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ghar-men-thaa-kyaa-ki-tiraa-gam-use-gaarat-kartaa-mirza-ghalib-ghazals
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है
yaad-hai-shaadii-men-bhii-hangaama-e-yaa-rab-mujhe-mirza-ghalib-ghazals
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे सुब्हा-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेर-ए-लब मुझे है कुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वा-बस्ता दर रहन-ए-सुख़न था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद ख़ाना-ए-मकतब मुझे या रब इस आशुफ़्तगी की दाद किस से चाहिए रश्क आसाइश पे है ज़िंदानियों की अब मुझे तब्अ' है मुश्ताक़-ए-लज़्ज़त-हा-ए-हसरत क्या करूँ आरज़ू से है शिकस्त-ए-आरज़ू मतलब मुझे दिल लगा कर आप भी 'ग़ालिब' मुझी से हो गए इश्क़ से आते थे माने मीरज़ा साहब मुझे
main-unhen-chheduun-aur-kuchh-na-kahen-mirza-ghalib-ghazals
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें चल निकलते जो मय पिए होते क़हर हो या बला हो जो कुछ हो काश के तुम मिरे लिए होते मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था दिल भी या-रब कई दिए होते आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब' कोई दिन और भी जिए होते
khamoshiyon-men-tamaashaa-adaa-nikaltii-hai-mirza-ghalib-ghazals
ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है निगाह दिल से तिरे सुर्मा-सा निकलती है फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम सबा जो ग़ुंचे के पर्दे में जा निकलती है न पूछ सीना-ए-आशिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह कि ज़ख्म-ए-रौज़न-ए-दर से हवा निकलती है ब-रंग-ए-शीशा हूँ यक-गोश-ए-दिल-ए-ख़ाली कभी परी मिरी ख़ल्वत में आ निकलती है
dahr-men-naqsh-e-vafaa-vajh-e-tasallii-na-huaa-mirza-ghalib-ghazals
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ है ये वो लफ़्ज़ कि शर्मिंदा-ए-मअ'नी न हुआ सब्ज़ा-ए-ख़त से तिरा काकुल-ए-सरकश न दबा ये ज़मुर्रद भी हरीफ़-ए-दम-ए-अफ़ई न हुआ मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ दिल गुज़रगाह-ए-ख़याल-ए-मय-ओ-साग़र ही सही गर नफ़स जादा-ए-सर-मंज़िल-ए-तक़्वी न हुआ हूँ तिरे वा'दा न करने में भी राज़ी कि कभी गोश मिन्नत-कश-ए-गुलबाँग-ए-तसल्ली न हुआ किस से महरूमी-ए-क़िस्मत की शिकायत कीजे हम ने चाहा था कि मर जाएँ सो वो भी न हुआ मर गया सदमा-ए-यक-जुम्बिश-ए-लब से 'ग़ालिब' ना-तवानी से हरीफ़-ए-दम-ए-ईसी न हुआ न हुई हम से रक़म हैरत-ए-ख़त्त-ए-रुख़-ए-यार सफ़्हा-ए-आइना जौलाँ-गह-ए-तूती न हुआ वुसअत-ए-रहमत-ए-हक़ देख कि बख़्शा जावे मुझ सा काफ़िर कि जो ममनून-ए-मआसी न हुआ
main-aur-bazm-e-mai-se-yuun-tishna-kaam-aauun-mirza-ghalib-ghazals
मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ गर मैं ने की थी तौबा साक़ी को क्या हुआ था है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था दरमांदगी में 'ग़ालिब' कुछ बन पड़े तो जानूँ जब रिश्ता बे-गिरह था नाख़ुन गिरह-कुशा था
rahiye-ab-aisii-jagah-chal-kar-jahaan-koii-na-ho-mirza-ghalib-ghazals
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए कोई हम-साया न हो और पासबाँ कोई न हो पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो
ug-rahaa-hai-dar-o-diivaar-pe-sabza-gaalib-mirza-ghalib-ghazals
उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब' हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है
piinas-men-guzarte-hain-jo-kuuche-se-vo-mere-mirza-ghalib-ghazals
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वो मेरे कंधा भी कहारों को बदलने नहीं देते
gair-len-mahfil-men-bose-jaam-ke-mirza-ghalib-ghazals
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम धोए धब्बे जामा-ए-एहराम के दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर देखिए कब दिन फिरें हम्माम के इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के
hujuum-e-gam-se-yaan-tak-sar-niguunii-mujh-ko-haasil-hai-mirza-ghalib-ghazals
हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है कि तार-ए-दामन ओ तार-ए-नज़र में फ़र्क़ मुश्किल है रफ़ू-ए-ज़ख्म से मतलब है लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न की समझियो मत कि पास-ए-दर्द से दीवाना ग़ाफ़िल है वो गुल जिस गुल्सिताँ में जल्वा-फ़रमाई करे 'ग़ालिब' चटकना ग़ुंचा-ए-गुल का सदा-ए-ख़ंदा-ए-दिल है हुआ है माने-ए-आशिक़-नवाज़ी नाज़-ए-ख़ुद-बीनी तकल्लुफ़-बर-तरफ़ आईना-ए-तमईज़ हाएल है ब-सैल-ए-अश्क लख़्त-ए-दिल है दामन-गीर मिज़्गाँ का ग़रीक़-ए-बहर जूया-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-साहिल है बहा है याँ तक अश्कों में ग़ुबा-ए-कुल्फ़त-ए-ख़ातिर कि चश्म-ए-तर में हर इक पारा-ए-दिल पा-ए-दर-गिल है निकलती है तपिश में बिस्मिलों की बर्क़ की शोख़ी ग़रज़ अब तक ख़याल-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार क़ातिल है
ham-se-khul-jaao-ba-vaqt-e-mai-parastii-ek-din-mirza-ghalib-ghazals
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन वर्ना हम छेड़ेंगे रख कर उज़्र-ए-मस्ती एक दिन ग़र्रा-ए-औज-ए-बिना-ए-आलम-ए-इमकाँ न हो इस बुलंदी के नसीबों में है पस्ती एक दिन क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन नग़्मा-हा-ए-ग़म को भी ऐ दिल ग़नीमत जानिए बे-सदा हो जाएगा ये साज़-ए-हस्ती एक दिन धौल-धप्पा उस सरापा-नाज़ का शेवा नहीं हम ही कर बैठे थे 'ग़ालिब' पेश-दस्ती एक दिन
jis-jaa-nasiim-shaanaa-kash-e-zulf-e-yaar-hai-mirza-ghalib-ghazals
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है नाफ़ा दिमाग़-ए-आहु-ए-दश्त-ए-ततार है किस का सुराग़ जल्वा है हैरत को ऐ ख़ुदा आईना फ़र्श-ए-शश-जहत-ए-इंतिज़ार है है ज़र्रा ज़र्रा तंगी-ए-जा से ग़ुबार-ए-शौक़ गर दाम ये है वुसअ'त-ए-सहरा शिकार है दिल मुद्दई' ओ दीदा बना मुद्दा-अलैह नज़्ज़ारे का मुक़द्दमा फिर रू-ब-कार है छिड़के है शबनम आईना-ए-बर्ग-ए-गुल पर आब ऐ अंदलीब वक़्त-ए-वदा-ए-बहार है पच आ पड़ी है वादा-ए-दिल-दार की मुझे वो आए या न आए पे याँ इंतिज़ार है बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर हर ज़र्रा के नक़ाब में दिल बे-क़रार है ऐ अंदलीब यक कफ़-ए-ख़स बहर-ए-आशयाँ तूफ़ान-ए-आमद आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार है दिल मत गँवा ख़बर न सही सैर ही सही ऐ बे-दिमाग़ आईना तिमसाल-दार है ग़फ़लत कफ़ील-ए-उम्र ओ 'असद' ज़ामिन-ए-नशात ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तुझे क्या इंतिज़ार है
junuun-tohmat-kash-e-taskiin-na-ho-gar-shaadmaanii-kii-mirza-ghalib-ghazals
जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की नमक-पाश-ए-ख़राश-ए-दिल है लज़्ज़त ज़िंदगानी की कशाकश-हा-ए-हस्ती से करे क्या सई-ए-आज़ादी हुई ज़ंजीर मौज-ए-आब को फ़ुर्सत रवानी की पस-अज़-मुर्दन भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़्लाँ है शरार-ए-संग ने तुर्बत पे मेरी गुल-फ़िशानी की
nafas-na-anjuman-e-aarzuu-se-baahar-khiinch-mirza-ghalib-ghazals
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब-रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से जौहर खींच तुझे बहाना-ए-राहत है इंतिज़ार ऐ दिल किया है किस ने इशारा कि नाज़-ए-बिस्तर खींच तिरी तरफ़ है ब-हसरत नज़ारा-ए-नर्गिस ब-कोरी-ए-दिल-ओ-चश्म-ए-रक़ीब साग़र खींच ब-नीम-ग़म्ज़ा अदा कर हक़-ए-वदीअत-ए-नाज़ नियाम-ए-पर्दा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर से ख़ंजर खींच मिरे क़दह में है सहबा-ए-आतिश-ए-पिन्हाँ ब-रू-ए-सुफ़रा कबाब-ए-दिल-ए-समंदर खींच न कह कि ताक़त-ए-रुस्वाई-ए-विसाल नहीं अगर यही अरक़-ए-फ़ित्ना है मुकर्रर खींच जुनून-ए-आइना मुश्ताक़-ए-यक-तमाशा है हमारे सफ़्हे पे बाल-ए-परी से मिस्तर खींच ख़ुमार-ए-मिन्नत-ए-साक़ी अगर यही है 'असद' दिल-ए-गुदाख़्ता के मय-कदे में साग़र खींच
kyaa-tang-ham-sitam-zadagaan-kaa-jahaan-hai-mirza-ghalib-ghazals
क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है जिस में कि एक बैज़ा-ए-मोर आसमान है है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से परतव से आफ़्ताब के ज़र्रे में जान है हालाँकि है ये सीली-ए-ख़ारा से लाला रंग ग़ाफ़िल को मेरे शीशे पे मय का गुमान है की उस ने गर्म सीना-ए-अहल-ए-हवस में जा आवे न क्यूँ पसंद कि ठंडा मकान है क्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसा नहीं दिया बस चुप रहो हमारे भी मुँह में ज़बान है बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में फ़रमाँ-रवा-ए-किश्वर-ए-हिन्दुस्तान है हस्ती का ए'तिबार भी ग़म ने मिटा दिया किस से कहूँ कि दाग़ जिगर का निशान है है बारे ए'तिमाद-ए-वफ़ा-दारी इस क़दर 'ग़ालिब' हम इस में ख़ुश हैं कि ना-मेहरबान है देहली के रहने वालो 'असद' को सताओ मत बे-चारा चंद रोज़ का याँ मेहमान है
gulshan-ko-tirii-sohbat-az-bas-ki-khush-aaii-hai-mirza-ghalib-ghazals
गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है हर ग़ुंचे का गुल होना आग़ोश-कुशाई है वाँ कुंगुर-ए-इस्तिग़्ना हर-दम है बुलंदी पर याँ नाले को और उल्टा दावा-ए-रसाई है अज़-बस-कि सिखाता है ग़म ज़ब्त के अंदाज़े जो दाग़ नज़र आया इक चश्म-नुमाई है
zikr-meraa-ba-badii-bhii-use-manzuur-nahiin-mirza-ghalib-ghazals
ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं ग़ैर की बात बिगड़ जाए तो कुछ दूर नहीं वादा-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ है ख़ुशा ताले-ए-शौक़ मुज़्दा-ए-क़त्ल मुक़द्दर है जो मज़कूर नहीं शाहिद-ए-हस्ती-ए-मुतलक़ की कमर है आलम लोग कहते हैं कि है पर हमें मंज़ूर नहीं क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-मंसूर नहीं हसरत ऐ ज़ौक़-ए-ख़राबी कि वो ताक़त न रही इश्क़-ए-पुर-अरबदा की गूँ तन-ए-रंजूर नहीं मैं जो कहता हूँ कि हम लेंगे क़यामत में तुम्हें किस रऊनत से वो कहते हैं कि हम हूर नहीं ज़ुल्म कर ज़ुल्म अगर लुत्फ़ दरेग़ आता हो तू तग़ाफ़ुल में किसी रंग से मअज़ूर नहीं साफ़ दुर्दी-कश-ए-पैमाना-ए-जम हैं हम लोग वाए वो बादा कि अफ़्शुर्दा-ए-अंगूर नहीं हूँ ज़ुहूरी के मुक़ाबिल में ख़िफ़ाई 'ग़ालिब' मेरे दावे पे ये हुज्जत है कि मशहूर नहीं
havas-ko-hai-nashaat-e-kaar-kyaa-kyaa-mirza-ghalib-ghazals
हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या न हो मरना तो जीने का मज़ा क्या तजाहुल-पेशगी से मुद्दआ क्या कहाँ तक ऐ सरापा नाज़ क्या क्या नवाज़िश-हा-ए-बेजा देखता हूँ शिकायत-हा-ए-रंगीं का गिला क्या निगाह-ए-बे-महाबा चाहता हूँ तग़ाफ़ुल-हा-ए-तमकीं-आज़मा क्या फ़रोग़-ए-शोला-ए-ख़स यक-नफ़स है हवस को पास-ए-नामूस-ए-वफ़ा क्या नफ़स मौज-ए-मुहीत-ए-बे-ख़ुदी है तग़ाफ़ुल-हा-ए-साक़ी का गिला क्या दिमाग़-ए-इत्र-ए-पैराहन नहीं है ग़म-ए-आवारगी-हा-ए-सबा क्या दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर हम उस के हैं हमारा पूछना क्या मुहाबा क्या है मैं ज़ामिन इधर देख शहीदान-ए-निगह का ख़ूँ-बहा क्या सुन ऐ ग़ारत-गर-ए-जिंस-ए-वफ़ा सुन शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की सदा क्या किया किस ने जिगर-दारी का दावा शकीब-ए-ख़ातिर-ए-आशिक़ भला क्या ये क़ातिल वादा-ए-सब्र-आज़मा क्यूँ ये काफ़िर फ़ित्ना-ए-ताक़त-रुबा क्या बला-ए-जाँ है 'ग़ालिब' उस की हर बात इबारत क्या इशारत क्या अदा क्या
kare-hai-baada-tire-lab-se-kasb-e-rang-e-farog-mirza-ghalib-ghazals
करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़ ख़त-ए-पियाला सरासर निगाह-ए-गुल-चीं है कभी तो इस दिल-ए-शोरीदा की भी दाद मिले कि एक उम्र से हसरत-परस्त-ए-बालीं है बजा है गर न सुने नाला-हा-ए-बुलबुल-ए-ज़ार कि गोश-ए-गुल नम-ए-शबनम से पमबा-आगीं है 'असद' है नज़'अ में चल बेवफ़ा बरा-ए-ख़ुदा मक़ाम-ए-तर्क-ए-हिजाब ओ विदा-ए-तम्कीं है
na-leve-gar-khas-e-jauhar-taraavat-sabza-e-khat-se-mirza-ghalib-ghazals
न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से लगाए ख़ाना-ए-आईना में रू-ए-निगार आतिश फ़रोग़-ए-हुस्न से होती है हल्ल-ए-मुश्किल-ए-आशिक़ न निकले शम्अ' के पा से निकाले गर न ख़ार आतिश शरर है रंग बअ'द इज़हार-ए-ताब-ए-जल्वा-ए-तम्कीं करे है संग पर ख़ुर्शीद आब-ए-रू-ए-कार आतिश पनावे बे-गुदाज़-ए-मोम रब्त-ए-पैकर-आराई निकाले क्या निहाल-ए-शम्अ बे-तुख़्म-ए-शरार आतिश ख़याल-ए-दूद था सर-जोश-ए-साैदा-ए-ग़लत-फ़हमी अगर रखती न ख़ाकिस्तर-नशीनी का ग़ुबार आतिश हवा-ए-पर-फ़िशानी बर्क़-ए-ख़िर्मन-हा-ए-ख़ातिर है ब-बाल-ए-शोला-ए-बेताब है परवाना-ज़ार आतिश नहीं बर्क़-ओ-शरर जुज़ वहशत-ए-ज़ब्त-ए-तपीदन-हा बिला गर्दान-ए-बे-परवा ख़रामी-हा-ए-यार आतिश धुएँ से आग के इक अब्र-ए-दरिया-बार हो पैदा 'असद' हैदर-परस्तों से अगर होवे दो-चार आतिश
huzuur-e-shaah-men-ahl-e-sukhan-kii-aazmaaish-hai-mirza-ghalib-ghazals
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है चमन में ख़ुश-नवायान-ए-चमन की आज़माइश है क़द ओ गेसू में क़ैस ओ कोहकन की आज़माइश है जहाँ हम हैं वहाँ दार-ओ-रसन की आज़माइश है करेंगे कोहकन के हौसले का इम्तिहान आख़िर अभी उस ख़स्ता के नेरवे तन की आज़माइश है नसीम-ए-मिस्र को क्या पीर-ए-कनआँ' की हवा-ख़्वाही उसे यूसुफ़ की बू-ए-पैरहन की आज़माइश है वो आया बज़्म में देखो न कहियो फिर कि ग़ाफ़िल थे शकेब-ओ-सब्र-ए-अहल-ए-अंजुमन की आज़माइश है रहे दिल ही में तीर अच्छा जिगर के पार हो बेहतर ग़रज़ शुस्त-ए-बुत-ए-नावक-फ़गन की आज़माइश है नहीं कुछ सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे में गीराई वफ़ादारी में शैख़ ओ बरहमन की आज़माइश है पड़ा रह ऐ दिल-ए-वाबस्ता बेताबी से क्या हासिल मगर फिर ताब-ए-ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की आज़माइश है रग-ओ-पय में जब उतरे ज़हर-ए-ग़म तब देखिए क्या हो अभी तो तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन की आज़माइश है वो आवेंगे मिरे घर वा'दा कैसा देखना 'ग़ालिब' नए फ़ित्नों में अब चर्ख़-ए-कुहन की आज़माइश है
ham-par-jafaa-se-tark-e-vafaa-kaa-gumaan-nahiin-mirza-ghalib-ghazals
हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं इक छेड़ है वगरना मुराद इम्तिहाँ नहीं किस मुँह से शुक्र कीजिए इस लुत्फ़-ए-ख़ास का पुर्सिश है और पा-ए-सुख़न दरमियाँ नहीं हम को सितम अज़ीज़ सितमगर को हम अज़ीज़ ना-मेहरबाँ नहीं है अगर मेहरबाँ नहीं बोसा नहीं न दीजिए दुश्नाम ही सही आख़िर ज़बाँ तो रखते हो तुम गर दहाँ नहीं हर-चंद जाँ-गुदाज़ी-ए-क़हर-ओ-इताब है हर-चंद पुश्त-ए-गर्मी-ए-ताब-ओ-तवाँ नहीं जाँ मुतरिब-ए-तराना-ए-हल-मिम-मज़ीद है लब पर्दा-संज-ए-ज़मज़मा-ए-अल-अमाँ नहीं ख़ंजर से चीर सीना अगर दिल न हो दो-नीम दिल में छुरी चुभो मिज़ा गर ख़ूँ-चकाँ नहीं है नंग-ए-सीना दिल अगर आतिश-कदा न हो है आर-ए-दिल नफ़स अगर आज़र-फ़िशाँ नहीं नुक़साँ नहीं जुनूँ में बला से हो घर ख़राब सौ गज़ ज़मीं के बदले बयाबाँ गिराँ नहीं कहते हो क्या लिखा है तिरी सरनविश्त में गोया जबीं पे सजदा-ए-बुत का निशाँ नहीं पाता हूँ उस से दाद कुछ अपने कलाम की रूहुल-क़ुदुस अगरचे मिरा हम-ज़बाँ नहीं जाँ है बहा-ए-बोसा वले क्यूँ कहे अभी 'ग़ालिब' को जानता है कि वो नीम-जाँ नहीं जिस जा कि पा-ए-सैल-ए-बला दरमियाँ नहीं दीवानगाँ को वाँ हवस-ए-ख़ानमाँ नहीं गुल ग़ुन्चग़ी में ग़र्क़ा-ए-दरिया-ए-रंग है ऐ आगही फ़रेब-ए-तमाशा कहाँ नहीं किस जुर्म से है चश्म तुझे हसरत क़ुबूल बर्ग-ए-हिना मगर मिज़ा-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ नहीं हर रंग-ए-गर्दिश आइना ईजाद-ए-दर्द है अश्क-ए-सहाब जुज़ ब-विदा-ए-ख़िज़ाँ नहीं जुज़ इज्ज़ क्या करूँ ब-तमन्ना-ए-बे-ख़ुदी ताक़त हरीफ़-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ नहीं इबरत से पूछ दर्द-ए-परेशानी-ए-निगाह ये गर्द-ए-वहम जुज़ बसर-ए-इम्तिहाँ नहीं बर्क़-ए-बजान-ए-हौसला आतिश-फ़गन 'असद' ऐ दिल-फ़सुर्दा ताक़त-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नहीं
pae-nazr-e-karam-tohfa-hai-sharm-e-naa-rasaaii-kaa-mirza-ghalib-ghazals
पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का ब-खूँ-ग़ल्तीदा-ए-सद-रंग दा'वा पारसाई का न हो हुस्न-ए-तमाशा-दोस्त रुस्वा बेवफ़ाई का ब-मोहर-ए-सद-नज़र साबित है दा'वा पारसाई का ज़कात-ए-हुस्न दे ऐ जल्वा-ए-बीनिश कि मेहर-आसा चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हो कासा गदाई का न मारा जान कर बे-जुर्म ग़ाफ़िल तेरी गर्दन पर रहा मानिंद-ए-ख़ून-ए-बे-गुनह हक़ आश्नाई का तमन्ना-ए-ज़बान महव-ए-सिपास-ए-बे-ज़बानी है मिटा जिस से तक़ाज़ा शिकवा-ए-बे-दस्त-ओ-पाई का वही इक बात है जो याँ नफ़स वाँ निकहत-ए-गुल है चमन का जल्वा बाइ'स है मिरी रंगीं-नवाई का दहान-ए-हर-बुत-ए-पैग़ारा-जू ज़ंजीर-ए-रुस्वाई अदम तक बेवफ़ा चर्चा है तेरी बेवफ़ाई का न दे नाले को इतना तूल 'ग़ालिब' मुख़्तसर लिख दे कि हसरत-संज हूँ अर्ज़-ए-सितम-हा-ए-जुदाई का जहाँ मिट जाए सई-ए-दीद ख़िज़्रआबाद-ए-आसाइश ब-जेब-ए-हर-निगह पिन्हाँ है हासिल रहनुमाई का ब-इज्ज़-आबाद वहम-ए-मुद्दआ तस्लीम-ए-शोख़ी है तग़ाफ़ुल को न कर मसरूफ़-ए-तम्कीं-आज़माई का 'असद' का क़िस्सा तूलानी है लेकिन मुख़्तसर ये है कि हसरत-कश रहा अर्ज़-ए-सितम-हा-ए-जुदाई का हवस गुस्ताख़ी-ए-आईना तकलीफ़-ए-नज़र-बाज़ी ब-जेब-ए-आरज़ू पिन्हाँ है हासिल दिलरुबाई का नज़र-बाज़ी तिलिस्म-ए-वहशत-आबाद-ए-परिस्ताँ है रहा बेगाना-ए-तासीर अफ़्सूँ आश्नाई का न पाया दर्दमंद-ए-दूरी-ए-यारान-ए-यक-दिल ने सवाद-ए-ख़त्त-ए-पेशानी से नुस्ख़ा मोम्याई का 'असद' ये इज्ज़-ओ-बे-सामानी-ए-फ़िरऔन-ए-तौअम है जिसे तू बंदगी कहता है दा'वा है ख़ुदाई का
gar-na-andoh-e-shab-e-furqat-bayaan-ho-jaaegaa-mirza-ghalib-ghazals
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा बे-तकल्लुफ़ दाग़-ए-मह मोहर-ए-दहाँ हो जाएगा ज़ोहरा गर ऐसा ही शाम-ए-हिज्र में होता है आब परतव-ए-महताब सैल-ए-ख़ानुमाँ हो जाएगा ले तो लूँ सोते में उस के पाँव का बोसा मगर ऐसी बातों से वो काफ़िर बद-गुमाँ हो जाएगा दिल को हम सर्फ-ए-वफ़ा समझे थे क्या मालूम था यानी ये पहले ही नज़्र-ए-इम्तिहाँ हो जाएगा सब के दिल में है जगह तेरी जो तू राज़ी हुआ मुझ पे गोया इक ज़माना मेहरबाँ हो जाएगा गर निगाह-ए-गर्म फ़रमाती रही तालीम-ए-ज़ब्त शोला ख़स में जैसे ख़ूँ रग में निहाँ हो जाएगा बाग़ में मुझ को न ले जा वर्ना मेरे हाल पर हर गुल-ए-तर एक चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ हो जाएगा वाए! गर मेरा तिरा इंसाफ़ महशर में न हो अब तलक तो ये तवक़्क़ो है कि वाँ हो जाएगा फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है 'असद' दोस्ती नादाँ की है जी का ज़ियाँ हो जाएगा
lataafat-be-kasaafat-jalva-paidaa-kar-nahiin-saktii-mirza-ghalib-ghazals
लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती चमन ज़ंगार है आईना-ए-बाद-ए-बहारी का हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया नहीं खुद्दारी-ए-साहिल जहाँ साक़ी हो तू बातिल है दा'वा होशियारी का बहार-ए-रंग-ए-ख़ून-ए-गुल है सामाँ अश्क-बारी का जुनून-ए-बर्क़ नश्तर है रग-ए-अब्र-ए-बहारी का बरा-ए-हल्ल-ए-मुश्किल हूँ ज़ि-पा उफ़्तादा-ए-हसरत बँधा है उक़्दा-ए-ख़ातिर से पैमाँ ख़ाकसारी का ब-वक़्त-ए-सर-निगूनी है तसव्वुर इंतिज़ारिस्ताँ निगह को आबलों से शग़्ल है अख़्तर-शुमारी का 'असद' साग़र-कश-ए-तस्लीम हो गर्दिश से गर्दूं की कि नंग-ए-फ़हम-ए-मस्ताँ है गिला बद-रोज़गारी का
biim-e-raqiib-se-nahiin-karte-vida-e-hosh-mirza-ghalib-ghazals
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश मजबूर याँ तलक हुए ऐ इख़्तियार हैफ़ जलता है दिल कि क्यूँ न हम इक बार जल गए ऐ ना-तमामी-ए-नफ़स-ए-शोला-बार हैफ़
vusat-e-sai-e-karam-dekh-ki-sar-taa-sar-e-khaak-mirza-ghalib-ghazals
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक गुज़रे है आबला-पा अब्र-ए-गुहर-बार हुनूज़ यक-क़लम काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा है सफ़्हा-ए-दश्त नक़्श-ए-पा में है तब-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार हुनूज़ दाग़-ए-अतफ़ाल है दीवाना ब-कोहसार हुनूज़ ख़ल्वत-ए-संग में है नाला तलब-गार हुनूज़ ख़ाना है सैल से ख़ू-कर्दा-ए-दीदार हुनूज़ दूरबीं दर-ज़दा है रख़्ना-ए-दीवार हुनूज़ आई यक-उम्र से मअज़ूर-ए-तमाशा नर्गिस चश्म-ए-शबनम में न टूटा मिज़ा-ए-ख़ार हुनूज़ क्यूँ हुआ था तरफ़-ए-आबला-ए-पा या-रब जादा है वा-शुदन-ए-पेचिश-ए-तूमार हुनूज़ हों ख़मोशी-ए-चमन हसरत-ए-दीदार 'असद' मिज़ा है शाना-कश-ए-तुर्रा-ए-गुफ़्तार हुनूज़
kyuun-jal-gayaa-na-taab-e-rukh-e-yaar-dekh-kar-mirza-ghalib-ghazals
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर आतिश-परस्त कहते हैं अहल-ए-जहाँ मुझे सरगर्म-ए-नाला-हा-ए-शरर-बार देख कर क्या आबरू-ए-इश्क़ जहाँ आम हो जफ़ा रुकता हूँ तुम को बे-सबब आज़ार देख कर आता है मेरे क़त्ल को पर जोश-ए-रश्क से मरता हूँ उस के हाथ में तलवार देख कर साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़ लरज़े है मौज-ए-मय तिरी रफ़्तार देख कर वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ हम को हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार देख कर बिक जाते हैं हम आप मता-ए-सुख़न के साथ लेकिन अयार-ए-तबअ-ए-ख़रीदार देख कर ज़ुन्नार बाँध सुब्हा-ए-सद-दाना तोड़ डाल रह-रौ चले है राह को हमवार देख कर इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर क्या बद-गुमाँ है मुझ से कि आईने में मिरे तूती का अक्स समझे है ज़ंगार देख कर गिरनी थी हम पे बर्क़-ए-तजल्ली न तूर पर देते हैं बादा ज़र्फ़-ए-क़दह-ख़्वार देख कर सर फोड़ना वो 'ग़ालिब'-ए-शोरीदा हाल का याद आ गया मुझे तिरी दीवार देख कर
tum-jaano-tum-ko-gair-se-jo-rasm-o-raah-ho-mirza-ghalib-ghazals
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो बचते नहीं मुवाख़ज़ा-ए-रोज़-ए-हश्र से क़ातिल अगर रक़ीब है तो तुम गवाह हो क्या वो भी बे-गुनह-कुश ओ हक़-ना-शनास हैं माना कि तुम बशर नहीं ख़ुर्शीद ओ माह हो उभरा हुआ नक़ाब में है उन के एक तार मरता हूँ मैं कि ये न किसी की निगाह हो जब मय-कदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद मस्जिद हो मदरसा हो कोई ख़ानक़ाह हो सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ़ सब दुरुस्त लेकिन ख़ुदा करे वो तिरा जल्वा-गाह हो 'ग़ालिब' भी गर न हो तो कुछ ऐसा ज़रर नहीं दुनिया हो या रब और मिरा बादशाह हो
ibn-e-maryam-huaa-kare-koii-mirza-ghalib-ghazals
इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई मेरे दुख की दवा करे कोई शरअ' ओ आईन पर मदार सही ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई चाल जैसे कड़ी कमान का तीर दिल में ऐसे के जा करे कोई बात पर वाँ ज़बान कटती है वो कहें और सुना करे कोई बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई न सुनो गर बुरा कहे कोई न कहो गर बुरा करे कोई रोक लो गर ग़लत चले कोई बख़्श दो गर ख़ता करे कोई कौन है जो नहीं है हाजत-मंद किस की हाजत रवा करे कोई क्या किया ख़िज़्र ने सिकंदर से अब किसे रहनुमा करे कोई जब तवक़्क़ो ही उठ गई 'ग़ालिब' क्यूँ किसी का गिला करे कोई
kahte-ho-na-denge-ham-dil-agar-padaa-paayaa-mirza-ghalib-ghazals
कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया दिल कहाँ कि गुम कीजे हम ने मुद्दआ' पाया इश्क़ से तबीअ'त ने ज़ीस्त का मज़ा पाया दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया दोस्त-दार-ए-दुश्मन है ए'तिमाद-ए-दिल मा'लूम आह बे-असर देखी नाला ना-रसा पाया सादगी ओ पुरकारी बे-ख़ुदी ओ हुश्यारी हुस्न को तग़ाफ़ुल में जुरअत-आज़मा पाया ग़ुंचा फिर लगा खिलने आज हम ने अपना दिल ख़ूँ किया हुआ देखा गुम किया हुआ पाया हाल-ए-दिल नहीं मा'लूम लेकिन इस क़दर या'नी हम ने बार-हा ढूँडा तुम ने बार-हा पाया शोर-ए-पंद-ए-नासेह ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का आप से कोई पूछे तुम ने क्या मज़ा पाया है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब हम ने दश्त-ए-इम्काँ को एक नक़्श-ए-पा पाया बे-दिमाग़-ए-ख़जलत हूँ रश्क-ए-इम्तिहाँ ता-कै एक बेकसी तुझ को आलम-आश्ना पाया ख़ाक-बाज़ी-ए-उम्मीद कार-ख़ाना-ए-तिफ़्ली यास को दो-आलम से लब-ब-ख़ंदा वा पाया क्यूँ न वहशत-ए-ग़ालिब बाज-ख़्वाह-ए-तस्कीं हो कुश्ता-ए-तग़ाफ़ुल को ख़स्म-ए-ख़ूँ-बहा पाया फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया शब नज़ारा-परवर था ख़्वाब में ख़याल उस का सुब्ह मौजा-ए-गुल को नक़्श-ए-बोरिया पाया जिस क़दर जिगर ख़ूँ हो कूचा दादन-ए-गुल है ज़ख्म-ए-तेग़-ए-क़ातिल को तुर्फ़ा दिल-कुशा पाया है मकीं की पा-दारी नाम-ए-साहिब-ए-ख़ाना हम से तेरे कूचे ने नक़्श-ए-मुद्दआ पाया ने 'असद' जफ़ा-साइल ने सितम जुनूँ-माइल तुझ को जिस क़दर ढूँडा उल्फ़त-आज़मा पाया
shab-ki-vo-majlis-faroz-e-khalvat-e-naamuus-thaa-mirza-ghalib-ghazals
शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था रिश्ता-ए-हर-शम'अ ख़ार-ए-किस्वत-ए-फ़ानूस था मशहद-ए-आशिक़ से कोसों तक जो उगती है हिना किस क़दर या-रब हलाक-ए-हसरत-ए-पा-बोस था हासिल-ए-उल्फ़त न देखा जुज़-शिकस्त-ए-आरज़ू दिल-ब-दिल पैवस्ता गोया यक लब-ए-अफ़्सोस था क्या कहूँ बीमारी-ए-ग़म की फ़राग़त का बयाँ जो कि खाया ख़ून-ए-दिल बे-मिन्नत-ए-कैमूस था
dard-se-mere-hai-tujh-ko-be-qaraarii-haae-haae-mirza-ghalib-ghazals
दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए तेरे दिल में गर न था आशोब-ए-ग़म का हौसला तू ने फिर क्यूँ की थी मेरी ग़म-गुसारी हाए हाए क्यूँ मिरी ग़म-ख़्वार्गी का तुझ को आया था ख़याल दुश्मनी अपनी थी मेरी दोस्त-दारी हाए हाए उम्र भर का तू ने पैमान-ए-वफ़ा बाँधा तो क्या उम्र को भी तो नहीं है पाएदारी हाए हाए ज़हर लगती है मुझे आब-ओ-हवा-ए-ज़िंदगी या'नी तुझ से थी इसे ना-साज़गारी हाए हाए गुल-फ़िशानी-हा-ए-नाज़-ए-जल्वा को क्या हो गया ख़ाक पर होती है तेरी लाला-कारी हाए हाए शर्म-ए-रुस्वाई से जा छुपना नक़ाब-ए-ख़ाक में ख़त्म है उल्फ़त की तुझ पर पर्दा-दारी हाए हाए ख़ाक में नामूस-ए-पैमान-ए-मोहब्बत मिल गई उठ गई दुनिया से राह-ओ-रस्म-ए-यारी हाए हाए हाथ ही तेग़-आज़मा का काम से जाता रहा दिल पे इक लगने न पाया ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए किस तरह काटे कोई शब-हा-ए-तार-ए-बर्शिगाल है नज़र ख़ू-कर्दा-ए-अख़्तर-शुमारी हाए हाए गोश महजूर-ए-पयाम ओ चश्म-ए-महरूम-ए-जमाल एक दिल तिस पर ये ना-उम्मीद-वारी हाए हाए इश्क़ ने पकड़ा न था 'ग़ालिब' अभी वहशत का रंग रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए
tagaaful-dost-huun-meraa-dimaag-e-ajz-aalii-hai-mirza-ghalib-ghazals
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है अगर पहलू-तही कीजे तो जा मेरी भी ख़ाली है रहा आबाद आलम अहल-ए-हिम्मत के न होने से भरे हैं जिस क़दर जाम-ओ-सुबू मय-ख़ाना ख़ाली है
be-e-tidaaliyon-se-subuk-sab-men-ham-hue-mirza-ghalib-ghazals
बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए जितने ज़ियादा हो गए उतने ही कम हुए पिन्हाँ था दाम सख़्त क़रीब आशियान के उड़ने न पाए थे कि गिरफ़्तार हम हुए हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है याँ तक मिटे कि आप हम अपनी क़सम हुए सख़्ती कशान-ए-इश्क़ की पूछे है क्या ख़बर वो लोग रफ़्ता रफ़्ता सरापा अलम हुए तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी कि दहर में तेरे सिवा भी हम पे बहुत से सितम हुए लिखते रहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ हर-चंद इस में हाथ हमारे क़लम हुए अल्लाह रे तेरी तुंदी-ए-ख़ू जिस के बीम से अजज़ा-ए-नाला दिल में मिरे रिज़्क़-ए-हम हुए अहल-ए-हवस की फ़त्ह है तर्क-ए-नबर्द-ए-इश्क़ जो पाँव उठ गए वही उन के अलम हुए नाले अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे जो वाँ न खिंच सके सो वो याँ आ के दम हुए छोड़ी 'असद' न हम ने गदाई में दिल-लगी साइल हुए तो आशिक़-ए-अहल-ए-करम हुए
gam-nahiin-hotaa-hai-aazaadon-ko-besh-az-yak-nafas-mirza-ghalib-ghazals
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स बर्क़ से करते हैं रौशन शम्-ए-मातम-ख़ाना हम महफ़िलें बरहम करे है गंजिंफ़ा-बाज़-ए-ख़याल हैं वरक़-गर्दानी-ए-नैरंग-ए-यक-बुत-ख़ाना हम बावजूद-ए-यक-जहाँ हंगामा पैदाई नहीं हैं चराग़ान-ए-शबिस्तान-ए-दिल-ए-परवाना हम ज़ोफ़ से है ने क़नाअत से ये तर्क-ए-जुस्तुजू हैं वबाल-ए-तकिया-गाह-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना हम दाइम-उल-हब्स इस में हैं लाखों तमन्नाएँ 'असद' जानते हैं सीना-ए-पुर-ख़ूँ को ज़िंदाँ-ख़ाना हम बस-कि हैं बद-मस्त-ए-ब-शिकन ब-शिकन-ए-मय-ख़ाना हम मू-ए-शीशा को समझते हैं ख़त-ए-पैमाना हम बस-कि हर-यक-मू-ए-ज़ुल्फ़-अफ़्शाँ से है तार-ए-शुआअ' पंजा-ए-ख़ुर्शीद को समझे हैं दस्त-ए-शाना हम मश्क़-ए-अज़-ख़ुद-रफ़्तगी से हैं ब-गुलज़ार-ए-ख़याल आश्ना ताबीर-ए-ख़्वाब-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना हम फ़र्त-ए-बे-ख़्वाबी से हैं शब-हा-ए-हिज्र-ए-यार में जूँ ज़बान-ए-शम्अ' दाग़-ए-गर्मी-ए-अफ़्साना हम शाम-ए-ग़म में सोज़-ए-इश्क़-ए-आतिश-ए-रुख़्सार से पुर-फ़शान-ए-सोख़्तन हैं सूरत-ए-परवाना हम हसरत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना याँ से समझा चाहिए दो-जहाँ हश्र-ए-ज़बान-ए-ख़ुश्क हैं जूँ शाना हम कश्ती-ए-आलम ब-तूफ़ान-ए-तग़ाफ़ुल दे कि हैं आलम-ए-आब-ए-गुदाज़-ए-जौहर-ए-अफ़्साना हम वहशत-ए-बे-रब्ती-ए-पेच-ओ-ख़म-ए-हस्ती न पूछ नंग-ए-बालीदन हैं जूँ मू-ए-सर-ए-दीवाना हम
tum-apne-shikve-kii-baaten-na-khod-khod-ke-puuchho-mirza-ghalib-ghazals
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है दिला ये दर्द-ओ-अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर न गिर्या-ए-सहरी है न आह-ए-नीम-शबी है नज़र ब-नक़्स-ए-गदायाँ कमाल-ए-बे-अदबी है कि ख़ार-ए-ख़ुश्क को भी दावा-ए-चमन-नसबी है हुआ विसाल से शौक़-ए-दिल-ए-हरीस ज़ियादा लब-ए-क़दह पे कफ़-ए-बादा जोश-ए-तिश्ना-लबी है ख़ुशा वो दिल कि सरापा तिलिस्म-ए-बे-ख़बरी हो जुनून ओ यास ओ अलम रिज़्क़-ए-मुद्दआ-तलबी है चमन में किस के ये बरहम हुइ है बज़्म-ए-तमाशा कि बर्ग बर्ग-ए-समन शीशा रेज़ा-ए-हलबी है इमाम-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन अमीर-ए-सूरत-ओ-मअनी 'अली' वली असदुल्लाह जानशीन-ए-नबी है
garm-e-fariyaad-rakhaa-shakl-e-nihaalii-ne-mujhe-mirza-ghalib-ghazals
गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे तब अमाँ हिज्र में दी बर्द-ए-लयाली ने मुझे निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम ले लिया मुझ से मिरी हिम्मत-ए-आली ने मुझे कसरत-आराइ-ए-वहदत है परस्तारी-ए-वहम कर दिया काफ़िर इन असनाम-ए-ख़याली ने मुझे हवस-ए-गुल के तसव्वुर में भी खटका न रहा अजब आराम दिया बे-पर-ओ-बाली ने मुझे ज़िंदगी में भी रहा ज़ौक़-ए-फ़ना का मारा नश्शा बख़्शा ग़ज़ब उस साग़र-ए-ख़ाली ने मुझे बस-कि थी फ़स्ल-ए-ख़िज़ान-ए-चमानिस्तान-ए-सुख़न रंग-ए-शोहरत न दिया ताज़ा-ख़याली ने मुझे जल्वा-ए-ख़ुर से फ़ना होती है शबनम 'ग़ालिब' खो दिया सतवत-ए-अस्मा-ए-जलाली ने मुझे
phir-huaa-vaqt-ki-ho-baal-kushaa-mauj-e-sharaab-mirza-ghalib-ghazals
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब दे बत-ए-मय को दिल-ओ-दस्त-ए-शना मौज-ए-शराब पूछ मत वज्ह-ए-सियह-मस्ती-ए-अरबाब-ए-चमन साया-ए-ताक में होती है हवा मौज-ए-शराब जो हुआ ग़र्क़ा-ए-मय बख़्त-ए-रसा रखता है सर से गुज़रे पे भी है बाल-ए-हुमा मौज-ए-शराब है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर मौज-ए-हस्ती को करे फ़ैज़-ए-हवा मौज-ए-शराब चार मौज उठती है तूफ़ान-ए-तरब से हर सू मौज-ए-गुल मौज-ए-शफ़क़ मौज-ए-सबा मौज-ए-शराब जिस क़दर रूह-ए-नबाती है जिगर तिश्ना-ए-नाज़ दे है तस्कीं ब-दम-ए-आब-ए-बक़ा मौज-ए-शराब बस-कि दौड़े है रग-ए-ताक में ख़ूँ हो हो कर शहपर-ए-रंग से है बाल-कुशा मौज-ए-शराब मौजा-ए-गुल से चराग़ाँ है गुज़र-गाह-ए-ख़याल है तसव्वुर में ज़ि-बस जल्वा-नुमा मौज-ए-शराब नश्शे के पर्दे में है महव-ए-तमाशा-ए-दिमाग़ बस-कि रखती है सर-ए-नश-ओ-नुमा मौज-ए-शराब एक आलम पे हैं तूफ़ानी-ए-कैफ़ियत-ए-फ़स्ल मौजा-ए-सब्ज़ा-ए-नौ-ख़ेज़ से ता मौज-ए-शराब शरह-ए-हंगामा-ए-हस्ती है ज़हे मौसम-ए-गुल रह-बर-ए-क़तरा-बा-दरिया है ख़ोशा मौज-ए-शराब होश उड़ते हैं मिरे जल्वा-ए-गुल देख 'असद' फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
kaabe-men-jaa-rahaa-to-na-do-taana-kyaa-kahen-mirza-ghalib-ghazals
काबे में जा रहा तो न दो ता'ना क्या कहें भूला हूँ हक़्क़-ए-सोहबत-ए-अहल-ए-कुनिश्त को ताअ'त में ता रहे न मय-ओ-अंगबीं की लाग दोज़ख़ में डाल दो कोई ले कर बहिश्त को हूँ मुन्हरिफ़ न क्यूँ रह-ओ-रस्म-ए-सवाब से टेढ़ा लगा है क़त क़लम-ए-सरनविश्त को 'ग़ालिब' कुछ अपनी सई से लहना नहीं मुझे ख़िर्मन जले अगर न मलख़ खाए किश्त को
bas-ki-dushvaar-hai-har-kaam-kaa-aasaan-honaa-mirza-ghalib-ghazals
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना गिर्या चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की दर ओ दीवार से टपके है बयाबाँ होना वा-ए-दीवानगी-ए-शौक़ कि हर दम मुझ को आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना जल्वा अज़-बस-कि तक़ाज़ा-ए-निगह करता है जौहर-ए-आइना भी चाहे है मिज़्गाँ होना इशरत-ए-क़त्ल-गह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उर्यां होना ले गए ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-नशात तू हो और आप ब-सद-रंग-ए-गुलिस्ताँ होना इशरत-ए-पारा-ए-दिल ज़ख़्म-ए-तमन्ना खाना लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिगर ग़र्क़-ए-नमक-दाँ होना की मिरे क़त्ल के बा'द उस ने जफ़ा से तौबा हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशेमाँ होना हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब' जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना
vaan-us-ko-haul-e-dil-hai-to-yaan-main-huun-sharm-saar-mirza-ghalib-ghazals
वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार या'नी ये मेरी आह की तासीर से न हो अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीर से न हो
aaiina-dekh-apnaa-saa-munh-le-ke-rah-gae-mirza-ghalib-ghazals
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था क़ासिद को अपने हाथ से गर्दन न मारिए उस की ख़ता नहीं है ये मेरा क़ुसूर था ज़ोफ़-ए-जुनूँ को वक़्त-ए-तपिश दर भी दूर था इक घर में मुख़्तसर बयाबाँ ज़रूर था ऐ वाए-ग़फ़लत-ए-निगह-ए-शौक़ वर्ना याँ हर पारा संग लख़्त-ए-दिल-ए-कोह-ए-तूर था दर्स-ए-तपिश है बर्क़ को अब जिस के नाम से वो दिल है ये कि जिस का तख़ल्लुस सुबूर था हर रंग में जला 'असद'-ए-फ़ित्ना-इन्तिज़ार परवाना-ए-तजल्ली-ए-शम-ए-ज़ुहूर था शायद कि मर गया तिरे रुख़्सार देख कर पैमाना रात माह का लबरेज़-ए-नूर था जन्नत है तेरी तेग़ के कुश्तों की मुंतज़िर जौहर सवाद-ए-जल्वा-ए-मिज़्गान-ए-हूर था
nikohish-hai-sazaa-fariyaadi-e-be-daad-e-dilbar-kii-mirza-ghalib-ghazals
निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की मबादा ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा हो सुब्ह महशर की रग-ए-लैला को ख़ाक-ए-दश्त-ए-मजनूँ रेशगी बख़्शे अगर बोवे बजा-ए-दाना दहक़ाँ नोक निश्तर की पर-ए-परवाना शायद बादबान-ए-कश्ती-ए-मय था हुई मज्लिस की गर्मी से रवानी दौर-ए-साग़र की करूँ बे-दाद-ए-ज़ौक़-ए-पर-फ़िशानी अर्ज़ क्या क़ुदरत कि ताक़त उड़ गई उड़ने से पहले मेरे शहपर की कहाँ तक रोऊँ उस के खे़मे के पीछे क़यामत है मिरी क़िस्मत में या-रब क्या न थी दीवार पत्थर की ब-जुज़ दीवानगी होता न अंजाम-ए-ख़ुद-आराई अगर पैदा न करता आइना ज़ंजीर जौहर की ग़ुरूर-ए-लुत्फ़-ए-साक़ी नश्शा-ए-बे-बाकी-ए-मस्ताँ नम-ए-दामान-ए-इस्याँ है तरावत मौज-ए-कौसर की मिरा दिल माँगते हैं आरियत अहल-ए-हवस शायद ये जाना चाहते हैं आज दावत में समुंदर की 'असद' जुज़ आब-ए-बख़्शीदन ज़े-दरिया ख़िज़्र को क्या था डुबोता चश्मा-ए-हैवाँ में गर कश्ती सिकंदर की
ek-jaa-harf-e-vafaa-likhaa-thaa-so-bhii-mit-gayaa-mirza-ghalib-ghazals
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया ज़ाहिरन काग़ज़ तिरे ख़त का गलत-बर-दार है जी जले ज़ौक़-ए-फ़ना की ना-तमामी पर न क्यूँ हम नहीं जलते नफ़स हर चंद आतिश-बार है आग से पानी में बुझते वक़्त उठती है सदा हर कोई दरमांदगी में नाले से नाचार है है वही बद-मस्ती-ए-हर-ज़र्रा का ख़ुद उज़्र-ख़्वाह जिस के जल्वे से ज़मीं ता आसमाँ सरशार है मुझ से मत कह तू हमें कहता था अपनी ज़िंदगी ज़िंदगी से भी मिरा जी इन दिनों बे-ज़ार है आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत-ए-दीदार है
dil-miraa-soz-e-nihaan-se-be-muhaabaa-jal-gayaa-mirza-ghalib-ghazals
दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया आतिश-ए-ख़ामोश की मानिंद गोया जल गया दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया मैं अदम से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बार-हा मेरी आह-ए-आतिशीं से बाल-ए-अन्क़ा जल गया अर्ज़ कीजे जौहर-ए-अंदेशा की गर्मी कहाँ कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सहरा जल गया दिल नहीं तुझ को दिखाता वर्ना दाग़ों की बहार इस चराग़ाँ का करूँ क्या कार-फ़रमा जल गया मैं हूँ और अफ़्सुर्दगी की आरज़ू 'ग़ालिब' कि दिल देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया ख़ानमान-ए-आशिक़ाँ दुकान-ए-आतिश-बाज़ है शो'ला-रू जब हो गए गर्म-ए-तमाशा जल गया ता कुजा अफ़सोस-ए-गरमी-हा-ए-सोहबत ऐ ख़याल दिल बा-सोज़-ए-आतिश-ए-दाग़-ए-तमन्ना जल गया है 'असद' बेगाना-ए-अफ़्सुर्दगी ऐ बेकसी दिल ज़-अंदाज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया दूद मेरा सुंबुलिस्ताँ से करे है हम-सरी बस-कि शौक़-ए-आतिश-गुल से सरापा जल गया शम्अ-रूयाँ की सर-अंगुश्त-ए-हिनाई देख कर ग़ुंचा-ए-गुल पर-फ़िशाँ परवाना-आसा जल गया
naala-juz-husn-e-talab-ai-sitam-iijaad-nahiin-mirza-ghalib-ghazals
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं है तक़ाज़ा-ए-जफ़ा शिकवा-ए-बेदाद नहीं इश्क़-ओ-मज़दूरी-ए-इशरत-गह-ए-ख़ुसरव क्या ख़ूब हम को तस्लीम निको-नामी-ए-फ़रहाद नहीं कम नहीं वो भी ख़राबी में प वुसअत मालूम दश्त में है मुझे वो ऐश कि घर याद नहीं अहल-ए-बीनश को है तूफ़ान-ए-हवादिस मकतब लुत्मा-ए-मौज कम-अज़ सैली-ए-उस्ताद नहीं वाए महरूमी-ए-तस्लीम-ओ-बदा हाल-ए-वफ़ा जानता है कि हमें ताक़त-ए-फ़रयाद नहीं रंग-ए-तमकीन-ए-गुल-ओ-लाला परेशाँ क्यूँ है गर चराग़ान-ए-सर-ए-रह-गुज़र-ए-बाद नहीं सबद-ए-गुल के तले बंद करे है गुलचीं मुज़्दा ऐ मुर्ग़ कि गुलज़ार में सय्याद नहीं नफ़्य से करती है इसबात तराविश गोया दी है जा-ए-दहन उस को दम-ए-ईजाद नहीं कम नहीं जल्वागरी में तिरे कूचे से बहिश्त यही नक़्शा है वले इस क़दर आबाद नहीं करते किस मुँह से हो ग़ुर्बत की शिकायत 'ग़ालिब' तुम को बे-मेहरी-ए-यारान-ए-वतन याद नहीं
jab-ba-taqriib-e-safar-yaar-ne-mahmil-baandhaa-mirza-ghalib-ghazals
जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा तपिश-ए-शौक़ ने हर ज़र्रे पे इक दिल बाँधा अहल-ए-बीनश ने ब-हैरत-कदा-ए-शोख़ी-ए-नाज़ जौहर-ए-आइना को तूती-ए-बिस्मिल बाँधा यास ओ उम्मीद ने यक-अरबदा मैदाँ माँगा इज्ज़-ए-हिम्मत ने तिलिस्म-ए-दिल-ए-साइल बाँधा न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब' गरचे दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा इस्तिलाहात-ए-असीरान-ए-तग़ाफ़ुल मत पूछ जो गिरह आप न खोली उसे मुश्किल बाँधा यार ने तिश्नगी-ए-शौक़ के मज़मूँ चाहे हम ने दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा तपिश-आईना परवाज़-ए-तमन्ना लाई नामा-ए-शौक़ ब-हाल-ए-दिल-ए-बिस्मिल बाँधा दीदा ता-दिल है यक-आईना चराग़ाँ किस ने ख़ल्वत-ए-नाज़ पे पैराया-ए-महफ़िल बाँधा ना-उमीदी ने ब-तक़रीब-ए-मज़ामीन-ए-ख़ुमार कूच-ए-मौज को ख़म्याज़ा-ए-साहिल बाँधा मुतरिब-ए-दिल ने मिरे तार-ए-नफ़स से 'ग़ालिब' साज़ पर रिश्ता पए नग़्मा-ए-'बेदिल' बाँधा
rahaa-gar-koii-taa-qayaamat-salaamat-mirza-ghalib-ghazals
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत फिर इक रोज़ मरना है हज़रत-सलामत जिगर को मिरे इश्क़-ए-खूँ-नाबा-मशरब लिखे है ख़ुदावंद-ए-नेमत सलामत अलर्रग़्म-ए-दुश्मन शहीद-ए-वफ़ा हूँ मुबारक मुबारक सलामत सलामत नहीं गर सर-ओ-बर्ग-ए-इदराक-ए-मानी तमाशा-ए-नैरंग-ए-सूरत सलामत दो-आलम की हस्ती पे ख़त्त-ए-फ़ना खींच दिल-ओ-दस्त-ए-अरबाब-ए-हिम्मत सलामत नहीं गर ब-काम-ए-दिल-ए-ख़स्ता गर्दूं जिगर-ख़ाई-ए-जोश-ए-हसरत सलामत न औरों की सुनता न कहता हूँ अपनी सर-ए-ख़स्ता दुश्वार-ए-वहशत सलामत वफ़ूर-ए-बला है हुजूम-ए-वफ़ा है सलामत मलामत मलामत सलामत न फ़िक्र-ए-सलामत न बीम-ए-मलामत ज़े-ख़ुद-रफ़्तगी-हा-ए-हैरत सलामत रहे 'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता मग़्लूब-ए-गर्दूं ये क्या बे-नियाज़ी है हज़रत-सलामत
laagar-itnaa-huun-ki-gar-tuu-bazm-men-jaa-de-mujhe-mirza-ghalib-ghazals
लाग़र इतना हूँ कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे मेरा ज़िम्मा देख कर गर कोई बतला दे मुझे क्या तअ'ज्जुब है जो उस को देख कर आ जाए रहम वाँ तलक कोई किसी हीले से पहुँचा दे मुझे मुँह न दिखलावे न दिखला पर ब-अंदाज़-ए-इताब खोल कर पर्दा ज़रा आँखें ही दिखला दे मुझे याँ तलक मेरी गिरफ़्तारी से वो ख़ुश है कि मैं ज़ुल्फ़ गर बन जाऊँ तो शाने में उलझा दे मुझे
paa-ba-daaman-ho-rahaa-huun-bas-ki-main-sahraa-navard-mirza-ghalib-ghazals
पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द ख़ार-ए-पा हैं जौहर-ए-आईना-ए-ज़ानू मुझे देखना हालत मिरे दिल की हम-आग़ोशी के वक़्त है निगाह-ए-आश्ना तेरा सर-ए-हर-मू मुझे हूँ सरापा साज़-ए-आहंग-ए-शिकायत कुछ न पूछ है यही बेहतर कि लोगों में न छेड़े तू मुझे बाइस-ए-वामांदगी है उम्र-ए-फ़ुर्सत-जू मुझे कर दिया है पा-ब-ज़ंजीर-ए-रम-ए-आहू मुझे ख़ाक-ए-फ़ुर्सत बर-सर-ए-ज़ौक़-ए-फ़ना ऐ इंतिज़ार है ग़ुबार-ए-शीशा-ए-साअत रम-ए-आहू मुझे हम-ज़बाँ आया नज़र फ़िक्र-ए-सुख़न में तू मुझे मर्दुमुक है तूती-ए-आईना-ए-ज़ानू मुझे याद-ए-मिज़्गाँ में ब-नश्तर-ए-ज़ार-ए-सौदा-ए-ख़याल चाहिए वक़्त-ए-तपिश यक-दस्त सद-पहलू मुझे इज़्तिराब-ए-उम्र बे-मतलब नहीं आख़िर कि है जुसतुजू-ए-फ़ुर्सत-ए-रब्त-ए-सर-ए-ज़ानू मुझे चाहिए दरमान-ए-रीश-ए-दिल भी तेग़-ए-यार से मरम-ए-ज़ंगार है वो वसमा-ए-अबरू मुझे कसरत-ए-जौर-ओ-सितम से हो गया हूँ बे-दिमाग़ ख़ूब-रूयों ने बनाया 'ग़ालिब'-ए-बद-ख़ू मुझे फ़ुर्सत-ए-आराम-ए-ग़श हस्ती है बोहरान-ए-अदम है शिकस्त-ए-रंग-ए-इम्काँ गर्दिश-ए-पहलू मुझे साज़-ए-ईमा-ए-फ़ना है आलम-ए-पीरी 'असद' क़ामत-ए-ख़म से है हासिल शोख़ी-ए-अबरू मुझे
nahiin-hai-zakhm-koii-bakhiye-ke-dar-khur-mire-tan-men-mirza-ghalib-ghazals
नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में हुआ है तार-ए-अश्क-ए-यास रिश्ता चश्म-ए-सोज़न में हुई है माने-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा ख़ाना-वीरानी कफ़-ए-सैलाब बाक़ी है ब-रंग-ए-पुम्बा रौज़न में वदीअत-ख़ाना-ए-बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ हूँ नगीन-ए-नाम-ए-शाहिद है मिरे हर क़तरा-ए-ख़ूँ तन में बयाँ किस से हो ज़ुल्मत-गुस्तरी मेरे शबिस्ताँ की शब-ए-मह हो जो रख दूँ पुम्बा दीवारों के रौज़न में निकोहिश माना-ए-बे-रब्ती-ए-शोर-ए-जुनूँ आई हुआ है ख़ंदा-ए-अहबाब बख़िया जेब-ओ-दामन में हुए उस मेहर-वश के जल्वा-ए-तिमसाल के आगे पर-अफ़्शाँ जौहर आईने में मिस्ल-ए-ज़र्रा रौज़न में न जानूँ नेक हूँ या बद हूँ पर सोहबत-मुख़ालिफ़ है जो गुल हूँ तो हूँ गुलख़न में जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में हज़ारों दिल दिये जोश-ए-जुनून-ए-इश्क़ ने मुझ को सियह हो कर सुवैदा हो गया हर क़तरा-ए-ख़ूँ तन में 'असद' ज़िंदानी-ए-तासीर-ए-उल्फ़त-हा-ए-ख़ूबाँ हूँ ख़म-ए-दस्त-ए-नवाज़िश हो गया है तौक़ गर्दन में फ़ुज़ूँ की दोस्तों ने हिर्स-ए-क़ातिल ज़ौक़-ए-कुश्तन में होए हैं बख़िया-हा-ए-ज़ख़्म जौहर तेग़-ए-दुश्मन में तमाशा करदनी है लुत्फ़-ए-ज़ख़्म-ए-इंतिज़ार ऐ दिल सुवैदा दाग़-ए-मर्हम मर्दुमुक है चश्म-ए-सोज़न में दिल-ओ-दीन-ओ-ख़िरद ताराज-ए-नाज़-ए-जल्वा-पैराई हुआ है जौहर-ए-आईना ख़ेल-ए-मोर ख़िर्मन में निकोहिश माने-ए-दीवानगी-हा-ए-जुनूँ आई लगाया ख़ंदा-ए-नासेह ने बख़िया जेब-ओ-दामन में
sab-kahaan-kuchh-laala-o-gul-men-numaayaan-ho-gaiin-mirza-ghalib-ghazals
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं क़ैद में याक़ूब ने ली गो न यूसुफ़ की ख़बर लेकिन आँखें रौज़न-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ हो गईं सब रक़ीबों से हों ना-ख़ुश पर ज़नान-ए-मिस्र से है ज़ुलेख़ा ख़ुश कि महव-ए-माह-ए-कनआँ हो गईं जू-ए-ख़ूँ आँखों से बहने दो कि है शाम-ए-फ़िराक़ मैं ये समझूँगा कि शमएँ दो फ़रोज़ाँ हो गईं इन परी-ज़ादों से लेंगे ख़ुल्द में हम इंतिक़ाम क़ुदरत-ए-हक़ से यही हूरें अगर वाँ हो गईं नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं वो निगाहें क्यूँ हुई जाती हैं या-रब दिल के पार जो मिरी कोताही-ए-क़िस्मत से मिज़्गाँ हो गईं बस-कि रोका मैं ने और सीने में उभरीं पै-ब-पै मेरी आहें बख़िया-ए-चाक-ए-गरेबाँ हो गईं वाँ गया भी मैं तो उन की गालियों का क्या जवाब याद थीं जितनी दुआएँ सर्फ़-ए-दरबाँ हो गईं जाँ-फ़िज़ा है बादा जिस के हाथ में जाम आ गया सब लकीरें हाथ की गोया रग-ए-जाँ हो गईं हम मुवह्हिद हैं हमारा केश है तर्क-ए-रूसूम मिल्लतें जब मिट गईं अजज़ा-ए-ईमाँ हो गईं रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं यूँ ही गर रोता रहा 'ग़ालिब' तो ऐ अहल-ए-जहाँ देखना इन बस्तियों को तुम कि वीराँ हो गईं
kaar-gaah-e-hastii-men-laala-daag-saamaan-hai-mirza-ghalib-ghazals
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है ग़ुंचा ता शगुफ़्तन-हा बर्ग-ए-आफ़ियत मालूम बा-वजूद-ए-दिल-जमई ख़्वाब-ए-गुल परेशाँ है हम से रंज-ए-बेताबी किस तरह उठाया जाए दाग़ पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ शो'ला ख़स-ब-दंदाँ है इश्क़ के तग़ाफ़ुल से हर्ज़ा-गर्द है आलम रू-ए-शश-जिहत-आफ़ाक़ पुश्त-ए-चश्म-ए-ज़िन्दाँ है
gaafil-ba-vahm-e-naaz-khud-aaraa-hai-varna-yaan-mirza-ghalib-ghazals
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ बे-शाना-ए-सबा नहीं तुर्रा गयाह का बज़्म-ए-क़दह से ऐश-ए-तमन्ना न रख कि रंग सैद-ए-ज़े-दाम-ए-जस्ता है उस दाम-गाह का रहमत अगर क़ुबूल करे क्या बईद है शर्मिंदगी से उज़्र न करना गुनाह का मक़्तल को किस नशात से जाता हूँ मैं कि है पुर-गुल ख़याल-ए-ज़ख्म से दामन निगाह का जाँ दर-हवा-ए-यक-निगह-ए-गर्म है 'असद' परवाना है वकील तिरे दाद-ख़्वाह का उज़्लत-गुज़ीन-ए-बज़्म हैं वामांदागान-ए-दीद मीना-ए-मय है आबला पा-ए-निगाह का हर गाम आबले से है दिल दर-तह-ए-क़दम क्या बीम अहल-ए-दर्द को सख़्ती-ए-राह का ताऊस-ए-दर-रिकाब है हर ज़र्रा आह का या-रब नफ़स ग़ुबार है किस जल्वा-गाह का जेब-ए-नियाज़-ए-इश्क़ निशाँ-दार-ए-नाज़ है आईना हूँ शिकस्तन-ए-तर्फ़-ए-कुलाह का
laazim-thaa-ki-dekho-miraa-rastaa-koii-din-aur-mirza-ghalib-ghazals
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और तन्हा गए क्यूँ अब रहो तन्हा कोई दिन और मिट जाएगा सर गर तिरा पत्थर न घिसेगा हूँ दर पे तिरे नासिया-फ़रसा कोई दिन और आए हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊँ माना कि हमेशा नहीं अच्छा कोई दिन और जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे क्या ख़ूब क़यामत का है गोया कोई दिन और हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़ क्या तेरा बिगड़ता जो न मरता कोई दिन और तुम माह-ए-शब-ए-चार-दहुम थे मिरे घर के फिर क्यूँ न रहा घर का वो नक़्शा कोई दिन और तुम कौन से थे ऐसे खरे दाद-ओ-सितद के करता मलक-उल-मौत तक़ाज़ा कोई दिन और मुझ से तुम्हें नफ़रत सही नय्यर से लड़ाई बच्चों का भी देखा न तमाशा कोई दिन और गुज़री न ब-हर-हाल ये मुद्दत ख़ुश ओ ना-ख़ुश करना था जवाँ-मर्ग गुज़ारा कोई दिन और नादाँ हो जो कहते हो कि क्यूँ जीते हैं 'ग़ालिब' क़िस्मत में है मरने की तमन्ना कोई दिन और
asad-ham-vo-junuun-jaulaan-gadaa-e-be-sar-o-paa-hain-mirza-ghalib-ghazals
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना
jaraahat-tohfa-almaas-armugaan-daag-e-jigar-hadiya-mirza-ghalib-ghazals
जराहत-तोहफ़ा अल्मास-अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया मुबारकबाद 'असद' ग़म-ख़्वार-ए-जान-ए-दर्दमंद आया जुनूँ गर्म इंतिज़ार ओ नाला बेताबी कमंद आया सुवैदा ता ब-लब ज़ंजीरी दूद सिपंद आया मह अख़्तर फ़शाँ की बहर इस्तिक़बाल आँखों से तमाशा किश्वर आईना में आईना बंद आया तग़ाफ़ुल बद-गुमानी बल्कि मेरी सख़्त जानी से निगाह बे हिजाब नाज़ को बीम गज़ंद आया फ़ज़ा ख़ंदा गुल तंग ओ ज़ौक़ ऐश बे पर्दा फ़राग़त गाह आग़ोश विदाअ' दिल पसंद आया अदम है ख़ैर ख़्वाह जल्वा को ज़िंदान बेताबी ख़िराम नाज़ बर्क़ ख़िरमन सई सिपंद आया
jo-na-naqd-e-daag-e-dil-kii-kare-shola-paasbaanii-mirza-ghalib-ghazals
जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी तो फ़सुर्दगी निहाँ है ब-कमीन-ए-बे-ज़बानी मुझे उस से क्या तवक़्क़ो ब-ज़माना-ए-जवानी कभी कूदकी में जिस ने न सुनी मिरी कहानी यूँ ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब वर्ना कहता कि मिरे अदू को या रब मिले मेरी ज़िंदगानी
aaiina-kyuun-na-duun-ki-tamaashaa-kahen-jise-mirza-ghalib-ghazals
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे हसरत ने ला रखा तिरी बज़्म-ए-ख़याल में गुल-दस्ता-ए-निगाह सुवैदा कहें जिसे फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिए वो एक मुश्त-ए-ख़ाक कि सहरा कहें जिसे है चश्म-ए-तर में हसरत-ए-दीदार से निहाँ शौक़-ए-इनाँ गुसेख़्ता दरिया कहें जिसे दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल-हा-ए-ऐश को सुब्ह-ए-बहार पुम्बा-ए-मीना कहें जिसे 'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइ'ज़ बुरा कहे ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो ये महशर-ए-ख़याल कि दुनिया कहें जिसे है इंतिज़ार से शरर आबाद रुस्तख़ेज़ मिज़्गान-ए-कोह-कन रग-ए-ख़ारा कहें जिसे किस फ़ुर्सत-ए-विसाल पे है गुल को अंदलीब ज़ख़्म-ए-फ़िराक़ ख़ंदा-ए-बे-जा कहें जिसे
har-ek-baat-pe-kahte-ho-tum-ki-tuu-kyaa-hai-mirza-ghalib-ghazals
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है न शो'ले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंद-ख़ू क्या है ये रश्क है कि वो होता है हम-सुख़न तुम से वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़ी-ए-अदू क्या है चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन हमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़ सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार ये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है
arz-e-naaz-e-shokhi-e-dandaan-baraae-khanda-hai-mirza-ghalib-ghazals
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है दावा-ए-जमियत-ए-अहबाब जा-ए-ख़ंदा है है अदम में ग़ुंचा महव-ए-इबरत-ए-अंजाम-ए-गुल यक-जहाँ ज़ानू तअम्मुल दर-क़फ़ा-ए-ख़ंदा है कुल्फ़त-ए-अफ़्सुर्दगी को ऐश-ए-बेताबी हराम वर्ना दंदाँ दर दिल अफ़्शुर्दन बिना-ए-ख़ंदा है शोरिश-ए-बातिन के हैं अहबाब मुंकिर वर्ना याँ दिल मुहीत-ए-गिर्या ओ लब आशना-ए-ख़ंदा है ख़ुद-फ़रोशी-हा-ए-हस्ती बस-कि जा-ए-ख़ंदा है हर शिकस्त-ए-क़ीमत-ए-दिल में सदा-ए-ख़ंदा है नक़्श-ए-इबरत दर नज़र या नक़्द-ए-इशरत दर बिसात दो-जहाँ वुसअत ब-क़द्र-ए-यक-फ़ज़ा-ए-ख़ंदा है जा-ए-इस्तिहज़ा है इशरत-कोशी-ए-हस्ती 'असद' सुब्ह ओ शबनम फ़ुर्सत-ए-नश्व-ओ-नुमा-ए-ख़ंदा है
ek-ek-qatre-kaa-mujhe-denaa-padaa-hisaab-mirza-ghalib-ghazals
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था अब मैं हूँ और मातम-ए-यक-शहर-आरज़ू तोड़ा जो तू ने आइना तिमसाल-दार था गलियों में मेरी ना'श को खींचे फिरो कि मैं जाँ-दादा-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़ आब-दार था कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब देखा तो कम हुए प ग़म-ए-रोज़गार था किस का जुनून-ए-दीद तमन्ना-शिकार था आईना-ख़ाना वादी-ए-जौहर-ग़ुबार था किस का ख़याल आइना-ए-इन्तिज़ार था हर बर्ग-ए-गुल के पर्दे में दिल बे-क़रार था जूँ ग़ुंचा-ओ-गुल आफ़त-ए-फ़ाल-ए-नज़र न पूछ पैकाँ से तेरे जल्वा-ए-ज़ख़्म आश्कार था देखी वफ़ा-ए-फ़ुर्सत-ए-रंज-ओ-नशात-ए-दहर ख़म्याज़ा यक-दराज़ी-ए-उम्र-ए-ख़ुमार था सुब्ह-ए-क़यामत एक दुम-ए-गुर्ग थी 'असद' जिस दश्त में वो शोख़-ए-दो-आलम शिकार था
ham-rashk-ko-apne-bhii-gavaaraa-nahiin-karte-mirza-ghalib-ghazals
हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते मरते हैं वले उन की तमन्ना नहीं करते दर-पर्दा उन्हें ग़ैर से है रब्त-ए-निहानी ज़ाहिर का ये पर्दा है कि पर्दा नहीं करते ये बाइस-ए-नौमीदी-ए-अर्बाब-ए-हवस है 'ग़ालिब' को बुरा कहते हैं अच्छा नहीं करते
sar-gashtagii-men-aalam-e-hastii-se-yaas-hai-mirza-ghalib-ghazals
सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है तस्कीं को दे नवेद कि मरने की आस है लेता नहीं मिरे दिल-ए-आवारा की ख़बर अब तक वो जानता है कि मेरे ही पास है कीजिए बयाँ सुरूर-ए-तप-ए-ग़म कहाँ तलक हर मू मिरे बदन पे ज़बान-ए-सिपास है है वो ग़ुरूर-ए-हुस्न से बेगाना-ए-वफ़ा हर-चंद उस के पास दिल-ए-हक़-शनास है पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब इस बलग़मी-मिज़ाज को गर्मी ही रास है हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद' मजनूँ जो मर गया है तो जंगल उदास है क्या ग़म है उस को जिस का 'अली' सा इमाम हो इतना भी ऐ फ़लक-ज़दा क्यूँ बद-हवास है
himmat-e-iltijaa-nahiin-baaqii-faiz-ahmad-faiz-ghazals
हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी इक तिरी दीद छिन गई मुझ से वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी अपनी मश्क़-ए-सितम से हाथ न खींच मैं नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी तेरी चश्म-ए-अलम-नवाज़ की ख़ैर दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी हो चुका ख़त्म अहद-ए-हिज्र-ओ-विसाल ज़िंदगी में मज़ा नहीं बाक़ी
chaand-nikle-kisii-jaanib-tirii-zebaaii-kaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals
चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का रंग बदले किसी सूरत शब-ए-तन्हाई का दौलत-ए-लब से फिर ऐ ख़ुसरव-ए-शीरीं-दहनाँ आज अर्ज़ां हो कोई हर्फ़ शनासाई का गर्मी-ए-रश्क से हर अंजुमन-ए-गुल-बदनाँ तज़्किरा छेड़े तिरी पैरहन-आराई का सेहन-ए-गुलशन में कभी ऐ शह-ए-शमशाद-क़दाँ फिर नज़र आए सलीक़ा तिरी रानाई का एक बार और मसीहा-ए-दिल-ए-दिल-ज़दगाँ कोई वा'दा कोई इक़रार मसीहाई का दीदा ओ दिल को सँभालो कि सर-ए-शाम-ए-फ़िराक़ साज़-ओ-सामान बहम पहुँचा है रुस्वाई का
kuchh-pahle-in-aankhon-aage-kyaa-kyaa-na-nazaaraa-guzre-thaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals
कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था थे कितने अच्छे लोग कि जिन को अपने ग़म से फ़ुर्सत थी सब पूछें थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था अब के ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था थी यारों की बोहतात तो हम अग़्यार से भी बेज़ार न थे जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था
ab-jo-koii-puuchhe-bhii-to-us-se-kyaa-sharh-e-haalaat-karen-faiz-ahmad-faiz-ghazals
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें शाम हुई फिर जोश-ए-क़दह ने बज़्म-ए-हरीफ़ाँ रौशन की घर को आग लगाएँ हम भी रौशन अपनी रात करें क़त्ल-ए-दिल-ओ-जाँ अपने सर है अपना लहू अपनी गर्दन पे मोहर-ब-लब बैठे हैं किस का शिकवा किस के साथ करें हिज्र में शब भर दर्द-ओ-तलब के चाँद सितारे साथ रहे सुब्ह की वीरानी में यारो कैसे बसर औक़ात करें
yuun-sajaa-chaand-ki-jhalkaa-tire-andaaz-kaa-rang-faiz-ahmad-faiz-ghazals
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंग साया-ए-चश्म में हैराँ रुख़-ए-रौशन का जमाल सुर्ख़ी-ए-लब में परेशाँ तिरी आवाज़ का रंग बे-पिए हूँ कि अगर लुत्फ़ करो आख़िर-ए-शब शीशा-ए-मय में ढले सुब्ह के आग़ाज़ का रंग चंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज़ का रंग इक सुख़न और कि फिर रंग-ए-तकल्लुम तेरा हर्फ़-ए-सादा को इनायत करे ए'जाज़ का रंग
sabhii-kuchh-hai-teraa-diyaa-huaa-sabhii-raahaten-sabhii-kulfaten-faiz-ahmad-faiz-ghazals
सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें कभी सोहबतें कभी फ़ुर्क़तें कभी दूरियाँ कभी क़ुर्बतें ये सुख़न जो हम ने रक़म किए ये हैं सब वरक़ तिरी याद के कोई लम्हा सुब्ह-ए-विसाल का कोई शाम-ए-हिज्र की मुद्दतें जो तुम्हारी मान लें नासेहा तो रहेगा दामन-ए-दिल में क्या न किसी अदू की अदावतें न किसी सनम की मुरव्वतें चलो आओ तुम को दिखाएँ हम जो बचा है मक़्तल-ए-शहर में ये मज़ार अहल-ए-सफ़ा के हैं ये हैं अहल-ए-सिद्क़ की तुर्बतें मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें
ham-par-tumhaarii-chaah-kaa-ilzaam-hii-to-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है करते हैं जिस पे ता'न कोई जुर्म तो नहीं शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है दिल मुद्दई के हर्फ़-ए-मलामत से शाद है ऐ जान-ए-जाँ ये हर्फ़ तिरा नाम ही तो है दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है आख़िर तो एक रोज़ करेगी नज़र वफ़ा वो यार-ए-ख़ुश-ख़िसाल सर-ए-बाम ही तो है भीगी है रात 'फ़ैज़' ग़ज़ल इब्तिदा करो वक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है
nasiib-aazmaane-ke-din-aa-rahe-hain-faiz-ahmad-faiz-ghazals
नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं अभी से दिल ओ जाँ सर-ए-राह रख दो कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं सबा फिर हमें पूछती फिर रही है चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगाएँ सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं
na-ganvaao-naavak-e-niim-kash-dil-e-reza-reza-ganvaa-diyaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals
न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया करो कज जबीं पे सर-ए-कफ़न मिरे क़ातिलों को गुमाँ न हो कि ग़ुरूर-ए-इश्क़ का बाँकपन पस-ए-मर्ग हम ने भुला दिया उधर एक हर्फ़ कि कुश्तनी यहाँ लाख उज़्र था गुफ़्तनी जो कहा तो सुन के उड़ा दिया जो लिखा तो पढ़ के मिटा दिया जो रुके तो कोह-ए-गिराँ थे हम जो चले तो जाँ से गुज़र गए रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम तुझे यादगार बना दिया
kabhii-kabhii-yaad-men-ubharte-hain-naqsh-e-maazii-mite-mite-se-faiz-ahmad-faiz-ghazals
कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से वो आज़माइश दिल ओ नज़र की वो क़ुर्बतें सी वो फ़ासले से कभी कभी आरज़ू के सहरा में आ के रुकते हैं क़ाफ़िले से वो सारी बातें लगाव की सी वो सारे उनवाँ विसाल के से निगाह ओ दिल को क़रार कैसा नशात ओ ग़म में कमी कहाँ की वो जब मिले हैं तो उन से हर बार की है उल्फ़त नए सिरे से बहुत गिराँ है ये ऐश-ए-तन्हा कहीं सुबुक-तर कहीं गवारा वो दर्द-ए-पिन्हाँ कि सारी दुनिया रफ़ीक़ थी जिस के वास्ते से तुम्हीं कहो रिंद ओ मोहतसिब में है आज शब कौन फ़र्क़ ऐसा ये आ के बैठे हैं मय-कदे में वो उठ के आए हैं मय-कदे से
sab-qatl-ho-ke-tere-muqaabil-se-aae-hain-faiz-ahmad-faiz-ghazals
सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं शम-ए-नज़र ख़याल के अंजुम जिगर के दाग़ जितने चराग़ हैं तिरी महफ़िल से आए हैं उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं हर इक क़दम अजल था हर इक गाम ज़िंदगी हम घूम फिर के कूचा-ए-क़ातिल से आए हैं बाद-ए-ख़िज़ाँ का शुक्र करो 'फ़ैज़' जिस के हाथ नामे किसी बहार-ए-शिमाइल से आए हैं
dil-men-ab-yuun-tire-bhuule-hue-gam-aate-hain-faiz-ahmad-faiz-ghazals
दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं एक इक कर के हुए जाते हैं तारे रौशन मेरी मंज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं रक़्स-ए-मय तेज़ करो साज़ की लय तेज़ करो सू-ए-मय-ख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैं कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग़ वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते हैं और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं
aae-kuchh-abr-kuchh-sharaab-aae-faiz-ahmad-faiz-ghazals
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के बा'द आए जो अज़ाब आए बाम-ए-मीना से माहताब उतरे दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो सामने फिर वो बे-नक़ाब आए उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब आज तुम याद बे-हिसाब आए न गई तेरे ग़म की सरदारी दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी गोया हर सम्त से जवाब आए 'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए
ishq-minnat-e-kash-e-qaraar-nahiin-faiz-ahmad-faiz-ghazals
इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं हुस्न मजबूर-ए-इंतिज़ार नहीं तेरी रंजिश की इंतिहा मालूम हसरतों का मिरी शुमार नहीं अपनी नज़रें बिखेर दे साक़ी मय ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं ज़ेर-ए-लब है अभी तबस्सुम-ए-दोस्त मुंतशिर जल्वा-ए-बहार नहीं अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं वर्ना तुझ से तो मुझ को प्यार नहीं चारा-ए-इंतिज़ार कौन करे तेरी नफ़रत भी उस्तुवार नहीं 'फ़ैज़' ज़िंदा रहें वो हैं तो सही क्या हुआ गर वफ़ा-शिआर नहीं
aaj-yuun-mauj-dar-mauj-gam-tham-gayaa-is-tarah-gam-zadon-ko-qaraar-aa-gayaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals-1
आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया जैसे ख़ुश-बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-बहार आ गई जैसे पैग़ाम-ए-दीदार-ए-यार आ गया जिस की दीद-ओ-तलब वहम समझे थे हम रू-ब-रू फिर सर-ए-रहगुज़ार आ गया सुब्ह-ए-फ़र्दा को फिर दिल तरसने लगा उम्र-ए-रफ़्ता तिरा ए'तिबार आ गया रुत बदलने लगी रंग-ए-दिल देखना रंग-ए-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं ज़ख़्म छलका कोई या कोई गुल खिला अश्क उमडे कि अब्र-ए-बहार आ गया ख़ून-ए-उश्शाक़ से जाम भरने लगे दिल सुलगने लगे दाग़ जलने लगे महफ़िल-ए-दर्द फिर रंग पर आ गई फिर शब-ए-आरज़ू पर निखार आ गया सरफ़रोशी के अंदाज़ बदले गए दावत-ए-क़त्ल पर मक़्तल-ए-शहर में डाल कर कोई गर्दन में तौक़ आ गया लाद कर कोई काँधे पे दार आ गया 'फ़ैज़' क्या जानिए यार किस आस पर मुंतज़िर हैं कि लाएगा कोई ख़बर मय-कशों पर हुआ मोहतसिब मेहरबाँ दिल-फ़िगारों पे क़ातिल को प्यार आ गया
ye-jafaa-e-gam-kaa-chaara-vo-najaat-e-dil-kaa-aalam-faiz-ahmad-faiz-ghazals
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम तिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदम सर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम तिरी दीद से सिवा है तिरे शौक़ में बहाराँ वो चमन जहाँ गिरी है तिरे गेसुओं की शबनम ये अजब क़यामतें हैं तिरे रहगुज़र में गुज़राँ न हुआ कि मर मिटें हम न हुआ कि जी उठें हम लो सुनी गई हमारी यूँ फिरे हैं दिन कि फिर से वही गोशा-ए-क़फ़स है वही फ़स्ल-ए-गुल का मातम
go-sab-ko-baham-saagar-o-baada-to-nahiin-thaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals
गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था गलियों में फिरा करते थे दो चार दिवाने हर शख़्स का सद चाक लबादा तो नहीं था मंज़िल को न पहचाने रह-ए-इश्क़ का राही नादाँ ही सही ऐसा भी सादा तो नहीं था थक कर यूँही पल भर के लिए आँख लगी थी सो कर ही न उट्ठें ये इरादा तो नहीं था वाइ'ज़ से रह-ओ-रस्म रही रिंद से सोहबत फ़र्क़ इन में कोई इतना ज़ियादा तो नहीं था
hamiin-se-apnii-navaa-ham-kalaam-hotii-rahii-faiz-ahmad-faiz-ghazals
हमीं से अपनी नवा हम-कलाम होती रही ये तेग़ अपने लहू में नियाम होती रही मुक़ाबिल-ए-सफ़-ए-आदा जिसे किया आग़ाज़ वो जंग अपने ही दिल में तमाम होती रही कोई मसीहा न ईफ़ा-ए-अहद को पहुँचा बहुत तलाश पस-ए-क़त्ल-ए-आम होती रही ये बरहमन का करम वो अता-ए-शैख़-ए-हरम कभी हयात कभी मय हराम होती रही जो कुछ भी बन न पड़ा 'फ़ैज़' लुट के यारों से तो रहज़नों से दुआ-ओ-सलाम होती रही
gulon-men-rang-bhare-baad-e-nau-bahaar-chale-faiz-ahmad-faiz-ghazals
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़ कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले मक़ाम 'फ़ैज़' कोई राह में जचा ही नहीं जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
hairaan-hai-jabiin-aaj-kidhar-sajda-ravaa-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals
हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है सर पर हैं ख़ुदावंद सर-ए-अर्श ख़ुदा है कब तक इसे सींचोगे तमन्ना-ए-समर में ये सब्र का पौदा तो न फूला न फला है मिलता है ख़िराज उस को तिरी नान-ए-जवीं से हर बादशह-ए-वक़्त तिरे दर का गदा है हर एक उक़ूबत से है तल्ख़ी में सवा-तर वो रंग जो ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा है एहसान लिए कितने मसीहा-नफ़सों के क्या कीजिए दिल का न जला है न बुझा है
ham-ne-sab-sher-men-sanvaare-the-faiz-ahmad-faiz-ghazals
हम ने सब शेर में सँवारे थे हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे रंग-ओ-ख़ुशबू के हुस्न-ओ-ख़ूबी के तुम से थे जितने इस्तिआरे थे तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले अपने कुछ और भी सहारे थे जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे मेरे दामन में आ गिरे सारे जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे उम्र-ए-जावेद की दुआ करते 'फ़ैज़' इतने वो कब हमारे थे
vo-buton-ne-daale-hain-vasvase-ki-dilon-se-khauf-e-khudaa-gayaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals
वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि ख़याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गया जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया न वो रंग फ़स्ल-ए-बहार का न रविश वो अब्र-ए-बहार की जिस अदा से यार थे आश्ना वो मिज़ाज-ए-बाद-ए-सबा गया जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई सर-ए-आम जब हुए मुद्दई' तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा गया अभी बादबान को तह रखो अभी मुज़्तरिब है रुख़-ए-हवा किसी रास्ते में है मुंतज़िर वो सुकूँ जो आ के चला गया
shaam-e-firaaq-ab-na-puuchh-aaii-aur-aa-ke-tal-gaii-faiz-ahmad-faiz-ghazals
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई बज़्म-ए-ख़याल में तिरे हुस्न की शम्अ जल गई दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई दिल से तो हर मोआ'मला कर के चले थे साफ़ हम कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए रह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई
baat-bas-se-nikal-chalii-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals
बात बस से निकल चली है दिल की हालत सँभल चली है अब जुनूँ हद से बढ़ चला है अब तबीअ'त बहल चली है अश्क ख़ूनाब हो चले हैं ग़म की रंगत बदल चली है या यूँही बुझ रही हैं शमएँ या शब-ए-हिज्र टल चली है लाख पैग़ाम हो गए हैं जब सबा एक पल चली है जाओ अब सो रहो सितारो दर्द की रात ढल चली है
nahiin-nigaah-men-manzil-to-justujuu-hii-sahii-faiz-ahmad-faiz-ghazals
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही न तन में ख़ून फ़राहम न अश्क आँखों में नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब है बे-वज़ू ही सही किसी तरह तो जमे बज़्म मय-कदे वालो नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हाव-हू ही सही गर इंतिज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तुगू ही सही दयार-ए-ग़ैर में महरम अगर नहीं कोई तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू ही सही
rang-pairaahan-kaa-khushbuu-zulf-lahraane-kaa-naam-faiz-ahmad-faiz-ghazals
रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम मौसम-ए-गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम दोस्तो उस चश्म ओ लब की कुछ कहो जिस के बग़ैर गुलसिताँ की बात रंगीं है न मय-ख़ाने का नाम फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम दिलबरी ठहरा ज़बान-ए-ख़ल्क़ खुलवाने का नाम अब नहीं लेते परी-रू ज़ुल्फ़ बिखराने का नाम अब किसी लैला को भी इक़रार-ए-महबूबी नहीं इन दिनों बदनाम है हर एक दीवाने का नाम मोहतसिब की ख़ैर ऊँचा है उसी के फ़ैज़ से रिंद का साक़ी का मय का ख़ुम का पैमाने का नाम हम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन तुम कोई अच्छा सा रख लो अपने वीराने का नाम 'फ़ैज़' उन को है तक़ाज़ा-ए-वफ़ा हम से जिन्हें आश्ना के नाम से प्यारा है बेगाने का नाम
kab-thahregaa-dard-ai-dil-kab-raat-basar-hogii-faiz-ahmad-faiz-ghazals
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी कब जान लहू होगी कब अश्क गुहर होगा किस दिन तिरी शुनवाई ऐ दीदा-ए-तर होगी कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी वाइ'ज़ है न ज़ाहिद है नासेह है न क़ातिल है अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी कब तक अभी रह देखें ऐ क़ामत-ए-जानाना कब हश्र मुअ'य्यन है तुझ को तो ख़बर होगी
darbaar-men-ab-satvat-e-shaahii-kii-alaamat-faiz-ahmad-faiz-ghazals
दरबार में अब सतवत-ए-शाही की अलामत दरबाँ का असा है कि मुसन्निफ़ का क़लम है आवारा है फिर कोह-ए-निदा पर जो बशारत तम्हीद-ए-मसर्रत है कि तूल-ए-शब-ए-ग़म है जिस धज्जी को गलियों में लिए फिरते हैं तिफ़्लाँ ये मेरा गरेबाँ है कि लश्कर का अलम है जिस नूर से है शहर की दीवार दरख़्शाँ ये ख़ून-ए-शहीदाँ है कि ज़र-ख़ाना-ए-जम है हल्क़ा किए बैठे रहो इक शम्अ को यारो कुछ रौशनी बाक़ी तो है हर-चंद कि कम है
vafaa-e-vaada-nahiin-vaada-e-digar-bhii-nahiin-faiz-ahmad-faiz-ghazals
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं बरस रही है हरीम-ए-हवस में दौलत-ए-हुस्न गदा-ए-इश्क़ के कासे में इक नज़र भी नहीं न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं निगाह-ए-शौक़ सर-ए-बज़्म बे-हिजाब न हो वो बे-ख़बर ही सही इतने बे-ख़बर भी नहीं ये अहद-ए-तर्क-ए-मोहब्बत है किस लिए आख़िर सुकून-ए-क़ल्ब उधर भी नहीं इधर भी नहीं
na-ab-raqiib-na-naaseh-na-gam-gusaar-koii-faiz-ahmad-faiz-ghazals
न अब रक़ीब न नासेह न ग़म-गुसार कोई तुम आश्ना थे तो थीं आश्नाइयाँ क्या क्या जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या पहुँच के दर पे तिरे कितने मो'तबर ठहरे अगरचे रह में हुईं जग-हँसाइयाँ क्या क्या हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या सितम पे ख़ुश कभी लुत्फ़-ओ-करम से रंजीदा सिखाईं तुम ने हमें कज-अदाइयाँ क्या क्या
har-haqiiqat-majaaz-ho-jaae-faiz-ahmad-faiz-ghazals
हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए काफ़िरों की नमाज़ हो जाए दिल रहीन-ए-नियाज़ हो जाए बेकसी कारसाज़ हो जाए मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो लब पे आए तो राज़ हो जाए लुत्फ़ का इंतिज़ार करता हूँ जौर ता हद्द-ए-नाज़ हो जाए उम्र बे-सूद कट रही है 'फ़ैज़' काश इफ़शा-ए-राज़ हो जाए
phir-hariif-e-bahaar-ho-baithe-faiz-ahmad-faiz-ghazals
फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे जाने किस किस को आज रो बैठे थी मगर इतनी राएगाँ भी न थी आज कुछ ज़िंदगी से खो बैठे तेरे दर तक पहुँच के लौट आए इश्क़ की आबरू डुबो बैठे सारी दुनिया से दूर हो जाए जो ज़रा तेरे पास हो बैठे न गई तेरी बे-रुख़ी न गई हम तिरी आरज़ू भी खो बैठे 'फ़ैज़' होता रहे जो होना है शेर लिखते रहा करो बैठे
garmi-e-shauq-e-nazaaraa-kaa-asar-to-dekho-faiz-ahmad-faiz-ghazals
गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो गुल खिले जाते हैं वो साया-ए-तर तो देखो ऐसे नादाँ भी न थे जाँ से गुज़रने वाले नासेहो पंद-गरो राहगुज़र तो देखो वो तो वो है तुम्हें हो जाएगी उल्फ़त मुझ से इक नज़र तुम मिरे महबूब-ए-नज़र तो देखो वो जो अब चाक गरेबाँ भी नहीं करते हैं देखने वालो कभी उन का जिगर तो देखो दामन-ए-दर्द को गुलज़ार बना रक्खा है आओ इक दिन दिल-ए-पुर-ख़ूँ का हुनर तो देखो सुब्ह की तरह झमकता है शब-ए-ग़म का उफ़ुक़ 'फ़ैज़' ताबिंदगी-ए-दीदा-ए-तर तो देखो
tirii-umiid-tiraa-intizaar-jab-se-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals
तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म गिला है जो भी किसी से तिरे सबब से है हुआ है जब से दिल-ए-ना-सुबूर बे-क़ाबू कलाम तुझ से नज़र को बड़े अदब से है अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है कहाँ गए शब-ए-फ़ुर्क़त के जागने वाले सितारा-ए-सहरी हम-कलाम कब से है