diff --git "a/output_hi.csv" "b/output_hi.csv" new file mode 100644--- /dev/null +++ "b/output_hi.csv" @@ -0,0 +1,22184 @@ +title,content +be-thikaane-hai-dil-e-gam-ghiin-thikaane-kii-kaho-firaq-gorakhpuri-ghazals," +बे-ठिकाने है दिल-ए-ग़म-गीं ठिकाने की कहो +शाम-ए-हिज्राँ दोस्तो कुछ इस के आने की कहो +हाँ न पूछ इक गिरफ़्तार-ए-क़फ़स की ज़िंदगी +हम-सफ़ीरान-ए-चमन कुछ आशियाने की कहो +उड़ गया है मंज़िल-ए-दुश्वार में ग़म का समंद +गेसू-ए-पुर-ए-पेच-ओ-ख़म के ताज़ियाने की कहो +बात बनती और बातों से नज़र आती नहीं +इस निगाह-ए-नाज़ की बातें बनाने की कहो +दास्ताँ वो थी जिसे दिल बुझते बुझते कह गया +शम-ए-बज़्म-ए-ज़िंदगी के झिलमिलाने की कहो +कुछ दिल-ए-मरहूम की बातें करो ऐ अहल-ए-इल्म +जिस से वीराने थे आबाद उस दिवाने की कहो +दास्तान-ए-ज़िंदगी भी किस क़दर दिलचस्प है +जो अज़ल से छिड़ गया है उस फ़साने की कहो +ये फुसून-ए-नीम-ए-शब ये ख़्वाब-सामाँ ख़ामुशी +सामरी फ़न आँख के जादू जगाने की कहो +कोई क्या खाएगा यूँ सच्ची क़सम झूटी क़सम +उस निगाह-ए-नाज़ की सौगंध खाने की कहो +शाम ही से गोश-बर-आवाज़ है बज़्म-ए-सुख़न +कुछ 'फ़िराक़' अपनी सुनाओ कुछ ज़माने की कहो " +bahsen-chhidii-huii-hain-hayaat-o-mamaat-kii-firaq-gorakhpuri-ghazals," +बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की +सौ बात बन गई है 'फ़िराक़' एक बात की +साज़-नवा-ए-दर्द हिजाबात-ए-दहर में +कितनी दुखी हुई हैं रगें काएनात की +रख ली जिन्हों ने कशमकश-ए-ज़िंदगी की लाज +बे-दर्दियाँ न पूछिए उन से हयात की +यूँ फ़र्त-ए-बे-ख़ुदी से मोहब्बत में जान दे +तुझ को भी कुछ ख़बर न हो इस वारदात की +है इश्क़ उस तबस्सुम-ए-जाँ-बख़्श का शहीद +रंगीनियाँ लिए है जो सुब्ह-ए-हयात की +छेड़ा है दर्द-ए-इश्क़ ने तार-ए-रग-ए-अदम +सूरत पकड़ चली हैं नवाएँ हयात की +शाम-ए-अबद को जल्वा-ए-सुब्ह-ए-बहार दे +रूदाद छेड़ ज़िंदगी-ए-बे-सबात की +उस बज़्म-ए-बे-ख़ुदी में वजूद-ए-अदम कहाँ +चलती नहीं है साँस हयात-ओ-ममात की +सौ दर्द इक तबस्सुम-ए-पिन्हाँ में बंद हैं +तस्वीर हूँ 'फ़िराक़' नशात-ए-हयात की " +aaj-bhii-qaafila-e-ishq-ravaan-hai-ki-jo-thaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था +वही मील और वही संग-ए-निशाँ है कि जो था +फिर तिरा ग़म वही रुस्वा-ए-जहाँ है कि जो था +फिर फ़साना ब-हदीस-ए-दिगराँ है कि जो था +मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं +वही अंदाज़-ए-जहान-ए-गुज़राँ है कि जो था +ज़ुल्मत ओ नूर में कुछ भी न मोहब्बत को मिला +आज तक एक धुँदलके का समाँ है कि जो था +यूँ तो इस दौर में बे-कैफ़ सी है बज़्म-ए-हयात +एक हंगामा सर-ए-रित्ल-ए-गिराँ है कि जो था +लाख कर जौर-ओ-सितम ���ाख कर एहसान-ओ-करम +तुझ पे ऐ दोस्त वही वहम-ओ-गुमाँ है कि जो था +आज फिर इश्क़ दो-आलम से जुदा होता है +आस्तीनों में लिए कौन-ओ-मकाँ है कि जो था +इश्क़ अफ़्सुर्दा नहीं आज भी अफ़्सुर्दा बहुत +वही कम कम असर-ए-सोज़-ए-निहाँ है कि जो था +नज़र आ जाते हैं तुम को तो बहुत नाज़ुक बाल +दिल मिरा क्या वही ऐ शीशा-गिराँ है कि जो था +जान दे बैठे थे इक बार हवस वाले भी +फिर वही मरहला-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है कि जो था +आज भी सैद-गह-ए-इश्क़ में हुसन-ए-सफ़्फ़ाक +लिए अबरू की लचकती सी कमाँ है कि जो था +फिर तिरी चश्म-ए-सुख़न-संज ने छेड़ी कोई बात +वही जादू है वही हुस्न-ए-बयाँ है कि जो था +रात भर हुस्न पर आए भी गए सौ सौ रंग +शाम से इश्क़ अभी तक निगराँ है कि जो था +जो भी कर जौर-ओ-सितम जो भी कर एहसान-ओ-करम +तुझ पे ऐ दोस्त वही वहम-ओ-गुमाँ है कि जो था +आँख झपकी कि इधर ख़त्म हुआ रोज़-ए-विसाल +फिर भी इस दिन पे क़यामत का गुमाँ है कि जो था +क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन +आज वो रब्त का एहसास कहाँ है कि जो था +तीरा-बख़्ती नहीं जाती दिल-ए-सोज़ाँ की 'फ़िराक़' +शम्अ के सर पे वही आज धुआँ है कि जो था " +tumhen-kyuunkar-bataaen-zindagii-ko-kyaa-samajhte-hain-firaq-gorakhpuri-ghazals," +तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं +समझ लो साँस लेना ख़ुद-कुशी करना समझते हैं +किसी बदमस्त को राज़-आश्ना सब का समझते हैं +निगाह-ए-यार तुझ को क्या बताएँ क्या समझते हैं +बस इतने पर हमें सब लोग दीवाना समझते हैं +कि इस दुनिया को हम इक दूसरी दुनिया समझते हैं +कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है +तिरे दम भर के मिल जाने को हम भी क्या समझते हैं +उमीदों में भी उन की एक शान-ए-बे-नियाज़ी है +हर आसानी को जो दुश्वार हो जाना समझते हैं +यही ज़िद है तो ख़ैर आँखें उठाते हैं हम उस जानिब +मगर ऐ दिल हम इस में जान का खटका समझते हैं +कहीं हों तेरे दीवाने ठहर जाएँ तो ज़िंदाँ है +जिधर को मुँह उठा कर चल पड़े सहरा समझते हैं +जहाँ की फितरत-ए-बेगाना में जो कैफ़-ए-ग़म भर दें +वही जीना समझते हैं वही मरना समझते हैं +हमारा ज़िक्र क्या हम को तो होश आया मोहब्बत में +मगर हम क़ैस का दीवाना हो जाना समझते हैं +न शोख़ी शोख़ है इतनी न पुरकार इतनी पुरकारी +न जाने लोग तेरी सादगी को क्या समझते हैं +भुला दीं एक मुद्दत की जफ़ाएँ उस ने ये कह कर +तुझे अपना समझते थे तुझे अपना समझते हैं +ये कह कर आबला-पा रौंदते जाते हैं काँटों को +जिसे तलवों में कर लें जज़्ब उसे सहरा समझते हैं +ये हस्ती नीस्ती सब मौज-ख़ेज़ी है मोहब्बत की +न हम क़तरा समझते हैं न हम दरिया समझते हैं +'फ़िराक़' इस गर्दिश-ए-अय्याम से कब काम निकला है +सहर होने को भी हम रात कट जाना समझते हैं " +tez-ehsaas-e-khudii-darkaar-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है +ज़िंदगी को ज़िंदगी दरकार है +जो चढ़ा जाए ख़ुमिस्तान-ए-जहाँ +हाँ वही लब-तिश्नगी दरकार है +देवताओं का ख़ुदा से होगा काम +आदमी को आदमी दरकार है +सौ गुलिस्ताँ जिस उदासी पर निसार +मुझ को वो अफ़्सुर्दगी दरकार है +शाएरी है सर-बसर तहज़ीब-ए-क़ल्ब +उस को ग़म शाइस्तगी दरकार है +शो'ला में लाता है जो सोज़-ओ-गुदाज़ +वो ख़ुलूस-ए-बातनी दरकार है +ख़ूबी-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ से कुछ सिवा +शाएरी को साहिरी दरकार है +क़ादिर-ए-मुतलक़ को भी इंसान की +सुनते हैं बे-चारगी दरकार है +और होंगे तालिब-ए-मदह-ए-जहाँ +मुझ को बस तेरी ख़ुशी दरकार है +अक़्ल में यूँ तो नहीं कोई कमी +इक ज़रा दीवानगी दरकार है +होश वालों को भी मेरी राय में +एक गूना बे-ख़ुदी दरकार है +ख़तरा-ए-बिस्यार-दानी की क़सम +इल्म में भी कुछ कमी दरकार है +दोस्तो काफ़ी नहीं चश्म-ए-ख़िरद +इश्क़ को भी रौशनी दरकार है +मेरी ग़ज़लों में हक़ाएक़ हैं फ़क़त +आप को तो शाएरी दरकार है +तेरे पास आया हूँ कहने एक बात +मुझ को तेरी दोस्ती दरकार है +मैं जफ़ाओं का न करता यूँ गिला +आज तेरी ना-ख़ुशी दरकार है +उस की ज़ुल्फ़ आरास्ता-पैरास्ता +इक ज़रा सी बरहमी दरकार है +ज़िंदा-दिल था ताज़ा-दम था हिज्र में +आज मुझ को बे-दिली दरकार है +हल्क़ा हल्क़ा गेसु-ए-शब रंग-ए-यार +मुझ को तेरी अबतरी दरकार है +अक़्ल ने कल मेरे कानों में कहा +मुझ को तेरी ज़िंदगी दरकार है +तेज़-रौ तहज़ीब-ए-आलम को 'फ़िराक़' +इक ज़रा आहिस्तगी दरकार है " +tuur-thaa-kaaba-thaa-dil-thaa-jalva-zaar-e-yaar-thaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था +इश्क़ सब कुछ था मगर फिर आलम-ए-असरार था +नश्शा-ए-सद-जाम कैफ़-ए-इंतिज़ार-ए-यार था +हिज्र में ठहरा हुआ दिल साग़र-ए-सरशार था +अलविदा'अ ऐ बज़्म-ए-अंजुम हिज्र की शब अल-फ़िराक़ +ता-बा-ए-दौर-ए-ज़िंदगानी इंतिज़ार-ए-यार था +एक अदा से बे-नियाज़-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी कर दिया +मावरा-ए-वस्ल-ओ-हिज्राँ हुस्न का इक़रार था +जौहर-ए-आईना-ए-आलम बने आँसू मिरे +यूँ तो सच ये है कि रोना इश्क़ में बेकार था +शोख़ी-ए-रफ़्तार वज्ह-ए-हस्ती-ए-बर्बाद थी +ज़िंदगी क्या थी ग़ुबार-ए-र��गुज़ार-ए-यार था +उल्फ़त-ए-देरीना का जब ज़िक्र इशारों में किया +मुस्कुरा कर मुझ से पूछा तुम को किस से प्यार था +दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त +ख़ाक का इतना चमक जाना ज़रा दुश्वार था +ज़र्रा ज़र्रा आइना था ख़ुद-नुमाई का 'फ़िराक़' +सर-ब-सर सहरा-ए-आलम जल्वा-ज़ार-ए-यार था " +ik-roz-hue-the-kuchh-ishaaraat-khafii-se-firaq-gorakhpuri-ghazals," +इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से +आशिक़ हैं हम उस नर्गिस-ए-राना के जभी से +करने को हैं दूर आज तो तौ ये रोग ही जी से +अब रक्खेंगे हम प्यार न तुम से न किसी से +अहबाब से रखता हूँ कुछ उम्मीद-ए-शराफ़त +रहते हैं ख़फ़ा मुझ से बहुत लोग इसी से +कहता हूँ उसे मैं तो ख़ुसूसिय्यत-ए-पिन्हाँ +कुछ तुम को शिकायत है कसी से तो मुझी से +अशआ'र नहीं हैं ये मिरी रूह की है प्यास +जारी हुए सर-चश्मे मिरी तिश्ना-लबी से +आँसू को मिरे खेल तमाशा न समझना +कट जाता है पत्थर इसी हीरे की कनी से +याद-ए-लब-ए-जानाँ है चराग़-ए-दिल-ए-रंजूर +रौशन है ये घर आज उसी लाल-ए-यमनी से +अफ़्लाक की मेहराब है आई हुई अंगड़ाई +बे-कैफ़ कुछ आफ़ाक़ की आज़ा-शिकनी से +कुछ ज़ेर-ए-लब अल्फ़ाज़ खनकते हैं फ़ज़ा में +गूँजी हुई है बज़्म तिरी कम-सुख़नी से +आज अंजुमन-ए-इश्क़ नहीं अंजुमन-ए-इश्क़ +किस दर्जा कमी बज़्म में है तेरी कमी से +इस वादी-ए-वीराँ में है सर-चश्मा-ए-दिल भी +हस्ती मिरी सैराब है आँखों की नमी से +ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई +आज आई तिरी याद इस आहिस्ता-रवी से +वो ढूँढने निकली है तिरी निकहत-ए-गेसू +इक रोज़ मिला था मैं नसीम-ए-सहरी से +सब कुछ वो दिला दे मुझे सब कुछ वो बना दे +ऐ दोस्त नहीं दूर तिरी कम-निगही से +मीआ'द-ए-दवाम-ओ-अबद इक नींद है उस की +हम मुंतही-ए-जल्वा-ए-जानाँ हैं अभी से +इक दिल के सिवा पास हमारे नहीं कुछ भी +जो काम हो ले लेते हैं हम लोग इसी से +मालूम हुआ और है इक आलम-ए-असरार +आईना-ए-हस्ती की परेशाँ-नज़री से +इस से तो कहीं बैठ रहे तोड़ के अब पावँ +मिल जाए नजात इश्क़ को इस दर-ब-दरी से +रहता हूँ 'फ़िराक़' इस लिए वारफ़्ता कि दुनिया +कुछ होश में आ जाए मिरी बे-ख़बरी से " +zindagii-dard-kii-kahaanii-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +ज़िंदगी दर्द की कहानी है +चश्म-ए-अंजुम में भी तो पानी है +बे-नियाज़ाना सुन लिया ग़म-ए-दिल +मेहरबानी है मेहरबानी है +वो भला मेरी बात क्या माने +उस ने अपनी भी बात मानी है +शोला-ए-दिल है ये कि शोला-साज़ +या तिरा शोला-ए-जवानी है +वो कभी रंग वो कभी ख़ुशबू +गा�� गुल गाह रात-रानी है +बन के मासूम सब को ताड़ गई +आँख उस की बड़ी सियानी है +आप-बीती कहो कि जग-बीती +हर कहानी मिरी कहानी है +दोनों आलम हैं जिस के ज़ेर-ए-नगीं +दिल उसी ग़म की राजधानी है +हम तो ख़ुश हैं तिरी जफ़ा पर भी +बे-सबब तेरी सरगिरानी है +सर-ब-सर ये फ़राज़-ए-मह्र-ओ-क़मर +तेरी उठती हुई जवानी है +आज भी सुन रहे हैं क़िस्सा-ए-इश्क़ +गो कहानी बहुत पुरानी है +ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगारा +और अगर रोइए तो पानी है +है ठिकाना ये दर ही उस का भी +दिल भी तेरा ही आस्तानी है +उन से ऐसे में जो न हो जाए +नौ-जवानी है नौ-जवानी है +दिल मिरा और ये ग़म-ए-दुनिया +क्या तिरे ग़म की पासबानी है +गर्दिश-ए-चश्म-ए-साक़ी-ए-दौराँ +दौर-ए-अफ़लाक की भी पानी है +ऐ लब-ए-नाज़ क्या हैं वो असरार +ख़ामुशी जिन की तर्जुमानी है +मय-कदों के भी होश उड़ने लगे +क्या तिरी आँख की जवानी है +ख़ुद-कुशी पर है आज आमादा +अरे दुनिया बड़ी दिवानी है +कोई इज़हार-ए-ना-ख़ुशी भी नहीं +बद-गुमानी सी बद-गुमानी है +मुझ से कहता था कल फ़रिश्ता-ए-इश्क़ +ज़िंदगी हिज्र की कहानी है +बहर-ए-हस्ती भी जिस में खो जाए +बूँद में भी वो बे-करानी है +मिल गए ख़ाक में तिरे उश्शाक़ +ये भी इक अम्र-ए-आसमानी है +ज़िंदगी इंतिज़ार है तेरा +हम ने इक बात आज जानी है +क्यूँ न हो ग़म से ही क़िमाश उस का +हुस्न तसवीर-ए-शादमानी है +सूनी दुनिया में अब तो मैं हूँ और +मातम-ए-इश्क़-ए-आँ-जहानी है +कुछ न पूछो 'फ़िराक़' अहद-ए-शबाब +रात है नींद है कहानी है " +sitaaron-se-ulajhtaa-jaa-rahaa-huun-firaq-gorakhpuri-ghazals," +सितारों से उलझता जा रहा हूँ +शब-ए-फ़ुर्क़त बहुत घबरा रहा हूँ +तिरे ग़म को भी कुछ बहला रहा हूँ +जहाँ को भी समझता जा रहा हूँ +यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है +गुमाँ ये है कि धोके खा रहा हूँ +अगर मुमकिन हो ले ले अपनी आहट +ख़बर दो हुस्न को मैं आ रहा हूँ +हदें हुस्न-ओ-मोहब्बत की मिला कर +क़यामत पर क़यामत ढा रहा हूँ +ख़बर है तुझ को ऐ ज़ब्त-ए-मोहब्बत +तिरे हाथों में लुटता जा रहा हूँ +असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का +तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ +भरम तेरे सितम का खुल चुका है +मैं तुझ से आज क्यूँ शरमा रहा हूँ +उन्हीं में राज़ हैं गुल-बारियों के +मैं जो चिंगारियाँ बरसा रहा हूँ +जो उन मा'सूम आँखों ने दिए थे +वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ +तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूस +कि तुझ से दूर होता जा रहा हूँ +हद-ए-जोर-ओ-करम से बढ़ चला हुस्न +निगाह-ए-यार को याद आ रहा हूँ +जो उलझी थी कभी आदम के हाथों +वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ +मोहब्बत अब मोहब्बत हो चली है +तुझे कुछ भूलता सा जा रहा हूँ +अजल भी जिन को सुन कर झूमती है +वो नग़्मे ज़िंदगी के गा रहा हूँ +ये सन्नाटा है मेरे पाँव की चाप +'फ़िराक़' अपनी कुछ आहट पा रहा हूँ " +nigaah-e-naaz-ne-parde-uthaae-hain-kyaa-kyaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या +हिजाब अहल-ए-मोहब्बत को आए हैं क्या क्या +जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की +चराग़-ए-दैर-ओ-हरम झिलमिलाए हैं क्या क्या +दो-चार बर्क़-ए-तजल्ली से रहने वालों ने +फ़रेब नर्म-निगाही के खाए हैं क्या क्या +दिलों पे करते हुए आज आती जाती चोट +तिरी निगाह ने पहलू बचाए हैं क्या क्या +निसार नर्गिस-ए-मय-गूँ कि आज पैमाने +लबों तक आए हुए थरथराए हैं क्या क्या +वो इक ज़रा सी झलक बर्क़-ए-कम-निगाही की +जिगर के ज़ख़्म-ए-निहाँ मुस्कुराए हैं क्या क्या +चराग़-ए-तूर जले आइना-दर-आईना +हिजाब बर्क़-ए-अदा ने उठाए हैं क्या क्या +ब-क़द्र-ए-ज़ौक़-ए-नज़र दीद-ए-हुस्न क्या हो मगर +निगाह-ए-शौक़ में जल्वे समाए हैं क्या क्या +कहीं चराग़ कहीं गुल कहीं दिल-ए-बर्बाद +ख़िराम-ए-नाज़ ने फ़ित्ने उठाए हैं क्या क्या +तग़ाफ़ुल और बढ़ा उस ग़ज़ाल-ए-रअना का +फ़ुसून-ए-ग़म ने भी जादू जगाए हैं क्या क्या +हज़ार फ़ित्ना-ए-बेदार ख़्वाब-ए-रंगीं में +चमन में ग़ुंचा-ए-गुल-रंग लाए हैं क्या क्या +तिरे ख़ुलूस-ए-निहाँ का तो आह क्या कहना +सुलूक उचटटे भी दिल में समाए हैं क्या क्या +नज़र बचा के तिरे इश्वा-हा-ए-पिन्हाँ ने +दिलों में दर्द-ए-मोहब्बत उठाए हैं क्या क्या +पयाम-ए-हुस्न पयाम-ए-जुनूँ पयाम-ए-फ़ना +तिरी निगह ने फ़साने सुनाए हैं क्या क्या +तमाम हुस्न के जल्वे तमाम महरूमी +भरम निगाह ने अपने गँवाए हैं क्या क्या +'फ़िराक़' राह-ए-वफ़ा में सुबुक-रवी तेरी +बड़े-बड़ों के क़दम डगमगाए हैं क्या क्या " +kisii-kaa-yuun-to-huaa-kaun-umr-bhar-phir-bhii-firaq-gorakhpuri-ghazals," +किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी +ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी +हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है +नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी +कहूँ ये कैसे इधर देख या न देख उधर +कि दर्द दर्द है फिर भी नज़र नज़र फिर भी +ख़ुशा इशारा-ए-पैहम ज़हे सुकूत-ए-नज़र +दराज़ हो के फ़साना है मुख़्तसर फिर भी +झपक रही हैं ज़मान ओ मकाँ की भी आँखें +मगर है क़ाफ़िला आमादा-ए-सफ़र फिर भी +शब-ए-फ़िराक़ से ��गे है आज मेरी नज़र +कि कट ही जाएगी ये शाम-ए-बे-सहर फिर भी +कहीं यही तो नहीं काशिफ़-ए-हयात-ओ-ममात +ये हुस्न ओ इश्क़ ब-ज़ाहिर हैं बे-ख़बर फिर भी +पलट रहे हैं ग़रीब-उल-वतन पलटना था +वो कूचा रू-कश-ए-जन्नत हो घर है घर फिर भी +लुटा हुआ चमन-ए-इश्क़ है निगाहों को +दिखा गया वही क्या क्या गुल ओ समर फिर भी +ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर +यही कि तेरी नज़र है तिरी नज़र फिर भी +हो बे-नियाज़-ए-असर भी कभी तिरी मिट्टी +वो कीमिया ही सही रह गई कसर फिर भी +लिपट गया तिरा दीवाना गरचे मंज़िल से +उड़ी उड़ी सी है ये ख़ाक-ए-रहगुज़र फिर भी +तिरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है +उतर गया रग-ए-जाँ में ये नेश्तर फिर भी +ग़म-ए-फ़िराक़ के कुश्तों का हश्र क्या होगा +ये शाम-ए-हिज्र तो हो जाएगी सहर फिर भी +फ़ना भी हो के गिराँ-बारी-ए-हयात न पूछ +उठाए उठ नहीं सकता ये दर्द-ए-सर फिर भी +सितम के रंग हैं हर इल्तिफ़ात-ए-पिन्हाँ में +करम-नुमा हैं तिरे जौर सर-ब-सर फिर भी +ख़ता-मुआफ़ तिरा अफ़्व भी है मिस्ल-ए-सज़ा +तिरी सज़ा में है इक शान-ए-दर-गुज़र फिर भी +अगरचे बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ को ज़माना हुआ +'फ़िराक़' करती रही काम वो नज़र फिर भी " +junuun-e-kaargar-hai-aur-main-huun-firaq-gorakhpuri-ghazals," +जुनून-ए-कारगर है और मैं हूँ +हयात-ए-बे-ख़बर है और मैं हूँ +मिटा कर दिल निगाह-ए-अव्वलीं से +तक़ाज़ा-ए-दिगर है और मैं हूँ +कहाँ मैं आ गया ऐ ज़ोर-ए-परवाज़ +वबाल-ए-बाल-ओ-पर है और मैं हूँ +निगाह-ए-अव्वलीं से हो के बर्बाद +तक़ाज़ा-ए-दिगर है और मैं हूँ +मुबारकबाद अय्याम-ए-असीरी +ग़म-ए-दीवार-ओ-दर है और मैं हूँ +तिरी जमइय्यतें हैं और तू है +हयात-ए-मुंतशर है और मैं हूँ +कोई हो सुस्त-पैमाँ भी तो यूँ हो +ये शाम-ए-बे-सहर है और मैं हूँ +निगाह-ए-बे-महाबा तेरे सदक़े +कई टुकड़े जिगर है और मैं हूँ +ठिकाना है कुछ इस उज़्र-ए-सितम का +तिरी नीची नज़र है और मैं हूँ +'फ़िराक़' इक एक हसरत मिट रही है +ये मातम रात भर है और मैं हूँ " +narm-fazaa-kii-karvaten-dil-ko-dukhaa-ke-rah-gaiin-firaq-gorakhpuri-ghazals," +नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं +ठंडी हवाएँ भी तिरी याद दिला के रह गईं +शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास +दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं +मुझ को ख़राब कर गईं नीम-निगाहियाँ तिरी +मुझ से हयात ओ मौत भी आँखें चुरा के रह गईं +हुस्न-ए-नज़र-फ़रेब में किस को कलाम था मगर +तेरी अदाएँ आज तो दिल में समा के रह गईं +तब कहीं कुछ पता चला सिद्क़-ओ-ख़ुलूस-ए-हुस्न का +जब वो निगाहें इश्क़ से बातें बना के रह गईं +तेरे ख़िराम-ए-नाज़ से आज वहाँ चमन खिले +फ़सलें बहार की जहाँ ख़ाक उड़ा के रह गईं +पूछ न उन निगाहों की तुर्फ़ा करिश्मा-साज़ियाँ +फ़ित्ने सुला के रह गईं फ़ित्ने जगा के रह गईं +तारों की आँख भी भर आई मेरी सदा-ए-दर्द पर +उन की निगाहें भी तिरा नाम बता के रह गईं +उफ़ ये ज़मीं की गर्दिशें आह ये ग़म की ठोकरें +ये भी तो बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता के शाने हिला के रह गईं +और तो अहल-ए-दर्द कौन सँभालता भला +हाँ तेरी शादमानियाँ उन को रुला के रह गईं +याद कुछ आईं इस तरह भूली हुई कहानियाँ +खोए हुए दिलों में आज दर्द उठा के रह गईं +साज़-ए-नशात-ए-ज़िंदगी आज लरज़ लरज़ उठा +किस की निगाहें इश्क़ का दर्द सुना के रह गईं +तुम नहीं आए और रात रह गई राह देखती +तारों की महफ़िलें भी आज आँखें बिछा के रह गईं +झूम के फिर चलीं हवाएँ वज्द में आईं फिर फ़ज़ाएँ +फिर तिरी याद की घटाएँ सीनों पे छा के रह गईं +क़ल्ब ओ निगाह की ये ईद उफ़ ये मआल-ए-क़ुर्ब-ओ-दीद +चर्ख़ की गर्दिशें तुझे मुझ से छुपा के रह गईं +फिर हैं वही उदासियाँ फिर वही सूनी काएनात +अहल-ए-तरब की महफ़िलें रंग जमा के रह गईं +कौन सुकून दे सका ग़म-ज़दगान-ए-इश्क़ को +भीगती रातें भी 'फ़िराक़' आग लगा के रह गईं " +mai-kade-men-aaj-ik-duniyaa-ko-izn-e-aam-thaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था +दौर-ए-जाम-ए-बे-ख़ुदी बेगाना-ए-अय्याम था +रूह लर्ज़ां आँख महव-ए-दीद दिल नाकाम था +इश्क़ का आग़ाज़ भी शाइस्ता-ए-अंजाम था +रफ़्ता रफ़्ता इश्क़ को तस्वीर-ए-ग़म कर ही दिया +हुस्न भी कितना ख़राब-ए-गर्दिश-ए-अय्याम था +ग़म-कदे में दहर के यूँ तो अँधेरा था मगर +इश्क़ का दाग़-ए-सियह-बख़्ती चराग़-ए-शाम था +तेरी दुज़दीदा-निगाही यूँ तो ना-महसूस थी +हाँ मगर दफ़्तर का दफ़्तर हुस्न का पैग़ाम था +शाक़ अहल-ए-शौक़ पर थीं उस की इस्मत-दारियाँ +सच है लेकिन हुस्न दर-पर्दा बहुत बद-नाम था +महव थे गुल्ज़ार-ए-रंगा-रंग के नक़्श-ओ-निगार +वहशतें थी दिल के सन्नाटे थे दश्त-ए-शाम था +बे-ख़ता था हुस्न हर जौर-ओ-जफ़ा के बा'द भी +इश्क़ के सर ता-अबद इल्ज़ाम ही इल्ज़ाम था +यूँ गरेबाँ-चाक दुनिया में नहीं होता कोई +हर खुला गुलशन शहीद-ए-गर्दिश-ए-अय्याम था +देख हुस्न-ए-शर्मगीं दर-पर्दा क्या लाया है रंग +इश्क़ रुस्वा-ए-जहाँ बदनाम ही बदनाम था +रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ था गो दिल-ए-ग़म-गीं 'फ़िराक़' +सर्द था अफ़्सु��्दा था महरूम था नाकाम था " +chhalak-ke-kam-na-ho-aisii-koii-sharaab-nahiin-firaq-gorakhpuri-ghazals," +छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं +निगाह-ए-नर्गिस-ए-राना तिरा जवाब नहीं +ज़मीन जाग रही है कि इंक़लाब है कल +वो रात है कोई ज़र्रा भी महव-ए-ख़्वाब नहीं +हयात-ए-दर्द हुई जा रही है क्या होगा +अब इस नज़र की दुआएँ भी मुस्तजाब नहीं +ज़मीन उस की फ़लक उस का काएनात उस की +कुछ ऐसा इश्क़ तिरा ख़ानुमाँ-ख़राब नहीं +अभी कुछ और हो इंसान का लहू पानी +अभी हयात के चेहरे पर आब-ओ-ताब नहीं +जहाँ के बाब में तर दामनों का क़ौल ये है +ये मौज मारता दरिया कोई सराब नहीं +दिखा तो देती है बेहतर हयात के सपने +ख़राब हो के भी ये ज़िंदगी ख़राब नहीं " +ye-narm-narm-havaa-jhilmilaa-rahe-hain-charaag-firaq-gorakhpuri-ghazals," +ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़ +तिरे ख़याल की ख़ुशबू से बस रहे हैं दिमाग़ +दिलों को तेरे तबस्सुम की याद यूँ आई +कि जगमगा उठें जिस तरह मंदिरों में चराग़ +झलकती है खिंची शमशीर में नई दुनिया +हयात ओ मौत के मिलते नहीं हैं आज दिमाग़ +हरीफ़-ए-सीना-ए-मजरूह ओ आतिश-ए-ग़म-ए-इश्क़ +न गुल की चाक-गरेबानियाँ न लाले के दाग़ +वो जिन के हाल में लौ दे उठे ग़म-ए-फ़र्दा +वही हैं अंजुमन-ए-ज़िंदगी के चश्म-ओ-चराग़ +तमाम शो'ला-ए-गुल है तमाम मौज-ए-बहार +कि ता-हद-ए-निगह-ए-शौक़ लहलहाते हैं बाग़ +नई ज़मीन नया आसमाँ नई दुनिया +सुना तो है कि मोहब्बत को इन दिनों है फ़राग़ +जो तोहमतें न उठीं इक जहाँ से उन के समेत +गुनाहगार-ए-मोहब्बत निकल गए बे-दाग़ +जो छुप के तारों की आँखों से पाँव धरता है +उसी के नक़्श-ए-कफ़-ए-पा से जल उठे हैं चराग़ +जहान-ए-राज़ हुई जा रही है आँख तिरी +कुछ इस तरह वो दिलों का लगा रही है सुराग़ +ज़माना कूद पड़ा आग में यही कह कर +कि ख़ून चाट के हो जाएगी ये आग भी बाग़ +निगाहें मतला-ए-नौ पर हैं एक आलम की +कि मिल रहा है किसी फूटती किरन का सुराग़ +दिलों में दाग़-ए-मोहब्बत का अब ये आलम है +कि जैसे नींद में डूबे हों पिछली रात चराग़ +'फ़िराक़' बज़्म-ए-चराग़ाँ है महफ़िल-ए-रिंदाँ +सजे हैं पिघली हुई आग से छलकते अयाग़ " +haath-aae-to-vahii-daaman-e-jaanaan-ho-jaae-firaq-gorakhpuri-ghazals," +हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए +छूट जाए तो वही अपना गरेबाँ हो जाए +इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा +हुस्न यूँ लाख छुपे लाख नुमायाँ हो जाए +होश-ओ-ग़फ़लत से बहुत दूर है कैफ़िय्यत-ए-इश्क़ +उस की हर बे-ख़बरी मंज़िल-ए-इरफ़ाँ हो जाए +याद आती है जब अपनी तो तड़प जाता हूँ +मेरी हस्��ी तिरा भूला हवा पैमाँ हो जाए +आँख वो है जो तिरी जल्वा-गह-ए-नाज़ बने +दिल वही है जो सरापा तिरा अरमाँ हो जाए +पाक-बाज़ान-ए-मोहब्बत में जो बेबाकी है +हुस्न गर उस को समझ ले तो पशेमाँ हो जाए +सहल हो कर हुइ दुश्वार मोहब्बत तेरी +उसे मुश्किल जो बना लें तो कुछ आसाँ हो जाए +इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो +इशरत-ए-वस्ल बने या ग़म-ए-हिज्राँ हो जाए +कुछ मुदावा भी हो मजरूह दिलों का ऐ दोस्त +मरहम-ए-ज़ख़्म तिरा जौर-पशेमाँ हो जाए +ये भी सच है कोई उल्फ़त में परेशाँ क्यूँ हो +ये भी सच है कोई क्यूँकर न परेशाँ हो जाए +इश्क़ को अर्ज़-ए-तमन्ना में भी लाखों पस-ओ-पेश +हुस्न के वास्ते इंकार भी आसाँ हो जाए +झिलमिलाती है सर-ए-बज़्म-ए-जहाँ शम-ए-ख़ुदी +जो ये बुझ जाए चराग़-ए-रह-ए-इरफाँ हो जाए +सर-ए-शोरीदा दिया दश्त-ओ-बयाबाँ भी दिए +ये मिरी ख़ूबी-ए-क़िस्मत कि वो ज़िंदाँ हो जाए +उक़्दा-ए-इश्क़ अजब उक़्दा-ए-मोहमल है 'फ़िराक़' +कभी ला-हल कभी मुश्किल कभी आसाँ हो जाए " +ras-men-duubaa-huaa-lahraataa-badan-kyaa-kahnaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +रस में डूबा हुआ लहराता बदन क्या कहना +करवटें लेती हुई सुब्ह-ए-चमन क्या कहना +निगह-ए-नाज़ में ये पिछले पहर रंग-ए-ख़ुमार +नींद में डूबी हुई चंद्र-किरन क्या कहना +बाग़-ए-जन्नत पे घटा जैसे बरस के खुल जाए +ये सुहानी तिरी ख़ुशबू-ए-बदन क्या कहना +ठहरी ठहरी सी निगाहों में ये वहशत की किरन +चौंके चौंके से ये आहू-ए-ख़ुतन क्या कहना +रूप संगीत ने धारा है बदन का ये रचाव +तुझ पे लहलूट है बे-साख़्ता-पन क्या कहना +जैसे लहराए कोई शो'ला-कमर की ये लचक +सर-ब-सर आतिश-ए-सय्याल बदन क्या कहना +जिस तरह जल्वा-ए-फ़िर्दोस हवाओं से छिने +पैरहन में तिरे रंगीनी-ए-तन क्या कहना +जल्वा-ओ-पर्दे का ये रंग दम-ए-नज़्ज़ारा +जिस तरह अध-खुले घुँघट में दुल्हन क्या कहना +दम-ए-तक़रीर खिल उठते हैं गुलिस्ताँ क्या क्या +यूँ तो इक ग़ुंचा-ए-नौरस है दहन क्या कहना +दिल के आईने में इस तरह उतरती है निगाह +जैसे पानी में लचक जाए किरन क्या कहना +लहलहाता हुआ ये क़द ये लहकता जोबन +ज़ुल्फ़ सो महकी हुई रातों का बन क्या कहना +तू मोहब्बत का सितारा तो जवानी का सुहाग +हुस्न लौ देता है लाल-ए-यमन क्या कहना +तेरी आवाज़ सवेरा तिरी बातें तड़का +आँखें खुल जाती हैं एजाज़-ए-सुख़न क्या कहना +ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ की चमक पैकर-ए-सीमीं की दमक +दीप-माला है सर-ए-गंग-ओ-जमन क्या कहना +नीलगूँ शबनमी कपड��ों में बदन की ये जोत +जैसे छनती हो सितारों की किरन क्या कहना " +vaqt-e-guruub-aaj-karaamaat-ho-gaii-firaq-gorakhpuri-ghazals," +वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई +ज़ुल्फ़ों को उस ने खोल दिया रात हो गई +कल तक तो उस में ऐसी करामत न थी कोई +वो आँख आज क़िबला-ए-हाजात हो गई +ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया +मेरी हर एक साँस मुनाजात हो गई +ओछी निगाह डाल के इक सम्त रख दिया +दिल क्या दिया ग़रीब की सौग़ात हो गई +कुछ याद आ गई थी वो ज़ुल्फ़-ए-शिकन-शिकन +हस्ती तमाम चश्मा-ए-ज़ुल्मात हो गई +अहल-ए-वतन से दूर जुदाई में यार की +सब्र आ गया 'फ़िराक़' करामात हो गई " +ab-aksar-chup-chup-se-rahen-hain-yuunhii-kabhuu-lab-kholen-hain-firaq-gorakhpuri-ghazals," +अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं +पहले 'फ़िराक़' को देखा होता अब तो बहुत कम बोलें हैं +दिन में हम को देखने वालो अपने अपने हैं औक़ात +जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो लें हैं +फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मोहब्बत क़िस्मत मेरी तंहाई +कहने की नौबत ही न आई हम भी किसू के हो लें हैं +ख़ुनुक सियह महके हुए साए फैल जाएँ हैं जल-थल पर +किन जतनों से मेरी ग़ज़लें रात का जूड़ा खोलें हैं +बाग़ में वो ख़्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर +डाली डाली नौरस पत्ते सहज सहज जब डोलें हैं +उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें लें कौंदे +हाए वो आलम-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ जब फ़ित्ने पर तौलें हैं +नक़्श-ओ-निगार-ए-ग़ज़ल में जो तुम ये शादाबी पाओ हो +हम अश्कों में काएनात के नोक-ए-क़लम को डुबो लें हैं +इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम हुए है नदीम +ख़ल्वत में वो नर्म उँगलियाँ बंद-ए-क़बा जब खोलें हैं +ग़म का फ़साना सुनने वालो आख़िर-ए-शब आराम करो +कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो लें हैं +हम लोग अब तो अजनबी से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-'फ़िराक़' +अब तो तुम्हीं को प्यार करें हैं अब तो तुम्हीं से बोलें हैं " +mujh-ko-maaraa-hai-har-ik-dard-o-davaa-se-pahle-firaq-gorakhpuri-ghazals," +मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले +दी सज़ा इश्क़ ने हर जुर्म-ओ-ख़ता से पहले +आतिश-ए-इश्क़ भड़कती है हवा से पहले +होंट जुलते हैं मोहब्बत में दुआ से पहले +फ़ित्ने बरपा हुए हर ग़ुंचा-ए-सर-बस्ता से +खुल गया राज़-ए-चमन चाक-ए-क़बा से पहले +चाल है बादा-ए-हस्ती का छलकता हुआ जाम +हम कहाँ थे तिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा से पहले +अब कमी क्या है तिरे बे-सर-ओ-सामानों को +कुछ न था तेरी क़सम तर्क-ए-वफ़ा से पहले +इश्क़-ए-बेबाक को दा'वे थे बहुत ख़ल्वत में +खो दिया सारा भरम शर्म-ओ-हया से पहले +ख़ुद-बख़ुद चाक हुए पैरहन-ए-लाला-ओ-गुल +चल गई कौन हवा बाद-ए-सबा से पहले +हम-सफ़र राह-ए-अदम में न हो तारों-भरी रात +हम पहुँच जाएँगे इस आबला-पा से पहले +पर्दा-ए-शर्म में सद-बर्क़-ए-तबस्सुम के निसार +होश जाते रहे नैरंग-ए-हया से पहले +मौत के नाम से डरते थे हम ऐ शौक़-ए-हयात +तू ने तो मार ही डाला था क़ज़ा से पहले +बे-तकल्लुफ़ भी तिरा हुस्न-ए-ख़ुद-आरा था कभी +इक अदा और भी थी हुस्न-ए-अदा से पहले +ग़फ़लतें हस्ती-ए-फ़ानी की बता देंगी तुझे +जो मिरा हाल था एहसास-ए-फ़ना से पहले +हम उन्हें पा के 'फ़िराक़' और भी कुछ खोए गए +ये तकल्लुफ़ तो न थे अहद-ए-वफ़ा से पहले " +aankhon-men-jo-baat-ho-gaii-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +आँखों में जो बात हो गई है +इक शरह-ए-हयात हो गई है +जब दिल की वफ़ात हो गई है +हर चीज़ की रात हो गई है +ग़म से छुट कर ये ग़म है मुझ को +क्यूँ ग़म से नजात हो गई है +मुद्दत से ख़बर मिली न दिल की +शायद कोई बात हो गई है +जिस शय पे नज़र पड़ी है तेरी +तस्वीर-ए-हयात हो गई है +अब हो मुझे देखिए कहाँ सुब्ह +उन ज़ुल्फ़ों में रात हो गई है +दिल में तुझ से थी जो शिकायत +अब ग़म के निकात हो गई है +इक़रार-ए-गुनाह-ए-इश्क़ सुन लो +मुझ से इक बात हो गई है +जो चीज़ भी मुझ को हाथ आई +तेरी सौग़ात हो गई है +क्या जानिए मौत पहले क्या थी +अब मेरी हयात हो गई है +घटते घटते तिरी इनायत +मेरी औक़ात हो गई है +उस चश्म-ए-सियह की याद यकसर +शाम-ए-ज़ुल्मात हो गई है +इस दौर में ज़िंदगी बशर की +बीमार की रात हो गई है +जीती हुई बाज़ी-ए-मोहब्बत +खेला हूँ तो मात हो गई है +मिटने लगीं ज़िंदगी की क़द्रें +जब ग़म से नजात हो गई है +वो चाहें तो वक़्त भी बदल जाए +जब आए हैं रात हो गई है +दुनिया है कितनी बे-ठिकाना +आशिक़ की बरात हो गई है +पहले वो निगाह इक किरन थी +अब बर्क़-सिफ़ात हो गई है +जिस चीज़ को छू दिया है तू ने +इक बर्ग-ए-नबात हो गई है +इक्का-दुक्का सदा-ए-ज़ंजीर +ज़िंदाँ में रात हो गई है +एक एक सिफ़त 'फ़िराक़' उस की +देखा है तो ज़ात हो गई है " +ye-nikhaton-kii-narm-ravii-ye-havaa-ye-raat-firaq-gorakhpuri-ghazals," +ये निकहतों की नर्म-रवी ये हवा ये रात +याद आ रहे हैं इश्क़ को टूटे तअ'ल्लुक़ात +मायूसियों की गोद में दम तोड़ता है इश्क़ +अब भी कोई बना ले तो बिगड़ी नहीं है बात +कुछ और भी तो हो इन इशारात के सिवा +ये सब तो ऐ निगाह-ए-करम बात बात बात +इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में +ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रा�� +हम अहल-ए-इंतिज़ार के आहट पे कान थे +ठंडी हवा थी ग़म था तिरा ढल चली थी रात +यूँ तो बची बची सी उठी वो निगाह-ए-नाज़ +दुनिया-ए-दिल में हो ही गई कोई वारदात +जिन का सुराग़ पा न सकी ग़म की रूह भी +नादाँ हुए हैं इश्क़ में ऐसे भी सानेहात +हर सई ओ हर अमल में मोहब्बत का हाथ है +तामीर-ए-ज़िंदगी के समझ कुछ मुहर्रिकात +उस जा तिरी निगाह मुझे ले गई जहाँ +लेती हो जैसे साँस ये बे-जान काएनात +क्या नींद आए उस को जिसे जागना न आए +जो दिन को दिन करे वो करे रात को भी रात +दरिया के मद्द-ओ-जज़्र भी पानी के खेल हैं +हस्ती ही के करिश्मे हैं क्या मौत क्या हयात +अहल-ए-रज़ा में शान-ए-बग़ावत भी हो ज़रा +इतनी भी ज़िंदगी न हो पाबंद-ए-रस्मियात +हम अहल-ए-ग़म ने रंग-ए-ज़माना बदल दिया +कोशिश तो की सभी ने मगर बन पड़े की बात +पैदा करे ज़मीन नई आसमाँ नया +इतना तो ले कोई असर-ए-दौर-काएनात +शाइ'र हूँ गहरी नींद में हैं जो हक़ीक़तें +चौंका रहे हैं उन को भी मेरे तवहहुमात +मुझ को तो ग़म ने फ़ुर्सत-ए-ग़म भी न दी 'फ़िराक़' +दे फ़ुर्सत-ए-हयात न जैसे ग़म-ए-हयात " +aaii-hai-kuchh-na-puuchh-qayaamat-kahaan-kahaan-firaq-gorakhpuri-ghazals," +आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ +उफ़ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहाँ कहाँ +बेताबी-ओ-सुकूँ की हुईं मंज़िलें तमाम +बहलाएँ तुझ से छुट के तबीअ'त कहाँ कहाँ +फ़ुर्क़त हो या विसाल वही इज़्तिराब है +तेरा असर है ऐ ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहाँ कहाँ +हर जुम्बिश-ए-निगाह में सद-कैफ़ बे-ख़ुदी +भरती फिरेगी हुस्न की निय्यत कहाँ कहाँ +राह-ए-तलब में छोड़ दिया दिल का साथ भी +फिरते लिए हुए ये मुसीबत कहाँ कहाँ +दिल के उफ़क़ तक अब तो हैं परछाइयाँ तिरी +ले जाए अब तो देख ये वहशत कहाँ कहाँ +ऐ नर्गिस-ए-सियाह बता दे तिरे निसार +किस किस को है ये होश ये ग़फ़लत कहाँ कहाँ +नैरंग-ए-इश्क़ की है कोई इंतिहा कि ये +ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ +बेगानगी पर उस की ज़माने से एहतिराज़ +दर-पर्दा उस अदा की शिकायत कहाँ कहाँ +फ़र्क़ आ गया था दौर-ए-हयात-ओ-ममात में +आई है आज याद वो सूरत कहाँ कहाँ +जैसे फ़ना बक़ा में भी कोई कमी सी हो +मुझ को पड़ी है तेरी ज़रूरत कहाँ कहाँ +दुनिया से ऐ दल इतनी तबीअ'त भरी न थी +तेरे लिए उठाई नदामत कहाँ कहाँ +अब इम्तियाज़-ए-इश्क़-ओ-हवस भी नहीं रहा +होती है तेरी चश्म-ए-इनायत कहाँ कहाँ +हर गाम पर तरीक़-ए-मोहब्बत में मौत थी +इस राह में खुले दर-ए-रहमत कहाँ कहाँ +होश-ओ-जुनूँ भी अब तो बस इक ���ात हैं 'फ़िराक़' +होती है उस नज़र की शरारत कहाँ कहाँ " +kuchh-na-kuchh-ishq-kii-taasiir-kaa-iqraar-to-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है +उस का इल्ज़ाम-ए-तग़ाफ़ुल पे कुछ इंकार तो है +हर फ़रेब-ए-ग़म-ए-दुनिया से ख़बर-दार तो है +तेरा दीवाना किसी काम में हुश्यार तो है +देख लेते हैं सभी कुछ तिरे मुश्ताक़-ए-जमाल +ख़ैर दीदार न हो हसरत-ए-दीदार तो है +माअ'रके सर हों उसी बर्क़-ए-नज़र से ऐ हुस्न +ये चमकती हुई चलती हुइ तलवार तो है +सर पटकने को पटकता है मगर रुक रुक कर +तेरे वहशी को ख़याल-ए-दर-ओ-दीवार तो है +इश्क़ का शिकवा-ए-बेजा भी न बे-कार गया +न सही जौर मगर जौर का इक़रार तो है +तुझ से हिम्मत तो पड़ी इश्क़ को कुछ कहने की +ख़ैर शिकवा न सही शुक्र का इज़हार तो है +इस में भी राबता-ए-ख़ास की मिलती है झलक +ख़ैर इक़रार-ए-मोहब्बत न हो इंकार तो है +क्यूँ झपक जाती है रह रह के तिरी बर्क़-ए-निगाह +ये झिजक किस लिए इक कुश्ता-ए-दीदार तो है +कई उन्वान हैं मम्नून-ए-करम करने के +इश्क़ में कुछ न सही ज़िंदगी बे-कार तो है +सहर-ओ-शाम सर-ए-अंजुमन-ए-नाज़ न हो +जल्वा-ए-हुस्न तो है इश्क़-ए-सियहकार तो है +चौंक उठते हैं 'फ़िराक़' आते ही उस शोख़ का नाम +कुछ सरासीमगी-ए-इश्क़ का इक़रार तो है " +rukii-rukii-sii-shab-e-marg-khatm-par-aaii-firaq-gorakhpuri-ghazals-1," +रुकी रुकी सी शब-ए-मर्ग ख़त्म पर आई +वो पौ फटी वो नई ज़िंदगी नज़र आई +ये मोड़ वो है कि परछाइयाँ भी देंगी न साथ +मुसाफ़िरों से कहो उस की रहगुज़र आई +फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन +पहुँच के मंज़िल-ए-जानाँ पे आँख भर आई +कहीं ज़मान-ओ-मकाँ में है नाम को भी सुकूँ +मगर ये बात मोहब्बत की बात पर आई +किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी +उमीद-वारों में कल मौत भी नज़र आई +कहाँ हर एक से इंसानियत का बार उठा +कि ये बला भी तिरे आशिक़ों के सर आई +दिलों में आज तिरी याद मुद्दतों के बा'द +ब-चेहरा-ए-मुतबस्सिम ब-चश्म-ए-तर आई +नया नहीं है मुझे मर्ग-ए-ना-गहाँ का पयाम +हज़ार रंग से अपनी मुझे ख़बर आई +फ़ज़ा को जैसे कोई राग चीरता जाए +तिरी निगाह दिलों में यूँही उतर आई +ज़रा विसाल के बा'द आइना तो देख ऐ दोस्त +तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई +तिरा ही अक्स सरिश्क-ए-ग़म-ए-ज़माना में था +निगाह में तिरी तस्वीर सी उतर आई +अजब नहीं कि चमन-दर-चमन बने हर फूल +कली कली की सबा जा के गोद भर आई +शब-ए-'फ़िराक़' उठे दिल में और भी कुछ दर्द +कहूँ ये कैसे तिरी याद रात-भर आई " +bahut-pahle-se-un-qadmon-kii-aahat-jaan-lete-hain-firaq-gorakhpuri-ghazals," +बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं +तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं +मिरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान ओ ईमाँ हैं +निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं +जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी +उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं +निगाह-ए-बादा-गूँ यूँ तो तिरी बातों का क्या कहना +तिरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं +तबीअ'त अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में +हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं +ख़ुद अपना फ़ैसला भी इश्क़ में काफ़ी नहीं होता +उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं +हयात-ए-इश्क़ का इक इक नफ़स जाम-ए-शहादत है +वो जान-ए-नाज़-बरदाराँ कोई आसान लेते हैं +हम-आहंगी में भी इक चाशनी है इख़्तिलाफ़ों की +मिरी बातें ब-उनवान-ए-दिगर वो मान लेते हैं +तिरी मक़बूलियत की वज्ह वाहिद तेरी रमज़िय्यत +कि उस को मानते ही कब हैं जिस को जान लेते हैं +अब इस को कुफ़्र मानें या बुलंदी-ए-नज़र जानें +ख़ुदा-ए-दो-जहाँ को दे के हम इंसान लेते हैं +जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का +इबारत देख कर जिस तरह मा'नी जान लेते हैं +तुझे घाटा न होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में +हम अपने सर तिरा ऐ दोस्त हर एहसान लेते हैं +हमारी हर नज़र तुझ से नई सौगंध खाती है +तो तेरी हर नज़र से हम नया पैमान लेते हैं +रफ़ीक़-ए-ज़िंदगी थी अब अनीस-ए-वक़्त-ए-आख़िर है +तिरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान लेते हैं +ज़माना वारदात-ए-क़ल्ब सुनने को तरसता है +इसी से तो सर आँखों पर मिरा दीवान लेते हैं +'फ़िराक़' अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर +कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं " +har-naala-tire-dard-se-ab-aur-hii-kuchh-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है +हर नग़्मा सर-ए-बज़्म-ए-तरब और ही कुछ है +अरबाब-ए-वफ़ा जान भी देने को हैं तयार +हस्ती का मगर हुस्न-ए-तलब और ही कुछ है +ये काम न ले नाला-ओ-फ़र्याद-ओ-फ़ुग़ां से +अफ़्लाक उलट देने का ढब और ही कुछ है +इक सिलसिला-ए-राज़ है जीना कि हो मरना +जब और ही कुछ था मगर अब और ही कुछ है +कुछ मेहर-ए-क़यामत है न कुछ नार-ए-जहन्नम +होश्यार कि वो क़हर-ओ-ग़ज़ब और ही कुछ है +मज़हब की ख़राबी है न अख़्लाक़ की पस्ती +दुनिया के मसाइब का सबब और ही कुछ है +बेहूदा-सारी सज्दे में है जान खपाना +आईन-ए-मोहब्बत में अदब और ही कुछ है +क्या हुस्न के अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल की शिकायत +पैमान-ए-वफ़ा इश्क़ का जब और ही कुछ है +दुनिया को जगा दे जो अदम को भी सुला दे +सुनते हैं कि वो रोज़ वो शब और ही कुछ है +आँखों ने 'फ़िराक़' आज न पूछो जो दिखाया +जो कुछ नज़र आता है वो सब और ही कुछ है " +chhed-ai-dil-ye-kisii-shokh-ke-rukhsaaron-se-firaq-gorakhpuri-ghazals," +छेड़ ऐ दिल ये किसी शोख़ के रुख़्सारों से +खेलना आह दहकते हुए अँगारों से +हम शब-ए-हिज्र में जब सोती है सारी दुनिया +ज़िक्र करते हैं तिरा छिटके हुए तारों से +अश्क भर लाए किसी ने जो तिरा नाम लिया +और क्या हिज्र में होता तिरे बीमारों से +छेड़ नग़्मा कोई गो दिल की शिकस्ता हैं रगें +हम निकालेंगे सदा टूटे हुए तारों से +हम को तेरी है ज़रूरत न इसे भूल ऐ दोस्त +तेरे इक़रारों से मतलब है न इन्कारों से +हम हैं वो बेकस-ओ-बे-यार कि बैठे बैठे +अपना दुख-दर्द कहा करते हैं दीवारों से +अहल-ए-दुनिया से ये कहते हैं मिरे नाला-ए-दिल +हम सदा देंगे ग़म-ए-हिज्र के मीनारों से +इश्क़ हमदर्दी-ए-आलम का रवादार नहीं +हो गई भूल 'फ़िराक़' आप के ग़म-ख़्वारों से " +zamiin-badlii-falak-badlaa-mazaaq-e-zindagii-badlaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +ज़मीं बदली फ़लक बदला मज़ाक़-ए-ज़िंदगी बदला +तमद्दुन के क़दीम अक़दार बदले आदमी बदला +ख़ुदा-ओ-अहरमन बदले वो ईमान-ए-दुई बदला +हदूद-ए-ख़ैर-ओ-शर बदले मज़ाक़-ए-काफ़िरी बदला +नए इंसान का जब दौर-ए-ख़ुद-ना-आगही बदला +रुमूज़-ए-बे-ख़ुदी बदले तक़ाज़ा-ए-ख़ुदी बदला +बदलते जा रहे हैं हम भी दुनिया को बदलने में +नहीं बदली अभी दुनिया तो दुनिया को अभी बदला +नई मंज़िल के मीर-ए-कारवाँ भी और होते हैं +पुराने ख़िज़्र-ए-रह बदले वो तर्ज़-ए-रहबरी बदला +कभी सोचा भी है ऐ नज़्म-ए-कोहना के ख़ुदा-वंदो +तुम्हारा हश्र क्या होगा जो ये आलम कभी बदला +उधर पिछले से अहल-ए-माल-ओ-ज़र पर रात भारी है +इधर बेदारी-ए-जम्हूर का अंदाज़ भी बदला +ज़हे सोज़-ए-ग़म-ए-आदम ख़ुशा साज़-ए-दिल-ए-आदम +इसी इक शम्अ' की लौ ने जहान-ए-तीरगी बदला +नए मंसूर हैं सदियों पुराने शेख़-ओ-क़ाज़ी हैं +न फ़तवे कुफ़्र के बदले न उज़्र-ए-दार ही बदला +बताए तो बताए उस को तेरी शोख़ी-ए-पिन्हाँ +तिरी चश्म-ए-तवज्जोह है कि तर्ज़-ए-बे-रुख़ी बदला +ब-फ़ैज़-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़मीं सोना उगलती है +उसी ज़र्रे ने दौर-ए-मेहर-ओ-माह-ओ-मुशतरी बदला +सितारे जागते हैं रात लट छटकाए सोती है +दबे पाँव किसी ने आ के ख़्वाब-ए-ज़िंदगी बदला +'फ़िराक़' हम-नवा-ए-'मीर'-ओ-'ग़ालिब' अब नए नग़्मे +वो बज़्म-ए-ज़िंदगी बदली वो रंग-ए-शाइ'री बदला " +dete-hain-jaam-e-shahaadat-mujhe-maaluum-na-thaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +देते हैं जाम-ए-शहादत मुझे मा'लूम न था +है ये आईन-ए-मोहब्बत मुझे मा'लूम न था +मतलब-ए-चश्म-ए-मुरव्वत मुझे मा'लूम न था +तुझ को मुझ से थी शिकायत मुझे मा'लूम न था +चश्म-ए-ख़ामोश की बाबत मुझे मा'लूम न था +ये भी है हर्फ़-ओ-हिकायत मुझे मा'लूम न था +इश्क़ बस में है मशिय्यत के अक़ीदा था मिरा +उस के बस में है मशिय्यत मुझे मा'लूम न था +हफ़्त-ख़्वाँ जिस ने किए तय सर-ए-राह-ए-तस्लीम +टूट जाती है वो हिम्मत मुझे मा'लूम न था +आज हर क़तरा-ए-मय बन गया इक चिंगारी +थी ये साक़ी की शरारत मुझे मा'लूम न था +निगह-ए-मस्त ने तलवार उठा ली सर-ए-बज़्म +यूँ बदल जाती है निय्यत मुझे मा'लूम न था +ग़म-ए-हस्ती से जो बेज़ार रहा मैं इक उम्र +तुझ से भी थी उसे निस्बत मुझे मा'लूम न था +इश्क़ भी अहल-ए-तरीक़त में है ऐसा था ख़याल +इश्क़ है पीर-ए-तरीक़त मुझे मा'लूम न था +पूछ मत शरह-करम-हा-ए-अज़ीज़ाँ हमदम +उन में इतनी थी शराफ़त मुझे मा'लूम न था +जब से देखा है तुझे मुझ से है मेरी अन-बन +हुस्न का रंग-ए-सियासत मुझे मा'लूम न था +शक्ल इंसान की हो चाल भी इंसान की हो +यूँ भी आती है क़यामत मुझे मा'लूम न था +सर-ए-मामूरा-ए-आलम ये दिल-ए-ख़ाना-ख़राब +मिट गया तेरी बदौलत मुझे मा'लूम न था +पर्दा-ए-अर्ज़-ए-वफ़ा में भी रहा हूँ करता +तुझ से मैं अपनी ही ग़ीबत मुझे मा'लूम न था +नक़्द-ए-जाँ क्या है ज़माने में मोहब्बत हमदम +नहीं मिलती किसी क़ीमत मुझे मा'लूम न था +हो गया आज रफ़ीक़ों से गले मिल के जुदा +अपना ख़ुद इश्क़-ए-सदाक़त मुझे मा'लूम न था +दर्द दिल क्या है खुला आज तिरे लड़ने पर +तुझ से इतनी थी मोहब्बत मुझे मा'लूम न था +दम निकल जाए मगर दिल न लगाए कोई +इश्क़ की ये थी वसिय्यत मुझे मा'लूम न था +हुस्न वालों को बहुत सहल समझ रक्खा था +तुझ पे आएगी तबीअत मुझे मा'लूम न था +कितनी ख़ल्लाक़ है ये नीस्ती-ए-इश्क़ 'फ़िराक़' +उस से हस्ती है इबारत मुझे मा'लूम न था " +gam-tiraa-jalva-gah-e-kaun-o-makaan-hai-ki-jo-thaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था +या'नी इंसान वही शो'ला-ब-जाँ है कि जो था +फिर वही रंग-ए-तकल्लुम निगह-ए-नाज़ में है +वही अंदाज़ वही हुस्न-ए-बयाँ है कि जो था +कब है इंकार तिरे लुत्फ़-ओ-करम से लेकिन +तू वही दुश्मन-ए-दिल दुश्मन-ए-जाँ है कि जो था +इश्क़ अफ़्सुर्दा नहीं आज भी अफ़्सुर्दा बहुत +वही कम कम असर-ए-सोज़-ए-निहाँ है कि जो था +क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन +आज वो रब्त का एहसास कहाँ है कि जो था +नज़र आ जाते हैं तुम को तो बहुत नाज़ुक बाल +दिल मिरा क्या वही ऐ शीशा-गिराँ है कि जो था +जान दे बैठे थे इक बार हवस वाले भी +फिर वही मरहला-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है कि जो था +हुस्न को खींच तो लेता है अभी तक लेकिन +वो असर जज़्ब-ए-मोहब्बत में कहाँ है कि जो था +आज भी सैद-गह-ए-इश्क़ में हुसन-ए-सफ़्फ़ाक +लिए अबरू की लचकती सी कमाँ है कि जो था +फिर तिरी चश्म-ए-सुख़न-संज ने छेड़ी कोई बात +वही जादू है वही हुस्न-ए-बयाँ है कि जो था +फिर सर-ए-मय-कद-ए-इश्क़ है इक बारिश-ए-नूर +छलके जामों से चराग़ाँ का समाँ है कि जो था +फिर वही ख़ैर-निगाही है तिरे जल्वों से +वही आलम तिरा ऐ बर्क़-ए-दमाँ है कि जो था +आज भी आग दबी है दिल-ए-इंसाँ में 'फ़िराक़' +आज भी सीनों से उठता वो धुआँ है कि जो था " +apne-gam-kaa-mujhe-kahaan-gam-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है +ऐ कि तेरी ख़ुशी मुक़द्दम है +आग में जो पड़ा वो आग हुआ +हुस्न-ए-सोज़-ए-निहाँ मुजस्सम है +उस के शैतान को कहाँ तौफ़ीक़ +इश्क़ करना गुनाह-ए-आदम है +दिल के धड़कों में ज़ोर-ए-ज़र्ब-ए-कलीम +किस क़दर इस हबाब में दम है +है वही इश्क़ ज़िंदा-ओ-जावेद +जिसे आब-ए-हयात भी सम है +इस में ठहराव या सुकून कहाँ +ज़िंदगी इंक़लाब-ए-पैहम है +इक तड़प मौज-ए-तह-नशीं की तरह +ज़िंदगी की बिना-ए-मोहकम है +रहती दुनिया में इश्क़ की दुनिया +नए उन्वान से मुनज़्ज़म है +उठने वाली है बज़्म माज़ी की +रौशनी कम है ज़िंदगी कम है +ये भी नज़्म-ए-हयात है कोई +ज़िंदगी ज़िंदगी का मातम है +इक मुअ'म्मा है ज़िंदगी ऐ दोस्त +ये भी तेरी अदा-ए-मुबहम है +ऐ मोहब्बत तू इक अज़ाब सही +ज़िंदगी बे तिरे जहन्नम है +इक तलातुम सा रंग-ओ-निकहत का +पैकर-ए-नाज़ में दमा-दम है +फिरने को है रसीली नीम-निगाह +आहू-ए-नाज़ माइल-ए-राम है +रूप के जोत ज़ेर-ए-पैराहन +गुल्सिताँ पर रिदा-ए-शबनम है +मेरे सीने से लग के सो जाओ +पलकें भारी हैं रात भी कम है +आह ये मेहरबानियाँ तेरी +शादमानी की आँख पुर-नम है +नर्म ओ दोशीज़ा किस क़द्र है निगाह +हर नज़र दास्तान-ए-मरयम है +मेहर-ओ-मह शोला-हा-ए-साज़-ए-जमाल +जिस की झंकार इतनी मद्धम है +जैसे उछले जुनूँ की पहली शाम +इस अदा से वो ज़ुल्फ़ बरहम है +यूँ भी दिल में नहीं वो पहली उमंग +और तेरी निगाह भी कम है +और क्यूँ छेड़ती है गर्दिश-ए-चर्ख़ +वो नज़र फिर गई ये क्या कम है +रू-कश-ए-सद-हरीम-ए-दिल है फ़ज़ा +वो जहाँ हैं अजीब आलम है +दिए जाती है लौ सदा-ए-'फ़िराक़' +हाँ वही सोज़-ओ-साज़ कम कम है " +vo-chup-chaap-aansuu-bahaane-kii-raaten-firaq-gorakhpuri-ghazals," +वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें +वो इक शख़्स के याद आने की रातें +शब-ए-मह की वो ठंडी आँचें वो शबनम +तिरे हुस्न के रस्मसाने की रातें +जवानी की दोशीज़गी का तबस्सुम +गुल-ए-ज़ार के वो खिलाने की रातें +फुवारें सी नग़्मों की पड़ती हों जैसे +कुछ उस लब के सुनने-सुनाने की रातें +मुझे याद है तेरी हर सुब्ह-ए-रुख़्सत +मुझे याद हैं तेरे आने की रातें +पुर-असरार सी मेरी अर्ज़-ए-तमन्ना +वो कुछ ज़ेर-ए-लब मुस्कुराने की रातें +सर-ए-शाम से रतजगा के वो सामाँ +वो पिछले पहर नींद आने की रातें +सर-ए-शाम से ता-सहर क़ुर्ब-ए-जानाँ +न जाने वो थीं किस ज़माने की रातें +सर-ए-मय-कदा तिश्नगी की वो क़स्में +वो साक़ी से बातें बनाने की रातें +हम-आग़ोशियाँ शाहिद-ए-मेहरबाँ की +ज़माने के ग़म भूल जाने की रातें +'फ़िराक़' अपनी क़िस्मत में शायद नहीं थे +ठिकाने के दिन या ठिकाने की रातें " +samajhtaa-huun-ki-tuu-mujh-se-judaa-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है +शब-ए-फ़ुर्क़त मुझे क्या हो गया है +तिरा ग़म क्या है बस ये जानता हूँ +कि मेरी ज़िंदगी मुझ से ख़फ़ा है +कभी ख़ुश कर गई मुझ को तिरी याद +कभी आँखों में आँसू आ गया है +हिजाबों को समझ बैठा मैं जल्वा +निगाहों को बड़ा धोका हुआ है +बहुत दूर अब है दिल से याद तेरी +मोहब्बत का ज़माना आ रहा है +न जी ख़ुश कर सका तेरा करम भी +मोहब्बत को बड़ा धोका रहा है +कभी तड़पा गया है दिल तिरा ग़म +कभी दिल को सहारा दे गया है +शिकायत तेरी दिल से करते करते +अचानक प्यार तुझ पर आ गया है +जिसे चौंका के तू ने फेर ली आँख +वो तेरा दर्द अब तक जागता है +जहाँ है मौजज़न रंगीनी-ए-हुस्न +वहीं दिल का कँवल लहरा रहा है +गुलाबी होती जाती हैं फ़ज़ाएँ +कोई इस रंग से शरमा रहा है +मोहब्बत तुझ से थी क़ब्ल-अज़-मोहब्बत +कुछ ऐसा याद मुझ को आ रहा है +जुदा आग़ाज़ से अंजाम से दूर +मोहब्बत इक मुसलसल माजरा है +ख़ुदा-हाफ़िज़ मगर अब ज़िंदगी में +फ़क़त अपना सहारा रह गया है +मोहब्बत में 'फ़िराक़' इतना न ग़म कर +ज़माने में यही होता रहा है " +diidaar-men-ik-tarfa-diidaar-nazar-aayaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +दीदार में इक तुर्फ़ा दीदार नज़र आया +हर बार छुपा कोई हर बार नज़र आया +छालों को बयाबाँ भी गुलज़ार नज़र आया +जब छेड़ पर आमादा हर ख़ार नज़र आया +सुब्ह-ए-शब-ए-हिज्राँ की वो चाक-गरेबानी +इक आलम-ए-नैरंगी हर तार नज़र आया +हो सब्र कि बेताबी उम्मीद कि मायूसी +नैरंग-ए-मोहब्बत भी बे-कार नज़र आया +जब चश्म-ए-सियह तेरी थी छाई हुई दिल पर +इस मुल्क का हर ख़ित्ता तातार नज़र आया +तू ने भी तो देखी थी वो जाती हुई दुनिया +क्या आख़री लम्हों में बीमार नज़र आया +ग़श खा के गिरे मूसा अल्लाह-री मायूसी +हल्का सा वो पर्दा भी दीवार नज़र आया +ज़र्रा हो कि क़तरा हो ख़ुम-ख़ाना-ए-हस्ती में +मख़मूर नज़र आया सरशार नज़र आया +क्या कुछ न हुआ ग़म से क्या कुछ न किया ग़म ने +और यूँ तो हुआ जो कुछ बे-कार नज़र आया +ऐ इश्क़ क़सम तुझ को मा'मूरा-ए-आलम की +कोई ग़म-ए-फ़ुर्क़त में ग़म-ख़्वार नज़र आया +शब कट गई फ़ुर्क़त की देखा न 'फ़िराक़' आख़िर +तूल-ए-ग़म-ए-हिज्राँ भी बे-कार नज़र आया " +jahaan-e-guncha-e-dil-kaa-faqat-chataknaa-thaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +जहान‌‌‌‌-ए-गुंचा-ए-दिल का फ़क़त चटकना था +उसी की बू-ए-परेशाँ वजूद-ए-दुनिया था +ये कह के कल कोई बे-इख़्तियार रोता था +वो इक निगाह सही क्यूँ किसी को देखा था +तनाबें कूचा-ए-क़ातिल की खिंचती जाती थीं +शहीद-ए-तेग़-ए-अदा में भी ज़ोर कितना था +बस इक झलक नज़र आई उड़े कलीम के होश +बस इक निगाह हुई ख़ाक तूर-ए-सीना था +हर इक के हाथ फ़क़त ग़फ़लतें थीं होश-नुमा +कि अपने आप से बेगाना-वार जीना था +यही हुआ कि फ़रेब-ए-उमीद-ओ-यास मिटे +वो पा गए तिरे हाथों हमें जो पाना था +चमन में ग़ुंचा-ए-गुल खिलखिला के मुरझाए +यही वो थे जिन्हें हँस हँस के जान देना था +निगाह-ए-मेहर में जिस की हैं सद पयाम-ए-फ़ना +उसी का आलम-ए-ईजाद-ओ-नाज़ बेजा था +जहाँ तू जल्वा-नुमा था लरज़ती थी दुनिया +तिरे जमाल से कैसा जलाल पैदा था +हयात-ओ-मर्ग के कुछ राज़ खुल गए होंगे +फ़साना-ए-शब-ए-ग़म वर्ना दोस्तो क्या था +शब-ए-अदम का फ़साना गुदाज़ शम-ए-हयात +सिवाए कैफ़-ए-फ़ना मेरा माजरा क्या था +कुछ ऐसी बात न थी तेरा दूर हो जाना +ये और बात कि रह रह के दर्द उठता था +न पूछ सूद-ओ-ज़ियाँ कारोबार-ए-उल्फ़त के +वगर्ना यूँ तो न पाना था कुछ न खोता था +लगावटें वो तिरे हुस्न-ए-बे-नियाज़ की आह +मैं तेरी बज़्म से जब ना-उमीद उट्ठा था +तुझे हम ऐ दिल-ए-दर्द-आश्ना कहाँ ढूँडें +हम अपने होश में कब थे कोई जब उट्ठा था +अदम का राज़ सदा-ए-शिकस्त साज़-ए-हयात +हिजाब-ए-ज़ीस्त भी कितना लतीफ़ पर्दा था +ये इज़तिराब-ओ-सुकूँ भी थी इक फ़रेब-ए-हयात +कि अपने हाल से बेगाना-वार जीना था +कहाँ पे चूक हुई तेरे बे-क़रारों से +ज़माना दूसरी करवट बदलने ���ाला था +ये कोई याद है ये भी है कोई मह्विय्यत +तिरे ख़याल में तुझ को भी भूल जाना था +कहाँ की चोट उभर आई हुस्न-ए-ताबाँ में +दम-ए-नज़ारा वो रुख़ दर्द सा चमकता था +न पूछ रम्ज़-ओ-किनायात चश्म-ए-साक़ी के +बस एक हश्र-ए-ख़मोश अंजुमन में बरपा था +चमन चमन थी गुल-ए-दाग़-ए-इश्क़ से हस्ती +उसी की निकहत-ए-बर्बाद का ज़माना था +वो था मिरा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता जिस के मिटने से +बहार-ए-बाग़-ए-जिनाँ थी वजूद-ए-दुनिया था +क़सम है बादा-कशो चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी की +बताओ हाथ से क्या जाम-ए-मय सँभलता था +विसाल उस से मैं चाहूँ कहाँ ये दिल मेरा +ये रो रहा हूँ कि क्यूँ उस को मैं ने देखा था +उमीद यास बनी यास फिर उमीद बनी +उस इक नज़र में फ़रेब-ए-निगाह कितना था +ये सोज़-ओ-साज़-ए-निहाँ था वो सोज़-ओ-साज़-ए-अयाँ +विसाल-ओ-हिज्र में बस फ़र्क़ था तो इतना था +शिकस्त-ए-साज़-ए-चमन थी बहार-ए-लाला-ओ-गुल +ख़िज़ाँ मचलती थी ग़ुंचा जहाँ चटकता था +हर एक साँस है तज्दीद-ए-याद-ए-अय्यामी +गुज़र गया वो ज़माना जिसे गुज़रना था +न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद +मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था +किसी के सब्र ने बे-सब्र दिया सब को +'फ़िराक़' नज़्अ' में करवट कोई बदलता था " +daur-e-aagaaz-e-jafaa-dil-kaa-sahaaraa-niklaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला +हौसला कुछ न हमारा न तुम्हारा निकला +तेरा नाम आते ही सकते का था आलम मुझ पर +जाने किस तरह ये मज़कूर दोबारा निकला +होश जाता है जिगर जाता है दल जाता है +पर्दे ही पर्दे में क्या तेरा इशारा निकला +है तिरे कश्फ़-ओ-करामात की दुनिया क़ाइल +तुझ से ऐ दिल न मगर काम हमारा निकला +कितने सफ़्फ़ाक सर-ए-क़त्ल-गह-ए-आलम थे +लाखों में बस वही अल्लाह का प्यारा निकला +इबरत-अंगेज़ है क्या उस की जवाँ-मर्गी भी +हाए वो दिल जो हमारा न तुम्हारा निकला +इश्क़ की लौ से फ़रिश्तों के भी पर जलते हैं +रश्क-ए-ख़ुर्शीद-ए-क़यामत ये शरारा निकला +सर-ब-सर बे-सर-ओ-सामाँ जिसे समझे थे वो दिल +रश्क-ए-जम्शेद-ओ-कै-ओ-ख़ुसरो-ओ-दारा निकला +रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली +शम्अ' बे-नूर हुई सुब्ह का तारा निकला +उँगलियाँ उट्ठीं 'फ़िराक़'-ए-वतन-आवारा पर +आज जिस सम्त से वो दर्द का मारा निकला " +ab-daur-e-aasmaan-hai-na-daur-e-hayaat-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है +ऐ दर्द-ए-हिज्र तू ही बता कितनी रात है +हर काएनात से ये अलग काएनात है +हैरत-सरा-ए-इश्क़ में दिन है न रात है +जीना जो आ गया तो अजल भी हयात है +और यूँ तो उम्र-ए-ख़िज़्र भी क्या बे-सबात है +क्यूँ इंतिहा-ए-होश को कहते हैं बे-ख़ुदी +ख़ुर्शीद ही की आख़िरी मंज़िल तो रात है +हस्ती को जिस ने ज़लज़ला-सामाँ बना दिया +वो दिल क़रार पाए मुक़द्दर की बात है +ये मुशगाफ़ियाँ हैं गिराँ तब-ए-इश्क़ पर +किस को दिमाग़-ए-काविश-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ात है +तोड़ा है ला-मकाँ की हदों को भी इश्क़ ने +ज़िंदान-ए-अक़्ल तेरी तो क्या काएनात है +गर्दूं शरार-ए-बर्क़-ए-दिल-ए-बे-क़रार देख +जिन से ये तेरी तारों भरी रात रात है +गुम हो के हर जगह हैं ज़-ख़ुद रफ़्तगान-ए-इश्क़ +उन की भी अहल-ए-कश्फ़-ओ-करामात ज़ात है +हस्ती ब-जुज़ फ़ना-ए-मुसलसल के कुछ नहीं +फिर किस लिए ये फ़िक्र-ए-क़रार-ओ-सबात है +उस जान-ए-दोस्ती का ख़ुलूस-ए-निहाँ न पूछ +जिस का सितम भी ग़ैरत-ए-सद-इल्तिफ़ात है +यूँ तो हज़ार दर्द से रोते हैं बद-नसीब +तुम दिल दुखाओ वक़्त-ए-मुसीबत तो बात है +उनवान ग़फ़लतों के हैं क़ुर्बत हो या विसाल +बस फ़ुर्सत-ए-हयात 'फ़िराक़' एक रात है " +kamii-na-kii-tire-vahshii-ne-khaak-udaane-men-firaq-gorakhpuri-ghazals," +कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में +जुनूँ का नाम उछलता रहा ज़माने में +'फ़िराक़' दौड़ गई रूह सी ज़माने में +कहाँ का दर्द भरा था मिरे फ़साने में +जुनूँ से भूल हुई दिल पे चोट खाने में +'फ़िराक़' देर अभी थी बहार आने में +वो कोई रंग है जो उड़ न जाए ऐ गुल-ए-तर +वो कोई बू है जो रुस्वा न हो ज़माने में +वो आस्तीं है कोई जो लहू न दे निकले +वो कोई हसन है झिझके जो रंग लाने में +ये गुल खिले हैं कि चोटें जिगर की उभरी हैं +निहाँ बहार थी बुलबुल तिरे तराने में +बयान-ए-शम्अ है हासिल यही है जलने का +फ़ना की कैफ़ियतें देख झिलमिलाने में +कसी की हालत-ए-दिल सुन के उठ गईं आँखें +कि जान पड़ गई हसरत भरे फ़साने में +उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम +जो दास्ताँ थी निहाँ तेरे आँख उठाने में +ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त +वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में +हमीं हैं गुल हमीं बुलबुल हमीं हवा-ए-चमन +'फ़िराक़' ख़्वाब ये देखा है क़ैद-ख़ाने में " +raat-bhii-niind-bhii-kahaanii-bhii-firaq-gorakhpuri-ghazals," +रात भी नींद भी कहानी भी +हाए क्या चीज़ है जवानी भी +एक पैग़ाम-ए-ज़िंदगानी भी +आशिक़ी मर्ग-ए-ना-गहानी भी +इस अदा का तिरी जवाब नहीं +मेहरबानी भी सरगिरानी भी +दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में +कुछ बलाएँ थीं आसमानी भी +मंसब-ए-दिल ख़ुशी लुटाना है +ग़म-ए-पिन्हाँ की पासबा���ी भी +दिल को शो'लों से करती है सैराब +ज़िंदगी आग भी है पानी भी +शाद-कामों को ये नहीं तौफ़ीक़ +दिल-ए-ग़म-गीं की शादमानी भी +लाख हुस्न-ए-यक़ीं से बढ़ कर है +उन निगाहों की बद-गुमानी भी +तंगना-ए-दिल-ए-मलूल में है +बहर-ए-हस्ती की बे-करानी भी +इश्क़-ए-नाकाम की है परछाईं +शादमानी भी कामरानी भी +देख दिल के निगार-ख़ाने में +ज़ख़्म-ए-पिन्हाँ की है निशानी भी +ख़ल्क़ क्या क्या मुझे नहीं कहती +कुछ सुनूँ मैं तिरी ज़बानी भी +आए तारीख़-ए-इश्क़ में सौ बार +मौत के दौर-ए-दरमियानी भी +अपनी मासूमियत के पर्दे में +हो गई वो नज़र सियानी भी +दिन को सूरज-मुखी है वो नौ-गुल +रात को है वो रात-रानी भी +दिल-ए-बद-नाम तेरे बारे में +लोग कहते हैं इक कहानी भी +वज़्अ' करते कोई नई दुनिया +कि ये दुनिया हुई पुरानी भी +दिल को आदाब-ए-बंदगी भी न आए +कर गए लोग हुक्मरानी भी +जौर-ए-कम-कम का शुक्रिया बस है +आप की इतनी मेहरबानी भी +दिल में इक हूक भी उठी ऐ दोस्त +याद आई तिरी जवानी भी +सर से पा तक सुपुर्दगी की अदा +एक अंदाज़-ए-तुर्कमानी भी +पास रहना किसी का रात की रात +मेहमानी भी मेज़बानी भी +हो न अक्स-ए-जबीन-ए-नाज़ कि है +दिल में इक नूर-ए-कहकशानी भी +ज़िंदगी ऐन दीद-ए-यार 'फ़िराक़' +ज़िंदगी हिज्र की कहानी भी " +shaam-e-gam-kuchh-us-nigaah-e-naaz-kii-baaten-karo-firaq-gorakhpuri-ghazals," +शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो +बे-ख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो +ये सुकूत-ए-नाज़ ये दिल की रगों का टूटना +ख़ामुशी में कुछ शिकस्त-ए-साज़ की बातें करो +निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ दास्तान-ए-शाम-ए-ग़म +सुब्ह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो +हर रग-ए-दिल वज्द में आती रहे दुखती रहे +यूँही उस के जा-ओ-बेजा नाज़ की बातें करो +जौ अदम की जान है जो है पयाम-ए-ज़िंदगी +उस सुकूत-ए-राज़ उस आवाज़ की बातें करो +इश्क़ रुस्वा हो चला बे-कैफ़ सा बेज़ार सा +आज उस की नर्गिस-ए-ग़म्माज़ की बातें करो +नाम भी लेना है जिस का इक जहान-ए-रंग-ओ-बू +दोस्तो उस नौ-बहार-ए-नाज़ की बातें करो +किस लिए उज़्र-ए-तग़ाफुल किस लिए इल्ज़ाम-ए-इश्क़ +आज चर्ख़-ए-तफ़रक़ा-पर्वाज़ की बातें करो +कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा +कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो +जो हयात-ए-जाविदाँ है जो है मर्ग-ए-ना-गहाँ +आज कुछ उस नाज़ उस अंदाज़ की बातें करो +इश्क़-ए-बे-परवा भी अब कुछ ना-शकेबा हो चला +शोख़ी-ए-हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ की बातें करो +जिस की फ़ुर्क़त ने पलट दी इश्क़ की काया 'फ़िराक़' +आज उस ईसा-नफ़स दम-साज़ की बातें करो " +jaur-o-be-mehrii-e-igmaaz-pe-kyaa-rotaa-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है +मेहरबाँ भी कोई हो जाएगा जल्दी क्या है +खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही +जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है +दिल का इक काम जो होता नहीं इक मुद्दत से +तुम ज़रा हाथ लगा दो तो हुआ रक्खा है +निगह-ए-शोख़ में और दिल में हैं चोटें क्या क्या +आज तक हम न समझ पाए कि झगड़ा क्या है +इश्क़ से तौबा भी है हुस्न से शिकवे भी हज़ार +कहिए तो हज़रत-ए-दिल आप का मंशा क्या है +ज़ीनत-ए-दोश तिरा नामा-ए-आमाल न हो +तेरी दस्तार से वाइ'ज़ ये लटकता क्या है +हाँ अभी वक़्त का आईना दिखाए क्या क्या +देखते जाओ ज़माना अभी देखा क्या है +न यगाने हैं न बेगाने तिरी महफ़िल में +न कोई ग़ैर यहाँ है न कोई अपना है +निगह-ए-मस्त को जुम्बिश न हुइ गो सर-ए-बज़्म +कुछ तो इस जाम-ए-लबा-लब से अभी छलका है +रात-दिन फिरती है पलकों के जो साए साए +दिल मिरा उस निगह-ए-नाज़ का दीवाना है +हम जुदाई से भी कुछ काम तो ले ही लेंगे +बे-नियाज़ाना तअ'ल्लुक़ ही छुटा अच्छा है +उन से बढ़-चढ़ के तो ऐ दोस्त हैं यादें इन की +नाज़-ओ-अंदाज़-ओ-अदा में तिरी रक्खा क्या है +ऐसी बातों से बदलती है कहीं फ़ितरत-ए-हुस्न +जान भी दे दे अगर कोई तो क्या होता है +तिरी आँखों को भी इंकार तिरी ज़ुल्फ़ को भी +किस ने ये इश्क़ को दीवाना बना रक्खा है +दिल तिरा जान तिरी आह तिरी अश्क तिरे +जो है ऐ दोस्त वो तेरा है हमारा क्या है +दर-ए-दौलत पे दुआएँ सी सुनी हैं मैं ने +देखिए आज फ़क़ीरों का किधर फेरा है +तुझ को हो जाएँगे शैतान के दर्शन वाइ'ज़ +डाल कर मुँह को गरेबाँ में कभी देखा है +हम कहे देते हैं चालों में न आओ उन की +सर्वत-ओ-जाह के इश्वों से बचो धोका है +यही गर आँख में रह जाए तो है चिंगारी +क़तरा-ए-अश्क जो बह जाए तो इक दरिया है +ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ के सिवा नर्गिस-ए-जादू के सिवा +दिल को कुछ और बलाओं ने भी आ घेरा है +लब-ए-एजाज़ की सौगंद ये झंकार थी क्या +तेरी ख़ामोशी के मानिंद अभी कुछ टूटा है +दार पर गाह नज़र गाह सू-ए-शहर-ए-निगार +कुछ सुनें हम भी तो ऐ इश्क़ इरादा क्या है +आ कि ग़ुर्बत-कदा-ए-दहर में जी बहलाएँ +ऐ दिल उस जल्वा-गह-ए-नाज़ में क्या रक्खा है +ज़ख़्म ही ज़ख़्म हूँ मैं सुब्ह की मानिंद 'फ़िराक़' +रात भर हिज्र की लज़्ज़त से मज़ा लूटा है " +bastiyaan-dhuundh-rahii-hain-unhen-viiraanon-men-firaq-gorakhpuri-ghazals," +बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में +वहशतें बढ़ गईं हद से तिरे दीवानों में +निगह-ए-नाज़ न दीवानों न फ़र्ज़ानों में +जानकार एक वही है मगर अन-जानों में +बज़्म-ए-मय बे-ख़ुद-ओ-बे-ताब न क्यूँ हो साक़ी +मौज-ए-बादा है कि दर्द उठता है पैमानों में +मैं तो मैं चौंक उठी है ये फ़ज़ा-ए-ख़ामोश +ये सदा कब की सुनी आती है फिर कानों में +सैर कर उजड़े दिलों की जो तबीअ'त है उदास +जी बहल जाते हैं अक्सर इन्हीं वीरानों में +वुसअ'तें भी हैं निहाँ तंगी-ए-दिल में ग़ाफ़िल +जी बहल जाते हैं अक्सर इन्हीं मैदानों में +जान ईमान-ए-जुनूँ सिलसिला जुम्बान-ए-जुनूँ +कुछ कशिश-हा-ए-निहाँ जज़्ब हैं वीरानों में +ख़ंदा-ए-सुब्ह-ए-अज़ल तीरगी-ए-शाम-ए-अबद +दोनों आलम हैं छलकते हुए पैमानों में +देख जब आलम-ए-हू को तो नया आलम है +बस्तियाँ भी नज़र आने लगीं वीरानों में +जिस जगह बैठ गए आग लगा कर उट्ठे +गर्मियाँ हैं कुछ अभी सोख़्ता-सामानों में +वहशतें भी नज़र आती हैं सर-ए-पर्दा-ए-नाज़ +दामनों में है ये आलम न गरेबानों में +एक रंगीनी-ए-ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर +एक शादाबी-ए-पिन्हाँ है बयाबानों में +जौहर-ए-ग़ुंचा-ओ-गुल में है इक अंदाज़-ए-जुनूँ +कुछ बयाबाँ नज़र आए हैं गरेबानों में +अब वो रंग-ए-चमन-ओ-ख़ंदा-ए-गुल भी न रहे +अब वो आसार-ए-जुनूँ भी नहीं दीवानों में +अब वो साक़ी की भी आँखें न रहीं रिंदों में +अब वो साग़र भी छलकते नहीं मय-ख़ानों में +अब वो इक सोज़-ए-निहानी भी दिलों में न रहा +अब वो जल्वे भी नहीं इश्क़ के काशानों में +अब न वो रात जब उम्मीदें भी कुछ थीं तुझ से +अब न वो बात ग़म-ए-हिज्र के अफ़्सानों में +अब तिरा काम है बस अहल-ए-वफ़ा का पाना +अब तिरा नाम है बस इश्क़ के ग़म-ख़ानों में +ता-ब-कै वादा-ए-मौहूम की तफ़्सील 'फ़िराक़' +शब-ए-फ़ुर्क़त कहीं कटती है इन अफ़्सानों में " +sar-men-saudaa-bhii-nahiin-dil-men-tamannaa-bhii-nahiin-firaq-gorakhpuri-ghazals," +सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं +लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं +दिल की गिनती न यगानों में न बेगानों में +लेकिन उस जल्वा-गह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं +मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त +आह अब मुझ से तिरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं +एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें +और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं +आज ग़फ़लत भी उन आँखों में है पहले से सिवा +आज ही ख़ातिर-ए-बीमार शकेबा भी नहीं +बात ये है कि सुकून-ए-दिल-��-वहशी का मक़ाम +कुंज-ए-ज़िंदाँ भी नहीं वुसअ'त-ए-सहरा भी नहीं +अरे सय्याद हमीं गुल हैं हमीं बुलबुल हैं +तू ने कुछ आह सुना भी नहीं देखा भी नहीं +आह ये मजमा-ए-अहबाब ये बज़्म-ए-ख़ामोश +आज महफ़िल में 'फ़िराक़'-ए-सुख़न-आरा भी नहीं +ये भी सच है कि मोहब्बत पे नहीं मैं मजबूर +ये भी सच है कि तिरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं +यूँ तो हंगामे उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क़ +मगर ऐ दोस्त कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं +फ़ितरत-ए-हुस्न तो मा'लूम है तुझ को हमदम +चारा ही क्या है ब-जुज़ सब्र सो होता भी नहीं +मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते कि 'फ़िराक़' +है तिरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं " +firaaq-ik-naii-suurat-nikal-to-saktii-hai-firaq-gorakhpuri-ghazals," +'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है +ब-क़ौल उस आँख के दुनिया बदल तो सकती है +तिरे ख़याल को कुछ चुप सी लग गई वर्ना +कहानियों से शब-ए-ग़म बहल तो सकती है +उरूस-ए-दहर चले खा के ठोकरें लेकिन +क़दम क़दम पे जवानी उबल तो सकती है +पलट पड़े न कहीं उस निगाह का जादू +कि डूब कर ये छुरी कुछ उछल तो सकती है +बुझे हुए नहीं इतने बुझे हुए दिल भी +फ़सुर्दगी में तबीअ'त मचल तो सकती है +अगर तू चाहे तो ग़म वाले शादमाँ हो जाएँ +निगाह-ए-यार ये हसरत निकल तो सकती है +अब इतनी बंद नहीं ग़म-कदों की भी राहें +हवा-ए-कूच-ए-महबूब चल तो सकती है +कड़े हैं कोस बहुत मंज़िल-ए-मोहब्बत के +मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है +हयात लौ तह-ए-दामान-ए-मर्ग दे उट्ठी +हवा की राह में ये शम्अ जल तो सकती है +कुछ और मस्लहत-ए-जज़्ब-ए-इश्क़ है वर्ना +किसी से छुट के तबीअ'त सँभल तो सकती है +अज़ल से सोई है तक़दीर-ए-इश्क़ मौत की नींद +अगर जगाइए करवट बदल तो सकती है +ग़म-ए-ज़माना-ओ-सोज़-ए-निहाँ की आँच तो दे +अगर न टूटे ये ज़ंजीर गल तो सकती है +शरीक-ए-शर्म-ओ-हया कुछ है बद-गुमानी-ए-हुस्न +नज़र उठा ये झिजक सी निकल तो सकती है +कभी वो मिल न सकेगी मैं ये नहीं कहता +वो आँख आँख में पड़ कर बदल तो सकती है +बदलता जाए ग़म-ए-रोज़गार का मरकज़ +ये चाल गर्दिश-ए-अय्याम चल तो सकती है +वो बे-नियाज़ सही दिल मता-ए-हेच सही +मगर किसी की जवानी मचल तो सकती है +तिरी निगाह सहारा न दे तो बात है और +कि गिरते गिरते भी दुनिया सँभल तो सकती है +ये ज़ोर-ओ-शोर सलामत तिरी जवानी भी +ब-क़ौल इश्क़ के साँचे में ढल तो सकती है +सुना है बर्फ़ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के +कुछ आँच पा के ये चाँदी पिघल तो सकती है +हँसी हँसी में लहू थूकते हैं दिल वाले +ये सर-ज़मीन मगर ला'ल उगल तो सकती है +जो तू ने तर्क-ए-मोहब्बत को अहल-ए-दिल से कहा +हज़ार नर्म हो ये बात खल तो सकती है +अरे वो मौत हो या ज़िंदगी मोहब्बत पर +न कुछ सही कफ़-ए-अफ़सोस मल तो सकती है +हैं जिस के बल पे खड़े सरकशों को वो धरती +अगर कुचल नहीं सकती निगल तो सकती है +हुई है गर्म लहु पी के इश्क़ की तलवार +यूँ ही जिलाए जा ये शाख़ फल तो सकती है +गुज़र रही है दबे पाँव इश्क़ की देवी +सुबुक-रवी से जहाँ को मसल तो सकती है +हयात से निगह-ए-वापसीं है कुछ मानूस +मिरे ख़याल से आँखों में पल तो सकती है +न भूलना ये है ताख़ीर हुस्न की ताख़ीर +'फ़िराक़' आई हुई मौत टल तो सकती है " +koii-paigaam-e-mohabbat-lab-e-ejaaz-to-de-firaq-gorakhpuri-ghazals," +कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे +मौत की आँख भी खुल जाएगी आवाज़ तो दे +मक़्सद-ए-इश्क़ हम-आहंगी-ए-जुज़्व-ओ-कुल है +दर्द ही दर्द सही दिल बू-ए-दम-साज़ तो दे +चश्म-ए-मख़मूर के उनवान-ए-नज़र कुछ तो खुलें +दिल-ए-रंजूर धड़कने का कुछ अंदाज़ तो दे +इक ज़रा हो नशा-ए-हुस्न में अंदाज़-ए-ख़ुमार +इक झलक इश्क़ के अंजाम की आग़ाज़ तो दे +जो छुपाए न छुपे और बताए न बने +दिल-ए-आशिक़ को इन आँखों से कोई राज़ तो दे +मुंतज़िर इतनी कभी थी न फ़ज़ा-ए-आफ़ाक़ +छेड़ने ही को हूँ पुर-दर्द ग़ज़ल साज़ तो दे +हम असीरान-ए-क़फ़स आग लगा सकते हैं +फ़ुर्सत-ए-नग़्मा कभी हसरत-ए-परवाज़ तो दे +इश्क़ इक बार मशिय्यत को बदल सकता है +इंदिया अपना मगर कुछ निगह-ए-नाज़ तो दे +क़ुर्ब ओ दीदार तो मालूम किसी का फिर भी +कुछ पता सा फ़लक-ए-तफ़रक़ा-पर्दाज़ तो दे +मंज़िलें गर्द की मानिंद उड़ी जाती हैं +अबलक़-ए-दहर कुछ अंदाज़-ए-तग-ओ-ताज़ तो दे +कान से हम तो 'फ़िराक़' आँख का लेते हैं काम +आज छुप कर कोई आवाज़ पर आवाज़ तो दे " +hijr-o-visaal-e-yaar-kaa-parda-uthaa-diyaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया +ख़ुद बढ़ के इश्क़ ने मुझे मेरा पता दिया +गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-हस्ती-ए-फ़ानी उड़ा दिया +ऐ कीमिया-ए-इश्क़ मुझे क्या बना दिया +वो सामने है और नज़र से छुपा दिया +ऐ इश्क़-ए-बे-हिजाब मुझे क्या दिखा दिया +वो शान-ए-ख़ामुशी कि बहारें हैं मुंतज़िर +वो रंग-ए-गुफ़्तुगू कि गुलिस्ताँ बना दिया +दम ले रही थीं हुस्न की जब सेहर-कारियाँ +इन वक़्फा-हा-ए-कुफ्र को ईमाँ बना दिया +मालूम कुछ मुझी को हैं उन की रवानियाँ +जिन क़तरा-हा-ए-अश्क को दरिया बना दया +इक बर्क़-ए-बे-क़रार थी तम्कीन-ए-हुस्न भी +जिस वक़्�� इश्क़ को ग़म-ए-सब्र-आज़मा दिया +साक़ी मुझे भी याद हैं वो तिश्ना-कामियाँ +जिन को हरीफ़-ए-साग़र-ओ-मीना बना दिया +मालूम है हक़ीक़त-ए-ग़म-हा-ए-रोज़गार +दुनिया को तेरे दर्द ने दुनिया बना दिया +ऐ शोख़ी-ए-निगाह-ए-करम मुद्दतों के बा'द +ख़्वाब-ए-गिरान-ए-ग़म से मुझे क्यूँ जगा दिया +कुछ शोरिशें तग़ाफ़ुल-ए-पिन्हाँ में थीं जिन्हें +हंगामा-ज़ार-ए-हश्र-ए-तमन्ना बना दिया +बढ़ता ही जा रहा है जमाल-ए-नज़र-फ़रेब +हुस्न-ए-नज़र को हुस्न-ए-ख़ुद-आरा बना दिया +फिर देखना निगाह लड़ी किस से इश्क़ की +गर हुस्न ने हिजाब-ए-तग़ाफुल उठा दिया +जब ख़ून हो चुका दिल-ए-हस्ती-ए-एतिबार +कुछ दर्द बच रहे जिन्हें इंसाँ बना दिया +गुम-कर्दा-ए-वफ़ूर-ए-ग़म-ए-इंतिज़ार हूँ +तू क्या छुपा कि मुझ को मुझी से छुपा दिया +रात अब हरीफ़-ए-सुब्हह-ए-क़यामत ही क्यूँ न हो +जो कुछ भी हो उस आँख को अब तो जगा दिया +अब मैं हूँ और लुत्फ़-ओ-करम के तकल्लुफ़ात +ये क्यूँ हिजाब-ए-रंजिश-ए-बे-जा बना दिया +थी यूँ तो शाम-ए-हिज्र मगर पिछली रात को +वो दर्द उठा 'फ़िराक़' कि मैं मुस्कुरा दिया " +kuchh-ishaare-the-jinhen-duniyaa-samajh-baithe-the-ham-firaq-gorakhpuri-ghazals," +कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम +उस निगाह-ए-आश्ना को क्या समझ बैठे थे हम +रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गए +वाह-री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम +होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकी +इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम +पर्दा-ए-आज़ुर्दगी में थी वो जान-ए-इल्तिफ़ात +जिस अदा को रंजिश-ए-बेजा समझ बैठे थे हम +क्या कहें उल्फ़त में राज़-ए-बे-हिसी क्यूँकर खुला +हर नज़र को तेरी दर्द-अफ़ज़ा समझ बैठे थे हम +बे-नियाज़ी को तिरी पाया सरासर सोज़ ओ दर्द +तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम +इंक़लाब-ए-पय-ब-पय हर गर्दिश ओ हर दौर में +इस ज़मीन ओ आसमाँ को क्या समझ बैठे थे हम +भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती +उस को भी अपनी तबीअ'त का समझ बैठे थे हम +साफ़ अलग हम को जुनून-ए-आशिक़ी ने कर दिया +ख़ुद को तेरे दर्द का पर्दा समझ बैठे थे हम +कान बजते हैं मोहब्बत के सुकूत-ए-नाज़ को +दास्ताँ का ख़त्म हो जाना समझ बैठे थे हम +बातों बातों में पयाम-ए-मर्ग भी आ ही गया +उन निगाहों को हयात-अफ़्ज़ा समझ बैठे थे हम +अब नहीं ताब-ए-सिपास-ए-हुस्न इस दिल को जिसे +बे-क़रार-ए-शिकव-ए-बेजा समझ बैठे थे हम +एक दुनिया दर्द की तस्वीर निकली इश्क़ को +कोह-कन और क़ैस क�� क़िस्सा समझ बैठे थे हम +रफ़्ता रफ़्ता इश्क़ मानूस-ए-जहाँ होता चला +ख़ुद को तेरे हिज्र में तन्हा समझ बैठे थे हम +हुस्न को इक हुस्न ही समझे नहीं और ऐ 'फ़िराक़' +मेहरबाँ ना-मेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम " +zer-o-bam-se-saaz-e-khilqat-ke-jahaan-bantaa-gayaa-firaq-gorakhpuri-ghazals," +ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया +ये ज़मीं बनती गई ये आसमाँ बनता गया +दास्तान-ए-जौर-ए-बेहद ख़ून से लिखता रहा +क़तरा क़तरा अश्क-ए-ग़म का बे-कराँ बनता गया +इश्क़-ए-तन्हा से हुईं आबाद कितनी मंज़िलें +इक मुसाफ़िर कारवाँ-दर-कारवाँ बनता गया +मैं तिरे जिस ग़म को अपना जानता था वो भी तो +ज़ेब-ए-उनवान-ए-हदीस-ए-दीगराँ बनता गया +बात निकले बात से जैसे वो था तेरा बयाँ +नाम तेरा दास्ताँ-दर-दास्ताँ बनता गया +हम को है मालूम सब रूदाद-ए-इल्म-ओ-फ़ल्सफ़ा +हाँ हर ईमान-ओ-यक़ीं वहम-ओ-गुमाँ बनता गया +मैं किताब-ए-दिल में अपना हाल-ए-ग़म लिखता रहा +हर वरक़ इक बाब-ए-तारीख़-ए-जहाँ बनता गया +बस उसी की तर्जुमानी है मिरे अशआ'र में +जो सुकूत-ए-राज़ रंगीं दास्ताँ बनता गया +मैं ने सौंपा था तुझे इक काम सारी उम्र में +वो बिगड़ता ही गया ऐ दिल कहाँ बनता गया +वारदात-ए-दिल को दिल ही में जगह देते रहे +हर हिसाब-ए-ग़म हिसाब-ए-दोस्ताँ बनता गया +मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ +जो भी मैं कहता गया हुस्न-ए-बयाँ बनता गया +वक़्त के हाथों यहाँ क्या क्या ख़ज़ाने लुट गए +एक तेरा ग़म कि गंज-ए-शाईगाँ बनता गया +सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़' +क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया " +jaagne-vaalo-taa-ba-sahar-khaamosh-raho-habib-jalib-ghazals," +जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो +कल क्या होगा किस को ख़बर ख़ामोश रहो +किस ने सहर के पाँव में ज़ंजीरें डालीं +हो जाएगी रात बसर ख़ामोश रहो +शायद चुप रहने में इज़्ज़त रह जाए +चुप ही भली ऐ अहल-ए-नज़र ख़ामोश रहो +क़दम क़दम पर पहरे हैं इन राहों में +दार-ओ-रसन का है ये नगर ख़ामोश रहो +यूँ भी कहाँ बे-ताबी-ए-दिल कम होती है +यूँ भी कहाँ आराम मगर ख़ामोश रहो +शेर की बातें ख़त्म हुईं इस आलम में +कैसा 'जोश' और किस का 'जिगर' ख़ामोश रहो " +ham-ne-dil-se-tujhe-sadaa-maanaa-habib-jalib-ghazals," +हम ने दिल से तुझे सदा माना +तू बड़ा था तुझे बड़ा माना +'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के बा'द 'अनीस' के बा'द +तुझ को माना बड़ा बजा माना +तू कि दीवाना-ए-सदाक़त था +तू ने बंदे को कब ख़ुदा माना +तुझ को पर्वा न थी ज़माने की +तू ने दिल ही का हर कहा माना +तुझ को ख़���द पे था ए'तिमाद इतना +ख़ुद ही को तो न रहनुमा माना +की न शब की कभी पज़ीराई +सुब्ह को लाएक़-ए-सना माना +हँस दिया सत्ह-ए-ज़ेहन-ए-आलम पर +जब किसी बात का बुरा माना +यूँ तो शाइ'र थे और भी ऐ 'जोश' +हम ने तुझ सा न दूसरा माना " +tum-se-pahle-vo-jo-ik-shakhs-yahaan-takht-nashiin-thaa-habib-jalib-ghazals," +तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था +उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था +कोई ठहरा हो जो लोगों के मुक़ाबिल तो बताओ +वो कहाँ हैं कि जिन्हें नाज़ बहुत अपने तईं था +आज सोए हैं तह-ए-ख़ाक न जाने यहाँ कितने +कोई शोला कोई शबनम कोई महताब-जबीं था +अब वो फिरते हैं इसी शहर में तन्हा लिए दिल को +इक ज़माने में मिज़ाज उन का सर-ए-अर्श-ए-बरीं था +छोड़ना घर का हमें याद है 'जालिब' नहीं भूले +था वतन ज़ेहन में अपने कोई ज़िंदाँ तो नहीं था " +afsos-tumhen-car-ke-shiishe-kaa-huaa-hai-habib-jalib-ghazals," +अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है +पर्वा नहीं इक माँ का जो दिल टूट गया है +होता है असर तुम पे कहाँ नाला-ए-ग़म का +बरहम जो हुई बज़्म-ए-तरब इस का गिला है +फ़िरऔन भी नमरूद भी गुज़रे हैं जहाँ में +रहता है यहाँ कौन यहाँ कौन रहा है +तुम ज़ुल्म कहाँ तक तह-ए-अफ़्लाक करोगे +ये बात न भूलो कि हमारा भी ख़ुदा है +आज़ादी-ए-इंसान के वहीं फूल खिलेंगे +जिस जा पे ज़हीर आज तिरा ख़ून गिरा है +ता-चंद रहेगी ये शब-ए-ग़म की सियाही +रस्ता कोई सूरज का कहीं रोक सका है +तू आज का शाइ'र है तो कर मेरी तरह बात +जैसे मिरे होंटों पे मिरे दिल की सदा है " +dushmanon-ne-jo-dushmanii-kii-hai-habib-jalib-ghazals," +दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है +दोस्तों ने भी क्या कमी की है +ख़ामुशी पर हैं लोग ज़ेर-ए-इताब +और हम ने तो बात भी की है +मुतमइन है ज़मीर तो अपना +बात सारी ज़मीर ही की है +अपनी तो दास्ताँ है बस इतनी +ग़म उठाए हैं शाएरी की है +अब नज़र में नहीं है एक ही फूल +फ़िक्र हम को कली कली की है +पा सकेंगे न उम्र भर जिस को +जुस्तुजू आज भी उसी की है +जब मह-ओ-महर बुझ गए 'जालिब' +हम ने अश्कों से रौशनी की है " +sher-hotaa-hai-ab-mahiinon-men-habib-jalib-ghazals," +शे'र होता है अब महीनों में +ज़िंदगी ढल गई मशीनों में +प्यार की रौशनी नहीं मिलती +उन मकानों में उन मकीनों में +देख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाओ +साँप होते हैं आस्तीनों में +क़हर की आँख से न देख इन को +दिल धड़कते हैं आबगीनों में +आसमानों की ख़ैर हो यारब +इक नया अज़्म है ज़मीनों में +वो मोहब्बत नहीं रही 'जालिब' +हम-सफ़ीरों में हम-नशीनों में " +aur-sab-bhuul-gae-harf-e-sadaaqat-likhnaa-habib-jalib-ghazals-1," +और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना +रह गया काम हमारा ही बग़ावत लिखना +लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना +हम ने सीखा नहीं प्यारे ब-इजाज़त लिखना +न सिले की न सताइश की तमन्ना हम को +हक़ में लोगों के हमारी तो है आदत लिखना +हम ने जो भूल के भी शह का क़सीदा न लिखा +शायद आया इसी ख़ूबी की बदौलत लिखना +इस से बढ़ कर मिरी तहसीन भला क्या होगी +पढ़ के ना-ख़ुश हैं मिरा साहब-ए-सरवत लिखना +दहर के ग़म से हुआ रब्त तो हम भूल गए +सर्व क़ामत को जवानी को क़यामत लिखना +कुछ भी कहते हैं कहीं शह के मुसाहिब 'जालिब' +रंग रखना यही अपना इसी सूरत लिखना " +dil-vaalo-kyuun-dil-sii-daulat-yuun-be-kaar-lutaate-ho-habib-jalib-ghazals," +दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो +क्यूँ इस अँधियारी बस्ती में प्यार की जोत जगाते हो +तुम ऐसा नादान जहाँ में कोई नहीं है कोई नहीं +फिर इन गलियों में जाते हो पग पग ठोकर खाते हो +सुंदर कलियो कोमल फूलो ये तो बताओ ये तो कहो +आख़िर तुम में क्या जादू है क्यूँ मन में बस जाते हो +ये मौसम रिम-झिम का मौसम ये बरखा ये मस्त फ़ज़ा +ऐसे में आओ तो जानें ऐसे में कब आते हो +हम से रूठ के जाने वालो इतना भेद बता जाओ +क्यूँ नित रातो को सपनों में आते हो मन जाते हो +चाँद-सितारों के झुरमुट में फूलों की मुस्काहट में +तुम छुप-छुप कर हँसते हो तुम रूप का मान बढ़ाते हो +चलते फिरते रौशन रस्ते तारीकी में डूब गए +सो जाओ अब 'जालिब' तुम भी क्यूँ आँखें सुलगाते हो " +ab-terii-zaruurat-bhii-bahut-kam-hai-mirii-jaan-habib-jalib-ghazals," +अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ +अब शौक़ का कुछ और ही आलम है मिरी जाँ +अब तज़्किरा-ए-ख़ंदा-ए-गुल बार है जी पर +जाँ वक़्फ़-ए-ग़म-ए-गिर्या-ए-शबनम है मिरी जाँ +रुख़ पर तिरे बिखरी हुई ये ज़ुल्फ़-ए-सियह-ताब +तस्वीर-ए-परेशानी-ए-आलम है मिरी जाँ +ये क्या कि तुझे भी है ज़माने से शिकायत +ये क्या कि तिरी आँख भी पुर-नम है मिरी जाँ +हम सादा-दिलों पर ये शब-ए-ग़म का तसल्लुत +मायूस न हो और कोई दम है मिरी जाँ +ये तेरी तवज्जोह का है एजाज़ कि मुझ से +हर शख़्स तिरे शहर का बरहम है मिरी जाँ +ऐ नुज़हत-ए-महताब तिरा ग़म है मिरी ज़ीस्त +ऐ नाज़िश-ए-ख़ुर्शीद तिरा ग़म है मिरी जाँ " +chuur-thaa-zakhmon-se-dil-zakhmii-jigar-bhii-ho-gayaa-habib-jalib-ghazals," +चूर था ज़ख़्मों से दिल ज़ख़्मी जिगर भी हो गया +उस को रोते थे कि सूना ये नगर भी हो गया +लोग उसी सूरत परेशाँ हैं जिधर भी देखिए +और वो कहते हैं कोह-ए-ग़म तो सर भी हो गया +बाम-ओ-दर पर है मुसल्लत आज भी शाम-ए-अलम +यूँ तो इन गलियों से ख़ुर्शीद-ए-सहर भी हो गया +उस सितमगर की हक़ीक़त हम पे ज़ाहिर हो गई +ख़त्म ख़ुश-फ़हमी की मंज़िल का सफ़र भी हो गया " +bate-rahoge-to-apnaa-yuunhii-bahegaa-lahuu-habib-jalib-ghazals," +बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू +हुए न एक तो मंज़िल न बन सकेगा लहू +हो किस घमंड में ऐ लख़्त लख़्त दीदा-वरो +तुम्हें भी क़ातिल-ए-मेहनत-कशाँ कहेगा लहू +इसी तरह से अगर तुम अना-परस्त रहे +ख़ुद अपना राह-नुमा आप ही बनेगा लहू +सुनो तुम्हारे गरेबान भी नहीं महफ़ूज़ +डरो तुम्हारा भी इक दिन हिसाब लेगा लहू +अगर न अहद किया हम ने एक होने का +ग़नीम सब का यूँही बेचता रहेगा लहू +कभी कभी मिरे बच्चे भी मुझ से पूछते हैं +कहाँ तक और तू ख़ुश्क अपना ही करेगा लहू +सदा कहा यही मैं ने क़रीब-तर है वो दूर +कि जिस में कोई हमारा न पी सकेगा लहू " +vahii-haalaat-hain-faqiiron-ke-habib-jalib-ghazals," +वही हालात हैं फ़क़ीरों के +दिन फिरे हैं फ़क़त वज़ीरों के +अपना हल्क़ा है हल्क़ा-ए-ज़ंजीर +और हल्क़े हैं सब अमीरों के +हर बिलावल है देस का मक़रूज़ +पाँव नंगे हैं बेनज़ीरों के +वही अहल-ए-वफ़ा की सूरत-ए-हाल +वारे न्यारे हैं बे-ज़मीरों के +साज़िशें हैं वही ख़िलाफ़-ए-अवाम +मशवरे हैं वही मुशीरों के +बेड़ियाँ सामराज की हैं वही +वही दिन-रात हैं असीरों के " +us-rauunat-se-vo-jiite-hain-ki-marnaa-hii-nahiin-habib-jalib-ghazals," +उस रऊनत से वो जीते हैं कि मरना ही नहीं +तख़्त पर बैठे हैं यूँ जैसे उतरना ही नहीं +यूँ मह-ओ-अंजुम की वादी में उड़े फिरते हैं वो +ख़ाक के ज़र्रों पे जैसे पाँव धरना ही नहीं +उन का दा'वा है कि सूरज भी उन्ही का है ग़ुलाम +शब जो हम पर आई है उस को गुज़रना ही नहीं +क्या इलाज उस का अगर हो मुद्दआ' उन का यही +एहतिमाम रंग-ओ-बू गुलशन में करना ही नहीं +ज़ुल्म से हैं बरसर-ए-पैकार आज़ादी-पसंद +उन पहाड़ों में जहाँ पर कोई झरना ही नहीं +दिल भी उन के हैं सियह ख़ूराक-ए-ज़िंदाँ की तरह +उन से अपना ग़म बयाँ अब हम को करना ही नहीं +इंतिहा कर लें सितम की लोग अभी हैं ख़्वाब में +जाग उट्ठे जब लोग तो उन को ठहरना ही नहीं " +khuub-aazaadii-e-sahaafat-hai-habib-jalib-ghazals," +ख़ूब आज़ादी-ए-सहाफ़त है +नज़्म लिखने पे भी क़यामत है +दा'वा जम्हूरियत का है हर-आन +ये हुकूमत भी क्या हुकूमत है +धाँदली धोंस की है पैदावार +सब को मा'लूम ये हक़ीक़त है +ख़ौफ़ के ज़ेहन-ओ-दिल पे साए हैं +किस की इज़्ज़त यहाँ सलामत है +कभी जम्हूरियत यहाँ आए +यही 'जालिब' हमारी हसरत है " +tire-maathe-pe-jab-tak-bal-rahaa-hai-habib-jalib-ghazals," +तिरे मा���े पे जब तक बल रहा है +उजाला आँख से ओझल रहा है +समाते क्या नज़र में चाँद तारे +तसव्वुर में तिरा आँचल रहा है +तिरी शान-ए-तग़ाफ़ुल को ख़बर क्या +कोई तेरे लिए बे-कल रहा है +शिकायत है ग़म-ए-दौराँ को मुझ से +कि दिल में क्यूँ तिरा ग़म पल रहा है +तअज्जुब है सितम की आँधियों में +चराग़-ए-दिल अभी तक जल रहा है +लहू रोएँगी मग़रिब की फ़ज़ाएँ +बड़ी तेज़ी से सूरज ढल रहा है +ज़माना थक गया 'जालिब' ही तन्हा +वफ़ा के रास्ते पर चल रहा है " +zarre-hii-sahii-koh-se-takraa-to-gae-ham-habib-jalib-ghazals," +ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम +दिल ले के सर-ए-अर्सा-ए-ग़म आ तो गए हम +अब नाम रहे या न रहे इश्क़ में अपना +रूदाद-ए-वफ़ा दार पे दोहरा तो गए हम +कहते थे जो अब कोई नहीं जाँ से गुज़रता +लो जाँ से गुज़र कर उन्हें झुटला तो गए हम +जाँ अपनी गँवा कर कभी घर अपना जला कर +दिल उन का हर इक तौर से बहला तो गए हम +कुछ और ही आलम था पस-ए-चेहरा-ए-याराँ +रहता जो यूँही राज़ उसे पा तो गए हम +अब सोच रहे हैं कि ये मुमकिन ही नहीं है +फिर उन से न मिलने की क़सम खा तो गए हम +उट्ठें कि न उट्ठें ये रज़ा उन की है 'जालिब' +लोगों को सर-ए-दार नज़र आ तो गए हम " +kaun-bataae-kaun-sujhaae-kaun-se-des-sidhaar-gae-habib-jalib-ghazals," +कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए +उन का रस्ता तकते तकते नैन हमारे हार गए +काँटों के दुख सहने में तस्कीन भी थी आराम भी था +हँसने वाले भोले-भाले फूल चमन के मार गए +एक लगन की बात है जीवन एक लगन ही जीवन है +पूछ न क्या खोया क्या पाया क्या जीते क्या हार गए +आने वाली बरखा देखें क्या दिखलाए आँखों को +ये बरखा बरसाते दिन तो बिन प्रीतम बे-कार गए +जब भी लौटे प्यार से लौटे फूल न पा कर गुलशन में +भँवरे अमृत रस की धुन में पल पल सौ सौ बार गए +हम से पूछो साहिल वालो क्या बीती दुखियारों पर +खेवन-हारे बीच भँवर में छोड़ के जब उस पार गए " +hujuum-dekh-ke-rasta-nahiin-badalte-ham-habib-jalib-ghazals," +हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम +किसी के डर से तक़ाज़ा नहीं बदलते हम +हज़ार ज़ेर-ए-क़दम रास्ता हो ख़ारों का +जो चल पड़ें तो इरादा नहीं बदलते हम +इसी लिए तो नहीं मो'तबर ज़माने में +कि रंग-ए-सूरत-ए-दुनिया नहीं बदलते हम +हवा को देख के 'जालिब' मिसाल-ए-हम-अस्राँ +बजा ये ज़ोम हमारा नहीं बदलते हम " +dil-par-jo-zakhm-hain-vo-dikhaaen-kisii-ko-kyaa-habib-jalib-ghazals," +दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या +अपना शरीक-ए-दर्द बनाएँ किसी को क्या +हर शख़्स अपने अपने ग़मों में है मुब्तला +ज़िंदाँ में अपने साथ रुलाएँ किसी को क्या +बिछड़े हुए वो यार वो छोड़े हुए दयार +रह रह के हम को याद जो आएँ किसी को क्या +रोने को अपने हाल पे तन्हाई है बहुत +उस अंजुमन में ख़ुद पे हँसाएं किसी को क्या +वो बात छेड़ जिस में झलकता हो सब का ग़म +यादें किसी की तुझ को सताएं किसी को क्या +सोए हुए हैं लोग तो होंगे सुकून से +हम जागने का रोग लगाएँ किसी को क्या +'जालिब' न आएगा कोई अहवाल पूछने +दें शहर-ए-बे-हिसाँ में सदाएँ किसी को क्या " +apnon-ne-vo-ranj-diye-hain-begaane-yaad-aate-hain-habib-jalib-ghazals," +अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं +देख के उस बस्ती की हालत वीराने याद आते हैं +उस नगरी में क़दम क़दम पे सर को झुकाना पड़ता है +उस नगरी में क़दम क़दम पर बुत-ख़ाने याद आते हैं +आँखें पुर-नम हो जाती हैं ग़ुर्बत के सहराओं में +जब उस रिम-झिम की वादी के अफ़्साने याद आते हैं +ऐसे ऐसे दर्द मिले हैं नए दयारों में हम को +बिछड़े हुए कुछ लोग पुराने याराने याद आते हैं +जिन के कारन आज हमारे हाल पे दुनिया हस्ती है +कितने ज़ालिम चेहरे जाने पहचाने याद आते हैं +यूँ न लुटी थी गलियों दौलत अपने अश्कों की +रोते हैं तो हम को अपने ग़म-ख़ाने याद आते हैं +कोई तो परचम ले कर निकले अपने गरेबाँ का 'जालिब' +चारों जानिब सन्नाटा है दीवाने याद आते हैं " +faiz-aur-faiz-kaa-gam-bhuulne-vaalaa-hai-kahiin-habib-jalib-ghazals," +'फ़ैज़' और 'फ़ैज़' का ग़म भूलने वाला है कहीं +मौत ये तेरा सितम भूलने वाला है कहीं +हम से जिस वक़्त ने वो शाह-ए-सुख़न छीन लिया +हम को वो वक़्त-ए-अलम भूलने वाला है कहीं +तिरे अश्क और भी चमकाएँगी यादें उस की +हम को वो दीदा-ए-नम भूलने वाला है कहीं +कभी ज़िंदाँ में कभी दूर वतन से ऐ दोस्त +जो किया उस ने रक़म भूलने वाला है कहीं +आख़िरी बार उसे देख न पाए 'जालिब' +ये मुक़द्दर का सितम भूलने वाला है कहीं " +jiivan-mujh-se-main-jiivan-se-sharmaataa-huun-habib-jalib-ghazals," +जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूँ +मुझ से आगे जाने वालो में आता हूँ +जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें +दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ +सुर से साँसों का नाता है तोड़ूँ कैसे +तुम जलते हो क्यूँ जीता हूँ क्यूँ गाता हूँ +तुम अपने दामन में सितारे बैठ कर टाँको +और मैं नए बरन लफ़्ज़ों को पहनाता हूँ +जिन ख़्वाबों को देख के मैं ने जीना सीखा +उन के आगे हर दौलत को ठुकराता हूँ +ज़हर उगलते हैं जब मिल कर दुनिया वाले +मीठे बोलों की वादी में खो जाता हूँ +'जालिब' मेरे शेर समझ में आ जाते हैं +इसी लिए कम-रुत्बा शाएर कहलाता हू�� " +aag-hai-phailii-huii-kaalii-ghataaon-kii-jagah-habib-jalib-ghazals," +आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह +बद-दुआएँ हैं लबों पर अब दुआओं की जगह +इंतिख़ाब-ए-अहल-ए-गुलशन पर बहुत रोता है दिल +देख कर ज़ाग़-ओ-ज़ग़्न को ख़ुश-नवाओं की जगह +कुछ भी होता पर न होते पारा-पारा जिस्म-ओ-जाँ +राहज़न होते अगर उन रहनुमाओं की जगह +लुट गई इस दौर में अहल-ए-क़लम की आबरू +बिक रहे हैं अब सहाफ़ी बेसवाओं की जगह +कुछ तो आता हम को भी जाँ से गुज़रने का मज़ा +ग़ैर होते काश 'जालिब' आश्नाओं की जगह " +kabhii-to-mehrbaan-ho-kar-bulaa-len-habib-jalib-ghazals," +कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें +ये महवश हम फ़क़ीरों की दुआ लें +न जाने फिर ये रुत आए न आए +जवाँ फूलों की कुछ ख़ुश्बू चुरा लें +बहुत रोए ज़माने के लिए हम +ज़रा अपने लिए आँसू बहा लें +हम उन को भूलने वाले नहीं हैं +समझते हैं ग़म-ए-दौराँ की चालें +हमारी भी सँभल जाएगी हालत +वो पहले अपनी ज़ुल्फ़ें तो सँभालें +निकलने को है वो महताब घर से +सितारों से कहो नज़रें झुका लें +हम अपने रास्ते पर चल रहे हैं +जनाब-ए-शैख़ अपना रास्ता लें +ज़माना तो यूँही रूठा रहेगा +चलो 'जालिब' उन्हें चल कर मना लें " +is-shahr-e-kharaabii-men-gam-e-ishq-ke-maare-habib-jalib-ghazals," +इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे +ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे +ये हँसता हुआ चाँद ये पुर-नूर सितारे +ताबिंदा ओ पाइंदा हैं ज़र्रों के सहारे +हसरत है कोई ग़ुंचा हमें प्यार से देखे +अरमाँ है कोई फूल हमें दिल से पुकारे +हर सुब्ह मिरी सुब्ह पे रोती रही शबनम +हर रात मिरी रात पे हँसते रहे तारे +कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँ +कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे " +na-dagmagaae-kabhii-ham-vafaa-ke-raste-men-habib-jalib-ghazals," +न डगमगाए कभी हम वफ़ा के रस्ते में +चराग़ हम ने जलाए हवा के रस्ते में +किसे लगाए गले और कहाँ कहाँ ठहरे +हज़ार ग़ुंचा-ओ-गुल हैं सबा के रस्ते में +ख़ुदा का नाम कोई ले तो चौंक उठते हैं +मिले हैं हम को वो रहबर ख़ुदा के रस्ते में +कहीं सलासिल-ए-तस्बीह और कहीं ज़ुन्नार +बिछे हैं दाम बहुत मुद्दआ के रस्ते में +अभी वो मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र नहीं आई +है आदमी अभी जुर्म ओ सज़ा के रस्ते में +हैं आज भी वही दार-ओ-रसन वही ज़िंदाँ +हर इक निगाह-ए-रुमूज़-आश्ना के रस्ते में +ये नफ़रतों की फ़सीलें जहालतों के हिसार +न रह सकेंगे हमारी सदा के रस्ते में +मिटा सके न कोई सैल-ए-इंक़लाब जिन्हें +वो नक़्श छोड़े हैं हम ने वफ़ा के रस्ते में +ज़माना एक सा 'जालिब' सदा नहीं रहता +चलेंगे हम भी कभी सर उठा के रस्ते में " +vo-dekhne-mujhe-aanaa-to-chaahtaa-hogaa-habib-jalib-ghazals," +वो देखने मुझे आना तो चाहता होगा +मगर ज़माने की बातों से डर गया होगा +उसे था शौक़ बहुत मुझ को अच्छा रखने का +ये शौक़ औरों को शायद बुरा लगा होगा +कभी न हद्द-ए-अदब से बढ़े थे दीदा ओ दिल +वो मुझ से किस लिए किसी बात पर ख़फ़ा होगा +मुझे गुमान है ये भी यक़ीन की हद तक +किसी से भी न वो मेरी तरह मिला होगा +कभी कभी तो सितारों की छाँव में वो भी +मिरे ख़याल में कुछ देर जागता होगा +वो उस का सादा ओ मासूम वालेहाना-पन +किसी भी जुग में कोई देवता भी क्या होगा +नहीं वो आया तो 'जालिब' गिला न कर उस का +न-जाने क्या उसे दरपेश मसअला होगा " +ye-soch-kar-na-maail-e-fariyaad-ham-hue-habib-jalib-ghazals," +ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए +आबाद कब हुए थे कि बर्बाद हम हुए +होता है शाद-काम यहाँ कौन बा-ज़मीर +नाशाद हम हुए तो बहुत शाद हम हुए +परवेज़ के जलाल से टकराए हम भी हैं +ये और बात है कि न फ़रहाद हम हुए +कुछ ऐसे भा गए हमें दुनिया के दर्द-ओ-ग़म +कू-ए-बुताँ में भूली हुई याद हम हुए +'जालिब' तमाम उम्र हमें ये गुमाँ रहा +उस ज़ुल्फ़ के ख़याल से आज़ाद हम हुए " +ye-jo-shab-ke-aivaanon-men-ik-halchal-ik-hashr-bapaa-hai-habib-jalib-ghazals," +ये जो शब के ऐवानों में इक हलचल इक हश्र बपा है +ये जो अंधेरा सिमट रहा है ये जो उजाला फैल रहा है +ये जो हर दुख सहने वाला दुख का मुदावा जान गया है +मज़लूमों मजबूरों का ग़म ये जो मिरे शे'रों में ढला है +ये जो महक गुलशन गुलशन है ये जो चमक आलम आलम है +मार्कसिज़्म है मार्कसिज़्म है मार्कसिज़्म है मार्कसिज़्म है " +us-ne-jab-hans-ke-namaskaar-kiyaa-habib-jalib-ghazals," +उस ने जब हँस के नमस्कार किया +मुझ को इंसान से अवतार किया +दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-वीराँ ने +याद जमुना को कई बार किया +प्यार की बात न पूछो यारो +हम ने किस किस से नहीं प्यार किया +कितनी ख़्वाबीदा तमन्नाओं को +उस की आवाज़ ने बेदार किया +हम पुजारी हैं बुतों के 'जालिब' +हम ने का'बे में भी इक़रार किया " +ik-shakhs-baa-zamiir-miraa-yaar-mushafii-habib-jalib-ghazals," +इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी' +मेरी तरह वफ़ा का परस्तार 'मुसहफ़ी' +रहता था कज-कुलाह अमीरों के दरमियाँ +यकसर लिए हुए मिरा किरदार 'मुसहफ़ी' +देते हैं दाद ग़ैर को कब अहल-ए-लखनऊ +कब दाद का था उन से तलबगार 'मुसहफ़ी' +ना-क़द्री-ए-जहाँ से कई बार आ के तंग +इक उम्र शे'र से रहा बेज़ार 'मुसहफ़ी' +दरबार में था बार कहाँ उस ग़रीब को +बरसों मिसाल-ए-'मीर' फिरा ख़्वार 'मुसहफ़ी' +मैं ने भी उस गली म��ं गुज़ारी है रो के उम्र +मिलता है उस गली में किसे प्यार 'मुसहफ़ी' " +log-giiton-kaa-nagar-yaad-aayaa-habib-jalib-ghazals," +लोग गीतों का नगर याद आया +आज परदेस में घर याद आया +जब चले आए चमन-ज़ार से हम +इल्तिफ़ात-ए-गुल-ए-तर याद आया +तेरी बेगाना-निगाही सर-ए-शाम +ये सितम ता-ब-सहर याद आया +हम ज़माने का सितम भूल गए +जब तिरा लुत्फ़-ए-नज़र याद आया +तो भी मसरूर था इस शब सर-ए-बज़्म +अपने शे'रों का असर याद आया +फिर हुआ दर्द-ए-तमन्ना बेदार +फिर दिल-ए-ख़ाक-बसर याद आया +हम जिसे भूल चुके थे 'जालिब' +फिर वही राहगुज़र याद आया " +baaten-to-kuchh-aisii-hain-ki-khud-se-bhii-na-kii-jaaen-habib-jalib-ghazals," +बातें तो कुछ ऐसी हैं कि ख़ुद से भी न की जाएँ +सोचा है ख़मोशी से हर इक ज़हर को पी जाएँ +अपना तो नहीं कोई वहाँ पूछने वाला +उस बज़्म में जाना है जिन्हें अब तो वही जाएँ +अब तुझ से हमें कोई तअल्लुक़ नहीं रखना +अच्छा हो कि दिल से तिरी यादें भी चली जाएँ +इक उम्र उठाए हैं सितम ग़ैर के हम ने +अपनों की तो इक पल भी जफ़ाएँ न सही जाएँ +'जालिब' ग़म-ए-दौराँ हो कि याद-ए-रुख़-ए-जानाँ +तन्हा मुझे रहने दें मिरे दिल से सभी जाएँ " +dil-e-pur-shauq-ko-pahluu-men-dabaae-rakkhaa-habib-jalib-ghazals," +दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा +तुझ से भी हम ने तिरा प्यार छुपाए रक्खा +छोड़ इस बात को ऐ दोस्त कि तुझ से पहले +हम ने किस किस को ख़यालों में बसाए रक्खा +ग़ैर मुमकिन थी ज़माने के ग़मों से फ़ुर्सत +फिर भी हम ने तिरा ग़म दिल में बसाए रक्खा +फूल को फूल न कहते सो उसे क्या कहते +क्या हुआ ग़ैर ने कॉलर पे सजाए रक्खा +जाने किस हाल में हैं कौन से शहरों में हैं वो +ज़िंदगी अपनी जिन्हें हम ने बनाए रक्खा +हाए क्या लोग थे वो लोग परी-चेहरा लोग +हम ने जिन के लिए दुनिया को भुलाए रक्खा +अब मिलें भी तो न पहचान सकें हम उन को +जिन को इक उम्र ख़यालों में बसाए रक्खा " +kuchh-log-khayaalon-se-chale-jaaen-to-soen-habib-jalib-ghazals," +कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ +बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ +चेहरे जो कभी हम को दिखाई नहीं देंगे +आ आ के तसव्वुर में न तड़पाएँ तो सोएँ +बरसात की रुत के वो तरब-रेज़ मनाज़िर +सीने में न इक आग सी भड़काएँ तो सोएँ +सुब्हों के मुक़द्दर को जगाते हुए मुखड़े +आँचल जो निगाहों में न लहराएँ तो सोएँ +महसूस ये होता है अभी जाग रहे हैं +लाहौर के सब यार भी सो जाएँ तो सोएँ " +kam-puraanaa-bahut-nayaa-thaa-firaaq-habib-jalib-ghazals," +कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़ +इक अजब रम्ज़-आशना था फ़िराक़ +दूर वो कब हुआ निगाहों से +धड़कनों में बसा हुआ है फ़िराक़ +शाम-ए-ग़म के सुलगते सहरा में +इक उमंडती हुई घटा था फ़िराक़ +अम्न था प्यार था मोहब्बत था +रंग था नूर था नवा था फ़िराक़ +फ़ासले नफ़रतों के मिट जाएँ +प्यार ही प्यार सोचता था फ़िराक़ +हम से रंज-ओ-अलम के मारों को +किस मोहब्बत से देखता था फ़िराक़ +इश्क़ इंसानियत से था उस को +हर तअ'स्सुब से मावरा था फ़िराक़ " +darakht-suukh-gae-ruk-gae-nadii-naale-habib-jalib-ghazals," +दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले +ये किस नगर को रवाना हुए हैं घर वाले +कहानियाँ जो सुनाते थे अहद-ए-रफ़्ता की +निशाँ वो गर्दिश-ए-अय्याम ने मिटा डाले +मैं शहर शहर फिरा हूँ इसी तमन्ना में +किसी को अपना कहूँ कोई मुझ को अपना ले +सदा न दे किसी महताब को अंधेरों में +लगा न दे ये ज़माना ज़बान पर ताले +कोई किरन है यहाँ तो कोई किरन है वहाँ +दिल ओ निगाह ने किस दर्जा रोग हैं पाले +हमीं पे उन की नज़र है हमीं पे उन का करम +ये और बात यहाँ और भी हैं दिल वाले +कुछ और तुझ पे खुलेंगी हक़ीक़तें 'जालिब' +जो हो सके तो किसी का फ़रेब भी खा ले " +bahut-raushan-hai-shaam-e-gam-hamaarii-habib-jalib-ghazals," +बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी +किसी की याद है हमदम हमारी +ग़लत है ला-तअल्लुक़ हैं चमन से +तुम्हारे फूल और शबनम हमारी +ये पलकों पर नए आँसू नहीं हैं +अज़ल से आँख है पुर-नम हमारी +हर इक लब पर तबस्सुम देखने की +तमन्ना कब हुई है कम हमारी +कही है हम ने ख़ुद से भी बहुत कम +न पूछो दास्तान-ए-ग़म हमारी " +bhulaa-bhii-de-use-jo-baat-ho-gaii-pyaare-habib-jalib-ghazals," +भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे +नए चराग़ जला रात हो गई प्यारे +तिरी निगाह-ए-पशेमाँ को कैसे देखूँगा +कभी जो तुझ से मुलाक़ात हो गई प्यारे +न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल +अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे +उदास उदास हैं शमएँ बुझे बुझे साग़र +ये कैसी शाम-ए-ख़राबात हो गई प्यारे +वफ़ा का नाम न लेगा कोई ज़माने में +हम अहल-ए-दिल को अगर मात हो गई प्यारे +तुम्हें तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था 'जालिब' +अलग-थलग से हो क्या बात हो गई प्यारे " +phir-kabhii-laut-kar-na-aaenge-habib-jalib-ghazals," +फिर कभी लौट कर न आएँगे +हम तिरा शहर छोड़ जाएँगे +दूर-उफ़्तादा बस्तियों में कहीं +तेरी यादों से लौ लगाएँगे +शम-ए-माह-ओ-नुजूम गुल कर के +आँसुओं के दिए जलाएँगे +आख़िरी बार इक ग़ज़ल सुन लो +आख़िरी बार हम सुनाएँगे +सूरत-ए-मौजा-ए-हवा 'जालिब' +सारी दुनिया की ख़ाक उड़ाएँगे " +vatan-ko-kuchh-nahiin-khatra-nizaam-e-zar-hai-khatre-men-habib-jalib-ghazals," +वतन को कुछ नहीं ख़तरा निज़ाम-ए-ज़र है ख़तरे में +हक़ीक़त मे�� जो रहज़न है वही रहबर है ख़तरे में +जो बैठा है सफ़-ए-मातम बिछाए मर्ग-ए-ज़ुल्मत पर +वो नौहागर है ख़तरे में वो दानिश-वर है ख़तरे में +अगर तशवीश लाहक़ है तो सुलतानों को लाहक़ है +न तेरा घर है ख़तरे में न मेरा घर है ख़तरे में +जहाँ 'इक़बाल' भी नज़्र-ए-ख़त-ए-तनसीख़ हो 'जालिब' +वहाँ तुझ को शिकायत है तिरा जौहर है ख़तरे में " +miir-o-gaalib-bane-yagaanaa-bane-habib-jalib-ghazals," +'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने +आदमी ऐ ख़ुदा ख़ुदा न बने +मौत की दस्तरस में कब से हैं +ज़िंदगी का कोई बहाना बने +अपना शायद यही था जुर्म ऐ दोस्त +बा-वफ़ा बन के बे-वफ़ा न बने +हम पे इक ए'तिराज़ ये भी है +बे-नवा हो के बे-नवा न बने +ये भी अपना क़ुसूर क्या कम है +किसी क़ातिल के हम-नवा न बने +क्या गिला संग-दिल ज़माने का +आश्ना ही जब आश्ना न बने +छोड़ कर उस गली को ऐ 'जालिब' +इक हक़ीक़त से हम फ़साना बने " +jhuutii-khabren-ghadne-vaale-jhuute-sher-sunaane-vaale-habib-jalib-ghazals," +झूटी ख़बरें घड़ने वाले झूटे शे'र सुनाने वाले +लोगो सब्र कि अपने किए की जल्द सज़ा हैं पाने वाले +दर्द आँखों से बहता है और चेहरा सब कुछ कहता है +ये मत लिक्खो वो मत लिक्खो आए बड़े समझाने वाले +ख़ुद काटेंगे अपनी मुश्किल ख़ुद पाएँगे अपनी मंज़िल +राहज़नों से भी बद-तर हैं राह-नुमा कहलाने वाले +उन से प्यार किया है हम ने उन की राह में हम बैठे हैं +ना-मुम्किन है जिन का मिलना और नहीं जो आने वाले +उन पर भी हँसती थी दुनिया आवाज़ें कसती थी दुनिया +'जालिब' अपनी ही सूरत थे इश्क़ में जाँ से जाने वाले " +bade-bane-the-jaalib-saahab-pite-sadak-ke-biich-habib-jalib-ghazals," +बड़े बने थे 'जालिब' साहब पिटे सड़क के बीच +गोली खाई लाठी खाई गिरे सड़क के बीच +कभी गिरेबाँ चाक हुआ और कभी हुआ दिल ख़ून +हमें तो यूँही मिले सुख़न के सिले सड़क के बीच +जिस्म पे जो ज़ख़्मों के निशाँ हैं अपने तमग़े हैं +मिली है ऐसी दाद वफ़ा की किसे सड़क के बीच " +sher-se-shaairii-se-darte-hain-habib-jalib-ghazals," +शेर से शाइरी से डरते हैं +कम-नज़र रौशनी से डरते हैं +लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी +हम तिरी दोस्ती से डरते हैं +दहर में आह-ए-बे-कसाँ के सिवा +और हम कब किसी से डरते हैं +हम को ग़ैरों से डर नहीं लगता +अपने अहबाब ही से डरते हैं +दावर-ए-हश्र बख़्श दे शायद +हाँ मगर मौलवी से डरते हैं +रूठता है तो रूठ जाए जहाँ +उन की हम बे-रुख़ी से डरते हैं +हर क़दम पर है मोहतसिब 'जालिब' +अब तो हम चाँदनी से डरते हैं " +kahiin-aah-ban-ke-lab-par-tiraa-naam-aa-na-jaae-habib-jalib-ghazals," +कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए +तुझे बे��फ़ा कहूँ मैं वो मक़ाम आ न जाए +ज़रा ज़ुल्फ़ को सँभालो मिरा दिल धड़क रहा है +कोई और ताइर-ए-दिल तह-ए-दाम आ न जाए +जिसे सुन के टूट जाए मिरा आरज़ू भरा दिल +तिरी अंजुमन से मुझ को वो पयाम आ न जाए +वो जो मंज़िलों पे ला कर किसी हम-सफ़र को लूटें +उन्हीं रहज़नों में तेरा कहीं नाम आ न जाए +इसी फ़िक्र में हैं ग़लताँ ये निज़ाम-ए-ज़र के बंदे +जो तमाम-ए-ज़िंदगी है वो निज़ाम आ न जाए +ये मह ओ नुजूम हँस लें मिरे आँसुओं पे 'जालिब' +मिरा माहताब जब तक लब-ए-बाम आ न जाए " +phir-dil-se-aa-rahii-hai-sadaa-us-galii-men-chal-habib-jalib-ghazals," +फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल +शायद मिले ग़ज़ल का पता उस गली में चल +कब से नहीं हुआ है कोई शेर काम का +ये शेर की नहीं है फ़ज़ा उस गली में चल +वो बाम ओ दर वो लोग वो रुस्वाइयों के ज़ख़्म +हैं सब के सब अज़ीज़ जुदा उस गली में चल +उस फूल के बग़ैर बहुत जी उदास है +मुझ को भी साथ ले के सबा उस गली में चल +दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें +दुनिया के मशवरों पे न जा उस गली में चल +बे-नूर ओ बे-असर है यहाँ की सदा-ए-साज़ +था उस सुकूत में भी मज़ा उस गली में चल +'जालिब' पुकारती हैं वो शोला-नवाइयाँ +ये सर्द रुत ये सर्द हवा उस गली में चल " +ye-aur-baat-terii-galii-men-na-aaen-ham-habib-jalib-ghazals-3," +ये और बात तेरी गली में न आएँ हम +लेकिन ये क्या कि शहर तिरा छोड़ जाएँ हम +मुद्दत हुई है कू-ए-बुताँ की तरफ़ गए +आवारगी से दिल को कहाँ तक बचाएँ हम +शायद ब-क़ैद-ए-ज़ीस्त ये साअत न आ सके +तुम दास्तान-ए-शौक़ सुनो और सुनाएँ हम +बे-नूर हो चुकी है बहुत शहर की फ़ज़ा +तारीक रास्तों में कहीं खो न जाएँ हम +उस के बग़ैर आज बहुत जी उदास है +'जालिब' चलो कहीं से उसे ढूँढ लाएँ हम " +yuun-vo-zulmat-se-rahaa-dast-o-garebaan-yaaro-habib-jalib-ghazals," +यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो +उस से लर्ज़ां थे बहुत शब के निगहबाँ यारो +उस ने हर-गाम दिया हौसला-ए-ताज़ा हमें +वो न इक पल भी रहा हम से गुरेज़ाँ यारो +उस ने मानी न कभी तीरगी-ए-शब से शिकस्त +दिल अँधेरों में रहा उस का फ़रोज़ाँ यारो +उस को हर हाल में जीने की अदा आती थी +वो न हालात से होता था परेशाँ यारो +उस ने बातिल से न ता-ज़ीस्त किया समझौता +दहर में उस सा कहाँ साहब-ए-ईमाँ यारो +उस को थी कश्मकश-ए-दैर-ओ-हरम से नफ़रत +उस सा हिन्दू न कोई उस सा मुसलमाँ यारो +उस ने सुल्तानी-ए-जम्हूर के नग़्मे लिक्खे +रूह शाहों की रही उस से परेशाँ यारो +अपने अशआ'र की शम्ओं' से उजाला कर के +कर गया शब का सफ़र कितना वो आसाँ ��ारो +उस के गीतों से ज़माने को सँवारें यारो +रूह-ए-'साहिर' को अगर करना है शादाँ यारो " +dil-kii-baat-labon-par-laa-kar-ab-tak-ham-dukh-sahte-hain-habib-jalib-ghazals," +दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं +हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं +बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदलीं +लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आँसू बहते हैं +एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं +दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं +जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए +आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं +वो जो अभी इस राहगुज़र से चाक-गरेबाँ गुज़रा था +उस आवारा दीवाने को 'जालिब' 'जालिब' कहते हैं " +main-dhuundtaa-huun-jise-vo-jahaan-nahiin-miltaa-kaifi-azmi-ghazals," +मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता +नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता +नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए +नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता +वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा +किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता +वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे +कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता +जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ +यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता +खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में +तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता " +haath-aa-kar-lagaa-gayaa-koii-kaifi-azmi-ghazals," +हाथ आ कर लगा गया कोई +मेरा छप्पर उठा गया कोई +लग गया इक मशीन में मैं भी +शहर में ले के आ गया कोई +मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी +इश्तिहार इक लगा गया कोई +ये सदी धूप को तरसती है +जैसे सूरज को खा गया कोई +ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी +बेच के अपना खा गया कोई +अब वो अरमान हैं न वो सपने +सब कबूतर उड़ा गया कोई +वो गए जब से ऐसा लगता है +छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई +मेरा बचपन भी साथ ले आया +गाँव से जब भी आ गया कोई " +kyaa-jaane-kis-kii-pyaas-bujhaane-kidhar-gaiin-kaifi-azmi-ghazals," +क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईं +इस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गईं +दीवाना पूछता है ये लहरों से बार बार +कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गईं +अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ +वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं +पैमाना टूटने का कोई ग़म नहीं मुझे +ग़म है तो ये कि चाँदनी रातें बिखर गईं +पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे +इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं " +shor-yuunhii-na-parindon-ne-machaayaa-hogaa-kaifi-azmi-ghazals," +शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा +कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा +पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था +जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा +बानी-ए-जश्न-ए-बहाराँ ने ये सोचा भी नहीं +किस ने काँटों को लहू अपना पिलाया होगा +बिजली के तार पे बैठा हुआ हँसता पंछी +सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा +अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे +हर सराब उन को समुंदर नज़र आया होगा " +khaar-o-khas-to-uthen-raasta-to-chale-kaifi-azmi-ghazals," +ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले +मैं अगर थक गया क़ाफ़िला तो चले +चाँद सूरज बुज़ुर्गों के नक़्श-ए-क़दम +ख़ैर बुझने दो उन को हवा तो चले +हाकिम-ए-शहर ये भी कोई शहर है +मस्जिदें बंद हैं मय-कदा तो चले +उस को मज़हब कहो या सियासत कहो +ख़ुद-कुशी का हुनर तुम सिखा तो चले +इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाऊँगा +आप ईंटों की हुरमत बचा तो चले +बेलचे लाओ खोलो ज़मीं की तहें +मैं कहाँ दफ़्न हूँ कुछ पता तो चले " +itnaa-to-zindagii-men-kisii-ke-khalal-pade-kaifi-azmi-ghazals," +इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े +हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े +जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क +यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े +इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है +इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े +साक़ी सभी को है ग़म-ए-तिश्ना-लबी मगर +मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े +मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह +जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े " +tum-itnaa-jo-muskuraa-rahe-ho-kaifi-azmi-ghazals," +तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो +क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो +आँखों में नमी हँसी लबों पर +क्या हाल है क्या दिखा रहे हो +बन जाएँगे ज़हर पीते पीते +ये अश्क जो पीते जा रहे हो +जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है +तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो +रेखाओं का खेल है मुक़द्दर +रेखाओं से मात खा रहे हो " +laaii-phir-ek-lagzish-e-mastaana-tere-shahr-men-kaifi-azmi-ghazals," +लाई फिर इक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना तेरे शहर में +फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में +आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ +आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में +जुर्म है तेरी गली से सर झुका कर लौटना +कुफ़्र है पथराव से घबराना तेरे शहर में +शाह-नामे लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर +हर जगह है दफ़्न इक अफ़्साना तेरे शहर में +कुछ कनीज़ें जो हरीम-ए-नाज़ में हैं बारयाब +माँगती हैं जान ओ दिल नज़राना तेरे शहर में +नंगी सड़कों पर भटक कर देख जब मरती है रात +रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में " +vo-bhii-saraahne-lage-arbaab-e-fan-ke-baad-kaifi-azmi-ghazals," +वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द +दाद-ए-सुख़न मिली मुझे तर्क-ए-सुख़न के बा'द +दीवाना-वार चाँद से आगे निकल गए +ठहरा न दिल कहीं भी तिरी अंजुमन के बा'द +होंटों को सी के देखिए पछ्ताइएगा आप +हंगामे जाग उठते हैं अक्सर घुटन के बा'द +ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप +क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बा'द +एलान-ए-हक़ में ख़तरा-ए-दार-ओ-रसन तो है +लेकिन सवाल ये है कि दार-ओ-रसन के बा'द +इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं +दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बा'द " +jhukii-jhukii-sii-nazar-be-qaraar-hai-ki-nahiin-kaifi-azmi-ghazals," +झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं +दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं +तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता +मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं +वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है +उस एक पल का तुझे इंतिज़ार है कि नहीं +तिरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को +तुझे भी अपने पे ये ए'तिबार है कि नहीं " +sunaa-karo-mirii-jaan-in-se-un-se-afsaane-kaifi-azmi-ghazals," +सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने +सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने +यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालो +हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने +मिरे जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गए लोग +सुना है बंद किए जा रहे हैं बुत-ख़ाने +जहाँ से पिछले पहर कोई तिश्ना-काम उठा +वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने +बहार आए तो मेरा सलाम कह देना +मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने +हुआ है हुक्म कि 'कैफ़ी' को संगसार करो +मसीह बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने " +kii-hai-koii-hasiin-khataa-har-khataa-ke-saath-kaifi-azmi-ghazals," +की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ +थोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सज़ा के साथ +गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो +डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ +मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे +हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ +रक़्स-ए-सबा के जश्न में हम तुम भी नाचते +ऐ काश तुम भी आ गए होते सबा के साथ +इक्कीसवीं सदी की तरफ़ हम चले तो हैं +फ़ित्ने भी जाग उट्ठे हैं आवाज़-ए-पा के साथ +ऐसा लगा ग़रीबी की रेखा से हूँ बुलंद +पूछा किसी ने हाल कुछ ऐसी अदा के साथ " +kahiin-se-laut-ke-ham-ladkhadaae-hain-kyaa-kyaa-kaifi-azmi-ghazals," +कहीं से लौट के हम लड़खड़ाए हैं क्या क्या +सितारे ज़ेर-ए-क़दम रात आए हैं क्या क्या +नशेब-ए-हस्ती से अफ़्सोस हम उभर न सके +फ़राज़-ए-दार से पैग़ाम आए हैं क्या क्या +जब उस ने हार के ख़ंजर ज़मीं पे फेंक दिया +तमाम ज़ख़्म-ए-जिगर मुस्कुराए हैं क्या क्या +छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल +वहीं ���े धूप ने तलवे जलाए हैं क्या क्या +उठा के सर मुझे इतना तो देख लेने दे +कि क़त्ल-गाह में दीवाने आए हैं क्या क्या +कहीं अँधेरे से मानूस हो न जाए अदब +चराग़ तेज़ हवा ने बुझाए हैं क्या क्या " +patthar-ke-khudaa-vahaan-bhii-paae-kaifi-azmi-ghazals," +पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए +हम चाँद से आज लौट आए +दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं +क्या हो गए मेहरबान साए +जंगल की हवाएँ आ रही हैं +काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए +लैला ने नया जनम लिया है +है क़ैस कोई जो दिल लगाए +है आज ज़मीं का ग़ुस्ल-ए-सेह्हत +जिस दिल में हो जितना ख़ून लाए +सहरा सहरा लहू के खे़मे +फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आए " +jo-vo-mire-na-rahe-main-bhii-kab-kisii-kaa-rahaa-kaifi-azmi-ghazals-1," +जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा +बिछड़ के उन से सलीक़ा न ज़िंदगी का रहा +लबों से उड़ गया जुगनू की तरह नाम उस का +सहारा अब मिरे घर में न रौशनी का रहा +गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे +ज़मीं पे नक़्श-ए-क़दम बस किसी किसी का रहा " +aaj-sochaa-to-aansuu-bhar-aae-kaifi-azmi-ghazals-1," +आज सोचा तो आँसू भर आए +मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए +हर क़दम पर उधर मुड़ के देखा +उन की महफ़िल से हम उठ तो आए +रह गई ज़िंदगी दर्द बन के +दर्द दिल में छुपाए छुपाए +दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं +याद इतना भी कोई न आए " +milne-kii-tarah-mujh-se-vo-pal-bhar-nahiin-miltaa-naseer-turabi-ghazals," +मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता +दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता +ये राह-ए-तमन्ना है यहाँ देख के चलना +इस राह में सर मिलते हैं पत्थर नहीं मिलता +हमरंगी-ए-मौसम के तलबगार न होते +साया भी तो क़ामत के बराबर नहीं मिलता +कहने को ग़म-ए-हिज्र बड़ा दुश्मन-ए-जाँ है +पर दोस्त भी इस दोस्त से बेहतर नहीं मिलता +कुछ रोज़ 'नसीर' आओ चलो घर में रहा जाए +लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता " +vo-ham-safar-thaa-magar-us-se-ham-navaaii-na-thii-naseer-turabi-ghazals," +वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी +कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी +न अपना रंज न औरों का दुख न तेरा मलाल +शब-ए-फ़िराक़ कभी हम ने यूँ गँवाई न थी +मोहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था +शिकस्ता-दिल थे मुसाफ़िर शिकस्ता-पाई न थी +अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत +बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी +बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल +ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी +किसे पुकार रहा था वो डूबता हुआ दिन +सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी +कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली थी बहुत +कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी +अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख 'नसीर' +वहाँ भी आ गए आख़िर, जहाँ रसाई न थी " +is-kadii-dhuup-men-saaya-kar-ke-naseer-turabi-ghazals," +इस कड़ी धूप में साया कर के +तू कहाँ है मुझे तन्हा कर के +मैं तो अर्ज़ां था ख़ुदा की मानिंद +कौन गुज़रा मिरा सौदा कर के +तीरगी टूट पड़ी है मुझ पर +मैं पशीमाँ हूँ उजाला कर के +ले गया छीन के आँखें मेरी +मुझ से क्यूँ वादा-ए-फ़र्दा कर के +लौ इरादों की बढ़ा दी शब ने +दिन गया जब मुझे पसपा कर के +काश ये आईना-ए-हिज्र-ओ-विसाल +टूट जाए मुझे अंधा कर के +हर तरफ़ सच की दुहाई है 'नसीर' +शेर लिखते रहो सच्चा कर के " +tujhe-kyaa-khabar-mire-be-khabar-miraa-silsila-koii-aur-hai-naseer-turabi-ghazals-3," +तुझे क्या ख़बर मिरे बे-ख़बर मिरा सिलसिला कोई और है +जो मुझी को मुझ से बहम करे वो गुरेज़-पा कोई और है +मिरे मौसमों के भी तौर थे मिरे बर्ग-ओ-बार ही और थे +मगर अब रविश है अलग कोई मगर अब हवा कोई और है +यही शहर शहर-ए-क़रार है तो दिल-ए-शिकस्ता की ख़ैर हो +मिरी आस है किसी और से मुझे पूछता कोई और है +ये वो माजरा-ए-फ़िराक़ है जो मोहब्बतों से न खुल सका +कि मोहब्बतों ही के दरमियाँ सबब-ए-जफ़ा कोई और है +हैं मोहब्बतों की अमानतें यही हिजरतें यही क़ुर्बतें +दिए बाम-ओ-दर किसी और ने तो रहा बसा कोई और है +ये फ़ज़ा के रंग खुले खुले इसी पेश-ओ-पस के हैं सिलसिले +अभी ख़ुश-नवा कोई और था अभी पर-कुशा कोई और है +दिल-ए-ज़ूद-रंज न कर गिला किसी गर्म ओ सर्द रक़ीब का +रुख़-ए-ना-सज़ा तो है रू-ब-रू पस-ए-ना-सज़ा कोई और है +बहुत आए हमदम ओ चारा-गर जो नुमूद-ओ-नाम के हो गए +जो ज़वाल-ए-ग़म का भी ग़म करे वो ख़ुश-आश्ना कोई और है +ये 'नसीर' शाम-ए-सुपुर्दगी की उदास उदास सी रौशनी +ब-कनार-ए-गुल ज़रा देखना ये तुम्ही हो या कोई और है " +marham-e-vaqt-na-ejaaz-e-masiihaaii-hai-naseer-turabi-ghazals," +मरहम-ए-वक़्त न एजाज़-ए-मसीहाई है +ज़िंदगी रोज़ नए ज़ख़्म की गहराई है +फिर मिरे घर की फ़ज़ाओं में हुआ सन्नाटा +फिर दर-ओ-बाम से अंदेशा-ए-गोयाई है +तुझ से बिछड़ूँ तो कोई फूल न महके मुझ में +देख क्या कर्ब है क्या ज़ात की सच्चाई है +तेरा मंशा तिरे लहजे की धनक में देखा +तिरी आवाज़ भी शायद तिरी अंगड़ाई है +कुछ अजब गर्दिश-ए-पर्कार सफ़र रखता हूँ +दो-क़दम मुझ से भी आगे मिरी रुस्वाई है +कुछ तो ये है कि मिरी राह जुदा है तुझ से +और कुछ क़र्ज़ भी मुझ पर तिरी तन्हाई है +किस लिए मुझ से गुरेज़ाँ है मिरे सामने तू +क्या तिरी राह में हाइल मिरी बीनाई है +वो सितारे जो चमकते हैं तिरे आँगन में +उन सितार���ं से तो अपनी भी शनासाई है +जिस को इक उम्र ग़ज़ल से किया मंसूब 'नसीर' +उस को परखा तो खुला क़ाफ़िया-पैमाई है " +diyaa-saa-dil-ke-kharaabe-men-jal-rahaa-hai-miyaan-naseer-turabi-ghazals," +दिया सा दिल के ख़राबे में जल रहा है मियाँ +दिए के गिर्द कोई अक्स चल रहा है मियाँ +ये रूह रक़्स‌‌‌‌-ए-चराग़ाँ है अपने हल्क़े में +ये जिस्म साया है और साया ढल रहा मियाँ +ये आँख पर्दा है इक गर्दिश-ए-तहय्युर का +ये दिल नहीं है बगूला उछल रहा है मियाँ +कभी किसी का गुज़रना कभी ठहर जाना +मिरे सुकूत में क्या क्या ख़लल रहा है मियाँ +किसी की राह में अफ़्लाक ज़ेर-ए-पा होते +यहाँ तो पाँव से सहरा निकल रहा है मियाँ +हुजूम-ए-शोख़ में ये दिल ही बे-ग़रज़ निकला +चलो कोई तो हरीफ़ाना चल रहा है मियाँ +तुझे अभी से पड़ी है कि फ़ैसला हो जाए +न जाने कब से यहाँ वक़्त टल रहा है मियाँ +तबीअतों ही के मिलने से था मज़ा बाक़ी +सो वो मज़ा भी कहाँ आज-कल रहा है मियाँ +ग़मों की फ़स्ल में जिस ग़म को राएगाँ समझें +ख़ुशी तो ये है कि वो ग़म भी फल रहा है मियाँ +लिखा 'नसीर' ने हर रंग में सफ़ेद-ओ-सियाह +मगर जो हर्फ़ लहू में मचल रहा है मियाँ " +sukuut-e-shaam-se-ghabraa-na-jaae-aakhir-tuu-naseer-turabi-ghazals," +सुकूत-ए-शाम से घबरा न जाए आख़िर तू +मिरे दयार से गुज़री जो ऐ किरन फिर तू +लिबास-ए-जाँ में नहीं शो'लगी का रंग मगर +झुलस रहा है मिरे साथ क्यूँ ब-ज़ाहिर तू +वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ का ए'तिबार भी क्या +कि मैं तो साहब-ए-ईमाँ हूँ और मुंकिर तू +मिरे वजूद में इक बे-ज़बाँ समुंदर है +उतर के देख सफ़ीने से मेरी ख़ातिर तू +मैं शाख़-ए-सब्ज़ नहीं महरम-ए-सबा भी नहीं +मिरे फ़रेब में क्यूँ आ गया है ताइर तू +इसी उम्मीद पे जलते हैं रास्तों में चराग़ +कभी तो लौट के आएगा ऐ मुसाफ़िर तू " +main-bhii-ai-kaash-kabhii-mauj-e-sabaa-ho-jaauun-naseer-turabi-ghazals," +मैं भी ऐ काश कभी मौज-ए-सबा हो जाऊँ +इस तवक़्क़ो पे कि ख़ुद से भी जुदा हो जाऊँ +अब्र उट्ठे तो सिमट जाऊँ तिरी आँखों में +धूप निकले तो तिरे सर की रिदा हो जाऊँ +आज की रात उजाले मिरे हम-साया हैं +आज की रात जो सो लूँ तो नया हो जाऊँ +अब यही सोच लिया दिल में कि मंज़िल के बग़ैर +घर पलट आऊँ तो मैं आबला-पा हो जाऊँ +फूल की तरह महकता हूँ तिरी याद के साथ +ये अलग बात कि मैं तुझ से ख़फ़ा हो जाऊँ +जिस के कूचे में बरसते रहे पत्थर मुझ पर +उस के हाथों के लिए रंग-ए-हिना हो जाऊँ +आरज़ू ये है कि तक़्दीस-ए-हुनर की ख़ातिर +तेरे होंटों पे रहूँ हम्द-ओ-सना हो जाऊँ +मरहला अपनी परस्तिश का ��ो दरपेश तो मैं +अपने ही सामने माइल-ब-दुआ हो जाऊँ +तीशा-ए-वक़्त बताए कि तआरुफ़ के लिए +किन पहाड़ों की बुलंदी पे खड़ा हो जाऊँ +हाए वो लोग कि मैं जिन का पुजारी हूँ 'नसीर' +हाए वो लोग कि मैं जिन का ख़ुदा हो जाऊँ " +rache-base-hue-lamhon-se-jab-hisaab-huaa-naseer-turabi-ghazals," +रचे-बसे हुए लम्हों से जब हिसाब हुआ +गए दिनों की रुतों का ज़ियाँ सवाब हुआ +गुज़र गया तो पस-ए-मौज बे-कनारी थी +ठहर गया तो वो दरिया मुझे सराब हुआ +सुपुर्दगी के तक़ाज़े कहाँ कहाँ से पढ़ूँ +हुनर के बाब में पैकर तिरा किताब हुआ +हर आरज़ू मिरी आँखों की रौशनी ठहरी +चराग़ सोच में गुम हैं ये क्या अज़ाब हुआ +कुछ अजनबी से लगे आश्ना दरीचे भी +किरन किरन जो उजालों का एहतिसाब हुआ +वो यख़-मिज़ाज रहा फ़ासलों के रिश्तों से +मगर गले से लगाया तो आब आब हुआ +वो पेड़ जिस के तले रूह गुनगुनाती थी +उसी की छाँव से अब मुझ को इज्तिनाब हुआ +इन आँधियों में किसे मोहलत-ए-क़याम यहाँ +कि एक ख़ेमा-ए-जाँ था सो बे-तनाब हुआ +सलीब-ए-संग हो या पैरहन के रंग 'नसीर' +हमारे नाम से क्या क्या न इंतिसाब हुआ " +dard-kii-dhuup-se-chehre-ko-nikhar-jaanaa-thaa-naseer-turabi-ghazals," +दर्द की धूप से चेहरे को निखर जाना था +आइना देखने वाले तुझे मर जाना था +राह में ऐसे नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा भी आए +मैं ने दानिस्ता जिन्हें गर्द-ए-सफ़र जाना था +वहम-ओ-इदराक के हर मोड़ पे सोचा मैं ने +तू कहाँ है मिरे हमराह अगर जाना था +आगही ज़ख़्म-ए-नज़ारा न बनी थी जब तक +मैं ने हर शख़्स को महबूब-ए-नज़र जाना था +क़ुर्बतें रेत की दीवार हैं गिर सकती हैं +मुझ को ख़ुद अपने ही साए में ठहर जाना था +तू कि वो तेज़ हवा जिस की तमन्ना बे-सूद +मैं कि वो ख़ाक जिसे ख़ुद ही बिखर जाना था +आँख वीरान सही फिर भी अँधेरों को 'नसीर' +रौशनी बन के मिरे दिल में उतर जाना था " +ham-rahii-kii-baat-mat-kar-imtihaan-ho-jaaegaa-naseer-turabi-ghazals," +हम-रही की बात मत कर इम्तिहाँ हो जाएगा +हम सुबुक हो जाएँगे तुझ को गिराँ हो जाएगा +जब बहार आ कर गुज़र जाएगी ऐ सर्व-ए-बहार +एक रंग अपना भी पैवंद-ए-ख़िज़ाँ हो जाएगा +साअत-ए-तर्क-ए-तअल्लुक़ भी क़रीब आ ही गई +क्या ये अपना सब तअल्लुक़ राएगाँ हो जाएगा +ये हवा सारे चराग़ों को उड़ा ले जाएगी +रात ढलने तक यहाँ सब कुछ धुआँ हो जाएगा +शाख़-ए-दिल फिर से हरी होने लगी देखो 'नसीर' +ऐसा लगता है किसी का आशियाँ हो जाएगा " +misl-e-sahraa-hai-rifaaqat-kaa-chaman-bhii-ab-ke-naseer-turabi-ghazals," +मिस्ल-ए-सहरा है रिफ़ाक़त का चमन भी अब के +जल बुझा अपने ही शो'लों में बदन भी अब के +ख़ार-ओ-ख़स हूँ तो शरर-ख़ेज़ियाँ देखूँ फिर से +आँख ले आई है इक ऐसी किरन भी अब के +हम तो वो फूल जो शाख़ों पे ये सोचें पहरों +क्यूँ सबा भूल गई अपना चलन भी अब के +मंज़िलों तक नज़र आता है शिकस्तों का ग़ुबार +साथ देती नहीं ऐसे में थकन भी अब के +मुंसलिक एक ही रिश्ते में न हो जाए कहीं +तिरे माथे तिरे बिस्तर की शिकन भी अब के +बे-गुनाही के लिबादे को उतारो भी 'नसीर' +रास आ जाए अगर जुर्म-ए-सुख़न भी अब के " +sabaa-kaa-narm-saa-jhonkaa-bhii-taaziyaana-huaa-naseer-turabi-ghazals-1," +सबा का नर्म सा झोंका भी ताज़ियाना हुआ +ये वार मुझ पे हुआ भी तो ग़ाएबाना हुआ +उसी ने मुझ पे उठाए हैं संग जिस के लिए +मैं पाश पाश हुआ घर निगार-ख़ाना हुआ +झुलस रहा था बदन गर्मी-ए-नफ़स से मगर +तिरे ख़याल का ख़ुर्शीद शामियाना हुआ +ख़ुद अपने हिज्र की ख़्वाहिश मुझे अज़ीज़ रही +ये तेरे वस्ल का क़िस्सा तो इक बहाना हुआ +ख़ुदा की सर्द-मिज़ाजी समा गई मुझ में +मिरी तलाश का सौदा पयम्बराना हुआ +मैं इक शजर की तरह रह-गुज़र में ठहरा हूँ +थकन उतार के तू किस तरफ़ रवाना हुआ +वो शख़्स जिस के लिए शे'र कह रहा हूँ 'नसीर' +ग़ज़ल सुनाए हुए उस को इक ज़माना हुआ " +koii-aavaaz-na-aahat-na-khayaal-aise-men-naseer-turabi-ghazals," +कोई आवाज़ न आहट न ख़याल ऐसे में +रात महकी है मगर जी है निढाल ऐसे में +मेरे अतराफ़ तो गिरती हुई दीवारें हैं +साया-ए-उम्र-ए-रवाँ मुझ को सँभाल ऐसे में +जब भी चढ़ते हुए दरिया में सफ़ीना उतरा +याद आया तिरे लहजे का कमाल ऐसे में +आँख खुलती है तो सब ख़्वाब बिखर जाते हैं +सोचता हूँ कि बिछा दूँ कोई जाल ऐसे में +मुद्दतों बा'द अगर सामने आए हम तुम +धुँदले धुँदले से मिलेंगे ख़द-ओ-ख़ाल ऐसे में +हिज्र के फूल में है दर्द की बासी ख़ुश्बू +मौसम-ए-वस्ल कोई ताज़ा मलाल ऐसे में " +dekh-lete-hain-ab-us-baam-ko-aate-jaate-naseer-turabi-ghazals," +देख लेते हैं अब उस बाम को आते जाते +ये भी आज़ार चला जाएगा जाते जाते +दिल के सब नक़्श थे हाथों की लकीरों जैसे +नक़्श-ए-पा होते तो मुमकिन था मिटाते जाते +थी कभी राह जो हम-राह गुज़रने वाली +अब हज़र होता है उस राह से आते जाते +शहर-ए-बे-मेहर! कभी हम को भी मोहलत देता +इक दिया हम भी किसी रुख़ से जलाते जाते +पारा-ए-अब्र-ए-गुरेज़ाँ थे कि मौसम अपने +दूर भी रहते मगर पास भी आते जाते +हर घड़ी एक जुदा ग़म है जुदाई उस की +ग़म की मीआद भी वो ले गया जाते जाते +उस के कूचे में भी हो, राह से बे-राह 'नसीर' +इतने आए थे तो आवाज़ लगाते जाते " +injiil-e-raftagaan-kii-hadiison-ke-saath-huun-naseer-turabi-ghazals," +इंजील-ए-रफ़्तगाँ की हदीसों के साथ हूँ +ईसा-नफ़स हूँ और सलीबों के साथ हूँ +पाबंद-ए-रंग-ओ-नक़्श हूँ तस्वीर की तरह +मैं बे-हिजाब अपने हिजाबों के साथ हूँ +औराक़-ए-आरज़ू पे ब-उन्वान-ए-जाँ-कनी +मैं बे-निशाँ सी चंद लकीरों के साथ हूँ +शायद ये इंतिज़ार की लौ फ़ैसला करे +मैं अपने साथ हूँ कि दरीचों के साथ हूँ +तू फ़तह-मंद मेरा तराशा हुआ सनम +मैं बुत-तराश अपनी शिकस्तों के साथ हूँ +मौज-ए-सबा की ज़द पे सर-ए-रहगुज़ार-ए-शौक़ +मैं भी 'नसीर' घर के चराग़ों के साथ हूँ " +ishq-e-laa-mahduud-jab-tak-rahnumaa-hotaa-nahiin-jigar-moradabadi-ghazals," +इश्क़-ए-ला-महदूद जब तक रहनुमा होता नहीं +ज़िंदगी से ज़िंदगी का हक़ अदा होता नहीं +बे-कराँ होता नहीं बे-इंतिहा होता नहीं +क़तरा जब तक बढ़ के क़ुल्ज़ुम-आश्ना होता नहीं +उस से बढ़ कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं +सब जुदा हो जाएँ लेकिन ग़म जुदा होता नहीं +ज़िंदगी इक हादसा है और कैसा हादसा +मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं +कौन ये नासेह को समझाए ब-तर्ज़-ए-दिल-नशीं +इश्क़ सादिक़ हो तो ग़म भी बे-मज़ा होता नहीं +दर्द से मामूर होती जा रही है काएनात +इक दिल-ए-इंसाँ मगर दर्द-आश्ना होता नहीं +मेरे अर्ज़-ए-ग़म पे वो कहना किसी का हाए हाए +शिकवा-ए-ग़म शेवा-ए-अहल-ए-वफ़ा होता नहीं +उस मक़ाम-ए-क़ुर्ब तक अब इश्क़ पहुँचा ही जहाँ +दीदा-ओ-दिल का भी अक्सर वास्ता होता नहीं +हर क़दम के साथ मंज़िल लेकिन इस का क्या इलाज +इश्क़ ही कम-बख़्त मंज़िल-आश्ना होता नहीं +अल्लाह अल्लाह ये कमाल और इर्तिबात-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ +फ़ासले हों लाख दिल से दिल जुदा होता नहीं +क्या क़यामत है कि इस दौर-ए-तरक़्क़ी में 'जिगर' +आदमी से आदमी का हक़ अदा होता नहीं " +ab-to-ye-bhii-nahiin-rahaa-ehsaas-jigar-moradabadi-ghazals," +अब तो ये भी नहीं रहा एहसास +दर्द होता है या नहीं होता +इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा +आदमी काम का नहीं होता +टूट पड़ता है दफ़अ'तन जो इश्क़ +बेश-तर देर-पा नहीं होता +वो भी होता है एक वक़्त कि जब +मा-सिवा मा-सिवा नहीं होता +हाए क्या हो गया तबीअ'त को +ग़म भी राहत-फ़ज़ा नहीं होता +दिल हमारा है या तुम्हारा है +हम से ये फ़ैसला नहीं होता +जिस पे तेरी नज़र नहीं होती +उस की जानिब ख़ुदा नहीं होता +मैं कि बे-ज़ार उम्र भर के लिए +दिल कि दम-भर जुदा नहीं होता +वो हमारे क़रीब होते हैं +जब हमारा पता नहीं होता +दिल को क्या क्या सुकून होता है +जब कोई आसरा नहीं होता +हो के इक बार सामना उन से +फिर कभी सामना नहीं होता " +jo-ab-bhii-na-takliif-farmaaiyegaa-jigar-moradabadi-ghazals," +जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगा +तो बस हाथ मलते ही रह जाइएगा +निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा +जहाँ जाइएगा हमें पाइएगा +मिरा जब बुरा हाल सुन पाइएगा +ख़िरामाँ ख़िरामाँ चले आइएगा +मिटा कर हमें आप पछ्ताइएगा +कमी कोई महसूस फ़रमाइएगा +नहीं खेल नासेह जुनूँ की हक़ीक़त +समझ लीजिएगा तो समझाइएगा +हमें भी ये अब देखना है कि हम पर +कहाँ तक तवज्जोह न फ़रमाइएगा +सितम इश्क़ में आप आसाँ न समझें +तड़प जाइएगा जो तड़पाइएगा +ये दिल है इसे दिल ही बस रहने दीजे +करम कीजिएगा तो पछ्ताइएगा +कहीं चुप रही है ज़बान-ए-मोहब्बत +न फ़रमाइएगा तो फ़रमाइएगा +भुलाना हमारा मुबारक मुबारक +मगर शर्त ये है न याद आइएगा +हमें भी न अब चैन आएगा जब तक +इन आँखों में आँसू न भर लाइएगा +तिरा जज़्बा-ए-शौक़ है बे-हक़ीक़त +ज़रा फिर तो इरशाद फ़रमाइएगा +हमीं जब न होंगे तो क्या रंग-ए-महफ़िल +किसे देख कर आप शरमाइएगा +ये माना कि दे कर हमें रंज-ए-फ़ुर्क़त +मुदावा-ए-फ़ुर्क़त न फ़रमाइएगा +मोहब्बत मोहब्बत ही रहती है लेकिन +कहाँ तक तबीअत को बहलाइएगा +न होगा हमारा ही आग़ोश ख़ाली +कुछ अपना भी पहलू तही पाइएगा +जुनूँ की 'जिगर' कोई हद भी है आख़िर +कहाँ तक किसी पर सितम ढाइएगा " +kiyaa-taajjub-ki-mirii-ruuh-e-ravaan-tak-pahunche-jigar-moradabadi-ghazals," +किया तअ'ज्जुब कि मिरी रूह-ए-रवाँ तक पहुँचे +पहले कोई मिरे नग़्मों की ज़बाँ तक पहुँचे +जब हर इक शोरिश-ए-ग़म ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ तक पहुँचे +फिर ख़ुदा जाने ये हंगामा कहाँ तक पहुँचे +आँख तक दिल से न आए न ज़बाँ तक पहुँचे +बात जिस की है उसी आफ़त-ए-जाँ तक पहुँचे +तू जहाँ पर था बहुत पहले वहीं आज भी है +देख रिंदान-ए-ख़ुश-अन्फ़ास कहाँ तक पहुँचे +जो ज़माने को बुरा कहते हैं ख़ुद हैं वो बुरे +काश ये बात तिरे गोश-ए-गिराँ तक पहुँचे +बढ़ के रिंदों ने क़दम हज़रत-ए-वाइ'ज़ के लिए +गिरते पड़ते जो दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे +तू मिरे हाल-ए-परेशाँ पे बहुत तंज़ न कर +अपने गेसू भी ज़रा देख कहाँ तक पहुँचे +उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें +मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे +इश्क़ की चोट दिखाने में कहीं आती है +कुछ इशारे थे कि जो लफ़्ज़-ओ-बयाँ तक पहुँचे +जल्वे बेताब थे जो पर्दा-ए-फ़ितरत में 'जिगर' +ख़ुद तड़प कर मिरी चश्म-ए-निगराँ तक पहुँचे " +vo-jo-ruuthen-yuun-manaanaa-chaahiye-jigar-moradabadi-ghazals," +वो जो रूठें यूँ मनाना चाहिए +ज़िंदगी से रूठ जाना चाहिए +हिम्मत-ए-क़ातिल बढ़ाना चाहिए +ज़ेर-ए-ख़ंजर मुस्कुराना चाहिए +ज़िंदगी है नाम जोहद ओ जंग का +मौत क्या है भूल जाना चाहिए +है इन्हीं धोकों से दिल की ज़िंदगी +जो हसीं धोका हो खाना चाहिए +लज़्ज़तें हैं दुश्मन-ए-औज-ए-कमाल +कुल्फ़तों से जी लगाना चाहिए +उन से मिलने को तो क्या कहिए 'जिगर' +ख़ुद से मिलने को ज़माना चाहिए " +allaah-agar-taufiiq-na-de-insaan-ke-bas-kaa-kaam-nahiin-jigar-moradabadi-ghazals," +अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं +फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत आम सही इरफ़ान-ए-मोहब्बत आम नहीं +ये तू ने कहा क्या ऐ नादाँ फ़य्याज़ी-ए-क़ुदरत आम नहीं +तू फ़िक्र ओ नज़र तो पैदा कर क्या चीज़ है जो इनआम नहीं +या-रब ये मक़ाम-ए-इश्क़ है क्या गो दीदा-ओ-दिल नाकाम नहीं +तस्कीन है और तस्कीन नहीं आराम है और आराम नहीं +क्यूँ मस्त-ए-शराब-ए-ऐश-ओ-तरब तकलीफ़-ए-तवज्जोह फ़रमाएँ +आवाज़-ए-शिकस्त-ए-दिल ही तो है आवाज़-ए-शिकस्त-ए-जाम नहीं +आना है जो बज़्म-ए-जानाँ में पिंदार-ए-ख़ुदी को तोड़ के आ +ऐ होश-ओ-ख़िरद के दीवाने याँ होश-ओ-ख़िरद का काम नहीं +ज़ाहिद ने कुछ इस अंदाज़ से पी साक़ी की निगाहें पड़ने लगीं +मय-कश यही अब तक समझे थे शाइस्ता दौर-ए-जाम नहीं +इश्क़ और गवारा ख़ुद कर ले बे-शर्त शिकस्त-ए-फ़ाश अपनी +दिल की भी कुछ उन के साज़िश है तन्हा ये नज़र का काम नहीं +सब जिस को असीरी कहते हैं वो तो है अमीरी ही लेकिन +वो कौन सी आज़ादी है यहाँ जो आप ख़ुद अपना दाम नहीं " +dil-ko-sukuun-ruuh-ko-aaraam-aa-gayaa-jigar-moradabadi-ghazals," +दिल को सुकून रूह को आराम आ गया +मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया +जब कोई ज़िक्र-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आ गया +बे-इख़्तियार लब पे तिरा नाम आ गया +ग़म में भी है सुरूर वो हंगाम आ गया +शायद कि दौर-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम आ गया +दीवानगी हो अक़्ल हो उम्मीद हो कि यास +अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया +दिल के मुआमलात में नासेह शिकस्त क्या +सौ बार हुस्न पर भी ये इल्ज़ाम आ गया +सय्याद शादमाँ है मगर ये तो सोच ले +मैं आ गया कि साया तह-ए-दाम आ गया +दिल को न पूछ मारका-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में +क्या जानिए ग़रीब कहाँ काम आ गया +ये क्या मक़ाम-ए-इश्क़ है ज़ालिम कि इन दिनों +अक्सर तिरे बग़ैर भी आराम आ गया +अहबाब मुझ से क़त-ए-तअल्लुक़ करें 'जिगर' +अब आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त लब-ए-बाम आ गया " +sharmaa-gae-lajaa-gae-daaman-chhudaa-gae-jigar-moradabadi-ghazals," +शरमा गए लजा गए दामन छुड़ा गए +ऐ इश्क़ मर्हबा वो यहाँ तक तो आ गए +दिल पर हज़ार तरह के औहाम छा गए +ये तुम ने क्या किया मिरी दुनिया में आ गए +सब कुछ लुटा ��े राह-ए-मोहब्बत में अहल-ए-दिल +ख़ुश हैं कि जैसे दौलत-ए-कौनैन पा गए +सेहन-ए-चमन को अपनी बहारों पे नाज़ था +वो आ गए तो सारी बहारों पे छा गए +अक़्ल ओ जुनूँ में सब की थीं राहें जुदा जुदा +हिर-फिर के लेकिन एक ही मंज़िल पे आ गए +अब क्या करूँ मैं फ़ितरत-ए-नाकाम-ए-इश्क़ को +जितने थे हादसात मुझे रास आ गए " +ham-ko-mitaa-sake-ye-zamaane-men-dam-nahiin-jigar-moradabadi-ghazals," +हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं +हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं +बे-फ़ाएदा अलम नहीं बे-कार ग़म नहीं +तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये नेमत भी कम नहीं +मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-अहल-ए-सितम नहीं +मुझ को जगा दिया यही एहसान कम नहीं +या रब हुजूम-ए-दर्द को दे और वुसअ'तें +दामन तो क्या अभी मिरी आँखें भी नम नहीं +शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन +तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं +अब इश्क़ उस मक़ाम पे है जुस्तुजू-नवर्द +साया नहीं जहाँ कोई नक़्श-ए-क़दम नहीं +मिलता है क्यूँ मज़ा सितम-ए-रोज़गार में +तेरा करम भी ख़ुद जो शरीक-ए-सितम नहीं +मर्ग-ए-'जिगर' पे क्यूँ तिरी आँखें हैं अश्क-रेज़ +इक सानेहा सही मगर इतना अहम नहीं " +aadmii-aadmii-se-miltaa-hai-jigar-moradabadi-ghazals," +आदमी आदमी से मिलता है +दिल मगर कम किसी से मिलता है +भूल जाता हूँ मैं सितम उस के +वो कुछ इस सादगी से मिलता है +आज क्या बात है कि फूलों का +रंग तेरी हँसी से मिलता है +सिलसिला फ़ित्ना-ए-क़यामत का +तेरी ख़ुश-क़ामती से मिलता है +मिल के भी जो कभी नहीं मिलता +टूट कर दिल उसी से मिलता है +कारोबार-ए-जहाँ सँवरते हैं +होश जब बे-ख़ुदी से मिलता है +रूह को भी मज़ा मोहब्बत का +दिल की हम-साएगी से मिलता है " +mohabbat-men-ye-kyaa-maqaam-aa-rahe-hain-jigar-moradabadi-ghazals," +मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं +कि मंज़िल पे हैं और चले जा रहे हैं +ये कह कह के हम दिल को बहला रहे हैं +वो अब चल चुके हैं वो अब आ रहे हैं +वो अज़-ख़ुद ही नादिम हुए जा रहे हैं +ख़ुदा जाने क्या क्या ख़याल आ रहे हैं +हमारे ही दिल से मज़े उन के पूछो +वो धोके जो दानिस्ता हम खा रहे हैं +जफ़ा करने वालों को क्या हो गया है +वफ़ा कर के भी हम तो शर्मा रहे हैं +वो आलम है अब यारो अग़्यार कैसे +हमीं अपने दुश्मन हुए जा रहे हैं +मिज़ाज-ए-गिरामी की हो ख़ैर या-रब +कई दिन से अक्सर वो याद आ रहे हैं " +us-kii-nazron-men-intikhaab-huaa-jigar-moradabadi-ghazals," +उस की नज़रों में इंतिख़ाब हुआ +दिल अजब हुस्न से ख़राब हुआ +इश्क़ का सेहर कामयाब हुआ +मैं तिरा तू मिरा जवाब हुआ +हर नफ़स मौज-ए-इज़्तिराब ह���आ +ज़िंदगी क्या हुई अज़ाब हुआ +जज़्बा-ए-शौक़ कामयाब हुआ +आज मुझ से उन्हें हिजाब हुआ +मैं बनूँ किस लिए न मस्त-ए-शराब +क्यूँ मुजस्सम कोई शबाब हुआ +निगह-ए-नाज़ ले ख़बर वर्ना +दर्द महबूब-ए-इज़्तिराब हुआ +मेरी बर्बादियाँ दुरुस्त मगर +तू बता क्या तुझे सवाब हुआ +ऐन क़ुर्बत भी ऐन फ़ुर्क़त भी +हाए वो क़तरा जो हबाब हुआ +मस्तियाँ हर तरफ़ हैं आवारा +कौन ग़ारत-गर-ए-शराब हुआ +दिल को छूना न ऐ नसीम-ए-करम +अब ये दिल रू-कश-ए-हबाब हुआ +इश्क़-ए-बे-इम्तियाज़ के हाथों +हुस्न ख़ुद भी शिकस्त-याब हुआ +जब वो आए तो पेश-तर सब से +मेरी आँखों को इज़्न-ए-ख़्वाब हुआ +दिल की हर चीज़ जगमगा उट्ठी +आज शायद वो बे-नक़ाब हुआ +दौर-ए-हंगामा-ए-नशात न पूछ +अब वो सब कुछ ख़याल ओ ख़्वाब हुआ +तू ने जिस अश्क पर नज़र डाली +जोश खा कर वही शराब हुआ +सितम-ए-ख़ास-ए-यार की है क़सम +करम-ए-यार बे-हिसाब हुआ " +laakhon-men-intikhaab-ke-qaabil-banaa-diyaa-jigar-moradabadi-ghazals," +लाखों में इंतिख़ाब के क़ाबिल बना दिया +जिस दिल को तुम ने देख लिया दिल बना दिया +हर-चंद कर दिया मुझे बर्बाद इश्क़ ने +लेकिन उन्हें तो शेफ़्ता-ए-दिल बना दिया +पहले कहाँ ये नाज़ थे ये इश्वा ओ अदा +दिल को दुआएँ दो तुम्हें क़ातिल बना दिया " +ai-husn-e-yaar-sharm-ye-kyaa-inqalaab-hai-jigar-moradabadi-ghazals," +ऐ हुस्न-ए-यार शर्म ये क्या इंक़लाब है +तुझ से ज़ियादा दर्द तिरा कामयाब है +आशिक़ की बे-दिली का तग़ाफ़ुल नहीं जवाब +उस का बस एक जोश-ए-मोहब्बत जवाब है +तेरी इनायतें कि नहीं नज़्र-ए-जाँ क़ुबूल +तेरी नवाज़िशें कि ज़माना ख़राब है +ऐ हुस्न अपनी हौसला-अफ़ज़ाइयाँ तो देख +माना कि चश्म-ए-शौक़ बहुत बे-हिजाब है +मैं इश्क़-ए-बे-नियाज़ हूँ तुम हुस्न-ए-बे-पनाह +मेरा जवाब है न तुम्हारा जवाब है +मय-ख़ाना है उसी का ये दुनिया उसी की है +जिस तिश्ना-लब के हाथ में जाम-ए-शराब है +उस से दिल-ए-तबाह की रूदाद क्या कहूँ +जो ये न सुन सके कि ज़माना ख़राब है +ऐ मोहतसिब न फेंक मिरे मोहतसिब न फेंक +ज़ालिम शराब है अरे ज़ालिम शराब है +अपने हुदूद से न बढ़े कोई इश्क़ में +जो ज़र्रा जिस जगह है वहीं आफ़्ताब है +वो लाख सामने हों मगर इस का क्या इलाज +दिल मानता नहीं कि नज़र कामयाब है +मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर +फिर भी तिरा शबाब तिरा ही शबाब है +मानूस-ए-ए'तिबार-ए-करम क्यूँ किया मुझे +अब हर ख़ता-ए-शौक़ इसी का जवाब है +मैं उस का आईना हूँ वो है मेरा आईना +मेरी नज़र से उस की नज़र कामयाब है +तन्��ाई-ए-फ़िराक़ के क़ुर्बान जाइए +मैं हूँ ख़याल-ए-यार है चश्म-ए-पुर-आब है +सरमाया-ए-फ़िराक़ 'जिगर' आह कुछ न पूछ +अब जान है सो अपने लिए ख़ुद अज़ाब है " +sabhii-andaaz-e-husn-pyaare-hain-jigar-moradabadi-ghazals," +सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं +हम मगर सादगी के मारे हैं +उस की रातों का इंतिक़ाम न पूछ +जिस ने हँस हँस के दिन गुज़ारे हैं +ऐ सहारों की ज़िंदगी वालो +कितने इंसान बे-सहारे हैं +लाला-ओ-गुल से तुझ को क्या निस्बत +ना-मुकम्मल से इस्तिआ'रे हैं +हम तो अब डूब कर ही उभरेंगे +वो रहें शाद जो किनारे हैं +शब-ए-फ़ुर्क़त भी जगमगा उट्ठी +अश्क-ए-ग़म हैं कि माह-पारे हैं +आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है +जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं +वो हमीं हैं कि जिन के हाथों ने +गेसू-ए-ज़िंदगी सँवारे हैं +हुस्न की बे-नियाज़ियों पे न जा +बे-इशारे भी कुछ इशारे हैं " +dil-gayaa-raunaq-e-hayaat-gaii-jigar-moradabadi-ghazals," +दिल गया रौनक़-ए-हयात गई +ग़म गया सारी काएनात गई +दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र +लब तक आई न थी कि बात गई +दिन का क्या ज़िक्र तीरा-बख़्तों में +एक रात आई एक रात गई +तेरी बातों से आज तो वाइ'ज़ +वो जो थी ख़्वाहिश-ए-नजात गई +उन के बहलाए भी न बहला दिल +राएगाँ सई-ए-इल्तिफ़ात गई +मर्ग-ए-आशिक़ तो कुछ नहीं लेकिन +इक मसीहा-नफ़स की बात गई +अब जुनूँ आप है गरेबाँ-गीर +अब वो रस्म-ए-तकल्लुफ़ात गई +हम ने भी वज़-ए-ग़म बदल डाली +जब से वो तर्ज़-ए-इल्तिफ़ात गई +तर्क-ए-उल्फ़त बहुत बजा नासेह +लेकिन उस तक अगर ये बात गई +हाँ मज़े लूट ले जवानी के +फिर न आएगी ये जो रात गई +हाँ ये सरशारियाँ जवानी की +आँख झपकी ही थी कि रात गई +जल्वा-ए-ज़ात ऐ मआ'ज़-अल्लाह +ताब-ए-आईना-ए-सिफ़ात गई +नहीं मिलता मिज़ाज-ए-दिल हम से +ग़ालिबन दूर तक ये बात गई +क़ैद-ए-हस्ती से कब नजात 'जिगर' +मौत आई अगर हयात गई " +tabiiat-in-dinon-begaana-e-gam-hotii-jaatii-hai-jigar-moradabadi-ghazals," +तबीअत इन दिनों बेगाना-ए-ग़म होती जाती है +मिरे हिस्से की गोया हर ख़ुशी कम होती जाती है +सहर होने को है बेदार शबनम होती जाती है +ख़ुशी मंजुमला-ओ-अस्बाब-ए-मातम होती जाती है +क़यामत क्या ये ऐ हुस्न-ए-दो-आलम होती जाती है +कि महफ़िल तो वही है दिल-कशी कम होती जाती है +वही मय-ख़ाना-ओ-सहबा वही साग़र वही शीशा +मगर आवाज़-ए-नोशा-नोश मद्धम होती जाती है +वही हैं शाहिद-ओ-साक़ी मगर दिल बुझता जाता है +वही है शम्अ' लेकिन रौशनी कम होती जाती है +वही शोरिश है लेकिन जैसे मौज-ए-तह-नशीं कोई +वही दिल है मगर आवाज़ मद्धम होती जाती है +व���ी है ज़िंदगी लेकिन 'जिगर' ये हाल है अपना +कि जैसे ज़िंदगी से ज़िंदगी कम होती जाती है " +fikr-e-manzil-hai-na-hosh-e-jaada-e-manzil-mujhe-jigar-moradabadi-ghazals," +फ़िक्र-ए-मंज़िल है न होश-ए-जादा-ए-मंज़िल मुझे +जा रहा हूँ जिस तरफ़ ले जा रहा है दिल मुझे +अब ज़बाँ भी दे अदा-ए-शुक्र के क़ाबिल मुझे +दर्द बख़्शा है अगर तू ने बजाए-दिल मुझे +यूँ तड़प कर दिल ने तड़पाया सर-ए-महफ़िल मुझे +उस को क़ातिल कहने वाले कह उठे क़ातिल मुझे +अब किधर जाऊँ बता ऐ जज़्बा-ए-कामिल मुझे +हर तरफ़ से आज आती है सदा-ए-दिल मुझे +रोक सकती हो तो बढ़ कर रोक ले मंज़िल मुझे +हर तरफ़ से आज आती है सदा-ए-दिल मुझे +जान दी कि हश्र तक मैं हूँ मिरी तन्हाइयाँ +हाँ मुबारक फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारा-ए-क़ातिल मुझे +हर इशारे पर है फिर भी गर्दन-ए-तस्लीम ख़म +जानता हूँ साफ़ धोके दे रहा है दिल मुझे +जा भी ऐ नासेह कहाँ का सूद और कैसा ज़ियाँ +इश्क़ ने समझा दिया है इश्क़ का हासिल मुझे +मैं अज़ल से सुब्ह-ए-महशर तक फ़रोज़ाँ ही रहा +हुस्न समझा था चराग़-ए-कुश्ता-ए-महफ़िल मुझे +ख़ून-ए-दिल रग रग में जम कर रह गया इस वहम से +बढ़ के सीने से न लिपटा ले मिरा क़ातिल मुझे +कैसा क़तरा कैसा दरिया किस का तूफ़ाँ किस की मौज +तू जो चाहे तो डुबो दे ख़ुश्की-ए-साहिल मुझे +फूँक दे ऐ ग़ैरत-ए-सोज़-ए-मोहब्बत फूँक दे +अब समझती हैं वो नज़रें रहम के क़ाबिल मुझे +तोड़ कर बैठा हूँ राह-ए-शौक़ में पा-ए-तलब +देखना है जज़्बा-ए-बे-ताबी-ए-मंज़िल मुझे +ऐ हुजूम-ए-ना-उमीदी शाद-बाश-ओ-ज़िंदा-बाश +तू ने सब से कर दिया बेगाना-ओ-ग़ाफ़िल मुझे +दर्द-ए-महरूमी सही एहसास-ए-नाकामी सही +उस ने समझा तो बहर-सूरत किसी क़ाबिल मुझे +ये भी क्या मंज़र है बढ़ते हैं न रुकते हैं क़दम +तक रहा हूँ दूर से मंज़िल को मैं मंज़िल मुझे " +tujhii-se-ibtidaa-hai-tuu-hii-ik-din-intihaa-hogaa-jigar-moradabadi-ghazals," +तुझी से इब्तिदा है तू ही इक दिन इंतिहा होगा +सदा-ए-साज़ होगी और न साज़-ए-बे-सदा होगा +हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगा +सब उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा +सर-ए-महशर हम ऐसे आसियों का और क्या होगा +दर-ए-जन्नत न वा होगा दर-ए-रहमत तो वा होगा +जहन्नम हो कि जन्नत जो भी होगा फ़ैसला होगा +ये क्या कम है हमारा और उन का सामना होगा +अज़ल हो या अबद दोनों असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-हज़रत हैं +जिधर नज़रें उठाओगे यही इक सिलसिला होगा +ये निस्बत इश्क़ की बे-रंग लाए रह नहीं सकती +जो महबूब-ए-ख़ुदा का है वो महबूब-ए-ख़ुदा होगा +इसी उम्मीद पर हम तालिबान-ए-दर्द जीते हैं +ख़ोशा दर्द दे कि तेरा और दर्द-ए-ला-दवा होगा +निगाह-ए-क़हर पर भी जान-ओ-दिल सब खोए बैठा है +निगाह-ए-मेहर आशिक़ पर अगर होगी तो क्या होगा +सियाना भेज देगा हम को महशर से जहन्नम में +मगर जो दिल पे गुज़रेगी वो दिल ही जानता होगा +समझता क्या है तू दीवानगान-ए-इश्क़ को ज़ाहिद +ये हो जाएँगे जिस जानिब उसी जानिब ख़ुदा होगा +'जिगर' का हाथ होगा हश्र में और दामन-ए-हज़रत +शिकायत हो कि शिकवा जो भी होगा बरमला होगा " +yaadash-ba-khair-jab-vo-tasavvur-men-aa-gayaa-jigar-moradabadi-ghazals," +यादश-ब-ख़ैर जब वो तसव्वुर में आ गया +शे'र ओ शबाब ओ हुस्न का दरिया बहा गया +जब इश्क़ अपने मरकज़-ए-असली पे आ गया +ख़ुद बन गया हसीन दो आलम पे छा गया +जो दिल का राज़ था उसे कुछ दिल ही पा गया +वो कर सके बयाँ न हमीं से कहा गया +नासेह फ़साना अपना हँसी में उड़ा गया +ख़ुश-फ़िक्र था कि साफ़ ये पहलू बचा गया +अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल +हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया +दिल बन गया निगाह निगह बन गई ज़बाँ +आज इक सुकूत-ए-शौक़ क़यामत ही ढा गया +मेरा कमाल-ए-शेर बस इतना है ऐ 'जिगर' +वो मुझ पे छा गए मैं ज़माने पे छा गया " +ye-hai-mai-kada-yahaan-rind-hain-yahaan-sab-kaa-saaqii-imaam-hai-jigar-moradabadi-ghazals," +ये है मय-कदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है +ये हरम नहीं है ऐ शैख़ जी यहाँ पारसाई हराम है +जो ज़रा सी पी के बहक गया उसे मय-कदे से निकाल दो +यहाँ तंग-नज़र का गुज़र नहीं यहाँ अहल-ए-ज़र्फ़ का काम है +कोई मस्त है कोई तिश्ना-लब तो किसी के हाथ में जाम है +मगर इस पे कोई करे भी क्या ये तो मय-कदे का निज़ाम है +ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से +जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है +इसी काएनात में ऐ 'जिगर' कोई इंक़लाब उठेगा फिर +कि बुलंद हो के भी आदमी अभी ख़्वाहिशों का ग़ुलाम है " +aayaa-na-raas-naala-e-dil-kaa-asar-mujhe-jigar-moradabadi-ghazals," +आया न रास नाला-ए-दिल का असर मुझे +अब तुम मिले तो कुछ नहीं अपनी ख़बर मुझे +दिल ले के मुझ से देते हो दाग़-ए-जिगर मुझे +ये बात भूलने की नहीं उम्र भर मुझे +हर-सू दिखाई देते हैं वो जल्वा-गर मुझे +क्या क्या फ़रेब देती है मेरी नज़र मुझे +मिलती नहीं है लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर मुझे +भूली हुई न हो निगह-ए-फ़ित्नागर मुझे +डाला है बे-ख़ुदी ने अजब राह पर मुझे +आँखें हैं और कुछ नहीं आता नज़र मुझे +करना है आज हज़रत-ए-नासेह से सामना +मिल जाए दो घड़ी को तुम्हारी नज़र मुझे +मस्ताना कर रहा हूँ रह-ए-आशिक़ी को तय +ले जाए जज़्ब-ए-शौक़ मिरा अब जिधर मुझे +डरता हूँ जल्वा-ए-रुख़-ए-जानाँ को देख कर +अपना बना न ले कहीं मेरी नज़र मुझे +यकसाँ है हुस्न-ओ-इश्क़ की सर-मस्तियों का रंग +उन की ख़बर उन्हें है न मेरी ख़बर मुझे +मरना है उन के पाँव पे रख कर सर-ए-नियाज़ +करना है आज क़िस्सा-ए-ग़म मुख़्तसर मुझे +सीने से दिल अज़ीज़ है दिल से हो तुम अज़ीज़ +सब से मगर अज़ीज़ है तेरी नज़र मुझे +मैं दूर हूँ तो रू-ए-सुख़न मुझ से किस लिए +तुम पास हो तो क्यूँ नहीं आते नज़र मुझे +क्या जानिए क़फ़स में रहे क्या मोआ'मला +अब तक तो हैं अज़ीज़ मिरे बाल-ओ-पर मुझे " +dil-men-kisii-ke-raah-kiye-jaa-rahaa-huun-main-jigar-moradabadi-ghazals," +दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं +कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं +दुनिया-ए-दिल तबाह किए जा रहा हूँ मैं +सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किए जा रहा हूँ मैं +फ़र्द-ए-अमल सियाह किए जा रहा हूँ मैं +रहमत को बे-पनाह किए जा रहा हूँ मैं +ऐसी भी इक निगाह किए जा रहा हूँ मैं +ज़र्रों को मेहर-ओ-माह किए जा रहा हूँ मैं +मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़्मत को चार चाँद +ख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ मैं +दफ़्तर है एक मानी-ए-बे-लफ़्ज़-ओ-सौत का +सादा सी जो निगाह किए जा रहा हूँ मैं +आगे क़दम बढ़ाएँ जिन्हें सूझता नहीं +रौशन चराग़-ए-राह किए जा रहा हूँ मैं +मासूमी-ए-जमाल को भी जिन पे रश्क है +ऐसे भी कुछ गुनाह किए जा रहा हूँ मैं +तन्क़ीद-ए-हुस्न मस्लहत-ए-ख़ास-ए-इश्क़ है +ये जुर्म गाह गाह किए जा रहा हूँ मैं +उठती नहीं है आँख मगर उस के रू-ब-रू +नादीदा इक निगाह किए जा रहा हूँ मैं +गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़ +काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं +यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर +जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं +मुझ से अदा हुआ है 'जिगर' जुस्तुजू का हक़ +हर ज़र्रे को गवाह किए जा रहा हूँ मैं " +aankhon-kaa-thaa-qusuur-na-dil-kaa-qusuur-thaa-jigar-moradabadi-ghazals," +आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था +आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था +तारीक मिस्ल-ए-आह जो आँखों का नूर था +क्या सुब्ह ही से शाम-ए-बला का ज़ुहूर था +वो थे न मुझ से दूर न मैं उन से दूर था +आता न था नज़र तो नज़र का क़ुसूर था +हर वक़्त इक ख़ुमार था हर दम सुरूर था +बोतल बग़ल में थी कि दिल-ए-ना-सुबूर था +कोई तो दर्दमंद-ए-दिल-ए-ना-सुबूर था +माना कि तुम न थे कोई तुम सा ज़रूर था +लगते ही ठेस टूट गया साज़-ए-आरज़ू +मिलते ही आँख शीशा-ए-दिल चूर चूर था +ऐसा ���हाँ बहार में रंगीनियों का जोश +शामिल किसी का ख़ून-ए-तमन्ना ज़रूर था +साक़ी की चश्म-ए-मस्त का क्या कीजिए बयान +इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था +पलटी जो रास्ते ही से ऐ आह-ए-ना-मुराद +ये तो बता कि बाब-ए-असर कितनी दूर था +जिस दिल को तुम ने लुत्फ़ से अपना बना लिया +उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था +उस चश्म-ए-मय-फ़रोश से कोई न बच सका +सब को ब-क़दर-ए-हौसला-ए-दिल सुरूर था +देखा था कल 'जिगर' को सर-ए-राह-ए-मय-कदा +इस दर्जा पी गया था कि नश्शे में चूर था " +shab-e-firaaq-hai-aur-niind-aaii-jaatii-hai-jigar-moradabadi-ghazals," +शब-ए-फ़िराक़ है और नींद आई जाती है +कुछ इस में उन की तवज्जोह भी पाई जाती है +ये उम्र-ए-इश्क़ यूँही क्या गँवाई जाती है +हयात ज़िंदा हक़ीक़त बनाई जाती है +बना बना के जो दुनिया मिटाई जाती है +ज़रूर कोई कमी है कि पाई जाती है +हमीं पे इश्क़ की तोहमत लगाई जाती है +मगर ये शर्म जो चेहरे पे छाई जाती है +ख़ुदा करे कि हक़ीक़त में ज़िंदगी बन जाए +वो ज़िंदगी जो ज़बाँ तक ही पाई जाती है +गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद +यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है +न सोज़-ए-इश्क़ न बर्क़-ए-जमाल पर इल्ज़ाम +दिलों में आग ख़ुशी से लगाई जाती है +कुछ ऐसे भी तो हैं रिंदान-ए-पाक-बाज़ 'जिगर' +कि जिन को बे-मय-ओ-साग़र पिलाई जाती है " +nazar-milaa-ke-mire-paas-aa-ke-luut-liyaa-jigar-moradabadi-ghazals," +नज़र मिला के मिरे पास आ के लूट लिया +नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया +शिकस्त-ए-हुस्न का जल्वा दिखा के लूट लिया +निगाह नीची किए सर झुका के लूट लिया +दुहाई है मिरे अल्लाह की दुहाई है +किसी ने मुझ से भी मुझ को छुपा के लूट लिया +सलाम उस पे कि जिस ने उठा के पर्दा-ए-दिल +मुझी में रह के मुझी में समा के लूट लिया +उन्हीं के दिल से कोई उस की अज़्मतें पूछे +वो एक दिल जिसे सब कुछ लुटा के लूट लिया +यहाँ तो ख़ुद तिरी हस्ती है इश्क़ को दरकार +वो और होंगे जिन्हें मुस्कुरा के लूट लिया +ख़ुशा वो जान जिसे दी गई अमानत-ए-इश्क़ +रहे वो दिल जिसे अपना बना के लूट लिया +निगाह डाल दी जिस पर हसीन आँखों ने +उसे भी हुस्न-ए-मुजस्सम बना के लूट लिया +बड़े वो आए दिल ओ जाँ के लूटने वाले +नज़र से छेड़ दिया गुदगुदा के लूट लिया +रहा ख़राब-ए-मोहब्बत ही वो जिसे तू ने +ख़ुद अपना दर्द-ए-मोहब्बत दिखा के लूट लिया +कोई ये लूट तो देखे कि उस ने जब चाहा +तमाम हस्ती-ए-दिल को जगा के लूट लिया +करिश्मा-साज़ी-ए-हुस्न-ए-अज़ल अरे तौबा +मिरा ही आईना म���झ को दिखा के लूट लिया +न लुटते हम मगर उन मस्त अँखड़ियों ने 'जिगर' +नज़र बचाते हुए डबडबा के लूट लिया " +kaam-aakhir-jazba-e-be-ikhtiyaar-aa-hii-gayaa-jigar-moradabadi-ghazals," +काम आख़िर जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार आ ही गया +दिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया +जब निगाहें उठ गईं अल्लाह-री मेराज-शौक़ +देखता क्या हूँ वो जान-ए-इंतिज़ार आ ही गया +हाए ये हुस्न-ए-तसव्वुर का फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू +मैं ये समझा जैसे वो जान-ए-बहार आ ही गया +हाँ सज़ा दे ऐ ख़ुदा-ए-इश्क़ ऐ तौफ़ीक़-ए-ग़म +फिर ज़बान-ए-बे-अदब पर ज़िक्र यार आ ही गया +इस तरह ख़ुश हूँ किसी के वादा-ए-फ़र्दा पे मैं +दर-हक़ीक़त जैसे मुझ को ए'तिबार आ ही गया +हाए काफ़िर-दिल की ये काफ़िर जुनूँ-अंगेज़ियाँ +तुम को प्यार आए न आए मुझ को प्यार आ ही गया +दर्द ने करवट ही बदली थी कि दिल की आड़ से +दफ़अ'तन पर्दा उठा और पर्दा-दार आ ही गया +दिल ने इक नाला किया आज इस तरह दीवाना-वार +बाल बिखराए कोई मस्ताना-वार आ ही गया +जान ही दे दी 'जिगर' ने आज पा-ए-यार पर +उम्र भर की बे-क़रारी को क़रार आ ही गया " +ishq-ko-be-naqaab-honaa-thaa-jigar-moradabadi-ghazals," +इश्क़ को बे-नक़ाब होना था +आप अपना जवाब होना था +मस्त-ए-जाम-ए-शराब होना था +बे-ख़ुद-ए-इज़्तिराब होना था +तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं +हाँ मुझी को ख़राब होना था +आओ मिल जाओ मुस्कुरा के गले +हो चुका जो इताब होना था +कूचा-ए-इश्क़ में निकल आया +जिस को ख़ाना-ख़राब होना था +मस्त-ए-जाम-ए-शराब ख़ाक होते +ग़र्क़-ए-जाम-ए-शराब होना था +दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रंगा-रंग +उस को सादा किताब होना था +हम ने नाकामियों को ढूँड लिया +आख़िरश कामयाब होना था +हाए वो लम्हा-ए-सुकूँ कि जिसे +महशर-ए-इज़्तिराब होना था +निगह-ए-यार ख़ुद तड़प उठती +शर्त-ए-अव्वल ख़राब होना था +क्यूँ न होता सितम भी बे-पायाँ +करम-ए-बे-हिसाब होना था +क्यूँ नज़र हैरतों में डूब गई +मौज-ए-सद-इज़्तिराब होना था +हो चुका रोज़-ए-अव्वलीं ही 'जिगर' +जिस को जितना ख़राब होना था " +kasrat-men-bhii-vahdat-kaa-tamaashaa-nazar-aayaa-jigar-moradabadi-ghazals," +कसरत में भी वहदत का तमाशा नज़र आया +जिस रंग में देखा तुझे यकता नज़र आया +जब उस रुख़-ए-पुर-नूर का जल्वा नज़र आया +काबा नज़र आया न कलीसा नज़र आया +ये हुस्न ये शोख़ी ये करिश्मा ये अदाएँ +दुनिया नज़र आई मुझे तो क्या नज़र आया +इक सरख़ुशी-ए-इश्क़ है इक बे-ख़ुदी-ए-शौक़ +आँखों को ख़ुदा जाने मिरी क्या नज़र आया +जब देख न सकते थे तो दरिया भी था क़तरा +जब आँख खुली क़तरा भी दरिया नज़र आया +क़ुर्बान तिरी शान-ए-इनायत के दिल ओ जाँ +इस कम-निगही पर मुझे क्या क्या नज़र आया +हर रंग तिरे रंग में डूबा हुआ निकला +हर नक़्श तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा नज़र आया +आँखों ने दिखा दी जो तिरे ग़म की हक़ीक़त +आलम मुझे सारा तह-ओ-बाला नज़र आया +हर जल्वे को देखा तिरे जल्वों से मुनव्वर +हर बज़्म में तू अंजुमन-आरा नज़र आया " +ye-misraa-kaash-naqsh-e-har-dar-o-diivaar-ho-jaae-jigar-moradabadi-ghazals," +ये मिस्रा काश नक़्श-ए-हर-दर-ओ-दीवार हो जाए +जिसे जीना हो मरने के लिए तय्यार हो जाए +वही मय-ख़्वार है जो इस तरह मय-ख़्वार हो जाए +कि शीशा तोड़ दे और बे-पिए सरशार हो जाए +दिल-ए-इंसाँ अगर शाइस्ता-ए-असरार हो जाए +लब-ए-ख़ामोश-फ़ितरत ही लब-ए-गुफ़्तार हो जाए +हर इक बे-कार सी हस्ती ब-रू-ए-कार हो जाए +जुनूँ की रूह-ए-ख़्वाबीदा अगर बेदार हो जाए +सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी +मुझे डर है न तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए +हरीम-ए-नाज़ में उस की रसाई हो तो क्यूँकर हो +कि जो आसूदा ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार हो जाए +मआ'ज़-अल्लाह उस की वारदात-ए-ग़म मआ'ज़-अल्लाह +चमन जिस का वतन हो और चमन-बे-ज़ार हो जाए +यही है ज़िंदगी तो ज़िंदगी से ख़ुद-कुशी अच्छी +कि इंसाँ आलम-ए-इंसानियत पर बार हो जाए +इक ऐसी शान पैदा कर कि बातिल थरथरा उट्ठे +नज़र तलवार बन जाए नफ़स झंकार हो जाए +ये रोज़ ओ शब ये सुब्ह ओ शाम ये बस्ती ये वीराना +सभी बेदार हैं इंसाँ अगर बेदार हो जाए " +duniyaa-ke-sitam-yaad-na-apnii-hii-vafaa-yaad-jigar-moradabadi-ghazals," +दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद +अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद +मैं शिकवा ब-लब था मुझे ये भी न रहा याद +शायद कि मिरे भूलने वाले ने किया याद +छेड़ा था जिसे पहले-पहल तेरी नज़र ने +अब तक है वो इक नग़्मा-ए-बे-साज़-ओ-सदा याद +जब कोई हसीं होता है सरगर्म-ए-नवाज़िश +उस वक़्त वो कुछ और भी आते हैं सिवा याद +क्या जानिए क्या हो गया अरबाब-ए-जुनूँ को +मरने की अदा याद न जीने की अदा याद +मुद्दत हुई इक हादसा-ए-इश्क़ को लेकिन +अब तक है तिरे दिल के धड़कने की सदा याद +हाँ हाँ तुझे क्या काम मिरी शिद्दत-ए-ग़म से +हाँ हाँ नहीं मुझ को तिरे दामन की हवा याद +मैं तर्क-ए-रह-ओ-रस्म-ए-जुनूँ कर ही चुका था +क्यूँ आ गई ऐसे में तिरी लग़्ज़िश-ए-पा याद +क्या लुत्फ़ कि मैं अपना पता आप बताऊँ +कीजे कोई भूली हुई ख़ास अपनी अदा याद " +kuchh-is-adaa-se-aaj-vo-pahluu-nashiin-rahe-jigar-moradabadi-ghazals," +कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे +जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे +ईमान-ओ-कुफ़्र और न दुनिया-ओ-दीं रहे +ऐ इश्क़-ए-शाद-बाश कि तन्हा हमीं रहे +आलम जब एक हाल पे क़ाएम नहीं रहे +क्या ख़ाक ए'तिबार-ए-निगाह-ए-यक़ीं रहे +मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-दर्द-आफ़रीं रहे +शायद मिरे हवास ठिकाने नहीं रहे +जब तक इलाही जिस्म में जान-ए-हज़ीं रहे +नज़रें मिरी जवान रहें दिल हसीं रहे +या-रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो +दस्त-ए-जुनूँ रहे न रहे आस्तीं रहे +ता-चंद जोश-ए-इश्क़ में दिल की हिफ़ाज़तें +मेरी बला से अब वो जुनूनी कहीं रहे +जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर +ऐ इश्क़ हम तो अब तिरे क़ाबिल नहीं रहे +मुझ को नहीं क़ुबूल दो-आलम की वुसअतें +क़िस्मत में कू-ए-यार की दो-गज़ ज़मीं रहे +ऐ इश्क़-ए-नाला-कश तिरी ग़ैरत को क्या हुआ +है है अरक़ अरक़ वो तन-ए-नाज़नीं रहे +दर्द-ओ-ग़म-ए-फ़िराक के ये सख़्त मरहले +हैराँ हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे +अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ +हर इक को है गुमाँ कि मुख़ातिब हमीं रहे +ज़ालिम उठा तू पर्दा-ए-वहम-ओ-गुमान-ओ-फ़िक्र +क्या सामने वो मरहला-हाए-यक़ीं रहे +ज़ात-ओ-सिफ़ात-ए-हुस्न का आलम नज़र में है +महदूद-ए-सज्दा क्या मिरा ज़ौक़-ए-जबीं रहे +किस दर्द से किसी ने कहा आज बज़्म में +अच्छा ये है वो नंग-ए-मोहब्बत यहीं रहे +सर-दादगान-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत की क्या कमी +क़ातिल की तेग़ तेज़ ख़ुदा की ज़मीं रहे +इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात देखना +रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे " +ik-lafz-e-mohabbat-kaa-adnaa-ye-fasaanaa-hai-jigar-moradabadi-ghazals," +इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है +सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है +ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है +जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है +दिल संग-ए-मलामत का हर-चंद निशाना है +दिल फिर भी मिरा दिल है दिल ही तो ज़माना है +हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है +रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है +वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न माना है +सब दिल की शरारत है आँखों का बहाना है +शाइ'र हूँ मैं शाइ'र हूँ मेरा ही ज़माना है +फ़ितरत मिरा आईना क़ुदरत मिरा शाना है +जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है +अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है +क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है +हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है +आग़ाज़-ए-मोहब्बत है आना है न जाना है +अश्कों की हुकूमत है आहों का ज़माना है +आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं +ना���़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है +हम दर्द-ब-दिल नालाँ वो दस्त-ब-दिल हैराँ +ऐ इश्क़ तो क्या ज़ालिम तेरा ही ज़माना है +या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से +कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है +ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा हाँ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा +आज एक सितमगर को हँस हँस के रुलाना है +थोड़ी सी इजाज़त भी ऐ बज़्म-गह-ए-हस्ती +आ निकले हैं दम-भर को रोना है रुलाना है +ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे +इक आग का दरिया है और डूब के जाना है +ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उन का क्या कम है रक़ीब अपना +जब देखिए अब वो हैं आईना है शाना है +तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ +इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श दिखाना है +ये हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क़-ओ-शबाब अपना +जीने की तमन्ना है मरने का ज़माना है +मुझ को इसी धुन में है हर लहज़ा बसर करना +अब आए वो अब आए लाज़िम उन्हें आना है +ख़ुद्दारी-ओ-महरूमी महरूमी-ओ-ख़ुद्दारी +अब दिल को ख़ुदा रक्खे अब दिल का ज़माना है +अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में +मा'सूम मोहब्बत का मा'सूम फ़साना है +आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन +बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है " +baraabar-se-bach-kar-guzar-jaane-vaale-jigar-moradabadi-ghazals," +बराबर से बच कर गुज़र जाने वाले +ये नाले नहीं बे-असर जाने वाले +नहीं जानते कुछ कि जाना कहाँ है +चले जा रहे हैं मगर जाने वाले +मिरे दिल की बेताबियाँ भी लिए जा +दबे पाँव मुँह फेर कर जाने वाले +तिरे इक इशारे पे साकित खड़े हैं +नहीं कह के सब से गुज़र जाने वाले +मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगे +वो होंगे कोई और मर जाने वाले " +be-kaif-dil-hai-aur-jiye-jaa-rahaa-huun-main-jigar-moradabadi-ghazals," +बे-कैफ़ दिल है और जिए जा रहा हूँ मैं +ख़ाली है शीशा और पिए जा रहा हूँ मैं +पैहम जो आह आह किए जा रहा हूँ मैं +दौलत है ग़म ज़कात दिए जा रहा हूँ मैं +मजबूरी-ए-कमाल-ए-मोहब्बत तो देखना +जीना नहीं क़ुबूल जिए जा रहा हूँ मैं +वो दिल कहाँ है अब कि जिसे प्यार कीजिए +मजबूरियाँ हैं साथ दिए जा रहा हूँ मैं +रुख़्सत हुई शबाब के हमराह ज़िंदगी +कहने की बात है कि जिए जा रहा हूँ मैं +पहले शराब ज़ीस्त थी अब ज़ीस्त है शराब +कोई पिला रहा है पिए जा रहा हूँ मैं " +ishq-men-laa-javaab-hain-ham-log-jigar-moradabadi-ghazals," +इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग +माहताब आफ़्ताब हैं हम लोग +गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग +ये न समझो ख़राब हैं हम लोग +शाम से आ गए जो पीने पर +सुब्ह तक आफ़्ताब हैं हम लोग +हम को दावा-ए-इश्क़-बाज़ी है +मुस्तहिक़्क़-ए-अज़ाब हैं हम लोग +नाज़ करती है ख़ाना-वीरानी +ऐसे ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग +हम नहीं जानते ख़िज़ाँ क्या है +कुश्तगान-ए-शबाब हैं हम लोग +तू हमारा जवाब है तन्हा +और तेरा जवाब हैं हम लोग +तू है दरिया-ए-हुस्न-ओ-महबूबी +शक्ल-ए-मौज-ओ-हबाब हैं हम लोग +गो सरापा हिजाब हैं फिर भी +तेरे रुख़ की नक़ाब हैं हम लोग +ख़ूब हम जानते हैं अपनी क़द्र +तेरे ना-कामयाब हैं हम लोग +हम से ग़फ़लत न हो तो फिर क्या हो +रह-रव-ए-मुल्क-ए-ख़्वाब हैं हम लोग +जानता भी है उस को तू वाइ'ज़ +जिस के मस्त-ओ-ख़राब हैं हम लोग +हम पे नाज़िल हुआ सहीफ़ा-ए-इश्क़ +साहिबान-ए-किताब हैं हम लोग +हर हक़ीक़त से जो गुज़र जाएँ +वो सदाक़त-मआब हैं हम लोग +जब मिली आँख होश खो बैठे +कितने हाज़िर-जवाब हैं हम लोग +हम से पूछो 'जिगर' की सर-मस्ती +महरम-ए-आँ-जनाब हैं हम लोग " +shaaer-e-fitrat-huun-jab-bhii-fikr-farmaataa-huun-main-jigar-moradabadi-ghazals," +शाएर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं +रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं +आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं +जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं +जिस क़दर अफ़्साना-ए-हस्ती को दोहराता हूँ मैं +और भी बे-गाना-ए-हस्ती हुआ जाता हूँ मैं +जब मकान-ओ-ला-मकाँ सब से गुज़र जाता हूँ मैं +अल्लाह अल्लाह तुझ को ख़ुद अपनी जगह पाता हूँ मैं +तेरी सूरत का जो आईना उसे पाता हूँ मैं +अपने दिल पर आप क्या क्या नाज़ फ़रमाता हूँ मैं +यक-ब-यक घबरा के जितनी दूर हट आता हूँ मैं +और भी उस शोख़ को नज़दीक-तर पाता हूँ मैं +मेरी हस्ती शौक़-ए-पैहम मेरी फ़ितरत इज़्तिराब +कोई मंज़िल हो मगर गुज़रा चला जाता हूँ मैं +हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए +मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं +मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीअत देखना +जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूँ मैं +हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है +अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं +तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर +ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं +ता-कुजा ये पर्दा-दारी-हा-ए-इश्क़-ओ-लाफ़-ए-हुस्न +हाँ सँभल जाएँ दो-आलम होश में आता हूँ मैं +मेरी ख़ातिर अब वो तकलीफ़-ए-तजल्ली क्यूँ करें +अपनी गर्द-ए-शौक़ में ख़ुद ही छुपा जाता हूँ मैं +दिल मुजस्सम शेर-ओ-नग़्मा वो सरापा रंग-ओ-बू +क्या फ़ज़ाएँ हैं कि जिन में हल हुआ जाता हूँ मैं +ता-कुजा ज़ब्त-ए-मोहब्बत ता-कुजा दर्द-ए-फ़िराक़ +रहम कर मुझ पर कि तेरा राज़ कहलाता हूँ मैं +वाह-रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़ +गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं +या वो सूरत ख़ुद जहान-ए-रंग-ओ-बू महकूम था +या ये आलम अपने साए से दबा जाता हूँ मैं +देखना इस इश्क़ की ये तुरफ़ा-कारी देखना +वो जफ़ा करते हैं मुझ पर और शरमाता हूँ मैं +एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ 'जिगर' +एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं " +aankhon-men-bas-ke-dil-men-samaa-kar-chale-gae-jigar-moradabadi-ghazals," +आँखों में बस के दिल में समा कर चले गए +ख़्वाबीदा ज़िंदगी थी जगा कर चले गए +हुस्न-ए-अज़ल की शान दिखा कर चले गए +इक वाक़िआ' सा याद दिला कर चले गए +चेहरे तक आस्तीन वो ला कर चले गए +क्या राज़ था कि जिस को छुपा कर चले गए +रग रग में इस तरह वो समा कर चले गए +जैसे मुझी को मुझ से चुरा कर चले गए +मेरी हयात-ए-इश्क़ को दे कर जुनून-ए-शौक़ +मुझ को तमाम होश बना कर चले गए +समझा के पस्तियाँ मिरे औज-ए-कमाल की +अपनी बुलंदियाँ वो दिखा कर चले गए +अपने फ़रोग़-ए-हुस्न की दिखला के वुसअ'तें +मेरे हुदूद-ए-शौक़ बढ़ा कर चले गए +हर शय को मेरी ख़ातिर-ए-नाशाद के लिए +आईना-ए-जमाल बना कर चले गए +आए थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते +इक आग सी वो और लगा कर चले गए +आए थे चश्म-ए-शौक़ की हसरत निकालने +सर-ता-क़दम निगाह बना कर चले गए +अब कारोबार-ए-इश्क़ से फ़ुर्सत मुझे कहाँ +कौनैन का वो दर्द बढ़ा कर चले गए +शुक्र-ए-करम के साथ ये शिकवा भी हो क़ुबूल +अपना सा क्यूँ न मुझ को बना कर चले गए +लब थरथरा के रह गए लेकिन वो ऐ 'जिगर' +जाते हुए निगाह मिला कर चले गए " +kabhii-shaakh-o-sabza-o-barg-par-kabhii-guncha-o-gul-o-khaar-par-jigar-moradabadi-ghazals," +कभी शाख़ ओ सब्ज़ा ओ बर्ग पर कभी ग़ुंचा ओ गुल ओ ख़ार पर +मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ मिरा हक़ है फ़स्ल-ए-बहार पर +मुझे दें न ग़ैज़ में धमकियाँ गिरें लाख बार ये बिजलियाँ +मिरी सल्तनत ये ही आशियाँ मिरी मिलकियत ये ही चार पर +जिन्हें कहिए इश्क़ की वुसअ'तें जो हैं ख़ास हुस्न की अज़्मतें +ये उसी के क़ल्ब से पूछिए जिसे फ़ख़्र हो ग़म-ए-यार पर +मिरे अश्क-ए-ख़ूँ की बहार है कि मुरक़्क़ा-ए-ग़म-ए-यार है +मिरी शाइ'री भी निसार है मिरी चश्म-ए-सेहर-निगार पर +अजब इंक़िलाब-ए-ज़माना है मिरा मुख़्तसर सा फ़साना है +यही अब जो बार है दोश पर यही सर था ज़ानू-ए-यार पर +ये कमाल-ए-इश्क़ की साज़िशें ये जमाल-ए-हुस्न की नाज़िशें +ये इनायतें ये नवाज़िशें मिरी एक मुश्त-ए-ग़ुबार पर +मिरी सम्त से उसे ऐ सबा ये पयाम-ए-आख़िर-ए-ग़म सुना +अभी देखना हो तो देख जा कि ख़िज़ाँ है अपनी बहार पर +ये फ़रेब-ए-जल्वा है सर-ब-सर मुझे डर ये है दिल-ए-बे-ख़बर +कहीं जम न जाए तिरी नज़र इन्हीं चंद नक़्श ओ निगार पर +मैं रहीन-ए-दर्द सही मगर मुझे और चाहिए क्या 'जिगर' +ग़म-ए-यार है मिरा शेफ़्ता मैं फ़रेफ़्ता ग़म-ए-यार पर " +koii-ye-kah-de-gulshan-gulshan-jigar-moradabadi-ghazals," +कोई ये कह दे गुलशन गुलशन +लाख बलाएँ एक नशेमन +क़ातिल रहबर क़ातिल रहज़न +दिल सा दोस्त न दिल सा दुश्मन +फूल खिले हैं गुलशन गुलशन +लेकिन अपना अपना दामन +इश्क़ है प्यारे खेल नहीं है +इश्क़ है कार-ए-शीशा-ओ-आहन +ख़ैर मिज़ाज-ए-हुस्न की या-रब +तेज़ बहुत है दिल की धड़कन +आ कि न जाने तुझ बिन कब से +रूह है लाशा जिस्म है मदफ़न +आज न जाने राज़ ये क्या है +हिज्र की रात और इतनी रौशन +उम्रें बीतीं सदियाँ गुज़रीं +है वही अब तक इश्क़ का बचपन +तुझ सा हसीं और ख़ून-ए-मोहब्बत +वहम है शायद सुर्ख़ी-ए-दामन +बर्क़-ए-हवादिस अल्लाह अल्लाह +झूम रही है शाख़-ए-नशेमन +तू ने सुलझ कर गेसू-ए-जानाँ +और बढ़ा दी शौक़ की उलझन +रहमत होगी तालिब-ए-इस्याँ +रश्क करेगी पाकीए-दामन +दिल कि मुजस्सम आईना-सामाँ +और वो ज़ालिम आईना-दुश्मन +बैठे हम हर बज़्म में लेकिन +झाड़ के उट्ठे अपना दामन +हस्ती-ए-शाएर अल्लाह अल्लाह +हुस्न की मंज़िल इश्क़ का मस्कन +रंगीं फ़ितरत सादा तबीअत +फ़र्श-नशीं और अर्श-नशेमन +काम अधूरा और आज़ादी +नाम बड़े और थोड़े दर्शन +शम्अ है लेकिन धुंदली धुंदली +साया है लेकिन रौशन रौशन +काँटों का भी हक़ है कुछ आख़िर +कौन छुड़ाए अपना दामन +चलती फिरती छाँव है प्यारे +किस का सहरा कैसा गुलशन " +jo-tuufaanon-men-palte-jaa-rahe-hain-jigar-moradabadi-ghazals," +जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं +वही दुनिया बदलते जा रहे हैं +निखरता आ रहा है रंग-ए-गुलशन +ख़स ओ ख़ाशाक जलते जा रहे हैं +वहीं मैं ख़ाक उड़ती देखता हूँ +जहाँ चश्मे उबलते जा रहे हैं +चराग़-ए-दैर-ओ-काबा अल्लाह अल्लाह +हवा की ज़िद पे जलते जा रहे हैं +शबाब ओ हुस्न में बहस आ पड़ी है +नए पहलू निकलते जा रहे हैं " +aaj-kyaa-haal-hai-yaarab-sar-e-mahfil-meraa-jigar-moradabadi-ghazals," +आज क्या हाल है यारब सर-ए-महफ़िल मेरा +कि निकाले लिए जाता है कोई दिल मेरा +सोज़-ए-ग़म देख न बरबाद हो हासिल मेरा +दिल की तस्वीर है हर आईना-ए-दिल मेरा +सुब्ह तक हिज्र में क्या जानिए क्या होता है +शाम ही से मिरे क़ाबू में नहीं दिल मेरा +मिल गई इश्क़ में ईज़ा-तलबी से राहत +ग़म है अब जान मिरी दर्द है अब दिल मेरा +पाया जाता है तिरी शोख़ी-ए-रफ़्तार का रंग +काश पहलू में धड़कता ही रहे दिल मेरा +हाए उस मर्द की क़िस्मत जो हुआ दिल का शरीक +हाए उस दिल का मुक़द्दर जो बना दिल मेरा +कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर +अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा " +sab-pe-tuu-mehrbaan-hai-pyaare-jigar-moradabadi-ghazals," +सब पे तू मेहरबान है प्यारे +कुछ हमारा भी ध्यान है प्यारे +आ कि तुझ बिन बहुत दिनों से ये दिल +एक सूना मकान है प्यारे +तू जहाँ नाज़ से क़दम रख दे +वो ज़मीन आसमान है प्यारे +मुख़्तसर है ये शौक़ की रूदाद +हर नफ़स दास्तान है प्यारे +अपने जी में ज़रा तो कर इंसाफ़ +कब से ना-मेहरबान है प्यारे +सब्र टूटे हुए दिलों का न ले +तू यूँही धान पान है प्यारे +हम से जो हो सका सो कर गुज़रे +अब तिरा इम्तिहान है प्यारे +मुझ में तुझ में तो कोई फ़र्क़ नहीं +इश्क़ क्यूँ दरमियान है प्यारे +क्या कहे हाल-ए-दिल ग़रीब 'जिगर' +टूटी फूटी ज़बान है प्यारे " +vo-adaa-e-dilbarii-ho-ki-navaa-e-aashiqaana-jigar-moradabadi-ghazals," +वो अदा-ए-दिलबरी हो कि नवा-ए-आशिक़ाना +जो दिलों को फ़त्ह कर ले वही फ़ातेह-ए-ज़माना +ये तिरा जमाल-ए-कामिल ये शबाब का ज़माना +दिल-ए-दुश्मनाँ सलामत दिल-ए-दोस्ताँ निशाना +कभी हुस्न की तबीअत न बदल सका ज़माना +वही नाज़-ए-बे-नियाज़ी वही शान-ए-ख़ुसरवाना +मैं हूँ उस मक़ाम पर अब कि फ़िराक़ ओ वस्ल कैसे +मिरा इश्क़ भी कहानी तिरा हुस्न भी फ़साना +मिरी ज़िंदगी तो गुज़री तिरे हिज्र के सहारे +मिरी मौत को भी प्यारे कोई चाहिए बहाना +तिरे इश्क़ की करामत ये अगर नहीं तो क्या है +कभी बे-अदब न गुज़रा मिरे पास से ज़माना +तिरी दूरी ओ हुज़ूरी का ये है अजीब आलम +अभी ज़िंदगी हक़ीक़त अभी ज़िंदगी फ़साना +मिरे हम-सफ़ीर बुलबुल मिरा तेरा साथ ही क्या +मैं ज़मीर-ए-दश्त-ओ-दरिया तू असीर-ए-आशियाना +मैं वो साफ़ ही न कह दूँ जो है फ़र्क़ मुझ में तुझ में +तिरा दर्द दर्द-ए-तन्हा मिरा ग़म ग़म-ए-ज़माना +तिरे दिल के टूटने पर है किसी को नाज़ क्या क्या +तुझे ऐ 'जिगर' मुबारक ये शिकस्त-ए-फ़ातेहाना " +use-haal-o-qaal-se-vaasta-na-garaz-maqaam-o-qayaam-se-jigar-moradabadi-ghazals," +उसे हाल-ओ-क़ाल से वास्ता न ग़रज़ मक़ाम-ओ-क़याम से +जिसे कोई निस्बत-ए-ख़ास हो तिरे हुस्न-ए-बर्क़-ख़िराम से +मुझे दे रहे हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा पयाम से +कभी आ के मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से +क्यूँ किया रहा जो मुक़ा���ला ख़तरात-ए-गाम-ब-गाम से +सर-ए-बाम-ए-इश्क़-ए-तमाम तक रह-ए-शौक़-ए-नीम-तमाम से +न ग़रज़ किसी से न वास्ता मुझे काम अपने ही काम से +तिरे ज़िक्र से तिरी फ़िक्र से तिरी याद से तिरे नाम से +मिरे साक़िया मिरे साक़िया तुझे मरहबा तुझे मरहबा +तू पिलाए जा तू पिलाए जा इसी चश्म-ए-जाम-ब-जाम से +तिरी सुब्ह-ए-ऐश है क्या बला तुझे ऐ फ़लक जो हो हौसला +कभी कर ले आ के मुक़ाबला ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से +मुझे यूँ न ख़ाक में तू मिला मैं अगरचे हूँ तिरा नक़्श-ए-पा +तिरे जल्वे की है बक़ा मिरे शौक़-ए-नाम-ब-नाम से +तिरी चश्म-ए-मस्त को क्या कहूँ कि नज़र नज़र है फ़ुसूँ फ़ुसूँ +ये तमाम होश ये सब जुनूँ इसी एक गर्दिश-ए-जाम से +ये किताब-ए-दिल की हैं आयतें मैं बताऊँ क्या जो हैं निस्बतें +मिरे सज्दा-हा-ए-दवाम को तिरे नक़्श-हा-ए-ख़िराम से +मुझे चाहिए वही साक़िया जो बरस चले जो छलक चले +तिरे हुस्न-ए-शीशा-ब-दस्त से तिरी चश्म-ए-बादा-ब-जाम से +जो उठा है दर्द उठा करे कोई ख़ाक उस से गिला करे +जिसे ज़िद हो हुस्न के ज़िक्र से जिसे चिढ़ हो इश्क़ के नाम से +वहीं चश्म-ए-हूर फड़क गई अभी पी न थी कि बहक गई +कभी यक-ब-यक जो छलक गई किसी रिंद-ए-मस्त के जाम से +तू हज़ार उज़्र करे मगर हमें रश्क है और ही कुछ 'जिगर' +तिरी इज़्तिराब-ए-निगाह से तिरे एहतियात-ए-कलाम से " +daastaan-e-gam-e-dil-un-ko-sunaaii-na-gaii-jigar-moradabadi-ghazals," +दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई +बात बिगड़ी थी कुछ ऐसी कि बनाई न गई +सब को हम भूल गए जोश-ए-जुनूँ में लेकिन +इक तिरी याद थी ऐसी जो भुलाई न गई +इश्क़ पर कुछ न चला दीदा-ए-तर का क़ाबू +उस ने जो आग लगा दी वो बुझाई न गई +पड़ गया हुस्न-ए-रुख़-ए-यार का परतव जिस पर +ख़ाक में मिल के भी इस दिल की सफ़ाई न गई +क्या उठाएगी सबा ख़ाक मिरी उस दर से +ये क़यामत तो ख़ुद उन से भी उठाई न गई " +jehl-e-khirad-ne-din-ye-dikhaae-jigar-moradabadi-ghazals," +जेहल-ए-ख़िरद ने दिन ये दिखाए +घट गए इंसाँ बढ़ गए साए +हाए वो क्यूँकर दिल बहलाए +ग़म भी जिस को रास न आए +ज़िद पर इश्क़ अगर आ जाए +पानी छिड़के आग लगाए +दिल पे कुछ ऐसा वक़्त पड़ा है +भागे लेकिन राह न पाए +कैसा मजाज़ और कैसी हक़ीक़त +अपने ही जल्वे अपने ही साए +झूटी है हर एक मसर्रत +रूह अगर तस्कीन न पाए +कार-ए-ज़माना जितना जितना +बनता जाए बिगड़ता जाए +ज़ब्त-ए-मोहब्बत शर्त-ए-मोहब्बत +जी है कि ज़ालिम उमडा आए +हुस्न वही है हुस्न जो ज़ालिम +हाथ लगाए हाथ न आए +नग़्मा वही है नग़्मा कि जिस को +रूह स��ने और रूह सुनाए +राह-ए-जुनूँ आसान हुई है +ज़ुल्फ़ ओ मिज़ा के साए साए " +kyaa-baraabar-kaa-mohabbat-men-asar-hotaa-hai-jigar-moradabadi-ghazals," +क्या बराबर का मोहब्बत में असर होता है +दिल इधर होता है ज़ालिम न उधर होता है +हम ने क्या कुछ न किया दीदा-ए-दिल की ख़ातिर +लोग कहते हैं दुआओं में असर होता है +दिल तो यूँ दिल से मिलाया कि न रक्खा मेरा +अब नज़र के लिए क्या हुक्म-ए-नज़र होता है +मैं गुनहगार-ए-जुनूँ मैं ने ये माना लेकिन +कुछ उधर से भी तक़ाज़ा-ए-नज़र होता है +कौन देखे उसे बेताब-ए-मोहब्बत ऐ दिल +तू वो नाले ही न कर जिन में असर होता है " +tire-jamaal-e-haqiiqat-kii-taab-hii-na-huii-jigar-moradabadi-ghazals," +तिरे जमाल-ए-हक़ीक़त की ताब ही न हुई +हज़ार बार निगह की मगर कभी न हुई +तिरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी न हुई +वो ज़िंदगी तो मोहब्बत की ज़िंदगी न हुई +कहाँ वो शोख़ मुलाक़ात ख़ुद से भी न हुई +बस एक बार हुई और फिर कभी न हुई +वो हम हैं अहल-ए-मोहब्बत कि जान से दिल से +बहुत बुख़ार उठे आँख शबनमी न हुई +ठहर ठहर दिल-ए-बेताब प्यार तो कर लूँ +अब उस के ब'अद मुलाक़ात फिर हुई न हुई +मिरे ख़याल से भी आह मुझ को बोद रहा +हज़ार तरह से चाहा बराबरी न हुई +हम अपनी रिंदी-ओ-ताअत पे ख़ाक नाज़ करें +क़ुबूल-ए-हज़रत-ए-सुल्ताँ हुई हुई न हुई +कोई बढ़े न बढ़े हम तो जान देते हैं +फिर ऐसी चश्म-ए-तवज्जोह हुई हुई न हुई +तमाम हर्फ़-ओ-हिकायत तमाम दीदा-ओ-दिल +इस एहतिमाम पे भी शरह-ए-आशिक़ी न हुई +फ़सुर्दा-ख़ातिरी-ए-इश्क़ ऐ मआज़-अल्लाह +ख़याल-ए-यार से भी कुछ शगुफ़्तगी न हुई +तिरी निगाह-ए-करम को भी आज़मा देखा +अज़िय्यतों में न होनी थी कुछ कमी न हुई +किसी की मस्त-निगाही ने हाथ थाम लिया +शरीक-ए-हाल जहाँ मेरी बे-ख़ुदी न हुई +सबा ये उन से हमारा पयाम कह देना +गए हो जब से यहाँ सुब्ह ओ शाम ही न हुई +वो कुछ सही न सही फिर भी ज़ाहिद-ए-नादाँ +बड़े-बड़ों से मोहब्बत में काफ़िरी न हुई +इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी +कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई +ख़याल-ए-यार सलामत तुझे ख़ुदा रक्खे +तिरे बग़ैर कभी घर में रौशनी न हुई +गए थे हम भी 'जिगर' जल्वा-गाह-ए-जानाँ में +वो पूछते ही रहे हम से बात भी न हुई " +agar-na-zohra-jabiinon-ke-darmiyaan-guzre-jigar-moradabadi-ghazals," +अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे +तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे +जो तेरे आरिज़ ओ गेसू के दरमियाँ गुज़रे +कभी कभी वही लम्हे बला-ए-जाँ गुज़रे +मुझे ये वहम रहा मुद्दतों कि जुरअत-ए-शौक़ +कहीं न ख़ातिर-ए-मा���ूम पर गिराँ गुज़रे +हर इक मक़ाम-ए-मोहब्बत बहुत ही दिलकश था +मगर हम अहल-ए-मोहब्बत कशाँ कशाँ गुज़रे +जुनूँ के सख़्त मराहिल भी तेरी याद के साथ +हसीं हसीं नज़र आए जवाँ जवाँ गुज़रे +मिरी नज़र से तिरी जुस्तुजू के सदक़े में +ये इक जहाँ ही नहीं सैंकड़ों जहाँ गुज़रे +हुजूम-ए-जल्वा में परवाज़-ए-शौक़ क्या कहना +कि जैसे रूह सितारों के दरमियाँ गुज़रे +ख़ता-मुआफ़ ज़माने से बद-गुमाँ हो कर +तिरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे +मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ कि ये हुआ महसूस +मिरे क़रीब से हो कर वो ना-गहाँ गुज़रे +रह-ए-वफ़ा में इक ऐसा मक़ाम भी आया +कि हम ख़ुद अपनी तरफ़ से भी बद-गुमाँ गुज़रे +ख़ुलूस जिस में हो शामिल वो दौर-ए-इश्क़-ओ-हवस +न राएगाँ कभी गुज़रा न राएगाँ गुज़रे +उसी को कहते हैं जन्नत उसी को दोज़ख़ भी +वो ज़िंदगी जो हसीनों के दरमियाँ गुज़रे +बहुत हसीन मनाज़िर भी हुस्न-ए-फ़ितरत के +न जाने आज तबीअत पे क्यूँ गिराँ गुज़रे +वो जिन के साए से भी बिजलियाँ लरज़ती थीं +मिरी नज़र से कुछ ऐसे भी आशियाँ गुज़रे +मिरा तो फ़र्ज़ चमन-बंदी-ए-जहाँ है फ़क़त +मिरी बला से बहार आए या ख़िज़ाँ गुज़रे +कहाँ का हुस्न कि ख़ुद इश्क़ को ख़बर न हुई +रह-ए-तलब में कुछ ऐसे भी इम्तिहाँ गुज़रे +भरी बहार में ताराजी-ए-चमन मत पूछ +ख़ुदा करे न फिर आँखों से वो समाँ गुज़रे +कोई न देख सका जिन को वो दिलों के सिवा +मुआमलात कुछ ऐसे भी दरमियाँ गुज़रे +कभी कभी तो इसी एक मुश्त-ए-ख़ाक के गिर्द +तवाफ़ करते हुए हफ़्त आसमाँ गुज़रे +बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर +वो ज़िंदगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे +अभी से तुझ को बहुत नागवार हैं हमदम +वो हादसात जो अब तक रवाँ-दवाँ गुज़रे +जिन्हें कि दीदा-ए-शाइर ही देख सकता है +वो इंक़िलाब तिरे सामने कहाँ गुज़रे +बहुत अज़ीज़ है मुझ को उन्हें क्या याद 'जिगर' +वो हादसात-ए-मोहब्बत जो ना-गहाँ गुज़रे " +do-chaar-gaam-raah-ko-hamvaar-dekhnaa-nida-fazli-ghazals," +दो चार गाम राह को हमवार देखना +फिर हर क़दम पे इक नई दीवार देखना +आँखों की रौशनी से है हर संग आईना +हर आइने में ख़ुद को गुनहगार देखना +हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी +जिस को भी देखना हो कई बार देखना +मैदाँ की हार जीत तो क़िस्मत की बात है +टूटी है किस के हाथ में तलवार देखना +दरिया के इस किनारे सितारे भी फूल भी +दरिया चढ़ा हुआ हो तो उस पार देखना +अच्छी नहीं है शहर के रस्तों से दो��्ती +आँगन में फैल जाए न बाज़ार देखना " +be-naam-saa-ye-dard-thahar-kyuun-nahiin-jaataa-nida-fazli-ghazals," +बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता +जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता +सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें +क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता +वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में +जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता +मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा +जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता +वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है +वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता " +garaj-baras-pyaasii-dhartii-phir-paanii-de-maulaa-nida-fazli-ghazals," +गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला +चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़-धानी दे मौला +दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है +सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला +फिर रौशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें +झूटों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला +फिर मूरत से बाहर आ कर चारों ओर बिखर जा +फिर मंदिर को कोई 'मीरा' दीवानी दे मौला +तेरे होते कोई किस की जान का दुश्मन क्यूँ हो +जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला " +mutthii-bhar-logon-ke-haathon-men-laakhon-kii-taqdiiren-hain-nida-fazli-ghazals," +मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं +जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं +आज और कल की बात नहीं है सदियों की तारीख़ यही है +हर आँगन में ख़्वाब हैं लेकिन चंद घरों में ताबीरें हैं +जब भी कोई तख़्त सजा है मेरा तेरा ख़ून बहा है +दरबारों की शान-ओ-शौकत मैदानों की शमशीरें हैं +हर जंगल की एक कहानी वो ही भेंट वही क़ुर्बानी +गूँगी बहरी सारी भेड़ें चरवाहों की जागीरें हैं " +kabhii-kabhii-yuun-bhii-ham-ne-apne-jii-ko-bahlaayaa-hai-nida-fazli-ghazals," +कभी कभी यूँ भी हम ने अपने जी को बहलाया है +जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है +हम से पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी +हम ने भी इक शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है +उस को भूले बरसों गुज़रे लेकिन आज न जाने क्यूँ +आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारन धमकाया है +उस बस्ती से छुट कर यूँ तो हर चेहरे को याद किया +जिस से थोड़ी सी अन-बन थी वो अक्सर याद आया है +कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें कीं +घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है " +achchhii-nahiin-ye-khaamushii-shikva-karo-gila-karo-nida-fazli-ghazals," +अच्छी नहीं ये ख़ामुशी शिकवा करो गिला करो +यूँ भी न कर सको तो फिर घर में ख़ुदा ख़ुदा करो +शोहरत भी उस के साथ है दौलत भी उस के हाथ है +ख़ुद से भी वो मिले कभी उस के ��िए दुआ करो +देखो ये शहर है अजब दिल भी नहीं है कम ग़ज़ब +शाम को घर जो आऊँ मैं थोड़ा सा सज लिया करो +दिल में जिसे बसाओ तुम चाँद उसे बनाओ तुम +वो जो कहे पढ़ा करो जो न कहे सुना करो +मेरी नशिस्त पे भी कल आएगा कोई दूसरा +तुम भी बना के रास्ता मेरे लिए जगह करो " +yaqiin-chaand-pe-suuraj-men-e-tibaar-bhii-rakh-nida-fazli-ghazals," +यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख +मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख +ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को +बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख +ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी +ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख +घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते +जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख +पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है +सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख " +jise-dekhte-hii-khumaarii-lage-nida-fazli-ghazals," +जिसे देखते ही ख़ुमारी लगे +उसे उम्र सारी हमारी लगे +उजाला सा है उस के चारों तरफ़ +वो नाज़ुक बदन पाँव भारी लगे +वो ससुराल से आई है माइके +उसे जितना देखो वो प्यारी लगे +हसीन सूरतें और भी हैं मगर +वो सब सैकड़ों में हज़ारी लगे +चलो इस तरह से सजाएँ उसे +ये दुनिया हमारी तुम्हारी लगे +उसे देखना शेर-गोई का फ़न +उसे सोचना दीन-दारी लगे " +dekhaa-huaa-saa-kuchh-hai-to-sochaa-huaa-saa-kuchh-nida-fazli-ghazals," +देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ +हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ +होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं +जंगल सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ +साहिल की गीली रेत पर बच्चों के खेल सा +हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ +फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह +हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ +धुँदली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया +और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ " +nazdiikiyon-men-duur-kaa-manzar-talaash-kar-nida-fazli-ghazals," +नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर +जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर +सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फ़ाएदा +दरिया हुआ है गुम तो समुंदर तलाश कर +तारीख़ में महल भी है हाकिम भी तख़्त भी +गुमनाम जो हुए हैं वो लश्कर तलाश कर +रहता नहीं है कुछ भी यहाँ एक सा सदा +दरवाज़ा घर का खोल के फिर घर तलाश कर +कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन +फिर इस के बा'द थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर " +koshish-ke-baavajuud-ye-ilzaam-rah-gayaa-nida-fazli-ghazals," +कोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गया +हर काम में हमेशा कोई काम रह गया +छोटी थी उम्र और फ़साना तवील था +आग़ाज़ ही लिखा गया अंजाम रह गया +उठ उठ के मस्जिदों से नमाज़ी चले गए +��हशत-गरों के हाथ में इस्लाम रह गया +उस का क़ुसूर ये था बहुत सोचता था वो +वो कामयाब हो के भी नाकाम रह गया +अब क्या बताएँ कौन था क्या था वो एक शख़्स +गिनती के चार हर्फ़ों का जो नाम रह गया " +jo-ho-ik-baar-vo-har-baar-ho-aisaa-nahiin-hotaa-nida-fazli-ghazals," +जो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता +हमेशा एक ही से प्यार हो ऐसा नहीं होता +हर इक कश्ती का अपना तजरबा होता है दरिया में +सफ़र में रोज़ ही मंजधार हो ऐसा नहीं होता +कहानी में तो किरदारों को जो चाहे बना दीजे +हक़ीक़त भी कहानी-कार हो ऐसा नहीं होता +कहीं तो कोई होगा जिस को अपनी भी ज़रूरत हो +हर इक बाज़ी में दिल की हार हो ऐसा नहीं होता +सिखा देती हैं चलना ठोकरें भी राहगीरों को +कोई रस्ता सदा दुश्वार हो ऐसा नहीं होता " +kuchh-bhii-bachaa-na-kahne-ko-har-baat-ho-gaii-nida-fazli-ghazals," +कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई +आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई +फिर यूँ हुआ कि वक़्त का पाँसा पलट गया +उम्मीद जीत की थी मगर मात हो गई +सूरज को चोंच में लिए मुर्ग़ा खड़ा रहा +खिड़की के पर्दे खींच दिए रात हो गई +वो आदमी था कितना भला कितना पुर-ख़ुलूस +उस से भी आज लीजे मुलाक़ात हो गई +रस्ते में वो मिला था मैं बच कर गुज़र गया +उस की फटी क़मीस मिरे साथ हो गई +नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए +इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई " +apnii-marzii-se-kahaan-apne-safar-ke-ham-hain-nida-fazli-ghazals," +अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं +रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं +पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है +अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं +वक़्त के साथ है मिटी का सफ़र सदियों से +किस को मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं +चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब +सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं +हम वहाँ हैं जहाँ कुछ भी नहीं रस्ता न दयार +अपने ही खोए हुए शाम ओ सहर के हम हैं +गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम +हर क़लमकार की बे-नाम ख़बर के हम हैं " +hosh-vaalon-ko-khabar-kyaa-be-khudii-kyaa-chiiz-hai-nida-fazli-ghazals," +होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है +इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है +उन से नज़रें क्या मिलीं रौशन फ़ज़ाएँ हो गईं +आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है +बिखरी ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शाइ'री +झुकती आँखों ने बताया मय-कशी क्या चीज़ है +हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी +और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है " +aaj-zaraa-fursat-paaii-thii-aaj-use-phir-yaad-kiyaa-nida-fazli-ghazals-3," +आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर ��ाद किया +बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया +खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से +रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया +बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में +छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया +बात बहुत मा'मूली सी थी उलझ गई तकरारों में +एक ज़रा सी ज़िद ने आख़िर दोनों को बरबाद किया +दानाओं की बात न मानी काम आई नादानी ही +सुना हवा को पढ़ा नदी को मौसम को उस्ताद किया " +raat-ke-baad-nae-din-kii-sahar-aaegii-nida-fazli-ghazals," +रात के बा'द नए दिन की सहर आएगी +दिन नहीं बदलेगा तारीख़ बदल जाएगी +हँसते हँसते कभी थक जाओ तो छुप के रो लो +ये हँसी भीग के कुछ और चमक जाएगी +जगमगाती हुई सड़कों पे अकेले न फिरो +शाम आएगी किसी मोड़ पे डस जाएगी +और कुछ देर यूँही जंग सियासत मज़हब +और थक जाओ अभी नींद कहाँ आएगी +मेरी ग़ुर्बत को शराफ़त का अभी नाम न दे +वक़्त बदला तो तिरी राय बदल जाएगी +वक़्त नदियों को उछाले कि उड़ाए पर्बत +उम्र का काम गुज़रना है गुज़र जाएगी " +main-apne-ikhtiyaar-men-huun-bhii-nahiin-bhii-huun-nida-fazli-ghazals," +मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ +दुनिया के कारोबार में हूँ भी नहीं भी हूँ +तेरी ही जुस्तुजू में लगा है कभी कभी +मैं तेरे इंतिज़ार में हूँ भी नहीं भी हूँ +फ़िहरिस्त मरने वालों की क़ातिल के पास है +मैं अपने ही मज़ार में हूँ भी नहीं भी हूँ +औरों के साथ ऐसा कोई मसअला नहीं +इक मैं ही इस दयार में हूँ भी नहीं भी हूँ +मुझ से ही है हर एक सियासत का ए'तिबार +फिर भी किसी शुमार में हूँ भी नहीं भी हूँ " +ab-khushii-hai-na-koii-dard-rulaane-vaalaa-nida-fazli-ghazals," +अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला +हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला +एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा +जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला +उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मा'लूम न था +सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला +दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में +ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला +इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया +कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला " +insaan-hain-haivaan-yahaan-bhii-hai-vahaan-bhii-nida-fazli-ghazals," +इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी +अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी +ख़ूँ-ख़्वार दरिंदों के फ़क़त नाम अलग हैं +हर शहर बयाबान यहाँ भी है वहाँ भी +हिन्दू भी सुकूँ से है मुसलमाँ भी सुकूँ से +इंसान परेशान यहाँ भी है वहाँ भी +रहमान की रहमत हो कि भगवान की मूरत +हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी +उठ���ा है दिल-ओ-जाँ से धुआँ दोनों तरफ़ ही +ये 'मीर' का दीवान यहाँ भी है वहाँ भी " +us-ke-dushman-hain-bahut-aadmii-achchhaa-hogaa-nida-fazli-ghazals," +उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा +वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा +इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे +रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा +प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली +जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा +मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की +उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा +एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक +जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा " +har-ek-baat-ko-chup-chaap-kyuun-sunaa-jaae-nida-fazli-ghazals," +हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए +कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए +तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है +लगी है आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए +जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से +नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए +कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है +ये कितना सच है कभी तजरबा किया जाए +किताबें यूँ तो बहुत सी हैं मेरे बारे में +कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए " +tanhaa-tanhaa-dukh-jhelenge-mahfil-mahfil-gaaenge-nida-fazli-ghazals," +तन्हा तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल महफ़िल गाएँगे +जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनाएँगे +तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं +देर न करना घर आने में वर्ना घर खो जाएँगे +बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो +चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे +अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हों मुमकिन है +हम तो उस दिन राय देंगे जिस दिन धोका खाएँगे +किन राहों से सफ़र है आसाँ कौन सा रस्ता मुश्किल है +हम भी जब थक कर बैठेंगे औरों को समझाएँगे " +mohabbat-men-vafaadaarii-se-bachiye-nida-fazli-ghazals," +मोहब्बत में वफ़ादारी से बचिए +जहाँ तक हो अदाकारी से बचिए +हर इक सूरत भली लगती है कुछ दिन +लहू की शो'बदा-कारी से बचिए +शराफ़त आदमियत दर्द-मंदी +बड़े शहरों में बीमारी से बचिए +ज़रूरी क्या हर इक महफ़िल में बैठें +तकल्लुफ़ की रवा-दारी से बचिए +बिना पैरों के सर चलते नहीं हैं +बुज़ुर्गों की समझदारी से बचिए " +har-ek-ghar-men-diyaa-bhii-jale-anaaj-bhii-ho-nida-fazli-ghazals," +हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो +अगर न हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी हो +रहेगी वा'दों में कब तक असीर ख़ुश-हाली +हर एक बार ही कल क्यूँ कभी तो आज भी हो +न करते शोर-शराबा तो और क्या करते +तुम्हारे शहर में कुछ और काम-काज भी हो +हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं +हुकूमतें जो बदलता है वो समाज भी हो +बदल रहे हैं कई आदमी दरिंदों में +मरज़ पुराना है इस का नया इलाज भी हो +अकेले ग़म से नई शाइरी नहीं होती +ज़बान-ए-'मीर' में 'ग़ालिब' का इम्तिज़ाज भी हो " +man-bai-raagii-tan-anuuraagii-qadam-qadam-dushvaarii-hai-nida-fazli-ghazals," +मन बै-रागी तन अनूरागी क़दम क़दम दुश्वारी है +जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है +औरों जैसे हो कर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में +कुछ लोगों का सीधा-पन है कुछ अपनी अय्यारी है +जब जब मौसम झूमा हम ने कपड़े फाड़े शोर किया +हर मौसम शाइस्ता रहना कोरी दुनिया-दारी है +ऐब नहीं है इस में कोई लाल-परी न फूल-कली +ये मत पूछो वो अच्छा है या अच्छी नादारी है +जो चेहरा देखा वो तोड़ा नगर नगर वीरान किए +पहले औरों से ना-ख़ुश थे अब ख़ुद से बे-ज़ारी है " +har-taraf-har-jagah-be-shumaar-aadmii-nida-fazli-ghazals," +हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी +फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी +सुब्ह से शाम तक बोझ ढोता हुआ +अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी +हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते +हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी +रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ +हर नए दिन नया इंतिज़ार आदमी +घर की दहलीज़ से गेहूँ के खेत तक +चलता फिरता कोई कारोबार आदमी +ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र-दर-सफ़र +आख़िरी साँस तक बे-क़रार आदमी " +munh-kii-baat-sune-har-koii-dil-ke-dard-ko-jaane-kaun-nida-fazli-ghazals," +मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन +आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन +सदियों सदियों वही तमाशा रस्ता रस्ता लम्बी खोज +लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन +वो मेरी परछाईं है या मैं उस का आईना हूँ +मेरे ही घर में रहता है मुझ जैसा ही जाने कौन +जाने क्या क्या बोल रहा था सरहद प्यार किताबें ख़ून +कल मेरी नींदों में छुप कर जाग रहा था जाने कौन +किरन किरन अलसाता सूरज पलक पलक खुलती नींदें +धीमे धीमे बिखर रहा है ज़र्रा ज़र्रा जाने कौन " +har-ghadii-khud-se-ulajhnaa-hai-muqaddar-meraa-nida-fazli-ghazals," +हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा +मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समुंदर मेरा +किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से +हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा +एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे +मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा +मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे +जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा +आइना देख के निकला था मैं घर से बाहर +आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा " +dhuup-men-niklo-ghataaon-men-nahaa-kar-dekho-nida-fazli-ghazals," +धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो +ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो +सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती +दिल की धड़कन को भी बीनाई बना कर देखो +पत्थरों में भी ज़बाँ होती है दिल होते हैं +अपने घर के दर-ओ-दीवार सजा कर देखो +वो सितारा है चमकने दो यूँही आँखों में +क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बना कर देखो +फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है +वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो " +besan-kii-saundhii-rotii-par-khattii-chatnii-jaisii-maan-nida-fazli-ghazals," +बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ +याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ +बाँस की खर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे +आधी सोई आधी जागी थकी दो-पहरी जैसी माँ +चिड़ियों की चहकार में गूँजे राधा मोहन अली अली +मुर्ग़े की आवाज़ से बजती घर की कुंडी जैसी माँ +बीवी बेटी बहन पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में +दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ +बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई +फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ " +duniyaa-jise-kahte-hain-jaaduu-kaa-khilaunaa-hai-nida-fazli-ghazals," +दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है +मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है +अच्छा सा कोई मौसम तन्हा सा कोई आलम +हर वक़्त का रोना तो बे-कार का रोना है +बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने +किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है +ये वक़्त जो तेरा है ये वक़्त जो मेरा है +हर गाम पे पहरा है फिर भी इसे खोना है +ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं +फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है +आवारा-मिज़ाजी ने फैला दिया आँगन को +आकाश की चादर है धरती का बिछौना है " +us-ko-kho-dene-kaa-ehsaas-to-kam-baaqii-hai-nida-fazli-ghazals," +उस को खो देने का एहसास तो कम बाक़ी है +जो हुआ वो न हुआ होता ये ग़म बाक़ी है +अब न वो छत है न वो ज़ीना न अंगूर की बेल +सिर्फ़ इक उस को भुलाने की क़सम बाक़ी है +मैं ने पूछा था सबब पेड़ के गिर जाने का +उठ के माली ने कहा उस की क़लम बाक़ी है +जंग के फ़ैसले मैदाँ में कहाँ होते हैं +जब तलक हाफ़िज़े बाक़ी हैं अलम बाक़ी है +थक के गिरता है हिरन सिर्फ़ शिकारी के लिए +जिस्म घायल है मगर आँखों में रम बाक़ी है " +jab-se-qariib-ho-ke-chale-zindagii-se-ham-nida-fazli-ghazals," +जब से क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम +ख़ुद अपने आइने को लगे अजनबी से हम +कुछ दूर चल के रास्ते सब एक से लगे +मिलने गए किसी से मिल आए किसी से हम +अच्छे बुरे के फ़र्क़ ने बस्ती उजाड़ दी +मजबूर हो के मिलने लगे हर किसी से हम +शाइस्ता महफ़िलों की फ़ज़ाओं में ज़हर था +ज़िंदा बचे हैं ज़ेहन की आवारगी से हम +अच्छी भली थी ���ुनिया गुज़ारे के वास्ते +उलझे हुए हैं अपनी ही ख़ुद-आगही से हम +जंगल में दूर तक कोई दुश्मन न कोई दोस्त +मानूस हो चले हैं मगर बम्बई से हम " +kabhii-kisii-ko-mukammal-jahaan-nahiin-miltaa-nida-fazli-ghazals," +कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता +कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता +तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो +जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता +कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें +छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता +ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं +ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता +चराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है +ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता " +ghar-se-nikle-to-ho-sochaa-bhii-kidhar-jaaoge-nida-fazli-ghazals," +घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे +हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे +इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना +घर की दहलीज़ पुकारेगी जिधर जाओगे +शाम होते ही सिमट जाएँगे सारे रस्ते +बहते दरिया से जहाँ होगे ठहर जाओगे +हर नए शहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं +छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे +पहले हर चीज़ नज़र आएगी बे-मा'नी सी +और फिर अपनी ही नज़रों से उतर जाओगे " +kath-putlii-hai-yaa-jiivan-hai-jiite-jaao-socho-mat-nida-fazli-ghazals," +कठ-पुतली है या जीवन है जीते जाओ सोचो मत +सोच से ही सारी उलझन है जीते जाओ सोचो मत +लिखा हुआ किरदार कहानी में ही चलता फिरता है +कभी है दूरी कभी मिलन है जीते जाओ सोचो मत +नाच सको तो नाचो जब थक जाओ तो आराम करो +टेढ़ा क्यूँ घर का आँगन है जीते जाओ सोचो मत +हर मज़हब का एक ही कहना जैसा मालिक रक्खे रहना +जब तक साँसों का बंधन है जीते जाओ सोचो मत +घूम रहे हैं बाज़ारों में सरमायों के आतिश-दान +किस भट्टी में कौन ईंधन है जीते जाओ सोचो मत " +safar-men-dhuup-to-hogii-jo-chal-sako-to-chalo-nida-fazli-ghazals," +सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो +सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो +किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं +तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो +यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता +मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो +कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा +ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो +यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें +इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो " +kuchh-tabiiat-hii-milii-thii-aisii-chain-se-jiine-kii-suurat-na-huii-nida-fazli-ghazals," +कुछ तबीअ'त ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई +जिस को चाहा उसे अपना न सके जो मिला उस से मोहब्बत न हुई +जिस से जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फ़साना बदला +रस्म-ए-��ुनिया को निभाने के लिए हम से रिश्तों की तिजारत न हुई +दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा न लगा +बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसी से ये शिकायत न हुई +छोड़ कर घर को कहीं जाने से घर में रहने की इबादत थी बड़ी +झूट मशहूर हुआ राजा का सच की संसार में शोहरत न हुई +वक़्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना न मिला +दोस्ती की तो निभाई न गई दुश्मनी में भी अदावत न हुई " +girjaa-men-mandiron-men-azaanon-men-bat-gayaa-nida-fazli-ghazals," +गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया +होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया +इक इश्क़ नाम का जो परिंदा ख़ला में था +उतरा जो शहर में तो दुकानों में बट गया +पहले तलाशा खेत फिर दरिया की खोज की +बाक़ी का वक़्त गेहूँ के दानों में बट गया +जब तक था आसमान में सूरज सभी का था +फिर यूँ हुआ वो चंद मकानों में बट गया +हैं ताक में शिकारी निशाना हैं बस्तियाँ +आलम तमाम चंद मचानों में बट गया +ख़बरों ने की मुसव्वरी ख़बरें ग़ज़ल बनीं +ज़िंदा लहू तो तीर कमानों में बट गया " +dil-men-na-ho-jurat-to-mohabbat-nahiin-miltii-nida-fazli-ghazals," +दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती +ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती +कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं +हर एक से अपनी भी तबीअ'त नहीं मिलती +देखा है जिसे मैं ने कोई और था शायद +वो कौन था जिस से तिरी सूरत नहीं मिलती +हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत +रोने की यहाँ वैसे भी फ़ुर्सत नहीं मिलती +निकला करो ये शम्अ लिए घर से भी बाहर +कमरे में सजाने को मुसीबत नहीं मिलती " +aanii-jaanii-har-mohabbat-hai-chalo-yuun-hii-sahii-nida-fazli-ghazals," +आनी जानी हर मोहब्बत है चलो यूँ ही सही +जब तलक है ख़ूबसूरत है चलो यूँ ही सही +हम कहाँ के देवता हैं बेवफ़ा वो हैं तो क्या +घर में कोई घर की ज़ीनत है चलो यूँ ही सही +वो नहीं तो कोई तो होगा कहीं उस की तरह +जिस्म में जब तक हरारत है चलो यूँ ही सही +मैले हो जाते हैं रिश्ते भी लिबासों की तरह +दोस्ती हर दिन की मेहनत है चलो यूँ ही सही +भूल थी अपनी फ़रिश्ता आदमी में ढूँडना +आदमी में आदमिय्यत है चलो यूँ ही सही +जैसी होनी चाहिए थी वैसी तो दुनिया नहीं +दुनिया-दारी भी ज़रूरत है चलो यूँ ही सही " +na-jaane-kaun-saa-manzar-nazar-men-rahtaa-hai-nida-fazli-ghazals," +न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है +तमाम उम्र मुसाफ़िर सफ़र में रहता है +लड़ाई देखे हुए दुश्मनों से मुमकिन है +मगर वो ख़ौफ़ जो दीवार-ओ-दर में रहता है +ख़ुदा तो मालिक-ओ-मुख़्तार है कहीं भी रहे +कभी बशर में कभी जानवर में रहता है +अजीब दौर है ये तय-शुदा नहीं कुछ भी +न चाँद शब में न सूरज सहर में रहता है +जो मिलना चाहो तो मुझ से मिलो कहीं बाहर +वो कोई और है जो मेरे घर में रहता है +बदलना चाहो तो दुनिया बदल भी सकती है +अजब फ़ुतूर सा हर वक़्त सर में रहता है " +koii-hinduu-koii-muslim-koii-iisaaii-hai-nida-fazli-ghazals," +कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है +सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है +इतनी ख़ूँ-ख़ार न थीं पहले इबादत-गाहें +ये अक़ीदे हैं कि इंसान की तन्हाई है +तीन चौथाई से ज़ाइद हैं जो आबादी में +उन के ही वास्ते हर भूक है महँगाई है +देखे कब तलक बाक़ी रहे सज-धज उस की +आज जिस चेहरा से तस्वीर उतरवाई है +अब नज़र आता नहीं कुछ भी दुकानों के सिवा +अब न बादल हैं न चिड़ियाँ हैं न पुर्वाई है " +apnaa-gam-le-ke-kahiin-aur-na-jaayaa-jaae-nida-fazli-ghazals," +अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए +घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए +जिन चराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं +उन चराग़ों को हवाओं से बचाया जाए +ख़ुद-कुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में +और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए +बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं +किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए +क्या हुआ शहर को कुछ भी तो दिखाई दे कहीं +यूँ किया जाए कभी ख़ुद को रुलाया जाए +घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें +किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए " +aaegaa-koii-chal-ke-khizaan-se-bahaar-men-nida-fazli-ghazals," +आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में +सदियाँ गुज़र गई हैं इसी इंतिज़ार में +छिड़ते ही साज़-ए-बज़्म में कोई न था कहीं +वो कौन था जो बोल रहा था सितार में +ये और बात है कोई महके कोई चुभे +गुलशन तो जितना गुल में है उतना है ख़ार में +अपनी तरह से दुनिया बदलने के वास्ते +मेरा ही एक घर है मिरे इख़्तियार में +तिश्ना-लबी ने रेत को दरिया बना दिया +पानी कहाँ था वर्ना किसी रेग-ज़ार में +मसरूफ़ गोरकन को भी शायद पता नहीं +वो ख़ुद खड़ा हुआ है क़ज़ा की क़तार में " +ye-kaisii-kashmakash-hai-zindagii-men-nida-fazli-ghazals," +ये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी में +किसी को ढूँडते हैं हम किसी में +जो खो जाता है मिल कर ज़िंदगी में +ग़ज़ल है नाम उस का शाएरी में +निकल आते हैं आँसू हँसते हँसते +ये किस ग़म की कसक है हर ख़ुशी में +कहीं चेहरा कहीं आँखें कहीं लब +हमेशा एक मिलता है कई में +चमकती है अंधेरों में ख़मोशी +सितारे टूटते हैं रात ही में +सुलगती रेत में पानी कहाँ था +कोई बादल छुपा था तिश्नगी में +बहुत मुश्किल है बंजारा-मिज़ाजी +सलीक़ा चाहिए आवारगी में " +ek-hii-dhartii-ham-sab-kaa-ghar-jitnaa-teraa-utnaa-meraa-nida-fazli-ghazals," +एक ही धरती हम सब का घर जितना तेरा उतना मेरा +दुख सुख का ये जंतर-मंतर जितना तेरा उतना मेरा +गेहूँ चावल बाँटने वाले झूटा तौलें तो क्या बोलें +यूँ तो सब कुछ अंदर बाहर जितना तेरा उतना मेरा +हर जीवन की वही विरासत आँसू सपना चाहत मेहनत +साँसों का हर बोझ बराबर जितना तेरा उतना मेरा +साँसें जितनी मौजें उतनी सब की अपनी अपनी गिनती +सदियों का इतिहास समुंदर जितना तेरा उतना मेरा +ख़ुशियों के बटवारे तक ही ऊँचे नीचे आगे पीछे +दुनिया के मिट जाने का डर जितना तेरा उतना मेरा " +din-saliiqe-se-ugaa-raat-thikaane-se-rahii-nida-fazli-ghazals," +दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही +दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही +चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें +ज़िंदगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही +इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी +रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही +फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को +दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही +शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की जगह +अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने हँसाने से रही " +dariyaa-ho-yaa-pahaad-ho-takraanaa-chaahiye-nida-fazli-ghazals," +दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए +जब तक न साँस टूटे जिए जाना चाहिए +यूँ तो क़दम क़दम पे है दीवार सामने +कोई न हो तो ख़ुद से उलझ जाना चाहिए +झुकती हुई नज़र हो कि सिमटा हुआ बदन +हर रस-भरी घटा को बरस जाना चाहिए +चौराहे बाग़ बिल्डिंगें सब शहर तो नहीं +कुछ ऐसे वैसे लोगों से याराना चाहिए +अपनी तलाश अपनी नज़र अपना तजरबा +रस्ता हो चाहे साफ़ भटक जाना चाहिए +चुप चुप मकान रास्ते गुम-सुम निढाल वक़्त +इस शहर के लिए कोई दीवाना चाहिए +बिजली का क़ुमक़ुमा न हो काला धुआँ तो हो +ये भी अगर नहीं हो तो बुझ जाना चाहिए " +gar-khaamushii-se-faaeda-ikhfaa-e-haal-hai-mirza-ghalib-ghazals," +गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है +ख़ुश हूँ कि मेरी बात समझनी मुहाल है +किस को सुनाऊँ हसरत-ए-इज़हार का गिला +दिल फ़र्द-ए-जमा-ओ-ख़र्च ज़बाँ-हा-ए-लाल है +किस पर्दे में है आइना-पर्दाज़ ऐ ख़ुदा +रहमत कि उज़्र-ख़्वाह-ए-लब-ए-बे-सवाल है +है है ख़ुदा-न-ख़्वास्ता वो और दुश्मनी +ऐ शौक़-ए-मुन्फ़इल ये तुझे क्या ख़याल है +मुश्कीं लिबास-ए-काबा अली के क़दम से जान +नाफ़-ए-ज़मीन है न कि नाफ़-ए-ग़ज़ाल है +वहशत पे मेरी अरसा-ए-आफ़ाक़ तंग था +दरिया ज़मीन को अरक़-ए-इंफ़िआ'ल है +हस्ती के मत फ़रेब में आ जाइयो 'असद' +आलम तमाम हल्क़ा-ए-दाम-ए-ख़य���ल है +पहलू-तही न कर ग़म-ओ-अंदोह से 'असद' +दिल वक़्फ़-ए-दर्द कर कि फ़क़ीरों का माल है " +shabnam-ba-gul-e-laala-na-khaalii-z-adaa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है +दाग़-ए-दिल-ए-बेदर्द नज़र-गाह-ए-हया है +दिल ख़ूँ-शुदा-ए-कशमकश-ए-हसरत-ए-दीदार +आईना ब-दस्त-ए-बुत-ए-बद-मस्त हिना है +शोले से न होती हवस-ए-शोला ने जो की +जी किस क़दर अफ़्सुर्दगी-ए-दिल पे जला है +तिमसाल में तेरी है वो शोख़ी कि ब-सद-ज़ौक़ +आईना ब-अंदाज़-ए-गुल आग़ोश-कुशा है +क़ुमरी कफ़-ए-ख़ाकीस्तर ओ बुलबुल क़फ़स-ए-रंग +ऐ नाला निशान-ए-जिगर-ए-सोख़्ता क्या है +ख़ू ने तिरी अफ़्सुर्दा किया वहशत-ए-दिल को +माशूक़ी ओ बे-हौसलगी तरफ़ा बला है +मजबूरी ओ दावा-ए-गिरफ़्तारी-ए-उल्फ़त +दस्त-ए-तह-ए-संग-आमदा पैमान-ए-वफ़ा है +मालूम हुआ हाल-ए-शहीदान-ए-गुज़श्ता +तेग़-ए-सितम आईना-ए-तस्वीर-नुमा है +ऐ परतव-ए-ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब इधर भी +साए की तरह हम पे अजब वक़्त पड़ा है +ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद +या रब अगर इन कर्दा गुनाहों की सज़ा है +बेगानगी-ए-ख़ल्क़ से बे-दिल न हो 'ग़ालिब' +कोई नहीं तेरा तो मिरी जान ख़ुदा है " +jis-bazm-men-tuu-naaz-se-guftaar-men-aave-mirza-ghalib-ghazals," +जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे +जाँ कालबद-ए-सूरत-ए-दीवार में आवे +साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर +तू इस क़द-ए-दिलकश से जो गुलज़ार में आवे +तब नाज़-ए-गिराँ माइगी-ए-अश्क बजा है +जब लख़्त-ए-जिगर दीदा-ए-ख़ूँ-बार में आवे +दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर +कुछ तुझ को मज़ा भी मिरे आज़ार में आवे +उस चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर का अगर पाए इशारा +तूती की तरह आईना गुफ़्तार में आवे +काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब +इक आबला-पा वादी-ए-पुर-ख़ार में आवे +मर जाऊँ न क्यूँ रश्क से जब वो तन-ए-नाज़ुक +आग़ोश-ए-ख़म-ए-हल्क़ा-ए-ज़ुन्नार में आवे +ग़ारत-गरी-ए-नामूश न हो गर हवस-ए-ज़र +क्यूँ शाहिद-ए-गुल बाग़ से बाज़ार में आवे +तब चाक-ए-गरेबाँ का मज़ा है दिल-ए-नालाँ +जब इक नफ़स उलझा हुआ हर तार में आवे +आतिश-कदा है सीना मिरा राज़-ए-निहाँ से +ऐ वाए अगर मारिज़-ए-इज़हार में आवे +गंजीना-ए-मअ'नी का तिलिस्म उस को समझिए +जो लफ़्ज़ कि 'ग़ालिब' मिरे अशआर में आवे " +kal-ke-liye-kar-aaj-na-khissat-sharaab-men-mirza-ghalib-ghazals," +कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में +ये सू-ए-ज़न है साक़ी-ए-कौसर के बाब में +हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद +गुस्ताख़ी-ए-फ़रिश्ता हमारी जनाब में +जाँ क्यूँ निकलने लगती है तन से द��-ए-समा +गर वो सदा समाई है चंग ओ रबाब में +रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे +ने हाथ बाग पर है न पा है रिकाब में +उतना ही मुझ को अपनी हक़ीक़त से बोद है +जितना कि वहम-ए-ग़ैर से हूँ पेच-ओ-ताब में +अस्ल-ए-शुहूद-ओ-शाहिद-ओ-मशहूद एक है +हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब में +है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर +याँ क्या धरा है क़तरा ओ मौज-ओ-हबाब में +शर्म इक अदा-ए-नाज़ है अपने ही से सही +हैं कितने बे-हिजाब कि हैं यूँ हिजाब में +आराइश-ए-जमाल से फ़ारिग़ नहीं हुनूज़ +पेश-ए-नज़र है आइना दाइम नक़ाब में +है गै़ब-ए-ग़ैब जिस को समझते हैं हम शुहूद +हैं ख़्वाब में हुनूज़ जो जागे हैं ख़्वाब में +'ग़ालिब' नदीम-ए-दोस्त से आती है बू-ए-दोस्त +मश्ग़ूल-ए-हक़ हूँ बंदगी-ए-बू-तराब में " +hairaan-huun-dil-ko-rouun-ki-piituun-jigar-ko-main-mirza-ghalib-ghazals," +हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं +मक़्दूर हो तो साथ रखूँ नौहागर को मैं +छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ +हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं +जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार +ऐ काश जानता न तिरे रह-गुज़र को मैं +है क्या जो कस के बाँधिए मेरी बला डरे +क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं +लो वो भी कहते हैं कि ये बे-नंग-ओ-नाम है +ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं +चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ +पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं +ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश दिया क़रार +क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदाद-गर को मैं +फिर बे-ख़ुदी में भूल गया राह-ए-कू-ए-यार +जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं +अपने पे कर रहा हूँ क़यास अहल-ए-दहर का +समझा हूँ दिल-पज़ीर मता-ए-हुनर को मैं +'ग़ालिब' ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-नाज़ +देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर को मैं " +masjid-ke-zer-e-saaya-kharaabaat-chaahiye-mirza-ghalib-ghazals," +मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए +भौं पास आँख क़िबला-ए-हाजात चाहिए +आशिक़ हुए हैं आप भी एक और शख़्स पर +आख़िर सितम की कुछ तो मुकाफ़ात चाहिए +दे दाद ऐ फ़लक दिल-ए-हसरत-परस्त की +हाँ कुछ न कुछ तलाफ़ी-ए-माफ़ात चाहिए +सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी +तक़रीब कुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात चाहिए +मय से ग़रज़ नशात है किस रू-सियाह को +इक-गूना बे-ख़ुदी मुझे दिन रात चाहिए +नश्व-ओ-नुमा है अस्ल से 'ग़ालिब' फ़ुरूअ' को +ख़ामोशी ही से निकले है जो बात चाहिए +है रंग-ए-लाला-ओ-गुल-ओ-नसरीं जुदा जुदा +हर रंग में बहार का इसबात चाहिए +सर पा-ए-ख़��म पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी +रू सू-ए-क़िबला वक़्त-ए-मुनाजात चाहिए +या'नी ब-हस्ब-ए-गर्दिश-ए-पैमान-ए-सिफ़ात +आरिफ़ हमेशा मस्त-ए-मय-ए-ज़ात चाहिए " +jahaan-teraa-naqsh-e-qadam-dekhte-hain-mirza-ghalib-ghazals," +जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं +ख़याबाँ ख़याबाँ इरम देखते हैं +दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के +सुवैदा में सैर-ए-अदम देखते हैं +तिरे सर्व-क़ामत से इक क़द्द-ए-आदम +क़यामत के फ़ित्ने को कम देखते हैं +तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारी +तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं +सुराग़-ए-तफ़-ए-नाला ले दाग़-ए-दिल से +कि शब-रौ का नक़्श-ए-क़दम देखते हैं +बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब' +तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं +किसू को ज़-ख़ुद रस्ता कम देखते हैं +कि आहू को पाबंद-ए-रम देखते हैं +ख़त-ए-लख़्त-ए-दिल यक-क़लम देखते हैं +मिज़ा को जवाहर रक़म देखते हैं " +donon-jahaan-de-ke-vo-samjhe-ye-khush-rahaa-mirza-ghalib-ghazals," +दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा +याँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें +थक थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गए +तेरा पता न पाएँ तो नाचार क्या करें +क्या शम्अ' के नहीं हैं हवा-ख़्वाह बज़्म में +हो ग़म ही जाँ-गुदाज़ तो ग़म-ख़्वार क्या करें " +dar-khur-e-qahr-o-gazab-jab-koii-ham-saa-na-huaa-mirza-ghalib-ghazals," +दर-ख़ुर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ +फिर ग़लत क्या है कि हम सा कोई पैदा न हुआ +बंदगी में भी वो आज़ादा ओ ख़ुद-बीं हैं कि हम +उल्टे फिर आए दर-ए-का'बा अगर वा न हुआ +सब को मक़्बूल है दा'वा तिरी यकताई का +रू-ब-रू कोई बुत-ए-आइना-सीमा न हुआ +कम नहीं नाज़िश-ए-हमनामी-ए-चश्म-ए-ख़ूबाँ +तेरा बीमार बुरा क्या है गर अच्छा न हुआ +सीने का दाग़ है वो नाला कि लब तक न गया +ख़ाक का रिज़्क़ है वो क़तरा कि दरिया न हुआ +नाम का मेरे है जो दुख कि किसी को न मिला +काम में मेरे है जो फ़ित्ना कि बरपा न हुआ +हर-बुन-ए-मू से दम-ए-ज़िक्र न टपके ख़ूँ नाब +हमज़ा का क़िस्सा हुआ इश्क़ का चर्चा न हुआ +क़तरा में दजला दिखाई न दे और जुज़्व में कुल +खेल लड़कों का हुआ दीदा-ए-बीना न हुआ +थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े +देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ " +phir-is-andaaz-se-bahaar-aaii-mirza-ghalib-ghazals," +फिर इस अंदाज़ से बहार आई +कि हुए मेहर-ओ-मह तमाशाई +देखो ऐ साकिनान-ए-ख़ित्ता-ए-ख़ाक +इस को कहते हैं आलम-आराई +कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर +रू-कश-ए-सतह-ए-चर्ख़-ए-मीनाई +सब्ज़ा को जब कहीं जगह न मिली +बन गया रू-ए-आब पर काई +सब्ज़ा ओ गुल के देखने के लिए +चश्म-ए-नर्गिस को दी है बीनाई +है हवा में शराब की तासीर +बादा-नोशी है बादा-पैमाई +क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी 'ग़ालिब' +शाह-ए-दीं-दार ने शिफ़ा पाई " +vaan-pahunch-kar-jo-gash-aataa-pae-ham-hai-ham-ko-mirza-ghalib-ghazals," +वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को +सद-रह आहंग-ए-ज़मीं बोस-ए-क़दम है हम को +दिल को मैं और मुझे दिल महव-ए-वफ़ा रखता है +किस क़दर ज़ौक़-ए-गिरफ़्तारी-ए-हम है हम को +ज़ोफ़ से नक़्श-ए-प-ए-मोर है तौक़-ए-गर्दन +तिरे कूचे से कहाँ ताक़त-ए-रम है हम को +जान कर कीजे तग़ाफ़ुल कि कुछ उम्मीद भी हो +ये निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ तो सम है हम को +रश्क-ए-हम-तरही ओ दर्द-ए-असर-ए-बांग-ए-हज़ीं +नाला-ए-मुर्ग़-ए-सहर तेग़-ए-दो-दम है हम को +सर उड़ाने के जो वादे को मुकर्रर चाहा +हँस के बोले कि तिरे सर की क़सम है हम को +दिल के ख़ूँ करने की क्या वजह व-लेकिन नाचार +पास-ए-बे-रौनक़ी-ए-दीदा अहम है हम को +तुम वो नाज़ुक कि ख़मोशी को फ़ुग़ाँ कहते हो +हम वह आजिज़ कि तग़ाफ़ुल भी सितम है हम को +लखनऊ आने का बाइस नहीं खुलता यानी +हवस-ए-सैर-ओ-तमाशा सो वह कम है हम को +मक़्ता-ए-सिलसिला-ए-शौक़ नहीं है ये शहर +अज़्म-ए-सैर-ए-नजफ़-ओ-तौफ़-ए-हरम है हम को +लिए जाती है कहीं एक तवक़्क़ो 'ग़ालिब' +जादा-ए-रह कशिश-ए-काफ़-ए-करम है हम को +अब्र रोता है कि बज़्म-ए-तरब आमादा करो +बर्क़ हँसती है कि फ़ुर्सत कोई दम है हम को " +rahm-kar-zaalim-ki-kyaa-buud-e-charaag-e-kushta-hai-mirza-ghalib-ghazals," +रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है +नब्ज़-ए-बीमार-ए-वफ़ा दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है +दिल-लगी की आरज़ू बेचैन रखती है हमें +वर्ना याँ बे-रौनक़ी सूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है +नश्शा-ए-मय बे-चमन दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है +जाम दाग़-ए-अंदूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है +दाग़-ए-रब्त-ए-हम हैं अहल-ए-बाग़ गर गुल हो शहीद +लाला चश्म-ए-हसरत-आलूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है +शोर है किस बज़्म की अर्ज़-ए-जराहत-ख़ाना का +सुब्ह यक-बज़्म-ए-नमक सूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है " +gaii-vo-baat-ki-ho-guftuguu-to-kyuunkar-ho-mirza-ghalib-ghazals," +गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो +कहे से कुछ न हुआ फिर कहो तो क्यूँकर हो +हमारे ज़ेहन में उस फ़िक्र का है नाम विसाल +कि गर न हो तो कहाँ जाएँ हो तो क्यूँकर हो +अदब है और यही कश्मकश तो क्या कीजे +हया है और यही गू-मगू तो क्यूँकर हो +तुम्हीं कहो कि गुज़ारा सनम-परस्तों का +बुतों की हो अगर ऐसी ही ख़ू तो क्यूँकर हो +उलझते हो तुम अगर देखते हो आईना +जो तुम से शहर में हों एक दो तो क्यूँकर हो +जिसे नसीब हो रोज़-ए-सियाह मेरा सा +वो शख़्स दिन न कहे रात ��ो तो क्यूँकर हो +हमें फिर उन से उम्मीद और उन्हें हमारी क़द्र +हमारी बात ही पूछें न वो तो क्यूँकर हो +ग़लत न था हमें ख़त पर गुमाँ तसल्ली का +न माने दीदा-ए-दीदार जो तो क्यूँकर हो +बताओ उस मिज़ा को देख कर कि मुझ को क़रार +वो नीश हो रग-ए-जाँ में फ़रो तो क्यूँकर हो +मुझे जुनूँ नहीं 'ग़ालिब' वले ब-क़ौल-ए-हुज़ूर +फ़िराक़-ए-यार में तस्कीन हो तो क्यूँकर हो " +har-qadam-duurii-e-manzil-hai-numaayaan-mujh-se-mirza-ghalib-ghazals," +हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से +मेरी रफ़्तार से भागे है बयाबाँ मुझ से +दर्स-ए-उनवान-ए-तमाशा ब-तग़ाफ़ुल ख़ुश-तर +है निगह रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़्गाँ मुझ से +वहशत-ए-आतिश-ए-दिल से शब-ए-तन्हाई में +सूरत-ए-दूद रहा साया गुरेज़ाँ मुझ से +ग़म-ए-उश्शाक़ न हो सादगी-आमोज़-ए-बुताँ +किस क़दर ख़ाना-ए-आईना है वीराँ मुझ से +असर-ए-आबला से जादा-ए-सहरा-ए-जुनूँ +सूरत-ए-रिश्ता-ए-गौहर है चराग़ाँ मुझ से +बे-ख़ुदी बिस्तर-ए-तम्हीद-ए-फ़राग़त हो जो +पुर है साए की तरह मेरा शबिस्ताँ मुझ से +शौक़-ए-दीदार में गर तू मुझे गर्दन मारे +हो निगह मिस्ल-ए-गुल-ए-शमा परेशाँ मुझ से +बेकसी-हा-ए-शब-ए-हिज्र की वहशत है है +साया ख़ुर्शीद-ए-क़यामत में है पिन्हाँ मुझ से +गर्दिश-ए-साग़र-ए-सद-जल्वा-ए-रंगीं तुझ से +आइना-दारी-ए-यक-दीदा-ए-हैराँ मुझ से +निगह-ए-गर्म से एक आग टपकती है 'असद' +है चराग़ाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-गुलिस्ताँ मुझ से +बस्तन-ए-अहद-ए-मोहब्बत हमा नादानी था +चश्म-ए-नकुशूदा रहा उक़्दा-ए-पैमाँ मुझ से +आतिश-अफ़रोज़ी-ए-यक-शोला-ए-ईमा तुझ से +चश्मक-आराई-ए-सद-शहर चराग़ाँ मुझ से " +dil-e-naadaan-tujhe-huaa-kyaa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है +आख़िर इस दर्द की दवा क्या है +हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार +या इलाही ये माजरा क्या है +मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ +काश पूछो कि मुद्दआ' क्या है +जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद +फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है +ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं +ग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है +शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूँ है +निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है +सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं +अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है +हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद +जो नहीं जानते वफ़ा क्या है +हाँ भला कर तिरा भला होगा +और दरवेश की सदा क्या है +जान तुम पर निसार करता हूँ +मैं नहीं जानता दुआ क्या है +मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब' +मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है " +raundii-huii-hai-kaukaba-e-shahryaar-kii-mirza-ghalib-ghazals," +र��ंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की +इतराए क्यूँ न ख़ाक सर-ए-रहगुज़ार की +जब उस के देखने के लिए आएँ बादशाह +लोगों में क्यूँ नुमूद न हो लाला-ज़ार की +भूके नहीं हैं सैर-ए-गुलिस्ताँ के हम वले +क्यूँकर न खाइए कि हवा है बहार की " +hariif-e-matlab-e-mushkil-nahiin-fusuun-e-niyaaz-mirza-ghalib-ghazals," +हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ +दुआ क़ुबूल हो या रब कि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़ +न हो ब-हर्ज़ा बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वजूद +हनूज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़ +विसाल जल्वा तमाशा है पर दिमाग़ कहाँ +कि दीजे आइना-ए-इन्तिज़ार को पर्दाज़ +हर एक ज़र्रा-ए-आशिक़ है आफ़ताब-परस्त +गई न ख़ाक हुए पर हवा-ए-जल्वा-ए-नाज़ +न पूछ वुसअत-ए-मय-ख़ाना-ए-जुनूँ 'ग़ालिब' +जहाँ ये कासा-ए-गर्दूं है एक ख़ाक-अंदाज़ +फ़रेब-ए-सनअत-ए-ईजाद का तमाशा देख +निगाह अक्स-फ़रोश ओ ख़याल आइना-साज़ +ज़ि-बस-कि जल्वा-ए-सय्याद हैरत-आरा है +उड़ी है सफ़्हा-ए-ख़ातिर से सूरत-ए-परवाज़ +हुजूम-ए-फ़िक्र से दिल मिस्ल-ए-मौज लरज़े है +कि शीशा नाज़ुक ओ सहबा-ए-आबगीन-गुदाज़ +'असद' से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ वो मा'नी है +कि खींचिए पर-ए-ताइर से सूरत-ए-परवाज़ +हनूज़ ऐ असर-ए-दीद नंग-ए-रुस्वाई +निगाह फ़ित्ना-ख़िराम ओ दर-ए-दो-आलम बाज़ " +ghar-hamaaraa-jo-na-rote-bhii-to-viiraan-hotaa-mirza-ghalib-ghazals," +घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता +बहर गर बहर न होता तो बयाबाँ होता +तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है +कि अगर तंग न होता तो परेशाँ होता +बाद यक-उम्र-ए-वरा' बार तो देता बारे +काश रिज़वाँ ही दर-ए-यार का दरबाँ होता " +zamaana-sakht-kam-aazaar-hai-ba-jaan-e-asad-mirza-ghalib-ghazals," +ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद +वगर्ना हम तो तवक़्क़ो ज़ियादा रखते हैं +तन-ए-ब-बंद-ए-हवस दर नदादा रखते हैं +दिल-ए-ज़-कार-ए-जहाँ ऊफ़्तादा रखते हैं +तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में लाख बातें हैं +ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखते हैं +ब-रंग-ए-साया हमें बंदगी में है तस्लीम +कि दाग़-ए-दिल ब-जाबीन-ए-कुशादा रखते हैं +ब-ज़ाहिदाँ रग-ए-गर्दन है रिश्ता-ए-ज़ुन्नार +सर-ए-ब-पा-ए-बुत-ए-ना-निहादा रखते हैं +मुआफ़-ए-बे-हूदा-गोई हैं नासेहान-ए-अज़ीज़ +दिल-ए-ब-दस्त-ए-निगारे नदादा रखते हैं +ब-रंग-ए-सब्ज़ा अज़ीज़ान-ए-बद-ज़बान यक-दस्त +हज़ार तेग़-ए-ब-ज़हर-आब-दादा रखते हैं +अदब ने सौंपी हमें सुर्मा-साइ-ए-हैरत +ज़-बन-ए-बस्ता-ओ-चश्म-ए-कुशादा रखते हैं " +hai-vasl-hijr-aalam-e-tamkiin-o-zabt-men-mirza-ghalib-ghazals," +है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में +माशूक़-ए-शोख़ ओ आशिक़-ए-दीवाना चाहिए +उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ +शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ जुरअत-ए-रिंदाना चाहिए +आशिक़ नाक़ाब-ए-जल्वा-ए-जानाना चाहिए +फ़ानूस-ए-शम्अ' को पर-ए-परवाना चाहिए " +us-bazm-men-mujhe-nahiin-bantii-hayaa-kiye-mirza-ghalib-ghazals," +उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए +बैठा रहा अगरचे इशारे हुआ किए +दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया +मैं और जाऊँ दर से तिरे बिन सदा किए +रखता फिरूँ हूँ ख़िर्क़ा ओ सज्जादा रहन-ए-मय +मुद्दत हुई है दावत आब-ओ-हवा किए +बे-सर्फ़ा ही गुज़रती है हो गरचे उम्र-ए-ख़िज़्र +हज़रत भी कल कहेंगे कि हम क्या किया किए +मक़्दूर हो तो ख़ाक से पूछूँ कि ऐ लईम +तू ने वो गंज-हा-ए-गराँ-माया क्या किए +किस रोज़ तोहमतें न तराशा किए अदू +किस दिन हमारे सर पे न आरे चला किए +सोहबत में ग़ैर की न पड़ी हो कहीं ये ख़ू +देने लगा है बोसा बग़ैर इल्तिजा किए +ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं +भूले से उस ने सैकड़ों वा'दे वफ़ा किए +'ग़ालिब' तुम्हीं कहो कि मिलेगा जवाब क्या +माना कि तुम कहा किए और वो सुना किए " +chaahiye-achchhon-ko-jitnaa-chaahiye-mirza-ghalib-ghazals," +चाहिए अच्छों को जितना चाहिए +ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिए +सोहबत-ए-रिंदाँ से वाजिब है हज़र +जा-ए-मय अपने को खींचा चाहिए +चाहने को तेरे क्या समझा था दिल +बारे अब इस से भी समझा चाहिए +चाक मत कर जैब बे-अय्याम-ए-गुल +कुछ उधर का भी इशारा चाहिए +दोस्ती का पर्दा है बेगानगी +मुँह छुपाना हम से छोड़ा चाहिए +दुश्मनी ने मेरी खोया ग़ैर को +किस क़दर दुश्मन है देखा चाहिए +अपनी रुस्वाई में क्या चलती है सई +यार ही हंगामा-आरा चाहिए +मुनहसिर मरने पे हो जिस की उमीद +ना-उमीदी उस की देखा चाहिए +ग़ाफ़िल इन मह-तलअ'तों के वास्ते +चाहने वाला भी अच्छा चाहिए +चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद' +आप की सूरत तो देखा चाहिए " +hai-bazm-e-butaan-men-sukhan-aazurda-labon-se-mirza-ghalib-ghazals," +है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से +तंग आए हैं हम ऐसे ख़ुशामद-तलबों से +है दौर-ए-क़दह वज्ह-ए-परेशानी-ए-सहबा +यक-बार लगा दो ख़ुम-ए-मय मेरे लबों से +रिंदाना-ए-दर-ए-मय-कदा गुस्ताख़ हैं ज़ाहिद +ज़िन्हार न होना तरफ़ इन बे-अदबों से +बेदाद-ए-वफ़ा देख कि जाती रही आख़िर +हर-चंद मिरी जान को था रब्त लबों से +क्या पूछे है बर-ख़ुद ग़लती-हा-ए-अज़ीज़ाँ +ख़्वारी को भी इक आर है अआली-नसबों से +गो तुम को रज़ा-जूई-ए-अग़्यार है लेकिन +जाती है मुलाक़ात कब ऐसे सबबों से +मत पूछ 'असद' वअ'दा-ए-कम-फ़ुर्सती-ए-ज़ीस्त +दो दिन भी जो काटे तू क़यामत तअबों से " +na-gul-e-nagma-huun-na-parda-e-saaz-mirza-ghalib-ghazals," +न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़ +मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़ +तू और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल +मैं और अंदेशा-हा-ए-दूर-दराज़ +लाफ़-ए-तमकीं फ़रेब-ए-सादा-दिली +हम हैं और राज़-हा-ए-सीना-गुदाज़ +हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद +वर्ना बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़ +वो भी दिन हो कि उस सितमगर से +नाज़ खींचूँ बजाए हसरत-ए-नाज़ +नहीं दिल में मिरे वो क़तरा-ए-ख़ूँ +जिस से मिज़्गाँ हुई न हो गुल-बाज़ +ऐ तिरा ग़म्ज़ा यक-क़लम-अंगेज़ +ऐ तिरा ज़ुल्म सर-ब-सर अंदाज़ +तू हुआ जल्वा-गर मुबारक हो +रेज़िश-ए-सज्दा-ए-जबीन-ए-नियाज़ +मुझ को पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ +मैं ग़रीब और तू ग़रीब-नवाज़ +'असद'-उल्लाह ख़ाँ तमाम हुआ +ऐ दरेग़ा वो रिंद-ए-शाहिद-बाज़ " +saraapaa-rehn-e-ishq-o-naa-guziir-e-ulfat-e-hastii-mirza-ghalib-ghazals," +सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती +इबादत बर्क़ की करता हूँ और अफ़्सोस हासिल का +ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ है साक़ी ख़ुमार-ए-तिश्ना-कामी भी +जो तू दरिया-ए-मै है तो मैं ख़म्याज़ा हूँ साहिल का +ज़ि-बस खूँ-गश्त-ए-रश्क-ए-वफ़ा था वहम बिस्मिल का +चुराया ज़ख़्म-हा-ए-दिल ने पानी तेग़-ए-क़ातिल का +निगाह-ए-चश्म-ए-हासिद वाम ले ऐ ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी +तमाशाई हूँ वहदत-ख़ाना-ए-आईना-ए-दिल का +शरर-फ़ुर्सत निगह सामान-ए-यक-आलम चराग़ाँ है +ब-क़द्र-ए-रंग याँ गर्दिश में है पैमाना महफ़िल का +सरासर ताख़तन को शश-जिहत यक-अर्सा जौलाँ था +हुआ वामांदगी से रह-रवाँ की फ़र्क़ मंज़िल का +मुझे राह-ए-सुख़न में ख़ौफ़-ए-गुम-राही नहीं ग़ालिब +असा-ए-ख़िज़्र-ए-सहरा-ए-सुख़न है ख़ामा बे-दिल का " +koii-din-gar-zindagaanii-aur-hai-mirza-ghalib-ghazals," +कोई दिन गर ज़िंदगानी और है +अपने जी में हम ने ठानी और है +आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ +सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी और है +बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें +पर कुछ अब के सरगिरानी और है +दे के ख़त मुँह देखता है नामा-बर +कुछ तो पैग़ाम-ए-ज़बानी और है +क़ाता-ए-एमार है अक्सर नुजूम +वो बला-ए-आसमानी और है +हो चुकीं 'ग़ालिब' बलाएँ सब तमाम +एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है " +sataaish-gar-hai-zaahid-is-qadar-jis-baag-e-rizvaan-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का +वो इक गुलदस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का +बयाँ क्या कीजिए बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ का +कि हर यक क़तरा-ए-ख़ूँ दाना है तस्बीह-ए-मरजाँ का +न आई सतवत-ए-क़ातिल भी माने मेरे नालों को +लि���ा दाँतों में जो तिनका हुआ रेशा नियस्ताँ का +दिखाऊँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने +मिरा हर दाग़-ए-दिल इक तुख़्म है सर्व-ए-चराग़ाँ का +किया आईना-ख़ाने का वो नक़्शा तेरे जल्वे ने +करे जो परतव-ए-ख़ुर्शीद आलम शबनमिस्ताँ का +मिरी ता'मीर में मुज़्मर है इक सूरत ख़राबी की +हयूला बर्क़-ए-ख़िर्मन का है ख़ून-ए-गर्म दहक़ाँ का +उगा है घर में हर सू सब्ज़ा वीरानी तमाशा कर +मदार अब खोदने पर घास के है मेरे दरबाँ का +ख़मोशी में निहाँ ख़ूँ-गश्ता लाखों आरज़ूएँ हैं +चराग़-ए-मुर्दा हूँ मैं बे-ज़बाँ गोर-ए-ग़रीबाँ का +हनूज़ इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार बाक़ी है +दिल-ए-अफ़सुर्दा गोया हुजरा है यूसुफ़ के ज़िंदाँ का +बग़ल में ग़ैर की आज आप सोते हैं कहीं वर्ना +सबब क्या ख़्वाब में आ कर तबस्सुम-हा-ए-पिन्हाँ का +नहीं मा'लूम किस किस का लहू पानी हुआ होगा +क़यामत है सरिश्क-आलूदा होना तेरी मिज़्गाँ का +नज़र में है हमारी जादा-ए-राह-ए-फ़ना 'ग़ालिब' +कि ये शीराज़ा है आलम के अज्ज़ा-ए-परेशाँ का " +rashk-kahtaa-hai-ki-us-kaa-gair-se-ikhlaas-haif-mirza-ghalib-ghazals," +रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़ +अक़्ल कहती है कि वो बे-मेहर किस का आश्ना +ज़र्रा ज़र्रा साग़र-ए-मै-ख़ाना-ए-नै-रंग है +गर्दिश-ए-मजनूँ ब-चश्मक-हा-ए-लैला आश्ना +शौक़ है सामाँ-तराज़-ए-नाज़िश-ए-अरबाब-ए-अज्ज़ +ज़र्रा सहरा-दस्त-गाह ओ क़तरा दरिया-आश्ना +मैं और एक आफ़त का टुकड़ा वो दिल-ए-वहशी कि है +आफ़ियत का दुश्मन और आवारगी का आश्ना +शिकवा-संज-ए-रश्क-ए-हम-दीगर न रहना चाहिए +मेरा ज़ानू मोनिस और आईना तेरा आश्ना +कोहकन नक़्क़ाश-ए-यक-तिम्साल-ए-शीरीं था 'असद' +संग से सर मार कर होवे न पैदा आश्ना +ख़ुद-परस्ती से रहे बाहम-दिगर ना-आश्ना +बेकसी मेरी शरीक आईना तेरा आश्ना +आतिश-ए-मू-ए-दिमाग़-ए-शौक़ है तेरा तपाक +वर्ना हम किस के हैं ऐ दाग़-ए-तमन्ना आश्ना +जौहर-ए-आईना जुज़ रम्ज़-ए-सर-ए-मिज़गाँ नहीं +आश्ना की हम-दिगर समझे है ईमा आश्ना +रब्त-ए-यक-शीराज़ा-ए-वहशत हैं अजज़ा-ए-बहार +सब्ज़ा बेगाना सबा आवारा गुल ना-आश्ना +बे-दिमाग़ी शिकवा-संज-ए-रश्क-ए-हम-दीगर नहीं +यार तेरा जाम-ए-मय ख़म्याज़ा मेरा आश्ना " +rone-se-aur-ishq-men-bebaak-ho-gae-mirza-ghalib-ghazals," +रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए +धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए +सर्फ़-ए-बहा-ए-मय हुए आलात-ए-मय-कशी +थे ये ही दो हिसाब सो यूँ पाक हो गए +रुस्वा-ए-दहर गो हुए आवारगी से तुम +बारे तबीअतों के तो चा��ाक हो गए +कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बे-असर +पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए +पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का +आप अपनी आग के ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए +करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला +की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए +इस रंग से उठाई कल उस ने 'असद' की ना'श +दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए " +saadgii-par-us-kii-mar-jaane-kii-hasrat-dil-men-hai-mirza-ghalib-ghazals," +सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है +बस नहीं चलता कि फिर ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है +देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा +मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है +गरचे है किस किस बुराई से वले बाईं-हमा +ज़िक्र मेरा मुझ से बेहतर है कि उस महफ़िल में है +बस हुजूम-ए-ना-उमीदी ख़ाक में मिल जाएगी +ये जो इक लज़्ज़त हमारी सई-ए-बे-हासिल में है +रंज-ए-रह क्यूँ खींचिए वामांदगी को इश्क़ है +उठ नहीं सकता हमारा जो क़दम मंज़िल में है +जल्वा ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही +फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत किस के आब-ओ-गिल में है +है दिल-ए-शोरीदा-ए-'ग़ालिब' तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब +रहम कर अपनी तमन्ना पर कि किस मुश्किल में है " +dhamkii-men-mar-gayaa-jo-na-baab-e-nabard-thaa-mirza-ghalib-ghazals," +धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था +इश्क़-ए-नबर्द-पेशा तलबगार-ए-मर्द था +था ज़िंदगी में मर्ग का खटका लगा हुआ +उड़ने से पेश-तर भी मिरा रंग ज़र्द था +तालीफ़ नुस्ख़ा-हा-ए-वफ़ा कर रहा था मैं +मजमुआ-ए-ख़याल अभी फ़र्द फ़र्द था +दिल ता जिगर कि साहिल-ए-दरिया-ए-ख़ूँ है अब +इस रहगुज़र में जल्वा-ए-गुल आगे गर्द था +जाती है कोई कश्मकश अंदोह-ए-इश्क़ की +दिल भी अगर गया तो वही दिल का दर्द था +अहबाब चारासाज़ी-ए-वहशत न कर सके +ज़िंदाँ में भी ख़याल बयाबाँ-नवर्द था +ये लाश-ए-बे-कफ़न 'असद'-ए-ख़स्ता-जाँ की है +हक़ मग़्फ़िरत करे अजब आज़ाद मर्द था " +gam-khaane-men-buudaa-dil-e-naakaam-bahut-hai-mirza-ghalib-ghazals," +ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है +ये रंज कि कम है मय-ए-गुलफ़ाम बहुत है +कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना +है यूँ कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है +ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में +गोशे में क़फ़स के मुझे आराम बहुत है +क्या ज़ोहद को मानूँ कि न हो गरचे रियाई +पादाश-ए-अमल की तमा-ए-ख़ाम बहुत है +हैं अहल-ए-ख़िरद किस रविश-ए-ख़ास पे नाज़ाँ +पाबस्तगी-ए-रस्म-ओ-राह-ए-आम बहुत है +ज़मज़म ही पे छोड़ो मुझे क्या तौफ़-ए-हरम से +आलूदा-ब-मय जामा-ए-एहराम बहुत है +है क़हर गर अब भी न बने बात कि उन को +इंकार नहीं ��र मुझे इबराम बहुत है +ख़ूँ हो के जिगर आँख से टपका नहीं ऐ मर्ग +रहने दे मुझे याँ कि अभी काम बहुत है +होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने +शाइ'र तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है " +haasil-se-haath-dho-baith-ai-aarzuu-khiraamii-mirza-ghalib-ghazals," +हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी +दिल जोश-ए-गिर्या में है डूबी हुई असामी +उस शम्अ' की तरह से जिस को कोई बुझा दे +मैं भी जले-हुओं में हूँ दाग़-ए-ना-तमामी +करते हो शिकवा किस का तुम और बेवफ़ाई +सर पीटते हैं अपना हम और नेक-नामी +सद-रंग-ए-गुल कतरना दर-पर्दा क़त्ल करना +तेग़-ए-अदा नहीं है पाबंद-ए-बे-नियामी +तर्फ़-ए-सुख़न नहीं है मुझ से ख़ुदा-न-कर्दा +है नामा-बर को उस से दावा-ए-हम-कलामी +ताक़त फ़साना-ए-बाद अंदेशा शोला-ईजाद +ऐ ग़म हुनूज़ आतिश ऐ दिल हुनूज़ ख़ामी +हर चंद उम्र गुज़री आज़ुर्दगी में लेकिन +है शरह-ए-शौक़ को भी जूँ शिकवा ना-तमामी +है यास में 'असद' को साक़ी से भी फ़राग़त +दरिया से ख़ुश्क गुज़रे मस्तों की तिश्ना-कामी " +maze-jahaan-ke-apnii-nazar-men-khaak-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं +सिवाए ख़ून-ए-जिगर सो जिगर में ख़ाक नहीं +मगर ग़ुबार हुए पर हवा उड़ा ले जाए +वगरना ताब ओ तवाँ बाल-ओ-पर में ख़ाक नहीं +ये किस बहिश्त-शमाइल की आमद आमद है +कि ग़ैर-ए-जल्वा-ए-गुल रहगुज़र में ख़ाक नहीं +भला उसे न सही कुछ मुझी को रहम आता +असर मिरे नफ़स-ए-बे-असर में ख़ाक नहीं +ख़याल-ए-जल्वा-ए-गुल से ख़राब हैं मय-कश +शराब-ख़ाने के दीवार-ओ-दर में ख़ाक नहीं +हुआ हूँ इश्क़ की ग़ारत-गरी से शर्मिंदा +सिवाए हसरत-ए-तामीर घर में ख़ाक नहीं +हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल-लगी के 'असद' +खुला कि फ़ाएदा अर्ज़-ए-हुनर में ख़ाक नहीं " +miltii-hai-khuu-e-yaar-se-naar-iltihaab-men-mirza-ghalib-ghazals," +मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में +काफ़िर हूँ गर न मिलती हो राहत अज़ाब में +कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में +शब-हा-ए-हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में +ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर +आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में +क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ +मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में +मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम +साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में +जो मुनकिर-ए-वफ़ा हो फ़रेब उस पे क्या चले +क्यूँ बद-गुमाँ हूँ दोस्त से दुश्मन के बाब में +मैं मुज़्तरिब हूँ वस्ल में ख़ौफ़-ए-रक़ीब से +डाला है तुम को वहम ने किस पेच-ओ-ताब में +मैं और हज़्ज़-ए-वस्ल ख़ुदा-साज़ ब��त है +जाँ नज़्र देनी भूल गया इज़्तिराब में +है तेवरी चढ़ी हुई अंदर नक़ाब के +है इक शिकन पड़ी हुई तरफ़-ए-नक़ाब में +लाखों लगाओ एक चुराना निगाह का +लाखों बनाव एक बिगड़ना इ'ताब में +वो नाला दिल में ख़स के बराबर जगह न पाए +जिस नाला से शिगाफ़ पड़े आफ़्ताब में +वो सेहर मुद्दआ-तलबी में न काम आए +जिस सेहर से सफ़ीना रवाँ हो सराब में +'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी +पीता हूँ रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में " +ishq-taasiir-se-naumiid-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं +जाँ-सिपारी शजर-ए-बेद नहीं +सल्तनत दस्त-ब-दस्त आई है +जाम-ए-मय ख़ातम-ए-जमशेद नहीं +है तजल्ली तिरी सामान-ए-वजूद +ज़र्रा बे-परतव-ए-ख़ुर्शेद नहीं +राज़-ए-माशूक़ न रुस्वा हो जाए +वर्ना मर जाने में कुछ भेद नहीं +गर्दिश-ए-रंग-ए-तरब से डर है +ग़म-ए-महरूमी-ए-जावेद नहीं +कहते हैं जीते हैं उम्मेद पे लोग +हम को जीने की भी उम्मेद नहीं " +manzuur-thii-ye-shakl-tajallii-ko-nuur-kii-mirza-ghalib-ghazals," +मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की +क़िस्मत खुली तिरे क़द-ओ-रुख़ से ज़ुहूर की +इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं +पड़ती है आँख तेरे शहीदों पे हूर की +वाइ'ज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको +क्या बात है तुम्हारी शराब-ए-तहूर की +लड़ता है मुझ से हश्र में क़ातिल कि क्यूँ उठा +गोया अभी सुनी नहीं आवाज़ सूर की +आमद बहार की है जो बुलबुल है नग़्मा-संज +उड़ती सी इक ख़बर है ज़बानी तुयूर की +गो वाँ नहीं प वाँ के निकाले हुए तो हैं +का'बे से इन बुतों को भी निस्बत है दूर की +क्या फ़र्ज़ है कि सब को मिले एक सा जवाब +आओ न हम भी सैर करें कोह-ए-तूर की +गर्मी सही कलाम में लेकिन न इस क़दर +की जिस से बात उस ने शिकायत ज़रूर की +'ग़ालिब' गर इस सफ़र में मुझे साथ ले चलें +हज का सवाब नज़्र करूँगा हुज़ूर की " +qatra-e-mai-bas-ki-hairat-se-nafas-parvar-huaa-mirza-ghalib-ghazals," +क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ +ख़त्त-ए-जाम-ए-मै सरासर रिश्ता-ए-गौहर हुआ +ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना +ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ +गरमी-ए-दौलत हुइ आतिश-ज़न-ए-नाम-ए-निको +ख़ाना-ए-ख़ातिम में याक़ूत-ए-नगीं अख़्तर हुआ +नश्शा में गुम-कर्दा-राह आया वो मस्त-ए-फ़ित्ना-ख़ू +आज रंग-रफ़्ता दौर-ए-गर्दिश-ए-साग़र हुआ +दर्द से दर-पर्दा दी मिज़्गाँ-सियाहाँ ने शिकस्त +रेज़ा रेज़ा उस्तुख़्वाँ का पोस्त में नश्तर हुआ +ज़ोहद गरदीदन है गर्द-ए-ख़ाना-हा-ए-मुनइमाँ +दाना-ए-तस्बीह से मैं मोहर��-दर-शश्दर हुआ +ऐ ब-ज़ब्त-ए-हाल-ए-ना-अफ़्सुर्दागाँ जोश-ए-जुनूँ +नश्शा-ए-मय है अगर यक-पर्दा नाज़ुक-तर हुआ +इस चमन में रेशा-दारी जिस ने सर खेंचा 'असद' +तर ज़बान-ए-लुत्फ़-ए-आम-ए-साक़ी-ए-कौसर हुआ " +faarig-mujhe-na-jaan-ki-maanind-e-subh-o-mehr-mirza-ghalib-ghazals," +फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर +है दाग़-ए-इश्क़ ज़ीनत-ए-जेब-ए-कफ़न हुनूज़ +है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्ता पर +हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कोहन हुनूज़ +मै-ख़ाना-ए-जिगर में यहाँ ख़ाक भी नहीं +ख़म्याज़ा खींचे है बुत-ए-बे-दाद-फ़न हुनूज़ +जूँ जादा सर-ब-कू-ए-तमन्ना-ए-बे-दिली +ज़ंजीर-ए-पा है रिश्ता-ए-हुब्बुल-वतन हुनूज़ " +gulshan-men-bandobast-ba-rang-e-digar-hai-aaj-mirza-ghalib-ghazals," +गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज +क़ुमरी का तौक़ हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर है आज +आता है एक पारा-ए-दिल हर फ़ुग़ाँ के साथ +तार-ए-नफ़स कमंद-ए-शिकार-ए-असर है आज +ऐ आफ़ियत किनारा कर ऐ इंतिज़ाम चल +सैलाब-ए-गिर्या दरपय-ए-दीवार-ओ-दर है आज +माज़ूली-ए-तपिश हुई इफ़रात-ए-इंतिज़ार +चश्म-ए-कुशादा हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर है आज +हैरत-फ़रोश-ए-सद-निगरानी है इज़्तिरार +सर-रिश्ता चाक-ए-जेब का तार-ए-नज़र है आज +हूँ दाग़-ए-नीम-रंगी-ए-शाम-ए-विसाल-ए-यार +नूर-ए-चराग़-ए-बज़्म से जोश-ए-सहर है आज +करती है आजिज़ी-ए-सफ़र सोख़्तन तमाम +पैराहन-ए-ख़सक में ग़ुबार-ए-शरर है आज +ता-सुब्ह है ब-मंज़िल-ए-मक़्सद रसीदनी +दूद-ए-चराग़-ए-ख़ाना ग़ुबार-ए-सफ़र है आज +दूर-ऊफ़्तादा-ए-चमन-ए-फ़िक्र है 'असद' +मुर्ग़-ए-ख़याल बुलबुल-ए-बे-बाल-ओ-पर है आज " +juz-qais-aur-koii-na-aayaa-ba-ruu-e-kaar-mirza-ghalib-ghazals," +जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार +सहरा मगर ब-तंगी-ए-चश्म-ए-हसूद था +आशुफ़्तगी ने नक़्श-ए-सुवैदा किया दुरुस्त +ज़ाहिर हुआ कि दाग़ का सरमाया दूद था +था ख़्वाब में ख़याल को तुझ से मुआ'मला +जब आँख खुल गई न ज़ियाँ था न सूद था +लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हनूज़ +लेकिन यही कि रफ़्त गया और बूद था +ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-उयूब-ए-बरहनगी +मैं वर्ना हर लिबास में नंग-ए-वजूद था +तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद' +सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था +आलम जहाँ ब-अर्ज़-ए-बिसात-ए-वजूद था +जूँ सुब्ह चाक-ए-जेब मुझे तार-ओ-पूद था +बाज़ी-ख़ुर-ए-फ़रेब है अहल-ए-नज़र का ज़ौक़ +हंगामा गर्म-ए-हैरत-ए-बूद-ओ-नबूद था +आलम तिलिस्म-ए-शहर-ए-ख़मोशी है सर-बसर +या मैं ग़रीब-ए-किश्वर-ए-गुफ़्त-ओ-शुनूद था +तंगी रफ़ीक़-ए-रह थी अदम या वजूद था +मेरा सफ़र ���-ताला-ए-चश्म-ए-हसूद था +तू यक-जहाँ क़माश-ए-हवस जम्अ' कर कि मैं +हैरत-मता-ए-आलम-ए-नुक़्सान-ओ-सूद था +गर्दिश-मुहीत-ए-ज़ुल्म रहा जिस क़दर फ़लक +मैं पाएमाल-ए-ग़म्ज़ा-ए-चश्म-ए-कबूद था +पूछा था गरचे यार ने अहवाल-ए-दिल मगर +किस को दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-गुफ़्त-ओ-शुनूद था +ख़ुर शबनम-आश्ना न हुआ वर्ना मैं 'असद' +सर-ता-क़दम गुज़ारिश-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद था " +lab-e-khushk-dar-tishnagii-murdagaan-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का +ज़ियारत-कदा हूँ दिल-आज़ुर्दगाँ का +हमा ना-उमीदी हमा बद-गुमानी +मैं दिल हूँ फ़रेब-ए-वफ़ा-ख़ुर्दगाँ का +शगुफ़्तन कमीं-गाह-ए-तक़रीब-जूई +तसव्वुर हूँ बे-मोजिब आज़ुर्दगाँ का +ग़रीब-ए-सितम-दीदा-ए-बाज़-गश्तन +सुख़न हूँ सुख़न बर लब-आवुर्दगाँ का +सरापा यक-आईना-दार-ए-शिकस्तन +इरादा हूँ यक-आलम-अफ़्सुर्दगाँ का +ब-सूरत तकल्लुफ़ ब-मअ'नी तअस्सुफ़ +'असद' मैं तबस्सुम हूँ पज़मुर्दगाँ का " +laraztaa-hai-miraa-dil-zahmat-e-mehr-e-darakhshaan-par-mirza-ghalib-ghazals," +लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर +मैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर +न छोड़ी हज़रत-ए-यूसुफ़ ने याँ भी ख़ाना-आराई +सफ़ेदी दीदा-ए-याक़ूब की फिरती है ज़िंदाँ पर +फ़ना तालीम-ए-दर्स-ए-बे-ख़ुदी हूँ उस ज़माने से +कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर +फ़राग़त किस क़दर रहती मुझे तश्वीश-ए-मरहम से +बहम गर सुल्ह करते पारा-हा-ए-दिल नमक-दाँ पर +नहीं इक़लीम-ए-उल्फ़त में कोई तूमार-ए-नाज़ ऐसा +कि पुश्त-ए-चश्म से जिस की न होवे मोहर उनवाँ पर +मुझे अब देख कर अबर-ए-शफ़क़-आलूदा याद आया +कि फ़ुर्क़त में तिरी आतिश बरसती थी गुलिस्ताँ पर +ब-जुज़ परवाज़-ए-शौक़-ए-नाज़ क्या बाक़ी रहा होगा +क़यामत इक हवा-ए-तुंद है ख़ाक-ए-शहीदाँ पर +न लड़ नासेह से 'ग़ालिब' क्या हुआ गर उस ने शिद्दत की +हमारा भी तो आख़िर ज़ोर चलता है गरेबाँ पर +दिल-ए-ख़ूनीं-जिगर बे-सब्र-ओ-फ़ैज़-ए-इश्क़-ए-मुस्तग़नी +इलाही यक क़यामत ख़ावर आ टूटे बदख़्शाँ पर +'असद' ऐ बे-तहम्मुल अरबदा बे-जा है नासेह से +कि आख़िर बे-कसों का ज़ोर चलता है गरेबाँ पर " +aa-ki-mirii-jaan-ko-qaraar-nahiin-hai-mirza-ghalib-ghazals," +आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है +ताक़त-ए-बेदाद-ए-इंतिज़ार नहीं है +देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले +नश्शा ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है +गिर्या निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को +हाए कि रोने पे इख़्तियार नहीं है +हम से अबस है गुमान-ए-रंजिश-ए-ख़ातिर +ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुबार नहीं है +दिल से उठा लुत्फ़-ए-जल्वा-हा-ए-मआनी +ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है +क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे +वाए अगर अहद उस्तुवार नहीं है +तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब' +तेरी क़सम का कुछ ए'तिबार नहीं है " +naqsh-fariyaadii-hai-kis-kii-shokhi-e-tahriir-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का +काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का +काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ +सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का +जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए +सीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का +आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए +मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का +बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा +मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का +आतिशीं-पा हूँ गुदाज़-ए-वहशत-ए-ज़िन्दाँ न पूछ +मू-ए-आतिश दीदा है हर हल्क़ा याँ ज़ंजीर का +शोख़ी-ए-नैरंग सैद-ए-वहशत-ए-ताऊस है +दाम-ए-सब्ज़ा में है परवाज़-ए-चमन तस्ख़ीर का +लज़्ज़त-ए-ईजाद-ए-नाज़ अफ़सून-ए-अर्ज़-ज़ौक़-ए-क़त्ल +ना'ल आतिश में है तेग़-ए-यार से नख़चीर का +ख़िश्त पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ ओ क़ालिब आग़ोश-ए-विदा'अ +पुर हुआ है सैल से पैमाना किस ता'मीर का +वहशत-ए-ख़्वाब-ए-अदम शोर-ए-तमाशा है 'असद' +जो मज़ा जौहर नहीं आईना-ए-ताबीर का " +mund-gaiin-kholte-hii-kholte-aankhen-gaalib-mirza-ghalib-ghazals," +मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें 'ग़ालिब' +यार लाए मिरी बालीं पे उसे पर किस वक़्त " +muzhda-ai-zauq-e-asiirii-ki-nazar-aataa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है +दाम-ए-ख़ाली क़फ़स-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास +जिगर-ए-तिश्ना-ए-आज़ार तसल्ली न हुआ +जू-ए-ख़ूँ हम ने बहाई बुन-ए-हर ख़ार के पास +मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें है है +ख़ूब वक़्त आए तुम इस आशिक़-ए-बीमार के पास +मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले +दशना इक तेज़ सा होता मिरे ग़म-ख़्वार के पास +दहन-ए-शेर में जा बैठे लेकिन ऐ दिल +न खड़े हो जिए ख़ूबान-ए-दिल-आज़ार के पास +देख कर तुझ को चमन बस-कि नुमू करता है +ख़ुद-ब-ख़ुद पहुँचे है गुल गोशा-ए-दस्तार के पास +मर गया फोड़ के सर ग़ालिब-ए-वहशी है है +बैठना उस का वो आ कर तिरी दीवार के पास " +na-hogaa-yak-bayaabaan-maandgii-se-zauq-kam-meraa-mirza-ghalib-ghazals," +न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा +हबाब-ए-मौजा-ए-रफ़्तार है नक़्श-ए-क़दम मेरा +मोहब्बत थी चमन से लेकिन अब ये बे-दिमाग़ी है +कि मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा +रह-ए-ख़्वाबीदा थी गर्दन-कश-ए-यक-दर्��-ए-आगाही +ज़मीं को सैली-ए-उस्ताद है नक़्श-ए-क़दम मेरा +सुराग़-आवारा-ए-अर्ज़-ए-दो-आलम शोर-ए-महशर हूँ +पर-अफ़्शाँ है ग़ुबार आँ सू-ए-सहरा-ए-अदम मेरा +हवा-ए-सुब्ह यक-आलम गरेबाँ चाकी-ए-गुल है +दहान-ए-ज़ख़्म पैदा कर अगर खाता है ग़म मेरा +न हो वहशत-कश-ए-दर्स-ए-सराब-ए-सत्र-ए-आगाही +मैं गर्द-ए-राह हूँ बे-मुद्दआ है पेच-ओ-ख़म मेरा +'असद' वहशत-परस्त-ए-गोशा-ए-तन्हाई-ए-दिल है +ब-रंग-ए-मौज-ए-मय ख़म्याज़ा-ए-साग़र है रम मेरा " +daaim-padaa-huaa-tire-dar-par-nahiin-huun-main-mirza-ghalib-ghazals," +दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं +ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं +क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल +इंसान हूँ पियाला ओ साग़र नहीं हूँ मैं +या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए +लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुकर्रर नहीं हूँ मैं +हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते +आख़िर गुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं +किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे +लअ'ल ओ ज़मुर्रद ओ ज़र ओ गौहर नहीं हूँ मैं +रखते हो तुम क़दम मिरी आँखों से क्यूँ दरेग़ +रुत्बे में महर-ओ-माह से कम-तर नहीं हूँ मैं +करते हो मुझ को मनअ-ए-क़दम-बोस किस लिए +क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं +'ग़ालिब' वज़ीफ़ा-ख़्वार हो दो शाह को दुआ +वो दिन गए कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं " +jaada-e-rah-khur-ko-vaqt-e-shaam-hai-taar-e-shuaaa-mirza-ghalib-ghazals," +जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ' +चर्ख़ वा करता है माह-ए-नौ से आग़ोश-ए-विदा'अ +शम्अ' से है बज़्म-ए-अंगुश्त-ए-तहय्युर दर दहन +शोला-ए-आवाज़-ए-ख़ूबाँ पर ब-हंगाम-ए-सिमाअ' +जूँ पर-ए-ताऊस जौहर तख़्ता मश्क़-ए-रंग है +बस-कि है वो क़िबला-ए-आईना महव-ए-इख़तिराअ' +रंजिश-ए-हैरत-सरिश्ताँ सीना-साफ़ी पेशकश +जौहर-ए-आईना है याँ गर्द-ए-मैदान-ए-नज़ाअ' +चार सू-ए-दहर में बाज़ार-ए-ग़फ़लत गर्म है +अक़्ल के नुक़साँ से उठता है ख़याल-ए-इन्तिफ़ाअ' +आश्ना 'ग़ालिब' नहीं हैं दर्द-ए-दिल के आश्ना +वर्ना किस को मेरे अफ़्साने की ताब-ए-इस्तिमाअ' " +shauq-har-rang-raqiib-e-sar-o-saamaan-niklaa-mirza-ghalib-ghazals," +शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला +क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी उर्यां निकला +ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की या रब +तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से पर-अफ़्शाँ निकला +बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल +जो तिरी बज़्म से निकला सो परेशाँ निकला +दिल-ए-हसरत-ज़दा था माइदा-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द +काम यारों का ब-क़दर-ए-लब-ओ-दंदाँ निकला +थी नौ-आमूज़-ए-फ़ना हिम्मत-ए-दुश्वार-पसंद +��ख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसाँ निकला +दिल में फिर गिर्ये ने इक शोर उठाया 'ग़ालिब' +आह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला +कार-ख़ाने से जुनूँ के भी मैं उर्यां निकला +मेरी क़िस्मत का न एक-आध गरेबाँ निकला +साग़र-ए-जल्वा-ए-सरशार है हर ज़र्रा-ए-ख़ाक +शौक़-ए-दीदार बला आइना-सामाँ निकला +कुछ खटकता था मिरे सीने में लेकिन आख़िर +जिस को दिल कहते थे सो तीर का पैकाँ निकला +किस क़दर ख़ाक हुआ है दिल-ए-मजनूँ या रब +नक़्श-ए-हर-ज़र्रा सुवैदा-ए-बयाबाँ निकला +शोर-ए-रुसवाई-ए-दिल देख कि यक-नाला-ए-शौक़ +लाख पर्दे में छुपा पर वही उर्यां निकला +शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना ख़ून-ए-वफ़ा से कब तक +आख़िर ऐ अहद-शिकन तू भी पशेमाँ निकला +जौहर-ईजाद-ए-ख़त-ए-सब्ज़ है ख़ुद-बीनी-ए-हुस्न +जो न देखा था सो आईने में पिन्हाँ निकला +मैं भी माज़ूर-ए-जुनूँ हूँ 'असद' ऐ ख़ाना-ख़राब +पेशवा लेने मुझे घर से बयाबाँ निकला " +koii-ummiid-bar-nahiin-aatii-mirza-ghalib-ghazals," +कोई उम्मीद बर नहीं आती +कोई सूरत नज़र नहीं आती +मौत का एक दिन मुअय्यन है +नींद क्यूँ रात भर नहीं आती +आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी +अब किसी बात पर नहीं आती +जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद +पर तबीअत इधर नहीं आती +है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ +वर्ना क्या बात कर नहीं आती +क्यूँ न चीख़ूँ कि याद करते हैं +मेरी आवाज़ गर नहीं आती +दाग़-ए-दिल गर नज़र नहीं आता +बू भी ऐ चारागर नहीं आती +हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी +कुछ हमारी ख़बर नहीं आती +मरते हैं आरज़ू में मरने की +मौत आती है पर नहीं आती +काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' +शर्म तुम को मगर नहीं आती " +aamad-e-khat-se-huaa-hai-sard-jo-baazaar-e-dost-mirza-ghalib-ghazals," +आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त +दूद-ए-शम-ए-कुश्ता था शायद ख़त-ए-रुख़्सार-ए-दोस्त +ऐ दिल-ए-ना-आक़िबत-अंदेश ज़ब्त-ए-शौक़ कर +कौन ला सकता है ताब-ए-जल्वा-ए-दीदार-ए-दोस्त +ख़ाना-वीराँ-साज़ी-ए-हैरत तमाशा कीजिए +सूरत-ए-नक़्श-ए-क़दम हूँ रफ़्ता-ए-रफ़्तार-ए-दोस्त +इश्क़ में बेदाद-ए-रश्क-ए-ग़ैर ने मारा मुझे +कुश्ता-ए-दुश्मन हूँ आख़िर गरचे था बीमार-ए-दोस्त +चश्म-ए-मा रौशन कि उस बेदर्द का दिल शाद है +दीदा-ए-पुर-ख़ूँ हमारा साग़र-ए-सरशार-ए-दोस्त +ग़ैर यूँ करता है मेरी पुर्सिश उस के हिज्र में +बे-तकल्लुफ़ दोस्त हो जैसे कोई ग़म-ख़्वार-ए-दोस्त +ताकि मैं जानूँ कि है उस की रसाई वाँ तलक +मुझ को देता है पयाम-ए-वादा-ए-दीदार-ए-दोस्त +जब कि मैं करता हूँ अपना शिकवा-ए-���़ोफ़-ए-दिमाग़ +सर करे है वो हदीस-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबर-बार-ए-दोस्त +चुपके चुपके मुझ को रोते देख पाता है अगर +हँस के करता है बयान-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तार-ए-दोस्त +मेहरबानी-हा-ए-दुश्मन की शिकायत कीजिए +ता बयाँ कीजे सिपास-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार-ए-दोस्त +ये ग़ज़ल अपनी मुझे जी से पसंद आती है आप +है रदीफ़-ए-शेर में 'ग़ालिब' ज़ि-बस तकरार-ए-दोस्त +चश्म-ए-बंद-ए-ख़ल्क़ जुज़ तिमसाल-ए-ख़ुद-बीनी नहीं +आइना है क़ालिब-ए-ख़िश्त-ए-दर-ओ-दीवार-ए-दोस्त +बर्क़-ए-ख़िर्मन-ज़ार गौहर है निगाह-ए-तेज़ याँ +अश्क हो जाते हैं ख़ुश्क अज़-गरमी-ए-रफ़्तार-ए-दोस्त +है सवा नेज़े पे उस के क़ामत-ए-नौ-ख़ेज़ से +आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर है गुल-ए-दस्तार-ए-दोस्त +ऐ अदू-ए-मस्लहत चंद ब-ज़ब्त अफ़्सुर्दा रह +करदनी है जम्अ' ताब-ए-शोख़ी-ए-दीदार-ए-दोस्त +लग़ज़िशत-ए-मस्ताना ओ जोश-ए-तमाशा है 'असद' +आतिश-ए-मय से बहार-ए-गरमी-ए-बाज़ार-ए-दोस्त " +khatar-hai-rishta-e-ulfat-rag-e-gardan-na-ho-jaave-mirza-ghalib-ghazals," +ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे +ग़ुरूर-ए-दोस्ती आफ़त है तू दुश्मन न हो जावे +समझ इस फ़स्ल में कोताही-ए-नश्व-ओ-नुमा 'ग़ालिब' +अगर गुल सर्व के क़ामत पे पैराहन न हो जावे " +vo-mirii-chiin-e-jabiin-se-gam-e-pinhaan-samjhaa-mirza-ghalib-ghazals," +वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा +राज़-ए-मक्तूब ब-बे-रब्ती-ए-उनवाँ समझा +यक अलिफ़ बेश नहीं सैक़ल-ए-आईना हनूज़ +चाक करता हूँ मैं जब से कि गरेबाँ समझा +शरह-ए-असबाब-ए-गिरफ़्तारी-ए-ख़ातिर मत पूछ +इस क़दर तंग हुआ दिल कि मैं ज़िंदाँ समझा +बद-गुमानी ने न चाहा उसे सरगर्म-ए-ख़िराम +रुख़ पे हर क़तरा अरक़ दीदा-ए-हैराँ समझा +इज्ज़ से अपने ये जाना कि वो बद-ख़ू होगा +नब्ज़-ए-ख़स से तपिश-ए-शोला-ए-सोज़ाँ समझा +सफ़र-ए-इश्क़ में की ज़ोफ़ ने राहत-तलबी +हर क़दम साए को मैं अपने शबिस्ताँ समझा +था गुरेज़ाँ मिज़ा-ए-यार से दिल ता दम-ए-मर्ग +दफ़-ए-पैकान-ए-क़ज़ा इस क़दर आसाँ समझा +दिल दिया जान के क्यूँ उस को वफ़ादार 'असद' +ग़लती की कि जो काफ़िर को मुसलमाँ समझा +हम ने वहशत-कदा-ए-बज़्म-ए-जहाँ में जूँ शम्अ' +शो'ला-ए-इश्क़ को अपना सर-ओ-सामाँ समझा " +kii-vafaa-ham-se-to-gair-is-ko-jafaa-kahte-hain-mirza-ghalib-ghazals," +की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं +होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं +आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से +कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं +अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो +जो मय ओ नग़्मा को अंदोह-रुबा कहते हैं +दिल ���ें आ जाए है होती है जो फ़ुर्सत ग़श से +और फिर कौन से नाले को रसा कहते हैं +है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद +क़िबले को अहल-ए-नज़र क़िबला-नुमा कहते हैं +पा-ए-अफ़गार पे जब से तुझे रहम आया है +ख़ार-ए-रह को तिरे हम मेहर-ए-गिया कहते हैं +इक शरर दिल में है उस से कोई घबराएगा क्या +आग मतलूब है हम को जो हवा कहते हैं +देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग +उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं +'वहशत' ओ 'शेफ़्ता' अब मर्सिया कहवें शायद +मर गया 'ग़ालिब'-ए-आशुफ़्ता-नवा कहते हैं " +siimaab-pusht-garmi-e-aaiina-de-hai-ham-mirza-ghalib-ghazals," +सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम +हैराँ किए हुए हैं दिल-ए-बे-क़रार के +आग़ोश-ए-गुल कुशूदा बरा-ए-विदा है +ऐ अंदलीब चल कि चले दिन बहार के +यूँ बाद-ए-ज़ब्त-ए-अश्क फिरूँ गिर्द यार के +पानी पिए किसू पे कोई जैसे वार के +बाद-अज़-विदा-ए-यार ब-ख़ूँ दर तपीदा हैं +नक़्श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार के +हम मश्क़-ए-फ़िक्र-ए-वस्ल-ओ-ग़म-ए-हिज्र से 'असद' +लाएक़ नहीं रहे हैं ग़म-ए-रोज़गार के " +sad-jalva-ruu-ba-ruu-hai-jo-mizhgaan-uthaaiye-mirza-ghalib-ghazals," +सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए +ताक़त कहाँ कि दीद का एहसाँ उठाइए +है संग पर बरात-ए-मआश-ए-जुनून-ए-इश्क़ +या'नी हुनूज़ मिन्नत-ए-तिफ़्लाँ उठाइए +दीवार बार-ए-मिन्नत-ए-मज़दूर से है ख़म +ऐ ख़ानुमाँ-ख़राब न एहसाँ उठाइए +या मेरे ज़ख़्म-ए-रश्क को रुस्वा न कीजिए +या पर्दा-ए-तबस्सुम-ए-पिन्हाँ उठाइए +हस्ती फ़रेब-नामा-ए-मौज-ए-सराब है +यक उम्र नाज़-ए-शोख़ी-ए-उनवाँ उठाइए " +dost-gam-khvaarii-men-merii-saii-farmaavenge-kyaa-mirza-ghalib-ghazals," +दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या +ज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या +बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक +हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फ़रमावेंगे क्या +हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह +कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या +आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं +उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या +गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यूँ सही +ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जावेंगे क्या +ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं ज़ंजीर से भागेंगे क्यूँ +हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा ज़िंदाँ से घबरावेंगे क्या +है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद' +हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या " +arz-e-niyaaz-e-ishq-ke-qaabil-nahiin-rahaa-mirza-ghalib-ghazals," +अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा +जिस दिल पे नाज�� था मुझे वो दिल नहीं रहा +जाता हूँ दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती लिए हुए +हूँ शम-ए-कुश्ता दर-ख़ुर-ए-महफ़िल नहीं रहा +मरने की ऐ दिल और ही तदबीर कर कि मैं +शायान-ए-दस्त-ओ-बाज़ु-ए-क़ातिल नहीं रहा +बर-रू-ए-शश-जहत दर-ए-आईना बाज़ है +याँ इम्तियाज़-ए-नाक़िस-ओ-कामिल नहीं रहा +वा कर दिए हैं शौक़ ने बंद-ए-नक़ाब-ए-हुस्न +ग़ैर-अज़-निगाह अब कोई हाइल नहीं रहा +गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार +लेकिन तिरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा +दिल से हवा-ए-किश्त-ए-वफ़ा मिट गई कि वाँ +हासिल सिवाए हसरत-ए-हासिल नहीं रहा +बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर 'असद' +जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा +हर-चंद मैं हूँ तूती-ए-शीरीं-सुख़न वले +आईना आह मेरे मुक़ाबिल नहीं रहा +जाँ-दाद-गाँ का हौसला फ़ुर्सत-गुदाज़ है +याँ अर्सा-ए-तपीदन-ए-बिस्मिल नहीं रहा +हूँ क़तरा-ज़न ब-वादी-ए-हसरत शबाना रोज़ +जुज़ तार-ए-अश्क जादा-ए-मंज़िल नहीं रहा +ऐ आह मेरी ख़ातिर-ए-वाबस्ता के सिवा +दुनिया में कोई उक़्दा-ए-मुश्किल नहीं रहा +अंदाज़-ए-नाला याद हैं सब मुझ को पर 'असद' +जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा " +bazm-e-shaahanshaah-men-ashaar-kaa-daftar-khulaa-mirza-ghalib-ghazals," +बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआ'र का दफ़्तर खुला +रखियो या रब ये दर-ए-गंजीना-ए-गौहर खुला +शब हुई फिर अंजुम-ए-रख़्शन्दा का मंज़र खुला +इस तकल्लुफ़ से कि गोया बुत-कदे का दर खुला +गरचे हूँ दीवाना पर क्यूँ दोस्त का खाऊँ फ़रेब +आस्तीं में दशना पिन्हाँ हाथ में नश्तर खुला +गो न समझूँ उस की बातें गो न पाऊँ उस का भेद +पर ये क्या कम है कि मुझ से वो परी-पैकर खुला +है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल +ख़ुल्द का इक दर है मेरी गोर के अंदर खुला +मुँह न खुलने पर है वो आलम कि देखा ही नहीं +ज़ुल्फ़ से बढ़ कर नक़ाब उस शोख़ के मुँह पर खुला +दर पे रहने को कहा और कह के कैसा फिर गया +जितने अर्से में मिरा लिपटा हुआ बिस्तर खुला +क्यूँ अँधेरी है शब-ए-ग़म है बलाओं का नुज़ूल +आज उधर ही को रहेगा दीदा-ए-अख़्तर खुला +क्या रहूँ ग़ुर्बत में ख़ुश जब हो हवादिस का ये हाल +नामा लाता है वतन से नामा-बर अक्सर खुला +उस की उम्मत में हूँ मैं मेरे रहें क्यूँ काम बंद +वास्ते जिस शह के 'ग़ालिब' गुम्बद-ए-बे-दर खुला " +kyuun-na-ho-chashm-e-butaan-mahv-e-tagaaful-kyuun-na-ho-mirza-ghalib-ghazals," +क्यूँ न हो चश्म-ए-बुताँ महव-ए-तग़ाफ़ुल क्यूँ न हो +या'नी उस बीमार को नज़्ज़ारे से परहेज़ है +मरते मरते देखने की आरज़ू रह जाएगी +वाए नाकामी कि उस काफ़िर का ख़ंजर तेज़ है +आरिज़-ए-गुल देख रू-ए-यार याद आया 'असद' +जोशिश-ए-फ़स्ल-ए-बहारी इश्तियाक़-अंगेज़ है " +jis-zakhm-kii-ho-saktii-ho-tadbiir-rafuu-kii-mirza-ghalib-ghazals," +जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की +लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की +अच्छा है सर-अंगुश्त-ए-हिनाई का तसव्वुर +दिल में नज़र आती तो है इक बूँद लहू की +क्यूँ डरते हो उश्शाक़ की बे-हौसलगी से +याँ तो कोई सुनता नहीं फ़रियाद किसू की +दशने ने कभी मुँह न लगाया हो जिगर को +ख़ंजर ने कभी बात न पूछी हो गुलू की +सद-हैफ़ वो नाकाम कि इक उम्र से 'ग़ालिब' +हसरत में रहे एक बुत-ए-अरबदा-जू की +गो ज़िंदगी-ए-ज़ाहिद-ए-बे-चारा अबस है +इतना है कि रहती तो है तदबीर वज़ू की " +vaarasta-us-se-hain-ki-mohabbat-hii-kyuun-na-ho-mirza-ghalib-ghazals," +वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो +कीजे हमारे साथ अदावत ही क्यूँ न हो +छोड़ा न मुझ में ज़ोफ़ ने रंग इख़्तिलात का +है दिल पे बार नक़्श-ए-मोहब्बत ही क्यूँ न हो +है मुझ को तुझ से तज़्किरा-ए-ग़ैर का गिला +हर-चंद बर-सबील-ए-शिकायत ही क्यूँ न हो +पैदा हुई है कहते हैं हर दर्द की दवा +यूँ हो तो चारा-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ही क्यूँ न हो +डाला न बे-कसी ने किसी से मुआ'मला +अपने से खींचता हूँ ख़जालत ही क्यूँ न हो +है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल +हम अंजुमन समझते हैं ख़ल्वत ही क्यूँ न हो +हंगामा-ए-ज़बूनी-ए-हिम्मत है इंफ़िआल +हासिल न कीजे दहर से इबरत ही क्यूँ न हो +वारस्तगी बहाना-ए-बेगानगी नहीं +अपने से कर न ग़ैर से वहशत ही क्यूँ न हो +मिटता है फ़ौत-ए-फ़ुर्सत-ए-हस्ती का ग़म कोई +उम्र-ए-अज़ीज़ सर्फ़-ए-इबादत ही क्यूँ न हो +उस फ़ित्ना-ख़ू के दर से अब उठते नहीं 'असद' +उस में हमारे सर पे क़यामत ही क्यूँ न हो " +mahram-nahiin-hai-tuu-hii-navaa-haa-e-raaz-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का +याँ वर्ना जो हिजाब है पर्दा है साज़ का +रंग-ए-शिकस्ता सुब्ह-ए-बहार-ए-नज़ारा है +ये वक़्त है शगुफ़्तन-ए-गुल-हा-ए-नाज़ का +तू और सू-ए-ग़ैर नज़र-हा-ए-तेज़ तेज़ +मैं और दुख तिरी मिज़ा-हा-ए-दराज़ का +सर्फ़ा है ज़ब्त-ए-आह में मेरा वगर्ना में +तोमा हूँ एक ही नफ़स-ए-जाँ-गुदाज़ का +हैं बस-कि जोश-ए-बादा से शीशे उछल रहे +हर गोशा-ए-बिसात है सर शीशा-बाज़ का +काविश का दिल करे है तक़ाज़ा कि है हुनूज़ +नाख़ुन पे क़र्ज़ इस गिरह-ए-नीम-बाज़ का +ताराज-ए-काविश-ए-ग़म-ए-हिज्राँ हुआ 'असद' +सीना कि था दफ़ीना गुहर-हा-ए-राज़ का " +aah-ko-chaahiye-ik-umr-asar-hote-tak-mirza-ghalib-ghazals," +आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक +कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक +दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग +देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक +आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब +दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक +ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र +सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक +हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन +ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक +परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम +मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक +यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल +गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक +ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज +शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक " +bisaat-e-ijz-men-thaa-ek-dil-yak-qatra-khuun-vo-bhii-mirza-ghalib-ghazals," +बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी +सो रहता है ब-अंदाज़-ए-चकीदन सर-निगूँ वो भी +रहे उस शोख़ से आज़ुर्दा हम चंदे तकल्लुफ़ से +तकल्लुफ़ बरतरफ़ था एक अंदाज़-ए-जुनूँ वो भी +ख़याल-ए-मर्ग कब तस्कीं दिल-ए-आज़ुर्दा को बख़्शे +मिरे दाम-ए-तमन्ना में है इक सैद-ए-ज़बूँ वो भी +न करता काश नाला मुझ को क्या मालूम था हमदम +कि होगा बाइस-ए-अफ़्ज़ाइश-ए-दर्द-ए-दरूँ वो भी +न इतना बुर्रिश-ए-तेग़-ए-जफ़ा पर नाज़ फ़रमाओ +मिरे दरिया-ए-बे-ताबी में है इक मौज-ए-ख़ूँ वो भी +मय-ए-इशरत की ख़्वाहिश साक़ी-ए-गर्दूं से क्या कीजे +लिए बैठा है इक दो चार जाम-ए-वाज़-गूँ वो भी +मिरे दिल में है 'ग़ालिब' शौक़-ए-वस्ल ओ शिकवा-ए-हिज्राँ +ख़ुदा वो दिन करे जो उस से मैं ये भी कहूँ वो भी +मुझे मालूम है जो तू ने मेरे हक़ में सोचा है +कहीं हो जाए जल्द ऐ गर्दिश-ए-गर्दून-ए-दूँ वो भी +नज़र राहत पे मेरी कर न वा'दा शब के आने का +कि मेरी ख़्वाब-बंदी के लिए होगा फ़ुसूँ वो भी " +az-mehr-taa-ba-zarra-dil-o-dil-hai-aaina-mirza-ghalib-ghazals," +अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना +तूती को शश-जिहत से मुक़ाबिल है आइना +हैरत हुजूम-ए-लज़्ज़त-ए-ग़लतानी-ए-तपिश +सीमाब-ए-बालिश ओ कमर-ए-दिल है आइना +ग़फ़लत ब-बाल-ए-जौहर-ए-शमशीर पर-फ़िशाँ +याँ पुश्त-ए-चश्म-ए-शोख़ी-ए-क़ातिल है आइना +हैरत-निगाह-ए-बर्क़-ए-तमाशा बहार-ए-शोख़ +दर-पर्दा-ए-हवा पर-ए-बिस्मिल है आइना +याँ रह गए हैं नाख़ुन-ए-तदबीर टूट कर +जौहर-तिलिस्म-ए-उक़्दा-ए-मुश्किल है आइना +हम-ज़ानू-ए-तअम्मुल ओ हम-जल्वा-गाह-ए-गुल +आईना-बंद ख़ल्वत-ओ-महफ़िल है आइना +दिल कार-गाह-ए-फ़िक्र ओ 'असद' बे-नवा-ए-दिल +याँ संग-ए-आस्ताना-ए-'बेदिल' है आइना " +tere-tausan-ko-sabaa-baandhte-hain-mirza-ghalib-ghazals," +तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं +हम भी मज़मूँ की हवा बाँधते हैं +आह का किस ने असर देखा है +हम भी एक अपनी हवा बाँधते हैं +तेरी फ़ुर्सत के मुक़ाबिल ऐ उम्र +बर्क़ को पा-ब-हिना बाँधते हैं +क़ैद-ए-हस्ती से रिहाई मा'लूम +अश्क को बे-सर-ओ-पा बाँधते हैं +नश्शा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल +मस्त कब बंद-ए-क़बा बाँधते हैं +ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ +लोग नाले को रसा बाँधते हैं +अहल-ए-तदबीर की वामांदगियाँ +आबलों पर भी हिना बाँधते हैं +सादा पुरकार हैं ख़ूबाँ 'ग़ालिब' +हम से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते हैं +पाँव में जब वो हिना बाँधते हैं +मेरे हाथों को जुदा बाँधते हैं +हुस्न-ए-अफ़्सुर्दा-दिल-हा-रंगीं +शौक़ को पा-ब-हिना बाँधते हैं +क़ैद में भी है असीरी आज़ाद +चश्म-ए-ज़ंजीर को वा बाँधते हैं +शैख़-जी का'बे का जाना मा'लूम +आप मस्जिद में गधा बाँधते हैं +किस का दिल ज़ुल्फ़ से भागा कि 'असद' +दस्त-ए-शाना ब-क़ज़ा बाँधते हैं +तेरे बीमार पे हैं फ़रियादी +वो जो काग़ज़ में दवा बाँधते हैं " +hai-sabza-zaar-har-dar-o-diivaar-e-gam-kada-mirza-ghalib-ghazals," +है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा +जिस की बहार ये हो फिर उस की ख़िज़ाँ न पूछ +नाचार बेकसी की भी हसरत उठाइए +दुश्वारी-ए-रह-ओ-सितम-ए-हम-रहाँ न पूछ +जुज़ दिल सुराग़-ए-दर्द ब-दिल-ख़ुफ़्तगाँ न पूछ +आईना अर्ज़ कर ख़त-ओ-ख़ाल-ए-बयाँ न पूछ +हिन्दोस्तान साया-ए-गुल पा-ए-तख़्त था +जाह-ओ-जलाल-ए-अहद-ए-विसाल-ए-बुताँ न पूछ +ग़फ़लत-मता-ए-कफ़्फ़ा-ए-मीज़ान-ए-अद्ल हूँ +या रब हिसाब-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ न पूछ +हर दाग़-ए-ताज़ा यक-दिल-ए-दाग़ इंतिज़ार है +अर्ज़-ए-फ़ज़ा-ए-सीना-ए-दर्द इम्तिहाँ न पूछ +कहता था कल वो महरम-ए-राज़ अपने से कि आह +दर्द-ए-जुदाइ-ए-'असद'-उल्लाह-ख़ाँ न पूछ +पर्वाज़-ए-यक-तप-ए-ग़म-ए-तसख़ीर-ए-नाला है +गरमी-ए-नब्ज़-ए-ख़ार-ओ-ख़स-ए-आशियाँ न पूछ +तू मश्क़-ए-बाज़ कर दिल-ए-परवाना है बहार +बेताबी-ए-तजल्ली-ए-आतिश-ब-जाँ न पूछ " +nahiin-ki-mujh-ko-qayaamat-kaa-e-tiqaad-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं +शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं +कोई कहे कि शब-ए-मह में क्या बुराई है +बला से आज अगर दिन को अब्र ओ बाद नहीं +जो आऊँ सामने उन के तो मर्हबा न कहें +जो जाऊँ वाँ से कहीं को तो ख़ैर-बाद नहीं +कभी जो याद भी आता हूँ मैं तो कहते हैं +कि आज बज़्म में कुछ फ़ित्ना-ओ-फ़साद नहीं +अलावा ईद के मिलती है और ���िन भी शराब +गदा-ए-कूच-ए-मय-ख़ाना ना-मुराद नहीं +जहाँ में हो ग़म-ए-शादी बहम हमें क्या काम +दिया है हम को ख़ुदा ने वो दिल की शाद नहीं +तुम उन के वा'दे का ज़िक्र उन से क्यूँ करो 'ग़ालिब' +ये क्या कि तुम कहो और वो कहें कि याद नहीं " +safaa-e-hairat-e-aaiina-hai-saamaan-e-zang-aakhir-mirza-ghalib-ghazals," +सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर +तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर +न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की +हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर +ख़त-ए-नौ-ख़ेज़ नील-ए-चश्म ज़ख़्म-ए-साफ़ी-ए-आरिज़ +लिया आईना ने हिर्ज़-ए-पर-ए-तूती ब-चंग आख़िर +हिलाल-आसा तही रह गर कुशादन-हा-ए-दिल चाहे +हुआ मह कसरत-ए-सरमाया-अंदाेज़ी से तंग आख़िर +तड़प कर मर गया वो सैद-ए-बाल-अफ़्शाँ कि मुज़्तर था +हुआ नासूर-ए-चश्म-ए-ताज़ियत चश्म-ए-ख़दंग आख़िर +लिखी यारों की बद-मस्ती ने मयख़ाने की पामाली +हुइ क़तरा-फ़िशानी-हा-ए-मय-बारान-ए-संग आख़िर +'असद' पर्दे में भी आहंग-ए-शौक़-ए-यार क़ाएम है +नहीं है नग़्मे से ख़ाली ख़मीदन-हा-ए-चंग आख़िर " +naved-e-amn-hai-bedaad-e-dost-jaan-ke-liye-mirza-ghalib-ghazals," +नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए +रही न तर्ज़-ए-सितम कोई आसमाँ के लिए +बला से गर मिज़ा-ए-यार तिश्ना-ए-ख़ूँ है +रखूँ कुछ अपनी भी मिज़्गान-ए-ख़ूँ फ़िशाँ के लिए +वो ज़िंदा हम हैं कि हैं रू-शनास-ए-ख़ल्क़ ऐ ख़िज़्र +न तुम कि चोर बने उम्र-ए-जावेदाँ के लिए +रहा बला में भी मैं मुब्तला-ए-आफ़त-ए-रश्क +बला-ए-जाँ है अदा तेरी इक जहाँ के लिए +फ़लक न दूर रख उस से मुझे कि मैं ही नहीं +दराज़-दस्ती-ए-क़ातिल के इम्तिहाँ के लिए +मिसाल ये मिरी कोशिश की है कि मुर्ग़-ए-असीर +करे क़फ़स में फ़राहम ख़स आशियाँ के लिए +गदा समझ के वो चुप था मिरी जो शामत आई +उठा और उठ के क़दम मैं ने पासबाँ के लिए +ब-क़द्र-ए-शौक़ नहीं ज़र्फ़-ए-तंगना-ए-ग़ज़ल +कुछ और चाहिए वुसअत मिरे बयाँ के लिए +दिया है ख़ल्क़ को भी ता उसे नज़र न लगे +बना है ऐश तजम्मुल हुसैन ख़ाँ के लिए +ज़बाँ पे बार-ए-ख़ुदाया ये किस का नाम आया +कि मेरे नुत्क़ ने बोसे मिरी ज़बाँ के लिए +नसीर-ए-दौलत-ओ-दीं और मुईन-ए-मिल्लत-ओ-मुल्क +बना है चर्ख़-ए-बरीं जिस के आस्ताँ के लिए +ज़माना अहद में उस के है महव-ए-आराइश +बनेंगे और सितारे अब आसमाँ के लिए +वरक़ तमाम हुआ और मद्ह बाक़ी है +सफ़ीना चाहिए इस बहर-ए-बेकराँ के लिए +अदा-ए-ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता-सरा +सला-ए-आम है यारान-ए-नुक्ता-��ाँ के लिए " +barshikaal-e-girya-e-aashiq-hai-dekhaa-chaahiye-mirza-ghalib-ghazals," +बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए +खिल गई मानिंद-ए-गुल सौ जा से दीवार-ए-चमन +उल्फ़त-ए-गुल से ग़लत है दावा-ए-वारस्तगी +सर्व है बा-वस्फ़-ए-आज़ादी गिरफ़्तार-ए-चमन +साफ़ है अज़ बस-कि अक्स-ए-गुल से गुलज़ार-ए-चमन +जानशीन-ए-जौहर-ए-आईना है ख़ार-ए-चमन +है नज़ाकत बस कि फ़स्ल-ए-गुल में मेमार-ए-चमन +क़ालिब-ए-गुल में ढली है ख़िश्त-ए-दीवार-ए-चमन +तेरी आराइश का इस्तिक़बाल करती है बहार +जौहर-ए-आईना है याँ नक़्श-ए-एहज़ार-ए-चमन +बस कि पाई यार की रंगीं-अदाई से शिकस्त +है कुलाह-ए-नाज़-ए-गुल बर ताक़-ए-दीवार-ए-चमन +वक़्त है गर बुलबुल-ए-मिस्कीं ज़ुलेख़ाई करे +यूसुफ़-ए-गुल जल्वा-फ़रमा है ब-बाज़ार-ए-चमन +वहशत-अफ़्ज़ा गिर्या-हा मौक़ूफ़-ए-फ़स्ल-ए-गुल 'असद' +चश्म-ए-दरिया-रेज़ है मीज़ाब-ए-सरकार-ए-चमन " +zulmat-kade-men-mere-shab-e-gam-kaa-josh-hai-mirza-ghalib-ghazals," +ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है +इक शम्अ है दलील-ए-सहर सो ख़मोश है +ने मुज़्दा-ए-विसाल न नज़्ज़ारा-ए-जमाल +मुद्दत हुई कि आश्ती-ए-चश्म-ओ-गोश है +मय ने किया है हुस्न-ए-ख़ुद-आरा को बे-हिजाब +ऐ शौक़! हाँ इजाज़त-ए-तस्लीम-ए-होश है +गौहर को अक़्द-ए-गर्दन-ए-ख़ूबाँ में देखना +क्या औज पर सितारा-ए-गौहर-फ़रोश है +दीदार बादा हौसला साक़ी निगाह मस्त +बज़्म-ए-ख़याल मय-कदा-ए-बे-ख़रोश है +ऐ ताज़ा वारदान-ए-बिसात-ए-हवा-ए-दिल +ज़िन्हार अगर तुम्हें हवस-ए-नाए-ओ-नोश है +देखो मुझे जो दीदा-ए-इबरत-निगाह हो +मेरी सुनो जो गोश-ए-नसीहत-नेओश है +साक़ी-ब-जल्वा दुश्मन-ए-ईमान-ओ-आगही +मुतरिब ब-नग़्मा रहज़न-ए-तम्कीन-ओ-होश है +या शब को देखते थे कि हर गोशा-ए-बिसात +दामान-ए-बाग़बान ओ कफ़-ए-गुल-फ़रोश है +लुफ़्त-ए-ख़िरम-ए-साक़ी ओ ज़ौक़-ए-सदा-ए-चंग +ये जन्नत-ए-निगाह वो फ़िरदौस-ए-गोश है +या सुब्ह-दम जो देखिए आ कर तो बज़्म में +ने वो सुरूर ओ सोज़ न जोश-ओ-ख़रोश है +दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई +इक शम्अ रह गई है सो वो भी ख़मोश है +आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में +'ग़ालिब' सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है " +husn-e-be-parvaa-khariidaar-e-mataa-e-jalva-hai-mirza-ghalib-ghazals," +हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है +आइना ज़ानू-ए-फ़िक्र-ए-इख़्तिरा-ए-जल्वा है +ता-कुजा ऐ आगही रंग-ए-तमाशा बाख़्तन +चश्म-ए-वा-गर्दीदा आग़ोश-ए-विदा-ए-जल्वा है " +kab-vo-suntaa-hai-kahaanii-merii-mirza-ghalib-ghazals," +कब वो सुनता है कहानी मेरी +और फिर वो भी ज़बानी मेरी +ख़लिश-ए-ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रे��़ न पूछ +देख ख़ूँनाबा-फ़िशानी मेरी +क्या बयाँ कर के मिरा रोएँगे यार +मगर आशुफ़्ता-बयानी मेरी +हूँ ज़-ख़ुद रफ़्ता-ए-बैदा-ए-ख़याल +भूल जाना है निशानी मेरी +मुतक़ाबिल है मुक़ाबिल मेरा +रुक गया देख रवानी मेरी +क़द्र-ए-संग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ +सख़्त अर्ज़ां है गिरानी मेरी +गर्द-बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ +सरसर-ए-शौक़ है बानी मेरी +दहन उस का जो न मालूम हुआ +खुल गई हेच मदानी मेरी +कर दिया ज़ोफ़ ने आजिज़ 'ग़ालिब' +नंग-ए-पीरी है जवानी मेरी " +na-huii-gar-mire-marne-se-tasallii-na-sahii-mirza-ghalib-ghazals," +न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही +इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही +ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है +शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही +मय-परस्ताँ ख़ुम-ए-मय मुँह से लगाए ही बने +एक दिन गर न हुआ बज़्म में साक़ी न सही +नफ़स-ए-क़ैस कि है चश्म-ओ-चराग़-ए-सहरा +गर नहीं शम-ए-सियह-ख़ाना-ए-लैली न सही +एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़ +नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही +न सताइश की तमन्ना न सिले की पर्वा +गर नहीं हैं मिरे अशआ'र में मा'नी न सही +इशरत-ए-सोहबत-ए-ख़ूबाँ ही ग़नीमत समझो +न हुई 'ग़ालिब' अगर उम्र-ए-तबीई न सही " +yak-zarra-e-zamiin-nahiin-be-kaar-baag-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का +याँ जादा भी फ़तीला है लाले के दाग़ का +बे-मय किसे है ताक़त-ए-आशोब-ए-आगही +खींचा है इज्ज़-ए-हौसला ने ख़त अयाग़ का +बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल +कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का +ताज़ा नहीं है नश्शा-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न मुझे +तिर्याकी-ए-क़दीम हूँ दूद-ए-चराग़ का +सौ बार बंद-ए-इश्क़ से आज़ाद हम हुए +पर क्या करें कि दिल ही अदू है फ़राग़ का +बे-ख़ून-ए-दिल है चश्म में मौज-ए-निगह ग़ुबार +ये मय-कदा ख़राब है मय के सुराग़ का +बाग़-ए-शगुफ़्ता तेरा बिसात-ए-नशात-ए-दिल +अब्र-ए-बहार ख़ुम-कद किस के दिमाग़ का? +जोश-ए-बहार-ए-कुल्फ़त-ए-नज़्ज़ारा है 'असद' +है अब्र पम्बा रौज़न-ए-दीवार-ए-बाग़ का " +mujh-ko-dayaar-e-gair-men-maaraa-vatan-se-duur-mirza-ghalib-ghazals," +मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर +रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म +वो हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा +रख लीजो मेरे दावा-ए-वारस्तगी की शर्म " +dil-se-tirii-nigaah-jigar-tak-utar-gaii-mirza-ghalib-ghazals," +दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई +दोनों को इक अदा में रज़ा-मंद कर गई +शक़ हो गया है सीना ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़ +तकलीफ़-ए-पर्दा-दारी-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर गई +वो बादा-ए-शबान�� की सरमस्तियाँ कहाँ +उठिए बस अब कि लज़्ज़त-ए-ख़्वाब-ए-सहर गई +उड़ती फिरे है ख़ाक मिरी कू-ए-यार में +बारे अब ऐ हवा हवस-ए-बाल-ओ-पर गई +देखो तो दिल-फ़रेबी-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा +मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई +हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की +अब आबरू-ए-शेवा-ए-अहल-ए-नज़र गई +नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का +मस्ती से हर निगह तिरे रुख़ पर बिखर गई +फ़र्दा ओ दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गया +कल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई +मारा ज़माने ने असदुल्लाह ख़ाँ तुम्हें +वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई " +huii-taakhiir-to-kuchh-baais-e-taakhiir-bhii-thaa-mirza-ghalib-ghazals," +हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था +आप आते थे मगर कोई इनाँ-गीर भी था +तुम से बेजा है मुझे अपनी तबाही का गिला +उस में कुछ शाइब-ए-ख़ूबी-ए-तक़दीर भी था +तू मुझे भूल गया हो तो पता बतला दूँ +कभी फ़ितराक में तेरे कोई नख़चीर भी था +क़ैद में है तिरे वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद +हाँ कुछ इक रंज-ए-गिराँ-बारी-ए-ज़ंजीर भी था +बिजली इक कौंद गई आँखों के आगे तो क्या +बात करते कि मैं लब-तिश्ना-ए-तक़रीर भी था +यूसुफ़ उस को कहूँ और कुछ न कहे ख़ैर हुई +गर बिगड़ बैठे तो मैं लाइक़-ए-ताज़ीर भी था +देख कर ग़ैर को हो क्यूँ न कलेजा ठंडा +नाला करता था वले तालिब-ए-तासीर भी था +पेशे में ऐब नहीं रखिए न फ़रहाद को नाम +हम ही आशुफ़्ता-सरों में वो जवाँ-मीर भी था +हम थे मरने को खड़े पास न आया न सही +आख़िर उस शोख़ के तरकश में कोई तीर भी था +पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़ +आदमी कोई हमारा दम-ए-तहरीर भी था +रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब' +कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था " +bahut-sahii-gam-e-giitii-sharaab-kam-kyaa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है +ग़ुलाम-ए-साक़ी-ए-कौसर हूँ मुझ को ग़म क्या है +तुम्हारी तर्ज़-ओ-रविश जानते हैं हम क्या है +रक़ीब पर है अगर लुत्फ़ तो सितम क्या है +सुख़न में ख़ामा-ए-ग़ालिब की आतिश-अफ़्शानी +यक़ीं है हम को भी लेकिन अब उस में दम क्या है +कटे तो शब कहें काटे तो साँप कहलावे +कोई बताओ कि वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म क्या है +लिखा करे कोई अहकाम-ए-ताला-ए-मौलूद +किसे ख़बर है कि वाँ जुम्बिश-ए-क़लम क्या है +न हश्र-ओ-नश्र का क़ाएल न केश ओ मिल्लत का +ख़ुदा के वास्ते ऐसे की फिर क़सम क्या है +वो दाद-ओ-दीद गराँ-माया शर्त है हमदम +वगर्ना मेहर-ए-सुलेमान-ओ-जाम-ए-जम क्या है " +hai-kis-qadar-halaak-e-fareb-e-vafaa-e-gul-mirza-ghalib-ghazals," +है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल +बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल +आज़ादी-ए-नसीम मुबारक कि हर तरफ़ +टूटे पड़े हैं हल्क़ा-ए-दाम-ए-हवा-ए-गुल +जो था सो मौज-ए-रंग के धोके में मर गया +ऐ वाए नाला-ए-लब-ए-ख़ूनीं-नवा-ए-गुल +ख़ुश-हाल उस हरीफ़-ए-सियह-मस्त का कि जो +रखता हो मिस्ल-ए-साया-ए-गुल सर-ब-पा-ए-गुल +ईजाद करती है उसे तेरे लिए बहार +मेरा रक़ीब है नफ़स-ए-इत्र-सा-ए-गुल +शर्मिंदा रखते हैं मुझे बाद-ए-बहार से +मीना-ए-बे-शराब ओ दिल-ए-बे-हवा-ए-गुल +सतवत से तेरे जल्वा-ए-हुस्न-ए-ग़ुयूर की +ख़ूँ है मिरी निगाह में रंग-ए-अदा-ए-गुल +तेरे ही जल्वे का है ये धोका कि आज तक +बे-इख़्तियार दौड़े है गुल दर-क़फ़ा-ए-गुल +'ग़ालिब' मुझे है उस से हम-आग़ोशी आरज़ू +जिस का ख़याल है गुल-ए-जेब-ए-क़बा-ए-गुल +दीवानगाँ का चारा फ़रोग़-ए-बहार है +है शाख़-ए-गुल में पंजा-ए-ख़ूबाँ बजाए गुल +मिज़्गाँ तलक रसाई-ए-लख़्त-ए-जिगर कहाँ +ऐ वाए गर निगाह न हो आश्ना-ए-गुल " +ishrat-e-qatra-hai-dariyaa-men-fanaa-ho-jaanaa-mirza-ghalib-ghazals," +इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना +दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना +तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद +था लिखा बात के बनते ही जुदा हो जाना +दिल हुआ कशमकश-ए-चारा-ए-ज़हमत में तमाम +मिट गया घिसने में इस उक़दे का वा हो जाना +अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह +इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना +ज़ोफ़ से गिर्या मुबद्दल ब-दम-ए-सर्द हुआ +बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना +दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल +हो गया गोश्त से नाख़ुन का जुदा हो जाना +है मुझे अब्र-ए-बहारी का बरस कर खुलना +रोते रोते ग़म-ए-फ़ुर्क़त में फ़ना हो जाना +गर नहीं निकहत-ए-गुल को तिरे कूचे की हवस +क्यूँ है गर्द-ए-रह-ए-जौलान-ए-सबा हो जाना +बख़्शे है जल्वा-ए-गुल ज़ौक़-ए-तमाशा 'ग़ालिब' +चश्म को चाहिए हर रंग में वा हो जाना +ता कि तुझ पर खुले एजाज़-ए-हवा-ए-सैक़ल +देख बरसात में सब्ज़ आइने का हो जाना " +tapish-se-merii-vaqf-e-kashmakash-har-taar-e-bistar-hai-mirza-ghalib-ghazals," +तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है +मिरा सर रंज-ए-बालीं है मिरा तन बार-ए-बिस्तर है +सरिश्क-ए-सर ब-सहरा दादा नूर-उल-ऐन-ए-दामन है +दिल-ए-बे-दस्त-ओ-पा उफ़्तादा बर-ख़ुरदार-ए-बिस्तर है +ख़ुशा इक़बाल-ए-रंजूरी अयादत को तुम आए हो +फ़रोग-ए-शम-ए-बालीं फ़रोग-ए-शाम-ए-बालीँ है +ब-तूफ़ाँ-गाह-ए-जोश-ए-इज़्तिराब-ए-शाम-ए-तन्हाई +शुआ-ए-आफ���्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर तार-ए-बिस्तर है +अभी आती है बू बालिश से उस की ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं की +हमारी दीद को ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा आर-ए-बिस्तर है +कहूँ क्या दिल की क्या हालत है हिज्र-ए-यार में ग़ालिब +कि बेताबी से हर-यक तार-ए-बिस्तर ख़ार-ए-बिस्तर है " +gam-e-duniyaa-se-gar-paaii-bhii-fursat-sar-uthaane-kii-mirza-ghalib-ghazals," +ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की +फ़लक का देखना तक़रीब तेरे याद आने की +खुलेगा किस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या-रब +क़सम खाई है उस काफ़िर ने काग़ज़ के जलाने की +लिपटना पर्नियाँ में शोला-ए-आतिश का पिन्हाँ है +वले मुश्किल है हिकमत दिल में सोज़-ए-ग़म छुपाने की +उन्हें मंज़ूर अपने ज़ख़्मियों का देख आना था +उठे थे सैर-ए-गुल को देखना शोख़ी बहाने की +हमारी सादगी थी इल्तिफ़ात-ए-नाज़ पर मरना +तिरा आना न था ज़ालिम मगर तम्हीद जाने की +लकद कूब-ए-हवादिस का तहम्मुल कर नहीं सकती +मिरी ताक़त कि ज़ामिन थी बुतों की नाज़ उठाने की +कहूँ क्या ख़ूबी-ए-औज़ा-ए-अब्ना-ए-ज़माँ 'ग़ालिब' +बदी की उस ने जिस से हम ने की थी बार-हा नेकी " +diyaa-hai-dil-agar-us-ko-bashar-hai-kyaa-kahiye-mirza-ghalib-ghazals," +दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए +हुआ रक़ीब तो हो नामा-बर है क्या कहिए +ये ज़िद कि आज न आवे और आए बिन न रहे +क़ज़ा से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिए +रहे है यूँ गह-ओ-बे-गह कि कू-ए-दोस्त को अब +अगर न कहिए कि दुश्मन का घर है क्या कहिए +ज़हे करिश्मा कि यूँ दे रक्खा है हम को फ़रेब +कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है क्या कहिए +समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल +कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है क्या कहिए +तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा का ख़याल +हमारे हाथ में कुछ है मगर है क्या कहिए +उन्हें सवाल पे ज़ोम-ए-जुनूँ है क्यूँ लड़िए +हमें जवाब से क़त-ए-नज़र है क्या कहिए +हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है क्या कीजिए +सितम बहा-ए-मता-ए-हुनर है क्या कहिए +कहा है किस ने कि 'ग़ालिब' बुरा नहीं लेकिन +सिवाए इस के कि आशुफ़्ता-सर है क्या कहिए " +aamad-e-sailaab-e-tuufaan-e-sadaa-e-aab-hai-mirza-ghalib-ghazals," +आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है +नक़्श-ए-पा जो कान में रखता है उँगली जादा से +बज़्म-ए-मय वहशत-कदा है किस की चश्म-ए-मस्त का +शीशे में नब्ज़-ए-परी पिन्हाँ है मौज-ए-बादा से +देखता हूँ वहशत-ए-शौक़-ए-ख़रोश-आमादा से +फ़ाल-ए-रुस्वाई सरिश्क-ए-सर-ब-सहरा-दादा से +दाम गर सब्ज़े में पिन्हाँ कीजिए ताऊस हो +जोश-ए-नैरंग-ए-बहार अर्ज़-ए-सहरा-दादा से +ख़ेमा-ए-लैला सियाह ओ ख़ाना-ए-मजनूँ ख़राब +जोश-ए-वीरानी है इश्क़-ए-दाग़-ए-बैरूं-दादा से +बज़्म-ए-हस्ती वो तमाशा है कि जिस को हम 'असद' +देखते हैं चश्म-ए-अज़-ख़्वाब-ए-अदम-नकुशादा से " +kahte-to-ho-tum-sab-ki-but-e-gaaliyaa-muu-aae-mirza-ghalib-ghazals," +कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए +यक मर्तबा घबरा के कहो कोई कि वो आए +हूँ कशमकश-ए-नज़अ' में हाँ जज़्ब-ए-मोहब्बत +कुछ कह न सकूँ पर वो मिरे पूछने को आए +है साइक़ा ओ शो'ला ओ सीमाब का आलम +आना ही समझ में मिरी आता नहीं गो आए +ज़ाहिर है कि घबरा के न भागेंगे नकीरैन +हाँ मुँह से मगर बादा-ए-दोशीना की बू आए +जल्लाद से डरते हैं न वाइ'ज़ से झगड़ते +हम समझे हुए हैं उसे जिस भेस में जो आए +हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त +देखा कि वो मिलता नहीं अपने ही को खो आए +अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें +उस दर पे नहीं बार तो का'बे ही को हो आए +की हम-नफ़सों ने असर-ए-गिर्या में तक़रीर +अच्छे रहे आप इस से मगर मुझ को डुबो आए +उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है 'ग़ालिब' +हम भी गए वाँ और तिरी तक़दीर को रो आए " +vo-firaaq-aur-vo-visaal-kahaan-mirza-ghalib-ghazals," +वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ +वो शब-ओ-रोज़ ओ माह-ओ-साल कहाँ +फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे +ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल कहाँ +दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा +शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल कहाँ +थी वो इक शख़्स के तसव्वुर से +अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ +ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना +दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ +हम से छूटा क़िमार-ख़ाना-ए-इश्क़ +वाँ जो जावें गिरह में माल कहाँ +फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ +मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ +मुज़्महिल हो गए क़वा ग़ालिब +वो अनासिर में ए'तिदाल कहाँ +बोसे में वो मुज़ाइक़ा न करे +पर मुझे ताक़त-ए-सवाल कहाँ +फ़लक-ए-सिफ़्ला बे-मुहाबा है +इस सितम-गर को इंफ़िआल कहाँ " +rukh-e-nigaar-se-hai-soz-e-jaavidaani-e-shama-mirza-ghalib-ghazals," +रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमअ' +हुई है आतिश-ए-गुल आब-ए-ज़ि़ंदगानी-ए-शमअ' +ज़बान-ए-अहल-ए-ज़बाँ में है मर्ग-ए-ख़ामोशी +ये बात बज़्म में रौशन हुई ज़बानी-ए-शमअ' +करे है सर्फ़ ब-ईमा-ए-शो'ला क़िस्सा तमाम +ब-तर्ज़-ए-अहल-ए-फ़ना है फ़साना-ख़्वानी-ए-शमअ' +ग़म उस को हसरत-ए-परवाना का है ऐ शो'ले +तिरे लरज़ने से ज़ाहिर है ना-तवानी-ए-शमअ' +तिरे ख़याल से रूह एहतिज़ाज़ करती है +ब-जल्वा-रेज़ी-ए-बाद-ओ-ब-पर-फ़िशानी-ए-शमअ' +नशात-ए-दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़ की बहार न पूछ +शगुफ़्तगी है शहीद-ए-गुल-ए-खिज़ानी-ए-शमअ' +जले है देख के बालीन-ए-यार पर मुझ को +न क्यूँ हो दिल पे मिरे दाग़-ए-बद-गुमानी-ए-शमअ' " +balaa-se-hain-jo-ye-pesh-e-nazar-dar-o-diivaar-mirza-ghalib-ghazals," +बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार +निगाह-ए-शौक़ को हैं बाल-ओ-पर दर-ओ-दीवार +वुफ़ूर-ए-अश्क ने काशाने का किया ये रंग +कि हो गए मिरे दीवार-ओ-दर दर-ओ-दीवार +नहीं है साया कि सुन कर नवेद-ए-मक़दम-ए-यार +गए हैं चंद क़दम पेश-तर दर-ओ-दीवार +हुई है किस क़दर अर्ज़ानी-ए-मय-ए-जल्वा +कि मस्त है तिरे कूचे में हर दर-ओ-दीवार +जो है तुझे सर-ए-सौदा-ए-इन्तिज़ार तो आ +कि हैं दुकान-ए-मता-ए-नज़र दर-ओ-दीवार +हुजूम-ए-गिर्या का सामान कब किया मैं ने +कि गिर पड़े न मिरे पाँव पर दर-ओ-दीवार +वो आ रहा मिरे हम-साए में तो साए से +हुए फ़िदा दर-ओ-दीवार पर दर-ओ-दीवार +नज़र में खटके है बिन तेरे घर की आबादी +हमेशा रोते हैं हम देख कर दर-ओ-दीवार +न पूछ बे-ख़ुदी-ए-ऐश-ए-मक़दम-ए-सैलाब +कि नाचते हैं पड़े सर-ब-सर दर-ओ-दीवार +न कह किसी से कि 'ग़ालिब' नहीं ज़माने में +हरीफ़-ए-राज़-ए-मोहब्बत मगर दर-ओ-दीवार " +hai-aarmiidagii-men-nikohish-bajaa-mujhe-mirza-ghalib-ghazals," +है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे +सुब्ह-ए-वतन है ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा मुझे +ढूँडे है उस मुग़ंन्नी-ए-आतिश-नफ़स को जी +जिस की सदा हो जल्वा-ए-बर्क़-ए-फ़ना मुझे +मस्ताना तय करूँ हूँ रह-ए-वादी-ए-ख़याल +ता बाज़-गश्त से न रहे मुद्दआ मुझे +करता है बस-कि बाग़ में तू बे-हिजाबियाँ +आने लगी है निकहत-ए-गुल से हया मुझे +खुलता किसी पे क्यूँ मिरे दिल का मोआ'मला +शे'रों के इंतिख़ाब ने रुस्वा किया मुझे +वाँ रंग-हा ब-पर्दा-ए-तदबीर हैं हुनूज़ +याँ शोला-ए-चराग़ है बर्ग-ए-हिना मुझे +परवाज़-हा नियाज़-ए-तमाशा-ए-हुस्न-ए-दोस्त +बाल-ए-कुशादा है निगह-ए-आशना मुझे +अज़-खुद-गुज़श्तगी में ख़मोशी पे हर्फ़ है +मौज-ए-ग़ुबार-ए-सुर्मा हुई है सदा मुझे +ता चंद पस्त फ़ितरती-ए-तब-ए-आरज़ू +या रब मिले बुलंदी-ए-दस्त-ए-दुआ मुझे +मैं ने जुनूँ से की जो 'असद' इल्तिमास-ए-रंग +ख़ून-ए-जिगर में एक ही ग़ोता दिया मुझे +है पेचताब रिश्ता-ए-शम-ए-सहर-गही +ख़जलत गुदाज़ी-ए-नफ़स-ए-ना-रसा मुझे +याँ आब-ओ-दाना मौसम-ए-गुल में हराम है +ज़ुन्नार-ए-वा-गुसिस्ता है मौज-ए-सबा मुझे +यकबार इम्तिहान-ए-हवस भी ज़रूर है +ऐ जोश-ए-इश्क़ बादा-ए-मर्द-आज़मा मुझे " +husn-gamze-kii-kashaakash-se-chhutaa-mere-baad-mirza-ghalib-ghazals," +हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द +बारे आराम से हैं अहल-ए-जफ़ा मेरे बा'द +मंसब-ए-शेफ़्तगी के कोई क़ाबिल न रहा +हुई माज़ूली-ए-अंदाज़-ओ-अदा मेरे बा'द +शम्अ' बुझती है तो उस में से धुआँ उठता है +शो'ला-ए-इश्क़ सियह-पोश हुआ मेरे बा'द +ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल-ए-बुताँ पर या'नी +उन के नाख़ुन हुए मुहताज-ए-हिना मेरे बा'द +दर-ख़ुर-ए-अर्ज़ नहीं जौहर-ए-बेदाद को जा +निगह-ए-नाज़ है सुरमे से ख़फ़ा मेरे बा'द +है जुनूँ अहल-ए-जुनूँ के लिए आग़ोश-ए-विदा'अ +चाक होता है गरेबाँ से जुदा मेरे बा'द +कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़ +है मुकर्रर लब-ए-साक़ी पे सला मेरे बा'द +ग़म से मरता हूँ कि इतना नहीं दुनिया में कोई +कि करे ताज़ियत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा मेरे बा'द +आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब' +किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बा'द +थी निगह मेरी निहाँ-ख़ाना-ए-दिल की नक़्क़ाब +बे-ख़तर जीते हैं अरबाब-ए-रिया मेरे बा'द +था मैं गुलदस्ता-ए-अहबाब की बंदिश की गियाह +मुतफ़र्रिक़ हुए मेरे रुफ़क़ा मेरे बा'द " +dekhnaa-qismat-ki-aap-apne-pe-rashk-aa-jaae-hai-mirza-ghalib-ghazals," +देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है +मैं उसे देखूँ भला कब मुझ से देखा जाए है +हाथ धो दिल से यही गर्मी गर अंदेशे में है +आबगीना तुन्दि-ए-सहबा से पिघला जाए है +ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे +गर हया भी उस को आती है तो शरमा जाए है +शौक़ को ये लत कि हर दम नाला खींचे जाइए +दिल की वो हालत कि दम लेने से घबरा जाए है +दूर चश्म-ए-बद तिरी बज़्म-ए-तरब से वाह वाह +नग़्मा हो जाता है वाँ गर नाला मेरा जाए है +गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़ +पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है +उस की बज़्म-आराइयाँ सुन कर दिल-ए-रंजूर याँ +मिस्ल-ए-नक़्श-ए-मुद्दआ-ए-ग़ैर बैठा जाए है +हो के आशिक़ वो परी-रुख़ और नाज़ुक बन गया +रंग खुलता जाए है जितना कि उड़ता जाए है +नक़्श को उस के मुसव्विर पर भी क्या क्या नाज़ हैं +खींचता है जिस क़दर उतना ही खिंचता जाए है +साया मेरा मुझ से मिस्ल-ए-दूद भागे है 'असद' +पास मुझ आतिश-ब-जाँ के किस से ठहरा जाए है " +guncha-e-naa-shagufta-ko-duur-se-mat-dikhaa-ki-yuun-mirza-ghalib-ghazals," +ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ +बोसे को पूछता हूँ मैं मुँह से मुझे बता कि यूँ +पुर्सिश-ए-तर्ज़-ए-दिलबरी कीजिए क्या कि बिन कहे +उस के हर एक इशारे से निकले है ये अदा कि यूँ +रात के वक़्त मय पिए साथ रक़ीब को लिए +आए वो याँ ख़ुदा करे पर न करे ख़ुदा कि यूँ +ग़ैर से रात क्या बनी ये जो कहा तो देखिए +सामने आन बैठना और ये देखना कि यूँ +बज़���म में उस के रू-ब-रू क्यूँ न ख़मोश बैठिए +उस की तो ख़ामुशी में भी है यही मुद्दआ कि यूँ +मैं ने कहा कि बज़्म-ए-नाज़ चाहिए ग़ैर से तही +सुन के सितम-ज़रीफ़ ने मुझ को उठा दिया कि यूँ +मुझ से कहा जो यार ने जाते हैं होश किस तरह +देख के मेरी बे-ख़ुदी चलने लगी हवा कि यूँ +कब मुझे कू-ए-यार में रहने की वज़्अ याद थी +आइना-दार बन गई हैरत-ए-नक़्श-ए-पा कि यूँ +गर तिरे दिल में हो ख़याल वस्ल में शौक़ का ज़वाल +मौज मुहीत-ए-आब में मारे है दस्त-ओ-पा कि यूँ +जो ये कहे कि रेख़्ता क्यूँके हो रश्क-ए-फ़ारसी +गुफ़्ता-ए-'ग़ालिब' एक बार पढ़ के उसे सुना कि यूँ " +z-bas-ki-mashq-e-tamaashaa-junuun-alaamat-hai-mirza-ghalib-ghazals," +ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है +कुशाद-ओ-बस्त-ए-मिज़्हा सीली-ए-नदामत है +न जानूँ क्यूँकि मिटे दाग़-ए-तान-ए-बद-अहदी +तुझे कि आइना भी वार्ता-ए-मलामत है +ब-पेच-ओ-ताब-ए-हवस सिल्क-ए-आफ़ियत मत तोड़ +निगाह-ए-अज्ज़ सर-ए-रिश्ता-ए-सलामत है +वफ़ा मुक़ाबिल-ओ-दावा-ए-इश्क़ बे-बुनियाद +जुनूँ-ए-साख़्ता ओ फ़स्ल-ए-गुल क़यामत है " +ajab-nashaat-se-jallaad-ke-chale-hain-ham-aage-mirza-ghalib-ghazals," +अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे +कि अपने साए से सर पाँव से है दो क़दम आगे +क़ज़ा ने था मुझे चाहा ख़राब-ए-बादा-ए-उल्फ़त +फ़क़त ख़राब लिखा बस न चल सका क़लम आगे +ग़म-ए-ज़माना ने झाड़ी नशात-ए-इश्क़ की मस्ती +वगरना हम भी उठाते थे अज़्ज़त-ए-अलम आगे +ख़ुदा के वास्ते दाद उस जुनून-ए-शौक़ की देना +कि उस के दर पे पहुँचते हैं नामा-बर से हम आगे +ये उम्र भर जो परेशानियाँ उठाई हैं हम ने +तुम्हारे अइयो ऐ तुर्रह-हा-ए-ख़म-ब-ख़म आगे +दिल ओ जिगर में पुर-अफ़्शा जो एक मौजा-ए-ख़ूँ है +हम अपने ज़ोम में समझे हुए थे उस को दम आगे +क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं 'ग़ालिब' +हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे " +mat-mardumak-e-diida-men-samjho-ye-nigaahen-mirza-ghalib-ghazals," +मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें +हैं जम्अ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म में आहें +किस दिल पे है अज़्म-ए-सफ़-ए-मिज़्गान-ए-ख़ुद-आरा +आईने के पायाब से उतरी हैं सिपाहें +दैर-ओ-हरम आईना-ए-तकरार-ए-तमन्ना +वामांदगी-ए-शौक़ तराशे है पनाहें +जूँ मर्दुमक-ए-चश्म से हों जम्अ' निगाहें +ख़्वाबीदा ब-हैरत-कदा-ए-दाग़ हैं आहें +फिर हल्क़ा-ए-काकुल में पड़ीं दीद की राहें +जूँ दूद फ़राहम हुईं रौज़न में निगाहें +पाया सर-ए-हर-ज़र्रा जिगर-गोशा-ए-वहशत +हैं दाग़ से मामूर शक़ाइक़ की कुलाहें +ये मतला 'असद' जौहर-ए-अफ़्सून-ए-��ुख़न हो +गर अर्ज़-ए-तपाक-ए-जिगर-ए-सोख़्ता चाहें +हैरत-कश-ए-यक-जल्वा-ए-मअनी हैं निगाहें +खींचूँ हूँ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म से आहें " +hasad-se-dil-agar-afsurda-hai-garm-e-tamaashaa-ho-mirza-ghalib-ghazals," +हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो +कि चश्म-ए-तंग शायद कसरत-ए-नज़्ज़ारा से वा हो +ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल चाहिए ज़ौक़-ए-मआसी भी +भरूँ यक-गोशा-ए-दामन गर आब-ए-हफ़्त-दरिया हो +अगर वो सर्व-क़द गर्म-ए-ख़िराम-ए-नाज़ आ जावे +कफ़-ए-हर-ख़ाक-ए-गुलशन शक्ल-ए-क़ुमरी नाला-फ़र्सा हो +बहम बालीदन-ए-संग-ओ-गुल-ए-सहरा ये चाहे है +कि तार-ए-जादा भी कोहसार को ज़ुन्नार-ए-मीना हो +हरीफ़-ए-वहशत-ए-नाज़-ए-नसीम-ए-इश्क़ जब आऊँ +कि मिस्ल-ए-ग़ुंचा साज़-ए-यक-गुलिस्ताँ दिल मुहय्या हो +बजाए दाना ख़िर्मन यक-बयाबाँ बैज़ा-ए-कुमरी +मिरा हासिल वो नुस्ख़ा है कि जिस से ख़ाक पैदा हो +करे क्या साज़-ए-बीनिश वो शहीद-ए-दर्द-आगाही +जिसे मू-ए-दिमाग़-ए-बे-ख़ुदी ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा हो +दिल-ए-जूँ-शम्अ' बहर-ए-दावत-ए-नज़्ज़ारा लायानी +निगह लबरेज़-ए-अश्क ओ सीना मामूर-ए-तमन्ना हो +न देखें रू-ए-यक-दिल सर्द ग़ैर-अज़ शम-ए-काफ़ूरी +ख़ुदाया इस क़दर बज़्म-ए-'असद' गर्म-ए-तमाशा हो " +nukta-chiin-hai-gam-e-dil-us-ko-sunaae-na-bane-mirza-ghalib-ghazals," +नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने +क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने +मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल +उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने +खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए +काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने +ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगर +कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाए न बने +इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या +हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने +कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है +पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने +मौत की राह न देखूँ कि बिन आए न रहे +तुम को चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने +बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे +काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने +इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' +कि लगाए न लगे और बुझाए न बने " +ho-gaii-hai-gair-kii-shiiriin-bayaanii-kaargar-mirza-ghalib-ghazals," +हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर +इश्क़ का उस को गुमाँ हम बे-ज़बानों पर नहीं +ज़ब्त से मतलब ब-जुज़ वारस्तगी दीगर नहीं +दामन-ए-तिमसाल आब-ए-आइना से तर नहीं +बाइस-ए-ईज़ा है बरहम-ख़ुर्दन-ए-बज़्म-ए-सुरूर +लख़्त लख़्त-ए-शीशा-ए-ब-शिकास्ता जुज़ निश्तर नहीं +दिल को इज़्हार-ए-सुख़न अंदाज़-ए-फ़तह-उल-बाब है +याँ सरीर-ए-ख़ा��ा ग़ैर-अज़-इस्तिकाक-ए-दर नहीं " +gila-hai-shauq-ko-dil-men-bhii-tangi-e-jaa-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का +गुहर में महव हुआ इज़्तिराब दरिया का +ये जानता हूँ कि तू और पासुख़-ए-मकतूब +मगर सितम-ज़दा हूँ ज़ौक़-ए-ख़ामा-फ़रसा का +हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ाँ है बहार अगर है यही +दवाम-ए-कुल्फ़त-ए-ख़ातिर है ऐश दुनिया का +ग़म-ए-फ़िराक़ में तकलीफ़-ए-सैर-ए-बाग़ न दो +मुझे दिमाग़ नहीं ख़ंदा-हा-ए-बेजा का +हनूज़ महरमी-ए-हुस्न को तरसता हूँ +करे है हर-बुन-ए-मू काम चश्म-ए-बीना का +दिल उस को पहले ही नाज़-ओ-अदा से दे बैठे +हमें दिमाग़ कहाँ हुस्न के तक़ाज़ा का +न कह कि गिर्या ब-मिक़दार-ए-हसरत-ए-दिल है +मिरी निगाह में है जम-ओ-ख़र्च दरिया का +फ़लक को देख के करता हूँ उस को याद 'असद' +जफ़ा में उस की है अंदाज़ कार-फ़रमा का +मिरा शुमूल हर इक दिल के पेच-ओ-ताब में है +मैं मुद्दआ हूँ तपिश-नामा-ए-तमन्ना का +मिली न वुसअ'त-ए-जौलान यक जुनूँ हम को +अदम को ले गए दिल में ग़ुबार सहरा का " +ghar-jab-banaa-liyaa-tire-dar-par-kahe-bagair-mirza-ghalib-ghazals," +घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर +जानेगा अब भी तू न मिरा घर कहे बग़ैर +कहते हैं जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न +जानूँ किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बग़ैर +काम उस से आ पड़ा है कि जिस का जहान में +लेवे न कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर +जी में ही कुछ नहीं है हमारे वगरना हम +सर जाए या रहे न रहें पर कहे बग़ैर +छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना +छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर +मक़्सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तुगू में काम +चलता नहीं है दशना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर +हर चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू +बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर +बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात +सुनता नहीं हूँ बात मुकर्रर कहे बग़ैर +'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़ +ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर " +kabhii-nekii-bhii-us-ke-jii-men-gar-aa-jaae-hai-mujh-se-mirza-ghalib-ghazals," +कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से +जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से +ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है +कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझ से +वो बद-ख़ू और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी +इबारत मुख़्तसर क़ासिद भी घबरा जाए है मुझ से +उधर वो बद-गुमानी है इधर ये ना-तवानी है +न पूछा जाए है उस से न बोला जाए है मुझ से +सँभलने दे मुझे ऐ ना-उम्मीदी क्या क़यामत है +कि दामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाए है म��झ से +तकल्लुफ़ बरतरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही लेकिन +वो देखा जाए कब ये ज़ुल्म देखा जाए है मुझ से +हुए हैं पाँव ही पहले नबर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी +न भागा जाए है मुझ से न ठहरा जाए है मुझ से +क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र 'ग़ालिब' +वो काफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाए है मुझ से " +sitam-kash-maslahat-se-huun-ki-khuubaan-tujh-pe-aashiq-hain-mirza-ghalib-ghazals," +सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं +तकल्लुफ़ बरतरफ़ मिल जाएगा तुझ सा रक़ीब आख़िर " +nashsha-haa-shaadaab-e-rang-o-saaz-haa-mast-e-tarab-mirza-ghalib-ghazals," +नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब +शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है +हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त +वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नग़्मा है " +kahuun-jo-haal-to-kahte-ho-muddaaa-kahiye-mirza-ghalib-ghazals," +कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए +तुम्हीं कहो कि जो तुम यूँ कहो तो क्या कहिए +न कहियो ता'न से फिर तुम कि हम सितमगर हैं +मुझे तो ख़ू है कि जो कुछ कहो बजा कहिए +वो नेश्तर सही पर दिल में जब उतर जावे +निगाह-ए-नाज़ को फिर क्यूँ न आश्ना कहिए +नहीं ज़रीया-ए-राहत जराहत-ए-पैकाँ +वो ज़ख़्म-ए-तेग़ है जिस को कि दिल-कुशा कहिए +जो मुद्दई' बने उस के न मुद्दई' बनिए +जो ना-सज़ा कहे उस को न ना-सज़ा कहिए +कहीं हक़ीक़त-ए-जाँ-काही-ए-मरज़ लिखिए +कहीं मुसीबत-ए-ना-साज़ी-ए-दवा कहिए +कभी शिकायत-ए-रंज-ए-गिराँ-नशीं कीजे +कभी हिकायत-ए-सब्र-ए-गुरेज़-पा कहिए +रहे न जान तो क़ातिल को ख़ूँ-बहा दीजे +कटे ज़बान तो ख़ंजर को मर्हबा कहिए +नहीं निगार को उल्फ़त न हो निगार तो है +रवानी-ए-रविश ओ मस्ती-ए-अदा कहिए +नहीं बहार को फ़ुर्सत न हो बहार तो है +तरावत-ए-चमन ओ ख़ूबी-ए-हवा कहिए +सफ़ीना जब कि किनारे पे आ लगा 'ग़ालिब' +ख़ुदा से क्या सितम-ओ-जौर-ए-ना-ख़ुदा कहिए " +hazaaron-khvaahishen-aisii-ki-har-khvaahish-pe-dam-nikle-mirza-ghalib-ghazals," +हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले +बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले +डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर +वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले +निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन +बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले +भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का +अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले +मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए +हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले +हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी +फिर आया वो ज़माना जो ज��ाँ में जाम-ए-जम निकले +हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की +वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले +मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का +उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले +कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़ +पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले " +lab-e-iisaa-kii-jumbish-kartii-hai-gahvaara-jambaanii-mirza-ghalib-ghazals," +लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जुम्बानी +क़यामत कुश्त-ए-लाल-ए-बुताँ का ख़्वाब-ए-संगीं है +बयाबान-ए-फ़ना है बाद-ए-सहरा-ए-तलब 'ग़ालिब' +पसीना तौसन-ए-हिम्मत तो सैल-ए-ख़ाना-ए-जीं है " +koh-ke-hon-baar-e-khaatir-gar-sadaa-ho-jaaiye-mirza-ghalib-ghazals," +कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए +बे-तकल्लुफ़ ऐ शरार-ए-जस्ता क्या हो जाइए +बैज़ा-आसा नंग-ए-बाल-ओ-पर है ये कुंज-ए-क़फ़स +अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी हो गर रिहा हो जाइए +वुसअत-ए-मशरब नियाज़-ए-कुल्फ़त-ए-वहशत 'असद' +यक-बयाबाँ साया-ए-बाल-ए-हुमा हो जाइए " +dhotaa-huun-jab-main-piine-ko-us-siim-tan-ke-paanv-mirza-ghalib-ghazals," +धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव +रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव +दी सादगी से जान पड़ूँ कोहकन के पाँव +हैहात क्यूँ न टूट गए पीर-ज़न के पाँव +भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये +हो कर असीर दाबते हैं राहज़न के पाँव +मरहम की जुस्तुजू में फिरा हूँ जो दूर दूर +तन से सिवा फ़िगार हैं इस ख़स्ता-तन के पाँव +अल्लाह-रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बा'द-ए-मर्ग +हिलते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद मिरे अंदर कफ़न के पाँव +है जोश-ए-गुल बहार में याँ तक कि हर तरफ़ +उड़ते हुए उलझते हैं मुर्ग़-ए-चमन के पाँव +शब को किसी के ख़्वाब में आया न हो कहीं +दुखते हैं आज उस बुत-ए-नाज़ुक-बदन के पाँव +'ग़ालिब' मिरे कलाम में क्यूँकर मज़ा न हो +पीता हूँ धोके ख़ुसरव-ए-शीरीं-सुख़न के पाँव " +chashm-e-khuubaan-khaamushii-men-bhii-navaa-pardaaz-hai-mirza-ghalib-ghazals," +चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है +सुर्मा तो कहवे कि दूद-ए-शो'ला-ए-आवाज़ है +पैकर-ए-उश्शाक़ साज़-ए-ताला-ए-ना-साज़ है +नाला गोया गर्दिश-ए-सैय्यारा की आवाज़ है +दस्त-गाह-ए-दीदा-ए-खूँ-बार-ए-मजनूँ देखना +यक-बयाबाँ जल्वा-ए-गुल फ़र्श-ए-पा-अंदाज़ है +चश्म-ए-ख़ूबाँ मै-फ़रोश-ए-नश्शा-ज़ार-ए-नाज़ है +सुर्मा गोया मौज-ए-दूद-ए-शोला-ए-आवाज़ है +है सरीर-ए-ख़ामा रेज़िश-हा-ए-इस्तिक़्बाल-ए-नाज़ +नामा ख़ुद पैग़ाम को बाल-ओ-पर-ए-परवाज़ है +सर-नाविश्त-ए-इज़्तिराब-अंजामी-ए-उल्फ़त न पूछ +नाल-ए-ख़ामा ख़ार-ख़ार-ए-ख़ातिर-ए-आगाज़ है +शोख़ी-ए-इज़्हार ग़ैर-अज़-वहशत-ए-मजनूँ नहीं +लैला-ए-मानी 'असद' महमिल-नशीन-ए-राज़ है +नग़्मा है कानों में उस के नाला-ए-मुर्ग़-ए-असीर +रिश्ता-ए-पा याँ नवा-सामान-ए-बंद-ए-साज़ है +शर्म है तर्ज़-ए-तलाश-ए-इंतिख़ाब-ए-यक-निगाह +इज़्तिराब-ए-चश्म बरपा दोख़्ता-ग़म्माज़ है " +qafas-men-huun-gar-achchhaa-bhii-na-jaanen-mere-shevan-ko-mirza-ghalib-ghazals," +क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को +मिरा होना बुरा क्या है नवा-संजान-ए-गुलशन को +नहीं गर हमदमी आसाँ न हो ये रश्क क्या कम है +न दी होती ख़ुदाया आरज़ू-ए-दोस्त दुश्मन को +न निकला आँख से तेरी इक आँसू उस जराहत पर +किया सीने में जिस ने ख़ूँ-चकाँ मिज़्गान-ए-सोज़न को +ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में +कभी मेरे गरेबाँ को कभी जानाँ के दामन को +अभी हम क़त्ल-गह का देखना आसाँ समझते हैं +नहीं देखा शनावर जू-ए-ख़ूँ में तेरे तौसन को +हुआ चर्चा जो मेरे पाँव की ज़ंजीर बनने का +किया बेताब काँ में जुम्बिश-ए-जौहर ने आहन को +ख़ुशी क्या खेत पर मेरे अगर सौ बार अब्र आवे +समझता हूँ कि ढूँडे है अभी से बर्क़ ख़िर्मन को +वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है +मरे बुत-ख़ाने में तो का'बे में गाड़ो बरहमन को +शहादत थी मिरी क़िस्मत में जो दी थी ये ख़ू मुझ को +जहाँ तलवार को देखा झुका देता था गर्दन को +न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता! +रहा खटका न चोरी का दुआ देता हूँ रहज़न को +सुख़न क्या कह नहीं सकते कि जूया हूँ जवाहिर के +जिगर क्या हम नहीं रखते कि खोदें जा के मादन को +मिरे शाह-ए-सुलैमाँ-जाह से निस्बत नहीं 'ग़ालिब' +फ़रीदून ओ जम ओ के ख़ुसरव ओ दाराब ओ बहमन को " +huun-main-bhii-tamaashaai-e-nairang-e-tamannaa-mirza-ghalib-ghazals," +हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना +मतलब नहीं कुछ इस से कि मतलब ही बर आवे " +qayaamat-hai-ki-sun-lailaa-kaa-dasht-e-qais-men-aanaa-mirza-ghalib-ghazals," +क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना +तअ'ज्जुब से वो बोला यूँ भी होता है ज़माने में +दिल-ए-नाज़ुक पे उस के रहम आता है मुझे 'ग़ालिब' +न कर सरगर्म उस काफ़िर को उल्फ़त आज़माने में " +mehrbaan-ho-ke-bulaa-lo-mujhe-chaaho-jis-vaqt-mirza-ghalib-ghazals," +मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त +मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ +ज़ोफ़ में ताना-ए-अग़्यार का शिकवा क्या है +बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ +ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना +क्या क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूँ +इस क़दर ज़ब्त कहाँ है कभी आ भी न सकूँ +सितम इतना तो न कीजे ��ि उठा भी न सकूँ +लग गई आग अगर घर को तो अंदेशा क्या +शो'ला-ए-दिल तो नहीं है कि बुझा भी न सकूँ +तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें +मौत कुछ तुम तो नहीं हो कि बुला भी न सकूँ +हँस के बुलवाइए मिट जाएगा सब दिल का गिला +क्या तसव्वुर है तुम्हारा कि मिटा भी न सकूँ " +zindagii-apnii-jab-is-shakl-se-guzrii-gaalib-mirza-ghalib-ghazals," +ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब' +हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे " +phir-kuchh-ik-dil-ko-be-qaraarii-hai-mirza-ghalib-ghazals," +फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है +सीना जुया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है +फिर जिगर खोदने लगा नाख़ुन +आमद-ए-फ़स्ल-ए-लाला-कारी है +क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़ +फिर वही पर्दा-ए-अमारी है +चश्म दल्लाल-ए-जिंस-ए-रुस्वाई +दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्वारी है +वही सद-रंग नाला-फ़रसाई +वही सद-गोना अश्क-बारी है +दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर +महशरिस्तान-ए-सितान-ए-बेक़रारी है +जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है +रोज़ बाज़ार-ए-जाँ-सिपारी है +फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं +फिर वही ज़िंदगी हमारी है +फिर खुला है दर-ए-अदालत-ए-नाज़ +गर्म-बाज़ार-ए-फ़ौजदारी है +हो रहा है जहान में अंधेर +ज़ुल्फ़ की फिर सिरिश्ता-दारी है +फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवाल +एक फ़रियाद ओ आह-ओ-ज़ारी है +फिर हुए हैं गवाह-ए-इश्क़ तलब +अश्क-बारी का हुक्म-जारी है +दिल ओ मिज़्गाँ का जो मुक़द्दमा था +आज फिर उस की रू-बकारी है +बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब' +कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है " +mastii-ba-zauq-e-gaflat-e-saaqii-halaak-hai-mirza-ghalib-ghazals," +मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है +मौज-ए-शराब यक-मिज़ा-ए-ख़्वाब-नाक है +जुज़ ज़ख्म-ए-तेग़-ए-नाज़ नहीं दिल में आरज़ू +जेब-ए-ख़याल भी तिरे हाथों से चाक है +जोश-ए-जुनूँ से कुछ नज़र आता नहीं 'असद' +सहरा हमारी आँख में यक-मुश्त-ए-ख़ाक है " +na-thaa-kuchh-to-khudaa-thaa-kuchh-na-hotaa-to-khudaa-hotaa-mirza-ghalib-ghazals," +न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता +डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता +हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का +न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता +हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है +वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता " +dil-hii-to-hai-na-sang-o-khisht-dard-se-bhar-na-aae-kyuun-mirza-ghalib-ghazals," +दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ +रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ +दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं +बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ +जब वो जमाल-ए-दिल-फ़रोज़ सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़ +आप ही हो नज़्ज़ारा-सोज़ पर्दे में मुँह छुपाए क्यूँ +दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह +तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ +क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं +मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ +हुस्न और उस पे हुस्न-ए-ज़न रह गई बुल-हवस की शर्म +अपने पे ए'तिमाद है ग़ैर को आज़माए क्यूँ +वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ +राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ +हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही +जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँ +'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं +रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ " +mirii-hastii-fazaa-e-hairat-aabaad-e-tamannaa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है +जिसे कहते हैं नाला वो उसी आलम का अन्क़ा है +ख़िज़ाँ क्या फ़स्ल-ए-गुल कहते हैं किस को कोई मौसम हो +वही हम हैं क़फ़स है और मातम बाल-ओ-पर का है +वफ़ा-ए-दिलबराँ है इत्तिफ़ाक़ी वर्ना ऐ हमदम +असर फ़रियाद-ए-दिल-हा-ए-हज़ीं का किस ने देखा है +न लाई शोख़ी-ए-अंदेशा ताब-ए-रंज-ए-नौमीदी +कफ़-ए-अफ़्सोस मिलना अहद-ए-तज्दीद-ए-तमन्ना है +न सोवे आबलों में गर सरिश्क-ए-दीदा-ए-नाम से +ब-जौलाँ-गाह-ए-नौमीदी निगाह-ए-आजिज़ाँ पा है +ब-सख़्ती-हा-ए-क़ैद-ए-ज़िंदगी मालूम आज़ादी +शरर भी सैद-ए-दाम-ए-रिश्ता-ए-रग-हा-ए-ख़ारा है +तग़फ़ुल-मशरबी से ना-तमामी बस-कि पैदा है +निगाह-ए-नाज़ चश्म-ए-यार में ज़ुन्नार-ए-मीना है +तसर्रुफ़ वहशियों में है तसव्वुर-हा-ए-मजनूँ का +सवाद-ए-चश्म-ए-आहू अक्स-ए-ख़ाल-ए-रू-ए-लैला है +मोहब्बत तर्ज़-ए-पैवंद-ए-निहाल-ए-दोस्ती जाने +दवीदन रेशा साँ मुफ़्त-ए-रग-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा है +किया यक-सर गुदाज़-ए-दिल नियाज़-ए-जोशिश-ए-हसरत +सुवैदा नुस्ख़ा-ए-तह-बंदी-ए-दाग़-ए-तमन्ना है +हुजूम-ए-रेज़िश-ए-ख़ूँ के सबब रंग उड़ नहीं सकता +हिना-ए-पंजा-ए-सैय्याद मुर्ग़-ए-रिश्ता बर-पा है +असर सोज़-ए-मोहब्बत का क़यामत बे-मुहाबा है +कि रग से संग में तुख़्म-ए-शरर का रेशा पैदा है +निहाँ है गौहर-ए-मक़्सूद जेब-ए-ख़ुद-शनासी में +कि याँ ग़व्वास है तिमसाल और आईना दरिया है +अज़ीज़ो ज़िक्र-ए-वस्ल-ए-ग़ैर से मुझ को न बहलाओ +कि याँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब अफ़्साना-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा है +तसव्वुर बहर-ए-तस्कीन-ए-तपीदन-हा-ए-तिफ़्ल-ए-दिल +ब-बाग़-ए-रंग-हा-ए-रफ़्ता गुल-चीन-��-तमाशा है +ब-सइ-ए-ग़ैर है क़त-ए-लिबास-ए-ख़ाना-वीरानी +कि नाज़-ए-जादा-ए-रह रिश्ता-ए-दामान-ए-सहरा है " +lo-ham-mariiz-e-ishq-ke-biimaar-daar-hain-mirza-ghalib-ghazals," +लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं +अच्छा अगर न हो तो मसीहा का क्या इलाज " +ishq-mujh-ko-nahiin-vahshat-hii-sahii-mirza-ghalib-ghazals," +इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही +मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही +क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हम से +कुछ नहीं है तो अदावत ही सही +मेरे होने में है क्या रुस्वाई +ऐ वो मज्लिस नहीं ख़ल्वत ही सही +हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने +ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही +अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो +आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही +उम्र हर-चंद कि है बर्क़-ए-ख़िराम +दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही +हम कोई तर्क-ए-वफ़ा करते हैं +न सही इश्क़ मुसीबत ही सही +कुछ तो दे ऐ फ़लक-ए-ना-इंसाफ़ +आह ओ फ़रियाद की रुख़्सत ही सही +हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे +बे-नियाज़ी तिरी आदत ही सही +यार से छेड़ चली जाए 'असद' +गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही " +dekh-kar-dar-parda-garm-e-daaman-afshaanii-mujhe-mirza-ghalib-ghazals," +देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे +कर गई वाबस्ता-ए-तन मेरी उर्यानी मुझे +बन गया तेग़-ए-निगाह-ए-यार का संग-ए-फ़साँ +मर्हबा मैं क्या मुबारक है गिराँ-जानी मुझे +क्यूँ न हो बे-इल्तिफ़ाती उस की ख़ातिर जम्अ' है +जानता है महव-ए-पुर्सिश-हा-ए-पिन्हानी मुझे +मेरे ग़म-ख़ाने की क़िस्मत जब रक़म होने लगी +लिख दिया मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी मुझे +बद-गुमाँ होता है वो काफ़िर न होता काश के +इस क़दर ज़ौक़-ए-नवा-ए-मुर्ग़-ए-बुस्तानी मुझे +वाए वाँ भी शोर-ए-महशर ने न दम लेने दिया +ले गया था गोर में ज़ौक़-ए-तन-आसानी मुझे +वा'दा आने का वफ़ा कीजे ये क्या अंदाज़ है +तुम ने क्यूँ सौंपी है मेरे घर की दरबानी मुझे +हाँ नशात-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी वाह वाह +फिर हुआ है ताज़ा सौदा-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे +दी मिरे भाई को हक़ ने अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी +मीरज़ा यूसुफ़ है 'ग़ालिब' यूसुफ़-ए-सानी मुझे " +raftaar-e-umr-qat-e-rah-e-iztiraab-hai-mirza-ghalib-ghazals," +रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है +इस साल के हिसाब को बर्क़ आफ़्ताब है +मीना-ए-मय है सर्व नशात-ए-बहार से +बाल-ए-तदर्रव जल्वा-ए-मौज-ए-शराब है +ज़ख़्मी हुआ है पाश्ना पा-ए-सबात का +ने भागने की गूँ न इक़ामत की ताब है +जादाद-ए-बादा-नोशी-ए-रिन्दाँ है शश-जिहत +ग़ाफ़िल गुमाँ करे है कि गेती ख़राब है +नज़्ज़ारा क्या हरीफ़ हो उस बर्क़-ए-हुस्न का +जोश-ए-बहार जल्वे को जिस के नक़ाब ��ै +मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ +माना कि तेरे रुख़ से निगह कामयाब है +गुज़रा 'असद' मसर्रत-ए-पैग़ाम-ए-यार से +क़ासिद पे मुझ को रश्क-ए-सवाल-ओ-जवाब है +ज़ाहिर है तर्ज़-ए-क़ैद से सय्याद की ग़रज़ +जो दाना दाम में है सो अश्क-ए-कबाब है +बे-चश्म-ए-दिल न कर हवस-ए-सैर-ए-लाला-ज़ार +या'नी ये हर वरक़ वरक़-ए-इंतिख़ाब है " +muddat-huii-hai-yaar-ko-mehmaan-kiye-hue-mirza-ghalib-ghazals," +मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए +जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए +करता हूँ जम्अ' फिर जिगर-ए-लख़्त-लख़्त को +अर्सा हुआ है दावत-ए-मिज़्गाँ किए हुए +फिर वज़-ए-एहतियात से रुकने लगा है दम +बरसों हुए हैं चाक गरेबाँ किए हुए +फिर गर्म-नाला-हा-ए-शरर-बार है नफ़स +मुद्दत हुई है सैर-ए-चराग़ाँ किए हुए +फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल को चला है इश्क़ +सामान-ए-सद-हज़ार नमक-दाँ किए हुए +फिर भर रहा हूँ ख़ामा-ए-मिज़्गाँ ब-ख़ून-ए-दिल +साज़-ए-चमन तराज़ी-ए-दामाँ किए हुए +बाहम-दिगर हुए हैं दिल ओ दीदा फिर रक़ीब +नज़्ज़ारा ओ ख़याल का सामाँ किए हुए +दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत को जाए है +पिंदार का सनम-कदा वीराँ किए हुए +फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब +अर्ज़-ए-मता-ए-अक़्ल-ओ-दिल-ओ-जाँ किए हुए +दौड़े है फिर हर एक गुल-ओ-लाला पर ख़याल +सद-गुलिस्ताँ निगाह का सामाँ किए हुए +फिर चाहता हूँ नामा-ए-दिलदार खोलना +जाँ नज़्र-ए-दिल-फ़रेबी-ए-उनवाँ किए हुए +माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवस +ज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशाँ किए हुए +चाहे है फिर किसी को मुक़ाबिल में आरज़ू +सुरमे से तेज़ दश्ना-ए-मिज़्गाँ किए हुए +इक नौ-बहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह +चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्ताँ किए हुए +फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें +सर ज़ेर-बार-ए-मिन्नत-ए-दरबाँ किए हुए +जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन +बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए +'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से +बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किए हुए " +gar-tujh-ko-hai-yaqiin-e-ijaabat-duaa-na-maang-mirza-ghalib-ghazals," +गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग +या'नी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग +आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद +मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग +ऐ आरज़ू शहीद-ए-वफ़ा ख़ूँ-बहा न माँग +जुज़ बहर-ए-दस्त-ओ-बाज़ू-ए-क़ातिल दुआ न माँग +बरहम है बज़्म-ए-ग़ुंचा ब-यक-जुंबिश-ए-नशात +काशाना बस-कि तंग है ग़ाफ़िल हवा न माँग +मैं दूर गर्द-ए-अर्ज़-ए-रुसूम-ए-नियाज़ हूँ +दुश्मन समझ वले निगह-ए-आशना न माँग +यक-बख़्त औज नज़्र-ए-सुबुक-बारी-ए-'असद' +सर पर वबाल-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा न माँग +गुस्ताख़ी-ए-विसाल है मश्शाता-ए-नियाज़ +या'नी दुआ ब-जुज़ ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-दुता न माँग +ईसा तिलिस्म हुस्न तग़ाफ़ुल है ज़ीनहार +जुज़ पुश्त चश्म नुस्ख़ा अर्ज़ दवा न माँग +दीगर ओ दिल ख़ूनीं नफ़स " +kisii-ko-de-ke-dil-koii-navaa-sanj-e-fugaan-kyuun-ho-mirza-ghalib-ghazals," +किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो +न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो +वो अपनी ख़ू न छोड़ेंगे हम अपनी वज़्अ क्यूँ छोड़ें +सुबुक-सर बन के क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यूँ हो +किया ग़म-ख़्वार ने रुस्वा लगे आग इस मोहब्बत को +न लावे ताब जो ग़म की वो मेरा राज़-दाँ क्यूँ हो +वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा +तो फिर ऐ संग-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो +क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम +गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यूँ हो +ये कह सकते हो हम दिल में नहीं हैं पर ये बतलाओ +कि जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यूँ हो +ग़लत है जज़्ब-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किस का है +न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दरमियाँ क्यूँ हो +ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है +हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो +यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं +अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो +कहा तुम ने कि क्यूँ हो ग़ैर के मिलने में रुस्वाई +बजा कहते हो सच कहते हो फिर कहियो कि हाँ क्यूँ हो +निकाला चाहता है काम क्या ता'नों से तू 'ग़ालिब' +तिरे बे-मेहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यूँ हो " +husn-e-mah-garche-ba-hangaam-e-kamaal-achchhaa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है +उस से मेरा मह-ए-ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है +बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह +जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है +और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया +साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है +बे-तलब दें तो मज़ा उस में सिवा मिलता है +वो गदा जिस को न हो ख़ू-ए-सवाल अच्छा है +उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ +वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है +देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़ +इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है +हम-सुख़न तेशा ने फ़रहाद को शीरीं से किया +जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है +क़तरा दरिया ��ें जो मिल जाए तो दरिया हो जाए +काम अच्छा है वो जिस का कि मआल अच्छा है +ख़िज़्र-सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए-अकबर सरसब्ज़ +शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है +हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन +दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है " +tuu-dost-kisuu-kaa-bhii-sitamgar-na-huaa-thaa-mirza-ghalib-ghazals," +तू दोस्त कसू का भी सितमगर न हुआ था +औरों पे है वो ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था +छोड़ा मह-ए-नख़शब की तरह दस्त-ए-क़ज़ा ने +ख़ुर्शीद हुनूज़ उस के बराबर न हुआ था +तौफ़ीक़ ब-अंदाज़ा-ए-हिम्मत है अज़ल से +आँखों में है वो क़तरा कि गौहर न हुआ था +जब तक कि न देखा था क़द-ए-यार का आलम +मैं मो'तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था +मैं सादा-दिल आज़ुर्दगी-ए-यार से ख़ुश हूँ +या'नी सबक़-ए-शौक़ मुकर्रर न हुआ था +दरिया-ए-मआसी तुनुक-आबी से हुआ ख़ुश्क +मेरा सर-ए-दामन भी अभी तर न हुआ था +जारी थी 'असद' दाग़-ए-जिगर से मिरी तहसील +आतिश-कदा जागीर-ए-समुंदर न हुआ था " +hai-bas-ki-har-ik-un-ke-ishaare-men-nishaan-aur-mirza-ghalib-ghazals," +है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और +करते हैं मोहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और +या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात +दे और दिल उन को जो न दे मुझ को ज़बाँ और +अबरू से है क्या उस निगह-ए-नाज़ को पैवंद +है तीर मुक़र्रर मगर इस की है कमाँ और +तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे +ले आएँगे बाज़ार से जा कर दिल ओ जाँ और +हर चंद सुबुक-दस्त हुए बुत-शिकनी में +हम हैं तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ और +है ख़ून-ए-जिगर जोश में दिल खोल के रोता +होते जो कई दीदा-ए-ख़ूँनाबा-फ़िशाँ और +मरता हूँ इस आवाज़ पे हर चंद सर उड़ जाए +जल्लाद को लेकिन वो कहे जाएँ कि हाँ और +लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब का धोका +हर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और +लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन +करता जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ और +पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले +रुकती है मिरी तब्अ' तो होती है रवाँ और +हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे +कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और " +shab-khumaar-e-shauq-e-saaqii-rustakhez-andaaza-thaa-mirza-ghalib-ghazals," +शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था +ता-मुहीत-ए-बादा सूरत ख़ाना-ए-ख़म्याज़ा था +यक क़दम वहशत से दर्स-ए-दफ़्तर-ए-इम्काँ खुला +जादा अजज़ा-ए-दो-आलम दश्त का शीराज़ा था +माना-ए-वहशत-ख़िरामी-हा-ए-लैला कौन है +ख़ाना-ए-मजनून-ए-सहरा-गर्द बे-दरवाज़ा था +पूछ मत रुस्वाई-ए-अंदाज़-ए-इस���तिग़ना-ए-हुस्न +दस्त मरहून-ए-हिना रुख़्सार रहन-ए-ग़ाज़ा था +नाला-ए-दिल ने दिए औराक़-ए-लख़्त-ए-दिल ब-बाद +याद-गार-ए-नाला इक दीवान-ए-बे-शीराज़ा था +हूँ चराग़ान-ए-हवस जूँ काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा +दाग़ गर्म-ए-कोशिश-ए-ईजाद-ए-दाग़-ए-ताज़ा था +बे-नवाई तर सदा-ए-नग़्मा-ए-शोहरत 'असद' +बोरिया यक नीस्ताँ-आलम बुलंद आवाज़ा था " +zakhm-par-chhidken-kahaan-tiflaan-e-be-parvaa-namak-mirza-ghalib-ghazals," +ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक +क्या मज़ा होता अगर पत्थर में भी होता नमक +गर्द-ए-राह-ए-यार है सामान-ए-नाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल +वर्ना होता है जहाँ में किस क़दर पैदा नमक +मुझ को अर्ज़ानी रहे तुझ को मुबारक होजियो +नाला-ए-बुलबुल का दर्द और ख़ंदा-ए-गुल का नमक +शोर-ए-जौलाँ था कनार-ए-बहर पर किस का कि आज +गर्द-ए-साहिल है ब-ज़ख़्म-ए-मौज-ए-दरिया नमक +दाद देता है मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर की वाह वाह +याद करता है मुझे देखे है वो जिस जा नमक +छोड़ कर जाना तन-ए-मजरूह-ए-आशिक़ हैफ़ है +दिल तलब करता है ज़ख़्म और माँगे हैं आ'ज़ा नमक +ग़ैर की मिन्नत न खींचूँगा पय-ए-तौफ़ीर-ए-दर्द +ज़ख़्म मिस्ल-ए-ख़ंदा-ए-क़ातिल है सर-ता-पा नमक +याद हैं 'ग़ालिब' तुझे वो दिन कि वज्द-ए-ज़ौक़ में +ज़ख़्म से गिरता तो मैं पलकों से चुनता था नमक +इस अमल में ऐश की लज़्ज़त नहीं मिलती 'असद' +ज़ोर निस्बत मय से रखता है अज़ारा का नमक " +shab-ki-barq-e-soz-e-dil-se-zahra-e-abr-aab-thaa-mirza-ghalib-ghazals," +शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था +शोला-ए-जव्वाला हर यक हल्क़ा-ए-गिर्दाब था +वाँ करम को उज़्र-ए-बारिश था इनाँ-गीर-ए-ख़िराम +गिर्ये से याँ पुम्बा-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था +वाँ ख़ुद-आराई को था मोती पिरोने का ख़याल +याँ हुजूम-ए-अश्क में तार-ए-निगह नायाब था +जल्वा-ए-गुल ने किया था वाँ चराग़ाँ आबजू +याँ रवाँ मिज़्गान-ए-चश्म-ए-तर से ख़ून-ए-नाब था +याँ सर-ए-पुर-शोर बे-ख़्वाबी से था दीवार-जू +वाँ वो फ़र्क़-ए-नाज़ महव-ए-बालिश-ए-किम-ख़्वाब था +याँ नफ़स करता था रौशन शम-ए-बज़्म-ए-बे-ख़ुदी +जल्वा-ए-गुल वाँ बिसात-ए-सोहबत-ए-अहबाब था +फ़र्श से ता अर्श वाँ तूफ़ाँ था मौज-ए-रंग का +याँ ज़मीं से आसमाँ तक सोख़्तन का बाब था +ना-गहाँ इस रंग से ख़ूनाबा टपकाने लगा +दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज़्ज़त-याब था " +diivaangii-se-dosh-pe-zunnaar-bhii-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं +या'नी हमारे जेब में इक तार भी नहीं +दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके +देखा तो हम में ताक़त-ए-दी���ार भी नहीं +मिलना तिरा अगर नहीं आसाँ तो सहल है +दुश्वार तो यही है कि दुश्वार भी नहीं +बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ +ताक़त ब-क़दर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं +शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश +सहरा में ऐ ख़ुदा कोई दीवार भी नहीं +गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़ +याँ दिल में ज़ोफ़ से हवस-ए-यार भी नहीं +डर नाला-हा-ए-ज़ार से मेरे ख़ुदा को मान +आख़िर नवा-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार भी नहीं +दिल में है यार की सफ़-ए-मिज़्गाँ से रू-कशी +हालाँकि ताक़त-ए-ख़लिश-ए-ख़ार भी नहीं +इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा +लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं +देखा 'असद' को ख़ल्वत-ओ-जल्वत में बार-हा +दीवाना गर नहीं है तो हुश्यार भी नहीं " +jaur-se-baaz-aae-par-baaz-aaen-kyaa-mirza-ghalib-ghazals," +जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या +कहते हैं हम तुझ को मुँह दिखलाएँ क्या +रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ +हो रहेगा कुछ न कुछ घबराएँ क्या +लाग हो तो उस को हम समझें लगाव +जब न हो कुछ भी तो धोका खाएँ क्या +हो लिए क्यूँ नामा-बर के साथ साथ +या रब अपने ख़त को हम पहुँचाएँ क्या +मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़र ही क्यूँ न जाए +आस्तान-ए-यार से उठ जाएँ क्या +उम्र भर देखा किया मरने की राह +मर गए पर देखिए दिखलाएँ क्या +पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है +कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या " +na-puuchh-nuskha-e-marham-jaraahat-e-dil-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का +कि उस में रेज़ा-ए-अल्मास जुज़्व-ए-आज़म है +बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की +वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है " +siyaahii-jaise-gir-jaae-dam-e-tahriir-kaagaz-par-mirza-ghalib-ghazals," +सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर +मिरी क़िस्मत में यूँ तस्वीर है शब-हा-ए-हिज्राँ की +कहूँ क्या गर्म-जोशी मय-कशी में शोला-रूयाँ की +कि शम-ए-ख़ाना-ए-दिल आतिश-ए-मय से फ़रोज़ाँ की +हमेशा मुझ को तिफ़्ली में भी मश्क़-ए-तीरह-रोज़ी थी +सियाही है मिरे अय्याम में लौह-ए-दबिस्ताँ की +दरेग़ आह-ए-सहर-गह कार-ए-बाद-ए-सुब्ह करती है +कि होती है ज़ियादा सर्द-मेहरी शम्अ-रूयाँ की +मुझे अपने जुनूँ की बे-तकल्लुफ़ पर्दा-दारी थी +व-लेकिन क्या करूँ आवे जो रुस्वाई गरेबाँ की +हुनर पैदा किया है मैं ने हैरत-आज़माई में +कि जौहर आइने का हर पलक है चश्म-ए-हैराँ की +ख़ुदाया किस क़दर अहल-ए-नज़र ने ख़ाक छानी है +कि हैं सद-रख़्ना जूँ ग़िर्बाल दीवारें गुलिस्ताँ की +हुआ शर्म-ए-तही-दस्ती से से वो भी सर-निगूँ आख़िर +बस ऐ ज़ख़्म-ए-जिगर अब देख ले शोरिश नमक-दाँ की +बयाद-ए-गर्मी-ए-सोहबत ब-रंग-ए-शोला दहके है +छुपाऊँ क्यूँकि 'ग़ालिब' सोज़िशें दाग़-ए-नुमायाँ की +जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की +नमक-पाश-ए-ख़राश-ए-दिल है लज़्ज़त ज़िंदगानी की +कशाकश-हा-ए-हस्ती से करे क्या सई-ए-आज़ादी +हुइ ज़ंजीर-ए-मौज-ए-आब को फ़ुर्सत रवानी की +न खींच ऐ सई-ए-दस्त-ए-ना-रसा ज़ुल्फ़-ए-तमन्ना को +परेशाँ-तर है मू-ए-ख़ामा से तदबीर मानी की +कहाँ हम भी रग-ओ-पै रखते हैं इंसाफ़ बहत्तर है +न खींचे ताक़त-ए-ख़म्याज़ा तोहमत ना-तवानी की +तकल्लुफ़-बरतरफ़ फ़रहाद और इतनी सुबु-दस्ती +ख़याल आसाँ था लेकिन ख़्वाब-ए-ख़ुसरव ने गिरानी की +पस-अज़-मुर्दन भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़्लाँ है +शरार-ए-संग ने तुर्बत पे मेरी गुल-फ़िशानी की +'असद' को बोरिए में धर के फूँका मौज-ए-हस्ती ने +फ़क़ीरी में भी बाक़ी है शरारत नौजवानी की " +jab-tak-dahaan-e-zakhm-na-paidaa-kare-koii-mirza-ghalib-ghazals," +जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई +मुश्किल कि तुझ से राह-ए-सुख़न वा करे कोई +आलम ग़ुबार-ए-वहशत-ए-मजनूँ है सर-ब-सर +कब तक ख़याल-ए-तुर्रा-ए-लैला करे कोई +अफ़्सुर्दगी नहीं तरब-इंशा-ए-इल्तिफ़ात +हाँ दर्द बन के दिल में मगर जा करे कोई +रोने से ऐ नदीम मलामत न कर मुझे +आख़िर कभी तो उक़्दा-ए-दिल वा करे कोई +चाक-ए-जिगर से जब रह-ए-पुर्सिश न वा हुई +क्या फ़ाएदा कि जैब को रुस्वा करे कोई +लख़्त-ए-जिगर से है रग-ए-हर-ख़ार शाख़-ए-गुल +ता चंद बाग़-बानी-ए-सहरा करे कोई +नाकामी-ए-निगाह है बर्क़-ए-नज़ारा-सोज़ +तू वो नहीं कि तुझ को तमाशा करे कोई +हर संग ओ ख़िश्त है सदफ़-ए-गौहर-ए-शिकस्त +नुक़साँ नहीं जुनूँ से जो सौदा करे कोई +सर बर हुई न वादा-ए-सब्र-आज़मा से उम्र +फ़ुर्सत कहाँ कि तेरी तमन्ना करे कोई +है वहशत-ए-तबीअत-ए-ईजाद यास-खेज़ +ये दर्द वो नहीं कि न पैदा करे कोई +बेकारी-ए-जुनूँ को है सर पीटने का शुग़्ल +जब हाथ टूट जाएँ तो फिर क्या करे कोई +हुस्न-ए-फ़रोग़-ए-शम्मा-ए-सुख़न दूर है 'असद' +पहले दिल-ए-गुदाख़्ता पैदा करे कोई +वहशत कहाँ कि बे-ख़ुदी इंशा करे कोई +हस्ती को लफ़्ज़-ए-मानी-ए-अन्क़ा करे कोई +जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है +आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई +अर्ज़-ए-सरिश्क पर है फ़ज़ा-ए-ज़माना तंग +सहरा कहाँ कि दावत-ए-दरिया करे कोई +वो शोख़ अपने हुस्न पे मग़रूर है 'असद' +दिखला के उस को आइना तोड़ा करे कोई " +fariyaad-kii-koii-lai-nahiin-hai-mirza-ghalib-ghazals," +फ़रियाद की कोई लय नहीं है +नाला पाबंद-ए-नय नहीं है +क्यूँ बोते हैं बाग़बाँ तोंबे +गर बाग़ गदा-ए-मय नहीं है +हर-चंद हर एक शय में तू है +पर तुझ सी कोई शय नहीं है +हाँ खाइयो मत फ़रेब-ए-हस्ती +हर-चंद कहें कि है नहीं है +शादी से गुज़र कि ग़म न होवे +उरदी जो न हो तो दय नहीं है +क्यूँ रद्द-ए-क़दह करे है ज़ाहिद +मय है ये मगस की क़य नहीं है +हस्ती है न कुछ अदम है 'ग़ालिब' +आख़िर तू क्या है ऐ नहीं है " +taa-ham-ko-shikaayat-kii-bhii-baaqii-na-rahe-jaa-mirza-ghalib-ghazals," +ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा +सुन लेते हैं गो ज़िक्र हमारा नहीं करते +'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को +वो सुन के बुला लें ये इजारा नहीं करते " +hujuum-e-naala-hairat-aajiz-e-arz-e-yak-afgaan-hai-mirza-ghalib-ghazals," +हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़ यक-अफ़्ग़ाँ है +ख़मोशी रेशा-ए-सद-नीस्ताँ से ख़स-ब-दंदाँ है +तकल्लुफ़-बर-तरफ़ है जाँ-सिताँ-तर लुत्फ़-ए-बद-ख़ूयाँ +निगाह-ए-बे-हिजाब-ए-नाज़ तेग़-ए-तेज़-ए-उर्यां है +हुई ये कसरत-ए-ग़म से तलफ़ कैफ़ियत-ए-शादी +कि सुब्ह-ए-ईद मुझ को बद-तर अज़-चाक-ए-गरेबाँ है +दिल ओ दीं नक़्द ला साक़ी से गर सौदा किया चाहे +कि उस बाज़ार में साग़र माता-ए-दस्त-गर्दां है +ग़म आग़ोश-ए-बला में परवरिश देता है आशिक़ को +चराग़-ए-रौशन अपना क़ुल्ज़ुम-ए-सरसर का मर्जां है +तकल्लुफ़ साज़-ए-रुस्वाई है ग़ाफ़िल शर्म-ए-रानाई +दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता दर दस्त-ए-हिना-आलूदा उर्यां है +'असद' जमइयत-ए-दिल दर-किनार-ए-बे-ख़ुदी ख़ुश-तर +दो-आलम आगही सामान-ए-यक-ख़्वाब-ए-परेशाँ है " +taskiin-ko-ham-na-roen-jo-zauq-e-nazar-mile-mirza-ghalib-ghazals," +तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले +हूरान-ए-ख़ुल्द में तिरी सूरत मगर मिले +अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल +मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले +साक़ी-गरी की शर्म करो आज वर्ना हम +हर शब पिया ही करते हैं मय जिस क़दर मिले +तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम +मेरा सलाम कहियो अगर नामा-बर मिले +तुम को भी हम दिखाएँ कि मजनूँ ने क्या किया +फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ से गर मिले +लाज़िम नहीं कि ख़िज़्र की हम पैरवी करें +जाना कि इक बुज़ुर्ग हमें हम-सफ़र मिले +ऐ साकिनान-ए-कूचा-ए-दिलदार देखना +तुम को कहीं जो 'ग़ालिब'-ए-आशुफ़्ता-सर मिले " +zikr-us-parii-vash-kaa-aur-phir-bayaan-apnaa-mirza-ghalib-ghazals," +ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना +बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना +मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब +आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना +म���ज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते +अर्श से उधर होता काश के मकाँ अपना +दे वो जिस क़दर ज़िल्लत हम हँसी में टालेंगे +बारे आश्ना निकला उन का पासबाँ अपना +दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक जाऊँ उन को दिखला दूँ +उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामा ख़ूँ-चकाँ अपना +घिसते घिसते मिट जाता आप ने अबस बदला +नंग-ए-सज्दा से मेरे संग-ए-आस्ताँ अपना +ता करे न ग़म्माज़ी कर लिया है दुश्मन को +दोस्त की शिकायत में हम ने हम-ज़बाँ अपना +हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे +बे-सबब हुआ 'ग़ालिब' दुश्मन आसमाँ अपना " +vo-aa-ke-khvaab-men-taskiin-e-iztiraab-to-de-mirza-ghalib-ghazals," +वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे +वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे +करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना +तिरी तरह कोई तेग़-ए-निगह को आब तो दे +दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को +न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे +पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है +पियाला गर नहीं देता न दे शराब तो दे +'असद' ख़ुशी से मिरे हाथ पाँव फूल गए +कहा जो उस ने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे +ये कौन कहवे है आबाद कर हमें लेकिन +कभी ज़माना मुराद-ए-दिल-ए-ख़राब तो दे " +ba-naala-haasil-e-dil-bastagii-faraaham-kar-mirza-ghalib-ghazals," +ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर +मता-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर जुज़ सदा मालूम +ब-क़द्र-ए-हौसला-ए-इश्क़ जल्वा-रेज़ी है +वगर्ना ख़ाना-ए-आईना की फ़ज़ा मालूम +'असद' फ़रेफ्ता-ए-इंतिख़ाब-ए-तर्ज़-ए-जफ़ा +वगर्ना दिलबरी-ए-वादा-ए-वफ़ा मालूम " +dard-minnat-kash-e-davaa-na-huaa-mirza-ghalib-ghazals," +दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ +मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ +जम्अ' करते हो क्यूँ रक़ीबों को +इक तमाशा हुआ गिला न हुआ +हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जाएँ +तू ही जब ख़ंजर-आज़मा न हुआ +कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब +गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ +है ख़बर गर्म उन के आने की +आज ही घर में बोरिया न हुआ +क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी +बंदगी में मिरा भला न हुआ +जान दी दी हुई उसी की थी +हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ +ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा +काम गर रुक गया रवा न हुआ +रहज़नी है कि दिल-सितानी है +ले के दिल दिल-सिताँ रवाना हुआ +कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं +आज 'ग़ालिब' ग़ज़ल-सरा न हुआ " +kyuunkar-us-but-se-rakhuun-jaan-aziiz-mirza-ghalib-ghazals," +क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ +क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़ +दिल से निकला पे न निकला दिल से +है तिरे तीर का पैकान अज़ीज़ +ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब' +वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़ " +ye-na-thii-hamaarii-qismat-ki-visaal-e-yaar-hotaa-mirza-ghalib-ghazals," +ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता +अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता +तिरे वा'दे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना +कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता +तिरी नाज़ुकी से जाना कि बँधा था अहद बोदा +कभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तुवार होता +कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को +ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता +ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह +कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता +रग-ए-संग से टपकता वो लहू कि फिर न थमता +जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता +ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है +ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता +कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है +मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता +हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया +न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता +उसे कौन देख सकता कि यगाना है वो यकता +जो दुई की बू भी होती तो कहीं दो-चार होता +ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब' +तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता " +afsos-ki-dandaan-kaa-kiyaa-rizq-falak-ne-mirza-ghalib-ghazals," +अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने +जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त +काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना +ख़ाली मुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त +लिखता हूँ 'असद' सोज़िश-ए-दिल से सुख़न-ए-गर्म +ता रख न सके कोई मिरे हर्फ़ पर अंगुश्त " +ye-ham-jo-hijr-men-diivaar-o-dar-ko-dekhte-hain-mirza-ghalib-ghazals," +ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं +कभी सबा को कभी नामा-बर को देखते हैं +वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है +कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं +नज़र लगे न कहीं उस के दस्त-ओ-बाज़ू को +ये लोग क्यूँ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देखते हैं +तिरे जवाहिर-ए-तुर्फ़-ए-कुलह को क्या देखें +हम औज-ए-ताला-ए-लाला-ओ-गुहर को देखते हैं " +ohde-se-madh-e-naaz-ke-baahar-na-aa-sakaa-mirza-ghalib-ghazals," +ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका +गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ +हल्क़े हैं चश्म-हा-ए-कुशादा ब-सू-ए-दिल +हर तार-ए-ज़ुल्फ़ को निगह-ए-सुर्मा-सा कहूँ +मैं और सद-हज़ार नवा-ए-जिगर-ख़राश +तू और एक वो ना-शुनीदन कि क्या कहूँ +ज़ालिम मिरे गुमाँ से मुझे मुन्फ़इल न चाह +है है ख़ुदा-न-कर्दा तुझे बेवफ़ा कहूँ " +aabruu-kyaa-khaak-us-gul-kii-ki-gulshan-men-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं +है गरेबाँ नंग-ए-पैराहन जो दामन में नहीं +ज़ोफ़ से ऐ गिर्या कुछ बाक़ी मिरे तन में नहीं +रंग हो कर उड़ गया जो ख़ूँ कि दामन में नहीं +हो गए हैं जमा अजज़ा-ए-निगाह-ए-आफ़ताब +ज़र्रे उस के घर की दीवारों के रौज़न में नहीं +क्या कहूँ तारीकी-ए-ज़िन्दान-ए-ग़म अंधेर है +पुम्बा नूर-व-सुब्ह से कम जिस के रौज़न में नहीं +रौनक़-ए-हस्ती है इश्क़-ए-ख़ाना वीराँ साज़ से +अंजुमन बे-शमा है गर बर्क़ ख़िर्मन में नहीं +ज़ख़्म सिलवाने से मुझ पर चारा-जुई का है तान +ग़ैर समझा है कि लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न में नहीं +बस-कि हैं हम इक बहार-ए-नाज़ के मारे हुए +जल्वा-ए-गुल के सिवा गर्द अपने मदफ़न में नहीं +क़तरा क़तरा इक हयूला है नए नासूर का +ख़ूँ भी ज़ौक़-ए-दर्द से फ़ारिग़ मिरे तन में नहीं +ले गई साक़ी की नख़वत क़ुल्ज़ुम-आशामी मिरी +मौज-ए-मय की आज रग मीना की गर्दन में नहीं +हो फ़िशार-ए-ज़ोफ़ में क्या ना-तवानी की नुमूद +क़द के झुकने की भी गुंजाइश मिरे तन में नहीं +थी वतन में शान क्या 'ग़ालिब' कि हो ग़ुर्बत में क़द्र +बे-तकल्लुफ़ हूँ वो मुश्त-ए-ख़स कि गुलख़न में नहीं " +shikve-ke-naam-se-be-mehr-khafaa-hotaa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है +ये भी मत कह कि जो कहिए तो गिला होता है +पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा +इक ज़रा छेड़िए फिर देखिए क्या होता है +गो समझता नहीं पर हुस्न-ए-तलाफ़ी देखो +शिकवा-ए-जौर से सरगर्म-ए-जफ़ा होता है +इश्क़ की राह में है चर्ख़-ए-मकोकब की वो चाल +सुस्त-रौ जैसे कोई आबला-पा होता है +क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बेदाद कि हम +आप उठा लाते हैं गर तीर ख़ता होता है +ख़ूब था पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह +कि भला चाहते हैं और बुरा होता है +नाला जाता था परे अर्श से मेरा और अब +लब तक आता है जो ऐसा ही रसा होता है +ख़ामा मेरा कि वो है बारबुद-ए-बज़्म-ए-सुख़न +शाह की मद्ह में यूँ नग़्मा-सरा होता है +ऐ शहंशाह-ए-कवाकिब सिपह-ओ-मेहर-अलम +तेरे इकराम का हक़ किस से अदा होता है +सात अक़्लीम का हासिल जो फ़राहम कीजे +तो वो लश्कर का तिरे नाल-ए-बहा होता है +हर महीने में जो ये बद्र से होता है हिलाल +आस्ताँ पर तिरे मह नासिया सा होता है +मैं जो गुस्ताख़ हूँ आईन-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी में +ये भी तेरा ही करम ज़ौक़-फ़ज़ा होता है +रखियो 'ग़ालिब' मुझे इस तल्ख़-नवाई में मुआ'फ़ +आज कुछ दर्द मिरे दिल में सिवा होता है " +phir-mujhe-diida-e-tar-yaad-aayaa-mirza-ghalib-ghazals," +फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया +दिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रयाद आया +दम लिया था न क़यामत ने हनूज़ +फिर तिरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया +सादगी-हा-ए-तमन्ना या'नी +फिर वो नैरंग-ए-नज़र याद आया +उज़्र-ए-वामांदगी ऐ हसरत-ए-दिल +नाला करता था जिगर याद आया +ज़िंदगी यूँ भी गुज़र ही जाती +क्यूँ तिरा राहगुज़र याद आया +क्या ही रिज़वाँ से लड़ाई होगी +घर तिरा ख़ुल्द में गर याद आया +आह वो जुरअत-ए-फ़रियाद कहाँ +दिल से तंग आ के जिगर याद आया +फिर तिरे कूचे को जाता है ख़याल +दिल-ए-गुम-गश्ता मगर याद आया +कोई वीरानी सी वीरानी है +दश्त को देख के घर याद आया +मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद' +संग उठाया था कि सर याद आया +वस्ल में हिज्र का डर याद आया +ऐन जन्नत में सक़र याद आया " +chaak-kii-khvaahish-agar-vahshat-ba-uryaanii-kare-mirza-ghalib-ghazals," +चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे +सुब्ह के मानिंद ज़ख़्म-ए-दिल गरेबानी करे +जल्वे का तेरे वो आलम है कि गर कीजे ख़याल +दीदा-ए-दिल को ज़ियारत-गाह-ए-हैरानी करे +है शिकस्तन से भी दिल नौमीद या रब कब तलक +आबगीना कोह पर अर्ज़-ए-गिराँ-जानी करे +मय-कदा गर चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ से पावे शिकस्त +मू-ए-शीशा दीदा-ए-साग़र की मिज़्गानी करे +ख़त्त-ए-आरिज़ से लिखा है ज़ुल्फ़ को उल्फ़त ने अहद +यक-क़लम मंज़ूर है जो कुछ परेशानी करे " +baaziicha-e-atfaal-hai-duniyaa-mire-aage-mirza-ghalib-ghazals," +बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे +होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे +इक खेल है औरंग-ए-सुलैमाँ मिरे नज़दीक +इक बात है एजाज़-ए-मसीहा मिरे आगे +जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर +जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मिरे आगे +होता है निहाँ गर्द में सहरा मिरे होते +घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मिरे आगे +मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तिरे पीछे +तू देख कि क्या रंग है तेरा मिरे आगे +सच कहते हो ख़ुद-बीन ओ ख़ुद-आरा हूँ न क्यूँ हूँ +बैठा है बुत-ए-आइना-सीमा मिरे आगे +फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार +रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे +नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा +क्यूँकर कहूँ लो नाम न उन का मिरे आगे +ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र +काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे +आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम +मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे +ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते +आई शब-ए-हिज्राँ की तमन्ना मिरे आगे +है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ काश यही हो +आता है अभी देखिए क्या क्या मिरे आगे +गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है +रहने दो अभी ��ाग़र-ओ-मीना मिरे आगे +हम-पेशा ओ हम-मशरब ओ हमराज़ है मेरा +'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो अच्छा मिरे आगे " +surma-e-muft-e-nazar-huun-mirii-qiimat-ye-hai-mirza-ghalib-ghazals," +सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है +कि रहे चश्म-ए-ख़रीदार पे एहसाँ मेरा +रुख़्सत-ए-नाला मुझे दे कि मबादा ज़ालिम +तेरे चेहरे से हो ज़ाहिर ग़म-ए-पिन्हाँ मेरा +ख़ल्वत-ए-आबला-ए-पा में है जौलाँ मेरा +ख़ूँ है दिल तंगी-ए-वहशत से बयाबाँ मेरा +हसरत-ए-नश्शा-ए-वहशत न ब-सइ-ए-दिल है +अर्ज़-ए-ख़म्याज़ा-ए-मजनूँ है गरेबाँ मेरा +फ़हम ज़ंजीरी-ए-बे-रब्ती-ए-दिल है या-रब +किस ज़बाँ में है लक़ब ख़्वाब-ए-परेशाँ मेरा " +dil-lagaa-kar-lag-gayaa-un-ko-bhii-tanhaa-baithnaa-mirza-ghalib-ghazals," +दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना +बारे अपनी बेकसी की हम ने पाई दाद याँ +हैं ज़वाल-आमादा अज्ज़ा आफ़रीनश के तमाम +महर-ए-गर्दूं है चराग़-ए-रहगुज़ार-ए-बाद याँ +है तरह्हुम-आफ़रीं आराइश-ए-बे-दाद याँ +अश्क-ए-चश्म-ए-दाम है हर दाना-ए-सय्याद याँ +है गुदाज़-ए-मोम अंदाज़-ए-चकीदन-हा-ए-ख़ूँ +नीश-ए-ज़ंबूर-ए-असल है नश्तर-ए-फ़स्साद याँ +ना-गवारा है हमें एहसान-ए-साहब-दाैलताँ +है ज़र-ए-गुल भी नज़र में जौहर-ए-फ़ौलाद याँ +जुम्बिश-ए-दिल से हुए हैं उक़्दा-हा-ए-कार वा +कम-तरीं मज़दूर-ए-संगीं-दस्त है फ़रहाद याँ +क़तरा-हा-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल ज़ेब-ए-दामाँ हैं 'असद' +है तमाशा करदनी गुल-चीनी-ए-जल्लाद याँ " +luun-vaam-bakht-e-khufta-se-yak-khvaab-e-khush-vale-mirza-ghalib-ghazals," +लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले +'ग़ालिब' ये ख़ौफ़ है कि कहाँ से अदा करूँ +ख़ुश वहशते कि अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ +जूँ गर्द-ए-राह जामा-ए-हस्ती क़बा करूँ +आ ऐ बहार-ए-नाज़ कि तेरे ख़िराम से +दस्तार गिर्द-ए-शाख़-ए-गुल-ए-नक़्श-ए-पा करूँ +ख़ुश उफ़्तादगी कि ब-सहरा-ए-इन्तिज़ार +जूँ जादा गर्द-ए-रह से निगह सुर्मा-सा करूँ +सब्र और ये अदा कि दिल आवे असीर-ए-चाक +दर्द और ये कमीं कि रह-ए-नाला वा करूँ +वो बे-दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-इक़बाल हूँ कि मैं +वहशत ब-दाग़-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा करूँ +वो इल्तिमास-ए-लज्ज़त-ए-बे-दाद हूँ कि मैं +तेग़-ए-सितम को पुश्त-ए-ख़म-ए-इल्तिजा करूँ +वो राज़-ए-नाला हूँ कि ब-शरह-ए-निगाह-ए-अज्ज़ +अफ़्शाँ ग़ुबार-ए-सुर्मा से फ़र्द-ए-सदा करूँ " +shumaar-e-subha-marguub-e-but-e-mushkil-pasand-aayaa-mirza-ghalib-ghazals-1," +शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया +तमाशा-ए-ब-यक-कफ़ बुर्दन-ए-सद-दिल-पसंद आया +ब-फैज़-ए-बे-दिली नौमीदी-ए-जावेद आसाँ है +कुशायिश को हमारा उक़्दा-ए-मुश्किल-पसंद आया +हवा-ए-सैर-ए-गुल आईना-ए-बे-मेहरी-ए-क़ातिल +कि अंदाज़-ए-ब-खूं-ग़ल्तीदन-ए-बिस्मिल-पसंद आया +रवानी-हा-ए-मौज-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल से टपकता है +कि लुत्फ़-ए-बे-तहाशा-रफ़्तन-ए-क़ातिल-पसंद आया +'असद' हर जा सुख़न ने तरह-ए-बाग़-ए-ताज़ा डाली है +मुझे रंग-ए-बहार-ईजादि-ए-बे-दिल-पसंद आया " +naqsh-e-naaz-e-but-e-tannaaz-ba-aagosh-e-raqiib-mirza-ghalib-ghazals," +नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब +पा-ए-ताऊस पए-ख़ामा-ए-मानी माँगे +तू वो बद-ख़ू कि तहय्युर को तमाशा जाने +ग़म वो अफ़्साना कि आशुफ़्ता-बयानी माँगे +वो तप-ए-इश्क़-ए-तमन्ना है कि फिर सूरत-ए-शम्अ' +शो'ला ता-नब्ज़-ए-जिगर रेशा-दवानी माँगे +तिश्ना-ए-ख़ून-ए-तमाशा जो वो पानी माँगे +आइना रुख़्सत-ए-अंदाज़-ए-रवानी माँगे +रंग ने गुल से दम-ए-अर्ज़-ए-परेशानी-ए-बज़्म +बर्ग-ए-गुल रेज़ा-ए-मीना की निशानी माँगे +ज़ुल्फ़ तहरीर-ए-परेशान-ए-तक़ाज़ा है मगर +शाना-साँ मू-ब-ज़बाँ ख़ामा-ए-मानी माँगे +आमद-ए-ख़त से न कर ख़ंदा-ए-शीरीं कि मबाद +चश्म-ए-मोर आईना-ए-दिल निगरानी माँगे +हूँ गिरफ़्तार-ए-कमीं-गाह-ए-तग़ाफ़ुल कि जहाँ +ख़्वाब सय्याद से पर्वाज़-ए-गिरानी माँगे +चश्म पर्वाज़ ओ नफ़स ख़ुफ़्ता मगर ज़ोफ़-ए-उमीद +शहपर-ए-काह पए-मुज़्दा-रिसानी माँगे +वहशत-ए-शोर-ए-तमाशा है कि जूँ निकहत-ए-गुल +नमक-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर बाल-फ़िशानी माँगे +गर मिले हज़रत-ए-'बेदिल' का ख़त-ए-लौह-ए-मज़ार +'असद' आईना-ए-पर्वाज़-ए-मआनी माँगे +रंग ने गुल से दम-ए-अर्ज़-ए-परेशानी-ए-बज़्म +बर्ग-ए-गुल रेज़ा-ए-मीना की निशानी माँगे " +baag-paa-kar-khafaqaanii-ye-daraataa-hai-mujhe-mirza-ghalib-ghazals," +बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे +साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई नज़र आता है मुझे +जौहर-ए-तेग़ ब-सर-चश्म-ए-दीगर मालूम +हूँ मैं वो सब्ज़ा कि ज़हराब उगाता है मुझे +मुद्दआ महव-ए-तमाशा-ए-शिकस्त-ए-दिल है +आइना-ख़ाना में कोई लिए जाता है मुझे +नाला सरमाया-ए-यक-आलम ओ आलम कफ़-ए-ख़ाक +आसमाँ बैज़ा-ए-क़ुमरी नज़र आता है मुझे +ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे +देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे +बाग़ तुझ बिन गुल-ए-नर्गिस से डराता है मुझे +चाहूँ गर सैर-ए-चमन आँख दिखाता है मुझे +शोर-ए-तिम्साल है किस रश्क-ए-चमन का या रब +आइना बैज़ा-ए-बुलबुल नज़र आता है मुझे +हैरत-ए-आइना अंजाम-ए-जुनूँ हूँ ज्यूँ शम्अ +किस क़दर दाग़-ए-जिगर शोला उठाता है मुझे +मैं हूँ और हैरत-ए-जावेद मगर ज़ौक़-ए-ख़याल +ब-फ़ुसून-ए-निगह-ए-नाज़ सताता है मुझे +हैरत-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न साज़-ए-सलामत है 'असद' +दिल पस-ए-ज़ानू-ए-आईना बिठाता है मुझे " +maana-e-dasht-navardii-koii-tadbiir-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं +एक चक्कर है मिरे पाँव में ज़ंजीर नहीं +शौक़ उस दश्त में दौड़ाए है मुझ को कि जहाँ +जादा ग़ैर अज़ निगह-ए-दीदा-ए-तस्वीर नहीं +हसरत-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार रही जाती है +जादा-ए-राह-ए-वफ़ा जुज़ दम-ए-शमशीर नहीं +रंज-ए-नौमीदी-ए-जावेद गवारा रहियो +ख़ुश हूँ गर नाला-ज़बूनी कश-ए-तासीर नहीं +सर खुजाता है जहाँ ज़ख़्म-ए-सर अच्छा हो जाए +लज़्ज़त-ए-संग ब-अंदाज़ा-ए-तक़रीर नहीं +जब करम रुख़्सत-ए-बेबाकी-ओ-गुस्ताख़ी दे +कोई तक़्सीर ब-जुज़ ख़जलत-ए-तक़सीर नहीं +'ग़ालिब' अपना ये अक़ीदा है ब-क़ौल-ए-'नासिख़' +आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं +'मीर' के शेर का अहवाल कहूँ क्या 'ग़ालिब' +जिस का दीवान कम-अज़-गुलशन-ए-कश्मीर नहीं +आईना दाम को पर्दे में छुपाता है अबस +कि परी-ज़ाद-ए-नज़र क़ाबिल-ए-तस्ख़ीर नहीं +मिस्ल-ए-गुल ज़ख़्म है मेरा भी सिनाँ से तव्वाम +तेरा तरकश ही कुछ आबिस्तनी-ए-तीर नहीं " +junuun-kii-dast-giirii-kis-se-ho-gar-ho-na-uryaanii-mirza-ghalib-ghazals," +जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी +गरेबाँ-चाक का हक़ हो गया है मेरी गर्दन पर +बा-रंग-ए-कागज़-ए-आतिश-ज़दा नैरंग-ए-बेताबी +हज़ार आईना दिल बाँधे है बाल-ए-यक-तपीदन पर +फ़लक से हम को ऐश-ए-रफ़्ता का क्या क्या तक़ाज़ा है +मता-ए-बुर्दा को समझे हुए हैं क़र्ज़ रहज़न पर +हम और वो बे-सबब रंज-आशना दुश्मन कि रखता है +शुआ-ए-मेहर से तोहमत निगह की चश्म-ए-रौज़न पर +फ़ना को सौंप गर मुश्ताक़ है अपनी हक़ीक़त का +फ़रोग़-ए-ताला-ए-ख़ाशाक है मौक़ूफ़ गुलख़न पर +'असद' बिस्मिल है किस अंदाज़ का क़ातिल से कहता है +कि मश्क़-ए-नाज़ कर ख़ून-ए-दो-आलम मेरी गर्दन पर +फ़ुसून-ए-यक-दिली है लज़्ज़त-ए-बेदाद दुश्मन पर +कि वज्द-ए-बर्क़ जूँ परवाना बाल-अफ़्शाँ है ख़िर्मन पर +तकल्लुफ़ ख़ार-ख़ार-ए-इल्तिमास-ए-बे-क़ारारी है +कि रिश्ता बाँधता है पैरहन अंगुश्त-ए-सोज़न पर +ये क्या वहशत है ऐ दीवाने पेश-अज़-मर्ग वावैला +रक्खी बे-जा बिना-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर-ए-शेवन पर " +ghar-men-thaa-kyaa-ki-tiraa-gam-use-gaarat-kartaa-mirza-ghalib-ghazals," +घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता +वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है " +yaad-hai-shaadii-men-bhii-hangaama-e-yaa-rab-mujhe-mirza-ghalib-ghazals," +याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे +सुब्हा-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेर-ए-लब मुझे +है कुशाद-���-ख़ातिर-ए-वा-बस्ता दर रहन-ए-सुख़न +था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद ख़ाना-ए-मकतब मुझे +या रब इस आशुफ़्तगी की दाद किस से चाहिए +रश्क आसाइश पे है ज़िंदानियों की अब मुझे +तब्अ' है मुश्ताक़-ए-लज़्ज़त-हा-ए-हसरत क्या करूँ +आरज़ू से है शिकस्त-ए-आरज़ू मतलब मुझे +दिल लगा कर आप भी 'ग़ालिब' मुझी से हो गए +इश्क़ से आते थे माने मीरज़ा साहब मुझे " +main-unhen-chheduun-aur-kuchh-na-kahen-mirza-ghalib-ghazals," +मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें +चल निकलते जो मय पिए होते +क़हर हो या बला हो जो कुछ हो +काश के तुम मिरे लिए होते +मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था +दिल भी या-रब कई दिए होते +आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब' +कोई दिन और भी जिए होते " +khamoshiyon-men-tamaashaa-adaa-nikaltii-hai-mirza-ghalib-ghazals," +ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है +निगाह दिल से तिरे सुर्मा-सा निकलती है +फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम +सबा जो ग़ुंचे के पर्दे में जा निकलती है +न पूछ सीना-ए-आशिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह +कि ज़ख्म-ए-रौज़न-ए-दर से हवा निकलती है +ब-रंग-ए-शीशा हूँ यक-गोश-ए-दिल-ए-ख़ाली +कभी परी मिरी ख़ल्वत में आ निकलती है " +dahr-men-naqsh-e-vafaa-vajh-e-tasallii-na-huaa-mirza-ghalib-ghazals," +दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ +है ये वो लफ़्ज़ कि शर्मिंदा-ए-मअ'नी न हुआ +सब्ज़ा-ए-ख़त से तिरा काकुल-ए-सरकश न दबा +ये ज़मुर्रद भी हरीफ़-ए-दम-ए-अफ़ई न हुआ +मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ +वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ +दिल गुज़रगाह-ए-ख़याल-ए-मय-ओ-साग़र ही सही +गर नफ़स जादा-ए-सर-मंज़िल-ए-तक़्वी न हुआ +हूँ तिरे वा'दा न करने में भी राज़ी कि कभी +गोश मिन्नत-कश-ए-गुलबाँग-ए-तसल्ली न हुआ +किस से महरूमी-ए-क़िस्मत की शिकायत कीजे +हम ने चाहा था कि मर जाएँ सो वो भी न हुआ +मर गया सदमा-ए-यक-जुम्बिश-ए-लब से 'ग़ालिब' +ना-तवानी से हरीफ़-ए-दम-ए-ईसी न हुआ +न हुई हम से रक़म हैरत-ए-ख़त्त-ए-रुख़-ए-यार +सफ़्हा-ए-आइना जौलाँ-गह-ए-तूती न हुआ +वुसअत-ए-रहमत-ए-हक़ देख कि बख़्शा जावे +मुझ सा काफ़िर कि जो ममनून-ए-मआसी न हुआ " +main-aur-bazm-e-mai-se-yuun-tishna-kaam-aauun-mirza-ghalib-ghazals," +मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ +गर मैं ने की थी तौबा साक़ी को क्या हुआ था +है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं +वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था +दरमांदगी में 'ग़ालिब' कुछ बन पड़े तो जानूँ +जब रिश्ता बे-गिरह था नाख़ुन गिरह-कुशा था " +rahiye-ab-aisii-jagah-chal-kar-jahaan-koii-na-ho-mirza-ghalib-ghazals," +रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो +हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो +बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए +कोई हम-साया न हो और पासबाँ कोई न हो +पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार +और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो " +ug-rahaa-hai-dar-o-diivaar-pe-sabza-gaalib-mirza-ghalib-ghazals," +उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब' +हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है " +piinas-men-guzarte-hain-jo-kuuche-se-vo-mere-mirza-ghalib-ghazals," +पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वो मेरे +कंधा भी कहारों को बदलने नहीं देते " +gair-len-mahfil-men-bose-jaam-ke-mirza-ghalib-ghazals," +ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के +हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के +ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये +हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के +ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो +हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के +रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम +धोए धब्बे जामा-ए-एहराम के +दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर +ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के +शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर +देखिए कब दिन फिरें हम्माम के +इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया +वर्ना हम भी आदमी थे काम के " +hujuum-e-gam-se-yaan-tak-sar-niguunii-mujh-ko-haasil-hai-mirza-ghalib-ghazals," +हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है +कि तार-ए-दामन ओ तार-ए-नज़र में फ़र्क़ मुश्किल है +रफ़ू-ए-ज़ख्म से मतलब है लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न की +समझियो मत कि पास-ए-दर्द से दीवाना ग़ाफ़िल है +वो गुल जिस गुल्सिताँ में जल्वा-फ़रमाई करे 'ग़ालिब' +चटकना ग़ुंचा-ए-गुल का सदा-ए-ख़ंदा-ए-दिल है +हुआ है माने-ए-आशिक़-नवाज़ी नाज़-ए-ख़ुद-बीनी +तकल्लुफ़-बर-तरफ़ आईना-ए-तमईज़ हाएल है +ब-सैल-ए-अश्क लख़्त-ए-दिल है दामन-गीर मिज़्गाँ का +ग़रीक़-ए-बहर जूया-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-साहिल है +बहा है याँ तक अश्कों में ग़ुबा-ए-कुल्फ़त-ए-ख़ातिर +कि चश्म-ए-तर में हर इक पारा-ए-दिल पा-ए-दर-गिल है +निकलती है तपिश में बिस्मिलों की बर्क़ की शोख़ी +ग़रज़ अब तक ख़याल-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार क़ातिल है " +ham-se-khul-jaao-ba-vaqt-e-mai-parastii-ek-din-mirza-ghalib-ghazals," +हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन +वर्ना हम छेड़ेंगे रख कर उज़्र-ए-मस्ती एक दिन +ग़र्रा-ए-औज-ए-बिना-ए-आलम-ए-इमकाँ न हो +इस बुलंदी के नसीबों में है पस्ती एक दिन +क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ +रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन +नग़्मा-हा-ए-ग़म को भी ऐ दिल ग़नीमत जानिए +बे-सदा हो जाएगा ये साज़-ए-हस्ती एक दिन +धौल-धप्पा उस सरापा-नाज़ का शेवा नहीं +हम ही कर बैठे थे 'ग़ालिब' पेश-दस्ती एक दिन " +jis-jaa-nasiim-shaanaa-kash-e-zulf-e-yaar-hai-mirza-ghalib-ghazals," +जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है +नाफ़ा दिमाग़-ए-आहु-ए-दश्त-ए-ततार है +किस का सुराग़ जल्वा है हैरत को ऐ ख़ुदा +आईना फ़र्श-ए-शश-जहत-ए-इंतिज़ार है +है ज़र्रा ज़र्रा तंगी-ए-जा से ग़ुबार-ए-शौक़ +गर दाम ये है वुसअ'त-ए-सहरा शिकार है +दिल मुद्दई' ओ दीदा बना मुद्दा-अलैह +नज़्ज़ारे का मुक़द्दमा फिर रू-ब-कार है +छिड़के है शबनम आईना-ए-बर्ग-ए-गुल पर आब +ऐ अंदलीब वक़्त-ए-वदा-ए-बहार है +पच आ पड़ी है वादा-ए-दिल-दार की मुझे +वो आए या न आए पे याँ इंतिज़ार है +बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर +हर ज़र्रा के नक़ाब में दिल बे-क़रार है +ऐ अंदलीब यक कफ़-ए-ख़स बहर-ए-आशयाँ +तूफ़ान-ए-आमद आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार है +दिल मत गँवा ख़बर न सही सैर ही सही +ऐ बे-दिमाग़ आईना तिमसाल-दार है +ग़फ़लत कफ़ील-ए-उम्र ओ 'असद' ज़ामिन-ए-नशात +ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तुझे क्या इंतिज़ार है " +junuun-tohmat-kash-e-taskiin-na-ho-gar-shaadmaanii-kii-mirza-ghalib-ghazals," +जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की +नमक-पाश-ए-ख़राश-ए-दिल है लज़्ज़त ज़िंदगानी की +कशाकश-हा-ए-हस्ती से करे क्या सई-ए-आज़ादी +हुई ज़ंजीर मौज-ए-आब को फ़ुर्सत रवानी की +पस-अज़-मुर्दन भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़्लाँ है +शरार-ए-संग ने तुर्बत पे मेरी गुल-फ़िशानी की " +nafas-na-anjuman-e-aarzuu-se-baahar-khiinch-mirza-ghalib-ghazals," +नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच +अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच +कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ +ब-रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से जौहर खींच +तुझे बहाना-ए-राहत है इंतिज़ार ऐ दिल +किया है किस ने इशारा कि नाज़-ए-बिस्तर खींच +तिरी तरफ़ है ब-हसरत नज़ारा-ए-नर्गिस +ब-कोरी-ए-दिल-ओ-चश्म-ए-रक़ीब साग़र खींच +ब-नीम-ग़म्ज़ा अदा कर हक़-ए-वदीअत-ए-नाज़ +नियाम-ए-पर्दा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर से ख़ंजर खींच +मिरे क़दह में है सहबा-ए-आतिश-ए-पिन्हाँ +ब-रू-ए-सुफ़रा कबाब-ए-दिल-ए-समंदर खींच +न कह कि ताक़त-ए-रुस्वाई-ए-विसाल नहीं +अगर यही अरक़-ए-फ़ित्ना है मुकर्रर खींच +जुनून-ए-आइना मुश्ताक़-ए-यक-तमाशा है +हमारे सफ़्हे पे बाल-ए-परी से मिस्तर खींच +ख़ुमार-ए-मिन्नत-ए-साक़ी अगर यही है 'असद' +दिल-ए-गुदाख़्ता के मय-कदे में साग़र खींच " +kyaa-tang-ham-sitam-zadagaan-kaa-jahaan-hai-mirza-ghalib-ghazals," +क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है +जिस में कि एक बैज़ा-ए-मोर आसमान है +है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से +परतव से आफ़्ताब के ज़र्रे में जान है +हालाँकि है ये सीली-ए-ख़ारा से लाला रंग +ग़ाफ़िल को मेरे शीशे पे मय का गुमान है +की उस ने गर्म सीना-ए-अहल-ए-हवस में जा +आवे न क्यूँ पसंद कि ठंडा मकान है +क्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसा नहीं दिया +बस चुप रहो हमारे भी मुँह में ज़बान है +बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में +फ़रमाँ-रवा-ए-किश्वर-ए-हिन्दुस्तान है +हस्ती का ए'तिबार भी ग़म ने मिटा दिया +किस से कहूँ कि दाग़ जिगर का निशान है +है बारे ए'तिमाद-ए-वफ़ा-दारी इस क़दर +'ग़ालिब' हम इस में ख़ुश हैं कि ना-मेहरबान है +देहली के रहने वालो 'असद' को सताओ मत +बे-चारा चंद रोज़ का याँ मेहमान है " +gulshan-ko-tirii-sohbat-az-bas-ki-khush-aaii-hai-mirza-ghalib-ghazals," +गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है +हर ग़ुंचे का गुल होना आग़ोश-कुशाई है +वाँ कुंगुर-ए-इस्तिग़्ना हर-दम है बुलंदी पर +याँ नाले को और उल्टा दावा-ए-रसाई है +अज़-बस-कि सिखाता है ग़म ज़ब्त के अंदाज़े +जो दाग़ नज़र आया इक चश्म-नुमाई है " +zikr-meraa-ba-badii-bhii-use-manzuur-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं +ग़ैर की बात बिगड़ जाए तो कुछ दूर नहीं +वादा-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ है ख़ुशा ताले-ए-शौक़ +मुज़्दा-ए-क़त्ल मुक़द्दर है जो मज़कूर नहीं +शाहिद-ए-हस्ती-ए-मुतलक़ की कमर है आलम +लोग कहते हैं कि है पर हमें मंज़ूर नहीं +क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन +हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-मंसूर नहीं +हसरत ऐ ज़ौक़-ए-ख़राबी कि वो ताक़त न रही +इश्क़-ए-पुर-अरबदा की गूँ तन-ए-रंजूर नहीं +मैं जो कहता हूँ कि हम लेंगे क़यामत में तुम्हें +किस रऊनत से वो कहते हैं कि हम हूर नहीं +ज़ुल्म कर ज़ुल्म अगर लुत्फ़ दरेग़ आता हो +तू तग़ाफ़ुल में किसी रंग से मअज़ूर नहीं +साफ़ दुर्दी-कश-ए-पैमाना-ए-जम हैं हम लोग +वाए वो बादा कि अफ़्शुर्दा-ए-अंगूर नहीं +हूँ ज़ुहूरी के मुक़ाबिल में ख़िफ़ाई 'ग़ालिब' +मेरे दावे पे ये हुज्जत है कि मशहूर नहीं " +havas-ko-hai-nashaat-e-kaar-kyaa-kyaa-mirza-ghalib-ghazals," +हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या +न हो मरना तो जीने का मज़ा क्या +तजाहुल-पेशगी से मुद्दआ क्या +कहाँ तक ऐ सरापा नाज़ क्या क्या +नवाज़िश-हा-ए-बेजा देखता हूँ +शिकायत-हा-ए-रंगीं का गिला क्या +निगाह-ए-बे-महाबा चाहता हूँ +तग़ाफ़ुल-हा-ए-तमकीं-आज़मा क्या +फ़रोग़-ए-शोला-ए-ख़स यक-नफ़स है +हवस को पास-ए-नामूस-ए-वफ़ा क्या +नफ़स मौज-ए-मुहीत-ए-बे-ख़ुदी है +तग़ाफ़ुल-हा-ए-साक़ी का गिला क्या +दिमाग़-ए-इत्र-ए-पैराहन नहीं है +ग़म-ए-आवारगी-हा-ए-सबा क्या +दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर +हम उस के हैं हमारा पूछना क्या +मुहाबा क���या है मैं ज़ामिन इधर देख +शहीदान-ए-निगह का ख़ूँ-बहा क्या +सुन ऐ ग़ारत-गर-ए-जिंस-ए-वफ़ा सुन +शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की सदा क्या +किया किस ने जिगर-दारी का दावा +शकीब-ए-ख़ातिर-ए-आशिक़ भला क्या +ये क़ातिल वादा-ए-सब्र-आज़मा क्यूँ +ये काफ़िर फ़ित्ना-ए-ताक़त-रुबा क्या +बला-ए-जाँ है 'ग़ालिब' उस की हर बात +इबारत क्या इशारत क्या अदा क्या " +kare-hai-baada-tire-lab-se-kasb-e-rang-e-farog-mirza-ghalib-ghazals," +करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़ +ख़त-ए-पियाला सरासर निगाह-ए-गुल-चीं है +कभी तो इस दिल-ए-शोरीदा की भी दाद मिले +कि एक उम्र से हसरत-परस्त-ए-बालीं है +बजा है गर न सुने नाला-हा-ए-बुलबुल-ए-ज़ार +कि गोश-ए-गुल नम-ए-शबनम से पमबा-आगीं है +'असद' है नज़'अ में चल बेवफ़ा बरा-ए-ख़ुदा +मक़ाम-ए-तर्क-ए-हिजाब ओ विदा-ए-तम्कीं है " +na-leve-gar-khas-e-jauhar-taraavat-sabza-e-khat-se-mirza-ghalib-ghazals," +न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से +लगाए ख़ाना-ए-आईना में रू-ए-निगार आतिश +फ़रोग़-ए-हुस्न से होती है हल्ल-ए-मुश्किल-ए-आशिक़ +न निकले शम्अ' के पा से निकाले गर न ख़ार आतिश +शरर है रंग बअ'द इज़हार-ए-ताब-ए-जल्वा-ए-तम्कीं +करे है संग पर ख़ुर्शीद आब-ए-रू-ए-कार आतिश +पनावे बे-गुदाज़-ए-मोम रब्त-ए-पैकर-आराई +निकाले क्या निहाल-ए-शम्अ बे-तुख़्म-ए-शरार आतिश +ख़याल-ए-दूद था सर-जोश-ए-साैदा-ए-ग़लत-फ़हमी +अगर रखती न ख़ाकिस्तर-नशीनी का ग़ुबार आतिश +हवा-ए-पर-फ़िशानी बर्क़-ए-ख़िर्मन-हा-ए-ख़ातिर है +ब-बाल-ए-शोला-ए-बेताब है परवाना-ज़ार आतिश +नहीं बर्क़-ओ-शरर जुज़ वहशत-ए-ज़ब्त-ए-तपीदन-हा +बिला गर्दान-ए-बे-परवा ख़रामी-हा-ए-यार आतिश +धुएँ से आग के इक अब्र-ए-दरिया-बार हो पैदा +'असद' हैदर-परस्तों से अगर होवे दो-चार आतिश " +huzuur-e-shaah-men-ahl-e-sukhan-kii-aazmaaish-hai-mirza-ghalib-ghazals," +हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है +चमन में ख़ुश-नवायान-ए-चमन की आज़माइश है +क़द ओ गेसू में क़ैस ओ कोहकन की आज़माइश है +जहाँ हम हैं वहाँ दार-ओ-रसन की आज़माइश है +करेंगे कोहकन के हौसले का इम्तिहान आख़िर +अभी उस ख़स्ता के नेरवे तन की आज़माइश है +नसीम-ए-मिस्र को क्या पीर-ए-कनआँ' की हवा-ख़्वाही +उसे यूसुफ़ की बू-ए-पैरहन की आज़माइश है +वो आया बज़्म में देखो न कहियो फिर कि ग़ाफ़िल थे +शकेब-ओ-सब्र-ए-अहल-ए-अंजुमन की आज़माइश है +रहे दिल ही में तीर अच्छा जिगर के पार हो बेहतर +ग़रज़ शुस्त-ए-बुत-ए-नावक-फ़गन की आज़माइश है +नहीं कुछ सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे में गीराई +वफ़ादारी में शैख�� ओ बरहमन की आज़माइश है +पड़ा रह ऐ दिल-ए-वाबस्ता बेताबी से क्या हासिल +मगर फिर ताब-ए-ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की आज़माइश है +रग-ओ-पय में जब उतरे ज़हर-ए-ग़म तब देखिए क्या हो +अभी तो तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन की आज़माइश है +वो आवेंगे मिरे घर वा'दा कैसा देखना 'ग़ालिब' +नए फ़ित्नों में अब चर्ख़-ए-कुहन की आज़माइश है " +ham-par-jafaa-se-tark-e-vafaa-kaa-gumaan-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं +इक छेड़ है वगरना मुराद इम्तिहाँ नहीं +किस मुँह से शुक्र कीजिए इस लुत्फ़-ए-ख़ास का +पुर्सिश है और पा-ए-सुख़न दरमियाँ नहीं +हम को सितम अज़ीज़ सितमगर को हम अज़ीज़ +ना-मेहरबाँ नहीं है अगर मेहरबाँ नहीं +बोसा नहीं न दीजिए दुश्नाम ही सही +आख़िर ज़बाँ तो रखते हो तुम गर दहाँ नहीं +हर-चंद जाँ-गुदाज़ी-ए-क़हर-ओ-इताब है +हर-चंद पुश्त-ए-गर्मी-ए-ताब-ओ-तवाँ नहीं +जाँ मुतरिब-ए-तराना-ए-हल-मिम-मज़ीद है +लब पर्दा-संज-ए-ज़मज़मा-ए-अल-अमाँ नहीं +ख़ंजर से चीर सीना अगर दिल न हो दो-नीम +दिल में छुरी चुभो मिज़ा गर ख़ूँ-चकाँ नहीं +है नंग-ए-सीना दिल अगर आतिश-कदा न हो +है आर-ए-दिल नफ़स अगर आज़र-फ़िशाँ नहीं +नुक़साँ नहीं जुनूँ में बला से हो घर ख़राब +सौ गज़ ज़मीं के बदले बयाबाँ गिराँ नहीं +कहते हो क्या लिखा है तिरी सरनविश्त में +गोया जबीं पे सजदा-ए-बुत का निशाँ नहीं +पाता हूँ उस से दाद कुछ अपने कलाम की +रूहुल-क़ुदुस अगरचे मिरा हम-ज़बाँ नहीं +जाँ है बहा-ए-बोसा वले क्यूँ कहे अभी +'ग़ालिब' को जानता है कि वो नीम-जाँ नहीं +जिस जा कि पा-ए-सैल-ए-बला दरमियाँ नहीं +दीवानगाँ को वाँ हवस-ए-ख़ानमाँ नहीं +गुल ग़ुन्चग़ी में ग़र्क़ा-ए-दरिया-ए-रंग है +ऐ आगही फ़रेब-ए-तमाशा कहाँ नहीं +किस जुर्म से है चश्म तुझे हसरत क़ुबूल +बर्ग-ए-हिना मगर मिज़ा-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ नहीं +हर रंग-ए-गर्दिश आइना ईजाद-ए-दर्द है +अश्क-ए-सहाब जुज़ ब-विदा-ए-ख़िज़ाँ नहीं +जुज़ इज्ज़ क्या करूँ ब-तमन्ना-ए-बे-ख़ुदी +ताक़त हरीफ़-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ नहीं +इबरत से पूछ दर्द-ए-परेशानी-ए-निगाह +ये गर्द-ए-वहम जुज़ बसर-ए-इम्तिहाँ नहीं +बर्क़-ए-बजान-ए-हौसला आतिश-फ़गन 'असद' +ऐ दिल-फ़सुर्दा ताक़त-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नहीं " +pae-nazr-e-karam-tohfa-hai-sharm-e-naa-rasaaii-kaa-mirza-ghalib-ghazals," +पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का +ब-खूँ-ग़ल्तीदा-ए-सद-रंग दा'वा पारसाई का +न हो हुस्न-ए-तमाशा-दोस्त रुस्वा बेवफ़ाई का +ब-मोहर-ए-सद-नज़र साबित है दा'वा पारसाई का +ज़क��त-ए-हुस्न दे ऐ जल्वा-ए-बीनिश कि मेहर-आसा +चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हो कासा गदाई का +न मारा जान कर बे-जुर्म ग़ाफ़िल तेरी गर्दन पर +रहा मानिंद-ए-ख़ून-ए-बे-गुनह हक़ आश्नाई का +तमन्ना-ए-ज़बान महव-ए-सिपास-ए-बे-ज़बानी है +मिटा जिस से तक़ाज़ा शिकवा-ए-बे-दस्त-ओ-पाई का +वही इक बात है जो याँ नफ़स वाँ निकहत-ए-गुल है +चमन का जल्वा बाइ'स है मिरी रंगीं-नवाई का +दहान-ए-हर-बुत-ए-पैग़ारा-जू ज़ंजीर-ए-रुस्वाई +अदम तक बेवफ़ा चर्चा है तेरी बेवफ़ाई का +न दे नाले को इतना तूल 'ग़ालिब' मुख़्तसर लिख दे +कि हसरत-संज हूँ अर्ज़-ए-सितम-हा-ए-जुदाई का +जहाँ मिट जाए सई-ए-दीद ख़िज़्रआबाद-ए-आसाइश +ब-जेब-ए-हर-निगह पिन्हाँ है हासिल रहनुमाई का +ब-इज्ज़-आबाद वहम-ए-मुद्दआ तस्लीम-ए-शोख़ी है +तग़ाफ़ुल को न कर मसरूफ़-ए-तम्कीं-आज़माई का +'असद' का क़िस्सा तूलानी है लेकिन मुख़्तसर ये है +कि हसरत-कश रहा अर्ज़-ए-सितम-हा-ए-जुदाई का +हवस गुस्ताख़ी-ए-आईना तकलीफ़-ए-नज़र-बाज़ी +ब-जेब-ए-आरज़ू पिन्हाँ है हासिल दिलरुबाई का +नज़र-बाज़ी तिलिस्म-ए-वहशत-आबाद-ए-परिस्ताँ है +रहा बेगाना-ए-तासीर अफ़्सूँ आश्नाई का +न पाया दर्दमंद-ए-दूरी-ए-यारान-ए-यक-दिल ने +सवाद-ए-ख़त्त-ए-पेशानी से नुस्ख़ा मोम्याई का +'असद' ये इज्ज़-ओ-बे-सामानी-ए-फ़िरऔन-ए-तौअम है +जिसे तू बंदगी कहता है दा'वा है ख़ुदाई का " +gar-na-andoh-e-shab-e-furqat-bayaan-ho-jaaegaa-mirza-ghalib-ghazals," +गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा +बे-तकल्लुफ़ दाग़-ए-मह मोहर-ए-दहाँ हो जाएगा +ज़ोहरा गर ऐसा ही शाम-ए-हिज्र में होता है आब +परतव-ए-महताब सैल-ए-ख़ानुमाँ हो जाएगा +ले तो लूँ सोते में उस के पाँव का बोसा मगर +ऐसी बातों से वो काफ़िर बद-गुमाँ हो जाएगा +दिल को हम सर्फ-ए-वफ़ा समझे थे क्या मालूम था +यानी ये पहले ही नज़्र-ए-इम्तिहाँ हो जाएगा +सब के दिल में है जगह तेरी जो तू राज़ी हुआ +मुझ पे गोया इक ज़माना मेहरबाँ हो जाएगा +गर निगाह-ए-गर्म फ़रमाती रही तालीम-ए-ज़ब्त +शोला ख़स में जैसे ख़ूँ रग में निहाँ हो जाएगा +बाग़ में मुझ को न ले जा वर्ना मेरे हाल पर +हर गुल-ए-तर एक चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ हो जाएगा +वाए! गर मेरा तिरा इंसाफ़ महशर में न हो +अब तलक तो ये तवक़्क़ो है कि वाँ हो जाएगा +फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है 'असद' +दोस्ती नादाँ की है जी का ज़ियाँ हो जाएगा " +lataafat-be-kasaafat-jalva-paidaa-kar-nahiin-saktii-mirza-ghalib-ghazals," +लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती +चमन ज़ंगार है आईना-ए-बाद-ए-बहारी का +हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया नहीं खुद्दारी-ए-साहिल +जहाँ साक़ी हो तू बातिल है दा'वा होशियारी का +बहार-ए-रंग-ए-ख़ून-ए-गुल है सामाँ अश्क-बारी का +जुनून-ए-बर्क़ नश्तर है रग-ए-अब्र-ए-बहारी का +बरा-ए-हल्ल-ए-मुश्किल हूँ ज़ि-पा उफ़्तादा-ए-हसरत +बँधा है उक़्दा-ए-ख़ातिर से पैमाँ ख़ाकसारी का +ब-वक़्त-ए-सर-निगूनी है तसव्वुर इंतिज़ारिस्ताँ +निगह को आबलों से शग़्ल है अख़्तर-शुमारी का +'असद' साग़र-कश-ए-तस्लीम हो गर्दिश से गर्दूं की +कि नंग-ए-फ़हम-ए-मस्ताँ है गिला बद-रोज़गारी का " +biim-e-raqiib-se-nahiin-karte-vida-e-hosh-mirza-ghalib-ghazals," +बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश +मजबूर याँ तलक हुए ऐ इख़्तियार हैफ़ +जलता है दिल कि क्यूँ न हम इक बार जल गए +ऐ ना-तमामी-ए-नफ़स-ए-शोला-बार हैफ़ " +vusat-e-sai-e-karam-dekh-ki-sar-taa-sar-e-khaak-mirza-ghalib-ghazals," +वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक +गुज़रे है आबला-पा अब्र-ए-गुहर-बार हुनूज़ +यक-क़लम काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा है सफ़्हा-ए-दश्त +नक़्श-ए-पा में है तब-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार हुनूज़ +दाग़-ए-अतफ़ाल है दीवाना ब-कोहसार हुनूज़ +ख़ल्वत-ए-संग में है नाला तलब-गार हुनूज़ +ख़ाना है सैल से ख़ू-कर्दा-ए-दीदार हुनूज़ +दूरबीं दर-ज़दा है रख़्ना-ए-दीवार हुनूज़ +आई यक-उम्र से मअज़ूर-ए-तमाशा नर्गिस +चश्म-ए-शबनम में न टूटा मिज़ा-ए-ख़ार हुनूज़ +क्यूँ हुआ था तरफ़-ए-आबला-ए-पा या-रब +जादा है वा-शुदन-ए-पेचिश-ए-तूमार हुनूज़ +हों ख़मोशी-ए-चमन हसरत-ए-दीदार 'असद' +मिज़ा है शाना-कश-ए-तुर्रा-ए-गुफ़्तार हुनूज़ " +kyuun-jal-gayaa-na-taab-e-rukh-e-yaar-dekh-kar-mirza-ghalib-ghazals," +क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर +जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर +आतिश-परस्त कहते हैं अहल-ए-जहाँ मुझे +सरगर्म-ए-नाला-हा-ए-शरर-बार देख कर +क्या आबरू-ए-इश्क़ जहाँ आम हो जफ़ा +रुकता हूँ तुम को बे-सबब आज़ार देख कर +आता है मेरे क़त्ल को पर जोश-ए-रश्क से +मरता हूँ उस के हाथ में तलवार देख कर +साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़ +लरज़े है मौज-ए-मय तिरी रफ़्तार देख कर +वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ +हम को हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार देख कर +बिक जाते हैं हम आप मता-ए-सुख़न के साथ +लेकिन अयार-ए-तबअ-ए-ख़रीदार देख कर +ज़ुन्नार बाँध सुब्हा-ए-सद-दाना तोड़ डाल +रह-रौ चले है राह को हमवार देख कर +इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं +जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर +क्या बद-गुमाँ है मुझ से कि आईने में मिरे +तूती का अक्स समझे है ज़ंगार देख कर +गिरनी थी हम पे बर्क़-ए-तजल्ली न तूर पर +देते हैं बादा ज़र्फ़-ए-क़दह-ख़्वार देख कर +सर फोड़ना वो 'ग़ालिब'-ए-शोरीदा हाल का +याद आ गया मुझे तिरी दीवार देख कर " +tum-jaano-tum-ko-gair-se-jo-rasm-o-raah-ho-mirza-ghalib-ghazals," +तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो +मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो +बचते नहीं मुवाख़ज़ा-ए-रोज़-ए-हश्र से +क़ातिल अगर रक़ीब है तो तुम गवाह हो +क्या वो भी बे-गुनह-कुश ओ हक़-ना-शनास हैं +माना कि तुम बशर नहीं ख़ुर्शीद ओ माह हो +उभरा हुआ नक़ाब में है उन के एक तार +मरता हूँ मैं कि ये न किसी की निगाह हो +जब मय-कदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद +मस्जिद हो मदरसा हो कोई ख़ानक़ाह हो +सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ़ सब दुरुस्त +लेकिन ख़ुदा करे वो तिरा जल्वा-गाह हो +'ग़ालिब' भी गर न हो तो कुछ ऐसा ज़रर नहीं +दुनिया हो या रब और मिरा बादशाह हो " +ibn-e-maryam-huaa-kare-koii-mirza-ghalib-ghazals," +इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई +मेरे दुख की दवा करे कोई +शरअ' ओ आईन पर मदार सही +ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई +चाल जैसे कड़ी कमान का तीर +दिल में ऐसे के जा करे कोई +बात पर वाँ ज़बान कटती है +वो कहें और सुना करे कोई +बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ +कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई +न सुनो गर बुरा कहे कोई +न कहो गर बुरा करे कोई +रोक लो गर ग़लत चले कोई +बख़्श दो गर ख़ता करे कोई +कौन है जो नहीं है हाजत-मंद +किस की हाजत रवा करे कोई +क्या किया ख़िज़्र ने सिकंदर से +अब किसे रहनुमा करे कोई +जब तवक़्क़ो ही उठ गई 'ग़ालिब' +क्यूँ किसी का गिला करे कोई " +kahte-ho-na-denge-ham-dil-agar-padaa-paayaa-mirza-ghalib-ghazals," +कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया +दिल कहाँ कि गुम कीजे हम ने मुद्दआ' पाया +इश्क़ से तबीअ'त ने ज़ीस्त का मज़ा पाया +दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया +दोस्त-दार-ए-दुश्मन है ए'तिमाद-ए-दिल मा'लूम +आह बे-असर देखी नाला ना-रसा पाया +सादगी ओ पुरकारी बे-ख़ुदी ओ हुश्यारी +हुस्न को तग़ाफ़ुल में जुरअत-आज़मा पाया +ग़ुंचा फिर लगा खिलने आज हम ने अपना दिल +ख़ूँ किया हुआ देखा गुम किया हुआ पाया +हाल-ए-दिल नहीं मा'लूम लेकिन इस क़दर या'नी +हम ने बार-हा ढूँडा तुम ने बार-हा पाया +शोर-ए-पंद-ए-नासेह ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का +आप से कोई पूछे तुम ने क्या मज़ा पाया +है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब +हम ने दश्त-ए-इम्काँ को एक नक़्श-ए-पा पाया +बे-दिमाग़-ए-ख़जलत हूँ रश्क-ए-इम्तिहाँ ता-कै +एक बेकसी तुझ को आलम-आश्ना पाया +ख़ाक-बाज़ी-ए-उम्मीद कार-ख़ाना-ए-तिफ़्ली +यास को दो-आलम से लब-ब-ख़ंदा वा पाया +क्यूँ न वहशत-ए-ग़ालिब बाज-ख़्वाह-ए-तस्कीं हो +कुश्ता-ए-तग़ाफ़ुल को ख़स्म-ए-ख़ूँ-बहा पाया +फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा +उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया +शब नज़ारा-परवर था ख़्वाब में ख़याल उस का +सुब्ह मौजा-ए-गुल को नक़्श-ए-बोरिया पाया +जिस क़दर जिगर ख़ूँ हो कूचा दादन-ए-गुल है +ज़ख्म-ए-तेग़-ए-क़ातिल को तुर्फ़ा दिल-कुशा पाया +है मकीं की पा-दारी नाम-ए-साहिब-ए-ख़ाना +हम से तेरे कूचे ने नक़्श-ए-मुद्दआ पाया +ने 'असद' जफ़ा-साइल ने सितम जुनूँ-माइल +तुझ को जिस क़दर ढूँडा उल्फ़त-आज़मा पाया " +shab-ki-vo-majlis-faroz-e-khalvat-e-naamuus-thaa-mirza-ghalib-ghazals," +शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था +रिश्ता-ए-हर-शम'अ ख़ार-ए-किस्वत-ए-फ़ानूस था +मशहद-ए-आशिक़ से कोसों तक जो उगती है हिना +किस क़दर या-रब हलाक-ए-हसरत-ए-पा-बोस था +हासिल-ए-उल्फ़त न देखा जुज़-शिकस्त-ए-आरज़ू +दिल-ब-दिल पैवस्ता गोया यक लब-ए-अफ़्सोस था +क्या कहूँ बीमारी-ए-ग़म की फ़राग़त का बयाँ +जो कि खाया ख़ून-ए-दिल बे-मिन्नत-ए-कैमूस था " +dard-se-mere-hai-tujh-ko-be-qaraarii-haae-haae-mirza-ghalib-ghazals," +दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए +क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए +तेरे दिल में गर न था आशोब-ए-ग़म का हौसला +तू ने फिर क्यूँ की थी मेरी ग़म-गुसारी हाए हाए +क्यूँ मिरी ग़म-ख़्वार्गी का तुझ को आया था ख़याल +दुश्मनी अपनी थी मेरी दोस्त-दारी हाए हाए +उम्र भर का तू ने पैमान-ए-वफ़ा बाँधा तो क्या +उम्र को भी तो नहीं है पाएदारी हाए हाए +ज़हर लगती है मुझे आब-ओ-हवा-ए-ज़िंदगी +या'नी तुझ से थी इसे ना-साज़गारी हाए हाए +गुल-फ़िशानी-हा-ए-नाज़-ए-जल्वा को क्या हो गया +ख़ाक पर होती है तेरी लाला-कारी हाए हाए +शर्म-ए-रुस्वाई से जा छुपना नक़ाब-ए-ख़ाक में +ख़त्म है उल्फ़त की तुझ पर पर्दा-दारी हाए हाए +ख़ाक में नामूस-ए-पैमान-ए-मोहब्बत मिल गई +उठ गई दुनिया से राह-ओ-रस्म-ए-यारी हाए हाए +हाथ ही तेग़-आज़मा का काम से जाता रहा +दिल पे इक लगने न पाया ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए +किस तरह काटे कोई शब-हा-ए-तार-ए-बर्शिगाल +है नज़र ख़ू-कर्दा-ए-अख़्तर-शुमारी हाए हाए +गोश महजूर-ए-पयाम ओ चश्म-ए-महरूम-ए-जमाल +एक दिल तिस पर ये ना-उम्मीद-वारी हाए हाए +इश्क़ ने पकड़ा न था 'ग़ालिब' अभी वहशत का रंग +रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए " +tagaaful-dost-huun-meraa-dimaag-e-ajz-aalii-hai-mirza-ghalib-ghazals," +तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है +अगर पहलू-तही कीजे तो जा मेरी भी ख़ाली है +रहा आबाद आलम अहल-ए-हिम्मत के न होने से +भरे हैं जिस क़दर जाम-ओ-सुबू मय-ख़ाना ख़ाली है " +be-e-tidaaliyon-se-subuk-sab-men-ham-hue-mirza-ghalib-ghazals," +बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए +जितने ज़ियादा हो गए उतने ही कम हुए +पिन्हाँ था दाम सख़्त क़रीब आशियान के +उड़ने न पाए थे कि गिरफ़्तार हम हुए +हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है +याँ तक मिटे कि आप हम अपनी क़सम हुए +सख़्ती कशान-ए-इश्क़ की पूछे है क्या ख़बर +वो लोग रफ़्ता रफ़्ता सरापा अलम हुए +तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी कि दहर में +तेरे सिवा भी हम पे बहुत से सितम हुए +लिखते रहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ +हर-चंद इस में हाथ हमारे क़लम हुए +अल्लाह रे तेरी तुंदी-ए-ख़ू जिस के बीम से +अजज़ा-ए-नाला दिल में मिरे रिज़्क़-ए-हम हुए +अहल-ए-हवस की फ़त्ह है तर्क-ए-नबर्द-ए-इश्क़ +जो पाँव उठ गए वही उन के अलम हुए +नाले अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे +जो वाँ न खिंच सके सो वो याँ आ के दम हुए +छोड़ी 'असद' न हम ने गदाई में दिल-लगी +साइल हुए तो आशिक़-ए-अहल-ए-करम हुए " +gam-nahiin-hotaa-hai-aazaadon-ko-besh-az-yak-nafas-mirza-ghalib-ghazals," +ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स +बर्क़ से करते हैं रौशन शम्-ए-मातम-ख़ाना हम +महफ़िलें बरहम करे है गंजिंफ़ा-बाज़-ए-ख़याल +हैं वरक़-गर्दानी-ए-नैरंग-ए-यक-बुत-ख़ाना हम +बावजूद-ए-यक-जहाँ हंगामा पैदाई नहीं +हैं चराग़ान-ए-शबिस्तान-ए-दिल-ए-परवाना हम +ज़ोफ़ से है ने क़नाअत से ये तर्क-ए-जुस्तुजू +हैं वबाल-ए-तकिया-गाह-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना हम +दाइम-उल-हब्स इस में हैं लाखों तमन्नाएँ 'असद' +जानते हैं सीना-ए-पुर-ख़ूँ को ज़िंदाँ-ख़ाना हम +बस-कि हैं बद-मस्त-ए-ब-शिकन ब-शिकन-ए-मय-ख़ाना हम +मू-ए-शीशा को समझते हैं ख़त-ए-पैमाना हम +बस-कि हर-यक-मू-ए-ज़ुल्फ़-अफ़्शाँ से है तार-ए-शुआअ' +पंजा-ए-ख़ुर्शीद को समझे हैं दस्त-ए-शाना हम +मश्क़-ए-अज़-ख़ुद-रफ़्तगी से हैं ब-गुलज़ार-ए-ख़याल +आश्ना ताबीर-ए-ख़्वाब-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना हम +फ़र्त-ए-बे-ख़्वाबी से हैं शब-हा-ए-हिज्र-ए-यार में +जूँ ज़बान-ए-शम्अ' दाग़-ए-गर्मी-ए-अफ़्साना हम +शाम-ए-ग़म में सोज़-ए-इश्क़-ए-आतिश-ए-रुख़्सार से +पुर-फ़शान-ए-सोख़्तन हैं सूरत-ए-परवाना हम +हसरत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना याँ से समझा चाहिए +दो-जहाँ हश्र-ए-ज़बान-ए-ख़ुश्क हैं जूँ शाना हम +कश्ती-ए-आलम ब-तूफ़ान-ए-तग़ाफ़ुल दे कि हैं +आलम-ए-आब-ए-गुदाज़-ए-जौहर-ए-अफ़्साना हम +वहशत-ए-बे-रब्ती-ए-पेच-ओ-ख़म-ए-हस्ती न पूछ +नंग-ए-बालीदन हैं जूँ मू-ए-सर-ए-दीवाना हम " +tum-apne-shikve-kii-baaten-na-khod-khod-ke-puuchho-mirza-ghalib-ghazals," +तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो +हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है +दिला ये दर्द-ओ-अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर +न गिर्या-ए-सहरी है न आह-ए-नीम-शबी है +नज़र ब-नक़्स-ए-गदायाँ कमाल-ए-बे-अदबी है +कि ख़ार-ए-ख़ुश्क को भी दावा-ए-चमन-नसबी है +हुआ विसाल से शौक़-ए-दिल-ए-हरीस ज़ियादा +लब-ए-क़दह पे कफ़-ए-बादा जोश-ए-तिश्ना-लबी है +ख़ुशा वो दिल कि सरापा तिलिस्म-ए-बे-ख़बरी हो +जुनून ओ यास ओ अलम रिज़्क़-ए-मुद्दआ-तलबी है +चमन में किस के ये बरहम हुइ है बज़्म-ए-तमाशा +कि बर्ग बर्ग-ए-समन शीशा रेज़ा-ए-हलबी है +इमाम-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन अमीर-ए-सूरत-ओ-मअनी +'अली' वली असदुल्लाह जानशीन-ए-नबी है " +garm-e-fariyaad-rakhaa-shakl-e-nihaalii-ne-mujhe-mirza-ghalib-ghazals," +गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे +तब अमाँ हिज्र में दी बर्द-ए-लयाली ने मुझे +निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम +ले लिया मुझ से मिरी हिम्मत-ए-आली ने मुझे +कसरत-आराइ-ए-वहदत है परस्तारी-ए-वहम +कर दिया काफ़िर इन असनाम-ए-ख़याली ने मुझे +हवस-ए-गुल के तसव्वुर में भी खटका न रहा +अजब आराम दिया बे-पर-ओ-बाली ने मुझे +ज़िंदगी में भी रहा ज़ौक़-ए-फ़ना का मारा +नश्शा बख़्शा ग़ज़ब उस साग़र-ए-ख़ाली ने मुझे +बस-कि थी फ़स्ल-ए-ख़िज़ान-ए-चमानिस्तान-ए-सुख़न +रंग-ए-शोहरत न दिया ताज़ा-ख़याली ने मुझे +जल्वा-ए-ख़ुर से फ़ना होती है शबनम 'ग़ालिब' +खो दिया सतवत-ए-अस्मा-ए-जलाली ने मुझे " +phir-huaa-vaqt-ki-ho-baal-kushaa-mauj-e-sharaab-mirza-ghalib-ghazals," +फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब +दे बत-ए-मय को दिल-ओ-दस्त-ए-शना मौज-ए-शराब +पूछ मत वज्ह-ए-सियह-मस्ती-ए-अरबाब-ए-चमन +साया-ए-ताक में होती है हवा मौज-ए-शराब +जो हुआ ग़र्क़ा-ए-मय बख़्त-ए-रसा रखता है +सर से गुज़रे पे भी है बाल-ए-हुमा मौज-ए-शराब +है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर +मौज-ए-हस्ती को करे फ़ैज़-ए-हवा मौज-ए-शराब +चार मौज उठती है तूफ़ान-ए-तरब से हर सू +मौज-ए-गुल मौज-ए-शफ़क़ मौज-ए-सबा मौज-ए-शराब +जिस क़दर रूह-ए-नबाती है जिगर तिश्ना-ए-नाज़ +दे है तस्कीं ब-दम-ए-आब-ए-बक़ा मौज-ए-शराब +बस-कि दौड़े है रग-ए-ताक में ख़ूँ हो हो कर +शहपर-ए-रंग से है बाल-कुशा मौज-ए-शराब +मौजा-ए-गुल से चराग़ाँ है गुज़र-गाह-ए-ख़याल +है तसव्वुर में ज़ि-बस जल्वा-नुमा मौज-ए-शराब +नश्शे के ���र्दे में है महव-ए-तमाशा-ए-दिमाग़ +बस-कि रखती है सर-ए-नश-ओ-नुमा मौज-ए-शराब +एक आलम पे हैं तूफ़ानी-ए-कैफ़ियत-ए-फ़स्ल +मौजा-ए-सब्ज़ा-ए-नौ-ख़ेज़ से ता मौज-ए-शराब +शरह-ए-हंगामा-ए-हस्ती है ज़हे मौसम-ए-गुल +रह-बर-ए-क़तरा-बा-दरिया है ख़ोशा मौज-ए-शराब +होश उड़ते हैं मिरे जल्वा-ए-गुल देख 'असद' +फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब " +kaabe-men-jaa-rahaa-to-na-do-taana-kyaa-kahen-mirza-ghalib-ghazals," +काबे में जा रहा तो न दो ता'ना क्या कहें +भूला हूँ हक़्क़-ए-सोहबत-ए-अहल-ए-कुनिश्त को +ताअ'त में ता रहे न मय-ओ-अंगबीं की लाग +दोज़ख़ में डाल दो कोई ले कर बहिश्त को +हूँ मुन्हरिफ़ न क्यूँ रह-ओ-रस्म-ए-सवाब से +टेढ़ा लगा है क़त क़लम-ए-सरनविश्त को +'ग़ालिब' कुछ अपनी सई से लहना नहीं मुझे +ख़िर्मन जले अगर न मलख़ खाए किश्त को " +bas-ki-dushvaar-hai-har-kaam-kaa-aasaan-honaa-mirza-ghalib-ghazals," +बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना +आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना +गिर्या चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की +दर ओ दीवार से टपके है बयाबाँ होना +वा-ए-दीवानगी-ए-शौक़ कि हर दम मुझ को +आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना +जल्वा अज़-बस-कि तक़ाज़ा-ए-निगह करता है +जौहर-ए-आइना भी चाहे है मिज़्गाँ होना +इशरत-ए-क़त्ल-गह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ +ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उर्यां होना +ले गए ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-नशात +तू हो और आप ब-सद-रंग-ए-गुलिस्ताँ होना +इशरत-ए-पारा-ए-दिल ज़ख़्म-ए-तमन्ना खाना +लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिगर ग़र्क़-ए-नमक-दाँ होना +की मिरे क़त्ल के बा'द उस ने जफ़ा से तौबा +हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशेमाँ होना +हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब' +जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना " +vaan-us-ko-haul-e-dil-hai-to-yaan-main-huun-sharm-saar-mirza-ghalib-ghazals," +वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार +या'नी ये मेरी आह की तासीर से न हो +अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख +आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीर से न हो " +aaiina-dekh-apnaa-saa-munh-le-ke-rah-gae-mirza-ghalib-ghazals," +आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए +साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था +क़ासिद को अपने हाथ से गर्दन न मारिए +उस की ख़ता नहीं है ये मेरा क़ुसूर था +ज़ोफ़-ए-जुनूँ को वक़्त-ए-तपिश दर भी दूर था +इक घर में मुख़्तसर बयाबाँ ज़रूर था +ऐ वाए-ग़फ़लत-ए-निगह-ए-शौक़ वर्ना याँ +हर पारा संग लख़्त-ए-दिल-ए-कोह-ए-तूर था +दर्स-ए-तपिश है बर्क़ को अब जिस के नाम से +वो दिल है ये कि जिस का तख़ल्लुस सुबूर था +हर रंग में जला 'असद'-ए-फ़ित्ना-इन्तिज़��र +परवाना-ए-तजल्ली-ए-शम-ए-ज़ुहूर था +शायद कि मर गया तिरे रुख़्सार देख कर +पैमाना रात माह का लबरेज़-ए-नूर था +जन्नत है तेरी तेग़ के कुश्तों की मुंतज़िर +जौहर सवाद-ए-जल्वा-ए-मिज़्गान-ए-हूर था " +nikohish-hai-sazaa-fariyaadi-e-be-daad-e-dilbar-kii-mirza-ghalib-ghazals," +निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की +मबादा ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा हो सुब्ह महशर की +रग-ए-लैला को ख़ाक-ए-दश्त-ए-मजनूँ रेशगी बख़्शे +अगर बोवे बजा-ए-दाना दहक़ाँ नोक निश्तर की +पर-ए-परवाना शायद बादबान-ए-कश्ती-ए-मय था +हुई मज्लिस की गर्मी से रवानी दौर-ए-साग़र की +करूँ बे-दाद-ए-ज़ौक़-ए-पर-फ़िशानी अर्ज़ क्या क़ुदरत +कि ताक़त उड़ गई उड़ने से पहले मेरे शहपर की +कहाँ तक रोऊँ उस के खे़मे के पीछे क़यामत है +मिरी क़िस्मत में या-रब क्या न थी दीवार पत्थर की +ब-जुज़ दीवानगी होता न अंजाम-ए-ख़ुद-आराई +अगर पैदा न करता आइना ज़ंजीर जौहर की +ग़ुरूर-ए-लुत्फ़-ए-साक़ी नश्शा-ए-बे-बाकी-ए-मस्ताँ +नम-ए-दामान-ए-इस्याँ है तरावत मौज-ए-कौसर की +मिरा दिल माँगते हैं आरियत अहल-ए-हवस शायद +ये जाना चाहते हैं आज दावत में समुंदर की +'असद' जुज़ आब-ए-बख़्शीदन ज़े-दरिया ख़िज़्र को क्या था +डुबोता चश्मा-ए-हैवाँ में गर कश्ती सिकंदर की " +ek-jaa-harf-e-vafaa-likhaa-thaa-so-bhii-mit-gayaa-mirza-ghalib-ghazals," +एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया +ज़ाहिरन काग़ज़ तिरे ख़त का गलत-बर-दार है +जी जले ज़ौक़-ए-फ़ना की ना-तमामी पर न क्यूँ +हम नहीं जलते नफ़स हर चंद आतिश-बार है +आग से पानी में बुझते वक़्त उठती है सदा +हर कोई दरमांदगी में नाले से नाचार है +है वही बद-मस्ती-ए-हर-ज़र्रा का ख़ुद उज़्र-ख़्वाह +जिस के जल्वे से ज़मीं ता आसमाँ सरशार है +मुझ से मत कह तू हमें कहता था अपनी ज़िंदगी +ज़िंदगी से भी मिरा जी इन दिनों बे-ज़ार है +आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता +तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत-ए-दीदार है " +dil-miraa-soz-e-nihaan-se-be-muhaabaa-jal-gayaa-mirza-ghalib-ghazals," +दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया +आतिश-ए-ख़ामोश की मानिंद गोया जल गया +दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं +आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया +मैं अदम से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बार-हा +मेरी आह-ए-आतिशीं से बाल-ए-अन्क़ा जल गया +अर्ज़ कीजे जौहर-ए-अंदेशा की गर्मी कहाँ +कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सहरा जल गया +दिल नहीं तुझ को दिखाता वर्ना दाग़ों की बहार +इस चराग़ाँ का करूँ क्या कार-फ़रमा जल गया +मैं हूँ और अफ़्सुर्दगी की आरज़ू 'ग़ालिब' कि दिल +देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया +ख़ानमान-ए-आशिक़ाँ दुकान-ए-आतिश-बाज़ है +शो'ला-रू जब हो गए गर्म-ए-तमाशा जल गया +ता कुजा अफ़सोस-ए-गरमी-हा-ए-सोहबत ऐ ख़याल +दिल बा-सोज़-ए-आतिश-ए-दाग़-ए-तमन्ना जल गया +है 'असद' बेगाना-ए-अफ़्सुर्दगी ऐ बेकसी +दिल ज़-अंदाज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया +दूद मेरा सुंबुलिस्ताँ से करे है हम-सरी +बस-कि शौक़-ए-आतिश-गुल से सरापा जल गया +शम्अ-रूयाँ की सर-अंगुश्त-ए-हिनाई देख कर +ग़ुंचा-ए-गुल पर-फ़िशाँ परवाना-आसा जल गया " +naala-juz-husn-e-talab-ai-sitam-iijaad-nahiin-mirza-ghalib-ghazals," +नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं +है तक़ाज़ा-ए-जफ़ा शिकवा-ए-बेदाद नहीं +इश्क़-ओ-मज़दूरी-ए-इशरत-गह-ए-ख़ुसरव क्या ख़ूब +हम को तस्लीम निको-नामी-ए-फ़रहाद नहीं +कम नहीं वो भी ख़राबी में प वुसअत मालूम +दश्त में है मुझे वो ऐश कि घर याद नहीं +अहल-ए-बीनश को है तूफ़ान-ए-हवादिस मकतब +लुत्मा-ए-मौज कम-अज़ सैली-ए-उस्ताद नहीं +वाए महरूमी-ए-तस्लीम-ओ-बदा हाल-ए-वफ़ा +जानता है कि हमें ताक़त-ए-फ़रयाद नहीं +रंग-ए-तमकीन-ए-गुल-ओ-लाला परेशाँ क्यूँ है +गर चराग़ान-ए-सर-ए-रह-गुज़र-ए-बाद नहीं +सबद-ए-गुल के तले बंद करे है गुलचीं +मुज़्दा ऐ मुर्ग़ कि गुलज़ार में सय्याद नहीं +नफ़्य से करती है इसबात तराविश गोया +दी है जा-ए-दहन उस को दम-ए-ईजाद नहीं +कम नहीं जल्वागरी में तिरे कूचे से बहिश्त +यही नक़्शा है वले इस क़दर आबाद नहीं +करते किस मुँह से हो ग़ुर्बत की शिकायत 'ग़ालिब' +तुम को बे-मेहरी-ए-यारान-ए-वतन याद नहीं " +jab-ba-taqriib-e-safar-yaar-ne-mahmil-baandhaa-mirza-ghalib-ghazals," +जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा +तपिश-ए-शौक़ ने हर ज़र्रे पे इक दिल बाँधा +अहल-ए-बीनश ने ब-हैरत-कदा-ए-शोख़ी-ए-नाज़ +जौहर-ए-आइना को तूती-ए-बिस्मिल बाँधा +यास ओ उम्मीद ने यक-अरबदा मैदाँ माँगा +इज्ज़-ए-हिम्मत ने तिलिस्म-ए-दिल-ए-साइल बाँधा +न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब' +गरचे दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा +इस्तिलाहात-ए-असीरान-ए-तग़ाफ़ुल मत पूछ +जो गिरह आप न खोली उसे मुश्किल बाँधा +यार ने तिश्नगी-ए-शौक़ के मज़मूँ चाहे +हम ने दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा +तपिश-आईना परवाज़-ए-तमन्ना लाई +नामा-ए-शौक़ ब-हाल-ए-दिल-ए-बिस्मिल बाँधा +दीदा ता-दिल है यक-आईना चराग़ाँ किस ने +ख़ल्वत-ए-नाज़ पे पैराया-ए-महफ़िल बाँधा +ना-उमीदी ने ब-तक़रीब-ए-मज़ामीन-ए-ख़ुमार +कूच-ए-मौज को ख़म्���ाज़ा-ए-साहिल बाँधा +मुतरिब-ए-दिल ने मिरे तार-ए-नफ़स से 'ग़ालिब' +साज़ पर रिश्ता पए नग़्मा-ए-'बेदिल' बाँधा " +rahaa-gar-koii-taa-qayaamat-salaamat-mirza-ghalib-ghazals," +रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत +फिर इक रोज़ मरना है हज़रत-सलामत +जिगर को मिरे इश्क़-ए-खूँ-नाबा-मशरब +लिखे है ख़ुदावंद-ए-नेमत सलामत +अलर्रग़्म-ए-दुश्मन शहीद-ए-वफ़ा हूँ +मुबारक मुबारक सलामत सलामत +नहीं गर सर-ओ-बर्ग-ए-इदराक-ए-मानी +तमाशा-ए-नैरंग-ए-सूरत सलामत +दो-आलम की हस्ती पे ख़त्त-ए-फ़ना खींच +दिल-ओ-दस्त-ए-अरबाब-ए-हिम्मत सलामत +नहीं गर ब-काम-ए-दिल-ए-ख़स्ता गर्दूं +जिगर-ख़ाई-ए-जोश-ए-हसरत सलामत +न औरों की सुनता न कहता हूँ अपनी +सर-ए-ख़स्ता दुश्वार-ए-वहशत सलामत +वफ़ूर-ए-बला है हुजूम-ए-वफ़ा है +सलामत मलामत मलामत सलामत +न फ़िक्र-ए-सलामत न बीम-ए-मलामत +ज़े-ख़ुद-रफ़्तगी-हा-ए-हैरत सलामत +रहे 'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता मग़्लूब-ए-गर्दूं +ये क्या बे-नियाज़ी है हज़रत-सलामत " +laagar-itnaa-huun-ki-gar-tuu-bazm-men-jaa-de-mujhe-mirza-ghalib-ghazals," +लाग़र इतना हूँ कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे +मेरा ज़िम्मा देख कर गर कोई बतला दे मुझे +क्या तअ'ज्जुब है जो उस को देख कर आ जाए रहम +वाँ तलक कोई किसी हीले से पहुँचा दे मुझे +मुँह न दिखलावे न दिखला पर ब-अंदाज़-ए-इताब +खोल कर पर्दा ज़रा आँखें ही दिखला दे मुझे +याँ तलक मेरी गिरफ़्तारी से वो ख़ुश है कि मैं +ज़ुल्फ़ गर बन जाऊँ तो शाने में उलझा दे मुझे " +paa-ba-daaman-ho-rahaa-huun-bas-ki-main-sahraa-navard-mirza-ghalib-ghazals," +पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द +ख़ार-ए-पा हैं जौहर-ए-आईना-ए-ज़ानू मुझे +देखना हालत मिरे दिल की हम-आग़ोशी के वक़्त +है निगाह-ए-आश्ना तेरा सर-ए-हर-मू मुझे +हूँ सरापा साज़-ए-आहंग-ए-शिकायत कुछ न पूछ +है यही बेहतर कि लोगों में न छेड़े तू मुझे +बाइस-ए-वामांदगी है उम्र-ए-फ़ुर्सत-जू मुझे +कर दिया है पा-ब-ज़ंजीर-ए-रम-ए-आहू मुझे +ख़ाक-ए-फ़ुर्सत बर-सर-ए-ज़ौक़-ए-फ़ना ऐ इंतिज़ार +है ग़ुबार-ए-शीशा-ए-साअत रम-ए-आहू मुझे +हम-ज़बाँ आया नज़र फ़िक्र-ए-सुख़न में तू मुझे +मर्दुमुक है तूती-ए-आईना-ए-ज़ानू मुझे +याद-ए-मिज़्गाँ में ब-नश्तर-ए-ज़ार-ए-सौदा-ए-ख़याल +चाहिए वक़्त-ए-तपिश यक-दस्त सद-पहलू मुझे +इज़्तिराब-ए-उम्र बे-मतलब नहीं आख़िर कि है +जुसतुजू-ए-फ़ुर्सत-ए-रब्त-ए-सर-ए-ज़ानू मुझे +चाहिए दरमान-ए-रीश-ए-दिल भी तेग़-ए-यार से +मरम-ए-ज़ंगार है वो वसमा-ए-अबरू मुझे +कसरत-ए-जौर-ओ-सितम से हो गया हूँ बे-दिमाग़ +ख़ूब-रूयों ने बनाया 'ग़ालिब'-ए-बद-ख़ू मुझे +फ़ुर्सत-ए-आराम-ए-ग़श हस्ती है बोहरान-ए-अदम +है शिकस्त-ए-रंग-ए-इम्काँ गर्दिश-ए-पहलू मुझे +साज़-ए-ईमा-ए-फ़ना है आलम-ए-पीरी 'असद' +क़ामत-ए-ख़म से है हासिल शोख़ी-ए-अबरू मुझे " +nahiin-hai-zakhm-koii-bakhiye-ke-dar-khur-mire-tan-men-mirza-ghalib-ghazals," +नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में +हुआ है तार-ए-अश्क-ए-यास रिश्ता चश्म-ए-सोज़न में +हुई है माने-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा ख़ाना-वीरानी +कफ़-ए-सैलाब बाक़ी है ब-रंग-ए-पुम्बा रौज़न में +वदीअत-ख़ाना-ए-बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ हूँ +नगीन-ए-नाम-ए-शाहिद है मिरे हर क़तरा-ए-ख़ूँ तन में +बयाँ किस से हो ज़ुल्मत-गुस्तरी मेरे शबिस्ताँ की +शब-ए-मह हो जो रख दूँ पुम्बा दीवारों के रौज़न में +निकोहिश माना-ए-बे-रब्ती-ए-शोर-ए-जुनूँ आई +हुआ है ख़ंदा-ए-अहबाब बख़िया जेब-ओ-दामन में +हुए उस मेहर-वश के जल्वा-ए-तिमसाल के आगे +पर-अफ़्शाँ जौहर आईने में मिस्ल-ए-ज़र्रा रौज़न में +न जानूँ नेक हूँ या बद हूँ पर सोहबत-मुख़ालिफ़ है +जो गुल हूँ तो हूँ गुलख़न में जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में +हज़ारों दिल दिये जोश-ए-जुनून-ए-इश्क़ ने मुझ को +सियह हो कर सुवैदा हो गया हर क़तरा-ए-ख़ूँ तन में +'असद' ज़िंदानी-ए-तासीर-ए-उल्फ़त-हा-ए-ख़ूबाँ हूँ +ख़म-ए-दस्त-ए-नवाज़िश हो गया है तौक़ गर्दन में +फ़ुज़ूँ की दोस्तों ने हिर्स-ए-क़ातिल ज़ौक़-ए-कुश्तन में +होए हैं बख़िया-हा-ए-ज़ख़्म जौहर तेग़-ए-दुश्मन में +तमाशा करदनी है लुत्फ़-ए-ज़ख़्म-ए-इंतिज़ार ऐ दिल +सुवैदा दाग़-ए-मर्हम मर्दुमुक है चश्म-ए-सोज़न में +दिल-ओ-दीन-ओ-ख़िरद ताराज-ए-नाज़-ए-जल्वा-पैराई +हुआ है जौहर-ए-आईना ख़ेल-ए-मोर ख़िर्मन में +निकोहिश माने-ए-दीवानगी-हा-ए-जुनूँ आई +लगाया ख़ंदा-ए-नासेह ने बख़िया जेब-ओ-दामन में " +sab-kahaan-kuchh-laala-o-gul-men-numaayaan-ho-gaiin-mirza-ghalib-ghazals," +सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं +ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं +याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ +लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं +थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ +शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं +क़ैद में याक़ूब ने ली गो न यूसुफ़ की ख़बर +लेकिन आँखें रौज़न-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ हो गईं +सब रक़ीबों से हों ना-ख़ुश पर ज़नान-ए-मिस्र से +है ज़ुलेख़ा ख़ुश कि महव-ए-माह-ए-कनआँ हो गईं +जू-ए-ख़ूँ आँखों से बहने दो कि है शाम-ए-फ़िराक़ +मैं ये समझूँगा कि शमएँ दो फ़रोज़ाँ हो गईं +इ��� परी-ज़ादों से लेंगे ख़ुल्द में हम इंतिक़ाम +क़ुदरत-ए-हक़ से यही हूरें अगर वाँ हो गईं +नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं +तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं +मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया +बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं +वो निगाहें क्यूँ हुई जाती हैं या-रब दिल के पार +जो मिरी कोताही-ए-क़िस्मत से मिज़्गाँ हो गईं +बस-कि रोका मैं ने और सीने में उभरीं पै-ब-पै +मेरी आहें बख़िया-ए-चाक-ए-गरेबाँ हो गईं +वाँ गया भी मैं तो उन की गालियों का क्या जवाब +याद थीं जितनी दुआएँ सर्फ़-ए-दरबाँ हो गईं +जाँ-फ़िज़ा है बादा जिस के हाथ में जाम आ गया +सब लकीरें हाथ की गोया रग-ए-जाँ हो गईं +हम मुवह्हिद हैं हमारा केश है तर्क-ए-रूसूम +मिल्लतें जब मिट गईं अजज़ा-ए-ईमाँ हो गईं +रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज +मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं +यूँ ही गर रोता रहा 'ग़ालिब' तो ऐ अहल-ए-जहाँ +देखना इन बस्तियों को तुम कि वीराँ हो गईं " +kaar-gaah-e-hastii-men-laala-daag-saamaan-hai-mirza-ghalib-ghazals," +कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है +बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है +ग़ुंचा ता शगुफ़्तन-हा बर्ग-ए-आफ़ियत मालूम +बा-वजूद-ए-दिल-जमई ख़्वाब-ए-गुल परेशाँ है +हम से रंज-ए-बेताबी किस तरह उठाया जाए +दाग़ पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ शो'ला ख़स-ब-दंदाँ है +इश्क़ के तग़ाफ़ुल से हर्ज़ा-गर्द है आलम +रू-ए-शश-जिहत-आफ़ाक़ पुश्त-ए-चश्म-ए-ज़िन्दाँ है " +gaafil-ba-vahm-e-naaz-khud-aaraa-hai-varna-yaan-mirza-ghalib-ghazals," +ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ +बे-शाना-ए-सबा नहीं तुर्रा गयाह का +बज़्म-ए-क़दह से ऐश-ए-तमन्ना न रख कि रंग +सैद-ए-ज़े-दाम-ए-जस्ता है उस दाम-गाह का +रहमत अगर क़ुबूल करे क्या बईद है +शर्मिंदगी से उज़्र न करना गुनाह का +मक़्तल को किस नशात से जाता हूँ मैं कि है +पुर-गुल ख़याल-ए-ज़ख्म से दामन निगाह का +जाँ दर-हवा-ए-यक-निगह-ए-गर्म है 'असद' +परवाना है वकील तिरे दाद-ख़्वाह का +उज़्लत-गुज़ीन-ए-बज़्म हैं वामांदागान-ए-दीद +मीना-ए-मय है आबला पा-ए-निगाह का +हर गाम आबले से है दिल दर-तह-ए-क़दम +क्या बीम अहल-ए-दर्द को सख़्ती-ए-राह का +ताऊस-ए-दर-रिकाब है हर ज़र्रा आह का +या-रब नफ़स ग़ुबार है किस जल्वा-गाह का +जेब-ए-नियाज़-ए-इश्क़ निशाँ-दार-ए-नाज़ है +आईना हूँ शिकस्तन-ए-तर्फ़-ए-कुलाह का " +laazim-thaa-ki-dekho-miraa-rastaa-koii-din-aur-mirza-ghalib-ghazals," +लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और +तन्हा गए क्यूँ अब रहो तन्हा कोई दिन और +मिट जाएगा सर गर तिरा पत्थर न घिसेगा +हूँ दर पे तिरे नासिया-फ़रसा कोई दिन और +आए हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊँ +माना कि हमेशा नहीं अच्छा कोई दिन और +जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे +क्या ख़ूब क़यामत का है गोया कोई दिन और +हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़ +क्या तेरा बिगड़ता जो न मरता कोई दिन और +तुम माह-ए-शब-ए-चार-दहुम थे मिरे घर के +फिर क्यूँ न रहा घर का वो नक़्शा कोई दिन और +तुम कौन से थे ऐसे खरे दाद-ओ-सितद के +करता मलक-उल-मौत तक़ाज़ा कोई दिन और +मुझ से तुम्हें नफ़रत सही नय्यर से लड़ाई +बच्चों का भी देखा न तमाशा कोई दिन और +गुज़री न ब-हर-हाल ये मुद्दत ख़ुश ओ ना-ख़ुश +करना था जवाँ-मर्ग गुज़ारा कोई दिन और +नादाँ हो जो कहते हो कि क्यूँ जीते हैं 'ग़ालिब' +क़िस्मत में है मरने की तमन्ना कोई दिन और " +asad-ham-vo-junuun-jaulaan-gadaa-e-be-sar-o-paa-hain-mirza-ghalib-ghazals," +'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं +कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना " +jaraahat-tohfa-almaas-armugaan-daag-e-jigar-hadiya-mirza-ghalib-ghazals," +जराहत-तोहफ़ा अल्मास-अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया +मुबारकबाद 'असद' ग़म-ख़्वार-ए-जान-ए-दर्दमंद आया +जुनूँ गर्म इंतिज़ार ओ नाला बेताबी कमंद आया +सुवैदा ता ब-लब ज़ंजीरी दूद सिपंद आया +मह अख़्तर फ़शाँ की बहर इस्तिक़बाल आँखों से +तमाशा किश्वर आईना में आईना बंद आया +तग़ाफ़ुल बद-गुमानी बल्कि मेरी सख़्त जानी से +निगाह बे हिजाब नाज़ को बीम गज़ंद आया +फ़ज़ा ख़ंदा गुल तंग ओ ज़ौक़ ऐश बे पर्दा +फ़राग़त गाह आग़ोश विदाअ' दिल पसंद आया +अदम है ख़ैर ख़्वाह जल्वा को ज़िंदान बेताबी +ख़िराम नाज़ बर्क़ ख़िरमन सई सिपंद आया " +jo-na-naqd-e-daag-e-dil-kii-kare-shola-paasbaanii-mirza-ghalib-ghazals," +जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी +तो फ़सुर्दगी निहाँ है ब-कमीन-ए-बे-ज़बानी +मुझे उस से क्या तवक़्क़ो ब-ज़माना-ए-जवानी +कभी कूदकी में जिस ने न सुनी मिरी कहानी +यूँ ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब वर्ना कहता +कि मिरे अदू को या रब मिले मेरी ज़िंदगानी " +aaiina-kyuun-na-duun-ki-tamaashaa-kahen-jise-mirza-ghalib-ghazals," +आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे +ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे +हसरत ने ला रखा तिरी बज़्म-ए-ख़याल में +गुल-दस्ता-ए-निगाह सुवैदा कहें जिसे +फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा +अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे +सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिए +वो एक मुश्त-ए-ख़ाक कि सहरा ��हें जिसे +है चश्म-ए-तर में हसरत-ए-दीदार से निहाँ +शौक़-ए-इनाँ गुसेख़्ता दरिया कहें जिसे +दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल-हा-ए-ऐश को +सुब्ह-ए-बहार पुम्बा-ए-मीना कहें जिसे +'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइ'ज़ बुरा कहे +ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे +या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो +ये महशर-ए-ख़याल कि दुनिया कहें जिसे +है इंतिज़ार से शरर आबाद रुस्तख़ेज़ +मिज़्गान-ए-कोह-कन रग-ए-ख़ारा कहें जिसे +किस फ़ुर्सत-ए-विसाल पे है गुल को अंदलीब +ज़ख़्म-ए-फ़िराक़ ख़ंदा-ए-बे-जा कहें जिसे " +har-ek-baat-pe-kahte-ho-tum-ki-tuu-kyaa-hai-mirza-ghalib-ghazals," +हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है +तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है +न शो'ले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा +कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंद-ख़ू क्या है +ये रश्क है कि वो होता है हम-सुख़न तुम से +वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़ी-ए-अदू क्या है +चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन +हमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है +जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा +कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है +रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल +जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है +वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़ +सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है +पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार +ये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है +रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी +तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है +हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता +वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है " +arz-e-naaz-e-shokhi-e-dandaan-baraae-khanda-hai-mirza-ghalib-ghazals," +अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है +दावा-ए-जमियत-ए-अहबाब जा-ए-ख़ंदा है +है अदम में ग़ुंचा महव-ए-इबरत-ए-अंजाम-ए-गुल +यक-जहाँ ज़ानू तअम्मुल दर-क़फ़ा-ए-ख़ंदा है +कुल्फ़त-ए-अफ़्सुर्दगी को ऐश-ए-बेताबी हराम +वर्ना दंदाँ दर दिल अफ़्शुर्दन बिना-ए-ख़ंदा है +शोरिश-ए-बातिन के हैं अहबाब मुंकिर वर्ना याँ +दिल मुहीत-ए-गिर्या ओ लब आशना-ए-ख़ंदा है +ख़ुद-फ़रोशी-हा-ए-हस्ती बस-कि जा-ए-ख़ंदा है +हर शिकस्त-ए-क़ीमत-ए-दिल में सदा-ए-ख़ंदा है +नक़्श-ए-इबरत दर नज़र या नक़्द-ए-इशरत दर बिसात +दो-जहाँ वुसअत ब-क़द्र-ए-यक-फ़ज़ा-ए-ख़ंदा है +जा-ए-इस्तिहज़ा है इशरत-कोशी-ए-हस्ती 'असद' +सुब्ह ओ शबनम फ़ुर्सत-ए-नश्व-ओ-नुमा-ए-ख़ंदा है " +ek-ek-qatre-kaa-mujhe-denaa-padaa-hisaab-mirza-ghalib-ghazals," +एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब +ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था +अब मैं हूँ और मातम-ए-यक-शहर-आरज़ू +तोड़ा जो तू ने आइना तिमसाल-दार था +गलियों में मेरी ना'श को खींचे फिरो कि मैं +जाँ-दादा-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था +मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल +हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़ आब-दार था +कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब +देखा तो कम हुए प ग़म-ए-रोज़गार था +किस का जुनून-ए-दीद तमन्ना-शिकार था +आईना-ख़ाना वादी-ए-जौहर-ग़ुबार था +किस का ख़याल आइना-ए-इन्तिज़ार था +हर बर्ग-ए-गुल के पर्दे में दिल बे-क़रार था +जूँ ग़ुंचा-ओ-गुल आफ़त-ए-फ़ाल-ए-नज़र न पूछ +पैकाँ से तेरे जल्वा-ए-ज़ख़्म आश्कार था +देखी वफ़ा-ए-फ़ुर्सत-ए-रंज-ओ-नशात-ए-दहर +ख़म्याज़ा यक-दराज़ी-ए-उम्र-ए-ख़ुमार था +सुब्ह-ए-क़यामत एक दुम-ए-गुर्ग थी 'असद' +जिस दश्त में वो शोख़-ए-दो-आलम शिकार था " +ham-rashk-ko-apne-bhii-gavaaraa-nahiin-karte-mirza-ghalib-ghazals," +हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते +मरते हैं वले उन की तमन्ना नहीं करते +दर-पर्दा उन्हें ग़ैर से है रब्त-ए-निहानी +ज़ाहिर का ये पर्दा है कि पर्दा नहीं करते +ये बाइस-ए-नौमीदी-ए-अर्बाब-ए-हवस है +'ग़ालिब' को बुरा कहते हैं अच्छा नहीं करते " +sar-gashtagii-men-aalam-e-hastii-se-yaas-hai-mirza-ghalib-ghazals," +सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है +तस्कीं को दे नवेद कि मरने की आस है +लेता नहीं मिरे दिल-ए-आवारा की ख़बर +अब तक वो जानता है कि मेरे ही पास है +कीजिए बयाँ सुरूर-ए-तप-ए-ग़म कहाँ तलक +हर मू मिरे बदन पे ज़बान-ए-सिपास है +है वो ग़ुरूर-ए-हुस्न से बेगाना-ए-वफ़ा +हर-चंद उस के पास दिल-ए-हक़-शनास है +पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब +इस बलग़मी-मिज़ाज को गर्मी ही रास है +हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद' +मजनूँ जो मर गया है तो जंगल उदास है +क्या ग़म है उस को जिस का 'अली' सा इमाम हो +इतना भी ऐ फ़लक-ज़दा क्यूँ बद-हवास है " +himmat-e-iltijaa-nahiin-baaqii-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी +ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी +इक तिरी दीद छिन गई मुझ से +वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी +अपनी मश्क़-ए-सितम से हाथ न खींच +मैं नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी +तेरी चश्म-ए-अलम-नवाज़ की ख़ैर +दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी +हो चुका ख़त्म अहद-ए-हिज्र-ओ-विसाल +ज़िंदगी में मज़ा नहीं बाक़ी " +chaand-nikle-kisii-jaanib-tirii-zebaaii-kaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का +रंग बदले किसी सूरत शब-ए-तन्हाई का +दौलत-ए-लब से फिर ऐ ख़ुसरव-ए-शीरीं-दहनाँ +आज अर्ज़ां हो कोई हर्फ़ शनासाई का +गर्मी-ए-रश्क से हर अंजुमन-ए-गुल-बदनाँ +तज़्किरा छेड़े तिरी पैरहन-आराई का +सेहन-ए-गुलशन में कभी ऐ शह-ए-शमशाद-क़दाँ +फिर नज़र आए सलीक़ा तिरी रानाई का +एक बार और मसीहा-ए-दिल-ए-दिल-ज़दगाँ +कोई वा'दा कोई इक़रार मसीहाई का +दीदा ओ दिल को सँभालो कि सर-ए-शाम-ए-फ़िराक़ +साज़-ओ-सामान बहम पहुँचा है रुस्वाई का " +kuchh-pahle-in-aankhon-aage-kyaa-kyaa-na-nazaaraa-guzre-thaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था +क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था +थे कितने अच्छे लोग कि जिन को अपने ग़म से फ़ुर्सत थी +सब पूछें थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था +अब के ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए +जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था +थी यारों की बोहतात तो हम अग़्यार से भी बेज़ार न थे +जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था +अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो +आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था " +ab-jo-koii-puuchhe-bhii-to-us-se-kyaa-sharh-e-haalaat-karen-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें +दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें +शाम हुई फिर जोश-ए-क़दह ने बज़्म-ए-हरीफ़ाँ रौशन की +घर को आग लगाएँ हम भी रौशन अपनी रात करें +क़त्ल-ए-दिल-ओ-जाँ अपने सर है अपना लहू अपनी गर्दन पे +मोहर-ब-लब बैठे हैं किस का शिकवा किस के साथ करें +हिज्र में शब भर दर्द-ओ-तलब के चाँद सितारे साथ रहे +सुब्ह की वीरानी में यारो कैसे बसर औक़ात करें " +yuun-sajaa-chaand-ki-jhalkaa-tire-andaaz-kaa-rang-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग +यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंग +साया-ए-चश्म में हैराँ रुख़-ए-रौशन का जमाल +सुर्ख़ी-ए-लब में परेशाँ तिरी आवाज़ का रंग +बे-पिए हूँ कि अगर लुत्फ़ करो आख़िर-ए-शब +शीशा-ए-मय में ढले सुब्ह के आग़ाज़ का रंग +चंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से +दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज़ का रंग +इक सुख़न और कि फिर रंग-ए-तकल्लुम तेरा +हर्फ़-ए-सादा को इनायत करे ए'जाज़ का रंग " +sabhii-kuchh-hai-teraa-diyaa-huaa-sabhii-raahaten-sabhii-kulfaten-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें +कभी सोहबतें कभी फ़ुर्क़तें कभी दूरियाँ कभी क़ुर्बतें +ये सुख़न जो हम ने रक़म किए ये हैं सब वरक़ तिरी याद के +कोई लम्हा सुब्ह-ए-विसाल का कोई शाम-ए-हिज्र की मुद्दतें +जो तुम्हारी मान लें नासेहा तो रहेगा दामन-ए-दिल में क्या +न किसी अदू की अदावतें न किसी सनम की मुरव्वतें +चलो आ��� तुम को दिखाएँ हम जो बचा है मक़्तल-ए-शहर में +ये मज़ार अहल-ए-सफ़ा के हैं ये हैं अहल-ए-सिद्क़ की तुर्बतें +मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने +किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें " +ham-par-tumhaarii-chaah-kaa-ilzaam-hii-to-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है +दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है +करते हैं जिस पे ता'न कोई जुर्म तो नहीं +शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है +दिल मुद्दई के हर्फ़-ए-मलामत से शाद है +ऐ जान-ए-जाँ ये हर्फ़ तिरा नाम ही तो है +दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है +लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है +दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं +दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है +आख़िर तो एक रोज़ करेगी नज़र वफ़ा +वो यार-ए-ख़ुश-ख़िसाल सर-ए-बाम ही तो है +भीगी है रात 'फ़ैज़' ग़ज़ल इब्तिदा करो +वक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है " +nasiib-aazmaane-ke-din-aa-rahe-hain-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं +क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं +जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है +सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं +अभी से दिल ओ जाँ सर-ए-राह रख दो +कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं +टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती +निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं +सबा फिर हमें पूछती फिर रही है +चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं +चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगाएँ +सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं " +na-ganvaao-naavak-e-niim-kash-dil-e-reza-reza-ganvaa-diyaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया +जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया +मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो +जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया +करो कज जबीं पे सर-ए-कफ़न मिरे क़ातिलों को गुमाँ न हो +कि ग़ुरूर-ए-इश्क़ का बाँकपन पस-ए-मर्ग हम ने भुला दिया +उधर एक हर्फ़ कि कुश्तनी यहाँ लाख उज़्र था गुफ़्तनी +जो कहा तो सुन के उड़ा दिया जो लिखा तो पढ़ के मिटा दिया +जो रुके तो कोह-ए-गिराँ थे हम जो चले तो जाँ से गुज़र गए +रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम तुझे यादगार बना दिया " +kabhii-kabhii-yaad-men-ubharte-hain-naqsh-e-maazii-mite-mite-se-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से +वो आज़माइश दिल ओ नज़र की वो क़ुर्बतें सी वो फ़ासले से +कभी कभी आरज़ू के सहरा में आ के रुकते हैं क़ाफ़िले से +वो सारी बातें लगाव की सी वो सारे उनवाँ विसाल के से +निगाह ओ दिल को क़रार कैसा नशा�� ओ ग़म में कमी कहाँ की +वो जब मिले हैं तो उन से हर बार की है उल्फ़त नए सिरे से +बहुत गिराँ है ये ऐश-ए-तन्हा कहीं सुबुक-तर कहीं गवारा +वो दर्द-ए-पिन्हाँ कि सारी दुनिया रफ़ीक़ थी जिस के वास्ते से +तुम्हीं कहो रिंद ओ मोहतसिब में है आज शब कौन फ़र्क़ ऐसा +ये आ के बैठे हैं मय-कदे में वो उठ के आए हैं मय-कदे से " +sab-qatl-ho-ke-tere-muqaabil-se-aae-hain-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं +हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं +शम-ए-नज़र ख़याल के अंजुम जिगर के दाग़ +जितने चराग़ हैं तिरी महफ़िल से आए हैं +उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर +कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं +हर इक क़दम अजल था हर इक गाम ज़िंदगी +हम घूम फिर के कूचा-ए-क़ातिल से आए हैं +बाद-ए-ख़िज़ाँ का शुक्र करो 'फ़ैज़' जिस के हाथ +नामे किसी बहार-ए-शिमाइल से आए हैं " +dil-men-ab-yuun-tire-bhuule-hue-gam-aate-hain-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं +जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं +एक इक कर के हुए जाते हैं तारे रौशन +मेरी मंज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं +रक़्स-ए-मय तेज़ करो साज़ की लय तेज़ करो +सू-ए-मय-ख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैं +कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग़ +वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते हैं +और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो +दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं " +aae-kuchh-abr-kuchh-sharaab-aae-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +आए कुछ अब्र कुछ शराब आए +इस के बा'द आए जो अज़ाब आए +बाम-ए-मीना से माहताब उतरे +दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए +हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो +सामने फिर वो बे-नक़ाब आए +उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र +तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए +कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब +आज तुम याद बे-हिसाब आए +न गई तेरे ग़म की सरदारी +दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए +जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम +जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए +इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी +गोया हर सम्त से जवाब आए +'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल +हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए " +ishq-minnat-e-kash-e-qaraar-nahiin-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं +हुस्न मजबूर-ए-इंतिज़ार नहीं +तेरी रंजिश की इंतिहा मालूम +हसरतों का मिरी शुमार नहीं +अपनी नज़रें बिखेर दे साक़ी +मय ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं +ज़ेर-ए-लब है अभी तबस्सुम-ए-दोस्त +मुंतशिर जल्वा-ए-बहार नहीं +अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं +वर्ना तुझ से तो मुझ को प्यार नहीं +चारा-ए-इंतिज़ार कौन करे +तेरी नफ़रत भी उस्���ुवार नहीं +'फ़ैज़' ज़िंदा रहें वो हैं तो सही +क्या हुआ गर वफ़ा-शिआर नहीं " +aaj-yuun-mauj-dar-mauj-gam-tham-gayaa-is-tarah-gam-zadon-ko-qaraar-aa-gayaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals-1," +आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया +जैसे ख़ुश-बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-बहार आ गई जैसे पैग़ाम-ए-दीदार-ए-यार आ गया +जिस की दीद-ओ-तलब वहम समझे थे हम रू-ब-रू फिर सर-ए-रहगुज़ार आ गया +सुब्ह-ए-फ़र्दा को फिर दिल तरसने लगा उम्र-ए-रफ़्ता तिरा ए'तिबार आ गया +रुत बदलने लगी रंग-ए-दिल देखना रंग-ए-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं +ज़ख़्म छलका कोई या कोई गुल खिला अश्क उमडे कि अब्र-ए-बहार आ गया +ख़ून-ए-उश्शाक़ से जाम भरने लगे दिल सुलगने लगे दाग़ जलने लगे +महफ़िल-ए-दर्द फिर रंग पर आ गई फिर शब-ए-आरज़ू पर निखार आ गया +सरफ़रोशी के अंदाज़ बदले गए दावत-ए-क़त्ल पर मक़्तल-ए-शहर में +डाल कर कोई गर्दन में तौक़ आ गया लाद कर कोई काँधे पे दार आ गया +'फ़ैज़' क्या जानिए यार किस आस पर मुंतज़िर हैं कि लाएगा कोई ख़बर +मय-कशों पर हुआ मोहतसिब मेहरबाँ दिल-फ़िगारों पे क़ातिल को प्यार आ गया " +ye-jafaa-e-gam-kaa-chaara-vo-najaat-e-dil-kaa-aalam-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम +तिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम +दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदम +सर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम +तिरी दीद से सिवा है तिरे शौक़ में बहाराँ +वो चमन जहाँ गिरी है तिरे गेसुओं की शबनम +ये अजब क़यामतें हैं तिरे रहगुज़र में गुज़राँ +न हुआ कि मर मिटें हम न हुआ कि जी उठें हम +लो सुनी गई हमारी यूँ फिरे हैं दिन कि फिर से +वही गोशा-ए-क़फ़स है वही फ़स्ल-ए-गुल का मातम " +go-sab-ko-baham-saagar-o-baada-to-nahiin-thaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था +ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था +गलियों में फिरा करते थे दो चार दिवाने +हर शख़्स का सद चाक लबादा तो नहीं था +मंज़िल को न पहचाने रह-ए-इश्क़ का राही +नादाँ ही सही ऐसा भी सादा तो नहीं था +थक कर यूँही पल भर के लिए आँख लगी थी +सो कर ही न उट्ठें ये इरादा तो नहीं था +वाइ'ज़ से रह-ओ-रस्म रही रिंद से सोहबत +फ़र्क़ इन में कोई इतना ज़ियादा तो नहीं था " +hamiin-se-apnii-navaa-ham-kalaam-hotii-rahii-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +हमीं से अपनी नवा हम-कलाम होती रही +ये तेग़ अपने लहू में नियाम होती रही +मुक़ाबिल-ए-सफ़-ए-आदा जिसे किया आग़ाज़ +वो जंग अपने ही दिल में तमाम होती रही +कोई मसीहा न ईफ़ा-ए-अहद को पहुँचा +बहुत तलाश पस-ए-क़त्ल-ए-आम होती रही +ये बरहमन का करम वो अता-ए-शै���़-ए-हरम +कभी हयात कभी मय हराम होती रही +जो कुछ भी बन न पड़ा 'फ़ैज़' लुट के यारों से +तो रहज़नों से दुआ-ओ-सलाम होती रही " +gulon-men-rang-bhare-baad-e-nau-bahaar-chale-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले +चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले +क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो +कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले +कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़ +कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले +बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही +तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले +जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ +हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले +हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब +गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले +मक़ाम 'फ़ैज़' कोई राह में जचा ही नहीं +जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले " +hairaan-hai-jabiin-aaj-kidhar-sajda-ravaa-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है +सर पर हैं ख़ुदावंद सर-ए-अर्श ख़ुदा है +कब तक इसे सींचोगे तमन्ना-ए-समर में +ये सब्र का पौदा तो न फूला न फला है +मिलता है ख़िराज उस को तिरी नान-ए-जवीं से +हर बादशह-ए-वक़्त तिरे दर का गदा है +हर एक उक़ूबत से है तल्ख़ी में सवा-तर +वो रंग जो ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा है +एहसान लिए कितने मसीहा-नफ़सों के +क्या कीजिए दिल का न जला है न बुझा है " +ham-ne-sab-sher-men-sanvaare-the-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +हम ने सब शेर में सँवारे थे +हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे +रंग-ओ-ख़ुशबू के हुस्न-ओ-ख़ूबी के +तुम से थे जितने इस्तिआरे थे +तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले +अपने कुछ और भी सहारे थे +जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए +जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे +मेरे दामन में आ गिरे सारे +जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे +उम्र-ए-जावेद की दुआ करते +'फ़ैज़' इतने वो कब हमारे थे " +vo-buton-ne-daale-hain-vasvase-ki-dilon-se-khauf-e-khudaa-gayaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया +वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि ख़याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गया +जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए +वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया +न वो रंग फ़स्ल-ए-बहार का न रविश वो अब्र-ए-बहार की +जिस अदा से यार थे आश्ना वो मिज़ाज-ए-बाद-ए-सबा गया +जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई +सर-ए-आम जब हुए मुद्दई' तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा गया +अभी बादबान को तह रखो अभी मुज़्तरिब है रुख़-ए-हवा +किसी रास्ते में है मुंतज़िर वो सुकूँ जो आ के चला गया " +shaam-e-firaaq-ab-na-puuchh-aaii-aur-aa-ke-tal-gaii-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई +दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई +बज़्म-ए-ख़याल में तिरे हुस्न की शम्अ जल गई +दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई +जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी +जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई +दिल से तो हर मोआ'मला कर के चले थे साफ़ हम +कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई +आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए +रह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई " +baat-bas-se-nikal-chalii-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +बात बस से निकल चली है +दिल की हालत सँभल चली है +अब जुनूँ हद से बढ़ चला है +अब तबीअ'त बहल चली है +अश्क ख़ूनाब हो चले हैं +ग़म की रंगत बदल चली है +या यूँही बुझ रही हैं शमएँ +या शब-ए-हिज्र टल चली है +लाख पैग़ाम हो गए हैं +जब सबा एक पल चली है +जाओ अब सो रहो सितारो +दर्द की रात ढल चली है " +nahiin-nigaah-men-manzil-to-justujuu-hii-sahii-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही +नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही +न तन में ख़ून फ़राहम न अश्क आँखों में +नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब है बे-वज़ू ही सही +किसी तरह तो जमे बज़्म मय-कदे वालो +नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हाव-हू ही सही +गर इंतिज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल +किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तुगू ही सही +दयार-ए-ग़ैर में महरम अगर नहीं कोई +तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू ही सही " +rang-pairaahan-kaa-khushbuu-zulf-lahraane-kaa-naam-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम +मौसम-ए-गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम +दोस्तो उस चश्म ओ लब की कुछ कहो जिस के बग़ैर +गुलसिताँ की बात रंगीं है न मय-ख़ाने का नाम +फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं +फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम +दिलबरी ठहरा ज़बान-ए-ख़ल्क़ खुलवाने का नाम +अब नहीं लेते परी-रू ज़ुल्फ़ बिखराने का नाम +अब किसी लैला को भी इक़रार-ए-महबूबी नहीं +इन दिनों बदनाम है हर एक दीवाने का नाम +मोहतसिब की ख़ैर ऊँचा है उसी के फ़ैज़ से +रिंद का साक़ी का मय का ख़ुम का पैमाने का नाम +हम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन +तुम कोई अच्छा सा रख लो अपने वीराने का नाम +'फ़ैज़' उन को है तक़ाज़ा-ए-वफ़ा हम से जिन्हें +आश्ना के नाम से प्यारा है बेगाने का नाम " +kab-thahregaa-dard-ai-dil-kab-raat-basar-hogii-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी +सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी +कब जान लहू होगी कब अश्क गुहर होगा +किस दिन तिरी शुनवाई ऐ दीदा-ए-तर होगी +कब महकेग�� फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना +कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी +वाइ'ज़ है न ज़ाहिद है नासेह है न क़ातिल है +अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी +कब तक अभी रह देखें ऐ क़ामत-ए-जानाना +कब हश्र मुअ'य्यन है तुझ को तो ख़बर होगी " +darbaar-men-ab-satvat-e-shaahii-kii-alaamat-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +दरबार में अब सतवत-ए-शाही की अलामत +दरबाँ का असा है कि मुसन्निफ़ का क़लम है +आवारा है फिर कोह-ए-निदा पर जो बशारत +तम्हीद-ए-मसर्रत है कि तूल-ए-शब-ए-ग़म है +जिस धज्जी को गलियों में लिए फिरते हैं तिफ़्लाँ +ये मेरा गरेबाँ है कि लश्कर का अलम है +जिस नूर से है शहर की दीवार दरख़्शाँ +ये ख़ून-ए-शहीदाँ है कि ज़र-ख़ाना-ए-जम है +हल्क़ा किए बैठे रहो इक शम्अ को यारो +कुछ रौशनी बाक़ी तो है हर-चंद कि कम है " +vafaa-e-vaada-nahiin-vaada-e-digar-bhii-nahiin-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं +वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं +बरस रही है हरीम-ए-हवस में दौलत-ए-हुस्न +गदा-ए-इश्क़ के कासे में इक नज़र भी नहीं +न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ +इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं +निगाह-ए-शौक़ सर-ए-बज़्म बे-हिजाब न हो +वो बे-ख़बर ही सही इतने बे-ख़बर भी नहीं +ये अहद-ए-तर्क-ए-मोहब्बत है किस लिए आख़िर +सुकून-ए-क़ल्ब उधर भी नहीं इधर भी नहीं " +na-ab-raqiib-na-naaseh-na-gam-gusaar-koii-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +न अब रक़ीब न नासेह न ग़म-गुसार कोई +तुम आश्ना थे तो थीं आश्नाइयाँ क्या क्या +जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी +बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या +पहुँच के दर पे तिरे कितने मो'तबर ठहरे +अगरचे रह में हुईं जग-हँसाइयाँ क्या क्या +हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से +बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या +सितम पे ख़ुश कभी लुत्फ़-ओ-करम से रंजीदा +सिखाईं तुम ने हमें कज-अदाइयाँ क्या क्या " +har-haqiiqat-majaaz-ho-jaae-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए +काफ़िरों की नमाज़ हो जाए +दिल रहीन-ए-नियाज़ हो जाए +बेकसी कारसाज़ हो जाए +मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे +दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए +इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो +लब पे आए तो राज़ हो जाए +लुत्फ़ का इंतिज़ार करता हूँ +जौर ता हद्द-ए-नाज़ हो जाए +उम्र बे-सूद कट रही है 'फ़ैज़' +काश इफ़शा-ए-राज़ हो जाए " +phir-hariif-e-bahaar-ho-baithe-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे +जाने किस किस को आज रो बैठे +थी मगर इतनी राएगाँ भी न थी +आज कुछ ज़िंदगी से खो बैठे +तेरे दर तक पहुँच के लौट आए +इश्क़ की आबरू डु���ो बैठे +सारी दुनिया से दूर हो जाए +जो ज़रा तेरे पास हो बैठे +न गई तेरी बे-रुख़ी न गई +हम तिरी आरज़ू भी खो बैठे +'फ़ैज़' होता रहे जो होना है +शेर लिखते रहा करो बैठे " +garmi-e-shauq-e-nazaaraa-kaa-asar-to-dekho-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो +गुल खिले जाते हैं वो साया-ए-तर तो देखो +ऐसे नादाँ भी न थे जाँ से गुज़रने वाले +नासेहो पंद-गरो राहगुज़र तो देखो +वो तो वो है तुम्हें हो जाएगी उल्फ़त मुझ से +इक नज़र तुम मिरे महबूब-ए-नज़र तो देखो +वो जो अब चाक गरेबाँ भी नहीं करते हैं +देखने वालो कभी उन का जिगर तो देखो +दामन-ए-दर्द को गुलज़ार बना रक्खा है +आओ इक दिन दिल-ए-पुर-ख़ूँ का हुनर तो देखो +सुब्ह की तरह झमकता है शब-ए-ग़म का उफ़ुक़ +'फ़ैज़' ताबिंदगी-ए-दीदा-ए-तर तो देखो " +tirii-umiid-tiraa-intizaar-jab-se-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है +न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है +किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म +गिला है जो भी किसी से तिरे सबब से है +हुआ है जब से दिल-ए-ना-सुबूर बे-क़ाबू +कलाम तुझ से नज़र को बड़े अदब से है +अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले +तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है +कहाँ गए शब-ए-फ़ुर्क़त के जागने वाले +सितारा-ए-सहरी हम-कलाम कब से है " +qarz-e-nigaah-e-yaar-adaa-kar-chuke-hain-ham-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम +सब कुछ निसार-ए-राह-ए-वफ़ा कर चुके हैं हम +कुछ इम्तिहान-ए-दस्त-ए-जफ़ा कर चुके हैं हम +कुछ उन की दस्तरस का पता कर चुके हैं हम +अब एहतियात की कोई सूरत नहीं रही +क़ातिल से रस्म-ओ-राह सिवा कर चुके हैं हम +देखें है कौन कौन ज़रूरत नहीं रही +कू-ए-सितम में सब को ख़फ़ा कर चुके हैं हम +अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें +रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम +उन की नज़र में क्या करें फीका है अब भी रंग +जितना लहू था सर्फ़-ए-क़बा कर चुके हैं हम +कुछ अपने दिल की ख़ू का भी शुक्राना चाहिए +सौ बार उन की ख़ू का गिला कर चुके हैं हम " +ab-ke-baras-dastuur-e-sitam-men-kyaa-kyaa-baab-iizaad-hue-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए +जो क़ातिल थे मक़्तूल हुए जो सैद थे अब सय्याद हुए +पहले भी ख़िज़ाँ में बाग़ उजड़े पर यूँ नहीं जैसे अब के बरस +सारे बूटे पत्ता पत्ता रविश रविश बर्बाद हुए +पहले भी तवाफ़-ए-शम्-ए-वफ़ा थी रस्म मोहब्बत वालों की +हम तुम से पहले भी यहाँ 'मंसूर' हुए 'फ़रहाद' हुए +इक गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा +इक चेहरा कु��्हला जाने से कितने दिल नाशाद हुए +'फ़ैज़' न हम 'यूसुफ़' न कोई 'याक़ूब' जो हम को याद करे +अपनी क्या कनआँ में रहे या मिस्र में जा आबाद हुए " +tum-aae-ho-na-shab-e-intizaar-guzrii-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है +तलाश में है सहर बार बार गुज़री है +जुनूँ में जितनी भी गुज़री ब-कार गुज़री है +अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है +हुई है हज़रत-ए-नासेह से गुफ़्तुगू जिस शब +वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है +वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था +वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है +न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है +अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है +चमन पे ग़ारत-ए-गुल-चीं से जाने क्या गुज़री +क़फ़स से आज सबा बे-क़रार गुज़री है " +kab-yaad-men-teraa-saath-nahiin-kab-haat-men-teraa-haat-nahiin-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं +सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं +मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ दिल बेच आएँ जाँ दे आएँ +दिल वालो कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं +जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है +ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं +मैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं याँ नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ +आशिक़ तो किसी का नाम नहीं कुछ इश्क़ किसी की ज़ात नहीं +गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा +गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं " +kab-tak-dil-kii-khair-manaaen-kab-tak-rah-dikhlaaoge-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे +कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे +बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में +कब भेजोगे दर्द का बादल कब बरखा बरसाओगे +अहद-ए-वफ़ा या तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहो सो आप करो +अपने बस की बात ही क्या है हम से क्या मनवाओगे +किस ने वस्ल का सूरज देखा किस पर हिज्र की रात ढली +गेसुओं वाले कौन थे क्या थे उन को क्या जतलाओगे +'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर भरना भी लुट जाना थी +तुम इस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे " +tire-gam-ko-jaan-kii-talaash-thii-tire-jaan-nisaar-chale-gae-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए +तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए +तिरी कज-अदाई से हार के शब-ए-इंतिज़ार चली गई +मिरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मिरे ग़म-गुसार चले गए +न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म न हिकायतें न शिकायतें +तिरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए +ये हमीं थे जिन के लिबास पर सर-ए-र��� सियाही लिखी गई +यही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए +न रहा जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा ये रसन ये दार करोगे क्या +जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गए " +chashm-e-maiguun-zaraa-idhar-kar-de-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +चश्म-ए-मयगूँ ज़रा इधर कर दे +दस्त-ए-क़ुदरत को बे-असर कर दे +तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी +तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे +जोश-ए-वहशत है तिश्ना-काम अभी +चाक-ए-दामन को ता जिगर कर दे +मेरी क़िस्मत से खेलने वाले +मुझ को क़िस्मत से बे-ख़बर कर दे +लुट रही है मिरी मता-ए-नियाज़ +काश वो इस तरफ़ नज़र कर दे +'फ़ैज़' तकमील-ए-आरज़ू मालूम +हो सके तो यूँही बसर कर दे " +tumhaarii-yaad-ke-jab-zakhm-bharne-lagte-hain-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं +किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं +हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं +तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं +हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है +जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं +सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन +तो चश्म-ए-सुब्ह में आँसू उभरने लगते हैं +वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ ओ लब की बख़िया-गरी +फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैं +दर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मोहर लगती है +तो 'फ़ैज़' दिल में सितारे उतरने लगते हैं " +kuchh-mohtasibon-kii-khalvat-men-kuchh-vaaiz-ke-ghar-jaatii-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +कुछ मोहतसिबों की ख़ल्वत में कुछ वाइ'ज़ के घर जाती है +हम बादा-कशों के हिस्से की अब जाम में कम-तर जाती है +यूँ अर्ज़-ओ-तलब से कम ऐ दिल पत्थर दिल पानी होते हैं +तुम लाख रज़ा की ख़ू डालो कब ख़ू-ए-सितमगर जाती है +बेदाद-गरों की बस्ती है याँ दाद कहाँ ख़ैरात कहाँ +सर फोड़ती फिरती है नादाँ फ़रियाद जो दर दर जाती है +हाँ जाँ के ज़ियाँ की हम को भी तशवीश है लेकिन क्या कीजे +हर रह जो उधर को जाती है मक़्तल से गुज़र कर जाती है +अब कूचा-ए-दिल-बर का रह-रौ रहज़न भी बने तो बात बने +पहरे से अदू टलते ही नहीं और रात बराबर जाती है +हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन +यादों से मोअत्तर आती है अश्कों से मुनव्वर जाती है " +shaikh-saahab-se-rasm-o-raah-na-kii-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की +शुक्र है ज़िंदगी तबाह न की +तुझ को देखा तो सेर-चश्म हुए +तुझ को चाहा तो और चाह न की +तेरे दस्त-ए-सितम का इज्ज़ नहीं +दिल ही काफ़िर था जिस ने आह न की +थे शब-ए-हिज्र काम और बहुत +हम ने फ़िक्र-ए-दिल-ए-तबाह न की +कौन क़ातिल बचा है शहर में 'फ़ैज़' +जिस से यारों ने रस्म-ओ-राह न ���ी " +ye-kis-khalish-ne-phir-is-dil-men-aashiyaana-kiyaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया +फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ाएबाना किया +ग़म-ए-जहाँ हो रुख़-ए-यार हो कि दस्त-ए-अदू +सुलूक जिस से किया हम ने आशिक़ाना किया +थे ख़ाक-ए-राह भी हम लोग क़हर-ए-तूफ़ाँ भी +सहा तो क्या न सहा और किया तो क्या न किया +ख़ुशा कि आज हर इक मुद्दई के लब पर है +वो राज़ जिस ने हमें राँदा-ए-ज़माना किया +वो हीला-गर जो वफ़ा-जू भी है जफ़ा-ख़ू भी +किया भी 'फ़ैज़' तो किस बुत से दोस्ताना किया " +ham-musaafir-yuunhii-masruuf-e-safar-jaaenge-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे +बे-निशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे +किस क़दर होगा यहाँ मेहर-ओ-वफ़ा का मातम +हम तिरी याद से जिस रोज़ उतर जाएँगे +जौहरी बंद किए जाते हैं बाज़ार-ए-सुख़न +हम किसे बेचने अलमास-ओ-गुहर जाएँगे +नेमत-ए-ज़ीस्त का ये क़र्ज़ चुकेगा कैसे +लाख घबरा के ये कहते रहें मर जाएँगे +शायद अपना भी कोई बैत हुदी-ख़्वाँ बन कर +साथ जाएगा मिरे यार जिधर जाएँगे +'फ़ैज़' आते हैं रह-ए-इश्क़ में जो सख़्त मक़ाम +आने वालों से कहो हम तो गुज़र जाएँगे " +raaz-e-ulfat-chhupaa-ke-dekh-liyaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया +दिल बहुत कुछ जला के देख लिया +और क्या देखने को बाक़ी है +आप से दिल लगा के देख लिया +वो मिरे हो के भी मिरे न हुए +उन को अपना बना के देख लिया +आज उन की नज़र में कुछ हम ने +सब की नज़रें बचा के देख लिया +'फ़ैज़' तकमील-ए-ग़म भी हो न सकी +इश्क़ को आज़मा के देख लिया " +ab-vahii-harf-e-junuun-sab-kii-zabaan-thahrii-hai-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है +जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है +आज तक शैख़ के इकराम में जो शय थी हराम +अब वही दुश्मन-ए-दीं राहत-ए-जाँ ठहरी है +है ख़बर गर्म कि फिरता है गुरेज़ाँ नासेह +गुफ़्तुगू आज सर-ए-कू-ए-बुताँ ठहरी है +है वही आरिज़-ए-लैला वही शीरीं का दहन +निगह-ए-शौक़ घड़ी भर को जहाँ ठहरी है +वस्ल की शब थी तो किस दर्जा सुबुक गुज़री थी +हिज्र की शब है तो क्या सख़्त गिराँ ठहरी है +बिखरी इक बार तो हाथ आई है कब मौज-ए-शमीम +दिल से निकली है तो कब लब पे फ़ुग़ाँ ठहरी है +दस्त-ए-सय्याद भी आजिज़ है कफ़-ए-गुल-चीं भी +बू-ए-गुल ठहरी न बुलबुल की ज़बाँ ठहरी है +आते आते यूँही दम भर को रुकी होगी बहार +जाते जाते यूँही पल भर को ख़िज़ाँ ठहरी है +हम ने जो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ की है क़फ़स में ईजाद +'फ़ैज़' गुलशन में वही तर्ज़-ए-बयाँ ठहरी है " +aap-kii-yaad-aatii-rahii-raat-bhar-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +''आप की याद आती रही रात भर'' +चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर +गाह जलती हुई गाह बुझती हुई +शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर +कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन +कोई तस्वीर गाती रही रात भर +फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले +कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर +जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर +हर सदा पर बुलाती रही रात भर +एक उम्मीद से दिल बहलता रहा +इक तमन्ना सताती रही रात भर " +donon-jahaan-terii-mohabbat-men-haar-ke-faiz-ahmad-faiz-ghazals," +दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के +वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के +वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं +तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के +इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन +देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के +दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया +तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के +भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़' +मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के " +ab-vo-ye-kah-rahe-hain-mirii-maan-jaaiye-dagh-dehlvi-ghazals," +अब वो ये कह रहे हैं मिरी मान जाइए +अल्लाह तेरी शान के क़ुर्बान जाइए +बिगड़े हुए मिज़ाज को पहचान जाइए +सीधी तरह न मानिएगा मान जाइए +किस का है ख़ौफ़ रोकने वाला ही कौन है +हर रोज़ क्यूँ न जाइए मेहमान जाइए +महफ़िल में किस ने आप को दिल में छुपा लिया +इतनों में कौन चोर है पहचान जाइए +हैं तेवरी में बल तो निगाहें फिरी हुई +जाते हैं ऐसे आने से औसान जाइए +दो मुश्किलें हैं एक जताने में शौक़ के +पहले तो जान जाइए फिर मान जाइए +इंसान को है ख़ाना-ए-हस्ती में लुत्फ़ क्या +मेहमान आइए तो पशेमान जाइए +गो वादा-ए-विसाल हो झूटा मज़ा तो है +क्यूँ कर न ऐसे झूट के क़ुर्बान जाइए +रह जाए बा'द-ए-वस्ल भी चेटक लगी हुई +कुछ रखिए कुछ निकाल के अरमान जाइए +अच्छी कही कि ग़ैर के घर तक ज़रा चलो +मैं आप का नहीं हूँ निगहबान जाइए +आए हैं आप ग़ैर के घर से खड़े खड़े +ये और को जताइए एहसान, जाइए +दोनों से इम्तिहान-ए-वफ़ा पर ये कह दिया +मनवाइए रक़ीब को या मान जाइए +क्या बद-गुमानियाँ हैं उन्हें मुझ को हुक्म है +घर में ख़ुदा के भी तो न मेहमान जाइए +क्या फ़र्ज़ है कि सब मिरी बातें क़ुबूल हैं +सुन सुन के कुछ न मानिए कुछ मान जाइए +सौदाइयान-ए-ज़ुल्फ़ में कुछ तो लटक भी हो +जन्नत में जाइए तो परेशान जाइए +दिल को जो देख लो तो यही प्यार से कहो +क़ुर्बान जाइए तिरे क़ुर्बान जाइए +दिल को जो देख लो तो यही प्यार से कहो +क़ुर्बान जाइए तिरे क़ुर्बान जाइए +जाने न दूँगा आप को बे-फ़ैसला हुए +दिल के मुक़द्दमे को अभी छान जाइए +ये तो बजा कि आप को दुनिया से क्या ग़रज़ +जाती है जिस की जान उसे जान जाइए +ग़ुस्से में हाथ से ये निशानी न गिर पड़े +दामन में ले के मेरा गरेबान जाइए +ये मुख़्तसर जवाब मिला अर्ज़-ए-वस्ल पर +दिल मानता नहीं कि तिरी मान जाइए +वो आज़मूदा-कार तो है गर वली नहीं +जो कुछ बताए 'दाग़' उसे मान जाइए " +milaate-ho-usii-ko-khaak-men-jo-dil-se-miltaa-hai-dagh-dehlvi-ghazals," +मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है +मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है +कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में +कोई क़ातिल से मिलता है कोई बिस्मिल से मिलता है +पस-ए-पर्दा भी लैला हाथ रख लेती है आँखों पर +ग़ुबार-ए-ना-तवान-ए-क़ैस जब महमिल से मिलता है +भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी +मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है +मुझे आता है क्या क्या रश्क वक़्त-ए-ज़ब्ह उस से भी +गला जिस दम लिपट कर ख़ंजर-ए-क़ातिल से मिलता है +ब-ज़ाहिर बा-अदब यूँ हज़रत-ए-नासेह से मिलता हूँ +मुरीद-ए-ख़ास जैसे मुर्शिद-ए-कामिल से मिलता है +मिसाल-ए-गंज-ए-क़ारूँ अहल-ए-हाजत से नहीं छुपता +जो होता है सख़ी ख़ुद ढूँड कर साइल से मिलता है +जवाब इस बात का उस शोख़ को क्या दे सके कोई +जो दिल ले कर कहे कम-बख़्त तू किस दिल से मिलता है +छुपाए से कोई छुपती है अपने दिल की बेताबी +कि हर तार-ए-नफ़स अपना रग-ए-बिस्मिल से मिलता है +अदम की जो हक़ीक़त है वो पूछो अहल-ए-हस्ती से +मुसाफ़िर को तो मंज़िल का पता मंज़िल से मिलता है +ग़ज़ब है 'दाग़' के दिल से तुम्हारा दिल नहीं मिलता +तुम्हारा चाँद सा चेहरा मह-ए-कामिल से मिलता है " +saaf-kab-imtihaan-lete-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं +वो तो दम दे के जान लेते हैं +यूँ है मंज़ूर ख़ाना-वीरानी +मोल मेरा मकान लेते हैं +तुम तग़ाफ़ुल करो रक़ीबों से +जानने वाले जान लेते हैं +फिर न आना अगर कोई भेजे +नामा-बर से ज़बान लेते हैं +अब भी गिर पड़ के ज़ोफ़ से नाले +सातवाँ आसमान लेते हैं +तेरे ख़ंजर से भी तो ऐ क़ातिल +नोक की नौ-जवान लेते हैं +अपने बिस्मिल का सर है ज़ानू पर +किस मोहब्बत से जान लेते हैं +ये सुना है मिरे लिए तलवार +इक मिरे मेहरबान लेते हैं +ये न कह हम से तेरे मुँह में ख़ाक +इस में तेरी ज़बान लेते हैं +कौन जाता है उस गली में जिसे +दूर से पासबान लेते हैं +मंज़िल-ए-शौक़ तय नहीं होती +ठेकियाँ ना-तवान लेते हैं +कर गुज़रते ह���ं हो बुरी कि भली +दिल में जो कुछ वो ठान लेते हैं +वो झगड़ते हैं जब रक़ीबों से +बीच में मुझ को सान लेते हैं +ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी +दोस्त की दोस्त मान लेते हैं +मुस्तइद हो के ये कहो तो सही +आइए इम्तिहान लेते हैं +'दाग़' भी है अजीब सेहर-बयाँ +बात जिस की वो मान लेते हैं " +aarzuu-hai-vafaa-kare-koii-dagh-dehlvi-ghazals," +आरज़ू है वफ़ा करे कोई +जी न चाहे तो क्या करे कोई +गर मरज़ हो दवा करे कोई +मरने वाले का क्या करे कोई +कोसते हैं जले हुए क्या क्या +अपने हक़ में दुआ करे कोई +उन से सब अपनी अपनी कहते हैं +मेरा मतलब अदा करे कोई +चाह से आप को तो नफ़रत है +मुझ को चाहे ख़ुदा करे कोई +उस गिले को गिला नहीं कहते +गर मज़े का गिला करे कोई +ये मिली दाद रंज-ए-फ़ुर्क़त की +और दिल का कहा करे कोई +तुम सरापा हो सूरत-ए-तस्वीर +तुम से फिर बात क्या करे कोई +कहते हैं हम नहीं ख़ुदा-ए-करीम +क्यूँ हमारी ख़ता करे कोई +जिस में लाखों बरस की हूरें हों +ऐसी जन्नत को क्या करे कोई +इस जफ़ा पर तुम्हें तमन्ना है +कि मिरी इल्तिजा करे कोई +मुँह लगाते ही 'दाग़' इतराया +लुत्फ़ है फिर जफ़ा करे कोई " +tamaashaa-e-dair-o-haram-dekhte-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं +तुझे हर बहाने से हम देखते हैं +हमारी तरफ़ अब वो कम देखते हैं +वो नज़रें नहीं जिन को हम देखते हैं +ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं +हमीं जानते हैं जो हम देखते हैं +फिरे बुत-कदे से तो ऐ अहल-ए-काबा +फिर आ कर तुम्हारे क़दम देखते हैं +हमें चश्म-ए-बीना दिखाती है सब कुछ +वो अंधे हैं जो जाम-ए-जम देखते हैं +न ईमा-ए-ख़्वाहिश न इज़हार-ए-मतलब +मिरे मुँह को अहल-ए-करम देखते हैं +कभी तोड़ते हैं वो ख़ंजर को अपने +कभी नब्ज़-ए-बिस्मिल में दम देखते हैं +ग़नीमत है चश्म-ए-तग़ाफ़ुल भी उन की +बहुत देखते हैं जो कम देखते हैं +ग़रज़ क्या कि समझें मिरे ख़त का मज़मूँ +वो उनवान ओ तर्ज़-ए-रक़म देखते हैं +सलामत रहे दिल बुरा है कि अच्छा +हज़ारों में ये एक दम देखते हैं +रहा कौन महफ़िल में अब आने वाला +वो चारों तरफ़ दम-ब-दम देखते हैं +उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने +न वो देखते हैं न हम देखते हैं +उन्हें क्यूँ न हो दिलरुबाई से नफ़रत +कि हर दिल में वो ग़म अलम देखते हैं +निगहबाँ से भी क्या हुई बद-गुमानी +अब उस को तिरे साथ कम देखते हैं +हमें 'दाग़' क्या कम है ये सरफ़राज़ी +कि शाह-ए-दकन के क़दम देखते हैं " +khaatir-se-yaa-lihaaz-se-main-maan-to-gayaa-dagh-dehlvi-ghazals," +ख़ातिर से या लिहाज़ से मै��� मान तो गया +झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया +दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं +उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया +डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं +सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया +क्या आए राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में +वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया +देखा है बुत-कदे में जो ऐ शैख़ कुछ न पूछ +ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया +इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं +लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया +गो नामा-बर से ख़ुश न हुआ पर हज़ार शुक्र +मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया +बज़्म-ए-अदू में सूरत-ए-परवाना दिल मिरा +गो रश्क से जला तिरे क़ुर्बान तो गया +होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ 'दाग़' जा चुके +अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया " +abhii-hamaarii-mohabbat-kisii-ko-kyaa-maaluum-dagh-dehlvi-ghazals," +अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम +किसी के दिल की हक़ीक़त किसी को क्या मालूम +यक़ीं तो ये है वो ख़त का जवाब लिक्खेंगे +मगर नविश्ता-ए-क़िस्मत किसी को क्या मालूम +ब-ज़ाहिर उन को हया-दार लोग समझे हैं +हया में जो है शरारत किसी को क्या मालूम +क़दम क़दम पे तुम्हारे हमारे दिल की तरह +बसी हुई है क़यामत किसी को क्या मालूम +ये रंज ओ ऐश हुए हिज्र ओ वस्ल में हम को +कहाँ है दोज़ख़ ओ जन्नत किसी को क्या मालूम +जो सख़्त बात सुने दिल तो टूट जाता है +इस आईने की नज़ाकत किसी को क्या मालूम +किया करें वो सुनाने को प्यार की बातें +उन्हें है मुझ से अदावत किसी को क्या मालूम +ख़ुदा करे न फँसे दाम-ए-इश्क़ में कोई +उठाई है जो मुसीबत किसी को क्या मालूम +अभी तो फ़ित्ने ही बरपा किए हैं आलम में +उठाएँगे वो क़यामत किसी को क्या मालूम +जनाब-ए-'दाग़' के मशरब को हम से तो पूछो +छुपे हुए हैं ये हज़रत किसी को क्या मालूम " +uzr-aane-men-bhii-hai-aur-bulaate-bhii-nahiin-dagh-dehlvi-ghazals-3," +उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं +बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं +मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ +फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं +सर उठाओ तो सही आँख मिलाओ तो सही +नश्शा-ए-मय भी नहीं नींद के माते भी नहीं +क्या कहा फिर तो कहो हम नहीं सुनते तेरी +नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं +ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं +साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं +मुझ से लाग़र तिरी आँखों में खटकते तो रहे +तुझ से नाज़ुक मिरी नज़रों में समाते भी नहीं +देखते ही मुझे महफ़िल में ये इरशाद हुआ +कौन बैठा है उसे लोग उठाते भी नहीं +हो चुका क़त्अ तअ'ल्लुक़ तो जफ़ाएँ क्यूँ हों +जिन को मतलब नहीं रहता वो सताते भी नहीं +ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ हो +जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं " +gam-se-kahiin-najaat-mile-chain-paaen-ham-dagh-dehlvi-ghazals," +ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम +दिल ख़ून में नहाए तो गंगा नहाएँ हम +जन्नत में जाएँ हम कि जहन्नम में जाएँ हम +मिल जाए तो कहीं न कहीं तुझ को पाएँ हम +जौफ़-ए-फ़लक में ख़ाक भी लज़्ज़त नहीं रही +जी चाहता है तेरी जफ़ाएँ उठाएँ हम +डर है न भूल जाए वो सफ़्फ़ाक रोज़-ए-हश्र +दुनिया में लिखते जाते हैं अपनी ख़ताएँ हम +मुमकिन है ये कि वादे पर अपने वो आ भी जाए +मुश्किल ये है कि आप में उस वक़्त आएँ हम +नाराज़ हो ख़ुदा तो करें बंदगी से ख़ुश +माशूक़ रूठ जाए तो क्यूँकर मनाएँ हम +सर दोस्तों का काट के रखते हैं सामने +ग़ैरों से पूछते हैं क़सम किस की खाएँ हम +कितना तिरा मिज़ाज ख़ुशामद-पसंद है +कब तक करें ख़ुदा के लिए इल्तिजाएँ हम +लालच अबस है दिल का तुम्हें वक़्त-ए-वापसीं +ये माल वो नहीं कि जिसे छोड़ जाएँ हम +सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो ना-मुराद +कुछ पढ़ के बख़्शना जो कभी याद आएँ हम +सोज़-ए-दरूँ से अपने शरर बन गए हैं अश्क +क्यूँ आह-ए-सर्द को न पतिंगे लगाएँ हम +ये जान तुम न लोगे अगर आप जाएगी +उस बेवफ़ा की ख़ैर कहाँ तक मनाएँ हम +हम-साए जागते रहे नालों से रात भर +सोए हुए नसीब को क्यूँकर जगाएँ हम +जल्वा दिखा रहा है वो आईना-ए-जमाल +आती है हम को शर्म कि क्या मुँह दिखाएँ हम +मानो कहा जफ़ा न करो तुम वफ़ा के बा'द +ऐसा न हो कि फेर लें उल्टी दुआएँ हम +दुश्मन से मिलते जुलते हैं ख़ातिर से दोस्ती +क्या फ़ाएदा जो दोस्त को दुश्मन बनाएँ हम +तू भूलने की चीज़ नहीं ख़ूब याद रख +ऐ 'दाग़' किस तरह तुझे दिल से भुलाएँ हम " +jalve-mirii-nigaah-men-kaun-o-makaan-ke-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं +मुझ से कहाँ छुपेंगे वो ऐसे कहाँ के हैं +खुलते नहीं हैं राज़ जो सोज़-ए-निहाँ के हैं +क्या फूटने के वास्ते छाले ज़बाँ के हैं +करते हैं क़त्ल वो तलब-ए-मग़फ़िरत के बाद +जो थे दुआ के हाथ वही इम्तिहाँ के हैं +जिस रोज़ कुछ शरीक हुई मेरी मुश्त-ए-ख़ाक +उस रोज़ से ज़मीं पे सितम आसमाँ के हैं +बाज़ू दिखाए तुम ने लगा कर हज़ार हाथ +पूरे पड़े तो वो भी बहुत इम्तिहाँ के हैं +नासेह के सामने कभी सच बोलता नहीं +मेरी ज़बाँ में रंग तुम्हारी ज��बाँ के हैं +कैसा जवाब हज़रत-ए-दिल देखिए ज़रा +पैग़ाम-बर के हाथ में टुकड़े ज़बाँ के हैं +क्या इज़्तिराब-ए-शौक़ ने मुझ को ख़जिल किया +वो पूछते हैं कहिए इरादे कहाँ के हैं +आशिक़ तिरे अदम को गए किस क़दर तबाह +पूछा हर एक ने ये मुसाफ़िर कहाँ के हैं +हर-चंद 'दाग़' एक ही अय्यार है मगर +दुश्मन भी तो छटे हुए सारे जहाँ के हैं " +dil-e-naakaam-ke-hain-kaam-kharaab-dagh-dehlvi-ghazals," +दिल-ए-नाकाम के हैं काम ख़राब +कर लिया आशिक़ी में नाम ख़राब +इस ख़राबात का यही है मज़ा +कि रहे आदमी मुदाम ख़राब +देख कर जिंस-ए-दिल वो कहते हैं +क्यूँ करे कोई अपने दाम ख़राब +अब्र-ए-तर से सबा ही अच्छी थी +मेरी मिट्टी हुई तमाम ख़राब +वो भी साक़ी मुझे नहीं देता +वो जो टूटा पड़ा है जाम ख़राब +क्या मिला हम को ज़िंदगी के सिवा +वो भी दुश्वार ना-तमाम ख़राब +वाह क्या मुँह से फूल झड़ते हैं +ख़ूब-रू हो के ये कलाम ख़राब +चाल की रहनुमा-ए-इश्क़ ने भी +वो दिखाया जो था मक़ाम ख़राब +'दाग़' है बद-चलन तो होने दो +सौ में होता है इक ग़ुलाम ख़राब " +terii-suurat-ko-dekhtaa-huun-main-dagh-dehlvi-ghazals," +तेरी सूरत को देखता हूँ मैं +उस की क़ुदरत को देखता हूँ मैं +जब हुई सुब्ह आ गए नासेह +उन्हीं हज़रत को देखता हूँ मैं +वो मुसीबत सुनी नहीं जाती +जिस मुसीबत को देखता हूँ मैं +देखने आए हैं जो मेरी नब्ज़ +उन की सूरत को देखता हूँ मैं +मौत मुझ को दिखाई देती है +जब तबीअत को देखता हूँ मैं +शब-ए-फ़ुर्क़त उठा उठा कर सर +सुब्ह-ए-इशरत को देखता हूँ मैं +दूर बैठा हुआ सर-ए-महफ़िल +रंग-ए-सोहबत को देखता हूँ मैं +हर मुसीबत है बे-मज़ा शब-ए-ग़म +आफ़त आफ़त को देखता हूँ मैं +न मोहब्बत को जानते हो तुम +न मुरव्वत को देखता हूँ मैं +कोई दुश्मन को यूँ न देखेगा +जैसे क़िस्मत को देखता हूँ मैं +हश्र में 'दाग़' कोई दोस्त नहीं +सारी ख़िल्क़त को देखता हूँ मैं " +idhar-dekh-lenaa-udhar-dekh-lenaa-dagh-dehlvi-ghazals-2," +इधर देख लेना उधर देख लेना +कन-अँखियों से उस को मगर देख लेना +फ़क़त नब्ज़ से हाल ज़ाहिर न होगा +मिरा दिल भी ऐ चारागर देख लेना +कभी ज़िक्र-ए-दीदार आया तो बोले +क़यामत से भी पेश-तर देख लेना +न देना ख़त-ए-शौक़ घबरा के पहले +महल मौक़ा ऐ नामा-बर देख लेना +कहीं ऐसे बिगड़े सँवरते भी देखे +न आएँगे वो राह पर देख लेना +तग़ाफ़ुल में शोख़ी निराली अदा थी +ग़ज़ब था वो मुँह फेर कर देख लेना +शब-ए-वा'दा अपना यही मश्ग़ला था +उठा कर नज़र सू-ए-दर देख लेना +बुलाया जो ग़ैरों को दावत में तुम ने +मुझे पेश-तर अपने घर देख लेना +मोहब्बत के बाज़ार में और क्या है +कोई दिल दिखाए अगर देख लेना +मिरे सामने ग़ैर से भी इशारे +इधर भी उधर देख कर देख लेना +न हो नाज़ुक इतना भी मश्शाता कोई +दहन देख लेना कमर देख लेना +नहीं रखने देते जहाँ पाँव हम को +उसी आस्ताने पे सर देख लेना +तमाशा-ए-आलम की फ़ुर्सत है किस को +ग़नीमत है बस इक नज़र देख लेना +दिए जाते हैं आज कुछ लिख के तुम को +उसे वक़्त-ए-फ़ुर्सत मगर देख लेना +हमीं जान देंगे हमीं मर मिटेंगे +हमें तुम किसी वक़्त पर देख लेना +जलाया तो है 'दाग़' के दिल को तुम ने +मगर इस का होगा असर देख लेना " +maze-ishq-ke-kuchh-vahii-jaante-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं +कि जो मौत को ज़िंदगी जानते हैं +शब-ए-वस्ल लीं उन की इतनी बलाएँ +कि हमदम मिरे हाथ ही जानते हैं +न हो दिल तो क्या लुत्फ़-ए-आज़ार-ओ-राहत +बराबर ख़ुशी ना-ख़ुशी जानते हैं +जो है मेरे दिल में उन्हीं को ख़बर है +जो मैं जानता हूँ वही जानते हैं +पड़ा हूँ सर-ए-बज़्म मैं दम चुराए +मगर वो इसे बे-ख़ुदी जानते हैं +कहाँ क़द्र-ए-हम-जिंस हम-जिंस को है +फ़रिश्तों को भी आदमी जानते हैं +कहूँ हाल-ए-दिल तो कहें उस से हासिल +सभी को ख़बर है सभी जानते हैं +वो नादान अंजान भोले हैं ऐसे +कि सब शेवा-ए-दुश्मनी जानते हैं +नहीं जानते इस का अंजाम क्या है +वो मरना मेरा दिल-लगी जानते हैं +समझता है तू 'दाग़' को रिंद ज़ाहिद +मगर रिंद उस को वली जानते हैं " +aap-kaa-e-tibaar-kaun-kare-dagh-dehlvi-ghazals," +आप का ए'तिबार कौन करे +रोज़ का इंतिज़ार कौन करे +ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तो हम करते +पर तुम्हें शर्मसार कौन करे +हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद +फिर उसे होशियार कौन करे +तुम तो हो जान इक ज़माने की +जान तुम पर निसार कौन करे +आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो +शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे +अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद +दाना दाना शुमार कौन करे +हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊँ +मौत का इंतिज़ार कौन करे +आँख है तर्क-ए-ज़ुल्फ़ है सय्याद +देखें दिल का शिकार कौन करे +वा'दा करते नहीं ये कहते हैं +तुझ को उम्मीद-वार कौन करे +'दाग़' की शक्ल देख कर बोले +ऐसी सूरत को प्यार कौन करे " +tum-aaiina-hii-na-har-baar-dekhte-jaao-dagh-dehlvi-ghazals," +तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ +मिरी तरफ़ भी तो सरकार देखते जाओ +न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार देखते जाओ +कि जी न चाहे तो नाचार देखते जाओ +बहार-ए-उम्र में बाग़-ए-जहाँ की सैर करो +खिला हुआ है ये गुलज़ार देखते जाओ +यही तो चश्म-ए-हक़ीक़त निगर का सुर्मा है +निज़ा-ए-काफ़िर-ओ-दीं-दार देखते जाओ +उठाओ आँख न शरमाओ ये तो महफ़िल है +ग़ज़ब से जानिब-ए-अग़्यार देखते जाओ +नहीं है जिंस-ए-वफ़ा की तुम्हें जो क़द्र न हो +बनेंगे कितने ख़रीदार देखते जाओ +तुम्हें ग़रज़ जो करो रहम पाएमालों पर +तुम अपनी शोख़ी-ए-रफ़्तार देखते जाओ +क़सम भी खाई थी क़ुरआन भी उठाया था +फिर आज है वही इंकार देखते जाओ +ये शामत आई कि उस की गली में दिल ने कहा +खुला है रौज़न-ए-दीवार देखते जाओ +हुआ है क्या अभी हंगामा और कुछ होगा +फ़ुग़ाँ में हश्र के आसार देखते जाओ +शब-ए-विसाल अदू की यही निशानी है +निशाँ-ए-बोसा-ए-रुख़्सार देखते जाओ +तुम्हारी आँख मिरे दिल से ले सबब बे-वज्ह +हुई है लड़ने को तय्यार देखते जाओ +इधर को आ ही गए अब तो हज़रत-ए-ज़ाहिद +यहीं है ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार देखते जाओ +रक़ीब बरसर-ए-परख़ाश हम से होता है +बढ़ेगी मुफ़्त में तकरार देखते जाओ +नहीं हैं जुर्म-ए-मोहब्बत में सब के सब मुल्ज़िम +ख़ता मुआ'फ़ ख़ता-वार देखते जाओ +दिखा रही है तमाशा फ़लक की नैरंगी +नया है शो'बदा हर बार देखते जाओ +बना दिया मिरी चाहत ने ग़ैरत-ए-यूसुफ़ +तुम अपनी गर्मी-ए-बाज़ार देखते जाओ +न जाओ बंद किए आँख रह-रवान-ए-अदम +इधर उधर भी ख़बर-दार देखते जाओ +सुनी-सुनाई पे हरगिज़ कभी अमल न करो +हमारे हाल के अख़बार देखते जाओ +कोई न कोई हर इक शेर में है बात ज़रूर +जनाब-ए-'दाग़' के अशआ'र देखते जाओ " +phire-raah-se-vo-yahaan-aate-aate-dagh-dehlvi-ghazals," +फिरे राह से वो यहाँ आते आते +अजल मर रही तू कहाँ आते आते +न जाना कि दुनिया से जाता है कोई +बहुत देर की मेहरबाँ आते आते +सुना है कि आता है सर नामा-बर का +कहाँ रह गया अरमुग़ाँ आते आते +यक़ीं है कि हो जाए आख़िर को सच्ची +मिरे मुँह में तेरी ज़बाँ आते आते +सुनाने के क़ाबिल जो थी बात उन को +वही रह गई दरमियाँ आते आते +मुझे याद करने से ये मुद्दआ था +निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते +अभी सिन ही क्या है जो बेबाकियाँ हों +उन्हें आएँगी शोख़ियाँ आते आते +कलेजा मिरे मुँह को आएगा इक दिन +यूँही लब पर आह-ओ-फ़ुग़ाँ आते आते +चले आते हैं दिल में अरमान लाखों +मकाँ भर गया मेहमाँ आते आते +नतीजा न निकला थके सब पयामी +वहाँ जाते जाते यहाँ आते आते +तुम्हारा ही मुश्ताक़-ए-दीदार होगा +गया जान से इक जवाँ आते आते +तिरी आँख फिरते ही कैसा फिरा है +मिरी राह पर आसमाँ आते आते +पड़ा है बड़ा पेच फिर दिल-लगी में +तबीअत रुकी है जहाँ आते आते +मिरे आशियाँ के तो थे चार तिनके +चमन उड़ गया आँधियाँ आते आते +किसी ने कुछ उन को उभारा तो होता +न आते न आते यहाँ आते आते +क़यामत भी आती थी हमराह उस के +मगर रह गई हम-इनाँ आते आते +बना है हमेशा ये दिल बाग़ ओ सहरा +बहार आते आते ख़िज़ाँ आते आते +नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो +कि आती है उर्दू ज़बाँ आते आते " +baaqii-jahaan-men-qais-na-farhaad-rah-gayaa-dagh-dehlvi-ghazals," +बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया +अफ़्साना आशिक़ों का फ़क़त याद रह गया +ये सख़्त-जाँ तो क़त्ल से नाशाद रह गया +ख़ंजर चला तो बाज़ू-ए-जल्लाद रह गया +पाबंदियों ने इश्क़ की बेकस रखा मुझे +मैं सौ असीरियों में भी आज़ाद रह गया +चश्म-ए-सनम ने यूँ तो बिगाड़े हज़ार घर +इक काबा चंद रोज़ को आबाद रह गया +महशर में जा-ए-शिकवा किया शुक्र यार का +जो भूलना था मुझ को वही याद रह गया +उन की तो बन पड़ी कि लगी जान मुफ़्त हाथ +तेरी गिरह में क्या दिल-ए-नाशाद रह गया +पुर-नूर हो रहेगा ये ज़ुल्मत-कदा अगर +दिल में बुतों का शौक़-ए-ख़ुदा-दाद रह गया +यूँ आँख उन की कर के इशारा पलट गई +गोया कि लब से हो के कुछ इरशाद रह गया +नासेह का जी चला था हमारी तरह मगर +उल्फ़त की देख देख के उफ़्ताद रह गया +हैं तेरे दिल में सब के ठिकाने बुरे भले +मैं ख़ानुमाँ-ख़राब ही बर्बाद रह गया +वो दिन गए कि थी मिरे सीने में कुछ ख़राश +अब दिल कहाँ है दिल का निशाँ याद रह गया +सूरत को तेरी देख के खिंचती है जान-ए-ख़ल्क़ +दिल अपना थाम थाम के बहज़ाद रह गया +ऐ 'दाग़' दिल ही दिल में घुले ज़ब्त-ए-इश्क़ से +अफ़्सोस शौक़-ए-नाला-ओ-फ़रियाद रह गया " +baat-merii-kabhii-sunii-hii-nahiin-dagh-dehlvi-ghazals," +बात मेरी कभी सुनी ही नहीं +जानते वो बुरी भली ही नहीं +दिल-लगी उन की दिल-लगी ही नहीं +रंज भी है फ़क़त हँसी ही नहीं +लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद +हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं +उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से +कभी गोया किसी में थी ही नहीं +जान क्या दूँ कि जानता हूँ मैं +तुम ने ये चीज़ ले के दी ही नहीं +हम तो दुश्मन को दोस्त कर लेते +पर करें क्या तिरी ख़ुशी ही नहीं +हम तिरी आरज़ू पे जीते हैं +ये नहीं है तो ज़िंदगी ही नहीं +दिल-लगी दिल-लगी नहीं नासेह +तेरे दिल को अभी लगी ही नहीं +'दाग़' क्यूँ तुम को बेवफ़ा कहता +वो शिकायत का आदमी ही नहीं " +kaabe-kii-hai-havas-kabhii-kuu-e-butaan-kii-hai-dagh-dehlvi-ghazals," +काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है +मुझ को ख़बर नहीं मिरी मिट्टी कहाँ की है +सुन के मिरा फ़साना उन्हें लुत्फ़ आ ग���ा +सुनता हूँ अब कि रोज़ तलब क़िस्सा-ख़्वाँ की है +पैग़ाम-बर की बात पर आपस में रंज क्या +मेरी ज़बान की है न तुम्हारी ज़बाँ की है +कुछ ताज़गी हो लज़्ज़त-ए-आज़ार के लिए +हर दम मुझे तलाश नए आसमाँ की है +जाँ-बर भी हो गए हैं बहुत मुझ से नीम-जाँ +क्या ग़म है ऐ तबीब जो पूरी वहाँ की है +हसरत बरस रही है हमारे मज़ार पर +कहते हैं सब ये क़ब्र किसी नौजवाँ की है +वक़्त-ए-ख़िराम-ए-नाज़ दिखा दो जुदा जुदा +ये चाल हश्र की ये रविश आसमाँ की है +फ़ुर्सत कहाँ कि हम से किसी वक़्त तू मिले +दिन ग़ैर का है रात तिरे पासबाँ की है +क़ासिद की गुफ़्तुगू से तसल्ली हो किस तरह +छुपती नहीं वो बात जो तेरी ज़बाँ की है +जौर-ए-रक़ीब ओ ज़ुल्म-ए-फ़लक का नहीं ख़याल +तशवीश एक ख़ातिर-ए-ना-मेहरबाँ की है +सुन कर मिरा फ़साना-ए-ग़म उस ने ये कहा +हो जाए झूट सच यही ख़ूबी बयाँ की है +दामन संभाल बाँध कमर आस्तीं चढ़ा +ख़ंजर निकाल दिल में अगर इम्तिहाँ की है +हर हर नफ़स में दिल से निकलने लगा ग़ुबार +क्या जाने गर्द-ए-राह ये किस कारवाँ की है +क्यूँकि न आते ख़ुल्द से आदम ज़मीन पर +मौज़ूँ वहीं वो ख़ूब है जो सुनते जहाँ की है +तक़दीर से ये पूछ रहा हूँ कि इश्क़ में +तदबीर कोई भी सितम-ए-ना-गहाँ की है +उर्दू है जिस का नाम हमीं जानते हैं 'दाग़' +हिन्दोस्ताँ में धूम हमारी ज़बाँ की है " +dekh-kar-jauban-tiraa-kis-kis-ko-hairaanii-huii-dagh-dehlvi-ghazals," +देख कर जोबन तिरा किस किस को हैरानी हुई +इस जवानी पर जवानी आप दीवानी हुई +पर्दे पर्दे में मोहब्बत दुश्मन-ए-जानी हुई +ये ख़ुदा की मार क्या ऐ शौक़-ए-पिन्हानी हुई +दिल का सौदा कर के उन से क्या पशेमानी हुई +क़द्र उस की फिर कहाँ जिस शय की अर्ज़ानी हुई +मेरे घर उस शोख़ की दो दिन से मेहमानी हुई +बेकसी की आज कल क्या ख़ाना-वीरानी हुई +तर्क-ए-रस्म-ओ-राह पर अफ़्सोस है दोनों तरफ़ +हम से नादानी हुई या तुम से नादानी हुई +इब्तिदा से इंतिहा तक हाल उन से कह तो दूँ +फ़िक्र ये है और जो कह कर पशेमानी हुई +ग़म क़यामत का नहीं वाइ'ज़ मुझे ये फ़िक्र है +दीन कब बाक़ी रहा दुनिया अगर फ़ानी हुई +तुम न शब को आओगे ये है यक़ीं आया हुआ +तुम न मानोगे मिरी ये बात है मानी हुई +मुझ में दम जब तक रहा मुश्किल में थे तीमारदार +मेरी आसानी से सब यारों की आसानी हुई +इस को क्या कहते हैं उतना ही बढ़ा शौक़-ए-विसाल +जिस क़दर मशहूर उन की पाक-दामानी हुई +बज़्म से उठने की ग़ैरत बैठने से दिल को रश्क +देख कर ग़ैरों का मजमा क्या परेशानी हुई +दावा-ए-तस्ख़ीर पर ये उस परी-वश ने कहा +आप का दिल क्या हुआ मोहर-ए-सुलेमानी हुई +खुल गईं ज़ुल्फ़ें मगर उस शोख़ मस्त-ए-नाज़ की +झूमती बाद-ए-सबा फिरती है मस्तानी हुई +मैं सरापा सज्दे करता उस के दर पर शौक़ से +सर से पा तक क्यूँ न पेशानी ही पेशानी हुई +दिल की क़ल्ब-ए-माहियत का हो उसे क्यूँकर यक़ीं +कब हवा मिट्टी हुई है आग कब पानी हुई +आते ही कहते हो अब घर जाएँगे अच्छी कही +ये मसल पूरी यहाँ मन-मानी घर जानी हुई +अरसा-ए-महशर में तुझ को ढूँड लाऊँ तो सही +कोई छुप सकती है जो सूरत हो पहचानी हुई +देख कर क़ातिल का ख़ाली हाथ भी जी डर गया +उस की चीन-ए-आस्तीं भी चीन-ए-पेशानी हुई +खा के धोका उस बुत-ए-कमसिन ने दामन में लिए +अश्क-अफ़्शानी भी मेरी गौहर-अफ़्शानी हुई +बेकसी पर मेरी अपनी तेग़ की हसरत तो देख +चश्म-ए-जौहर भी ब-शक्ल-ए-चश्म-ए-हैरानी हुई +बेकसी पर 'दाग़' की अफ़्सोस आता है हमें +किस जगह किस वक़्त उस की ख़ाना-वीरानी हुई " +le-chalaa-jaan-mirii-ruuth-ke-jaanaa-teraa-dagh-dehlvi-ghazals," +ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा +ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा +अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा +सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा +तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है +किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा +आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ को +शाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा +ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है +काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा +ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले +रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा +तू ख़ुदा तो नहीं ऐ नासेह-ए-नादाँ मेरा +क्या ख़ता की जो कहा मैं ने न माना तेरा +रंज क्या वस्ल-ए-अदू का जो तअ'ल्लुक़ ही नहीं +मुझ को वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा +काबा ओ दैर में या चश्म-ओ-दिल-ए-आशिक़ में +इन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा +तर्क-ए-आदत से मुझे नींद नहीं आने की +कहीं नीचा न हो ऐ गोर सिरहाना तेरा +मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फ़िराक़ +वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा +बज़्म-ए-दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है +इक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा +अपनी आँखों में अभी कौंद गई बिजली सी +हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा +यूँ तो क्या आएगा तू फ़र्त-ए-नज़ाकत से यहाँ +सख़्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा +'दाग़' को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़रमाते हैं +तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा " +tumhaare-khat-men-nayaa-ik-salaam-kis-kaa-thaa-dagh-dehlvi-ghazals," +तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था +न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था +वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं +ये काम किस ने किया है ये काम किस का था +वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे +तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था +रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा +मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था +न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगत +तुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था +तमाम बज़्म जिसे सुन के रह गई मुश्ताक़ +कहो वो तज़्किरा-ए-ना-तमाम किस का था +हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किए पढ़ा भी नहीं +सुना जो तू ने ब-दिल वो पयाम किस का था +उठाई क्यूँ न क़यामत अदू के कूचे में +लिहाज़ आप को वक़्त-ए-ख़िराम किस का था +गुज़र गया वो ज़माना कहूँ तो किस से कहूँ +ख़याल दिल को मिरे सुब्ह ओ शाम किस का था +हमें तो हज़रत-ए-वाइज़ की ज़िद ने पिलवाई +यहाँ इरादा-ए-शर्ब-ए-मुदाम किस का था +अगरचे देखने वाले तिरे हज़ारों थे +तबाह-हाल बहुत ज़ेर-ए-बाम किस का था +वो कौन था कि तुम्हें जिस ने बेवफ़ा जाना +ख़याल-ए-ख़ाम ये सौदा-ए-ख़ाम किस का था +इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर +जो लुत्फ़ आम वो करते ये नाम किस का था +हर इक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला +ये पूछे उन से कोई वो ग़ुलाम किस का था " +achchhii-suurat-pe-gazab-tuut-ke-aanaa-dil-kaa-dagh-dehlvi-ghazals," +अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का +याद आता है हमें हाए ज़माना दिल का +तुम भी मुँह चूम लो बे-साख़्ता प्यार आ जाए +मैं सुनाऊँ जो कभी दिल से फ़साना दिल का +निगह-ए-यार ने की ख़ाना-ख़राबी ऐसी +न ठिकाना है जिगर का न ठिकाना दिल का +पूरी मेहंदी भी लगानी नहीं आती अब तक +क्यूँकर आया तुझे ग़ैरों से लगाना दिल का +ग़ुंचा-ए-गुल को वो मुट्ठी में लिए आते थे +मैं ने पूछा तो किया मुझ से बहाना दिल का +इन हसीनों का लड़कपन ही रहे या अल्लाह +होश आता है तो आता है सताना दिल का +दे ख़ुदा और जगह सीना ओ पहलू के सिवा +कि बुरे वक़्त में हो जाए ठिकाना दिल का +मेरी आग़ोश से क्या ही वो तड़प कर निकले +उन का जाना था इलाही कि ये जाना दिल का +निगह-ए-शर्म को बे-ताब किया काम किया +रंग लाया तिरी आँखों में समाना दिल का +उँगलियाँ तार-ए-गरेबाँ में उलझ जाती हैं +सख़्त दुश्वार है हाथों से दबाना दिल का +हूर की शक्ल हो तुम नूर के पुतले हो तुम +और इस पर तुम्हें आता है जलाना दिल का +छोड़ कर उस को तिरी बज़्म से क्यूँकर जाऊँ +इक जनाज़े का उठ���ना है उठाना दिल का +बे-दिली का जो कहा हाल तो फ़रमाते हैं +कर लिया तू ने कहीं और ठिकाना दिल का +बा'द मुद्दत के ये ऐ 'दाग़' समझ में आया +वही दाना है कहा जिस ने न माना दिल का " +is-nahiin-kaa-koii-ilaaj-nahiin-dagh-dehlvi-ghazals," +इस नहीं का कोई इलाज नहीं +रोज़ कहते हैं आप आज नहीं +कल जो था आज वो मिज़ाज नहीं +इस तलव्वुन का कुछ इलाज नहीं +आइना देखते ही इतराए +फिर ये क्या है अगर मिज़ाज नहीं +ले के दिल रख लो काम आएगा +गो अभी तुम को एहतियाज नहीं +हो सकें हम मिज़ाज-दाँ क्यूँकर +हम को मिलता तिरा मिज़ाज नहीं +चुप लगी लाल-ए-जाँ-फ़ज़ा को तिरे +इस मसीहा का कुछ इलाज नहीं +दिल-ए-बे-मुद्दआ ख़ुदा ने दिया +अब किसी शय की एहतियाज नहीं +खोटे दामों में ये भी क्या ठहरा +दिरहम-ए-'दाग़' का रिवाज नहीं +बे-नियाज़ी की शान कहती है +बंदगी की कुछ एहतियाज नहीं +दिल-लगी कीजिए रक़ीबों से +इस तरह का मिरा मिज़ाज नहीं +इश्क़ है पादशाह-ए-आलम-गीर +गरचे ज़ाहिर में तख़्त-ओ-ताज नहीं +दर्द-ए-फ़ुर्क़त की गो दवा है विसाल +इस के क़ाबिल भी हर मिज़ाज नहीं +यास ने क्या बुझा दिया दिल को +कि तड़प कैसी इख़्तिलाज नहीं +हम तो सीरत-पसंद आशिक़ हैं +ख़ूब-रू क्या जो ख़ुश-मिज़ाज नहीं +हूर से पूछता हूँ जन्नत में +इस जगह क्या बुतों का राज नहीं +सब्र भी दिल को 'दाग़' दे लेंगे +अभी कुछ इस की एहतियाज नहीं " +ranj-kii-jab-guftuguu-hone-lagii-dagh-dehlvi-ghazals," +रंज की जब गुफ़्तुगू होने लगी +आप से तुम तुम से तू होने लगी +चाहिए पैग़ाम-बर दोनों तरफ़ +लुत्फ़ क्या जब दू-ब-दू होने लगी +मेरी रुस्वाई की नौबत आ गई +उन की शोहरत कू-ब-कू होने लगी +है तिरी तस्वीर कितनी बे-हिजाब +हर किसी के रू-ब-रू होने लगी +ग़ैर के होते भला ऐ शाम-ए-वस्ल +क्यूँ हमारे रू-ब-रू होने लगी +ना-उम्मीदी बढ़ गई है इस क़दर +आरज़ू की आरज़ू होने लगी +अब के मिल कर देखिए क्या रंग हो +फिर हमारी जुस्तुजू होने लगी +'दाग़' इतराए हुए फिरते हैं आज +शायद उन की आबरू होने लगी " +dil-pareshaan-huaa-jaataa-hai-dagh-dehlvi-ghazals," +दिल परेशान हुआ जाता है +और सामान हुआ जाता है +ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ कर ज़ाहिद +तू अब इंसान हुआ जाता है +मौत से पहले मुझे क़त्ल करो +उस का एहसान हुआ जाता है +लज़्ज़त-ए-इश्क़ इलाही मिट जाए +दर्द अरमान हुआ जाता है +दम ज़रा लो कि मिरा दम तुम पर +अभी क़ुर्बान हुआ जाता है +गिर्या क्या ज़ब्त करूँ ऐ नासेह +अश्क पैमान हुआ जाता है +बेवफ़ाई से भी रफ़्ता रफ़्ता +वो मिरी जान हुआ जाता है +अर्सा-ए-हश्र में वो आ पहुँचे +साफ़ मैदान हुआ जाता है +मदद ऐ हिम्मत-ए-दुश्वार-पसंद +काम आसान हुआ जाता है +छाई जाती है ये वहशत कैसी +घर बयाबान हुआ जाता है +शिकवा सुन आँख मिला कर ज़ालिम +क्यूँ पशेमान हुआ जाता है +आतिश-ए-शौक़ बुझी जाती है +ख़ाक अरमान हुआ जाता है +उज़्र जाने में न कर ऐ क़ासिद +तू भी नादान हुआ जाता है +मुज़्तरिब क्यूँ न हों अरमाँ दिल में +क़ैद मेहमान हुआ जाता है +'दाग़' ख़ामोश न लग जाए नज़र +शे'र दीवान हुआ जाता है " +kaun-saa-taair-e-gum-gashta-use-yaad-aayaa-dagh-dehlvi-ghazals," +कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया +देखता भालता हर शाख़ को सय्याद आया +मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया +वो मिरा भूलने वाला जो मुझे याद आया +कोई भूला हुआ अंदाज़-ए-सितम याद आया +कि तबस्सुम तुझे ज़ालिम दम-ए-बेदाद आया +लाए हैं लोग जनाज़े की तरह महशर में +किस मुसीबत से तिरा कुश्ता-ए-बेदाद आया +जज़्ब-ए-वहशत तिरे क़ुर्बान तिरा क्या कहना +खिंच के रग रग में मिरे नश्तर-ए-फ़स्साद आया +उस के जल्वे को ग़रज़ कौन-ओ-मकाँ से क्या था +दाद लेने के लिए हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद आया +बस्तियों से यही आवाज़ चली आती है +जो किया तू ने वो आगे तिरे फ़रहाद आया +दिल-ए-वीराँ से रक़ीबों ने मुरादें पाईं +काम किस किस के मिरा ख़िर्मन-ए-बर्बाद आया +इश्क़ के आते ही मुँह पर मिरे फूली है बसंत +हो गया ज़र्द ये शागिर्द जब उस्ताद आया +हो गया फ़र्ज़ मुझे शौक़ का दफ़्तर लिखना +जब मिरे हाथ कोई ख़ामा-ए-फ़ौलाद आया +ईद है क़त्ल मिरा अहल-ए-तमाशा के लिए +सब गले मिलने लगे जब कि वो जल्लाद आया +चैन करते हैं वहाँ रंज उठाने वाले +काम उक़्बा में हमारा दिल-ए-नाशाद आया +दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात +हाए कम-बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया +मेरे नाले ने सुनाई है खरी किस किस को +मुँह फ़रिश्तों पे ये गुस्ताख़ ये आज़ाद आया +ग़म-ए-जावेद ने दी मुझ को मुबारकबादी +जब सुना ये कि उन्हें शेवा-ए-बेदाद आया +मैं तमन्ना-ए-शहादत का मज़ा भूल गया +आज इस शौक़ से अरमान से जल्लाद आया +शादियाना जो दिया नाला ओ शेवन ने दिया +जब मुलाक़ात को नाशाद की नाशाद आया +लीजिए सुनिए अब अफ़्साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से +आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया +आप की बज़्म में सब कुछ है मगर 'दाग़' नहीं +हम को वो ख़ाना-ख़राब आज बहुत याद आया " +dil-gayaa-tum-ne-liyaa-ham-kyaa-karen-dagh-dehlvi-ghazals," +दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें +जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें +हम ने मर कर ह���ज्र में पाई शिफ़ा +ऐसे अच्छों का वो मातम क्या करें +अपने ही ग़म से नहीं मिलती नजात +इस बिना पर फ़िक्र-ए-आलम क्या करें +एक साग़र पर है अपनी ज़िंदगी +रफ़्ता रफ़्ता इस से भी कम क्या करें +कर चुके सब अपनी अपनी हिकमतें +दम निकलता हो तो हमदम क्या करें +दिल ने सीखा शेवा-ए-बेगानगी +ऐसे ना-महरम को महरम क्या करें +मा'रका है आज हुस्न ओ इश्क़ का +देखिए वो क्या करें हम क्या करें +आईना है और वो हैं देखिए +फ़ैसला दोनों ये बाहम क्या करें +आदमी होना बहुत दुश्वार है +फिर फ़रिश्ते हिर्स-ए-आदम क्या करें +तुंद-ख़ू है कब सुने वो दिल की बात +और भी बरहम को बरहम क्या करें +हैदराबाद और लंगर याद है +अब के दिल्ली में मोहर्रम क्या करें +कहते हैं अहल-ए-सिफ़ारिश मुझ से 'दाग़' +तेरी क़िस्मत है बुरी हम क्या करें " +in-aankhon-ne-kyaa-kyaa-tamaashaa-na-dekhaa-dagh-dehlvi-ghazals," +इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा +हक़ीक़त में जो देखना था न देखा +तुझे देख कर वो दुई उठ गई है +कि अपना भी सानी न देखा न देखा +उन आँखों के क़ुर्बान जाऊँ जिन्हों ने +हज़ारों हिजाबों में परवाना देखा +न हिम्मत न क़िस्मत न दिल है न आँखें +न ढूँडा न पाया न समझा न देखा +मरीज़ान-ए-उल्फ़त की क्या बे-कसी है +मसीहा को भी चारा-फ़रमा न देखा +बहुत दर्द-मंदों को देखा है तू ने +ये सीना ये दिल ये कलेजा न देखा +वो कब देख सकता है उस की तजल्ली +जिस इंसान ने अपना ही जल्वा न देखा +बहुत शोर सुनते थे इस अंजुमन का +यहाँ आ के जो कुछ सुना था न देखा +सफ़ाई है बाग़-ए-मोहब्बत में ऐसी +कि बाद-ए-सबा ने भी तिनका न देखा +उसे देख कर और को फिर जो देखे +कोई देखने वाला ऐसा न देखा +वो था जल्वा-आरा मगर तू ने मूसा +न देखा न देखा न देखा न देखा +गया कारवाँ छोड़ कर मुझ को तन्हा +ज़रा मेरे आने का रस्ता न देखा +कहाँ नक़्श-ए-अव्वल कहाँ नक़्श-ए-सानी +ख़ुदा की ख़ुदाई में तुझ सा न देखा +तिरी याद है या है तेरा तसव्वुर +कभी 'दाग़' को हम ने तन्हा न देखा " +dil-ko-kyaa-ho-gayaa-khudaa-jaane-dagh-dehlvi-ghazals," +दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने +क्यूँ है ऐसा उदास क्या जाने +अपने ग़म में भी उस को सरफ़ा है +न खिला जाने वो न खा जाने +इस तजाहुल का क्या ठिकाना है +जान कर जो न मुद्दआ' जाने +कह दिया मैं ने राज़-ए-दिल अपना +उस को तुम जानो या ख़ुदा जाने +क्या ग़रज़ क्यूँ इधर तवज्जोह हो +हाल-ए-दिल आप की बला जाने +जानते जानते ही जानेगा +मुझ में क्या है अभी वो क्या जाने +क्या हम उस बद-गुमाँ से बात क���ें +जो सताइश को भी गिला जाने +तुम न पाओगे सादा-दिल मुझ सा +जो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने +है अबस जुर्म-ए-इश्क़ पर इल्ज़ाम +जब ख़ता-वार भी ख़ता जाने +नहीं कोताह दामन-ए-उम्मीद +आगे अब दस्त-ए-ना-रसा जाने +जो हो अच्छा हज़ार अच्छों का +वाइ'ज़ उस बुत को तू बुरा जाने +की मिरी क़द्र मिस्ल-ए-शाह-ए-दकन +किसी नव्वाब ने न राजा ने +उस से उट्ठेगी क्या मुसीबत-ए-इश्क़ +इब्तिदा को जो इंतिहा जाने +'दाग़' से कह दो अब न घबराओ +काम अपना बता हुआ जाने " +gair-ko-munh-lagaa-ke-dekh-liyaa-dagh-dehlvi-ghazals," +ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया +झूट सच आज़मा के देख लिया +उन के घर 'दाग़' जा के देख लिया +दिल के कहने में आ के देख लिया +कितनी फ़रहत-फ़ज़ा थी बू-ए-वफ़ा +उस ने दिल को जला के देख लिया +कभी ग़श में रहा शब-ए-वा'दा +कभी गर्दन उठा के देख लिया +जिंस-ए-दिल है ये वो नहीं सौदा +हर जगह से मँगा के देख लिया +लोग कहते हैं चुप लगी है तुझे +हाल-ए-दिल भी सुना के देख लिया +जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा +बार-हा आज़मा के देख लिया +ज़ख़्म-ए-दिल में नहीं है क़तरा-ए-ख़ूँ +ख़ूब हम ने दिखा के देख लिया +इधर आईना है उधर दिल है +जिस को चाहा उठा के देख लिया +उन को ख़ल्वत-सरा में बे-पर्दा +साफ़ मैदान पा के देख लिया +उस ने सुब्ह-ए-शब-ए-विसाल मुझे +जाते जाते भी आ के देख लिया +तुम को है वस्ल-ए-ग़ैर से इंकार +और जो हम ने आ के देख लिया +'दाग़' ने ख़ूब आशिक़ी का मज़ा +जल के देखा जला के देख लिया " +dil-churaa-kar-nazar-churaaii-hai-dagh-dehlvi-ghazals," +दिल चुरा कर नज़र चुराई है +लुट गए लुट गए दुहाई है +एक दिन मिल के फिर नहीं मिलते +किस क़यामत की ये जुदाई है +ऐ असर कर न इंतिज़ार-ए-दुआ +माँगना सख़्त बे-हयाई है +मैं यहाँ हूँ वहाँ है दिल मेरा +ना-रसाई अजब रसाई है +इस तरह अहल-ए-नाज़ नाज़ करें +बंदगी है कि ये ख़ुदाई है +पानी पी पी के तौबा करता हूँ +पारसाई सी पारसाई है +वा'दा करने का इख़्तियार रहा +बात करने में क्या बुराई है +कब निकलता है अब जिगर से तीर +ये भी क्या तेरी आश्नाई है +'दाग़' उन से दिमाग़ करते हैं +नहीं मालूम क्या समाई है " +ajab-apnaa-haal-hotaa-jo-visaal-e-yaar-hotaa-dagh-dehlvi-ghazals," +अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता +कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता +कोई फ़ित्ना ता-क़यामत न फिर आश्कार होता +तिरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता +जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता +तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता +ग़म-ए-इश्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खाते +ये वो ज़हर है कि आख़िर मय-ए-ख़ुश-गवार होता +ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती +न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता +न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में +कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता +तिरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते +अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ए'तिबार होता +ये वो दर्द-ए-दिल नहीं है कि हो चारासाज़ कोई +अगर एक बार मिटता तो हज़ार बार होता +गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी +मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता +मुझे मानते सब ऐसा कि अदू भी सज्दे करते +दर-ए-यार काबा बनता जो मिरा मज़ार होता +तुम्हें नाज़ हो न क्यूँकर कि लिया है 'दाग़' का दिल +ये रक़म न हाथ लगती न ये इफ़्तिख़ार होता " +is-adaa-se-vo-jafaa-karte-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +इस अदा से वो जफ़ा करते हैं +कोई जाने कि वफ़ा करते हैं +यूँ वफ़ा अहद-ए-वफ़ा करते हैं +आप क्या कहते हैं क्या करते हैं +हम को छेड़ोगे तो पछताओगे +हँसने वालों से हँसा करते हैं +नामा-बर तुझ को सलीक़ा ही नहीं +काम बातों में बना करते हैं +चलिए आशिक़ का जनाज़ा उट्ठा +आप बैठे हुए क्या करते हैं +ये बताता नहीं कोई मुझ को +दिल जो आता है तो क्या करते हैं +हुस्न का हक़ नहीं रहता बाक़ी +हर अदा में वो अदा करते हैं +तीर आख़िर बदल-ए-काफ़िर है +हम अख़ीर आज दुआ करते हैं +रोते हैं ग़ैर का रोना पहरों +ये हँसी मुझ से हँसा करते हैं +इस लिए दिल को लगा रक्खा है +इस में महबूब रहा करते हैं +तुम मिलोगे न वहाँ भी हम से +हश्र से पहले गिला करते हैं +झाँक कर रौज़न-ए-दर से मुझ को +क्या वो शोख़ी से हया करते हैं +उस ने एहसान जता कर ये कहा +आप किस मुँह से गिला करते हैं +रोज़ लेते हैं नया दिल दिलबर +नहीं मालूम ये क्या करते हैं +'दाग़' तू देख तो क्या होता है +जब्र पर सब्र किया करते हैं " +lutf-vo-ishq-men-paae-hain-ki-jii-jaantaa-hai-dagh-dehlvi-ghazals," +लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है +रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है +जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने +तू ने दिल इतने सताए हैं कि जी जानता है +तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़ +वो मिरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है +इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम +ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है +दोस्ती में तिरी दर-पर्दा हमारे दुश्मन +इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है " +uzr-un-kii-zabaan-se-niklaa-dagh-dehlvi-ghazals," +उज़्र उन की ज़बान से निकला +तीर गोया कमान से निकला +वो छलावा इस ��न से निकला +अल-अमाँ हर ज़बान से निकला +ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला +दिल का काँटा ज़बान से निकला +फ़ित्ना-गर क्या मकान से निकला +आसमाँ आसमान से निकला +आ गया ग़श निगाह देखते ही +मुद्दआ कब ज़बान से निकला +खा गए थे वफ़ा का धोका हम +झूट सच इम्तिहान से निकला +दिल में रहने न दूँ तिरा शिकवा +दिल में आया ज़बान से निकला +वहम आते हैं देखिए क्या हो +वो अकेला मकान से निकला +तुम बरसते रहे सर-ए-महफ़िल +कुछ भी मेरी ज़बान से निकला +सच तो ये है मोआमला दिल का +बाहर अपने गुमान से निकला +उस को आयत हदीस क्या समझें +जो तुम्हारी ज़बान से निकला +पड़ गया जो ज़बाँ से तेरी हर्फ़ +फिर न अपने मकान से निकला +देख कर रू-ए-यार सल्ले-अला +बे-तहाशा ज़बान से निकला +लो क़यामत अब आई वो काफ़िर +बन-बना कर मकान से निकला +मर गए हम मगर तिरा अरमान +दिल से निकला न जान से निकला +रहरव-ए-राह-ए-इश्क़ थे लाखों +आगे मैं कारवान से निकला +समझो पत्थर की तुम लकीर उसे +जो हमारी ज़बान से निकला +बज़्म से तुम को ले के जाएँगे +काम कब फूल-पान से निकला +क्या मुरव्वत है नावक-ए-दिल-दोज़ +पहले हरगिज़ न जान से निकला +तेरे दीवानों का भी लश्कर आज +किस तजम्मुल से शान से निकला +मुड़ के देखा तो मैं ने कब देखा +दूर जब पासबान से निकला +वो हिले लब तुम्हारे वादे पर +वो तुम्हारी ज़बान से निकला +उस की बाँकी अदा ने जब मारा +दम मिरा आन तान से निकला +मेरे आँसू की उस ने की तारीफ़ +ख़ूब मोती ये कान से निकला +हम खड़े तुम से बातें करते थे +ग़ैर क्यूँ दरमियान से निकला +ज़िक्र अहल-ए-वफ़ा का जब आया +'दाग़' उन की ज़बान से निकला " +sabaq-aisaa-padhaa-diyaa-tuu-ne-dagh-dehlvi-ghazals," +सबक़ ऐसा पढ़ा दिया तू ने +दिल से सब कुछ भला दिया तू ने +हम निकम्मे हुए ज़माने के +काम ऐसा सिखा दिया तू ने +कुछ तअ'ल्लुक़ रहा न दुनिया से +शग़्ल ऐसा बता दिया तू ने +किस ख़ुशी की ख़बर सुना के मुझे +ग़म का पुतला बना दिया तू ने +क्या बताऊँ कि क्या लिया मैं ने +क्या कहूँ मैं की क्या दिया तू ने +बे-तलब जो मिला मिला मुझ को +बे-ग़रज़ जो दिया दिया तू ने +उम्र-ए-जावेद ख़िज़्र को बख़्शी +आब-ए-हैवाँ पिला दिया तू ने +नार-ए-नमरूद को किया गुलज़ार +दोस्त को यूँ बचा दिया तू ने +दस्त-ए-मूसा में फ़ैज़ बख़्शिश है +नूर-ओ-लौह-ओ-असा दिया तू ने +सुब्ह मौज नसीम गुलशन को +नफ़स-ए-जाँ-फ़ज़ा दिया तू ने +शब-ए-तीरा में शम्अ' रौशन को +नूर ख़ुर्शीद का दिया तू ने +नग़्मा बुल��ुल को रंग-ओ-बू गुल को +दिल-कश-ओ-ख़ुशनुमा दिया तू ने +कहीं मुश्ताक़ से हिजाब हुआ +कहीं पर्दा उठा दिया तू ने +था मिरा मुँह न क़ाबिल-ए-लब्बैक +का'बा मुझ को दिखा दिया तू ने +जिस क़दर मैं ने तुझ से ख़्वाहिश की +इस से मुझ को सिवा दिया तू ने +रहबर-ए-ख़िज़्र-ओ-हादी-ए-इल्यास +मुझ को वो रहनुमा दिया तू ने +मिट गए दिल से नक़्श-ए-बातिल सब +नक़्शा अपना जमा दिया तू ने +है यही राह मंज़िल-ए-मक़्सूद +ख़ूब रस्ते लगा दिया तू ने +मुझ गुनहगार को जो बख़्श दिया +तो जहन्नुम को क्या दिया तू ने +'दाग़' को कौन देने वाला था +जो दिया ऐ ख़ुदा दिया तू ने " +naa-ravaa-kahiye-naa-sazaa-kahiye-dagh-dehlvi-ghazals," +ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए +कहिए कहिए मुझे बुरा कहिए +तुझ को बद-अहद ओ बेवफ़ा कहिए +ऐसे झूटे को और क्या कहिए +दर्द दिल का न कहिए या कहिए +जब वो पूछे मिज़ाज क्या कहिए +फिर न रुकिए जो मुद्दआ कहिए +एक के बा'द दूसरा कहिए +आप अब मेरा मुँह न खुलवाएँ +ये न कहिए कि मुद्दआ कहिए +वो मुझे क़त्ल कर के कहते हैं +मानता ही न था ये क्या कहिए +दिल में रखने की बात है ग़म-ए-इश्क़ +इस को हरगिज़ न बरमला कहिए +तुझ को अच्छा कहा है किस किस ने +कहने वालों को और क्या कहिए +वो भी सुन लेंगे ये कभी न कभी +हाल-ए-दिल सब से जा-ब-जा कहिए +मुझ को कहिए बुरा न ग़ैर के साथ +जो हो कहना जुदा जुदा कहिए +इंतिहा इश्क़ की ख़ुदा जाने +दम-ए-आख़िर को इब्तिदा कहिए +मेरे मतलब से क्या ग़रज़ मतलब +आप अपना तो मुद्दआ कहिए +ऐसी कश्ती का डूबना अच्छा +कि जो दुश्मन को नाख़ुदा कहिए +सब्र फ़ुर्क़त में आ ही जाता है +पर उसे देर-आश्ना कहिए +आ गई आप को मसीहाई +मरने वालों को मर्हबा कहिए +आप का ख़ैर-ख़्वाह मेरे सिवा +है कोई और दूसरा कहिए +हाथ रख कर वो अपने कानों पर +मुझ से कहते हैं माजरा कहिए +होश जाते रहे रक़ीबों के +'दाग़' को और बा-वफ़ा कहिए " +sab-log-jidhar-vo-hain-udhar-dekh-rahe-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं +हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं +तेवर तिरे ऐ रश्क-ए-क़मर देख रहे हैं +हम शाम से आसार-ए-सहर देख रहे हैं +मेरा दिल-ए-गुम-गश्ता जो ढूँडा नहीं मिलता +वो अपना दहन अपनी कमर देख रहे हैं +कोई तो निकल आएगा सरबाज़-ए-मोहब्बत +दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं +है मजमा-ए-अग़्यार कि हंगामा-ए-महशर +क्या सैर मिरे दीदा-ए-तर देख रहे हैं +अब ऐ निगह-ए-शौक़ न रह जाए तमन्ना +इस वक़्त उधर से वो इधर देख रहे हैं +हर-चंद कि हर रोज़ की रंजिश है क़यामत +हम कोई दिन उस को भी मगर देख रहे हैं +आमद है किसी की कि गया कोई इधर से +क्यूँ सब तरफ़-ए-राहगुज़र देख रहे हैं +तकरार तजल्ली ने तिरे जल्वे में क्यूँ की +हैरत-ज़दा सब अहल-ए-नज़र देख रहे हैं +नैरंग है एक एक तिरा दीद के क़ाबिल +हम ऐ फ़लक-ए-शोबदा-गर देख रहे हैं +कब तक है तुम्हारा सुख़न-ए-तल्ख़ गवारा +इस ज़हर में कितना है असर देख रहे हैं +कुछ देख रहे हैं दिल-ए-बिस्मिल का तड़पना +कुछ ग़ौर से क़ातिल का हुनर देख रहे हैं +अब तक तो जो क़िस्मत ने दिखाया वही देखा +आइंदा हो क्या नफ़ा ओ ज़रर देख रहे हैं +पहले तो सुना करते थे आशिक़ की मुसीबत +अब आँख से वो आठ पहर देख रहे हैं +क्यूँ कुफ़्र है दीदार-ए-सनम हज़रत-ए-वाइज़ +अल्लाह दिखाता है बशर देख रहे हैं +ख़त ग़ैर का पढ़ते थे जो टोका तो वो बोले +अख़बार का परचा है ख़बर देख रहे हैं +पढ़ पढ़ के वो दम करते हैं कुछ हाथ पर अपने +हँस हँस के मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर देख रहे हैं +मैं 'दाग़' हूँ मरता हूँ इधर देखिए मुझ को +मुँह फेर के ये आप किधर देख रहे हैं " +ye-baat-baat-men-kyaa-naazukii-nikaltii-hai-dagh-dehlvi-ghazals," +ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है +दबी दबी तिरे लब से हँसी निकलती है +ठहर ठहर के जला दिल को एक बार न फूँक +कि इस में बू-ए-मोहब्बत अभी निकलती है +बजाए शिकवा भी देता हूँ मैं दुआ उस को +मिरी ज़बाँ से करूँ क्या यही निकलती है +ख़ुशी में हम ने ये शोख़ी कभी नहीं देखी +दम-ए-इताब जो रंगत तिरी निकलती है +हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल +दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है +अदा से तेरी मगर खिंच रहीं हैं तलवारें +निगह निगह से छुरी पर छुरी निकलती है +मुहीत-ए-इश्क़ में है क्या उमीद ओ बीम मुझे +कि डूब डूब के कश्ती मिरी निकलती है +झलक रही है सर-ए-शाख़-ए-मिज़ा ख़ून की बूँद +शजर में पहले समर से कली निकलती है +शब-ए-फ़िराक़ जो खोले हैं हम ने ज़ख़्म-ए-जिगर +ये इंतिज़ार है कब चाँदनी निकलती है +समझ तो लीजिए कहने तो दीजिए मतलब +बयाँ से पहले ही मुझ पर छुरी निकलती है +ये दिल की आग है या दिल के नूर का है ज़ुहूर +नफ़स नफ़स में मिरे रौशनी निकलती है +कहा जो मैं ने कि मर जाऊँगा तो कहते हैं +हमारे ज़ाइचे में ज़िंदगी निकलती है +समझने वाले समझते हैं पेच की तक़रीर +कि कुछ न कुछ तिरी बातों में फ़ी निकलती है +दम-ए-अख़ीर तसव्वुर है किस परी-वश का +कि मेरी रूह भी बन कर परी निकलती है +सनम-कदे में भी है हुस्न इक ख़ुदाई का +कि जो निकलती है सूर�� परी निकलती है +मिरे निकाले न निकलेगी आरज़ू मेरी +जो तुम निकालना चाहो अभी निकलती है +ग़म-ए-फ़िराक़ में हो 'दाग़' इस क़दर बेताब +ज़रा से रंज में जाँ आप की निकलती है " +kahte-hain-jis-ko-huur-vo-insaan-tumhiin-to-ho-dagh-dehlvi-ghazals," +कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो +जाती है जिस पे जान मिरी जाँ तुम्हीं तो हो +मतलब की कह रहे हैं वो दाना हमीं तो हैं +मतलब की पूछते हो वो नादाँ तुम्हीं तो हो +आता है बाद-ए-ज़ुल्म तुम्हीं को तो रहम भी +अपने किए से दिल में पशेमाँ तुम्हीं तो हो +पछताओगे बहुत मिरे दिल को उजाड़ कर +इस घर में और कौन है मेहमाँ तुम्हीं तो हो +इक रोज़ रंग लाएँगी ये मेहरबानियाँ +हम जानते थे जान के ख़्वाहाँ तुम्हीं तो हो +दिलदार ओ दिल-फ़रेब दिल-आज़ार ओ दिल-सिताँ +लाखों में हम कहेंगे कि हाँ हाँ तुम्हीं तो हो +करते हो 'दाग़' दूर से बुत-ख़ाने को सलाम +अपनी तरह के एक मुसलमाँ तुम्हीं तो हो " +un-ke-ik-jaan-nisaar-ham-bhii-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं +हैं जहाँ सौ हज़ार हम भी हैं +तुम भी बेचैन हम भी हैं बेचैन +तुम भी हो बे-क़रार हम भी हैं +ऐ फ़लक कह तो क्या इरादा है +ऐश के ख़्वास्त-गार हम भी हैं +खींच लाएगा जज़्ब-ए-दिल उन को +हमा तन इंतिज़ार हम भी हैं +बज़्म-ए-दुश्मन में ले चला है दिल +कैसे बे-इख़्तियार हम भी हैं +शहर ख़ाली किए दुकाँ कैसी +एक ही बादा-ख़्वार हम भी हैं +शर्म समझे तिरे तग़ाफ़ुल को +वाह क्या होशियार हम भी हैं +हाथ हम से मिलाओ ऐ मूसा +आशिक़-ए-रू-ए-यार हम भी हैं +ख़्वाहिश-ए-बादा-ए-तुहूर नहीं +कैसे परहेज़-गार हम भी हैं +तुम अगर अपनी गूँ के हो मा'शूक़ +अपने मतलब के यार हम भी हैं +जिस ने चाहा फँसा लिया हम को +दिलबरों के शिकार हम भी हैं +आई मय-ख़ाने से ये किस की सदा +लाओ यारों के यार हम भी हैं +ले ही तो लेगी दिल निगाह तिरी +हर तरह होशियार हम भी हैं +इधर आ कर भी फ़ातिहा पढ़ लो +आज ज़ेर-ए-मज़ार हम भी हैं +ग़ैर का हाल पूछिए हम से +उस के जलसे के यार हम भी हैं +कौन सा दिल है जिस में 'दाग़' नहीं +इश्क़ में यादगार हम भी हैं " +falak-detaa-hai-jin-ko-aish-un-ko-gam-bhii-hote-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं +जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं +गिले शिकवे कहाँ तक होंगे आधी रात तो गुज़री +परेशाँ तुम भी होते हो परेशाँ हम भी होते हैं +जो रक्खे चारागर काफ़ूर दूनी आग लग जाए +कहीं ये ज़ख़्म-ए-दिल शर्मिंदा-ए-मरहम भी होते हैं +वो आँखें सामरी-फ़न हैं वो ���ब ईसा-नफ़स देखो +मुझी पर सेहर होते हैं मुझी पर दम भी होते हैं +ज़माना दोस्ती पर इन हसीनों की न इतराए +ये आलम-दोस्त अक्सर दुश्मन-ए-आलम भी होते हैं +ब-ज़ाहिर रहनुमा हैं और दिल में बद-गुमानी है +तिरे कूचे में जो जाता है आगे हम भी होते हैं +हमारे आँसुओं की आबदारी और ही कुछ है +कि यूँ होने को रौशन गौहर-ए-शबनम भी होते हैं +ख़ुदा के घर में क्या है काम ज़ाहिद बादा-ख़्वारों का +जिन्हें मिलती नहीं वो तिश्ना-ए-ज़मज़म भी होते हैं +हमारे साथ ही पैदा हुआ है इश्क़ ऐ नासेह +जुदाई किस तरह से हो जुदा तवाम भी होते हैं +नहीं घटती शब-ए-फ़ुर्क़त भी अक्सर हम ने देखा है +जो बढ़ जाते हैं हद से वो ही घट कर कम भी होते हैं +बचाऊँ पैरहन क्या चारागर मैं दस्त-ए-वहशत से +कहीं ऐसे गरेबाँ दामन-ए-मरयम भी होते हैं +तबीअत की कजी हरगिज़ मिटाए से नहीं मिटती +कभी सीधे तुम्हारे गेसू-ए-पुर-ख़म भी होते हैं +जो कहता हूँ कि मरता हूँ तो फ़रमाते हैं मर जाओ +जो ग़श आता है तो मुझ पर हज़ारों दम भी होते हैं +किसी का वादा-ए-दीदार तो ऐ 'दाग़' बर-हक़ है +मगर ये देखिए दिल-शाद उस दिन हम भी होते हैं " +saaz-ye-kiina-saaz-kyaa-jaanen-dagh-dehlvi-ghazals," +साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें +नाज़ वाले नियाज़ क्या जानें +शम्अ'-रू आप गो हुए लेकिन +लुत्फ़-ए-सोज़-ओ-गुदाज़ क्या जानें +कब किसी दर की जब्हा-साई की +शैख़ साहब नमाज़ क्या जानें +जो रह-ए-इश्क़ में क़दम रक्खें +वो नशेब-ओ-फ़राज़ क्या जानें +पूछिए मय-कशों से लुत्फ़-ए-शराब +ये मज़ा पाक-बाज़ क्या जानें +बले चितवन तिरी ग़ज़ब री निगाह +क्या करेंगे ये नाज़ क्या जानें +जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक +वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें +हज़रत-ए-ख़िज़्र जब शहीद न हों +लुत्फ़-ए-उम्र-ए-दराज़ क्या जानें +जो गुज़रते हैं 'दाग़' पर सदमे +आप बंदा-नवाज़ क्या जानें " +zaahid-na-kah-burii-ki-ye-mastaane-aadmii-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं +तुझ को लिपट पड़ेंगे दीवाने आदमी हैं +ग़ैरों की दोस्ती पर क्यूँ ए'तिबार कीजे +ये दुश्मनी करेंगे बेगाने आदमी हैं +जो आदमी पे गुज़री वो इक सिवा तुम्हारे +क्या जी लगा के सुनते अफ़्साने आदमी हैं +क्या जुरअतें जो हम को दरबाँ तुम्हारा टोके +कह दो कि ये तो जाने-पहचाने आदमी हैं +मय बूँद भर पिला कर क्या हँस रहा है साक़ी +भर भर के पीते आख़िर पैमाने आदमी हैं +तुम ने हमारे दिल में घर कर लिया तो क्या है +आबाद करते आख़िर वीराने आदमी हैं +न���सेह से कोई कह दे कीजे कलाम ऐसा +हज़रत को ता कि कोई ये जाने आदमी हैं +जब दावर-ए-क़यामत पूछेगा तुम पे रख कर +कह देंगे साफ़ हम तो बेगाने आदमी हैं +मैं वो बशर कि मुझ से हर आदमी को नफ़रत +तुम शम्अ वो कि तुम पर परवाने आदमी हैं +महफ़िल भरी हुई है सौदाइयों से उस की +उस ग़ैरत-ए-परी पर दीवाने आदमी हैं +शाबाश 'दाग़' तुझ को क्या तेग़-ए-इश्क़ खाई +जी करते हैं वही जो मर्दाने आदमी हैं " +jo-ho-saktaa-hai-us-se-vo-kisii-se-ho-nahiin-saktaa-dagh-dehlvi-ghazals," +जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता +मगर देखो तो फिर कुछ आदमी से हो नहीं सकता +मोहब्बत में करे क्या कुछ किसी से हो नहीं सकता +मिरा मरना भी तो मेरी ख़ुशी से हो नहीं सकता +अलग करना रक़ीबों का इलाही तुझ को आसाँ है +मुझे मुश्किल कि मेरी बेकसी से हो नहीं सकता +किया है वादा-ए-फ़र्दा उन्हों ने देखिए क्या हो +यहाँ सब्र ओ तहम्मुल आज ही से हो नहीं सकता +ये मुश्ताक़-ए-शहादत किस जगह जाएँ किसे ढूँडें +कि तेरा काम क़ातिल जब तुझी से हो नहीं सकता +लगा कर तेग़ क़िस्सा पाक कीजिए दाद-ख़्वाहों का +किसी का फ़ैसला कर मुंसिफ़ी से हो नहीं सकता +मिरा दुश्मन ब-ज़ाहिर चार दिन को दोस्त है तेरा +किसी का हो रहे ये हर किसी से हो नहीं सकता +पुर्सिश कहोगे क्या वहाँ जब याँ ये सूरत है +अदा इक हर्फ़-ए-वादा नाज़ुकी से हो नहीं सकता +न कहिए गो कि हाल-ए-दिल मगर रंग-आश्ना हैं हम +ये ज़ाहिर आप की क्या ख़ामुशी से हो नहीं सकता +किया जो हम ने ज़ालिम क्या करेगा ग़ैर मुँह क्या है +करे तो सब्र ऐसा आदमी से हो नहीं सकता +चमन में नाज़ बुलबुल ने किया जो अपनी नाले पर +चटक कर ग़ुंचा बोला क्या किसी से हो नहीं सकता +नहीं गर तुझ पे क़ाबू दिल है पर कुछ ज़ोर हो अपना +करूँ क्या ये भी तो ना-ताक़ती से हो नहीं सकता +न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का +परेशानी में कोई काम जी से हो नहीं सकता +हुआ हूँ इस क़दर महजूब अर्ज़-ए-मुद्दआ कर के +कि अब तो उज़्र भी शर्मिंदगी से हो नहीं सकता +ग़ज़ब में जान है क्या कीजे बदला रंज-ए-फ़ुर्क़त का +बदी से कर नहीं सकते ख़ुशी से हो नहीं सकता +मज़ा जो इज़्तिराब-ए-शौक़ से आशिक़ को है हासिल +वो तस्लीम ओ रज़ा ओ बंदगी से हो नहीं सकता +ख़ुदा जब दोस्त है ऐ 'दाग़' क्या दुश्मन से अंदेशा +हमारा कुछ किसी की दुश्मनी से हो नहीं सकता " +vo-zamaana-nazar-nahiin-aataa-dagh-dehlvi-ghazals," +वो ज़माना नज़र नहीं आता +कुछ ठिकाना नज़र नहीं आता +जान जाती दिखाई देती है +��न का आना नज़र नहीं आता +इश्क़ दर-पर्दा फूँकता है आग +ये जलाना नज़र नहीं आता +इक ज़माना मिरी नज़र में रहा +इक ज़माना नज़र नहीं आता +दिल ने इस बज़्म में बिठा तो दिया +उठ के जाना नज़र नहीं आता +रहिए मुश्ताक़-ए-जल्वा-ए-दीदार +हम ने माना नज़र नहीं आता +ले चलो मुझ को राह-रवान-ए-अदम +याँ ठिकाना नज़र नहीं आता +दिल पे बैठा कहाँ से तीर-ए-निगाह +ये निशाना नज़र नहीं आता +तुम मिलाओगे ख़ाक में हम को +दिल मिलाना नज़र नहीं आता +आप ही देखते हैं हम को तो +दिल का आना नज़र नहीं आता +दिल-ए-पुर-आरज़ू लुटा ऐ 'दाग़' +वो ख़ज़ाना नज़र नहीं आता " +bhaven-tantii-hain-khanjar-haath-men-hai-tan-ke-baithe-hain-dagh-dehlvi-ghazals," +भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं +किसी से आज बिगड़ी है कि वो यूँ बन के बैठे हैं +दिलों पर सैकड़ों सिक्के तिरे जोबन के बैठे हैं +कलेजों पर हज़ारों तीर इस चितवन के बैठे हैं +इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है +हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं +ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ +अभी फिर रूठ जाएँगे अभी तो मन के बैठे हैं +असर है जज़्ब-ए-उल्फ़त में तो खिंच कर आ ही जाएँगे +हमें पर्वा नहीं हम से अगर वो तन के बैठे हैं +सुबुक हो जाएँगे गर जाएँगे वो बज़्म-ए-दुश्मन में +कि जब तक घर में बैठे हैं वो लाखों मन के बैठे हैं +फ़ुसूँ है या दुआ है या मुअ'म्मा खुल नहीं सकता +वो कुछ पढ़ते हुए आगे मिरे मदफ़न के बैठे हैं +बहुत रोया हूँ मैं जब से ये मैं ने ख़्वाब देखा है +कि आप आँसू बहाते सामने दुश्मन के बैठे हैं +खड़े हों ज़ेर-ए-तूबा वो न दम लेने को दम भर भी +जो हसरत-मंद तेरे साया-ए-दामन के बैठे हैं +तलाश-ए-मंज़िल-ए-मक़्सद की गर्दिश उठ नहीं सकती +कमर खोले हुए रस्ते में हम रहज़न के बैठे हैं +ये जोश-ए-गिर्या तो देखो कि जब फ़ुर्क़त में रोया हूँ +दर ओ दीवार इक पल में मिरे मदफ़न के बैठे हैं +निगाह-ए-शोख़ ओ चश्म-ए-शौक़ में दर-पर्दा छनती है +कि वो चिलमन में हैं नज़दीक हम चिलमन के बैठे हैं +ये उठना बैठना महफ़िल में उन का रंग लाएगा +क़यामत बन के उट्ठेंगे भबूका बन के बैठे हैं +किसी की शामत आएगी किसी की जान जाएगी +किसी की ताक में वो बाम पर बन-ठन के बैठे हैं +क़सम दे कर उन्हें ये पूछ लो तुम रंग-ढंग उस के +तुम्हारी बज़्म में कुछ दोस्त भी दुश्मन के बैठे हैं +कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ +अज़ीमाबाद में हम मुंतज़िर सावन के बैठे ��ैं " +gazab-kiyaa-tire-vaade-pe-e-tibaar-kiyaa-dagh-dehlvi-ghazals," +ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया +तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया +किसी तरह जो न उस बुत ने ए'तिबार किया +मिरी वफ़ा ने मुझे ख़ूब शर्मसार किया +हँसा हँसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया +तसल्लियाँ मुझे दे दे के बे-क़रार किया +ये किस ने जल्वा हमारे सर-ए-मज़ार किया +कि दिल से शोर उठा हाए बे-क़रार किया +सुना है तेग़ को क़ातिल ने आब-दार किया +अगर ये सच है तो बे-शुबह हम पे वार किया +न आए राह पे वो इज्ज़ बे-शुमार किया +शब-ए-विसाल भी मैं ने तो इंतिज़ार किया +तुझे तो वादा-ए-दीदार हम से करना था +ये क्या किया कि जहाँ को उमीद-वार किया +ये दिल को ताब कहाँ है कि हो मआल-अंदेश +उन्हों ने वअ'दा किया इस ने ए'तिबार किया +कहाँ का सब्र कि दम पर है बन गई ज़ालिम +ब तंग आए तो हाल-ए-दिल आश्कार किया +तड़प फिर ऐ दिल-ए-नादाँ कि ग़ैर कहते हैं +अख़ीर कुछ न बनी सब्र इख़्तियार किया +मिले जो यार की शोख़ी से उस की बेचैनी +तमाम रात दिल-ए-मुज़्तरिब को प्यार किया +भुला भुला के जताया है उन को राज़-ए-निहाँ +छुपा छुपा के मोहब्बत को आश्कार किया +न उस के दिल से मिटाया कि साफ़ हो जाता +सबा ने ख़ाक परेशाँ मिरा ग़ुबार किया +हम ऐसे महव-ए-नज़ारा न थे जो होश आता +मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होश्यार किया +हमारे सीने में जो रह गई थी आतिश-ए-हिज्र +शब-ए-विसाल भी उस को न हम-कनार किया +रक़ीब ओ शेवा-ए-उल्फ़त ख़ुदा की क़ुदरत है +वो और इश्क़ भला तुम ने ए'तिबार किया +ज़बान-ए-ख़ार से निकली सदा-ए-बिस्मिल्लाह +जुनूँ को जब सर-ए-शोरीदा पर सवार किया +तिरी निगह के तसव्वुर में हम ने ऐ क़ातिल +लगा लगा के गले से छुरी को प्यार किया +ग़ज़ब थी कसरत-ए-महफ़िल कि मैं ने धोके में +हज़ार बार रक़ीबों को हम-कनार किया +हुआ है कोई मगर उस का चाहने वाला +कि आसमाँ ने तिरा शेवा इख़्तियार किया +न पूछ दिल की हक़ीक़त मगर ये कहते हैं +वो बे-क़रार रहे जिस ने बे-क़रार किया +जब उन को तर्ज़-ए-सितम आ गए तो होश आया +बुरा हो दिल का बुरे वक़्त होश्यार किया +फ़साना-ए-शब-ए-ग़म उन को इक कहानी थी +कुछ ए'तिबार किया कुछ न ए'तिबार किया +असीरी दिल-ए-आशुफ़्ता रंग ला के रही +तमाम तुर्रा-ए-तर्रार तार तार किया +कुछ आ गई दावर-ए-महशर से है उम्मीद मुझे +कुछ आप ने मिरे कहने का ए'तिबार किया +किसी के इश्क़-ए-निहाँ में ये बद-गुमानी थी +कि डरते डरते ख़ुदा पर भी आश्कार किया +फ़लक से तौर क़यामत के बन न पड़ते थे +अख़ीर अब तुझे आशोब-ए-रोज़गार किया +वो बात कर जो कभी आसमाँ से हो न सके +सितम किया तो बड़ा तू ने इफ़्तिख़ार किया +बनेगा मेहर-ए-क़यामत भी एक ख़ाल-ए-सियाह +जो चेहरा 'दाग़'-ए-सियह-रू ने आश्कार किया " +majnuun-ne-shahr-chhodaa-to-sahraa-bhii-chhod-de-allama-iqbal-ghazals," +मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे +नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे +वाइ'ज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है याँ मुराद +दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़्बा भी छोड़ दे +तक़लीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुद-कुशी +रस्ता भी ढूँड ख़िज़्र का सौदा भी छोड़ दे +मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बाँ पर है हर्फ़-ए-ग़ैर +बेगाना शय पे नाज़िश-ए-बेजा भी छोड़ दे +लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़ +बिस्मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे +शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल +इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे +है आशिक़ी में रस्म अलग सब से बैठना +बुत-ख़ाना भी हरम भी कलीसा भी छोड़ दे +सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है +ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे +अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल +लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे +जीना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार +शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे +शोख़ी सी है सवाल-ए-मुकर्रर में ऐ कलीम +शर्त-ए-रज़ा ये है कि तक़ाज़ा भी छोड़ दे +वाइ'ज़ सुबूत लाए जो मय के जवाज़ में +'इक़बाल' को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे " +hazaar-khauf-ho-lekin-zabaan-ho-dil-kii-rafiiq-allama-iqbal-ghazals," +हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़ +यही रहा है अज़ल से क़लंदरों का तरीक़ +हुजूम क्यूँ है ज़ियादा शराब-ख़ाने में +फ़क़त ये बात कि पीर-ए-मुग़ाँ है मर्द-ए-ख़लीक़ +इलाज-ए-ज़ोफ़-ए-यक़ीं इन से हो नहीं सकता +ग़रीब अगरचे हैं 'राज़ी' के नुक्ता-हाए-दक़ीक़ +मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइब +ख़ुदा करे कि मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़ +उसी तिलिस्म-ए-कुहन में असीर है आदम +बग़ल में उस की हैं अब तक बुतान-ए-अहद-ए-अतीक़ +मिरे लिए तो है इक़रार-ए-बिल-लिसाँ भी बहुत +हज़ार शुक्र कि मुल्ला हैं साहिब-ए-तसदीक़ +अगर हो इश्क़ तो है कुफ़्र भी मुसलमानी +न हो तो मर्द-ए-मुसलमाँ भी काफ़िर ओ ज़िंदीक़ " +har-shai-musaafir-har-chiiz-raahii-allama-iqbal-ghazals," +हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही +क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही +तू मर्द-ए-मैदाँ तू मीर-ए-लश्कर +नूरी हुज़ूरी तेरे सिपाही +कुछ क़द्र अपनी तू ने न जानी +ये बे-सवादी ये कम-निगाही +दुनिया-ए-दूँ की कब तक ग़ुलामी +या राहेबी कर या पादशाही +पीर-ए-हरम को देखा है मैं ने +किरदार-ए-बे-सोज़ गुफ़्तार वाही " +khird-mandon-se-kyaa-puuchhuun-ki-merii-ibtidaa-kyaa-hai-allama-iqbal-ghazals," +ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है +कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है +ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले +ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है +मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँ +यही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है +नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इस में +न पूछ ऐ हम-नशीं मुझ से वो चश्म-ए-सुर्मा-सा क्या है +अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में +तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है +नवा-ए-सुब्ह-गाही ने जिगर ख़ूँ कर दिया मेरा +ख़ुदाया जिस ख़ता की ये सज़ा है वो ख़ता क्या है " +digar-guun-hai-jahaan-taaron-kii-gardish-tez-hai-saaqii-allama-iqbal-ghazals," +दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी +दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी +मता-ए-दीन-ओ-दानिश लुट गई अल्लाह-वालों की +ये किस काफ़िर-अदा का ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ है साक़ी +वही देरीना बीमारी वही ना-मोहकमी दिल की +इलाज इस का वही आब-ए-नशात-अंगेज़ है साक़ी +हरम के दिल में सोज़-ए-आरज़ू पैदा नहीं होता +कि पैदाई तिरी अब तक हिजाब-आमेज़ है साक़ी +न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से +वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी +नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से +ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी +फ़क़ीर-ए-राह को बख़्शे गए असरार-ए-सुल्तानी +बहा मेरी नवा की दौलत-ए-परवेज़ है साक़ी " +jab-ishq-sikhaataa-hai-aadaab-e-khud-aagaahii-allama-iqbal-ghazals," +जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही +खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही +'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो +कुछ हाथ नहीं आता बे-आह-ए-सहर-गाही +नौमीद न हो इन से ऐ रहबर-ए-फ़रज़ाना +कम-कोश तो हैं लेकिन बे-ज़ौक़ नहीं राही +ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी +जिस रिज़्क़ से आती हो पर्वाज़ में कोताही +दारा ओ सिकंदर से वो मर्द-ए-फ़क़ीर औला +हो जिस की फ़क़ीरी में बू-ए-असदूल-लाही +आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी +अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही " +vahii-merii-kam-nasiibii-vahii-terii-be-niyaazii-allama-iqbal-ghazals," +वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी +मिरे काम कुछ न आया ये कमाल-ए-नै-नवाज़ी +मैं कहाँ हूँ तू कहाँ है ये मकाँ कि ला-मकाँ है +ये जहाँ मिरा ��हाँ है कि तिरी करिश्मा-साज़ी +इसी कश्मकश में गुज़रीं मिरी ज़िंदगी की रातें +कभी सोज़-ओ-साज़-ए-'रूमी' कभी पेच-ओ-ताब-ए-'राज़ी' +वो फ़रेब-ख़ुर्दा शाहीं कि पला हो करगसों में +उसे क्या ख़बर कि क्या है रह-ओ-रस्म-ए-शाहबाज़ी +न ज़बाँ कोई ग़ज़ल की न ज़बाँ से बा-ख़बर मैं +कोई दिल-कुशा सदा हो अजमी हो या कि ताज़ी +नहीं फ़क़्र ओ सल्तनत में कोई इम्तियाज़ ऐसा +ये सिपह की तेग़-बाज़ी वो निगह की तेग़-बाज़ी +कोई कारवाँ से टूटा कोई बद-गुमाँ हरम से +कि अमीर-ए-कारवाँ में नहीं ख़ू-ए-दिल-नवाज़ी " +na-tuu-zamiin-ke-liye-hai-na-aasmaan-ke-liye-allama-iqbal-ghazals," +न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए +जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए +ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के +वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए +मक़ाम-ए-परवरिश-ए-आह-ओ-लाला है ये चमन +न सैर-ए-गुल के लिए है न आशियाँ के लिए +रहेगा रावी ओ नील ओ फ़ुरात में कब तक +तिरा सफ़ीना कि है बहर-ए-बे-कराँ के लिए +निशान-ए-राह दिखाते थे जो सितारों को +तरस गए हैं किसी मर्द-ए-राह-दाँ के लिए +निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़ +यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए +ज़रा सी बात थी अंदेशा-ए-अजम ने उसे +बढ़ा दिया है फ़क़त ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए +मिरे गुलू में है इक नग़्मा जिब्राईल-आशोब +संभाल कर जिसे रक्खा है ला-मकाँ के लिए " +agar-kaj-rau-hain-anjum-aasmaan-teraa-hai-yaa-meraa-allama-iqbal-ghazals," +अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा +मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा +अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली +ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा +उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर +मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा +मोहम्मद भी तिरा जिबरील भी क़ुरआन भी तेरा +मगर ये हर्फ़-ए-शीरीं तर्जुमाँ तेरा है या मेरा +इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन +ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा " +zamaana-aayaa-hai-be-hijaabii-kaa-aam-diidaar-e-yaar-hogaa-allama-iqbal-ghazals," +ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा +सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा +गुज़र गया अब वो दौर साक़ी कि छुप के पीते थे पीने वाले +बनेगा सारा जहान मय-ख़ाना हर कोई बादा-ख़्वार होगा +कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में आ बसेंगे +बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा +सुना दिया गोश मुंतज़िर को हिजाज़ की ख़ामुशी ने आख़िर +जो अहद सहराइयों से बाँधा गया था प��� उस्तुवार होगा +निकल के सहरा से जिस ने रूमा की सल्तनत को उलट दिया था +सुना है ये क़ुदसियों से मैं ने वो शेर फिर होशियार होगा +किया मिरा तज़्किरा जो साक़ी ने बादा-ख़्वारों की अंजुमन में +तो पीर मय-ख़ाना सुन के कहने लगा कि मुँह फट है ख़ार होगा +दयार मग़रिब के रहने वालो ख़ुदा की बस्ती दुकाँ नहीं है +खरा है जिसे तुम समझ रहे हो वो अब ज़र कम-अयार होगा +तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी +जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा +सफ़ीना-ए-बर्ग-ए-गुल बना लेगा क़ाफ़िला मोर-ए-ना-तावाँ का +हज़ार मौजों की हो कशाकश मगर ये दरिया से पार होगा +चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली कली को +ये जानता है कि इस दिखावे से दिल जलों में शुमार होगा +जो एक था ऐ निगाह तू ने हज़ार कर के हमें दिखाया +यही अगर कैफ़ियत है तेरी तो फिर किसे ए'तिबार होगा +कहा जो क़मरी से मैं ने इक दिन यहाँ के आज़ाद पागल हैं +तो ग़ुंचे कहने लगे हमारे चमन का ये राज़दार होगा +ख़ुदा के आशिक़ तो हैं हज़ारों बनों में फिरते हैं मारे मारे +मैं उस का बंदा बनूँगा जिस को ख़ुदा के बंदों से प्यार होगा +ये रस्म बरहम फ़ना है ऐ दिल गुनाह है जुम्बिश नज़र भी +रहेगी क्या आबरू हमारी जो तू यहाँ बे-क़रार होगा +मैं ज़ुल्मत-ए-शब में ले के निकलूँगा अपने दरमाँदा कारवाँ को +शह निशाँ होगी आह मेरी नफ़स मिरा शो'ला बार होगा +नहीं है ग़ैर अज़ नुमूद कुछ भी जो मुद्दआ तेरी ज़िंदगी का +तू इक नफ़स में जहाँ से मिटना तुझे मिसाल शरार होगा +न पूछ इक़बाल का ठिकाना अभी वही कैफ़ियत है उस की +कहीं सर-ए-राहगुज़ार बैठा सितम-कश इंतिज़ार होगा " +ye-payaam-de-gaii-hai-mujhe-baad-e-subh-gaahii-allama-iqbal-ghazals," +ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही +कि ख़ुदी के आरिफ़ों का है मक़ाम पादशाही +तिरी ज़िंदगी इसी से तिरी आबरू इसी से +जो रही ख़ुदी तो शाही न रही तो रू-सियाही +न दिया निशान-ए-मंज़िल मुझे ऐ हकीम तू ने +मुझे क्या गिला हो तुझ से तू न रह-नशीं न राही +मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में अभी ज़ेर-ए-तर्बियत हैं +वो गदा कि जानते हैं रह-ओ-रस्म-ए-कज-कुलाही +ये मुआमले हैं नाज़ुक जो तिरी रज़ा हो तू कर +कि मुझे तो ख़ुश न आया ये तरिक़-ए-ख़ानक़ाही +तू हुमा का है शिकारी अभी इब्तिदा है तेरी +नहीं मस्लहत से ख़ाली ये जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही +तू अरब हो या अजम हो तिरा ला इलाह इल्ला +लुग़त-ए-ग़रीब जब तक तिरा दिल न दे गवा��ी " +kushaada-dast-e-karam-jab-vo-be-niyaaz-kare-allama-iqbal-ghazals," +कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे +नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे +बिठा के अर्श पे रक्खा है तू ने ऐ वाइ'ज़ +ख़ुदा वो क्या है जो बंदों से एहतिराज़ करे +मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी +जो होशियारी ओ मस्ती में इम्तियाज़ करे +मुदाम गोश-ब-दिल रह ये साज़ है ऐसा +जो हो शिकस्ता तो पैदा नवा-ए-राज़ करे +कोई ये पूछे कि वाइ'ज़ का क्या बिगड़ता है +जो बे-अमल पे भी रहमत वो बे-नियाज़ करे +सुख़न में सोज़ इलाही कहाँ से आता है +ये चीज़ वो है कि पत्थर को भी गुदाज़ करे +तमीज़-ए-लाला-ओ-गुल से है नाला-ए-बुलबुल +जहाँ में वा न कोई चश्म-ए-इम्तियाज़ करे +ग़ुरूर-ए-ज़ोहद ने सिखला दिया है वाइ'ज़ को +कि बंदगान-ए-ख़ुदा पर ज़बाँ दराज़ करे +हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल' +उड़ा के मुझ को ग़ुबार-ए-रह-ए-हिजाज़ करे " +vo-harf-e-raaz-ki-mujh-ko-sikhaa-gayaa-hai-junuun-allama-iqbal-ghazals," +वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ +ख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिबरईल दे तो कहूँ +सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा +वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़्लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ +हयात क्या है ख़याल ओ नज़र की मजज़ूबी +ख़ुदी की मौत है अँदेशा-हा-ए-गूना-गूँ +अजब मज़ा है मुझे लज़्ज़त-ए-ख़ुदी दे कर +वो चाहते हैं कि मैं अपने आप में न रहूँ +ज़मीर-ए-पाक ओ निगाह-ए-बुलंद ओ मस्ती-ए-शौक़ +न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूँ न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ +सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे +कि आलम-ए-बशरीयत की ज़द में है गर्दूं +ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद +कि आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ +इलाज आतिश-ए-'रूमी' के सोज़ में है तिरा +तिरी ख़िरद पे है ग़ालिब फ़िरंगियों का फ़ुसूँ +उसी के फ़ैज़ से मेरी निगाह है रौशन +उसी के फ़ैज़ से मेरे सुबू में है जेहूँ " +dil-soz-se-khaalii-hai-nigah-paak-nahiin-hai-allama-iqbal-ghazals," +दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है +फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है +है ज़ौक़-ए-तजल्ली भी इसी ख़ाक में पिन्हाँ +ग़ाफ़िल तू निरा साहिब-ए-इदराक नहीं है +वो आँख कि है सुर्मा-ए-अफ़रंग से रौशन +पुरकार ओ सुख़न-साज़ है नमनाक नहीं है +क्या सूफ़ी ओ मुल्ला को ख़बर मेरे जुनूँ की +उन का सर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है +कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मिरी ख़ाक +या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है +बिजली हूँ नज़र कोह ओ बयाबाँ पे है मेरी +मेरे लिए शायाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है +आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जाँबाज़ की ��ीरास +मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है " +gulzaar-e-hast-e-buud-na-begaana-vaar-dekh-allama-iqbal-ghazals," +गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख +है देखने की चीज़ इसे बार बार देख +आया है तू जहाँ में मिसाल-ए-शरार देख +दम दे न जाए हस्ती-ना-पाएदार देख +माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं +तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख +खोली हैं ज़ौक़-ए-दीद ने आँखें तिरी अगर +हर रहगुज़र में नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-यार देख " +khudii-ho-ilm-se-mohkam-to-gairat-e-jibriil-allama-iqbal-ghazals," +ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील +अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील +अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं +कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील +फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-मंज़िल है कारवाँ वर्ना +ज़ियादा राहत-ए-मंज़िल से है नशात-ए-रहील +नज़र नहीं तो मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में न बैठ +कि नुक्ता-हा-ए-ख़ुदी हैं मिसाल-ए-तेग़-ए-असील +मुझे वो दर्स-ए-फ़रंग आज याद आते हैं +कहाँ हुज़ूर की लज़्ज़त कहाँ हिजाब-ए-दलील +अँधेरी शब है जुदा अपने क़ाफ़िले से है तू +तिरे लिए है मिरा शोला-ए-नवा क़िंदील +ग़रीब ओ सादा ओ रंगीं है दस्तान-ए-हरम +निहायत इस की हुसैन इब्तिदा है इस्माईल " +aalam-e-aab-o-khaak-o-baad-sirr-e-ayaan-hai-tuu-ki-main-allama-iqbal-ghazals," +आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं +वो जो नज़र से है निहाँ उस का जहाँ है तू कि मैं +वो शब-ए-दर्द-ओ-सोज़-ओ-ग़म कहते हैं ज़िंदगी जिसे +उस की सहर है तू कि मैं उस की अज़ाँ है तू कि मैं +किस की नुमूद के लिए शाम ओ सहर हैं गर्म-ए-सैर +शाना-ए-रोज़गार पर बार-ए-गिराँ है तू कि मैं +तू कफ़-ए-ख़ाक ओ बे-बसर मैं कफ़-ए-ख़ाक ओ ख़ुद-निगर +किश्त-ए-वजूद के लिए आब-ए-रवाँ है तू कि मैं " +apnii-jaulaan-gaah-zer-e-aasmaan-samjhaa-thaa-main-allama-iqbal-ghazals," +अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं +आब ओ गिल के खेल को अपना जहाँ समझा था मैं +बे-हिजाबी से तिरी टूटा निगाहों का तिलिस्म +इक रिदा-ए-नील-गूँ को आसमाँ समझा था मैं +कारवाँ थक कर फ़ज़ा के पेच-ओ-ख़म में रह गया +मेहर ओ माह ओ मुश्तरी को हम-इनाँ समझा था मैं +इश्क़ की इक जस्त ने तय कर दिया क़िस्सा तमाम +इस ज़मीन ओ आसमाँ को बे-कराँ समझा था मैं +कह गईं राज़-ए-मोहब्बत पर्दा-दारी-हा-ए-शौक़ +थी फ़ुग़ाँ वो भी जिसे ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ समझा था मैं +थी किसी दरमाँदा रह-रौ की सदा-ए-दर्दनाक +जिस को आवाज़-ए-रहील-ए-कारवाँ समझा था मैं " +asar-kare-na-kare-sun-to-le-mirii-fariyaad-allama-iqbal-ghazals," +असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद +नहीं है दाद का तालिब ये बंदा-ए-आज़ा�� +ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअ'त-ए-अफ़्लाक +करम है या कि सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद +ठहर सका न हवा-ए-चमन में ख़ेमा-ए-गुल +यही है फ़स्ल-ए-बहारी यही है बाद-ए-मुराद +क़ुसूर-वार ग़रीब-उद-दयार हूँ लेकिन +तिरा ख़राबा फ़रिश्ते न कर सके आबाद +मिरी जफ़ा-तलबी को दुआएँ देता है +वो दश्त-ए-सादा वो तेरा जहान-ए-बे-बुनियाद +ख़तर-पसंद तबीअत को साज़गार नहीं +वो गुल्सिताँ कि जहाँ घात में न हो सय्याद +मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं +उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद " +fitrat-ko-khirad-ke-ruu-ba-ruu-kar-allama-iqbal-ghazals," +फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर +तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर +तू अपनी ख़ुदी को खो चुका है +खोई हुई शय की जुस्तुजू कर +तारों की फ़ज़ा है बे-कराना +तू भी ये मक़ाम-ए-आरज़ू कर +उर्यां हैं तिरे चमन की हूरें +चाक-ए-गुल-ओ-लाला को रफ़ू कर +बे-ज़ौक़ नहीं अगरचे फ़ितरत +जो उस से न हो सका वो तू कर " +aql-go-aastaan-se-duur-nahiin-allama-iqbal-ghazals," +अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहीं +उस की तक़दीर में हुज़ूर नहीं +दिल-ए-बीना भी कर ख़ुदा से तलब +आँख का नूर दिल का नूर नहीं +इल्म में भी सुरूर है लेकिन +ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं +क्या ग़ज़ब है कि इस ज़माने में +एक भी साहब-ए-सुरूर नहीं +इक जुनूँ है कि बा-शुऊर भी है +इक जुनूँ है कि बा-शुऊर नहीं +ना-सुबूरी है ज़िंदगी दिल की +आह वो दिल कि ना-सुबूर नहीं +बे-हुज़ूरी है तेरी मौत का राज़ +ज़िंदा हो तू तो बे-हुज़ूर नहीं +हर गुहर ने सदफ़ को तोड़ दिया +तू ही आमादा-ए-ज़ुहूर नहीं +अरिनी मैं भी कह रहा हूँ मगर +ये हदीस-ए-कलीम-ओ-तूर नहीं " +ik-daanish-e-nuuraanii-ik-daanish-e-burhaanii-allama-iqbal-ghazals," +इक दानिश-ए-नूरानी इक दानिश-ए-बुरहानी +है दानिश-ए-बुरहानी हैरत की फ़रावानी +इस पैकर-ए-ख़ाकी में इक शय है सो वो तेरी +मेरे लिए मुश्किल है इस शय की निगहबानी +अब क्या जो फ़ुग़ाँ मेरी पहुँची है सितारों तक +तू ने ही सिखाई थी मुझ को ये ग़ज़ल-ख़्वानी +हो नक़्श अगर बातिल तकरार से क्या हासिल +क्या तुझ को ख़ुश आती है आदम की ये अर्ज़ानी +मुझ को तो सिखा दी है अफ़रंग ने ज़िंदीक़ी +इस दौर के मुल्ला हैं क्यूँ नंग-ए-मुसलमानी +तक़दीर शिकन क़ुव्वत बाक़ी है अभी इस में +नादाँ जिसे कहते हैं तक़दीर का ज़िंदानी +तेरे भी सनम-ख़ाने मेरे भी सनम-ख़ाने +दोनों के सनम ख़ाकी दोनों के सनम फ़ानी " +kabhii-ai-haqiiqat-e-muntazar-nazar-aa-libaas-e-majaaz-men-allama-iqbal-ghazals," +कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में +कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में +तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश हो +वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में +तू बचा बचा के न रख इसे तिरा आइना है वो आइना +कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़-तर है निगाह-ए-आइना-साज़ में +दम-ए-तौफ़ किरमक-ए-शम्अ ने ये कहा कि वो असर-ए-कुहन +न तिरी हिकायत-ए-सोज़ में न मिरी हदीस-ए-गुदाज़ में +न कहीं जहाँ में अमाँ मिली जो अमाँ मिली तो कहाँ मिली +मिरे जुर्म-ए-ख़ाना-ख़राब को तिरे अफ़्व-ए-बंदा-नवाज़ में +न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँ +न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ मैं +मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा +तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में " +tuu-abhii-rahguzar-men-hai-qaid-e-maqaam-se-guzar-allama-iqbal-ghazals," +तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र +मिस्र ओ हिजाज़ से गुज़र पारस ओ शाम से गुज़र +जिस का अमल है बे-ग़रज़ उस की जज़ा कुछ और है +हूर ओ ख़ियाम से गुज़र बादा-ओ-जाम से गुज़र +गरचे है दिल-कुशा बहुत हुस्न-ए-फ़रंग की बहार +ताएरक-ए-बुलंद-बाम दाना-ओ-दाम से गुज़र +कोह-शिगाफ़ तेरी ज़र्ब तुझ से कुशाद-ए-शर्क़-ओ-ग़र्ब +तेग़-ए-हिलाल की तरह ऐश-ए-नियाम से गुज़र +तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर +ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र " +laa-phir-ik-baar-vahii-baada-o-jaam-ai-saaqii-allama-iqbal-ghazals," +ला फिर इक बार वही बादा ओ जाम ऐ साक़ी +हाथ आ जाए मुझे मेरा मक़ाम ऐ साक़ी +तीन सौ साल से हैं हिन्द के मय-ख़ाने बंद +अब मुनासिब है तिरा फ़ैज़ हो आम ऐ साक़ी +मेरी मीना-ए-ग़ज़ल में थी ज़रा सी बाक़ी +शेख़ कहता है कि है ये भी हराम ऐ साक़ी +शेर मर्दों से हुआ बेश-ए-तहक़ीक़ तही +रह गए सूफ़ी ओ मुल्ला के ग़ुलाम ऐ साक़ी +इश्क़ की तेग़-ए-जिगर-दार उड़ा ली किस ने +इल्म के हाथ में ख़ाली है नियाम ऐ साक़ी +सीना रौशन हो तो है सोज़-ए-सुख़न ऐन-ए-हयात +हो न रौशन तो सुख़न मर्ग-ए-दवाम ऐ साक़ी +तू मिरी रात को महताब से महरूम न रख +तिरे पैमाने में है माह-ए-तमाम ऐ साक़ी " +anokhii-vaza-hai-saare-zamaane-se-niraale-hain-allama-iqbal-ghazals," +अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं +ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं +इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ +जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं +फला-फूला रहे या-रब चमन मेरी उमीदों का +जिगर का ख़ून दे दे कर ये बूटे मैं ने पाले हैं +रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की +निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं +न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की +नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं +नहीं बेगानगी अच्छी रफ़ीक़-ए-राह-ए-मंज़िल से +ठहर जा ऐ शरर हम भी तो आख़िर मिटने वाले हैं +उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइ'ज़ को +ये हज़रत देखने में सीधे-साधे भोले भाले हैं +मिरे अशआ'र ऐ 'इक़बाल' क्यूँ प्यारे न हों मुझ को +मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं " +aflaak-se-aataa-hai-naalon-kaa-javaab-aakhir-allama-iqbal-ghazals," +अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर +करते हैं ख़िताब आख़िर उठते हैं हिजाब आख़िर +अहवाल-ए-मोहब्बत में कुछ फ़र्क़ नहीं ऐसा +सोज़ ओ तब-ओ-ताब अव्वल सोज़ ओ तब-ओ-ताब आख़िर +मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है +शमशीर-ओ-सिनाँ अव्वल ताऊस-ओ-रुबाब आख़िर +मय-ख़ाना-ए-यूरोप के दस्तूर निराले हैं +लाते हैं सुरूर अव्वल देते हैं शराब आख़िर +क्या दबदबा-ए-नादिर क्या शौकत-ए-तैमूरी +हो जाते हैं सब दफ़्तर ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब आख़िर +ख़ल्वत की घड़ी गुज़री जल्वत की घड़ी आई +छुटने को है बिजली से आग़ोश-ए-सहाब आख़िर +था ज़ब्त बहुत मुश्किल इस सैल-ए-मआ'नी का +कह डाले क़लंदर ने असरार-ए-किताब आख़िर " +pareshaan-ho-ke-merii-khaak-aakhir-dil-na-ban-jaae-allama-iqbal-ghazals," +परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए +जो मुश्किल अब है या रब फिर वही मुश्किल न बन जाए +न कर दें मुझ को मजबूर-ए-नवाँ फ़िरदौस में हूरें +मिरा सोज़-ए-दरूँ फिर गर्मी-ए-महफ़िल न बन जाए +कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को +खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए +बनाया इश्क़ ने दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ मुझ को +ये मेरी ख़ुद-निगह-दारी मिरा साहिल न बन जाए +कहीं इस आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू में भी तलब मेरी +वही अफ़्साना-ए-दुंबाला-ए-महमिल न बन जाए +उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं +कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए " +musalmaan-ke-lahuu-men-hai-saliiqa-dil-navaazii-kaa-allama-iqbal-ghazals," +मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का +मुरव्वत हुस्न-ए-आलम-गीर है मर्दान-ए-ग़ाज़ी का +शिकायत है मुझे या रब ख़ुदावंदान-ए-मकतब से +सबक़ शाहीं बच्चों को दे रहे हैं ख़ाक-बाज़ी का +बहुत मुद्दत के नख़चीरों का अंदाज़-ए-निगह बदला +कि मैं ने फ़ाश कर डाला तरीक़ा शाहबाज़ी का +क़लंदर जुज़ दो हर्फ़-ए-ला-इलाह कुछ भी नहीं रखता +फ़क़ीह-ए-शहर क़ारूँ है लुग़त-हा-ए-हिजाज़ी का +हदीस-ए-बादा-ओ-मीना-ओ-जाम आती न��ीं मुझ को +न कर ख़ारा-शग़ाफ़ों से तक़ाज़ा शीशा-साज़ी का +कहाँ से तू ने ऐ 'इक़बाल' सीखी है ये दरवेशी +कि चर्चा पादशाहों में है तेरी बे-नियाज़ी का " +khirad-ke-paas-khabar-ke-sivaa-kuchh-aur-nahiin-allama-iqbal-ghazals," +ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं +तिरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं +हर इक मक़ाम से आगे मक़ाम है तेरा +हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं +गिराँ-बहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वर्ना +गुहर में आब-ए-गुहर के सिवा कुछ और नहीं +रगों में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल +हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं +उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझ से हिजाब +कि मैं नसीम-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं +जिसे कसाद समझते हैं ताजिरान-ए-फ़रंग +वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कुछ और नहीं +बड़ा करीम है 'इक़बाल'-ए-बे-नवा लेकिन +अता-ए-शोला शरर के सिवा कुछ और नहीं " +zaahir-ki-aankh-se-na-tamaashaa-kare-koii-allama-iqbal-ghazals-29, +sakhtiyaan-kartaa-huun-dil-par-gair-se-gaafil-huun-main-allama-iqbal-ghazals," +सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं +हाए क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं +मैं जभी तक था कि तेरी जल्वा-पैराई न थी +जो नुमूद-ए-हक़ से मिट जाता है वो बातिल हूँ मैं +इल्म के दरिया से निकले ग़ोता-ज़न गौहर-ब-दस्त +वाए महरूमी ख़ज़फ़ चैन लब साहिल हूँ मैं +है मिरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील +जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं +बज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न हो +तू तो इक तस्वीर है महफ़िल की और महफ़िल हूँ मैं +ढूँढता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने-आप को +आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं " +na-aate-hamen-is-men-takraar-kyaa-thii-allama-iqbal-ghazals," +न आते हमें इस में तकरार क्या थी +मगर वा'दा करते हुए आर क्या थी +तुम्हारे पयामी ने सब राज़ खोला +ख़ता इस में बंदे की सरकार क्या थी +भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा +तिरी आँख मस्ती में हुश्यार क्या थी +तअम्मुल तो था उन को आने में क़ासिद +मगर ये बता तर्ज़-ए-इंकार क्या थी +खिंचे ख़ुद-बख़ुद जानिब-ए-तूर मूसा +कशिश तेरी ऐ शौक़-ए-दीदार क्या थी +कहीं ज़िक्र रहता है 'इक़बाल' तेरा +फ़ुसूँ था कोई तेरी गुफ़्तार क्या थी " +yaa-rab-ye-jahaan-e-guzraan-khuub-hai-lekin-allama-iqbal-ghazals," +या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन +क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद +गो इस की ख़ुदाई में महाजन का भी है हाथ +दुनिया तो समझती है फ़रंगी को ख़ुदावंद +तू बर्ग-ए-गया है न वही अहल-ए-ख़िरद रा +ओ किश्त-ए-गुल-ओ-लाला ब-बख़शद ब-ख़रे चंद +हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ +मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद +अहकाम तिरे हक़ हैं मगर अपने मुफ़स्सिर +तावील से क़ुरआँ को बना सकते हैं पाज़ंद +फ़िरदौस जो तेरा है किसी ने नहीं देखा +अफ़रंग का हर क़र्या है फ़िरदौस की मानिंद +मुद्दत से है आवारा-ए-अफ़्लाक मिरा फ़िक्र +कर दे इसे अब चाँद के ग़ारों में नज़र-बंद +फ़ितरत ने मुझे बख़्शे हैं जौहर मलाकूती +ख़ाकी हूँ मगर ख़ाक से रखता नहीं पैवंद +दरवेश-ए-ख़ुदा-मस्त न शर्क़ी है न ग़र्बी +घर मेरा न दिल्ली न सफ़ाहाँ न समरक़ंद +कहता हूँ वही बात समझता हूँ जिसे हक़ +ने आबला-ए-मस्जिद हूँ न तहज़ीब का फ़रज़ंद +अपने भी ख़फ़ा मुझ से हैं बेगाने भी ना-ख़ुश +मैं ज़हर-ए-हलाहल को कभी कह न सका क़ंद +मुश्किल है इक बंदा-ए-हक़-बीन-ओ-हक़-अंदेश +ख़ाशाक के तोदे को कहे कोह-ए-दमावंद +हूँ आतिश-ए-नमरूद के शो'लों में भी ख़ामोश +मैं बंदा-ए-मोमिन हूँ नहीं दाना-ए-असपंद +पुर-सोज़ नज़र-बाज़ ओ निको-बीन ओ कम आरज़ू +आज़ाद ओ गिरफ़्तार ओ तही कीसा ओ ख़ुरसंद +हर हाल में मेरा दिल-ए-बे-क़ैद है ख़ुर्रम +क्या छीनेगा ग़ुंचे से कोई ज़ौक़-ए-शकर-ख़ंद +चुप रह न सका हज़रत-ए-यज़्दाँ में भी 'इक़बाल' +करता कोई इस बंदा-ए-गुस्ताख़ का मुँह बंद " +sitaaron-se-aage-jahaan-aur-bhii-hain-allama-iqbal-ghazals-1," +सितारों से आगे जहाँ और भी हैं +अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं +तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ +यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं +क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर +चमन और भी आशियाँ और भी हैं +अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म +मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं +तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा +तिरे सामने आसमाँ और भी हैं +इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा +कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं +गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में +यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं " +tujhe-yaad-kyaa-nahiin-hai-mire-dil-kaa-vo-zamaana-allama-iqbal-ghazals," +तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना +वो अदब-गह-ए-मोहब्बत वो निगह का ताज़ियाना +ये बुतान-ए-अस्र-ए-हाज़िर कि बने हैं मदरसे में +न अदा-ए-काफ़िराना न तराश-ए-आज़राना +नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त +ये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स न आशियाना +रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की +कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना +मिरे हम-सफ़ीर इसे भी असर-ए-बहार समझे +उन्हें क्या ख़बर कि क्या है ये नवा-ए-आशिक़ाना +मिरे ख़ाक ओ ख़ूँ से तू ने ये जहाँ किया है पैदा +सिला-ए-शाहिद क्या है तब-ओ-ताब-ए-जावेदाना +तिरी बंदा-परवरी से मिरे दिन गुज़र रहे हैं +न गिला है दोस्तों का न शिकायत-ए-ज़माना " +tire-ishq-kii-intihaa-chaahtaa-huun-allama-iqbal-ghazals," +तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ +मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ +सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी +कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ +ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को +कि मैं आप का सामना चाहता हूँ +ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना +वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ +कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल +चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ +भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी +बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ " +naala-hai-bulbul-e-shoriida-tiraa-khaam-abhii-allama-iqbal-ghazals," +नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी +अपने सीने में इसे और ज़रा थाम अभी +पुख़्ता होती है अगर मस्लहत-अंदेश हो अक़्ल +इश्क़ हो मस्लहत-अंदेश तो है ख़ाम अभी +बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़ +अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी +इश्क़ फ़र्मूदा-ए-क़ासिद से सुबुक-गाम-ए-अमल +अक़्ल समझी ही नहीं म'अनी-ए-पैग़ाम अभी +शेवा-ए-इश्क़ है आज़ादी ओ दहर-आशेबी +तू है ज़ुन्नारी-ए-बुत-ख़ाना-ए-अय्याम अभी +उज़्र-ए-परहेज़ पे कहता है बिगड़ कर साक़ी +है तिरे दिल में वही काविश-ए-अंजाम अभी +सई-ए-पैहम है तराज़ू-कम-ओ-कैफ़-ए-हयात +तेरी मीज़ाँ है शुमार-ए-सहर-ओ-शाम अभी +अब्र-ए-नैसाँ ये तुनुक-बख़्शी-ए-शबनम कब तक +मेरे कोहसार के लाले हैं तही-जाम अभी +बादा-गर्दान-ए-अजम वो अरबी मेरी शराब +मिरे साग़र से झिजकते हैं मय-आशाम अभी +ख़बर 'इक़बाल' की लाई है गुलिस्ताँ से नसीम +नौ-गिरफ़्तार फड़कता है तह-ए-दाम अभी " +phir-charaag-e-laala-se-raushan-hue-koh-o-daman-allama-iqbal-ghazals-3," +फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन +मुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन +फूल हैं सहरा में या परियाँ क़तार अंदर क़तार +ऊदे ऊदे नीले नीले पीले पीले पैरहन +बर्ग-ए-गुल पर रख गई शबनम का मोती बाद-ए-सुब्ह +और चमकाती है उस मोती को सूरज की किरन +हुस्न-ए-बे-परवा को अपनी बे-नक़ाबी के लिए +हों अगर शहरों से बन प्यारे तो शहर अच्छे कि बन +अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी +तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन +मन की दुनिया मन की दुनिया सोज़ ओ मस्ती जज़्ब ओ शौक़ +तन की दुनिया तन की दुनिया सूद ओ सौदा मक्र ओ फ़न +मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं +तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन +मन की दुनिया में न पाया मैं ने अफ़र���गी का राज +मन की दुनिया में न देखे मैं ने शैख़ ओ बरहमन +पानी पानी कर गई मुजको क़लंदर की ये बात +तू झुका जब ग़ैर के आगे न मन तेरा न तन " +gesuu-e-taabdaar-ko-aur-bhii-taabdaar-kar-allama-iqbal-ghazals," +गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर +होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर +इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में +या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर +तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू +या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर +मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गुहर की आबरू +मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर +नग़्मा-ए-नौ-बहार अगर मेरे नसीब में न हो +उस दम-ए-नीम-सोज़ को ताइरक-ए-बहार कर +बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ +कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर +रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल +आप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर " +khudii-vo-bahr-hai-jis-kaa-koii-kinaara-nahiin-allama-iqbal-ghazals," +ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं +तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं +तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ सकते हैं +ज़ुजाज की ये इमारत है संग-ए-ख़ारा नहीं +ख़ुदी में डूबते हैं फिर उभर भी आते हैं +मगर ये हौसला-ए-मर्द-ए-हेच-कारा नहीं +तिरे मक़ाम को अंजुम-शनास क्या जाने +कि ख़ाक-ए-ज़ि़ंदा है तू ताबा-ए-सितारा नहीं +यहीं बहिश्त भी है हूर ओ जिबरईल भी है +तिरी निगह में अभी शोख़ी-ए-नज़ारा नहीं +मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना +वो पैरहन मुझे बख़्शा कि पारा पारा नहीं +ग़ज़ब है ऐन-ए-करम में बख़ील है फ़ितरत +कि लाल-ए-नाब में आतिश तो है शरारा नहीं " +nigaah-e-faqr-men-shaan-e-sikandarii-kyaa-hai-allama-iqbal-ghazals," +निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है +ख़िराज की जो गदा हो वो क़ैसरी क्या है +बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी +मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है +फ़लक ने उन को अता की है ख़्वाजगी कि जिन्हें +ख़बर नहीं रविश-ए-बंदा-परवरी क्या है +फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का +न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है +इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर +कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है +किसे नहीं है तमन्ना-ए-सरवरी लेकिन +ख़ुदी की मौत हो जिस में वो सरवरी क्या है +ख़ुश आ गई है जहाँ को क़लंदरी मेरी +वगर्ना शे'र मिरा क्या है शाइ'री क्या है " +be-takalluf-bosa-e-zulf-e-chaliipaa-liijiye-akbar-allahabadi-ghazals," +बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए +नक़्द-ए-दिल मौजूद है फिर क्यूँ न सौदा लीजिए +दिल तो पहले ले चुके अब जान के ख़्वाहाँ हैं आप +इस में भी मुझ को नहीं इंकार अच्छा लीजिए +पाँव पकड़ कर कहती है ज़ंजीर-ए-ज़िंदाँ में रहो +वहशत-ए-दिल का है ईमा राह-ए-सहरा लीजिए +ग़ैर को तो कर के ज़िद करते हैं खाने में शरीक +मुझ से कहते हैं अगर कुछ भूक हो खा लीजिए +ख़ुश-नुमा चीज़ें हैं बाज़ार-ए-जहाँ में बे-शुमार +एक नक़द-ए-दिल से या-रब मोल क्या क्या लीजिए +कुश्ता आख़िर आतिश-ए-फ़ुर्क़त से होना है मुझे +और चंदे सूरत-ए-सीमाब तड़पा लीजिए +फ़स्ल-ए-गुल के आते ही 'अकबर' हुए बेहोश आप +खोलिए आँखों को साहब जाम-ए-सहबा लीजिए " +dil-ho-kharaab-diin-pe-jo-kuchh-asar-pade-akbar-allahabadi-ghazals," +दिल हो ख़राब दीन पे जो कुछ असर पड़े +अब कार-ए-आशिक़ी तो बहर-कैफ़ कर पड़े +इश्क़-ए-बुताँ का दीन पे जो कुछ असर पड़े +अब तो निबाहना है जब इक काम कर पड़े +मज़हब छुड़ाया इश्वा-ए-दुनिया ने शैख़ से +देखी जो रेल ऊँट से आख़िर उतर पड़े +बेताबियाँ नसीब न थीं वर्ना हम-नशीं +ये क्या ज़रूर था कि उन्हीं पर नज़र पड़े +बेहतर यही है क़स्द उधर का करें न वो +ऐसा न हो कि राह में दुश्मन का घर पड़े +हम चाहते हैं मेल वजूद-ओ-अदम में हो +मुमकिन तो है जो बीच में उन की कमर पड़े +दाना वही है दिल जो करे आप का ख़याल +बीना वही नज़र है कि जो आप पर पड़े +होनी न चाहिए थी मोहब्बत मगर हुई +पड़ना न चाहिए था ग़ज़ब में मगर पड़े +शैतान की न मान जो राहत-नसीब हो +अल्लाह को पुकार मुसीबत अगर पड़े +ऐ शैख़ उन बुतों की ये चालाकियाँ तो देख +निकले अगर हरम से तो 'अकबर' के घर पड़े " +gamza-nahiin-hotaa-ki-ishaaraa-nahiin-hotaa-akbar-allahabadi-ghazals," +ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता +आँख उन से जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता +जल्वा न हो मा'नी का तो सूरत का असर क्या +बुलबुल गुल-ए-तस्वीर का शैदा नहीं होता +अल्लाह बचाए मरज़-ए-इश्क़ से दिल को +सुनते हैं कि ये आरिज़ा अच्छा नहीं होता +तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से +होता है शगुफ़्ता मगर इतना नहीं होता +मैं नज़्अ' में हूँ आएँ तो एहसान है उन का +लेकिन ये समझ लें कि तमाशा नहीं होता +हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम +वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता " +shekh-ne-naaquus-ke-sur-men-jo-khud-hii-taan-lii-akbar-allahabadi-ghazals," +शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली +फिर तो यारों ने भजन गाने की खुल कर ठान ली +मुद्दतों क़ाइम रहेंगी अब दिलों में गर्मियाँ +मैं ने फोटो ले लिया उस ने नज़र पहचान ली +रो रहे हैं दोस्त मेरी लाश पर बे-इख़्तियार +ये नहीं दरयाफ़्त करते किस ने इस की जान ली +मैं तो इंजन की गले-बाज़ी का क़ाइल हो गया +रह गए नग़्मे हुदी-ख़्वानों के ऐसी तान ली +हज़रत-ए-'अकबर' के इस्तिक़्लाल का हूँ मो'तरिफ़ +ता-ब-मर्ग उस पर रहे क़ाइम जो दिल में ठान ली " +na-haasil-huaa-sabr-o-aaraam-dil-kaa-akbar-allahabadi-ghazals," +न हासिल हुआ सब्र-ओ-आराम दिल का +न निकला कभी तुम से कुछ काम दिल का +मोहब्बत का नश्शा रहे क्यूँ न हर-दम +भरा है मय-ए-इश्क़ से जाम दिल का +फँसाया तो आँखों ने दाम-ए-बला में +मगर इश्क़ में हो गया नाम दिल का +हुआ ख़्वाब रुस्वा ये इश्क़-ए-बुताँ में +ख़ुदा ही है अब मेरे बदनाम दिल का +ये बाँकी अदाएँ ये तिरछी निगाहें +यही ले गईं सब्र-ओ-आराम दिल का +धुआँ पहले उठता था आग़ाज़ था वो +हुआ ख़ाक अब ये है अंजाम दिल का +जब आग़ाज़-ए-उल्फ़त ही में जल रहा है +तो क्या ख़ाक बतलाऊँ अंजाम दिल का +ख़ुदा के लिए फेर दो मुझ को साहब +जो सरकार में कुछ न हो काम दिल का +पस-ए-मर्ग उन पर खुला हाल-ए-उल्फ़त +गई ले के रूह अपनी पैग़ाम दिल का +तड़पता हुआ यूँ न पाया हमेशा +कहूँ क्या मैं आग़ाज़-ओ-अंजाम दिल का +दिल उस बे-वफ़ा को जो देते हो 'अकबर' +तो कुछ सोच लो पहले अंजाम दिल का " +tariiq-e-ishq-men-mujh-ko-koii-kaamil-nahiin-miltaa-akbar-allahabadi-ghazals," +तरीक़-ए-इश्क़ में मुझ को कोई कामिल नहीं मिलता +गए फ़रहाद ओ मजनूँ अब किसी से दिल नहीं मिलता +भरी है अंजुमन लेकिन किसी से दिल नहीं मिलता +हमीं में आ गया कुछ नक़्स या कामिल नहीं मिलता +पुरानी रौशनी में और नई में फ़र्क़ इतना है +उसे कश्ती नहीं मिलती इसे साहिल नहीं मिलता +पहुँचना दाद को मज़लूम का मुश्किल ही होता है +कभी क़ाज़ी नहीं मिलते कभी क़ातिल नहीं मिलता +हरीफ़ों पर ख़ज़ाने हैं खुले याँ हिज्र-ए-गेसू है +वहाँ पे बिल है और याँ साँप का भी बिल नहीं मिलता +ये हुस्न ओ इश्क़ ही का काम है शुबह करें किस पर +मिज़ाज उन का नहीं मिलता हमारा दिल नहीं मिलता +छुपा है सीना ओ रुख़ दिल-सिताँ हाथों से करवट में +मुझे सोते में भी वो हुस्न से ग़ाफ़िल नहीं मिलता +हवास-ओ-होश गुम हैं बहर-ए-इरफ़ान-ए-इलाही में +यही दरिया है जिस में मौज को साहिल नहीं मिलता +किताब-ए-दिल मुझे काफ़ी है 'अकबर' दर्स-ए-हिकमत को +मैं स्पेन्सर से मुस्तग़नी हूँ मुझ से मिल नहीं मिलता " +zid-hai-unhen-puuraa-miraa-armaan-na-karenge-akbar-allahabadi-ghazals," +ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे +मुँह से जो नहीं निकली है अब हाँ न करेंगे +क्यूँ ज़ुल्फ़ का बोसा मुझे लेने नहीं देते +कहते हैं कि वल्लाह परेश��ँ न करेंगे +है ज़ेहन में इक बात तुम्हारे मुतअल्लिक़ +ख़ल्वत में जो पूछोगे तो पिन्हाँ न करेंगे +वाइज़ तो बनाते हैं मुसलमान को काफ़िर +अफ़्सोस ये काफ़िर को मुसलमाँ न करेंगे +क्यूँ शुक्र-गुज़ारी का मुझे शौक़ है इतना +सुनता हूँ वो मुझ पर कोई एहसाँ न करेंगे +दीवाना न समझे हमें वो समझे शराबी +अब चाक कभी जेब ओ गरेबाँ न करेंगे +वो जानते हैं ग़ैर मिरे घर में है मेहमाँ +आएँगे तो मुझ पर कोई एहसाँ न करेंगे " +dil-miraa-jis-se-bahaltaa-koii-aisaa-na-milaa-akbar-allahabadi-ghazals," +दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला +बुत के बंदे मिले अल्लाह का बंदा न मिला +बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस +एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला +गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र-फ़रोश +तालिब-ए-ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला +वाह क्या राह दिखाई है हमें मुर्शिद ने +कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला +रंग चेहरे का तो कॉलेज ने भी रक्खा क़ाइम +रंग-ए-बातिन में मगर बाप से बेटा न मिला +सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाए +शैख़ क़ुरआन दिखाते फिरे पैसा न मिला +होशयारों में तो इक इक से सिवा हैं 'अकबर' +मुझ को दीवानों में लेकिन कोई तुझ सा न मिला " +aankhen-mujhe-talvon-se-vo-malne-nahiin-dete-akbar-allahabadi-ghazals," +आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते +अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते +ख़ातिर से तिरी याद को टलने नहीं देते +सच है कि हमीं दिल को सँभलने नहीं देते +किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल +तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते +परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले +क्यूँ हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते +हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना +दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते +दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त +हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते +गर्मी-ए-मोहब्बत में वो हैं आह से माने' +पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते " +huun-main-parvaana-magar-shama-to-ho-raat-to-ho-akbar-allahabadi-ghazals," +हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो +जान देने को हूँ मौजूद कोई बात तो हो +दिल भी हाज़िर सर-ए-तस्लीम भी ख़म को मौजूद +कोई मरकज़ हो कोई क़िबला-ए-हाजात तो हो +दिल तो बेचैन है इज़हार-ए-इरादत के लिए +किसी जानिब से कुछ इज़हार-ए-करामात तो हो +दिल-कुशा बादा-ए-साफ़ी का किसे ज़ौक़ नहीं +बातिन-अफ़रोज़ कोई पीर-ए-ख़राबात तो हो +गुफ़्तनी है दिल-ए-पुर-दर्द का क़िस्सा लेकिन +किस से कहिए कोई मुस्तफ़्सिर-ए-हालात तो हो +दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कौन कहे कौन सुने +बज़्म में मौक़ा-ए-इज़हार-ए-ख़यालात तो हो +वादे भी याद दिलाते हैं गिले भी हैं बहुत +वो दिखाई भी तो दें उन से मुलाक़ात तो हो +कोई वाइ'ज़ नहीं फ़ितरत से बलाग़त में सिवा +मगर इंसान में कुछ फ़हम-ए-इशारात तो हो " +dard-to-maujuud-hai-dil-men-davaa-ho-yaa-na-ho-akbar-allahabadi-ghazals," +दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो +बंदगी हालत से ज़ाहिर है ख़ुदा हो या न हो +झूमती है शाख़-ए-गुल खिलते हैं ग़ुंचे दम-ब-दम +बा-असर गुलशन में तहरीक-ए-सबा हो या न हो +वज्द में लाते हैं मुझ को बुलबुलों के ज़मज़मे +आप के नज़दीक बा-मअ'नी सदा हो या न हो +कर दिया है ज़िंदगी ने बज़्म-ए-हस्ती में शरीक +उस का कुछ मक़्सूद कोई मुद्दआ हो या न हो +क्यूँ सिवल-सर्जन का आना रोकता है हम-नशीं +इस में है इक बात ऑनर की शिफ़ा हो या न हो +मौलवी साहिब न छोड़ेंगे ख़ुदा गो बख़्श दे +घेर ही लेंगे पुलिस वाले सज़ा हो या न हो +मिमबरी से आप पर तो वार्निश हो जाएगी +क़ौम की हालत में कुछ इस से जिला हो या न हो +मो'तरिज़ क्यूँ हो अगर समझे तुम्हें सय्याद दिल +ऐसे गेसू हूँ तो शुबह दाम का हो या न हो " +har-qadam-kahtaa-hai-tuu-aayaa-hai-jaane-ke-liye-akbar-allahabadi-ghazals-3," +हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए +मंज़िल-ए-हस्ती नहीं है दिल लगाने के लिए +क्या मुझे ख़ुश आए ये हैरत-सरा-ए-बे-सबात +होश उड़ने के लिए है जान जाने के लिए +दिल ने देखा है बिसात-ए-क़ुव्वत-ए-इदराक को +क्या बढ़े इस बज़्म में आँखें उठाने के लिए +ख़ूब उम्मीदें बंधीं लेकिन हुईं हिरमाँ नसीब +बदलियाँ उट्ठीं मगर बिजली गिराने के लिए +साँस की तरकीब पर मिट्टी को प्यार आ ही गया +ख़ुद हुई क़ैद उस को सीने से लगाने के लिए +जब कहा मैं ने भुला दो ग़ैर को हँस कर कहा +याद फिर मुझ को दिलाना भूल जाने के लिए +दीदा-बाज़ी वो कहाँ आँखें रहा करती हैं बंद +जान ही बाक़ी नहीं अब दिल लगाने के लिए +मुझ को ख़ुश आई है मस्ती शैख़ जी को फ़रबही +मैं हूँ पीने के लिए और वो हैं खाने के लिए +अल्लाह अल्लाह के सिवा आख़िर रहा कुछ भी न याद +जो किया था याद सब था भूल जाने के लिए +सुर कहाँ के साज़ कैसा कैसी बज़्म-ए-सामईन +जोश-ए-दिल काफ़ी है 'अकबर' तान उड़ाने के लिए " +aaj-aaraaish-e-gesuu-e-dotaa-hotii-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +आज आराइश-ए-गेसू-ए-दोता होती है +फिर मिरी जान गिरफ़्तार-ए-बला होती है +शौक़-ए-पा-बोसी-ए-जानाँ मुझे बाक़ी है हनूज़ +घास जो उगती है तुर्बत पे हिना होती है +फिर किसी काम का बाक़ी नहीं रहता इंसाँ +सच तो ये है कि म���हब्बत भी बला होती है +जो ज़मीं कूचा-ए-क़ातिल में निकलती है नई +वक़्फ़ वो बहर-ए-मज़ार-ए-शोहदा होती है +जिस ने देखी हो वो चितवन कोई उस से पूछे +जान क्यूँ-कर हदफ़-ए-तीर-ए-क़ज़ा होती है +नज़्अ' का वक़्त बुरा वक़्त है ख़ालिक़ की पनाह +है वो साअ'त कि क़यामत से सिवा होती है +रूह तो एक तरफ़ होती है रुख़्सत तन से +आरज़ू एक तरफ़ दिल से जुदा होती है +ख़ुद समझता हूँ कि रोने से भला क्या हासिल +पर करूँ क्या यूँही तस्कीन ज़रा होती है +रौंदते फिरते हैं वो मजमा-ए-अग़्यार के साथ +ख़ूब तौक़ीर-ए-मज़ार-ए-शोहदा होती है +मुर्ग़-ए-बिस्मिल की तरह लोट गया दिल मेरा +निगह-ए-नाज़ की तासीर भी क्या होती है +नाला कर लेने दें लिल्लाह न छेड़ें अहबाब +ज़ब्त करता हूँ तो तकलीफ़ सिवा होती है +जिस्म तो ख़ाक में मिल जाते हुए देखते हैं +रूह क्या जाने किधर जाती है क्या होती है +हूँ फ़रेब-ए-सितम-ए-यार का क़ाइल 'अकबर' +मरते मरते न खुला ये कि जफ़ा होती है " +phir-gaii-aap-kii-do-din-men-tabiiat-kaisii-akbar-allahabadi-ghazals," +फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी +ये वफ़ा कैसी थी साहब ये मुरव्वत कैसी +दोस्त अहबाब से हँस बोल के कट जाएगी रात +रिंद-ए-आज़ाद हैं हम को शब-ए-फ़ुर्क़त कैसी +जिस हसीं से हुई उल्फ़त वही माशूक़ अपना +इश्क़ किस चीज़ को कहते हैं तबीअ'त कैसी +है जो क़िस्मत में वही होगा न कुछ कम न सिवा +आरज़ू कहते हैं किस चीज़ को हसरत कैसी +हाल खुलता नहीं कुछ दिल के धड़कने का मुझे +आज रह रह के भर आती है तबीअ'त कैसी +कूचा-ए-यार में जाता तो नज़ारा करता +क़ैस आवारा है जंगल में ये वहशत कैसी " +halqe-nahiin-hain-zulf-ke-halqe-hain-jaal-ke-akbar-allahabadi-ghazals," +हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के +हाँ ऐ निगाह-ए-शौक़ ज़रा देख-भाल के +पहुँचे हैं ता-कमर जो तिरे गेसू-ए-रसा +मा'नी ये हैं कमर भी बराबर है बाल के +बोस-ओ-कनार-ओ-वस्ल-ए-हसीनाँ है ख़ूब शग़्ल +कमतर बुज़ुर्ग होंगे ख़िलाफ़ इस ख़याल के +क़ामत से तेरे साने-ए-क़ुदरत ने ऐ हसीं +दिखला दिया है हश्र को साँचे में ढाल के +शान-ए-दिमाग़ इश्क़ के जल्वे से ये बढ़ी +रखता है होश भी क़दम अपने सँभाल के +ज़ीनत मुक़द्दमा है मुसीबत का दहर में +सब शम्अ' को जलाते हैं साँचे में ढाल के +हस्ती के हक़ के सामने क्या अस्ल-ए-ईन-ओ-आँ +पुतले ये सब हैं आप के वहम-ओ-ख़याल के +तलवार ले के उठता है हर तालिब-ए-फ़रोग़ +दौर-ए-फ़लक में हैं ये इशारे हिलाल के +पेचीदा ज़िंदगी के करो तुम मुक़द्दमे +दिखला ही द��गी मौत नतीजा निकाल के " +charkh-se-kuchh-umiid-thii-hii-nahiin-akbar-allahabadi-ghazals," +चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं +आरज़ू मैं ने कोई की ही नहीं +मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं +फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं +चाहता था बहुत सी बातों को +मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं +जुरअत-ए-अर्ज़-ए-हाल क्या होती +नज़र-ए-लुत्फ़ उस ने की ही नहीं +इस मुसीबत में दिल से क्या कहता +कोई ऐसी मिसाल थी ही नहीं +आप क्या जानें क़द्र-ए-या-अल्लाह +जब मुसीबत कोई पड़ी ही नहीं +शिर्क छोड़ा तो सब ने छोड़ दिया +मेरी कोई सोसाइटी ही नहीं +पूछा 'अकबर' है आदमी कैसा +हँस के बोले वो आदमी ही नहीं " +bahut-rahaa-hai-kabhii-lutf-e-yaar-ham-par-bhii-akbar-allahabadi-ghazals," +बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी +गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी +उरूस-ए-दहर को आया था प्यार हम पर भी +ये बेसवा थी किसी शब निसार हम पर भी +बिठा चुका है ज़माना हमें भी मसनद पर +हुआ किए हैं जवाहिर निसार हम पर भी +अदू को भी जो बनाया है तुम ने महरम-ए-राज़ +तो फ़ख़्र क्या जो हुआ ए'तिबार हम पर भी +ख़ता किसी की हो लेकिन खुली जो उन की ज़बाँ +तो हो ही जाते हैं दो एक वार हम पर भी +हम ऐसे रिंद मगर ये ज़माना है वो ग़ज़ब +कि डाल ही दिया दुनिया का बार हम पर भी +हमें भी आतिश-ए-उल्फ़त जला चुकी 'अकबर' +हराम हो गई दोज़ख़ की नार हम पर भी " +ummiid-tuutii-huii-hai-merii-jo-dil-miraa-thaa-vo-mar-chukaa-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है +जो ज़िंदगानी को तल्ख़ कर दे वो वक़्त मुझ पर गुज़र चुका है +अगरचे सीने में साँस भी है नहीं तबीअत में जान बाक़ी +अजल को है देर इक नज़र की फ़लक तो काम अपना कर चुका है +ग़रीब-ख़ाने की ये उदासी ये ना-दुरुस्ती नहीं क़दीमी +चहल पहल भी कभी यहाँ थी कभी ये घर भी सँवर चुका है +ये सीना जिस में ये दाग़ में अब मसर्रतों का कभी था मख़्ज़न +वो दिल जो अरमान से भरा था ख़ुशी से उस में ठहर चुका है +ग़रीब अकबर के गर्द क्यूँ में ख़याल वाइ'ज़ से कोई कह दे +उसे डराते हो मौत से क्या वो ज़िंदगी ही से डर चुका है " +ishq-e-but-men-kufr-kaa-mujh-ko-adab-karnaa-padaa-akbar-allahabadi-ghazals," +इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा +जो बरहमन ने कहा आख़िर वो सब करना पड़ा +सब्र करना फ़ुर्क़त-ए-महबूब में समझे थे सहल +खुल गया अपनी समझ का हाल जब करना पड़ा +तजरबे ने हुब्ब-ए-दुनिया से सिखाया एहतिराज़ +पहले कहते थे फ़क़त मुँह से और अब करना पड़ा +शैख़ की मज्लिस में भी मुफ़्लिस की कुछ पुर्सिश नहीं +दीन की ख़ातिर से दुनिया को तलब करना पड़ा +क्या कहूँ बे-ख़ुद हुआ मैं किस निगाह-ए-मस्त से +अक़्ल को भी मेरी हस्ती का अदब करना पड़ा +इक़तिज़ा फ़ितरत का रुकता है कहीं ऐ हम-नशीं +शैख़-साहिब को भी आख़िर कार-ए-शब करना पड़ा +आलम-ए-हस्ती को था मद्द-ए-नज़र कत्मान-ए-राज़ +एक शय को दूसरी शय का सबब करना पड़ा +शेर ग़ैरों के उसे मुतलक़ नहीं आए पसंद +हज़रत-ए-'अकबर' को बिल-आख़िर तलब करना पड़ा " +dil-e-maayuus-men-vo-shorishen-barpaa-nahiin-hotiin-akbar-allahabadi-ghazals," +दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं +उमीदें इस क़दर टूटीं कि अब पैदा नहीं होतीं +मिरी बेताबियाँ भी जुज़्व हैं इक मेरी हस्ती की +ये ज़ाहिर है कि मौजें ख़ारिज अज़ दरिया नहीं होतीं +वही परियाँ हैं अब भी राजा इन्दर के अखाड़े में +मगर शहज़ादा-ए-गुलफ़ाम पर शैदा नहीं होतीं +यहाँ की औरतों को इल्म की पर्वा नहीं बे-शक +मगर ये शौहरों से अपने बे-परवा नहीं होतीं +तअ'ल्लुक़ दिल का क्या बाक़ी मैं रक्खूँ बज़्म-ए-दुनिया से +वो दिलकश सूरतें अब अंजुमन-आरा नहीं होतीं +हुआ हूँ इस क़दर अफ़्सुर्दा रंग-ए-बाग़-ए-हस्ती से +हवाएँ फ़स्ल-ए-गुल की भी नशात-अफ़्ज़ा नहीं होतीं +क़ज़ा के सामने बे-कार होते हैं हवास 'अकबर' +खुली होती हैं गो आँखें मगर बीना नहीं होतीं " +hayaa-se-sar-jhukaa-lenaa-adaa-se-muskuraa-denaa-akbar-allahabadi-ghazals," +हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना +हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना +ये तर्ज़ एहसान करने का तुम्हीं को ज़ेब देता है +मरज़ में मुब्तला कर के मरीज़ों को दवा देना +बलाएँ लेते हैं उन की हम उन पर जान देते हैं +ये सौदा दीद के क़ाबिल है क्या लेना है क्या देना +ख़ुदा की याद में महवियत-ए-दिल बादशाही है +मगर आसाँ नहीं है सारी दुनिया को भुला देना " +apnii-girah-se-kuchh-na-mujhe-aap-diijiye-akbar-allahabadi-ghazals," +अपनी गिरह से कुछ न मुझे आप दीजिए +अख़बार में तो नाम मिरा छाप दीजिए +देखो जिसे वो पाइनियर ऑफ़िस में है डटा +बहर-ए-ख़ुदा मुझे भी कहीं छाप दीजिए +चश्म-ए-जहाँ से हालत-ए-असली छुपी नहीं +अख़बार में जो चाहिए वो छाप दीजिए +दा'वा बहुत बड़ा है रियाज़ी में आप को +तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ को तो नाप दीजिए +सुनते नहीं हैं शैख़ नई रौशनी की बात +इंजन की उन के कान में अब भाप दीजिए +इस बुत के दर पे ग़ैर से 'अकबर' ने कह दिया +ज़र ही मैं देने लाया हूँ जान आप दीजिए " +duniyaa-men-huun-duniyaa-kaa-talabgaar-nahiin-huun-akbar-allahabadi-ghazals," +दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ +बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ +ज़िंदा हूँ मगर ��़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी +हर-चंद कि हूँ होश में हुश्यार नहीं हूँ +इस ख़ाना-ए-हस्ती से गुज़र जाऊँगा बे-लौस +साया हूँ फ़क़त नक़्श-ब-दीवार नहीं हूँ +अफ़्सुर्दा हूँ इबरत से दवा की नहीं हाजत +ग़म का मुझे ये ज़ोफ़ है बीमार नहीं हूँ +वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है +उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ +या रब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से +मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ +गो दावा-ए-तक़्वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में +बुत जिस से हों ख़ुश ऐसा गुनहगार नहीं हूँ +अफ़्सुर्दगी ओ ज़ोफ़ की कुछ हद नहीं 'अकबर' +काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दीं-दार नहीं हूँ " +khushii-hai-sab-ko-ki-operation-men-khuub-nishtar-ye-chal-rahaa-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है +किसी को इस की ख़बर नहीं है मरीज़ का दम निकल रहा है +फ़ना इसी रंग पर है क़ाइम फ़लक वही चाल चल रहा है +शिकस्ता ओ मुंतशिर है वो कल जो आज साँचे में ढल रहा है +ये देखते हो जो कासा-ए-सर ग़ुरूर-ए-ग़फ़लत से कल था ममलू +यही बदन नाज़ से पला था जो आज मिट्टी में गल रहा है +समझ हो जिस की बलीग़ समझे नज़र हो जिस की वसीअ' देखे +अभी यहाँ ख़ाक भी उड़ेगी जहाँ ये क़ुल्ज़ुम उबल रहा है +कहाँ का शर्क़ी कहाँ का ग़र्बी तमाम दुख सुख है ये मसावी +यहाँ भी इक बा-मुराद ख़ुश है वहाँ भी इक ग़म से जल रहा है +उरूज-ए-क़ौमी ज़वाल-ए-क़ौमी ख़ुदा की क़ुदरत के हैं करिश्मे +हमेशा रद्द-ओ-बदल के अंदर ये अम्र पोलिटिकल रहा है +मज़ा है स्पीच का डिनर में ख़बर ये छपती है पाइनियर में +फ़लक की गर्दिश के साथ ही साथ काम यारों का चल रहा है " +vo-havaa-na-rahii-vo-chaman-na-rahaa-vo-galii-na-rahii-vo-hasiin-na-rahe-akbar-allahabadi-ghazals," +वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे +वो फ़लक न रहा वो समाँ न रहा वो मकाँ न रहे वो मकीं न रहे +वो गुलों में गुलों की सी बू न रही वो अज़ीज़ों में लुत्फ़ की ख़ू न रही +वो हसीनों में रंग-ए-वफ़ा न रहा कहें और की क्या वो हमीं न रहे +न वो आन रही न उमंग रही न वो रिंदी ओ ज़ोहद की जंग रही +सू-ए-क़िबला निगाहों के रुख़ न रहे और दर पे नक़्श-ए-जबीं न रहे +न वो जाम रहे न वो मस्त रहे न फ़िदाई-ए-अहद-ए-अलस्त रहे +वो तरीक़ा-ए-कार-ए-जहाँ न रहा वो मशाग़िल-ए-रौनक़-ए-दीं न रहे +हमें लाख ज़माना लुभाए तो क्या नए रंग जो चर्ख़ दिखाए तो क्या +ये मुहाल है अहल-ए-वफ़ा के लिए ग़म-ए-मिल्लत ओ उल्फ़त-ए-दीं न रहे +तिरे कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में दिल है मिरा अब उसे मै�� समझता हूँ दाम-ए-बला +ये अजीब सितम है अजीब जफ़ा कि यहाँ न रहे तो कहीं न रहे +ये तुम्हारे ही दम से है बज़्म-ए-तरब अभी जाओ न तुम न करो ये ग़ज़ब +कोई बैठ के लुत्फ़ उठाएगा क्या कि जो रौनक़-ए-बज़्म तुम्हीं न रहे +जो थीं चश्म-ए-फ़लक की भी नूर-ए-नज़र वही जिन पे निसार थे शम्स ओ क़मर +सो अब ऐसी मिटी हैं वो अंजुमनें कि निशान भी उन के कहीं न रहे +वही सूरतें रह गईं पेश-ए-नज़र जो ज़माने को फेरें इधर से उधर +मगर ऐसे जमाल-ए-जहाँ-आरा जो थे रौनक़-ए-रू-ए-ज़मीं न रहे +ग़म ओ रंज में 'अकबर' अगर है घिरा तो समझ ले कि रंज को भी है फ़ना +किसी शय को नहीं है जहाँ में बक़ा वो ज़ियादा मलूल ओ हज़ीं न रहे " +khudaa-alii-gadh-ke-madrase-ko-tamaam-amraaz-se-shifaa-de-akbar-allahabadi-ghazals," +ख़ुदा अलीगढ़ के मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे +भरे हुए हैं रईस-ज़ादे अमीर-ज़ादे शरीफ़-ज़ादे +लतीफ़ ओ ख़ुश-वज़्अ चुस्त-ओ-चालाक ओ साफ़-ओ-पाकीज़ा शाद-ओ-ख़ुर्रम +तबीअतों में है उन की जौदत दिलों में उन के हैं नेक इरादे +कमाल मेहनत से पढ़ रहे हैं कमाल ग़ैरत से बढ़ रहे हैं +सवार मशरिक़ की राह में हैं तो मग़रिबी राह में पियादे +हर इक है उन में का बे-शक ऐसा कि आप उसे जानते हैं जैसा +दिखाए महफ़िल में क़द्द-ए-रअना जो आप आएँ तो सर झुका दे +फ़क़ीर माँगें तो साफ़ कह दें कि तू है मज़बूत जा कमा खा +क़ुबूल फ़रमाएँ आप दावत तो अपना सरमाया कुल खिला दे +बुतों से उन को नहीं लगावट मिसों की लेते नहीं वो आहट +तमाम क़ुव्वत है सर्फ़-ए-ख़्वाँदन नज़र के भोले हैं दिल की सादे +नज़र भी आए जो ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ तो समझें ये कोई पालिसी है +इलेक्ट्रिक लाईट उस को समझें जो बर्क़-वश कोई कोई दे +निकलते हैं कर के ग़ोल-बंदी ब-नाम-ए-तहज़ीब ओ दर्द-मंदी +ये कह के लेते हैं सब से चंदे हमें जो तुम दो तुम्हें ख़ुदा दे +उन्हें इसी बात पर यक़ीन है कि बस यही असल कार-ए-दीं है +इसी सी होगा फ़रोग़-ए-क़ौमी इसी से चमकेंगे बाप दादे +मकान-ए-कॉलेज के सब मकीं हैं अभी उन्हें तजरबे नहीं हैं +ख़बर नहीं है कि आगे चल कर है कैसी मंज़िल हैं कैसी जादे +दिलों में उन के है नूर-ए-ईमाँ क़वी नहीं है मगर निगहबाँ +हवा-ए-मंतिक़ अदा-ए-तिफ़ली ये शम्अ ऐसा न हो बुझा दे +फ़रेब दे कर निकाले मतलब सिखाए तहक़ीर-ए-दीन-ओ-मज़हब +मिटा दे आख़िर को वज़-ए-मिल्लत नुमूद-ए-ज़ाती को गर बढ़ा दे +यही बस 'अकबर' की इल्तिजा है जनाब-ए-बारी में ये दुआ है +उलूम-ओ-हिकमत का दर्स उन को प्रोफ़ेसर दें समझ ख���ुदा दे " +ik-bosa-diijiye-miraa-iimaan-liijiye-akbar-allahabadi-ghazals," +इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए +गो बुत हैं आप बहर-ए-ख़ुदा मान लीजिए +दिल ले के कहते हैं तिरी ख़ातिर से ले लिया +उल्टा मुझी पे रखते हैं एहसान लीजिए +ग़ैरों को अपने हाथ से हँस कर खिला दिया +मुझ से कबीदा हो के कहा पान लीजिए +मरना क़ुबूल है मगर उल्फ़त नहीं क़ुबूल +दिल तो न दूँगा आप को मैं जान लीजिए +हाज़िर हुआ करूँगा मैं अक्सर हुज़ूर में +आज अच्छी तरह से मुझे पहचान लीजिए " +hangaama-hai-kyuun-barpaa-thodii-sii-jo-pii-lii-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है +डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है +ना-तजरबा-कारी से वाइ'ज़ की ये हैं बातें +इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है +उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना +मक़्सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है +ऐ शौक़ वही मय पी ऐ होश ज़रा सो जा +मेहमान-ए-नज़र इस दम एक बर्क़-ए-तजल्ली है +वाँ दिल में कि सदमे दो याँ जी में कि सब सह लो +उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है +हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से +हर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है +सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं +बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है +तालीम का शोर ऐसा तहज़ीब का ग़ुल इतना +बरकत जो नहीं होती निय्यत की ख़राबी है +सच कहते हैं शैख़ 'अकबर' है ताअत-ए-हक़ लाज़िम +हाँ तर्क-ए-मय-ओ-शाहिद ये उन की बुज़ुर्गी है " +jo-tumhaare-lab-e-jaan-bakhsh-kaa-shaidaa-hogaa-akbar-allahabadi-ghazals," +जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा +उठ भी जाएगा जहाँ से तो मसीहा होगा +वो तो मूसा हुआ जो तालिब-ए-दीदार हुआ +फिर वो क्या होगा कि जिस ने तुम्हें देखा होगा +क़ैस का ज़िक्र मिरे शान-ए-जुनूँ के आगे +अगले वक़्तों का कोई बादिया-पैमा होगा +आरज़ू है मुझे इक शख़्स से मिलने की बहुत +नाम क्या लूँ कोई अल्लाह का बंदा होगा +लाल-ए-लब का तिरे बोसा तो मैं लेता हूँ मगर +डर ये है ख़ून-ए-जिगर बाद में पीना होगा " +jazba-e-dil-ne-mire-taasiir-dikhlaaii-to-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है +घुंघरूओं की जानिब-ए-दर कुछ सदा आई तो है +इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है +पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है +आप के सर की क़सम मेरे सिवा कोई नहीं +बे-तकल्लुफ़ आइए कमरे में तन्हाई तो है +जब कहा मैं ने तड़पता है बहुत अब दिल मिरा +हंस के फ़रमाया तड़पता होगा सौदाई तो है +देखिए होती है कब राही सू-ए-मुल्क-ए-अदम +ख़ाना-ए-तन से हमारी रूह घबराई तो है +द��ल धड़कता है मिरा लूँ बोसा-ए-रुख़ या न लूँ +नींद में उस ने दुलाई मुँह से सरकाई तो है +देखिए लब तक नहीं आती गुल-ए-आरिज़ की याद +सैर-ए-गुलशन से तबीअ'त हम ने बहलाई तो है +मैं बला में क्यूँ फँसूँ दीवाना बन कर उस के साथ +दिल को वहशत हो तो हो कम्बख़्त सौदाई तो है +ख़ाक में दिल को मिलाया जल्वा-ए-रफ़्तार से +क्यूँ न हो ऐ नौजवाँ इक शान-ए-रानाई तो है +यूँ मुरव्वत से तुम्हारे सामने चुप हो रहें +कल के जलसों की मगर हम ने ख़बर पाई तो है +बादा-ए-गुल-रंग का साग़र इनायत कर मुझे +साक़िया ताख़ीर क्या है अब घटा छाई तो है +जिस की उल्फ़त पर बड़ा दावा था कल 'अकबर' तुम्हें +आज हम जा कर उसे देख आए हरजाई तो है " +jahaan-men-haal-miraa-is-qadar-zabuun-huaa-akbar-allahabadi-ghazals," +जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ +कि मुझ को देख के बिस्मिल को भी सुकून हुआ +ग़रीब दिल ने बहुत आरज़ूएँ पैदा कीं +मगर नसीब का लिक्खा कि सब का ख़ून हुआ +वो अपने हुस्न से वाक़िफ़ मैं अपनी अक़्ल से सैर +उन्हों ने होश सँभाला मुझे जुनून हुआ +उम्मीद-ए-चश्म-ए-मुरव्वत कहाँ रही बाक़ी +ज़रीया बातों का जब सिर्फ़ टेलीफ़ोन हुआ +निगाह-ए-गर्म क्रिसमस में भी रही हम पर +हमारे हक़ में दिसम्बर भी माह-ए-जून हुआ " +tirii-zulfon-men-dil-uljhaa-huaa-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है +बला के पेच में आया हुआ है +न क्यूँकर बू-ए-ख़ूँ नामे से आए +उसी जल्लाद का लिक्खा हुआ है +चले दुनिया से जिस की याद में हम +ग़ज़ब है वो हमें भूला हुआ है +कहूँ क्या हाल अगली इशरतों का +वो था इक ख़्वाब जो भूला हुआ है +जफ़ा हो या वफ़ा हम सब में ख़ुश हैं +करें क्या अब तो दिल अटका हुआ है +हुई है इश्क़ ही से हुस्न की क़द्र +हमीं से आप का शोहरा हुआ है +बुतों पर रहती है माइल हमेशा +तबीअत को ख़ुदाया क्या हुआ है +परेशाँ रहते हो दिन रात 'अकबर' +ये किस की ज़ुल्फ़ का सौदा हुआ है " +na-bahte-ashk-to-taasiir-men-sivaa-hote-akbar-allahabadi-ghazals," +न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते +सदफ़ में रहते ये मोती तो बे-बहा होते +मुझ ऐसे रिंद से रखते ज़रूर ही उल्फ़त +जनाब-ए-शैख़ अगर आशिक़-ए-ख़ुदा होते +गुनाहगारों ने देखा जमाल-ए-रहमत को +कहाँ नसीब ये होता जो बे-ख़ता होते +जनाब-ए-हज़रत-ए-नासेह का वाह क्या कहना +जो एक बात न होती तो औलिया होते +मज़ाक़-ए-इश्क़ नहीं शेख़ में ये है अफ़्सोस +ये चाशनी भी जो होती तो क्या से क्या होते +महल्ल-ए-शुक्र हैं 'अकबर' ये दरफ़शाँ नज़्में +हर इक ज़बाँ को ये मोती नहीं अता होते " +khatm-kiyaa-sabaa-ne-raqs-gul-pe-nisaar-ho-chukii-akbar-allahabadi-ghazals," +ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी +जोश-ए-नशात हो चुका सौत-ए-हज़ार हो चुकी +रंग-ए-बनफ़शा मिट गया सुंबुल-ए-तर नहीं रहा +सेहन-ए-चमन में ज़ीनत-ए-नक़्श-ओ-निगार हो चुकी +मस्ती-ए-लाला अब कहाँ उस का प्याला अब कहाँ +दौर-ए-तरब गुज़र गया आमद-ए-यार हो चुकी +रुत वो जो थी बदल गई आई बस और निकल गई +थी जो हवा में निकहत-ए-मुश्क-ए-ततार हो चुकी +अब तक उसी रविश पे है 'अकबर'-ए-मस्त-ओ-बे-ख़बर +कह दे कोई अज़ीज़-ए-मन फ़स्ल-ए-बहार हो चुकी " +saans-lete-hue-bhii-dartaa-huun-akbar-allahabadi-ghazals," +साँस लेते हुए भी डरता हूँ +ये न समझें कि आह करता हूँ +बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हबाब +मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ +इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है +साँस लेता हूँ बात करता हूँ +शैख़ साहब ख़ुदा से डरते हों +मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ +आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज +शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ +ये बड़ा ऐब मुझ में है 'अकबर' +दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ " +aah-jo-dil-se-nikaalii-jaaegii-akbar-allahabadi-ghazals," +आह जो दिल से निकाली जाएगी +क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी +इस नज़ाकत पर ये शमशीर-ए-जफ़ा +आप से क्यूँकर सँभाली जाएगी +क्या ग़म-ए-दुनिया का डर मुझ रिंद को +और इक बोतल चढ़ा ली जाएगी +शैख़ की दावत में मय का काम क्या +एहतियातन कुछ मँगा ली जाएगी +याद-ए-अबरू में है 'अकबर' महव यूँ +कब तिरी ये कज-ख़याली जाएगी " +na-ruuh-e-mazhab-na-qalb-e-aarif-na-shaairaana-zabaan-baaqii-akbar-allahabadi-ghazals," +न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइ'राना ज़बान बाक़ी +ज़मीं हमारी बदल गई है अगरचे है आसमान बाक़ी +शब-ए-गुज़िश्ता के साज़ ओ सामाँ के अब कहाँ हैं निशान बाक़ी +ज़बान-ए-शमा-ए-सहर पे हसरत की रह गई दास्तान बाक़ी +जो ज़िक्र आता है आख़िरत का तो आप होते हैं साफ़ मुनकिर +ख़ुदा की निस्बत भी देखता हूँ यक़ीन रुख़्सत गुमान बाक़ी +फ़ुज़ूल है उन की बद-दिमाग़ी कहाँ है फ़रियाद अब लबों पर +ये वार पर वार अब अबस हैं कहाँ बदन में है जान बाक़ी +मैं अपने मिटने के ग़म में नालाँ उधर ज़माना है शाद ओ ख़ंदाँ +इशारा करती है चश्म-ए-दौराँ जो आन बाक़ी जहान बाक़ी +इसी लिए रह गई हैं आँखें कि मेरे मिटने का रंग देखें +सुनूँ वो बातें जो होश उड़ाएँ इसी लिए हैं ये कान बाक़ी +तअ'ज्जुब आता है तिफ़्ल-ए-दिल पर कि हो गया मस्त-ए-नज़्म-ए-'अकबर' +अभी मिडिल पास तक नहीं है बहुत से हैं इम्तिहान बाक़ी " +unhen-nigaah-hai-apne-jamaal-hii-kii-taraf-akbar-allahabadi-ghazals," +उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़ +नज़र उठ��� के नहीं देखते किसी की तरफ़ +तवज्जोह अपनी हो क्या फ़न्न-ए-शाइरी की तरफ़ +नज़र हर एक की जाती है ऐब ही की तरफ़ +लिखा हुआ है जो रोना मिरे मुक़द्दर में +ख़याल तक नहीं जाता कभी हँसी की तरफ़ +तुम्हारा साया भी जो लोग देख लेते हैं +वो आँख उठा के नहीं देखते परी की तरफ़ +बला में फँसता है दिल मुफ़्त जान जाती है +ख़ुदा किसी को न ले जाए उस गली की तरफ़ +कभी जो होती है तकरार ग़ैर से हम से +तो दिल से होते हो दर-पर्दा तुम उसी की तरफ़ +निगाह पड़ती है उन पर तमाम महफ़िल की +वो आँख उठा के नहीं देखते किसी की तरफ़ +निगाह उस बुत-ए-ख़ुद-बीं की है मिरे दिल पर +न आइने की तरफ़ है न आरसी की तरफ़ +क़ुबूल कीजिए लिल्लाह तोहफ़ा-ए-दिल को +नज़र न कीजिए इस की शिकस्तगी की तरफ़ +यही नज़र है जो अब क़ातिल-ए-ज़माना हुई +यही नज़र है कि उठती न थी किसी की तरफ़ +ग़रीब-ख़ाना में लिल्लाह दो-घड़ी बैठो +बहुत दिनों में तुम आए हो इस गली की तरफ़ +ज़रा सी देर ही हो जाएगी तो क्या होगा +घड़ी घड़ी न उठाओ नज़र घड़ी की तरफ़ +जो घर में पूछे कोई ख़ौफ़ क्या है कह देना +चले गए थे टहलते हुए किसी की तरफ़ +हज़ार जल्वा-ए-हुस्न-ए-बुताँ हो ऐ 'अकबर' +तुम अपना ध्यान लगाए रहो उसी की तरफ़ " +jab-yaas-huii-to-aahon-ne-siine-se-nikalnaa-chhod-diyaa-akbar-allahabadi-ghazals," +जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया +अब ख़ुश्क-मिज़ाज आँखें भी हुईं दिल ने भी मचलना छोड़ दिया +नावक-फ़गनी से ज़ालिम की जंगल में है इक सन्नाटा सा +मुर्ग़ान-ए-ख़ुश-अलहाँ हो गए चुप आहू ने उछलना छोड़ दिया +क्यूँ किब्र-ओ-ग़ुरूर इस दौर पे है क्यूँ दोस्त फ़लक को समझा है +गर्दिश से ये अपनी बाज़ आया या रंग बदलना छोड़ दिया +बदली वो हवा गुज़रा वो समाँ वो राह नहीं वो लोग नहीं +तफ़रीह कहाँ और सैर कुजा घर से भी निकलना छोड़ दिया +वो सोज़-ओ-गुदाज़ उस महफ़िल में बाक़ी न रहा अंधेर हुआ +परवानों ने जलना छोड़ दिया शम्ओं ने पिघलना छोड़ दिया +हर गाम पे चंद आँखें निगराँ हर मोड़ पे इक लेसंस-तलब +उस पार्क में आख़िर ऐ 'अकबर' मैं ने तो टहलना छोड़ दिया +क्या दीन को क़ुव्वत दें ये जवाँ जब हौसला-अफ़्ज़ा कोई नहीं +क्या होश सँभालें ये लड़के ख़ुद उस ने सँभलना छोड़ दिया +इक़बाल मुसाइद जब न रहा रक्खे ये क़दम जिस मंज़िल में +अश्जार से साया दूर हुआ चश्मों ने उबलना छोड़ दिया +अल्लाह की राह अब तक है खुली आसार-ओ-निशाँ सब क़ाएम हैं +अल्लाह के बंदों ने लेकिन उस राह में चलन��� छोड़ दिया +जब सर में हवा-ए-ताअत थी सरसब्ज़ शजर उम्मीद का था +जब सर-सर-ए-इस्याँ चलने लगी इस पेड़ ने फलना छोड़ दिया +उस हूर-लक़ा को घर लाए हो तुम को मुबारक ऐ 'अकबर' +लेकिन ये क़यामत की तुम ने घर से जो निकलना छोड़ दिया " +gale-lagaaen-karen-pyaar-tum-ko-eid-ke-din-akbar-allahabadi-ghazals," +गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन +इधर तो आओ मिरे गुल-एज़ार ईद के दिन +ग़ज़ब का हुस्न है आराइशें क़यामत की +अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार ईद के दिन +सँभल सकी न तबीअ'त किसी तरह मेरी +रहा न दिल पे मुझे इख़्तियार ईद के दिन +वो साल भर से कुदूरत भरी जो थी दिल में +वो दूर हो गई बस एक बार ईद के दिन +लगा लिया उन्हें सीने से जोश-ए-उल्फ़त में +ग़रज़ कि आ ही गया मुझ को प्यार ईद के दिन +कहीं है नग़्मा-ए-बुलबुल कहीं है ख़ंदा-ए-गुल +अयाँ है जोश-ए-शबाब-ए-बहार ईद के दिन +सिवय्याँ दूध शकर मेवा सब मुहय्या है +मगर ये सब है मुझे नागवार ईद के दिन +मिले अगर लब-ए-शीरीं का तेरे इक बोसा +तो लुत्फ़ हो मुझे अलबत्ता यार ईद के दिन " +haal-e-dil-main-sunaa-nahiin-saktaa-akbar-allahabadi-ghazals," +हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता +लफ़्ज़ मा'ना को पा नहीं सकता +इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद +अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता +होश आरिफ़ की है यही पहचान +कि ख़ुदी में समा नहीं सकता +पोंछ सकता है हम-नशीं आँसू +दाग़-ए-दिल को मिटा नहीं सकता +मुझ को हैरत है उस की क़ुदरत पर +अलम उस को घटा नहीं सकता " +apne-pahluu-se-vo-gairon-ko-uthaa-hii-na-sake-akbar-allahabadi-ghazals," +अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके +उन को हम क़िस्सा-ए-ग़म अपना सुना ही न सके +ज़ेहन मेरा वो क़यामत कि दो-आलम पे मुहीत +आप ऐसे कि मिरे ज़ेहन में आ ही न सके +देख लेते जो उन्हें तो मुझे रखते म'अज़ूर +शैख़-साहिब मगर उस बज़्म में जा ही न सके +अक़्ल महँगी है बहुत इश्क़ ख़िलाफ़-ए-तहज़ीब +दिल को इस अहद में हम काम में ला ही न सके +हम तो ख़ुद चाहते थे चैन से बैठें कोई दम +आप की याद मगर दिल से भुला ही न सके +इश्क़ कामिल है उसी का कि पतंगों की तरह +ताब नज़्ज़ारा-ए-माशूक़ की ला ही न सके +दाम-ए-हस्ती की भी तरकीब अजब रक्खी है +जो फँसे उस में वो फिर जान बचा ही न सके +मज़हर-ए-जल्वा-ए-जानाँ है हर इक शय 'अकबर' +बे-अदब आँख किसी सम्त उठा ही न सके +ऐसी मंतिक़ से तो दीवानगी बेहतर 'अकबर' +कि जो ख़ालिक़ की तरफ़ दिल को झुका ही न सके " +falsafii-ko-bahs-ke-andar-khudaa-miltaa-nahiin-akbar-allahabadi-ghazals," +फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं +डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं +मा'रिफ़त ख़ालिक़ ��ी आलम में बहुत दुश्वार है +शहर-ए-तन में जब कि ख़ुद अपना पता मिलता नहीं +ग़ाफ़िलों के लुत्फ़ को काफ़ी है दुनियावी ख़ुशी +आक़िलों को बे-ग़म-ए-उक़्बा मज़ा मिलता नहीं +कश्ती-ए-दिल की इलाही बहर-ए-हस्ती में हो ख़ैर +नाख़ुदा मिलते हैं लेकिन बा-ख़ुदा मिलता नहीं +ग़ाफ़िलों को क्या सुनाऊँ दास्तान-ए-इश्क़-ए-यार +सुनने वाले मिलते हैं दर्द-आश्ना मिलता नहीं +ज़िंदगानी का मज़ा मिलता था जिन की बज़्म में +उन की क़ब्रों का भी अब मुझ को पता मिलता नहीं +सिर्फ़ ज़ाहिर हो गया सरमाया-ए-ज़ेब-ओ-सफ़ा +क्या तअ'ज्जुब है जो बातिन बा-सफ़ा मिलता नहीं +पुख़्ता तबओं पर हवादिस का नहीं होता असर +कोहसारों में निशान-ए-नक़्श-ए-पा मिलता नहीं +शैख़-साहिब बरहमन से लाख बरतें दोस्ती +बे-भजन गाए तो मंदिर से टिका मिलता नहीं +जिस पे दिल आया है वो शीरीं-अदा मिलता नहीं +ज़िंदगी है तल्ख़ जीने का मज़ा मिलता नहीं +लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए +कह दो बे उस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं +अहल-ए-ज़ाहिर जिस क़दर चाहें करें बहस-ओ-जिदाल +मैं ये समझा हूँ ख़ुदी में तो ख़ुदा मिलता नहीं +चल बसे वो दिन कि यारों से भरी थी अंजुमन +हाए अफ़्सोस आज सूरत-आश्ना मिलता नहीं +मंज़िल-ए-इशक़-ओ-तवक्कुल मंज़िल-ए-एज़ाज़ है +शाह सब बस्ते हैं याँ कोई गदा मिलता नहीं +बार तकलीफों का मुझ पर बार-ए-एहसाँ से है सहल +शुक्र की जा है अगर हाजत-रवा मिलता नहीं +चाँदनी रातें बहार अपनी दिखाती हैं तो क्या +बे तिरे मुझ को तो लुत्फ़ ऐ मह-लक़ा मिलता नहीं +मा'नी-ए-दिल का करे इज़हार 'अकबर' किस तरह +लफ़्ज़ मौज़ूँ बहर-ए-कश्फ़-ए-मुद्दआ मिलता नहीं " +maanii-ko-bhulaa-detii-hai-suurat-hai-to-ye-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +मा'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है +नेचर भी सबक़ सीख ले ज़ीनत है तो ये है +कमरे में जो हँसती हुई आई मिस-ए-राना +टीचर ने कहा इल्म की आफ़त है तो ये है +ये बात तो अच्छी है कि उल्फ़त हो मिसों से +हूर उन को समझते हैं क़यामत है तो ये है +पेचीदा मसाइल के लिए जाते हैं इंग्लैण्ड +ज़ुल्फ़ों में उलझ आते हैं शामत है तो ये है +पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से +साहब मिरे ईमान की क़ीमत है तो ये है " +bithaaii-jaaengii-parde-men-biibayaan-kab-tak-akbar-allahabadi-ghazals," +बिठाई जाएँगी पर्दे में बीबियाँ कब तक +बने रहोगे तुम इस मुल्क में मियाँ कब तक +हरम-सरा की हिफ़ाज़त को तेग़ ही न रही +तो काम देंगी ये चिलमन की तीलियाँ कब तक +मियाँ से बीबी हैं पर्दा है उ��� को फ़र्ज़ मगर +मियाँ का इल्म ही उट्ठा तो फिर मियाँ कब तक +तबीअतों का नुमू है हवा-ए-मग़रिब में +ये ग़ैरतें ये हरारत ये गर्मियाँ कब तक +अवाम बाँध लें दोहर तो थर्ड वानटर में +सेकंड-फ़र्स्ट की हों बंद खिड़कियाँ कब तक +जो मुँह दिखाई की रस्मों पे है मुसिर इबलीस +छुपेंगी हज़रत-ए-हवा की बेटियाँ कब तक +जनाब हज़रत-ए-'अकबर' हैं हामी-ए-पर्दा +मगर वो कब तक और उन की रुबाइयाँ कब तक " +havaa-e-shab-bhii-hai-ambar-afshaan-uruuj-bhii-hai-mah-e-mubiin-kaa-akbar-allahabadi-ghazals," +हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का +निसार होने की दो इजाज़त महल नहीं है नहीं नहीं का +अगर हो ज़ौक़-ए-सुजूद पैदा सितारा हो औज पर जबीं का +निशान-ए-सज्दा ज़मीन पर हो तो फ़ख़्र है वो रुख़-ए-ज़मीं का +सबा भी उस गुल के पास आई तो मेरे दिल को हुआ ये खटका +कोई शगूफ़ा न ये खिलाए पयाम लाई न हो कहीं का +न मेहर ओ मह पर मिरी नज़र है न लाला-ओ-गुल की कुछ ख़बर है +फ़रोग़-ए-दिल के लिए है काफ़ी तसव्वुर उस रू-ए-आतिशीं का +न इल्म-ए-फ़ितरत में तुम हो माहिर न ज़ौक़-ए-ताअत है तुम से ज़ाहिर +ये बे-उसूली बहुत बुरी है तुम्हें न रक्खेगी ये कहीं का " +rang-e-sharaab-se-mirii-niyyat-badal-gaii-akbar-allahabadi-ghazals," +रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई +वाइज़ की बात रह गई साक़ी की चल गई +तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर +जल्वा बुतों का देख के निय्यत बदल गई +मछली ने ढील पाई है लुक़्मे पे शाद है +सय्याद मुतमइन है कि काँटा निगल गई +चमका तिरा जमाल जो महफ़िल में वक़्त-ए-शाम +परवाना बे-क़रार हुआ शम्अ' जल गई +उक़्बा की बाज़-पुर्स का जाता रहा ख़याल +दुनिया की लज़्ज़तों में तबीअ'त बहल गई +हसरत बहुत तरक़्क़ी-ए-दुख़्तर की थी उन्हें +पर्दा जो उठ गया तो वो आख़िर निकल गई " +agar-dil-vaaqif-e-nairangii-e-tab-e-sanam-hotaa-akbar-allahabadi-ghazals," +अगर दिल वाक़िफ़-ए-नैरंगी-ए-तब-ए-सनम होता +ज़माने की दो-रंगी का उसे हरगिज़ न ग़म होता +ये पाबंद-ए-मुसीबत दिल के हाथों हम तो रहते हैं +नहीं तो चैन से कटती न दिल होता न ग़म होता +उन्हीं की बे-वफ़ाई का ये है आठों-पहर सदमा +वही होते जो क़ाबू में तो फिर काहे को ग़म होता +लब-ओ-चश्म-ए-सनम गर देखने पाते कहीं शाइ'र +कोई शीरीं-सुख़न होता कोई जादू-रक़म होता +बहुत अच्छा हुआ आए न वो मेरी अयादत को +जो वो आते तो ग़ैर आते जो ग़ैर आते तो ग़म होता +अगर क़ब्रें नज़र आतीं न दारा-ओ-सिकन्दर की +मुझे भी इश्तियाक़-ए-दौलत-ओ-जाह-ओ-हशम होता +लिए जाता है जोश-ए-शौक़ हम को राह-ए-उल्फ़त में +नहीं तो ज़ोफ़ से दुश्वार चलना दो-क़दम होता +न रहने पाए दीवारों में रौज़न शुक्र है वर्ना +तुम्हें तो दिल-लगी होती ग़रीबों पर सितम होता " +kahaan-vo-ab-lutf-e-baahamii-hai-mohabbaton-men-bahut-kamii-hai-akbar-allahabadi-ghazals," +कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है +चली है कैसी हवा इलाही कि हर तबीअत में बरहमी है +मिरी वफ़ा में है क्या तज़लज़ुल मिरी इताअ'त में क्या कमी है +ये क्यूँ निगाहें फिरी हैं मुझ से मिज़ाज में क्यूँ ये बरहमी है +वही है फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से अब तक तरक़्की-ए-कार-ए-हुस्न ओ उल्फ़त +न वो हैं मश्क़-ए-सितम में क़ासिर न ख़ून-ए-दिल की यहाँ कमी है +अजीब जल्वे हैं होश दुश्मन कि वहम के भी क़दम रुके हैं +अजीब मंज़र हैं हैरत-अफ़्ज़ा नज़र जहाँ थी वहीं थमी है +न कोई तकरीम-ए-बाहमी है न प्यार बाक़ी है अब दिलों में +ये सिर्फ़ तहरीर में डियर सर है या जनाब-ए-मुकर्रमी है +कहाँ के मुस्लिम कहाँ के हिन्दू भुलाई हैं सब ने अगली रस्में +अक़ीदे सब के हैं तीन-तेरह न ग्यारहवीं है न अष्टमी है +नज़र मिरी और ही तरफ़ है हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले +हज़ार बातें बनाए नासेह जमी है दिल में जो कुछ जमी है +अगरचे मैं रिंद-ए-मोहतरम हूँ मगर इसे शैख़ से न पूछो +कि उन के आगे तो इस ज़माने में सारी दुनिया जहन्नमी है " +kyaa-jaaniye-sayyad-the-haq-aagaah-kahaan-tak-akbar-allahabadi-ghazals," +क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक +समझे न कि सीधी है मिरी राह कहाँ तक +मंतिक़ भी तो इक चीज़ है ऐ क़िबला ओ काबा +दे सकती है काम आप की वल्लाह कहाँ तक +अफ़्लाक तो इस अहद में साबित हुए मादूम +अब क्या कहूँ जाती है मिरी आह कहाँ तक +कुछ सनअत ओ हिरफ़त पे भी लाज़िम है तवज्जोह +आख़िर ये गवर्नमेंट से तनख़्वाह कहाँ तक +मरना भी ज़रूरी है ख़ुदा भी है कोई चीज़ +ऐ हिर्स के बंदो हवस-ए-जाह कहाँ तक +तहसीन के लायक़ तिरा हर शेर है 'अकबर' +अहबाब करें बज़्म में अब वाह कहाँ तक " +jurm-e-ulfat-pe-hamen-log-sazaa-dete-hain-sahir-ludhianvi-ghazals," +जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं +कैसे नादान हैं शो'लों को हवा देते हैं +हम से दीवाने कहीं तर्क-ए-वफ़ा करते हैं +जान जाए कि रहे बात निभा देते हैं +आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें +हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं +तख़्त क्या चीज़ है और लाल-ओ-जवाहर क्या हैं +इश्क़ वाले तो ख़ुदाई भी लुटा देते हैं +हम ने दिल दे भी दिया अहद-ए-वफ़ा ले भी लिया +आप अब शौक़ से दे लें जो सज़ा देते हैं " +is-taraf-se-guzre-the-qaafile-bahaaron-ke-sahir-ludhianvi-ghazals-3," +इस तरफ़ से गु���़रे थे क़ाफ़िले बहारों के +आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के +ख़ल्वतों के शैदाई ख़ल्वतों में खुलते हैं +हम से पूछ कर देखो राज़ पर्दा-दारों के +गेसुओं की छाँव में दिल-नवाज़ चेहरे हैं +या हसीं धुँदलकों में फूल हैं बहारों के +पहले हँस के मिलते हैं फिर नज़र चुराते हैं +आश्ना-सिफ़त हैं लोग अजनबी दयारों के +तुम ने सिर्फ़ चाहा है हम ने छू के देखे हैं +पैरहन घटाओं के जिस्म बर्क़-पारों के +शुग़्ल-ए-मय-परस्ती गो जश्न-ए-ना-मुरादी था +यूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के " +ye-vaadiyaan-ye-fazaaen-bulaa-rahii-hain-tumhen-sahir-ludhianvi-ghazals," +ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें +ख़मोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें +तरस रहे हैं जवाँ फूल होंट छूने को +मचल मचल के हवाएँ बुला रही हैं तुम्हें +तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीक लेने को +झुकी झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें +हसीन चम्पई पैरों को जब से देखा है +नदी की मस्त अदाएँ बुला रही हैं तुम्हें +मिरा कहा न सुनो उन की बात तो सुन लो +हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हें " +gulshan-gulshan-phuul-sahir-ludhianvi-ghazals," +गुलशन गुलशन फूल +दामन दामन धूल +मरने पर ताज़ीर +जीने पर महसूल +हर जज़्बा मस्लूब +हर ख़्वाहिश मक़्तूल +इश्क़ परेशाँ-हाल +नाज़-ए-हुस्न मलूल +ना'रा-ए-हक़ मा'तूब +मक्र-ओ-रिया मक़्बूल +संवरा नहीं जहाँ +आए कई रसूल " +chehre-pe-khushii-chhaa-jaatii-hai-aankhon-men-suruur-aa-jaataa-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है +जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे ग़ुरूर आ जाता है +तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं +महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है +हम पास से तुम को क्या देखें तुम जब भी मुक़ाबिल होते हो +बेताब निगाहों के आगे पर्दा सा ज़रूर आ जाता है +जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला +मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊ'र आ जाता है " +tirii-duniyaa-men-jiine-se-to-behtar-hai-ki-mar-jaaen-sahir-ludhianvi-ghazals," +तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ +वही आँसू वही आहें वही ग़म है जिधर जाएँ +कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता +वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ +अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है +ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ " +barbaad-e-mohabbat-kii-duaa-saath-liye-jaa-sahir-ludhianvi-ghazals," +बरबाद-ए-मोहब्बत की दुआ साथ लिए जा +टूटा हुआ इक़रार-ए-वफ़ा साथ लिए जा +इक दिल था जो पहले ही तुझे सौंप दिया थ��� +ये जान भी ऐ जान-ए-अदा साथ लिए जा +तपती हुई राहों से तुझे आँच न पहुँचे +दीवानों के अश्कों की घटा साथ लिए जा +शामिल है मिरा ख़ून-ए-जिगर तेरी हिना में +ये कम हो तो अब ख़ून-ए-वफ़ा साथ लिए जा +हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा +जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा " +sazaa-kaa-haal-sunaaen-jazaa-kii-baat-karen-sahir-ludhianvi-ghazals," +सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें +ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें +उन्हें पता भी चले और वो ख़फ़ा भी न हों +इस एहतियात से क्या मुद्दआ की बात करें +हमारे अहद की तहज़ीब में क़बा ही नहीं +अगर क़बा हो तो बंद-ए-क़बा की बात करें +हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया +करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें +वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो +चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें " +tarab-zaaron-pe-kyaa-biitii-sanam-khaanon-pe-kyaa-guzrii-sahir-ludhianvi-ghazals," +तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री +दिल-ए-ज़िंदा तिरे मरहूम अरमानों पे क्या गुज़री +ज़मीं ने ख़ून उगला आसमाँ ने आग बरसाई +जब इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुज़री +हमें ये फ़िक्र उन की अंजुमन किस हाल में होगी +उन्हें ये ग़म कि उन से छुट के दीवानों पे क्या गुज़री +मिरा इल्हाद तो ख़ैर एक ला'नत था सो है अब तक +मगर इस आलम-ए-वहशत में ईमानों पे क्या गुज़री +ये मंज़र कौन सा मंज़र है पहचाना नहीं जाता +सियह-ख़ानों से कुछ पूछो शबिस्तानों पे क्या गुज़री +चलो वो कुफ़्र के घर से सलामत आ गए लेकिन +ख़ुदा की मुम्लिकत में सोख़्ता-जानों पे क्या गुज़री " +aqaaed-vahm-hain-mazhab-khayaal-e-khaam-hai-saaqii-sahir-ludhianvi-ghazals," +अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी +अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी +हक़ीक़त-आश्नाई अस्ल में गुम-कर्दा राही है +उरूस-ए-आगही परवुर्दा-ए-इब्हाम है साक़ी +मुबारक हो ज़ईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ा-रानी +जवानी बे-नियाज़-ए-इबरत-ए-अंजाम है साक़ी +हवस होगी असीर-ए-हल्क़ा-ए-नेक-ओ-बद-ए-आलम +मोहब्बत मावरा-ए-फ़िक्र-ए-नंग-ओ-नाम है साक़ी +अभी तक रास्ते के पेच-ओ-ख़म से दिल धड़कता है +मिरा ज़ौक़-ए-तलब शायद अभी तक ख़ाम है साक़ी +वहाँ भेजा गया हूँ चाक करने पर्दा-ए-शब को +जहाँ हर सुब्ह के दामन पे अक्स-ए-शाम है साक़ी +मिरे साग़र में मय है और तिरे हाथों में बरबत है +वतन की सर-ज़मीं में भूक से कोहराम है साक़ी +ज़माना बरसर-ए-पैकार है पुर-हौल शो'लों से +तिरे लब पर अभी तक नग़्मा-ए-ख़य्याम है साक़ी " +sansaar-kii-har-shai-kaa-itnaa-hii-fasaana-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है +इक धुँद से आना है इक धुँद में जाना है +ये राह कहाँ से है ये राह कहाँ तक है +ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है +इक पल की पलक पर है ठहरी हुई ये दुनिया +इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है +क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पर क्या बीते +इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है +हम लोग खिलौना हैं इक ऐसे खिलाड़ी का +जिस को अभी सदियों तक ये खेल रचाना है " +main-zinda-huun-ye-mushtahar-kiijiye-sahir-ludhianvi-ghazals-3," +मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए +मिरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए +ज़मीं सख़्त है आसमाँ दूर है +बसर हो सके तो बसर कीजिए +सितम के बहुत से हैं रद्द-ए-अमल +ज़रूरी नहीं चश्म तर कीजिए +वही ज़ुल्म बार-ए-दिगर है तो फिर +वही जुर्म बार-ए-दिगर कीजिए +क़फ़स तोड़ना बाद की बात है +अभी ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर कीजिए " +miltii-hai-zindagii-men-mohabbat-kabhii-kabhii-sahir-ludhianvi-ghazals," +मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी +होती है दिलबरों की इनायत कभी कभी +शर्मा के मुँह न फेर नज़र के सवाल पर +लाती है ऐसे मोड़ पे क़िस्मत कभी कभी +खुलते नहीं हैं रोज़ दरीचे बहार के +आती है जान-ए-मन ये क़यामत कभी कभी +तन्हा न कट सकेंगे जवानी के रास्ते +पेश आएगी किसी की ज़रूरत कभी कभी +फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में +मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी " +khuddaariyon-ke-khuun-ko-arzaan-na-kar-sake-sahir-ludhianvi-ghazals-3," +ख़ुद्दारियों के ख़ून को अर्ज़ां न कर सके +हम अपने जौहरों को नुमायाँ न कर सके +हो कर ख़राब-ए-मय तिरे ग़म तो भुला दिए +लेकिन ग़म-ए-हयात का दरमाँ न कर सके +टूटा तिलिस्म-ए-अहद-ए-मोहब्बत कुछ इस तरह +फिर आरज़ू की शम्अ फ़िरोज़ाँ न कर सके +हर शय क़रीब आ के कशिश अपनी खो गई +वो भी इलाज-ए-शौक़-ए-गुरेज़ाँ न कर सके +किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे +हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके +मायूसियों ने छीन लिए दिल के वलवले +वो भी नशात-ए-रूह का सामाँ न कर सके " +ab-aaen-yaa-na-aaen-idhar-puuchhte-chalo-sahir-ludhianvi-ghazals," +अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो +क्या चाहती है उन की नज़र पूछते चलो +हम से अगर है तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ तो क्या हुआ +यारो कोई तो उन की ख़बर पूछते चलो +जो ख़ुद को कह रहे हैं कि मंज़िल-शनास हैं +उन को भी क्या ख़बर है मगर पूछते चलो +किस मंज़िल-ए-मुराद की जानिब रवाँ हैं हम +ऐ रह-रवान-ए-ख़ाक-बसर पूछते चलो " +ye-zulf-agar-khul-ke-bikhar-jaae-to-achchhaa-sahir-ludhianvi-ghazals," +ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा +इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा +जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है +बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा +दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या +ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा +वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया है +इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा " +ye-zamiin-kis-qadar-sajaaii-gaii-sahir-ludhianvi-ghazals," +ये ज़मीं किस क़दर सजाई गई +ज़िंदगी की तड़प बढ़ाई गई +आईने से बिगड़ के बैठ गए +जिन की सूरत जिन्हें दिखाई गई +दुश्मनों ही से भी तो निभ जाए +दोस्तों से तो आश्नाई गई +नस्ल-दर-नस्ल इंतिज़ार रहा +क़स्र टूटे न बे-नवाई गई +ज़िंदगी का नसीब क्या कहिए +एक सीता थी जो सताई गई +हम न अवतार थे न पैग़म्बर +क्यूँ ये अज़्मत हमें दिलाई गई +मौत पाई सलीब पर हम ने +उम्र बन-बास में बिताई गई " +har-qadam-marhala-e-daar-o-saliib-aaj-bhii-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +हर क़दम मरहला-दार-ओ-सलीब आज भी है +जो कभी था वही इंसाँ का नसीब आज भी है +जगमगाते हैं उफ़ुक़ पर ये सितारे लेकिन +रास्ता मंज़िल-ए-हस्ती का मुहीब आज भी है +सर-ए-मक़्तल जिन्हें जाना था वो जा भी पहुँचे +सर-ए-मिंबर कोई मोहतात ख़तीब आज भी है +अहल-ए-दानिश ने जिसे अम्र-ए-मुसल्लम माना +अहल-ए-दिल के लिए वो बात अजीब आज भी है +ये तिरी याद है या मेरी अज़ियत-कोशी +एक नश्तर सा रग-ए-जाँ के क़रीब आज भी है +कौन जाने ये तिरा शायर-ए-आशुफ़्ता-मिज़ाज +कितने मग़रूर ख़ुदाओं का रक़ीब आज भी है " +parbaton-ke-pedon-par-shaam-kaa-baseraa-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है +सुरमई उजाला है चम्पई अंधेरा है +दोनों वक़्त मिलते हैं दो दिलों की सूरत से +आसमाँ ने ख़ुश हो कर रंग सा बिखेरा है +ठहरे ठहरे पानी में गीत सरसराते हैं +भीगे भीगे झोंकों में ख़ुशबुओं का डेरा है +क्यूँ न जज़्ब हो जाएँ इस हसीं नज़ारे में +रौशनी का झुरमुट है मस्तियों का घेरा है " +jab-kabhii-un-kii-tavajjoh-men-kamii-paaii-gaii-sahir-ludhianvi-ghazals," +जब कभी उन की तवज्जोह में कमी पाई गई +अज़-सर-ए-नौ दास्तान-ए-शौक़ दोहराई गई +बिक गए जब तेरे लब फिर तुझ को क्या शिकवा अगर +ज़िंदगानी बादा ओ साग़र से बहलाई गई +ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते +किन बहानों से तबीअ'त राह पर लाई गई +हम करें तर्क-ए-वफ़ा अच्छा चलो यूँ ही सही +और अगर तर्क-ए-वफ़ा से भी न रुस्वाई गई +कैसे कैसे चश्म ओ आरिज़ गर्द-ए-ग़म से बुझ गए +कैसे कैसे पैकरों की शान-ए-ज़ेबाई गई +दिल की धड़कन में तवाज़ुन आ चला है ख़ैर हो +मेरी नज़रें बुझ गईं या तेरी रानाई गई +उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ +अब तो ये बातें भी ऐ दिल ह��� गईं आई गई +जुरअत-ए-इंसाँ पे गो तादीब के पहरे रहे +फ़ितरत-ए-इंसाँ को कब ज़ंजीर पहनाई गई +अरसा-ए-हस्ती में अब तेशा-ज़नों का दौर है +रस्म-ए-चंगेज़ी उठी तौक़ीर-ए-दाराई गई " +har-tarah-ke-jazbaat-kaa-elaan-hain-aankhen-sahir-ludhianvi-ghazals," +हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें +शबनम कभी शो'ला कभी तूफ़ान हैं आँखें +आँखों से बड़ी कोई तराज़ू नहीं होती +तुलता है बशर जिस में वो मीज़ान हैं आँखें +आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को +अंजान हैं हम तुम अगर अंजान हैं आँखें +लब कुछ भी कहें इस से हक़ीक़त नहीं खुलती +इंसान के सच झूट की पहचान हैं आँखें +आँखें न झुकीं तेरी किसी ग़ैर के आगे +दुनिया में बड़ी चीज़ मिरी जान! हैं आँखें " +main-zindagii-kaa-saath-nibhaataa-chalaa-gayaa-sahir-ludhianvi-ghazals," +मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया +हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया +बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था +बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया +जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया +जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया +ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ +मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया " +na-to-zamiin-ke-liye-hai-na-aasmaan-ke-liye-sahir-ludhianvi-ghazals," +न तो ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए +तिरा वजूद है अब सिर्फ़ दास्ताँ के लिए +पलट के सू-ए-चमन देखने से क्या होगा +वो शाख़ ही न रही जो थी आशियाँ के लिए +ग़रज़-परस्त जहाँ में वफ़ा तलाश न कर +ये शय बनी थी किसी दूसरे जहाँ के लिए " +tum-apnaa-ranj-o-gam-apnii-pareshaanii-mujhe-de-do-sahir-ludhianvi-ghazals," +तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो +तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो +ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में +बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो +मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है +कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो +वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है +बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो " +ahl-e-dil-aur-bhii-hain-ahl-e-vafaa-aur-bhii-hain-sahir-ludhianvi-ghazals," +अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं +एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं +हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदा-सरी +चाक-ए-दिल और भी हैं चाक-ए-क़बा और भी हैं +क्या हुआ गर मिरे यारों की ज़बानें चुप हैं +मेरे शाहिद मिरे यारों के सिवा और भी हैं +सर सलामत है तो क्या संग-ए-मलामत की कमी +जान बाक़ी है तो पैकान-ए-क़ज़ा और भी हैं +मुंसिफ़-ए-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाए +लोग कहते हैं कि अर्बाब-ए-जफ़ा और भी हैं " +dekhaa-to-thaa-yuunhii-kisii-gaflat-shiaar-ne-sahir-ludhianvi-ghazals," +��ेखा तो था यूँही किसी ग़फ़लत-शिआर ने +दीवाना कर दिया दिल-ए-बे-इख़्तियार ने +ऐ आरज़ू के धुँदले ख़राबो जवाब दो +फिर किस की याद आई थी मुझ को पुकारने +तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को +बरबाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने +मैं और तुम से तर्क-ए-मोहब्बत की आरज़ू +दीवाना कर दिया है ग़म-ए-रोज़गार ने +अब ऐ दिल-ए-तबाह तिरा क्या ख़याल है +हम तो चले थे काकुल-ए-गीती सँवारने " +bhadkaa-rahe-hain-aag-lab-e-nagmagar-se-ham-sahir-ludhianvi-ghazals," +भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागर से हम +ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम +कुछ और बढ़ गए जो अँधेरे तो क्या हुआ +मायूस तो नहीं हैं तुलू-ए-सहर से हम +ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है +क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम +माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके +कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम " +duur-rah-kar-na-karo-baat-qariib-aa-jaao-sahir-ludhianvi-ghazals," +दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ +याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ +एक मुद्दत से तमन्ना थी तुम्हें छूने की +आज बस में नहीं जज़्बात क़रीब आ जाओ +सर्द झोंकों से भड़कते हैं बदन में शो'ले +जान ले लेगी ये बरसात क़रीब आ जाओ +इस क़दर हम से झिजकने की ज़रूरत क्या है +ज़िंदगी भर का है अब साथ क़रीब आ जाओ " +bhuule-se-mohabbat-kar-baithaa-naadaan-thaa-bechaaraa-dil-hii-to-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है +हर दिल से ख़ता हो जाती है, बिगड़ो न ख़ुदारा, दिल ही तो है +इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए +सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है +जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है +दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा, दिल ही तो है +बेदाद-गरों की ठोकर से सब ख़्वाब सुहाने चूर हुए +अब दिल का सहारा ग़म ही तो है अब ग़म का सहारा दिल ही तो है " +har-chand-mirii-quvvat-e-guftaar-hai-mahbuus-sahir-ludhianvi-ghazals," +हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस +ख़ामोश मगर तब-ए-ख़ुद-आरा नहीं होती +मामूरा-ए-एहसास में है हश्र सा बरपा +इंसान की तज़लील गवारा नहीं होती +नालाँ हूँ मैं बेदारी-ए-एहसास के हाथों +दुनिया मिरे अफ़्कार की दुनिया नहीं होती +बेगाना-सिफ़त जादा-ए-मंज़िल से गुज़र जा +हर चीज़ सज़ा-वार-ए-नज़ारा नहीं होती +फ़ितरत की मशिय्यत भी बड़ी चीज़ है लेकिन +फ़ितरत कभी बे-बस का सहारा नहीं होती " +tang-aa-chuke-hain-kashmakash-e-zindagii-se-ham-sahir-ludhianvi-ghazals," +तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम +ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम +मायूसी-ए-मआल-ए-मो���ब्बत न पूछिए +अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम +लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद +लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम +उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले +गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम +गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से +पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम +अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशिय्यत कि आज तक +दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामुशी से हम " +kyaa-jaanen-tirii-ummat-kis-haal-ko-pahunchegii-sahir-ludhianvi-ghazals," +क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी +बढ़ती चली जाती है तादाद इमामों की +हर गोशा-ए-मग़रिब में हर ख़ित्ता-ए-मशरिक़ में +तशरीह दिगर-गूँ है अब तेरे पयामों की +वो लोग जिन्हें कल तक दावा था रिफ़ाक़त का +तज़लील पे उतरे हैं अपनों ही के नामों की +बिगड़े हुए तेवर हैं नौ-उम्र सियासत के +बिफरी हुई साँसें हैं नौ-मश्क़ निज़ामों की +तबक़ों से निकल कर हम फ़िर्क़ों में न बट जाएँ +बन कर न बिगड़ जाए तक़दीर ग़ुलामों की " +apnaa-dil-pesh-karuun-apnii-vafaa-pesh-karuun-sahir-ludhianvi-ghazals," +अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ +कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ +तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़्मा छेड़ूँ +या तिरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ +मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू +कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ +जो तिरे दिल को लुभाए वो अदा मुझ में नहीं +क्यूँ न तुझ को कोई तेरी ही अदा पेश करूँ " +dekhaa-hai-zindagii-ko-kuchh-itne-qariib-se-sahir-ludhianvi-ghazals-1," +देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से +चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से +ऐ रूह-ए-अस्र जाग कहाँ सो रही है तू +आवाज़ दे रहे हैं पयम्बर सलीब से +इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बार +बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से +हर गाम पर है मजमा-ए-उश्शाक़ मुंतज़िर +मक़्तल की राह मिलती है कू-ए-हबीब से +इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ +जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से " +dekhaa-hai-zindagii-ko-kuchh-itnaa-qariib-se-sahir-ludhianvi-ghazals," +देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब से +चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से +कहने को दिल की बात जिन्हें ढूँडते थे हम +महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से +नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार +क़ीमत नहीं चुकाई गई इक ग़रीब से +तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल दूँ +रेशम का ये कफ़न जो मिला है रक़ीब से " +merii-taqdiir-men-jalnaa-hai-to-jal-jaauungaa-sahir-ludhianvi-ghazals," +मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा +तेरा वा'दा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा +सोज़ भर दो मिरे सपने में ग़म-ए-उल्फ़त का +मैं कोई मोम नहीं हूँ जो पिघल जाऊँगा +दर्द कहता है ये घबरा के शब-ए-फ़ुर्क़त में +आह बन कर तिरे पहलू से निकल जाऊँगा +मुझ को समझाओ न 'साहिर' मैं इक दिन ख़ुद ही +ठोकरें खा के मोहब्बत में सँभल जाऊँगा " +kabhii-khud-pe-kabhii-haalaat-pe-ronaa-aayaa-sahir-ludhianvi-ghazals," +कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया +बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया +हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को +क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया +किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं +बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया +कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त +सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया " +ab-koii-gulshan-na-ujde-ab-vatan-aazaad-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है +रूह गंगा की हिमाला का बदन आज़ाद है +खेतियाँ सोना उगाएँ वादियाँ मोती लुटाएँ +आज गौतम की ज़मीं तुलसी का बन आज़ाद है +मंदिरों में संख बाजे मस्जिदों में हो अज़ाँ +शैख़ का धर्म और दीन-ए-बरहमन आज़ाद है +लूट कैसी भी हो अब इस देश में रहने न पाए +आज सब के वास्ते धरती का धन आज़ाद है " +itnii-hasiin-itnii-javaan-raat-kyaa-karen-sahir-ludhianvi-ghazals," +इतनी हसीन इतनी जवाँ रात क्या करें +जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात क्या करें +पेड़ों के बाज़ुओं में महकती है चाँदनी +बेचैन हो रहे हैं ख़यालात क्या करें +साँसों में घुल रही है किसी साँस की महक +दामन को छू रहा है कोई हात क्या करें +शायद तुम्हारे आने से ये भेद खुल सके +हैरान हैं कि आज नई बात क्या करें " +fan-jo-naadaar-tak-nahiin-pahunchaa-sahir-ludhianvi-ghazals," +फ़न जो नादार तक नहीं पहुँचा +अभी मेयार तक नहीं पहुँचा +उस ने बर-वक़्त बे-रुख़ी बरती +शौक़ आज़ार तक नहीं पहुँचा +अक्स-ए-मय हो कि जल्वा-ए-गुल हो +रंग-ए-रुख़्सार तक नहीं पहुँचा +हर्फ़-ए-इंकार सर बुलंद रहा +ज़ोफ़-ए-इक़रार तक नहीं पहुँचा +हुक्म-ए-सरकार की पहुँच मत पूछ +अहल-ए-सरकार तक नहीं पहुँचा +अद्ल-गाहें तो दूर की शय हैं +क़त्ल अख़बार तक नहीं पहुँचा +इन्क़िलाबात-ए-दहर की बुनियाद +हक़ जो हक़दार तक नहीं पहुँचा +वो मसीहा-नफ़स नहीं जिस का +सिलसिला-दार तक नहीं पहुँचा " +tod-lenge-har-ik-shai-se-rishta-tod-dene-kii-naubat-to-aae-sahir-ludhianvi-ghazals," +तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए +हम क़यामत के ख़ुद मुंतज़िर हैं पर किसी दिन क़यामत तो आए +हम भी सुक़रात हैं अहद-ए-नौ के तिश्ना-लब ही न मर जाएँ यारो +ज़हर हो या मय-ए-आतिशीं हो कोई जाम-ए-शहादत तो आए +एक तहज़ीब है दोस्ती की एक मेयार है दुश्मनी का +दोस्तों ने मुरव्वत न सीखी दुश्मनों को अदावत तो आए +रिंद रस्ते में आ��खें बिछाएँ जो कहे बिन सुने मान जाएँ +नासेह-ए-नेक-तीनत किसी शब सू-ए-कू-ए-मलामत तो आए +इल्म ओ तहज़ीब तारीख़ ओ मंतिक़ लोग सोचेंगे इन मसअलों पर +ज़िंदगी के मशक़्क़त-कदे में कोई अहद-ए-फ़राग़त तो आए +काँप उट्ठें क़स्र-ए-शाही के गुम्बद थरथराए ज़मीं माबदों की +कूचा-गर्दों की वहशत तो जागे ग़म-ज़दों को बग़ावत तो आए " +sansaar-se-bhaage-phirte-ho-bhagvaan-ko-tum-kyaa-paaoge-sahir-ludhianvi-ghazals," +संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे +इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे +ये पाप है क्या ये पुन है क्या रीतों पर धर्म की मोहरें हैं +हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे +ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो +अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे +हम कहते हैं ये जग अपना है तुम कहते हो झूटा सपना है +हम जन्म बिता कर जाएँगे तुम जन्म गँवा कर जाओगे " +havas-nasiib-nazar-ko-kahiin-qaraar-nahiin-sahir-ludhianvi-ghazals," +हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं +मैं मुंतज़िर हूँ मगर तेरा इंतिज़ार नहीं +हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार +हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं +अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब +अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं +तुम्हारे अहद-ए-वफ़ा को मैं अहद क्या समझूँ +मुझे ख़ुद अपनी मोहब्बत पे ए'तिबार नहीं +न जाने कितने गिले इस में मुज़्तरिब हैं नदीम +वो एक दिल जो किसी का गिला-गुज़ार नहीं +गुरेज़ का नहीं क़ाइल हयात से लेकिन +जो सच कहूँ कि मुझे मौत नागवार नहीं +ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने +कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं " +mohabbat-tark-kii-main-ne-garebaan-sii-liyaa-main-ne-sahir-ludhianvi-ghazals," +मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने +ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैं ने +अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में +कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने +उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है +कि कुछ मुद्दत हसीं ख़्वाबों में खो कर जी लिया मैं ने +बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो +बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने " +lab-pe-paabandii-to-hai-ehsaas-par-pahraa-to-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +लब पे पाबंदी तो है एहसास पर पहरा तो है +फिर भी अहल-ए-दिल को अहवाल-ए-बशर कहना तो है +ख़ून-ए-आ'दा से न हो ख़ून-ए-शहीदाँ ही से हो +कुछ न कुछ इस दौर में रंग-ए-चमन निखरा तो है +अपनी ग़ैरत बेच डालें अपना मस्लक छोड़ दें +रहनुमाओं में भी कुछ लोगों का ये मंशा तो है +है जिन्���ें सब से ज़ियादा दा'वा-ए-हुब्बुल-वतन +आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है +बुझ रहे हैं एक इक कर के अक़ीदों के दिए +इस अँधेरे का भी लेकिन सामना करना तो है +झूट क्यूँ बोलें फ़रोग़-ए-मस्लहत के नाम पर +ज़िंदगी प्यारी सही लेकिन हमें मरना तो है " +sharmaa-ke-yuun-na-dekh-adaa-ke-maqaam-se-sahir-ludhianvi-ghazals," +शर्मा के यूँ न देख अदा के मक़ाम से +अब बात बढ़ चुकी है हया के मक़ाम से +तस्वीर खींच ली है तिरे शोख़ हुस्न की +मेरी नज़र ने आज ख़ता के मक़ाम से +दुनिया को भूल कर मिरी बाँहों में झूल जा +आवाज़ दे रहा हूँ वफ़ा के मक़ाम से +दिल के मुआ'मले में नतीजे की फ़िक्र क्या +आगे है इश्क़ जुर्म-ओ-सज़ा के मक़ाम से " +bujhaa-diye-hain-khud-apne-haathon-mohabbaton-ke-diye-jalaa-ke-sahir-ludhianvi-ghazals," +बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के +मिरी वफ़ा ने उजाड़ दी हैं उमीद की बस्तियाँ बसा के +तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन +न दिल को मालूम है न हम को जिएँगे कैसे तुझे भुला के +कभी मिलेंगे जो रास्ते में तो मुँह फिरा कर पलट पड़ेंगे +कहीं सुनेंगे जो नाम तेरा तो चुप रहेंगे नज़र झुका के +न सोचने पर भी सोचती हूँ कि ज़िंदगानी में क्या रहेगा +तिरी तमन्ना को दफ़्न कर के तिरे ख़यालों से दूर जा के " +ponchh-kar-ashk-apnii-aankhon-se-muskuraao-to-koii-baat-bane-sahir-ludhianvi-ghazals," +पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने +सर झुकाने से कुछ नहीं होता सर उठाओ तो कोई बात बने +ज़िंदगी भीक में नहीं मिलती ज़िंदगी बढ़ के छीनी जाती है +अपना हक़ संग-दिल ज़माने से छीन पाओ तो कोई बात बने +रंग और नस्ल ज़ात और मज़हब जो भी है आदमी से कमतर है +इस हक़ीक़त को तुम भी मेरी तरह मान जाओ तो कोई बात बने +नफ़रतों के जहान में हम को प्यार की बस्तियाँ बसानी हैं +दूर रहना कोई कमाल नहीं पास आओ तो कोई बात बने " +bahut-ghutan-hai-koii-suurat-e-bayaan-nikle-sahir-ludhianvi-ghazals," +बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले +अगर सदा न उठे कम से कम फ़ुग़ाँ निकले +फ़क़ीर-ए-शहर के तन पर लिबास बाक़ी है +अमीर-ए-शहर के अरमाँ अभी कहाँ निकले +हक़ीक़तें हैं सलामत तो ख़्वाब बहुतेरे +मलाल क्यूँ हो कि कुछ ख़्वाब राएगाँ निकले +उधर भी ख़ाक उड़ी है इधर भी ख़ाक उड़ी +जहाँ जहाँ से बहारों के कारवाँ निकले +सितम के दौर में हम अहल-ए-दिल ही काम आए +ज़बाँ पे नाज़ था जिन को वो बे-ज़बाँ निकले " +sadiyon-se-insaan-ye-suntaa-aayaa-hai-sahir-ludhianvi-ghazals," +सदियों से इंसान ये सुनता आया है +दुख की धूप के आगे सुख का साया है +हम को इन सस्ती ख़ुशियों का लोभ न दो +हम ने सोच समझ कर ग़म अपनाया है +झूट तो क़ातिल ठहरा इस का क्या रोना +सच ने भी इंसाँ का ख़ूँ बहाया है +पैदाइश के दिन से मौत की ज़द में हैं +इस मक़्तल में कौन हमें ले आया है +अव्वल अव्वल जिस दिल ने बर्बाद किया +आख़िर आख़िर वो दिल ही काम आया है +इतने दिन एहसान किया दीवानों पर +जितने दिन लोगों ने साथ निभाया है " +sang-e-jafaa-kaa-gam-nahiin-dast-e-talab-kaa-dar-nahiin-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +संग-ए-जफ़ा का ग़म नहीं दस्त-ए-तलब का डर नहीं +अपना है उस पर आशियाँ नख़्ल जो बारवर नहीं +सुनते हो अहल-ए-क़ाफ़िला मैं कोई राहबर नहीं +देख रहा हूँ तुम में से एक भी राह पर नहीं +मौत का घर है आसमाँ इस से कहीं मफ़र नहीं +निकलें तो कोई दर नहीं भागें तो रहगुज़र नहीं +पहले जिगर पर आह का नाम न था निशाँ न था +आख़िर-ए-कार ये हुआ आह तो है जिगर नहीं +सुब्ह-ए-अज़ल से ता-अबद क़िस्सा न होगा ये तमाम +जौर-ए-फ़लक की दास्ताँ ऐसी भी मुख़्तसर नहीं +बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-रसीदा हूँ छेड़ न मुझ को ऐ नसीम +ज़ौक़ फ़ुग़ाँ का है मुझे शिक्वा-ए-अब्र-ए-तर नहीं +मुंकिर-ए-हश्र है किधर देखे तू आँख खोल कर +हश्र की जो ख़बर न दे ऐसी कोई सहर नहीं +शबनम ओ गुल को देख कर वज्द न आए किस तरह +ख़ंदा बे-सबब नहीं गिर्या बे-असर नहीं +तेरे फ़क़ीर का ग़ुरूर ताजवरों से है सिवा +तर्फ़-ए-कुलह में दे शिकन उस को ये दर्द-ए-सर नहीं +कोशक ओ क़स्र ओ बाम-ओ-दर तू ने बिना किए तो क्या +हैफ़ है ख़ानुमाँ-ख़राब दिल में किसी के घेर नहीं +नाला-कशी रक़ीब से मेरी तरह मुहाल है +दिल नहीं हौसला नहीं ज़ोहरा नहीं जिगर नहीं +शातिर-ए-पीर-ए-आसमाँ वाह-री तेरी दस्तबुर्द +ख़ुसरव ओ कैक़िबाद की तेग़ नहीं कमर नहीं +शान करीम की ये है हाँ से हो पेशतर अता +लुत्फ़ अता का क्या हो जब हाँ से हो पेशतर नहीं +लाख वो बे-रुख़ी करे लाख वो कज-रवी करे +कुछ तो मलाल इस का हो दिल को मिरे मगर नहीं +सुन के बुरा न मानिए सच को न झूट जानिए +ज़िक्र है कुछ गिला नहीं बात है नेश्तर नहीं " +kis-liye-phirte-hain-ye-shams-o-qamar-donon-saath-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +किस लिए फिरते हैं ये शम्स ओ क़मर दोनों साथ +किस को ये ढूँडते हैं बरहना-सर दोनों साथ +कैसी या-रब ये हवा सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल चली +बुझ गया दिल मिरा और शम-ए-सहर दोनों साथ +ब'अद मेरे न रहा इश्क़ की मंज़िल का निशाँ +मिट गए राह-रौ ओ राहगुज़र दोनों साथ +ऐ जुनूँ देख इसी सहरा में अकेला हूँ मैं +रहते जिस दश्त में हैं ख़ौफ़-ओ-ख़तर दोनों साथ +मुझ को हैरत है शब-ए-ऐश की कोताह�� पर +या ख़ुदा आए थे क्या शाम-ओ-सहर दोनों साथ +उस ने फेरी निगह-ए-नाज़ ये मालूम हुआ +खिंच गया सीने से तीर और जिगर दोनों साथ +ग़म को दी दिल ने जगह दिल को जगह पहलू ने +एक गोशे में करेंगे ये बसर दोनों साथ +इस को रोकूँ मैं इलाही कि सँभालूँ उस को +कि तड़पने लगे दिल और जिगर दोनों साथ +नाज़ बढ़ता गया बढ़ते गए जूँ जूँ गेसू +बल्कि लेने लगे अब ज़ुल्फ़ ओ कमर दोनों साथ +तुझ से मतलब है नहीं दुनिया ओ उक़्बा से ग़रज़ +तू नहीं जब तो उजड़ जाएँ ये घर दोनों साथ +बात सुनना न किसी चाहने वाले की कभी +कान में फूँक रहे हैं ये गुहर दोनों साथ +आँधियाँ आह की भी अश्क का सैलाब भी है +देते हैं दिल की ख़राबी की ख़बर दोनों साथ +क्या कहूँ ज़ोहरा ओ ख़ुर्शीद का आलम ऐ 'नज़्म' +निकले ख़ल्वत से जूँही वक़्त-ए-सहर दोनों साथ " +hansii-men-vo-baat-main-ne-kah-dii-ki-rah-gae-aap-dang-ho-kar-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +हँसी में वो बात मैं ने कह दी कि रह गए आप दंग हो कर +छुपा हुआ था जो राज़ दिल में खुला वो चेहरे का रंग हो कर +हमेशा कूच ओ मक़ाम अपना रहा है ख़िज़्र-ए-रह-ए-तरीक़त +रुका तो मैं संग-ए-मील बन कर चला तो आवाज़-ए-चंग हो कर +न तोड़ते आरसी अगर तुम तो इतने यूसुफ़ नज़र न आते +ये क़ाफ़िला खींच लाई सारा शिकस्त-ए-आईना ज़ंग हो कर +शबाब ओ पीरी का आना जाना ग़ज़ब का पुर-दर्द है फ़साना +ये रह गई बन के गर्द-ए-हसरत वो उड़ गया रुख़ से रंग हो कर +जो राज़ दिल से ज़बाँ तक आया तो उस को क़ाबू में फिर न पाया +ज़बाँ से निकला कलाम बन कर कमाँ से छूटा ख़दंग हो कर +ग़ज़ब है बहर-ए-फ़ना का धारा कि मुझ को उलझा के मारा मारा +नफ़स ने मौजों का जाल बुन कर लहद ने काम-ए-नहंग हो कर +मिला दिल-ए-ना-हिफ़ाज़ मुझ को तो क्या किसी का लिहाज़ मुझ को +कहीं गरेबाँ न फाड़ डालें जनाब-ए-नासेह भी तंग हो कर +जो अब की मीना-ए-मय को तोड़ा चलेगी तलवार मोहतसिब से +लहू भी रिंदों का देख लेना बहा मय-ए-लाला-रंग हो कर +न ज़ब्त से शिकवा लब तक आया न सब्र ने आह खींचने दी +रहा दहन में वो क़ुफ़्ल बन कर गिराया छाती पे संग हो कर +समझ ले सूफ़ी अगर ये नुक्ता है एक बज़्म-ए-समा-ए-हस्ती +तो नौ-पियाले ये आसमाँ के बजें अभी जल-तरंग हो कर +भला हो अफ़्सुर्दा-ख़ातिरी का कि हसरतों को दबा के रक्खा +बचा लिया हरज़गी से उस ने लिहाज़-ए-नामूस-ओ-नंग हो कर +जिगर-ख़राशी से पाई फ़ुर्सत न सीना-कावी से नाख़ुनों ने +गला गरेबाँ ने घूँट डाला जुनूँ की शोरिश से तंग हो कर +बदल के दुनिया ने भेस सद��ा इसे डराया उसे लुभाया +कभी ज़न-ए-पीर-ज़ाल बन कर कभी बुत-ए-शोख़-ओ-शंग हो कर +उठे थे तलवार खींच कर तुम तो फिर तअम्मुल न चाहिए था +कि रह गई मेरे दिल की हसरत शहीद-ए-तेग़-ए-दरंग हो कर +जो वलवले थे वो दब गए सब हुजूम-ए-लैत-ओ-लअल में 'हैदर' +जो हौसले थे वो दिल ही दिल में रहे दरेग़-ओ-दरंग हो कर " +bidat-masnuun-ho-gaii-hai-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +बिदअ'त मस्नून हो गई है +उम्मत मतऊन हो गई है +क्या कहना तिरी दुआ का ज़ाहिद +गर्दूं का सुतून हो गई है +रहने दो अजल जो घात में है +मुझ पर मफ़्तून हो गई है +हसरत को ग़ुबार-ए-दिल में ढूँडो +ज़िंदा मदफ़ून हो गई है +वहशत का था नाम अव्वल अव्वल +अब तो वो जुनून हो गई है +वाइज़ ने बुरी नज़र से देखा +मय शीशे में ख़ून हो गई है +आरिज़ के क़रीन गुलाब का फूल +हम-रंग की दून हो गई है +बंदा हूँ तिरा ज़बान-ए-शीरीं +दुनिया मम्नून हो गई है +'हैदर' शब-ए-ग़म में मर्ग-ए-नागाह +शादी का शुगून हो गई है " +mujh-ko-samjho-yaadgaar-e-raftagaan-e-lucknow-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +मुझ को समझो यादगार-ए-रफ़्तगान-ए-लखनऊ +हूँ क़द-ए-आदम ग़ुबार-ए-कारवान-ए-लखनऊ +ख़ून-ए-हसरत कह रहा है दास्तान-ए-लखनऊ +रह गया है अब यही रंगीं-बयान-ए-लखनऊ +गोश-ए-इबरत से सुने कोई मिरी फ़रियाद है +बुलबुल-ए-ख़ूनीं नवा-ए-बोस्तान-ए-लखनऊ +मेरे हर आँसू में इक आईना-ए-तस्वीर है +मेरे हर नाले में है तर्ज़-ए-फ़ुग़ान-ए-लखनऊ +ढूँढता है अब किसे ले कर चराग़-ए-आफ़्ताब +क्यूँ मिटाया ऐ फ़लक तू ने निशान-ए-लखनऊ +लखनऊ जिन से इबारत थी हुए वो नापदीद +है निशान-ए-लखनऊ बाक़ी न शान-ए-लखनऊ +अब नज़र आता नहीं वो मजमा-ए-अहल-ए-कमाल +खा गए उन को ज़मीन-ओ-आसमान-ए-लखनऊ +पहले था अहल-ए-ज़बाँ का दौर अब गर्दिश में हैं +चाहिए थी तेग़-ए-उर्दू को फ़सान-ए-लखनऊ +मर्सिया-गो कितने यकता-ए-ज़माना थे यहाँ +कोई तो इतनों में होता नौहा-ख़्वान-ए-लखनऊ +ये ग़ुबार-ए-ना-तावाँ ख़ाकिस्तर-ए-परवाना है +ख़ानदान अपना था शम्-ए-दूदमान-ए-लखनऊ +चलता था जब घुटनियों अपने यहाँ तिफ़्ल-ए-रज़ीअ' +सज्दा करते थे उसे गर्दन-कुशान-ए-लखनऊ +अहद-ए-पीराना-सरी में क्यूँ न शीरीं हो सुख़न +बचपने में मैं ने चूसी है ज़बान-ए-लखनऊ +गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वाँ तुझे +पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ +बू-ए-उन्स आती है 'हैदर' ख़ाक-ए-मटिया-बुर्ज से +जम्अ' हैं इक जा वतन-आवारगान-ए-लखनऊ " +udaa-kar-kaag-shiishe-se-mai-e-gul-guun-nikaltii-hai-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +उड़ा कर काग शीशे से मय-ए-गुल-गूँ निकलती है +शराबी जम्अ हैं मय-ख़ाना में टोपी उछलती है +बहार-ए-मय-कशी आई चमन की रुत बदलती है +घटा मस्ताना उठती है हवा मस्ताना चलती है +ज़-ख़ुद-रफ़्ता तबीअत कब सँभाले से सँभलती है +न बन आती है नासेह से न कुछ वाइज़ की चलती है +ये किस की है तमन्ना चुटकियाँ लेती है जो दिल में +ये किस की आरज़ू है जो कलेजे को मसलती है +वो दीवाना है जो इस फ़स्ल में फ़स्दें न खुलवाए +रग-ए-हर-शाख़-ए-गुल से ख़ून की नद्दी उबलती है +सहर होते ही दम निकला ग़श आते ही अजल आई +कहाँ हूँ मैं नसीम-ए-सुब्ह पंखा किस को झलती है +तमत्तो एक का है एक के नुक़साँ से आलम में +कि साया फैलता जाता है जूँ जूँ धूप ढलती है +बिना रक्खी है ग़म पर ज़ीस्त की ये हो गया साबित +न लपका आह का छूटेगा जब तक साँस चलती है +क़रार इक दम नहीं आता है ख़ून-ए-बे-गुनह पी कर +कि अब तो ख़ुद ब-ख़ुद तलवार रह रह कर उगलती है +जहन्नम की न आँच आएगी मय-ख़्वारों पे ओ वाइज़ +शराब आलूदा हो जो शय वो कब आतिश में जलती है +न दिखलाना इलाही एक आफ़त है शब-ए-फ़ुर्क़त +न जो काटे से कटती है न जो टाले से टलती है +ये अच्छा शुग़्ल वहशत में निकाला तू ने ऐ 'हैदर' +गरेबाँ में उलझने से तबीअत तो बहलती है " +is-vaaste-adam-kii-manzil-ko-dhuundte-hain-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +इस वास्ते अदम की मंज़िल को ढूँडते हैं +मुद्दत से दोस्तों की महफ़िल को ढूँडते हैं +ये दिल के पार हो कर फिर दिल को ढूँडते हैं +तीर-ए-निगाह उस के बिस्मिल को ढूँडते हैं +इक लहर में न थे हम क्यूँ ऐ हबाब देखा +यूँ आँख बंद कर के साहिल को ढूँडते हैं +तर्ज़-ए-करम की शाहिद हैं मेवा-दार शाख़ें +इस तरह सर झुका कर साइल को ढूँडते हैं +है वस्ल ओ हिज्र अपना ऐ क़ैस तुर्फ़ा-मज़मूँ +महमिल में बैठे हैं और महमिल को ढूँडते हैं +तूल-ए-अमल का रस्ता मुमकिन नहीं कि तय हो +मंज़िल पे भी पहुँच कर मंज़िल को ढूँडते हैं +हसरत शबाब की है अय्याम-ए-शेब में भी +मादूम की हवस है ज़ाइल को ढूँडते हैं +उठते हैं वलवले कुछ हर बार दर्द बन कर +क्या जानिए जिगर को या दिल को ढूँडते हैं +ज़ख़्म-ए-जिगर का मेरे है रश्क दोस्तों को +मरता हूँ मैं कि ये क्यूँ क़ातिल को ढूँडते हैं +अहल-ए-हवस की कश्ती यक बाम ओ दो हवा है +दरिया-ए-इश्क़ में भी साहिल को ढूँडते हैं +आया जो रहम मुझ पर इस में भी चाल है कुछ +सीने पे हाथ रख कर अब दिल को ढूँडते हैं +करते हैं कार-ए-फ़रहाद आसाँ ज़मीन में भी +मुश्किल-पसंद हैं हम मुश्किल को ढूँडते हैं +ऐ ख़िज़्र पय-ए-ख़जिस्ता बहर-ए-ख़ुदा करम ���र +भटके हुए मुसाफ़िर मंज़िल को ढूँडते हैं +दिल-ख़्वाह तेरे इश्वे दिल-जू तिरे इशारे +वो दिल टटोलते हैं ये दिल को ढूँडते हैं +ऐ 'नज़्म' क्या बताएँ हज्ज-ओ-तवाफ़ अपना +काबे में भी किसी की महमिल को ढूँडते हैं " +subha-hai-zunnaar-kyuun-kaisii-kahii-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +सुब्हा है ज़ुन्नार क्यूँ कैसी कही +ज़ाहिद-ए-अय्यार क्यूँ कैसी कही +कट गए अग़्यार क्यूँ कैसी कही +छा गई हर बार क्यूँ कैसी कही +हैं ये सब इक़रार झूटे या नहीं +कीजिए इक़रार क्यूँ कैसी कही +रूठने से आप का मतलब ये है +इस को आए प्यार क्यूँ कैसी कही +कह दिया मैं ने सहर है झूट-मूट +हो गए बेदार क्यूँ कैसी कही +एक तो कहते हैं सदहा भपतियाँ +और फिर इसरार क्यूँ कैसी कही +नासेहा ये बहस दीवानों के साथ +अक़्ल की है मार क्यूँ कैसी कही +या ख़फ़ा थे या ज़रा सी बात पर +हो गई बौछार क्यूँ कैसी कही +मुझ से बैअत कर ले तू भी वाइज़ा +हाथ लाना यार क्यूँ कैसी कही +सुर्मा दे कर दिल के लेने का है क़स्द +आँख तो कर चार क्यूँ कैसी कही +जान दे दे चल के दर पर यार के +ओ दिल-ए-बीमार क्यूँ कैसी कही +क्या ही बिगड़े हो पत्ते की बात पर +हो गए बेज़ार क्यूँ कैसी कही +अब तो 'हैदर' और ही कुछ रंग हैं +मानता हूँ यार क्यूँ कैसी कही " +ehsaan-le-na-himmat-e-mardaana-chhod-kar-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +एहसान ले न हिम्मत-ए-मर्दाना छोड़ कर +रस्ता भी चल तू सब्ज़ा-ए-बेगाना छोड़ कर +मरने के बा'द फिर नहीं कोई शरीक-ए-हाल +जाता है शम-ए-कुश्ता को परवाना छोड़ कर +होंटों पे आज तक हैं शब-ए-ऐश के मज़े +साक़ी का लब लिया लब-ए-पैमाना छोड़ कर +अफ़ई नहीं खुली हुई ज़ुल्फ़ों का अक्स है +जाते कहाँ हो आईना ओ शाना छोड़ कर +तूल-ए-अमल पे दिल न लगाना कि अहल-ए-बज़्म +जाएँगे ना-तमाम ये अफ़्साना छोड़ कर +लबरेज़ जाम-ए-उम्र हुआ आ गई अजल +लो उठ गए भरा हुआ पैमाना छोड़ कर +उस पीर-ज़ाल-ए-दहर की हम ठोकरों में हैं +जब से गई है हिम्मत-ए-मर्दाना छोड़ कर +पहरों हमारा आप में आना मुहाल है +कोसों निकल गया दिल-ए-दीवाना छोड़ कर +उतरा जो शीशा ताक़ से ज़ाहिद का है ये हाल +करता है रक़्स सज्दा-ए-शुकराना छोड़ कर +ये सुमअ'-ओ-रिया तो निशानी है कुफ़्र की +ज़ुन्नार बाँध सुब्हा-ए-सद-दाना छोड़ कर +रिंदान-ए-मय-कदा भी हैं ऐ ख़िज़्र मुंतज़िर +बस्ती में आइए कभी वीराना छोड़ कर +एहसान सर पे लग़्ज़िश-ए-मस्ताना का हुआ +हम दो क़दम न जा सके मय-ख़ाना छोड़ कर +वादी बहुत मुहीब है बीम-ओ-उमीद का +देखेंगे शेर पर दिल-ए-दीवाना छोड��� कर +रो रो के कर रही है सुराही विदाअ' उसे +जाता है दूर दूर जो पैमाना छोड़ कर +तौबा तो की है 'नज़्म' बिना होगी किस तरह +क्यूँ-कर जिओगे मशरब-ए-रिंदाना छोड़ कर " +abas-hai-naaz-e-istignaa-pe-kal-kii-kyaa-khabar-kyaa-ho-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +अबस है नाज़-ए-इस्तिग़्ना पे कल की क्या ख़बर क्या हो +ख़ुदा मालूम ये सामान क्या हो जाए सर क्या हो +ये आह-ए-बे-असर क्या हो ये नख़्ल-ए-बे-समर क्या हो +न हो जब दर्द ही या-रब तो दिल क्या हो जिगर क्या हो +जहाँ इंसान खो जाता हो ख़ुद फिर उस की महफ़िल में +रसाई किस तरह हो दख़्ल क्यूँकर हो गुज़र क्या हो +न पूछूँगा मैं ये भी जाम में है ज़हर या अमृत +तुम्हारे हाथ से अंदेशा-ए-नफ़-ओ-ज़रर क्या हो +मुरव्वत से हो बेगाना वफ़ा से दूर हो कोसों +ये सच है नाज़नीं हो ख़ूबसूरत हो मगर क्या हो +शगूफ़े देख कर मुट्ठी में ज़र को मुस्कुराते हैं +कि जब उम्र इस क़दर कोताह रखते हैं तो ज़र क्या हो +रहा करती है ये हैरत मुझे ज़ुहद-ए-रियाई पर +ख़ुदा से जो नहीं डरता उसे बंदे का डर क्या हो +कहा मैं ने कि 'नज़्म'-ए-मुब्तला मरता है हसरत में +कहा उस ने अगर मर जाए तो मेरा ज़रर क्या हो +कहा मैं ने कि है सोज़-ए-जिगर और उफ़ नहीं करता +कहा इस की इजाज़त ही नहीं फिर नौहागर क्या हो +कहा मैं ने कि दे उस को इजाज़त आह करने की +कहा उस ने भड़क उठ्ठे अगर सोज़-ए-जिगर क्या हो +कहा मैं ने कि आँसू आँख का लेकिन नहीं थमता +कहा आँखें कोई तलवों से मल डाले अगर क्या हो +कहा मैं ने क़दम भर पर है वो सूरत दिखा आओ +कहा मुँह फेर कर इतना किसी को दर्द-ए-सर क्या हो +कहा मैं ने असर मुतलक़ नहीं क्या संग-दिल है तू +कहा जब दिल हो पत्थर का तो पत्थर पर असर क्या हो +कहा मैं ने जो मर जाए तो क्या हो सोच तू दिल में +कहा ना-आक़िबत-अँदेश ने कुछ सोच कर क्या हो +कहा मैं ने ख़बर भी है कि दी जाँ उस ने घुट घट कर +कहा मर जाए चुपके से तो फिर मुझ को ख़बर क्या हो " +koii-mai-de-yaa-na-de-ham-rind-e-be-parvaa-hain-aap-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +कोई मय दे या न दे हम रिंद-ए-बे-पर्वा हैं आप +साक़िया अपनी बग़ल में शीशा-ए-सहबा हैं आप +ग़ाफ़िल ओ होश्यार वो तिमसाल-ए-यक-आईना हैं +वर्ता-ए-हैरत में नादाँ आप हैं दाना हैं आप +क्यूँ रहे मेरी दुआ मिन्नत-कश-ए-बाल-ए-मलक +नाला-ए-मस्ताना मेरे आसमाँ-पैमा हैं आप +है तअ'ज्जुब ख़िज़्र को और आब-ए-हैवाँ की तलब +और फिर उज़्लत-गुज़ीन-ए-दामन-ए-सहरा हैं आप +मंज़िल-ए-तूल-ए-अमल दरपेश और मोहलत है कम +राह किस से पूछिए हैरत में नक़्श-ए-पा हैं आप +ह��़ से तालिब दीद के हों हम बसीर ऐसे नहीं +हम को जो कोतह-नज़र समझें वो ना-बीना हैं आप +गुल हमा-तन-ज़ख़्म हैं फिर भी हमा-तन-गोश हैं +बे-असर कुछ नाला-हा-ए-बुलबुल-ए-शैदा हैं आप +हिर्स से शिकवा करूँ क्या हाथ फैलाने का मैं +कहती है वो अपने हाथों ख़ल्क़ में रुस्वा हैं आप +हम से ऐ अहल-ए-तन'अउम मुँह छुपाना चाहिए +दम भरा करते हैं हम और आइना-सीमा हैं आप " +pursish-jo-hogii-tujh-se-jallaad-kyaa-karegaa-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +पुर्सिश जो होगी तुझ से जल्लाद क्या करेगा +ले ख़ून मैं ने बख़्शा तू याद क्या करेगा +हूँ दाम में पुर-अफ़्शाँ और सादगी से हैराँ +क्यूँ तेज़ की हैं छुरियाँ सय्याद क्या करेगा +ज़ालिम ये सोच कर अब देता है बोसा-ए-लब +जब होंट सी दिए फिर फ़रियाद क्या करेगा +ज़ंजीर तार-ए-दामाँ है तौक़ इक गरेबाँ +ज़ोर-ए-जुनूँ न कम हो हद्दाद क्या करेगा +हम डूब कर मरेंगे हसरत रहेगी तुझ को +जब ख़ाक ही न होगी बर्बाद क्या करेगा +याक़ूब क़त्अ कर दें उम्मीद-ए-वस्ल दिल से +यूसुफ़ सा बंदा कोई आज़ाद क्या करेगा +दिल ले के पूछता है तू किस का शेफ़्ता है +भूला अभी से ज़ालिम फिर याद क्या करेगा +ऐ ख़त्त-ए-ब्याज़ आरिज़ दरकार है जो तुझ को +तहरीर हुस्न की कुछ रूदाद क्या करेगा +कुंज-ए-क़फ़स से इक दिन होगी रिहाई अपनी +मर जाएँगे तो आख़िर सय्याद किया करेगा +मिस्ल-ए-सिपंद दिल है बेताब सोज़-ए-ग़म में +रह जाएगा तड़प कर फ़रियाद क्या करेगा +ऐ शैख़ भर गया है क्यूँ वाज़ की हवा में +रीश-ए-सफ़ेद अपनी बर्बाद क्या करेगा +ज़ुल्म-ओ-सितम से भी अब ज़ालिम ने हाथ खींचा +इस से सितम वो बढ़ कर ईजाद क्या करेगा +अज़-बस-कि बे-हुनर हूँ मैं नंग-ए-मो'तरिज़ हूँ +मज़मूँ पे मेरे कोई ईराद क्या करेगा +ऐ ''नज़्म'' जिस को चाहे वो दे बहिश्त दोज़ख़ +नमरूद क्या करेगा शद्दाद क्या करेगा " +kyaa-kaarvaan-e-hastii-guzraa-ravaa-ravii-men-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +क्या कारवान-ए-हस्ती गुज़रा रवा-रवी में +फ़र्दा को मैं ने देखा गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-दी में +थे महव लाला-ओ-गुल किस कैफ़-ए-बे-ख़ुदी में +ज़ख़्म-ए-जिगर के टाँके टूटे हँसी हँसी में +यारान-ए-बज़्म-ए-इशरत ढूँडूँ कहाँ मैं तुम को +तारों की छाँव में या पिछले की चाँदनी में +हर उक़्दा में जहाँ के पोशीदा है कशाकश +है मौज-ए-ख़ंदा-ए-गुल पिन्हाँ कली कली में +ज़ख़्मों में ख़ुद चमक है और उस पे ये सितम है +रंग-ए-परीदा से मैं रहता हूँ चाँदनी में +हम किस शुमार में थे पुर्सिश जो हम से होती +ये इम्तियाज़ पाया आशोब-ए-आगही में +हुक्म-ए-क़ज़ा हो जैसा सरज़द हो फ़ेअ'ल वैसा +बंदा का दख़्ल भी है फिर इस कही बदी में +रफ़्तार-ए-साया को है पस्त-ओ-बुलंद यकसाँ +ठोकर कभी न खाए राह-ए-फ़रोतनी में +वज्द आ गया फ़लक को ग़श आ गया ज़मीं को +दो तरह के असर थे इक सौत-ए-सरमदी में +ताबीर उस की शायद एक वापसीं नफ़स हो +जो ख़्वाब देखते थे हम सारी ज़िंदगी में +लाई हुबाब तक को सैल-ए-फ़ना बहा कर +इक आह खींचने को इक दम की ज़िंदगी में +महशर की आफ़तों का धड़का नहीं रहा अब +सौ हश्र मैं ने देखे दो दिन की ज़िंदगी में +पहलू में तू हो ऐ दिल फिर हसरतें हज़ारों +किस बात की कमी है तेरी सलामती में +पुर्सान-ए-हाल वो हो और सामने बुला कर +क्या जानिए ज़बाँ से क्या निकले बे-ख़ुदी में +तू एक ज़िल्ल-ए-हस्ती फिर कैसी ख़ुद-परस्ती +साया की परवरिश है दामान-ए-बे-ख़ुदी में +हाएल बस इक नफ़स है महशर में और हम में +पर्दा हबाब का है फ़र्दा में और दी में +आँखें दिखा रही है दिन से मुझे शब-ए-ग़म +आसार तीरगी के हैं दिन की रौशनी में +तू ने तो अपने दर से मुझ को उठा दिया है +परछाईं फिर रही है मेरी उसी गली में +सज्दा का हुक्म मुझ को तू ने तो अब दिया है +पहले ही लिख चुका हूँ मैं ख़त्त-ए-बंदगी में +ऐ 'नज़्म' छेड़ कर हम तुझ को हुए पशेमाँ +क्या जानते थे ज़ालिम रो देगा दिल-लगी में " +ye-aah-e-be-asar-kyaa-ho-ye-nakhl-e-be-samar-kyaa-ho-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +ये आह-ए-बे-असर क्या हो ये नख़्ल-ए-बे-समर क्या हो +न हो जब दर्द ही यारब तो दिल क्या हो जिगर क्या हो +बग़ल-गीर आरज़ू से हैं मुरादें आरज़ू मुझ से +यहाँ इस वक़्त तो इक ईद है तुम जल्वा-गर क्या हो +मुक़द्दर में ये लिक्खा है कटेगी उम्र मर-मर कर +अभी से मर गए हम देखिए अब उम्र भर क्या हो +मुरव्वत से हो बेगाना वफ़ा से दूर हो कोसों +ये सच है नाज़नीं हो ख़ूबसूरत हो मगर क्या हो +लगा कर ज़ख़्म में टाँके क़ज़ा तेरी न आ जाए +जो वो सफ़्फ़ाक सुन पाए बता ऐ चारा-गर क्या हो +क़यामत के बखेड़े पड़ गए आते ही दुनिया में +ये माना हम ने मर जाना तो मुमकिन है मगर क्या हो +कहा मैं ने कि 'नज़्म'-ए-मुब्तला मरता है हसरत में +कहा उस ने अगर मर जाए तो मेरा ज़रर क्या हो " +ye-huaa-maaal-hubaab-kaa-jo-havaa-men-bhar-ke-ubhar-gayaa-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +ये हुआ मआल हुबाब का जो हवा में भर के उभर गया +कि सदा है लुतमा-ए-मौज की सर-ए-पुर-ग़ुरूर किधर गया +मुझे जज़्ब-ए-दिल ने ऐ जुज़ बहक के रखा क़दम कोई +मुझे पर लगाए शौक़ ने कहीं थक के मैं जो ठहर गया +मुझे पीरी और शबाब में जो है इम्तियाज़ तो इस क़दर +कोई झोंका बाद-ए-सहर का था मिरे पास से जो गुज़र गया +असर उस के इश्वा-ए-नाज़ का जो हुआ वो किस से बयाँ करूँ +मुझे तो अजल की है आरज़ू उसे वहम है कि ये मर गया +तुझे ऐ ख़तीब-ए-चमन नहीं ख़बर अपने ख़ुत्बा-ए-शौक़ में +कि किताब-ए-गुल का वरक़ वरक़ तिरी बे-ख़ुदी से बिखर गया +किसे तू सुनाता है हम-नशीं कि है इश्वा-ए-दुश्मन-ए-अक़्ल-ओ-दीं +तिरे कहने का है मुझे यक़ीं मैं तिरे डराने से डर गया +करूँ ज़िक्र क्या मैं शबाब का सुने कौन क़िस्सा ये ख़्वाब का +ये वो रात थी कि गुज़र गई ये वो नश्शा था कि उतर गया +दिल-ए-ना-तवाँ को तकान हो मुझे उस की ताब न थी ज़रा +ग़म-ए-इंतिज़ार से बच गया था नवेद-ए-वस्ल से मर गया +मिरे सब्र-ओ-ताब के सामने न हुजूम-ए-ख़ौफ़-ओ-रजा रहा +वो चमक के बर्क़ रह गई वो गरज के अब्र गुज़र गया +मुझे बहर-ए-ग़म से उबूर की नहीं फ़िक्र ऐ मिरे चारा-गर +नहीं कोई चारा-कार अब मिरे सर से आब गुज़र गया +मुझे राज़-ए-इश्क़ के ज़ब्त में जो मज़ा मिला है न पूछिए +मय-ए-अँगबीं का ये घूँट था कि गले से मेरे उतर गया +नहीं अब जहान में दोस्ती कभी रास्ते में जो मिल गए +नहीं मतलब एक को एक से ये इधर चला वो उधर गया +अगर आ के ग़ुस्सा नहीं रहा तो लगी थी आग कि बुझ गई +जो हसद का जोश फ़रो हुआ तो ये ज़हर चढ़ के उतर गया +तुझे 'नज़्म' वादी-ए-शौक़ में अबस एहतियात है इस क़दर +कहीं गिरते गिरते सँभल गया कहीं चलते चलते ठहर गया " +phirii-huii-mirii-aankhen-hain-teg-zan-kii-taraf-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +फिरी हुई मिरी आँखें हैं तेग़-ज़न की तरफ़ +चला है छोड़ के बिस्मिल मुझे हिरन की तरफ़ +बनाया तोड़ के आईना आईना-ख़ाना +न देखी राह जो ख़ल्वत से अंजुमन की तरफ़ +रह-ए-वफ़ा को न छोड़ा वो अंदलीब हूँ मैं +छुटा क़फ़स से तो पर्वाज़ की चमन की तरफ़ +गुरेज़ चाहिए तूल-ए-अमल से सालिक को +सुना है राह ये जाती है राहज़न की तरफ़ +सरा-ए-दहर में सोओगे ग़ाफ़िलो कब तक +उठो तो क्या तुम्हें जाना नहीं वतन की तरफ़ +जो अहल-ए-दिल हैं अलग हैं वो अहल-ए-ज़ाहिर से +न मैं हूँ शैख़ की जानिब न बरहमन की तरफ़ +जहान-ए-हादसा-आगीन में बशर का वरूद +गुज़र हबाब का दरिया-ए-मौजज़न की तरफ़ +इसी उमीद पे हम दिन ख़िज़ाँ के काटते हैं +कभी तो बाद-ए-बहार आएगी चमन की तरफ़ +बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की +सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़ +गवाह कौन मिरे क़त्ल का हो महशर में +अभी से सारा ज़माना है तेग़-ज़न की तरफ़ +ख़बर दी उठ के क़यामत ने उस के आने की +ख़ुदा ही ख़ैर करे रुख़ है अंजुमन की तरफ़ +वो अपने रुख़ की सबाहत को आप देखते हैं +झुके हुए गुल-ए-नर्गिस हैं यासमन की तरफ़ +तमाम बज़्म है क्या महव उस की बातों में +नज़र दहन की तरफ़ कान है सुख़न की तरफ़ +असीर हो गया दिल गेसुओं में ख़ूब हुआ +चला था डूब के मरने चह-ए-ज़क़न की तरफ़ +ये मय-कशों की अदा अब्र-ए-तर भी सीख गए +किनार-ए-जू से जो उठ्ठे चले चमन की तरफ़ +ज़हे-नसीब जो हो कर्बला की मौत ऐ 'नज़्म' +कि उड़ के ख़ाक-ए-शिफ़ा आए ख़ुद कफ़न की तरफ़ " +tanhaa-nahiin-huun-gar-dil-e-diivaana-saath-hai-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +तन्हा नहीं हूँ गर दिल-ए-दीवाना साथ है +वो हर्ज़ा-गर्द हूँ कि परी-ख़ाना साथ है +हंगामा इक परी की सवारी का देखना +क्या धूम है कि सैकड़ों दीवाना साथ है +दिल में हैं लाख तरह के हीले भरे हुए +फिर मशवरा को आईना ओ शाना साथ है +रोज़-ए-सियह में साथ कोई दे तो जानिए +जब तक फ़रोग़-ए-शम्अ है परवाना साथ है +देता नहीं है साथ तही-दस्त का कोई +जब तक कि मय है शीशे में पैमाना साथ है +सीखा हूँ मै-कदे में तरीक़-ए-फ़रोतनी +जब तक कि सर है सज्दा-ए-शुकराना साथ है +जो बे-बसर हैं ढूँडते फिरते हैं दूर दूर +और हर क़दम पे जल्वा-ए-जानाना साथ है +क्या ख़ौफ़ हो हमें ज़न-ए-दुनिया के मक्र का +अपनी मदद को हिम्मत-ए-मर्दाना साथ है +ग़म की किताब से दिल-ए-सद-पारा कम नहीं +जिस बज़्म में गए यही अफ़्साना साथ है +मानिंद-ए-गर्द-बाद हूँ ख़ाना-ब-दोश मैं +सहरा में हूँ मगर मिरा काशाना साथ है " +aa-ke-mujh-tak-kashtii-e-mai-saaqiyaa-ultii-phirii-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +आ के मुझ तक कश्ती-ए-मय साक़िया उल्टी फिरी +आज क्या नद्दी बही उल्टी हवा उल्टी फिरी +आते आते लब पर आह-ए-ना-रसा उल्टी फिरी +वो भी मेरा ही दबाने को गला उल्टी फिरी +मुड़ के देखा उस ने और वार अबरुओं का चल गया +इक छुरी सीधी फिरी और इक ज़रा उल्टी फिरी +ला सका नज़्ज़ारा-ए-रुख़्सार-ए-रौशन की न ताब +जा के आईने पे चेहरे की ज़िया उल्टी फिरी +रास्त-बाज़ों ही को पीसा आसमाँ ने रात दिन +वा-ए-क़िस्मत जब फिरी ये आसिया उल्टी फिरी +जो बड़ा बोल एक दिन बोले थे पेश आया वही +गुम्बद-ए-गर्दूं से टकरा कर सदा उल्टी फिरी +रिज़्क़ खा कर ग़ैर की क़िस्मत का ज़ंबूर-ए-असल +तू ने देखा हल्क़ तक जा कर ग़िज़ा उल्टी फिरी +तू सताइश-गर है उस का जो है तेरा मद्ह-ख़्वाँ +ये तो ऐ मुशफ़िक़ ज़मीर-ए-मर्हबा उल्टी फिरी +जिस पर आई थी तबीअत की उसी ने कुछ न क़द्र +जिंस-ए-दिल मानिंद-ए-जिंस-ए-नारवा उल्टी फि���ी +या तो कुशी डूबती थी या चली साहिल से दूर +वाए नाकामी फिरी भी तो हवा उल्टी फिरी +गिरने वाला है किसी दुश्मन पे क्या तीर-ए-शहाब +आसमाँ तक जा के क्यूँ आह-ए-रसा उल्टी फिरी +जी गया मैं उस के आ जाने से दुश्मन मर गया +देख कर ईसा को बालीं पर क़ज़ा उल्टी फिरी +मर गया बे-मौत मैं आख़िर अजल भी दूर है +कूचा-ए-क़ातिल का बतला कर पता उल्टी फिरी +हिज्र की शब मुझ को उल्टी साँस लेते देख कर +एक ही दम में वहाँ जा कर सबा उल्टी फिरी +है मिरा वीराना-ए-ग़म 'नज़्म' ऐसा हौल-नाक +मौज-ए-सैल आई तो ले कर बोरिया उल्टी फिरी " +junuun-ke-valvale-jab-ghut-gae-dil-men-nihaan-ho-kar-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +जुनूँ के वलवले जब घुट गए दिल में निहाँ हो कर +तो उट्ठे हैं धुआँ हो कर गिरे हैं बिजलियाँ हो कर +कुछ आगे बढ़ चले सामान-ए-राहत ला-मकाँ हो कर +फ़लक पीछे रहा जाता है गर्द-ए-कारवाँ हो कर +किसी दिन तो चले ऐ आसमाँ बाद-ए-मुराद ऐसी +कि उतरें कश्ती-ए-मय पर घटाएँ बादबाँ हो कर +न जाने किस बयाबाँ मर्ग ने मिट्टी नहीं पाई +बगूले जा रहे हैं कारवाँ-दर-कारवाँ हो कर +वफ़ूर-ए-ज़ब्त से बेताबी-ए-दिल बढ़ नहीं सकती +गले तक आ के रह जाते हैं नाले हिचकियाँ हो कर +गुलू-गीर अब तो ऐसा इंक़लाब-ए-रंग-ए-आलम है +कि नग़्मे निकले मिन्क़ार-ए-अनादिल से फ़ुग़ाँ हो कर +जो हो कर अब्र से मायूस ख़ुद सींचे कभी दहक़ाँ +जला दें खेत को पानी की लहरें बिजलियाँ हो कर +जहाँ में वाशुद-ए-ख़ातिर के सामाँ हो गए लाशे +जगह राहत की ना-मुम्किन हुई है ला-मकाँ हो कर +हँसे कोई न बिजली के सिवा इस दार-ए-मातम में +अगर रह जाए सारा खेत किश्त-ए-ज़ाफ़राँ हो कर +अलम में आशियाँ के इस क़दर तिनके चुने मैं ने +कि आख़िर बाइस-ए-तस्कीं हुए हैं आशियाँ हो कर +घटाएँ घिर के क्या क्या हसरत-ए-फ़रहाद पर रोईं +चमन तक आ गईं नहरें पहाड़ों से रवाँ हो कर +दिल-ए-शैदा ने पाया इश्क़ में मेराज का रुत्बा +यहाँ अक्सर बुतों के ज़ुल्म टूटे आसमाँ हो कर +जो डरते डरते दिल से एक हर्फ़-ए-शौक़ निकला था +वो उस के सामने आया ज़बाँ पर दास्ताँ हो कर +निकल आए हैं हर इक़रार में इंकार के पहलू +बना देती हैं हैराँ तेरी बातें मक्र याँ हो कर +नज़ाकत का ये आलम फूल भी तोड़े तो बल खा कर +न जाने दिल मिरा किस तरह तोड़ा पहलवाँ हो कर +तदर्रौ-ओ-कबक पर हँस कर उठ्ठे ख़ुद लड़खड़ाते हैं +सुबुक करते हैं उन को पाएँचे बार-ए-गिराँ हो कर +गला घोंटा है ज़ब्त-ए-ग़म ने कुछ ऐसा कि मुश्किल है +कि निकले मुँह से आ��ाज़-ए-शिकस्त-ए-दिल फ़ुग़ाँ हो कर +पता अंदेशा-ए-सालिक ने पाया मंज़िल-ए-दिल का +तू पल्टा ला-मकाँ से आसमाँ-दर-आसमाँ हो कर +हुई फिर देखिए आ बुस्तन-ए-शादी-ओ-ग़म दुनिया +अभी पैदा हुए थे रंज-ओ-राहत तो अमाँ हो कर +जो निकली होगी कोई आरज़ू तो ये भी निकलेगा +तुम्हारा तीर-ए-हसरत बन गया दिल में निहाँ हो कर +उतर जाएगा तू ओ आफ़्ताब-ए-हुस्न कोठे से +गिरेगा साया-ए-दीवार हम पर आसमाँ हो कर " +yuun-main-siidhaa-gayaa-vahshat-men-bayaabaan-kii-taraf-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़ +हाथ जिस तरह से आता है गरेबाँ की तरफ़ +बैठे बैठे दिल-ए-ग़म-गीं को ये क्या लहर आई +उठ के तूफ़ान चला दीदा-ए-गिर्यां की तरफ़ +देखना लाला-ए-ख़ुद-रौ का लहकना साक़ी +कोह से दौड़ गई आग बयाबाँ की तरफ़ +रो दिया देख के अक्सर मैं बहार-ए-शबनम +हँस दिया देख के अक्सर गुल-ए-ख़ंदाँ की तरफ़ +बात छुपती नहीं पड़ती हैं निगाहें सब की +उस के दामन की तरफ़ मेरे गरेबाँ की तरफ़ +सैकड़ों दाग़-ए-गुनह धो गए रहमत से तिरी +क्या घटा झूम के आई थी गुलिस्ताँ की तरफ़ +चश्म-ए-आईना परेशाँ-नज़री सीख गई +देखता था ये बहुत ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरफ़ +सर झुकाए हुए है 'नज़्म' बसान-ए-ख़ामा +सम्त सज्दे की है तेरी ख़त-ए-फ़रमाँ की तरफ़ " +yuun-to-na-tere-jism-men-hain-ziinhaar-haath-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +यूँ तो न तेरे जिस्म में हैं ज़ीनहार हाथ +देने के ऐ करीम मगर हैं हज़ार हाथ +अंगड़ाइयों में फैलते हैं बार बार हाथ +शीशा की सम्त बढ़ते हैं बे-इख़्तियार हाथ +डूबे हैं तर्क-ए-सइ से अफ़सोस तो ये है +साहिल था हाथ भर पे लगाते जो चार हाथ +आती है जब नसीम तो कहती है मौज-ए-बहर +यूँ आबरू समेट अगर हों हज़ार हाथ +दरपय हैं मेरे क़त्ल के अहबाब और मैं +ख़ुश हूँ कि मेरे ख़ून में रंगते हैं यार हाथ +दामन-कशाँ चली है बदन से निकल के रूह +खिंचते हैं फैलते हैं जो यूँ बार बार हाथ +मिटता नहीं नविश्ता-ए-क़िस्मत किसी तरह +पत्थर से सर को फोड़ कि ज़ानू पे मार हाथ +साक़ी सँभालना कि है लबरेज़ जाम-ए-मय +लग़्ज़िश है मेरे पाँव में और राशा-दार हाथ +मुतरिब से पूछ मसअला-ए-जब्र-ओ-इख़्तियार +क्या ताल सम पे उठते हैं बे-इख़्तियार हाथ +मैं और हूँ अलाएक-ए-दुनिया के दाम में +मेरा न एक हाथ न उस के हज़ार हाथ +ऐ 'नज़्म' वस्ल में भी रहा तू न चैन से +दिल को हुआ क़रार तो है बे-क़रार हाथ " +is-mahiina-bhar-kahaan-thaa-saaqiyaa-achchhii-tarah-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +इस महीना भर कहाँ था साक़िया अच्छी तरह +आ इधर आ ईद तो मिल लें ज़रा अच्छी तरह +उँगलियाँ कानों में रख कर ऐ मुसाफ़िर सुन ज़रा +आ रही है साफ़ आवाज़-ए-दरा अच्छी तरह +चश्म-ए-मूसा ला सकी इक उस के जल्वे की न ताब +चश्म-ए-दिल से जिस को देखा बार-हा अच्छी तरह +फ़ासला ऐसा नहीं कुछ अर्श की ज़ंजीर से +क्या कहूँ बढ़ता नहीं दस्त-ए-दुआ अच्छी तरह +अहल-ए-सूरत को नहीं है अच्छी सीरत से ग़रज़ +अच्छी सूरत चाहिए अच्छी अदा अच्छी तरह +शाहिदान-ए-लाला-ओ-गुल की ख़बर लाई है कुछ +साल भर के ब'अद आई ऐ सबा अच्छी तरह +सीख लेगी बल की लेना ता-कमर आने तो दो +बल अभी करती नहीं ज़ुल्फ़-ए-दोता अच्छी तरह +शीशा-ओ-जाम-ओ-सुबू भर ले मय-ए-गुल-रंग से +आज साक़ी घिर के आई है घटा अच्छी तरह +लेते हैं अहल-ए-जुनूँ क्या क्या तसव्वुर के मज़े +आँख से परियों को देखा बार-हा अच्छी तरह +दे रही है उस की ख़ामोशी सदा-ए-दूर-बाश +ये नहीं कहता कि 'नज़्म'-ए-मुब्तला अच्छी तरह " +aa-gayaa-phir-ramazaan-kyaa-hogaa-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +आ गया फिर रमज़ाँ क्या होगा +हाए ऐ पीर-ए-मुग़ाँ क्या होगा +बाग़-ए-जन्नत में समाँ क्या होगा +तू नहीं जब तो वहाँ क्या होगा +ख़ुश वो होता है मिरे नालों से +और अंदाज़-ए-फ़ुग़ाँ क्या होगा +दूर की राह है सामाँ हैं बड़े +इतनी मोहलत है कहाँ क्या होगा +देख लो रंग-ए-परीदा को मिरे +दिल जलेगा तो धुआँ क्या होगा +होगा बस एक निगह में जो तमाम +वो ब-हसरत निगराँ क्या होगा +हम ने माना कि मिला मुल्क-ए-जहाँ +न रहे हम तो जहाँ क्या होगा +मर के जब ख़ाक में मिलना ठहरा +फिर ये तुर्बत का निशाँ क्या होगा +जिस तरह दिल हुआ टुकड़े अज़-ख़ुद +चाक इस तरह कताँ क्या होगा +या तिरा ज़िक्र है या नाम तिरा +और फिर विर्द-ए-ज़बाँ क्या होगा +इश्क़ से बाज़ न आना 'हैदर' +राज़ होने दे अयाँ क्या होगा " +kyaa-kahen-kis-se-pyaar-kar-baithe-syed-ali-haider-taba-tabai-ghazals," +क्या कहें किस से प्यार कर बैठे +अपने दिल को फ़िगार कर बैठे +सब्र की इक क़बा जो बाक़ी थी +उस को भी तार तार कर बैठे +आज फिर उन की आमद आमद है +हम ख़िज़ाँ को बहार कर बैठे +वाए उस बुत का वा'दा-ए-फ़र्दा +उम्र भर इंतिज़ार कर बैठे +ख़ुद जो ग़म हैं तो आइना हैराँ +किस ग़ज़ब का सिंघार कर बैठे +हम तही-दस्त तुझ को क्या देते +जान तुझ पर निसार कर बैठे " +nadaamat-hai-banaa-kar-is-chaman-men-aashiyaan-mujh-ko-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +नदामत है बना कर इस चमन में आशियाँ मुझ को +मिला हमदम यहाँ कोई न कोई हम-ज़बाँ मुझ को +दिखाए जा रवानी तौसन-ए-उम्र-ए-रवाँ मुझ को +हिलाल-ए-बर्क़ से रख हम-रिकाब-ओ-हम-इनाँ मुझ को +बनाया ना-तवानी ने सुलैमान-ए-ज़माँ ��ुझ को +उड़ा कर ले चले मौज-ए-नसीम-ए-बोस्ताँ मुझ को +दम-ए-सुब्ह-ए-अज़ल से मैं नवा-संजों में हूँ तेरे +बताया बुलबुल-ए-सिदरा ने अंदाज़-ए-फ़ुग़ाँ मुझ को +मिरी बातों में क्या मालूम कब सोए वो कब जागे +सिरे से इस लिए कहनी पड़ी फिर दास्ताँ मुझ को +बहा कर क़ाफ़िला से दूर जिस्म-ए-ज़ार को फेंका +कि मौज-ए-सैल थी बाँग-ए-दरा-ए-कारवाँ मुझ को +ये दिल की बे-क़रारी ख़ाक हो कर भी न जाएगी +सुनाती है लब-ए-साहिल से ये रेग-ए-रवाँ मुझ को +उड़ाई ख़ाक जिस सहरा में तेरे वास्ते मैं ने +थका-माँदा मिला इन मंज़िलों में आसमाँ मुझ को +तसव्वुर शम्अ का जिस को जिला दे हूँ वो परवाना +लग उट्ठी आग दिल में जब नज़र आया धुआँ मुझ को +वो जिस आलम में जा पहुँचा वहाँ मैं किस तरह जाऊँ +हुआ दिल आप से बाहर पिन्हा कर बेड़ियाँ मुझ को +ग़ुबार-ए-राह से ऐ 'नज़्म' ये आवाज़ आती है +गई ऐ उम्र-ए-रफ़्ता तू किधर फेंका कहाँ मुझ को " +kisii-se-bas-ki-umiid-e-kushuud-e-kaar-nahiin-nazm-tabaa-tabaaii-ghazals," +किसी से बस कि उमीद-ए-कुशूद-ए-कार नहीं +मुझे अजल के भी आने का ए'तिबार नहीं +जवाब नामे का क़ासिद मज़ार पर लाया +कि जानता था उसे ताब-ए-इंतिज़ार नहीं +ये कह के उठ गई बालीं से मेरी शम-ए-सहर +तमाम हो गई शब और तुझे क़रार नहीं +जो तू हो पास तो हूर-ओ-क़ुसूर सब कुछ हो +जो तू नहीं तो नहीं बल्कि ज़ीनहार नहीं +ख़िज़ाँ के आने से पहले ही था मुझे मा'लूम +कि रंग-ओ-बू-ए-चमन का कुछ ए'तिबार नहीं +ग़ज़ल कही है कि मोती पिरोए हैं ऐ 'नज़्म' +वो कौन शे'र है जो दुर्र-ए-शाहवार नहीं " +gavaahii-kaise-tuuttii-muaamla-khudaa-kaa-thaa-parveen-shakir-ghazals," +गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था +मिरा और उस का राब्ता तो हाथ और दुआ का था +गुलाब क़ीमत-ए-शगुफ़्त शाम तक चुका सके +अदा वो धूप को हुआ जो क़र्ज़ भी सबा का था +बिखर गया है फूल तो हमीं से पूछ-गछ हुई +हिसाब बाग़बाँ से है किया-धरा हवा का था +लहू-चशीदा हाथ उस ने चूम कर दिखा दिया +जज़ा वहाँ मिली जहाँ कि मरहला सज़ा का था +जो बारिशों से क़ब्ल अपना रिज़्क़ घर में भर चुका +वो शहर-ए-मोर से न था प दूरबीं बला का था " +vo-ham-nahiin-jinhen-sahnaa-ye-jabr-aa-jaataa-parveen-shakir-ghazals," +वो हम नहीं जिन्हें सहना ये जब्र आ जाता +तिरी जुदाई में किस तरह सब्र आ जाता +फ़सीलें तोड़ न देते जो अब के अहल-ए-क़फ़स +तू और तरह का एलान-ए-जब्र आ जाता +वो फ़ासला था दुआ और मुस्तजाबी में +कि धूप माँगने जाते तो अब्र आ जाता +वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया +बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता +वज़ीर ओ शाह भ��� ख़स-ख़ानों से निकल आते +अगर गुमान में अँगार-ए-क़ब्र आ जाता " +apnii-tanhaaii-mire-naam-pe-aabaad-kare-parveen-shakir-ghazals," +अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे +कौन होगा जो मुझे उस की तरह याद करे +दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर इस का +वो मुसाफ़िर इसे हर सम्त से बरबाद करे +अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं +रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे +इतना हैराँ हो मिरी बे-तलबी के आगे +वा क़फ़स में कोई दर ख़ुद मिरा सय्याद करे +सल्ब-ए-बीनाई के अहकाम मिले हैं जो कभी +रौशनी छूने की ख़्वाहिश कोई शब-ज़ाद करे +सोच रखना भी जराएम में है शामिल अब तो +वही मासूम है हर बात पे जो साद करे +जब लहू बोल पड़े उस के गवाहों के ख़िलाफ़ +क़ाज़ी-ए-शहर कुछ इस बाब में इरशाद करे +उस की मुट्ठी में बहुत रोज़ रहा मेरा वजूद +मेरे साहिर से कहो अब मुझे आज़ाद करे " +vo-to-khush-buu-hai-havaaon-men-bikhar-jaaegaa-parveen-shakir-ghazals," +वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा +मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा +हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा +क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा +वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है +एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा +वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए +मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा +आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी +तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा +मुझ को तहज़ीब के बर्ज़ख़ का बनाया वारिस +जुर्म ये भी मिरे अज्दाद के सर जाएगा " +ik-hunar-thaa-kamaal-thaa-kyaa-thaa-parveen-shakir-ghazals," +इक हुनर था कमाल था क्या था +मुझ में तेरा जमाल था क्या था +तेरे जाने पे अब के कुछ न कहा +दिल में डर था मलाल था क्या था +बर्क़ ने मुझ को कर दिया रौशन +तेरा अक्स-ए-जलाल था क्या था +हम तक आया तू बहर-ए-लुत्फ़-ओ-करम +तेरा वक़्त-ए-ज़वाल था क्या था +जिस ने तह से मुझे उछाल दिया +डूबने का ख़याल था क्या था +जिस पे दिल सारे अहद भूल गया +भूलने का सवाल था क्या था +तितलियाँ थे हम और क़ज़ा के पास +सुर्ख़ फूलों का जाल था क्या था " +vaqt-e-rukhsat-aa-gayaa-dil-phir-bhii-ghabraayaa-nahiin-parveen-shakir-ghazals," +वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं +उस को हम क्या खोएँगे जिस को कभी पाया नहीं +ज़िंदगी जितनी भी है अब मुस्तक़िल सहरा में है +और इस सहरा में तेरा दूर तक साया नहीं +मेरी क़िस्मत में फ़क़त दुर्द-ए-तह-ए-साग़र ही है +अव्वल-ए-शब जाम मेरी सम्त वो लाया नहीं +तेरी आँखों का भी कुछ हल्का गुलाबी रंग था +ज़ेहन ने मेरे भी अब के दिल को समझाया नहीं +कान भी ख़ाली हैं मेरे और दोनों हाथ ���ी +अब के फ़स्ल-ए-गुल ने मुझ को फूल पहनाया नहीं " +chalne-kaa-hausla-nahiin-ruknaa-muhaal-kar-diyaa-parveen-shakir-ghazals," +चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया +इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया +ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की +अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया +मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई +उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया +अब के हवा के साथ है दामन-ए-यार मुंतज़िर +बानू-ए-शब के हाथ में रखना सँभाल कर दिया +मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था +हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया +मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो +शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया +चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके +वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया +मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया +मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया " +agarche-tujh-se-bahut-ikhtilaaf-bhii-na-huaa-parveen-shakir-ghazals," +अगरचे तुझ से बहुत इख़्तिलाफ़ भी न हुआ +मगर ये दिल तिरी जानिब से साफ़ भी न हुआ +तअ'ल्लुक़ात के बर्ज़ख़ में ही रखा मुझ को +वो मेरे हक़ में न था और ख़िलाफ़ भी न हुआ +अजब था जुर्म-ए-मोहब्बत कि जिस पे दिल ने मिरे +सज़ा भी पाई नहीं और मुआ'फ़ भी न हुआ +मलामतों में कहाँ साँस ले सकेंगे वो लोग +कि जिन से कू-ए-जफ़ा का तवाफ़ भी न हुआ +अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई +बहुत दिनों से तो ये हौज़ साफ़ भी न हुआ +हवा-ए-दहर हमें किस लिए बुझाती है +हमें तो तुझ से कभी इख़्तिलाफ़ भी न हुआ " +taraash-kar-mire-baazuu-udaan-chhod-gayaa-parveen-shakir-ghazals," +तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया +हवा के पास बरहना कमान छोड़ गया +रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था +ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया +अजीब शख़्स था बारिश का रंग देख के भी +खुले दरीचे पे इक फूल-दान छोड़ गया +जो बादलों से भी मुझ को छुपाए रखता था +बढ़ी है धूप तो बे-साएबान छोड़ गया +निकल गया कहीं अन-देखे पानियों की तरफ़ +ज़मीं के नाम खुला बादबान छोड़ गया +उक़ाब को थी ग़रज़ फ़ाख़्ता पकड़ने से +जो गिर गई तो यूँही नीम-जान छोड़ गया +न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है +कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया +अक़ब में गहरा समुंदर है सामने जंगल +किस इंतिहा पे मिरा मेहरबान छोड़ गया " +kyaa-kare-merii-masiihaaii-bhii-karne-vaalaa-parveen-shakir-ghazals-3," +क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला +ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला +ज़िंदगी से किसी समझौते के बा-वस्फ़ अब तक +याद आता है कोई मारने मरने ���ाला +उस को भी हम तिरे कूचे में गुज़ार आए हैं +ज़िंदगी में वो जो लम्हा था सँवरने वाला +उस का अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा था शायद +बात लगती हुई लहजा वो मुकरने वाला +शाम होने को है और आँख में इक ख़्वाब नहीं +कोई इस घर में नहीं रौशनी करने वाला +दस्तरस में हैं अनासिर के इरादे किस के +सो बिखर के ही रहा कोई बिखरने वाला +इसी उम्मीद पे हर शाम बुझाए हैं चराग़ +एक तारा है सर-ए-बाम उभरने वाला " +kuu-ba-kuu-phail-gaii-baat-shanaasaaii-kii-parveen-shakir-ghazals," +कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की +उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की +कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने +बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की +वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया +बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की +तेरा पहलू तिरे दिल की तरह आबाद रहे +तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की +उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा +रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की +अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है +जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की " +harf-e-taaza-naii-khushbuu-men-likhaa-chaahtaa-hai-parveen-shakir-ghazals," +हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है +बाब इक और मोहब्बत का खुला चाहता है +एक लम्हे की तवज्जोह नहीं हासिल उस की +और ये दिल कि उसे हद से सिवा चाहता है +इक हिजाब-ए-तह-ए-इक़रार है माने वर्ना +गुल को मालूम है क्या दस्त-ए-सबा चाहता है +रेत ही रेत है इस दिल में मुसाफ़िर मेरे +और ये सहरा तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा चाहता है +यही ख़ामोशी कई रंग में ज़ाहिर होगी +और कुछ रोज़ कि वो शोख़ खुला चाहता है +रात को मान लिया दिल ने मुक़द्दर लेकिन +रात के हाथ पे अब कोई दिया चाहता है +तेरे पैमाने में गर्दिश नहीं बाक़ी साक़ी +और तिरी बज़्म से अब कोई उठा चाहता है " +baarish-huii-to-phuulon-ke-tan-chaak-ho-gae-parveen-shakir-ghazals," +बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए +मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गए +बादल को क्या ख़बर है कि बारिश की चाह में +कैसे बुलंद-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गए +जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें +बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए +लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास +सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए +बस्ती में जितने आब-गज़ीदा थे सब के सब +दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गए +सूरज-दिमाग़ लोग भी अबलाग़-ए-फ़िक्र में +ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गए +जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तुगू हुई +लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गए " +bahut-royaa-vo-ham-ko-yaad-kar-ke-parveen-shakir-ghazals," +बहुत रोया वो हम को याद कर के +हमारी ज़��ंदगी बरबाद कर के +पलट कर फिर यहीं आ जाएँगे हम +वो देखे तो हमें आज़ाद कर के +रिहाई की कोई सूरत नहीं है +मगर हाँ मिन्नत-ए-सय्याद कर के +बदन मेरा छुआ था उस ने लेकिन +गया है रूह को आबाद कर के +हर आमिर तूल देना चाहता है +मुक़र्रर ज़ुल्म की मीआ'द कर के " +gulaab-haath-men-ho-aankh-men-sitaara-ho-parveen-shakir-ghazals," +गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो +कोई वजूद मोहब्बत का इस्तिआ'रा हो +मैं गहरे पानी की इस रौ के साथ बहती रहूँ +जज़ीरा हो कि मुक़ाबिल कोई किनारा हो +कभी-कभार उसे देख लें कहीं मिल लें +ये कब कहा था कि वो ख़ुश-बदन हमारा हो +क़ुसूर हो तो हमारे हिसाब में लिख जाए +मोहब्बतों में जो एहसान हो तुम्हारा हो +ये इतनी रात गए कौन दस्तकें देगा +कहीं हवा का ही उस ने न रूप धारा हो +उफ़ुक़ तो क्या है दर-ए-कहकशाँ भी छू आएँ +मुसाफ़िरों को अगर चाँद का इशारा हो +मैं अपने हिस्से के सुख जिस के नाम कर डालूँ +कोई तो हो जो मुझे इस तरह का प्यारा हो +अगर वजूद में आहंग है तो वस्ल भी है +वो चाहे नज़्म का टुकड़ा कि नस्र-पारा हो " +chaarasaazon-kii-aziyyat-nahiin-dekhii-jaatii-parveen-shakir-ghazals," +चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती +तेरे बीमार की हालत नहीं देखी जाती +देने वाले की मशिय्यत पे है सब कुछ मौक़ूफ़ +माँगने वाले की हाजत नहीं देखी जाती +दिन बहल जाता है लेकिन तिरे दीवानों की +शाम होती है तो वहशत नहीं देखी जाती +तमकनत से तुझे रुख़्सत तो किया है लेकिन +हम से इन आँखों की हसरत नहीं देखी जाती +कौन उतरा है ये आफ़ाक़ की पहनाई में +आइना-ख़ाने की हैरत नहीं देखी जाती " +kuchh-to-havaa-bhii-sard-thii-kuchh-thaa-tiraa-khayaal-bhii-parveen-shakir-ghazals," +कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी +दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी +बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की +चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी +सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखता +एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी +दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लें +शीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी +उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था +अब जो पलट के देखिए बात थी कुछ मुहाल भी +मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर +हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी +उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं +उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी +गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब +उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी +उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे +ज��स्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी +शाम की ना-समझ हवा पूछ रही है इक पता +मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी " +paa-ba-gil-sab-hain-rihaaii-kii-kare-tadbiir-kaun-parveen-shakir-ghazals," +पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन +दस्त-बस्ता शहर में खोले मिरी ज़ंजीर कौन +मेरा सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ़ देख ले +कर रहा है मेरी फ़र्द-ए-जुर्म को तहरीर कौन +आज दरवाज़ों पे दस्तक जानी पहचानी सी है +आज मेरे नाम लाता है मिरी ताज़ीर कौन +कोई मक़्तल को गया था मुद्दतों पहले मगर +है दर-ए-ख़ेमा पे अब तक सूरत-ए-तस्वीर कौन +मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में +बे-रिदाई को मिरी फिर दे गया तश्हीर कौन +सच जहाँ पा-बस्ता मुल्ज़िम के कटहरे में मिले +उस अदालत में सुनेगा अद्ल की तफ़्सीर कौन +नींद जब ख़्वाबों से प्यारी हो तो ऐसे अहद में +ख़्वाब देखे कौन और ख़्वाबों को दे ता'बीर कौन +रेत अभी पिछले मकानों की न वापस आई थी +फिर लब-ए-साहिल घरौंदा कर गया ता'मीर कौन +सारे रिश्ते हिजरतों में साथ देते हैं तो फिर +शहर से जाते हुए होता है दामन-गीर कौन +दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं +देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन " +shab-vahii-lekin-sitaara-aur-hai-parveen-shakir-ghazals," +शब वही लेकिन सितारा और है +अब सफ़र का इस्तिआ'रा और है +एक मुट्ठी रेत में कैसे रहे +इस समुंदर का किनारा और है +मौज के मुड़ने में कितनी देर है +नाव डाली और धारा और है +जंग का हथियार तय कुछ और था +तीर सीने में उतारा और है +मत्न में तो जुर्म साबित है मगर +हाशिया सारे का सारा और है +साथ तो मेरा ज़मीं देती मगर +आसमाँ का ही इशारा और है +धूप में दीवार ही काम आएगी +तेज़ बारिश का सहारा और है +हारने में इक अना की बात थी +जीत जाने में ख़सारा और है +सुख के मौसम उँगलियों पर गिन लिए +फ़स्ल-ए-ग़म का गोश्वारा और है +देर से पलकें नहीं झपकीं मिरी +पेश-ए-जाँ अब के नज़ारा और है +और कुछ पल उस का रस्ता देख लूँ +आसमाँ पर एक तारा और है +हद चराग़ों की यहाँ से ख़त्म है +आज से रस्ता हमारा और है " +charaag-e-raah-bujhaa-kyaa-ki-rahnumaa-bhii-gayaa-parveen-shakir-ghazals," +चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया +हवा के साथ मुसाफ़िर का नक़्श-ए-पा भी गया +मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई +वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया +बहुत अज़ीज़ सही उस को मेरी दिलदारी +मगर ये है कि कभी दिल मिरा दुखा भी गया +अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं +वो ताँक-झाँक का मा'सूम सिलसिला भी गया +सब आए मेरी ���यादत को वो भी आया था +जो सब गए तो मिरा दर्द-आश्ना भी गया +ये ग़ुर्बतें मिरी आँखों में कैसी उतरी हैं +कि ख़्वाब भी मिरे रुख़्सत हैं रतजगा भी गया " +bakht-se-koii-shikaayat-hai-na-aflaak-se-hai-parveen-shakir-ghazals," +बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है +यही क्या कम है कि निस्बत मुझे इस ख़ाक से है +ख़्वाब में भी तुझे भूलूँ तो रवा रख मुझ से +वो रवय्या जो हवा का ख़स-ओ-ख़ाशाक से है +बज़्म-ए-अंजुम में क़बा ख़ाक की पहनी मैं ने +और मिरी सारी फ़ज़ीलत इसी पोशाक से है +इतनी रौशन है तिरी सुब्ह कि होता है गुमाँ +ये उजाला तो किसी दीदा-ए-नमनाक से है +हाथ तो काट दिए कूज़ा-गरों के हम ने +मो'जिज़े की वही उम्मीद मगर चाक से है " +rasta-bhii-kathin-dhuup-men-shiddat-bhii-bahut-thii-parveen-shakir-ghazals," +रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी +साए से मगर उस को मोहब्बत भी बहुत थी +खे़मे न कोई मेरे मुसाफ़िर के जलाए +ज़ख़्मी था बहुत पाँव मसाफ़त भी बहुत थी +सब दोस्त मिरे मुंतज़िर-ए-पर्दा-ए-शब थे +दिन में तो सफ़र करने में दिक़्क़त भी बहुत थी +बारिश की दुआओं में नमी आँख की मिल जाए +जज़्बे की कभी इतनी रिफ़ाक़त भी बहुत थी +कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए +और कुछ मिरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी +फूलों का बिखरना तो मुक़द्दर ही था लेकिन +कुछ इस में हवाओं की सियासत भी बहुत थी +वो भी सर-ए-मक़्तल है कि सच जिस का था शाहिद +और वाक़िफ़-ए-अहवाल-ए-अदालत भी बहुत थी +इस तर्क-ए-रिफ़ाक़त पे परेशाँ तो हूँ लेकिन +अब तक के तिरे साथ पे हैरत भी बहुत थी +ख़ुश आए तुझे शहर-ए-मुनाफ़िक़ की अमीरी +हम लोगों को सच कहने की आदत भी बहुत थी " +bajaa-ki-aankh-men-niindon-ke-silsile-bhii-nahiin-parveen-shakir-ghazals," +बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं +शिकस्त-ए-ख़्वाब के अब मुझ में हौसले भी नहीं +नहीं नहीं ये ख़बर दुश्मनों ने दी होगी +वो आए आ के चले भी गए मिले भी नहीं +ये कौन लोग अँधेरों की बात करते हैं +अभी तो चाँद तिरी याद के ढले भी नहीं +अभी से मेरे रफ़ूगर के हाथ थकने लगे +अभी तो चाक मिरे ज़ख़्म के सिले भी नहीं +ख़फ़ा अगरचे हमेशा हुए मगर अब के +वो बरहमी है कि हम से उन्हें गिले भी नहीं " +dhanak-dhanak-mirii-poron-ke-khvaab-kar-degaa-parveen-shakir-ghazals," +धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा +वो लम्स मेरे बदन को गुलाब कर देगा +क़बा-ए-जिस्म के हर तार से गुज़रता हुआ +किरन का प्यार मुझे आफ़्ताब कर देगा +जुनूँ-पसंद है दिल और तुझ तक आने में +बदन को नाव लहू को चनाब कर देगा +मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी +वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा +अना-परस्त है इतना कि बात से पहले +वो उठ के बंद मिरी हर किताब कर देगा +सुकूत-ए-शहर-ए-सुख़न में वो फूल सा लहजा +समाअ'तों की फ़ज़ा ख़्वाब ख़्वाब कर देगा +इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम +सुख़न-वरी में मुझे इंतिख़ाब कर देगा +मिरी तरह से कोई है जो ज़िंदगी अपनी +तुम्हारी याद के नाम इंतिसाब कर देगा " +ab-itnii-saadgii-laaen-kahaan-se-parveen-shakir-ghazals," +अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से +ज़मीं की ख़ैर माँगें आसमाँ से +अगर चाहें तो वो दीवार कर दें +हमें अब कुछ नहीं कहना ज़बाँ से +सितारा ही नहीं जब साथ देता +तो कश्ती काम ले क्या बादबाँ से +भटकने से मिले फ़ुर्सत तो पूछें +पता मंज़िल का मीर-ए-कारवाँ से +तवज्जोह बर्क़ की हासिल रही है +सो है आज़ाद फ़िक्र-ए-आशियाँ से +हवा को राज़-दाँ हम ने बनाया +और अब नाराज़ ख़ुशबू के बयाँ से +ज़रूरी हो गई है दिल की ज़ीनत +मकीं पहचाने जाते हैं मकाँ से +फ़ना-फ़िल-इश्क़ होना चाहते थे +मगर फ़ुर्सत न थी कार-ए-जहाँ से +वगर्ना फ़स्ल-ए-गुल की क़द्र क्या थी +बड़ी हिकमत है वाबस्ता ख़िज़ाँ से +किसी ने बात की थी हँस के शायद +ज़माने भर से हैं हम ख़ुद गुमाँ से +मैं इक इक तीर पे ख़ुद ढाल बनती +अगर होता वो दुश्मन की कमाँ से +जो सब्ज़ा देख कर ख़ेमे लगाएँ +उन्हें तकलीफ़ क्यूँ पहुँचे ख़िज़ाँ से +जो अपने पेड़ जलते छोड़ जाएँ +उन्हें क्या हक़ कि रूठें बाग़बाँ से " +aks-e-khushbuu-huun-bikharne-se-na-roke-koii-parveen-shakir-ghazals," +अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई +और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई +काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में +मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई +जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा +उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई +मैं तो उस दिन से हिरासाँ हूँ कि जब हुक्म मिले +ख़ुश्क फूलों को किताबों में न रक्खे कोई +अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं +अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई +कोई आहट कोई आवाज़ कोई चाप नहीं +दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान हैं आए कोई " +dasne-lage-hain-khvaab-magar-kis-se-boliye-parveen-shakir-ghazals," +डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए +मैं जानती थी पाल रही हूँ संपोलिए +बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की +और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए +पलकों पे कच्ची नींदों का रस फैलता हो जब +ऐसे में आँख धूप के रुख़ कैसे खोलिए +तेरी बरहना-पाई के दुख बाँटते हुए +हम ने ख़ुद अपने पाँव में काँटे चुभो लिए +मैं तेरा नाम ले के तज़ब्ज़ुब ��ें पड़ गई +सब लोग अपने अपने अज़ीज़ों को रो लिए +ख़ुश-बू कहीं न जाए प इसरार है बहुत +और ये भी आरज़ू कि ज़रा ज़ुल्फ़ खोलिए +तस्वीर जब नई है नया कैनवस भी है +फिर तश्तरी में रंग पुराने न घोलिए " +ek-suuraj-thaa-ki-taaron-ke-gharaane-se-uthaa-parveen-shakir-ghazals," +एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा +आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा +किस से पूछूँ तिरे आक़ा का पता ऐ रहवार +ये अलम वो है न अब तक किसी शाने से उठा +हल्क़ा-ए-ख़्वाब को ही गिर्द-ए-गुलू कस डाला +दस्त-ए-क़ातिल का भी एहसाँ न दिवाने से उठा +फिर कोई अक्स शुआ'ओं से न बनने पाया +कैसा महताब मिरे आइना-ख़ाने से उठा +क्या लिखा था सर-ए-महज़र जिसे पहचानते ही +पास बैठा हुआ हर दोस्त बहाने से उठा " +kamaal-e-zabt-ko-khud-bhii-to-aazmaauungii-parveen-shakir-ghazals," +कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी +मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी +सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में +मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी +बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा +मैं दिल में रोऊँगी आँखों में मुस्कुराऊँगी +वो क्या गया कि रिफ़ाक़त के सारे लुत्फ़ गए +मैं किस से रूठ सकूँगी किसे मनाऊँगी +अब उस का फ़न तो किसी और से हुआ मंसूब +मैं किस की नज़्म अकेले में गुनगुनाऊँगी +वो एक रिश्ता-ए-बेनाम भी नहीं लेकिन +मैं अब भी उस के इशारों पे सर झुकाऊँगी +बिछा दिया था गुलाबों के साथ अपना वजूद +वो सो के उट्ठे तो ख़्वाबों की राख उठाऊँगी +समाअ'तों में घने जंगलों की साँसें हैं +मैं अब कभी तिरी आवाज़ सुन न पाऊँगी +जवाज़ ढूँड रहा था नई मोहब्बत का +वो कह रहा था कि मैं उस को भूल जाऊँगी " +qadmon-men-bhii-takaan-thii-ghar-bhii-qariib-thaa-parveen-shakir-ghazals," +क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था +पर क्या करें कि अब के सफ़र ही अजीब था +निकले अगर तो चाँद दरीचे में रुक भी जाए +इस शहर-ए-बे-चराग़ में किस का नसीब था +आँधी ने उन रुतों को भी बे-कार कर दिया +जिन का कभी हुमा सा परिंदा नसीब था +कुछ अपने-आप से ही उसे कश्मकश न थी +मुझ में भी कोई शख़्स उसी का रक़ीब था +पूछा किसी ने मोल तो हैरान रह गया +अपनी निगाह में कोई कितना ग़रीब था +मक़्तल से आने वाली हवा को भी कब मिला +ऐसा कोई दरीचा कि जो बे-सलीब था " +kuchh-faisla-to-ho-ki-kidhar-jaanaa-chaahiye-parveen-shakir-ghazals," +कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए +पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए +नश्तर-ब-दस्त शहर से चारागरी की लौ +ऐ ज़ख़्म-ए-बे-कसी तुझे भर जाना चाहिए +हर बार एड़ियों पे गिरा है मिरा लहू +मक़्तल में अब ब-तर्ज़-���-दिगर जाना चाहिए +क्या चल सकेंगे जिन का फ़क़त मसअला ये है +जाने से पहले रख़्त-ए-सफ़र जाना चाहिए +सारा ज्वार-भाटा मिरे दिल में है मगर +इल्ज़ाम ये भी चाँद के सर जाना चाहिए +जब भी गए अज़ाब-ए-दर-ओ-बाम था वही +आख़िर को कितनी देर से घर जाना चाहिए +तोहमत लगा के माँ पे जो दुश्मन से दाद ले +ऐसे सुख़न-फ़रोश को मर जाना चाहिए " +khulii-aankhon-men-sapnaa-jhaanktaa-hai-parveen-shakir-ghazals," +खुली आँखों में सपना झाँकता है +वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है +तिरी चाहत के भीगे जंगलों में +मिरा तन मोर बन कर नाचता है +मुझे हर कैफ़ियत में क्यूँ न समझे +वो मेरे सब हवाले जानता है +मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो +मुझे मेरी रज़ा से माँगता है +किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल +बहाने से मुझे भी टालता है +सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा +कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है " +justujuu-khoe-huon-kii-umr-bhar-karte-rahe-parveen-shakir-ghazals," +जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे +चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे +रास्तों का इल्म था हम को न सम्तों की ख़बर +शहर-ए-ना-मालूम की चाहत मगर करते रहे +हम ने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को +तेरे जाने की ख़बर दीवार-ओ-दर करते रहे +वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी +इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे +आज आया है हमें भी उन उड़ानों का ख़याल +जिन को तेरे ज़ो'म में बे-बाल-ओ-पर करते रहे " +gae-mausam-men-jo-khilte-the-gulaabon-kii-tarah-parveen-shakir-ghazals," +गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह +दिल पे उतरेंगे वही ख़्वाब अज़ाबों की तरह +राख के ढेर पे अब रात बसर करनी है +जल चुके हैं मिरे ख़ेमे मिरे ख़्वाबों की तरह +साअत-ए-दीद कि आरिज़ हैं गुलाबी अब तक +अव्वलीं लम्हों के गुलनार हिजाबों की तरह +वो समुंदर है तो फिर रूह को शादाब करे +तिश्नगी क्यूँ मुझे देता है सराबों की तरह +ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार +मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह +याद तो होंगी वो बातें तुझे अब भी लेकिन +शेल्फ़ में रक्खी हुई बंद किताबों की तरह +कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े +तेरा मेआ'र बदलता है निसाबों की तरह +शोख़ हो जाती है अब भी तिरी आँखों की चमक +गाहे गाहे तिरे दिलचस्प जवाबों की तरह +हिज्र की शब मिरी तन्हाई पे दस्तक देगी +तेरी ख़ुश-बू मिरे खोए हुए ख़्वाबों की तरह " +ab-bhalaa-chhod-ke-ghar-kyaa-karte-parveen-shakir-ghazals," +अब भला छोड़ के घर क्या करते +शाम के वक़्त सफ़र क्या करते +तेरी मसरूफ़ियतें जानते हैं +अपने आने की ख़बर क्या करते +जब सितारे ही नहीं मिल पाए +ले के हम शम्स-ओ-क़मर क्या करते +वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था +साए फैला के शजर क्या करते +ख़ाक ही अव्वल ओ आख़िर ठहरी +कर के ज़र्रे को गुहर क्या करते +राय पहले से बना ली तू ने +दिल में अब हम तिरे घर क्या करते +इश्क़ ने सारे सलीक़े बख़्शे +हुस्न से कस्ब-ए-हुनर क्या करते " +tuutii-hai-merii-niind-magar-tum-ko-is-se-kyaa-parveen-shakir-ghazals," +टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या +बजते रहें हवाओं से दर तुम को इस से क्या +तुम मौज मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते रहो +कट जाएँ मेरी सोच के पर तुम को इस से क्या +औरों का हाथ थामो उन्हें रास्ता दिखाओ +मैं भूल जाऊँ अपना ही घर तुम को इस से क्या +अब्र-ए-गुरेज़-पा को बरसने से क्या ग़रज़ +सीपी में बन न पाए गुहर तुम को इस से क्या +ले जाएँ मुझ को माल-ए-ग़नीमत के साथ अदू +तुम ने तो डाल दी है सिपर तुम को इस से क्या +तुम ने तो थक के दश्त में खे़मे लगा लिए +तन्हा कटे किसी का सफ़र तुम को इस से क्या " +terii-khushbuu-kaa-pataa-kartii-hai-parveen-shakir-ghazals," +तेरी ख़ुश्बू का पता करती है +मुझ पे एहसान हवा करती है +चूम कर फूल को आहिस्ता से +मोजज़ा बाद-ए-सबा करती है +खोल कर बंद-ए-क़बा गुल के हवा +आज ख़ुश्बू को रिहा करती है +अब्र बरसते तो इनायत उस की +शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है +ज़िंदगी फिर से फ़ज़ा में रौशन +मिशअल-ए-बर्ग-ए-हिना करती है +हम ने देखी है वो उजली साअत +रात जब शेर कहा करती है +शब की तन्हाई में अब तो अक्सर +गुफ़्तुगू तुझ से रहा करती है +दिल को उस राह पे चलना ही नहीं +जो मुझे तुझ से जुदा करती है +ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो +तेरे कहने में रहा करती है +उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख +दिल का अहवाल कहा करती है +मुसहफ़-ए-दिल पे अजब रंगों में +एक तस्वीर बना करती है +बे-नियाज़-ए-कफ़-ए-दरिया अंगुश्त +रेत पर नाम लिखा करती है +देख तू आन के चेहरा मेरा +इक नज़र भी तिरी क्या करती है +ज़िंदगी भर की ये ताख़ीर अपनी +रंज मिलने का सिवा करती है +शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद +कूचा-ए-जाँ में सदा करती है +मसअला जब भी चराग़ों का उठा +फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है +मुझ से भी उस का है वैसा ही सुलूक +हाल जो तेरा अना करती है +दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ +बात कुछ और हुआ करती है " +duaa-kaa-tuutaa-huaa-harf-sard-aah-men-hai-parveen-shakir-ghazals," +दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है +तिरी जुदाई का मंज़र अभी निगाह में है +तिरे बदलने के बा-वस्फ़ तुझ को चाहा है +ये ए'तिराफ़ भी शामिल मिरे गुनाह में है +अज़ा��� देगा तो फिर मुझ को ख़्वाब भी देगा +मैं मुतमइन हूँ मिरा दिल तिरी पनाह में है +बिखर चुका है मगर मुस्कुरा के मिलता है +वो रख रखाव अभी मेरे कज-कुलाह में है +जिसे बहार के मेहमान ख़ाली छोड़ गए +वो इक मकान अभी तक मकीं की चाह में है +यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था +हमारी साल-गिरह ठीक अब के माह में है +मैं बच भी जाऊँ तो तन्हाई मार डालेगी +मिरे क़बीले का हर फ़र्द क़त्ल-गाह में है " +teraa-ghar-aur-meraa-jangal-bhiigtaa-hai-saath-saath-parveen-shakir-ghazals," +तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ +ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ +बचपने का साथ है फिर एक से दोनों के दुख +रात का और मेरा आँचल भीगता है साथ साथ +वो अजब दुनिया कि सब ख़ंजर-ब-कफ़ फिरते हैं और +काँच के प्यालों में संदल भीगता है साथ साथ +बारिश-ए-संग-ए-मलामत में भी वो हमराह है +मैं भी भीगूँ ख़ुद भी पागल भीगता है साथ साथ +लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब +हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ +बारिशें जाड़े की और तन्हा बहुत मेरा किसान +जिस्म और इकलौता कम्बल भीगता है साथ साथ " +shauq-e-raqs-se-jab-tak-ungliyaan-nahiin-khultiin-parveen-shakir-ghazals," +शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं +पाँव से हवाओं के बेड़ियाँ नहीं खुलतीं +पेड़ को दुआ दे कर कट गई बहारों से +फूल इतने बढ़ आए खिड़कियाँ नहीं खुलतीं +फूल बन के सैरों में और कौन शामिल था +शोख़ी-ए-सबा से तो बालियाँ नहीं खुलतीं +हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ +दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं +कोई मौजा-ए-शीरीं चूम कर जगाएगी +सूरजों के नेज़ों से सीपियाँ नहीं खुलतीं +माँ से क्या कहेंगी दुख हिज्र का कि ख़ुद पर भी +इतनी छोटी उम्रों की बच्चियाँ नहीं खुलतीं +शाख़ शाख़ सरगर्दां किस की जुस्तुजू में हैं +कौन से सफ़र में हैं तितलियाँ नहीं खुलतीं +आधी रात की चुप में किस की चाप उभरती है +छत पे कौन आता है सीढ़ियाँ नहीं खुलतीं +पानियों के चढ़ने तक हाल कह सकें और फिर +क्या क़यामतें गुज़रीं बस्तियाँ नहीं खुलतीं " +ham-ne-hii-lautne-kaa-iraada-nahiin-kiyaa-parveen-shakir-ghazals," +हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया +उस ने भी भूल जाने का वा'दा नहीं किया +दुख ओढ़ते नहीं कभी जश्न-ए-तरब में हम +मल्बूस-ए-दिल को तन का लबादा नहीं किया +जो ग़म मिला है बोझ उठाया है उस का ख़ुद +सर ज़ेर-ए-बार-ए-साग़र-ओ-बादा नहीं किया +कार-ए-जहाँ हमें भी बहुत थे सफ़र की शाम +उस ने भी इल्तिफ़ात ज़ियादा नहीं किया +आमद पे तेरी इत्र ओ चराग़ ओ सुबू न हों +इतना भी बूद-ओ-बाश को सादा नहीं किया " +ashk-aankh-men-phir-atak-rahaa-hai-parveen-shakir-ghazals," +अश्क आँख में फिर अटक रहा है +कंकर सा कोई खटक रहा है +मैं उस के ख़याल से गुरेज़ाँ +वो मेरी सदा झटक रहा है +तहरीर उसी की है मगर दिल +ख़त पढ़ते हुए अटक रहा है +हैं फ़ोन पे किस के साथ बातें +और ज़ेहन कहाँ भटक रहा है +सदियों से सफ़र में है समुंदर +साहिल पे थकन टपक रहा है +इक चाँद सलीब-ए-शाख़-ए-गुल पर +बाली की तरह लटक रहा है " +qaid-men-guzregii-jo-umr-bade-kaam-kii-thii-parveen-shakir-ghazals," +क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी +पर मैं क्या करती कि ज़ंजीर तिरे नाम की थी +जिस के माथे पे मिरे बख़्त का तारा चमका +चाँद के डूबने की बात उसी शाम की थी +मैं ने हाथों को ही पतवार बनाया वर्ना +एक टूटी हुई कश्ती मिरे किस काम की थी +वो कहानी कि अभी सूइयाँ निकलीं भी न थीं +फ़िक्र हर शख़्स को शहज़ादी के अंजाम की थी +ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा +यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी +बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक +ऐ ज़मीं-माँ तिरी ये उम्र तो आराम की थी " +apnii-rusvaaii-tire-naam-kaa-charchaa-dekhuun-parveen-shakir-ghazals," +अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ +इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ +नींद आ जाए तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ +आँख खुल जाए तो तन्हाई का सहरा देखूँ +शाम भी हो गई धुँदला गईं आँखें भी मिरी +भूलने वाले मैं कब तक तिरा रस्ता देखूँ +एक इक कर के मुझे छोड़ गईं सब सखियाँ +आज मैं ख़ुद को तिरी याद में तन्हा देखूँ +काश संदल से मिरी माँग उजाले आ कर +इतने ग़ैरों में वही हाथ जो अपना देखूँ +तू मिरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात +जाने क्यूँ तेरे लिए दिल को धड़कना देखूँ +बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हँसे +बूझे जाने का मैं हर रोज़ तमाशा देखूँ +सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ +एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ +मुझ पे छा जाए वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह +अंग अंग अपना इसी रुत में महकता देखूँ +फूल की तरह मिरे जिस्म का हर लब खुल जाए +पंखुड़ी पंखुड़ी उन होंटों का साया देखूँ +मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस इक बार +ख़्वाब बन कर तिरी आँखों में उतरता देखूँ +तू मिरी तरह से यकता है मगर मेरे हबीब +जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ +टूट जाएँ कि पिघल जाएँ मिरे कच्चे घड़े +तुझ को मैं देखूँ कि ये आग का दरिया देखूँ " +apnii-hii-sadaa-sunuun-kahaan-tak-parveen-shakir-ghazals," +अपनी ही सदा सुनूँ कहाँ तक +जंगल की हवा रहूँ कहाँ तक +हर बार हवा न होगी दर पर +हर बार मगर उठूँ कहाँ तक +दम घटता है घर में हब्स वो है +ख़ुश्बू के लिए रुकूँ कहाँ तक +फिर आ के हवाएँ खोल देंगी +ज़ख़्म अपने रफ़ू करूँ कहाँ तक +साहिल पे समुंदरों से बच कर +मैं नाम तिरा लिखूँ कहाँ तक +तन्हाई का एक एक लम्हा +हंगामों से क़र्ज़ लूँ कहाँ तक +गर लम्स नहीं तो लफ़्ज़ ही भेज +मैं तुझ से जुदा रहूँ कहाँ तक +सुख से भी तो दोस्ती कभी हो +दुख से ही गले मिलूँ कहाँ तक +मंसूब हो हर किरन किसी से +अपने ही लिए जलूँ कहाँ तक +आँचल मिरे भर के फट रहे हैं +फूल उस के लिए चुनूँ कहाँ तक " +mushkil-hai-ki-ab-shahr-men-nikle-koii-ghar-se-parveen-shakir-ghazals," +मुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर से +दस्तार पे बात आ गई होती हुई सर से +बरसा भी तो किस दश्त के बे-फ़ैज़ बदन पर +इक उम्र मिरे खेत थे जिस अब्र को तरसे +कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है +चिड़ियों को बड़ा प्यार था उस बूढ़े शजर से +मेहनत मिरी आँधी से तो मंसूब नहीं थी +रहना था कोई रब्त शजर का भी समर से +ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में +मैं भीड़ में गुम हो गई तन्हाई के डर से +बे-नाम मसाफ़त ही मुक़द्दर है तो क्या ग़म +मंज़िल का तअ'य्युन कभी होता है सफ़र से +पथराया है दिल यूँ कि कोई इस्म पढ़ा जाए +ये शहर निकलता नहीं जादू के असर से +निकले हैं तो रस्ते में कहीं शाम भी होगी +सूरज भी मगर आएगा इस रहगुज़र से " +baadbaan-khulne-se-pahle-kaa-ishaara-dekhnaa-parveen-shakir-ghazals," +बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना +मैं समुंदर देखती हूँ तुम किनारा देखना +यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर +जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना +किस शबाहत को लिए आया है दरवाज़े पे चाँद +ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़रा अपना सितारा देखना +क्या क़यामत है कि जिन के नाम पर पसपा हुए +उन ही लोगों को मुक़ाबिल में सफ़-आरा देखना +जब बनाम-ए-दिल गवाही सर की माँगी जाएगी +ख़ून में डूबा हुआ परचम हमारा देखना +जीतने में भी जहाँ जी का ज़ियाँ पहले से है +ऐसी बाज़ी हारने में क्या ख़सारा देखना +आइने की आँख ही कुछ कम न थी मेरे लिए +जाने अब क्या क्या दिखाएगा तुम्हारा देखना +एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है +ज़िंदगी की बेबसी का इस्तिआ'रा देखना " +puuraa-dukh-aur-aadhaa-chaand-parveen-shakir-ghazals," +पूरा दुख और आधा चाँद +हिज्र की शब और ऐसा चाँद +दिन में वहशत बहल गई +रात हुई और निकला चाँद +किस मक़्तल से गुज़रा होगा +इतना सहमा सहमा चाँद +यादों की आबाद गली में +घूम रहा है तन्हा चाँद +मेरी करवट पर जाग उठ्ठे +नींद का कितना कच्चा चाँद +मेरे मुँह को किस हैरत से +देख रहा है भोला चाँद +इतने घने बादल के पीछे +कितना तन्हा होगा चाँद +आँसू रोके नूर नहाए +दिल दरिया तन सहरा चाँद +इतने रौशन चेहरे पर भी +सूरज का है साया चाँद +जब पानी में चेहरा देखा +तू ने किस को सोचा चाँद +बरगद की इक शाख़ हटा कर +जाने किस को झाँका चाँद +बादल के रेशम झूले में +भोर समय तक सोया चाँद +रात के शाने पर सर रक्खे +देख रहा है सपना चाँद +सूखे पत्तों के झुरमुट पर +शबनम थी या नन्हा चाँद +हाथ हिला कर रुख़्सत होगा +उस की सूरत हिज्र का चाँद +सहरा सहरा भटक रहा है +अपने इश्क़ में सच्चा चाँद +रात के शायद एक बजे हैं +सोता होगा मेरा चाँद " +dil-kaa-kyaa-hai-vo-to-chaahegaa-musalsal-milnaa-parveen-shakir-ghazals," +दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना +वो सितमगर भी मगर सोचे किसी पल मिलना +वाँ नहीं वक़्त तो हम भी हैं अदीम-उल-फ़ुर्सत +उस से क्या मिलिए जो हर रोज़ कहे कल मिलना +इश्क़ की रह के मुसाफ़िर का मुक़द्दर मालूम +शहर की सोच में हो और उसे जंगल मिलना +उस का मिलना है अजब तरह का मिलना जैसे +दश्त-ए-उम्मीद में अंदेशे का बादल मिलना +दामन-ए-शब को अगर चाक भी कर लीं तो कहाँ +नूर में डूबा हुआ सुब्ह का आँचल मिलना " +bichhdaa-hai-jo-ik-baar-to-milte-nahiin-dekhaa-parveen-shakir-ghazals," +बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा +इस ज़ख़्म को हम ने कभी सिलते नहीं देखा +इक बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश +फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा +यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईं +जिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा +काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन +तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा +किस तरह मिरी रूह हरी कर गया आख़िर +वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा " +dil-kaa-khoj-na-paayaa-hargiz-dekhaa-khol-jo-qabron-ko-naji-shakir-ghazals," +दिल का खोज न पाया हरगिज़ देखा खोल जो क़ब्रों को +जीते जी ढूँडे सो पावे ख़बर करो बे-ख़बरों को +तोशक बाला पोश रज़ाई है भूले मजनूँ बरसों तक +जब दिखलावे ज़ुल्फ़ सजन की बन में आवते अब्रों को +काफ़िर नफ़स हर एक का तरसा ज़र कूँ पाया बख़्तों सीं +आतिश की पूजा में गुज़री उम्र तमाम उन गब्रों को +मर्द जो आजिज़ हो तन मन सीं कहे ख़ुश-आमद बावर कर +मोहताजी का ख़ासा है रूबाह करे है बबरों को +वादा चूक फिर आया 'नाजी' दर्स की ख़ातिर फड़के मत +छूट गले तेरे ऐ ज़ालिम सब्र कहाँ बे-सब्रों को " +zikr-har-subh-o-shaam-hai-teraa-naji-shakir-ghazals," +ज़िक्र हर सुब्ह ओ शाम है तेरा +विर्द-ए-आशिक़ कूँ नाम है तेरा +मत कर आज़ाद दाम-ए-ज़ुल्फ़ सीं दिल +बाल-बाँधा ग़ुलाम है तेरा +लश्कर-ए-ग़म ने दिल सीं कूच किया +जब से इस में मक़ाम है तेरा +जाम-ए-मय का पिलाना है बे-रंग +शौक़ जिन कूँ मुदाम है तेरा +आज 'नाजी' से रम न कर ऐ शोख़ +देख मुद्दत सीं राम है तेरा " +ye-daur-guzraa-kabhii-na-dekhiin-piyaa-kii-ankhiyaan-khumaar-matiyaan-naji-shakir-ghazals," +ये दौर गुज़रा कभी न देखीं पिया की अँखियाँ ख़ुमार-मतियाँ +कहे थे मरदुम शराबी उन कूँ निकल गईं अपनी दे ग़लतियाँ +सिवाए गुल के वो शोख़ अँखियाँ किसी तरफ़ को नहीं हैं राग़िब +तो बर्ग-ए-नर्गिस उपर बजा है लिखूँ जो अपने सजन कूँ पतियाँ +सनम की ज़ुल्फ़ाँ को हिज्र में अब गए हैं मुझ नैन हैं ख़्वाब राहत +लगे है काँटा नज़र में सोना कटेंगी कैसे ये काली रतियाँ +जो शम्अ-रू के दो लब हैं शीरीं तो सब्ज़ा-ए-ख़त बजा है उस पर +ज़मीन पकड़ी है तूतियों ने सुनीं जो मीठी पिया की बतियाँ +ख़याल कर कर भटक रहा हूँ नज़र जो आए तेवर हैं बाँके +बनाओ बनता नहीं है 'नाजी' जो उस सजन को लगाऊँ छतियाँ " +lab-e-shiiriin-hai-misrii-yuusuf-e-saanii-hai-ye-ladkaa-naji-shakir-ghazals," +लब-ए-शीरीं है मिस्री यूसुफ़-ए-सानी है ये लड़का +न छोड़ेगा मेरा दिल चाह-ए-कनआनी है ये लड़का +लिया बोसा किसी ने और गरेबाँ-गीर है मेरा +डुबाया चाहता है सब को तूफ़ानी है ये लड़का +सर ऊपर लाल चीरा और दहन जूँ ग़ुंचा-ए-रंगीं +बहार-ए-मुद्दआ लाल-ए-बदख़शानी है ये लड़का +क़यामत है झमक बाज़ू के तावीज़-ए-तलाई की +हिसार-ए-हुस्न कूँ क़ाइम किया बानी है ये लड़का +हुए रू-पोश उस का हुस्न देख अंजुम के जूँ ख़ूबाँ +चमकता है ब-रंग-ए-मेहर नूरानी है ये लड़का +क़यामत क़ामत उस का जिन ने देखा सो हुआ बिस्मिल +मगर सर ता क़दम तेग़-ए-सुलेमानी है ये लड़का +मैं अपना जान ओ दिल क़ुर्बां करूँ ऊस पर सेती 'नाजी' +जिसे देखें सीं हुए ईद रमज़ानी है ये लड़का " +ai-sabaa-kah-bahaar-kii-baaten-naji-shakir-ghazals," +ऐ सबा कह बहार की बातें +इस बुत-ए-गुल-एज़ार की बातें +किस पे छोड़े निगाह का शहबाज़ +क्या करे है शिकार की बातें +मेहरबानी सीं या हों ग़ुस्से सीं +प्यारी लगती हैं यार की बातें +छोड़ते कब हैं नक़्द-ए-दिल कूँ सनम +जब ये करते हैं प्यार की बातें +पूछिए कुछ कहें हैं कुछ 'नाजी' +आ पड़ीं रोज़गार की बातें " +kamar-kii-baat-sunte-hain-ye-kuchh-paaii-nahiin-jaatii-naji-shakir-ghazals," +कमर की बात सुनते हैं ये कुछ पाई नहीं जाती +कहे हैं बात ऐसी ख़याल में मेरे नहीं आती +जो चाहो सैर-ए-दरिया वक़्फ़ है मुझ चश्म की कश्ती +हर एक मू-ए-पलक मेरा है ��ोया घाट ख़ैराती +ब-रंग उस के नहीं महबूब दिल रोने को आशिक़ के +सआदत ख़ाँ है लड़का वज़्अ कर लेता है बरसाती +जो कोई असली है ठंडा गर्म याक़ूती में क्यूँकर हो +न लावे ताब तेरे लब की जो नामर्द है ज़ाती +न देखा बाग़ में नर्गिस नीं तुझ कूँ शर्म जाने सीं +इसी ग़म में हुई है सर-निगूँ वो वक़्त नहीं पाती +कहाँ मुमकिन है 'नाजी' सा कि तक़्वा और सलाह आवे +निगाह-ए-मस्त-ए-ख़ूबाँ वो नहीं लेता ख़राबाती " +tere-bhaaii-ko-chaahaa-ab-terii-kartaa-huun-paa-bosii-naji-shakir-ghazals," +तेरे भाई को चाहा अब तेरी करता हूँ पा-बोसी +मुझे सरताज कर रख जान में आशिक़ हूँ मौरूसी +रफ़ू कर दे हैं ऐसा प्यार जो आशिक़ हैं यकसू सीं +फड़ा कर और सीं शाल अपनी कहता है मुझे तू सी +हुआ मख़्फ़ी मज़ा अब शाहिदी सीं शहद की ज़ाहिर +मगर ज़ंबूर ने शीरीनी उन होंटों की जा चूसी +किसे ये ताब जो उस की तजल्ली में रहे ठहरा +रुमूज़-ए-तौर लाती है सजन तेरी कमर मू सी +समाता नईं इज़ार अपने में अबतर देख रंग उस का +करे किम-ख़्वाब सो जाने की यूँ पाते हैं जासूसी +ब-रंग-ए-शम्अ क्यूँ याक़ूब की आँखें नहीं रौशन +ज़माने में सुना यूसुफ़ का पैराहन था फ़ानूसी +न छोड़ूँ उस लब-ए-इरफ़ाँ को 'नाजी' और लुटा दूँ सब +मिले गर मुझ को मुल्क-ए-ख़ुसरवी और ताज-ए-काऊसी " +dekh-mohan-tirii-kamar-kii-taraf-naji-shakir-ghazals," +देख मोहन तिरी कमर की तरफ़ +फिर गया मानी अपने घर की तरफ़ +जिन ने देखे तिरे लब-ए-शीरीं +नज़र उस की नहीं शकर की तरफ़ +है मुहाल उन का दाम में आना +दिल है माइल बुताँ का ज़र की तरफ़ +तेरे रुख़्सार की सफ़ाई देख +चश्म दाना की नईं गुहर की तरफ़ +हैं ख़ुशामद-तलब सब अहल-ए-दुवल +ग़ौर करते नईं हुनर की तरफ़ +माह-रू ने सफ़र किया है जिधर +दिल मिरा है उसी नगर की तरफ़ +हश्र में पाक-बाज़ है 'नाजी' +बद-अमल जाएँगे सक़र की तरफ़ " +dekhii-bahaar-ham-ne-kal-zor-mai-kade-men-naji-shakir-ghazals," +देखी बहार हम ने कल ज़ोर मय-कदे में +हँसने सीं उस सजन के था शोर मय-कदे में +थे जोश-ए-मुल सीं ऐसी शोरिश में दाग़ दिल के +गोया कि कूदते हैं ये मोर मय-कदे में +फंदा रखा था मैं ने शायद कि वो परी-रू +देखे तो पास मेरे हो दौर मय-कदे में +है आरज़ू कि हमदम वो माह-रू हो मेरा +दे शाम सीं जो प्याला हो भोर मय-कदे में +साक़ी वही है मेरा 'नाजी' कि गर मरूँ मैं +मुझ वास्ते बना दे जा गोर मय-कदे में " +mah-rukhaan-kii-jo-mehrbaanii-hai-naji-shakir-ghazals," +मह-रुख़ाँ की जो मेहरबानी है +ये मदद मुझ पे आसमानी है +रश्क सीं उस के साफ़ चेहरे के +चश्म पर आइने की पानी है +दाम में बुल-हव�� के आया नईं +क्यूँ कि ये बाज़ आश्यानी है +चर्ब है शम्अ पर जमाल उस का +शम्अ की रौशनी ज़बानी है +उस के रुख़्सार देख जीता हूँ +आरज़ी मेरी ज़िंदगानी है +सिर्फ़ सूरत का बंद नईं 'नाजी' +आशिक़-ए-साहब-ए-मआनी है " +ishq-to-mushkil-hai-ai-dil-kaun-kahtaa-sahl-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल कौन कहता सहल है +लेक नादानी से अपनी तू ने समझा सहल है +गर खुले दिल की गिरह तुझ से तो हम जानें तुझे +ऐ सबा ग़ुंचे का उक़्दा खोल देना सहल है +हमदमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या +पर छुड़ाना इस का मुश्किल है लगाना सहल है +गरचे मुश्किल है बहुत मेरा इलाज-ए-दर्द-ए-दिल +पर जो तू चाहे तो ऐ रश्क-ए-मसीहा सहल है +है बहुत दुश्वार मरना ये सुना करते थे हम +पर जुदाई में तिरी हम ने जो देखा सहल है +शम्अ ने जल कर जलाया बज़्म में परवाने को +बिन जले अपने जलाना क्या किसी का सहल है +इश्क़ का रस्ता सरासर है दम-ए-शमशीर पर +बुल-हवस इस राह में रखना क़दम क्या सहल है +ऐ 'ज़फ़र' कुछ हो सके तो फ़िक्र कर उक़्बा का तू +कर न दुनिया का तरद्दुद कार-ए-दुनिया सहल है " +kaafir-tujhe-allaah-ne-suurat-to-parii-dii-bahadur-shah-zafar-ghazals," +काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी +पर हैफ़ तिरे दिल में मोहब्बत न ज़री दी +दी तू ने मुझे सल्तनत-ए-बहर-ओ-बर ऐ इश्क़ +होंटों को जो ख़ुश्की मिरी आँखों को तरी दी +ख़ाल-ए-लब-ए-शीरीं का दिया बोसा कब उस ने +इक चाट लगाने को मिरे नीशकरी दी +काफ़िर तिरे सौदा-ए-सर-ए-ज़ुल्फ़ ने मुझ को +क्या क्या न परेशानी ओ आशुफ़्ता-सरी दी +मेहनत से है अज़्मत कि ज़माने में नगीं को +बे-काविश-ए-सीना न कभी नामवरी दी +सय्याद ने दी रुख़्सत-ए-परवाज़ पर अफ़्सोस +तू ने न इजाज़त मुझे बे-बाल-ओ-परी दी +कहता तिरा कुछ सोख़्ता-जाँ लेक अजल ने +फ़ुर्सत न उसे मिस्ल-ए-चराग़-ए-सहरी दी +क़स्साम-ए-अज़ल ने न रखा हम को भी महरूम +गरचे न दिया कोई हुनर बे-हुनरी दी +उस चश्म में है सुरमे का दुम्बाला पुर-आशोब +क्यूँ हाथ में बदमस्त के बंदूक़ भरी दी +दिल दे के किया हम ने तिरी ज़ुल्फ़ का सौदा +इक आप बला अपने लिए मोल ख़रीदी +साक़ी ने दिया क्या मुझे इक साग़र-ए-सरशार +गोया कि दो आलम से 'ज़फ़र' बे-ख़बरी दी " +hai-dil-ko-jo-yaad-aaii-falak-e-piir-kisii-kii-bahadur-shah-zafar-ghazals," +है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की +आँखों के तले फिरती है तस्वीर किसी की +गिर्या भी है नाला भी है और आह-ओ-फ़ुग़ाँ भी +पर दिल में हुई उस के न तासीर किसी की +हाथ आए है क्या ख़ाक तिरे ख़ाक-ए-कफ़-ए-पा +जब तक कि न क़िस��मत में हो इक्सीर किसी की +यारो वो है बिगड़ा हुआ बातें न बनाओ +कुछ पेश नहीं जाने की तक़रीर किसी की +नाज़ाँ न हो मुनइ'म कि जहाँ तेरा महल है +होवेगी यहाँ पहले भी ता'मीर किसी की +मेरी गिरह-ए-दिल न खुली है न खुलेगी +जब तक न खुले ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर किसी की +आता भी अगर है तो वो फिर जाए है उल्टा +जिस वक़्त उलट जाए है तक़दीर किसी की +इस अबरू ओ मिज़्गाँ से 'ज़फ़र' तेज़ ज़ियादा +ख़ंजर न किसी का है न शमशीर किसी की +जो दिल से उधर जाए नज़र दिल हो गिरफ़्तार +मुजरिम हो कोई और हो तक़्सीर किसी की " +khvaah-kar-insaaf-zaalim-khvaah-kar-bedaad-tuu-bahadur-shah-zafar-ghazals," +ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बेदाद तू +पर जो फ़रियादी हैं उन की सुन तो ले फ़रियाद तू +दम-ब-दम भरते हैं हम तेरी हवा-ख़्वाही का दम +कर न बद-ख़ुओं के कहने से हमें बर्बाद तू +क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़्सीर मेरी क्या ख़ता +बन गया जो इस तरह हक़ में मिरे जल्लाद तू +क़ैद से तेरी कहाँ जाएँगे हम बे-बाल-ओ-पर +क्यूँ क़फ़स में तंग करता है हमें सय्याद तू +दिल को दिल से राह है तो जिस तरह से हम तुझे +याद करते हैं करे यूँ ही हमें भी याद तू +दिल तिरा फ़ौलाद हो तो आप हो आईना-वार +साफ़ यक-बारी सुने मेरी अगर रूदाद तू +शाद ओ ख़ुर्रम एक आलम को किया उस ने 'ज़फ़र' +पर सबब क्या है कि है रंजीदा ओ नाशाद तू " +kyuunki-ham-duniyaa-men-aae-kuchh-sabab-khultaa-nahiin-bahadur-shah-zafar-ghazals," +क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं +इक सबब क्या भेद वाँ का सब का सब खुलता नहीं +पूछता है हाल भी गर वो तो मारे शर्म के +ग़ुंचा-ए-तस्वीर के मानिंद लब खुलता नहीं +शाहिद-ए-मक़्सूद तक पहुँचेंगे क्यूँकर देखिए +बंद है बाब-ए-तमन्ना है ग़ज़ब खुलता नहीं +बंद है जिस ख़ाना-ए-ज़िंदाँ में दीवाना तेरा +उस का दरवाज़ा परी-रू रोज़ ओ शब खुलता नहीं +दिल है ये ग़ुंचा नहीं है इस का उक़्दा ऐ सबा +खोलने का जब तलक आवे न ढब खुलता नहीं +इश्क़ ने जिन को किया ख़ातिर-गिरफ़्ता उन का दिल +लाख होवे गरचे सामान-ए-तरब खुलता नहीं +किस तरह मालूम होवे उस के दिल का मुद्दआ +मुझ से बातों में 'ज़फ़र' वो ग़ुंचा-लब खुलता नहीं " +vaan-iraada-aaj-us-qaatil-ke-dil-men-aur-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +वाँ इरादा आज उस क़ातिल के दिल में और है +और यहाँ कुछ आरज़ू बिस्मिल के दिल में और है +वस्ल की ठहरावे ज़ालिम तो किसी सूरत से आज +वर्ना ठहरी कुछ तिरे माइल के दिल में और है +है हिलाल ओ बद्र में इक नूर पर जो रौशनी +दिल में नाक़िस के है वो कामिल के दिल में और है +प��ले तो मिलता है दिलदारी से क्या क्या दिलरुबा +बाँधता मंसूबे फिर वो मिल के दिल में और है +है मुझे बाद-अज़-सवाल-ए-बोसा ख़्वाहिश वस्ल की +ये तमन्ना एक इस साइल के दिल में और है +गो वो महफ़िल में न बोला पा गए चितवन से हम +आज कुछ उस रौनक़-ए-महफ़िल के दिल में और है +यूँ तो है वो ही दिल-ए-आलम के दिल में ऐ 'ज़फ़र' +उस का आलम मर्द-ए-साहब दिल के दिल में और है " +bharii-hai-dil-men-jo-hasrat-kahuun-to-kis-se-kahuun-bahadur-shah-zafar-ghazals," +भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ +सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ +जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ +तिरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ +न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द +मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ +दिल उस को आप दिया आप ही पशेमाँ हूँ +कि सच है अपनी नदामत कहूँ तो किस से कहूँ +कहूँ मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत +फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूँ +रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं +तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ +जो दोस्त हो तो कहूँ तुझ से दोस्ती की बात +तुझे तो मुझ से अदावत कहूँ तो किस से कहूँ +न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल +न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ +किसी को देखता इतना नहीं हक़ीक़त में +'ज़फ़र' मैं अपनी हक़ीक़त कहूँ तो किस से कहूँ " +lagtaa-nahiin-hai-dil-miraa-ujde-dayaar-men-bahadur-shah-zafar-ghazals," +लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में +किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में +इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें +इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में +काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ +ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में +बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला +क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में +कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए +दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में " +yaa-mujhe-afsar-e-shaahaana-banaayaa-hotaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता +या मिरा ताज गदायाना बनाया होता +अपना दीवाना बनाया मुझे होता तू ने +क्यूँ ख़िरद-मंद बनाया न बनाया होता +ख़ाकसारी के लिए गरचे बनाया था मुझे +काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना बनाया होता +नश्शा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझ को +उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता +दिल-ए-सद-चाक बनाया तो बला से लेकिन +ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं का तिरे शाना बनाया होता +सूफ़ियों के जो न था लायक़-ए-सोहबत तो मुझे +क़ाबिल-ए-जलसा-ए-रिंदाना बनाया होता +था जला���ा ही अगर दूरी-ए-साक़ी से मुझे +तो चराग़-ए-दर-ए-मय-ख़ाना बनाया होता +शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उस ने +वर्ना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता +रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र' +ऐसी बस्ती को तो वीराना बनाया होता " +mohabbat-chaahiye-baaham-hamen-bhii-ho-tumhen-bhii-ho-bahadur-shah-zafar-ghazals," +मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो +ख़ुशी हो इस में या हो ग़म हमें भी हो तुम्हें भी हो +ग़नीमत तुम इसे समझो कि इस ख़ुम-ख़ाने में यारो +नसीब इक-दम दिल-ए-ख़ुर्रम हमें भी हो तुम्हें भी हो +दिलाओ हज़रत-ए-दिल तुम न याद-ए-ख़त-ए-सब्ज़ उस का +कहीं ऐसा न हो ये सम हमें भी हो तुम्हें भी हो +हमेशा चाहता है दिल कि मिल कर कीजे मय-नोशी +मयस्सर जाम-ए-मय-ए-जम-जम हमें भी हो तुम्हें भी हो +हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ +कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो +रहे हिर्स-ओ-हवा दाइम अज़ीज़ो साथ जब अपने +न क्यूँकर फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम हमें भी हो तुम्हें भी हो +'ज़फ़र' से कहता है मजनूँ कहीं दर्द-ए-दिल महज़ूँ +जो ग़म से फ़ुर्सत अब इक दम हमें भी हो तुम्हें भी हो " +gaii-yak-ba-yak-jo-havaa-palat-nahiin-dil-ko-mere-qaraar-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है +करूँ उस सितम को मैं क्या बयाँ मिरा ग़म से सीना फ़िगार है +ये रेआया-ए-हिन्द तबह हुई कहूँ क्या जो इन पे जफ़ा हुई +जिसे देखा हाकिम-ए-वक़्त ने कहा ये भी क़ाबिल-ए-दार है +ये किसी ने ज़ुल्म भी है सुना कि दी फाँसी लोगों को बे-गुनाह +वही कलमा-गोयों की सम्त से अभी दिल में उन के बुख़ार है +न था शहर-ए-देहली ये था चमन कहो किस तरह का था याँ अमन +जो ख़िताब था वो मिटा दिया फ़क़त अब तो उजड़ा दयार है +यही तंग हाल जो सब का है ये करिश्मा क़ुदरत-ए-रब का है +जो बहार थी सो ख़िज़ाँ हुई जो ख़िज़ाँ थी अब वो बहार है +शब-ओ-रोज़ फूल में जो तुले कहो ख़ार-ए-ग़म को वो क्या सहे +मिले तौक़ क़ैद में जब उन्हें कहा गुल के बदले ये हार है +सभी जादा मातम-ए-सख़्त है कहो कैसी गर्दिश-ए-बख़्त है +न वो ताज है न वो तख़्त है न वह शाह है न दयार है +जो सुलूक करते थे और से वही अब हैं कितने ज़लील से +वो हैं तंग चर्ख़ के जौर से रहा तन पे उन के न तार है +न वबाल तन पे है सर मिरा नहीं जान जाने का डर ज़रा +कटे ग़म ही, निकले जो दम मिरा मुझे अपनी ज़िंदगी बार है +क्या है ग़म 'ज़फ़र' तुझे हश्र का जो ख़ुदा ने चाहा तो बरमला +हमें है वसीला रसूल का वो हमारा हामी-ए-कार है " +dekho-insaan-khaak-kaa-putlaa-banaa-kyaa-chiiz-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है +बोलता है इस में क्या वो बोलता क्या चीज़ है +रू-ब-रू उस ज़ुल्फ़ के दाम-ए-बला क्या चीज़ है +उस निगह के सामने तीर-ए-क़ज़ा क्या चीज़ है +यूँ तो हैं सारे बुताँ ग़ारत-गर-ए-ईमाँ-ओ-दीं +एक वो काफ़िर सनम नाम-ए-ख़ुदा क्या चीज़ है +जिस ने दिल मेरा दिया दाम-ए-मोहब्बत में फँसा +वो नहीं मालूम मुज को नासेहा क्या चीज़ है +होवे इक क़तरा जो ज़हराब-ए-मोहब्बत का नसीब +ख़िज़्र फिर तो चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा क्या चीज़ है +मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज +इश्क़ का बीमार क्या जाने दवा क्या चीज़ है +दिल मिरा बैठा है ले कर फिर मुझी से वो निगार +पूछता है हाथ में मेरे बता क्या चीज़ है +ख़ाक से पैदा हुए हैं देख रंगा-रंग गुल +है तो ये नाचीज़ लेकिन इस में क्या क्या चीज़ है +जिस की तुझ को जुस्तुजू है वो तुझी में है 'ज़फ़र' +ढूँडता फिर फिर के तो फिर जा-ब-जा क्या चीज़ है " +vaan-rasaaii-nahiin-to-phir-kyaa-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है +ये जुदाई नहीं तो फिर क्या है +हो मुलाक़ात तो सफ़ाई से +और सफ़ाई नहीं तो फिर क्या है +दिलरुबा को है दिलरुबाई शर्त +दिलरुबाई नहीं तो फिर क्या है +गिला होता है आश्नाई में +आश्नाई नहीं तो फिर क्या है +अल्लाह अल्लाह रे उन बुतों का ग़ुरूर +ये ख़ुदाई नहीं तो फिर क्या है +मौत आई तो टल नहीं सकती +और आई नहीं तो फिर क्या है +मगस-ए-क़ाब अग़निया होना है +बे-हयाई नहीं तो फिर क्या है +बोसा-ए-लब दिल-ए-शिकस्ता को +मोम्याई नहीं तो फिर क्या है +नहीं रोने में गर 'ज़फ़र' तासीर +जग-हँसाई नहीं तो फिर क्या है " +gaaliyaan-tankhvaah-thahrii-hai-agar-bat-jaaegii-bahadur-shah-zafar-ghazals," +गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी +आशिक़ों के घर मिठाई लब शकर बट जाएगी +रू-ब-रू गर होगा यूसुफ़ और तू आ जाएगा +उस की जानिब से ज़ुलेख़ा की नज़र बट जाएगी +रहज़नों में नाज़-ओ-ग़म्ज़ा की ये जिंस-ए-दीन-ओ-दिल +जूँ मता-ए-बुर्दा आख़िर हम-दिगर बट जाएगी +होगा क्या गर बोल उट्ठे ग़ैर बातों में मिरी +फिर तबीअत मेरी ऐ बेदाद गर बट जाएगी +दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ +बाद तेरे सब यहीं ऐ बे-ख़बर बट जाएगी +कर ले ऐ दिल जान को भी रंज-ओ-ग़म में तू शरीक +ये जो मेहनत तुझ पे है कुछ कुछ मगर बट जाएगी +मूँग छाती पे जो दलते हैं किसी की देखना +जूतियों में दाल उन की ऐ 'ज़फ़र' बट जाएगी " +zulf-jo-rukh-par-tire-ai-mehr-e-talat-khul-gaii-bahadur-shah-zafar-ghazals," +ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तिरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई +हम को अपनी तीरा-रोज़ी की हक़ीक़त खुल गई +क्या तमाशा है रग-ए-लैला में डूबा नेश्तर +फ़स्द-ए-मजनूँ बाइस-ए-जोश-ए-मोहब्बत खुल गई +दिल का सौदा इक निगह पर है तिरी ठहरा हुआ +नर्ख़ तू क्या पूछता है अब तो क़ीमत खुल गई +आईने को नाज़ था क्या अपने रू-ए-साफ़ पर +आँख ही पर देखते ही तेरी सूरत खुल गई +थी असीरान-ए-क़फ़स को आरज़ू परवाज़ की +खुल गई खिड़की क़फ़स की क्या कि क़िस्मत खुल गई +तेरे आरिज़ पर हुआ आख़िर ग़ुबार-ए-ख़त नुमूद +खुल गई आईना-रू दिल की कुदूरत खुल गई +बे-तकल्लुफ़ आए तुम खोले हुए बंद-ए-क़बा +अब गिरह दिल की हमारे फ़िल-हक़ीक़त खुल गई +बाँधी ज़ाहिद ने तवक्कुल पर कमर सौ बार चुस्त +लेकिन आख़िर बाइस-ए-सुस्ती-ए-हिम्मत खुल गई +खुलते खुलते रुक गए वो उन को तू ने ऐ 'ज़फ़र' +सच कहो किस आँख से देखा कि चाहत खुल गई " +kyuunkar-na-khaaksaar-rahen-ahl-e-kiin-se-duur-bahadur-shah-zafar-ghazals," +क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर +देखो ज़मीं फ़लक से फ़लक है ज़मीं से दूर +परवाना वस्ल-ए-शम्अ पे देता है अपनी जाँ +क्यूँकर रहे दिल उस के रुख़-ए-आतिशीं से दूर +मज़मून-ए-वस्ल-व-हिज्र जो नामे में है रक़म +है हर्फ़ भी कहीं से मिले और कहीं से दूर +गो तीर-ए-बे-गुमाँ है मिरे पास पर अभी +जाए निकल के सीना-ए-चर्ख़-ए-बरीं से दूर +वो कौन है कि जाते नहीं आप जिस के पास +लेकिन हमेशा भागते हो तुम हमीं से दूर +हैरान हूँ कि उस के मुक़ाबिल हो आईना +जो पुर-ग़ुरूर खिंचता है माह-ए-मुबीं से दूर +याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में +वो बैठते भी हैं तो मिरे हम-नशीं से दूर +मंज़ूर हो जो दीद तुझे दिल की आँख से +पहुँचे तिरी नज़र निगह-ए-दूर-बीं से दूर +दुनिया-ए-दूँ की दे न मोहब्बत ख़ुदा 'ज़फ़र' +इंसाँ को फेंक दे है ये ईमान ओ दीं से दूर " +baat-karnii-mujhe-mushkil-kabhii-aisii-to-na-thii-bahadur-shah-zafar-ghazals," +बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी +जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी +ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार +बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी +उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू +कि तबीअ'त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी +अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया +ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी +अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़ +सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी +पा-ए-कूबाँ कोई ज़िंदाँ में नया है मजनूँ +आती आवाज़-ए-सलासिल कभी ऐसी तो न थी +निगह-ए-यार को अब क्यूँ है तग़ाफ़ुल ऐ दिल +वो तिरे हाल से ग़ाफ़िल कभी ऐसी तो न थी +चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन +जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी +क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार +ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी " +havaa-men-phirte-ho-kyaa-hirs-aur-havaa-ke-liye-bahadur-shah-zafar-ghazals," +हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए +ग़ुरूर छोड़ दो ऐ ग़ाफ़िलो ख़ुदा के लिए +गिरा दिया है हमें किस ने चाह-ए-उल्फ़त में +हम आप डूबे किसी अपने आश्ना के लिए +जहाँ में चाहिए ऐवान ओ क़स्र शाहों को +ये एक गुम्बद-ए-गर्दूं है बस गदा के लिए +वो आईना है कि जिस को है हाजत-ए-सीमाब +इक इज़्तिराब है काफ़ी दिल-ए-सफ़ा के लिए +तपिश से दिल का हो क्या जाने सीने में क्या हाल +जो तेरे तीर का रौज़न न हो हवा के लिए +तबीब-ए-इश्क़ की दुक्काँ में ढूँडते फिरते +ये दर्दमंद-ए-मोहब्बत तिरी दवा के लिए +जो हाथ आए 'ज़फ़र' ख़ाक-पा-ए-'फ़ख़रूद्दीन' +तो मैं रखूँ उसे आँखों के तूतिया के लिए " +ham-ne-tirii-khaatir-se-dil-e-zaar-bhii-chhodaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +हम ने तिरी ख़ातिर से दिल-ए-ज़ार भी छोड़ा +तू भी न हुआ यार और इक यार भी छोड़ा +क्या होगा रफ़ूगर से रफ़ू मेरा गरेबान +ऐ दस्त-ए-जुनूँ तू ने नहीं तार भी छोड़ा +दीं दे के गया कुफ़्र के भी काम से आशिक़ +तस्बीह के साथ उस ने तो ज़ुन्नार भी छोड़ा +गोशे में तिरी चश्म-ए-सियह-मस्त के दिल ने +की जब से जगह ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार भी छोड़ा +इस से है ग़रीबों को तसल्ली कि अजल ने +मुफ़्लिस को जो मारा तो न ज़रदार भी छोड़ा +टेढ़े न हो हम से रखो इख़्लास तो सीधा +तुम प्यार से रुकते हो तो लो प्यार भी छोड़ा +क्या छोड़ें असीरान-ए-मोहब्बत को वो जिस ने +सदक़े में न इक मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार भी छोड़ा +पहुँची मिरी रुस्वाई की क्यूँकर ख़बर उस को +उस शोख़ ने तो देखना अख़बार भी छोड़ा +करता था जो याँ आने का झूटा कभी इक़रार +मुद्दत से 'ज़फ़र' उस ने वो इक़रार भी छोड़ा " +karenge-qasd-ham-jis-dam-tumhaare-ghar-men-aavenge-bahadur-shah-zafar-ghazals," +करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे +जो होगी उम्र भर की राह तो दम भर में आवेंगे +अगर हाथों से उस शीरीं-अदा के ज़ब्ह होंगे हम +तो शर्बत के से घूँट आब-ए-दम-ए-ख़ंजर में आवेंगे +यही गर जोश-ए-गिर्या है तो बह कर साथ अश्कों के +हज़ारों पारा-ए-दिल मेरे चश्म-ए-तर में आवेंगे +गर इस क़ैद-ए-बला से अब की छूटेंगे तो फिर हरगिज़ +न हम दाम-ए-फ़रेब-ए-शोख़-ए-ग़ारत-गर में आवेंगे +न जाते गरचे मर जाते जो हम मालूम कर जाते +कि इतना तंग जा कर कूचा-ए-दिलबर में आवेंगे +गरेबाँ-चाक लाखों हाथ से उस मेहर-ए-तलअत के +ब-रंग-ए-सुब्ह-ए-महशर अरसा-ए-महशर में आवेंगे +जो सरगरदानी अपनी तेरे दीवाने दिखाएँगे +तो फिर क्या क्या बगूले दश्त के चक्कर में आवेंगे +'ज़फ़र' अपना करिश्मा गर दिखाया चश्म-ए-साक़ी ने +तमाशे जाम-ए-जम के सब नज़र साग़र में आवेंगे " +main-huun-aasii-ki-pur-khataa-kuchh-huun-bahadur-shah-zafar-ghazals," +मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ +तेरा बंदा हूँ ऐ ख़ुदा कुछ हूँ +जुज़्व ओ कुल को नहीं समझता मैं +दिल में थोड़ा सा जानता कुछ हूँ +तुझ से उल्फ़त निबाहता हूँ मैं +बा-वफ़ा हूँ कि बेवफ़ा कुछ हूँ +जब से ना-आश्ना हूँ मैं सब से +तब कहीं उस से आश्ना कुछ हूँ +नश्शा-ए-इश्क़ ले उड़ा है मुझे +अब मज़े में उड़ा रहा कुछ हूँ +ख़्वाब मेरा है ऐन बेदारी +मैं तो उस में भी देखता कुछ हूँ +गरचे कुछ भी नहीं हूँ मैं लेकिन +उस पे भी कुछ न पूछो क्या कुछ हूँ +समझे वो अपना ख़ाकसार मुझे +ख़ाक-ए-रह हूँ कि ख़ाक-ए-पा कुछ हूँ +चश्म-ए-अल्ताफ़ फ़ख़्र-ए-दीं से हूँ +ऐ 'ज़फ़र' कुछ से हो गया कुछ हूँ " +rukh-jo-zer-e-sumbul-e-pur-pech-o-taab-aa-jaaegaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा +फिर के बुर्ज-ए-सुंबले में आफ़्ताब आ जाएगा +तेरा एहसाँ होगा क़ासिद गर शिताब आ जाएगा +सब्र मुझ को देख कर ख़त का जवाब आ जाएगा +हो न बेताब इतना गर उस का इताब आ जाएगा +तू ग़ज़ब में ऐ दिल-ए-ख़ाना-ख़राब आ जाएगा +इस क़दर रोना नहीं बेहतर बस अब अश्कों को रोक +वर्ना तूफ़ाँ देख ऐ चश्म-ए-पुर-आब आ जाएगा +पेश होवेगा अगर तेरे गुनाहों का हिसाब +तंग ज़ालिम अरसा-ए-रोज़-ए-हिसाब आ जाएगा +देख कर दस्त-ए-सितम में तेरी तेग़-ए-आबदार +मेरे हर ज़ख़्म-ए-जिगर के मुँह में आब आ जाएगा +अपनी चश्म-ए-मस्त की गर्दिश न ऐ साक़ी दिखा +देख चक्कर में अभी जाम-ए-शराब आ जाएगा +ख़ूब होगा हाँ जो सीने से निकल जाएगा तू +चैन मुझ को ऐ दिल-ए-पुर-इज़्तिराब आ जाएगा +ऐ 'ज़फ़र' उठ जाएगा जब पर्दा-ए-शर्म-ओ-हिजाब +सामने वो यार मेरे बे-हिजाब आ जाएगा " +shaane-kii-har-zabaan-se-sune-koii-laaf-e-zulf-bahadur-shah-zafar-ghazals," +शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़ +चीरे है सीना रात को ये मू-शिगाफ़-ए-ज़ुल्फ़ +जिस तरह से कि काबे पे है पोशिश-ए-सियाह +इस तरह इस सनम के है रुख़ पर ग़िलाफ़-ए-ज़ुल्फ़ +बरहम है इस क़दर जो मिरे दिल से ज़ुल्फ़-ए-यार +शामत-ज़दा ने क्या किया ऐसा ख़िलाफ़-ए-ज़ुल्फ़ +मतलब न कुफ़्र ओ दीं से न दैर ओ हरम से काम +करता है दिल तवाफ़-ए-इज़ार ओ तवाफ़-ए-ज़ु़ल्फ़ +नाफ़-ए-ग़ज़ाल-ए-चीं है कि है नाफ़ा-ए-ततार +क्यूँकर कहूँ कि है गिरह-ए-ज़ुल्फ़ नाफ़-ए-ज़ुल्फ़ +आपस में आज दस्त-ओ-गरेबाँ है रोज़ ओ शब +ऐ मेहर-वश ज़री का नहीं मू-ए-बाफ़-ए-ज़ुल्फ़ +कहता है कोई जीम कोई लाम ज़ुल्फ़ को +कहता हूँ मैं 'ज़फ़र' कि मुसत्तह है काफ़-ए-ज़ुल्फ़ " +sab-rang-men-us-gul-kii-mire-shaan-hai-maujuud-bahadur-shah-zafar-ghazals," +सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद +ग़ाफ़िल तू ज़रा देख वो हर आन है मौजूद +हर तार का दामन के मिरे कर के तबर्रुक +सर-बस्ता हर इक ख़ार-ए-बयाबान है मौजूद +उर्यानी-ए-तन है ये ब-अज़-ख़िलअत-ए-शाही +हम को ये तिरे इश्क़ में सामान है मौजूद +किस तरह लगावे कोई दामाँ को तिरे हाथ +होने को तू अब दस्त-ओ-गरेबान है मौजूद +लेता ही रहा रात तिरे रुख़ की बलाएँ +तू पूछ ले ये ज़ुल्फ़-ए-परेशान है मौजूद +तुम चश्म-ए-हक़ीक़त से अगर आप को देखो +आईना-ए-हक़ में दिल-ए-इंसान है मौजूद +कहता है 'ज़फ़र' हैं ये सुख़न आगे सभों के +जो कोई यहाँ साहिब-ए-इरफ़ान है मौजूद " +hijr-ke-haath-se-ab-khaak-pade-jiine-men-bahadur-shah-zafar-ghazals," +हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में +दर्द इक और उठा आह नया सीने में +ख़ून-ए-दिल पीने से जो कुछ है हलावत हम को +ये मज़ा और किसी को नहीं मय पीने में +दिल को किस शक्ल से अपने न मुसफ़्फ़ा रक्खूँ +जल्वा-गर यार की सूरत है इस आईने में +अश्क ओ लख़्त-ए-जिगर आँखों में नहीं हैं मेरे +हैं भरे लाल ओ गुहर इश्क़ के गंजीने में +शक्ल-ए-आईना 'ज़फ़र' से तो न रख दिल में ख़याल +कुछ मज़ा भी है भला जान मिरी लेने में " +na-durveshon-kaa-khirqa-chaahiye-na-taaj-e-shaahaanaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना +मुझे तो होश दे इतना रहूँ मैं तुझ पे दीवाना +किताबों में धरा है क्या बहुत लिख लिख के धो डालीं +हमारे दिल पे नक़्श-ए-कल-हज्र है तेरा फ़रमाना +ग़नीमत जान जो दम गुज़रे कैफ़ियत से गुलशन में +दिए जा साक़ी-ए-पैमाँ-शिकन भर भर के पैमाना +न देखा वो कहीं जल्वा जो देखा ख़ाना-ए-दिल में +बहुत मस्जिद में सर मारा बहुत सा ढूँडा बुत-ख़ाना +कुछ ऐसा हो कि जिस से मंज़िल-ए-मक़्सूद को पहुँचूँ +तरीक़-ए-पारसाई होवे या हो राह-ए-रिंदाना +ये सारी आमद-ओ-शुद है नफ़स की आमद-ओ-शुद पर +इसी तक आना जाना है न फिर जाना न फिर आना +'ज़फ़र' वो ज़ाहिद-ए-बेदर्द की हू-हक़ से बेहतर है +करे गर रिंद दर्द-ए-दिल से हाव-हु-ए-मस्ताना " +ham-ye-to-nahiin-kahte-ki-gam-kah-nahiin-sakte-bahadur-shah-zafar-ghazals," +हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते +पर जो सबब-ए-ग़म है वो हम कह नहीं सकते +हम द���खते हैं तुम में ख़ुदा जाने बुतो क्या +इस भेद को अल्लाह की क़सम कह नहीं सकते +रुस्वा-ए-जहाँ करता है रो रो के हमें तू +हम तुझे कुछ ऐ दीदा-ए-नम कह नहीं सकते +क्या पूछता है हम से तू ऐ शोख़ सितमगर +जो तू ने किए हम पे सितम कह नहीं सकते +है सब्र जिन्हें तल्ख़-कलामी को तुम्हारी +शर्बत ही बताते हैं सम कह नहीं सकते +जब कहते हैं कुछ बात रुकावट की तिरे हम +रुक जाता है ये सीने में दम कह नहीं सकते +अल्लाह रे तिरा रो'ब कि अहवाल-ए-दिल अपना +दे देते हैं हम कर के रक़म कह नहीं सकते +तूबा-ए-बहिश्ती है तुम्हारा क़द-ए-रा'ना +हम क्यूँकर कहें सर्व-ए-इरम कह नहीं सकते +जो हम पे शब-ए-हिज्र में उस माह-ए-लक़ा के +गुज़रे हैं 'ज़फ़र' रंज ओ अलम कह नहीं सकते " +jab-ki-pahluu-men-hamaare-but-e-khud-kaam-na-ho-bahadur-shah-zafar-ghazals," +जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो +गिर्ये से शाम-ओ-सहर क्यूँ कि हमें काम न हो +ले गया दिल का जो आराम हमारे या रब +उस दिल-आराम को मुतलक़ कभी आराम न हो +जिस को समझे लब-ए-पाँ-ख़ुर्दा वो मालिदा-मिसी +मर्दुमाँ देखियो फूली वो कहीं शाम न हो +आज तशरीफ़ गुलिस्ताँ में वो मय-कश लाया +कफ़-ए-नर्गिस पे धरा क्यूँकि भला जाम न हो +कर मुझे क़त्ल वहाँ अब कि न हो कोई जहाँ +ता मिरी जाँ तू कहीं ख़ल्क़ में बदनाम न हो +देख कर खोलियो तू काकुल-ए-पेचाँ की गिरह +कि मिरा ताइर-ए-दिल उस के तह-ए-दाम न हो +बिन तिरे ऐ बुत-ए-ख़ुद-काम ये दिल को है ख़तर +तेरे आशिक़ का तमाम आह कहीं काम न हो +आज हर एक जो यारो नज़र आता है निढाल +अपनी अबरू की वो खींचे हुए समसाम न हो +है मिरे शोख़ की बालीदा वो काफ़िर आँखें +जिस के हम चश्म ज़रा नर्गिस-ए-बादाम न हो +सुब्ह होती ही नहीं और नहीं कटती रात +रुख़ पे खोले वो कहीं ज़ुल्फ-ए-सियाह-फ़ाम न हो +ऐ 'ज़फ़र' चर्ख़ पे ख़ुर्शीद जो यूँ काँपे है +जल्वा-गर आज कहीं यार लब-ए-बाम न हो " +na-us-kaa-bhed-yaarii-se-na-ayyaarii-se-haath-aayaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया +ख़ुदा आगाह है दिल की ख़बरदारी से हाथ आया +न हों जिन के ठिकाने होश वो मंज़िल को क्या पहुँचे +कि रस्ता हाथ आया जिस की हुश्यारी से हाथ आया +हुआ हक़ में हमारे क्यूँ सितमगर आसमाँ इतना +कोई पूछे कि ज़ालिम क्या सितमगारी से हाथ आया +अगरचे माल-ए-दुनिया हाथ भी आया हरीसों के +तो देखा हम ने किस किस ज़िल्लत-ओ-ख़्वारी से हाथ आया +न कर ज़ालिम दिल-आज़ारी जो ये दिल मंज़ूर है लेना +किसी का दिल जो हाथ आया तो दिलदारी से हाथ आया +��गरचे ख़ाकसारी कीमिया का सहल नुस्ख़ा है +व-लेकिन हाथ आया जिस के दुश्वारी से हाथ आया +हुई हरगिज़ न तेरे चश्म के बीमार को सेह्हत +न जब तक ज़हर तेरे ख़त्त-ए-ज़ंगारी से हाथ आया +कोई ये वहशी-ए-रम-दीदा तेरे हाथ आया था +पर ऐ सय्याद-वश दिल की गिरफ़्तारी से हाथ आया +'ज़फ़र' जो दो जहाँ में गौहर-ए-मक़्सूद था अपना +जनाब-ए-फ़ख़्र-ए-दीं की वो मदद-गारी से हाथ आया " +nibaah-baat-kaa-us-hiila-gar-se-kuchh-na-huaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ +इधर से क्या न हुआ पर उधर से कुछ न हुआ +जवाब-ए-साफ़ तो लाता अगर न लाता ख़त +लिखा नसीब का जो नामा-बर से कुछ न हुआ +हमेशा फ़ित्ने ही बरपा किए मिरे सर पर +हुआ ये और तो उस फ़ित्ना-गर से कुछ न हुआ +बला से गिर्या-ए-शब तू ही कुछ असर करता +अगरचे इश्क़ में आह-ए-सहर से कुछ न हुआ +जला जला के किया शम्अ साँ तमाम मुझे +बस और तो मुझे सोज़-ए-जिगर से कुछ न हुआ +रहीं अदू से वही गर्म-जोशियाँ उस की +इस आह-ए-सर्द और इस चश्म-ए-तर से कुछ न हुआ +उठाया इश्क़ में क्या क्या न दर्द-ए-सर मैं ने +हुसूल पर मुझे उस दर्द-ए-सर से कुछ न हुआ +शब-ए-विसाल में भी मेरी जान को आराम +अज़ीज़ो दर्द-ए-जुदाई के डर से कुछ न हुआ +न दूँगा दिल उसे मैं ये हमेशा कहता था +वो आज ले ही गया और 'ज़फ़र' से कुछ न हुआ " +shamshiir-e-barhana-maang-gazab-baalon-kii-mahak-phir-vaisii-hii-bahadur-shah-zafar-ghazals," +शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही +जूड़े की गुंधावट क़हर-ए-ख़ुदा बालों की महक फिर वैसी ही +आँखें हैं कटोरा सी वो सितम गर्दन है सुराही-दार ग़ज़ब +और उसी में शराब-ए-सुर्ख़ी-ए-पाँ रखती है झलक फिर वैसी ही +हर बात में उस की गर्मी है हर नाज़ में उस के शोख़ी है +क़ामत है क़यामत चाल परी चलने में फड़क फिर वैसी ही +गर रंग भबूका आतिश है और बीनी शोला-ए-सरकश है +तो बिजली सी कौंदे है परी आरिज़ की चमक फिर वैसी ही +नौ-ख़ेज़ कुचें दो ग़ुंचा हैं है नर्म शिकम इक ख़िर्मन-ए-गुल +बारीक कमर जो शाख़-ए-गुल रखती है लचक फिर वैसी ही +है नाफ़ कोई गिर्दाब-ए-बला और गोल सुरीं रानें हैं सफ़ा +है साक़ बिलोरीं शम-ए-ज़िया पाँव की कफ़क फिर वैसी ही +महरम है हबाब-ए-आब-ए-रवाँ सूरज की किरन है उस पे लिपट +जाली की कुर्ती है वो बला गोटे की धनक फिर वैसी ही +वो गाए तो आफ़त लाए है हर ताल में लेवे जान निकाल +नाच उस का उठाए सौ फ़ित्ने घुँगरू की झनक फिर वैसी ही +हर बात पे हम से वो जो 'ज़फ़र' करता है लगावट मुद्दत से +और उस की चाहत रखते हैं हम आज त��क फिर वैसी ही " +qaaruun-uthaa-ke-sar-pe-sunaa-ganj-le-chalaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला +दुनिया से क्या बख़ील ब-जुज़ रंज ले चला +मिन्नत थी बोसा-ए-लब-ए-शीरीं कि दिल मिरा +मुझ को सू-ए-मज़ार-ए-शकर गंज ले चला +साक़ी सँभालता है तो जल्दी मुझे संभाल +वर्ना उड़ा के पाँ नशा-ए-बंज ले चला +दौड़ा के हाथ छाती पे हम उन की यूँ फिरे +जैसे कोई चोर आ के हो नारंज ले चला +चौसर का लुत्फ़ ये है कि जिस वक़्त पो पड़े +हम बर-चहार बोले तो बर-पंज ले चला +जिस दम 'ज़फ़र' ने पढ़ के ग़ज़ल हाथ से रखी +आँखों पे रख हर एक सुख़न-संज ले चला " +mar-gae-ai-vaah-un-kii-naaz-bardaarii-men-ham-bahadur-shah-zafar-ghazals," +मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम +दिल के हाथों से पड़े कैसी गिरफ़्तारी में हम +सब पे रौशन है हमारी सोज़िश-ए-दिल बज़्म में +शम्अ साँ जलते हैं अपनी गर्म-बाज़ारी में हम +याद में है तेरे दम की आमद-ओ-शुद पुर-ख़याल +बे-ख़बर सब से हैं इस दम की ख़बरदारी में हम +जब हँसाया गर्दिश-ए-गर्दूं ने हम को शक्ल-ए-गुल +मिस्ल-ए-शबनम हैं हमेशा गिर्या ओ ज़ारी में हम +चश्म ओ दिल बीना है अपने रोज़ ओ शब ऐ मर्दुमाँ +गरचे सोते हैं ब-ज़ाहिर पर हैं बेदारी में हम +दोश पर रख़्त-ए-सफ़र बाँधे है क्या ग़ुंचा सबा +देखते हैं सब को याँ जैसे कि तय्यारी में हम +कब तलक बे-दीद से या रब रखें चश्म-ए-वफ़ा +लग रहे हैं आज कल तो दिल की ग़म-ख़्वारी में हम +देख कर आईना क्या कहता है यारो अब वो शोख़ +माह से सद चंद बेहतर हैं अदा-दारी में हम +ऐ 'ज़फ़र' लिख तू ग़ज़ल बहर ओ क़वाफ़ी फेर कर +ख़ामा-ए-दुर-रेज़ से हैं अब गुहर-बारी में हम " +na-do-dushnaam-ham-ko-itnii-bad-khuuii-se-kyaa-haasil-bahadur-shah-zafar-ghazals," +न दो दुश्नाम हम को इतनी बद-ख़़ूई से क्या हासिल +तुम्हें देना ही होगा बोसा ख़म-रूई से क्या हासिल +दिल-आज़ारी ने तेरी कर दिया बिल्कुल मुझे बे-दिल +न कर अब मेरी दिल-जूई कि दिल-जूई से क्या हासिल +न जब तक चाक हो दिल फाँस कब दिल की निकलती है +जहाँ हो काम ख़ंजर का वहाँ सूई से क्या हासिल +बुराई या भलाई गो है अपने वास्ते लेकिन +किसी को क्यूँ कहें हम बद कि बद-गूई से क्या हासिल +न कर फ़िक्र-ए-ख़िज़ाब ऐ शैख़ तू पीरी में जाने दे +जवाँ होना नहीं मुमकिन सियह-रूई से क्या हासिल +चढ़ाए आस्तीं ख़ंजर-ब-कफ़ वो यूँ जो फिरता है +उसे क्या जाने है उस अरबदा-जूई से क्या हासिल +अबस पम्बा न रख दाग़-ए-दिल-ए-सोज़ाँ पे तू मेरे +कि अंगारे पे होगा चारागर रूई से क्या हासिल +शमीम-ए-ज़ुल्फ़ हो उस की तो हो फ़रह�� मिरे दिल को +सबा होवेगा मुश्क-चीं की ख़ुशबूई से क्या हासिल +न होवे जब तलक इंसाँ को दिल से मेल-ए-यक-जानिब +'ज़फ़र' लोगों के दिखलाने को यकसूई से क्या हासिल " +nahiin-ishq-men-is-kaa-to-ranj-hamen-ki-qaraar-o-shakeb-zaraa-na-rahaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा +ग़म-ए-इश्क़ तो अपना रफ़ीक़ रहा कोई और बला से रहा न रहा +दिया अपनी ख़ुदी को जो हम ने उठा वो जो पर्दा सा बीच में था न रहा +रहे पर्दे में अब न वो पर्दा-नशीं कोई दूसरा उस के सिवा न रहा +न थी हाल की जब हमें ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर +पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा +तिरे रुख़ के ख़याल में कौन से दिन उठे मुझ पे न फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-जज़ा +तिरी ज़ुल्फ़ के ध्यान में कौन सी शब मिरे सर पे हुजूम-ए-बला न रहा +हमें साग़र-ए-बादा के देने में अब करे देर जो साक़ी तो हाए ग़ज़ब +कि ये अहद-ए-नशात ये दौर-ए-तरब न रहेगा जहाँ में सदा न रहा +कई रोज़ में आज वो मेहर-लिक़ा हुआ मेरे जो सामने जल्वा-नुमा +मुझे सब्र ओ क़रार ज़रा न रहा उसे पास-ए-हिजाब-ओ-हया न रहा +तिरे ख़ंजर ओ तेग़ की आब-ए-रवाँ हुई जब कि सबील-ए-सितम-ज़दगाँ +गए कितने ही क़ाफ़िले ख़ुश्क-ज़बाँ कोई तिश्ना-ए-आब-ए-बक़ा न रहा +मुझे साफ़ बताए निगार अगर तो ये पूछूँ मैं रो रो के ख़ून-ए-जिगर +मले पाँव से किस के हैं दीदा-ए-तर कफ़-ए-पा पे जो रंग-ए-हिना न रहा +उसे चाहा था मैं ने कि रोक रखूँ मिरी जान भी जाए तो जाने न दूँ +किए लाख फ़रेब करोड़ फ़ुसूँ न रहा न रहा न रहा न रहा +लगे यूँ तो हज़ारों ही तीर-ए-सितम कि तड़पते रहे पड़े ख़ाक पे हम +वले नाज़ ओ करिश्मा की तेग़-ए-दो-दम लगी ऐसी कि तस्मा लगा न रहा +'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का +जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न रहा " +jab-kabhii-dariyaa-men-hote-saya-afgan-aap-hain-bahadur-shah-zafar-ghazals," +जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं +फ़िल्स-ए-माही को बताते माह-ए-रौशन आप हैं +सीते हैं सोज़न से चाक-ए-सीना क्या ऐ चारासाज़ +ख़ार-ए-ग़म सीने में अपने मिस्ल-ए-सोज़न आप हैं +प्यार से कर के हमाइल ग़ैर की गर्दन में हाथ +मारते तेग़-ए-सितम से मुझ को गर्दन आप हैं +खींच कर आँखों में अपनी सुर्मा-ए-दुम्बाला-दार +करते पैदा सेहर से नर्गिस में सोसन आप हैं +देख कर सहरा में मुझ को पहले घबराया था क़ैस +फिर जो पहचाना तो बोला हज़रत-ए-मन आप हैं +जी धड़कता है कहीं तार-ए-रग-ए-गुल ���ुभ न जाए +सेज पर फूलों की करते क़स्द-ए-ख़ुफ़तन आप हैं +क्या मज़ा है तेग़-ए-क़ातिल में कि अक्सर सैद-ए-इश्क़ +आन कर उस पर रगड़ते अपनी गर्दन आप हैं +मुझ से तुम क्या पूछते हो कैसे हैं हम क्या कहें +जी ही जाने है कि जैसे मुश्फ़िक़-ए-मन आप हैं +पुर-ग़ुरूर ओ पुर-तकब्बुर पुर-जफ़ा ओ पुर-सितम +पुर-फ़रेब ओ पुर-दग़ा पुर-मक्र ओ पुर-फ़न आप हैं +ज़ुल्म-पेशा ज़ु़ल्म-शेवा ज़ु़ल्म-रान ओ ज़ुल्म-दोस्त +दुश्मन-ए-दिल दुश्मन-ए-जाँ दुश्मन-ए-तन आप हैं +यक्का-ताज़ ओ नेज़ा-बाज़ ओ अरबदा-जू तुंद-ख़ू +तेग़-ज़न दश्ना-गुज़ार ओ नावक-अफ़गन आप हैं +तस्मा-कश तराज़ ओ ग़ारत-गर ताराज-साज़ +काफ़िर यग़माई ओ क़ज़्ज़ाक़ रहज़न आप हैं +फ़ित्ना-जू बेदाद-गर सफ़्फ़ाक ओ अज़्लम कीना-वर +गर्म-जंग ओ गर्म-क़त्ल ओ गर्म-कुश्तन आप हैं +बद-मिज़ाज ओ बद-दिमाग़ व बद-शिआ'र ओ बद-सुलूक +बद-तरीक़ ओ बद-ज़बाँ बद-अहद ओ बद-ज़न आप हैं +बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-मेहरबाँ ना-आश्ना +मेरे क़ातिल मेरे हासिद मेरे दुश्मन आप हैं +ऐ 'ज़फ़र' क्या पा-ए-क़ातिल के है बोसे की हवस +यूँ जो बिस्मिल हो के सरगर्म-ए-तपीदन आप हैं " +kyaa-kuchh-na-kiyaa-aur-hain-kyaa-kuchh-nahiin-karte-bahadur-shah-zafar-ghazals," +क्या कुछ न किया और हैं क्या कुछ नहीं करते +कुछ करते हैं ऐसा ब-ख़ुदा कुछ नहीं करते +अपने मरज़-ए-ग़म का हकीम और कोई है +हम और तबीबों की दवा कुछ नहीं करते +मालूम नहीं हम से हिजाब उन को है कैसा +औरों से तो वो शर्म ओ हया कुछ नहीं करते +गो करते हैं ज़ाहिर को सफ़ा अहल-ए-कुदूरत +पर दिल को नहीं करते सफ़ा कुछ नहीं करते +वो दिलबरी अब तक मिरी कुछ करते हैं लेकिन +तासीर तिरे नाले दिला कुछ नहीं करते +दिल हम ने दिया था तुझे उम्मीद-ए-वफ़ा पर +तुम हम से नहीं करते वफ़ा कुछ नहीं करते +करते हैं वो इस तरह 'ज़फ़र' दिल पे जफ़ाएँ +ज़ाहिर में ये जानो कि जफ़ा कुछ नहीं करते " +tufta-jaanon-kaa-ilaaj-ai-ahl-e-daanish-aur-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है +इश्क़ की आतिश बला है उस की सोज़िश और है +क्यूँ न वहशत में चुभे हर मू ब-शक्ल-ए-नीश-तेज़ +ख़ार-ए-ग़म की तेरे दीवाने की काविश और है +मुतरिबो बा-साज़ आओ तुम हमारी बज़्म में +साज़-ओ-सामाँ से तुम्हारी इतनी साज़िश और है +थूकता भी दुख़्तर-ए-रज़ पर नहीं मस्त-ए-अलस्त +जो कि है उस फ़ाहिशा पर ग़श वो फ़ाहिश और है +ताब क्या हम-ताब होवे उस से ख़ुर्शीद-ए-फ़लक +आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-दिल की अपने ताबिश और है +सब मिटा दें दिल से हैं जितनी कि उस में ख़्वाहिशें +गर हमें मालूम हो कुछ उस की ख़्वाहिश और है +अब्र मत हम-चश्म होना चश्म-ए-दरिया-बार से +तेरी बारिश और है और उस की बारिश और है +है तो गर्दिश चर्ख़ की भी फ़ित्ना-अंगेज़ी में ताक़ +तेरी चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा की लेक गर्दिश और है +बुत-परस्ती जिस से होवे हक़-परस्ती ऐ 'ज़फ़र' +क्या कहूँ तुझ से कि वो तर्ज़-ए-परस्तिश और है " +paan-khaa-kar-surma-kii-tahriir-phir-khiinchii-to-kyaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या +जब मिरा ख़ूँ हो चुका शमशीर फिर खींची तो क्या +ऐ मुहव्विस जब कि ज़र तेरे नसीबों में नहीं +तू ने मेहनत भी पय-ए-इक्सीर फिर खींची तो क्या +गर खिंचे सीने से नावक रूह तू क़ालिब से खींच +ऐ अजल जब खिंच गया वो तीर फिर खींची तो क्या +खींचता था पाँव मेरा पहले ही ज़ंजीर से +ऐ जुनूँ तू ने मिरी ज़ंजीर फिर खींची तो क्या +दार ही पर उस ने खींचा जब सर-ए-बाज़ार-इश्क़ +लाश भी मेरी पय-ए-तशहीर फिर खींची तो क्या +खींच अब नाला कोई ऐसा कि हो उस को असर +तू ने ऐ दिल आह-ए-पुर-तासीर फिर खींची तो क्या +चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना +देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या +खींच ले अव्वल ही से दिल की इनान-ए-इख़्तियार +तू ने गर ऐ आशिक़-ए-दिल-गीर फिर खींची तो क्या +क्या हुआ आगे उठाए गर 'ज़फ़र' अहसान-ए-अक़्ल +और अगर अब मिन्नत-ए-तदबीर फिर खींची तो क्या " +dekh-dil-ko-mire-o-kaafir-e-be-piir-na-tod-bahadur-shah-zafar-ghazals," +देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़ +घर है अल्लाह का ये इस की तो ता'मीर न तोड़ +ग़ुल सदा वादी-ए-वहशत में रखूँगा बरपा +ऐ जुनूँ देख मिरे पाँव की ज़ंजीर न तोड़ +देख टुक ग़ौर से आईना-ए-दिल को मेरे +इस में आता है नज़र आलम-ए-तस्वीर न तोड़ +ताज-ए-ज़र के लिए क्यूँ शम्अ का सर काटे है +रिश्ता-ए-उल्फ़त-ए-परवाना को गुल-गीर न तोड़ +अपने बिस्मिल से ये कहता था दम-ए-नज़अ वो शोख़ +था जो कुछ अहद सो ओ आशिक़-ए-दिल-गीर न तोड़ +रक़्स-ए-बिस्मिल का तमाशा मुझे दिखला कोई दम +दस्त ओ पा मार के दम तू तह-ए-शमशीर न तोड़ +सहम कर ऐ 'ज़फ़र' उस शोख़ कमाँ-दार से कह +खींच कर देख मिरे सीने से तू तीर न तोड़ " +vaaqif-hain-ham-ki-hazrat-e-gam-aise-shakhs-hain-bahadur-shah-zafar-ghazals," +वाक़िफ़ हैं हम कि हज़रत-ए-ग़म ऐसे शख़्स हैं +और फिर हम उन के यार हैं हम ऐसे शख़्स हैं +दीवाने तेरे दश्त में रक्खेंगे जब क़दम +मजनूँ भी लेगा उन के क़दम ऐसे शख़्स हैं +जिन पे हों ऐसे ज़ुल्म ओ सितम हम नहीं वो लोग +हों रोज़ बल्कि लुत्फ़ ओ करम ऐसे शख़���स हैं +यूँ तो बहुत हैं और भी ख़ूबान-ए-दिल-फ़रेब +पर जैसे पुर-फ़न आप हैं कम ऐसे शख़्स हैं +क्या क्या जफ़ा-कशों पे हैं उन दिलबरों के ज़ुल्म +ऐसों के सहते ऐसे सितम ऐसे शख़्स हैं +दीं क्या है बल्कि दीजिए ईमान भी उन्हें +ज़ाहिद ये बुत ख़ुदा की क़सम ऐसे शख़्स हैं +आज़ुर्दा हूँ अदू के जो कहने पे ऐ 'ज़फ़र' +ने ऐसे शख़्स वो हैं न हम ऐसे शख़्स हैं " +kyaa-kahuun-dil-maail-e-zulf-e-dotaa-kyuunkar-huaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ +ये भला चंगा गिरफ़्तार-ए-बला क्यूँकर हुआ +जिन को मेहराब-ब-इबादत हो ख़म-ए-अबरू-ए-यार +उन का काबे में कहो सज्दा अदा क्यूँकर हुआ +दीदा-ए-हैराँ हमारा था तुम्हारे ज़ेर-ए-पा +हम को हैरत है कि पैदा नक़्श-ए-पा क्यूँकर हुआ +नामा-बर ख़त दे के उस नौ-ख़त को तू ने क्या कहा +क्या ख़ता तुझ से हुई और वो ख़फ़ा क्यूँकर हुआ +ख़ाकसारी क्या अजब खोवे अगर दिल का ग़ुबार +ख़ाक से देखो कि आईना सफ़ा क्यूँकर हुआ +जिन को यकताई का दा'वा था वो मिस्ल-ए-आईना +उन को हैरत है कि पैदा दूसरा क्यूँकर हुआ +तेरे दाँतों के तसव्वुर से न था गर आब-दार +जो बहा आँसू वो दुर्र-ए-बे-बहा क्यूँकर हुआ +जो न होना था हुआ हम पर तुम्हारे इश्क़ में +तुम ने इतना भी न पूछा क्या हुआ क्यूँकर हुआ +वो तो है ना-आश्ना मशहूर आलम में 'ज़फ़र' +पर ख़ुदा जाने वो तुझ से आश्ना क्यूँकर हुआ " +ye-qissa-vo-nahiin-tum-jis-ko-qissa-khvaan-se-suno-bahadur-shah-zafar-ghazals," +ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो +मिरे फ़साना-ए-ग़म को मिरी ज़बाँ से सुनो +सुनाओ दर्द-ए-दिल अपना तो दम-ब-दम फ़रियाद +मिसाल-ए-नय मिरी हर एक उस्तुख़्वाँ से सुनो +करो हज़ार सितम ले के ज़िक्र क्या यक यार +शिकायत अपनी तुम इस अपने नीम-जाँ से सुनो +ख़ुदा के वास्ते ऐ हमदमो न बोलो तुम +पयाम लाया है क्या नामा-बर वहाँ से सुनो +तुम्हारे इश्क़ ने रुस्वा किया जहाँ में हमें +हमारा ज़िक्र न तुम क्यूँकि इक जहाँ से सुनो +सुनो तुम अपनी जो तेग़-ए-निगाह के औसाफ़ +जो तुम को सुनना हो उस शोख़-ए-दिल-सिताँ से सुनो +'ज़फ़र' वो बोसा तो क्या देगा पर कोई दुश्नाम +जो तुम को सुनना हो उस शोख़-ए-दिल-सिताँ से सुनो " +hote-hote-chashm-se-aaj-ashk-baarii-rah-gaii-bahadur-shah-zafar-ghazals," +होते होते चश्म से आज अश्क-बारी रह गई +आबरू बारे तिरी अब्र-ए-बहारी रह गई +आते आते इस तरफ़ उन की सवारी रह गई +दिल की दिल में आरज़ू-ए-जाँ-निसारी रह गई +हम को ख़तरा था कि लोगों में था चर्चा और कुछ +बात ख़त आने से त���रे पर हमारी रह गई +टुकड़े टुकड़े हो के उड़ जाएगा सब संग-ए-मज़ार +दिल में बा'द-अज़-मर्ग कुछ गर बे-क़रारी रह गई +इतना मिलिए ख़ाक में जो ख़ाक में ढूँडे कोई +ख़ाकसारी ख़ाक की गर ख़ाकसारी रह गई +आओ गर आना है क्यूँ गिन गिन के रखते हो क़दम +और कोई दम की है याँ दम-शुमारी रह गई +हो गया जिस दिन से अपने दिल पर उस को इख़्तियार +इख़्तियार अपना गया बे-इख़्तियारी रह गई +जब क़दम उस काफ़िर-ए-बद-केश की जानिब बढ़े +दूर पहुँचे सौ क़दम परहेज़-गारी रह गई +खींचते ही तेग़ अदा के दम हुआ अपना हवा +आह दिल में आरज़ू-ए-ज़ख़्म-ए-कारी रह गई +और तो ग़म-ख़्वार सारे कर चुके ग़म-ख़्वार्गी +अब फ़क़त है एक ग़म की ग़म-गुसारी रह गई +शिकवा अय्यारी का यारों से बजा है ऐ 'ज़फ़र' +इस ज़माने में यही है रस्म-ए-यारी रह गई " +jigar-ke-tukde-hue-jal-ke-dil-kabaab-huaa-bahadur-shah-zafar-ghazals," +जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ +ये इश्क़ जान को मेरे कोई अज़ाब हुआ +किया जो क़त्ल मुझे तुम ने ख़ूब काम किया +कि मैं अज़ाब से छूटा तुम्हें सवाब हुआ +कभी तो शेफ़्ता उस ने कहा कभी शैदा +ग़रज़ कि रोज़ नया इक मुझे ख़िताब हुआ +पियूँ न रश्क से ख़ूँ क्यूँकि दम-ब-दम अपना +कि साथ ग़ैर के वो आज हम-शराब हुआ +तुम्हारे लब के लब-ए-जाम ने लिए बोसे +लब अपने काटा किया मैं न कामयाब हुआ +गली गली तिरी ख़ातिर फिरा ब-चश्म-ए-पुर-आब +लगा के तुझ से दिल अपना बहुत ख़राब हुआ +तिरी गली में बहाए फिरे है सैल-ए-सरिश्क +हमारा कासा-ए-सर क्या हुआ हबाब हुआ +जवाब-ए-ख़त के न लिखने से ये हुआ मालूम +कि आज से हमें ऐ नामा-बर जवाब हुआ +मँगाई थी तिरी तस्वीर दिल की तस्कीं को +मुझे तो देखते ही और इज़्तिराब हुआ +सितम तुम्हारे बहुत और दिन हिसाब का एक +मुझे है सोच ये ही किस तरह हिसाब हुआ +'ज़फ़र' बदल के रदीफ़ और तू ग़ज़ल वो सुना +कि जिस का तुझ से हर इक शेर इंतिख़ाब हुआ " +vo-sau-sau-atkhaton-se-ghar-se-baahar-do-qadam-nikle-bahadur-shah-zafar-ghazals," +वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले +बला से उस की गर उस में किसी मुज़्तर का दम निकले +कहाँ आँसू के क़तरे ख़ून-ए-दिल से हैं बहम निकले +ये दिल में जम्अ थे मुद्दत से कुछ पैकान-ए-ग़म निकले +मिरे मज़मून-ए-सोज़-ए-दिल से ख़त सब जल गया मेरा +क़लम से हर्फ़ जो निकले शरर ही यक-क़लम निकले +निकाल ऐ चारागर तू शौक़ से लेकिन सर-ए-पैकाँ +उधर निकले जिगर से तीर उधर क़ालिब से दम निकले +तसव्वुर से लब-ए-लालीं के तेरे हम अगर रो दें +तो जो लख़्त-ए-जिगर आँखों से निकले इक रक़म निकले +नहीं डरते अगर हों लाख ज़िंदाँ यार ज़िंदाँ से +जुनून अब तो मिसाल-ए-नाला-ए-ज़ंजीर हम निकले +जिगर पर दाग़ लब पर दूद-ए-दिल और अश्क दामन में +तिरी महफ़िल से हम मानिंद-ए-शम्अ सुब्ह-दम निकले +अगर होता ज़माना गेसु-ए-शब-रंग का तेरे +मिरी शब-दीज़ सौदा का ज़ियादा-तर क़दम निकले +कजी जिन की तबीअत में है कब होती वो सीधी है +कहो शाख़-ए-गुल-ए-तस्वीर से किस तरह ख़म निकले +शुमार इक शब किया हम ने जो अपने दिल के दाग़ों से +तो अंजुम चर्ख़-ए-हशतुम के बहुत से उन से कम निकले +ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का +कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले +तमन्ना है ये दिल में जब तलक है दम में दम अपने +'ज़फ़र' मुँह से हमारे नाम उस का दम-ब-दम निकले " +na-daaim-gam-hai-ne-ishrat-kabhii-yuun-hai-kabhii-vuun-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है +तबद्दुल याँ है हर साअ'त कभी यूँ है कभी वूँ है +गरेबाँ-चाक हूँ गाहे उड़ाता ख़ाक हूँ गाहे +लिए फिरती मुझे वहशत कभी यूँ है कभी वूँ है +अभी हैं वो मिरे हमदम अभी हो जाएँगे दुश्मन +नहीं इक वज़्अ पर सोहबत कभी यूँ है कभी वूँ है +जो शक्ल-ए-शीशा गिर्यां हूँ तो मिस्ल-ए-जाम ख़ंदाँ हूँ +यही है याँ की कैफ़िय्यत कभी यूँ है कभी वूँ है +किसी वक़्त अश्क हैं जारी किसी वक़्त आह और ज़ारी +ग़रज़ हाल-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त कभी यूँ है कभी वूँ है +कोई दिन है बहार-ए-गुल फिर आख़िर है ख़िज़ाँ बिल्कुल +चमन है मंज़िल-ए-इबरत कभी यूँ है कभी वूँ है +'ज़फ़र' इक बात पर दाइम वो होवे किस तरह क़ाइम +जो अपनी फेरता निय्यत कभी यूँ है कभी वूँ है " +tukde-nahiin-hain-aansuon-men-dil-ke-chaar-paanch-bahadur-shah-zafar-ghazals," +टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच +सुरख़ाब बैठे पानी में हैं मिल के चार पाँच +मुँह खोले हैं ये ज़ख़्म जो बिस्मिल के चार पाँच +फिर लेंगे बोसे ख़ंजर-ए-क़ातिल के चार पाँच +कहने हैं मतलब उन से हमें दिल के चार पाँच +क्या कहिए एक मुँह हैं वहाँ मिल के चार पाँच +दरिया में गिर पड़ा जो मिरा अश्क एक गर्म +बुत-ख़ाने लब पे हो गए साहिल के चार पाँच +दो-चार लाशे अब भी पड़े तेरे दर पे हैं +और आगे दब चुके हैं तले गिल के चार पाँच +राहें हैं दो मजाज़ ओ हक़ीक़त है जिन का नाम +रस्ते नहीं हैं इश्क़ की मंज़िल के चार पाँच +रंज ओ ताब मुसीबत ओ ग़म यास ओ दर्द ओ दाग़ +आह ओ फ़ुग़ाँ रफ़ीक़ हैं ये दिल के चार पाँच +दो तीन झटके दूँ जूँ ही वहशत के ज़ोर में +ज़िंदाँ में टु���ड़े होवें सलासिल के चार पाँच +फ़रहाद ओ क़ैस ओ वामिक़ ओ अज़रा थे चार दोस्त +अब हम भी आ मिले तो हुए मिल के चार पाँच +नाज़ ओ अदा ओ ग़म्ज़ा निगह पंजा-ए-मिज़ा +मारें हैं एक दिल को ये पिल पिल के चार पाँच +ईमा है ये कि देवेंगे नौ दिन के बाद दिल +लिख भेजे ख़त में शे'र जो बे-दिल के चार पाँच +हीरे के नौ-रतन नहीं तेरे हुए हैं जमा +ये चाँदनी के फूल मगर खिल के चार पाँच +मीना-ए-नुह-फ़लक है कहाँ बादा-ए-नशात +शीशे हैं ये तो ज़हर-ए-हलाहल के चार पाँच +नाख़ुन करें हैं ज़ख़्मों को दो दो मिला के एक +थे आठ दस सो हो गए अब छिल के चार पाँच +गर अंजुम-ए-फ़लक से भी तादाद कीजिए +निकलें ज़ियादा दाग़ मिरे दिल के चार पाँच +मारें जो सर पे सिल को उठा कर क़लक़ से हम +दस पाँच टुकड़े सर के हों और सिल के चार पाँच +मान ऐ 'ज़फ़र' तू पंज-तन ओ चार-यार को +हैं सदर-ए-दीन की यही महफ़िल के चार पाँच " +yaan-khaak-kaa-bistar-hai-gale-men-kafanii-hai-bahadur-shah-zafar-ghazals," +याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है +वाँ हाथ में आईना है गुल पैरहनी है +हाथों से हमें इश्क़ के दिन रात नहीं चैन +फ़रियाद ओ फ़ुग़ाँ दिन को है शब नारा-ज़नी है +हुश्यार हो ग़फ़लत से तू ग़ाफ़िल न हो ऐ दिल +अपनी तो नज़र में ये जगह बे-वतनी है +कुछ कह नहीं सकता हूँ ज़बाँ से कि ज़रा देख +क्या जाए है जिस जाए न कुछ दम-ज़दनी है +मिज़्गाँ पे मिरे लख़्त-ए-जिगर ही नहीं यारो +इस तार से वो रिश्ता अक़ीक़-ए-यमनी है +लिख और ग़ज़ल क़ाफ़िए को फेर 'ज़फ़र' तू +अब तब्अ' की दरिया की तिरी मौज-ज़नी है " +itnaa-na-apne-jaame-se-baahar-nikal-ke-chal-bahadur-shah-zafar-ghazals," +इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल +दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल +कम-ज़र्फ़ पुर-ग़ुरूर ज़रा अपना ज़र्फ़ देख +मानिंद जोश-ए-ग़म न ज़ियादा उबल के चल +फ़ुर्सत है इक सदा की यहाँ सोज़-ए-दिल के साथ +उस पर सपंद-वार न इतना उछल के चल +ये ग़ोल-वश हैं इन को समझ तू न रहनुमा +साए से बच के अहल-ए-फ़रेब-व-दग़ल के चल +औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल +बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल +इंसाँ को कल का पुतला बनाया है उस ने आप +और आप ही वो कहता है पुतले को कल के चल +फिर आँखें भी तो दीं हैं कि रख देख कर क़दम +कहता है कौन तुझ को न चल चल सँभल के चल +है तुर्फ़ा अम्न-गाह निहाँ-ख़ाना-ए-अदम +आँखों के रू-ब-रू से तू लोगों के टल के चल +क्या चल सकेगा हम से कि पहचानते हैं हम +तू लाख अपनी चाल को ज़ालिम बदल के चल +है शम्अ सर के बल जो मोहब्बत में गर्म हो +परवाना अपने दिल से ये कहता है जल के चल +बुलबुल के होश निकहत-ए-गुल की तरह उड़ा +गुलशन में मेरे साथ ज़रा इत्र मल के चल +गर क़स्द सू-ए-दिल है तिरा ऐ निगाह-ए-यार +दो-चार तीर पैक से आगे अजल के चल +जो इम्तिहान-ए-तब्अ करे अपना ऐ 'ज़फ़र' +तो कह दो उस को तौर पे तू इस ग़ज़ल के चल " +hai-justujuu-ki-khuub-se-hai-khuub-tar-kahaan-altaf-hussain-hali-ghazals," +है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ +अब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ +हैं दौर-ए-जाम-ए-अव्वल-ए-शब में ख़ुदी से दूर +होती है आज देखिए हम को सहर कहाँ +या रब इस इख़्तिलात का अंजाम हो ब-ख़ैर +था उस को हम से रब्त मगर इस क़दर कहाँ +इक उम्र चाहिए कि गवारा हो नीश-ए-इश्क़ +रक्खी है आज लज़्ज़त-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर कहाँ +बस हो चुका बयाँ कसल-ओ-रंज-ए-राह का +ख़त का मिरे जवाब है ऐ नामा-बर कहाँ +कौन ओ मकाँ से है दिल-ए-वहशी कनारा-गीर +इस ख़ानुमाँ-ख़राब ने ढूँडा है घर कहाँ +हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और +आलम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ +होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की +दिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ +'हाली' नशात-ए-नग़्मा-ओ-मय ढूँढते हो अब +आए हो वक़्त-ए-सुब्ह रहे रात भर कहाँ " +ab-vo-aglaa-saa-iltifaat-nahiin-altaf-hussain-hali-ghazals," +अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं +जिस पे भूले थे हम वो बात नहीं +मुझ को तुम से ए'तिमाद-ए-वफ़ा +तुम को मुझ से पर इल्तिफ़ात नहीं +रंज क्या क्या हैं एक जान के साथ +ज़िंदगी मौत है हयात नहीं +यूँही गुज़रे तो सहल है लेकिन +फ़ुर्सत-ए-ग़म को भी सबात नहीं +कोई दिल-सोज़ हो तो कीजे बयाँ +सरसरी दिल की वारदात नहीं +ज़र्रा ज़र्रा है मज़हर-ए-ख़ुर्शीद +जाग ऐ आँख दिन है रात नहीं +क़ैस हो कोहकन हो या 'हाली' +आशिक़ी कुछ किसी की ज़ात नहीं " +us-ke-jaate-hii-ye-kyaa-ho-gaii-ghar-kii-suurat-altaf-hussain-hali-ghazals," +उस के जाते ही ये क्या हो गई घर की सूरत +न वो दीवार की सूरत है न दर की सूरत +किस से पैमान-ए-वफ़ा बाँध रही है बुलबुल +कल न पहचान सकेगी गुल-ए-तर की सूरत +है ग़म-ए-रोज़-ए-जुदाई न नशात-ए-शब-ए-वस्ल +हो गई और ही कुछ शाम-ओ-सहर की सूरत +अपनी जेबों से रहें सारे नमाज़ी हुश्यार +इक बुज़ुर्ग आते हैं मस्जिद में ख़िज़र की सूरत +देखिए शैख़ मुसव्विर से खिचे या न खिचे +सूरत और आप से बे-ऐब बशर की सूरत +वाइ'ज़ो आतिश-ए-दोज़ख़ से जहाँ को तुम ने +ये डराया है कि ख़ुद बन गए डर की सूरत +क्या ख़बर ज़ाहिद-ए-क़ाने को कि क्या चीज़ है हिर्स +उस ने देखी ही नहीं कीसा-ए-ज़र की सूरत +मैं बचा तीर-ए-हवादिस से न���शाना बन कर +आड़े आई मिरी तस्लीम-ए-सिपर की सूरत +शौक़ में उस के मज़ा दर्द में उस के लज़्ज़त +नासेहो उस से नहीं कोई मफ़र की सूरत +हमला अपने पे भी इक बाद-ए-हज़ीमत है ज़रूर +रह गई है यही इक फ़त्ह ओ ज़फ़र की सूरत +रहनुमाओं के हुए जाते हैं औसान ख़ता +राह में कुछ नज़र आती है ख़तर की सूरत +यूँ तो आया है तबाही में ये बेड़ा सौ बार +पर डराती है बहुत आज भँवर की सूरत +उन को 'हाली' भी बुलाते हैं घर अपने मेहमाँ +देखना आप की और आप के घर की सूरत " +kah-do-koii-saaqii-se-ki-ham-marte-hain-pyaase-altaf-hussain-hali-ghazals," +कह दो कोई साक़ी से कि हम मरते हैं प्यासे +गर मय नहीं दे ज़हर ही का जाम बला से +जो कुछ है सो है उस के तग़ाफ़ुल की शिकायत +क़ासिद से है तकरार न झगड़ा है सबा से +दल्लाला ने उम्मीद दिलाई तो है लेकिन +देते नहीं कुछ दिल को तसल्ली ये दिलासे +है वस्ल तो तक़दीर के हाथ ऐ शह-ए-ख़ूबाँ +याँ हैं तो फ़क़त तेरी मोहब्बत के हैं प्यासे +प्यासे तिरे सर-गश्ता हैं जो राह-ए-तलब में +होंटों को वो करते नहीं तर आब-ए-बक़ा से +दर गुज़रे दवा से तो भरोसे पे दुआ के +दर गुज़रें दुआ से भी दुआ है ये ख़ुदा से +इक दर्द हो बस आठ पहर दिल में कि जिस को +तख़फ़ीफ़ दवा से हो न तस्कीन दुआ से +'हाली' दिल-ए-इंसाँ में है गुम दौलत-ए-कौनैन +शर्मिंदा हों क्यूँ ग़ैर के एहसान-ओ-अता से +जब वक़्त पड़े दीजिए दस्तक दर-ए-दिल पर +झुकिए फ़ुक़रा से न झमकिये उमरा से " +dil-ko-dard-aashnaa-kiyaa-tuu-ne-altaf-hussain-hali-ghazals," +दिल को दर्द-आश्ना किया तू ने +दर्द-ए-दिल को दवा किया तू ने +तब-ए-इंसाँ को दी सिरिश्त-ए-वफ़ा +ख़ाक को कीमिया किया तू ने +वस्ल-ए-जानाँ मुहाल ठहराया +क़त्ल-ए-आशिक़ रवा किया तू ने +था न जुज़ ग़म बिसात-ए-आशिक़ में +ग़म को राहत-फ़ज़ा किया तू ने +जान थी इक वबाल फ़ुर्क़त में +शौक़ को जाँ-गुज़ा किया तू ने +थी मोहब्बत में नंग मिन्नत-ए-ग़ैर +जज़्ब-ए-दिल को रसा किया तू ने +राह ज़ाहिद को जब कहीं न मिली +दर-ए-मय-ख़ाना वा किया तू ने +क़त्अ होने ही जब लगा पैवंद +ग़ैर को आश्ना किया तू ने +थी जहाँ कारवाँ को देनी राह +इश्क़ को रहनुमा किया तू ने +नाव भर कर जहाँ डुबोनी थी +अक़्ल को नाख़ुदा किया तू ने +बढ़ गई जब पिदर को मेहर-ए-पिसर +उस को उस से जुदा किया तू ने +जब हुआ मुल्क ओ माल रहज़न-ए-होश +बादशह को गदा किया तू ने +जब मिली काम-ए-जाँ को लज़्ज़त-ए-दर्द +दर्द को बे-दवा किया तू ने +जब दिया राह-रौ को ज़ौक़-ए-तलब +सई को ना-रसा किया तू ने +पर्दा-ए-चश्म थ��� हिजाब बहुत +हुस्न को ख़ुद-नुमा किया तू ने +इश्क़ को ताब-ए-इंतिज़ार न थी +ग़ुर्फ़ा इक दिल में वा किया तू ने +हरम आबाद और दैर ख़राब +जो किया सब बजा किया तू ने +सख़्त अफ़्सुर्दा तब्अ' थी अहबाब +हम को जादू नवा किया तू ने +फिर जो देखा तो कुछ न था या रब +कौन पूछे कि क्या किया तू ने +'हाली' उट्ठा हिला के महफ़िल को +आख़िर अपना कहा किया तू ने " +ranj-aur-ranj-bhii-tanhaaii-kaa-altaf-hussain-hali-ghazals," +रंज और रंज भी तन्हाई का +वक़्त पहुँचा मिरी रुस्वाई का +उम्र शायद न करे आज वफ़ा +काटना है शब-ए-तन्हाई का +तुम ने क्यूँ वस्ल में पहलू बदला +किस को दा'वा है शकेबाई का +एक दिन राह पे जा पहुँचे हम +शौक़ था बादिया-पैमाई का +उस से नादान ही बन कर मिलिए +कुछ इजारा नहीं दानाई का +सात पर्दों में नहीं ठहरती आँख +हौसला क्या है तमाशाई का +दरमियाँ पा-ए-नज़र है जब तक +हम को दा'वा नहीं बीनाई का +कुछ तो है क़द्र तमाशाई की +है जो ये शौक़ ख़ुद-आराई का +उस को छोड़ा तो है लेकिन ऐ दिल +मुझ को डर है तिरी ख़ुद-राई का +बज़्म-ए-दुश्मन में न जी से उतरा +पूछना क्या तिरी ज़ेबाई का +यही अंजाम था ऐ फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ +गुल ओ बुलबुल की शनासाई का +मदद ऐ जज़्बा-ए-तौफ़ीक़ कि याँ +हो चुका काम तवानाई का +मोहतसिब उज़्र बहुत हैं लेकिन +इज़्न हम को नहीं गोयाई का +होंगे 'हाली' से बहुत आवारा +घर अभी दूर है रुस्वाई का " +haq-vafaa-ke-jo-ham-jataane-lage-altaf-hussain-hali-ghazals," +हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे +आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे +था यहाँ दिल में तान-ए-वस्ल-ए-अदू +उज़्र उन की ज़बाँ पे आने लगे +हम को जीना पड़ेगा फ़ुर्क़त में +वो अगर हिम्मत आज़माने लगे +डर है मेरी ज़बाँ न खुल जाए +अब वो बातें बहुत बनाने लगे +जान बचती नज़र नहीं आती +ग़ैर उल्फ़त बहुत जताने लगे +तुम को करना पड़ेगा उज़्र-ए-जफ़ा +हम अगर दर्द-ए-दिल सुनाने लगे +सख़्त मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम +हम भी आख़िर को जी चुराने लगे +जी में है लूँ रज़ा-ए-पीर-ए-मुग़ाँ +क़ाफ़िले फिर हरम को जाने लगे +सिर्र-ए-बातिन को फ़ाश कर या रब +अहल-ए-ज़ाहिर बहुत सताने लगे +वक़्त-ए-रुख़्सत था सख़्त 'हाली' पर +हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे " +hai-ye-takiya-tirii-ataaon-par-altaf-hussain-hali-ghazals," +है ये तकिया तिरी अताओं पर +वही इसरार है ख़ताओं पर +रहें ना-आश्ना ज़माने से +हक़ है तेरा ये आश्नाओं पर +रहरवो बा-ख़बर रहो कि गुमाँ +रहज़नी का है रहनुमाओं पर +है वो देर आश्ना तो ऐब है क्या +मरते हैं हम इन्हीं अदाओं पर +उस के कूचे में है�� वो बे-पर ओ बाल +उड़ते फिरते हैं जो हवाओं पर +शहसवारों पे बंद है जो राह +वक़्फ़ है याँ बरहना पाँव पर +नहीं मुनइ'म को उस की बूँद नसीब +मेंह बरसता है जो गदाओं पर +नहीं महदूद बख़्शिशें तेरी +ज़ाहिदों पर न पारसाओं पर +हक़ से दरख़्वास्त अफ़्व की 'हाली' +कीजे किस मुँह से इन ख़ताओं पर " +vasl-kaa-us-ke-dil-e-zaar-tamannaaii-hai-altaf-hussain-hali-ghazals," +वस्ल का उस के दिल-ए-ज़ार तमन्नाई है +न मुलाक़ात है जिस से न शनासाई है +क़त्अ उम्मीद ने दिल कर दिए यकसू सद शुक्र +शक्ल मुद्दत में ये अल्लाह ने दिखलाई है +क़ूव्वत-ए-दस्त-ए-ख़ुदाई है शकेबाई में +वक़्त जब आ के पड़ा है यही काम आई है +डर नहीं ग़ैर का जो कुछ है सो अपना डर है +हम ने जब खाई है अपने ही से ज़क खाई है +नशे में चूर न हों झाँझ में मख़्मूर न हों +पंद ये पीर-ए-ख़राबात ने फ़रमाई है +नज़र आती नहीं अब दिल में तमन्ना कोई +बाद मुद्दत के तमन्ना मिरी बर आई है +बात सच्ची कही और उँगलियाँ उट्ठीं सब की +सच में 'हाली' कोई रुस्वाई सी रुस्वाई है " +jiite-jii-maut-ke-tum-munh-men-na-jaanaa-hargiz-altaf-hussain-hali-ghazals," +जीते जी मौत के तुम मुँह में न जाना हरगिज़ +दोस्तो दिल न लगाना न लगाना हरगिज़ +इश्क़ भी ताक में बैठा है नज़र-बाज़ों की +देखना शेर से आँखें न लड़ाना हरगिज़ +हाथ मलने न हों पीरी में अगर हसरत से +तो जवानी में न ये रोग बसाना हरगिज़ +जितने रस्ते थे तिरे हो गए वीराँ ऐ इश्क़ +आ के वीरानों में अब घर न बसाना हरगिज़ +कूच सब कर गए दिल्ली से तिरे क़द्र-शनास +क़द्र याँ रह के अब अपनी न गँवाना हरगिज़ +तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़ +न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़ +ढूँडता है दिल-ए-शोरीदा बहाने मुतरिब +दर्द-अंगेज़ ग़ज़ल कोई न गाना हरगिज़ +सोहबतें अगली मुसव्विर हमें याद आएँगी +कोई दिलचस्प मुरक़्क़ा न दिखाना हरगिज़ +ले के दाग़ आएगा सीने पे बहुत ऐ सय्याह +देख इस शहर के खंडरों में न जाना हरगिज़ +चप्पे चप्पे पे हैं याँ गौहर-ए-यकता तह-ए-ख़ाक +दफ़्न होगा कहीं इतना न ख़ज़ाना हरगिज़ +मिट गए तेरे मिटाने के निशाँ भी अब तो +ऐ फ़लक इस से ज़ियादा न मिटाना हरगिज़ +वो तो भूले थे हमें हम भी उन्हें भूल गए +ऐसा बदला है न बदलेगा ज़माना हरगिज़ +हम को गर तू ने रुलाया तो रुलाया ऐ चर्ख़ +हम पे ग़ैरों को तो ज़ालिम न हँसाना हरगिज़ +आख़िरी दौर में भी तुझ को क़सम है साक़ी +भर के इक जाम न प्यासों को पिलाना हरगिज़ +बख़्त सोए हैं बहुत जाग के ऐ दौर-ए-ज़माँ +न ��भी नींद के मातों को जगाना हरगिज़ +कभी ऐ इल्म ओ हुनर घर था तुम्हारा दिल्ली +हम को भूले हो तो घर भूल न जाना हरगिज़ +शाइरी मर चुकी अब ज़िंदा न होगी यारो +याद कर कर के उसे जी न कुढ़ाना हरगिज़ +'ग़ालिब' ओ 'शेफ़्ता' ओ 'नय्यर' ओ 'आज़ुर्दा' ओ 'ज़ौक़' +अब दिखाएगा ये शक्लें न ज़माना हरगिज़ +'मोमिन' ओ 'अल्वी' ओ 'सहबाई' ओ 'ममनूँ' के बाद +शेर का नाम न लेगा कोई दाना हरगिज़ +कर दिया मर के यगानों ने यगाना हम को +वर्ना याँ कोई न था हम में यगाना हरगिज़ +'दाग़' ओ 'मजरूह' को सुन लो कि फिर इस गुलशन में +न सुनेगा कोई बुलबुल का तराना हरगिज़ +रात आख़िर हुई और बज़्म हुई ज़ेर-ओ-ज़बर +अब न देखोगे कभी लुत्फ़-ए-शबाना हरगिज़ +बज़्म-ए-मातम तो नहीं बज़्म-ए-सुख़न है 'हाली' +याँ मुनासिब नहीं रो रो के रुलाना हरगिज़ " +koii-mahram-nahiin-miltaa-jahaan-men-altaf-hussain-hali-ghazals," +कोई महरम नहीं मिलता जहाँ में +मुझे कहना है कुछ अपनी ज़बाँ में +क़फ़स में जी नहीं लगता किसी तरह +लगा दो आग कोई आशियाँ में +कोई दिन बुल-हवस भी शाद हो लें +धरा क्या है इशारात-ए-निहाँ में +कहीं अंजाम आ पहुँचा वफ़ा का +घुला जाता हूँ अब के इम्तिहाँ में +नया है लीजिए जब नाम उस का +बहुत वुसअ'त है मेरी दास्ताँ में +दिल-ए-पुर-दर्द से कुछ काम लूँगा +अगर फ़ुर्सत मिली मुझ को जहाँ में +बहुत जी ख़ुश हुआ 'हाली' से मिल कर +अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जहाँ में " +hashr-tak-yaan-dil-shakebaa-chaahiye-altaf-hussain-hali-ghazals," +हश्र तक याँ दिल शकेबा चाहिए +कब मिलें दिलबर से देखा चाहिए +है तजल्ली भी नक़ाब-ए-रू-ए-यार +उस को किन आँखों से देखा चाहिए +ग़ैर-मुमकिन है न हो तासीर-ए-ग़म +हाल-ए-दिल फिर उस को लिक्खा चाहिए +है दिल-अफ़गारों की दिलदारी ज़रूर +गर नहीं उल्फ़त मदारा चाहिए +है कुछ इक बाक़ी ख़लिश उम्मीद की +ये भी मिट जाए तो फिर क्या चाहिए +दोस्तों की भी न हो परवा जिसे +बे-नियाज़ी उस की देखा चाहिए +भा गए हैं आप के अंदाज़ ओ नाज़ +कीजिए इग़्माज़ जितना चाहिए +शैख़ है इन की निगह जादू भरी +सोहबत-ए-रिंदाँ से बचना चाहिए +लग गई चुप 'हाली'-ए-रंजूर को +हाल इस का किस से पूछा चाहिए " +haqiiqat-mahram-e-asraar-se-puuchh-altaf-hussain-hali-ghazals," +हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ +मज़ा अंगूर का मय-ख़्वार से पूछ +वफ़ा अग़्यार की अग़्यार से सुन +मिरी उल्फ़त दर ओ दीवार से पूछ +हमारी आह-ए-बे-तासीर का हाल +कुछ अपने दिल से कुछ अग़्यार से पूछ +दिलों में डालना ज़ौक़-ए-असीरी +कमंद-ए-गेसू-ए-ख़मदार से पूछ +दिल-ए-महजूर से सुन लज़्ज़त-ए-���स्ल +नशात-ए-आफ़ियत बीमार से पूछ +नहीं जुज़ गिर्या-ए-ग़म हासिल-ए-इश्क़ +हमारी चश्म-ए-दरिया-बार से पूछ +नहीं आब-ए-बक़ा जुज़ जल्वा-ए-दोस्त +किसी लब-तिश्ना-ए-दीदार से पूछ +फ़रेब-ए-वादा-ए-दिलदार की क़द्र +शहीद-ए-ख़ंजर-ए-इंकार से पूछ +फ़ुग़ान-ए-शौक़ को माने नहीं वस्ल +ये नुक्ता अंदलीब-ए-ज़ार से पूछ +तसव्वुर में किया करते हैं जो हम +वो तस्वीर-ए-ख़याल-ए-यार से पूछ +मता-ए-बे-बहा है शेर-ए-'हाली' +मिरी क़ीमत मिरी गुफ़्तार से पूछ " +dil-se-khayaal-e-dost-bhulaayaa-na-jaaegaa-altaf-hussain-hali-ghazals," +दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा +सीने में दाग़ है कि मिटाया न जाएगा +तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त +उल्फ़त वो राज़ है कि छुपाया न जाएगा +ऐ दिल रज़ा-ए-ग़ैर है शर्त-ए-रज़ा-ए-दोस्त +ज़िन्हार बार-ए-इश्क़ उठाया न जाएगा +देखी हैं ऐसी उन की बहुत मेहरबानियाँ +अब हम से मुँह में मौत के जाया न जाएगा +मय तुंद ओ ज़र्फ़-ए-हौसला-ए-अहल-ए-बज़्म तंग +साक़ी से जाम भर के पिलाया न जाएगा +राज़ी हैं हम कि दोस्त से हो दुश्मनी मगर +दुश्मन को हम से दोस्त बनाया न जाएगा +क्यूँ छेड़ते हो ज़िक्र न मिलने का रात के +पूछेंगे हम सबब तो बताया न जाएगा +बिगड़ें न बात बात पे क्यूँ जानते हैं वो +हम वो नहीं कि हम को मनाया न जाएगा +मिलना है आप से तो नहीं हस्र ग़ैर पर +किस किस से इख़्तिलात बढ़ाया न जाएगा +मक़्सूद अपना कुछ न खुला लेकिन इस क़दर +या'नी वो ढूँडते हैं जो पाया न जाएगा +झगड़ों में अहल-ए-दीं के न 'हाली' पड़ें बस आप +क़िस्सा हुज़ूर से ये चुकाया न जाएगा " +go-javaanii-men-thii-kaj-raaii-bahut-altaf-hussain-hali-ghazals," +गो जवानी में थी कज-राई बहुत +पर जवानी हम को याद आई बहुत +ज़ेर-ए-बुर्क़ा तू ने क्या दिखला दिया +जम्अ हैं हर सू तमाशाई बहुत +हट पे इस की और पिस जाते हैं दिल +रास है कुछ उस को ख़ुद-राई बहुत +सर्व या गुल आँख में जचते नहीं +दिल पे है नक़्श उस की रानाई बहुत +चूर था ज़ख़्मों में और कहता था दिल +राहत इस तकलीफ़ में पाई बहुत +आ रही है चाह-ए-यूसुफ़ से सदा +दोस्त याँ थोड़े हैं और भाई बहुत +वस्ल के हो हो के सामाँ रह गए +मेंह न बरसा और घटा छाई बहुत +जाँ-निसारी पर वो बोल उट्ठे मिरी +हैं फ़िदाई कम तमाशाई बहुत +हम ने हर अदना को आला कर दिया +ख़ाकसारी अपनी काम आई बहुत +कर दिया चुप वाक़िआत-ए-दहर ने +थी कभी हम में भी गोयाई बहुत +घट गईं ख़ुद तल्ख़ियाँ अय्याम की +या गई कुछ बढ़ शकेबाई बहुत +हम न कहते थे कि 'हाली' चुप रहो +रास��त-गोई में है रुस्वाई बहुत " +main-to-main-gair-ko-marne-se-ab-inkaar-nahiin-altaf-hussain-hali-ghazals," +मैं तो मैं ग़ैर को मरने से अब इंकार नहीं +इक क़यामत है तिरे हाथ में तलवार नहीं +कुछ पता मंज़िल-ए-मक़्सूद का पाया हम ने +जब ये जाना कि हमें ताक़त-ए-रफ़्तार नहीं +चश्म-ए-बद-दूर बहुत फिरते हैं अग़्यार के साथ +ग़ैरत-ए-इश्क़ से अब तक वो ख़बर-दार नहीं +हो चुका नाज़ उठाने में है गो काम तमाम +लिल्लाहिल-हम्द कि बाहम कोई तकरार नहीं +मुद्दतों रश्क ने अग़्यार से मिलने न दिया +दिल ने आख़िर ये दिया हुक्म कि कुछ आर नहीं +अस्ल मक़्सूद का हर चीज़ में मिलता है पता +वर्ना हम और किसी शय के तलबगार नहीं +बात जो दिल में छुपाते नहीं बनती 'हाली' +सख़्त मुश्किल है कि वो क़ाबिल-ए-इज़हार नहीं " +ishq-ko-tark-e-junuun-se-kyaa-garaz-altaf-hussain-hali-ghazals," +इश्क़ को तर्क-ए-जुनूँ से क्या ग़रज़ +चर्ख़-ए-गर्दां को सुकूँ से क्या ग़रज़ +दिल में है ऐ ख़िज़्र गर सिदक़-ए-तलब +राह-रौ को रहनुमों से क्या ग़रज़ +हाजियो है हम को घर वाले से काम +घर के मेहराब ओ सुतूँ से क्या ग़रज़ +गुनगुना कर आप रो पड़ते हैं जो +उन को चंग ओ अरग़नूँ से क्या ग़रज़ +नेक कहना नेक जिस को देखना +हम को तफ़्तीश-ए-दरूँ से क्या ग़रज़ +दोस्त हैं जब ज़ख़्म-ए-दिल से बे-ख़बर +उन को अपने अश्क-ए-ख़ूँ से क्या ग़रज़ +इश्क़ से है मुजतनिब ज़ाहिद अबस +शेर को सैद-ए-ज़बूँ से क्या ग़रज़ +कर चुका जब शैख़ तस्ख़ीर-ए-क़ुलूब +अब उसे दुनिया-ए-दूँ से क्या ग़रज़ +आए हो 'हाली' पए-तस्लीम याँ +आप को चून-ओ-चगूँ से क्या ग़रज़ " +kabk-o-qumrii-men-hai-jhagdaa-ki-chaman-kis-kaa-hai-altaf-hussain-hali-ghazals," +कब्क ओ क़ुमरी में है झगड़ा कि चमन किस का है +कल बता देगी ख़िज़ाँ ये कि वतन किस का है +फ़ैसला गर्दिश-ए-दौराँ ने किया है सौ बार +मर्व किस का है बदख़शान ओ ख़ुतन किस का है +दम से यूसुफ़ के जब आबाद था याक़ूब का घर +चर्ख़ कहता था कि ये बैत-ए-हुज़न किस का है +मुतमइन इस से मुसलमाँ न मसीही न यहूद +दोस्त क्या जानिए ये चर्ख़-ए-कुहन किस का है +वाइ'ज़ इक ऐब से तू पाक है या ज़ात-ए-ख़ुदा +वर्ना बे-ऐब ज़माने में चलन किस का है +आज कुछ और दिनों से है सिवा इस्तिग़राक़ +अज़्म-ए-तस्ख़ीर फिर ऐ शेख़-ए-ज़मन किस का है +आँख पड़ती है हर इक अहल-ए-नज़र की तुम पर +तुम में रूप ऐ गुल ओ नसरीन ओ समन किस का है +इश्क़ उधर अक़्ल इधर धुन में चले हैं तेरी +रस्ता अब देखिए दोनों में कठिन किस का है +शान देखी नहीं गर तू ने चमन में उस की +वलवला तुझ में ये ऐ मुर्ग़-��-चमन किस का है +हैं फ़साहत में मसल वाइ'ज़ ओ 'हाली' दोनों +देखना ये है कि बे-लाग सुख़न किस का है " +vaan-agar-jaaen-to-le-kar-jaaen-kyaa-altaf-hussain-hali-ghazals," +वाँ अगर जाएँ तो ले कर जाएँ क्या +मुँह उसे हम जा के ये दिखलाएँ क्या +दिल में है बाक़ी वही हिर्स-ए-गुनाह +फिर किए से अपने हम पछताएँ क्या +आओ लें उस को हमीं जा कर मना +उस की बे-परवाइयों पर जाएँ क्या +दिल को मस्जिद से न मंदिर से है उन्स +ऐसे वहशी को कहीं बहलाएँ क्या +जानता दुनिया को है इक खेल तू +खेल क़ुदरत के तुझे दिखलाएँ क्या +उम्र की मंज़िल तो जूँ तूँ कट गई +मरहले अब देखिए पेश आएँ क्या +दिल को सब बातों की है नासेह ख़बर +समझे समझाए को बस समझाएँ क्या +मान लीजे शैख़ जो दा'वा करे +इक बुज़ुर्ग-ए-दीं को हम झुटलाएँ क्या +हो चुके 'हाली' ग़ज़ल-ख़्वानी के दिन +रागनी बे-वक़्त की अब गाएँ क्या " +ghar-hai-vahshat-khez-aur-bastii-ujaad-altaf-hussain-hali-ghazals," +घर है वहशत-ख़ेज़ और बस्ती उजाड़ +हो गई एक इक घड़ी तुझ बिन पहाड़ +आज तक क़स्र-ए-अमल है ना-तमाम +बंध चुकी है बार-हा खुल खुल के पाड़ +है पहुँचना अपना चोटी तक मुहाल +ऐ तलब निकला बहुत ऊँचा पहाड़ +खेलना आता है हम को भी शिकार +पर नहीं ज़ाहिद कोई टट्टी की आड़ +दिल नहीं रौशन तो हैं किस काम के +सौ शबिस्ताँ में अगर रौशन हैं झाड़ +ईद और नौरोज़ है सब दिल के साथ +दिल नहीं हाज़िर तो दुनिया है उजाड़ +खेत रस्ते पर है और रह-रौ सवार +किश्त है सरसब्ज़ और नीची है बाड़ +बात वाइ'ज़ की कोई पकड़ी गई +इन दिनों कम-तर है कुछ हम पर लताड़ +तुम ने 'हाली' खोल कर नाहक़ ज़बाँ +कर लिया सारी ख़ुदाई से बिगाड़ " +junuun-kaar-farmaa-huaa-chaahtaa-hai-altaf-hussain-hali-ghazals," +जुनूँ कार-फ़रमा हुआ चाहता है +क़दम दश्त पैमा हुआ चाहता है +दम-ए-गिर्या किस का तसव्वुर है दिल में +कि अश्क अश्क दरिया हुआ चाहता है +ख़त आने लगे शिकवा-आमेज़ उन के +मिलाप उन से गोया हुआ चाहता है +बहुत काम लेने थे जिस दिल से हम को +वो सर्फ़-ए-तमन्ना हुआ चाहता है +अभी लेने पाए नहीं दम जहाँ में +अजल का तक़ाज़ा हुआ चाहता है +मुझे कल के वादे पे करते हैं रुख़्सत +कोई वा'दा पूरा हुआ चाहता है +फ़ुज़ूँ तर है कुछ इन दिनों ज़ौक़-ए-इस्याँ +दर-ए-रहमत अब वा हुआ चाहता है +क़लक़ गर यही है तो राज़-ए-निहानी +कोई दिन में रुस्वा हुआ चाहता है +वफ़ा शर्त-ए-उल्फ़त है लेकिन कहाँ तक +दिल अपना भी तुझ सा हुआ चाहता है +बहुत हज़ उठाता है दिल तुझ से मिल कर +क़लक़ देखिए क्या हुआ चाहता है +ग़म-ए-रश्क को तल्ख़ समझे थे हमदम +सो वो भी गवारा हुआ चाहता है +बहुत चैन से दिन गुज़रते हैं 'हाली' +कोई फ़ित्ना बरपा हुआ चाहता है " +khuubiyaan-apne-men-go-be-intihaa-paate-hain-ham-altaf-hussain-hali-ghazals," +ख़ूबियाँ अपने में गो बे-इंतिहा पाते हैं हम +पर हर इक ख़ूबी में दाग़ इक ऐब का पाते हैं हम +ख़ौफ़ का कोई निशाँ ज़ाहिर नहीं अफ़आ'ल में +गो कि दिल में मुत्तसिल ख़ौफ़-ए-ख़ुदा पाते हैं हम +करते हैं ताअ'त तो कुछ ख़्वाहाँ नुमाइश के नहीं +पर गुनह छुप छुप के करने में मज़ा पाते हैं हम +दीदा ओ दिल को ख़यानत से नहीं रख सकते बाज़ +गरचे दस्त-ओ-पा को अक्सर बे-ख़ता पाते हैं हम +दिल में दर्द-ए-इश्क़ ने मुद्दत से कर रक्खा है घर +पर उसे आलूदा-ए-हिर्स-ओ-हवा पाते हैं हम +हो के नादिम जुर्म से फिर जुर्म करते हैं वही +जुर्म से गो आप को नादिम सदा पाते हैं हम +हैं फ़िदा उन दोस्तों पर जिन में हो सिद्क़ ओ सफ़ा +पर बहुत कम आप में सिद्क़ ओ सफ़ा पाते हैं हम +गो किसी को आप से होने नहीं देते ख़फ़ा +इक जहाँ से आप को लेकिन ख़फ़ा पाते हैं हम +जानते अपने सिवा सब को हैं बे-मेहर ओ वफ़ा +अपने में गर शम्मा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा पाते हैं हम +बुख़्ल से मंसूब करते हैं ज़माने को सदा +गर कभी तौफ़ीक़-ए-ईसार ओ अता पाते हैं हम +हो अगर मक़्सद में नाकामी तो कर सकते हैं सब्र +दर्द-ए-ख़ुद-कामी को लेकिन बे-दवा पाते हैं हम +ठहरते जाते हैं जितने चश्म-ए-आलम में भले +हाल नफ़्स-ए-दूँ का उतना ही बुरा पाते हैं हम +जिस क़दर झुक झुक के मिलते हैं बुज़ुर्ग ओ ख़ुर्द से +किब्र ओ नाज़ उतना ही अपने में सिवा पाते हैं हम +गो भलाई करके हम-जिंसों से ख़ुश होता है जी +तह-नशीं उस में मगर दुर्द-ए-रिया पाते हैं हम +है रिदा-ए-नेक-नामी दोश पर अपने मगर +दाग़ रुस्वाई के कुछ ज़ेर-ए-रिदा पाते हैं हम +राह के तालिब हैं पर बे-राह पड़ते हैं क़दम +देखिए क्या ढूँढते हैं और क्या पाते हैं हम +नूर के हम ने गले देखे हैं ऐ 'हाली' मगर +रंग कुछ तेरी अलापों में नया पाते हैं हम " +aage-badhe-na-qissa-e-ishq-e-butaan-se-ham-altaf-hussain-hali-ghazals-3," +आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम +सब कुछ कहा मगर न खुले राज़दाँ से हम +अब भागते हैं साया-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम +कुछ दिल से हैं डरे हुए कुछ आसमाँ से हम +हँसते हैं उस के गिर्या-ए-बे-इख़्तियार पर +भूले हैं बात कह के कोई राज़दाँ से हम +अब शौक़ से बिगड़ के ही बातें किया करो +कुछ पा गए हैं आप के तर्ज़-ए-बयाँ से हम +जन्नत में तो नहीं अगर ये ज़ख़्म-ए-तेग़-ए-इश्क़ +बदलेंगे ��ुझ को ज़िंदगी-ए-जावेदाँ से हम " +baat-kuchh-ham-se-ban-na-aaii-aaj-altaf-hussain-hali-ghazals," +बात कुछ हम से बन न आई आज +बोल कर हम ने मुँह की खाई आज +चुप पर अपनी भरम थे क्या क्या कुछ +बात बिगड़ी बनी बनाई आज +शिकवा करने की ख़ू न थी अपनी +पर तबीअत ही कुछ भर आई आज +बज़्म साक़ी ने दी उलट सारी +ख़ूब भर भर के ख़ुम लुंढाई आज +मासियत पर है देर से या रब +नफ़्स और शरा में लड़ाई आज +ग़ालिब आता है नफ़्स-ए-दूँ या शरअ' +देखनी है तिरी ख़ुदाई आज +चोर है दिल में कुछ न कुछ यारो +नींद फिर रात भर न आई आज +ज़द से उल्फ़त की बच के चलना था +मुफ़्त 'हाली' ने चोट खाई आज " +dhuum-thii-apnii-paarsaaii-kii-altaf-hussain-hali-ghazals," +धूम थी अपनी पारसाई की +की भी और किस से आश्नाई की +क्यूँ बढ़ाते हो इख़्तिलात बहुत +हम को ताक़त नहीं जुदाई की +मुँह कहाँ तक छुपाओगे हम से +तुम को आदत है ख़ुद-नुमाई की +लाग में हैं लगाओ की बातें +सुल्ह में छेड़ है लड़ाई की +मिलते ग़ैरों से हो मिलो लेकिन +हम से बातें करो सफ़ाई की +दिल रहा पा-ए-बंद-ए-उल्फ़त-ए-दाम +थी अबस आरज़ू रिहाई की +दिल भी पहलू में हो तो याँ किस से +रखिए उम्मीद दिलरुबाई की +शहर ओ दरिया से बाग़ ओ सहरा से +बू नहीं आती आश्नाई की +न मिला कोई ग़ारत-ए-ईमाँ +रह गई शर्म पारसाई की +बख़्त-ए-हम-दास्तानी-ए-शैदा +तू ने आख़िर को ना-रसाई की +सोहबत-ए-गाह-गाही-ए-रश्की +तू ने भी हम से बेवफ़ाई की +मौत की तरह जिस से डरते थे +साअ'त आ पहुँची उस जुदाई की +ज़िंदा फिरने की है हवस 'हाली' +इंतिहा है ये बे-हयाई की " +burii-aur-bhalii-sab-guzar-jaaegii-altaf-hussain-hali-ghazals," +बुरी और भली सब गुज़र जाएगी +ये कश्ती यूँही पार उतर जाएगी +मिलेगा न गुलचीं को गुल का पता +हर इक पंखुड़ी यूँ बिखर जाएगी +रहेंगे न मल्लाह ये दिन सदा +कोई दिन में गंगा उतर जाएगी +इधर एक हम और ज़माना उधर +ये बाज़ी तो सो बिसवे हर जाएगी +बनावट की शेख़ी नहीं रहती शैख़ +ये इज़्ज़त तो जाएगी पर जाएगी +न पूरी हुई हैं उमीदें न हों +यूँही उम्र सारी गुज़र जाएगी +सुनेंगे न 'हाली' की कब तक सदा +यही एक दिन काम कर जाएगी " +kar-ke-biimaar-dii-davaa-tuu-ne-altaf-hussain-hali-ghazals," +कर के बीमार दी दवा तू ने +जान से पहले दिल लिया तू ने +रह-रव-ए-तिश्ना-लब न घबराना +अब लिया चश्मा-ए-बक़ा तू ने +शैख़ जब दिल ही दैर में न लगा +आ के मस्जिद से क्या लिया तू ने +दूर हो ऐ दिल-ए-मआल अंदेश +खो दिया उम्र का मज़ा तू ने +एक बेगाना वार कर के निगाह +क्या किया चश्म-ए-आश्ना तू ने +दिल ओ दीं खो के आए थे सू-ए-दैर +याँ भी सब कुछ दिया ख़ुदा तू ने +ख़ुश है उम्मीद-ए-ख़ुल्द पर 'हाली' +कोई पूछे कि क्या किया तू ने " +gam-e-furqat-hii-men-marnaa-ho-to-dushvaar-nahiin-altaf-hussain-hali-ghazals," +ग़म-ए-फ़ुर्क़त ही में मरना हो तो दुश्वार नहीं +शादी-ए-वस्ल भी आशिक़ को सज़ा-वार नहीं +ख़ूब-रूई के लिए ज़िश्ती-ए-ख़ू भी है ज़रूर +सच तो ये है कि कोई तुझ सा तरह-दार नहीं +क़ौल देने में तअम्मुल न क़सम से इंकार +हम को सच्चा नज़र आता कोई इक़रार नहीं +कल ख़राबात में इक गोशे से आती थी सदा +दिल में सब कुछ है मगर रुख़्सत-ए-गुफ़्तार नहीं +हक़ हुआ किस से अदा उस की वफ़ादारी का +जिस के नज़दीक जफ़ा बाइस-ए-आज़ार नहीं +देखते हैं कि पहुँचती है वहाँ कौन सी राह +काबा ओ दैर से कुछ हम को सरोकार नहीं +होंगे क़ाइल वो अभी मतला-ए-सानी सुन कर +जो तजल्ली में ये कहते हैं कि तकरार नहीं " +ibtidaa-se-ham-zaiif-o-naa-tavaan-paidaa-hue-meer-anees-ghazals," +इब्तिदा से हम ज़ईफ़ ओ ना-तवाँ पैदा हुए +उड़ गया जब रंग रुख़ से उस्तुख़्वाँ पैदा हुए +ख़ाकसारी ने दिखाईं रिफ़अ'तों पर रिफ़अतें +इस ज़मीं से वाह क्या क्या आसमाँ पैदा हुए +इल्म ख़ालिक़ का ख़ज़ाना है मियान-ए-काफ़-ओ-नून +एक कुन कहने से ये कौन-ओ-मकाँ पैदा हुए +ज़ब्त देखो सब की सुन ली और कुछ अपनी कही +इस ज़बाँ-दानी पर ऐसे बे-ज़बाँ पैदा हुए +शोर-बख़्ती आई हिस्से में उन्हीं के वा नसीब +तल्ख़-कामी के लिए शीरीं-ज़बाँ पैदा हुए +एहतियात-ए-जिस्म क्या अंजाम को सोचो 'अनीस' +ख़ाक होने को ये मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ पैदा हुए " +ishaare-kyaa-nigah-e-naaz-e-dil-rubaa-ke-chale-meer-anees-ghazals," +इशारे क्या निगह-ए-नाज़-ए-दिलरुबा के चले +सितम के तीर चले नीमचे क़ज़ा के चले +गुनह का बोझ जो गर्दन पे हम उठा के चले +ख़ुदा के आगे ख़जालत से सर झुका के चले +तलब से आर है अल्लाह से फ़क़ीरों को +कहीं जो हो गया फेरा सदा सुना के चले +पुकारे कहती थी हसरत से ना'श आशिक़ की +सनम किधर को हमें ख़ाक में मिला के चले +मिसाल-ए-माही-ए-बे-आब मौजें तड़पा कीं +हबाब फूट के रोए जो तुम नहा के चले +मक़ाम यूँ हुआ इस कारगाह-ए-दुनिया में +कि जैसे दिन को मुसाफ़िर सरा में आ के चले +किसी का दिल न किया हम ने पाएमाल कभी +चले जो राह तो च्यूँटी को भी बचा के चले +मिला जिन्हें उन्हें उफ़्तादगी से औज मिला +उन्हीं ने खाई है ठोकर जो सर उठा के चले +'अनीस' दम का भरोसा नहीं ठहर जाओ +चराग़ ले के कहाँ सामने हवा के चले " +miraa-raaz-e-dil-aashkaaraa-nahiin-meer-anees-ghazals," +मिरा राज़-ए-दिल आश्कारा नहीं +वो दरिया हूँ जिस का किनारा नहीं +वो गुल हूँ जुदा सब से है जिस का र��ग +वो बू हूँ कि जो आश्कारा नहीं +वो पानी हूँ शीरीं नहीं जिस में शोर +वो आतिश हूँ जिस में शरारा नहीं +बहुत ज़ाल-ए-दुनिया ने दीं बाज़ियाँ +मैं वो नौजवाँ हूँ जो हारा नहीं +जहन्नम से हम बे-क़रारों को क्या +जो आतिश पे ठहरे वो पारा नहीं +फ़क़ीरों की मज्लिस है सब से जुदा +अमीरों का याँ तक गुज़ारा नहीं +सिकंदर की ख़ातिर भी है सद्द-ए-बाब +जो दारा भी हो तो मदारा नहीं +किसी ने तिरी तरह से ऐ 'अनीस' +उरूस-ए-सुख़न को सँवारा नहीं " +numuud-o-buud-ko-aaqil-habaab-samjhe-hain-meer-anees-ghazals," +नुमूद ओ बूद को आक़िल हबाब समझे हैं +वो जागते हैं जो दुनिया को ख़्वाब समझे हैं +कभी बुरा नहीं जाना किसी को अपने सिवा +हर एक ज़र्रे को हम आफ़्ताब समझे हैं +अजब नहीं है जो शीशों में भर के ले जाएँ +इन आँसुओं को फ़रिश्ते गुलाब समझे हैं +ज़माना एक तरह पर कभी नहीं रहता +इसी को अहल-ए-जहाँ इंक़िलाब समझे हैं +उन्हीं को दार-ए-बक़ा की है पुख़्तगी का ख़याल +जो बे-सबाती-ए-दहर-ए-ख़राब समझे हैं +शबाब खो के भी ग़फ़लत वही है पीरों को +सहर की नींद को भी शब का ख़्वाब समझे हैं +लहद में आएँ नकीरैन आएँ बिस्मिल्लाह +हर इक सवाल का हम भी जवाब समझे हैं +अगर ग़ुरूर है आदा को अपनी कसरत पर +तो इस हयात को हम भी हबाब समझे हैं +न कुछ ख़बर है हदीसों की इन सफ़ीहों को +न ये मआनी-ए-उम्मुल-किताब समझे हैं +कभी शक़ी मुतमत्ता न होंगे दुनिया से +जिसे ये आब उसे हम सराब समझे हैं +मज़ील-ए-अक़्ल है दुनिया की दौलत ऐ मुनइ'म +उसी के नश्शे को सूफ़ी शराब समझे हैं +हरारतें हैं मआल-ए-हलावत-ए-दुनिया +वो ज़हर है जिसे हम शहद-ए-नाब समझे हैं +'अनीस' मख़मल ओ दीबा से क्या फ़क़ीरों को +इसी ज़मीन को हम फ़र्श-ए-ख़्वाब समझे हैं " +shahiid-e-ishq-hue-qais-naamvar-kii-tarah-meer-anees-ghazals," +शहीद-ए-इश्क़ हुए क़ैस नामवर की तरह +जहाँ में ऐब भी हम ने किए हुनर की तरह +कुछ आज शाम से चेहरा है फ़क़ सहर की तरह +ढला ही जाता हूँ फ़ुर्क़त में दोपहर की तरह +सियाह-बख़्तों को यूँ बाग़ से निकाल ऐ चर्ख़ +कि चार फूल तो दामन में हों सिपर की तरह +तमाम ख़ल्क़ है ख़्वाहान-ए-आबरु ऐ रब +छुपा मुझे सदफ़-ए-क़ब्र में गुहर की तरह +तुझी को देखूँगा जब तक हैं बरक़रार आँखें +मिरी नज़र न फिरेगी तिरी नज़र की तरह +हमारी क़ब्र पे क्या एहतियाज-ए-अम्बर-ओ-ऊद +सुलग रहा है हर इक उस्तुख़्वाँ अगर की तरह +नहीफ़-ओ-ज़ार हैं क्या ज़ोर बाग़बाँ से चले +जहाँ बिठा दिया बस रह गए शजर की तरह +तुम्हारे हल्क़ा-ब-गोशों में एक हम भी हैं +पड़ा रहे ये सुख़न कान में गुहर की तरह +'अनीस' यूँ हुआ हाल-ए-जवानी-ओ-पीरी +बढ़े थे नख़्ल की सूरत गिरे समर की तरह " +khud-naved-e-zindagii-laaii-qazaa-mere-liye-meer-anees-ghazals," +ख़ुद नवेद-ए-ज़िंदगी लाई क़ज़ा मेरे लिए +शम-ए-कुश्ता हूँ फ़ना में है बक़ा मेरे लिए +ज़िंदगी में तो न इक दम ख़ुश किया हँस बोल कर +आज क्यूँ रोते हैं मेरे आश्ना मेरे लिए +कुंज-ए-उज़्लत में मिसाल-ए-आसिया हूँ गोशा-गीर +रिज़्क़ पहुँचाता है घर बैठे ख़ुदा मेरे लिए +तू सरापा अज्र ऐ ज़ाहिद मैं सर-ता-पा गुनाह +बाग़-ए-जन्नत तेरी ख़ातिर कर्बला मेरे लिए +नाम रौशन कर के क्यूँकर बुझ न जाता मिस्ल-ए-शम्अ' +ना-मुवाफ़िक़ थी ज़माने की हवा मेरे लिए +हर नफ़स आईना-ए-दिल से ये आती है सदा +ख़ाक तू हो जा तो हासिल हो जिला मेरे लिए +ख़ाक से है ख़ाक को उल्फ़त तड़पता हूँ 'अनीस' +कर्बला के वास्ते मैं कर्बला मेरे लिए " +sadaa-hai-fikr-e-taraqqii-buland-biinon-ko-meer-anees-ghazals," +सदा है फ़िक्र-ए-तरक़्क़ी बुलंद-बीनों को +हम आसमान से लाए हैं इन ज़मीनों को +पढ़ें दुरूद न क्यूँ देख कर हसीनों को +ख़याल-ए-सनअत-ए-साने है पाक-बीनों को +कमाल-ए-फ़क़्र भी शायाँ है पाक-बीनों को +ये ख़ाक तख़्त है हम बोरिया-नशीनों को +लहद में सोए हैं छोड़ा है शह-नशीनों को +क़ज़ा कहाँ से कहाँ ले गई मकीनों को +ये झुर्रियाँ नहीं हाथों पे ज़ोफ़-ए-पीरी ने +चुना है जामा-ए-असली की आस्तीनों को +लगा रहा हूँ मज़ामीन-ए-नौ के फिर अम्बार +ख़बर करो मिरे ख़िर्मन के ख़ोशा-चीनों को +भला तरद्दुद-ए-बेजा से उन में क्या हासिल +उठा चुके हैं ज़मींदार जिन ज़मीनों को +उन्हीं को आज नहीं बैठने की जा मिलती +मुआ'फ़ करते थे जो लोग कल ज़मीनों को +ये ज़ाएरों को मिलीं सरफ़राज़ियाँ वर्ना +कहाँ नसीब कि चूमें मलक जबीनों को +सजाया हम ने मज़ामीं के ताज़ा फूलों से +बसा दिया है इन उजड़ी हुई ज़मीनों को +लहद भी देखिए इन में नसीब हो कि न हो +कि ख़ाक छान के पाया है जिन ज़मीनों को +ज़वाल-ए-ताक़त ओ मू-ए-सपीद ओ ज़ोफ़-ए-बसर +इन्हीं से पाए बशर मौत के क़रीनों को +नहीं ख़बर उन्हें मिट्टी में अपने मिलने की +ज़मीं में गाड़ के बैठे हैं जो दफ़ीनों को +ख़बर नहीं उन्हें क्या बंदोबस्त-ए-पुख़्ता की +जो ग़स्ब करने लगे ग़ैर की ज़मीनों को +जहाँ से उठ गए जो लोग फिर नहीं मिलते +कहाँ से ढूँड के अब लाएँ हम-नशीनों को +नज़र में फिरती है वो तीरगी ओ तन्हाई +लहद की ख़ाक है सुर्मा मआल-बीनों को +ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब चाहिए हर दम +'अनीस' ठेस न लग जाए आबगीनों को " +koii-aniis-koii-aashnaa-nahiin-rakhte-meer-anees-ghazals," +कोई अनीस कोई आश्ना नहीं रखते +किसी की आस बग़ैर अज़ ख़ुदा नहीं रखते +किसी को क्या हो दिलों की शिकस्तगी की ख़बर +कि टूटने में ये शीशे सदा नहीं रखते +फ़क़ीर दोस्त जो हो हम को सरफ़राज़ करे +कुछ और फ़र्श ब-जुज़ बोरिया नहीं रखते +मुसाफ़िरो शब-ए-अव्वल बहुत है तीरा ओ तार +चराग़-ए-क़ब्र अभी से जला नहीं रखते +वो लोग कौन से हैं ऐ ख़ुदा-ए-कौन-ओ-मकाँ +सुख़न से कान को जो आश्ना नहीं रखते +मुसाफ़िरान-ए-अदम का पता मिले क्यूँकर +वो यूँ गए कि कहीं नक़्श-ए-पा नहीं रखते +तप-ए-दरूँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त वरम-ए-पयादा-रवी +मरज़ तो इतने हैं और कुछ दवा नहीं रखते +खुलेगा हाल उन्हें जब कि आँख बंद हुई +जो लोग उल्फ़त-ए-मुश्किल-कुशा नहीं रखते +जहाँ की लज़्ज़त ओ ख़्वाहिश से है बशर का ख़मीर +वो कौन हैं कि जो हिर्स-ओ-हवा नहीं रखते +'अनीस' बेच के जाँ अपनी हिन्द से निकलो +जो तोशा-ए-सफ़र-ए-कर्बला नहीं रखते " +vajd-ho-bulbul-e-tasviir-ko-jis-kii-buu-se-meer-anees-ghazals," +वज्द हो बुलबुल-ए-तस्वीर को जिस की बू से +उस से गुल-रंग का दा'वा करे फिर किस रू से +शम्अ' के रोने पे बस साफ़ हँसी आती है +आतिश-ए-दिल कहीं कम होती है चार आँसू से +एक दिन वो था कि तकिया था किसी का बाज़ू +अब सर उठता ही नहीं अपने सर-ए-ज़ानू से +नज़्अ' में हूँ मिरी मुश्किल करो आसाँ यारों +खोलो तावीज़-ए-शिफ़ा जल्द मिरे बाज़ू से +शोख़ी-ए-चश्म का तू किस की है दीवाना 'अनीस' +आँखें मलता है जो यूँ नक़्श-ए-कफ़-ए-आहू से " +abhii-farmaan-aayaa-hai-vahaan-se-jaun-eliya-ghazals," +अभी फ़रमान आया है वहाँ से +कि हट जाऊँ मैं अपने दरमियाँ से +यहाँ जो है तनफ़्फ़ुस ही में गुम है +परिंदे उड़ रहे हैं शाख़-ए-जाँ से +दरीचा बाज़ है यादों का और मैं +हवा सुनता हूँ पेड़ों की ज़बाँ से +ज़माना था वो दिल की ज़िंदगी का +तिरी फ़ुर्क़त के दिन लाऊँ कहाँ से +था अब तक मा'रका बाहर का दरपेश +अभी तो घर भी जाना है यहाँ से +फुलाँ से थी ग़ज़ल बेहतर फुलाँ की +फुलाँ के ज़ख़्म अच्छे थे फुलाँ से +ख़बर क्या दूँ मैं शहर-ए-रफ़्तगाँ की +कोई लौटे भी शहर-ए-रफ़्तगाँ से +यही अंजाम क्या तुझ को हवस था +कोई पूछे तो मीर-ए-दास्ताँ से " +dil-jo-hai-aag-lagaa-duun-us-ko-jaun-eliya-ghazals," +दिल जो है आग लगा दूँ उस को +और फिर ख़ुद ही हवा दूँ उस को +जो भी है उस को गँवा बैठा है +मैं भला कैसे गँवा दूँ उस को +तुझ गुमाँ पर जो इमारत की थी +सोचता हूँ कि मैं ढा दूँ उस क�� +जिस्म में आग लगा दूँ उस के +और फिर ख़ुद ही बुझा दूँ उस को +हिज्र की नज़्र तो देनी है उसे +सोचता हूँ कि भुला दूँ उस को +जो नहीं है मिरे दिल की दुनिया +क्यूँ न मैं 'जौन' मिटा दूँ उस को " +tumhaaraa-hijr-manaa-luun-agar-ijaazat-ho-jaun-eliya-ghazals," +तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो +मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो +तुम्हारे बा'द भला क्या हैं वअदा-ओ-पैमाँ +बस अपना वक़्त गँवा लूँ अगर इजाज़त हो +तुम्हारे हिज्र की शब-हा-ए-कार में जानाँ +कोई चराग़ जला लूँ अगर इजाज़त हो +जुनूँ वही है वही मैं मगर है शहर नया +यहाँ भी शोर मचा लूँ अगर इजाज़त हो +किसे है ख़्वाहिश-ए-मरहम-गरी मगर फिर भी +मैं अपने ज़ख़्म दिखा लूँ अगर इजाज़त हो +तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी +कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो " +iizaa-dahii-kii-daad-jo-paataa-rahaa-huun-main-jaun-eliya-ghazals," +ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं +हर नाज़-आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं +ऐ ख़ुश-ख़िराम पाँव के छाले तो गिन ज़रा +तुझ को कहाँ कहाँ न फिराता रहा हूँ मैं +इक हुस्न-ए-बे-मिसाल की तमसील के लिए +परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं +क्या मिल गया ज़मीर-ए-हुनर बेच कर मुझे +इतना कि सिर्फ़ काम चलाता रहा हूँ मैं +रूहों के पर्दा-पोश गुनाहों से बे-ख़बर +जिस्मों की नेकियाँ ही गिनाता रहा हूँ मैं +तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख कर +अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं +शायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हुई +लेकिन यक़ीन सब को दिलाता रहा हूँ मैं +इक सत्र भी कभी न लिखी मैं ने तेरे नाम +पागल तुझी को याद भी आता रहा हूँ मैं +जिस दिन से ए'तिमाद में आया तिरा शबाब +उस दिन से तुझ पे ज़ुल्म ही ढाता रहा हूँ मैं +अपना मिसालिया मुझे अब तक न मिल सका +ज़र्रों को आफ़्ताब बनाता रहा हूँ मैं +बेदार कर के तेरे बदन की ख़ुद-आगही +तेरे बदन की उम्र घटाता रहा हूँ मैं +कल दोपहर अजीब सी इक बे-दिली रही +बस तीलियाँ जला के बुझाता रहा हूँ मैं " +tang-aagosh-men-aabaad-karuungaa-tujh-ko-jaun-eliya-ghazals," +तंग आग़ोश में आबाद करूँगा तुझ को +हूँ बहुत शाद कि नाशाद करूँगा तुझ को +फ़िक्र-ए-ईजाद में गुम हूँ मुझे ग़ाफ़िल न समझ +अपने अंदाज़ पर ईजाद करूँगा तुझ को +नश्शा है राह की दूरी का कि हमराह है तू +जाने किस शहर में आबाद करूँगा तुझ को +मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले +अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को +मैं कि रहता हूँ ब-सद-नाज़ गुरेज़ाँ तुझ से +तू न होगा तो बहुत याद करूँगा तुझ को " +badaa-ehsaan-ham-farmaa-rahe-hain-jaun-eliya-ghazals," +बड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैं +कि उन के ख़त उन्हें लौटा रहे हैं +नहीं तर्क-ए-मोहब्बत पर वो राज़ी +क़यामत है कि हम समझा रहे हैं +यक़ीं का रास्ता तय करने वाले +बहुत तेज़ी से वापस आ रहे हैं +ये मत भूलो कि ये लम्हात हम को +बिछड़ने के लिए मिलवा रहे हैं +तअ'ज्जुब है कि इश्क़-ओ-आशिक़ी से +अभी कुछ लोग धोका खा रहे हैं +तुम्हें चाहेंगे जब छिन जाओगी तुम +अभी हम तुम को अर्ज़ां पा रहे हैं +किसी सूरत उन्हें नफ़रत हो हम से +हम अपने ऐब ख़ुद गिनवा रहे हैं +वो पागल मस्त है अपनी वफ़ा में +मिरी आँखों में आँसू आ रहे हैं +दलीलों से उसे क़ाइल किया था +दलीलें दे के अब पछता रहे हैं +तिरी बाँहों से हिजरत करने वाले +नए माहौल में घबरा रहे हैं +ये जज़्ब-ए-इश्क़ है या जज़्बा-ए-रहम +तिरे आँसू मुझे रुलवा रहे हैं +अजब कुछ रब्त है तुम से कि तुम को +हम अपना जान कर ठुकरा रहे हैं +वफ़ा की यादगारें तक न होंगी +मिरी जाँ बस कोई दिन जा रहे हैं " +nayaa-ik-rishta-paidaa-kyuun-karen-ham-jaun-eliya-ghazals," +नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम +बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम +ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी +कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम +ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं +वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम +वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत +अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम +हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम +तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम +किया था अहद जब लम्हों में हम ने +तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम +नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी +तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम +ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती +यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम " +ik-hunar-hai-jo-kar-gayaa-huun-main-jaun-eliya-ghazals," +इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं +सब के दिल से उतर गया हूँ मैं +कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ +सुन रहा हूँ कि घर गया हूँ मैं +क्या बताऊँ कि मर नहीं पाता +जीते-जी जब से मर गया हूँ मैं +अब है बस अपना सामना दर-पेश +हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं +वही नाज़-ओ-अदा वही ग़म्ज़े +सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं +अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का +कि यहाँ सब के सर गया हूँ मैं +कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाया +जब कि वाँ उम्र भर गया हूँ मैं +तुम से जानाँ मिला हूँ जिस दिन से +बे-तरह ख़ुद से डर गया हूँ मैं +कू-ए-जानाँ में सोग बरपा है +कि अचानक सुधर गया हूँ मैं " +ai-subah-main-ab-kahaan-rahaa-huun-jaun-eliya-ghazals," +ऐ सुबह मैं अब कहाँ रहा हूँ +ख़्वाबों ही में सर्फ़ हो चुका हूँ +सब मेरे बग़ैर मुतमइन हों +मैं सब के बग़ैर जी रहा हूँ +क्या है जो बदल गई है दुनिया +मैं भी तो बहुत बदल गया हूँ +गो अपने हज़ार नाम रख लूँ +पर अपने सिवा मैं और क्या हूँ +मैं जुर्म का ए'तिराफ़ कर के +कुछ और है जो छुपा गया हूँ +मैं और फ़क़त उसी की ख़्वाहिश +अख़्लाक़ में झूट बोलता हूँ +इक शख़्स जो मुझ से वक़्त ले कर +आज आ न सका तो ख़ुश हुआ हूँ +हर शख़्स से बे-नियाज़ हो जा +फिर सब से ये कह कि मैं ख़ुदा हूँ +चरके तो तुझे दिए हैं मैं ने +पर ख़ून भी मैं ही थूकता हूँ +रोया हूँ तो अपने दोस्तों में +पर तुझ से तो हँस के ही मिला हूँ +ऐ शख़्स मैं तेरी जुस्तुजू से +बेज़ार नहीं हूँ थक गया हूँ +मैं शम-ए-सहर का नग़्मा-गर था +अब थक के कराहने लगा हूँ +कल पर ही रखो वफ़ा की बातें +मैं आज बहुत बोझा हुआ हूँ +कोई भी नहीं है मुझ से नादिम +बस तय ये हुआ कि मैं बुरा हूँ " +juz-gumaan-aur-thaa-hii-kyaa-meraa-jaun-eliya-ghazals," +जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा +फ़क़त इक मेरा नाम था मेरा +निकहत-ए-पैरहन से उस गुल की +सिलसिला बे-सबा रहा मेरा +मुझ को ख़्वाहिश ही ढूँडने की न थी +मुझ में खोया रहा ख़ुदा मेरा +थूक दे ख़ून जान ले वो अगर +आलम-ए-तर्क-ए-मुद्दआ मेरा +जब तुझे मेरी चाह थी जानाँ +बस वही वक़्त था कड़ा मेरा +कोई मुझ तक पहुँच नहीं पाता +इतना आसान है पता मेरा +आ चुका पेश वो मुरव्वत से +अब चलूँ काम हो चुका मेरा +आज मैं ख़ुद से हो गया मायूस +आज इक यार मर गया मेरा " +jo-huaa-jaun-vo-huaa-bhii-nahiin-jaun-eliya-ghazals," +जो हुआ 'जौन' वो हुआ भी नहीं +या'नी जो कुछ भी था वो था भी नहीं +बस गया जब वो शहर-ए-दिल में मिरे +फिर मैं इस शहर में रहा भी नहीं +इक अजब तौर हाल है कि जो है +या'नी मैं भी नहीं ख़ुदा भी नहीं +लम्हों से अब मुआ'मला क्या हो +दिल पे अब कुछ गुज़र रहा भी नहीं +जानिए मैं चला गया हूँ कहाँ +मैं तो ख़ुद से कहीं गया भी नहीं +तू मिरे दिल में आन के बस जा +और तू मेरे पास आ भी नहीं " +ruuh-pyaasii-kahaan-se-aatii-hai-jaun-eliya-ghazals," +रूह प्यासी कहाँ से आती है +ये उदासी कहाँ से आती है +है वो यक-सर सुपुर्दगी तो भला +बद-हवासी कहाँ से आती है +वो हम-आग़ोश है तो फिर दिल में +ना-शनासी कहाँ से आती है +एक ज़िंदान-ए-बे-दिली और शाम +ये सबा सी कहाँ से आती है +तू है पहलू में फिर तिरी ख़ुश्बू +हो के बासी कहाँ से आती है +दिल है शब-सोख़्ता सिवाए उम्मीद +तू निदा सी कहाँ से आती है +मैं हूँ तुझ में और आस हूँ तेरी +तो निरासी कहाँ से आती है " +har-dhadkan-haijaanii-thii-har-khaamoshii-tuufaanii-thii-jaun-eliya-ghazals," +हर धड़कन हैजा���ी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी +फिर भी मोहब्बत सिर्फ़ मुसलसल मिलने की आसानी थी +जिस दिन उस से बात हुई थी उस दिन भी बे-कैफ़ था मैं +जिस दिन उस का ख़त आया है उस दिन भी वीरानी थी +जब उस ने मुझ से ये कहा था इश्क़ रिफ़ाक़त ही तो नहीं +तब मैं ने हर शख़्स की सूरत मुश्किल से पहचानी थी +जिस दिन वो मिलने आई है उस दिन की रूदाद ये है +उस का बलाउज़ नारंजी था उस की सारी धानी थी +उलझन सी होने लगती थी मुझ को अक्सर और वो यूँ +मेरा मिज़ाज-ए-इश्क़ था शहरी उस की वफ़ा दहक़ानी थी +अब तो उस के बारे में तुम जो चाहो वो कह डालो +वो अंगड़ाई मेरे कमरे तक तो बड़ी रूहानी थी +नाम पे हम क़ुर्बान थे उस के लेकिन फिर ये तौर हुआ +उस को देख के रुक जाना भी सब से बड़ी क़ुर्बानी थी +मुझ से बिछड़ कर भी वो लड़की कितनी ख़ुश ख़ुश रहती है +उस लड़की ने मुझ से बिछड़ कर मर जाने की ठानी थी +इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था +लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी +जिस को ख़ुद मैं ने भी अपनी रूह का इरफ़ाँ समझा था +वो तो शायद मेरे प्यासे होंटों की शैतानी थी +था दरबार-ए-कलाँ भी उस का नौबत-ख़ाना उस का था +थी मेरे दिल की जो रानी अमरोहे की रानी थी " +bahut-dil-ko-kushaada-kar-liyaa-kyaa-jaun-eliya-ghazals," +बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या +ज़माने भर से वा'दा कर लिया क्या +तो क्या सच-मुच जुदाई मुझ से कर ली +तो ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या +हुनर-मंदी से अपनी दिल का सफ़्हा +मिरी जाँ तुम ने सादा कर लिया क्या +जो यकसर जान है उस के बदन से +कहो कुछ इस्तिफ़ादा कर लिया क्या +बहुत कतरा रहे हो मुग़्बचों से +गुनाह-ए-तर्क-ए-बादा कर लिया क्या +यहाँ के लोग कब के जा चुके हैं +सफ़र जादा-ब-जादा कर लिया क्या +उठाया इक क़दम तू ने न उस तक +बहुत अपने को माँदा कर लिया क्या +तुम अपनी कज-कुलाही हार बैठीं +बदन को बे-लिबादा कर लिया क्या +बहुत नज़दीक आती जा रही हो +बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या " +abhii-ik-shor-saa-uthaa-hai-kahiin-jaun-eliya-ghazals," +अभी इक शोर सा उठा है कहीं +कोई ख़ामोश हो गया है कहीं +है कुछ ऐसा कि जैसे ये सब कुछ +इस से पहले भी हो चुका है कहीं +तुझ को क्या हो गया कि चीज़ों को +कहीं रखता है ढूँढता है कहीं +जो यहाँ से कहीं न जाता था +वो यहाँ से चला गया है कहीं +आज शमशान की सी बू है यहाँ +क्या कोई जिस्म जल रहा है कहीं +हम किसी के नहीं जहाँ के सिवा +ऐसी वो ख़ास बात क्या है कहीं +तू मुझे ढूँड मैं तुझे ढूँडूँ +कोई हम में से रह गया है कहीं +कितनी वहशत है दरमियान-ए-हुजूम +जिस को देखो गया हुआ है कहीं +मैं तो अब शहर में कहीं भी नहीं +क्या मिरा नाम भी लिखा है कहीं +इसी कमरे से कोई हो के विदाअ' +इसी कमरे में छुप गया है कहीं +मिल के हर शख़्स से हुआ महसूस +मुझ से ये शख़्स मिल चुका है कहीं " +kaam-kii-baat-main-ne-kii-hii-nahiin-jaun-eliya-ghazals," +काम की बात मैं ने की ही नहीं +ये मिरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं +ऐ उमीद ऐ उमीद-ए-नौ-मैदाँ +मुझ से मय्यत तिरी उठी ही नहीं +मैं जो था उस गली का मस्त-ए-ख़िराम +उस गली में मिरी चली ही नहीं +ये सुना है कि मेरे कूच के बा'द +उस की ख़ुश्बू कहीं बसी ही नहीं +थी जो इक फ़ाख़्ता उदास उदास +सुब्ह वो शाख़ से उड़ी ही नहीं +मुझ में अब मेरा जी नहीं लगता +और सितम ये कि मेरा जी ही नहीं +वो जो रहती थी दिल-मोहल्ले में +फिर वो लड़की मुझे मिली ही नहीं +जाइए और ख़ाक उड़ाइए आप +अब वो घर क्या कि वो गली ही नहीं +हाए वो शौक़ जो नहीं था कभी +हाए वो ज़िंदगी जो थी ही नहीं " +us-ke-pahluu-se-lag-ke-chalte-hain-jaun-eliya-ghazals," +उस के पहलू से लग के चलते हैं +हम कहीं टालने से टलते हैं +बंद है मय-कदों के दरवाज़े +हम तो बस यूँही चल निकलते हैं +मैं उसी तरह तो बहलता हूँ +और सब जिस तरह बहलते हैं +वो है जान अब हर एक महफ़िल की +हम भी अब घर से कम निकलते हैं +क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में +जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं +है उसे दूर का सफ़र दर-पेश +हम सँभाले नहीं सँभलते हैं +शाम फ़ुर्क़त की लहलहा उठी +वो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैं +है अजब फ़ैसले का सहरा भी +चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं +हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद +देखने वाले हाथ मलते हैं +तुम बनो रंग तुम बनो ख़ुशबू +हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं " +thiik-hai-khud-ko-ham-badalte-hain-jaun-eliya-ghazals," +ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं +शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं +हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद +देखने वाले हाथ मलते हैं +है वो जान अब हर एक महफ़िल की +हम भी अब घर से कम निकलते हैं +क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में +जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं +है उसे दूर का सफ़र दर-पेश +हम सँभाले नहीं सँभलते हैं +तुम बनो रंग तुम बनो ख़ुश्बू +हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं +मैं उसी तरह तो बहलता हूँ +और सब जिस तरह बहलते हैं +है अजब फ़ैसले का सहरा भी +चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं " +zabt-kar-ke-hansii-ko-bhuul-gayaa-jaun-eliya-ghazals," +ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया +मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया +ज़ात-दर-ज़ात हम-सफ़र रह कर +अजनबी अजनबी को भूल गया +सुब्ह ���क वज्ह-ए-जाँ-कनी थी जो बात +मैं उसे शाम ही को भूल गया +अहद-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं +वज्ह-ए-वाबस्तगी को भूल गया +सब दलीलें तो मुझ को याद रहीं +बहस क्या थी उसी को भूल गया +क्यूँ न हो नाज़ इस ज़ेहानत पर +एक मैं हर किसी को भूल गया +सब से पुर-अम्न वाक़िआ ये है +आदमी आदमी को भूल गया +क़हक़हा मारते ही दीवाना +हर ग़म-ए-ज़िंदगी को भूल गया +ख़्वाब-हा-ख़्वाब जिस को चाहा था +रंग-हा-रंग उसी को भूल गया +क्या क़यामत हुई अगर इक शख़्स +अपनी ख़ुश-क़िस्मती को भूल गया +सोच कर उस की ख़ल्वत-अंजुमनी +वाँ मैं अपनी कमी को भूल गया +सब बुरे मुझ को याद रहते हैं +जो भला था उसी को भूल गया +उन से वा'दा तो कर लिया लेकिन +अपनी कम-फ़ुर्सती को भूल गया +बस्तियो अब तो रास्ता दे दो +अब तो मैं उस गली को भूल गया +उस ने गोया मुझी को याद रखा +मैं भी गोया उसी को भूल गया +या'नी तुम वो हो वाक़ई? हद है +मैं तो सच-मुच सभी को भूल गया +आख़िरी बुत ख़ुदा न क्यूँ ठहरे +बुत-शिकन बुत-गरी को भूल गया +अब तो हर बात याद रहती है +ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया +उस की ख़ुशियों से जलने वाला 'जौन' +अपनी ईज़ा-दही को भूल गया " +dil-ne-vafaa-ke-naam-par-kaar-e-vafaa-nahiin-kiyaa-jaun-eliya-ghazals," +दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-वफ़ा नहीं किया +ख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं किया +ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दार +शहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया +जो भी हो तुम पे मो'तरिज़ उस को यही जवाब दो +आप बहुत शरीफ़ हैं आप ने क्या नहीं किया +निस्बत इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़त को अज़ीज़ +उस ने तो कार-ए-जहल भी बे-उलमा नहीं किया +जिस को भी शैख़ ओ शाह ने हुक्म-ए-ख़ुदा दिया क़रार +हम ने नहीं क्या वो काम हाँ ब-ख़ुदा नहीं किया " +apne-sab-yaar-kaam-kar-rahe-hain-jaun-eliya-ghazals," +अपने सब यार काम कर रहे हैं +और हम हैं कि नाम कर रहे हैं +तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह +आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं +दाद-ओ-तहसीन का ये शोर है क्यूँ +हम तो ख़ुद से कलाम कर रहे हैं +हम हैं मसरूफ़-ए-इंतिज़ाम मगर +जाने क्या इंतिज़ाम कर रहे हैं +है वो बेचारगी का हाल कि हम +हर किसी को सलाम कर रहे हैं +एक क़त्ताला चाहिए हम को +हम ये एलान-ए-आम कर रहे हैं +क्या भला साग़र-ए-सिफ़ाल कि हम +नाफ़-प्याले को जाम कर रहे हैं +हम तो आए थे अर्ज़-ए-मतलब को +और वो एहतिराम कर रहे हैं +न उठे आह का धुआँ भी कि वो +कू-ए-दिल में ख़िराम कर रहे हैं +उस के होंटों पे रख के होंट अपने +बात ही हम तमाम कर रहे हैं +हम अजब हैं कि उस के कूचे में +बे-सबब धूम-धाम कर रहे हैं " +aap-apnaa-gubaar-the-ham-to-jaun-eliya-ghazals," +आप अपना ग़ुबार थे हम तो +याद थे यादगार थे हम तो +पर्दगी हम से क्यूँ रखा पर्दा +तेरे ही पर्दा-दार थे हम तो +वक़्त की धूप में तुम्हारे लिए +शजर-ए-साया-दार थे हम तो +उड़े जाते हैं धूल के मानिंद +आँधियों पर सवार थे हम तो +हम ने क्यूँ ख़ुद पे ए'तिबार किया +सख़्त बे-ए'तिबार थे हम तो +शर्म है अपनी बार बारी की +बे-सबब बार बार थे हम तो +क्यूँ हमें कर दिया गया मजबूर +ख़ुद ही बे-इख़्तियार थे हम तो +तुम ने कैसे भुला दिया हम को +तुम से ही मुस्तआ'र थे हम तो +ख़ुश न आया हमें जिए जाना +लम्हे लम्हे पे बार थे हम तो +सह भी लेते हमारे ता'नों को +जान-ए-मन जाँ-निसार थे हम तो +ख़ुद को दौरान-ए-हाल में अपने +बे-तरह नागवार थे हम तो +तुम ने हम को भी कर दिया बरबाद +नादिर-ए-रोज़गार थे हम तो +हम को यारों ने याद भी न रखा +'जौन' यारों के यार थे हम तो " +saare-rishte-tabaah-kar-aayaa-jaun-eliya-ghazals," +सारे रिश्ते तबाह कर आया +दिल-ए-बर्बाद अपने घर आया +आख़िरश ख़ून थूकने से मियाँ +बात में तेरी क्या असर आया +था ख़बर में ज़ियाँ दिल ओ जाँ का +हर तरफ़ से मैं बे-ख़बर आया +अब यहाँ होश में कभी अपने +नहीं आऊँगा मैं अगर आया +मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से +याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया +वो जो दिल नाम का था एक नफ़र +आज मैं इस से भी मुकर आया +मुद्दतों बा'द घर गया था मैं +जाते ही मैं वहाँ से डर आया " +be-qaraarii-sii-be-qaraarii-hai-jaun-eliya-ghazals," +बे-क़रारी सी बे-क़रारी है +वस्ल है और फ़िराक़ तारी है +जो गुज़ारी न जा सकी हम से +हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है +निघरे क्या हुए कि लोगों पर +अपना साया भी अब तो भारी है +बिन तुम्हारे कभी नहीं आई +क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है +आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन +साँस जो चल रही है आरी है +उस से कहियो कि दिल की गलियों में +रात दिन तेरी इंतिज़ारी है +हिज्र हो या विसाल हो कुछ हो +हम हैं और उस की यादगारी है +इक महक सम्त-ए-दिल से आई थी +मैं ये समझा तिरी सवारी है +हादसों का हिसाब है अपना +वर्ना हर आन सब की बारी है +ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनी +उम्र भर की उमीद-वारी है " +ham-jii-rahe-hain-koii-bahaana-kiye-bagair-jaun-eliya-ghazals," +हम जी रहे हैं कोई बहाना किए बग़ैर +उस के बग़ैर उस की तमन्ना किए बग़ैर +अम्बार उस का पर्दा-ए-हुरमत बना मियाँ +दीवार तक नहीं गिरी पर्दा किए बग़ैर +याराँ वो जो है मेरा मसीहा-ए-जान-ओ-दिल +बे-हद अज़ीज़ है मुझे अच्छा किए बग़ैर +मैं बि��्तर-ए-ख़याल पे लेटा हूँ उस के पास +सुब्ह-ए-अज़ल से कोई तक़ाज़ा किए बग़ैर +उस का है जो भी कुछ है मिरा और मैं मगर +वो मुझ को चाहिए कोई सौदा किए बग़ैर +ये ज़िंदगी जो है उसे मअना भी चाहिए +वा'दा हमें क़ुबूल है ईफ़ा किए बग़ैर +ऐ क़ातिलों के शहर बस इतनी ही अर्ज़ है +मैं हूँ न क़त्ल कोई तमाशा किए बग़ैर +मुर्शिद के झूट की तो सज़ा बे-हिसाब है +तुम छोड़ियो न शहर को सहरा किए बग़ैर +उन आँगनों में कितना सुकून ओ सुरूर था +आराइश-ए-नज़र तिरी पर्वा किए बग़ैर +याराँ ख़ुशा ये रोज़ ओ शब-ए-दिल कि अब हमें +सब कुछ है ख़ुश-गवार गवारा किए बग़ैर +गिर्या-कुनाँ की फ़र्द में अपना नहीं है नाम +हम गिर्या-कुन अज़ल के हैं गिर्या किए बग़ैर +आख़िर हैं कौन लोग जो बख़्शे ही जाएँगे +तारीख़ के हराम से तौबा किए बग़ैर +वो सुन्नी बच्चा कौन था जिस की जफ़ा ने 'जौन' +शीआ' बना दिया हमें शीआ' किए बग़ैर +अब तुम कभी न आओगे या'नी कभी कभी +रुख़्सत करो मुझे कोई वा'दा किए बग़ैर " +kis-se-izhaar-e-muddaaa-kiije-jaun-eliya-ghazals," +किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे +आप मिलते नहीं हैं क्या कीजे +हो न पाया ये फ़ैसला अब तक +आप कीजे तो क्या किया कीजे +आप थे जिस के चारा-गर वो जवाँ +सख़्त बीमार है दुआ कीजे +एक ही फ़न तो हम ने सीखा है +जिस से मिलिए उसे ख़फ़ा कीजे +है तक़ाज़ा मिरी तबीअ'त का +हर किसी को चराग़-पा कीजे +है तो बारे ये आलम-ए-असबाब +बे-सबब चीख़ने लगा कीजे +आज हम क्या गिला करें उस से +गिला-ए-तंगी-ए-क़बा कीजे +नुत्क़ हैवान पर गराँ है अभी +गुफ़्तुगू कम से कम किया कीजे +हज़रत-ए-ज़ुल्फ़-ए-ग़ालिया-अफ़्शाँ +नाम अपना सबा सबा कीजे +ज़िंदगी का अजब मोआ'मला है +एक लम्हे में फ़ैसला कीजे +मुझ को आदत है रूठ जाने की +आप मुझ को मना लिया कीजे +मिलते रहिए इसी तपाक के साथ +बेवफ़ाई की इंतिहा कीजे +कोहकन को है ख़ुद-कुशी ख़्वाहिश +शाह-बानो से इल्तिजा कीजे +मुझ से कहती थीं वो शराब आँखें +आप वो ज़हर मत पिया कीजे +रंग हर रंग में है दाद-तलब +ख़ून थूकूँ तो वाह-वा कीजे " +aish-e-ummiid-hii-se-khatra-hai-jaun-eliya-ghazals," +ऐश-ए-उम्मीद ही से ख़तरा है +दिल को अब दिल-दही से ख़तरा है +है कुछ ऐसा कि उस की जल्वत में +हमें अपनी कमी से ख़तरा है +जिस के आग़ोश का हूँ दीवाना +उस के आग़ोश ही से ख़तरा है +याद की धूप तो है रोज़ की बात +हाँ मुझे चाँदनी से ख़तरा है +है अजब कुछ मोआ'मला दरपेश +अक़्ल को आगही से ख़तरा है +शहर-ए-ग़द्दार जान ले कि तुझे +एक अमरोहवी से ख��तरा है +है अजब तौर हालत-ए-गिर्या +कि मिज़ा को नमी से ख़तरा है +हाल ख़ुश लखनऊ का दिल्ली का +बस उन्हें 'मुसहफ़ी' से ख़तरा है +आसमानों में है ख़ुदा तन्हा +और हर आदमी से ख़तरा है +मैं कहूँ किस तरह ये बात उस से +तुझ को जानम मुझी से ख़तरा है +आज भी ऐ कनार-ए-बान मुझे +तेरी इक साँवली से ख़तरा है +उन लबों का लहू न पी जाऊँ +अपनी तिश्ना-लबी से ख़तरा है +'जौन' ही तो है 'जौन' के दरपय +'मीर' को 'मीर' ही से ख़तरा है +अब नहीं कोई बात ख़तरे की +अब सभी को सभी से ख़तरा है " +sar-hii-ab-phodiye-nadaamat-men-jaun-eliya-ghazals," +सर ही अब फोड़िए नदामत में +नींद आने लगी है फ़ुर्क़त में +हैं दलीलें तिरे ख़िलाफ़ मगर +सोचता हूँ तिरी हिमायत में +रूह ने इश्क़ का फ़रेब दिया +जिस्म को जिस्म की अदावत में +अब फ़क़त आदतों की वर्ज़िश है +रूह शामिल नहीं शिकायत में +इश्क़ को दरमियाँ न लाओ कि मैं +चीख़ता हूँ बदन की उसरत में +ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम +रूठते अब भी हैं मुरव्वत में +वो जो ता'मीर होने वाली थी +लग गई आग उस इमारत में +ज़िंदगी किस तरह बसर होगी +दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में +हासिल-ए-कुन है ये जहान-ए-ख़राब +यही मुमकिन था इतनी उजलत में +फिर बनाया ख़ुदा ने आदम को +अपनी सूरत पे ऐसी सूरत में +और फिर आदमी ने ग़ौर किया +छिपकिली की लतीफ़ सनअ'त में +ऐ ख़ुदा जो कहीं नहीं मौजूद +क्या लिखा है हमारी क़िस्मत में " +dil-kii-takliif-kam-nahiin-karte-jaun-eliya-ghazals," +दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते +अब कोई शिकवा हम नहीं करते +जान-ए-जाँ तुझ को अब तिरी ख़ातिर +याद हम कोई दम नहीं करते +दूसरी हार की हवस है सो हम +सर-ए-तस्लीम ख़म नहीं करते +वो भी पढ़ता नहीं है अब दिल से +हम भी नाले को नम नहीं करते +जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँ +तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते " +ab-kisii-se-miraa-hisaab-nahiin-jaun-eliya-ghazals," +अब किसी से मिरा हिसाब नहीं +मेरी आँखों में कोई ख़्वाब नहीं +ख़ून के घूँट पी रहा हूँ मैं +ये मिरा ख़ून है शराब नहीं +मैं शराबी हूँ मेरी आस न छीन +तू मिरी आस है सराब नहीं +नोच फेंके लबों से मैं ने सवाल +ताक़त-ए-शोख़ी-ए-जवाब नहीं +अब तो पंजाब भी नहीं पंजाब +और ख़ुद जैसा अब दो-आब नहीं +ग़म अबद का नहीं है आन का है +और इस का कोई हिसाब नहीं +बूदश इक रू है एक रू या'नी +इस की फ़ितरत में इंक़लाब नहीं " +aaj-lab-e-guhar-fishaan-aap-ne-vaa-nahiin-kiyaa-jaun-eliya-ghazals," +आज लब-ए-गुहर-फ़िशाँ आप ने वा नहीं किया +तज़्किरा-ए-ख़जिस्ता-ए-आब-ओ-हवा नहीं किया +कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई +तू ��े तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया +जाने तिरी नहीं के साथ कितने ही जब्र थे कि थे +मैं ने तिरे लिहाज़ में तेरा कहा नहीं किया +मुझ को ये होश ही न था तू मिरे बाज़ुओं में है +या'नी तुझे अभी तलक मैं ने रिहा नहीं किया +तू भी किसी के बाब में अहद-शिकन हो ग़ालिबन +मैं ने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया +हाँ वो निगाह-ए-नाज़ भी अब नहीं माजरा-तलब +हम ने भी अब की फ़स्ल में शोर बपा नहीं किया " +kitne-aish-se-rahte-honge-kitne-itraate-honge-jaun-eliya-ghazals," +कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे +जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे +शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं +मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे +वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था +आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे +उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा +यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे +यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का +वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे +मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे +या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे " +jii-hii-jii-men-vo-jal-rahii-hogii-jaun-eliya-ghazals," +जी ही जी में वो जल रही होगी +चाँदनी में टहल रही होगी +चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र +अब वो कपड़े बदल रही होगी +सो गई होगी वो शफ़क़-अंदाम +सब्ज़ क़िंदील जल रही होगी +सुर्ख़ और सब्ज़ वादियों की तरफ़ +वो मिरे साथ चल रही होगी +चढ़ते चढ़ते किसी पहाड़ी पर +अब वो करवट बदल रही होगी +पेड़ की छाल से रगड़ खा कर +वो तने से फिसल रही होगी +नील-गूँ झील नाफ़ तक पहने +संदलीं जिस्म मल रही होगी +हो के वो ख़्वाब-ए-ऐश से बेदार +कितनी ही देर शल रही होगी " +ab-vo-ghar-ik-viiraana-thaa-bas-viiraana-zinda-thaa-jaun-eliya-ghazals," +अब वो घर इक वीराना था बस वीराना ज़िंदा था +सब आँखें दम तोड़ चुकी थीं और मैं तन्हा ज़िंदा था +सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में +हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था +वो जो कबूतर उस मूखे में रहते थे किस देस उड़े +एक का नाम नवाज़िंदा था और इक का बाज़िंदा था +वो दोपहर अपनी रुख़्सत की ऐसा-वैसा धोका थी +अपने अंदर अपनी लाश उठाए मैं झूटा ज़िंदा था +थीं वो घर रातें भी कहानी वा'दे और फिर दिन गिनना +आना था जाने वाले को जाने वाला ज़िंदा था +दस्तक देने वाले भी थे दस्तक सुनने वाले भी +था आबाद मोहल्ला सारा हर दरवाज़ा ज़िंदा था +पीले पत्तों को सह-पहर की वहशत पुर्सा दे��ी थी +आँगन में इक औंधे घड़े पर बस इक कव्वा ज़िंदा था " +khuub-hai-shauq-kaa-ye-pahluu-bhii-jaun-eliya-ghazals," +ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी +मैं भी बरबाद हो गया तू भी +हुस्न-ए-मग़मूम तमकनत में तिरी +फ़र्क़ आया न यक-सर-ए-मू भी +ये न सोचा था ज़ेर-ए-साया-ए-ज़ुल्फ़ +कि बिछड़ जाएगी ये ख़ुश-बू भी +हुस्न कहता था छेड़ने वाले +छेड़ना ही तो बस नहीं छू भी +हाए वो उस का मौज-ख़ेज़ बदन +मैं तो प्यासा रहा लब-ए-जू भी +याद आते हैं मो'जिज़े अपने +और उस के बदन का जादू भी +यासमीं उस की ख़ास महरम-ए-राज़ +याद आया करेगी अब तू भी +याद से उस की है मिरा परहेज़ +ऐ सबा अब न आइयो तू भी +हैं यही 'जौन-एलिया' जो कभी +सख़्त मग़रूर भी थे बद-ख़ू भी " +siina-dahak-rahaa-ho-to-kyaa-chup-rahe-koii-jaun-eliya-ghazals," +सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई +क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई +साबित हुआ सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ कहीं नहीं +रिश्तों में ढूँढता है तो ढूँडा करे कोई +तर्क-ए-तअल्लुक़ात कोई मसअला नहीं +ये तो वो रास्ता है कि बस चल पड़े कोई +दीवार जानता था जिसे मैं वो धूल थी +अब मुझ को ए'तिमाद की दावत न दे कोई +मैं ख़ुद ये चाहता हूँ कि हालात हूँ ख़राब +मेरे ख़िलाफ़ ज़हर उगलता फिरे कोई +ऐ शख़्स अब तो मुझ को सभी कुछ क़ुबूल है +ये भी क़ुबूल है कि तुझे छीन ले कोई +हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ +आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई +इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्र +काश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई " +haalat-e-haal-ke-sabab-haalat-e-haal-hii-gaii-jaun-eliya-ghazals," +हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई +शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई +तेरा फ़िराक़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिए +या'नी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई +तेरे विसाल के लिए अपने कमाल के लिए +हालत-ए-दिल कि थी ख़राब और ख़राब की गई +उस की उमीद-ए-नाज़ का हम से ये मान था कि आप +उम्र गुज़ार दीजिए उम्र गुज़ार दी गई +एक ही हादसा तो है और वो ये कि आज तक +बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई +बा'द भी तेरे जान-ए-जाँ दिल में रहा अजब समाँ +याद रही तिरी यहाँ फिर तिरी याद भी गई +उस के बदन को दी नुमूद हम ने सुख़न में और फिर +उस के बदन के वास्ते एक क़बा भी सी गई +मीना-ब-मीना मय-ब-मय जाम-ब-जाम जम-ब-जम +नाफ़-पियाले की तिरे याद अजब सही गई +कहनी है मुझ को एक बात आप से या'नी आप से +आप के शहर-ए-वस्ल में लज़्ज़त-ए-हिज्र भी गई +सेहन-ए-ख़याल-ए-यार में की न बसर शब-ए-फ़िराक़ +जब से वो चाँदना गया जब से वो चाँदनी गई " +zindagii-kyaa-hai-ik-kahaanii-hai-jaun-eliya-ghazals," +ज़िंदगी क्या है इक कहानी है +ये कहानी नहीं सुनानी है +है ख़ुदा भी अजीब या'नी जो +न ज़मीनी न आसमानी है +है मिरे शौक़-ए-वस्ल को ये गिला +उस का पहलू सरा-ए-फ़ानी है +अपनी तामीर-ए-जान-ओ-दिल के लिए +अपनी बुनियाद हम को ढानी है +ये है लम्हों का एक शहर-ए-अज़ल +याँ की हर बात ना-गहानी है +चलिए ऐ जान-ए-शाम आज तुम्हें +शम्अ इक क़ब्र पर जलानी है +रंग की अपनी बात है वर्ना +आख़िरश ख़ून भी तो पानी है +इक अबस का वजूद है जिस से +ज़िंदगी को मुराद पानी है +शाम है और सहन में दिल के +इक अजब हुज़न-ए-आसमानी है " +be-dilii-kyaa-yuunhii-din-guzar-jaaenge-jaun-eliya-ghazals," +बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे +सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे +रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं +सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे +ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता +सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे +कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं +क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे +है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम +बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे " +chalo-baad-e-bahaarii-jaa-rahii-hai-jaun-eliya-ghazals," +चलो बाद-ए-बहारी जा रही है +पिया-जी की सवारी जा रही है +शुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ से +तमन्ना की अमारी जा रही है +फ़ुग़ाँ ऐ दुश्मन-ए-दार-ए-दिल-ओ-जाँ +मिरी हालत सुधारी जा रही है +है पहलू में टके की इक हसीना +तिरी फ़ुर्क़त गुज़ारी जा रही है +जो इन रोज़ों मिरा ग़म है वो ये है +कि ग़म से बुर्दबारी जा रही है +है सीने में अजब इक हश्र बरपा +कि दिल से बे-क़रारी जा रही है +मैं पैहम हार कर ये सोचता हूँ +वो क्या शय है जो हारी जा रही है +दिल उस के रू-ब-रू है और गुम-सुम +कोई अर्ज़ी गुज़ारी जा रही है +वो सय्यद बच्चा हो और शैख़ के साथ +मियाँ इज़्ज़त हमारी जा रही है +है बरपा हर गली में शोर-ए-नग़्मा +मिरी फ़रियाद मारी जा रही है +वो याद अब हो रही है दिल से रुख़्सत +मियाँ प्यारों की प्यारी जा रही है +दरेग़ा तेरी नज़दीकी मियाँ-जान +तिरी दूरी पे वारी जा रही है +बहुत बद-हाल हैं बस्ती तिरे लोग +तो फिर तू क्यूँ सँवारी जा रही है +तिरी मरहम-निगाही ऐ मसीहा +ख़राश-ए-दिल पे वारी जा रही है +ख़राबे में अजब था शोर बरपा +दिलों से इंतिज़ारी जा रही है " +sharmindagii-hai-ham-ko-bahut-ham-mile-tumhen-jaun-eliya-ghazals," +शर्मिंदगी है हम को बहुत हम मिले तुम्हें +तुम सर-ब-सर ख़ुशी थे मगर ग़म मिले तुम्हें +मैं अपने आप में न मिला इस का ग़म नहीं +ग़म तो ये है कि तुम भी बहुत कम मिले तुम्हें +है जो हमारा एक हिसाब उस हिसाब से +आती है हम को शर्म कि पैहम मिले तुम्हें +तुम को जहान-ए-शौक़-ओ-तमन्ना में क्या मिला +हम भी मिले तो दरहम ओ बरहम मिले तुम्हें +अब अपने तौर ही में नहीं तुम सो काश कि +ख़ुद में ख़ुद अपना तौर कोई दम मिले तुम्हें +इस शहर-ए-हीला-जू में जो महरम मिले मुझे +फ़रियाद जान-ए-जाँ वही महरम मिले तुम्हें +देता हूँ तुम को ख़ुश्की-ए-मिज़्गाँ की मैं दुआ +मतलब ये है कि दामन-ए-पुर-नम मिले तुम्हें +मैं उन में आज तक कभी पाया नहीं गया +जानाँ जो मेरे शौक़ के आलम मिले तुम्हें +तुम ने हमारे दिल में बहुत दिन सफ़र किया +शर्मिंदा हैं कि उस में बहुत ख़म मिले तुम्हें +यूँ हो कि और ही कोई हव्वा मिले मुझे +हो यूँ कि और ही कोई आदम मिले तुम्हें " +aakhirii-baar-aah-kar-lii-hai-jaun-eliya-ghazals," +आख़िरी बार आह कर ली है +मैं ने ख़ुद से निबाह कर ली है +अपने सर इक बला तो लेनी थी +मैं ने वो ज़ुल्फ़ अपने सर ली है +दिन भला किस तरह गुज़ारोगे +वस्ल की शब भी अब गुज़र ली है +जाँ-निसारों पे वार क्या करना +मैं ने बस हाथ में सिपर ली है +जो भी माँगो उधार दूँगा मैं +उस गली में दुकान कर ली है +मेरा कश्कोल कब से ख़ाली था +मैं ने इस में शराब भर ली है +और तो कुछ नहीं किया मैं ने +अपनी हालत तबाह कर ली है +शैख़ आया था मोहतसिब को लिए +मैं ने भी उन की वो ख़बर ली है " +umr-guzregii-imtihaan-men-kyaa-jaun-eliya-ghazals," +उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या +दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या +मेरी हर बात बे-असर ही रही +नक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या +मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं +यही होता है ख़ानदान में क्या +अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं +हम ग़रीबों की आन-बान में क्या +ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से +आ गया था मिरे गुमान में क्या +शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद +नहीं नुक़सान तक दुकान में क्या +ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़ +तू नहाती है अब भी बान में क्या +बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में +आबले पड़ गए ज़बान में क्या +ख़ामुशी कह रही है कान में क्या +आ रहा है मिरे गुमान में क्या +दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुत +ख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या +वो मिले तो ये पूछना है मुझे +अब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या +यूँ जो तकता है आसमान को तू +कोई रहता है आसमान में क्या +है नसीम-ए-बहार गर्द-आलूद +ख़ाक उड़ती है उस मकान में क्या +ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता +एक ही शख़्स था जहान में क्या " +tuu-bhii-chup-hai-main-bhii-chup-huun-ye-kaisii-tanhaaii-hai-jaun-eliya-ghazals," +तू भी चुप ��ै मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई है +तेरे साथ तिरी याद आई क्या तू सच-मुच आई है +शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का +मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है +उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रिफ़ाक़त का एहसास +जब उस के मल्बूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है +हुस्न से अर्ज़-ए-शौक़ न करना हुस्न को ज़क पहुँचाना है +हम ने अर्ज़-ए-शौक़ न कर के हुस्न को ज़क पहुँचाई है +हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में +सोज़-ए-रक़ाबत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है +हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे +पागल कुछ तो सोच ये तू ने कैसी शक्ल बनाई है +इशक़-ए-पेचाँ की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े +क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है +हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम +इश्क़ का पेशा हुस्न-परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है +आज बहुत दिन बा'द मैं अपने कमरे तक आ निकला था +जूँ ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है +एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ +वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है " +ham-to-jaise-vahaan-ke-the-hii-nahiin-jaun-eliya-ghazals," +हम तो जैसे वहाँ के थे ही नहीं +बे-अमाँ थे अमाँ के थे ही नहीं +हम कि हैं तेरी दास्ताँ यकसर +हम तिरी दास्ताँ के थे ही नहीं +उन को आँधी में ही बिखरना था +बाल ओ पर आशियाँ के थे ही नहीं +अब हमारा मकान किस का है +हम तो अपने मकाँ के थे ही नहीं +हो तिरी ख़ाक-ए-आस्ताँ पे सलाम +हम तिरे आस्ताँ के थे ही नहीं +हम ने रंजिश में ये नहीं सोचा +कुछ सुख़न तो ज़बाँ के थे ही नहीं +दिल ने डाला था दरमियाँ जिन को +लोग वो दरमियाँ के थे ही नहीं +उस गली ने ये सुन के सब्र किया +जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं " +apnaa-khaaka-lagtaa-huun-jaun-eliya-ghazals," +अपना ख़ाका लगता हूँ +एक तमाशा लगता हूँ +आईनों को ज़ंग लगा +अब मैं कैसा लगता हूँ +अब मैं कोई शख़्स नहीं +उस का साया लगता हूँ +सारे रिश्ते तिश्ना हैं +क्या मैं दरिया लगता हूँ +उस से गले मिल कर ख़ुद को +तन्हा तन्हा लगता हूँ +ख़ुद को मैं सब आँखों में +धुँदला धुँदला लगता हूँ +मैं हर लम्हा इस घर से +जाने वाला लगता हूँ +क्या हुए वो सब लोग कि मैं +सूना सूना लगता हूँ +मस्लहत इस में क्या है मेरी +टूटा फूटा लगता हूँ +क्या तुम को इस हाल में भी +मैं दुनिया का लगता हूँ +कब का रोगी हूँ वैसे +शहर-ए-मसीहा लगता हूँ +मेरा तालू तर कर दो +सच-मुच प्यासा लगता हूँ +मुझ से कमा लो कुछ पैसे +ज़िंदा मु��्दा लगता हूँ +मैं ने सहे हैं मक्र अपने +अब बेचारा लगता हूँ " +ek-hii-muzhda-subh-laatii-hai-jaun-eliya-ghazals," +एक ही मुज़्दा सुब्ह लाती है +धूप आँगन में फैल जाती है +रंग-ए-मौसम है और बाद-ए-सबा +शहर कूचों में ख़ाक उड़ाती है +फ़र्श पर काग़ज़ उड़ते फिरते हैं +मेज़ पर गर्द जमती जाती है +सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर +अब किसे रात भर जगाती है +मैं भी इज़्न-ए-नवा-गरी चाहूँ +बे-दिली भी तो लब हिलाती है +सो गए पेड़ जाग उठी ख़ुश्बू +ज़िंदगी ख़्वाब क्यूँ दिखाती है +उस सरापा वफ़ा की फ़ुर्क़त में +ख़्वाहिश-ए-ग़ैर क्यूँ सताती है +आप अपने से हम-सुख़न रहना +हम-नशीं साँस फूल जाती है +क्या सितम है कि अब तिरी सूरत +ग़ौर करने पे याद आती है +कौन इस घर की देख-भाल करे +रोज़ इक चीज़ टूट जाती है " +aadmii-vaqt-par-gayaa-hogaa-jaun-eliya-ghazals," +आदमी वक़्त पर गया होगा +वक़्त पहले गुज़र गया होगा +वो हमारी तरफ़ न देख के भी +कोई एहसान धर गया होगा +ख़ुद से मायूस हो के बैठा हूँ +आज हर शख़्स मर गया होगा +शाम तेरे दयार में आख़िर +कोई तो अपने घर गया होगा +मरहम-ए-हिज्र था अजब इक्सीर +अब तो हर ज़ख़्म भर गया होगा " +ghar-se-ham-ghar-talak-gae-honge-jaun-eliya-ghazals," +घर से हम घर तलक गए होंगे +अपने ही आप तक गए होंगे +हम जो अब आदमी हैं पहले कभी +जाम होंगे छलक गए होंगे +वो भी अब हम से थक गया होगा +हम भी अब उस से थक गए होंगे +शब जो हम से हुआ मुआ'फ़ करो +नहीं पी थी बहक गए होंगे +कितने ही लोग हिर्स-ए-शोहरत में +दार पर ख़ुद लटक गए होंगे +शुक्र है इस निगाह-ए-कम का मियाँ +पहले ही हम खटक गए होंगे +हम तो अपनी तलाश में अक्सर +अज़ समा-ता-समक गए होंगे +उस का लश्कर जहाँ-तहाँ या'नी +हम भी बस बे-कुमक गए होंगे +'जौन' अल्लाह और ये आलम +बीच में हम अटक गए होंगे " +gaahe-gaahe-bas-ab-yahii-ho-kyaa-jaun-eliya-ghazals," +गाहे गाहे बस अब यही हो क्या +तुम से मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या +मिल रही हो बड़े तपाक के साथ +मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या +याद हैं अब भी अपने ख़्वाब तुम्हें +मुझ से मिल कर उदास भी हो क्या +बस मुझे यूँही इक ख़याल आया +सोचती हो तो सोचती हो क्या +अब मिरी कोई ज़िंदगी ही नहीं +अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या +क्या कहा इश्क़ जावेदानी है! +आख़िरी बार मिल रही हो क्या +हाँ फ़ज़ा याँ की सोई सोई सी है +तो बहुत तेज़ रौशनी हो क्या +मेरे सब तंज़ बे-असर ही रहे +तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या +दिल में अब सोज़-ए-इंतिज़ार नहीं +शम-ए-उम्मीद बुझ गई हो क्या +इस समुंदर पे तिश्ना-काम हूँ मैं +बान तुम अ��� भी बह रही हो क्या " +khud-apne-dil-men-kharaashen-utaarnaa-hongii-mohsin-naqvi-ghazals," +ख़ुद अपने दिल में ख़राशें उतारना होंगी +अभी तो जाग के रातें गुज़ारना होंगी +तिरे लिए मुझे हँस हँस के बोलना होगा +मिरे लिए तुझे ज़ुल्फ़ें सँवारना होंगी +तिरी सदा से तुझी को तराशना होगा +हवा की चाप से शक्लें उभारना होंगी +अभी तो तेरी तबीअ'त को जीतने के लिए +दिल ओ निगाह की शर्तें भी हारना होंगी +तिरे विसाल की ख़्वाहिश के तेज़ रंगों से +तिरे फ़िराक़ की सुब्हें निखारना होंगी +ये शाइ'री ये किताबें ये आयतें दिल की +निशानियाँ ये सभी तुझ पे वारना होंगी " +jab-se-us-ne-shahr-ko-chhodaa-har-rasta-sunsaan-huaa-mohsin-naqvi-ghazals," +जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ +अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ +ये दिल ये आसेब की नगरी मस्कन सोचूँ वहमों का +सोच रहा हूँ इस नगरी में तू कब से मेहमान हुआ +सहरा की मुँह-ज़ोर हवाएँ औरों से मंसूब हुईं +मुफ़्त में हम आवारा ठहरे मुफ़्त में घर वीरान हुआ +मेरे हाल पे हैरत कैसी दर्द के तन्हा मौसम में +पत्थर भी रो पड़ते हैं इंसान तो फिर इंसान हुआ +इतनी देर में उजड़े दिल पर कितने महशर बीत गए +जितनी देर में तुझ को पा कर खोने का इम्कान हुआ +कल तक जिस के गिर्द था रक़्साँ इक अम्बोह सितारों का +आज उसी को तन्हा पा कर मैं तो बहुत हैरान हुआ +उस के ज़ख़्म छुपा कर रखिए ख़ुद उस शख़्स की नज़रों से +उस से कैसा शिकवा कीजे वो तो अभी नादान हुआ +जिन अश्कों की फीकी लौ को हम बे-कार समझते थे +उन अश्कों से कितना रौशन इक तारीक मकान हुआ +यूँ भी कम-आमेज़ था 'मोहसिन' वो इस शहर के लोगों में +लेकिन मेरे सामने आ कर और भी कुछ अंजान हुआ " +ham-jo-pahunche-sar-e-maqtal-to-ye-manzar-dekhaa-mohsin-naqvi-ghazals," +हम जो पहुँचे सर-ए-मक़्तल तो ये मंज़र देखा +सब से ऊँचा था जो सर नोक-ए-सिनाँ पर देखा +हम से मत पूछ कि कब चाँद उभरता है यहाँ +हम ने सूरज भी तिरे शहर में आ कर देखा +ऐसे लिपटे हैं दर-ओ-बाम से अब के जैसे +हादसों ने बड़ी मुद्दत में मिरा घर देखा +अब ये सोचा है कि औरों का कहा मानेंगे +अपनी आँखों पे भरोसा तो बहुत कर देखा +एक इक पल में उतरता रहा सदियों का अज़ाब +हिज्र की रात गुज़ारी है कि महशर देखा +मुझ से मत पूछ मिरी तिश्ना-लबी के तेवर +रेत चमकी तो ये समझो कि समुंदर देखा +दुख ही ऐसा था कि 'मोहसिन' हुआ गुम-सुम वर्ना +ग़म छुपा कर उसे हँसते हुए अक्सर देखा " +azaab-e-diid-men-aankhen-lahuu-lahuu-kar-ke-mohsin-naqvi-ghazals," +अज़ाब-ए-दीद में आँखें लहू लहू कर के +मैं शर्मसार हुआ तेरी जुस्तुजू कर के +खंडर की तह से बुरीदा-बदन सरों के सिवा +मिला न कुछ भी ख़ज़ानों की आरज़ू कर के +सुना है शहर में ज़ख़्मी दिलों का मेला है +चलेंगे हम भी मगर पैरहन रफ़ू कर के +मसाफ़त-ए-शब-ए-हिज्राँ के बा'द भेद खुला +हवा दुखी है चराग़ों की आबरू कर के +ज़मीं की प्यास उसी के लहू को चाट गई +वो ख़ुश हुआ था समुंदर को आबजू कर के +ये किस ने हम से लहू का ख़िराज फिर माँगा +अभी तो सोए थे मक़्तल को सुर्ख़-रू कर के +जुलूस-ए-अहल-ए-वफ़ा किस के दर पे पहुँचा है +निशान-ए-तौक़-ए-वफ़ा ज़ीनत-ए-गुलू कर के +उजाड़ रुत को गुलाबी बनाए रखती है +हमारी आँख तिरी दीद से वुज़ू कर के +कोई तो हब्स-ए-हवा से ये पूछता 'मोहसिन' +मिला है क्या उसे कलियों को बे-नुमू कर के " +zakhm-ke-phuul-se-taskiin-talab-kartii-hai-mohsin-naqvi-ghazals," +ज़ख़्म के फूल से तस्कीन तलब करती है +बाज़ औक़ात मिरी रूह ग़ज़ब करती है +जो तिरी ज़ुल्फ़ से उतरे हों मिरे आँगन में +चाँदनी ऐसे अँधेरों का अदब करती है +अपने इंसाफ़ की ज़ंजीर न देखो कि यहाँ +मुफ़्लिसी ज़ेहन की फ़रियाद भी कब करती है +सेहन-ए-गुलशन में हवाओं की सदा ग़ौर से सुन +हर कली मातम-ए-सद-जश्न-ए-तरब करती है +सिर्फ़ दिन ढलने पे मौक़ूफ़ नहीं है 'मोहसिन' +ज़िंदगी ज़ुल्फ़ के साए में भी शब करती है " +khumaar-e-mausam-e-khushbuu-had-e-chaman-men-khulaa-mohsin-naqvi-ghazals," +ख़ुमार-ए-मौसम-ए-ख़ुश्बू हद-ए-चमन में खुला +मिरी ग़ज़ल का ख़ज़ाना तिरे बदन में खुला +तुम उस का हुस्न कभी उस की बज़्म में देखो +कि माहताब सदा शब के पैरहन में खुला +अजब नशा था मगर उस की बख़्शिश-ए-लब में +कि यूँ तो हम से भी क्या क्या न वो सुख़न में खुला +न पूछ पहली मुलाक़ात में मिज़ाज उस का +वो रंग रंग में सिमटा किरन किरन में खुला +बदन की चाप निगह की ज़बाँ भी होती है +ये भेद हम पे मगर उस की अंजुमन में खुला +कि जैसे अब्र हवा की गिरह से खुल जाए +सफ़र की शाम मिरा मेहरबाँ थकन में खुला +कहूँ मैं किस से निशानी थी किस मसीहा की +वो एक ज़ख़्म कि 'मोहसिन' मिरे कफ़न में खुला " +ashk-apnaa-ki-tumhaaraa-nahiin-dekhaa-jaataa-mohsin-naqvi-ghazals," +अश्क अपना कि तुम्हारा नहीं देखा जाता +अब्र की ज़द में सितारा नहीं देखा जाता +अपनी शह-ए-रग का लहू तन में रवाँ है जब तक +ज़ेर-ए-ख़ंजर कोई प्यारा नहीं देखा जाता +मौज-दर-मौज उलझने की हवस बे-मा'नी +डूबता हो तो सहारा नहीं देखा जाता +तेरे चेहरे की कशिश थी कि पलट कर देखा +वर्ना सूरज तो दोबारा नहीं देखा जाता +आग की ज़िद पे न जा फिर से भड़क सकती है +रा��� की तह में शरारा नहीं देखा जाता +ज़ख़्म आँखों के भी सहते थे कभी दिल वाले +अब तो अबरू का इशारा नहीं देखा जाता +क्या क़यामत है कि दिल जिस का नगर है 'मोहसिन' +दिल पे उस का भी इजारा नहीं देखा जाता " +har-ek-shab-yuunhii-dekhengii-suu-e-dar-aankhen-mohsin-naqvi-ghazals," +हर एक शब यूँही देखेंगी सू-ए-दर आँखें +तुझे गँवा के न सोएँगी उम्र-भर आँखें +तुलू-ए-सुब्ह से पहले ही बुझ न जाएँ कहीं +ये दश्त-ए-शब में सितारों की हम-सफ़र आँखें +सितम ये कम तो नहीं दिल गिरफ़्तगी के लिए +मैं शहर भर में अकेला इधर-उधर आँखें +शुमार उस की सख़ावत का क्या करें कि वो शख़्स +चराग़ बाँटता फिरता है छीन कर आँखें +मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हुआ जब तो मुझ पे भेद खुला +कि पत्थरों को समझती रहीं गुहर आँखें +मैं अपने अश्क सँभालूँगा कब तलक 'मोहसिन' +ज़माना संग-ब-कफ़ है तो शीशागर आँखें " +ye-kah-gae-hain-musaafir-lute-gharon-vaale-mohsin-naqvi-ghazals," +ये कह गए हैं मुसाफ़िर लुटे घरों वाले +डरें हवा से परिंदे खुले परों वाले +ये मेरे दिल की हवस दश्त-ए-बे-कराँ जैसी +वो तेरी आँख के तेवर समुंदरों वाले +हवा के हाथ में कासे हैं ज़र्द पत्तों के +कहाँ गए वो सख़ी सब्ज़ चादरों वाले +कहाँ मिलेंगे वो अगले दिनों के शहज़ादे +पहन के तन पे लिबादे गदागरों वाले +पहाड़ियों में घिरे ये बुझे बुझे रस्ते +कभी इधर से गुज़रते थे लश्करों वाले +उन्ही पे हो कभी नाज़िल अज़ाब आग अजल +वही नगर कभी ठहरें पयम्बरों वाले +तिरे सुपुर्द करूँ आईने मुक़द्दर के +इधर तो आ मिरे ख़ुश-रंग पत्थरों वाले +किसी को देख के चुप चुप से क्यूँ हुए 'मोहसिन' +कहाँ गए वो इरादे सुख़न-वरों वाले " +jab-hijr-ke-shahr-men-dhuup-utrii-main-jaag-padaa-to-khvaab-huaa-mohsin-naqvi-ghazals," +जब हिज्र के शहर में धूप उतरी मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ +मिरी सोच ख़िज़ाँ की शाख़ बनी तिरा चेहरा और गुलाब हुआ +बर्फ़ीली रुत की तेज़ हवा क्यूँ झील में कंकर फेंक गई +इक आँख की नींद हराम हुई इक चाँद का अक्स ख़राब हुआ +तिरे हिज्र में ज़ेहन पिघलता था तिरे क़ुर्ब में आँखें जलती हैं +तुझे खोना एक क़यामत था तिरा मिलना और अज़ाब हुआ +भरे शहर में एक ही चेहरा था जिसे आज भी गलियाँ ढूँडती हैं +किसी सुब्ह उसी की धूप खिली किसी रात वही महताब हुआ +बड़ी उम्र के बा'द इन आँखों में कोई अब्र उतरा तिरी यादों का +मिरे दिल की ज़मीं आबाद हुई मिरे ग़म का नगर शादाब हुआ +कभी वस्ल में 'मोहसिन' दिल टूटा कभी हिज्र की रुत ने लाज रखी +किसी जिस्म में आँखें खो बैठे कोई चेहरा खुली कित��ब हुआ " +kis-ne-sang-e-khaamoshii-phenkaa-bhare-baazaar-par-mohsin-naqvi-ghazals," +किस ने संग-ए-ख़ामुशी फेंका भरे-बाज़ार पर +इक सुकूत-ए-मर्ग तारी है दर-ओ-दीवार पर +तू ने अपनी ज़ुल्फ़ के साए में अफ़्साने कहे +मुझ को ज़ंजीरें मिली हैं जुरअत-ए-इज़हार पर +शाख़-ए-उरियाँ पर खिला इक फूल इस अंदाज़ से +जिस तरह ताज़ा लहू चमके नई तलवार पर +संग-दिल अहबाब के दामन में रुस्वाई के फूल +मैं ने देखा है नया मंज़र फ़राज़-ए-दार पर +अब कोई तोहमत भी वज्ह-ए-कर्ब-ए-रुसवाई नहीं +ज़िंदगी इक उम्र से चुप है तिरे इसरार पर +मैं सर-ए-मक़्तल हदीस-ए-ज़िंदगी कहता रहा +उँगलियाँ उठती रहीं 'मोहसिन' मिरे किरदार पर " +ye-dil-ye-paagal-dil-miraa-kyuun-bujh-gayaa-aavaargii-mohsin-naqvi-ghazals," +ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी +इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी +कल शब मुझे बे-शक्ल की आवाज़ ने चौंका दिया +मैं ने कहा तू कौन है उस ने कहा आवारगी +लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ +हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी +ये दर्द की तन्हाइयाँ ये दश्त का वीराँ सफ़र +हम लोग तो उक्ता गए अपनी सुना आवारगी +इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मिरे ग़म का सबब +सहरा की भीगी रेत पर मैं ने लिखा आवारगी +उस सम्त वहशी ख़्वाहिशों की ज़द में पैमान-ए-वफ़ा +उस सम्त लहरों की धमक कच्चा घड़ा आवारगी +कल रात तन्हा चाँद को देखा था मैं ने ख़्वाब में +'मोहसिन' मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी " +itnii-muddat-baad-mile-ho-mohsin-naqvi-ghazals," +इतनी मुद्दत बा'द मिले हो +किन सोचों में गुम फिरते हो +इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो +हर आहट से डर जाते हो +तेज़ हवा ने मुझ से पूछा +रेत पे क्या लिखते रहते हो +काश कोई हम से भी पूछे +रात गए तक क्यूँ जागे हो +में दरिया से भी डरता हूँ +तुम दरिया से भी गहरे हो +कौन सी बात है तुम में ऐसी +इतने अच्छे क्यूँ लगते हो +पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था +पत्थर बन कर क्या तकते हो +जाओ जीत का जश्न मनाओ +में झूटा हूँ तुम सच्चे हो +अपने शहर के सब लोगों से +मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो +कहने को रहते हो दिल में +फिर भी कितने दूर खड़े हो +रात हमें कुछ याद नहीं था +रात बहुत ही याद आए हो +हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से +अपनी कहो अब तुम कैसे हो +'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो +जैसे हो फिर भी अच्छे हो " +ab-ke-baarish-men-to-ye-kaar-e-ziyaan-honaa-hii-thaa-mohsin-naqvi-ghazals," +अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था +अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था +किस के बस में था हवा की वहशतों को रोकना +बर्ग-ए-गुल को ख़ाक शोले को धुआँ होना ही था +जब कोई सम्त-ए-सफ़र तय थी न हद्द-ए-रहगुज़र +ऐ मिरे रह-रौ सफ़र तो राएगाँ होना ही था +मुझ को रुकना था उसे जाना था अगले मोड़ तक +फ़ैसला ये उस के मेरे दरमियाँ होना ही था +चाँद को चलना था बहती सीपियों के साथ साथ +मो'जिज़ा ये भी तह-ए-आब-ए-रवाँ होना ही था +मैं नए चेहरों पे कहता था नई ग़ज़लें सदा +मेरी इस आदत से उस को बद-गुमाँ होना ही था +शहर से बाहर की वीरानी बसाना थी मुझे +अपनी तन्हाई पे कुछ तो मेहरबाँ होना ही था +अपनी आँखें दफ़्न करना थीं ग़ुबार-ए-ख़ाक में +ये सितम भी हम पे ज़ेर-ए-आसमाँ होना ही था +बे-सदा बस्ती की रस्में थीं यही 'मोहसिन' मिरे +मैं ज़बाँ रखता था मुझ को बे-ज़बाँ होना ही था " +saanson-ke-is-hunar-ko-na-aasaan-khayaal-kar-mohsin-naqvi-ghazals," +साँसों के इस हुनर को न आसाँ ख़याल कर +ज़िंदा हूँ साअ'तों को मैं सदियों में ढाल कर +माली ने आज कितनी दुआएँ वसूल कीं +कुछ फूल इक फ़क़ीर की झोली में डाल कर +कुल यौम-ए-हिज्र ज़र्द ज़मानों का यौम है +शब भर न जाग मुफ़्त में आँखें न लाल कर +ऐ गर्द-बाद लौट के आना है फिर मुझे +रखना मिरे सफ़र की अज़िय्यत सँभाल कर +मेहराब में दिए की तरह ज़िंदगी गुज़ार +मुँह-ज़ोर आँधियों में न ख़ुद को निढाल कर +शायद किसी ने बुख़्ल-ए-ज़मीं पर किया है तंज़ +गहरे समुंदरों से जज़ीरे निकाल कर +ये नक़्द-ए-जाँ कि इस का लुटाना तो सहल है +गर बन पड़े तो इस से भी मुश्किल सवाल कर +'मोहसिन' बरहना-सर चली आई है शाम-ए-ग़म +ग़ुर्बत न देख इस पे सितारों की शाल कर " +ek-pal-men-zindagii-bhar-kii-udaasii-de-gayaa-mohsin-naqvi-ghazals," +एक पल में ज़िंदगी भर की उदासी दे गया +वो जुदा होते हुए कुछ फूल बासी दे गया +नोच कर शाख़ों के तन से ख़ुश्क पत्तों का लिबास +ज़र्द मौसम बाँझ-रुत को बे-लिबासी दे गया +सुब्ह के तारे मिरी पहली दुआ तेरे लिए +तू दिल-ए-बे-सब्र को तस्कीं ज़रा सी दे गया +लोग मलबों में दबे साए भी दफ़नाने लगे +ज़लज़ला अहल-ए-ज़मीं को बद-हवासी दे गया +तुंद झोंके की रगों में घोल कर अपना धुआँ +इक दिया अंधी हवा को ख़ुद-शनासी दे गया +ले गया 'मोहसिन' वो मुझ से अब्र बनता आसमाँ +उस के बदले में ज़मीं सदियों की प्यासी दे गया " +ab-vo-tuufaan-hai-na-vo-shor-havaaon-jaisaa-mohsin-naqvi-ghazals," +अब वो तूफ़ाँ है न वो शोर हवाओं जैसा +दिल का आलम है तिरे बा'द ख़लाओं जैसा +काश दुनिया मिरे एहसास को वापस कर दे +ख़ामुशी का वही अंदाज़ सदाओं जैसा +पास रह कर भी हमेशा वो बहुत दूर मिला +उस का अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल था ख़ुदाओं ��ैसा +कितनी शिद्दत से बहारों को था एहसास-ए-मआ'ल +फूल खिल कर भी रहा ज़र्द ख़िज़ाओं जैसा +क्या क़यामत है कि दुनिया उसे सरदार कहे +जिस का अंदाज़-ए-सुख़न भी हो गदाओं जैसा +फिर तिरी याद के मौसम ने जगाए महशर +फिर मिरे दिल में उठा शोर हवाओं जैसा +बारहा ख़्वाब में पा कर मुझे प्यासा 'मोहसिन' +उस की ज़ुल्फ़ों ने किया रक़्स घटाओं जैसा " +bhadkaaen-mirii-pyaas-ko-aksar-tirii-aankhen-mohsin-naqvi-ghazals," +भड़काएँ मिरी प्यास को अक्सर तिरी आँखें +सहरा मिरा चेहरा है समुंदर तिरी आँखें +फिर कौन भला दाद-ए-तबस्सुम उन्हें देगा +रोएँगी बहुत मुझ से बिछड़ कर तिरी आँखें +ख़ाली जो हुई शाम-ए-ग़रीबाँ की हथेली +क्या क्या न लुटाती रहीं गौहर तेरी आँखें +बोझल नज़र आती हैं ब-ज़ाहिर मुझे लेकिन +खुलती हैं बहुत दिल में उतर कर तिरी आँखें +अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता +भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें +मुमकिन हो तो इक ताज़ा ग़ज़ल और भी कह लूँ +फिर ओढ़ न लें ख़्वाब की चादर तिरी आँखें +मैं संग-सिफ़त एक ही रस्ते में खड़ा हूँ +शायद मुझे देखेंगी पलट कर तिरी आँखें +यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहसिन' +वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें " +saare-lahje-tire-be-zamaan-ek-main-mohsin-naqvi-ghazals," +सारे लहजे तिरे बे-ज़माँ एक मैं +इस भरे शहर में राएगाँ एक मैं +वस्ल के शहर की रौशनी एक तू +हिज्र के दश्त में कारवाँ एक मैं +बिजलियों से भरी बारिशें ज़ोर पर +अपनी बस्ती में कच्चा मकाँ एक मैं +हसरतों से अटे आसमाँ के तले +जलती-बुझती हुई कहकशाँ एक मैं +मुझ को फ़ारिग़ दिनों की अमानत समझ +भूली-बिसरी हुई दास्ताँ एक मैं +रौनक़ें शोर मेले झमेले तिरे +अपनी तन्हाई का राज़-दाँ एक मैं +एक मैं अपनी ही ज़िंदगी का भरम +अपनी ही मौत पर नौहा-ख़्वाँ एक मैं +उस तरफ़ संग-बारी हर इक बाम से +इस तरफ़ आइनों की दुकाँ एक मैं +वो नहीं है तो 'मोहसिन' ये मत सोचना +अब भटकता फिरूंगा कहाँ एक मैं " +vo-dilaavar-jo-siyah-shab-ke-shikaarii-nikle-mohsin-naqvi-ghazals," +वो दिलावर जो सियह शब के शिकारी निकले +वो भी चढ़ते हुए सूरज के पुजारी निकले +सब के होंटों पे मिरे बा'द हैं बातें मेरी +मेरे दुश्मन मिरे लफ़्ज़ों के भिकारी निकले +इक जनाज़ा उठा मक़्तल में अजब शान के साथ +जैसे सज कर किसी फ़ातेह की सवारी निकले +हम को हर दौर की गर्दिश ने सलामी दी है +हम वो पत्थर हैं जो हर दौर में भारी निकले +अक्स कोई हो ख़द-ओ-ख़ाल तुम्हारे देखूँ +बज़्म कोई हो मगर बात तुम्हारी निकले +अपने दुश्मन से मैं बे-वज्ह ख़फ़ा था 'मोहसिन' +मेरे क़ातिल तो मिरे अपने हवारी निकले " +main-dil-pe-jabr-karuungaa-tujhe-bhulaa-duungaa-mohsin-naqvi-ghazals," +मैं दिल पे जब्र करूँगा तुझे भुला दूँगा +मरूँगा ख़ुद भी तुझे भी कड़ी सज़ा दूँगा +ये तीरगी मिरे घर का ही क्यूँ मुक़द्दर हो +मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूँगा +हवा का हाथ बटाऊँगा हर तबाही में +हरे शजर से परिंदे मैं ख़ुद उड़ा दूँगा +वफ़ा करूँगा किसी सोगवार चेहरे से +पुरानी क़ब्र पे कतबा नया सजा दूँगा +इसी ख़याल में गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर +कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूँगा +तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी +ज़मीं हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूँगा +बढ़ा रही हैं मिरे दुख निशानियाँ तेरी +मैं तेरे ख़त तिरी तस्वीर तक जला दूँगा +बहुत दिनों से मिरा दिल उदास है 'मोहसिन' +इस आइने को कोई अक्स अब नया दूँगा " +ba-naam-e-taaqat-koii-ishaara-nahiin-chalegaa-mohsin-naqvi-ghazals," +ब-नाम-ए-ताक़त कोई इशारा नहीं चलेगा +उदास नस्लों पे अब इजारा नहीं चलेगा +हम अपनी धरती से अपनी हर सम्त ख़ुद तलाशें +हमारी ख़ातिर कोई सितारा नहीं चलेगा +हयात अब शाम-ए-ग़म की तश्बीह ख़ुद बनेगी +तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का इस्तिआ'रा नहीं चलेगा +चलो सरों का ख़िराज नोक-ए-सिनाँ को बख़्शें +कि जाँ बचाने का इस्तिख़ारा नहीं चलेगा +हमारे जज़्बे बग़ावतों को तराशते हैं +हमारे जज़्बों पे बस तुम्हारा नहीं चलेगा +अज़ल से क़ाएम हैं दोनों अपनी ज़िदों पे 'मोहसिन' +चलेगा पानी मगर किनारा नहीं चलेगा " +zabaan-rakhtaa-huun-lekin-chup-khadaa-huun-mohsin-naqvi-ghazals," +ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ +मैं आवाज़ों के बन में घिर गया हूँ +मिरे घर का दरीचा पूछता है +मैं सारा दिन कहाँ फिरता रहा हूँ +मुझे मेरे सिवा सब लोग समझें +मैं अपने आप से कम बोलता हूँ +सितारों से हसद की इंतिहा है +मैं क़ब्रों पर चराग़ाँ कर रहा हूँ +सँभल कर अब हवाओं से उलझना +मैं तुझ से पेश-तर बुझने लगा हूँ +मिरी क़ुर्बत से क्यूँ ख़ाइफ़ है दुनिया +समुंदर हूँ मैं ख़ुद में गूँजता हूँ +मुझे कब तक समेटेगा वो 'मोहसिन' +मैं अंदर से बहुत टूटा हुआ हूँ " +agarche-main-ik-chataan-saa-aadmii-rahaa-huun-mohsin-naqvi-ghazals," +अगरचे मैं इक चटान सा आदमी रहा हूँ +मगर तिरे बा'द हौसला है कि जी रहा हूँ +वो रेज़ा रेज़ा मिरे बदन में उतर रहा है +मैं क़तरा क़तरा उसी की आँखों को पी रहा हूँ +तिरी हथेली पे किस ने लिक्खा है क़त्ल मेरा +मुझे तो लगता है मैं तिरा दोस्त भी रहा हूँ +खुली हैं आँखें मगर बदन है तमाम पत्थर +कोई बताए मैं मर चुका हूँ कि जी रहा हूँ +कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की +कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ +न पूछ मुझ से कि शहर वालों का हाल क्या था +कि मैं तो ख़ुद अपने घर में भी दो घड़ी रहा हूँ +मिला तो बीते दिनों का सच उस की आँख में था +वो आश्ना जिस से मुद्दतों अजनबी रहा हूँ +भुला दे मुझ को कि बेवफ़ाई बजा है लेकिन +गँवा न मुझ को कि मैं तिरी ज़िंदगी रहा हूँ +वो अजनबी बन के अब मिले भी तो क्या है 'मोहसिन' +ये नाज़ कम है कि मैं भी उस का कभी रहा हूँ " +aap-kii-aankh-se-gahraa-hai-mirii-ruuh-kaa-zakhm-mohsin-naqvi-ghazals," +आप की आँख से गहरा है मिरी रूह का ज़ख़्म +आप क्या सोच सकेंगे मिरी तन्हाई को +मैं तो दम तोड़ रहा था मगर अफ़्सुर्दा हयात +ख़ुद चली आई मिरी हौसला-अफ़ज़ाई को +लज़्ज़त-ए-ग़म के सिवा तेरी निगाहों के बग़ैर +कौन समझा है मिरे ज़ख़्म की गहराई को +मैं बढ़ाऊँगा तिरी शोहरत-ए-ख़ुश्बू का निखार +तू दुआ दे मिरे अफ़्साना-ए-रुसवाई को +वो तो यूँ कहिए कि इक क़ौस-ए-क़ुज़ह फैल गई +वर्ना मैं भूल गया था तिरी अंगड़ाई को " +ajiib-khauf-musallat-thaa-kal-havelii-par-mohsin-naqvi-ghazals," +अजीब ख़ौफ़ मुसल्लत था कल हवेली पर +लहु चराग़ जलाती रही हथेली पर +सुनेगा कौन मगर एहतिजाज ख़ुश्बू का +कि साँप ज़हर छिड़कता रहा चमेली पर +शब-ए-फ़िराक़ मिरी आँख को थकन से बचा +कि नींद वार न कर दे तिरी सहेली पर +वो बेवफ़ा था तो फिर इतना मेहरबाँ क्यूँ था +बिछड़ के उस से मैं सोचूँ उसी पहेली पर +जला न घर का अँधेरा चराग़ से 'मोहसिन' +सितम न कर मिरी जाँ अपने यार बेली पर " +main-chup-rahaa-ki-zahr-yahii-mujh-ko-raas-thaa-mohsin-naqvi-ghazals," +मैं चुप रहा कि ज़हर यही मुझ को रास था +वो संग-ए-लफ़्ज़ फेंक के कितना उदास था +अक्सर मिरी क़बा पे हँसी आ गई जिसे +कल मिल गया तो वो भी दरीदा-लिबास था +मैं ढूँढता था दूर ख़लाओं में एक जिस्म +चेहरों का इक हुजूम मिरे आस-पास था +तुम ख़ुश थे पत्थरों को ख़ुदा जान के मगर +मुझ को यक़ीन है वो तुम्हारा क़यास था +बख़्शा है जिस ने रूह को ज़ख़्मों का पैरहन +'मोहसिन' वो शख़्स कितना तबीअत-शनास था " +gazlon-kii-dhanak-odh-mire-shola-badan-tuu-mohsin-naqvi-ghazals," +ग़ज़लों की धनक ओढ़ मिरे शो'ला-बदन तू +है मेरा सुख़न तू मिरा मौज़ू-ए-सुख़न तू +कलियों की तरह फूट सर-ए-शाख़-ए-तमन्ना +ख़ुशबू की तरह फैल चमन-ता-ब-चमन तू +नाज़िल हो कभी ज़ेहन पे आयात की सूरत +आयात में ढल जा कभी जिबरील दहन तू +अब क्यूँ न सजाऊँ मैं तुझे दीदा ओ दिल में +लगता है अँधेरे में सवेरे की किरन तू +पहले ��� कोई रम्ज़-ए-सुख़न थी न किनाया +अब नुक़्ता-ए-तकमील-ए-हुनर मेहवर-ए-फ़न तू +ये कम तो नहीं तू मिरा मेयार-ए-नज़र है +ऐ दोस्त मिरे वास्ते कुछ और न बन तू +मुमकिन हो तो रहने दे मुझे ज़ुल्मत-ए-जाँ में +ढूँडेगा कहाँ चाँदनी रातों का कफ़न तू " +fazaa-kaa-habs-shaguufon-ko-baas-kyaa-degaa-mohsin-naqvi-ghazals," +फ़ज़ा का हब्स शगूफ़ों को बास क्या देगा +बदन-दरीदा किसी को लिबास क्या देगा +ये दिल कि क़हत-ए-अना से ग़रीब ठहरा है +मिरी ज़बाँ को ज़र-ए-इल्तिमास क्या देगा +जो दे सका न पहाड़ों को बर्फ़ की चादर +वो मेरी बाँझ ज़मीं को कपास क्या देगा +ये शहर यूँ भी तो दहशत भरा नगर है यहाँ +दिलों का शोर हवा को हिरास क्या देगा +वो ज़ख़्म दे के मुझे हौसला भी देता है +अब इस से बढ़ के तबीअत-शनास क्या देगा +जो अपनी ज़ात से बाहर न आ सका अब तक +वो पत्थरों को मता-ए-हवास क्या देगा +वो मेरे अश्क बुझाएगा किस तरह 'मोहसिन' +समुंदरों को वो सहरा की प्यास क्या देगा " +havaa-e-hijr-men-jo-kuchh-thaa-ab-ke-khaak-huaa-mohsin-naqvi-ghazals," +हवा-ए-हिज्र में जो कुछ था अब के ख़ाक हुआ +कि पैरहन तो गया था बदन भी चाक हुआ +अब उस से तर्क-ए-तअल्लुक़ करूँ तो मर जाऊँ +बदन से रूह का इस दर्जा इश्तिराक हुआ +यही कि सब की कमानें हमीं पे टूटी हैं +चलो हिसाब-ए-सफ़-ए-दोस्ताँ तो पाक हुआ +वो बे-सबब यूँही रूठा है लम्हा-भर के लिए +ये सानेहा न सही फिर भी कर्ब-नाक हुआ +उसी के क़ुर्ब ने तक़्सीम कर दिया आख़िर +वो जिस का हिज्र मुझे वज्ह-ए-इंहिमाक हुआ +शदीद वार न दुश्मन दिलेर था 'मोहसिन' +मैं अपनी बे-ख़बरी से मगर हलाक हुआ " +kathin-tanhaaiyon-se-kaun-khelaa-main-akelaa-mohsin-naqvi-ghazals," +कठिन तन्हाइयों से कौन खेला मैं अकेला +भरा अब भी मिरे गाँव का मेला मैं अकेला +बिछड़ कर तुझ से मैं शब भर न सोया कौन रोया +ब-जुज़ मेरे ये दुख भी किस ने झेला मैं अकेला +ये बे-आवाज़ बंजर बन के बासी ये उदासी +ये दहशत का सफ़र जंगल ये बेला मैं अकेला +मैं देखूँ कब तलक मंज़र सुहाने सब पुराने +वही दुनिया वही दिल का झमेला मैं अकेला +वो जिस के ख़ौफ़ से सहरा सिधारे लोग सारे +गुज़रने को है तूफ़ाँ का वो रेला मैं अकेला " +ab-ye-sochuun-to-bhanvar-zehn-men-pad-jaate-hain-mohsin-naqvi-ghazals," +अब ये सोचूँ तो भँवर ज़ेहन में पड़ जाते हैं +कैसे चेहरे हैं जो मिलते ही बिछड़ जाते हैं +क्यूँ तिरे दर्द को दें तोहमत-ए-वीरानी-ए-दिल +ज़लज़लों में तो भरे शहर उजड़ जाते हैं +मौसम-ए-ज़र्द में इक दिल को बचाऊँ कैसे +ऐसी रुत में तो घने पेड़ भी झड़ जाते हैं +अब कोई क्या मिरे क़दमों के निश���ँ ढूँडेगा +तेज़ आँधी में तो ख़ेमे भी उखड़ जाते हैं +शग़्ल-ए-अर्बाब-ए-हुनर पूछते क्या हो कि ये लोग +पत्थरों में भी कभी आइने जड़ जाती हैं +सोच का आइना धुँदला हो तो फिर वक़्त के साथ +चाँद चेहरों के ख़द-ओ-ख़ाल बिगड़ जाते हैं +शिद्दत-ए-ग़म में भी ज़िंदा हूँ तो हैरत कैसी +कुछ दिए तुंद हवाओं से भी लड़ जाते हैं +वो भी क्या लोग हैं 'मोहसिन' जो वफ़ा की ख़ातिर +ख़ुद-तराशीदा उसूलों पे भी अड़ जाते हैं " +ujde-hue-logon-se-gurezaan-na-huaa-kar-mohsin-naqvi-ghazals," +उजड़े हुए लोगों से गुरेज़ाँ न हुआ कर +हालात की क़ब्रों के ये कतबे भी पढ़ा कर +क्या जानिए क्यूँ तेज़ हवा सोच में गुम है +ख़्वाबीदा परिंदों को दरख़्तों से उड़ा कर +उस शख़्स के तुम से भी मरासिम हैं तो होंगे +वो झूट न बोलेगा मिरे सामने आ कर +हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे +तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर +वो आज भी सदियों की मसाफ़त पे खड़ा है +ढूँडा था जिसे वक़्त की दीवार गिरा कर +ऐ दिल तुझे दुश्मन की भी पहचान कहाँ है +तू हल्क़ा-ए-याराँ में भी मोहतात रहा कर +इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं 'मोहसिन' +देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर " +qatl-chhupte-the-kabhii-sang-kii-diivaar-ke-beach-mohsin-naqvi-ghazals," +क़त्ल छुपते थे कभी संग की दीवार के बीच +अब तो खुलने लगे मक़्तल भरे बाज़ार के बीच +अपनी पोशाक के छिन जाने पे अफ़सोस न कर +सर सलामत नहीं रहते यहाँ दस्तार के बीच +सुर्ख़ियाँ अम्न की तल्क़ीन में मसरूफ़ रहीं +हर्फ़ बारूद उगलते रहे अख़बार के बीच +काश इस ख़्वाब की ता'बीर की मोहलत न मिले +शो'ले उगते नज़र आए मुझे गुलज़ार के बीच +ढलते सूरज की तमाज़त ने बिखर कर देखा +सर-कशीदा मिरा साया सफ़-ए-अशजार के बीच +रिज़्क़ मल्बूस मकाँ साँस मरज़ क़र्ज़ दवा +मुनक़सिम हो गया इंसाँ इन्ही अफ़्कार के बीच +देखे जाते न थे आँसू मिरे जिस से 'मोहसिन' +आज हँसते हुए देखा उसे अग़्यार के बीच " +main-kal-tanhaa-thaa-khilqat-so-rahii-thii-mohsin-naqvi-ghazals," +मैं कल तन्हा था ख़िल्क़त सो रही थी +मुझे ख़ुद से भी वहशत हो रही थी +उसे जकड़ा हुआ था ज़िंदगी ने +सिरहाने मौत बैठी रो रही थी +खुला मुझ पर कि मेरी ख़ुश-नसीबी +मिरे रस्ते में काँटे बो रही थी +मुझे भी ना-रसाई का समर दे +मुझे तेरी तमन्ना जो रही थी +मिरा क़ातिल मिरे अंदर छुपा था +मगर बद-नाम ख़िल्क़त हो रही थी +बग़ावत कर के ख़ुद अपने लहू से +ग़ुलामी दाग़ अपने धो रही थी +लबों पर था सुकूत-ए-मर्ग लेकिन +मिरे दिल में क़यामत सो रही थी +ब-���ुज़ मौज-ए-फ़ना दुनिया में 'मोहसिन' +हमारी जुस्तुजू किस को रही थी " +maarka-ab-ke-huaa-bhii-to-phir-aisaa-hogaa-mohsin-naqvi-ghazals," +मा'रका अब के हुआ भी तो फिर ऐसा होगा +तेरे दरिया पे मिरी प्यास का पहरा होगा +उस की आँखें तिरे चेहरे पे बहुत बोलती हैं +उस ने पलकों से तिरा जिस्म तराशा होगा +कितने जुगनू इसी ख़्वाहिश में मिरे साथ चले +कोई रस्ता तिरे घर को भी तो जाता होगा +मैं भी अपने को भुलाए हुए फिरता हूँ बहुत +आइना उस ने भी कुछ रोज़ न देखा होगा +रात जल-थल मिरी आँखों में उतर आया था +सूरत-ए-अब्र कोई टूट के बरसा होगा +ये मसीहाई उसे भूल गई है 'मोहसिन' +या फिर ऐसा है मिरा ज़ख़्म ही गहरा होगा " +nayaa-hai-shahr-nae-aasre-talaash-karuun-mohsin-naqvi-ghazals," +नया है शहर नए आसरे तलाश करूँ +तू खो गया है कहाँ अब तुझे तलाश करूँ +जो दश्त में भी जलाते थे फ़स्ल-ए-गुल के चराग़ +मैं शहर में भी वही आबले तलाश करूँ +तू अक्स है तो कभी मेरी चश्म-ए-तर में उतर +तिरे लिए मैं कहाँ आइने तलाश करूँ +तुझे हवास की आवारगी का इल्म कहाँ +कभी मैं तुझ को तिरे सामने तलाश करूँ +ग़ज़ल कहूँ कभी सादा से ख़त लिखूँ उस को +उदास दिल के लिए मश्ग़ले तलाश करूँ +मिरे वजूद से शायद मिले सुराग़ तिरा +कभी मैं ख़ुद को तिरे वास्ते तलाश करूँ +मैं चुप रहूँ कभी बे-वज्ह हँस पड़ूँ 'मोहसिन' +उसे गँवा के अजब हौसले तलाश करूँ " +phir-vahii-main-huun-vahii-shahr-badar-sannaataa-mohsin-naqvi-ghazals," +फिर वही मैं हूँ वही शहर-बदर सन्नाटा +मुझ को डस ले न कहीं ख़ाक-बसर सन्नाटा +दश्त-ए-हस्ती में शब-ए-ग़म की सहर करने को +हिज्र वालों ने लिया रख़्त-ए-सफ़र सन्नाटा +किस से पूछूँ कि कहाँ है मिरा रोने वाला +इस तरफ़ मैं हूँ मिरे घर से उधर सन्नाटा +तू सदाओं के भँवर में मुझे आवाज़ तो दे +तुझ को देगा मिरे होने की ख़बर सन्नाटा +उस को हंगामा-ए-मंज़िल की ख़बर क्या दोगे +जिस ने पाया हो सर-ए-राहगुज़र सन्नाटा +हासिल-ए-कुंज-ए-क़फ़स वहम-ब-कफ़ तन्हाई +रौनक़-ए-शाम-ए-सफ़र ता-ब-सहर सन्नाटा +क़िस्मत-ए-शाइर-ए-सीमाब-सिफ़त दश्त की मौत +क़ीमत-ए-रेज़ा-ए-अल्मास-ए-हुनर सन्नाटा +जान-ए-'मोहसिन' मिरी तक़दीर में कब लिक्खा है +डूबता चाँद तिरा क़ुर्ब-ए-गज़र सन्नाटा " +jugnuu-guhar-charaag-ujaale-to-de-gayaa-mohsin-naqvi-ghazals," +जुगनू गुहर चराग़ उजाले तो दे गया +वो ख़ुद को ढूँडने के हवाले तो दे गया +अब इस से बढ़ के क्या हो विरासत फ़क़ीर की +बच्चों को अपनी भीक के प्याले तो दे गया +अब मेरी सोच साए की सूरत है उस के गिर्द +मैं बुझ के अपने चाँद को हाले तो दे गया +श���यद कि फ़स्ल-ए-संग-ज़नी कुछ क़रीब है +वो खेलने को बर्फ़ के गाले तो दे गया +अहल-ए-तलब पे उस के लिए फ़र्ज़ है दुआ +ख़ैरात में वो चंद निवाले तो दे गया +'मोहसिन' उसे क़बा की ज़रूरत न थी मगर +दुनिया को रोज़-ओ-शब के दोशाले तो दे गया " +zikr-e-shab-e-firaaq-se-vahshat-use-bhii-thii-mohsin-naqvi-ghazals," +ज़िक्र-ए-शब-ए-फ़िराक़ से वहशत उसे भी थी +मेरी तरह किसी से मोहब्बत उसे भी थी +मुझ को भी शौक़ था नए चेहरों की दीद का +रस्ता बदल के चलने की आदत उसे भी थी +इस रात देर तक वो रहा महव-ए-गुफ़्तुगू +मसरूफ़ मैं भी कम था फ़राग़त उसे भी थी +मुझ से बिछड़ के शहर में घुल-मिल गया वो शख़्स +हालाँकि शहर-भर से अदावत उसे भी थी +वो मुझ से बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया +वर्ना हर एक साँस क़यामत उसे भी थी +सुनता था वो भी सब से पुरानी कहानियाँ +शायद रफ़ाक़तों की ज़रूरत उसे भी थी +तन्हा हुआ सफ़र में तो मुझ पे खुला ये भेद +साए से प्यार धूप से नफ़रत उसे भी थी +'मोहसिन' मैं उस से कह न सका यूँ भी हाल दिल +दरपेश एक ताज़ा मुसीबत उसे भी थी " +tire-badan-se-jo-chhuu-kar-idhar-bhii-aataa-hai-mohsin-naqvi-ghazals," +तिरे बदन से जो छू कर इधर भी आता है +मिसाल-ए-रंग वो झोंका नज़र भी आता है +तमाम शब जहाँ जलता है इक उदास दिया +हवा की राह में इक ऐसा घर भी आता है +वो मुझ को टूट के चाहेगा छोड़ जाएगा +मुझे ख़बर थी उसे ये हुनर भी आता है +उजाड़ बन में उतरता है एक जुगनू भी +हवा के साथ कोई हम-सफ़र भी आता है +वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था +कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है +जहाँ लहू के समुंदर की हद ठहरती है +वहीं जज़ीरा-ए-लाल-ओ-गुहर भी आता है +चले जो ज़िक्र फ़रिश्तों की पारसाई का +तो ज़ेर-ए-बहस मक़ाम-ए-बशर भी आता है +अभी सिनाँ को सँभाले रहें अदू मेरे +कि उन सफ़ों में कहीं मेरा सर भी आता है +कभी कभी मुझे मिलने बुलंदियों से कोई +शुआ-ए-सुब्ह की सूरत उतर भी आता है +इसी लिए मैं किसी शब न सो सका 'मोहसिन' +वो माहताब कभी बाम पर भी आता है " +bichhad-ke-mujh-se-ye-mashgala-ikhtiyaar-karnaa-mohsin-naqvi-ghazals," +बिछड़ के मुझ से ये मश्ग़ला इख़्तियार करना +हवा से डरना बुझे चराग़ों से प्यार करना +खुली ज़मीनों में जब भी सरसों के फूल महकें +तुम ऐसी रुत में सदा मिरा इंतिज़ार करना +जो लोग चाहें तो फिर तुम्हें याद भी न आएँ +कभी कभी तुम मुझे भी उन में शुमार करना +किसी को इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई कभी न देना +मिरी तरह अपने आप को सोगवार करना +तमाम वा'दे कहाँ तलक याद रख सकोगे +जो भूल जाएँ वो अहद भी उस्तुवार करना +य�� किस की आँखों ने बादलों को सिखा दिया है +कि सीना-ए-संग से रवाँ आबशार करना +मैं ज़िंदगी से न खुल सका इस लिए भी 'मोहसिन' +कि बहते पानी पे कब तलक ए'तिबार करना " +labon-pe-harf-e-rajaz-hai-zirah-utaar-ke-bhii-mohsin-naqvi-ghazals," +लबों पे हर्फ़-ए-रजज़ है ज़िरह उतार के भी +मैं जश्न-ए-फ़तह मनाता हूँ जंग हार के भी +उसे लुभा न सका मेरे बा'द का मौसम +बहुत उदास लगा ख़ाल-ओ-ख़द सँवार के भी +अब एक पल का तग़ाफ़ुल भी सह नहीं सकते +हम अहल-ए-दिल कभी आदी थे इंतिज़ार के भी +वो लम्हा भर की कहानी कि उम्र भर में कही +अभी तो ख़ुद से तक़ाज़े थे इख़्तिसार के भी +ज़मीन ओढ़ ली हम ने पहुँच के मंज़िल पर +कि हम पे क़र्ज़ थे कुछ गर्द-ए-रहगुज़ार के भी +मुझे न सुन मिरे बे-शक्ल अब दिखाई तो दे +मैं थक गया हूँ फ़ज़ा में तुझे पुकार के भी +मिरी दुआ को पलटना था फिर उधर 'मोहसिन' +बहुत उजाड़ थे मंज़र उफ़ुक़ से पार के भी " +ujad-ujad-ke-sanvartii-hai-tere-hijr-kii-shaam-mohsin-naqvi-ghazals," +उजड़ उजड़ के सँवरती है तेरे हिज्र की शाम +न पूछ कैसे गुज़रती है तेरे हिज्र की शाम +ये बर्ग बर्ग उदासी बिखर रही है मिरी +कि शाख़ शाख़ उतरती है तेरे हिज्र की शाम +उजाड़ घर में कोई चाँद कब उतरता है +सवाल मुझ से ये करती है तेरे हिज्र की शाम +मिरे सफ़र में इक ऐसा भी मोड़ आता है +जब अपने आप से डरती है तेरे हिज्र की शाम +बहुत अज़ीज़ हैं दिल को ये ज़ख़्म ज़ख़्म रुतें +इन्ही रुतों में निखरती है तेरे हिज्र की शाम +ये मेरा दिल ये सरासर निगार-खाना-ए-ग़म +सदा इसी में उतरती है तेरे हिज्र की शाम +जहाँ जहाँ भी मिलें तेरी क़ुर्बतों के निशाँ +वहाँ वहाँ से उभरती है तेरे हिज्र की शाम +ये हादिसा तुझे शायद उदास कर देगा +कि मेरे साथ ही मरती है तेरे हिज्र की शाम " +ufuq-agarche-pighaltaa-dikhaaii-padtaa-hai-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +उफ़ुक़ अगरचे पिघलता दिखाई पड़ता है +मुझे तो दूर सवेरा दिखाई पड़ता है +हमारे शहर में बे-चेहरा लोग बसते हैं +कभी कभी कोई चेहरा दिखाई पड़ता है +चलो कि अपनी मोहब्बत सभी को बाँट आएँ +हर एक प्यार का भूका दिखाई पड़ता है +जो अपनी ज़ात से इक अंजुमन कहा जाए +वो शख़्स तक मुझे तन्हा दिखाई पड़ता है +न कोई ख़्वाब न कोई ख़लिश न कोई ख़ुमार +ये आदमी तो अधूरा दिखाई पड़ता है +लचक रही हैं शुआओं की सीढ़ियाँ पैहम +फ़लक से कोई उतरता दिखाई पड़ता है +चमकती रेत पे ये ग़ुस्ल-ए-आफ़्ताब तिरा +बदन तमाम सुनहरा दिखाई पड़ता है " +mauj-e-gul-mauj-e-sabaa-mauj-e-sahar-lagtii-hai-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +मौज-ए-गुल मौज-ए-सबा मौज-ए-सहर लगती है +सर से पा तक वो समाँ है कि नज़र लगती है +हम ने हर गाम पे सज्दों के जलाए हैं चराग़ +अब हमें तेरी गली राहगुज़र लगती है +लम्हे लम्हे में बसी है तिरी यादों की महक +आज की रात तो ख़ुशबू का सफ़र लगती है +जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं +देखना ये है कि अब आग किधर लगती है +सारी दुनिया में ग़रीबों का लहू बहता है +हर ज़मीं मुझ को मिरे ख़ून से तर लगती है +कोई आसूदा नहीं अहल-ए-सियासत के सिवा +ये सदी दुश्मन-ए-अरबाब-ए-हुनर लगती है +वाक़िआ शहर में कल तो कोई ऐसा न हुआ +ये तो अख़बार के दफ़्तर की ख़बर लगती है +लखनऊ क्या तिरी गलियों का मुक़द्दर था यही +हर गली आज तिरी ख़ाक-बसर लगती है " +mai-kashii-ab-mirii-aadat-ke-sivaa-kuchh-bhii-nahiin-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +मय-कशी अब मिरी आदत के सिवा कुछ भी नहीं +ये भी इक तल्ख़ हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं +फ़ित्ना-ए-अक़्ल के जूया मिरी दुनिया से गुज़र +मेरी दुनिया में मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं +दिल में वो शोरिश-ए-जज़्बात कहाँ तेरे बग़ैर +एक ख़ामोश क़यामत के सिवा कुछ भी नहीं +मुझ को ख़ुद अपनी जवानी की क़सम है कि ये इश्क़ +इक जवानी की शरारत के सिवा कुछ भी नहीं " +tamaam-umr-azaabon-kaa-silsila-to-rahaa-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +तमाम उम्र अज़ाबों का सिलसिला तो रहा +ये कम नहीं हमें जीने का हौसला तो रहा +गुज़र ही आए किसी तरह तेरे दीवाने +क़दम क़दम पे कोई सख़्त मरहला तो रहा +चलो न इश्क़ ही जीता न अक़्ल हार सकी +तमाम वक़्त मज़े का मुक़ाबला तो रहा +मैं तेरी ज़ात में गुम हो सका न तू मुझ में +बहुत क़रीब थे हम फिर भी फ़ासला तो रहा +ये और बात कि हर छेड़ ला-उबाली थी +तिरी नज़र का दिलों से मोआमला तो रहा " +ashaar-mire-yuun-to-zamaane-ke-liye-hain-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +अशआ'र मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं +कुछ शेर फ़क़त उन को सुनाने के लिए हैं +अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें +कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं +सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की +वर्ना ये फ़क़त आग बुझाने के लिए हैं +आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे +ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं +देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ +मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं +ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें +इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं " +laakh-aavaara-sahii-shahron-ke-futpaathon-pe-ham-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +लाख आवारा सही शहरों के फ़ुटपाथों पे हम +लाश ये किस की लिए फिरते हैं इन हाथों पे हम +अब उन्हीं बातों को सुनते हैं तो आती है हँसी +बे-तरह ईमान ले आए थे जिन बातों पे हम +कोई भी मौसम हो दिल की आग कम होती नहीं +मुफ़्त का इल्ज़ाम रख देते बरसातों पे हम +ज़ुल्फ़ से छनती हुई उस के बदन की ताबिशें +हँस दिया करते थे अक्सर चाँदनी रातों पे हम +अब उन्हें पहचानते भी शर्म आती है हमें +फ़ख़्र करते थे कभी जिन की मुलाक़ातों पे हम " +sau-chaand-bhii-chamkenge-to-kyaa-baat-banegii-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी +तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी +उन से यही कह आएँ कि अब हम न मिलेंगे +आख़िर कोई तक़रीब-ए-मुलाक़ात बनेगी +ऐ नावक-ए-ग़म दिल में है इक बूँद लहू की +कुछ और तो क्या हम से मुदारात बनेगी +ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें +ऐ इश्क़ हमारी न तिरे सात बनेगी +ये क्या है कि बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे +जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी " +aahat-sii-koii-aae-to-lagtaa-hai-ki-tum-ho-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो +साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो +जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में +शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो +संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का +झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो +ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर +नद्दी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो +जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर +चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो " +diida-o-dil-men-koii-husn-bikhartaa-hii-rahaa-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +दीदा ओ दिल में कोई हुस्न बिखरता ही रहा +लाख पर्दों में छुपा कोई सँवरता ही रहा +रौशनी कम न हुई वक़्त के तूफ़ानों में +दिल के दरिया में कोई चाँद उतरता ही रहा +रास्ते भर कोई आहट थी कि आती ही रही +कोई साया मिरे बाज़ू से गुज़रता ही रहा +मिट गया पर तिरी बाँहों ने समेटा न मुझे +शहर दर शहर मैं गलियों में बिखरता ही रहा +लम्हा लम्हा रहे आँखों में अंधेरे लेकिन +कोई सूरज मिरे सीने में उभरता ही रहा " +mujhe-maaluum-hai-main-saarii-duniyaa-kii-amaanat-huun-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +मुझे मालूम है मैं सारी दुनिया की अमानत हूँ +मगर वो लम्हा जब मैं सिर्फ़ अपना हो सा जाता हूँ +मैं तुम से दूर रहता हूँ तो मेरे साथ रहती हो +तुम्हारे पास आता हूँ तो तन्हा हो सा जाता हूँ +मैं चाहे सच ही बोलूँ हर तरह से अपने बारे में +मगर तुम मुस्कुराती हो तो झूटा हो सा जाता हूँ +तिरे गुल-रंग होंटों से दहकती ज़िंदगी पी कर +मैं प्यासा और प्यासा और प्यासा हो सा जाता हूँ +तुझे बाँहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूँ उभरती है +कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूँ " +hausla-kho-na-diyaa-terii-nahiin-se-ham-ne-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +हौसला खो न दिया तेरी नहीं से हम ने +कितनी शिकनों को चुना तेरी जबीं से हम ने +वो भी क्या दिन थे कि दीवाना बने फिरते थे +सुन लिया था तिरे बारे में कहीं से हम ने +जिस जगह पहले-पहल नाम तिरा आता है +दास्ताँ अपनी सुनाई है वहीं से हम ने +यूँ तो एहसान हसीनों के उठाए हैं बहुत +प्यार लेकिन जो किया है तो तुम्हीं से हम ने +कुछ समझ कर ही ख़ुदा तुझ को कहा है वर्ना +कौन सी बात कही इतने यक़ीं से हम ने " +maanaa-ki-rang-rang-tiraa-pairahan-bhii-hai-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +माना कि रंग रंग तिरा पैरहन भी है +पर इस में कुछ करिश्मा-ए-अक्स-ए-बदन भी है +अक़्ल-ए-मआश ओ हिकमत-ए-दुनिया के बावजूद +हम को अज़ीज़ इश्क़ का दीवाना-पन भी है +मुतरिब भी तू नदीम भी तू साक़िया भी तू +तू जान-ए-अंजुमन ही नहीं अंजुमन भी है +बाज़ू छुआ जो तू ने तो उस दिन खुला ये राज़ +तू सिर्फ़ रंग-ओ-बू ही नहीं है बदन भी है +ये दौर किस तरह से कटेगा पहाड़ सा +यारो बताओ हम में कोई कोहकन भी है " +zamiin-hogii-kisii-qaatil-kaa-daamaan-ham-na-kahte-the-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +ज़मीं होगी किसी क़ातिल का दामाँ हम न कहते थे +अकारत जाएगा ख़ून-ए-शहीदाँ हम न कहते थे +इलाज-ए-चाक-ए-पैराहन हुआ तो इस तरह होगा +सिया जाएगा काँटों से गरेबाँ हम न कहते थे +तराने कुछ दिए लफ़्ज़ों में ख़ुद को क़ैद कर लेंगे +अजब अंदाज़ से फैलेगा ज़िंदाँ हम न कहते थे +कोई इतना न होगा लाश भी ले जा के दफ़ना दे +इन्हीं सड़कों पे मर जाएगा इंसाँ हम न कहते थे +नज़र लिपटी है शोलों में लहू तपता है आँखों में +उठा ही चाहता है कोई तूफ़ाँ हम न कहते थे +छलकते जाम में भीगी हुई आँखें उतर आईं +सताएगी किसी दिन याद-ए-याराँ हम न कहते थे +नई तहज़ीब कैसे लखनऊ को रास आएगी +उजड़ जाएगा ये शहर-ए-ग़ज़ालाँ हम न कहते थे " +ai-dard-e-ishq-tujh-se-mukarne-lagaa-huun-main-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं +मुझ को संभाल हद से गुज़रने लगा हूँ मैं +पहले हक़ीक़तों ही से मतलब था और अब +एक आध बात फ़र्ज़ भी करने लगा हूँ मैं +हर आन टूटते ये अक़ीदों के सिलसिले +लगता है जैसे आज बिखरने लगा हूँ मैं +ऐ चश्म-ए-यार मेरा सुधरना मुहाल था +तेरा कमाल है कि सुधरने लगा हूँ मैं +ये मेहर-ओ-माह अर्ज़-ओ-समा मुझ में खो गए +इक काएनात बन के उभरने लगा हूँ मैं +इतनों का प्यार मुझ से सँभाला न जाएगा +लोगो तुम्हारे प्यार से डरने लगा हूँ मैं +दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें +गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं " +chaunk-chaunk-uthtii-hai-mahlon-kii-fazaa-raat-gae-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +चौंक चौंक उठती है महलों की फ़ज़ा रात गए +कौन देता है ���े गलियों में सदा रात गए +ये हक़ाएक़ की चटानों से तराशी दुनिया +ओढ़ लेती है तिलिस्मों की रिदा रात गए +चुभ के रह जाती है सीने में बदन की ख़ुश्बू +खोल देता है कोई बंद-ए-क़बा रात गए +आओ हम जिस्म की शम्ओं से उजाला कर लें +चाँद निकला भी तो निकलेगा ज़रा रात गए +तू न अब आए तो क्या आज तलक आती है +सीढ़ियों से तिरे क़दमों की सदा रात गए " +vo-log-hii-har-daur-men-mahbuub-rahe-hain-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +वो लोग ही हर दौर में महबूब रहे हैं +जो इश्क़ में तालिब नहीं मतलूब रहे हैं +तूफ़ान की आवाज़ तो आती नहीं लेकिन +लगता है सफ़ीने से कहीं डूब रहे हैं +उन को न पुकारो ग़म-ए-दौराँ के लक़ब से +जो दर्द किसी नाम से मंसूब रहे हैं +हम भी तिरी सूरत के परस्तार हैं लेकिन +कुछ और भी चेहरे हमें मर्ग़ूब रहे हैं +अल्फ़ाज़ में इज़हार-ए-मोहब्बत के तरीक़े +ख़ुद इश्क़ की नज़रों में भी मायूब रहे हैं +इस अहद-ए-बसीरत में भी नक़्क़ाद हमारे +हर एक बड़े नाम से मरऊब रहे हैं +इतना भी न घबराओ नई तर्ज़-ए-अदा से +हर दौर में बदले हुए उस्लूब रहे हैं " +zulfen-siina-naaf-kamar-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर +एक नदी में कितने भँवर +सदियों सदियों मेरा सफ़र +मंज़िल मंज़िल राहगुज़र +कितना मुश्किल कितना कठिन +जीने से जीने का हुनर +गाँव में आ कर शहर बसे +गाँव बिचारे जाएँ किधर +फूँकने वाले सोचा भी +फैलेगी ये आग किधर +लाख तरह से नाम तिरा +बैठा लिक्खूँ काग़ज़ पर +छोटे छोटे ज़ेहन के लोग +हम से उन की बात न कर +पेट पे पत्थर बाँध न ले +हाथ में सजते हैं पत्थर +रात के पीछे रात चले +ख़्वाब हुआ हर ख़्वाब-ए-सहर +शब भर तो आवारा फिरे +लौट चलें अब अपने घर " +aae-kyaa-kyaa-yaad-nazar-jab-padtii-in-daalaanon-par-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +आए क्या क्या याद नज़र जब पड़ती इन दालानों पर +उस का काग़ज़ चिपका देना घर के रौशन-दानों पर +आज भी जैसे शाने पर तुम हाथ मिरे रख देती हो +चलते चलते रुक जाता हूँ सारी की दूकानों पर +बरखा की तो बात ही छोड़ो चंचल है पुर्वाई भी +जाने किस का सब्ज़ दुपट्टा फेंक गई है धानों पर +शहर के तपते फ़ुटपाथों पर गाँव के मौसम साथ चलें +बूढ़े बरगद हाथ सा रख दें मेरे जलते शानों पर +सस्ते दामों ले तो आते लेकिन दिल था भर आया +जाने किस का नाम खुदा था पीतल के गुल-दानों पर +उस का क्या मन-भेद बताऊँ उस का क्या अंदाज़ कहूँ +बात भी मेरी सुनना चाहे हाथ भी रक्खे कानों पर +और भी सीना कसने लगता और कमर बल खा जाती +जब भी उस के पाँव फिसलने लगते थे ढलवानों पर +श��र तो उन पर लिक्खे लेकिन औरों से मंसूब किए +उन को क्या क्या ग़ुस्सा आया नज़्मों के उनवानों पर +यारो अपने इश्क़ के क़िस्से यूँ भी कम मशहूर नहीं +कल तो शायद नॉवेल लिक्खे जाएँ इन रूमानों पर " +aankhen-churaa-ke-ham-se-bahaar-aae-ye-nahiin-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +आँखें चुरा के हम से बहार आए ये नहीं +हिस्से में अपने सिर्फ़ ग़ुबार आए ये नहीं +कू-ए-ग़म-ए-हयात में सब उम्र काट दी +थोड़ा सा वक़्त वाँ भी गुज़ार आए ये नहीं +ख़ुद इश्क़ क़ुर्ब-ए-जिस्म भी है क़ुर्ब-ए-जाँ के साथ +हम दूर ही से उन को पुकार आए ये नहीं +आँखों में दिल खुले हों तो मौसम की क़ैद क्या +फ़स्ल-ए-बहार ही में बहार आए ये नहीं +अब क्या करें कि हुस्न जहाँ है अज़ीज़ है +तेरे सिवा किसी पे न प्यार आए ये नहीं +वा'दों को ख़ून-ए-दिल से लिखो तब तो बात है +काग़ज़ पे क़िस्मतों को सँवार आए ये नहीं +कुछ रोज़ और कल की मुरव्वत में काट लें +दिल को यक़ीन-ए-वादा-ए-यार आए ये नहीं " +ranj-o-gam-maange-hai-andoh-o-balaa-maange-hai-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +रंज-ओ-ग़म माँगे है अंदोह-ओ-बला माँगे है +दिल वो मुजरिम है कि ख़ुद अपनी सज़ा माँगे है +चुप है हर ज़ख़्म-ए-गुलू चुप है शहीदों का लहू +दस्त-ए-क़ातिल है जो मेहनत का सिला माँगे है +तू भी इक दौलत-ए-नायाब है पर क्या कहिए +ज़िंदगी और भी कुछ तेरे सिवा माँगे है +खोई खोई ये निगाहें ये ख़मीदा पलकें +हाथ उठाए कोई जिस तरह दुआ माँगे है +रास अब आएगी अश्कों की न आहों की फ़ज़ा +आज का प्यार नई आब-ओ-हवा माँगे है +बाँसुरी का कोई नग़्मा न सही चीख़ सही +हर सुकूत-ए-शब-ए-ग़म कोई सदा माँगे है +लाख मुनकिर सही पर ज़ौक़-ए-परस्तिश मेरा +आज भी कोई सनम कोई ख़ुदा माँगे है +साँस वैसे ही ज़माने की रुकी जाती है +वो बदन और भी कुछ तंग क़बा माँगे है +दिल हर इक हाल से बेगाना हुआ जाता है +अब तवज्जोह न तग़ाफ़ुल न अदा माँगे है " +tuluu-e-subh-hai-nazren-uthaa-ke-dekh-zaraa-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +तुलू-ए-सुब्ह है नज़रें उठा के देख ज़रा +शिकस्त-ए-ज़ुल्मत-ए-शब मुस्कुरा के देख ज़रा +ग़म-ए-बहार ओ ग़म-ए-यार ही नहीं सब कुछ +ग़म-ए-जहाँ से भी दिल को लगा के देख ज़रा +बहार कौन सी सौग़ात ले के आई है +हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना तू आ के देख ज़रा +हर एक सम्त से इक आफ़्ताब उभरेगा +चराग़-ए-दैर-ओ-हरम तो बुझा के देख ज़रा +वजूद-ए-इश्क़ की तारीख़ का पता तो चले +वरक़ उलट के तू अर्ज़ ओ समा के देख ज़रा +मिले तो तू ही मिले और कुछ क़ुबूल नहीं +जहाँ में हौसले अहल-ए-वफ़ा के देख ज़रा +तिरी नज़र से है रिश्ता मिरे गिरे��ाँ का +किधर है मेरी तरफ़ मुस्कुरा के देख ज़रा " +ham-ne-kaatii-hain-tirii-yaad-men-raaten-aksar-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर +दिल से गुज़री हैं सितारों की बरातें अक्सर +और तो कौन है जो मुझ को तसल्ली देता +हाथ रख देती हैं दिल पर तिरी बातें अक्सर +हुस्न शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-अलम है शायद +ग़म-ज़दा लगती हैं क्यूँ चाँदनी रातें अक्सर +हाल कहना है किसी से तो मुख़ातब है कोई +कितनी दिलचस्प हुआ करती हैं बातें अक्सर +इश्क़ रहज़न न सही इश्क़ के हाथों फिर भी +हम ने लुटती हुई देखी हैं बरातें अक्सर +हम से इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई +वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर +उन से पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुम ने +जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर +हम ने उन तुंद-हवाओं में जलाए हैं चराग़ +जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर " +log-kahte-hain-ki-tuu-ab-bhii-khafaa-hai-mujh-se-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से +तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से +हाए उस वक़्त को कोसूँ कि दुआ दूँ यारो +जिस ने हर दर्द मिरा छीन लिया है मुझ से +दिल का ये हाल कि धड़के ही चला जाता है +ऐसा लगता है कोई जुर्म हुआ है मुझ से +खो गया आज कहाँ रिज़्क़ का देने वाला +कोई रोटी जो खड़ा माँग रहा है मुझ से +अब मिरे क़त्ल की तदबीर तो करनी होगी +कौन सा राज़ है तेरा जो छुपा है मुझ से " +achchhaa-hai-un-se-koii-taqaazaa-kiyaa-na-jaae-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए +अपनी नज़र में आप को रुस्वा किया न जाए +हम हैं तिरा ख़याल है तेरा जमाल है +इक पल भी अपने आप को तन्हा किया न जाए +उठने को उठ तो जाएँ तिरी अंजुमन से हम +पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए +उन की रविश जुदा है हमारी रविश जुदा +हम से तो बात बात पे झगड़ा किया न जाए +हर-चंद ए'तिबार में धोके भी हैं मगर +ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए +लहजा बना के बात करें उन के सामने +हम से तो इस तरह का तमाशा किया न जाए +इनआ'म हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ +जब तक सिफ़ारिशों को इकट्ठा किया न जाए +इस वक़्त हम से पूछ न ग़म रोज़गार के +हम से हर एक घूँट को कड़वा किया न जाए " +dil-ko-har-lamha-bachaate-rahe-jazbaat-se-ham-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +दिल को हर लम्हा बचाते रहे जज़्बात से हम +इतने मजबूर रहे हैं कभी हालात से हम +नश्शा-ए-मय से कहीं प्यास बुझी है दिल की +तिश्नगी और बढ़ा लाए ख़राजात से हम +आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से +चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम +इश्क़ में आज भ�� है नीम-निगाही का चलन +प्यार करते हैं उसी हुस्न-ए-रिवायात से हम +मर्कज़-ए-दीदा-ए-ख़ुबान-ए-जहाँ हैं भी तो क्या +एक निस्बत भी तो रखते हैं तिरी ज़ात से हम " +tuu-is-qadar-mujhe-apne-qariib-lagtaa-hai-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है +तुझे अलग से जो सोचूँ अजीब लगता है +जिसे न हुस्न से मतलब न इश्क़ से सरोकार +वो शख़्स मुझ को बहुत बद-नसीब लगता है +हुदूद-ए-ज़ात से बाहर निकल के देख ज़रा +न कोई ग़ैर न कोई रक़ीब लगता है +ये दोस्ती ये मरासिम ये चाहतें ये ख़ुलूस +कभी कभी मुझे सब कुछ अजीब लगता है +उफ़ुक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा +मुझे चराग़-ए-दयार-ए-हबीब लगता है " +ham-se-bhaagaa-na-karo-duur-gazaalon-kii-tarah-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +हम से भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह +हम ने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह +ख़ुद-ब-ख़ुद नींद सी आँखों में घुली जाती है +महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों की तरह +तेरे बिन रात के हाथों पे ये तारों के अयाग़ +ख़ूब-सूरत हैं मगर ज़हर के प्यालों की तरह +और क्या इस से ज़ियादा कोई नरमी बरतूँ +दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह +गुनगुनाते हुए और आ कभी उन सीनों में +तेरी ख़ातिर जो महकते हैं शिवालों की तरह +तेरी ज़ुल्फ़ें तिरी आँखें तिरे अबरू तिरे लब +अब भी मशहूर हैं दुनिया में मिसालों की तरह +हम से मायूस न हो ऐ शब-ए-दौराँ कि अभी +दिल में कुछ दर्द चमकते हैं उजालों की तरह +मुझ से नज़रें तो मिलाओ कि हज़ारों चेहरे +मेरी आँखों में सुलगते हैं सवालों की तरह +और तो मुझ को मिला क्या मिरी मेहनत का सिला +चंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह +जुस्तुजू ने किसी मंज़िल पे ठहरने न दिया +हम भटकते रहे आवारा ख़यालों की तरह +ज़िंदगी जिस को तिरा प्यार मिला वो जाने +हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह " +khud-ba-khud-mai-hai-ki-shiishe-men-bharii-aave-hai-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +ख़ुद-ब-ख़ुद मय है कि शीशे में भरी आवे है +किस बला की तुम्हें जादू-नज़री आवे है +दिल में दर आवे है हर सुब्ह कोई याद ऐसे +जूँ दबे-पाँव नसीम-ए-सहरी आवे है +और भी ज़ख़्म हुए जाते हैं गहरे दिल के +हम तो समझे थे तुम्हें चारागरी आवे है +एक क़तरा भी लहू जब न रहे सीने में +तब कहीं इश्क़ में कुछ बे-जिगरी आवे है +चाक-ए-दामाँ-ओ-गिरेबाँ के भी आदाब हैं कुछ +हर दिवाने को कहाँ जामा-दरी आवे है +शजर-ए-इश्क़ तो माँगे है लहू के आँसू +तब कहीं जा के कोई शाख़ हरी आवे है +तू कभी राग कभी रंग कभी ख़ुश्बू है +कैसी कैसी न तुझे इश्वा-गरी आवे ह�� +आप-अपने को भुलाना कोई आसान नहीं +बड़ी मुश्किल से मियाँ बे-ख़बरी आवे है +ऐ मिरे शहर-ए-निगाराँ तिरा क्या हाल हुआ +चप्पे चप्पे पे मिरे आँख भरी आवे है +साहिबो हुस्न की पहचान कोई खेल नहीं +दिल लहू हो तो कहीं दीदा-वरी आवे है " +zindagii-tujh-ko-bhulaayaa-hai-bahut-din-ham-ne-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +ज़िंदगी तुझ को भुलाया है बहुत दिन हम ने +वक़्त ख़्वाबों में गँवाया है बहुत दिन हम ने +अब ये नेकी भी हमें जुर्म नज़र आती है +सब के ऐबों को छुपाया है बहुत दिन हम ने +तुम भी इस दिल को दुखा लो तो कोई बात नहीं +अपना दिल आप दुखाया है बहुत दिन हम ने +मुद्दतों तर्क-ए-तमन्ना पे लहू रोया है +इश्क़ का क़र्ज़ चुकाया है बहुत दिन हम ने +क्या पता हो भी सके इस की तलाफ़ी कि नहीं +शायरी तुझ को गँवाया है बहुत दिन हम ने " +tumhaare-jashn-ko-jashn-e-farozaan-ham-nahiin-kahte-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +तुम्हारे जश्न को जश्न-ए-फ़रोज़ाँ हम नहीं कहते +लहू की गर्म बूँदों को चराग़ाँ हम नहीं कहते +अगर हद से गुज़र जाए दवा तो बन नहीं जाता +किसी भी दर्द को दुनिया का दरमाँ हम नहीं कहते +नज़र की इंतिहा कोई न दिल की इंतिहा कोई +किसी भी हुस्न को हुस्न-ए-फ़रावाँ हम नहीं कहते +किसी आशिक़ के शाने पर बिखर जाए तो क्या कहना +मगर इस ज़ुल्फ़ को ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ हम नहीं कहते +न बू-ए-गुल महकती है न शाख़-ए-गुल लचकती है +अभी अपने गुलिस्ताँ को गुलिस्ताँ हम नहीं कहते +बहारों से जुनूँ को हर तरह निस्बत सही लेकिन +शगुफ़्त-ए-गुल को आशिक़ का गरेबाँ हम नहीं कहते +हज़ारों साल बीते हैं हज़ारों साल बीतेंगे +बदल जाएगी कल तक़दीर-ए-इंसाँ हम नहीं कहते " +vo-ham-se-aaj-bhii-daaman-kashaan-chale-hai-miyaan-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +वो हम से आज भी दामन-कशाँ चले है मियाँ +किसी पे ज़ोर हमारा कहाँ चले है मियाँ +जहाँ भी थक के कोई कारवाँ ठहरता है +वहीं से एक नया कारवाँ चले है मियाँ +जो एक सम्त गुमाँ है तो एक सम्त यक़ीं +ये ज़िंदगी तो यूँही दरमियाँ चले है मियाँ +बदलते रहते हैं बस नाम और तो क्या है +हज़ारों साल से इक दास्ताँ चले है मियाँ +हर इक क़दम है नई आज़माइशों का हुजूम +तमाम उम्र कोई इम्तिहाँ चले है मियाँ +वहीं पे घूमते रहना तो कोई बात नहीं +ज़मीं चले है तो आगे कहाँ चले है मियाँ +वो एक लम्हा-ए-हैरत कि लफ़्ज़ साथ न दें +नहीं चले है न ऐसे में हाँ चले है मियाँ " +subh-ke-dard-ko-raaton-kii-jalan-ko-bhuulen-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +सुब्ह के दर्द को रातों की जलन को भूलें +किस के घर जाएँ कि इस वादा-शिकन को भूलें +आज तक चोट दबाए नहीं दबती दिल की +किस तरह उस सनम-ए-संग-बदन को भूलें +अब सिवा इस के मुदावा-ए-ग़म-ए-दिल क्या है +इतनी पी जाएँ कि हर रंज-ओ-मेहन को भूलें +और तहज़ीब-ए-ग़म-ए-इश्क़ निभा दें कुछ दिन +आख़िरी वक़्त में क्या अपने चलन को भूलें " +jism-kii-har-baat-hai-aavaargii-ye-mat-kaho-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +जिस्म की हर बात है आवारगी ये मत कहो +हम भी कर सकते हैं ऐसी शायरी ये मत कहो +उस नज़र की उस बदन की गुनगुनाहट तो सुनो +एक सी होती है हर इक रागनी ये मत कहो +हम से दीवानों के बिन दुनिया सँवरती किस तरह +अक़्ल के आगे है क्या दीवानगी ये मत कहो +कट सकी हैं आज तक सोने की ज़ंजीरें कहाँ +हम भी अब आज़ाद हैं यारो अभी ये मत कहो +पाँव इतने तेज़ हैं उठते नज़र आते नहीं +आज थक कर रह गया है आदमी ये मत कहो +जितने वादे कल थे उतने आज भी मौजूद हैं +उन के वादों में हुई है कुछ कमी ये मत कहो +दिल में अपने दर्द की छिटकी हुई है चाँदनी +हर तरफ़ फैली हुई है तीरगी ये मत कहो " +bahut-dil-kar-ke-honton-kii-shagufta-taazgii-dii-hai-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +बहुत दिल कर के होंटों की शगुफ़्ता ताज़गी दी है +चमन माँगा था पर उस ने ब-मुश्किल इक कली दी है +मिरे ख़ल्वत-कदे के रात दिन यूँही नहीं सँवरे +किसी ने धूप बख़्शी है किसी ने चाँदनी दी है +नज़र को सब्ज़ मैदानों ने क्या क्या वुसअतें बख़्शीं +पिघलते आबशारों ने हमें दरिया-दिली दी है +मोहब्बत ना-रवा तक़्सीम की क़ाएल नहीं फिर भी +मिरी आँखों को आँसू तेरे होंटों को हँसी दी है +मिरी आवारगी भी इक करिश्मा है ज़माने में +हर इक दरवेश ने मुझ को दुआ-ए-ख़ैर ही दी है +कहाँ मुमकिन था कोई काम हम जैसे दिवानों से +तुम्हीं ने गीत लिखवाए तुम्हीं ने शाइरी दी है " +har-ek-ruuh-men-ik-gam-chhupaa-lage-hai-mujhe-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +हर एक रूह में इक ग़म छुपा लगे है मुझे +ये ज़िंदगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे +पसंद-ए-ख़ातिर-ए-अहल-ए-वफ़ा है मुद्दत से +ये दिल का दाग़ जो ख़ुद भी भला लगे है मुझे +जो आँसुओं में कभी रात भीग जाती है +बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे +मैं सो भी जाऊँ तो क्या मेरी बंद आँखों में +तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे +मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ +वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे +मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह +ये मेरा गाँव तो पहचानता लगे है मुझे +न जाने वक़्त की रफ़्तार क्या दिखाती है +कभी कभी तो बड़ा ख़ौफ़ सा लगे है मुझे +बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद +हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे +अब एक आध क़दम का हिसाब क्या रखिए +अभी तलक तो वही फ़ासला लगे है मुझे +हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल कुछ कशिश तो रखती है +ज़माना ग़ौर से सुनता हुआ लगे है मुझे " +jab-lagen-zakhm-to-qaatil-ko-duaa-dii-jaae-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए +है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए +दिल का वो हाल हुआ है ग़म-ए-दौराँ के तले +जैसे इक लाश चटानों में दबा दी जाए +इन्हीं गुल-रंग दरीचों से सहर झाँकेगी +क्यूँ न खिलते हुए ज़ख़्मों को दुआ दी जाए +कम नहीं नश्शे में जाड़े की गुलाबी रातें +और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाए +हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या +चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए " +har-ek-shakhs-pareshaan-o-darba-dar-saa-lage-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +हर एक शख़्स परेशान-ओ-दर-बदर सा लगे +ये शहर मुझ को तो यारो कोई भँवर सा लगे +अब उस के तर्ज़-ए-तजाहुल को क्या कहे कोई +वो बे-ख़बर तो नहीं फिर भी बे-ख़बर सा लगे +हर एक ग़म को ख़ुशी की तरह बरतना है +ये दौर वो है कि जीना भी इक हुनर सा लगे +नशात-ए-सोहबत-ए-रिंदाँ बहुत ग़नीमत है +कि लम्हा लम्हा पुर-आशोब-ओ-पुर-ख़तर सा लगे +किसे ख़बर है कि दुनिया का हश्र क्या होगा +कभी कभी तो मुझे आदमी से डर सा लगे +वो तुंद वक़्त की रौ है कि पाँव टिक न सकें +हर आदमी कोई उखड़ा हुआ शजर सा लगे +जहान-ए-नौ के मुकम्मल सिंगार की ख़ातिर +सदी सदी का ज़माना भी मुख़्तसर सा लगे " +tum-pe-kyaa-biit-gaii-kuchh-to-bataao-yaaro-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +तुम पे क्या बीत गई कुछ तो बताओ यारो +मैं कोई ग़ैर नहीं हूँ कि छुपाओ यारो +इन अंधेरों से निकलने की कोई राह करो +ख़ून-ए-दिल से कोई मिशअल ही जलाओ यारो +एक भी ख़्वाब न हो जिन में वो आँखें क्या हैं +इक न इक ख़्वाब तो आँखों में बसाओ यारो +बोझ दुनिया का उठाऊँगा अकेला कब तक +हो सके तुम से तो कुछ हाथ बटाओ यारो +ज़िंदगी यूँ तो न बाँहों में चली आएगी +ग़म-ए-दौराँ के ज़रा नाज़ उठाओ यारो +उम्र-भर क़त्ल हुआ हूँ मैं तुम्हारी ख़ातिर +आख़िरी वक़्त तो सूली न चढ़ाओ यारो +और कुछ देर तुम्हें देख के जी लूँ ठहरो +मेरी बालीं से अभी उठ के न जाओ यारो " +aaj-muddat-men-vo-yaad-aae-hain-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +आज मुद्दत में वो याद आए हैं +दर ओ दीवार पे कुछ साए हैं +आबगीनों से न टकरा पाए +कोहसारों से तो टकराए हैं +ज़िंदगी तेरे हवादिस हम को +कुछ न कुछ राह पे ले आए हैं +संग-रेज़ों से ख़ज़फ़-पारों से +कितने हीरे कभी चुन लाए हैं +इतने मायूस तो हालात नहीं +लोग किस वास्ते घबराए हैं +उन की जानिब न किसी ने देखा +जो हमें देख के शरमाए हैं " +muddat-huii-us-jaan-e-hayaa-ne-ham-se-ye-iqraar-kiyaa-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +मुद्दत हुई उस जान-ए-हया ने हम से ये इक़रार किया +जितने भी बदनाम हुए हम उतना उस ने प्यार किया +पहले भी ख़ुश-चश्मों में हम चौकन्ना से रहते थे +तेरी सोई आँखों ने तो और हमें होशियार किया +जाते जाते कोई हम से अच्छे रहना कह तो गया +पूछे लेकिन पूछने वाले किस ने ये बीमार किया +क़तरा क़तरा सिर्फ़ हुआ है इश्क़ में अपने दिल का लहू +शक्ल दिखाई तब उस ने जब आँखों को ख़ूँ-बार किया +हम पर कितनी बार पड़े ये दौरे भी तन्हाई के +जो भी हम से मिलने आया मिलने से इंकार किया +इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़ा है हम को क्या समझाते हो +हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया +महफ़िल पर जब नींद सी छाई सब के सब ख़ामोश हुए +हम ने तब कुछ शेर सुनाया लोगों को बेदार किया +अब तुम सोचो अब तुम जानो जो चाहो अब रंग भरो +हम ने तो इक नक़्शा खींचा इक ख़ाका तय्यार किया +देश से जब प्रदेश सिधारे हम पर ये भी वक़्त पड़ा +नज़्में छोड़ी ग़ज़लें छोड़ी गीतों का बेवपार किया " +zindagii-ye-to-nahiin-tujh-ko-sanvaaraa-hii-na-ho-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो +कुछ न कुछ हम ने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो +दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी +चौंक उठता हूँ कहीं तू ने पुकारा ही न हो +कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर +सोचता हूँ तिरे आँचल का किनारा ही न हो +ज़िंदगी एक ख़लिश दे के न रह जा मुझ को +दर्द वो दे जो किसी तरह गवारा ही न हो +शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ +न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो " +zaraa-sii-baat-pe-har-rasm-tod-aayaa-thaa-jaan-nisar-akhtar-ghazals," +ज़रा सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था +दिल-ए-तबाह ने भी क्या मिज़ाज पाया था +गुज़र गया है कोई लम्हा-ए-शरर की तरह +अभी तो मैं उसे पहचान भी न पाया था +मुआफ़ कर न सकी मेरी ज़िंदगी मुझ को +वो एक लम्हा कि मैं तुझ से तंग आया था +शगुफ़्ता फूल सिमट कर कली बने जैसे +कुछ इस कमाल से तू ने बदन चुराया था +पता नहीं कि मिरे बाद उन पे क्या गुज़री +मैं चंद ख़्वाब ज़माने में छोड़ आया था " +aise-chup-hain-ki-ye-manzil-bhii-kadii-ho-jaise-ahmad-faraz-ghazals," +ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे +तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे +अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ +रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे +कितने नादाँ हैं तिरे भूलने वाले कि तुझे +याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे +तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर +ये गिरह अब के मिरे दिल में पड़ी हो जैसे +मंज़िलें दू�� भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं +अपने ही पाँव में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे +आज दिल खोल के रोए हैं तो यूँ ख़ुश हैं 'फ़राज़' +चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे " +qurbaton-men-bhii-judaaii-ke-zamaane-maange-ahmad-faraz-ghazals," +क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे +दिल वो बे-मेहर कि रोने के बहाने माँगे +हम न होते तो किसी और के चर्चे होते +ख़िल्क़त-ए-शहर तो कहने को फ़साने माँगे +यही दिल था कि तरसता था मरासिम के लिए +अब यही तर्क-ए-तअल्लुक़ के बहाने माँगे +अपना ये हाल कि जी हार चुके लुट भी चुके +और मोहब्बत वही अंदाज़ पुराने माँगे +ज़िंदगी हम तिरे दाग़ों से रहे शर्मिंदा +और तू है कि सदा आईना-ख़ाने माँगे +दिल किसी हाल पे क़ाने ही नहीं जान-ए-'फ़राज़' +मिल गए तुम भी तो क्या और न जाने माँगे " +saaqiyaa-ek-nazar-jaam-se-pahle-pahle-ahmad-faraz-ghazals," +साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले +हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले +नौ-गिरफ़्तार-ए-वफ़ा सई-ए-रिहाई है अबस +हम भी उलझे थे बहुत दाम से पहले पहले +ख़ुश हो ऐ दिल कि मोहब्बत तो निभा दी तू ने +लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले +अब तिरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं +कितनी रग़बत थी तिरे नाम से पहले पहले +सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की +वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले +कितना अच्छा था कि हम भी जिया करते थे 'फ़राज़' +ग़ैर-मारूफ़ से गुमनाम से पहले पहले " +ajab-junuun-e-masaafat-men-ghar-se-niklaa-thaa-ahmad-faraz-ghazals," +अजब जुनून-ए-मसाफ़त में घर से निकला था +ख़बर नहीं है कि सूरज किधर से निकला था +ये कौन फिर से उन्हीं रास्तों में छोड़ गया +अभी अभी तो अज़ाब-ए-सफ़र से निकला था +ये तीर दिल में मगर बे-सबब नहीं उतरा +कोई तो हर्फ़ लब-ए-चारागर से निकला था +ये अब जो आग बना शहर शहर फैला है +यही धुआँ मिरे दीवार-ओ-दर से निकला था +मैं रात टूट के रोया तो चैन से सोया +कि दिल का ज़हर मिरी चश्म-ए-तर से निकला था +ये अब जो सर हैं ख़मीदा कुलाह की ख़ातिर +ये ऐब भी तो हम अहल-ए-हुनर से निकला था +वो क़ैस अब जिसे मजनूँ पुकारते हैं 'फ़राज़' +तिरी तरह कोई दीवाना घर से निकला था " +havaa-ke-zor-se-pindaar-e-baam-o-dar-bhii-gayaa-ahmad-faraz-ghazals," +हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया +चराग़ को जो बचाते थे उन का घर भी गया +पुकारते रहे महफ़ूज़ कश्तियों वाले +मैं डूबता हुआ दरिया के पार उतर भी गया +अब एहतियात की दीवार क्या उठाते हो +जो चोर दिल में छुपा था वो काम कर भी गया +मैं चुप रहा कि इसी में थी आफ़ियत जाँ की +कोई तो मेरी तरह था जो दार पर भी गया +सुलगते सोचते वीरान मौसमों की तरह +कड़ा था अहद-ए-जवानी मगर गुज़र भी गया +जिसे भुला न सका उस को याद क्या रखता +जो नाम लब पे रहा ज़ेहन से उतर भी गया +फटी फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे +तुझे तलाश है जिस शख़्स की वो मर भी गया +मगर फ़लक को अदावत उसी के घर से थी +जहाँ 'फ़राज़' न था सैल-ए-ग़म उधर भी गया " +dukh-fasaana-nahiin-ki-tujh-se-kahen-ahmad-faraz-ghazals," +दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें +दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें +आज तक अपनी बेकली का सबब +ख़ुद भी जाना नहीं कि तुझ से कहें +बे-तरह हाल-ए-दिल है और तुझ से +दोस्ताना नहीं कि तुझ से कहें +एक तू हर्फ़-ए-आश्ना था मगर +अब ज़माना नहीं कि तुझ से कहें +क़ासिदा हम फ़क़ीर लोगों का +इक ठिकाना नहीं कि तुझ से कहें +ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त +आब-ओ-दाना नहीं कि तुझ से कहें +अब तो अपना भी उस गली में 'फ़राज़' +आना जाना नहीं कि तुझ से कहें " +huii-hai-shaam-to-aankhon-men-bas-gayaa-phir-tuu-ahmad-faraz-ghazals," +हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू +कहाँ गया है मिरे शहर के मुसाफ़िर तू +मिरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ +तिरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू +मैं जानता हूँ कि दुनिया तुझे बदल देगी +मैं मानता हूँ कि ऐसा नहीं ब-ज़ाहिर तू +हँसी-ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है +ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू +फ़ज़ा उदास है रुत मुज़्महिल है मैं चुप हूँ +जो हो सके तो चला आ किसी की ख़ातिर तू +'फ़राज़' तू ने उसे मुश्किलों में डाल दिया +ज़माना साहब-ए-ज़र और सिर्फ़ शाएर तू " +ab-aur-kyaa-kisii-se-maraasim-badhaaen-ham-ahmad-faraz-ghazals," +अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम +ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम +सहरा-ए-ज़िंदगी में कोई दूसरा न था +सुनते रहे हैं आप ही अपनी सदाएँ हम +इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब +इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम +तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़ +आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम +वो लोग अब कहाँ हैं जो कहते थे कल 'फ़राज़' +हे हे ख़ुदा-न-कर्दा तुझे भी रुलाएँ हम " +rog-aise-bhii-gam-e-yaar-se-lag-jaate-hain-ahmad-faraz-ghazals," +रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं +दर से उठते हैं तो दीवार से लग जाते हैं +इश्क़ आग़ाज़ में हल्की सी ख़लिश रखता है +बाद में सैकड़ों आज़ार से लग जाते हैं +पहले पहले हवस इक-आध दुकाँ खोलती है +फिर तो बाज़ार के बाज़ार से लग जाते हैं +बेबसी भी कभी क़ुर्बत का सबब बनती है +रो न पाएँ तो गले यार से लग जाते हैं +कतरनें ग़म की जो गलियों में उड़ी फिरती हैं +घर में ले आओ तो अम्बार से लग जाते हैं +दाग़ दामन के हों दिल के हों कि चेहरे के 'फ़राज़' +कुछ निशाँ उम्र की रफ़्तार से लग जाते हैं " +us-ne-sukuut-e-shab-men-bhii-apnaa-payaam-rakh-diyaa-ahmad-faraz-ghazals," +उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया +हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया +आमद-ए-दोस्त की नवेद कू-ए-वफ़ा में आम थी +मैं ने भी इक चराग़ सा दिल सर-ए-शाम रख दिया +शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही +उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया +उस ने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे +मैं ने तो उस के पाँव में सारा कलाम रख दिया +देखो ये मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैं +मैं ने तो सब हिसाब-ए-जाँ बर-सर-ए-आम रख दिया +अब के बहार ने भी कीं ऐसी शरारतें कि बस +कब्क-ए-दरी की चाल में तेरा ख़िराम रख दिया +जो भी मिला उसी का दिल हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार था +उस ने तो सारे शहर को कर के ग़ुलाम रख दिया +और 'फ़राज़' चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे +माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया " +kathin-hai-raahguzar-thodii-duur-saath-chalo-ahmad-faraz-ghazals-1," +कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो +बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो +तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है +ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो +नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं +बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो +ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है +किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो +अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के +अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो +तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है +'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो " +juz-tire-koii-bhii-din-raat-na-jaane-mere-ahmad-faraz-ghazals," +जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे +तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे +तू भी ख़ुशबू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार +बर्ग-ए-आवारा की मानिंद ठिकाने मेरे +शम्अ की लौ थी कि वो तू था मगर हिज्र की रात +देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे +ख़ल्क़ की बे-ख़बरी है कि मिरी रुस्वाई +लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे +लुट के भी ख़ुश हूँ कि अश्कों से भरा है दामन +देख ग़ारत-गर-ए-दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे +आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर +जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे +काश तू भी मेरी आवाज़ कहीं सुनता हो +फिर पुकारा है तुझे दिल की सदा ने मेरे +काश तू भी कभी आ जाए मसीहाई को +लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे +काश औरों की तरह मैं भी कभी कह सकता +बात सुन ली है मिरी आज ख़ुदा ने मेरे +तू है किस हाल में ऐ ज़ूद-फ़रामोश मिरे +मुझ को तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे +चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-'फ़राज़' +जुज़ तिरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे " +ab-ke-tajdiid-e-vafaa-kaa-nahiin-imkaan-jaanaan-ahmad-faraz-ghazals," +अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ +याद क्या तुझ को दिलाएँ तिरा पैमाँ जानाँ +यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है +किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ +ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है +हम ने जैसे भी बसर की तिरा एहसाँ जानाँ +दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी +दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ +अव्वल अव्वल की मोहब्बत के नशे याद तो कर +बे-पिए भी तिरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ +आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं +रग-ए-मीना सुलग उट्ठी कि रग-ए-जाँ जानाँ +मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उमीद +दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ +हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रक्खा था +ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ +अब के कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ +सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गरेबाँ जानाँ +हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है +हर कोई अपने ही साए से हिरासाँ जानाँ +जिस को देखो वही ज़ंजीर-ब-पा लगता है +शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िंदाँ जानाँ +अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए +और से और हुए दर्द के उनवाँ जानाँ +हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे +हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ +होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा रेज़ा +जैसे उड़ते हुए औराक़-ए-परेशाँ जानाँ " +agarche-zor-havaaon-ne-daal-rakkhaa-hai-ahmad-faraz-ghazals," +अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है +मगर चराग़ ने लौ को सँभाल रक्खा है +मोहब्बतों में तो मिलना है या उजड़ जाना +मिज़ाज-ए-इश्क़ में कब ए'तिदाल रक्खा है +हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंग +ये किस ने पैरहन अपना उछाल रक्खा है +भले दिनों का भरोसा ही क्या रहें न रहें +सो मैं ने रिश्ता-ए-ग़म को बहाल रक्खा है +हम ऐसे सादा-दिलों को वो दोस्त हो कि ख़ुदा +सभी ने वादा-ए-फ़र्दा पे टाल रक्खा है +हिसाब-ए-लुत्फ़-ए-हरीफ़ाँ किया है जब तो खुला +कि दोस्तों ने ज़ियादा ख़याल रक्खा है +भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब +कि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है +'फ़राज़' इश्क़ की दुनिया तो ख़ूब-सूरत थी +ये किस ने फ़ित्ना-ए-हिज्र-ओ-विसाल रक्खा है " +karuun-na-yaad-magar-kis-tarah-bhulaauun-use-ahmad-faraz-ghazals," +करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे +ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उ���े +वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद +मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे +ये लोग तज़्किरे करते हैं अपने लोगों के +मैं कैसे बात करूँ अब कहाँ से लाऊँ उसे +मगर वो ज़ूद-फ़रामोश ज़ूद-रंज भी है +कि रूठ जाए अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे +वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ +तुम्हारी बात पे ऐ नासेहो गँवाऊँ उसे +जो हम-सफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है 'फ़राज़' +अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे " +jab-bhii-dil-khol-ke-roe-honge-ahmad-faraz-ghazals," +जब भी दिल खोल के रोए होंगे +लोग आराम से सोए होंगे +बाज़ औक़ात ब-मजबूरी-ए-दिल +हम तो क्या आप भी रोए होंगे +सुब्ह तक दस्त-ए-सबा ने क्या क्या +फूल काँटों में पिरोए होंगे +वो सफ़ीने जिन्हें तूफ़ाँ न मिले +ना-ख़ुदाओं ने डुबोए होंगे +रात भर हँसते हुए तारों ने +उन के आरिज़ भी भिगोए होंगे +क्या अजब है वो मिले भी हों 'फ़राज़' +हम किसी ध्यान में खोए होंगे " +is-qadar-musalsal-thiin-shiddaten-judaaii-kii-ahmad-faraz-ghazals," +इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की +आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की +वर्ना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में +या तो टूट कर रोया या ग़ज़ल-सराई की +तज दिया था कल जिन को हम ने तेरी चाहत में +आज उन से मजबूरन ताज़ा आश्नाई की +हो चला था जब मुझ को इख़्तिलाफ़ अपने से +तू ने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हम-नवाई की +तर्क कर चुके क़ासिद कू-ए-ना-मुरादाँ को +कौन अब ख़बर लावे शहर-ए-आश्नाई की +तंज़ ओ ता'ना ओ तोहमत सब हुनर हैं नासेह के +आप से कोई पूछे हम ने क्या बुराई की +फिर क़फ़स में शोर उट्ठा क़ैदियों का और सय्याद +देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की +दुख हुआ जब उस दर पर कल 'फ़राज़' को देखा +लाख ऐब थे उस में ख़ू न थी गदाई की " +ab-kyaa-sochen-kyaa-haalaat-the-kis-kaaran-ye-zahr-piyaa-hai-ahmad-faraz-ghazals," +अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारन ये ज़हर पिया है +हम ने उस के शहर को छोड़ा और आँखों को मूँद लिया है +अपना ये शेवा तो नहीं था अपने ग़म औरों को सौंपें +ख़ुद तो जागते या सोते हैं उस को क्यूँ बे-ख़्वाब किया है +ख़िल्क़त के आवाज़े भी थे बंद उस के दरवाज़े भी थे +फिर भी उस कूचे से गुज़रे फिर भी उस का नाम लिया है +हिज्र की रुत जाँ-लेवा थी पर ग़लत सभी अंदाज़े निकले +ताज़ा रिफ़ाक़त के मौसम तक मैं भी जिया हूँ वो भी जिया है +एक 'फ़राज़' तुम्हीं तन्हा हो जो अब तक दुख के रसिया हो +वर्ना अक्सर दिल वालों ने दर्द का रस्ता छोड़ दिया है " +yuunhii-mar-mar-ke-jien-vaqt-guzaare-jaaen-ahmad-faraz-ghazals," +यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ +ज़िंदगी हम तिरे हाथों से न मारे जाएँ +अब ज़मीं पर कोई गौतम न मोहम्मद न मसीह +आसमानों से नए लोग उतारे जाएँ +वो जो मौजूद नहीं उस की मदद चाहते हैं +वो जो सुनता ही नहीं उस को पुकारे जाएँ +बाप लर्ज़ां है कि पहुँची नहीं बारात अब तक +और हम-जोलियाँ दुल्हन को सँवारे जाएँ +हम कि नादान जुआरी हैं सभी जानते हैं +दिल की बाज़ी हो तो जी जान से हारे जाएँ +तज दिया तुम ने दर-ए-यार भी उकता के 'फ़राज़' +अब कहाँ ढूँढने ग़म-ख़्वार तुम्हारे जाएँ " +saamne-us-ke-kabhii-us-kii-sataaish-nahiin-kii-ahmad-faraz-ghazals," +सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की +दिल ने चाहा भी अगर होंटों ने जुम्बिश नहीं की +अहल-ए-महफ़िल पे कब अहवाल खुला है अपना +मैं भी ख़ामोश रहा उस ने भी पुर्सिश नहीं की +जिस क़दर उस से तअल्लुक़ था चला जाता है +उस का क्या रंज हो जिस की कभी ख़्वाहिश नहीं की +ये भी क्या कम है कि दोनों का भरम क़ाएम है +उस ने बख़्शिश नहीं की हम ने गुज़ारिश नहीं की +इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा +उस पे महफ़िल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की +हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं +हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की +ऐ मिरे अब्र-ए-करम देख ये वीराना-ए-जाँ +क्या किसी दश्त पे तू ने कभी बारिश नहीं की +कट मरे अपने क़बीले की हिफ़ाज़त के लिए +मक़्तल-ए-शहर में ठहरे रहे जुम्बिश नहीं की +वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है 'फ़राज़' +हम ने भी मेल-मुलाक़ात की कोशिश नहीं की " +avval-avval-kii-dostii-hai-abhii-ahmad-faraz-ghazals," +अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी +इक ग़ज़ल है कि हो रही है अभी +मैं भी शहर-ए-वफ़ा में नौ-वारिद +वो भी रुक रुक के चल रही है अभी +मैं भी ऐसा कहाँ का ज़ूद-शनास +वो भी लगता है सोचती है अभी +दिल की वारफ़्तगी है अपनी जगह +फिर भी कुछ एहतियात सी है अभी +गरचे पहला सा इज्तिनाब नहीं +फिर भी कम कम सुपुर्दगी है अभी +कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता +बूँदा-बाँदी भी धूप भी है अभी +ख़ुद-कलामी में कब ये नश्शा था +जिस तरह रू-ब-रू कोई है अभी +क़ुर्बतें लाख ख़ूब-सूरत हों +दूरियों में भी दिलकशी है अभी +फ़स्ल-ए-गुल में बहार पहला गुलाब +किस की ज़ुल्फ़ों में टाँकती है अभी +मुद्दतें हो गईं 'फ़राज़' मगर +वो जो दीवानगी कि थी है अभी " +tere-qariib-aa-ke-badii-uljhanon-men-huun-ahmad-faraz-ghazals," +तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ +मैं दुश्मनों में हूँ कि तिरे दोस्तों में हूँ +मुझ से गुरेज़-पा है तो हर रास्ता बदल +मैं संग-ए-राह हूँ तो सभी रास्त���ं में हूँ +तू आ चुका है सत्ह पे कब से ख़बर नहीं +बेदर्द मैं अभी उन्हीं गहराइयों में हूँ +ऐ यार-ए-ख़ुश-दयार तुझे क्या ख़बर कि मैं +कब से उदासियों के घने जंगलों में हूँ +तू लूट कर भी अहल-ए-तमन्ना को ख़ुश नहीं +याँ लुट के भी वफ़ा के इन्ही क़ाफ़िलों में हूँ +बदला न मेरे बाद भी मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू +मैं जा चुका हूँ फिर भी तिरी महफ़िलों में हूँ +मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर +ये सोच ले कि मैं भी तिरी ख़्वाहिशों में हूँ +तू हँस रहा है मुझ पे मिरा हाल देख कर +और फिर भी मैं शरीक तिरे क़हक़हों में हूँ +ख़ुद ही मिसाल-ए-लाला-ए-सेहरा लहू लहू +और ख़ुद 'फ़राज़' अपने तमाशाइयों में हूँ " +jis-samt-bhii-dekhuun-nazar-aataa-hai-ki-tum-ho-ahmad-faraz-ghazals," +जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो +ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो +ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है +ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो +इस दीद की साअत में कई रंग हैं लर्ज़ां +मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो +देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी +देखूँ ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो +ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ +हर साँस में मुझ को यही लगता है कि तुम हो +हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का +अब कौन है शीरीं है कि लैला है कि तुम हो +इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ +इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो +वो वक़्त न आए कि दिल-ए-ज़ार भी सोचे +इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो +आबाद हम आशुफ़्ता-सरों से नहीं मक़्तल +ये रस्म अभी शहर में ज़िंदा है कि तुम हो +ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी +हम को ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो " +tujh-se-mil-kar-to-ye-lagtaa-hai-ki-ai-ajnabii-dost-ahmad-faraz-ghazals," +तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त +तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त +लोग हर बात का अफ़्साना बना देते हैं +ये तो दुनिया है मिरी जाँ कई दुश्मन कई दोस्त +तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई +मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त +याद आई है तो फिर टूट के याद आई है +कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त +अब भी आए हो तो एहसान तुम्हारा लेकिन +वो क़यामत जो गुज़रनी थी गुज़र भी गई दोस्त +तेरे लहजे की थकन में तिरा दिल शामिल है +ऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त +बारिश-ए-संग का मौसम है मिरे शहर में तो +तू ये शीशे सा बदन ले के कहाँ आ गई दोस्त +मैं उसे अहद-शिकन कैसे समझ लूँ जिस ने +आख़िरी ख़त में ये लिक्खा था फ़क़त आप की दोस्त " +silsile-tod-gayaa-vo-sabhii-jaate-jaate-ahmad-faraz-ghazals," +सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते +वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते +शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर था +अपने हिस्से की कोई शम्अ' जलाते जाते +कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ +फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते +जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वर्ना हम भी +पा-ब-जौलाँ ही सही नाचते गाते जाते +इस की वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था +तुम 'फ़राज़' अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते " +sunaa-hai-log-use-aankh-bhar-ke-dekhte-hain-ahmad-faraz-ghazals," +सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं +सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं +सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से +सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं +सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की +सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं +सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़ +सो हम भी मो'जिज़े अपने हुनर के देखते हैं +सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं +ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं +सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है +सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं +सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं +सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं +सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें +सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं +सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की +सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं +सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत है +सो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं +सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं +सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं +सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस की +जो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं +सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में +मिज़ाज और ही लाल ओ गुहर के देखते हैं +सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में +पलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं +सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है +कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं +वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं +कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं +बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का +सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं +सुना है उस के शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त +मकीं उधर के भी जल्वे इधर के देखते हैं +रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं +चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं +किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे +कभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं +कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सही +अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं +अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ +'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं " +ab-ke-ham-bichhde-to-shaayad-kabhii-khvaabon-men-milen-ahmad-faraz-ghazals," +अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें +जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें +ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती +ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें +ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो +नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें +तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा +दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें +आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर +क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें +अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़' +जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें " +qurbat-bhii-nahiin-dil-se-utar-bhii-nahiin-jaataa-ahmad-faraz-ghazals," +क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता +वो शख़्स कोई फ़ैसला कर भी नहीं जाता +आँखें हैं कि ख़ाली नहीं रहती हैं लहू से +और ज़ख़्म-ए-जुदाई है कि भर भी नहीं जाता +वो राहत-ए-जाँ है मगर इस दर-बदरी में +ऐसा है कि अब ध्यान उधर भी नहीं जाता +हम दोहरी अज़िय्यत के गिरफ़्तार मुसाफ़िर +पाँव भी हैं शल शौक़-ए-सफ़र भी नहीं जाता +दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है +और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता +पागल हुए जाते हो 'फ़राज़' उस से मिले क्या +इतनी सी ख़ुशी से कोई मर भी नहीं जाता " +khaamosh-ho-kyuun-daad-e-jafaa-kyuun-nahiin-dete-ahmad-faraz-ghazals," +ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते +बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते +वहशत का सबब रौज़न-ए-ज़िंदाँ तो नहीं है +मेहर ओ मह ओ अंजुम को बुझा क्यूँ नहीं देते +इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है +ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते +मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे +मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते +रहज़न हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ भी +रहबर हो तो मंज़िल का पता क्यूँ नहीं देते +क्या बीत गई अब के 'फ़राज़' अहल-ए-चमन पर +यारान-ए-क़फ़स मुझ को सदा क्यूँ नहीं देते " +jo-gair-the-vo-isii-baat-par-hamaare-hue-ahmad-faraz-ghazals," +जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए +कि हम से दोस्त बहुत बे-ख़बर हमारे हुए +किसे ख़बर वो मोहब्बत थी या रक़ाबत थी +बहुत से लोग तुझे देख कर हमारे हुए +अब इक हुजूम-ए-शिकस्ता-दिलाँ है साथ अपने +जिन्हें कोई न मिला हम-सफ़र हमारे हुए +किसी ने ग़म तो किसी ने मिज़ाज-ए-ग़म बख़्शा +सब अपनी अपनी जगह चारागर हमारे हुए +बुझा के ताक़ की शमएँ न देख तारों को +इसी जुनूँ में तो बर्बाद घर हमारे हुए +वो ए'तिमाद कहाँ से 'फ़राज़' लाएँगे +किसी को छोड़ के वो अब अगर हमारे हुए " +is-se-pahle-ki-be-vafaa-ho-jaaen-ahmad-faraz-ghazals," +इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ +क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ +तू भी हीरे से बन गया पत्थर +हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ +तू कि यकता था बे-शुमार हुआ +हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ +हम भी मजबूरियों का उज़्र करें +फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ +हम अगर मंज़िलें न बन पाए +मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ +देर से सोच में हैं परवाने +राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ +इश्क़ भी खेल है नसीबों का +ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ +अब के गर तू मिले तो हम तुझ से +ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ +बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़' +क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ " +vahshaten-badhtii-gaiin-hijr-ke-aazaar-ke-saath-ahmad-faraz-ghazals," +वहशतें बढ़ती गईं हिज्र के आज़ार के साथ +अब तो हम बात भी करते नहीं ग़म-ख़्वार के साथ +हम ने इक उम्र बसर की है ग़म-ए-यार के साथ +'मीर' दो दिन न जिए हिज्र के आज़ार के साथ +अब तो हम घर से निकलते हैं तो रख देते हैं +ताक़ पर इज़्ज़त-ए-सादात भी दस्तार के साथ +इस क़दर ख़ौफ़ है अब शहर की गलियों में कि लोग +चाप सुनते हैं तो लग जाते हैं दीवार के साथ +एक तो ख़्वाब लिए फिरते हो गलियों गलियों +उस पे तकरार भी करते हो ख़रीदार के साथ +शहर का शहर ही नासेह हो तो क्या कीजिएगा +वर्ना हम रिंद तो भिड़ जाते हैं दो-चार के साथ +हम को उस शहर में ता'मीर का सौदा है जहाँ +लोग मे'मार को चुन देते हैं दीवार के साथ +जो शरफ़ हम को मिला कूचा-ए-जानाँ से 'फ़राज़' +सू-ए-मक़्तल भी गए हैं उसी पिंदार के साथ " +shoala-thaa-jal-bujhaa-huun-havaaen-mujhe-na-do-ahmad-faraz-ghazals," +शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो +मैं कब का जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो +जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया +अब तुम तो ज़िंदगी की दुआएँ मुझे न दो +ये भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी +ऐ ख़ुसरवान-ए-शहर क़बाएँ मुझे न दो +ऐसा न हो कभी कि पलट कर न आ सकूँ +हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो +कब मुझ को ए'तिराफ़-ए-मोहब्बत न था 'फ़राज़' +कब मैं ने ये कहा है सज़ाएँ मुझे न दो " +zindagii-se-yahii-gila-hai-mujhe-ahmad-faraz-ghazals," +ज़िंदगी से यही गिला है मुझे +तू बहुत देर से मिला है मुझे +तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल +हार जाने का हौसला है मुझे +दिल धड़कता नहीं टपकता ह�� +कल जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे +हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं +इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे +कोहकन हो कि क़ैस हो कि 'फ़राज़' +सब में इक शख़्स ही मिला है मुझे " +ab-shauq-se-ki-jaan-se-guzar-jaanaa-chaahiye-ahmad-faraz-ghazals," +अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए +बोल ऐ हवा-ए-शहर किधर जाना चाहिए +कब तक इसी को आख़िरी मंज़िल कहेंगे हम +कू-ए-मुराद से भी उधर जाना चाहिए +वो वक़्त आ गया है कि साहिल को छोड़ कर +गहरे समुंदरों में उतर जाना चाहिए +अब रफ़्तगाँ की बात नहीं कारवाँ की है +जिस सम्त भी हो गर्द-ए-सफ़र जाना चाहिए +कुछ तो सुबूत-ए-ख़ून-ए-तमन्ना कहीं मिले +है दिल तही तो आँख को भर जाना चाहिए +या अपनी ख़्वाहिशों को मुक़द्दस न जानते +या ख़्वाहिशों के साथ ही मर जाना चाहिए " +abhii-kuchh-aur-karishme-gazal-ke-dekhte-hain-ahmad-faraz-ghazals," +अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं +'फ़राज़' अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं +जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र +कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं +रह-ए-वफ़ा में हरीफ़-ए-ख़िराम कोई तो हो +सो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं +तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता +ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं +ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफ़िल में +जो लालचों से तुझे मुझ को जल के देखते हैं +ये क़ुर्ब क्या है कि यक-जाँ हुए न दूर रहे +हज़ार एक ही क़ालिब में ढल के देखते हैं +न तुझ को मात हुई है न मुझ को मात हुई +सो अब के दोनों ही चालें बदल के देखते हैं +ये कौन है सर-ए-साहिल कि डूबने वाले +समुंदरों की तहों से उछल के देखते हैं +अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए +हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं +बहुत दिनों से नहीं है कुछ उस की ख़ैर ख़बर +चलो 'फ़राज़' को ऐ यार चल के देखते हैं " +kyaa-aise-kam-sukhan-se-koii-guftuguu-kare-ahmad-faraz-ghazals," +क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे +जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू करे +अब तो हमें भी तर्क-ए-मरासिम का दुख नहीं +पर दिल ये चाहता है कि आग़ाज़ तू करे +तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी +ख़ुद को गँवा के कौन तिरी जुस्तुजू करे +अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए +ता-ज़िंदगी ये दिल न कोई आरज़ू करे +तुझ को भुला के दिल है वो शर्मिंदा-ए-नज़र +अब कोई हादसा ही तिरे रू-ब-रू करे +चुप-चाप अपनी आग में जलते रहो 'फ़राज़' +दुनिया तो अर्ज़-ए-हाल से बे-आबरू करे " +aankh-se-duur-na-ho-dil-se-utar-jaaegaa-ahmad-faraz-ghazals," +आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा +वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा +इत��ा मानूस न हो ख़ल्वत-ए-ग़म से अपनी +तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा +डूबते डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ +मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा +ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जाने वाला +तेरी बख़्शिश तिरी दहलीज़ पे धर जाएगा +ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का 'फ़राज़' +ज़ालिम अब के भी न रोएगा तो मर जाएगा " +main-to-maqtal-men-bhii-qismat-kaa-sikandar-niklaa-ahmad-faraz-ghazals," +मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला +क़ुरआ-ए-फ़ाल मिरे नाम का अक्सर निकला +था जिन्हें ज़ो'म वो दरिया भी मुझी में डूबे +मैं कि सहरा नज़र आता था समुंदर निकला +मैं ने उस जान-ए-बहाराँ को बहुत याद किया +जब कोई फूल मिरी शाख़-ए-हुनर पर निकला +शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर +मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला +तू यहीं हार गया है मिरे बुज़दिल दुश्मन +मुझ से तन्हा के मुक़ाबिल तिरा लश्कर निकला +मैं कि सहरा-ए-मोहब्बत का मुसाफ़िर था 'फ़राज़' +एक झोंका था कि ख़ुश्बू के सफ़र पर निकला " +har-koii-dil-kii-hathelii-pe-hai-sahraa-rakkhe-ahmad-faraz-ghazals," +हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे +किस को सैराब करे वो किसे प्यासा रक्खे +उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना +ऐ मिरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे +हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा +कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे +दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है +जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे +कम नहीं तम-ए-इबादत भी तो हिर्स-ए-ज़र से +फ़क़्र तो वो है कि जो दीन न दुनिया रक्खे +हँस न इतना भी फ़क़ीरों के अकेले-पन पर +जा ख़ुदा मेरी तरह तुझ को भी तन्हा रक्खे +ये क़नाअ'त है इताअत है कि चाहत है 'फ़राज़' +हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रक्खे " +ye-kyaa-ki-sab-se-bayaan-dil-kii-haalaten-karnii-ahmad-faraz-ghazals," +ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी +'फ़राज़' तुझ को न आईं मोहब्बतें करनी +ये क़ुर्ब क्या है कि तू सामने है और हमें +शुमार अभी से जुदाई की साअ'तें करनी +कोई ख़ुदा हो कि पत्थर जिसे भी हम चाहें +तमाम उम्र उसी की इबादतें करनी +सब अपने अपने क़रीने से मुंतज़िर उस के +किसी को शुक्र किसी को शिकायतें करनी +हम अपने दिल से ही मजबूर और लोगों को +ज़रा सी बात पे बरपा क़यामतें करनी +मिलें जब उन से तो मुबहम सी गुफ़्तुगू करना +फिर अपने आप से सौ सौ वज़ाहतें करनी +ये लोग कैसे मगर दुश्मनी निबाहते हैं +हमें तो रास न आईं मोहब्बतें करनी +कभी 'फ़राज़' नए मौसमों में रो देना +कभी तलाश प��रानी रिफाक़तें करनी " +aashiqii-men-miir-jaise-khvaab-mat-dekhaa-karo-ahmad-faraz-ghazals," +आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो +बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो +जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन-ए-वफ़ा +पर किताब-ए-इश्क़ का हर बाब मत देखा करो +इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ +डूबने वालों को ज़ेर-ए-आब मत देखा करो +मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब +बज़्म-ए-साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो +हम से दरवेशों के घर आओ तो यारों की तरह +हर जगह ख़स-ख़ाना ओ बर्फ़ाब मत देखा करो +माँगे-ताँगे की क़बाएँ देर तक रहती नहीं +यार लोगों के लक़ब-अलक़ाब मत देखा करो +तिश्नगी में लब भिगो लेना भी काफ़ी है 'फ़राज़' +जाम में सहबा है या ज़हराब मत देखा करो " +us-ko-judaa-hue-bhii-zamaana-bahut-huaa-ahmad-faraz-ghazals," +उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ +अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ +ढलती न थी किसी भी जतन से शब-ए-फ़िराक़ +ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तिरा आना बहुत हुआ +हम ख़ुल्द से निकल तो गए हैं पर ऐ ख़ुदा +इतने से वाक़िए का फ़साना बहुत हुआ +अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी +उस से ज़रा सा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ +अब क्यूँ न ज़िंदगी पे मोहब्बत को वार दें +इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ +अब तक तो दिल का दिल से तआ'रुफ़ न हो सका +माना कि उस से मिलना मिलाना बहुत हुआ +क्या क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल +ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ +कहता था नासेहों से मिरे मुँह न आइयो +फिर क्या था एक हू का बहाना बहुत हुआ +लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र +अहमद-'फ़राज़' तुझ से कहा न बहुत हुआ " +terii-baaten-hii-sunaane-aae-ahmad-faraz-ghazals-3," +तेरी बातें ही सुनाने आए +दोस्त भी दिल ही दुखाने आए +फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं +तेरे आने के ज़माने आए +ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे +हम तुझे हाल सुनाने आए +इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म +कौन ये बोझ उठाने आए +अजनबी दोस्त हमें देख कि हम +कुछ तुझे याद दिलाने आए +दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम +काश फिर कोई बुलाने आए +अब तो रोने से भी दिल दुखता है +शायद अब होश ठिकाने आए +क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी +लोग क्यूँ जश्न मनाने आए +सो रहो मौत के पहलू में 'फ़राज़' +नींद किस वक़्त न जाने आए " +guftuguu-achchhii-lagii-zauq-e-nazar-achchhaa-lagaa-ahmad-faraz-ghazals," +गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा +मुद्दतों के बाद कोई हम-सफ़र अच्छा लगा +दिल का दुख जाना तो दिल का मसअला है पर हमें +उस का हँस देना हमारे हाल पर अच्छा लगा +हर तरह की बे-सर-ओ-सामानियों के बावजूद +आज वो आया तो मुझ को अपना घर अच्छा लगा +बाग़बाँ गुलचीं को चाहे जो कहे हम को तो फूल +शाख़ से बढ़ कर कफ़-ए-दिलदार पर अच्छा लगा +कोई मक़्तल में न पहुँचा कौन ज़ालिम था जिसे +तेग़-ए-क़ातिल से ज़ियादा अपना सर अच्छा लगा +हम भी क़ाएल हैं वफ़ा में उस्तुवारी के मगर +कोई पूछे कौन किस को उम्र भर अच्छा लगा +अपनी अपनी चाहतें हैं लोग अब जो भी कहें +इक परी-पैकर को इक आशुफ़्ता-सर अच्छा लगा +'मीर' के मानिंद अक्सर ज़ीस्त करता था 'फ़राज़' +था तो वो दीवाना सा शाइर मगर अच्छा लगा " +aisaa-hai-ki-sab-khvaab-musalsal-nahiin-hote-ahmad-faraz-ghazals," +ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते +जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते +अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं +मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते +कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं +कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते +शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब आँखों के सहरा +नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते +कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में +कुछ याद-जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते +उश्शाक़ के मानिंद कई अहल-ए-हवस भी +पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते +सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है +जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते " +phir-usii-rahguzaar-par-shaayad-ahmad-faraz-ghazals," +फिर उसी रहगुज़ार पर शायद +हम कभी मिल सकें मगर शायद +जिन के हम मुंतज़िर रहे उन को +मिल गए और हम-सफ़र शायद +जान-पहचान से भी क्या होगा +फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद +अज्नबिय्यत की धुँद छट जाए +चमक उठ्ठे तिरी नज़र शायद +ज़िंदगी भर लहू रुलाएगी +याद-ए-यारान-ए-बे-ख़बर शायद +जो भी बिछड़े वो कब मिले हैं 'फ़राज़' +फिर भी तू इंतिज़ार कर शायद " +tujhe-hai-mashq-e-sitam-kaa-malaal-vaise-hii-ahmad-faraz-ghazals," +तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही +हमारी जान थी जाँ पर वबाल वैसे ही +चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का +सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही +हम आ गए हैं तह-ए-दाम तो नसीब अपना +वगरना उस ने तो फेंका था जाल वैसे ही +मैं रोकना ही नहीं चाहता था वार उस का +गिरी नहीं मिरे हाथों से ढाल वैसे ही +ज़माना हम से भला दुश्मनी तो क्या रखता +सो कर गया है हमें पाएमाल वैसे ही +मुझे भी शौक़ न था दास्ताँ सुनाने का +'फ़राज़' उस ने भी पूछा था हाल वैसे ही " +ranjish-hii-sahii-dil-hii-dukhaane-ke-liye-aa-ahmad-faraz-ghazals," +रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ +आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ +कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख +तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ +पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो +रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ +किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम +तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ +इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम +ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ +अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें +ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ " +dost-ban-kar-bhii-nahiin-saath-nibhaane-vaalaa-ahmad-faraz-ghazals," +दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला +वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला +अब उसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मिरा +सख़्त नादिम है मुझे दाम में लाने वाला +सुब्ह-दम छोड़ गया निकहत-ए-गुल की सूरत +रात को ग़ुंचा-ए-दिल में सिमट आने वाला +क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से +वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला +तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया +आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला +मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं +कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला +क्या ख़बर थी जो मिरी जाँ में घुला है इतना +है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला +मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते +है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला +तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़' +दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला " +zikr-aae-to-mire-lab-se-duaaen-niklen-gulzar-ghazals," +ज़िक्र आए तो मिरे लब से दुआएँ निकलें +शम्अ' जलती है तो लाज़िम है शुआएँ निकलें +वक़्त की ज़र्ब से कट जाते हैं सब के सीने +चाँद का छलका उतर जाए तो क़ाशें निकलें +दफ़्न हो जाएँ कि ज़रख़ेज़ ज़मीं लगती है +कल इसी मिट्टी से शायद मिरी शाख़ें निकलें +चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं +दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें +ग़ार के मुँह पे रखा रहने दो संग-ए-ख़ुर्शीद +ग़ार में हाथ न डालो कहीं रातें निकलें " +garm-laashen-giriin-fasiilon-se-gulzar-ghazals," +गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से +आसमाँ भर गया है चीलों से +सूली चढ़ने लगी है ख़ामोशी +लोग आए हैं सुन के मीलों से +कान में ऐसे उतरी सरगोशी +बर्फ़ फिसली हो जैसे टीलों से +गूँज कर ऐसे लौटती है सदा +कोई पूछे हज़ारों मीलों से +प्यास भरती रही मिरे अंदर +आँख हटती नहीं थी झीलों से +लोग कंधे बदल बदल के चले +घाट पहुँचे बड़े वसीलों से " +aisaa-khaamosh-to-manzar-na-fanaa-kaa-hotaa-gulzar-ghazals," +ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता +मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता +यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता +कोई एहसास तो दरिया की अना का होता +साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती +कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता +काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं +काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता +क्यूँ मिरी शक्ल पहन लेता है छुपने के लिए +एक चेहरा कोई अपना भी ख़ुदा का होता " +sabr-har-baar-ikhtiyaar-kiyaa-gulzar-ghazals," +सब्र हर बार इख़्तियार किया +हम से होता नहीं हज़ार किया +आदतन तुम ने कर दिए वा'दे +आदतन हम ने ए'तिबार किया +हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में +रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया +फिर न माँगेंगे ज़िंदगी या-रब +ये गुनह हम ने एक बार किया " +vo-khat-ke-purze-udaa-rahaa-thaa-gulzar-ghazals," +वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था +हवाओं का रुख़ दिखा रहा था +बताऊँ कैसे वो बहता दरिया +जब आ रहा था तो जा रहा था +कुछ और भी हो गया नुमायाँ +मैं अपना लिक्खा मिटा रहा था +धुआँ धुआँ हो गई थीं आँखें +चराग़ को जब बुझा रहा था +मुंडेर से झुक के चाँद कल भी +पड़ोसियों को जगा रहा था +उसी का ईमाँ बदल गया है +कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था +वो एक दिन एक अजनबी को +मिरी कहानी सुना रहा था +वो उम्र कम कर रहा था मेरी +मैं साल अपने बढ़ा रहा था +ख़ुदा की शायद रज़ा हो इस में +तुम्हारा जो फ़ैसला रहा था " +ek-parvaaz-dikhaaii-dii-hai-gulzar-ghazals," +एक पर्वाज़ दिखाई दी है +तेरी आवाज़ सुनाई दी है +सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने +सारी बातों की सफ़ाई दी है +फिर वहीं लौट के जाना होगा +यार ने कैसी रिहाई दी है +जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ +उस ने सदियों की जुदाई दी है +ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं +दिल ने हर चीज़ पराई दी है +आग में क्या क्या जला है शब भर +कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है " +aankhon-men-jal-rahaa-hai-pa-bujhtaa-nahiin-dhuaan-gulzar-ghazals," +आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ +उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ +पलकों के ढाँपने से भी रुकता नहीं धुआँ +कितनी उँडेलीं आँखें प बुझता नहीं धुआँ +आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं +मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ +चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई +कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ +काली लकीरें खींच रहा है फ़ज़ाओं में +बौरा गया है मुँह से क्यूँ खुलता नहीं धुआँ +आँखों के पोछने से लगा आग का पता +यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ +चिंगारी इक अटक सी गई मेरे सीने में +थोड़ा सा आ के फूँक दो उड़ता नहीं धुआँ " +sahmaa-sahmaa-daraa-saa-rahtaa-hai-gulzar-ghazals," +सहमा सहमा डरा सा रहता है +जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है +काई सी जम गई है आँखों पर +सारा मंज़र हरा सा रहता है +एक पल देख लूँ तो उठता हूँ +ज��� गया घर ज़रा सा रहता है +सर में जुम्बिश ख़याल की भी नहीं +ज़ानुओं पर धरा सा रहता है " +din-kuchh-aise-guzaartaa-hai-koii-gulzar-ghazals," +दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई +जैसे एहसाँ उतारता है कोई +दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म +जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई +आइना देख कर तसल्ली हुई +हम को इस घर में जानता है कोई +पेड़ पर पक गया है फल शायद +फिर से पत्थर उछालता है कोई +देर से गूँजते हैं सन्नाटे +जैसे हम को पुकारता है कोई " +os-padii-thii-raat-bahut-aur-kohra-thaa-garmaaish-par-gulzar-ghazals," +ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर +सैली सी ख़ामोशी में आवाज़ सुनी फ़रमाइश पर +फ़ासले हैं भी और नहीं भी नापा तौला कुछ भी नहीं +लोग ब-ज़िद रहते हैं फिर भी रिश्तों की पैमाइश पर +मुँह मोड़ा और देखा कितनी दूर खड़े थे हम दोनों +आप लड़े थे हम से बस इक करवट की गुंजाइश पर +काग़ज़ का इक चाँद लगा कर रात अँधेरी खिड़की पर +दिल में कितने ख़ुश थे अपनी फ़ुर्क़त की आराइश पर +दिल का हुज्रा कितनी बार उजड़ा भी और बसाया भी +सारी उम्र कहाँ ठहरा है कोई एक रिहाइश पर +धूप और छाँव बाँट के तुम ने आँगन में दीवार चुनी +क्या इतना आसान है ज़िंदा रहना इस आसाइश पर +शायद तीन नुजूमी मेरी मौत पे आ कर पहुँचेंगे +ऐसा ही इक बार हुआ था ईसा की पैदाइश पर " +gulon-ko-sunnaa-zaraa-tum-sadaaen-bhejii-hain-gulzar-ghazals," +गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं +गुलों के हाथ बहुत सी दुआएँ भेजी हैं +जो आफ़्ताब कभी भी ग़ुरूब होता नहीं +हमारा दिल है उसी की शुआएँ भेजी हैं +अगर जलाए तुम्हें भी शिफ़ा मिले शायद +इक ऐसे दर्द की तुम को शुआएँ भेजी हैं +तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं +वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं +सियाह रंग चमकती हुई कनारी है +पहन लो अच्छी लगेंगी घटाएँ भेजी हैं +तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं +सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं +अकेला पत्ता हवा में बहुत बुलंद उड़ा +ज़मीं से पाँव उठाओ हवाएँ भेजी हैं " +phuul-ne-tahnii-se-udne-kii-koshish-kii-gulzar-ghazals," +फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की +इक ताइर का दिल रखने की कोशिश की +कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में +रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की +कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया +जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की +कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ +उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की +एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है +मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की +एक सितारा जल्दी जल्दी डूब गया +मैं ने जब तारे गिनने की कोशिश की +नाम मिरा था और पता अपने घर का +उस ने मुझ को ख़त लिखने की कोशिश की +एक धुएँ का मर्ग़ोला सा निकला है +मिट्टी में जब दिल बोने की कोशिश की " +phuulon-kii-tarah-lab-khol-kabhii-gulzar-ghazals," +फूलों की तरह लब खोल कभी +ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी +अल्फ़ाज़ परखता रहता है +आवाज़ हमारी तोल कभी +अनमोल नहीं लेकिन फिर भी +पूछ तो मुफ़्त का मोल कभी +खिड़की में कटी हैं सब रातें +कुछ चौरस थीं कुछ गोल कभी +ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह +हो जाता है डाँवा-डोल कभी " +havaa-ke-siing-na-pakdo-khaded-detii-hai-gulzar-ghazals," +हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है +ज़मीं से पेड़ों के टाँके उधेड़ देती है +मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को +मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है +ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा +ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है +रुँधे गले की दुआओं से भी नहीं खुलता +दर-ए-हयात जिसे मौत भेड़ देती है " +tujh-ko-dekhaa-hai-jo-dariyaa-ne-idhar-aate-hue-gulzar-ghazals," +तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए +कुछ भँवर डूब गए पानी में चकराते हुए +हम ने तो रात को दाँतों से पकड़ कर रक्खा +छीना-झपटी में उफ़ुक़ खुलता गया जाते हुए +मैं न हूँगा तो ख़िज़ाँ कैसे कटेगी तेरी +शोख़ पत्ते ने कहा शाख़ से मुरझाते हुए +हसरतें अपनी बिलक्तीं न यतीमों की तरह +हम को आवाज़ ही दे लेते ज़रा जाते हुए +सी लिए होंट वो पाकीज़ा निगाहें सुन कर +मैली हो जाती है आवाज़ भी दोहराते हुए " +haath-chhuuten-bhii-to-rishte-nahiin-chhodaa-karte-gulzar-ghazals," +हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते +वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते +जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन +ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते +लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो +ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते +जागने पर भी नहीं आँख से गिरतीं किर्चें +इस तरह ख़्वाबों से आँखें नहीं फोड़ा करते +शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा +जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते +जा के कोहसार से सर मारो कि आवाज़ तो हो +ख़स्ता दीवारों से माथा नहीं फोड़ा करते " +dikhaaii-dete-hain-dhund-men-jaise-saae-koii-gulzar-ghazals," +दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई +मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आए कोई +मिरे मोहल्ले का आसमाँ सूना हो गया है +बुलंदियों पे अब आ के पेचे लड़ाए कोई +वो ज़र्द पत्ते जो पेड़ से टूट कर गिरे थे +कहाँ गए बहते पानियों में बुलाए कोई +ज़ईफ़ बरगद के हाथ में रा'शा आ गया है +जटाएँ आँखों पे गिर रही हैं उठाए कोई +मज़ार पे खोल कर गरेबाँ दुआएँ म��ँगें +जो आए अब के तो लौट कर फिर न जाए कोई " +zindagii-yuun-huii-basar-tanhaa-gulzar-ghazals," +ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा +क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा +अपने साए से चौंक जाते हैं +उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा +रात भर बातें करते हैं तारे +रात काटे कोई किधर तन्हा +डूबने वाले पार जा उतरे +नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा +दिन गुज़रता नहीं है लोगों में +रात होती नहीं बसर तन्हा +हम ने दरवाज़े तक तो देखा था +फिर न जाने गए किधर तन्हा " +ped-ke-patton-men-halchal-hai-khabar-daar-se-hain-gulzar-ghazals," +पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं +शाम से तेज़ हवा चलने के आसार से हैं +नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ +और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं +चढ़ते सैलाब में साहिल ने तो मुँह ढाँप लिया +लोग पानी का कफ़न लेने को तय्यार से हैं +कल तवारीख़ में दफ़नाए गए थे जो लोग +उन के साए अभी दरवाज़ों पे बेदार से हैं +वक़्त के तीर तो सीने पे सँभाले हम ने +और जो नील पड़े हैं तिरी गुफ़्तार से हैं +रूह से छीले हुए जिस्म जहाँ बिकते हैं +हम को भी बेच दे हम भी उसी बाज़ार से हैं +जब से वो अहल-ए-सियासत में हुए हैं शामिल +कुछ अदू के हैं तो कुछ मेरे तरफ़-दार से हैं " +koii-khaamosh-zakhm-lagtii-hai-gulzar-ghazals," +कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है +ज़िंदगी एक नज़्म लगती है +बज़्म-ए-याराँ में रहता हूँ तन्हा +और तंहाई बज़्म लगती है +अपने साए पे पाँव रखता हूँ +छाँव छालों को नर्म लगती है +चाँद की नब्ज़ देखना उठ कर +रात की साँस गर्म लगती है +ये रिवायत कि दर्द महके रहें +दिल की देरीना रस्म लगती है " +khulii-kitaab-ke-safhe-ulatte-rahte-hain-gulzar-ghazals," +खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं +हवा चले न चले दिन पलटते रहते हैं +बस एक वहशत-ए-मंज़िल है और कुछ भी नहीं +कि चंद सीढ़ियाँ चढ़ते उतरते रहते हैं +मुझे तो रोज़ कसौटी पे दर्द कसता है +कि जाँ से जिस्म के बख़िये उधड़ते रहते हैं +कभी रुका नहीं कोई मक़ाम-ए-सहरा में +कि टीले पाँव-तले से सरकते रहते हैं +ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं +ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं +भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में +उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं " +zikr-hotaa-hai-jahaan-bhii-mire-afsaane-kaa-gulzar-ghazals," +ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का +एक दरवाज़ा सा खुलता है कुतुब-ख़ाने का +एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे +दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का +बुलबुला फिर से चला पानी में ग़ोते खाने +न समझने का उसे वक़्त न समझाने का +��ैं ने अल्फ़ाज़ तो बीजों की तरह छाँट दिए +ऐसा मीठा तिरा अंदाज़ था फ़रमाने का +किस को रोके कोई रस्ते में कहाँ बात करे +न तो आने की ख़बर है न पता जाने का " +ham-to-kitnon-ko-mah-jabiin-kahte-gulzar-ghazals," +हम तो कितनों को मह-जबीं कहते +आप हैं इस लिए नहीं कहते +चाँद होता न आसमाँ पे अगर +हम किसे आप सा हसीं कहते +आप के पाँव फिर कहाँ पड़ते +हम ज़मीं को अगर ज़मीं कहते +आप ने औरों से कहा सब कुछ +हम से भी कुछ कभी कहीं कहते +आप के बा'द आप ही कहिए +वक़्त को कैसे हम-नशीं कहते +वो भी वाहिद है मैं भी वाहिद हूँ +किस सबब से हम आफ़रीं कहते " +dard-halkaa-hai-saans-bhaarii-hai-gulzar-ghazals," +दर्द हल्का है साँस भारी है +जिए जाने की रस्म जारी है +आप के ब'अद हर घड़ी हम ने +आप के साथ ही गुज़ारी है +रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो +दिन की चादर अभी उतारी है +शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले +कैसी चुप सी चमन पे तारी है +कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था +आज की दास्ताँ हमारी है " +ruke-ruke-se-qadam-ruk-ke-baar-baar-chale-gulzar-ghazals," +रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले +क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले +उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर +चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले +न जाने कौन सी मिट्टी वतन की मिट्टी थी +नज़र में धूल जिगर में लिए ग़ुबार चले +सहर न आई कई बार नींद से जागे +थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले +मिली है शम्अ' से ये रस्म-ए-आशिक़ी हम को +गुनाह हाथ पे ले कर गुनाहगार चले " +be-sabab-muskuraa-rahaa-hai-chaand-gulzar-ghazals," +बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद +कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद +जाने किस की गली से निकला है +झेंपा झेंपा सा आ रहा है चाँद +कितना ग़ाज़ा लगाया है मुँह पर +धूल ही धूल उड़ा रहा है चाँद +कैसा बैठा है छुप के पत्तों में +बाग़बाँ को सता रहा है चाँद +सीधा-सादा उफ़ुक़ से निकला था +सर पे अब चढ़ता जा रहा है चाँद +छू के देखा तो गर्म था माथा +धूप में खेलता रहा है चाँद " +biite-rishte-talaash-kartii-hai-gulzar-ghazals," +बीते रिश्ते तलाश करती है +ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है +जब गुज़रती है उस गली से सबा +ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है +अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार +पीले पत्ते तलाश करती है +एक उम्मीद बार बार आ कर +अपने टुकड़े तलाश करती है +बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर +अपने बेटे तलाश करती है " +koii-atkaa-huaa-hai-pal-shaayad-gulzar-ghazals," +कोई अटका हुआ है पल शायद +वक़्त में पड़ गया है बल शायद +लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद +वो अकेले हैं आज-कल शायद +दिल अगर है तो दर्द भी होगा +इस का कोई नहीं है हल शायद +जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम +उन से होता नहीं अमल शायद +आ रही है जो चाप क़दमों की +खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद +राख को भी कुरेद कर देखो +अभी जलता हो कोई पल शायद +चाँद डूबे तो चाँद ही निकले +आप के पास होगा हल शायद " +tinkaa-tinkaa-kaante-tode-saarii-raat-kataaii-kii-gulzar-ghazals," +तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की +क्यूँ इतनी लम्बी होती है चाँदनी रात जुदाई की +नींद में कोई अपने-आप से बातें करता रहता है +काल-कुएँ में गूँजती है आवाज़ किसी सौदाई की +सीने में दिल की आहट जैसे कोई जासूस चले +हर साए का पीछा करना आदत है हरजाई की +आँखों और कानों में कुछ सन्नाटे से भर जाते हैं +क्या तुम ने उड़ती देखी है रेत कभी तन्हाई की +तारों की रौशन फ़सलें और चाँद की एक दरांती थी +साहू ने गिरवी रख ली थी मेरी रात कटाई की " +har-ek-gam-nichod-ke-har-ik-baras-jiye-gulzar-ghazals," +हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए +दो दिन की ज़िंदगी में हज़ारों बरस जिए +सदियों पे इख़्तियार नहीं था हमारा दोस्त +दो चार लम्हे बस में थे दो चार बस जिए +सहरा के उस तरफ़ से गए सारे कारवाँ +सुन सुन के हम तो सिर्फ़ सदा-ए-जरस जिए +होंटों में ले के रात के आँचल का इक सिरा +आँखों पे रख के चाँद के होंटों का मस जिए +महदूद हैं दुआएँ मिरे इख़्तियार में +हर साँस पुर-सुकून हो तू सौ बरस जिए " +shaam-se-aankh-men-namii-sii-hai-gulzar-ghazals," +शाम से आँख में नमी सी है +आज फिर आप की कमी सी है +दफ़्न कर दो हमें कि साँस आए +नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है +कौन पथरा गया है आँखों में +बर्फ़ पलकों पे क्यूँ जमी सी है +वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर +आदत इस की भी आदमी सी है +आइए रास्ते अलग कर लें +ये ज़रूरत भी बाहमी सी है " +jab-bhii-aankhon-men-ashk-bhar-aae-gulzar-ghazals," +जब भी आँखों में अश्क भर आए +लोग कुछ डूबते नज़र आए +अपना मेहवर बदल चुकी थी ज़मीं +हम ख़ला से जो लौट कर आए +चाँद जितने भी गुम हुए शब के +सब के इल्ज़ाम मेरे सर आए +चंद लम्हे जो लौट कर आए +रात के आख़िरी पहर आए +एक गोली गई थी सू-ए-फ़लक +इक परिंदे के बाल-ओ-पर आए +कुछ चराग़ों की साँस टूट गई +कुछ ब-मुश्किल दम-ए-सहर आए +मुझ को अपना पता-ठिकाना मिले +वो भी इक बार मेरे घर आए " +shaam-se-aaj-saans-bhaarii-hai-gulzar-ghazals," +शाम से आज साँस भारी है +बे-क़रारी सी बे-क़रारी है +आप के बा'द हर घड़ी हम ने +आप के साथ ही गुज़ारी है +रात को दे दो चाँदनी की रिदा +दिन की चादर अभी उतारी है +शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले +कैसी चुप सी चमन में तारी है +कल का हर वाक़िआ' तुम्हारा था +आज की दास्ताँ हमारी है " +khushbuu-jaise-log-mile-afsaane-men-gulzar-ghazals," +ख���ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में +एक पुराना ख़त खोला अनजाने में +शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं +चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में +रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे +धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में +जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़्साने में +दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में +दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है +किस की आहट सुनता हूँ वीराने में +हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़ चले +उन को शायद उम्र लगेगी आने में " +kahiin-to-gard-ude-yaa-kahiin-gubaar-dikhe-gulzar-ghazals," +कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे +कहीं से आता हुआ कोई शहसवार दिखे +ख़फ़ा थी शाख़ से शायद कि जब हवा गुज़री +ज़मीं पे गिरते हुए फूल बे-शुमार दिखे +रवाँ हैं फिर भी रुके हैं वहीं पे सदियों से +बड़े उदास लगे जब भी आबशार दिखे +कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़ +किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे +कोई तिलिस्मी सिफ़त थी जो इस हुजूम में वो +हुए जो आँख से ओझल तो बार बार दिखे " +jab-bhii-ye-dil-udaas-hotaa-hai-gulzar-ghazals," +जब भी ये दिल उदास होता है +जाने कौन आस-पास होता है +आँखें पहचानती हैं आँखों को +दर्द चेहरा-शनास होता है +गो बरसती नहीं सदा आँखें +अब्र तो बारह-मास होता है +छाल पेड़ों की सख़्त है लेकिन +नीचे नाख़ुन के मास होता है +ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है +दर्द दिल का लिबास होता है +डस ही लेता है सब को इश्क़ कभी +साँप मौक़ा-शनास होता है +सिर्फ़ इतना करम किया कीजे +आप को जितना रास होता है " +kaanch-ke-piichhe-chaand-bhii-thaa-aur-kaanch-ke-uupar-kaaii-bhii-gulzar-ghazals," +काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी +तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी +यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं +सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी +दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में +मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी +कितनी जल्दी मैली करता है पोशाकें रोज़ फ़लक +सुब्ह ही रात उतारी थी और शाम को शब पहनाई भी +ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी +उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी +कल साहिल पर लेटे लेटे कितनी सारी बातें कीं +आप का हुंकारा न आया चाँद ने बात कराई भी " +mujhe-andhere-men-be-shak-bithaa-diyaa-hotaa-gulzar-ghazals-1," +मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता +मगर चराग़ की सूरत जला दिया होता +न रौशनी कोई आती मिरे तआ'क़ुब में +जो अपने-आप को मैं ने बुझा दिया होता +ये दर्द जिस्म के या-रब बहुत शदीद लगे +मुझे सलीब पे दो पल सुला दिया होता +ये शुक्र है क�� मिरे पास तेरा ग़म तो रहा +वगर्ना ज़िंदगी ने तो रुला दिया होता " +kabhii-dhanak-sii-utartii-thii-un-nigaahon-men-fahmida-riaz-ghazals," +कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में +वो शोख़ रंग भी धीमे पड़े हवाओं में +मैं तेज़-गाम चली जा रही थी उस की सम्त +कशिश अजीब थी उस दश्त की सदाओं में +वो इक सदा जो फ़रेब-ए-सदा से भी कम है +न डूब जाए कहीं तुंद-रौ हवाओं में +सुकूत-ए-शाम है और मैं हूँ गोश-बर-आवाज़ +कि एक वा'दे का अफ़्सूँ सा है फ़ज़ाओं में +मिरी तरह यूँही गुम-कर्दा-राह छोड़ेगी +तुम अपनी बाँह न देना हवा की बाँहों में +नुक़ूश पाँव के लिखते हैं मंज़िल-ए-ना-याफ़्त +मिरा सफ़र तो है तहरीर मेरी राहों में " +ye-kis-ke-aansuon-ne-us-naqsh-ko-mitaayaa-fahmida-riaz-ghazals," +ये किस के आँसुओं ने उस नक़्श को मिटाया +जो मेरे लौह-ए-दिल पर तू ने कभी बनाया +था दिल जब उस पे माइल था शौक़ सख़्त मुश्किल +तर्ग़ीब ने उसे भी आसान कर दिखाया +इक गर्द-बाद में तू ओझल हुआ नज़र से +इस दश्त-ए-बे-समर से जुज़ ख़ाक कुछ न पाया +ऐ चोब-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा वो बाद-ए-शौक़ क्या थी +मेरी तरह बरहना जिस ने तुझे बनाया +फिर हम हैं नीम-शब है अंदेशा-ए-अबस है +वो वाहिमा कि जिस से तेरा यक़ीन आया " +ye-pairahan-jo-mirii-ruuh-kaa-utar-na-sakaa-fahmida-riaz-ghazals," +ये पैरहन जो मिरी रूह का उतर न सका +तो नख़-ब-नख़ कहीं पैवस्त रेशा-ए-दिल था +मुझे मआल-ए-सफ़र का मलाल क्यूँ-कर हो +कि जब सफ़र ही मिरा फ़ासलों का धोका था +मैं जब फ़िराक़ की रातों में उस के साथ रही +वो फिर विसाल के लम्हों में क्यूँ अकेला था +वो वास्ते की तिरा दरमियाँ भी क्यूँ आए +ख़ुदा के साथ मिरा जिस्म क्यूँ न हो तन्हा +सराब हूँ मैं तिरी प्यास क्या बुझाऊँगी +इस इश्तियाक़ से तिश्ना ज़बाँ क़रीब न ला +सराब हूँ कि बदन की यही शहादत है +हर एक उज़्व में बहता है रेत का दरिया +जो मेरे लब पे है शायद वही सदाक़त है +जो मेरे दिल में है उस हर्फ़-ए-राएगाँ पे न जा +जिसे मैं तोड़ चुकी हूँ वो रौशनी का तिलिस्म +शुआ-ए-नूर-ए-अज़ल के सिवा कुछ और न था " +patthar-se-visaal-maangtii-huun-fahmida-riaz-ghazals," +पत्थर से विसाल माँगती हूँ +मैं आदमियों से कट गई हूँ +शायद पाऊँ सुराग़-ए-उल्फ़त +मुट्ठी में ख़ाक-भर रही हूँ +हर लम्स है जब तपिश से आरी +किस आँच से यूँ पिघल रही हूँ +वो ख़्वाहिश-ए-बोसा भी नहीं अब +हैरत से होंट काटती हूँ +इक तिफ़्लक-ए-जुस्तुजू हूँ शायद +मैं अपने बदन से खेलती हूँ +अब तब्अ' किसी पे क्यूँ हो राग़िब +इंसानों को बरत चुकी हूँ " +jo-mujh-men-chhupaa-meraa-galaa-ghont-rahaa-hai-fahmida-riaz-ghazals," +जो मुझ में छुपा मे��ा गला घोंट रहा है +या वो कोई इबलीस है या मेरा ख़ुदा है +जब सर में नहीं इश्क़ तो चेहरे पे चमक है +ये नख़्ल ख़िज़ाँ आई तो शादाब हुआ है +क्या मेरा ज़ियाँ है जो मुक़ाबिल तिरे आ जाऊँ +ये अम्र तो मा'लूम कि तू मुझ से बड़ा है +मैं बंदा-ओ-नाचार कि सैराब न हो पाऊँ +ऐ ज़ाहिर-ओ-मौजूद मिरा जिस्म दुआ है +हाँ उस के तआ'क़ुब से मिरे दिल में है इंकार +वो शख़्स किसी को न मिलेगा न मिला है +क्यूँ नूर-ए-अबद दिल में गुज़र कर नहीं पाता +सीने की सियाही से नया हर्फ़ लिखा है " +chaar-suu-hai-badii-vahshat-kaa-samaan-fahmida-riaz-ghazals," +चार-सू है बड़ी वहशत का समाँ +किसी आसेब का साया है यहाँ +कोई आवाज़ सी है मर्सियाँ-ख़्वाँ +शहर का शहर बना गोरिस्ताँ +एक मख़्लूक़ जो बस्ती है यहाँ +जिस पे इंसाँ का गुज़रता है गुमाँ +ख़ुद तो साकित है मिसाल-ए-तस्वीर +जुम्बिश-ए-ग़ैर से है रक़्स-कुनाँ +कोई चेहरा नहीं जुज़ ज़ेर-ए-नक़ाब +न कोई जिस्म है जुज़ बे-दिल-ओ-जाँ +उलमा हैं दुश्मन-ए-फ़हम-ओ-तहक़ीक़ +कोदनी शेवा-ए-दानिश-मंदाँ +शाइ'र-ए-क़ौम पे बन आई है +किज़्ब कैसे हो तसव्वुफ़ में निहाँ +लब हैं मसरूफ़-ए-क़सीदा-गोई +और आँखों में है ज़िल्लत उर्यां +सब्ज़ ख़त आक़िबत-ओ-दीं के असीर +पारसा ख़ुश-तन-ओ-नौ-ख़ेज़ जवाँ +ये ज़न-ए-नग़्मा-गर-ओ-इश्क़-शिआ'र +यास-ओ-हसरत से हुई है हैराँ +किस से अब आरज़ू-ए-वस्ल करें +इस ख़राबे में कोई मर्द कहाँ " +zakhm-jhele-daag-bhii-khaae-bahut-meer-taqi-meer-ghazals," +ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत +दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत +जब न तब जागह से तुम जाया किए +हम तो अपनी ओर से आए बहुत +दैर से सू-ए-हरम आया न टुक +हम मिज़ाज अपना इधर लाए बहुत +फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे +पर हमें इन में तुम्हीं भाए बहुत +गर बुका इस शोर से शब को है तो +रोवेंगे सोने को हम-साए बहुत +वो जो निकला सुब्ह जैसे आफ़्ताब +रश्क से गुल फूल मुरझाए बहुत +'मीर' से पूछा जो मैं आशिक़ हो तुम +हो के कुछ चुपके से शरमाए बहुत " +kyaa-kahuun-tum-se-main-ki-kyaa-hai-ishq-meer-taqi-meer-ghazals," +क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़ +जान का रोग है बला है इश्क़ +इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो +सारे आलम में भर रहा है इश्क़ +इश्क़ है तर्ज़ ओ तौर इश्क़ के तईं +कहीं बंदा कहीं ख़ुदा है इश्क़ +इश्क़ मा'शूक़ इश्क़ आशिक़ है +या'नी अपना ही मुब्तला है इश्क़ +गर परस्तिश ख़ुदा की साबित की +किसू सूरत में हो भला है इश्क़ +दिलकश ऐसा कहाँ है दुश्मन-ए-जाँ +मुद्दई है प मुद्दआ है इश्क़ +है हमारे भी तौर का आशिक़ +जि��� किसी को कहीं हुआ है इश्क़ +कोई ख़्वाहाँ नहीं मोहब्बत का +तू कहे जिंस-ए-ना-रवा है इश्क़ +'मीर'-जी ज़र्द होते जाते हो +क्या कहीं तुम ने भी किया है इश्क़ " +mir-taqi-mir-ghazals-5," +आगे जमाल-ए-यार के मा'ज़ूर हो गया +गुल इक चमन में दीदा-ए-बेनूर हो गया +इक चश्म-ए-मुंतज़र है कि देखे है कब से राह +जों ज़ख़्म तेरी दूरी में नासूर हो गया +क़िस्मत तो देख शैख़ को जब लहर आई तब +दरवाज़ा शीरा ख़ाने का मा'मूर हो गया +पहुँचा क़रीब मर्ग के वो सैद-ए-ना-क़ुबूल +जो तेरी सैद-ए-गाह से टक दूर हो गया +देखा ये नाव-नोश कि नीश-ए-फ़िराक़ से +सीना तमाम ख़ाना-ए-ज़ंबूर हो गया +इस माह-ए-चारदह का छपे इश्क़ क्यूँके आह +अब तो तमाम शहर में मशहूर हो गया +शायद कसो के दिल को लगी उस गली में चोट +मेरी बग़ल में शीशा-ए-दिल चूर हो गया +लाशा मिरा तसल्ली न ज़ेर-ए-ज़मीं हुआ +जब तक न आन कर वो सर-ए-गोर हो गया +देखा जो मैं ने यार तो वो 'मीर' ही नहीं +तेरे ग़म-ए-फ़िराक़ में रंजूर हो गया " +hamaare-aage-tiraa-jab-kisuu-ne-naam-liyaa-meer-taqi-meer-ghazals," +हमारे आगे तिरा जब किसू ने नाम लिया +दिल-ए-सितम-ज़दा को हम ने थाम थाम लिया +क़सम जो खाइए तो ताला-ए-ज़ुलेख़ा की +अज़ीज़-ए-मिस्र का भी साहब इक ग़ुलाम लिया +ख़राब रहते थे मस्जिद के आगे मय-ख़ाने +निगाह-ए-मस्त ने साक़ी की इंतिक़ाम लिया +वो कज-रविश न मिला रास्ते में मुझ से कभी +न सीधी तरह से उन ने मिरा सलाम लिया +मज़ा दिखावेंगे बे-रहमी का तिरी सय्याद +गर इज़्तिराब-ए-असीरी ने ज़ेर-ए-दाम लिया +मिरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में +तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया +अगरचे गोशा-गुज़ीं हूँ मैं शाइरों में 'मीर' +प मेरे शोर ने रू-ए-ज़मीं तमाम लिया " +jab-naam-tiraa-liijiye-tab-chashm-bhar-aave-mir-taqi-mir-ghazals," +जब नाम तिरा लीजिए तब चश्म भर आवे +इस ज़िंदगी करने को कहाँ से जिगर आवे +तलवार का भी मारा ख़ुदा रक्खे है ज़ालिम +ये तो हो कोई गोर-ए-ग़रीबाँ में दर आवे +मय-ख़ाना वो मंज़र है कि हर सुब्ह जहाँ शैख़ +दीवार पे ख़ुर्शीद का मस्ती से सर आवे +क्या जानें वे मुर्ग़ान-ए-गिरफ़्तार-ए-चमन को +जिन तक कि ब-सद-नाज़ नसीम-ए-सहर आवे +तू सुब्ह क़दम-रंजा करे टुक तो है वर्ना +किस वास्ते आशिक़ की शब-ए-ग़म बसर आवे +हर सू सर-ए-तस्लीम रखे सैद-ए-हरम हैं +वो सैद-फ़गन तेग़-ब-कफ़ ता किधर आवे +दीवारों से सर मारते फिरने का गया वक़्त +अब तू ही मगर आप कभू दर से दर आवे +वाइ'ज़ नहीं कैफ़िय्यत-ए-मय-ख़ाना से आगाह +यक जुरआ बदल वर्ना ये मिंदील ��र आवे +सन्नाअ हैं सब ख़्वार अज़ाँ जुमला हूँ मैं भी +है ऐब बड़ा उस में जिसे कुछ हुनर आवे +ऐ वो कि तू बैठा है सर-ए-राह पे ज़िन्हार +कहियो जो कभू 'मीर' बला-कश इधर आवे +मत दश्त-ए-मोहब्बत में क़दम रख कि ख़िज़र को +हर गाम पे इस रह में सफ़र से हज़र आवे " +banii-thii-kuchh-ik-us-se-muddat-ke-baad-mir-taqi-mir-ghazals," +बनी थी कुछ इक उस से मुद्दत के बाद +सो फिर बिगड़ी पहली ही सोहबत के बाद +जुदाई के हालात मैं क्या कहूँ +क़यामत थी एक एक साअत के बाद +मुआ कोहकन बे-सुतूँ खोद कर +ये राहत हुई ऐसी मेहनत के बाद +लगा आग पानी को दौड़े है तू +ये गर्मी तिरी इस शरारत के बाद +कहे को हमारे कब उन ने सुना +कोई बात मानी सो मिन्नत के बाद +सुख़न की न तकलीफ़ हम से करो +लहू टपके है अब शिकायत के बाद +नज़र 'मीर' ने कैसी हसरत से की +बहुत रोए हम उस की रुख़्सत के बाद " +jiite-jii-kuucha-e-dildaar-se-jaayaa-na-gayaa-mir-taqi-mir-ghazals," +जीते-जी कूचा-ए-दिलदार से जाया न गया +उस की दीवार का सर से मिरे साया न गया +काव-कावे मिज़ा-ए-यार ओ दिल-ए-ज़ार-ओ-नज़ार +गुथ गए ऐसे शिताबी कि छुड़ाया न गया +वो तो कल देर तलक देखता ईधर को रहा +हम से ही हाल-ए-तबाह अपना दिखाया न गया +गर्म-रौ राह-ए-फ़ना का नहीं हो सकता पतंग +उस से तो शम्अ-नमत सर भी कटाया न गया +पास-ए-नामूस-ए-मोहब्बत था कि फ़रहाद के पास +बे-सुतूँ सामने से अपने उठाया न गया +ख़ाक तक कूचा-ए-दिलदार की छानी हम ने +जुस्तुजू की पे दिल-ए-गुम-शुदा पाया न गया +आतिश-ए-तेज़ जुदाई में यकायक उस बिन +दिल जला यूँ कि तनिक जी भी जलाया न गया +मह ने आ सामने शब याद दिलाया था उसे +फिर वो ता सुब्ह मिरे जी से भुलाया न गया +ज़ेर-ए-शमशीर-ए-सितम 'मीर' तड़पना कैसा +सर भी तस्लीम-ए-मोहब्बत में हिलाया न गया +जी में आता है कि कुछ और भी मौज़ूँ कीजे +दर्द-ए-दिल एक ग़ज़ल में तो सुनाया न गया " +aarzuuen-hazaar-rakhte-hain-mir-taqi-mir-ghazals," +आरज़ूएँ हज़ार रखते हैं +तो भी हम दिल को मार रखते हैं +बर्क़ कम-हौसला है हम भी तो +दिल को बे-क़रार रखते हैं +ग़ैर ही मूरिद-ए-इनायत है +हम भी तो तुम से प्यार रखते हैं +न निगह ने पयाम ने वादा +नाम को हम भी यार रखते हैं +हम से ख़ुश-ज़मज़मा कहाँ यूँ तो +लब ओ लहजा हज़ार रखते हैं +चोट्टे दिल के हैं बुताँ मशहूर +बस यही ए'तिबार रखते हैं +फिर भी करते हैं 'मीर' साहब इश्क़ +हैं जवाँ इख़्तियार रखते हैं " +ishq-hamaare-khayaal-padaa-hai-khvaab-gaii-aaraam-gayaa-mir-taqi-mir-ghazals," +इश्क़ हमारे ख़याल पड़ा है ख़्वाब गई आराम गया +जी का जाना ठहर रहा है सुब्ह गया या शाम गया +इश्क़ किया सो दीन गया ईमान गया इस्लाम गया +दिल ने ऐसा काम किया कुछ जिस से मैं नाकाम गया +किस किस अपनी कल को रोवे हिज्राँ में बेकल उस का +ख़्वाब गई है ताब गई है चैन गया आराम गया +आया याँ से जाना ही तो जी का छुपाना क्या हासिल +आज गया या कल जावेगा सुब्ह गया या शाम गया +हाए जवानी क्या क्या कहिए शोर सरों में रखते थे +अब क्या है वो अहद गया वो मौसम वो हंगाम गया +गाली झिड़की ख़श्म-ओ-ख़ुशूनत ये तो सर-ए-दस्त अक्सर हैं +लुत्फ़ गया एहसान गया इनआ'म गया इकराम गया +लिखना कहना तर्क हुआ था आपस में तो मुद्दत से +अब जो क़रार किया है दिल से ख़त भी गया पैग़ाम गया +नाला-ए-मीर सवाद में हम तक दोशीं शब से नहीं आया +शायद शहर से उस ज़ालिम के आशिक़ वो बदनाम गया " +thaa-mustaaar-husn-se-us-ke-jo-nuur-thaa-meer-taqi-meer-ghazals," +था मुस्तआर हुस्न से उस के जो नूर था +ख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़ुहूर था +हंगामा गर्म-कुन जो दिल-ए-ना-सुबूर था +पैदा हर एक नाले से शोर-ए-नुशूर था +पहुँचा जो आप को तो मैं पहुँचा ख़ुदा के तईं +मालूम अब हुआ कि बहुत मैं भी दूर था +आतिश बुलंद दिल की न थी वर्ना ऐ कलीम +यक शो'ला बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-सद-कोह-ए-तूर था +मज्लिस में रात एक तिरे परतवे बग़ैर +क्या शम्अ क्या पतंग हर इक बे-हुज़ूर था +उस फ़स्ल में कि गुल का गरेबाँ भी है हवा +दीवाना हो गया सो बहुत ज़ी-शुऊर था +मुनइ'म के पास क़ाक़ुम ओ संजाब था तो क्या +उस रिंद की भी रात गुज़र गई जो ऊर था +हम ख़ाक में मिले तो मिले लेकिन ऐ सिपहर +उस शोख़ को भी राह पे लाना ज़रूर था +कल पाँव एक कासा-ए-सर पर जो आ गया +यकसर वो उस्तुख़्वान शिकस्तों से चूर था +कहने लगा कि देख के चल राह बे-ख़बर +मैं भी कभू किसू का सर-ए-पुर-ग़ुरूर था +था वो तो रश्क-ए-हूर-ए-बहिश्ती हमीं में 'मीर' +समझे न हम तो फ़हम का अपनी क़ुसूर था " +ashk-aankhon-men-kab-nahiin-aataa-mir-taqi-mir-ghazals," +अश्क आँखों में कब नहीं आता +लोहू आता है जब नहीं आता +होश जाता नहीं रहा लेकिन +जब वो आता है तब नहीं आता +सब्र था एक मोनिस-ए-हिज्राँ +सो वो मुद्दत से अब नहीं आता +दिल से रुख़्सत हुई कोई ख़्वाहिश +गिर्या कुछ बे-सबब नहीं आता +इश्क़ को हौसला है शर्त अर्ना +बात का किस को ढब नहीं आता +जी में क्या क्या है अपने ऐ हमदम +पर सुख़न ता-ब-लब नहीं आता +दूर बैठा ग़ुबार-ए-'मीर' उस से +इश्क़ बिन ये अदब नहीं आता " +us-kaa-khayaal-chashm-se-shab-khvaab-le-gayaa-mir-taqi-mir-ghazals," +उस का ख़याल चश्म से शब ख़्वाब ले गया +क़स्मे कि इश्क़ जी से मिरे ताब ले गया +किन नीं���ों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक +मिज़्गाँ तो खोल शहर को सैलाब ले गया +आवे जो मस्तबा में तो सुन लो कि राह से +वाइज़ को एक जाम-ए-मय-ए-नाब ले गया +ने दिल रहा बजा है न सब्र ओ हवास ओ होश +आया जो सैल-ए-इश्क़ सब अस्बाब ले गया +मेरे हुज़ूर शम्अ ने गिर्या जो सर किया +रोया मैं इस क़दर कि मुझे आब ले गया +अहवाल उस शिकार ज़ुबूँ का है जाए रहम +जिस ना-तवाँ को मुफ़्त न क़स्साब ले गया +मुँह की झलक से यार के बेहोश हो गए +शब हम को 'मीर' परतव-ए-महताब ले गया " +kuchh-mauj-e-havaa-pechaan-ai-miir-nazar-aaii-mir-taqi-mir-ghazals," +कुछ मौज-ए-हवा पेचाँ ऐ 'मीर' नज़र आई +शायद कि बहार आई ज़ंजीर नज़र आई +दिल्ली के न थे कूचे औराक़-ए-मुसव्वर थे +जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई +मग़रूर बहुत थे हम आँसू की सरायत पर +सो सुब्ह के होने को तासीर नज़र आई +गुल-बार करे हैगा असबाब-ए-सफ़र शायद +ग़ुंचे की तरह बुलबुल दिल-गीर नज़र आई +उस की तो दिल-आज़ारी बे-हेच ही थी यारो +कुछ तुम को हमारी भी तक़्सीर नज़र आई " +hastii-apnii-habaab-kii-sii-hai-meer-taqi-meer-ghazals," +हस्ती अपनी हबाब की सी है +ये नुमाइश सराब की सी है +नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए +पंखुड़ी इक गुलाब की सी है +चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम पर +याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है +बार बार उस के दर पे जाता हूँ +हालत अब इज़्तिराब की सी है +नुक़्ता-ए-ख़ाल से तिरा अबरू +बैत इक इंतिख़ाब की सी है +मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़ +उसी ख़ाना-ख़राब की सी है +आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद +देर से बू कबाब की सी है +देखिए अब्र की तरह अब के +मेरी चश्म-ए-पुर-आब की सी है +'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में +सारी मस्ती शराब की सी है " +aah-jis-vaqt-sar-uthaatii-hai-mir-taqi-mir-ghazals," +आह जिस वक़्त सर उठाती है +अर्श पर बर्छियाँ चलाती है +नाज़-बरदार-ए-लब है जाँ जब से +तेरे ख़त की ख़बर को पाती है +ऐ शब-ए-हिज्र रास्त कह तुझ को +बात कुछ सुब्ह की भी आती है +चश्म-ए-बद्दूर-चश्म-ए-तर ऐ 'मीर' +आँखें तूफ़ान को दिखाती है " +umr-bhar-ham-rahe-sharaabii-se-mir-taqi-mir-ghazals," +उम्र भर हम रहे शराबी से +दिल-ए-पुर-ख़ूँ की इक गुलाबी से +जी ढहा जाए है सहर से आह +रात गुज़रेगी किस ख़राबी से +खिलना कम कम कली ने सीखा है +उस की आँखों की नीम-ख़्वाबी से +बुर्क़ा उठते ही चाँद सा निकला +दाग़ हूँ उस की बे-हिजाबी से +काम थे इश्क़ में बहुत पर 'मीर' +हम ही फ़ारिग़ हुए शिताबी से " +chalte-ho-to-chaman-ko-chaliye-kahte-hain-ki-bahaaraan-hai-meer-taqi-meer-ghazals," +चलते हो तो चमन को चलिए कहते हैं कि बहाराँ है +पात हरे हैं फूल खिले हैं कम-कम बाद-ओ-बाराँ है +रंग हवा से यूँ टपके है जैसे शराब चुवाते हैं +आगे हो मय-ख़ाने के निकलो अहद-ए-बादा-गुसाराँ है +इश्क़ के मैदाँ-दारों में भी मरने का है वस्फ़ बहुत +या'नी मुसीबत ऐसी उठाना कार-ए-कार-गुज़ाराँ है +दिल है दाग़ जिगर है टुकड़े आँसू सारे ख़ून हुए +लोहू पानी एक करे ये इश्क़-ए-लाला-अज़ाराँ है +कोहकन ओ मजनूँ की ख़ातिर दश्त-ओ-कोह में हम न गए +इश्क़ में हम को 'मीर' निहायत पास-ए-इज़्ज़त-दाराँ है " +mir-taqi-mir-ghazals-76," +आह-ए-सहर ने सोज़िश-ए-दिल को मिटा दिया +उस बाव ने हमें तो दिया सा बुझा दिया +समझी न बाद सुब्ह कि आ कर उठा दिया +इस फ़ित्ना-ए-ज़माना को नाहक़ जगा दिया +पोशीदा राज़-ए-इश्क़ चला जाए था सौ आज +बे-ताक़ती ने दिल की वो पर्दा उठा दिया +उस मौज-ख़ेज़ दहर में हम को क़ज़ा ने आह +पानी के बुलबुले की तरह से मिटा दिया +थी लाग उस की तेग़ को हम से सौ इश्क़ ने +दोनों को मा'रके में गले से मिला दिया +सब शोर-ए-मा-ओ-मन को लिए सर में मर गए +यारों को इस फ़साने ने आख़िर सुला दिया +आवारगान-ए-इश्क़ का पूछा जो मैं निशाँ +मुश्त-ए-ग़ुबार ले के सबा ने उड़ा दिया +अज्ज़ा बदन के जितने थे पानी हो बह गए +आख़िर गुदाज़ इश्क़ ने हम को बहा दिया +क्या कुछ न था अज़ल में न ताला जो थे दुरुस्त +हम को दिल-शिकस्ता क़ज़ा ने दिला दिया +गोया मुहासबा मुझे देना था इश्क़ का +उस तौर दिल सी चीज़ को मैं ने लगा दिया +मुद्दत रहेगी याद तिरे चेहरे की झलक +जल्वे को जिस ने माह के जी से भुला दिया +हम ने तो सादगी से क्या जी का भी ज़ियाँ +दिल जो दिया था सो तो दिया सर जुदा दिया +बोई कबाब सोख़्ता आई दिमाग़ में +शायद जिगर भी आतिश-ए-ग़म ने जिला दिया +तकलीफ़ दर्द-ए-दिल की अबस हम-नशीं ने की +दर्द-ए-सुख़न ने मेरे सभों को रुला दिया +उन ने तो तेग़ खींची थी पर जी चला के 'मीर' +हम ने भी एक दम में तमाशा दिखा दिया " +ultii-ho-gaiin-sab-tadbiiren-kuchh-na-davaa-ne-kaam-kiyaa-meer-taqi-meer-ghazals," +उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया +देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया +अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद +या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया +हर्फ़ नहीं जाँ-बख़्शी में उस की ख़ूबी अपनी क़िस्मत की +हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया +नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की +चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया +सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं +बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का त��झ को इमाम किया +सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई +कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया +किस का काबा कैसा क़िबला कौन हरम है क्या एहराम +कूचे के उस के बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया +शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में +जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया +काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल है +आँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया +याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना है +रात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया +सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी +रुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया +साअद-ए-सीमीं दोनों उस के हाथ में ला कर छोड़ दिए +भूले उस के क़ौल-ओ-क़सम पर हाए ख़याल-ए-ख़ाम किया +काम हुए हैं सारे ज़ाएअ' हर साअ'त की समाजत से +इस्तिग़्ना की चौगुनी उन ने जूँ जूँ मैं इबराम किया +ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी +सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया +'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो +क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया " +ham-aap-hii-ko-apnaa-maqsuud-jaante-hain-mir-taqi-mir-ghazals," +हम आप ही को अपना मक़्सूद जानते हैं +अपने सिवाए किस को मौजूद जानते हैं +इज्ज़-ओ-नियाज़ अपना अपनी तरफ़ है सारा +इस मुश्त-ए-ख़ाक को हम मस्जूद जानते हैं +सूरत-पज़ीर हम बिन हरगिज़ नहीं वे माने +अहल-ए-नज़र हमीं को मा'बूद जानते हैं +इश्क़ उन की अक़्ल को है जो मा-सिवा हमारे +नाचीज़ जानते हैं ना-बूद जानते हैं +अपनी ही सैर करने हम जल्वा-गर हुए थे +इस रम्ज़ को व-लेकिन मादूद जानते हैं +यारब कसे है नाक़ा हर ग़ुंचा इस चमन का +राह-ए-वफ़ा को हम तो मसदूद जानते हैं +ये ज़ुल्म-ए-बे-निहायत दुश्वार-तर कि ख़ूबाँ +बद-वज़इयों को अपनी महमूद जानते हैं +क्या जाने दाब सोहबत अज़ ख़्वेश रफ़्तगाँ का +मज्लिस में शैख़-साहिब कुछ कूद जानते हैं +मर कर भी हाथ आवे तो 'मीर' मुफ़्त है वो +जी के ज़ियान को भी हम सूद जानते हैं " +lazzat-se-nahiin-khaalii-jaanon-kaa-khapaa-jaanaa-mir-taqi-mir-ghazals," +लज़्ज़त से नहीं ख़ाली जानों का खपा जाना +कब ख़िज़्र ओ मसीहा ने मरने का मज़ा जाना +हम जाह-ओ-हशम याँ का क्या कहिए कि क्या जाना +ख़ातिम को सुलैमाँ की अंगुश्तर-ए-पा जाना +ये भी है अदा कोई ख़ुर्शीद नमत प्यारे +मुँह सुब्ह दिखा जाना फिर शाम छुपा जाना +कब बंदगी मेरी सी बंदा करेगा कोई +जाने है ख़ुदा उस को मैं तुझ को ख़ुदा जाना +था नाज़ बहुत हम को दानिस्त पर अपनी भी +आख़िर वो बुरा निकला हम जिस को भला जाना +गर्दन-कशी क्या हासिल मानिंद बगूले की +इस दश्त में सर गाड़े जूँ सैल चला जाना +इस गिर्या-ए-ख़ूनीं का हो ज़ब्त तो बेहतर है +अच्छा नहीं चेहरे पर लोहू का बहा जाना +ये नक़्श दिलों पर से जाने का नहीं उस को +आशिक़ के हुक़ूक़ आ कर नाहक़ भी मिटा जाना +ढब देखने का ईधर ऐसा ही तुम्हारा था +जाते तो हो पर हम से टुक आँख मिला जाना +उस शम्अ की मज्लिस में जाना हमें फिर वाँ से +इक ज़ख़्म-ए-ज़बाँ ताज़ा हर रोज़ उठा जाना +ऐ शोर-ए-क़यामत हम सोते ही न रह जावें +इस राह से निकले तो हम को भी जगा जाना +क्या पानी के मोल आ कर मालिक ने गुहर बेचा +है सख़्त गिराँ सस्ता यूसुफ़ का बिका जाना +है मेरी तिरी निस्बत रूह और जसद की सी +कब आप से मैं तुझ को ऐ जान जुदा जाना +जाती है गुज़र जी पर उस वक़्त क़यामत सी +याद आवे है जब तेरा यक-बारगी आ जाना +बरसों से मिरे उस की रहती है यही सोहबत +तेग़ उस को उठाना तो सर मुझ को झुका जाना +कब 'मीर' बसर आए तुम वैसे फ़रेबी से +दिल को तो लगा बैठे लेकिन न लगा जाना " +baaten-hamaarii-yaad-rahen-phir-baaten-aisii-na-suniyegaa-meer-taqi-meer-ghazals," +बातें हमारी याद रहें फिर बातें ऐसी न सुनिएगा +पढ़ते किसू को सुनिएगा तो देर तलक सर धुनिएगा +सई ओ तलाश बहुत सी रहेगी इस अंदाज़ के कहने की +सोहबत में उलमा फ़ुज़ला की जा कर पढ़िए गिनयेगा +दिल की तसल्ली जब कि होगी गुफ़्त ओ शुनूद से लोगों की +आग फुंकेगी ग़म की बदन में उस में जलिए भुनिएगा +गर्म अशआर 'मीर' दरूना दाग़ों से ये भर देंगे +ज़र्द-रू शहर में फिरिएगा गलियों में ने गुल चुनिएगा " +yaaro-mujhe-muaaf-rakho-main-nashe-men-huun-mir-taqi-mir-ghazals," +यारो मुझे मुआ'फ़ रखो मैं नशे में हूँ +अब दो तो जाम ख़ाली ही दो मैं नशे में हूँ +एक एक क़ुर्त दौर में यूँ ही मुझे भी दो +जाम-ए-शराब पुर न करो मैं नशे में हूँ +मस्ती से दरहमी है मिरी गुफ़्तुगू के बीच +जो चाहो तुम भी मुझ को कहो मैं नशे में हूँ +या हाथों हाथ लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय +या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ +मा'ज़ूर हूँ जो पाँव मिरा बे-तरह पड़े +तुम सरगिराँ तो मुझ से न हो मैं नशे में हूँ +भागी नमाज़-ए-जुमा तो जाती नहीं है कुछ +चलता हूँ मैं भी टुक तो रहो मैं नशे में हूँ +नाज़ुक-मिज़ाज आप क़यामत हैं 'मीर' जी +जूँ शीशा मेरे मुँह न लगो मैं नशे में हूँ " +aae-hain-miir-kaafir-ho-kar-khudaa-ke-ghar-men-mir-taqi-mir-ghazals," +आए हैं 'मीर' काफ़िर हो कर ख़ुदा के घर में +पेशानी पर है क़श्क़ा ज़ुन्नार है कमर में +नाज़ुक बदन है कितना वो शोख़-चश्म दिलबर +जान उस के तन के आगे आती नहीं नज़र में +सीने में तीर उस के टूटे हैं बे-निहायत +सुराख़ पड़ गए हैं सारे मिरे जिगर में +आइंदा शाम को हम रोया कुढ़ा करेंगे +मुतलक़ असर न देखा नालीदन-ए-सहर में +बे-सुध पड़ा रहूँ हूँ उस मस्त-ए-नाज़ बिन मैं +आता है होश मुझ को अब तो पहर पहर में +सीरत से गुफ़्तुगू है क्या मो'तबर है सूरत +है एक सूखी लकड़ी जो बू न हो अगर में +हम-साया-ए-मुग़ाँ में मुद्दत से हूँ चुनाँचे +इक शीरा-ख़ाने की है दीवार मेरे घर में +अब सुब्ह ओ शाम शायद गिर्ये पे रंग आवे +रहता है कुछ झमकता ख़ूनाब चश्म-ए-तर में +आलम में आब-ओ-गिल के क्यूँकर निबाह होगा +अस्बाब गिर पड़ा है सारा मिरा सफ़र में " +sher-ke-parde-men-main-ne-gam-sunaayaa-hai-bahut-mir-taqi-mir-ghazals," +शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत +मरसिए ने दिल के मेरे भी रुलाया है बहुत +बे-सबब आता नहीं अब दम-ब-दम आशिक़ को ग़श +दर्द खींचा है निहायत रंज उठाया है बहुत +वादी ओ कोहसार में रोता हूँ ड़ाढें मार मार +दिलबरान-ए-शहर ने मुझ को सताया है बहुत +वा नहीं होता किसू से दिल गिरफ़्ता इश्क़ का +ज़ाहिरन ग़मगीं उसे रहना ख़ुश आया है बहुत +'मीर' गुम-गश्ता का मिलना इत्तिफ़ाक़ी अम्र है +जब कभू पाया है ख़्वाहिश-मंद पाया है बहुत " +faqiiraana-aae-sadaa-kar-chale-meer-taqi-meer-ghazals," +फ़क़ीराना आए सदा कर चले +कि म्याँ ख़ुश रहो हम दुआ कर चले +जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम +सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले +शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी +कि मक़्दूर तक तो दवा कर चले +पड़े ऐसे अस्बाब पायान-ए-कार +कि नाचार यूँ जी जला कर चले +वो क्या चीज़ है आह जिस के लिए +हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले +कोई ना-उमीदाना करते निगाह +सो तुम हम से मुँह भी छुपा कर चले +बहुत आरज़ू थी गली की तिरी +सो याँ से लहू में नहा कर चले +दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया +हमें आप से भी जुदा कर चले +जबीं सज्दा करते ही करते गई +हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले +परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे +नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले +झड़े फूल जिस रंग गुलबुन से यूँ +चमन में जहाँ के हम आ कर चले +न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है +हमीं दाग़ अपना दिखा कर चले +गई उम्र दर-बंद-ए-फ़िक्र-ए-ग़ज़ल +सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले +कहें क्या जो पूछे कोई हम से 'मीर' +जहाँ में तुम आए थे क्या कर चले " +chaman-men-gul-ne-jo-kal-daava-e-jamaal-kiyaa-meer-taqi-meer-ghazals," +चमन में गुल ने जो कल दावा-ए-जमाल किया +जमाल-ए-यार ने मुँह उस का ख़ूब लाल किया +फ़लक ने आह तिरी रह में हम को पैदा कर +ब-रंग-ए-सब्ज़-ए-नूरस्ता पाएमाल किया +रही थी दम की कशाकश गले में कुछ बाक़ी +सो उस की तेग़ ने झगड़ा ही इंफ़िसाल किया +मिरी अब आँखें नहीं खुलतीं ज़ोफ़ से हमदम +न कह कि नींद में है तू ये क्या ख़याल किया +बहार-ए-रफ़्ता फिर आई तिरे तमाशे को +चमन को युम्न-ए-क़दम ने तिरे निहाल किया +जवाब-नामा सियाही का अपनी है वो ज़ुल्फ़ +किसू ने हश्र को हम से अगर सवाल किया +लगा न दिल को कहीं क्या सुना नहीं तू ने +जो कुछ कि 'मीर' का इस आशिक़ी ने हाल किया " +mir-taqi-mir-ghazals-80," +आए हैं 'मीर' मुँह को बनाए ख़फ़ा से आज +शायद बिगड़ गई है कुछ उस बेवफ़ा से आज +वाशुद हुई न दिल को फ़क़ीरों के भी मिले +खुलती नहीं गिरह ये कसू की दुआ से आज +जीने में इख़्तियार नहीं वर्ना हम-नशीं +हम चाहते हैं मौत तो अपनी ख़ुदा से आज +साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख +टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज +था जी में उस से मिलिए तो क्या क्या न कहिए 'मीर' +पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज " +jis-sar-ko-guruur-aaj-hai-yaan-taaj-varii-kaa-meer-taqi-meer-ghazals," +जिस सर को ग़ुरूर आज है याँ ताज-वरी का +कल उस पे यहीं शोर है फिर नौहागरी का +शर्मिंदा तिरे रुख़ से है रुख़्सार परी का +चलता नहीं कुछ आगे तिरे कब्क-ए-दरी का +आफ़ाक़ की मंज़िल से गया कौन सलामत +अस्बाब लुटा राह में याँ हर सफ़री का +ज़िंदाँ में भी शोरिश न गई अपने जुनूँ की +अब संग मुदावा है इस आशुफ़्ता-सरी का +हर ज़ख़्म-ए-जिगर दावर-ए-महशर से हमारा +इंसाफ़-तलब है तिरी बेदाद-गरी का +अपनी तो जहाँ आँख लड़ी फिर वहीं देखो +आईने को लपका है परेशाँ-नज़री का +सद मौसम-ए-गुल हम को तह-ए-बाल ही गुज़रे +मक़्दूर न देखा कभू बे-बाल-ओ-परी का +इस रंग से झमके है पलक पर कि कहे तू +टुकड़ा है मिरा अश्क अक़ीक़-ए-जिगरी का +कल सैर किया हम ने समुंदर को भी जा कर +था दस्त-ए-निगर पंजा-ए-मिज़्गाँ की तरी का +ले साँस भी आहिस्ता कि नाज़ुक है बहुत काम +आफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का +टुक 'मीर'-ए-जिगर-सोख़्ता की जल्द ख़बर ले +क्या यार भरोसा है चराग़-ए-सहरी का " +kyaa-haqiiqat-kahuun-ki-kyaa-hai-ishq-meer-taqi-meer-ghazals," +क्या हक़ीक़त कहूँ कि क्या है इश्क़ +हक़-शनासों के हाँ ख़ुदा है इश्क़ +दिल लगा हो तो जी जहाँ से उठा +मौत का नाम प्यार का है इश्क़ +और तदबीर को नहीं कुछ दख़्ल +इश्क़ के दर्द की दवा है इश्क़ +क्या डुबाया मुहीत में ग़म के +हम ने जाना था आश्ना है इश्क़ +इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली +दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़ +कोहकन क्या पहाड़ काटेगा +पर्दे में ज़ोर-आज़मा है इश्क़ +इश्क़ है इश्क़ करने वालों को +कैसा कैसा बहम किया है इश्क़ +कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुँचा +आरज़ू इश्क़ मुद्दआ है इश्क़ +'मीर' मरना पड़े है ख़ूबाँ पर +इश्क़ मत कर कि बद बला है इश्क़ " +ishq-men-zillat-huii-khiffat-huii-tohmat-huii-mir-taqi-mir-ghazals," +इश्क़ में ज़िल्लत हुई ख़िफ़्फ़त हुई तोहमत हुई +आख़िर आख़िर जान दी यारों ने ये सोहबत हुई +अक्स उस बे-दीद का तो मुत्तसिल पड़ता था सुब्ह +दिन चढ़े क्या जानूँ आईने की क्या सूरत हुई +लौह-ए-सीना पर मिरी सौ नेज़ा-ए-ख़त्ती लगे +ख़स्तगी इस दिल-शिकस्ता की इसी बाबत हुई +खोलते ही आँखें फिर याँ मूँदनी हम को पड़ीं +दीद क्या कोई करे वो किस क़दर मोहलत हुई +पाँव मेरा कल्बा-ए-अहज़ाँ में अब रहता नहीं +रफ़्ता रफ़्ता उस तरफ़ जाने की मुझ को लत हुई +मर गया आवारा हो कर मैं तो जैसे गर्द-बाद +पर जिसे ये वाक़िआ पहुँचा उसे वहशत हुई +शाद ओ ख़ुश-ताले कोई होगा किसू को चाह कर +मैं तो कुल्फ़त में रहा जब से मुझे उल्फ़त हुई +दिल का जाना आज कल ताज़ा हुआ हो तो कहूँ +गुज़रे उस भी सानेहे को हम-नशीं मुद्दत हुई +शौक़-ए-दिल हम ना-तवानों का लिखा जाता है कब +अब तलक आप ही पहुँचने की अगर ताक़त हुई +क्या कफ़-ए-दस्त एक मैदाँ था बयाबाँ इश्क़ का +जान से जब उस में गुज़रे तब हमें राहत हुई +यूँ तो हम आजिज़-तरीन-ए-ख़ल्क़-ए-आलम हैं वले +देखियो क़ुदरत ख़ुदा की गर हमें क़ुदरत हुई +गोश ज़द चट-पट ही मरना इश्क़ में अपने हुआ +किस को इस बीमारी-ए-जाँ-काह से फ़ुर्सत हुई +बे-ज़बाँ जो कहते हैं मुझ को सो चुप रह जाएँगे +मारके में हश्र के गर बात की रुख़्सत हुई +हम न कहते थे कि नक़्श उस का नहीं नक़्क़ाश सहल +चाँद सारा लग गया तब नीम-रुख़ सूरत हुई +इस ग़ज़ल पर शाम से तो सूफ़ियों को वज्द था +फिर नहीं मालूम कुछ मज्लिस की क्या हालत हुई +कम किसू को 'मीर' की मय्यत की हाथ आई नमाज़ +ना'श पर उस बे-सर-ओ-पा की बला कसरत हुई " +ba-rang-e-buu-e-gul-us-baag-ke-ham-aashnaa-hote-mir-taqi-mir-ghazals," +ब-रंग-ए-बू-ए-गुल उस बाग़ के हम आश्ना होते +कि हमराह-ए-सबा टुक सैर करते फिर हवा होते +सरापा आरज़ू होने ने बंदा कर दिया हम को +वगर्ना हम ख़ुदा थे गर दिल-ए-बे-मुद्दआ होते +फ़लक ऐ काश हम को ख़ाक ही रखता कि इस में हम +ग़ुबार-ए-राह होते या कसू की ख़ाक-ए-पा होते +��लाही कैसे होते हैं जिन्हें है बंदगी ख़्वाहिश +हमें तो शर्म दामन-गीर होती है ख़ुदा होते +तू है किस नाहिए से ऐ दयार-ए-इश्क़ क्या जानूँ +तिरे बाशिंदगाँ हम काश सारे बेवफ़ा होते +अब ऐसे हैं कि साने' के मिज़ाज ऊपर बहम पहुँचे +जो ख़ातिर-ख़्वाह अपने हम हुए होते तो क्या होते +कहीं जो कुछ मलामत गर बजा है 'मीर' क्या जानें +उन्हें मा'लूम तब होता कि वैसे से जुदा होते " +mir-taqi-mir-ghazals-82," +आवेगी मेरी क़ब्र से आवाज़ मेरे बा'द +उभरेंगे इश्क़-ए-दिल से तिरे राज़ मेरे बा'द +जीना मिरा तो तुझ को ग़नीमत है ना-समझ +खींचेगा कौन फिर ये तिरे नाज़ मेरे बा'द +शम-ए-मज़ार और ये सोज़-ए-जिगर मिरा +हर शब करेंगे ज़िंदगी ना-साज़ मेरे बा'द +हसरत है इस के देखने की दिल में बे-क़यास +अग़्लब कि मेरी आँखें रहें बाज़ मेरे बा'द +करता हूँ मैं जो नाले सर-अंजाम बाग़ में +मुँह देखो फिर करेंगे हम आवाज़ मेरे बा'द +बिन गुल मुआ ही मैं तो प तू जा के लौटियो +सेहन-ए-चमन में ऐ पर-ए-पर्वाज़ मेरे बा'द +बैठा हूँ 'मीर' मरने को अपने में मुस्तइद +पैदा न होंगे मुझ से भी जाँबाज़ मेरे बा'द " +jab-rone-baithtaa-huun-tab-kyaa-kasar-rahe-hai-mir-taqi-mir-ghazals," +जब रोने बैठता हूँ तब क्या कसर रहे है +रूमाल दो दो दिन तक जूँ अब्र तर रहे है +आह-ए-सहर की मेरी बर्छी के वसवसे से +ख़ुर्शीद के मुँह ऊपर अक्सर सिपर रहे है +आगह तो रहिए उस की तर्ज़-ए-रह-ओ-रविश से +आने में उस के लेकिन किस को ख़बर रहे है +उन रोज़ों इतनी ग़फ़लत अच्छी नहीं इधर से +अब इज़्तिराब हम को दो दो पहर रहे है +आब-ए-हयात की सी सारी रविश है उस की +पर जब वो उठ चले है एक आध मर रहे है +तलवार अब लगा है बे-डोल पास रखने +ख़ून आज कल किसू का वो शोख़ कर रहे है +दर से कभू जो आते देखा है मैं ने उस को +तब से उधर ही अक्सर मेरी नज़र रहे है +आख़िर कहाँ तलक हम इक रोज़ हो चुकेंगे +बरसों से वादा-ए-शब हर सुब्ह पर रहे है +'मीर' अब बहार आई सहरा में चल जुनूँ कर +कोई भी फ़स्ल-ए-गुल में नादान घर रहे है " +aa-jaaen-ham-nazar-jo-koii-dam-bahut-hai-yaan-mir-taqi-mir-ghazals," +आ जाएँ हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ +मोहलत हमें बिसान-ए-शरर कम बहुत है याँ +यक लहज़ा सीना-कोबी से फ़ुर्सत हमें नहीं +यानी कि दिल के जाने का मातम बहुत है याँ +हासिल है क्या सिवाए तराई के दहर में +उठ आसमाँ तले से कि शबनम बहुत है याँ +माइल-ब-ग़ैर होना तुझ अबरू का ऐब है +थी ज़ोर ये कमाँ वले ख़म-चम बहुत है याँ +हम रह-रवान-ए-राह-ए-फ़ना देर रह चुके +वक़्फ़ा बिसान-ए-सुब्ह कोई ��म बहुत है याँ +इस बुत-कदे में मअ'नी का किस से करें सवाल +आदम नहीं है सूरत-ए-आदम बहुत है याँ +आलम में लोग मिलने की गों अब नहीं रहे +हर-चंद ऐसा वैसा तो आलम बहुत है याँ +वैसा चमन से सादा निकलता नहीं कोई +रंगीनी एक और ख़म-ओ-चम बहुत है याँ +एजाज़-ए-ईसवी से नहीं बहस इश्क़ में +तेरी ही बात जान मुजस्सम बहुत है याँ +मेरे हलाक करने का ग़म है अबस तुम्हें +तुम शाद ज़िंदगानी करो ग़म बहुत है याँ +दिल मत लगा रुख़-ए-अरक़-आलूद यार से +आईने को उठा कि ज़मीं नम बहुत है याँ +शायद कि काम सुब्ह तक अपना खिंचे न 'मीर' +अहवाल आज शाम से दरहम बहुत है याँ " +aao-kabhuu-to-paas-hamaare-bhii-naaz-se-mir-taqi-mir-ghazals," +आओ कभू तो पास हमारे भी नाज़ से +करना सुलूक ख़ूब है अहल-ए-नियाज़ से +फिरते हो क्या दरख़्तों के साए में दूर दूर +कर लो मुवाफ़क़त किसू बेबर्ग-ओ-साज़ से +हिज्राँ में उस के ज़िंदगी करना भला न था +कोताही जो न होवे ये उम्र-ए-दराज़ से +मानिंद-ए-सुब्हा उक़दे न दिल के कभू खुले +जी अपना क्यूँ कि उचटे न रोज़े नमाज़ से +करता है छेद छेद हमारा जिगर तमाम +वो देखना तिरा मिज़ा-ए-नीम-बाज़ से +दिल पर हो इख़्तियार तो हरगिज़ न करिए इश्क़ +परहेज़ करिए इस मरज़-ए-जाँ-गुदाज़ से +आगे बिछा के नता को लाते थे तेग़ ओ तश्त +करते थे यानी ख़ून तो इक इम्तियाज़ से +माने हों क्यूँ कि गिर्या-ए-ख़ूनीं के इश्क़ में +है रब्त-ए-ख़ास चश्म को इफ़शा-ए-राज़ से +शायद शराब-ख़ाने में शब को रहे थे 'मीर' +खेले था एक मुग़बचा मोहर-ए-नमाज़ से " +jo-is-shor-se-miir-rotaa-rahegaa-mir-taqi-mir-ghazals," +जो इस शोर से 'मीर' रोता रहेगा +तो हम-साया काहे को सोता रहेगा +मैं वो रोने वाला जहाँ से चला हूँ +जिसे अब्र हर साल रोता रहेगा +मुझे काम रोने से अक्सर है नासेह +तू कब तक मिरे मुँह को धोता रहेगा +बस ऐ गिर्या आँखें तिरी क्या नहीं हैं +कहाँ तक जहाँ को डुबोता रहेगा +मिरे दिल ने वो नाला पैदा किया है +जरस के भी जो होश खोता रहेगा +तू यूँ गालियाँ ग़ैर को शौक़ से दे +हमें कुछ कहेगा तो होता रहेगा +बस ऐ 'मीर' मिज़्गाँ से पोंछ आँसुओं को +तू कब तक ये मोती पिरोता रहेगा " +jin-ke-liye-apne-to-yuun-jaan-nikalte-hain-mir-taqi-mir-ghazals," +जिन के लिए अपने तो यूँ जान निकलते हैं +इस राह में वे जैसे अंजान निकलते हैं +क्या तीर-ए-सितम उस के सीने में भी टूटे थे +जिस ज़ख़्म को चीरूँ हूँ पैकान निकलते हैं +मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों +तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं +किस का है क़िमाश ऐसा गूदड़ भरे हैं सारे +देखो न जो लोगों के दीवान निकलते हैं +गह लोहू टपकता है गह लख़्त-ए-दिल आँखों से +या टुकड़े जिगर ही के हर आन निकलते हैं +करिए तो गिला किस से जैसी थी हमें ख़्वाहिश +अब वैसे ही ये अपने अरमान निकलते हैं +जागह से भी जाते हो मुँह से भी ख़शिन हो कर +वे हर्फ़ नहीं हैं जो शायान निकलते हैं +सो काहे को अपनी तू जोगी की सी फेरी है +बरसों में कभू ईधर हम आन निकलते हैं +उन आईना-रूयों के क्या 'मीर' भी आशिक़ हैं +जब घर से निकलते हैं हैरान निकलते हैं " +dekh-to-dil-ki-jaan-se-uthtaa-hai-mir-taqi-mir-ghazals," +देख तो दिल कि जाँ से उठता है +ये धुआँ सा कहाँ से उठता है +गोर किस दिलजले की है ये फ़लक +शोला इक सुब्ह याँ से उठता है +ख़ाना-ए-दिल से ज़ीनहार न जा +कोई ऐसे मकाँ से उठता है +नाला सर खींचता है जब मेरा +शोर इक आसमाँ से उठता है +लड़ती है उस की चश्म-ए-शोख़ जहाँ +एक आशोब वाँ से उठता है +सुध ले घर की भी शोला-ए-आवाज़ +दूद कुछ आशियाँ से उठता है +बैठने कौन दे है फिर उस को +जो तिरे आस्ताँ से उठता है +यूँ उठे आह उस गली से हम +जैसे कोई जहाँ से उठता है +इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है +कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है " +pattaa-pattaa-buutaa-buutaa-haal-hamaaraa-jaane-hai-meer-taqi-meer-ghazals," +पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है +जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है +लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक +उस को फ़लक चश्म-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है +आगे उस मुतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं +कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा जाने है +आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में +जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है +चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं +वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है +क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्याद बचा +ताइर उड़ते हवा में सारे अपने असारा जाने है +मेहर ओ वफ़ा ओ लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं +और तो सब कुछ तंज़ ओ किनाया रम्ज़ ओ इशारा जाने है +क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना +जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है +रख़नों से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा यानी +इन सुराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है +तिश्ना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्ख़ी-कश +दुम-दार आब-ए-तेग़ को उस के आब-ए-गवारा जाने है " +is-ahd-men-ilaahii-mohabbat-ko-kyaa-huaa-mir-taqi-mir-ghazals," +इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ +छोड़ा वफ़ा को उन ने मुरव्वत को क्या हुआ +उम्मीद-वार-ए-वादा-ए-दीदार मर चले +आते ही आते यारो क़यामत को क्या हुआ +कब तक तज़ल्लुम आह भला मर्ग के तईं +कुछ पेश आया वाक़िआ रहमत को क्या हुआ +उस के गए पर ऐसे गए दिल से हम-नशीं +मालूम भी हुआ न कि ताक़त को क्या हुआ +बख़्शिश ने मुझ को अब्र-ए-करम की किया ख़जिल +ऐ चश्म जोश-ए-अश्क-ए-नदामत को क्या हुआ +जाता है यार तेग़-ब-कफ़ ग़ैर की तरफ़ +ऐ कुश्ता-ए-सितम तिरी ग़ैरत को क्या हुआ +थी साब-ए-आशिक़ी की बदायत ही 'मीर' पर +क्या जानिए कि हाल-ए-निहायत को क्या हुआ " +ab-jo-ik-hasrat-e-javaanii-hai-mir-taqi-mir-ghazals," +अब जो इक हसरत-ए-जवानी है +उम्र-ए-रफ़्ता की ये निशानी है +रश्क-ए-यूसुफ़ है आह वक़्त-ए-अज़ीज़ +उम्र इक बार-ए-कारवानी है +गिर्या हर वक़्त का नहीं बे-हेच +दिल में कोई ग़म-ए-निहानी है +हम क़फ़स-ज़ाद क़ैदी हैं वर्ना +ता चमन एक पर-फ़िशानी है +उस की शमशीर तेज़ है हमदम +मर रहेंगे जो ज़िंदगानी है +ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम निको याँ से +सब तुम्हारी ही मेहरबानी है +ख़ाक थी मौजज़न जहाँ में और +हम को धोका ये था कि पानी है +याँ हुए 'मीर' तुम बराबर ख़ाक +वाँ वही नाज़ ओ सरगिरानी है " +jin-jin-ko-thaa-ye-ishq-kaa-aazaar-mar-gae-mir-taqi-mir-ghazals," +जिन जिन को था ये इश्क़ का आज़ार मर गए +अक्सर हमारे साथ के बीमार मर गए +होता नहीं है उस लब-ए-नौ-ख़त पे कोई सब्ज़ +ईसा ओ ख़िज़्र क्या सभी यक-बार मर गए +यूँ कानों-कान गुल ने न जाना चमन में आह +सर को पटक के हम पस-ए-दीवार मर गए +सद कारवाँ वफ़ा है कोई पूछता नहीं +गोया मता-ए-दिल के ख़रीदार मर गए +मजनूँ न दश्त में है न फ़रहाद कोह में +था जिन से लुत्फ़-ए-ज़िंदगी वे यार मर गए +गर ज़िंदगी यही है जो करते हैं हम असीर +तो वे ही जी गए जो गिरफ़्तार मर गए +अफ़्सोस वे शहीद कि जो क़त्ल-गाह में +लगते ही उस के हाथ की तलवार मर गए +तुझ से दो-चार होने की हसरत के मुब्तिला +जब जी हुए वबाल तो नाचार मर गए +घबरा न 'मीर' इश्क़ में उस सहल-ए-ज़ीस्त पर +जब बस चला न कुछ तो मिरे यार मर गए " +mir-taqi-mir-ghazals-36," +राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या +आगे आगे देखिए होता है क्या +क़ाफ़िले में सुब्ह के इक शोर है +या'नी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या +सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं +तुख़्म-ए-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या +ये निशान-ए-इश्क़ हैं जाते नहीं +दाग़ छाती के अबस धोता है क्या +ग़ैरत-ए-यूसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़ +'मीर' उस को राएगाँ खोता है क्या " +gam-rahaa-jab-tak-ki-dam-men-dam-rahaa-mir-taqi-mir-ghazals," +ग़म रह��� जब तक कि दम में दम रहा +दिल के जाने का निहायत ग़म रहा +हुस्न था तेरा बहुत आलम-फ़रेब +ख़त के आने पर भी इक आलम रहा +दिल न पहुँचा गोशा-ए-दामाँ तलक +क़तरा-ए-ख़ूँ था मिज़ा पर जम रहा +सुनते हैं लैला के ख़ेमे को सियाह +उस में मजनूँ का मगर मातम रहा +जामा-ए-एहराम-ए-ज़ाहिद पर न जा +था हरम में लेक ना-महरम रहा +ज़ुल्फ़ें खोलीं तो तू टुक आया नज़र +उम्र भर याँ काम-ए-दिल बरहम रहा +उस के लब से तल्ख़ हम सुनते रहे +अपने हक़ में आब-ए-हैवाँ सम रहा +मेरे रोने की हक़ीक़त जिस में थी +एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा +सुब्ह-ए-पीरी शाम होने आई 'मीर' +तू न चेता याँ बहुत दिन कम रहा " +baare-duniyaa-men-raho-gam-zada-yaa-shaad-raho-mir-taqi-mir-ghazals," +बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो +ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो +इश्क़-पेचे की तरह हुस्न-ए-गिरफ़्तारी है +लुत्फ़ क्या सर्व की मानिंद गर आज़ाद रहो +हम को दीवानगी शहरों ही में ख़ुश आती है +दश्त में क़ैस रहो कोह में फ़रहाद रहो +वो गराँ ख़्वाब जो है नाज़ का अपने सो है +दाद बे-दाद रहो शब को कि फ़रियाद रहो +'मीर' हम मिल के बहुत ख़ुश हुए तुम से प्यारे +इस ख़राबे में मिरी जान तुम आबाद रहो " +munh-takaa-hii-kare-hai-jis-tis-kaa-mir-taqi-mir-ghazals," +मुँह तका ही करे है जिस तिस का +हैरती है ये आईना किस का +शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँ +दिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का +थे बुरे मुग़्बचों के तेवर लेक +शैख़ मय-ख़ाने से भला खिसका +दाग़ आँखों से खिल रहे हैं सब +हाथ दस्ता हुआ है नर्गिस का +बहर कम-ज़र्फ़ है बसान-ए-हबाब +कासा-लैस अब हुआ है तू जिस का +फ़ैज़ ऐ अब्र चश्म-ए-तर से उठा +आज दामन वसीअ है इस का +ताब किस को जो हाल-ए-मीर सुने +हाल ही और कुछ है मज्लिस का " +aam-hukm-e-sharaab-kartaa-huun-mir-taqi-mir-ghazals," +आम हुक्म-ए-शराब करता हूँ +मोहतसिब को कबाब करता हूँ +टुक तो रह ऐ बिना-ए-हस्ती तू +तुझ को कैसा ख़राब करता हूँ +बहस करता हूँ हो के अबजद-ख़्वाँ +किस क़दर बे-हिसाब करता हूँ +कोई बुझती है ये भड़क में अबस +तिश्नगी पर इ'ताब करता हूँ +सर तलक आब-ए-तेग़ में हूँ ग़र्क़ +अब तईं आब आब करता हूँ +जी में फिरता है 'मीर' वो मेरे +जागता हूँ कि ख़्वाब करता हूँ " +mir-taqi-mir-ghazals-190," +हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए +उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए +जिन की ख़ातिर की उस्तुख़्वाँ-शिकनी +सो हम उन के निशान-ए-तीर हुए +नहीं आते कसो की आँखों में +हो के आशिक़ बहुत हक़ीर हुए +आगे ये बे-अदाइयाँ कब थीं +इन दिनों तुम बहुत शरीर हुए +अपने रोते ही रोते सहरा के +गोशे गोशे में आब-गीर हुए +ऐसी हस्ती अदम में दाख़िल है +नय जवाँ हम न तिफ़्ल-ए-शीर हुए +एक दम थी नुमूद बूद अपनी +या सफ़ेदी की या अख़ीर हुए +या'नी मानिंद-ए-सुब्ह दुनिया में +हम जो पैदा हुए सौ पीर हुए +मत मिल अहल-ए-दुवल के लड़कों से +'मीर'-जी उन से मिल फ़क़ीर हुए " +baar-haa-gor-e-dil-jhankaa-laayaa-mir-taqi-mir-ghazals," +बार-हा गोर-ए-दिल झंका लाया +अब के शर्त-ए-वफ़ा बजा लाया +क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल +सारे आलम में मैं दिखा लाया +दिल कि यक क़तरा ख़ूँ नहीं है बेश +एक आलम के सर बला लाया +सब पे जिस बार ने गिरानी की +उस को ये ना-तवाँ उठा लाया +दिल मुझे उस गली में ले जा कर +और भी ख़ाक में मिला लाया +इब्तिदा ही में मर गए सब यार +इश्क़ की कौन इंतिहा लाया +अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर' +फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया " +tuu-aashnaa-e-jazba-e-ulfat-nahiin-rahaa-noon-meem-rashid-ghazals," +तू आश्ना-ए-जज़्बा-ए-उल्फ़त नहीं रहा +दिल में तिरे वो ज़ौक़-ए-मोहब्बत नहीं रहा +फिर नग़्मा-हा-ए-क़ुम तो फ़ज़ा में हैं गूँजते +तू ही हरीफ़-ए-ज़ौक़-ए-समाअत नहीं रहा +आईं कहाँ से आँख में आतिश-चिकानियाँ +दिल आश्ना-ए-सोज़-ए-मोहब्बत नहीं रहा +गुल-हा-ए-हुस्न-ए-यार में दामन-कश-ए-नज़र +मैं अब हरीस-ए-गुलशन-ए-जन्नत नहीं रहा +शायद जुनूँ है माइल-ए-फ़र्ज़ानगी मिरा +मैं वो नहीं वो आलम-ए-वहशत नहीं रहा +मम्नून हूँ मैं तेरा बहुत मर्ग-ए-ना-गहाँ +मैं अब असीर-ए-गर्दिश-ए-क़िस्मत नहीं रहा +जल्वागह-ए-ख़याल में वो आ गए हैं आज +लो मैं रहीन-ए-ज़हमत-ए-ख़ल्वत नहीं रहा +क्या फ़ाएदा है दावा-ए-इश्क़-ए-हुसैन से +सर में अगर वो शौक़-ए-शहादत नहीं रहा " +jo-be-sabaat-ho-us-sarkhushii-ko-kyaa-kiije-noon-meem-rashid-ghazals," +जो बे-सबात हो उस सरख़ुशी को क्या कीजे +ये ज़िंदगी है तो फिर ज़िंदगी को क्या कीजे +रुका जो काम तो दीवानगी ही काम आई +न काम आए तो फ़र्ज़ानगी को क्या कीजे +ये क्यूँ कहें कि हमें कोई रहनुमा न मिला +मगर सरिश्त की आवारगी को क्या कीजे +किसी को देख के इक मौज लब पे आ तो गई +उठे न दिल से तो ऐसी हँसी को क्या कीजे +हमें तो आप ने सोज़-ए-अलम ही बख़्शा था +जो नूर बन गई उस तीरगी को क्या कीजे +हमारे हिस्से का इक जुरआ भी नहीं बाक़ी +निगाह-ए-दोस्त की मय-ख़ानगी को क्या कीजे +जहाँ ग़रीब को नान-ए-जवीं नहीं मिलती +वहाँ हकीम के दर्स-ए-ख़ुदी को क्या कीजे +विसाल-ए-दोस्त से भी कम न हो सकी 'राशिद' +अज़ल से पाई हुई तिश्नगी को क्या कीजे " +tire-karam-se-khudaaii-men-yuun-to-kyaa-na-milaa-noon-meem-rashid-ghazals," +तिरे करम से ख़ुदाई में यूँ तो क्या न मिला +मगर जो तू न मिला ज़ीस्त का मज़ा न मिला +हयात-ए-शौक़ की ये गर्मियाँ कहाँ होतीं +ख़ुदा का शुक्र हमें नाला-ए-रसा न मिला +अज़ल से फ़ितरत-ए-आज़ाद ही थी आवारा +ये क्यूँ कहें कि हमें कोई रहनुमा न मिला +ये काएनात किसी का ग़ुबार-ए-राह सही +दलील-ए-राह जो बनता वो नक़्श-ए-पा न मिला +ये दिल शहीद-ए-फ़रेब-निगाह हो न सका +वो लाख हम से ब-अंदाज़-ए-महरमाना मिला +कनार-ए-मौज में मरना तो हम को आता है +निशान-ए-साहिल-ए-उल्फ़त मिला मिला न मिला +तिरी तलाश ही थी माया-ए-बक़ा-ए-वजूद +बला से हम को सर-ए-मंज़िल-ए-बक़ा न मिला " +hasrat-e-intizaar-e-yaar-na-puuchh-noon-meem-rashid-ghazals," +हसरत-ए-इंतिज़ार-ए-यार न पूछ +हाए वो शिद्दत-ए-इंतिज़ार न पूछ +रंग-ए-गुलशन दम-ए-बहार न पूछ +वहशत-ए-क़ल्ब-ए-बे-क़रार न पूछ +सदमा-ए-अंदलीब-ए-ज़ार न पूछ +तल्ख़ अंजामी-ए-बहार न पूछ +ग़ैर पर लुत्फ़ मैं रहीन-ए-सितम +मुझ से आईना-ए-बज़्म-ए-यार न पूछ +दे दिया दर्द मुझ को दिल के एवज़ +हाए लुत्फ़-ए-सितम-शिआर न पूछ +फिर हुई याद-ए-मय-कशी ताज़ा +मस्ती-ए-अब्र-ए-नौ-बहार न पूछ +मुझ को धोका है तार-ए-बिस्तर का +ना-तवानी-ए-जिस्म-ए-यार न पूछ +मैं हूँ ना-आश्ना-ए-वस्ल हुनूज़ +मुझ से कैफ़-ए-विसाल-ए-यार न पूछ " +ze-haal-e-miskiin-makun-tagaaful-duraae-nainaan-banaae-batiyaan-ameer-khusrau-ghazals," +ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ +कि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ +शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूँ उम्र-ए-कोताह +सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ +यकायक अज़ दिल दो चश्म जादू ब-सद-फ़रेबम ब-बुर्द तस्कीं +किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ +चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़ मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िर +न नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ +ब-हक़्क़-ए-आँ मह कि रोज़-ए-महशर ब-दाद मारा फ़रेब 'ख़ुसरव' +सपीत मन के दुराय राखूँ जो जाए पाऊँ पिया की खतियाँ " +vo-sanam-jab-suun-basaa-diida-e-hairaan-men-aa-wali-mohammad-wali-ghazals," +वो सनम जब सूँ बसा दीदा-ए-हैरान में आ +आतिश-ए-इश्क़ पड़ी अक़्ल के सामान में आ +नाज़ देता नहीं गर रुख़्सत-ए-गुल-गश्त-ए-चमन +ऐ चमन-ज़ार-ए-हया दिल के गुलिस्तान में आ +ऐश है ऐश कि उस मह का ख़याल-ए-रौशन +शम्अ' रौशन किया मुझ दिल के शबिस्ताँ में आ +याद आता है मुझे वो दो गुल-ए-बाग़-ए-वफ़ा +अश्क करते हैं मकाँ गोशा-ए-दामान में आ +मौज-ए-बे-ताबी-ए-दिल अश्क में हुई जल्वा-नुमा +जब बसी ज़ुल्फ़-ए-सनम तब-ए-प���ेशान में आ +नाला-ओ-आह की तफ़्सील न पूछो मुझ सूँ +दफ़्तर-ए-दर्द बसा इश्क़ के दीवान में आ +पंजा-ए-इश्क़ ने बेताब किया जब सूँ मुझे +चाक-ए-दिल तब सूँ बसा चाक-ए-गरेबान में आ +देख ऐ अहल-ए-नज़र सब्ज़ा-ए-ख़त में लब-ए-लाल +रंग-ए-याक़ूत छुपा है ख़त-ए-रैहान में आ +हुस्न था पर्दा-ए-तजरीद में सब सूँ आज़ाद +तालिब-ए-इश्क़ हुआ सूरत-ए-इंसान में आ +शैख़ यहाँ बात तिरी पेश न जावे हरगिज़ +अक़्ल कूँ छोड़ के मत मज्लिस-ए-रिंदान में आ +दर्द-मंदाँ को ब-जुज़ दर्द नहीं सैद मुराद +ऐ शह-ए-मुल्क-ए-जुनूँ ग़म के बयाबान में आ +हाकिम-ए-वक़्त है तुझ घर में रक़ीब-ए-बद-ख़ू +देव मुख़्तार हुआ मुल्क-ए-सुलैमान में आ +चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा जग में किया है हासिल +यूसुफ़-ए-हुस्न तिरे चाह-ए-ज़नख़दान में आ +जग के ख़ूबाँ का नमक हो के नमक-पर्वर्दा +छुप रहा आ के तिरे लब के नमक-दान में आ +बस कि मुझ हाल सूँ हम-सर है परेशानी में +दर्द कहती है मिरा ज़ुल्फ़ तिरे कान में आ +ग़म सूँ तेरे है तरह्हुम का महल हाल-ए-'वली' +ज़ुल्म को छोड़ सजन शेवा-ए-एहसान में आ " +huaa-zaahir-khat-e-ruu-e-nigaar-aahista-aahista-wali-mohammad-wali-ghazals," +हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता +कि ज्यूँ गुलशन में आती है बहार आहिस्ता-आहिस्ता +किया हूँ रफ़्ता रफ़्ता राम उस की चश्म-ए-वहशी कूँ +कि ज्यूँ आहू कूँ करते हैं शिकार आहिस्ता-आहिस्ता +जो अपने तन कूँ मिस्ल-ए-जूएबार अव्वल किया पानी +हुआ उस सर्व-क़द सूँ हम-कनार आहिस्ता-आहिस्ता +बरंग-ए-क़तरा-ए-सीमाब मेरे दिल की जुम्बिश सूँ +हुआ है दिल सनम का बे-क़रार आहिस्ता-आहिस्ता +उसे कहना बजा है इश्क़ के गुलज़ार का बुलबुल +जो गुल-रूयाँ में पाया ए'तिबार आहिस्ता-आहिस्ता +मिरा दिल अश्क हो पहुँचा है कूचे में सिरीजन के +गया काबे में ये कश्ती-सवार आहिस्ता-आहिस्ता +'वली' मत हासिदाँ की बात सूँ दिल कूँ मुकद्दर कर +कि आख़िर दिल सूँ जावेगा ग़ुबार आहिस्ता-आहिस्ता " +sohbat-e-gair-muun-jaayaa-na-karo-wali-mohammad-wali-ghazals," +सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो +दर्द-मंदाँ कूँ कुढ़ाया न करो +हक़-परस्ती का अगर दावा है +बे-गुनाहाँ कूँ सताया न करो +अपनी ख़ूबी के अगर तालिब हो +अपने तालिब कूँ जलाया न करो +है अगर ख़ातिर-ए-उश्शाक़ अज़ीज़ +ग़ैर कूँ दर्स दिखाया न करो +मुझ को तुरशी का है परहेज़ सनम +चीन-ए-अबरू कूँ दिखाया न करो +दिल कूँ होती है सजन बेताबी +ज़ुल्फ़ कूँ हाथ लगाया न करो +निगह-ए-तल्ख़ सूँ अपनी ज़ालिम +ज़हर का जाम पिलाया न करो +ह�� कूँ बर्दाश्त नहीं ग़ुस्से की +बे-सबब ग़ुस्से में आया न करो +पाक-बाज़ाँ में है मशहूर 'वली' +उस सूँ चेहरे कूँ छुपाया न करो " +dekhnaa-har-subh-tujh-rukhsaar-kaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का +है मुताला मतला-ए-अनवार का +बुलबुल ओ परवाना करना दिल के तईं +काम है तुझ चेहरा-ए-गुल-नार का +सुब्ह तेरा दर्स पाया था सनम +शौक़-ए-दिल मोहताज है तकरार का +माह के सीने उपर ऐ शम्अ-रू +दाग़ है तुझ हुस्न की झलकार का +दिल कूँ देता है हमारे पेच-ओ-ताब +पेच तेरे तुर्रा-ए-तर्रार का +जो सुन्या तेरे दहन सूँ यक बचन +भेद पाया नुस्ख़ा-ए-असरार का +चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त +जा तमाशा देख उस रुख़्सार का +आरसी के हाथ सूँ डरता है ख़त +चोर कूँ है ख़ौफ़ चौकीदार का +सर-कशी आतिश-मिज़ाजी है सबब +नासेहों को गर्मी-ए-बाज़ार का +ऐ 'वली' क्यूँ सुन सके नासेह की बात +जो दिवाना है परी-रुख़्सार का " +ishq-men-sabr-o-razaa-darkaar-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है +फ़िक्र-ए-असबाब-ए-वफ़ा दरकार है +चाक करने जामा-ए-सब्र-ओ-क़रार +दिलबर-ए-रंगीं क़बा दरकार है +हर सनम तस्ख़ीर-ए-दिल क्यूँकर सके +दिलरुबाई कूँ अदा दरकार है +ज़ुल्फ़ कूँ वा कर कि शाह-ए-इश्क़ कूँ +साया-ए-बाल-ए-हुमा दरकार है +रख क़दम मुझ दीदा-ए-ख़ूँ-बार पर +गर तुझे रंग-ए-हिना दरकार है +देख उस की चश्म-ए-शहला कूँ अगर +नर्गिस-ए-बाग़-ए-हया दरकार है +अज़्म उस के वस्ल का है ऐ 'वली' +लेकिन इमदाद-ए-ख़ुदा दरकार है " +ruuh-bakhshii-hai-kaam-tujh-lab-kaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +रूह बख़्शी है काम तुझ लब का +दम-ए-ईसा है नाम तुझ लब का +हुस्न के ख़िज़्र ने किया लबरेज़ +आब-ए-हैवाँ सूँ जाम तुझ लब का +मंतिक़-ओ-हिक्मत-ओ-मआ'नी पर +मुश्तमिल है कलाम तुझ लब का +जन्नत-ए-हुस्न में किया हक़ ने +हौज़-ए-कौसर मक़ाम तुझ लब का +रग-ए-याक़ूत के क़लम सूँ लिखें +ख़त परिस्ताँ पयाम तुझ लब का +सब्ज़ा-ओ-बर्ग-ओ-लाला रखते हैं +शौक़ दिल में दवाम तुझ लब का +ग़र्क़-ए-शक्कर हुए हैं काम-ओ-ज़बाँ +जब लिया हूँ मैं नाम तुझ लब का +मिस्ल-ए-याक़ूत ख़त में है शागिर्द +साग़र-ए-मय मुदाम तुझ लब का +है 'वली' की ज़बाँ को लज़्ज़त-बख़्श +ज़िक्र हर सुब्ह-ओ-शाम तुझ लब का " +kuucha-e-yaar-ain-kaasii-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +कूचा-ए-यार ऐन कासी है +जोगी-ए-दिल वहाँ का बासी है +पी के बैराग की उदासी सूँ +दिल पे मेरे सदा उदासी है +ऐ सनम तुझ जबीं उपर ये ख़ाल +हिंदवी हर-द्वार बासी है +ज़ुल्फ़ तेरी है मौज जमुना की +तिल नज़िक उस के जियूँ सनासी है +घर ���िरा है ये रश्क-ए-देवल-ए-चीं +उस में मुद्दत सूँ दिल उपासी है +ये सियह-ज़ुल्फ़ तुझ ज़नख़दाँ पर +नागनी ज्यूँ कुँवे पे प्यासी है +तास-ए-ख़ुर्शीद ग़र्क़ है जब सूँ +बर में तेरे लिबास-ए-तासी है +जिस की गुफ़्तार में नहीं है मज़ा +सुख़न उस का तआ'म बासी है +ऐ 'वली' जो लिबास तन पे रखा +आशिक़ाँ के नज़िक लिबासी है " +mat-gusse-ke-shoale-suun-jalte-kuun-jalaatii-jaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा +टुक मेहर के पानी सूँ तू आग बुझाती जा +तुझ चाल की क़ीमत सूँ दिल नीं है मिरा वाक़िफ़ +ऐ मान भरी चंचल टुक भाव बताती जा +इस रात अँधारी में मत भूल पड़ूँ तुझ सूँ +टुक पाँव के झाँझर की झंकार सुनाती जा +मुझ दिल के कबूतर कूँ बाँधा है तिरी लट ने +ये काम धरम का है टुक उस को छुड़ाती जा +तुझ मुख की परस्तिश में गई उम्र मिरी सारी +ऐ बुत की पुजनहारी टुक उस को पुजाती जा +तुझ इश्क़ में जल जल कर सब तन कूँ किया काजल +ये रौशनी अफ़ज़ा है अँखिया को लगाती जा +तुझ नेह में दिल जल जल जोगी की लिया सूरत +यक बार उसे मोहन छाती सूँ लगाती जा +तुझ घर की तरफ़ सुंदर आता है 'वली' दाएम +मुश्ताक़ दरस का है टुक दर्स दिखाती जा " +aashiq-ke-mukh-pe-nain-ke-paanii-ko-dekh-tuun-wali-mohammad-wali-ghazals," +आशिक़ के मुख पे नैन के पानी को देख तूँ +इस आरसी में राज़-ए-निहानी कूँ देख तूँ +सुन बे-क़रार दिल की अवल आह-ए-शोला-ख़ेज़ +तब इस हरफ़ में दिल के मआनी कूँ देख तूँ +ख़ूबी सूँ तुझ हुज़ूर ओ शमा दम-ज़नी में है +उस बे-हया की चर्ब-ज़बानी कूँ देख तूँ +दरिया पे जा के मौज-ए-रवाँ पर नज़र न कर +अंझुवाँ की मेरे आ के रवानी कूँ देख तूँ +तुझ शौक़ का जो दाग़ 'वली' के जिगर में है +बे-ताक़ती में उस की निशानी कूँ देख तूँ " +bhadke-hai-dil-kii-aatish-tujh-neh-kii-havaa-suun-wali-mohammad-wali-ghazals," +भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ +शोला नमत जला दिल तुझ हुस्न-ए-शोला-ज़ा सूँ +गुल के चराग़ गुल हो यक बार झड़ पड़ें सब +मुझ आह की हिकायत बोलें अगर सबा सूँ +निकली है जस्त कर कर हर संग-दिल सूँ आतिश +चक़माक़ जब पलक की झाड़ा है तूँ अदा सूँ +सज्दा बदल रखे सर सर-ता-क़दम अरक़ हो +तुझ बा-हया के पग पर आ कर हिना हया सूँ +याँ दर्द है परम का बेहूदा सर कहे मत +ये बात सुन 'वली' की जा कर कहो दवा सूँ " +yaad-karnaa-har-ghadii-us-yaar-kaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +याद करना हर घड़ी उस यार का +है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का +आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं +तिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का +आक़िबत क्या होवेगा मालूम नईं +दिल हुआ है मुब्तिला दिलदार का +क्या कहे तारीफ़ दिल है बे-नज़ीर +हर्फ़ हर्फ़ उस मख़्ज़न-ए-असरार का +गर हुआ है तालिब-ए-आज़ादगी +बंद मत हो सुब्हा ओ ज़ुन्नार का +मसनद-ए-गुल मंज़िल-ए-शबनम हुई +देख रुत्बा दीदा-ए-बेदार का +ऐ 'वली' होना सिरीजन पर निसार +मुद्दआ है चश्म-ए-गौहर-बार का " +main-tujhe-aayaa-huun-iimaan-buujh-kar-wali-mohammad-wali-ghazals," +मैं तुझे आया हूँ ईमाँ बूझ कर +बाइ'स-ए-जमइय्यत-ए-जाँ बूझ कर +बुलबुल-ए-शीराज़ कूँ करता हूँ याद +हुस्न कूँ तेरे गुलिस्ताँ बूझ कर +दिल चला है इश्क़ का हो जौहरी +लब तिरे ला'ल-ए-बदख़्शाँ बूझ कर +हर न करती है नज़ारे की मशक़ +ख़त कूँ तेरे ख़त्त-ए-रैहाँ बूझ कर +ऐ सजन आया हूँ हो बे-इख़्तियार +तुझ कूँ अपना राहत-ए-जाँ बूझ कर +ज़ुल्फ़ तेरी क्यूँ न खाए पेच-ओ-ताब +हाल मुझ दिल का परेशाँ बूझ कर +रहम कर उस पर कि आया है 'वली' +दर्द-ए-दिल का तुझ कूँ दरमाँ बूझ कर " +jab-tujh-araq-ke-vasf-men-jaarii-qalam-huaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ +आलम में उस का नाँव जवाहर-रक़म हुआ +नुक़्ते पे तेरे ख़ाल के बाँधा है जिन ने दिल +वो दाएरे में इश्क़ के साबित-क़दम हुआ +तुझ फ़ितरत-ए-बुलंद की ख़ूबी कूँ लिख क़लम +मशहूर जग के बीच अतारद-रक़म हुआ +ताक़त नहीं कि हश्र में होवे वो दाद-ख़्वाह +जिस बे-गुनह पे तेरी निगह सूँ सितम हुआ +बे-मिन्नत-ए-शराब हूँ सरशार-ए-इम्बिसात +तुझ नैन का ख़याल मुझे जाम-ए-जम हुआ +जिन ने बयाँ लिखा है मिरे रंग-ए-ज़र्द का +उस कूँ ख़िताब ग़ैब सूँ ज़र्रीं-रक़म हुआ +शोहरत हुई है जब से तिरे शेर की 'वली' +मुश्ताक़ तुझ सुख़न का अरब ता अजम हुआ " +jab-sanam-kuun-khayaal-e-baag-huaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ +तालिब-ए-नश्शा-ए-फ़राग़ हुआ +फ़ौज-ए-उश्शाक़ देख हर जानिब +नाज़नीं साहिब-ए-दिमाग़ हुआ +रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर +जिगर-ए-लाला दाग़-दाग़ हुआ +दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन +जब ख़याल-ए-सनम चराग़ हुआ +ऐ 'वली' गुल-बदन कूँ बाग़ में देख +दिल-ए-सद-चाक बाग़-बाग़ हुआ " +aaj-distaa-hai-haal-kuchh-kaa-kuchh-wali-mohammad-wali-ghazals," +आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ +क्यूँ न गुज़रे ख़याल कुछ का कुछ +दिल-ए-बे-दिल कूँ आज करती है +शोख़ चंचल की चाल कुछ का कुछ +मुजको लगता है ऐ परी-पैकर +आज तेरा जमाल कुछ का कुछ +असर-ए-बादा-ए-जवानी है +कर गया हूँ सवाल कुछ का कुछ +ऐ 'वली' दिल कूँ आज करती है +बू-ए-बाग़-ए-विसाल कुछ का कुछ " +mushtaaq-hain-ushshaaq-tirii-baankii-adaa-ke-wali-mohammad-wali-ghazals," +मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के +ज़ख़्मी हैं मोहिब्बाँ तिरी शमशीर-ए-जफ़ा के +हर पेच में ची���े के तिरे लिपटे हैं आशिक़ +आलम के दिलाँ बंद हैं तुझ बंद-ए-क़बा के +लर्ज़ां है तिरे दस्त अगे पंजा-ए-ख़ुर्शीद +तुझ हुस्न अगे मात मलाएक हैं समा के +तुझ ज़ुल्फ़ के हल्क़े में है दिल बे-सर ओ बे-पा +टुक मेहर करो हाल उपर बे-सर-ओ-पा के +तन्हा न 'वली' जग मुनीं लिखता है तिरे वस्फ़ +दफ़्तर लिखे आलम ने तिरी मद्ह-ओ-सना के " +agar-gulshan-taraf-vo-nau-khat-e-rangiin-adaa-nikle-wali-mohammad-wali-ghazals," +अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले +गुल ओ रैहाँ सूँ रंग-ओ-बू शिताबी पेशवा निकले +खिले हर ग़ुंचा-ए-दिल ज्यूँ गुल-ए-शादाब शादी सूँ +अगर टुक घर सूँ बाहर वो बहार-दिल-कुशा निकले +ग़नीम-ए-ग़म किया है फ़ौज-बंदी इश्क़-बाज़ां पर +बजा है आज वो राजा अगर नौबत बजा निकले +निसार उस के क़दम ऊपर करूँ अंझुवाँ के गौहर सब +अगर करने कूँ दिल-जूई वो सर्व-ए-ख़ुश-अदा निकले +सनम आए करूँगा नाला-ए-जाँ-सोज़ कूँ ज़ाहिर +मगर उस संग-दिल सूँ मेहरबानी की सदा निकले +रहे मानिंद-ए-लाल-ए-बे-बहा शाहाँ के ताज ऊपर +मोहब्बत में जो कुइ अस्बाब ज़ाहिर कूँ बहा निकले +बख़ीली दर्स की हरगिज़ न कीजो ऐ परी-पैकर +'वली' तेरी गली में जब कि मानिंद-ए-गदा निकले " +fidaa-e-dilbar-e-rangiin-adaa-huun-wali-mohammad-wali-ghazals," +फ़िदा-ए-दिलबर-ए-रंगीं-अदा हूँ +शहीद-ए-शाहिद-ए-गुल-गूँ-क़बा हूँ +हर इक मह-रू के मिलने का नहीं ज़ौक़ +सुख़न के आश्ना का आश्ना हूँ +किया हूँ तर्क नर्गिस का तमाशा +तलबगार-ए-निगाह-ए-बा-हया हूँ +न कर शमशाद की तारीफ़ मुझ पास +कि मैं उस सर्व-क़द का मुब्तला हूँ +किया मैं अर्ज़ उस ख़ुर्शीद-रू सूँ +तू शाह-ए-हुस्न मैं तेरा गदा हूँ +सदा रखता हूँ शौक़ उस के सुख़न का +हमेशा तिश्ना-ए-आब-ए-बक़ा हूँ +क़दम पर उस के रखता हूँ सदा सर +'वली' हम-मशरब-ए-रंग-ए-हिना हूँ " +tiraa-majnuun-huun-sahraa-kii-qasam-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है +तलब में हूँ तमन्ना की क़सम है +सरापा नाज़ है तू ऐ परी-रू +मुझे तेरे सरापा की क़सम है +दिया हक़ हुस्न-ए-बाला-दस्त तुजकूं +मुझे तुझ सर्व-ए-बाला की क़सम है +किया तुझ ज़ुल्फ़ ने जग कूँ दिवाना +तिरी ज़ुल्फ़ाँ के सौदा की क़सम है +दो-रंगी तर्क कर हर इक से मत मिल +तुझे तुझ क़द्द-ए-राना की क़सम है +किया तुझ इश्क़ ने आलम कूँ मजनूँ +मुझे तुझ रश्क-ए-लैला की क़सम है +'वली' मुश्ताक़ है तेरी निगह का +मुझे तुझ चश्म-ए-शहला की क़सम है " +dil-talabgaar-e-naaz-e-mah-vash-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है +लुत्फ़ उस का अगरचे दिलकश है +मुझ सूँ क्यूँ कर मिलेगा हैराँ हूँ +शोख़ है बेवफ़ा है सरकश है +क्या तिरी ज़ुल्फ़ क्या तिरे अबरू +हर तरफ़ सूँ मुझे कशाकश है +तुझ बिन ऐ दाग़-बख़्श-ए-सीना ओ दिल +चमन-ए-लाला दश्त-ए-आतश है +ऐ 'वली' तजरबे सूँ पाया हूँ +शोला-ए-आह-ए-शौक़ बे-ग़श है " +sajan-tuk-naaz-suun-mujh-paas-aa-aahista-aahista-wali-mohammad-wali-ghazals," +सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता +छुपी बातें अपस दिल की सुना आहिस्ता आहिस्ता +ग़रज़ गोयाँ की बाताँ कूँ न ला ख़ातिर मनीं हरगिज़ +सजन इस बात कूँ ख़ातिर में ला आहिस्ता आहिस्ता +हर इक की बात सुनने पर तवज्जोह मत कर ऐ ज़ालिम +रक़ीबाँ उस सीं होवेंगे जुदा आहिस्ता आहिस्ता +मबादा मोहतसिब बदमस्त सुन कर तान में आवे +तम्बूरा आह का ऐ दिल बजा आहिस्ता आहिस्ता +'वली' हरगिज़ अपस के दिल कूँ सीने में न रख ग़म-गीं +कि बर लावेगा मतलब कूँ ख़ुदा आहिस्ता आहिस्ता " +jis-dilrubaa-suun-dil-kuun-mire-ittihaad-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है +दीदार उस का मेरी अँखाँ की मुराद है +रखता है बर में दिलबर-ए-रंगीं ख़याल कूँ +मानिंद आरसी के जो साफ़ ए'तिक़ाद है +शायद कि दाम-ए-इश्क़ में ताज़ा हुआ है बंद +वादे पे गुल-रुख़ाँ के जिसे ए'तिमाद है +बाक़ी रहेगा जौर-ओ-सितम रोज़-ए-हश्र लग +तुझ ज़ुल्फ़ की जफ़ा में निपट इम्तिदाद है +मक़्सूद-ए-दिल है उस का ख़याल ऐ 'वली' मुझे +ज्यूँ मुझ ज़बाँ पे नाम-ए-मोहम्मद मुराद है " +khuub-ruu-khuub-kaam-karte-hain-wali-mohammad-wali-ghazals," +ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं +यक निगह में ग़ुलाम करते हैं +देख ख़ूबाँ कूँ वक़्त मिलने के +किस अदा सूँ सलाम करते हैं +क्या वफ़ादार हैं कि मिलने में +दिल सूँ सब राम-राम करते हैं +कम-निगाही सों देखते हैं वले +काम अपना तमाम करते हैं +खोलते हैं जब अपनी ज़ुल्फ़ाँ कूँ +सुब्ह-ए-आशिक़ कूँ शाम करते हैं +साहिब-ए-लफ़्ज़ उस कूँ कह सकिए +जिस सूँ ख़ूबाँ कलाम करते हैं +दिल लजाते हैं ऐ 'वली' मेरा +सर्व-क़द जब ख़िराम करते हैं " +jise-ishq-kaa-tiir-kaarii-lage-wali-mohammad-wali-ghazals," +जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे +उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे +न छोड़े मोहब्बत दम-ए-मर्ग तक +जिसे यार-ए-जानी सूँ यारी लगे +न होवे उसे जग में हरगिज़ क़रार +जिसे इश्क़ की बे-क़रारी लगे +हर इक वक़्त मुझ आशिक़-ए-पाक कूँ +प्यारे तिरी बात प्यारी लगे +'वली' कूँ कहे तू अगर यक बचन +रक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे " +muflisii-sab-bahaar-khotii-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +मुफ़्लिसी सब बहार खोती है +मर्द का ए'तिबार खोती है +क्यूँके हासिल हो मुज को जमइय्यत +ज़ुल्फ़ तेरी क़रार खोत��� है +हर सहर शोख़ की निगह की शराब +मुझ अँखाँ का ख़ुमार खोती है +क्यूँके मिलना सनम का तर्क करूँ +दिलबरी इख़्तियार खोती है +ऐ 'वली' आब उस परी-रू की +मुझ सिने का ग़ुबार खोती है " +dil-kuun-tujh-baaj-be-qaraarii-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है +चश्म का काम अश्क-बारी है +शब-ए-फ़ुर्क़त में मोनिस ओ हमदम +बे-क़रारों कूँ आह-ओ-ज़ारी है +ऐ अज़ीज़ाँ मुझे नहीं बर्दाश्त +संग-दिल का फ़िराक़ भारी है +फ़ैज़ सूँ तुझ फ़िराक़ के साजन +चश्म-ए-गिर्यां का काम जारी है +फ़ौक़ियत ले गया हूँ बुलबुल सूँ +गरचे मंसब में दो-हज़ारी है +इश्क़-बाज़ों के हक़ में क़ातिल की +हर निगह ख़ंजर ओ कटारी है +आतिश-ए-हिज्र-ए-लाला-रू सूँ 'वली' +दाग़ सीने में यादगारी है " +tujh-lab-kii-sifat-laal-e-badakhshaan-suun-kahuungaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा +जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा +दी बादशही हक़ ने तुझे हुस्न-नगर की +यू किश्वर-ए-ईराँ में सुलैमाँ सूँ कहूँगा +तारीफ़ तिरे क़द की अलिफ़-वार सिरीजन +जा सर्व-ए-गुलिस्ताँ कूँ ख़ुश-अल्हाँ सूँ कहूँगा +मुझ पर न करो ज़ुल्म तुम ऐ लैली-ए-ख़ूबाँ +मजनूँ हूँ तिरे ग़म कूँ बयाबाँ सूँ कहूँगा +देखा हूँ तुझे ख़्वाब में ऐ माया-ए-ख़ूबी +इस ख़्वाब को जा यूसुफ़-ए-कनआँ सूँ कहूँगा +जलता हूँ शब-ओ-रोज़ तिरे ग़म में ऐ साजन +ये सोज़ तिरा मशअल-ए-सोज़ाँ सूँ कहूँगा +यक नुक़्ता तिरे सफ़्हा-ए-रुख़ पर नईं बेजा +इस मुख को तिरे सफ़्हा-ए-क़ुरआँ सूँ कहूँगा +क़ुर्बान परी मुख पे हुई चोब सी जल कर +ये बात अजाइब मह-ए-ताबाँ सूँ कहूँगा +बे-सब्र न हो ऐ 'वली' इस दर्द सूँ हरगिज़ +जलता हूँ तिरे दर्द में दरमाँ सूँ कहूँगा " +shagl-behtar-hai-ishq-baazii-kaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +शग़्ल बेहतर है इश्क़-बाज़ी का +क्या हक़ीक़ी ओ क्या मजाज़ी का +हर ज़बाँ पर है मिस्ल-ए-शाना मुदाम +ज़िक्र तुझ ज़ुल्फ़ की दराज़ी का +आज तेरी भवाँ ने मस्जिद में +होश खोया है हर नमाज़ी का +गर नईं राज़-ए-इश्क़ सूँ आगाह +फ़ख़्र बेजा है फ़ख़्र-ए-राज़ी का +ऐ 'वली' सर्व-क़द को देखूँगा +वक़्त आया है सरफ़राज़ी का " +main-aashiqii-men-tab-suun-afsaana-ho-rahaa-huun-wali-mohammad-wali-ghazals," +मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ +तेरी निगह का जब सूँ दीवाना हो रहा हूँ +ऐ आश्ना करम सूँ यक बार आ दरस दे +तुझ बाज सब जहाँ सूँ बेगाना हो रहा हूँ +बाताँ लगन की मत पूछ ऐ शम-ए-बज़्म-ए-ख़ूबी +मुद्दत से तुझ झलक का परवाना हो रहा हूँ +शायद वो गंज-ए-ख़ूबी आवे किसी तरफ़ सूँ +इ��� वास्ते सरापा वीराना हो रहा हूँ +सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ रखता हूँ दिल में दाइम +ज़ंजीर-ए-आशिक़ी का दीवाना हो रहा हूँ +बरजा है गर सुनूँ नईं नासेह तिरी नसीहत +मैं जाम-ए-इश्क़ पी कर मस्ताना हो रहा हूँ +किस सूँ 'वली' अपस का अहवाल जा कहूँ मैं +सर-ता-क़दम मैं ग़म सूँ ग़म-ख़ाना हो रहा हूँ " +aaj-sarsabz-koh-o-sahraa-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है +हर तरफ़ सैर है तमाशा है +चेहरा-ए-यार ओ क़ामत-ए-ज़ेबा +गुल-ए-रंगीन ओ सर्व-ए-रअना है +मअ'नी-ए-हुस्न ओ मअ'नी-ए-ख़ूबी +सूरत-ए-यार सूँ हुवैदा है +दम-ए-जाँ-बख़्श नौ-ख़ताँ मुज कूँ +चश्मा-ए-ख़िज़्र है मसीहा है +कमर-ए-नाज़ुक ओ दहान-ए-सनम +फ़िक्र बारीक है मुअम्मा है +मू-ब-मू उस कूँ है परेशानी +ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं का जिस कूँ सौदा है +क्या हक़ीक़त है तुझ तवाज़ो की +यू तलत्तुफ़ है या मुदावा है +सबब-ए-दिलरुबाई-ए-आशिक़ +मेहर है लुत्फ़ है दिलासा है +जूँ 'वली' रात दिन है मह्व-ए-ख़याल +जिस कूँ तुझ वस्ल की तमन्ना है " +takht-jis-be-khaanamaan-kaa-dast-e-viiraanii-huaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ +सर उपर उस के बगूला ताज-ए-सुल्तानी हुआ +क्यूँ न साफ़ी उस कूँ हासिल हो जो मिस्ल-ए-आरसी +अपने जौहर की हया सूँ सर-ब-सर पानी हुआ +ज़िंदगी है जिस कूँ दाइम आलम-ए-बाक़ी मुनीं +जल्वा-गर कब उस अंगे यू आलम-ए-फ़ानी हुआ +बेकसी के हाल में यक आन मैं तन्हा नहीं +ग़म तिरा सीने में मेरे हमदम-ए-जानी हुआ +ऐ 'वली' ग़ैरत सूँ सूरज क्यूँ जले नईं रात-दिन +जग मुनीं वो माह रश्क-ए-माह-ए-कनआनी हुआ " +chhupaa-huun-main-sadaa-e-baansulii-men-wali-mohammad-wali-ghazals," +छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में +कि ता जाऊँ परी-रू की गली में +न थी ताक़त मुझे आने की लेकिन +ब-ज़ोर-ए-आह पहुँचा तुझ गली में +अयाँ है रंग की शोख़ी सूँ ऐ शोख़ +बदन तेरा क़बा-ए-संदली में +जो है तेरे दहन में रंग ओ ख़ूबी +कहाँ ये रंग ये ख़ूबी कली में +किया जियूँ लफ़्ज़ में मअ'नी सिरीजन +मक़ाम अपना दिल-ओ-जान-ए-'वली' में " +kamar-us-dilrubaa-kii-dilrubaa-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है +निगह उस ख़ुश-अदा की ख़ुश-अदा है +सजन के हुस्न कूँ टुक फ़िक्र सूँ देख +कि ये आईना-ए-मअ'नी-नुमा है +ये ख़त है जौहर-ए-आईना-राज़ +इसे मुश्क-ए-ख़ुतन कहना बजा है +हुआ मालूम तुझ ज़ुल्फ़ाँ सूँ ऐ शोख़ +कि शाह-ए-हुस्न पर ज़िल्ल-ए-हुमा है +न होवे कोहकन क्यूँ आ के आशिक़ +जो वो शीरीं-अदा गुलगूँ-क़बा है +न पूछो आह-ओ-ज़ारी की हक़ीक़त +अज़ीज़ाँ आशिक़ी का मुक़तज़ा है +'वल��' कूँ मत मलामत कर ऐ वाइज़ +मलामत आशिक़ों पर कब रवा है " +ishq-betaab-e-jaan-gudaazii-hai-wali-mohammad-wali-ghazals," +इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है +हुस्न मुश्ताक़-ए-दिल-नवाज़ी है +अश्क ख़ूनीं सूँ जो किया है वज़ू +मज़हब-ए-इश्क़ में नमाज़ी है +जो हुआ राज़-ए-इश्क़ सूँ आगाह +वो ज़माने का फ़ख़्र-ए-राज़ी है +पाक-बाज़ाँ सूँ यूँ हुआ मफ़्हूम +इश्क़ मज़मून-ए-पाक-बाज़ी है +जा के पहुँची है हद्द-ए-ज़ुल्मत कूँ +बस-कि तुझ ज़ुल्फ़ में दराज़ी है +तजरबे सूँ हुआ मुझे ज़ाहिर +नाज़ मफ़्हूम बे-नियाज़ी है +ऐ 'वली' ऐश-ए-ज़ाहिरी का सबब +जल्वा-ए-शाहिद-ए-मजाज़ी है " +tiraa-lab-dekh-haivaan-yaad-aave-wali-mohammad-wali-ghazals," +तिरा लब देख हैवाँ याद आवे +तिरा मुख देख कनआँ याद आवे +तिरे दो नैन जब देखूँ नज़र भर +मुझे तब नर्गिसिस्ताँ याद आवे +तिरी ज़ुल्फ़ाँ की तूलानी कूँ देखे +मुझे लैल-ए-ज़मिस्ताँ याद आवे +तिरे ख़त का ज़मुर्रद-रंग देखे +बहार-ए-सुंबुलिस्ताँ याद आवे +तिरे मुख के चमन के देखने सूँ +मुझे फ़िरदौस-ए-रिज़वाँ याद आवे +तिरी ज़ुल्फ़ाँ में यू मुख जो कि देखे +उसे शम-ए-शबिस्ताँ याद आवे +जो कुइ देखे मिरी अँखियाँ को रोते +उसे अब्र-ए-बहाराँ याद आवे +जो मेरे हाल की गर्दिश कूँ देखे +उसे गिर्दाब-ए-गर्दां याद आवे +'वली' मेरा जुनूँ जो कुइ कि देखे +उसे कोह ओ बयाबाँ याद आवे " +hue-hain-raam-piitam-ke-nayan-aahista-aahista-wali-mohammad-wali-ghazals," +हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता +कि ज्यूँ फाँदे में आते हैं हिरन आहिस्ता-आहिस्ता +मिरा दिल मिस्ल परवाने के था मुश्ताक़ जलने का +लगी उस शम्अ सूँ आख़िर लगन आहिस्ता-आहिस्ता +गिरेबाँ सब्र का मत चाक कर ऐ ख़ातिर-ए-मिस्कीं +सुनेगा बात वो शीरीं-बचन आहिस्ता-आहिस्ता +गुल ओ बुलबुल का गुलशन में ख़लल होवे तो बरजा है +चमन में जब चले वो गुल-बदन आहिस्ता-आहिस्ता +'वली' सीने में मेरे पंजा-ए-इश्क़-ए-सितमगर ने +किया है चाक दिल का पैरहन आहिस्ता-आहिस्ता " +dil-huaa-hai-miraa-kharaab-e-sukhan-wali-mohammad-wali-ghazals," +दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न +देख कर हुस्न-ए-बे-हिजाब-ए-सुख़न +बज़्म-ए-मा'नी में सरख़ुशी है उसे +जिस कूँ है नश्शा-ए-शराब-ए-सुख़न +राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं +ता-क़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न +जल्वा-पैरा हो शाहिद-ए-मा'नी +जब ज़बाँ सूँ उठे नक़ाब-ए-सुख़न +गौहर उस की नज़र में जा न करे +जिन ने देखा है आब-ओ-ताब-ए-सुख़न +हर्जा़-गोयाँ की बात क्यूँकि सुने +जो सुना नग़्मा-ए-रबाब-ए-सुख़न +है तिरी बात ऐ नज़ाकत-ए-फ़हम +लौह-ए-दीबाचा-ए-किताब-ए-स���ख़न +है सुख़न जग मनीं अदीम-उल-मिसाल +जुज़ सुख़न नीं दुजा जवाब-ए-सुख़न +ऐ 'वली' दर्द-ए-सर कभू न रहे +जब मिले सन्दल-ओ-गुलाब-ए-सुख़न " +kiyaa-mujh-ishq-ne-zaalim-kuun-aab-aahista-aahista-wali-mohammad-wali-ghazals," +किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता +कि आतिश गुल कूँ करती है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता +वफ़ादारी ने दिलबर की बुझाया आतिश-ए-ग़म कूँ +कि गर्मी दफ़ा करता है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता +अजब कुछ लुत्फ़ रखता है शब-ए-ख़ल्वत में गुल-रू सूँ +ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता जवाब आहिस्ता आहिस्ता +मिरे दिल कूँ किया बे-ख़ुद तिरी अँखियाँ ने आख़िर कूँ +कि ज्यूँ बेहोश करती है शराब आहिस्ता आहिस्ता +हुआ तुझ इश्क़ सूँ ऐ आतिशीं-रू दिल मिरा पानी +कि ज्यूँ गलता है आतिश सूँ गुलाब आहिस्ता आहिस्ता +अदा ओ नाज़ सूँ आता है वो रौशन-जबीं घर सूँ +कि ज्यूँ मशरिक़ सूँ निकले आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता +'वली' मुझ दिल में आता है ख़याल-ए-यार-ए-बे-परवा +कि ज्यूँ अँखियाँ मनीं आता है ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता " +sharaab-e-shauq-sen-sarshaar-hain-ham-wali-mohammad-wali-ghazals," +शराब-ए-शौक़ सें सरशार हैं हम +कभू बे-ख़ुद कभू हुशियार हैं हम +दो-रंगी सूँ तिरी ऐ सर्व-ए-रा'ना +कभू राज़ी कभू बेज़ार हैं हम +तिरे तस्ख़ीर करने में सिरीजन +कभी नादाँ कभी अय्यार हैं हम +सनम तेरे नयन की आरज़ू में +कभू सालिम कभी बीमार हैं हम +'वली' वस्ल-ओ-जुदाई सूँ सजन की +कभू सहरा कभू गुलज़ार हैं हम " +vo-naazniin-adaa-men-ejaaz-hai-saraapaa-wali-mohammad-wali-ghazals," +वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा +ख़ूबी में गुल-रुख़ाँ सूँ मुम्ताज़ है सरापा +ऐ शोख़ तुझ नयन में देखा निगाह कर कर +आशिक़ के मारने का अंदाज़ है सरापा +जग के अदा-शनासाँ है जिन की फ़िक्र आली +तुझ क़द कूँ देख बोले यू नाज़ है सरापा +क्यूँ हो सकें जगत के दिलबर तिरे बराबर +तू हुस्न हौर अदा में एजाज़ है सरापा +गाहे ऐ ईसवी-दम यक बात लुत्फ़ सूँ कर +जाँ-बख़्श मुझ को तेरा आवाज़ है सरापा +मुझ पर 'वली' हमेशा दिलदार मेहरबाँ है +हर-चंद हस्ब-ए-ज़ाहिर तन्नाज़ है सरापा " +haadson-kii-zad-pe-hain-to-muskuraanaa-chhod-den-waseem-barelvi-ghazals," +हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें +ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें +तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है +आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें +प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख +एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें +घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ +इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें " +duaa-karo-ki-koii-pyaas-nazr-e-jaam-na-ho-waseem-barelvi-ghazals," +दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो +वो ज़िंदगी ही नहीं है जो ना-तमाम न हो +जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से +कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो +कोई चराग़ न आँसू न आरज़ू-ए-सहर +ख़ुदा करे कि किसी घर में ऐसी शाम न हो +अजीब शर्त लगाई है एहतियातों ने +कि तेरा ज़िक्र करूँ और तेरा नाम न हो +सबा-मिज़ाज की तेज़ी भी एक ने'मत है +अगर चराग़ बुझाना ही एक काम न हो +'वसीम' कितनी ही सुब्हें लहू लहू गुज़रीं +इक ऐसी सुब्ह भी आए कि जिस की शाम न हो " +mujhe-to-qatra-hii-honaa-bahut-sataataa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है +इसी लिए तो समुंदर पे रहम आता है +वो इस तरह भी मिरी अहमियत घटाता है +कि मुझ से मिलने में शर्तें बहुत लगाता है +बिछड़ते वक़्त किसी आँख में जो आता है +तमाम उम्र वो आँसू बहुत रुलाता है +कहाँ पहुँच गई दुनिया उसे पता ही नहीं +जो अब भी माज़ी के क़िस्से सुनाए जाता है +उठाए जाएँ जहाँ हाथ ऐसे जलसे में +वही बुरा जो कोई मसअला उठाता है +न कोई ओहदा न डिग्री न नाम की तख़्ती +मैं रह रहा हूँ यहाँ मेरा घर बताता है +समझ रहा हो कहीं ख़ुद को मेरी कमज़ोरी +तो उस से कह दो मुझे भूलना भी आता है " +mere-gam-ko-jo-apnaa-bataate-rahe-waseem-barelvi-ghazals," +मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे +वक़्त पड़ने पे हाथों से जाते रहे +बारिशें आईं और फ़ैसला कर गईं +लोग टूटी छतें आज़माते रहे +आँखें मंज़र हुईं कान नग़्मा हुए +घर के अंदाज़ ही घर से जाते रहे +शाम आई तो बिछड़े हुए हम-सफ़र +आँसुओं से इन आँखों में आते रहे +नन्हे बच्चों ने छू भी लिया चाँद को +बूढ़े बाबा कहानी सुनाते रहे +दूर तक हाथ में कोई पत्थर न था +फिर भी हम जाने क्यूँ सर बचाते रहे +शाइरी ज़हर थी क्या करें ऐ 'वसीम' +लोग पीते रहे हम पिलाते रहे " +shaam-tak-subh-kii-nazron-se-utar-jaate-hain-waseem-barelvi-ghazals-3," +शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं +इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं +फिर वही तल्ख़ी-ए-हालात मुक़द्दर ठहरी +नश्शे कैसे भी हों कुछ दिन में उतर जाते हैं +इक जुदाई का वो लम्हा कि जो मरता ही नहीं +लोग कहते थे कि सब वक़्त गुज़र जाते हैं +घर की गिरती हुई दीवारें ही मुझ से अच्छी +रास्ता चलते हुए लोग ठहर जाते हैं +हम तो बे-नाम इरादों के मुसाफ़िर हैं 'वसीम' +कुछ पता हो तो बताएँ कि किधर जाते हैं " +kyaa-bataauun-kaisaa-khud-ko-dar-ba-dar-main-ne-kiyaa-waseem-barelvi-ghazals," +क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया +उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया +तू तो न���़रत भी न कर पाएगा इस शिद्दत के साथ +जिस बला का प्यार तुझ से बे-ख़बर मैं ने किया +कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेच-ओ-ख़म +ज़िंदगी-भर तो किताबों का सफ़र मैं ने किया +किस को फ़ुर्सत थी कि बतलाता तुझे इतनी सी बात +ख़ुद से क्या बरताव तुझ से छूट कर मैं ने किया +चंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को 'वसीम' +कैसा कैसा जब्र अपने आप पर मैं ने किया " +kyaa-dukh-hai-samundar-ko-bataa-bhii-nahiin-saktaa-waseem-barelvi-ghazals," +क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता +आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता +तू छोड़ रहा है तो ख़ता इस में तिरी क्या +हर शख़्स मिरा साथ निभा भी नहीं सकता +प्यासे रहे जाते हैं ज़माने के सवालात +किस के लिए ज़िंदा हूँ बता भी नहीं सकता +घर ढूँड रहे हैं मिरा रातों के पुजारी +मैं हूँ कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता +वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए +ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता " +zindagii-tujh-pe-ab-ilzaam-koii-kyaa-rakkhe-waseem-barelvi-ghazals," +ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे +अपना एहसास ही ऐसा है जो तन्हा रक्खे +किन शिकस्तों के शब-ओ-रोज़ से गुज़रा होगा +वो मुसव्विर जो हर इक नक़्श अधूरा रक्खे +ख़ुश्क मिट्टी ही ने जब पाँव जमाने न दिए +बहते दरिया से फिर उम्मीद कोई क्या रक्खे +आ ग़म-ए-दोस्त उसी मोड़ पे हो जाऊँ जुदा +जो मुझे मेरा ही रहने दे न तेरा रक्खे +आरज़ूओं के बहुत ख़्वाब तो देखो हो 'वसीम' +जाने किस हाल में बे-दर्द ज़माना रक्खे " +biite-hue-din-khud-ko-jab-dohraate-hain-waseem-barelvi-ghazals," +बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं +एक से जाने हम कितने हो जाते हैं +हम भी दिल की बात कहाँ कह पाते हैं +आप भी कुछ कहते कहते रह जाते हैं +ख़ुश्बू अपने रस्ते ख़ुद तय करती है +फूल तो डाली के हो कर रह जाते हैं +रोज़ नया इक क़िस्सा कहने वाले लोग +कहते कहते ख़ुद क़िस्सा हो जाते हैं +कौन बचाएगा फिर तोड़ने वालों से +फूल अगर शाख़ों से धोखा खाते हैं " +main-aasmaan-pe-bahut-der-rah-nahiin-saktaa-waseem-barelvi-ghazals," +मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता +मगर ये बात ज़मीं से तो कह नहीं सकता +किसी के चेहरे को कब तक निगाह में रक्खूँ +सफ़र में एक ही मंज़र तो रह नहीं सकता +ये आज़माने की फ़ुर्सत तुझे कभी मिल जाए +मैं आँखों आँखों में क्या बात कह नहीं सकता +सहारा लेना ही पड़ता है मुझ को दरिया का +मैं एक क़तरा हूँ तन्हा तो बह नहीं सकता +लगा के देख ले जो भी हिसाब आता हो +मुझे घटा के वो गिनती में रह नहीं सकता +ये चंद लम्हों की बे-इख़्तियारियाँ हैं 'वसीम' +गुनह ��े रिश्ता बहुत देर रह नहीं सकता " +jahaan-dariyaa-kahiin-apne-kinaare-chhod-detaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है +कोई उठता है और तूफ़ान का रुख़ मोड़ देता है +मुझे बे-दस्त-ओ-पा कर के भी ख़ौफ़ उस का नहीं जाता +कहीं भी हादिसा गुज़रे वो मुझ से जोड़ देता है +बिछड़ के तुझ से कुछ जाना अगर तो इस क़दर जाना +वो मिट्टी हूँ जिसे दरिया किनारे छोड़ देता है +मोहब्बत में ज़रा सी बेवफ़ाई तो ज़रूरी है +वही अच्छा भी लगता है जो वा'दे तोड़ देता है " +kitnaa-dushvaar-thaa-duniyaa-ye-hunar-aanaa-bhii-waseem-barelvi-ghazals," +कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी +तुझ से ही फ़ासला रखना तुझे अपनाना भी +कैसी आदाब-ए-नुमाइश ने लगाईं शर्तें +फूल होना ही नहीं फूल नज़र आना भी +दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी +भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी +जाने कब शहर के रिश्तों का बदल जाए मिज़ाज +इतना आसाँ तो नहीं लौट के घर आना भी +ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं +तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी +ख़ुद को पहचान के देखे तो ज़रा ये दरिया +भूल जाएगा समुंदर की तरफ़ जाना भी +जानने वालों की इस भीड़ से क्या होगा 'वसीम' +इस में ये देखिए कोई मुझे पहचाना भी " +main-apne-khvaab-se-bichhdaa-nazar-nahiin-aataa-waseem-barelvi-ghazals," +मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता +तो इस सदी में अकेला नज़र नहीं आता +अजब दबाओ है उन बाहरी हवाओं का +घरों का बोझ भी उठता नज़र नहीं आता +मैं तेरी राह से हटने को हट गया लेकिन +मुझे तो कोई भी रस्ता नज़र नहीं आता +मैं इक सदा पे हमेशा को घर तो छोड़ आया +मगर पुकारने वाला नज़र नहीं आता +धुआँ भरा है यहाँ तो सभी की आँखों में +किसी को घर मिरा जलता नज़र नहीं आता +ग़ज़ल-सराई का दा'वा तो सब करे हैं 'वसीम' +मगर वो 'मीर' सा लहजा नज़र नहीं आता " +apne-chehre-se-jo-zaahir-hai-chhupaaen-kaise-waseem-barelvi-ghazals," +अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे +तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे +घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत ब'अद का है +पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे +लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ़ +सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएँ कैसे +क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है +हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आएँ कैसे +फूल से रंग जुदा होना कोई खेल नहीं +अपनी मिट्टी को कहीं छोड़ के जाएँ कैसे +कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा +एक क़तरे को समुंदर नज़र आएँ कैसे +जिस ने दानिस्ता किया हो नज़र-अंदाज़ 'वसीम' +उस को कुछ याद दिलाएँ तो दिलाएँ कैसे " +bhalaa-gamon-se-kahaan-haar-jaane-vaale-the-waseem-barelvi-ghazals," +भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे +हम आँसुओं की तरह मुस्कुराने वाले थे +हमीं ने कर दिया ऐलान-ए-गुमरही वर्ना +हमारे पीछे बहुत लोग आने वाले थे +उन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे +ये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे +उन्हें क़रीब न होने दिया कभी मैं ने +जो दोस्ती में हदें भूल जाने वाले थे +मैं जिन को जान के पहचान भी नहीं सकता +कुछ ऐसे लोग मिरा घर जलाने वाले थे +हमारा अलमिया ये था कि हम-सफ़र भी हमें +वही मिले जो बहुत याद आने वाले थे +'वसीम' कैसी तअल्लुक़ की राह थी जिस में +वही मिले जो बहुत दिल दुखाने वाले थे " +khul-ke-milne-kaa-saliiqa-aap-ko-aataa-nahiin-waseem-barelvi-ghazals," +खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं +और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं +वो समझता था उसे पा कर ही मैं रह जाऊँगा +उस को मेरी प्यास की शिद्दत का अंदाज़ा नहीं +जा दिखा दुनिया को मुझ को क्या दिखाता है ग़ुरूर +तू समुंदर है तो है मैं तो मगर प्यासा नहीं +कोई भी दस्तक करे आहट हो या आवाज़ दे +मेरे हाथों में मिरा घर तो है दरवाज़ा नहीं +अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों +और जब ऐसा किया मैं ने तो शरमाया नहीं +उस की महफ़िल में उन्हीं की रौशनी जिन के चराग़ +मैं भी कुछ होता तो मेरा भी दिया होता नहीं +तुझ से क्या बिछड़ा मिरी सारी हक़ीक़त खुल गई +अब कोई मौसम मिले तो मुझ से शरमाता नहीं " +sab-ne-milaae-haath-yahaan-tiirgii-ke-saath-waseem-barelvi-ghazals," +सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ +कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ +शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ +कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ +तेरा ख़याल, तेरी तलब तेरी आरज़ू +मैं उम्र भर चला हूँ किसी रौशनी के साथ +दुनिया मिरे ख़िलाफ़ खड़ी कैसे हो गई +मेरी तो दुश्मनी भी नहीं थी किसी के साथ +किस काम की रही ये दिखावे की ज़िंदगी +वादे किए किसी से गुज़ारी किसी के साथ +दुनिया को बेवफ़ाई का इल्ज़ाम कौन दे +अपनी ही निभ सकी न बहुत दिन किसी के साथ +क़तरे वो कुछ भी पाएँ ये मुमकिन नहीं 'वसीम' +बढ़ना जो चाहते हैं समुंदर-कशी के साथ " +dukh-apnaa-agar-ham-ko-bataanaa-nahiin-aataa-waseem-barelvi-ghazals," +दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता +तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता +पहुँचा है बुज़ुर्गों के बयानों से जो हम तक +क्या बात हुई क्यूँ वो ज़माना नहीं आता +मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया +उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता +इस छोटे ज़माने के बड़े कैसे बनोगे +लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता +ढूँढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने +आँसू को मिरी आँख में आना नहीं आता +तारीख़ की आँखों में धुआँ हो गए ख़ुद ही +तुम को तो कोई घर भी जलाना नहीं आता " +apne-har-har-lafz-kaa-khud-aaiina-ho-jaauungaa-waseem-barelvi-ghazals," +अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा +उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा +तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं +मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा +मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र +रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा +सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा +इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा " +chalo-ham-hii-pahal-kar-den-ki-ham-se-bad-gumaan-kyuun-ho-waseem-barelvi-ghazals," +चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो +कोई रिश्ता ज़रा सी ज़िद की ख़ातिर राएगाँ क्यूँ हो +मैं ज़िंदा हूँ तो इस ज़िंदा-ज़मीरी की बदौलत ही +जो बोले तेरे लहजे में भला मेरी ज़बाँ क्यूँ हो +सवाल आख़िर ये इक दिन देखना हम ही उठाएँगे +न समझे जो ज़मीं के ग़म वो अपना आसमाँ क्यूँ हो +हमारी गुफ़्तुगू की और भी सम्तें बहुत सी हैं +किसी का दिल दुखाने ही को फिर अपनी ज़बाँ क्यूँ हो +बिखर कर रह गया हमसायगी का ख़्वाब ही वर्ना +दिए इस घर में रौशन हों तो उस घर में धुआँ क्यूँ हो +मोहब्बत आसमाँ को जब ज़मीं करने की ज़िद ठहरी +तो फिर बुज़दिल उसूलों की शराफ़त दरमियाँ क्यूँ हो +उम्मीदें सारी दुनिया से 'वसीम' और ख़ुद में ऐसे ग़म +किसी पे कुछ न ज़ाहिर हो तो कोई मेहरबाँ क्यूँ हो " +tahriir-se-varna-mirii-kyaa-ho-nahiin-saktaa-waseem-barelvi-ghazals," +तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता +इक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता +आँखों में ख़यालात में साँसों में बसा है +चाहे भी तो मुझ से वो जुदा हो नहीं सकता +जीना है तो ये जब्र भी सहना ही पड़ेगा +क़तरा हूँ समुंदर से ख़फ़ा हो नहीं सकता +गुमराह किए होंगे कई फूल से जज़्बे +ऐसे तो कोई राह-नुमा हो नहीं सकता +क़द मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला है +जो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता +ऐ प्यार तिरे हिस्से में आया तिरी क़िस्मत +वो दर्द जो चेहरों से अदा हो नहीं सकता " +rang-be-rang-hon-khushbuu-kaa-bharosa-jaae-waseem-barelvi-ghazals," +रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए +मेरी आँखों से जो दुनिया तुझे देखा जाए +हम ने जिस राह को छोड़ा फिर उसे छोड़ दिया +अब न जाएँगे उधर चाहे ज़माना जाए +मैं ने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है +हाथ रख दे मिरी आँखों पे कि नींद आ जाए +मैं गुनाहों का तरफ़-दार नहीं हूँ फिर भी +रात को द��न की निगाहों से न देखा जाए +कुछ बड़ी सोचों में ये सोचें भी शामिल हैं 'वसीम' +किस बहाने से कोई शहर जलाया जाए " +haveliyon-men-mirii-tarbiyat-nahiin-hotii-waseem-barelvi-ghazals," +हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती +तो आज सर पे टपकने को छत नहीं होती +हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल +उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती +चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का +हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती +हमें जो ख़ुद में सिमटने का फ़न नहीं आता +तो आज ऐसी तिरी सल्तनत नहीं होती +'वसीम' शहर में सच्चाइयों के लब होते +तो आज ख़बरों में सब ख़ैरियत नहीं होती " +sirf-teraa-naam-le-kar-rah-gayaa-waseem-barelvi-ghazals," +सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया +आज दीवाना बहुत कुछ कह गया +क्या मिरी तक़दीर में मंज़िल नहीं +फ़ासला क्यूँ मुस्कुरा कर रह गया +ज़िंदगी दुनिया में ऐसा अश्क थी +जो ज़रा पलकों पे ठहरा बह गया +और क्या था उस की पुर्सिश का जवाब +अपने ही आँसू छुपा कर रह गया +उस से पूछ ऐ कामयाब-ए-ज़िंदगी +जिस का अफ़्साना अधूरा रह गया +हाए क्या दीवानगी थी ऐ 'वसीम' +जो न कहना चाहिए था कह गया " +kahaan-savaab-kahaan-kyaa-azaab-hotaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है +मोहब्बतों में कब इतना हिसाब होता है +बिछड़ के मुझ से तुम अपनी कशिश न खो देना +उदास रहने से चेहरा ख़राब होता है +उसे पता ही नहीं है कि प्यार की बाज़ी +जो हार जाए वही कामयाब होता है +जब उस के पास गँवाने को कुछ नहीं होता +तो कोई आज का इज़्ज़त-मआब होता है +जिसे मैं लिखता हूँ ऐसे कि ख़ुद ही पढ़ पाँव +किताब-ए-ज़ीस्त में ऐसा भी बाब होता है +बहुत भरोसा न कर लेना अपनी आँखों पर +दिखाई देता है जो कुछ वो ख़्वाब होता है " +sabhii-kaa-dhuup-se-bachne-ko-sar-nahiin-hotaa-waseem-barelvi-ghazals," +सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता +हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता +कभी लहू से भी तारीख़ लिखनी पड़ती है +हर एक मा'रका बातों से सर नहीं होता +मैं उस की आँख का आँसू न बन सका वर्ना +मुझे भी ख़ाक में मिलने का डर नहीं होता +मुझे तलाश करोगे तो फिर न पाओगे +मैं इक सदा हूँ सदाओं का घर नहीं होता +हमारी आँख के आँसू की अपनी दुनिया है +किसी फ़क़ीर को शाहों का डर नहीं होता +मैं उस मकान में रहता हूँ और ज़िंदा हूँ +'वसीम' जिस में हवा का गुज़र नहीं होता " +ye-hai-to-sab-ke-liye-ho-ye-zid-hamaarii-hai-waseem-barelvi-ghazals," +ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है +इस एक बात पे दुनिया से जंग जारी है +उड़ान वालो उड़ानों पे वक़्त भारी है +परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है +मैं क़तरा हो के भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ +मुझे बचाना समुंदर की ज़िम्मेदारी है +इसी से जलते हैं सहरा-ए-आरज़ू में चराग़ +ये तिश्नगी तो मुझे ज़िंदगी से प्यारी है +कोई बताए ये उस के ग़ुरूर-ए-बेजा को +वो जंग मैं ने लड़ी ही नहीं जो हारी है +हर एक साँस पे पहरा है बे-यक़ीनी का +ये ज़िंदगी तो नहीं मौत की सवारी है +दुआ करो कि सलामत रहे मिरी हिम्मत +ये इक चराग़ कई आँधियों पे भारी है " +andheraa-zehn-kaa-samt-e-safar-jab-khone-lagtaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है +किसी का ध्यान आता है उजाला होने लगता है +वो जितनी दूर हो उतना ही मेरा होने लगता है +मगर जब पास आता है तो मुझ से खोने लगता है +किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर +मिरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है +मोहब्बत चार दिन की और उदासी ज़िंदगी भर की +यही सब देखता है और 'कबीरा' रोने लगता है +समझते ही नहीं नादान कै दिन की है मिल्किय्यत +पराए खेतों पे अपनों में झगड़ा होने लगता है +ये दिल बच कर ज़माने भर से चलना चाहे है लेकिन +जब अपनी राह चलता है अकेला होने लगता है " +tumhaarii-raah-men-mittii-ke-ghar-nahiin-aate-waseem-barelvi-ghazals," +तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते +इसी लिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते +मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है +ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते +जिन्हें सलीक़ा है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का +उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते +ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना +बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते +बिसात-ए-इश्क़ पे बढ़ना किसे नहीं आता +ये और बात कि बचने के घर नहीं आते +'वसीम' ज़ेहन बनाते हैं तो वही अख़बार +जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते " +lahuu-na-ho-to-qalam-tarjumaan-nahiin-hotaa-waseem-barelvi-ghazals," +लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता +हमारे दौर में आँसू ज़बाँ नहीं होता +जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा +किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता +ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तन्हाई +कि मुझ से आज कोई बद-गुमाँ नहीं होता +बस इक निगाह मिरी राह देखती होती +ये सारा शहर मिरा मेज़बाँ नहीं होता +तिरा ख़याल न होता तो कौन समझाता +ज़मीं न हो तो कोई आसमाँ नहीं होता +मैं उस को भूल गया हूँ ये कौन मानेगा +किसी चराग़ के बस में धुआँ नहीं होता +'वसीम' सदियों की आँखों से देखिए मुझ को +वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता " +chaand-kaa-khvaab-ujaalon-kii-nazar-lagtaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है +तू जिधर हो के गुज़र जाए ख़बर लगता है +उस की यादों ने उगा रक्खे हैं सूरज इतने +शाम का वक़्त भी आए तो सहर लगता है +एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फ़ितरत +उम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है +मैं नज़र भर के तिरे जिस्म को जब देखता हूँ +पहली बारिश में नहाया सा शजर लगता है +बे-सहारा था बहुत प्यार कोई पूछता क्या +तू ने काँधे पे जगह दी है तो सर लगता है +तेरी क़ुर्बत के ये लम्हे उसे रास आएँ क्या +सुब्ह होने का जिसे शाम से डर लगता है " +kuchh-itnaa-khauf-kaa-maaraa-huaa-bhii-pyaar-na-ho-waseem-barelvi-ghazals," +कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो +वो ए'तिबार दिलाए और ए'तिबार न हो +हवा ख़िलाफ़ हो मौजों पे इख़्तियार न हो +ये कैसी ज़िद है कि दरिया किसी से पार न हो +मैं गाँव लौट रहा हूँ बहुत दिनों के बाद +ख़ुदा करे कि उसे मेरा इंतिज़ार न हो +ज़रा सी बात पे घुट घुट के सुब्ह कर देना +मिरी तरह भी कोई मेरा ग़म-गुसार न हो +दुखी समाज में आँसू भरे ज़माने में +उसे ये कौन बताए कि अश्क-बार न हो +गुनाहगारों पे उँगली उठाए देते हो +'वसीम' आज कहीं तुम भी संगसार न हो " +main-is-umiid-pe-duubaa-ki-tuu-bachaa-legaa-waseem-barelvi-ghazals," +मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा +अब इस के बा'द मिरा इम्तिहान क्या लेगा +ये एक मेला है वा'दा किसी से क्या लेगा +ढलेगा दिन तो हर इक अपना रास्ता लेगा +मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा +कोई चराग़ नहीं हूँ कि फिर जला लेगा +कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए +जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा +मैं उस का हो नहीं सकता बता न देना उसे +लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा +हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता 'वसीम' +मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा " +udaasiyon-men-bhii-raste-nikaal-letaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है +अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है +ये कैसा शख़्स है कितनी ही अच्छी बात कहो +कोई बुराई का पहलू निकाल लेता है +ढले तो होती है कुछ और एहतियात की उम्र +कि बहते बहते ये दरिया उछाल लेता है +बड़े-बड़ों की तरह-दारियाँ नहीं चलतीं +उरूज तेरी ख़बर जब ज़वाल लेता है +जब उस के जाम में इक बूँद तक नहीं होती +वो मेरी प्यास को फिर भी सँभाल लेता है " +aate-aate-miraa-naam-saa-rah-gayaa-waseem-barelvi-ghazals," +आते आते मिरा नाम सा रह गया +उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया +रात मुजरिम थी दामन बचा ले गई +दिन गवाहों की सफ़ में खड़ा रह गया +वो मिरे सामने ही गया और मैं +रास्ते की तरह देखता रह गया +झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए +और मैं था कि सच बोलता रह गया +���ँधियों के इरादे तो अच्छे न थे +ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया +उस को काँधों पे ले जा रहे हैं 'वसीम' +और वो जीने का हक़ माँगता रह गया " +use-samajhne-kaa-koii-to-raasta-nikle-waseem-barelvi-ghazals," +उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले +मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले +किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रा +न जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले +मैं तुझ से मिलता तो तफ़्सील में नहीं जाता +मिरी तरफ़ से तिरे दिल में जाने क्या निकले +जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है +उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले +तमाम शहर की आँखों में सुर्ख़ शो'ले हैं +'वसीम' घर से अब ऐसे में कोई क्या निकले " +vo-mere-ghar-nahiin-aataa-main-us-ke-ghar-nahiin-jaataa-waseem-barelvi-ghazals," +वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता +मगर इन एहतियातों से तअ'ल्लुक़ मर नहीं जाता +बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं +किसी को साथ दुनिया से कोई ले कर नहीं जाता +घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में +कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता +खुले थे शहर में सौ दर मगर इक हद के अंदर ही +कहाँ जाता अगर मैं लौट के फिर घर नहीं जाता +मोहब्बत के ये आँसू हैं उन्हें आँखों में रहने दो +शरीफ़ों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता +'वसीम' उस से कहो दुनिया बहुत महदूद है मेरी +किसी दर का जो हो जाए वो फिर दर दर नहीं जाता " +mohabbat-naa-samajh-hotii-hai-samjhaanaa-zaruurii-hai-waseem-barelvi-ghazals," +मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है +जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है +उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है +जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है +नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए +कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है +थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें +सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है +बहुत बेबाक आँखों में तअ'ल्लुक़ टिक नहीं पाता +मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है +सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का +जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है +मिरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो +कि इस के बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है " +apne-andaaz-kaa-akelaa-thaa-waseem-barelvi-ghazals," +अपने अंदाज़ का अकेला था +इस लिए मैं बड़ा अकेला था +प्यार तो जन्म का अकेला था +क्या मिरा तजरबा अकेला था +साथ तेरा न कुछ बदल पाया +मेरा ही रास्ता अकेला था +बख़्शिश-ए-बे-हिसाब के आगे +मेरा दस्त-ए-दुआ' अकेला था +तेरी समझौते-बाज़ दुनिया में +कौन मेरे सिवा ���केला था +जो भी मिलता गले लगा लेता +किस क़दर आइना अकेला था " +hamaaraa-azm-e-safar-kab-kidhar-kaa-ho-jaae-waseem-barelvi-ghazals," +हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए +ये वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाए +उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में +इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए +खुली हवाओं में उड़ना तो उस की फ़ितरत है +परिंदा क्यूँ किसी शाख़-ए-शजर का हो जाए +मैं लाख चाहूँ मगर हो तो ये नहीं सकता +कि तेरा चेहरा मिरी ही नज़र का हो जाए +मिरा न होने से क्या फ़र्क़ उस को पड़ना है +पता चले जो किसी कम-नज़र का हो जाए +'वसीम' सुब्ह की तन्हाई-ए-सफ़र सोचो +मुशाएरा तो चलो रात भर का हो जाए " +kahaan-qatre-kii-gam-khvaarii-kare-hai-waseem-barelvi-ghazals," +कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है +समुंदर है अदाकारी करे है +कोई माने न माने उस की मर्ज़ी +मगर वो हुक्म तो जारी करे है +नहीं लम्हा भी जिस की दस्तरस में +वही सदियों की तय्यारी करे है +बड़े आदर्श हैं बातों में लेकिन +वो सारे काम बाज़ारी करे है +हमारी बात भी आए तो जानें +वो बातें तो बहुत सारी करे है +यही अख़बार की सुर्ख़ी बनेगा +ज़रा सा काम चिंगारी करे है +बुलावा आएगा चल देंगे हम भी +सफ़र की कौन तय्यारी करे है " +vo-mujh-ko-kyaa-bataanaa-chaahtaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +वो मुझ को क्या बताना चाहता है +जो दुनिया से छुपाना चाहता है +मुझे देखो कि मैं उस को ही चाहूँ +जिसे सारा ज़माना चाहता है +क़लम करना कहाँ है उस का मंशा +वो मेरा सर झुकाना चाहता है +शिकायत का धुआँ आँखों से दिल तक +तअ'ल्लुक़ टूट जाना चाहता है +तक़ाज़ा वक़्त का कुछ भी हो ये दिल +वही क़िस्सा पुराना चाहता है " +apne-saae-ko-itnaa-samjhaane-de-waseem-barelvi-ghazals," +अपने साए को इतना समझाने दे +मुझ तक मेरे हिस्से की धूप आने दे +एक नज़र में कई ज़माने देखे तो +बूढ़ी आँखों की तस्वीर बनाने दे +बाबा दुनिया जीत के मैं दिखला दूँगा +अपनी नज़र से दूर तो मुझ को जाने दे +मैं भी तो इस बाग़ का एक परिंदा हूँ +मेरी ही आवाज़ में मुझ को गाने दे +फिर तो ये ऊँचा ही होता जाएगा +बचपन के हाथों में चाँद आ जाने दे +फ़स्लें पक जाएँ तो खेत से बिछ्ड़ेंगी +रोती आँख को प्यार कहाँ समझाने दे " +ham-apne-aap-ko-ik-masala-banaa-na-sake-waseem-barelvi-ghazals," +हम अपने आप को इक मसअला बना न सके +इसी लिए तो किसी की नज़र में आ न सके +हम आँसुओं की तरह वास्ते निभा न सके +रहे जिन आँखों में उन में ही घर बना न सके +फिर आँधियों ने सिखाया वहाँ सफ़र का हुनर +जहाँ चराग़ हमें रास्ता दिखा न सके +जो पेश पेश थे बस्ती बचाने वालों में +लगी जब आग तो अपना भी घर बचा न सके +मिरे ख़ुदा किसी ऐसी जगह उसे रखना +जहाँ कोई मिरे बारे में कुछ बता न सके +तमाम उम्र की कोशिश का बस यही हासिल +किसी को अपने मुताबिक़ कोई बना न सके +तसल्लियों पे बहुत दिन जिया नहीं जाता +कुछ ऐसा हो के तिरा ए'तिबार आ न सके " +main-ye-nahiin-kahtaa-ki-miraa-sar-na-milegaa-waseem-barelvi-ghazals," +मैं ये नहीं कहता कि मिरा सर न मिलेगा +लेकिन मिरी आँखों में तुझे डर न मिलेगा +सर पर तो बिठाने को है तय्यार ज़माना +लेकिन तिरे रहने को यहाँ घर न मिलेगा +जाती है चली जाए ये मय-ख़ाने की रौनक़ +कम-ज़र्फ़ों के हाथों में तो साग़र न मिलेगा +दुनिया की तलब है तो क़नाअत ही न करना +क़तरे ही से ख़ुश हो तो समुंदर न मिलेगा " +mirii-vafaaon-kaa-nashsha-utaarne-vaalaa-waseem-barelvi-ghazals," +मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला +कहाँ गया मुझे हँस हँस के हारने वाला +हमारी जान गई जाए देखना ये है +कहीं नज़र में न आ जाए मारने वाला +बस एक प्यार की बाज़ी है बे-ग़रज़ बाज़ी +न कोई जीतने वाला न कोई हारने वाला +भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने +शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला +मैं उस का दिन भी ज़माने में बाँट कर रख दूँ +वो मेरी रातों को छुप कर गुज़ारने वाला +'वसीम' हम भी बिखरने का हौसला करते +हमें भी होता जो कोई सँवारने वाला " +tuu-samajhtaa-hai-ki-rishton-kii-duhaaii-denge-waseem-barelvi-ghazals," +तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे +हम तो वो हैं तिरे चेहरे से दिखाई देंगे +हम को महसूस किया जाए है ख़ुश्बू की तरह +हम कोई शोर नहीं हैं जो सुनाई देंगे +फ़ैसला लिक्खा हुआ रक्खा है पहले से ख़िलाफ़ +आप क्या साहब अदालत में सफ़ाई देंगे +पिछली सफ़ में ही सही है तो इसी महफ़िल में +आप देखेंगे तो हम क्यूँ न दिखाई देंगे " +duur-se-hii-bas-dariyaa-dariyaa-lagtaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है +डूब के देखो कितना प्यासा लगता है +तन्हा हो तो घबराया सा लगता है +भीड़ में उस को देख के अच्छा लगता है +आज ये है कल और यहाँ होगा कोई +सोचो तो सब खेल-तमाशा लगता है +मैं ही न मानूँ मेरे बिखरने में वर्ना +दुनिया भर को हाथ तुम्हारा लगता है +ज़ेहन से काग़ज़ पर तस्वीर उतरते ही +एक मुसव्विर कितना अकेला लगता है +प्यार के इस नश्शा को कोई क्या समझे +ठोकर में जब सारा ज़माना लगता है +भीड़ में रह कर अपना भी कब रह पाता +चाँद अकेला है तो सब का लगता है +शाख़ पे बैठी भोली-भाली इक चिड़िया +क्या जाने उस पर भी निशाना लगता है " +zaraa-saa-qatra-kahiin-aaj-agar-ubhartaa-hai-waseem-barelvi-ghazals," +ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है +समुंदरों ही के लहजे में बात करता है +खुली छतों के दिए कब के बुझ गए होते +कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है +शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं +किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है +ये देखना है कि सहरा भी है समुंदर भी +वो मेरी तिश्ना-लबी किस के नाम करता है +तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों +ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है +ज़मीं की कैसी वकालत हो फिर नहीं चलती +जब आसमाँ से कोई फ़ैसला उतरता है " +nahiin-ki-apnaa-zamaana-bhii-to-nahiin-aayaa-waseem-barelvi-ghazals," +नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया +हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया +जला के रख लिया हाथों के साथ दामन तक +तुम्हें चराग़ बुझाना भी तो नहीं आया +नए मकान बनाए तो फ़ासलों की तरह +हमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया +वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब +मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया +'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़ +किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया " +vo-dhal-rahaa-hai-to-ye-bhii-rangat-badal-rahii-hai-javed-akhtar-ghazals," +वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है +ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है +जो मुझ को ज़िंदा जला रहे हैं वो बे-ख़बर हैं +कि मेरी ज़ंजीर धीरे धीरे पिघल रही है +मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन +मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है +न जलने पाते थे जिस के चूल्हे भी हर सवेरे +सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है +मैं जानता हूँ कि ख़ामुशी में ही मस्लहत है +मगर यही मस्लहत मिरे दिल को खल रही है +कभी तो इंसान ज़िंदगी की करेगा इज़्ज़त +ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है " +dast-bardaar-agar-aap-gazab-se-ho-jaaen-javed-akhtar-ghazals," +दस्त-बरदार अगर आप ग़ज़ब से हो जाएँ +हर सितम भूल के हम आप के अब से हो जाएँ +चौदहवीं शब है तो खिड़की के गिरा दो पर्दे +कौन जाने कि वो नाराज़ ही शब से हो जाएँ +एक ख़ुश्बू की तरह फैलते हैं महफ़िल में +ऐसे अल्फ़ाज़ अदा जो तिरे लब से हो जाएँ +न कोई इश्क़ है बाक़ी न कोई परचम है +लोग दीवाने भला किस के सबब से हो जाएँ +बाँध लो हाथ कि फैलें न किसी के आगे +सी लो ये लब कि कहीं वो न तलब से हो जाएँ +बात तो छेड़ मिरे दिल कोई क़िस्सा तो सुना +क्या अजब उन के भी जज़्बात अजब से हो जाएँ " +ba-zaahir-kyaa-hai-jo-haasil-nahiin-hai-javed-akhtar-ghazals," +ब-ज़ाहिर क्या है जो हासिल नहीं है +मगर ये तो मिरी मंज़िल नहीं है +ये तूदा रेत का है बीच दरिया +ये बह जाएगा ये साहिल नहीं है +बहुत आसान है पहचान उस की +अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है +मुसाफ़िर वो अ��ब है कारवाँ में +कि जो हमराह है शामिल नहीं है +बस इक मक़्तूल ही मक़्तूल कब है +बस इक क़ातिल ही तो क़ातिल नहीं है +कभी तो रात को तुम रात कह दो +ये काम इतना भी अब मुश्किल नहीं है " +dard-ke-phuul-bhii-khilte-hain-bikhar-jaate-hain-javed-akhtar-ghazals," +दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं +ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं +रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से +कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं +छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर +मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं +नर्म अल्फ़ाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे +पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं +उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी +सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं " +yahii-haalaat-ibtidaa-se-rahe-javed-akhtar-ghazals," +यही हालात इब्तिदा से रहे +लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे +इन चराग़ों में तेल ही कम था +क्यूँ गिला हम को फिर हवा से रहे +बहस शतरंज शे'र मौसीक़ी +तुम नहीं थे तो ये दिलासे रहे +ज़िंदगी की शराब माँगते हो +हम को देखो कि पी के प्यासे रहे +उस के बंदों को देख कर कहिए +हम को उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे " +phirte-hain-kab-se-dar-ba-dar-ab-is-nagar-ab-us-nagar-ik-duusre-ke-ham-safar-main-aur-mirii-aavaargii-javed-akhtar-ghazals," +फिरते हैं कब से दर-ब-दर अब इस नगर अब उस नगर इक दूसरे के हम-सफ़र मैं और मिरी आवारगी +ना-आश्ना हर रह-गुज़र ना-मेहरबाँ हर इक नज़र जाएँ तो अब जाएँ किधर मैं और मिरी आवारगी +हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बर्बाद थे बे-फ़िक्र थे आज़ाद थे मसरूर थे दिल-शाद थे +वो चाल ऐसी चल गया हम बुझ गए दिल जल गया निकले जला के अपना घर मैं और मिरी आवारगी +जीना बहुत आसान था इक शख़्स का एहसान था हम को भी इक अरमान था जो ख़्वाब का सामान था +अब ख़्वाब है नय आरज़ू अरमान है नय जुस्तुजू यूँ भी चलो ख़ुश हैं मगर मैं और मिरी आवारगी +वो माह-वश वो माह-रू वो माह-काम-ए-हू-ब-हू थीं जिस की बातें कू-ब-कू उस से अजब थी गुफ़्तुगू +फिर यूँ हुआ वो खो गई तो मुझ को ज़िद सी हो गई लाएँगे उस को ढूँड कर मैं और मिरी आवारगी +ये दिल ही था जो सह गया वो बात ऐसी कह गया कहने को फिर क्या रह गया अश्कों का दरिया बह गया +जब कह के वो दिलबर गया तेरे लिए मैं मर गया रोते हैं उस को रात भर मैं और मिरी आवारगी +अब ग़म उठाएँ किस लिए आँसू बहाएँ किस लिए ये दिल जलाएँ किस लिए यूँ जाँ गंवाएँ किस लिए +पेशा न हो जिस का सितम ढूँडेंगे अब ऐसा सनम होंगे कहीं तो कारगर मैं और मिरी आवारगी +आसार हैं सब खोट के इम्कान हैं सब चोट के घर बंद हैं सब गोट के अब ख़त्म हैं सब टोटके +क़िस्मत का सब ये फेर है अंधेर है अंधेर है ऐसे हुए हैं बे-असर मैं और मिरी आवारगी +जब हमदम-ओ-हमराज़ था तब और ही अंदाज़ था अब सोज़ है तब साज़ था अब शर्म है तब नाज़ था +अब मुझ से हो तो हो भी क्या है साथ वो तो वो भी क्या इक बे-हुनर इक बे-समर मैं और मिरी आवारगी " +jidhar-jaate-hain-sab-jaanaa-udhar-achchhaa-nahiin-lagtaa-javed-akhtar-ghazals," +जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता +मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता +ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना +बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता +मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है +किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता +बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती +ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता +ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो +कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता " +dard-apnaataa-hai-paraae-kaun-javed-akhtar-ghazals," +दर्द अपनाता है पराए कौन +कौन सुनता है और सुनाए कौन +कौन दोहराए फिर वही बातें +ग़म अभी सोया है जगाए कौन +अब सुकूँ है तो भूलने में है +लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन +वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं +कौन दुख झेले आज़माए कौन +आज फिर दिल है कुछ उदास उदास +देखिए आज याद आए कौन " +bahaana-dhuundte-rahte-hain-koii-rone-kaa-javed-akhtar-ghazals," +बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का +हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का +अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी +हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का +जो फ़स्ल ख़्वाब की तय्यार है तो ये जानो +कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का +ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे +ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का +है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है +वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का " +aaj-main-ne-apnaa-phir-saudaa-kiyaa-javed-akhtar-ghazals," +आज मैं ने अपना फिर सौदा किया +और फिर मैं दूर से देखा किया +ज़िंदगी-भर मेरे काम आए उसूल +एक इक कर के उन्हें बेचा किया +बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी +ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया +कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी +तुम से क्या कहते कि तुम ने क्या किया +क्या बताऊँ कौन था जिस ने मुझे +इस भरी दुनिया में है तन्हा किया " +jiinaa-mushkil-hai-ki-aasaan-zaraa-dekh-to-lo-javed-akhtar-ghazals," +जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो +लोग लगते हैं परेशान ज़रा देख तो लो +फिर मुक़र्रिर कोई सरगर्म सर-ए-मिंबर है +किस के है क़त्ल का सामान ज़रा देख तो लो +ये नया शहर तो है ख़ूब बसाया तुम ने +क्यूँ पुराना हुआ वीरान ज़रा देख तो लो +इन चराग़ों के तले ऐसे अँधेरे क्यूँ है +तुम भी रह जाओगे हैरान ज़रा देख तो लो +तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद +निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो +ये सताइश की तमन्ना ये सिले की परवाह +कहाँ लाए हैं ये अरमान ज़रा देख तो लो " +hamaare-shauq-kii-ye-intihaa-thii-javed-akhtar-ghazals," +हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी +क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी +बिछड़ के डार से बन बन फिरा वो +हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी +कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है +मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी +मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था +मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी +मोहब्बत मर गई मुझ को भी ग़म है +मिरे अच्छे दिनों की आश्ना थी +जिसे छू लूँ मैं वो हो जाए सोना +तुझे देखा तो जाना बद-दुआ' थी +मरीज़-ए-ख़्वाब को तो अब शिफ़ा है +मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी " +dukh-ke-jangal-men-phirte-hain-kab-se-maare-maare-log-javed-akhtar-ghazals," +दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग +जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग +जीवन जीवन हम ने जग में खेल यही होते देखा +धीरे धीरे जीती दुनिया धीरे धीरे हारे लोग +वक़्त सिंघासन पर बैठा है अपने राग सुनाता है +संगत देने को पाते हैं साँसों के उक्तारे लोग +नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो +हम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग +इस नगरी में क्यूँ मिलती है रोटी सपनों के बदले +जिन की नगरी है वो जानें हम ठहरे बंजारे लोग " +main-paa-sakaa-na-kabhii-is-khalish-se-chhutkaaraa-javed-akhtar-ghazals," +मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा +वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा +बरस के खुल गए आँसू निथर गई है फ़ज़ा +चमक रहा है सर-ए-शाम दर्द का तारा +किसी की आँख से टपका था इक अमानत है +मिरी हथेली पे रक्खा हुआ ये अँगारा +जो पर समेटे तो इक शाख़ भी नहीं पाई +खुले थे पर तो मिरा आसमान था सारा +वो साँप छोड़ दे डसना ये मैं भी कहता हूँ +मगर न छोड़ेंगे लोग उस को गर न फुन्कारा " +ye-mujh-se-puuchhte-hain-chaaragar-kyuun-javed-akhtar-ghazals," +ये मुझ से पूछते हैं चारागर क्यूँ +कि तू ज़िंदा तो है अब तक मगर क्यूँ +जो रस्ता छोड़ के मैं जा रहा हूँ +उसी रस्ते पे जाती है नज़र क्यूँ +थकन से चूर पास आया था उस के +गिरा सोते में मुझ पर ये शजर क्यूँ +सुनाएँगे कभी फ़ुर्सत में तुम को +कि हम बरसों रहे हैं दर-ब-दर क्यूँ +यहाँ भी सब हैं बेगाना ही मुझ से +कहूँ मैं क्या कि याद आया है घर क्यूँ +मैं ख़ुश रहता अगर समझा न होता +ये दुनिया है तो मैं हूँ दीदा-वर क्यूँ " +dard-kuchh-din-to-mehmaan-thahre-javed-akhtar-ghazals," +दर्द कुछ दिन तो मेहमाँ ठहरे +हम ब-ज़िद हैं कि मेज़बाँ ठहरे +सिर्फ़ तन्हाई सिर्फ़ वीरानी +ये नज़र जब उठे जहाँ ठहरे +कौन से ज़ख़्म पर पड़ाव किया +दर्द के क़ाफ़िले कहाँ ठहरे +कैसे दिल में ख़ुशी बसा लूँ मैं +कैसे मुट्ठी में ये धुआँ ठहरे +थी कहीं मस्लहत कहीं जुरअत +हम कहीं इन के दरमियाँ ठहरे " +main-khud-bhii-sochtaa-huun-ye-kyaa-meraa-haal-hai-javed-akhtar-ghazals," +मैं ख़ुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है +जिस का जवाब चाहिए वो क्या सवाल है +घर से चला तो दिल के सिवा पास कुछ न था +क्या मुझ से खो गया है मुझे क्या मलाल है +आसूदगी से दल के सभी दाग़ धुल गए +लेकिन वो कैसे जाए जो शीशे में बाल है +बे-दस्त-ओ-पा हूँ आज तो इल्ज़ाम किस को दूँ +कल मैं ने ही बुना था ये मेरा ही जाल है +फिर कोई ख़्वाब देखूँ कोई आरज़ू करूँ +अब ऐ दिल-ए-तबाह तिरा क्या ख़याल है " +khulaa-hai-dar-pa-tiraa-intizaar-jaataa-rahaa-javed-akhtar-ghazals," +खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा +ख़ुलूस तो है मगर ए'तिबार जाता रहा +किसी की आँख में मस्ती तो आज भी है वही +मगर कभी जो हमें था ख़ुमार जाता रहा +कभी जो सीने में इक आग थी वो सर्द हुई +कभी निगाह में जो था शरार जाता रहा +अजब सा चैन था हम को कि जब थे हम बेचैन +क़रार आया तो जैसे क़रार जाता रहा +कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में +मैं ये उमीद लिए बार बार जाता रहा " +ye-tasallii-hai-ki-hain-naashaad-sab-javed-akhtar-ghazals," +ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब +मैं अकेला ही नहीं बर्बाद सब +सब की ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी +और कहने को हैं घर आबाद सब +भूल के सब रंजिशें सब एक हैं +मैं बताऊँ सब को होगा याद सब +सब को दा'वा-ए-वफ़ा सब को यक़ीं +इस अदाकारी में हैं उस्ताद सब +शहर के हाकिम का ये फ़रमान है +क़ैद में कहलाएँगे आज़ाद सब +चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो +उस को कब फ़ुर्सत सुने फ़रियाद सब +तल्ख़ियाँ कैसे न हूँ अशआ'र में +हम पे जो गुज़री हमें है याद सब " +zaraa-mausam-to-badlaa-hai-magar-pedon-kii-shaakhon-par-nae-patton-ke-aane-men-abhii-kuchh-din-lagenge-javed-akhtar-ghazals," +ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे +बहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है कम बे-शक पर उन को मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे +कभी हम को यक़ीं था ज़ो'म था दुनिया हमारी जो मुख़ालिफ़ है तो हो जाए मगर तुम मेहरबाँ हो +हमें ये बात वैसे याद तो अब क्या है लेकिन हाँ इसे यकसर भुलाने में अभी कुछ दिन लगेंगे +जहाँ इतने मसाइब हों जहाँ इतनी परेशानी किसी का बेवफ़ा होना है कोई सानेहा क्या +बहुत माक़ूल है ये बात लेकिन इस हक़ीक़त तक दिल-ए-नादाँ को लाने में अभी कुछ दिन लगेंगे +कोई टूटे हुए शीशे लिए अफ़्सुर्दा-ओ-मग़्मूम कब तक यूँ गुज़ारे बे-तलब बे-आरज़ू दिन +तो इन ख़्वाबों की किर्चें हम ने पलकों से झटक दीं पर नए अरमाँ सजाने में अभी कुछ दिन लगेंगे +तवहहुम की सियह शब को किरन से चाक कर के आगही हर एक आँगन में नया सूरज उतारे +मगर अफ़्सोस ये सच है वो शब थी और ये सुरज है ये सब को मान जाने में अभी कुछ दिन लगेंगे +पुरानी मंज़िलों का शौक़ तो किस को है बाक़ी अब नई हैं मंज़िलें हैं सब के दिल में जिन के अरमाँ +बना लेना नई मंज़िल न था मुश्किल मगर ऐ दिल नए रस्ते बनाने में अभी कुछ दिन लगेंगे +अँधेरे ढल गए रौशन हुए मंज़र ज़मीं जागी फ़लक जागा तो जैसे जाग उट्ठी ज़िंदगानी +मगर कुछ याद-ए-माज़ी ओढ़ के सोए हुए लोगों को लगता है जगाने में अभी कुछ दिन लगेंगे " +yaad-use-bhii-ek-adhuuraa-afsaana-to-hogaa-javed-akhtar-ghazals," +याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा +कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा +डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से +लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा +कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें +जो ये फ़र्क़ समझ लेगा वो दीवाना तो होगा +दिल की बातें नहीं है तो दिलचस्प ही कुछ बातें हों +ज़िंदा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा +जीत के भी वो शर्मिंदा है हार के भी हम नाज़ाँ +कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा " +gam-hote-hain-jahaan-zehaanat-hotii-hai-javed-akhtar-ghazals," +ग़म होते हैं जहाँ ज़ेहानत होती है +दुनिया में हर शय की क़ीमत होती है +अक्सर वो कहते हैं वो बस मेरे हैं +अक्सर क्यूँ कहते हैं हैरत होती है +तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे +अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है +अपनी महबूबा में अपनी माँ देखें +बिन माँ के लड़कों की फ़ितरत होती है +इक कश्ती में एक क़दम ही रखते हैं +कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है " +jism-damaktaa-zulf-ghanerii-rangiin-lab-aankhen-jaaduu-javed-akhtar-ghazals," +जिस्म दमकता, ज़ुल्फ़ घनेरी, रंगीं लब, आँखें जादू +संग-ए-मरमर, ऊदा बादल, सुर्ख़ शफ़क़, हैराँ आहू +भिक्षु-दानी, प्यासा पानी, दरिया सागर, जल गागर +गुलशन ख़ुशबू, कोयल कूकू, मस्ती दारू, मैं और तू +ब़ाँबी नागिन, छाया आँगन, घुंघरू छन-छन, आशा मन +आँखें काजल, पर्बत बादल, वो ज़ुल्फ़ें और ये बाज़ू +रातें महकी, साँसें दहकी, नज़रें बहकी, रुत लहकी +सप्न सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछौना, वो पहलू +तुम से द��री, ये मजबूरी, ज़ख़्म-ए-कारी, बेदारी, +तन्हा रातें, सपने क़ातें, ख़ुद से बातें, मेरी ख़ू " +kabhii-kabhii-main-ye-sochtaa-huun-ki-mujh-ko-terii-talaash-kyuun-hai-javed-akhtar-ghazals," +कभी कभी मैं ये सोचता हूँ कि मुझ को तेरी तलाश क्यूँ है +कि जब हैं सारे ही तार टूटे तो साज़ में इर्तिआ'श क्यूँ है +कोई अगर पूछता ये हम से बताते हम गर तो क्या बताते +भला हो सब का कि ये न पूछा कि दिल पे ऐसी ख़राश क्यूँ है +उठा के हाथों से तुम ने छोड़ा चलो न दानिस्ता तुम ने तोड़ा +अब उल्टा हम से तो ये न पूछो कि शीशा ये पाश पाश क्यूँ है +अजब दो-राहे पे ज़िंदगी है कभी हवस दिल को खींचती है +कभी ये शर्मिंदगी है दिल में कि इतनी फ़िक्र-ए-मआ'श क्यूँ है +न फ़िक्र कोई न जुस्तुजू है न ख़्वाब कोई न आरज़ू है +ये शख़्स तो कब का मर चुका है तो बे-कफ़न फिर ये लाश क्यूँ है " +khvaab-ke-gaanv-men-pale-hain-ham-javed-akhtar-ghazals," +ख़्वाब के गाँव में पले हैं हम +पानी छलनी में ले चले हैं हम +छाछ फूंकें कि अपने बचपन में +दूध से किस तरह जले हैं हम +ख़ुद हैं अपने सफ़र की दुश्वारी +अपने पैरों के आबले हैं हम +तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया +तू ने ढाला है और ढले हैं हम +क्यूँ हैं कब तक हैं किस की ख़ातिर हैं +बड़े संजीदा मसअले हैं हम " +pyaas-kii-kaise-laae-taab-koii-javed-akhtar-ghazals," +प्यास की कैसे लाए ताब कोई +नहीं दरिया तो हो सराब कोई +ज़ख़्म-ए-दिल में जहाँ महकता है +इसी क्यारी में था गुलाब कोई +रात बजती थी दूर शहनाई +रोया पी कर बहुत शराब कोई +दिल को घेरे हैं रोज़गार के ग़म +रद्दी में खो गई किताब कोई +कौन सा ज़ख़्म किस ने बख़्शा है +इस का रक्खे कहाँ हिसाब कोई +फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की +आने वाला है फिर अज़ाब कोई +शब की दहलीज़ पर शफ़क़ है लहू +फिर हुआ क़त्ल आफ़्ताब कोई " +main-kab-se-kitnaa-huun-tanhaa-tujhe-pataa-bhii-nahiin-javed-akhtar-ghazals," +मैं कब से कितना हूँ तन्हा तुझे पता भी नहीं +तिरा तो कोई ख़ुदा है मिरा ख़ुदा भी नहीं +कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ +कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं +कभी तो बात की उस ने कभी रहा ख़ामोश +कभी तो हँस के मिला और कभी मिला भी नहीं +कभी जो तल्ख़-कलामी थी वो भी ख़त्म हुई +कभी गिला था हमें उन से अब गिला भी नहीं +वो चीख़ उभरी बड़ी देर गूँजी डूब गई +हर एक सुनता था लेकिन कोई हिला भी नहीं " +kal-jahaan-diivaar-thii-hai-aaj-ik-dar-dekhiye-javed-akhtar-ghazals," +कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए +क्या समाई थी भला दीवाने के सर देखिए +पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत +पैरों की बे-ताबियाँ पानी के अंदर देखिए +छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था +अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए +ज़ेहन-ए-इंसानी इधर आफ़ाक़ की वुसअत उधर +एक मंज़र है यहाँ अंदर कि बाहर देखिए +अक़्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाज़ार में +दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए " +sach-ye-hai-be-kaar-hamen-gam-hotaa-hai-javed-akhtar-ghazals," +सच ये है बे-कार हमें ग़म होता है +जो चाहा था दुनिया में कम होता है +ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम +हम से पूछो कैसा आलम होता है +ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की +जब होता है कोई हमदम होता है +ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं +लोगों से सुनते हैं मरहम होता है +ज़ेहन की शाख़ों पर अशआर आ जाते हैं +जब तेरी यादों का मौसम होता है " +kin-lafzon-men-itnii-kadvii-itnii-kasiilii-baat-likhuun-javed-akhtar-ghazals," +किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ +शे'र की मैं तहज़ीब बना हूँ या अपने हालात लिखूँ +ग़म नहीं लिक्खूँ क्या मैं ग़म को जश्न लिखूँ क्या मातम को +जो देखे हैं मैं ने जनाज़े क्या उन को बारात लिखूँ +कैसे लिखूँ मैं चाँद के क़िस्से कैसे लिखूँ मैं फूल की बात +रेत उड़ाए गर्म हवा तो कैसे मैं बरसात लिखूँ +किस किस की आँखों में देखे मैं ने ज़हर बुझे ख़ंजर +ख़ुद से भी जो मैं ने छुपाए कैसे वो सदमात लिखूँ +तख़्त की ख़्वाहिश लूट की लालच कमज़ोरों पर ज़ुल्म का शौक़ +लेकिन उन का फ़रमाना है मैं इन को जज़्बात लिखूँ +क़ातिल भी मक़्तूल भी दोनों नाम ख़ुदा का लेते थे +कोई ख़ुदा है तो वो कहाँ था मेरी क्या औक़ात लिखूँ +अपनी अपनी तारीकी को लोग उजाला कहते हैं +तारीकी के नाम लिखूँ तो क़ौमें फ़िरक़े ज़ात लिखूँ +जाने ये कैसा दौर है जिस में जुरअत भी तो मुश्किल है +दिन हो अगर तो उस को लिखूँ दिन रात अगर हो रात लिखूँ " +kis-liye-kiije-bazm-aaraaii-javed-akhtar-ghazals," +किस लिए कीजे बज़्म-आराई +पुर-सुकूँ हो गई है तंहाई +फिर ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है +फिर ख़यालात ने ली अंगड़ाई +यूँ सुकूँ-आश्ना हुए लम्हे +बूँद में जैसे आए गहराई +इक से इक वाक़िआ' हुआ लेकिन +न गई तेरे ग़म की यकताई +कोई शिकवा न ग़म न कोई याद +बैठे बैठे बस आँख भर आई +ढलकी शानों से हर यक़ीं की क़बा +ज़िंदगी ले रही है अंगड़ाई " +ye-duniyaa-tum-ko-raas-aae-to-kahnaa-javed-akhtar-ghazals," +ये दुनिया तुम को रास आए तो कहना +न सर पत्थर से टकराए तो कहना +ये गुल काग़ज़ हैं ये ज़ेवर हैं पीतल +समझ में जब ये आ जाए तो कहना +बहुत ख़ुश हो कि उस ने कुछ कहा है +न कह कर वो मुकर जाए तो कहना +बदल जाओगे तुम ग़म सुन के मेरे +कभी दिल ग़�� से घबराए तो कहना +धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है +न पूरे शहर पर छाए तो कहना " +shahr-ke-dukaan-daaro-kaarobaar-e-ulfat-men-suud-kyaa-ziyaan-kyaa-hai-tum-na-jaan-paaoge-javed-akhtar-ghazals," +शहर के दुकाँ-दारो कारोबार-ए-उल्फ़त में सूद क्या ज़ियाँ क्या है तुम न जान पाओगे +दिल के दाम कितने हैं ख़्वाब कितने महँगे हैं और नक़्द-ए-जाँ क्या है तुम न जान पाओगे +कोई कैसे मिलता है फूल कैसे खिलता है आँख कैसे झुकती है साँस कैसे रुकती है +कैसे रह निकलती है कैसे बात चलती है शौक़ की ज़बाँ क्या है तुम न जान पाओगे +वस्ल का सुकूँ क्या है हिज्र का जुनूँ क्या है हुस्न का फ़ुसूँ क्या है इश्क़ का दरूँ क्या है +तुम मरीज़-ए-दानाई मस्लहत के शैदाई राह-ए-गुम-रहाँ क्या है तुम न जान पाओगे +ज़ख़्म कैसे फलते हैं दाग़ कैसे जलते हैं दर्द कैसे होता है कोई कैसे रोता है +अश्क क्या है नाले क्या दश्त क्या है छाले क्या आह क्या फ़ुग़ाँ क्या है तुम न जान पाओगे +ना-मुराद दिल कैसे सुब्ह-ओ-शाम करते हैं कैसे ज़िंदा रहते हैं और कैसे मरते हैं +तुम को कब नज़र आई ग़म-ज़दों की तन्हाई ज़ीस्त बे-अमाँ क्या है तुम न जान पाओगे +जानता हूँ मैं तुम को ज़ौक़-ए-शाएरी भी है शख़्सियत सजाने में इक ये माहरी भी है +फिर भी हर्फ़ चुनते हो सिर्फ़ लफ़्ज़ सुनते हो उन के दरमियाँ क्या है तुम न जान पाओगे " +nigal-gae-sab-kii-sab-samundar-zamiin-bachii-ab-kahiin-nahiin-hai-javed-akhtar-ghazals," +निगल गए सब की सब समुंदर ज़मीं बची अब कहीं नहीं है +बचाते हम अपनी जान जिस में वो कश्ती भी अब कहीं नहीं है +बहुत दिनों बा'द पाई फ़ुर्सत तो मैं ने ख़ुद को पलट के देखा +मगर मैं पहचानता था जिस को वो आदमी अब कहीं नहीं है +गुज़र गया वक़्त दिल पे लिख कर न जाने कैसी अजीब बातें +वरक़ पलटता हूँ मैं जो दिल के तो सादगी अब कहीं नहीं है +वो आग बरसी है दोपहर में कि सारे मंज़र झुलस गए हैं +यहाँ सवेरे जो ताज़गी थी वो ताज़गी अब कहीं नहीं है +तुम अपने क़स्बों में जा के देखो वहाँ भी अब शहर ही बसे हैं +कि ढूँढते हो जो ज़िंदगी तुम वो ज़िंदगी अब कहीं नहीं है " +abhii-zamiir-men-thodii-sii-jaan-baaqii-hai-javed-akhtar-ghazals," +अभी ज़मीर में थोड़ी सी जान बाक़ी है +अभी हमारा कोई इम्तिहान बाक़ी है +हमारे घर को तो उजड़े हुए ज़माना हुआ +मगर सुना है अभी वो मकान बाक़ी है +हमारी उन से जो थी गुफ़्तुगू वो ख़त्म हुई +मगर सुकूत सा कुछ दरमियान बाक़ी है +हमारे ज़ेहन की बस्ती में आग ऐसी लगी +कि जो था ख़ाक हुआ इक दुकान बाक़ी है +वो ज़ख़्म भर गया अर्सा हुआ मगर अब तक +ज़र��� सा दर्द ज़रा सा निशान बाक़ी है +ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी +वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है +अब आया तीर चलाने का फ़न तो क्या आया +हमारे हाथ में ख़ाली कमान बाक़ी है " +mujh-ko-yaqiin-hai-sach-kahtii-thiin-jo-bhii-ammii-kahtii-thiin-javed-akhtar-ghazals," +मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं +जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं +एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया +एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं +एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं +एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थीं +एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं +एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थीं +एक ये दिन जब ज़ेहन में सारी अय्यारी की बातें हैं +एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं +एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का +एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं +एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामाँ रहता है +एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं " +dil-men-mahak-rahe-hain-kisii-aarzuu-ke-phuul-javed-akhtar-ghazals," +दिल में महक रहे हैं किसी आरज़ू के फूल +पलकों पे खिलने वाले हैं शायद लहू के फूल +अब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़ हर्फ़ +अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ़्तुगू के फूल +कलियाँ चटक रही थीं कि आवाज़ थी कोई +अब तक समाअतों में हैं इक ख़ुश-गुलू के फूल +मेरे लहू का रंग है हर नोक-ए-ख़ार पर +सहरा में हर तरफ़ हैं मिरी जुस्तुजू के फूल +दीवाने कल जो लोग थे फूलों के इश्क़ में +अब उन के दामनों में भरे हैं रफ़ू के फूल " +suukhii-tahnii-tanhaa-chidiyaa-phiikaa-chaand-javed-akhtar-ghazals," +सूखी टहनी तन्हा चिड़िया फीका चाँद +आँखों के सहरा में एक नमी का चाँद +उस माथे को चूमे कितने दिन बीते +जिस माथे की ख़ातिर था इक टीका चाँद +पहले तू लगती थी कितनी बेगाना +कितना मुबहम होता है पहली का चाँद +कम हो कैसे इन ख़ुशियों से तेरा ग़म +लहरों में कब बहता है नद्दी का चाँद +आओ अब हम इस के भी टुकड़े कर लें +ढाका रावलपिंडी और दिल्ली का चाँद " +ham-ne-dhuunden-bhii-to-dhuunden-hain-sahaare-kaise-javed-akhtar-ghazals," +हम ने ढूँडें भी तो ढूँडें हैं सहारे कैसे +इन सराबों पे कोई उम्र गुज़ारे कैसे +हाथ को हाथ नहीं सूझे वो तारीकी थी +आ गए हाथ में क्या जाने सितारे कैसे +हर तरफ़ शोर उसी नाम का है दुनिया में +कोई उस को जो पुकारे तो पुकारे कैसे +दिल बुझा जितने थे अरमान सभी ख़ाक हुए +राख में फिर ये चमकते हैं शरारे कैसे +न तो दम लेती है तू और न हवा थमती है +ज़िंदगी ज़ुल्फ़ तिरी कोई सँवारे कैसे " +na-khushii-de-to-kuchh-dilaasa-de-javed-akhtar-ghazals," +न ख़ुशी दे तो कुछ दिलासा दे +दोस्त जैसे हो मुझ को बहला दे +आगही से मिली है तन्हाई +आ मिरी जान मुझ को धोका दे +अब तो तकमील की भी शर्त नहीं +ज़िंदगी अब तो इक तमन्ना दे +ऐ सफ़र इतना राएगाँ तो न जा +न हो मंज़िल कहीं तो पहुँचा दे +तर्क करना है गर तअ'ल्लुक़ तो +ख़ुद न जा तू किसी से कहला दे " +shukr-hai-khairiyat-se-huun-saahab-javed-akhtar-ghazals," +शुक्र है ख़ैरियत से हूँ साहब +आप से और क्या कहूँ साहब +अब समझने लगा हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ +अब कहाँ मुझ में वो जुनूँ साहब +ज़िल्लत-ए-ज़ीस्त या शिकस्त-ए-ज़मीर +ये सहूँ मैं कि वो सहूँ साहब +हम तुम्हें याद करते रो लेते +दो-घड़ी मिलता जो सुकूँ साहब +शाम भी ढल रही है घर भी है दूर +कितनी देर और मैं रुकूँ साहब +अब झुकूँगा तो टूट जाऊँगा +कैसे अब और मैं झुकूं साहब +कुछ रिवायात की गवाही पर +कितना जुर्माना मैं भरूँ साहब " +mere-dil-men-utar-gayaa-suuraj-javed-akhtar-ghazals," +मेरे दिल में उतर गया सूरज +तीरगी में निखर गया सूरज +दर्स दे कर हमें उजाले का +ख़ुद अँधेरे के घर गया सूरज +हम से वा'दा था इक सवेरे का +हाए कैसा मक्र गया सूरज +चाँदनी अक्स चाँद आईना +आईने में सँवर गया सूरज +डूबते वक़्त ज़र्द था उतना +लोग समझे कि मर गया सूरज " +yaqiin-kaa-agar-koii-bhii-silsila-nahiin-rahaa-javed-akhtar-ghazals," +यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा +तो शुक्र कीजिए कि अब कोई गिला नहीं रहा +न हिज्र है न वस्ल है अब इस को कोई क्या कहे +कि फूल शाख़ पर तो है मगर खिला नहीं रहा +ख़ज़ाना तुम न पाए तो ग़रीब जैसे हो गए +पलक पे अब कोई भी मोती झिलमिला नहीं रहा +बदल गई है ज़िंदगी बदल गए हैं लोग भी +ख़ुलूस का जो था कभी वो अब सिला नहीं रहा +जो दुश्मनी बख़ील से हुई तो इतनी ख़ैर है +कि ज़हर उस के पास है मगर पिला नहीं रहा +लहू में जज़्ब हो सका न इल्म तो ये हाल है +कोई सवाल ज़ेहन को जो दे जला नहीं रहा " +dil-kaa-har-dard-kho-gayaa-jaise-javed-akhtar-ghazals," +दिल का हर दर्द खो गया जैसे +मैं तो पत्थर का हो गया जैसे +दाग़ बाक़ी नहीं कि नक़्श कहूँ +कोई दीवार धो गया जैसे +जागता ज़ेहन ग़म की धूप में था +छाँव पाते ही सो गया जैसे +देखने वाला था कल उस का तपाक +फिर से वो ग़ैर हो गया जैसे +कुछ बिछड़ने के भी तरीक़े हैं +ख़ैर जाने दो जो गया जैसे " +hamaare-dil-men-ab-talkhii-nahiin-hai-javed-akhtar-ghazals," +हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है +मगर वो बात पहले सी नहीं है +मुझे मायूस भी करती नहीं है +यही आदत तिरी अच्छी नहीं है +बहुत से फ़ाएदे हैं मस्लहत में +मगर दिल की तो ये मर्ज़ी नहीं है +हर इक की दास्ताँ सुनते हैं जैसे +कभी हम ने मोहब्बत की नहीं है +है इक दरवाज़े बिन दीवार-ए-दुनिया +मफ़र ग़म से यहाँ कोई नहीं है " +saarii-hairat-hai-mirii-saarii-adaa-us-kii-hai-javed-akhtar-ghazals," +सारी हैरत है मिरी सारी अदा उस की है +बे-गुनाही है मिरी और सज़ा उस की है +मेरे अल्फ़ाज़ में जो रंग है वो उस का है +मेरे एहसास में जो है वो फ़ज़ा उस की है +शेर मेरे हैं मगर इन में मोहब्बत उस की +फूल मेरे हैं मगर बाद-ए-सबा उस की है +इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में +शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है +हम ने क्या उस से मोहब्बत की इजाज़त ली थी +दिल-शिकन ही सही पर बात बजा उस की है +एक मेरे ही सिवा सब को पुकारे है कोई +मैं ने पहले ही कहा था ये सदा उस की है +ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के +वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है +उस ने ही इस को उजाड़ा है इसे लूटा है +ये ज़मीं उस की अगर है भी तो क्या उस की है " +jab-aaiina-koii-dekho-ik-ajnabii-dekho-javed-akhtar-ghazals," +जब आईना कोई देखो इक अजनबी देखो +कहाँ पे लाई है तुम को ये ज़िंदगी देखो +मोहब्बतों में कहाँ अपने वास्ते फ़ुर्सत +जिसे भी चाहे वो चाहे मिरी ख़ुशी देखो +जो हो सके तो ज़ियादा ही चाहना मुझ को +कभी जो मेरी मोहब्बत में कुछ कमी देखो +जो दूर जाए तो ग़म है जो पास आए तो दर्द +न जाने क्या है वो कम्बख़्त आदमी देखो +उजाला तो नहीं कह सकते इस को हम लेकिन +ज़रा सी कम तो हुई है ये तीरगी देखो " +vo-zamaana-guzar-gayaa-kab-kaa-javed-akhtar-ghazals," +वो ज़माना गुज़र गया कब का +था जो दीवाना मर गया कब का +ढूँढता था जो इक नई दुनिया +लूट के अपने घर गया कब का +वो जो लाया था हम को दरिया तक +पार अकेले उतर गया कब का +उस का जो हाल है वही जाने +अपना तो ज़ख़्म भर गया कब का +ख़्वाब-दर-ख़्वाब था जो शीराज़ा +अब कहाँ है बिखर गया कब का " +ham-to-bachpan-men-bhii-akele-the-javed-akhtar-ghazals," +हम तो बचपन में भी अकेले थे +सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे +इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के +इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे +थीं सजी हसरतें दुकानों पर +ज़िंदगी के अजीब मेले थे +ख़ुद-कुशी क्या दुखों का हल बनती +मौत के अपने सौ झमेले थे +ज़ेहन ओ दिल आज भूके मरते हैं +उन दिनों हम ने फ़ाक़े झेले थे " +misaal-is-kii-kahaan-hai-koii-zamaane-men-javed-akhtar-ghazals," +मिसाल इस की कहाँ है कोई ज़माने में +कि सारे खोने के ग़म पाए हम ने पाने में +वो शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गई जैसे +अजीब बात हुई है उसे भुलाने में +जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंद�� +कि हम ने देर लगा दी पलट के आने में +लतीफ़ था वो तख़य्युल से ख़्वाब से नाज़ुक +गँवा दिया उसे हम ने ही आज़माने में +समझ लिया था कभी इक सराब को दरिया +पर इक सुकून था हम को फ़रेब खाने में +झुका दरख़्त हवा से तो आँधियों ने कहा +ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुकने टूट जाने में " +._ham-ko-mitaa-sake-ye-zamaane-men-dam-nahiin-jigar-moradabadi-ghazals, +._tum-apne-shikve-kii-baaten-na-khod-khod-ke-puuchho-mirza-ghalib-ghazals, +._har-ek-baat-pe-kahte-ho-tum-ki-tuu-kyaa-hai-mirza-ghalib-ghazals, +._ye-na-thii-hamaarii-qismat-ki-visaal-e-yaar-hotaa-mirza-ghalib-ghazals, +._aaj-yuun-mauj-dar-mauj-gam-tham-gayaa-is-tarah-gam-zadon-ko-qaraar-aa-gayaa-faiz-ahmad-faiz-ghazals-1, +._aflaak-se-aataa-hai-naalon-kaa-javaab-aakhir-allama-iqbal-ghazals, +._tang-aa-chuke-hain-kashmakash-e-zindagii-se-ham-sahir-ludhianvi-ghazals, +._mir-taqi-mir-ghazals-80,