे पर वह शिशुअरे, अरे वह स्वर अतिशय परिचित!!पहले भी कई बार कहीं तो भी सुना था,उसमें तो स्फोटक क्षोभ का आएगा,गहरी है शिकायत,क्रोध भयंकर।मुझे डर यदि कोई वह स्वर सुन लेहम दोनों फिर कहीं नहीं रह सकेंगे।मैं पुचकारता हूँ, बहुत दुलारता,समझाने के लिए तब गाता हूँ गाने,अधभूली लोरी ही होंठों से फूटती!मैं चुप करने की जितनी भी करता हूँ कोशिश,और-और चीख़ता है क्रोध से लगातार!!गरम-गरम अश्रु टपकते हैं मुझ पर।किंतु, न जाने क्यों ख़ुश बहुत हूँ।जिसको न मैं इस जीवन में कर पाया,वह कर रहा है।मैं शिशु-पीठ को थपथपा रहा हूँ।आत्मा है गीली।पैर आगे बढ़ रहे, मन आगे जा रहा।डूबता हूँ मैं किसी भीतरी सोच में—हृदय के थाले में रक्त का तालाब,रक्त में डूबी हैं द्युतिमान् मणियाँ,रुधिर से फूट रहीं लाल-लाल किरणें,अनुभव-रक्त में डूबे हैं संकल्प,और ये संकल्पचलते हैं साथ-साथ।अँधियारी गलियों में चला जा रहा हूँ।इतने में पाता हूँ अँधेरे में सहसाकंधे पर कुछ नहीं!!वह शिशुचला गया जाने कहाँ,और अब उसके ही स्थान परमात्र हैं सूरज-मुखी-फूल-गुच्छे।उन स्वर्ण-पुष्पों से प्रकाश-विकीरणकंधों पर, सिर पर, गालों पर, तन पर,रास्ते पर, फैले हैं किरणों के कण-कण।भई वाह, यह ख़ूब!!इतने में गली एक आ गई और मैंदरवाज़ा खुला हुआ देखता।ज़ीना है अँधेरा।कहीं कोई ढिबरी-सी टिमटिमा रही है!मैं बढ़ रहा हूँकंधों पर फूलों के लंबे वे गुच्छेक्या हुए, कहाँ गए?कंधे क्यों वज़न से दुख रहे सहसा।ओ हो,बंदूक़ आ गईवाह वा...!!वज़नदार रॉयफ़ल,भई ख़ूब!!खुला हुआ कमरा है साँवली हवा है,झाँकते हैं खिड़कियों में से दूर अँधेरे में टँके हुए सितारेफैली है बर्फ़ीली साँस-सी वीरान,तितर-बितर सब फैला है सामान।बीच में कोई ज़मीन पर पसरा,फैलाए बाँहें, ढह पड़ा, आख़िर।मैं उस जन पर फैलाता टॉर्च कि यह क्या—ख़ून-भरे बाल में उलझा है चेहरा,भौंहों के बीच में गोली का सूराख़,ख़ून का परदा गालों पर फैला,होंठों पर सूखी है कत्थई धारा,फूटा है चश्मा, नाक है सीधी,ओफ़्फ़ो!! एकांत-प्रिय यह मेरापरिचित व्यक्ति है, वहीं, हाँ,सचाई थी सिर्फ़ एक अहसासवह कलाकार थागलियों के अँधेरे का, हृदय में, भार थापर, कार्य क्षमता से वंचित व्यक्ति,चलाता था अपना असंग अस्तित्व।सुकुमार मानवीय हृदयों के अपनेशुचितर विश्व के मात्र थे सपने।स्वप्न व ज्ञान व जीवनानुभव जो—हलचल करता था रह-रह दिल मेंकिसी को भी दे नहीं पाया था वह तो।शून्य के जल में डूब गया नीरवहो नहीं पाया उपयोग उसका।किंतु, अचानक झोंक में आकर क्या कर गुज़रा किसंदेहास्पद समझा गया औरमारा गया वह बधिकों के हाथों।मुक्ति का इच्छुक तृषार्त अंतरमुक्ति के यत्नों के साथ निरंतरसबका था प्यारा।अपने में द्युतिमान्।उनका यों वध हुआ,मर गया एक युग,मर गया एक जीवनादर्श!!इतने में मुझको ही चिढ़ाता है कोई।सवाल है—मैं क्या करता था अब तक,भागता फिरता था सब ओर।(फ़िज़ूल है इस वक़्त कोसना ख़ुद को)एकदम ज़रूरी-दोस्तों को खोजूँपाऊँ मैं नए-नए सहचरसकर्मक सत्-चित् वेदना-भास्कर!!ज़ीने से उतरा,एकाएक विद्रूप रूपों से घिर गया सहसापकड़ मशीन-सी,भयानक आकार घेरते हैं मुझको,मैं आततायी-सत्ता के सम्मुख।एकाएक हृदय धड़ककर रुक गया, क्या हुआ!!भयानक सनसनी।पकड़कर कॉलर गला दबाया गया।चाँटे से कनपटी टूटी कि अचानकत्वचा उखड़ गई गाल की पूरी।कान में भर गईभयानक अनहद-नाद की भनभन।आँखों में तैरींरक्तिम तितलियाँ, चिनगियाँ नीली।सामने उगते-डूबते धुँधलेकुहरिल वर्तुल,जिनका कि चक्रिल केंद्र ही फैलता जाताउस फैलाव में दीखते मुझकोधँस रहे, गिर रहे बड़े-बड़े टॉवरघुँघराला धुआँ, गेरुआ ज्वाला।हृदय में भगदड़—सम्मुख दीखाउजाड़ बंजर टीले पर सहसारो उठा कोई, रो रहा कोईभागता कोई सहायता देने।अंतर्तत्त्वों का पुनःप्रबंध और पुनर्व्यवस्थापुनर्गठन-सा होता जा रहा।दृश्य ही बदला, चित्र बदल गयाजबरन ले जाया गया मैं गहरेअँधियारे कमरे के स्याह सिफ़र में।टूटे-से स्टूल पर बिठाया गया हूँ।शीश की हड्डी जा रही तोड़ी।लोहे की कील पर बड़े हथौड़ेपड़ रहे लगातार।शीश का मोटा अस्थि-कवच ही निकाल डालादेखा जा रहा—मस्तक-यंत्र में कौन विचारों की कौन-सी ऊर्जा,कौन-सी शिरा में कौन-सी धक्-धक्,कौन-सी रग में कौन-सी फुरफुरी,कहाँ है पश्यत् कैमरा जिसमेंतथ्यों के जीवन-दृश्य उतरते,कहाँ-कहाँ सच्चे सपनों के आशयकहाँ-कहाँ क्षोभक-स्फोटक सामान!भीतर कहीं पर गड़े हुए गहरेतलघर अंदरछिपे हुए प्रिंटिंग प्रेस को खोजोजहाँ कि चुपचाप ख़्यालों के परचेछपते रहते हैं, बाँटे जाते।इस संस्था के सेक्रेटरी को खोज निकालो,शायद, उसका ही नाम हो आस्था,कहाँ है सरगना इस टुकड़ी काकहाँ है आत्मा?(और, मैं सुनता हूँ चिढ़ी हुई ऊँचीखिझलाई आवाज़)स्क्रीनिंग करो—मिस्टर गुप्ता,क्रॉस एक्ज़ामिन हिम थॉरोली!!चाबुक-चमकारपीठ पर यद्यपिउखड़े चर्म की कत्थई-रक्तिम रेखाएँ उभरींपर, यह आत्मा कुशल बहुत है,देह में रेंग रही संवेदना की गरमीली कड़ुई धारा को गहरीझनझन थरथर तारों को उसके,समेटकर वह सबवेदना-विस्तार करके इकट्ठामेरा मन यहज़बरन उनकी छोटी-सी कड्ढीगठान बाँधता सख़्त व मज़बूतमानो कि पत्थर।ज़ोर लगाकर,उसी गठन को हथेलियों सेकरता है चूर-चूर,धूल में बिखरा देता है उसको।मन यह हटता है देह की हद सेजाता है कहीं पर अलग जगत् में।विचित्र क्षण है,सिर्फ़ है जादू,मात्र मैं बिजलीयद्यपि खोह में खूँटे बँधा हूँ,दैत्य है आस-पासफिर भी बहुत दूर मीलों के पार वहाँगिरता हूँ चुपचाप पत्र के रूप मेंकिसी एक जेब मेंवह जेब...किसी एक फटे हुए मन की।समस्वर, समताल,सहानुभूति की सनसनी कोमल!!हम कहाँ नहीं हैंसभी जगह हम।निजता हमारी?भीतर-भीतर बिजली के जीविततारों के जाले,ज्वलंत तारों की भीषण गुत्थी,बाहर-बाहर धूल-सी भूरीज़मीन की पपड़ी।अग्नि को लेकर, मस्तक हिमवत्,उग्र प्रभंजन लेकर, उर यहबिल्कुल निश्चल।भीषण शक्ति को धारण करकेआत्मा का पोशाक दीन व मैला।विचित्र रूपों को धारण करकेचलता है जीवन, लक्ष्यों के पथ पर।सातरिहा!!छोड़ दिया गया मैं,कई छाया-मुख अब करते हैं पीछा,छायाकृतियाँ न छोड़ती हैं मुझको,जहाँ-जहाँ गया वहाँभौंहों के नीचे के रहस्यमय छेदमारते हैं संगीन—दृष्टि की पत्थरी चमक है पैनी।मुझे अब खोजने होंगे साथी—काले गुलाब व स्याह सिवंती,श्याम चमेली,सँवलाए कमल जो खोहों के जल मेंभूमि के भीतर पाताल-तल मेंखिले हुए कब से भेजते हैं संकेतसुझाव-संदेश भेजते रहते!!इतने में सहसा दूर क्षितिज परदीखते हैं मुझकोबिजली की नंगी लताओं से भर रहेसफ़ेद नीले मोतिया चंपई फूल गुलाबीउठते हैं वहीं पर हाथ अकस्मात्अग्नि के फूलों को समेटने लगते।मैं उन्हें देखने लगता हूँ एकटक,अचानक विचित्र स्फूर्ति से मैं भीज़मीन पर पड़े हुए चमकीले पत्थरलगातार चुनकरबिजली के फूल बनाने की कोशिशकरता हूँ। रश्मि-विकीरण—मेरे भी प्रस्तर करते हैं प्रतिक्षण।रेड़ियो-ऐक्टिव रत्न हैं वे भी।बिजली के फूलों की भाँति हीयत्न हैं वे भी,किंतु, असंतोष मुझको है गहरा,शब्दाभिव्यक्ति-अभाव का संकेत।काव्य-चमत्कार उतना ही रंगीनपरंतु, ठंडा।मेरे भी फूल हैं तेजस्क्रिय, परअतिशय शीतल।मुझको तो बेचैन बिजली की नीलीज्वलंत बाँहों में बाँहों को उलझाकरनी है उतनी ही प्रदीप्त लीलाआकाश-भर में साथ-साथ उसके घूमना है मुझकोमेरे पास न रंग है बिजली का गौर किभीमाकार हूँ मेघ मैं कालापरंतु, मुझको है गंभीर आवेशअथाह प्रेरणा-स्रोत का संयम।अरे, इन रंगीन पत्थर-फूलों से मेराकाम नहीं चलेगा!!क्या कहूँ,मस्तक-कुंड में जलतीसत्-चित्-वेदना-सचाई व ग़लती—मस्तक शिराओं में तनाव दिन-रात।अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरेउठाने ही होंगे।तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब।पहुँचना होगा दुर्गम पहाड़ों के उस पारतब कहीं देखने मिलेंगी बाँहेंजिसमें कि प्रतिपल काँपता रहताअरुण कमल एकले जाने उसको धँसना ही होगाझील के हिम-शीत सुनील जल मेंचाँद उग आया हैगलियों की आकाशी लंबी-सी चीर मेंतिरछी है किरनों की मारउस नीम परजिसके कि नीचेमिट्टी के गोल चबूतरे पर, नीलीचाँदनी में कोई दिया सुनहलाजलता है मानो कि स्वप्न ही साक्षात्अदृश्य साकार।मकानों के बड़े-बड़े खंडहर जिनके कि सूनेमटियाले भागों में खिलती ही रहतीमहकती रातरानी फूल-भरी जवानी में लज्जिततारों की टपकती अच्छी न लगती।भागता मैं दम छोड़,घूम गया कई मोड़,ध्वस्त दीवालों के उस पार कहीं परबहस गरम हैदिमाग़ में जान है, दिलों में दम हैसत्य से सत्ता के युद्ध को रंग है,पर, कमज़ोरियाँ सब मेरे संग हैं,पाता हूँ सहसा—अँधेरे की सुरंग-गलियों में चुपचापचलते हैं लोग-बागदृढ़-पद गंभीर,बालक युवागणमंद-गति नीरवकिसी निज भीतरी बात में व्यस्त हैं,कोई आग जल रही तो भी अंत:स्थ।विचित्र अनुभव!!जितना मैं लोगों की पाँतों को पार करबढ़ता हूँ आगे,उतना ही पीछे मैं रहता हूँ अकेला,पश्चात्-पद हूँ।पर, एक रेला औरपीछे से चला औरअब मेरे साथ है।आश्चर्य! अद्भुत!!लोगों की मुट्ठियाँ बँधी हैं।अँगुली-संधि से फूट रहीं किरनेंलाल-लालयह क्या!!मेरे ही विक्षोभ-मणियों को लिए वे,मेरे ही विवेक-रत्नों को लेकर,बढ़ रहे लोग अँधेरे में सोत्साह।किंतु मैं अकेला।बौद्धिक जुगाली में अपने से दुकेला।गलियों के अँधेरे में मैं भाग रहा हूँ,इतने से चुपचाप कोई एकदे जाता पर्चा,कोई गुप्त शक्तिहृदय में करने-सी लगती है चर्चा!!मैं बहुत ध्यान से पढ़ता हूँ उसकोआश्चर्य!उसमें तो मेरे ही गुप्त विचार वदबी हुई संवेदनाएँ व अनुभवपीड़ाएँ जगमगा रही हैं।यह सब क्या है!आसमान झाँकता है लकीरों के बीच-बीचवाक्यों की पाँतों में आकाशगंगा-सी फैलीशब्दों के व्यूहों में ताराएँ चमकींतारक-दलों में भी खिलता है आँगनजिसमें कि चंपा के फूल चमकते।शब्दाकाशों के कानों में गहरे तुलसी के श्यामल खिलते हैंचेहरे!!चमकता है आशय मनोज्ञ मुखों सेपारिजात-पुष्प महकते।पर्चा पढ़ते हुए उड़ता हूँ हवा में,चक्रवात-गतियों में घूमता हूँ नभ पर,ज़मीन पर एक साथसर्वत्र सचेत उपस्थित।प्रत्येक स्थान पर लगा हूँ मैं काम में,प्रत्येक चौराहे, दुराहे व राहों के मोड़ परसड़क पर खड़ा हूँ,मनाता हूँ, मानता हूँ, मनवाता अड़ा हूँ!!और तब दिक्काल-दूरियाँअपने ही देश के नक्शे-सी टँगी हुईरँगी हुई लगतीं!!स्वप्नों की कोमल किरनें कि मानोघनीभूत संघनित द्युतिमान्शिलाओं में परिणतये सब दृढ़ीभूत कर्म-शिलाएँ हैंजिनसे कि स्वप्नों की मूर्ति बनेगीसस्मित सुखकरजिसकी कि किरनें,ब्रह्मांड-भर में नापेंगी सब कुछ!सचमुच, मुझको तो ज़िंदगी-सरहदसूर्यों के प्रांगण पार भी जाती-सी दीखती!!मैं परिणत हूँ,कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँवर्तमान समाज में चल नहीं सकता।पूँजी से जुड़ा हुआ हृदय बदल नहीं सकता,स्वातन्त्र्य व्यक्ति का वादीछल नहीं सकता मुक्ति के मन को,जन को।आठएकाएक हृदय धड़ककर रुक गया, क्या हुआ!!नगर में भयानक धुआँ उठ रहा है,कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई।सड़कों पर मरा हुआ फैला है सुनसान,हवाओं में अदृश्य ज्वाला की गरमीगरमी का आवेग।साथ-साथ घूमते हैं, साथ-साथ रहते हैं,साथ-साथ सोते हैं, खाते हैं, पीते हैं,जन-मन उद्देश्य!!पथरीले चेहरों के ख़ाकी ये कसे ड्रेसघूमते हैं यंत्रवत्,वे पहचाने-से लगते हैं वाक़ईकहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई!!सब चुप, साहित्यिक चुप और कविजन निर्वाक्चिंतक, शिल्पकार, नर्तक चुप हैंउनके ख़्याल से यह सब गप हैमात्र किवंदंती।रक्तपायी वर्ग से नाभिनाल-बद्ध ये सब लोगनपुंसक भोग-शिरा-जालों में उलझे।प्रश्न की उथली-सी पहचानराह से अनजानवाक् रुदंती।चढ़ गया उर पर कहीं कोई निर्दयी,कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई।भव्याकार भवनों के विवरों में छिप गएसमाचारपत्रों के पतियों के मुख स्थूल।गढ़े जाते संवाद,गढ़ी जाती समीक्षा,गढ़ी जाती टिप्पणी जन-मन-उर-शूर।बौद्धिक वर्ग है क्रीतदास,किराए के विचारों का उदभास।बड़े-बड़े चेहरों पर स्याहियाँ पुत गईं।नपुंसक श्रद्धासड़क के नीचे की गटर में छिप गई,कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई।धुएँ के ज़हरीले मेघों के नीचे ही हर बारद्रुत निज-विश्लेष-गतियाँ,एक स्प्लिट सेकेंड में शत साक्षात्कार।टूटते हैं धोखों से भरे हुए सपने।रक्त में बहती हैं शान की किरनेंविश्व की मूर्ति में आत्मा ही ढल गई,कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई।राह के पत्थर-ढोकों के अंदरपहाड़ों के झरनेतड़पने लग गए।मिट्टी के लोंदे के भीतरभक्ति की अग्नि का उद्रेकभड़कने लग गया।धूल के कण मेंअनहद नाद का कंपनख़तरनाक!!मकानों के छत सेगाडर कूद पड़े धम से।घूम उठे खंभेभयानक वेग से चल पड़े हवा में।दादा का सोंटा भी करता है दाँव-पेंचनाचता है हवा मेंगगन में नाच रही कक्का की लाठी।यहाँ तक कि बच्चे की पेपें भी उड़तीं,तेज़ी से लहराती घूमती है हवा मेंसलेट-पट्टी।एक-एक वस्तु या एक-एक प्राणाग्नि-बम है,ये परमास्त्र हैं, प्रेक्षपास्त्र हैं, यम हैं।शून्याकाश में से होते हुए वेअरे, अरि पर ही टूट पड़े अनिवार।यह कथा नहीं है, यह सब सच है, हाँ भई!!कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई!!किसी एक बलवान् तम-श्याम लुहार ने बनायाकंडों का वर्तुल ज्वलंत मंडल।स्वर्णिम कमलों की पाँखुरी-जैसी हीज्वालाएँ उठती हैं उससे,और उस गोल-गोल ज्वलंत रेखा में रक्खालोहे का चक्काचिनगियाँ स्वर्णिम नीली व लाल-लालफूलों-सी खिलतीं। कुछ बलवान् जन साँवले मुख केचढ़ा रहे लकड़ी के चक्के पर जबरनलाल-लाल लोहे की गोल-गोल पट्टीघन मार घन मार,उसी प्रकार अबआत्मा के चक्के पर चढ़ाया जा रहासंकल्प-शक्ति के लोहे का मज़बूतज्वलंत टायर!!अब युग बदला है वाक़ई,कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई।गेरुआ मौसम, उड़ते हैं अंगार,जंगल जल रहे ज़िंदगी के अबजिनके कि ज्वलंत-प्रकाशित भीषणफूलों से बहतीं वेदना नदियाँजिनके कि जल मेंसचेत होकर सैकड़ों सदियाँ, ज्वलंत अपनेबिंब फेंकती!!वेदना नदियाँजिनमें कि डूबे हैं युगानुयुग सेमानो कि आँसूपिताओं की चिंता का उद्विग्न रंग भी,विवेक-पीड़ा की गहराई बेचैन,डूबा है जिसमें श्रमिक का संताप।वह जल पीकरमेरे युवकों में होता जाता व्यक्तित्वांतर ,विभिन्न क्षेत्रों में कई तरह से करते हैं संगर,मानो कि ज्वाला-पंखुरियों से घिर हुए वे सबअग्नि के शत-दल-कोष में बैठे!!द्रुत-वेग बहती हैं शक्तियाँ निश्चयी।कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई!!x x xएकाएक फिर स्वप्न भंगबिखर गए चित्र कि मैं फिर अकेला।मस्तिष्क-हृदय में छेद पड़ गए हैं।पर, उन दुखते हुए रंध्रों में गहराप्रदीप्त ज्योति का रस बस गया है।मैं उन सपनों का खोजता हूँ आशय,अर्थों की वेदना घिरती है मन में।अजीब झमेला।घूमता है मन उन अर्थों के घावों के आस-पासआत्मा में चमकीली प्यास भर गई है।जग-भर दीखती हैं सुनहली तस्वीरें मुझकोमानो कि कल रात किसी अनपेक्षित क्षण में ही सहसाप्रेम कर लिया होजीवन-भर के लिए!!मानो कि उस क्षणअतिशय मृदु किन्हीं बाँहों ने आकरकस लिया था इस भाँति कि मुझकोउस स्वप्न-स्पर्श की, चुंबन की याद आ रही है,याद आ रही है!!अज्ञात प्रणयिनी कौन थी, कौन थी?कमरे में सुबह की धूप आ गई है,गैलरी में फैला है सुनहला रवि छोरक्या कोई प्रेमिका सचमुच मिलेगी?हाय! यह वेदना स्नेह की गहरीजाग गई क्यों कर?सब ओर विद्युत्तरंगीय हलचलचुंबकीय आकर्षण।प्रत्येक वस्तु का निज-निज आलोक,मानो कि अलग-अलग फूलों के रंगीनअलग-अलग वातावरण हैं बेमाप,प्रत्येक अर्थ की छाया में अन्य अर्थझलकता साफ़-साफ़!डेस्क पर रखे हुए महान् ग्रंथों के लेखकमेरी इन मानसिक क्रियाओं के बन गए प्रेक्षक,मेरे इस कमरे में आकाश उतरा,मन यह अंतरिक्ष-वायु में सिहरा।उठता हूँ, जाता हूँ, गैलरी में खड़ा हूँ।एकाएक वह व्यक्तिआँखों के सामनेगलियों में, सड़कों पर, लोगों की भीड़ मेंचला जा रहा है।वही जन जिसे मैंने देखा था गुहा में।धड़कता है दिलकि पुकारने को खुलता है मुँहकि अकस्मात्—वह दिखा, वह दिखावह फिर खो गया किसी जन-यूथ में...उठी हुई बाँह यह उठी हुई रह गई!!अनखोजी निज-समृद्धि का वह परम-उत्कर्ष,परम अभिव्यक्ति...मैं उसका शिष्य हूँवह मेरी गुरु है,गुरु है!!वह मेरे पास कभी बैठा ही नहीं था,वह मेरे पास कभी आया ही नहीं था,तिलस्मी खोह में देखा था एक बार,आख़िरी बार ही।पर, वह जगत् ही गलियों में घूमता है प्रतिपलवह फटेहाल रूप।तड़ित्तरंगीय वही गतिमयता,अत्यंत उद्विग्न ज्ञान-तनाव वहसकर्मक प्रेम की वह अतिशयतावही फटेहाल रूप!!परम अभिव्यक्ति लगातार घूमती है जग मेंपता नहीं जाने कहाँ, जाने कहाँवह है।इसीलिए मैं हर गली मेंऔर हर सड़क परझाँक-झाँक देखता हूँ हर एक चेहरा,प्रत्येक गतिविधिप्रत्येक चरित्र,व हर एक आत्मा का इतिहास,हर एक देश व राजनैतिक परिस्थितिप्रत्येक मानवीय स्वानुभूत आदर्शविवेक-प्रक्रिया, क्रियागत परिणति!!खोजता हूँ पठार... पहाड़... समुंदरजहाँ मिल सके मुझेमेरी वह खोई हुईपरम अभिव्यक्ति अनिवारआत्म-संभवा।",
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मैं तुम लोगों से दूर हूँ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/main-tum-logon-se-door-hoon-gajanan-madhav-muktibodh-kavita | [
"मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ",
"तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है",
"कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है।",
"मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है,",
"अकेले में साहचर्य का हाथ है,",
"उनका जो तुम्हारे द्वारा गर्हित हैं",
"किन्तु वे मेरी व्याकुल आत्मा में बिंबित हैं, पुरस्कृत हैं",
"इसीलिए, तुम्हारा मुझ पर सतत आघात है!!",
"सबके सामने और अकेले में।",
"( मेरे रक्त-भरे महाकाव्यों के पन्ने उड़ते हैं",
"तुम्हारे-हमारे इस सारे झमेले में )",
"असफलता का धूल-कचरा ओढ़े हूँ",
"इसलिए कि वह चक्करदार ज़ीनों पर मिलती है",
"छल-छद्म धन की",
"किन्तु मैं सीधी-सादी पटरी-पटरी दौड़ा हूँ",
"जीवन की।",
"फिर भी मैं अपनी सार्थकता से खिन्न हूँ",
"विष से अप्रसन्न हूँ",
"इसलिए कि जो है उससे बेहतर चाहिए",
"पूरी दुनिया साफ़ करने के लिए मेहतर चाहिए",
"वह मेहतर मैं हो नहीं पाता",
"पर, रोज़ कोई भीतर चिल्लाता है",
"कि कोई काम बुरा नहीं",
"बशर्ते कि आदमी खरा हो",
"फिर भी मैं उस ओर अपने को ढो नहीं पाता।",
"रेफ़्रीजरेटरों, विटैमिनों, रेडियोग्रेमों के बाहर की",
"गतियों की दुनिया में",
"मेरी वह भूखी बच्ची मुनिया है शून्यों में",
"पेटों की आँतों में न्यूनों की पीड़ा है",
"छाती के कोषों में रहितों की व्रीड़ा है",
"शून्यों से घिरी हुई पीड़ा ही सत्य है",
"शेष सब अवास्तव अयथार्थ मिथ्या है भ्रम है",
"सत्य केवल एक जो कि",
"दुःखों का क्रम है।",
"मैं कनफटा हूँ हेठा हूँ",
"शेव्रलेट-डॉज के नीचे मैं लेटा हूँ",
"तेलिया लिबास में पुरज़े सुधारता हूँ",
"तुम्हारी आज्ञाएँ ढोता हूँ।",
"main tum logon se itna door hoon",
"tumhari prernaon se meri prerna itni bhinn hai",
"ki jo tumhare liye wish hai, mere liye ann hai",
"meri asang sthiti mein chalta phirta sath hai,",
"akele mein sahachary ka hath hai,",
"unka jo tumhare dwara garhit hain",
"kintu we meri wyakul aatma mein bimbit hain, puraskrit hain",
"isiliye, tumhara mujh par satat aghat hai!!",
"sabke samne aur akele mein",
"( mere rakt bhare mahakawyon ke panne uDte hain",
"tumhare hamare is sare jhamele mein )",
"asphalta ka dhool kachra oDhe hoon",
"isliye ki wo chakkardar zinon par milti hai",
"chhal chhadm dhan ki",
"kintu main sidhi sadi patri patri dauDa hoon",
"jiwan ki",
"phir bhi main apni sarthakta se khinn hoon",
"wish se aprasann hoon",
"isliye ki jo hai usse behtar chahiye",
"puri duniya saf karne ke liye mehtar chahiye",
"wo mehtar main ho nahin pata",
"par, roz koi bhitar chillata hai",
"ki koi kaam bura nahin",
"basharte ki adami khara ho",
"phir bhi main us or apne ko Dho nahin pata",
"refrijretron, witaiminon, reDiyogremon ke bahar ki",
"gatiyon ki duniya mein",
"meri wo bhukhi bachchi muniya hai shunyon mein",
"peton ki anton mein nyunon ki piDa hai",
"chhati ke koshon mein rahiton ki wriDa hai",
"shunyon se ghiri hui piDa hi saty hai",
"shesh sab awastaw aytharth mithya hai bhram hai",
"saty kewal ek jo ki",
"duःkhon ka kram hai",
"main kanaphta hoon hetha hoon",
"shewrlet dodge ke niche main leta hoon",
"teliya libas mein purze sudharta hoon",
"tumhari agyayen Dhota hoon",
"main tum logon se itna door hoon",
"tumhari prernaon se meri prerna itni bhinn hai",
"ki jo tumhare liye wish hai, mere liye ann hai",
"meri asang sthiti mein chalta phirta sath hai,",
"akele mein sahachary ka hath hai,",
"unka jo tumhare dwara garhit hain",
"kintu we meri wyakul aatma mein bimbit hain, puraskrit hain",
"isiliye, tumhara mujh par satat aghat hai!!",
"sabke samne aur akele mein",
"( mere rakt bhare mahakawyon ke panne uDte hain",
"tumhare hamare is sare jhamele mein )",
"asphalta ka dhool kachra oDhe hoon",
"isliye ki wo chakkardar zinon par milti hai",
"chhal chhadm dhan ki",
"kintu main sidhi sadi patri patri dauDa hoon",
"jiwan ki",
"phir bhi main apni sarthakta se khinn hoon",
"wish se aprasann hoon",
"isliye ki jo hai usse behtar chahiye",
"puri duniya saf karne ke liye mehtar chahiye",
"wo mehtar main ho nahin pata",
"par, roz koi bhitar chillata hai",
"ki koi kaam bura nahin",
"basharte ki adami khara ho",
"phir bhi main us or apne ko Dho nahin pata",
"refrijretron, witaiminon, reDiyogremon ke bahar ki",
"gatiyon ki duniya mein",
"meri wo bhukhi bachchi muniya hai shunyon mein",
"peton ki anton mein nyunon ki piDa hai",
"chhati ke koshon mein rahiton ki wriDa hai",
"shunyon se ghiri hui piDa hi saty hai",
"shesh sab awastaw aytharth mithya hai bhram hai",
"saty kewal ek jo ki",
"duःkhon ka kram hai",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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चाँद का मुँह टेढ़ा है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/chand-ka-munh-tedha-hai-gajanan-madhav-muktibodh-kavita | [
"नगर के बीचो-बीच",
"आधी रात—अँधेरे की काली स्याह",
"शिलाओं से बनी हुई",
"भीतों और अहातों के, काँच-टुकड़े जमे हुए",
"ऊँचे-ऊँचे कंधों पर",
"चाँदनी की फैली हुई सँवलाई झालरें।",
"कारख़ाना—अहाते के उस पार",
"धूम्र मुख चिमनियों के ऊँचे-ऊँचे",
"उद्गार—चिह्नाकार—मीनार",
"मीनारों के बीचो-बीच",
"चाँद का है टेढ़ा मुँह!!",
"भयानक स्याह सन तिरपन का चाँद वह!!",
"गगन में करफ़्यू है",
"धरती पर चुपचाप ज़हरीली छिः थूः है!!",
"पीपल के ख़ाली पड़े घोंसलों में पक्षियों के,",
"पैठे हैं ख़ाली हुए कारतूस।",
"गंजे-सिर चाँद की सँवलाई किरणों के जासूस",
"साम-सूम नगर में धीरे-धीरे घूम-घाम",
"नगर के कोनों के तिकोनों में छिपे हैं!!",
"चाँद की कनखियों की कोण-गामी किरनें",
"पीली-पीली रोशनी की, बिछाती है",
"अँधेरे में, पट्टियाँ।",
"देखती है नगर की ज़िंदगी का टूटा-फूटा",
"उदास प्रसार वह।",
"समीप विशालाकार",
"अँधियाले लाल पर",
"सूनेपन की स्याही में डूबी हुई",
"चाँदनी भी सँवलाई हुई है!!",
"भीमाकार पुलों के बहुत नीचे, भयभीत",
"मनुष्य-बस्ती के बियाबान तटों पर",
"बहते हुए पथरीले नालों की धारा में",
"धराशायी चाँदनी के होंठ काले पड़ गए",
"हरिजन गलियों में",
"लटकी है पेड़ पर",
"कुहासे के भूतों की साँवली चूनरी—",
"चूनरी में अटकी है कंजी आँख गंजे-सिर",
"टेढ़े-मुँह चाँद की।",
"बारह का वक़्त है,",
"भुसभुसे उजाले का फुसफुसाता षड्यंत्र",
"शहर में चारों ओर;",
"ज़माना भी सख़्त है!!",
"अजी, इस मोड़ पर",
"बरगद की घनघोर शाखाओं की गठियल",
"अजगरी मेहराब—",
"मरे हुए ज़मानों की संगठित छायाओं में",
"बसी हुई",
"सड़ी-बुसी बास लिए—",
"फैली है गली के",
"मुहाने में चुपचाप।",
"लोगों के अरे! आने-जाने में चुपचाप,",
"अजगरी कमानी से गिरती है टिप-टिप",
"फड़फड़ाते पक्षियों की बीट—",
"मानो समय की बीट हो!!",
"गगन में करफ़्यू है,",
"वृक्षों में बैठे हुए पक्षियों पर करफ़्यू है,",
"धरती पर किंतु अजी! ज़हरीली छिः थूः है।",
"बरगद की डाल एक",
"मुहाने से आगे फैल",
"सड़क पर बाहरी",
"लटकती है इस तरह—",
"मानो कि आदमी के जनम के पहले से",
"पृथ्वी की छाती पर",
"जंगली मैमथ की सूँड़ सूँघ रही हो",
"हवा के लहरीले सिफ़रों को आज भी",
"घिरी हुई विपदा घेरे-सी",
"बरगद की घनी-घनी छाँव में",
"फूटी हुई चूड़ियों की सूनी-सूनी कलाई-सा",
"सूनी-सूनी गलियों में",
"ग़रीबों के ठाँव में—",
"चौराहे पर खड़े हुए",
"भैरों की सिंदूरी",
"गेरुई मूरत के पथरीले व्यंग्य स्मित पर",
"टेढ़े-मुँह चाँद की ऐयारी रोशनी,",
"तिलिस्मी चाँद की राज़-भरी झाइयाँ!!",
"तजुर्बों का ताबूत",
"ज़िंदा यह बरगद",
"जानता कि भैरों यह कौन है !!",
"कि भैरों की चट्टानी पीठ पर",
"पैरों की मज़बूत",
"पत्थरी-सिंदूरी ईंट पर",
"भभकते वर्णों के लटकते पोस्टर",
"ज्वलंत अक्षर !!",
"सामने है अँधियाला ताल और",
"स्याह उसी ताल पर",
"सँवलाई चाँदनी,",
"समय का घंटाघर,",
"निराकार घंटाघर,",
"गगन में चुपचाप अनाकार खड़ा है!!",
"परंतु, परंतु... बतलाते",
"ज़िंदगी के काँटे ही",
"कितनी रात बीत गई",
"चप्पलों की छपछप,",
"गली के मुहाने से अजीब-सी आवाज़,",
"फुसफुसाते हुए शब्द!",
"जंगल की डालों से गुज़रती हवाओं की सरसर",
"गली में ज्यों कह जाए",
"इशारों के आशय,",
"हवाओं की लहरों के आकार—",
"किन्हीं ब्रह्मराक्षसों के निराकार",
"अनाकार",
"मानो बहस छेड़ दें",
"बहस जैसे बढ़ जाए",
"निर्णय पर चली आए",
"वैसे शब्द बार-बार",
"गलियों की आत्मा में",
"बोलते हैं एकाएक",
"अँधेरे के पेट में से",
"ज्वालाओं की आँत बाहर निकल आए",
"वैसे, अरे, शब्दों की धार एक",
"बिजली के टॉर्च की रोशनी की मार एक",
"बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर",
"फैल गई अकस्मात्",
"बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर",
"फैल गए हाथ दो",
"मानो हृदय में छिपी हुई बातों ने सहसा",
"अँधेरे से बाहर आ भुजाएँ पसारी हों",
"फैले गए हाथ दो",
"चिपका गए पोस्टर",
"बाँके-तिरछे वर्ण और",
"लाल नीले घनघोर",
"हड़ताली अक्षर",
"इन्हीं हलचलों के ही कारण तो सहसा",
"बरगद में पले हुए पंखों की डरी हुई",
"चौंकी हुई अजीब-सी गंदी फड़फड़",
"अँधेरे की आत्मा से करते हुए शिकायत",
"काँव-काँव करते हुए पक्षियों के जमघट",
"उड़ने लगे अकस्मात्",
"मानो अँधेरे के",
"हृदय में संदेही शंकाओं के पक्षाघात!!",
"मद्धिम चाँदनी में एकाएक एकाएक",
"खपरैलों पर ठहर गई",
"बिल्ली एक चुपचाप",
"रजनी के निजी गुप्तचरों की प्रतिनिधि",
"पूँछ उठाए वह",
"जंगली तेज़",
"आँख",
"फैलाए",
"यमदूत-पुत्री-सी",
"[सभी देह स्याह, पर",
"पंजे सिर्फ़ श्वेत और",
"ख़ून टपकाते हुए नाख़ून]",
"देखती है मार्जार",
"चिपकाता कौन है",
"मकानों की पीठ पर",
"अहातों की भीत पर",
"बरगद की अजगरी डालों के फंदों पर",
"अँधेरे के कंधों पर",
"चिपकाता कौन है?",
"चिपकाता कौन है",
"हड़ताली पोस्टर",
"बड़े-बड़े अक्षर",
"बाँके-तिरछे वर्ण और",
"लंबे-चौड़े घनघोर",
"लाल-नीले भयंकर",
"हड़ताली पोस्टर!!",
"टेढ़े-मुँह चाँद की ऐयारी रोशनी भी ख़ूब है",
"मकान-मकान घुस लोहे के गज़ों की जाली",
"के झरोखों को पार कर",
"लिपे हुए कमरे में",
"जेल के कपड़े-सी फैली है चाँदनी,",
"दूर-दूर काली-काली",
"धारियों के बड़े-बड़े चौखट्टों के मोटे-मोटे",
"कपड़े-सी फैली है",
"लेटी है जालीदार झरोखे से आई हुई",
"जेल सुझाती हुई ऐयारी रोशनी!!",
"अँधियाले ताल पर",
"काले घिने पंखों के बार-बार",
"चक्करों के मँडराते विस्तार",
"घिना चिमगादड़-दल भटकता है चारों ओर",
"मानो अहं के अवरुद्ध",
"अपावन अशुद्ध घेरे में घिरे हुए",
"नपुंसक पंखों की छटपटाती रफ़्तार",
"घिना चिमगादड़-दल",
"भटकता है प्यासा-सा,",
"बुद्धि की आँखों में",
"स्वार्थों के शीशे-सा!!",
"बरगद को किंतु सब",
"पता था इतिहास,",
"कोलतारी सड़क पर खड़े हुए सर्वोच्च",
"गाँधी के पुतले पर",
"बैठे हुए आँखों के दो चक्र",
"यानी घुग्घू एक—",
"तिलक के पुतले पर",
"बैठे हुए घुग्घू से",
"बातचीत करते हुए",
"कहता ही जाता है—",
"...मसान में...",
"मैंने भी सिद्धि की।",
"देखो मूठ मार दी",
"मनुष्यों पर इस तरह...",
"तिलक के पुतले पर बैठे हुए घुग्घू ने",
"देखा कि भयानक लाल मूठ",
"काले आसमान में",
"तैरती-सी धीरे-धीरे जा रही",
"उद्गार-चिह्नाकार विकराल",
"तैरता था लाल-लाल!!",
"देख, उसने कहा कि वाह-वाह",
"रात के जहाँपनाह",
"इसीलिए आज-कल",
"दिल के उजाले में भी अँधेरे की साख है",
"रात्रि की काँखों में दबी हुई",
"संस्कृति-पाखी के पंख है सुरक्षित!!",
"...पी गया आसमान",
"रात्रि की अँधियाली सचाइयाँ घोंट के,",
"मनुष्यों को मारने के ख़ूब हैं ये टोटके!",
"गगन में करफ़्यू है,",
"ज़माने में ज़ोरदार ज़हरीली छिः थूः है!!",
"सराफ़े में बिजली के बूदम",
"खंभों पर लटके हुए मद्धिम",
"दिमाग़ में धुँध है,",
"चिंता है सट्टे की हृदय-विनाशिनी!!",
"रात्रि की काली स्याह",
"कड़ाही से अकस्मात्",
"सड़कों पर फैल गई",
"सत्यों की मिठाई की चाशनी!!",
"टेढ़े-मुँह चाँद की ऐयारी रोशनी",
"भीमाकार पुलों के",
"ठीक नीचे बैठकर,",
"चोरों-सी उचक्कों-सी",
"नालों और झरनों के तटों पर",
"किनारे-किनारे चल,",
"पानी पर झुके हुए",
"पेड़ों के नीचे बैठ,",
"रात-बे-रात वह",
"मछलियाँ फँसाती है",
"आवारा मछुओं-सी शोहदों-सी चाँदनी",
"सड़कों के पिछवाड़े",
"टूटे-फूटे दृश्यों में,",
"गंदगी के काले-से नाले के झाग पर",
"बदमस्त कल्पना-सी फैली थी रात-भर",
"सेक्स के कष्टों के कवियों के काम-सी!",
"किंग्सवे में मशहूर",
"रात की है ज़िंदगी!",
"सड़कों की श्रीमान्",
"भारतीय फिरंगी दूकान,",
"सुगंधित प्रकाश में चमचमाता ईमान",
"रंगीन चमकती चीज़ों के सुरभित",
"स्पर्शों में",
"शीशों की सुविशाल झाँइयों के रमणीय",
"दृश्यों में",
"बसी थी चाँदनी",
"खूबसूरत अमरीकी मैग्ज़ीन-पृष्ठों-सी",
"खुली थी,",
"नंगी-सी नारियों के",
"उघरे हुए अंगों के",
"विभिन्न पोजों में",
"लेटी थी चाँदनी",
"सफ़ेद",
"अंडरवियर-सी, आधुनिक प्रतीकों में",
"फैली थी",
"चाँदनी!",
"करफ़्यू नहीं यहाँ, पसंदगी... संदली,",
"किंग्सवे में मशहूर रात की है ज़िंदगी",
"अजी, यह चाँदनी भी बड़ी मसखरी है!!",
"तिमंज़िले की एक",
"खिड़की में बिल्ली के सफे़द धब्बे-सी",
"चमकती हुई वह",
"समेटकर हाथ-पाँव",
"किसी की ताक में",
"बैठी हुई चुपचाप",
"धीरे से उतरती है",
"रास्तों पर पथों पर;",
"चढ़ती है छतों पर",
"गैलरी में घूम और",
"खपरैलों पर चढ़कर",
"नीमों की शाखों के सहारे",
"आँगन में उतरकर",
"कमरों में हल्के-पाँव",
"देखती है, खोजती है—",
"शहर के कोनों के तिकोने में छुपी हुई",
"चाँदनी",
"सड़क के पेड़ों के गुंबदों पर चढ़कर",
"महल उलाँघ कर",
"मुहल्ले पार कर",
"गलियों की गुहाओं में दबे-पाँव",
"ख़ुफ़िया सुराग़ में",
"गुप्तचरी ताक में",
"जमी हुई खोजती है कौन वह",
"कंधों पर अँधेरे के",
"चिपकाता कौन है",
"भड़कीले पोस्टर,",
"लंबे-चौड़े वर्ण और",
"बाँके-तिरछे घनघोर",
"लाल-नीले अक्षर।",
"कोलतारी सड़क के बीचो-बीच खड़ी हुई",
"गांधी की मूर्ति पर",
"बैठे हुए घुग्घू ने",
"गाना शुरू किया,",
"हिचकी की ताल पर",
"साँसों ने तब",
"मर जाना",
"शुरू किया,",
"टेलीफ़ोन-खंभों पर थमे हुए तारों ने",
"सट्टे के ट्रंक-कॉल-सुरों में",
"थर्राना और झनझनाना शुरू किया!",
"रात्रि का काला-स्याह",
"कन-टोप पहने हुए",
"आसमान-बाबा ने हनुमान-चालीसा",
"डूबी हुई बानी में गाना शुरू किया।",
"मसान के उजाड़",
"पेड़ों की अँधियाली शाख पर",
"लाल-लाल लटके हुए",
"प्रकाश के चीथड़े—",
"हिलते हुए, डुलते हुए, लपट के पल्लू।",
"सचाई के अध-जले मुर्दों की चिताओं की",
"फटी हुई, फूटी हुई दहक में कवियों ने",
"बहकती कविताएँ गाना शुरू किया।",
"संस्कृति के कुहरीले धुएँ से भूतों के",
"गोल-गोल मटकों से चेहरों ने",
"नम्रता के घिघियाते स्वाँग में",
"दुनिया को हाथ जोड़",
"कहना शुरू किया—",
"बुद्ध के स्तूप में",
"मानव के सपने",
"गड़ गए, गाड़े गए!!",
"ईसा के पंख सब",
"झड़ गए, झाड़े गए!!",
"सत्य की",
"देवदासी-चोलियाँ उतारी गईं",
"उघारी गईं,",
"सपनों की आँते सब",
"चीरी गईं, फाड़ी गईं!!",
"बाक़ी सब खोल है,",
"ज़िंदगी में झोल है!!",
"गलियों का सिंदूरी विकराल",
"खड़ा हुआ भैरों, किंतु,",
"हँस पड़ा ख़तरनाक",
"चाँदनी के चेहरे पर",
"गलियों की भूरी ख़ाक",
"उड़ने लगी धूल और",
"सँवलाई नंगी हुई चाँदनी!",
"और, उस अँधियाले ताल के उस पार",
"नगर निहारता-सा खड़ा है पहाड़ एक",
"लोहे की नभ-चुंबी शिला का चबूतरा",
"लोहांगी कहाता है",
"कि जिसके भव्य शीर्ष पर",
"बड़ा भारी खंडहर",
"खंडहर के ध्वंसों में बुज़ुर्ग दरख़्त एक",
"जिसके घने तने पर",
"लिक्खी है प्रेमियों ने",
"अपनी याददाश्तें,",
"लोहांगी में हवाएँ",
"दरख़्त में घुसकर",
"पत्तों से फुसफुसाती कहती हैं",
"नगर की व्यथाएँ",
"सभाओं की कथाएँ",
"मोर्चों की तड़प और",
"मकानों के मोर्चे मीटिंगों के मर्म-राग",
"अंगारों से भरी हुई",
"प्राणों की गर्म राख",
"गलियों में बसी हुई छायाओं के लोक में",
"छायाएँ हिलीं कुछ",
"छायाएँ चलीं दो",
"मद्धिम चाँदनी में",
"भैरों के सिंदूरी भयावने मुख पर",
"छाईं दो छायाएँ",
"छरहरी छाइयाँ!!",
"रात्रि की थाहों में लिपटी हुई साँवली तहों में",
"ज़िंदगी का प्रश्नमयी थरथर",
"थरथराते बेक़ाबू चाँदनी के",
"पल्ले-सी उड़ती है गगन-कंगूरों पर।",
"पीपल के पत्तों के कंप में",
"चाँदनी के चमकते कंप से",
"ज़िंदगी की अकुलाई थाहों के अंचल",
"उड़ते हैं हवा में!!",
"गलियों के आगे बढ़",
"बग़ल में लिए कुछ",
"मोटे-मोटे काग़ज़ों की घनी-घनी भोंगली",
"लटकाए हाथ में",
"डिब्बा एक टीन का",
"डिब्बे में धरे हुए लंबी-सी कूँची एक",
"ज़माना नंगे-पैर",
"कहता मैं पेंटर",
"शहर है साथ-साथ",
"कहता मैं कारीगर—",
"बरगद की गोल-गोल",
"हड्डियों की पत्तेदार",
"उलझनों के ढाँचों में",
"लटकाओ पोस्टर,",
"गलियों के अलमस्त",
"फ़क़ीरों के लहरदार",
"गीतों से फहराओ",
"चिपकाओ पोस्टर",
"कहता है कारीगर।",
"मज़े में आते हुए",
"पेंटर ने हँसकर कहा—",
"पोस्टर लगे हैं,",
"कि ठीक जगह",
"तड़के ही मज़दूर",
"पढ़ेंगे घूर-घूर,",
"रास्ते में खड़े-खड़े लोग-बाग",
"पढ़ेंगे ज़िंदगी की",
"झल्लाई हुई आग!",
"प्यारे भाई कारीगर,",
"अगर खींच सकूँ मैं—",
"हड़ताली पोस्टर पढ़ते हुए",
"लोगों के रेखा-चित्र,",
"बड़ा मज़ा आएगा।",
"कत्थई खपरैलों से उठते हुए धुएँ",
"रंगों में",
"आसमानी सियाही मिलाई जाए,",
"सुबह की किरनों के रंगों में",
"रात के गृह-दीप-प्रकाश को आशाएँ घोलकर",
"हिम्मतें लाई जाएँ,",
"स्याहियों से आँख बने",
"आँखों की पुतली में धधक की लाल-लाल",
"पाँख बने,",
"एकाग्र ध्यान-भरी",
"आँखों की किरनें",
"पोस्टरों पर गिरें—तब",
"कहो भाई कैसा हो?",
"कारीगर ने साथी के कंधे पर हाथ रख",
"कहा तब—",
"मेरे भी करतब सुनो तुम,",
"धुएँ से कजलाए",
"कोठे की भीत पर",
"बाँस की तीली की लेखनी से लिखी थी",
"राम-कथा व्यथा की",
"कि आज भी जो सत्य है",
"लेकिन, भाई, कहाँ अब वक़्त है!!",
"तस्वीरें बनाने की",
"इच्छा अभी बाक़ी है—",
"ज़िंदगी भूरी ही नहीं, वह ख़ाकी है।",
"ज़माने ने नगर के कंधे पर हाथ रख",
"कह दिया साफ़-साफ़",
"पैरों के नखों से या डंडे की नोक से",
"धरती की धूल में भी रेखाएँ खींचकर",
"तस्वीरें बनाती हैं",
"बशर्ते कि ज़िंदगी के चित्र-सी",
"बनाने का चाव हो",
"श्रद्धा हो, भाव हो।",
"कारीगर ने हँसकर",
"बगल में खींचकर पेंटर से कहा, भाई",
"चित्र बनाते वक़्त",
"सब स्वार्थ त्यागे जाएँ,",
"अँधेरे से भरे हुए",
"ज़ीने की सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती जो",
"अभिलाषा—अंध है",
"ऊपर के कमरे सब अपने लिए बंद हैं",
"अपने लिए नहीं वे!!",
"ज़माने ने नगर से यह कहा कि",
"ग़लत है यह, भ्रम है",
"हमारा अधिकार सम्मिलित श्रम और",
"छीनने का दम है।",
"फ़िलहाल तस्वीरें",
"इस समय हम",
"नहीं बना पाएँगे",
"अलबत्ता पोस्टर हम लगा जाएँगे।",
"हम धधकाएँगे।",
"मानो या मानो मत",
"आज तो चंद्र है, सविता है,",
"पोस्टर ही कविता है!!",
"वेदना के रक्त से लिखे गए",
"लाल-लाल घनघोर",
"धधकते पोस्टर",
"गलियों के कानों में बोलते हैं",
"धड़कती छाती की प्यार-भरी गरमी में",
"भाफ-बने आँसू के ख़ूँख़ार अक्षर!!",
"चटाख से लगी हुई",
"रायफ़ली गोली के धड़ाकों से टकरा",
"प्रतिरोधी अक्षर",
"ज़माने के पैग़ंबर",
"टूटता आसमान थामते हैं कंधों पर",
"हड़ताली पोस्टर",
"कहते हैं पोस्टर—",
"आदमी की दर्द-भरी गहरी पुकार सुन",
"पड़ता है दौड़ जो",
"आदमी है वह ख़ूब",
"जैसे तुम भी आदमी",
"वैसे मैं भी आदमी,",
"बूढ़ी माँ के झुर्रीदार",
"चेहरे पर छाए हुए",
"आँखों में डूबे हुए",
"ज़िंदगी के तजुर्बात",
"बोलते हैं एक साथ",
"जैसे तुम भी आदमी",
"वैसे मैं भी आदमी,",
"चिल्लाते हैं पोस्टर।",
"धरती का नीला पल्ला काँपता है",
"यानी आसमान काँपता है,",
"आदमी के हृदय में करुणा कि रिमझिम,",
"काली इस झड़ी में",
"विचारों की विक्षोभी तडित् कराहती",
"क्रोध की गुहाओं का मुँह खोले",
"शक्ति के पहाड़ दहाड़ते",
"काली इस झड़ी में वेदना की तड़ित् कराहती",
"मदद के लिए अब,",
"करुणा के रोंगटों में सन्नाटा",
"दौड़ पड़ता आदमी,",
"व आदमी के दौड़ने के साथ-साथ",
"दौड़ता जहान",
"और दौड़ पड़ता आसमान!!",
"मुहल्ले के मुहाने के उस पार",
"बहस छिड़ी हुई है,",
"पोस्टर पहने हुए",
"बरगद की शाखें ढीठ",
"पोस्टर धारण किए",
"भैंरों की कड़ी पीठ",
"भैंरों और बरगद में बहस खड़ी हुई है",
"ज़ोरदार जिरह कि कितना समय लगेगा",
"सुबह होगी कब और",
"मुश्किल होगी दूर कब",
"समय का कण-कण",
"गगन की कालिमा से",
"बूँद-बूँद चू रहा",
"तड़ित्-उजाला बन!!",
"nagar ke biicho-biich",
"aadhii raata—.a.ndhere kii kaalii syaah",
"shilaa.o.n se banii hu.ii",
"bhiito.n aur ahaato.n ke, kaa.nch-TukDe jame hu.e",
"uu.nche-.uu.nche ka.ndho.n par",
"chaa.ndnii kii phailii hu.ii sa.nvlaa.ii jhaalare.n।",
"kaaraख़.aanaa—.ahaate ke us paar",
"dhuumr mukh chimniyo.n ke uu.nche-.uu.nche",
"udgaara—chihnaakaara—miinaar",
"miinaaro.n ke biicho-biich",
"chaa.nd ka hai TeDha mu.nh!!",
"bhayaanak syaah san tirpan ka chaa.nd vah!!",
"gagan me.n karafyuu hai",
"dhartii par chupchaap zahriilii chhi. thuu. hai!!",
"piipal ke ख़.aalii paDe gho.nslo.n me.n paksha.iyo.n ke,",
"paiThe hai.n ख़.aalii hu.e kaaratuus।",
"ga.nje-sir chaa.nd kii sa.nvlaa.ii kir.na.o.n ke jaasuus",
"saama-suum nagar me.n dhiire-dhiire ghuuma-ghaam",
"nagar ke kono.n ke tikono.n me.n chhipe hai.n!!",
"chaa.nd kii kankhiyo.n kii ko.na-gaamii kirne.n",
"piilii-piilii roshanii kii, bichhaatii hai",
"a.ndhere me.n, paTTiyaa.n।",
"dekhatii hai nagar kii ज़.i.ndgii ka TuuTaa-phuuTa",
"udaas prasaar vah।",
"samiip vishaalaakaar",
"a.ndhiyaale laal par",
"suunepan kii syaahii me.n Duubii hu.ii",
"chaa.ndnii bhii sa.nvlaa.ii hu.ii hai!!",
"bhiimaakaar pulo.n ke bahut niiche, bhaybhiit",
"manushya-bastii ke biyaabaan taTo.n par",
"bahte hu.e pathriile naalo.n kii dhaara me.n",
"dharaashaayii chaa.ndnii ke ho.nTh kaale paD ga.e",
"harijan galiyo.n me.n",
"laTkii hai peD par",
"kuhaase ke bhuuto.n kii saa.nvlii chuunarii—",
"chuunarii me.n aTkii hai ka.njii aa.nkh ga.nje-sir",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii।",
"baarah ka vaqt hai,",
"bhusbhuse ujaale ka phusphusaata shaDya.ntr",
"shahar me.n chaaro.n or",
"zam.aan bhii saख़t hai!!",
"ajii, is moD par",
"bargad kii ghanghor shaakhaa.o.n kii gaThiyal",
"ajagrii meharaaba—",
"mare hu.e zam.aan.o kii sa.ngThit chhaayaa.o.n me.n",
"basii hu.ii",
"saDii-busii baas li.e—",
"phailii hai galii ke",
"muhaane me.n chupchaap।",
"logo.n ke are! aane-jaane me.n chupchaap,",
"ajagrii kamaanii se girtii hai Tip-Tip",
"phaDaphDaate paksha.iyo.n kii biiTa—",
"maano samay kii biiT ho!!",
"gagan me.n karफ़yuu hai,",
"vriksha.o.n me.n baiThe hu.e paksha.iyo.n par karafyuu hai,",
"dhartii par ki.ntu ajii! zahriilii chhi. thuu. hai।",
"bargad kii Daal ek",
"muhaane se aage phail",
"saDak par baaharii",
"laTaktii hai is tarah—",
"maano ki aadamii ke janam ke pahle se",
"prithvii kii chhaatii par",
"ja.nglii maimath kii suu.nD suu.ngh rahii ho",
"hava ke lahriile sifar.o ko aaj bhii",
"ghirii hu.ii vipda ghere-sii",
"bargad kii ghanii-ghanii chhaa.nv me.n",
"phuuTii hu.ii chuuDiyo.n kii suunii-suunii kalaa.ii-sa",
"suunii-suunii galiyo.n me.n",
"ghar.iib.o ke Thaa.nv me.n—",
"chauraahe par khaDe hu.e",
"bhairo.n kii si.nduurii",
"geru.ii muurat ke pathriile vya.ngy smit par",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii aiyaarii roshanii,",
"tilismii chaa.nd kii raaza-bharii jhaa.iyaa.n!!",
"tajurbo.n ka taabuut",
"ज़.i.nda yah bargad",
"jaanata ki bhairo.n yah kaun hai !!",
"ki bhairo.n kii chaTTaanii piiTh par",
"pairo.n kii mazab.uu",
"pattharii-si.nduurii ii.nT par",
"bhabhakte var.na.o.n ke laTakte posTar",
"jvala.nt akshar !!",
"saamane hai a.ndhiyaala taal aur",
"syaah usii taal par",
"sa.nvlaa.ii chaa.ndnii,",
"samay ka gha.nTaaghar,",
"niraakaar gha.nTaaghar,",
"gagan me.n chupchaap anaakaar khaDa hai!!",
"para.ntu, para.ntu. batlaate",
"ज़.i.ndgii ke kaa.nTe hii",
"kitnii raat biit ga.ii",
"chappalo.n kii chhapchhap,",
"galii ke muhaane se ajiiba-sii aavaaz,",
"phusphusaate hu.e shabda!",
"ja.ngal kii Daalo.n se guzartii havaa.o.n kii sarsar",
"galii me.n jyo.n kah jaa.e",
"ishaaro.n ke aashay,",
"havaa.o.n kii lahro.n ke aakaara—",
"kinhii.n brahmaraakshaso.n ke niraakaar",
"anaakaar",
"maano bahas chheD de.n",
"bahas jaise baDh jaa.e",
"nir.nay par chalii aa.e",
"vaise shabd baara-baar",
"galiyo.n kii aatma me.n",
"bolate hai.n ekaa.ek",
"a.ndhere ke peT me.n se",
"jvaalaa.o.n kii aa.nt baahar nikal aa.e",
"vaise, are, shabdo.n kii dhaar ek",
"bijlii ke Taॉrch kii roshanii kii maar ek",
"bargad ke khuradre ajagrii tane par",
"phail ga.ii akasmaat",
"bargad ke khuradre ajagrii tane par",
"phail ga.e haath do",
"maano hriday me.n chhipii hu.ii baato.n ne sahsa",
"a.ndhere se baahar a bhujaa.e.n pasaarii ho.n",
"phaile ga.e haath do",
"chipka ga.e posTar",
"baa.nke-tirchhe var.n aur",
"laal niile ghanghor",
"haD़taalii akshar",
"inhii.n halachlo.n ke hii kaara.n to sahsa",
"bargad me.n pale hu.e pa.nkho.n kii Darii hu.ii",
"chau.nkii hu.ii ajiiba-sii ga.ndii phaD़phaD",
"a.ndhere kii aatma se karte hu.e shikaayat",
"kaa.nv-kaa.nv karte hu.e paksha.iyo.n ke jamghaT",
"uD़ne lage akasmaat",
"maano a.ndhere ke",
"hriday me.n sa.ndehii sha.nkaa.o.n ke pakshaaghaata!!",
"maddhim chaa.ndnii me.n ekaa.ek ekaa.ek",
"khaprailo.n par Thahar ga.ii",
"billii ek chupchaap",
"rajnii ke nijii guptachro.n kii pratinidhi",
"puu.nchh uThaa.e vah",
"ja.nglii tez",
"aa.nkh",
"phailaa.e",
"yamduuta-putrii-sii",
"[sabhii deh syaah, par",
"pa.nje sirf shvet aur",
"KHuun Tapkaate hu.e naaKHuuna]",
"dekhatii hai maarjaar",
"chipkaata kaun hai",
"makaano.n kii piiTh par",
"ahaato.n kii bhiit par",
"bargad kii ajagrii Daalo.n ke pha.ndo.n par",
"a.ndhere ke ka.ndho.n par",
"chipkaata kaun hai?",
"chipkaata kaun hai",
"haD़taalii posTar",
"baDe-baDe akshar",
"baa.nke-tirchhe var.n aur",
"la.mbe-chauDe ghanghor",
"laala-niile bhaya.nkar",
"haD़taalii posTar!!",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii aiyaarii roshanii bhii KHuub hai",
"makaana-makaan ghus lohe ke gazo.n kii jaalii",
"ke jharokho.n ko paar kar",
"lipe hu.e kamre me.n",
"jel ke kapDe-sii phailii hai chaa.ndnii,",
"duura-duur kaalii-kaalii",
"dhaariyo.n ke baDe-baDe chaukhaTTo.n ke moTe-moTe",
"kapDe-sii phailii hai",
"leTii hai jaaliidaar jharokhe se aa.ii hu.ii",
"jel sujhaatii hu.ii aiyaarii roshanii!!",
"a.ndhiyaale taal par",
"kaale ghine pa.nkho.n ke baara-baar",
"chakkaro.n ke ma.nDraate vistaar",
"ghina chimgaadaD़-dal bhaTakta hai chaaro.n or",
"maano aha.n ke avruddh",
"apaavan ashuddh ghere me.n ghire hu.e",
"napu.nsak pa.nkho.n kii chhaTapTaatii raftaar",
"ghina chimgaadaD़-dal",
"bhaTakta hai pyaasaa-sa,",
"buddhi kii aa.nkho.n me.n",
"svaartho.n ke shiishe-saa!!",
"bargad ko ki.ntu sab",
"pata tha itihaas,",
"kolataarii saDak par khaDe hu.e sarvochch",
"gaa.ndhii ke putle par",
"baiThe hu.e aa.nkho.n ke do chakr",
"yaanii ghugghuu ek—",
"tilak ke putle par",
"baiThe hu.e ghugghuu se",
"baatachiit karte hu.e",
"kahta hii jaata hai—",
"...m me.n.",
"mai.nne bhii siddhi kii।",
"dekho muuTh maar dii",
"manushyo.n par is taraha.",
"tilak ke putle par baiThe hu.e ghugghuu ne",
"dekha ki bhayaanak laal muuTh",
"kaale aasamaan me.n",
"tairatii-sii dhiire-dhiire ja rahii",
"udgaara-chihnaakaar vikraal",
"tairata tha laala-laala!!",
"dekh, usne kaha ki vaaha-vaah",
"raat ke jahaa.npnaah",
"isiili.e aaja-kal",
"dil ke ujaale me.n bhii a.ndhere kii saakh hai",
"raatri kii kaa.nkho.n me.n dabii hu.ii",
"sa.nskriti-paakhii ke pa.nkh hai suraksha.it!!",
". gaya aasamaan",
"raatri kii a.ndhiyaalii sachaa.iyaa.n gho.nT ke,",
"manushyo.n ko maarane ke KHuub hai.n ye ToTake!",
"gagan me.n karafyuu hai,",
"zam.aan me.n zoradaar zahriilii chhi. thuu. hai!!",
"saraafe me.n bijlii ke buudam",
"kha.mbho.n par laTke hu.e maddhim",
"dimaagh me.n dhu.ndh hai,",
"chi.nta hai saTTe kii hriday-vinaashinii!!",
"raatri kii kaalii syaah",
"kaDaahii se akasmaat",
"saD़ko.n par phail ga.ii",
"satyo.n kii miThaa.ii kii chaashanii!!",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii aiyaarii roshanii",
"bhiimaakaar pulo.n ke",
"Thiik niiche baiThakar,",
"choro.n-sii uchakko.n-sii",
"naalo.n aur jharno.n ke taTo.n par",
"kinaare-kinaare chal,",
"paanii par jhuke hu.e",
"peDo.n ke niiche baiTh,",
"raata-be-raat vah",
"machhliyaa.n pha.nsaatii hai",
"aavaara machhu.o.n-sii shohado.n-sii chaa.ndnii",
"saD़ko.n ke pichhvaaDe",
"TuuTe-phuuTe drishyo.n me.n,",
"ga.ndgii ke kaale-se naale ke jhaag par",
"badmast kalpanaa-sii phailii thii raata-bhar",
"seks ke kashTo.n ke kaviyo.n ke kaama-sii!",
"ki.ngsave me.n mashhuur",
"raat kii hai ज़.i.ndgii!",
"saD़ko.n kii shriimaan",
"bhaaratiiy phira.ngii duukaan,",
"suga.ndhit prakaash me.n chamachmaata iimaan",
"ra.ngiin chamaktii chiizo.n ke surbhit",
"sparsho.n me.n",
"shiisho.n kii suvishaal jhaa.n.iyo.n ke ram.na.iiy",
"drishyo.n me.n",
"basii thii chaa.ndnii",
"khuubasuurat amriikii maigziina-prishTho.n-sii",
"khulii thii,",
"na.ngii-sii naariyo.n ke",
"ughre hu.e a.ngo.n ke",
"vibhinn pojo.n me.n",
"leTii thii chaa.ndnii",
"saफ़.ed",
"a.nDarviyar-sii, aadhunik pratiiko.n me.n",
"phailii thii",
"chaa.ndnii!",
"karafyuu nahii.n yahaa.n, pasa.ndgii. sa.ndlii,",
"ki.ngsave me.n mashhuur raat kii hai ज़.i.ndgii",
"ajii, yah chaa.ndnii bhii baDii masakhrii hai!!",
"tima.nज़.ile kii ek",
"chamaktii hu.ii vah",
"sameTakar haatha-paa.nv",
"kisii kii taak me.n",
"baiThii hu.ii chupchaap",
"dhiire se utartii hai",
"raasto.n par patho.n par",
"chaDh़tii hai chhato.n par",
"gailarii me.n ghuum aur",
"khaprailo.n par chaDh़kar",
"niimo.n kii shaakho.n ke sahaare",
"aa.ngan me.n utarkar",
"kamro.n me.n halke-paa.nv",
"dekhatii hai, khojatii hai—",
"shahar ke kono.n ke tikone me.n chhupii hu.ii",
"chaa.ndnii",
"saDak ke peDo.n ke gu.mbdo.n par chaDh़kar",
"mahal ulaa.ngh kar",
"muhalle paar kar",
"galiyo.n kii guhaa.o.n me.n dabe-paa.nv",
"ख़.ufiya suraagh me.n",
"guptachrii taak me.n",
"jamii hu.ii khojatii hai kaun vah",
"ka.ndho.n par a.ndhere ke",
"chipkaata kaun hai",
"bhaD़kiile posTar,",
"la.mbe-chauDe var.n aur",
"baa.nke-tirchhe ghanghor",
"laala-niile akshar।",
"kolataarii saDak ke biicho-biich khaDii hu.ii",
"gaa.ndhii kii muurti par",
"baiThe hu.e ghugghuu ne",
"gaana shuruu kiya,",
"hichkii kii taal par",
"saa.nso.n ne tab",
"mar jaana",
"shuruu kiya,",
"Teliiफ़.ona-kha.mbho.n par thame hu.e taaro.n ne",
"saTTe ke Tra.nk-kaॉla-suro.n me.n",
"tharraana aur jhanajhnaana shuruu kiyaa!",
"raatri ka kaalaa-syaah",
"kan-Top pahne hu.e",
"aasamaana-baaba ne hanumaana-chaaliisa",
"Duubii hu.ii baanii me.n gaana shuruu kiya।",
"masaan ke ujaaD",
"peDo.n kii a.ndhiyaalii shaakh par",
"laala-laal laTke hu.e",
"prakaash ke chiithaDe—",
"hilte hu.e, Dulte hu.e, lapaT ke palluu।",
"sachaa.ii ke adh-jale murdo.n kii chitaa.o.n kii",
"phaTii hu.ii, phuuTii hu.ii dahak me.n kaviyo.n ne",
"bahaktii kavitaa.e.n gaana shuruu kiya।",
"sa.nskriti ke kuhriile dhu.e.n se bhuuto.n ke",
"gola-gol maTko.n se cheharo.n ne",
"namrata ke ghighiyaate svaa.ng me.n",
"duniya ko haath joD",
"kahna shuruu kiyaa—",
"buddh ke stuup me.n",
"maanav ke sapne",
"gaD ga.e, gaaDe ga.e!!",
"iisa ke pa.nkh sab",
"jhaD ga.e, jhaaDe ga.e!!",
"saty kii",
"devadaasii-choliyaa.n utaarii ga.ii.n",
"ughaarii ga.ii.n,",
"sapno.n kii aa.nte sab",
"chiirii ga.ii.n, phaaDii ga.ii.n!!",
"baaqii sab khol hai,",
"ज़.i.ndgii me.n jhol hai!!",
"galiyo.n ka si.nduurii vikraal",
"khaDa hu.a bhairo.n, ki.ntu,",
"ha.ns paDa KHatran.a",
"chaa.ndnii ke chehare par",
"galiyo.n kii bhuurii KHaak",
"uD़ne lagii dhuul aur",
"sa.nvlaa.ii na.ngii hu.ii chaa.ndnii!",
"aur, us a.ndhiyaale taal ke us paar",
"nagar nihaarataa-sa khaDa hai pahaaD ek",
"lohe kii nabh-chu.mbii shila ka chabuutara",
"lohaa.ngii kahaata hai",
"ki jiske bhavy shiirsh par",
"baDa bhaarii kha.nDhar",
"kha.nDhar ke dhva.nso.n me.n buzug daraKHt ek",
"jiske ghane tane par",
"likkhii hai premiyo.n ne",
"apnii yaadadaashte.n,",
"lohaa.ngii me.n havaa.e.n",
"daraKHt me.n ghuskar",
"patto.n se phusphusaatii kahtii hai.n",
"nagar kii vyathaa.e.n",
"sabhaa.o.n kii kathaa.e.n",
"morcho.n kii taDap aur",
"makaano.n ke morche miiTi.ngo.n ke marma-raag",
"a.ngaaro.n se bharii hu.ii",
"praa.na.o.n kii garm raakh",
"galiyo.n me.n basii hu.ii chhaayaa.o.n ke lok me.n",
"chhaayaa.e.n hilii.n kuchh",
"chhaayaa.e.n chalii.n do",
"maddhim chaa.ndnii me.n",
"bhairo.n ke si.nduurii bhayaavane mukh par",
"chhaa.ii.n do chhaayaa.e.n",
"chharahrii chhaa.iyaa.n!!",
"raatri kii thaaho.n me.n lipTii hu.ii saa.nvlii taho.n me.n",
"ज़.i.ndgii ka prashnamyii tharthar",
"tharathraate beqaabuu chaa.ndnii ke",
"palle-sii uD़tii hai gagan-ka.nguuro.n par।",
"piipal ke patto.n ke ka.np me.n",
"chaa.ndnii ke chamakte ka.np se",
"ज़.i.ndgii kii akulaa.ii thaaho.n ke a.nchal",
"uD़te hai.n hava me.n!!",
"galiyo.n ke aage baDh",
"baग़l me.n li.e kuchh",
"moTe-moTe kaaग़zo.n kii ghanii-ghanii bho.nglii",
"laTkaa.e haath me.n",
"Dibba ek Tiin ka",
"Dibbe me.n dhare hu.e la.mbii-sii kuu.nchii ek",
"zam.aan na.nge-pair",
"kahta mai.n pe.nTar",
"shahar hai saatha-saath",
"kahta mai.n kaariigar—",
"bargad kii gola-gol",
"haDDiyo.n kii pattedaar",
"ulajhno.n ke Dhaa.ncho.n me.n",
"laTkaa.o posTar,",
"galiyo.n ke almast",
"fak़iir.o ke lahardaar",
"giito.n se phahraa.o",
"chipkaa.o posTar",
"kahta hai kaariigar।",
"maze me.n aate hu.e",
"pe.nTar ne ha.nskar kahaa—",
"posTar lage hai.n,",
"ki Thiik jagah",
"taD़ke hii mazad.uu",
"paDhe.nge ghuura-ghuur,",
"raaste me.n khaDe-khaDe loga-baag",
"paDhe.nge ज़.i.ndgii kii",
"jhallaa.ii hu.ii aaga!",
"pyaare bhaa.ii kaariigar,",
"agar khii.nch sakuu.n mai.n—",
"haD़taalii posTar paDh़te hu.e",
"logo.n ke rekhaa-chitr,",
"baDa maza aa.ega।",
"kattha.ii khaprailo.n se uThte hu.e dhu.e.n",
"ra.ngo.n me.n",
"aasamaanii siyaahii milaa.ii jaa.e,",
"subah kii kirno.n ke ra.ngo.n me.n",
"raat ke griha-diipa-prakaash ko aashaa.e.n gholakar",
"himmate.n laa.ii jaa.e.n,",
"syaahiyo.n se aa.nkh bane",
"aa.nkho.n kii putlii me.n dhadhak kii laala-laal",
"paa.nkh bane,",
"ekaagr dhyaana-bharii",
"aa.nkho.n kii kirne.n",
"posTaro.n par gire.n—tab",
"kaho bhaa.ii kaisa ho?",
"kaariigar ne saathii ke ka.ndhe par haath rakh",
"kaha tab—",
"mere bhii kartab suno tum,",
"dhu.e.n se kajlaa.e",
"koThe kii bhiit par",
"baa.ns kii tiilii kii lekhanii se likhii thii",
"raama-katha vyatha kii",
"ki aaj bhii jo saty hai",
"lekin, bhaa.ii, kahaa.n ab vaqt hai!!",
"tasviire.n banaane kii",
"ichchha abhii baaqii hai—",
"ज़.i.ndgii bhuurii hii nahii.n, vah KHaakii hai।",
"zam.aan ne nagar ke ka.ndhe par haath rakh",
"kah diya saafa-saaf",
"pairo.n ke nakho.n se ya Da.nDe kii nok se",
"dhartii kii dhuul me.n bhii rekhaa.e.n khii.nchkar",
"tasviire.n banaatii hai.n",
"basharte ki ज़.i.ndgii ke chitra-sii",
"banaane ka chaav ho",
"shraddha ho, bhaav ho।",
"kaariigar ne ha.nskar",
"bagal me.n khii.nchkar pe.nTar se kaha, bhaa.ii",
"chitr banaate vaqt",
"sab svaarth tyaage jaa.e.n,",
"a.ndhere se bhare hu.e",
"ziine kii siiDhiyaa.n chaDh़tii-.utartii jo",
"abhilaashaa—.a.ndh hai",
"uupar ke kamre sab apne li.e ba.nd hai.n",
"apne li.e nahii.n ve!!",
"zam.aan ne nagar se yah kaha ki",
"ghal hai yah, bhram hai",
"hamaara adhikaar sammilit shram aur",
"chhiinane ka dam hai।",
"filah.a tasviire.n",
"is samay ham",
"nahii.n bana paa.e.nge",
"albatta posTar ham laga jaa.e.nge।",
"ham dhadhkaa.e.nge।",
"maano ya maano mat",
"aaj to cha.ndr hai, savita hai,",
"posTar hii kavita hai!!",
"vedana ke rakt se likhe ga.e",
"laala-laal ghanghor",
"dhadhakte posTar",
"galiyo.n ke kaano.n me.n bolate hai.n",
"dhaDaktii chhaatii kii pyaara-bharii garmii me.n",
"bhaapha-bane aa.nsuu ke KHuu.nKHaar akshara!!",
"chaTaakh se lagii hu.ii",
"raayafal golii ke dhaDaako.n se Takra",
"pratirodhii akshar",
"zam.aan ke paiग़.mbar",
"TuuTata aasamaan thaamate hai.n ka.ndho.n par",
"haD़taalii posTar",
"kahte hai.n posTar—",
"aadamii kii darda-bharii gahrii pukaar sun",
"paD़ta hai dauD jo",
"aadamii hai vah KHuub",
"jaise tum bhii aadamii",
"vaise mai.n bhii aadamii,",
"buuDhii maa.n ke jhurriidaar",
"chehare par chhaa.e hu.e",
"aa.nkho.n me.n Duube hu.e",
"ज़.i.ndgii ke tajurbaat",
"bolate hai.n ek saath",
"jaise tum bhii aadamii",
"vaise mai.n bhii aadamii,",
"chillaate hai.n posTar।",
"dhartii ka niila palla kaa.npta hai",
"yaanii aasamaan kaa.npta hai,",
"aadamii ke hriday me.n karu.na.a ki rimjhim,",
"kaalii is jhaDii me.n",
"vichaaro.n kii viksha.obhii taDit karaahatii",
"krodh kii guhaa.o.n ka mu.nh khole",
"shakti ke pahaaD dahaaDa़te",
"kaalii is jhaDii me.n vedana kii taड़.it karaahatii",
"madad ke li.e ab,",
"karu.na.a ke ro.ngTo.n me.n sannaaTa",
"dauD paD़ta aadamii,",
"v aadamii ke dauDa़ne ke saatha-saath",
"dauDa़ta jahaan",
"aur dauD paD़ta aasamaana!!",
"muhalle ke muhaane ke us paar",
"bahas chhiDii hu.ii hai,",
"posTar pahne hu.e",
"bargad kii shaakhe.n DhiiTh",
"posTar dhaara.n ki.e",
"bhai.nro.n kii kaDii piiTh",
"bhai.nro.n aur bargad me.n bahas khaDii hu.ii hai",
"zoradaar jirah ki kitna samay lagega",
"subah hogii kab aur",
"mushkil hogii duur kab",
"samay ka ka.na-ka.n",
"gagan kii kaalima se",
"buu.nd-buu.nd chuu raha",
"taड़.it-.ujaala ban!!",
"nagar ke biicho-biich",
"aadhii raata—.a.ndhere kii kaalii syaah",
"shilaa.o.n se banii hu.ii",
"bhiito.n aur ahaato.n ke, kaa.nch-TukDe jame hu.e",
"uu.nche-.uu.nche ka.ndho.n par",
"chaa.ndnii kii phailii hu.ii sa.nvlaa.ii jhaalare.n।",
"kaaraख़.aanaa—.ahaate ke us paar",
"dhuumr mukh chimniyo.n ke uu.nche-.uu.nche",
"udgaara—chihnaakaara—miinaar",
"miinaaro.n ke biicho-biich",
"chaa.nd ka hai TeDha mu.nh!!",
"bhayaanak syaah san tirpan ka chaa.nd vah!!",
"gagan me.n karafyuu hai",
"dhartii par chupchaap zahriilii chhi. thuu. hai!!",
"piipal ke ख़.aalii paDe gho.nslo.n me.n paksha.iyo.n ke,",
"paiThe hai.n ख़.aalii hu.e kaaratuus।",
"ga.nje-sir chaa.nd kii sa.nvlaa.ii kir.na.o.n ke jaasuus",
"saama-suum nagar me.n dhiire-dhiire ghuuma-ghaam",
"nagar ke kono.n ke tikono.n me.n chhipe hai.n!!",
"chaa.nd kii kankhiyo.n kii ko.na-gaamii kirne.n",
"piilii-piilii roshanii kii, bichhaatii hai",
"a.ndhere me.n, paTTiyaa.n।",
"dekhatii hai nagar kii ज़.i.ndgii ka TuuTaa-phuuTa",
"udaas prasaar vah।",
"samiip vishaalaakaar",
"a.ndhiyaale laal par",
"suunepan kii syaahii me.n Duubii hu.ii",
"chaa.ndnii bhii sa.nvlaa.ii hu.ii hai!!",
"bhiimaakaar pulo.n ke bahut niiche, bhaybhiit",
"manushya-bastii ke biyaabaan taTo.n par",
"bahte hu.e pathriile naalo.n kii dhaara me.n",
"dharaashaayii chaa.ndnii ke ho.nTh kaale paD ga.e",
"harijan galiyo.n me.n",
"laTkii hai peD par",
"kuhaase ke bhuuto.n kii saa.nvlii chuunarii—",
"chuunarii me.n aTkii hai ka.njii aa.nkh ga.nje-sir",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii।",
"baarah ka vaqt hai,",
"bhusbhuse ujaale ka phusphusaata shaDya.ntr",
"shahar me.n chaaro.n or",
"zam.aan bhii saख़t hai!!",
"ajii, is moD par",
"bargad kii ghanghor shaakhaa.o.n kii gaThiyal",
"ajagrii meharaaba—",
"mare hu.e zam.aan.o kii sa.ngThit chhaayaa.o.n me.n",
"basii hu.ii",
"saDii-busii baas li.e—",
"phailii hai galii ke",
"muhaane me.n chupchaap।",
"logo.n ke are! aane-jaane me.n chupchaap,",
"ajagrii kamaanii se girtii hai Tip-Tip",
"phaDaphDaate paksha.iyo.n kii biiTa—",
"maano samay kii biiT ho!!",
"gagan me.n karफ़yuu hai,",
"vriksha.o.n me.n baiThe hu.e paksha.iyo.n par karafyuu hai,",
"dhartii par ki.ntu ajii! zahriilii chhi. thuu. hai।",
"bargad kii Daal ek",
"muhaane se aage phail",
"saDak par baaharii",
"laTaktii hai is tarah—",
"maano ki aadamii ke janam ke pahle se",
"prithvii kii chhaatii par",
"ja.nglii maimath kii suu.nD suu.ngh rahii ho",
"hava ke lahriile sifar.o ko aaj bhii",
"ghirii hu.ii vipda ghere-sii",
"bargad kii ghanii-ghanii chhaa.nv me.n",
"phuuTii hu.ii chuuDiyo.n kii suunii-suunii kalaa.ii-sa",
"suunii-suunii galiyo.n me.n",
"ghar.iib.o ke Thaa.nv me.n—",
"chauraahe par khaDe hu.e",
"bhairo.n kii si.nduurii",
"geru.ii muurat ke pathriile vya.ngy smit par",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii aiyaarii roshanii,",
"tilismii chaa.nd kii raaza-bharii jhaa.iyaa.n!!",
"tajurbo.n ka taabuut",
"ज़.i.nda yah bargad",
"jaanata ki bhairo.n yah kaun hai !!",
"ki bhairo.n kii chaTTaanii piiTh par",
"pairo.n kii mazab.uu",
"pattharii-si.nduurii ii.nT par",
"bhabhakte var.na.o.n ke laTakte posTar",
"jvala.nt akshar !!",
"saamane hai a.ndhiyaala taal aur",
"syaah usii taal par",
"sa.nvlaa.ii chaa.ndnii,",
"samay ka gha.nTaaghar,",
"niraakaar gha.nTaaghar,",
"gagan me.n chupchaap anaakaar khaDa hai!!",
"para.ntu, para.ntu. batlaate",
"ज़.i.ndgii ke kaa.nTe hii",
"kitnii raat biit ga.ii",
"chappalo.n kii chhapchhap,",
"galii ke muhaane se ajiiba-sii aavaaz,",
"phusphusaate hu.e shabda!",
"ja.ngal kii Daalo.n se guzartii havaa.o.n kii sarsar",
"galii me.n jyo.n kah jaa.e",
"ishaaro.n ke aashay,",
"havaa.o.n kii lahro.n ke aakaara—",
"kinhii.n brahmaraakshaso.n ke niraakaar",
"anaakaar",
"maano bahas chheD de.n",
"bahas jaise baDh jaa.e",
"nir.nay par chalii aa.e",
"vaise shabd baara-baar",
"galiyo.n kii aatma me.n",
"bolate hai.n ekaa.ek",
"a.ndhere ke peT me.n se",
"jvaalaa.o.n kii aa.nt baahar nikal aa.e",
"vaise, are, shabdo.n kii dhaar ek",
"bijlii ke Taॉrch kii roshanii kii maar ek",
"bargad ke khuradre ajagrii tane par",
"phail ga.ii akasmaat",
"bargad ke khuradre ajagrii tane par",
"phail ga.e haath do",
"maano hriday me.n chhipii hu.ii baato.n ne sahsa",
"a.ndhere se baahar a bhujaa.e.n pasaarii ho.n",
"phaile ga.e haath do",
"chipka ga.e posTar",
"baa.nke-tirchhe var.n aur",
"laal niile ghanghor",
"haD़taalii akshar",
"inhii.n halachlo.n ke hii kaara.n to sahsa",
"bargad me.n pale hu.e pa.nkho.n kii Darii hu.ii",
"chau.nkii hu.ii ajiiba-sii ga.ndii phaD़phaD",
"a.ndhere kii aatma se karte hu.e shikaayat",
"kaa.nv-kaa.nv karte hu.e paksha.iyo.n ke jamghaT",
"uD़ne lage akasmaat",
"maano a.ndhere ke",
"hriday me.n sa.ndehii sha.nkaa.o.n ke pakshaaghaata!!",
"maddhim chaa.ndnii me.n ekaa.ek ekaa.ek",
"khaprailo.n par Thahar ga.ii",
"billii ek chupchaap",
"rajnii ke nijii guptachro.n kii pratinidhi",
"puu.nchh uThaa.e vah",
"ja.nglii tez",
"aa.nkh",
"phailaa.e",
"yamduuta-putrii-sii",
"[sabhii deh syaah, par",
"pa.nje sirf shvet aur",
"KHuun Tapkaate hu.e naaKHuuna]",
"dekhatii hai maarjaar",
"chipkaata kaun hai",
"makaano.n kii piiTh par",
"ahaato.n kii bhiit par",
"bargad kii ajagrii Daalo.n ke pha.ndo.n par",
"a.ndhere ke ka.ndho.n par",
"chipkaata kaun hai?",
"chipkaata kaun hai",
"haD़taalii posTar",
"baDe-baDe akshar",
"baa.nke-tirchhe var.n aur",
"la.mbe-chauDe ghanghor",
"laala-niile bhaya.nkar",
"haD़taalii posTar!!",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii aiyaarii roshanii bhii KHuub hai",
"makaana-makaan ghus lohe ke gazo.n kii jaalii",
"ke jharokho.n ko paar kar",
"lipe hu.e kamre me.n",
"jel ke kapDe-sii phailii hai chaa.ndnii,",
"duura-duur kaalii-kaalii",
"dhaariyo.n ke baDe-baDe chaukhaTTo.n ke moTe-moTe",
"kapDe-sii phailii hai",
"leTii hai jaaliidaar jharokhe se aa.ii hu.ii",
"jel sujhaatii hu.ii aiyaarii roshanii!!",
"a.ndhiyaale taal par",
"kaale ghine pa.nkho.n ke baara-baar",
"chakkaro.n ke ma.nDraate vistaar",
"ghina chimgaadaD़-dal bhaTakta hai chaaro.n or",
"maano aha.n ke avruddh",
"apaavan ashuddh ghere me.n ghire hu.e",
"napu.nsak pa.nkho.n kii chhaTapTaatii raftaar",
"ghina chimgaadaD़-dal",
"bhaTakta hai pyaasaa-sa,",
"buddhi kii aa.nkho.n me.n",
"svaartho.n ke shiishe-saa!!",
"bargad ko ki.ntu sab",
"pata tha itihaas,",
"kolataarii saDak par khaDe hu.e sarvochch",
"gaa.ndhii ke putle par",
"baiThe hu.e aa.nkho.n ke do chakr",
"yaanii ghugghuu ek—",
"tilak ke putle par",
"baiThe hu.e ghugghuu se",
"baatachiit karte hu.e",
"kahta hii jaata hai—",
"...m me.n.",
"mai.nne bhii siddhi kii।",
"dekho muuTh maar dii",
"manushyo.n par is taraha.",
"tilak ke putle par baiThe hu.e ghugghuu ne",
"dekha ki bhayaanak laal muuTh",
"kaale aasamaan me.n",
"tairatii-sii dhiire-dhiire ja rahii",
"udgaara-chihnaakaar vikraal",
"tairata tha laala-laala!!",
"dekh, usne kaha ki vaaha-vaah",
"raat ke jahaa.npnaah",
"isiili.e aaja-kal",
"dil ke ujaale me.n bhii a.ndhere kii saakh hai",
"raatri kii kaa.nkho.n me.n dabii hu.ii",
"sa.nskriti-paakhii ke pa.nkh hai suraksha.it!!",
". gaya aasamaan",
"raatri kii a.ndhiyaalii sachaa.iyaa.n gho.nT ke,",
"manushyo.n ko maarane ke KHuub hai.n ye ToTake!",
"gagan me.n karafyuu hai,",
"zam.aan me.n zoradaar zahriilii chhi. thuu. hai!!",
"saraafe me.n bijlii ke buudam",
"kha.mbho.n par laTke hu.e maddhim",
"dimaagh me.n dhu.ndh hai,",
"chi.nta hai saTTe kii hriday-vinaashinii!!",
"raatri kii kaalii syaah",
"kaDaahii se akasmaat",
"saD़ko.n par phail ga.ii",
"satyo.n kii miThaa.ii kii chaashanii!!",
"TeDhe-mu.nh chaa.nd kii aiyaarii roshanii",
"bhiimaakaar pulo.n ke",
"Thiik niiche baiThakar,",
"choro.n-sii uchakko.n-sii",
"naalo.n aur jharno.n ke taTo.n par",
"kinaare-kinaare chal,",
"paanii par jhuke hu.e",
"peDo.n ke niiche baiTh,",
"raata-be-raat vah",
"machhliyaa.n pha.nsaatii hai",
"aavaara machhu.o.n-sii shohado.n-sii chaa.ndnii",
"saD़ko.n ke pichhvaaDe",
"TuuTe-phuuTe drishyo.n me.n,",
"ga.ndgii ke kaale-se naale ke jhaag par",
"badmast kalpanaa-sii phailii thii raata-bhar",
"seks ke kashTo.n ke kaviyo.n ke kaama-sii!",
"ki.ngsave me.n mashhuur",
"raat kii hai ज़.i.ndgii!",
"saD़ko.n kii shriimaan",
"bhaaratiiy phira.ngii duukaan,",
"suga.ndhit prakaash me.n chamachmaata iimaan",
"ra.ngiin chamaktii chiizo.n ke surbhit",
"sparsho.n me.n",
"shiisho.n kii suvishaal jhaa.n.iyo.n ke ram.na.iiy",
"drishyo.n me.n",
"basii thii chaa.ndnii",
"khuubasuurat amriikii maigziina-prishTho.n-sii",
"khulii thii,",
"na.ngii-sii naariyo.n ke",
"ughre hu.e a.ngo.n ke",
"vibhinn pojo.n me.n",
"leTii thii chaa.ndnii",
"saफ़.ed",
"a.nDarviyar-sii, aadhunik pratiiko.n me.n",
"phailii thii",
"chaa.ndnii!",
"karafyuu nahii.n yahaa.n, pasa.ndgii. sa.ndlii,",
"ki.ngsave me.n mashhuur raat kii hai ज़.i.ndgii",
"ajii, yah chaa.ndnii bhii baDii masakhrii hai!!",
"tima.nज़.ile kii ek",
"chamaktii hu.ii vah",
"sameTakar haatha-paa.nv",
"kisii kii taak me.n",
"baiThii hu.ii chupchaap",
"dhiire se utartii hai",
"raasto.n par patho.n par",
"chaDh़tii hai chhato.n par",
"gailarii me.n ghuum aur",
"khaprailo.n par chaDh़kar",
"niimo.n kii shaakho.n ke sahaare",
"aa.ngan me.n utarkar",
"kamro.n me.n halke-paa.nv",
"dekhatii hai, khojatii hai—",
"shahar ke kono.n ke tikone me.n chhupii hu.ii",
"chaa.ndnii",
"saDak ke peDo.n ke gu.mbdo.n par chaDh़kar",
"mahal ulaa.ngh kar",
"muhalle paar kar",
"galiyo.n kii guhaa.o.n me.n dabe-paa.nv",
"ख़.ufiya suraagh me.n",
"guptachrii taak me.n",
"jamii hu.ii khojatii hai kaun vah",
"ka.ndho.n par a.ndhere ke",
"chipkaata kaun hai",
"bhaD़kiile posTar,",
"la.mbe-chauDe var.n aur",
"baa.nke-tirchhe ghanghor",
"laala-niile akshar।",
"kolataarii saDak ke biicho-biich khaDii hu.ii",
"gaa.ndhii kii muurti par",
"baiThe hu.e ghugghuu ne",
"gaana shuruu kiya,",
"hichkii kii taal par",
"saa.nso.n ne tab",
"mar jaana",
"shuruu kiya,",
"Teliiफ़.ona-kha.mbho.n par thame hu.e taaro.n ne",
"saTTe ke Tra.nk-kaॉla-suro.n me.n",
"tharraana aur jhanajhnaana shuruu kiyaa!",
"raatri ka kaalaa-syaah",
"kan-Top pahne hu.e",
"aasamaana-baaba ne hanumaana-chaaliisa",
"Duubii hu.ii baanii me.n gaana shuruu kiya।",
"masaan ke ujaaD",
"peDo.n kii a.ndhiyaalii shaakh par",
"laala-laal laTke hu.e",
"prakaash ke chiithaDe—",
"hilte hu.e, Dulte hu.e, lapaT ke palluu।",
"sachaa.ii ke adh-jale murdo.n kii chitaa.o.n kii",
"phaTii hu.ii, phuuTii hu.ii dahak me.n kaviyo.n ne",
"bahaktii kavitaa.e.n gaana shuruu kiya।",
"sa.nskriti ke kuhriile dhu.e.n se bhuuto.n ke",
"gola-gol maTko.n se cheharo.n ne",
"namrata ke ghighiyaate svaa.ng me.n",
"duniya ko haath joD",
"kahna shuruu kiyaa—",
"buddh ke stuup me.n",
"maanav ke sapne",
"gaD ga.e, gaaDe ga.e!!",
"iisa ke pa.nkh sab",
"jhaD ga.e, jhaaDe ga.e!!",
"saty kii",
"devadaasii-choliyaa.n utaarii ga.ii.n",
"ughaarii ga.ii.n,",
"sapno.n kii aa.nte sab",
"chiirii ga.ii.n, phaaDii ga.ii.n!!",
"baaqii sab khol hai,",
"ज़.i.ndgii me.n jhol hai!!",
"galiyo.n ka si.nduurii vikraal",
"khaDa hu.a bhairo.n, ki.ntu,",
"ha.ns paDa KHatran.a",
"chaa.ndnii ke chehare par",
"galiyo.n kii bhuurii KHaak",
"uD़ne lagii dhuul aur",
"sa.nvlaa.ii na.ngii hu.ii chaa.ndnii!",
"aur, us a.ndhiyaale taal ke us paar",
"nagar nihaarataa-sa khaDa hai pahaaD ek",
"lohe kii nabh-chu.mbii shila ka chabuutara",
"lohaa.ngii kahaata hai",
"ki jiske bhavy shiirsh par",
"baDa bhaarii kha.nDhar",
"kha.nDhar ke dhva.nso.n me.n buzug daraKHt ek",
"jiske ghane tane par",
"likkhii hai premiyo.n ne",
"apnii yaadadaashte.n,",
"lohaa.ngii me.n havaa.e.n",
"daraKHt me.n ghuskar",
"patto.n se phusphusaatii kahtii hai.n",
"nagar kii vyathaa.e.n",
"sabhaa.o.n kii kathaa.e.n",
"morcho.n kii taDap aur",
"makaano.n ke morche miiTi.ngo.n ke marma-raag",
"a.ngaaro.n se bharii hu.ii",
"praa.na.o.n kii garm raakh",
"galiyo.n me.n basii hu.ii chhaayaa.o.n ke lok me.n",
"chhaayaa.e.n hilii.n kuchh",
"chhaayaa.e.n chalii.n do",
"maddhim chaa.ndnii me.n",
"bhairo.n ke si.nduurii bhayaavane mukh par",
"chhaa.ii.n do chhaayaa.e.n",
"chharahrii chhaa.iyaa.n!!",
"raatri kii thaaho.n me.n lipTii hu.ii saa.nvlii taho.n me.n",
"ज़.i.ndgii ka prashnamyii tharthar",
"tharathraate beqaabuu chaa.ndnii ke",
"palle-sii uD़tii hai gagan-ka.nguuro.n par।",
"piipal ke patto.n ke ka.np me.n",
"chaa.ndnii ke chamakte ka.np se",
"ज़.i.ndgii kii akulaa.ii thaaho.n ke a.nchal",
"uD़te hai.n hava me.n!!",
"galiyo.n ke aage baDh",
"baग़l me.n li.e kuchh",
"moTe-moTe kaaग़zo.n kii ghanii-ghanii bho.nglii",
"laTkaa.e haath me.n",
"Dibba ek Tiin ka",
"Dibbe me.n dhare hu.e la.mbii-sii kuu.nchii ek",
"zam.aan na.nge-pair",
"kahta mai.n pe.nTar",
"shahar hai saatha-saath",
"kahta mai.n kaariigar—",
"bargad kii gola-gol",
"haDDiyo.n kii pattedaar",
"ulajhno.n ke Dhaa.ncho.n me.n",
"laTkaa.o posTar,",
"galiyo.n ke almast",
"fak़iir.o ke lahardaar",
"giito.n se phahraa.o",
"chipkaa.o posTar",
"kahta hai kaariigar।",
"maze me.n aate hu.e",
"pe.nTar ne ha.nskar kahaa—",
"posTar lage hai.n,",
"ki Thiik jagah",
"taD़ke hii mazad.uu",
"paDhe.nge ghuura-ghuur,",
"raaste me.n khaDe-khaDe loga-baag",
"paDhe.nge ज़.i.ndgii kii",
"jhallaa.ii hu.ii aaga!",
"pyaare bhaa.ii kaariigar,",
"agar khii.nch sakuu.n mai.n—",
"haD़taalii posTar paDh़te hu.e",
"logo.n ke rekhaa-chitr,",
"baDa maza aa.ega।",
"kattha.ii khaprailo.n se uThte hu.e dhu.e.n",
"ra.ngo.n me.n",
"aasamaanii siyaahii milaa.ii jaa.e,",
"subah kii kirno.n ke ra.ngo.n me.n",
"raat ke griha-diipa-prakaash ko aashaa.e.n gholakar",
"himmate.n laa.ii jaa.e.n,",
"syaahiyo.n se aa.nkh bane",
"aa.nkho.n kii putlii me.n dhadhak kii laala-laal",
"paa.nkh bane,",
"ekaagr dhyaana-bharii",
"aa.nkho.n kii kirne.n",
"posTaro.n par gire.n—tab",
"kaho bhaa.ii kaisa ho?",
"kaariigar ne saathii ke ka.ndhe par haath rakh",
"kaha tab—",
"mere bhii kartab suno tum,",
"dhu.e.n se kajlaa.e",
"koThe kii bhiit par",
"baa.ns kii tiilii kii lekhanii se likhii thii",
"raama-katha vyatha kii",
"ki aaj bhii jo saty hai",
"lekin, bhaa.ii, kahaa.n ab vaqt hai!!",
"tasviire.n banaane kii",
"ichchha abhii baaqii hai—",
"ज़.i.ndgii bhuurii hii nahii.n, vah KHaakii hai।",
"zam.aan ne nagar ke ka.ndhe par haath rakh",
"kah diya saafa-saaf",
"pairo.n ke nakho.n se ya Da.nDe kii nok se",
"dhartii kii dhuul me.n bhii rekhaa.e.n khii.nchkar",
"tasviire.n banaatii hai.n",
"basharte ki ज़.i.ndgii ke chitra-sii",
"banaane ka chaav ho",
"shraddha ho, bhaav ho।",
"kaariigar ne ha.nskar",
"bagal me.n khii.nchkar pe.nTar se kaha, bhaa.ii",
"chitr banaate vaqt",
"sab svaarth tyaage jaa.e.n,",
"a.ndhere se bhare hu.e",
"ziine kii siiDhiyaa.n chaDh़tii-.utartii jo",
"abhilaashaa—.a.ndh hai",
"uupar ke kamre sab apne li.e ba.nd hai.n",
"apne li.e nahii.n ve!!",
"zam.aan ne nagar se yah kaha ki",
"ghal hai yah, bhram hai",
"hamaara adhikaar sammilit shram aur",
"chhiinane ka dam hai।",
"filah.a tasviire.n",
"is samay ham",
"nahii.n bana paa.e.nge",
"albatta posTar ham laga jaa.e.nge।",
"ham dhadhkaa.e.nge।",
"maano ya maano mat",
"aaj to cha.ndr hai, savita hai,",
"posTar hii kavita hai!!",
"vedana ke rakt se likhe ga.e",
"laala-laal ghanghor",
"dhadhakte posTar",
"galiyo.n ke kaano.n me.n bolate hai.n",
"dhaDaktii chhaatii kii pyaara-bharii garmii me.n",
"bhaapha-bane aa.nsuu ke KHuu.nKHaar akshara!!",
"chaTaakh se lagii hu.ii",
"raayafal golii ke dhaDaako.n se Takra",
"pratirodhii akshar",
"zam.aan ke paiग़.mbar",
"TuuTata aasamaan thaamate hai.n ka.ndho.n par",
"haD़taalii posTar",
"kahte hai.n posTar—",
"aadamii kii darda-bharii gahrii pukaar sun",
"paD़ta hai dauD jo",
"aadamii hai vah KHuub",
"jaise tum bhii aadamii",
"vaise mai.n bhii aadamii,",
"buuDhii maa.n ke jhurriidaar",
"chehare par chhaa.e hu.e",
"aa.nkho.n me.n Duube hu.e",
"ज़.i.ndgii ke tajurbaat",
"bolate hai.n ek saath",
"jaise tum bhii aadamii",
"vaise mai.n bhii aadamii,",
"chillaate hai.n posTar।",
"dhartii ka niila palla kaa.npta hai",
"yaanii aasamaan kaa.npta hai,",
"aadamii ke hriday me.n karu.na.a ki rimjhim,",
"kaalii is jhaDii me.n",
"vichaaro.n kii viksha.obhii taDit karaahatii",
"krodh kii guhaa.o.n ka mu.nh khole",
"shakti ke pahaaD dahaaDa़te",
"kaalii is jhaDii me.n vedana kii taड़.it karaahatii",
"madad ke li.e ab,",
"karu.na.a ke ro.ngTo.n me.n sannaaTa",
"dauD paD़ta aadamii,",
"v aadamii ke dauDa़ne ke saatha-saath",
"dauDa़ta jahaan",
"aur dauD paD़ta aasamaana!!",
"muhalle ke muhaane ke us paar",
"bahas chhiDii hu.ii hai,",
"posTar pahne hu.e",
"bargad kii shaakhe.n DhiiTh",
"posTar dhaara.n ki.e",
"bhai.nro.n kii kaDii piiTh",
"bhai.nro.n aur bargad me.n bahas khaDii hu.ii hai",
"zoradaar jirah ki kitna samay lagega",
"subah hogii kab aur",
"mushkil hogii duur kab",
"samay ka ka.na-ka.n",
"gagan kii kaalima se",
"buu.nd-buu.nd chuu raha",
"taड़.it-.ujaala ban!!",
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ब्रह्मराक्षस - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/brahmarakshas-gajanan-madhav-muktibodh-kavita | [
"शहर के उस ओर खंडहर की तरफ़",
"परित्यक्त सूनी बावड़ी",
"के भीतरी",
"ठंडे अँधेरे में",
"बसी गहराइयाँ जल की...",
"सीढ़ियाँ डूबीं अनेकों",
"उस पुराने घिरे पानी में...",
"समझ में आ न सकता हो",
"कि जैसे बात का आधार",
"लेकिन बात गहरी हो।",
"बावड़ी को घेर",
"डालें ख़ूब उलझी हैं,",
"खड़े हैं मौन औदुम्बर।",
"व शाखों पर",
"लटकते घुग्घुओं के घोंसले",
"परित्यक्त, भूरे, गोल।",
"विगत शत पुण्यों का आभास",
"जंगली हरी कच्ची गंध में बसकर",
"हवा में तैर",
"बनता है गहन संदेह",
"अनजानी किसी बीती हुई उस श्रेष्ठता का जो कि",
"दिल में एक खटके-सी लगी रहती।",
"बावड़ी की इन मुँडेरों पर",
"मनोहर हरी कुहनी टेक",
"बैठी है टगर",
"ले पुष्प-तारे-श्वेत",
"उसके पास",
"लाल फूलों का लहकता झौंर—",
"मेरी वह कन्हेर...",
"वह बुलाती एक ख़तरे की तरफ़ जिस ओर",
"अँधियारा खुला मुँह बावड़ी का",
"शून्य अंबर ताकता है।",
"बावड़ी की उन घनी गहराइयों में शून्य",
"ब्रह्मराक्षस एक पैठा है,",
"व भीतर से उमड़ती गूँज की भी गूँज,",
"हड़बड़ाहट शब्द पागल से।",
"गहन अनुमानिता",
"तन की मलिनता",
"दूर करने के लिए प्रतिपल",
"पाप छाया दूर करने के लिए, दिन-रात",
"स्वच्छ करने—",
"ब्रह्मराक्षस",
"घिस रहा है देह",
"हाथ के पंजे, बराबर,",
"बाँह-छाती-मुँह छपाछप",
"ख़ूब करते साफ़,",
"फिर भी मैल",
"फिर भी मैल!!",
"और... होंठों से",
"अनोखा स्तोत्र कोई क्रुद्ध मंत्रोच्चार,",
"अथवा शुद्ध संस्कृत गालियों का ज्वार,",
"मस्तक की लकीरें",
"बुन रहीं",
"आलोचनाओं के चमकते तार!!",
"उस अखंड स्नान का पागल प्रवाह...",
"प्राण में संवेदना है स्याह!!",
"किंतु, गहरी बावड़ी",
"की भीतरी दीवार पर",
"तिरछी गिरी रवि-रश्मि",
"के उड़ते हुए परमाणु, जब",
"तल तक पहुँचते हैं कभी",
"तब ब्रह्मराक्षस समझता है, सूर्य ने",
"झुककर नमस्ते कर दिया।",
"पथ भूलकर जब चाँदनी",
"की किरन टकराए",
"कहीं दीवार पर,",
"तब ब्रह्मराक्षस समझता है",
"वंदना की चाँदनी ने",
"ज्ञान-गुरु माना उसे।",
"अति प्रफुल्लित कंटकित तन-मन वही",
"करता रहा अनुभव कि नभ ने भी",
"विनत हो मान ली है श्रेष्ठता उसकी!!",
"और तब दुगुने भयानक ओज से",
"पहचानवाला मन",
"सुमेरी-बेबिलोनी जन-कथाओं से",
"मधुर वैदिक ऋचाओं तक",
"व तब से आज तक के सूत्र",
"छंदस्, मंत्र, थियोरम,",
"सब प्रमेयों तक",
"कि मार्क्स, एंजेल्स, रसेल, टॉएन्बी",
"कि हीडेग्गर व स्पेंग्लर, सार्त्र, गाँधी भी",
"सभी के सिद्ध-अंतों का",
"नया व्याख्यान करता वह",
"नहाता ब्रह्मराक्षस, श्याम",
"प्राक्तन बावड़ी की",
"उन घनी गहराइयों में शून्य।",
"...ये गरजती, गूँजती, आंदोलिता",
"गहराइयों से उठ रहीं ध्वनियाँ, अतः",
"उद्भ्रांत शब्दों के नए आवर्त में",
"हर शब्द निज प्रति-शब्द को भी काटता,",
"वह रूप अपने बिंब से भी जूझ",
"विकृताकार-कृति",
"है बन रहा",
"ध्वनि लड़ रही अपनी प्रतिध्वनि से यहाँ",
"बावड़ी की इन मुँडेरों पर",
"मनोहर हरी कुहनी टेक सुनते हैं",
"टगर के पुष्प-तारे श्वेत",
"वे ध्वनियाँ!",
"सुनते हैं करौंदी के सुकोमल फूल",
"सुनता है उन्हे प्राचीन औदुम्बर",
"सुन रहा हूँ मैं वही",
"पागल प्रतीकों में कही जाती हुई",
"वह ट्रैजिडी",
"जो बावड़ी में अड़ गई।",
"x x x",
"ख़ूब ऊँचा एक जीना साँवला",
"उसकी अँधेरी सीढ़ियाँ...",
"वे एक आभ्यंतर निराले लोक की।",
"एक चढ़ना औ' उतरना,",
"पुनः चढ़ना औ' लुढ़कना,",
"मोच पैरों में",
"व छाती पर अनेकों घाव।",
"बुरे-अच्छे-बीच के संघर्ष",
"से भी उग्रतर",
"अच्छे व उससे अधिक अच्छे बीच का संगर",
"गहन किंचित सफलता,",
"अति भव्य असफलता",
"...अतिरेकवादी पूर्णता",
"की व्यथाएँ बहुत प्यारी हैं...",
"ज्यामितिक संगति-गणित",
"की दृष्टि के कृत",
"भव्य नैतिक मान",
"आत्मचेतन सूक्ष्म नैतिक मान...",
"...अतिरेकवादी पूर्णता की तुष्टि करना",
"कब रहा आसान",
"मानवी अंत:कथाएँ बहुत प्यारी हैं!!",
"रवि निकलता",
"लाल चिंता की रुधिर-सरिता",
"प्रवाहित कर दीवारों पर,",
"उदित होता चंद्र",
"व्रण पर बाँध देता",
"श्वेत-धौली पट्टियाँ",
"उद्विग्न भालों पर",
"सितारे आसमानी छोर पर फैले हुए",
"अनगिन दशमलव से",
"दशमलव-बिंदुओं के सर्वतः",
"पसरे हुए उलझे गणित मैदान में",
"मारा गया, वह काम आया,",
"और वह पसरा पड़ा है...",
"वक्ष-बाँहें खुली फैलीं",
"एक शोधक की।",
"व्यक्तित्व वह कोमल स्फटिक प्रासाद-सा,",
"प्रासाद में जीना",
"व जीने की अकेली सीढ़ियाँ",
"चढ़ना बहुत मुश्किल रहा।",
"वे भाव-संगत तर्क-संगत",
"कार्य सामंजस्य-योजित",
"समीकरणों के गणित की सीढ़ियाँ",
"हम छोड़ दें उसके लिए।",
"उस भाव तर्क व कार्य-सामंजस्य-योजन...",
"शोध में",
"सब पंडितों, सब चिंतकों के पास",
"वह गुरु प्राप्त करने के लिए",
"भटका!!",
"किंतु युग बदला व आया कीर्ति-व्यवसायी",
"...लाभकारी कार्य में से धन,",
"व धन में से हृदय-मन,",
"और, धन-अभिभूत अंतकरण में से",
"सत्य की झाईं",
"निरंतर चिलचिलाती थी।",
"आत्मचेतस् किंतु इस",
"व्यक्तित्व में थी प्राणमय अनबन...",
"विश्वचेतस् बे-बनाव!!",
"महत्ता के चरण में था",
"विषादाकुल मन!",
"मेरा उसी से उन दिनों होता मिलन यदि",
"तो व्यथा उसकी स्वयं जीकर",
"बताता मैं उसे उसका स्वयं का मूल्य",
"उसकी महत्ता!",
"व उस महत्ता का",
"हम सरीखों के लिए उपयोग,",
"उस आंतरिकता का बताता मैं महत्व!!",
"पिस गया वह भीतरी",
"औ' बाहरी दो कठिन पाटों बीच,",
"ऐसी ट्रैजिडी है नीच!!",
"बावड़ी में वह स्वयं",
"पागल प्रतीकों में निरंतर कह रहा",
"वह कोठरी में किस तरह",
"अपना गणित करता रहा",
"औ' मर गया...",
"वह सघन झाड़ी के कँटीले",
"तम-विवर में",
"मरे पक्षी-सा",
"विदा ही हो गया",
"वह ज्योति अनजानी सदा को सो गई",
"यह क्यों हुआ!",
"क्यों यह हुआ!!",
"मैं ब्रह्मराक्षस का सजल-उर शिष्य",
"होना चाहता",
"जिससे कि उसका वह अधूरा कार्य,",
"उसकी वेदना का स्रोत",
"संगत, पूर्ण निष्कर्षों तलक",
"पहुँचा सकूँ।",
"shahr ke us or khanDhar ki taraf",
"parityakt suni bawDi",
"ke bhitari",
"thanDe andhere mein",
"basi gahraiyan jal ki",
"siDhiyan Dubin anekon",
"us purane ghire pani mein",
"samajh mein aa na sakta ho",
"ki jaise baat ka adhar",
"lekin baat gahri ho",
"bawDi ko gher",
"Dalen khoob uljhi hain,",
"khaDe hain maun audumbar",
"wa shakhon par",
"latakte ghugghuon ke ghonsle",
"parityakt, bhure, gol",
"wigat shat punyon ka abhas",
"jangli hari kachchi gandh mein baskar",
"hawa mein tair",
"banta hai gahan sandeh",
"anjani kisi biti hui us shreshthta ka jo ki",
"dil mein ek khatke si lagi rahti",
"bawDi ki in munDeron par",
"manohar hari kuhni tek",
"baithi hai tagar",
"le pushp tare shwet",
"uske pas",
"lal phulon ka lahakta jhaunr—",
"meri wo kanher",
"wo bulati ek khatre ki taraf jis or",
"andhiyara khula munh bawDi ka",
"shunya ambar takta hai",
"bawDi ki un ghani gahraiyon mein shunya",
"brahmarakshas ek paitha hai,",
"wa bhitar se umaDti goonj ki bhi goonj,",
"haDbaDahat shabd pagal se",
"gahan anumanita",
"tan ki malinta",
"door karne ke liye pratipal",
"pap chhaya door karne ke liye, din raat",
"swachchh karne—",
"brahmarakshas",
"ghis raha hai deh",
"hath ke panje, barabar,",
"banh chhati munh chhapachhap",
"khoob karte saf,",
"phir bhi mail",
"phir bhi mail!!",
"aur honthon se",
"anokha stotr koi kruddh mantrochchar,",
"athwa shuddh sanskrit galiyon ka jwar,",
"mastak ki lakiren",
"bun rahin",
"alochnaon ke chamakte tar!!",
"us akhanD snan ka pagal prawah",
"paran mein sanwedna hai syah!!",
"kintu, gahri bawDi",
"ki bhitari diwar par",
"tirchhi giri rawi rashmi",
"ke uDte hue parmanau, jab",
"tal tak pahunchte hain kabhi",
"tab brahmarakshas samajhta hai, surya ne",
"jhukkar namaste kar diya",
"path bhulkar jab chandni",
"ki kiran takraye",
"kahin diwar par,",
"tab brahmarakshas samajhta hai",
"wandna ki chandni ne",
"gyan guru mana use",
"ati praphullit kantkit tan man wahi",
"karta raha anubhaw ki nabh ne bhi",
"winat ho man li hai shreshthta uski!!",
"aur tab dugune bhayanak oj se",
"pahchanwala man",
"sumeri bebiloni jan kathaon se",
"madhur waidik richaon tak",
"wa tab se aaj tak ke sootr",
"chhandas, mantr, thiyoram,",
"sab prmeyon tak",
"ki marx, enjels, rasel, tauenbi",
"ki hiDeggar wa spenglar, sartr, gandhi bhi",
"sabhi ke siddh anton ka",
"naya wyakhyan karta wo",
"nahata brahmarakshas, shyam",
"praktan bawDi ki",
"un ghani gahraiyon mein shunya",
"ye garajti, gunjti, andolita",
"gahraiyon se uth rahin dhwaniyan, atः",
"udbhrant shabdon ke nae awart mein",
"har shabd nij prati shabd ko bhi katta,",
"wo roop apne bimb se bhi joojh",
"wikritakar kriti",
"hai ban raha",
"dhwani laD rahi apni pratidhwani se yahan",
"bawDi ki in munDeron par",
"manohar hari kuhni tek sunte hain",
"tagar ke pushp tare shwet",
"we dhwaniyan!",
"sunte hain karaundi ke sukomal phool",
"sunta hai unhe prachin audumbar",
"sun raha hoon main wahi",
"pagal prtikon mein kahi jati hui",
"wo traijiDi",
"jo bawDi mein aD gai",
"x x x",
"khoob uncha ek jina sanwla",
"uski andheri siDhiyan",
"we ek abhyantar nirale lok ki",
"ek chaDhna au utarna,",
"punः chaDhna au luDhakna,",
"moch pairon mein",
"wa chhati par anekon ghaw",
"bure achchhe beech ke sangharsh",
"se bhi ugrtar",
"achchhe wa usse adhik achchhe beech ka sangar",
"gahan kinchit saphalta,",
"ati bhawy asphalta",
"atirekwadi purnata",
"ki wythayen bahut pyari hain",
"jyamitik sangati ganait",
"ki drishti ke krit",
"bhawy naitik man",
"atmchetan sookshm naitik man",
"atirekwadi purnata ki tushti karna",
"kab raha asan",
"manawi antahakthayen bahut pyari hain!!",
"rawi nikalta",
"lal chinta ki rudhir sarita",
"prwahit kar diwaron par,",
"udit hota chandr",
"wran par bandh deta",
"shwet dhauli pattiyan",
"udwign bhalon par",
"sitare asmani chhor par phaile hue",
"angin dashamlaw se",
"dashamlaw binduon ke sarwatः",
"pasre hue uljhe ganait maidan mein",
"mara gaya, wo kaam aaya,",
"aur wo pasra paDa hai",
"waksh banhen khuli phailin",
"ek shodhak ki",
"wyaktitw wo komal sphatik prasad sa,",
"prasad mein jina",
"wa jine ki akeli siDhiyan",
"chaDhna bahut mushkil raha",
"we bhaw sangat tark sangat",
"kary samanjasya yojit",
"samikarnon ke ganait ki siDhiyan",
"hum chhoD den uske liye",
"us bhaw tark wa kary samanjasya yojan",
"shodh mein",
"sab panDiton, sab chintkon ke pas",
"wo guru prapt karne ke liye",
"bhatka!!",
"kintu yug badla wa aaya kirti wyawsayi",
"labhakari kary mein se dhan,",
"wa dhan mein se hirdai man,",
"aur, dhan abhibhut antakran mein se",
"saty ki jhain",
"nirantar chilchilati thi",
"atmchetas kintu is",
"wyaktitw mein thi pranamay anban",
"wishwchetas be banaw!!",
"mahatta ke charn mein tha",
"wishadakul man!",
"mera usi se un dinon hota milan yadi",
"to wyatha uski swayan jikar",
"batata main use uska swayan ka mooly",
"uski mahatta!",
"wa us mahatta ka",
"hum sarikhon ke liye upyog,",
"us antarikta ka batata main mahatw!!",
"pis gaya wo bhitari",
"au bahari do kathin paton beech,",
"aisi traijiDi hai neech!!",
"bawDi mein wo swyan",
"pagal prtikon mein nirantar kah raha",
"wo kothari mein kis tarah",
"apna ganait karta raha",
"au mar gaya",
"wo saghan jhaDi ke kantile",
"tam wiwar mein",
"mare pakshi sa",
"wida hi ho gaya",
"wo jyoti anjani sada ko so gai",
"ye kyon hua!",
"kyon ye hua!!",
"main brahmarakshas ka sajal ur shishya",
"hona chahta",
"jisse ki uska wo adhura kary,",
"uski wedna ka srot",
"sangat, poorn nishkarshon talak",
"pahuncha sakun",
"shahr ke us or khanDhar ki taraf",
"parityakt suni bawDi",
"ke bhitari",
"thanDe andhere mein",
"basi gahraiyan jal ki",
"siDhiyan Dubin anekon",
"us purane ghire pani mein",
"samajh mein aa na sakta ho",
"ki jaise baat ka adhar",
"lekin baat gahri ho",
"bawDi ko gher",
"Dalen khoob uljhi hain,",
"khaDe hain maun audumbar",
"wa shakhon par",
"latakte ghugghuon ke ghonsle",
"parityakt, bhure, gol",
"wigat shat punyon ka abhas",
"jangli hari kachchi gandh mein baskar",
"hawa mein tair",
"banta hai gahan sandeh",
"anjani kisi biti hui us shreshthta ka jo ki",
"dil mein ek khatke si lagi rahti",
"bawDi ki in munDeron par",
"manohar hari kuhni tek",
"baithi hai tagar",
"le pushp tare shwet",
"uske pas",
"lal phulon ka lahakta jhaunr—",
"meri wo kanher",
"wo bulati ek khatre ki taraf jis or",
"andhiyara khula munh bawDi ka",
"shunya ambar takta hai",
"bawDi ki un ghani gahraiyon mein shunya",
"brahmarakshas ek paitha hai,",
"wa bhitar se umaDti goonj ki bhi goonj,",
"haDbaDahat shabd pagal se",
"gahan anumanita",
"tan ki malinta",
"door karne ke liye pratipal",
"pap chhaya door karne ke liye, din raat",
"swachchh karne—",
"brahmarakshas",
"ghis raha hai deh",
"hath ke panje, barabar,",
"banh chhati munh chhapachhap",
"khoob karte saf,",
"phir bhi mail",
"phir bhi mail!!",
"aur honthon se",
"anokha stotr koi kruddh mantrochchar,",
"athwa shuddh sanskrit galiyon ka jwar,",
"mastak ki lakiren",
"bun rahin",
"alochnaon ke chamakte tar!!",
"us akhanD snan ka pagal prawah",
"paran mein sanwedna hai syah!!",
"kintu, gahri bawDi",
"ki bhitari diwar par",
"tirchhi giri rawi rashmi",
"ke uDte hue parmanau, jab",
"tal tak pahunchte hain kabhi",
"tab brahmarakshas samajhta hai, surya ne",
"jhukkar namaste kar diya",
"path bhulkar jab chandni",
"ki kiran takraye",
"kahin diwar par,",
"tab brahmarakshas samajhta hai",
"wandna ki chandni ne",
"gyan guru mana use",
"ati praphullit kantkit tan man wahi",
"karta raha anubhaw ki nabh ne bhi",
"winat ho man li hai shreshthta uski!!",
"aur tab dugune bhayanak oj se",
"pahchanwala man",
"sumeri bebiloni jan kathaon se",
"madhur waidik richaon tak",
"wa tab se aaj tak ke sootr",
"chhandas, mantr, thiyoram,",
"sab prmeyon tak",
"ki marx, enjels, rasel, tauenbi",
"ki hiDeggar wa spenglar, sartr, gandhi bhi",
"sabhi ke siddh anton ka",
"naya wyakhyan karta wo",
"nahata brahmarakshas, shyam",
"praktan bawDi ki",
"un ghani gahraiyon mein shunya",
"ye garajti, gunjti, andolita",
"gahraiyon se uth rahin dhwaniyan, atः",
"udbhrant shabdon ke nae awart mein",
"har shabd nij prati shabd ko bhi katta,",
"wo roop apne bimb se bhi joojh",
"wikritakar kriti",
"hai ban raha",
"dhwani laD rahi apni pratidhwani se yahan",
"bawDi ki in munDeron par",
"manohar hari kuhni tek sunte hain",
"tagar ke pushp tare shwet",
"we dhwaniyan!",
"sunte hain karaundi ke sukomal phool",
"sunta hai unhe prachin audumbar",
"sun raha hoon main wahi",
"pagal prtikon mein kahi jati hui",
"wo traijiDi",
"jo bawDi mein aD gai",
"x x x",
"khoob uncha ek jina sanwla",
"uski andheri siDhiyan",
"we ek abhyantar nirale lok ki",
"ek chaDhna au utarna,",
"punः chaDhna au luDhakna,",
"moch pairon mein",
"wa chhati par anekon ghaw",
"bure achchhe beech ke sangharsh",
"se bhi ugrtar",
"achchhe wa usse adhik achchhe beech ka sangar",
"gahan kinchit saphalta,",
"ati bhawy asphalta",
"atirekwadi purnata",
"ki wythayen bahut pyari hain",
"jyamitik sangati ganait",
"ki drishti ke krit",
"bhawy naitik man",
"atmchetan sookshm naitik man",
"atirekwadi purnata ki tushti karna",
"kab raha asan",
"manawi antahakthayen bahut pyari hain!!",
"rawi nikalta",
"lal chinta ki rudhir sarita",
"prwahit kar diwaron par,",
"udit hota chandr",
"wran par bandh deta",
"shwet dhauli pattiyan",
"udwign bhalon par",
"sitare asmani chhor par phaile hue",
"angin dashamlaw se",
"dashamlaw binduon ke sarwatः",
"pasre hue uljhe ganait maidan mein",
"mara gaya, wo kaam aaya,",
"aur wo pasra paDa hai",
"waksh banhen khuli phailin",
"ek shodhak ki",
"wyaktitw wo komal sphatik prasad sa,",
"prasad mein jina",
"wa jine ki akeli siDhiyan",
"chaDhna bahut mushkil raha",
"we bhaw sangat tark sangat",
"kary samanjasya yojit",
"samikarnon ke ganait ki siDhiyan",
"hum chhoD den uske liye",
"us bhaw tark wa kary samanjasya yojan",
"shodh mein",
"sab panDiton, sab chintkon ke pas",
"wo guru prapt karne ke liye",
"bhatka!!",
"kintu yug badla wa aaya kirti wyawsayi",
"labhakari kary mein se dhan,",
"wa dhan mein se hirdai man,",
"aur, dhan abhibhut antakran mein se",
"saty ki jhain",
"nirantar chilchilati thi",
"atmchetas kintu is",
"wyaktitw mein thi pranamay anban",
"wishwchetas be banaw!!",
"mahatta ke charn mein tha",
"wishadakul man!",
"mera usi se un dinon hota milan yadi",
"to wyatha uski swayan jikar",
"batata main use uska swayan ka mooly",
"uski mahatta!",
"wa us mahatta ka",
"hum sarikhon ke liye upyog,",
"us antarikta ka batata main mahatw!!",
"pis gaya wo bhitari",
"au bahari do kathin paton beech,",
"aisi traijiDi hai neech!!",
"bawDi mein wo swyan",
"pagal prtikon mein nirantar kah raha",
"wo kothari mein kis tarah",
"apna ganait karta raha",
"au mar gaya",
"wo saghan jhaDi ke kantile",
"tam wiwar mein",
"mare pakshi sa",
"wida hi ho gaya",
"wo jyoti anjani sada ko so gai",
"ye kyon hua!",
"kyon ye hua!!",
"main brahmarakshas ka sajal ur shishya",
"hona chahta",
"jisse ki uska wo adhura kary,",
"uski wedna ka srot",
"sangat, poorn nishkarshon talak",
"pahuncha sakun",
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"This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
मुझे क़दम-क़दम पर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/mujhe-qadam-qadam-par-gajanan-madhav-muktibodh-kavita | [
"मुझे क़दम-क़दम पर",
"चौराहे मिलते हैं",
"बाँहें फैलाए!!",
"एक पैर रखता हूँ",
"कि सौ राहें फूटतीं,",
"व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ;",
"बहुत अच्छे लगते हैं",
"उनके तज़ुर्बे और अपने सपने...",
"सब सच्चे लगते हैं;",
"अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,",
"मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ,",
"जाने क्या मिल जाए!!",
"मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में",
"चमकता हीरा है;",
"हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है,",
"प्रत्येक सुस्मित में विमल सदा नीरा है,",
"मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में",
"महाकाव्य-पीड़ा है,",
"पल-भर में सबसे गुज़रना चाहता हूँ,",
"प्रत्येक उर में से तिर आना चाहता हूँ,",
"इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ,",
"अजीब है ज़िंदगी!!",
"बेवक़ूफ़ बनने के ख़ातिर ही",
"सब तरफ़ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ;",
"और यह सब देख बड़ा मज़ा आता है",
"कि मैं ठगा जाता हूँ...",
"हृदय में मेरे ही,",
"प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है",
"हँस-हँसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है,",
"कि जगत्...स्वायत्त हुआ जाता है।",
"कहानियाँ लेकर और",
"मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते",
"जहाँ ज़रा खड़े होकर",
"बातें कुछ करता हूँ...",
"...उपन्यास मिल जाते।",
"दु:ख की कथाएँ, तरह-तरह की शिकायतें",
"अहंकार-विश्लेषण, चारित्रिक आख्यान,",
"ज़माने के जानदार सूरे व आयतें",
"सुनने को मिलती हैं!",
"कविताएँ मुस्कुरा लाग-डाँट करती हैं",
"प्यार बात करती हैं।",
"मरने और जीने की जलती हुई सीढ़ियाँ",
"श्रद्धाएँ चढ़ती हैं!!",
"घबराए प्रतीक और मुस्काते रूप-चित्र",
"लेकर मैं घर पर जब लौटता...",
"उपमाएँ, द्वार पर आते ही कहती हैं कि",
"सौ बरस और तुम्हें",
"जीना ही चाहिए।",
"घर पर भी, पग-पग पर चौराहे मिलते हैं,",
"बाँहें फैलाए रोज़ मिलती हैं सौ राहें,",
"शाखा-प्रशाखाएँ निकलती रहती हैं,",
"नव-नवीन रूप-दृश्यवाले सौ-सौ विषय",
"रोज़-रोज़ मिलते हैं...",
"और, मैं सोच रहा कि",
"जीवन में आज के",
"लेखक की कठिनाई यह नहीं कि",
"कमी है विषयों की",
"वरन् यह कि आधिक्य उनका ही",
"उसको सताता है,",
"और, वह ठीक चुनाव कर नहीं पाता है!!",
"mujhe qadam qadam par",
"chaurahe milte hain",
"banhen phailaye!!",
"ek pair rakhta hoon",
"ki sau rahen phuttin,",
"wa main un sab par se guzarna chahta hoon;",
"bahut achchhe lagte hain",
"unke tazurbe aur apne sapne",
"sab sachche lagte hain;",
"ajib si akulahat dil mein ubharti hai,",
"main kuch gahre mein utarna chahta hoon,",
"jane kya mil jaye!!",
"mujhe bhram hota hai ki pratyek patthar mein",
"chamakta hira hai;",
"har ek chhati mein aatma adhira hai,",
"pratyek susmit mein wimal sada nira hai,",
"mujhe bhram hota hai ki pratyek wani mein",
"mahakawya piDa hai,",
"pal bhar mein sabse guzarna chahta hoon,",
"pratyek ur mein se tir aana chahta hoon,",
"is tarah khud hi ko diye diye phirta hoon,",
"ajib hai zindgi!!",
"bewaquf banne ke khatir hi",
"sab taraf apne ko liye liye phirta hoon;",
"aur ye sab dekh baDa maza aata hai",
"ki main thaga jata hoon",
"hirdai mein mere hi,",
"prasann chitt ek moorkh baitha hai",
"hans hansakar ashrupurn, matt hua jata hai,",
"ki jagat swayatt hua jata hai",
"kahaniyan lekar aur",
"mujhko kuch dekar ye chaurahe phailte",
"jahan zara khaDe hokar",
"baten kuch karta hoon",
"upanyas mil jate",
"duhakh ki kathayen, tarah tarah ki shikayten",
"ahankar wishleshan, charitrik akhyan,",
"zamane ke janadar sure wa ayten",
"sunne ko milti hain!",
"kawitayen muskura lag Dant karti hain",
"pyar baat karti hain",
"marne aur jine ki jalti hui siDhiyan",
"shraddhayen chaDhti hain!!",
"ghabraye pratik aur muskate roop chitr",
"lekar main ghar par jab lautta",
"upmayen, dwar par aate hi kahti hain ki",
"sau baras aur tumhein",
"jina hi chahiye",
"ghar par bhi, pag pag par chaurahe milte hain,",
"banhen phailaye roz milti hain sau rahen,",
"shakha prshakhayen nikalti rahti hain,",
"naw nawin roop drishywale sau sau wishay",
"roz roz milte hain",
"aur, main soch raha ki",
"jiwan mein aaj ke",
"lekhak ki kathinai ye nahin ki",
"kami hai wishyon ki",
"waran ye ki adhiky unka hi",
"usko satata hai,",
"aur, wo theek chunaw kar nahin pata hai!!",
"mujhe qadam qadam par",
"chaurahe milte hain",
"banhen phailaye!!",
"ek pair rakhta hoon",
"ki sau rahen phuttin,",
"wa main un sab par se guzarna chahta hoon;",
"bahut achchhe lagte hain",
"unke tazurbe aur apne sapne",
"sab sachche lagte hain;",
"ajib si akulahat dil mein ubharti hai,",
"main kuch gahre mein utarna chahta hoon,",
"jane kya mil jaye!!",
"mujhe bhram hota hai ki pratyek patthar mein",
"chamakta hira hai;",
"har ek chhati mein aatma adhira hai,",
"pratyek susmit mein wimal sada nira hai,",
"mujhe bhram hota hai ki pratyek wani mein",
"mahakawya piDa hai,",
"pal bhar mein sabse guzarna chahta hoon,",
"pratyek ur mein se tir aana chahta hoon,",
"is tarah khud hi ko diye diye phirta hoon,",
"ajib hai zindgi!!",
"bewaquf banne ke khatir hi",
"sab taraf apne ko liye liye phirta hoon;",
"aur ye sab dekh baDa maza aata hai",
"ki main thaga jata hoon",
"hirdai mein mere hi,",
"prasann chitt ek moorkh baitha hai",
"hans hansakar ashrupurn, matt hua jata hai,",
"ki jagat swayatt hua jata hai",
"kahaniyan lekar aur",
"mujhko kuch dekar ye chaurahe phailte",
"jahan zara khaDe hokar",
"baten kuch karta hoon",
"upanyas mil jate",
"duhakh ki kathayen, tarah tarah ki shikayten",
"ahankar wishleshan, charitrik akhyan,",
"zamane ke janadar sure wa ayten",
"sunne ko milti hain!",
"kawitayen muskura lag Dant karti hain",
"pyar baat karti hain",
"marne aur jine ki jalti hui siDhiyan",
"shraddhayen chaDhti hain!!",
"ghabraye pratik aur muskate roop chitr",
"lekar main ghar par jab lautta",
"upmayen, dwar par aate hi kahti hain ki",
"sau baras aur tumhein",
"jina hi chahiye",
"ghar par bhi, pag pag par chaurahe milte hain,",
"banhen phailaye roz milti hain sau rahen,",
"shakha prshakhayen nikalti rahti hain,",
"naw nawin roop drishywale sau sau wishay",
"roz roz milte hain",
"aur, main soch raha ki",
"jiwan mein aaj ke",
"lekhak ki kathinai ye nahin ki",
"kami hai wishyon ki",
"waran ye ki adhiky unka hi",
"usko satata hai,",
"aur, wo theek chunaw kar nahin pata hai!!",
"Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.",
"Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.",
"This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.",
"You have remaining out of 5 free poetry pages per month. Log In or Register to become Rekhta Family member to access the full website.",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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] |
पक्षी और दीमक - कहानी | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/story/pakshi-aur-dimak-gajanan-madhav-muktibodh-story | [
"बाहर चिलचिलाती हुई दोपहर है; लेकिन इस कमरे में ठंडा मद्धिम उजाला है। यह उजाला इस बंद खिड़की की दरारों से आता है। यह एक चौड़ी मुँडेरवाली बड़ी खिड़की है, जिसके बाहर की तरफ़, दीवार से लगकर, काँटेदार बेंत की हरी घनी झाड़ियाँ हैं। इनके ऊपर एक जंगली बेल चढ़कर फैल गई है; और उसने आसमानी रंग के गिलास-जैसे अपने फूल प्रदर्शित कर रखे हैं। दूर से देखनेवालों को लगेगा कि उस बेल के फूल नहीं, वरन् बेंत की झाड़ियों के अपने फूल हैं।",
"किंतु इससे भी आश्चर्यजनक बात यह है कि लता ने अपनी घुमावदार चाल से न केवल बेंत की डालों को, उनके काँटों से बचते हुए, जकड़ रखा है, वरन् उनके कंटक-रोमोंवाले पत्तों के एक-एक हरे फ़ीते को समेटकर, कसकर उनकी एक रस्सी-सी बना डाली है; और उस पूरी झाड़ी पर अपने फूल बिखराते-छिटकाते हुए, उन सौंदर्य-प्रतीकों को सूरज और चाँद के सामने कर दिया है। लेकिन, इस खिड़की को मुझे अकसर बंद रखना पड़ता है। छत्तीसगढ़ के इस इलाके में, मौसम-बेमौसम आँधीनुमा हवाएँ चलती हैं। उन्होंने मेरी खिड़की के बंद पल्लों को ढीला कर डाला है। खिड़की बंद रखने का एक कारण यह भी है कि बाहर दीवार से लगकर खड़ी हुई हरी-घनी झाड़ियों के भीतर जो छिपे हुए, गहरे, हरे-साँवले अंतराल हैं, उनमें पक्षी रहते हैं और अंडे देते हैं। वहाँ से कभी-कभी उनकी आवाजें, रात-बिरात, एकाएक सुनाई देती हैं। वे तीव्र भय की रोमांचक चीत्कारें हैं, क्योंकि वहाँ अपने शिकार की खोज में एक भुजंग आता रहता है। वह शायद उस तरफ़ की तमाम झाड़ियों के भीतर रेंगता फिरता है।",
"एक रात, इसी खिड़की में से एक भुजंग मेरे कमरे में भी आया। वह लगभग तीन फ़ीट लंबा अजगर था। खूब खा-पी करके, सुस्त होकर, वह खिड़की के पास, मेरी साइकिल पर लेटा हुआ था। उसका मुँह 'कैरियर' पर, जिस्म की लपेट में, छिपा हुआ था और पूँछ चमकदार 'हैंडिल' से लिपटी हुई थी। ‘कैरियर' से लेकर ‘हैंडिल’ तक की सारी लंबाई को उसने अपने देह-वलयों से कस लिया था। उसकी वह काली-लंबी-चिकनी देह आतंक उत्पन्न करती थी।",
"हमने बड़ी मुश्किल से उसके मुँह को शनाख़्त किया। और फिर एकाएक 'फ़िनाइल' से उस पर हमला करके उसे बेहोश कर डाला। रोमांचपूर्ण थे हमारे वे व्याकुल आक्रमण! गहरे भय की सनसनी में अपनी कायरता का बोध करते हुए,हम लोग, निर्दयतापूर्वक, उसकी छटपटाती देह को लाठियों से मारे जा रहे थे।",
"उसे मरा हुआ जान, हम उसका अग्नि-संस्कार करने गए। मिट्टी के तेल की पीली-गेरुई ऊँची लपक उठाते हुए कंडों की आग में पड़ा हुआ वह ढीला नाग-शरीर, में अपनी बची-खुची चेतना समेटकर, इतनी ज़ोर से ऊपर उछला कि घेरा डालकर खड़े हुए हम लोग हैरत में आकर एक क़दम पीछे हट गए। उसके बाद, रात-भर साँप की ही चर्चा होती रही।",
"इसी खिड़की से लगभग छह गज दूर, बेंत की झाड़ियों के उस पार, एक तालाब है...बड़ा भारी तालाब,आसमान का लंबा-चौड़ा आईना,जो थरथराते हुए मुस्कुराता है। और उसकी थरथराहट पर किरने नाचती रहती हैं। मेरे कमरे में जो प्रकाश आता है, वह इन लहरों पर नाचती हुई किरनों का उछलकर आया हुआ प्रकाश है। खिड़की की लंबी दरारों में से गुज़रकर, वह प्रकाश, सामने की दीवार पर चौड़ी मुँडेर के नीचे सुंदर झलमलाती हुई आकृतियाँ बनाता है।",
"मेरी दृष्टि उस प्रकाश-कंप की ओर लगी हुई है। एक क्षण में उसकी अनगिनत लहरें नाचे जा रहीं हैं, नाचे जा रही हैं। कितना उद्दाम, कितना तीव्र वेग है उन झिलमिलाती लहरों में। मैं मुग्ध हूँ कि बाहर के लहराते तालाब ने किरनों की सहायता से अपने कंपों की प्रतिच्छवि मेरी दीवाल पर आँक दी है।",
"काश, ऐसी भी कोई मशीन होती जो दूसरों के हृदय-कंपनों को उनकी मानसिक हलचलों को,मेरे मन के परदे पर, चित्र रूप में, उपस्थित कर सकती।",
"उदाहरणत:, मेरे सामने इसी पलंग पर, वह जो नारी-मूर्ति बैठी है। उसके व्यक्तित्व के रहस्य को मैं जानना चाहता हूँ, वैसे,उसके बारे में जितनी गहरी जानकारी मुझे है,शायद और किसी को नहीं।",
"इस धुँधले और अँधेरे कमरे में वह मुझे सुंदर दिखाई दे रही है। दीवार पर गिरे हुए प्रत्यावर्तित प्रकाश का पुन: प्रत्यावर्तित प्रकाश,नीली चूडियोंवाले हाथों में थमे हुए उपन्यास के पन्नों पर, ध्यानमग्न कपोलों पर, और आसमानी आँचल पर फैला हुआ है। यद्यपि इस समय, हम दोनों अलग-अलग दुनिया में (वह उपन्यास के जगत में और मैं अपने ख़यालों के रास्ते पर) घूम रहे हैं,फिर भी इस अकेले धुँधले कमरे में गहन साहचर्य के संबंध-सूत्र तड़प रहे हैं और महसूस किए जा रहे हैं।",
"बावजूद इसके, यह कहना ही होगा कि मुझे इसमें 'रोमांस' नहीं दीखता। मेरे सिर का दाहिना हिस्सा सफ़ेद हो चुका है। अब तो मैं केवल आश्रय का अभिलाषी हूँ, ऊष्मापूर्ण आश्रय का...",
"फिर भी, मुझे शंका है। यौवन के मोह- स्वप्न का गहरा उद्दाम आत्मविश्वास अब मुझमें नहीं हो सकता। एक वयस्क पुरुष का अविवाहिता वयस्का स्त्री से प्रेम भी अजीब होता है। उसमें उद्बुद्ध इच्छा से आग्रह के साथ-साथ जो अनुभवपूर्ण ज्ञान का प्रकाश होता है, वह पल-पल पर शंका और संदेह को उत्पन्न करता है।",
"श्यामला के बारे में शंका रहती है। वह ठोस बातों की बारीकियों का बड़ा आदर करती है। वह व्यवहार की कसौटी पर मनुष्य को परखती है। यह मुझे अखरता है। उसमें मुझे एक ठंडा पथरीलापन मालूम होता है। गीले-सपनीले रंगों का श्यामला में सचमुच अभाव है।",
"ठंडा पथरीलापन उचित है,या अनुचित,यह मैं नहीं जानता। किंतु,जब औचित्य के सारे प्रमाण, उनका सारा वस्तु-सत्य, पॉलिशदार टीन-सा चमचमा उठता है तो, मुझे लगता है—बुरे फँसे, इन फालतू की अच्छाइयों में, तो दूसरी तरफ़ मुझे अपने भीतर ही कोई गहरी कमी महसूस होती है, और खटकने लगती है। ऐसी स्थिति में, मैं 'हाँ' और 'ना' के बीच में रहकर, खामोश, 'जी हाँ' की सूरत पैदा कर देता हॅू। डरता सिर्फ़ इस बात से हूँ कि कहीं यह 'जी हाँ','जी हुजूर' न बन जाए। मैं अतिशय शांति- प्रिय व्यक्ति हूँ। अपनी शांति भंग न हो, इसका बहुत ख़याल रखता हूँ। न झगड़ा करना चाहता हूँ,न मैं किसी झगड़े में फँसना चाहता...।",
"उपन्यास फेंककर श्यामला ने दोनों हाथ ऊँचे करके ज़रा-सी अँगड़ाई ली। मैं उसकी रूप-मुद्रा पर फिर से मुग्ध होना ही चाहता था कि उसने एक बेतुका प्रस्ताव सामने रख दिया। कहने लगी,“चलो, बाहर घूमने चलें।",
"मेरी आँखों के सामने बाहर की चिलचिलाती सफ़ेदी और भयानक गरमी चमक उठी। ख़स के परदों के पीछे, छत के पंखों के नीचे,अलसाते लोग याद आए। भद्रता की कल्पना और सुविधा के भाव मुझे मना करने लगे। श्यामला के झक्कीपन का एक प्रमाण और मिला।",
"उसने मुझे एक क्षण आँखों से तौला और फ़ैसले के ढंग से कहा, “खैर, मैं तो जाती हूँ। देखकर चली आऊँगी... बता दूँगी।'",
"लेकिन चंद मिनटों बाद,मैंने अपने को,चुपचाप,उसके पीछे चलते हुए पाया। तब दिल में एक अजीब झोल महसूस हो रहा था। दिमाग़ के भीतर सिकुड़न सी पड़ गई थी। बाल अनसँवरे थे ही। पैरों को किसी-न-किसी तरह आगे ढकेले जा रहा था।",
"लेकिन,यह सिर्फ़ दुपहर के गरम तीरों के कारण था, या श्यामला के कारण,कहना मुश्किल है।",
"यह उसने पीछे मुड़कर मेरी तरफ़ देखा और दिलासा देती हुई आवाज़ में कहा,",
"स्कूल का मैदान ज़्यादा दूर नहीं है।",
"वह मेरे आगे-आगे चल रही थी,लेकिन मेरा ध्यान उसके पैरों और तलुओं के पिछले हिस्से की तरफ़ ही था। उसकी टाँग,जो बिवाइयों भरी और धूल-भरी थी,आगे बढ़ने में,उचकती हुई चप्पल पर चटचटाती थी। ज़ाहिर था कि ये पैर धूल भरी सड़कों पर घूमने के आदी हैं।",
"यह ख़याल आते ही,उसी ख़याल से लगे हुए न मालूम किन धागों से होकर,मैं श्यामला से ख़ुद को कुछ कम, कुछ हीन पाने लगा और इसकी ग्लानि से उबरने के लिए, मैं उस चलती हुई आकृति के साथ,उसके बराबर हो लिया। वह कहने लगी,",
"याद है शाम को बैठक है। अभी चलकर न देखते तो कब देखते! और सबके सामने साबित हो जाता है कि तुम ख़ुद कुछ करते नहीं। सिर्फ़ जबान की कैंची चलती है।",
"अब श्यामला को कौन बताए कि न मैं इस भरी दोपहर में स्कूल का मैदान देखने जाता और न शाम को बैठक में ही। संभव था कि 'कोरम' पूरा न होने के कारण बैठक ही स्थगित हो जाती। लेकिन श्यामला को यह कौन बताए कि हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-अनजानी योजना रहती है। वर्तमान संचालन का दायित्व जिन पर है, वे ख़ुद संचालक-मंडल की बैठक नहीं होने देना चाहते। अगर श्यामला से कहूँ तो वह पूछेगी, 'क्यों!'",
"फिर मैं क्या जवाब दूंगा? मैं उसकी आँखों से गिरना नहीं चाहता,उसकी नज़र में और-और चढ़ना चाहता हूँ। उसका प्रेमी जो हूँ; अपने व्यक्तित्व का सुंदरतम चित्र उपस्थित करने की लालसा भी तो रहती है। वैसे भी,धूप इतनी तेज़ थी कि बात करने या बात बढ़ाने की तबीयत नहीं हो रही थी। मेरी आँखें सामने के पीपल के पेड़ की तरफ़ गईं, जिसकी एक डाल, तालाब के ऊपर, बहुत ऊँचाई पर,दूर तक चली गई थी। उसके सिरे पर एक बड़ा-सा भूरा पक्षी बैठा हुआ था। उसे मैंने चील समझा। लगता था कि वह मछलियों के शिकार की ताक लगाए बैठा है।",
"लेकिन उसी शाखा की बिलकुल विरुद्ध दिशा में, जो दूसरी डालें ऊँची होकर तिरछी और बाँकी-टेढ़ी हो गई हैं, उन पर झुंड के झुंड कौवे काँव-काँव कर रहे हैं मानो वे चील की शिकायत कर रहे हों और उचक-उचककर, फुदक-फुदककर, मछली की ताक में बैठे उस पक्षी के विरुद्ध प्रचार किए जा रहे हों। कि इतने में मुझे उस मैदानी-आसमानी चमकीले खुले खुलेपन में एकाएक, सामने दिखाई देता है—साँवले नाटे कद पर भगवे रंग की खद्दर का बंडीनुमा कुरता, लगभग चौरस मोटा चेहरा, जिसके दाहिने गाल पर एक बड़ा-सा मस्सा है, और उस मस्से में से बारीक बाल निकले हुए।",
"जी धँस जाता है उस सूरत को देखकर। वह मेरा नेता है, संस्था का सर्वेसर्वा है। उसकी ख़याली तसवीर देखते ही मुझे अचानक दूसरे नेताओं की और सचिवालय के उस अँधेरे गलियारे की याद आती है, जहाँ मैंने इस नाटे-मोटे भगवे खद्दर कुरतेवाले को पहले-पहल देखा था।",
"उन अँधेरे गलियारों में से कई-कई बार गुज़रा हूँ और वहाँ किसी मोड़ पर,किसी कोने में इकट्ठा हुए, ऐसी ही संस्थाओं के संचालकों के उतरे हुए चेहरों को देखा है। बावज़ूद श्रेष्ठ पोशाक और 'अपटूडेट' भेस के, सँवलाया हुआ गर्व, बेबस गंभीरता, अधीर उदासी और थकान उनके व्यक्तित्व पर राख-सी मलती है। क्यों?",
"इसलिए कि माली साल की आख़िरी तारीख़ को अब सिर्फ़ दो या तीन दिन बचे हैं। सरकारी 'ग्रांट' अभी मंजूर नहीं हो पा रही है, काग़ज़ात अभी वित्त विभाग में ही अटके पड़े हैं। ऑफ़िसों के बाहर,गलियारे के दूर किसी कोने में, पेशाबघर के पास, या होटलों के कोनों में क्लर्कों की मुट्ठियाँ गरम की जा रही हैं, ताकि 'ग्रांट' मंजूर हो और जल्दी मिल जाए।",
"ऐसी ही किसी जगह पर मैंने इस भगवे खद्दर-कुरतेवाले को ज़ोर-ज़ोर से अँगरेज़ी बोलते हुए देखा था। और, तभी मैंने उसके तेज़ मिजाज़ और फ़ितरती दिमाग़ का अंदाजा लगाया था। इधर, भरी दोपहर में,श्यामला का पार्श्व-संगीत चल ही रहा है, मैं उसका कोई मतलब नहीं निकाल पाता। लेकिन, न मालूम कैसे, मेरा मन उसकी बातों से कुछ संकेत ग्रहण कर, अपने ही रास्ते पर चलता रहता है। इसी बीच उसके एक वाक्य से मैं चौंक पड़ा, “इससे अच्छा है कि तुम इस्तीफा दे दो। अगर काम नहीं कर सकते तो गद्दी क्यों अड़ा रखी है।",
"इसी बात को, कई बार, मैंने अपने से भी पूछा था। लेकिन आज उसके मुँह से ठीक उसी बात को सुनकर मुझे धक्का-सा लगा। और, मेरा मन कहाँ-का-कहाँ चला गया।",
"एक दिन की बात। मेरा सजा हुआ कमरा। चाय की चुस्कियाँ। क़हक़हे। एक पीले रंग के तिकोने चेहरेवाला मसख़रा, ऊल-जलूल शख़्स। बग़ैर यह सोचे कि जिसकी वह निंदा कर रहा है, वह मेरा कृपालु मित्र और सहायक है, वह शख़्स बात बढ़ाता जा रहा है। और मैं! मैं स्तब्ध... किंतु, कान सुन रहे हैं। हारे हुए आदमी जैसी मेरी सूरत, वह कहता जा रहा है, सूक्ष्मदर्शी यंत्र? सूक्ष्मदर्शी यंत्र कहाँ हैं?",
"हैं तो। ये हैं। देखिए।” क्लर्क कहता है। रजिस्टर बताता है। सब कहते हैं-हैं,हैं। ये हैं। लेकिन, कहाँ हैं? यह तो सब लिखित रूप में हैं, वस्तु-रूप में कहाँ हैं! “वे ख़रीदे ही नहीं गए हैं! झूठी रसीद लिखने का कमीशन विक्रेता को, शेष रक़म जेब में। सरकार से पूरी रक़म वसूल!",
"किसी ख़ास जाँच के ऐन मौक़े पर किसी दूसरे शहर की...संस्था से उधार लेकर,सूक्ष्मदर्शी यंत्र हाज़िर! सब चीजें,मौजूद हैं। आइए, देख जाइए। जी हाँ, ये तो हैं सामने। लेकिन, जाँच ख़त्म होने पर सब गायब, अन्तर्धान। कैसा जादू है। ख़र्चे का आँकड़ा खूब फुलाकर रखिए। सरकार के पास काग़ज़ात भेज दीजिए। ख़ास मौक़ों पर ऑफ़िसों के धुँधले गलियारों और होटलों के कोनों में मुट्ठियाँ गरम कीजिए। सरकारी ‘ग्रांट' मंजूर! और, उसका न जाने कितना हिस्सा, बड़े ही तरीक़े से संचालकों की जेब में! जी!",
"भरी दोपहर में मैं आगे बढ़ा जा रहा हूँ। कानों में ये आवाज़ें गूँजती जा रही हैं। मैं व्याकुल हो उठता हूँ। श्यामला का पार्श्वसंगीत चल रहा है। मुझे ज़बरदस्त प्यास लगती है! पानी,पानी! कि इतने में एकाएक विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की ऊँचे रोमन स्तंभोंवाली इमारत सामने आ जाती है। तीसरा पहर। हलकी धूप। इमारत की पत्थर-सीढ़ियाँ, लंबी, मोतिया। सीढ़ियों से लगकर, अभ्रक-मिली लाल मिट्टी के चमचमाते रास्ते पर सुंदर काली 'शेवरलेट'।",
"भगवे खद्दर-कुर्तेवाले की 'शेवरलेट', जिसके ज़रा पीछे मैं खड़ा हूँ, और देख रहा हूँ—यों ही-कार का नंबर-कि इतने में उसके चिकने काले हिस्से में, जो आईने-सा चमकदार है, मेरी सूरत दिखाई देती है। भयानक है वह सूरत। सारे अनुपात बिगड़ गए हैं। नाक डेढ़ गज लंबी और कितनी मोटी हो गई है। चेहरा बेहद लंबा और सिकुड़ गया है। आँखें खड्डेदार। कान नदारद। भूत-जैसा अप्राकृतिक रूप। मैं अपने चेहरे की उस विद्रूपता को, मुग्ध भाव से, कुतूहल से और आश्चर्य से देख रहा हूँ, एकटक! कि इतने में मैं दो क़दम एक ओर हट जाता हूँ; और पाता हूँ कि मोटर के उस काले चमकदार आईने में, मेरे गाल; ठुड्डी, नाक, कान सब चौड़े हो गए हैं, एकदम चौड़े। लंबाई लगभग नदारद। मैं देखता ही रहता हूँ, देखता ही रहता हूँ कि इतने में दिल के किसी कोने में कोई अँधियारा गटर एकदम फूट निकलता है। वह गटर है आत्मालोचन,दु:ख और ग्लानि का।",
"और, सहसा, मुँह से हाय निकल पड़ती है। उस भगवे खद्दर-कुरतेवाले से मेरा छुटकारा कब होगा, कब होगा! और, तब लगता है कि इस सारे जाल में, बुराई की इस अनेक चक्रोंवाली दैत्याकार मशीन में न जाने कब से मैं फँसा पड़ा हूँ। पैर भिंच गए हैं, पसलियाँ चूर हो गई हैं, चीख़ निकल नहीं पाती, आवाज़ हलक़ में फँसकर रह गई है।",
"कि इसी बीच अचानक एक नज़ारा दिखाई देता है रोमन स्तंभोंवाली विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की ऊँची, लंबी मोतिया सीढ़ियों पर से उतर रही है एक आत्म-विश्वासपूर्ण गौरवमय नारीमूर्ति। वह किरणीली मुसकान मेरी ओर फेंकती-सी दिखाई देती है। मैं इस स्थिति में नहीं हूँ कि उसका स्वागत कर सकूँ। मैं बदहवास हो उठता हूँ।",
"वह धीमे-धीमे मेरे पास आती है, अभ्यर्थनापूर्ण मुस्कुराहट के साथ कहती है, पढ़ी है आपने यह पुस्तक?",
"काली ज़िल्द पर सुनहले रोमन अक्षरों में लिखा है, 'आई विल नॉट रेस्ट' मैं साफ़ झूठ बोल जाता हूँ, “हाँ पढ़ी है, बहुत पहले लेकिन, मुझे महसूस होता है कि मेरे चेहरे से तेलिया पसीना निकल रहा है। मैं बार-बार अपना मुँह पोंछता हूँ रूमाल से। बालों के नीचे ललाट-हाँ ललाट (यह शब्द मुझे अच्छा लगता है) को रगड़कर साफ़ करता हूँ। और, फिर दूर एक पेड़ के नीचे, इधर आते हुए, भगवे खद्दर-कुरतेवाले की आकृति को देखकर श्यामला से कहता हूँ, “अच्छा, मैं ज़रा उधर जा रहा हूँ। फिर भेंट होगी। और, सभ्यता के तकाज़े से मैं उसके लिए नमस्कार के रूप में मुस्कुराने की चेष्टा करता हूँ।",
"पेड़ ! अजीब पेड़ है, (यहाँ रुका जा सकता है), बहुत पुराना पेड़ है, जिसकी जड़ें उखड़कर बीच में से टूट गई हैं,और जो साबुत हैं,उनके आस-पास की मिट्टी खिसक गई है। इसलिए वे उभरकर ऐंठी हुई-सी लगती है। पेड़ क्या है,लगभग ढूँठ है। उसकी शाखाएँ काट डाली गई हैं। लेकिन, कटी हुई बाँहोंवाले उस पेड़ में से नई डालें निकलकर, हवा में खेल रही हैं। उन डालों में कोमल-कोमल हरी-हरी पत्तियाँ झालर-सी दिखाई देती हैं। पेड़ के मोटे तने में से जगह-जगह ताजा गोंद निकल रहा है। गोंद की साँवली कत्थई गठानें मज़े में देखी जा सकती हैं।",
"अजीब पेड़ है, अजीब! (शायद,यह अच्छाई का पेड़ है) इसलिए कि एक दिन शाम की मोतिया-गुलाबी आभा में मैंने एक युवक-युवती को इस पेड़ के तले ऊँची उठी हुई जड़ पर आराम से बैठे हुए पाया था। संभवतः,वे अपने अत्यंत आत्मीय क्षणों में डूबे हुए थे।",
"मुझे देखकर युवक ने आदरपूर्वक नमस्कार किया। लड़की ने भी मुझे देखा और झेंप गई। हलके झटके से उसने अपना मुँह दूसरी ओर कर लिया। लेकिन उसकी झेंपती हुई ललाई मेरी नज़रों से न बच सकी। इस प्रेम-मुग्ध युग्म को देखकर मैं भी एक विचित्र आनंद में डूब गया। उन्हें निरापद करने के लिए,जल्दी-जल्दी पैर बढ़ाता हुआ मैं वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो गया।",
"यह पिछली गरमियों की एक मनोहर साँझ की बात है। लेकिन आज इस भरी दोपहरी में श्यामला के साथ पल-भर उस पेड़ के तले बैठने को मेरी भी तबीयत हुई। बहुत ही छोटी और भोली इच्छा है यह! लेकिन, मुझे लगा कि शायद श्यामला मेरे सुझाव को नहीं मानेगी पहुँचने की उसे जल्दी जो है। कहने की मेरी हिम्मत ही नहीं हुई।",
"लेकिन,दूसरे क्षण,आप-ही-आप, मेरे पैर उस ओर बढ़ने लगे। और, ठीक उसी जगह मैं भी जाकर बैठ गया, जहाँ एक साल पहले वह युग्म बैठा था। देखता क्या हूँ कि श्यामला भी आकर बैठ गई है।",
"तब वह कह रही थी, सचमुच बड़ी गरम दोपहर है।",
"सामने,मैदान-ही-मैदान हैं,भूरे मटमैले! उन पर सिरस और सीसम के छायादार विराम-चिह्न खड़े हुए हैं। मैं लुब्ध और मुग्ध होकर उनकी घनी-गहरी छायाएँ देखता रहता हूँ...।",
"...क्योंकि...क्योंकि मेरा यह पेड़,यह अच्छाई का पेड़,छाया प्रदान नहीं कर सकता, आश्रय प्रदान नहीं कर सकता, (क्योंकि वह जगह-जगह काटा गया है) वह तो कटी शाखाओं की दूरियों और अंतरालों में से केवल तीव्र और कष्टप्रद प्रकाश को ही मार्ग दे सकता है।",
"लेकिन,मैदानों के इस चिलचिलाते अपार विस्तार में,एक पेड़ के नीचे, अकेलेपन में, श्यामला के साथ रहने की यह जो मेरी स्थिति है उसका अचानक मुझे गहरा बोध हुआ। लगा कि श्यामला मेरी है,और वह भी इसी भाँति चिलचिलाते गरम तत्त्वों से बनी हुई नारी-मूर्ति है। गरम बफती हुई मिट्टी-सा चिलचिलाता हुआ, उसमें अपनापन है।",
"तो क्या, आज ही, अगली अनगिनत गरम दोपहरियों के पहले, आज ही, अगले क़दम उठाए जाने के पहले,इसी समय,हाँ इसी समय, उसके सामने, अपने दिल की गहरी छिपी हुई तहें और सतहें खोलकर रख दूँ...कि जिससे आगे चलकर,उसे ग़लतफ़हमी में रखने उसे धोखे में रखने का अपराधी न बनूँ!",
"कि इतने में,मेरी आँखों के सामने,फिर उसी भगवे खद्दर-कुरतेवाले की तसवीर चमक उठी। मैं व्याकुल हो गया, और उससे छुटकारा चाहने लगा। तो फिर आत्म-स्वीकार कैसे करूँ, कहाँ से शुरू करूँ!",
"लेकिन,क्या वह मेरी बातें समझ सकेगी? किसी तनी हुई रस्सी पर वज़न साधते हुए चलने का, 'हाँ' और 'ना' के बीच में रहकर जिंदगी की उलझनों में फँसने का,तजुर्बा उसे कहाँ है! हटाओ,कौन कहे!",
"लेकिन, यह स्त्री शिक्षिता तो है! बहस भी तो करती है! बहस की बातों का संबंध न उसके स्वार्थ से होता है, न मेरे। उस समय हम लड़ भी तो सकते हैं। और ऐसी लड़ाइयों में कोई स्वार्थ भी तो नहीं होता। उसके सामने अपने दिल की सतहें खोल देने में न मुझे शर्म रही, न मेरे सामने उसे। लेकिन, वैसा करने में तकलीफ़ तो होती है,अजीब और पेचीदा, घूमती-घुमाती तकलीफ़! और उस तकलीफ़ को टालने के लिए हम झूठ भी तो बोल देते हैं, सरासर झूठ, सफ़ेद झूठ! लेकिन झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है, अधिक महत्त्वपूर्ण और अधिक प्राणवान,मानो वह हमारे लिए और सारी मनुष्यता के लिए विशेष सार रखती हो। ऐसी सतह पर हम भावुक हो जाते हैं। और, यह सतह अपने सारे निजीपन में बिलकुल बेनिजी है। साथ ही, मीठी भी! हाँ, उस स्तर की अपनी विचित्र पीड़ाएँ हैं, भयानक संताप हैं, और इस अत्यंत आत्मीय किंतु निर्वैयक्तिक स्तर पर, हम एक हो जाते हैं, और कभी-कभी ठीक उसी स्तर पर बुरी तरह लड़ भी पड़ते हैं।",
"श्यामला ने कहा,उस मैदान को समतल करने में कितना खर्च आएगा?",
"बारह हज़ार।",
"उनका अंदाज़ क्या है?",
"बीस हज़ार।",
"तो बैठक में जाकर समझा दोगे और यह बता दोगे कि कुल मिलाकर बारह हज़ार से ज़्यादा नामुमकिन है?",
"हाँ,उतना मैं कर दूँगा।",
"उतना का क्या मतलब?",
"अब मैं उसे 'उतना' का क्या मतलब बताऊँ! साफ़ है कि उस भगवे खद्दर कुरतेवाले से मैं दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता। मैं उसके प्रति वफ़ादार रहूँगा क्योंकि मैं उसका आदमी हूँ। भले ही वह बुरा हो, भ्रष्टाचारी हो, किंतु उसी के कारण मेरी आमदनी के ज़रिए बने हुए हैं। व्यक्ति-निष्ठा भी कोई चीज़ है,उसके कारण ही मैं विश्वास योग्य माना गया हूँ। इसलिए, मैं कई महत्त्वपूर्ण कमेटियों का सदस्य हूँ।",
"मैंने विरोध-भाव से श्यामला की तरफ़ देखा। वह मेरा रुख देखकर समझ गई। वह कुछ नहीं बोली। लेकिन, मानो मैंने उसकी आवाज़ सुन ली हो। श्यामला का चेहरा 'चार जनियों- जैसा' है। उस पर साँवली मोहक दीप्ति का आकर्षण है। किंतु, उसकी आवाज़...हाँ आवाज़...वह इतनी सुरीली और मीठी है कि उसे अनसुना करना निहायत मुश्किल है। उस स्वर को सुनकर, दुनिया की अच्छी बातें ही याद आ सकती हैं।",
"पता नहीं किस तरह की परेशान पेचीदगी मेरे चेहरे पर झलक उठी कि जिसे देखकर उसने कहा, कहो, कहो, क्या कहना चाहते हो।”",
"यह वाक्य मेरे लिए निर्णायक बन गया। फिर भी, अवरोध शेष था। अपने जीवन का सार-सत्य अपना गुप्त-धन है। उसके अपने गुप्त संघर्ष हैं, उसका अपना एक गुप्त नाटक है। वह प्रकट करते नहीं बनता। फिर भी,शायद है कि उसे प्रकट कर देने से उसका मूल्य बढ़ जाए, उसका कोई विशेष उपयोग हो सके।",
"एक था पक्षी। वह नीले आसमान में खूब ऊँचाई पर उड़ता जा रहा था। उसके साथ उसके पिता और मित्र भी थे।",
"(श्यामला मेरे चेहरे की तरफ़ आश्चर्य से देखने लगी।)",
"सब,बहुत ऊँचाई पर उड़नेवाले पक्षी थे। उनकी निगाहें भी बड़ी तेज़ थी। उन्हें दूर-दूर की भनक और दूर-दूर की महक भी मिल जाती।",
"एक दिन वह नौजवान पक्षी ज़मीन पर चलती हुई एक बैलगाड़ी को देख लेता है। उसमें बड़े-बड़े बोरे भरे हुए हैं। गाड़ीवाला चिल्ला-चिल्लाकर कहता है,दो दीमकें लो,एक पंख दो।",
"उस नौजवान पक्षी को दीमकों का शौक़ था। वैसे तो ऊँचे उड़नेवाले पंछियों को, हवा में ही बहुत-से कीड़े तैरते हुए मिल जाते, जिन्हें खाकर वे अपनी भूख थोड़ी-बहुत शांत कर लेते।",
"लेकिन दीमकें सिर्फ़ ज़मीन पर मिलती थीं। कभी-कभी पेड़ों पर-ज़मीन से तने पर चढ़कर, ऊँची डाल तक, वे मटियाला लंबा घर बना लेतीं। लेकिन,ऐसे कुछ ही पेड़ होते,और वे सब एक जगह न मिलते।",
"नौजवान पक्षी को लगा- यह बहुत बड़ी सुविधा है कि आदमी दीमकों को बोरों में भरकर बेच रहा है।",
"वह अपनी ऊँचाइयाँ छोड़कर मँडराता हुआ नीचे उतरता है,और पेड़ की एक डाल पर बैठ जाता है। दोनों का सौदा तय हो जाता है। अपनी चोंच से एक पर को खींचकर तोड़ने में उसे तकलीफ़ भी होती है, लेकिन उसे वह बरदाश्त कर लेता है। मुँह में बड़े स्वाद के साथ दो दीमकें दबाकर वह पक्षी फुर्र से उड़ जाता है।",
"(कहते-कहते मैं थक गया शायद साँस लेने के लिए। श्यामला ने पलकें झपकाईं और कहा,'हूँ'।)",
"अब उस पक्षी को गाड़ीवाले से दो दीमकें ख़रीदने और एक पर देने की बड़ी आसानी मालूम हुई। वह रोज़ तीसरे पहर नीचे उतरता और गाड़ीवाले को एक पंख देकर,दो दीमकें ख़रीद लेता।",
"कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन उसके पिता ने देख लिया। उसने समझाने की कोशिश की कि बेटे, दीमकें हमारा स्वाभाविक आहार नहीं हैं, और उनके लिए अपने पंख तो हरगिज़ नहीं दिए जा सकते। लेकिन,उस नौजवान पक्षी ने बड़े ही गर्व से अपना मुँह दूसरी ओर कर लिया।",
"उसे ज़मीन पर उतरकर दीमकें खाने की चट लग गई थी। अब उसे न तो दूसरे कीड़े अच्छे लगते, न फल, न अनाज के दाने। दीमकों का शौक़ अब उस पर हावी हो गया था।",
"(श्यामला अपनी फैली हुई आँखों से मुझे देख रही थी, उसकी ऊपर उठी हुई पलकें और भँवें बड़ी ही सुंदर दिखाई दे रही थीं।)",
"लेकिन, ऐसा कितने दिनों तक चलता। उसके पंखों की संख्या लगातार घटती चली गई। अब वह, ऊँचाइयों पर, अपना संतुलन साध नहीं सकता था, न बहुत समय तक पंख उसे सहारा दे सकते थे। आकाश-यात्रा के दौरान उसे, जल्दी-जल्दी पहाडी चट्टानों, पेड़ों की चोटियों,गुंबदों और बुर्जों पर हाँफते हुए बैठ जाना पड़ता। उसके परिवारवाले तथा मित्र ऊँचाइयों पर तैरते हुए आगे बढ़ जाते। वह बहुत पिछड़ जाता। फिर भी दीमक खाने का उसका शौक़ कम नहीं हुआ। दीमकों के लिए गाड़ीवाले को वह अपने पंख तोड़-तोड़कर देता रहा।",
"(श्यामला गंभीर होकर सुन रही थी। अब की बार उसने 'हूँ' भी नहीं कहा।)",
"फिर, उसने सोचा कि आसमान में उड़ना ही फ़िजूल है। वह मूर्खों का काम है। उसकी हालत यह थी कि अब वह आसमान में उड़ ही नहीं सकता था, वह सिर्फ़ एक पेड़ से उड़कर दूसरे पेड़ तक पहुँच पाता। धीरे-धीरे उसकी यह शक्ति भी कम होती गई। और एक समय वह आया जब वह बड़ी मुश्किल से, पेड़ की एक डाल से लगी हुई दूसरी डाल पर, चलकर, फुदककर पहुँचता। लेकिन दीमक खाने का शौक़ नहीं छूटा।",
"बीच-बीच में गाड़ीवाला बुत्ता दे जाता। वह कहीं नज़र में न आता। पक्षी उसके इंतज़ार में घुलता रहता। लेकिन, दीमकों का शौक़ जो उसे था। उसने सोचा, 'मैं ख़ुद दीमकें ढूँढूँगा।' इसलिए वह पेड़ पर से उतरकर ज़मीन पर आ गया; और घास के एक लहराते गुच्छे में सिमटकर बैठ गया। (श्यामला मेरी ओर देखे जा रही थी। उसने अपेक्षापूर्वक कहा,'हूँ।')",
"फिर,एक दिन उस पक्षी के जी में न मालूम क्या आया। वह खूब मेहनत से ज़मीन में से दीमकें चुन-चुनकर, खाने के बजाय,उन्हें इकट्ठा करने लगा। अब उसके पास दीमकों के ढेर के ढेर हो गए। फिर, एक दिन एकाएक, वह गाड़ीवाला दिखाई दिया। पक्षी को बड़ी खुशी हुई। उसने पुकारकर कहा, ‘‘गाड़ीवाले, ओ गाड़ीवाले! मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था।",
"पहचानी आवाज़ सुनकर गाड़ीवाला रुक गया। तब पक्षी ने कहा,“देखो,मैंने कितनी सारी दीमकें जमा कर ली हैं।' क्या करूँ।”",
"गाड़ीवाले को पक्षी की बात समझ में नहीं आई। उसने सिर्फ़ इतना कहा, ‘‘तो मैं क्या करूं।''",
"“ये मेरी दीमकें ले लो,और मेरे पंख मुझे वापस कर दो। पक्षी ने जवाब दिया।",
"गाड़ीवाला ठठाकर हँस पड़ा। उसने कहा,बेवकूफ़,मैं दीमक के बदले पंख लेता हूँ,पंख के बदले दीमक नहीं!",
"गाड़ीवाले ने 'पंख' शब्द पर बहुत ज़ोर दिया था।",
"(श्यामला ध्यान से सुन रही थी। उसने कहा,'फिर?')",
"गाड़ीवाला चला गया। पक्षी छटपटाकर रह गया। एक दिन एक काली बिल्ली आई और अपने मुँह में उसे दबाकर चली गई। तब उस पक्षी का खून टपक-टपककर ज़मीन पर बूँदों की लकीर बना रहा था।",
"(श्यामला ध्यान से मुझे देखे जा रही थी; और उसकी एकटक निगाहों से बचने के लिए मेरी आँखें तालाब की सिहरती- काँपती,चिलकती-चमकती लहरों पर टिकी हुई थीं।)",
"कहानी कह चुकने के बाद, मुझे एक ज़बरदस्त झटका लगा। एक भयानक प्रतिक्रिया–कोलतार-जैसी काली, गंधक-जैसी पीली-नारंगी।",
"नहीं,मुझमें अभी बहुत कुछ शेष है,बहुत कुछ। मैं उस पक्षी-जैसा नहीं मरूँगा।",
"मैं अभी भी उबर सकता हूँ। रोग अभी असाध्य नहीं हुआ है। ठाठ से रहने के चक्कर से बँधे हुए बुराई के चक्कर तोड़े जा सकते हैं। प्राणशक्ति शेष है,शेष! तुरंत ही लगा कि श्यामला के सामने फ़िजूल अपना रहस्य खोल दिया, व्यर्थ ही आत्म-स्वीकार कर डाला। कोई भी व्यक्ति इतना परम प्रिय नहीं हो सकता कि भीतर का नंगा, बालदार रीछ उसे बताया जाए! मैं असीम दुख के खारे मृतक सागर में डूब गया।",
"श्यामला अपनी जगह से धीरे से उठी, साड़ी का पल्ला ठीक किया, उसकी सलवटें बराबर जमाईं, बालों पर से हाथ फेरा। और फिर (अँगरेज़ी में) कहा, सुंदर कथा है, बहुत सुंदर! फिर, वह क्षण-भर खोई-सी खड़ी रही,और फिर बोली, 'तुमने कहाँ पढ़ी?",
"मैं अपने ही शून्य में खोया हुआ था। उसी शून्य के बीच में से मैंने कहा, “पता नहीं...किसी ने सुनाई या मैंने कहीं पढ़ी। और, वह श्यामला अचानक मेरे सामने आ गई, कुछ कहना चाहने लगी, मानो उस कहानी में उसकी किसी बात की ताईद होती हो। उसके चेहरे पर धूप पड़ी हुई थी। मुखमंडल सुंदर और प्रदीप्त दिखाई दे रहा था।",
"कि इसी बीच हमारी आँखें सामने के रास्ते पर जम गईं। घुटनों तक मैली धोती और काली, नीली, सफ़ेद या लाल बंडी पहने कुछ देहाती जिसे वह अपने भाई, समूह में, चले जा रहे थे। एक के हाथ में एक बड़ा-सा डंडा था, आगे, सामने,किए हुए था। उस डंडे पर एक लंबा मरा हुआ साँप झूल रहा था। काला भुजंग,जिसके पेट की हलकी सफ़ेदी भी झलक रही थी।",
"श्यामला ने देखते ही पूछा, कौन-सा साँप है यह?",
"वह ग्रामीण मुख, छत्तीसगढ़ी लहजे में चिल्लाया, करेट है बाई, करेट!",
"श्यामला के मुँह से निकल पड़ा, “ओफ़्फो! करेट तो बड़ा जहरीला साँप होता फिर, मेरी ओर देखकर, कहा, नाग की तो दवा भी निकली है,करेट की तो कोई दवा नहीं है। अच्छा किया, मार डाला। जहाँ साँप देखो,मार डालो; फिर वह पनियल साँप ही क्यों न हो।",
"और फिर, न जाने क्यों, मेरे मन में उसका यह वाक्य गूँज उठा, “जहाँ साँप देखो, मार डालो।",
"और ये शब्द मेरे मन में गूँजते ही चले गए।",
"कि इसी बीच...रजिस्टर में चढ़े हुए आँकड़ों की एक लंबी मीज़ान मेरे सामने झूल उठी,और गलियारे के अँधेरे कोनों में गरम होनेवाली मुट्ठियों का चोर-हाथ।",
"श्यामला ने पलटकर कहा,तुम्हारे कमरे में भी तो साँप घुस आया था। कहाँ से आया था वह ?",
"फिर उसने ख़ुद ही जवाब दे लिया,हाँ, वह पास की खिड़की में से आया होगा।",
"खिड़की की बात सुनते ही मेरे सामने, बाहर की काँटेदार बेंत की झाड़ी आ गई, जिसे जंगली बेल ने लपेटकर रखा था। मेरे ख़ुद के तीखे काँटों के बावजूद,क्या श्यामला मुझे इसी तरह लपेट सकेगी! बड़ा ही 'रोमैंटिक' ख़याल है,लेकिन कितना भयानक!",
"...क्योंकि श्यामला के साथ अगर मुझे जिंदगी बसर करनी है तो न मालूम कितने ही भगवे खद्दर-कुरतेवालों से मुझे लड़ना पड़ेगा,जी कड़ा करके लड़ाइयाँ मोल लेनी पड़ेंगी और अपनी आमदनी के ज़रिए ख़त्म कर देने होंगे। श्यामला का क्या है! वह तो एक गाँधीवादी कार्यकर्ता की लड़की है, आदिवासियों की एक संस्था में कार्य करती है। उसका आदर्शवाद भी भोले-भाले आदिवासियों की उस कुल्हाड़ी-जैसा है जो जंगल में अपने बेईमान और बेवफ़ा साथी का सिर धड़ से अलग कर देती है। बारीक बेईमानियों का सूफ़ियाना अंदाज़ उसमें कहाँ!",
"किंतु, फिर भी आदिवासियों-जैसे उस अमिश्रित आदर्शवाद में मुझे आत्मा का गौरव दिखाई देता है, मनुष्य की महिमा दिखाई देती है, पैने तर्क की अपनी अंतिम प्रभावोत्पादक परिणति का उल्लास दिखाई देता है और ये सब बातें मेरे हृदय को स्पर्श कर जाती हैं। तो अब मैं इसके लिए क्या करूँ, क्या करूँ! और अब मुझे सज्जायुक्त भद्रता के मनोहर वातावरण वाला अपना कमरा याद आता है...अपना अकेला धुँधला-धुँधला कमरा। उसके एकांत में प्रत्यावर्तित और पुनः प्रत्यावर्तित प्रकाश के कोमल वातावरण में मूल-रश्मियों और उनके उद्गम-स्रोतों पर सोचते रहना, ख़यालों की लहरों में बहते रहना कितना सरल, सुंदर और भद्रता-पूर्ण है। उससे न कभी गरमी लगती है, न पसीना आता है, न कभी कपड़े मैले होते हैं। किंतु प्रकाश के उद्गम के सामने रहना, उसका सामना करना, चिलचिलाती दोपहर में रास्ता नापते रहना और धूल फाँकते रहना कितना त्रासदायक है! पसीने से तरबतर कपड़े इस तरह चिपचिपाते हैं और इस क़दर गंदे मालूम होते हैं कि लगता है...कि अगर कोई इस हालत में हमें देख ले तो वह बेशक हमें निचले दर्जे का आदमी समझेगा। सजे हुए टेबल पर रखे कीमती फाउंटेन पेन-जैसे नीरव-शब्दांकनवादी हमारे व्यक्तित्व,जो बहुत बड़े ही खुशनुमा मालूम होते हैं किन्हीं महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के कारण-जब वे आँगन में और घर-बाहर चलती हुई झाड़-जैसे काम करनेवाले दिखाई दें, तो इस हालत में वे यदि सड़क छाप समझे जाएँ तो इसमें आश्चर्य ही क्या है!",
"लेकिन, मैं अब ऐसे कामों की शर्म नहीं करूँगा,क्योंकि जहाँ मेरा हृदय है,वहीं मेरा भाग्य है!",
"bahar chilchilati hui dopahar hai; lekin is kamre mein thanDa maddhim ujala hai ye ujala is band khiDki ki dararon se aata hai ye ek chauDi munDerwali baDi khiDki hai, jiske bahar ki taraf, diwar se lagkar, kantedar bent ki hari ghani jhaDiyan hain inke upar ek jangali bel chaDhkar phail gai hai; aur usne asmani rang ke gilas jaise apne phool pradarshit kar rakhe hain door se dekhnewalon ko lagega ki us bel ke phool nahin, waran bent ki jhaDiyon ke apne phool hain",
"kintu isse bhi ashcharyajnak baat ye hai ki lata ne apni ghumawadar chaal se na kewal bent ki Dalon ko, unke kanton se bachte hue, jakaD rakha hai, waran unke kantak romonwale patton ke ek ek hare fite ko sametkar, kaskar unki ek rassi si bana Dali hai; aur us puri jhaDi par apne phool bikhrate chhitkate hue, un saundarya prtikon ko suraj aur chand ke samne kar diya hai lekin, is khiDki ko mujhe aksar band rakhna paDta hai chhattisagaDh ke is ilake mein, mausam bemausam andhinuma hawayen chalti hain unhonne meri khiDki ke band pallon ko Dhila kar Dala hai khiDki band rakhne ka ek karan ye bhi hai ki bahar diwar se lagkar khaDi hui hari ghani jhaDiyon ke bhitar jo chhipe hue, gahre, hare sanwle antral hain, unmen pakshi rahte hain aur anDe dete hain wahan se kabhi kabhi unki awajen, raat birat, ekayek sunai deti hain we teewr bhay ki romanchak chitkaren hain, kyonki wahan apne shikar ki khoj mein ek bhujang aata rahta hai wo shayad us taraf ki tamam jhaDiyon ke bhitar rengta phirta hai",
"ek raat, isi khiDki mein se ek bhujang mere kamre mein bhi aaya wo lagbhag teen feet lamba ajgar tha khoob kha pi karke, sust hokar, wo khiDki ke pas, meri cycle par leta hua tha uska munh career par, jism ki lapet mein, chhipa hua tha aur poonchh chamakdar hainDil se lipti hui thi ‘career se lekar ‘hainDil’ tak ki sari lanbai ko usne apne deh walyon se kas liya tha uski wo kali lambi chikni deh atank utpann karti thi",
"hamne baDi mushkil se uske munh ko shanakht kiya aur phir ekayek finail se us par hamla karke use behosh kar Dala romanchpurn the hamare we wyakul akramn! gahre bhay ki sansani mein apni kayarta ka bodh karte hue,ham log, nirdaytapurwak, uski chhatpatati deh ko lathiyon se mare ja rahe the",
"use mara hua jaan, hum uska agni sanskar karne gaye mitti ke tel ki pili gerui unchi lapak uthate hue kanDon ki aag mein paDa hua wo Dhila nag sharir, mein apni bachi khuchi chetna sametkar, itni zor se upar uchhla ki ghera Dalkar khaDe hue hum log hairat mein aakar ek qadam pichhe hat gaye uske baad, raat bhar sanp ki hi charcha hoti rahi",
"isi khiDki se lagbhag chhah gaj door, bent ki jhaDiyon ke us par, ek talab hai baDa bhari talab,asman ka lamba chauDa aina,jo thartharate hue muskurata hai aur uski thartharahat par kirne nachti rahti hain mere kamre mein jo parkash aata hai, wo in lahron par nachti hui kirnon ka uchhalkar aaya hua parkash hai khiDki ki lambi dararon mein se guzarkar, wo parkash, samne ki diwar par chauDi munDer ke niche sundar jhalamlati hui akritiyan banata hai",
"meri drishti us parkash kamp ki or lagi hui hai ek kshan mein uski anaginat lahren nache ja rahin hain, nache ja rahi hain kitna uddam, kitna teewr weg hai un jhilmilati lahron mein main mugdh hoon ki bahar ke lahrate talab ne kirnon ki sahayata se apne kampon ki pratichchhawi meri diwal par aank di hai",
"kash, aisi bhi koi machine hoti jo dusron ke hirdai kampnon ko unki manasik halachlon ko,mere man ke parde par, chitr roop mein, upasthit kar sakti",
"udaharantah, mere samne isi palang par, wo jo nari murti baithi hai uske wyaktitw ke rahasy ko main janna chahta hoon, waise,uske bare mein jitni gahri jankari mujhe hai,shayad aur kisi ko nahin",
"is dhundhale aur andhere kamre mein wo mujhe sundar dikhai de rahi hai diwar par gire hue pratyawartit parkash ka punah pratyawartit parkash,nili chuDiyonwale hathon mein thame hue upanyas ke pannon par, dhyanamagn kapolon par, aur asmani anchal par phaila hua hai yadyapi is samay, hum donon alag alag duniya mein (wah upanyas ke jagat mein aur main apne khayalon ke raste par) ghoom rahe hain,phir bhi is akele dhundhale kamre mein gahan sahachary ke sambandh sootr taDap rahe hain aur mahsus kiye ja rahe hain",
"bawjud iske, ye kahna hi hoga ki mujhe ismen romans nahin dikhta mere sir ka dahina hissa safed ho chuka hai ab to main kewal ashray ka abhilashai hoon, ushmapurn ashray ka",
"phir bhi, mujhe shanka hai yauwan ke moh swapn ka gahra uddam atmawishwas ab mujhmen nahin ho sakta ek wayask purush ka awiwahita wayaska istri se prem bhi ajib hota hai usmen udbuddh ichha se agrah ke sath sath jo anubhawpurn gyan ka parkash hota hai, wo pal pal par shanka aur sandeh ko utpann karta hai",
"shyamala ke bare mein shanka rahti hai wo thos baton ki barikiyon ka baDa aadar karti hai wo wywahar ki kasauti par manushya ko parakhti hai ye mujhe akharta hai usmen mujhe ek thanDa pathrilapan malum hota hai gile sapnile rangon ka shyamala mein sachmuch abhaw hai",
"thanDa pathrilapan uchit hai,ya anuchit,yah main nahin janta kintu,jab auchity ke sare praman, unka sara wastu saty, paulishdar teen sa chamachma uthta hai to, mujhe lagta hai—bure phanse, in phaltu ki achchhaiyon mein, to dusri taraf mujhe apne bhitar hi koi gahri kami mahsus hoti hai, aur khatakne lagti hai aisi sthiti mein, main han aur na ke beech mein rahkar, khamosh, ji han ki surat paida kar deta heu Darta sirf is baat se hoon ki kahin ye ji han,ji hujur na ban jaye main atishay shanti priy wekti hoon apni shanti bhang na ho, iska bahut khayal rakhta hoon na jhagDa karna chahta hoon,n main kisi jhagDe mein phansna chahta",
"upanyas phenkkar shyamala ne donon hath unche karke zara si angDai li main uski roop mudra par phir se mugdh hona hi chahta tha ki usne ek betuka prastaw samne rakh diya kahne lagi,“chalo, bahar ghumne chalen",
"meri ankhon ke samne bahar ki chilchilati safedi aur bhayanak garmi chamak uthi khas ke pardon ke pichhe, chhat ke pankhon ke niche,alsate log yaad aaye bhadrata ki kalpana aur suwidha ke bhaw mujhe mana karne lage shyamala ke jhakkipan ka ek praman aur mila",
"usne mujhe ek kshan ankhon se taula aur faisle ke Dhang se kaha, “khair, main to jati hoon dekhkar chali aungi bata dungi",
"lekin chand minton baad,mainne apne ko,chupchap,uske pichhe chalte hue paya tab dil mein ek ajib jhol mahsus ho raha tha dimagh ke bhitar sikuDan si paD gai thi baal anasanware the hi pairon ko kisi na kisi tarah aage Dhakele ja raha tha",
"lekin,yah sirf duphar ke garam tiron ke karan tha, ya shyamala ke karan,kahna mushkil hai",
"ye usne pichhe muDkar meri taraf dekha aur dilasa deti hui awaz mein kaha,",
"school ka maidan zyada door nahin hai",
"wo mere aage aage chal rahi thi,lekin mera dhyan uske pairon aur taluon ke pichhle hisse ki taraf hi tha uski tang,jo biwaiyon bhari aur dhool bhari thi,age baDhne mein,uchakti hui chappal par chatachtati thi zahir tha ki ye pair dhool bhari saDkon par ghumne ke aadi hain",
"ye khayal aate hi,usi khayal se lage hue na malum kin dhagon se hokar,main shyamala se khu ko kuch kam, kuch heen pane laga aur iski glani se ubarne ke liye, main us chalti hui akriti ke sath,uske barabar ho liya wo kahne lagi,",
"yaad hai sham ko baithak hai abhi chalkar na dekhte to kab dekhte! aur sabke samne sabit ho jata hai ki tum khu kuch karte nahin sirf jaban ki kainchi chalti hai",
"ab shyamala ko kaun bataye ki na main is bhari dopahar mein school ka maidan dekhne jata aur na sham ko baithak mein hi sambhaw tha ki koram pura na hone ke karan baithak hi sthagit ho jati lekin shyamala ko ye kaun bataye ki hamare alasy mein bhi ek chhipi hui, jani anjani yojna rahti hai wartaman sanchalan ka dayitw jin par hai, we khu sanchalak manDal ki baithak nahin hone dena chahte agar shyamala se kahun to wo puchhegi, kyon!",
"phir main kya jawab dunga? main uski ankhon se girna nahin chahta,uski nazar mein aur aur chaDhna chahta hoon uska premi jo hoon; apne wyaktitw ka sundartam chitr upasthit karne ki lalsa bhi to rahti hai waise bhi,dhoop itni tez thi ki baat karne ya baat baDhane ki tabiyat nahin ho rahi thi meri ankhen samne ke pipal ke peD ki taraf gain, jiski ek Dal, talab ke upar, bahut unchai par,door tak chali gai thi uske sire par ek baDa sa bhura pakshi baitha hua tha use mainne cheel samjha lagta tha ki wo machhliyon ke shikar ki tak lagaye baitha hai",
"lekin usi shakha ki bilkul wiruddh disha mein, jo dusri Dalen unchi hokar tirchhi aur banki teDhi ho gai hain, un par jhunD ke jhunD kauwe kanw kanw kar rahe hain mano we cheel ki shikayat kar rahe hon aur uchak uchakkar, phudak phudakkar, machhli ki tak mein baithe us pakshi ke wiruddh parchar kiye ja rahe hon ki itne mein mujhe us maidani asmani chamkile khule khulepan mein ekayek, samne dikhai deta hai—sanwle nate kad par bhagwe rang ki khaddar ka banDinuma kurta, lagbhag chauras mota chehra, jiske dahine gal par ek baDa sa massa hai, aur us masse mein se barik baal nikle hue",
"ji dhans jata hai us surat ko dekhkar wo mera neta hai, sanstha ka sarwesarwa hai uski khayali taswir dekhte hi mujhe achanak dusre netaon ki aur sachiwalay ke us andhere galiyare ki yaad aati hai, jahan mainne is nate mote bhagwe khaddar kurtewale ko pahle pahal dekha tha",
"un andhere galiyaron mein se kai kai bar guzra hoon aur wahan kisi moD par,kisi kone mein ikattha hue, aisi hi sansthaon ke sanchalkon ke utre hue chehron ko dekha hai bawzud shreshth poshak aur aptuDet bhes ke, sanwlaya hua garw, bebas gambhirta, adhir udasi aur thakan unke wyaktitw par rakh si malti hai kyon?",
"isliye ki mali sal ki akhiri tarikh ko ab sirf do ya teen din bache hain sarkari grant abhi manjur nahin ho pa rahi hai, kaghzat abhi witt wibhag mein hi atke paDe hain aufison ke bahar,galiyare ke door kisi kone mein, peshabaghar ke pas, ya hotalon ke konon mein klarkon ki mutthiyan garam ki ja rahi hain, taki grant manjur ho aur jaldi mil jaye",
"aisi hi kisi jagah par mainne is bhagwe khaddar kurtewale ko zor zor se angrezi bolte hue dekha tha aur, tabhi mainne uske tez mijaz aur fitarti dimagh ka andaja lagaya tha idhar, bhari dopahar mein,shyamala ka parshw sangit chal hi raha hai, main uska koi matlab nahin nikal pata lekin, na malum kaise, mera man uski baton se kuch sanket grahn kar, apne hi raste par chalta rahta hai isi beech uske ek waky se main chaunk paDa, “isse achchha hai ki tum istipha de do agar kaam nahin kar sakte to gaddi kyon aDa rakhi hai",
"isi baat ko, kai bar, mainne apne se bhi puchha tha lekin aaj uske munh se theek usi baat ko sunkar mujhe dhakka sa laga aur, mera man kahan ka kahan chala gaya",
"ek din ki baat mera saja hua kamra chay ki chuskiyan qahqahe ek pile rang ke tikone chehrewala maskhara, ul jalul shakhs baghair ye soche ki jiski wo ninda kar raha hai, wo mera kripalu mitr aur sahayak hai, wo shakhs baat baDhata ja raha hai aur main! main stabdh kintu, kan sun rahe hain hare hue adami jaisi meri surat, wo kahta ja raha hai, sukshmadarshi yantr? sukshmadarshi yantr kahan hain?",
"hain to ye hain dekhiye ” clerk kahta hai register batata hai sab kahte hain hain,hain ye hain lekin, kahan hain? ye to sab likhit roop mein hain, wastu roop mein kahan hain! “we kharide hi nahin gaye hain! jhuthi rasid likhne ka commission wikreta ko, shesh raqam jeb mein sarkar se puri raqam wasul!",
"kisi khas jaanch ke ain mauqe par kisi dusre shahr ki sanstha se udhaar lekar,sukshmadarshi yantr hazir! sab chijen,maujud hain aiye, dekh jaiye ji han, ye to hain samne lekin, jaanch khatm hone par sab gayab, antardhan kaisa jadu hai kharche ka ankDa khoob phulakar rakhiye sarkar ke pas kaghzat bhej dijiye khas mauqon par aufison ke dhundhale galiyaron aur hotalon ke konon mein mutthiyan garam kijiye sarkari ‘grant manjur! aur, uska na jane kitna hissa, baDe hi tariqe se sanchalkon ki jeb mein! jee!",
"bhari dopahar mein main aage baDha ja raha hoon kanon mein ye awazen gunjti ja rahi hain main wyakul ho uthta hoon shyamala ka parshwsangit chal raha hai mujhe zabardast pyas lagti hai! pani,pani! ki itne mein ekayek wishwawidyalay ke pustakalaya ki unche roman stambhonwali imarat samne aa jati hai tisra pahar halki dhoop imarat ki patthar siDhiyan, lambi, motiya siDhiyon se lagkar, abhrak mili lal mitti ke chamchamate raste par sundar kali chewrolet",
"bhagwe khaddar kurtewale ki chewrolet, jiske zara pichhe main khaDa hoon, aur dekh raha hun—yon hi kar ka nambar ki itne mein uske chikne kale hisse mein, jo aine sa chamakdar hai, meri surat dikhai deti hai bhayanak hai wo surat sare anupat bigaD gaye hain nak DeDh gaj lambi aur kitni moti ho gai hai chehra behad lamba aur sikuD gaya hai ankhen khaDDedar kan nadarad bhoot jaisa aprakritik roop main apne chehre ki us widrupata ko, mugdh bhaw se, kutuhal se aur ashchary se dekh raha hoon, ektak! ki itne mein main do qadam ek or hat jata hoon; aur pata hoon ki motor ke us kale chamakdar aine mein, mere gal; thuDDi, nak, kan sab chauDe ho gaye hain, ekdam chauDe lanbai lagbhag nadarad main dekhta hi rahta hoon, dekhta hi rahta hoon ki itne mein dil ke kisi kone mein koi andhiyara gutter ekdam phoot nikalta hai wo gutter hai atmalochan,duhakh aur glani ka",
"aur, sahsa, munh se hay nikal paDti hai us bhagwe khaddar kurtewale se mera chhutkara kab hoga, kab hoga! aur, tab lagta hai ki is sare jal mein, burai ki is anek chakronwali daityakar machine mein na jane kab se main phansa paDa hoon pair bhinch gaye hain, pasaliyan choor ho gai hain, cheekh nikal nahin pati, awaz halaq mein phansakar rah gai hai",
"ki isi beech achanak ek nazara dikhai deta hai roman stambhonwali wishwawidyalay ke pustakalaya ki unchi, lambi motiya siDhiyon par se utar rahi hai ek aatm wishwaspurn gaurawmay narimurti wo kirnili muskan meri or phenkti si dikhai deti hai main is sthiti mein nahin hoon ki uska swagat kar sakun main badahwas ho uthta hoon",
"wo dhime dhime mere pas aati hai, abhyarthnapurn muskurahat ke sath kahti hai, paDhi hai aapne ye pustak?",
"kali zild par sunahle roman akshron mein likha hai, i wil not rest main saf jhooth bol jata hoon, “han paDhi hai, bahut pahle lekin, mujhe mahsus hota hai ki mere chehre se teliya pasina nikal raha hai main bar bar apna munh ponchhta hoon rumal se balon ke niche lalat han lalat (yah shabd mujhe achchha lagta hai) ko ragaDkar saf karta hoon aur, phir door ek peD ke niche, idhar aate hue, bhagwe khaddar kurtewale ki akriti ko dekhkar shyamala se kahta hoon, “achchha, main zara udhar ja raha hoon phir bhent hogi aur, sabhyata ke takaze se main uske liye namaskar ke roop mein muskurane ki cheshta karta hoon",
"peD ! ajib peD hai, (yahan ruka ja sakta hai), bahut purana peD hai, jiski jaDen ukhaDkar beech mein se toot gai hain,aur jo sabut hain,unke aas pas ki mitti khisak gai hai isliye we ubharkar ainthi hui si lagti hai peD kya hai,lagbhag Dhoonth hai uski shakhayen kat Dali gai hain lekin, kati hui banhonwale us peD mein se nai Dalen nikalkar, hawa mein khel rahi hain un Dalon mein komal komal hari hari pattiyan jhalar si dikhai deti hain peD ke mote tane mein se jagah jagah taja gond nikal raha hai gond ki sanwli katthai gathanen maze mein dekhi ja sakti hain",
"ajib peD hai, ajib! (shayad,yah achchhai ka peD hai) isliye ki ek din sham ki motiya gulabi aabha mein mainne ek yuwak yuwati ko is peD ke tale unchi uthi hui jaD par aram se baithe hue paya tha sambhwat,we apne atyant atmiy kshnon mein Dube hue the",
"mujhe dekhkar yuwak ne adarpurwak namaskar kiya laDki ne bhi mujhe dekha aur jhenp gai halke jhatke se usne apna munh dusri or kar liya lekin uski jhenpti hui lalai meri nazron se na bach saki is prem mugdh yugm ko dekhkar main bhi ek wichitr anand mein Doob gaya unhen nirapad karne ke liye,jaldi jaldi pair baDhata hua main wahan se nau do gyarah ho gaya",
"ye pichhli garamiyon ki ek manohar sanjh ki baat hai lekin aaj is bhari dopahri mein shyamala ke sath pal bhar us peD ke tale baithne ko meri bhi tabiyat hui bahut hi chhoti aur bholi ichha hai yah! lekin, mujhe laga ki shayad shyamala mere sujhaw ko nahin manegi pahunchne ki use jaldi jo hai kahne ki meri himmat hi nahin hui",
"lekin,dusre kshan,ap hi aap, mere pair us or baDhne lage aur, theek usi jagah main bhi jakar baith gaya, jahan ek sal pahle wo yugm baitha tha dekhta kya hoon ki shyamala bhi aakar baith gai hai",
"tab wo kah rahi thi, sachmuch baDi garam dopahar hai",
"samne,maidan hi maidan hain,bhure matamaile! un par siras aur sisam ke chhayadar wiram chihn khaDe hue hain main lubdh aur mugdh hokar unki ghani gahri chhayayen dekhta rahta hoon",
"kyonki kyonki mera ye peD,yah achchhai ka peD,chhaya pradan nahin kar sakta, ashray pradan nahin kar sakta, (kyonki wo jagah jagah kata gaya hai) wo to kati shakhaon ki duriyon aur antralon mein se kewal teewr aur kashtaprad parkash ko hi marg de sakta hai",
"lekin,maidanon ke is chilachilate apar wistar mein,ek peD ke niche, akelepan mein, shyamala ke sath rahne ki ye jo meri sthiti hai uska achanak mujhe gahra bodh hua laga ki shyamala meri hai,aur wo bhi isi bhanti chilachilate garam tattwon se bani hui nari murti hai garam baphti hui mitti sa chilchilata hua, usmen apnapan hai",
"to kya, aaj hi, agli anaginat garam dopahariyon ke pahle, aaj hi, agle qadam uthaye jane ke pahle,isi samay,han isi samay, uske samne, apne dil ki gahri chhipi hui tahen aur sathen kholkar rakh doon ki jisse aage chalkar,use ghaltafahmi mein rakhne use dhokhe mein rakhne ka apradhi na banun!",
"ki itne mein,meri ankhon ke samne,phir usi bhagwe khaddar kurtewale ki taswir chamak uthi main wyakul ho gaya, aur usse chhutkara chahne laga to phir aatm swikar kaise karun, kahan se shuru karun!",
"lekin,kya wo meri baten samajh sakegi? kisi tani hui rassi par wazan sadhte hue chalne ka, han aur na ke beech mein rahkar jindgi ki uljhanon mein phansne ka,tajurba use kahan hai! hatao,kaun kahe!",
"lekin, ye istri shikshita to hai! bahs bhi to karti hai! bahs ki baton ka sambandh na uske swarth se hota hai, na mere us samay hum laD bhi to sakte hain aur aisi laDaiyon mein koi swarth bhi to nahin hota uske samne apne dil ki sathen khol dene mein na mujhe sharm rahi, na mere samne use lekin, waisa karne mein taklif to hoti hai,ajib aur pechida, ghumti ghumati taklif! aur us taklif ko talne ke liye hum jhooth bhi to bol dete hain, sarasar jhooth, safed jhooth! lekin jhooth se sachchai aur gahri ho jati hai, adhik mahattwapurn aur adhik pranawan,mano wo hamare liye aur sari manushyata ke liye wishesh sar rakhti ho aisi satah par hum bhawuk ho jate hain aur, ye satah apne sare nijipan mein bilkul beniji hai sath hi, mithi bhee! han, us star ki apni wichitr piDayen hain, bhayanak santap hain, aur is atyant atmiy kintu nirwaiyaktik star par, hum ek ho jate hain, aur kabhi kabhi theek usi star par buri tarah laD bhi paDte hain",
"shyamala ne kaha,us maidan ko samtal karne mein kitna kharch ayega?",
"barah hazar",
"unka andaz kya hai?",
"bees hazar",
"to baithak mein jakar samjha doge aur ye bata doge ki kul milakar barah hazar se zyada namumkin hai?",
"han,utna main kar dunga",
"utna ka kya matlab?",
"ab main use utna ka kya matlab bataun! saf hai ki us bhagwe khaddar kurtewale se main dushmani mol nahin lena chahta main uske prati wafadar rahunga kyonki main uska adami hoon bhale hi wo bura ho, bhrashtachari ho, kintu usi ke karan meri amdani ke zariye bane hue hain wekti nishtha bhi koi cheez hai,uske karan hi main wishwas yogya mana gaya hoon isliye, main kai mahattwapurn kametiyon ka sadasy hoon",
"mainne wirodh bhaw se shyamala ki taraf dekha wo mera rukh dekhkar samajh gai wo kuch nahin boli lekin, mano mainne uski awaz sun li ho shyamala ka chehra chaar janiyon jaisa hai us par sanwli mohak dipti ka akarshan hai kintu, uski awaz han awaz wo itni surili aur mithi hai ki use ansuna karna nihayat mushkil hai us swar ko sunkar, duniya ki achchhi baten hi yaad aa sakti hain",
"pata nahin kis tarah ki pareshan pechidgi mere chehre par jhalak uthi ki jise dekhkar usne kaha, kaho, kaho, kya kahna chahte ho ”",
"ye waky mere liye nirnayak ban gaya phir bhi, awrodh shesh tha apne jiwan ka sar saty apna gupt dhan hai uske apne gupt sangharsh hain, uska apna ek gupt natk hai wo prakat karte nahin banta phir bhi,shayad hai ki use prakat kar dene se uska mooly baDh jaye, uska koi wishesh upyog ho sake",
"ek tha pakshi wo nile asman mein khoob unchai par uDta ja raha tha uske sath uske pita aur mitr bhi the",
"(shyamala mere chehre ki taraf ashchary se dekhne lagi )",
"sab,bahut unchai par uDnewale pakshi the unki nigahen bhi baDi tez thi unhen door door ki bhanak aur door door ki mahak bhi mil jati",
"ek din wo naujawan pakshi zamin par chalti hui ek bailagaड़i ko dekh leta hai usmen baDe baDe bore bhare hue hain gaDiwala chilla chillakar kahta hai,do dimken lo,ek pankh do",
"us naujawan pakshi ko dimakon ka shauq tha waise to unche uDnewale panchhiyon ko, hawa mein hi bahut se kiDe tairte hue mil jate, jinhen khakar we apni bhookh thoDi bahut shant kar lete",
"lekin dimken sirf zamin par milti theen kabhi kabhi peDon par zamin se tane par chaDhkar, unchi Dal tak, we matiyala lamba ghar bana letin lekin,aise kuch hi peD hote,aur we sab ek jagah na milte",
"naujawan pakshi ko laga ye bahut baDi suwidha hai ki adami dimakon ko boron mein bharkar bech raha hai",
"wo apni unchaiyan chhoDkar manDrata hua niche utarta hai,aur peD ki ek Dal par baith jata hai donon ka sauda tay ho jata hai apni chonch se ek par ko khinchkar toDne mein use taklif bhi hoti hai, lekin use wo bardasht kar leta hai munh mein baDe swad ke sath do dimken dabakar wo pakshi phurr se uD jata hai",
"(kahte kahte main thak gaya shayad sans lene ke liye shyamala ne palken jhapkain aur kaha,hoon )",
"ab us pakshi ko gaDiwale se do dimken kharidne aur ek par dene ki baDi asani malum hui wo roz tisre pahar niche utarta aur gaDiwale ko ek pankh dekar,do dimken kharid leta",
"kuch dinon tak aisa hi chalta raha ek din uske pita ne dekh liya usne samjhane ki koshish ki ki bete, dimken hamara swabhawik ahar nahin hain, aur unke liye apne pankh to hargiz nahin diye ja sakte lekin,us naujawan pakshi ne baDe hi garw se apna munh dusri or kar liya",
"use zamin par utarkar dimken khane ki chat lag gai thi ab use na to dusre kiDe achchhe lagte, na phal, na anaj ke dane dimakon ka shauq ab us par hawi ho gaya tha",
"(shyamala apni phaili hui ankhon se mujhe dekh rahi thi, uski upar uthi hui palken aur bhanwen baDi hi sundar dikhai de rahi theen )",
"lekin, aisa kitne dinon tak chalta uske pankhon ki sankhya lagatar ghatti chali gai ab wo, unchaiyon par, apna santulan sadh nahin sakta tha, na bahut samay tak pankh use sahara de sakte the akash yatra ke dauran use, jaldi jaldi pahaDi chattanon, peDon ki chotiyon,gumbdon aur burjon par hanphate hue baith jana paDta uske pariwarwale tatha mitr unchaiyon par tairte hue aage baDh jate wo bahut pichhaD jata phir bhi dimak khane ka uska shauq kam nahin hua dimakon ke liye gaDiwale ko wo apne pankh toD toDkar deta raha",
"(shyamala gambhir hokar sun rahi thi ab ki bar usne hoon bhi nahin kaha )",
"phir, usne socha ki asman mein uDna hi fijul hai wo murkhon ka kaam hai uski haalat ye thi ki ab wo asman mein uD hi nahin sakta tha, wo sirf ek peD se uDkar dusre peD tak pahunch pata dhire dhire uski ye shakti bhi kam hoti gai aur ek samay wo aaya jab wo baDi mushkil se, peD ki ek Dal se lagi hui dusri Dal par, chalkar, phudakkar pahunchta lekin dimak khane ka shauq nahin chhuta",
"beech beech mein gaDiwala butta de jata wo kahin nazar mein na aata pakshi uske intzar mein ghulta rahta lekin, dimakon ka shauq jo use tha usne socha, main khu dimken DhunDhunga isliye wo peD par se utarkar zamin par aa gaya; aur ghas ke ek lahrate guchchhe mein simatkar baith gaya (shyamala meri or dekhe ja rahi thi usne apekshapurwak kaha,hoon )",
"phir,ek din us pakshi ke ji mein na malum kya aaya wo khoob mehnat se zamin mein se dimken chun chunkar, khane ke bajay,unhen ikattha karne laga ab uske pas dimakon ke Dher ke Dher ho gaye phir, ek din ekayek, wo gaDiwala dikhai diya pakshi ko baDi khushi hui usne pukarkar kaha, ‘‘gaDiwale, o gaDiwale! main kab se tumhara intzar kar raha tha",
"pahchani awaz sunkar gaDiwala ruk gaya tab pakshi ne kaha,“dekho,mainne kitni sari dimken jama kar li hain kya karun ”",
"gaDiwale ko pakshi ki baat samajh mein nahin i usne sirf itna kaha, ‘‘to main kya karun",
"“ye meri dimken le lo,aur mere pankh mujhe wapas kar do pakshi ne jawab diya",
"gaDiwala thathakar hans paDa usne kaha,bewakuf,main dimak ke badle pankh leta hoon,pankh ke badle dimak nahin!",
"gaDiwale ne pankh shabd par bahut zor diya tha",
"(shyamala dhyan se sun rahi thi usne kaha,phir?)",
"gaDiwala chala gaya pakshi chhataptakar rah gaya ek din ek kali billi i aur apne munh mein use dabakar chali gai tab us pakshi ka khoon tapak tapakkar zamin par bundon ki lakir bana raha tha",
"(shyamala dhyan se mujhe dekhe ja rahi thee; aur uski ektak nigahon se bachne ke liye meri ankhen talab ki siharti kanpti,chilakti chamakti lahron par tiki hui theen )",
"kahani kah chukne ke baad, mujhe ek zabardast jhatka laga ek bhayanak pratikriya–koltar jaisi kali, gandhak jaisi pili narangi",
"nahin,mujhmen abhi bahut kuch shesh hai,bahut kuch main us pakshi jaisa nahin marunga",
"main abhi bhi ubar sakta hoon rog abhi asadhy nahin hua hai thath se rahne ke chakkar se bandhe hue burai ke chakkar toDe ja sakte hain pranshakti shesh hai,shesh! turant hi laga ki shyamala ke samne fijul apna rahasy khol diya, byarth hi aatm swikar kar Dala koi bhi wekti itna param priy nahin ho sakta ki bhitar ka nanga, baldar reechh use bataya jaye! main asim dukh ke khare mritak sagar mein Doob gaya",
"shyamala apni jagah se dhire se uthi, saDi ka palla theek kiya, uski salawten barabar jamain, balon par se hath phera aur phir (angrezi mein) kaha, sundar katha hai, bahut sundar! phir, wo kshan bhar khoi si khaDi rahi,aur phir boli, tumne kahan paDhi?",
"main apne hi shunya mein khoya hua tha usi shunya ke beech mein se mainne kaha, “pata nahin kisi ne sunai ya mainne kahin paDhi aur, wo shyamala achanak mere samne aa gai, kuch kahna chahne lagi, mano us kahani mein uski kisi baat ki taid hoti ho uske chehre par dhoop paDi hui thi mukhmanDal sundar aur pradipt dikhai de raha tha",
"ki isi beech hamari ankhen samne ke raste par jam gain ghutnon tak maili dhoti aur kali, nili, safed ya lal banDi pahne kuch dehati jise wo apne bhai, samuh mein, chale ja rahe the ek ke hath mein ek baDa sa DanDa tha, aage, samne,kiye hue tha us DanDe par ek lamba mara hua sanp jhool raha tha kala bhujang,jiske pet ki halki safedi bhi jhalak rahi thi",
"shyamala ne dekhte hi puchha, kaun sa sanp hai yah?",
"wo gramin mukh, chhattisagDhi lahje mein chillaya, karet hai bai, karet!",
"shyamala ke munh se nikal paDa, “ofpho! karet to baDa jahrila sanp hota phir, meri or dekhkar, kaha, nag ki to dawa bhi nikli hai,karet ki to koi dawa nahin hai achchha kiya, mar Dala jahan sanp dekho,mar Dalo; phir wo paniyal sanp hi kyon na ho",
"aur phir, na jane kyon, mere man mein uska ye waky goonj utha, “jahan sanp dekho, mar Dalo",
"aur ye shabd mere man mein gunjte hi chale gaye",
"ki isi beech register mein chaDhe hue ankaDon ki ek lambi mizan mere samne jhool uthi,aur galiyare ke andhere konon mein garam honewali mutthiyon ka chor hath",
"shyamala ne palatkar kaha,tumhare kamre mein bhi to sanp ghus aaya tha kahan se aaya tha wo ?",
"phir usne khu hi jawab de liya,han, wo pas ki khiDki mein se aaya hoga",
"khiDki ki baat sunte hi mere samne, bahar ki kantedar bent ki jhaDi aa gai, jise jangali bel ne lapetkar rakha tha mere khu ke tikhe kanton ke bawjud,kya shyamala mujhe isi tarah lapet sakegi! baDa hi romaintik khayal hai,lekin kitna bhayanak!",
"kyonki shyamala ke sath agar mujhe jindgi basar karni hai to na malum kitne hi bhagwe khaddar kurtewalon se mujhe laDna paDega,ji kaDa karke laDaiyan mol leni paDengi aur apni amdani ke zariye khatm kar dene honge shyamala ka kya hai! wo to ek gandhiwadi karyakarta ki laDki hai, adiwasiyon ki ek sanstha mein kary karti hai uska adarshawad bhi bhole bhale adiwasiyon ki us kulhaDi jaisa hai jo jangal mein apne beiman aur bewafa sathi ka sir dhaD se alag kar deti hai barik beimaniyon ka sufiyana andaz usmen kahan!",
"kintu, phir bhi adiwasiyon jaise us amishrit adarshawad mein mujhe aatma ka gauraw dikhai deta hai, manushya ki mahima dikhai deti hai, paine tark ki apni antim prabhawotpadak parinati ka ullas dikhai deta hai aur ye sab baten mere hirdai ko sparsh kar jati hain to ab main iske liye kya karun, kya karun! aur ab mujhe sajjayukt bhadrata ke manohar watawarn wala apna kamra yaad aata hai apna akela dhundhla dhundhla kamra uske ekant mein pratyawartit aur pun pratyawartit parkash ke komal watawarn mein mool rashmiyon aur unke udgam sroton par sochte rahna, khayalon ki lahron mein bahte rahna kitna saral, sundar aur bhadrata poorn hai usse na kabhi garmi lagti hai, na pasina aata hai, na kabhi kapDe maile hote hain kintu parkash ke udgam ke samne rahna, uska samna karna, chilchilati dopahar mein rasta napte rahna aur dhool phankate rahna kitna trasdayak hai! pasine se tarabtar kapDe is tarah chipachipate hain aur is qadar gande malum hote hain ki lagta hai ki agar koi is haalat mein hamein dekh le to wo beshak hamein nichle darje ka adami samjhega saje hue table par rakhe kimti phaunten pen jaise niraw shabdankanwadi hamare wyaktitw,jo bahut baDe hi khushnuma malum hote hain kinhin mahattwapurn pariwartnon ke karan jab we angan mein aur ghar bahar chalti hui jhaD jaise kaam karnewale dikhai den, to is haalat mein we yadi saDak chhap samjhe jayen to ismen ashchary hi kya hai!",
"lekin, main ab aise kamon ki sharm nahin karunga,kyonki jahan mera hirdai hai,wahin mera bhagya hai!",
"bahar chilchilati hui dopahar hai; lekin is kamre mein thanDa maddhim ujala hai ye ujala is band khiDki ki dararon se aata hai ye ek chauDi munDerwali baDi khiDki hai, jiske bahar ki taraf, diwar se lagkar, kantedar bent ki hari ghani jhaDiyan hain inke upar ek jangali bel chaDhkar phail gai hai; aur usne asmani rang ke gilas jaise apne phool pradarshit kar rakhe hain door se dekhnewalon ko lagega ki us bel ke phool nahin, waran bent ki jhaDiyon ke apne phool hain",
"kintu isse bhi ashcharyajnak baat ye hai ki lata ne apni ghumawadar chaal se na kewal bent ki Dalon ko, unke kanton se bachte hue, jakaD rakha hai, waran unke kantak romonwale patton ke ek ek hare fite ko sametkar, kaskar unki ek rassi si bana Dali hai; aur us puri jhaDi par apne phool bikhrate chhitkate hue, un saundarya prtikon ko suraj aur chand ke samne kar diya hai lekin, is khiDki ko mujhe aksar band rakhna paDta hai chhattisagaDh ke is ilake mein, mausam bemausam andhinuma hawayen chalti hain unhonne meri khiDki ke band pallon ko Dhila kar Dala hai khiDki band rakhne ka ek karan ye bhi hai ki bahar diwar se lagkar khaDi hui hari ghani jhaDiyon ke bhitar jo chhipe hue, gahre, hare sanwle antral hain, unmen pakshi rahte hain aur anDe dete hain wahan se kabhi kabhi unki awajen, raat birat, ekayek sunai deti hain we teewr bhay ki romanchak chitkaren hain, kyonki wahan apne shikar ki khoj mein ek bhujang aata rahta hai wo shayad us taraf ki tamam jhaDiyon ke bhitar rengta phirta hai",
"ek raat, isi khiDki mein se ek bhujang mere kamre mein bhi aaya wo lagbhag teen feet lamba ajgar tha khoob kha pi karke, sust hokar, wo khiDki ke pas, meri cycle par leta hua tha uska munh career par, jism ki lapet mein, chhipa hua tha aur poonchh chamakdar hainDil se lipti hui thi ‘career se lekar ‘hainDil’ tak ki sari lanbai ko usne apne deh walyon se kas liya tha uski wo kali lambi chikni deh atank utpann karti thi",
"hamne baDi mushkil se uske munh ko shanakht kiya aur phir ekayek finail se us par hamla karke use behosh kar Dala romanchpurn the hamare we wyakul akramn! gahre bhay ki sansani mein apni kayarta ka bodh karte hue,ham log, nirdaytapurwak, uski chhatpatati deh ko lathiyon se mare ja rahe the",
"use mara hua jaan, hum uska agni sanskar karne gaye mitti ke tel ki pili gerui unchi lapak uthate hue kanDon ki aag mein paDa hua wo Dhila nag sharir, mein apni bachi khuchi chetna sametkar, itni zor se upar uchhla ki ghera Dalkar khaDe hue hum log hairat mein aakar ek qadam pichhe hat gaye uske baad, raat bhar sanp ki hi charcha hoti rahi",
"isi khiDki se lagbhag chhah gaj door, bent ki jhaDiyon ke us par, ek talab hai baDa bhari talab,asman ka lamba chauDa aina,jo thartharate hue muskurata hai aur uski thartharahat par kirne nachti rahti hain mere kamre mein jo parkash aata hai, wo in lahron par nachti hui kirnon ka uchhalkar aaya hua parkash hai khiDki ki lambi dararon mein se guzarkar, wo parkash, samne ki diwar par chauDi munDer ke niche sundar jhalamlati hui akritiyan banata hai",
"meri drishti us parkash kamp ki or lagi hui hai ek kshan mein uski anaginat lahren nache ja rahin hain, nache ja rahi hain kitna uddam, kitna teewr weg hai un jhilmilati lahron mein main mugdh hoon ki bahar ke lahrate talab ne kirnon ki sahayata se apne kampon ki pratichchhawi meri diwal par aank di hai",
"kash, aisi bhi koi machine hoti jo dusron ke hirdai kampnon ko unki manasik halachlon ko,mere man ke parde par, chitr roop mein, upasthit kar sakti",
"udaharantah, mere samne isi palang par, wo jo nari murti baithi hai uske wyaktitw ke rahasy ko main janna chahta hoon, waise,uske bare mein jitni gahri jankari mujhe hai,shayad aur kisi ko nahin",
"is dhundhale aur andhere kamre mein wo mujhe sundar dikhai de rahi hai diwar par gire hue pratyawartit parkash ka punah pratyawartit parkash,nili chuDiyonwale hathon mein thame hue upanyas ke pannon par, dhyanamagn kapolon par, aur asmani anchal par phaila hua hai yadyapi is samay, hum donon alag alag duniya mein (wah upanyas ke jagat mein aur main apne khayalon ke raste par) ghoom rahe hain,phir bhi is akele dhundhale kamre mein gahan sahachary ke sambandh sootr taDap rahe hain aur mahsus kiye ja rahe hain",
"bawjud iske, ye kahna hi hoga ki mujhe ismen romans nahin dikhta mere sir ka dahina hissa safed ho chuka hai ab to main kewal ashray ka abhilashai hoon, ushmapurn ashray ka",
"phir bhi, mujhe shanka hai yauwan ke moh swapn ka gahra uddam atmawishwas ab mujhmen nahin ho sakta ek wayask purush ka awiwahita wayaska istri se prem bhi ajib hota hai usmen udbuddh ichha se agrah ke sath sath jo anubhawpurn gyan ka parkash hota hai, wo pal pal par shanka aur sandeh ko utpann karta hai",
"shyamala ke bare mein shanka rahti hai wo thos baton ki barikiyon ka baDa aadar karti hai wo wywahar ki kasauti par manushya ko parakhti hai ye mujhe akharta hai usmen mujhe ek thanDa pathrilapan malum hota hai gile sapnile rangon ka shyamala mein sachmuch abhaw hai",
"thanDa pathrilapan uchit hai,ya anuchit,yah main nahin janta kintu,jab auchity ke sare praman, unka sara wastu saty, paulishdar teen sa chamachma uthta hai to, mujhe lagta hai—bure phanse, in phaltu ki achchhaiyon mein, to dusri taraf mujhe apne bhitar hi koi gahri kami mahsus hoti hai, aur khatakne lagti hai aisi sthiti mein, main han aur na ke beech mein rahkar, khamosh, ji han ki surat paida kar deta heu Darta sirf is baat se hoon ki kahin ye ji han,ji hujur na ban jaye main atishay shanti priy wekti hoon apni shanti bhang na ho, iska bahut khayal rakhta hoon na jhagDa karna chahta hoon,n main kisi jhagDe mein phansna chahta",
"upanyas phenkkar shyamala ne donon hath unche karke zara si angDai li main uski roop mudra par phir se mugdh hona hi chahta tha ki usne ek betuka prastaw samne rakh diya kahne lagi,“chalo, bahar ghumne chalen",
"meri ankhon ke samne bahar ki chilchilati safedi aur bhayanak garmi chamak uthi khas ke pardon ke pichhe, chhat ke pankhon ke niche,alsate log yaad aaye bhadrata ki kalpana aur suwidha ke bhaw mujhe mana karne lage shyamala ke jhakkipan ka ek praman aur mila",
"usne mujhe ek kshan ankhon se taula aur faisle ke Dhang se kaha, “khair, main to jati hoon dekhkar chali aungi bata dungi",
"lekin chand minton baad,mainne apne ko,chupchap,uske pichhe chalte hue paya tab dil mein ek ajib jhol mahsus ho raha tha dimagh ke bhitar sikuDan si paD gai thi baal anasanware the hi pairon ko kisi na kisi tarah aage Dhakele ja raha tha",
"lekin,yah sirf duphar ke garam tiron ke karan tha, ya shyamala ke karan,kahna mushkil hai",
"ye usne pichhe muDkar meri taraf dekha aur dilasa deti hui awaz mein kaha,",
"school ka maidan zyada door nahin hai",
"wo mere aage aage chal rahi thi,lekin mera dhyan uske pairon aur taluon ke pichhle hisse ki taraf hi tha uski tang,jo biwaiyon bhari aur dhool bhari thi,age baDhne mein,uchakti hui chappal par chatachtati thi zahir tha ki ye pair dhool bhari saDkon par ghumne ke aadi hain",
"ye khayal aate hi,usi khayal se lage hue na malum kin dhagon se hokar,main shyamala se khu ko kuch kam, kuch heen pane laga aur iski glani se ubarne ke liye, main us chalti hui akriti ke sath,uske barabar ho liya wo kahne lagi,",
"yaad hai sham ko baithak hai abhi chalkar na dekhte to kab dekhte! aur sabke samne sabit ho jata hai ki tum khu kuch karte nahin sirf jaban ki kainchi chalti hai",
"ab shyamala ko kaun bataye ki na main is bhari dopahar mein school ka maidan dekhne jata aur na sham ko baithak mein hi sambhaw tha ki koram pura na hone ke karan baithak hi sthagit ho jati lekin shyamala ko ye kaun bataye ki hamare alasy mein bhi ek chhipi hui, jani anjani yojna rahti hai wartaman sanchalan ka dayitw jin par hai, we khu sanchalak manDal ki baithak nahin hone dena chahte agar shyamala se kahun to wo puchhegi, kyon!",
"phir main kya jawab dunga? main uski ankhon se girna nahin chahta,uski nazar mein aur aur chaDhna chahta hoon uska premi jo hoon; apne wyaktitw ka sundartam chitr upasthit karne ki lalsa bhi to rahti hai waise bhi,dhoop itni tez thi ki baat karne ya baat baDhane ki tabiyat nahin ho rahi thi meri ankhen samne ke pipal ke peD ki taraf gain, jiski ek Dal, talab ke upar, bahut unchai par,door tak chali gai thi uske sire par ek baDa sa bhura pakshi baitha hua tha use mainne cheel samjha lagta tha ki wo machhliyon ke shikar ki tak lagaye baitha hai",
"lekin usi shakha ki bilkul wiruddh disha mein, jo dusri Dalen unchi hokar tirchhi aur banki teDhi ho gai hain, un par jhunD ke jhunD kauwe kanw kanw kar rahe hain mano we cheel ki shikayat kar rahe hon aur uchak uchakkar, phudak phudakkar, machhli ki tak mein baithe us pakshi ke wiruddh parchar kiye ja rahe hon ki itne mein mujhe us maidani asmani chamkile khule khulepan mein ekayek, samne dikhai deta hai—sanwle nate kad par bhagwe rang ki khaddar ka banDinuma kurta, lagbhag chauras mota chehra, jiske dahine gal par ek baDa sa massa hai, aur us masse mein se barik baal nikle hue",
"ji dhans jata hai us surat ko dekhkar wo mera neta hai, sanstha ka sarwesarwa hai uski khayali taswir dekhte hi mujhe achanak dusre netaon ki aur sachiwalay ke us andhere galiyare ki yaad aati hai, jahan mainne is nate mote bhagwe khaddar kurtewale ko pahle pahal dekha tha",
"un andhere galiyaron mein se kai kai bar guzra hoon aur wahan kisi moD par,kisi kone mein ikattha hue, aisi hi sansthaon ke sanchalkon ke utre hue chehron ko dekha hai bawzud shreshth poshak aur aptuDet bhes ke, sanwlaya hua garw, bebas gambhirta, adhir udasi aur thakan unke wyaktitw par rakh si malti hai kyon?",
"isliye ki mali sal ki akhiri tarikh ko ab sirf do ya teen din bache hain sarkari grant abhi manjur nahin ho pa rahi hai, kaghzat abhi witt wibhag mein hi atke paDe hain aufison ke bahar,galiyare ke door kisi kone mein, peshabaghar ke pas, ya hotalon ke konon mein klarkon ki mutthiyan garam ki ja rahi hain, taki grant manjur ho aur jaldi mil jaye",
"aisi hi kisi jagah par mainne is bhagwe khaddar kurtewale ko zor zor se angrezi bolte hue dekha tha aur, tabhi mainne uske tez mijaz aur fitarti dimagh ka andaja lagaya tha idhar, bhari dopahar mein,shyamala ka parshw sangit chal hi raha hai, main uska koi matlab nahin nikal pata lekin, na malum kaise, mera man uski baton se kuch sanket grahn kar, apne hi raste par chalta rahta hai isi beech uske ek waky se main chaunk paDa, “isse achchha hai ki tum istipha de do agar kaam nahin kar sakte to gaddi kyon aDa rakhi hai",
"isi baat ko, kai bar, mainne apne se bhi puchha tha lekin aaj uske munh se theek usi baat ko sunkar mujhe dhakka sa laga aur, mera man kahan ka kahan chala gaya",
"ek din ki baat mera saja hua kamra chay ki chuskiyan qahqahe ek pile rang ke tikone chehrewala maskhara, ul jalul shakhs baghair ye soche ki jiski wo ninda kar raha hai, wo mera kripalu mitr aur sahayak hai, wo shakhs baat baDhata ja raha hai aur main! main stabdh kintu, kan sun rahe hain hare hue adami jaisi meri surat, wo kahta ja raha hai, sukshmadarshi yantr? sukshmadarshi yantr kahan hain?",
"hain to ye hain dekhiye ” clerk kahta hai register batata hai sab kahte hain hain,hain ye hain lekin, kahan hain? ye to sab likhit roop mein hain, wastu roop mein kahan hain! “we kharide hi nahin gaye hain! jhuthi rasid likhne ka commission wikreta ko, shesh raqam jeb mein sarkar se puri raqam wasul!",
"kisi khas jaanch ke ain mauqe par kisi dusre shahr ki sanstha se udhaar lekar,sukshmadarshi yantr hazir! sab chijen,maujud hain aiye, dekh jaiye ji han, ye to hain samne lekin, jaanch khatm hone par sab gayab, antardhan kaisa jadu hai kharche ka ankDa khoob phulakar rakhiye sarkar ke pas kaghzat bhej dijiye khas mauqon par aufison ke dhundhale galiyaron aur hotalon ke konon mein mutthiyan garam kijiye sarkari ‘grant manjur! aur, uska na jane kitna hissa, baDe hi tariqe se sanchalkon ki jeb mein! jee!",
"bhari dopahar mein main aage baDha ja raha hoon kanon mein ye awazen gunjti ja rahi hain main wyakul ho uthta hoon shyamala ka parshwsangit chal raha hai mujhe zabardast pyas lagti hai! pani,pani! ki itne mein ekayek wishwawidyalay ke pustakalaya ki unche roman stambhonwali imarat samne aa jati hai tisra pahar halki dhoop imarat ki patthar siDhiyan, lambi, motiya siDhiyon se lagkar, abhrak mili lal mitti ke chamchamate raste par sundar kali chewrolet",
"bhagwe khaddar kurtewale ki chewrolet, jiske zara pichhe main khaDa hoon, aur dekh raha hun—yon hi kar ka nambar ki itne mein uske chikne kale hisse mein, jo aine sa chamakdar hai, meri surat dikhai deti hai bhayanak hai wo surat sare anupat bigaD gaye hain nak DeDh gaj lambi aur kitni moti ho gai hai chehra behad lamba aur sikuD gaya hai ankhen khaDDedar kan nadarad bhoot jaisa aprakritik roop main apne chehre ki us widrupata ko, mugdh bhaw se, kutuhal se aur ashchary se dekh raha hoon, ektak! ki itne mein main do qadam ek or hat jata hoon; aur pata hoon ki motor ke us kale chamakdar aine mein, mere gal; thuDDi, nak, kan sab chauDe ho gaye hain, ekdam chauDe lanbai lagbhag nadarad main dekhta hi rahta hoon, dekhta hi rahta hoon ki itne mein dil ke kisi kone mein koi andhiyara gutter ekdam phoot nikalta hai wo gutter hai atmalochan,duhakh aur glani ka",
"aur, sahsa, munh se hay nikal paDti hai us bhagwe khaddar kurtewale se mera chhutkara kab hoga, kab hoga! aur, tab lagta hai ki is sare jal mein, burai ki is anek chakronwali daityakar machine mein na jane kab se main phansa paDa hoon pair bhinch gaye hain, pasaliyan choor ho gai hain, cheekh nikal nahin pati, awaz halaq mein phansakar rah gai hai",
"ki isi beech achanak ek nazara dikhai deta hai roman stambhonwali wishwawidyalay ke pustakalaya ki unchi, lambi motiya siDhiyon par se utar rahi hai ek aatm wishwaspurn gaurawmay narimurti wo kirnili muskan meri or phenkti si dikhai deti hai main is sthiti mein nahin hoon ki uska swagat kar sakun main badahwas ho uthta hoon",
"wo dhime dhime mere pas aati hai, abhyarthnapurn muskurahat ke sath kahti hai, paDhi hai aapne ye pustak?",
"kali zild par sunahle roman akshron mein likha hai, i wil not rest main saf jhooth bol jata hoon, “han paDhi hai, bahut pahle lekin, mujhe mahsus hota hai ki mere chehre se teliya pasina nikal raha hai main bar bar apna munh ponchhta hoon rumal se balon ke niche lalat han lalat (yah shabd mujhe achchha lagta hai) ko ragaDkar saf karta hoon aur, phir door ek peD ke niche, idhar aate hue, bhagwe khaddar kurtewale ki akriti ko dekhkar shyamala se kahta hoon, “achchha, main zara udhar ja raha hoon phir bhent hogi aur, sabhyata ke takaze se main uske liye namaskar ke roop mein muskurane ki cheshta karta hoon",
"peD ! ajib peD hai, (yahan ruka ja sakta hai), bahut purana peD hai, jiski jaDen ukhaDkar beech mein se toot gai hain,aur jo sabut hain,unke aas pas ki mitti khisak gai hai isliye we ubharkar ainthi hui si lagti hai peD kya hai,lagbhag Dhoonth hai uski shakhayen kat Dali gai hain lekin, kati hui banhonwale us peD mein se nai Dalen nikalkar, hawa mein khel rahi hain un Dalon mein komal komal hari hari pattiyan jhalar si dikhai deti hain peD ke mote tane mein se jagah jagah taja gond nikal raha hai gond ki sanwli katthai gathanen maze mein dekhi ja sakti hain",
"ajib peD hai, ajib! (shayad,yah achchhai ka peD hai) isliye ki ek din sham ki motiya gulabi aabha mein mainne ek yuwak yuwati ko is peD ke tale unchi uthi hui jaD par aram se baithe hue paya tha sambhwat,we apne atyant atmiy kshnon mein Dube hue the",
"mujhe dekhkar yuwak ne adarpurwak namaskar kiya laDki ne bhi mujhe dekha aur jhenp gai halke jhatke se usne apna munh dusri or kar liya lekin uski jhenpti hui lalai meri nazron se na bach saki is prem mugdh yugm ko dekhkar main bhi ek wichitr anand mein Doob gaya unhen nirapad karne ke liye,jaldi jaldi pair baDhata hua main wahan se nau do gyarah ho gaya",
"ye pichhli garamiyon ki ek manohar sanjh ki baat hai lekin aaj is bhari dopahri mein shyamala ke sath pal bhar us peD ke tale baithne ko meri bhi tabiyat hui bahut hi chhoti aur bholi ichha hai yah! lekin, mujhe laga ki shayad shyamala mere sujhaw ko nahin manegi pahunchne ki use jaldi jo hai kahne ki meri himmat hi nahin hui",
"lekin,dusre kshan,ap hi aap, mere pair us or baDhne lage aur, theek usi jagah main bhi jakar baith gaya, jahan ek sal pahle wo yugm baitha tha dekhta kya hoon ki shyamala bhi aakar baith gai hai",
"tab wo kah rahi thi, sachmuch baDi garam dopahar hai",
"samne,maidan hi maidan hain,bhure matamaile! un par siras aur sisam ke chhayadar wiram chihn khaDe hue hain main lubdh aur mugdh hokar unki ghani gahri chhayayen dekhta rahta hoon",
"kyonki kyonki mera ye peD,yah achchhai ka peD,chhaya pradan nahin kar sakta, ashray pradan nahin kar sakta, (kyonki wo jagah jagah kata gaya hai) wo to kati shakhaon ki duriyon aur antralon mein se kewal teewr aur kashtaprad parkash ko hi marg de sakta hai",
"lekin,maidanon ke is chilachilate apar wistar mein,ek peD ke niche, akelepan mein, shyamala ke sath rahne ki ye jo meri sthiti hai uska achanak mujhe gahra bodh hua laga ki shyamala meri hai,aur wo bhi isi bhanti chilachilate garam tattwon se bani hui nari murti hai garam baphti hui mitti sa chilchilata hua, usmen apnapan hai",
"to kya, aaj hi, agli anaginat garam dopahariyon ke pahle, aaj hi, agle qadam uthaye jane ke pahle,isi samay,han isi samay, uske samne, apne dil ki gahri chhipi hui tahen aur sathen kholkar rakh doon ki jisse aage chalkar,use ghaltafahmi mein rakhne use dhokhe mein rakhne ka apradhi na banun!",
"ki itne mein,meri ankhon ke samne,phir usi bhagwe khaddar kurtewale ki taswir chamak uthi main wyakul ho gaya, aur usse chhutkara chahne laga to phir aatm swikar kaise karun, kahan se shuru karun!",
"lekin,kya wo meri baten samajh sakegi? kisi tani hui rassi par wazan sadhte hue chalne ka, han aur na ke beech mein rahkar jindgi ki uljhanon mein phansne ka,tajurba use kahan hai! hatao,kaun kahe!",
"lekin, ye istri shikshita to hai! bahs bhi to karti hai! bahs ki baton ka sambandh na uske swarth se hota hai, na mere us samay hum laD bhi to sakte hain aur aisi laDaiyon mein koi swarth bhi to nahin hota uske samne apne dil ki sathen khol dene mein na mujhe sharm rahi, na mere samne use lekin, waisa karne mein taklif to hoti hai,ajib aur pechida, ghumti ghumati taklif! aur us taklif ko talne ke liye hum jhooth bhi to bol dete hain, sarasar jhooth, safed jhooth! lekin jhooth se sachchai aur gahri ho jati hai, adhik mahattwapurn aur adhik pranawan,mano wo hamare liye aur sari manushyata ke liye wishesh sar rakhti ho aisi satah par hum bhawuk ho jate hain aur, ye satah apne sare nijipan mein bilkul beniji hai sath hi, mithi bhee! han, us star ki apni wichitr piDayen hain, bhayanak santap hain, aur is atyant atmiy kintu nirwaiyaktik star par, hum ek ho jate hain, aur kabhi kabhi theek usi star par buri tarah laD bhi paDte hain",
"shyamala ne kaha,us maidan ko samtal karne mein kitna kharch ayega?",
"barah hazar",
"unka andaz kya hai?",
"bees hazar",
"to baithak mein jakar samjha doge aur ye bata doge ki kul milakar barah hazar se zyada namumkin hai?",
"han,utna main kar dunga",
"utna ka kya matlab?",
"ab main use utna ka kya matlab bataun! saf hai ki us bhagwe khaddar kurtewale se main dushmani mol nahin lena chahta main uske prati wafadar rahunga kyonki main uska adami hoon bhale hi wo bura ho, bhrashtachari ho, kintu usi ke karan meri amdani ke zariye bane hue hain wekti nishtha bhi koi cheez hai,uske karan hi main wishwas yogya mana gaya hoon isliye, main kai mahattwapurn kametiyon ka sadasy hoon",
"mainne wirodh bhaw se shyamala ki taraf dekha wo mera rukh dekhkar samajh gai wo kuch nahin boli lekin, mano mainne uski awaz sun li ho shyamala ka chehra chaar janiyon jaisa hai us par sanwli mohak dipti ka akarshan hai kintu, uski awaz han awaz wo itni surili aur mithi hai ki use ansuna karna nihayat mushkil hai us swar ko sunkar, duniya ki achchhi baten hi yaad aa sakti hain",
"pata nahin kis tarah ki pareshan pechidgi mere chehre par jhalak uthi ki jise dekhkar usne kaha, kaho, kaho, kya kahna chahte ho ”",
"ye waky mere liye nirnayak ban gaya phir bhi, awrodh shesh tha apne jiwan ka sar saty apna gupt dhan hai uske apne gupt sangharsh hain, uska apna ek gupt natk hai wo prakat karte nahin banta phir bhi,shayad hai ki use prakat kar dene se uska mooly baDh jaye, uska koi wishesh upyog ho sake",
"ek tha pakshi wo nile asman mein khoob unchai par uDta ja raha tha uske sath uske pita aur mitr bhi the",
"(shyamala mere chehre ki taraf ashchary se dekhne lagi )",
"sab,bahut unchai par uDnewale pakshi the unki nigahen bhi baDi tez thi unhen door door ki bhanak aur door door ki mahak bhi mil jati",
"ek din wo naujawan pakshi zamin par chalti hui ek bailagaड़i ko dekh leta hai usmen baDe baDe bore bhare hue hain gaDiwala chilla chillakar kahta hai,do dimken lo,ek pankh do",
"us naujawan pakshi ko dimakon ka shauq tha waise to unche uDnewale panchhiyon ko, hawa mein hi bahut se kiDe tairte hue mil jate, jinhen khakar we apni bhookh thoDi bahut shant kar lete",
"lekin dimken sirf zamin par milti theen kabhi kabhi peDon par zamin se tane par chaDhkar, unchi Dal tak, we matiyala lamba ghar bana letin lekin,aise kuch hi peD hote,aur we sab ek jagah na milte",
"naujawan pakshi ko laga ye bahut baDi suwidha hai ki adami dimakon ko boron mein bharkar bech raha hai",
"wo apni unchaiyan chhoDkar manDrata hua niche utarta hai,aur peD ki ek Dal par baith jata hai donon ka sauda tay ho jata hai apni chonch se ek par ko khinchkar toDne mein use taklif bhi hoti hai, lekin use wo bardasht kar leta hai munh mein baDe swad ke sath do dimken dabakar wo pakshi phurr se uD jata hai",
"(kahte kahte main thak gaya shayad sans lene ke liye shyamala ne palken jhapkain aur kaha,hoon )",
"ab us pakshi ko gaDiwale se do dimken kharidne aur ek par dene ki baDi asani malum hui wo roz tisre pahar niche utarta aur gaDiwale ko ek pankh dekar,do dimken kharid leta",
"kuch dinon tak aisa hi chalta raha ek din uske pita ne dekh liya usne samjhane ki koshish ki ki bete, dimken hamara swabhawik ahar nahin hain, aur unke liye apne pankh to hargiz nahin diye ja sakte lekin,us naujawan pakshi ne baDe hi garw se apna munh dusri or kar liya",
"use zamin par utarkar dimken khane ki chat lag gai thi ab use na to dusre kiDe achchhe lagte, na phal, na anaj ke dane dimakon ka shauq ab us par hawi ho gaya tha",
"(shyamala apni phaili hui ankhon se mujhe dekh rahi thi, uski upar uthi hui palken aur bhanwen baDi hi sundar dikhai de rahi theen )",
"lekin, aisa kitne dinon tak chalta uske pankhon ki sankhya lagatar ghatti chali gai ab wo, unchaiyon par, apna santulan sadh nahin sakta tha, na bahut samay tak pankh use sahara de sakte the akash yatra ke dauran use, jaldi jaldi pahaDi chattanon, peDon ki chotiyon,gumbdon aur burjon par hanphate hue baith jana paDta uske pariwarwale tatha mitr unchaiyon par tairte hue aage baDh jate wo bahut pichhaD jata phir bhi dimak khane ka uska shauq kam nahin hua dimakon ke liye gaDiwale ko wo apne pankh toD toDkar deta raha",
"(shyamala gambhir hokar sun rahi thi ab ki bar usne hoon bhi nahin kaha )",
"phir, usne socha ki asman mein uDna hi fijul hai wo murkhon ka kaam hai uski haalat ye thi ki ab wo asman mein uD hi nahin sakta tha, wo sirf ek peD se uDkar dusre peD tak pahunch pata dhire dhire uski ye shakti bhi kam hoti gai aur ek samay wo aaya jab wo baDi mushkil se, peD ki ek Dal se lagi hui dusri Dal par, chalkar, phudakkar pahunchta lekin dimak khane ka shauq nahin chhuta",
"beech beech mein gaDiwala butta de jata wo kahin nazar mein na aata pakshi uske intzar mein ghulta rahta lekin, dimakon ka shauq jo use tha usne socha, main khu dimken DhunDhunga isliye wo peD par se utarkar zamin par aa gaya; aur ghas ke ek lahrate guchchhe mein simatkar baith gaya (shyamala meri or dekhe ja rahi thi usne apekshapurwak kaha,hoon )",
"phir,ek din us pakshi ke ji mein na malum kya aaya wo khoob mehnat se zamin mein se dimken chun chunkar, khane ke bajay,unhen ikattha karne laga ab uske pas dimakon ke Dher ke Dher ho gaye phir, ek din ekayek, wo gaDiwala dikhai diya pakshi ko baDi khushi hui usne pukarkar kaha, ‘‘gaDiwale, o gaDiwale! main kab se tumhara intzar kar raha tha",
"pahchani awaz sunkar gaDiwala ruk gaya tab pakshi ne kaha,“dekho,mainne kitni sari dimken jama kar li hain kya karun ”",
"gaDiwale ko pakshi ki baat samajh mein nahin i usne sirf itna kaha, ‘‘to main kya karun",
"“ye meri dimken le lo,aur mere pankh mujhe wapas kar do pakshi ne jawab diya",
"gaDiwala thathakar hans paDa usne kaha,bewakuf,main dimak ke badle pankh leta hoon,pankh ke badle dimak nahin!",
"gaDiwale ne pankh shabd par bahut zor diya tha",
"(shyamala dhyan se sun rahi thi usne kaha,phir?)",
"gaDiwala chala gaya pakshi chhataptakar rah gaya ek din ek kali billi i aur apne munh mein use dabakar chali gai tab us pakshi ka khoon tapak tapakkar zamin par bundon ki lakir bana raha tha",
"(shyamala dhyan se mujhe dekhe ja rahi thee; aur uski ektak nigahon se bachne ke liye meri ankhen talab ki siharti kanpti,chilakti chamakti lahron par tiki hui theen )",
"kahani kah chukne ke baad, mujhe ek zabardast jhatka laga ek bhayanak pratikriya–koltar jaisi kali, gandhak jaisi pili narangi",
"nahin,mujhmen abhi bahut kuch shesh hai,bahut kuch main us pakshi jaisa nahin marunga",
"main abhi bhi ubar sakta hoon rog abhi asadhy nahin hua hai thath se rahne ke chakkar se bandhe hue burai ke chakkar toDe ja sakte hain pranshakti shesh hai,shesh! turant hi laga ki shyamala ke samne fijul apna rahasy khol diya, byarth hi aatm swikar kar Dala koi bhi wekti itna param priy nahin ho sakta ki bhitar ka nanga, baldar reechh use bataya jaye! main asim dukh ke khare mritak sagar mein Doob gaya",
"shyamala apni jagah se dhire se uthi, saDi ka palla theek kiya, uski salawten barabar jamain, balon par se hath phera aur phir (angrezi mein) kaha, sundar katha hai, bahut sundar! phir, wo kshan bhar khoi si khaDi rahi,aur phir boli, tumne kahan paDhi?",
"main apne hi shunya mein khoya hua tha usi shunya ke beech mein se mainne kaha, “pata nahin kisi ne sunai ya mainne kahin paDhi aur, wo shyamala achanak mere samne aa gai, kuch kahna chahne lagi, mano us kahani mein uski kisi baat ki taid hoti ho uske chehre par dhoop paDi hui thi mukhmanDal sundar aur pradipt dikhai de raha tha",
"ki isi beech hamari ankhen samne ke raste par jam gain ghutnon tak maili dhoti aur kali, nili, safed ya lal banDi pahne kuch dehati jise wo apne bhai, samuh mein, chale ja rahe the ek ke hath mein ek baDa sa DanDa tha, aage, samne,kiye hue tha us DanDe par ek lamba mara hua sanp jhool raha tha kala bhujang,jiske pet ki halki safedi bhi jhalak rahi thi",
"shyamala ne dekhte hi puchha, kaun sa sanp hai yah?",
"wo gramin mukh, chhattisagDhi lahje mein chillaya, karet hai bai, karet!",
"shyamala ke munh se nikal paDa, “ofpho! karet to baDa jahrila sanp hota phir, meri or dekhkar, kaha, nag ki to dawa bhi nikli hai,karet ki to koi dawa nahin hai achchha kiya, mar Dala jahan sanp dekho,mar Dalo; phir wo paniyal sanp hi kyon na ho",
"aur phir, na jane kyon, mere man mein uska ye waky goonj utha, “jahan sanp dekho, mar Dalo",
"aur ye shabd mere man mein gunjte hi chale gaye",
"ki isi beech register mein chaDhe hue ankaDon ki ek lambi mizan mere samne jhool uthi,aur galiyare ke andhere konon mein garam honewali mutthiyon ka chor hath",
"shyamala ne palatkar kaha,tumhare kamre mein bhi to sanp ghus aaya tha kahan se aaya tha wo ?",
"phir usne khu hi jawab de liya,han, wo pas ki khiDki mein se aaya hoga",
"khiDki ki baat sunte hi mere samne, bahar ki kantedar bent ki jhaDi aa gai, jise jangali bel ne lapetkar rakha tha mere khu ke tikhe kanton ke bawjud,kya shyamala mujhe isi tarah lapet sakegi! baDa hi romaintik khayal hai,lekin kitna bhayanak!",
"kyonki shyamala ke sath agar mujhe jindgi basar karni hai to na malum kitne hi bhagwe khaddar kurtewalon se mujhe laDna paDega,ji kaDa karke laDaiyan mol leni paDengi aur apni amdani ke zariye khatm kar dene honge shyamala ka kya hai! wo to ek gandhiwadi karyakarta ki laDki hai, adiwasiyon ki ek sanstha mein kary karti hai uska adarshawad bhi bhole bhale adiwasiyon ki us kulhaDi jaisa hai jo jangal mein apne beiman aur bewafa sathi ka sir dhaD se alag kar deti hai barik beimaniyon ka sufiyana andaz usmen kahan!",
"kintu, phir bhi adiwasiyon jaise us amishrit adarshawad mein mujhe aatma ka gauraw dikhai deta hai, manushya ki mahima dikhai deti hai, paine tark ki apni antim prabhawotpadak parinati ka ullas dikhai deta hai aur ye sab baten mere hirdai ko sparsh kar jati hain to ab main iske liye kya karun, kya karun! aur ab mujhe sajjayukt bhadrata ke manohar watawarn wala apna kamra yaad aata hai apna akela dhundhla dhundhla kamra uske ekant mein pratyawartit aur pun pratyawartit parkash ke komal watawarn mein mool rashmiyon aur unke udgam sroton par sochte rahna, khayalon ki lahron mein bahte rahna kitna saral, sundar aur bhadrata poorn hai usse na kabhi garmi lagti hai, na pasina aata hai, na kabhi kapDe maile hote hain kintu parkash ke udgam ke samne rahna, uska samna karna, chilchilati dopahar mein rasta napte rahna aur dhool phankate rahna kitna trasdayak hai! pasine se tarabtar kapDe is tarah chipachipate hain aur is qadar gande malum hote hain ki lagta hai ki agar koi is haalat mein hamein dekh le to wo beshak hamein nichle darje ka adami samjhega saje hue table par rakhe kimti phaunten pen jaise niraw shabdankanwadi hamare wyaktitw,jo bahut baDe hi khushnuma malum hote hain kinhin mahattwapurn pariwartnon ke karan jab we angan mein aur ghar bahar chalti hui jhaD jaise kaam karnewale dikhai den, to is haalat mein we yadi saDak chhap samjhe jayen to ismen ashchary hi kya hai!",
"lekin, main ab aise kamon ki sharm nahin karunga,kyonki jahan mera hirdai hai,wahin mera bhagya hai!",
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गजानन माधव मुक्तिबोध | हिंदवी | https://www.hindwi.org/ebooks/taar-saptak-ebooks/ | [
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"AUTHORगजानन माधव मुक्तिबोध",
"YEAR1943",
"तार सप्तक\n\n\r\n गजानन माधव मुक्तिबोध",
"AUTHORगजानन माधव मुक्तिबोध",
"YEAR1943",
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Read famous Poetry of Sharchchandra Muktibodh | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/sharchchandra-muktibodh | [
"1921 - 1984",
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Read famous Poetry of Vinod Kumar Shukla | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/vinod-kumar-shukla | [
"1937\n|\nराजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
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"अधिकतर अज्ञानता के सुख-दुःख की आदत थी। ज्ञान के सुख-दुःख बहुतों को नहीं मालूम थे। जबकि ज्ञान असीम अटूट था। ज्ञान सुख की समझ देता था पर सुख नहीं देता था।",
"अदब और क़ायदे आदमी को बहुत जल्दी कायर बना देते हैं। ऐसा आदमी झगड़ा नहीं करता।",
"किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।",
"ख़ुश होने से पहले बहाने ढूँढने चाहिए और ख़ुश रहना चाहिए। बाद में ये बहाने कारण बन जाते। सचमुच की ख़ुशी देने लगते।",
"“जितनी बुराइयाँ हैं वे केवल इसलिए कि कुछ बातें छुपाई नहीं जाती और अच्छाइयाँ इसलिए हैं कि कुछ बातें छुपा ली जाती हैं।”",
"दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है\r\nकहकर मैं अपने घर से चला।\r\nयहाँ पहुँचते तक\r\nजगह-जगह मैंने यही कहा\r\nऔर यहाँ कहता हूँ\r\nकि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है।\r\nजहाँ पहुँचता हूँ\r\nवहाँ से चला जाता हूँ।\r\n\r\nदुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है—\r\nबार-बार यही कह रहा हूँ\r\nऔर कितना समय बीत गया है\r\nलौटकर मैं घर नहीं\r\nघर-घर पहुँचना चाहता हूँ\r\nऔर चला जाता हूँ।",
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राजनाँदगाँव के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/rajnandgaon/na?filter=death | [
"कुल: 0",
"इस खोज का परिणाम उपलब्ध नहीं है",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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] |
राजनाँदगाँव के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/rajnandgaon/na?startswith=सभी | [
"कुल: 2",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
राजनाँदगाँव के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/rajnandgaon/na?startswith=प | [
"कुल: 2",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
राजनाँदगाँव के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/rajnandgaon/na?startswith=व | [
"कुल: 2",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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Read famous Poetry of Vinod Kumar Shukla | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/vinod-kumar-shukla/ | [
"1937\n|\nराजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"अधिकतर अज्ञानता के सुख-दुःख की आदत थी। ज्ञान के सुख-दुःख बहुतों को नहीं मालूम थे। जबकि ज्ञान असीम अटूट था। ज्ञान सुख की समझ देता था पर सुख नहीं देता था।",
"अदब और क़ायदे आदमी को बहुत जल्दी कायर बना देते हैं। ऐसा आदमी झगड़ा नहीं करता।",
"किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।",
"ख़ुश होने से पहले बहाने ढूँढने चाहिए और ख़ुश रहना चाहिए। बाद में ये बहाने कारण बन जाते। सचमुच की ख़ुशी देने लगते।",
"“जितनी बुराइयाँ हैं वे केवल इसलिए कि कुछ बातें छुपाई नहीं जाती और अच्छाइयाँ इसलिए हैं कि कुछ बातें छुपा ली जाती हैं।”",
"दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है\r\nकहकर मैं अपने घर से चला।\r\nयहाँ पहुँचते तक\r\nजगह-जगह मैंने यही कहा\r\nऔर यहाँ कहता हूँ\r\nकि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है।\r\nजहाँ पहुँचता हूँ\r\nवहाँ से चला जाता हूँ।\r\n\r\nदुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है—\r\nबार-बार यही कह रहा हूँ\r\nऔर कितना समय बीत गया है\r\nलौटकर मैं घर नहीं\r\nघर-घर पहुँचना चाहता हूँ\r\nऔर चला जाता हूँ।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
राजनाँदगाँव के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/rajnandgaon | [
"कुल: 2",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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"The best way to learn Urdu online",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
रायपुर के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/raipur/raipur | [
"कुल: 4",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
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Read famous Poetry of Padumlal Punnalal Bakshi | Hindwi | https://www.hindwi.org/authors/padumlal-punnalal-bakshi/ | [
"1894 - 1971\n|\nराजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"मेरा देश",
"पद्म-वन",
"1941",
"विश्व-साहित्य",
"1940",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
रायपुर के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/raipur | [
"कुल: 8",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुपरिचित कथाकार।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/birthplace/india/chhattisgarh/na/na/poets | [
"कुल: 24",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुपरिचित कवि।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार।",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?filter=all | [
"कुल: 24",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुपरिचित कवि।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार।",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?filter=birth | [
"कुल: 21",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"सुपरिचित कथाकार।",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?filter=domicile | [
"कुल: 5",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुपरिचित कवि।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?filter=death | [
"कुल: 3",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=सभी | [
"कुल: 24",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुपरिचित कवि।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार।",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=अ | [
"कुल: 24",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=ए | [
"कुल: 24",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=क | [
"कुल: 24",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=ज | [
"कुल: 24",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=त | [
"कुल: 24",
"सुपरिचित कथाकार।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=न | [
"कुल: 24",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"सुपरिचित कवि।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=प | [
"कुल: 24",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
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"कुल: 24",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"कुल: 24",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"कुल: 24",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"कुल: 24",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
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] |
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"कुल: 24",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=स | [
"कुल: 24",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/na/na?startswith=ह | [
"कुल: 24",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
Read famous Poetry of Ashok Vajpeyi | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/ashok-vajpeyi/ | [
"1941\n|\nदुर्ग, छत्तीसगढ़",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"अगर कविता न होती तो राम और कृष्ण भी यथार्थ न होते।",
"कविता आत्म और पर के द्वैत को ध्वस्त करती है।",
"जितना कवि समय को, उतना ही समय कवि को गढ़ता है।",
"कविता परम सत्य और चरम असत्य के बीच गोधूलि की तरह विचरती है।",
"शिल्प भाषा का अंतःकरण है।",
"साहित्या विनोद",
"1982",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
दुर्ग के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/durg | [
"कुल: 4",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"सुपरिचित कवि।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
दिल्ली के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/delhi/delhi/delhi | [
"कुल: 91",
"सूफ़ी संत, संगीतकार, इतिहासकार और भाषाविद। हज़रत निज़ामुद्दीन के शिष्य और खड़ी बोली हिंदी के पहले कवि। ‘हिंदवी’ शब्द के पुरस्कर्ता।",
"पंजाबी की लोकप्रिय कवयित्री-लेखिका। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।",
"हिंदी के प्रथम महाकवि। वीरगाथा काल से संबद्ध। ‘पृथ्वीराज रासो’ कीर्ति का आधार-ग्रंथ।",
"आधुनिक हिंदी कविता के अग्रणी कवियों में से एक। अपनी कहानियों और डायरी के लिए भी प्रसिद्ध।",
"रीतिकालीन काव्य-धारा के महत्त्वपूर्ण कवि। रीतिमुक्त कवियों में से एक। आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा ‘साक्षात् रसमूर्ति’ की उपमा से विभूषित।",
"भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।",
"समादृत कवि-गद्यकार और अनुवादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"शब्द-शोध और उसके विस्तार के लिए समादृत व्यक्तित्व। कमलेश्वर के शब्दों में—शब्दाचार्य। अपनी पत्नी कुसुम कुमार के साथ हिंदी के प्रथम समांतर कोश (थिसॉरस) के निर्माण के लिए लोकप्रिय।",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"जनवादी विचारों के चर्चित क्रांतिकारी कवि। भोजपुरी में भी लेखन।",
"पंजाबी के सुप्रतिष्ठित कवि, आलोचक, अनुवादक और संस्कृति-समीक्षक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"समादृत कवि-लेखक। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।",
"समादृत कवि-आलोचक और अनुवादक। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।",
"‘नई कहानी’ की स्त्री-त्रयी की समादृत कथाकार। ‘आपका बंटी’ के लिए बहुप्रशंसित।",
"आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि और अनुवादक। अपनी पत्रकारिता और कहानियों के लिए भी प्रसिद्ध। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि। अपने जनवादी विचारों के लिए प्रसिद्ध। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"समादृत कवि-आलोचक और अनुवादक। कविता का एक अलग मुहावरा गढ़ने और काव्य-विषय-वैविध्य के लिए उल्लेखनीय।",
"हिन्दी के सशक्त गद्यकार। 'आवारा मसीहा' कृति प्रसिद्धि का आधार। गाँधीवादी मूल्यों से प्रभावित। 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित।",
"नई पीढ़ी की लेखिका। कविता-गद्य-अनुवाद-संपादन के क्षेत्र में सक्रिय। 'हिन्दवी' की प्रबंध संपादक।",
"सुप्रसिद्ध हास्य कवि।",
"अकबर के नवरत्नों में से एक। भक्ति और नीति-कवि। सरस हृदय की रमणीयता और अन्योक्तियों में वाग्वैदग्ध्य के लिए प्रसिद्ध।",
"सातवें दशक के कवि और पत्रकार। अलग ढंग की कुछ कहानियाँ भी लिखीं।",
"अकविता आंदोलन के समय उभरे हिंदी के प्रतिष्ठित कवि। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"हिंदी के उल्लेखनीय कवि-आलोचक। अपनी डायरियों के लिए विशेष चर्चित, लेकिन अब अलक्षित।",
"आठवें दशक के प्रमुख कवि-लेखक और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"समादृत आलोचक और विचारक। समय-समय पर कथा और कविता-लेखन भी।",
"सुपरिचित कवि। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।",
"नई पीढ़ी के कवि-लेखक। जन संस्कृति मंच से संबद्ध।",
"बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में उभरे कवि। कम आयु में दिवंगत।",
"आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि और नाटककार। अपनी पत्रकारिता के लिए भी प्रसिद्ध। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"नई पीढ़ी की चर्चित कवयित्री। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।",
"समादृत कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"आठवें दशक के प्रमुख कवि-लेखक और संपादक। व्यंग्य में भी उल्लेखनीय योगदान।",
"रीतिकालीन नीतिकवि। सूक्तिकार के रूप में स्मरणीय।",
"समादृत कथाकार। समय-समय पर काव्य-लेखन भी।",
"रीतिकालीन नखशिख परंपरा के कवि।",
"नई पीढ़ी के कवि। पत्रकारिता से भी संबद्ध।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। स्त्रीवादी विचारों के लिए उल्लेखनीय।",
"हिंदी कवि-कथाकार और अनुवादक। ‘कश्मीरनामा’ शीर्षक पुस्तक के लिए चर्चित।",
"भारतेंदुयुगीन रचनाकार। 'हिंदुस्तान', 'भारत प्रताप' और 'भारतमित्र' आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक। 'शिवशंभू का चिट्ठा' व्यंग्य रचना कीर्ति का आधार।",
"भक्तिकालीन निर्गुण मत की स्त्री संत। 'बावरी संप्रदाय' की संस्थापिका।",
"'चरनदासी संप्रदाय' से संबंधित संत चरणदास की शिष्या। कविता में सर्वस्व समर्पण और वैराग्य को महत्त्व देने के लिए स्मरणीय।",
"सुप्रसिद्ध आलोचक, रंग-समीक्षक और गद्यकार। उनकी स्मृति में ‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’ प्रदान किया जाता है।",
"सुपरिचित कवि-लेखक। बाल-साहित्य में योगदान के लिए भी उल्लेखनीय।",
"सातवें दशक के कवि-लेखक। समाजवादी विचारों के लिए उल्लेखनीय।",
"सुपरिचित कवि-आलोचक-अनुवादक और संपादक।",
"अमृता प्रीतम के जीवन-साथी के रूप में चर्चित कवि-चित्रकार।",
"सातवें दशक के कवि। ‘जरत्कारु’ शीर्षक कविता-संग्रह और समाजवादी विचारों के लिए उल्लेखनीय।",
"आठवें दशक के कवि। अनौपचारिक रूप से जन संस्कृति मंच से संबद्ध रहे।",
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] |
Read famous Poetry of Kailash Banvasi | Hindwi | https://www.hindwi.org/authors/kailash-banvasi/ | [
"1965\n|\nदुर्ग, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
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] |
Read famous Poetry of Mahesh Verma | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/mahesh-verma/ | [
"1969\n|\nअंबिकापुर, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
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] |
अंबिकापुर के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/surguja/ambikapur | [
"कुल: 3",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
Read famous Poetry of Manoj Rupda | Hindwi | https://www.hindwi.org/authors/manoj-rupda/ | [
"1963\n|\nदुर्ग, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
Read famous Poetry of Shaani | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/shaani/ | [
"1933 - 1995\n|\nछत्तीसगढ़",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
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] |
छत्तीसगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh | [
"कुल: 24",
"समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार। तीन कहानी-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
"सुपरिचित कथाकार-निबंधकार।",
"समादृत कथाकार, अनुवादक और संपादक। ‘काला जल’ उपन्यास के लिए चिर स्मरणीय।",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"द्विवेदीयुगीन निबंधकार। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन और आलोचना में भी योगदान।",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुपरिचित कवि।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कथाकार।",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
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] |
Read famous Poetry of Basant Tripathi | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/basant-tripathi/ | [
"1972\n|\nभिलाई, छत्तीसगढ़",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
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"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
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"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
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] |
भिलाई के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/other-31/bhilai | [
"कुल: 2",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
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] |
इलाहाबाद के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/uttar-pradesh/allahabd/allahabad | [
"कुल: 37",
"‘मधुशाला’ के लिए मशहूर समादृत कवि-लेखक और अनुवादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। कविता के साथ-साथ अपने रेखाचित्रों के लिए भी प्रसिद्ध। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।",
"समकालीन महत्त्वपूर्ण चित्रकार, कला-समीक्षक और लेखक। चित्रकला की काशी शैली और समीक्षावाद से संबद्ध।",
"छायावाद के आधार स्तंभों में से एक। 'प्रकृति के सुकुमार' कवि। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।",
"छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार। महाप्राण नाम से विख्यात।",
"प्रेमचंद युग के समादृत उपन्यासकार-कहानीकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुपरिचित कवि-कथाकार और नाटककार। जोखिमों से भरा बीहड़ जीवन जीने के लिए उल्लेखनीय।",
"भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबद्ध प्रखर पत्रकार, लेखक और सुधारवादी नेता। ‘प्रताप’ पत्रिका का संपादन।",
"स्वतंत्रता आंदोलन के सर्वोच्च नेताओं में से एक। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री। भारत के संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक स्वरूप के वास्तुकार। 'दी डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' जैसी कृति के रचनाकार।",
"सुप्रसिद्ध काव्य-आलोचक और साहित्य-इतिहासकार। व्यास सम्मान से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवयित्री। 'झाँसी की रानी' कविता के लिए स्मरणीय।",
"समादृत कवि-कथाकार और संपादक। महादेवी वर्मा और निराला पर लिखीं अपनी किताबों के लिए भी चर्चित।",
"जीवन के व्यावहारिक पक्ष के आलोक में नीति, वैराग्य और अध्यात्म के प्रस्तुतकर्ता। नीतिपरक कुंडलियों के लिए प्रसिद्ध।",
"भक्ति परंपरा के संत कवि। ‘अजगर करे ना चाकरी...’ जैसी उक्ति के लिए स्मरणीय।",
"रीतिबद्ध कवि। भावों के सघन विधान और कल्पना के सफल निर्वाह के लिए समादृत नाम।",
"समादृत कवि-आलोचक। ‘जायसी’ शीर्षक आलोचना-पुस्तक के लिए उल्लेखनीय।",
"सुपरिचित कवि-गीतकार।",
"समादृत कथाकार। समय-समय पर काव्य-लेखन भी।",
"नई पीढ़ी के कवि। पत्रकारिता से भी जुड़ाव।",
"नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।",
"नई पीढ़ी के कवि-लेखक और अनुवादक।",
"‘नई कविता’ धारा से संबद्ध कवि और समीक्षक। चित्रकार और पुरातत्त्वविद् के रूप में भी योगदान।",
"नई पीढ़ी के कवि-लेखक।",
"छायावादी कवि और गद्यकार। ग्रामगीतों के संकलन के लिए स्मरणीय।",
"नई पीढ़ी से संबद्ध सुपरिचित कवि-लेखक। 'घर एक नामुमकिन जगह है' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।",
"द्विवेदी युग के कवि-अनुवादक। स्वच्छंद काव्य-धारा के प्रवर्तक।",
"नई पीढ़ी के कवि।",
"सुपरिचित कवि और पत्रकार। जन संस्कृति मंच से संबद्ध।",
"सुपरिचित कवि-लेखक। दलित-संवेदना और सरोकारों के लिए उल्लेखनीय।",
"सुपरिचित कथाकार-कवि। चार पुस्तकें प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की लेखिका।",
"नई पीढ़ी के कवि।",
"आठवें-नवें दशक की हिंदी कविता का सुपरिचित नाम। अब दृश्य से ओझल। भीतर के ख़ालीपन से त्रस्त होकर आत्महत्या की।",
"सुपरिचित कवि। ‘अनहद’ के संपादक और जनवादी लेखक संघ से संबद्ध।",
"नई पीढ़ी की लेखिका और पत्रकार।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
Read famous Poetry of Ekant Shrivastava | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/ekant-shrivastava/ | [
"1964\n|\nरायपुर, छत्तीसगढ़",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
"नवें दशक के सुपरिचित हिंदी कवि।",
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] |
Read famous Poetry of Mahima kushwaha | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/mahima-kushwaha/ | [
"2004\n|\nअंबिकापुर, छत्तीसगढ़",
"नई पीढ़ी की कवि।",
"नई पीढ़ी की कवि।",
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] |
Read famous Poetry of Nidheesh Tyagi | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/nidheesh-tyagi/ | [
"1969\n|\nबस्तर, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
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] |
बस्तर के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/bastar | [
"कुल: 2",
"सुपरिचित कवि। गद्य-लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
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] |
Read famous Poetry of Prabhat Tripathi | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/prabhat-tripathi/ | [
"1941\n|\nरायगढ़, छत्तीसगढ़",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"अपनी स्मृति की धरती",
"1980",
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] |
रायगढ़ के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/raigarh/raigarh | [
"कुल: 4",
"हिंदी के समादृत कवि-आलोचक-कथाकार और संपादक।",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
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] |
Read famous Poetry of Siddharth Bajpai | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/siddharth-bajpai/ | [
"1957\n|\nरायगढ़, छत्तीसगढ़",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
"हिंदी-अँग्रेज़ी कवि-लेखक। प्रतिष्ठित प्रकाशनों स्थलों पर रचनाएँ प्रकाशित।",
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] |
Read famous Poetry of Vasu Gandharv | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/vasu-gandharv/ | [
"2001\n|\nअंबिकापुर, छत्तीसगढ़",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी के कवि। 'किसी रात की लिखित उदासी में' शीर्षक से एक काव्य-पुस्तिका प्रकाशित।",
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] |
Read famous Poetry of Bhagat Singh Soni | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/bhagat-singh-soni/ | [
"1947\n|\nरायपुर, छत्तीसगढ़",
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] |
Read famous Poetry of Jaiprakash Manas | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/jaiprakash-manas-1/ | [
"1965\n|\nरायगढ़, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"सुपरिचित कवि-लेखक और साहित्यिक कार्यकर्ता।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
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] |
Read famous Poetry of Madhav Shukla Manoj | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/madhav-shukla-manoj/ | [
"1931 - 2011\n|\nसागर, मध्य प्रदेश",
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] |
सागर के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/madhya-pradesh/sagar/sagar | [
"कुल: 9",
"हिंदी के समादृत कवि-लेखक। बतौर अनुवादक भी चर्चित। ‘सदानीरा’ पत्रिका के संस्थापक-संपादक।",
"हिंदी के अत्यंत उल्लेखनीय कवि-कथाकार।",
"सुपरिचित हिंदी कवि-कथाकार और विचारक। ‘समास’ पत्रिका के संपादक।",
"सुप्रसिद्ध आलोचक और विद्वान प्राध्यापक। भक्ति और छाया काव्य पर चिंतन के लिए उल्लेखनीय।",
"संस्कृत और हिंदी के समादृत कवि-कथाकार-आलोचक और अनुवादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सातवें दशक में उभरे कवि, लेकिन अब अलक्षित।",
"सातवें दशक के अल्पचर्चित-अलक्षित हिंदी कवि-लेखक।",
"समादृत कवि, एकांकीकार और आलोचक। पद्मभूषण से सम्मानित।",
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] |
Read famous Poetry of Nasir Ahmad Sikander | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/nasir-ahmad-sikander/ | [
"1961",
"सुपरिचित कवि।",
"सुपरिचित कवि।",
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] |
Read famous Poetry of Poonam Sonchhatra | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/poonam-sonchhatra/ | [
"1982\n|\nभिलाई, छत्तीसगढ़",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। 'एक फूल का शोकगीत' शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
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] |
Read famous Poetry of Poonam Vasam | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/poonam-vasam/ | [
"1989\n|\nबस्तर, छत्तीसगढ़",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
"नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी संवेदना के लिए उल्लेखनीय। एक कविता-संग्रह प्रकाशित।",
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] |
Read famous Poetry of Sateesh Kalsekar | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/sateesh-kalsekar/ | [
"1943 - 2021\n|\nसिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
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] |
सिंधुदुर्ग के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/maharashtra/sindhudurg | [
"कुल: 3",
"मराठी के सुप्रसिद्ध कवि। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध मराठी कवि, निबंधकार और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"मराठी के समादृत कवि-गीतकार और नाटककार। संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार और साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
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] |
Read famous Poetry of Tarun Bhatnagar | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/tarun-bhatnagar/ | [
"1968\n|\nरायपुर, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित कथाकार।",
"सुपरिचित कथाकार।",
"गुलमेंहदी की झाड़ियाँ",
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] |
Read famous Poetry of Habib Tanvir | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/habib-tanvir/ | [
"1923 - 2009\n|\nरायपुर, छत्तीसगढ़",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
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] |
सिंगरौली के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/madhya-pradesh/singrauli | [
"कुल: 1",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
Read famous Poetry of Kuntala Kumari Sabat | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/kuntala-kumari-sabat/ | [
"1901 - 1938\n|\nजगदलपुर, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
जगदलपुर के तमाम शायर और लेखक की सूची | हिंदवी | https://www.hindwi.org/location/india/chhattisgarh/jagadalpur | [
"कुल: 1",
"सुपरिचित ओड़िया कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और चिकित्सक। रहस्यवादी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
Read famous Poetry of Vinod Kumar Shukla | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/vinod-kumar-shukla/all | [
"1937\n|\nराजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"अधिकतर अज्ञानता के सुख-दुःख की आदत थी। ज्ञान के सुख-दुःख बहुतों को नहीं मालूम थे। जबकि ज्ञान असीम अटूट था। ज्ञान सुख की समझ देता था पर सुख नहीं देता था।",
"अदब और क़ायदे आदमी को बहुत जल्दी कायर बना देते हैं। ऐसा आदमी झगड़ा नहीं करता।",
"किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।",
"ख़ुश होने से पहले बहाने ढूँढने चाहिए और ख़ुश रहना चाहिए। बाद में ये बहाने कारण बन जाते। सचमुच की ख़ुशी देने लगते।",
"“जितनी बुराइयाँ हैं वे केवल इसलिए कि कुछ बातें छुपाई नहीं जाती और अच्छाइयाँ इसलिए हैं कि कुछ बातें छुपा ली जाती हैं।”",
"दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है\r\nकहकर मैं अपने घर से चला।\r\nयहाँ पहुँचते तक\r\nजगह-जगह मैंने यही कहा\r\nऔर यहाँ कहता हूँ\r\nकि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है।\r\nजहाँ पहुँचता हूँ\r\nवहाँ से चला जाता हूँ।\r\n\r\nदुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है—\r\nबार-बार यही कह रहा हूँ\r\nऔर कितना समय बीत गया है\r\nलौटकर मैं घर नहीं\r\nघर-घर पहुँचना चाहता हूँ\r\nऔर चला जाता हूँ।",
"Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts",
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] |
Kavita of Vinod Kumar Shukla | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/vinod-kumar-shukla/kavita | [
"1937\n|\nराजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
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"702Favorite",
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] |
Vinod Kumar Shukla - Video Collection of poetry | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/vinod-kumar-shukla/video | [
"1937\n|\nराजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
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] |
Quotes of Vinod Kumar Shukla | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/vinod-kumar-shukla/quotes | [
"1937\n|\nराजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।",
"63Favorite",
"श्रेणीबद्ध करें",
"अधिकतर अज्ञानता के सुख-दुःख की आदत थी। ज्ञान के सुख-दुःख बहुतों को नहीं मालूम थे। जबकि ज्ञान असीम अटूट था। ज्ञान सुख की समझ देता था पर सुख नहीं देता था।",
"अदब और क़ायदे आदमी को बहुत जल्दी कायर बना देते हैं। ऐसा आदमी झगड़ा नहीं करता।",
"किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।",
"ख़ुश होने से पहले बहाने ढूँढने चाहिए और ख़ुश रहना चाहिए। बाद में ये बहाने कारण बन जाते। सचमुच की ख़ुशी देने लगते।",
"लड़की माँ-बाप के घर में ग़ैरहाज़िर जैसी होती थी। उसे उसी तरह पाला-पोसा जाता था कि कोई भटकी हुई आ गई है। भले कोख से आ गई है। एकाध दिन उसे खाना खिला दो कल चली जाएगी। लड़की का रोज़-रोज़, बस एकाध दिन जैसा होता था। फिर ब्याह दी जाती जैसे निकल जाती हो।",
"“जितनी बुराइयाँ हैं वे केवल इसलिए कि कुछ बातें छुपाई नहीं जाती और अच्छाइयाँ इसलिए हैं कि कुछ बातें छुपा ली जाती हैं।”",
"पृथ्वी में जो कुछ जीव जगत, पत्थर, नदी, पहाड़, समुद्र, जंगल, वनस्पति मनुष्य इत्यादि हैं वे सब पृथ्वी की सोच की तरह थे। मन की बात की तरह। मनुष्य की सोच में पता नहीं कैसे ब्रह्मांड आ गया था।",
"पत्नी का रिश्ता फूल को तोड़कर अपने पास रख लेने का था। पेड़ में खिले फूल-जैसा रिश्ता कहीं नहीं दिखता था।",
"कारीगर अपनी रोज़ी से मतलब रखता है, काम से नहीं। काम बनाने पर वह विश्वास रखेगा तो उसकी रोज़ी नहीं चलेगी।",
"दूसरों की सहानुभूति, हमारा स्वाभिमान तैयार करती थी।",
"गंतव्य दुःख का कारण होता। सुख का कारण है कि किसी अच्छी जगह जा रहे हैं। परंतु अच्छी जगह दुनिया में कहाँ है? जगह मतलब कहीं नहीं पहुँचना है।",
"एक अच्छा नौकर परिवार में नौकर की तरह शामिल रहता था।",
"दृश्य बदलने के लिए पलक का झपक जाना ही बहुत होता है।",
"मुझे चंद्रमा आकाश में गोल कटी हुई खिड़की की तरह लगता था जिससे आकाश की आड़ में छुपी हुई दुनिया का उजाला आता था।",
"यदि एकबारगी कोई गर्दन काटने के लिए आए तो जान बचाने के लिए जी-जान से लड़ाई होती। इसलिए एकदम से गर्दन काटने कोई नहीं आता। पीढ़ियों से गर्दन धीरे-धीरे कटती है।",
"अच्छा व्यवहार और सहायता के लिए तत्पर होना, यानी, आदमी को उस रेंज पर लाना है जहाँ से उस पर अचूक निशाना लगाया जा सके।",
"घड़ी नहीं थी। पर निरंतरता का बोध था। आकाश का होना निरंतर था। आकाश स्थिर पर उसका होना लगातार। स्थिर झरने में लगातार गिरते हुए पानी की निरंतरता।",
"दुःख और तकलीफ़ के कार्यक्रम भी यदि अच्छी तरह से प्रस्तुत होते तो तालियाँ तड़-तड़ बजतीं।",
"कितना सुख था कि हर बार घर लौटकर आने के लिए मैं बार-बार घर से बाहर निकलूँगा।",
"घर का दरवाज़ा खोलते ही मैंने घर को ऐसे देखा जैसे किसी ख़ाली डब्बे के ढक्कन को खोलकर अंदर झाँक रहा हूँ। अगर ख़ालीपन मभी कोई चीज़ थी, तो उसी घर ठसाठस भरा था। इसके अलावा कुछ नहीं था। घर के अंदर मैं उसी तरह आया, जैसे एक उपराहा ख़ालीपन और आया है।",
"नौकर अच्छा हो तो वह क़ीमती हो जाता था।",
"यात्रा में जाने का सुख और लौटने का सुख होता। परंतु रेलगाड़ी में दुःख की भीड़ होती। दुःख किसी भी गाँव में ज़ंजीर खींचकर उतर जाता।",
"ग़रीब एक स्तर के होते हुए भी एक जैसे इकट्ठे नहीं होते।",
"नौकर की कमीज़ एक सांचा था, जिससे आदर्श नौकरों की पहचान होती।",
"ज़िंदगी को जीना, स्थगित मौत को जीना होता पर बहुत दिनों तक स्थगित मौत को भी नहीं जिया जा सकता।",
"मृत्यु समय से बहिष्कृत होने से होती थी।",
"सृष्टि में पृथ्वी का भी अकेलापन होगा। परंतु एक मनुष्य का अकेलापन सृष्टि के अकेलेपन से भी बड़ा होता होगा। एक मनुष्य के अनेक दुःख सुख थे।",
"जी दुखता है तो खिड़की बंद कर लेना चाहिए। अकेलेपन में कोई आएगा कि राह देखने के बदले किसी के पास चले जाना चाहिए।",
"आदमी के विचार तेज़ी से बदल रहे थे। लेकिन उनकी तेज़ी से रद्दीपन इकठ्ठा हो रहा था। रद्दीपन देर तक ताज़ा रहेगा। अच्छाई तुरंत सड़ जाती थी।",
"यदि नदी बह रही हो तो उसमें एक सूखी टहनी डाल दी जाए तो वह ज़रूर बहेगी।",
"गाड़ियों और यात्रियों को आते-जाते देखते हुए वे जीवन का रहस्य नहीं, लौटने और जाने का रहस्य समझना चाहते थे।",
"ज़्यादा गहरे में डूबकर मरने का डर रहता है। इस बाहरी हलचल भरी गहराई में कितनी दूर तक जा सकेंगे, जिसमें मरें नहीं।",
"मैं बार-बार घर से बाहर जाऊँगा और बार-बार घर लौटूँगा।",
"बहुत से लोग दुःख का अभ्यास बचपन से करते हैं। इसके अभ्यास के लिए मैदान की ज़रूरत नहीं होती।",
"सुख भविष्य के बहुत नज़दीक नहीं होता। दुःख का वर्तमान इतना लंबा, नुकीला होता है कि भविष्य में उसकी नोक घुसी होती। ऐसा कम होता है कि दु:खी हुए और चार मिनट बाद सुखी हो गए। सुख थोड़ा लचीला होता।",
"सारा जीवन लौटने का रास्ता नहीं देखना चाहिए। लौटने का रास्ता घंटा दो घंटा, दो चार दिन, दो चार महीने, दो चार वर्ष बस।",
"घर बदलने और नौकरी बदलने के बदले ख़ुद को बदलना चाहिए।",
"आत्महत्या करते हुए मौत की प्रतीक्षा होती। ज़्यादातर लोगों के जीने का तरीक़ा आत्महत्या का तरीक़ा होता।",
"बहुत दुःख के बाद भी बहुत दु:खों से बचने का यह रिवाज़ था। दुःख से लबालब भरे हुए को बाँधना कि फूट न जाए। बहकर पड़ोसी के घर न जाए।",
"खेल-खेल की ज़िंदगी और सचमुच की ज़िंदगी का जो अनुभव होता उसमें आदमी के बचपने से कोई सहायता नहीं मिलती थी। लेकिन बुढ़ापे तक बचपन के खेल याद आते थे।",
"जो सुन नहीं पाते वे बम का धमाका सुन नहीं पाते होंगे। अणुबम का धमाका भी नहीं। धमाका न सुनाई दे कल-कल की ध्वनि सबको सुनाई देनी चाहिए, बहरे को इतना ही बहरा होना चाहिए।",
"अँधेरे के मैदान में अँधेरे का आकाश था जिसमें यह गाँव था। मिट्टी के घर थे कहीं-कहीं खेत थे। अँधेरे में अगर ऊपर से स्वर्ग उतरता हो तो स्वर्ग भी वैसा ही होता जैसे यह नरक था।",
"पीठ देखना विमुख होना देखना था। पेड़ विमुख था। बाँस की भर्राई धुन के साथ सुबह का और आगे होना संगत कर रहा था।",
"रात-भर जागकर ही आनेवाले दिन को पकड़ सकते थे।",
"उपेक्षित उपस्थिति होने से आदमी को अदृश्य होने में समय नहीं लगता।",
"मेरा वेतन एक कटघरा था, जिसे तोड़ना मेरे बस में नहीं था। यह कटघरा मुझमें कमीज़ की तरह फिट था।",
"निरंतरता समय का गोत्र है जैसे भारद्वाज गोत्र होता है।",
"चीज़ों को उसी तरह के साथ उसके अलावा भी देखने का अभ्यास होना था।",
"मैं दुःख सहने का नगर स्तर या ज़िला स्तर का खिलाड़ी नहीं होना चाहता था।",
"पहनने का ढंग या पहनावा आदमी के नक़्शे में शामिल हो जाता है जो मरते दम तक नहीं छूटता।",
"aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair",
"jis ke hote hue hote the zamāne mere",
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हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/hatasha-se-ek-wekti-baith-gaya-tha-vinod-kumar-shukla-kavita-3 | [
"हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था",
"व्यक्ति को मैं नहीं जानता था",
"हताशा को जानता था",
"इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया",
"मैंने हाथ बढ़ाया",
"मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ",
"मुझे वह नहीं जानता था",
"मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था",
"हम दोनों साथ चले",
"दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे",
"साथ चलने को जानते थे।",
"hatasha se ek wekti baith gaya tha",
"wekti ko main nahin janta tha",
"hatasha ko janta tha",
"isliye main us wekti ke pas gaya",
"mainne hath baDhaya",
"mera hath pakaDkar wo khaDa hua",
"mujhe wo nahin janta tha",
"mere hath baDhane ko janta tha",
"hum donon sath chale",
"donon ek dusre ko nahin jante the",
"sath chalne ko jante the",
"hatasha se ek wekti baith gaya tha",
"wekti ko main nahin janta tha",
"hatasha ko janta tha",
"isliye main us wekti ke pas gaya",
"mainne hath baDhaya",
"mera hath pakaDkar wo khaDa hua",
"mujhe wo nahin janta tha",
"mere hath baDhane ko janta tha",
"hum donon sath chale",
"donon ek dusre ko nahin jante the",
"sath chalne ko jante the",
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जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/jo-mere-ghar-kabhi-nahin-ayenge-vinod-kumar-shukla-kavita | [
"जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे",
"मैं उनसे मिलने",
"उनके पास चला जाऊँगा।",
"एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर",
"नदी जैसे लोगों से मिलने",
"नदी किनारे जाऊँगा",
"कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा",
"पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब",
"असंख्य पेड़ खेत",
"कभी नहीं आएँगे मेरे घर",
"खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने",
"गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।",
"जो लगातार काम में लगे हैं",
"मैं फ़ुरसत से नहीं",
"उनसे एक ज़रूरी काम की तरह",
"मिलता रहूँगा—",
"इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह",
"सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।",
"jo mere ghar kabhi nahin ayenge",
"main unse milne",
"unke pas chala jaunga",
"ek uphanti nadi kabhi nahin ayegi mere ghar",
"nadi jaise logon se milne",
"nadi kinare jaunga",
"kuch tairunga aur Doob jaunga",
"pahaD, tile, chattanen, talab",
"asankhya peD khet",
"kabhi nahin ayenge mere ghar",
"khet khalihanon jaise logon se milne",
"ganw ganw, jangal galiyan jaunga",
"jo lagatar kaam mein lage hain",
"main fursat se nahin",
"unse ek zaruri kaam ki tarah",
"milta rahunga—",
"ise main akeli akhiri ichha ki tarah",
"sabse pahli ichha rakhna chahunga",
"jo mere ghar kabhi nahin ayenge",
"main unse milne",
"unke pas chala jaunga",
"ek uphanti nadi kabhi nahin ayegi mere ghar",
"nadi jaise logon se milne",
"nadi kinare jaunga",
"kuch tairunga aur Doob jaunga",
"pahaD, tile, chattanen, talab",
"asankhya peD khet",
"kabhi nahin ayenge mere ghar",
"khet khalihanon jaise logon se milne",
"ganw ganw, jangal galiyan jaunga",
"jo lagatar kaam mein lage hain",
"main fursat se nahin",
"unse ek zaruri kaam ki tarah",
"milta rahunga—",
"ise main akeli akhiri ichha ki tarah",
"sabse pahli ichha rakhna chahunga",
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प्रेम की जगह अनिश्चित है - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/prem-ki-jagah-anishchit-hai-vinod-kumar-shukla-kavita | [
"प्रेम की जगह अनिश्चित है",
"यहाँ कोई नहीं होगा की जगह भी कोई है।",
"आड़ भी ओट में होता है",
"कि अब कोई नहीं देखेगा",
"पर सबके हिस्से का एकांत",
"और सबके हिस्से की ओट निश्चित है।",
"वहाँ बहुत दुपहर में भी",
"थोड़ी-सा अँधेरा है",
"जैसे बदली छाई हो",
"बल्कि रात हो रही है",
"और रात हो गई हो।",
"बहुत अँधेरे के ज़्यादा अँधेरे में",
"प्रेम के सुख में",
"पलक मूँद लेने का अंधकार है।",
"अपने हिस्से की आड़ में",
"अचानक स्पर्श करते",
"उपस्थित हुए",
"और स्पर्श करते हुए विदा।",
"prem ki jagah anishchit hai",
"yahan koi nahin hoga ki jagah bhi koi hai",
"aD bhi ot mein hota hai",
"ki ab koi nahin dekhega",
"par sabke hisse ka ekant",
"aur sabke hisse ki ot nishchit hai",
"wahan bahut duphar mein bhi",
"thoDi sa andhera hai",
"jaise badli chhai ho",
"balki raat ho rahi hai",
"aur raat ho gai ho",
"bahut andhere ke zyada andhere mein",
"prem ke sukh mein",
"palak moond lene ka andhkar hai",
"apne hisse ki aaD mein",
"achanak sparsh karte",
"upasthit hue",
"aur sparsh karte hue wida",
"prem ki jagah anishchit hai",
"yahan koi nahin hoga ki jagah bhi koi hai",
"aD bhi ot mein hota hai",
"ki ab koi nahin dekhega",
"par sabke hisse ka ekant",
"aur sabke hisse ki ot nishchit hai",
"wahan bahut duphar mein bhi",
"thoDi sa andhera hai",
"jaise badli chhai ho",
"balki raat ho rahi hai",
"aur raat ho gai ho",
"bahut andhere ke zyada andhere mein",
"prem ke sukh mein",
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जो कुछ अपरिचित हैं - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/jo-kuch-aprichit-hain-vinod-kumar-shukla-kavita | [
"जो कुछ अपरिचित हैं",
"वे भी मेरे आत्मीय हैं",
"मैं उन्हें नहीं जानता",
"जो मेरे आत्मीय हैं।",
"कितने लोगों,",
"पहाड़ों, जंगलों, पेड़ों, वनस्पतियों को",
"तितलियों, पक्षियों, जीव-जंतु",
"समुद्र और नक्षत्रों को",
"मैं नहीं जानता धरती को",
"मुझे यह भी नहीं मालूम",
"कि मैं कितनों को नहीं जानता।",
"सब अत्मीय हैं",
"सब जान लिए जाएँगे मनुष्यों से",
"मैं मनुष्य को जानता हूँ।",
"jo kuch aprichit hain",
"we bhi mere atmiy hain",
"main unhen nahin janta",
"jo mere atmiy hain",
"kitne logon,",
"pahaDon, janglon, peDon, wanaspatiyon ko",
"titaliyon, pakshiyon, jeew jantu",
"samudr aur nakshatron ko",
"main nahin janta dharti ko",
"mujhe ye bhi nahin malum",
"ki main kitnon ko nahin janta",
"sab atmiy hain",
"sab jaan liye jayenge manushyon se",
"main manushya ko janta hoon",
"jo kuch aprichit hain",
"we bhi mere atmiy hain",
"main unhen nahin janta",
"jo mere atmiy hain",
"kitne logon,",
"pahaDon, janglon, peDon, wanaspatiyon ko",
"titaliyon, pakshiyon, jeew jantu",
"samudr aur nakshatron ko",
"main nahin janta dharti ko",
"mujhe ye bhi nahin malum",
"ki main kitnon ko nahin janta",
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आँख बंद कर लेने से - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/ankh-band-kar-lene-se-vinod-kumar-shukla-kavita | [
"आँख बंद कर लेने से",
"अंधे की दृष्टि नहीं पाई जा सकती",
"जिसके टटोलने की दूरी पर है संपूर्ण",
"जैसे दृष्टि की दूरी पर।",
"अँधेरे में बड़े सवेरे एक खग्रास सूर्य उदय होता है",
"और अँधेरे में एक गहरा अँधेरे में एक गहरा अँधेरा फैल जाता है",
"चाँदनी अधिक काले धब्बे होंगे",
"चंद्रमा और तारों के।",
"टटोलकर ही जाना जा सकता है क्षितिज को",
"दृष्टि के भ्रम को",
"कि वह किस आले में रखा है",
"यदि वह रखा हुआ है।",
"कौन से अँधेरे सींके में",
"टँगा हुआ रखा है",
"कौन से नक्षत्र का अँधेरा।",
"आँख मूँदकर देखना",
"अंधे की तरह देखना नहीं है।",
"पेड़ की छाया में, व्यस्त सड़क के किनारे",
"तरह-तरह की आवाज़ों के बीच",
"कुर्सी बुनता हुआ एक अंधा",
"संसार से सबसे अधिक प्रेम करता है",
"वह कुछ संसार स्पर्श करता है और",
"बहुत संसार स्पर्श करना चाहता है।",
"ankh band kar lene se",
"andhe ki drishti nahin pai ja sakti",
"jiske tatolne ki duri par hai sampurn",
"jaise drishti ki duri par",
"andhere mein baDe sawere ek khagras surya uday hota hai",
"aur andhere mein ek gahra andhere mein ek gahra andhera phail jata hai",
"chandni adhik kale dhabbe honge",
"chandrma aur taron ke",
"tatolkar hi jana ja sakta hai kshaitij ko",
"drishti ke bhram ko",
"ki wo kis aale mein rakha hai",
"yadi wo rakha hua hai",
"kaun se andhere sinke mein",
"tanga hua rakha hai",
"kaun se nakshatr ka andhera",
"ankh mundakar dekhana",
"andhe ki tarah dekhana nahin hai",
"peD ki chhaya mein, wyast saDak ke kinare",
"tarah tarah ki awazon ke beech",
"kursi bunta hua ek andha",
"sansar se sabse adhik prem karta hai",
"wo kuch sansar sparsh karta hai aur",
"bahut sansar sparsh karna chahta hai",
"ankh band kar lene se",
"andhe ki drishti nahin pai ja sakti",
"jiske tatolne ki duri par hai sampurn",
"jaise drishti ki duri par",
"andhere mein baDe sawere ek khagras surya uday hota hai",
"aur andhere mein ek gahra andhere mein ek gahra andhera phail jata hai",
"chandni adhik kale dhabbe honge",
"chandrma aur taron ke",
"tatolkar hi jana ja sakta hai kshaitij ko",
"drishti ke bhram ko",
"ki wo kis aale mein rakha hai",
"yadi wo rakha hua hai",
"kaun se andhere sinke mein",
"tanga hua rakha hai",
"kaun se nakshatr ka andhera",
"ankh mundakar dekhana",
"andhe ki tarah dekhana nahin hai",
"peD ki chhaya mein, wyast saDak ke kinare",
"tarah tarah ki awazon ke beech",
"kursi bunta hua ek andha",
"sansar se sabse adhik prem karta hai",
"wo kuch sansar sparsh karta hai aur",
"bahut sansar sparsh karna chahta hai",
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हिंदी साहित्य के लेखक, चित्र रचना - साहित्य रचना और उनकी चित्र रचनाएँ | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/shayari-image/duniya-men-achchhe-logon-kii-kamii-nahiin-hai-kavita-vinod-kumar-shukla | [
"यहाँ हिंदी साहित्य की अप्रतिम परंपरा से चुनी गई रचना-पंक्तियों का संग्रह प्रस्तुत है। यहाँ ये पंक्तियाँ आकर्षक चित्रों के साथ उपलब्ध हैं। आप भी पढ़िए, देखिए, गुज़रिए और साहित्य-प्रेमियों से साझा करिए।",
"दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है",
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Read famous Poetry of Prabhat Tripathi | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/prabhat-tripathi | [
"1941\n|\nरायगढ़, छत्तीसगढ़",
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"अपनी स्मृति की धरती",
"1980",
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Read famous Poetry of Mahesh Verma | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/mahesh-verma | [
"1969\n|\nअंबिकापुर, छत्तीसगढ़",
"सुपरिचित कवि-कलाकार और अनुवादक।",
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Read famous Poetry of Jaiprakash Manas | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/jaiprakash-manas-1 | [
"1965\n|\nरायगढ़, छत्तीसगढ़",
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Read famous Poetry of Nasir Ahmad Sikander | Hindwi | https://www.hindwi.org/poets/nasir-ahmad-sikander | [
"1961",
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