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एकदंत गजबदन बिनायक - पद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/pad/ganesh/ekdant-gajabdan-binayak-tansen-pad?sort= | [
"एकदंत गजबदन बिनायक, विघन-विनासन हैं सुखदाई।",
"लंबोदर गजानन जगबंदन शिव-सुत, ढुंढीराज सब बरदाई॥",
"गौरी-सुत, गनेश, मूसकबाहन, फरसाधर,",
"संकर-सुवन रिद्ध-सिद्ध नवनिधि पाई।",
"‘तानसेन’ तेरी अस्तुति करत, काटौ कलेस,",
"प्रथम बंदन करत द्वंद्व मिटि जाई॥",
"ekda.nt gajabdan binaayak, vighan-vinaasan hai.n sukhdaa.ii।",
"la.mbodar gajaanan jagba.ndan shiv-sut, Dhu.nDhiiraaj sab bardaa.ii||",
"gaurii-sut, ganesh, muusakbaahan, pharsaadhar,",
"sa.nkar-suvan riddha-siddh navnidhi paa.ii।",
"‘taanasena’ terii astuti karat, kaaTau kales,",
"pratham ba.ndan karat dva.nd miTi jaa.ii||",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
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प्रथम नाम गनेस कौ लीजियै - पद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/pad/ganesh/pratham-nam-ganes-kau-lijiyai-baiju-pad-27?sort= | [
"प्रथम नाम गनेस कौ लीजियै, जा सुमिरैं हो सिद्ध काम।",
"जय गिरिजानंदन जगबंदन लंबोदर,",
"तोहि जपत आवै रिद्धि-सिद्धि, होय सुख धाम॥",
"अष्ट सिद्धि नव निधि पावै सुख बिश्राम।",
"कहै ‘बैजू बावरौ’ निसदिन सुमिरौ,",
"नाद विद्या प्राप्त होय लियैं नाम॥",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/sabad | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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] |
गुरु के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/dohe | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
"हम भी पांहन पूजते, होते रन के रोझ।",
"सतगुरु की कृपा भई, डार्या सिर पैं बोझ॥",
"कबीर कहते हैं कि यदि सद्गुरु की कृपा न हुई होती तो मैं भी पत्थर की पूजा करता और जैसे जंगल में नील गाय भटकती है, वैसे ही मैं व्यर्थ तीर्थों में भटकता फिरता। सद्गुरु की कृपा से ही मेरे सिर से आडंबरों का बोझ उतर गया।",
"गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस।",
"चल ख़ुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस॥",
"ख़ुसरो कहते हैं कि आत्मा रूपी गोरी सेज पर सो रही है, उसने अपने मुख पर केश डाल लिए हैं, अर्थात वह दिखाई नहीं दे रही है। तब ख़ुसरो ने मन में निश्चय किया कि अब चारों ओर अँधेरा हो गया है, रात्रि की व्याप्ति दिखाई दे रही है। अतः उसे भी अपने घर अर्थात परमात्मा के घर चलना चाहिए।",
"प्रेम पंथ की पालकी, रैदास बैठियो आय।",
"सांचे सामी मिलन कूं, आनंद कह्यो न जाय॥",
"रैदास कहते हैं कि वे प्रेम−मार्ग रूपी पालकी में बैठकर अपने सच्चे स्वामी से मिलने के लिए चले हैं। उनसे मिलने की चाह का आनंद ही निर्वचनीय है, तो उनसे मिलकर आनंद की अनुभूति का तो कहना ही क्या!",
"प्रेम लटक दुर्लभ महा, पावै गुरु के ध्यान।",
"अजपा सुमिरण कहत हूं, उपजै केवल ज्ञान॥",
"सहजो कहती हैं कि ईश्वरीय प्रेम की अनुभूति अत्यन्त दुर्लभ है। वह सद्गुरु के ध्यान से ही मिलती है। इसलिए स्थिर मन से ईश्वर एवं गुरु का स्मरण-ध्यान करना चाहिए, क्योंकि उसी से ईश्वरीय ज्ञान की साक्षात् अनुभूति हो पाती है।",
"अड़सठ तीरथ गुरु चरण, परवी होत अखंड।",
"सहजो ऐसो धामना, सकल अंड ब्रह्मंड॥",
"सद्गुरु के चरणों में सारे अड़सठ पवित्र तीर्थ रहते हैं, अर्थात उनके चरण अड़सठ तीर्थों के समान पवित्र एवं पूज्य है। उनका पुण्यफल पवित्रतम है। इस समस्त संसार में ऐसा कोई धाम या तीर्थ नहीं है जो सद्गुरु के चरणों में नहीं है।",
"गुरुवचन हिय ले धरो, ज्यों कृपणन के दाम।",
"भूमिगढ़े माथे दिये, सहजो लहै न राम॥",
"सहजो कहती हैं कि सुगंधित सुंदर फूलों की माला के समान सद्गुरु के वचनों को हदय में धारण करना चाहिए। अतीव विनम्रता रखकर, सहर्ष मन में धारण कर सद्गुरु-वचनों को अपनाने से ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है।",
"दादू प्रीतम के पग परसिये, मुझ देखण का चाव।",
"तहाँ ले सीस नवाइये, जहाँ धरे थे पाव॥",
"विरह के माध्यम से ईश्वर का स्वरूप बने संतों की चरण-वंदना करनी चाहिए। ऐसे ब्रह्म-स्वरूप संतों के दर्शन करने की मुझे लालसा रहती है। जहाँ-तहाँ उन्होंने अपने चरण रखे हैं, वहाँ की धूलि को अपने सिर से लगाना चाहिए।",
"सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।",
"बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥",
"सद्गुरु ने मुझ पर प्रसन्न होकर एक रसपूर्ण वार्ता सुनाई जिससे प्रेम रस की वर्षा हुई और मेरे अंग-प्रत्यंग उस रस से भीग गए।",
"क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।",
"सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥",
"जाका गुर भी अंधला, चेला खरा निरंध।",
"अंधा−अंधा ठेलिया, दून्यूँ कूप पड़ंत॥",
"जिसका गुरु अँधा अर्थात् ज्ञान−हीन है, जिसकी अपनी कोई चिंतन दृष्टि नहीं है और परंपरागत मान्यताओं तथा विचारों की सार्थकता को जाँचने−परखने की क्षमता नहीं है; ऐसे गुरु का अनुयायी तो निपट दृष्टिहीन होता है। उसमें अच्छे-बुरे, हित-अहित को समझने की शक्ति नहीं होती, जबकि हित-अहित की पहचान पशु-पक्षी भी कर लेते हैं। इस तरह अँधे गुरु के द्वारा ठेला जाता हुआ शिष्य आगे नहीं बढ़ पाता। वे दोनों एक-दूसरे को ठेलते हुए कुएँ मे गिर जाते हैं अर्थात् अज्ञान के गर्त में गिर कर नष्ट हो जाते हैं।",
"सतगुरु मिल्यो तो का भयो, घट नहिं प्रेम प्रतीत।",
"अंतर कोर न भींजई, ज्यों पत्थल जल भीत॥",
"इक लख चंदा आणि घर, सूरज कोटि मिलाइ।",
"दादू गुर गोबिंद बिन, तो भी तिमर न जाइ॥",
"सतगुर की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।",
"लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावण हार॥",
"ज्ञान के आलोक से संपन्न सद्गुरु की महिमा असीमित है। उन्होंने मेरा जो उपकार किया है वह भी असीम है। उसने मेरे अपार शक्ति संपन्न ज्ञान-चक्षु का उद्घाटन कर दिया जिससे मैं परम तत्त्व का साक्षात्कार कर सका। ईश्वरीय आलोक को दृश्य बनाने का श्रेय महान गुरु को ही है।",
"जानी आये गोरवें, फूली कीयो विचार।",
"सब संतन को बालमो, सो मेरो भरतार॥",
"साधु समागम सत्य करि, करै कलंक बिछोह।",
"परसुराम पारस परसि, भयो कनक ज्यों लोह॥",
"या तन की सारैं करूँ, प्रीत जु पासे लाल।",
"सतगुरु दाँव बताइया, चौपर रमे जमाल॥",
"शरीर को गोटें (मोहरें) और प्रीति के पासे हैं, सतगुरु दांव (चाल) बता रहे हैं; और चौपड़ का खेल खेल रहा हूँ।",
"दादू सतगुरु सौं सहजैं मिल्या, लीया कंठ लगाइ।",
"दया भई दयाल की, तब दीपक दीया जगाइ॥",
"मेरे सतगुरु मुझे सहज भाव से मिले। मुझे अपने गले से लगा लिया। उनकी दया से मेरे हृदय में ज्ञान रूपी दीपक प्रज्वलित हो गया अर्थात् उसके प्रकाश से मेरा अज्ञानरूपी अंधकार दूर हो गया।",
"सब घट माँही राम है, ज्यौं गिरिसुत में लाल।",
"ज्ञान गुरु चकमक बिना, प्रकट न होत जमाल॥",
"पर्वत में स्थित रत्नों के समान राम प्रत्येक शरीर में व्याप्त है। किंतु, बिना गुरु से ज्ञान प्राप्त किए वह (राम) प्रकट नहीं होता।",
"सेइ साधु गुरु समुझि सिखि, राम भगति थिरताइ।",
"लरिकाई को पैरिबो, तुलसी बिसरि न जाइ॥",
"सच्चे साधु और सद्गुरु की सेवा करके उनसे श्री राम के तत्त्व को समझो और सीखो, तब श्री राम की भक्ति स्थिर हो जाएगी; क्योंकि बचपन में सीखा हुआ तैरना फिर नहीं भूलता।",
"परम दया करि दास पै, गुरु करी जब गौर।",
"रसनिधि मोहन भावतौ, दरसायौ सब ठौर॥",
"जब गुरुदेव ने अपने इस दास पर बड़ी भारी दया कर के कुछ ध्यान दिया तो सभी स्थानों में अर्थात सृष्टि के अणु-अणु में उस परम प्रिय श्रीकृष्ण का दर्शन दिया।",
"ना तो घर की सुध है, न कोई रिस्तादार।",
"सैना सतगुरू साहिबा, अलख जगत परवार॥",
"सैन कहते हैं—मुझे न तो घर की सुधि है, न कोई रिश्तेदार है। मेरा स्वामी सतगुरु है और परिवार सारा संसार है।",
"क्या हिन्दू क्या मुसलमान, क्या ईसाई जैन।",
"गुरु भक्ती पूरन बिना, कोई न पावे चैन॥",
"सब तिर्या सब तिरैंगे, सेनो भव नद बीच।",
"सैना सतगुरू की कृपा, तरसी आँखाँ मीच॥",
"सैन कहते हैं—सबका उद्धार हो जायेगा। सैना तो भवसागर के बीच है। उस पर सतगुरु की कृपा है। वह निश्चित रूप से तिर जाएगा।",
"दादू देव दयाल की, गुरू दिखाई बाट।",
"ताला कूँची लाइ करि, खोले सबै कपाट॥",
"पग धोऊ उण देव का, जो घालि गुरु घाट।",
"पीपा तिनकू ना गिणूं, जिणरे मठ अर ठाठ॥",
"सुआरथ के सब मीत रे, पग-पग विपद बढ़ाय।",
"पीपा गुरु उपदेश बिनुं, साँच न जान्यो जाय॥",
"गुरु भक्ति दृढ़ के करो, पीछे और उपाय।",
"बिन गुरु भक्ति मोह जग, कभी न काटा जाय॥",
"सोधी दाता पलक में, तिरै तिरावन जोग।",
"दादू ऐसा परम गुर, पाया कहिं संजोग॥",
"नानक गुरु संतोखु रुखु धरमु फुलु फल गिआनु।",
"रसि रसिआ हरिआ सदा पकै करमि सदा पकै कमि धिआनि॥",
"राम नाम जियां जाणिया, पकड़ गुरु की धार।",
"पीपा पल में परसिया, खुलग्यो मुक्ति द्वार॥",
"स्वारथ के सब ही सगा, जिनसो विपद न जाय।",
"पीपा गुरु उपदेश बिनु, राम न जान्यो जाय॥",
"संत मुक्त के पौरिया, तिनसौं करिये प्यार।",
"कूंची उनकै हाथ है, सुन्दर खोलहिं द्वार॥",
"अनेक चंद उदय करै, असंख सूर परकास।",
"एक निरंजन नाँव बिन, दादू नहीं उजास॥",
"जगजीवन घट-घट बसै, करम करावन सोय।",
"बिन सतगुरु केसो कहै, केहि बिधि दरसन होय॥",
"चरनदास गुरुदेव ने, मो सूँ कह्यो उचार।",
"'दया' अहर निसि जपत रहु, सोहं सुमिरन सार॥",
"राम टेक से टरत नहिं, आन भाव नहिं होत।",
"ऐसे साधु जनन की, दिन-दिन दूनी जोत॥",
"भ्रम भागा गुरु बचन सुनि, मोह रहा नहिं लेस।",
"तब माया छल हित किया, महा मोहनी भेस॥",
"कोटि लक्ष व्रत नेम तिथि, साध संग में होय।",
"विषम व्याधि सब मिटत है, शांति रूप सुख जोय॥",
"हरि हीरा गुरु जौहरी, ‘व्यासहिं’ दियौ बताय।",
"तन मन आनंद सुख मिलै, नाम लेत दुख जाय॥",
"एक जन्म गुरु भक्ति कर, जन्म दूसरे नाम।",
"जन्म तीसरे मुक्ति पद, चौथे में निजधाम॥",
"सतगुरु जी री खोहड़ी, लागी म्हारे अंग।",
"पीपा जुड़ग्या पी लगन, टूटी भरम तरंग॥",
"साधू सिंह समान है, गरजत अनुभव ज्ञान।",
"करम भरम सब भजि गये, 'दया' दुर्यो अज्ञान॥",
"नित प्रति वंदन कीजिये, गुरु कूँ सीस नवाय।",
"दया सुखी कर देत है, हरि स्वरूप दर साय॥",
"परब्रह्म परापरं, सो मम देव निरंजनं।",
"निराकारं निर्मलं, तस्य दादू बंदनं॥",
"श्री गुरदेव दया करी, मैं पायो हरि नाम।",
"एक राम के नाम तें, होत संपूरन काम॥",
"या जग में कोउ है नहीं, गुरु सम दीन दयाल।",
"मरना गत कू जानि कै, भले करै प्रति पाल॥",
"मोटे बंधन जगत के, गुरु भक्ति से काट।",
"झीने बंधन चित्त के, कटें नाम परताप॥",
"फूली सतगुर उपरै, वारूं मेरो जीव।",
"ग्यांनी गुर पूरा मिल्या, तुरत मिलाया पीव॥",
"दादू काढ़े काल मुख, अंधे लोचन देइ।",
"दादू ऐसा गुर मिल्या, जीव ब्रह्म करि लेइ॥",
"जे गुरु कूँ वंदन करै, दया प्रीति के भाव।",
"आनंद मगन सदा रहै, निर विधि ताप नसाव॥",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन पद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/pad | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/kavita | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/kundliyaan | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन सवैया | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/savaiya | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन चर्यापद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/charyapad | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन काव्य खंड | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/khand-kavya | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन अनुवाद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/anuwad | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन कवित्त | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/kavitt | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन गीत | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/geet | [
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गुरु के विषय पर बेहतरीन छप्पय | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/chhappay | [
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गुरु के विषय पर बेहतरीन संस्मरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/sansmaran | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
"मनुष्य जाति के उड़ने का सपना पहली बार साकार करने वाले हवाई जहाज़ के आविष्कारक राइट बंधुओं का वृहद् स्तर पर नागरिक सम्मान आयोजित किया गया। इस अवसर पर आयोजकों ने उन्हें अपना व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। पहले छोटे भाई से बोलने का निवेदन किया गया।",
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] |
गुरु के विषय पर बेहतरीन कहानी | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/story | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
"बनारस विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष आचार्य चूड़ामणि प्राचीन परंपरा के संरचनावादी समीक्षक थे। मनु महाराज के वर्ण विभाजन और स्त्री संबंधी आग्रह आदि में उनकी अटूट आस्था थी। अनेक विश्वविद्यालयों की, पाठ्यक्रम समिति के प्रभावी सदस्य, थीसिसों के परीक्षक,",
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गुरु के विषय पर बेहतरीन बेला | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/guru/bela | [
"गुरु की महिमा की समृद्ध चर्चा मिलती है। प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है।",
"12 जून 2024",
"12 जून 2024",
"जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह तीसरी कड़ी है। पहली कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर के नाम को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। दूसरी कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले हुए थे। अब त",
"15 मई 2024",
"15 मई 2024",
"जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह दूसरी कड़ी है। पहली कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर के नाम को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। इस कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले हुए हैं। मैं पु",
"01 मई 2024",
"01 मई 2024",
"जेएनयू द्वारा आयोजित वर्ष 2012 की (एम.ए. हिंदी) प्रवेश परीक्षा के परिणाम में हर साल की तरह छोटे गाँव और क़स्बे इस दुर्लभ टापू की शांति भंग करने के लिए घुस आए थे। हमारी क्लास एलएसआर और मिरांडा हाउस जैस",
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कतिक करम कमावणे - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/katik-karam-kamawne-guru-arjundev-sabad-4?sort= | [
"कतिक करम कमावणे दोस न काहू जोग॥",
"परमेसर ते भुलिआं विआपन सभे रोग।",
"वेमुख होए राम ते लगन जनम विजोग॥",
"खिन मह कउड़े होए गए जितड़े माइआ भोग।",
"विच न कोई कर सकै किस थै रोवह रोज॥",
"कीता किछू न होवई लिखिआ धुर संजोग।",
"वडभागी मेरा प्रभ मिलै तां उतरह सभ बिओग॥",
"नानक कउ प्रभ राख लेह मेरे साहिब बंदी मोच।",
"कतिक होवै साधसंग बिनसह सभे सोच॥",
"हर किसी को अपने किए कर्मों का फल भोगना पड़ता है। कोई किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता। परमेश्वर को भुलाने से जीव को सभी तरह के रोग लग जाते हैं। जो प्रभु से विमुख हो जाते हैं, उन्हें जन्म-जन्मांतरों तक वियोग का संताप सहना पड़ता है। माया के भोगों का रस क्षणमात्र के लिए ही स्वादिष्ट होता है और पीछे कड़वापन (दुःख और पश्चात्ताप) छोड़ जाता है। कर्मों को भुगतने के मामले में कोई बीच-बचाव नहीं कर सकता। फिर आपबीती का दुःख रोज़-रोज़ किसके पास जाकर रोया जाए? जीव के अपने बल से कुछ नहीं हो सकता, होता वही है जो भाग्य में लिखा है। अगर सौभाग्य से प्रभु मिलन हो जाए, तो जन्म-जन्मांतरों का वियोग ख़त्म हो जाता है। गुरु साहिब प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! तू मुझे बंधन मुक्त कर दे। कार्तिक के महीने से यही उपदेश है कि अगर साधु की संगति प्राप्त हो जाए तो हर प्रकार की चिंता का अंत हो जाता है।",
"katik karam kamaava.na.e dos n kaahuu joga||",
"parmesar te bhuli.aa.n vi.aapan sabhe rog।",
"vemukh ho.e raam te lagan janam vijoga||",
"khin mah ka.uDe ho.e ga.e jitDe maa.i.a bhog।",
"vich n ko.ii kar sakai kis thai rovah roja||",
"kiita kichhuu n hova.ii likhi.a dhur sa.njog।",
"vaDbhaagii mera prabh milai taa.n utrah sabh bi.oga||",
"naanak ka.u prabh raakh leh mere saahib ba.ndii moch।",
"katik hovai saadhasa.ng binsah sabhe socha||",
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हम घरि साजन आए - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/hum-ghari-sajan-aaye-guru-nanak-sabad?sort= | [
"हम घरि साजन आए। साचै मेलि मिलाए॥",
"सहजि मिलाए हरि मनि भाए पंच मिले सुख पाइआ।",
"साई वसतु परापति होई जिसु सेती मनु लाइआ॥",
"अनुदिनु मेलु भइआ मनु मानिआ घर मंदर सोहाए।",
"पंच सबद धुनि अनहद वाजे हम घरि साजन आए॥",
"आवहु मीत पिआरै। मंगल गावहुना रे॥",
"सचु मंगलु गावहु ता प्रभु भावहु सोहिलड़ा जुग चारे।",
"अपनै घरि आइआ थानि सुहाइआ कारज सबदि सवारे॥",
"गिआन महारसु नेत्री अंजनु त्रिभवण रूपु दिखाइआ।",
"सखी मिलहु रसि मंगलु गावहु हम घरि साजनु आइआ॥",
"मनु तनु अंमृति भिंना। अंतरि प्रेम रतंना॥",
"अंतरि रतनु पदारथु मेरै परम ततु वीचारो।",
"जंत भेख तू सफलिओ दाता सिरि सिरि देवणहारो॥",
"तू जानु गिआनी अंतरजामी आपे कारणु कीना॥",
"सुनहु सखी मनु मोहनि मोहिआ तनु मनु अंमृति भीना॥",
"आतम रामु संसारा। साचा खेलु तुम्हारा॥",
"सचु खेलु तुम्हारा अगम अपारा तुधु बिनु कउणु बुझाए।",
"सिध साधिक सिआणे केते तुझ बिनु कवणु कहाए॥",
"कालु बिकालु भए देवाने मनु राखिआ गुरि ठाए।",
"नानक अवगण सबदि जलाए गुण संगमि प्रभु पाए॥",
"हमारे घर में मित्रगण (गुरुमुख) आ गए। सच्चे (हरी) ने (उसका) मिलाप कर दिया। (उन संतों ने मुझे) सहजावस्था से मिला दिया है, (जिससे) मन को हरी अच्छा लगने लगा। संत-जनों (पंच) के मिलने से बहुत सुख की प्राप्ति हुई। जिस (वस्तु) से मन लगाया था, वह वस्तु प्राप्त हो गई। (उस प्रभु से) शाश्वत मिलने हो गया, (जिससे) मन मान गया और घर तथा महल सुहावने हो गए। (मेरे अंतगंत) पाँच (बाजो की) ध्वनि (बिना बजाए ही) अनाहत गति से बजने लगी; हमारे घर में मित्रगण आ गए। [पंच शब्द=तार, धातु, चाम, घड़े तथा फूँक से बजाए जाने वाले बाजे।]",
"हे प्यारे मित्रो, आओ। हे नारियो, (सतसंगियो), मगल के गीत गाओ। यदि (प्रभु के) सच्चे मंगल के गीत गाओ तभी उस प्रभु को अच्छे लगोगे; (उसकी) बड़ाई चारों युगो में (व्याप्त है)। (आत्मस्वरूप) धर में (हरी) आकर बस गया है, (जिससे हृदय रूपी) स्थान सुहावना हो गया है, शब्द (नाम) से (सारे) कार्य बन गए हैं। ब्रह्मज्ञान नेत्रों का परम अमृतमय अंजन है, (इसी अंजन ने) त्रिभुवन के स्वरूप (हरी) को दिखाया है। हे सखियो (गुरुमुखो), मिलकर आनंदपूर्वक मंगल-गीत गाओ। हमारे घर से (परमात्मा रूपी) साजन आ गया है।",
"मेरे तन और मन अमृत में भीग गए है। (मेरे) अंतःकरण में प्रेम रूपी रत्र (प्रकट हो गया है)। परम तत्व (परमात्म-तत्व) के विचार से मेरे अंतःकरण में (नाम रूपी) रत्र-पदार्थ (प्रकट हो गया है)। (हे हरी), जीव भिखारी है और तू सफल दाता, है (ऐसा दाता, जो सबकी इच्छाओ को पूर्ण करता है)। प्रत्येक प्राणी—जीव को (तू ही) देनेवाला है। (हे प्रभु), तू ही सज्ञान (सयाना है), ज्ञाननी (ज्ञाता) और अंतर्यामी है, (और) तूने ही सृष्टि रची है। हे सखियों (गुरुमुखो), सुनो हरी ने मन को मोहित कर लिया है, (जिससे मेरे) तन और मन अमृत में भीग गए है।",
"(हे प्रभु); तू ही संसार का आत्मा राम है, (अर्थात हे हरी तू ही समस्त संसार में रम रहा है)। (हे हरी), ता खेल सच्चा है; (वह) अगम और अपार है; तेरे बिना (सृष्टि के इस अनंत रहस्य को) कौन समझा सकता है? कितने ही सिद्ध, साधक तथा सयाने लोग है; (किंतु) बिना (तुझे जाने हुए) कौन व्यक्ति (सिद्ध, साधक अथवा सयाना) कहलावा सकता है? (अर्थात कोई भी नहीं; तेरे ही जानने से वो लोग सिद्ध, साधक आदि बनते है; बिना तेरे उनका कोई पृथक् अस्तित्व नहीं है)। मरण और जन्म पागल हो गए। गुरु ने मन को ठिकाने रख दिया है, (गुरु ने मन को अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित कर दिया है)। हे नानक, गुरु के उपदेश द्वारा (मैंने) अवगुणों को दग्ध कर दिया है और गुणों के मेल के कारण प्रभु को पा लिया है। [विशेष काल-मृत्यु। बिकालु=मृत्यु नहीं, (अर्थात, मृत्यु का उलटा जन्म)। काल विकालु भए देवाने=जन्म और मरण पगले हो गए है, (अर्थात जन्म-मरण समाप्त हो गए।]",
"ham ghari saajan aa.e। saachai meli milaa.e||",
"sahji milaa.e hari mani bhaa.e pa.nch mile sukh paa.i.a।",
"saa.ii vastu paraapati ho.ii jisu setii manu laa.i.aa||",
"anudinu melu bha.i.a manu maani.a ghar ma.ndar sohaa.e।",
"pa.nch sabad dhuni anhad vaaje ham ghari saajan aa.e||",
"aavahu miit pi.aarai। ma.ngal gaavahuna re||",
"sachu ma.nglu gaavahu ta prabhu bhaavahu sohilDa jug chaare।",
"apnai ghari aa.i.a thaani suhaa.i.a kaaraj sabdi savaare||",
"gi.aan mahaarasu netrii a.njnu tribhav.n ruupu dikhaa.i.a।",
"sakhii milhu rasi ma.nglu gaavahu ham ghari saajanu aa.i.aa||",
"manu tanu a.nm.rti bhi.nna। a.ntri prem rata.nnaa||",
"a.ntri ratnu padaarathu merai param tatu viichaaro।",
"ja.nt bhekh tuu saphli.o daata siri siri deva.nahaaro||",
"tuu jaanu gi.aanii a.ntarjaamii aape kaara.na.u kiinaa||",
"sunhu sakhii manu mohani mohi.a tanu manu a.nm.rti bhiinaa||",
"aatam raamu sa.nsaara। saacha khelu tumhaaraa||",
"sachu khelu tumhaara agam apaara tudhu binu ka.u.na.u bujhaa.e।",
"sidh saadhik si.aa.na.e kete tujh binu kav.na.u kahaa.e||",
"kaalu bikaalu bha.e devaane manu raakhi.a guri Thaa.e।",
"naanak avag.n sabdi jalaa.e gu.n sa.ngmi prabhu paa.e||",
"ham ghari saajan aa.e। saachai meli milaa.e||",
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मुझ पे सद्गुरु कृपा करी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/mujh-pe-sadguru-kripa-kari-sain-bhagat-sabad?sort= | [
"मुझ पे सद्गुरु कृपा करी।",
"सूधो हाट बताओ सद्गुरु सूधी गेल करी॥",
"ना कोई ऊबड़ ना कोई खाबड़, ना टेड़ी-संकरी।",
"ना कोई साँस रोकणी होई, ना कोई षट्चकरी॥",
"सीधो नाम बताओ सद्गुरु, साँस-साँस सतरी।",
"रामानंद गुरु पूरा पाया, मनख देह उघरी॥",
"राम ती बड़ो नाम बताओ, गेल नहीं वकरी।",
"सैन भगत साहिब दरवाजे, राम नाम छकरी॥",
"सद्गुरू ने मुझ पर बहुत कृपा की है। सद्गुरू ने मुझे सत्संग का संग बताया और वहाँ का सहज मार्ग भी प्रशस्त किया। वह मार्ग न तो ऊबड़-खाबड़ है, न टेढ़ा- मेढ़ा और न सँकरा है, अर्थात् निर्बाध है। न तो साँस रोककर समाधी लगाने का मार्ग है, न षट्साधना। उन्होंने सहज रूप से नाम का ज्ञान बता दिया है। मेरी साँस-साँस सकारथ हो गई है। मेरा मनुष्य जन्म सफल कर दिया है। सद्गुरू रामानन्द मुझे समर्थ एवं पूरे सद्गुरू के रूप में मिल गए। उन्होंने मुझे ज्ञान दिया और सुझा दिया कि राम से भी बड़ा उनका नाम है। उनका मार्ग कठिन भी नहीं है। मैं राम नाम के छकड़े में बैठकर साहिब के द्वार पर पहुँचने में सफल हो गया हूँ।",
"mujh pe sadguru kripa karii।",
"suudho haaT bataa.o sadguru suudhii gel karii||",
"na ko.ii uubaD na ko.ii khaabaD, na TeDii-sa.nkrii।",
"na ko.ii saa.ns roka.na.ii ho.ii, na ko.ii shaTchakrii||",
"siidho naam bataa.o sadguru, saa.ns-saa.ns satrii।",
"raamaana.nd guru puura paaya, manakh deh ughrii||",
"raam tii baDo naam bataa.o, gel nahii.n vakrii।",
"sain bhagat saahib darvaaje, raam naam chhakrii||",
"mujh pe sadguru kripa karii।",
"suudho haaT bataa.o sadguru suudhii gel karii||",
"na ko.ii uubaD na ko.ii khaabaD, na TeDii-sa.nkrii।",
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बारहमासा - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/barahmasa-tulsi-sahab-sabad?sort= | [
"सत सावन बरषा भई, सुरत बही गंगधार।",
"गगन गली गरजत चली, उतरी भौजल पार॥",
"भादौं भजन बिचारिया, शब्दहि सुरत मिलाप।",
"आप अपनपौ लख पड़े, छूटे छल बल पाप॥",
"कुसल क्वार सतसंग में, रंग रँगो सतनाम।",
"और काम आवें नहीं, तिरिया सुत धन धाम॥",
"कातिक करतब जब बने, मन इन्द्री सुख त्याग।",
"भोग भरम भवरस तजै, छूटै तब लव लाग॥",
"अगहन अमी रस बस रहौ, अमृत चुवत अपार।",
"पाँइ परसि गुरु को लखौ, होय परम पद पार॥",
"पूस ओस जल बुंद ज्यों, बिनसत बदन विचार।",
"तन बिनसे पावे नहीं, नर तन दुर्लभ छार॥",
"माह महल पिया को लखो, चखो अमर रस सार।",
"वार पार पद पेखिया, सत्त सुरत की लार॥",
"फिर फागुन सुन में तको, शब्दा होत रसाल।",
"निरख लखौ दुरबीन से, ज्यों मत मीन निहाल॥",
"चैत चेत जग झूठ है, मत भरमो भव जाल।",
"काल हाल सिर पर खड़ा, छूटे तन धन माल॥",
"सुनो साख बैसाख की, भाषि गुरुन गति गाय।",
"सब संतन मत की कहूँ, बूझें सत मत पाय॥",
"जबर जेठ जग रीति है, प्रीति परस रस जान।",
"आन बात बस ना रहौ, सब मति गति पहिचान॥",
"जो असाढ़ अरजी करौ, धरो संत श्रुति ध्यान।",
"ज्ञान मान मति छांड़ के, बूझौ अकथ अनाम॥",
"बारह मास मत भापिया, जानें संत सुजान।",
"तुलसिदास विधि सब कही, छूटै चारौ खान॥",
"सत्त यानी सत साहेब (तुलसी साहब) फ़रमाते हैं कि सावन में वर्षा होती है और सुरत की धार गंगा की धार की तरह गरजती हुई गगन की गली की ओर चलती है और भव जल के पार पहुँचती है। भादों का महीना भजन में लगने का जिससे सुरत अपने पिया से मिलती है और अपने रूप को लखती है। सब छल बल और पाप नष्ट हो जाते हैं। अश्विन के महीने में जीव का भला इसी में है कि सतसंग करे और सत्तनाम के रंग में रंग जावे। सत्तनाम के अलावा और कोई जैसे तिरिया, सुत, धन-धाम इत्यादि काम नहीं आएगा। इनमें नहीं फँसना चाहिए। कार्तिक के महीने में इसका काम पूरा होगा, जब यह मन और इंद्रियों के सुखों का परित्याग कर देगा। जब यह दुनिया के भरम और रस को छोड़ेगा तब इसकी संसार की लाग छूटेगी। अगहन में अमृत की अपार धार टपक रही है। उसके आनंद में मगन रहो। गुरु के दर्शन पाकर और चरण स्पर्श कर भवसागर के पार परम पद में पहुँचोगे। पूस मास में इस बात को समझो कि शरीर पानी के ओले की तरह नाश होने वाला है। जब तन नाश हो जाएगा तो अपना उद्देश्य कैसे पाओगे? यह नर शरीर जो अति दुर्लभ है, वृथा बरबाद जाएगा। माघ में पिया के महल को लखो और सच्चा अमर आनंद प्राप्त करो। तब तुम्हें सुरत से वह देश जो भवसागर के पार है, दिखलाई पड़ेगा। फिर फागुन मास में सुन्न में पहुँचकर उसे लखो जहाँ मधुर शब्द हो रहा है। दूरबीन से उसको निरखो और जैसे मछली पानी में मगन होती है उस तरह मगन होओ। चैत के महीने में चेतो और समझो कि यह जगत झूठा है। इसके जाल में मत फँसो और मत भरमो। काल तुम्हारे सिर पर घात करने को खड़ा है और एक दिन तुम्हारा तन और धन माल सब छूट जाएगा। बैसाख में जीवों की साख का हाल सुनो जो संत दया करके फ़रमाते हैं। मैं सब संतों के मत का वर्णन करता हूँ। अगर कोई संत मत को धारण करे तो वह मेरी बात समझ सकता है। जगत का हाल जेठ महीने की तरह तपन देने वाला और दुखदाई है। तुम इस बात को जानो कि शब्द के परस से प्रेम का सुख प्राप्त होता है। अन्य बातों के वशीभूत मत होओ और सत्त मत की गति को पहचानो यानी संत मत को बूझो। असाढ़ महीने में प्रार्थना करो और सुरत से संतों का ध्यान करो। वाचक ज्ञान में अहंकार की मति छोड़कर अकथ और अनाम मालिक को बूझो। मैंने जो कुछ बारहमास का वर्णन किया है उसे संत जानते हैं। तुलसी साहब फ़रमाते हैं कि मैंने सब विधि बयान की है। उसके अनुसार जो चले, उसका चारों खान में भरमना छूट जाएगा।",
"sat saavan barsha bha.ii, surat bahii ga.ngdhaar।",
"gagan galii garjat chalii, utrii bhaujal paara||",
"bhaadau.n bhajan bichaariya, shabdahi surat milaap।",
"aap apanpau lakh paDe, chhuuTe chhal bal paapa||",
"kusal kvaar satsa.ng me.n, ra.ng ra.ngo satnaam।",
"aur kaam aave.n nahii.n, tiriya sut dhan dhaama||",
"kaatik kartab jab bane, man indrii sukh tyaag।",
"bhog bharam bhavras tajai, chhuuTai tab lav laaga||",
"aghan amii ras bas rahau, am.rt chuvat apaar।",
"paa.n.i parsi guru ko lakhau, hoy param pad paara||",
"puus os jal bu.nd jyo.n, binsat badan vichaar।",
"tan binse paave nahii.n, nar tan durlabh chhaara||",
"maah mahal piya ko lakho, chakho amar ras saar।",
"vaar paar pad pekhiya, satt surat kii laara||",
"phir phaagun sun me.n tako, shabda hot rasaal।",
"nirakh lakhau durbiin se, jyo.n mat miin nihaala||",
"chait chet jag jhuuTh hai, mat bharmo bhav jaal।",
"kaal haal sir par khaDa, chhuuTe tan dhan maala||",
"suno saakh baisaakh kii, bhaasha.i gurun gati gaay।",
"sab sa.ntan mat kii kahuu.n, buujhe.n sat mat paaya||",
"jabar jeTh jag riiti hai, priiti paras ras jaan।",
"aan baat bas na rahau, sab mati gati pahichaana||",
"jo asaaDh arjii karau, dharo sa.nt shruti dhyaan।",
"j~na.aan maan mati chhaa.nD ke, buujhau akath anaama||",
"baarah maas mat bhaapiya, jaane.n sa.nt sujaan।",
"tulsidaas vidhi sab kahii, chhuuTai chaarau khaana||",
"sat saavan barsha bha.ii, surat bahii ga.ngdhaar।",
"gagan galii garjat chalii, utrii bhaujal paara||",
"bhaadau.n bhajan bichaariya, shabdahi surat milaap।",
"aap apanpau lakh paDe, chhuuTe chhal bal paapa||",
"kusal kvaar satsa.ng me.n, ra.ng ra.ngo satnaam।",
"aur kaam aave.n nahii.n, tiriya sut dhan dhaama||",
"kaatik kartab jab bane, man indrii sukh tyaag।",
"bhog bharam bhavras tajai, chhuuTai tab lav laaga||",
"aghan amii ras bas rahau, am.rt chuvat apaar।",
"paa.n.i parsi guru ko lakhau, hoy param pad paara||",
"puus os jal bu.nd jyo.n, binsat badan vichaar।",
"tan binse paave nahii.n, nar tan durlabh chhaara||",
"maah mahal piya ko lakho, chakho amar ras saar।",
"vaar paar pad pekhiya, satt surat kii laara||",
"phir phaagun sun me.n tako, shabda hot rasaal।",
"nirakh lakhau durbiin se, jyo.n mat miin nihaala||",
"chait chet jag jhuuTh hai, mat bharmo bhav jaal।",
"kaal haal sir par khaDa, chhuuTe tan dhan maala||",
"suno saakh baisaakh kii, bhaasha.i gurun gati gaay।",
"sab sa.ntan mat kii kahuu.n, buujhe.n sat mat paaya||",
"jabar jeTh jag riiti hai, priiti paras ras jaan।",
"aan baat bas na rahau, sab mati gati pahichaana||",
"jo asaaDh arjii karau, dharo sa.nt shruti dhyaan।",
"j~na.aan maan mati chhaa.nD ke, buujhau akath anaama||",
"baarah maas mat bhaapiya, jaane.n sa.nt sujaan।",
"tulsidaas vidhi sab kahii, chhuuTai chaarau khaana||",
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हां रे बीरा ओ संसार अथग जळ भरियौ - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/han-re-bira-o-sansar-athag-j-bhariyau-baba-ramdev-sabad?sort= | [
"हां रे बीरा ओ संसार अथग जळ भरियौ,",
"नीर नजर नईं आवै।",
"ओ संसार अथग जळ भरियौ रे, म्हारा लाल॥",
"हां रे बीरा सत री नाव गुरु खेवटिया,",
"बैठी पार हो जावे म्हारा लाल।",
"डूबै जिकै नर करणी रा हीणा रे,",
"बिन विश्वास दुःख पावै म्हारा लाल॥",
"हां रे बीरा तीन पांच एकण घर लावै,",
"धीरज धजा लगावै म्हारा लाल।",
"नेम धरम मल्लाह दोय आछा रे,",
"समझ नै नाव हलावै म्हारा लाल॥",
"हां रे बीरा हालै नाव समंद रै कांठै,",
"सत रौ पंथ बुवारै म्हारा लाल।",
"चूका जिकै जळ बिच डूबा रे,",
"फेर ऊंचा नई आवै म्हारा लाल॥",
"हां रे बीरा जग सूं तार उतारै पार,",
"वै नर संत बाजै म्हारा लाल।",
"कैवै रामदै साचा संत अभय हुय जावै,",
"जम सूं नई डरै म्हारा लाल॥",
"हे मेरे भाइयो! यह संसार-सागर अथाह है, इसमें पानी दिखाई तो नहीं दे रहा है परंतु इसमें डूब जाओगे। सत्यधर्म की नाव बनाओ और इस नाव को खेने के लिए सद्गुरु धारण करो, और सत्य की नाव पर बैठकर भव-सागर से पार हो जाओ। जो मनुष्य हीन कर्म करते हैं वे इसमें डूब जाते हैं। सद्गुरु में विश्वास नहीं रखने वाले कष्ट पाते हैं। पाँचों तत्त्व और तीनों नाड़ियों का ब्रह्मरंध्र में संगम करवा दो और उस नाव पर धैर्य का ध्वज फहरा दो। फिर धर्म और नियम रूपी दो मल्लाह बड़ी सूझ-बूझ से इस नाव को चलाएँगे। इस प्रकार चलती हुई नाव-भव सागर के तट पर पहुँचेगी तब आत्म-तत्त्व की प्राप्ति का पथ निष्कंटक हो जाएगा। इस साधना से जो चूक गए, वे भव सागर के अथाह जल में ऐसे डूबेंगे कि फिर कभी ऊपर नहीं आ सकेंगे। सच्चे संत वे ही हैं जो भव सागर से पार कर देते हैं। रामदेवजी कहते हैं कि सच्चे संत अपनी योग-साधना से सिद्धि प्राप्त करके अभय हो जाते हैं, वे यम से भी नहीं डरते।",
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सुणजो ग्यान गोष्ठी री बातां - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sunjo-gyan-goshthi-ri-batan-baba-ramdev-sabad?sort= | [
"सुणजो ग्यान गोष्ठी री बातां।",
"ओर आरंम तो अनेकूं कर ली, उळटी आवै घातां॥",
"बंधा पाळै बंधण में आवै, निरबंदी होय रहणा।",
"सिमरथ नैं दोष नई कोई, निरभै रोप्या थाणा॥",
"नीति-अनीति सही कर समझे, माया ब्रह्म पिछांणै।",
"सिष्टी-मुष्टि दोनां सूं दूरा, इण विध अनुभव आंणै॥",
"जीव यूं ब्रह्म आत्मा, यानै समझै माया।",
"ग्यान जुगत सूं कारण जांण, कुण ब्रह्म कुण माया॥",
"मन में मंत्र-तंत्र री सिद्धि, ग्यान हुओ कछु नांई।",
"दोनूं भगति दिल रैवै, और करतब कहो कांई॥",
"निरबंधण सोई निरंजण पावै, समदिष्ट होय रहणा।",
"एको जाणै दुविधा कहो कांई, अनुभव अंदर लेणा॥",
"मेटो भेद-अभेद कर लेणा, दुरमत दूर मिटाया।",
"अनेक रीति और कर देखौ, है सब त्रिगुण माया॥",
"नाम रूप सब माया दरसै, धरम-पाप कहो कांई।",
"ऐड़ी भूल पड़ी निज मांही, सिमरथ गुरु समझाई॥",
"करतब मिटियो कमाई पावै, तीरथ व्रत नई जाई।",
"भागा ज्यांरा भरम-करम सब मिटिया, दोनूं करम मिटाई॥",
"ग्यानी सिमरथ गुरु कर लीजौ, अधूरां नै गम नांई।",
"बंधिया आप औरां नै बांधे, पूरा गुरु मुगति दिलाई॥",
"भगति धरम अर करम-उपासना, तीनूं पद तांई कांई।",
"अभय ग्यान चौथो पद पावै, सिद्ध रामदेव गाई॥",
"रामदेव जी कहते हैं कि हे लोगो! ज्ञान-परामर्श का विचार सुनिए। ज्ञान-योग के अलावा किसी अन्य उपाय से कल्याण की अपेक्षा अहित ही होगा। धर्म, संप्रदाय एवं विविध प्रकार के पंथ आदि की सीमाओं में नहीं बंधना चाहिए। इन सभी से मुक्त रहना चाहिए। समस्त प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर स्वयं समर्थ हो जाओ। समर्थ को किसी प्रकार का दोष नहीं लगता। इसका आशय यह है कि ज्ञान प्राप्ति या ज्ञान मार्ग से समर्थ बनो अर्थात् ज्ञान-योगी बनो। नीति और अनीति का विवेक दृष्टि से भेद करके माया और ब्रह्म का भेद पहचानो और माया को छोड़कर ब्रह्म तत्त्व को आत्मसात करो। माया से मुक्त होकर सृष्टि और मुष्टि अर्थात् ब्रह्मांड और पिंड दोनों से असम्पृक्त होकर अपने आत्म-स्वरूप की अनुभूति करो। ब्रह्म (परमात्मा) तथा जीवात्मा का भेद मायाजनित है। ज्ञान बंधन का कारण ज्ञात करो, माया और ब्रह्म का भेद पहचानो। तंत्र-मंत्र आदि की सिद्धि से ज्ञान प्राप्ति नहीं हो सकती। इन दोनों साधनाओं से कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान नहीं हो सकता; द्वैतभाव और संशय को नष्ट करके ही एकत्व का अनुभव किया जा सकता है। जो किसी बंधन में नहीं बंधता, वही परमात्मा को पाता है। व्यक्ति को समदृष्टि होकर रहना चाहिए। अद्वैतावस्था को प्राप्त मनुष्य किसी दुविधा में नहीं फंसता। करो। अद्वैत का अनुभव ही ज्ञान है। नाम और रूप मायाजनित है, यहाँ तक कि धर्म और पाप संज्ञाएँ भी माया के कारण हैं। समर्थ गुरु ही यह समझ सकता है कि माया के कारण आत्मा कितनी बड़ी भ्रांति में पड़ी है। इस भ्रांति के दूर होते ही,आत्म-स्वरूप की प्राप्ति हो जाती है; तब उसके लिए तीर्थ-व्रत की आवश्यकता नहीं रहती। भागी लोगों के कर्तव्य-अकर्तव्य सब मिट जाते हैं और वह व्यक्ति कर्म-बंधन से मुक्त हो जाता है। समर्थ को ही सद्गुरु बनाओ, अज्ञानी व्यक्ति अपूर्ण है उसे गुरु मत बनाओ। वह तो स्वयं बंधनग्रस्त है; जो दूसरों को भी बंधन में डालेगा। रामदेवजी कहते हैं कि मोक्ष प्राप्ति ही चरम लक्ष्य है; जो भक्ति, धर्म और कर्मोपासना इन तीनों से परे है। अर्थात् इनसे मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती। केवल ज्ञान से ही अभय पद या मोक्ष प्राप्ति संभव है।",
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सद्गुरु ने साहिब दरसायो - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sadguru-ne-saahib-darsaayo-sain-bhagat-sabad?sort= | [
"सद्गुरु ने साहिब दरसायो।",
"दक्खन ती उत्तर तई भरम्यो, पूरब ती पच्छिम में आयो।",
"चौपाला अर चौक चौकड़े, ऊँचा सुर में हरिगुण गायो॥",
"वेद पुराण सुण्या अर गुण्या, मन मूरखड़ो हमज नी पायो।",
"दरसन परसन करतो फरयो, डेहरी द्वारे सीस नमायो॥",
"साहिब का दरसन नी होया, पंडे मौलवी नहीं बतायो।",
"भटक-भटक गुरु सरणा आयो, सेना सद्गुरु दरस करायो॥",
"मुझे सद्गुरू की कृपा से प्रभु के दर्शन हुए। मैं दक्षिण से उत्तर और पूर्व से पश्चिम तक भ्रमपूर्वक जाता-आता रहा। चौपालों और चौक चौराहों पर ऊँचे स्वर में ख़ूब हरिगुण गाए। वेद-पुराण सुने, उन्हें समझा-जाना; फिर भी यह मूर्ख मन कुछ भी नहीं समझ पाया। ख़ूब दर्शन, चरण स्पर्श किए। ख़ूब मत्था टेका। देहरी-देहरी, द्वार-द्वार जाकर शीश नवाया। साहिब के दर्शन नहीं हुए। न स्वरूप साकार पूजने वाले पंडे दर्शन करा सके और न निराकार को मानने वाले मौलवी दीदार करवा सके। भटक-भटककर अन्तत: निराश होकर सद्गुरू की शरण गया। सद्गुरू ने साहिब के दर्शन करवा दिए।",
"sadguru ne saahib darsaayo।",
"dakkhan tii uttar ta.ii bharamyo, puurab tii pachchhim me.n aayo।",
"chaupaala ar chauk chaukaDe, uu.ncha sur me.n harigu.n gaayo||",
"ved puraa.n su.nya ar gu.nya, man muurakhDo hamaj nii paayo।",
"darsan parsan karto pharyo, Deharii dvaare siis namaayo||",
"saahib ka darsan nii hoya, pa.nDe maulavii nahii.n bataayo।",
"bhaTak-bhaTak guru sar.na.a aayo, sena sadguru daras karaayo||",
"sadguru ne saahib darsaayo।",
"dakkhan tii uttar ta.ii bharamyo, puurab tii pachchhim me.n aayo।",
"chaupaala ar chauk chaukaDe, uu.ncha sur me.n harigu.n gaayo||",
"ved puraa.n su.nya ar gu.nya, man muurakhDo hamaj nii paayo।",
"darsan parsan karto pharyo, Deharii dvaare siis namaayo||",
"saahib ka darsan nii hoya, pa.nDe maulavii nahii.n bataayo।",
"bhaTak-bhaTak guru sar.na.a aayo, sena sadguru daras karaayo||",
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आपे सबदु आपे नीसानु - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/aape-sabdu-aape-niisaanu-guru-nanak-sabad?sort= | [
"आपे सबदु आपे नीसानु। आपे सुरता आपे जानु॥",
"आपे करि करि वेखै ताणु। तू दाता नामु परवाणु॥",
"ऐसा नामु निरंजन देउ। हउ जाचिकु तू अलख अभेउ॥ रहाउ॥",
"माइआ मोहु धरकटी नारि। भूंडी कामणि कामणिआरि॥",
"राजु रूपु झूठा दिन चारि। नामु मिलै चानणु अंधिआरि॥",
"चखि छोडी सहसा नही कोइ। बापु दिसै बेजाति न होई॥",
"एके कउ नाही भउ कोइ। करता करै करावै सोइ॥",
"सबदि मुए मनु मन ते मारिआ। ठाकि रहे मनु साचै धारिआ॥",
"अवरुन सूझै गुर कउ वारिआ। नानक नामि रते निसतारिआ॥",
"हे प्रभु, आप वह स्वयं ही शब्द रूप होकर उसका नाद बन जाते हो। आप ही ज्ञान रूप होकर उसकी सुरती-लय रूप धारण कर लेते हो। सृष्टि की बार-बार रचना करके स्वयं ही अपनी रचना को देखते हो। हे प्रभु, तुम ही सबके दाता रूप हो, निरंजन देव! तुम्हारा नाम ही ऐसा है। तुम अलख सत्ता हो और मैं तुम्हारे द्वार का याचक हूँ।",
"हे परमात्मा,मेरे समक्ष शीश- रहित नारी मोह-माया रूप में मुझे आसक्तियों के जाल में फँसाना चाहती है। वह भौंडी कामिनी माया सबको फँसाना चाहती है।वैभव-विलास प्रदान करने वाला राज्याधिकार क्षणिक है, मिथ्या है। इस माया रूप अँधेरे संसार में प्रभु नाम रूप प्रकाश मिल जाए, मानो जीवन को सार्थकता मिल जाए।",
"माया के मादकों को एक बार चखकर फिर सहसा छोड़ सकना मुश्किल है। पिता रूप परमात्मा के दिखाई देने पर भी माया बेजाति नहीं हो पाती। उस एक परमात्मा को संसार में कोई भय नहीं। क्योंकि, वहाँ दूसरा कोई है ही नहीं। वह अकेला परमात्मा ही इस दृश्यमान जगत में सबकुछ करता-कराता रहता है।",
"aape sabdu aape niisaanu। aape surta aape jaanu||",
"aape kari kari vekhai taa.na.u। tuu daata naamu parvaa.na.u||",
"aisa naamu nira.njan de.u। ha.u jaachiku tuu alakh abhe.u|| rahaa.u||",
"maa.i.a mohu dharakTii naari। bhuu.nDii kaama.na.i kaama.na.i.aari||",
"raaju ruupu jhuuTha din chaari। naamu milai chaana.na.u a.ndhi.aari||",
"chakhi chhoDii sahsa nahii ko.i। baapu disai bejaati n ho.ii||",
"eke ka.u naahii bha.u ko.i। karta karai karaavai so.i||",
"sabdi mu.e manu man te maari.a। Thaaki rahe manu saachai dhaari.aa||",
"avrun suujhai gur ka.u vaari.a। naanak naami rate nistaari.aa||",
"aape sabdu aape niisaanu। aape surta aape jaanu||",
"aape kari kari vekhai taa.na.u। tuu daata naamu parvaa.na.u||",
"aisa naamu nira.njan de.u। ha.u jaachiku tuu alakh abhe.u|| rahaa.u||",
"maa.i.a mohu dharakTii naari। bhuu.nDii kaama.na.i kaama.na.i.aari||",
"raaju ruupu jhuuTha din chaari। naamu milai chaana.na.u a.ndhi.aari||",
"chakhi chhoDii sahsa nahii ko.i। baapu disai bejaati n ho.ii||",
"eke ka.u naahii bha.u ko.i। karta karai karaavai so.i||",
"sabdi mu.e manu man te maari.a। Thaaki rahe manu saachai dhaari.aa||",
"avrun suujhai gur ka.u vaari.a। naanak naami rate nistaari.aa||",
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साधौ कर लो सहज उपाया - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sadhau-kar-lo-sahj-upaya-sain-bhagat-sabad-2?sort= | [
"साधौ कर लो सहज उपाया।",
"एक राम त्रिकुटी में बैठा, दूजा कौसल्या जाया।",
"तीजो जग का पालन हारा, चौथा पालन आया॥",
"एक राम का जगत पसारा, एक राम की माया।",
"चारइ राम हे एक सरूपा, कारण भेद दिखाया॥",
"एक राम ने माया राची, अणगण नाम धराया।",
"राम नाम की महिमा न्यारी, पाथर समंद तराया॥",
"सद्गुरु सबद ज्ञान जद दीयो, भेद अरथ समझाया।",
"परमब्रह्म की लीला न्यारी, कोई जाण न पाया॥",
"ना वो जनमे ना मर जावे, ना वो करम बंधाया।",
"मात-पिता कुल-वंस न कोई, ना कण जननी जाया॥",
"वेद पुराण में वचन सुण्यो हे, ब्रह्म रची खुद माया।",
"ज्ञानी ध्यानी ध्यान लगावें, भेद न कोई पाया॥",
"लिख-लिख थाका पढ़-पढ़ हारा, आखिर में भरमाया।",
"पोथी पतरी छोटी पड़गी, भरम नहीं कढ़ पाया॥",
"अन्त न जाण्यो वे अंता को, सबने यूँ फरमाया।",
"कोटि ज्ञान ते न्यारा साहिब, सतगुरुजी दरसाया॥",
"सहजो ज्ञान दियो म्हारे सतगुरु, पारख ज्ञान कराया।",
"सैन भगत सतगुरू की किरपा, अन्तरघट उपजाया॥",
"साधू भाई! सहज उपाय कर लो। व्यर्थ के विवादों तथा झमेलों में मत पड़ो। एक राम वह जो त्रिकुटी में बैठा है। दूसरा कौशल्या का बेटा है। तीसरा वह है जो जगत् का सृजनहार है। चौथा वह जो जगत् का पालक है। संपूर्ण सृष्टि के विस्तार में भी एक राम ही विस्तारित हैं। जब सद्गुरू ने शब्द ज्ञान प्रदान किया, तब सारा भेद समझ में आ गया है। परमब्रह्म की लीला न्यारी है। उसे कोई भी नहीं समझ पाया। वह न तो पैदा होता है, न मरता है। न वह कर्म बंधन में बँधा है। उसका न कोई, कुल है, न वंश है, न वह किसी जननी के गर्भ से आया है। मैंने वेद-पुराणों में वचन सुने हैं, यह सारी माया परमब्रह्म ने स्वयं रची है। ज्ञानी, ध्यानी, चिंतक, विचारक कोई भी उसके भेद को नहीं जान-समझ सका है। सब लिख-लिखकर थक गए, पढ़-पढ़कर थक गए। फिर भी कोई उसका भेद नहीं जान सका। वे और भी भ्रम में हँसते चले गए। उनकी पोथी-पत्री छोटी पड़ गई, फिर भी न उस परब्रह्म का कोई बखान ठीक से कर पाया, न भ्रम निकाल पाया। उस बेअंत का अंत कोई नहीं जान सका-ऐसा सभी ने अंततः कहा। 'नेति-नेति' कहकर हार गए। वह साहिब तो करोड़ों ज्ञानवानों और ज्ञानों से भी न्यारा है। उसे मेरे सद्गुरू ने दिखाया-समझाया। सद्गुरू ने सहज ज्ञान देकर पारख ज्ञान का बोध करवाया। सैन कहते हैं—सद्गुरू की कृपा से अंतर्घट में सत्य का ज्ञान हो गया।",
"saadhau kar lo sahaj upaaya।",
"ek raam trikuTii me.n baiTha, duuja kausalya jaaya।",
"tiijo jag ka paalan haara, chautha paalan aayaa||",
"ek raam ka jagat pasaara, ek raam kii maaya।",
"chaara.i raam he ek saruupa, kaara.n bhed dikhaayaa||",
"ek raam ne maaya raachii, a.naga.n naam dharaaya।",
"raam naam kii mahima nyaarii, paathar sama.nd taraayaa||",
"sadguru sabad j~na.aan jad diiyo, bhed arath samjhaaya।",
"parmabrahm kii liila nyaarii, ko.ii jaa.n n paayaa||",
"na vo janme na mar jaave, na vo karam ba.ndhaaya।",
"maata-pita kul-va.ns n ko.ii, na ka.n jannii jaayaa||",
"ved puraa.n me.n vachan su.nyo he, brahm rachii khud maaya।",
"j~na.aanii dhyaanii dhyaan lagaave.n, bhed n ko.ii paayaa||",
"likh-likh thaaka paDh़-paDh haara, aakhir me.n bharmaaya।",
"pothii patrii chhoTii paD़gii, bharam nahii.n kaDh paayaa||",
"ant n jaa.nyo ve a.nta ko, sabne yuu.n pharmaaya।",
"koTi j~na.aan te nyaara saahib, satgurujii darsaayaa||",
"sahjo j~na.aan diyo mhaare satguru, paarakh j~na.aan karaaya।",
"sain bhagat satguruu kii kirpa, antarghaT upjaayaa||",
"saadhau kar lo sahaj upaaya।",
"ek raam trikuTii me.n baiTha, duuja kausalya jaaya।",
"tiijo jag ka paalan haara, chautha paalan aayaa||",
"ek raam ka jagat pasaara, ek raam kii maaya।",
"chaara.i raam he ek saruupa, kaara.n bhed dikhaayaa||",
"ek raam ne maaya raachii, a.naga.n naam dharaaya।",
"raam naam kii mahima nyaarii, paathar sama.nd taraayaa||",
"sadguru sabad j~na.aan jad diiyo, bhed arath samjhaaya।",
"parmabrahm kii liila nyaarii, ko.ii jaa.n n paayaa||",
"na vo janme na mar jaave, na vo karam ba.ndhaaya।",
"maata-pita kul-va.ns n ko.ii, na ka.n jannii jaayaa||",
"ved puraa.n me.n vachan su.nyo he, brahm rachii khud maaya।",
"j~na.aanii dhyaanii dhyaan lagaave.n, bhed n ko.ii paayaa||",
"likh-likh thaaka paDh़-paDh haara, aakhir me.n bharmaaya।",
"pothii patrii chhoTii paD़gii, bharam nahii.n kaDh paayaa||",
"ant n jaa.nyo ve a.nta ko, sabne yuu.n pharmaaya।",
"koTi j~na.aan te nyaara saahib, satgurujii darsaayaa||",
"sahjo j~na.aan diyo mhaare satguru, paarakh j~na.aan karaaya।",
"sain bhagat satguruu kii kirpa, antarghaT upjaayaa||",
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साधू भाई आदि अनादि भज लीजै - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sadhu-bhai-aadi-anadi-bhaj-lijai-sain-bhagat-sabad-7?sort= | [
"साधू भाई आदि अनादि भज लीजै॥",
"तन-मन-चित सब अर्पण करता, गुरु चरणा सुख लीजै।",
"गुरु शरणा म्हारो साहब मलसी, साँची बात पसीजै॥",
"लुर-लुर होया एक धुन लाग्याँ, परमानंद रस पीजै।",
"आपो मेट एक रस होयाँ, अन्तर राम पसीजै॥",
"अलख पुरुख घर विरत हमारी, नत दन फेरी दीजै।",
"सैन भगत सद्गुरु रामानंद, चरण शरण वई रीजै॥",
"साधू भाई! आदि-अनादि को भज लो। तन, मन और चित्त को अर्पित करते हुए गुरू के चरणों में सुख प्राप्त कर लो। गुरु की शरण में जाने से उस आदि-अनादि परमात्मा के दर्शन हो जाएँगे। यदि आपा तथा अस्तित्व मिटाकर परमात्मा में लीन हो जाएँगे और राम को हृदय में बसा लेंगे, तभी परमात्मा पसीज कर अपना लेंगे। हमारा घर तो अलख पुरुष के निकट है। रात-दिन वहाँ आना। सैन भगत कहते हैं—मैं सतगुरु रामानंदजी की चरण-शरण में रहकर सुख प्राप्त करता हूँ।",
"saadhuu bhaa.ii aadi anaadi bhaj liijai||",
"tan-man-chit sab arpa.n karta, guru char.na.a sukh liijai।",
"guru shar.na.a mhaaro saahab malsii, saa.nchii baat pasiijai||",
"lur-lur hoya ek dhun laagyaa.n, parmaana.nd ras piijai।",
"aapo meT ek ras hoyaa.n, antar raam pasiijai||",
"alakh purukh ghar virat hamaarii, nat dan pherii diijai।",
"sain bhagat sadguru raamaana.nd, char.n shar.n va.ii riijai||",
"saadhuu bhaa.ii aadi anaadi bhaj liijai||",
"tan-man-chit sab arpa.n karta, guru char.na.a sukh liijai।",
"guru shar.na.a mhaaro saahab malsii, saa.nchii baat pasiijai||",
"lur-lur hoya ek dhun laagyaa.n, parmaana.nd ras piijai।",
"aapo meT ek ras hoyaa.n, antar raam pasiijai||",
"alakh purukh ghar virat hamaarii, nat dan pherii diijai।",
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ब्याकुल बिरह दिवानी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/byakul-birah-diwani-tulsi-sahab-sabad?sort= | [
"ब्याकुल बिरह दिवानी, झड़े नित नैनन पानी।",
"हर दम पीर पिया की खटके, सुध बुध बदन हिरानी॥",
"होश हवास नहीं कुछ तन में, बेदम जीव भुलानी।",
"बहु तरंग चित चेतन नाहीं, मन मुरदे की बानी॥",
"नाड़ी बैद बिथा नहिं जाने, क्यों औषध दे आनी।",
"हिय में दाग जिगर के अंदर, क्या कहुँ दरद बखानी॥",
"सतगुरु बैद बिथा पहिचानें, बूटी है उनकी जानी।",
"तुलसी यह रोग रोगिया बूझे, जिन को पीर पिरानी॥",
"विरहिणी कहती है कि मैं अपने पिया की प्रीत के वियोग में विरह दीवानी हो गई हूँ। मैं व्याकुल होकर रात-दिन रोती रहती हूँ। प्रीतम की याद प्रत्येक पल मेरे हृदय में खटकती रहती है। मुझे न तन की सुध है न मन की सुध है, यानी किसी तरह का कोई होश-हवास नहीं है और सब कुछ भूल चुकी हूँ। मेरे मन में अनेक तरंगें उठती हैं और चित्त में चैतन्यता नहीं रही और मन मुर्दे के समान हो गया है। मेरी व्यथा, वैद्य नाड़ी देखकर नहीं बता सकता है, तो फिर वह मेरी विपदा यानी रोग दूर करने की उचित औषधि भी कैसे दे सकता है? मेरे तो हृदय में घाव है, जिसमें भंयकर टीस उठती रहती है, जिसका वर्णन मैं नहीं कर सकती हूँ। तुलसी साहब कहते हैं कि मेरी व्यथा के जानकार तो सतगुरु हैं और वे उसकी दवा भी जानते हैं। यह रोग केवल वही व्यक्ति समझता है, जिसके हृदय में भारी पीड़ा व दर्द हो।",
"byaakul birah divaanii, jhaDe nit nainan paanii।",
"har dam piir piya kii khaTke, sudh budh badan hiraanii||",
"hosh havaas nahii.n kuchh tan me.n, bedam jiiv bhulaanii।",
"bahu tara.ng chit chetan naahii.n, man murde kii baanii||",
"naaDii baid bitha nahi.n jaane, kyo.n aushadh de aanii।",
"hiy me.n daag jigar ke a.ndar, kya kahu.n darad bakhaanii||",
"satguru baid bitha pahichaane.n, buuTii hai unkii jaanii।",
"tulsii yah rog rogiya buujhe, jin ko piir piraanii||",
"byaakul birah divaanii, jhaDe nit nainan paanii।",
"har dam piir piya kii khaTke, sudh budh badan hiraanii||",
"hosh havaas nahii.n kuchh tan me.n, bedam jiiv bhulaanii।",
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जप तप का बंधु बेड़ला - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/jap-tap-ka-bandhu-beda-la-guru-nanak-sabad?sort= | [
"जप तप का बंधु बेड़ला जितु लंघहि वहेला।",
"ना सरवरु ना ऊछलै ऐसा पंथु सुहेला॥",
"तेरा एको नामु मंजीठड़ा रता मेरा चोला सद रंग ढोला॥ रहाउ॥",
"साजन चले पिआरिआ किउ मेला होई।",
"जे गुण होवहि गंठड़ीऐ मेलेगा सोई॥",
"मिलिआ होइ न वीछुड़ै जे मिलिआ होई।",
"आवागउणु निवारिआ है साचा सोई॥",
"हउमै मारि निवारिआ सीता है चोला॥",
"गुरबचनी फलु पाइआ सह के अंमृत बोला॥",
"नानकु कहै सहेली हो सहु खरा पिआरा।",
"हम सह केरीआ दासी साचा खसमु हमारा॥",
"(हे मनुष्य), जप-तप के बेडे को बाँधो, (जिससे संसार-सागर को) शीघ्रता से पार कर लो। (नाम के द्वारा) रास्ता ऐसा सुखदायी हो जाएगा (जैसा कि) समुद्र (का मार्ग होता) नहीं और यदि हो भी तो उछाल नहीं मारेगा।",
"(हे हरी), तेरा एक नाम भी मजीठी रंग है, हे प्रियतम, (उस मजीठी रंग में) मेरा चोला (वस्त्र, शरीर) पक्के रंगवाला हो गया है। (‘ढोला=दक्षिण पंजाब में ‘ढोला’ एक प्रसिद्ध प्रेमी हो गया है। ढोला ऐसा प्रसिद्ध प्रेमी हुआ कि उसका नाम ही ‘प्रियतम अथवा प्रेमी’ के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा]।",
"साजन (अपनी) प्यारियो की ओर चल पड़े है; किस प्रकार मिलाप होगा? (इस प्रश्न का उत्तर निम्नलिखित ढंग से गुरु नानक देव देते है)—(यदि उन स्त्रियों हों, तो वह (प्यारा आप ही उन्हें अपने मे) मिला लेगा’।",
"यदि (सच्चा) मिलाप हो, तभी के पश्चात विछोह नहीं होता। जो सच्चा (प्रभु) है, अपने आवगमन (जन्मन-मरना) निवारण कर दिया है। जिसने अहंकार को मारकर निवारण कर दिया है, उसका शरीर शीतल हो गया है, (तात्पर्य यह कि उसके त्रिविधि ताप शांत हो गए है। [इसका दूसरा अर्थ इस प्रकार भी हो सकता है—“जिसने अहंकार को मारकर दूर कर दिया है, उसने पति—परमेश्वर के मिलने के लिए यह चोला सिया है।”]",
"नानक कहते हैं कि हे सहेलियों, पति (परमात्मा) बहुत प्यारा है। हम सभी पति (परमात्मा) की दासियों है, वही हमारा सच्चा पति है।",
"jap tap ka ba.ndhu beDa़la jitu la.nghhi vahela।",
"na saravru na uuchhalai aisa pa.nthu suhelaa||",
"tera eko naamu ma.njiiThaDa rata mera chola sad ra.ng Dholaa|| rahaa.u||",
"saajan chale pi.aari.a ki.u mela ho.ii।",
"je gu.n hovahi ga.nThDii.ai melega so.ii||",
"mili.a ho.i n viichhuDai je mili.a ho.ii।",
"aavaaga.u.na.u nivaari.a hai saacha so.ii||",
"ha.umai maari nivaari.a siita hai cholaa||",
"gurbachnii phalu paa.i.a sah ke a.nm.rt bolaa||",
"naanaku kahai sahelii ho sahu khara pi.aara।",
"ham sah kerii.a daasii saacha khasmu hamaaraa||",
"jap tap ka ba.ndhu beDa़la jitu la.nghhi vahela।",
"na saravru na uuchhalai aisa pa.nthu suhelaa||",
"tera eko naamu ma.njiiThaDa rata mera chola sad ra.ng Dholaa|| rahaa.u||",
"saajan chale pi.aari.a ki.u mela ho.ii।",
"je gu.n hovahi ga.nThDii.ai melega so.ii||",
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"ha.umai maari nivaari.a siita hai cholaa||",
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सावण सरसी कामणी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sawan-sarsi-kamni-guru-arjundev-sabad-7?sort= | [
"सावण सरसी कामणी चरन कमल सिउ पिआर॥",
"मन तन रता सच रंग इको नाम अधार।",
"बिखिआ रंग कूड़ाविआ दिसन सभे छार॥",
"हर अंम्रित बूंद सुहावणी मिल साधू पीवणहार।",
"वण तिण प्रभ संग मउलिआ संम्रथ पुरख अपार॥",
"हर मिलणै नो मन लोचदा करम मिलावणहार।",
"जिनी सखीए प्रभ पाइआ हंउ तिन कै सद बलिहार॥",
"नानक हर जी मइआ कर सबद सवारणहार।",
"सावण तिना सुहागणी जिन राम नाम उर हार॥",
"सावन के महीने में प्रभु के चरण-कमलों से प्रीति करने वाली जीवात्मारूपी स्त्री आनंद से प्रफुल्लित है। उसका तन और मन दोनों प्रभु की प्रीति में लीन हैं। अब उसका एकमात्र सहारा उस मालिक का नाम है। उसे विषयों के आनंद झूठे, बेस्वाद और ख़ाक जैसे लगते हैं। साधु के मिल जाने से वह हरिनाम का अमृत पीने में सफल हो गई है। उसे अनंत सर्वसमर्थ प्रभु के संग से सारी वनस्पति हरी-भरी लग रही है। जीवात्मा को हरि के प्रेम का आनंद लेते देखकर मेरे मन में भी उस प्रियतम से मिलने की कामना जाग उठी है, पर यह उसकी कृपा से ही पूरी होगी। मैं अपनी उन सखी आत्माओं पर बलिहारी जाती हूँ जिन्होंने उसे पा लिया है। गुरु साहिब प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! दया करके मुझे शब्द के द्वारा आत्मा को सँवारनेवाले संत की संगति बख़्शो, क्योंकि शब्द-अभ्यास गुरु के उपदेश के बिना अपने आप नहीं किया जा सकता। सावन का महीना उन सुहागिन आत्माओं के लिए सुखदायक होता है जिन्होंने परमेश्वर के नाम को अपने हृदय का हार बना लिया हो।",
"saava.n sarsii kaama.na.ii charan kamal si.u pi.aara||",
"man tan rata sach ra.ng iko naam adhaar।",
"bikhi.a ra.ng kuuDaavi.a disan sabhe chhaara||",
"har a.nmrit buu.nd suhaava.na.ii mil saadhuu piiva.nahaar।",
"va.n ti.n prabh sa.ng ma.uli.a sa.nmrath purakh apaara||",
"har mil.na.ai no man lochada karam milaava.nahaar।",
"jinii sakhii.e prabh paa.i.a ha.n.u tin kai sad balihaara||",
"naanak har jii ma.i.a kar sabad savaara.nahaar।",
"saava.n tina suhaaga.na.ii jin raam naam ur haara||",
"saava.n sarsii kaama.na.ii charan kamal si.u pi.aara||",
"man tan rata sach ra.ng iko naam adhaar।",
"bikhi.a ra.ng kuuDaavi.a disan sabhe chhaara||",
"har a.nmrit buu.nd suhaava.na.ii mil saadhuu piiva.nahaar।",
"va.n ti.n prabh sa.ng ma.uli.a sa.nmrath purakh apaara||",
"har mil.na.ai no man lochada karam milaava.nahaar।",
"jinii sakhii.e prabh paa.i.a ha.n.u tin kai sad balihaara||",
"naanak har jii ma.i.a kar sabad savaara.nahaar।",
"saava.n tina suhaaga.na.ii jin raam naam ur haara||",
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चादर लेहु धुवाइ है - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/chadar-lehu-dhuwai-hai-paltu-sabad?sort= | [
"चादर लेहु धुवाइ है, मन मैल भया है।",
"सतगुरु पूरा धोबी पाया, सतसंगति सौंदाई है॥",
"तिरगुन दाग़ परयो चादर में, मलि-मलि दाग छुड़ाई है॥",
"आँच दिहिन बैराग कि भाठी, सरवन मनन घमाई है॥",
"निरखि-परखि कै चादर धोइनि, साबुन ज्ञान लगाई है॥",
"पलटू दास ओढ़ि चलु चादर, बहुरि न भवजल आई है॥",
"हे साधक! मन रूपी चादर मैली है। इसे धुला लो। पूर्ण सद्गुरु धोबी है। उसकी शरण में जाओ। उनका सत्संग सौंदन है। मन रूपी चादर में सत, रज तथा तम गुण के कर्मों के दाग पड़े हैं, उन्हें रगड़-रगड़ कर छुड़ा लो। वैराग्य की भट्ठी में आंच देकर चादर को गर्म कर लिया और ज्ञानचर्चा की श्रवण-मनन रूपी धूप में सुखा लिया। आत्मज्ञान का साबुन लगाकर मन रूपी चादर को निरख-परख कर धो लिया। पलटू साहेब कहते हैं कि ऐसी स्वच्छ मन रूपी चादर को ओढ़कर जीवन का आचरण करो, तो पुनः संसार-सागर में नहीं आना होगा।",
"chaadar lehu dhuvaa.i hai, man mail bhaya hai।",
"satguru puura dhobii paaya, satsa.ngti sau.ndaa.ii hai||",
"tirgun daaग़ paryo chaadar me.n, mali-mali daag chhuDaa.ii hai||",
"aa.nch dihin bairaag ki bhaaThii, sarvan manan ghamaa.ii hai||",
"nirkhi-parkhi kai chaadar dho.ini, saabun j~na.aan lagaa.ii hai||",
"palTuu daas oDhi chalu chaadar, bahuri n bhavjal aa.ii hai||",
"chaadar lehu dhuvaa.i hai, man mail bhaya hai।",
"satguru puura dhobii paaya, satsa.ngti sau.ndaa.ii hai||",
"tirgun daaग़ paryo chaadar me.n, mali-mali daag chhuDaa.ii hai||",
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दो कौड़ी का सेना नाई - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/do-kaudi-ka-sena-nai-sain-bhagat-sabad?sort= | [
"दो कौड़ी का सेना नाई, सतगुरु कृपा करी।",
"ना कोई ठौर ठिकानो पूरो, ना कोई धिरत धरी।",
"मन निरमल चित्त ऊजल राख्यो, आँख नहीं उघरी॥",
"सतगुरु साहिब आँख उघारी, धीर हुई सबरी।",
"सूधी वाट लगाई सतगुरु, रिदै हुई खबरी॥",
"रामानंद गुरु पूरा मिलिया, सिवजी की नगरी।",
"दास कबीरा पीपा धन्ना ने, झट अँगुरी पकरी॥",
"रैदास की छपरी बैठ्यो, संगत खूब करी।",
"साहिब के दरबार नी पाँच्यो, हेर बड़ी सकरी॥",
"पीपा ने सति सीता के संग, मुझ पे कृपा करी।",
"सीता सति जी सरग सिधार्या, टोड़ा में छतरी॥",
"सति सीता की करी परकमा, सरधा अरज करी।",
"सयना जतरी संगत लिखी, सन्त नेम गुजरी॥",
"कर परनाम छोड़ दियो, सिद्ध टोड़ा को धाम।",
"सत संगत करता चल्या, मारग गामो गाम॥",
"छै मइना में पौंच्या, गागरोन सुखधाम।",
"आहू-काली सिंध के, संगम कर्या मुकाम॥",
"पीपा के संग गागरोन में, संगत खूब करी।",
"पाँच बरस मुक्काम लगायो, रसना राम सरी॥",
"सबद-सबद सत संगत होई, कही-सुणी सब री।",
"ना कोई लेणो ना कोई देणो, मेहर बड़ी रब री॥",
"संगम की खोह ताड़ी लागी, पीपे देह छरी।",
"मिल्यो पौन में पौन देह, धरती पे रही धरी॥",
"साठ घड़ी तईं हिरदै भीतर, व्यापी बे सबरी।",
"रहूँ मुकामी कै चल जाऊँ, सत संगत बिगरी॥",
"आँख मूँद ने सतगुरु ध्यायो, आरत विनय करी।",
"सयना सतगुरु परचो दीयो, दुवधा विपद हरी॥",
"साधू तो चलता भला, बहता सुच्चा नीर।",
"सयना माया मोह तजे, साधू संत फकीर॥",
"ठाँव ठौर मुकाम को, छूट गयो सब मोह।",
"सयना सतगुरु की क्रपा, रह्यो नहीं कोई भोह॥",
"राम धर्या घट भीतरा, सुमरूँ साँस उसाँस।",
"सयना झोलो खाँद के, हाथाँ धर्या बाँस॥",
"सरधा राखी हिरदा भीतर, सतगुरु साख भरी।",
"धोग लगाई साध समाधी, ऊबी वाट पकरी॥",
"साँत सुवानी मालव माटी, चीतूँ घरी-घरी।",
"पाकी उमर सितत्तर होई, देह हुई जजरी॥",
"सयना भगत सतगुरु चरणा में, सुरती लाग परी।",
"अंत समै में दरसन दीजो, सतगुरु हाम भरी॥",
"दो कौड़ी को सेना नाई, सद्गुरु कृपा करी।",
"कै सद्गुरु कै साहिब दाता, जामिन ले उतरी॥",
"सैना नाई की कोई हैसियत नहीं थी। दो कौड़ी क़ीमत भी नहीं थी। सद्गुरू ने मुझ पर अपार कृपा कर दी। वे धन्य हैं। न तो मेरे पास कोई ठौर-ठिकाना और ही धैर्य था। यद्यपि मेरा मन और चित्त निर्मल व प्रभु में तल्लीन थे, फिर भी आँखें बंद थी। अज्ञान छाया था। सतगुरु ने ज्ञान प्रदान किया, धैर्य और सबूरी प्राप्त हुई। सतगुरु ने सीधी वाट दिखा दी। हृदय में भाव हो गया। सारी ख़बर हो गई। मुझे पूरे गुरू के रूप में रामानन्द जी मिल गए हैं। उनके दर्शन शिवजी की नगरी (काशी) में हुए। दास कबीर, पीपाजी, धन्ना भगत ने झट मुझे विश्वास दिया और मुझे सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। मैंने संत रैदास की कुटिया में बैठकर ख़ूब सत्संग किया। तब भी मैं साहिब के दरबार तक नहीं पहुँच पाया। ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बहुत जटिल और गली बहुत संकड़ी है। उसमें प्रवेश बहुत कठिन है। संत पीपाजी ने मुझ पर बहुत कृपा की। वैसी ही कृपा सती सीता जी ने भी मुझ पर रखी। टोड़ा में सती सीताजी स्वर्ग सिधार गई। वहीं उनकी समाधि बनी। छतरी बनी। संत पीपाजी और मैंने सती सीताजी की समाधि की परिक्रमा की और विनती की कि जितनी संगत विधि ने लिखी थी। उतनी सत्य और नियम द्वारा व्यतीत हो गई। अब विदा। सती सीताजी की समाधि को प्रणाम कर टोड़ा का सिद्ध धाम त्याग दिया। छह महीनों में गाँव-गाँव सत्संग करते हम गागरोन के सुखधाम पहुँचे। आहू और कालीसिंध नदी के संगम पर मुकाम हुआ। मैंने पाँच बरस तक वहाँ संत पीपाजी के साथ मुकाम लगाया। वहीं राम रस से रसना तृप्त हुई। वहाँ शब्द-शब्द ख़ूब सत्संग होने लगा। ख़ूब कही और सबकी ख़ूब सुनी। यहाँ मन को बहुत शाँति मिली। न किसी से लेना न देना। अपनी मौज में राम भजन करना और सत्संग करना। रब की बहुत कृपा बनी रही। संगम की गुफा में संत पीपाजी ने समाधि लगाकर प्राणों का त्याग कर दिया। पवन-पवन में मिल गया। देह धरती पर धरी रह गई। संत पीपाजी के महाप्रयाण के बाद साठ घड़ी तक मन व्याकुल रहा। मन में बेसब्री का भाव बना रहा। व्याकुलता यह थी कि मैं अब यहीं मुकाम रखूँ अथवा गागरोन त्याग कर चल पड़ूँ? कुछ तय नहीं कर पा रहा था। मन में अनिश्चय का भाव था। इसी बात की बेसब्री थी। सत्संग बिगड़ गया था। मैंने आँखें मूँदकर सतगुरु जी का ध्यान लगाया। सतगुरु जी से विनय कर आर्तस्वर में उन्हें पुकारा। गुरु जी ने मेरी आर्त पुकार सुन ली और परचा दिया। सारी दुविधा की विपत्ति को दूर कर दिया। गुरु ने बोध करवाया कि साधू चलायमान ही अच्छा लगता है। जल बहता हुआ ही निर्मल रहता है। साधू, संत, फ़क़ीर कभी स्थान विशेष का मोह या माया बंधन नहीं मानते। उनके लिए सारी धरती उनका मुकाम है। सतगुरु जी के प्रबोधन से ठाँव-ठौर और मुकाम का मोह छूट गया। सतगुरु की कृपा से सारी चिंताएँ दूर हो गईं। मैंने राम प्रभु को हृदय में धारण किया। साँसों में नाम को धारण किया। झोले को कंधे पर धारण किया तथा बाँस को हाथों में धारण कर प्रस्थान के लिए तत्पर हो गया। मन में सतगुरु साहिब के प्रति तथा संत पीपा जी के प्रति श्रद्धा धारण कर संत पीपाजी की समाधि को धोक लगाकर खड़ी राह पकड़ ली। कहाँ जाना है... किधर जाना है, कुछ तय नहीं किया। मालवा की पुण्यभूमि बहुत सुहानी व शांत है। मुझे यह बात बार-बार याद रहती है। मेरी उम्र पक चुकी है। सतहत्तर वर्ष की उम्र के कारण देह भी जर्जर हो गई है। सैन कहते हैं—अब तो सतगुरु के चरणों की सुरति लग गई है। साहिब ने हामी भर ली है। इस दो कौड़ी के सैना नाई पर सतगुरु साहिब ने बहुत कृपा की है। इतनी जामनी (जमानत) तो केवल सतगुरु और साहिब (ईश्वर) ही दे सकते हैं। साधौ भाई! गुरू दर्शन की इच्छा प्रबल है। लय लग गई है। देह थक चुकी है। पंथ लंबा है। हृदय की सुरति जागृत है। मन-चित्त गुरू चरणों में लग चुका है। मार्ग का भय समाप्त हो गया है। अब न तो मेरा कोई पुत्र है, न बेटा, न रिश्ते-नातेदार, न कोई अनुरागी मित्र। सबका मोह त्याग दिया है। वर्षों पहले सबके मोह से मुक्त हो चुका हूँ। मन बैरागी बन चुका है। संसार के सभी जीव मेरे सगे हैं। यह धरती ही मेरा घर परिवार है। मेरा स्वामी तो अब केवल साहिब है। सैना बहुत भाग्यशाली है। सैन कहते हैं—घट में राम बिराजते हैं। सब मोह-माया त्याग दी है। अंत समय सतगुरु के दर्शन हो जाएँ, यही इच्छा है। तभी सैना का भाग्य सत्य होगा।",
"do kauDii ka sena naa.ii, satguru kripa karii।",
"na ko.ii Thaur Thikaano puuro, na ko.ii dhirat dharii।",
"man nirmal chitt uujal raakhyo, aa.nkh nahii.n ughrii||",
"satguru saahib aa.nkh ughaarii, dhiir hu.ii sabrii।",
"suudhii vaaT lagaa.ii satguru, ridai hu.ii khabrii||",
"raamaana.nd guru puura miliya, sivjii kii nagrii।",
"daas kabiira piipa dhanna ne, jhaT a.ngurii pakrii||",
"raidaas kii chhaprii baiThyo, sa.ngat khuub karii।",
"saahib ke darbaar nii paa.nchyo, her baDii sakrii||",
"piipa ne sati siita ke sa.ng, mujh pe kripa karii।",
"siita sati jii sarag sidhaarya, ToDa me.n chhatrii||",
"sati siita kii karii parakma, sardha araj karii।",
"sayna jatrii sa.ngat likhii, sant nem gujrii||",
"kar parnaam chhoD diyo, siddh ToDa ko dhaam।",
"sat sa.ngat karta chalya, maarag gaamo gaama||",
"chhai ma.ina me.n pau.nchya, gaagaron sukhdhaam।",
"aahuu-kaalii si.ndh ke, sa.ngam karya mukaama||",
"piipa ke sa.ng gaagaron me.n, sa.ngat khuub karii।",
"paa.nch baras mukkaam lagaayo, rasna raam sarii||",
"sabad-sabad sat sa.ngat ho.ii, kahii-su.na.ii sab rii।",
"na ko.ii le.na.o na ko.ii de.na.o, mehar baDii rab rii||",
"sa.ngam kii khoh taaDii laagii, piipe deh chharii।",
"milyo paun me.n paun deh, dhartii pe rahii dharii||",
"saaTh ghaDii ta.ii.n hirdai bhiitar, vyaapii be sabrii।",
"rahuu.n mukaamii kai chal jaa.uu.n, sat sa.ngat bigrii||",
"aa.nkh muu.nd ne satguru dhyaayo, aarat vinay karii।",
"sayna satguru parcho diiyo, duvdha vipad harii||",
"saadhuu to chalta bhala, bahta suchcha niir।",
"sayna maaya moh taje, saadhuu sa.nt phakiira||",
"Thaa.nv Thaur mukaam ko, chhuuT gayo sab moh।",
"sayna satguru kii krapa, rahyo nahii.n ko.ii bhoha||",
"raam dharya ghaT bhiitara, sumruu.n saa.ns usaa.ns।",
"sayna jholo khaa.nd ke, haathaa.n dharya baa.ns||",
"sardha raakhii hirda bhiitar, satguru saakh bharii।",
"dhog lagaa.ii saadh samaadhii, uubii vaaT pakrii||",
"saa.nt suvaanii maalav maaTii, chiituu.n gharii-gharii।",
"paakii umar sitattar ho.ii, deh hu.ii jajrii||",
"sayna bhagat satguru char.na.a me.n, surtii laag parii।",
"a.nt samai me.n darsan diijo, satguru haam bharii||",
"do kauDii ko sena naa.ii, sadguru kripa karii।",
"kai sadguru kai saahib daata, jaamin le utrii||",
"do kauDii ka sena naa.ii, satguru kripa karii।",
"na ko.ii Thaur Thikaano puuro, na ko.ii dhirat dharii।",
"man nirmal chitt uujal raakhyo, aa.nkh nahii.n ughrii||",
"satguru saahib aa.nkh ughaarii, dhiir hu.ii sabrii।",
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"sat sa.ngat karta chalya, maarag gaamo gaama||",
"chhai ma.ina me.n pau.nchya, gaagaron sukhdhaam।",
"aahuu-kaalii si.ndh ke, sa.ngam karya mukaama||",
"piipa ke sa.ng gaagaron me.n, sa.ngat khuub karii।",
"paa.nch baras mukkaam lagaayo, rasna raam sarii||",
"sabad-sabad sat sa.ngat ho.ii, kahii-su.na.ii sab rii।",
"na ko.ii le.na.o na ko.ii de.na.o, mehar baDii rab rii||",
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"milyo paun me.n paun deh, dhartii pe rahii dharii||",
"saaTh ghaDii ta.ii.n hirdai bhiitar, vyaapii be sabrii।",
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"sayna maaya moh taje, saadhuu sa.nt phakiira||",
"Thaa.nv Thaur mukaam ko, chhuuT gayo sab moh।",
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अंतरि वसै न बाहरि जाइ - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/antari-wasai-na-bahari-jai-guru-nanak-sabad?sort= | [
"अंतरि वसै न बाहरि जाइ। अंमृतु छोडि काहे बिखु खाइ॥",
"ऐसा गिआनु जपहु मन मेरे। होवहु चाकर साचे केरे॥ ॥रहाउ॥",
"गिआनु धिआनु सभु कोई रवै। बांधनि बांधिआ सभु जगु भवै॥",
"सेवा करे सुचाकरु होइ। जलिथलि मही अलि रवि रहिआ सोइ॥",
"हम नही चंगे बुरा नहीं कोई। प्रणवति नानकु तारे सोइ॥",
"अंतर्मुखी रहकर साधक को हृदय-निवास करना चाहिए। इंद्रियों की बाहरी दौड़ के साथ, बाहर भागते-भटकते नहीं रहना चाहिए। हृदय के अमृत भाव को छोड़कर बाहर की विषयासक्तियों में लिप्त रहकर विष का आस्वाद नहीं करना चाहिए अर्थात् विषयासक्तियों का भोग, विष-परिणामी होता है। इस प्रकार का भाव-चिंतन होना अपेक्षित है। हमेशा सेवक-भाव से चर्या-निरत रहो। अर्थात् सच्चे (बादशाह) की सेवा में संलग्न बने रहना चाहिए। ज्ञान-ध्यान में तो सब कोई रमण रहता है, संलग्न बना रहता है और सारे संसार के बंधन बाँधे रहता है।",
"a.ntri vasai n baahari jaa.i। a.nm.rtu chhoDi kaahe bikhu khaa.i||",
"aisa gi.aanu japhu man mere। hovahu chaakar saache kere|| ||rahaa.u||",
"gi.aanu dhi.aanu sabhu ko.ii ravai। baa.ndhni baa.ndhi.a sabhu jagu bhavai||",
"seva kare suchaakaru ho.i। jalithli mahii ali ravi rahi.a so.i||",
"ham nahii cha.nge bura nahii.n ko.ii। pra.navati naanaku taare so.i||",
"a.ntri vasai n baahari jaa.i। a.nm.rtu chhoDi kaahe bikhu khaa.i||",
"aisa gi.aanu japhu man mere। hovahu chaakar saache kere|| ||rahaa.u||",
"gi.aanu dhi.aanu sabhu ko.ii ravai। baa.ndhni baa.ndhi.a sabhu jagu bhavai||",
"seva kare suchaakaru ho.i। jalithli mahii ali ravi rahi.a so.i||",
"ham nahii cha.nge bura nahii.n ko.ii। pra.navati naanaku taare so.i||",
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मनु मंदरु तनु वेस कलंदरु - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/manu-mandaru-tanu-wes-kalandaru-guru-nanak-sabad?sort= | [
"मनु मंदरु तनु वेस कलंदरु घट ही तीरथि नावा।",
"एकु सबदु मेरै प्रानि बसतु है बाहुड़ि जनमि न आवा॥",
"मनु बेधिआ दइआल सेती मेरी माई।",
"कउण जाणै पीर पराई। हम नाही चिंत पराई॥ रहाउ।",
"अगम अगोचर अलख अपारा चिंता करहु हमारी।",
"जलि थलि महीअलि भरिपुरि लीणा घटि घटि जोति तुम्हारी॥",
"सिख मति सभ बुधि तुम्हारी मंदिर छावा तेरे।",
"तुझ बिनु अवरु न जाणा मेरे साहिबा गुण गावा नित नेरे॥",
"जीअ जंत सभि सरणि तुम्हारी सरव चिंत तुधु पासे।",
"जो तुधु भावै सोई चंगा इक नानक की अरदासे॥",
"मैंने शरीर से फ़कीर (कलंदर) के वंश पहने हे, और मन को (परमात्मा के रहने के लिए) मंदिर (बनाया है) और (मैं) अपने घट के तीर्थ में स्नान करता हूँ, एक हरी का नाम ही मेरे प्राणों में बसना है, (इसीलिए) मैं फिर जन्म के अंतर्गत नहीं आऊँगा।",
"हे मेरी माँ, (मेरा) मन दयालु (परमात्मा) से बिंध गया है। पराई पीर को कौन जान सकता है? (तात्पर्य यह हैं कि मेरे की व्याकुलता को और जान सकता है)? हम तो हरी के बिना और किसी का ख़्याल तक नहीं करते।",
"(हे) अगम, अगोचर, अलख और अपार (हरी) हमारी चिंता कर। (तू) जल स्थल तथा धरती औऱ आकाश के बीच में पूर्ण रूप में व्याप्त हैं, घट-घट में तेरी ही ज्योति (विराजमान) है।",
"(हे हरी) सारी शिक्षा, मति और बुद्धि तेरी ही (प्रदान की हुई) हैं। (सारे) घर और विश्राम के स्थान तेरे ही (दिए हुए है)। हे मेरे साहब, मैं तुझे छोड़कर अन्य किसी को नहीं जानता। (इसीलिए) नित्य तेरा गुणगान करता हूँ।",
"सारे जीव-जंतु तेरी शरण में पड़े हुए हैं और सभी की चिंता तुझे है। (हे हरी), जो (कुछ) तुझे रुचे, वही (मुझे) अच्छा लगे, यही एक नानक की प्रार्थना है।",
"manu ma.ndru tanu ves kala.ndru ghaT hii tiirathi naava।",
"eku sabdu merai praani bastu hai baahuDi janmi n aavaa||",
"manu bedhi.a da.i.aal setii merii maa.ii।",
"ka.u.n jaa.na.ai piir paraa.ii। ham naahii chi.nt paraa.ii|| rahaa.u।",
"agam agochar alakh apaara chi.nta karhu hamaarii।",
"jali thali mahii.ali bharipuri lii.na.a ghaTi ghaTi joti tumhaarii||",
"sikh mati sabh budhi tumhaarii ma.ndir chhaava tere।",
"tujh binu avru n jaa.na.a mere saahiba gu.n gaava nit nere||",
"jii. ja.nt sabhi sar.na.i tumhaarii sarav chi.nt tudhu paase।",
"jo tudhu bhaavai so.ii cha.nga ik naanak kii ardaase||",
"manu ma.ndru tanu ves kala.ndru ghaT hii tiirathi naava।",
"eku sabdu merai praani bastu hai baahuDi janmi n aavaa||",
"manu bedhi.a da.i.aal setii merii maa.ii।",
"ka.u.n jaa.na.ai piir paraa.ii। ham naahii chi.nt paraa.ii|| rahaa.u।",
"agam agochar alakh apaara chi.nta karhu hamaarii।",
"jali thali mahii.ali bharipuri lii.na.a ghaTi ghaTi joti tumhaarii||",
"sikh mati sabh budhi tumhaarii ma.ndir chhaava tere।",
"tujh binu avru n jaa.na.a mere saahiba gu.n gaava nit nere||",
"jii. ja.nt sabhi sar.na.i tumhaarii sarav chi.nt tudhu paase।",
"jo tudhu bhaavai so.ii cha.nga ik naanak kii ardaase||",
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जोगी अंदरि जोगीआ - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/jogii-andri-jogii-guru-nanak-sabad?sort= | [
"जोगी अंदरि जोगीआ। तूं भोगी अंदरि भोगीआ।",
"तेरा अंतु न पाइआ सुरगि मछि पइआलि जीउ॥",
"हउ वारी हउ वारणै कुरबाणु तेरे नाव नो॥ ॥रहाउ॥",
"तुधु संसारु उपाइआ। सिरे सिरि धंधे लाइआ॥",
"वेखहि कीता आपणा करि कुदरति पासा ढालि जीउ॥",
"परगटि पाहारै जापदा। सभु नावै नो परताप दा॥",
"सतिगुर बाझु न पाइओ सभ मोही माइआ जालि जीउ॥",
"सतिगुर कउ बलि जाईऐ। जितु मिलिऐ परमगति पाईऐ॥",
"सुरि नर मुनि जन लोचदे सो सतिगुर दोआ बुझाइ जीउ॥",
"सतसंगति कैसी जाणीऐ। जिथै एको नामु वखाणिऐ॥",
"एको नामु हुकमु है नानक सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ॥",
"(हे प्रभु,) तुम योगियों में योगी हो (और) भोगियों में भोगी। तुम्हारा अत नहीं पाया जा सकता; स्वर्गलोक, मर्त्यलोक और पाताललोक—(सभी जगह) तुम (विराज मान हो)।",
"मैं तुम पर बलिहारी हूँ, मैं तुम बलिहारी हूँ, मैं तुम्हारे नाम पर न्यौछावर हूँ।",
"(सृष्टि के) प्रसार में तुम्ही प्रकट हो रहे हो (और तुम्ही प्रत्यक्ष) दीख रहे हो। सभी लोग (तुम्हारे) नाम को को चाहते है, (किंतु) सद्गुरु के बिना (वह) नहीं पाया जाता; (संसार के) सभी (प्राणी) माया के जाल में मोहे पड़े है।",
"सद्गुरु के ऊपर बलिदान हो जाया जाए जिसके मिलने से परम गति की प्राप्ति होती है। देवता, मनुष्य, मुनिगण (जिस वस्तु की) इच्छा करते है, सद्गुरु ने (मुझे उसका) बोध करा दिया है।",
"सत्संगतति को किस प्रकार जाना जाए? जिस स्थल पर एक नाम की व्याख्या हो, (वही सत्संगति है) नानक कहते है कि एक नाम (का जपना ही) हुक्म है, (इसका रहस्य) सद्गुरु ने (मुझे भलीभाँति) बता दिया है।",
"यह जगत भ्रम में भूल गया है। ‘अपनेपन’ (और) ‘तेरेपन’ में नष्ट हो गया है। (इस प्रकार) दुहागिनी (स्त्री) को परिताप लगा है, ऐ जी, (परमात्मा) उनके भाग्य में तुम नहीं हो।",
"दुहागिनियो के क्या चिह्र (निशान) है? पति से विलग होकर, वे मान-विहीन होकर (इधर-उधर) भटकती फिरती है। ऐ जी, (प्रभु), उन स्त्रियों के वेश मैले होते हैं, (इससे) उनकी रात दुःख-भरी बीतती है।",
"सोहागिनियों ने क्या कर्म किए हैं, (जिससे वे तुमसे मिलती है)? (तुम द्वारा) पूर्व का लिखा हुआ फल (उन्हें) प्राप्त हुआ है। ऐ जी, (प्रभु, तुमने) उनके ऊपर कृपा करके अपने मिला लिया है।",
"(हे प्रभु) जिन्हे हुक्म मनवाये हो, उनके अंतर्गत (तुम गुरु का) शब्द बसा दिए हो। ऐ जी, (प्रभु) वे ही सहेलियाँ सुहागिनी है, जिनका पति के साथ प्यार है।",
"(हे परमात्मा) जिन्हे (तुम्हारी) आज्ञा का रस मिल गया है, उनके अंतःकरण से भ्रम दूर हो जाता है। नानक कहते हैं, ऐ जी (प्रभु) सद्गुरु उसे समझना चाहिए, जो सभी को मिला लेता है।",
"सद्गुरु के मिलने से (साधको को उनके पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का) फल प्राप्त हो गए है, (जिन्होंने) भीतर से अहकार समाप्त कर दिया है। ऐ जी, (प्रभु) उनकी दुर्मति का दुःख कट गया है, उनके मस्तक से भाग्य आकर बैठ गया है।",
"तुम्हारी वागियाँ अमृत है। (वे) तेर भक्त के हृदय में समा गई हैं। ऐ जी (परमात्मा) सुख देनेवाली सेवा की हृदय में रखने से (तुम) अपनी कृपा करते हो और उद्धार कर देते हो।",
"सद्गुरु के मिलने पर हो, (परम तत्व) जाना जाता है, जिस (सद्गुरु) के मिलने पर हो, नाम की प्रशंसा होती है। ऐ जी, (प्रभु), सारी (दुनिया) कर्म करते करते थक गई है, (किंतु) सद्गुरु के बिना (परमात्मा) नहीं प्राप्त हुआ।",
"मैं सद्गुरु के ऊपर न्यौछावर है, जिसने (मुझे) भ्रम में भटकते हुए को मार्ग में लगा दिया। हे प्रभु, यदि तुम अपनी कृपा करो, तो अपने में मिला लेते हो।",
"(ऐ प्रभु) तू सभी में समाया है (व्याप्त है)। पर उस कुर्त्ता ने अपने आप को छिपा लिया है। नानक कहते हैं, कि ऐ जो, यह वह (छिपा हुआ कुर्त्ता) गुरु की शिक्षा द्वारा प्रकट हुआ है, (उस गुरु द्वारा)—जिस गुरु में कर्त्तार ने अपनी ज्योति स्थापित कर दी है।",
"खसम (पति, परमात्मा) ने स्वयं ही अपने आपको बडाई प्रदान की है। उसी ने जीव और शरीर देकर (सबका) निर्माण किया है। ऐ जी (प्रभु), वह दोनो हाथ उसके मस्तक पर रख कर अपने सेवक की पेज (प्रतिक्षा, मान, प्रतिष्ठा) रखता है।",
"सारे संयम और चतुराइयाँ समाप्त हो गई है। मेरा प्रभु सब कुछ जानता है। ऐ जी, वह अपना प्रताप प्रकट रूप से बरत रहा है; सारे लोक (उसकी) जय जयकार करते है।",
"(प्रभु ने) मेरे गुणों-अवगुणों पर विचार नहीं किया है। प्रभु ने अपने विरद (यश) को रख लिया है। ऐ जी, उन्होंने मुझे (अपने) कंठ से लगाकर रखा है, मुझे तत्ती वायु नहीं लगती।",
"मैंने तन-मन से प्रभु का ध्यान किया है और मनोवांच्छित फल को पा लिया है। ऐ जी, (प्रभु) तुम शाहो-बादशाहो के सिर के भी स्वामी (खसमु, पति) हो; नानक तो नाम-जप कर हो जी रहा है।",
"jogii a.ndri jogii.a। tuu.n bhogii a.ndri bhogii.a।",
"tera a.ntu n paa.i.a surgi machhi pa.i.aali jii.u||",
"ha.u vaarii ha.u vaara.na.ai kurbaa.na.u tere naav no|| ||rahaa.u||",
"tudhu sa.nsaaru upaa.i.a। sire siri dha.ndhe laa.i.aa||",
"vekhahi kiita aapa.na.a kari kudarti paasa Dhaali jii.u||",
"paragTi paahaarai jaapada। sabhu naavai no partaap daa||",
"satigur baajhu n paa.i.o sabh mohii maa.i.a jaali jii.u||",
"satigur ka.u bali jaa.ii.ai। jitu mili.ai parmagti paa.ii.ai||",
"suri nar muni jan lochade so satigur do.a bujhaa.i jii.u||",
"satsa.ngti kaisii jaa.na.ii.ai। jithai eko naamu vakhaa.na.i.ai||",
"eko naamu hukmu hai naanak satiguri dii.a bujhaa.i jii.u||",
"jogii a.ndri jogii.a। tuu.n bhogii a.ndri bhogii.a।",
"tera a.ntu n paa.i.a surgi machhi pa.i.aali jii.u||",
"ha.u vaarii ha.u vaara.na.ai kurbaa.na.u tere naav no|| ||rahaa.u||",
"tudhu sa.nsaaru upaa.i.a। sire siri dha.ndhe laa.i.aa||",
"vekhahi kiita aapa.na.a kari kudarti paasa Dhaali jii.u||",
"paragTi paahaarai jaapada। sabhu naavai no partaap daa||",
"satigur baajhu n paa.i.o sabh mohii maa.i.a jaali jii.u||",
"satigur ka.u bali jaa.ii.ai। jitu mili.ai parmagti paa.ii.ai||",
"suri nar muni jan lochade so satigur do.a bujhaa.i jii.u||",
"satsa.ngti kaisii jaa.na.ii.ai। jithai eko naamu vakhaa.na.i.ai||",
"eko naamu hukmu hai naanak satiguri dii.a bujhaa.i jii.u||",
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हरि जन वा मढ़ के मतवारे - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/hari-jan-wa-madh-ke-matware-dharnidas-sabad?sort= | [
"हरि जन वा मद के मतवारे।",
"जो मद बिना काठि बिनु भाठी, बिनु अग्निहिं उदगारे॥",
"बास अकास घराघर भीतर, बुंद झरे झलका रे।",
"चमकत चंद अनंद बढ़ो जिव, सबद सघन निरुवारे॥",
"बिनु कर धरे बिना मुख चाखे, बिनहिं पियाले ढारे।",
"ताखन स्यार सिंह को पौरुष, जुत्थ गजंद बिडारे॥",
"कोटि उपाय करै जो कोई, अमल न होत उतारे।",
"धरनी जो अलमस्त दिवाने, सोइ सिरताज हमारे॥",
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या में कोई नहीं नर तेरो रे - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/ya-mein-koi-nahin-nar-tero-re-sagramdaas-sabad?sort= | [
"या में कोई नहीं नर तेरो रे।",
"राम संत गुरुदेव बिना है, सब ही जगत अँधेरो रे॥",
"हृदय देख विचार खोज कर, दे मन माहीं फेरो रे।",
"आयो कौन चले कौन संगी, सहर सराय बसेरो रे॥",
"मात-पिता-सुत-कुटुम-कबीलो, सब कह मेरो-मेरो रे।",
"जब जम किंकर पास गहे गल, तहाँ नहीं कोइ तेरो रे॥",
"धरिया रहे धाम धन सब ही, छिन में करो निबेरो रे।",
"आयो ज्यूँ ही चले उठ रीतो, ले न सके कछु डेरो रे॥",
"मगन होय सब कर्म कमावे, संक नहीं हरि केरो रे।",
"होय हिसाब, ज्वाब जब बूझै, वहाँ न होय उबेरो रे॥",
"निरपख न्याय सदा समता से, राव रंक सब केरो रे।",
"जैसा करे तैसा भुगतावै, भुगत्यों होय निबेरो रे॥",
"अबही चेत हेत कर हरि से, अजहूँ हरि पद नेरो रे।",
"सतगुरु साध संगत जग माँहीं, भव तिरने को बेरो रे॥",
"होय हुँसियार सिंवर ले साईं, मान कह्यो अब मेरो रे।",
"'सेवगराम' कह-कह समझावै, परसराम को चेरो रे॥",
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ससि औ सूर पवन भरि मेला - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sasi-au-suur-pavan-bhari-mela-sant-gulal-sabad-9?sort= | [
"ससि औ सूर पवन भरि मेला, दृढ़ करि आसन बैठु अकेला।",
"उलटै नाल गगन घर जावै, बिगसै कँवल चंद दरसावै॥",
"घंटा रव तहँ बाज निसाना, अनहद धुन सुनियत बिनु काना।",
"सुत्र असुन्न में डोर बँधाना, उड़े हंस चढ़ि करत पयाना॥",
"अगम अगोचर अबिगत खेला, प्रान पुरुष तहँ करत है मेला।",
"मन अरु पवन सहज घर आयो, ऐसो गति संतन मन भायो॥",
"मेटल सुन्न मिलल परगासा, जन्म-जन्म कै पूजलि आसा।",
"जन गुलाल सतगुरु बलिहारी, जाति-पाँति अब छुटल हमारी॥",
"sasi au suur pavan bhari mela, driDh kari aasan baiThu akela।",
"ulTai naal gagan ghar jaavai, bigsai ka.nval cha.nd darsaavai||",
"gha.nTa rav taha.n baaj nisaana, anhad dhun suniyat binu kaana।",
"sutr asunn me.n Dor ba.ndhaana, uDe ha.ns chaDhi karat payaanaa||",
"agam agochar abigat khela, praan purush taha.n karat hai mela।",
"man aru pavan sahaj ghar aayo, aiso gati sa.ntan man bhaayo||",
"meTal sunn milal pargaasa, janm janm kai puujali aasa।",
"jan gulaal satguru balihaarii, jaati paa.nti ab chhuTal hamaarii||",
"sasi au suur pavan bhari mela, driDh kari aasan baiThu akela।",
"ulTai naal gagan ghar jaavai, bigsai ka.nval cha.nd darsaavai||",
"gha.nTa rav taha.n baaj nisaana, anhad dhun suniyat binu kaana।",
"sutr asunn me.n Dor ba.ndhaana, uDe ha.ns chaDhi karat payaanaa||",
"agam agochar abigat khela, praan purush taha.n karat hai mela।",
"man aru pavan sahaj ghar aayo, aiso gati sa.ntan man bhaayo||",
"meTal sunn milal pargaasa, janm janm kai puujali aasa।",
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अधर चढ़ परख शब्द की धार - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/adhar-chadh-parakh-shabd-ki-dhaar-sant-saligram-sabad-6?sort= | [
"अधर चढ़ परख शब्द की धार।",
"गुरु दयाल तोहि मरम लखावें, बचन सुनो उन हिये धर प्यार॥",
"बिरह अंग लेकर अभ्यासा, खोज करो तुम घट धुन सार।",
"गुरु स्वरूप को अगुआ करके, धुन सुन चलो कंज के पार॥",
"सहस कंवल में घंटा बाजे, गगन माहिं सुन धुन ओंकार।",
"सुन्न शिखर चढ़ं महां सुन्न पर, भंवर गुफा मुरली झनकार॥",
"सत शब्द का धरकर ध्याना, सत्त लोक धुन बीन सम्हार।",
"अलख अगम के पार निसाना, राधास्वामी प्यारे का कर दीदार॥",
"adhar chaDh parakh shabd kii dhaar।",
"guru dayaal tohi maram lakhaave.n, bachan suno un hiye dhar pyaara||",
"birah a.ng lekar abhyaasa, khoj karo tum ghaT dhun saar।",
"guru svaruup ko agu.a karke, dhun sun chalo ka.nj ke paara||",
"sahas ka.nval me.n gha.nTa baaje, gagan maahi.n sun dhun o.nkaar।",
"sunn shikhar chaDha.n mahaa.n sunn par, bha.nvar gupha murlii jhankaara||",
"sat shabd ka dharkar dhyaana, satt lok dhun biin samhaar।",
"alakh agam ke paar nisaana, raadhaasvaamii pyaare ka kar diidaara||",
"adhar chaDh parakh shabd kii dhaar।",
"guru dayaal tohi maram lakhaave.n, bachan suno un hiye dhar pyaara||",
"birah a.ng lekar abhyaasa, khoj karo tum ghaT dhun saar।",
"guru svaruup ko agu.a karke, dhun sun chalo ka.nj ke paara||",
"sahas ka.nval me.n gha.nTa baaje, gagan maahi.n sun dhun o.nkaar।",
"sunn shikhar chaDha.n mahaa.n sunn par, bha.nvar gupha murlii jhankaara||",
"sat shabd ka dharkar dhyaana, satt lok dhun biin samhaar।",
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ए तो जाबाला ए बाई थारा - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/e-to-jabala-e-bai-thara-ranabaai-sabad?sort= | [
"ए तो जाबाला ए बाई थारा, मन में निरख निरधार।",
"कुण थारा साथी कुण थारा बैरी, कुण थारा गोती नाती॥",
"कुण थारा भाई बाप ये मायड़, किस्या जनम की जाती॥",
"सुरतां सुरत पिछाणी नाहीं, भाभी भरम में गेली।",
"कुण सा दैत कुण ने परखी, जै नरक कुंड रा बेली॥",
"कुण रोवै कुण हंसे बावली, कुण किण रो भरतार।",
"गया सू आवणा का है नांही, रया सू जावण हार॥",
"दस दरवाजा इण पिंजरा के, पलक पंखेरू जैलै।",
"चेतन नौबत बजै जठा तक, अंत पछै कुण बौलै॥",
"हर सूं हेत चेत मन करलै, मिनख जमारो आयो।",
"गुरु 'खोजी' राना रंग रीझी, भरम भूत बिसरायो॥",
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मनु हाली किरसाणी करणी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/manu-hali-kirsani-karnai-guru-nanak-sabad?sort= | [
"मनु हाली किरसाणी करणी सरमु पाणी तनु खेतु।",
"नामु बीजु संतोखु सुहागा रखु गरीबी वेसु॥",
"भाउ करम करि जंमसी से घर भागठ देखु॥",
"बाबा माइआ साथि न होइ।",
"इनि माइआ जगु मोहिआ विरला बूझै कोइ॥ ॥रहाउ॥",
"हाणु हटु करि आरजा सचु नामु करि वथु।",
"सुरति सोच करि भांडसाल तिसु विचि तिसनो रखु॥",
"वणजारिआ सिउ वणजु करि लै लाहा मन हसु॥",
"सुणि सासत सउदागरी सतु घोड़े लै चलु।",
"खरचु बनु चंगिआईआ मतु मन जाणहि कलु॥",
"निरंकार कै देसि जाहि ता सुखि लहहि महलु॥",
"लाइ चितु करि चाकरी मंनि नामु करि कंमु।",
"बनु बदीआ करि धावणी ताको आखै धंनु॥",
"नानक वैखै नदरि करि चढ़े चवगण वंनु॥",
"शरीर रूपी खेत में हलवाहा रूपी मन को करनी रूपी किसानी करते रहना चाहिए। नाम-स्मरणरूप बीज बोते हुए संतोष रूप सौभाग्य को बोते हुए स्वयं स्वीकृत ग़रीबी (भक्तिभाव) बनाए रखकर श्रम रूपी पानी से सींचते रहना चाहिए। भावनापूर्वक किया गया काम बीजांकुर रूप में जमता-उगता है यानी फसल तैयार होती हैं। उस घर में सुकर्म-जन्य फसल आती देखी जाती है। हे बाबा, माया साथ नहीं जाती। इस माया ने संसार को मोहपाश में बाँध रखा है, जिसकी समझ किसी बिरले को ही हो पाती है।",
"जीवन की हाट में साँसों की हानि ना करके सत्तनाम का मूलधन संचित करना चाहिए। भक्ति-ध्यान और चिंतन-विचार के भंडार के बीच में नाम का संग्रह कर। वाणिज्यकर्म करने वाले वणिक से लेन-देन का काम पूरा कर और लाभ प्राप्त कर और मन में प्रसन्न हो।",
"शाश्वत सौदागरी, यानी जीवन का निरंतर कार्य-व्यापार सत्य-भाव के घोड़ों पर लादकर ले चल। ख़र्च को अच्छी तरह बाँध और कल पर टालने वाली मन की आदत को मत मान। निरंकार के देश में गंतव्य-स्थल तक पहुँच।",
"चित्त लगाकर परमात्मा की चाकरी कर। मन में नाम को सुकर्म समझ। जो बुरे कर्म को दौड़कर रोकता है, उसको सच्चा धन अथवा धन्यवादी कहा जाता है। नानक कहते हैं कि प्रभु की कृपा-दृष्टि का तेज़ चौगुना प्रभावशाली होता है।",
"manu haalii kirsaa.na.ii kar.na.ii sarmu paa.na.ii tanu khetu।",
"naamu biiju sa.ntokhu suhaaga rakhu gariibii vesu||",
"bhaa.u karam kari ja.nmsii se ghar bhaagaTh dekhu||",
"baaba maa.i.a saathi n ho.i।",
"ini maa.i.a jagu mohi.a virla buujhai ko.i|| ||rahaa.u||",
"haa.na.u haTu kari aaraja sachu naamu kari vathu।",
"surti soch kari bhaa.nDsaal tisu vichi tisno rakhu||",
"va.najaari.a si.u va.naju kari lai laaha man hasu||",
"su.na.i saasat sa.udaagarii satu ghoDe lai chalu।",
"kharchu banu cha.ngi.aa.ii.a matu man jaa.nahi kalu||",
"nira.nkaar kai desi jaahi ta sukhi lahhi mahlu||",
"laa.i chitu kari chaakarii ma.nni naamu kari ka.nmu।",
"banu badii.a kari dhaava.na.ii taako aakhai dha.nnu||",
"naanak vaikhai nadri kari chaDhe chavag.n va.nnu||",
"manu haalii kirsaa.na.ii kar.na.ii sarmu paa.na.ii tanu khetu।",
"naamu biiju sa.ntokhu suhaaga rakhu gariibii vesu||",
"bhaa.u karam kari ja.nmsii se ghar bhaagaTh dekhu||",
"baaba maa.i.a saathi n ho.i।",
"ini maa.i.a jagu mohi.a virla buujhai ko.i|| ||rahaa.u||",
"haa.na.u haTu kari aaraja sachu naamu kari vathu।",
"surti soch kari bhaa.nDsaal tisu vichi tisno rakhu||",
"va.najaari.a si.u va.naju kari lai laaha man hasu||",
"su.na.i saasat sa.udaagarii satu ghoDe lai chalu।",
"kharchu banu cha.ngi.aa.ii.a matu man jaa.nahi kalu||",
"nira.nkaar kai desi jaahi ta sukhi lahhi mahlu||",
"laa.i chitu kari chaakarii ma.nni naamu kari ka.nmu।",
"banu badii.a kari dhaava.na.ii taako aakhai dha.nnu||",
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जग में संत भये कैसे भारी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/jag-men-sant-bhaye-kaise-bhaarii-dariya-bihar-wale-sabad?sort= | [
"जग में संत भये कैसे भारी।",
"काट कुश बनराव सहतु है संत सहैं जग गारी॥",
"जैसे समुद्र सकल जल निजवे संतन गमि विचारी।",
"जैसे हीरा सहै घन चोटहिं कबहीं न लागत कारी॥",
"बुंद अघात सहै गिरि जैसे संत धक्का निरुआरी।",
"कहे ‘दरिया' सिरताज सोई है ताकी मैं बलिहारी॥",
"संसार में कैसे-कैसे महान संत हुए हैं। जिस प्रकार शेर जंगल में नुकीले झाड़ों और काँटों को सहन करता है, उसी प्रकार संतों ने दुनिया की गालियों और अपमान को सहन किया है। जिस प्रकार समुद्र सारे पानी को अपने अंदर पचा लेता है, संतों की पहुँच के बारे में भी उसी प्रकार विचार करना चाहिए। अर्थात् अपार पहुँच होने के बावजूद वे अपने अनुभव को अंतर में पचा लेते हैं। जैसे हीरा घन की चोट को सहन करता है और कभी भी मलीन नहीं होता, जैसे पर्वत वर्षा की बूँदों की चोट सहन करते हैं; उसी प्रकार संत भी दुनियादारों के आघात को बिना परवाह किए बरदाश्त करते हैं। दरिया साहिब कहते हैं कि ऐसे संत संसार के सरताज हैं, मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ।",
"jag me.n sa.nt bhaye kaise bhaarii।",
"kaaT kush banraav sahtu hai sa.nt sahai.n jag gaarii||",
"jaise samudr sakal jal nijve sa.ntan gami vichaarii।",
"jaise hiira sahai ghan choTahi.n kabhii.n n laagat kaarii||",
"bu.nd aghaat sahai giri jaise sa.nt dhakka niru.aarii।",
"kahe ‘dariyaa' sirtaaj so.ii hai taakii mai.n balihaarii||",
"jag me.n sa.nt bhaye kaise bhaarii।",
"kaaT kush banraav sahtu hai sa.nt sahai.n jag gaarii||",
"jaise samudr sakal jal nijve sa.ntan gami vichaarii।",
"jaise hiira sahai ghan choTahi.n kabhii.n n laagat kaarii||",
"bu.nd aghaat sahai giri jaise sa.nt dhakka niru.aarii।",
"kahe ‘dariyaa' sirtaaj so.ii hai taakii mai.n balihaarii||",
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तोई राणी निज धरम अधिकार है - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/toi-rani-nij-dharam-adhikar-hai-baba-ramdev-sabad?sort= | [
"'निजधर्म' का अर्थ स्वधर्म, नियत कर्म, स्वाभाविक कर्म और सहज कर्म है।",
"तोई राणी निज धरम अधिकार है।",
"भाइड़ां सूं भाव राखो गुरां सूं प्रतीत, बोले रांमदे कुंवर है॥",
"पृथ्वी कोस पचास दीजौ, दान कनक सुमेर कीजौ।",
"चिंतामणि कल्पबिरख, पारस कामधेनु समापौ॥",
"लाख हीरा लाख माणक, पन्ना किरोड़ पचास है।",
"गंगा तट दान करे, तोई निज धरम अधिकार है॥",
"किरोड़ कुंजर कनक भरिया, गउ किरोड़ पचास है।",
"किरोड़ मण गउ-घास आपी, तोई निज धरम अधिकार है॥",
"भोम गऊ दान तुरी, लाख अठारै हजार है।",
"पुष्कर दांन आपी, तोई निज धरम अधिकार है॥",
"किरोड़ कन्या धर्म परणाव, देवे दान अपार है।",
"पृथ्वी री परकमा कीजै, तोई निज धरम अधिकार है॥",
"करै जग अश्वमेघ कोटि, गंग तट निज सार है।",
"विप्र किरोड़ अठियासी जीमै, तोई निज धरम अधिकार है॥",
"हेम तुल में भेंट देवै, गऊ लख चार है।",
"रतन चवदह दान देवै, निज धरम अधिकार है॥",
"तप करै ले काशी, करवत धरै।",
"गंगा सागर छाप ले, तोई निज धरम अधिकार है॥",
"जुग चारों सेवा साजै, ऊंधै शीश सार है।",
"एक मन विश्वास राखै, तोई निज धरम अधिकार है॥",
"पदम नागण नेम झेलिया, इंद्र कहिजे अवतार है।",
"मिले प्याले भ्रांत राखै, सोई भगति अनादर विचार है॥",
"सेंस धारा इंद्र बरसै, अखंड इमरत धार है।",
"उण धर्म सूं बासक थापियो, जमीं हंदा भार है॥",
"जुगां पै'ली अमर जोगी, परमांण रै पार है।",
"ओस रा अलील राणी, पूजे धर्म निज या सार है॥",
"शंकर रै घर अटळ भगति, इंद्रनेम आधार है।",
"शक्ति शंकर विष्णु ब्रह्मा, वे ही पूजै धर्म निज सार है॥",
"वेद विरला ग्यान गीता, ध्यान तपस्या सार है।",
"तेज तुरीया विणज करिया, वे साधु सुचियार है॥",
"हरष मन सत धर्म अपणाओ, सोई तेतीसां लार है।",
"सो नर पूगसी प्रमांण, बोल्या रांमदे कुंवार है॥",
"अपनी रानी को संबोधित करते हुए रामदेवजी कहते हैं कि अपने भाई-बंधुओं के प्रति स्नेह भाव रखो, सद्गुरु के प्रति विश्वास रखो। चाहे पचासों कोस भूमि दान करो, चाहे बहुत सा सोना; यहाँ तक कि सुमेरु पर्वत ही दान में दे दो। चाहे चिंतामणि और कल्पवृक्ष ही दान में दे दो, या पारसमणि और कामधेनु दान में समर्पित कर दो। चाहे गंगा स्नान करके लाखों हीरे, माणक तथा पचास करोड़ पन्नों का दान कर दो तो भी आत्म-ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं हो सकता। सोने से लदे हुए करोड़ों हाथी तथा पचासों करोड़ गायों का दान कर दो, करोड़ों मन घास गायों के लिए दान कर दो, तो भी मोक्ष का अधिकार तो आत्म-ज्ञान से ही मिलेगा। चाहे पुष्कर पर स्नान करके भू-दान, गो-दान, गज-दान, अश्वदान कितना ही क्यों न कर दिया जाए, किंतु स्वधर्म के बिना मोक्ष संभव नहीं है। चाहे करोड़ों कन्याओं का धर्म-विवाह कर दो तथा अपरिमित दान दे दो। भले ही धर्म-यात्रा के रूप में पृथ्वी की परिक्रमा कर लो, तो भी मोक्ष तो स्वधर्म से ही होगा। चाहे करोड़ों अश्वमेध यज्ञ कर लो गंगा के तट पर कितने ही करोड़ ब्राह्मणों को भोजन करा दो तो भी निज धर्म के बिना मोक्ष के अधिकारी नहीं हो सकते। चाहे अपने बराबर तौल कर स्वर्ण दान दे दो और चार लाख गायें दान कर दो, तो भी आत्म-ज्ञान (स्वधर्म) की बराबरी नहीं हो सकती, यहाँ तक कि चौदह रत्नों का दान भी स्वधर्म के बराबर नहीं है। चाहे कैसी भी तपस्या कर लो, काशी में जाकर आरे से कट जाओ (करवत ले लो) अथवा गंगा या द्वारिका जा कर तिलक करवा लो तो भी मुक्ति तो आत्म-ज्ञान से ही होगी। शीर्षासन करते हुए चारों युग तक तपस्या कर लो किंतु जब तक आत्म-ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती तब तक मोक्ष नहीं हो सकता। पूर्ण विश्वास और मनोयोग से जब आत्म-ज्ञान की प्राप्ति की जाएगी तभी मोक्ष के अधिकारी बनोगे। चाहे पद्म-नागिन जैसा नियम पालन कर लो, सुरपति इंद्र का पद प्राप्त कर लो या अवतारी पुरुष कहलाओ। मानव-मानव के बीच भेद-भ्रांति की धारणा रखोगे तब तक यही समझो कि आत्म-ज्ञान नहीं मिला है। भेद भ्रांति आत्म-ज्ञान नहीं अपितु भक्ति का अनादर है। आत्म-ज्ञान तो अखंड अमृत धारा है, पृथ्वी का भार सहन करने वाला सर्पराज वासुकि इसी आत्म-ज्ञान के आधार पर इतना समर्थ बना है। आत्म-ज्ञान से ही उस परम योगी-परब्रह्म के दर्शन संभव है जो असंख्य युगों से विद्यमान है तथा जो समस्त प्रमाणों से भी परे है। योगी लोग उर्ध्वरेता बनकर सार-तत्त्व रूपी इसी आत्म-ज्ञान की साधना करते हैं। शंकर के हृदय में इसी आत्म-ज्ञान की भक्ति का अटल साम्राज्य है, सुर इंद्र के धर्म नियम का आधार भी यही आत्म तत्त्व है। शक्ति और शंकर, विष्णु और लक्ष्मी, ब्रह्मा और सावित्री भी इसी सार तत्त्व की पूजा करते हैं। चारों वेद तथा गीता का सार तत्त्व भी यही आत्म-ज्ञान है। तुरिय समाधि लगाकर उर्ध्वरेता होकर जो साधु इस आत्म-ज्ञान प्राप्ति का योगाभ्यास करते हैं, वे ही साधु विवेकशील हैं। हर्षित मन से इसी धर्म को अपनाओ तो तैंतीस करोड़ मोक्षात्माओं में मिल जाओगे। रामदेवजी कहते हैं कि आत्म-ज्ञान को प्राप्त करने वाले ही मोक्ष प्राप्ति के परमपद पर पहुँचेंगे।",
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नाथ निकळंक देव कुण है - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/nath-nik-nk-dew-kun-hai-baba-ramdev-sabad?sort= | [
"इस वाणी में योग साधना की दृष्टि से संपूर्ण ज्ञान-तत्त्व मानव शरीर में ही समझाते हुए परब्रह्म को ही सार तत्त्व बताया गया है; जिसकी विद्यमानता भी शरीर में बताई गई है। पूरी वाणी प्रश्नवाचक शैली में है जिसका उत्तर भावार्थ में दिया गया है।",
"नाथ निकळंक देव कुण है?",
"पूछो जूना जोगियां नै, पूरा पंडितां नैं,",
"नेम मंडप छावीया तो नेम रा गुरु कुण है?",
"इण्ड रा सरूप कुण है,",
"पृथ्वी रा रूप कुण है?",
"अनाद री स्तुति कुण है,",
"वेद री जात कुण है?",
"रणुकार रौ रूप कुण है,",
"ओंकारी अजर कुण है?",
"अजर जोगी बजर कुण है,",
"संत री तो सार कुण है?",
"संत री तो पार कुण है,",
"धर्म री तो धार कुण है?",
"तत्त्व री तार कुण है,",
"ब्रह्म रो विचार कुण है?",
"आकाश रौ तो मूळ कुण है,",
"पवन रौ तोल कुण है?",
"रवी रौ डोळ कुण है,",
"अवाची रौ वाच कुण है?",
"प्रमांण रौ सूत कुण है,",
"बांजड़ी रौ पूत कुण है?",
"घट मांईलौ भूत कुण है,",
"जोग में अवधूत कुण है?",
"चले ध्रुव जिकी राह कुण है,",
"बीजळी रौ बियाव कुण है?",
"सागर रौ थिराव कुण है,",
"शिखर चढ़े बिन पावै कुण है?",
"नाथजी रौ लिंग कुण है,",
"भवानी रौ भग कुण है?",
"ईश री अर्धागिणी कुण है,",
"भग में जोत जागी जिकी देवी कुण है?",
"नाथजी रौ नाद कुण है,",
"जुगां पेली जात कुण है?",
"संन्यासी री साख कुण है,",
"परमपद प्रमांण कुण है?",
"पांच पेड़ी पाठ कुण है,",
"पाठ रा प्रमाण कुण है?",
"परवांणा रौ प्रेम कुण है,",
"हरि डाळी हेम कुण है?",
"दरवेशां रौ दास कुण है,",
"ईश रा उपकार कुण है?",
"साखियां री साख कुण है,",
"प्रेम बायक पड़दे मेळा जिका मिळणी कुण है?",
"अमर क्रिया कळस कुण है,",
"कळस री करतूत कुण है?",
"जोगियां री जुगत कुण है,",
"जुगत मायली मुगत कुण है?",
"साध ज्यां री सुरत कुण है,",
"सुरत मायली नुरत कुण है?",
"देवतां री दिष्टी कुण है,",
"दिष्टी में दिदार कुण है?",
"पड़दे भेळा पाँच कुण है,",
"पांचां रा आचार कुण है?",
"धरम रौ विचार कुण है,",
"संत सेनी मुगती लावै जिको सेनी कुण है?",
"जग रा नेम व्रत कुण है,",
"पड़दे वायक प्रेम कुण है?",
"तेतीसां री साख कुण है, राय झालने तिरीया कुण है?",
"तिरीया जिको क्रिया कुण है?",
"पड़दे रा दस दोष कुण है,",
"पायळ मांही पोख कुण है।",
"अजर प्याले मोख कुण है,",
"सोळा बेड़ी सेंस मंत्र कुण है?",
"अड़सठ तीरथ काया में कुण है,",
"असंग जुगां री माया कुण है?",
"अटळ विरख री छाया कुण है,",
"अजर प्याला पीया कुण है?",
"सती रौ सत धर्म कुण है,",
"अजपा रौ मरम कुण है?",
"ओंकारी आद कुण है,",
"आद रौ अनाद कुण है?",
"साध ज्यां री रीत कुण है,",
"प्रजा री परीत कुण है?",
"प्रेम री प्रतीत कुण है,",
"अखै धरम ले पाट मिळसी, ज्यांरी मिळणी कुण है॥",
"पाट रा परवांण पूरा,",
"बांचसी कोई संत सूरा।",
"अजमाल नंद समझ छांण,",
"बोलिया अवतार बाणी, गुरु गम सूं निरवांण है॥",
"मानव शरीर में निष्कलंक देव आत्मा है, प्रकृति के नियमानुसार शरीर के निर्माण काल में सबसे पहले ब्रह्मरंध्र निर्मित होता है, इस ब्रह्मरंध्र रूपी मंडप निर्माण के उक्त विधान का गुरु परमशिव है। पिंड का स्वरूप जीवात्मा है, पृथ्वी का वर्ण पीत है और आकार गोल है तथा अनाद की स्तुति ओम् है। वेद की जाति अंतःकरण है; शरीर में चार वेद- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार है। रणुकार का अभिप्राय अनाहत नाद है जिसका रूप चंद्र बिंदु है। परब्रह्म ही अजर ओम् कारी है। वही परमशिव अजर-अमर योगी है तथा वही संतों का सार तत्त्व है। संत का पार गुरु है, धर्म की धार भावना है। 'तत्त्व की तार' तीन (शिवतत्त्व, विद्यातत्त्व और आत्मतत्त्व हैं। ईश्वर चिंतन ही ब्रह्म का विचार है। आकाश का मूल शब्द है, और पवन के गुण शब्द और स्पर्श हैं। रवि के गुण-शब्द, स्पर्श और रूप हैं। अवाची का वाच परब्रह्म है। प्रमाण का सूत्र ब्रह्म है। बांझड़ी का अभिप्राय काया है, जब तक इसमें जीव नहीं हो, यह बांझ है और इसका पुत्र जीव है। घट (हृदय) में भूत जीवात्मा है। योग अवधूत परमशिव है। ध्रुव का अर्थ यहाँ लक्ष्य से है और राह अर्थात् माध्यम। योग-साधना में लक्ष्य सहस्रदलकमल है और उस तक पहुँचने का मार्ग सुषुम्ना नाड़ी है। विद्युत की चमक आज्ञा चक्र है। 'सागर रौ थिराव' स्वाधिष्ठान चक्र है; जिसमें जल तत्त्व है। बिना पाँव शिखर (गगन मंडल) तक चढ़ने वाली कुंडलिनी शक्ति है। कुंडलिनी से आवेष्ठित स्वयंभू लिंग ही नाथजी का लिंग है। स्वयंभू लिंग का त्रिकोणाकार आधार ही भवानी (पराशक्ति) का भग है। ईश की अर्द्धांगिनी जीवात्मा है। भग में से शक्ति जागृत हुई, जो देवी कुंडलिनी शक्ति है। नाथजी का नाद अनाहत नाद है। युगों पहले की जात अनादि है। संन्यासी की साख उसकी आत्मा है। परम पद का प्रमाण मोक्ष है। पाँच पेड़ी पाठ-पंच तत्त्व का शुद्धिकरण है और उस पाठ का प्रमाण आत्मानुभव है। परवाणा का प्रेम साधना है। हरि टहनी अर्थात् सुषुम्ना नाड़ी (द्वारा प्राप्त) सोना परब्रह्म है। दरवेशों का दास वही परब्रह्म है। ईश का उपकार कृपा है। साखियों की साख उनका मन है। जीवात्मा और परमात्मा की एकता ही प्रेम साधक के परदे (शरीर) में मिलन है। अमर क्रिया द्वारा प्राप्त कलश सहस्रदलकमल है। कुंडलिनी को सहस्रदलकमल (कलश) में पहुँचाने की क्रिया ही 'कळश री करतूत' है। वही योग साधना योगियों की युक्ति है। आत्म-साक्षात्कार ही मुक्ति है।",
"साधक की सुरत आत्मानुभव है। 'सुरत मायली नुरत’ प्रकाश है। देव-दृष्टि ज्ञान है, इस दृष्टि में दीदार ब्रह्म का है। पड़दे भेळा (शरीर में) पाँच प्राण वायु हैं, जिनके आचार क्रमशः श्वास-उच्छवास, मल-मूत्र विसर्जन, संधि-संचालन, पाचन और अन्न-जल विभाजन है। धर्म का विचार बुद्धि से होता है। गुरु मंत्र ही वह संकेत (सैनी) है जिससे शिष्य मोक्ष प्राप्ति करता है।",
"जगत के नियम छः हैं, यथा- जन्म, अस्तित्व, वृद्धि, यौवन, क्षय, मृत्यु। पड़दे वायक अर्थात् जीव का बुलावा मृत्यु है। तैंतीस की साख आत्मा है। (गुरु की) राय मानकर पार उतरने वाले साधक हैं। पार उतरने की क्रिया योग-साधना है। पड़दा (नर तन) के दस दोष दस इंद्रियों (पाँच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्मेन्द्रियों) द्वारा जनित दस दोष हैं। पायळ (गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञानामृत) का पोख (पोषण) मोक्ष प्राप्ति है। मोक्ष प्रदान करने वाला अजर-अमर प्याला ज्ञानामृत (आत्मज्ञान) का है। सोळा बेड़ी (विशुद्धि चक्र की सोलह पंखुड़ियाँ) सेंस (सहस्रदलकमल) योग-साधना की सिद्धि का मंत्र 'हंसः सोहम्' है। काया में अड़सठ तीर्थ इस प्रकार हैं- छह चक्रों की पचास पंखुड़ियाँ, नौ प्रकार की देह तथा नौ प्रकार की अवस्थाएं। असंख्य युगों की माया पराशक्ति है। अटल वृक्ष परमात्मा है जिसकी छाया जीवात्मा है। अजर प्याला पीने वाले सदाशिव हैं। सती का अर्थ यहाँ पर जीवात्मा है, जिसका धर्म मोक्ष प्राप्ति है। अजपा का रहस्य परब्रह्म है। परब्रह्म ही आदि ओंकार है। आद से अनाद वही परब्रह्म है। योग-साधना ही साध की रीति है और भक्ति ही प्रजा की प्रीत है। इसका आधार विश्वास है। पाट में मिलना, जीवात्मा व परब्रह्म का एक्य है। अजमल-पुत्र रामदेव ने सहस्रदलकमल में योग-साधना की विधि सोच-विचार कर कही है, इसे कोई ज्ञान वीर संत ही पढ़ेगा। रामदेव जी कहते हैं कि इस वाणी में वर्णित योग-साधना और शरीर विज्ञान के तत्त्वों का ज्ञान सद्गुरु की कृपा से ही संभव है, और इसी ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति होगी।",
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जुग-जुग संतन की बलिहारी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/jug-jug-santan-ki-balihari-dharnidas-sabad?sort= | [
"जुग-जुग संतन की बलिहारी।",
"जो प्रभु अलख अमूरत अविगत, तासु भजन निरबारी॥",
"मन बच क्रम जगजीवन को व्रत, जीवन को उपकारी।",
"संतन साँच कही सबहिन तें, सुत-पितु भूप भिखारी॥",
"ढोलिया ढोल नगर जो मारै, गृह-गृह कहत पुकारी।",
"गोधन जुत्थ पार करिबे को, पीठत पीठि पहारी॥",
"एहि जग हरि भगता पतिबरता, अवर बसै विभिचारी।",
"धरनी धृग जीवन है तिन्ह को, जिन्ह हरि नाम बिसारी॥",
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धनि-धनि पीव की राजधानी हो - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/dhani-dhani-peew-ki-rajdhani-ho-tursidaas-niranjani-sabad?sort= | [
"धनि-धनि पीव की राजधानी हो।",
"सुरनर मुनि जाकै उलगाणा, इंद्र धुरै नीसानी हो॥",
"औनी आप जमाइ जुगति स्यूँ, मारुति माहिं समानी हो।",
"अंबर अधर धर्यो बिन खंभा, चंद सूर अगिवानी हो॥",
"ब्रह्मा कुलाल कुमेर भडारी, चित्र विचित्र लिखतानी हो।",
"धरम राइ जाकै कोटवाल, छप्पन कोडि भरै पानी हो॥",
"सेस सहस मुखि कीरत गावै, नारद से मुनि ग्यानी हो।",
"सनकादिक जाकै ब्रह्माचारी, शंकर से मुनि ध्यानी हो॥",
"सब देवन में देव गुसाईं, सबके अंतरजामी हो।",
"अरध-अरध मधि तुम्ह ही व्यापिक, तीनि लोक सिरिनामी हो॥",
"जैसे नदीया समदि समानी, बहोरि न उलधै पानी हो।",
"जन तुरसी मिलि रह्या परसिपरि, सबद रह्या सहबानी हो॥",
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होरी सो खेलै जा के सतगुरु ज्ञान बिचार - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/horii-so-khelai-ja-ke-satguru-j-naaan-bichaar-bheekha-sahab-sabad?sort= | [
"होरी सो खेलै जा के सतगुरु ज्ञान बिचार।",
"यहि सिवाइ जो और करतु है, ता को जन्म खुवार॥",
"इँगल पिंगल ह्वै सुन्न भँटानो, सुखमन भयो उँजियार।",
"नूर जहूर बदन पर झलकत, बरखत अधर अधार॥",
"बाजत अनहद घंटा तहँ धुनि, अबिगत सब्द अपार।",
"पुलकि पुलकि मन अनुभव गावत, पावत अलख दिदार॥",
"अजर अबीर कुमकुमा केसरि, उमगो प्रेम पोखार।",
"राम नाम रस रंग भयो, गत काम क्रोध हंकार॥",
"ब्यापक पूरन अगम अगोचर, निज साहब बिस्तार।",
"भीखा बोलत एक सभन में, है जग सकल हमार॥",
"horii so khelai ja ke satguru j~na.aan bichaar।",
"yahi sivaa.i jo aur kartu hai, ta ko janm khuvaara||",
"i.ngal pi.ngal hvai sunn bha.nTaano, sukhman bhayo u.njiyaar।",
"nuur jahuur badan par jhalkat, barkhat adhar adhaara||",
"baajat anhad gha.nTa taha.n dhuni, abigat sabd apaar।",
"pulki pulki man anubhav gaavat, paavat alakh didaara||",
"ajar abiir kumkuma kesari, umgo prem pokhaar।",
"raam naam ras ra.ng bhayo, gat kaam krodh ha.nkaara||",
"byaapak puuran agam agochar, nij saahab bistaar।",
"bhiikha bolat ek sabhan me.n, hai jag sakal hamaara||",
"horii so khelai ja ke satguru j~na.aan bichaar।",
"yahi sivaa.i jo aur kartu hai, ta ko janm khuvaara||",
"i.ngal pi.ngal hvai sunn bha.nTaano, sukhman bhayo u.njiyaar।",
"nuur jahuur badan par jhalkat, barkhat adhar adhaara||",
"baajat anhad gha.nTa taha.n dhuni, abigat sabd apaar।",
"pulki pulki man anubhav gaavat, paavat alakh didaara||",
"ajar abiir kumkuma kesari, umgo prem pokhaar।",
"raam naam ras ra.ng bhayo, gat kaam krodh ha.nkaara||",
"byaapak puuran agam agochar, nij saahab bistaar।",
"bhiikha bolat ek sabhan me.n, hai jag sakal hamaara||",
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सद्गुरु दियो जी मारग खोल - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sadguru-diyo-jii-maarag-khol-sain-bhagat-sabad?sort= | [
"सद्गुरु दियो जी मारग खोल।",
"सदगुरु के वचना चले, चौरासी कट जाय॥",
"एसो मंतर दियो म्हारा सतगुरू, पारख ज्ञान कराय।",
"तन-मन-चित्त एक तार बाँध्यो, तनक नहीं भरमाय॥",
"भीतर बाहर संसो नास्यो, अज्ञान धुंध नहीं राखी।",
"साहिब के दरबार हाजरी, सतगुरु कर दी साखी॥",
"सयना झट फरमा दियो, सतगुरु साँचो बोल।",
"सतगुरू दियो जी मारग खोल॥",
"सद्गुरू ने मेरा अवरुद्ध मार्ग खोल दिया है। जो व्यक्ति सद्गुरू के वचनों पर चलता है, उसकी चौरासी से मुक्ति हो जाती है। मुझे सद्गुरू ने पारख ज्ञान देकर ऐसा मंत्र दिया है। सद्गुरू ने मेरा तन-मन और चित्त एक तार में बाँध दिया। मेरे भीतर और बाहर का संशय नष्ट हो गया है। अज्ञान रूप कुहरा समाप्त हो गया है। सद्गुरू ने मुझे साहिब के दरबार में पहुँचा दिया और स्वयं की जमानत देकर तथा कृपा करके सत्य वचन फरमा दिया।",
"sadguru diyo jii maarag khol।",
"sadguru ke vachna chale, chauraasii kaT jaaya||",
"eso ma.ntar diyo mhaara satguruu, paarakh j~na.aan karaay।",
"tan-man-chitt ek taar baa.ndhyo, tanak nahii.n bharmaaya||",
"bhiitar baahar sa.nso naasyo, aj~na.aan dhu.ndh nahii.n raakhii।",
"saahib ke darbaar haajarii, satguru kar dii saakhii||",
"sayna jhaT pharma diyo, satguru saa.ncho bol।",
"satguruu diyo jii maarag khola||",
"sadguru diyo jii maarag khol।",
"sadguru ke vachna chale, chauraasii kaT jaaya||",
"eso ma.ntar diyo mhaara satguruu, paarakh j~na.aan karaay।",
"tan-man-chitt ek taar baa.ndhyo, tanak nahii.n bharmaaya||",
"bhiitar baahar sa.nso naasyo, aj~na.aan dhu.ndh nahii.n raakhii।",
"saahib ke darbaar haajarii, satguru kar dii saakhii||",
"sayna jhaT pharma diyo, satguru saa.ncho bol।",
"satguruu diyo jii maarag khola||",
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हमारा सतगुरु बिरले जानै - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/hamara-satguru-birle-janai-malukdas-sabad?sort= | [
"हमारा सतगुरु बिरले जानै।",
"सुई के नाके सुमेर चलावै, सो यह रूप बखानै॥",
"की तो जानै दास कबीरा, की हरिनाकस पूता।",
"की तो नामदेव औ नानक, की गोरख अवधूता॥",
"हमरे गुरु की अद्भुत लीला, ना कछु खाय न पीवै।",
"ना वह सोवै ना वह जागै, ना वह मरै न जीवै॥",
"बिन तरवर फल फूल लगावै, सों तो वा का चेला।",
"छिन में रूप अनेक धरत है, छिन में रहैं अकेला॥",
"बिन दीपक उंजियारा देखै, एड़ी समुंद थहावै।",
"चींटी के पग कुंजर बाँधे, जा को गुरू लखावै॥",
"बिन पंखन उड़ जाय अकासे, बिन पंखन उड़ि आवे।",
"सोई सिष्य गुरू का प्यारा, सूखे नाव चलावै॥",
"बिन पायन सब जग फिरि आवै, सो मेरा गुरु भाई।",
"कहै मलूक ता की बलिहारी, जिन यह जुगत बताई॥",
"hamaara satguru birle jaanai।",
"su.ii ke naake sumer chalaavai, so yah ruup bakhaanai||",
"kii to jaanai daas kabiira, kii harinaakas puuta।",
"kii to naamadev au naanak, kii gorakh avdhuutaa||",
"hamre guru kii adbhut liila, na kachhu khaay n piivai।",
"na vah sovai na vah jaagai, na vah marai n jiivai||",
"bin tarvar phal phuul lagaavai, so.n to va ka chela।",
"chhin me.n ruup anek dharat hai, chhin me.n rahai.n akelaa||",
"bin diipak u.njiyaara dekhai, eDii samu.nd thahaavai।",
"chii.nTii ke pag ku.njar baa.ndhe, ja ko guruu lakhaavai||",
"bin pa.nkhan uD jaay akaase, bin pa.nkhan uDi aave।",
"so.ii sishy guruu ka pyaara, suukhe naav chalaavai||",
"bin paayan sab jag phiri aavai, so mera guru bhaa.ii।",
"kahai maluuk ta kii balihaarii, jin yah jugat bataa.ii||",
"hamaara satguru birle jaanai।",
"su.ii ke naake sumer chalaavai, so yah ruup bakhaanai||",
"kii to jaanai daas kabiira, kii harinaakas puuta।",
"kii to naamadev au naanak, kii gorakh avdhuutaa||",
"hamre guru kii adbhut liila, na kachhu khaay n piivai।",
"na vah sovai na vah jaagai, na vah marai n jiivai||",
"bin tarvar phal phuul lagaavai, so.n to va ka chela।",
"chhin me.n ruup anek dharat hai, chhin me.n rahai.n akelaa||",
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प्रेम बिन चले न घर की चाल - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/prem-bin-chale-na-ghar-ki-chaal-sant-saligram-sabad-4?sort= | [
"प्रेम बिन चले न घर की चाल।",
"सतसंग करे समझ तब आवे, गुरु चरनन में प्रीत सम्हाल॥",
"गुरु भक्ति की रीत सम्हारे, छोड़े जग की चाल औ ढाल।",
"गुरु स्वरूप का धारे ध्याना, शब्द सुने तज माया ख़याल॥",
"घट में देखे बिमल प्रकासा, मगन होय सुन शब्द रसाल।",
"प्रीत प्रतीत बढ़े तब दिन-दिन, पावे राधास्वामी दरस बिसाल॥",
"prem bin chale n ghar kii chaal।",
"satsa.ng kare samajh tab aave, guru charnan me.n priit samhaala||",
"guru bhakti kii riit samhaare, chhoDe jag kii chaal au Dhaal।",
"guru svaruup ka dhaare dhyaana, shabd sune taj maaya ख़yaala||",
"ghaT me.n dekhe bimal prakaasa, magan hoy sun shabd rasaal।",
"priit pratiit baDhe tab din-din, paave raadhaasvaamii daras bisaala||",
"prem bin chale n ghar kii chaal।",
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घर आग लगावे सखी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sant-shivdyaal-sabad-2?sort= | [
"घर आग लगावे सखी, सोइ सीतल समुंद समावे।",
"जड़ चेतन की गाँठ खुलानी, बुंदा सिंध मिलावे॥",
"सुरत शब्द की क्यारी सींचे, फल और फूल खिलावे।",
"गगन मंडल का ताला खोले, लाल जवाहिर पावे॥",
"सुन्न सिखर का मंदिर झांके, अद्भुत रूप दिखावे।",
"मान सरोवर निरमल धारा, ता बिच पैठ अन्हावे॥",
"संतन साथ हाथ फल लेवे, धृग-धृग जगत सुनावे।",
"महासुन्न का नाका तोड़े, भंवर गुफा ढिग जावे॥",
"सत्तनाम पद परस पुराना, अलख अगम को धावे।",
"राधास्वामी सतगुरु पावे, तब घर अपने आवे॥",
"ghar aag lagaave sakhii, so.i siital samu.nd samaave।",
"jaD chetan kii gaa.nTh khulaanii, bu.nda si.ndh milaave||",
"surat shabd kii kyaarii sii.nche, phal aur phuul khilaave।",
"gagan ma.nDal ka taala khole, laal javaahir paave||",
"sunn sikhar ka ma.ndir jhaa.nke, adbhut ruup dikhaave।",
"maan sarovar nirmal dhaara, ta bich paiTh anhaave||",
"sa.ntan saath haath phal leve, dhriga-dhrig jagat sunaave।",
"mahaasunn ka naaka toDe, bha.nvar gupha Dhig jaave||",
"sattanaam pad paras puraana, alakh agam ko dhaave।",
"raadhaasvaamii satguru paave, tab ghar apne aave||",
"ghar aag lagaave sakhii, so.i siital samu.nd samaave।",
"jaD chetan kii gaa.nTh khulaanii, bu.nda si.ndh milaave||",
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"sunn sikhar ka ma.ndir jhaa.nke, adbhut ruup dikhaave।",
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प्रेमी सुनो प्रेम की बात - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/premi-suno-prem-ki-baat-sant-shivdyaal-singh-sabad-1?sort= | [
"प्रेमी सुनो प्रेम की बात।",
"सेवा करो प्रेम से गुरु की और दर्शन पर बल-बल जात॥",
"बचन पियारे गुरु के ऐसे जस माता सुत तोतरि बात।",
"जस कामी को कामिन प्यारी अस गुरुमुख को गुरु का गात॥",
"खाते-पीते चलते-फिरते सोवत-जागत बिसरि न जात।",
"खटकत रहे भाल ज्यों हियरे दर्दी के ज्यों दरद समात॥",
"ऐसी लगन गुरु संग जाकी वह गुरुमुख परमारथ पात।",
"जब लग गुरु प्यारे नहिं ऐसे तब लग हिरसी जानो जात॥",
"मनमुख फिरे किसी का नांही कहो क्योंकर परमारथ पात।",
"राधास्वामी कहत सुनाई अब सतगुरु का पकड़ो हाथ॥",
"premii suno prem kii baat।",
"seva karo prem se guru kii aur darshan par bal-bal jaata||",
"bachan piyaare guru ke aise jas maata sut totari baat।",
"jas kaamii ko kaamin pyaarii as gurumukh ko guru ka gaata||",
"khaate-piite chalte-phirte sovat-jaagat bisri n jaat।",
"khaTkat rahe bhaal jyo.n hiyre dardii ke jyo.n darad samaata||",
"aisii lagan guru sa.ng jaakii vah gurumukh parmaarath paat।",
"jab lag guru pyaare nahi.n aise tab lag hirsii jaano jaata||",
"manmukh phire kisii ka naa.nhii kaho kyo.nkar parmaarath paat।",
"raadhaasvaamii kahat sunaa.ii ab satguru ka pakDo haatha||",
"premii suno prem kii baat।",
"seva karo prem se guru kii aur darshan par bal-bal jaata||",
"bachan piyaare guru ke aise jas maata sut totari baat।",
"jas kaamii ko kaamin pyaarii as gurumukh ko guru ka gaata||",
"khaate-piite chalte-phirte sovat-jaagat bisri n jaat।",
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एक धनी धन मोरा हो - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/ek-dhani-dhan-mora-ho-dharnidas-sabad?sort= | [
"एक धनी धन मोरा हो।",
"काहू के धन सोना रूपा, काहू के हाथी घोरा हो।",
"काहू के मनि मानिक मोती, एक धनी धन मोरा हो॥",
"राज न हरै जरै न अगिन ते, कैसहु पाय न चोरा हो।",
"खरचत खात सिरात कबहिं नहिं, घाट बाट नहिं छोरा हो॥",
"नहिं सँदूक नहिं भुइँ खनि गाड़ो, नहिं पट घालि मरोरा हो।",
"नैन के ओझल पलकन राखों, साँझ दिवस निसि भोरा हो॥",
"जब धन लै मनि बेचन चाहे, तीन हाट टटकोरा हो।",
"कोई वस्तु नाहिं ओहि जोगे, जो भोलऊँ सो थोरा हो॥",
"जा धन तैं जन भये धनी बहु, हिंदू तुरुक करोरा हो।",
"सो धन धरनी सहजहिं पायो, केवल सतगुरु के निहोरा हो॥",
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चूनर मेरी मैली भई - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/chunar-meri-maili-bhai-sant-shivdyaal-singh-sabad-5?sort= | [
"चूनर मेरी मैली भई, अब का पै जाऊँ धुलान।",
"घाट-घाट मैं खोजत हारी, धुबिया मिला न सुजान॥",
"नइहर रहुँ कस पिया घर जाऊँ बहुत मरे मेरे मान।",
"नित-नित तरसूँ पल-पल तड़पूँ, कोइ धोवे मेरी चूनर आन॥",
"काम दुष्ट और मन अपराधी, और लगावें कीचड़ सान।",
"कासे कहूँ सुने नहिं कोई, सब मिल मरते मेरी हान॥",
"सखी सहेली सब जुड़ आईं, लगीं भेद बतलान।",
"राधास्वामी धुबिया भारी, प्रगटे आय जहान॥",
"chuunar merii mailii bha.ii, ab ka pai jaa.uu.n dhulaan।",
"ghaaTa-ghaaT mai.n khojat haarii, dhubiya mila n sujaana||",
"na.ihar rahu.n kas piya ghar jaa.uu.n bahut mare mere maan।",
"nit-nit tarsuu.n pal-pal taD़puu.n, ko.i dhove merii chuunar aana||",
"kaam dushT aur man apraadhii, aur lagaave.n kiichaD saan।",
"kaase kahuu.n sune nahi.n ko.ii, sab mil marte merii haana||",
"sakhii sahelii sab juD aa.ii.n, lagii.n bhed batlaan।",
"raadhaasvaamii dhubiya bhaarii, pragTe aay jahaana||",
"chuunar merii mailii bha.ii, ab ka pai jaa.uu.n dhulaan।",
"ghaaTa-ghaaT mai.n khojat haarii, dhubiya mila n sujaana||",
"na.ihar rahu.n kas piya ghar jaa.uu.n bahut mare mere maan।",
"nit-nit tarsuu.n pal-pal taD़puu.n, ko.i dhove merii chuunar aana||",
"kaam dushT aur man apraadhii, aur lagaave.n kiichaD saan।",
"kaase kahuu.n sune nahi.n ko.ii, sab mil marte merii haana||",
"sakhii sahelii sab juD aa.ii.n, lagii.n bhed batlaan।",
"raadhaasvaamii dhubiya bhaarii, pragTe aay jahaana||",
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अब हम चली ठाकुर पहि हारि - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/ab-hum-chali-thakur-pahi-hari-guru-ramdas-sabad-4?sort= | [
"अब हम चली ठाकुर पहि हारि।",
"जब हम सरणि प्रभु की आई राखु प्रभु भावै मारि॥",
"लोकन की चतुराई उपमा ते बैसंतरि जारि।",
"कोई भला कहउ भावै बुरा कहउ हम तनु दीओ है ढारि॥",
"जो आवत सरणि ठाकुर प्रभु तुमरी तिसु राखहु किरपा धारि।",
"जन नानक सरणि तुमारी हरि जीउ राखहु लाज मुरारि॥",
"ab ham chalii Thaakur pahi haari।",
"jab ham sar.na.i prabhu kii aa.ii raakhu prabhu bhaavai maari||",
"lokan kii chaturaa.ii upma te baisa.ntri jaari।",
"ko.ii bhala kah.u bhaavai bura kah.u ham tanu dii.o hai Dhaari||",
"jo aavat sar.na.i Thaakur prabhu tumrii tisu raakhahu kirpa dhaari।",
"jan naanak sar.na.i tumaarii hari jii.u raakhahu laaj muraari||",
"ab ham chalii Thaakur pahi haari।",
"jab ham sar.na.i prabhu kii aa.ii raakhu prabhu bhaavai maari||",
"lokan kii chaturaa.ii upma te baisa.ntri jaari।",
"ko.ii bhala kah.u bhaavai bura kah.u ham tanu dii.o hai Dhaari||",
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जो कोउ राम नाम चित धरै - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/jo-kou-raam-naam-chit-dharai-bheekha-sahab-sabad?sort= | [
"जो कोउ राम नाम चित धरै।",
"तन मन धन न्योछावर वारै, सहज सुफल फल फरै॥",
"गुरु परताप साध की संगति, जाग जुक्ति उर भरै॥",
"इंगला पिंगला सुखमन सोधै, ज्ञान अगिन उदगरै॥",
"चाँद सरज एकागर करि कै, उलट उरध अनुसरै॥",
"नाद बिंद को जोहु गगन में, मन माया तब मरै॥",
"आठ पहर नौबल धुनि बाजै, नेक पलक नहिं टरै॥",
"भीखा सब्द सुनतहिं अबुध बुध, अमरख हरख करै॥",
"jo ko.u raam naam chit dharai।",
"tan man dhan nyochhaavar vaarai, sahaj suphal phal pharai||",
"guru partaap saadh kii sa.ngti, jaag jukti ur bharai||",
"i.ngla pi.ngla sukhman sodhai, j~na.aan agin udagrai||",
"chaa.nd saraj ekaagar kari kai, ulaT uradh anusrai||",
"naad bi.nd ko johu gagan me.n, man maaya tab marai||",
"aaTh pahar naubal dhuni baajai, nek palak nahi.n Tarai||",
"bhiikha sabd sunathi.n abudh budh, amrakh harakh karai||",
"jo ko.u raam naam chit dharai।",
"tan man dhan nyochhaavar vaarai, sahaj suphal phal pharai||",
"guru partaap saadh kii sa.ngti, jaag jukti ur bharai||",
"i.ngla pi.ngla sukhman sodhai, j~na.aan agin udagrai||",
"chaa.nd saraj ekaagar kari kai, ulaT uradh anusrai||",
"naad bi.nd ko johu gagan me.n, man maaya tab marai||",
"aaTh pahar naubal dhuni baajai, nek palak nahi.n Tarai||",
"bhiikha sabd sunathi.n abudh budh, amrakh harakh karai||",
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सुरत बौरी कातै निरमल ताग - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/dulandas-sabad-2?sort= | [
"सुरत बौरो कातै निरमल ताग॥",
"तन का चरखा नाम का टेकुआ, प्रेम की पिउनी करि अनुराग।",
"सतगुरु धोबी अलख जुलाहा, मलि-मलि धोवैं करम के दाग॥",
"इतना पहिरि मन मानिक साजो, पिय अपने पर सबै सिंगार।",
"दूलनदास अचल गुरु साहिब, गुरु के चरन पर मनुआँ लाग॥",
"surat bauro kaatai nirmal taaga||",
"tan ka charkha naam ka Teku.a, prem kii pi.unii kari anuraag।",
"satguru dhobii alakh julaaha, mali-mali dhovai.n karam ke daaga||",
"itna pahiri man maanik saajo, piy apne par sabai si.ngaar।",
"duulandaas achal guru saahib, guru ke charan par manu.aa.n laaga||",
"surat bauro kaatai nirmal taaga||",
"tan ka charkha naam ka Teku.a, prem kii pi.unii kari anuraag।",
"satguru dhobii alakh julaaha, mali-mali dhovai.n karam ke daaga||",
"itna pahiri man maanik saajo, piy apne par sabai si.ngaar।",
"duulandaas achal guru saahib, guru ke charan par manu.aa.n laaga||",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
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"The best way to learn Urdu online",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
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रे नर ऐसा गुरु ना कीजै - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/re-nar-aisa-guru-na-kiijai-dariya-bihar-wale-sabad?sort= | [
"रे नर ऐसा गुरु ना कीजै।",
"दोजक कारन करे खुसामद धोती पैसा लीजै॥",
"सास्तर साथ बगल तर राखहिं गीता को मति ऐसा।",
"खेलि सिकार जंगल जिव मारहिं अठई दसई भैंसा॥",
"संझा तरपन औ गाइत्री या का भेद बतावै।",
"दिल में दोबिधा दाया ना भाखे हरिनी खंसी खिआवै॥",
"गुरू सीख के एक मता भौ दुई पाखंड भौ भारी।",
"नाव पथल के चले ना जल में दुइ कनहरिया हारी॥",
"ज्ञान होए तौं मन के चीन्हे तन मन धन सभ बारी।",
"होए मुक्ति दाया को सागर भौ से लेत निकारी॥",
"बेद पढ़ी पढ़ि भेद ना जाने मरि मरि फेरि अवतरिया।",
"कहें दरिया बिनु दाया ठवर नहिं समुझि के बांह पकरिया॥",
"re nar aisa guru na kiijai।",
"dojak kaaran kare khusaamad dhotii paisa liijai||",
"saastar saath bagal tar raakhahi.n giita ko mati aisa।",
"kheli sikaar ja.ngal jiv maarahi.n aTh.ii das.ii bhai.nsaa||",
"sa.njha tarpan au gaa.itrii ya ka bhed bataavai।",
"dil me.n dobidha daaya na bhaakhe harinii kha.nsii khi.aavai||",
"guruu siikh ke ek mata bhau du.ii paakha.nD bhau bhaarii।",
"naav pathal ke chale na jal me.n du.i kanahriya haarii||",
"j~na.aan ho.e tau.n man ke chiinhe tan man dhan sabh baarii।",
"ho.e mukti daaya ko saagar bhau se let nikaarii||",
"bed paDhii paDhi bhed na jaane mari mari pheri avatriya।",
"kahe.n dariya binu daaya Thavar nahi.n samujhi ke baa.nh pakriyaa||",
"re nar aisa guru na kiijai।",
"dojak kaaran kare khusaamad dhotii paisa liijai||",
"saastar saath bagal tar raakhahi.n giita ko mati aisa।",
"kheli sikaar ja.ngal jiv maarahi.n aTh.ii das.ii bhai.nsaa||",
"sa.njha tarpan au gaa.itrii ya ka bhed bataavai।",
"dil me.n dobidha daaya na bhaakhe harinii kha.nsii khi.aavai||",
"guruu siikh ke ek mata bhau du.ii paakha.nD bhau bhaarii।",
"naav pathal ke chale na jal me.n du.i kanahriya haarii||",
"j~na.aan ho.e tau.n man ke chiinhe tan man dhan sabh baarii।",
"ho.e mukti daaya ko saagar bhau se let nikaarii||",
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कोई गुर बिन ग्यान न पावै रे - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/koi-gur-bin-gyan-na-pawai-re-sevadas-sabad?sort= | [
"कोई गुर बिन ग्यान न पावै रे।",
"कहा भयो पढ़ि जग परमोधे, फिरि माया सू मन लावै रे॥",
"च्यारि षष्ट अष्टादस साधे, अरथ बहौत बनावै रे।",
"लोभ-मोह पांचा बसि प्रगट, कहँ हरि सुख निज न आवै रे॥",
"गीता अरथ भामोत बखानै, बहुत दुनी भरमावै रे।",
"मांहि सांच सो दीसें नाहीं, सब झूठ ही झूठ बतावै रे॥",
"नाभि नासिका बीचि तहाँ सुख, मन कूँ उलटि न ल्यावै रे।",
"जन 'सेवादास' पढ्या क्या होवै, फिरि बिपति नदी बहि आवै रै॥",
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धन मोरि आज सुहागिन घड़िया - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/dhan-mori-aaj-suhagin-ghadiya-dulandas-sabad-1?sort= | [
"धन मोरि आज सुहागिन घड़िया॥",
"आज मोर अँगना संत चलि आये, कौन करौं मिहमनिया।",
"निहुरि-निहुरि मैं अँगना बुहारौँ, मातो मैं प्रेम लहरिया॥",
"भाव कै भात प्रेम कै फुलका, ज्ञान की दाल उतरिया।",
"दुलनदास के साईं जगजीवन, गुरु के चरन बलिहारिया॥",
"dhan mori aaj suhaagin ghaDiyaa||",
"aaj mor a.ngna sa.nt chali aaye, kaun karau.n mihamniya।",
"nihuri-nihuri mai.n a.ngna buhaarau.n, maato mai.n prem lahriyaa||",
"bhaav kai bhaat prem kai phulka, j~na.aan kii daal utriya।",
"dulandaas ke saa.ii.n jagjiivan, guru ke charan balihaariyaa||",
"dhan mori aaj suhaagin ghaDiyaa||",
"aaj mor a.ngna sa.nt chali aaye, kaun karau.n mihamniya।",
"nihuri-nihuri mai.n a.ngna buhaarau.n, maato mai.n prem lahriyaa||",
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अबकी जलम सुधारों गुरुजी - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/sant-singaji-sabad-3?sort= | [
"अबकी जलम सुधारों गुरुजी मेरी अबकी जलम सुधारो।",
"नहीं भूलूं जस तेरो गुरुजी मेरो अबकी जलम सुधारो॥टेक॥",
"गुरु बिन सहाय करै कौण जिव की तीरथ वरो न हज़ारो।",
"पति बिन सोभा क्या तिरिया की क्या विधवा को सिनगारो॥",
"घड़ी दुई घड़ी में करूँहूँ विनती बेगि ते सुणों हो पुकारो।",
"आप गुरुजी मेरे पर उपकारी अवगुण चित न धरो॥",
"गुरु बिन ज्ञान ध्यान सब फोकट फोकट नेम हज़ारो।",
"बैकुँठ से पीछा फिरी आया सुकदेव नारद प्यारो॥",
"राम मिलण की राह बताओ ना मेटो मन मेरो।",
"गुरु सिंघा को दरसन दीजो सिर पर पंजो थारो॥",
"abkii jalam sudhaaro.n gurujii merii abkii jalam sudhaaro।",
"nahii.n bhuuluu.n jas tero gurujii mero abkii jalam sudhaaro||Teka||",
"guru bin sahaay karai kau.n jiv kii tiirath varo n haज़.aaro।",
"pati bin sobha kya tiriya kii kya vidhva ko singaaro||",
"ghaDii du.ii ghaDii me.n karuu.nhuu.n vintii begi te su.na.o.n ho pukaaro।",
"aap gurujii mere par upkaarii avgu.n chit n dharo||",
"guru bin j~na.aan dhyaan sab phokaT phokaT nem haज़.aaro।",
"baiku.nTh se piichha phirii aaya sukdev naarad pyaaro||",
"raam mil.n kii raah bataa.o na meTo man mero।",
"guru si.ngha ko darsan diijo sir par pa.njo thaaro||",
"abkii jalam sudhaaro.n gurujii merii abkii jalam sudhaaro।",
"nahii.n bhuuluu.n jas tero gurujii mero abkii jalam sudhaaro||Teka||",
"guru bin sahaay karai kau.n jiv kii tiirath varo n haज़.aaro।",
"pati bin sobha kya tiriya kii kya vidhva ko singaaro||",
"ghaDii du.ii ghaDii me.n karuu.nhuu.n vintii begi te su.na.o.n ho pukaaro।",
"aap gurujii mere par upkaarii avgu.n chit n dharo||",
"guru bin j~na.aan dhyaan sab phokaT phokaT nem haज़.aaro।",
"baiku.nTh se piichha phirii aaya sukdev naarad pyaaro||",
"raam mil.n kii raah bataa.o na meTo man mero।",
"guru si.ngha ko darsan diijo sir par pa.njo thaaro||",
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करुनामय हरि करुना करिये - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/karunamay-hari-karuna-kariye-bheekha-sahab-sabad?sort= | [
"करुनामय हरि करुना करिये,",
"कृपा कटाच्दछ ढरन ढरिये।",
"भक्तन के प्रतिपाल करन को,",
"चरन कँवल हिरदै धरिये।",
"ब्यापक पूरन जहाँ तहाँ लगु,",
"रीतो ने कहूँ भरन भरिये॥",
"अब की बार सवाल राखिये,",
"नाम सदा इक फर फरिये।",
"जन भीखा के दाता सतगुरु,",
"नूर जहूर बरन बरिये॥",
"karunaamay hari karuna kariye,",
"kripa kaTaachdachh Dharan Dhariye।",
"bhaktan ke pratipaal karan ko,",
"charan ka.nval hirdai dhariye।",
"byaapak puuran jahaa.n tahaa.n lagu,",
"riito ne kahuu.n bharan bhariye||",
"ab kii baar savaal raakhiye,",
"naam sada ik phar phariye।",
"jan bhiikha ke daata satguru,",
"nuur jahuur baran bariye||",
"karunaamay hari karuna kariye,",
"kripa kaTaachdachh Dharan Dhariye।",
"bhaktan ke pratipaal karan ko,",
"charan ka.nval hirdai dhariye।",
"byaapak puuran jahaa.n tahaa.n lagu,",
"riito ne kahuu.n bharan bhariye||",
"ab kii baar savaal raakhiye,",
"naam sada ik phar phariye।",
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साधो धोखे सब जग मारा - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/dariya-bihar-wale-sabad-1?sort= | [
"साधो धोखे सब जग मारा।",
"गुरू स्रिष्टि के ब्रह्मा भूले चारो बेद बिचारा॥",
"अछै ब्रीछ सुख सागर छोड़ि के त्रीगुण फंद पसारा।",
"तेहि फंदा में या जग बांधा किमि करि होए उबारा॥",
"जौ करता एह सभ घट बरता जरा मरन सौ बारा।",
"नरक स्वर्ग कहु काके कहिये दुख सुख कीन्ह पसारा॥",
"कवन गुरू है कवन चेला है कवन बूढ़ को बारा।",
"आपे नाव केवट है आपे आपे खेवनिहारा॥",
"गुर देखाए ईंट मुख मारे भूले मूढ़ गंवारा।",
"ब्रषिब चारि चरण जब होइहैं बोझ परा सिर भारा॥",
"सतगुर सब्द सत्य येह मानो निसु बासर हुसियारा।",
"कहें दरिया चित चेतु अचेते उतरहु भव जल पारा॥",
"saadho dhokhe sab jag maara।",
"guruu srishTi ke brahma bhuule chaaro bed bichaaraa||",
"achhai briichh sukh saagar chhoDi ke triigu.n pha.nd pasaara।",
"tehi pha.nda me.n ya jag baa.ndha kimi kari ho.e ubaaraa||",
"jau karta eh sabh ghaT barta jara maran sau baara।",
"narak svarg kahu kaake kahiye dukh sukh kiinh pasaaraa||",
"kavan guruu hai kavan chela hai kavan buuDh ko baara।",
"aape naav kevaT hai aape aape khevanihaaraa||",
"gur dekhaa.e ii.nT mukh maare bhuule muuDh ga.nvaara।",
"brasha.ib chaari char.n jab ho.ihai.n bojh para sir bhaaraa||",
"satgur sabd saty yeh maano nisu baasar husiyaara।",
"kahe.n dariya chit chetu achete utarhu bhav jal paaraa||",
"saadho dhokhe sab jag maara।",
"guruu srishTi ke brahma bhuule chaaro bed bichaaraa||",
"achhai briichh sukh saagar chhoDi ke triigu.n pha.nd pasaara।",
"tehi pha.nda me.n ya jag baa.ndha kimi kari ho.e ubaaraa||",
"jau karta eh sabh ghaT barta jara maran sau baara।",
"narak svarg kahu kaake kahiye dukh sukh kiinh pasaaraa||",
"kavan guruu hai kavan chela hai kavan buuDh ko baara।",
"aape naav kevaT hai aape aape khevanihaaraa||",
"gur dekhaa.e ii.nT mukh maare bhuule muuDh ga.nvaara।",
"brasha.ib chaari char.n jab ho.ihai.n bojh para sir bhaaraa||",
"satgur sabd saty yeh maano nisu baasar husiyaara।",
"kahe.n dariya chit chetu achete utarhu bhav jal paaraa||",
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जउ गुरदेउ त मिलै मुरारि - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/jau-gurdeu-t-milai-murari-namdev-sabad?sort= | [
"जउ गुरदेउ त मिलै मुरारि।। जउ गुरदेउ त उतरै पारि।।",
"जउ गुरदेउ त बैकुंठ तरै।। जउ गुरदेउ त जीवत मरै।।",
"सति सति सति सति सति गुरदेव।।",
"झूठु झूठु झूठु झूठु आन सभ सेव।।",
"जउ गुरदेउ त नामु द्रिड़ावै।। जउ गुरदेउ न दह दिस धावै।।",
"जउ गुरदेउ पंच ते दूरि।। जउ गुरदेउ न मरिबो झूरि।।",
"जउ गुरदेउ त अंम्रित बानी।। जउ गुरदेउ त अकथ कहानी।।",
"जउ गुरदेउ त अंम्रित देह।। जड गुरदेउ नामु जपि लेहि।।",
"जउ गुरदेउ भवन त्रै सूझै।। जउ गुरदेउ ऊच पद बूझै।।",
"जउ गुरदेउ त सीसु अकासि।। जउ गुरदेउ सदा साबासि।।",
"जउ गुरदेउ सदा बैरागी।। जउ गुरदेउ पर निंदा तिआगी।।",
"जउ गुरदेउ बुरा भला एक।। जउ गुरदेउ लिलाटहि लेख।।",
"जउ गुरदेउ कंधु नहीं हिरै।। जउ गुरदेउ देहुरा फिरै।।",
"जउ गुरदेउ त छापरि छाई। जउ गुरदेउ सिहज निकसाई।।",
"जउ गुरदेउ त अठसठि नाइआ।। जउ गुरदेउ तनि चक्र लगाइआ।।",
"जउ गुरदेउ त दुआदस सेवा।। जउ गुरदेउ सभै बिखु मेवा।।",
"जउ गुरदेउ त संसा टूटै।। जउ गुरदेउ त जम ते छूटै।।",
"जउ गुरदेउ त भउजल तरै।। जउ गुरदेउ त जनमि न मरै।।",
"जउ गुरदेउ अठदस बिउहार।। जउ गुरदेउ अठारह भार।।",
"बिनु गुरदेउ अवर नही जाई।। नामदेउ गुर की सरणाई।।",
"ja.u gurde.u t milai muraari|। ja.u gurde.u t utrai paari|।",
"ja.u gurde.u t baiku.nTh tarai|। ja.u gurde.u t jiivat marai|।",
"sati sati sati sati sati gurdeva|।",
"jhuuThu jhuuThu jhuuThu jhuuThu aan sabh seva|।",
"ja.u gurde.u t naamu driDaavai|। ja.u gurde.u n dah dis dhaavai|।",
"ja.u gurde.u pa.nch te duuri|। ja.u gurde.u n maribo jhuuri|।",
"ja.u gurde.u t a.nmrit baanii|। ja.u gurde.u t akath kahaanii|।",
"ja.u gurde.u t a.nmrit deha|। jaD gurde.u naamu japi lehi|।",
"ja.u gurde.u bhavan trai suujhai|। ja.u gurde.u uuch pad buujhai|।",
"ja.u gurde.u t siisu akaasi|। ja.u gurde.u sada saabaasi|।",
"ja.u gurde.u sada bairaagii|। ja.u gurde.u par ni.nda ti.aagii|।",
"ja.u gurde.u bura bhala ek|। ja.u gurde.u lilaaTahi lekha|।",
"ja.u gurde.u ka.ndhu nahii.n hirai|। ja.u gurde.u dehura phirai|।",
"ja.u gurde.u t chhaapari chhaa.ii। ja.u gurde.u sihaj niksaa.ii|।",
"ja.u gurde.u t aThasThi naa.i.aa|। ja.u gurde.u tani chakr lagaa.i.aa|।",
"ja.u gurde.u t du.aadas sevaa|। ja.u gurde.u sabhai bikhu mevaa|।",
"ja.u gurde.u t sa.nsa TuuTai|। ja.u gurde.u t jam te chhuuTai|।",
"ja.u gurde.u t bha.ujal tarai|। ja.u gurde.u t janmi n marai|।",
"ja.u gurde.u aThdas bi.uhaara|। ja.u gurde.u aThaarah bhaara|।",
"binu gurde.u avar nahii jaa.ii|। naamade.u gur kii sar.na.aa.ii|।",
"ja.u gurde.u t milai muraari|। ja.u gurde.u t utrai paari|।",
"ja.u gurde.u t baiku.nTh tarai|। ja.u gurde.u t jiivat marai|।",
"sati sati sati sati sati gurdeva|।",
"jhuuThu jhuuThu jhuuThu jhuuThu aan sabh seva|।",
"ja.u gurde.u t naamu driDaavai|। ja.u gurde.u n dah dis dhaavai|।",
"ja.u gurde.u pa.nch te duuri|। ja.u gurde.u n maribo jhuuri|।",
"ja.u gurde.u t a.nmrit baanii|। ja.u gurde.u t akath kahaanii|।",
"ja.u gurde.u t a.nmrit deha|। jaD gurde.u naamu japi lehi|।",
"ja.u gurde.u bhavan trai suujhai|। ja.u gurde.u uuch pad buujhai|।",
"ja.u gurde.u t siisu akaasi|। ja.u gurde.u sada saabaasi|।",
"ja.u gurde.u sada bairaagii|। ja.u gurde.u par ni.nda ti.aagii|।",
"ja.u gurde.u bura bhala ek|। ja.u gurde.u lilaaTahi lekha|।",
"ja.u gurde.u ka.ndhu nahii.n hirai|। ja.u gurde.u dehura phirai|।",
"ja.u gurde.u t chhaapari chhaa.ii। ja.u gurde.u sihaj niksaa.ii|।",
"ja.u gurde.u t aThasThi naa.i.aa|। ja.u gurde.u tani chakr lagaa.i.aa|।",
"ja.u gurde.u t du.aadas sevaa|। ja.u gurde.u sabhai bikhu mevaa|।",
"ja.u gurde.u t sa.nsa TuuTai|। ja.u gurde.u t jam te chhuuTai|।",
"ja.u gurde.u t bha.ujal tarai|। ja.u gurde.u t janmi n marai|।",
"ja.u gurde.u aThdas bi.uhaara|। ja.u gurde.u aThaarah bhaara|।",
"binu gurde.u avar nahii jaa.ii|। naamade.u gur kii sar.na.aa.ii|।",
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जे जन नाम भजि बलवान - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/je-jan-nam-bhaji-balwan-sant-jagjivan-sabad-9?sort= | [
"जे जन नाम भजि बलवान।",
"ताहि केवल कोई नाहीं, कौन मारे मान॥",
"रहत निरखत पलक छिन-छिन, नाम बहु निर्बान।",
"चाखि पीवै जिवै जुग-जुग, काल देखि डेरान॥",
"कहत कथा प्रगास करि कै, जुगन जुग का ज्ञान।",
"उतरि गा सो पार कामन, जानि मानि प्रमान॥",
"ताहि कीरति कवन गावै, कहत बेद पुरान।",
"जगजीवन बिस्वास करि, गुरुचरन तें लिपटान॥",
"je jan naam bhaji balvaan।",
"taahi keval ko.ii naahii.n, kaun maare maana||",
"rahat nirkhat palak chhin-chhin, naam bahu nirbaan।",
"chaakhi piivai jivai jug-jug, kaal dekhi Deraana||",
"kahat katha pragaas kari kai, jugan jug ka j~na.aan।",
"utri ga so paar kaaman, jaani maani pramaana||",
"taahi kiirati kavan gaavai, kahat bed puraan।",
"jagjiivan bisvaas kari, guruchran te.n lipTaana||",
"je jan naam bhaji balvaan।",
"taahi keval ko.ii naahii.n, kaun maare maana||",
"rahat nirkhat palak chhin-chhin, naam bahu nirbaan।",
"chaakhi piivai jivai jug-jug, kaal dekhi Deraana||",
"kahat katha pragaas kari kai, jugan jug ka j~na.aan।",
"utri ga so paar kaaman, jaani maani pramaana||",
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"jagjiivan bisvaas kari, guruchran te.n lipTaana||",
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जोगु न खिंथा जोगु न डंडै - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/jogu-n-khintha-jogu-n-dandai-guru-nanak-sabad?sort= | [
"जोगु न खिंथा जोगु न डंडै जोगु न भसम चड़ाईऐ।",
"जोगु न मुंदी मूंडि मुडाईऐ जोगु न सिंङी वाईऐ॥",
"अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ॥",
"गली जोगु न होई।",
"एक दृसटि करि समसरि जाणै जोगी कहीऐ सोई॥ रहाउ॥",
"जोगु न बाहरि मड़ी मसाणी जोगु न ताड़ी लाईऐ।",
"जोगु न देसि दिसंतरि भविऐ जोगु न तीरथि नाईऐ॥",
"अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगतिइव पाईऐ॥",
"सतिगुरु भेटै ता सहसा तूटै धावतु वरजि रहाईऐ।",
"निझरु झरै सहज धुनि लागै घर ही परचा पाईऐ॥",
"अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोगति इव पाईऐ॥",
"नानक जीवति मरि रहीऐ ऐसा जोगु कमाईऐ।",
"वाजे बाइबहु सिंङी वाजै तउ निरभउ पद पाईऐ॥",
"अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति तउ पाईए॥",
"योग (की प्राप्ति) न तो कंथा (पहनने) में है, न डंडा (लेने) में है, और न शरीर पर भस्म लगाने में है। योग न तो (कानों में) मुद्रा (पहनने) में है, न मुँड मुडबाने में (सिर घोटाने में) और शृंगी (बाजा) बजाने ही में है। (यदि) माया के बीच में (रहते हुए) निरंजन (माया से रहित हरी) से (युक्त) रहा जाए, (तो यही) योग की (वास्तविक) युक्त है (और इसी से योग) प्राप्त होता है।",
"(निरी, कोरी) बातों से ही योग (की प्राप्ति) नहीं होती। (जो) एक दृष्टि करके (सभी को) समान समझे, (उसी को वास्तविक) योगी कहा जाता है।",
"योग बाहर—क़ब्रों (समाधिस्थलो) (अथवा) स्मशानों (के बीच रहने में) नहीं है (और ब्रह्म) ध्यान लगाने में भी योग नहीं है। देश, देशान्तरों के भ्रमण करने में भी योग नहीं है और न तीर्थादिकों के स्नान में ही योग (की प्राप्ति होती) है। (यदि) माया के बीच में (रहते हुए) निरंजन (माया से रहित हरी) से (युक्त) रहा, जाय (तो यही) योग की (वास्तविक) युक्ति है (और इसी से योग) प्राप्त होता है।",
"सद्गुरु मिले, (तभी) भ्रम टूट सकता है (और विषयों की ओर) दौड़ते हुए (मन को) रोककर रखा जा सकता है; तभी (आत्मानंद का) निर्झर (निरंतर) झरने लगता है और सहजावस्था में वृत्ति (धुनि) लग जाती है (और) (अपने) घर ही में (आत्म-स्वरूप में ही परमात्मा का) परिचय प्राप्त हो जाता है। (यदि) माया के बीच में (रहते हुए) निरंजन (माया से रहित हरी) से (युक्त) रह जाए, (तो यही) योग की (वास्तविक) युक्ति है (और इसी से योग) प्राप्त होता है।",
"हे नानक, ऐसा योग कमाओ कि जीवितावस्था में ही (अहंकार से) मर कर रहो। (जब) बिना बजाए ही (नाम की) शृंगी बजती रहे, तभी निर्भय पद की प्राप्ति होती है। (यदि) माया के बीच में (रहते हुए) निरंजन (माया से रहति हरी) से युक्त रहा जाय, (तो यही) योगी की (वास्तविक) युक्ति है (और तभी योग) प्राप्त होता है।",
"jogu n khi.ntha jogu n Da.nDai jogu n bhasam chaDaa.ii.ai।",
"jogu n mu.ndii muu.nDi muDaa.ii.ai jogu n si.nna.ii vaa.ii.ai||",
"a.njan maahi nira.njni rahii.ai jog jugti iv paa.ii.ai||",
"galii jogu n ho.ii।",
"ek drisaTi kari samasri jaa.na.ai jogii kahii.ai so.ii|| rahaa.u||",
"jogu n baahari maDii masaa.na.ii jogu n taaDii laa.ii.ai।",
"jogu n desi disa.ntri bhavi.ai jogu n tiirathi naa.ii.ai||",
"a.njan maahi nira.njni rahii.ai jog jugti.iv paa.ii.ai||",
"satiguru bheTai ta sahsa tuuTai dhaavatu varji rahaa.ii.ai।",
"nijhru jharai sahaj dhuni laagai ghar hii parcha paa.ii.ai||",
"a.njan maahi nira.njni rahii.ai jogati iv paa.ii.ai||",
"naanak jiivati mari rahii.ai aisa jogu kamaa.ii.ai।",
"vaaje baa.ibhu si.nna.ii vaajai ta.u nirabh.u pad paa.ii.ai||",
"a.njan maahi nira.njni rahii.ai jog jugti ta.u paa.ii.e||",
"jogu n khi.ntha jogu n Da.nDai jogu n bhasam chaDaa.ii.ai।",
"jogu n mu.ndii muu.nDi muDaa.ii.ai jogu n si.nna.ii vaa.ii.ai||",
"a.njan maahi nira.njni rahii.ai jog jugti iv paa.ii.ai||",
"galii jogu n ho.ii।",
"ek drisaTi kari samasri jaa.na.ai jogii kahii.ai so.ii|| rahaa.u||",
"jogu n baahari maDii masaa.na.ii jogu n taaDii laa.ii.ai।",
"jogu n desi disa.ntri bhavi.ai jogu n tiirathi naa.ii.ai||",
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"nijhru jharai sahaj dhuni laagai ghar hii parcha paa.ii.ai||",
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"naanak jiivati mari rahii.ai aisa jogu kamaa.ii.ai।",
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माणस जनमु दुलंभु गुरमुखि पाइआ - सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/sabad/guru/manas-janamu-dulambhu-guramukhi-paia-guru-nanak-sabad?sort= | [
"माणस जनमु दुलंभु गुरमुखि पाइआ।",
"मनु तनु होइ चुलंभु जे सतगुर भाइआ॥",
"चलै जनमु सवारि बखरु सच लै।",
"पति पाए दरबारि सतिगुर सबदि भै॥ रहाउ॥",
"मनि तनि सचु सलाहि साचे मनि भाइआ।",
"लालि रता मनु मानिआ गुरु पूरा पाइआ॥",
"हउ जीवा गुण सारि अंतरि तू वसै।",
"तूं वसहि मन माहि सहजे रसि रसै॥",
"मूरख मन समझाइ आखउ केतड़ा।",
"गुरमुखि हरि गुण गाइ रंगि रंगेतड़ा॥",
"नित नित रिदै सभालि प्रीतमु आपणा।",
"जे चलहि गुण नालि नाही दुखु संतापणा॥",
"मनमुख भरमि भुलाणा ना तिसु रंगु है।",
"मरसी होइ विडाणा मनि तनि भंगु है॥",
"गुर की कार कमाइ लाहा घरि आणिआ।",
"गुर बाणी निरबाणु सबदि पछाणिआ॥",
"इक नानक की अरदासि जे तुधु भावसी।",
"मै दीजै नाम निवासु हरि गुण गावसी॥",
"मनुष्य का जन्म बहुत ही दुर्लभ है, (वास्तव में) गुरुमुखी को ही (यह जीवन) घास है, (तात्पर्य यह कि गुरुमुख ही मानव जीवन की वास्तविक कीमत जानते है)। यदि सरुगुर को (मनुष्य) लगने लगा, तो उसके मन तन और मन ही शीतल हो जाते है।",
"सद्गुरु की शिक्षा और भय के द्वारा (मनुष्य) सच्चाई का सौदा लेकर और अपना जन्म सँवार कर (इस संसार से) विदा होता है, (वह परमात्मा के) दरबार से प्रतिष्ठा पाता है।",
"तन और मन से सत्य (परमात्मा की) स्तुति करने पर मन सच्चे (हरी को) अच्छा लगने लगा। पूर्ण गुरु के पा जाने पर, मन लाल (प्रियतम) में अनुरक्त होकर मान गया।",
"मैं (तेरे) गुणों का स्मरण करके जीता हूँ, (हे प्रभु), तू मेरे अंतःकरण में वसता है। (हे प्रभु), तू (मेरे) मन में निवास करता है, (और मन) सहज ही भाव से आनंद से भर जाता है।",
"(हे मेरे) मूर्ख मन, (मैं) तुझे कितना समझा कर कहूँ? गुरु के द्वारा हरि के गुणों को गाकर, (उसके) रंग में रंग जा।",
"अपने प्रियतम (परमात्मा) को नित्य हृदय में स्मरण कर। यदि गुणों को (अपने) साथ लेकर चले, तो दुःख संताप नहीं देगा।",
"मनमुख (माया के) भ्रम में भटक गया है उसे कोई रंग (आनंद) नहीं है, (भाव यह है कि मनमुख से प्रेम की लगन लगती ही नहीं)। (मनमुख) मरकर बेगाना हो जाता है (और उसके) तन और मन विघ्र स्वरूप हो जाते है।",
"गुरु का कार्य करके (उसका) लाभ घर में ले आया। गुरु की वाणी और उसके उपदेश द्वारा सहजावस्था (निर्वाण पद, चतुर्थ पद, तुरीयपद) को पहचान लिया।",
"(हे प्रभु), यदि तुझे अच्छा लगे, तो नानक की यह प्रार्थना है कि तुझे नाम के निवास दे, (ताकि) (तेरा) गुण गाऊँ।",
"maa.nas janmu dula.mbhu gurmukhi paa.i.a।",
"manu tanu ho.i chula.mbhu je satgur bhaa.i.aa||",
"chalai janmu savaari bakhru sach lai।",
"pati paa.e darbaari satigur sabdi bhai|| rahaa.u||",
"mani tani sachu salaahi saache mani bhaa.i.a।",
"laali rata manu maani.a guru puura paa.i.aa||",
"ha.u jiiva gu.n saari a.ntri tuu vasai।",
"tuu.n vashi man maahi sahje rasi rasai||",
"muurakh man samjhaa.i aakha.u ketaDa।",
"gurmukhi hari gu.n gaa.i ra.ngi ra.ngetaDaa||",
"nit nit ridai sabhaali priitamu aapa.na.a।",
"je chalhi gu.n naali naahii dukhu sa.ntaapa.na.aa||",
"manmukh bharmi bhulaa.na.a na tisu ra.ngu hai।",
"marsii ho.i viDaa.na.a mani tani bha.ngu hai||",
"gur kii kaar kamaa.i laaha ghari aa.na.i.a।",
"gur baa.na.ii nirbaa.na.u sabdi pachhaa.na.i.aa||",
"ik naanak kii ardaasi je tudhu bhaavasii।",
"mai diijai naam nivaasu hari gu.n gaavasii||",
"maa.nas janmu dula.mbhu gurmukhi paa.i.a।",
"manu tanu ho.i chula.mbhu je satgur bhaa.i.aa||",
"chalai janmu savaari bakhru sach lai।",
"pati paa.e darbaari satigur sabdi bhai|| rahaa.u||",
"mani tani sachu salaahi saache mani bhaa.i.a।",
"laali rata manu maani.a guru puura paa.i.aa||",
"ha.u jiiva gu.n saari a.ntri tuu vasai।",
"tuu.n vashi man maahi sahje rasi rasai||",
"muurakh man samjhaa.i aakha.u ketaDa।",
"gurmukhi hari gu.n gaa.i ra.ngi ra.ngetaDaa||",
"nit nit ridai sabhaali priitamu aapa.na.a।",
"je chalhi gu.n naali naahii dukhu sa.ntaapa.na.aa||",
"manmukh bharmi bhulaa.na.a na tisu ra.ngu hai।",
"marsii ho.i viDaa.na.a mani tani bha.ngu hai||",
"gur kii kaar kamaa.i laaha ghari aa.na.i.a।",
"gur baa.na.ii nirbaa.na.u sabdi pachhaa.na.i.aa||",
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प्रायश्चित के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/regret | [
"के फल भोग से बचने के लिए किए जाने वाले शास्त्र-विहित कर्म को प्रायश्चित कहा जाता है। प्रायश्चित की भावना में बहुधा ग्लानि की भावना का उत्प्रेरण कार्य करता है। जैन धर्म में आलोचना, प्रतिक्रणण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार और उपस्थापना—नौ प्रकार के प्रायश्चितों का विधान किया गया है।",
"खोयो मैं घर में अवट, कायर जंबुक काम।",
"सीहां केहा देसड़ा, जेथ रहै सो धाम॥",
"सिंहों के लिए कौनसा देश और कौनसा परदेश! वे जहाँ रहें, वहीं उनका घर हो जाता है। किंतु खेद है कि मैंने तो घर पर रहकर ही सियार के से कायरोचित कामों में अपनी पूरी उम्र बिता दी।",
"जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार।",
"अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार॥",
"हे भ्रमर! जिन दिनों तूने वे सुंदर तथा सुगंधित पुष्प देखे थे, वह बहार बीत गई। अब (तो) गुलाब में बिन पत्ते की कंटकित डाल रह गई है (अब इससे दुःख छोड़ सुख की सम्भावना नहीं है)।",
"धिक मो कहँ बचन लगि, मो पति लह्यो विराग।",
"भई वियोगिनी निज करनि, रहूँ उड़वति काग॥",
"मुझे धिक्कार है, मेरे वचन लग जाने के ही कारण मेरे पति मेरे प्रति अनासक्त हो गए। इस प्रकार अपनी करनी से ही मैं वियोगिनी बनकर काक उड़ाती रहती हूँ।",
"हों न नाथ अपराधिनी, तौउ छमा करि देउ।",
"चरनन दासी जानि निज, वेगि भोरि सुधि लेउ॥",
"हे प्राणनाथ! मैं अपराधिनी नहीं हूँ। यदि आपकी दृष्टि में अपराधिनी हूँ, तो भी मुझे क्षमा कर दीजिए। अपने चरणों की दासी (अपनी भार्या) समझकर त्वरित ही मेरी सुध लीजिए।",
"छमा करहु अपराध सब, अपराधिनी के आय।",
"बुरी भली हों आपकी, तजउ न लेउ निभाय॥",
"मुझ अपराधिनी के सारे अपराधों को आप छमा कीजिए। मैं बुरी हूँ या भली हूँ, जैसी भी हूँ आपकी हूँ, अतः मेरा त्याग न कीजिए और मुझे निभा लीजिए।",
"सनक सनातन कुल सुकुल, गेह भयो पिय स्याम।",
"रत्नावली आभा गई, तुम बिन बन सैम ग्राम॥",
"हे प्रिय! सनक ऋषि का सुकुल कुल अब श्याम हो गया है। मुझ रत्नावली की भी सभी प्रकार की कांति आपके बिना चली गई है और उसके लिए ग्राम भी, हे कांत! आपके बिना कांतार सम हो गया है।",
"दीन बंधु कर घर पली, दीनबंधु कर छांह।",
"तौउ भई हों दीन अति, पति त्यागी मो बाहं॥",
"मैं दीनबंधु पिता के घर में पली और दीनबंधु (दिनों के बंधु पूज्य पति तुलसी) के कर कमलों का आश्रय रहा। फिर भी मैं अत्यंत संतप्त हो गई क्योंकि पति (श्री तुलसीदास जी) ने मेरी बाँह छोड़ दी।",
"सुबरन पिय संग हों लसी, रत्नावलि सम काँचु।",
"तिही बिछुरत रत्नावलि, रही काँचु अब साँचु॥",
"मैं रत्नावली कांच के समान होते हुए भी पति के साथ स्वर्ण के समान शोभाशाली थी, किंतु उनके वियोग होने पर तो अब मैं कांच ही रह गई।",
"कर गहि लाए नाथ तुम, वादन बहु बजवाय।",
"पदहु न परसाए तजत, रत्नावलिही जगाय॥",
"हे नाथ! आप अनेक प्रकार के बाजे बजवाकर और मेरा कर ग्रहण कर लाए थे, परंतु आपने मुझे तजकर जाते समय जगाकर पैर भी न छुवाए।",
"नाथ रहौंगी मौन हों, धारहू पिय जिय तोष।",
"कबहूँ न देउँ उराहनौ, देउँ कबहूँ ना दोष॥",
"हे नाथ! मैं अब मौन रहूँगी, अतः हे प्रिय! मन में संतोष धारण कीजिए। मैं आपको उपालंभ नहीं दूँगी और ना कभी आपको किसी बात के लिए दोष दूँगी।",
"हाय सहज ही हों कही, लह्यो बोध हिरदेस।",
"हों रत्नावली जँचि गई, पिय हिय काँच विसेस॥",
"मैंने अपनी बात स्वाभाविक ढंग से कही थी ,किंतु हृदयेश (तुलसीदास जी) ने इससे ज्ञान प्राप्त कर लिया। उस ज्ञान के प्रभाव से मैं उनके हृदय में काँच के समान प्रतीत हुई।",
"जनमि बदरिका कुल भई, हों पिय कंटक रूप।",
"विंधत दुखित ह्वै चलि गए, रत्नावली उर भूप॥",
"मेरा जन्म बदरिका के गृह में हुआ, अतएव पति के लिए मैं काँटे के समान हो गई। मेरी स्वाभाविक वाणी से बेधित होकर मुझ रत्नावली के हृदय के राजा (तुलसीदास जी) व्यथित होकर चले गए।",
"हाय बदरिका नाम गई, हों बामा विष वेलि।",
"रत्नावली हों नाम की, रसहिं दयो विष मेलि॥",
"हाय! बदरिका रूपी विपिन में मैं स्त्री विष बेल के समान उत्पन्न हुई। मैं नाम की ही रत्नावली (मणिमाला) हूँ, मैंने तो इसमें विष मिला दिया।",
"तरनापो इउँही गइओ, लिइओ जरा तनु जीति।",
"कहु नानक भजु हरि मना, अउधि जाति है बीति॥",
"जतन बहुत मैं करि रहिओ, मिटिओ न मन को मान।",
"दुर्मति सिउ नानक फँधिओ, राखि लेह भगवान॥",
"खात पियत बीती निसा, अँचवत भा भिनुसार।",
"रूपकला धिक-धिक तोहि, गर न लगायो यार॥",
"तनु धनु जिह तोकउ दिओ, तासिउ नेहु न कीन।",
"कहु नानक नर बावरे, अब किउ डोलत दीन॥",
"करणो हुतो सु ना किओ, परिओ लोभ के फंद।",
"नानक समये रमि गइओ, अब क्यों रोवत अंध॥",
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मस्जिद के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/mosque | [
"मसीत को मस्जिद कहा जाता है। मंदिरों की तरह ही मस्जिदें भी भारतीय सांस्कृतिक जीवन की अभिन्न अंग हैं।",
"मस्जिद सों कुछ घिन नहीं, मंदिर सों नहीं पिआर।",
"दोए मंह अल्लाह राम नहीं, कहै रैदास चमार॥",
"न तो मुझे मस्जिद से घृणा है और न ही मंदिर से प्रेम है। रैदास कहते हैं कि वास्तविकता यह है कि न तो मस्जिद में अल्लाह ही निवास करता है और नही मंदिर में राम का वास है।",
"हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति।",
"रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥",
"हिंदू मंदिरों में पूजा करने के लिए जाते हैं और मुसलमान ख़ुदा की इबादत करने के लिए मस्जिदों में जाते हैं। दोनों ही अज्ञानी हैं। दोनों को ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। रैदास कहते हैं कि मैं जिस राम की आराधना करता हूँ, उसके प्रति मेरी सच्ची प्रीति है।",
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सत्संग के विषय पर बेहतरीन सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/satsang | [
"की संगति और उनके साथ धार्मिक चर्चा को पर्याप्त महत्ता दी गई है। प्रस्तुत चयन में सत्संग विषयक भक्ति काव्य-रूपों को शामिल किया गया है।",
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सुमिरन के विषय पर बेहतरीन सबद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/sumiran | [
"भक्ति-काव्य का प्रमुख ध्येय रहा है। प्रस्तुत चयन में सुमिरन के महत्त्व पर बल देती कविताओं को शामिल किया गया है।",
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"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
गर्व के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/proud/kavita | [
"और सकारात्मक दोनों ही अर्थों में अहंभाव को प्रकट करता है, लेकिन प्रस्तुत संचयन में इसके विविध आयामों से गुज़रा जा सकता है।",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
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] |
गर्व के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/proud/dohe | [
"और सकारात्मक दोनों ही अर्थों में अहंभाव को प्रकट करता है, लेकिन प्रस्तुत संचयन में इसके विविध आयामों से गुज़रा जा सकता है।",
"पूरन प्रेम प्रताप तै, उपजि परत गुरुमान।",
"ताकी छवि के छोभ सौं, कवि सो कहियत मान।",
"आन नारि के चिह्न तैं, लखि सुनि श्रवननि नाउ।",
"उपजि परत गुरुमान तहं, प्रीतम देखि सुभाउ॥",
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गर्व के विषय पर बेहतरीन उद्धरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/proud/quotes | [
"और सकारात्मक दोनों ही अर्थों में अहंभाव को प्रकट करता है, लेकिन प्रस्तुत संचयन में इसके विविध आयामों से गुज़रा जा सकता है।",
"इस्लाम ने भारतीयता की स्थूलता को एक हज़ार वर्ष में छिन्न-भिन्न किया तो उसे ही सूक्ष्म स्तर पर पहले ईसाइयत ने और बाद में साम्यवादी-दर्शन ने गत पचास वर्षों में संपन्न किया।",
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गर्व के विषय पर बेहतरीन कहानी | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/proud/story | [
"और सकारात्मक दोनों ही अर्थों में अहंभाव को प्रकट करता है, लेकिन प्रस्तुत संचयन में इसके विविध आयामों से गुज़रा जा सकता है।",
"शकलदीप बाबू कहीं एक घंटे बाद वापस लौटे। घर में प्रवेश करने के पूर्व उन्होंने ओसारे के कमरे में झाँका, कोई भी मुवक्किल नहीं था और मुहर्रिर साहब भी ग़ायब थे। वह भीतर चले गए और अपने कमरे के सामने ओसारे में खड़े होकर बंदर की भाँति आँखे मलका-मलकाकर उन्होंने",
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गर्व के विषय पर बेहतरीन कवित्त | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/proud/kavitt | [
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गर्व के विषय पर बेहतरीन निबंध | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/proud/essay | [
"और सकारात्मक दोनों ही अर्थों में अहंभाव को प्रकट करता है, लेकिन प्रस्तुत संचयन में इसके विविध आयामों से गुज़रा जा सकता है।",
"साहित्य और विज्ञान दोनों मानो विद्या के दो नेत्र हैं। जो साहित्य में प्रवीण है और विज्ञान नहीं जानता अथवा विज्ञान में पूर्ण पंडित है और साहित्य नहीं जानता, वह मानो एक आँख का काना है और जो दोनों में से एक भी नहीं जानता, वह अंधा है। विद्या 'विद्' धातु",
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हम अन्नदाता कहेंगे तुम्हें - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/proud/hum-anndata-kahenge-tumhein-chandreshwar-kavita?sort= | [
"पुरानी बात है",
"हम कवच-कुंडल के साथ ही",
"उतरवा लेते हैं",
"वक्ष की त्वचा भी",
"कभी आवश्यक हुआ तो",
"माँग लेते हैं",
"तुमसे तुम्हारी",
"देह की समूची हड्डियाँ",
"अपने सुरक्षित वर्तमान और",
"भविष्य के लिए",
"हत्या भी ज़ायज है",
"हमारे लिए",
"किसी निर्दोष की",
"हम अन्नदाता कहेंगे तुम्हें",
"और तुम आत्महत्या के लिए",
"होगे विवश",
"हमें गर्व है",
"अपनी पुरानी बातों पर",
"अगर सीखना ही है तो",
"तुम सीखो हमसे",
"केवल गर्व करना!",
"purani baat hai",
"hum kavach kunDal ke saath hi",
"utarva lete hain",
"vaksh ki tvacha bhi",
"kabhi avashyak hua to",
"maang lete hain",
"tumse tumhari",
"deh ki samuchi haDDiyan",
"apne surakshit vartaman aur",
"bhavishya ke liye",
"hatya bhi zayaj hai",
"hamare liye",
"kisi nirdosh ki",
"hum anndata kahenge tumhen",
"aur tum atmahatya ke liye",
"hoge vivash",
"hamein garv hai",
"apni purani baton par",
"agar sikhna hi hai to",
"tum sikho hamse",
"keval garv karna!",
"purani baat hai",
"hum kavach kunDal ke saath hi",
"utarva lete hain",
"vaksh ki tvacha bhi",
"kabhi avashyak hua to",
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"tumse tumhari",
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बीज - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/proud/beej-madanlal-daga-kavita?sort= | [
"तुम मुझे पददलित कर",
"ख़ुश तो हो गए।",
"लेकिन यह भूल गए",
"कि मैं पर्स से गिरा हुआ पैसा नहीं हूँ",
"जो मिट्टी में दबकर चुप हो ले",
"आतंक से सहम न बोले!",
"मैं सूखा हुआ हूँ",
"तो भी बीज हूँ",
"जो मिट्टी में दबकर भी",
"सिर उठाता है",
"अंकुर बन धरती पर",
"लहलहाता है!",
"tum mujhe padadlit kar",
"khush to ho gaye.",
"lekin ye bhool gaye",
"ki main",
"purse se gira hua paisa nahin hoon",
"jo mitti mein dab kar chup ho le",
"atank se saham na bole!",
"main sukha hua hoon",
"to bhi beej hoon",
"jo mitti mein dab kar bhi",
"sir uthata hai",
"ankur ban dharti par",
"lahlahata hai!",
"tum mujhe padadlit kar",
"khush to ho gaye.",
"lekin ye bhool gaye",
"ki main",
"purse se gira hua paisa nahin hoon",
"jo mitti mein dab kar chup ho le",
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गर्व - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/proud/garw-mona-gulati-kavita?sort= | [
"अच्छा है : शब्दों को कबूतरों की तरह पाल लेने की तुम्हारी",
"क्षमता है : पर मात्र",
"शब्दों को :",
"नदी नालों और झरनों के",
"सतत प्रवाह को नहीं!",
"मुझे",
"बार-बार",
"अपने ख़ुशक़िस्मत होने का",
"गर्व होता है।",
"achchha hai ha shabdon ko kabutron ki tarah pal lene ki tumhari",
"kshamata hai ha par matr",
"shabdon ko ha",
"nadi nalon aur jharnon ke",
"satat prawah ko nahin!",
"mujhe",
"bar bar",
"apne khushqismat hone ka",
"garw hota hai",
"achchha hai ha shabdon ko kabutron ki tarah pal lene ki tumhari",
"kshamata hai ha par matr",
"shabdon ko ha",
"nadi nalon aur jharnon ke",
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"mujhe",
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गर्व के विषय पर बेहतरीन काव्य खंड | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/proud | [
"और सकारात्मक दोनों ही अर्थों में अहंभाव को प्रकट करता है, लेकिन प्रस्तुत संचयन में इसके विविध आयामों से गुज़रा जा सकता है।",
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/kavita | [
"ऋतु-परिवर्तन और जमा अनुभूतियों-अनुभवों पर लिखी कविताएँ का संग्रह।",
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन कवित्त | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/kavitt | [
"ऋतु-परिवर्तन और जमा अनुभूतियों-अनुभवों पर लिखी कविताएँ का संग्रह।",
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन दोहा | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/dohe | [
"ऋतु-परिवर्तन और जमा अनुभूतियों-अनुभवों पर लिखी कविताएँ का संग्रह।",
"बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।",
"देखि दुपहरी जेठ की, छाँहौं चाहति छाँह ॥",
"बिहारी ने प्रत्यक्ष रूप से तो जेठ की दुपहरी की भयंकरता का वर्णन किया है, किंतु एक दूसरा संकेत भी है। जेठ की भीषण दुपहरी को देखकर एक नायिका नायक से कह रही है कि तुम इस भयानक गर्मी में कहीं मत जाओ। घर में ही रहो। वह कहती है कि देखो न, जेठ के महीने में इतनी गर्मी पड़ रही है कि छाया भी छाया चाह रही है अर्थात् छाया कहीं है ही नहीं मानों वह भी अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए किसी दूसरी छाया के नीचे छिप जाना चाहती है। यह एकांत-मिलन का सुंदर अवसर है। ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलता है। नायिका यह कहकर व्यंजित कर रही है कि इस अवसर का सदुपयोग कर लो अन्यथा पश्चाताप होगा।",
"गर्मी की ऋतु में सखी",
"मेघ घिरे आकाश।",
"घर में बैठा खोजता",
"कहाँ गया उल्लास॥",
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन पद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/pad | [
"ऋतु-परिवर्तन और जमा अनुभूतियों-अनुभवों पर लिखी कविताएँ का संग्रह।",
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन उद्धरण | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/quotes | [
"ऋतु-परिवर्तन और जमा अनुभूतियों-अनुभवों पर लिखी कविताएँ का संग्रह।",
"वसंत के समीर और ग्रीष्म की लू में कितना अंतर है। एक सुखद और प्राण-पोषक, दूसरी अग्निमय और विनाशिनी। प्रेम वसंत समीर है, द्वेष ग्रीष्म की लू।",
"गर्मियों की शामें प्रायः हवाहीन हुआ करती हैं।",
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन कड़वक | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/kadvak | [
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन बरवै | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/barvai | [
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन अनुवाद | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/anuwad | [
"ऋतु-परिवर्तन और जमा अनुभूतियों-अनुभवों पर लिखी कविताएँ का संग्रह।",
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन नवगीत | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/navgiit | [
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन सवैया | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/savaiya | [
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ग्रीष्म के विषय पर बेहतरीन ब्लॉग | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/tags/summer/blog | [
"ऋतु-परिवर्तन और जमा अनुभूतियों-अनुभवों पर लिखी कविताएँ का संग्रह।",
"मृग-मरीचिका\r\n\r\nबरस दर बरस घुमक्कड़ी मेरे ख़ून में घुलती जा रही है। ये यायावर सड़कें मुझसे दोस्ती पर फ़ख़्र करती हैं। इन ख़ाली सड़कों पर कोई मेरा इंतज़ार करता रहता है। उसका कोई भविष्य नहीं है और न ही अतीत!",
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यादगोई - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/yadgoi-sudhanshu-firdaus-kavita?sort= | [
"ग्रीष्म की दिलफरेब रात्रि",
"क्या होड़ लगाकर खिले हैं अमलतास और मधुमालती",
"रंग और सुगंध आज ढो रहे हैं तुम्हारी यादों की पालकी",
"इस सड़क से इतनी बार गुज़रा हूँ कि आहट को पहचानने लगे हैं कुत्ते",
"मुझे अपने इतने क़रीब देखकर भी इनमें कोई हरकत कोई सुगबुगाहट नहीं",
"ग़ालिबन अब इन्हें भी मुझसे कोई तवक़्क़ो कोई राह नहीं रही",
"बहुत सघन है तुम्हारी प्रतीक्षा",
"मेरा विकल्प आवारगी",
"greeshm ki dilaphreb ratri",
"kya hoD lagakar khile hain amaltas aur madhumalati",
"rang aur sugandh aaj Dho rahe hain tumhari yadon ki palaki",
"is saDak se itni bar guzra hoon ki aahat ko pahchanne lage hain kutte",
"mujhe apne itne qarib dekhkar bhi inmen koi harkat koi sugbugahat nahin",
"ghaliban ab inhen bhi mujhse koi tawaqqoa koi rah nahin rahi",
"bahut saghan hai tumhari pratiksha",
"mera wikalp awargi",
"greeshm ki dilaphreb ratri",
"kya hoD lagakar khile hain amaltas aur madhumalati",
"rang aur sugandh aaj Dho rahe hain tumhari yadon ki palaki",
"is saDak se itni bar guzra hoon ki aahat ko pahchanne lage hain kutte",
"mujhe apne itne qarib dekhkar bhi inmen koi harkat koi sugbugahat nahin",
"ghaliban ab inhen bhi mujhse koi tawaqqoa koi rah nahin rahi",
"bahut saghan hai tumhari pratiksha",
"mera wikalp awargi",
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"जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।",
"Devoted to the preservation & promotion of Urdu",
"Urdu poetry, urdu shayari, shayari in urdu, poetry in urdu",
"A Trilingual Treasure of Urdu Words",
"Online Treasure of Sufi and Sant Poetry",
"The best way to learn Urdu online",
"Best of Urdu & Hindi Books",
"हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश"
] |
गर्मियों की शाम - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/garmiyon-ki-sham-vishnu-khare-kavita?sort= | [
"लालटेन की कमज़ोर रोशनी की तरह फैल जाती है सिमटने से पहले धूप",
"पुलिस लाइन का मैदान क़वायद के बाद सूना हो चुका होता है",
"कचहरी के पीछे सूखी घास में वह सिर्फ़ हवा की सरसराहट है",
"पीछे छूट गए दो-तीन ही जानवर लौटते आ रहे होते हैं",
"बिना बैलगाड़ी वाले गोंड इतवारी बाज़ार से सौदे की गठरी उठाए",
"परतला या चंदनगाँव की तरफ़ वापस जा रहे हैं",
"यही समय है जब एक मास्टर का, एक वकील का, एक डॉक्टर का और",
"एक साइकिलवाले सेठ का",
"चार लड़के दसवीं क्लास के निकलते हैं घूमने के लिए",
"डॉक्टर और सेठ के लड़कों के साथ एक-एक बहन भी है लगभग हमउम्र",
"चारों पिता आश्वस्त हैं अपने लड़कों के दोस्तों से",
"इन लड़कों की आँखों में डर है, अदब है, पढ़ने में अच्छे हैं",
"बड़ों के घर में आते ही वे अच्छा अब जाते हैं कहकर चले जाते हैं",
"और क्या चाहिए",
"चार चौदह-पंद्रह बरस के लड़के और दो इससे कुछ ही छोटी लड़कियाँ",
"बाज़ारवाली सड़क से गुज़रकर टाउन हॉल होते हुए",
"कचहरी के पीछे निकल आए हैं जहाँ शहर ख़त्म हो चुका है",
"दाईं ओर जेल का बग़ीचा है जिसके छोर पर वह पेड़ है",
"जिसके जब फूल आते हैं तो इतने बैंगनी होते हैं",
"कि वह सबसे अजब ही लगता है और सामने",
"वह चक्करदार सड़क है जो वापस उन्हें छोड़ देगी शहर में",
"कभी छहों साथ-साथ और कभी दो लड़कियाँ और चार लड़के",
"चले जा रहे हैं अभी उनमें बातचीत हो रही थी",
"स्कूल खुलने की नागपुर जाने की उपन्यास पढ़ना चाहिए या नहीं की",
"प्रकाश टॉक़ीज में लगने वाली पिक्चर की",
"आदमी को आगे चलकर क्या बनना चाहिए उसकी",
"थोड़ा अँधेरा हो चला है सड़क पर एक-दो छायाएँ ही और हैं",
"अकारण हँसने सामने पत्थर फेंकने या दौड़ जाने पिछड़ जाने का अंत हो",
"गया है",
"जो दो-तीन गानों के मुखड़े उठाए गए थे",
"वे बाद की संकोचशील पंक्तियों को गुनगुनाकर",
"या आगे याद नहीं आ रहा है कहकर छोड़ दिए गए",
"और अब एक उल्लास के बाद की चुप्पी है जिसमें",
"रेत पर कैन्वस के जूतों की श् श् भर है",
"गर्मियाँ अभी आई ही हैं और हवा मे बड़ी मेंहदी के फूलों की गंध है",
"जो सिविल लाइन के बँगलों के हरे घेरों से उठ रही है",
"कि अचानक जेल के बग़ीचे से एक कोयल बोलती है",
"और लड़कियाँ कह उठती हैं अहा कोयल कितना अच्छा बोली",
"इस गर्मी में पहली बार सुना",
"कोयल की बोली पर आम सहमति है",
"लेकिन एक लड़का चुप है और उससे पूछा जाता है",
"मुझे नहीं अच्छा लगता कोयल का इस वक़्त बोलना वह कहता है",
"अजीब हो तुम लड़के कहते हैं",
"एक लड़की पूछती है अँधेरे में ग़ौर से उसे देखने की कोशिश करती हुई",
"क्यों अच्छा नहीं लगता",
"पता नहीं क्यों—वह जैसे अपने-आपको समझाता हुआ कहता है—",
"सब कुछ इतना चुपचाप है शाम हो चुकी है",
"फिर क्या ज़रूरत है कि कोयल भी परेशान करे—",
"बहुत ज़्यादा और बेमतलब कह दिया यह जानकर चुप हो जाता है",
"अब सब हो गए हैं बहुत ख़ामोश उसके कहे से",
"अलग-अलग सोच में पड़े हुए और धुँधला-सा कुछ देखते हुए",
"और वह अपने संकोच में डूबा हुआ विशेषतः लड़कियों की ओर देखते",
"झिझकता",
"टॉर्च जलाने लायक़ अँधेरा हो चुका है एक पीला हिलता डुलता वृत्त अब",
"उनके सामने है जिसकी दिशा में वे चले जा रहे हैं वापस",
"एक साथ लेकिन हर एक कुछ अलग-अलग",
"एकाध साइकिल की खिन्न घंटी पर रास्ता देते हुए",
"कल फिर लौंटेगे और उसके बाद भी और पूरी गर्मियों भर",
"वही रास्ता होगा वही लालटेन की धूप वाला मैदान",
"वही इक्का-दुक्का लौटते हुए जानवर और गोंड",
"वही बैंगनी पेड़ और हवा में बड़ी मेंहदी के फूलों की गंध",
"उसके बाद पूरी गर्मियों भले ही कोयल उस समय नहीं बोलेगी",
"पर रोज़ उस जगह पहुँचकर वे उसे सुनेंगे अलग-अलग",
"और सिर नीचा या दूसरी तरफ़ किए देखेंगे कि क्या उन्होंने भी सुना",
"उनके घूमने में चुप्पी फैलती जाएगी सोख़्ते पर स्याही की तरह",
"धीरे-धीरे एक-एक करके उन्हें शाम को दूसरे काम याद आने लगेंगे",
"गर्मियाँ भी बीत जाएँगी इसलिए घूमने जाने का स्वाभाविक अंत हो जाएगा",
"उनकी आवाज़ें बदल जाएँगी जिसमें वे अपनी पसंद के गाने अकेले में गाएँगे",
"कभी-कभी अकेले निकलेंगे घूमने और अचानक दूसरे के मिलने पर ही साथ",
"ख़ामोश लौटेंगे",
"न देखते हुए कि लड़कियाँ उनकी बहनें या दोस्तों की बहनें",
"उनके आने पर दरवाज़े से सिमट कर पीछे हट जाती हैं",
"शाम को सरसराते मैदान पर जैसे गर्मी की आख़िरी दिनों की पीली धूप।",
"lalten ki kamzor roshni ki tarah phail jati hai simatne se pahle dhoop",
"police line ka maidan qawayad ke baad suna ho chuka hota hai",
"kachahri ke pichhe sukhi ghas mein wo sirf hawa ki sarsarahat hai",
"pichhe chhoot gaye do teen hi janwar lautte aa rahe hote hain",
"bina bailagaड़i wale gonD itwari bazar se saude ki gathri uthaye",
"paratla ya chandanganw ki taraf wapas ja rahe hain",
"yahi samay hai jab ek master ka, ek wakil ka, ek doctor ka aur",
"ek saikilwale seth ka",
"chaar laDke daswin class ke nikalte hain ghumne ke liye",
"doctor aur seth ke laDkon ke sath ek ek bahan bhi hai lagbhag hamumr",
"charon pita ashwast hain apne laDkon ke doston se",
"in laDkon ki ankhon mein Dar hai, adab hai, paDhne mein achchhe hain",
"baDon ke ghar mein aate hi we achchha ab jate hain kahkar chale jate hain",
"aur kya chahiye",
"chaar chaudah pandrah baras ke laDke aur do isse kuch hi chhoti laDkiyan",
"bazarwali saDak se guzarkar town hall hote hue",
"kachahri ke pichhe nikal aaye hain jahan shahr khatm ho chuka hai",
"dain or jel ka baghicha hai jiske chhor par wo peD hai",
"jiske jab phool aate hain to itne baingni hote hain",
"ki wo sabse ajab hi lagta hai aur samne",
"wo chakkardar saDak hai jo wapas unhen chhoD degi shahr mein",
"kabhi chhahon sath sath aur kabhi do laDkiyan aur chaar laDke",
"chale ja rahe hain abhi unmen batachit ho rahi thi",
"school khulne ki nagpur jane ki upanyas paDhna chahiye ya nahin ki",
"parkash tauqij mein lagne wali picture ki",
"adami ko aage chalkar kya banna chahiye uski",
"thoDa andhera ho chala hai saDak par ek do chhayayen hi aur hain",
"akaran hansne samne patthar phenkne ya dauD jane pichhaD jane ka ant ho",
"gaya hai",
"jo do teen ganon ke mukhDe uthaye gaye the",
"we baad ki sankochshil panktiyon ko gunagunakar",
"ya aage yaad nahin aa raha hai kahkar chhoD diye gaye",
"aur ab ek ullas ke baad ki chuppi hai jismen",
"ret par kainwas ke juton ki bhar hai",
"garmiyan abhi i hi hain aur hawa mae baDi meinhdi ke phulon ki gandh hai",
"jo siwil line ke bangalon ke hare gheron se uth rahi hai",
"ki achanak jel ke baghiche se ek koel bolti hai",
"aur laDkiyan kah uthti hain aha koel kitna achchha boli",
"is garmi mein pahli bar suna",
"koel ki boli par aam sahamti hai",
"lekin ek laDka chup hai aur usse puchha jata hai",
"mujhe nahin achchha lagta koel ka is waqt bolna wo kahta hai",
"ajib ho tum laDke kahte hain",
"ek laDki puchhti hai andhere mein ghaur se use dekhne ki koshish karti hui",
"kyon achchha nahin lagta",
"pata nahin kyon—wah jaise apne aapko samjhata hua kahta hai—",
"sab kuch itna chupchap hai sham ho chuki hai",
"phir kya zarurat hai ki koel bhi pareshan kare—",
"bahut zyada aur bematlab kah diya ye jankar chup ho jata hai",
"ab sab ho gaye hain bahut khamosh uske kahe se",
"alag alag soch mein paDe hue aur dhundhla sa kuch dekhte hue",
"aur wo apne sankoch mein Duba hua wisheshatः laDakiyon ki or dekhte",
"jhijhakta",
"torch jalane layaq andhera ho chuka hai ek pila hilta Dulta writt ab",
"unke samne hai jiski disha mein we chale ja rahe hain wapas",
"ek sath lekin har ek kuch alag alag",
"ekadh cycle ki khinn ghanti par rasta dete hue",
"kal phir launtege aur uske baad bhi aur puri garmiyon bhar",
"wahi rasta hoga wahi lalten ki dhoop wala maidan",
"wahi ikka dukka lautte hue janwar aur gonD",
"wahi baingni peD aur hawa mein baDi meinhdi ke phulon ki gandh",
"uske baad puri garmiyon bhale hi koel us samay nahin bolegi",
"par roz us jagah pahunchakar we use sunenge alag alag",
"aur sir nicha ya dusri taraf kiye dekhenge ki kya unhonne bhi suna",
"unke ghumne mein chuppi phailti jayegi sokhte par syahi ki tarah",
"dhire dhire ek ek karke unhen sham ko dusre kaam yaad aane lagenge",
"garmiyan bhi beet jayengi isliye ghumne jane ka swabhawik ant ho jayega",
"unki awazen badal jayengi jismen we apni pasand ke gane akele mein gayenge",
"kabhi kabhi akele niklenge ghumne aur achanak dusre ke milne par hi sath",
"khamosh lautenge",
"na dekhte hue ki laDkiyan unki bahnen ya doston ki bahnen",
"unke aane par darwaze se simat kar pichhe hat jati hain",
"sham ko sarsarate maidan par jaise garmi ki akhiri dinon ki pili dhoop",
"lalten ki kamzor roshni ki tarah phail jati hai simatne se pahle dhoop",
"police line ka maidan qawayad ke baad suna ho chuka hota hai",
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"aur laDkiyan kah uthti hain aha koel kitna achchha boli",
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जेठ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/jeth-samridhi-manchanda-kavita?sort= | [
"क्या पता? शायद जेठ की",
"इस मंथर दुपहर में",
"तुम किसी रूईदार ख़्वाब में",
"देख रही हो मुझे",
"जब मैं",
"ठोस पसीने में",
"दबा जा रहा हूँ",
"तुम्हारा ख़्वाब",
"मेरे होने की सबसे महफ़ूज़ जगह है",
"वहाँ फूल लगते हैं मुझ पर",
"ज़ंग नहीं लगता जान!",
"kya pata? shayad jeth ki",
"is manthar duphar mein",
"tum kisi ruidar khwab mein",
"dekh rahi ho mujhe",
"jab main",
"thos pasine mein",
"daba ja raha hoon",
"tumhara khwab",
"mere hone ki sabse mahfuz jagah hai",
"wahan phool lagte hain mujh par",
"zang nahin lagta jaan!",
"kya pata? shayad jeth ki",
"is manthar duphar mein",
"tum kisi ruidar khwab mein",
"dekh rahi ho mujhe",
"jab main",
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जेठ का एक दिन - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/jeth-ka-ek-din-nilay-upadhyay-kavita?sort= | [
"मेरा गला सूख गया है",
"पसीने से भर गई है—देह",
"उमस उगल रही है धरती",
"साँस में",
"लपटें समा जाती हैं हर बार",
"मुझे ज़ोरों से लगी है प्यास",
"पेड़ की जड़ों में होगा जल",
"कुएँ की तलों में",
"कौन...",
"कौन देगा मुझे एक घूँट पानी",
"मेरे पास कोई स्रोत नहीं है",
"रेत के",
"किस खोलक में छुप",
"बचा लूँ यह जीवन तरबूज़-सा",
"देहरी के जौ",
"मिट्टी के घड़े के नीचे अँकुरते हैं",
"गाय का दूध खूँटे के बल कूदते हैं बछड़े",
"तुम्हीं कहो",
"कहो मेरे मालिक",
"कहाँ हैं मेरे जीवन की जड़ें",
"मेरे हिस्से की नमी।",
"mera gala sookh gaya hai",
"pasine se bhar gai hai—deh",
"umas ugal rahi hai dharti",
"sans mein",
"lapten sama jati hain har bar",
"mujhe zoron se lagi hai pyas",
"peD ki jaDon mein hoga jal",
"kuen ki talon mein",
"kaun",
"kaun dega mujhe ek ghoont pani",
"mere pas koi srot nahin hai",
"ret ke",
"kis kholak mein chhup",
"bacha loon ye jiwan tarbuz sa",
"dehri ke jau",
"mitti ke ghaDe ke niche ankurate hain",
"gay ka doodh khunte ke bal kudte hain bachhDe",
"tumhin kaho",
"kaho mere malik",
"kahan hain mere jiwan ki jaDen",
"mere hisse ki nami",
"mera gala sookh gaya hai",
"pasine se bhar gai hai—deh",
"umas ugal rahi hai dharti",
"sans mein",
"lapten sama jati hain har bar",
"mujhe zoron se lagi hai pyas",
"peD ki jaDon mein hoga jal",
"kuen ki talon mein",
"kaun",
"kaun dega mujhe ek ghoont pani",
"mere pas koi srot nahin hai",
"ret ke",
"kis kholak mein chhup",
"bacha loon ye jiwan tarbuz sa",
"dehri ke jau",
"mitti ke ghaDe ke niche ankurate hain",
"gay ka doodh khunte ke bal kudte hain bachhDe",
"tumhin kaho",
"kaho mere malik",
"kahan hain mere jiwan ki jaDen",
"mere hisse ki nami",
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बहुत कष्ट है चैत में - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/bahut-kasht-hai-chait-mein-jyoti-shobha-kavita-19?sort= | [
"दुःख समान पके कटहल पर चढ़ी अग्निशिखा की लत",
"छाया कर रही है",
"तुम्हारी धोती पर फैलाई",
"अधसूखी बड़ियों को चुग रहे हैं पाखी मिलकर",
"जैसे साधारण मनुष्य चुगता है",
"कम भाव में मिलता राशन",
"और देखता है एक गुड़ की ढेली जैसा स्वप्न",
"तुम्हारे पत्र लाता है डाकिया",
"और चाय माँगता है मुझसे",
"उन्हीं पत्रों को जला कर बनाती हूँ चाय",
"पंक्तिबद्ध शब्द ब्रह्म बनते जाते हैं",
"धूम्र से जलती दृष्टि नहीं देखता डाकिया उस समय",
"वह देखता है",
"गिलास पर तिरता",
"ढाक के पुष्पों जैसा अरुणिम रंग",
"गंध व्याप जाती है रसोई में",
"जैसे रोग व्याप गया है हृदय में",
"अनेक क्लेश है इस ऋतु में",
"खुले किवाड़ को ठेल कर",
"तकिए पर आ रहे हैं नीम के विवर्ण पत्ते",
"झाड़ती हूँ तो स्मृति भी झड़ जाती है",
"ताल में जाती हूँ",
"स्नान का जल तन की शीतलता हरता है",
"मन का दोष छोड़ देता है",
"जैसे काटे जा चुके चंदन वृक्षों के अतिरिक्त",
"सुंदरबन में छूटे हुए हैं और भी वृक्ष",
"मानती नहीं मैं फिर भी",
"रोज़ माँग निकालती हूँ केशों के बीच",
"मानो यही सड़क है",
"जो खंखड़ बस में जिनावर जैसे जीव लिए तुम्हारे नगर जाती है",
"सोचती हूँ",
"बर्तन, पलंग, अलमारी और तुम्हारी प्रिय पीतल की बाल्टी बेचकर",
"आ जाऊँ इस बार नगर में",
"किंतु आलंब नहीं भाषा का",
"खोया हुआ बक्सा क्या कह कर खोजूँगी",
"जबकि धूप ही धूप होगी तुम्हारे निकट",
"धूल ही धूल होगी",
"बहुत कष्ट होते हैं नगर के चैत में",
"छाया में चुगी गई बड़ियों से अधिक ही होते हैं।",
"duःkh saman pake kathal par chaDhi agnishikha ki lat",
"chhaya kar rahi hai",
"tumhari dhoti par phailai",
"adhsukhi baDiyon ko chug rahe hain pakhi milkar",
"jaise sadharan manushya chugta hai",
"kam bhaw mein milta rashan",
"aur dekhta hai ek guD ki Dheli jaisa swapn",
"tumhare patr lata hai Dakiya",
"aur chay mangta hai mujhse",
"unhin patron ko jala kar banati hoon chay",
"panktibaddh shabd brahm bante jate hain",
"dhoomr se jalti drishti nahin dekhta Dakiya us samay",
"wo dekhta hai",
"gilas par tirta",
"Dhak ke pushpon jaisa arunim rang",
"gandh wyap jati hai rasoi mein",
"jaise rog wyap gaya hai hirdai mein",
"anek klesh hai is ritu mein",
"khule kiwaD ko thel kar",
"takiye par aa rahe hain neem ke wiwarn patte",
"jhaDti hoon to smriti bhi jhaD jati hai",
"tal mein jati hoon",
"snan ka jal tan ki shitalta harta hai",
"man ka dosh chhoD deta hai",
"jaise kate ja chuke chandan wrikshon ke atirikt",
"sundarban mein chhute hue hain aur bhi wriksh",
"manti nahin main phir bhi",
"roz mang nikalti hoon keshon ke beech",
"mano yahi saDak hai",
"jo khankhaD bus mein jinawar jaise jeew liye tumhare nagar jati hai",
"sochti hoon",
"bartan, palang, almari aur tumhari priy pital ki balti bechkar",
"a jaun is bar nagar mein",
"kintu alamb nahin bhasha ka",
"khoya hua baksa kya kah kar khojungi",
"jabki dhoop hi dhoop hogi tumhare nikat",
"dhool hi dhool hogi",
"bahut kasht hote hain nagar ke chait mein",
"chhaya mein chugi gai baDiyon se adhik hi hote hain",
"duःkh saman pake kathal par chaDhi agnishikha ki lat",
"chhaya kar rahi hai",
"tumhari dhoti par phailai",
"adhsukhi baDiyon ko chug rahe hain pakhi milkar",
"jaise sadharan manushya chugta hai",
"kam bhaw mein milta rashan",
"aur dekhta hai ek guD ki Dheli jaisa swapn",
"tumhare patr lata hai Dakiya",
"aur chay mangta hai mujhse",
"unhin patron ko jala kar banati hoon chay",
"panktibaddh shabd brahm bante jate hain",
"dhoomr se jalti drishti nahin dekhta Dakiya us samay",
"wo dekhta hai",
"gilas par tirta",
"Dhak ke pushpon jaisa arunim rang",
"gandh wyap jati hai rasoi mein",
"jaise rog wyap gaya hai hirdai mein",
"anek klesh hai is ritu mein",
"khule kiwaD ko thel kar",
"takiye par aa rahe hain neem ke wiwarn patte",
"jhaDti hoon to smriti bhi jhaD jati hai",
"tal mein jati hoon",
"snan ka jal tan ki shitalta harta hai",
"man ka dosh chhoD deta hai",
"jaise kate ja chuke chandan wrikshon ke atirikt",
"sundarban mein chhute hue hain aur bhi wriksh",
"manti nahin main phir bhi",
"roz mang nikalti hoon keshon ke beech",
"mano yahi saDak hai",
"jo khankhaD bus mein jinawar jaise jeew liye tumhare nagar jati hai",
"sochti hoon",
"bartan, palang, almari aur tumhari priy pital ki balti bechkar",
"a jaun is bar nagar mein",
"kintu alamb nahin bhasha ka",
"khoya hua baksa kya kah kar khojungi",
"jabki dhoop hi dhoop hogi tumhare nikat",
"dhool hi dhool hogi",
"bahut kasht hote hain nagar ke chait mein",
"chhaya mein chugi gai baDiyon se adhik hi hote hain",
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दोपहर - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/dopahar-vinod-das-kavita?sort= | [
"जून की दोपहर",
"बैलगाड़ी पर चढ़कर आ रही है",
"चीज़ों को तपाती हुई",
"ख़ून को ललकारती हई",
"एक औरत उठती है",
"और गेहूँ के स्वच्छ और भीगे दानों को",
"फैला देती है घर की छत पर",
"दाने की खाल हो रही है सख़्त",
"और उसकी चमक",
"एक आदमी की भूख को पार कर रही है",
"बहरहाल यह दोपहर है",
"तपती ज़मीन पर नंगे पैर चल रहे हैं",
"डाकिया साइकिल की घंटी बजाता",
"चिट्ठियाँ बाँट रहा है",
"बोझ सिर पर लादे एक औरत",
"ललाट से पसीना पोंछ रही है",
"धूल भरी हवा हमारे फेफड़ों में",
"अपना घर बना रही है",
"दोपहर सेंध लगाकर",
"अब पहुँच रही है वहाँ",
"दुनिया से बेख़बर जहाँ",
"एक आदमी ऊँघ रहा है",
"वह उसकी ऊँघ नष्ट करना चाहती है",
"संसार की तमाम लिजलिजी वस्तुओं के ख़िलाफ़",
"विचारों को धीरे-धीरे पकाते हुए",
"वह दुनिया को बनाना चाहती है",
"अपनी ही तरह पारदर्शी",
"गरम और चमकीली",
"दोपहर उतर रही है",
"हमारे पसीने से माँगती हुई",
"पूरे दिन का हिसाब",
"june ki dopahar",
"bailagaड़i par chaDhkar aa rahi hai",
"chizon ko tapati hui",
"khoon ko lalkarti hai",
"ek aurat uthti hai",
"aur gehun ke swachchh aur bhige danon ko",
"phaila deti hai ghar ki chhat par",
"dane ki khaal ho rahi hai sakht",
"aur uski chamak",
"ek adami ki bhookh ko par kar rahi hai",
"baharhal ye dopahar hai",
"tapti zamin par nange pair chal rahe hain",
"Dakiya cycle ki ghanti bajata",
"chitthiyan bant raha hai",
"bojh sir par lade ek aurat",
"lalat se pasina ponchh rahi hai",
"dhool bhari hawa hamare phephDon mein",
"apna ghar bana rahi hai",
"dopahar sendh lagakar",
"ab pahunch rahi hai wahan",
"duniya se beख़bar jahan",
"ek adami ungh raha hai",
"wo uski ungh nasht karna chahti hai",
"sansar ki tamam lijaliji wastuon ke khilaf",
"wicharon ko dhire dhire pakate hue",
"wo duniya ko banana chahti hai",
"apni hi tarah paradarshi",
"garam aur chamkili",
"dopahar utar rahi hai",
"hamare pasine se mangti hui",
"pure din ka hisab",
"june ki dopahar",
"bailagaड़i par chaDhkar aa rahi hai",
"chizon ko tapati hui",
"khoon ko lalkarti hai",
"ek aurat uthti hai",
"aur gehun ke swachchh aur bhige danon ko",
"phaila deti hai ghar ki chhat par",
"dane ki khaal ho rahi hai sakht",
"aur uski chamak",
"ek adami ki bhookh ko par kar rahi hai",
"baharhal ye dopahar hai",
"tapti zamin par nange pair chal rahe hain",
"Dakiya cycle ki ghanti bajata",
"chitthiyan bant raha hai",
"bojh sir par lade ek aurat",
"lalat se pasina ponchh rahi hai",
"dhool bhari hawa hamare phephDon mein",
"apna ghar bana rahi hai",
"dopahar sendh lagakar",
"ab pahunch rahi hai wahan",
"duniya se beख़bar jahan",
"ek adami ungh raha hai",
"wo uski ungh nasht karna chahti hai",
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"wo duniya ko banana chahti hai",
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गर्मियों की अगवानी - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/garmiyon-ki-agwani-r-chetankranti-kavita?sort= | [
"गर्मियाँ आ रही हैं",
"सूरज फिर दफ़्तर के मालिक की तरह",
"सिर पर आ बैठेगा",
"और दिन",
"नौकर की यंत्रणा की तरह",
"लंबे और लंबे होते चले जाएँगे",
"रिक्शेवाले ख़ून थूकेंगे और भगवान को",
"याद करेंगे",
"और पढ़े-लिखे एक बार फिर कहेंगे कि",
"ओज़ोन की छत में छेद हो गया है",
"शहर में पानी की क़िल्लत हो जाएगी",
"कूड़े के ढेरों से भाप उठेगी",
"और सारी बिजली वे सोख लेंगे",
"जिनके हित में विज्ञान ने सबसे ज़्यादा",
"काम किया है",
"हर चीज़ पर्दे से बाहर आ जाएगी",
"हर चीज़ नंगी खड़ी सामने दिखेगी",
"ईर्ष्या और नफ़रत और हवस और गर्मी से",
"सुलगती आँखें",
"हर कहीं पड़ेंगी। चमकती धूप में कंकड़-कंकड़",
"साफ़ दिखेगा",
"कोहरे में मुँह छिपाकर चुप हो रहने का सुख",
"अब न किसी धातु को मिलेगा न मिट्टी को",
"पिघले तारकोल की सड़क पर",
"चप्पलें चिपकेंगी",
"और तलुओं को ठोंकेगी",
"कि पैदल चलने वाले तुझ पर थू",
"झुग्गियों की प्लास्टिक दुनिया पिघलकर",
"फिर बह जाएगी",
"फिर शास्त्री भवन का ध्यान सिंह उनसे",
"पूछेगा—अब आया मज़ा, दिल्ली को",
"ख़ाला का घर समझा है!",
"घनी पुरानी बस्तियों के बाशिंदे",
"फिर महीनों-महीनों",
"एक संपूर्ण संभोग को तरस जाएँगे",
"छतों के मेले में अकेले लेटे हुए वे करवटें",
"बदलेंगे और रेती फाँकेंगे",
"पंखे आग मथेंगे",
"किराएदार देशवासी",
"मालिक मकान की आँख बचाकर",
"छह-छह बार नहाएँगे",
"और भीगे बिस्तर पर लेट",
"पहाड़े गाएँगे",
"हाँ, लड़कियों को यह मौसम शायद ख़ूब",
"रुचे",
"खड़ी धूप में वे हवा के हल्के गाने गाएँगी",
"और आग के समंदर में उघड़े बदन तैर जाएँगी",
"बाक़ी, ऐ सर्द लोहे के बंद आततायी, इन",
"गर्मियों में देखना",
"ये गर्मियाँ शायद उन्हें भी भाएँगी",
"जिनके पास इस साल सर्दियों में",
"न छत थी न कंबल",
"और सरकार ने स्कूलों की इमारतें इसलिए",
"बंद रखीं",
"कि वे जगह-जगह थूकेंगे",
"अपना ज़ख़्मी गू गुलाबों पर पोत देंगे",
"पर वे गर्मियों में भी मरेंगे जैसे सर्दियों में मरे थे",
"इसीलिए इनके बारे में सोचना",
"अब मैं धीरे-धीरे बंद ही कर रहा हूँ",
"इन्हीं को देखते रहें",
"तो आप हर मौसम को गाली दें!",
"garmiyan aa rahi hain",
"suraj phir daftar ke malik ki tarah",
"sir par aa baithega",
"aur din",
"naukar ki yantrna ki tarah",
"lambe aur lambe hote chale jayenge",
"rikshewale khoon thukenge aur bhagwan ko",
"yaad karenge",
"aur paDhe likhe ek bar phir kahenge ki",
"ozon ki chhat mein chhed ho gaya hai",
"shahr mein pani ki qillat ho jayegi",
"kuDe ke Dheron se bhap uthegi",
"aur sari bijli we sokh lenge",
"jinke hit mein wigyan ne sabse zyada",
"kaam kiya hai",
"har cheez parde se bahar aa jayegi",
"har cheez nangi khaDi samne dikhegi",
"irshya aur nafar aur hawas aur garmi se",
"sulagti ankhen",
"har kahin paDengi chamakti dhoop mein kankaD kankaD",
"saf dikhega",
"kohre mein munh chhipakar chup ho rahne ka sukh",
"ab na kisi dhatu ko milega na mitti ko",
"pighle tarkol ki saDak par",
"chapplen chipkengi",
"aur taluon ko thonkegi",
"ki paidal chalne wale tujh par thu",
"jhuggiyon ki plastic duniya pighalkar",
"phir bah jayegi",
"phir shastari bhawan ka dhyan sinh unse",
"puchhega—ab aaya maza, dilli ko",
"khala ka ghar samjha hai!",
"ghani purani bastiyon ke bashinde",
"phir mahinon mahinon",
"ek sampurn sambhog ko taras jayenge",
"chhaton ke mele mein akele lete hue we karawten",
"badlenge aur reti phankenge",
"pankhe aag mathenge",
"kirayedar deshawasi",
"malik makan ki ankh bachakar",
"chhah chhah bar nahayenge",
"aur bhige bistar par let",
"pahaDe gayenge",
"han, laDakiyon ko ye mausam shayad khoob",
"ruche",
"khaDi dhoop mein we hawa ke halke gane gayengi",
"aur aag ke samandar mein ughDe badan tair jayengi",
"baqi, ai sard lohe ke band atatayi, in",
"garmiyon mein dekhana",
"ye garmiyan shayad unhen bhi bhayengi",
"jinke pas is sal sardiyon mein",
"na chhat thi na kambal",
"aur sarkar ne skulon ki imarten isliye",
"band rakhin",
"ki we jagah jagah thukenge",
"apna zakhmi gu gulabon par pot denge",
"par we garmiyon mein bhi marenge jaise sardiyon mein mare the",
"isiliye inke bare mein sochna",
"ab main dhire dhire band hi kar raha hoon",
"inhin ko dekhte rahen",
"to aap har mausam ko gali den!",
"garmiyan aa rahi hain",
"suraj phir daftar ke malik ki tarah",
"sir par aa baithega",
"aur din",
"naukar ki yantrna ki tarah",
"lambe aur lambe hote chale jayenge",
"rikshewale khoon thukenge aur bhagwan ko",
"yaad karenge",
"aur paDhe likhe ek bar phir kahenge ki",
"ozon ki chhat mein chhed ho gaya hai",
"shahr mein pani ki qillat ho jayegi",
"kuDe ke Dheron se bhap uthegi",
"aur sari bijli we sokh lenge",
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"kaam kiya hai",
"har cheez parde se bahar aa jayegi",
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"sulagti ankhen",
"har kahin paDengi chamakti dhoop mein kankaD kankaD",
"saf dikhega",
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"pighle tarkol ki saDak par",
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"phir bah jayegi",
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"ek sampurn sambhog ko taras jayenge",
"chhaton ke mele mein akele lete hue we karawten",
"badlenge aur reti phankenge",
"pankhe aag mathenge",
"kirayedar deshawasi",
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"chhah chhah bar nahayenge",
"aur bhige bistar par let",
"pahaDe gayenge",
"han, laDakiyon ko ye mausam shayad khoob",
"ruche",
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"aur aag ke samandar mein ughDe badan tair jayengi",
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जेठ - कविता | हिन्दवी | https://www.hindwi.org/kavita/summer/jeth-sudhir-ranjan-singh-kavita?sort= | [
"ताप धूप का",
"पिघल कर हवा में",
"घुल गया",
"पेड़ के मर्म को",
"हवा ने",
"छू लिया",
"गिरा एक पत्ता",
"और पेड़ की छाया को",
"चूम लिया।",
"tap dhoop ka",
"pighal kar hawa mein",
"ghul gaya",
"peD ke marm ko",
"hawa ne",
"chhu liya",
"gira ek patta",
"aur peD ki chhaya ko",
"choom liya",
"tap dhoop ka",
"pighal kar hawa mein",
"ghul gaya",
"peD ke marm ko",
"hawa ne",
"chhu liya",
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